Tuesday, January 27, 2015

HINDU TRADITIONS-SCIENTIFIC PURSUIT हिन्दु रीति-रिवाज वैज्ञानिक दृष्टि कोण :: HINDU PHILOSOPHY (11) हिंदु दर्शन

HINDU TRADITIONS
हिन्दु रीति-रिवाज

(SCIENTIFIC PURSUIT वैज्ञानिक दृष्टि कोण) 
HINDU PHILOSOPHY (11) हिंदु दर्शन
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
By :: Pt. Santosh Bhardwaj
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ॐ गं गणपतये नम:।
अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।
निराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि
[श्रीमद्भगवद्गीता 2.47]
QUARANTINE :: Everyone is running for safety from Corona-COVID 19 Virus. No hand shake, kissing-smooch, hugging-embracing. Restrict your self to NAMASTE नमस्ते। 
Everyone is running for safety from Corona-COVID 19 Virus. No hand shake, kissing-smooch, hugging-embracing. Restrict your self to NAMASTE नमस्ते। 
It proves the point behind untouchability-छुआछूत। 
It proves the myth behind foreign visit as well. Most of the flue, aids, viral fevers, plague came to INDIA from abroad. It proves the point behind Eating VEGETARIAN FOOD.
हर साल रथ यात्रा के ठीक पहले भगवान् जगन्नाथ स्वयं बीमार पड़ते हैं। उन्हें बुखार एवं सर्दी हो जाती है। बीमारी की इस हालत में उन्हें Quarantine-isolate किया जाता है, जिसे मंदिर की भाषा में अनासार कहा जाता है भगवान को 14 दिन तक एकांतवास यानी  Isolation में रखा जाता है। Isolation की इस अवधि में भगवान् के दर्शन बंद रहते हैं एवं भगवान को जड़ी बूटियों का पानी आहार में दिया जाता है यानी तरल भोजन और यह परंपरा हजारों साल से चली आ रही है।
क्वारेंटाईन अर्थात सूतक अर्थात एक दूसरे से और अशुद्धि-गंदगी से बचना और सफाई पर ध्यान देना। सूतक का भारतीय संस्कृति में अनादि काल से पालन किया जा रहा है। मृतक के शव में भी दूषित जीवाणु होते हैं। हाथ मिलाने से भी जीवाणुओं का आदान-प्रदान होता है। हिन्दु शवों को जलाकर नहाते हैं और विदेशी नहाने से बचते हैं।
बच्चे का जन्म होता है तो जन्म ‘‘सूतक’’ लागू करके मँ-बेटे को अलग कमरे में रखते हैं, महिने भर तक, मतलब क्वारेंटाईन करते हैं।
कोई मृत्यु होने पर परिवार सूतक में रहता है, लगभग 12 दिन तक सबसे अलग, मंदिर में पूजा-पाठ भी नहीं। सूतक के घरों का पानी भी नहीं पिया जाता।
शव का दाह संस्कार हेतु जो लोग अंतिमयात्रा में जाते हैं, उन्हे सबको सूतक लगती है, वह अपने घर जाने के पहले नहाते हैं, फिर घर में प्रवेश मिलता हैं।
मल विसर्जन करते हैं तो कम से कम 3 बार साबुन से हाथ धोते हैं, तब शुद्ध होते हैं तब तक क्वारेंटाईन रहते हैं। बल्कि मलविसर्जन के बाद नहाते हैं, तब शुद्ध मानते हैं।
जिस व्यक्ति की मृत्यु होती है उसके उपयोग किये सारे चारपाई-पलँग रजाई-गद्दे चादर तक ‘‘सूतक’’ मानकर बाहर फेंक देते हैं।
घर-परिवार में सदैव होम हवन किया जाता है ताकि वातावरण शुद्ध रहे। हवन सामग्री और आम की लकड़ी में विषाणुओ-जीवाणुओं को नष्ट करने के गुण हैं।
आरती में हर दिन कपूर जलाने से घर के जीवाणु मरते हैं।
वातावरण को शुद्ध करने के लिये मंदिरों में शंखनाद किया जाता है।
मंदिरों में बड़ी-बड़ी घंटियों की ध्वनि आवर्तन से अनंत सूक्ष्म जीव स्वयं नष्ट हो जाते हैं।
भोजन में माँस भक्षण की इजाज़त नहीं है।
भोजन करने के पहले अच्छी तरह हाथ धोये जाते हैं।
घर में पैर धोकर अंदर जाना और जुटे-चप्पल घर के बाहर उतरना।
नहाने के पानी में नीम की पत्तियों का इस्तेमाल किया जाता है।
कुंभ और सिंहस्थ के अवसर पर नदी के बहते हुए शुद्ध जल से स्नान किया जाता है। आजकल तो नदियाँ स्वयं प्रदूषण का शिकार हैं।
बीमार व्यक्तियों को नीम से नहलाया जाता है।
भोजन में हल्दी को अनिवार्य है।
चन्द्र और सूर्यग्रहण में भोजन न बनाया जाता है और न ही किया जाता है।
किसी को भी छूने से बचना अर्थात छुआछूत।
दूर से हाथ जोडक़र अभिवादन करना।
उत्सवों में घर-मंदिरों में सुन्दर काण्ड का पाठ करके, धूप-दीप हवन करके वातावरण को शुद्ध करना।
होली में कपूर, पान का पत्ता, लोंग, गोबर के उपले और हविष्य सामग्री सिर्फ वातावरण को शुद्ध करने के लिये जलाई जाते हैं।
नववर्ष व नवरात्री पर पुरे 9 दिन घरों में आहूतियाँ दी जायेंगी वातावरण की शुद्धी के लिये।
देवी पूजन के नाम पर घर में साफ-सफाई करके घर को जीवाणुओं से क्वरेंटाईन -मुक्त करेंगे।
गोबर को लीपने और भोजन के लिये जलाने से हजारों जीवाणुओं नष्ट होते हैं। व्यर्थ धुएँ से हमेशा बचें।
दीपावली पर घर के कोने-कोने को साफ करते हैं, चूना पोतकर जीवाणुओं को नष्ट करते हैं, पूरे सलीके से विषाणु मुक्त घर बनाते हैं। आजकल की लिपाई-पुताई से दीवारों पर खतरनाक रसायनों की परत-परत चढ़ाई जाती है।
हर दिन कपड़े भी धोकर पहनते हैं।
हिन्दु उन जीवाणुओं को भी महत्व देते हैं जो शरीर पर सूक्ष्म प्रभाव डालते हैं। देव संस्कृति में सूतक-क्वारेंटाईन का विशेष महत्व है। यह हिन्दु की जीवन शैली है क्योंकि वह समझदार और वैज्ञानिक तकनीकों का धर्म के नाम पर अनादि कल से ही प्रयोग कर रहा है।
हिन्दु सुसंस्कृत, समझदार, अतिविकसित महान संस्कृति को मानने वाले हैं।
Neo-convent educated Indian along with those who acquired some knowledge of English considered Customs-Traditions in Hinduism as superstitions. Advent of science and continued research has found startling facts and evidence pertaining to them. They can not be merely brushed aside as taboo-superstitions, now. These traditions are based on practical applications and handed over from one generations to the next, through ages. Though the common person is not aware of the basics-reality, he continued following them ritually. 
भारत में एक समय ऐसा आया जबकि थोड़ी सी भी अंग्रेजी पढ़े-लिखे लोगों ने भारतीय परम्पराओं, रीति-रिवाजों, मान्यताओं का मजाक-मखौल उड़ाना शुरू कर दिया। वे ऐसा स्वयं को दूसरों से अलग, ऊँचा, सभ्य, विकसित दिखाने हेतु करते थे। नई खोजों ने बगैर शक यह सिद्ध कर दिया है कि आज का विज्ञान अभी महज बुनियादी अवस्था-शैशवावस्था में है। हमारा इतिहास महज 3,000 से 5,000 वर्षों का नहीं अपितु खरबों-खरबों साल का है। हमारी मान्यताएँ पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही हैं। आधार हीन-बेबुनियाद ज्ञान स्वतः नष्ट हो जाता है। सामान्य व्यक्ति को यह सब जानकारी धर्म का जामा पहनाकर दी गई है और वो इसके ऊपर ज्यादा दिमांग लगाना-माथा पच्ची करना नहीं चाहता। 
(1). IMMERSING COINS IN RIVERS :: The general reasoning given for this act is that it brings Good Luck. However, scientifically speaking, in the ancient times, most of the currency used was made of copper. Copper produces copper sulphate which is a disinfectant. Copper is a vital metal very useful to the human body. Throwing coins in the river was one way our fore-fathers ensured we intake sufficient copper as part of the water as rivers were the only source of drinking water. Gold and Silver have disinfecting properties. They kill germs, fungus, bacteria, virus, microbes. 
सामान्यतया हम ऐसा मानते हैं की जल में मुद्रा परवाह से भाग्य अच्छा होगा। जैसे की सभी जानते हैं कि अति प्राचीन काल से मुद्रा को सोना, चाँदी, ताँबा आदि से बनाया जाता था। सोने और चाँदी में जीवाणुओं से लड़ने की शक्ति-क्षमता होती है। ताँबा पानी में रहकर कॉपर सल्फेट बनाता है जो कि एंटी बैक्टीरियल, मिक्रोब, फंगल, वायरस है। सफेदी-पुताई में नीला थोथा-कॉपर सल्फेट का इस्तेमाल इसी वजह से किया जाता था। 
(2). GREETING WITH FOLDED HANDS :: In Hindu culture, people greet each other with folded hands, by joining their palms-termed as Namaskar, Nameste, Pranam. This is a way to pay respect to elders. This process brings the finger tips together. The finger tips have been identified as pressure points, regulating the whole body, specifically eyes, ears and the mind. Kissing, shaking hands transfers germs and DNA to the opposite person. Absence of physical touch forbade transference of DNA or infections in the form of germs. 
Think of the people who do not wash hands after cleaning stools-faecal matter. 
प्राचीन भारतीय परम्परा में मिलने पर अपने से बड़ों को प्रणाम-नमस्कार-नमस्ते करने का रिवाज है। चूमने, हाथ मिलाने से पसीने के माध्यम से DNA का प्रवाह सम्मुख व्यक्ति के शरीर में हो जाता है जो कि अक्सर घातक होता है। हाथों को जोड़कर नमस्ते करते वक्त दोनों हाथों की उँगलियाँ परस्पर मिलकर दबाब बनाती हैं, जो कि शरीर के विभिन्नं अंगों का संचालन करने में सहायक है। खासकर ऑंखें, कान और दिमाग पर इसका अच्छा प्रभाव पड़ता है। 
(3). CHARAN SPARSH-TOUCHING OF FEET OF ELDERS-RESPECTED (Bowing-prostrating in front of elders, Brahmns, Sages, Parents) :: This is not just respecting-honouring elders. When one bows the accumulated gas is released from his stomach and other parts of the body, providing relief from gastric trouble and indigestion. Bending is a good exercise-a component of Sury Namaskar, for the back bone. Flexibility of the back bone spinal cord is enhanced. Blood circulation in the brain increases, providing relief from pain. The moment one touches the feet of the revered his energy-sentiments are shared like the sharing of charges in two electric condensers. Positive energy, vibrations, healing start immediately. Youthfulness helps the old, fragile, revered in gaining strength. Remember that the thought-ideas should be pious, virtuous, righteous, while offering penances-respect. Those who lay down before the deities statues too experience solace and peace of mind.
The learned, saints always avoid their feet to be touched by any one, since it too spread various diseases, germs, viruses, fungus, bacteria pathogens etc.
बड़े-बूढ़े बुजुर्ग व्यक्तियों के चरण स्पर्श करने की प्रथा भारत में आदि काल से चली आ रही है। पैर छूने के लिए झुकने से पेट और शरीर के अन्य अंगो में भरी हुई गैस निकल जाती है। रीढ़ की हड्डी को आराम मिलता है। सर में खून का संचार होता है। इससे पेट, हाजमा और सिरदर्द ठीक होता है। पैर स्पर्श करते ही स्पर्शकर्ता और श्रद्धेय की ऊर्जा का समावेश होने लगता है। स्पर्शकर्ता में उत्तम विचार-सद्भावना का उदय होता है। मन निर्मल हो जाता है। सभी व्यक्ति यह श्रद्धा पूर्वक-दिल से करें। श्रद्धेय के पैरों को पिण्डली तक धीरे-धीरे दवाएँ। उन्हें आराम मिलगा और साधक को आशीर्वाद। विनीत व्यक्ति के मार्ग की बढ़ाएं दूर होंगी। यह प्रक्रिया लोग भगवान् के मंदिर में देवी-देवताओं के सम्मुख भी अपनाते हैं। ख्याल रहे दुर्भावना-क्रोध को मन से निकाल कर ही यह सब करें। 
(4). WEARING OF TOE RINGS (Bichhua, बिछुआ) BY WOMEN :: Normally toe rings are worn on the second foot finger. A particular nerve from the second toe connects the uterus and passes to heart. Wearing toe ring on this finger strengthens the uterus. It will keep the bearer healthy by regulating the blood flow and menstrual cycle will be regularised. As Silver is a good conductor, it also absorbs polar energies from the earth and passes it to the body.
भारत में लड़की को पाँव की दूसरी ऊँगली में बिछुआ पहनाया जाता है। इसका सीधा संबंध गर्भाशय और हृदय से है। यहाँ पाई जाने वाली नाड़ियाँ गर्भाशय और हृदय से जुडी होती हैं। चाँदी एक सुचालक और जीवाणु नाशक है। यह बिछुआ दबाब को भी नियंत्रित करता है। मासिक धर्म को नियंत्रित करने में भी इसका योगदान है।
(5). APPLICATION OF VERMILION-SANDALWOOD PASTE ON FOREHEAD :: The place considered to be the third eye of Bhagwan Shiv is in fact a spot which radiates energy. It signifies a major nerve point between the eye brows. Application of Kum-Kum between this space, protects one from negative energy released by the opponents, wicked, vicious, viceful, evil, inauspicious and the like. Women apply, fix Bindi, ready made spangle ornamenting on the forehead. This leads to the automatic pressing of AGYA CHAKR-GURU CHAKR (Agya: Order, Command) located at the base-housed at the upper end of the spinal cord-vertebral column, at the point of transition, from the spine to the brain. Development of one's wisdom and humanity is completed here, bridging the divine consciousness. Its energy is experienced in the center of the forehead between the eyebrows, just over the nose. It facilitates the blood supply to the face muscles. 
यह स्थान भगवान शिव की तीसरी आँख को दर्शाता है, जहाँ से ऊर्जा का प्रवाह होता है। यहीं पर दोनों आँखों के बीच एक प्रमुख स्नायु-नाड़ी केन्द्र स्थित है। यहाँ बिंदी, टीका, तिलक, त्रिपुण्ड लगाने से विपक्षी की बुरी नजर का दुष्प्रभाव नहीं पड़ता। महिलाएँ यहाँ सिंदूर-कुमकुम-रोली-चन्दन आदि का तिलक श्रृंगार हेतु लगाती हैं। इससे आज्ञा चक्र जाग्रत हो उठता है। 
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(6). APPLICATION OF SINDUR-VERMILION BETWEEN THE SEGREGATED HAIR BY WOMEN :: Indian women find it auspicious to fill the parting of hair with Sindur, vermilion, Lead Oxide (Pb3O4). Due to its intrinsic properties, Lead, besides controlling blood pressure, stimulates, activates, controls, regulates sexual drive. Women are 8 times sexier than the male. Sindur is prohibited for the widows and unmarried women. Sindur should be applied right up to the pituitary gland where all our feelings are centred. It absorbs the harmful-vicious radiations as well. 
Presence of lead in the body is harmful.
भारतीय महिलाएँ किसी भी धर्म, जाति, वर्ग की क्यों न हों वे सिंदूर जरूर लगती हैं। आजकल की आजाद ख्याल औरतें इससे भले ही परहेज क्यों न करें। सिंदूर सिर के ऊपर माँग के बीचों-बीच लगाया जाता है। आजकल की महिलाएँ माँग, फैशन के अनुरूप निकालती हैं। यह शीशे का ऑक्साइड लाल रंग का होता है और रक्तचाप को सही स्तर पर बनाये रखने में मदद करता है। यह कामेच्छा को उचित स्तर पर बनाये रखता है। विधवाएँ और कुँआरी लड़कियाँ इसका प्रयोग नहीं करतीं। इसको पिट्यूटरी ग्लैंड तक, जहाँ सभी भावनाओं का वास है, लगाया जाता है। यह अवांछित-हानिकारक विकिरणों से महिलाओं को मुक्त रखता है। 
(7). BELLS IN TEMPLES :: One rings bells hanging from the roof of the temple-the inner sanctum (Garbh Gudi or Garbh Grah or womb chamber) as soon as he enters it. The effect is enchanting. The echo-sound reverberates continuously, creating a soothing impact over the brain. Ringing temple bells or the once ringing at home while performing prayers & the conchs keep evil forces away [Agam Shastr]. It describes the sound as melodious-liked by the God. The ringing of bells clears the mind and helps one stay sharp and keep him with full concentration over devotional purposes. The sound creates a unity-unison of the Left and Right halves of the human brain. The bell produces a sharp and enduring sound, which lasts for a minimum of 7 seconds in echo mode, due to the soothing vibrations-effect. The duration of echo is good enough to activate all the seven healing centres in our body. This results in relieving our brain from all negative thoughts.
मन्दिर में प्रवेश करते ही, भक्तजन घण्टियाँ बजाते हैं। इसका प्रभाव मोहित, आकर्षित, सम्मोहन करने वाला है। घण्टी की प्रतिध्वनि मस्तिष्क पर अच्छा, शान्ति-सुखदायक प्रभाव डालती है। घण्टाध्वनि बुरे प्रभावों को दूर करती है [आगम शास्त्र]। परमात्मा को यह आवाज पसन्द है। यह ध्वनि हमारा ध्यान पूजा-आराधना, चिन्तन में बढ़ाती है। इस ध्वनि की विशेषता यह है कि यह मस्तिष्क के दोनों भागों को एकसार करती है। यह ध्वनि अपना प्रभाव 7 सेकंड से ज्यादा समय के लिए बनाये रखती है और शरीर के अन्दर उपस्थित 7 संवेदना केन्द्रों को नियमित करती है। हमारा मन बुराई से दूर भागने लगता है।
(7.1) BLOWING CONCH शंख का पूजा में महत्व :: हिन्दु धार्मिक मान्यता के अनुसार कोई भी पूजा, हवन, यज्ञ आदि शंख और घण्टा ध्वनि के बिना पूर्ण नहीं माना जाता है। धार्मिक शास्त्रों के अनुसार शंख बजाने से भूत-प्रेत, अज्ञान, रोग, दुराचार, पाप, दुषित विचार और गरीबी का नाश होता है। शंख बजाने की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। महाभारत काल में श्रीकृष्ण द्वारा कई बार अपना पंचजन्य शंख बजाया गया था। आधुनिक विज्ञान के अनुसार शंख बजाने से हमारे फेफड़ों का व्यायाम होता है, श्वास संबंधी रोगों से लड़ने की शक्ति मिलती है। पूजा के समय शंख में भरकर रखे गए जल को सभी पर छिड़का जाता है, जिससे शंख के जल में कीटाणुओं को नष्ट करने की अद्भूत शक्ति होती है। साथ ही शंख में रखा पानी पीना स्वास्थ्य और हड्डियों और दाँतों के लिए बहुत लाभदायक है। 
(8). NAV RATR VRAT :: Nav Ratra comes twice a year followed by change of weather-seasons. Food consumed during the two seasons is slightly different. People adopt fasting during these days. One can shed some weight feeling energetic and smart. One offer prayers and subject himself to meditation-asceticism. Normally, people discard fish-meat and non vegetarian food. Excess of sugar and salt are avoided. Non vegetarian food in not meant for the humans. Length of human intestine is 14 feet as compared to that of carnivorous-meat eaters, which have a 20 feet long intestine. Carnivores eat raw food while humans eat cooked food. Carnivores run 50-120 Km every day, while the humans eat meat and take plenty of rest. One is protected from the diseases which comes to him by eating flash-meat. Gastric trouble-indigestion too do not trouble him. Meat eaters are affected by heart trouble and high blood pressure.
नव रात्र व्रत साल में दो बार आते हैं। इस समय हिन्दु धर्माम्वली व्रत रखते है और मँस-मीट अंडा मच्छी नहीं खाते। व्रत रखने से वजन कम हो जाता है, चुस्ती-फुर्ती आती है। पूजा-पाठ, ध्यान-समाधि, भजन-कीर्तन आदि से मन परमात्मा में लगता है। इससे एकाग्रता बढ़ती है। माँसाहारी जीवों की आँतें 20 फुट लम्बी और मनुष्य की आँतें मात्र 14 फुट लम्बी होती हैं। पशु माँस खाकर 50-120 किलो मीटर दौड़ता-भागता है, मगर मनुष्य माँस खाकर सो जाता है। पशु लाल-कच्चा माँस कहते है और मनुष्य पकाकर खाता है। माँस न खाने से उन बीमारियों का खतरा तो पूरी तरह टल ही जाता है जो मनुष्यों को पशुओं से लगती हैं। गैस, अपच जैसी बीमारियों से मुक्ति अलग। हृदय रोग और उच्च रक्त चाप से मुक्ति अलग। 
(9). FASTING :: Root cause of many diseases is the accumulation of toxic materials in the digestive system. Regular cleansing of toxic materials keeps one healthy. Due to fasting, the digestive organs get rest and all body mechanisms are cleansed and corrected. Fast is good for heath and the occasional intake of warm lemon juice during the period of fasting prevents the flatulence. Human body is composed of 2/3 of water. This factor make humans prone to the impact of moon and other heavenly bodies. It results in all sorts of imbalances in the body, making some people tense, irritable and violent. Fasting acts as antidote, since it lowers the acid content in the body helping the individual retain sanity. Major health benefits include caloric restriction like reduced risks of cancer, cardiovascular diseases, diabetes, immune disorders etc. As a matter of fact its of great value in weight control.
Please refer to :: FASTING व्रत-उपवास santoshsuvichar.blogspot.com
शरीर एक ऐसी मशीन है जो हर वक्त काम करती रहती है। उसे भी आराम की जरूरत है। यह आराम उसे व्रत-उपवास से मिलता है। कभी भी, कहीं भी, कुछ भी खा लेने से, शरीर में अनेक प्रकार के अनवांछित पदार्थ इकट्ठे होते रहते हैं। उनका क्षरण करने में भूखा रहना-एक समय भोजन न करना, केवल निम्बू पानी पर रहना बहुत उपयोगी है। शरीर का एक तिहाई पानी होने के कारण यह चन्द्र और अन्य आकाशीय पिण्डों से तुरन्त प्रभावित हो जाता है। अन्य ग्रह भी शरीर पर अपना पूरा प्रभाव दिखाते हैं, जिससे यह व्याधि-बीमारी-रोगों की चपेट में आ जाता है। व्रत इन सबका एक सटीक-उपयुक्त उपचार है। व्रत के दौरान निम्बू पानी या केवल गर्म पानी का सेवन करते रहना चाहिये। वजन कम करने में तो यह बहुत ही ज्यादा सहायक है। व्रत के दौरान फलों का सेवन एक उचित मात्रा में करना चाहिये। 
(10). PLANTATION OF TULSI AT HOME :: Tulsi Sacred or Holy Basil, has the status of mother, the nurturer, Goddess. This is recognised-identified as a religious and spiritual devout in many parts of the world. It is icon to Sanjeevni Booti due to its medicinal properties. It functions as an antibiotic-anti dot. Its useful in cough, cold, fever & boosts immunity. Its normally kept outside the doors to repel insects and mosquitoes from entering the house. It's believed that snakes do not dare to go near a Tulsi plant. 
तुलसी माँ संजीवनी के समान है और अनेक बिमारियों से निज़ात दिलाती है। अमरीका आदि मुल्कों में इसे पवित्र बेसिल के नाम से जाना जाता है और बड़े पैमाने पर इसका इस्तेमाल चटनी के रूप में किया जाता है। यह आम तौर पर घर के बाहर रखी जाती है ताकि कीट-पतंग, मच्छर अन्दर न आयें। साँप भी इससे दूर ही रहता है। 
(11). WORSHIPPING PEEPAL (HOLY FIG) :: Peepal is probably the only tree, which produces oxygen even at night. Its considered to be an incarnation of Bhagwan Vishnu. Its new leaves are often eaten by the moneys.
पीपल को भगवान् विष्णु का अवतार कहा जाता है। शायद यही एकमात्र वृक्ष है जो कि हर वक्त जीवन दायिनी ऑक्सीजन प्रदान करता है। 
Please refer to :: PEEPAL (Holy fig) TREE पीपल वृक्ष AYURVED (3) आयुर्वेद :: MEDICINAL USES OF TREES-PLANTS पादपों के औषधीय गुण bhartiyshiksha.blogspot.com
(12). EATING FOOD WHILE SITTING ON FLOOR :: It is regarding sitting in the Sukhasan posture while eating. Sukhasan is the posture one normally use for Yogasan. The small intestine is brought to the straight down posture. Food straight way go to the stomach. Sufficient air gets mixed with the breath during this process. Digestion is improved significantly and the circulatory system to remain active.
कमर सीधी करके भोजन करना स्वास्थ्य के लिए लाभकारक है। इससे आँतें, आमाशय सीधी स्थिति में रहते हैं। खून का दौरा सही दिशा में और सामान्य रहता है। सुखासन योग के लिए एक अच्छा आसान है जिससे थकान नहीं होती।
Please refer to :: KUNDLINI कुण्डलिनी santoshkipathshala.blogspot.com
(13). IDOL WORSHIP :: One essentially needs a goal-target for concentration. Image formation is a must to meditate and to perform ascetic practices. Its extremely difficult to make a mental image and reach the Ultimate, initially. So, the Hindu looks for a temple, a statue, drawing, image to fix his energies in the Almighty. This process is called Sakar-shape formation of worship. The next stage may be Nirakar, which comes through practice. More is the practice, more is one close to the God. In fact the image of the deity protects one from distraction of the brain in roaming in all possible directions. However, the Jyotir Ling is like the living deity-Bhagwan Shiv, one may choose-select to fix-concentrate his brain.
साधना के हेतु-ध्यान लगाने के लिए मनुष्य को कुछ साधन तो चाहिये। कभी गुरु, कभी माँ-बाप तो कभी मूर्ति-तस्वीर। वैसे तो भगवान् हमारे अन्तःकरण में विराजमान हैं, परन्तु एक चित्र, छाया, मूर्ति ध्यान केंद्रित करने में सहायक है। शुरू-शुरू में तो यह नितान्त आवश्यक है। परन्तु निरन्तर अभ्यास से मन-आत्मा परमात्मा में लीन होने लगती है। मन की गति को लगाम लग जाती है। भटकाव बंद हो जाता है। मूर्ति परमात्मा के साकार रूप से जोड़ती और मानसिक साधना-तपस्या निराकार से जोड़ देती है। यह अभ्यास का विषय है। वास्तिवकता तो यह है कि मन चंचल-बेलगाम घोड़े की तरह है जो कि दिशाहीन है, किसी भी दिशा में कभी भी भागने लगता है। ज्योतिर्लिग में तो भगवान् शिव साक्षात स्वयं विराजमान हैं और ध्यान केन्द्रित करने में सहायक हैं। 
(14). HAIR LOCK OVER THE HEAD शिखा-चुटिया :: प्राचीन काल से ही ऋषि-मुनि सिर पर शिखा-चुटिया रखते आ रहे हैं। ब्राह्मण और गुरुजन इस काल में शिखा धारण करते हैं। चाणक्य की शिखा तो विश्व प्रसिद्ध है। आयुर्वेद के प्रणेता सुश्रुत ऋषि ने ब्रह्म रन्ध्र को जो कि सिर में शीर्ष स्थल पर मौजूद है, को अधिपति-जो सब को संचालित करता है, की संज्ञा प्रदान की। यह मानव शरीर का एक मर्म स्थल है। यहाँ सभी नाड़ियों का संगम होता है। शिखा-चोटी इस स्थल की रक्षा करती है। शरीर के निम्न अंगों को संचालित करती हुई सुषम्ना नाड़ी यहां तक आती है। ब्रह्म रन्ध्र सातवें चक्र का शीर्ष स्थल भी है। यह मनुष्य को ओज-तेज प्रदान करता है।
(14.1). शिखा के नीचे सुषुम्ना नाड़ी होती है, कपाल तन्त्र के अन्य खुली जगहोँ (मुण्डन के समय यह स्थिति उत्पन्न होती है) की अपेक्षा अधिक संवेदनशील होता है। जिसके खुली होने के कारण वातावरण से ऊष्मा व अन्यब्रह्माण्डिय विद्युत-चुम्बकी य तरंगोँ का मस्तिष्क से आदान प्रदान बड़ी ही सरलता से हो जाता है और इस प्रकार शिखा न होने की स्थिति मेँ स्थानीय वातावरण के साथ साथ मस्तिष्क का ताप भी बदलता रहता है। मस्तिष्क को सुचारु, सर्वाधिक क्रियाशिल और यथोचित उपयोग के लिए इसके ताप को नियंन्त्रित रहना अनिवार्य होता है। जो शिखा न होने की स्थिति मेँ एकदम असम्भव है। क्योँकि शिखा (लगभग गोखुर के बराबर) इस ताप को आसानी से सन्तुलित कर जाती है और उष्मा की कुचालकता की स्थिति उत्पन्न करके वायुमण्डल से उष्मा के स्वतः आदान प्रदान को रोक देती है। 
(14.2). जिस जगह शिखा (चोटी) रखी जाती है, यह शरीर के अंगों, बुद्धि और मन कोनियंत्रित करने का स्थान भी है। शिखा एक धार्मिक प्रतीक तो है ही साथ ही मस्तिष्क के संतुलन का भी बहुत बड़ा कारक है। 
(14.3). शिखा का आकार गाय के पैर के खुर के बराबर होना चाहिए। सिर में बीचों बीच सहस्राह चक्र होता है। शरीर में पाँच चक्र होते हैं, मूलाधार चक्र जो रीढ़ के नीचले हिस्से में होता है और आखिरी है, सहस्राह चक्र जो कि सिर पर होता है। इसका आकार गाय के खुर के बराबर ही माना गया है। शिखा रखने से इस सहस्राह चक्र का जागृत करने और शरीर, बुद्धि व मन पर नियंत्रण करने में सहायता मिलती है। शिखा का हल्का दबाव होने से रक्त प्रवाह भी संतुलित रहता है और मस्तिष्क को इसका लाभ मिलता है।
(14.4). मृत्यु के समय आत्मा शरीर के द्वारों से बाहर निकलती है (मानव शरीर में नौ द्वार बताये गए हैं, दो आँखे, दो कान, दो नासिका छिद्र, दो नीचे के द्वार, एक मुँह) और दसवाँ द्वार यही शिखा या सहस्राह चक्र जो सिर में होता है। यदि प्राण इस चक्र से निकलते हैं तो साधक की मुक्ति निश्चत है और सिर पर शिखा होने के कारण प्राण बड़ी सरलता से निकल जाते हैं और मृत्यु हो जाने के बाद भी शरीर में कुछ अवयव ऐसे होते हैं जो आसानी से नहीं निकलते, इसलिए जब व्यक्ति को मरने पर जलाया जाता है तो सिर अपने आप फटता है और वह अवयव बाहर निकलता है। यदि सिर पर शिखा होती है तो उस अवयव को निकलने की जगह मिल जाती है। शवदाह क्रिया में कपाल क्रिया इसीलिये की जाती है। 
(14.5). शिखा रखने से मनुष्य प्राणायाम, अष्टांगयोग आदि यौगिक क्रियाओं को ठीक-ठीक कर सकता है। शिखा रखने से मनुष्य की नेत्र ज्योति सुरक्षित रहती है। शिखा रखने से मनुष्य स्वस्थ, बलिष्ठ, तेजस्वी और दीर्घायु होता है।
Sushrut described Brahm Randhr-the peak over the head, as the Adhipati-Supreme or the Marm-most sensitive point in the human body. Here stands the nexus of all nerves. The Shikha-Choti (lock) protects this spot. The Sushumana (nerve) reaches here from the lower segments of the body. Brahm Randhr constitutes the highest, seventh Chakr, with the thousand-petalled lotus. It is the center of wisdom. The knotted Shikha-the lock helps boost this center and conserve its subtle energy known as Ojas-Aura.
Please refer to :: KUNDLINI कुण्डलिनीsantoshkipathshala.blogspot.com  hindutv.wordpress.com
(15). EATING HABITS :: Normally one starts with spicy food and take some sweets at the end. Spices are medicines having curing character. Never consume more spices. They begin-initiates proper digestion of food with the secretion of enzymes and help in the conversion of cellulose, proteins and carbohydrates into digestible sugars, which can be absorbed easily by the small intestine. Sweets change taste in the mouth.
खाद्यान्न में मिर्च-मसाले उसे ज़ायकेदार-स्वाद बना देते हैं। मसाले कभी भी ज्यादा मात्रा में नहीं खाने चाहिए। प्रत्येक मसाला औषधि गुणों से युक्त होता है। ये मनुष्य को उत्तम स्वास्थ्य प्रदान करते हैं, यदि उचित मात्रा में लिए जायें। इनसे पेट में एन्जाइम्स की उत्पत्ति होती है जो कि कार्बोहाइड्रेट्स, सेल्यूलोस, प्रोटीन्स को आसानी से पाचनशील शुगर्स में बदल देते हैं। मिठाई सामान्यतया मुँह का स्वाद बदलने के लिए होती है।
(16). APPLICATION OF HENNA-MAHDI OVER HANDS-FEET :: Its medicinal characters have been recognised. It relieves one, from stress, headaches and fever. The girls and married women apply its paste over their hands and the feet due to this reason to avoid the excitement, nervous breakdown before and during the marriage celebrations. Hands and feet contain the nerves which end up over their tips. Old man and women apply this to colour hair, since its a natural dye which protects scalp.
मेंहदी के औषधि गुणों को पहचान कर उनका सदुपयोग किया जाता है। मेंहदी तनाव, सरदर्द और बुखार में राहत देती है। शादी के वक्त लड़की को अत्यधिक तनाव से गुजरना पड़ता है। नाड़ियाँ हाथ और पैरों के पौरुओं तक पहुँचती हैं। अतः मेंहदी का लेपन-रचाना किया जाता है। स्त्रियों को हर तीज-त्यौहार पर मेंहदी लगाने का शौक होता है और इसे श्रंगार-प्रसाधन के तौर पर इस्तेमाल किया जाने लगा है। आम तौर पर अवस्था बढ़ने पर सफेद बालों को रंगने में भी इसका उपयोग होता है, क्योंकि यह एक प्राकृतिक रंग और सर में ठंडक प्रदान करती है। 
(17). WEARING BANGLES-ORNAMENTS :: Women is more sensitive as compared to the man. She is prone to microbes, germs, virus, bacteria, fungus. Gold and Silver have anti microbe properties. This is the reason why the rich and mighty prefer gold utensils. One eat betel leaves studded with Gold-Silver foil. Sweets too are laced with Gold and Silver foil due to this reason. Moving-cluttering bangles keeps the flow of blood steady and regular. In fact Indians are supposed to wear bracelets, rings, anklets in hands and legs, in addition to rings in the ears. Flow of blood produce charges in the body which are channelized by these ornaments. 
स्त्री को पुरुष की अपेक्षा कोमलांगी समझा जाता है। इसलिए उसे बचपन से आभूषणों का प्रयोग करने को कहा जाता है। सोने-चाँदी में रोगाणुओं-जीवाणुओं से लड़ने-प्रतिरोध उत्तपन्न करने की क्षमता है। इसी वजह से भारत में पान और मिठाइयों पर सोने चाँदी का वर्क लगाने-खाने का रिवाज है। पैर-हाथ में चूड़ी-कड़े इसी वजह से पहने जाते हैं। मर्दों को कन छेदन और कुण्डल पहनने को कहा जाता है। लोग तो अपने दाँतों में भी सोना जड़वा लेते हैं। रक्त प्रवाह के दौरान काफी बड़ी मात्रा में आवेश-विद्युत कण-इलेक्ट्रान आदि उत्त्पन्न होने हैं, जिनको उदासीन करने के लिए भी ये अनिवार्य हैं। कर्ण का दाँत सोने का था जिसे भगवान् श्री कृष्ण ने अर्जुन के सामने उसकी मृत्यु के समय उसकी महानता बताने के लिए माँगा था।
(18). PIERCING OF EARS :: Its believed that piercing of the ears might help in the development of intellect, power of thinking and decision making faculties. It helps in speech-restraint. Talkativeness-too much talking, fritters away life sustaining energy. It reduces impertinent behaviour and the ear-channels become free frum disorders. Bible has stressed over this ritual. During the current age-era, people do it as a mark of fashion. As a matter of fact the hole in the ear is used to wear golden ornaments which protects them from infections regularly. The ears of one who is born in MUL Nakshtr should be pierced, as will help the family, later.
विद्वान लोग यह मानते हैं कि कन छेदन से मेधा-शक्ति का विकास होता है। निर्णय लेने की क्षमता बढ़ती है। ज्यादा-बातचीत ऊर्जा की नाशक है। यह ज्यादा-फालतु बोलने पर प्रतिबंद्ध लगाता है। कान की बिमारियों से राहत प्रदान करता है। कान में स्वर्ण-जड़ित आभूषण पहनने से मनुष्य की जीवाणुओं से रक्षा हो जाती है। बाइबल में भी इसके ऊपर काफी जोर दिया गया है। आजकल के लौंडे-लपाडे इसे फैशन के लिये इस्तेमाल करते हैं। किसी भी बहाने से सही एक उचित चीज का उचित प्रयोग तो है। 
(19). PROPER DIRECTION FOR SLEEPING :: Human body carries currents which transform in to magnetic field. One should align the body in north-south direction in such a way that the head is in the south, south-east or purely east. This will help in easing blood pressure, heart ailments and ascertain proper flow of blood into the head. Our blood, which is a significant constituent of the body which 2/3 water, constitutes of haemoglobin-a compound containing iron. Headache, Alzheimer’s Disease, Cognitive Decline, Parkinson disease and brain degeneration are some of the complications resolved by sleeping in this manner.
मानव-शरीर में हर वक्त खून का प्रवाह होने से विद्युत आवेश उत्तपन्न होता है जो कि चुंबकीय क्षेत्र में परिवर्तित हो जाता है ऐसा होने से उसका प्रभाव मन-मष्तिष्क और शरीर पर पड़ने लगता है। शरीर का दो तिहाई भाग पानी से बना है, जिसमें लगभग 5 लीटर खून होता है। हीमोग्लोबीब खून का एक विशिष्ट यौगिक है, जिसमें लोह तत्व होता है। लोहा चुम्बक से आकर्षित होता है। सोते वक्त सर की दिशा दक्षिण, दक्षिण-पूर्व अथवा पूर्व रखने से शरीर में रक्त संचार सही तरीके से होने लगता है, जिससे उच्च रक्तचाप, सरदर्द, हृदय-रोग जैसी बिमारियों का समाधान हो जाता है।
(20). DEEPAWALI CELEBRATIONS :: It coincides with the change of seasons. Monsoon is retards, temperatures start falling, attack of insects which cause various diseases, is on the rise. Repairs, renovation, cleaning, beatifications are carried out at this occasion. This prompts cleaning of walls and application of lime added with copper sulphate (Cu2SO4) which are most common insecticides. A fresh coat removes dampness as well. Winter cloths are out and needs to be placed in the Sun light. It coincides with sowing season and cutting of sugar cane crop as well.
दीपावली से ही मौसम बदलने की शुरुआत हो जाती है। मानसून वापस चला जाता है, तापमान कम होना शुरू हो जाता है। कीड़े-मकोड़ों की वृद्धि होने लगती है। मकान मरम्मत-सफाई माँगने लगता है। अतः चूना-पुताई भी कराया जाता है। पुताई में चूना और नीला थोथा मिलाया जाता है जो कि सूक्ष्म जीवाणुओं और कीड़े-मकोड़ों को मारने में सक्षम है। यह घर की सीलन और बदबू को भो दूर करता है। यहीं से बुआई का वक्त शुरू हो जाता है गन्ने की फसल भी तैयार होने को होती है। 
(21). OFFERING WATER TO THE SUN-SUN SALUTING ::
 This is one
 of the most common tradition followed by the Hindus. They get up early in the morning and become fresh before Sun rise. They perform prayers and complete the morning rituals. This is one the several rituals they follow. A pot full of water mixed with honey, milk, Tulsi leaves is offered to the rising Sun, when it become lustrous-shinning, its no more red in appearance. While the red rays are dangerous for the eyes due to their infra red nature-high wave length and low frequency. Several other radiations (VIBGYOR) are obtained, when these rays pass through water which are soothing to the eyes and the brain.
यह आस्था में रंगा हुआ एक ऐसा वैज्ञानिक चमत्कार है जो कि प्रत्येक हिन्दु अनुभव करता है। उगते और ढ़लते हुए सूर्य को देखना नहीं चाहिये, क्योंकि वह लालिमा लिए हुए रहता है और उससे बड़ी तरंग दैर्ध्य और न्यून आवर्ती की तरंगें निकलती हैं। जब जल-अर्ध्य दिया जाता है तो विकिरण संतुलित होकर आँखों से मिलते हैं, जिससे विनाई-नेत्र ज्योति बढ़ती है। इस जल में शहद, गंगा जल, तुलसी, दूध आदि को मिला दिया जाता है। 
(22). AUSPICIOUSNESS, AUSTERITY BEHIND VISITING A HINDU TEMPLES :: Visiting temples is a kind of penance-prayer devoted to the Almighty. Sweeping the flour, painting the walls, offering of fruits, cloths, money, flowers; pouring water-milk, curd, honey, ghee over the statue are some alternate forms of prayer. Sitting in front of the deity's statue and concentrating-creating a mental image, of the God in one's mind, too is prayer. Sanatan Dharm-Hinduism has a rich heritage, culture and tradition. There are thousand's of mesmerising Hindu temples across the country & else where with different distinguished design, shape, locations. Vastu Shastr has been utilized and the knowledge of scriptures-Ved, Puran is applied. Visiting temples grant blessing, boons, fulfilment of desires, calm, better mind set and peace of mind. It gives power to face the difficult phases of life. 
(22.1). LOCATION, DESIGN & STRUCTURE :: Temples are deliberately built at a place where the positive energy is available abundantly from the the magnetic and electric field conveyances of north-south poles. The idol of God is set in the core center of the temple, known as Garbh Grah or Mool Sthan. Ideally, the structure of the temple is built after the idol has been placed in a high positive wave eccentric place. This Mool Sthan is the place where earth’s magnetic field-waves are discovered to be extreme.
(22.2). REMOVAL OF FOOT WEAR :: Temples are the sacred places where magnetic and electric fields with positive energy exists. Temples were used to be built in such a manner that the floor at the center of the temple were good conductors of positive vibrations allowing them to pass through one's feet to the earth. Hence, it is essential to walk bare footed, while one enter the core center of the temple. Shoes and Chappals are used everywhere and they tend to acquire impurities in the form of dust, garbage, germs, virus, harmful enzymes, bacteria, fungus and protozoans. 
(22.3). RINGING OF BELLS :: It activates the senses specially the hearing. People who are visiting the temple should and will Ring the bell before entering the inner temple (Garbh Gudi, Garbh Grah, Mool Sthan or womb-chamber) where the main idols are placed. These bells were fixed in such a manner that they produce a sound in unison to create resonance-echo symmetrically, on either side i.e., left and the right. The bells produces a sharp and enduring sound which lasts for minimum of 7 seconds, in echo mode. The duration of echo is good enough to activate all the seven healing centres in one's body. This results in emptying our brain from tensions. This bell sound is also absorbed by the idol and vibrated within the Garbh Gudi for a certain period of time.
(22.4). VASTU-ANCIENT HINDU ARCHITECTURE & ENGINEERING :: Temples are engineering marbles employing excellent techniques-blue prints, skills, architecture, resonance, echo, vibrations, symmetry, orientation with the 10 directions connected with the walls & the foundation. They create soothing impact over the visitors if they enter the temples with pure thoughts, ideas, desires. The idols too have mesmerising impact over the devotees. As a matter of fact, gathering of a large number of people seeking renunciation make the environment religious, pious, virtuous, righteous. 
(22.5). LIGHTING OF CAMPHOR, GUGAL, AGARBATTI, DHOOPBATTI, MUSTERED OIL-GHEE, EARTHEN-METAL (GOLD-SILVER) LAMPS IN FRONT OF THE IDOL :: All these articles have the properties of disinfectants. Most of these articles liberate pleasant smells which develop good mood, happiness and congenital environment all around. One never experienced suffocation inside the chambers of the temples. In fact most of the substances which are allowed to ignite inside, contains medicinal properties which enters the lungs and gets mixed with the blood re leaving the devotees of a number of diseases. Soothing impact of Gold, Silver and copper over the human body is universally recognised.
(22.6). OFFERING FLOWERS, SCENTS, FRAGRANCES :: These are the articles admired by each and every one. They creates pleasant environment there. Mind experiences calmness, freshness and improved energy levels. 
(22.7). DRINKING CHARNAMRAT चरणामृत पञ्चगव्य :: Charnamrat is prepared by mixing Ganga Jal, cow urine, curd, honey, milk, Tulsi (Holy Basil) leaves. 5-10 grams of charnamrat is offered to the devotees as prashad. This is an Ayur Vedic composition which cures a number of diseases automatically, like soar throats, fever & common cold, coughs, respiratory disorders-ailments, formation of kidney stone & heart disorders. Normally the preparation is stored in silver, copper or gold vessels which have curative impact over one's body.
(22.8). ENCOMPASS-CIRCUMAMBULATION दक्षिणा-परिक्रमा :: This is a process in which the devotees moves round the temple or the idol 7-9 times in clockwise order. The walk involved in the process activates the blood vessels inside the lungs, which smoothly absorbs the medicinal properties of offerings to the God, present in the air of the temple.
(22.9). APPLICATION OF VERMILION-TURMERIC (हल्दी) SAFFRON, SANDALWOOD PASTE (चन्दन) MARK OVER THE FOREHEAD :: It leads to automatic activation of the Agya Nadi Chakr over the fore head. This is the place where the energies of the humans are radiated or absorbed in either positive or negative manner. It relaxes one by facilitating smoother flow of blood in the brain. Agya: Order, Command. 
Location of Agya Chakr: It’s based-housed at the upper end of the spinal cord-vertebral column, at the point of transition, from the spine to the brain. Development of one's wisdom and humanity is completed here, bridging the divine consciousness. Its energy is experienced in the center of the forehead between the eyebrows, just over the nose.
तिलक विधि :: तिलक लगाने के लिए हाथ की चार अंगुलियों को प्रयोग किया जाता है। किस अंगुली से किसको तिलक लगाना है, इसके नियम  :-
(1). तर्जनी (INDEX) :- दाहिने हाथ की तर्जनी अंगुली से पितृ गणों को अर्थात पिण्ड को तिलक किया जाता है।
(2). मध्यमा (MIDDLE) :- दाहिने हाथ की मध्यमा अंगुली से स्वय तिलक धारण किया जाता है।
(3) अनामिका (RING) :- दाहिने हाथ की अनामिका अंगुली से भगवान् व देवों का तिलक किया जाता है।
(4) अंगूठा (THUMB) :- दाहिने हाथ के अंगूठे से अतिथि को किया जाता है।
(22.10). OFFERING OF BANANA-COCONUT FRUITS :: These are termed as sacred fruits due to their composition. Generally they remain uneaten by the birds, insects etc. 
(22.11). RITUALS, PRAYERS, RHYMES, MANTR & SHLOK :: Recitation of these has purifying impact over one due to the waves-vibrations generated in the atmosphere of the temple, which are so devised that the curative effect is observed soon there after. Mantr in the forms of Shlok are the coded symbolic verses which activate certain mystic forces, if recited with proper tone. 
(23). लकड़ी के खड़ाऊँ :: पैरों में लकड़ी के खड़ाऊँ इसलिए पहनी जाती थीं, क्योंकि हमारे शरीर में निरन्तर विद्युत धारा का उत्पादन और संचार होता है। यह ऊर्जा शरीर में रक्त वाहनियों-धमनियों, शिराओं तथा नसों के माध्यम से संचारित होती है। अगर इसको धरती से जोड़ दिया जाये तो इसका प्रवाह उसमें हो जाता है। खड़ाऊँ लकड़ी की बनी होने से विद्युत की कुचालक होती हैं और ऊर्जा का निरन्तर प्रवाह बना रहता है। कपड़ा और चमड़ा दोनों ही नमी सोखते है और भीगने पर जल सोख लेते है और विद्युत का प्रवाह कर देते हैं। यह इस बात को भी सुनिश्चित करता है कि विद्युत का झटका न लगे।
Ancient Hindu tradition of wearing wooden shoes-chapples is supported by logic-reasoning. Wood is a non conductor of electricity and obstruct the flow of charges. Human body continuously generate charges, which flow through the blood vessels, veins, arteries and the nerves. It protects one from electric shocks, as well. The moment one moves barefoot these charges enter the earth sucking the vital energy-life supporting force. Cotton socks absorb sweat and make the cotton shoes conducting. Leather too absorbs moisture quickly, making it conducting that why one is not allowed to wear shoes in sacred-religious places.
निशीथ काल :: रात्रि में 12 बजे से निशीथ-निषिद्ध काल (प्रेत काल) प्रारम्भ हो जाता है। निशीथ काल रात्रि को वह समय है जो समान्यत: रात 12 बजे से रात 3 बजे की बीच होता है। आमजन इसे मध्यरात्रि या अर्ध रात्रि काल कहते हैं। शास्त्रनुसार यह समय अदृश्य शक्तियों, भूत व पिशाच का काल होता है। इस समय में यह शक्ति अत्यधिक रूप से प्रबल हो जाती हैं।
अदृश्य पाशविक, पैशाचिक शक्तियाँ दिखाई नहीं देतीं, किंतु बहुधा मनुष्यों पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं, जिससे जीवन अस्त-व्यस्त हो उठता है और व्यक्ति दिशाहीन हो जाते हैं। 
साल के कुछ दिनों को छोड़कर जैसे दीपावली, 4 नवरात्रि, जन्माष्टमी व शिवरात्रि पर निशीथ काल महानिशीथ काल बन कर शुभ प्रभाव देता है जबकि अन्य समय में दूषित प्रभाव देता है।
सनातन धर्म के शास्त्र अनुसार अग्नि को बुझा कर उत्सव मनाना अंधेरे के देवता असुर का आवाहन करने के बराबर माना गया है।
मन्दिर में देव दर्शन :: परम्परा हैं कि किसी भी मन्दिर  में दर्शन के बाद बाहर आकर मन्दिर  की पैड़ी या ऑटले पर थोड़ी देर बैठना। मन्दिर की पैड़ी पर बैठ कर निम्न श्लोक बोलना चाहिए :-
अनायासेन मरणम्, बिना देन्येन जीवनम्।
देहान्त तव सानिध्यम्, देहि मे परमेश्वरम्॥
"अनायासेन मरणम्" अर्थात् बिना तकलीफ के हमारी मृत्यु हो और कभी भी बीमार होकर बिस्तर पर न पड़ें, कष्ट उठाकर मृत्यु को प्राप्त ना हों चलते फिरते ही हमारे प्राण निकल जाएं।
"बिना देन्येन जीवनम्" अर्थात् परवशता का जीवन ना हो। कभी किसी के सहारे ना रहना पड़े। जैसे कि लकवा हो जाने पर व्यक्ति दूसरे पर आश्रित हो जाता है वैसे परवश या बेबस ना हों। 
"देहांते तव सानिध्यम" अर्थात् जब भी मृत्यु हो तब भगवान् के सम्मुख हो। जैसे भीष्म पितामह की मृत्यु के समय स्वयं (भगवान् श्री कृष्ण) उनके सम्मुख जाकर खड़े हो गए। उनके दर्शन करते हुए प्राण निकले।
"देहि में परमेशवरम्" हे परमेश्वर ऐसा वरदान हमें देना।
गाड़ी, लड़का, लड़की, पति, पत्नी, घर, धन इत्यादि (अर्थात् संसार) नहीं माँगना है, यह तो भगवान् हमारी पात्रता-प्रारब्ध के अनुरूप स्वतः देते हैं। इसीलिए दर्शन करने के बाद बैठकर यह प्रार्थना अवश्य करनी चाहिए। यह प्रार्थना है, याचना नहीं है। याचना साँसारिक पदार्थों के लिए होती है। जैसे कि घर, व्यापार,नौकरी, पुत्र, पुत्री, साँसारिक सुख, धन या अन्य बातों के लिए जो माँग की जाती है वह याचना है ।
'प्रार्थना' शब्द के 'प्र' का अर्थ होता है 'विशेष' अर्थात् विशिष्ट, श्रेष्ठ और 'अर्थना' अर्थात् निवेदन। प्रार्थना का अर्थ हुआ विशेष निवेदन।
मन्दिर में भगवान् की प्रतिमा का दर्शन सदैव खुली आँखों से करना चाहिए, निहारना चाहिए। हाँ वहाँ प्रार्थना करते वक्त आँखें बंद की जा सकती हैं। 
दर्शन के बाद जब बाहर आकर बैठें, तब नेत्र बंद करके जो दर्शन किया हैं उस स्वरूप का ध्यान करें। मन्दिर से बाहर आने के बाद, पैड़ी पर बैठकर स्वात्मा का ध्यान करें, नेत्र बंद करें।
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संतोष महादेव-सिद्ध व्यास पीठ, बी ब्लाक, सैक्टर 19, नौयडा

Monday, January 26, 2015

AUSPICIOUS DAILY ROUTINE शुभ दिन चर्या :: HINDU PHILOSOPHY (10) हिंदु दर्शन

AUSPICIOUS DAILY ROUTINE
शुभ दिन चर्या
HINDU PHILOSOPHY (10) हिंदु दर्शन
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
By :: Pt. Santosh Bhardwaj
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ॐ गं गणपतये नम:।
अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।
निराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि
[श्रीमद्भगवद्गीता 2.47]
Its essential to remain fit physically, mentally, spiritually. One has to programme his life style & daily routine in such a way that he is able to remain healthy, happy, prosperous and devoted to the Almighty. All activities crucial-essential, momentary, unprogrammed-unscheduled constitute one's daily routine. It may vary from one person to another depending upon the availability of time. It essential to have recreation, joy in the busy life of one.
Ancient India has been following a water tight daily routine for the Brahmns, Virtuous, pious and those who believed in scriptures. Generally the enlightened, scholars, philosophers in India still follow this routine. One used to get up early in the morning around 4 o'clock, take bath and then perform rituals-prayers, self study followed by professional necessities.
प्रातः ब्रह्म मुहूर्त सुबह 4 बजे उठने से उठने से लेकर रात को सोने तक की गई गतिविधियों, क्रिया कलापों को दिनचर्या कहा जाता है। यह हर व्यक्ति, व्यवसाय के लिए एक समान नहीं हो सकता। फिर भी स्वस्थ रहने के लिये मनुष्य को जीवन में एक निश्चित समय सारिणी के अनुरूप चलना चाहिये। 
मनुष्य का भोजन, गतिविधियाँ, प्रकृति के अनुरूप होने चाहियें, जो कि वर्तमान समय-समाज में सम्भव नहीं हैं। अब स्त्री-पुरुष, वृद्ध व्यक्ति समान रूप से अर्जन क्रिया में जुटे हैं। लड़कों की ही तरह लड़कियाँ भी स्कूल-कॉलेज में पढ़ाई कर रही हैं। लड़कियाँ भी नौकरी, व्यवसाय में रत हैं।
During the present era-Kali Yug, its not possible for all to follow that stereo-typed routine. The job-professional requirements forces one to wake up late till night and get up late. Those who have to perform night duties can never stick to such routine, prescribed-described in scriptures. In fact its neither practical nor essential in present context.
The girls are attending schools, colleges and high level training in professional carriers, which makes extremely difficult for them to stick to daily chores of domestic life. However, one can make his eating habits, schedule practical enough to keep him fit. 
Please refer to :: LONGEVITY-दीर्घायु  bhartiyshiksha.blogspot.com
ऋषि गण सूर्य गति के अनुसार ब्राह्म मुहूर्त में प्रातः विधि, स्नान और संध्या करते थे, तत्पश्चात् वेदाध्ययन और कृषि कार्य करते थे और रात को शीघ्र सो जाते थे; इसलिए वे शारीरिक, मानसिक, भौतिक, आध्यात्मिक रूप से स्वस्थ थे। आज लोग प्रकृति के नियमों के विरुद्ध आचरण करते हैं। इससे उनका शारीरिक मानसिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य बिगड़ा हुआ रहता है। पशु-पक्षी भी प्रकृतिके नियमों के अनुसार अपनी दिनचर्या व्यतीत करते हैं।
The schedule of the sages is a model, but practically difficult to follow-adopt. It can keep one free from poverty, troubles-tensions. However, those who are firm-determined can still to specific daily routine with leniency to deviate as per need.
धर्म शास्त्र में नियमित-नियमबद्ध आह्निक-दैनिक दिनचर्या को प्रधानता दी गई है। इससे शरीर, मन, मनो विकृतियाँ, दरिद्रता, दुर्व्यसन, आपत्तियाँ काबू में रहती हैं। 
Daily practice of rituals-prayers, keeps the psyche of one pious, stable, pure. The Brahmn has to perform two prayers, the first in the morning and the second in the evening, with the recitation of Gayatri Mantr. It keep his psyche pure. He remain devoted to the God. He may adopt the prayers during the day-noon.
नित्य कर्म मन-चित्त को शुद्ध करते हैं। ब्राह्मण को दोनों  संध्याएँ नियमित रूप  से गायत्री मंत्र के जप के साथ करनी चाहियें।  
India has a loosely nit caste, creed, more, hereditary based society; constituting of Brahmns, Kshtriy, Vaeshy and the Shudr. The physique, mental ability, working capability, habits are more or less determined by the gens-chromosomes DNA present in the individual.
As per tradition the Brahmn perform teaching and learning. The Kshtriy resort to protection of society. The Vaeshy serves the society by trading and agriculture. The Shudr provides all sorts of services to the society. As per definition of Shudr and one who is in service is a Shudr.
ब्राह्मण का नित्य कर्म, कर्तव्य है, अध्ययन और अध्यापन (अध्यात्म सीखना और सिखाना)। क्षत्रिय का नित्य कर्म-कर्तव्य है, दुर्जनों से समाज की रक्षा करना। 
वैश्य का नित्य कर्म-कर्तव्य है, गौ-पशु पालन, कृषि और व्यापार द्वारा समाज की सेवा करना। 
शूद्र का नित्यकर्म-कर्तव्य है, ब्राह्मण, त्रिय और वैश्य के विशिष्ट व्यवसाय के अतिरिक्त कोई भी व्यवसाय करना, उच्च वर्ग की सेवा करना।
The celibate has to serve his teacher and gain knowledge. He has to learn to be a socially useful person. He has to follow a rigid-tight schedule, under the supervision of the teacher in his Ashram-residence cum school, hermitage away form residential colonies. The household has to resort to earning, serving the society, nourish-nurture his family, pray to God, offer food to the guest, celibates & their teachers family. Retired life has to be spent in gaining virtues, learning, purification of body, mind and the soul. The hermit-recluse has to beg for his living, pray to God, resort to asceticism.
ब्रह्मचर्याश्रम में धर्म का पालन ब्रह्मचर्य का अभ्यास करके करना चाहिये। गृहस्थाश्रम में देव, ऋषि, पितर और समाज ऋण चुकाना चाहिये। वानप्रस्थाश्रम में शरीर शुद्धि और तत्त्वज्ञान के अभ्यास के उद्देश्य से साधना करना तथा संन्यासाश्रम में भिक्षाटन, जप, ध्यान इत्यादि कर्म करना चाहिये। 
The household divides the 12 hours during the day in 5 components. In the morning he resort to prayers. Time between noon and morning is used for earning livelihood. During the noon he perform rituals, prayers and sacrifices in holy fire. The full length of 24 hours is divisible in 30 sub components called Muhurt-auspicious time (48 minutes) for beginning some thing-event. 
The early morning session starts with becoming fresh and taking bath. One has to avoid Sun rise view. After the Sun rise morning prayers and rituals begin. It involves recitation of Gayatri Mantr and the worship of the deities-Almighty. The prayers include Panch Maha Yagy.
The period between the noon and the morning after prayers is utilised for earning livelihood, agriculture, crops, dairy-farming etc.
The middle segment of the day include bathing-washing hands, feet-legs and mouth, recitation of auspicious Mantr, Brahm Yagy and Bhut Yagy in addition to prayers.
Afternoon prayers include manes-Pitre Yagy-homage to Manes & charity.
The evening session include recitation of Gayatri Mantr, listening-reading Purans, scriptures etc.
This is not enough. One has to perform atonement-penance to get rid of the sins of killing insects, worms, small living beings unknowingly. 
दिन के (12 घंटों के) पाँच विभाग हैं। प्रत्येक विभाग तीन मुहूर्त के समान होता है। 24 घंटों के दिन में 30 मुहूर्त होते हैं। एक मुहूर्त अर्थात् दो घटिका अर्थात् 48 मिनट। संक्षेप में प्रत्येक विभाग 2 घंटे 24 मिनट का होता है। 
प्रातः काल (सूर्योदय से आरंभ) :: संध्यावंदना, देवता पूजन और प्रात: र्वैश्वेदेव। 
संगव काल (दिन का 7 से 12 घटिका काल) :: दुग्ध दोहन काल, उप जीविका के साधन। 
मध्याह्न काल :: मध्याह्न स्नान, मध्याह्न संध्या, ब्रह्म यज्ञ और भूत यज्ञ। 
अपराह्न काल ::  पितृ यज्ञ (तर्पण, पिंडदान, श्राद्ध इत्यादि)  और 
सायाह्न काल :: पुराण श्रवण तथा उस पर चर्चा करना और सायं वैश्वदेव और संध्या।
पंच महायज्ञ ::
अध्यापनं ब्रह्मयज्ञः पितृयज्ञस्तु तर्पणम्। होमोदैवोबलिर्भौतोनृयज्ञोऽतिथिपूजनम्॥ 
शिष्य को शिक्षित करना (अध्यापन), ब्रह्मयज्ञ; पितरों का तर्पण, पितृयज्ञ; वैश्वदेव-देवयज्ञ; बलि प्रदान-भूत यज्ञ तथा अतिथि पूजन-मनुष्य यज्ञ है।
ब्रह्म यज्ञ :: वेदों का अध्ययन (अर्थात् स्वाध्याय) तथा देवता और ऋषियों का तर्पण-ब्रह्म यज्ञ है।
पितृ यज्ञ :: पितरों को तर्पण करना (सुमंतु, जैमिनी, वैशंपायन जैसे ऋषियों के तथा अपने पूर्वजों के नाम पर जल देने की विधि। 
देव यज्ञ :: वैश्वदेव, अग्निहोत्र और नैमित्तिक यज्ञ देव यज्ञ के भाग हैं।
नित्य होने वाली पंच सूना-जीव हिंसा के प्रायश्चित स्वरूप वैश्वदेव करना। नित्य उप जीविका करते समय मनुष्य द्वारा अनजाने में होने वाली जीव हिंसा को शास्त्र में पंचसूना कहा गया है।
वैश्वदेवः प्रकर्तव्यः पन्चसूनापनुत्तये। 
कण्डनी पेषणी चुल्ली जलकुम्भोमार्जनी॥
कूटना, पीसना, चूल्हे का उपयोग करना, पानी भरना तथा बुहारना, ये पाँच क्रियाएं करते समय सूक्ष्म जीव जंतुओं की हिंसा अटल है। इस हिंसा को ‘पंच सूना’ जीव हिंसा कहते हैं। ऐसी हिंसा हो जाए, तो ध्यानपूर्वक ‘वैश्वदेव’ प्रायश्चित का अंगभूत कर्म नित्य करें। उक्त हिंसा के परिणाम स्वरूप मनुष्य के मन पर हुआ पाप संस्कार दूर होता है।[धर्म सिंधु]
वैश्वदेव विधि :: अग्नि कुंड में ‘रुक्मक’ अथवा ‘पावक’ नामक अग्नि की स्थापना कर अग्नि का ध्यान करें। अग्नि कुंड के चारों ओर छः बार जल घुमाकर अष्ट दिशाओं को चंदन-पुष्प अर्पित करें तथा अग्नि में चरु की (पके चावलों की) आहुति दें। तदुपरांत अग्नि कुंड के चारों ओर पुनः छः बार जल घुमाकर अग्नि की पंचोपचार पूजा करें तथा विभूति धारण करें।
उपवास के दिन बिना पके चावल की आहुति दें। (उपवास के दिन चावल पकाए नहीं जाते; इसलिए आहुतियाँ चरू की न देकर, चावल की देते हैं।)
अत्यधिक संकट काल में केवल उदक (जल) से भी (देवताओं के नामों का उच्चारण कर ताम्र पात्र में जल छोडना), यह विधि कर सकते हैं।
यदि यात्रा में हों, तो केवल वैश्वदेव सूक्त अथवा उपरोक्त विधि के मौखिक उच्चारण मात्र से भी पंच महायज्ञ का फल प्राप्त होता है।
भूत यज्ञ (बलि हरण) :: वैश्वदेव हेतु लिए गए अन्न के एक भाग से देवताओं को बलि दी जाती है। भूत यज्ञ में बलि अग्नि में न देकर, भूमि पर रखते हैं।
नृयज्ञ अथवा मनुष्य यज्ञ :: अतिथि का सत्कार करना अर्थात् नृयज्ञ अथवा मनुष्य यज्ञ करना। ब्राह्मण को अन्न देना भी मनुष्य यज्ञ है।
अध्यापनं ब्रह्मयज्ञ:पितृ यज्ञस्तु तर्पणम्। 
होमो दैवो बलिभौर्तो नृयज्ञोSतिथिपूजनम्॥
पितरों का तर्पण करना, वेद का पठन-पाठन, ब्रह्मयज्ञ, पितृयज्ञ, देवयज्ञ, होम करना, जीवों को अन्न की बलि देना और नृयज्ञ अतिथि का आदर-सत्कार करना ये ही पञ्चमहायज्ञ हैं।[मनुस्मृति 3.70]   
Teaching & learning of Veds, sacrifice to the manes, Brahman Yagy, Pitr Yagy, Dev Yagy, offering grains-meals to organism (insects like ants, animals like cows, dogs etc.) welcoming-hospitality to the guest and offering food and drinks and the offerings to the deceased are 5 types of oblations. 
OBLATION :: बलि, आहुति, नैवेद्य, हव्य, बलिदान, यज्ञ, क़ुरबानी; holocaust, immolation, offering, sacrifice, a thing presented or offered to God or a demigods.
पञ्चैतान्यो महायज्ञान्न हापयति शक्तितः। 
स गृहेSपि वसन्नित्यं सूनादोषैर्न लिप्यते॥
जो इन 5 महायज्ञों को यथाशक्ति करता है, वह घर में नित्य रहकर भी हिंसा-दोषों से लिप्त नहीं होता।[मनुस्मृति 3.71]  
One who perform these 5 Maha Yagy-spiritual rites every day, according to his capability is not contaminated by these defects connected with violence i.e., he is affected by the sin generated by the killing of insects etc at home during routine life.
पंच महायज्ञ का महत्त्व :: जिस घर में पंच महा यज्ञ नहीं होते, वहाँ का अन्न संस्कारित नहीं होता; इसलिए संन्यासी, सत्पुरुष और श्राद्ध के समय पितर उसे ग्रहण नहीं करते। जिस घर में पंच महायज्ञ करने पर शेष अन्न का सेवन किया जाता है, वहाँ  गृह शाँति रहती है तथा अन्न पूर्णा देवी का वास रहता है।
दिन का समय साधना के लिए अनुकूल होने से दिन में न सोयें। 
आरोहणं गवां पृष्ठे प्रेतधूमं सरित्तटम्। 
बालतपं दिवास्वापं त्यजेद्दीर्घं जिजीविषुः॥
अर्थात जो दीर्घ काल तक जीवित रहना चाहता है, वह गाय-बैल की पीठ पर न बैठे, चिता का धुँआ अपने शरीर को न लगने दे, (गँगा के अतिरिक्त दूसरी) नदी के तट पर न बैठे, उदय कालीन सूर्य की किरणों का स्पर्श न होने दे तथा दिन में सोना छोड़ दें।[स्कंदपुराण, ब्रह्म.धर्मा. 6.66-67]   
दिन और रात, इन दो मुख्य कालों में से रात के समय साधना करने में शक्ति का अधिक व्यय होता है; क्योंकि इस काल में वातावरण में अनिष्टकारी, राक्षसी, तामसिक शक्तियों का संचार बढ जाता है। इसलिए यह काल साधना के लिए प्रतिकूल रहता है। यह काल पाताल के मांत्रिकों के लिए (मांत्रिक अर्थात् बलवान आसुरी शक्ति) पोषक होता है; इसलिए सभी मांत्रिक इस तम काल में साधना करते हैं। इसके विपरीत, सात्त्विक जीव सात्त्विक काल में (दिन के समय) साधना करते हैं। दिन में अधिकाधिक साधना कर, उस साधना का रात के समय चिंतन करना तथा दिन भर में हुई चूक सुधारने का संकल्प कर, पुनः दूसरे दिन परिपूर्ण साधना करने का प्रयास करना, यह ईश्वर को अपेक्षित है। इसलिए दिन में सोनेसे बचें। दिन में सोने से रात में नींद ठीक तरीके से नहीं आती। 
ब्रह्म मुहूर्त में जागरण :: रात्रि के अंतिम प्रहर (लगभग 4 बजे) को ब्रह्म मुहूर्त कहते हैं। यह समय   निद्रा त्याग के लिए सर्वोत्तम है। ब्रह्म मुहूर्त में उठने से सौंदर्य, बल, विद्या, बुद्धि और स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। सूर्योदय से चार घड़ी (लगभग डेढ़ घण्टे) पूर्व ब्रह्म मुहूर्त में ही जग जाना चाहिये। इस समय सोना शास्त्र निषिद्ध है।
ब्रह्म का मतलब परम तत्व या परमात्मा। मुहूर्त यानी अनुकूल समय। रात्रि का अंतिम प्रहर अर्थात प्रात: 4 से 5.30 बजे का समय ब्रह्म मुहूर्त कहा गया है।
ब्रह्ममुहूर्ते या निद्रा सा पुण्यक्षयकारिणी।
ब्रह्म मुहूर्त की निद्रा पुण्य का नाश करने वाली होती है।
 ईश्वर भक्ति के लिए यह महत्व स्वयं ही साबित हो जाता है। ईवर भक्ति के लिए यह सर्वश्रेष्ठ समय है। इस समय उठने से मनुष्य को सौंदर्य, लक्ष्मी, बुद्धि, स्वास्थ्य आदि की प्राप्ति होती है। उसका मन शांत और तन पवित्र होता है।
इससे शरीर स्वस्थ होता है और दिन भर चुस्ती-स्फूर्ति बनी रहती है। 
वाल्मीकि रामायण के मुताबिक माता सीता को ढूँढते हुए हनुमान जी महाराज ब्रह्ममुहूर्त में ही अशोक वाटिका पहुँचे थे। जहाँ उन्होंने वेद व यज्ञ के मंत्र उच्चारण की आवाज सुनी।
वर्णं कीर्तिं मतिं लक्ष्मीं स्वास्थ्यमायुश्च विदन्ति।
ब्राह्मे मुहूर्ते संजाग्रच्छि वा पंकज यथा॥
ब्रह्म मुहूर्त में उठने से व्यक्ति को सुंदरता, लक्ष्मी, बुद्धि, स्वास्थ्य, आयु आदि की प्राप्ति होती है। ऐसा करने से शरीर कमल की तरह सुंदर हो जाता है। 
ब्रह्म मुहूर्त और प्रकृति का गहरा नाता है। इस समय में पशु-पक्षी जाग जाते हैं। उनका मधुर कलरव शुरू हो जाता है। कमल का फूल भी खिल उठता है। मुर्गे बाँग देने लगते हैं। एक तरह से प्रकृति भी ब्रह्म मुहूर्त में चैतन्य हो जाती है। यह प्रतीक है उठने, जागने का। प्रकृति संदेश देती है, ब्रह्म मुहूर्त में उठने के लिए।
आयुर्वेद के अनुसार ब्रह्म मुहूर्त में उठकर टहलने से शरीर में संजीवनी शक्ति का संचार होता है। यही कारण है कि इस समय बहने वाली वायु को अमृत तुल्य कहा गया है। वर्तमान काल में हवा की अशुद्धि चरम सीमा पर है और यह किसी को भी बीमार करने में सक्षम है। इसके अलावा यह समय अध्ययन के लिए भी सर्वोत्तम बताया गया है, क्योंकि रात को आराम करने के बाद सुबह शरीर तथा मस्तिष्क में भी स्फूर्ति व ताजगी बनी रहती है। प्रमुख मंदिरों के पट भी ब्रह्म मुहूर्त में खोल दिए जाते हैं तथा भगवान का श्रृंगार व पूजन भी ब्रह्म मुहूर्त में किए जाने का विधान है।
प्रातारत्नं प्रातरिष्वा दधाति तं चिकित्वा प्रतिगृह्यनिधत्तो।
तेन प्रजां वर्धयमान आयू रायस्पोषेण सचेत सुवीर:॥
सुबह सूर्य उदय होने से पहले उठने वाले व्यक्ति का स्वास्थ्य अच्छा रहता है। इसीलिए बुद्धिमान लोग इस समय को व्यर्थ नहीं गँवाते। सुबह जल्दी उठने वाला व्यक्ति स्वस्थ, सुखी, ताकतवाला और दीर्घायु होता है।[ऋग्वेद 1.125.1]
यद्य सूर उदितोऽनागा मित्रोऽर्यमा। सुवाति सविता भग:॥ 
व्यक्ति को सुबह सूर्योदय से पहले शौच व स्नान कर लेना चाहिए। इसके बाद भगवान की पूजा-अर्चना करना चाहिए। इस समय की शुद्ध व निर्मल हवा से स्वास्थ्य और संपत्ति की वृद्धि होती है।[सामवेद 35]
उद्यन्त्सूर्यं इव सुप्तानां द्विषतां वर्च आददे।
सूरज उगने के बाद भी जो नहीं उठते या जागते उनका तेज खत्म हो जाता है।[अथर्व वेद 7.16.2]
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संतोष महादेव-धर्म विद्या सिद्ध व्यास पीठ 
(बी ब्लाक, सैक्टर 19, नौयडा)

Saturday, January 24, 2015

SCIENCE IN THE SCRIPTURES हिन्दु धर्म शास्त्र में विज्ञान :: HINDU PHILOSOPHY (9) हिन्दु दर्शन

SCIENCE IN SCRIPTURES
हिन्दु धर्म शास्त्र में विज्ञान

HINDU PHILOSOPHY (9) हिन्दु दर्शन
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
By :: Pt. Santosh Bhardwaj
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ॐ गं गणपतये नम:। 
अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।
गुणातीतं निराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि
[श्रीमद्भगवद्गीता 2.47] 
Light over the Moon :: 
अत्राह गारमन्वत नाम त्वष्टुर पीच्यम इत्था चन्दमसा गृह॥
[ऋग्वेद 1.84.15]
The moving Moon always receives a ray of light from Sun.
Eclipses :: 
यत्वा सूर्य स्वभानु स्तमसाविध्यदासुरः 
आत्रविद्यथा मुग्धा भुवनान्यदीधयुः॥
[ऋग्वेद 5.40.5]
Hey Sun! When you are blocked by the one-Moon, whom you gifted your own light, then earth gets scared by sudden darkness. When rest of the world was scared thinking Eclipses were caused by some sort of black magic, Rishis explained the science behind it.
Gravitational force :: 
हिरण्यपाणिः सविता विचर्षणिरुभे द्यावापृथिवी अन्तरीयते
अपामीवां बाधते वेति सूर्यमभि कृष्णेन रजसा द्यामृणोति॥
[ऋग्वेद 1.35.9]
The Sun moves in its own orbit but holds the Earth and other heavenly bodies in such a manner that they do not collide with each other through the force of attraction.
Centripetal force between Sun and other planets :: 
सविता यंत्रः पृथिवीमरम्णादस्कम्भन सविता द्यामदूहत। अश्वमिवाधुद्दुनिमन्तरिमतूत बद्धं सविता समुदम॥
[ऋग्वेद 10.149.1]
Sun has tied the Earth and other planets through its attraction and moves them around itself as if a trainer moves newly trained horses holding their reins.
Telegraphy in Veds :: 
आवां रथं पुरुमायं मनाजुवं जीराश्चं यज्ञियं जीवस हुव।
सहस्त्रकर्तुं वमिनं शतद्वसुं श्रुष्टीवानं वरिवा धामभिपयः॥
[ऋग्वेद 1.119.10]
With the help of bipolar forces (Aswins), you should employ telegraphic apparatus made of good conductor of electricity. It is necessary for efficient military operations but should be used with caution.
अग्ने दिवो अर्णमच्छा जिगास्यच्छा देवाँ ऊचिषे धिष्ण्या ये। या रोचने परस्तात्सूर्यस्य याश्चावस्तादुपतिष्ठन्त आपः
हे अग्नि देव! आप द्युलोक के जल के समक्ष जा रहे हैं, प्राणात्मक देवों को एकत्र करते हैं। सूर्य के ऊपर अवस्थित रोचन नाम के लोक में और सूर्य के नीचे जो जल हैं, उन दोनों को आप ही प्रेरित करते हैं।[ऋग्वेद 3.22.3]
हे अग्नि देव! तुम क्षितिज के जल के समान प्रवाहमान हो। प्राणभूत देवगण को संगठित करने वाले हो । सूर्य के ऊपर संसार में या अतरिक्ष में जो जल है, उसे प्रेरित करने वाले हो।
Hey Agni Dev! You are dynamic like the water in heavens and unite the demigods-deities. You regulate the water in the abode, located above the Sun and below it.
It indicate the presence of vast ocean of water beyond the Sun in which the earth was submerged by Hiranykashipu and recovered by Bhagwan Shri Hari Vishnu through his incarnation Varah Avtar. Nasa has confirmed the presence of such reservoir of water.
स घा नः सूनुः शवअनु कृष्णे वसुधिती जिहाते उभे सूर्यस्य मंहना यजत्रे।
परि यत्ते महिमानं वृजध्यै सखाय इन्द्र काम्या ऋजिप्याः
सूर्य की महिमा से समस्त पदार्थों के धारित कर्ता और यज्ञार्ह दिन-रात क्रमानुसार घूम रहे हैं। ऋजु गति, मित्र-भूत और कमनीय मरुद्गण शत्रुओं को परास्त करने के लिए आपकी शक्ति का ही अनुसरण करने योग्य होते हैं।[ऋग्वेद 3.31.17]
सूर्य की महिमा से सभी पदार्थों को ग्रहण करने वाले एवं यश निर्वाहक दिन-रात्रि क्रम से घूमते रहते हैं। ॠतु रूप, मित्र भाव वाले मरुद्गण शत्रु पर विजय प्राप्त करने के लिए तुम्हारी शक्ति का आश्रय ग्रहण करते हैं।
Its by virtue of the glory (gravitational force-attraction ) of the Sun that all material objects are revolving in a cyclic order; the day & night occurs for performance-conducting Yagy. Formation of seasons, friendly behaviour of Marud Gan in conquering the enemy by them, occurs due to your might.
नि षीमिदत्र गुह्या दधाना उत क्षत्राय रोदसी समञ्जन्।
सं मात्राभिर्ममिरे येमुरुर्वी अन्तर्मही समृते धायसे धुः
इस भूलोक में सभी जगह कवियों ने गूढ़ कर्म का विधान करके पृथ्वी और स्वर्ग को बल प्राप्ति के लिए अलंकत किया। उन्होंने मात्राओं या मूल तत्वों के द्वारा पृथ्वी और स्वर्ग का परिमाण भी किया। उन्होंने परस्पर मिलिता, विस्तीर्णा और महती द्यावा-पृथ्वी को सङ्गत किया और द्यावा-पृथ्वी के मध्य में धारितार्थ आकाश को स्तापित किया।[ऋग्वेद 3.38.3]
विद्वजनों ने पृथ्वी पर महान कार्य करते हुए पृथ्वी और अम्बर को जल प्राप्ति के लिए सजाया। उन्होंने गूढ़ तथ्यों द्वारा पृथ्वी और स्वर्ग को दृढ़ किया। उन्होंने व्यापक एवं विस्तृत धरा और अम्बर को सुसंगत किया तथा अम्बर और धरा के बीच अंतरिक्ष का स्थापन किया।
The enlightened-learned, scholars (scientists) performed intricate functions to fill the earth & heaven with force (gravitational, electrostatic attraction, centrifugal & centripetal forces). They fixed their relative positions as well. They coordinated the earth and the heaven in respect of limits-boundaries and generated the space-sky between them for communication. 
समान्या वियुते दूरेअन्ते ध्रुवे पदे तस्थतुर्जागरूके।
उत स्वसारा युवती भवन्ती आदु ब्रुवाते मिथुनानि नाम
परस्पर प्रीति युक्त कर्म द्वारा ऐकमत्य प्राप्त, वियुक्त होकर वर्तमान अविनाशिनी द्यावा-पृथ्वी जागरणशील अनश्वर अन्तरिक्ष में नित्य तरुण भगिनीद्वय के तुल्य एक आत्मा से जायमान होकर ठहरी है। वे दोनों आपस में द्वन्द्व नाम अभिहित करती हैं।[ऋग्वेद 3.54.7]
परस्पर आकर्षण में बंधी अलग रहकर भी संग रहने वाली, जिनका कभी पतन नहीं होता, ऐसे अम्बर-धारा कभी भी नष्ट नहीं होने वाले अंतरिक्ष में दो तरुणी बहनों के तुल्य एक आत्मा बाली हुई, सृष्टि कार्य में समर्थ बनकर दृढ़ हैं।
The earth & the heaven are tide together by gravitational attraction-forces, though away from each other in the imperishable space and are never destroyed, like the two young sisters possessing same soul enabling the evolution of life.
विश्वेदेते जनिमा सं विविक्तो महो देवान्बिभ्रती न व्यथेते।
एजद्ध्रुवं पत्यते विश्वमेकं चरत्पतत्रि विषुणं वि जातम्
यह द्यावा-पृथ्वी समस्त भौतिक वस्तु को अवकाश दान द्वारा विभक्त करती हैं। महान् सूर्य, इन्द्र आदि अथवा सरित, समुद्र, पर्वत आदि को धारित करके भी व्यथित नहीं होती है। जङ्गमात्मक और स्थावरात्मक जगत् केवल एक पृथ्वी को ही प्राप्त करता है। चञ्चल पशु और पक्षिगण नाना रूप होकर द्यावा-पृथ्वी के बीच में ही अवस्थित होते हैं।[ऋग्वेद 3.54.8]
यह अम्बर-धरा समस्त भौतिक पदार्थों को प्रकट करती हुई सूर्य चन्द्रमा, नदी, समुद्र, पर्वत आदि को धारण करके भी कंपित नहीं हो सकती। स्थावर और जंगम पदार्थों से युक्त विश्व केवल पृथ्वी को ही प्राप्त करता है और चलायमान पशु पक्षी आदि जीव आकाश और धरती में ही व्याप्त होते हैं।
The sky-heaven & earth divides the entire material-cosmic objects (stars, planets, nebulae, black hole, galaxies etc.) with space. It never feel disturbed-perturbed by bearing the Sun, Indr-heavens etc. nether world, river, ocean, mountains. Dynamic-movable & the fixed objects, organism are present over the earth. The animals and the birds survive between the sky and the earth.
सा पृथुप्रगामा सुशेवः। मीढ्वाँ अस्माकं बभूयात्॥
हम इन अग्निदेव की उत्तम विधि से उपासना करते हैं। वे बल से उत्पन्न, शीघ्र गतिशील अग्निदेव हमें अभिष्ट सुखों को प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.27.2]
We pray to Agni Dev with the best procedures. Agni Dev, who was born by force, is fast moving may kindly grant us all comforts, amenities.
Fire is produces when two pieces of wood are rubbed together with force or stones are struck or rubbed with each other with force (force of friction). 
तत् सूर्यस्य देवत्वं तन्महित्वं मध्या कर्तोर्विततं संजभार। 
यदेदयुक्त हरितः सधस्थादाद्रात्री वासस्तनुते सिमस्मै॥
सूर्य का देवत्व तो यह है कि ये ईश्वर-सृष्ट जगत् के मध्य स्थित हो समस्त ग्रहों को धारण करते हैं और आकाश से ही जब हरित वर्ण की किरणों से संयुक्त हो जाते हैं तो रात्रि सब के लिये अन्धकार का आवरण फैला देती है।[सूर्य सूक्त 2.11]
Godly function of the Sun lies in retaining the planets by occupying the central position (located at the focus). When the Sun combines the green rays in the sky, it spreads the cover of darkness-night all around.
ग्रहों की स्थिति, काल एवं गति :: महर्षि लगध ने ऋग्वेद एवं यजुर्वेद की ऋचाओं से वेदांग ज्योतिष संग्रहीत किया। वेदांग ज्योतिष में ग्रहों की स्थिति, काल एवं गति की गणना के सूत्र दिए गए हैं।
तिथि में का दशाम्य स्ताम् पर्वमांश समन्विताम्।
विभज्य भज समुहेन तिथि नक्षत्रमादिशेत॥
तिथि को 11 से गुणा कर उसमें पर्व के अंश जोड़ें और फिर नक्षत्र सँख्या से भाग दें। इस प्रकार तिथि के नक्षत्र बतायें। नेपाल में इसी ग्रन्थ के आधार पर  "वैदिक तिथिपत्रम्" व्यवहार में लाया जा रहा है। 
पृथ्वी का आकार ::
पंचभूतात्मक पृथ्वी कपित्थ फल की तरह-गोल है :-
मृदम्ब्वग्न्यनिलाकाशपिण्डोऽयं पाञ्चभौतिकः। 
कपित्थफलवद्वृत्तः सर्वकेन्द्रेखिलाश्रयः॥
स्थिरः परेशशक्त्येव सर्वगोऴादधः स्थितः।
मध्ये समान्तादण्डस्य भूगोलो व्योम्नि तिष्ठति॥
MOTION OF EARTH ::
यः पृथ्वीं व्यथमानामदृंहत् यः जनास इंद्र।
काँपती हुई पृथ्वी को इन्द्र (परमात्मा-ईश्वर) ने स्थिर किया है। गमनशील पृथ्वी, जिसे सूर्य आकर्षण से बाँधता है।[ऋग्वेद 2.12.2]
व्यथमानम् 'व्यथ' से बना है। इसका अर्थ शब्द कल्पद्रुम में दिया है:- 
चाले भये इति कवि-कल्पद्रुमः॥
यहाँ "चाले" गमनार्थक शब्द है।
The earth has been established by the Almighty. The gravitational attraction between the Sun & the Earth establishes them. 
Each and every planet, star, solar system, satellites is revolving round one or the other object with a fixed speed.
पृथिवी च ढृढायेन।
देवता ने पृथ्वी को स्थिर रखा है, यानी गति हीन कर दिया। ईश्वर ने सूर्यादि तथा पृथ्वी को कठोर (दृढ़) बनाया।[यजुर्वेद 32.6]
स्थिर :: अपने मार्ग में सुस्थिर, अपने मार्ग में व्यवस्थित, सदैव रहने वाला,सदाबहार, आदि; unfluctuating , durable, lasting, permanent, changeless etc. 
दृढ़ा :: पृथ्वी अपनी धुरी पर व्यवस्थित रूप से घूमती है, इधर उधर भटकती नहीं, इसलिए उसे स्थिर-दृढ़ कहा है। 
सर्वप्राणिधारणं वृष्टिग्रहणं अन्ननिष्पादनं चेति ढार्ढ्यम्।
सब प्राणियों को धारण करना, वर्षा ग्रहण करना, अन्न का निष्पादन, ये पृथ्वी का दृढ़पन-दृढ़ता है।[महीधर भाष्य 32.6]
यहाँ पर दृढ़ का अर्थ कठोर है। 
कर्कशं कठिनं क्रूरं कठोरम् निष्ठुरं ढृढम्।
कर्कश, कठिन, क्रूर, कठोर एवं निष्ठुर; ये दृढ के पर्यायवाची हैं।[अमरकोश 3.1.76]
विश्वरूपां ध्रुवां भूमिं पृथिवीमिंद्रगुप्ताम।
[अथर्ववेद 12.1.11]
स्थिर का अर्थ भी सर्वथा गतिहीन नहीं होता।
यहाँ पर ध्रुवा का अर्थ अगतिशील कर दिया, जबकि यहाँ ये अर्थ समीचीन नहीं है।मूल शब्द ध्रुव है, जिसका स्त्रीलिंग ध्रुवा है। 
ध्रुव :: सनातन; Permanent, lasting, eternal, unchangeable.  Fixed with respect to some other object.
गुरूत्वाकर्षण के नियम :: 
आधारशक्ति :- बृहत् जाबाल उपनिषद् में गुरूत्वाकर्षण सिद्धान्त को आधारशक्ति नाम से कहा गया है।
इसके दो भाग किये गये हैं :-
(1). ऊर्ध्वशक्ति या ऊर्ध्वग :- ऊपर की ओर खिंचकर जाना, जैसे अग्नि का ऊपर की ओर जाना।
(2). अधःशक्ति या निम्नग :- नीचे की ओर खिंचकर जाना, जैसे जल का नीचे की ओर जाना या पत्थर आदि का नीचे आना।
आर्ष ग्रन्थों से प्रमाण देते हैं :-
अग्नीषोमात्मकं जगत्।[बृ. उप. 2.4]
आधारशक्त्यावधृतः कालाग्निरयम् ऊर्ध्वगः। तथैव निम्नगः सोमः॥
[बृ. उप. 2.8]
सारा संसार अग्नि और सोम का समन्वय है। अग्नि की ऊर्ध्वगति है और सोम की अधोःशक्ति। इन दोनों शक्तियों के आकर्षण से ही संसार रुका हुआ है।
पतञ्जली ने व्याकरण महाभाष्य में भी गुरूत्वाकर्षण के सिद्धान्त का उल्लेख करते हुए लिखा :-
लोष्ठः क्षिप्तो बाहुवेगं गत्वा नैव तिर्यक् गच्छति नोर्ध्वमारोहति।
पृथिवीविकारः पृथिवीमेव गच्छति आन्तर्यतः॥
पृथ्वी की आकर्षण शक्ति इस प्रकार की है कि यदि मिट्टी का ढेला ऊपर फेंका जाता है तो वह बहुवेग को पूरा करने पर,न टेढ़ा जाता है और न ऊपर चढ़ता है। वह पृथ्वी का विकार है, इसलिये पृथ्वी पर ही आ जाता है।[महाभाष्य :- स्थानेन्तरतमः, 1.1.49]
आकृष्टिशक्तिश्चमहि तया यत्ख स्थं गुरूं स्वाभिमुखं स्वशक्त्या।
आकृष्यते तत् पततीव भाति समे समन्तात् क्व पतत्वियं खे॥
पृथ्वी में आकर्षण शक्ति है, जिसके कारण वह ऊपर की भारी वस्तु को अपनी ओर खींच लेती है । वह वस्तु पृथ्वी पर गिरती हुई सी लगती है। पृथ्वी स्वयं सूर्य आदि के आकर्षण से रुकी हुई है, अतः वह निराधार आकाश में स्थित है तथा अपने स्थान से हटती नहीं है और न गिरती है। वह अपनी कील पर घूमती है।[भास्कराचार्य द्वितीय, सिद्धान्तशिरोमणि सिद्धान्त भुवन 16] 
पंचभमहाभूतमयस्तारा गण पंजरे महीगोलः।
खेयस्कान्तान्तःस्थो लोह इवावस्थितो वृत्तः॥
तारासमूहरूपी पंजर में गोल पृथ्वी इसी प्रकार रुकी हुई है, जैसे दो बड़े चुम्बकों के बीच में लोहा।[वराहमिहिर, पञ्चसिद्धान्तिका पंच. पृ. 31]
उष्णत्वमर्कशिखिनोः शिशिरत्वमिन्दौ। 
 निर्हतुरेवमवनेःस्थितिरन्तरिक्षे
[श्रीपति सिद्धान्त शेखर 15.21]
नभस्ययस्कान्तमहामणीनां मध्ये स्थितो लोहगुणो यथास्ते।
आधारशून्यो पि तथैव सर्वधारो धरित्र्या ध्रुवमेव गोलः
पृथ्वी की अन्तरिक्ष में स्थिति उसी प्रकार स्वाभाविक है, जैसे सूर्य में गर्मी,चन्द्र में शीतलता और वायु में गतिशीलता। दो बड़े चुम्बकों के बीच में लोहे का गोला स्थिर रहता है, उसी प्रकार पृथ्वी भी अपनी धुरी पर रुकी हुई है।[श्रीपति सिद्धान्त शेखर 15.22]
पायूपस्थे अपानम्।
[पिप्पलाद प्रश्न उपनिषद् 3.4]
पृथिव्यां या देवता सैषा पुरुषस्यापानमवष्टभ्य.।
[पिप्पलाद प्रश्न उपनिषद् 3.8]
तथा पृथिव्याम् अभिमानिनी या देवता सैषा पुरुषस्य अपानवृत्तिम् आकृष्य अपकर्षेन अनुग्रहं कुर्वती वर्तते। अन्यथा हि शरीरं गुरुत्वात् पतेत्सा वकाशे वा उद्गच्छेत्।
अपान वायु के द्वारा ही मल मूत्र नीचे आता है। पृथ्वी अपने आकर्षण शक्ति के द्वारा ही मनुष्य को रोके हुए है,अन्यथा वह आकाश में उड़ जाता।[शांकर भाष्य प्रश्न. 3.8]
यदा ते हर्य्यता हरी वावृधाते दिवेदिवे। आदित्ते विश्वा भुवनानि येमिरे॥
[ऋग्वेद 6.1.6.3]
सब लोकों का सूर्य के साथ आकर्षण और सूर्य्य आदि लोकों का परमेश्वर के साथ आकर्षण है। इन्द्र जो वायु, इसमें ईश्वर के रचे आकर्षण, प्रकाश और बल आदि बड़े गुण हैं; उनसे सब लोकों का दिन-दिन और क्षण-क्षण के प्रति धारण, आकर्षण और प्रकाश होता है। इस हेतु से सब लोक अपनी अपनी कक्षा में चलते रहते हैं,इधर उधर विचल भी नहीं सकते।
[ऋग्वेद 6.1.6.5]
हे परमेश्वर! जब उन सूर्यादि लोकों को आपने रचा और आपके ही प्रकाश से प्रकाशित हो रहे हैं और आप अपने सामर्थ्य से उनका धारण कर रहे हैं, इसी कारण सूर्य और पृथ्वी आदि लोकों और अपने स्वरूप को धारण कर रहे हैं।
इन सूर्य्य सूर्य लोकों का सब लोकों के साथ आकर्षण से धारण होता है।[ऋग्वेद 
6.1.6.5]
सँख्या रेखा की परिकल्पना NUMBER LINE ::
एकप्रभृत्यापरार्धसंख्यास्वरूपपरिज्ञानाय रेखाध्यारोपणं कृत्वा एकेयं रेखा दशेयं, शतेयं, सहस्रेयं इति ग्राहयति, अवगमयति, संख्यास्वरूम, केवलं, न तु संख्याया: रेखातत्त्वमेव॥
[बृहद आरण्यक आकार भाष्य-श्री शंकर 4.4.25]
1 unit, 10 units, 100 units, 1000 units etc. up to Parardh can be located in a number line. Now by using the number line one can do operations like addition, subtraction and so on.
CHIDAMBARAM RAHASYAM-SECRET :: Tamil Scholar Thirumoolar had proved Five thousand years ago that the Natraj's big toe at this place constitutes the Centre Point of World's Magnetic Equator, what the Western scientists have concluded-proved now. His treatise, Thirumandiram is a wonderful Scientific guide for the whole world. 
It embodies the following  characteristics :-
(1). This temple is located at the Center Point of world's Magnetic Equator.
(2). Of the Panch Bhoot i.e. 5 temples, Chidambaram denotes the Skies, Kal Hasti denotes Wind,  Kanchi Ekambareshwar denotes land, All these 3 temples are located in a straight line at 79° (79 degrees),  54” 41’ (41 minutes) 54” (54 seconds) Longitude. This can be verified using Google. An amazing fact & astronomical miracle, in deed!
(3). Chidambaram temple constitutes the figure of the Human Body having 9 Entrances denoting 9 Entrances or Openings of the body.
(4). Temple roof is made of 21,600 gold sheets which denotes the 21,600 breaths taken by a human being every day (15 x 60 x 24 = 21,600).
(5). These 21,600 gold sheets are fixed on the Gopuram using 72,000 gold nails which denote the total no. of Nadi-nerves in the human body which connects the brain to each and every part of the body.
(6). Thirumoolar states that man represents the shape of Shiv Lingam, which represents i.e., Chidambaram (Bhagwan Sada Shiv in HIS dance posture-form)!
(7). Ponnambalam is placed slightly tilted towards the left. It represents human heart. To reach this, one has to climb 5 steps called Panchat Shar Padi or namely :- Si, Va, Ya, Na, Ma which are the 5 Panchat Shar Mantr. 
There are 4 pillars holding the Kanag Sabha representing the 4 Ved.
(8). Ponnambalam has 28 pillars denoting the 28 Aham as well as the 28 methods to worship Bhagwan Shiv.  These 28 pillars support 64 Roof Beams which denote the 64 Arts. The cross beams represent the Blood Vessels running across the Human body. 
(9). 9 Kalash on the Golden Roof represent the 9 types of Shakti or Energies. 
The 6 pillars at the Arth Mantap represent the 6 types of Shastr.  
The 18 pillars in the adjacent Mantap represents 18 Puran.
(10). The dance of Bhawan Shiv-Natraj is described as Cosmic Dance.  
Hinduism is purely scientific, logical, based on sound footing forming a pious-virtuous not only a way of living for millions all over the world.
भारत में ऐसे शिव मंदिर हैं, जो पशुपतिनाथ-नेपाल, केदारनाथ से लेकर रामेश्वरम, श्री लंका (भगवान् शिव द्वारा माता पार्वती के लिये निर्मित स्थल, जो रावण द्वारा दक्षिणा में प्राप्त करके लिया गया) तक एक सीधी रेखा में बनाये गये हैं। यह विज्ञान और तकनीक कमाल है। उत्तराखंड का केदारनाथ, तेलंगाना का कालेश्वरम, आंध्रप्रदेश का कालहस्ती, तमिलनाडू का एकंबरेश्वर, चिदंबरम और अंततः रामेश्वरम मंदिरों को 79° E 41’54” Longitude के भौगोलिक सीधी रेखा में बनाया गया है। यह सारे मंदिर प्रकृति के 5 तत्वों में लिंग की अभिव्यक्ति का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिसे पंच भूत कहते है। पंच भूत यानी पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और अंतरिक्ष। इन्ही पाँच तत्वों के आधार पर इन पाँच शिव लिंगों को प्रतिष्टापित किया है। जल का प्रतिनिधित्व तिरुवनैकवल मंदिर में है, आग का प्रतिनिधित्व तिरुवन्नमलई में है, हवा का प्रतिनिधित्व कालाहस्ती में है, पृथ्वी का प्रतिनिधित्व कांचीपुरम में है और अतं में अंतरिक्ष या आकाश का प्रतिनिधित्व चिदंबरम मंदिर में है। वास्तु, विज्ञान, वेद का अद्भुत समागम को दर्शाते हैं, ये पाँच मन्दिर। भौगॊलिक रूप से भी इन मन्दिरों में विशेषता पायी जाती है। इन पाँच मन्दिरोँ को एक दूसरे के साथ एक निश्चित भौगोलिक संरेखण में रखा गया है। केदारनाथ और रामेश्वरम के बीच 2,383 किमी की दूरी है। लेकिन ये सारे मंदिर लगभग एक ही समानांतर रेखा में पड़ते है। श्री कालहस्ती मन्दिर में टिमटिमाते दीपक से पता चलता है कि वह वायु लिंग है। तिरूवनिक्का मन्दिर के अंदरूनी पठार में जल वसंत से पता चलता है कि यह जल लिंग है। अन्नामलाई पहाड़ी पर विशाल दीपक से पता चलता है कि वह अग्नि लिंग है। कंचिपुरम के रेत के स्वयंभू लिंग से पता चलता है कि वह पृथ्वी लिंग है और चिदंबरम की निराकार अवस्था से भगवान के निराकारता यानी आकाश तत्व का पता लगता है। इस रेखा को “शिव शक्ति अक्श रेखा” भी कहा जाता है। संभवता यह सारे मंदिर कैलाश को ध्यान में रखते हुए बनाया गया हो जो 81.3119° E में पड़ता है। और यह रेखा श्री लंका तक जाती है जिसे भगवान् शिव ने माँ पार्वती के अनुरोध पर बनवाया मगर चेतावनी दी थी कि वे इसमें रह नहीं पायेंगे और रावण ने इसे दक्षिणा में अपने लिये माँग लिया। 
प्रकाश का वेग ::
योजनानं सहस्रे द्वे द्वे शते द्वे च योजने।
एकेन निमिषार्धेन क्रममाण नमोऽस्तुते॥
इसकी व्याख्या करने पर प्रकाश का वेग 64,000 कोस/सेकेण्ड; 1,85,000 मील/सेकेण्ड
आधुनिक मान 1,86,202.3960 मील/सेकेण्ड है।[सायणाचार्यः]
ELECTRICITY :: ऋषि अगस्त्य ने अगस्त्य संहिता नामक ग्रंथ की रचना की। इस ग्रंथ में धारा विद्-युत ऊर्जा संबंधित सूत्र निम्न है :- 
संस्थाप्य मृण्मये पात्रे ताम्रपत्रं सुसंस्कृतम्‌। 
छादयेच्छिखिग्रीवेन चार्दाभि: काष्ठापांसुभि:॥
दस्तालोष्टो निधात्वय: पारदाच्छादितस्तत:। 
संयोगाज्जायते तेजो मित्रावरुणसंज्ञितम्‌॥
एक मिट्टी का पात्र लें, उसमें ताम्र पट्टिका (Copper Sheet) डालें तथा शिखिग्रीवा (Copper sulphate) डालें, फिर बीच में गीली काष्ट पांसु (wet saw dust) लगाएं, ऊपर पारा (Mercury‌) तथा दस्त लोष्ट (Zinc) डालें, फिर तारों को मिलाएंगे तो उससे मित्रावरुण शक्ति (Electricity) का उदय होगा।
अगस्त्य संहिता में विद्युत का उपयोग इलेक्ट्रोप्लेटिंग (Electroplating) के लिए करने का भी विवरण मिलता है। उन्होंने बैटरी द्वारा ताँबे या सोने या चाँदी पर पॉलिश चढ़ाने की विधि का वर्णन किया। अत: अगस्त्य को कुंभोद्भव (Battery Bone) कहते हैं। [अगस्त्य संहिता]
TYPES OF MOTION :: वैशेषिक दर्शन में गति के लिए कर्म शब्द प्रयुक्त किया है। इसके 5 प्रकार हैं :-
(1). उत्क्षेपण (upward motion),
(2). अवक्षेपण (downward motion),
(3). आकुञ्चन (Motion due to the release of tensile stress),
(4). प्रसारण (Shearing motion),
(5). गमन (General Type of motion),
विभिन्न कर्म या motion को उसके कारण के आधार पर जानने का विश्लेषण वैशेषिक में किया है।
(1). नोदन के कारण-लगातार दबाव,
(2). प्रयत्न के कारण-जैसे हाथ हिलाना,
(3). गुरुत्व के कारण-कोई वस्तु नीचे गिरती है,
(4). द्रवत्व के कारण-सूक्ष्म कणों के प्रवाह से। 
LAWS OF MOTION :: 
"वेगो पञ्चसु द्रव्येषु निमित्त-विशेषापेक्षात्‌ कर्मणो जायते नियतदिक्‌ क्रिया प्रबंध हेतु: स्पर्शवद्‌ द्रव्यसंयोग विशेष विरोधी क्वचित्‌ कारण गुण पूर्ण क्रमेणोत्पद्यते"। 
वेग पाँचों द्रव्यों (ठोस, द्रव्य-तरल, गैसीय तथा इनके अलावा दो अन्य अवस्थाएं हैं, जिनका वर्तमान विज्ञान वर्णन नहीं करता। Fire and Plasma have been identified as two states of matter after solid, liquid and gases.) पर निमित्त व विशेष कर्म के कारण उत्पन्न होता है तथा नियमित दिशा में क्रिया होने के कारण संयोग विशेष से नष्ट होता है या उत्पन्न होता है।[प्रशस्ति पाद]
प्रशस्तिपाद द्वारा प्रतिपादित उपर्युक्त नियम को तीन भागों में विभाजित करें तो न्यूटन के गति  नियम बनते हैं। 
(1). "वेग: निमित्तविशेषात्‌ कर्मणो जायते" (The change of motion is due to impressed force.)  
(2). "वेग निमित्तापेक्षात्‌ कर्मणो जायते नियत्दिक्‌ क्रिया प्रबंध हेतु" (The change of motion is proportional to the motive force impressed and is made in the direction of the right line in which the force is impressed.)
(3). "वेग: संयोगविशेषाविरोधी" (For every action there is an equal and opposite reaction.)
कर्मं कर्मसाध्यं न विद्यते॥[1.1.11]
Motion cannot be derived from motion.
नोदनविशेषाभावान्नोर्ध्वं न तिर्य्यग्गमनम्॥[5.1.8]
Without extra force/impulse, there no movement up, down or sideways.
कारणाभावात्कार्याभावः॥[1..2.1]
A body will remain in position of rest or of uniform motion unless, until acted upon by some external force.
कार्य्यविरोधि कर्म॥[1.1.14]
For every action (क्रिया), there is an equal and opposite reaction (प्रतिक्रिया).
संयोगाभावे गुरुत्वात् पतनम्।
If not held by anything, things would fall due to gravity.[Vaesesika Sutr 5.1.7]
Kanad (कणाद), the author of the Vaesesik Sutr, is generally believed to have lived around 600 BCE. 
Newton’s laws of motion :: 1. An object remains in the state of rest or motion unless acted upon by force; 2. Force equals mass times acceleration; 3. To every action, there is an equal and opposite reaction. 
Newton considered space and time to be absolute without explaining what that meant.
सामान्यं विशेष इति बुद्ध्यपेक्षम्॥[1.2.3]
The properties of universal and particular are ascertained by the mind.
सदिति यतोद्रव्यगुणकर्मसु सा सत्ता॥[1.2.7]
Existence is self-defined. Thus substance, attribute and motion are potential.
सदकारणवन्नित्यम्॥[4.1.1]
Existence is uncaused and eternal.
नोदनविशेषाभावान्नोर्ध्वं न तिर्य्यग्गमनम्॥[5.1.8]
In the absence of a force, there is no upward motion, sideward motion, or motion in general.
नोदनादाद्यमिषोः कर्म तत्कर्मकारिताच्च संस्कारादुत्तरं तथोत्तरमुत्तरञच्॥[5.1.17]
The initial pressure [on the bow] leads to the arrow’s motion; from that motion is momentum, from which is the motion that follows and the next, and so on similarly.
This list above is just my personal arrangement of propositions and laws. The first law is effectively equivalent to Newton’s first law. The second law, in two parts, falls a bit short, although it has something much more about potential.
What is missing is an explicit definition of mass but we cannot be sure if that was not an element of the exposition. Kanad’s third law is identical to Newton’s third law.
GRAVITATION गुरुत्वाकर्षण :: गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत ऋग्वेद, बृहत् जाबाल उपनिषद्, प्रश्नोपनिषद, महाभारत, पतञ्जली कृत व्याकरण महाभाष्य, वराहमिहिर कृत ग्रन्थ पञ्चसिद्धान्तिका, भास्कराचार्य द्वितीय पूर्व की सिद्धान्तशिरोमणि तथा आर्यभट्ट के ग्रन्थों सहित अनेक वैदिक और पुरातन ग्रन्थों में है।
भूत पदार्थों के गुणों का वर्णन करते हुए भीष्म पितामह ने युद्धिष्ठिर से कहा था :-
भूमै: स्थैर्यं गुरुत्वं च काठिन्यं प्र्सवात्मना, गन्धो भारश्च शक्तिश्च संघातः स्थापना धृति।
स्थिरता, गुरुत्वाकर्षण, कठोरता, उत्पादकता, गंध, भार, शक्ति, संघात, स्थापना, आदि भूमि के गुण है। न्यूटन का गुरुत्वाकर्षण (बल) कोई शक्ति नहीं है, बल्कि पार्थिव आकर्षण मात्र है। यह गुण भूमि में ही नहीं वरण संसार के सभी पदार्थो में है कि वे अपनी तरह के सभी पदार्थो को आकर्षित करते है एवं प्रभावित करते है।[महाभारत-शान्ति पर्व 261]
अचेतनेश्वपी, तद-यथा-लोष्ठ क्षिप्तो बाहुवेगम गत्वा नैव तिर्यग गच्छति नोर्ध्वमारोहती प्रिथिविविकारः प्रिथिविमेव गच्छति आन्तर्यतः। तथा या एता आन्तरिक्ष्यः सूक्ष्मा आपस्तासां विकारो धूमः। स आकाश देवे निवाते नैव तिर्यग नवागवारोहती। अब्विकारोपि एव गच्छति आनार्यतः। तथा ज्योतिषो विकारो अर्चिराकाशदेशो निवाते सुप्रज्वलितो नैव तिर्यग गच्छति नावगवरोहति। 
ज्योतिषो विकारो ज्योतिरेव गच्छति आन्तर्यतः। 
चेतन-अचेतन सब में आन्तर्य (गुरुत्वाकर्षण) का सिद्धांत कार्य करता है। मिट्टी का ढेला आकाश में जितनी बाहुबल से फेंका जाता है, वह उतना ऊपर चला जाता है, फिर ना वह तिरछे जाता है और ना ही ऊपर जाता है, वह पृथ्वी का विकार होने के कारण पृथ्वी में ही आ गिरता है। इसी का नाम आन्तर्य-गुरुत्वकर्षण है।
इसी प्रकार अंतरिक्ष में सूक्ष्म आपः (hydrogen) की तरह का सूक्ष्म जल तत्व का ही उसका विकार धूम है। यदि पृथ्वी में धूम होता तो वह पृथ्वी में क्यों नहीं आता? वह आकाश में जहाँ हवा का प्रभाव नहीं, वहाँ चला जाता है-ना तिरछे जाता है ना नीचे ही आता है। इसी प्रकार ज्योति का विकार अर्चि है। वह भी ना नीचे आता है ना तिरछे जाता है। फिर वह कहाँ जाता है? ज्योति का विकार ज्योति को ही जाता है।[पतंजलि महाभाष्य, सादृश्य एवं आन्तर्य 1.1.50] 
Matter can neither be created nor be destroyed as result of any physical and chemical change & vice-versa. Matter can be transformed into energy and energy can be converted into mass. [Einstein's Principle].
उपनिषद ग्रन्थों में प्रमुख बृहत् जाबाल उपनिषद् में गुरूत्वाकर्षण सिद्धान्त का वर्णन है और वहाँ गुरुत्वाकर्षण को आधार शक्ति नाम से अंकित किया गया है। इस उपनिषद में इसके दो भाग किये गये हैं :- पहला, ऊर्ध्वशक्ति या ऊर्ध्वग अर्थात ऊपर की ओर खिंचकर जाना।
जैसे कि अग्नि का ऊपर की ओर जाना और दूसरा अधःशक्ति या निम्नग अर्थात नीचे की ओर खिंचकर जाना। जैसे जल का नीचे की ओर जाना या पत्थर आदि का नीचे आना।
अग्नीषोमात्मकं जगत्। [बृहत् उपनिषद् 2.4]
आधारशक्त्यावधृतः कालाग्निरयम् ऊर्ध्वगः। तथैव निम्नगः सोमः॥  
[बृहत् उपनिषद् 2.8]
सारा संसार अग्नि और सोम का समन्वय है। अग्नि की ऊर्ध्वगति है और सोम की अधोःशक्ति। इन दोनों शक्तियों के आकर्षण से ही संसार रुका हुआ है।
प्राचीन भारत के एक प्रसिद्ध गणितज्ञ एवं ज्योतिषी भास्कराचार्य, जिन्हें भाष्कर द्वितीय (1,114-1,185) भी कहा जाता है, के द्वारा रचित एक मुख्य ग्रन्थ सिद्धान्त शिरोमणि है, जिसमें लीलावती, बीजगणित, ग्रहगणित तथा गोलाध्याय नामक चार भाग हैं।
आकृष्टिशक्तिश्चमहि तया यत् खस्थं गुरूं स्वाभिमुखं स्वशक्त्या।
आकृष्यते तत् पततीव भाति समे समन्तात् क्व पतत्वियं खे॥ 
पृथ्वी में आकर्षण शक्ति है जिसके कारण वह ऊपर की भारी वस्तु को अपनी ओर खींच लेती है। वह वस्तु पृथ्वी पर गिरती हुई सी लगती है। पृथ्वी स्वयं सूर्य आदि के आकर्षण से रुकी हुई है, अतः वह निराधार आकाश में स्थित है तथा अपने स्थान से हटती नहीं है और न गिरती है। वह अपनी कीली पर घूमती है।[भास्कराचार्य द्वितीय पूर्व, सिद्धान्त शिरोमणि, सिद्धान्त० भुवन० 16]
पंचभमहाभूतमयस्तारा गण पंजरे महीगोलः। 
खेयस्कान्तान्तःस्थो लोह इवावस्थितो वृत्तः॥ 
तारा समूह रूपी पंजर में गोल पृथ्वी इसी प्रकार रुकी हुई है, जैसे दो बड़े चुम्बकों के बीच में लोहा।[वराहमिहिर, पञ्चसिद्धान्तिका 31]
उष्णत्वमर्कशिखिनोः शिशिरत्वमिन्दौ,.. निर्हतुरेवमवनेःस्थितिरन्तरिक्षे॥  [श्रीपति सिद्धान्तशेखर 15.21]
नभस्ययस्कान्तमहामणीनां मध्ये स्थितो लोहगुणो यथास्ते। 
आधारशून्यो पि तथैव सर्वधारो धरित्र्या ध्रुवमेव गोलः॥
पृथ्वी की अन्तरिक्ष में स्थिति उसी प्रकार स्वाभाविक है, जैसे सूर्य में गर्मी, चन्द्र में शीतलता और वायु में गतिशीलता। दो बड़े चुम्बकों के बीच में लोहे का गोला स्थिर रहता है, उसी प्रकार पृथ्वी भी अपनी धुरी पर टिकी हुई है। [सिद्धान्तशेखर 15.22]
पायूपस्थे-अपानम्। [पिप्पलाद, प्रश्न उपनिषद् 3.4]
पृथिव्यां या देवता सैषा पुरुषस्यापानमवष्टभ्य०।[प्रश्न उपनिषद 3.8] तथा 
पृथिव्याम् अभिमानिनी या देवता ... सैषा पुरुषस्य अपानवृत्तिम् आकृष्य.... अपकर्षेन अनुग्रहं कुर्वती वर्तते। अन्यथा हि शरीरं गुरुत्वात् पतेत् सावकाशे वा उद्गच्छेत्॥  
अपान वायु के द्वारा ही मल मूत्र नीचे आता है। पृथ्वी अपने आकर्षण शक्ति के द्वारा ही मनुष्य को रोके हुए है, अन्यथा वह आकाश में उड़ जाता।[शांकर भाष्य, प्रश्न० 3.8]
यदा ते हर्य्यता हरी वावृधाते दिवेदिवे। आदित्ते विश्वा भुवनानि येमिरे॥ 
सब लोकों का सूर्य के साथ आकर्षण और सूर्य आदि लोकों का परमेश्वर के साथ आकर्षण है। इन्द्र जो वायु, इसमें ईश्वर के रचे आकर्षण, प्रकाश और बल आदि बड़े गुण हैं। उनसे सब लोकों का दिन-दिन और क्षण-क्षण के प्रति धारण, आकर्षण और प्रकाश होता है। इस हेतु से सब लोक अपनी अपनी कक्षा में चलते रहते हैं, इधर उधर विचल भी नहीं सकते।[ऋग्वेद अ० 6.1-6, 3]
यदा सूर्य्यममुं दिवि शुक्रं ज्योतिरधारयः। आदित्ते विश्वा भुवनानी येमिरे॥
हे परमेश्वर! जब उन सूर्यादि लोकों को आपने रचा और आपके ही प्रकाश से प्रकाशित हो रहे हैं और आप अपने सामर्थ्य से उनका धारण कर रहे हैं, इसी कारण सू्र्य और पृथ्वी आदि लोकों और अपने स्वरूप को धारण कर रहे हैं। इन सूर्य आदि लोकों का सब लोकों के साथ आकर्षण से धारण होता है। इससे यह सिद्ध हुआ कि परमेश्वर सब लोकों का आकर्षण और धारण कर रहा है।[ऋग्वेद अ० 6.1, 6, 5]
"आत्मकर्म हस्तसंयोगाश्च" 
Action of body and it's members is also from conjunction with the hand.
It is due to the conjunction with hand that the object remains. [वैशषिक सूत्र 5.1.6]   
"संयोगभावे गुरुत्वात्पतनम" 
In the absence of conjunction falling results from Gravity.[वैशषिक सूत्र 5.1.7] 
"नोदनाद्यभिषोः कर्म तत्कर्मकारिताच्च संस्कारादुत्तरं तथोत्तरमुत्तरं च" 
Here is the analogy of arrow. First it gives mechanism of arrow projection. The first action of arrow is from impulse; the next is resultant energy produced by the first action and similarly the next next.[वैशषिक सूत्र 5.1.17]  
"संस्काराभावे गुरुत्वात्पतनम" 
In the absence of resultant-propulsive energy generated by action, falling results from Gravity.[वैशषिक सूत्र 5.1.18]
"अपां संयोगाभावे गुरुत्वात्पतनम"
The falling of water in absence of conjunction is due to Gravity. [वैशषिक सूत्र 5.2.3]
"द्रवथ्वास्यन्दनम्" 
Flowing results from fluidity.[वैशषिक सूत्र 5.2.4]
"नाड्यो वायुसंयोगादारोहणम्"
The Suns rays (cause) the ascent of water through conjunction with air. [वैशषिक सूत्र 5.2.5]
“This earth is devoid of hands and legs, yet it moves ahead. All the objects over the earth also move with it. It moves around the sun".[Rig Ved 10.22.14]
“The Sun has tied Earth and other planets through attraction and moves them around itself as if a trainer moves newly trained horses around itself holding their reins".[Rig Ved 10.149.1]
“O Indr! by putting forth your mighty rays, which possess the qualities of gravitation and attraction-illumination and motion, keep up the entire universe in order through the Power of your attraction". All planets remain stable because as they come closer to the Sun due to attraction, their speed of coming closer increases proportionately. Here Indr is used for the Almighty.[Rig Ved 8.12.28]
(1). Motion of planets around the Sun is not circular, even though Sun is the central force (lying at the focus) causing planets to move.
(2). The motion of planets is such that Velocity of planets is in inverse relation with the distance between planet and Sun.
Kepler's Laws are merely interpretation based on the text given in the Veds, Purans, scriptures.
(1). The Law of Orbits :- All planets move in elliptical orbits, with the Sun at one of their foci.
(2). The Law of Areas :- A line that connects a planet to the Sun sweeps out equal areas in equal intervals of time.
(3). The Law of Periods :- The square of the period of any planet is proportional to the cube of the semi major axis of its orbit.
Kepler's laws were derived for orbits around the Sun, but they apply to satellite orbits as well.
Those who are aware of Astrology, know it very-very clearly that the description of constellations, galaxies, planets, satellites is very precise and accurate. The length of the day, time, seasons is very accurate, true and precise. Discoveries made recently clearly indicate that Hinduism-Sanatan Dharm formed the core of all life through out the world.
I personally met an astrologer who could easily predict rain fall accurately-extremely precisely at a specific at a very specific time.
“O God, You have created this Sun. You possess infinite power. You are upholding the sun and other spheres and render them steadfast by your power of attraction".[Rig Ved 1.6.5, 8.12.30]
“The Sun moves in its own orbit in space taking along with itself the mortal bodies like earth through force of attraction".[Yajur Ved 33.43]
“The Sun moves in its own orbit but holding earth and other heavenly bodies in a manner that they do not collide with each other through force of attraction".[Rig Ved 1.35.9]
“Sun moves in its orbit which itself is moving. Earth and other bodies move around Sun due to force of attraction, because Sun is heavier than them". [Rig Ved 1.164.13]
“The Sun has held the earth and other planets”.[Atharv Ved 4.11.1]
Sun moves in its orbit which itself is moving. Earth and other bodies move around Sun due to force of attraction, because Sun is heavier than them.
“The moving Moon always receives a ray of light from the Sun”. [Rig Ved 1.84.15]
“Moon decided to marry. Day and Night attended its wedding. And sun gifted his daughter “Sun ray” to Moon". [Rig Ved 10.85.9]
“O Sun! When you are blocked by the one whom you gifted your own light (moon), then earth gets scared by sudden darkness". [Rig Ved 5.40.5]
हिरण्यपाणिः सविता विचर्षणिर उभे दयावाप्र्थिवी अन्तर ईयते। 
अपामीवाम बाधते वेति सूर्यम अभि कर्ष्णेन रजसा दयाम रणोति 
The golden-handed Sun, the active, fills (with his rays) the large distance between the earth and heaven. He (the sun) drives away sickness, sets things in motion (movement of heavenly objects, planets, asteroids, satellites etc. tied together through gravitational attraction), penetrates through and removes darkness via his compassion.
आदित्यो ह वै बाह्यः प्राण उदयत्येष ह्येनं चाक्शुषं प्राणमनुगृह्णानः। 
पृथिव्यां या देवता सैषा पुरुषस्यअपानमवष्टभ्यान्तरा यदाकाशः स समानो वायुर्व्यानः॥
The Sun, indeed, is the external Pran (Life force, Pran Vayu). He rises favouring the Pran in the eye. So, the earth attracts the Apan downwards. The Akash-sky between is Saman-equal, equated. The air is Vyan. 
SELECTION OF PROGENY (SON OR DAUGHTER) :: 
ऋतुकालाभिगामी स्यात्स्वदारनिरत: सदा। 
पर्ववर्जन् व्रजेच्चैनां तद्वतो रतिकामय्या॥[मनु स्मृति 3.45] 
ऋतुकाल में ही स्त्री-समागम करना चाहिये। सदा अपनी स्त्री से, इच्छा से सन्तुष्ट रहना चाहिये। रति के पूर्व दिनों को छोड़कर अन्य दिनों में स्त्री समागम कर सकते हैं। 
One should have inter course with his wife only and that is during the mating season-days i.e., only when the egg-ovum, waits for the sperms. He should be content with his wife only and should not indulge in inter course with any other women. How ever mating is permitted except when the woman is having menstrual cycle.
One who mate with any other woman indirectly disturbs the menstrual cycle of both of them. The blood during the menstrual cycle can easily temper his penis. Sex except own partner invite several Venereal diseases, syphilis, gonorrhoea, AIDS and dreaded sexual diseases.
ऋतुः स्वाभाविक: स्त्रीणां रात्रयः षोडशस्मृताः। 
चतुर्भिरितरै: सा धर्म होभि: सद्विगर्हितै:॥[मनु स्मृति 3.46] 
रजोदर्शन से निंदित प्रथम 4 दिन के बाद 16 रात्रि पर्यन्त स्त्रियों का ऋतुकाल रहता है। 
After 4 days of menstruation, which are called impure,  the women can conceive in the next 16 days.
As a matter of tradition the women who are undergoing menstrual cycle are not allowed to enter the kitchen for cooking. They are not allowed to pray the deities and they should not go in front of the Tulsi-Basil plant, during this period.
तासामाद्याश्र्चतस्त्रस्तु निन्दितैकादशी च या। 
त्रयोदशी च शेषास्तु प्रशस्ता दश रात्रयः॥[मनु स्मृति 3.47] 
उन सोलह रात्रियों में प्रथम 4 रात, 11 रहवीं और 13 रहवीं रात स्त्री-समागम के लिये निन्दित है। 
The period of 16 days during which mating-inter course is permissible, one should avoid first 4 nights and the 11th & 13th night, considered to be inauspicious.
युग्मासु पुत्रा जायन्ते स्त्रियोSयुग्मासु रात्रिषु। 
तस्माद्य ुग्मासु पुत्रार्थी संविशेदातवे स्त्रिम्॥[मनु स्मृति 3.48] 
सम रात्रि में (6, 8, 10, 12, 14, 16 रात को) स्त्री से सहवास करने से पुत्र उत्पन्न होता है।  विषम रात्रि में (5, 7, 9, 11, 13, 15 रात्रि में) गमन करने से कन्या जन्म लेती है। इसलिये पुत्रार्थी को सम रात्रि में ऋतुकाल में स्त्री के साथ शयन करना चाहिये। 
One who mates on the even nights (6, 8, 10, 12, 14, 16) after the menstrual cycle after passing 4 nights without inter course, is blessed with a son and those who wish to have a daughter should involves in mating on the odd nights ((5, 7, 9, 11, 13, 15).
पुमान्पुसोSधिके शुक्रे स्त्री भत्यधिके स्त्रिया:। 
समेSपुमान्पुंस्त्रियो या क्षीणेSल्पे च विपर्ययः॥[मनु स्मृति 3.49] 
पुरुष का वीर्य अधिक होने और स्त्री का रज अधिक होने से कन्या होती है। स्त्री पुरुष रज-वीर्य तुल्य होने से नपुंसक का जन्म होता है या यमल सन्तान होती है। दूषित या अलप वीर्य होने से गर्भ धारण नहीं होता। 
Excess sperms and the ovum-egg leads to the birth of a girl. Presence of sperms and ovum-eggs in equitable quantity leads to the birth of an impotent-hermaphrodite or a boy and a girl. Small quantity or contamination of sperms obstruct child formation-conceiving by the woman.
GOLD FORMATION :: जिसके पन्द्रह पत्ते होते हैं, जिसकी आकृति सर्प की तरह होती है, जहाँ से पत्ते निकलते हैं :- वे गाँठें लाल होती हैं, ऐसी वह पूर्णिमा के दिन लाई हुई पँचांग (मूल, डंडी, पत्ते, फूल और फल) से युक्त सोमवल्ली पारद को बद्ध कर देती है। पूर्णिमा के दिन लाया हुआ पँचांग (मूल, छाल, पत्ते, फूल और फल) से युक्त सोम वृक्ष भी पारद को बाँधना, पारद की भस्म बनाना आदि कार्य कर देता है। परन्तु सोमवल्ली और सोमवृक्ष, इन दोनों में सोमवल्ली अधिक गुण वाली है। इस सोमवल्ली का कृष्णपक्ष में प्रतिदिन एक-एक पत्ता झड़ जाता है और शुक्लपक्ष में पुनः प्रतिदिन एक-एक पत्ता निकल आता है। इस तरह लता बढ़ती रहती है। पूर्णिमा के दिन इस इस लता का कन्द निकाला जाय तो वह बहुत श्रेष्ठ होता है। धतूरे के सहित इस कन्द में बँधा हुआ पारद देह को लोहे की तरह दृढ़ बना देता है और इससे बँधा हुआ पारद लक्षभेदी हो जाता है अर्थात एक गुणा बद्ध पारद लाख गुणा लोहे को सोना बना देता है। यह सोम नाम की लता अत्यन्त दुर्लभ है।
AEROPLANES IN ANCIENT INDIA भारतीय वैमानिकी :: 
विमान PLANE :: (1). अष् नारायण ऋषि कहते हैं जो पृथ्वी, जल तथा आकाश में पक्षियों के समान वेग पूर्वक चल सके, उसका नाम विमान है। (2). शौनक के अनुसार, एक स्थान से दूसरे स्थान को आकाश मार्ग से जा सके, विश्वम्भर के अनुसार, एक देश से दूसरे देश या एक ग्रह से दूसरे ग्रह जा सके, उसे विमान कहते हैं। (3). "वेग-संयत् विमानो अण्डजानाम्" अर्थात पक्षियों के समान वेग होने के कारण इसे विमान कहते हैं। 
Incarnation of Bhagwan Vishnu as Bhagwan Ram took place in Treta Yug slightly more than 17,50,000 years ago. Sufficient evidence is available to prove that air ports existed all over the world, prior to that period as well. Some spots have been identified which clearly show relevance with the Temples all over the world, and air ports, the abode of Sanatan Dharm-now called Hinduism. Nazca lines do have specific relevance in the light of evidences evolving one after another. 
Most common name in aeroplanes is Pushpak which belonged to Kuber-the treasures of demigods and forcibly snatched by Ravan-his younger brother from him. Kuber was a Yaksh and Ravan was a Rakshas.
The word Viman is a combination of वि-Vi-meaning sky and मान-Man-meaning major measurement. Pushpak Viman was an advanced version air crafts which could navigate with the brain power-waves and could move with the speeds much higher than the speed of light, in outer space as well. The technological marvel was created by a low potency incarnation of Bhagwan Vishnu-Vishwkarma who's sons Nal & Neel, devised the mythological Setu Samudrum-the bridge connecting Shri Lanka with Rameshwaram in Southern India called Adam's bridge by the British invaders.
An ancient aeroplane has been found in a cave in Afghanistan. The plane is struck in time wrap constituting of electromagnetic waves, similar to the ones found in Bermuda triangle. How ever it has been established without doubt that electromagnetic waves are capable of engulfing any thing. Repeated efforts made to recover it have failed and many people have vanished simultaneously. 
It matches the description of air crafts discussed in ancient scriptures belonging to Hinduism. Mahrishi Bhardwaj had cited numerous scriptures which had the designs of air crafts. He him self was capable of devising air crafts. Some books having sketches of various models of air crafts are still available.
A lot of light is emitted out when the engine of this plane starts. This is loaded with lethal weapons. It has 4 wheels. A number of personnel disappeared when they tried to rescue it. 
Time well rap is identical to coiled snake present in galaxy formation. The plane got activated to engulf soldiers and dogs present nearby. A number of spots-places have been identified in Shri Lanka-Ceylon which are discussed in Ramayan, meeting the geographical description. The mysterious medicinal herb Sanjeevni too has been located-identified over the mountain brought by Hanuman Ji to Lanka & left over there. This mountain has hundreds of herbs and plantation which are not seen any where in Lanka except this place.
वैमानिक शास्त्र में उल्लेखित प्रमुख पौराणिक विमान :: (1). गोधा ऐसा विमान था जो अदृश्य हो सकता था। इसके जरिए दुश्मन को पता चले बिना ही उसके क्षेत्र में जाया जा सकता था, (2). परोक्ष दुश्मन के विमान को पंगु कर सकता था। इसकी कल्पना एक मुख्य युद्धक विमान के रूप में की जा सकती है। इसमें प्रलय नामक एक शस्त्र भी था जो एक प्रकार की विद्युत ऊर्जा का शस्त्र था, जिससे विमान चालक भयंकर तबाही मचा सकता था और (3). जलद रूप एक ऐसा विमान था, जो देखने में बादल की भाँति दिखता था। यह विमान छ्द्मावरण में माहिर होता था।
अफगानिस्तान में एक अति प्राचीन पुराना विमान मिला है। यह विमान एक गुफा में पाया गया है। माना जा रहा है कि एक टाइम वेल में फँसा हुआ है जो कि इलेक्ट्रोमैग्नेटिक शॉकवेव्‍स से सुरक्षित क्षेत्र होता है और इस कारण से इस विमान के पास जाने की चेष्टा करने वाला कोई भी व्यक्ति इसके प्रभाव के कारण गायब या अदृश्य हो जाता है। इसका आकार-प्रकार प्राचीन ग्रंथों में‍ वर्णित विमानों जैसा है। इसे गुफा से निकालने की कोशिश करने वाले कई सील कमांडो गायब हो गए हैं या फिर मारे गए हैं। जब इसका इंजन शुरू होता है तो इससे बहुत बड़ी मात्रा में प्रकाश ‍निकलता है। यह विमान घातक हथियारों से लैस है। इस विमान में चार मजबूत पहिए लगे हुए हैं और यह प्रज्जवलन हथियारों से सुसज्जित है। इसके द्वारा अन्य घातक हथियारों का भी इस्तेमाल किया जाता है और जब इन्हें किसी लक्ष्य पर केन्द्रित कर प्रक्षेपित किया जाता है तो ये अपनी शक्ति के साथ लक्ष्य को भस्म कर देते हैं।जब सेना के कमांडो इसे निकालने का प्रयास कर रहे थे तभी इसका टाइम वेल सक्रिय हो गया और इसके सक्रिय होते ही आठ सील कमांडो गायब हो गए। टाइम वेल सर्पिलाकार में आकाश गंगा की तरह होता है और इसके सम्पर्क में आते ही सभी जीवित प्राणियों का अस्तित्व इस तरह समाप्त हो जाता है मानो कि वे मौके पर मौजूद ही नहीं रहे हों। यह क्षेत्र 5 अगस्त को पुन: एक बार सक्रिय हो गया था और इसके परिणामस्वरूप 40 सिपाही और प्रशिक्षित जर्मन शेफर्ड कुत्ते इसकी चपेट में आ गए थे। 
रामायण में भी पुष्पक विमान का उल्लेख मिलता है, जिसमें रावण माता सीता को हरण करके ले गया था। रावण के पास पुष्पक विमान था, जिसे उसने अपने भाई कुबेर से हथिया लिया था। राम-रावण युद्ध के बाद भगवान् श्री राम ने सीता, लक्ष्मण तथा अन्य लोगों के साथ सुदूर दक्षिण में स्थित लंका से कई हजार किमी दूर उत्तर भारत में अयोध्या तक की दूरी हवाई मार्ग से पुष्पक विमान द्वारा ही तय की थी।  
रामायण से जुड़े ऐसे 50 स्थल ढूंढ लिए हैं जिनका पौराणिक, पुरातात्विक और ऐतिहासिक महत्व है और जिनका रामायण में भी उल्लेख मिलता है। रावण के पुष्पक विमान के उतरने के स्थान और रामायण काल के कुछ हवाई अड्डे भी ढूंढ लिए गए हैं। वेरांगटोक (जो महियांगना से 10 किलोमीटर दूर है) में हैं, ये हवाई अड्डे। यहीं पर रावण ने माता सीता का हरण कर पुष्पक विमान को उतारा था। महियांगना मध्य, श्रीलंका स्थित नुवारा एलिया का एक पर्वतीय क्षेत्र है। इसके बाद माता सीता को जहाँ ले जाया गया था, उस स्थान का नाम गुरुल पोटा है। इसे अब सीतो कोटुवा नाम से जाना जाता है। यह स्थान भी महियांगना के पास है।
रावणैला गुफा :: वैलाव्या और ऐला के बीच सत्रह मील लम्बे मार्ग पर एक बहुत सुन्दर स्थान, जिसे रावणैला गुफा कहा जाता है। रावण ने माता सीता से भेंट करने के लिए उस गुफा में प्रवेश करने का प्रयत्न किया था, परन्तु वह न तो गुफा के अन्दर जा सका और न ही माता सीता के दर्शन कर सका।
उसानगोड़ा, गुरुलोपोथा, तोतूपोलाकंदा और वारियापोला वे स्थान हैं जहाँ पर रावण के समय में हवाई जहाज उतारे और उड़ाए जाते थे। इन चार में से एक उसानगोड़ा हवाई अड्डा नष्ट हो गया था। जब माँ सीता की तलाश में हनुमान जी लंका पहुँचे तो लंका दहन में रावण का उसान गोड़ा हवाई अड्डा नष्ट हो गया था। उसान गोड़ा हवाई अड्डे को स्वयं रावण निजी तौर पर इस्तेमाल करता था। यहाँ रनवे लाल रंग का है। इसके आसपास की जमीन कहीं काली तो कहीं हरी घास वाली है।
पुष्पक एलोरा की गुफाएँ 
पुष्पक विमान की यह विशेषता थी कि वह छोटा या बड़ा किया जा सकता था। पुष्पक विमान में इच्छानुसार गति होती थी और बहुत से लोगों को यात्रा करवाने की क्षमता थी। यह विमान आकाश में स्वामी की इच्छानुसार भ्रमण करता था अर्थात उसमें मन की गति से चलने की क्षमता थी।
स्कंद पुराण के खंड तीन अध्याय 23 में उल्लेख मिलता है कि ऋषि कर्दम ने अपनी पत्नी के लिए एक विमान की रचना की थी जिसके द्वारा कहीं भी आया जाया सकता था। उक्त पुराण में विमान की रचना और विमान की सुविधा का वर्णन भी मिलता है। ऋग्वेद के छत्तीसवें सूक्त के प्रथम मंत्र का अर्थ लिखा है कि ऋभुओं ने तीन पहियों वाला ऐसा रथ (यान) बनाया था जो अंतरिक्ष में उड़ सकता था।
मिस्र के सक्कारा में एक मकबरे से 6 इंच लम्बा लकड़ी का बना ग्लाइडर जैसा दिखने वाला एक मॉडल मिला था। मिस्र के एक वैमानिक विशेषज्ञ ने इसका अध्ययन कर बताया कि इसकी बनावट पूरी तरह आजकल के विमानों की तरह है। यहाँ तक कि इसकी पूँछ भी उतने ही कोण पर बनी है जिस पर वर्तमान ग्लाइडर बहुत कम ऊर्जा में भी उड़ सकता है। अभी तक मिस्र के किसी भी मकबरे या पिरामिड से किसी विमान के कोई अवशेष या ढाँचा नहीं मिला है, पर एबीडोस के मंदिर पर उत्कीर्ण चित्रों में आजकल के विमानों से मिलती-जुलती आकृतियाँ उकेरी हुई मिली हैं।
मिस्र के एक मंदिर में ऐसी कई आकृतियाँ देखने को मिलती हैं जिसमें विमानों तथा हवा में उड़ने वाले उपकरणों को प्रदर्शित किया गया है। इनमें से कुछ तो आधुनिक हेलिकॉप्टर तथा जेट से मिलते-जुलते हैं। वहाँ की कई लोक कथाओं तथा अरब देश की मशहूर कहानी अलिफ-लैला (अरेबियन नाइट्स) में भी उड़ने वाले कालीन का जिक्र मिलता है।
पेरू के धुंध भरे पहाड़ों में छिपी इंका सभ्यता की नाज़्का रेखाएँ तथा आकृतियाँ आज भी अंतरिक्ष से देखी जा सकती हैं। लेटिन अमेरिकी भूमि के समतल और रेतीले पठार पर बनी मीलों लंबी यह रेखाएँ ज्यामिति का एक अनुपम उदाहरण हैं। यहाँ बनी जीव-जंतुओं की 18 विशाल आकृतियाँ भी इतनी कुशलता से बनाई गई हैं कि लगता है मानो किसी विशाल से ब्रश के जरिये अंतरिक्ष से उकेरी गई हों। इंका सभ्यता के खंडहरों और पिरामिडों (मिस्र के बाद पिरामिड यहाँ भी मिले हैं) के भित्तिचित्रों में मनुष्यों के पंख दर्शाए गए हैं तथा उड़न तश्तरी और अंतरिक्ष यात्रियों सरीखी पोशाक में लोगों के चित्र बने हैं।
मध्य अमेरिका से मिले पुरातात्विक अवशेषों में धातु की बनी आकृतियाँ बिलकुल आधुनिक विमानों से मिलती हैं। माचू-पिच्चू की धुन्ध भरी पहाड़ियों में रहने वाले कुछ समुदाय वहाँ पाए जाने वाले विशालकाय पक्षी कांडोर को पूजते हैं और इस क्षेत्र में मिले प्राचीन भित्ति चित्रों में लोगों को इसकी पीठ पर बैठ कर उड़ते हुए भी दिखाया गया है।
Bhagwan Shiv is known as Tri Purari since has destroyed the three planes made of Iron, Gold and silver made by Vishw Karma the hub-abode of billions of demons moving in specific orbits round the earth, when they came in one straight line with a single arrow.
पौराणिक काल में वैमानिकी ::
(1). ऋग्वेद:: इस आदि ग्रन्थ में कम से कम 200 बार विमानों के बारे में उल्लेख है। उनमें तिमंजिला, त्रिभुज आकार के तथा तिपहिये विमानों का उल्लेख है जिन्हें अश्विनों (वैज्ञिानिकों) ने बनाया था। उनमें साधारणतया तीन यात्री जा सकते थे। विमानों के निर्माण के लिये स्वर्ण, रजत तथा लोह धातु का प्रयोग किया गया था तथा उनके दोनो ओर पंख होते थे।
वेदों में विमानों के कई आकार-प्रकार उल्लेखित किये गये हैं। अहनिहोत्र विमान के दो ईंजन तथा हस्तः विमान (हाथी की शक्ल का विमान) में दो से अधिक ईंजन होते थे। एक अन्य विमान का रुप किंग-फिशर पक्षी के अनुरूप था।
याता-यात के लिये ऋग्वेद में जिन विमानों का उल्लेख है वह इस प्रकार है :-
जल-यान :- यह वायु तथा जल दोनो तलों में चल सकता था। [ऋग्वेद 6.58.3]
कारा :- यह भी वायु तथा जल दोनो तलों में चल सकता था। [ऋग्वेद 9.14.1]
त्रिताला :- इस विमान का आकार तिमंजिला था। [ऋग्वेद 3.14.1)
त्रिचक्र रथ :- यह तिपहिया विमान आकाश में उड सकता था। [ऋग्वेद 4.36.1]
वायु रथ :- रथ की शकल का यह विमान गैस अथवा वायु की शक्ति से चलता था। [ऋग्वेद 5.41.6]
विद्युत रथ :- इस प्रकार का रथ विमान विद्युत की शक्ति से चलता था। [ऋग्वेद 3.14.1].
(2). यजुर्वेद में भी एक अन्य विमान का तथा उन की संचलन प्रणाली उल्लेख है जिस का निर्माण जुडवा अशविन कुमारों ने किया था। इस विमान के प्रयोग से उन्हो मे राजा भुज्यु को समुद्र में डूबने से बचाया था।
(3). विमानिका शास्त्र :- 1,875 ईसवी में भारत के ऐक मन्दिर में विमानिका शास्त्र ग्रंथ की एक प्रति मिली थी। जिसे ऋषि भरद्वाज रचित माना जाता है। 
इसी ग्रंथ में पूर्व के 97 अन्य विमानाचार्यों का वर्णन है तथा 20 ऐसी कृतियों का वर्णन है जो विमानों के आकार प्रकार के बारे में विस्तरित जानकारी देते हैं। इनमें से कई अमूल्य कृतियाँ अब लुप्त हो चुकी हैं। इन ग्रन्थों के विषय इस प्रकार थे :-
विमान के संचलन के बारे में जानकारी, उडान के समय सुरक्षा सम्बन्धी जानकारी, तूफान तथा बिजली के आघात से विमान की सुरक्षा के उपाय, आवश्यक्ता पडने पर साधारण ईंधन के बदले सौर ऊर्जा पर विमान को चलाना आदि। इस से यह तथ्य भी स्पष्ट होता है कि इस विमान में ‘एन्टी ग्रेविटी’ क्षेत्र की यात्रा की क्षमता भी थी।
विमानिका शास्त्र में सौर ऊर्जा के माध्यम से विमान को उडाने के अतिरिक्त ऊर्जा को संचित रखने का विधान भी बताया गया है। ऐक विशेष प्रकार के शीशे की आठ नलियों में सौर ऊर्जा को एकत्रित किया जाता था जिस के विधान की पूरी जानकारी लिखित है किन्तु इस में से कई भाग अभी ठीक तरह से समझे नहीं गये हैं।
इस ग्रन्थ के आठ भाग हैं जिन में विस्तरित मानचित्रों से विमानों की बनावट के अतिरिक्त विमानों को अग्नि तथा टूटने से बचाव के तरीके भी लिखित हैं। ग्रन्थ में 31 उपकरणों का वर्तान्त है तथा 16 धातुओं का उल्लेख है जो विमान निर्माण में प्रयोग की जाती हैं जो विमानों के निर्माण के लिये उपयुक्त मानी गयीं हैं क्यों कि वह सभी धातुयें गर्मी सहन करने की क्षमता रखती हैं और भार में हल्की हैं।
ऋषि देवताओं द्वारा निर्मित तीन पहियों के ऐसे रथ का उल्लेख ऋग्वेद (4.25.26) में मिलता है, जो अंतरिक्ष में भ्रमण करता है। ऋषिओं ने मनुष्य-योनि से देवभाव पाया था। देवताओं के वैद्य अश्विनीकुमारों द्वारा निर्मित पक्षी की तरह उडऩे वाले त्रितल रथ, विद्युत-रथ और त्रिचक्र रथ का उल्लेख भी पाया जाता है।
महाभारत में भगवान् श्री कृष्ण, जरासंध आदि के विमानों का वर्णन आता है। वाल्मीकि रामायण में कुबेर के पुष्पक विमान, जो लंकापति रावण के पास था का वर्णन मिलता है।  
भरद्वाज ऋषि का वैमानिक शास्त्र :: महर्षि भरद्वाज द्वारा लिखित वैमानिक शास्त्र  में एक उड़ने वाले यंत्र-विमान के कई प्रकारों का वर्णन किया गया है तथा हवाई युद्ध के कई नियम व प्रकार बताए गए।
वैमानिक शास्त्र में भरद्वाज मुनि ने विमान की परिभाषा, विमान का चालक जिसे रहस्यज्ञ अधिकारी कहा गया, आकाश मार्ग, वैमानिक के कपड़े, विमान के पुर्जे, ऊर्जा, यंत्र तथा उन्हें बनाने हेतु विभिन्न धातुओं का जैसा वर्णन किया गया है जो कि आधुनिक युग में विमान निर्माण प्रकिया से काफी अधिक विकसित है।
भरद्वाज ऋषि द्वारा उनसे पूर्व के विमानशास्त्री आचार्य और उनके ग्रंथों का वर्णन :: (1). नारायण द्वारा रचित विमान चन्द्रिका, (2). शौनक द्वारा रचित व्योमयान तंत्र, (3). गर्ग द्वारा रचित यन्त्रकल्प, (4).  वायस्पति द्वारा रचित यान बिन्दु, (5). चाक्रायणी द्वारा रचित खेटयान प्रदीपिका और (6). धुण्डीनाथ द्वारा रचित व्योमयानार्क प्रकाश। 
महर्षि भारद्वाज रचित  वैमानिक शास्त्र :: वैमानिक शास्त्र महर्षि भारद्वाज द्वारा संस्कृत भाषा में लगभग 18,00,000 साल पहले लिखा गया वः ग्रन्थ है जिसमें विभिन्न प्रकार के यान, वायुयान आदि की रचना, ईंधन, तकनीकि प्रेक्षण आदि सम्बन्धी जानकारी दी गई है। इसमें कुल 8 अध्याय और 3,000 श्लोक हैं। 
इस ग्रंथ के पहले प्रकरण में प्राचीन विज्ञान विषय के पच्चीस ग्रंथों की एक सूची है, जिनमें प्रमुख है अगस्त्यकृत-शक्तिसूत्र, ईश्वरकृत-सौदामिनी कला, भरद्वाजकृत-अशुबोधिनी, यंत्रसर्वसव तथा आकाश शास्त्र, शाकटायन कृत-वायुतत्त्व प्रकरण, नारदकृत-वैश्वानरतंत्र, धूम प्रकरण आदि।
निर्मथ्य तद्वेदाम्बुधिं भरद्वाजो महामुनिः; नवनीतं समुद्घृत्य यन्त्रसर्वस्वरूपकम्‌।
प्रायच्छत्‌ सर्वलोकानामीप्सिताज्ञर्थ लप्रदम्‌; 
तस्मिन चत्वरिंशतिकाधिकारे सम्प्रदर्शितम्‌॥
नाविमानर्वैचित्र्‌यरचनाक्रमबोधकम्‌; अष्टाध्यायैर्विभजितं शताधिकरणैर्युतम।
सूत्रैः पञ्‌चशतैर्युक्तं व्योमयानप्रधानकम्‌; वैमानिकाधिकरणमुक्तं भगवतास्वयम्‌॥ 
भरद्वाज महामुनि ने वेदरूपी समुद्र का मन्थन करके यन्त्र सर्वस्व नाम का ऐसा मक्खन निकाला है, जो मनुष्य मात्र के लिए इच्छित फल देने वाला है। उसके चालीसवें अधिकरण में वैमानिक प्रकरण जिसमें विमान विषयक रचना के क्रम कहे गए हैं। यह ग्रंथ आठ अध्याय में विभाजित है तथा उसमें एक सौ अधिकरण तथा पाँच सौ सूत्र हैं तथा उसमें विमान का विषय ही प्रधान है।[विमान शास्त्र की टीका-बोधानन्द] 
प्रथम अध्याय :: (1.1). मङ्गलाचरणम्, (1.2). विमानशब्दार्थाधिकरणम्, (1.3). यन्तृत्वाधिकरणम्, (1.4). मार्गाधिकरणम्, (1.5). आवर्ताकरणम्, (1.6). अङ्काकरणम्, (1.7). वस्त्राकरणम्, (1.8). आहाराकरणम्, (1.9). कर्माधिकाराधिकरणम्, (1.10). विमानाधिकरणम्, (1.11). जात्याधिकरणम्, (1.12). वर्णाधिकरणम्। 
द्वितीय अध्याय :: (2.1). संज्ञाधिकरणम्, (2.2). लोहाधिकरणम्, (2.3). संस्काराधिकरणम्, (2.4). दर्पणाधिकरणम्, (2.5). शक्त्यधिकरणम्, (2.6).यन्त्राधिकरणम्, (2.7). तैलाधिकरणम्, (2.8). ओषध्यधिकरणम्, (2.9). घाताधिकरणम्, (2.10).भाराधिकरणम्। 
तृतीय अध्याय :: (3.1). भ्रामण्यधिकरणम्, (3.2). कालाधिकरणम्, (3.3). विकल्पाधिकरणम्, (3.4). संस्काराधिकरणम्, (3.5). प्रकाशाधिकरणम्, (3.6). उष्णाधिकरणम्, (3.7). शैत्याधिकरणम्, (3.8). आन्दोलनाधिकरणम्, (3.9). तिर्यन्धाधिकरणम्, (3.10). विश्वतोमुखाधिकरणम्, (3.11). धूमाधिकरणम्, (3.12). प्राणाधिकरणम्, (3.13). सन्ध्यधिकरणम्। 
चतुर्थ अध्याय :: (4.1). आहाराधिकरणम्, (4.2). लगाधिकरणम्, (4.3). वगाधिकरणम्, (4.4). हगाधिकरणम्, (4.5). लहगाधिकरणम्, (4.6). लवगाधिकरणम्, (4.7). लवहगाधिकरणम्, (4.8). वान्तर्गमनाधिकरणम्, (4.9). अन्तर्लक्ष्याधिकरणम्, (4.10). बहिर्लक्ष्याधिकरणम्, (4.11). बाह्याभ्यन्तर्लक्ष्याधिकरणम्। 
पञ्चम अध्याय :: (5.1). तन्त्राधिकरणम्, (5.2). विद्युत्प्रसारणाधिकरणम्, (5.3). व्याप्त्यधिकरणम्, (5.4). स्तम्भनाधिकरणम्, (5.5). मोहनाधिकरणम्, (5.6). विकाराधिकरणम्, (5.7). दिङ्निदर्शनाधिकरणम्, (5.8). अदृष्याधिकरणम्, (5.9). तिर्यञ्चाधिकरणम्, (5.10). भारवहनाधिकरणम्, (5.11). घण्टारवाधिकरणम्, (5.12). शुक्रभ्रमणाधिकरणम्, (5.13). चक्रगत्यधिकरणम्। 
सष्ठम अध्याय :: (6.1). वर्गविभाजनाधिकरणम्, (6.2). वामनिर्णयाधिकरणम्, (6.3). शक्त्युद्गमाधिकरणम्, (6.4). सूतवाहाधिकरणम्, (6.5). धूमयानाधिकरणम्, (6.6). शिखोद्गमाधिकरणम्, (6.7). अंशुवाहाधिकरणम्, (6.8). तारमुखाधिकरणम्, (6.9). मणिवाहाधिकरणम्, (6.10). मतुत्सखाधिकरणम्, (6.11). शक्तिगर्भाधिकरणम्, (6.12). गारुडाधिकरणम्। 
सप्तम अध्याय :: (7.1). सिंहिकाधिकरणम्, (7.2). त्रिपुराधिकरणम्, (7.3). गूढचाराधिकरणम्, (7.4). कूर्माधिकरणम्, (7.5). ज्वालिन्यधिकरणम्, (7.6). माण्डलिकाधिकरणम्, (7.7). आन्दोलिकाधिकरणम्, (7.8). ध्वजाङ्गाधिकरणम्, (7.9). वृन्दावनाधिकरणम्, (7.10). वैरिञ्चिकाधिकरणम्, (7.11). जलदाधिकरणम्। 
अष्टम अध्याय :: (8.1). दिङ्निर्णयाधिकरणम्, (8.2). ध्वजाधिकरणम्, (8.3). कालाधिकरणम्, (8.4). विस्तृतक्रियाधिकरणम्, (8.5). अङ्गोपसहाराधिकरणम्, (8.6). तमप्रसारणाधिकरणम्, (8.7). प्राणकुण्डल्यधिकरणम्, (8.8). रूपाकर्षणाधिकरणम्, (8.9). प्रतिबिम्बाकर्षणाधिकरणम्, (8.10). गमागमाधिकरणम्, (8.11). आवासस्थानाधिकरणम्, (8.12). शोधनाधिकरणम्, (8.13). परिच्छेदाधिकरणम्, (8.14). रक्षणाधिकरणम्। 
विमान के 32 रहस्य :: इस ग्रन्थ में विमान चालक (पाइलॉट) के लिये  निम्न 32 रहस्यों (systems) की जानकारी आवश्यक बतायी गयी है। इन रहस्यों को जान लेने के बाद ही पाइलॉट विमान चलाने का अधिकारी हो सकता है। मांत्रिक, तान्त्रिक, कृतक, अन्तराल, गूढ, दृश्य, अदृश्य, परोक्ष, संकोच, विस्तृति, विरूप परण, रूपान्तर, सुरूप, ज्योतिर्भाव, तमोनय, प्रलय, विमुख, तारा, महाशब्द विमोहन, लाङ्घन, सर्पगमन, चपल, सर्वतोमुख, परशब्दग्राहक, रूपाकर्षण, क्रिया ग्रहण, दिक्प्रदर्शन, आकाशाकार, जलद रूप, स्तब्धक, कर्षण।
भरद्वाज ऋषि के विमान शास्त्र के उनसे पूर्व हुए आचार्य तथा उनके ग्रंथ :- 
(1).  नारायण कृत–विमान चन्द्रिका, (2). शौनक कृत-न् व्योमयान तंत्र, (3). गर्ग-यन्त्रकल्प, (4). वायस्पतिकृत-यान बिन्दु, (5) चाक्रायणीकृत-खेटयान प्रदीपिका और (6) धुण्डीनाथ-व्योमयानार्क प्रकाश। 
इस ग्रन्थ में भरद्वाज मुनि ने विमान की परिभाषा, विमान का पायलट जिसे रहस्यज्ञ अधिकारी कहा गया, आकाश मार्ग, वैमानिक के कपड़े, विमान के पुर्जे, ऊर्जा, यंत्र तथा उन्हें बनाने हेतु विभिन्न धातुओं का वर्णन किया गया है ।
विमान शास्त्र में 31 प्रकार के यंत्र तथा उनका विमान में निश्चित स्थान का वर्णन मिलता है। इन यंत्रों का कार्य क्या है इसका भी वर्णन किया गया है। कुछ यंत्रों की जानकारी निम्नानुसार है :–
(1). विश्व क्रिया दर्पण :– इस यंत्र के द्वारा विमान के आसपास चलने वाली गति- विधियों का दर्शन वैमानिक को विमान के अंदर होता था, इसे बनाने में अभ्रक तथा पारा आदि का प्रयोग होता था।
(2). परिवेष क्रिया यंत्र :– इसमें स्वाचालित यंत्र वैमानिक यंत्र वैमानिक का वर्णन है।
(3). शब्दाकर्षण यंत्र :– इस यंत्र के द्वारा 26 किमी. क्षेत्र की आवाज सुनी जा सकती थी तथा पक्षियों की आवाज आदि सुनने से विमान को दुर्घटना से बचाया जा सकता था।
(4). गुह गर्भ यंत्र :- इस यंत्र के द्वारा जमीन के अन्दर विस्फोटक खोजने में सफलता मिलती है।
(5). शक्त्याकर्षण यंत्र :– विषैली किरणों को आकर्षित कर उन्हें उष्णता में परिवर्तित करना और उष्णता के वातावरण में छोड़ना।
(6). दिशा दर्शी यंत्र :– दिशा दिखाने वाला यंत्र। 
(7). वक्र प्रसारण यंत्र :– इस यंत्र के द्वारा शत्रु विमान अचानक सामने आ गया, तो उसी समय पीछे मुड़ना संभव होता था।
(8). अपस्मार यंत्र :– युद्ध के समय इस यंत्र से विषैली गैस छोड़ी जाती थी।
(9). तमोगर्भ यंत्र :– इस यंत्र के द्वारा शत्रु युद्ध के समय विमान को छिपाना संभव था तथा इसके निर्माण में तमोगर्भ लौह प्रमुख घटक रहता था।
ऊर्जा स्रोत :- विमान को चलाने के लिए चार प्रकार के ऊर्जा स्रोतों का महर्षि भरद्वाज उल्लेख करते हैं,
(1). वनस्पति तेल जो पेट्रोल की भाँति काम करता था।
(2). पारे की भाप :- प्राचीन शास्त्रों में इसका शक्ति के रूप में उपयोग किए जाने का वर्णन है।
(3). सौर ऊर्जा :- इसके द्वारा भी विमान चलता था। ग्रहण कर विमान उड़ना जैसे समुद्र में पाल खोलने पर नाव हवा के सहारे तैरता है। इसी प्रकार अंतरिक्ष में विमान वातावरण से शक्ति ग्रहण कर चलता रहेगा। 
विमान के प्रकार :– विमान विद्या के पूर्व आचार्य युग के अनुसार विमानों का वर्णन करते हैं। मंत्रिका प्रकार के विमान जिसमें भौतिक एवं मानसिक शक्तियों के सम्मिश्रण की प्रक्रिया रहती थी वह सतयुग और त्रेता युग में सम्भव था। इनके 56 प्रकार बताए गए हैं तथा कलियुग में कृतिका प्रकार के यंत्र चालित विमान थे। इनके 25 प्रकार बताए हैं। इनमें शकुन, रुक्म, हंस, पुष्कर, त्रिपुर आदि प्रमुख थे।
प्रथम धातु है तमोगर्भ लौह। विमान शास्त्र में वर्णन है कि यह विमान अदृश्य करने के काम आता है। इस पर प्रकाश छोड़ने से 75 से 80 प्रतिशत प्रकाश को सोख लेतो है। यह धातु रंग में काली तथा शीशे से कठोर तथा कान्सन्ट्रेटेड सल्फ्‌यूरिक एसिड में भी नहीं गलती।
दूसरी धातु जो बनाई है, उसका नाम है, पंच लौह। यह रंग में स्वर्ण जैसा है तथा कठोर व भारी है। ताँबा आधारित इस मिश्र धातु की विशेषता यह है कि इसमें सीसे का प्रमाण 7.95 प्रतिशत है।
तीसरी धातु है, आर। यह ताँबा आधारित मिश्र धातु है, जो रंग में पीली और कठोर तथा हल्की है। इस धातु में तमेपेजंदबम जव उवपेजनतम का गुण है। 
प्रकाश स्तंभन भिद् लौह :: इसका निर्माण कचर लौह (Silica), भूचक्र सुरमित्रादिक्षर (Lime), अयस्कान्त (Lodestone) अंशुबोधिनी में वर्णित विधि से किया गया है। प्रकाश स्तंभन भिद् लौह की यह विशेषता है कि यह पूरी तरह से नॉन हाईग्रोस्कोपिक है, हाईग्रोस्कोपिक इन्फ्रारेड वाले काँचों में पानी की भाप या वातावरण की नमी से उनका पॉलिश हट जाता है और वे बेकार हो जाते हैं। इन्फ्रारैड सिग्नल्स में यह आदर्श काम करता है तथा इसका प्रयोग वातावरण में मौजूद नमी के खतरे के बिना किया जा सकता है।
यंत्र सर्वस्व :: इस ग्रंथ में इंजीनियरी आदि से संबंधित, चालीस प्रकरण हैं। ‘यंत्र सर्वस्व’ के इस वैमानिक प्रकरण के अतिरिक्त विमान शास्त्र से संबंधित अनेक ग्रंथ हैं, जिनमें छः ऋषियों के ग्रंथ प्रसिद्ध हैं:
नारायण कृत ‘विमान चंद्रिका’, शौनक कृत ‘व्योमयान’, गर्ग कृत ‘यंत्रकल्प’, वाचस्पति कृत ‘यानविंदु’, चाक्रायणि कृत ‘खेटयान प्रदीपिका’, तथा घुंडिनाथ कृत ‘व्योमयानार्क प्रकाश’।
महर्षि भारद्वाज ने न केवल वेदों तथा इन छः ग्रंथों का भी मंथन किया वरन् अन्य अनेक ऋषियों द्वारा इन विषयों पर रचित ग्रंथों का भी मंथन किया था। इसमें आचार्य लल्ल (‘रहस्य लहरी’), सिद्धनाथ, विश्वकर्मा (पुष्पक विमान का आविष्कर्ता), छायापुरुष, मनु, मय आदि के ग्रंथों की चर्चा है।
बृहद विमान शास्त्र में कुल 97 विमान से संबद्ध ग्रंथों का संदर्भ है और भी अनेकों से जानकारी ली गई है। महर्षि भारद्वाज के ‘बृहद विमान शास्त्र’ (बृ.वि.शा.) में  विमानों के इंजीनियरी निर्माण की विधियों का विस्तृत वर्णन है। 
वैमानिक का खाद्य-भोजन :- इसमें किस ऋतु में किस प्रकार का अन्न हो इसका वर्णन है । उस समय के विमान आज से कुछ भिन्न थे। आज ते विमान उतरने की जगह निश्चित है पर उस समय विमान कहीं भी उतर सकते थे। अतः युद्ध के दौरान जंगल में उतरना पड़ा तो जीवन निर्वाह कैसे करना, इसीलिए 100 वनस्पतियों का वर्णन दिया है, जिनके सहारे दो तीन माह जीवन चलाया जा सकता है। वैमानिक को दिन में 5 बार भोजन करना चाहिए। उसे कभी विमान खाली पेट नहीं उड़ाना चाहिए। 
मेघोत्पत्तिप्रकरणोक्तशरन्मेधावरणषट्केषु द्वितीया वरणपथे विमानमन्तर्धाय विमानस्थ शक्त्याकर्षणदर्पणमुखात्तन्मेधशक्तिमाहत्य पच्श्राद्विमानपरिवेषचक्रमुखे नियोजयेत्।
तेनस्तंभनशक्तिप्रसारणम् भवति, पच्श्रात्तद्दवा रा लोकस्तम्भनक्रियारहस्यम्॥
मेघोत्पत्ति प्रकरण में कहे शरद ऋतु संबंधी छ: मेघावरणों के द्वितीय आवरण मार्ग में विमान छिपकर विमानस्थ शक्ति का आकर्षण करने वाले दर्पण के मुख से उस मेघशक्ति को लेकर पश्चात् विमान के घेरे वाले चक्रमुख में नियुक्त करे, उससे स्तम्भन शक्ति का विस्तार अर्थात प्रसार हो जाता है, एवं स्तम्भन क्रिया रहस्य हो जाता है ....
इस मंत्र में जो दर्पण आया है, उसे शक्ति आकर्षण दर्पण कहा जाता है, यह पूर्व के विमानों में लगा होता था, यह दर्पण मेघों की शक्ति को ग्रहण करता है।
विमान में स्थित चक्र मुख यंत्र आकाश में शक्ति आकर्षण दर्पण मेघों की शक्ति को ग्रहण करके, स्थित चक्र के माध्यम से मुख यंत्र तक पहुचा देता है... तत्पश्चात चन्द्र मुख यंत्र स्तंभन क्रिया का प्रारम्भ कर देता है......
विमान को अदृश्य करने का रहस्य :- उसमें शक्ति यंत्र सूर्य किरणों के उषादण्ड के सामने पृष्ठ केंद्र में रहने वाले वेणरथ्य किरण आदि शक्तियों से आकाश तरंग के शक्ति प्रवाह को खीचता है और वायुमंडल में स्थित बलाहा विकरण आदि पाँच शक्तियों को नियुक्त करके उनके द्वारा सफ़ेद अभ्रमंडलाकार करके उस आवरण से विमान के अदृश्य करने का रहस्य है।
विश्वक्रिया  दर्पण (रडार सिस्टम) :- इसके अंतर्गत आकाश में विद्युत किरण और वात किरण मतलब रेडियो वेव्स, के परस्पर सम्मेलन से उत्पन्न होने वाली बिंबकारक शक्ति अर्थात इमेज मेकिंग पावर वेव्स का प्रयोग करके, रडार के पर्दो पर छाया चित्र बनाकर आकाश मे उड़ने वाले अदृश्य विमानों का पता लगाया जा सकता है।
रहस्यज्ञ अधिकारी (पायलट) :- विमान के रहस्यों को जानने वाला ही उसे चलाने का अधिकारी है। शास्त्रों में विमान चलाने के बत्तीस रहस्य बताए गए हैं। उनका भलीभाँति ज्ञान रखने वाला ही उसे चलाने का अधिकारी है।क्योंकि विमान बनाना, उसे जमीन से आकाश में ले जाना, खड़ा करना, आगे बढ़ाना टेढ़ी-मेढ़ी गति से चलाना या चक्कर लगाना और विमान के वेग को कम अथवा अधिक करना उसे जाने बिना यान चलाना असम्भव है। अतः जो इन रहस्यों को जानता है, वह रहस्यज्ञ अधिकारी है तथा उसे विमान चलाने का अधिकारी है तथा उसे विमान चलाने का अधिकार है।
कृतक रहस्य :- विश्वकर्मा, छायापुरुष, मनु तथा मय दानव आदि के विमान शास्त्र के आधार पर आवश्यक धातुओं द्वारा इच्छित विमान बनाना। यह हार्डवेयर का वर्णन है।
गूढ़ रहस्य :– यह विमान को छिपाने की विधि है। इसके अनुसार वायु तत्त्व प्रकरण में कही गयी रीति के अनुसार वातस्तम्भ की जो आठवीं परिधि रेखा है उस मार्ग की यासा, वियासा तथा प्रयासा इत्यादि वायु शक्तियों के द्वारा सूर्य किरण रहने वाली जो अन्धकार शक्ति है, उसका आकर्षण करके विमान के साथ उसका सम्बन्ध बनाने पर विमान छिप जाता है।
अपरोक्ष रहस्य :– शक्ति तंत्र में कही गयी रोहिणी विद्युत्‌ के फैलाने से विमान के सामने आने वाली वस्तुओं को प्रत्यक्ष देखा जा सकता है।
संकोचा :– आसमान में उड़ने समय आवश्यकता पड़ने पर विमान को छोटा करना।
विस्तृता :– आवश्यकता पड़ने पर विमान को बड़ा करना। 
सर्पागमन रहस्य :– विमान को सर्प के समान टेढ़ी-मेढ़ी गति से उड़ाना संभव है। इसमें काह गया है दण्ड, वक्रआदि सात प्रकार के वायु और सूर्य किरणों की शक्तियों का आकर्षण करके यान के मुख में जो तिरछें फेंकने वाला केन्द्र है, उसके मुख में उन्हें नियुक्त करके बाद में उसे खींचकर शक्ति पैदा करने वाले नाल में प्रवेश कराना चाहिए। इसके बाद बटन दबाने से विमान की गति साँप के समान टेढ़ी-मेढ़ी हो जाती है। 
पर शब्द ग्राहक रहस्य :–  शब्द ग्राहक यंत्र विमान पर लगाने से उसके द्वारा दूसरे विमान पर लोगों की बात-चीत सुनी जा सकती है।
रूपाकर्षण रहस्य :– इसके द्वारा दूसरे विमानों के अंदर का सब कुछ देखा जा सकता था।
दिक्प्रदर्शन रह्रस्य :– दिशा सम्पत्ति नामक यंत्र द्वारा दूसरे विमान की दिशा ध्यान में आती है।
स्तब्धक रहस्य :– एक विशेष प्रकार का अपस्मार नामक गैस स्तम्भन यंत्र द्वारा दूसरे विमान पर छोड़ने से अंदर के सब लोग बेहोश हो जाते हैं।
कर्षण रहस्य :– अपने विमान का नाश करने आने वाले शत्रु के विमान पर अपने विमान के मुख में रहने वाली वैश्र्‌वानर नाम की नली में ज्वालिनी को जलाकर सत्तासी लिंक (डिग्री जैसा कोई नाप है) प्रमाण हो, तब तक गर्म कर फिर दोनों चक्कल की कीलि (बटन) चलाकर शत्रु विमानों पर गोलाकार से उस शक्ति की फैलाने से शत्रु का विमान नष्ट हो जाता है।
आकाश मार्श :- महर्षि शौनक आकाश मार्ग का पाँच प्रकार का विभाजन करते हैं तथा धुण्डीनाथ विभिन्न मार्गों की ऊँचाई विभिन्न मार्गों की ऊँचाई पर विभिन्न आवर्त्त या (whirlpools) का उल्लेख करते हैं और उस ऊँचाई पर सैकड़ों यात्रा पथों का संकेत देते हैं। इसमें पृथ्वी से 100 किलोमीटर ऊपर तक विभिन्न ऊँचाईयों पर निर्धारित पथ तथा वहाँ कार्यरत शक्तियों का विस्तार से वर्णन करते हैं। आकाश मार्ग तथा उनके आवर्तों का वर्णन निम्नानुसार है :–
(1). रेखा पथ, शक्त्यावृत्त, (whirlpool of energy) :- 0-10 किलोमीटर,  
(2). वातावृत्त, (wind) :- 10-50 किलोमीटर,  
(3). कक्ष पथ, किरणावृत्त, (solar rays) :- 50-60 किलोमीटर,  
(4). शक्तिपथ, सत्यावृत्त, (cold current) :- 60-80 किलोमीटर।
PIE π परिधि और व्यास का अनुपात (CIRCUMFERENCE:DIAMETER OF A CIRCLE) :: 
(1). π (pi) = Circumference/Diameter.
(2). इससे भी पहले भारतीय स्रोत  को वर्गमूल 10 = 3.1622 लिखते थे।
(3). "भद्राम्बुद्धिसिद्धजन्मगणितश्रद्धा स्म यद् भूपगी:" 
π = 31415926535897932384626433832795 (इकतीस दशमलव स्थानों तक, 3 के बाद दशमलव मानिए।)[शंकर वर्मन, सद्रत्नमाला, कटपयादि प्रणाली]
(4). चतुराधिकं शतमष्टगुणं द्वाषष्टिस्तथा सहस्त्राणाम्। 
अयुतद्वयस्य विष्कम्भस्य आसन्नौ वृत्तपरिणाहः॥[आर्यभट]
100 में 4 जोड़ें, 8 से गुणा करें और फिर 62,000 जोड़ें। इस नियम से 20,000 परिधि के एक वृत्त का व्यास ज्ञात किया जा सकता है अर्थात, 
π = परिध/व्यास = [(100+4) X 8 + 62,000]/20000 = 3,1416.
इसके अनुसार व्यास और परिधि का अनुपात [(100+4) x 8 + 62,000]/20000 = 3,1416 है, जो दशमलव के पाँच अंकों तक बिलकुल सटीक-ठीक  है।
चतुरधिकं शतम = 104, अष्टगुणं = 8 X 104 = 832, द्वाषष्टि = 62, तथा सहस्राणाम् = 62,000, कुल = 62832, अयुतद्वय = 10,000 x 2 = 20,000, विष्कम्भस्य = व्यास की, आसन्नो = लगभग, वृत्तपरिणाह = परिधि के।
62832/20,000 = 3.1416 (Approximately).
Its a misconception-misnomer that Ary Bhatt discovered pie. The reality remain that it had been in use ever since.
ऋग्वेद में π का मान 32 अंक तक शुद्ध है ::
गोपीभाग्य मधुव्रातः श्रुंगशोदधि संधिगः। 
खलजीवितखाताव गलहाला रसंधरः 
अर्थात  π = 3.1415926535897932384626433832792…
वर्ग की भुजा और उसमें बने वृत्त की त्रिज्या में सम्बन्ध ::
 चतुरस्रं मण्डलं चिकीर्षन्न् अक्षयार्धं मध्यात्प्राचीमभ्यापातयेत्।
यदतिशिष्यते तस्य सह तृतीयेन मण्डलं परिलिखेत्बौधायन 
यदि वर्ग की भुजा 2a हो तो वृत्त की त्रिज्या r = [a+1/3(√2 a – a)] = [1+1/3(√2 – 1)]
परे पूर्णमिति। उपरिष्टादेकं चतुरस्रकोष्ठं लिखित्वा तस्याधस्तात् उभयतोर्धनिष्क्रान्तं कोष्ठद्वयं लिखेत्। तस्याप्यधस्तात् त्रयं तस्याप्यधस्तात् चतुष्टयं यावदभिमतं स्थानमिति मेरुप्रस्तारः। तस्य प्रथमे कोष्ठे एकसंख्यां व्यवस्थाप्य लक्षणमिदं प्रवर्तयेत्। तत्र परे कोष्ठे यत् वृत्तसंख्याजातं तत् पूर्वकोष्ठयोः पूर्णं निवेशयेत्
[पिंगल छन्द शास्त्र-हालायुध]
चक्रीय चतुर्भुज का क्षेत्रफल ::
  स्थूल-फलम् त्रि-चतुर्-भुज-बाहु-प्रतिबाहु-योग-दल-घातस्।
भुज-योग-अर्ध-चतुष्टय-भुज-ऊन-घातात् पदम् सूक्ष्मम्॥
त्रिभुज और चतुर्भुज का स्थूल-लगभग क्षेत्रफल उसकी आमने-सामने की भुजाओं के योग के आधे के गुणनफल के बराबर होता है तथा सूक्ष्म (exact) क्षेत्रफल भुजाओं के योग के आधे में से भुजाओं की लम्बाई क्रमशः घटाकर और उनका गुणा करके वर्गमूल लेने से प्राप्त होता है।[ब्राह्मस्फुटसिद्धान्त, गणिताध्याय,  क्षेत्रव्यवहार 12.21]
ब्रह्मगुप्त प्रमेय ::
त्रिभ्जे भुजौ तु भूमिस् तद्-लम्बस् लम्बक-अधरम् खण्डम्।
ऊर्ध्वम् अवलम्ब-खण्डम् लम्बक-योग-अर्धम् अधर-ऊनम्॥
चक्रीय चतुर्भुज के विकर्ण यदि लम्बवत हों तो उनके कटान बिन्दु से किसी भुजा पर डाला गया लम्ब सामने की भुजा को समद्विभाजित करता है।[ब्राह्मस्फुट सिद्धान्त, गणिताध्याय, क्षेत्रव्यवहार 12.31]
ब्रह्मगुप्त का वर्ग-समीकरण व्यापक सूत्र ::
वर्गचतुर्गुणितानां रुपाणां मध्यवर्गसहितानाम्।
मूलं मध्येनोनं वर्गद्विगुणोद्धृतं मध्यः॥
व्यक्त रुप (c) के साथ अव्यक्त वर्ग के चतुर्गुणित गुणांक (4 ac) को अव्यक्त मध्य के गुणाँक के वर्ग (b²) से सहित करें या जोड़ें। इसका वर्गमूल प्राप्त करें तथा इसमें से मध्य अर्थात b को घटावें। पुनः इस संख्या को अज्ञात ञ वर्ग के गुणांक (a) के द्विगुणित सँख्या से भाग देवें। प्राप्त सँख्या ही अज्ञात ञ राशि का मान है।[ब्राह्मस्फुट-सिद्धांत 18.44]
चतुराहतवर्गसमैः रुपैः पक्षद्वयं गुणयेत्।
अव्यक्तवर्गरूपैर्युक्तौ पक्षौ ततो मूलम्॥
प्रथम अव्यक्त वर्ग के चतुर्गुणित रूप या गुणांक (4a) से दोनों पक्षों के गुणाँकों को गुणित करके द्वितीय अव्यक्त गुणाँक (b) के वर्गतुल्य रूप दोनों पक्षों में जोड़ें। पुनः द्वितीय पक्ष का वर्गमूल प्राप्त करें।[श्रीधराचार्य, भास्करीय बीजगणित, अव्यक्त-वर्गादि-समीकरण, पृ. 221]
TRIGONOMETRY त्रिकोणमिति :: 
मखि भखि फखि धखि णखि ञखि ङखि हस्झ स्ककि किष्ग श्घकि किघ्व।
घ्लकि किग्र हक्य धकि किच स्ग झश ङ्व क्ल प्त फ छ कला-अर्ध-ज्यास्॥[ज्या सारणी-आर्यभट]
श्रेष्ठं नाम वरिष्ठानां हिमाद्रिर्वेदभावनः। 
तपनो भानुसूक्तज्ञो मध्यमं विद्धि दोहनं
धिगाज्यो नाशनं कष्टं छत्रभोगाशयाम्बिका। 
म्रिगाहारो नरेशोऽयं वीरोरनजयोत्सुकः
मूलं विशुद्धं नालस्य गानेषु विरला नराः। 
अशुद्धिगुप्ताचोरश्रीः शंकुकर्णो नगेश्वरः
तनुजो गर्भजो मित्रं श्रीमानत्र सुखी सखे। 
शशी रात्रौ हिमाहारो वेगल्पः पथि सिन्धुरः
छायालयो गजो नीलो निर्मलो नास्ति सत्कुले। 
रात्रौ दर्पणमभ्राङ्गं नागस्तुङ्गनखो बली
धीरो युवा कथालोलः पूज्यो नारीजरैर्भगः। 
कन्यागारे नागवल्ली देवो विश्वस्थली भृगुः
तत्परादिकलान्तास्तु महाज्या माधवोदिताः। 
स्वस्वपूर्वविशुद्धे तु शिष्टास्तत्खण्डमौर्विकाः
[ज्या सारणी-माधव 2.9.5] 
SCIENTISTS & PHILOSOPHERS ON HINDUISM :: 
HENRY DAVID THOREAU :: One of the most influential American Philosopher writer and Social Critic said about Gita:: “In the morning I bathe my intellect in the stupendous and cosmological philosophy of the Bhagwad Gita, since whose composition years of the Gods have elapsed and in comparison with which our modern world and its literature seem puny and trivial and I doubt if that philosophy is not to be referred to a previous state of existence, so remote is its sublimity from our conceptions. I lay down the book and go to my well for water and lo! There I meet the servant of the Brahmn, priest of Brahma, Vishnu and Indr, who still sits in his temple on the River Ganga reading the Veds, or dwells at the root of a tree with his crust and water-jug. I meet his servant come to draw water for his master and our buckets as it were grate together in the same well. The pure Walden water is mingled with the sacred water of the Ganga.”
ARTHUR SCHOPENHAUER :: This philosopher and writer said about Vedant that “There is no religion or philosophy so sublime and elevating as Vedanta.” He was the first Western Scholar who accessed the rich philosophical material from India, both Vedic as well as Buddhist.
MARK TWAIN :: Mark Twain the most celebrated American writer said “Land of religions, cradle of human race, birthplace of human speech, grandmother of legend, great grandmother of tradition. The land that all men desire to see and having seen once even by a glimpse, would not give that glimpse for the shows of the rest of the globe combined.”
ALDO'S HUXLEY ::  English novelist said about Gita that “The Bhagwad-Gita is the most systematic statement of spiritual evolution of endowing value to mankind. The Gita is one of the clearest and most comprehensive summaries of the spiritual thoughts ever to have been made.”
JULIUS ROBERT OPPENHEIMER :: Scientist, philosopher, bohemian, and radical. A theoretical  physicist and the Supervising Scientist for the Manhattan Project, the developer of the atomic bomb said about Gita that “the most beautiful philosophical song existing in any known tongue.”
ALIEN DANIELOU :: ”The Hindu lives in eternity. He is profoundly aware of the relativity of space and time and of the illusory nature of the apparent world.” Hinduism is a religion without dogmas. Since its origin, Hindu society has been built on rational bases by sages who sought to comprehend man’s nature and role in creation as a whole. 
ERWIN SCHRODINGER :: Austrian theoretical physicist, was a professor at several universities in Europe. He was awarded the Nobel prize Quantum Mechanics, in 1933. Schrodinger wrote in his book Maine Welterweight “This life of yours which you are living is not merely apiece of this entire existence, but in a certain sense the whole; only this whole is not so constituted that it can be surveyed in one single glance. This, as we know, is what the Brahmns express in that sacred, mystic formula which is yet really so simple and so clear; Tat Tvam Asi, this is you. Or, again, in such words as “I am in the east and the west, I am above and below, I am this entire world.
DR. CARL SAGAN :: Famous astrophysicist, in his book, Cosmos says: “The Hindu religion is the only one of the world’s great faiths dedicated to the idea that the Cosmos itself undergoes an immense, indeed an infinite, number of deaths and rebirths.
WARNER KARL HEISENBERG :: German theoretical physicist was one of the leading scientists of the 20th century. He said that “the startling parallelism between today’s physics and the world-vision of eastern mysticism remarks, the increasing contribution of eastern scientists from India, China and Japan, among others, reinforces this conjunction.
290 million year old footprint Ancient CodeMILLION YEAR OLD HUMAN FOOT PRINT :: The Hindu believes that the life existed over the earth for trillions & trillions of years. 
Here is just one case to prove that.This is no ordinary footprint. It resembles a modern-day human foot, but this is fossilised and embedded into a stone that researchers believe is at around 290 million years old. The discovery was made in New Mexico by palaeontologist Jerry MacDonald in 1987. 
Goliath1
Gigantic foot
print millions
of years old,
located in Africa.
In the vicinity of this mysterious footprint there are fossilised impressions of birds and other animals. The discovery of the human impression has left MacDonald particularly puzzled and not he or anyone who has seen and studied the impression has not been able to explain how this modern footprint could have been located in the Permian strata, which according to scholars dates from 290 to 248 million years, a time period which occurred long before man or even birds and dinosaurs existed on this planet, of course, that is according to modern science and scientific thinking. Hindu believes that the life existed over the earth for trillions & trillions of years.
नू चित्सहोजा अमृतो नि तुन्दते होता यद्दूतो अभवद्विवस्वतः।
वि साधिष्ठेभिः पथिभी रजो मम आ देवताता हविषा विवासति
बड़े बल से उत्पन्न और अमर अग्नि, व्यथा दान या ज्वलन में समर्थवान हैं। जिस समय देवाह्वानकारी अग्निदेव यजमान के हव्य वाहन दूत हुए, उस समय समीचीन पथ द्वारा जाकर उन्होंने अन्तरिक्ष का निर्माण किया अथवा वहाँ प्रकाश किया। अग्निदेव यज्ञ में हव्य द्वारा देवों की परिचर्या करते हैं।[ऋग्वेद 1.58.1]
शक्ति से रचित अविनाशी अग्नि कभी भी संताप देने वाली नहीं है। वह यजमान के दूत एवं होता नियुक्त हुए। उन्होंने ही अंतरिक्ष को प्रकटाया तथा वे ही अनुष्ठान में हृव्य द्वारा देवी की सेवा करते हैं।
Immortal Agni was created with great power-force (energy, present all around), capable of destroying every thing and burning. As an agent of demigods-deities Agni Dev became the acceptor of the offering made by the hosts performing Yagy,  generated the space-sky and illuminated it. He serve the demigods, deities, the Almighty during the Yagy.
Energy can be converted to mass and plasma. Fire :- heat & light are two forms of energy. 
आ स्वमद्म युवमानो अजरस्तृष्वविष्यन्नतसेषु तिष्ठति। 
अत्यो न पृष्ठं प्रषितस्य रोचते दिवो न सानु स्तनयन्नचिक्रदत्
अजर अग्नि तृण गुल्म आदि अपने खाद्य को ज्वलन शक्ति द्वारा मिलाकर और भक्षण कर तत्काल काठ के ऊपर चढ़ गये। दहन करने के लिए इधर-उधर जाने वाली अग्नि की पृष्ठ देश स्थित ज्वाला गमनशील घोड़े की तरह शोभा पाती हैं। साथ ही देश स्थित ज्वाला गमनशील घोड़े की तरह शोभा पाती है। साथ ही साथ आकाश के उन्नत और शब्दायमान मेघ की तरह शब्द भी करती है।[ऋग्वेद 1.58.2]
जरा रहित अग्नि हवियों को एकत्र कर खाते हुए काष्ठ पर चढ़े। इनकी घृत से चिकनी पीठ घोड़े के समान दमकती है। इन्होंने आकाशस्थ बादलों की गर्जना के समान शब्दों वाली ज्वाला को प्रकट किया।
Immortal Agni ate the shrubs, plants etc. and digested the eatables riding the wood. Its back started shinning like a moving horse when it moved from one place to another for burning. It roared like the thunderous clouds in the sky rising too high.
Electricity-electric spark produces sound and light. Lightening is associated with dazzling light and thunderous noise.
क्राणा रुद्रेभिर्वसुभिः पुरोहितो होता निषत्तो रयिषाळमर्त्य:। 
रथो न विक्ष्वृञ्जसान आयुषु व्यानुषग्वार्या देव ऋण्वति
अग्निदेव हव्य का वहन करते हैं और रुद्रों तथा वसुओं के सम्मुख स्थान पाए हुए हैं। अग्रिदेव देवाहानकारी और यज्ञ-स्थानों में उपस्थित रहते हैं। वह धन जयी और अमर हैं। दीप्तिमान् अग्निदेव याजकों की स्तुति लाभ करके और रथ की तरह चल करके प्रजाओं के घर में बार-बार वरणीय या श्रेष्ठ धन प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 1.58.3]
अमर अग्नि रुद्रों और वसुओं के सम्मुख स्थान पाते हुए और अनुष्ठान स्थल में उपस्थित रहते हैं। दीप्ति परिपूर्ण अग्नि यजमानों की वंदनाओं को सुनकर कर खाते हुए काष्ठ पर चढ़े हैं।
Immortal Agni Dev is found close to the Rudr & Vasu. Agni Dev is present in all places where the God is worshipped including the Yagy. He comes to the house of the devotees again & again granting them riches-wealth they need.
Fire is produced when two pieces of wood are rubbed together. Water has hydrogen & oxygen. Hydrogen burns & the oxygen helps it in burning.
वि वातजूतो अतसेषु तिष्ठते वृथा जुहूभिः सृण्या तुविष्वणिः।
तृषु यदग्ने वनिनो वृषायसे कृष्णं त एम रुशदूर्में अजर
हे अग्निदेव! वायु द्वारा प्रेरित होकर, महाशब्द, ज्वलन्त जिह्वा और तेज के साथ, अनायास पेड़ों को दग्ध कर देते हैं। हे अग्निदेव! जिस समय आप वन्य वृक्षों को शीघ्र जलाने के लिए साँड़ की तरह व्यग्र होते ही, हे दीप्त-ज्वाल अजर अग्निदेव! आपका जाने का मार्ग काला हो जाता है।[ऋग्वेद 1.58.4]
हे अग्ने! पवन के योग से अधिक शब्दवान हुए। तुम दुरांत के समान जिह्वाओं से काष्ठों को प्राप्त होते हो। तुम जरा रहित दीप्तिमान, ज्वालाओं से युक्त, जंगल और वृक्षों के समान आचरण करते हो। तुम्हारा मार्ग श्यामवर्ण का हो जाता है।
Hey Agni Dev! Associated with Vayu (Pawan, air, wind) you burn the trees (jungles, forests) producing dazzling light and loud sound. When you become furious like a bull, your path becomes dark with smoke.
Oxygen a basic ingredient for burning is present in air (21%). However, metals, rocks too burn at a very temperature in the absence of air-here plasmic state is reached, when all elements break down into ionic form-state. The temperature rises to millions of degrees centigrade. This is how energy is produced in the stars-Sun.
Nuclear explosions-blasts, atom bomb, hydrogen bomb, neutron bomb are some of the forms of Agni-fire.
ईशानकृतो धुनयो रिशादसो वातान्विद्युतस्तविषीभिरक्रत। 
दुहन्त्यूधर्दिव्यानि धूतयो भूमिं पिन्यन्ति पयसा परिज्रयः॥5॥
यजमानों को सम्पत्तिशाली, मेघादि को कम्पित और हिंसक को विनष्ट करके अपने बल द्वारा मरुतों ने वायु और विद्युत् का निर्माण किया। इसके अनन्तर चारों दिशाओं में जाकर एवं सबकी कम्पित करे द्युलोक के मेध का दोहन किया और जल से भूमि को सिंचित किया। [ऋग्वेद 1.64.5]
समृद्धि दाता शत्रु को भयग्रस्त करके भक्षण करने वाले मरुतों ने अपनी शक्ति से पवन और विद्युत को प्रकट किया। सब जगह विचरणशील वे क्षितिजस्थ बादल को दुहकर पृथ्वी को सींचते हैं। 
Marud Gan grant riches to the worshipers. They agitate the clouds and produce air & electricity. They move in all directions, tremble-agitate and extract the clouds to shower rains over the earth to irrigate it.
Clouds rub each other and produce opposite charges :- positive (positron) & negative (electron). The flow of these charges constitute electricity. More than 50 sub atomic particles have been discovered by the scientists so far.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (79) :: ऋषि :- गोतमो राहूगण, देवता :- अग्नि,  छन्द :- त्रिष्टुप्, उष्णिक् :- गायत्री। 
हिरण्यकेशो रजसो विसारेऽहिर्धुनिर्वातइव ध्रजीमान्।
शुचिभ्राजा उषसो यशस्वतीरपस्युवो न सत्याः
सुवर्ण केशवाले अग्निदेव हननशील मेघ को कम्पित करते और वायु की तरह शीघ्र गामी हैं। वे सुन्दर दीप्ति से युक्त होकर मेघ से जलवर्षण करना जानते हैं। उषा देवी यह बात नहीं जानतीं। उषा अन्नशाली, सरल और निज कार्य परायण प्रजा के तुल्य हैं।[ऋग्वेद 1.79.1]
अग्नि क्षितिज के तुल्य, विशाल व लहराते हुए साँप के तुल्य स्वर्णिम बालों वाले, उम्र के तुल्य वेग वाले, उत्तम दीप्ति परिपूर्ण तथा उषा के ज्ञाता हैं। वे दायित्व में विद्यमान यशस्विनी स्त्री के तुल्य शोभित हैं।
Agni Dev who has golden coloured hair, shake the clouds and moves with the speed of air. He knows how to cause rains. Usha Devi is unaware of this fact. Usha Devi is like a simple woman, devoted to the welfare of populace, who grants food grains.
आ ते सुपर्णा अमिनन्तँ एवैः कृष्णो नोनाव वृषभो यदीदम्। 
शिवाभिर्न स्मयमानाभिरागात्पतन्ति मिहः स्तनयन्त्यभ्रा
हे अग्निदेव! आपकी और पतनशील किरण मरुतों के साथ मेघ को ताड़ित करती हैं। कृष्णवर्ण और वर्षणशील मेघ गरजते हैं। मेघ सुखकर और हास्य युक्त वृष्टि बिन्दु के साथ आते हैं। जल गिर रहा है और मेघ गरज रहे हैं।[ऋग्वेद 1.79.2]
हे अग्ने! काले बादल रूप वाले वृषभ के गर्जन के समान पंखयुक्त तुम्हारी दामिनी दमककर लुप्त हो गई, तब कल्याणकारी वृष्टि हँसती हुई सी बरसाने लगी और बादलों में तुम गर्जना करने लगे।
Hey Agni Dev! The rays of light falling over you, strike the clouds along with the Marud Gan. Dark & Silver coloured clouds roar and come with rain drops bearing happiness-amusment. Rains fall & the clouds roar-thunderclap.
यदीमृतस्य पयसा पियानो नयन्नृतस्य पथिभी रजिष्ठैः। 
अर्यमा मित्रो वरुणः परिज्म त्वचं पृञ्चन्त्युपरस्य योनौ
जिस समय अग्निदेव वृष्टि जल द्वारा संसार को पुष्ट करते हैं तथा जल के व्यवहार का सरल उपाय दिखा देते हैं, उस समय अर्यमा, मित्र, वरुण और समस्त दिग्गामी मरुद्गण मेघों जलोत्पत्ति स्थान का आच्छादन उद्घाटित कर देते हैं।[ऋग्वेद 1.79.3]
अनुष्ठान के हव्य से वृद्धि को ग्रहण अग्नि आसान रास्ते से देवगणों को अनुष्ठान में पहुँचाते हैं। तब अर्यमा, वरुण और मरुत दिशाओं में बादलों को संगठित करते हैं।
Agni Dev shows the simple method-way of having rains when he nourish the world with the rain water. At that moment Aryma, Mitr, Varun and all the Marud Gan who move through all the directions show the place of the formation of clouds. 
अग्ने वाजस्य गोमत ईशानः सहसो यहो। 
अस्मे धेहि जातवेदो महि श्रवः
हे बल पुत्र अग्निदेव! आप प्रभूत गो युक्त अन्न के स्वामी हैं। हे सर्वभूतज्ञाता! हमें आप बहुत धन-समृद्धि प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.79.4]
हे शक्ति के पुत्र अग्ने! सब उत्पन्न जीवों के ज्ञाता तुम गवादि धन के दाता हमको अत्यन्त प्रतापी बनाओ।
Hey Agni, the son of Shakti! You are the master of all wealth, cows & the food grains. Aware of all past; hey Agni, grant us enough wealth.
स इधानो वसुष्कविरग्रिरीळेन्यो गिरा। 
रेवदस्मभ्यं पुर्वणीक दीदिहि
दीप्ति युक्त, निवास स्थान दाता और मेधावी अग्निदेव स्तोत्रों द्वारा प्रशंसनीय हैं। हे बहुमुख अग्नि देव! जिस प्रकार हमारे पास धनयुक्त अन्न है, उसी प्रकार दीप्ति प्रकाशित करें।[ऋग्वेद 1.79.5]
वह प्रकाशवान, धनों के परमात्मा, मेधावी अग्नि सर्वश्रेष्ठ वाणियों से वंदना ग्रहण करते हैं। हे बहुकर्मा! तुम धनों से परिपूर्ण हुए दीप्तिमान होओ।
Agni Dev is honoured-appreciated with the help of sagacious-brilliant hymns-Strotr. You have given us place to live, which is lit, full of light. The way you blessed us with wealth, similarly you enlighten us.
It shows that fire is one of the significant factors in the production of clouds and their movement. The jungle fires thus lead to rains at one or the other place. Similarly Agni Hotr, Hawans too lead to rains; following specific procedure, Mantr.
प्र यद्रथेषु पृषतीरयुग्ध्वं वाजे अद्रिं मरुतो रंहयन्तः। 
उतारुषस्य वि ष्यन्ति धाराश्चर्मेवोदभिर्व्युन्दन्ति भूम॥
अन्न के लिए मेघ को वर्षणार्थ प्रेरण करके बिन्दु चह्नित मृग का रथ में योजित करें। उस समय उज्ज्वल सूर्य के पास से जल की धारा छूटती है और जल से सारी भूमि भीग जाती है।[ऋग्वेद 1.85.5]
जब तुम संग्राम में वज्र प्रेरित करते हुए बुंदकियो वाले हिरन को रथ में जोड़कर सूर्य के पास जल प्रेरित हो, तब वह गिरती हुई वर्षा पृथ्वी को पूर्णतः आर्द्र कर देती है।
They deploy the spotted deer in their chariot and inspire the clouds to rain for the production of food grains. At this moment a big stream of water is released from the Sun and the earth becomes wet.
The process of rains is cyclic in nature. Water evaporated and is broken down into Hydrogen & Oxygen. They further break into plasmic state and these particles moves to the Sun where, Hydrogen works as fuel, converted into Helium. Under very high temperature every thing breaks down into plasma, generating tremendous energy. These particles rejoin and start flowing towards earth as water ions, later turning into rains with the help of air-Marud Gan.
निश्चर्मणो गामरिणीत घीतिभिर्या जरन्ता युवशा ताकृणोतन। 
सौधन्वना अश्वादश्वमतक्षत युक्त्वा रथमुप देवाँ अयातन
हे सुधन्वा के पुत्रों! आपने आश्चर्यजनक कौशल से मृत गाय के शरीर का चमड़ा लेकर उससे गौ उत्पन्न को, जो पिता-माता वृद्ध थे, उन्हें फिर युवा बना दिया और एक अश्व से अन्य अश्व उत्पन्न किये, इसलिए रथ तैयार करके देवों के सामने जावें।[ऋग्वेद 1.161.7]
हे सुधन्वा पुत्रो! तुमने अपने कर्मों से चर्म द्वारा धेनु को दोबारा जीवन प्रदान किया तुमने वृद्ध माता-पिता को युवावस्था प्रदान की। तुमने अश्वों से अश्व उत्पन्न किये और रथ को जोड़कर देवगणों के सम्मुख उपस्थित हुए है।
Hey the sons of Sudhanva! You amazingly produced a cow from the dead cow's skin, using wonderful skills-expertise. Made the aging- old parents young and produced several horses from one horse. Deploy the chariote and go to the demigods-deities. 
DNA-body cells can be used to reproduce the identical species-twins. The cells from the dead remains can also be used to produce new-identical beings. There are several examples in the scriptures like that of King Ven & Prathu.
कङ्कतो न कङ्कतोऽथो सतीनकङ्कतः। 
द्वाविति प्लुषी इति न्यदृष्टा अलिप्सत
कम विष वाले अधिक विष वाले, जलीय कम विष वाले दो प्रकार के जलचर और स्थलचर जलाने वाले प्राणी और अदृश्य प्राणी मुझे विष द्वारा अच्छी तरह लिप्त किए हुए हैं।[ऋग्वेद 1.191.1]
जहरीले और जहर पृथक, जल में वास करने वाले अल्पविष परिपूर्ण दोनों प्रकार के जलचर और थलचर जलन पैदा करने वाले प्रत्यक्ष और अदृश्य जीव विषय द्वारा घेरे हुए हैं।
I have been surrounded by the poisonous creatures. Some of them have little and some has more poison in them.  Water born and those living on land visible and invisible living beings too have contaminated me.
Virus, bacteria, fungus, pathogens, microbes are present all around us and are generally microscopic & invisible. They are present in air and water well. Cow is a carrier of platyhelminths. Other than these, flat worm, ring worm are quite common. Pig contains ascaris. Bird flue is quite common. Still majority of the populace eat meat. Corona too has come to humans from bats. Aids virus came to humans from the anus of the monkey. Malaria-dengue comes from mosquitoes. Bed bug hides in the sofa set, beds etc. Lice reside in the hair.
I live in Noida and its very unfortunate that Noida, Ghaziabad and Delhi are in the highest polluting cities in the world. The smog, air contain harmful dust & antigens. The water supplied too is very filthy. It led to acquiring cancer by me. 
उत्पुरस्तात्सूर्य एति विश्वदृष्टो अदृष्टहा। 
अदृष्टान्त्सर्वाञ्जम्भयन्त्सर्वाश्च यातुधान्यः
पूर्व दिशा में सूर्यदेव उदित होते हैं, वे समस्त संसार को देखते और अदृष्ट विषधरों का विनाश करते हैं। वे सभी अदृष्टों और राक्षसी वा महोरगी का विनाश करते हैं।[ऋग्वेद 1.191.8]
सबके सामने प्रयत्न, अदृष्ट जीवों को भी दिखाने वाले, अदृश्य विषधरों और दानव, वृत्ति वाले हिंसक पशुओं को विनाश करने वाले सूर्य पूर्व से उदित होते हो।
The Sun rises in the east and kill all sorts of invisible harmful creatures-organism. He kills the demonic and the canine animals as well.
Sun light is essential in homes and offices in addition to cross ventilation.
उदपप्तदसौ सूर्यः पुरु विश्वानि जूर्वन्। 
आदित्यः पर्वतेभ्यो विश्वदृष्टो अदृष्टहा
सूर्य देव बड़ी संख्या में विषों का विनाश करते हुए उदित होते हैं। सर्वदर्शी और अदृश्यों के विनाशक सूर्यदेव जीवों के मंगल के लिए उदित होते हैं।[ऋग्वेद 1.191.9]
सभी विश्व द्वारा देखे जाने वाले, अदृष्ट प्राणियों के नाशक अदिति पुत्र सूर्य अनेक प्रकार से सभी विषों का विनाश करने के लिए, शैल से भी ऊँचे उठे हुए हैं।
With the Sun rise majority of harmful-poisonous microscopic organisms are destroyed-killed. Sun rises for the welfare of all living beings. 
Ultra violet and infra red rays are capable of killing all sorts of microbes, antigens.
त्रिः सप्त विष्णुलिङ्गका विषस्य पुष्पमक्षन्। ताश्चिन्नु न मरन्ति नो वयं मरामार अस्य योजनं हरिष्ठा मधु त्वा मधुला चकार
अग्निदेव की सातों जिह्वाओं में से प्रत्येक में श्वेत, लोहित और कृष्णादि तीन वर्ण अथवा इक्कीस प्रकार के पक्षी विष की पुष्टि का विनाश करते हैं। वे कभी नहीं मरते, उसी प्रकार हम भी प्राण त्याग नहीं करते। अश्व द्वारा परिचालित होकर सूर्य देव दूर स्थित विष का हरण करते हैं और मधुला विद्या इस विष को अमृत में परिणत कर देती है।[ऋग्वेद 1.191.12]
अग्नि ने इक्कीस प्रकार के विषों को बल का भक्षण कर लिया। उसकी ज्वालाएँ अमर हैं। हम भी नहीं मर सकते। अश्वारूढ़ सूर्य ने दूरस्थ विष को भी नष्ट कर दिया और विष को मधुरता प्रदान की।
The seven flames of fire-Agni are capable of killing 21 types of poisons present in the birds (germs, virus, bacteria, fungus etc.) The birds carries them without being killed and we too will survive. Madhula Vidya converts these poisons into nectar.
Each and every century finds the out break of epidemic, which kills millions of people. There is mention of Corona in the Shastr. Pure vegetarians can easily survive the onslaught of it. Please refer to :: CORONA-DEADLY CHINES VIRUS over my blog ::  bhartiyshiksha.blogspot.com
नवानां नवतीनां विषस्य रोपुषीणाम्। 
सर्वासामग्रभं नामारे अस्य योजनं हरिष्ठा मधु त्वा मधुला चकार 
मैं सभी विषनाशक निन्यानबे नदियों के नामों का कीर्तन करता हूँ। अश्व द्वारा चालित होकर सूर्यदेव दूर स्थित विष का निवारण करते हैं और मधुला विद्या इस विष को अमृत में परिणत कर देती है।[ऋग्वेद 1.191.13]
मैंने विष नाशक निन्यानवें क्रियाओं को जान लिया है। रथ पर सवार सूर्य दूर से भी विष को अमृत में बदल देते हैं, 
I recite the names of  all 99 rivers which are capable of killing germs microbes etc. Driven by the horses Sury Dev-the Sun removes these poisons and the Madhula Vidya converts these poisons into nectar.
Maa Ganga is well knows for containing anti microbes properties. In fact a large number of rivers flowing from the mountains acquires the property of germicide due to the assimilation of vital herbs in them. Rivers flowing from the mountains possessing Sulphur too acquire such properties.

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संतोष महादेव-धर्म विद्या सिद्ध व्यास पीठ (बी ब्लाक, सैक्टर 19, नौयडा)