Saturday, January 10, 2015

HEAVEN-HELL स्वर्ग-नरक :: HINDU PHILOSOPHY (5.3) हिन्दु दर्शन शास्त्र

HEAVEN-HELL स्वर्ग-नरक
HINDU PHILOSOPHY (5.3) हिन्दु दर्शन शास्त्र
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
By :: Pt. Santosh Bhardwaj
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ॐ गं गणपतये नम:।
अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।
निराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि
[श्रीमद्भगवद्गीता 2.47]
जीव, भोग देह का परित्याग करके पुनः गर्भ में आता है।जीव वायु रूप होकर गर्भ में प्रवेश करता है। केवल मनुष्यों को मृत्यु के उपरांत एक आतिवाहिक संज्ञक शरीर प्राप्त होता है। अन्य किसी भी प्राणी को वह नहीं मिलता और न ही वे यमलोक को ले जाये जाते हैं। यह लोक कर्म भूमि है और परलोक फल भूमि। यम दूत जब किसी पुण्य वान को धर्मराज के पास लेकर जाते हैं, तो वे उसका पूजन करते हैं और यदि कोई पापी ले जाया जाता है तो उसे दण्ड मिलता है। भोग देह दो प्रकार की हैं: शुभ और अशुभ। भोग देह के द्वारा कर्मफल भोग लेने के बाद जीव पुनः मर्त्य लोक में गिरा दिया जाता है। उसके त्यागे हुए शरीर को निशाचर खा जाते हैं। A sin committed in the plains of Ganga and Yamuna, any of the Tirth or the 7 Puri-Kashi, Ayodhya, Jaggan Nath Puri, is sufficient to send the soul to hells and in numerable cycle of births and rebirths.
यदि जीव भोग देह के माध्यम से पहले स्वर्ग का सुख पाता है, तो उसे पुनः पापियों के योग्य भोग शरीर धारण कर नरक की यातना सहनी पड़ती है और तदुपरान्त जीव को पशु पक्षी या तियर्ग योनि-कीड़े मकोड़े के रूप में जन्म लेना पड़ता है। 
यदि पहले पाप का फल भोग कर प्राणी स्वर्ग जाता है तो उसे देवोचित शरीर मिलता है। स्वर्ग जाने वाले प्राणी को भोग काल समाप्त होने पर पवित्र आचार विचार वाले धनवानों के घर जन्म प्राप्त होता है। 
जो व्यक्ति जिस पाप से सम्पर्क रखता है उसी का कोई चिन्ह लेकर जन्म ग्रहण करता है।
As soon as one dies, he acquires an immaterial body, similar to the one he possessed before death. He is taken to hell or heaven as per his deeds. He undergoes torture-pain in the hell for the sins he has committed. Those who insult the deities-demigods are the worst possible sinners. Those who make fun-insult, the deities-Brahmns are bound to be lodged in hell. Only place suitable for the sinner is hell. 
Killing-eating flash, meat, fish drinking-consuming wine, pushing women into prostitution are sins, leading to reservation of birth in unspecified hell, millions of years.[पद्म पुराण के पाताल खण्ड का सारांश] 
(1). विदेह राजा जनक ने धर्म राज से पूछा कि उन्हें किस अपराध के कारण नर्क तक आना पड़ा? धर्म राज ने उन्हें बताया कि किसी गाय को उन्होंने चरने से रोका था। अत: उन्हें नर्क के द्वार तक आना पड़ा। गाय को घर में प्यास रहना पड़े, घास चरने से रोका जाये, डंडे आदि से मारा जाये, काटा जाये; तो ऐसा करने वाला नरक गामी होता है। यही स्थिति गौ माँस खाने, बेचने, खरीदने वालों की भी होती है।
(2). गौ से द्रोह करने वाला, किंकर नामक नरक में, गौ के रोमों की सँख्या से हजार गुना वर्षों तक रहता है। 
(3). जो लोग प्राणियों का वध करते हैं, उन्हें रौरव नर्क में डाला जाता है, जहाँ रुरु नामक पक्षी उसका शरीर नोचते हैं। 
(4). जो पेट भरने के लिये जीव हत्या करता है, उसे महा रौरव नामक नर्क में डाला जाता है। 
(5). दूसरों का धन चुरा कर स्वयं भोगने वाले के दोनों हाथों को काट कर पूयशोणित नरक में पकाया जाता है। 
(6). संध्याकाल में भूख से पीड़ित अथिति का स्वागत सत्कार न करने वाला अंधकार से भरे तामिस्र नर्क में गिराया जाना और सौ वर्ष तक भ्रमरों से होकर यातना भोगता है।
(7). दूसरों की निन्दा करने व सुनने वाला अन्धकूप में पड़ता है। 
(8). मित्रद्रोही को रौरव नरक में पड़ना पड़ता है।
(9). अपने पिता और ब्राह्मण से द्वेष करने वाले को अति दुःख कारक कालसूत्र नरक में निवास प्राप्त होता है।
(10). विद्या और आचार का धमण्ड रखकर गुरुजनों का अनादर-द्रोह करने वाला मुँह नीचे करके क्षार नामक नर्क में गिराया जाता है। 
(11). ब्राह्मण की गौवों, धन, द्रव्य जीविका हरण करने वाला अंध कूप नरक में भयानक कष्टों का भागी होता है। 
(12). ब्राह्मण का धन या स्वर्ण चोरी करने वाला संदंश नामक नरक में गिरता है। 
(13). राजा न होते हुए भी जो किसी को दण्ड देता है और ब्राह्मण को शारीरिक दण्ड देता है, उसे सूअर के मुँह वाले दुष्ट-भयंकर यमदूतों से पीड़ा प्राप्त होती है और अनेक दुष्ट-हीन योनियों में जन्म लेना पड़ता है।
(14). जीभ के स्वाद-लोलुपता वश, जो मधुर अन्न स्वयं ही चट कर जाता है और दूसरों या देवताओं को नहीं देता वो कृमि भोज नमक नर्क में पड़ता है। 
(15). जो व्यक्ति दूसरों की उपेक्षा कर केवल अपने शरीर का पोषण करता है, वो तपाये हुए तेल से भरे कुम्भी पाक नरक की यातनाँए पाता है।
(16). बल से उन्मत्त वेद मर्यादा का लोप करने वाला वैतरणी में डूबकर माँस व रक्त का भोजन करता है।
(17). धर्म से बहिष्कृत होकर विश्वास घात करने वाले को शूलप्रोत नरक में गिराया जाता है। 
(18). धूर्त के द्वारा धोका देने और दम्भ का सहारा लेने पर वैशस नामक नरक में गिरना पड़ता है। 
(19). चोर, आग लगाने वाला, दुष्ट, जहर देने वाला, गाँवों को लूटने वाला सारमेयादन नरक पाता है। 
(20). झूठी गवाही देने वाला, दूसरे का धन छीनने वाला अवीचि नर्क में सर नीचे करके डाला जाता है और फिर अत्यन्त पाप मयी नीच-हीन योनियों में जन्म पाता है।
(21). सुरा पान करने वाले को गर्म-गर्म पिघला हुआ लोहा पिलाया जाता है। 
(22). चुगली करने वाले को दंद शूक नामक नरक में डाल कर साँपों द्वारा डसवाया जाता है।
(23). रजस्वला कन्या घर में अविवाहित रहे, देवताओं पर चढ़ाया हुआ पहले का निर्माल्य पड़ा रहे तो ये दोष पहले के किये हुए पुण्य को नष्ट कर डालते हैं। 
(24). मित्र की पत्नी जो उस पर पूर्ण विश्वास करती थी, के साथ बलात्कार करने वाला पहले लोह शंकु नरक में दस हजार साल तक पकाया जाता है, फिर सूअर की योनि में जाता है और अन्त में मनुष्य योनि में नपुंसक के रूप में जन्म लेता है। 
(25). पराई स्त्री के साथ आलिंगन करने वालों को सौ वर्ष तक नरक में पकाया जाता है। 
(26). अगम्या स्त्री के साथ पत्नी के समान सम्बन्ध बनाने वाला, उसी स्त्री की तपायी गई लोहे की मूर्ति के साथ आलिंगन करता है। 
(27). जो द्विज शुद्र की स्त्री को अपनी पत्नी बना कर गृहस्थी चलाता है वह पूयोद नरक में पड़कर बहुत दुःख भोगता है।
(28). सगोत्री स्त्री का भोग करने वाला वीर्य की नहर में डाला जाता है और वीर्य पान करता है। 
(29). पराया धन, संतान या स्त्री को भोग के लिए जो जबरदस्ती छीन लेता है, उसे 1,000 वर्ष तक तामिस्र नामक नरक में प्रताड़ित किया जाता है। तब जाके उसे सूअर की योनि में जन्म मिलता है, जिससे छूटने पर ही उसे मानव योनि मिलती है और यहाँ भी उसे भयानक कष्ट और बीमारी का सामना करना पड़ता है।
(30). जो व्यक्ति दूसरे प्राणियों से द्रोह करके अपना कुटुम्ब पालता है उसे अंध तामिस्र नरक में पड़ता है। 
(31). जो व्यक्ति मन, वाणी, बुद्धि तथा क्रिया द्वारा धर्म-भगवत् भक्ति से च्युत है; दूसरे का खेत, जीविका, घर-सम्पत्ति, प्रीति तथा आशाओं का उच्छेद करता है वो नरक का भागी है।
(32). जो मूर्ख व्यक्ति जीविका का कष्ट भोगते हुए ब्राह्मणों को समर्थ होते हुए भी भोजन नहीं देता, वो नरक गामी होता है। 
(33). अनाथ-भगवत् भक्त, दीन, रोगातुर तथा वृद्ध पर जो दया नहीं करता, वो नरक गामी होता है। 
(34). One who dies without paying loans, goes to hells and on release from there, gets birth as Mule, ass, horse, elephant, camel, ox, Yak etc. the animals which carry load.
पाप का परिणाम नर्क :: पापी जीव को यमदूत दुर्गम मार्ग से यमपुरी के दक्षिण द्वार से यम राज के पास ले जाते है। तत्पश्चात उन्हें नरकों में गिरा दिया जाता है।
गौ हत्यारा :: महा वीचि में एक लाख वर्ष तक पीड़ित किया जाता है।
ब्रह्मघाती-हत्यारा :: अत्यन्त दहकते हुए ताम्रकुम्भ में फेंका जाता है।
भूमि का अपहरण करने वाला :: महा प्रलयकाल तक रौरव-नरक में धीरे-धीरे दुःसह पीड़ा दी जाती है।
स्त्री, बालक, वृद्ध हत्यारा :: 14 इन्द्रों के राज्य काल तक महारौरव में क्लेश भोगते हैं।
दूसरे के खेत और घर को जलाने वाला :: भयंकर महारौरव में एक कल्प पर्यन्त तक पकाये जाता है।
चोरी करने वाला :: तामिस्त्र में अनेक कल्पों तक यमराज के अनुचरों द्वारा भालों से बींधा जाता है। उसके बाद महा तामिस्त्र में सर्पों और जोकों द्वारा पीड़ित किया जाता है।
मातृघाती :: असिपत्रवन में उनके अंग तब तक कटे जाते हैं, जब तक पृथ्वी है।
दूसरे प्राणियों के ह्रदय को जलाने वाला: करम्भ वालुका में जलती हुई रेत में भुना जाता है।
दूसरों को दिए बिना अकेले मिष्ठान्न खाने वाला :: काकोल में कीड़ा और विष्ठा का भक्षण करता है।
पञ्च महायज्ञ और नित्य कर्म का परित्याग करने वाला :: कुट्टल में मूत्र और रक्त का पान करता है।
अभक्ष्य का भक्षण करने वाला :: महा दुर्गन्धमय नरक में गिरकर रक्त का आहार करता है।
दूसरों को कष्ट देने वाला ::  तैलपाक में तिलों की भांति पेरा जाता है।
शरणागत का वध करने वाला :: तैलपाक में गिराया जाता है।
यज्ञ में प्रतिज्ञा करके न देने वाला :: निरुच्छास में पड़ता है।
रस-विक्रय करने वाला :: वज्र कताह में पड़ता है।
असत्य भाषण करने वाला :: महापात में गिराया जाता है।
पाप पूर्ण विचार करने वाला :: महाज्वाल में पड़ता है।
अगम्य स्त्री के साथ गमन करने वाला :: क्रकच में पड़ता है।
वर्ण संकर संतान उत्पन्न करने वाला :: गुडपाक में पड़ता है।
दूसरों के मर्म स्थल पर पीड़ा पहुँचाने वाला :: प्रतुद में पड़ता है।
प्राणी हिंसा करने वाला :: क्षारहृद में पड़ता है।
भूमि का अपहरण करने वाला :: क्षुरधार में पड़ता है।
गौ और स्वर्ण की चोरी करने वाला :: अम्बरीष में पड़ता है।
वृक्ष काटने वाला :: वज्र शस्त्र में पड़ता है।
मधु चुराने वाला :: परिताप में पड़ता है।
दूसरों का धन अपहरण करने वाला :: कालसूत्र में पड़ता है।
अधिक माँस खाने वाला :: कश्मल में पड़ता है।
पितरों को पिंड न देने वाला :: उग्र गन्ध में पड़ता है।
घूस खाने वाला :: दुर्धर में पड़ता है।
निरपराध मनुष्यों को कैद करने वाला :: लौहमय मंजूष में ले जाकर कैद किये जाते हैं।
वेद निन्दक :: अप्रतिष्ठ में गिराया जाता है।
झूठी गवाही देने वाला :: पूति वक्त्र में पड़ता है।
धन का अपहरण करने वाला :: परिलुण्ठ में पड़ता है।
स्त्री, बालक, वृद्ध हत्यारा और ब्राह्मण को पीड़ा देने वाला :: कराल में गिराया जाता है।
मद्यपान करने वाला ब्राह्मण :: विलेप में गिराया जाता है।
मित्रों में परस्पर भेदभाव करने वाला :: महाप्रेत में गिराया जाता है।
पराई स्त्री का उपभोग करने वाला और अनेक पुरुषों से सम्भोग करने वाली स्त्री :: शाल्मल में जलती लौहमयी शिला रूपी अपने प्रेमी के साथ आलिंगन करना पड़ता है।
चुगली करने वाला :: उसकी जीभ खींचकर निकल ली जाती है।
पराई स्त्री को कुदृष्टि से देखने वाला ::  उसकी आँख भोड़ दी जाती है।
माता और पुत्री के साथ व्यभिचार करने वाला :: धधकते हुए अंगारों पर फैंक जाता है।
चोर :: छुरी से काटे जाते हैं।
माँस भक्षण करने वाला :: उसी का माँस नर पिशाचों को काटकर खिलाया जाता है।
मासोपवास, एकादशी व्रत अथवा भीष्म पञ्चक व्रत करने वालों को नरकों में नहीं गिराया जाता।
जो व्यक्ति वेद, देवता, द्विजातियों की सदा निंदा करते हैं, पुराण और इतिहास के अर्थों में आदर बुद्धि या श्रद्धा नहीं रखते, गुरुओं की निंदा करते हैं, यज्ञों में बाधा डालते हैं, दाता को दान देने से रोकते हैं वे सभी प्रेत योनि में जाकर उपरोक्त नरकों को आबाद करते हैं।
One who do not respect-honour the scriptures, insults the Guru-Holy persons, sages, seers, obstruct donation to the genuine person, obstruct performance of Yagy, Hawan, Agni Hotr, Prayers, rituals become spirits before sentencing them to rigorous tortures-punishments. They acquire an immaterial body identical to one they possessed before their death in the current life-birth. Such people inhibit Hells after their death.
जो अधम व्यक्ति मित्र, स्त्री-पुरुष,सहोदर-भाई, स्वामी-सेवक, पिता-पुत्र एवं आचार्य-यजमान, में परस्पर झगड़ा करवाते हैं और जो कन्या एक जगह ब्याह कर पुनः दूसरी जगह उसकी शादी करवाते हैं, उन्हें यमदूतों द्वारा नरकों में आरे से चीरा जाता है। 
One who create differences among the friends, relatives and those who remarry their daughters to some one else, are cut into pieces in various hells.
दूसरोँ को संताप देना, चन्दन और खस की चोरी करना बालों और चँवर से बना सामान चोरी करना, करम्भसिकता नामक नरक में पहुँचता है। 
देव या पितृ श्राद्ध में निमन्त्रण को स्वीकार करने के बाद भी अन्यत्र भोजन करने वाले को तेज चोंच वाले नरकपक्षी दोनों ओर से पकड़ कर खींचते हैं। 
साधुओं को तीखे वचनोँ से चोट पहुँचाने वाला उनके दिल को दुखाने वाला, उनकी चुगली-निंदा करने वाला भयंकर पक्षियों की चौंच से आहत किया जाता है और उसकी जीभ को वज्र तुल्य चोंच और नख वाले कौए खींचते हैं। 
जो लड़के अपने पिता-पिता एवं गुरु की उचित आज्ञा का उल्लंघन करते हैं, उन्हें पीव, विष्ठा एवं मूत्र से भरे अप्रतिष्ठ नमक नरक में मुँह नीचे करके डुबाया जाता है।
The sinner is taken to Yam Puri through South opening-gate to be presented before Yam Raj for award of rigorous punishments for his sins. Chitr Gupt pronounce his sins. On hearing those, Yam Raj asks the dreaded Yam Doots (messengers, agents) to throw the sinner in various Hell.
Cow slaughters-butchers :: Maha Vichi for torturous 1,00,000 years.
Killer of Brahmns :: Thrown into flaming-burning Tamr Kumbh.
Land grabber-snatcher :: He is tortured extremely and slowly in Maha Rourav hell till the Dooms day.
Killer of children, women and the old :: He bears extreme troubles-tensions in Maha Rourav hell till the period of 14 Indr-the king of heavens is elapsed. Please refer to :: ANCIENT HINDU CALENDAR काल गणनाsantoshkipathshala.blogspot.com
One who burns the crops and homes of others :: He is cooked for one Kalp-Brahma Ji's one day, in dangerous-dreaded Maha Rourav. Please refer to :: ANCIENT HINDU CALENDAR काल गणनाsantoshkipathshala.blogspot.com
Thief :: He is pierced for many Kalps by the servants of Yam Raj in Tamistr. Thereafter, he is tortured by snakes and leeches.
Mother's murderer-killer :: His organs are cut in the Asi Patr Van till the earth survives. 
Prayers, donations-charity, fasting, bathing in pious rivers, ponds, lakes on auspicious occasions-festivals, vising holy places-shrines, holy rivers, helping poor, down trodden, weaker sections of society, participation in religious activities, chanting Mantr-Prayers, recitation-singing, remembering of God's names on auspicious occasions, meditation, asceticism, thinking-analysing God's deeds are some of the actions which helps in getting rid from sins which carry the sinners to rigorous hells. On being released from the hells the soul goes to the lower species like insects, worms, animals.
अनेकचित्तविभ्रान्ता मोहजालसमावृताः। 
प्रसक्ताः कामभोगेषु पतन्ति नरकेऽशुचौ॥
कामनाओं के कारण तरह-तरह से भ्रमित चित्त वाले, मोह जाल में पूरी तरह फँसे हुए तथा पदार्थों और भोगों में अत्यन्त आसक्त रहने वाले मनुष्य भयंकर नरकों में गिरते हैं।[श्रीमद् भगवद्गीता 16.16] 
Bewildered by many fancies, badly confused-illusioned by the multiple desires, badly struck in the allurements-attachments and attracted-addicted towards various commodities and sensuality, passions, comforts-luxuries people with demonic-devilish tendencies fall in various kinds of hells.
आसुरी प्रवृत्ति-हैवानियत मनुष्य को कभी चैन से बैठने नहीं देती। वह हर वक़्त इसी उधेड़बुन में रहता है कि किस प्रकार कामनाओं, वासनाओं, जरूरतों की पूर्ति हो। उनका चित्त कभी शान्त-सन्तुष्ट नहीं रहता। वस्तुओं, सम्बन्धियों, नाते-रिश्तेदारों, पुत्र-पत्नी का मोह उनकी इच्छाओं की पूर्ति, उसे हमेशाँ कमाने-खाने में व्यस्त रखती है। इस सबके लिए वह तरह-तरह के झूँठ, कपट, धोखा-धड़ी, छल-छंद करता है और पाप कार्यों में लिप्त रहता है, जिससे उसे बेहद खतरनाक-भयंकर नरकों में गिरकर यातनाएँ झेलनी पड़ती हैं। वह इस बात की परवाह भी नहीं करता कि अगले जन्म या आने वाले वक्त में उसका क्या होगा!?
The illusioned suffering from demonic character is always busy designing ways and means to commit crimes, frauds, forgeries, scams, to gather wealth through dubious means-sins. He is trying to satisfy the desires of relatives, son & wife for comforts, luxuries, money etc. 
He is badly tied in earning money for them. He is prepared to go to any extreme including murders, dacoities, narcotics trade, buying selling women and pushing them into prostitution. These acts are sinful and the doer is bound to remain in dreaded-torturous hells. The political class of today is the worst possible in this category. The Britishers, Muslim invaders-intruders too fall in this class. Kim, Assad, Baghdadi, Chinese-Pakistani rulers and the rulers in India as well, are identical in this regard. They do all sinful acts without the inking of the thought of their future or the next birth.
Muslim & Sikh-Khalistani terrorists keep on planning new ways and means of mass murders-genocide. They do it to satisfy their lust, gain money and eye power in the territories under their control.
Those in power are often found to have close contacts with them and escape the clutches of the law due to their influence & position. 
तानहं द्विषतः क्रुरान्संसारेषु नराधमान्। 
क्षिपाम्यजस्रमशुभानासुरीष्वेव योनिषु॥
उन द्वेष करने वाले, क्रूर स्वभाव वाले और संसार में अत्यधिक नीच, अपवित्र मनुष्यों को मैं बार-बार आसुरी योनियों में ही गिराता रहता हूँ।[श्रीमद् भगवद्गीता 16.19] 
The Almighty resolved that HE send the mean, wretched, impure people with demonic traits who possess rivalry-hatred, cruelty, sinfulness for others, to Demonic species again and again.
परमात्मा द्वेष करने वाले, क्रूर स्वभाव वाले, अत्यधिक नीच-अधम, अपवित्र मनुष्यों को बार-बार आसुरी योनियों (साँप, मगरमच्छ, कुत्ता, शेर, भेड़िया आदि) में ही भेजते रहते हैं। नर्क में वास से तो पाप नष्ट होते हैं, परन्तु नीच प्रवृति के मनुष्यों के संग-साथ से पाप बढ़ते हैं। अतः मनुष्य को अपने बच्चों के लालन-पालन में इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिये। नौकरों के सहारे पलने वाले बच्चों में अच्छे संस्कारों का अभाव स्वाभाविक है। नौकरों के संसार अच्छे हैं, इस बात का प्रमाण मिलना मुश्किल है। आजकल ऐसा रिवाज़ हो गया है कि माँ-बाप बच्चे को सुधारने वाले शिक्षक को प्रताड़ित करने से बाज़ नहीं आते और परिणाम भी सामने आ जाता है। 
The Almighty never delays in sending the cruel, notorious, dreaded criminals, murderers to hells & demonic species. Hell is certainly better than the company of the wretched, smeared since hells cut off the sins, but company of the villains is sure to lead one to wrong direction. It has become a fashion to rush to school and hit the teacher, who ask the child to improve. The TV channels, news papers and the media make a lot of hue and cry and tarnish the image of the sincere teachers who try to improve the child. The child commit numerous mistakes which needs to be eliminated but the parents prevent this. The teacher in his zeal to improve the child, too cross the boundary-limit! The unworthy parents have to repent later throughout their life. As is the trend, the servants look after the child and invariably bad habits are passed on to the child. As one finds out; most of the criminals, terrorists, anti nationals, spoilt people were not reared properly, in their childhood. They are low on education, culture, virtues and morals. A certain segment of society following other religious practices, is taught demonic tendencies, traits, sinful acts from the very early childhood. A new trend has emerged. Innocent children are made to become human bombs, terrorists, out laws. They are trained to commit murders, rapes, loot, dacoity, invasion, burglary etc. etc. In Jhar Khand, India, there are schools which train the youngsters to commit cyber crimes. Thousands of Nigerians over stays & commit cyber crimes, frauds, narcotics trade in India, almost everyday. However, it is certain & is a prophecy that this segment of society will vanish sooner or later, automatically.
Young couples who are employed rarely feel the need to pay enough attention to their progeny. There creche to look after them. The values, culture, society of creche owners, servants are copied by the infants and remain as such throughout their life.
The teachers too are rarely good enough to educate children. Reservation has totally spoiled education and values. There is no place for values, morals, scriptures in the curriculum. The teachers, principals lack morality. The principal lack administrative, managerial, supervisory skills. The education is westernised. The syllabus was heavily in favour of the Mughal emperors (brutal killers-murderer), Muslims.
आसुरीं योनिमापन्ना मूढा जन्मनि जन्मनि। 
मामप्राप्यैव कौन्तेय ततो यान्त्यधमां गतिम्॥
हे कुन्ती नन्दन! वे मूढ़ मनुष्य मुझे प्राप्त न करके जन्म-जन्मान्तर में आसुरी योनि को प्राप्त होते हैं, फिर उससे भी अधिक अधम गति में अर्थात भयंकर नरकों में चले जाते हैं।[श्रीमद् भगवद्गीता 16.20] 
The Almighty addressed Arjun as Kunti Nandan and elaborated further. The ignorant-deluded with demonic traits do not desire of assimilation in the God and continue taking birth in demonic species, ultimately leading to fearsome hells.
आसुरी प्रवृति के मनुष्य परमात्मा को प्राप्त करने के सुअवसर, मानव योनि में जन्म को व्यर्थ कर देते हैं और पुनः-पुनः हीन आसुरी योनियों में जन्म लेते हैं। आसुरी योनि (भूत, प्रेत, पिशाच, ब्रह्म राक्षस, कबन्ध-सिर कट जाने पर बचा हुआ धड़ जो चलने, फिरने में समर्थ होता है, चुड़ैल आदि) में जन्म, उनके पापों के भोग के लिए अपर्याप्त होता है और फिर उन्हें भयङ्कर नरकों से गुजरना पड़ता है। मानव शरीर प्राप्ति का उद्देश्य-अवसर केवल मात्र भगवत प्राप्ति हेतु है। यही वो दुर्लभ अवसर है जब मनुष्य अपने स्वभाव में परिवर्तन कर सकता है, क्योंकि स्वभाव देव योनियों में प्रवेश करके भी नहीं बदलता। इसीलिये मानव योनि को देव योनियों से भी श्रेष्ठ और दुर्लभ माना गया है। 
One, who still possess demonic traits even after taking birth as a human being, wastes this opportunity-chance; is sure to fall in lower demonic species. Such people repeatedly take birth as low species carnivores-cannines. There are others who move to species like ghosts, Dracula and experience pain, torture and sorrow while teasing others. These species too find inability to punish-modify them and they are further subjected to hells full of pains, turmoil, rigorous torture. The God is very kind, since he has awarded an opportunity to humans to mend their ways and assimilate in HIM. The basic traits of one remain unchanged even after a stay-stint in heaven. Its only the earth and birth as a human being which comes as God gift to refine, improve him self. This is why the birth as a human being becomes superior to angles, demigods, deities, demigods of lower hue. One has to analysis-meditate and find faults with him to correct them and decide not to commit the earlier mistakes. If he finds himself incapable of doing that, he should seek asylum, shelter, protection & help from the God.
सूर्यग्रहण या चन्द्रग्रहण के समय भोजन करने वाला मनुष्य जितने अन्न के दाने खाता है, उतने वर्षों तक अरुतुन्द नामक नरक में वास करता है। फिर वह उदर रोग से पीड़ित मनुष्य होता है फिर गुल्मरोगी, काना और दंतहीन होता है। [देवी भागवत पुराण]
जीव को यमराज के दूत आतिवाहिक शरीर में पहुँचते हैं। यमलोक का मार्ग अति भयंकर और 86,000 योजन लम्बा है। यमराज के आदेश से चित्रगुप्त जीव को उसके पाप कर्मों के अनुरूप भयंकर नरकों में भेजते हैं। 
The dead-deceased gets another identical non material body which is moved to hells through a distance of 86,000 Yojan which is very painful. There, Yam Raj looks at him and Chitr Gupt thereafter send him to hells, which are extremely painful-torturous. What one gets here is the outcome of his deeds? As one sows, so he gets, here. This is absolute justice.
DESCRIPTION OF HELLS पुष्कर द्वीप-नर्क विवरण :: जम्बू द्वीप से लेकर क्षीर सागर के अन्त तक का विस्तार 40 करोड़ 90 लाख 5 योजन है। उसके बाद पुष्कर द्वीप व तदन्तर स्वादु जल का समुद्र है। पुष्कर द्वीप का परिमाण 4 करोड़ 52 लाख योजन है। उसके चारों ओर उतने ही परिमाण का समुद्र है। उसके चारों ओर लाख योजन का अण्ड कटाह है। पुष्कर द्वीप देखने में भयंकर है जो पैशाच धर्म का पालन करते हैं और कर्म के अन्त में उनकी मुक्ति होती है। यह द्वीप भयंकर, पवित्रता रहित घोर और कर्म के अंत में नाश करने वाला है। 
इस द्वीप में रौरव आदि भयंकर नरक हैं। मुख्य नरकोँ की सँख्या 21 है। उनमें रौरव पहला है, जिसका परिमाण 2,000 योजन है। यह प्रज्वलित अंगार मय है। इससे दुगुने विस्तार वाला महा रौरव है जिसकी भूमि ताँबे से बनी है और नीचे से अग्नि द्वारा तापित है। इसके भी दुगुने आकार का तामिस्त्र और इसका दुगुना अंध तामिस्त्र है। पाँचवां कालचक्र, छटा अप्रतिष्ठ और सातवाँ घटी यंत्र है।
नरकोँ में श्रेष्ठ असिपत्रवन आठवाँ है और 72 हजार योजन विस्तार वाला है। तप्त कुण्ड नवाँ, कूटशाल्मली दसवाँ, करपत्र ग्यारहवाँ, श्वान भोजन बारहवाँ है। उसके बाद क्रमशः संदंश, लोहपिण्ड, करम्भसिकता, भयंकर क्षार नदी, कृमि भोजन और अठारहवें को घोर वैतरणी नदी कहा जाता है। इनके बाद शोणित-पूय भोजन, क्षुराग्र धार, निशितचक्रक तथा संशोषण नामक अन्तहीन नरक है।
पृथ्वी के नीचे नरकों की 28 कोटियाँ :: सातवें तल के अन्त में घोर अन्धकार के भीतर उनकी स्थिति है। घोरा, सुघोरा, अतिघोरा, महा घोरा, घोर रूपा, तरल तारा, भयानका, भयोतक्टा, कालरात्रि, महाचंडा, चंडा, कोलाहला, प्रचण्डा, पद्मा, नरकनायिका, पद्मावती, भीषणा, भीमा, करालिका, विकराला, महावज्रा, त्रिकोणा, पञ्चकोटिका, सुदीर्घा, वर्तुला, सप्तभूमा, सुभूमिका, दीप्तमाया। ये सभी कोटियाँ पापियों को कष्ट देने वाली हैं। 
नरकों की 28 कोटियों के 5-5 नायक हैं और इन नायकों के भी 5-5 नायक हैं। वे रौरव आदि नामों से जाने जाते हैं। इन सबकी संख्या 145 है।
कोटि नायक: तामिस्त्र, अन्धतामिस्त्र, महारौरव, रौरव, असिपत्र वन, लोहभार, कालसूत्र नरक, महानरक, संजीवन, महावीचि, तपन, सम्प्रतापन, संघात, काकोल, कुड्मल, पूत मृत्युक, लोहशङ्कु ऋजीष, प्रधान, शाल्मली वृक्ष और वैतरणी। नरकों की संख्या पचपन करोड़ है; किन्तु उनमें रौरव से लेकर श्वभोजन तक इक्कीस प्रधान हैं।
यो राज्ञः प्रतिगृह्णाति लुब्धस्योच्छास्त्रवर्तिनः।
स पर्यायेण यातीमान्नरकानैकविंशतिम्॥
जो कृपण और शास्त्र की आज्ञा न मानने वाले राजा से दान लेता है, वह क्रम से 21 नरकों में गिरता है।[मनुस्मृति 4.87] 
One who accepts donations, offerings from the king who does not spend money for the welfare of the citizens and discards the scriptures goes to 21 sets of dreaded hells, in succession.
तामिस्रादिषु चाग्रेषु नरकेषु विवर्तनम्।
असिपत्रवनादीनि बन्धनछेदनानि च
पापात्मा तामिस्त्र आदि उग्र नरकों में वास करते हैं। असिपत्र आदि और बन्धनच्छेदन आदि नरकों को भोगते हैं।[मनुस्मृति 12.75] 
The sinner are moved to Tamistr, Asi Patr and Bandhanchchhedan hells to suffer and undergo extreme pain, tortures.
विविधाश्चैव सम्पीडाः काकोलूकैश्च भक्षणम्।
करम्भवालुकातापान्कुम्भीपाकांश्च दारुणान्
अनेक प्रकार की पीड़ाएँ झेलते हैंऔर कौए तथा उल्लू का भोजन बनते हैं। तपे हुए बालू पर चलना पड़ता है और कुम्भीपाक की कठिन यातनाओं को भोगना पड़ता है।[मनुस्मृति 12.76]
The depraved-sinners are subjected to numerous tortures, torments, pains and become the food of crow & owl. They are to walk barefoot over hot-scorching sand and bear the acute troubles-tortures of Kumbhi Pak hells.
तामिस्रं अन्धतामिस्रं महारौरवरौरवौ।
नरकं कालसूत्रं च महानरकं एव च॥
इक्कीस नरकों के नाम :: तामिस्र, अन्धतामिस्र, महारौरव, कालसूत्र, महानरक...[मनुस्मृति 4.88]
Names of 21 Hells :: Tamistr, Andh Tamistr, Maha Raurav, Raurav, Kal Sutr, Maha Narak-Hell...
संजीवनं महावीचिं तपनं संप्रतापनम्।
संहातं च सकाकोलं कुड्मलं प्रतिमूर्तिकम्॥
संजीवन, महावीचि, तपन, संप्रतापन, संहात, सकाकोल, कुड्मल, प्रतिमूर्तिकम...[मनुस्मृति4.89] 
Sanjeevan, Maha Vichi, Tapan, Sanpratapan, Sanhat, Sakakol, Kudmal, Prati Murtikam...
लोहशङ्कुं ऋजीषं च पन्थानं शाल्मलीं नदीम्। 
असिपत्रवनं चैव लोहदारकं एव च॥
लोहशंकु, ऋजीष,पन्थान, शाल्मली, नदी, असिपत्रवन और लोहदारक; ये इक्कीस नरक हैं।[मनुस्मृति 4.90] 
Loh Shanku, Rijish, Panthan, Shalmali, Nadi-river, Asi Patr Van and Loh Darak are the 21 hells where the sinners are made to serve one after another in a sequence.
This is the sequences of movement of the sinners for millions of years before getting birth again as insects, microbes and thereafter they pass through 84,00,000 incarnations, in various-different inferior species, to be born as humans yet again.
ये बकव्रतिनो विप्रा ये च मार्जारलिङ्गिनः।
ते पतन्त्यन्धतामिस्रे तेन पापेन कर्मणा॥
जो ब्राह्मण बकव्रती और वैडाल व्रतिक होते हैं, वे उस पापकर्म के फल स्वरूप अंध्रतामिस्त्र नर्क में गिरते हैं।[मनुस्मृति 4.197]  
Those Brahmns who's intent is like the cat and the heron fall into Andhtamistr hell.
This is applicable to all those who belong to this category of people of any race, creed, cast, region, religion, country. Its another aspect that most of the people around the world are ignorant about this and are sure to discard this since they discard Hinduism as a religion.
Hinduism is purely a way of life, style, means of virtuous living and summation of purity, honesty, virtues, righteousness. The rules which are mentioned in the scriptures are time tested over millions of years in a continuous civilisation present in India.
This text is not meant for the ignorant, one who argue a lot, does not understand reason-logic and lacks prudence.
ब्रह्मघ्नो ये स्मृता लोका ये च स्त्रीबालघातिनः। 
मित्रद्रुहः कृतघ्नस्य ते ते स्युर्ब्रुवतो मृषा॥
ब्रह्मघाती और स्त्री तथा बालकों के वध करने वाले को, मित्रद्रोही तथा कृतघ्न को जो-जो लोक (नर्क) प्राप्त होते हैं, वे सब झूठी गवाही देने वाले को प्राप्त होते हैं।[मनुस्मृति 8.89] 
The lair is assigned to those abodes in the hells which are meant for the murderers of Brahmans, women & children, one who deceives-deserts his friend and the one who do not feel obliged on being helped on false testimony. 
एतास्तिस्रस्तु भार्यार्थे नोपयच्छेत् तु बुद्धिमान्।
ज्ञातित्वेनानुपेयास्ताः पतति ह्युपयन्नधः॥
बुद्धिमान इन तीनों (फुफेरी, मौसेरी, ममेरी बहनों को) स्त्री बनाने के लिये उपयोग न करें, क्योंकि ये बहनें होने के कारण ब्याहने योग्य नहीं हैं। यदि कोई ऐसा करता है तो वह नरकगामी होता है।[मनुस्मृति 11.172] 
The prudent should neither have sex with these cousin sister nor marry them since, he may have suffer in the hells on this account.
In India Punjabi & South Indian Hindus do not mind marrying their cousin sisters under the influence of Muslim traitors. There are cases where the real maternal uncles marry their real sister's daughters. All of them are sure to reach hell sooner or later. 
गुरुत्यागाद् भवेन्मृत्युर्मन्त्रत्यागाद्यरिद्रता।
गुरुमंत्रपरित्यागी रौरवं नरकं व्रजेत्
गुरु का त्याग करने से मृत्यु होती है। मंत्र को छोड़ने से दरिद्रता आती है और गुरु एवं मंत्र दोनों का त्याग करने से रौरव नरक मिलता है।[गुरु गीता 3.60]
Rejecting-ditching the Guru brings untimely death. Rejecting the Guru Mantr invites poverty. The one who reject both the Guru and Guru Mantr moves to Rourav Nark-Hell. 
प्रधान-मुख्य नर्क :: रौरव, शूकर, रौघ, ताल, विशसन, महाज्वाल, तप्तकुम्भ, लवण, विमोहक, रूधिरान्ध, वैतरणी, कृमिश, कृमिभोजन, असिपत्रवन,कृष्ण, भयंकर, लालभक्ष, पापमय, पूयमह, वहिज्वाल, अधःशिरा, संदर्श, कालसूत्र, तमोमय-अविचि, श्वभोजन और प्रतिभाशून्य अपर अवीचि तथा ऐसे ही और भी भयंकर नर्क हैं।
जयन्ती :- यह एक अत्यन्त घोर नर्क है। जयन्ती नामक नर्क में लोहे का बहुत विशाल पहाड़ के सदृश चट्टान पड़ा रहता है। पराई स्त्रियों के साथ सम्भोग करने वाले मनुष्य उसी चट्टानों के नीचे जलाये जाते हैं। जिसमें गर्मी इतनी होती है जैसे गर्म बालू में चना डाल दिया और तुरन्त खिल जाता है। इसी तरह जीव भूने जाते है।
शालमाल :- वहाँ शालमल का अलिंगन करना पड़ता है। उस समय पीड़ा सी हो उठती है। जो लोग सदा झूठ बोलते है और दूसरों के मर्म को कष्ट पहुँचाते वाली कटु वाणी मुँह से निकालते हैं मृत्यु के समय उनकी जिह्वा यमदूतों के द्वारा काट ली जाती है।
महा रौरव :- जो आसक्ति के साथ कटाक्ष पूर्वक पराई स्त्रियों की ओर देखते है यमराज के दूत बाण मार कर उनकी आँखे फोड़ देते हैं। जो माता बहिन कन्या और पुत्र-वधू के साथ समागम तथा स्त्री बालक बूढ़ों की हत्या करते हैं उनकी भी यही दशा होती है। वे चैदह इन्द्रो की आयु पर्यन्त नर्क यातनाओं में पड़े रहते हैं।यह नर्क ज्वालाओं से परिपूर्ण तथा अत्यन्त भयंकर है। महारौरव नर्क का विस्तार चैदह योजन है जो मूढ़ नगर, घर अथवा खेत में आग लगाते हैं वे एक कल्प तक उसमें पकाये जाते हैं। यमराज के दूत चोरों को उसी में डालकर शूल शक्ति गदा और खड़ग से उन्हें तीन सौ कल्पों तक उसी में पीटते हैं।
महा तामिस्त्र :- यह नर्क और भी दुखदाई है। उसका विस्तार तामिस्त्र की अपेक्षा दूना है। उसमें जोंके भरी हुई हैं और निरन्तर अन्धकार छाया रहता है जो माता-पिता और मित्र की हत्या करने वाले विश्वासघाती हैं वे जब तक पृथ्वी रहती है तब भी उनमें पड़े रहते हैं और जोंकें निरन्तर उनका रक्त चूसती हैं।
असिपत्र बन :- यह तो बहुत ही कष्ट देने वाला नर्क है। असिपत्र बन नर्क का विस्तार दस हजार योजन है। उसमें अग्नि के समान प्रज्वलित खड़ग पत्तों के रूप में व्याप्त है वहां गिराया हुआ पापी खड़ग की धार के समान पत्तों द्वारा क्षत विक्षत हो जाता है। उसके शरीर में सैकड़ों घाव हो जाते हैं। मित्रघाती मनुष्य उसमें एक कल्प तक रख कर काटा जाता है। उसकी पीड़ा खतरनाक है।
करम्भ बालुका :- यह नर्क दस हजार योजन विस्तृत है। करम्भ बालुका नर्क का आकार कुएँ की तरह है। उसमें जलती हुई बालू अंगारे और कांटे भरे हुए हैं। जो भयंकर उत्पातों द्वारा किसी मनुष्य को जला देता है या निरपराध अपने तामस बुद्धि में आकर नुकसान पहुँचा देता है, बिना विचारे किसी जीव की हिंसा करता है जिसका शरीर अपने खड़ग से काट कर उधेड़ देता है और काटते वक्त उसे दर्द नहीं होता, ऐसे मनुष्य इस नर्क में डाले जाते हैं और एक लाख दस हजार तीन सौ वर्षों तक उन्हें जलाया जाता है और शूल मारे जाते हैं। बड़ा भारी दुख होता है बिना गुरू के यह गति पाई जाती है।
काकोल :- यह नर्क कीड़ों और पीप से भरा रहता है। जो दुष्टात्मा दूसरों को न देकर अकेला ही मिष्ठान उड़ाता है वह उसी में गिराया जाता है। जो किसी के हक को अपनी जिह्ना के स्वाद हेतु छीन लेता है उसको इसी नर्क में डाला जाता है।
कुडमल :- यह नर्क विष्ठा, मूत्र और रक्त से भरा होता है। जो लोग पंच अग्नि का अनुष्ठान नहीं करते यानी पाँच इन्द्रियों का दमन नहीं करते वे इसी नर्क में गिराये जाते हैं।
महाभीम :- यह नर्क अत्यन्त दुर्गन्धयुक्त तथा मांस और रक्त से पूर्ण है। अभक्ष्य भक्षण करने वाले नीच मनुष्य उसमें गिरते हैं और उनके नाक, मुँह, कान, आँख में पीप भरा रहता है। हर अंग से दुर्गन्ध आती है।
महावट :- यह मुर्दो से भरा होता है। और उसी में चीख रोने और हाय-हाय करने की आती है। वह बहुत कीटों से व्याप्त रहता है। जो मनुष्य अपनी कन्या बेचते हैं, वे नीचे मुँह करके उसी में गिराये जाते हैं।
तिलपात :- यह नर्क बहुत ही भयंकर है। जो लोग दूसरों को पीड़ा देते हैं वह उसमें तिल की भाँति पेरे जाते है।
तेलपाक :- इस नर्क में खौलता हुआ तेल भूमि पर गिरा रहता है। जो मित्र तथा शरणागत की हत्या करते हैं वे उसी में पकाये जाते हैं।
बज्र कपाट :- यह नर्क बज्रमय और बहुत दुखदायक है जिसमें शिलायें जलती रहती है। जिन व्यक्तियों ने धोखा दिया वह लोग इन्ही शिलाओं के साथ बाँधे जाते हैं।
निःच्छवास :- यह नर्क अन्धकारपूर्ण है। निःच्छवास नर्क अन्धकार से पूर्ण और वायु से रहित है। जो किसी अतिथि अथवा साथ सेवी ब्राह्मण के दान में रूकावट डालता है वह निश्चेष्ठ करके उसमे डाला जाता है।
अंगारोपमय :- यह नर्क दहकते हुये अंगारों से पूर्ण है। जो लोग दान देने की प्रतिज्ञा करके साधू सन्त ब्राह्मण और अतिथि को नहीं देते, वे उसी नर्क में जलाये जाते हैं।
महापापी :- इसका विस्तार एक लाख योजन का है। महापापी नर्क में वह लोग डाले जाते हैं जो सदा असत्य बोला करते हैं। उन्हें नीचे मुख करके नरक में डाल दिया जाता है। जो स्त्री अपने पती को अपशब्द कहती है और उनकी अज्ञा का उलंघन करती है वह इसी नर्क में डाली जाती है।
महाज्वाल :- यह नर्क महाआग की लपटों से प्रकाशित एवं भयंकर होता है। जो मनुष्य पाप में मन लगाए हैं, उन्हें दीर्घ काल तक उसी में जलाया जाता है।
क्रकच :- यह नर्क खौलते हुये गुड़ के अनेक कुण्डों से व्याप्त है। जो मनुष्य वर्ण संकरता फैलाता है वह उसी में डाल कर जलाया जाता है।
गुड़पाक :- यह नर्क खौलते हुये गुड़ के अनेक कुण्डों से व्याप्त है। जो मनुष्य वर्ण संकरता फैलाता है, वह उसी में डाल कर जलाया जाता है।
क्षुरधार :- यह नर्क तीखे उस्तरों से भरा रहता है। जो ब्रह्मदर्शी ब्राह्मण की भूमि हड़प लेते हैं वे लोग एक कल्प तक उसी में डाल कर काटे जाते हैं।
अम्बरीष :- इस नर्क में वह मनुष्य निवास करता है जो घूस लेता हो सोने की चोरी करता हो और परनारियों को खराब करता हो ऐसा मनुष्य अम्बरीष नर्क में करोड़ों वर्षों तक प्रज्वलित अग्नि में जलता है और उसी में दग्ध होता रहता है।
बज्र कुठार :- यह नर्क वज्रों से सम्पूर्ण व्याप्त है। जो दूसरों की निन्दा करते हैं अथवा अकारण किसी की जड़ काटते हैं इसी में डालकर काटे जाते हैं।
परिताप :- यह नर्क भी प्रलयाग्नि से परिपूर्ण है। विष देने तथा गोली से मारने वाला पापी मनुष्य उसी में यातना भोगता है।
कालशूल :- यह नर्क बज्रमय शूल से निर्मित हैं। जो लोग दूसरों की खेती नष्ट करते हैं वे उसी कालशूल नर्क में घुमाये जाते हैं। इस नर्क में उनका अंग छिन्न-भिन्न हो जाता है।
कश्मल :- यह नर्क मुख और नाक के मल से भरा होता है। मांस की रूचि रखने वाला मनुष्य उसमें एक कल्प तक रखा जाता है।
उग्रगन्ध :- यह नर्क मल मूत्र विष्ठा से पूर्ण है। जो माता-पिता गुरूजन, अतिथि और अपने कुल के धर्म के सहित सेवा नहीं करते उसी नर्क में डाले जाते हैं।
बज्र महापीड़ :- यह नर्क बज्र से सम्पूर्ण है। जो दूसरों के धन धान्य व स्वर्ण की चोरी करते हैं यमदूत उन चोरों को छूरों से क्षण-क्षण पर काटते रहते हैं, जो मूर्ख किसी प्राणी की हत्या करके गीध, सियार और कौवे की भांति खाते और जायका लेते हैं उन्हें एक कल्प तक अपने शरीर का मांस बज्र महापीड़ नरक में पहुँचकर खिलाना पड़ता है। यमदूत इसी नर्क में डालकर खुद काटते हैं और दूसरों से कटवाते रहते हैं। असहनीय नर्क है।
जो अनायास किसी प्राणी को दुख पहुँचाते हैं अथवा नाना भाँति की चोरी करते हैं ऐसे आततायी जीवों को यमदूत पत्तों में रखकर जला देते हैं। जो मनुष्य पराये धन और पराई स्त्रियों को खराब करते हैं यमदूत उनकी छाती में गर्म शूल गड़ा देते हैं। और उनकी आँखों में गर्म सलाइयाँ डालकर फोड़ देते हैं। उनकी अवर्णनीय दुर्दशा करते हैं। 
जिन लोगों ने समाज की रीतियों को नष्ट कर दिया जिन प्राणियों ने समाज की मर्यादा को नहीं अपनाया जो प्राणी धर्मच्युत हुये और इच्छाचारी बन गये उनसे यम महाराज पूछते हैं कि ऐसा तुमने क्यों किया? क्या तुम्हें सन्तों महात्माओं अथवा बुद्विमानों ने नहीं समझाया था? या तुम्हारे समझाने के लिये धर्म ग्रन्थ नहीं थे। माता पिता गुरूजनों की आज्ञा का उलंघन क्यों हुआ?
जब जीव जवाब नहीं दे पाता तो उस वक्त यम महराज हुकुम देते हैं अपने यमदूतों से कि इसको अपने लोक में ले जाओ। तब वे जीव को अपने लोक में बुरी तरह से पीटते हुए ले जाते हैं। संसार के दुख पाने वाले प्राणी तुम्हें इस मृत्युलोक मण्डल में चन्द दिन ही रहना होता है।
पापी जीवों को कभी-कभी यमदूत अपने हाथों पर उठा लेते हैं और उस खाई में फेंकते हैं जो दस हजार योजन नीची है। जिसके देखने में मालूम होता है कि ऊबड़ खाबड़ और अनेक प्रकार के झाकरों से युक्त है और जलती हुई नजर आती है।
यम लोक का मार्ग बडा़ दुर्गम हैं। वह सदा दुःख और कलेशों को देने वाला है तथा समस्त प्राणियों के लिए भंयकर है। उस मार्ग की लम्बाई कितनी हैं तथा मनुष्य उस मार्ग से यमलोक की यात्रा किस प्रकार करते हैं? हे गुरू कौन सा ऐसा उपाय है? जिससे नर्क के दुखों की प्राप्ति न हो।
HEAVEN स्वर्ग :: पृथ्वी लोक के ऊपर जो लोक है, वही स्वर्ग है। देवताओं का निवास स्थान यही-स्वर्ग लोक माना गया है। जो लोग अनेक प्रकार के सकाम पुण्य और सत्कर्म करके मरते हैं, उनकी आत्माएँ इसी लोक में जाकर निवास करती हैं।
यज्ञ, दान आदि जितने सकाम पुण्य कार्य किए जाते हैं, वे सब स्वर्ग की प्राप्ति के उद्देश्य से ही किए जाते हैं। वहाँ केवल सुख ही सुख है, दु:ख, शोक, रोग मृत्यु आदि का नाम भी नहीं है। मनुष्य वहाँ जाकर भगवत्स्मृति खो देता है और राग-रंग में ही लगा रहता है। जो प्राणी जितने ही अधिक सत्कर्म करता है, वह उतने ही अधिक समय तक इस लोक में निवास करने का अधिकारी होता है। परन्तु पुण्यों का क्षय हो जाने अथवा अवधि पूरी हो जाने पर जीव को फिर कर्मानुसार शरीर धारण करना पड़ता है और वह क्रम तब तक चलता रहता है, जब तक उसकी मुक्ति नहीं हो जाती।
वहाँ अच्छे-अच्छे फलों वाले वृक्षों, मनोहर वाटिकाओं और अप्सराओं आदि का निवास माना जाता है। मौसम सदा एक सार सुखद-आनन्द दायक रहता है। 
वेदों में देवता शब्द से कई प्रकार के भाव लिए गये हैं। साधारणत: मंत्रो के जितने विषय हैं, वे सब देवता कहलाते हैं। कात्यायन ने अनुक्रमणिका में मंत्र के वाच्य विषय को देवता कहा है। निरुक्तकार यास्क ने देवता शब्द को दान, दीपन और द्युस्थान गत होने से निकाला है। देवता के संबंधा में प्राचीनों के चार मत पाए जाते हैं, ऐतिहासिक, याज्ञिक, नैरुक्तिक और आध्यात्मिक।
प्रत्येक मंत्र भिन्न घटनाओं या पदार्थों को लेकर बना है। याज्ञिक लोग मंत्र ही को देवता मानते हैं, देवताओं का कोई रूप, विग्रह आदि नहीं, वे मंत्रत्मक हैं।[जैमिनि ने मीमांसा]
याज्ञिकों ने देवताओं को दो श्रेणियों में विभक्त किया है, सोमप और असोमप। अष्ट वसु, एकादश रुद्र, द्वादश आदित्य, प्रजापति और वषट्कार ये 33 सोमप देवता कहलाते हैं। एकादश प्रदाजा, एकादश अनुयाजा और एकादश उपयाजा, असोमप देवता कहलाते हैं। सोमपायी देवता सोम से सन्तुष्ट हो जाते हैं और असोमपायी पशु से तुष्ट होते हैं। 
नैरुक्तिक लोग स्थान के अनुसार देवता लेते हैं और तीन देवता मानते हैं अर्थात् पृथिवी का अग्नि, अन्तरिक्ष का इन्द्र, वायु और द्यु स्थान का सूर्य। बाकी देवता या तो इन्हीं तीनों के अन्तर्भूत हैं अथवा होता, अध्वर्यु, ब्रह्मा, उद्गाता आदि के कर्म भेद के लिए, इन्हीं तीनों के अलग-अलग नाम हैं। ऋग्वेद में कुछ ऐसे मन्त्र भी हैं, जिनमें भिन्न देवताओं में एक ही के अनेक नाम कहे गए हैं।
बुध्दिमान लोग, इन्द्र, मित्र और अग्नि को एक होने पर भी इन्हें अनेक-अन्य बतलाते हैं।[ऋग्वेद 1.164.46]
यही मंत्र आध्यात्मिक पक्ष वा वेदान्त के मूल बीज हैं। उपनिषदों में इन्हीं के अनुसार एक ब्रह्म की भावना की गयी है।
प्रकृति के बीच जो वस्तुएँ प्रकाशमान, ध्यान देने योग्य और उपकारक देख पड़ीं, उनकी स्तुति या वर्णन ऋषियों ने मंत्रो द्वारा किया, जिन देवताओं को प्रसन्न करने के लिए यज्ञ आदि होते थे, उनकी कुछ विशेष स्थिति हुई, वे लोग धन, धन्य, युद्ध में जय, शत्रुओं का नाश आदि चाहते थे।
ऋग्वेद में नामांकित देवतागण :: अग्नि, वायु, इन्द्र, मित्र, वरुण, अश्र्चिद्वय, विश्वेदेवा, मरुद्गण, ऋतुगण, ब्रह्मणस्पति, सोम, त्वष्टा, सूर्य, विष्णु, पृश्नि; यम, पर्जन्य, अर्यमा, पूषा, रुद्रगण, वसुगण, आदित्य गण, उशना, त्रित, चैतन, अज, अहिर्बुध्न, एकयाक्त, ऋभुक्षा,गरुत्मान् इत्यादि। कुछ देवियों के नाम आये हैं, जैसे सरस्वती, सुनृता, इला, इन्द्राणी, होत्र, पृथिवी, उषा, आत्री, रोदसी, राका, सिनीवाली, इत्यादि।
ऋग्वेद में मुख्य देवता 33 हैं :- 8 वसु 11 रुद्र 12 आदित्य तथा इन्द्र और प्रजापति। कुल देवताओं की सँख्या 33 करोड़ है। [शत्पथ ब्राह्मण]
देवता मनुष्यों से भिन्न अमर प्राणी हैं। हे असुर वरुण! देवता हों या मर्त्य (मनुष्य) हों, तुम सब के राजा हो। [ऋक् 2.27.10]
यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद, और पुराणों के अनुसार इन्द्र चंद आदि देवता, कश्यप से उत्पन्न हुए। महर्षि कश्यप की दिति नाम की स्त्री से दैत्य और अदिति नाम की स्त्री से देवता उत्पन्न हुए।
ये नद्यौं रुग्रा पृथिवी च दृढ़ा ये नस्व: स्तंभित: येन नाक:। 
यो अन्तरिक्षे रजसो विमान : कस्मै देवाय हविषा वि धेम॥
जिसने अन्तरिक्ष, दृढ़ पृथिवी, स्वर्लोक, आदित्य तथा अन्तरिक्षस्थ महान जल राशि का निर्माण किया आओ उसी को भजें।[ऋग्वेद 10.21.1.10]
ईजानश्र्चित मारुक्षदिग्नं नाकस्य पृष्टाद् दिविमुत्पतिष्यन्।
तस्मै प्रभात नभसो ज्योतिमान् स्वर्ग : पन्था : सुकृते देवयान:॥
जो मनुष्य सुख भोग के लोक से प्रकाशमय ‘द्यौ’ लोक के प्रति ऊपर उठना चाहता हुआ और इस प्रयोजन से वास्तविक यजन करता हुआ चित् स्वरूप अग्नि का आश्रय ग्रहण करता है, उस ही शोभन कर्म वाले मनुष्य के लिए ज्योतिर्मय स्वर्ग, आत्म सुख को प्राप्त कराने वाला देव यान मार्ग, इस प्रकाश रहित संसार आकाश के बीच में प्रकाशित हो जाता है। [अथर्ववेद 18.4.14]
सह्स्त्रहण्यम् विपतौ अस्ययक्षौं हरेर्हं सस्य पतत: स्वर्गम्।
सदेवान्त्सर्वानुरस्यपदद्य संपश्यन् यातिभुववनानि वि श्र्वा॥
स्वर्ग को जाते हुए इस ह्रियमाण या हरणशील जीवात्मा हंस के पंख सह्स्त्रो दिनों से खुले हुए हैं, वह हंस सब देवों को अपने हृदय में लिए हुए सब भुवनों को देखता हुआ जा रहा है।[अथर्ववेद 18.8]
औषधन्यगदो विद्धाद बीच विविधास्थिति:। 
तपसैवप्रसिधयन्ति तपस्तेषां हि साधनम्॥
औषध नीरोगता और विद्या बल तथा अनेक प्रकार से स्वर्ग में स्थिति तपस्या से ही प्राप्त होती है।[मनुस्मृति11.237] 
कीटाश्र्चाहि पतंगाश्र्चपश्वश्र्च वयांसि च।
स्थावराणि च भूतानि दिवं यान्ति तपो बलात्। 
कीट सर्प पतंग पशु पक्षी और स्थावर आदि तपो बल से ही स्वर्ग में जाते हैं।[धम्मपद]
गब्भ मेके उपज्जन्तिनिरियं पाय कम्मिनो।
सगां सुगतिनोयन्ति परि निब्बन्ति अनासवा॥
कोई-कोई मनुष्य मृत्यु लोक में जन्म लेते हैं, पापात्मा लोग नरक में उत्पन्न होते हैं। पुण्यात्मा स्वर्ग में उत्पन्न होते हैं। आशातीत महात्मा गण निर्वाण में जाते हैं।[धम्मपद]
असत्यवादी, नास्तिक, दान, तप, यज्ञ से रहित वहाँ प्रवेश नहीं कर सकता। धर्मात्मा, जितेन्द्रिय, शम-दम से संपन्न, द्वेषरहित, दानी, युद्ध में मारे गए शूरवीरों को ही वहाँ प्रवेश मिलता है। देवता, साध्य, विश्वदेव, महर्षि, याम, धाम, गन्धर्व और अप्सरा आदि के अलग-अलग लोक हैं। यहाँ सोने का पर्वत सुमेरु गिरि है और इच्छानुसार भोग प्राप्त हैं। किसी को भूख-प्यास नहीं सताती। उदासी नहीं आती। कष्ट-भय का अनुभव होता। विलाप और अशुभ वस्तु नहीं होतीं। बुढ़ापा, थकान नहीं होतीं। दुर्गन्ध नहीं आती। मल-मूत्र भी नहीं निकलता। स्वर्गवासियों के शरीर में तेजस तत्व की प्रधानता होती है। कपड़े मैले नहीं होते। दिव्य कुसमों की मालाएँ दिव्य सुगंध फैलाती रहती हैं।
स्वर्ग में सबसे बड़ा दोष यह है कि यहाँ नया कर्म नहीं किया जा सकता। स्वर्ग की प्राप्ति अपना पुण्य गँवाकर ही होती है। पुण्य समाप्त होते ही दिव्य मालाएँ कुम्हला जाती हैं। यह स्वर्ग से धरती की वापसी का द्योतक है। रजोगुण का प्रभाव दिखाई देने लगता है। अच्छी बात यह है कि धरती पर पुनर्जन्म अच्छे कुल-गौत्र में होता है। 
(1). भगवत भजन, कीर्तन-दान-ध्यान, स्मृण, पूजन, तप, दीन-दु:खी की सहायता, भगवान्  की यशोगाथा का गान स्वाध्याय करने वाला स्वर्ग से ऊपर के लोक प्राप्त करता है। 
(2). उचित, सात्विक, धर्म पूर्वक कमाए गये साधनों-धन से जो मुफ्त धर्मशाला, अस्पताल, कुँआ-बाबड़ी, विद्यालय-पाठशाला, महाविद्यालय, सड़क, वृक्षारोपण आदि करने वाले को स्वर्ग में स्थान प्राप्त होता है। 
(3). माँगने पर देने वाले, प्रिय वचन बोलने वाले, दिन में न सोने वाले, सहनशील पर्व के अवसर पर आश्रय दाता, द्वेष रखने वालों से भी द्वेष पूर्ण व्यवहार न करने वाला, दूसरे गुणों का गान करने वाला तथा सत्व गुण में स्थित व्यक्ति स्वर्ग में स्थान पाता है। 
(4). किसी भी (भले ही नीच या निम्न कुल हो) कुल में जन्म लेकर जो व्यक्ति दयालु, यशस्वी, उपकारी और सदाचारी है, वह स्वर्ग का अधिकारी हो जाता है। 
(5). व्रत को क्रोध से, लक्ष्मी को डाह-ईर्ष्या से, विद्या को मन-अपमान से, आत्मा को प्रमाद से, बुद्धि को लोभ से, मन को काम से, धर्म को कुसंग से बचाये रखता है, वो स्वर्ग प्राप्त करता है।
(6). शुक्ल व कृष्ण पक्ष में विधि पूर्वक-पाप शून्य, एकादशी का व्रत रखने वाला मानव स्वर्ग में स्थान पाता है।
(7). जिसके हृदय में परमात्मा की भक्ति है, वो उच्च लोकों में स्थान ग्रहण करता है।
(8). पाप शून्य, शुद्ध हृदय, भगवत् भक्त, पवित्र नदियों में स्नान मात्र से ही स्वर्ग प्राप्त कर लेता है। 
(9). पवित्र तीर्थों में प्राण त्याग करने वाला पाप शून्य, शुद्ध हृदय, भगवत् भक्त, परमात्मा को प्राप्त करता है। 
(10). अमावश्या के दिन, श्राद्ध के नियम पालन करने वाले, अपने पित्तरों के साथ स्वर्ग जाते हैं। 
(11). जो व्यक्ति श्री हरी की पूजा करके पृथ्वी पर, तिल और कुश बिछाकर, तिल बिखरते हुए, लोहे और दुधारू गौ का दान करते हैं, वे स्वर्ग प्राप्त करते हैं। 
(12). जो व्यक्ति ममता-अहंकार से मुक्त, दादा-परदादा होकर मरता है, वह स्वर्ग का अधिकारी होता है। 
(13). जो व्यक्ति चोरी-डकैती, मार-काट से दूर, ईमानदारी से प्राप्त होने वाले धन से जीविका चलाते हैं, उनको स्वर्ग मिलता है।
(14). शुद्ध, पीड़ा रहित, मधुर, पापरहित वाणी, का प्रयोग करने वाला, स्वर्ग जाता है। 
(15). दान धर्म में प्रवत्त, धर्म मार्ग के अनुयायियों का उत्साह बढ़ाने वाला, उर्धगति प्राप्त करता है। 
(16). सर्दी में सूखी लकड़ी, गर्मी में शीतल जल तथा बरसात में आश्रय प्रदान करने वाले को उर्धगति मिलती है। 
(17). दरिद्र के द्वारा किया गया दान, सामर्थशाली की दी गई क्षमा, नौजवान की तपस्या, ज्ञानियों का मौन, सुख भोगने वाले की सुखेच्छा-निवृति और सभी प्राणियों पर दया स्वर्ग प्रदायक हैं।
(18). जो व्यक्ति गाय के शरीर से डाँस, मच्छर आदि हटाता है, उसके पूर्वज संतुष्ट हो जाते हैं। गौ पालक को अपार सुख-स्वर्ग मिलता है। 
(19). जो सदा सत्य बोलते हैं, पोखरे के किनारे वृक्ष लगाते हैं, यज्ञानुष्ठान करते हैं, वे कभी स्वर्ग से भ्रष्ट नहीं होते। फल मूल के भोजन से सम्मान और सत्य से स्वर्ग कि प्राप्ति होती है। 
(20). वायु पीकर रहनेवाला यज्ञ का फल पता है, जो उपवास करता है, वो चिरकाल तक स्वर्ग में निवास करता है। जो सदा भूमि पर शयन करता है, उसे अभीष्ट गति प्राप्त होती है, जो पवित्र धर्म के आचरण करता है वो स्वर्ग लोक में सम्मानित होता है। [पद्मपुराण]
7 पाताल लोक ::  (1). तल, (2). अतल, (3). वितल, (4). तलातल, (5). रसातल, (6). महितल और  (7). पाताल।
7 स्वर्ग-ऊर्ध्व लोक ::  (1). भू, (2). भुवः, (3). स्व, (4). मह, (5). जन, (6). तप और (7). सत्य  लोक। 
7 लोकों को मूलत: दो श्रणियों में विभाजित किया गया है :: (1). कृतक लोक और (2).अकृतक लोक।
कृतक लोक ::  इसमें ही प्रलय और उत्पत्ति का चक्र चलता रहता है। कृतक त्रैलोक्य जिसे त्रिभुवन या मृत्युलोक भी कहते हैं। यह नश्वर और परिवर्तनशील मानते हैं। इसकी एक निश्चितआयु है। त्रैलोक्य के नाम हैं- भूलोक, भुवर्लोक, स्वर्गलोक। यही लोक पाँच तत्वों से निर्मित हैं :- आकाश, अग्नि, वायु, जल और जड़। इन्हीं पाँच तत्वों को वेद क्रमश: जड़, प्राण, मन, विज्ञान और आनंदमय कोष कहते हैं।
(1). भूलोक (धरती, पृथ्वी) :: जितनी दूर तक सूर्य, चंद्रमा आदि का प्रकाश जाता है, वह पृथ्वी लोक कहलाता है, लेकिन भूलोक से तात्पर्य जिस भी ग्रह पर पैदल चला जा सकता है।
(2). भुवर्लोक (आकाश) ::  पृथ्वी और सूर्य के बीच के स्थान को भुवर्लोक कहते हैं। इसमें सभी ग्रह-नक्षत्रों का मंडल है।
(3). स्वर्गलोक (अंतरिक्ष) ::  सूर्य और ध्रुव के बीच जो चौदह लाख योजन का अन्तर है, उसे स्वर्गलोक कहते हैं। इसी के बीच में सप्तर्षि का मंडल है। अकृतक लोक समय और स्थान शून्य है।
अकृतक लोक :: जन, तप और सत्य लोक तीनों अकृतक लोक कहलाते हैं। अकृतक त्रैलोक्य अर्थात जो नश्वर नहीं है अनश्वर है। जिसे मनुष्य स्वयं के सद्‍कर्मों से ही अर्जित कर सकता है। कृतक और अकृतक लोक के बीच स्थित है ‘महर्लोक’ जो कल्प के अंत के प्रलय में केवल जनशून्य हो जाता है, लेकिन नष्ट नहीं होता। इसीलिए इसे कृतकाकृतक लोक कहते हैं।
(4). महर्लोक :: ध्रुवलोक से एक करोड़ योजन ऊपर महर्लोक है।
(5). जनलोक :: महर्लोक से बीस करोड़ योजन ऊपर जनलोक है।
(6). तपलोक :: जनलोक से आठ करोड़ योजन ऊपर तपलोक है।
(7). सत्यलोक :: तपलोक से बारह करोड़ योजन ऊपर सत्यलोक है।
जिन के घर में यज्ञ नहीं होता उनके सात लोक नष्ट हो जाते हैं। इनमें भी जो ‘महर्लोक’ हैं वह जनशून्य अवस्था में रहता है जहाँ आत्माएं स्थिर रहती हैं, यहीं पर महाप्रलय के दौरान सृष्टि भस्म के रूप में विद्यमान रहती है। यह लोग त्रैलोक्य और ब्रह्मलोक के बीच स्थित है।
ब्रह्माण्ड के सात लोक :: (1). पृथ्वी, (2). वायु, (3). अन्तरिक्ष, (4). आदित्य, (5). चन्द्रमा, (6). नक्षत्र और (7). ब्रह्म लोक। ये ही लोक हैं; जिनमें प्राणी रहा करता है।  परन्तु यज्ञ न करने अथवा देव ऋण से उऋण न होने वाले जिस लोक में भी जायेंगे वह उनके लिए शान्ति का स्थान ना होगा। सातवें ब्रह्म लोक में तो अशुभकर्मी जा ही नहीं सकते।
Other than these Shwet Dweep, Marut Lok, Sury Lok, Chandr Lok, Yam Lok, Varun Lok, Indr Lok, Agni Lok, Vayu Lok, Dhruv Lok, Nag Lok etc., do exist.
SHWET DWEEP :: Abode of nurturer Bhagwan Vishnu and Maa Laxmi, accompanied by Bhagwan Shash Nag. 
MARUT (YAYU-PAWAN) LOK :: Abode of Pawan Dev-the deity, demigod of air. 
SURY LOK :: Abode of Bhagwan Sury Narayan-The Sun God. 
CHANDR LOK :: The abode of Chandr (Moon) Dev-the deity of medicines and (born out of the ocean on the earth) king of Brahmns.
YAM LOK :: Abode of Yam Dev (deity of death) and transit point for all souls, mighty son of Sury Bhagwan and awards next birth according to sins and virtues of the soul in previous birth.
VARUN LOK :: Abode of Varun Dev-the deity, demigod of water.
INDR LOK :: Abode of Indr-King of heaven and deities-demigods, deity of rains and responsible for the welfare of humans on earth.
AGNI LOK :: Abode of Agni Dev the deity, demigod of fire.
All these abodes-Lok are inhabitable. The body in these habitats is not a material -physical the one acquired by humans on earth.
 
प0 संतोष भारद्वाज
हस्त रेखा विशारद
PT. SANTOSH BHARDWAJ
PALMIST
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संतोष महादेव-सिद्ध व्यास पीठ, बी ब्लाक, सैक्टर 19, नौयडा

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