Monday, March 21, 2022

RIG VED (SHLOK 2.1-43) ऋग्वेद

RIG VED (2) ऋग्वेद
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
By :: Pt. Santosh Bhardwaj
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ॐ गं गणपतये नम:।
अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।
निराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि
[श्रीमद्भगवद्गीता 2.47]
ऋग्वेद संहिता, द्वितीय मण्डल सूक्त (1) :: ऋषि :- गृत्स्मद, देवता :-अग्नि, छन्द :- जगती।
त्वमग्ने द्युभिस्त्वमाशुशुक्षणिस्त्वमद्भयस्त्वमश्मनस्परि। 
त्वं वनेभ्यस्त्वमोषधीभ्यस्त्वं नृणां नृपते जायसे शुचिः
हे मनुष्यों के स्वामी अग्निदेव के दिन में आप उत्पन्न होवें। सभी जगह दीप्तिशाली होकर उत्पन्न होवें। पवित्र होकर उत्पन्न होते। जल से उत्पन्न होवें। पाषाण से उत्पन्न होवें। वन से उत्पन्न होवें। औषधि से उत्पन्न होवें।[ऋग्वेद 2.1.1]
हे अग्ने! तुम यज्ञ समय में प्रकट होकर ज्योति से परिपूर्ण और शुद्ध होओ। तुम जल, पाषाण, वन, और औषधि में हर्षित रहते हो।   
Hey master of humans Agni Dev! You should appear-ignite during the day. You should be bright-brilliant every where. You should appear out of water, rocks, forests & medicines.
तवाने होत्रं तव पोत्रमृत्वियं तव नेष्ट्रं  त्वमग्नितायतः। 
तव प्रशास्त्रं त्वमध्वरीयसि ब्रह्मा चासि गृहपतिश्च नो दमे
हे अग्निदेव! होता, पोता, ऋत्विक् और नेष्टा आदि का कार्य आपका ही कर्म है। आप अग्रीध्र हैं। जिस समय आप यज्ञ की इच्छा करते हैं, उस समय प्रशास्ता का कर्म भी आपका हो है। आपही अध्वर्यु और ब्रह्मा नाम के ऋषि हैं। हमारे घर में आप ही गृहपति है।[ऋग्वेद 2.1.2]
नेष्टा :: सोम यज्ञ में प्रधान ऋत्विकों में से एक ऋत्विक् जो कि क्रम में 16 वें ऋत्विक् हैं, त्वष्टा देवता।
हे अग्ने! होता आदि कर्म तुम्हारा ही है। अनुष्ठान की इच्छा करने पर अध्वर्यु और ब्रह्मा भी तुम्हीं हो। हमारे घरों के तुम्हीं पोषक हो।
Hey Agni Dev! Its you who performs the duties of Hota-Yagy performer, Pota-grandson, Ritviz and the chief priest. You are the first deity in the Yagy. When you decide to conduct Yagy you perform all duties of the host. You are the Adharvaryu and Brahma Rishis. You are the leader in our home-family.
त्वमग्न इन्द्रो वृषभः सतामसि त्वं विष्णुरुरुगायो नमस्यः। 
त्वं ब्रह्मा रयिविद् ब्रह्मणस्यते त्वं विधर्तः सचसे पुरंध्या
हे अग्निदेव! आप साधुओं का मनोरथ पूर्ण करते हैं, इसलिए आप विष्णु हैं, आप बहुतों के स्तुति पात्र हैं; आप नमस्कार के योग्य हैं। धनवान् स्तुति के अधिपति, आप मन्त्रों के स्वामी है, आप विविध पदार्थों की सृष्टि करते और विभिन्न बुद्धियों में रहते हैं।[ऋग्वेद 2.1.3]
हे अग्ने! तुम सज्जनों की मनोकामना पूर्ण करने वाले एवं अनेकों द्वारा पूजनीय हो। तुम विष्णु रूप, वंदनाओं के स्वामी तथा अघीश्वर एवं बुद्धि प्रेरणा में समर्थवान हो।
Hey Agni Dev! You accomplish the desires of the saints-sages, hence you are a form of Bhagwan Shree Hari Vishnu. You are the lord of several people for worship and deserve to be saluted. You are the lord of the great prayers (Strotr) and the lord of Mantr as well. You create various commodities and reside in the intelligence-brain, mind.
त्वमग्ने राजा वरुणो धृतव्रतस्त्वं मित्रो भवसि दस्म ईड्यः।
त्वमर्यमा सत्पतिर्यस्य संभुजं त्वमंशो विदथे देव भाजयुः
हे अग्नि देव! आप धृतव्रत हैं; इसलिए आप राजा वरुण हैं। आप शत्रुओं के विनाशक और स्तुति योग्य हैं, इसलिए आप भिन्न हैं। आप साधुओं के रक्षक हैं, इसलिए आप अर्यमा हैं। अर्यमा का दान सर्वव्यापी है। आप सूर्य अंश है। हे अग्निदेव! आप हमारे यज्ञ में फल दान करें।[ऋग्वेद 2.1.4] 
धृतव्रत :: जिसने कोई व्रत धारण किया हो, धार्मिक क्रिया करने वाला, निष्ठाशील, जिसकी निष्ठा द्दढ़ हो, पुरुवेशीय जयद्रथ के पुत्र विजय का पौत्र।
अर्यमा :: पितरों का एक गण या वर्ग, अर्यमा को सर्वश्रेष्ठ पितृ माना जाता है।
हे अग्ने! तुम नियमों में दृढ़ वरुण स्वरूप हो। तुम शत्रुओं को मारने वाले, साधकों के पालक हो। तुम्हीं अर्थमारूप से व्यापक दान के दाता हो। तुम ही सूर्य हो। हमारे हवन में अभीष्ट फल प्रदान करो।
Hey Agni Dev! You are firm and determined. You are a destroyer and deserve worship. You are a protector of the sages and saints, hence you are like Aryma-the best amongest the Manes-Pitr. Donations-offerings made for the sake of Aryma are ever lasting. You are a component of the Sun. Hey Agni Dev! Grant us the reward of the Yagy. 
त्वमग्ने त्वष्टा विधते सुवीर्यं तव ग्नावो मित्रमहः सजात्यम्। 
त्वमाशुहेमा ररिषे स्वश्वयं त्वं नरां शर्धो असि पुरूवसुः
हे अग्नि देव! आप त्वष्टा हैं। आप अपने सेवक के वीर्य रूप हैं। सारी स्तुतियाँ आपकी ही हैं। आपका तेज हितकारी है। आप हमारे मित्र हैं। आप शीघ्र उत्साहित करते हैं और हमें उत्तम अश्व युक्त धन प्रदान करते आपके पास बहुत है। आप मनुष्यों के बल है।[ऋग्वेद 2.1.5] 
हे अग्ने! तुम तपस्वी के पुरुषार्थ रूप, वंदनाओं के स्वामी और त्वष्टा हो। तुम सखा भाव से परिपूर्ण शिक्षाप्रद एवं तेजवान हो। तुम अत्यन्त धनी और शक्ति के स्वरूप हो। महान अश्व परिपूर्ण धनों को प्रदान करने वाले हो।
Hey Agni Dev! You are Twasta. You are like the sperm-energy of your servants. All prayers are meant for you. Your warmth is beneficial to us and you are our friend. You encourage us quickly and provide us riches along with horses. You are the strength of the humans.
त्वमग्ने रुद्रो असुरो महो दिवस्त्वं शर्धो मारुत पृक्ष ईशिषे। 
त्वं वातैररुणैर्यासि शंगयस्त्वं पूषा विधतः पासि नु त्मना
हे अग्नि देव! आप महान् आकाश के असुर रुद्र है। आप मरुतों के बल स्वरूप हैं। आप अन्न के ईश्वर है। आप सुख के आधार स्वरूप है। लोहित वर्ण और वायु के समान अश्व पर जाते हैं। आप पूषा हैं, आप स्वयं कृपा करके परिचालक मनुष्यों की रक्षा करते हैं।[ऋग्वेद 2.1.6]
कृपा :: अनुग्रह, दया, दयालुता, रहम, रहमत, तरस, सदयता; courtesy, mercy, graciousness, compassion.
दया, तरस, सहानुभूति, कृपा, कस्र्णा, क्षमाहे अग्नि देव! तुम उग्रकर्मा रुद्र एवं मरुद्गण की शक्ति स्वरूप हो। तुम अन्नों के दाता, सुख के आधार हो। रक्त वर्ण के घोड़े पर घूमने वाले हो तुम ही पूषा रूप से प्राणियों के हर प्रकार से रक्षक हो।
Hey Agni Dev! You are the furious Rudr in the sky. You are the strength of the Marud Gan. You are the God of all sorts of food grains. You ride the red coloured horses which runs like wind. You are Pusha-a demigod. You gracious to the humans and protect them.
 त्वमग्ने द्रविणोदा अरंकृते त्वं देवः सविता रत्नधा असि। 
त्वं भगो नृपते वस्व ईशिषे त्वं पायुर्दमे यस्तेऽविधत्
हे अग्नि देव! अलंकारकारी यजमान के लिए आप स्वर्गदाता है। आप प्रकाशमान सूर्य और रत्नों के आधार स्वरूप हैं। हे नृपति! आप भजनीय धनदाता हैं। यज्ञगृह में जो यजमान आपकी सेवा करता है, उसकी आप रक्षा करते हैं।[ऋग्वेद 2.1.7] 
हे अग्ने! तुम यजमान को दिव्य लोक दिलाते हो। तुम सूर्य रूप से प्रकाशित रत्न रूपी धनों के आधार एवं ऐश्वर्य के देने वाले हो। तुम अपने साधक यजमान के पालनकर्त्ता हो।
Hey Agni Dev! You help the Ritviz in attaining heavens. You are bright and basis-source of jewels. Hey master of the humans! You deserve to be prayed as an entity who grant riches-wealth the devotee. The performer of the Yagy is protected by you. 
त्वामग्ने दम आ विश्पतिं विशस्त्वां राजानं सुविदत्रमृञ्जते। 
त्वं विश्वानि स्वनीक पत्यसे त्वं सहस्त्राणि शता दश प्रति
हे अग्नि देव! लोग अपने-अपने घर में आपको प्राप्त करते और आपको विभूषित करते है। आप मनुष्यों के पालक, दीप्तिमान् और हमारे प्रति अनुग्रह सम्पन्न हैं। आपकी सेवा अत्युत्तम है। आप सारे हव्यों के ईश्वर हैं। आप हजारों, सैकड़ों और दसों फल देते हैं।[ऋग्वेद 2.1.8] 
हे अग्ने! तपस्वी तुम्हें गृहों में प्रज्वलित करते हैं। तुम रक्षक, प्रकाशवान और अनुग्रह मति वाले हो। तुम हवि स्वामी अनेक फलों के प्रदान करने वाले हो।
Hey Agni Dev! The devotees pray-worship you in their homes. You are brilliant, the nurturer-supporter of the humans  and ready to support them. The out come of your service is excellent. You are the master of offerings (accept them and carries them to the demigods-deities). You grant rewards in thousands, hundreds and tens.  
त्वामग्ने पितरमिष्टिभिर्नरस्त्वां भ्रात्राय शम्या तनूरुचम्। 
त्वं पुत्रो भवसि यस्तेऽविधत्त्वं सखा सुशेव: पास्याधृषः
हे अग्निदेव! यश द्वारा लोग आपको तृप्त करते हैं, क्योंकि आप पिता है। आपका भ्रातृत्व करने के लिए लोग कर्म द्वारा आपको तृप्त करते हैं। आप भी उनका शरीर प्रदीप्त कर है। जो आपकी सेवा करता है, आप उसके पुत्र है। आप सखा, शुभकर्ता और शत्रु निवारक होकर हमारी रक्षा करें।[ऋग्वेद 2.1.9]
हे अग्नि देव! अनुष्ठानों में पिता के समान तृप्त किये जाते हो। कार्यों द्वारा संतुष्ट करके मित्र बनाये जाते हो। तुम अपने सेवक के पुत्र रूप होते हुए उसे यशस्वी बनाते हो तुम हमारी सखा रूप से सुरक्षा करो।
Hey Agni dev! The devotees satisfy you with the help of regards-honour as a father. Devotees satisfy you with virtuous, pious, righteous deeds to attain you as a friend. You make their body aurous-glittering. You treat one who serves you, like a son. You should become our friend, beneficial and eliminate our enemies.
त्वम ऋभुराके नमस्यस्त्वं वाजस्य क्षुमतो राय ईशिषे। 
त्वं वि भास्यनु दक्षि दावने त्वं विशिक्षुरसि यज्ञमातनिः
हे अग्नि देव! आप ऋभु है। आप प्रत्यक्ष स्तुति योग्य है। आप सर्वत्र विश्रुत धन और अन्न के स्वामी है, आप अतीव उज्ज्वल हैं। अंधकार के विनाश के लिए आप धीरे-धीरे काष्ठ आदि का दहन करते हैं। आप भली भाँति यज्ञ का निर्वाह और उसके फल को विस्तारित करते हैं।[ऋग्वेद 2.1.10]
ऋभु :: बुद्धिमान, कौशलपूर्ण, शोधकर्ता, नवाचारी, शिल्पी, रथकार, गण देवता, देवों का अनुचर वर्ग, अर्ध देवता के रूप में कथित सुधन्वा के तीन पुत्र ऋभु, वाज और विभ्वन् जिनका बोध ज्येष्ठ ऋभु के नाम से होता है।
हे पावक! तुम ऋभु रूप से स्तुतियों के योग्य हो। तुम अन्न, धन के दाता एवं प्रकाशमय हो। तुम यज्ञ-निर्वाहक और उसके फल को बढ़ाने वाले हो।
Hey Agni Dev! You are intelligent and deserve worship, prayers. You are the master of all wealth spread all over the world. You are aurous-bright. You burn the wood slowly to lit-remove darkness. You conduct the Yagy properly and extend the rewards-out come of the Yagy. 
त्वमग्ने अदितिर्देव दाशुषे त्वं होत्रा भारती वर्धसे गिरा। 
त्वमिळा शतहिमासि दक्षसे त्वं वृत्रहा वसुपते सरस्वती
हे अग्नि देव! आप हव्यदाता के लिए अदिति है। आप होत्रा और भारती है। स्तुति द्वारा आप वृद्धि प्राप्त करते है। आप सौ वर्षों की भूमि है। आप दान में समर्थ है। हे धन पालक आप वृत्रहन्ता और सरस्वती है।[ऋग्वेद 2.1.11]
हे अग्ने! तुम अदिति रूप हो, होता और वाणी भी हो। प्रार्थनाओं द्वारा बढ़ाते हो। तुम्ही धनों की रक्षा करने वाले एवं वृत्र को मारने वाले हो।
Hey Agni Dev! You are Aditi for the host making offerings. You are a host and speech (voice, sound) as well. You grow-flourish by virtue of the prayers. You are like the land for cultivation for hundred years. You are the protector of wealth, slayer of Vratr and Saraswati as well.
त्वमग्ने सुभृत उत्तमं वयस्तव स्पार्हे वर्ण आ संदृशि श्रियः। 
त्वं वाजः प्रतरणो बृहन्नसि त्वं रविर्बहुलो विश्वतस्पृथुः
हे अग्नि देव! अच्छी तरह पुष्ट होने पर आप ही उत्तम अन्न है। आपके स्पृहणीय और उत्तम वर्ण में ऐश्वर्य रहता है। आप ही अन्न, त्राता, बृहत्, घन, बहुल और सर्वत्र विस्तीर्ण हैं।[ऋग्वेद 2.1.12]
हे अग्ने! तुम्हीं अन्न रूप एवं ऐश्वर्यवान हो। तुम दुःखों से उबारने वाले और अंतर्यामी हो।
Hey Agni Dev! On being nourished thoroughly, you become excellent kind of food grains. Your touch and the excellent colour possess all sorts amenities. You are protector, food grain, abundance granting of riches and pervade all around.
त्वामग्न आदित्यास आस्यत्वां जिह्वां शुचयश्चकिरे करें। 
त्वां रातिषाचो अध्वरेषु सश्चिरे त्वे देवा हविरदन्त्याहुतम्
हे अग्नि देव! आदित्यों ने आपको मुख दिया है। हे कवि! पवित्र देवताओं ने आपको जीभ दी। दान के समय एकत्र देवता यज्ञ में आपको ही आहुति रूप में दिया हुआ हव्य भक्षण करते हैं।[ऋग्वेद 2.1.13]
हे अग्ने! तुम आदित्यों के मुख एवं देवगणों के जीभ रूप हो। यज्ञों में अभीष्ट देने के लिए एकत्रित हुए देवगण तुम्हारी इच्छा करते हुए तुम्हें दी गई हवियाँ ग्रहण करते हैं।
Hey Agni Dev! The Adity Gan provided you mouth. Hey poet! The pious demigods-deities provided you tongue. The demigods-deities gathered at the Yagy, eat the offerings made in you.
त्वे अग्ने विश्वे अमृतासो अद्रुह आसा देवा हविरदन्त्याहुतम्। 
त्वया मर्तासः खदन्त आसुतिं त्वं गर्भो वीरुधां जज्ञिषे शुचिः
हे अग्नि देव! सारे अमर और दोष रहित देवगण आपके मुख में, आहुति रूप में प्रदत्त हवि का भक्षण करते हैं। मर्त्य गण भी आपके द्वारा अन्नादि का आस्वाद पाते हैं। आप लता आदि के गर्भ (उत्ताप) रूप हैं। पवित्र होकर आपने जन्म ग्रहण किया है।[ऋग्वेद 2.1.14]
हे पावक! समस्त अमरधर्मा देव तुम्हारे मुख में दी गई हवियाँ भक्षण करते हैं। मरणधर्मा वाले जीव तुम्हारे अन्न को ग्रहण करते हैं। तुम औषधि आदि के गर्भस्थ रूप हो।
Hey Fire! All pious-pure immortal demigods-deities eats the offerings made in you. The Marty Gan (All those who have died) too enjoy-taste the food grains etc. You have taken birth after becoming pure-pious. 
Agni Dev is the mouth of he demigods-deities. 
त्वं तान्त्सं च प्रति चासि मज्मनाग्रे सुजात प्र च देव रिच्यसे। 
पृक्षो यदत्र महिना वि ते भुवदनु द्यावापृथिवी रोदसी उभे
हे अग्निदेव! बल द्वारा आप प्रसिद्ध देवों के साथ मिलें और उनसे पृथक होवें। हे सुजात देव! आप उनसे बलिष्ठ बने, क्योंकि आपकी ही महिमा से यह यज्ञस्थित अन्न शब्दायमान द्यावा पृथ्वी के बीच व्याप्त होता है।[ऋग्वेद 2.1.15]
हे अग्ने! तुम देवताओं से मिलकर भी अलग रहते हो। तुम श्रेष्ठ प्रकार से उत्पन्न होकर बल स्वीकार करते हो। तुम्हारी महिमा से आसमान धरती के मध्य यज्ञ स्थित अग्नि देव व्याप्त होते हैं।
Hey Agni Dev! You meet the famous, dignified demigods-deities and then separate from them.  
DIGNIFIED :: महान आलीशान, ऊँचा; conceited, haughty, proud, pretentious, elevated, high, exalted, towering, tall, stately, posh, kingly, spacious, palatial. Hey pious! You should be mightier than them. Since, its your greatness-mercy that the food grain offered in the Yagy grow due to your blessings and pervades in the sky & the earth.
ये स्तोतृभ्यो गोअग्रामश्वपेशसमग्ने रातिमुपसृजन्ति सूरयः। 
अस्माञ्च तांश्च प्र हि नेषि वस्य आ बृहद्वदेम विदथे सुवीराः
हे अग्निदेव! जो मेधावी स्तोताओं को गौ और अश्व आदि दान करते हैं, उन्हें तथा हमें श्रेष्ठ स्थान में ले चलें। हम वीरों से युक्त होकर यज्ञ में विशाल मंत्र का उच्चारण करेंगे।[ऋग्वेद 2.1.16]
हे अग्निदेव! विद्वान तपस्वियों को गवाधि धन-दान वालों को महान निवास प्रदान करो। हम पराक्रमी संतान से परिपूर्ण हुए अनुष्ठान में महान वंदनायें करते हैं।
Hey Agni Dev! Take us and along with those who donated cows and horses to brilliant Strotas; to the excellent-best place. We will recite the large Mantr associated with the brave in the Yagy.
ऋग्वेद संहिता, द्वितीय मण्डल सूक्त (2) ::  ऋषि :- गृत्स्मद, देवता :-अग्नि,  छन्द :- जगती।
यज्ञेन वर्धत जातवेदसमग्निं यजध्वं हविषा तना गिरा। 
समिधानं सुप्रयसं स्वर्णरं द्युक्षं होतारं वृजनेषु धूर्षदम्
हे अग्नि देव! आप दीप्तिमान्, शोभन, अन्न युक्त, स्वर्गदाता, उद्दीप्त, होम-निष्पादक और बल प्रदाता हैं। उन सर्व भूतज्ञ अग्नि को यज्ञ द्वारा वर्द्धित करें और यज्ञ तथा विस्तृत स्तुति द्वारा पूजा करें।[ऋग्वेद 2.2.1]
उद्दीप्त :: दहकता हुआ, तमतमाया हुआ तापोज्ज्वल, उद्दीप्त; luminous, stimulated, incited, glowing.
दीप्तिमान, सुन्दर, अन्न परिपूर्ण, अनुष्ठान संपादक, शक्तिदाता अग्नि को अनुष्ठान में वृद्धि करो। अनुष्ठान के लिए उनका पूजन करो।
Hey Agni Dev! You are bright, (aurous, glittering), beautiful, grants food grains and heavens, luminous, grants home and strength. Let us promote Agni who is aware of the past and worship him. 
अभि त्वा नक्तीरुषसो ववाशिरेऽग्ने वत्सं न स्वसरेषु धेनवः। 
दिवइवेदरतिर्मानुषा युगा क्षपो भासि पुरुवार संयतः
हे अग्नि देव! जिस प्रकार से दिन में गायें बछड़े की इच्छा करती हैं, उसी प्रकार आपके यजमान लोग दिन और रात्रि में आपकी कामना करते हैं। हे अनेकों के माननीय अग्निदेव! आप संयत होकर धुलोक में व्याप्त है। मनुष्यों के यज्ञों में सदा रहते हैं। रात में प्रदीप्त होते हैं।[ऋग्वेद 2.2.2]
हे अग्ने! धेनु द्वारा बछड़ों की कामना करने के समान, यजमान दिवस-रात्रि तुम्हारी अभिलाषा करते हैं। तुम असंख्यकों के पूजक, आकाश व्यापी और यज्ञों में निवास करने वाले हो।
Hey Agni dev! The way the cow desire & is affectionate with the calf, the hosts-Ritviz desire for you throughout the day & night. Hey Agni revered by many! You have placed your self in the sky with care. You are always present in the Yagy conducted by the humans (Hindus, Aryans, Sanatani). You shine-glow at night. 
तं देवा बुध्ने रजसः सुदंससं दिवस्पृथिव्योररतिं न्येरिरे। 
रथमिव वेद्यं शुक्रशोचिषमग्निं मित्रं न क्षितिषु प्रशंस्यम्
हे अग्नि देव! सुदर्शन, द्यावा पृथ्वी के ईश्वर, धन पूर्ण रथ के सदृश, दीप्तवर्ण, ज्वाला स्वरूप, कार्य साधक और यज्ञ भूमि में प्रशंसित हैं। देवता लोग उन्ही अग्नि देव को संसार के मूल देश में स्थापित करते है।[ऋग्वेद 2.2.3]
हे अग्नि देव! तुम प्रदीप्त हुए धनयुक्त रथ वाले, आसमान धरती के दाता कार्यों को सिद्ध करने वाले और स्तुत्य हो। देवगण तुमको ही संसार में मातृभूमि रूप से स्थापित करते हो।
Hey Agni Dev! You are beautiful, the master of the sky & the earth, like the chaoite carrying wealth, bright coloured in the form of flames, helps in attaining the goal-targets and appreciated-honoured at the Yagy site. The demigods-deities establish Agni dev at the core-nucleus in the mother land-Matr Bhumi.
तमुक्षमाणं रजसि स्व आ दमे चन्द्रमिव सुरुचं ह्वार आ दधुः। 
पृश्न्याः पतरं चितयन्तमक्षभिः पाथो न पायुं जनसी उभे अनु
हे अग्नि देव! अन्तरिक्ष वृष्टि-जल दाता, चन्द्रमा की तरह दीप्ति विशिष्ट, अन्तरिक्ष गामी ज्वाला द्वारा लोगों को चैतन्यता प्रदान करने वाले, जल की तरह रक्षक और सबकी जनयित्री द्यावा पृथ्वी को व्याप्त करने वाले हैं। उन्हीं अग्नि  देव को उस विजन गृह में स्थापित किया गया है।[ऋग्वेद 2.2.4]
हे अग्ने! तुम अपनी क्षितिज स्पर्श करने वाली लपटों से चन्द्रमा के वाले चैतन्यप्रद हो। तुम जलों के तुल्य सुरक्षा हेतु क्षिति भरा में लीन होते हो। तुम को अनुष्ठान मंडप में यजमान विद्यमान करते हैं।
Hey Agni Dev! You generate rains in the space, shines like the Moon, makes the humans-organisms conscious by virtue of flames in the sky, protector like water, pervades all, including the producer of life the sky & the earth. Agni dev is established in the Yagy house-site. 
स होता विश्वं परि भूत्वध्वरं तमु हव्यैर्मनुष ऋञ्जते गिरा। 
हिरिशिप्रो वृधसानासु जर्भुरद्द्यौर्न स्तृभिश्चितयद्रोदसी अनु
होम निष्पादक होकर अग्निदेव सारे यज्ञों को व्याप्त करें। मनुष्यों ने हव्य और स्तुति द्वारा उन्हें अलंकृत किया। दाहक शिखा युक्त अग्निदेव वर्द्धमान औषधियों के बीच जलकर, जैसे नक्षत्र आकाश में चमकते हैं, वैसे ही द्यावा पृथ्वी को प्रकाशित करते हैं।[ऋग्वेद 2.2.5]
हवि सम्पादक अग्नि यज्ञों को प्राप्त करें यह औषधियों में प्रचलित होकर लक्षणों के समान आकाश और पृथ्वी को प्रकाशित करते हैं। यज्ञों में साधकगण उन्हें सुसज्जित करते हैं।
Hawan accomplishing Agni Dev pervades all Yagy ceremonies. The humans have honoured-glorified him with the offerings & Stuti-prayers. Agni Dev shines like the constellations in the sky amongest the burning herbs (Jadi-Buti Ayur Vedic medicines) lighting the sky and the earth.
स नो रेवत्समिधानः स्वस्तये संददस्वान्रयिमस्मासु दीदिहि। 
आ नः कृणुष्व सुविताय रोदसी अग्ने हव्या मनुषो देव वीतये
हे अग्नि देव! हमारे मंगल के लिए क्रम से वर्द्धित धन देते हुए आप प्रज्वलित होकर प्रकाशित हों। हे अग्नि देव! द्यावा पृथिवी में हमें फल प्रदान करें। मनुष्यों द्वारा प्रदत्त हव्य देवताओं के भक्षण के लिए ले आवें।[ऋग्वेद 2.2.6] 
हे अग्ने! तुम कल्याण रूप से धन दान करते हुए दीप्तिमान होओ। अम्बर और धरा में अन्न धन ग्रहण करो। मनुष्यों द्वारा दी गई हवियाँ देवों को ग्रहण कराओ। 
Hey Agni Dev! Shine for our welfare increasing our riches-wealth sequentially. Hey Agni Dev! Let the sky & the earth reward us. Please carry the offerings made by the humans to the demigods-deities.
दा नो अग्ने बृहतो दाः सहस्रिणो दुरो न वाजं श्रुत्या अपा वृधि । 
प्राची द्यावापृथिवी ब्रह्मणा कृधि स्वर्ण शुक्रमुषसो वि दिद्युतुः
हे अग्नि देव! हमें यथेष्ट गौ, अश्व आदि तथा सहस्र संख्यक पुत्र, पौत्र आदि दें। कीर्ति के लिए अन्न प्रदान करें और अन्न का द्वार खोल दें। उत्कृष्ट यज्ञ द्वारा द्यावा पृथ्वी को हमारे अनुकूल करें। आदित्य की तरह उषाएँ आपको प्रकाशित करती है।[ऋग्वेद 2.2.7]
हे अग्नि देव! गवादि धन, संतान आदि बहुसंख्यक समृद्धि को प्रदान कर प्रशस्वी बनाओ। तुम्हें उथायें प्रकाशमय करती हैं, उस अनुष्ठान द्वारा धरा को हमारे अनुकूल बनाओ। 
Hey Agni Dev! Grant us sufficient number of cows & horses along with hundred sons and grand sons. Open the store house containing food grains for our glory, so that we can donate them. Make earth and the sky suitable-favourable to us by means of excellent Yagy. The rays of Sun-Usha lit you.
स इधान उषसो राम्या अनु स्वर्ण दीदेदरुषेण भानुना। 
होत्राभिरग्निर्मनुषः स्वध्वरो राजा विशामतिथिश्चारुरायवे
रमणीय उषा में अग्नि प्रज्वलित होकर सूर्य की तरह उज्ज्वल किरणों में देदीप्यमान होते मनुष्यों के होम साधक, स्तुति द्वारा स्तूयमान, उत्तम यज्ञ वाले और प्रजाओं के स्वामी अग्निदेव यजमान के पास प्रिय अतिथि की तरह आते हैं।[ऋग्वेद 2.2.8]
उषा बेला में प्रज्ज्वलित अग्नि सूर्य के समान तेजस्वी होते हुए प्रार्थनाओं द्वारा पूजे जाते हैं। वे यज्ञकर्त्ता के पास यज्ञदाता और अतिथी  के रूप में आते हैं। 
The Agni-fire ignite in the morning at dawn, in a pleasant environment-atmosphere, spread its rays like the Sun, come to the Ritviz conducting excellent Yagy like a guest.
एवा नो अग्ने अमृतेषु पूर्व्य धीष्पीपाय बृहद्दिवेषु मानुषा। 
दुहाना धेनुर्वृजनेषु कारवे त्मना शतिनं पुरुरूपमिषणि
हे अग्नि देव! आप यथेष्ट द्युति वाले हैं। देवों के पूर्ववर्ती मनुष्यों की स्तुति आपको प्रसन्न करती है। दूध वाली गौवों की तरह यह स्तुति यज्ञ स्थित स्तोताओं को स्वयं अनन्त और विविध प्रकार धन प्रदान करती है।[ऋग्वेद 2.2.9]
हे अग्ने! तुम तेजस्वी हो। मनुष्यों द्वारा कृत प्रार्थनाएँ तुम्हें व्यापक बनाती हैं। पयस्विनी धेनु के समान, यज्ञ में की हुई वंदना असंख्य धन प्रदात्री हैं।
Hey Agni Dev! You possess suitable aura-energy. The prayers by the humans prior to the demigods-deities make you happy-please you. This Yagy involving prayers-Strotr, grants various kinds of assets-wealth to the performers of Yagy like a milch cow.
वयमग्ने अर्वता वा सुवीर्यं ब्रह्मणा वा चितयेमा जनाँ अति। 
अस्माकं द्युम्रमधि पञ्च कृष्टिषूच्चा स्वर्ण शुशुचीत दुष्टरम्
हे अग्नि देव! हम आपके लिए अन्न और अश्व से यथेष्ट सामर्थ्य प्राप्त करके सबको लाँघ जायेंगे और इससे हमारी अनन्त और दूसरों के लिए अप्राप्य धनराशि सूर्य की तरह पाँच वर्णों (चार वर्ण और पंचम निषाद) के ऊपर दीप्तिमान् होगी।[ऋग्वेद 2.2.10]
हे अग्नि देव! तुम्हारे द्वारा प्रचुर शक्ति पाकर हम दुःखों से दूर रहें। दूसरों का अप्राप्य धन हमारे पास असंख्यक रूप में हो, हम सूर्य के समान यशस्वी हों।
Hey Agni Dev! Having received sufficient quantity of food grains & horses, we will become ahead of all and our infinite wealth will shine over the 5 Varn (main castes) i.e., it will help all organisms.
स नो बोधि सहस्य प्रशंस्यो यस्मिन्त्सुजाता इषयन्त सूरयः। 
यमग्ने यज्ञमुपयन्ति वाजिनो नित्ये तोके दीदिवांसं स्वे दमे
हे शत्रु पराजेता अग्निदेव! आप हमारी स्तुति योग्य है। हमारा स्तोत्र श्रवण करें। सुजन्मा स्तोता लोग आपके ही उद्देश्य से स्तुति करते हैं। रस और पुत्र की प्राप्ति के लिए हव्य विशिष्ट यजमान के यज्ञ गृह में दीप्यमान और यजनीय अग्निदेव की पूजा की जाती है।[ऋग्वेद 2.2.11]
हे अग्ने तुम वंदना सुनो, तुम शत्रु को पराजित करने वाले हो। अन्न, धन, संतान प्राप्ति के लिए मनुष्य तुम्हारे अनुष्ठानों में अर्चना करते हैं। 
Hey enemy defeating Agni Dev! You deserve worship. Listen-answer to our prayers. Upper caste born Ritviz-hosts pray for your glory. Agni is worshiped in the Yagy for seeking extracts (fruits-vegetation juices) and son.
उभयासो जातवेदः स्याम ते स्तोतारो अग्ने सूरयश्च शर्माणि। 
वस्वो रायः पुरुश्चन्द्रस्य भूयसः प्रजावतः स्वपत्यस्य शग्धि नः
हे सर्वभूतज्ञ अग्निदेव! स्तोता और मेघावी यजमान; हम दोनों सुख प्राप्ति के लिए आपके ही आश्रित होंगे। हमारे निवास हेतु अतिशय आह्लादप्रद प्रभूत और पुत्र प्रपौत्र आदि से युक्त धन से प्रदान करें।[ऋग्वेद 2.2.12]
हे अग्निदेव! बुद्धिमान वंदनाकारी और यजमान सुख पाने के लिए तुम्हारे सहारे हुए हैं। तुम हमें श्रेष्ठ आवास, हर्षिता देने वाला धन, संतान आदि प्रदान करो।
Hey Agni Dev! You are aware of entire past. Let the Strota and the intelligent Ritviz depend over you for the sake of comforts-pleasure. Grant us best place to live, sons, grand sons and wealth to nourish them. 
ये स्तोतृभ्यो गोअग्रामश्वपेशसमग्ने रातिमुपसृजन्ति सूरयः। 
अस्माञ्च तांश्च प्र हि नेषि वस्य आ बृहद्वदेम विदथे सुवीराः
हे अग्नि देव! जो मेधावी लोग स्तोताओं को गौ और अश्व आदि धन प्रदान करते हैं, उन्हें तथा हमें श्रेष्ठ स्थान में ले चलें। वीरयुक्त होकर हम यज्ञ में बृहत् मंत्र का उच्चारण करेंगे।[ऋग्वेद 2.2.13]
हे अग्नि देव! जो मेधावी यजमान स्तोताओं को गवादि धन दान करते हैं उनको और हमको श्रेष्ठ निवास दो। हम वीर संतान वाले होकर यज्ञ में उत्तम प्रार्थनाओं को गायेंगे।
Hey Agni Dev! Take us and those intelligent people, who donate cows & horses to the Stota to best places. We will sing Brahat Mantr on being the parents of brave progeny.
ऋग्वेद संहिता, द्वितीय मण्डल सूक्त (3) ::  ऋषि :- गृत्स्मद,  इत्यादि, देवता :- अग्नि,  आदि, छन्द :- त्रिष्टुप्, जगती।
समिद्धो अग्निर्निहितः पृथिव्यां प्रत्यङ्विश्वानि भुवनान्यस्थात्। 
होता पावकः प्रदिवः सुमेधा देवो देवान्यजत्वग्निरर्हन्
वेदी पर निहित समिद्ध नामक अग्नि देव समस्त गृह के समक्ष अवस्थित हैं। होम निष्पादक, विशुद्धताकारी, प्राचीन, प्रजा से युक्त, द्योतमान और पूजा योग्य अग्नि देव देवों की पूजा करें।[ऋग्वेद 2.3.1]
दीप्तिमान, सुन्दर, अन्न परिपूर्ण, अनुष्ठान संपादक, शक्तिदाता अग्नि को अनुष्ठान में वृद्धि करो। अनुष्ठान के लिए उनका पूजन करो।
Agni Dev named Samiddh, is present over the Vedi (Yagy site-Hawan Kund) in the house. Let the Hawan performer, purity generating, eternal, populace supporting, glittering-brilliant, worship deserving  Agni Dev pray to the demigods-deities. 
नराशंसः प्रति धामान्यञ्जन् तिस्रो दिवः मह्ना स्वर्चिः। 
घृतप्रुषा मनसा हव्यमुन्दन्मूर्धन्यज्ञस्य समनक्तु देवान्
हे नराशंस नामक अग्नि देव! सुन्दर ज्वालाओं से युक्त होकर अपनी महिमा से प्रत्येक आहुति स्थल और प्रकाशमान तीनों लोकों को व्यक्त करते हुए घृत वर्षा की इच्छा से हव्य स्निग्ध करके यज्ञ के समक्ष देवों को प्रकाशित करें।[ऋग्वेद 2.3.2]
नराशंस नाम वाले अग्नि देव अपनी महत्ता से ज्योर्तिमान हुए त्रिलोकी को विद्यमान करते हैं। वह हवि परिपूर्ण घृत सिंचन की इच्छा वाले, देवों का अनुष्ठान में पुकारें। प्रसन्न मन वाले यज्ञ में सक्षम होते हुए देवगणों का पूजन करें।
Hey Agni Dev, named Narashans! Accompanied with beautiful flames you you lit the Yagy site and the three abodes (earth, heavens & Nether world) with the desire for the Ahuti of Ghee and offerings, glorify-lit the demigods-deities.
ईळितो अग्ने मनसा नो अर्हन्देवान्यक्षि मानुषात्पूर्वो अद्य। 
स आ वह मरुतां शर्धो अच्युतमिन्द्रं नरो बर्हिषदं यजध्वम्
हे इला नामक अग्निदेव! हम पर प्रसन्न चित्त से यागकर्म के योग्य होकर आज हमारे लिए मनुष्यों के पूर्ववर्ती होकर देवों का यज्ञ करें। मरुतों और अच्युत इन्द्रदेव का सम्बोधन करें। हे ऋत्विको। कुश (आसन, चटाई) पर बैठे हुए इन्द्रदेव का यज्ञ करें।[ऋग्वेद 2.3.3]
हे इला नामक अग्निदेव! 
वह हवि परिपूर्ण घृत सिंचन की इच्छा वाले, देवों का अनुष्ठान में पुकारें। प्रसन्न मन वाले यज्ञ में सक्षम होते हुए देवगणों का पूजन करें।
Hey Agni Dev with the name, Ila! Let us become suitable-able for Yagy Karm happily & conduct the Yagy for the sake of the Manes-Pitre Gan, those who have deceased-died. Let us address Indr Dev and the Marud Gan. The Yagy for the sake of Indr Dev is performed while sitting over Kush Mat.
देव बर्हिवर्धमानं सुवीरं स्तीर्णं राये सुभरं वेद्यस्याम्। 
घृतेनाक्तं वसवः सीदतेदं विश्वे देवा आदित्या यज्ञियासः
हे द्योतमान कुशस्वरूप अग्निदेव! हमारे धन लाभ के लिए इस वेदी पर अच्छी तरह विस्तारित हो जावें। आप सदा बढ़ने वाले और वीर प्रदाता हैं। वसुओं, विश्वदेवों, यज्ञ योग्य आदित्यों, सहित आप घृत लगाये कुश पर बैठे।[ऋग्वेद 2.3.4]
हे ऋत्विजों! मरुद्गण और अविनाशी इन्द्र के प्रति रूपना करो। कुश पर स्थित इन्द्र अर्चना करो। हे कुश पर स्थापित अग्नि! हमको विशाल धन दिलाने के लिए वृद्धि करो। तुम मतिमय और पराक्रम से परिपूर्ण हो। हे विश्वेदेवो! हे आदित्यो! तुम घृत सिंचित कुश पर पधारो। 
Hey brilliant Agni Dev in the form of Kush! Let you grow-ignite for the sake of favouring us for wealth. You are for ever and grants us valour. You should occupy-sit the over the Kushasan treated with Ghee . 
वि श्रयन्तामुर्विया हूयमाना द्वारो देवीः सुप्रायणा नमोभिः। 
व्यचस्वतीर्वि प्रथन्तामजुर्या वर्णं पुनाना यशसं सुवीरम्
हे द्योतमान द्वार रूप अग्निदेव! आप प्रकट होवें। आप महान् हैं। लोग नमस्कार करते हुए आपके लिए हवन करते और सरलता से आपके पास जाते हैं। आप व्यापक, अहिंसनीय, वीर विशिष्ट, यशोयुक्त और वर्णनीय रूप के सम्पादक हैं। आप भली भाँति प्रसिद्ध होवें।[ऋग्वेद 2.3.5]
हे प्रकाशित अग्नि देव! तुम यज्ञ द्वार का उद्घाटन करो। प्राणियों में तुम महान के प्रति हाक देते हुए सामिष्य प्राप्त करते हो। तुम वीरता युक्त, यशस्वी, व्यापक और करने वाले योग्य अत्यन्त ऐश्वर्य प्राप्त हो।
Hey glittering Agni Dev! Appear before us-ignite. You are great. Populace salute before you and come closer to you performing the Hawan. You are broad, non violent brave possessing glory and beautiful figure which deserve description (singing songs in your honour).
साध्वपांसि सनता न उक्षिते उषासानक्ता वय्येव रण्विते । 
तन्तुं ततं संवयन्ती समीची यज्ञस्य पेशः सुदुघे पयस्वती
हमें अच्छे कर्म फल देने वाली अग्निरूप उषायें रात्रि को वयन (बुनाई में) चतुर दो रमणियों की तरह सहायता के लिए परस्पर जाते-आते यज्ञ का रूप बनाने के लिए परस्पर अनुकूल होकर बड़े तन्तु का वयन करती हैं। वे अतीव फलदाता और जलयुक्त हैं।[ऋग्वेद 2.3.6]
उत्तम कार्यों में प्रेरित करने वाली उषा और रात्रि, दो नारियों की भांति एक दूसरे के अनुकूल हुई कीर्ति का स्वरूप बनाती हुई बुनने वाली के समान चलती हैं। वे जल सींचने वाली तथा अभिष्ट फल प्रदान करने वाली हैं।
The Usha in the form of Agni-fire,  come close to each other for conducting Yagy suitably, become mutually beneficial and weave the long threads. They us grant excellent rewards.
दैव्या होतारा प्रथमा विदुष्टर ऋजु यक्षतः समृचा वपुष्टरा। 
देवान्यजन्तावृतुथा समञ्जतो नाभा पृथिव्या अधि सानुषु त्रिषु
अग्नि रूप दिव्य दो होता पहले ही यज्ञ के योग्य हैं। वे सर्वापेक्षा विद्वान् और विशाल शरीर से संयुक्त हैं। वे मंत्र द्वारा अच्छी तरह पूजा करते और यथा समय देवों के लिए यज्ञ करते हैं। वे पृथ्वी की नाभि रूपिणी उत्तर वेदी के गार्हपत्य आदि तीन अग्नियों के प्रति गमन करते हैं।[ऋग्वेद 2.3.7]
विद्वानों में देवता के समान पूज्य अग्नि होता रूप हैं वे प्रार्थनाओं द्वारा पूजन करते हुए देव यज्ञ सम्पन्न करते हैं। वे धरती की नाभि रूप उत्तम वेदी में तीनों करणीय धर्मों के लिए सुसंगत होते हैं।
Two hosts-Ritviz having divine aura are able to conduct Yagy. They are scholars having huge bodies (of knowledge). They perform worship-prayers (Pooja-Archna) with the help of Mantr thoroughly for the sake of demigods-deities. They move towards, prostrate before the three kinds of fire-Agni located at the centre-nucleus of the earth.
सरस्वती साधयन्ती धियं न इळा देवी भारती विश्वतूर्तिः। 
तिस्रो देवीः स्वधया बर्हिरेदमच्छिद्रं पान्तु शरणं निषद्य
हमारे यज्ञ की निष्पादिका अग्नि रूप सरस्वती, इला और सर्वव्यापिका भारती, ये तीनों देवियाँ यज्ञगृह का आश्रय करके, हव्यलाभ के लिए, निर्दोष रूप से हमारे यज्ञ का पालन करें।[ऋग्वेद 2.3.8]
हमारी मति को कार्यों में प्रेरित करती हुई सरस्वती, इला और भारती अनुष्ठान मंडप में अन्न आश्रय ग्रहण करती हुई. हमारे अनुष्ठान की सुरक्षा करें।
Let the three deities Saraswati, Ila and all pervading Bharti help us conduct & protect our Yagy free from all defects-impurities, leading to gain of offerings.
पिशङ्गरूपः सुभरो वयोधाः श्रुष्टी वीरो जायते देवकामः। 
प्रजां त्वष्टा वि ष्यतु नाभिमस्मे अथा देवानामप्येतु पाथः
अग्नि स्वरूप त्वष्टा की दया से हमारे पिशंग वर्ण, यज्ञ कर्त्ता, अन्न दाता, क्षिप्र कर्ता, देवाभिलाषी और वीर पुत्र उत्पन्न होवें। त्वष्टा हमें कुल रक्षक संतान प्रदान करें। देवों का अन्न हमें प्राप्त होवे।[ऋग्वेद 2.3.9]
अग्नि रूप त्वष्टा की कृपा से हमें शीर्घ कर्मकारी अन्नों उत्पादक कीर्ति और देवों की इच्छा वाला पराक्रमी पुत्र ग्रहण हो। हमारी संतान अपने वंश का पोषण करने वाली हो और हमें अन्न की ग्रहणता हो।
पिशंग :: पीलापन लिए भूरा रंग, धूमल रंग; brown, chestnut, greyish.
Let us have brave sons with the blessings of Twasta, possessing brownish colour, who conduct Yagy, making donations in the form of food grains, desirous of seeing the demigods-deities and are brave. They should be able to protect our clan-hierarchy. Let us get the food stuff of the demigods-deities.
वनस्पतिरवसृजन्नुप स्थादग्निर्हविः सूदयाति प्र धीभिः। 
त्रिधा समक्तं नयतु प्रजानन्देवेभ्यो दैव्यः शमितोप हव्यम्
वनस्पति रूप अग्निदेव हमारे कर्म जानकर हमारे पास है। विशेष कर्म द्वारा अग्निदेव भली-भाँति हव्य पकाते हैं। दिव्य शमिता नाम के अग्नि देव तीन प्रकार से अच्छी तरह सिक्त हव्य को जानकर उसे देवों के निकट ले जायें।[ऋग्वेद 2.3.10]
हमारे कर्मों के ज्ञाता अग्नि देव हमको प्राप्त हों। आपने उत्तम कर्मों से हव्यान्न का परिवाक कर देवों को पहुँचायें। घृत अग्नि का आश्रय स्थान एवं प्रकाश है।
Agni in the form of vegetation is with us, having learnt out working. Agni-fire cooks properly the offerings with special treatment. Divine Shamita named Agni-fire carries the saturated offerings to the demigods-deities.
घृतं मिमिक्षे घृतमस्य योनिर्घृते श्रितो घृतम्वस्य धाम।
अनुष्वधमा वह मादयस्व स्वाहाकृतं वृषभ वक्षि हव्यम्
मैं अग्नि में घृत डालता हूँ। घृत ही उनकी जन्मभूमि, आश्रय स्थान और दीप्ति है। हे अभीष्टवर्षी अग्निदेव! हव्य देने के समय देवों को बुलाकर उनको प्रसन्नता प्रदान करें और अग्रिरूप स्वाहाकार में प्रदत्त हव्य ले जावें।[ऋग्वेद 2.3.11]
मैं अग्नि में घृत हो गया हूँ। हे मनोरथ वर्षक अग्ने! हविर्दान के समय देवों को आमंत्रित कर उनकी प्रसन्नता प्राप्त करते हुए उनको हव्य दो।
I pour Ghee in Agni. Ghee is his birth place, shelter and brightness of Agni Dev. Desires fulfilling Agni Dev! Call the demigods-deities at the time of making offerings and make them happy-pleased.
ऋग्वेद संहिता, द्वितीय मण्डल सूक्त (4) ::  ऋषि :- सोमाहुति,  भार्गव, देवता :- अग्नि,  आदि, छन्द :- त्रिष्टुप्।
समिद्धो अग्निर्निहितः पृथिव्यां प्रत्यविश्वानि भुवनान्यस्थात्। 
होता पावकः प्रदिवः सुमेधा देवो देवान्यजत्वग्निरर्हन्
वेदी पर निहित समिद्ध नामक अग्नि देव समस्त गृह के समक्ष अवस्थित हैं। होम निष्पादक, विशुद्धताकारी, प्राचीन, प्रजा से युक्त, द्योतमान और पूजा योग्य अग्निदेव देवों की पूजा करें।[ऋग्वेद 2.4.1]
वेदी में विद्यमान अग्नि समस्त अनुष्ठान स्थान में लीन हैं। वे अनुष्ठान सम्पादक पावक, प्रकाशमान होकर देवा का अर्चन करने वाले हो।
Agni Dev named Samiddh, is present over the Yagy Vedi in front of the whole house. Let us worship-pray Agni Dev who is ancient-eternal, helps in conducting the Yagy, support-nurture the populace, brilliant-shinning, pure-pious & purity causing.
नराशंसः प्रति धामान्यञ्जन् तिस्त्रो दिवः मह्ना स्वर्चिः। 
घृतप्रुषा मनसा हव्यमुन्दन्मूर्धन्यज्ञस्य समनक्तु देवान्
हे नराशंस नामक अग्निदेव! सुन्दर ज्वालाओं से युक्त होकर अपनी महिमा से प्रत्येक आहुति स्थल और प्रकाशमान तीनों लोकों को व्यक्त करते हुए घृत वर्षा की इच्छा से हव्य स्निग्ध करके यज्ञ के समक्ष देवों को प्रकाशित करें।[ऋग्वेद 2.4.2]
नराशंस नाम वाले अग्नि देव अपनी महत्ता से ज्योर्तिमान हुए त्रिलोकी को विद्यमान करते हैं। वह हवि परिपूर्ण वृत सिंचन की इच्छा वाले, देवों का अनुष्ठान में पुकारें।
Hey Agni Dev by the name of Narashans! Please  lit the Yagy site and the three abodes (Earth, Heavens & the nether world) by virtue of your grace, associated with beautiful flames, with the desire of showering Ghee and offerings in front of the demigods-deities. 
ईळितो अग्ने मनसा नो अर्हन्देवान्यक्षि मानुषात्पूर्वो अद्य। 
स आ वह मरुतां शर्धो अच्युतमिन्द्रं नरो बर्हिषदं यजध्वम्
हे इला नामक अग्नि देव! हम पर प्रसन्न चित्त से याग कर्म के योग्य होकर आज हमारे लिए मनुष्यों के पूर्ववर्ती होकर देवों का यज्ञ करें। मरुतो और अच्युत इन्द्रदेव का सम्बोधन करें। हे ऋत्विको! कुश पर बैठे हुए इन्द्रदेव का यज्ञ करें।[ऋग्वेद 2.4.3]
प्रसन्न मन वाले यज्ञ में सक्षम डोले हा देवाणी का पूजन करें। है ऋत्विजों! मरुद्गण और अविनाशी इन्द्र के प्रति वाणी रूप वन्दना करो। कुश पर स्थित इन्द्र की अर्चना करो। 
Hey Agni Dev bearing the name Ila! Let us conduct Yagy happily for the sake of our ancestors-Manes. Let us address the Marud Gan and Dev Raj Indr. Hey Ritviz! Let us perform Yagy in the honour of Indr Dev occupying a Kush seat-cushion.
Ila, Narashans & Samiddh are the three names according to the characterises, properties, qualities born by Agni Dev.
अस्य रण्वा स्वस्येव पुष्टिः संदृष्टिरस्य हियानस्य दक्षोः। 
वि यो भरिभ्रदोषधीषु जिह्वामत्यो न रथ्यो दोधवीति वारान्॥
अपने शरीर की पुष्टि करने के सदृश अग्नि देव शरीर की पुष्टि करना भी रमणीय है। जिस समय ये चारों ओर फैलते और काष्ठ को भस्म करते हैं, उस समय उनका शरीर अत्यन्त सुन्दर हो जाता है। जिस प्रकार से रथ का अश्व बार-बार पूँछ हिलाता है, उसी प्रकार अग्नि देव भी लकड़ियों को अपनी शिखा से कम्पाय मान करते हैं।[ऋग्वेद 2.4.4]
जैसे रथ में हुआ अश्व अपनी पूंछ हिलाता है, वैसे उनकी ज्वालाएँ काष्ठ पर हिलती हैं। अग्नि की श्रेष्ठता का गुणगान करने पर वे अपना रूप प्रदर्शित करते हैं। 
Nourishment of of Agni dev is essential just like our own body, which is admirable. When he spreads in all directions burning-consuming the wood, it waves-vibrates like the tail of the horse, which he wages too frequently.
आ यन्मे अभ्वं वनदः पनन्तोशिग्भ्यो नामिमीत वर्णम्। 
स चित्रेण चिकिते रंसु भासा जुजुर्वां यो मुहुरा युवा भूत्
मेरे सहयोगी स्तोता लोग अग्नि देव के महत्त्व की स्तुति करते हैं, वे आग्रही ऋत्विजों के पास अपना रूप प्रदर्शित करते हैं। अग्नि देव रमणीय हव्य के लिये विचित्र किरणमाला से प्रकाशित होते हैं। ये वृद्ध होकर भी बार-बार उसी युवा भी होते है।[ऋग्वेद 2.4.5]
वे हव्य प्राप्त करने को ज्वाला से परिपूर्ण होते हैं तथा वे कभी बुढ़ापे को ग्रहण नहीं करते।
My associate Ritviz make prayers giving importance-significance to Agni Dev. Agni Dev shows-exposes his figure in front of the Ritviz who stress over it. Agni Dev is shinning with different of vivid rays due to the offerings. Even after becoming old he acquires his youth again & again.
The offering have different elements and compounds in it and these substances burn with different colours.
आ यो वना तातृषाणो न भाति वार्ण पथा रथ्येव स्वानीत्। 
कृष्णाध्वा तपू रणवश्चिकेत द्यौरिव स्मयमानो नभोभिः
तृषातुर की तरह जो अग्नि देव वनों को दग्ध करते हैं, जल की तरह इधर-उधर जाते हैं; रथ वाहक अश्व की तरह शब्द करते हैं, वे कृष्ण मार्ग और तापक होने पर भी नभो मण्डल वाले द्युलोक की तरह शोभन हैं।[ऋग्वेद 2.4.6]
प्यासे के समान अग्निदेव वनों को जलाते और जलों के तुल्य विचरण करते हैं। वे रथ में जुड़े हुए घोड़े के समान ध्वनि करते तथा अपने काले रास्ते को प्रकट करते हुए भी सूर्य मंडल के समान शोभायमान होते हैं। 
Agni Dev burns the forests-jungles, vegetation just like a thirsty person who move thither & thither in search of water. He makes sounds like the carrier charoite. Though present in dark route and possessing heat, he glitters and lit the space.
स यो व्यस्थादभि दक्षदुर्वीं पशुर्नैति स्वयुरगोपाः। 
अग्नि शोचिष्माँ अतसान्युष्णन्कृष्णव्यथिरस्वदयन्न भूम
जो अग्निदेव विश्व को व्याप्त करते हैं, जो अग्नि देव विस्तृत पृथ्वी पर बढ़ते हैं, जो अग्नि देव रक्षक रहित पशु की तरह अपनी इच्छा से गमन कर विचरण करते हैं, वही दीप्तिमान् अग्नि देव सूखे वृक्ष आदि को जलाकर, व्यथाकारी कंटक आदि को दूरकर अच्छी तरह रसास्वादन करते हैं।[ऋग्वेद 2.4.7]
संसार व्यापक अग्नि पृथ्वी पर बढ़ते और स्वामीहीन पशु के समान घूमते हैं। यही प्रदीप्त अग्वि देव वनों को भस्म कर कष्ट पहुँचाने वाले काँटों को भी मिटा देते हैं।
Agni Dev who pervades the universe and increase-spread over the earth and wander like an animal, who is not protected by the demigods-deities, of his own; and enjoy-relish the burning of dry trees and the pain causing thorns.
नू ते पूर्वस्यावसो अधीतौ तृतीये विदथे मन्म शंसि। 
अस्मे अग्रे संयद्वीरं बृहन्तं क्षुमन्तं वाजं रयिं दाः
हे अग्नि देव! आपने पहले प्रथम सवन में जो रक्षा की थी, उसे हम आज भी स्मरण करके तृतीय सवन में मनोहर स्तोत्रों का उच्चारण करते हैं। आप हमें वीर विशिष्ट करें। आप हमें महान् कीर्तिमान बनायें हमें सुन्दर संतान और धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 2.4.8]
हे अग्ने! तुम्हारे प्रथम सवन की रक्षा को स्मरण करके आज हम तृतीय सवन में रमणीय प्रार्थनाएँ करते हैं। तुम हमें वीरत्व, ऐश्वर्य और सुन्दर वन प्रदान करो।
Hey Agni Dev! We remember the protection granted by you in the first cycle and pray to you reciting the lovely-beautiful Mantr in the third cycle seeking shelter under you. Let us become great warriors. Please make us glorious and grant us beautiful progeny and wealth.
त्वया यथा गृत्समदासो अग्ने गुहा वन्वन्त उपराँ अभि ष्यु:। 
सुवीरासो अभिमातिषाहः स्मत्सूरिभ्यो गृणते तद्वयो धा:
हे अग्नि देव! गृत्समद वंशीय ऋषि लोग आपको रक्षक पाकर छन्द का पाठ करते हुए, कन्दरा में अवस्थित उत्कृष्ट स्थान पर वर्तमान धन विशेष प्राप्त करेंगे। ये उत्तम पुत्र आदि को प्राप्त कर शत्रुओं को परास्त करेंगे। मेधावी और स्तुतिकारी यजमानों को बहुत अधिक और प्रसिद्ध धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 2.4.9]
हे अग्नि देव! गुफा में विराजमान ऋषि गण तुम्हारे द्वारा रक्षित हुए अद्भुत श्लोक उच्चारित करते हुए अद्भुत धन ग्रहण करते हैं। वे महान सन्तान आदि प्राप्त कर शत्रुओं को पराजित करने में समर्थ होंगे। तुम विद्वानजन वंदना करने वालों को वरणीय धन प्रदान करें। 
Hey Agni Dev! Rishis of Gratsamad  clan recite the Chhand under your protection-asylum and receive special riches-wealth in the den. They will defeat the enemy after receiving the excellent sons etc. Grant lots of riches to the intelligent and worshipping devotees-Ritviz.
ऋग्वेद संहिता, द्वितीय मण्डल सूक्त (5) ::  ऋषि :- सोमाहुति,  भार्गव, देवता :- अग्नि,  आदि, छन्द :- अनुष्टुप्
होताजनिष्ट चेतनः पिता पितृभ्य ऊतये। 
प्रयक्षञ्जेन्यं वसु शकेम वाजिनो यमम्
हे होता! चैतन्य दाता और पिता अग्नि देव पितरों की रक्षा के लिए उत्पन्न हुए। हम भी हव्य युक्त होकर अतीव पूजनीय, जीतने और रक्षा करने योग्य धन प्राप्त करने में समर्थ होंगे।[ऋग्वेद 2.5.1]
होता रूप चैतन्य प्रद पिता के समान अग्नि देव पहले मनुष्यों की सुरक्षा हेतु प्रकट हुए थे। हम भी हवि से परिपूर्ण होकर पूजनीय विजेता और सुरक्षा के साधन अग्नि से धन ग्रहण करेंगे।
Hey hosts-organisers of the Yagy! Agni Dev evolved-appeared to protect the Manes-Pitr Gan. We shall be successful in having wealth for protection, victory, possess offerings & adorable-respected (honourable). 
आ यस्मिन्त्सप्त रश्मयस्तता यज्ञस्य नेतरि। 
मनुष्वद्दैव्यमष्टमं पोता विश्वं तदिन्वति
यज्ञ के नेता अग्नि देव में सात रश्मियाँ विस्तृत हैं। देवों के पोता के समान अग्निदेव मनुष्यों के पोता की तरह यज्ञ के अष्टम स्थानीय होकर व्याप्त होते हैं।[ऋग्वेद 2.5.2]
अनुष्ठान के नायक अग्नि में सात किरणें जुड़ी हैं। देवताओं के पौत्र समान अग्नि देव मनुष्यों में पौत्र रूप हुए। अनुष्ठान के आठवें स्थान में लीन होते हैं। 
As the leader of the Yagy, Agni Dev possess seven rays. Just like the grandson of the demigods-deities & the humans, Agni Dev pervades the Yagy in eight locations-places.
दधन्वे वा यदीमनु वोचद्ब्रह्माणि वेरु तत्। 
परि विश्वानि काव्या नेमिश्चक्र मिवाभवत्
इस यज्ञ में ऋत्विक गण जो हव्यादि धारण करते, जो मंत्र आदि पढ़ते हैं, वो सब अग्नि देव को जानते हैं।[ऋग्वेद 2.5.3]
इस अनुष्ठान में ऋत्विजों द्वारा धारण किये हव्य अन्न और गायी हुई प्रार्थनाओं को वे अग्निदेव भली-भांति जानते हैं।
The Ritviz-hosts who possess the offerings, reciting the Mantr knows Agni Dev, very well, in this Yagy.
साकं हि शुचिना शुचिः प्रशास्ता क्रतुनाजनि। 
विद्वाँ अस्य व्रता ध्रुवा वयाइवानु रोहते
पवित्र प्रशास्ता अग्नि देव पुण्य क्रतु के साथ उत्पन्न हुए है। जिस प्रकार से लोग फल तोड़ने के लिए एक डाल से दूसरी डाल पर जाते हैं, उसी प्रकार यजमान अग्नि देव के यज्ञ को फलदाता समझकर एक के बाद दूसरा अनुष्ठान करते हैं।[ऋग्वेद 2.5.4]
वह अग्नि अत्यन्त पवित्रता से उत्पन्न हुई है। एक डाली से दूसरी डाली पर जाकर फल तोड़ने के समान, यजमान यज्ञ को अभिष्ट दाता जानते हुए एक के बाद दूसरा यज्ञ करते हैं।
Pious-pure Agni Dev evolved with Puny Kratu. The manner in which, people move from one branch to another for plucking the fruits, the hosts-Ritviz conduct-perform, one after another Yagy, since it guarantees desired-rewards. 
ता अस्य वर्णमायुवो नेष्टुः सचन्त धेनवः। 
कुवित्तिसृभ्य आ वरं स्वसारो या इदं ययुः
जो अंगुलियाँ इस कार्य में लगी रहती है, वे इन नेष्टा अग्नि देव के लिए धेनु स्वरूप है और इनकी सेवा करती है तथा अग्रि रूप होकर इनके गार्हपत्य आदि तीन उत्कृष्ट रूपों की सेवा करती है।[ऋग्वेद 2.5.5]
नेष्टा :: अध्वर्यु के सहायक ऋत्विक् को नेष्टा कहते हैं; one assisting the head priest or he host in rituals. 
नेष्टा अग्नि की सेवा में दस उंगलियां धेनु रूप से सींचने वाली होती हैं तथा इनके गार्हपत्य आदि रूपों की अर्चना में लग जाती हैं।
The fingers which are engaged in the Yagy serves Agni Dev as a cow in three different ways like Garhpaty. 
यदी मातुरूप स्वसा घृतं भरन्त्यस्थित। 
तासामध्वर्युरागतौ यवो वृष्टीव मोदते
जिस समय जुहू मातृ रूपिणी वेदी के पास बहन के समान घृत पूर्ण करके रखा जाता है, उस समय जिस प्रकार से वृष्टि में यव पुष्ट होता है, उसी प्रकार से ही अध्वर्यु रूप (यजुर्वेद विहित कार्य करने वाले) अग्नि देव भी दृष्ट होते हैं।[ऋग्वेद 2.5.6]
जुहू :: पलाश की लकड़ी का बना हुआ एक प्रकार का अर्ध चंद्राकार यज्ञ-पात्र,  पूर्व दिशा; a pot made of Butea wood used in Yagy performances, kept near the Yagy Vedi. 
अध्वर्यु :: यज्ञ में प्रमुख आहुति दाता; the main person conducting Yagy.
मातृ भूमि वेदी के निकट भग्नि के समान जुहू को घी से पूर्ण करके रखते हैं। तब वर्षा से वृद्धि करने वाले जौं के तुल्य अग्नि भी पुष्टि को ग्रहण होते हैं।
When the pot called Juhu is kept near the Yagy Vedi, icon to mother, like a sister full of Ghee the offerings called Yav are saturated by it, leading to the ignition-appearance of Agni Dev.
स्व: स्वाय धायसे कृणुतामृत्विगृत्विजम्। 
स्तोमं यज्ञं चादरं वनेमा ररिमा वयम्
ये ऋत्विक रूप अग्निदेव अपने कर्म के लिए ऋत्विक का कर्म करते हैं। हम भी उनके अनन्तर ही स्तोम, यज्ञ और हव्य प्रदान करेंगे।[ऋग्वेद 2.5.7]
यह अग्नि महान कार्य के लिए ऋत्विक के तुल्य होते हैं। हम उनके लिए श्लोक और हवि प्रदान करते हुए अनुष्ठान करें।
Agni Dev acts as the primary host in the Yagy. We too participate in recitation of hymns, conduction of Yagy and making offerings.
यथा विद्वाँ अरं करेंद्वश्वेभ्यो यजतेभ्यः। 
अयमग्ने त्वे अपि यं यज्ञं चकृमा वयम्॥
हे अग्नि देव! आपकी महिमा जानने वाला यजमान जिस प्रकार से समस्त देवताओं को भली भाँति तृप्ति कर सके, वैसा ही करें। हम जिस यज्ञ को करेंगे, वह भी अग्निदेव आपका ही है।[ऋग्वेद 2.5.8]
हे अग्नि देव! तुम्हारी महत्ता को जानने वाला यजमान समस्त देवों को तृप्त कर सके, वह कर्म करो। हम जिस अनुष्ठान को करते हैं, वह तुम्हारा ही है।
Hey Agni Dev! Please acts in such a way the host who is aware of the glory of the demigods-deities is able to satisfy them and we too act similarly. The Yagy performed-conducted by us too belong to you. 
ऋग्वेद संहिता, द्वितीय मण्डल सूक्त (6) ::  ऋषि :- सोमाहुति,  भार्गव, देवता :- अग्नि, छन्द :- गायत्री
इमां मे अग्ने समिधमिमामुपसदं वनेः। इमा उ षु श्रुधी गिरः
हे अग्नि देव! आप मेरी इस समिधा और आहुति का उपभोग करें, मेरी यह स्तुति श्रवण करें।[ऋग्वेद 2.6.1]
हे अग्नि देव! मेरी समिधा और आहुतियों को प्राप्त करो, मेरे श्लोकों को सुनो।
Hey Agni Dev! Accept & utilise my wood and offerings, listening to my prayers. 
अया ते अग्ने विधेमोर्जो नपादश्वमिष्टे। एना सूक्तेन सुजात
बल पुत्र, विस्तीर्ण-यज्ञशाली और सुजन्मा अग्निदेव! हम इस आहुति के द्वारा आपकी सेवा करेंगे। हे अग्निदेव! इस स्तुति से आपको हम प्रसन्न करेंगे।[ऋग्वेद 2.6.2]
हे अग्नि देव! हम तुम्हें आहुतियों से हर्षित करें। तुम महान जन्म वाले शक्ति के पुत्र हो। तुम यज्ञ को विस्तृत करते हो। हमारी प्रार्थना से प्रसन्न होओ।
hey Agni Dev! You are born out of great purity-piousness, the son of Bal, extensive, busy in the Yagy. We will make offerings and offer prayers-Stuti to make to you happy. 
तं त्वा गीर्भिर्गिर्वणसं द्रविणस्युं द्रविणोदः। सपयंम सपर्यवः
हे धनद अग्नि देव! आप स्तुति के योग्य और यज्ञ के अभिलाषी है। हम आपके सेवक स्तुति द्वारा आपकी सेवा करेंगे।[ऋग्वेद 2.6.3]
हे धनदाता, अग्नि देव! तुम अनुष्ठान की अभिलाषा करने वाले, वंदना के योग्य हो। हम तुम्हारे साधक वंदनाओं से प्रार्थना करते हैं।
Hey wealth-riches granting Agni Dev! We will serve you by making prayers as your servants. You deserve the Stuti-prayers and is desirous of Yagy.
स बोधि सूरिर्मघवा वसुपते वसुदावन्। युयोध्यस्मद्वेषांसि
हे अग्नि देव! आप धनवान्, विद्वान् और धन देने वाले हैं। उठें और हमारे शत्रुओं को हमसे दूर करें।[ऋग्वेद 2.6.4]
हे अग्नि देव! तुम मेधावी धन प्रदान करने वाले हो। उनको हमारे शत्रुओं को बता दो।
Hey Agni Dev! You are sagacious, enlightened possessing wealth. Get up and repel our enemies. 
स नो वृष्टिं दिवस्परि स नो वाजमनर्वाणम्। स नः सहस्रिणीरिषः 
वही अग्नि देव हमारे लिए अन्तरिक्ष से वर्षा प्रदान करते हैं। वे हमें महान् बल और नाना प्रकार का अन्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 2.6.5]
अग्नि हमारे लिए अंतरिक्ष में जल की वर्षा करते हैं। वह हमें महाबली बनाएँ और असंख्य अन्न प्रदान करें।
Agni Dev make-generate rains for us in the space. Let him make us powerful-mighty and grant us various kinds of food grains.  
ईळानायावस्यवे यविष्ठ दूत नो गिरा। यजिष्ठ होतरा गहि
हे तरुणतम देवदूत, अतिशय यजनीय अग्निदेव! मैंने आपकी स्तुति की है, इसलिए पधारें। मैं आपका पूजक हूँ और आपका आश्रय चाहता हूँ।[ऋग्वेद 2.6.6]
हे अति युवा अग्नि देव! मेरी प्रार्थनाओं को सुनकर यहाँ पर पधारो। मैं तुम्हारे सहारे की कामना से अर्चना करता हूँ।
Hey youngest Agni Dev! You deserve worship-prayers with extremities-beyond limits. I am worshiping you to call-invite you here. I worship you and desire shelter-protection under you.
अन्तर्ह्यग्न ईयसे विद्वान् जन्मोभया करें। दूतो जन्येव मित्र्यः
हे मेधावी अग्नि देव! आप मनुष्यों के हृदय को पहचानते हैं, आप उभय रूप जन्म जानते है। आप संसार और बन्धुओं के दूत रूप हैं।[ऋग्वेद 2.6.7]
हे अग्नि देव! तुम मनुष्यों के हृदयों की बात समझते हो, तुम उनके दोनों जन्मों की बात जानते हो। तुम ज्ञानी, मित्रों की भलाई करने वाले तथा दूत रूप हो।
Hey intelligent Agni Dev! You understand what is there in the hearts-minds of the humans. You know their past lives and is the well wisher-brother and the messenger of the demigods-deities.
स विद्वाँ आ च पिप्रयो यक्षि चिकित्व आनुषक्। 
आ चास्मिन्त्सत्सि बहिर्षि
यथाक्रम आप देवों का यज्ञ करें और कुश के ऊपर बैठे। अग्निदेव आप विद्वान् हैं आप हमारी मनोकामना पूर्ण करें, क्योंकि आप चैतन्य युक्त हैं। [ऋग्वेद 2.6.8] 
हे अग्निदेव! तुम ज्ञानी हो। हमारी इच्छाएँ पूरी करो। तुम चैतन्यप्रद हो। देवताओं का करने के लिए कुश पर पधारो।
Hey Agni Dev! You are enlightened. Perform the Yagy for the sake of demigods-deities occupying Kush mate. Full-accomplish our desires since you are conscious-awake.
ऋग्वेद संहिता, द्वितीय मण्डल सूक्त (7) ::  ऋषि :- सोमाहुति,  भार्गव, देवता :- अग्नि, छन्द :- गायत्री
श्रेष्ठं यविष्ठ भारताग्ने द्युमन्तमा भर। वसो पुरुस्पृहं रयिम्
हे तरुणतम, भरणकर्ता और व्याप्त अग्नि देव! अतिशय प्रशंसनीय, दीप्तिमान् और बहुजन वाञ्छित धन ले आवे।[ऋग्वेद 2.7.1]
हे अतियुवा अग्निदेव! तुम पोषक, पालक, प्रशंसनीय तथा ज्योर्तिवान हो। अनेकों म्पूर्ण जगत् के सजीव एवं जीव द्वारा अभिलाषी धनों को यहाँ लाओ। 
Hey youngest  nourishing-nurturing, all pervading Agni Dev! Bring the best appreciated, shinning wealth desirable by most of the people.
मा नो अरातिरीशत देवस्य मर्त्यस्य च पर्षि तस्या उत द्विषः
हे अग्नि देव! मनुष्यों या देवों की शत्रुता हमें पराजित न करे हमें दोनों प्रकार के शत्रुओं से बचायें।[ऋग्वेद 2.7.2]
हे अग्नि देव! शत्रुओं का पक्ष लेकर हमको पराजित न करो। हमारी प्रत्येक प्रकार से सुरक्षा करो।
Hey Agni Dev! Protect us from defeat due the enmity with either the demigods-deities or the humans.
विश्वा उत त्वया वयं धारा उदन्याइव। अति गाहेमहि द्विषः
हे अग्नि देव! जल की धारा की तरह हम समस्त शत्रुओं को स्वयं ही लाँघ जायेंगे।[ऋग्वेद 2.7.3]
हे अग्नि देव! तुम्हारी कृपा दृष्टि से हम अपने आप समर्थवान बन जायेंगे।
Hey Agni Dev! Let us over power the enemies like the flow of waters our self. 
शुचिः पावक वन्द्योऽग्ने बृहद्वि रोचसे। त्वं घृतेभिराहुतः
हे अग्नि देव! आप शुद्ध, पवित्र कर्ता और वन्दनीय है। घृत द्वारा आहूत होकर आप अत्यन्त दीप्त होते हैं।[ऋग्वेद 2.7.4]
हे पावक! तुम पूजनीय हो। घृत की आहुतियों द्वारा तुम अत्यन्त प्रकाशवान हो।
Hey Agni Dev! You are pious-pure, purity generating and deserve worship. You become bright by pouring-offering Ghee. 
त्वं नो असि भारताग्ने वशाभिरुक्षभिः। अष्टापदीभिराहुतः
हे भरणकर्ता अग्निदेव! आप हमारे हैं। आप बन्ध्या गौ, वृष और गर्भिणी गौवों द्वारा पूजित हुए हैं।[ऋग्वेद 2.7.5]
हे अग्नि देव! तुम पालनकर्त्ता हो। हमारी सुन्दर गौ, बैलों और बछड़ों द्वारा पूजे जाते हो।
Hey Agni Dev! Yu belong to us. You are worshipped by the infertile cows, bulls and the pregnant cows. 
द्व्रन्नः सर्पिरासुतिः प्रत्नो होता वरेण्यः। सहसस्पुत्रो अद्भुतः
जिनका अन्न  समिधा है, जिनमें घृत सिक्त होता है, वे ही पुरातन, होम निष्पादक, वरणीय और बल के पुत्र अग्निदेव अतीव रमणीय है।[ऋग्वेद 2.7.6]
सिक्त :: सींचा हुआ, गीला; moistened, soaked.
प्रतापी, बल के पुत्र, यज्ञ संपादक, प्राचीन समिधा रूप अन्न वाले, घृत सिंचन की इच्छा करने वाली अग्नि अत्यन्त उत्तम है।
The son of Bal, Agni Dev who is admirable & ancient, Yagy conducting, acceptable and soaked with Ghee (butter oil). His food is Samidha-wood.
ऋग्वेद संहिता, द्वितीय मण्डल सूक्त (8) :: ऋषि :-  गुत्समद,  देवता :- अग्नि, छन्द :- अनुष्टुप्
वाजयन्निव नू रथान्योगां अग्नेरुप स्तुहि। यशस्तमस्य मीळ्हुषः
हे होता! अन्नाभिलाषी पुरुष की तरह प्रभूत यश वाले और अभीष्टदाता अग्नि देव के अश्वों की स्तुति करें।[ऋग्वेद 2.8.1]
जो अग्नि देव अश्व के समान तुल्य वाले, रमणीय अन्न वाले तथा अभिलाषी वृष्टि करने वाले हैं, उनका गुणगान करो।
Hey Ritviz-Yagy organisers! Desirous of food grains, pray-worship Agni Dev, who possess the qualities of horse, accomplish desires.
यः सुनीथो ददाशुषेऽजुर्यो जरयन्नरिम्। चारुप्रतीक आहुतः
सुनेता, अजर और मनोहर गति वाले अग्नि देव हवि प्रदान करने वाले यजमान के शत्रुओं के नाश के लिए आहूत हुए।[ऋग्वेद 2.8.2]
जो अग्निदेव नायक रूप से उत्तम चाल वाले हैं, उनको हविदाता, शत्रु के पतन हेतु पुकारता हूँ।
Agni Dev, who has evolved to kill the enemy, is immortal, a good leader and moves with rhythm-beautifully. 
य उ श्रिया दमेष्वा दोषोषसि प्रशस्यते। यस्य व्रतं न मीयते
सुन्दर ज्याला वाले जो अग्नि देव गृह में आते हुए दिन-रात स्तुत होते हैं, उनका व्रत कभी क्षीण नहीं होता।[ऋग्वेद 2.8.3]
जो अग्नि महान लपटों से परिपूर्ण हुए घरों में विद्यमान हुए प्रतिदिन पूजे जाते हैं, उनका कार्य अक्षुण रहता है।
Glory of Agni Dev is never lost, who is prayed-worshiped everyday in the homes.
आ यः स्वर्ण भानुना चित्रो विभात्यर्चिषा। अञ्जानो अजरैरभि
जिस प्रकार से किरण रूप सूर्य प्रकाशित होते हैं, विचित्र अग्नि देव भी अजर शिखाओं द्वारा चारों ओर प्रकाशित होकर उसी प्रकार से रश्मियों द्वारा सुशोभित होते हैं।[ऋग्वेद 2.8.4]
रश्मिवान् सूर्य के समान ही जरा-रहित अग्नि देव भी लपटों के साथ प्रकाशित होते रश्मियों से शोभायमान होते हैं। 
The way in which Sun lights with his rays, Agni Dev too lights with his flames in all directions.
अत्रिमनु स्वराज्यमग्निमुक्थानि वावृधुः। विश्वा अधि श्रियो दधे
शत्रुओं के विनाशक और स्वयं सुशोभित अग्नि देव के लिए समस्त ॠङ् मन्त्र प्रयुक्त होते हैं। इन्होंने सारी शोभाएँ धारण की है।[ऋग्वेद 2.8.5]
शत्रु नाशक और सुशोभित अग्नि अत्यन्त तेजोमय है। इनकी शोभा अद्भुत है।
The glory of Agni Dev is amazing. He kills the enemy and displays himself energetically.
अग्नेरिन्द्रस्य सोमस्य देवानामूतिभिर्वयम्। 
अरिष्यन्तः सचेमह्यभि ष्याम पृतन्यतः
हमने अग्नि देव, इन्द्र देव, सोम देव और अन्य देवताओं का आश्रय प्राप्त किया है। (अंतः) हमारा कोई अनिष्ट नहीं कर सकता। हम शत्रुओं पर विजय प्राप्त करेंगे।[ऋग्वेद 2.8.6]
हम अग्नि, इन्द्र, सोम तथा अन्य देवों का आश्रय प्राप्त कर चुके हैं। अब कोई हमारा बुरा नहीं कर सकता। हम शत्रुओं को हराने में सक्षम हों।
We have attained shelter, protection, asylum under Agni Dev, Indr Dev, Som Dev and the other demigods-deities, hence non can harm us. We will conquer-win the enemy.
ऋग्वेद संहिता, द्वितीय मण्डल सूक्त (9) ::  ऋषि :- गुत्समद,  भार्गव, शौनक, देवता :- अग्नि, छन्द :- त्रिष्टुप्
नि होता होतृषदने विदानस्त्वेषो दीदिवाँ असदत्सुदक्षः। 
अदब्धव्रतप्रमतिर्वसिष्ठः सहस्रंभरः शुचिजिह्वो अग्निः
अग्निदेव देवताओं के होता, विद्वान्, प्रज्वलित, दीप्तिमान्, प्रकृष्ट बलशाली, अप्रतिहत, अनुग्रह विशिष्ट, निवास दाता, सबके भरणकर्ता और विशुद्ध शिखावाले हैं। होता के भवन में अग्निदेव अच्छी तरह प्रतिष्ठित हों।[ऋग्वेद 2.9.1]
वह अग्निदेव मेधावी, ज्योतिवान, शक्तिशाली, अद्भुत होता, शरणाभूत, सत्यवक्ता और लपट परिपूर्ण हैं। अनुष्ठानशाला में महान आसन पर विराजमान हों।
Agni Dev is the host of the demigods-deities, enlightened, glowing, powerful, grants shelter-asylum and home, support-nurture all, possess a pure-bright flame. Occupy a privileged seat in the house of the host. 
त्वं दूतस्त्वमु नः परस्यास्त्वं वस्य आ वृषभ प्रणेता। 
अग्ने तोकस्य नस्तने तनूनामप्रयच्छन्दीद्यद्बोधि गोपाः
हे अभीष्ट वर्षक अग्नि देव! आप हमारे दूत बनें। हमें विपत्ति से बचावें। हमें धन प्रदान करें। अहंकार शून्य और दीप्तिशाली होकर हमारे और हमारे पुत्रों के रक्षक बनें। हे अग्निदेव! जागृत होवें।[ऋग्वेद 2.9.2]
हे अभिलाषी वृष्टि करने वाले अग्निदेव! हमारा दौत्य कार्य सम्पन्न करो। हमारी और पुत्रों की सुरक्षा करो।
Hey accomplishment-desires granting Agni Dev! Become our messenger. Grant us riches. Become ego free, shinning and protect our sons. Hey Agni Dev! Wake up. 
विधेम ते परमे जन्मन्नग्ने विधेम स्तोमैरवरे सधस्थे। 
यस्माद्योनेरुदारिथा यजे तं प्र त्वे हवींषि जुहरे समिद्धे
हे अग्नि देव! हम आपके उत्तम जन्म स्थान में आपकी सेवा करेंगे। जिस स्थान से आप उद्भुत हुए है, उसकी भी पूजा करेंगे। वहाँ आपके प्रज्वलित होने पर अध्वर्यु (यजुर्वेद चिह्नित कार्य करने वाले) लोग आपको लक्ष्य कर हव्य प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 2.9.3]
हे अग्नि देव! तुम्हारे जन्म स्थान में तुम्हें पूजेंगे। जहाँ प्रकट हुए हो उस जगह की अर्चना करेंगे। वहाँ प्रदीप्त होने पर तुम्हें हवियाँ दी जाती हैं। 
Hey Agni Dev! We will worship-pray at your excellent birth place. We will that place as well, where you are born. The priests make offerings for you at that place. 
अग्ने यजस्व हविषा यजीयाजुष्टी देष्णमभि गृणीहि राधः।
त्वं ह्यसि रविपती रयीणां त्वं शुक्रस्य वचसो मनोता
हे अग्नि देव! याज्ञिकों में आप श्रेष्ठ है। हव्य द्वारा आप यज्ञ करें। तत्पर होकर आप देवों के पास हमारे दिये जाने योग्य अन्न की प्रशंसा करें। आप धनों में उत्कृष्ट धन के अधिपति हैं। आप हमारे प्रदीप्त स्तोत्र को श्रवण करें।[ऋग्वेद 2.9.4]
हे अग्ने! तुम श्रेष्ठ यज्ञकर्त्ता हो। हमको दिये जाने वाले योग्य अन्नों को देवगणों से दिलवाओ। तुम धन के दाता हो। हमारी सुति के ज्ञाता बनो।
Hey Agni Dev! You are the best amongest the Yagy performers. Perform the Yagy with the help of offerings. Appreciate the food grains offered by us to the demigods-deities dedicatedly. You are the possessor of the best wealth. Listen to our brilliant composition-Strotr.  
उभयं ते न क्षीयते वसव्यं दिवेदिवे जायमानस्य दस्म। 
कृधि क्षुमन्तं जरितारमग्ने  कृधि पतिं स्वपत्यस्य रायः
हे दर्शनीय अग्निदेव! आप प्रतिदिन उत्पन्न होते है। आपका दिव्य और पार्थिव धन नष्ट नहीं होता। फलस्वरूप आप स्तोत्र कर्ता यजमान को अन्न युक्त करें। उसे सुन्दर अपत्य वाले धन का स्वामी बनायें। 
[ऋग्वेद 2.9.5]
अपत्य :: औलाद, संतान, वंशज; offspring, progeny, children. 
हे अग्ने! तुम दर्शनीय एवं कष्ट नाशक हो। तुम्हारा अद्भुत या पार्थिव, कोई भी समृद्धि समाप्त नहीं होती। वंदनाकारी को अन्न प्रदान करो और उसे धनों का अधिपति बनाओ।
Hey beautiful Agni Dev! You evolve every day. Your divine and material form of wealth destroy. Make the Ritviz performing Yagy possessor of food stuff, grains. Let the host-Ritviz be blessed with beautiful-handsome offspring-progeny. 
सैनानीकेन सुविदत्रो अस्मे यष्टा देवाँ आयजिष्ठः स्वस्ति। 
अदब्धो गोपा उत नः परस्या अग्रे द्युमदुत रेवद्दिदीहि
हे अग्नि देव! आप अपने बल के साथ हमारे प्रति अनुग्रह करें। आप देवों के याजक, सर्वापेक्षा उत्तम यज्ञकर्ता, देवों के रक्षक और हमारे पालक हैं। आपकी कोई हिंसा नहीं कर सकता। धन और कान्ति से युक्त होकर आप चारों ओर देदीप्यमान होवें।[ऋग्वेद 2.9.6] 
हे अग्निदेव! तुम अपने मित्रों सहित हम पर अपनी दया दृष्टि करो। तुम देवों के पालनकर्त्ता, हमारे रक्षक और अहिंसित हो। समृद्धि से परिपूर्ण तुम सर्वत्र ज्योर्तिवान हो।
Hey Agni Dev! Oblige us with your might and power. You are the priest of the demigods-deities, excellent Yagy performer, protector of the demigods-deities and our nurturer. No one can harm you. You should become aurous-glorious  possessing wealth.
ऋग्वेद संहिता, द्वितीय मण्डल सूक्त (10) ::  ऋषि :- गुत्समद,  भार्गव, शौनक, देवता :- अग्नि, छन्द :- त्रिष्टुप्
जोहूत्रो अग्निः प्रथमः पितेवेळस्पदे मनुषा यत्समिद्धः। 
श्रियं वसानो अमृतो विचेता मर्मृजेन्यः श्रवस्यः स वाजी
अग्नि देव सबसे प्रथम होतव्य और पिता के समान हैं। ये मनुष्यों के द्वारा यज्ञस्थान में प्रज्वालित हुए सेवनीय हैं। हैं। वह दीप्तिपूर्ण, मरणरहित, विभिन्न प्रज्ञायुक्त, अन्नवान्, बलवान् और सबके सेवनीय हैं।[ऋग्वेद 2.10.1]
सेवनीय :: सेवा करने योग्य, पूज्य; consumable.
अग्नि देव होता और पिता रूप हैं। वे मनुष्यों द्वारा अनुष्ठान स्थान में प्रदीप्त किये जाते हैं। वे ज्योर्तिवान, अमर, मेधावी, अन्न और शक्ति से परिपूर्ण सभी के द्वारा सेवा करने योग्य हैं।
Agni Dev is host as well as like a father. He is honourable & deserve to be served in the Yagy. He is ignited at the site of Yagy-Hawan by the humans. He is aurous, bright, immortal, intelligent, possessor of food grains, power-might and deserved to to be served by all. 
श्रूया अग्निश्चित्रभानुर्हवं मे विश्वाभिर्गीर्भिरमृतो विचेताः। 
श्यावआ रथं वहतो रोहिता वोतारुषाह चक्रे विभृत्रः
अमर, विशिष्ट प्रज्ञा वाले, विचित्र दीप्ति युक्त अग्नि देव मेरे सब स्तुति युक्त आह्वान को श्रवण करें। दो लाल घोड़े अग्नि देव का रथ वहन करते हैं। वे विविध स्थानों में जाते हैं।[ऋग्वेद 2.10.2]
मतिवान, दिव्य ज्योतिवाले अविनाशी अग्नि देव मेरे आह्वान को सुनो। उनके लाल रंग के अश्व उन्हें विभिन्न स्थानों में पहुँचाते हैं।
Immortal, possessing special intelligence ag brightness and amazing Agni Dev respond-listen to the my prayers. Two red horses drive his charoite. He visits various places.  
उत्तानायामजनयन्त्सुषूतं भुवदग्निः पुरुपेशासु गर्भ:। 
शिरिणायां चिदक्तुना महोभिरपरीवृतो वसति प्रचेताः
अध्वर्यु (यजुर्वेद विहित कार्य करने वाले) लोगों ने उर्ध्वमुख अरणि या काष्ठ में प्रेरित अग्नि को उत्पन्न किया है। अग्नि देव विविध औषधियों में गर्भ रूप से अवस्थित हैं। रात में उत्तम ज्ञानवान् अग्नि देव, महादीप्ति युक्त होकर वास करते हैं। उन्हें अन्धकार छिपा नहीं सकता।[ऋग्वेद 2.10.3]
अध्वर्युओं ने दो अरणियों से अग्नि को उत्पन्न किया। वे विविध बेलों में गर्भ रूप में व्याप्त होते और रात में अत्यन्त प्रकाश से युक्त और सभी लोकों के पालक हैं।
The priests ignite the fire rising upwards in the wood. Agni Dev is present in the form of various medicines in the wood. The enlightened Agni Dev reside-shows his presence with extremely bright light. The darkness can not hide him.
जिघर्म्यग्निं हविषा घृतेन प्रतिक्षियन्तं भुवनानि विश्वा। 
पृथुं तिरश्चा वयसा बृहन्तं व्यचिष्ठमन्नै रभसं दृशानम्
सारे भुवनों के अधिष्ठाता, महान् सर्वत्र गामी, शरीरवान्, प्रवृद्ध हव्य द्वारा व्याप्त, बलवान् और सबके दृश्यमान अग्नि देव की हम हव्य और घृत के द्वारा पूजा करते हैं।[ऋग्वेद 2.10.4]
अधिष्ठाता :: देखभाल करनेवाला, अध्यक्ष, नियामक; installer, dean, director, laird, manager, ruler.
वे बुद्धि को प्राप्त हुए। हवियों द्वारा व्याप्त होते होते हैं। सर्वव्यापी यज्ञ की कामना वाले अग्नि देव को हम घृत से सींचते हैं।
We worship-pray Agni Dev, who is the manager of all abodes, fast moving, possessing body, enriched with offerings, powerful, visible to all; with offerings & Ghee. 
आ विश्वतः प्रत्यञ्चं जिघर्म्यरक्षसा मनसा तज्जुषेत। 
मर्यश्रीः स्पृहयद्वर्णो अग्निर्नाभिमृशे तन्वा जर्भुराणः
सर्वव्यापी और यज्ञ के अभिमुख आने की इच्छा करते हुए अग्नि देव को घृत द्वारा हम सिक्त करते हैं। वे शान्त चित्त से उस घृत को ग्रहण करें। मनुष्यों के भजनीय और श्लाघनीय वर्ण वाले अग्निदेव के पूर्ण प्रज्वलित होने पर उन्हें कोई स्पर्श नहीं कर सकता।[ऋग्वेद 2.10.5]
श्लाघनीय :: प्रशंसनीय; praiseworthy.
वे शांति पूर्वक उसे सेवन करें। अग्नि के पूर्ण प्रदीप्त होने पर उन्हें स्पर्श करने में कोई सक्षम नहीं हैं।
We offer Ghee to Agni Dev with the desire to participate in the Yagy. Let him accept Ghee with peaceful mind. None can touch Agni Dev, who is praiseworthy when he is ignited in his full-ultimate form. 
ज्ञेया भागं सहसानो वरेण त्वादूतासो मनुवद्वदेम। 
अनूनमग्निं जुह्वा वचस्या मधुपृचं घनसा जोहवीमि
अपने तेजो बल से शत्रुओं को पराजित करते समय अग्निदेव; आप हमारी सम्भोग योग्य स्तुति को श्रवण करें। आपका आश्रय पाकर हम मनु की तरह प्रार्थना करते हैं। उन बहुल मधुस्पर्शी और धन प्रद अग्निदेव का जुहू और स्तुति द्वारा मैं आह्वान करता हूँ।[ऋग्वेद 2.10.6]
हे अग्निदेव! अपने तेज से शत्रुओं को पराजित करते हुए हमारी इच्छा योग्य वंदनाओं को समझो। तुम्हारी शरण में हम मनुष्य के तुल्य वंदना करते हैं। तुम धन दाता हो, हाथ में जुहू लेकर मैं तुम्हें श्लोकों से पुकारता हूँ।
Hey Agni Dev listen to our prayers while you defeat the enemy with your might-power. We pray to you under your patronage, like Manu. I pray to you using a pot made of butea for the sake of-grant of riches.
ऋग्वेद संहिता, द्वितीय मण्डल सूक्त (11) ::  ऋषि :- गुत्समद,  भार्गव, शौनक, देवता :- इन्द्र, छन्द :- विरास्थाना, त्रिष्टुप्।
 श्रुधी हवमिन्द्र मा रिषण्यः स्याम ते दावने वसूनाम्। 
इमा हि त्वामूर्जो वर्धयन्ति वसूयवः सिन्धवो न क्षरन्तः
हे इन्द्र देव! आप मेरी स्तुति श्रवण करें। तिरस्कार न करें। हम आपके धनदान के पात्र हैं। नदी की तरह प्रवाहशाली यह हव्य यजमान के लिए धनेच्छा करता है। यह आपको भी वर्द्धित करता है।[ऋग्वेद 2.11.1]
हे इन्द्र देव! मेरी वंदना श्रवण करो। मेरा अपमान न करो। हम तुमसे धन लेने के योग्य हैं। यह नदी की भांति प्रवाह से परिपूर्ण हवि यजमान के लिए धन की इच्छा तुम्हारे वज्र की ध्वज की ओर अश्वों की स्तुति करते हैं।
Hey Indr Dev!  Respond to my prayers. Do not avoid-reject, discard us. We deserve to be the recipients of wealth (money, riches) from you. This flow of offerings like the river, desire money for the hosts-Ritviz. This will boost you as well. 
सृजो महीरिन्द्र या अपिन्वः परिष्ठिता अहिना शूर पूर्वी। 
अमर्त्यं चिद्दासं मन्यमानमवाभिनदुक्थैर्वावृधानः
हे शूर इन्द्र देव! आपने जो जल बरसाया, वृत्रासुर ने उसी प्रभूत जल पर आक्रमण किया। आपने उस जल को छोड़ दिया। उस दस्यु वृत्रासुर ने अपने को अमर समझा। स्तुति द्वारा वर्द्धित होकर उसको आपने नीचे पटक दिया।[ऋग्वेद 2.11.2]
हे वीर इन्द्र! तुम्हारे द्वारा किये गये पानी पर वृत्र ने हमला किया, तुमने उस पानी को मुक्त कर दिया। वह वृत्र अपने को अमर मानता था, परन्तु प्रार्थनाओं से वृद्धि प्राप्त कर तुमने उसे धराशायी बनाया है।
Hey brave Indr Dev! Vrata Sur attacked over the waters rained by you. You released that water. Vrata Sur considered himself to be immortal. The prayers made you strong and you threw Vrata Sur down.
उक्थेष्विन्नु शूर येषु चाकन्स्तोमेष्विन्द्र रुद्रियेषु च। 
तुभ्येदेता यासु मन्दसानः प्र वायवे सिस्रते न शुभ्राः
हे शूर इन्द्र देव! जिस सुखकर या रुद्रकृत ॠङ्-मंत्र और स्तोत्र की आप इच्छा करते हैं और जिसमें आपको आनन्द मिलता है, वह सब शुभ और दीप्यमान स्तुति, यज्ञ के प्रति आपके लिए प्रसूत होती है।[ऋग्वेद 2.11.3]
हे पराक्रमी इन्द्रदेव! तुम जिन सुखकारी श्लोकों की इच्छा करते थे, वे श्लोक ज्योर्तिमान हुए अनुष्ठान में तुम्हारे लिए प्रकट होते हैं। 
Hey brave & mighty Indr Dev! The pious, auspicious, aurous Strotr that you desired to hear-listen and relished, evolve for you in the Yagy.
शुभ्रं नु ते शुष्मं वर्धयन्तः शुभ्रं वज्रं बाह्वोर्दधानाः। 
शुभ्रस्त्वमिन्द्र वावृधानो अस्मे दासीर्विशः सूर्येण सह्याः
हे इन्द्र देव! स्तोत्र द्वारा हम आपके सुखकर बल को बढ़ाते तथा आपके हाथों में दीप्त वज्र अर्पण करते हैं। वर्द्धित और तेज युक्त होकर आप शत्रुओं को सूर्य रूप आयुध द्वारा पराजित करते हैं।[ऋग्वेद 2.11.4]
हे इन्द्र देव! वंदनाओं से हम तुम्हारी शक्ति में वृद्धि करते और वज्र भेंट करते हैं। तुम उन वस्तुओं को सूर्य के समान तेज से पराजित करते हो।
Hey Indr Dev! We increase (boost, enhance) your power-might by the recitation of Strotr which makes you comfortable and hand over the Vajr to you. Defeat the enemy with the increased power with the weapon like Sun. 
गुहा हितं गुहां गूळ्हमप्स्वपीवृतं मायिनं क्षियन्तम्। 
उतो अपो द्यां तस्तभ्वांसपहन्नहिं शूर वीर्येण
हे शूर इन्द्र देव! गुफा में अवस्थित अप्रकाश्य, लुक्काति, तिरोहित और जल में अवस्थित जिस वृत्रासुर ने अपनी शक्ति से अन्तरिक्ष और द्युलोक को विस्मित किया था, उसको वज्र द्वारा आपने विनष्ट किया।[ऋग्वेद 2.11.5]
तिरोहित :: अदृश्य; लुप्त, अंतर्हित, ओझल, ढका हुआ या छिपा हुआ; invisible, hidden, disappeared. 
हे इन्द्र देव! गुफा में छिपे हुए जिस वृत्र ने अपने अद्भुत पराक्रम से अतंरिक्ष और नभ को आश्चर्यजनक किया उसे तुमने वज्र से मार डाला।
Hey brave Indr Dev! Vrata Sur who amazed the heavens with his mystic powers and was hidden-invisible in the cave, deeper inside waters, was killed by you with your Vajr. 
स्तवा नु त इन्द्र पूर्व्या महान्युत स्तवाम नूतना कृतानि। 
स्तवा वज्रं बाह्वोरुशन्तं स्तवा हरी सूर्यस्य केतू
हे इन्द्र देव! हम आपकी प्राचीन महत्कीर्तियों की स्तुति करते हैं तथा आपके आधुनिक कृत कर्मों की स्तुति करते हैं। आपके दोनों हाथों में दीप्यमान वज्र की स्तुति करते हैं। आप सूर्य देव की आत्मा है। आपके पताका स्वरूप हरि नाम के अश्वों की हम स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 2.11.6]
हे इन्द्र देव! हम तुम्हारे महान ऐश्वर्य का गुणगान करते हैं और तुम्हारे अद्भुत कर्मों की प्रशंसा करते हैं। तुम्हारे वज्र की ध्वज की ओर अश्वों की स्तुति करते हैं।
Hey Indr Dev! We appreciate your present & past  deeds-ventures. We worship pray the shinning Vajr present in your hands. You are the soul of Sun. We pray your horses who represent your flag. 
हरी नु त इन्द्र वाजयन्ता घृतश्चुतं स्वारमस्वार्ष्टाम। 
वि समना भूमिरप्रथिष्टारंस्त पर्वतश्चित्सरिष्यन्
हे इन्द्र देव! आपके शीघ्रगामी दोनों घोड़े जलवर्षी मेघ ध्वनि करते हैं। समतल पृथ्वी मेघ गर्जन सुनकर प्रसन्न हुई। मेघों ने भी इधर-उधर घूमकर शोभा प्राप्त की।[ऋग्वेद 2.11.7]
तुम्हारे अश्व जलवर्षक बादल की ध्वनि वाले हैं। भूमि भी मेघ गर्जन सुनकर प्रसन्न हुई और बादल भी सभी और वर्षा  करते हुए शोभायमान हैं।
Hey Indr Dev! Your fast running horses produce the sound of showering clouds. Flat earth became happy with the sound of clouds. The clouds appeared beautiful moving around.  
नि पर्वतः साद्यप्रयुच्छन्त्सं मातृभिर्वावशानो अक्रान्। 
दूरे पारे वाणीं वर्धयन्त इन्द्रेषितां धमनिं पप्रथन्नि
प्रमाद शून्य मेघ अन्तरिक्ष में आया और मातृभूत जल के साथ इधर-उधर घूमने लगा। मरुतो ने अत्यन्त दूर अन्तरिक्ष में अवस्थित शब्द को बढ़ाते हुए, इन्द्रदेव द्वारा प्रेरित उस शब्द को चारों ओर फैला दिया।[ऋग्वेद 2.11.8]
बादल की ध्वनि वाला है। भूमि को गर्जना से प्रसन्न होती और बादल भी सभी ओर वर्षा करते हुए सुशोभित होते हैं। बादल अंतरिक्ष में पहुँचकर जल के साथ विचरण करने लगा। मरुद्गण ने उसकी ध्वनि को वृद्धि करते हुए सब जगह विद्यमान किया। 
The clouds appeared in the sky carrying waters and started roaming around. The Marud Gan spreaded the thunderous sound of the clouds, inspired by Indr Dev, every where. 
इन्द्रो महां सिन्धुमाशयानं मायाविनं वृत्रमस्फुरन्निः। 
अरेजेतां रोदसी भियाने कनिक्रदतो वृष्णो अस्य वज्रात्
बलवान् इन्द्रदेव ने इधर-उधर संचारी मेघ में अवस्थित मायावी वृत्रासुर को मार गिराया। जल वर्षक इन्द्र देव के वज्र के व्यापक शब्द से भय पाकर द्यावा पृथ्वी भी कम्पायमान् हो गई।[ऋग्वेद 2.11.9]
मायावी :: हाथ न आनेवाला, टाल-मटोल वाला, कपटी, धूर्त, मायावी, धोखे से भरा हुआ; elusive, deceptive.
महाबलिष्ठ इन्द्रदेव ने बादल में छिपे वृत्र का पतन किया। इन्द्रदेव ने वज्र द्वारा जल वृष्टि समाप्त से अम्बर, धरा, कम्पित होकर भयीभत हुई।
Mighty Indr Dev killed elusive, deceptive Vrata Sur, hiding himself in the clouds here or there. The earth trembled by the sound of Vajr of Indr Dev who produces rains.
अरोरवीष्णो अस्य वज्रोऽमानुषं यन्मानुषो निजूर्वात्। 
नि मायिनो दानवस्य माया अपादयत्पपिवान्त्सुतस्य
जिस समय मनुष्यों के हितकारी इन्द्र देव ने मनुष्यों के शत्रु वृत्रासुर के विनाश की इच्छा की थी, उस समय अभीष्ट वर्षक इन्द्र देव का वज्र बार-बार गर्जन करने लगा। इन्होंने अभिषुत सोमरस का पान करके मायावी दानव की सारी माया को नष्ट कर दिया।[ऋग्वेद 2.11.10]
माया :: कठवैधता, छल, वंचना, प्रतारणा, नीमहक़ीमी, छल, प्रवंचना; caste, spell,  charlatanry, charlatanism
प्राणियों का हित करने वाले इन्द्र ने वृत्र को मारने की अभिलाषा की तो उनका व्रज गरजने लगा। इन्द्र ने सोमरस पीकर दानवों की माया को अलग-थलग कर दिया।
Vajr started thundering again & again, when well wisher of humans Indr Dev desired to destroy Vrata Sur. He used Somras (sipped, drunk) and destroyed the elusive powers, spell-cast of the demon. 
पिबापिबेदिन्द्र शूर सोमं मन्दन्तु त्वा मन्दिनः सुतासः। 
पृणन्तस्ते कुक्षी वर्धयन्त्वित्था सुतः पौर इन्द्रमाव
हे इन्द्र देव! आप अभिषुत सोमरस का पान करें। मददाता सोमरस आपको प्रसन्न करे। सोमरस आपके उदर की पूर्ति करके आपको प्रसन्न करे। इस प्रकार उदरपूरक सोमरस इन्द्र को तृप्त करें।[ऋग्वेद 2.11.11]
हे इन्द्र देव! इस निचोड़े हुए सोम रस को पियो वह तुम्हें हर्ष प्रदान करें। उससे तुम्हारी उदर पूर्ति हो। उदर को पूर्ण करने वाला सोमरस तुम्हें तृप्त करे। 
Hey Indr Dev! Consume the extracted-distilled Somras. Let the refreshing-intoxicating Somras refresh you. Let it fill your stomach-belly. In this way the Somras which satisfy hunger satisfy Indr Dev. 
त्वे इन्द्राप्य भूम विप्रा धियं वनेम ऋतया सपन्तः। 
अवस्यवो धीमहि प्रशस्तिं सद्यस्ते रायो दावने स्याम
इन्द्र देव हम मेधावी हैं। हम आपके अन्दर स्थान पावें। कर्म फल की कामना से हम आपकी सेवा करके यज्ञ करेंगे। आपका आश्रय पाने की इच्छा से हम आपकी प्रशंसा का ध्यान करते हैं, ताकि हम इसी क्षण आपके धनदान के पात्र हो सकें।[ऋग्वेद 2.11.12]
हे इन्द्र देव! हम बुद्धिवान पुरुष तुम्हारे मन में जगह ग्रहण करेंगे। कर्म फल की कामना से तुम्हारी शरण के लिए तुम्हारी प्रार्थना करते हैं, जिससे हम तुम्हारा दिया हुआ धन शीघ्र प्राप्त कर सकें।
Hey Indr Dev! We are brilliant. Let us secure ourselves under you. We will organise Yagy to serve you, with the desire of reward of our deeds-ventures. We seek shelter, asylum, protection under you & appreciate you so that we become eligible to receive money-riches from you.
स्याम ते त इन्द्र ये त ऊती अवस्यव ऊर्जं वर्धयन्तः। 
शुष्मिन्तमं यं चाकनाम देवास्मे रयिं रासि वीरवन्तम्
हे द्युतिमान् इन्द्रदेव! आपके आश्रय लाभ की इच्छा से जो आपको हव्य वर्द्धित करते हैं, हम भी उन्हीं तरह आपके अधीन हो जावें। हम जिस धन की इच्छा करते हैं, आप हमें सर्वापेक्षा बलवान् और वीर पुत्र युक्त वही धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 2.11.13]
द्युतिमान् :: स्वायंभुव मनु के एक पुत्र का नाम, शाल्व देश के एक राजा का नाम (महाभारत), प्रियव्रत राजा के पुत्र जिन्हें क्रौंच द्वीप का राज्य मिला था (विष्णुपुराण), प्रकाशवाला, जिसमें चमक या आभा हो, जो तेज से भरा हुआ या मंडित हो; one who is possessing aura, energy. 
हे इन्द्रदेव! तुम्हारे सहारे की इच्छा से तुम्हें हवियों से वृद्धि करने वालों के तुल्य शरण ग्रहण करें। हे के इन्द्रदेव! तुम हमको वीर पुत्र युक्त धन प्रदान कराओ।
Hey aurous Indr Dev! We should be alike those who make offerings to you to seek asylum-protection under you. You should provide-give us the wealth which we desire from you i.e., the son who is powerful-mighty, strong as compared to others. 
रासि क्षयं रासि मित्रमस्मे रासि शर्ध इन्द्र मारुतं नः। 
सजोषसो ये च मन्दसानाः प्र वायवः पान्त्यग्रणीतिम्
हे इन्द्र देव! आप हमें गृह दें, मित्र दें और महापुरुषों की तरह वीर्य दें, प्रसन्नचित्त वायुगण अतीव आनन्दित होकर आगे लाया हुआ सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 2.11.14]
हे इन्द्रदेव हमें निवास बंधु और उत्तम पौरुष प्रदान करो। पवन के साथ पराक्रम वाले देवता इस सोम रस को पीएँ।
Hey Indr Dev! Give us house-home, friends and energetic masculine power. Let the Demigods-deities drink Somras along with Pawan Dev amusingly-happily. 
व्यन्त्विन्नु येषु मनदसानस्तृपत्सोमं पाहि द्रह्यदिन्द्र। 
अस्मान्त्सु पृत्स्वा तरुत्रावर्धयो द्यां बृहद्भिरर्कैः
हे शत्रु नाशक इन्द्र देव! जिन मरुतों के सहायक होने पर आप प्रसन्न होते हैं, वे शीघ्र सोमरस का पान करें। आप भी अपने को दृढ़ करके तृप्तिकर सोमरस का पान करें। बलवान् और पूजनीय मरुतों के साथ आप युद्ध में हमें वर्द्धित करें, घुलोक को भी वर्द्धित करें।[ऋग्वेद 2.11.15]
हे इन्द्र देव! तुम्हारे सहायक मरुद्गण सोम रस ग्रहण करें। तुम भी इस संतुष्ट करने वाले सोमरस को पियो। तुम शत्रुओं का नाश करने वाले हो। पूज्य मरुतो सहित हमको युद्ध में आगे बढ़ायें।
Hey enemy slayer Indr Dev! The Marud Gan with whom you become happy, should drink Somras when they help you. You too drink Somras with firmness and firm determination. You should promote-help us & the heavens in war along with mighty Marud Gan.
बृहन्त इन्नू ये ते तरुत्रोक्थेभिर्वा सुग्नमाविवासान्। 
स्तृणानासो बर्हिः पस्त्यावत्त्वोता इदिन्द्र वाजमग्मन्
हे अनिष्ट निवारक इन्द्र देव! आप सुखप्रद हैं। जो पुरुष स्तोत्रों द्वारा आपकी सेवा करता है, वह शीघ्र ही महान् हो जाता है। जो कुश बिछाकर आपकी सेवा करते हैं, वे आपका आश्रय प्राप्तकर गृह के साथ अन्न प्राप्त करते हैं।[ऋग्वेद 2.11.16]
अनिष्ट :: अनभिलाषित, घृणा उत्पन्न करनेवाला; unwelcome, forbidding, unwished, harmful, undesirable. 
हे इन्द्र देव! तुम अनिष्ट का समाधान करते हो। तुम्हारा सेवक शीघ्र ही श्रेष्ठता ग्रहण करता है। कुश बिछाकर तुम्हारी अर्चना करने वाले तुम्हारी शरण से घर और अन्न पाते हैं।
Hey undesirable forbidding Indr Dev! You grant comforts-luxuries. One who worship-pray you with the help of Strotr-hymns becomes great-honourable soon. One who who pray, sitting over the Kush mate, under your shelter, soon get house, food snakes. 
उग्रेष्विन्नु शूर मन्दसानस्त्रिकुद्रकेषु पाहि सोममिन्द्र। 
प्रदोधुवच्छ्मश्रुषु प्रीणानो याहि हरिभ्यां सुतस्य पीतिम्
हे शूर इन्द्र देव! आप उग्र त्रिकद्रु दिन विशेषों में अत्यन्त हृष्ट होकर सोमरस का पान करें। अनन्तर प्रसन्न होकर और अपनी दाढ़ी-मूँछ में लगे सोमरस को झाड़कर सोमरस के पान के लिए हरि नामक घोड़े पर चढ़कर पधारें।[ऋग्वेद 2.11.17]
हे पराक्रमी इन्द्र देव! तुम त्रिलोकों में सूर्य के तुल्य हुए सोमपान करो। फिर अपनी मूछों को पोंछकर हर्षिता पूर्वक अश्वों के द्वारा यहाँ आओ।
Hey brave-mighty Indr Dev! Enjoy the Somras in the three abodes like the Sun. Remove the Somras struck over your beard & moustaches, ride your horse named Hari and come to receive Somras. 
धिष्वा शवः शूर येन वृत्रमवाभिनदानुमौर्णवाभम्। 
अपावृणोर्ज्योतिरार्याय नि सव्यतः सादि दस्युरिन्द्र
हे इन्द्र देव ! जिस बल के द्वारा आपने दनु के पुत्र वृत्रासुर को ऊर्णनाभि कीट की तरह विनष्ट किया, वही बल धारण करें। आर्य के लिए आपने ज्योति दी है। दस्युओं के आप विरोधी हैं।[ऋग्वेद 2.11.18]
हे इन्द्रदेव जिस पराक्रम से तुमने असुर वृत्र को कीड़े के समान मसल डाला उसी पराक्रम को ग्रहण करो। जैसे प्राणियों के लिए आपने सूर्य का प्रकाश दिखाया और दस्युओं को हटा दिया।
Hey Indr Dev! Possess that might-power with which you killed the son of Danu Vrata Sur like an insect. You favour the virtuous-Ary and oppose the Asur-demons.
सनेम ये त ऊतिभिस्तरन्तो विश्वाः स्पृध आर्येण दस्यून्। 
अस्मभ्यं तत्त्वाष्ट्रं विश्वरूपमरन्धयः साख्यस्य त्रिताय
हे इन्द्र देव! जिन लोगों ने आपका आश्रय प्राप्त करके समस्त अहंकारी मनुष्यों का अतिक्रम किया और आर्यभाव द्वारा दस्यु का अतिक्रम किया, हम उनको भजते हैं। आपने त्रित की मित्रता के लिए त्वष्टा के पुत्र विश्वरूप का वध किया। हमारे लिए भी वैसा ही करें।[ऋग्वेद 2.11.19]
हे इन्द्र देव! तुम्हारे जिस आश्रित ने दंभियों या डाकुओं को भगा दिया, हम उसकी वंदना करते हैं। तुमने त्रित की मित्रता के लिए त्वष्टा के पुत्र विश्वरूप को समाप्त किया। हमारे लिए वैसे ही सखा भाववाले बनो।
Hey Indr Dev! We pray-worship those who virtuous, who over powered-defeated the arrogant. You killed Vishwroop the son of Twasta for the sake of friendship with Trit. Treat us just just like a friend.
अस्य सुवानस्य मन्दिनस्त्रितस्य न्यर्बुदं वावृधानो अस्तः। 
अवर्तयत्सूर्यो न चक्रं भिनद्बलमिन्द्रो अङ्गिरस्वान्
इन हृष्ट और सुतवान् त्रित द्वारा वर्द्धित होकर इन्द्र देव ने अर्बुद का विनाश किया। जिस प्रकार से सूर्य रथ चक्र चलाते हैं, उसी प्रकार से इन्द्र देव ने अंगिरा लोगों की सहायता प्राप्त करके वज्र को घुमाया और उनके बल को विनष्ट कर दिया।[ऋग्वेद 2.11.20]
त्रित द्वारा बढ़े हुए इन्द्र ने अर्व को मारा। सूर्य द्वारा अपने रथ के पहियों को चलाने के समान अंगिराओं की सहायता से वज्र घुमाकर शत्रु का दमन किया।
Indr Dev killed Arbud, being nourished-served by the strong-mighty Trit possessing-supported by his sons. Indr Dev rotated Vajr like the movement of the charoite of the Sun and removed the power-might of of the enemy with the help of Angira.  
नूनं सा ते प्रति वरं जरित्रे दुहीयदिन्द्र दक्षिणा मघोनी। 
शिक्षा स्तोतृभ्यो माति धग्भगो नो बृहद्वदेम विदथे सुवीराः
हे इन्द्र देव! आपकी जो धनवती दक्षिणा स्तोता का मनोरथ पूर्ण करती है, वह हमें भी प्रदान करें। आप भजनीय है। हमें छोड़कर और किसी को भी न देना। हम पुत्र-पौत्रादि से युक्त होकर इस यज्ञ में प्रभूत स्तुति करेंगे।[ऋग्वेद 2.11.21]
हे इन्द्र देव! तुम्हारी समृद्धिवाली वह दक्षिणा वंदना करने वालों का अभिष्ट पूर्ण करती है, उसे हमको प्रदान करो। उसे हमारे अतिरिक्त किसी भी अन्य को मत देना। हम संतन से परिपूर्ण हुए इस अनुष्ठान में तुम्हारी वंदना करें।
Hey Indr Dev! Give us the donations, gifts which fulfils the desires of the Ritviz-Stota. You deserve prayers-worship. Give all that to us, none else. We will pray-worship you through this Yagy, along with our sons-progeny. 
ऋग्वेद संहिता, द्वितीय मण्डल सूक्त (12) ::  ऋषि :- गुत्समद,  भार्गव, शौनक, देवता :- इन्द्र, छन्द :- विराट्स्थाना, त्रिष्टुप्।
यो जात एव प्रथमो मनस्वान्देवो देवान्क्रतुना पर्यभूषत्। 
यस्य शुष्माद्रोदसी अभ्यसेतां नृभ्णस्य मह्ना स जनास इन्द्रः
हे मनुष्यों! जो प्रकाशित हैं, जिन्होंने जन्म के साथ ही देवों में प्रधान और मनुष्यों में अग्रणी होकर वीरकर्म द्वारा समस्त देवों को विभूषित किया, जिनके शरीर बल से द्यावा पृथ्वी भीत हुई थी और जो महती सेना के नायक थे, वे ही इन्द्रदेव हैं।[ऋग्वेद 2.12.1]
जो अपनी शक्ति से परिपूर्ण प्रकट होकर मनुष्यों में अग्रगण्य हुए और जिन्होंने देवगणों को पराक्रमी कार्यों से वशीभूत किया, अम्बर और पृथ्वी जिनकी शक्ति से डर गयी, वह इन्द्र देव हैं।
Hey humans, one who is illuminated-aurous, became the leader-forward amongest the humans  & the demigods-deities, whose might created fears in the earth and the heavens, is leader-supreme commander of the huge army, is Indr Dev.  
यः पृथिवीं व्यथमानामद्दंहद्यः पर्वतान्प्रकुपिताँ अरम्णात्। 
यो अन्तरिक्षं विममे वरीयो यो द्यामस्तभ्नात्स जनास इन्द्रः
हे मनुष्यों! जिन्होंने व्यथित पृथ्वी को दृढ़ किया, जिन्होंने प्रकुपित पर्वतों को नियमित किया, जिन्होंने प्रकाण्ड अन्तरिक्ष को बनाया और जिन्होंने द्युलोक को निस्तब्ध किया, वे ही इन्द्रदेव हैं।[ऋग्वेद 2.12.2]
निस्तब्ध :: निश्चेष्ट, गतिहीन; quiet, motionless.
जिन्होंने कांपती पृथ्वी को स्थिरता प्रदान की और भड़कते हुए पर्वतों को शान्त किया, जिन्होंने अंतरिक्ष को बनाकर अम्बर को सहरा दिया, वे और कोई नहीं अपितु इन्द्र देव हैं!
Hey humans! Its Indr Dev, who made the earth firm-rigid, regularised the mountains, created the wide-enormous space and made the heavens quite.
यो हत्वाहिमरिणात्सप्त सिन्धून्यो गा उदाजदपधा वलस्य। 
यो अश्मनोरन्तरग्निं जजान संवृक्समत्सु स जनास इन्द्रः
हे मनुष्यों! जिन्होंने वृत्रासुर का विनाश करके सात नदियों को प्रवाहित किया, जिन्होंने थल से असुरों द्वारा रोकी हुई गायों का उद्धार किया, जो दो मेघों के बीच से अग्नि को उत्पन्न करते हैं और जो समर भूमि में शत्रुओं का नाश करते हैं, वे ही इन्द्रदेव हैं।[ऋग्वेद 2.12.3] 
जिन्होंने वृत्र का वध करके सात सरिताओं को बहा दिया और असुरों के बंधन से गायों को मुक्त कराया, जो मेघों में अग्नि उत्पन्न करके और शत्रुओं को युद्ध में परास्त करते हैं, वह इन्द्रदेव हैं।
Hey humans! Its Indr Dev who destroyed Vrata Sur and made the 7 river flow, released the cows, from the captivity of the demons, produce electric spark-fire in the clouds & kills the enemy in the battle field.
येनेमा विश्वा च्यवना कृतानि यो दासं वर्णमधरं गुहाकः। 
श्वघ्नीव यो जिगीवां लक्षमाददर्य: पुष्टानि स जनास इन्द्रः
हे मनुष्यों! जिन्होंने समस्त विश्व का निर्माण किया, जिन्होंने दासों को निकृष्ट और गूढ़ स्थान में स्थापित किया, जो लक्ष्य जीतकर व्याध की तरह शत्रु के सारे धन को ग्रहण किया, वे ही इन्द्रदेव हैं।[ऋग्वेद 2.12.4] 
जिन्होंने संसार को रचा और दुष्टों को गुफाओं में बसाया, जो शत्रुओं के धन को जीतते हैं, वह इन्द्रदेव हैं। 
Hey humans! Its Indr Dev who created the universe, posted the slaves at the worst and complicated place-position, snatched the wealth of the enemy like a tiger.  
यं स्मा पृच्छन्ति कुह सेति घोरमुतेमाहुर्नैषो अस्तीत्येनम्। 
सो अर्यः पुष्टीविक्षजइवा मिनाति श्रदस्मै धत्त स जनास इन्द्रः
हे मनुष्यो! जिन भयंकर देव के सम्बन्ध में लोग जिज्ञासा करते हैं, वे कहाँ है? जिनके विषय में लोग बोलते हैं कि वे नहीं हैं और जो शासक की तरह शत्रुओं का सारा धन विनष्ट करते हैं; विश्वास करें, वे ही इन्द्रदेव हैं।[ऋग्वेद 2.12.5]
जिनके विषय में जनता चर्चा करती है। शत्रुओं के धन को शासक के समान जो छीन लेते हैं, वे इन्द्र हैं।
Hey humans! Its Indr Dev who is furious, people enquire about whom & where. People say he does not exist, snatches the wealth of the enemy like a ruler, believe its the Indr Dev.
यो रध्रस्य चोदिता यः कृशस्य यो ब्रह्मणो नाधमानस्य कीरेः। 
युक्तग्राव्णो योऽविता सुशिप्रः सुतसोमस्य स जनास इन्द्रः
हे मनुष्यों! जो समृद्ध धन प्रदान करते हैं, जो दरिद्र याचक और स्तोता को धन देते हैं और जो शोभन हनु या केहुनी (elbow) वाले होकर सोमाभिषवकर्ता और हाथों में पत्थर वाले यजमान के रक्षक हैं, वे ही इन्द्रदेव हैं।[ऋग्वेद 2.12.6]
हनु :: ठोड़ी, चिबुक; chin. 
अत्यन्त धन प्रदान करने वाले, निर्धन, याचक और प्रार्थना करने वालों को धन दाता सुशोभित यजमानों के जो पोषक हैं, वही इन्द्रदेव हैं।
Hey Humans! Its Indr Dev who grants riches, comforts, gives money to the poor requesting money, possess beautiful chin & elbow, is the protector of the hosts-Ritviz offering Somras to him. 
यस्याश्वासः प्रदिशि यस्य गावो यस्य ग्रामा यस्य विश्वे रथासः। 
यः सूर्यं य उषसं जजान यो अपां नेता स जनास इन्द्रः
हे मनुष्यों! घोड़े, गौवें, गाँव और रथ जिनकी आज्ञा के अधीन हैं, जो सूर्य और उषा को उत्पन्न करते हैं और जो जल प्रेरित करते हैं, वे ही इन्द्रदेव हैं।[ऋग्वेद 2.12.7]
जिनके आदेश में घोड़े, गायें, रथ आदि हैं, जो सूर्य उषा के नियामक और जल को शिक्षा देने वाले हैं, वह इन्द्रदेव हैं।
Hey humans! Its the Indr Dev who controls the horses, cows, villages and the charoites, produces the Sun and the day break-Usha and inspires the water.
Here the Almighty is addressed as Indr Dev. 
यं क्रन्दसी संयती विह्वयेते परेऽवर उभया अमित्राः। 
समानं चिद्रथमातस्थिवांसा नाना हवेते स जनास इन्द्रः
हे मनुष्यों! दो सेना बल परस्पर मिलने पर जिन्हें बुलाते हैं, उत्तम-अधम दोनों प्रकार के शत्रु जिन्हें बुलाते हैं और एक ही तरह के रथों पर बैठे हुए दो मनुष्य जिन्हें नाना प्रकार से बुलाते हैं, वे ही इन्द्रदेव हैं।[ऋग्वेद 2.12.8] 
युद्ध में जिन्हें हम आमंत्रित करते हैं। वह इन्द्रदेव हैं।
Hey humans! Its Indr Dev who is invited by the two armies when they meet, excellent & depraved enemies call him, two people riding one type of charoite call him in different ways.  
यस्मान्न ऋते विजयन्ते जनासो यं युध्यमाना अवसे हवन्ते। 
यो विश्वस्य प्रतिमानं बभूव यो अच्युतच्युत्स जनास इन्द्रः
हे मनुष्यो! जिनके न रहने से कोई विजयी नहीं हो सकता, युद्धकाल में रक्षा के लिए जिन्हें लोग बुलाते हैं, जो समस्त संसार के प्रतिनिधि हैं और जो क्षय रहित पर्वतादि को भी नष्ट करते हैं, वे ही इन्द्रदेव हैं।[ऋग्वेद 2.12.9]
जिनकी उपेक्षा करने से लाभ नहीं होता उनकी वंदना की जाती है। जो अटल शैलों को भी नष्ट करने में समर्थ हैं। वह इन्द्र हैं।
Hey humans! Its Indr Dev in whose absence no one can win, who is called-prayed in the battle for security-protection, who represent the whole world and who is capable of destroying the imperishable mountains.
यः शश्वतो मह्येनो दधानानमन्यमानाञ्छर्वा जघान। 
यः शर्धते नानुददाति शृध्यां यो दस्योर्हन्ता स जनास इन्द्रः
हे मनुष्यों! जिन्होंने वज्र द्वारा अनेक महापापी अपूजकों का विनाश किया, जो गर्वकारी मनुष्यों को सिद्धि प्रदान करते हैं और जो दस्युओं के विनाशक हैं, वे ही इन्द्रदेव हैं।[ऋग्वेद 2.12.10]
स्वाभिमानी :: घमंडी, अभिमानी, दंभी, शानदार, अभिमानपूर्ण; self respecting, proud.
जिन्होंने पापियों को नष्ट किया है, जो स्वाभिमानी को सिद्धि देते हुए दुष्टों को मारते हैं वह इन्द्रदेव हैं।
Hey humans! Its Indr Dev, who killed the atheists with his Vajr, who grants accomplishment to self respecting, kills the dacoits.
यः शम्बरं पर्वतेषु क्षियन्तं चत्वारिंश्यां शरद्यन्वविन्दत्। 
ओजायमानं यो अहिं जघान दानुं शयानं स जनास इन्द्रः
हे मनुष्यों! जिन्होंने पर्वत में छिपे शम्बर असुर को चालीस वर्ष में खोजकर प्राप्त किया और जिन्होंने बलप्रकाशव, अहि नाम के सोये हुए दैत्य का विनाश किया, वे ही इन्द्रदेव हैं।[ऋग्वेद 2.12.11]
जिन्होंने धरा में अदृश्य शम्बर नामक दैत्य तथा विश्राम करते हुए महाबलिष्ठ अहि को समाप्त किया वे इन्द्रदेव हैं।
Hey Humans! Its Indr Dev who traced the demon Shambar hidden in the mountains in forty years. He killed the sleeping demon Ahi .
यः सप्तरश्मिर्वृषभस्तुविष्मानवासृजत्सर्तवे सप्त सिन्धून्। 
यो रौहिणमस्फुरद्वज्र बाहुर्द्यामारोहन्तं स जनास इन्द्रः
हे मनुष्यों! जो सप्तवर्ण या वराह, स्वपत, विद्युत्, महः, धूप, स्वापि, गृहमेध आदि सात रश्मियों वाले, अभीष्टवर्षी और बलवान् है, जिन्होंने सात नदियों को प्रवाहित किया और जिन्होंने वज्रवाह होकर स्वर्ग जाने को तैयार रौहिण को विनष्ट किया, वे ही इन्द्र देव है।[ऋग्वेद 2.12.12]
जो वराह रूप वाले श्रेष्ठ विद्युत के समान तेजस्वी, किरणों से युक्त अभिलाषी वर्षक एवं सात नदियों को प्रवाहमान करने वाले, भुजा में वज्र धारण करते हैं तथा जिन्होंने स्वर्गाकांक्षिणी रोहिणी को रोक दिया, वे इन्द्रदेव हैं।
Hey humans! Its Indr Dev, who possess seven colours, is quick like the electric spark, accepts-bears the shape-form of boar, accomplishment granting, flows the seven rivers, destroyed Rohini who desired to move to heavens.
द्यावा चिदस्मै पृथ्वी नमेते शुष्माच्चिदस्य पर्वता भयन्ते। 
यः सोमपा निचितो वज्रबाहुर्यो वज्रहस्तः स जनास इन्द्रः
हे मनुष्यों! द्यावा पृथिवी उन्हें प्रणाम करती हैं। उनके बल के सामने पर्वत काँपते हैं और जो सोमरस का पानकर्ता, दृढ़ांग, वज्रबाहु और वज्र युक्त हैं, वे ही इन्द्रदेव हैं।[ऋग्वेद 2.12.13]
जिनके सम्मुख पर्वत कांपते हैं, आकाश और पृथ्वी जिन्हें प्रणाम करती हैं, जो सोमपायी सुदृढ़ अंग वाले, वज्र भुजाओं वाले हैं, वे इन्द्र देव हैं।
Hey humans! Its the Indr Dev who is respected by the earth & the space-sky, the mountains tremble before him, drinks Somras, possesses the arms like Vajr, bears Vajr. 
यः सुन्वन्तमवति यः पचन्तं यः शंसन्तं यः शशमानमूती।
यस्य ब्रह्म वर्धनं यस्य सोमो यस्येदं राधः स जनास इन्द्रः
हे मनुष्यों! जो सोमाभिषव कर्ता यजमान की रक्षा करते हैं, जो पुरोडाश आदि पकाने वाले, स्तोता और स्तुति पाठक यजमान की रक्षा करते हैं और जिनके वर्द्धक स्तोत्र, सोम और हमारा अन्न हैं, वे ही इन्द्र देव है।[ऋग्वेद 2.12.14]
जो सोम छानने वालों के रक्षक पुरोडाश सिद्ध करने वाले स्तोत्रों के पालक हैं। जिनके श्लोक हमारे लिए अन्न के समान हैं, वह इन्द्र हैं। हे इन्द्र देव!
Hey humans! Its Indr Dev who protects the hosts-Ritviz who distil Somras, cooks offerings in holy fire, protects the Stota and the hosts, who's growing-nourishing Strotr are like Som and food grains. 
यः सुन्वते पचते दुध्र आ चिद्वाजं दर्दर्षि स किलासि सत्यः। 
वयं त इन्द्र विश्वह प्रियासः सुवीरासो विदथमा वदेम
हे इन्द्र देव! दुर्धर्ष होकर सोमाभिषव कर्ता और पाककारी यजमान को अन्न प्रदान करते हैं, इसलिए आप ही सत्य हैं। हम प्रिय और वीर पुत्र-पौत्रादि से युक्त होकर चिरकाल तक आपके स्तोत्र का पाठ करेंगे।[ऋग्वेद 2.12.15] 
दुर्धर्ष :: जिसे वश में करना कठिन हो, जिसे परास्त करना या हराना कठिन हो,  प्रबल, प्रचंड, उग्र, जिसे दबाया न जा सके, दुर्व्यवहारी,  धृतराष्ट्र का एक पुत्र, रावण की सेना का एक राक्षस; difficult to be assaulted.
तुम सोम छानने वाले और यजमान को अन्न प्रदान करते हो तुम सत्य स्वरूप हो। हम प्रिय संतान आदि से परिपूर्ण हुए तुम्हारी प्रार्थना का गान करेंगे।
Hey Indr Dev! You are difficult to be controlled (over powered, tamed), producer of Som, grants food grains to the Ritviz-hosts (One who is organising Yagy). You are the Ultimate truth. We will recite the Strotr-hymns, prayers devoted to you for ever. 
ऋग्वेद संहिता, द्वितीय मण्डल सूक्त (13) ::  ऋषि :- गुत्समद,  भार्गव, शौनक, देवता :- इन्द्र, छन्द :- विराट्स्थाना, त्रिष्टुप्, जगती
ऋतुर्जनित्री तस्या अपस्परि मक्षू जात आविशद्यासु वर्धते। 
तदाहना अभवत्पिप्युषी पयोऽशो: पीयूषं प्रथमं तदुक्थ्यम्
वर्षा ऋतु सोम की माता है। उत्पन्न होकर सोम जल में बढ़ता है, इसलिए उसी में प्रवेश करता है। जो सोमलता जल की सारभूत होकर वृद्धि को प्राप्त होती है, वह अभिषव के उपयुक्त है। उसी सोमलता का पीयूष इन्द्रदेव का हव्य है।[ऋग्वेद 2.13.1]
पीयूष :: देवाहार, देवताओं का भोजन, सुधा; ambrosia.
सोम वर्षा से रचित होता है। जल में वृद्धि करता है। जल की सारभूत सोमलता वृद्धि करती निचोड़े जाने के योग्य होती है। वही अमृत समान सोम इन्द्रदेव का पेय है।
Rainy season is the mother of Som Valli. Som Valli grows in water. Its good to be extracted. Its extract Somras is the food of demigods-deities i.e., ambrosia.
संध्रीमा यन्ति परि बिभ्रती: पयो विश्वप्स्न्याय प्र भरन्त भोजनम्। 
समानो अध्वा प्रवतामनुष्यदे यस्ताकृणोः प्रथमं सास्युक्थ्यः
परस्पर मिली हुई उदक वाहिनी नदियाँ चारों ओर बह रही है और समस्त जलों के आश्रयभूत समुद्र को भोजन प्रदान करती है। निम्म्रगामी जल का गन्तव्य मार्ग एक ही है। इन्द्रदेव आपने पहले ये सब काम किया है, इसलिए आप स्तुति योग्य है।[ऋग्वेद 2.13.2]
जल बहाने वाली नदियाँ सब जगह प्रवाहमान होती हुई समुद्र में समर्पण करती हैं? जल निचले रास्ते पर चलता है। हे इन्द्रदेव! तुम वह समस्त कर्म कर चुके हो, अतः प्रशांसा के योग्य हो। 
The rivers joint together, carrying water flow to the ocean. Its the ultimate reservoir for the water flowing in the down ward direction. Hey Indr Dev! You deserve appreciation since you have done it before-prior as well.
The aggregated (streams) come, bearing everywhere the water and conveying it as sustenance for the asylum of all rivers, (the ocean); the same path is (assigned) to all the descending (currents) to follow and as he, who has (assigned) them (their course), you, (Indra), are especially to be praised.
अन्वेको वदति यद्ददाति तद्रूपा मिनन्तदपा एक ईयते। 
विश्वा एकस्य विनुदस्तितिक्षते यस्तकृणोः प्रथमं सास्युक्थ्यः
एक यजमान जो दान करता है, दूसरा उसका अनुवाद करता है। एक जल पशु हिंसा करके हिंसा कर्ता बन जाता है, दूसरा सारे बुरे कर्मों का शोधन करता है। हे इन्द्रदेव! आपने पहले ये सब कर्म किया है, इसलिए आप स्तुति के योग्य हैं।[ऋग्वेद 2.13.3]
यजमान :: यज्ञ करने वाला व्यक्ति, ब्राह्मणों से धार्मिक कृत्य कराने वाला व्यक्ति, यज्ञ, हवन, अग्निहोत्र हेतु ब्राह्मण-पुरोहित को निमन्त्रित करने वाला गृहस्वामी-व्यक्ति; host, parishioner.
एक यजमान दान करता है, दूसरा उसका गुणगान करता है। एक जल उत्तम पदार्थों को नष्ट करता है तो दूसरा प्रशंसित करता है। हे इन्द्र देव! गृहस्थी जैसे अभ्यागतों को धनदान करते हैं, वैसे ही तुम्हारा धन प्रजाओं में व्याप्त है।
One host-parishioner make donations, resort to charity, while the other one appreciate-use his gifts. A water born animal resort to violence, while the other one cleanse-nullify his wicked-bad deeds. Hey Indr Dev! You have accomplished all these deeds earlier as well and hence you deserve honours, glory, appreciation.
प्रजाभ्यः पुष्टिं विभजन्त आसते रयिमिव पृष्ठं प्रभवन्तमायते। 
असिन्वन्दंष्ट्रैः पितुरत्ति भोजनं यस्ताकृणोः प्रथमं सास्युक्थ्यः
हे इन्द्र देव! जैसे गृहस्थ लोग अभ्यागत अतिथि को प्रचुर धन देते हैं, उसी प्रकार से आपको दिया धन प्रजाओं में विभक्त होता है। लोग पिता द्वारा दिया भोजन दाँतों से खाते हैं। हे इन्द्र देव! आपने पहले ये सब कार्य किया है; इसलिए स्तुति के योग्य है।[ऋग्वेद 2.13.4]
हे इन्द्र देव! गृहस्थी जैसे अभ्यागतों को धनदान करते हैं, वैसे ही तुम्हारा धन प्रजाओं में व्याप्त है। जैसे भोजन को चबाता है वैसे ही तुम प्रलयकाल में इस सृष्टि को चबा जाते हो। हे इन्द्रदेव! अपने कार्यों से ही तुम वंदना के पात्र हो।
Hey Indr Dev! The way the house hold grants sufficient money to the visitors-guest, your donations are distributed amongest the populace. The populace eat-enjoy this wealth with their teeth. (You eat away the living beings at the time of annihilation like eating of the food.)  Hey Indr Dev! You have performed such deeds before as well. Hence you deserve worship-prayers. 
Distributing nourishment to their progeny, they, (the householders), abide (in their dwellings), as if offering ample and sustaining wealth to a guest; constructing (useful works, a man) eats with his teeth the food (given him) by (his) protector and as he, who has enjoined these (things to be done), you, (Indra), are especially to be praised.
अधाकृणोः पृथिवीं संदृशे दिवे यो धौतीनामहिहन्नारिणक्पथः। 
तं त्वा स्तोमेभिरुदभिर्न वाजिनं देवं देवा अजनन्त्सास्युक्थ्यः
हे इन्द्र देव! आपने आकाश के लिए पृथ्वी को दर्शनीय किया। आपने प्रवाहित नदियों का मार्ग गमन योग्य किया। हे वृत्र हन्ता इन्द्र देव! जिस प्रकार जल अश्व को तृप्त करते हैं, उसी प्रकार से स्तोता लोग स्तोत्र द्वारा आपको तृप्त करते हैं।[ऋग्वेद 2.13.5]
हे इन्द्र देव! तुमने आकाश को सुन्दर बनाया। नदियों के रास्ते का निर्माण किया। तुम वृत्र को समाप्त करने वाले हो। जैसे तुम घोड़े को पानी पिलाते हो, वैसे ही तपस्वी तुम्हें वंदनायें भेंट करते हैं।
Hey Indr Dev! You made the sky beautiful to be seen from the earth. You made the river suitable for navigation. Hey the killer of Vratr Indr Dev! The way the the water satisfy the horse the Ritviz-recitators of Strotr satisfy-make you happy.
In as much as you have rendered earth visible to heaven and have set open the path of the rivers by slaying Ahi; therefore the gods have rendered you divine by praises, as (men) invigorate a horse by water (and) you are, (Indr), to be praised.
यो भोजनं च दयसे च वर्धनमार्द्रादा शुष्कं मधुमहुदोहिथ। 
सः शेवधिं नि दधिषे विवस्वति विश्वस्यैक ईशिषे सास्युक्थ्यः
हे इन्द्र देव! आप भोजन और वर्द्धमान धन देते हैं और आर्द्र काण्ड से शुष्क और मधुर रस वाले शस्य आदि का दोहन करते हैं। सेवक यजमान को आप धन देते हैं। संसार में आप अद्वितीय हैं। हे इन्द्र देव! आप स्तुति के योग्य है।[ऋग्वेद 2.13.6]
हे इन्द्र देव! तुम अन्न और धन प्रदान करने वाले हो। गीले वृक्ष से सूखे फल उपजाते तथा वर्षा से सूखा अन्न प्राप्त कराते हो। तुम्हारे समान कोई दूसरा नहीं है, इसलिए वंदना के योग्य हो।
Hey Indr Dev! You grant nourishing food and extract sweet sap from the trees. The devotees-hosts grant money to the priests. You are unique-unparalled in the world. Hence, hey Indr Dev, you deserve worship-prayers. You are prayer worthy. 
You are the one who bestows both food and increase and milk the dry nutritious grains out of the humid stalk. You gives wealth to the worshipper and are sole sovereign of the universe you are the one who is to be praised.
यः पुष्पिणीश्च प्रस्वश्च धर्मणाधि दाने व्यवनीरधारयः। 
यश्चासमा अजनो दिद्युतो दिव उरुरूर्वां अभितः सास्युक्थ्यः
हे इन्द्र देव! कर्म द्वारा आपने खेत में फूल और फल वाली औषधि की रक्षा की। प्रकाशमान सूर्य की नाना प्रकार की ज्योति को उत्पन्न किया। आपने महान् होकर चारों ओर महान् प्राणियों को उत्पन्न किया। आप स्तुति के योग्य है।[ऋग्वेद 2.13.7]
कर्म द्वारा फल-फूल से युक्त वनस्पति के रक्षक हो, सूर्य को ज्योति देकर उसे प्रकाशमान करते हो। अपनी महत्ता से ही सभी प्राणियों को प्रकट किया, इसलिए प्रशंसा के योग्य हो।
Hey Indr Dev! You endeavoured to protect the flowers, fruits and the medicines (Jadi-Buti). You created various types of rays-light, luminaries in the Sun. You being great, produced the great personalities, living beings, organism. You deserve glory, honours. 
You who have caused, by culture, the flowering and fruitful to spread over the field, who have genitive rated the various luminaries of heaven and who, of vast bulk, comprehend vast (bodies); you are he who is to be praised.
यो नार्मरं सहवसुं निहन्तवे पृक्षाय च दासवेशाय चावहः। 
ऊर्जयन्त्या अपरिविष्टमास्यमुतैवाद्य पुरुकृत्सास्युक्थ्यः
हे बहुकर्म कर्ता इन्द्र देव! आपने हव्य प्राप्ति और दासों के विनाश के उद्देश्य से नृमर के पुत्र सहस वसु का विनाश करने के लिए बलवती वज्रधारा का निर्मल मुख प्रदेश इसको दिया। आप स्तुति के योग्य हैं।[ऋग्वेद 2.13.8]
हे असंख्य इन्द्र देव! हवि ग्रहण करने और असुरों का पतन करने के लिए तुमने वज्र का मुँह खोला। तुम प्रशंसा के योग्य हो।
Hey various-vivid jobs performing Indr Dev! You granted the powerful Vajr Dhara (river with high potential) to this land to eliminate Sahas Vasu, the son of Nramar and seek offerings leading to destruction of the wicked-viceful slaves. 
You, who are (famed for) many exploits, put on today an unclouded countenance, (as prepared) to slay Sahas Vasu, the son of Nramar, with the sharpened (edge of the thunderbolt), in defence of the (sacrificial) food, and for the destruction of dasyu-dacoits, you are he who is to be praised.
शतं वा यस्य दश साकमाद्य एकस्य श्रुष्टौ यद्ध चोदमाविथ। 
अरज्जौ दस्यून्त्समुनब्दभीतये सुप्राव्यो अभवः सास्युक्थ्यः
हे इन्द्र देव आप एक है। आपके सुख के लिए दस सौ घोड़े हैं। आपने दधीचि ऋषि के लिए रज्जु रहित दस्युओं का विनाश किया। आप सबके प्राप्य है, इसलिए स्तुति के योग्य है।[ऋग्वेद 2.13.9]
हे इन्द्र देव! तुम हजारों धनों के स्वामी हो। ऋषि के लिए तुमने असुरों को बिना रस्सी ही घेरकर मार डाला। इसलिए तुम प्रशंसा के योग्य हो।
Hey Indr Dev! You are unique. You possess thousands of kinds of wealth-riches. You killed the unstringed dacoits for the sake-welfare of Dadhichi Rishi. You are available to all and hence you deserve prayers, worship.  
You, for whose sole plural assure a thousand (steeds are ready), by whom all are to be fed and who protects the instrumental tutor (of the sacrifice), who, for the sake of Dadhichi, has caste the Dasyu into unfettered (captivity) and who are to be approached (by all), you are he who is to be praised.
विश्वेदनु रोधना अस्य पौंस्यं ददुरस्मै दधिरे कृलवे धनम्। 
षळस्तभ्ना विष्टिरः पञ्च संदृशः परि परो अभवः सास्युक्थ्यः
सारी नदियाँ इन्द्र देव की शक्ति का अनुवर्तन करती है। यजमान लोग इन्द्रदेव को अन्न प्रदान करते हैं और सब लोग कर्म कर्ता इन्द्र देव के लिए धन धारण करते हैं। आपने विशाल द्यू, पृथ्वी, दिन-रात्रि, जल और औषधि नाम के छः पदार्थों को निश्चित किया। आप पञ्चजन के पालक है। हे इन्द्र देव! आप सबके स्तुति के योग्य है।[ऋग्वेद 2.13.10]
अनुवर्तन :: अनुषंग, परिणामत; Compliance, consequentiality.
सभी नदियाँ इन्द्र के पराक्रम से चलती हैं। साधक इन्द्रदेव को हवि देते हैं। हे इन्द्र! तुमने आकाश, पृथ्वी, दिन, रात्रि, जल एवं दवाई आदि को स्थापित किया है। अतः तुम प्रशंसा के पात्र हो।
All rivers follow the dictates of Indr Dev. The hosts-devotees offer food grains to Indr Dev. All beings-people bear wealth for the sake of endeavouring Indr Dev. You ensured the existence of six (6) entities :- the space-sky, earth, day & night, water and medicines. You the nurturer of the Panch Jan, five races-species.  
You are he, from whose manhood all the rivers (have proceeded), to whom (the pious) have given (offerings), to whom, doer of mighty deeds, they have presented wealth, you are he, who have regulated the six expansive (objects) and are the protector of the five (races), that look up to you, you are he who is to be praised.
सुप्रवाचनं तव वीर वीर्यं यदेकेन क्रतुना विन्दसे वसु। 
जातूष्ठिरस्य प्र वयः सहस्वतो या चकर्थ सेन्द्र विश्वास्युक्थ्यः
आपका वीर्य सबके लिए श्लाघनीय है। आपने एक कर्म द्वारा शत्रुओं का धन प्राप्त किया। आपने बलिष्ट जातुष्ठिर को अन्न दिया। चूंकि ये सब कार्य आपने किया है, इसलिए आप सबके स्तुति के योग्य हैं।[ऋग्वेद 2.13.11]
श्लाघनीय :: प्रशंसनीय; praiseworthy. 
आपका वीर्य सबके लिए श्लाघनीय है। आपने एक कर्म द्वारा शत्रुओं का धन प्राप्त किया। आपने बलिष्ठ जातुष्ठिर को अन्न दिया। चूंकि ये सब कार्य आपने किया है, इसलिए आप सबके स्तुति के योग्य हैं।
Your potential (sperms, mighty, power) is appreciable. You got the wealth of the enemies with just one stroke. You granted food grain to mighty Jatushthir. Since, you performed all these deeds, you deserve worship-prayers. 
Your heroism, hero, is to be glorified, by which, with single effort, you have acquired wealth, (wherewith) the (sacrificial) food of (every) solemn and constant (ceremony is provided), for all (the acts) you have performed, you, Indr, are he who is to be praised.
अरमय: सरपसस्तराय कं तुर्वीतये च वय्याय च स्रुतिम्। 
नीचा सन्तमुदनयः परावृजं प्रान्धं श्रोणं श्रवयन्त्सास्युक्थ्यः
हे इन्द्र देव! सरलता से प्रवाह शील जल के पार जाने के लिए आपने तुर्वीति और वय्य को मार्ग दिया। आपने अन्धे और पंगु पराबृज का तल से उद्धार करके अपने को कीर्तिशाली बनाया, इसलिए आप स्तुति के योग्य हैं।[ऋग्वेद 2.13.12]
उद्धार :: उबारना, मुक्त करना, ऊपर ले जाना, extrication, releasement.
पंगु :: लँगड़ा, गतिहीन, वात रोग से ग्रस्त व्यक्ति; crippled, lacerated.
इन समस्त कर्मों के कारण तुम वंदना के पात्र हो। हे इन्द्र देव! तुमने तुव्रीति और वय्य को जल के पार और अंधे एवं अपाहिज परावृज का प्रहार किया। तुम वंदना के योग्य हो।
Hey Indr Dev! You provided way to Turviti & Vayy to cross the cold waters easily. You supported blind and crippled-lame Parabraj. You are suitable for worship-prayers.
अस्मभ्यं तद्वसो दानाय राधः समर्थयस्व बहु ते वसव्यम्। 
इन्द्र यच्चित्रं श्रवस्या अनु द्यून्बृहद्वदेम विदथे सुवीराः
हे निवास दाता इन्द्रदेव! हमें भोग के लिए धन दें। आपका वह धन प्रभूत, वास योग्य और विचित्र है। हम प्रतिदिन उस धन के भोग की इच्छा करते हैं। हम उत्तम पुत्र-पौत्रादि प्राप्त करके इस यज्ञ में आपका स्तवन् करते हैं।[ऋग्वेद 2.13.13]
प्रभूत :: भूत, उत्पन्न, उद्‌गम; ample, abundant.
हे इन्द्र! हमको उपभोग के लिए धन प्रदान करो। तुम्हारा दान वास योग्य तथा अलौकिक है। तुम नित्य इसकी अभिलाषा करते हैं। हम संतान आदि से युक्त तुम्हारी वंदना करते हैं।
Hey house-residence providing Indr Dev! Grant us money for use. The money granted by you is suitable to live, sufficient, abundant and amazing. You desire to utilize that money-riches every day. Having obtained sons, grandsons, we worship-pray you in this Yagy.
ऋग्वेद संहिता, द्वितीय मण्डल सूक्त (14) ::  ऋषि :- गुत्समद,  भार्गव, शौनक, देवता :- इन्द्र, छन्द :- त्रिष्टुप्
अध्वर्यवो भरतेन्द्राय सोममामत्रेभिः सिञ्चता मद्यमन्यः। 
कामी हि वीरः सदमस्य पीतिं जुहोत वृष्णे तदिदेष वष्टि
हे अध्वर्युगण! इन्द्रदेव के लिए सोमरस ले आवे। चमस के द्वारा मादक अन्न अग्नि में फेंकें। बलशाली इन्द्रदेव सदा सोमरस के पान के अभिलाषी रहते हैं। अभीष्टवर्षी इन्द्रदेव के लिए सोमरस प्रदान करें। इन्द्रदेव उसे चाहते हैं।[ऋग्वेद 2.14.1]
हे अध्वर्युओं! इन्द्रदेव के लिए सोम लाओ। चमस द्वारा अग्नि में हवि दो। सोमपान के इच्छुक इन्द्रदेव को सोम रस भेंट करो।
Hey Yagy conducting-performing people-devotees! Bring Somras for Indr Dev. Make offerings of food grains in the holy fire with the help of Chamas (wooden spoon). Mighty desire accomplishment-fulfilling Indr Dev is always eager to enjoy Somras. 
अध्वर्यवो यो अपो वव्रिवांसं वृत्रं जघानाशन्येव वृक्षम्। 
तस्मा एतं भरत तद्वशायँ एष इन्द्रो अर्हति पीतिमस्य
हे अध्वर्युगण! जिन इन्द्रदेव ने जल को आच्छादित करने वाले वृत्रासुर का वज्र द्वारा वृक्ष की तरह विनाश किया, उन्हीं सोमाभिलाषी इन्द्रदेव के लिए सोमरस ले आवे। इन्द्र देव सोमपान के उपयुक्त पात्र हैं।[ऋग्वेद 2.14.2] 
वज्र द्वारा, जल को रोकने वाले वृत्र के वधकर्त्ता इन्द्रदेव के लिए सोम लाओ। इन्द्रदेव सोमपान के योग्य है।
Hey Yagy performers! Bring Somras for Indr Dev who killed Vrata Sur, who stopped the waters, with Vajr like felling a tree. He is eligible for drinking Somras.  
अध्वर्यवो यो दृभीकं जघान यो गा उदाजदप हि वलं वः। 
तस्मा एतमन्तरिक्षे न वातमिन्द्रं सोमैरोर्णुत जून वस्त्रैः
हे अध्वर्युगण! जिन इन्द्रदेव ने दृभाीक का विनाश किया, जिन्होंने बलपूर्वक असुरों द्वारा अवरुद्ध गायों का उद्धार करके उन्हें विनष्ट किया, उन्हीं इन्द्र देव के लिए, जिस प्रकार वायु अन्तरिक्ष में व्याप्त है, उसी प्रकार सोमरस को सर्वत्र व्याप्त करें। जिस प्रकार जीर्ण को वस्त्र द्वारा आच्छादित किया जाता है, उसी प्रकार से सोमरस द्वारा इन्द्र देव को आच्छादित करें।[ऋग्वेद 2.14.3]
 जिस इन्द्रदेव ने गायों का उद्धार किया और असुरों को समाप्त किया उन इन्द्रदेव के लिए सोम रस को विद्यमान करो और परिधान से आच्छादित करने के तुल्य इन्द्रदेव को सोम से ढँक दो। 
Hey Yagy organisers! Indr Dev killed Drabheek, released the cows from the captivity of the demons and destroyed the demons. Air pervades the sky-space for Indr Dev. Let Somras pervade each & every place. The way a feeble-badly injured, hurt person is covered with cloths, cover Indr Dev with Somras.
अध्वर्यवो य उरणं जघान नव चख्वांसं नवतिं च बाहून्। 
यो अर्बुदमव नीचा बबाधे तमिन्द्रं सोमस्य भृथे हिनोत
हे अध्वर्यु  गण! जिन इन्द्र देव ने निन्नानबे बाहु दिखाने वाले उरण का विनाश किया तथा अबुद को अधोमुख करके विनष्ट किया, सोमरस तैयार होने पर उन्हीं इन्द्रदेव को प्रसन्न करें।[ऋग्वेद 2.14.4]
जिन इन्द्रदेव ने निन्यानवें भुजाओं वाले उरण तथा अर्बुध को मार डाला, उन्हीं इन्द्र देव को सोम सिद्ध होने पर भेंट करो।
Hey organisers-participants in the Yagy! Prepare Somras to please Indr Dev, who killed Uran having 99 arms and Abud turning them upside down. 
अध्वर्यवो यः स्वश्नं जघान यः शुष्णमशुषं यो व्यंसम्।
यः पिप्रुं नमुचिं यो रुधिक्रां तस्मा इन्द्रायान्धसो जुहोत
हे अध्वर्युगण! जिन इन्द्र देव ने सरलता से स्वशन का विनाश किया, जिन्होंने अशोषणीय शुष्ण को स्कन्ध हीन करके मारा, जिन्होंने पित्रु, नमुचि और रूधिक्ता का विनाश किया, उन्हीं इन्द्र देव के लिए अन्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 2.14.5]
जिस इन्द्र देव ने स्वशन को मारा, शुष्ण के कंधे काट डाले, पिप्रु, नमुचि और तुधिक को मार डाला, उन्हीं इन्द्र को हवि प्रदान करो।
Hey organisers-participants in the Yagy! Make offerings of food grains to Indr Dev who killed Swashan, Sushn by cutting shoulders, Pitru, Namuchi and Rudhikta
अध्वर्यवो यः शतं शम्बरस्य पुरो बिभेदाश्मनेव पूर्वीः। 
यो वर्चिनः शतमिन्द्रः सहस्त्रमपावपद्भरता सोममस्मै
हे अध्वर्यु गण! जिन इन्द्र देव ने प्रस्तर के सदृश वज्र द्वारा शम्बर की अतीव प्राचीन नगरियों को छिन्न-भिन्न कर दिया, जिन्होंने वर्ची के सौ हजार पुत्रों को भूमिशायी कर दिया, उन्हीं इन्द्र देव के लिए सोमरस ले आवें।[ऋग्वेद 2.14.6]
जिन इन्द्र देव ने वज्र से शम्बर के पाषाण नगरों को तोड़ दिया तथा वर्चा के एक लाख भक्तों को मारा, उन्हीं इन्द्र देव के लिए सोम रस ले लाओ।
Hey organisers-participants in the Yagy! Bring Somras for the sake of Indr Dev, who destroyed the ancient cities of Shambar, killed hundred thousand sons of Varchi.
अध्वर्यवो यः शतमा सहस्स्रं भूम्या उपस्थेऽवपज्जघन्वान्। 
कुत्सस्यायोरतिथिग्वस्य वीरान्न्यवृणग्भरता सोममस्मै
हे अध्वर्युगण! जिन शत्रु हन्ता इन्द्र देव ने भूमि की गोद में सौ हजार असुरों को मार गिराया, जिन इन्द्र देव ने कुत्स, आयु और अतिथिग्ध के प्रतिद्वन्द्वियों का वध किया, उनके लिए सोमरस ले आवे।[ऋग्वेद 2.14.7]
जिस शत्रुनाशक इन्द्रदेव ने एक लाख असुरों को धराशायी किया तथा कुत्स और अतिथिग्व के द्वेषियों को समाप्त कर दिया उसी इन्द्रदेव के लिए सोमरस लेकर पधारो। 
Hey organisers-participants in the Yagy! Bring Somras for enemy slayer Indr Dev, who killed hundred thousand demons and rivals named Kuts, Ayu and Atithigdh
अध्वर्यवो यन्नरः कामयाध्वे श्रुष्टी वहन्तो नशथा तदिन्द्रे। 
गभस्तिपूतं भरत श्रुतायेन्द्राय सोमं यज्यवो जुहोत
हे नेता अध्वर्युगण! आप जो चाहते हैं, वह इन्द्रदेव को सोमरस प्रदान करने पर तुरन्त मिल जायेगा। प्रसिद्ध इन्द्र देव के लिए हस्त द्वारा शोधित सोमरस ले आवें। हे याज्ञिक गण! इन्द्र देव के लिए उसे प्रदान करें।[ऋग्वेद 2.14.8]
हे अध्वर्युओं! इन्द्र को सोम रस भेंट करने पर तुम्हारी इच्छा पूरी होगी। हाथों से सिद्ध किए हुए इस सोम रस को इन्द्रदेव को दो।
Hey organisers-participants in the Yagy! You will immediately achieve the desired by offering Somras extracted manually to Indr Dev. 
अध्वर्यवः कर्तना श्रुष्टिमस्मै वने निपूतं वन उन्नयध्वम्। 
जुषाणो हस्त्यमभि वादशे व इन्द्राय सोम मंदिर जुहोत
इन्द्र देव के लिए सुखकर सोमरस तैयार करें। संभोग योग्य जल में शोधित सोमरस ऊपर ले आवें। इन्द्र देव प्रसन्न होकर आपके हाथों से तैयार किया हुआ सोमरस चाहते हैं। इन्द्र देव के लिए आप लोग मद कारक सोमरस प्रदान करें।[ऋग्वेद 2.14.9] 
हे अध्वर्युओ! उनको खुश करने वाला सोम रस तैयार करो। जल में शुद्ध किया हुआ सोमरस लाओ। इन्द्र देव तुमसे सोमरस चाहते हैं। उनके लिए आह्लादकारी सोम रस भेंट करो।
Hey organisers-participants in the Yagy! Produce pleasant-comfortable Somras for Indr Dev. Bring Somras purified with water. Indr Dev wish to have Somras produced by you with your hands on being happy.
अध्वर्यवः पयसोधर्यथा गो: सोमेभिरी पुणता भोजमिन्द्रम्वे। 
वेदाहमस्य निभृतं म एतिदृत्सन्तं भूयो यजतश्चिकेत
हे अध्वर्युगण! गाय का अधोदेश जैसे दुग्ध से पूर्ण रहता है, उसी प्रकार इन फल प्रदाता इन्द्रदेव को सोमरस द्वारा पूर्ण करें। सोमरस का गूढ़ स्वभाव मैं जानता हूँ। यजनीय इन्द्र देव सोमप्रद यजमान को अच्छी तरह जानते हैं।[ऋग्वेद 2.14.10]
हे अध्वर्युओं! गाय के निचले अंग (थन) में दूध भरे रहने के समान इन्द्रदेव को सोम से भर दो। मैं सोम रस के स्वभाव का राजा हूँ। इन्द्र देव उससे प्रसन्नचित्त होकर यजमान को सुखी करते हैं।
Hey organisers-participants in the Yagy! Let Indr dev be satisfied-saturated with Somras just like the milk in the udders of a cow. I am aware of the nature (properties, utility) of Somras. Indr Dev recognises the host providing Somras in the Yagy for him & grants comforts to him on being happy.
अध्वर्यवो यो दिव्यस्य वस्वो यः पार्थिवस्य क्षम्यस्य राजा। 
तमूर्दरं न पृणता यवेनेन्द्रं सोमेभिस्तदपो वो अस्तु
हे अध्वर्यु गण! इन्द्र देव, स्वर्ग, पृथ्वी और अन्तरिक्ष के धन के राजा है। जैसे यव (जौ) से धान्य रखने का स्थान पूर्ण किया जाता है, उसी प्रकार सोमरस द्वारा इन्द्र देव को पूर्ण करें। वह कार्य आप लोगों के द्वारा पूर्ण होता है।[ऋग्वेद 2.14.11]
इन्द्र देव आसमान, धरती और अंतरिक्ष के ऐश्वर्य के श्लोक हैं। जैसे बर्तन भरा जाता है वैसे सोमरस से इन्द्रदेव को सन्तुष्ट कर दो।
Hey organisers-participants in the Yagy! Indr Dev is the master of all riches-wealth, property over the earth, heavens and the space-sky. The way a pot-container is filled with barley, satisfy Indr Dev with Somras. 
अस्मभ्यं तद्वसो दानाय राधः समर्थयस्व बहु ते वसव्यम्। 
इन्द्र यच्चित्रं श्रवस्या अनु द्यून्बृहद्वदेम विदथे सुवीराः
हे निवास प्रद इन्द्र देव! हमें भोग के लिए धन प्रदान करें। वह धन प्रभूत, वास योग्य और विचित्र है। हम प्रतिदिन उसी धन को भोग करने की इच्छा करते हैं। हम उत्तम पुत्र-पौत्रादि प्राप्त करके इस यज्ञ में प्रभूत स्तोत्र का पाठ करेंगे।[ऋग्वेद 2.14.12] 
हे उत्तम वास देने वाले इन्द्रदेव! हमें योग्य एवं भोग्य धन प्रदान करो। तुम्हारा दान अद्भुत है। हम नित्य इसकी कामना करते हैं। श्रेष्ठ संतानों से युक्त इस यज्ञ में हम तुम्हारी वंदना करते हैं।
Hey residence-home granting-providing Indr Dev! The riches-wealth granted by you is valuable, suitable for residing and amazing. We will recite excellent Strotr in the Yagy in your honour, on being granted sons and grand sons.
ऋग्वेद संहिता, द्वितीय मण्डल सूक्त (15) ::  ऋषि :- गुत्समद,  भार्गव, शौनक, देवता :- इन्द्र, छन्द :- त्रिष्टुप्
प्र घा न्वस्य महतो महानि सत्या सत्यस्य करणानि वोचम्। 
त्रिकद्रुकेष्वपिबत्सुतस्यास्य मदे अहिमिन्द्रो जघान
मैं बलवान् हूँ। सत्य-संकल्प इन्द्र देव की यथार्थ और महती कीर्त्तियों का वर्णन करता हूँ। इन्द्र देव ने त्रिकद्र यज्ञ में सोमरस का पान किया। सोम जन्य प्रसन्नता होने पर इन्द्र देव ने अहि का वध किया।[ऋग्वेद 2.15.1]
मैं शक्तिशाली हूँ। सच्चे विचार वाले के श्रेष्ठ यशों का वर्णन करता हूँ। इन्द्र देव ने सोमपान से रचित शक्ति से वृद्धिकर “अहि" को समाप्त किया।
I am mighty. I describe the various glorious deeds-endeavours of truthful Indr Dev. Indr Dev sipped Somras in the Yagy and then killed the demon called Ahi.
अवंशे द्यामस्तभायद्बृहन्तमा रोदसी अपृणदन्तरिक्षम्। 
स धारयत्पृथिवीं पप्रथच्च सोमस्य ता मद इन्द्रश्चकार
आकाश में इन्द्र देव ने द्युलोक को रोक रखा है। द्यावा पृथ्वी और अन्तरिक्ष को अपने तेज से पूर्ण किया। विस्तीर्ण पृथ्वी को धारण किया और उसे प्रसिद्ध किया। सोमजन्य हर्ष उत्पन्न होने पर इन्द्रदेव ने यह सब काम किया।[ऋग्वेद 2.15.2]
इन्द्रदेव ने सूर्य मंडल को रोक रखा है। अम्बर, धरा और अंतरिक्ष को तेज प्रदान किया है।
Indr Dev is supporting the Solar System in the space. He has lighted the space, earth and the sky with his aura-brilliance. He supported the earth and gave it stability. He did this by enjoying Somras.
Here Indr is one of the names of the Almighty. 
सद्मेव प्राचो वि मिमाय मानैर्वज्रेण खान्यतृणन्नदीनाम्। 
वृथासृजत्पथिभिर्दीर्घयाथैः सोमस्य ता मद इन्द्रश्चकार
यज्ञ गृह की तरह इन्द्र देव ने माफ करके समस्त संसार को पूर्वाभिमुख करके बनाया। उन्होंने वज्र द्वारा नदी के निकलने वाले दरवाजों को खोल दिया। उन्होंने अनायास ही दीर्घ काल तक जाने योग्य मार्गों से नदियों को प्रेरित किया। सोमजन्य हर्ष उत्पन्न होने पर इन्द्र देव ने यह सब कार्य किया।[ऋग्वेद 2.15.3]
इन्द्रदेव ने इस आखिल संसार का मुँह पूर्व दिशा की ओर कर रखा है। उन्होंने बच से नदी के द्वारों को खोलकर दीर्घ समय तक प्रवाहमान रहने योग्य रास्तों पर बहाया। इन्द्रदेव ने ये कर्म सोम से रचित शक्ति से किये।
Indr Dev moved the gate-opening of the Yagy site in the east along with the entire world. He opened the places blocked for the flow of rivers. He made the rivers to keep flow for long time and usable for navigation. He did this, on being happy after drinking Somras.
स प्रवोळ्हॄन्परिगत्या दभीतेर्विश्वमधागायुधमिद्धे अग्नौ। 
सं गोभिरश्वैरसृजद्रथेभिः सोमस्य ता मद इन्द्रश्चकार
जो असुर दभीति ऋषि को उनके नगर के बाहर ले जा रहे थे, मार्ग में उपस्थित होकर इन्द्र ने उनके सारे आयुधों को दीप्यमान अग्नि में जला डाला। इसके बाद दभीति को अनेक गायें, घोड़े और रथ प्रदान किये। सोमजन्य हर्ष के उत्पन्न होने पर इन्द्र देव ने यह सब कार्य किया।[ऋग्वेद 2.15.4]
दभीति ऋषि को नगर से बाहर ले जाते हुए दानवों को रोककर उनके हथियारों को इन्द्र ने भस्म कर दिया। इसके बाद दभीति को गौ आदि धन प्रदान किया। सोम द्वारा उत्पन्न शक्ति में इन्द्र ने यह कर्म दिया।
Indr Dev intercepted the demons who were taking Dabhiti Rishi out of his abode-residence, burnt their weapons with blazing-glowing fire. He granted many cows, horses and chariots to him. He did this on being pleased by drinking Somras (under the impact of Somras). 
Encountering the (demons-asuras), carrying off Dabhiti, he burnt all their weapons in a kindled fire and enriched (the prince) with their cattle, their horses and their chariots, in the exhilaration of the Somras, Indr has done these (deeds).
EXHILARATION :: रसिकता, ज़िंदादिली; jocundity, sentimentality.
स ईं महीं धुनिमेतोररम्णात्सो अस्नातॄनपारयत्स्वस्ति। 
त उत्स्नाय रयिमभि प्र तस्थुः सोमस्य ता मद इन्द्रश्चकार
उन इन्द्र देव ने द्युति, इरावती या परुष्णी नामक महानदी को पार जाने के लिए शान्त किया। नदी के पार जाने में असमर्थ लोगों को निरापद पार किया। वे नदी पार होकर धन को लक्ष्य करके गये थे। सोमजन्य हर्ष उत्पन्न होने पर इन्द्रदेव ने यह सब कार्य किया।[ऋग्वेद 2.15.5]
असमर्थ :: अक्षम, अयोग्य, शक्तिहीन, विकलांग, अपात्र, निर्बल, अपाहिज  होना; inability, incapability, disability. 
इन्द्र देव ने पार जाने के लिए नदी को शांत कर असहाय प्राणियों को पार लगाया। वे धन को लक्ष्य करते हुए सरिता से पार हुए। इन्द्रदेव ने सोम के आनन्द में यह कार्य किया।
Indr Dev calmed down-pacified the rivers Dyuti, Irawati-Parushni to be crossed by the incompetent-disabled. Such people crossed the river and targeted riches (made endeavours for both & meet, surviving, living, livelihood). Indr Dev did this, since he became happy-amused after drinking Somras.
सोदञ्चं सिन्धुमरिणान्महित्वा वज्रेणान उषसः सं पिपेष। 
अजवसो जविनीभिर्विवृश्चन्त्सोमस्य ता मद इन्द्रश्चकार
अपनी महिमा से इन्द्र देव ने सिन्धु को उत्तर वाहिनी किया वेगवती सेना के द्वारा दुर्बल सेना को भिन्न करके वज्र द्वारा उषा के रथ को चूर्ण किया। सोमजन्य हर्ष उत्पन्न होने पर इन्द्रदेव ने यह सब कार्य किया।[ऋग्वेद 2.15.6]
इन्द्र ने अपनी महिमा से सिन्धु नदी को उत्तर की ओर प्रवाहित किया। वज्र द्वारा उषा के रथ को ध्वंस किया। यह कार्य इन्द्रदेव ने सोम की शक्ति से किया।
Indr Dev made the river Sindhu flow towards North with his power-might, destroyed the weak army with the fast moving army and destroyed the charoite of Usha with Vajr-thunderbolt. He did this because of the joy produced in him by the drinking of Somras.
By his great power-might he turned the Sindhu river towards the north, with his thunderbolt he ground to pieces the wagon of the Usha-dawn, scattering the tardy enemy with his swift forces, in the exhilaration of the Somras, Indr has accomplished-done these deeds.
स विद्वाँ अपगोहं कनीनामाविर्भवन्नुदतिष्ठत्परावृक्। 
प्रति श्रोणः स्थाद्व्यनगचष्ट सोमस्य ता मद इन्द्रश्चकार
अपने विवाह के लिए आई हुई कन्याओं का भागना जानकर परावृज ऋषि सबके सामने ही उठकर खड़े हो गये। पंगु होने पर भी कन्याओं के प्रति दौड़े, चक्षुहीन होने पर भी उन्हें देखा; क्योंकि स्तुति से प्रसन्न होकर इन्द्र देव ने उन्हें पैर और आँखें दे दी थीं। सोमजन्य हर्ष होने पर इन्द्र देव ने यह सब कार्य किया।[ऋग्वेद 2.15.7]
अपनी शादी को आयी हुई कन्याओं को दौड़ता देखकर परावृक पंगु होते उठकर दौड़ पड़े। नेत्रहीन होने पर भी देखने में समर्थवान हुए। उनकी प्रार्थना से प्रसन्न होकर इन्द्रदेव ने उन्हें पैर और आँखें प्रदान की। यह कर्म उन्होंने सोम जनित हर्षिता में किया। 
पंगु :: लुंज-पुँज ,लँगड़ा-लूला; paralyzed, crippled, lacerated. 
Paravraj Rishi ran towards towards the girls who run away when they noticed-found that he was incompetent (paralyzed, crippled) unable to move and blind since Dev Raj Indr grant him eye sight and removed his paralysis-crippling. Dev Raj became happy with his prayers and cured him having enjoyed Somras.
भिनद्वलमङ्गिरोभिर्गृणानो वि पर्वतस्य दृंहितान्यैरत्। 
रिणग्रोधांसि कृत्रिमाण्येषां सोमस्य ता मद इन्द्रश्चकार
अंगिराओं द्वारा स्तुति करने पर इन्द्र देव ने बल को विदीर्ण किया। पर्वत के सुदृढ़ द्वारों को खोला। इनकी रुकावट को भी हटाया। सोमजन्य हर्ष उत्पन्न होने पर इन्द्रदेव ने यह सब कार्य किया।[ऋग्वेद 2.15.8]
अंगिरा वंशियों की प्रार्थना पर इन्द्र देव ने बल को विमुक्त किया और पर्वतों हुए भी के द्वारों को खोला और इनकी बाधाएँ दूर कीं। सोमरस की प्रसन्नता में इन्द्र ने यह में काम किया।
Over the request of Angiras, Indr Dev released Bal and opened the gates of strong mountains. He cleared the obstacles as well. He did this under the pleasure granted to him by Somras.
Praised by the Angiras, Indr Dev destroyed Bal, forced upon the firmly shut doors of the mountain, broke down their artificial defences in the exhilaration of the Somras Indr Dev has done these deeds.
स्वप्नेनाभ्युप्या चुमुरिं धुनिं च जघन्य दस्युं प्र दभीतिमावः। 
रम्भी चिदत्र विविदे हिरण्यं सोमस्य ता मद इन्द्रश्चकार
हे इन्द्र देव! आपने चुमुरि और धुनि नाम के असुरों को दीर्घ निद्रा में प्रविष्ट करके विनष्ट किया। दधीचि नामक राजर्षि की रक्षा की। उनके वेत्रधारी दौवारिक ने भी शत्रु का हिरण्य प्राप्त किया। सोमजन्य हर्ष उत्पन्न होने पर इन्द्रदेव ने यह सब कार्य किया।[ऋग्वेद 2.15.9]
वेत्रधारी :: a staff-bearer, macebearer, warder, usher.
हिरण्य :: सोना-एक बहुमूल्य पीली धातु जिसके गहने आदि बनते हैं, वह शक्ति या तत्व जिसके योग से वस्तुओं आदि का रूप आँख को दिखाई देता है, एक नदी वह तरल पदार्थ-अमृत जिसे पीने से जीव अमर हो जाता है, शरीर की वह धातु जिससे उसमें बल, तेज और कान्ति आती है और सन्तान उत्पन्न होती है, एक पौधा जिसके फलों के बीज बहुत विषैले होते हैं,  घोंघे की तरह के एक समुद्री कीड़े का कड़ा अस्थि आवरण, सोना-सुवर्ण, शुक्राणु-वीर्य, सृष्टि का नित्य तत्त्व, हिरण्यमय नामक भू खंड या वर्ष, ज्ञान ज्योति, धतूरा, कौड़ी।
हे इन्द्र देव! चुमीरि और धुनि नामक दानवों को तुमने समाप्त किया तथा दभीति ऋषि की रक्षा की। सोमरस की प्रसन्नता में तुमने यह कर्म किया है। 
Hey Indr Dev! You killed the demons named Chumuri & Dhuni by making them asleep. Protected the Rishi called Dabheeti. His mace bearing gate keeper collected-snatched the gold of the enemy. 
नूनं सा ते प्रति वरं जरित्रे दुहीयदिन्द्र दक्षिणा मघोनी। 
शिक्षा स्तोतृभ्यो माति धग्भगो नो बृहद्वदेम विदथे सुवीराः
हे इन्द्र देव! आपकी जो धनवती दक्षिणा स्तुतिकारी का मनोरथ पूरा करती है, वही दक्षिणा आप हमें प्रदान करें। आप भजनीय हैं, हमें छोड़कर और किसी को न देना। हम पुत्र पौत्रादियुक्त होकर इस यज्ञ में प्रभूत स्तुति करेंगे।[ऋग्वेद 2.15.10]
हे इन्द्र देव! तुम्हारी समृद्धि वाली दक्षिणा वंदनाकारी का अभीष्ट पूरा करती है। वही हमें प्रदान करो। किसी अन्य को मत देना। हम संतान से परिपूर्ण होकर अनुष्ठान में तुम्हारी वंदना करेंगे।
Hey Indr Dev! Grant us those gifts-goods which accomplish-fulfil the desires of the person praying to you. You deserve worship-prayers. Give the desired commodities to us, non else. We will hold-participate in the Yagy having attained sons and grand sons.
ऋग्वेद संहिता, द्वितीय मण्डल सूक्त (16) ::  ऋषि :- गुत्समद,  भार्गव, शौनक, देवता :- इन्द्र, छन्द :- जगती, त्रिष्टुप्
प्र वः सतां ज्येष्ठतमाय सुष्टुतिमग्नाविव समिधाने हविर्भरे। 
इन्द्रमजुर्यं जरयन्तमुक्षितं सनाद्युवानमवसे हवामहे
आपके उपकार के लिए देवताओं में ज्येष्ठतम इन्द्र देव के लिए दीप्यमान अग्नि में हम हव्य प्रदान करते हैं। अनन्तर उनकी मनोहर स्तुति करते हैं। अपनी रक्षा के लिए स्वयं जरा रहित, समस्त संसार को जला देने वाले सोमसिक्त, सनातन और तरुण वयस्क इन्द्र देव को हम बुलाते हैं।[ऋग्वेद 2.16.1]
उपकार :: भलाई, सहायता; countenance, benefit, favour, promote, alms deed, behoof, benefaction, beneficence, benevolence, charity, protection. 
हम तुम्हारे लिए उन श्रेष्ठ इन्द्र देव के प्रति ज्योर्तिमान अग्नि में हवि प्रदान करते हैं और सुन्दर वंदना गाते हैं। उन अजर, परन्तु संसार को वृद्धावस्था देने वाले सोमपायी इन्द्रदेव का आह्वान करते हैं।
We make offerings in holy fire for your benefit-favours for the sake of Indr Dev who is the leader of demigods-deities. Thereafter we sing lovely-pleasing prayers in his honour. We invite Indr Dev for our protection, who is free from agedness-old age, Somras liking, ancient, always young.
यस्मादिन्द्राद्बृहतः किं चनेमृते विश्वान्यस्मिन्त्संभृताधि वीर्या। 
जठरे सोमं तन्वीं सहो महो हस्ते वज्रं भरति शीर्षणि क्रआप्
विराट् इन्द्र देव के बिना संसार नहीं है। जिन इन्द्र देव में सारी शक्तियों है, वही इन्द्र देव उदर में सोमरस धारण करते हैं। उनके शरीर में बल और तेज है। उनके हाथ में वज्र और मस्तक में ज्ञान है।[ऋग्वेद 2.16.2]
इन्द्रदेव के बिना संसार कैसा? वह सर्वशक्तिमान और विराट हैं। सोमरस धारण करने वाले शीक्तवान और तेजस्वी हैं। वे ज्ञानी और वज्रधारी हैं।
There is no world-universe in the absence of Indr Dev who is large-huge. He possess all powers-might and has Somras in his stomach. His body possess strength and aura. He is enlightened and his hands possess Vajr.
न क्षोणीभ्यां परिभ्वे त इन्द्रियं न समुद्रैः पर्वतैरिन्द्र ते रथः। 
न ते वज्रमन्वश्नोति कश्चन यदाशुभिः पतसि योजना पुरु
हे इन्द्र देव! जबकि आप शीघ्रगामी अश्व पर चढ़कर अनेक योजन जाते हैं, तब द्यावा पृथ्वी आपके बल को पराजित नहीं कर सकती। समुद्र और पर्वत आपके रथ का परिभव नहीं कर सकते। कोई भी व्यक्ति आपके बल का परिभव नहीं कर सकता।[ऋग्वेद 2.16.3]
हे इन्द्र देव! तुम अपने अश्व पर सुदूर गमन करते हो। तब आकाश और पृथ्वी तुम्हारे बल को जीत नहीं सकती। समुद्र और पर्वत तुम्हारे रथ को रोक नहीं सकते। तुम्हारी शक्ति का मुकाबला कोई नहीं कर सकता।
Hey Indr Dev! When you travel several Yojan riding your horse neither earth nor sky can obstruct-defeat you. Neither ocean nor mountains can block the way of your charoite. None (neither humans nor demons) can destroy your power.
विश्वे ह्यस्मै यजताय धृष्णवे क्रतुं भरन्ति वृषभाय सश्चते। 
वृषा यजस्व हविषा विदुष्टरः पिबेन्द्र सोमं वृषभेण भानुना
सब लोग यजनीय, शत्रु नाशक, अभीष्ट वर्षी और सदा सज्जित इन्द्र देव का यज्ञ करते हैं। आप सोमदाता और विद्वान् है। इन्द्र देव के लिए आप भी यज्ञ करें। हे इन्द्र देव! अभीष्टवर्षी और दीप्यमान अग्नि देव के साथ सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 2.16.4]
यजन योग्य शत्रुहन्ता वर्षक इन्द्रदेव का सभी यज्ञ करते हैं। हे विद्वानजन! तुम सोम प्रदान करने वाले हो। इन्द्रदेव के लिए यज्ञ करो। हे इन्द्र देव! अभिलाषाओं की वृष्टि करने वाले अग्नि देव के साथ सोमपान करो।
All humans perform Yagy for the sake-in the honour of Indr Dev who is always willing-ready to protect them, destroys their enemy, accomplish their desires. You (humans) are learned-enlightened and produce-grant Somras. Hey Indr Dev! Enjoy Somras along with Agni Dev who too accomplish their desires and aurous. 
वृष्णः कोशः पवते मध्व ऊर्मिर्वृषभान्नाय वृषभाय पातवे।
वृषणाध्वर्यू वृषभासो अद्रयो वृषणं सोमं वृषभाय सुष्वति
अभीष्ट वर्षी और मादक सोमरस अनुष्ठाताओं के लिए उत्तेजक होकर बल प्रद, अन्न विशिष्ट और अभोष्ट वर्षी अभिषव प्रस्तर सोमरस का आपके लिए अभिषवण करते हैं।[ऋग्वेद 2.16.5]
अहंकारी और अभिष्ट इच्छित वर्षा, सोमपान करने वालों के निमित्त इन्द्र देव की ओर जाता है। अध्वर्यु पाषाण द्वारा सोमरस को कूटते हैं और छानते हैं।
Somras helps in attainment-accomplishment of desires & grants strength. Its crushed with stones, filtered & distilled. 
हे इन्द्र देव! तुम शत्रु हन्ता हो। वंदनाकारी को संग्राम में नौका की तरह बचाते हो। अनुष्ठान में तुम्हारी वंदना करता हुआ मैं तुमको ग्रहण होता हूँ। हमारे श्लोक को अच्छी प्रकार से समझो। हम तुम्हारा सिंचन करेंगे।
ऋग्वेद संहिता, द्वितीय मण्डल सूक्त (17) ::  ऋषि :- गुत्समद,  भार्गव, शौनक, देवता :- इन्द्र, छन्द :- जगती, त्रिष्टुप्
तदस्मै नव्यमङ्गिरस्वदर्चत शुष्मा यदस्य प्रत्नथोदीरते। 
विश्वा यद्गोत्रा सहसा परीवृता मदे सोमस्य दृंहितान्यैरयत्
हे स्तोताओं! आप लोग अङ्गिराओं की तरह नवीन स्तुति द्वारा इन्द्र देव की उपासना करें; क्योंकि इनका शोषक तेज पूर्वकाल की तरह उदित होता है। सोम जनित हर्ष के उत्पन्न होने पर इन्होंने वृत्रासुर द्वारा आक्रान्त सारी मेघ राशि को उद्घाटित किया।[ऋग्वेद 2.17.1]
हे मनुष्यों! अंगिराओं के समान नये श्लोकों से इन्द्रदेव का अर्चन करो। इन्द्रदेव का तेज सूर्य रूप से उदित होता है। सोम से रचित खुशी के कारण इन्द्र देव ने वृत्र के द्वारा रोके हुए बादल को खोला।
Hey worshipers! Pray to Indr Dev with the help of a new hymn-composition, to evolve his powers-energies like the Sun, as before. Having enjoyed Somras he cleared the blockade of the clouds by Vrata Sur.  
स भूतु यो ह प्रथमाय धायम् ओजो मिमानो महिमानमातिरत्। 
शूरो यो युत्सु तन्वं परिव्यत शीर्षणि द्यां महिना प्रत्यमुञ्चत
जिन इन्द्र देव ने बल का प्रकाश करके प्रथम सोमरस के पान के लिए अपनी महिमा को बढ़ाया और जिन शत्रु हन्ता इन्द्र देव ने युद्ध काल में अपने शरीर को सुरक्षित रखा, वे इन्द्र देव प्रसन्न हों। उन्होंने अपनी महिमा से अपने मस्तक पर धुलोक को धारण कर लिया।[ऋग्वेद 2.17.2]
इन्द्रदेव ने संग्राम काल में, शत्रु पतन की कामना से सोमपान के लिए अपनी महिमा की वृद्धि की। वे इन्द्र देव प्रसन्न हों। उन्होंने अपने मस्तक पर सूर्य लोक धारण किया।
Let Indr Dev become happy. He strengthened his powers-might by consuming Somras. He supported the space, sky and the horizon by his power.
अधाकृणोः प्रथमं वीर्यं महद्यदस्याग्रे ब्रह्मणा शुष्ममैरयः। 
रथेष्ठेन हर्यश्वेन विच्युताः प्र जीरयः सिस्रते सध्यक् पृथक्
हे इन्द्र देव! आपने अपना महावीर्य प्रकट किया; क्योंकि स्तोत्र द्वारा प्रसन्न होकर आपने शत्रु विनाशक बल को प्रकट किया। आपके स्थस्थित हरि नामक अश्वों के द्वारा स्वस्थान से विच्युत होकर अनिष्टकारी लोगों में से कुछ दल बाँधकर और कुछ अलग-अलग होकर पलायित हो गये।[ऋग्वेद 2.17.3]
हे इन्द्र देव तुम पुरुषार्थी हो। वंदना से प्रसन्न होकर तुमने शत्रु को नष्ट करने वाली शक्ति को प्रकट किया। तुम्हारे रथ में जुड़े हुए अश्वों के कारण दुष्ट लोग दल बद्ध होकर और कुछ इधर-उधर बिखर कर भाग गए।
Hey Indr Dev! You are courageous, daring. You were pleased by the Strotr-hymns sung in your honour and used your might to displace-dislocate the enemy. Some of them moved in groups while others moved individually when you deployed your horses named Hari in the charoite.
अधा यो विश्वा भुवनाभि मज्मनेशानकृत्प्रवया अभ्यवर्धत। 
आद्रोदसी ज्योतिषा वह्निरातनोत्सीव्यन्तमांसि दुधिता समव्ययत्
हे बहुत अन्न वाले इन्द्र देव! अपने बल से समस्त भुवनों को अभिभूत करके और अपने को सबका अधिपति करके वर्द्धित हुए। अनन्तर संसार के वाहक इन्द्र देव ने द्यावा पृथ्वी को व्याप्त किया। इन्होंने दुःस्थित तमोराशि को चारों ओर फेंकते हुए संसार को व्याप्त किया।[ऋग्वेद 2.17.4]
अनेक अन्न वाले इन्द्रदेव समस्त संसार के स्वामी हैं। उन्होंने अम्बर पृथ्वी को विद्यमान किया। उन्होंने अंधकार को सब जगह प्रेरित करते हुए संसार को ढक दिया।
Hey possessor of ample quantity of food grains, Indr Dev! You grew by powers (strength & might) by becoming the leader of all abodes enchanting them. Thereafter, the supporter of the earth and the sky  Indr Dev removed the sorrow-pain of the earth & other abodes and threw it away all around. 
स प्राचीनान्पर्वतान्दृंहदोजसाधराचीनमकृणोदपामपः। 
अधारयत्पृथिवीं विश्वधायसमस्तभ्नान्मायया द्यामवस्त्रसः
इन्द्र देव ने इधर-उधर घूमने वाले पर्वतों को अपने बल से अचल किया। मेघ स्थित जलराशि को नीचे गिराया। उन्होंने संसार धारयित्री पृथ्वी को अपने बल से धारित किया और बुद्धि बल से धुलोक को पतन से बचाया।[ऋग्वेद 2.17.5]
इन्द्रदेव ने विचरण शील पर्वतों को अचल किया। बादल ने जल को गिराया। संसार को धारण करने वाली धरा को अपनी शक्ति से धारण किया और क्षितिज को इस प्रकार दृढ़ किया जिससे वह गिर न सके।
Indr Dev made the mountains stationary-stable. Prior to this they use to move freely. Unlocked the water present in the clouds. He supported the earth with his powers and protected the sky & space from falling by making use of his intellect.
सास्मा अरं बाहुभ्यां यं पिताकृणोद्विश्वस्मादा जनुषो वेदसस्परि। 
येना पृथिव्यां नि क्रिविं शयध्यै वज्रेण हत्व्यवृणक्तुविष्वणिः
हे इन्द्र देव! इस संसार के लिए आप पर्याप्त है। आप सबके रक्षक हैं। आपने समस्त जीवों की अपेक्षा उत्कृष्ट ज्ञान बल से अपने हाथों संसार का निर्माण किया। विविध कीर्तिमान् इन्द्र देव ने इस ज्ञान से क्रिवि को वज्र द्वारा मारते हुए पृथ्वी पर रेंगने के लिए बाधित किया।[ऋग्वेद 2.17.6]
Hey Indr Dev! You are sufficient for this earth. You are the protector of all. You created the universe by virtue of your  excellent intellect. He struck Krivi-a demon with Vajr-thunder volt and made him cripple over the earth.
Sufficient-enough was he, for (the protection of) this world-universe, which he, its defender, fabricated with his two arms for the sake of all mankind, over whom he was supreme by his wisdom; whereby, also, he the loud-shouting, having struck Krivi-Asur with the thunderbolt, consigned him to eternal slumber on the earth.
अमाजूरिव पित्रोः सचा सती समानादा सदसस्त्वामिये भगम्। 
कृधि प्रकेतमुप मास्या भर दद्धि भागं तन्वोयेन मामहः
हे इन्द्र देव! जिस प्रकार से आमरण माता-पिता के साथ रहने वाली पुत्री अपने पितृ कुल से ही अंश के लिए प्रार्थना करती है, उसी प्रकार मैं आपके पास धन की याचना करता हूँ। उस धन को आप सबके पास प्रकट करें, उस धन को मापें और उसे सम्पादित करें। मेरे शरीर के भोगने योग्य धन प्रदान करें। इस धन से स्तोताओं को सम्मानित करें।[ऋग्वेद 2.17.7]
इन्द्र देव संसार के रक्षक, समस्त प्राणियों को प्रकट करने वाले, माँ-बाप के भवन में हमेशा निवास करने वाली बेटी जैसे पितर कुल से भरण पोषण के लिए धन का भाग चाहती हैं, वैसे ही मैं तुमसे धन की विनती करता हूँ। उस धन को प्रकट करो।
Hey Indr Dev! The manner in which an unmarried daughter requests her parents for financial support, I too request you to help me. Grant me sufficient money to survive. Let this money to used to honour the worshipers.
भोजं त्वामिन्द्र वयं हुवेम ददिष्टमिन्द्रापांसि वाजान्। 
अविड्ढीन्द्र चित्रया न ऊती कृषि वृषन्निन्द्र वस्यसो नः
हे अभीष्टवर्षी इन्द्र देव! आप पालक है। हम आपका आह्वान करते हैं। आप कर्म और अन्न के दाता है। नाना प्रकार से आश्रय प्रदान कर आप हमें बचायें। आप हमें अत्यन्त धनशाली बनावें।[ऋग्वेद 2.17.8]
मुझे उपभोग्य धन प्रदान करो और प्रार्थना करने वालों को भी धन से संतुष्ट करो। हे पोषणकर्त्ता इन्द्रदेव! तुम कर्म और अन्न के प्रेरक हो। हम तुम्हारा आह्वान करते हैं। तुम हमको अत्यन्त धनवान बना दो।
Hey accomplishments fulfilling Indr Dev! We call you. You are the giver of working capability and food grains. You support us in different-different ways. Make us rich. 
नूनं सा ते प्रति वरं जरित्रे दुहीयदिन्द्र दक्षिणा मघोनी। 
शिक्षा स्तोतृभ्यो माति धग्भगो नो बृहद्वदेम विदथे सुवीराः
हे इन्द्र देव! आपकी जो धनवती दक्षिणा स्तोता के सभी मनोरथ पूर्ण करती है, वही दक्षिणा आप हमें प्रदान करें। आप भजनीय हैं। हमें छोड़कर अन्य किसी को न दें। हम पुत्र पौत्रादि से युक्त होकर इस यज्ञ में प्रभूत स्तुति करेंगे।[ऋग्वेद 2.17.9]
हे इन्द्र देव! तुम्हारी धनयुक्त दक्षिणा सबकी कामना पूरी करती है तुम पूजने के योग्य हो। वह दक्षिणा हमको दो किसी दूसरे को नहीं हम संतान युक्त हुए यज्ञ में तुम्हारी वंदना करेंगे।
Hey Indr Dev! Grant us the money, riches, donations which accomplish all desires. You deserve worship-prayers. Do not give to any one else except us. We will make offerings in this Yagy having obtained sons & grandsons.
ऋग्वेद संहिता, द्वितीय मण्डल सूक्त (18) ::  ऋषि :- गुत्समद,  भार्गव, शौनक, देवता :- इन्द्र, छन्द :- त्रिष्टुप्
प्राता रथो नवो योजि सस्निश्चतुर्युगस्त्रिकशः सप्तरश्मिः। 
दशारित्रो मनुष्यः स्वर्षा: स इष्टिभिर्मतिभी रंह्यो भूत्
प्रातःकाल में प्रारम्भ किये गए इस रथ में चार युग, तीन कोड़े, सात किरणें और दस चक्र हैं। यह इष्ट प्रयोजनों के लिए मति के अनुरूप गतियों से युक्त हैं। यह मनुष्यों को स्वर्ग के पहुँचाने वाला है।[ऋग्वेद 2.18.1]
हे विद्वान् शिल्पियों से जो (दशारित्रः) दश अरित्रों वाला अर्थात् जिसमें दश रुकावट के साधन हैं (सस्निः) और जिसमें सोते हैं (चतुर्युगः) जो चार स्थानों में जोड़ा जाता (त्रिकशः) तीन प्रकार के गमन वा गमन साधन जिसमें विद्यमान (सप्त रश्मिः) जिसकी सात प्रकार की किरणें (नव) ऐसा नवीन (रथः) रथ और (स्वर्षा) जिससे सुख उत्पन्न हो ऐसा और (मनुष्यः) विचारशील मनुष्य (प्रातः) प्रभात समय में (योजि) युक्त किया जाता (सः) वह (इष्टिभिः) संगत प्राप्त हुई (मतिभिः) प्रज्ञाओं से (रंह्यः) चलाने योग्य (भूत्) होता है। जो मनुष्य ऐसे यान से जाने-आने को चाहें, वे निर्विघ्न गतिवाले हों।
अरित्र :: एक सरल युक्ति है जो जलयान, नौका, पनडुब्बी, होवरक्राफ्ट, वायुयान आदि को वांछित दिशा में मोड़ने के काम आता है, बल्ला जिससे नाव खेते हैं, डाँड़, क्षेपणी, निपातक, जल की थाह लेने की ड़ोरी, लंगर, शत्रु से रक्षा करने वाला, आगे बढ़ाने वाला। 
The charoite deployed in the morning possess ten device to control it to move-navigate in three directions and seven kinds of rays-beams to show detect-the path (Just like radar or sonar). Its devised to move one to safely.
Virtually it represents Sun. 
यह वंदना के योग्य शुद्ध अनुष्ठान उषा काल में शुरू हुआ। इसमें चार पाषाण, तीन स्वर, सात छन्द और दस प्रकार के पात्र हैं। यह मनुष्यों को दिव्यता प्रदान करता है।
A laudable and pure sacrifice, has been instrumental at dawn; having four pairs (of stones for bruising the Som); three tones (of prayer); seven metres and ten vessels, beneficial to man, conferring heaven and sanctifiable with solemn rites and praises. Its joined-fixed at four places. 
Four different sources gives different versions-translations of the Shlok.
सास्मा अरं प्रथमं स द्वितीयमुतो तृतीयं मनुषः स होता। 
अन्यस्यागर्भमन्य ऊजनन्तसोअन्येभिः सचते जेन्योवृषा
यह यज्ञ इन इन्द्र देव के लिए प्रथम, द्वितीय और तृतीय सवन में यथेष्ट हुआ। यह मनुष्यों लिए शुभ फल लाता है। दूसरे ऋत्विक् लोग भी दूसरे सिद्ध वाक्यों को गर्भ से उत्पन्न करते हैं। अभीष्टवर्षी और जयशील यज्ञ अन्य देवों के साथ सम्मिलित होता है।[ऋग्वेद 2.18.2]
यह रमणीय श्लोक और हवियों से सिद्ध होगा। यह अनुष्ठान तीनों सवनों में इन्द्र देव को संतुष्ट करने वाला है। यह मनुष्यों के लिए शुभ फल दाता है।
This Yagy has been conducted in three phases for the sake of Indr Dev and leads to auspicious results-rewards for the humans. Other participants in the Yagy too contribute in the form of hymns. This accomplishment granting Yagy is shared by the demigods-deities.
That sacrifice is sufficient for Indr Dev, whether offered for the first, the second or the third time. It is the bearer of good to man. Other priests-hosts engender the embryo of a different rite for this victorious sacrifice. The shower of benefits combines with other ceremonies.
 हरी नु कं रथ इन्द्रस्य योजमायै सूक्तेन वचसा नवेन। 
मो षु त्वामत्र बहवो हि विप्रा नि रीरमन्यजमानासो अन्ये
इन्द्र देव के रथ में नये स्तोत्रों के द्वारा शीघ्र जाने के लिए हरिनाम के अश्वों को जोड़ा जाता है। इस यज्ञ में अनेक मेधावी स्तोता है। दूसरे यजमान लोग आपको अच्छी तरह तृप्त नहीं कर सकते।[ऋग्वेद 2.18.3]
ऋत्विगण सिद्ध श्लोकों द्वारा इन्द्र देव के रथ में घोड़े संयोजित किये जाते हैं। इस अनुष्ठान में अत्यन्त बुद्धिमान वंदनाकारी हैं। हे इन्द्रदेव! अन्य यजमान तुम्हारी तृप्ति करने में असमर्थ हैं।
The charoite of Indr Dev is deployed with the horses named Hari along with the recitation of newly composed sacred hymns. The Yagy has many intellectual recitators of Strotr-hymns. Other hosts can not satisfy Indr Dev. 
The style of recitation of Mantr-Strotr is very-very specific. Loudness, pitch, wavelength, amplitude, frequency, time period and velocity etc., has to be practiced for perfection and purity.
I harness quickly and easily the horses to the car of Indr for its journey, by new and well-recited prayer, many wise worshippers are present here, let not other instrumental tutors of sacred rites tempt you away.
HARNESS :: घोड़े का साज, कवच; musical instrument, materials, accompaniment, armour, shield, armature, harness, coat of mail.
आ द्वाभ्यां हरिभ्यामिन्द्र याह्या चतुर्भिरा षड्भिहूयमानः। 
आष्टाभिर्दशभिः सोमपेयमयं सुतः सुमख मा मृधस्कः
हे शोभन धन वाले इन्द्र देव! आप बुलाये जाने पर दो, चार, छः, आठ अथवा दस हरि नामक घोड़ों के द्वारा सोमरस के पान के लिए पधारें। यह सोमरस आपके लिए ही निर्मित हुआ है। आप उसे नष्ट न करें।[ऋग्वेद 2.18.4]
हे इन्द्र देव! आहुत किये हुए तुम अपने विभिन्न संरक्षक अश्वों द्वारा सोम ग्रहण करने के लिए आओ। यह सोम तुम्हारे लिए है। इसे त्यागना नहीं।
Hey Indr Dev, possessing glorious wealth-riches! Come by riding-deploying 2, 4, 6, 8 or 10 horses on being invited for drinking Somras. The Somras has been extracted for you, do not let it go waste. 
आ विंशत्या त्रिंशता याह्यर्वाङा चत्वारिंशता हरिभिर्युजानः। 
आ पञ्चाशता सुरथेभिरिन्द्रा षष्ट्या सप्तत्या सोमपेयम्
हे इन्द्र देव! आप उत्तम गति वाले बीस, तीस, चालीस, पचास, साठ अथवा सत्तर घोड़ों के द्वारा हमारे सामने सोमरस के पान के लिए पधारें।[ऋग्वेद 2.18.5]
हे इन्द्र देव! तुम बीस, तीस, चालीस, पचास, साठ और सत्तर गति वाले घोड़ों को रथ में जोड़कर सोमपान करने के लिए यहाँ पधारो। 
hey Indr Dev! Come to us by riding-deploying 20, 30, 40, 50, 60 or 70 fast moving (accelerated) horses in your charoite for drinking Somras.
आशीत्या नवत्या याह्यर्वाङा शतेन हरिभिरुह्यमानः। 
अयं हि ते शुनहोत्रेषु सोम इन्द्र त्वाया परिषिक्तो मदाय
हे इन्द्र देव! अस्सी, नब्बे अथवा सौ अश्वों के द्वारा वहन किये जाने पर हमारे सामने आवें, क्योंकि आपके आनन्द के लिए पात्र में सोमरस रखा हुआ है।[ऋग्वेद 2.18.6]
हे इन्द्र देव! अस्सी, नब्बे और सौ घोड़ों द्वारा हमको ग्रहण होओ। तुम्हारी हर्षिता के लिए पात्र में सोम प्रस्तुत है।
Hey Indr Dev! Come (quickly) riding 80, 90 or 100 horses, since Somras has been kept for your pleasure.
मम ब्रह्मेन्द्र याह्यच्छा विश्वा हरी घुरि धिष्वा रथस्य। 
पुरुत्रा हि विहव्यो बभूथास्मिञ्छूर सवने मादयस्व
हे शूर इन्द्र देव! मेरी स्तुति से सम्मुख आवें। जगद् व्यापी दोनों अश्वों को रथ के अग्रभाग में नियोजित करें। बहुसंख्यक यजमान आपका आवाहन करते हैं। आप इस यज्ञ में प्रसन्न होवें।[ऋग्वेद 2.18.7]
हे इन्द्र देव! मेरी प्रार्थना से हर्षित होओ। संसार व्यापी अपने दोनों अश्वों को रथ में जोड़ो। तुम्हें अनेक यजमान पुकारते हैं। तुम इस यज्ञ में शक्ति प्राप्त करो।
Hey brave (great warrior) Indr Dev! Please listen (respond) to my request-prayer. Let entire universe pervading both the horses, be deployed in the front segment of the charoite. Worshippers in large quantity-numbers are inviting you. You should become happy with this Yagy.
न म इन्द्रेण सख्यं वि योषदस्मभ्यमस्य दक्षिणा दुहीत। 
उप ज्येष्ठे वरूथे गभस्तौ प्रायेप्राये जिगीवांसः स्याम
इन्द्र देव के साथ मेरी मित्रता का सम्बन्ध सदैव बना रहे। इनकी यह दक्षिणा हमें अभिमत फल प्रदान करे। हम उनके उत्तम दायें हाथ के पास रहें। इनके द्वारा हमें निरन्तर दान मिलता रहे। इनके संरक्षण में हम प्रत्येक युद्ध में विजयी बनें।[ऋग्वेद 2.18.8] 
इंद्र देव की मित्रता कभी न छूटे। यह दक्षिणा हमको मनवांछित फल दे। हम दुखों को दूर करने वाले इन्द्रदेव को चाहते हैं। हम सभी युद्धों में विजय प्राप्त करें।
Let my friendship with Indr Dev prevail-continue. His donations grant us the desires rewards. Let us continue getting benefits-donations from him. Let his shelter-protection grant us victory in every war.
नूनं सा ते प्रति वरं जरित्रे दुहीयदिन्द्र दक्षिणा मघोनी। 
शिक्षा स्तोतृभ्यो माति धग्भगो नो बृहद्वदेम विदथे सुवीराः
हे इन्द्र देव! आपकी जो धनवती दक्षिणा स्तोता के मनोरथ पूर्ण करती है, वही दक्षिणा हमें प्रदान करें। आप यजनीय हैं। हमें छोड़कर दूसरे को दक्षिणा न देना। हम पुत्र-पौत्रादि से युक्त होकर इस में प्रभूत स्तुति करेंगे।[ऋग्वेद 2.18.9] 
हे इन्द्र देव! तुम्हारी समृद्धि वाली दक्षिणा वंदना करने वालों की कामना पूर्ण करने वाली है, वह हमारे अतिरिक्त अन्य को ग्रहण न हो। तुम प्रार्थना के योग्य हो। हम संतान से परिपूर्ण हुए इस यज्ञ में वंदना करेंगे।
Hey Indr Dev! Your rewards-donations (generosity) which accomplish our wishes may please be granted. Do not make donations to any one else. We will pray-worship you on being the granted sons & grandsons.
ऋग्वेद संहिता, द्वितीय मण्डल सूक्त (19) ::  ऋषि :- गुत्समद,  भार्गव, शौनक, देवता :- इन्द्र, छन्द :- त्रिष्टुप्
अपाय्यस्यान्धसो मदाय मनीषिणः सुवानस्य प्रयसः। 
यस्मिन्निन्द्रः प्रदिवि वावृधान ओको दधे ब्रह्मण्यन्तश्च नरः
सोमाभिषव कर्ता मनीषी यजमान का मादक अन्न, आनन्द के लिए, इन्द्र देव भक्षण करें। इस प्राचीन अन्न में वर्द्धमान होकर इन्द्र देव इसमें निवास करते हैं। इन्द्र देव के स्तोत्राभिलाषी ऋत्विक् भी इसमें निवास कर चुके हैं।[ऋग्वेद 2.19.1] 
सोम छानने वाले यजमान की हर्ष वर्द्धक हवियों को प्रसन्न करने के लिए इन्द्र देव सेवन करें। इसमें वृद्धि किये हुए इन्द्रदेव इसी में निवास करते हैं। इन्द्रदेव के श्लोकों की इच्छा वाले ऋत्विक भी इसमें निवास किये हुए हैं।
Let Indr Dev eat the offerings made by the performer of Yagy-hosts, devotees who have extracted Somras for him. Indr Dev is present in the ancient food grains along with the hosts who too desire the Strotr.
It has been partaken by Dev Raj Indr for his exhilaration, of this agreeable sacrificial food, the libation of his devout worshipper, thriving by which ancient Somras, he has bestowed a fitting dwelling, where the adoring conductors of the ceremony abide.
अस्य मन्दानो मध्वो वज्रहस्तोऽहिमिन्द्रो अर्णोवृतं वि वृश्चत्।
प्र यद्वयो नः स्वसराण्यच्छा प्रयांसि च नदीनां चक्रमन्त
इस मदकर सोमरस से आनन्द निमग्न होकर इन्द्र देव ने हाथों में वज्र धारण करके जल के आवरक अहि राक्षस का वध किया। उस समय प्रसन्नतादायक जल राशि, जिस प्रकार से पक्षिगण पुष्करिणी के सामने जाते हैं, उसी प्रकार से ये समुद्र के सामने जाने लगी।[ऋग्वेद 2.19.2]
ENTHRALLED :: रोमांचित; filled with wonder and delight, beguiled, captivated, charmed, delighted, entranced.
इस हर्ष सम्पन्न सोमरस से आह्लादित इन्द्र ने वज्र ग्रहण कर जल रोकने वाले अहि को मार डाला। उस सयम पक्षियों के पुष्करिणी (छोटा जलाशय) के सामने जल के समान प्रसन्नता जल-राशि समुद्र के सामने पहुंचने लगी।
पुष्करिणी :: कमलों से भरा हुआ तालाब, छोटा तालाब-जलाशय, कमल का पौधा, कमलिनी, सौ धनुष की नाप का एक प्रकार का चौकोर तालाब, हथिनी, स्थलपद्मिनी; a small pond full of lotus flowers.
Indr Dev got enthralled by  drinking Somras and took Vajr in his hands to kill Ahi, a demon who was obstructing the flow of water. The water started flowing into the ocean just as the birds move towards Pushkarni.
स माहिन इन्द्रो अर्णो अपां प्रैरयदहिहाच्छा समुद्रम्। 
अजनयत्सूर्यं विदद्गा अक्तुनाह्वां वयुनानि साधत्
अहिहन्ता और पूजनीय इन्द्र देव ने जल प्रवाह को समुद्र के सामने प्रेरित किया। उन्होंने समुद्र को उत्पन्न करके गौवें प्राप्त की तथा तेजोबल से दिवसों को प्रकाशित किया।[ऋग्वेद 2.19.3]
अर्चनीय एवं अहिमर्दक इन्द्रदेव ने जल प्रवाह को समुद्र के सम्मुख भेजा। समुद्र को निर्मित कर उसने गौ ग्रहण की और अपने तेज की शक्ति से सूर्य को प्रकाशमान किया।
Revered-honourable Indr Dev, the slayer of Ahi-the demon, moved the waters flow into the ocean. He created the ocean and attained cows. He granted light-energy, power to Sun to light the earth-universe.
सो अप्रतीनि मनवे पुरूणीन्द्रो दाशद्दाशुषे हन्ति वृत्रम्। 
सद्यो यो नृभ्यो अतसाव्यो भूत्पस्पृधानेभ्यः सूर्यस्यसातौ
इन्द्र देव ने हव्य दाता मनुष्य को यजमान के लिए बहु संख्यक उत्कृष्ट धन प्रदान किया। वृत्रासुर का विनाश कर सूर्य की प्राप्ति के लिए स्तोताओं में विरोध उपस्थित होने पर इन्द्र देव आश्रय देने वाले हुए।[ऋग्वेद 2.19.4] 
हविदाता यजमान को इन्द्र देव ने महान धन प्रदान किया। वृत्र को समाप्त किया और सूर्य को पान करने के लिए वंदना करने वालों में विरोध होने पर इन्द्र देव ने अपने तपस्वियों को आश्रय दिया।
Indr Dev granted-provided a lot of excellent riches-wealth to the hosts,  conducting Yagy. On killing Vrata Sur confrontation developed-evolved amongest the recitators of hymns for attaining the Sun, Indr Dev granted asylum to those who were practicing asceticism.
स सुन्वत इन्द्रः सूर्यमा देवो रिणङ्मर्त्याय स्तवान्। 
आ यद्रयिं गुहदवद्यमस्मै भरदंशं नैतशो दशस्यन्
जैसे पिता अपने पुत्र को अपने द्वारा संचित धन का एक अंश प्रदान करता है, उसी प्रकार जब इन्द्र देव को दान करने वाले एतश ने यज्ञ के समय अमूल्य और उत्तम धन प्रदान किया, तब पूज्य और तेजस्वी इन्द्र देव ने यज्ञ की कामना करने वाले मनुष्यों के लिए सूर्य देव को प्रकाशित किया।[ऋग्वेद 2.19.5]
सोम छानने वाले एतश के लिए वंदना किये जाने पर इन्द्र देव सूर्य को लाये क्योंकि पिता को पुत्र द्वारा धन देने के तुल्य एतश ने यज्ञ में इन्द्र देव को सोमरस भेंट किया था।
Revered & honourable Indr Dev brought forward the Sun (energised the Sun) for the sake of the humans who wished to organise-conduct Yagy, when  Atash offered Somras to him & donated his valuable (priceless) and excellent wealth, like the father share a part of his earnings with his son.
(Sun might be covered by the intense-dense clouds causing complete darkness over the earth).
स रन्धयत्सदिवः सारथये शुष्णमशुषं कुयवं कुत्साय। 
दिवोदासाय नवतिं च नवेन्द्रः पुरो व्यैरच्छम्बरस्य
अपने सारथि राजर्षि कुत्स के लिए दीप्ति युक्त इन्द्र देव ने शुष्ण, अशुष और कुपव को वशीभूत किया और दिवोदास के लिए शम्बर नामक असुर के निन्नानबे नगरों को नष्ट किया।[ऋग्वेद 2.19.6] 
इन्द्र देव ने अपने सारथी कुत्स के लिए शुष्ण, अशूष और कुयव को अपने वश में कर लिया और दिवोदास के लिए शम्बर के निन्यानवें नगरों को तोड़ा। 
Indr Dev over powered-captured Shushn, Ashush and Kupav for the sake of his charioteer Kuts and destroyed the 99 cities under the control of Shamber for the welfare of Divodas.
एवा त इन्द्रोचथमहेम श्रवस्या न त्मना वाजययन्तः। 
अश्याम तत्साप्तमाशुषाणा ननमो वधरदेवस्य पीयोः
हे इन्द्र देव! अन्न की अभिलाषा से हम आपको बलवान् करके आपकी स्तुति करते हैं। आपको प्राप्त करके हम सप्तपदी मित्रता का लाभ करें। देवशून्य पीयु के विरोध में आप अपना वज्र फेंकें।[ऋग्वेद 2.19.7] 
हे इन्द देव! इनकी अन्न की इच्छा से हम तुम्हें प्रार्थनाओं से बलशाली बनाते हैं। हम तुम्हें प्राप्त सप्तपदि मित्रता का लाभ उठाएँ। देव विरोधी पीयु के लिए वज्र चलाओ!
Hey Indr Dev! We will offer prayers for your might-valour for seeking food grains. We should be benefited by the friendship generated by moving 7 steps together. Strike-project your Vajr over the atheist Peeyu.
एवा ते गृत्समदाः शूर मन्मावस्यवो न वयुनानि तक्षुः।
ब्रह्मण्यन्त इन्द्र ते नवीय इषमूर्जं सुक्षितिं सुप्रमश्युः
हे बलिष्ठ इन्द्र देव! जिस प्रकार से गमनाभिलाषी पथिक मार्ग साफ करता है, उसी प्रकार से गृत्समद गण आपके लिए मनोरम स्तुति की रचना करते हैं। आप सर्वापेक्षा नूतन हैं। आपके स्तोत्राभिलाषी गृत्समदगण अन्न, बल, गृह और सुख प्राप्त करें।[ऋग्वेद 2.19.8]
हे इन्द्र देव! जाने के लिए रास्ता स्वच्छ करने वाले के समान हम तुम्हारे लिए सुन्दर श्लोक बनाते हैं। तुम्हारे श्लोकों की इच्छा कर अन्न शक्ति, निवास और सुख को ग्रहण करें।
Hey mighty Indr Dev! The way a passenger clears his way-path prior to travelling, the Gratsamad Gan compose attractive-pleasing poems for you. You are young-new as compared to others. Let Gratsamad Gan desirous of a dialogue-blessings from you to get food grains, residence and pleasure-comforts.
नूनं सा ते प्रति वरं जरित्रे दुहीयदिन्द्र दक्षिणा मघोनी। 
शिक्षा स्तोतृभ्यो माति धग्भगो नो बृहद्वदेम विदथे सुवीराः
हे इन्द्र देव! आपकी जो धनवती दक्षिणा स्तोता के सभी मनोरथ पूर्ण करती है, वहीं दक्षिणा हमें प्रदान करें। आप भजनीय हैं। हमें छोड़कर अन्य किसी को न दें। हम पुत्र और पौत्रादि से युक्त होकर यज्ञ में प्रभूत स्तुति करेंगे।[ऋग्वेद 2.19.9] 
हे इन्द्र! देव! तुम्हारी धनवाली दक्षिणा स्तोत्रों की कामनाएँ पूर्ण करती हैं। वे हमारे अतिरिक्त अन्य को प्राप्त न हों। हम संतानयुक्त हुए इस यज्ञ में तुम्हारी वंदना करते हैं।
Hey Indr Dev! Grant us the donations which accomplish the desires of all. You deserve prayers-worship. Do not provide such things-gifts, (rewards) to others, except us. We will pray to you in the Yagy along with our sons & grand sons.
ऋग्वेद संहिता, द्वितीय मण्डल सूक्त (20) ::  ऋषि :- गुत्समद,  भार्गव, शौनक, देवता :- इन्द्र, छन्द :- जगती, त्रिष्टुप्, विराङ् रूपा
वयं ते वय इन्द्र विद्धि षु णः प्र भरामहे वाजयुर्न रथम्। 
विपन्यवो दीध्यतो मनीषा सुम्नमियक्षन्तस्त्वावतो नॄन्
हे इन्द्र देव! जिस प्रकार अन्न की कामना करने वाला व्यक्ति रथ तैयार करता है, उसी प्रकार हम भी आपके लिए अन्न तैयार करते हैं। आप हमें अच्छी तरह जानते हैं। हम स्तुति द्वारा आपको दीप्यमान करते हैं। हम आप जैसे पुरुष से सुख की याचना करते हैं।[ऋग्वेद 2.20.1] 
हे इन्द्र देव! अन्न की प्राप्ति के लिए ही जैसे रथ का निर्माण करने वाला, रथ को बनाता है, उसी प्रकार हम तुम्हारे लिए अन्न प्रस्तुत करते हैं। तुम हमसे भली भांति परिचित हो। हम वंदना से तुम्हें प्रकाशमान करते हैं और तुमसे सुख की विनती करते हैं।
Hey Indr Dev! The way a person desirous of having food grains, prepare his charoite (keeps it ready), we too prepare food grains for you. You know us well. We make prayers in your honour. We request-pray to you, for comforts-pleasure. 
त्वं न इन्द्र त्वाभिरूती त्वायतो अभिष्टिपासि जनान्। 
त्वमिनो दाशुषो वरूतेत्याधीरभि यो नक्षति त्वा
हे इन्द्र देव! आप हमारा पालन करते हुए हमारी रक्षा करें। जो आपको चाहते हैं, उनकी आप शत्रुओं से रक्षा करते हैं। आप हव्यदाता यजमान के ईश्वर और उसके शत्रु को दूर करने वाले हैं। हव्य द्वारा जो आपकी सेवा करता है, उसके लिए आप यह सब कर्म करते हैं।[ऋग्वेद 2.20.2]
हे इन्द्र देव! हमारे पोषक और रक्षक होओ। तुम हमारे उपासकों की शत्रु से रक्षा करते हो। तुम हविदाता के दाता हो और उसके शत्रुओं को भगाते हो। हवि में सेवा करने वाले के लिए तुम यह कर्म करते हो। 
Hey Indr Dev! Nurture us while protecting us. You protect those who like-respect you. You are the God of the host-house hold who make offerings to you and repel his enemy. You protect-shelter the person who make offerings to you.
स नो युवेन्द्रो जोहूत्रः सखा शिवो नरामस्तु पाता। 
यः शंसन्तं यः शशमानमूती पचन्तं च स्तुवन्तं च प्रणेषत्
हम यज्ञ कार्य करते हैं। तरुण वयस्क, आह्वान योग्य, मित्र तुल्य और सुखदाता इन्द्र देव हमारी रक्षा करें। जो स्तोत्र का उच्चारण करता है, क्रिया का समाधान करता है, हव्य का पाक करता है और स्तुति करता है, उसे आश्रय देकर इन्द्र देव कर्म के पार ले जाते हैं।[ऋग्वेद 2.20.3]
हम यज्ञानुष्ठान करते हैं, वंदनाकारी हविदाता और कर्मवान व्यक्ति को इन्द्र देव शरण देते और कार्यों में निपुण बनाते हैं।
We conduct Yagy. Let young, deserving invitation, like a friend, pleasure-comforts, creating-granting Indr Dev protect us. One who recite Strotr-hymns in his honour, accomplish his duties, prepare offerings, pray-worship him, Indr Dev protect him and move him across the barriers of deeds towards Salvation-Moksh.
तमु स्तुष इन्द्रं तं गृणीषे यस्मिन्पुरा वावृधुः शाशदुश्च। 
स वस्वः कामं पीपरदियानो ब्रह्मण्यतो नूतनस्यायोः
मैं उन्हीं इन्द्र देव की स्तुति करता हूँ, उन्हीं की प्रशंसा करता हूँ। उनके स्तोता पहले वर्द्धित हुए और उन्होंने शत्रुओं का विनाश किया। इन्द्र देव के निकट प्रार्थना करने पर इन्द्र देव स्तोत्राभिलाषी नये यजमान की धन प्राप्ति की इच्छा को पूर्ण करते है।[ऋग्वेद 2.20.4] 
मैं इन्द्र देव का प्रार्थनाकारी और उनका प्रशंसक हूँ। उनके प्रार्थनाकारी पहले वृद्धि को ग्रहण हुए और फिर शत्रु का पतन कर सके। जो नया वंदनाकारी इन्द्रदेव के पास स्तुति पाठ करते हैं उनकी धन की इच्छा को इन्द्रदेव पूरा करते हैं।
I appreciate-honour and pray-worship Indr Dev. Those who worshiped him grew in strength and destroyed the enemy. Those who pray-worship Indr Dev for riches-wealth are obliged by him.
सो अङ्गिरसामुचथा जुजुष्वान्ब्रह्मा तूतोदिन्द्रो गातुमिष्णन्। 
मुष्णनुपसः सूर्येण स्तवानश्नस्य चिच्छिश्नथत्पूर्व्याणि
तेजस्वी एवं दर्शनीय इन्द्र तपस्वी के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं। वे शत्रुहन्ता इन्द्रदेव प्राणधारियों को कष्ट देने वाली वस्तु का मस्तक काटकर फेंक देते हैं।[ऋग्वेद 2.20.5] 
The worshipers provided the strength boosting food grains to Indr Dev. Indr Dev took his Vajr, killed the demons and destroyed the cities occupied by the demons which were made of Iron.
स ह श्रुत इन्द्रो नाम देव ऊर्ध्वो भुवन्मनुषे दस्मतमः। 
अव प्रियमर्शसानस्य साह्वाञ्छिरो भरद्दासस्य स्वधावान्
हे द्युतिमान्, कीर्त्तिमान् और अतीव दर्शनीय इन्द्रदेव! आप मनुष्य के लिए सदैव तैयार रहते हैं। शत्रुहन्ता और बलवान् इन्द्रदेव संसार के अनिष्टकर्ता शत्रुओं का प्रिय मस्तक नीचे फेंकते हैं।[ऋग्वेद 2.20.6]
तेजस्वी एवं दर्शनीय इन्द्र तपस्वी के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं। वे शत्रुहन्ता इन्द्रदेव प्राणधारियों को कष्ट देने वाली वस्तु का मस्तक काटकर फेंक देते हैं।
Hey glorious, aurous, beautiful Indr Dev! You are always ready to help the humans. You cut-chop off the heads of those enemies who are mighty, strong & bent upon creating trouble for the universe-living being, humans.
स वृत्रहेन्द्रः कृष्णयोनी: पुरंदरो दासीरैरयद्वि। 
अजनयन्मनवे क्षामपश्च सत्रा शंसं यजमानस्य तूतोत्
वृत्रहन्ता और पुरनाशक इन्द्र देव ने कृष्ण जन्मा दास सेना का विनाश किया। मनु के लिए पृथ्वी और जल की सृष्टि की है। वह यजमानों के अभिष्ट को पूर्ण करने वाले है।[ऋग्वेद 2.20.7]
वृत्र को समाप्त करने वाले तथा किले ध्वंस करने वाले इन्द्रदेव ने अंधकार को रचित  करने वाले शत्रुओं का नाश किया। उन्होंने मनुष्यों के लिए पृथ्वी और जल का निर्माण किया।
The slayer of Vratr and destroyer of forts Indr Dev vanished those enemies who created darkness. He created the earth & water for the humans. He fulfils the desires-accomplishes the wants-needs of the devotees. 
तस्मै तवस्थ्मनु दायि सत्रेन्द्राय देवेभिरर्णसातौ। 
प्रति यदस्य वज्रं बाह्वोर्धर्हत्वी दस्यून्पुर आयसीर्नि तारीत्
स्तोताओं ने जल प्राप्ति के लिए उन इन्द्र देव के लिए सदैव बल वर्द्धक अन्न प्रदान किया। जिस समय इन्द्र देव के हाथ में वज्र दिया गया, उस समय उन्होंने उसके द्वारा राक्षसों का हनन करके उनकी लौह मयी पुरी को ध्वस्त कर दिया।[ऋग्वेद 2.20.8]
वह यजमान की सुन्दर अभिलाषाओं को पूर्ण करें। जल की प्राप्ति हेतु स्तोताओं ने हमेशा इन्द्र को बढ़ाया। जब इन्द्र ने हाथ में वज्र लिया, तब उससे दानवों का नाश करके उनके लौह दुर्गों को तहस नहस कर दिया। 
The Stota always make offerings of nourishing, high energy food grains for Indr Dev for want of water. Indr Dev held Vajr in his hands and destroyed the iron Forts of the demons. 
Here Dev Raj Indr is prayed as Bhagwan Shiv who destroyed the three forts made of Gold, Silver and Iron respectively, as soon as they came in a straight line.
नूनं सा ते प्रति वरं जरित्रे दुहीयदिन्द्र दक्षिणा मघोनी। 
शिक्षा स्तोतृभ्यो माति धग्भगो नो बृहद्वदेम विदथे सुवीराः॥
हे इन्द्र देव! आपकी धनवती दक्षिणा स्तोता के सभी मनोरथ पूर्ण करती है। उसी दक्षिणा को हमें प्रदान करें। आप भजनीय हैं। हमारा अतिक्रम करके अन्य किसी को न देना। पुत्र और पौत्रादि से युक्त होकर हम इस यज्ञ में प्रभूत स्तुति करेंगे।[ऋग्वेद 2.20.9] 
हे इन्द्र देव! तुम्हारी समृद्धिशाली दक्षिणा वंदनाकारी का अभिष्ट पूर्ण करती है। उस दक्षिणा को हमारे अतिरिक्त अन्य को प्रदान नहीं करना। हम सन्तान से परिपूर्ण हुए यज्ञ में वंदना करेंगे।
Hey Indr Dev! The money (riches, wealth) given-provided to us by you accomplish all our needs-desires. Give us that money. You deserve worship. Do not give-sanction it to any one other than your devotees-worshipers. We will worship you, organise-perform Yagy for your sake having been blessed with sons & grand sons.
ऋग्वेद संहिता, द्वितीय मण्डल सूक्त (21) :: ऋषि :-  गुत्समद,  भार्गवः, शौनक, देवता :- इन्द्र, छन्द :- जगती, त्रिष्टुप्
विश्वजिते धनजिते स्वर्जिते सत्राजिते नृजित उर्वराजिते। 
अश्वाजिते गोजिते अब्जिते भरेन्द्राय सोमं यजताय हर्यतम्
धनजयी, स्वर्गजयी, सदाजयी, मनुष्यजयी, उर्वरा भूमिजयी, अश्वजयी, गोजयी, जलजयी; इसलिए सर्वजयी और यजनीय इन्द्रदेव को लक्ष्य करके वांछनीय सोमरस ले आवें।[ऋग्वेद 2.21.1]
संसार को विजय करने वाले, धन, मनुष्य, धरा, अश्व, धेनु और जल आदि को विजय करने वाले, अजेय इन्द्र के प्रति उनका इच्छित सोम लाओ।
Let Somras be served to worship able Indr Dev, victorious over every one, wealth-money, humans, heavens, horses, cows, water fertile land.
अभिभुवेऽभिभङ्गाय वन्वतेऽषाळ्हाय सहमानाय वेधसे। 
तुविग्रये वह्नये दुष्टरीतवे सत्रासाहे नम इन्द्राय वोचत
सबके पराजयकर्ता, विमर्दक, भोक्ता, अजेय, सर्वसह, पूर्णग्रीव, सर्वविधाता, सर्ववोढ़ा, दूसरों के लिए दुर्द्धर्ष और सर्वदा जयशील इन्द्र देव को लक्ष्य करके नमः शब्द का उच्चारण करते हुए स्तुति करें।[ऋग्वेद 2.21.2] 
विमर्दक :: खूब मर्दन करनेवाला, मसल डालने वाला, चूर-चूर करने वाला, पीस डालनेवाला, नष्ट-भ्रष्ट करनेवाला, ध्वस्त करने वाला, उपराग, एक पौधा, चक्रमर्द, चकवँड़; destroyer.
अजेय :: अपराजेय, न जीते जाते योग्य, दुर्गम, दुस्तर, अलंघ्य, असामान्य, अदम्य, अनभ्यस्त, ग़ैरमामूली; invincible, insurmountable, unbeaten.
सर्वसह :: सहनशील; tolerant. 
सभी को पराजित करने वाले विकराल कर्म द्वारा उल्लंघन न करने योग्य, संसार के उत्पत्तिकर्त्ता, हमेशा जयशील इन्द्रदेव के लिए नमस्कार परिपूर्ण अभिवादन करो।
Always winning, defeating, destroyer of the enemy, invincible, experiencer, who can not be defeated, Godly for others should be prayed by using Namah:, "Om Indray Namah:"
सत्रासाहो जनभक्षो जन॑सहश्र्च्यवनो युध्मो अनु जोषमुक्षितः। 
वृतंचयः सहुरिर्विक्ष्वारित इन्द्रस्य वोचं प्र कृतानि वीर्या
बहुतों के जयकर्ता, लोगों के भजनीय, बलवानों के विजेता, शत्रु निवारक, योद्धा, हर्षकार, सोमासिक्त, शत्रु हिंसक, अभिभवकर्ता और प्रजापालक इन्द्रदेव के उत्कृष्ट वीरकर्म की सब स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 2.21.3]
अनेकों को पराजित करने वाले, पूजने योग्य, विजेता, शत्रुसंहारक, सोम रस से आह्लादित, प्रजा का पालन करने वाले इन्द्र के पुरुषार्थ का यशगान करते हैं।
Every one admire-praise the victorious over several, worship able, winner of the strong-mighty, protector from the enemy, lover of Somras, defeat causing and nurturer of the populace Indr Dev is prayed-worshiped by all.
अभिभव :: पराजय, हार, तिरस्कार, अपयश; defeat causing.
अनानुदो वृषभो दोधतो वधो गम्भीर ऋष्वो असमष्टकाव्यः। 
रध्रचोदः श्नथनो वीलितस्पृथुरिन्द्रः सुयज्ञ उषसः स्वर्जनत्
अतुल दान सम्पन्न, अभीष्ट वर्षी, हिंसकों के हन्ता, गंभीर, दर्शनीय, कर्म में अपराजेय, समृद्ध लोगों के उत्साहदाता, शत्रुओं के कर्तन कारी, दृढाङ्ग, जगद्व्यापी और सुन्दर यज्ञ विशिष्ट इन्द्र देव ने दया से सूर्य को उत्पन्न किया।[ऋग्वेद 2.21.4]
जिनके दान की तुलना न हो सके, हिंसकों का विनाश करने वाले, इच्छित वर्षा करने वाले, दर्शनीय, कर्मों में कभी पराजित न करने वाले, कर्मवान को उत्साहित करने वाले, संसार व्यापी महान इन्द्रदेव ने उषा द्वारा सूर्य को प्रकट किया।
Great Indr Dev make unlimited donations, grants accomplishments , slay-kill the violent & the enemy, is beautiful-handsome, perform undefeated, victorious, encouraging, pervading the universe, rose the Sun after Usha-day break.
यज्ञेनगाआपप्तुरो विविद्रिरे धियो हिन्वाना उशिजो मनीषिणः। 
अभिस्वरा निषदा गा अवस्यव इन्द्रे हिन्वाना द्रविणान्याशत
इन्द्र देव के स्तोता, इन्द्राभिलाषी और मनीषी अङ्गिरा लोगों ने यज्ञ द्वारा जल प्रेरक इन्द्र देव के पास चुराई हुई गायों का मार्ग जाना। अनन्तर रक्षा के अभिलाषी इन्द्र देव के स्तोता अङ्गिरा लोगों ने स्तोत्र और पूजा के द्वारा गोधन प्राप्त किया।[ऋग्वेद 2.21.5]
इन्द्र देव की वंदना करने वाले अंगिराओं ने अनुष्ठान द्वारा जल को अभिप्रेरित करने वाले इन्द्र देव से हरित धेनु का रास्ता मालूम किया।
Worshipers of Indr Dev who inspires rains by means of Yagy, thoughtful Angira decedents found the way to trace the stolen cows. Thereafter, shelter seeking Angira decedents prayed-worshiped Indr Dev and got the cows.
इन्द्र श्रेष्ठानि द्रविणानि घेहि चित्तिं दक्षस्य सुभगत्वमस्मे। 
पोषं रयीणामरिष्टिं तनूनां स्वाद्यानं वाचः सुदिनत्वमह्नाम्
हे इन्द्र देव! हमें उत्तम धन प्रदान करें। हमें निपुणता की प्रसिद्धि प्रदान करें। हमें सौभाग्य प्रदान करें। हमारे धन की वृद्धि करें। हमारे शरीर की रक्षा करें। वाणी में मीठास देते हुए दिन की सुदिन करें।[ऋग्वेद 2.21.6] 
हे इन्द्र देव! हमको महान धन और ख्याति प्रदान करो। सौभाग्य दान कर धन की वृद्धि करो। हमारी वाणी में माधुर्य का संचार करो, हमारे शरीर की सुरक्षा करो। हमारे लिए समस्त दिन सुख से पूर्ण हों।
Hey Indr Dev! Grant us the best wealth. Grant us perfection, good luck and increase our wealth. Protect our bodies. Grant us sweet voice and make our day an auspicious one.
ऋग्वेद संहिता, द्वितीय मण्डल सूक्त (22) :: ऋषि :-  गुत्समद,  भार्गवः, शौनक, देवता :- इन्द्र, छन्द :- अष्टि, अतिशक्वरी
त्रिकद्रुकेषु महिषो यवाशिरं तुविशुष्मस्तृपत्सोममपिबद्विष्णुना। सुतं यथावशत्। स ई ममाद महि कर्म कर्तवे महामुरुं सैनं सश्चद्देवो देवं सत्यमिन्द्रं सत्य इन्दुः
पूजनीय, बहु बलशाली और तृप्ति कर इन्द्र देव ने जिस प्रकार पहले इच्छा की थी, उसी प्रकार इन्द्र देव ने तीनों लोकों में व्याप्त बल की वृद्धि करने वाले सोमरस को जौ के सार भाग के साथ मिश्रित कर श्री विष्णु सहित इच्छानुसार सेवन किया।[ऋग्वेद 2.22.1]
अत्यन्त शक्तिशाली पूजनीय इन्द्र देव ने अपनी इच्छानुसार त्रिकद्रु को यज्ञ में सोम ने इन्द्र देव को श्रेष्ठ कर्म सिद्धहस्त करने के लिए हर्षित किया। सत्य रूप उज्जवल सोम तेजस्वी इन्द्र देव को हर्षित करें।
Worship deserving, mighty and satisfying Indr Dev enjoyed-drunk the Somras along with Bhagwan Shri Hari Vishnu mixed with the extract of barley to boost the powers in the three abodes; as per his wish-desire.
अध त्विषीमाँ अभ्योजसा क्रिविं युधाभवदा रोदसी अपृणदस्य मज्मना प्र वावृधे। अधत्तान्यं जठरे प्रेमरिच्यत सैनं सश्चद्देवो देवं सत्यमिन्द्रं सत्य इन्दुः
दीप्तिमान् इन्द्र देव ने अपने बल से युद्ध द्वारा क्रिवि को जीता। अपने तेज से इन्होंने द्यावा पृथ्वी को चारों ओर से पूर्ण किया। वे सोमरस के बल से बहुत बढ़े। इन्द्र देव ने एक के भाग अपने पेट में धारण करके अन्य भागों को देवताओं को प्रदान किया। सत्य स्वरूप दीप्तिमान् दिव्य सोमरस सत्य स्वरूप तेजस्वी इन्द्र देव पुष्ट करता है।[ऋग्वेद 2.22.2]
तेजस्वी :: शानदार, शोभायमान, अजीब, हक्का-बक्का करनेवाला, नादकार, तेज़, शीघ्र, कोलाहलमय, उग्र, तेजस्वी, प्रज्वलित, तीक्ष्ण, उत्सुक, कलहप्रिय; majestic, stunning, rattling, fiery.
तेजस्वी इन्द्रदेव ने क्रिवि को अपने पराक्रम से जीता। अपने तेज से आसमान और पृथ्वी को पूर्ण किया। वे सोम के बल से वृद्धि को प्राप्त हुए। इन्द्र ने सोम का एक भाग अपने उदर में ग्रहण किया तथा शेष भाग को देवगणों को प्रदान किया। यह सत्य रूप निर्मल सोम इन्द्रदेव को प्राप्त हो। 
Majestic, mighty Indr Dev won Krivee. He surrounded the space & the earth with his energy. His powers enhanced-boosted by the sipping of Somras. He consumed a fraction of Somras himself and distributed the rest amongest the demigods-deities. Somras increased the powers of Indr Dev.
अधत्त साकं जातःक्रतुना साकमोजसा ववक्षिथ साकं वृद्धो वीर्यैः सासहिर्मृधो विचर्षणिः। दाता राधः स्तुवते काम्यं वसु सैनं सश्चद्देवो देवं सत्यमिन्द्रं सत्य इन्दुः
हे इन्द्र देव! आप यज्ञ के साथ सबल उत्पन्न हुए हैं। आप सब ले जाने की इच्छा करते है। आपने पराक्रम के साथ बढ़कर हिंसकों को जीता। आप सत्य और असत् के विचारक हैं। आप स्तोताओं को कर्म साधक और वाञ्छनीय धन प्रदान करें। सत्य और द्योतमान् सोमरस सत्य और प्रकाशमान् इन्द्रदेव को प्राप्त होवें।[ऋग्वेद 2.22.3]
हे इन्द्र देव तुम शक्ति रहित यज्ञ से प्रकट हुए। तुमने पौरुष में वृद्धि ग्रहण कर हिंसा करने वाले दुष्टों पर विजय प्राप्त की। तुम सत्या-सत्य के ज्ञाता हो। वंदनाकारी को पुष्ट करें। सिद्ध करने वाला इच्छित समृद्धि को प्रदान करो।
Hey Indr Dev! You appeared out of the Yagy along with majestic powers. You desire to carry forward every thing. You won the volant with your valour. You analyse the truth and untruth. Provide us the means of performing endeavours and desired wealth. Let the truth boosting and aurous Somras be granted to Indr Dev.
तव त्यन्नर्यं नृतोऽप इन्द्र प्रथमं पूर्व्यं दिवि प्रवाच्यं कृतम्। यद्देवस्य शवसा प्रारिणा असुं रिणन्नपः। भुवद्विश्वमभ्यादेवमोजसा विदादूर्जं शतक्रतुर्विदादिषम्
हे इन्द्र देव! आप सबको नचाने वाले हैं। आपने जो पूर्वकाल में मनुष्यों के हितकर कर्म को किया, वह द्युलोक में श्लाघनीय हुआ। अपने पराक्रम से आपने देव (वृत्र) की प्राण-हिंसा करके उसके द्वारा जल को बहा दिया। इन्द्र देव ने अपने बल से वृत्रासुर या अदेव को पराजित किया। शतकर्मा इन्द्र देव ने अन्न एवं बल प्राप्त किया।
[ऋग्वेद 2.22.4] 
हे इन्द्रदेव तुम संसार को नचाते हो। तुमने जो हितकारी कार्य पहले किये थे वे सूर्य मंडल में प्रशंसा के योग्य हुए। अपने पराक्रम से वृत्र को मारकर तुमने जल को बहाया। तुम शतकर्मा हो। अन्न और शक्ति के ज्ञाता हो।
Hey Indr Dev! You regulate the entire universe. Your deeds-endeavours to help the humans are praised in the heavens. You killed Vratr and released the waters. He defeated Vrata Sur and the wicked-Asur. Hundreds of accomplishments attaining obtained food grains and mighty-powers.
ऋग्वेद संहिता, द्वितीय मण्डल सूक्त (23) :: ऋषि :-  गुत्समद,  भार्गवः,  देवता :- बृहस्पति, ब्रह्मणस्पति, छन्द :- जगती, त्रिष्टुप्
गणानां त्वा गणपतिं हवामहे कविं कवीनामुपमश्रवस्त मम्।
ज्येष्ठराजं ब्रह्मणां ब्रह्मणस्पत आ नः शृण्वन्नूतिभिः सीद सादनम्
हे ब्रह्मण स्पति! आप देवों में गणपति और कवियों में कवि हैं। आपको अन्न सर्वोच्च और उपमानभूत है। आप प्रशंसनीय लोगों में राजा और मंत्रों के स्वामी हैं। हम आपका आह्वान करते है। आप हमारी स्तुति सुनकर आश्रय प्रदान करने के लिए यज्ञगृह में पधारें।[ऋग्वेद 2.23.1]
हे ब्रह्मण स्पते! तुम देवों में अद्भुत और कवियों में महान हो। तुम्हारा अन्न सबसे श्रेष्ठ है। तुम प्रशंसा किये हुओं में महान एवं श्लोकों के स्वामी हो। तुम हमारी वंदना से शरण देने हेतु अनुष्ठान स्थान में विराजो। हम तुम्हारा आह्वान करते हैं।
Hey Brahman Spate! You are amazing like Ganpati amongest the demigods-deities and excellent amongest the poets. You are king and the Lord of Mantr amongest the revered-honoured. We invite you. Come to grant us shelter-protection responding to our prayers at the site of the Yagy. 
देवाश्चित्ते असुर्य प्रचेतसो बृहस्पते यज्ञियं भागमानशुः।
उस्राइव सूर्यो ज्योतिषा महो विश्वेषाम्मिज्जनिता ब्रह्मणामसि
हे असुर हन्ता और प्रकृष्ट ज्ञानी बृहस्पति देव! देवों ने आपका यज्ञीय भाग प्राप्त किया। जिस प्रकार ज्योति द्वारा पूजनीय सूर्य देव किरण उत्पन्न करते हैं, उसी प्रकार आप सब मंत्र उत्पन्न करें।[ऋग्वेद 2.23.2]
हे राक्षसों का वध करने वाले, ज्ञानवान ब्रह्मणस्पते! देवताओं ने तुम्हारा यज्ञ भाग प्राप्त किया। जैसे सूर्य अपनी ज्योति से किरणें उत्पन्न करते हैं, वैसे ही तुम स्तोत्र उत्पन्न करो।
Hey slayer-killer of demons and enlightened Brahaspati Dev-Brahman Spatye! The demigods received their share in the Yagy, offered by you. The way revered-honourable Sun produces the rays of light, you should also produce all Mantr.  
आ विबाध्या परिरापस्तमांसि च ज्योतिष्मन्तं रथमृतस्य तिष्ठसि। 
बृहस्पते भीमममित्रदम्भनं रक्षोहणं गोत्रभिदं स्वर्विदम्
हे बृहस्पति देव! चारों ओर से निन्दकों और अन्धकारों को दूर करके, आप ज्योतिर्मान् यज्ञ प्रापक, भयानक, शत्रु हिंसक, राक्षस नाशक, मेघ भेदक और स्वर्ग प्रदायक रथ में आरूढ होवें।[ऋग्वेद 2.23.3]
प्रापक :: प्राप्ति संबंधी, प्राप्त होनेवाला; recipient.
निन्दक :: अपमानकारी, अपवादी, उपहासात्मक, निन्दक, मुँहफट, बुराई करने वाला; cynic, slanderer, satirical. 
SLANDARD :: बदनाम, झूठी निंदा करना, कलंक लगाना, अपयश फैलाना;  denigrate, asperse, stain, traduce, slur, calumniate.
हे ब्रह्मण स्पते! सब ओर से निंदकों और अंधकार को मिटाकर तुम दमकते हुए विकराल, शत्रुनाशक मेघों को छिन्न-भिन्न करने वाले दिव्य रथ पर आरूढ़ हुए हो।
Hey Brahman Spatye-Brahaspati! Ride the charoite which grants heaven, pierce through the clouds, slays-kills the demons, violent people, fearsome, leading to receipt of the Yagy, brilliant, surrounded by the wicked, cynic, slanderer, satirical.
सुनीतिभिर्नयसि त्रायसे जनं यस्तुभ्यं दाशान्न तमंहो अश्नवत्। 
ब्रह्मद्विषस्तपनो मन्युमीरसि बृहस्पते महि तत्ते महित्वनम्
हे बृहस्पति देव! जो आपको हव्य देता है, उसे आप सन्मार्ग में ले जाते हैं। उसे बचाते है। उसे पाप नहीं लगता। आपका ऐसा माहात्म्य है कि आप मंत्र द्वेषियों को सन्ताप देते हुए क्रोध से उनकी हिंसा करते हैं।[ऋग्वेद 2.23.4]
हे ब्रह्मण स्पते! तुम हविदाता को महान मार्ग पर ले जाने वाले हो, उसकी पाप से सुरक्षा करते हो। तुम अपनी महिमा से वंदना न करने वालों को कष्ट देते और आवेशों का पतन करते हो।
Hey Brahaspati Dev! You direct-take one to the righteous, virtuous, pious path who make offerings to you. You protect him from committing sins. Its your greatness that you punish those who are envious to Mantr. 
न तमंहो न दुरितं कुतश्चन नारातयस्तितिरुर्न द्वयाविनः। 
विश्वा इदस्माद्द्वरसो वि बाधसे यं सुगोपा रक्षसि ब्रह्मणस्पते
हे सुरक्षक ब्रह्मणस्पति देव! जिसकी आप रक्षा करते हैं, उसे कोई दुःख व कष्ट नहीं दे सकता, पाप उसे कष्ट नहीं दे सकता। शत्रु लोग उसे किसी तरह मार नहीं सकते, ठग उसे सता नहीं सकते। उसके लिए आप सारे हिंसकों को दूर कर दें।[ऋग्वेद 2.23.5]
हे ब्रह्मणस्पते! तुम जिसकी रक्षा करते हो, उसे कोई दुःख नहीं होता। उसके पाप नहीं व्यापते! उसे शत्रु नहीं मार सकते। तुम उसके लिए सभी हिंसा करने वालों को दूर भगा दो।
Hey protector Brahaspati-Brahman Spatye! One under your protection is not troubled by pains-sorrow, tortures and sins. The thugs can not tease or kill him. You repel those who wish to trouble-torture, kill him. 
त्वं नो गोपाः पथिकृद्विचक्षणस्तव व्रताय मतिभिर्जरामहे। 
बृहस्पते यो नो अभि ह्वरो दधे स्वा तं मर्मर्तु दुच्छुना हरस्वती
हे बृहस्पति देव! आप हमारे रक्षक, सन्मार्ग दाता और विलक्षण हैं। आपके यज्ञ के लिए स्तोत्र द्वारा हम स्तुति करते हैं। जो हमारे कुटिल आचरण करता है, उसकी दुर्बुद्धि वेगवती होकर उसे शीघ्र विनष्ट करे।[ऋग्वेद 2.23.6] 
हे ब्रह्मण स्पते! तुम दिव्य कर्म वाले उत्तम मार्ग पर चलकर हमारी सुरक्षा करते हो। तुम्हारे प्रति अनुष्ठान करते हुए हम मंत्र पाठ द्वारा वंदना करते हैं। हमारे प्रति कुटिलता पूर्वक कार्य करने वाले की बुद्धि बिगड़ जाये और उसे शीघ्र ही समाप्त कर दें।
Hey Brahaspati Dev! You are our protector, unique and amazing. You make prayers for your Yagy with the help of Strotr-hymns.  One who behave with us in a wicked manner you quickly destroy his indecent thinking-thoughts.
उत वा यो नो मर्चयादनागसोऽरातीवा मर्तः सानुको वृकः। 
बृहस्पते अप तं वर्तया पथः सुगं नो अस्यै देववीतये कृधि
हे बृहस्पति देव! शत्रु तुल्य आचरण करने वाले और भेड़िये के सदृश हिंसा करने वाले मनुष्य यदि हमें पीड़ित या कष्ट प्रदान करें तो आप उन्हें हमारे रास्ते से हटा लें। देवत्व की प्राप्ति के लिए हमारे मार्ग को अपराध रहित बनाते हुए उसे सरल बनायें।[ऋग्वेद 2.23.7] 
हे ब्रह्मण स्पते! जो अभिमानी हमारे समीप आकार हमको मारना चाहे, उसे श्रेष्ठ मार्ग से हटाकर यज्ञ के लिए हमारा मार्ग सफल करो।
Hey Brahaspati Dev! Remove those from our path, who trouble-torture us, act like an enemy and behave with us like wolf. Help us attain demigodhood-demigod ship clearing our sins-crimes and making our efforts easy. 
त्रातारं त्वा तनूनां हवामहेऽवस्पर्तरधिवक्तारमस्मयुम्। 
बृहस्पते देवनिदो नि बर्हय मा दुरेवा उत्तरं सुम्रमुन्नशन्
हे बृहस्पति देव! आप सबको उपद्रव से बचाकर हमारे पौत्रादि का पालन करें। हमारे लिए मीठे वचन बोलें और हमारे प्रति प्रसन्न होवें। हम आपका आवाहन करते हैं। आप देवताओं की निन्दा करने वालों का विनाश करते हुए ऐसे दुर्बुद्धि लोगों को उत्कृष्ट सुख न दें।[ऋग्वेद 2.23.8]
हे ब्रह्मण स्पते! हमको मुसीबतों से सुरक्षित करो। हमारी संतान का पालन करो। हम पर खुश होकर मीठे वचन बोलो, देवताओं के निन्दकों को नष्ट कर दो, जिससे मूर्ख प्राणी सुखी न रहें। हम तुम्हारा आह्वान करते हैं।
Hey Brahaspati Dev! Protect-save us from all sorts of troubles, tensions and nourish-nurture our grandsons etc. Speak auspicious words-blessings for us and be happy with us. We invite you. Do not grant-sanction comfort, luxuries to those wicked, vicious, ignorant who reproach, damn demigods-deities. 
त्वया वयं सुवृधा ब्रह्मणस्पते स्पार्हा वसु मनुष्या ददीमहि। 
या नो दूरे तळितो या अरातयोऽभि सन्ति जम्भये थे अननसः
हे ब्रह्मण स्पति! आपके द्वारा वर्द्धित होने पर मनुष्यों के पास से हम स्पृहणीय धन प्राप्त करें। दूर या पास हमारे जो शत्रु हमें पराजित करते हैं, उन यज्ञहीन शत्रुओं को विनष्ट करें।[ऋग्वेद 2.23.9] 
स्पृहणीय :: admirable. 
हे ब्रह्मण स्पते! तुम्हारी वृद्धि होने पर हम धन के भागीदार बने । जो पास या दूर शत्रु हम पर विजय पाना चाहते हैं, उन अनुष्ठान विहीन शत्रुओं का पतन करो।
Hey Brahmn Spatye! On being protected and nurtured by you, we should attain admirable wealth, amenities. You defeat our enemies who are either close or far-away from us. Destroy those who do not conduct Yagy, have no faith in demigods-deities are atheist.
त्वया वयमुत्तमं धीमहे वयो बृहस्पते पप्रिणा सस्निना युजा। 
मा नो दुःशंसो अभिदिप्सुरीशत प्र सुशंसा मतिभिस्तारिषीमहि
हे बृहस्पति देव! आप मनोरथ को पूर्ण करने वाले और पवित्र है। आपकी सहायता पाकर (हम) उत्कृष्ट अन्न प्राप्त करेंगे। जो दुष्ट हमें पराजित करना चाहते हैं, वह हमारे अधिपति न हो। हम उत्कृष्ट स्तुति द्वारा पुण्यवान् होकर उन्नति करें।[ऋग्वेद 2.23.10]
हे ब्रह्मण स्पते! तुम पवित्र हो, अभिष्ट पूर्ण करने वाले हो। तुम्हारी सहायता से हम महान अन्न प्राप्त करें। हमको पराजित करने की अभिलाषा करने वाले दुष्ट शत्रु न हमारे स्वामी न बन जायें। हम महान श्लोक द्वारा पुनीत हुए अपने को उन्नतिशील बनायें। 
Hey Brahaspati Dev! You are pious-virtuous and accomplish our desires.  We will get-have excellent food grains-stuff with your blessings. We wish to defeat the enemy and wish you to ensure he never become our lord. Let us become virtuous and progress by the recitation of excellent hymns.
अनानुदो वृषभो जग्मिराहवं निष्टप्ता शत्रुं पृतनासु सासहिः। 
असि सत्य ॠणया ब्रह्मणस्पत उग्रस्य चिद्दमिता वीळुहर्षिणः
हे ब्रह्मण स्पति! आपके दान की उपमा नहीं है। आप अभीष्ट वर्षी है। युद्ध में जाकर आप शत्रुओं को सन्ताप देते और उन्हें विनष्ट करते हैं। आपका पराक्रम सत्य है। आप ऋण से मुक्त करते हैं। आप उग्र हैं और मदोन्मत्त व्यक्तियों का दमन करते हैं।[ऋग्वेद 2.23.11] 
हे ब्रह्मणस्पते! तुम्हारा दान अनोखा है। युद्ध में शत्रुओं को दुःख पहुँचाते हो। तुम दृढ़ बल वाले उग्र एवं अभिमानियों को दबाते हो।
Hey Brahman Spate! There is no parallel of the donations-charity done by you. You accomplish our desires. You trouble the enemy in the war and destroy them. Your valour is established. You relieve us from debt. You are furious and repress-destroy the sot.
अदेवेन मनसा यो रिषण्यति शासामुग्रो मन्यमानो जिघांसति। 
बृहस्पते मा प्रणक्तस्य नो वधो नि कर्म मन्युं दुरेवस्य शर्धतः
हे बृहस्पति देव! जो व्यक्ति देव शून्य मन से हमारी हिंसा करता है और जो उग्र आत्माभिमानी हमारा वध करने की इच्छा करता है, उसका आयुध हमें न स्पर्श न कर सके। हम भी ऐसे बलवान् और दुष्ट शत्रुओं का क्रोध नाश करने में समर्थ हो।[ऋग्वेद 2.23.12]
हे ब्रह्मण स्पते! जो देवता से रहित मन वाला अभिमानी हमें चाहे, उसका शस्त्र हमें छू न सके।
Hey Brahaspati Dev! Do not let the weapons of the egoistic, atheist, furious who wish to kill us, touch us. We should be capable of killing such strong and wicked-sinners.
भरेषु हव्यो नमसोपसद्यो गन्ता वाजेषु सनिता धनंधनम्। 
विश्वा इदर्यो अभिदिप्स्वो ३ मृधो बृहस्पतिर्वि ववर्हा रथाँइव
युद्ध काल में बृहस्पति आह्वान योग्य और नमस्कार पूर्वक उपासना, योग्य हैं। वे युद्ध में जाते हैं। सभी प्रकार का धन देते हैं। सबके स्वामी बृहस्पति विजिगीषा वाली सारी हिंसक सेनाओं को रथ की तरह निहत और विध्वस्त करते हैं।[ऋग्वेद 2.23.13]
विजिगीषा :: जिसे विजय पाने की इच्छा हो; warriors desirous of victory in the war, the conquering king, desirous of victory, wishing to conquer, emulous, ambitious, a warrior, a hero.
VITAL :: लोकप्रिय, अत्याधिक, अत्यावश्यक, जिन्दादिल, जीवित, प्राणाधार, महत्वपूर्ण, मार्मिक, संबंधी, मर्मस्थान, जीवनी का, जीवनीक, जीवन का, जीवन-मरण का, ज़िंदगी का। 
जो ब्रह्मणस्पति संग्राम काल में नमस्कार पूर्वक पुकारे जाने के योग्य हैं, वे संग्राम करते तथा सब प्रकार की समृद्धि प्रदान करते हैं, वे सभी के स्वामी, हिंसक, रिपु को सेना के रथ ध्वस्त करने के समान तोडते हैं।
Brahaspati is vital during the war, deserve prayers-worship. He goes to the war. He grants all sorts of riches. Lord of all, Brahaspati destroy the chariots and other related things of the violent enemy for the sake of devotee warriors.
तेजिष्ठया तपनी रक्षसस्तप ये त्वा निदे दधिरे दृष्टवीर्यम्। 
आविस्तत्कृष्व यदसत्त उक्थ्यं बृहस्पते वि परिरायो अर्दय
हे बृहस्पति देव! अतीव तीक्ष्ण और सन्तापक हेति आयुध से राक्षसों को सन्तप्त करें। इन्हीं राक्षसों ने आपके पराक्रम के प्रभूत होने पर भी आपकी निन्दा की। पूर्वकाल में आपका जो प्रशंसनीय वीर्य था, इस समय उसका आविष्कार करें और उसके द्वारा निन्दकों का विनाश करें।[ऋग्वेद 2.23.14]
हे ब्रह्मण स्पते! कष्ट देने वाले तीव्र शस्त्र से असुरों को दुख दो। इन्होंने तुम्हारे महाबली होने पर तुम्हारी रक्षा की थी। तुम अपने उसी प्राचीन पराक्रम को प्रकट कर निन्दकों को समाप्त कर दो।
Hey Brahaspati Dev! Trouble the demons with your sharp weapons. These demons  slandered you in the past. You should reveal your previous valour and destroy them. 
बृहस्पते अति यदर्यो अर्हाद्द्युमद्विभाति क्रआपज्जनेषु। 
यद्दीदयच्छवस ऋतप्रजात तदस्मासु द्रविणं घेहि चित्रम्
हे यज्ञजात बृहस्पति देव! जिस धन की आर्य लोग पूजा करते हैं, जो दीप्ति और यज्ञ वाला धन लोगों में शोभा पाता है, जो धन अपने तेज से दीप्ति वाला है, वही विचित्र धन या ब्रह्मचर्य तेज हमें प्रदान करें।[ऋग्वेद 2.23.15]
हे यज्ञ में उत्पन्न ब्रह्मण स्पते! आर्यों द्वारा पूजित देदीप्यमान यज्ञ वाला धन शोभायमान होता है, उसी तेज युक्त धन को हमें प्रदान करो। 
Hey Brahaspati, born due-out of he Yagy! Grant us the wealth which is energetic-bright and prayed by the Ary. 
मा नः स्तेनेभ्यो ये अभि द्रुहस्पदे निरामिणो रिपवोऽन्नेषु जागृधुः। 
आ देवानामोहते वि व्रयो हृदि बृहस्पते न परः साम्नो विदुः॥
हे बृहस्पति देव! जो चोर द्रोह करने में प्रसन्न होते हैं, जो शत्रु हैं, जो दूसरे का धन चाहते हैं, जो अपने मन से सर्वाशतः देवों का बहिष्कार करने की इच्छा करते हैं और जो राक्षस नाशक साम स्तुति नहीं जानते, उनके हाथ में हमें न देना।[ऋग्वेद 2.23.16]
हे ब्रह्मण स्पति देव! विद्रोही, शत्रु, परधन कांक्षी, देवों से पृथक सोम गान से पृथक, असुरों के लिए हमको न सौंप देना।
Hey Brahaspati Dev! Do not hand over us to those who are thieves, enemy, want others wealth, whish to boycott the demigods-deities and are unaware of the Stuti-prayers, hymns meant for the killing of demons. 
विश्वेभ्यो हि त्वा भुवनेभ्यस्परि त्वष्टाजनत्साम्नः साम्नः कविः। 
स ऋणचिदृणया ब्रह्मणस्पतिर्द्रुहो हन्ता मह ऋतस्य धर्तरि
हे बृहस्पति देव! त्वष्टा ने आपको सर्वश्रेष्ठ उत्पन्न किया; इसलिए आप सभी सामों के उच्चारण कर्ता है। यज्ञ आरम्भ करने पर ब्रह्मण स्पति उसका सभी ऋण स्वीकार करते और ऋण का परिशोध करते हैं। वे विद्रोह कारियों का विनाश करते हैं।[ऋग्वेद 2.23.17] 
हे ब्रह्मण स्पति देव! तुम महान को त्वष्टा ने रचित किया है। अत: तुम समस्त सोमों का उच्चारण करने वाले हो। यज्ञ कार्य द्वारा तुम ऋण का परिशोध और विद्रोही का नाश करते हो।
Hey Brahaspati Dev! Twasta created you first of all and hence you spell all Sams (hymns quoted in Sam Ved). Having started the Yagy Brahman Spati clears all debts. He destroy all the rebels. 
तव श्रिये व्यजिहीत पर्वतो गवां गोत्रमुदसृजो यदाङ्गिरः। 
इन्द्रेण युजा तमसा परीवृतं बृहस्पते निरपामौब्जो अर्णवम् 
हे अङ्गिरा वंशीय बृहस्पति देव! पर्वतों ने गायों को छिपाया। आपकी सम्पद् के लिए जिस समय वह उद्घाटित हुआ और आपने गायों को बाहर किया, उस समय इन्द्र देव को सहायक पाकर आपने वृत्रासुर द्वारा आक्रान्त जलाधारभूत जलराशि को नीचे कर दिया।[ऋग्वेद 2.23.18]
हे अंगिरावंशी, हे ब्राह्मणस्पति देव! पर्वतों ने धेनुओं को छिपा लिया। जब यह भेद खुला तब तुमने गौओं को निकाला और इन्द्र की सहायता से वृत्र द्वारा रोकी हुई जल राशि को गिराया। 
Hey icon (descendent) of Angira, Brahaspati Dev! The mountains concealed-hide the cows. You released the cows when it was revealed-disclosed. You released the waters held by Vrata Sur, with the help of Indr Dev.
ब्रह्मणस्पते त्वमस्य यन्ता सूक्तस्य बोधि तनयं च जिन्व। 
विश्व तद्भद्रं यदवन्ति देवा बृहद्वदेम विदथे सुवीराः
हे ब्रह्मण स्पति आप इस संसार के नियामक है। इस सूक्त को जानें। हमारी सन्ततियों को प्रसन्न करें। देवता लोग जिसकी रक्षा करते हैं, वह भली-भाँति कल्याणवाहक है। हम पुत्र और पौत्रवाले होकर इस यज्ञ में प्रभूत स्तुति करेंगे।[ऋग्वेद 2.23.19] 
हे ब्रह्मण स्पते! हमको सुखी बनाओ। देवगण जिसकी सुरक्षा करते हैं, वही कल्याण को वहन करने वाला होता है। हम पुत्र-पौत्र से परिपूर्ण हुए इस अनुष्ठान में श्लोक बोलेंगे।
Hey Brahman Spati Dev! You are the regulator of the world-universe. Let this Sukt be understood. Make our progeny happy. One who is protected by the  demigods-deities is able to discharge his duties efficiently, leading to welfare. We will recite this Sukt in the Yagy, blessed with sons and grand sons. 
ऋग्वेद संहिता, द्वितीय मण्डल सूक्त (24) :: ऋषि :-  गुत्समद,  भार्गवः,  देवता :- बृहस्पति, ब्रह्मणस्पति, छन्द :- जगती, त्रिष्टुप्
सेमामदिड्ढि प्रभृतिं य ईशिषेऽया विधेम नवया महा गिरा। 
यथा नो मीढ्वान्त्स्तवते सखा तव बृहस्पते सीषधः सोत नो मतिम्
हे ब्रह्मण स्पति! आप सम्पूर्ण संसार के स्वामी हैं। हमारे द्वारा भली-भाँति की गई स्तुति को ग्रहण करें। हम आपकी इस नवीन और बृहत् स्तुति के द्वारा सेवा करते हैं। हमें अभिमत फल प्रदान करें; क्योंकि हम आपके मित्र हैं। हम स्तोता आपकी स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 2.24.1]
हे ब्रह्मणस्पति देव! तुम संसार के अधीश्वर हो। हमारी वंदना को स्वीकार करो। हम इस नवीन श्लोक द्वारा तुम्हारी अर्चना करते हैं। हम तुम्हारे मित्र हैं। हमको इच्छित फल प्रदान करो। यह वंदनाकारी तुम्हारी पूजा करते हैं।
Hey Brahman Spati Dev! You are the lord of the whole universe. Accept our prayer-worship. We serve you with the new detailed prayer. Grant us the desired boons, since we are your friend. We the devotees pray to you. 
यो नन्त्वान्यनमन्न्योजसोतादर्दर्मन्युना शम्बराणि वि। 
प्राच्यावयदच्युता ब्रह्मणस्पतिरा चाविशद्वसुमन्तं वि पर्वतम्
हे बृहस्पति देव! अपनी सामर्थ्य से आपने तिरस्करणीयों का तिरस्कार किया, क्रोध परवश होकर शम्बरासुर को विदीर्ण किया, निश्चल जल को चालित किया और गोधन पूर्ण पर्वत में प्रवेश किया।[ऋग्वेद 2.24.2]
तिरस्कार :: अपमान, अनादर, अवज्ञा; disdain, reproach, insult, taunt, spurn, sneer, slight, shame, scorn, repudiation, opprobrium, neglect, mock, affront, indignity, disrespect, disparagement, dishonour, disesteem, disdain, contumely, contempt, condemnation.
हे ब्रह्मण स्पति देव! तिरस्कार योग्य प्राणी को तुमने अपनी महत्ता से तिरस्कृत किया। शम्बर को मार डाला। रुके हुए जल को चलाया और जहाँ गायें छिपी थीं, उस पर्वत में घुस गये।
Hey Brahaspati Dev! You disdained those who deserved it, killed Shambrasur and released the blocked water, entered the mountain in which cows were hidden. 
तद्देवानां देवतमाय कर्त्वमपश्रथ्न न्दृळ्हाव्रदन्त वीळिता। 
उद्गा आजदभिनद्ब्रह्मणा वहमगूहत्तमो व्यचक्षयत्स्वः
देवश्रेष्ठ देव बृहस्पति के कार्य से सुदृढ़ पर्वत शिथिल हुआ और स्थिर वृक्ष भग्न हुआ। उन्होंने गाँवों का उद्धार किया। मंत्र द्वारा बलासुर को छिन्न-भिन्न किया। अन्धकार को अदृश्य कर आदित्य को प्रकट किया।[ऋग्वेद 2.24.3]
देवों में महान ब्रह्मण स्पति की वीरता से पर्वत दृढ़ हो गया तथा स्थिर पेड़ टूट गया। उन्होंने गाओं को मुक्त कराया और श्लोक से शक्ति नामक असुर को हटा दिया। सूर्य को प्रकट कर अंधकार को समाप्त किया।
The rigid-strong mountain became loose and the stationary tree was broken down due to the might of Dev Guru Brahaspati who is revered-honoured by all. He uplifted the villages. Killed-tore into pieces, Balasur with the Mantr Shakti. Removed the darkness to let Sun shine.
अश्मास्यमवतं ब्रह्मणस्पतिर्मधुधारमभि यमोजसातृणत्। 
तमेव विश्वे पपिरे स्वर्दृशो बहु साकं सिसिचुरुत्समुद्रिणम्
बृहस्पति देव ने पत्थर की तरह दृढ़ मुख वाले मधुर जल से पूर्ण और निम्न अवनत जिस मेघ का बल प्रयोग द्वारा वध किया, उसका आदित्य किरणों ने जलपान किया और उन्होंने ही जलधारामय वृष्टि का सिंचन किया।[ऋग्वेद 2.24.4]
पाषाण के समान अटल और मधुर जलों से युक्त जिस मेघ का बृहस्पति ने भेदन किया, सूर्य की रश्मियों ने उससे रसपान कर जल की वर्षा की और मिट्टी (धरती) को सींचा।
The rays of Adity-Sun absorbed the sweet water released when Brahaspati Dev killed the Megh who had a rigid mouth like stone & was full of sweet water, with might. This water turned into rain and irrigated the soil. 
सना ता का चिद्भुवना भवीत्वा माद्भिः शरद्भिर्दुरो वरन्त वः। 
अयतन्ता चरतो अन्यदन्यदिद्या चकार वयुना ब्रह्मणस्पतिः
हे ऋत्विको! आपके ही लिए बृहस्पति के सनातन और विचित्र प्रज्ञान ने महीने-महीने और साल साल होने वाली वर्षा का द्वार उद्घाटित किया। इस प्रकार द्यावा पृथ्वी दोनों परस्पर जल का उपभोग करते हैं।[ऋग्वेद 2.24.5]
हे मनुष्यों! ब्रह्मण स्पति ने तुम्हारे लिए ही सनातन और दिव्य वृष्टि कर दरवाजा खोला और उन्होंने मंत्रों को अद्भुतता प्रदान की और अम्बर, धरा को सुख वृद्धि करने वाला बनाया।
Hey humans-Ritviz! This is how Brahaspati used his ancient and amazing knowledge to release water available to the earth and the sky throughout the year. 
अभिनक्षन्तो अभि ये तमानशुर्निधिं पणीनां परमं गुहा हितम्। 
ते विद्वांसः प्रतिचक्ष्यानृता पुनर्यत उ आयन्तदुदीयुराविशम्
विज्ञ अङ्गिरा लोगों ने चारों ओर खोजते हुए पणियों के दुर्ग में छिपाये हुए परमधन को प्राप्त किया। माया का दर्शन करके वे जिस स्थान से गये, फिर वहीं आ गये।[ऋग्वेद 2.24.6]
विद्वान अंगिराओं ने खोलकर पणियों  के दुर्ग में छिपाये धन को प्राप्त किया। फिर माया को देख पूर्व स्थान को प्राप्त हुए। 
The enlightened Angiras searched-traced the wealth-treasure hidden in the fort of Panis and came back to the same spot from where they had started-begun, having seen the spell (cast-Maya, illusion, enchantment).
ऋतावानः प्रतिचक्ष्यानृता पुनरात आ तस्थुः करेंयो महस्पथः। 
ते बाहुभ्यां धमितमग्निमश्मनि नकिः षो अस्त्यरणो जहुर्हि तम्
सत्यवादी और सर्वज्ञाता अङ्गिरा लोग माया का दर्शन करके पुनः प्रधान मार्ग से उसी ओर गये। उन्होंने हाथों से जलाये अग्नि को पर्वत पर फेंका। पर्वतों को जलाने वाला अग्नि वहाँ इससे पूर्व नहीं था।[ऋग्वेद 2.24.7]
फिर अंगिराओं ने माया को देखकर उसी ओर गमन किया। उन्होंने अग्नि को जलाकर पहाड़ पर फेंका। पहाड़ों को जलाने वाले अग्निदेव वहाँ पर पहले नहीं थे।
Truthful, enlightened Angiras witnessed spell-enchantment and moved again through the same route. They threw Agni with their hands over the mountains. This was the first Agni which could burn the mountains. Prior to this it did not exist. 
Dev Guru Brahaspati is Agni. He is the priest of the demigods-deities.
ऋतज्येन क्षिप्रेण ब्रह्मणस्पतिर्यत्र वष्टि प्र तदश्नोति धन्वना। 
तस्य साध्वीरिषवो याभिरस्यति नृचक्षसो दृशये कर्णयोनयः
बृहस्पति बाण क्षेपक और सत्य रूप ज्यावाले हैं। वे जो चाहते हैं, धनुष के द्वारा प्राप्त कर लेते हैं। जिस बाण को वे फेंकते हैं, वह कार्य साधन में कुशल है। वे बाण दर्शनार्थ उत्पन्न हुए हैं। कर्ण ही उनका उत्पत्ति-स्थान है।[ऋग्वेद 2.24.8]
ब्रह्मणस्पति देव बाण फेंकने में निपुण हैं। वह अपना इच्छित अभिष्ट धनुष द्वारा ग्रहण कर लेते हैं। उनके द्वारा चलाया हुआ बाण कार्य को सिद्ध होते हैं।
Brahaspati is an expert in throwing-shooting the arrow. What ever he want-need he achieve with the help of bow & arrow. The abode-origin of the arrow is ear.
Whatever Brahman Spati aims at with the truth-strung quick-darting bow, that (mark-aim) he surely attains; holy are its arrows with which he shoots (intended) for the eyes of men and having their abode-origin in the ear.
स संनयः स विनयः पुरोहितः स सुष्टुतः स युधि ब्रह्मणस्पतिः। 
चाक्ष्मो यद्वाजं भरते मती धनादित्सूर्यस्तपति तप्यतुर्वृथा
ब्रह्मण स्पति पुरोहित हैं। वे समस्त पदार्थों को पृथक् और एकत्र करते हैं। सब उनकी स्तुति करते हैं। वे युद्ध में निपुण होते हैं। सर्वदर्शी बृहस्पति जिस समय अन्न और धन धारण करते हैं, उस समय सूर्य स्वाभाविक रूप से उदित हो जाते हैं।[ऋग्वेद 2.24.9]
बाण स्पति पुरोहित रूप हैं। वे समस्त वस्तुओं को अलग करते और मिलाते हैं। सभी उनकी वंदना करते हैं। तभी सूर्योदय होता है।
Brahman Spati is a priest. He accumulate all goods separately. Everyone prayers-worship him. When enlightened Brahaspati bears-accumulate the food grains and wealth, the Sun rises.
विभु प्रभु प्रथमं मेहनावतो बृहस्पतेः सुविदत्राणि राध्या। 
इमा सातानि वेन्यस्य वाजिनो येन जना उभये भुञ्जते विशः
वृष्टिदाता बृहस्पति देव का धन चारों ओर व्याप्त, प्रापणीय, प्रभूत और उत्तम है। कमनीय और अन्नवान् बृहस्पति देव ने यह सम्पूर्ण धन दान किया। दोनों प्रकार के मनुष्य (यजमान और ने स्तोता) ध्यानावस्थित चित्त से इस धन का उपभोग करते हैं।[ऋग्वेद 2.24.10]
प्रभूत :: जो हुआ हो,  निकला हुआ, उत्पन्न, उद्गत, बहुत अधिक, प्रचुर,  पूर्ण, पूरा, पक्व, पका हुआ, उन्नत, उद्‌गम; excellent, outstanding, regeneratory, ample, sufficient, abundant.
बृहस्पति देव वृष्टि देने वाले हैं। उनका धन सर्वश्रेष्ठ है। उन्होंने अन्न युक्त सम्पूर्ण धन दिया है। यजमान और स्तोता दोनों ही इस धन को तपस्यारत रहते हुए भोग करते हैं। 
The wealth granted by the rain causing Brahaspati Dev is pervading in a all directions, acceptable, excellent and abundant. Attractive and food grain possessing Brahaspati dev has donated this wealth. Both the host-Ritviz and the Priests enjoy this wealth in a state of meditation-concentrating in God.
Dev Guru Brahaspati is associated with learning, knowledge, enlightenment, meditation, concentration, understanding; which is considered as the greatest wealth one can possess. it s never lost and can not be snatched-stolen by any one. It grants cultural values, ethics, adaptability etc.
Please refer to ::  HINDU PHILOSOPHY (5) हिंदु दर्शन :: VIRTUES सद्गुण धर्माचरण  & COMMANDMENTS :: HINDU PHILOSOPHY (14) हिंदु दर्शन santoshkipathshala.blogspot.com
योऽवरे वृजने विश्वथा विभुर्महामु रण्वः शवसा ववक्षिथ। 
स देवो देवान्प्रति पप्रथे पृथु विश्वेदु ता परिभूर्ब्रह्मणस्पतिः
चारों ओर व्याप्त और स्तवनीय ब्रह्मण स्पति अतीव और महान् बली दोनों प्रकार के स्तोताओं की अपने शक्ति से रक्षा करते हैं। दानादि गुण वाले बृहस्पति देवों के प्रतिनिधि रूप से सर्वत्र अत्यन्त विख्यात है। इसीलिए वे सभी प्राणियों के स्वामी भी हुए हैं।[ऋग्वेद 2.24.11]
समस्त ओर बसे हुए वंदना योग्य, ब्रह्मणस्पति अपनी शक्ति से विद्वान और बलशाली दोनों प्रकार के मनुष्यों की सुरक्षा करते हैं। वे दानशील स्वभाव वाले देवों के नेता रूप से विख्यात हैं और वे समस्त प्राणधारियों के स्वामी हैं।
All pervading esteemed Brahman Spati protects both types of devotees with his power-might. He is famous for the donations-charity done by him. Hence, he is a Lord of the organism. 
विश्वं सत्यं मघवाना युवोरिदापश्चन प्र मिनन्ति व्रतं वाम्। 
अच्छेन्द्राब्रह्मणस्पती हविर्नोऽन्नं युजेव वाजिना जिगातम्
हे इन्द्र और ब्रह्मण स्पति आप धनवान् है। सभी सत्य आपको ही है। आपके व्रत को जल नहीं मार सकता। जिस प्रकार से रथ में जुते हुए घोड़े खाद्य के सामने दौड़ते हैं, उसी प्रकार आप भी हमारे हविष्यान् को ग्रहण करने के लिए पधारें।[ऋग्वेद 2.24.12]
हे इन्द्र देव! हे ब्रह्मण स्पति देव! तुम दोनों ऐश्वर्यवान हो। समस्त धन तुम्हारा है। तुम्हारे उद्देश्य को कोई नहीं रोक सकता। रथ में जुते घोड़ों के अन्न के प्रति दौड़ने के समान तुम भी हमारी हवियों के प्रति दौड़ते हुए आओ।
Hey Indr Dev & Brahman Spati! You are rich & opulent. All wealth is possessed by you. Your decisions can not be altered-changed by water (Vratr & other demons who intend to block rains, water). The way the horses deployed in the charoite rush towards the eatables, you too should run to accept our offerings. 
उताशिष्ठा अनु शृण्वन्ति वह्नयः सभेयो विप्रो भरते मती धना। 
वीळुद्वेषा अनु वश ऋणमाददिः स ह वाजी समिथे ब्रह्मणस्पतिः
युद्ध में बलवान् ब्रह्मणस्पति देव सभ्य ज्ञानी जनों के उत्तम धन को ही स्वीकार करते हैं और बलवान् शत्रुओं से द्वेष करते हैं। द्रुत गति से उड़ने वाले अश्व स्तुति को श्रवण करते हैं। वे ऋण से उऋण करते हैं।[ऋग्वेद 2.24.13]
द्वेष :: राग का विरोधी भाव, वैमनस्यता, विरोध, शत्रुता, वैर; malice, hatred, enmity.
ब्रह्मणस्पति देव के घोड़े हमारी प्रार्थना सुना करते हैं। विद्वान अध्वर्यु सुन्दर श्लोक परिपूर्ण हवि प्रदान करते हैं।
Brahman Spati Dev accept help from the cultured and has malice-hatred for the wicked-sinners. Fast moving listen listen to the prayers and clear our debts.
The very swift horses of Brahman Spati listen to our invocation; the priest of the assembly offers with praise the sacrificial wealth; may Brahman Spati, the hater of the oppressor, accept the payment of the debt, agreeably to his plural Asure (anti demigods-deities, demons-giants); may he be the accepter of the sacrificial food presented at this ceremony.
ब्रह्मणस्पतेरभवद्यथावशं सत्यो मन्युर्महि कर्मा करिष्यतः। 
यो गा उदाजत्स दिवे वि चाभजन्महीव रीतिः शवसासरत्पृथक्
जिस समय ब्रह्मण स्पति किसी महान् कर्म में प्रवृत्त होते हैं, उस समय उनका मंत्र उनकी अभिलाषा के अनुसार सफल होता है। जिन्होंने गौवों को बाहर निकाल कर विजय प्राप्त की। सतत् प्रवाहित नदियों की भाँति ये गौवें स्वतंत्र रूप से चली गई।[ऋग्वेद 2.24.14] 
ब्रह्मण स्पति हमारे पास पधारकर मंत्र स्वीकृत करो। ब्रह्मण स्पति के किसी कार्य में लगने पर उनका मंत्र फलदायक होता है। उन्होंने धेनु को निकाला, सूर्य लोक के लिए उसका हिस्सा किया। वे धेनु महान श्लोक के अपनी शक्ति से गतिवती हुई है।
When Brahman Spati Dev begin some job-endeavour (accomplishment) his Mantr grant the reward-accomplishment, success as per his wish. He released the cows from the captivity and attained victory. The cows moved like the continuous flow of the rivers.
ब्रह्मणस्पते सुयमस्य विश्वहा रायः स्याम रथ्योवयस्वतः। 
वीरेषु वीराँ उप पृङ्धि नस्त्वं यदीशानो ब्रह्मणा वेषि मे हवम्
हे ब्रह्मण स्पति! हम सभी व्रतों के पालक और अन्न युक्त धन के सदैव स्वामी रहें। आप सभी के नियन्ता है, इसलिए ज्ञानपूर्वक की गई हमारी स्तुतियों को ग्रहण करके हमें पराक्रमी संतान प्रदान करें।[ऋग्वेद 2.24.15]
हे ब्रह्मणस्पति देव! हम श्रेष्ठ नियम वाले अन्न व धन तुल्य अलग-अलग के स्वामी बने। तुम हमारे योद्धा पुत्र को संताप न दो। तुम सबके दाता हमारी वंदना और अन्न रूपी हवि की कामना करते हैं।
Hey Brahman Spati! Let us remain the followers-conducting all fasts, vows & the owner of food grains along with wealth. You are the controller-regulator of all. Listen-respond to our prayers and grant us progeny with strength, power & might.
ब्रह्मणस्पते त्वमस्य यन्ता सूक्तस्य बोधि तनयं च जिन्व। 
विश्वं तद्भद्रं यदवन्ति देवा बृहद्वदेम विदथे सुवीराः
हे ब्रह्मण स्पति! आप इस संसार के नियामक है। आप इस सूक्त को जाने। आप हमारी सन्ततियों को प्रसन्न करें। देवता लोग जिसकी रक्षा करते हैं, उसका हर प्रकार से कल्याण होता है। पुत्र और पौत्र वाले होकर हम इस यज्ञ में प्रभूत स्तुति कर सकें।[ऋग्वेद 2.24.16] 
हे ब्रह्मण स्पति! तुम संसार के नियामक हो। हमारे श्लोक को जानते हुए हमारी संतानों को सुखी बनाओ। देवगण जिसकी सुरक्षा करते हैं, वही कल्याण को वहन करने वाला होता है। पुत्र-पौत्र से परिपूर्ण हुए हम इस अनुष्ठान में श्लोक बोलेंगे। 
Hey Brahman Spati! You are the regulator of this universe. Know-understand, recognise this Shlok-Sukt. Grant pleasure-comforts to our progeny. One who is protected by the demigods-deities achieves all round growth-development, welfare. On being blessed with sons & grand sons, let us make excellent prayers.
ऋग्वेद संहिता, द्वितीय मण्डल सूक्त (25) :: ऋषि :-  गुत्समद,  भार्गवः,  देवता :- ब्रह्मणस्पति, छन्द :- जगती
न्धानो अग्निं वनवद्वनुष्यतः कृतब्रह्मा शूशुवद्रातहव्य इत्। 
जातन जातमति स प्र सर्सृते यंयं युजं कृणुते ब्रह्मणस्पतिः
अग्नि को प्रज्वलित करके यजमान शत्रुओं को पराजित कर सके। स्तोत्र पढ़ते और हव्य दान करते हुए यजमान समृद्धि प्राप्त कर सके। जिस यजमान को मित्र कहकर ब्रह्मणस्पति अंगीकार करते हैं, वह पुत्र के पुत्र से भी अधिक जीवित रहता है।[ऋग्वेद 2.25.1]
अग्नि को प्रज्वलित करने वाला यजमान शत्रु में समर्थ हो। वंदना और हविधान द्वारा समद्ध हो।
Let the friend-host, Ritviz be able to ignite fire (invoke Brahaspati Dev) and defeat the enemy. Let him gain riches while reciting Strotr addressed to Brahaspati Dev making offerings. The devotee whom Brahaspati address as friend, gain longevity more than his grandson.
INVOKE :: लागू, आह्वान करना, विनती करना, अभिमंत्रित करना; implement, bless, entreat, pray, sue, urge.
वीरेभिर्वीरान्वनवद्वनुष्यतो गोभी रयिं पप्रथद्बोधति त्मना। 
तोकं च तस्य तनयं च वर्धते यंयं युजं कृणुते ब्रह्मणस्पतिः
जिस यजमान को ब्रह्मण स्पति अपने मित्र रूप में स्वीकार कर लेते हैं, वह अपने बलशाली पुत्रों के द्वारा हिंसा करने वाले शत्रुओं के वीर पुत्रों का वध करता है। वह गोधन से समृद्ध होता हुआ ज्ञानी बनता है। ब्रह्मण स्पति उसे पुत्र-पौत्रों से समृद्ध बनाते हैं।[ऋग्वेद 2.25.2]
जिस यजमान से ब्रह्मणस्पति देव मित्र भाव रखते हैं, वह पौत्र से भी अधिक समय तक जीवित रहता है। यजमान अपने वीर पुत्रों द्वारा दुश्मनों के पुत्रों पर विजय प्राप्त कराएँ। वह गौ धन युक्त, पौत्र प्रसद्धि एवं सर्वज्ञाता है। जिसे ब्रह्मणस्पति सूखी मानते हैं, उसके पुत्र-पौत्र भी समृद्ध होते हैं। 
The host (Ritviz, devotee) who is accepted-adopted as a friend by the Brahman Spati Dev, kills the mighty sons of he enemy with the help of his strong-powerful sons. He gains-attains cows as wealth and become enlightened. Brahman Spati bless him with sons and grand sons.
सिन्धुर्न क्षोदः शिमीवाँ ऋघायतो वृषेण वध्रीँरभि वष्ट्योजसा। 
अग्निरिव प्रसितिर्नाह वर्तवे यंयं युजं कृणुते ब्रह्मणस्पतिः
जिस प्रकार से नदी तट को तोड़ती है, साँड़ जैसे बैलों को पराजित करता है, उसी प्रकार बृहस्पति देव की सेवा करने वाला यजमान अपनी शक्ति से शत्रुओं को पराजित करता है। जिस प्रकार अग्नि शिखा का निवारण नहीं किया जाता, उसी प्रकार ब्रह्मण स्पति जिस यजमान को मित्र कहकर ग्रहण करते हैं, उसका भी निवारण नहीं किया जा सकता।[ऋग्वेद 2.25.3]
नदी के प्रवाह से कछार टूटते हैं, सांड ऋषभों को पराजित करता है, उसी प्रकार ब्रह्मणस्पति देव का सेवक अपनी शक्ति से शत्रुओं की शक्ति को ध्वस्त करता पराजित करता है। अग्नि की शिखा को जैसे कोई नहीं रोक सकता वैसे ही ब्रह्मणस्पति देव से मित्र भाव पाये हुए यजमान को कोई नहीं रोक सकता।
The way a river breaks-destroys its banks, the bull defeat the oxen. The host serving Brahaspati Dev defeat his enemy with his power-might. The way the tip of the flame can not be blocked, the hosts adopted as friend, can not be blocked-stopped.
तस्माअर्षन्तिदिव्या असश्चतः स सत्वभिः प्रथमो गोषु गच्छति। 
अनिभृष्टत विर्हिन्त्योजसा यंयं युजं कृणुते ब्रह्मणस्पतिः
जिस यजमान को बृहस्पति मित्र कहकर ग्रहण करते हैं, उसके पास अप्रतिहत निर्झरिणी होकर स्वर्गीय जल आता है। परिचर्याकारियों में भी वही सबसे पहले गोधन प्राप्त करता है। उसका बल अनिवार्य है। वह बल द्वारा शत्रुओं का विनाश करता है।[ऋग्वेद 2.25.4]
ब्रह्मण स्पति की सेवा करने वाला यजमान सर्वप्रथम तो गौ रूपी धन पाता है। अपने पराक्रम से शत्रुओं को मारता है। जिसे वे मंत्री रूप में स्वीकार करते हैं। वे मैत्री भाव से देखते हैं कि उसी ओर सभी रस प्रवाहित होते हैं।
One adopted as a friend by Brahaspati Dev gets the water from heavens continuously. He gets maximum cows, amongest those service him. He becomes strong and kills-destroys the enemy.
तस्मा इद्विश्वे धुनयन्त सिन्धवोऽच्छिद्रा शर्म दधिरे पुरूणि। 
देवानां सुम्ने सुभगः स एधते यंयं युजं कृणुते ब्रह्मणस्पतिः
जिस यजमान को मित्र रूप से ब्रह्मण स्पति ग्रहण करते हैं, उसकी ओर समस्त नदियाँ प्रवाहित होती हैं। वह सदा नानाविध सुख का उपभोग करता है। वह सौभाग्यशाली होता है और वह देवताओं द्वारा प्रदत्त सुख तथा समृद्धि को प्राप्त करता है।[ऋग्वेद 2.25.5]
वे विविध अलौकिक रसपान करने में सक्षम होते हैं। जिस यजमान को ब्रह्मण स्पति देव मित्र भाव से देखते हैं उसी तरफ समस्त रस प्रवाहमान होते हैं। वह विविध सुखों का उपभोग करने वाला महान भाग्य से परिपूर्ण समृद्धि ग्रहण करता है।
One who is accepted as  friend by Braham Spati Dev sees the flow of all rivers-amenities towards him. He continue enjoying all sorts of comforts-luxuries and is lucky. He is blessed with all amenities from the demigods-deities. and progress in life.
ऋग्वेद संहिता, द्वितीय मण्डल सूक्त (26) :: ऋषि :-  गुत्समद,  भार्गव,  देवता :- ब्रह्मणस्पति, छन्द :- जगती।
ऋजुरिच्छंसो वनवद्वनुष्यतो देवयन्निददेवयन्तमभ्यसत्।
सुप्रावीरिद्वनवत्पृत्सु दुष्टरं यज्वेदयज्योर्वि भजाति भोजनम्॥
ब्रह्मण स्पति का सरल स्तोता शत्रुओं का विनाश कर डालें। देवाकांक्षी अदेवाकांक्षी को पराभूत कर डाले। जो बृहस्पति देव को अच्छी तरह तृप्त करता है, वह युद्ध में दुर्धर्ष शत्रुओं का विनाश करता है। यज्ञ परायण अयाज्ञिक के धन का उपभोग करता है।[ऋग्वेद 2.26.1]
ब्रह्मणस्पति की वंदना करने वाला शत्रुओं को समाप्त करें। देवताओं का आराधक देव-विहीनों को पराजित करे। ब्रह्मणस्पति देव को संतुष्ट करने वाला संग्राम में भयंकर शत्रुओं का नाश करता है। याज्ञिक यज्ञ द्वेषियों का धन ग्रहण करता है।
Let one who sing Strotr in the honour of Brahman Spati Dev, be able to destroy the enemies. Those who wish to have rapport with the demigods-deities, be able to kill demons-those who are against the demigods-deities. One who thoroughly satisfy-pray to Brahaspati Dev destroy the enemy in the battle field. One who resort to Yagy is capable of utilising the wealth of those who abstain from Yagy.
यजस्व वीर प्र विहि मनायतो भद्रं मनः कृणुष्व वृत्रतूर्ये। 
हविष्कृणुष्व सुभगो यथाससि ब्रह्मणस्पतेरव आ वृणीमहे॥
हे वीर! आप ब्रह्मण स्पति की स्तुति करें। अभिमानी शत्रुओं के विरुद्ध यात्रा करें। शत्रुओं के साथ संग्राम में मन को दृढ़ करें। ब्रह्मण स्पति के लिए हव्य तैयार करें। वैसा करने पर आप उत्तम धन पायेंगे। हम ब्रह्मण स्पति से रक्षा की कामना करते हैं।[ऋग्वेद 2.26.2]
ब्रह्मण स्पति देव की वंदना करो। अहंकारी पर आक्रमण करो । संयम में अटल हों। ब्रह्मण स्पति देव के लिए हवि तैयार करने पर उत्तम धन प्राप्त करोगे। हम उनकी रक्षा चाहते हैं।
Hey mighty! Pray to Brahman Spati. Raid-attack the arrogant enemies. Have a firm determination for  war with the enemies. Prepare-ready offerings for Brahman Spati. On doing this, one will get best riches-wealth. We pray to Brahman Spati for our protection.
स इज्जनेन स विशा स जन्मना स पुत्रैर्वाजं भरते धना नृभिः।
देवानां यः पितरमाविवासति श्रद्धामना हविषा ब्रह्मणस्पतिम्॥
जो यजमान श्रद्धावान् होकर देवों के पिता ब्रह्मण स्पति की हव्य द्वारा सेवा करता है, वह अपने मनुष्य और आत्मीय, अपने पुत्र और अन्यान्य परिचारकों के साथ अन्न और धन प्राप्त करता है।[ऋग्वेद 2.26.3]
देवगणों के पिता ब्रह्मण स्पति देव की जो यजमान विनय पूर्वक सेवा करता है वह अपने संवर्धन एवं संतान से युक्त हुआ अन्न और धन पाता है।
The faithful-devotee who serve Brahman Spati with offerings, get food grain and money for his dependents, relatives, sons, slaves and servants.
यो अस्मै हव्यैर्घृतवद्भिरविधत्प्र तं प्राचा नयति ब्रह्मणस्पतिः।
उरुष्यतीमंहसो रक्षती रिर्षो 3 होश्चिदस्मा उरुचक्रिरद्भुतः॥
जो ब्रह्मण स्पति की सेवा घृत युक्त हव्य से करता है, उसे ब्रह्मण स्पति प्राचीन सरल मार्ग से ले जाते हैं। उसे वे पाप, शत्रु और दरिद्रता से बचाते हैं। आश्चर्यजनक रूप से ब्रह्मण स्पति उसका महान् उपकार करते हैं।[ऋग्वेद 2.26.4]
जो यजमान घृत परिपूर्ण हवि से ब्रह्मण स्पति देव को सेवा करता है उस वे आसान मार्ग पर चलाते हैं एवं पाप, निर्धनता और शत्रु से बचाते हैं। वे उसके कार्य सिद्ध करते हैं।
The host-Ritviz who serve Brahman Spati with offerings mixed with Ghee, is taken away by a simple route. He protect him from sins, enemies and poverty. Brahman Spati help him in amazing manner.
ऋग्वेद संहिता, द्वितीय मण्डल सूक्त (27) :: ऋषि :-  कूर्म, गार्त्समद, गृत्समद, देवता :- आदित्य, छन्द :- त्रिष्टुप्।
इमा गिर आदित्येभ्यो घृतस्नूः सनाद्राजभ्यो जुह्वा जुहोमि।
शृणोतु मित्र अर्यमा भगो नस्तुविजातो वरुणो दक्षो अंशः
मैं जुहू द्वारा सर्वदा शोभन आदित्यों को लक्ष्य कर घृत स्त्राविणी स्तुति अर्पण करता हूँ। मित्र, अर्यमा, भग, बहुव्यापक वरुण, दक्ष और अंश मेरी स्तुति श्रवण करें।[ऋग्वेद 2.27.1]
जुहू  :: पलाश की लकड़ी का बना हुआ एक प्रकार का अर्धचंद्राकार यज्ञ-पात्र,  पूर्व दिशा; a pot made of butea wood in the shape half moon. 
तेजस्वी आदित्यों के लिए जुहू द्वारा घृत सींचते हुए मैं वंदना करता हूँ। मित्र, अर्यमा, भग, वरुण, दक्ष एवं अंश मेरे पूजन पर ध्यान आकृष्ट करें।
I make offerings with ghee to the Adity in a pot made of butea wood in the shape of half crown-moon. Let Mitr, Aryma, Varun, Daksh & Ansh respond to my prayers.
इमं स्तोमं सक्रतवो मे अद्य मित्रो अर्यमा वरुणो जुषन्त। 
आदित्यासः शुचयो धारपूता अवृजिना अनवद्या अरिष्टाः
दीप्तिमान, वृष्टिपूत, अनुग्रह परायण, अनिन्दनीय, हिंसा रहित और एक विध कर्म कर्ता मित्र, अर्यमा और वरुण नामक आदित्य आज मेरे इस स्तोत्र का उपभोग करें।[ऋग्वेद 2.27.2]
दयाभाव वाले, अनिंद्य, अहिंसित यशस्वी कर्मवान मित्र, अर्यमा और वरुण रूप वाले मेरी इस प्रार्थना को ग्रहण करें।
DAZZLING :: बहुत चमकीला, चकाचौंध करने वाला, चौंधियानेवाला; blinding, meteoric. 
Let the dazzling, kind hearted, non violent, honoured-famous, Adity named Mitr, Aryma, Varun accept my prayers.  
न आदित्यास उरवो गभीरा अदब्धासो दिप्सन्ते भूर्यक्षाः। 
अन्तः पश्यन्ति वृजिनोत साधु सर्वं राजभ्यः परमा चिदन्ति
महान्, गंभीर, दुर्दमनीय, दमनकारी और बहुदृष्टिवाले आदित्यगण प्राणियों का अन्तःकरण देखते हैं। दूर देश में रहने वाले पदार्थ भी आदित्यों के पास समीप रहते हैं।[ऋग्वेद 2.27.3]
गंभीर, बहुद्रष्टा दमन करने में समर्थ प्राणियों के हृदय को जानने वाले आदित्य सर्वोपरि हैं। दूर के पदार्थ भी उनसे दूर नहीं हैं।
Serious, far sighted, capable of repressing the wicked-vicious, who understand the feeling of the organism-living being can see the distant objects.
धारयन्त आदित्यासो जगत्स्था देवा विश्वस्य भुवनस्य गोपाः। 
दीर्घाधियो रक्षमाणा असुर्यमृतावानश्चयमाना ऋणानि
आदित्यगण स्थावर और जंगम को अवस्थापित करते और समस्त भुवनों की रक्षा करते हैं। वे बहुयज्ञ वाले और असूर्य अथवा प्राण के हेतुभूत जल की रक्षा करते हैं। वे सत्य वाले और ऋण परिशोधक हैं।[ऋग्वेद 2.27.4]
वे आदित्यगण, स्थावर, जंगम को वास देकर सब भुवनों के रक्षक हैं। वे अनेक कर्म वाले प्राण रूप आदित्य, भय उपस्थित सत्यों के द्वारा ऋण का प्रतिशोधन करते हैं।
Adity Gan are protectors of the stationary and movable abodes. They protect the water necessary for life. They are truthful and relieves (retire, discharge) the debts (Matr Rin, Pitr Rin, Dev Rin, Guru Rin etc.).
विद्यामादित्या अवसो वो अस्य यदर्यमन्भय आ चिन्मयोभु। 
युष्माकं मित्रावरुणा प्रणीतौ परि श्वभ्रेव दुरितानि वृज्याम्
हे आदित्य गण! हम आपका आश्रय प्राप्त करें। भय आने पर आपका आश्रय सुख प्रदान करता है। हे अर्यमा, मित्र और वरुणदेव! गड्ढे वाली उबड़-खाबड़ जमीन की भाँति हम भी पाप कर्मों का परित्याग कर दें।[ऋग्वेद 2.27.5]
हे आदित्यों! भय उपस्थित होने पर तुम्हारी शरण सुख का हेतु बनता है। हम तुम्हारी उस शरण को ग्रहण करें। अर्यमा सखा, वरुण का अनुगत हुआ मैं पापों को दूरस्थ करूँ।
Hey Adity Gan! Let us attain protection, shelter, asylum under you. You grant us safety as and when there is a danger. Hey Aryma, Mitr and Varun Dev let me reject all sins, wickedness like the uneven ground.  
सुगो हि वो अर्यमन्मित्र पन्था अनृक्षरो वरुण साधुरस्ति। 
तेनादित्या अधि वोचता नो यच्छता नो दुष्परिहन्तु शर्म
हे अर्यमा, मित्र और वरुण देव! आपका मार्ग सुगम, कण्टक रहित और सुन्दर है। हे आदित्य गण! उसी मार्ग से आप हमें ले जायें, मीठे वचन बोलें और अविनाशी सुख प्रदान करें।[ऋग्वेद 2.27.6]
हे अर्यमा ! मित्रावरुण तुम्हारी राह सुगम और निष्कंटक है। हे आदित्यों! हमें भी उसी मार्ग पर चलाओ। मधुर वचन बोलते हुए अलौकिक सुख प्रदान करो। 
Hey Aryma, Mitr and Varun Dev! Your path is free from trouble-dangers, and beautiful. Hey Adity Gan! Take us through that route, speak pleasant-sweet words and grant us comforts-pleasure.
पिपर्तु नो अदिती राजपुत्राति द्वेषांस्यर्यमा सुगेभिः। 
बृहन्मित्रस्य वरुणस्य शर्मोप स्याम पुरुवीरा अरिष्टाः
हे राज माता अदिति! आप शत्रुओं को लाँघकर हमें दूसरे देश में ले जावें। हे अर्यमा! आप हमारे निमित्त गमना-गमन का रास्ता प्रशस्त करें। मित्र और वरुण देव हमारी रक्षा करें, जिससे हम संतान आदि के साथ सुख पूर्वक रहें।[ऋग्वेद 2.27.7]
माता अदिति हमको शत्रुओं से दूर रखें। अर्यमा हमको सरल पथ पर ले जायें। हम अनेक वीरों से युक्त अहिंसक रहें तथा मित्र और वरुण हमें सुख प्रदान करें।
Hey Dev Mata Aditi! Take us to another safe land-place (country) protecting us from the enemy. Hey Aryma! Make our path free from hurdles-obstacles. Let Mitr & Varun Dev protect us so that our progeny can live-survive comfortably with us. 
तिस्त्रो भूमीर्धारयन् त्रींरुत द्यून्त्रीणि व्रता विदथे अन्तरेषाम्। 
ऋतेनादित्या महि वो महित्वं तदर्यमन्वरुण मित्र चारु
ये पृथ्वी, अन्तरिक्ष और स्वर्ग तथा मर्त्य लोक, जन और सत्य लोकों को धारण करते हैं। इनके यज्ञ में तीन व्रत (तीन सवन) हैं। हे आदित्य गण! यज्ञ द्वारा आपकी महिमा श्रेष्ठ हुई है। हे अर्यमा, मित्र और वरुण देव! आपका वह महत्त्व सुन्दर है।[ऋग्वेद 2.27.8]
सवन :: प्रसव-बच्चा जनना; श्योनाक वृक्ष, सोनापाठा; यज्ञस्नान; सोमपान, यज्ञ,  चंद्रमा; भृगु के एक पुत्र का नाम; वशिष्ठ के एक पुत्र का नाम; रोहित मन्वंतर के सप्तर्षियों में से एक ऋषि का नाम; स्वायंभुव मनु के एक पुत्र का नाम; अग्नि का एक नाम;  सोमलता को निचोड़कर रस निकालना; उपहार।  
सवन काल :- आहुति देने, तर्पण आदि का समय। 
सवन क्रम :- यज्ञादि के विभिन्न कृत्यों का क्रम। 
सवन संस्था :- यज्ञ कर्म का अंत या समाप्ति।
आदित्य, धरा, अंतरिक्ष, स्वर्ग, मत्य, जल तथा सत्य संसार के धारणकर्त्ता हैं। ये तीन सवन परिपूर्ण यज्ञ वाले, अनुष्ठान से ही महिमावान हुए हैं। 
The Adity support earth, space and the heaven, the abode of Mahar-the perishable, Jan Lok and the Saty Lok. Their Yagy constitute of three aims-targets (absorption, retention and redistribution of dew on rain). Hey Adity Gan! The Yagy has increased-enhanced your glory. Hey Mitr, Aryma Varun Dev!
They uphold the three worlds (earth, firmament-sky and heaven), the three heavens and in their sacrifices three ceremonies (are comprised) by truth. Adity, has great might-most excellent. 
FIRMAMENT :: sky, space. 
The three luminous deities :- Agni, Vayu & Sury. 
The three acts :- absorption, retention and redistribution of dew on rain.
त्री रोचना दिव्या धारयन्त हिरण्ययाः शुचयो धारपूताः। 
अस्वप्नजो अनिमिषा अदब्या उरुशंसा ऋजवे मर्त्याय
स्वर्णालङ्कार भूषित, दीप्तिमान्, वृष्टिपूत, निद्रा रहित, अनिमेष नयन, हिंसा रहित और सबके स्तुति योग्य आदित्य गण सरल स्वभाव संसार के लिए तीन प्रकार (अग्नि, वायु और सूर्य) के स्वर्गीय तेज धारण करते हैं।[ऋग्वेद 2.27.9]
हे अर्यमा! हे सखा! और हे वरुण! तुम्हारा कार्य प्रशंसनीय है। स्वर्ग के समान तेजस्वी वर्ण वाले दीप्तिमान वृष्टि के कारण भूत सचेष्टन झुकने वाले नेत्रों से युक्त अहिंसित पूजनीय, आदित्यगण, संसार के लिए अग्नि, पवन और सूर्य का रूप धारण करते हैं।
Decorated with golden ornaments, dazzling, free from sleep, creator of rains, non violent, deserving worship-prayers from all; you support-bear the three kinds of heavenly aura in the form of fire, air and the Sun.
त्वं विश्वेषां वरुणासि राजा ये च देवा असुर ये च मर्ताः। 
शतं नो रास्व शरदो विचक्षेऽश्यामायूंषि सुधितानि पूर्वा
हे वरुण देव! आप देवता है या मनुष्य, सबके राजा है। हमें सौ वर्ष देखने दें, ताकि हम पूर्वजों की उपभुक्त आयु को प्राप्त कर सकें।[ऋग्वेद 2.27.10]
हे वरुण! तुम देवता हो या मनुष्य सबके दाता हो। सौ वर्ष देखने के योग्य करो जिससे हम पितरों की आयु को भोग सकें।
Hey Varun Dev! Whether you are a human being or a demigod-deity, you are the king of all. Grant us a life span of 100 years and let us enjoy the life span of our Pitre-Manes.
न दक्षिणा वि चिकिते न सव्या न प्राचीनमादित्या नोत पश्चा। 
पाक्या चिद्वसवो धीर्या चिद्युष्मानीतो अभयं ज्योतिरश्याम्
हे वास प्रदाता आदित्यों! हम न तो दाहिने जानते, न बायें जानते, न सामने जानते और न पीछे जानते हैं। मैं अपरिपक्व बुद्धि और अतीव कातर हूँ। मुझे आप ले जायेंगे, तो मैं निर्भय ज्योति को प्राप्त करूंगा।[ऋग्वेद 2.27.11]
हे वास प्रदान करने वाले आदित्यों! हम दाहिने, बायें, सम्मुख, संदेह के वहम में नहीं पड़ते। कच्ची बुद्धि वाला, अधीर होकर भी भ्रम में न पड़े। मैं तुम्हारे द्वारा आसान मार्ग पर चलाया जाता हुआ आनन्द रूप तेज ग्रहण करूँ।
Hey shelter granting Adity! We do not know right or left, front or rear. I am immature and in extreme distress.  If you support me I will become fearless and attain aura (Tej-energy). 
यो राजभ्य ऋतनिभ्यो ददाश यं वर्धयन्ति पुष्टयश्च नित्याः। 
स रेवान्याति प्रथमो रथेन वसुदावा विदथेषु प्रशस्तः
यज्ञ के नायक और राजा आदित्यों को जो हव्य प्रदान करता है, उनका नित्य अनुग्रह जिसकी पुष्टि करता है, वही व्यक्ति धनवान्, विख्यात, ददान्य और प्रशंसित होकर तथा रथ पर आरूढ़ होकर यज्ञस्थल में जाता है।[ऋग्वेद 2.27.12]
यज्ञ दाता आदित्य गण की हवि देने वाले यजमान को उनकी दया से पोषण-सामर्थ्य प्राप्त होती । वे धन युक्त प्रसिद्धि एवं प्रशंसित हुआ रथ पर सवार होकर यज्ञ स्थान को प्राप्त होता है।
One who conduct Yagy for the sake of Adity and make offerings; attain his favours, become rich, famous, honoured and ride the charoite to reach the Yagy site.
शुचिरपः सूयवसा अदब्ध उप क्षेति वृद्धवयाः सुवीरः। 
नकिष्टं घ्नन्त्यन्तितो न दूराद्य आदित्यानां भवति प्रणीतौ
वह दीप्तिमान्, हिंसा रहित, प्रचुर अन्न शाली और सुपुत्रवान् होकर उत्तम शस्य वाले जल के पास निवास करता है। जो आदित्यों का अनुसरण करता है, उसका दूर या निकट का शत्रु वध नहीं कर सकता।[ऋग्वेद 2.27.13]
यह यजमान तेजमान, अहिंसित, अन्नवान, पुत्रवान हुआ महान जल के पास निवास करता है। आदित्यों की शरण में रहने वाले को कोई शत्रु समाप्त नहीं कर सकता।
The devotee of the Adity is blessed with sons, possess enough stock of food grains, become non violent and resides by the side of water reservoirs. One who follows the Adity remains safe from the far or near enemies, who can not kill him.
अदिते मित्र वरुणोत मृळ यद्वो वयं चक्रमा कचिदागः। 
उर्वश्यामभयं ज्योतिरिन्द्र मा नो दीर्घा अभि नशन्तमिस्राः
हे अदिति, मित्र और वरुण देव! हम यदि आपके पास कोई अपराध करें, तो कृपा कर उसे क्षमा करें। हे इन्द्र देव! हम विस्तीर्ण और निर्भय ज्योति प्राप्त कर सकें। अन्धकार मयी रात्रि हमें छिपा न सके।[ऋग्वेद 2.27.14]
हे आदित्य! मित्र! हे वरुण! यदि हम तुम्हारे प्रति कोई अपराध करे तो उसे क्षमा करो। हे इन्द्र! हमें तेज और अभय प्रदान करो। हमको तम रात्रि नष्ट न करें।
Hey Aditi, Mitr & Varun Dev! Forgive our crimes we commit against you. Hey Indr Dev! Grant us broad & shinning light-aura. The darkness of night should not engulf us.
उभे अस्मै पीपयतः समीची दिवो वृष्टिं सुभगो नाम पुष्यन्। 
उभा क्षयावाजयन्याति पृत्सूभावर्धी भवतः साधू अस्मै
जो आदित्यों का अनुसरण करता है, उसकी द्यावा पृथ्वी एकत्र होकर पुष्टि करती हैं। वह सौभाग्यशाली होता है और स्वर्गीय जल प्राप्त करके समृद्धि प्राप्त करता है। युद्धकाल में शत्रुओं पर विजय प्राप्त करता हुआ दोनों लोकों में जाता है और दोनों लोक उसके लिए मंगलदायी होते हैं।[ऋग्वेद 2.27.15]
आदित्यों का अनुसरण करने वाले को अम्बर, धरा, सन्तुष्ट करते हैं। वह भाग्यवान अद्भुत रस ग्रहण कर समृद्ध होता है। संग्राम में शत्रु को पराजित करता हुआ चलता है। संसार के आधे भाग में ( धरा पर ) वह कर्म साधन करने वाला होता है।
One who follows-worship Adity, is nourished by the earth as well as the heavens. He has good luck. He make progress having attained the heavenly waters. He wins over the enemy and goes to the heavens. Let both the earth and heaven be auspicious for him.
या वो माया अभिद्रुहे यजत्राः पाशा आदित्या रिपवे विचृत्ताः। 
अश्वीव ताँ अंति येषं रथेनारिष्टा उरावा शर्मन्त्स्याम
हे पूजनीय आदित्य गण! द्रोह कारियों के लिए आपकी जो माया बनाई गई है और जो पाश शत्रुओं के लिए ग्रथित हुआ है, हम उनको अश्वारोही पुरुष की तरह अनायास लाँघ जायें। हम हिंसा शून्य होकर परम सुख में निवास करें।[ऋग्वेद 2.27.16]
हे पूज्य आदित्यों विद्रोहियों को तुमने माया पूर्वक वश में किया शत्रु के लिए पाश रचा। हम उस माया और पाश को घोड़े पर सवार प्राणी के समान लांघें और हिंसा रहित हुए। परम सुख के सुंदर भवन में निवास करें।
Hey revered-honourable Adity Gan! The illusion-scheme created by you for capturing the enemy, should be crossed by us like the horse riders comfortably-easily. We should be free from violence to live peacefully.  
माहं मघोनो वरुण प्रियस्य भूरिदाव्न आ विदं शूनमापेः।
मा रायो राजन्त्सुयमादव स्थां बृहद्वदेम विदथे सुवीराः
हे वरुण देव! मुझे किसी धनी और प्रभूत दान शील व्यक्ति के पास गरीबी की दरिद्रता की बात न कहनी पड़े। हे राजन्! मुझे आवश्यकता पड़ने पर धन का अभाव न हो। हम पुत्र और पौत्र से युक्त होकर इस यज्ञ में आपकी स्तुति करें।[ऋग्वेद 2.27.17]
हे वरुण! मुझे किसी समृद्धिवान मनुष्य के निकट अपनी गरीबी की कहानी न बताओ। मुझे आवश्यक धन की कभी कमी प्रतीत न हो। हम संतान से परिपूर्ण हुए इस अनुष्ठान में वंदना करेंगे।
Hey Varun Dev! I may not have to narrate my story of poverty. Hey king! I should never face poverty. We should be blessed with sons and grand sons & pray-worship you in this Yagy.
ऋग्वेद संहिता, द्वितीय मण्डल सूक्त (28) :: ऋषि :-  कूर्म, गार्त्समद, गृत्समद, देवता :- वरुण, छन्द :- त्रिष्टुप्।
इदं करेंरादित्यस्य स्वराजो विश्वानि सान्त्यभ्यस्तु मह्ना। 
अति यो मन्द्रो यजाय देवः सुकीर्ति भिक्षे वरुणस्य भूरेः
कवि और स्वयं सुशोभित वरुण देव के लिए यह हव्य है। वे अपनी महिमा के द्वारा समस्त भूतों को पराजित करते हैं। प्रकाशमान स्वामी वरुण देव यजमान को प्रसन्नता प्रदान करते हैं। मैं उनकी स्तुति द्वारा प्रार्थना करता हूँ।[ऋग्वेद 2.28.1]
अपने आप प्रकाशमान और अपनी महिमा से संसार के जीवों को पैदा करने वाले वरुण के लिए यह हवि रूप अन्न है। वे अत्यन्त तेजस्वी वरुण यजमान को सुख प्रदान करते हैं। मैं उनकी पूजा करता हूँ।
We make offerings or the sake of Varun Dev who is aurous. He defeats all past with his glory. Varun Dev grants pleasure to the devotee. I pray-worship him.
The worshipper repeats this praise of the sage; the self-radiant Adity; may he preside over all beings by his power; I beg for fame of the sovereign Varun Dev, a deity who, when much plural used is propitious to his adorer.
PROPITIOUS :: अनुकूल, मेहरबान, अनुग्राही; suited, favourable, compatible, congruent, congenial, clement, complaisant, merciful, propitious, warm hearted, tender hearted.
तव व्रते सुभगासः स्याम स्वाध्यो वरुण तुष्टुवांसः। 
उपायन उषसां गोमतीनामग्नयो न जरमाणा अनु द्यून्
हे वरुण देव! हम भली-भाँति आपकी स्तुति, ध्यान और सेवा करके सौभाग्यशाली हो सकें। किरण युक्त उषा देवि के आने पर अग्नि देव की तरह हम प्रतिदिन आपकी स्तुति करके प्रकाशमान हों।[ऋग्वेद 2.28.2]
हे वरुण देव! हम तुम्हारी प्रार्थना, तपस्या और सेवा करते हुए सौभाग्यशाली बनें। किरणों वाली उषा के प्रकट होने पर सदैव तुम्हारी वंदना करते हुए हम तेजस्वी बनें।
Hey Varun Dev! Let us have good luck by virtue of your prayers, concentration in you, meditation and service. Let us pray to you as and when Usha Devi appear with her rays and in the presence of Agni Dev and become visible like a source of light. 
तव स्याम  पुरुवीरस्य शर्मन्नुरुशंसस्य वरुण प्रणेतः। 
यूयं नः पुत्रा अदितेरदब्धा अभि क्षमध्वं युज्याय देवाः
हे विश्व नायक वरुण देव! आप बहुतों के द्वारा प्रशंसित हैं। हम वीर संतान से युक्त होकर आपके अधिनस्थ रहें। हम आपसे मित्रता की कामना करते हुए अपनी अपराधों के लिए क्षमा-याचना करते हैं।[ऋग्वेद 2.28.3]
हे संसार के स्वामी वरुण! तुम वीरों के अधिपति के बहुत से साधक अर्चना करते हैं। हम तुम्हारे दिये हुए वास-स्थान को प्राप्त करें। हे अहिंसक तेजस्वी आदित्यो! हमारे प्रति मित्रता रखो। हमारे संकट दूर करो।
Hey the leader of the world, Varun Dev! You are praised-appreciated by many. We wish to remain be under your shelter, having brave progeny. We wish to be friendly with you and be pardoned for our sins.
प्र सीमादित्यो असृजद्विधर्तां ऋतं सिन्धवो वरुणस्य यन्ति। 
न श्राम्यन्ति न वि मुचन्त्येते वयो न पप्तू रघुया परिज्मन्
विश्व धारक और देव माता अदिति और वरुण देव ने अच्छी तरह जल की सृष्टि की है। वरुण देव की महिमा से नदियाँ प्रवाहित होती हैं। ये कभी विश्राम नहीं करती, लौटती भी नहीं। ये पक्षियों की तरह वेग के साथ पृथ्वी पर जाती हैं।[ऋग्वेद 2.28.4]
विश्व को धारण करने वाले अदिति वरुण जल को उत्पत्ति करते हैं और उन्हीं की महिमा से नदियाँ बहती हैं। ये सदैव बहती रहती हैं और पीछे की तरफ नहीं लौटती। गति सहित धरा पर आती हैं।
Supporter of the universe Dev Mata Aditi & Varun Dev created the water. The rivers flow due to the glory of Varun Dev. They neither take rest nor they return back. They flow over the earth with fast speed.
वि मच्ग्र्थाय रशनामिवाग ॠध्याम ते वरुण खामृतस्य। 
मा तन्तुश्छेदि वयतो धियं मे मा मात्रा शार्यपसः पुर ऋतोः
हे वरुण देव! मेरे पाप ने मुझे रस्सी की तरह बाँध रखा है; मुझे मुक्त करें। हम आपकी जल पूर्ण नदी प्राप्त करें। बुनने के समय हमारा तन्तु कभी टूटने न पावे। असमय में यज्ञ की मात्रा कभी विफल न हो।[ऋग्वेद 2.28.5]
हे वरुण! मैं पाप के बंधन में रस्सी के समान बंधा हूँ। मुझे मुक्त करो। हम तुम्हारे द्वारा नदियों को जल से पूर्ण रखें। हमारे यज्ञ की समृद्धि कभी न रुके।
Hey Varun Dev! Release me the cord of my sins which has tied me badly. We should get the water from the rivers. Our Yagy should never go waste.
अपो सु म्यक्ष वरुण भियसं मत्सम्राळृतावोऽनु मा गृभाय। 
दामेव वत्साद्वि मुमुग्ध्यंहो नहि त्वदारे निमिषश्चनेशे
हे वरुण देव! मेरे पास से भय दूर करें। हे सम्राट् और सत्यवान्! मुझ पर कृपा करें। जिस प्रकार रस्सी से बछड़े को छुड़ाया जाता है, उसी प्रकार आप पाप से मुझे बचायें, क्योंकि आपसे अलग होकर कोई एक पल के लिए भी आधिपत्य नहीं कर सकता।[ऋग्वेद 2.28.6]
आधिपत्य :: प्रभुता, स्वामित्व, प्रभुत्व, विजय, श्रेष्ठता, महत्त्व, अधिपति का शासन; status,  hegemony, lordship, suzerainty, mastery.
हे वरुण! मुझे अभय करो। हे सत्य से परिपूर्ण स्वामिन! हम पर कृपा दृष्टि रखो। रस्सी से गौवत्स को मुक्त कराने के तुल्य मुझे पापों से छुड़ाओ। तुम्हारी कृपा दृष्टि के बिना कोई सामर्थवान नहीं बन सकता। 
Hey Varun Dev! Grant me asylum. Hey truthful emperor, have pity on me. Relieve me from the sins the way a calf is released from the cord. None can acquire a status even for a blink of the eye.
मा नो वधैर्वरुण ये त इष्टावेनः कृण्वन्तमसुर भ्रीणन्ति। 
मा ज्योतिषः प्रवसथानि गन्म वि षू मृधः शिश्रथो जीवसे नः
हे वरुण देव! आपके यज्ञ में अपराध करने वालों को जो आयुध मारते हैं, वे हमें न मारे। हम प्रकाश से हीन न हो। हमारे जीवन से हिंसकों को हटायें।[ऋग्वेद 2.28.7]
हे वरुण देव! यज्ञ में अपराध करने वालों को जो अस्त्र दंड देते हैं वह हमको दंडित न करें। हम प्रकाश से वंचित न हों। हमारे हिंसकों को हमसे दूर करो।
Hey Varun Dev! The weapons which kill the guilty in your Yagy, should not kill us. We should not deprived of light. Keep off the violent-sinners from life. 
नमः पुरतेवरुणोतनूनमुतापरं तुविजातब्रवाम। 
त्वे हि कं पर्वते न श्रितान्यप्रच्युतानि दूळभ व्रतानि
हे बहुस्थानोत्पन्न वरुणदेव! हम भूत, वर्तमान और भविष्य समयों में आपके लिए नमस्कार करेंगे, क्योंकि हे अहिंसनीय वरुण देव! पर्वत की तरह आपमें सभी अच्युत (imperishable)  कर्म आश्रित हैं।[ऋग्वेद 2.28.8]
निहित :: अंतर्निहित, जन्मजात, सहज, अंतर्निहित, निर्विवाद; implied, inherent, vested, implicit.
हे बहु कर्मा इन्द्र! हमने भूतकाल में तुमको प्रणाम किया, वर्तमान और भविष्य काल में भी तुम्हें प्रणाम करेंगे। तुम हिंसा के योग्य नहीं हो। तुमसे सभी पराक्रम युक्त कर्म पर्वत के समान निहित हैं।
Hey Varun Dev, evolving from various sources! We will salute-worship you all time i.e., present, past and future, since you are non violent all imperishable efforts-Karm are vested-dependent in you like a mountain. 
पर ऋणा सावीरध मत्कृतानि माहं राजन्नन्यकृतेन भोजम्। 
अव्युष्टा इन्नु भूयसीरुषास आ नो जीवान्वरुण तासु शाधि
हे वरुण देव! हमें ऋण मुक्त (मातृ, पितृ, ऋषि, गुरु etc.) करें। दूसरों के द्वारा एकत्रित की गई सम्पत्ति का हम उपभोग न करें। बहुत-सी उषाएँ जो प्रकाशित हो सकी, उनके द्वारा हमारा जीवन सुखमय करें।[ऋग्वेद 2.28.9]
हे वरुण देव! हमारे पुरखों ने जो कर्ज किया था, उससे उॠण करो । अब मैंने जो ऋण किया है, उससे भी मुक्त करो। मुझे दूसरे से धन माँगने की आवश्यकता न पड़े। उषाओं को इस प्रकार व्याप्त करो कि वे ऋणग्रस्त ही न होने दें। हम कर्ज सहित उषाओं में जीवित रहें। 
Hey Varun Dev! Clear us from all debts pertaining to our parents, saints-sages, Guru-teacher, Brahman, Manes, Rishi etc. We should not use-discard others wealth. Let Usha-day break make our life full of pleasure-comfortable. 
यो मे राजन्युज्यो वा सखा वा स्वप्ने भयं भीरवे मह्यमाह। 
स्तेनो वा यो दिप्सति नो वृको वा त्वं तस्माद्वरुण पाह्यस्मान्
हे राजा वरुण देव! मैं भीरू  हूँ। मुझसे जो मित्र लोग स्वप्न की भयंकर बातें करते हैं, उनसे मुझे बचायें। डाकू या वृक मुझे मारना चाहते हैं। उससे मुझे बचायें।[ऋग्वेद 2.28.10]
हे वरुण! मैं भय ग्रस्त हूँ। मित्रों द्वारा बतायी गयी भयंकर स्वप्नों की बातों से मेरी सुरक्षा करो। मैं उनमें न पड़ें। मुझे जो दस्यु समाप्त करना चाहे उससे भी सुरक्षा करो।
Hey Varun Dev! I am a coward. Save me from those who talk of dangerous events of dreams. Protect me from the dacoits and the wolves. 
माहं मघोनो वरुण प्रियस्य भूरिदाव्न आ विदं शूनमापेः। 
मा रायो राजन्त्सुयमादव स्थां बृहद्वदेम विदथे सुवीराः
हे वरुण देव! मुझे किसी धनी और प्रभूत दानशील व्यक्ति के पास जाति की दरिद्रता की बात न कहनी पड़े। हे राजन्। मुझे आवश्यकता पड़ने पर धन का अभाव न हो। हम पुत्र और पौत्र से युक्त होकर इस यज्ञ में प्रभूत स्तुति करें।[ऋग्वेद 2.28.11]
हे वरुण! किसी उदार, धनिक को मुझे अपनी गरीबी की कहानी न सुनानी पड़े। आवश्यक धन की कभी कमी न पड़े। हम संतान वाले होकर यज्ञ में वंदना करेंगे।
Hey Varun Dev! I should not be compelled to narrate my poverty or caste details in front of a wealthy person who make donation-charity. I should never face scarcity of money. We should organise-arrange a great Yagy having blessed with sons and grand sons.
ऋग्वेद संहिता, द्वितीय मण्डल सूक्त (29) :: ऋषि :-  कूर्म, गार्त्समद, गृत्समद, देवता :- विश्वेदेवा, छन्द :- त्रिष्टुप्।
घृतव्रता आदित्या इषिरा आरे मत्कर्त रहसूरिवागः। 
शृण्वतो वो वरुण मित्र देवा भद्रस्य विद्वाँ अवसे हुवे वः
हे व्रतकारी, शीघ्र गमनशील और सबके प्रार्थनीय आदित्यों! गुप्त प्रसविनी स्त्री के गर्भ की तरह मेरा अपराध दूर देश में करें। हे मित्र और वरुण देव! आपके मंगलकार्य को मैं जानकर रक्षा के लिए आपका आवाहन करता हूँ। आप हमारी स्तुति श्रवण करें।[ऋग्वेद 2.29.1]
हे व्रत परिपूर्ण देवताओं। तुम शीघ्रगामी और सभी के द्वारा वंदना किये जाते हो। गुप्त रहस्यों को छिपाने के तुल्य मेरा अपराध दूर करो। हे सखा। हे वरुण! मैं तुम दोनों की कल्याणकारी भावनाओं को जानता हूँ, इसलिए सुरक्षा के लिए आह्वान करता हूँ। हमारे श्लोकों को सुनो।
Hey quickly acting, revered-honourable prayer-worship deserving Aditys! Pardon us like a pregnant woman hide her pregnancy. Hey Mitr & Varun!  I invite-invoke you due to your nature of helping-benefiting. Respond to our prayers.
Adity, upholders of pious works and to be sought by all; remove sin far from me, like a woman delivered in secret; knowing, Mitr, Varun and demigods, the good that follows from your hearing our prayers, I invoke you for our protection.
यूयं देवाः प्रमतिर्यूयमोजो यूयं द्वेषांसि सनुतर्युयोत। 
अभिक्षत्तारो अभि च क्षमध्वमद्या च नो मृळयतापरं च
हे शत्रु हिंसक देवगण! आप उत्तम बुद्धि युक्त और तेजस्वी हैं। आप द्वेषियों को हमारे पास से अलग करें। शत्रुओं को पराजित करें। वर्तमान और भविष्य में हमें सुखी प्रदान करें।[ऋग्वेद 2.29.2] 
हे देवो! तुम अनुग्रह पूर्वक बल प्रदान करो। शत्रुओं को हमसे दूर करो। हिंसा करने वाले शत्रुओं को हटाओ। वर्तमान तथा भविष्य में मुझे सुख-प्रदान करो।
Hey enemy killer demigods! You are blessed with excellent intelligence and aura. Repel those who are envious with us. Defeat the enemy. Grant us comforts-pleasure now and then in future. 
किमू नु वः कृणवामापरेण किं सनेन वसव आप्येन। 
यूयं नो मित्रावरुणादिते च स्वस्तिमिन्द्रामरुतो दधात
हे देवगण! अब और पीछे आपका कौन कार्य हम सिद्ध कर सकेंगे? वसु और सनातन प्राप्तव्य कार्य द्वारा हम आपका कौन कार्य सिद्ध कर सकेंगे? हे मित्रा वरुण, अदिति, इन्द्र और मरुद्रण! आप हमारा मंगल करें।[ऋग्वेद 2.29.3] 
हे विश्वे देवताओं! हम तुम्हारा कौन सा कार्य साधन कर सकेंगे। हे मित्र, वरुण, अदिति, इन्द्र और मरुतो ! हमारा कल्याण करो। 
Hey demigods-deities! What can be achieved-accomplished presently and in future?! Hey Mitr, Varun, Aditi, Indr and Marud Gan! Do good to us. 
हये देवा यूयमिदापयः स्थ ते मृळत नाधमानाय मह्यम्। 
मा वो रथो मध्यमवाळृते भून्मा युष्मावत्स्वापिषु श्रमिष्म
हे देव गण! आप ही हमारे मित्र हैं। हम आपकी प्रार्थना करते हैं। कृपा करें। हमारे यज्ञ में आने में आपका रथ की गति मन्द न हो। आपके समान मित्र पाकर बिना थके हम आपकी स्तुतियाँ करते रहें।[ऋग्वेद 2.29.4] 
हे देवो! तुम हमारे सखा हो। हम पर कृपा दृष्टि रखो। हम तुम्हारी प्रार्थना करते हैं। हमारे यज्ञ में पधारते समय तुम्हारे रथ की गति धीमी न पड़े। तुम्हारी मित्रता प्राप्त कर थकावट से न घिरे।
Hey demigods-deities! You are our friend. We worship-pray you. Have pity-mercy on us. Your charoite should not deaccelerate, while reaching our Yagy site. We will continue praying you untired. 
प्र व एको मिमय भूर्यागो यन्मा पितेव कितवं शशास। 
आरे पाशा आरे अघानि देवा मा माधि पुत्रे विमिव ग्रभीष्ट
हे देवगण! आप लोगों के बीच एक मनुष्य होकर मैंने अनेक प्रकार के पाप नष्ट कर डाले। जिस प्रकार से पिता कुमार्गगामी पुत्र को उपदेश देता है, उसी प्रकार से आपने मुझे उपदेश दिया। हे देवो! सभी पाश और पाप मुझ से दूर हों। जिस प्रकार व्याघ्र बच्चे के सामने पक्षी को मारता है, उसी प्रकार मुझे न मारना।[ऋग्वेद 2.29.5]
हे देवताओं! तुम्हारे सहारे मैंने अनेक पापों को समाप्त कर डाला। कुमार्गगामी पुत्र को पिता द्वारा उपदेश देने के समान तुमने मुझे शिक्षा दी। हमारे सभी पाप और बंधन हट जायें। तुम व्याध द्वारा पक्षी को मारने के समान मुझे मत मारना।
Hey demigods-deities! I vanished my several kinds of sins being in your pious-virtuous, righteous company. You advise me like a father who guides his misguided son. Hey demigods-deities! Let all kinds of bonds-ties & sins keep off me. Do not kill me like the tiger who kills the birds in front of progeny. 
अर्वाञ्च्चो अद्या भवता यजत्रा आ वो हार्दि भयमानो व्ययेयम्। 
त्राध्वं नो देवा निजुरो वृकस्य त्राध्वं कर्तादवपदो यजत्राः
हे पूजनीय देवो! आज हमारे सामने पधारें। मैं डरकर आपके हृदयावस्थित आश्रय को प्राप्त करू। हे देवो! वृक के हाथ से मारे जाने से हमें बचावें। हे पूजनीयो! जो हमें विपत्ति में फेंक देता है, उसके हाथों से हमें बचायें।[ऋग्वेद 2.29.6]
हे पूजनीय विश्वेदेवो! हमारे तुल्य प्रत्यक्ष होओ। मैं भय ग्रस्त हूँ। अतः आपका आश्रय चाहता हूँ। हमको दस्यु द्वारा हिंसित होने से बचाओ। संकट में डालने वालों से हमारी सुरक्षा करो।
Hey revered-honourable demigods-deities! Come to our house, invoke in front of us. I am afraid and seek shelter-protection under you. Hey demigods-deities! Protect us from being killed by the wolf. Hey revered! Protect us from those who  push us into trouble. 
माहं मघोनो वरुण प्रियस्य भूरिदाव्य आ विदं शूनमापेः। 
मा रायो राजन्त्सुयमादव स्थां बृहद्वदेम विदथे सुवीराः
हे वरुण देव! मुझे किसी धनी और प्रभूत दानशील व्यक्ति से अपनी जाति की दरिद्रता की बात न कहनी पड़े। हे राजन्! मुझे नियमित या आवश्यक धन का अभाव न हो। हम पुत्र और पौत्रों से युक्त होकर इस यज्ञ में आपका स्तवन करें।[ऋग्वेद 2.29.7] 
हे वरुण! मुझे किसी उदार, धनवान के सामने अपनी निर्धनता की कथा न कहनी पड़े। मुझे धन की कमी न हो। हम संतानयुक्त हुए इस यज्ञ में तुम्हारी प्रार्थना-भक्ति करें।
Hey Varun Dev! I should not be compelled to reveal my poverty in front of a liberal or a rich person. Hey king! I should never face poverty. We should be blessed to join the Yagy with our sons & grandsons and worship you.
 ऋग्वेद संहिता, द्वितीय मण्डल सूक्त (30) :: ऋषि :-  गृत्समद, भार्गव, शौनक, देवता :- इन्द्र, छन्द :- जगती, त्रिष्टुप्।
ऋतं देवाय कृण्वते सवित्र इन्द्रायाहिघ्ने न रमन्त आपः।
अहरहर्यात्यक्तुरपां कियात्या प्रथमः सर्ग आसाम्
वृष्टिकारी, द्युतिमान्, सबके प्रेरक और वृत्र नाशक इन्द्र देव के निमित्त यज्ञादि कर्म कभी नहीं रुकते। जब से यज्ञादि कर्म प्रचलित हुए, तब से याजक गण निरन्तर यज्ञ करते हैं।[ऋग्वेद 2.30.1]
वर्षक, तेजस्वी, शिक्षाप्रद वृत्रनाशक, इन्द्रदेव के यज्ञ के लिए जल नहीं रुकता। उसका श्लोक गतिमान रहता है। उसकी सृष्टि अन्य कर्म के लिए नहीं हुई थी।
Yagy in the honour of Indr Dev, who causes rains, possess aura-energy, inspires all and killed Vrata Sur; never stops. Ever since the Yagy started by the worshipers, its continuing till today.
यो वृत्राय सिनमत्राभरिष्यत्प्र तं जनित्री विदुष उवाच।
पथो रदन्तीरनु जोषमस्मै दिवदिवे धुनयो यन्त्यर्थम्
जिस व्यक्ति ने वृत्रासुर को अन्न प्रदान किया, उसकी बात माता अदिति ने इन्द्र से कह ने दी। इन्द्र की इच्छा के अनुसार नदियाँ अपना मार्ग बनाती हुई, प्रतिदिन समुद्र की ओर जाती है।[ऋग्वेद 2.30.2] 
वृत्र को पुष्ट बनाने वाले की बात अदिति ने इन्द्रदेव को बतायी। ये नदियाँ प्रतिदिन अपने रास्ते पर चलती हुई इन्द्रदेव की कामनानुसार समुद्र में प्रस्थान करती हैं। 
Dev Mata Aditi revealed the truth pertaining to nourishing Vrata Sur. Rivers flow towards the ocean as per the desire of Indr Dev, carving-make their own way. 
ऊर्ध्वो ह्यस्थादध्यन्तरिक्षेऽधा वृत्राय प्र वधं जभारम। 
मिहं वसान उप हीमदुद्रोत्तिग्मायुधो अजयच्छत्रुमिन्द्रः
चूँकि अन्तरिक्ष में उठकर वृत्रासुर ने सभी पदार्थों को घेर डाला था, इसलिए इन्द्रदेव ने ने उसके ऊपर वज्र फेंका। वृष्टिप्रद मेघ से आच्छादित होकर वृत्रासुर इन्द्र के सामने दौड़ा। उसी समय तीक्ष्णायुधधारी इन्द्रदेव ने उसको पराजित कर दिया।[ऋग्वेद 2.30.3]
अंतरिक्ष में उठाकर सभी पदार्थों को आच्छादित कर लेने के कारण वृत्र पर इन्द्र ने वज्र चलाया। वृष्टिप्रद मेघ से ढका हुआ वृत्र इन्द्र के सम्मुख आया तब तीक्ष्ण शस्त्र वाले इन्द्र ने उसे पराजित किया।
Vrata Sur had cornered all material objects in the space, hence  Indr Dev launched-throw his Vajr over him. Surrounded by the clouds causing rains, Vrata Sur attacked Dev Raj Indr. At that moment, Dev Raj Indr defeated him. 
बृहस्पते तपुषाश्नेव विध्य वृकद्वरसो असुरस्य वीरान्। 
यथा जघन्थ घृषता पुरा चिदेवा जहि शत्रुमस्माकमिन्द्र
हे बृहस्पति देव! वज्र के समान दीप्त अस्त्र से वृक द्वारा असुर के पुत्रों को नष्ट करें। हे इन्द्र देव! जिस प्रकार प्राचीन समय में आपने शक्ति द्वारा शत्रुओं को पराजित किया, उसी प्रकार इस समय हमारे शत्रुओं का विनाश करें।[ऋग्वेद 2.30.4]
हे बृहस्पते! वज्र के तुल्य दमकते हुए आयुध से वृत्र द्वारा दस्यु पुत्रों को समाप्त करो। हे इन्द्रदेव! जैसे प्राचीन काल में तुमने अपनी शक्ति से शत्रुओं को मृत किया था, वैसे ही हमारे शत्रु को समाप्त करो।
Hey Brahaspati Dev! Destroy the sons of the Demon by using Astr shining like the Vajr-thunder volt, through the lupine-wolf. Hey Indr Dev! Defeat our enemy through your power-might, as you did in ancient times.
Pierce, Brahaspati, with a radiant shaft,  as with a thunderbolt, the sons of the asur guarding his gates; in like manner as you did formerly slay Vrat by your own prowess, so do you now destroy our enemy.
अव क्षिप दिवो अश्मानमुच्चा येन शत्रुं मन्दसानो निजूर्वाः। 
तोकस्य सातौ तनयस्य भूरेरस्माँ अर्धं कृणुतादिन्द्र गोनाम्
हे इन्द्र देव! आप ऊपर रहते हैं। स्तोताओं के स्तव करने पर आपने जिसके द्वारा शत्रु का विनाश किया, वही पत्थर की तरह कठिन वज्र द्युलोक से नीचे की ओर फेकें। जिससे हम लोग यथेष्ट पुत्र, पौत्र और गोधन प्राप्त कर सकें, वैसी ही आप हमें समृद्धि प्रदान करें।[ऋग्वेद 2.30.5]
हे इन्द्र! तुम उन्नतशील हो। वंदना करने वालों के मंत्र से तुमने जिस पाषाण वज्र से शत्रुओं का वध किया था, उसी वज्र को नभ से नीचे की ओर चलाओ। जिस समृद्धि को पाकर हम पुत्र-पौत्र तथा गौ आदि धन प्राप्त कर सकें, वह हमें प्रदान करो।
Hey Indr Dev! You reside in the heaven. Launch-throw the Vajr, strong-tough like a rock, over the places below the sky, the way you destroyed the enemy on being requested-prayed by the devotees. Ensure our growth, so that we can acquire the desired sons, grand sons and cows. 
प्र हि क्रतुं वृहथो यं वनुथो रध्रस्य स्थो यजमानस्य चोदौ।
इन्द्रासोमा युवमस्माँ अविष्टमस्मिन्मयस्थे कृणुतमु लोकम्
हे इन्द्र देव और सोम देव! जिसकी आप हिंसा करते हैं, उस द्वेषी का उन्मूलन करें। यजमानों को शत्रुओं के विरुद्ध प्रेरित करें। आप मेरी रक्षा करें। इस भय स्थान को भय रहित बनावें।[ऋग्वेद 2.30.6]
हे इन्द्र! हे सोम! तुम जिसे समाप्त करना चाहते हो, उसका समूल नाश करो। शत्रुओं के विरुद्ध अपने तपस्वियों को शिक्षा दो। तुम मेरी सुरक्षा करो तथा इस स्थान से भय को दूर भगाओ।
Hey Indr Dev & Som Dev! Kill the person who envy you, along with his roots-base. Incite the Ritviz against the enemy. Protect me. Make this place safe.
INCITE :: उत्तेजित, प्रवृत्त करना; agitate, rouse, excite, stimulate, quicken, dispose, urge, influence.
One must pray to the demigods-deities as was done by Arjun on being asked to do by Bhagwan Shri Krashn in the battle field, when he invoked Maa Bhagwat Kali. But he should be prepared to handle the enemy and ready to repel. The priest just prayed to the God to protect them from the attack of Muslim invaders in Som Nath temple. Be Arjun, rise against the enemy of the humanity.
न मा तमन्न श्रमन्नोत तन्द्रन्न वोचाम मा सुनोतेति सोमम्।
यो मे पृणाद्यो ददद्यो निबोधाद्यो मा सुन्वन्तमुप गोभिरायत्
हे इन्द्र देव! मुझे क्लेश न दें, श्रान्त न करें, आलसी न बनावें। हम कभी यह न कहे कि सोमाभिषव न करें। यह मेरी अभिलाषा पूर्ण करते, अभीष्ट दान करते, यज्ञ को जानते और गो समूह लेकर अभिषव कर्ता के पास उपस्थित होते हैं।[ऋग्वेद 2.30.7]
हे इन्द्र देव! तुम कलेश से बचाकर आलस्य को दूर करो। हम सोम के अभिष्व का हमेशा समर्थन करें। तुम मेरा अभीष्ट पूर्ण करते और मनवांछित फल प्रदान करते हो। तुम यज्ञ को जानकर अभिषव करने वालों के समान गौ सहित आते हो।
Hey Indr Dev! Do not torture-disturb me. Do not make make me mentally imbalanced. Protect me from laziness. We should never obstruct any one from performing either Som Yagy or extracting Somras for the demigods-deities. You invoke in front of the person who has bathed for the Yagy-you are aware of, having accomplished his desire and granting rewards with cows & making donations.
सरस्वति त्वमस्माँ अविड्ढि मरुत्वती घृषती जेषि शत्रून्।
त्यं चिच्छर्धन्तं तविषीयमाणमिन्द्रो हन्ति वृषभं शण्डिकानाम्
हे सरस्वती देवी! आप हमें बचावें। मरुद्गणों के साथ एकत्रित होकर दृढ़तापूर्वक शत्रुओं पर विजय प्राप्त करें। इन्द्र देव ने शूराभिमानी और शण्डिकों के प्रधान (शण्डामर्क) को मारा था।[ऋग्वेद 2.30.8]
हे सरस्वती! हमारी सुरक्षा करो। मरुद्गण युक्त पधारकर शत्रुओं पर विजय प्राप्त करो। इन्द्रदेव ने धीरता का अहंकार करने वाले युद्ध के अभिलाषी का वध किया था।
Hey Mata Saraswati! Protect-shelter us. Attain victory over the enemy joining the Marud Gan with firm determination. Indr Dev killed the egoistic Shandik-Shandamark and the head of Shandiks.
यो नः सनुत्य उत वा जिघत्नुभिख्याय तं तिगितेन विध्य।
बृहस्पत आयुधैर्जेषि शत्रून्द्रुहे रीषन्तं परि धेहि राजन्
हे बृहस्पति देव! जो अन्तर्हित देश में छिपकर हमारा प्राण नाश करने का अभिलाषी है, उसे खोजकर तीक्ष्ण हथियार से मारे। आयुध से हमारे शत्रुओं को जीते। हे राजा बृहस्पति! द्रोहकारियों के विरुद्ध प्राणनाशक वज्र चारों ओर फेंके।[ऋग्वेद 2.30.9]
हे बृहस्पते! जो अदृश्य होकर हमें मारना चाहता हो उसे ढूंढकर अपने शत्रुओं पर सभी ओर से वज्र का प्रहार करो।
Hey Brahaspati Dev! Kill those who wish to kill us, hiding themselves, with sharp weapons. Win our enemy with the help of arms & ammunition. Hey king Brahaspati! Launch-throw, project killer Vajr over the enemy.
अस्माकेभिः सत्वभिः शूर शूरैर्वीर्या कृधि यानि ते कर्त्वानि।
ज्योगभूवन्ननुधूपितासो हत्वी तेषामा भरा नो वसूनि
हे शूर इन्द्र देव! हमारे शत्रुहन्ता वीरों के साथ अपने सम्पादनीय वीर कार्यों को सम्पन्न करें। हमारे शत्रु बहुत दिनों से गर्वपूर्ण हो रहे हैं। उनका विनाश कर उनका धन हमें प्रदान करें।[ऋग्वेद 2.30.10]
हे वीर इन्द्र शत्रुओं का संहार करने वाले हमारे वीर कर्मों का संपादन करो। हमारे शत्रुओं ने सिर उठा लिया। उनका संहार करके उनका धन हमें प्रदान करो।
Hey mighty-brave Indr Dev! Accomplish the job-act of bravery along with our warriors, who wish-have to eliminate the enemy. Our enemies are becoming arrogant for long. Destroy them and grant us riches.
तं वः शर्धं मारुतं सुम्नयुर्गिरोप ब्रुवे नमसा दैव्यं जनम्।
यथा रयिं सर्ववीरं नशामहा अपत्यसाचं श्रुत्यं दिवेदिवे
हे मरुद्गणों! हम सुख की अभिलाषा से स्तुति और नमस्कार द्वारा आपका दैव और प्रादुर्भूत तथा एकत्र बल की स्तुति करते हैं, ताकि उसके द्वारा हम प्रतिदिन वीर अपत्य वाले होकर प्रशंसनीय धन का उपभोग कर सकें।[ऋग्वेद 2.30.11] 
हे मरुद्गण सुख प्राप्ति की अभिलाषा से नमस्कार परिपूर्ण वंदना द्वारा हम तुम्हारी अद्भुत शक्ति का पूजन करते हैं। जिसके द्वारा हम पराक्रम वाले होकर प्रशंसा प्राप्त करें और समृद्धि का भोग करने में समर्थवान हों।
अपत्य :: संतान, वंशज; progeny, offspring.
Hey Marud Gan! We pray-worship the might and amazing divine powers, with the motive-desire of comforts & pleasure, so that we can enjoy-utilize the riches with our progeny. 
ऋग्वेद संहिता, द्वितीय मण्डल सूक्त (31) :: ऋषि :- गृत्समद, भार्गव, शौनक, देवता :- विश्वे देव, छन्द :- जगती, त्रिष्टुप्।
ऋषि :-  
अस्माकं मित्रावरुणावतं रथमादित्यै रुद्रैर्वसुभिः सचाभुवा। 
प्र यद्वयो न पप्तन्वस्मनस्परि श्रवस्यवो हृषीवन्तो वनर्षदः
जिस समय हमारा स्थ अन्नाभिलाषी, मदमत्त और वनों में रहने वाले पक्षियों की तरह निवास स्थान से दूसरे स्थान को जाता है, उस समय हे मित्र और वरुण देव! आप लोग आदित्य, रुद्र और वसुओं के साथ मिलकर उसकी रक्षा करते हैं।[ऋग्वेद 2.31.1]
अन्न को इच्छा से जंगलों में घूमने वाले पक्षियों के समान हमारा रथ एक दूसरे जगह को ग्रहण होता है। हे मित्रा-वरुण! आदित्य, रुद्र और वसुओं से युक्त तुम उस समय हमारे उस रथ की सुरक्षा करते हो। (यहाँ रथ से तात्पर्य मनुष्यों के शरीर से है)।
Hey Mitr & Varun Dev! You protect our charoite when it moves from one place to another, like the birds, in search of food grains in the forests, along with Adity, Rudr and the Vasus. 
Here the charoite represents the human body.
अध स्मा न उदवता सजोषसो रथं देवासो अभि विक्षु वाजयुम्। 
यदाशवः पद्याभिस्तित्रतो रजः पृथिव्याः सानौ जङ्घानन्त पाणिभिः
हे समान प्रीति वाले देवों! इस समय हमारे रथ की रक्षा करें। वह अन्न खोजने के लिए देश में गये हैं। इस रथ में जोते हुए घोड़े अपने पैरों से मार्ग तय करते और विस्तीर्ण भूमि के उन्नत प्रदेश पर आघात करते हैं।[ऋग्वेद 2.31.2]
हे समान स्नेह वाले देवताओं! अन्न के लिए गये हुए हमारे रथ की रक्षा करो। इस रथ में जुते हुए घोड़े पाँवों से चलते हुए ऊँची जमीन पर भी आरूढ़ हो जाते हैं।
Hey demigods-deities possessing equal affection towards us! Protect our charoite which has moved away in search of food grains. The horses deployed in this charoite strike the elevated regions (rocks, hills, mountains) with their hoofs while moving.
उत स्य न इन्द्रो विश्वचर्षणिर्दिवः शर्धेन मारुतेन सुक्रतुः। 
अनु नु स्थात्यवृकाभि रूतिभी रथं महे सनये वाजसातये
सर्वदर्शी इन्द्र देव मरुतों के पराक्रम से उक्त कर्म सम्पन्न करके स्वर्ग लोक से आते हुए हिंसा शून्य आश्रय के द्वारा महाधन और अन्न प्राप्ति के लिए हमारे रथ के अनुकूल हो।[ऋग्वेद 2.31.3]
सबको देखने वाले इन्द्र मरुद्गण की सहायता से दिव्यलोक में जाते हुए अपनी अहिंसा रहित शरण द्वारा परम यश और अन्न की प्राप्ति के साधन हमारे रथ के उपयुक्त हों।
Let Indr Dev watching every one, be favourable to our charoite, which is out for acquisition of unlimited wealth and food  grains, associated with the valour of Marud Gan, involving deeds free from violence, while coming from the heavens.
उत स्य देवो भुवनस्य ग्राभिः सजोषा जूजुवद्रथम्। 
इळा भगो बृहद्दिवोत रोदसी पूषा पुरंधिरश्विनावधा पती
संसार के सेवनीय वे त्वष्टा देव, देवपत्नियों के साथ प्रीति युक्त होकर हमारे रथ को चलावे। इला, महादीप्तिमान् भग, द्यावा पृथ्वी, बहुधी पूषा और सूर्या के स्वामी दोनों अश्विनी कुमार हमारा यह रथ चलावें।[ऋग्वेद 2.31.4]
सूर्या :: सूर्य की पत्नी, नवविवाहिता स्त्री, नवोढ़ा; newly wed woman.
वे संसार द्वारा सेवा करने योग्य त्वष्टादेव, देव-नारियों से युक्त रथ को गति प्रदान करें, इला, तेजस्वी, भग, अम्बर, धरा, पूषा और सूर्य के स्वामी अश्विद्वय हमारे रथ का संचालन करें।
Let Twasta Dev, deserving service by the universe, operate our charoite by becoming friendly-affectionate with the wives of the demigods-deities. Ila, extremely-highly brilliant Bhag, sky and the earth, Pusha and the husband of newly wed women, Ashwani Kumars operate our charoite.
उत त्ये देवी सुभगे मिथूदृशोषासानक्ता जगतामपीजुवा। 
स्तुषे यद्वां पृथिवि नव्यसा वचः स्थातुश्च वयस्त्रिवया उपस्तिरे
प्रसिद्ध, द्युतिमती, सुभगा, परस्पर दर्शिनी और जीवों की प्रेरयित्री उषा और रात्रि हमारा रथ चलावें। हे आकाश और पृथ्वी! आप दोनों की नये स्तोत्र से स्तुति करता हूँ। स्थावर ब्रीहि आदि अन्न देता हूँ। औषधि, सोम और पशु मेरे तीन प्रकार के धन हैं।[ऋग्वेद 2.31.5]
प्रसिद्ध, तेजस्विता, सुन्दर परस्पर देखने वाले प्राणधारियों को मार्गदर्शन देने वाला उषा और रात हमारे रथ को गति प्रदान करें। हे आकाश! हे पृथ्वी! नए श्लोकों से तुम्हारी वंदना करता हूँ। अन्नरूपी हवि प्रदान करता हूँ। औषधि, सोम, पशु में तीन प्रकार के धन मेरे पास हों।
Let the famous, lucky, shinning-brilliant looking at other, inspiring the living beings, Usha and Night drive our charoite. Hey Akash-Sky and Prathvi-Earth! I am praying-worshiping you with a new composition-hymn. I make offerings of food grains to you. I should possess three kinds of wealth viz. medicines, Som and cattle. 
उत वः शंसमुशिजामिव श्मस्यहिर्बुध्न्योज एकपादुत। 
त्रित ऋभुक्षाः सविता चनो दधेऽपां नपादाशुहेमा धिया शमि
हे देवगण! आप हमारी स्तुति की इच्छा करें। हम आपको स्तुति करने की इच्छा करते है। अन्तरिक्ष जात अहि देवता, सूर्य, त्रित, उरु निवास इन्द्र और सविता हमें अन्न प्रदान करें। शीघ्रगामी जल नप्ता हमारी स्तुति से प्रसन्न हो।[ऋग्वेद 2.31.6]
हे देवताओं! तुम हमारी वंदना चाहते हो। हम भी तुम्हारी कृपा चाहते हैं। अंतरिक्ष के देवता अहि, सूर्य, त्रित, इन्द्रदेव और सविता हमको अन्न प्रदान करें। द्रुतगामी अग्नि देव हमारे श्लोकों से खुशी को प्राप्त हों।
Hey demigods-deities! You should desire us to pray-worship you. Let us desire to worship-pray you. Let the demigods-deities Ahi, Sun, Trit, Indr Dev and Savita, present in the space-heavens grant us food stuff-grains. Let fast moving Agni Dev-fire become happy-pleased with us.
एता वो वश्मयुद्यता यजत्रा अतक्षन्नायवो नव्यसे सम्। 
श्रवस्यवो वाजं चकानाः सप्तिर्न रथ्यो अह धीतिमश्याः
हे यजनीय विश्व देव गण! हम आपकी स्तुति करने की इच्छा करते हैं। आप सर्वपेक्षा स्तुति योग्य है। अन्न और बल के अभिलाषी मनुष्यों ने आपके लिए स्तुति बनाई है। रथ के अश्व की तरह आपका दल हमारे लिए आये।[ऋग्वेद 2.31.7]
हे यजन योग्य विश्वेदेवो! तुम पूजनीय हो। हम तुम्हारी वंदना करने के अभिलाषी रहते हैं। अन्न और शक्ति चाहने वाले मनुष्य ने तुम्हारा श्लोक रचा। रथ के अश्व के तुल्य तुम्हारी शक्ति हमको ग्रहण हो।
Hey honourable worship deserving Vish Dev! We wish to worship-pray you. You deserve worship the most. The humans desirous of having food grains and might, have composed prayers-hymns in your honour. Invoke in front of us like the horses of the charoite. 
ऋग्वेद संहिता, द्वितीय मण्डल सूक्त (32) :: ऋषि :- गृत्समद, भार्गव, शौनक, देवता :- द्यावा पृथिवी, छन्द :- जगती, अनुष्टुप्।
अस्य मे द्यवापृथिवी ऋतायतो भूतमवित्री वचसः सिषासतः। 
ययोरायुः प्रतरं ते इदं पुर उपस्तुते वसूयुर्वां महो दधे
हे द्यावा पृथिवी! जो स्तोता यज्ञ और आपको प्रसन्न करने की इच्छा करता है, उसके आप आश्रयदाता बनें। आपका अन्न सर्वापेक्षा उत्कृष्ट है। सभी द्यावा पृथिवी की स्तुति करते हैं। अन्न कामी होकर मैं महास्तोत्र द्वारा आपकी प्रार्थना करूँगा।[ऋग्वेद 2.32.1]
हे धावा-धरा! जो वंदना करने वाला, अनुष्ठान कर्म तुमको हर्षित करने की अभिलाषा करें, उसको शरण प्रदान करो। तुम्हारा अन्न महान हैं। सभी तुम्हारी प्रार्थना करते हैं। मैं भी महान श्लोक से तुम्हारी वंदना करूँगा। 
Hey space & earth! You grant shelter to the host, Ritviz who wish to appease you by conducting Yagy. Your food grains are superior to anyone else. Everyone worship you. I will request you for the sake of food grains with the help-recitation of an ultimate-excellent verse-Shlok, hymn.
मा नो गुह्या रिप आयोरहन्दभन्मा न आभ्यो रीरधो दुच्छुनाभ्यः। 
मा नो वि यौः सख्या विद्धि तस्य नः सुम्नायता मनसा तत्त्वेमहे
हे इन्द्र देव! शत्रु की गुप्त माया हमें दिन या रात में मारने न पावें। हमें कष्ट दात्री शत्रु सेना के वश में न करना। हमारी मैत्री न छोड़ना। हृदय में हमारे सुख की आकांक्षा करके हमारी मित्रता की स्मृति करना। आपसे हम यही कामना करते हैं।[ऋग्वेद 2.32.2]
हे इन्द्र देव! दिन या रात्रि में कभी भी शत्रु हम पर हावी न हो सके। त्रास देने वाले शत्रु सेना के वश में हमकों न करना। हमारी मित्रता को कभी समाप्त न करना। हमारी मित्रता को याद करते हुए हमें सुख प्रदान करना। हमारी इतनी सी ही मनोकामना है।
Hey Indr Dev! Do not let the enemy over power us. His illusionary powers should not kill us either during the day or night. Do not desert us. Recognise us as a friend with the desire of our welfare. This is our desire. 
अहेळता मनसा श्रुष्टिमा वह दुहानां धेनुं पिप्युषीमसश्चतम्।
पद्याभिराशुं वचसा च वाजिनं त्वां हिनोमि पुरुहूत विश्वहा
हे इन्द्र देव! प्रसन्न चित्त से सुखकारी, दुग्धवती, मोटी और मजबूत गाय को ले आना। आपको सब बुलाते हैं। आप बहुत तीव्र चलते हैं। आप द्रुतभाषी है। मैं दिन-रात आपकी स्तुति करता हूँ।[ऋग्वेद 2.32.3]
हे इन्द्र देव! मन में प्रसन्न हुए तुम दूध देने वाली हष्ट-पुष्ट धेनु को लेकर पधारना। तुम्हारा हम सभी आह्वान करते हैं, तुम द्रुतमान एवं द्रुतभाषी हो। मैं दिन रात्रि पूजन करता हूँ।
Hey Indr Dev! Come happily associated with fat milch cows. Everyone invite you. You move very fast. I recite prayers devoted to you, through out day & night.
राकामहं सुहवां सुष्टुती हुवे शृणोतु नः सुभगा बोधतु त्मना। 
सीव्यत्वपः सूच्याच्छिद्यमानया ददातु वीरं शतदायमुक्थ्यम्
मैं उत्कृष्ट स्तोत्र द्वारा आह्वान योग्य राका एवं पूर्णिमा देवी को बुलाता हूँ। वे सुभग हैं, हमारा आह्वान श्रवण करे। वे स्वयं हमारा अभिप्राय जानकर अच्छेद्य सूची के द्वारा हमारे कर्म को पूर्ण करें। वे हमें अक्रान्त, बहुधनवान् और वीर्यवान् पुत्र प्रदान करें।[ऋग्वेद 2.32.4]
सुभग :: भाग्यवान्, समृद्ध और सुखी; beautiful, lovely.
आह्वान के योग्य पूर्ण रात्रि का मैं आह्वान करता हूँ। वे शोभनीय हमारे आह्वान को सुनें। वे हमारी इच्छा को समझकर हमारे कर्मों को सुगठित करें और हमें असंख्य धन से परिपूर्ण पुत्र प्रदान करें।
I invoke the Raka, with the help of excellent Strotr-hymn. She is lucky-auspicious to us. Let her listen-respond to our requests. She should understand our purpose and accomplish our desires. She should grant us several sons along with wealth i.e., excellent and opulent descendants.  
  यास्ते राके सुमतयः सुपेशसो याभिर्ददासि दाशुषे वसूनि। 
ताभिनें अद्य सुमना उपागहि सहस्रपोषं सुभगे रराणा
हे ऐश्वर्य शालिनि राका देवी! आप जिस सुन्दर अनुग्रह में हव्य दाता को धन देती है, आज प्रसन्न चित्त से उसी अनुग्रह के साथ पधारें।  हे शोभन भाग्यवती! हजारों प्रकार से आप हमारी पुष्टि करें।[ऋग्वेद 2.32.5]
हे रात्रि देवी! तुम अपनी कृपा से ही हविदाता को श्रेष्ठ धन प्रदान करती हो। प्रसन्न मन से कृपा पूर्वक हमारे यहाँ पधारी हे सुन्दर भाग्यवान! तुम अनेक प्रकार से हमारी रक्षा करने वाली बनो।
Hey grandeur possessing Raka Devi (Goddess-deity of night)! Please come with the well wishes, grant wealth to the host-Ritviz making offerings to you. Hey glorious deity! Nourish us through thousands of means.  
सिनीवालि पृथुष्टुके या देवानामसि स्वसा। 
जुषस्व हव्यमाहुतं प्रजां देवि दिदिड्डि नः
स्थूल जाता सिनीवाली! (अमावस्या), आप देवों की बहन है। प्रदत्त हव्य की सेवा करें। हमें अपत्य प्रदान करें।[ऋग्वेद 2.32.6]
हे स्थूल अन्धकार परिपूर्ण रात्रि! तुम देवताओं की बहिन हो। हमारे को प्राप्त करो और हमको संतान प्रदान करो।
Hey dark night Amavasya! You are a sister of the demigods-deities. Accept our offerings and grant us progeny. 
या सुबाहुः स्वङ्गुरिः सुषूमा बहुसूवरी। 
तस्यै विश्पल्यै हविः सिनीवाल्यै जुहोतन
हे याजकों! जो सिनीवाली देवी उत्तम भुजाओं और सुन्दर अंगुलियों वालों, श्रेष्ठ पदार्थों व उत्तम प्रजाओं की जनक हैं, उन प्रजापालक सिनीवाली देवी के लिए हविष्यान्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 2.32.7]
घोर अंधकार परिपूर्ण रात्रि शोभनीय बाहु और उंगलियों वाली महान प्रकाट्य और बहु प्रजनन से परिपूर्ण हैं। संसार की सुरक्षा करने वाली उस देवी के लिए हवि प्रदान करो।
Hey worshipers! Let us make offerings to the Sini Vali Devi (Night), who grow excellent materials and protect the excellent beings; possessing beautiful fingers and nurturing the living beings. 
या गुङ्गुर्या सिनीवाली या राका या सरस्वती। 
इन्द्राणीमह्व ऊतये वरुणानीं स्वस्तये
जो गुङ्गु जो सिनीवाली, जो राका, जो सरस्वती आदि देवियों है, हम अपने संरक्षण के कामना से उनका आवाहन करते हैं। इन्द्राणि और वरुणानि देवियों को भी स्वतः कल्याण की कामना के लिए आवाहित करते हैं।[ऋग्वेद 2.32.8]
गुंगू, कुहू देव पत्नी अंधकार वाली रात और सरस्वती देवी का मैं आह्वान करता हूँ तथा सुख कामना से वरुणाग्नि का आह्वान करता हूँ।
We invoke the deities Gungu, Sini Vali, Raka, Saraswati for our protection. We invoke Indrani & Varunani too, for our welfare.
ऋग्वेद संहिता, द्वितीय मण्डल सूक्त (33) :: ऋषि :- गृत्समद, भार्गव, शौनक, देवता :- रुद्र, छन्द :- त्रिष्टुप्।
आ ते पितर्मरुतां सुम्नमेतु मा नः सूर्यस्य संदृशो युयोथाः।
अभि नो वीरो अर्वति क्षमेत प्र जायेमहि रुद्र प्रजाभिः
हे मरुतों के पिता रुद्र! आपका दिया हुआ सुख हमारे पास आवे। सूर्य दर्शन से हमें पृथक् न करें। हमारे वीर पुत्र शत्रुओं को पराजित करें। हे रुद्र देव! हम पुत्र और पौत्रों से युक्त हों।[ऋग्वेद 2.33.1] 
हे मरुद्गण के जन्मदाता इन्द्रदेव! तुम्हारा सुख दान हमें ग्रहण हो। हम सूर्य के दर्शन से कदापि वंचित न रहें। हमारे पराक्रमी पुत्र शत्रुओं से हमेशा विजयी रहें। हम असंख्य पुत्र-पौत्र वाले बनें।
Hey  Rudr, the father of Marud Gan! The pleasure granted by you should prevail with us. Do not isolate us from the Sun rise. Let our brave sons defeat the enemy. Hey Rudr Dev! Let us be blessed with sons & grand sons.
त्वादत्तेभी रुद्र शंतमेभिः शतं हिमा अशीय भेषजेभिः।
व्यस्मद्द्द्वेषो वितरं व्यंहो व्यमीवाश्चातयस्वा विषूचीः
हे रुद्र देव! हम आपकी दी हुई सुखकारी औषधि के द्वारा सौ वर्ष जीवित रहें। हमारे शत्रुओं का विनाश करें, हमारा पाप सर्वांशतः दूर करें। शरीर में होने वाली समस्त व्याधियों को दूर करें।[ऋग्वेद 2.33.2]
हे रुद्र! हम तुम्हारे द्वारा प्रदत्त सुख देने वाली औषधि से सौ वर्ष की आयु ग्रहण करें। तुम हमारे शत्रुओं को समाप्त करो। हमारे पाप को बिल्कुल समाप्त कर दो। शरीर में विद्यमान समस्त व्याधियों को हमसे दूर रखो।
Hey Rudr Dev! Let us survive-live for hundred years by virtue of the beneficial medicine, given by you. Destroy our enemies. Remove our sins completely. Keep off all ailments-diseases from us.
श्रेष्ठो जातस्य रुद्र श्रियासि तवस्तमस्तवसां वज्रबाहो।
पर्षि णः पारमंहसः स्वस्ति विश्वा अभीती रपसो युयोधि
हे वज्रबाहु रुद्र देव! ऐश्वर्य में आप सबसे श्रेष्ठ है। प्रवृद्धों में आप अतीव प्रवृद्ध हैं। हमें में पाप के उस पार ले चलें, जिससे हमारे पास पाप न आ पावें।[ऋग्वेद 2.33.3]
प्रवृद्ध :: अतिशय वृद्धि को प्राप्त, प्रौढ़; बहुत अधिक बढ़ा हुआ, खूब पक्का, फैला हुआ, विस्तृत। अयोध्या के राजा रघु का एक पुत्र जो गुरु के शाप से 12 वर्षों के लिए राक्षस हो गया था। तलवार चलाने के 32 ढंगों या हाथों में से एक जिसे प्रसृत भी कहते हैं; aged. 
हे रुद्र! तुम ऐश्वर्यवानों में उत्तम हो। तुम्हारी भुजा में वज्र रहता है। तुम अत्यन्त वृद्धि को प्राप्त होओ। तुम हमें पाप से मुक्त कराओ।
Hey Rudr Dev, possessing strong arms like Vajr! You are best-excellent in grandeur. You should attain extreme growth. Remove our all sins. Protect us from sins.
मा त्वा रुद्र चुक्रुधामा नमोभिर्मा दुष्टुती वृषभ मा सहूती।
उन्नो वीराँ अर्पय भेषजेभिर्भिषक्तमं त्वा भिषजां शृणोमि
हे अभीष्ट वर्षी रुद्र देव! वैद्यों से भी उत्तम वैद्य के रूप में आप जानें जाते हैं अर्थात् आप वैद्यों में सर्वश्रेष्ठ है। इसलिए औषधियों के द्वारा हमारी संतान को बलवान् बनावें। हम झूठी और निन्दित स्तुतियों के द्वारा आपको क्रोधित न करें। साधारण लोगों के समान बुलाकर भी हम आपको क्रोधित न करें।[ऋग्वेद 2.33.4]
तुम अभिष्ट की वर्षा करने वाले हो। हम नियम-विरुद्ध प्रणाम एवं भ्रम युक्त वंदना तथा सहयोग का आह्वान कर तुम्हें रुष्ट न करें। तुम श्रेष्ठ भिषक हो। अतः औषधि से हमारी संतान को शक्तिशाली बनाओ।
Hey desire accomplishing Rudr Dev! You are best amongest the Vaedy-doctors. Make our progeny strong with medicines. We should not make you angry with false prayers-worship, flattery like a common man.
हवीमभिर्हवते यो हविर्भिरव स्तोमेभी रुद्रं दिषीय।
ऋदूदरः सुहवो मा नो अस्यै बभ्रु सुशिप्रो रीरधन्मनायै
जो रुद्र देव हव्य के साथ आह्वान द्वारा आहूत होते हैं, उनका स्तोत्र द्वारा मैं क्रोध दूर करूँगा। कोमलोदर, शोभन आह्वान वाले, वभ्रु (पीत) वर्ण और सुनासिक रुद्र देव हमारा वध न करें।[ऋग्वेद 2.33.5]
मैं हवि परिपूर्ण आह्वान से पुकारे जाने वाले रुद्र का आक्रोश वंदना द्वारा निवारण करूँगा। कोमल उदर, पीतरंग और सुन्दर नाक वाले शोभायमान रुद्र हमारी हिंसा न करें।
I will pray to Rudr Dev with the Strotr which will remove his anger. Soft belly, yellow coloured, possessing beautiful nose, Rudr should not kill us.
उन्मा ममन्द वृषभो मरुत्वान्त्वक्षीयसा वयसा नाधमानम्।
घृणीव च्छायामरपा अशीया विवासेयं रुद्रस्य सुम्नम्
मैं प्रार्थना करता हूँ कि अभीष्टवर्षी और मरुत वाले रुद्र देव मुझे दीप्त अन्न द्वारा तृप्त करें। जिस प्रकार धूप से पिड़ित मनुष्य छाया को आश्रित करता है, उसी प्रकार से मैं भी पाप शून्य होकर रुद्र प्रदत्त सुख प्राप्त कर रुद्रदेव की सेवा करूँगा।[ऋग्वेद 2.33.6]
मरुद्जनक अभिष्टवर्षी हैं। उत्तम अन्न प्रदान करने की उनसे विनती करता हूँ। धूप से व्यथित मनुष्य छाया की शरण प्राप्त करने के तुल्य मैं भी पाप प्रथक हुआ रुद्र का प्रदान किया हुआ सुख प्राप्त करुँगा। मैं उनकी सेवा करुँगा।
I pray to the accomplishment fulfilling-granting Rudr, the progenitor of Marud Gan, to satisfy me, with best food grains. I will serve Rudr Dev like the person facing Sun who find solace under shadow, having become sinless and attaining the pleasure granted by him.
क्वस्य ते रुद्र मृळयाकुर्हस्तो यो अस्ति भेषजो जलाषः।
अपभर्तारपसो दैव्यस्याभी नु मा वृषभ चक्षमीथाः
हे रुद्र देव! आपका वह सुखदाता हाथ कहाँ है, जिससे आप दवा तैयार करके सबको सुखी करते हैं। हे अभीष्ट वर्षी रुद्र देव! दैव पाप के विघातक होकर आप मुझे शीघ्र क्षमा करें।[ऋग्वेद 2.33.7]
हे रुद्र! तुम्हारा सुख का दान करने वाली बाहु कहाँ हैं? उसके द्वारा औषधि देते हुए सबको सुखी बनाओ। तुम अभिष्ट वर्षण में सक्षम हों। 
Hey Rudr Dev! Where is your arm with which you prepare comforting medicines. Hey desires-accomplishment granting Rudr Dev! Excuse me, sufferings from the sins, committed towards demigods-deities. 
प्र बभ्रुवे वृषभाय श्वितीचे महो महीं सुष्टुतिमीरयामि।
नमस्या कल्मलीकिनं नमोभिर्गृणीमसि त्वेषं रुद्रस्य नाम
हे वभ्रु वर्ण! अभीष्ट वर्षी और श्वेत आभा वाले रुद्र देव को लक्ष्य करके अतीव महती स्तुति का हम उच्चारण करते हैं। हे स्तोता! नमस्कार द्वारा तेजस्वी रुद्र की पूजा करें। हम उनके उज्ज्वल नाम का संकीर्तन करते हैं।[ऋग्वेद 2.33.8]
अभीष्ट वर्षा करने वाले पीत वर्ण और श्वेत आभायुक्त रुद्र के प्रति हम महत्वपूर्ण वाणी से वंदना करते हैं। हे स्तोता! तेजवान रुद्र को प्रणाम द्वारा पूजो। हम उनका गुणगान करते हैं। 
We pray-worship Rudr Dev with significant Stuti (prayers, hymns) who possess-has yellowish colour & aura and accomplish our desires. Hey Stota-worshiper! Let us worship-honour Rudr Dev with salutations. We sing his names.
स्थिरेभिरङ्गैः पुरुरूप उग्रो बभ्रुः शुक्रेभिः पिपिशे हिरण्यैः।
ईशानादस्य भुवनस्य भूरेर्न वा उ योषद्रुद्रादसुर्यम्
दृढांग बहुरूप, उम्र और वधु वर्ण रुद्र देव दीप्त और स्वर्ण के अलंकारों से सुशोभित होते हैं। रुद्र देव समस्त भुवनों के अधिपति और भर्ता है। उनका बल क्षीण नहीं होता।[ऋग्वेद 2.33.9]
अनेक रूप वाले दृढ़ शरीर वाले, विकराल, पीतवर्ण युक्त उज्ज्वल तेज से प्रकाशमान हैं। वे सभी भुवनों के स्वामी और पालन-पोषण करने वाले हैं। वे पराक्रम युक्त हैं।
Rudr Dev possess strong organs, appears in vivid-various shapes-forms, furious, has bright yellow aura. He supports all abodes (Heavens, earth and the nether world). His power-might never decays.
अर्हन्बिभर्षि सायकानि धन्वआर्हन्निष्कं यजतं विश्वरूपम्।
र्हन्निदं दयसे विश्वमभ्वं न वा ओजीयो रुद्र त्वदस्ति
हे पूजा योग्य रुद्र देव! आप धनुर्वाण धारी हैं। हे पूजार्ह! आप नाना रूपों वाले हैं और आपने पूजनीय निष्क को धारण किये हुए हैं। आप समस्त संसार की रक्षा करते हैं। आपकी अपेक्षा अधिक बलवान् कोई नहीं है।[ऋग्वेद 2.33.10]
निष्क शब्द का प्रयोग गले के हार के लिये किया गया है। भगवान् शिव के गले का हार नागराज वासुकि हैं।
निष्क एक  सोने का सिक्का जिसकी तौल 1 कर्ष या 16 माशा।
1 निष्क = 16 द्रम्य, 1 द्रम्य = 16 पण, 1 पण = 4 काकिणी, 1 काकिणी = 20 कौड़ी बतायी हैं। 1 निष्क = 20,480 कौड़ियाँ तथा 1 निष्क = 256 पण।[भास्कराचार्य-लीलावती] पहले कौड़ियाँ सबसे छोटे सिक्के की तरह प्रयुक्त होती थीं।
हे वसुधारी अर्चनीय रुद्र! तुम अनेक रूप में विद्यमान होकर सुरक्षा करते हो। तुम्हारे तुल्य बलिष्ठ अन्य कोई नहीं है।
Hey Rudr Dev! You deserve worship. You hold bow & arrow. You acquire different-varied shapes & sizes. You are holding Nag Raj Vasuki as your Necklace. You are protecting the whole world. None is mightier than you.
स्तुहि श्रुतं गर्तसदं युवानं मृगं न भीममुपहत्नुमुग्रम्
मृळा जरित्रे रुद्र स्तवानोऽन्यं ते अस्मन्नि वपन्तु सेनाः
हे स्तोता! विख्यात रथ पर आरूढ़, युवा, पशु की तरह भयंकर और शत्रुओं के विनाशक तथा उग्र रुद्र देव की स्तुति करें। हे रुद्र देव! स्तुति करने पर आप हमें सुख प्रदान करते हैं। आपकी सेना शत्रुओं का विनाश करती है।[ऋग्वेद 2.33.11]
हे प्रार्थनाकारी! प्रसिद्ध, रथ पर सवार हुए, विकराल रूप वाले, शत्रु संहारक जवान रुद्र का पूजन करो। हे रुद्र! तुम वंदना करने पर सुख प्रदान करने वाले हो। तुम्हारी सेना हमारे शत्रु का नाश करें। 
Hey devotees! Worship-pray to Rudr Dev, who is the destroyer (of the evil), riding a famous-glorious charoite, young, furious-dangerous like a beast. Hey Rudr Dev! You grant us pleasure on being worshiped. Let your army destroy the enemy. 
कुमारश्चित्पितरं वन्दमानं प्रति नानाम रुद्रोपयन्तम्।
भूरेर्दातारं सत्पतिं गृणीषे स्तुतस्त्वं भेषजा रास्यस्मे॥
जिस प्रकार आशीर्वाद देते समय पिता को पुत्र नमस्कार करता है, उसी प्रकार ही हे रुद्र देव! आपके आने के समय हम आपको नमस्कार करते हैं। आप बहुधन दाता और साधुओं के पालक हैं। स्तुति करने पर आप हमें औषधि प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 2.33.12]
जिस प्रकार पिता द्वारा आशीर्वाद देने पर पुत्र, प्रणाम करें, उसी प्रकार हे रुद्र! तुम्हारे आने पर हम तम्हें प्रणाम करते हैं। तुम विभिन्न धन को देने वाले सज्जनों के पालनहार हो।
Hey Rudr Dev! The manner in which a son salutes his father when he blesses him; in the same way we salute you when you come. You provide various kinds of riches and support the saintly people. You give us medicine, when we pray to you.
या वो भेषजा मरुतः शुचीनि या शंतमा वृषणो या मयोभु।
यानि मनुवृणीता पिता नस्ता शं च योश्च रुद्रस्य वश्मि
हे मरुतो! आपकी जो निर्मल औषधि है, हे अभीष्टवर्षी गण। आपकी जो औषधि अतीव सुखद है, जिस औषधि का हमारे पिता मनु ने चयन किया था, वही सुखकर और भय का नारा करने वाली औषधि हम चाहते हैं।[ऋग्वेद 2.33.13]
हे मरुद्गण! तुम्हारी पवित्र औषधि अत्यन्त सुख प्रदान करने वाली है। जिस औषधि की हमारे पूर्वज मनु ने खोज की थी, वह भय को पतन करने वाली थी। उसी औषधि की हम इच्छा करते हैं।
Hey desires-accomplishments fulfilling Marud Gan! We wish to have the medicines which is pure & comforting. We wish to have the same medicine which remove fear & was discovered by our father Manu. 
परि णो हेती रुद्रस्य वृज्याः परि त्वेषस्य दुर्मतिर्मही गात्।
अव्र स्थिरा मघवद्भ्य स्तनुष्व मीढ्वस्तोकाय तनयाय मृळ
रुद्र का हेति आयुध हमें छोड़ दे। दीप्त रुद्र की महती दुर्मति भी हमें छोड़ दे। हे सेचन समर्थं रुद्रदेव! धनवान् यजमान के प्रति अपने धनुष की ज्या शिथिल करें। हमारे पुत्र और पौत्रों को सुखी करें।[ऋग्वेद 2.33.14]
हेति :: वज्र, अस्त्र, भाला, घाव, चोट, सूर्य की किरण, आग की लपट, धनुष की टंकार, औजार, अंकुर। वह प्रथम राक्षस राजा जो मधुमास या चैत्र में सूर्य के रथ पर रहता है। यह प्रहेति का भाई और विद्युल्केश का पिता कहा गया है। 
सेनापति रुद्र का अस्त्र हम पर न पड़े। तेजस्वी रुद्र की भीषण क्रोध बुद्धि हमारी ओर न हो।
Let the weapons of Rudr Dev avoid us. His Astr should not fall over us. Keep of cord of your bow loose towards the wealthy-devotees. Make our sons & grandson happy-blessed.
May the javelin of Rudr Dev avoid us; may the great displeasure of the radiant deity pass away from us; showerer of benefits, turn away your strong bow from the wealthy offerors of oblations and bestow happiness upon our sons and grandsons.
एवा बभ्रो वृषभ चेकितान यथा देव न हृणीषे न हंसि।
हवनश्रुन्नो रुद्रेह बोधि बृहद्वदेम विदथे सुवीराः
हे अभीष्टवर्षी, वभ्रुवर्ण, दीप्तिमान्, सर्वज्ञ और हमारा आह्वान सुनने वाले रुद्र! हमारे लिए आप यहाँ ऐसी विवेचना करें कि हमारे प्रति कोई क्रोधित न हो, हमें कभी विनष्ट न करें। हम पुत्र और पौत्र वाले होकर इस यज्ञ में प्रभूत स्तुति करें।[ऋग्वेद 2.33.15]
है रुद्र! तुम पीत वर्ण वाले हमारे आह्वान को सुनते हो। हमारे पुत्र पौत्रों को सुख प्रदान करो। हम पुत्र-पौत्रादि सहित इस यज्ञ में वंदना उच्चारण करेंगे।
Hey accomplishments granting Rudr Dev! You are glorious, enlightened & your body possess yellow tinge. You listen-respond to our prayers. You should not be angry with us & destroy us. We will promote-conduct Yagy having been blessed with sons & grandsons. 
ऋग्वेद संहिता, द्वितीय मण्डल सूक्त (34) :: ऋषि :- गृत्समद, भार्गव, शौनक, देवता :- मरुत्, छन्द :- जगती, त्रिष्टुप्।
धारावरा मरुतो धृष्णवोजसो मृगा न भीमास्तविषीभिरर्चिनः।
अग्नयो न शुशुचाना ऋजीषिणो भृमिं धमन्तो अप गा अवृण्वत
जलधारा से मरुद्गण आकाश को छिपा लेते हैं। उनका बल दूसरे को पराजित करता है। वे पशु की तरह भयंकर हैं। वे बल द्वारा संसार को व्याप्त कर लेते हैं। वे अग्नि की तरह दीप्तिमान् और जल से परिपूर्ण है। वे भ्रमण कर्त्ता मेघ को इधर-उधर भेजकर जल को पृथ्वी पर गिराते है।[ऋग्वेद 2.34.1]
ये मरुद्गण जल धारा द्वारा आकाश को आच्छादित करते हैं। उनकी शक्ति शत्रु को पराजित करती है। वे पशु के समान विकराल हैं और संसार उनकी शक्ति द्वारा विद्यमान हैं। वे अग्नि के तुल्य प्रदीप्ति परिपूर्ण और जलमय हैं। वे गतिवान बादलों को प्रेरित करके वृष्टि करते हैं।
The Marud Gan hides the sky with water currents. Their strength is to defeat others-enemy. They are furious like the beasts. They pervade the universe with their might & power. They are shinning like fire and store-contain water. They shower rains over the earth by moving rain clouds from one place to another. 
द्यावो न स्तृभिश्चितयन्त खादिनो व्य१भ्रिया न द्युतयन्त वृष्टयः।
रुद्रो यद्वो मरुतो रुक्मवक्षसो वृषाजनि पृश्न्याः शुक्र ऊधनि
हे सुवर्ण हृदय मरुद्गणों! चूँकि सेचन-समर्थ रुद्र देव ने पृश्नि के निर्मल उदर से आपको उत्पन्न किये है; इसलिए, जैसे आकाश नक्षत्रों से सुशोभित होता है, वैसे ही आप भी अपने आभरण से सुशोभित होवें। आप शत्रुओं का नाश करने वाले और जल बरसाने वाले हैं। आप मेघस्थ विद्युत् की तरह शोभित होते हैं।[ऋग्वेद 2.34.2]
पृश्नि गर्भ :: पृश्नि गर्भ भगवान् श्री हरी विष्णु के अवतार हैं। इनके पिता का नाम सुतपा और माता का नाम पृश्नि था। स्वायम्भुव मन्वन्तर में सुतपा और पृश्नि ने घोर तपस्या कर भगवान् श्री हरी विष्णु से उनके समान पुत्र की इच्छा प्रकट की तब भगवान् ने इन्हें वर दिया कि वे तीन बार इनके पुत्र बनेंगे। स्वायम्भुव मन्वन्तर में इन्हें पृश्निगर्भ नामक पुत्र प्राप्त हुआ। सुतपा और पृश्नि ने दूसरा जन्म कश्यप और अदिति के रूप में पाया तब इन्हें वामन देव के रूप में संतान प्राप्ति हुई। द्वापरयुग में इन्होंने वासुदेव और देवकी के रूप में भगवान् श्री कृष्ण को संतान के रूप में पाया। पृश्नि गर्भ ने ही ध्रुव लोक का निर्माण किया, जहाँ बाद में ध्रुव जी को स्थान मिला।
हे निर्मल हृदय वाले मरुद्गण तुम रुद्र से पैदा हुए हो। नक्षत्रों से नभ के सुशोभित होने के समान अपने गुणों से तुम भी सुशोभित हो। तुम शत्रु का संहार करने वाले और जल को प्रेरणा देने वाले हो। मेघों से जैसे विद्युत शोभा पाती है, वैसे ही तुम शोभा को प्राप्त हो।
Hey Marud Gan possessing golden heart! You were produced from the ovum of Prashni by Rudr Dev. You should be placed like the constellations in the sky due to your qualities-traits. You are the destroyer of the enemy and inspire the clouds to rain. The way the thunder volt-electric spark is decorated in the sky is by the clouds, you too should decorated-be honoured.
उक्षन्ते अश्वाँ अत्याइवाजिषु नदस्य कर्णैस्तुरयन्त आशुभिः।
हिरण्यशिप्रा मरुतो दविध्वतः पृक्षं याथ पृषतीभिः समन्यवः
युद्ध में तुरंग की तरह मरुद्गण विशाल भुवन को सिक्त करते हैं। वे घोड़े पर चढ़कर शब्दायमान मेघ के कान के पास से होकर द्रुत वेग से जाते हैं। हे मरुतो! आप हिरण्य शिरस्त्राण वाले और समान क्रोध वाले हैं। आप वृक्ष आदि को कम्पित करते हैं। आप पृषती (बिन्दु चिह्नित) मृग पर चढ़कर अन्न के लिए जाते हैं।[ऋग्वेद 2.34.3]
शिरस्त्राण :: सैनिकों द्वारा युद्ध के दौरान अस्त्र-शस्त्रों से रक्षा हेतु सिर पर पहना जाने वाला लोहे का टोपनुमा कवच, हैलमेट; head gear, helmet, hard het. 
घोड़े के तुल्य मरुद्गण व्यापक क्षेत्र को सींचते हैं। वे अश्वारोही ध्वनि करते हुए बादल के पास में गति से विचरण करते हैं। हे मरुद्गण! तुम मुकुट वाले और तुल्य आक्रोश करने वाले हो। तुम वृक्षादि को कम्पायमान करते हो। तुम बिन्दु चिह्नित हिरन पर अन्न के लिए पहुँचते हो।
Marud Gan pervades the sky like the horses in the battle field. They produce the sound like the  roaring clouds while moving fast. Hey Marud Gan! Your head gear is made of gold and possess anger. You tremble the trees and serve food grains to spotted deer.
पृक्षे ता विश्वा भुवना ववक्षिरे मित्राय वा सदमा जीरदानवः।
पृषदश्वासो अनवभ्रराधस ऋजिप्यासो न वयुनेषु धूर्षदः
मरुद्गण मित्र की तरह हव्य युक्त यजमान के लिए, सर्वदा समस्त जल का वहन करते हैं। वे दानशील, पृषती मृगवाले, अक्षय, अन्न वाले और अकुटिलगामी अश्व की तरह पथिकों के आगे जाते हैं।[ऋग्वेद 2.34.4]
हविदाता यजमान के लिए ये मरुद्गण मित्र के समान जल वाहक हैं। वे उदार मन वाले बिन्दु चिह्नित मृग से युक्त हुए, अन्न से युक्त हुए, सरल वेग वाले अश्वों को समान चलते हैं।
Marud Gan support-sustain water for the devotee-Ritviz who make offerings, like a friend. They moves like the liberal person who believes in charity-donations, possessing food grains, like a spoted deer and the horses who move rhyemetically-straight.
इन्धन्वभिर्धेनुभी रप्शदूधभिरध्वस्मभिः पथिभिर्भ्राजदृष्टयः।
आ हंसासो न स्वसराणि गन्तन मधोर्मदाय मरुतः समन्यवः
हे समान क्रोध और दीप्तिमान् आयुध वाले मरुतो जिस प्रकार से हंस अपने निवास स्थान पर जाता है, उसी प्रकार से आप भी महाजल स्रोत वाले मेघों के साथ और गौओं से युक्त होकर विघ्न शून्य मार्ग से, मधुर सोमरस से उत्पन्न हर्ष प्राप्ति के लिए पधारें।[ऋग्वेद 2.34.5]
हे मरुतो ! तुम तुल्य आक्रोश वाले हो। तुम्हारे आयुध चमकते हुए हैं। जिस तरह हंस अपने निवास करने वाले स्थान पर जाता है उसी तरह तुम भी अत्यन्त जल स्त्रोत वाले बादलों के साथ निर्विघ्न रास्ते से सोमजनित हर्ष के लिए गायों से युक्त पधारो।
Hey Marud Gan! You possess identical bright arms, weapons and furiosity; move like the swan who goes back to its residence, carrying rain clouds, with cows happily, amused by drinking Somras. 
आ नो ब्रह्माणि मरुतः समन्यवो नरां न शंसः सवनानि गन्तन।
अश्वामिव पिप्यत धेनुमूधनि कर्ता जरित्रे वाजपेशसम्
हे समान क्रोध वाले मरुद्गणों! जैसे आप स्तोत्र से आते हैं, वैसे ही हमारे अभिषुत अन्न के पास पधारें। घोड़ी की तरह गाय का अधोदेश पुष्ट करें और यजमान यज्ञ अन्न युक्त हो।[ऋग्वेद 2.34.6]
हे मरु द्गण! अश्व के समान गौ के नीचे का भाग पुष्ट करो। यजमान का यज्ञ अन्न युक्त हो। 
Hey furious Marud Gan! The way-manner in which you obelize the Ritviz due to their recitation of the Strotr-hymns, come to accept our offerings of food grains. Make the lower part (stomach) of the cows strong like the horses. Let the Yagy conducted by the hosts-Ritviz accompany food grains.
तं नो दात मरुतो वाजिनं रथ आपानं ब्रह्म चितयद्दिवेदिवे।
इषं स्तोतृभ्यो वृजनेषु कारवे सनिं मेधामरिष्टं दुष्टरं सहः
हे मरुतो! आप हमें अन्न युक्त पुत्र दें। वह आपके आगमन के समय, प्रतिदिन आपके गुणों का कीर्त्तन करेगा। आप स्तोताओं को अन्न प्रदान करें। युद्ध के समय स्तोता को दानशीलता, युद्ध-कौशल, ज्ञान और अक्षय तथा अतुल बल प्रदान करें।[ऋग्वेद 2.34.7]
हे मरुद्गण! तुम हमें अन्न और पुत्र दो। तुम्हारे आने पर वह तुम्हारा गुणमान किया करेगा। वंदना करने वाले को तुम अन्न देते हो।
Hey Marud Gan! Give us a son along with food grains, who will recite prayers in your honour at the time of your arrival. Provide food grains to the worshipers. Grant the mentality-capability to donate, skills-ability in war fare, knowledge and imperishable might.  
यद्युञ्जते मरुतो रुक्मवक्षसोऽश्वान्रथेषु भग आ सुदानवः।
धेनुर्न शिश्वे स्वसरेषु पिन्वते जनाय रातहविषे महीमिषम्
मरुतों के वक्षः स्थल में दीप्त आभरण है। उनका दान सबके लिए सुखकर है। वे जिस समय रथ में घोड़े जोतते हैं, उसी समय जिस प्रकार से गाय बछड़े को दूध देती है, उसी प्रकार वे हव्यदाता यजमान के लिए उसके गृह में यथेष्ट अन्न प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 2.34.8]
मरुद्गण का हृदय उज्ज्वल है। उसका दान सभी का कल्याण करता है। वे जब अपने रथ में घोड़े संयोजन करते हैं, तब बछड़े को गाय द्वारा दुग्ध देने के समान हविदाता को अभीष्ट अन्न प्रदान करते हैं।
The hearts of Marud Gan are aurous. Donations by them are comfortable for all. They provide sufficient food grains-stuff to the Ritviz-hosts making offerings to them  like the cow feeding its calf as & when they deploy their horses in the charoite.
यो नो मरुतो वृकताति मर्त्यो रिपुर्दधे वसवो रक्षता रिषः।
वर्तयत तपुषा चक्रियाभि तमव रुद्रा अशसो हन्तना वधः
हे मरुतो! जो मनुष्य वृक की तरह हमसे शत्रुता करता है, हे वसु गण! उस हिंसक के हाथ से हमें बचावें। उसे तापप्रद चक्र के द्वारा चारों ओर से हटावें। हे रुद्र गण! आप उसके सारे अस्त्रों को दूर फेंककर उसे विनष्ट करें।[ऋग्वेद 2.34.9]
हे मरुद्गण! जो हिंसक हमसे वृत्र के समान शत्रुता करता है उससे हमारी रक्षा करो। उसे अपने ताप से भगा दो।
Hey Marud Gan! Protects us from the person who grows-develops enmity with us like a wolf. Hey Vasu Gan! Remove him away from us,  with the help of a heat shield. Hey Rudr Gan! Unarm him and destroy him. 
चित्रं तद्वो मरुतो याम चेकिते पृश्न्या यदूधरप्यापयो दुहुः।
यद्वा निदे नवमानस्य रुद्रियास्त्रितं जराय जुरतामदाभ्याः
हे मरुतो! जिस समय आपने पृश्नि के अधो भाग का दोहन किया, उस समय स्तोता के निन्दक की हत्या की और त्रित के शत्रुओं का वध किया। हे अहिंसनीय रुद्र पुत्रो! उस समय आपकी विचित्र क्षमता को सबने जाना।[ऋग्वेद 2.34.10]
हे रुद्रो! जब तुमने पृश्नि के नीचे के भाग को दुहा था तब स्तोता की निन्दा करने वाले का संहार किया था। त्रित के द्रोहियों का वध किया था। उस समय तुम्हारी शक्ति सभी पर प्रकट हुई थी।
Hey Marud Gan! When you milched the body of Prashni, you killed the person who slurred the Stota (one who recited prayers in your honour) and killed the enemies of Trit. Hey non violent sons of Rudr! Your majesty by recognised by all at that moment.
तान्वो महो एवयाव्नो विष्णोरेषस्य प्रभृथे हवामहे।
हिरण्यवर्णान्ककुहान्यतस्रुचो ब्रह्मण्यन्तः शंस्यं राध ईमहे
हे महासुभग मरुतो! आप सदा यज्ञ स्थल में जाते हैं। यथेष्ट और प्रार्थनीय सोमरस के तैयार हो जाने पर हम आपको बुलाते हैं। स्तुति पाठक स्रुक को उठाकर स्वर्ण वर्ण और सर्वश्रेष्ठ स्तुति योग्य मरुद्गण से प्रशंसनीय धन की याचना करते हैं।[ऋग्वेद 2.34.11]
हे महान् कार्य वाले मरुद्गण! तुम अनुष्ठान में हमेशा जाते हो। सोम के सिद्ध होने पर तुम पुकारे जाते हो। वंदना करने वाले स्नुक हाथ में लेकर मरुद्गण से महान धन मांगा करते हैं।
Hey great endeavour undertaking Marud Gan! You always visit the site of Yagy, participate in the Yagy. The Ritviz invite you, having prepared sufficient Somras for you. Those who are reciting the Stuti-prayers, raise the wood spoon for making offerings in the holy fire and request wealth-money from you.
ते दशग्वाः प्रथमा यज्ञमूहिरे ते नो हिन्वन्तूषसो व्युष्टिषु।
उषा न रामीररुणैरपोर्णुते महो ज्योतिषा शुचता गोअर्णसा
स्वर्गगामी अङ्गिरोरूपी मरुतों ने प्रथम यज्ञ का आयोजन किया। उषा देवी के आने पर मरुद्रण हमें यज्ञ आदि में प्रवृत्त करें। जैसे उषा अरुण वर्ण किरण जाल से कृष्ण वर्णा रात्रि को हटाती हैं, वैसे ही मरुद्गण विशाल, दीप्तिमान् और जलस्त्रावी ज्योति से अन्धकार को दूर करते हैं।[ऋग्वेद 2.34.12]
लोक प्राप्त करने वाले अंगिरा रूप मरुतों ने प्रथम यज्ञ को ढोया। वे हमको उषाकाल में यज्ञ कर्म में लगाएँ। जैसे उषा ताप को दूर करती है।
The Marud Gan in the form of the Angiras organised the first Yagy. Let Marud Gan make us initiate the Yagy Karm prior to the day break i.e., appearance of Usha. The way the golden coloured, bright Usha removes the darkness, Marud Gan too removes darkness with the broad & shining light forming rains.
ते क्षोणीभिररुणेभिर्नाञ्जिभी रुद्रा ऋतस्य सदनेषु वावृधुः।
निमेघमाना अत्येन पाजसा सुश्चन्द्रं वर्णं दधिरे सुपेशसम्
हे रुद्र पुत्र मरुद्गण! वीणा-विशेष और अरुण वर्ण अलंकार से युक्त होकर जल के निवास मेघ में वर्द्धित हुए। मरुद्गण सर्वत्र प्रभाव वाले बल से जल लाते हुए प्रसन्नतादायक और भूत मनोहर सौन्दर्य धारण करते हैं।[ऋग्वेद 2.34.13]
हे रुद्र पुत्र मरुत! विशेष ध्वनि और अरुण रंग वाले हुए जल के आधार भूत बादल में वृद्धि करते हैं। वे सदैव प्रतिभावान रहते हुए अपनी श्रद्धा से जल लाते हुए अत्यन्त शोभायमान होते हैं। 
Hey the sons of Rudr, Marud Gan! You make typical sounds, wearing bright golden aura, become the residence-supporters of the large clouds. Marud Gan support the clouds roaming every where, happily having various-vivid beautiful forms. 
ताँ इयानो महि वरूथमूतय उप घेदेना नमसा गृणीमसि।
त्रितो न यान्पञ्च होतॄनभिष्टय आववर्तदवराञ्चक्रियावसे
मरुतों से वरणीय धन की याचना करते हुए अपनी रक्षा के लिए स्तोत्र द्वारा हम उनकी स्तुति करते हैं। अभीष्ट सिद्धि के लिए चक्र द्वारा त्रित उन मुख्य प्राण, अपान, समान, व्यान और उदान आदि पाँच होताओं (मरुतों) को आवर्तित करते हैं।[ऋग्वेद 2.34.14]
उन मरुद्गण से वरण करने योग्य धन को माँगते हुए हम अपनी सुरक्षा के लिए विनती करते हैं। अभिष्ट सिद्ध करने के लिए प्राण, अपान, समान, ध्यान और उदान इन पाँच होताओं को त्रित द्वारा संचालित करते हो।
We pray for our safety-welfare while requesting Marud Gan wealth-riches. For the desired accomplishments Trit control the 5 forms of hosts-Ritviz (five forms of air) i.e., Pran, Apan, Saman, Vyan & Udan.
Imploring them for ample wealth and (having recourse to him) for protection, we glorify them with this praise; like the five chief priests whom Trit detained for the (performance of) the sacrifice and to protect it with their weapons.
यया रध्रं पारयथात्यंहो यया निदो मुञ्चथ वन्दितारम्।
अर्वाची सा मरुतो या व ऊतिरो षु वाश्रेव सुमतिर्जिगातु
हे मरुतो! आप जिस आश्रय से आराधक यजमान को पाप से बचाते है, जिससे स्तोता को शत्रु के हाथ से मुक्त करते हैं, हे मरुतो! आपका वही आश्रय हमारे सामने आवे।[ऋग्वेद 2.34.15]
हे मरुद्गण! तुम जिस साधन से यजमान की पाप से सुरक्षा करते हो तथा वंदना करने वाले को शत्रु से बचाते हो, तुम्हारा वही साधन हमको ग्रहण हो। 
Hey Marud Gan! Let us attain the asylum under you which protects the worshiper from sins & saves the Stota from the enemy. 
ऋग्वेद संहिता, द्वितीय मण्डल सूक्त (35) :: ऋषि :- गृत्समद, भार्गव, शौनक, देवता :- अपान्नपात् (अग्नि पौत्र), छन्द :- त्रिष्टुप्।
अपान्नपात् :: जल पौत्र अग्नि जो निथुद्रुप अग्नि होगा, पानी में प्रकाशित होता है। इसे अग्नि कहा गया है। उसी प्रकार अग्नि को अपांनपात् कहा गया है। grandson of the waters, अग्नि or fire as sprung from water.
उपेमसृक्षि वाजयुर्वचस्यां चनो दधीत नाद्यो गिरो मे। 
अपां नपादाशुहेमा कुवित्स सुपेशसस्कर्रेत जोषिषद्धि
मैं अन्न की इच्छा से इस स्तुति का उच्चारण करता हूँ। शब्द कर्ता और शीघ्रगन्ता अपां नपात् (जल पौत्र अग्नि) नाम के देवता हमें प्रचुर अन्न और सुन्दर रूप दे। मैं उनकी स्तुति करता हूँ। वे स्तुति से आनन्दित होते हैं।[ऋग्वेद 2.35.1]
अन्न की इच्छा से मैं इस श्लोक को बोलता हूँ। शीघ्रगामी और ध्वनिवान जल पौत्र अग्नि हमको प्रचुर अन्न और मनोहर रूप प्रदान करें। वे वंदना की इच्छा करते हैं। इसलिए मैं इनकी वंदना करता हूँ। 
I recite this prayer for the sake-want of food grains. Let Apannpat-grandson Agni Dev, who make sound and move swiftly, give us sufficient food and beautiful-handsome bodies. He wish us to make prayer and he become happy with it.
इमं स्वस्मै हृद आ सुतष्टं मन्त्रं वोचेम कुविदस्य वेदत्। 
अपां नपादसुर्यस्य मह्ना विश्वान्यर्यो भुवना जजान
उनके लिए हम हृदय से सुरचित इस मंत्र का अच्छी तरह उच्चारण करें; वे उसे बार बार जानें। स्वामी अपांनपात् ने शत्रु क्षेपणकारी बल से समस्त लोकों को उत्पन्न किया है।[ऋग्वेद 2.35.2]
हम उनके द्वारा निमित्त भाव से यह प्रार्थना करेंगे। वे हमारी प्रार्थना को जानें। उन्होंने जीवों के हितार्थ शक्ति द्वारा सम्पूर्ण संसार की उत्पत्ति की है। 
We will make prayers from the depth of our hearts and recite this Mantr properly till he listen to it and respond. Apannpat created all abodes with the desire of welfare & to repel the enemies. 
समन्या यन्त्युप यन्त्यन्याः समानमूर्वं नद्यः पृणन्ति। 
तमू शुचिं शुचयो दीदिवांसमपां नपातं परि तस्थुरापः
कोई-कोई जल इकट्ठा होता है, उसके साथ दूसरा मिलता है। वे सब समुद्र के बड़वानल को प्रसन्न करते हैं। विशुद्ध जल निर्मल और दीप्तिमान् अपांनपात् नामक देवता को चारों ओर से घेर लेते हैं।[ऋग्वेद 2.35.3]
जलों के संग जल मिलते हैं। वे सभी समस्त समुद्र में बड़वानल की वृद्धि करते हैं। कोमल और शुद्ध जल अपान्नपात नामक देवता को घेरे रहता है।
Let the water from various sources come to a single point and get mixed to flow towards the ocean to appease Badvanal-fire underneath in the ocean. Let the pure water surround the aurous-shining demigod Apannpat from all sides.
तमस्मेरा युवतयो युवानं मर्मृज्यमानाः परि यन्त्यापः। 
स शुक्रेभिः शिकभी रेवदस्मे दीदायानिध्मो घृतनिर्णिगप्सु
जिस प्रकार से अहंकार से रहित युवती अपने युवा पति को प्राप्त होती है, उसी प्रकार से ही अपांनपात् देवता को अलंकृत और परिवेष्टित करती है। ये अपांनपात् देव हमें अपने तेजस्वी स्वरूप में धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 2.35.4]
अहंकार प्रथक युवती, शृंगार से सजी हुई अपने तेजस्वी पति को ग्रहण होती है। वैसे ही ईंधन- विमुख घृत से सिंचित अग्नि धन परिपूर्ण अन्न की प्राप्ति के लिए जलों के बीच तेज से ज्योतिवान होते हैं।
They manner in which a young woman free from ego, meets her husband, she serves Apannpat Dev as well. Let Apannpat Dev grant us riches in his aurous-shinning form.
अस्मै तिस्रो अव्यथ्याय नारीर्देवाय देवीर्दिधिषन्त्यन्नम्। 
कृताइवोप हि प्रसर्खे अप्सु स पीयूषं धयति पूर्वसूनाम्
इला, सरस्वती और भारती नाम की तीनों देवियाँ दुःख रहित अपांनपात् देवता के लिए अन्न धारण करती हैं। वे जल के बीच उत्पन्न पदार्थ के लिए प्रसारित होती हैं। अपांनपात् सबसे पहले उत्पन्न जल के सारभूत सोमरस को पीते हैं।[ऋग्वेद 2.35.5]
इला, सरस्वती, भारती ये तीन देवियाँ त्रास रहित अपान्न पात देव से निमित्त अन्न धारण करती हैं। ये जल से उत्पन्न पदार्थ को बढ़ाती हूँ। अपान्नपात (सर्व प्रथम प्रकट जल) के सार का हम पान करते हैं।
The deities-goddess Ila, Saraswati and Bharti bears food stuff for Apannpat Dev. They grow-nourish the materials produced in water. Apannpat drinks the Somras as the extract of the eatables-Som Valli grown in waters.   
अश्वस्यात्र जनिमास्य च स्वर्द्रुहो रिषः संपृचः पाहि सूरीन्।
आमासु पूर्षु परो अप्रमृष्यं नारातयो वि नशन्नानृतानि
अपांनपात् द्वारा अधिष्ठित समुद्र में उच्चैःश्रवा नामक अश्व का जन्म होता है, यह अश्व उत्तम सुख को देने वाला है। हे अपांनपात् देव! आप हिंसा करने वाले द्रोहियों से स्तोताओं की रक्षा करें। दान शून्य और झूठे लोग अपरिपक्व अथवा परिपाक योग्य जल में रहकर भी इस अहिंसनीय देवता को नहीं प्राप्त कर सकते।[ऋग्वेद 2.35.6]
अपान्नपात परिपूर्ण समुद्र में उच्चैश्रवा अश्व रचित हुआ। हे विद्वान! तुम विद्रोही हिंसकों से वंदना करने वालों को बचाओ। अदानशील, मिथ्याचारी, व्यक्ति इस देवता को ग्रहण नहीं होते।
The divine horse Uchcheshrava of Dev Raj Indr, took birth in the ocean.  He grants excellent comforts. Hey Apannpat Dev! Protect the Stota-Ritviz, hosts from the violent people. The species which lives inside water and do not make-resort to charity-donations and speak untruth-lies can never approach this non violent demigod-deity. 
स्व आ दमे सुदुघा यस्य धेनुः स्वधां पीपाय सुभ्वन्नमत्ति। 
सो अपां नपादूर्जयन्न प्स्वन्तर्वसुदेयाय विधते वि भाति
जो अपने घर में हैं और जिनकी गाय को सरलता से दुहा जाता है, वे ही अपानपात् देवता वृष्टि का जल बढ़ाते और उत्तम अन्न भक्षण करते हैं। वे जल के बीच प्रबल होकर यजमान को धन देने के लिए भली-भाँति दीप्ति युक्त होते हैं।[ऋग्वेद 2.35.7]
जो देवता अपने गृह में निवास करते हैं, उनका दोहन आसानी से किया जाता है। हे देवता, वर्षा के लिए जल की वृद्धि करके उत्तम अन्न का सेवन करते हैं, वे जल में सशक्त हुए यजमान को धन और दान के लिए भली प्रकार शोभित होते हैं।
The cows of the demigods-deities who reside in their home, can be milked easily. Apannpat Dev boosts the rains and consume best grains. He become strong & shines-glow in the water to grant riches to the devotees. 
यो अप्स्वा शुचिना दैव्येन ऋतावाजस्त्र उर्विया विभाति। 
वया इदन्या भुवनान्यस्य प्र जायन्ते वीरुधश्च प्रजाभिः
जो अपांनपात् सत्यवान, सदा एक रूप से रहने वाले और अति विस्तीर्ण है, जो जल के बीच पवित्र देव तेज के द्वारा प्रकाशित होते हैं, सारे भूत उन्हीं की शाखाएं हैं। फल-फूल के साथ सारी उन्हीं से उत्पन्न हुई हैं।[ऋग्वेद 2.35.8]
जो अपांनपात सत्य रूप, विस्तारित, शुद्ध, तेजस्वी जलों में सदैव तुल्य रूप से निवास करने वाले प्रकाशमान होते हैं। समस्त प्राण उनके अंश मात्र हैं। फल परिपूर्ण औषधियों को उन्होंने रचित किया है।
Every things-events in the past are the extension of Apannpat, who resides & glows with piousness in water, is truthful, always bears the same form and is too vast. All fruits and flowers are his creations. 
अपां नपादा ह्यस्थादुपस्थं जिह्यानामूर्ध्वो विद्युतं वसानः। 
तस्य ज्येष्ठं महिमानं वहन्तीर्हिरण्यवर्णाः परि यन्ति यह्वीः॥
अपांनपात् कुटिल गति मेघ के बीच स्वयं ऊर्ध्व भाव से अवस्थित होने पर भी बिजली को पहनकर अन्तरिक्ष में चढ़े हैं। सर्वत्र उनके उत्तम माहात्म्य का कीर्त्तन करते हुए हिरण्यवर्णा नदियाँ प्रवाहित होती हैं।[ऋग्वेद 2.35.9]
वे अपान्नपात टेढ़ी चाल चलने वाले मेघ के बीच उच्च होकर प्रकाश को ग्रहण करते हैं। उनके यश को पाती हुई सरिताएँ प्रवाहित होती हैं।
Apannpat rides the lightening and remains stationary amongest the irregular moving clouds. The rivers flowing with golden tinge keep on reciting his glory. 
हिरण्यरूपः स हिरण्यसंदृगपां नपात्सेदु हिरण्यवर्णः। 
हिरण्ययात्परि योनेर्निषद्या हिरण्यदा ददत्यन्नमस्मै
वे हिरण्यरूप, हिरण्याकृति और हिरण्यवर्ण हैं। वे हिरण्यमय स्थान के ऊपर बैठकर शोभा पाते हैं। हिरण्यदाता उन्हें अन्न प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 2.35.10]
उनका रूप आकृति और वरुण, सुवर्ण के समान है, उनका स्थान भी हिरण्य युक्त है। सुवर्ण दान वाले उन्हें अन्न भेंट करते हैं।
His shape, form and colour are like gold. He sits over a golden place-seat and looks beautiful. The donors of gold offer him food grains.
तदस्यानीकमुत चारु नामापीच्यं वर्धते नप्तुरपाम्। 
यमिन्धते युवतयः समित्था हिरण्यवर्णं घृतमन्नमस्य
अपांनपात् का रश्मि समूह रूप शरीर और नाम सुन्दर हैं। ये दोनों गूढ़ होने पर भी वृद्धि को प्राप्त होते हैं। युवती जल संहति उन हिरण्यवर्ण को अन्तरिक्ष में भली-भाँति दीप्ति युक्त करती है; क्योंकि जल ही उसका अन्न है।[ऋग्वेद 2.35.11] 
अपानपात का रश्मि रूप शरीर सुन्दर नामवाली है। यह गंभीर होते हुए भी वृद्धि करते हैं। जल युक्त विद्युत उन्हें अंतरिक्ष में ज्योति से परिपूर्ण करती हैं। उनका अन्न जल ही है।
The rays and aura of Apannpat, his body & name are beautiful. Though intricate yet they grows. The lightening complement him in the space-sky properly. Water is his food.  
अस्मै बहूनामवमाय सख्ये यज्ञैर्विधेम नमसा हविर्भिः। 
सं सानु मार्ज्मि दिधिषामि बिल्मैर्दधाम्यन्नैः परि वन्द ऋग्भिः
अपने मित्र और बहुत देवों के आदि अपानिपात् देवता को यज्ञ, हव्य और नमस्कार द्वारा हम सेवा करते हैं। हम पर्वतों के शिखरों की भाँति उनके स्वरूप को अलंकृत करते हैं। मैं काष्ठ और अन्न के द्वारा उनको धारण करते हुए मंत्र द्वारा उनकी स्तुति करता हूँ।[ऋग्वेद 2.35.12]
हम अपने सखा रूप अपान्नपात की अनुष्ठान हविदाता और नमस्कार से आराधना करेंगे। मैं उनके उच्च भाग को सजाऊँगा। मैं उन्हें काष्ठ और अन्न द्वारा धारण करता हुआ श्लोक उच्चारण करता हूँ।
We respect-honour & serve Apannpat Dev along with with our friends, demigods-deities through Yagy and offerings. We decorate his forms like the peak of the mountains. I will accept him with the wood and grains through the recitation of Mantr.
स ईं वृषाजनयत्तासु गर्भ स ई शिशुर्धयति तं रिहन्ति। 
सो अपां नपादनभिम्लातवर्णोऽन्यस्येवेह तन्वा विवेष
सेचन समर्थ उन अपनिपात् ने इस सारे जल के मध्य में गर्भ उत्पन्न किया। वे ही कभी पुत्र रूप होकर जल पीते हैं। सारा जल उन्हीं को चाटता है। दीप्ति युक्त वे ही स्वर्गीय अग्नि देव इस पृथ्वी पर अन्य शरीर से व्याप्त है।[ऋग्वेद 2.35.13]
सेचन :: भूमि को पानी से सींचना, सिंचाई, पानी के छींटे देना, छिड़काव, अभिषेक, धातुओं की ढलाई; irrigation of soil.
उन सेवन समर्थ अपान्नपात ने जल में गर्भ प्रकट किया। वे पुत्र रूप में जलपान करते हैं। कभी जल उनको चाहता है। वे प्रदीप्त दिव्य, अपान्नपात नामक अग्नि पृथ्वी पर अन्न रूप से रहते हैं।
Capable of irrigation, Apannpat took birth in waters. He sucks the water as a son. The water keep on liking him. Glowing Agni Dev the inhabitant of the heaven, pervades the other bodies over the earth. 
अस्मिन्पदे परमे तस्थिवांसमध्वस्मभिर्विश्वहा दीदिवांसम्। 
आपो नप्त्रे घृतमन्नं वहन्तीः स्वयमत्कैः परि दीयन्ति यहीः
अपान्नपात उत्कृष्ट स्थान में रहते हैं। वे तेज द्वारा प्रति दिन दीप्ति युक्त होते हैं। महान् जल समूह उन अविनाशी तेजस्वी देव के लिए पोषक रस पहुँचाते हुए उन्हें घेरे रहते हैं।[ऋग्वेद 2.35.14]
अपान्नपात का महान स्थान है। वे तेजस्वी और ज्योर्तिमान हैं। जल संगठन उनके लिए वहन करते और गतिमान रहते हुए उनको ढके रहते हैं।
Apannpat occupies excellent abode. He shines everyday with energy-glow. The vast quantum of waters carries nourishing saps to him. 
अयांसमग्ने सुक्षितिं जनायायांसमु मघवद्भ्यः सुवृक्तिम्। 
विश्वं तद्भद्रं यदवन्ति देवा बृहद्वदेम विदथे सुवीराः
हे अग्नि देव! आप शोभनीय हैं। पुत्र लाभ के लिए मैं आपके पास आया हूँ। यजमान के हित के लिए सुरचित स्तुति लेकर आया हूँ। समस्त देवगण जो कल्याण करते हैं, वह सब हमारा है। पुत्र और पौत्र वाले होकर हम इस यज्ञ में प्रभूत स्तुति कर सकें।[ऋग्वेद 2.35.15] 
हे अग्ने! तुम सुन्दर हो! पुत्र प्राप्ति के लिए तुम्हारे सम्मुख उपस्थित हुआ हूँ। यजमान की भलाई के लिए सुन्दर श्लोक वाला हूँ। देवगण का समस्त कल्याण हमको प्राप्त हो। हम पुत्र-पौत्र वाले होकर इस दल से तुम्हारी वंदना करेंगे।
Hey Agni Dev! You are glowing-beautiful. I have come to you with the desire of having a son. I recite a beautiful Strotr for the welfare of the host-Ritviz. The acts of welfare by the demigods-deities may shower over us-reach us. We will conduct a Yagy blessed with sons & grandsons and recite excellent Strotr.
ऋग्वेद संहिता, द्वितीय मण्डल सूक्त (36) :: ऋषि :- गृत्समद, भार्गव, शौनक, देवता :- इन्द्र और मध्वा (इंद्रमध्वाश्चः), छन्द :- जगती।
तुभ्यं हिन्वानो वसिष्ट गा अपोऽधुक्षन्त्सीमविभिरद्रिभिर्नरः।
पिबेन्द्र स्वाहा प्रहुतं वषट्कृतं होत्रादा सोमं प्रथमो य ईशिषे
हे इन्द्र देव! आपके उद्देश्य से प्रेरित यह सोम रस गव्य और जल से युक्त है। यज्ञ के नेता लोग इस सोम रस को प्रस्तर खण्ड द्वारा अभिषुत करके मेष लोममय दशा पर्व द्वारा इसे संस्कृत करते हैं। हे इन्द्र देव! आप सारे संसार के ईश्वर हैं। इसलिए याजकों द्वारा वषट्कार पूर्वक स्वाहा के साथ समर्पित किए गए सोम रस को यज्ञ में आकर सबसे पहले आप पान करें।[ऋग्वेद 2.36.1]
वषट्कार  :: देवताओं के उद्देश्य से किया हुआ यज्ञ, होम, होत्र; वेदोक्त तैतीस देवताओं में से एक। स्वाहा, स्वधा और वषट तीनों ही होतृकार हैं अर्थात होत्री द्वारा बोले गए अकार जिनसे किसी देव, पितृ, मनुष्य को हवि दी जाती है।
यज्ञ तीन प्रकार के होते हैं, पितृ यज्ञ, देव यज्ञ और मनुष्य यज्ञ। ऐसे में पितृ यज्ञ में हवि स्वधा के उच्चारण से दी जाती है। स्वाहा और वषट देव यज्ञ में प्रयुक्त होते हैं। मनुष्य यज्ञ में हंतः का प्रयोग होता है।
यह तीनों ही शब्द किसी कर-क्रिया के घोतक हैं। इनके द्वारा होतृ अर्थात जो हवन के मंत्र पढ़ने वाला ब्राह्मण होता है, वह अध्वर्यु को हवि डालने के लिए उत्साहित करता है।
हे इन्द्र देव! सोम तुम्हारे किये दूध और रस से परिपूर्ण हैं। विद्वज्जन इसे पत्थर से कूटकर सिद्ध करते हैं। तुम संसार के स्वामी हो।
Hey Indr Dev! The Somras has been prepared for by mixing milk in it. The intellectuals obtain by crushing it with stones. You are the God of the entire universe. Hence, you should accept it in the Yagy, first of all, with the pronunciation of Swaha.   
यज्ञैः संमिश्लाः पृषतीभिर्ऋष्टिभिर्यामञ्छुभ्रासो अञ्जिषु प्रिया उत।
आसद्या बर्हिर्भरतस्य सूनवः पोत्रादा सोमं पिबता दिवो नरः
यज्ञ के साथ संयुक्त, पृषती योजित रथ पर अवस्थित, अपने आयुध से शोभित, आभरण प्रिय, भरत या रुद्र के पुत्र और अन्तरिक्ष के नेता मरुतो! आप यज्ञ में विराजमान होकर पवित्र सोम रस का पान करें।[ऋग्वेद 2.36.2]
हे मरुतों! तुम रथ पर सवार रथ से परिपूर्ण, अस्त्रों से सुशोभित, रुद्र के पुत्र और अंतरिक्ष अग्रणी हो। तुम कुशा पर विराजमान होकर होता से सोम प्राप्त करो। 
Hey Marud Gan! Enjoy the Somras by participating in the Yagy. You are the sons of Rudr and the leaders of the universes. Ride your charoite with the help of Prashti, having arms & weapons.
Maruts, together worshipped with sacrifices, standing in the charoite drawn by spotted mares, radiant with lances and delighted by ornaments, sons of Bharat, leaders in the firmament, seated on the sacred grass, drink the Soma presented by the Pota.
अमेव नः सुहवा आ हि गन्तन नि बर्हिषि सदतना रणिष्टन।
अथा मन्दस्व जुजुषाणो अन्धसस्त्वष्टर्देवेभिर्जनिभिः सुमद्गणः
हे शोभन आह्वानवाले देवो! आप हमारे साथ आयें, कुशासन में विराजित होकर सुशोभित हों। हे त्वष्टा देव! आप देव गणों और दैवी शक्तियों के सोमरस का पान करके हर्षित हों।[ऋग्वेद 2.36.3]
हे उत्तम आह्वान वाले विद्वानों! तुम हमारे साथ आकर कुशासन पर विराजमान होकर प्रसन्न हो जाओ। हे अग्नि देव! तुम विद्वान हो। इस यज्ञ में देवताओं के साथ सोम सेवन कर संतुष्ट हो जाओ।
Hey demigods-deities deserving glorious invitation! Come with us, occupy the Kushasan (cushion made of Kush grass). You are enlightened. Enjoy Somras in this Yagy become happy-satisfied.
आ वक्षि देवाँ इह विप्र यक्षि चा शन्होतर्नि षदा योनिषु त्रिषु।
प्रति वीहि प्रस्थितं सोम्यं मधु पिबाग्नीध्रात्तव भागस्य तृष्णुहि
हे मेधावी अग्निदेव! इस यज्ञ में देवों को बुलावें और उनके लिए यज्ञ करें। देवों के आह्वानकारी अग्निदेव, आप हमारे हव्य के अभिलाषी होकर गार्हपत्य आदि के तीनों स्थानों पर विराजित हों। होम के लिए उत्तर वेदी पर लाये हुए सोम-रूप मधु स्वीकार करें। अग्नीध्र के पास से सोमपान करें और अपने अंश में तृप्त होवें।[ऋग्वेद 2.36.4]
हे अग्नि देव! तुम विद्वान हो। इस यज्ञ में देवताओं के आह्वान के लिए पूजन करो। तुम देवताओं को आमंत्रित करने वाले हो । उत्तम वेदी को प्राप्त सोम रूप मधु को स्वीकार करो। अग्नि के रखने के स्थान से अपने अंश में सोमपान कर तृप्त हो जाओ। 
Hey enlightened Agni Dev! Invite the demigods-deities in this Yagy and conduct it for them. Accept the Somras at the Uttar Vedi. Accept your share of Somras and become content.
एष स्य ते तन्वो नृम्णवर्धनः सह ओजः प्रदिवि बाह्वोर्हितः।
तुभ्यं सुतो मघवन्तुभ्यमाभृतस्त्वमस्य ब्राह्मणादा तृपत्पिब
हे धनवान् इन्द्र देव! आप प्राचीन हैं। जिस सोम द्वारा आपके हाथ में शत्रु विजयी सामर्थ्य और बल है, वही आपके लिए अभिषुत और आहूत हुआ है। आप तृप्त होकर ब्राह्मण ऋत्विक् के पास से सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 2.36.5]
हे धनेश इन्द्र! तुम प्राचीन हो। तुम जिससे शत्रु को जीतने वाली शक्ति और सामर्थ्य प्राप्त करते हो, वही तुम्हारे लिए छाना जाकर लाया गया है। तुम ऋत्विज के निकट से सोमपान करते हुए तृप्त होओ।
Hey wealthy Indr Dev! You are ancient. The Somras which grants you strength and might to over power-win the enemy, has been extracted for you. You should be content-satisfied and enjoy the Somras with the Ritviz-host. 
जुषेथां यज्ञं बोधतं हवस्य मे सत्तो होता निविदः पूर्व्या अनु।
अच्छा राजाना नम एत्यावतं प्रशास्त्रादा पिबतं सोम्यं मधु
हे मित्रा-वरुण! आप हमारे यज्ञ की सेवा करें। होता बैठकर चिरन्तनी स्तुति का उच्चारण करते हैं। आप हमारा आह्वान श्रवण करें। आप शोभायुक्त है। ऋत्विकों द्वारा परिवेष्टित अन्न आपके सामने है। अतः हमारे इस यज्ञ में आकर सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 2.36.6]
हे सखा वरुण! हमारे अनुष्ठान का सेवन करो। होता गण श्लोक पाठ करते हैं। हमारे आह्वान को सुनो। ऋत्विजों द्वारा सुसंस्कारित अन्न उपस्थित है, तुम सुशोभनीय, हम सोम को प्रशस्ता के निकट प्राप्त करो।
Hey Mitra Varun! Serve-participate in our Yagy. The Hota-Ritviz sits and recite the Stuti-prayer. Answer our requests-call, prayer. You are glorious. The food stuff prepared by the hosts is ready in front of you. Join our Yagy and enjoy Somras.
ऋग्वेद संहिता, द्वितीय मण्डल सूक्त (37) :: ऋषि :- गृत्समद, भार्गव, शौनक, देवता :- द्रविणोद, छन्द :- जगती।कृप्या हस्ताक्षरित रसीद, मुहर लगाकर भेजें। 
मन्दस्व होत्रादनु जोषमन्धसोऽध्वर्यवः स पूर्णां वष्ट्यासिचम्। 
तस्मा एतं भरत तद्वशो ददिर्होत्रात्सोमं द्रविणोदः पिब ऋतुभिः
हे धनप्रिय अग्निदेव! होतृ-कृत यज्ञ में अन्न ग्रहण करके प्रसन्न और हृष्ट बनें। हे अध्वर्युगण! द्रविणोदा पूर्णाहुति चाहते हैं; इसलिए उनके लिए यह सोमरस प्रदान करें। सोमाभिलाषी द्रविणोदा अभीष्ट फल देने वाले हैं। हे द्रविणोदा! होता के यज्ञ में ऋतुओं के साथ सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 2.37.1]
द्रविणोदा :: धन प्रदान करने वाले देवता। 
हे अन्नदाता अग्ने! होता द्वारा किये गये अनुष्ठान में अन्न प्राप्त कर हृष्ट-पुष्ट बनो। हे अध्वर्युओं! अग्नि पूर्णाहुति की इच्छा करते हैं, उन्हें सोम भेंट करो। यह धनदाता अग्नि मनोकामना पूर्ण करते हैं।
Hey Agni Dev! You provide both food grains and wealth. Accept offerings in the Yagy in the form of food grains and become strong. The demigods granting money desire the final offerings, provide him Somras. The riches granting demigod wish to have Somras. Hey Dravinota! Accept Somras in the Yagy of the Ritviz along with the the Ritus-seasons.
Be gratified, Dravinota, by the sacrificial food presented as the offering of the Hota-Ritviz, he desires, priests, a fall libation; present it to him and influenced by it, he will be your benefactor, drink, Dravinota, along with the Ritus, the Somras, the offering of the Hota.
यमु पूर्वमहुवे तमिदं हुवे सेदु हव्यो ददिर्यो नाम पत्यते। 
अध्वर्युभिः प्रस्थितं सोम्यं मधु पोत्रात्सोमं द्रविणोदः पिब ऋतुभिः
हमने पहले जिनको बुलाया, इस समय भी उन्हीं को बुलाते हैं। वे आह्रान योग्य हैं; क्योंकि वे दाता और सबके अधिपति हैं। उनके लिए अध्वर्युओं द्वारा सोमरूप मधु तैयार किया गया है। हे द्रविणोदा! इस पवित्र यज्ञ में ऋतु के अनुरूप सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 2.37.2]
हे अग्निदेव! होता के अनुष्ठान में ऋतुओं से युक्त सोमपान करो। हमने पूर्व काल में जिनका आह्वान किया था, हम अब भी उसी का आह्वान करते हैं। वे दाता और सुख के दाता आह्वान करने योग्य हैं। अध्वर्युओं ने उनके लिए मधुर सोम सिद्ध किया है। हे द्रव्यदाता अग्ने! होता के यज्ञ में ऋतुओं सहित सोमयान करो।
We call-invite those whom we invoked earlier. They deserve to be welcomed-honoured. since they are the Lord of all and provide money. Somras has been kept ready for them by the hosts managing Yagy. Hey Dravinota! Accept Somras according to the season-Ritu.  
मेद्यन्तु ते वह्नयो येभिरीयसेऽरिषण्यन्वीळयस्वा वनस्पते। 
आयूया घृष्णो अभिगूर्या त्वं नेष्ट्रात्सोमं द्रविणोदः पिब ऋतुभिः
हे द्रविणोदा! आप जिस अश्व पर जाते हैं, यह तृप्त है। वनस्पति, किसी की हिंसा न करके दूर है। पर्षणकारी नेष्टा के यज्ञ में आकर ऋभुओं के साथ सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 2.37.3]
ऋभु :: Please refer to santoshhindukosh.blogspot.com
हे द्रव्यदाता अग्ने! तुम्हारा वाहन घोड़े परिपूर्ण हों। हे वनस्पते! तुम दृढ़ अहिंसक बनो नेष्टा के अनुष्ठान में ऋतुओं युक्त सोमपान करो।
Hey Dravinota Agni Dev! The horse on which you ride is satisfied-content. Hey Vanaspati-vegetation, keep off violence. Join the Yagy conducted by Neshta and drink the Somras along with the Ribhu Gan & Ritus-seasons.
अपाद्धोत्रादुत पोत्रादमत्तोत नेष्ट्रादजुषत प्रयो हितम्। 
तुरीयं पात्रममृक्तममर्त्यं द्रविणोदाः पिबतु द्राविणोदसः
हे द्रविणोदा! जिन्होंने होता के यज्ञ में सोमरस का पान किया है, जो पिता के यज्ञ में हृष्ट हुए हैं, जिन्होंने नेष्टा के यज्ञ में प्रदत्त अन्न भक्षण किया है, वे ही सुवर्ण दाता ऋत्विक् के अशोधित और मृत्यु निवारक चतुर्थ सोमरस के पात्र का पान करें।[ऋग्वेद 2.37.4]
हे धनदाता अग्निदेव! जिन्होंने होता के अनुष्ठान में सोमपान किया और पिता के अनुष्ठान में दृष्ट-पष्ट हुए नेष्टा के अनुष्ठान में अन्न का सेवन किया, वे स्वर्ण देने वाली ऋत्विक की मृत्यु निवारक सोमरस को पान करो।
Hey Dravinota wealth generating-granting Agni Dev! Those who have sipped Somras in the Yagy of the host-Ritviz, have become strong in the Yagy of their father, eaten the offerings in the Yagy, should sip the Somras which frees-makes one free from the clutches of death.
Whether he has drunk the Soma from the offering of the Hota, whether he has been exhilarated by the offering of the Pota; whether he has been plural aged with the sacrificial food presented as the act of the Neshta, still let Dravinota quaff the unstrained ambrosial cup, the fourth offered by the priest.
QUAFF :: ख़ाली करना, खलाना, गड़गड़ाकर पीना, एक ही साँस में पीना; deplete, deplenish, drink off, drink up, sup.
अर्वाञ्चमद्य यय्यं नृवाहणं रथं युञ्जाथामिह वां विमोचनम्। 
पृङ्कं हवींषि मधुना हि कं गतमथा सोमं पिबतं वाजिनीवसू
हे अश्विनी कुमारों! जो रथ शीघ्र गामी, आपका वाहन और अभीष्ट स्थान पर आपको उतार देने वाला है, आज उसी रथ को इस यज्ञ में हमारे सामने नियोजित करें। हमारा हव्य सुस्वादु करें और यहाँ पधारें। हे अन्न वाले अश्विनी कुमारों! हमारे सोम रस का पान करें।[ऋग्वेद 2.37.5]
हे अश्विद्वय! शीघ्रगामी इच्छित स्थान पर पहुँचाने वाले, जो तुम्हारा रथ वाहन है, उसी के इसमें जोड़ो। हमारी हवि को सुस्वादु बनाओ। तुम अन्न वाले हों। हमारे सोम रस का पान करो।
Hey Ashwani Kumars! Organise our Yagy by arriving in your fast moving charoite. Our offerings are tasty. Hey food grain granting Ashwani Kumars! Enjoy our Somras. 
जोष्यग्ने  समिधं जोष्याहुतिं जोषि ब्रह्म जन्यं जोषि सुष्टुतिम्। 
विश्वेभिर्विश्वाँ ऋतुना वसो मह उशन्देवाँ उशतः पायया हविः
हे अग्रिदेव! आप समिधा आहुति लोगों के हितकर स्तोत्र और सुन्दर स्तुति से युक्त होवें। आप सबके आश्रय दाता और हमारे हव्य के अभिलाषी होवें। हमारा हव्य चाहने वाले सारे देवों, ऋभुओं और विश्वदेवों के साथ सोमरस का पान करायें।[ऋग्वेद 2.37.6] 
हे अग्ने!' तुम समिधा, आहुति, श्लोक द्वारा वन्दना ग्रहण करो। तुम हमारी छवियों  अभिलाषा वाले सभी के शरण दाता हो। हमारी हवि की अभिलाषा वाले देवों, ऋभुओं और विश्वेदेवों के साथ सोमपान करो।
Hey Agni Dev! You should be associated with the wood for the Yagy, beneficial Strotr and Stuti-prayers. You are the protector of all and desire offerings from us. You should provide Somras to the Ribhus, Vishw Dev and all demigods-deities for drinking.
ऋग्वेद संहिता, द्वितीय मण्डल सूक्त (38) :: ऋषि :- गृत्समद, भार्गव, शौनक, देवता :- सविता, छन्द :- त्रिष्टुप, पंक्ति।
उदु ष्य देवः सविता सवाय शश्वत्तमं तदपा वह्निरस्थात्।
नूनं देवेभ्यो वि हि धाति रत्नमथाभजद्वीतिहोत्रं स्वस्तौ
प्रकाशक और जगद्बाहक सूर्य देव प्रसव के लिए प्रतिदिन उदित होते हैं, यही उनका कर्म है। वे स्तोताओं को रत्न देते और सुन्दर यज्ञ वाले यजमान को मंगलभागी बनाते हैं।[ऋग्वेद 2.38.1]
संसार को वहन करने वाले ज्योर्तिमान सविता देव प्रसव के लिए प्रतिदिन प्रकट होते हैं। यही उनका नित्य का सिद्धान्त है। वे वंदना करने वालों को रत्नादि धन प्रदान करते और यजमान को कल्याण का भागीदार बनाते हैं।
Illuminating and supporting-sustaining the universe, is the daily routine of Savita-Dev-the Sun. This is his duty. He grants jewels to the host who worship him. He benefit the host-Ritviz as well. 
विश्वस्य हि श्रुष्टये देव ऊर्ध्वः प्र बाहवा पृथुपाणिः सिसर्ति।
आपश्चिदस्य व्रत आ निमृग्रा अयं चिद्वातो रमते परिज्मन्
प्रलम्बाहु और प्रकाशवाले सविता देव, संसार के आनन्द के लिए उदित होकर बाहु प्रसारित करते हैं। उनके कार्य के लिए अतीव पवित्र जल समूह प्रवाहित होता है और वायु भी सर्वतोव्यापी अन्तरिक्ष में विहरण करता है।[ऋग्वेद 2.38.2]
लम्बी भुजा और ज्योति से परिपूर्ण सवितादेव संसार को आनन्दमय करने के लिए हाथ फैलाते हैं। उनके लिए अत्यन्त शुद्ध जल प्रवाहमान होता और पवन अंतरिक्ष में विचरता है।
Long armed Savita Dev illuminate and extend his arms for the pleasure of the world. Extremely pure water flow and the air flows through the sky-space.  
आशुभिश्चिद्यान्वि मुचाति नूनमरीरमदतमानं चिदेतोः।
अह्यर्षूणां चिन्त्र्ययाँ अविष्यामनु व्रतं सविआर्पोक्यागात्
जिस समय सविता शीघ्रगामी किरणों द्वारा विमुक्त होते हैं, उस समय वे निरन्तरगामी पथिक को भी अलग करते हैं। जो शत्रु के विरुद्ध जाते हैं; सविता देव उनकी जाने की इच्छा को भी निवृत्त करते हैं। सविता के कर्म के पश्चात् ही रात्रि का आगमन होता है।[ऋग्वेद 2.38.3]
जब सविता देव तीव्र गति से किरणों द्वारा छोड़े जाते हैं, तब निरन्तर चलने वाले राही भी रुक जाते हैं । शत्रु के विरुद्ध आक्रमण के लिए जाने वाले की इच्छा भी उस समय निवृत्त हो जाती सविता देव के कर्म कर लेने पर रात आलोक को छिपा लेती है।
When Savita Dev stops his fast moving rays, the traveller stops moving further and the night falls. Savita Dev checks the desire of moving-attacking the enemy at this hour-juncture. Once the task of Savita Dev is over, the night engulfs the universe-world. 
पुनः समव्यद्विततं वयन्ती मध्या कर्तोर्न्यधाच्छक्म धीरः।
उत्संहायास्थाद्व्यृ १ तुँरदर्धररमतिः सविता देव आगात्
वस्त्र बुनने वाली रमणी की तरह रात्रि पुनः आलोक को भली-भाँति वेष्टित करती है। बुद्धिमान् लोग जो कर्म करते हैं, वह करने में समर्थ होने पर भी मध्य मार्ग में रख देती है। विराम रहित और ऋतु विभाग कर्ता प्रकाशक सविता जिस समय पुनः उदित होते हैं, उस समय लोग शय्या को त्याग देते हैं।[ऋग्वेद 2.38.4]
आलोक :: देखना, दर्शन, दृष्टि, प्रकाश, रोशनी; light, lustre.
बुद्धिमानों के लिए हुए कार्य हिस्सा बीच के भाग में रुक जाते हैं, ऋतुओं का विभाजन करने वाले सूर्य जब दुबारा उदित होते हैं, तब व्यक्ति बिस्तारों को छोड़ देते हैं।
The night cover the light properly, like the young woman who knit the cloth. The intelligent post pone their endeavours even though  they are competent-capable. The Sun rises again and move continuously creating-causing the seasons. People leave their bed with the Sun rise. 
नानौकांसि दुर्यो विश्वमायुर्वि तिष्ठते प्रभवः शोको अग्नेः।
ज्येष्ठं माता सूनवे भागमाधादन्वस्य केतमिषितं सवित्रा
अग्नि के गृह में स्थित प्रभूत तेज यजमान के भिन्न-भिन्न गृह और समस्त अन्न में अधिष्ठित है। माता उषा ने सविता द्वारा प्रेरित प्रज्ञापक यज्ञ का श्रेष्ठ भाग पुत्र अग्नि को दान किया।[ऋग्वेद 2.38.5]
अग्नि ग्रह में उत्पन्न तेज यजमान के अन्न कोष्ठों में व्याप्त हैं। उषा माता सविता प्रेरित यज्ञ का उत्तम भाग अग्नि को दे चुकी हैं।
The energy generated in the house of Agni has pervaded the entire property and the food grains of the hosts-Ritviz. Mother Usha has granted the excellent portion of the Yagy to her son Agni, transferred to her by Savita i.e., Sun. 
समाववर्ति विष्ठितो जिगीषुर्विश्वेषां कामश्चरताममाभूत्।
शश्वाँ अपो विकृतं हित्व्यागादनु व्रतं सवितुर्दैव्यस्य
स्वर्गीय सविता के व्रत की समाप्ति होने पर जयाभिलाषी राजा युद्ध यात्रा कर चुकने पर भी लौट आता है। सारे जंगम पदार्थ घर की अभिलाषा करते और सदा कार्यरत् व्यक्ति अपने किये आधे कर्म को भी छोड़कर घर की ओर लौट आते हैं।[ऋग्वेद 2.38.6]
सविता के दिव्य व्रत की समाप्ति पर रथ से विजय की कामना करने वाला राजा लौटता है। सभी जंगम पदार्थ अपने पास की अभिलाषा करते और कर्म में लगे प्राणी अपने कार्यों के अधूरा रहने पर भी घर की ओर चल देते हैं।
The winning kings too return to their camps, from the battle field as soon as the Sun sets. All movable-living beings busy with their work return home, leaving behind their work unfinished (to complete the next day).
त्वया हितमप्यमप्सु भागं धन्वान्वा मृगयसो वि तस्थुः।
वनानि विभ्यो नकिरस्य तानि व्रता देवस्य सवितुर्मिनन्ति
हे सविता देव! अन्तरिक्ष में आपने जो जल-भाग रख छोड़ा है, जलान्वेषण कर्त्ता लोग चारों ओर उसे पाते हैं। आपने पक्षियों के लिए वृक्षों का विभाग किया है। कोई भी सविता के कार्य की हिंसा नहीं कर सकता।[ऋग्वेद 2.38.7]
हे सवितादेव! अंतरिक्ष में तुम्हारे द्वारा दृढ़ जल भाग को खोज करने वाले पाते हैं। तुमने पक्षियों के निवास के लिए वृक्षों का विभाजन किया। तुम्हारे कर्म को कोई नहीं रोक सकता।
Hey Savita Dev! The water left over in the sky-space, is found by those who wish to trace-find it. You have reserved the trees for the residence of the birds. No one can challenge your authority.
याद्राध्य वरुणो योनिमप्यमनिशितं निमिषि जर्भुराणः।
विश्वो मार्ताण्डो व्रजमा पशुर्गात्स्थशो जन्मानि सविता व्याकः
सविता के अस्त होने पर सदा गमनशील वरुण देव सारे जंगम पदार्थों को सुखकर, वाञ्छनीय और सुगम वास स्थान प्रदान करते हैं। जिस समय सविता सारे भूतों को स्थान-स्थान पर अलग अलग कर देते हैं, उस समय पशु-पक्षी गण भी अपने-अपने स्थान को चले जाते हैं।[ऋग्वेद 2.38.8]
सूर्य अस्त होने पर गतिमान वरुण समस्त जंगम पदार्थों को सुख प्रदान करने वाले, आवश्यक और आसान निवास को ग्रहण होते हैं। 
Varun Dev provide appropriate-comfortable shelter to each and every living being after the Sun set. When Savita dev distinguishes-separates the place of living, all animals & birds return to their habitat.
The ever-going Varun Dev grants a cool, accessible and agreeable place for rest, to all moving creatures-beings on the closing of the eyes of Savita Dev and every bird and every beast repairs to its lair when Savita Dev has dispersed all beings in various directions.
न यस्येन्द्रो वरुणो न मित्रो व्रतमर्यमा न मिनन्ति रुद्रः।
नारातयस्तमिदं स्वस्ति हुवे दैवं सवितारं नमोभिः
इन्द्र देव जिसके व्रत की हिंसा नहीं करते, वरुण, मित्र, अर्यमा और रुद्र भी हिंसा नहीं करते, शत्रुगण भी हिंसा नहीं करते, उन्हीं द्युतिमान् सविता को कल्याण के लिए इस प्रकार नमस्कार द्वारा हम आह्वान करते हैं।[ऋग्वेद 2.38.9]
इन्द्र, वरुण, मित्र, अर्यमा, रुद्र और शत्रु भी जिसके वृत्र को नहीं रोक सकते। उसी प्रकाशवान सूर्य को मंडल के लिए हम मस्तक नवाकर आमंत्रित करते हैं।
We invoke Savita Dev-Sun, who is not opposed by Indr, Varun, Mitr, Aryma, Rudr and even the enemies, by lowing our heads in his honour.
भगं धियं वाजयन्तः पुरंधिं नराशंसो ग्नास्पतिर्नो अव्याः। 
आये वामस्य संगथे रयीणां प्रिया देवस्य सवितुः स्याम
जिनकी स्तुति सारे मनुष्य करते हैं, जो देवपत्नियों के रक्षक हैं, वे ही सवितादेव हमारी रक्षा करें। हम भजनीय, बहुप्रज्ञ और ध्यान योग्य सविता को बलवान् करते हैं। हम धन और पशु की प्राप्ति के और संचय के सम्बन्ध में सवितादेव के प्रिय होकर रहें।[ऋग्वेद 2.38.10]
सभी प्राणी जिसकी वंदना करते हैं जो देव पत्नियों के रक्षक हैं वे सूर्य हमारे रक्षक हों। भजन और ध्यान के योग्य प्रतापी सूर्य को हम प्रसन्न करते हैं। धन और पशु को प्राप्त कर सुरक्षित रहने की कामना से हम सविता देव का सद्भाव चाहते हैं।
Let Savita Dev, who is the protector of goddesses-wives of the demigods and worshiped prayed by all humans, protect us. We worship-pray Sun through hymns and meditation, to keep him happy and healthy. We wish to have wealth and cattle and remain protected by Savita Dev along with his goodwill. 
अस्मभ्यं तद्दिवो अद्भ्यः पृथिव्यास्त्वया दत्तं काम्यं राध आ गात्।
शं यत्स्तोतृभ्य आपये भवात्युरुशंसाय सवितर्जरित्रे
हे सविता देव! आपने हमें जो प्रसिद्ध और रमणीय धन प्रदान किया है, वह द्युलोक, भूलोक और अन्तरिक्ष लोक से हमारे पास आवे। जो धन स्तोताओं के वंशजों के लिए शुभकर है। मैं बहुत-बहुत स्तुति करता हूँ कि मुझे वही धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 2.38.11]
हे सूर्यदेव! तुमने हमें जो प्रसिद्ध और मनोरम धन प्रदान किया है, वह अद्भुत संसार, धरा और अंतरिक्ष से हमको प्राप्त हो। जो धन प्रार्थना करने वालों के वंशजों के लिए कल्याणकारी है, वही धन मुझे प्रदान करो। मैं तुम्हारी भली-भांति अत्यन्त वदंना करता हूँ।
Hey Sury Dev! The wealth granted by you, should come to us from the heavens, earth and the space. It should be auspicious to our next generation-progeny.  We pray to you again and again to be given that auspicious wealth.
ऋग्वेद संहिता, द्वितीय मण्डल सूक्त (39) :: ऋषि :- गृत्समद, भार्गव, शौनक, देवता :- अश्विनी  कुमार, छन्द :- त्रिष्टुप।
ग्रावाणेव तदिदर्थं जरेथे गृधेव वृक्षं निधिमन्तमच्छ।
ब्रह्माणेव विदथ उक्थशासा दूतेव हव्या गन्या पुरुत्रा
हे अश्विनी कुमारो! शत्रुओं के प्रति प्रेरित प्रस्तर खण्डद्वय की तरह शत्रु को बाधा दें। जैसे दो पक्षी वृक्ष पर आते हैं, वैसे ही आप भी यजमान के निकट आवें। मंत्रोच्चारक ब्रह्मा नाम के ऋत्विक् और देश में दो दूतों की तरह आप बहुतों के आह्वान योग्य हैं।[ऋग्वेद 2.39.1]
हे अश्विनी कुमारो! पत्थर को दो शिलाओं की तरह शत्रुओं को बाँध दो। वृक्ष पर दो पक्षियों के आकर विराजमान होने के तुल्य तुम दोनों भी यजमान के पास पधारने वाले होओ। मंत्रोच्चारणकर्त्ता ब्रह्म पद वाले ऋत्विज और दो राजदूतों की तरह तुम आह्वान करने योग्य हो।
Hey Ashwani Kumars! Tie the enemy like the rocks thrown over the enemies.  Come to the hosts, Ritviz like the birds which comes to the tree. You deserve invitation-revoke like the Ritviz named Brahma and the two ambassadors in the country.    
प्रातर्यावाणा रथ्येव वीराजेव यमा वरमा सचेथे।
मेनेइव तन्वाशुम्भमाने दम्पतीव क्रतुविदा जनेषु
हे अश्विनी कुमारो! प्रातःकाल जाने वाले दो रथियों की तरह आप महारथी वीर हैं, दो जुड़वा भाई जैसे हैं, दो स्त्रियों की तरह सुन्दर शरीर वाले हैं, दम्पति की तरह समान परस्पर सम्बन्ध रखकर कार्य करने वाले हैं, आप दोनों अपने श्रेष्ठ भक्तों के पास जाते हैं।[ऋग्वेद 2.39.2]
हे अश्विद्वयो! तुम प्रातः गमन करने वाले दो रथियों के समान महान, सहजन्मा के तुल्य यमज, दो सुन्दरियों के तुल्य यशस्वी, दम्पत्ति के तुल्य सहकर्मी तथा समस्त कर्मों के ज्ञाता हो। तुम दोनों अपने आराधक को ग्रहण होओ।
Hey Ashwani Kumars! Both of you are like the twins & the greatest warriors riding charoite in the battle field. You have beautiful-handsome bodies, mutually agreeable like the couple and move to the excellent devotees.  
शृङ्गेव नः प्रथमा गन्तमर्वाक्छफाविव जर्भुराणा तरोभिः। 
चक्रवाकेव प्रति वस्तोरुस्रार्वाञ्चा यातं रथ्येव शक्रा
हे देवों में प्रथम अश्विनी कुमारो! आप पशु की दोनों सींगों या अश्व आदि के दोनों खुरों की तरह वेगवान् होकर हमारे सामने आवें। शत्रुहन्ता और स्वकर्म समर्थ अश्विनी कुमारो! जिस प्रकार से दिन में चक्रवाक-दम्पती आते हैं अथवा जैसे दो रथी आते हैं, वैसे ही आप हमारे सामने पधारें।[ऋग्वेद 2.39.3]
हे अश्विद्वय! तुम देवगणों में प्रथम हो। तुम पशु के दो सींगों के समान विशिष्ट और अश्वादि के खुरों के समान वेगवान हुए विराजो! तुम शत्रुओं का सहारा करने वाले और अपने कर्म समर्थ वाले हो। जैसे दिन में चकवा चकवी आते हैं, वैसे ही हमारे समक्ष आओ।
Hey Ashwani Kumars! You are first amongest the demigods-deities. Come to us quickly either like the two horns of the animals or the two hoofs of the horses. Hey Ashwani Kumars! You are the slayer of the enemy and capable of discharging your own duties. Come to us during the day like the two charioteers or the pair-couple of Chakrvak birds.
नावेव नः पारयत युगेव नभ्येव न उपधीव प्रधीव। 
श्वानेव नो अरिषण्या तनूनां खृगहेव वित्रसः पातमस्मान्
हे अश्विनी कुमारो! नौका की तरह आप हमें पार उतार दें। रथ के युग की तरह, रथचक्र के नाभि फलक की तरह उसके पार्श्वस्थ फलक की तरह और चक्र के बाह्यदेश के बलय की तरह हमें पार करें। दो कुक्कुरों की तरह आप हमारे शरीर को हिंसा से बचावें। दो वर्म की तरह आप हमें वृद्धावस्था से बचावें।[ऋग्वेद 2.39.4]
हे अश्विनी कुमारो! जैसे नाव पार लगाती है वैसे ही हमको पार लगाओ। रथ के दोनों पहियों की तरह ढोकर हमको पार करो। हिंसा से हमारी रक्षा करो।
Hey Ashwani Kumars! Sail us like the boat across the worldly affairs (leading to Salvation-emancipation). Let us be moved across the ocean named world like the axels & wheels of the charoite. Protect our bodies from violence like the pet dogs. Protect us like the medicines from old age. 
वातेवाजुर्या नद्येव रीतिरक्षीइव चक्षुषा यातमर्वाक्। 
हस्ताविव तन्वेशंभविष्ठा पादेव नो नयतं वस्यो अच्छ
हे अश्विनी कुमारो! दो वायुओं की तरह अक्षय, दो नदियों की तरह शीघ्रगामी और दो मंत्रों की तरह दर्शक हैं। आप हमारे सामने आयें। आप दोनों हाथों और पैरों की तरह शरीर के सुख दाता हैं। आप हमें श्रेष्ठ धन की ओर ले जावें।[ऋग्वेद 2.39.5]
हे अश्विनी कुमारों! तुम पवनों के तुल्य अक्षय, नदियों के तुल्य गतिवाले तथा मंत्रों के तुल्य दर्शनीय हो। हमारे यहाँ आओ। तुम दोनों हाथ और दोनों पैरों के तुल्य शरीर के सुख प्रदान करने वाले हो। तुम हमें श्रेष्ठ धन ग्रहण कराओ।
Hey Ashwani Kumars! You are comparable to the two streams of air, two rivers and the two Mantr. Come to us. You grant us comforts like the two hands and two legs provide comfort to the body. Direct us to the excellent wealth.
Every one in this universe crave for money and forget the health. Mental, physical & spiritual health is th real wealth. 
ओष्ठाविव मध्वास्ने वदन्ता स्तनाविव पिप्यतं जीवसे नः। 
नासेव नस्तन्वो रक्षितारा कर्णाविव सुश्रुता भूतमस्मे
हे अश्विनी कुमारो! दोनों ओठों की तरह मधुर वाक्य का उच्चारण करें, दोनों स्तनों की तरह हमारे जीवन धारण के लिए दूध पिलावें, दोनों नाकों की तरह हमारे शरीर के रक्षक होवें और दोनों कानों की तरह हमारे श्रोता होवें।[ऋग्वेद 2.39.6]
हे अश्विद्वय! जैसे दोनों होठों से मधुर वचन निकलते हैं वैसे ही मधुर बात कहो। जैसे दोनों स्तनों से दूध निकलता है, हमारे जीवन को भी वैसे रस से युक्त करो। नाक के दोनों स्वरों के समान हमारे रक्षक बनो। तुम कानों के समान हमारी वंदना को सुनो।
Hey Ashwani Kumars! Recite beautiful sentences-stanzas (Hymns) dear to listen. Let us be fed-nourished like feeding-sucking milk through both breasts of the mother. Be protective like the two nostrils. Be our listeners trough both the ears.
हस्तेव शक्तिमभि संददी नः क्षामेव नः समजतं रजांसि। 
इमा गिरो अश्विना युष्मयन्तीः क्ष्णोत्रेणेव स्वधितिं सं शिशीतम्
हे अश्विनी कुमारो! दोनों हाथों की तरह हमें सामर्थ्य प्रदान करें। द्यावा-पृथ्वी की तरह हमें जल दें। हे अश्विनी कुमारो! ये सब स्तुतियाँ आपको चाहती हैं। आप शान चढ़ाने के यंत्र के द्वारा तलवार की तरह उन्हें तीक्ष्ण करें।[ऋग्वेद 2.39.7]
हे अश्विद्वयों! दोनों हाथों के तुल्य हमको शक्ति प्रदान करो। अम्बर-धरा के तुल्य अल प्रदान करो। ये वंदनायें तुम्हारी इच्छा करती हैं। जैसे धार रखने वाले यंत्र तलवार की धार को तेज करता है। वैसे ही तुम वंदनाओं को तीक्ष्ण बनाओ। 
Hey Ashwani Kumars! Grant us strength, power, might through both the hands. Grant us water like the sky-horizon and the earth. Hey Ashwani Kumars! All the prayers desire-wish to be sung in your honour. You should sharpen them over the grinding disc, like sharpening the sword.  
एतानि वामश्विना वर्धनानि ब्रह्म स्तोमं गृत्समदासो अक्रन्।
तानि नरा जुजुषाणोप यातं बृहद्वदेम विदथे सुवीराः
हे अश्विनी कुमारो! गृत्समद ऋषि ने आपकी वृद्धि के लिए ये सब स्तोत्र और मंत्र बनाये हैं। आप नेता और अतीव प्रीति वाले हैं। आपके पास ये सब स्तुतियाँ पहुँचें। हम पुत्र और पौत्र वाले होकर इस यज्ञ में प्रभूत स्तुति करें।[ऋग्वेद 2.39.8] 
हे अश्विद्वय! गृत्समद ऋषि द्वारा बनाए गए ये श्लोक तुम्हारी वृद्धि करने वाले हैं। तुम सबके स्वामी और प्रिय हो। ये प्रार्थनाएँ तुमको प्राप्त हों। हम पुत्र-पौत्र युक्त हुए इस यज्ञ में अत्यन्त वंदना करेंगे।
Hey Ashwani Kumars! Gratsamad Rishi has composed all these Strotr-hymns and the Mantr for you. You are leaders and affectionate. Let all our prayers reach you. Let us have sons and grand sons and pray-worship you in our Yagy.
ऋग्वेद संहिता, द्वितीय मण्डल सूक्त (40) :: ऋषि :- गृत्समद, भार्गव, शौनक, देवता :- सोम, पूषा, अदिति, छन्द :- त्रिष्टुप।
सोमापूषणा जनना रयीणां जनना दिवो जनना पृथिव्याः।
जातौ विश्वस्य भुवनस्य गोपौ देवा अकृण्वन्नमृतस्य नाभिम्
आप धन, द्युलोक और पृथ्वी के पिता है। जन्म के अनन्तर ही आप सारे संसार के रक्षक हुए हैं। देवों ने आपको अमृत का केन्द्र बनाया है।[ऋग्वेद 2.40.1]
तुम धन, अम्बर, और धरा के पिता हो। जन्म लेने के बाद ही तुम संसार के रक्षक बन गये। देवताओं ने तुम्हें अमरत्व प्रदान करने वाला बनाया।
You are the father of the heavens, wealth and the earth. You turned into the protector of the universe soon after your birth. The demigods-deities have made you the centre of nectar, elixir, ambrosia, Amrat.
इमौ देवौ जायमानौ जुषन्तेमौ तमांसि गूहतामजुष्टा। 
आभ्यामिन्द्रः पक्वमामास्वन्तः सोमापूषभ्यां जनदुत्रियासु
जन्मते ही द्युतिमान् सोम और पूषा की देवों ने सेवा की। ये दोनों अप्रिय अन्धकार का विनाश करते हैं। इनके साथ इन्द्र देव तरुणी, धेनुओं के अधः प्रदेश में पक्व दुग्ध उत्पन्न करते हैं।[ऋग्वेद 2.40.2]
तेजस्वी सोम और पूषा के जन्म लेते ही देवों ने उनकी सेवा की। इन दोनों ने अहितकर अंधकार को मिटाया। इनकी सहायता से इन्द्र युवती धेनुओं के निम्नवत हिस्से वाले भाग में दुग्ध को रचित करते हैं।
The demigods-deities served bright Som-Moon and Pusha as soon as they took birth. Indr Dev evolved milk in the udder of the cows.
सोमापूषणा रजसो विमानं सप्तचक्रं रथमविश्वमिन्वम्। 
विषूवृतं मनसा युज्यमानं तं जिन्वथो वृषणा पञ्चरश्मिम्
हे अभीष्ट वर्षी सोम और पूषा! आप संसार के विभाजक, सप्त चक्र (सात ऋतु, मलमास लेकर) वाले संसार के लिए अविभाज्य, सर्वत्र वर्तमान और पंच रश्मि (पाँच ऋतू, हेमन्त और शीत को एक में करके) वाले हैं। इच्छा उत्पन्न होते ही योजित रथ हमारे सामने प्रेरित करते हैं।[ऋग्वेद 2.40.3]
इच्छित वर्षों में सोम और पूषा! तुमने संसार का विभाजन किया, तुम मल मास रहित सातों ऋतुओं से युक्त संसार के लिए पांच किरणों से युक्त हो। कामना करते ही अपना जाता हुआ रथ हमारे सम्मुख लाते हो।
Accomplishment fulfilling Som & Pusha! You divide the universe-year in seven cycles i.e., seasons and join the five seasons with Hemant and winter. Your charoite come to us as soon we desire.
In general we observe 4 seasons but in reality they are 6 in number. Though there are 12 months in a year according to ancient Hindu calendars and yet the 13th month is added for correction, since lunar mass varies considerably in number of days from 27 to 31. 
Please refer to ::  ANCIENT HINDU CALENDAR  काल गणना santoshkipathshala.blogspot.com
दिव्य १ न्यः सदनं चक्र उच्चा पृथिव्यामन्यो अध्यन्तरिक्षे। 
तावस्मभ्यं पुरुवारं पुरुक्षं रायस्पोषं वि ष्यतां नाभिमस्मे
आप में से एक जन (पूषा) उन्नत द्युलोक में रहते हैं। दूसरे (सोम) औषधि रूप से पृथ्वी  और चन्द्र रूप से अन्तरिक्ष में रहते हैं। आप दोनों अनेक लोगों में वरणीय, बहुकीर्तिशाली हमारे भाग का कारण और पशु-रूप धन हमें प्रदान करें।[ऋग्वेद 2.40.4]
सोम पूषा औषधि रूप से पृथ्वी पर तथा चन्द्रमा रूप से उन्नतशील अम्बर में निवास करते हैं। तुम दोनों प्रशंसा योग्य, वरण करने के योग्य, सुन्दर पशु धन प्रदान करो।
One of you, Pusha resides-lives in the heaven and the second i.e., Som lives over the earth in the form of medicines (Ayur Vedic Medicines herbs). Som lives in space as a material object-satellite of earth. Both of you are appreciable & acceptable to most of the people. Grant our share of riches in the form of cattle. 
विश्वान्यन्यो भुवना जजान विश्वमन्यो अभिचक्षाण एति। 
सोमापूषणाववतं धियं मे युवाभ्यां विश्वाः पृतना जयेम
हे सोम और पूषा! आपमें से एक (सोम) ने सारे भूतों को उत्पन्न किया। दूसरे (पूषा) सारे संसार का पर्यवेक्षण करते हैं। हे सोम और पूषा! आप हमारे कर्म की रक्षा करें। आपकी सहायता से हम शत्रु सेना पर विजय प्राप्त करें।[ऋग्वेद 2.40.5]
हे सोम और पूजन! तुमने समस्त भूतों को प्रकट किया। पूषा समस्त संसार को देखते हैं। तुम दोनों हमारे कार्यों के रक्षक हो। तुम्हारी शक्ति से हम शत्रु सेना को विजय कर लें। 
Hey Som & Pusha! Som is the creator of all that which has been perished-past. Pusha observes the universe. Hey Som & Pusha! Let both of you become the protector of our endeavours-duty. We should win the enemy with your help. 
धियं पूषा जिन्वतु विश्वमिन्वो रयिं सोमो रयिपतिर्दधातु। 
अवतु देव्यदितिरनर्वा बृहद्वदेम विदथे सुवीराः
संसार को प्रसन्नता देने वाले पूषा हमारे कर्म से तृप्ति प्राप्त करें। धनपति सोम हमें धन प्रदान करें। द्युतिमती और शत्रु रहिता अदिति हमारी रक्षा करें। हम सुसंतति युक्त होकर यज्ञ में आपका यशोगान करें।[ऋग्वेद 2.40.6]
संसार को सुख प्रदान करने वाले पूषा हमारे कर्म से संतुष्ट हों। धन से सम्पन्न सोम हमको धन दें। तेजस्विनी, अदिति शत्रुओं से हमारी रक्षा करें। हम पुत्र और पौत्रों से युक्त, यज्ञ में अधिक श्लोक पाठ करेंगे।
Let Pusha who grant happiness-pleasure to the whole world be satisfied with our endeavours-deeds. Let-wealthy Som grant us riches. Let glorious-bright Aditi having no enemy, protect us. We should sing your glory blessed with sons and grandsons. 
ऋग्वेद संहिता, द्वितीय मण्डल सूक्त (41) :: ऋषि :- गृत्समद, भार्गव, शौनक, देवता :- इन्द्र, वायु, मित्र, वरुण, प्रभृति, छन्द :- गायत्री, अनुष्टुप, उष्ण, बृहती
वायो ये ते सहस्रिणो रथासस्तेभिरा गहि। नियुत्वान्त्सोमपीतये
हे वायु देव! आपके पास जो हजार रथ हैं, उनके द्वारा नियुत्गण से युक्त होकर सोम पान के लिए पधारें।[ऋग्वेद 2.41.1]
हे वार्या। अपने हजारों रथ द्वारा, मरुद्गण से परिपूर्ण होकर सोमपान के लिए पधारो मरुद्गण युक्त पधारो। 
Hey Vayu Dev (deity of air)! Come to us, riding your thousands charoites along with Marud Gan to drink Somras.
नियुत्वान्वायवा गायं शुक्रो अयामि ते। गन्तासि सुन्वतो गृहम् 
हे वायुदेव! नियुतगण से युक्त होकर आयें। आपने दीप्तिमान् सोमरस ग्रहण किया है। सोमाभिषवकारी यजमान के घर में आप जाते है।[ऋग्वेद 2.41.2]
तुमने तेज से परिपूर्ण सोम को पिया है। तुम सोम सिद्ध करने वाले के घर को ग्रहण हो।
Hey Vayu Dev! Come to us along with the Marud Gan. You have drunk energetic Somras. You visit the house-family of the Ritviz-household who extract Somras for you.
शुक्रस्याद्य गवाशिर इन्द्रवायू नियुत्वतः। आ यातं पिबतं नरा 
हे नेता इन्द्र देव और वायु देव! आप आज नियुत्गण से युक्त होकर और सोम के लिए आकर गव्य मिला सोमरस पीवें।[ऋग्वेद 2.41.3]
हे इन्द्र और वायु! तुम मरुद्गण से युक्त हुए सोम के लिए यहाँ पर आओ और दूध मिश्रित सोम रस को पीयें।
Hey Indr Dev & Vayu-Pawan Dev! Come to us along with Marud Gan and drink the Somras mixed with cow milk. 
अयं वां मित्रावरुणा सुतः सोम ऋतवृधा। ममेदिह श्रुतं हवम्
हे सत्य वर्द्धक मित्रावरुण! आपके लिए यह सोमरस तैयार हुआ है। आप हमारा आह्वान श्रवण करें।[ऋग्वेद 2.41.4]
हे मित्रावरुण! यह सोमरस तुम्हारे लिए ही सिद्ध किया गया है। तुम सत्य की वृद्धि करने वाले हो। हमारे आह्वान की सुनो।
Hey truth encouraging Mitravarun!  This Somras has been extracted for you.  Listen-respond to our prayers.
राजानावनभिद्रुहा ध्रुवे सदस्युत्तमे। सहस्रस्थूण आसाते
शत्रुता शून्य राजा मित्रावरुण स्थिर, उत्कृष्ट और हजार स्तम्भों वाले इस स्थान पर विराजित हो।[ऋग्वेद 2.41.5]
द्वेष रहित सबके दाता मित्रावरुण इस सर्वश्रेष्ठ स्थिर तथा स्तम्भ वाले स्थान पर पधारें।
Free form enmity, king Mitravarun occupy this excellent place made of one thousand pillars.  
ता सम्राजा घृतासुती आदित्या दानुनस्पती। सचेते अनवह्वरम्
सम्राट् घृताभोजी अदिति पुत्र और दाता मित्रावरुण सरल गति से यजमान की सेवा करते हैं।[ऋग्वेद 2.41.6]
सब के राजा, घी रूप अश्व सेवन करने वाले दान शील अदिति पुत्र, सखा वरुण, आसान स्वभाव वाले यजमान का कर्म करते हैं।
Son of Aditi, emperor Mitravarun who likes eating Ghee, helps-serves the hosts, house hold, Ritviz.
गोमदू षु नासत्याऽश्वावद्यातमश्विना। वर्ती रुद्रा नृपाय्यम्
हे अश्विनी कुमारो! हे सत्य सेवी रुद्र देवों! जिस सोमरस का पान यज्ञ में नेतृत्व प्रदान करने वाले लोग करेंगे, उस सोमरस को धेनु और अश्व से युक्त करके तथा रथ पर लेकर आयें।[ऋग्वेद 2.41.7]
असत्य रहित दोनों अश्विनों कुमारों रुद्र यज्ञ में अग्रणी जो सोमरस प्राप्त करेंगे उस सोम के लिए घोड़े परिपूर्ण रथ पर यहाँ पधारो।
Hey truthful Ashwani Kumars! Bring the Somras for the leaders in this Yagy, associated with cows & horses, riding your charoite. 
न यत्परो नान्तर आदघर्षषण्वसू। दुःशंसो मर्त्यो रिपुः
हे धनवर्षी अश्विनी कुमारों! दूर स्थित वा समीप वर्ती मन्द भाषी मर्त्यरिपु जिस धन को नहीं चुरा सकता, उसे हमें प्रदान करें।[ऋग्वेद 2.41.8]
धन की वर्षा करने वाले दोनों अश्विनी कुमार पास या दूर के उस धन को जिसे मनुष्यों का शत्रु छीन नहीं सकता हमको प्रदान करो।
Hey wealth showering Ashwani Kumars! Enrich us with the wealth, which the near or far enemy, can not steal.
ता न आ वोळ्हमश्विना रयिं पिशङ्गसंदृशम्। धिष्ण्या वरिवोविदम् 
हे ज्ञानार्ह अश्विनी कुमारों! आप हमारे पास नाना रूप और धन प्रापक धन ले आयें।[ऋग्वेद 2.41.9]
हे अश्विनी कुमारों! तुम हमारे लिए विभिन्न प्रकार का पालन करने वाला श्रेष्ठ धन लेकर आओ। 
Hey enlightened Ashwani Kumars! Bring to us various kinds of excellent riches.
  इन्द्रो अङ्ग महद्भयमभी षदप चुच्यवत्। स हि स्थिरो विचर्षणिः 
इन्द्र देव अधिक और अभिभवकारी भय को दूर करते हैं। वे स्थिर प्रज्ञावान् हैं।[ऋग्वेद 2.41.10]
वे इन्द्र अत्यन्त मेधावी हैं। वे हमको संसार के अपमानजनक और पराजयकारी भय से छुड़ाते हैं। 
Indr Dev relieves from the fears of defeat and insult. He is intelligent, prudent and firm.
इन्द्रश्च मृळ्याति नो न नः पश्चादघं नशत्। भद्रं भवाति नः पुरः
यदि इन्द्र देव हमें सुखी करें, तो हमारे संग पाप नहीं आएगा; हमारे सामने कल्याण उपस्थित होगा।[ऋग्वेद 2.41.11]
इन्द्र देव हमको सुख प्रदान करने की कामना करें तो पाप हमारे निकट नहीं आयेगा, हमको कल्याणप्रद होगा। 
Indr Dev's wishes for our welfare will keep the sins off.
इन्द्र आशाभ्यस्परि सर्वाभ्यो अभयं करत्। जेता शत्रून्विचर्षणिः
प्रज्ञावान् और शत्रु जेता इन्द्र चारों ओर से हमें भय से मुक्त करें।[ऋग्वेद 2.41.12]
इन्द्र देव मतिवान शत्रुओं को विजय करने की शक्ति रखते हैं। वे ही हमें अभय बनायें।
Let intelligent, prudent, winner of the enemy Indr Dev free-relieve us from fear. 
विश्वे देवास आ गत शृणुता म इमं हवम्। एदं बर्हिर्नि षीदत
हे विश्व देवगण! यहाँ पधारें। हमारा आह्वान श्रवण करें और कुश के ऊपर बैठे।[ऋग्वेद 2.41.13]
हे विश्वेदेवो! यहाँ आओ और हमारे आह्वान को सुनते हुए इस कुश पर प्रतिष्ठित होओ।
Hey Vishw Devs! Come to us. Listen-respond to our prayers occupying the Kush cushion. 
तीव्रो वो मधुमाँ अयं शुनहोत्रेषु मत्सरः। एतं पिबत काम्यम्
हे विश्व देवगण! तीव्र मद वाला, रस शाली और हर्ष कर यह सोमरस आपके लिये गृत्समद वंशीयों के पास है। इस शोभन सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 2.41.14]
हे विश्वेदेवों! गृत्समद वंशज के निकट बहुत ही हर्षकारक सोम से परिपूर्ण पुष्टिवर्द्धक सोम तुम्हारे लिए हैं। शक्ति से परिपूर्ण सोमरस का पान करो।
Hey Vishw Devs! Nourishing, pleasure granting Somras is available with the descendants of Gratsamad. Enjoy-drink this Somras.
इन्द्रज्येष्ठा मरुद्गणा देवासः पूषरातयः। विश्वे मम श्रुता हवम्
जिन मरुतों में इन्द्र देव श्रेष्ठ हैं, जिनके दाता पूषा हैं, वे ही मरुद्गण हमारा आह्वान श्रवण करें।[ऋग्वेद 2.41.15]
जिन मरुद्गण में इन्द्रदेव सर्वश्रेष्ठ हैं, जिनको पूषा दान प्रदान करने वाले हैं, वे मरुद्गण हमारे आह्वान को सुनें।
The Marud Gan, amongest whom, Indr Dev is the best, who's benefactor is Pusha Dev, listen-respond to our prayers.
अम्बितमे नदीतमे सरस्वति।
अप्रशस्ताइव स्मसि प्रशस्तिमम्ब नस्कृधि
हे मातृ गण में श्रेष्ठ, नदियों में श्रेष्ठ और देवों में श्रेष्ठ सरस्वती देवी! हम दरिद्र है, हमें धन से परिपूर्ण करें।[ऋग्वेद 2.41.16]
माताओं और सरिताओं में श्रेष्ठता प्राप्त सरस्वती हम निर्धनों को धनी बनायें।
Saraswati Devi is best amongest the mothers, the rivers and the goddesses. 
त्वे विश्वा सरस्वति श्रितायूंषि देव्याम्।
शुनहोत्रेषु मत्स्व प्रजां देवि दिदिड्डि नः
हे माता सरस्वती देवी! आप पावन करने वाले (इस) यज्ञ में प्रसन्न होकर उत्तम संतान प्रदत्त करें। आपका आश्रय प्राप्त होने पर ही हम अपने जीवन का सुख प्राप्त करेंगे।[ऋग्वेद 2.41.17]
हे सरस्वती! तुम कांतिमय हो। तुम्हारे आश्रय में अन्न का वास है। यज्ञ में सोम पीकर संतुष्ट होओ। हे सरस्वती! तुम हमको पुत्र रूप संतान प्रदान करो।
Hey Maa Saraswati Devi! You should be happy in purifying Yagy and grant us progeny. We will be able to make our lives happy under your patronage-asylum.
इमा ब्रह्म सरस्वति जुषस्व वाजिनीवति। 
या ते मन्म गृत्समदा ऋतावरि प्रिया देवेषु जुह्वति
हे अन्नवती और जलवती सरस्वती देवी! इस हव्य को स्वीकार करें। यह माननीय और देवों के लिए प्रिय हैं। गृत्समद लोग इसे आपको देते हैं।[ऋग्वेद 2.41.18]
अन्न और जल से परिपूर्ण महान देवी सरस्वती इस हवि को स्वीकृत करें। यह हवि रमणीय है, देवगण इसे चाहते हैं। गृत्समदवंशी इस हवि को तुम्हें प्रदान करते हैं।
Hey food and water granting Devi Maa Saraswati! Accept this offering. This is liked-loved by the honourable demigods-deities. Gratsamad  family offer this to you.
प्रेतां यज्ञस्य शंभुवा युवामिदा वृणीमहे। अग्निं च हव्यवाहनम्
हे यज्ञ के सुख-सम्पादक द्यावा-पृथ्वी! आप आवें। हम आपकी प्रार्थना करते हैं। हम हव्य वाहन अग्निदेव की भी प्रार्थना करते है।[ऋग्वेद 2.41.19]
हे धरा अम्बर! तुम अनुष्ठान की सुसम्पादिका हो। इस अनुष्ठान में पधारो। हम तुम्हारी वंदना करते हैं तथा हविवाहक अग्निदेव का भी पूजन करते हैं। 
Hey comfort accomplishing horizon and earth! Come to us. We are praying to you. We pray to Agni Dev too, who is the carrier of the offerings in the Yagy. 
द्यावा नः पृथिवी इमं सिध्रमद्य दिविस्पृशम्। यज्ञं देवेषु यच्छताम्
द्यावा-पृथ्वी स्वर्ग आदि के साधक सौर देवों की ओर जाने वाली हैं। हमारे इस यज्ञ को देवों के पास ले जावें।[ऋग्वेद 2.41.20]
हे आसमान धरती! तुम बैकुण्ठ आदि की साधना सफल करने वाली हो और देवताओं की ओर जाया करती हो। हमारे इस यज्ञ को देवगणों के समीप पहुँचाओ।
Hey sky & the earth you accomplishes the desires-efforts for heavens & Vaekunth Lok. Carry our Yagy to the demigods-deities.
आ वामुपस्थमद्रुहा देवाः सीदन्तु यज्ञियाः। इहाद्य सोमपीतये
हे द्यावा-पृथ्वी! आपस में सम्बन्ध रहने वाले आप द्वेष और शत्रुता से मुक्त हों, आज इस यज्ञ में आने वाले देवता सोमरस का पान करने के लिए आपके पास विराजित हों।[ऋग्वेद 2.41.21]
हे अम्बर धरा! तुम द्वेष और शत्रुता से पृथक रहो। इस अनुष्ठान में अग्नि वाले देवगण आज सोम पान करने हेतु तुम्हारे निकट पधारें।
Hey sky & the earth! Keeping mutual relations be free from enmity. The demigods-deities participating in this Yagy be by your side.
ऋग्वेद संहिता, द्वितीय मण्डल सूक्त (42) :: ऋषि :- गृत्समद, भार्गव, शौनक, देवता :- कपिंजल, इन्द्र, छन्द :- जगती, अशिक्वरी।
कनिक्रदज्जनुषं प्रब्रुवाण इयर्ति वाचमरितेव नावम्।
सुमङ्गलच शकुने भवासि त्वा का चिदभिभा विश्या विदत्
बारम्बार शब्दायमान और भविष्य वक्ता कपिञ्जल जैसे कर्णधार नौका को परिचालित करता है, वैसे ही वाक्य को प्रेरित करता है। हे शकुनि! आप कल्याण सूचक हो। किसी और किसी प्रकार की पराजय आपके पास न आवे।[ऋग्वेद 2.42.1]
बार-बार ध्वनि करने वाला भविष्य का निर्देश करने वाला कपिंजल जैसे नौका को चलाता है, वैसे ही वाणी को मार्ग दर्शन देता है। हे शकुनि (कौआ)! तुम मंगलप्रद होओ।किसी प्रकार की हार, कहीं से भी आकार तुमको ग्रहण न हो।
The way a boatman navigate the boat, fortune teller Kapinjal repeatedly pronounce-guide us. Hey Shakuni! You represent welfare. You should not face defeat in any way. 
Crying repeatedly, and foretelling what will come to pass, the Kapinjal gives due-suitable direction to through his voice, as a helmsman, guides a boat, be ominous, bird, of good fortune and may no calamity whatever befall you from any quarter.
कपिञ्जल :: Kapinjal, the Anukramanika has kanimatarupindro devata, francoline partridge.
मा त्वा श्येन उद्वधीन्मा सुपर्णो मा त्वा विददिषुमान्वीरो अस्ता।
पित्र्यामनु प्रदिशं कनिक्रदत्सुमङ्गलो भद्रवादी वदेह
हे शकुनि! आपको श्येन पक्षी न मारे गरुड़ पक्षी भी न मारे। वह बलवान, वीर और धनुर्धारी होकर आपको न प्राप्त करे। दक्षिण दिशा में बार-बार शब्द करके और सुमंगलशंसी होकर हमारे लिए प्रिय वादी बनें।[ऋग्वेद 2.42.2]
हे शकुनि! बाज पक्षी तुम्हारी हिंसा न करें। गरुड भी तुमको न मारे। वह वीर, बली हाथ में धनुष बाण लेकर भी तुम्हें प्राप्त न कर सके। तुम दक्षिण दिशा में लगातार शब्द करते हुए कल्याण सूचक हुए हमारे लिए प्रिय वचनों को बोलो।
Hey Shakuni! Let Shyen bird and Grud do not kill you. They should not kill you on being mighty, brave and bow-arrow wielding. Cry in the South repeatedly and become auspicious to us.   
अव क्रन्द दक्षिणतो गृहाणां सुमङ्गलो भद्रवादी शकुन्ते। 
मा नः स्तेन ईशत माघशंसो बृहद्वदेम विदथे सुवीराः
हे शकुनि! सुमंगल सूचक और प्रिय वादी होकर घर की दक्षिण दिशा में बोलो, जिससे चोर और दुष्ट व्यक्ति हमारे ऊपर प्रभुत्व न करे। पुत्र और पौत्र वाले होकर हम इस यज्ञ में प्रभूत स्तुति करें।[ऋग्वेद 2.42.3]
हे शकुनि! तुम घर की दक्षिणी दिशा में मृदुवाणी से कल्याण की खबर देने वाली ध्वनि उच्चारण करो। दुष्ट वञ्चक या असुर हमारे स्वामी एवं राजा न बन जायें। पुत्र-पौत्र से परिपूर्ण होकर हम उस अनुष्ठान में श्लोक का उच्चारण करेंगे।
Hey Shakuni! Be auspicious and spell lovely-pleasing words in the south direction of our homes, so that the thieves and the wicked do not over power us. We should have sons and grand sons and conduct out Yagy successfully.
ऋग्वेद संहिता, द्वितीय मण्डल सूक्त (43) :: ऋषि :- गृत्समद, भार्गव, शौनक, देवता :- कपिजल, इन्द्र, छन्द :- जगती, अशिक्वरी।
 प्रदक्षिणिदभि गृणन्तिकारवो वयो वदन्त ऋतुथा शकुन्तयः।
उभे वाचौ वदति सामगाइव गायत्रं च त्रैष्टुभं चानु राजति
समय-समय पर अन्न की खोज करके स्तोताओं की तरह शकुनि गण प्रदक्षिण करके शब्द करें। जिस प्रकार से साम गायक लोग गायत्री और त्रिष्टुप् (दोनों साम) का उच्चारण करते हैं, उसी प्रकार कपिञ्जल भी दोनों वाक्य का उच्चारण करते हुए श्रोताओं को अनुरक्त करते हैं।[ऋग्वेद 2.43.1]
समय-समय पर अन्न की खोज करने वाले पक्षीगण वदंना करने वालों की तरह परिक्रमा करते हुए सुन्दर ध्वनि उच्चारण करें। सोम गायको द्वारा गायत्री छन्द और त्रिष्टुप छन्द उच्चारण करने के तुल्य, कपिंजल भी दोनों प्रकार की वाणी करता हुआ सुनने वालों को मोहित कर लेता है। 
Time & again the Shakuni Gan (Crows) should produce sound while searching food like the Stota. The Kapinjal should recite two stanzas-Strotr, Mantr, hymns, the first Gayatri and the second Trishtup, both from Sam Ved amusing the listeners. 
उद्गातेव शकुने साम गायसि ब्रह्मपुत्रइव सवनेषु शंससि। वृषेव वाजी शिशुमतीरपीत्या सर्वतो नः शकुने भद्रमा वद विश्वतो नः शकुने पुण्यमा वद
हे शकुनि! जैसे उद्गीता साम गान (ऊँचे स्वर में गाया हुआ) करते हैं, वैसे ही आप भी गावें। यज्ञ में ब्रह्म पुत्र ऋत्विक् की तरह आप शब्द करें। जैसे सेचन समर्थ अश्व अश्वी के पास जाकर शब्द करता है, वैसे ही आप भी करें। हे शकुनि! आप सर्वत्र हमारे लिए मंगल सूचक और पुण्य जनक शब्द का उच्चारण करें।[ऋग्वेद 2.43.2]
हे शकुनि! सोम के उद्गाता जैसे सोम ग्रहण करते हैं, वैसे ही तुम भी सुन्दर गान करो यज्ञ में ऋत्विग्गण जैसे शब्द करते हैं, वैसे ही तुम भी करो। तुम सभी ओर से हमारे लिए पुष्य बढ़ाने वाले कल्याण की सूचना प्राप्त करते हो।
Hey Shakuni! You should sing the hymns of Sam Ved just like the singers of Sam Ved in loud voice. Sing it the way the son of Brahm Ritvik does. You should follow the manner-method in which the horse produce sound-neighing in the company of she horse-mare, inducing her for mating. Hey Shakuni! Always pronounce the words representing auspiciousness, welfare and virtues.
आवदंस्त्वं शकुने भद्रमा वद तूष्णीमासीनः सुमतिं चिकिद्धि नः। 
यदुत्पतन्वदसि कर्करिर्यथा बृहद्वदेम विदथे सुवीराः
हे शकुनि! जिस समय आप शब्द करते हैं, उस समय हमारे लिए मंगल सूचना करते है। जिस समय चुप रहकर आप बैठते हैं, उस समय हमारे प्रति सुप्रसन्न रहते हैं। उड़ने के समय आप कर्करि (एक बाजा) की तरह शब्द करते है। हम पुत्र और पौत्र वाले होकर इस यज्ञ में प्रभूत स्तुति करें।[ऋग्वेद 2.43.3] 
जब तुम चुप होकर बैठ जाते हो तब ऐसा जान पड़ता है कि तुम हमारे से प्रसन्न नहीं हो। जब तुम उड़ते हो तब कर्करि के समान मृदु ध्वनि करते हो। हम पुत्र और पौत्रवान हुए इस अनुष्ठान में रचित हुई प्रार्थनाओं का गान करेंगे।
Hey Shakuni-crow! You always caw-produce sound indicating our welfare. When ever you sit silently we assume that you are unhappy with us. When you fly, you sound like the musical instrument called Karkari. We will accomplish a Yagy, when we are blessed with sons and grandsons. 
परमपिता परब्रह्म परमेश्वर, भगवान् व्यास, माँ भगवती सरस्वती,  गणपति  महाराज की असीम कृपा से मैं आज दिनाँक 15.08.2022 को यह अध्याय पूरा कर पाया हूँ। मैं अपने दिवंगत पिताजी श्री विद्या भूषण भारद्वाज और अपनी दिवंगत अम्मा श्रीमती धर्मवती भारद्वाज को समर्पित करता हूँ।
    
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संतोष महादेव-धर्म विद्या सिद्ध व्यास पीठ (बी ब्लाक, सैक्टर 19, नौयडा)