Saturday, May 8, 2021

RIG VED ऋग्वेद (श्लोक 1.101-191)

RIG VED (1) ऋग्वे
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
By :: Pt. Santosh Bhardwaj
dharmvidya.wordpress.com hindutv.wordpress.com santoshhastrekhashastr.wordpress.com bhagwatkathamrat.wordpress.com jagatgurusantosh.wordpress.com santoshkipathshala.blogspot.com santoshsuvichar.blogspot.com santoshkathasagar.blogspot.com bhartiyshiksha.blogspot.com santoshhindukosh.blogspot.com
ॐ गं गणपतये नम:।
अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।
गुणातीतं निराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि॥
[श्रीमद्भगवद्गीता 2.47]
ऋग्वेद संहिता में कुल 20 छन्दों का प्रयोग हुआ है। इनमें भी निम्न सात छन्द प्रमुख हैं। 
(1). गायत्री :- 24 अक्षर, (2). उषिणक :- 28 अक्षर, (3). अनुष्टुप :- 32 अक्षर, (4). बृहती :- 36 अक्षर, (5). पंकित :- 40 अक्षर, (6). त्रिष्टुप :- 44 अक्षर और  (7). जगती :- 48 अक्षर। 
ऋग्वेद की संहिता के मण्डल, सूक्त सँख्या और ऋषियों के नामों का विवरण ::
मण्डलसूक्त संख्यामहर्षियों के नाम
(1).191मधुच्छन्दा:, मेधातिथि, दीर्घतमा:, अगस्त्य, गोतम, पराशर आदि।
(2).43गृत्समद एवं उनके वंशज
(3).62विश्वामित्र एवं उनके वंशज
(4).58वामदेव एवं उनके वंशज
(5).87अत्रि एवं उनके वंशज
(6).75भरद्वाज एवं उनके वंशज
(7).104वशिष्ठ एवं उनके वंशज
(8).103कण्व, भृगु, अंगिरा एवं उनके वंशज
(9).114ऋषिगण, विषय-पवमान सोम
(10).191त्रित, विमद, इन्द्र, श्रद्धा, कामायनी इन्द्राणी, शची आदि।
इन मन्त्रों के द्रष्टा ऋषियों में गृत्समद, विश्वामित्र, वामदेव, अत्रि, भरद्वाज, वसिष्ठ, भृगु और अंगिरा प्रमुख हैं। वैदिक नारियाँ-स्त्रियाँ भी मन्त्रों की द्रष्टा रही हैें। प्रमुख ऋषिकाओं के रूप में वाक आम्भृणी, सूर्या, सावित्री, सार्पराज्ञी, यमी, वैवस्वती, उर्वशी, लोपामुद्रा, घोषा आदि के नाम उल्लेखनीय हैें।
पिताहमस्य जगतो माता धाता पितामहः। 
वेद्यं पवित्रमोंकार ऋक्साम यजुरेव च ॥9.17॥ 
इस ब्रह्माण्ड का पिता, माता, आश्रय तथा पितामह में ही हूँ। जानने योग्य पवित्र ओंकार, ऋग्वेद, सामवेद और यजुर्वेद भी मैं ही हूँ। 
समूचे ब्रह्माण्ड के आश्रय दाता परमात्मा स्वयं हैं। वही पिता, माता, पितामह, ज्ञान के आधार, प्रणव (ॐ ओम), वेद :- ऋग्वेद, सामवेद और यजुर्वेद वे वही हैं। 
HE supports the universe, HE is the father, the mother and the grandfather; the object of knowledge, the sacred syllable OM-Pranav and the Veds, the goal, the Lord-master, the witness, the abode, the refuge-shelter, the friend, the origin, the dissolution, the foundation, the substratum (बुनियाद, foundation, underlay, basis, substructure, ground, basis, base, foundation, footing, backbone, नीचे का तल-आधार, आश्रय, shelter, resort, refuge, concealment, asylum, अध:स्तर, आधार, नींव, basis and the immutable seed).
वेदों की विधि को ठीक-ठीक जानना वेध कहलाता है। कामना पूर्ती अथवा निवृति के लिए किये गए वैदिक कर्म, शास्त्रीय क्रतु आदि अनुष्ठान, विधि विधान सांगोपांग होना अनिवार्य है। यह क्रिया वेध है और ईश्वर का स्वरूप ही है। यज्ञ, दान, तप जो निष्काम मनुष्य को पवित्र करते हैं, वह पवित्रता भगवत्स्वरूप है। क्रतु, यज्ञ आदि के अनुष्ठान के प्रारम्भ में जो ॐ का उच्चारण किया जाता है, उससे ही ऋचाएँ अभीष्ट फल देती हैं। वैदिकों के लिए प्रणव "ॐ", का उच्चारण प्रमुख है। अतः प्रणव भी भगवान् का एक रूप है। क्रतु, यज्ञ आदि विधि-विधान को बताने वाले ग्रन्थ ऋग्वेद, सामवेद और यजुर्वेद हैं। इनमें नियताक्षर वाले मन्त्रों की ऋचाएँ हैं, जिनको ऋग्वेद कहते हैं। जिसमें स्वर सहित गाने वाले मन्त्र हैं, वे सामवेद और अनियताक्षर वाले मन्त्र यजुर्वेद हैं। ये सभी वेद भगवत्स्वरूप हैं। 
Vedh is a term to know-understand the Veds properly in their true form. To get the desired fruit-result of the ritualistic deeds, its essential to know-understand the proper procedure, methods, systems. The procedure-practice is Vedh and a form of the God. Yagy-sacrifices in holy fire, donations-charity thereafter and the ascetic practices, which are for the undesired results meant for the social benefit-welfare are meant to purify the doer and are the concepts-images of the God. Om "ॐ"  is the root word used as a prefix before uttering-singing the verses described in the Veds, which leads to desired outcome of the verses (Shloks, Mantr, Richas-sacred verses). For the utterances-speaking singing, the Ved Mantr OM is the main initial syllable. Therefore, OM is a form of the God. Rig Ved, Sam Ved and the Yajur Ved are the holy books-scriptures describing the basis concept, texts, procedures and so they are the form of God. The Richas, Mantr, Shloks describing the text-prose, having fixed number of syllables form the Rig Ved. The Veds Sam Ved & Yajur Ved, which are sung with rhythm having syllables which are not fixed, too are the forms of God. Veds are the embodiment of the God.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (101) :: ऋषि :- कुत्स आङ्गिरस, देवता :- इन्द्र, छन्द :- जगती, त्रिष्टुप्। 
प्र मन्दिने पिआपदर्चता वचो यः कृष्णगर्भा निरहन्नृजिश्वना।
अवस्यवो वृषणं वज्रदक्षिणं मरुत्वन्तं सख्याय हवामहे॥
जिन इन्द्रदेव ने ऋजिश्वा राजा के साथ कृष्ण नाम के असुर की गर्भवती स्त्रियों का वध किया, उन्हीं हृष्ट इन्द्रदेव को लक्ष्य कर अन्न के साथ स्तुति अर्पित कर हम उनका रक्षण पाने के लिए उन अभीष्टदाता और दाहिने हाथ में वज्र धारण करने वाले इन्द्रदेव का मरुद्रणों के साथ अपना मित्र होने के लिए प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 1.101.1]
हे मित्रों इस हर्षित हुए इन्द्रदेव के लिए अन्न परिपूर्ण वंदनाएँ अर्पित करो, जिसने राजा ऋजिश्रवा के साथ कृष्ण नामक दैत्य की प्रजाओं का पतन किया, हम उस वज्रधारी, वीर्यवान, इन्द्रदेव का मरुतों से युक्त सुरक्षा हेतु आह्वान करते हैं।
We worship-pray to Indr Dev who is friendly with the Marud Gan, holds the Vajr in his right hand, is strong, grants us boons-fulfils our desires, killed the pregnant women of the demon called Krashn, with king Rijishrava, to be friendly with us.
A Hindu always abstain from killing women and the children. But one has to slay the women folk of the Demons and the wicked-wretched, impious. Bhagwan Parshu Ram freed the earth 21 times from the clutches of the Kshatriy, who became impious, wretched, uncontrollable, undisciplined. The traitors, barbarians,  often kept the cows in forefront of their army to befool the Hindus successfully. The result is obvious. So, never care for such tactics of the intruders and strike them with might. Remember war is war. No leniency, no mercy, no cruelty.
यो व्यंसं जाहृषाणेन मन्युना यः शम्बरं यो अहन्पिप्रुमव्रतम्। 
इन्द्रो यः शुष्णमशुषं न्यावृणङ्मरुत्वन्तं सख्याय हवामहे॥
भयंकर क्रोध के साथ जिन इन्द्रदेव ने विगत भुज वृत्र या व्यंस नामक असुर का वध किया। जिन्होंने शम्बर और यज्ञरहित पिप्रु का वध किया तथा जिन्होंने दुर्जन शुष्ण का समूल नाश किया, उन्हीं इन्द्र देवता को मरुद्गणों के साथ अपना मित्र बनाने के लिए हम आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 1.101.2]
जिसने अपने अत्यन्त क्रोध से व्यस, शम्बर, वप्तु और शुष्ण नामक दैत्यों को नष्ट किया। हम उस इंद्र को मरुतों के साथ आमंत्रित करते हैं।
Full of anger-fury Indr Dev killed the demons called Vigat Vratr, Vyans. He killed Shambar and Pipru who did not believe in Yagy, Durjan-bad man Shushn along with their families. We invite Indr Dev who is friendly with the Marud Gan for friendship.
यस्य द्यावापृथिवी पौंस्यं महद्यस्य व्रते वरुणो यस्य सूर्यः। 
यस्येन्द्रस्य सिन्धवः सश्चति तं मरुत्वन्तं सख्याय हवामहे॥
जिनके विपुल बल का आकाश और पृथ्वी भी अनुधावन करती हैं, जिनके नियम से वरुण और सूर्य चलते हैं और जिनके नियम के अनुसार नदियाँ भी प्रवाहित होती है, उन्हीं इन्द्रदेव को मरुतों के साथ अपना सखा होने के लिए हम बुलाते हैं।[ऋग्वेद 1.101.3]
जिनके पराक्रम से आकाश और पृथ्वी प्रेरित हैं, जिसके नियम में वरुण, सूर्य और सरिताएँ स्थित हैं, उस इन्द्र को मरुद्गणों के साथ बुलाते हैं।
We invite for friendship the friend of Marud Gan who's power-might make the earth and the sky make a balance-maintain equilibrium,  the rivers follow the rules framed by whom-Dev raj Indr. 
यो अश्वानां यो गवां गोपतिर्वशी य आरितः कर्मणिकर्मणि स्थिरः। 
वीळोश्चिदिन्द्रो यो असुन्वतो वधो मरुत्वन्तं सख्याय हवामहे॥4
जो अश्चों के अधिपति, गोपों के ईश, स्वतंत्र स्तुति प्राप्त कर जो सम्पूर्ण कर्मों में स्थिर और अभिषव शून्य दूर्द्धर्ष शत्रुओं का वध करने वाले हैं; उन्हीं इन्द्रदेव को मरुतों के साथ अपना मित्र बनाने के लिए हम आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 1.101.4]
घोड़ों, गायों के स्वामी, पूजनीय, कार्यों में दृढ़, सोम विरोधी दुष्टों के शत्रु इन्द्रदेव को मरुद्गण युक्त पुकारते हैं।
We invite for friendship Dev Raj Indr, who is the master of the horses, the God of the cows & their herds men, is present in each & every deed (watches, perceives), capable of destroying the worst possible enemies & is the friend of Marud Gan.
यो विश्वस्य जगतः प्राणतस्पतिर्यो ब्रह्मणे प्रथमो गा अविन्दत्। 
इन्द्रो यो दस्यूँरधराँ अवातिरन्मरुत्वन्तं सख्याय हवामहे॥ 
जो गतिशील और निश्वास सम्पन्न जीवों के स्वामी हैं और जिन्होंने अङ्गिरा आदि ब्राह्मणों के लिए पणि द्वारा अपहृत गौ का सबसे पहले उद्धार किया एवं जिन्होंने पापियों का नाश किया; उन्हीं इन्द्रदेव को मरुतों के साथ अपना मित्र बनाने के लिए हम आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 1.101.5]
जो गतिमान और श्वास के स्वामी हैं, जिन्होंने ब्राह्मणों की अपहृत धेनुओं का भी उद्धार किया तथा दुष्टों को नष्ट किया, वे इन्द्रदेव मरुद्गण सहित हमारे मित्र हों।
We invite for friend ship Dev raj Indr who is the God-master of all movable & immovable organism, living beings, released the cows of Angira Rishi abducted-snatched by the demon Pani and killed the sinners-wicked, is friendly with the Marud Gan.
यः शूरेभिर्हव्यो यश्च भीरुभिर्यो धावद्भिहूयते यश्च जिग्युभिः। 
इन्द्रं यं विश्वा भुवनाभि संदधुर्मरुत्वन्तं सख्याय हवामहे॥
जो शत्रुओं और भीरुओं दोनों के आह्वान योग्य हैं, जिन्हें युद्ध से भागने वाले और युद्ध में विजय प्राप्त करने वाले दोनों ही आह्वान करते हैं एवं जिन्हें समस्त प्राणी, अपने-अपने कार्यों के सम्मुख, स्थापित करते हैं, उन्हीं इन्द्रदेव को मरुतों के साथ अपना मित्र बनाने के लिए हम आमंत्रित-आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 1.101.6]
जो वीरों द्वारा तथा कायरों द्वारा भी बुलाये जाते हैं, जो विजेताओं और पलायन कर्त्ता के द्वारा आहूत किये जाते हैं, उन इन्द्रदेव को विद्वजन सभी लोकों का दाता मानते हैं। वे मरुतों के साथ हमारे मित्र बनें।
We call-invite Indr Dev for friendship, who deserves to be friendly with both the cowards & the enemies, those leave-desert the battle field, all organisms wish his presence to witness in all of their endeavours, is friendly with the Marud Gan.
रुद्राणामेति प्रदिशा विचक्षणो रुद्रेभिर्योषा तनुते पृथु ज्रयः। 
इन्द्रं मनीषा अभ्यर्चति श्रुतं मरुत्वन्तं सख्याय हवामहे॥
सूर्य रूप से प्रकाशमय इन्द्र देव समस्त प्राणियों के प्राण स्वरूप रुद्र पुत्र मरुद्गणों को अंगिकार कर उदित होते हैं और उन्हीं रुद्र पुत्र मरुतों द्वारा वाक्य वेग युक्त होकर विस्तारित भी होते हैं। प्रख्यात इन्द्रदेव को प्रार्थनाओं से पूजित करते हैं। उन्हीं इन्द्रदेव को मरुद्गणों के साथ अपना मित्र होने के लिए हम आवाहन-आमंत्रित  करते हैं।[ऋग्वेद 1.101.7] 
दीप्तिवान इन्द्रदेव रुद्र पुत्र मरुतो की सहायता से प्रकट होकर अपना महत्त्व दिखाते हैं। उन विख्यात इन्द्रदेव की वंदनाएँ सेवा करती हैं। वे मरुतों से युक्त हमारे सखा बनें।
Indr Dev rise in the form of Sun, accept the sons of Rudr Dev, the Marud Gan and extend by the Marud Gan with speed (The air blow all around for the sake of living beings). We worship pray to the famous Indr Dev with the help of verses-Strotr. We invite him for friendship with us.
यद्वा मरुत्वः परमे सधस्थे यद्वावमे वृजने मादयासे। 
अत आ याह्यध्वरं नो अच्छा त्वाया हविश्चकृमा सत्यराधः॥
हे मरुत संयुक्त इन्द्रदेव! आप उत्कृष्ट घर में ही हृष्ट हो अथवा सामान्य स्थान में ही हृष्ट हो, हमारे यज्ञ में पधारें। हे सत्यधन इन्द्रदेव! आपकी कृपा के आकांक्षी हम आपके लिए यज्ञ में हव्य प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 1.101.8]
हे मरुतों युक्त इंद्रदेव! तुम ऊपर नीचे कहीं भी रहो, वहीं से हमारे यज्ञ के स्थान को प्राप्त हो जाओ। तुम सत्य धन से युक्त के लिए हम हवि देते हैं।
Hey Marud Gan in association with Indr Dev, are strong all around. Please join us in the Yagy. We make offerings in Yagy with the desire of well wishes, mercy, graciousness from you.
त्वायेन्द्र सोमं सुषुमा सुदक्ष त्वाया हविश्चकृमा ब्रह्मवाहः। 
अधा नियुत्वः सगणो मरुद्भिरस्मिन्यज्ञे बर्हिषि मादयस्व॥
हे शोभनबल से युक्त इन्द्रदेव! हम आपके लिए उत्सुक होकर सोमरस का निष्पादन कर है। आपको स्तुति द्वारा प्राप्त किया जा सकता है। हम आपको लक्ष्य कर हव्य प्रदान करते हैं। अश्व युक्त इन्द्र देव मरुतों के साथ दलबद्ध होकर इस यज्ञ कुश पर बैठकर सोमरस का सेवन करें।[ऋग्वेद 1.101.9]
हे शक्तिशालिन! तुम्हारे लिए यह सोम निष्पन्न किया है। तुम श्लोक द्वारा प्राप्त होते हो। तुम्हारे लिए हवि प्रस्तुत है। मरुतों के साथ इस कुशासन पर आनन्द करो। 
Hey mighty Indr Dev! We have extracted Somras for you. You can be pleased with the help of prayers. We are making offerings for your sake in the Yagy. Please occupy the Kushasan (carpet made of Kush grass) meant for you and the Marud Gan and accept-drink Somras.
मादयस्व हरिभिर्ये त इन्द्र वि ष्यस्व शिप्रे वि सृजस्व धेने। 
आ त्वा सुशिप्र हरयो वहन्तूशन्हव्यानि प्रति नो जुषस्व॥
हे इन्द्रदेव! अपने घोड़ों के साथ प्रसन्न होकर अपने दोनों शिप्र हनु या जबड़े खोलें, सोमपान के लिए अपनी जिह्वा और उपजिह्वा खोलें। हे सुशिघ्र इन्द्रदेव! आपको आपके यहाँ घोड़े आवें। आप हमारे प्रति प्रसन्न होकर हमारा हव्य ग्रहण करें।[ऋग्वेद 1.101.10]
हे इन्द्र देव! अपने अश्वों सहित हर्षित होओ। अपने जबड़ों और होठों को खोलो। तुम सुन्दर ठोड़ी वाले अश्वों को लाओ। हम पर हर्षित हुए हवियों को स्वीकार करो। 
Hey Indr Dev! Open the jaws of your horses.  Open your mouth to sip Somras. Hey fast moving Indr Dev please come here and obelise us. Be happy with us and accept the offerings made by us.
मरुत्स्तोत्रस्य वृजनस्य गोपा वयमिन्द्रेण सनुयाम वाजम्। 
तन्नो मित्रो वरुणो मामहन्तामदितिः सिन्धुः पृथिवी उत द्यौः॥
जिन इन्द्रदेव का मरुतों के साथ स्तोत्र है, उन शत्रुओं का नाश करने वाले इन्द्रदेव के द्वारा रक्षित होकर आप उनसे अन्न प्राप्ति की याचना करें। मित्र, वरुण, अदिति, सिन्धु, पृथ्वी और आकाश हमारे उस अन्न की पूजा करें।[ऋग्वेद 1.101.11]
इन्द्रदेव का श्लोक मरुतों के साथ है। हम इन्द्रदेव के द्वारा अन्न ग्रहण करें, सखा वरुण, अदिति, समुद्र, धरा, क्षितिज हमारे प्रति उदार हों।
Indr Dev is friendly with the Marud Gan. Let us be protected by Indr Dev who vanish the enemies and ask him for food grains. Let demigods-deities Mitr, Varun, Ocean-Sindhu, Earth and the Sky too support us in our prayers to Indr Dev for food.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (102) :: ऋषि :- कुत्स, आङ्गिरस, देवता :- इन्द्र, छन्द :- जगती, त्रिष्टुप्। 
इमां ते धियं प्र भरे महो महीमस्य स्तोत्रे धिषणा यत्त आनजे। 
तमुत्सवे च प्रसवे च सासहिमिन्द्रं देवासः शवसामदन्ननु॥
आप महान् हैं। आपके उद्देश्य से मैं इस महती स्तुति को सम्पादित करता हूँ, क्योंकि आपका अनुग्रह मेरी स्तुति पर निर्भर करता है। ऋत्विकों ने सम्पत्ति और धन लाभ के लिए स्तुति बल द्वारा उन शत्रु विजयी इन्द्रदेव को प्रसन्न किया।[ऋग्वेद 1.102.1]
हे इन्द्रदेव! मैं इस अत्यन्त उत्तम श्लोक को तुम्हारे प्रति निवेदन करता हूँ। तुम्हारी मेरे ऊपर कृपा इस श्लोक पर निर्भर है।
Hey Indr Dev! You are great. I am performing this prayer to please you. The Ritviz perform Yagy to seek wealth-riches and make Indr Dev happy, who over powered-defeated  the enemy. 
अस्य श्रवो नद्यः सप्त बिभ्रति द्यावाक्षामा पृथिवी दर्शतं वपुः। 
अस्मे सूर्याचन्द्रमसाभिचक्षे श्रद्धे कमिन्द्र चरतो वितर्तुरम्॥
सात नदियाँ इन्द्र देव की कीर्ति धारित करती है। आकाश, पृथ्वी और अन्तरिक्ष उनका दर्शनीय रूप धारण करते हैं। इन्द्र, सूर्य और चन्द्र हमारे सामने प्रकाश देने और हमारा विश्वास उत्पन्न करने के लिए बार-बार एक के बाद एक भ्रमण करते हैं।[ऋग्वेद 1.102.2]
इन्द्रदेव के साथ देवगण इस विजयोत्सव में निष्पन्न सोम द्वारा पुष्ट हुए हैं। इस इन्द्रदेव के अनुष्ठान को सप्त सरितायें, इसके रूप को क्षितिज धरा और अन्तरिक्ष धारण करते हैं। हे इन्द्रदेव! हमारे मन में श्रद्धाभाव रचित करने के लिए सूर्य और चन्द्रमा भ्रमण करते हैं। 
Seven rivers wears-flow by virtue of the honour of Indr Dev. The sky, earth and the space are his visible incarnations. Indr Dev, Sun & the moon revolve and fill us with faith and grant us light-visibility. 
तं स्मा रथं मघवन्प्राव सातये जैत्रं यं ते अनुमदाम संगमे।  
आजा न इन्द्र मनसा पुरुष्टुत त्वाय द्भयो मघवञ्छर्म यच्छ नः॥
हे इन्द्रदेव! अपने अन्तःकरण से हम आपकी अत्यधिक प्रार्थना करते हैं। आपके विजयी रथ को शत्रुओं के युद्ध में देखकर हम प्रसन्न होते हैं। आप उसी रथ को हमारी विजय के लिए प्रेरित करें। आप हमारे आश्रयदाता हैं, इसलिए हमने अनेकानेक बार आपकी प्रार्थना की है।[ऋग्वेद 1.102.3]
हे इन्द्रदेव! तुम वैभव से युक्त विजेता हो, तुम्हारे रथ को युद्ध भूमि में, देखकर हम प्रसन्नचित होते हैं। उस रथ को धन की प्राप्ति के लिए हमारी ओर प्रेरित करो। तुम हमारे द्वारा बहुत बार वंदना किये गये हो। हम तुम्हारे सहारे को प्राप्त हों।
Hey Indr Dev! We pray to you from the depth of our heart-inner self. We become happy when you win the enemy. You grant us asylum, shelter, protection. Hence we pray-worship you again & again.
It has been mentioned that Indr Dev is a prime form-incarnation (विभूति) of the Almighty. Hence, when we pray to him, we are indirectly praying-worshiping the God.
हम परमात्मा, परब्रह्म परमेश्वर की प्रार्थना-आराधना करते हैं, ताकि हमें उनकी अनन्त, अनन्य, प्रेममयी सात्विक भक्ति प्राप्त हो सके। 
वयं जयेम त्वया युजा वृतमस्माकमंशमुदवा भरेभरे। 
अस्मभ्यमिन्द्र वरिवः सुगं कृधि प्र शत्रूणां मघवन्वृष्ण्या रुज॥
आपको अपना सहायक पाकर हम अवरोध करने वाले शत्रुओं को पराजित करेंगे। युद्ध में हमारे अंश की रक्षा करें। हे मघवन्! हम सरलता से धन प्राप्त कर सकें। ऐसा उपाय करें जिससे शत्रुओं की शक्ति क्षीण हो जाये।[ऋग्वेद 1.102.4]
समृद्धि शालीन! हम तुम्हारे सहायक रूप से लड़ते हुए सम्पत्ति को ग्रहण हों। तुम हमारे पक्ष की सुरक्षा करो। हम धन को आसानी से प्राप्त करें। शत्रु की शक्ति का पतन करें।
Having attained your blessings we will be able to defeat those who create hurdles, problems for us. You should protect our progeny in the war. Please help us in gaining riches easily and to make the enemy weak.
नाना हि त्वा हवमाना जना इमे धनानां धर्तरवसा विपन्यवः। 
अस्माकं स्मा रथमा तिष्ठ सातये जैत्रं हीन्द्र निभृतं मनस्तव॥
हे धनाधिपति! ये जो अपनी रक्षा के लिए हम आपकी प्रार्थना करते हुए आपका आवाहन करते हैं। वे अनेकानेक प्रकार के हैं, इनमें हमें ही धन देने के लिए रथ पर आरुढ़ होवें। हे इन्द्रदेव! आपका स्थिरता युक्त हृदय हमें विजयी बनाने में सक्षम हों।[ऋग्वेद 1.102.5]
हे धनों के धारक इन्द्रदेव! ये रक्षा की विनती करने वाले प्राणी तुम्हारा हार्दिक आह्वान करते हैं। तुम हमको सम्पत्ति प्राप्त कराने के लिए रथ पर आरुढ़ होओ। तुम्हारा स्थिर हृदय विजय प्राप्त करने में कुशल है।
Hey the protector of the wealth, Indr Dev! We seek protection under you. Please ride your chariot to regain our property, wealth, riches. You are capable of helping us in granting us success. 
गोजिता बाहू अमितक्रतुः सिमः कर्मन्कर्मञ्छतमूतिः खजंकरः। 
अकल्प इन्द्रः प्रतिमानमोजसाथा जना वि ह्वयन्ते सिषासवः॥
प्रत्येक कार्य में रक्षा-साधनों से युक्त इन्द्रदेव की भुजाएँ गौओं को जीतने में सक्षम हैं। धन की इच्छा करने वाले यजमान इन्हीं इन्द्रदेव का आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 1.102.6]
इन्द्र की भुजाओं में अत्यन्त पराक्रम है। वे गौओं के लिए लाभकारी हैं। इन्द्र रक्षा के साधनों से सम्पन्न, बाधा से रहित, शत्रु में क्षोभ उत्पन्न करने वाले एवं शक्ति से याचक जन इनका आह्वान करते हैं। 
The arms of Indr Dev are capable of winning the cows. The devotees desirous of wealth, riches invite him (pray to him).
उत्ते शतान्मधवन्नुच्च भूयस उत्सहस्त्राद्रिरिचे कृष्टिषु श्रवः। 
अमात्रं त्वा धिषणा तित्विषे मह्यधा वृत्राणि जिघ्नसे पुरंदर॥
हे इन्द्रदेव! आप मनुष्यों को जो अन्नदान करते हैं, वह शतसंख्यक धन से भी अधिक है अथवा उससे भी अधिक है वा सहस्त्र संख्यक धन से भी अधिक है। आप परिमाण रहित है। हमारे स्तुति वचनों ने आपको दीप्त किया। हे पुरन्दर। आपने शत्रुओं का वध किया।[ऋग्वेद 1.102.7]
हे समृद्धिशाली तुम्हारी कीर्ति सहस्त्रों गुणा व्यापक है। धन की इच्छा से याचक जन इनका आह्वान करते हैं। तुम अमोघ किलों को ध्वस्त करने असीम शक्ति वाले हो। तुमको वेदवाणी प्रकाशमान करती है।
Hey Indr Dev! The food grains granted to the humans are more significant as compared to various kinds of wealth. You are unlimited in shape, size and dimensions (these are the qualities of the God). Our prayers have amused you. Hey Purandar (one who demolishes the forts)! You have killed the enemies.
त्रिविष्टिधातु प्रतिमानमोजसस्तित्रो भूमीर्नृपते त्रीणि रोचना। 
अतीदं विश्वं भुवनं ववक्षिथाशत्रुरिन्द्र जनुषा सनादसि॥
हे नर रक्षक इन्द्र देव! आप तिगुनी हुई रस्सी की तरह समस्त प्राणियों के बल के परिमाण स्वरूप हो। आप तीनों लोकों में तीन प्रकार (सूर्य, विद्युत और अग्नि) के तेज हों। आप इस संसार को चलाने में पूर्ण समर्थ हैं; क्योंकि हे इन्द्रदेव! आप जन्म से ही शत्रु विहीन हैं।[ऋग्वेद 1.102.8]
हे इन्द्रदेव! शत्रुओं का पतन करो। हे मनुष्यों के स्वामिन! तुम तीन लोकों में तीन रूप (सूर्य, अग्नि) से विद्यमान हो। तिलड़ी रस्सी के समान मनुष्यों के बल स्वरूप जीवों में श्रेष्ठ और शत्रु से रहित हो।
Hey protector of humans, Indr Dev! You represent the strength of the organisms-living, being just like the rope having three bands. You are the energy-aura of the Sun, lightening-electricity and the Fire. You are capable of maintaining the universe, since you are able to vanish the enemies since your infancy.
त्वां देवेषु प्रथमं हवामहे त्वं बभूथ पृतनासु सासहिः। 
सेमं नः कारुमुपमन्युमुद्भिदमिन्द्रः कृणोतु प्रसवे रथं पुरः॥
आप देवताओं में प्रथम व युद्ध में शत्रु विजयी हैं। हम आपका आवाहन करते हैं। वे इन्द्र हमारे युद्ध योग्य तेजस्वी और विभेदकारी रथ को युद्ध में अन्य रथों के आगे रखें।[ऋग्वेद 1.102.9]
हे इन्द्रदेव! तुम देवताओं में मुख्य हो। हम तुम्हारा हार्दिक आह्वान करते हैं। तुम हमेशां विजयी रहे हो। हमको सम्पत्ति प्राप्त कराने के लिए रथ पर आरुढ़ होओ। तुम्हारा स्थिर हृदय विजय प्राप्त करने में कुशल है। इस वंदनाकारी को मति देकर कर्म कुशल बनाओ। युद्ध क्षेत्र में अपने रथ को आगे रखो।
Hey Indr Dev! You are first (number one) amongest the demigods-deities. We invite you in all our endeavours-Yagy. Please keep our chariot, which is glittering-shinning, fit for the war, ahead of other chariots.
त्वं जिगेथ न धना रुरोधिथार्भेष्वाजा मघवन्महत्सु च। 
त्वामुग्रमवसे सं शिशीमस्यथा न इन्द्र हवनेषु चोदय॥
आप विजय प्राप्त कर जीते हुए धन को छिपाकर नहीं रखते। छोटे अथवा बड़े समर अर्थात् युद्ध में अपनी रक्षा के लिए योद्धा गण आपका ही आवाहन करते हैं। इसलिए आप हमारा मार्गदर्शन करें।[ऋग्वेद 1.102.10]
हे इन्द्रदेव! तुमने छोटे या बड़े किसी भी युद्ध में पराजय नहीं देखी। तुमने विजयी धन को कभी नहीं रोका।
You do not hide the assets (wealth, possessions) won in the war. The warriors seek protection under you in the war of all sizes-quantum. Hence, you should guide-lead us. 
विश्वाहेन्द्रो अधिवक्ता नो अस्त्वपरिहवृताः सनुयाम वाजम्। 
तन्नो मित्रो वरुणो मामहन्तामदितिः सिन्धुः पृथिवी उत द्यौः॥
हे इन्द्रदेव! आप सदैव हमारे पक्ष में रहे। हम भी द्वेषपूर्ण व्यवहार से अलग होकर अन्नादि प्राप्त करें। मित्र, वरुण, अदिति, सिन्धु, पृथ्वी  और आकाश उन्हें सभी हमें धन और ऐश्वर्य की प्रदत्त करें।[ऋग्वेद 1.102.11]
हम प्रार्थना द्वारा तुमको युद्धार्थ बुलाते हैं। तुम हमको श्रेष्ठ प्रेरणा दो। हे इन्द्र देव! हमारे पक्ष में रहो, कुटिल बुद्धि से पृथक हम अन्नों का प्रयोग करें। सखा, वरुण, अदिति, धरा और क्षितिज हमारी विनती पर ध्यान दें।
Hey Indr Dev! You should always on our side (favour us). We should be away from enmity and gain food grains. Demigod-deities Mitr, Varun, Aditi, Sindhu-ocean, earth & the sky should also favour us & grant us riches, wealth amenities.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (103) :: ऋषि :- कुत्स, आङ्गिरस, देवता :- इन्द्र, छन्द :- त्रिष्टुप्।
तत्त इन्द्रियं परमं पराचैरधारयन्त करेंयः पुरेदम्। 
क्षमेदमन्यद्दिव्यन्यदस्य समी पृच्यते समनेव केतुः
हे इन्द्रदेव! पहले मेधावियों ने आपके इस प्रसिद्ध परमबल को साक्षात् धारण किया। इन्द्रदेव की अग्निरूप एक ज्योति पृथ्वी पर और दूसरी सूर्य रूप आकाश में है। युद्ध में दोनों पक्षों की पताकायें जैसे मिलती हैं, उसी तरह उक्त उभय ज्योतियाँ परस्पर संयुक्त होती हैं।[ऋग्वेद 1.103.1]
मेधावी :: च्यवन ऋषि के पुत्र का नाम, बुद्धिमान, मेधायुक्त, जिसकी मेधा या धारण शक्ति तीव्र हो, पंडित, विद्वान।
हे इन्द्रदेव! तुम्हारा विख्यात सूर्य रूप उत्तम शक्ति क्षितिज में स्थित है। पृथ्वी पर इस अग्नि रूप शक्ति को ऋषियों ने यज्ञरूप से धारण किया है। ये दोनों शक्ति ध्वजाओं के तुल्य हिलते हैं।
लहराना :: फड़फड़ाना,  घड़कना, बेचैन होना, धबराना; billow, make a fuss, flutter. 
Hey Indr Dev! The intelligent & capable Rishis, wore-supported you in establishing you as fire over the earth and the Sun in the sky. These forms of light flutter together as the two flags of the enemies in the battle field.
स धारयत्पृथिंवीं पप्रथच्च वज्रेण हत्वा निरपः ससर्ज। अहन्नहिमभिनद्रौहिणं व्यहन्व्यंसं मघवा शचीभिः
इन्द्रदेव ने पृथ्वी को धारित व विस्तृत किया। इन्होंने ने वज्र द्वारा वृत्रासुर का वध कर वृष्टिजल बाहर किया। अहि को मारा। रौहिण नामक असुर का अन्त किया। इन्द्रदेव ने अपने कार्य द्वारा विगत भुज वृत्रासुर का नाश किया।[ऋग्वेद 1.103.2]
उस इन्द्र देव ने धरा को विशाल किया। वृत्र का पतन कर जलों की वृष्टि की। अहि और रोहिण असुरों को विदीर्ण किया। व्यंस को समाप्त किया।
Indr Dev supported-wore the earth and made it broad-extensive. He killed the demon called Vratr released the water meant for rains by him. He killed the demons called Ahi & Rohin. He killed Vyans as well.
स जातूभर्मा श्रद्दधान ओजः पुरो विभिन्दन्नचरद्वि दासीः।
विद्वान्वज्रिन्दस्यवे हेतिमस्यार्यं सहो वर्धया द्युम्नमिन्द्र
उन्होंने वज्र स्वरूप अस्त्र लेकर वीर्य कार्य में उत्साह पूर्ण होकर शत्रुओं के नगरों का विनाश करके भ्रमण किया। हे वज्रधर इन्द्रदेव! हमारी प्रार्थनाओं को सुनकर शत्रुओं के प्रति अपने अस्त्रों को चलावें। हे इन्द्रदेव आर्यों के बल और यश को बढ़ावें।[ऋग्वेद 1.103.3]
उत्साह :: याद दिलाने की क्रिया, बढ़ावा, उकसावा, जोश, उमंग, राग; enthusiasm, excitement, prompting, zeal.
अस्त्र :: weapon, guided missiles. The weapons which could be launched just the recitation of a verse-few words, Shlok-Mantr.
उत्साह, जोश, धुन, सरगर्मीवे वज्रधारी इन्द्र शत्रु के दुर्गों का विनाश करने के लिए जाते हैं। हे इन्द्रदेव! राक्षसों पर वज्र का प्रयोग करो और आर्यों के पराक्रम और कीर्ति की वृद्धि करो।
He destroyed the cities, forts of the enemies by using Vajr enthusiastically with great zeal. Hey Vajr wearing Indr Dev! Please listen to our prayers & use the Astr over the enemies, enhance the power, capability, strength of the Ary.
तदूचुषे मानुषेमा युगानि कीर्तेन्यं मघवा नाम बिभ्रत्। 
उपप्रयन्दस्युहत्याय वज्री यद्ध सूनुः श्रवसे नाम दधे
हे वज्रधर और अरिमर्दन इन्द्रदेव शत्रुओं के विनाश के लिए निकलकर यश के लिए जो बल आपने धारित किया उस कीर्त्तन योग्य उस बल को धारण कर धनवान् इन्द्रदेव, स्तोता यजमानों के लिए मनुष्यों के युगों का सूर्य रूप से निष्पादित करते हैं।[ऋग्वेद 1.103.4]
प्राणियों में कीर्तन योग्य मधवा नाम को धारण करते हुए इन्द्र ने साधक के शत्रुओं को मारने से प्राप्त हुए ऐश्वर्य और पराक्रम को ग्रहण किया। हे मनुष्यों! इन्द्रदेव की विख्यात वीरता को देखो, उसकी शक्ति का सम्मान करो।
Indr Dev adopted the name Madhva, which is fit for prayers-recitations. He came out to kill the enemies of the devotee-worshiper. The humans should visualise the powers of Indr Dev and honour his powers.
तदस्येदं पश्यता भूरि पुष्टं श्रदिन्द्रस्य धत्तन वीर्याय।
स गा अविन्दत्सो अविन्ददश्वान्त्स ओषधीः सो अपः स वनानि
गौओं, अश्वों, औषधियों, जलों और वनों को इन्द्रदेव ने अपनी शक्ति से प्राप्त किया। अतः हे मनुष्यों! इन इन्द्रदेव के प्रसिद्ध पराक्रम को देखकर उनके बल का सम्मान करो।[ऋग्वेद 1.103.5]
उसने धेनुओं और अश्वों को ग्रहण किया। औषधियों, जलों और वनों को भी ग्रहण किया। हम बहुत कर्मों में श्रेष्ठ पुरुषार्थी पराक्रम वाले इन्द्र के लिए सोम निष्पन्न करें।
Indr Dev obtained cows, horses, medicines, water bodies and the forests due to his power-might. Therefore, the humans should recognise his might-powers and honour them.
भूरिकर्मणे वृषभाय वृष्णे सत्यशुष्माय सुनवाम सोमम्। 
य आदृत्या परिपन्थीव शूरोऽयज्वनो विभजन्नति वेदः
प्रभूतकर्मा, श्रेष्ठ, अभीष्टदाता और सत्यबल इन्द्रदेव को लक्ष्य कर हम सोमरस अभिषव करते हैं। जिस पथनिरोधक चौर पथिकों के पास से धन ले लेता है, उसी प्रकार से वीर इन्द्रदेव धन का आदर करके यज्ञहीन मनुष्यों के पास से उस धन का भाग कर यज्ञ परायण मनुष्यों को प्रदत्त कर देते हैं।[ऋग्वेद 1.103.6]
वे बहुत कर्मों में श्रेष्ठ पुरुषार्थी पराक्रम वाले इन्द्र के लिए सोम निष्पन्न कर व लालची, बिना कर्म के दुष्टों के धन को छीनकर कर्मशील उपासकों में बाँटते हैं। 
We prepare-extract Somras for the sake of Indr Dev who is  excellent-best, truthful, grants boons and perform exceptional-dare devil jobs. The manner the thief steals the money from the travellers, Indr Dev takes away money-riches from those who do not honour Yagy and give it to those who perform Yagy. 
तदिन्द्र प्रेव वीर्यं चकर्थ यत्ससन्तं वज्रेणाबोधयोऽहिम्। 
अनु त्वा पत्नीर्हषितं वयश्च विश्वे देवासो अमदन्ननु त्वा
हे इन्द्रदेव! आपने वह प्रसिद्ध वीर कार्य किया। उस शयन करते हुए अहि को वज्र प्रहार द्वारा जागृत किया। यह आपकी परम वीरता है। उस समय आपको प्रसन्न देखकर समस्त देवताओं ने अपनी पत्नियों के साथ अत्यधिक हर्ष अथवा प्रसन्नता का अनुभव किया।[ऋग्वेद 1.103.7]
हे इन्द्रदेव! सोते हुए वृत्र को वज्र से जगाना वास्तव में तुम्हारा परम शौर्य है। उस समय तुमको पुष्ट देखकर देवगणों ने अपनी पत्नियों के साथ अत्यन्त प्रसन्नता प्राप्त की।
Hey Indr Dev! You performed the brave deed by awakening & killing Ahi-the demon, while he was asleep with the Vajr. At that moment you became too happy. The demigods-deities too expressed their pleasure along with their wives.
शुष्णं पिप्रं कुयवं वृत्रमिन्द्र यदावधीर्वि पुरः शम्बरस्य। 
तन्नो मित्रो वरुणो मामहन्तामदितिः सिन्धुः पृथिवी उत द्यौः
हे इन्द्रदेव! आपने शुष्ण, पिप्रु, कुयव और वृत्रसुर का वध करके शम्बर के नगरों का विनाश किया। इसलिए मित्र, वरुण, अदिति, सिन्धु, पृथ्वी और आकाश हमारी उस स्तुत्य वस्तु को पूजित करें।[ऋग्वेद 1.103.8] 
हे इन्द्रदेव जब तुमने "शुष्ण", विपु, कुयव, और वृत्र को मृत किया और शम्बर के.. किलो को ध्वस्त किया तब हमारी वंदना सफल हुई। मित्र, वरुण, अदिति, समुद्र, धरा और क्षितिज हमारी वंदनाओं का अनुमोदन करें।
Hey Indr Dev! You killed the demons named Shushn, Pipru, Kuyav, and Vratasur and destroyed the cities-forts of Shambar. Hence, Mitr, Varun, Aditi, Sindhu, earth and the sky should endorse our prayers meant for Indr Dev, his might & power.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (104) :: ऋषि :- कुत्स आङ्गिरस, देवता :- इन्द्र, छन्द :- त्रिष्टुप्।
योनिष्ट इन्द्र निषदे अकारि तमा नि षीदस्वानो नार्वा। 
विमुच्या वयोSवसायाश्वान्दोषा वस्तोर्वहीयसः प्रपित्वे
हे इन्द्र देव! आपके बैठने के लिए जो वेदी बनी हुई है, उस पर शब्दायमान अश्व की तरह बैठें। अश्वों को बाँधने वाली रस्सियों को छुड़ाकर अश्वों को मुक्त कर दें। वे अश्व यज्ञकाल आने पर दिन-रात आपका आरोहण करते हैं।[ऋग्वेद 1.104.1]
हे इन्द्रदेव! तुमने स्वयं के लिए जो स्थान बनाया है, उस पर अपने अश्वों को रथ से खोलकर विराजो। वे अश्व अनुष्ठान का अवसर आने पर दिन-रात चौबीस घंटे तुम्हारे रथ को चलाते हैं।
Hey Indr Dev! Please occupy your seat and release the horses from the rope with which they are tied. These horses are deployed at the time of performing Yagy through out the day & the night.
ओ त्ये नर इन्द्रमूतये गुर्नू चित्तान्त्सद्यो अध्वनो जगम्यात्। 
देवासो मन्युं दासस्य श्चमन्ते न आ वक्षन्त्सुविताय वर्णम्
मनुष्य इन्द्रदेव के पास रक्षा के लिए आते हैं। इन्द्रदेव उन्हें उसी समय अनुष्ठान मार्ग में जाने देते हैं। देवता शत्रुओं के क्रोध का विनाश कर हमारे सुख-साधन स्वरूप यज्ञ में अनिष्ट निवारक इन्द्रदेव को आने दें।[ऋग्वेद 1.104.2]
हे मनुष्यों रक्षा के लिए इन्द्रदेव के पास जाओ। वे बुरे कर्म करने वालों के गुस्से को नष्ट करें। प्राणी जगत की श्रेष्ठ प्रगति करें।
The humans come under the fore-shelter of Indr Dev. He immediately allows them-protect them to continue with their endeavours. Let the demigods destroy our enemies and promote our amenities, comforts. Let him prevent all obstacles in our path.
अव त्मना भरते केतवेदा अव त्मना भरते फेनमुदन्। 
क्षीरेण स्नातः कुयवस्य योषे हते ते स्यातां प्रवणे शिफायाः
कुयव नामक असुर दूसरे के धन का पता प्राप्त कर स्वयं अपहरण करता है। वह जल में रहकर स्वयं फेन युक्त जल को भी चुराता है। कुयव की दो स्त्रियाँ उसी जल में स्नान करती हैं। वे स्त्रियाँ शिफा नामक नदी की धार से मृत्यु को प्राप्त होवें।[ऋग्वेद 1.104.3]
जैसे जल पर फेन स्वयं ही उठता है, वैसे ही अपने आश्रय इन्द्र हैं। "कुयव' नामक दैत्य की स्त्रियाँ दूध से स्नान करती हैं। वे नदी के गहरे जल में जाकर डूब मरें।
Kuyav-the demon stole the wealth of others. He stayed in water and stole the water as well. His two wives bathed in that water. Let these women be dead-drowned in deep waters.
युयोप नाभिरुपरस्यायोः प्र पूर्वाभिस्तिरते राष्टि शूरः। 
अञ्जसी कुलिशी वीरपत्नी पयो हिन्वाना उदभिर्भरन्ते
उपद्रव के लिए इधर-उधर जाने वाला कुयव जल के मध्य में रहता है। उसका निवास स्थान गुप्त था। वह शूर पूर्व अपहृत जल के साथ वृद्धि प्राप्त करता और दीप्त होता है। अंजसी और कुलिशी इसकी दोनों वीर पत्नियाँ जलों से तृप्त करती रहती हैं।[ऋग्वेद 1.104.4]
आर्यों का सम्बन्ध इन्द्र से टूट गया। वह शक्तिशाली "कुयव" पूर्व की नदियों के पार राज्य करता था। उसकी अंजसी और कुलिशी और पराक्रमी भार्या नामक नदियाँ जल के साथ दूध को ले जाती हैं।
Kuyav moved hither & thither for creating trouble and hide in water, thereafter. His residence was secret. He grew-flourished with the stolen waters. His two wives named Anjasi and Kulshi remained content with the waters.
प्रति यत्स्या नीथादर्शि दस्योरोको नाच्छा सदनं जानती गात्। 
अध स्मा नो मघवञ्चर्कृतदिन्मा नो मघेव निष्षपी परा दाः
गौ जैसे अपनी शाला या गोष्ठ का रास्ता जानती है, उसी प्रकार  हमने भी उस असुर के घर की ओर गये हुए रास्ते को देखा है। उस असुर के बार-बार किये गये उपद्रव से हमें बचावें। जिस प्रकार से कामुक (व्यक्ति) धन का त्याग करता है, उसी प्रकार आप हमें त्याग न दे।[ऋग्वेद 1.104.5]
गोष्ठ को जाने वाली गौ के समान असुरों ने भी हमारे निवास स्थान का मार्ग देख लिया है। हे इन्द्र! हमारे अब भी रक्षक बनो। जैसे कामुक धन का परित्याग करता है, वैसे ही हमें कभी न त्यागना।
We have seen the demon moving to his hide out, the way the cows move to their homes. Let us be protected from the troubles created by the demon. You should not reject us like a lascivious person who reject his passions, sensuality, sexuality.
As a king Indr Dev protect both demigods & the humans. he controls weather & rains over the earth. He kills the humans who behave like demons with his Vajr as well. Human being pray-worship as an incarnation of the God. 
स त्वं न इन्द्र सूर्ये सो अप्स्वनागास्त्व आ भज जीवशंसे। 
मान्तरां भुजमा रीरिषो नः श्रद्धितं ते महत इन्द्रियाय
हे इन्द्र देव! हमें सूर्य और जल समूह के प्रति भक्ति पूर्ण करें। जो लोग पाप शून्यता के लिए जीव मात्र के प्रशंसनीय है, उनके प्रति भक्ति पूर्ण करें। आप हमारी गर्भ स्थित सन्तान को पिड़ित न करें। हम आपके महान् बल पर पूर्ण श्रद्धा करते है।[ऋग्वेद 1.104.6]
हे इन्द्रदेव! हमें सूर्य और जलों के प्रति वंदना करने वाला, पापों से पृथक बनाओ। तुम हमारी गर्भस्थ सन्तान का पतन न करो। हमको तुम्हारी शक्ति पर पूरा भरोसा है।
Hey Indr Dev! Let us be filled with devotion to the Sun and water-Varun Dev. We should be devoted to those who are sinless. Please do not torture-trouble our infants in the womb. We honour your might, have full faith in you.
अधा मन्ये श्रत्ते अस्मा अधायि वृषा चोदस्व महते धनाय।  
मा नो अकृते पुरुहूत योनाविन्द्र क्षुध्यभ्द्यो  वय आसुतिं दाः
अन्तःकरण से हम आपको जानते है। आपके उस बल पर हमने श्रद्धा की है। आप अभीष्टदाता हैं; हमें प्रभूत धन प्रदान करें। हे इन्द्रदेव! आप बहुत लोगों के द्वारा पूजित होते हैं। हमें धन विहीन घर में न रखें। भूखों को अन्न और जल प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.104.7]
बहुतों द्वारा आहूत इन्द्रदेव! मैं आपके पराक्रम में विश्वास करता हूँ। तुम हमको उत्तम ऐश्वर्य की ओर प्रेरित करो। हमकों अन्न से विहीन भुवन में भूखा मत रखना।
Our inner self (mind & heart) recognises-respects you. We have honour-respect for you. You grant our boons-fulfil our desires. Hey Indr Dev! You are worshiped by many-many people. Please grant us house which have sufficient basic amenities, riches, food & water.
मा नो वधीरिन्द्र मा परा दा मा नः प्रिया भोजनानि प्र मोषी: 
आण्डा मा नो मघवञ्छक्र निर्भेन्मा नः पात्रा भेत्सहजानुषाणि
हे इन्द्रदेव! हमें मत मारना। हमें न छोड़ना। हमारे प्रिय भक्ष्य उपभोग आदि को न लेना। हे समर्थ धनपति इन्द्रदेव! हमारे गर्भस्थित शिशुओं को नष्ट न करें। घुटने के बल चलने वाले शिशुओं को नष्ट न करें।[ऋग्वेद 1.104.8]
हे समर्थवान इन्द्र देव। तुम हमारी हिंसा न करो। हमें मत छोड़ो। हमारे उपभोग पदार्थों को समाप्त न करो। 
Hey Indr Dev! Do not kill or desert us. Do not snatch our usable goods & the food. Hey competent wealthy Indr Dev! Do not kill our progeny in the womb or the ones-infants who move over their knees.
अर्वाङोहि सोमकामं त्वाहुरयं सुतस्तस्य पिबा मदाय। 
उरुव्यचा जठर आ वृषस्व पितेव नः शृणुहि हूयमानः
हमारे समक्ष आवें। लोगों ने आपको सोमप्रिय बना दिया है। सोमरस तैयार है; इसे पी कर तृप्त होवें। विस्तीर्णाङ्ग होकर जठर में सोमरस की वर्षा करें। जिस प्रकार से पिता पुत्र की बात सुनता है, उसी प्रकार हमारे द्वारा आहूत होकर हमारी बातों को श्रवण करें।[ऋग्वेद 1.104.9]
सोमाभिलाषी इन्द्रदेव! हमारे सम्मुख आओ। यह निष्पन्न सोम रखे हैं। इसे आनन्द के लिए पान करो। पुकारे जाने पर पिता के समान हमारी वंदना को सुनो।
Please come to us. The populace have made you thirsty for Somras. Somras is ready, please drink it and be satisfied with us. Please come to help us like a father, on been called.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (105) :: ऋषि :- ऋषित-त्रित आप्त्य, कुत्स, आङ्गिरस, देवता :- विश्वेदेवा, छन्द :- पंक्ति, बृहती, त्रिष्टुप्।
चन्द्रमा अप्स्वन्तरा सुपर्णो धावते दिवि। 
न वो हिरण्यनेमयः पदं विन्दन्ति विद्युतो वित्तं मे अस्य रोदसी॥
जलमय अन्तरिक्ष में वर्तमान चन्द्रमा सुन्दर चन्द्रिका के साथ आकाश में विचरित होते हैं। सुवर्णनेमि रश्मियों, कूप में पतित हमारी इन्द्रियाँ आपके पद को नहीं जानतीं। हे द्युलोक और भूलोक! आप हमारे भावों को जानें।[ऋग्वेद 1.105.1]
चन्द्रमा अंतरिक्ष में और सूर्य क्षितिज में गति करते हैं। हे स्वर्णिम बिजलियाँ!मनुष्य उन्हें ढूँढने में असमर्थ हैं।  हे क्षितिज-धरा! हमारी विनती को सुनो।
The moon travels in space while the Sun moves across the horizon. Hey golden rays the humans are unable to trace them. Our senses are drowned in the well of sin and hence unable to recognise your status. Hey higher abodes and the earth please grasp our inner feelings-sentiments.
Let the Moon help the humans control their passions which drown them in the sins because of the flirtatious senses. Let Sun enlighten us to control our sensualities, sexuality, mood, psyche, innerself.
अर्थमिद्वा उ अर्थिन आ जाया युवते पतिम्। 
तुञ्जाते वृष्ण्यं पयः परिदाय रसं दुहे वित्तं मे अस्य रोदसी॥
धनाभिलाषी निश्चय ही धन पाता है। स्त्री अपने पास ही पति को पाकर सहवास करती है और गर्भ से सन्तान उत्पन्न होती है। हे द्युलोक और भूलोक! आप हमारी भावना को जानें।[ऋग्वेद 1.105.2]
धन की अभिलाषा वाले धन पाते हैं, नारी पति प्राप्त करती है। वे दोनों मिलकर सम्मान ग्रहण करते हैं।  हे क्षितिज-धरा! मेरे दुःखों को समझो।
One desirous of wealth-money definitely get riches. The wife mates with the husband and give birth to children. Hey heavens and the earth please recognise our thoughts and help.
The luck do help, but one must depend over his labour, endeavours, efforts, hard work for earning.
मो षु देवा अदः स्वरव पादि दिवस्परि। 
मा सोम्यस्य शंभुवः शूने भूम कदाचन वित्तं मे अस्य रोदसी॥
हे देवगण! हमारे स्वर्ग में निवास करने वाले पूर्व पुरुष स्वर्ग से च्युत न हों; हम कहीं सोमपायी पितरों के सुख के लिए पुत्र से निराश न हो। हे द्युलोक और भूलोक! आप हमारी प्रार्थना के अभिप्राय को समझें।[ऋग्वेद 1.105.3]
हे देवगण! आकाश के ऊपर की यह दिव्य ज्योति नष्ट न होने पाये। सोम निष्पन्न करने योग्य सुखकारी पुत्र का अभाव कभी न हो। हे आसमान और धरती! हमारे दुःखों व कष्टों को समझो।
Hey Dev Gan-demigods! Please do not let our Pitr-Manes, who are entitled to drink Somras, fall from the heavens (they should not be disqualified from the heavens). Our progeny should not be filled with despair. Hey heavens & the earth please recognise our troubles, tensions and ease them.
यज्ञं पृच्छाम्यवमं स तद्दूतो वि वोचति। 
क्व ऋतं पूर्व्यं गतं कस्तद्विभर्ति नूतनो वित्तं मे अस्य रोदसी॥
देवों में सबसे पहले यज्ञार्ह अग्रि की मैं प्रार्थना करता हूँ। वह दूत रूप से मेरी याचना देवों को बतावें। हे अग्निदेव! आपकी पहले की वदान्यता कहाँ गई? इस समय कौन नवीन पुरुष उसे धारित करते हैं? हे द्युलोक और भूलोक! हमारी इस महत्त्वपूर्ण जिज्ञासा को जाने और शान्त करें।[ऋग्वेद 1.105.4]
मैं सबसे युवा अग्नि से पूछता हूँ। वे देवदूत उत्तर दें कि पुरातन नियम कहाँ हैं? कौन नया व्यक्ति उसे ग्रहण करता है? हे आसमान-धरती! मेरे दुःख को समझो।
Agni Dev is the first to accept the offerings. Let him convey my prayers to the demigods. Let me know the eternal rules and who governs them at present. Hey heavens & earth please satisfy our queries and resolve our sorrows-worries.
अमी ये देवाः स्थन त्रिष्वा रोचने दिवः। 
कद्व ऋतं कदनृतं क्व प्रत्ना  व आहुतिर्वित्तं मे अस्य रोदसी॥
सूर्य के द्वारा प्रकाशित इन तीनों लोकों में ये देव वृन्द रहते हैं। हे देवगण! आपका सत्य कहाँ हैं और असत्य कहाँ है? आपकी प्राचीन आहुति कहाँ है? हे द्युलोक और भूलोक! हमारे इन भावों को जानें।[ऋग्वेद 1.105.5]
हे देवगण! तीनों लोकों में प्रकाशमान क्षितिज में तुम्हारा स्थान है। तुम्हारा सिद्धान्त कम है? उन सिद्धान्तों के विपरीत क्या है? तुम्हारा प्राचीन आह्वान कहाँ गया? हे क्षितिज-धरा! मेरे दुःख पर ध्यान दो।
The demigods-deities reside in the three abodes illuminated by the Sun. Hey demigods-deities! Let your eternal truth, rules prevail. Let us follow the rules framed by the eternity. Let heavens & the earth understand our pains and help us.
कद्व ऋतस्य धर्णसि कद्वरुणस्य चक्षणम्।  
कदर्यम्णो महस्पथाति क्रामेम दूढ्यो वित्तं मे अस्य रोदसी॥
आपका सत्य पालन कहाँ है? वरुण की अनुग्रह दृष्टि कहाँ है? महान् अर्यमा का वह मार्ग कहाँ है, जिसके द्वारा हम पाप बुद्धि व्यक्तियों से मुक्त हो सकें? हे द्युलोक और भूलोक! हम इस अवस्था या दुःख को जाने।[ऋग्वेद 1.105.6]
हे देवगण! हमारे नियम का आधार क्या है? वरुण की व्यवस्था कहाँ है? अर्यमा किस तरह हमको दुष्टों से पार लगा सकते हैं। हे आकाश-पृथ्वी! हमारे दुःख को समझो।
Where does the truth lie?! Where are the blessing of Varun Dev?! Where is the path of great Aryma?! Let us-the humans stained with sins be released-relinquished. Hey heavens & the earth realise our pains.
We wish to be released from sins, bad-Tamsik thoughts & ideas leading us to sins. Kindly, grant us shelter, protection and solace and help us relieve from the sins. Patronise us.
अहं सो अस्मि यः पुरा सुते वदामि कानि चित्। 
तं मा व्यन्त्याध्यो वृको न तृष्णजं मृगं वित्तं मे अस्य रोदसी॥
मैं वही हूँ जिसने प्राचीन समय में सोमरस अभिषुत होने पर स्तोत्रों उच्चारण किया था। जिस प्रकार से प्यासे मृग को व्याघ्र खा जाता है, वैसे ही मुझे दुःख खा रहा है। हे द्युलोक और भूलोक! हमारी हन इन व्यथाओं को समझकर दूर करें।[ऋग्वेद 1.105.7]
मैंने पूर्वकाल में सोम के निचोड़े जाने पर अनेक श्लोक कहे। प्यासे मृग को भेड़िये द्वारा खा लेने के समान तेरे हृदय की पीड़ा ही मुझे खाये जा रही है। हे क्षितिज-धरा! मेरे दुःख पर ध्यान दो। 
I am the same person-soul who had recited the Strotr, Shloks, Mantr pertaining to Somras. the sorrow-pains are eating me just like a tiger eats the deer. Hey heavens & the earth realise our troubles-tortures and relieve us.
Somras is meant for the Satvik, pious, honest, truthful, righteous devotee of the God.
सं मा तपन्त्यभितः सपत्नीरिव पर्शवः। 
मूषो न शिश्ना व्यदन्ति माध्यः स्तोतारं ते शतक्रतो वित्तं मे अस्य रोदसी॥
जिस प्रकार से दो पत्नियाँ (सौतें) दोनों ओर खड़ी होकर स्वामी को कष्ट देती हैं, उसी प्रकार से ही कुएँ की दीवारें मुझे कष्ट दे रही हैं। जैसे चूहा सूत को काटता है, वैसे ही आपकी स्तुती करने वालों को भी मन की पीड़ायें कष्ट दे रही हैं। हे द्युलोक और भूलोक! हमारे इन कष्टों को समझकर दूर करें। [ऋग्वेद 1.105.8]
दो सोतिनों द्वारा पति को सताये जाने के समान कूप की दीवारें मुझे सता रही हैं। हे इन्द्र! चुहिया द्वारा अपनी पूँछ को चबाने के समान मेरे हृदय की पीड़ा मुझे चबा रही है। हे आसमान-धरती! मेरे दुःख को समझो।
The way two wives of a person-sandwiched between them, torture him, the walls of the well (sins) are troubling me. The way a rat cuts the thread of cotton, the pains of innerself are causing worries to your devotee. Hey sky & the earth please understand-realise my pains-troubles and help.
अमी ये सप्त रश्मयस्तत्रा मे नाभिरातता। 
त्रितस्तद्वेदाप्त्यः स जामित्वाय रेभति वित्तं मे अस्य रोदसी॥
ये जो सूर्य की सात किरणें जहाँ तक है, वहाँ तक हमारा नाभि क्षेत्र विस्तारित है। इसका ज्ञान जल के पुत्र त्रित को भली-भाँति है। इसलिए प्रीति युक्त मित्रता भाव हेतु हम याचना करते हैं। हे द्युलोक और भूलोक! आप हमारी प्रार्थना के भावों को जानें।[ऋग्वेद 1.105.9]
इस सूर्य को सात रश्मियों से मेरा पैतृक सम्बन्ध है। इस बात को जल का पुत्र त्रित जानता है। इसलिए वह उन रश्मियों की वंदना करता है। हे क्षितिज-धरा! मेरे दुख को समझो।
I have parental-ancestral connection-relation with the 7 rays (colours) of the Sun. Trit the son of water is aware of it. Hence we request for friendship having love & affection. Let the heavens & earth know our feeling, prayers-worship.
अमी ये पञ्चोक्षणो मध्ये तस्आर्पहो दिवः। 
देवत्रा नु प्रवाच्यं सध्रीचीना नि वावृतुर्वित्तं मे अस्य रोदसी॥
विशाल आकाश में ये जो अग्नि, वायु, सूर्य, इन्द्र और विद्युत् आदि पाँच अभीष्टदाता धुलोक में स्थित हैं, वे मेरे इस प्रशंसनीय स्तोत्र को शीघ्र देवताओं के पास ले जाकर पुनः वापस आवें। हे द्युलोक और भूलोक! हमारी इस प्रार्थना के भावों को जानें।[ऋग्वेद 1.105.10]
आकाश में ये पाँच वीर अग्नि, वायु, सूर्य, इन्द्र और विद्युत स्थित हैं। वे मिलकर मेरे द्वारा रचित इस श्लोक को देवताओं को सुनाकर लौट आए। हे आसमान पृथ्वी! मेरे इस कष्ट को समझो।
Let the Agni-fire, Vayu-air, Sun, Indr and the eletricity-thundervolt situated in the upper abodes-heavens, carry forward my appreciable prayers to the demigods-deities. Let the higher abodes and the earth recognise our feelings.
सुपर्णा एत आसते मध्य आरोधने दिवः। 
ते सेधन्ति पथो वृकं तरन्तं यह्व तीरपो वित्तं मे अस्य रोदसी॥
सम्पूर्ण आकाश में सूर्य की रश्मियाँ है। विशाल जलराशि पार करते समय मार्ग में सूर्य रश्मियाँ जंगल में भेड़ियों का निवारण करती है। हे द्युलोक और भूलोक! आप हमारी प्रार्थना के भावों को जानें।[ऋग्वेद 1.105.11]
सर्वव्यापी सूर्य क्षितिज में विराजमान हैं। ये अंतरिक्ष को को पार कर चन्द्रमा को मार्ग से हटायें। हे क्षितिज-धरा! मेरी इस बात को समझ लो।
The rays of Sun are present all over the sky. They relieve all sorts of troubles-tensions while crossing the vast reservoir of water. Hey heavens & the earth please know-appreciate the feeling behind our prayers. 
नव्यं तदुक्थ्यं हितं देवासः सुप्रवाचनम्। 
ऋतमर्षन्ति सिन्धवः सत्यं तातान सूर्यो वित्तं मे अस्य रोदसी॥
हे देवगण! आपके भीतर वह नव्य, प्रशंसनीय और सुवाच्य बल है। उसके वहनशील नदियाँ सदा जल संचालन करती हैं और सूर्य देव अपना सदा रहने वाला प्रकाश विस्तारित करते हैं। हे द्युलोक और भूलोक आप हमारी प्रार्थना के भावों को जानें।[ऋग्वेद 1.105.12]
हे देवगण! यह नया श्लोक प्रशंसा योग्य, हितकर कल्याण का उद्घोष करता है। नदियाँ देवगणों के नियमों की प्रेरणा करती हैं और सूर्य सत्य का प्रचारक है। है आकाश-पृथ्वी! यह बात समझ लो। 
Hey demigods-deities! You have the new-fresh appreciable might-valour, which keeps the rivers flowing and the Sun keeps on spreading his light. Hey heavens & the earth! Please know the feeling behind our prayers.
अग्ने तव त्यदुक्थ्यं देवेष्वस्त्याप्यम्। 
स नः सत्तो मनुष्वदा देवान्यक्षि विदुष्टरो वित्तं मे अस्य रोदसी॥
हे अग्रिदेव! देवताओं के साथ आपका यही प्रशंसनीय बन्धुत्व भाव है। आप अत्यन्त विद्वान हैं। मनु के यज्ञ की तरह हमारे यज्ञ में पधारकर देवताओं का यज्ञ पूर्ण करें। हे द्युलोक और भूलोक! आप हमारी प्रार्थना के भावों को जानें।[ऋग्वेद 1.105.13]
हे अग्रिदेव! देवताओं के साथ आपका यही प्रशंसनीय बन्धुत्व भाव है। आप अत्यन्त विद्वान हैं। मनु के यज्ञ की तरह हमारे यज्ञ में पधारकर देवताओं का यज्ञ पूर्ण करें। हे द्युलोक और भूलोक! आप हमारी प्रार्थना के भावों को जानें।
Hey Agni Dev! You have appreciable relation-friendship with the demigods-deities. Please bless us in our Yagy as you did in the Yagy conducted by Manu. Hey heavens & the earth! Please recognise our sentiments and help us.
सत्तो होता मनुष्वदा देवाँ अच्छा विदुष्टर:। 
अग्निर्हव्या सुषूदति देवो देवेषु मेघिरो वित्तं मे अस्य रोदसी॥
मनु के यज्ञ की तरह हमारे यज्ञ में बैठकर देवताओं के आह्नानकारी अतिशय विद्वान् और देवों में मेधावी अग्निदेव देवताओं को हमारे हव्य की ओर शास्त्रों के अनुसार प्रेरणा प्रदान करें। हे द्युलोक और भूलोक! आप हमारी प्रार्थना के भावों को जानें।[ऋग्वेद 1.105.14]
हे अग्नि! देवगणों का यजन करो। हे क्षितिज-धरा! मेरी यह बात सुनो। मनुष्य के तुल्य हमारे अनुष्ठान में विराजे हुए होता रूप मेधावी अग्नि देव के लिए हवि मार्ग दर्शन करें। हे क्षितिज़-धरा! मेरी इस बात को समझो।
Let enlightened Agni Dev, who deserve to be invited by the demigods-deities, join our Yagy and advise-guide us as per the scriptures. Let the horizon & the earth support us.
ब्रह्मा कृणोति वरुणो गातुविदं तमीमहे। 
व्यूर्णोति हृदा मतिं नव्यो जायतामृतं वित्त में अस्य रोदसी॥
वरुण देव रक्षा कार्य करते हैं। उन मार्ग दर्शक से हम प्रार्थना करते हैं। अन्तःकरण से स्तोता वरुण देव को लक्ष्य कर माननीय स्तुति का प्रचार करते हैं। वहीं स्तुति योग्य वृद देव हमारे सत्य स्वरूप हों। हे द्युलोक और भूलोक! आप हमारी प्रार्थना के भावों को जानें।[ऋग्वेद 1.105.15]
मंत्र रूप वंदना को वरुण रचते हैं। हम उन स्तुतियों से प्रार्थना करते हैं। हृदय द्वारा प्रार्थनाओं को कहते हैं। उससे सत्य प्रकाशित हो। हे आसमान धरती! हमारे वचनों पर ध्यान दो। 
Varun Dev perform the function of protection. We pray to him to seek guidance. We address Varun Dev from the depths of our soul-(mind & heart) with these prayers as Strota-devotee. Let the truth reveal itself. Hey heavens & the earth! Please accept our prayers-requests.
असौ यः पन्था आदित्यो दिवि प्रवाच्यं कृतः। 
न स देवा अतिक्रमे तं मर्तासो न पश्यथ वित्तं मे अस्य रोदसी॥
यह जो सूर्य आकाश में सर्व सिद्ध पथ स्वरूप हैं, हे देवगण! उन्हें आप लोग लाँघ नहीं सकते। हे मनुष्य गण! आप लोग उन्हें नहीं जानते। हे द्युलोक और भूलोक! आप हमारी प्रार्थना के भावों को जानें।[ऋग्वेद 1.105.16]
दे देवगण! क्षितिज में पथ-रूप सूर्य वंदनाओं के योग्य है, उनका उल्लंघन न करो। हे मनुष्यों! तुम उनके बल को नहीं जानते हे क्षितिज-धरा! हमारे दुःखों पर ध्यान दो।
The Sun in the sky is like the widely followed path. Hey demigods-deities! You can not ignore him. Hey humans! You do not identify him. Hey heavens & the earth! Please relieve us from pains, worries, troubles, tensions.
Its not possible for the humans to know the Sun, its activities, functions, being too intricate, comprehensive. 
त्रितः कूपेऽवहितो देवान्हवत ऊतये। 
तच्छुश्राव बृहस्पतिः कृण्वन्नँहूरणादुरु वित्तं मे अस्य रोदसी॥
कुएँ में गिरकर त्रित ने रक्षा के लिए देवताओं को पुकारा। बृहस्पति ने त्रित का पाप रूपी कुएँ से उद्धार करके उसका आह्वान श्रवण किया। हे द्युलोक और भूलोक! आप हमारी प्रार्थना के भावों को जानें।[ऋग्वेद 1.105.17]
कुएँ में गिरे हुए त्रित ने रक्षार्थ देव आह्वान किया। उसे बहस्पति ने सुना और त्रित को पाप रूपी कुएँ से बाहर निकला। हे क्षितिज-धरा! मेरे कष्टों को सुनो।
having fallen in the well of sins, Trit, the son of Varun called demigods-deities for help. Dev Guru Brahaspati acted over his calls-prayers and relieved him. Hey heavens & the earth! please answer our prayers. 
Dev Guru Brahaspati in the embodiment of enlightenment.
अरुणो मा सकृकः पथा यन्तं ददर्श हि। 
उज्जिहीते निचाय्या तष्टेव पृष्ट्यामयी वित्तं मे अस्य रोदसी॥
अरुण वर्ण वृक ने एक समय मुझे रास्ते में जाते देखा था। जिस प्रकार से अपना कार्य करते-करते पीठ पर वेदना होने पर कोई उठ खड़ा होता है, उसी प्रकार मुझे देखकर वृक भी उठ खड़ा हुआ। हे द्युलोक और भूलोक! आप हमारी प्रार्थना के भावों को जानें।[ऋग्वेद 1.105.18]
रीढ़ पर रोग उठने पर पीड़ा से खड़े हो जाने वाले के समान खड़ा होकर उजाले से युक्त चन्द्रमा उसे रास्ते से ले जाता हुआ मुझे प्रतिदिन देखता था। हे आसमान धरती। मेरी पीड़ा को समझो।
Vrak-Moon having golden colour-hue, saw me moving over the path. The way a person having pain while working, in his back, rises, Vrak too got up. Hey heavens (sky & the space) & the earth! You too get up and help me solve my problems.
एनाङ्गुषेण वयमिन्द्रवन्तोऽभि ष्याम वृजने सर्ववीराः। 
तन्नो मित्रो वरुणो मामहन्तामदितिः सिन्धुः पृथिवी उत द्यौः॥
इस घोषणा योग्य स्तोत्र के द्वारा इन्द्रदेव को प्राप्त कर हम लोग वीरों के साथ मिलकर युद्ध में शत्रुओं को पराजित करेंगे। मित्र, वरुण, अदिति, सिन्धु, पृथ्वी और आकाश, हमारी यह प्रार्थना पूजित करें।[ऋग्वेद 1.105.19]
इन्द्रदेव तथा समस्त पराक्रमी मनुष्यों से परिपूर्ण हम इस श्लोक के द्वारा युद्ध में शत्रुओं पर विजय ग्रहण करें। मित्र, वरुण, अदिति, सिन्धु, पृथ्वी और आकाश हमारे श्लोक अनमोदन करें।
With the help of this Strotr, which deserve to be declared, we will approach Indr Dev and win the enemies with the help of brave warriors. Let Mitr, Varun, Aditi, Sindhu, earth & the sky honour this prayer of ours.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (106) :: ऋषि :- कुत्स आंगिरस, देवता :- विश्वेदेवा, छन्द :- जगती, त्रिष्टुप्।
इन्द्रं मित्रं वरुणमग्निमूतये मारुतं शर्धो अदितिं हवामहे। 
रथं न दुर्गाद्वसवः सुदानवो विश्वस्मान्नो अंहसो निष्पिपर्तन॥
रक्षा करने के लिए हम इन्द्र, मित्र, वरुण, अग्नि और मरुद्रण का आवाहन करते हैं। जिस प्रकार से संसार में लोग रथ को दुर्गम रास्ते से निकालते हैं, वैसे ही दानशील और वासगृह देवता लोग हमें पापों से मुक्त कर हमारा पालन करें।[ऋग्वेद 1.106.1]
इन्द्र, मित्र, वरुण, अग्नि, मरुद्गण और अदिति का रक्षार्थ आह्वान करते हैं। हे कल्याणकारी वसुओं! रथ को संकीर्ण रास्ते से निकालने के तुल्य समस्त पापों से निकाल कर हमारी सुरक्षा करो।
We pray to Indr, Mitr, Varun, Agni& Marud Gan for or protection. Hey Vasu Gan! You are tend o the welfare of humans & charity. The way people navigate the chariot in tough and narrow terrains, you too make us free from sins i.e., pull us out of sinful acts.
त आदित्या आ गता सर्वतातये भूत देवा वृत्रतूर्येषु शंभुवः। 
रथं न दुर्गाद्वसवः सुदानवो विश्वस्मान्नो अंहसो निष्पिपर्तन॥
हे आदित्यगण! युद्ध में हमारी सहायता के लिए आप लोग पधारकर हमारी विजय का कारण बनें। जिस प्रकार से संसार में लोग रथ को दुर्गम मार्ग से सावधानीपूर्वक निकालते हैं, उसी प्रकार से दानशील और वासगृह देवता लोग हमें पापों से मुक्त कर हमारा पालन करें।[ऋग्वेद 1.106.2]
हे आदित्यों! तुम हमारी इच्छा पूर्ति के लिए आओ। युद्धों में दुःख न दो। रथ को संकीर्ण रास्तों से निकालने के तुल्य हमको पाप से निकालो। श्रेष्ठ ऐश्वर्य वाले पूर्वज यज्ञ की वृद्धि करने वाली देव माताएँ हमारी रक्षा करें।
Hey Adity Gan! Please come to our help-resque in the battle and make us victorious. Let the Vasu Gan, Dev Mataen-mothers of demigods & deities, devoted to charity, pool us out of all troubles-sins and help us performing Yagy. 
अवन्तु नः पितरः सुप्रवाचना उत देवी देवपुत्रे ऋतावृधा। 
रथं न दुर्गाद्वसवः सुदानवो विश्वस्मान्नो अंहसो निष्पिपर्तन॥
जिनकी स्तुति सुख साध्य हैं, वे पितृगण हमारी रक्षा करें। देवों की पितृ-मातृ स्वरूपा और यज्ञ को बढ़ानेवाली द्युलोक और भूलोक हमारी रक्षा करें। जिस प्रकार से संसार में लोग रथ को दुर्गम मार्ग से निकाल लाते हैं, उसी प्रकार से दानशील और वासगृह देवता लोग हमें पापों से मुक्त कर हमारा पालन करें।[ऋग्वेद 1.106.3]
हे वसुओ! रथ को निकालने के समान हमको पापों से निकालो। 
Let the Pitr Gan-Manes devotion to whom, leads to comforts & pleasure protect us. The heavans & the earth who are like the parents of the demigods-deities help us in conducting Yagy. The Vasu Gan devoted to charity may migrated-relieve us from sinsful activities and protect us.
नराशंसं वाजिनं वाजयन्निह क्षयद्वीरं पूषणं सुम्नैरीमहे। 
रथं न दुर्गाद्वसवः सुदानवो विश्वस्मान्नो अंहसो निष्पिपर्तन॥
मनुष्यों के प्रशंसनीय और अन्नवान् अग्निदेव को इस समय हम प्रज्ज्वलित कर प्रार्थना करते हैं। वीर और विजयी पूषा के पास सुखकर स्तोत्रों द्वारा याचना करते हैं। जिस प्रकार से संसार में लोग रथ को दुर्गम मार्ग से निकाल लाते हैं, उसी प्रकार से दानशील और वासगृह देवता लोग हमें पापों से मुक्त कर हमारा पालन करें।[ऋग्वेद 1.106.4]
मनुष्यों द्वारा पूजनीय शक्तिशाली अग्नि की अर्चना करते हुए हम पराक्रमी को स्वामी पूषा की वंदना करते हैं। हे कल्याणकारी वसुओ! रथों को निकालने के समान हमको पापों से निकालो।
We ignite the Yagy fire to pray-worship Agni Dev who deserve praise from the humans because of providing food grains for nourishment. We pray to victorious Pusha, who is brave, with the help of pleasure giving Strotr-verses. Let Vasu Dev move us out of all troubles, like those who navigate the chariot in difficult-tough roads and free us from all sins.
बृहस्पते सदमिन्नः सुगं कृधि शं योर्यत्ते मनुर्हि तं तदीमहे। 
रथं न दुर्गाद्वसवः सुदानवो विश्वस्मान्नो अंहसो निष्पिपर्तन॥
हे बृहस्पतिदेव! हमें सदैव सुख प्रदान करें। मनुष्यों के रोगों का नाश कर उनके भय को दूर करने की जो उपकारिणी क्षमता आपमें है, उसके लिए हम प्रार्थना करते है। जिस प्रकार संसार में लोग रथ को दुर्गम मार्ग से निकाल लाते हैं, वैसे ही दानशील और वासगृह देवता लोग हमें पापों से मुक्त कर हमारा पालन करें।[ऋग्वेद 1.106.5]
हे बृहस्पते! हमको सुख प्रदान करो। तुम प्राणियों के रोगों और भयों को दूर करते हो। हम वही चाहते हैं। हे वसुदेवो! रथ को संकीर्ण पथ से निकालने के समान अपराधों से हमको दूर करो। 
Hey Brahaspati Dev! Keep on providing us pleasure. You have the power-calibre to make the humans free from diseases-ailments and all types of fears. We pray to you. Let the Vasu Gan devoted to charity & human welfare, relieve us from all sorts of sins and nourish us.
इन्द्रं कुत्सो वृत्रहणं शचीपतिं काटे निबाळ्ह ऋषिरह्वदूतये। 
रथं न दुर्गाद्वसवः सुदानवो विश्वस्मान्नो अंहसो निष्पिपर्तन॥
पाप रूपी कुएँ में गिरे हुए कुत्स ऋषि ने बचने के लिए वृत्रहन्ता शचीपति इन्द्र का आह्वान किया। जिस प्रकार से लोग संसार में रथ को दुर्गम मार्ग से निकाल लाते हैं, वैसे ही दानशील और वासगृह देवता लोग हमें पापों से मुक्त कर हमारा पालन करें।[ऋग्वेद 1.106.6]
कुँए में गिरे कुत्स ऋषि ने वृत्र हन्ता को बुलाया। हे कल्याणकारी वसुदेवो हमें पापों से मुक्ति दिलाओ।
Kuts Rishi who had fallen in the well of sins called Indr Dev, who had killed Vratr, the demon for help. The Vasu Gan, who tend to human welfare and resort to charity, are requested to help us. Please relieve us of all sins. We call you for help & relinquished.
देवैर्नो देव्यदितिर्नि पातु देवस्त्राता त्रायतामप्रयुच्छन्। 
तन्नो मित्रो वरुणो मामहन्तामदितिः सिन्धुः पृथिवी उत द्यौः॥
देवताओं के संग माता अदिति हमारा पालन करें। सबके रक्षक दीप्यमान सविता जागरूक होकर हमारी रक्षा करें। मित्र, वरुण, अदिति, सिन्धु, पृथ्वी और आकाश हमारी इस प्रार्थना अंगीकार करें।[ऋग्वेद 1.106.7]
देवो युक्त अदिति हमारी सुरक्षा करें। सुरक्षा-साधनों से परिपूर्ण देवगण आलस्य त्यागकर हमें बचायें। मित्र वरुण, अदिति, धरा, क्षितिज हमारी इस वन्दना को अनुमोदित करें।
Let Dev Mata Aditi nourish us along with the demigods & deities. Let Savita, the protector of all, be vigilant and save us. Let Mitr, Varun, Aditi, Dhara-earth, Kshitij-horizon support (Deto, ditto, back up) accept our prayer.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (107) :: ऋषि :- आंगिरस, देवता :- विश्वेदेवा, छन्द :- त्रिष्टुप्।
यज्ञो देवानां प्रत्येति सुम्नमादित्यासो भवता मृळ्यन्तः। 
आ वोऽर्वाची सुमतिर्ववृत्यादंहोश्चिद्या वरिवोवित्तरासत्॥
हमारा यज्ञ देवों को सुख प्रदान करे। आदित्यगण प्रसन्न हों। आपके अनुग्रह हमारी ओर प्रेरित हों और वही अनुग्रह दरिद्र मनुष्य के लिए प्रभूत धन का कारण बनें।[ऋग्वेद 1.107.1]
अनुग्रह :: कृपा; grace, favour. 
हमारे अनुष्ठान को देवगण स्वीकृत करें। हे आदित्यों! हम पर अनुग्रह करो। तुम कल्याणकारी हृदय को हमारी ओर रखो। हमारी गरीबी को दूर करो। हम अधिकाधिक धन ग्रहण करें।
Let our Yagy grant pleasure to the demigods-deities. Let Adity Gan be happy. Your favours-grace, money-riches be diverted to us and remove our poverty.  
उप नो देवा अवसा गमन्त्वङ्गिरसां सामभिः स्तूयमानाः। 
इन्द्र इन्द्रियैर्मरुतो मरुद्भिरादित्यैर्नो अदितिः शर्म यंसत्॥
अङ्गिरा ऋषियों द्वारा गायन किये गये मंत्रों से स्तुत होकर देवगण रक्षा के लिए हमारे पास आवें। धन लेकर इन्द्रदेव, प्राणवायु के साथ मरुद्गण तथा आदित्यों को लेकर माता अदिति हमें सुख प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.107.2]
अंगिराओं द्वारा गायी गई प्रार्थनाओं से हमारी सुरक्षा के लिए देवगण आवें। शक्तियों के साथ इन्द्र, वायुओं के साथ मरुद्गण और आदित्यों के साथ अदिति हमको सहारा प्रदान करें।
Inspired-pleased by the Mantr sung by Rishi Angira, the demigods-deities come to us for our protection. Mata Aditi Indr Dev, Pran Vayu, Marud Gan & the Adity Gan should bring money for us and grant us happiness. 
तन्न इन्द्रस्तद्वरुणस्तदग्निस्तदर्यमा तत्सविता चनो धात्। 
तन्नो मित्रो वरुणो मामहन्तामदितिः सिन्धुः पृथिवी उत द्यौः॥
जिस अन्न के लिए हम याचना करते हैं, उसे इन्द्र, वरुण, अग्नि, अर्थमा और सविता हमें प्रदान करें। मित्र, वरुण, अदिति, सिन्धु, पृथ्वी और आकाश हमारे उस अन्न की पूजा करें।[ऋग्वेद 1.107.3]
इन्द्र, वरुण, अग्नि, अर्यमा और सूर्य हमारे लिए सुख ग्रहण कराने वाले हों। सखा, वरुण, अदिति, सागर, धरती और आसमान हमारी विनती को अनुमोदित करो।
Indr, Varun, Agni, Aryma & Savita should give us the food grains requested by us. Mitr, Varun, Aditi, Sindhu, earth and the sky should support our prayers.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (108) :: ऋषि :- कुत्स आंगिरस, देवता :- इन्द्राग्रि, छन्द :- त्रिष्टुप्।
य इन्द्राग्नी चित्रतमो रथो वामभि विश्वानि भुवनानि चष्टे। 
तेना यातं सरथं तस्थिवांसाथा सोमस्य पिबतं सुतस्य॥
हे इन्द्र और अग्रिदेव! आप लोगों के लिए अतीव विचित्र रथ ने सारे भुवनों को प्रकाशमय किया, उसी रथ पर एक साथ बैठकर पधारे और अभिषुत सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 1.108.1]
हे इन्द्राग्ने! तुम दोनों का अलौकिक रथ सभी संसार को देखता है। उस पर आरूढ़ होकर यहाँ पर आओ और निष्पन्न सोम रस का पान करो।
Hey Indr & Agni Dev! Your amazing chariot has spread light in all the abodes. Come to us in that chariot and drink Somras.
यावदिदं भुवनं विश्वमस्त्युरुव्यचा वरिमता गभीरम्। 
तावाँ अयं पातवे सोमो अस्त्वरमिन्द्राग्नी मनसे युवभ्याम्॥
इस बहुव्यापक और अपनी गुरुता से गम्भीर जो सारे भुवनों का परिमाण है, हे इन्द्र और अग्निदेव! आप लोगों के पीने योग्य सोमरस उतना ही प्रभावशाली होकर प्रचुर मात्रा में प्राप्त हो।[ऋग्वेद 1.108.2]
हे इंद्र व अग्ने! जितनी गंभीर और विशाल यह जगह है, उतना विस्तृत होता हुआ यह सोम तुम्हारे लिए पर्याप्त है। 
Hey Indr & Agni Dev! You are the greatest & have pervaded the entire universe. This Somras is sufficient for you to enjoy (drink, relish, enjoy).
चक्राथे हि सध्य्रङ्नाम भद्रं सग्रीचीना वृत्रहणा उत स्थः।
ताविन्द्राग्री सध्य्रञ्चा निषद्या वृष्णः सोमस्य वृषणा वृषेथाम्॥
हे इन्द्र और अग्निदेव! आपकी संयुक्त शक्ति विशेष रूप से वृत्र हन्ताओं! आप संयुक्त रूप में ही निवास करते हैं। हे शक्ति युक्त वीरों! आप दोनों एक साथ बैठकर सोमरस को पीकर अपनी शक्ति में वृद्धि करें।[ऋग्वेद 1.108.3]
हे वृत्रनाशक इन्द्र अग्ने! तुम दोनों साथ-साथ चलकर एकत्रित बैठकर सोमरस को ग्रहण करो।
Hey Indr Dev & Agni Dev! You work together unitedly and killed Vratr-the demon. You are great warriors. Both of you come together to drink Somras.
समिद्धेष्वग्निष्वानजाना यतस्रुचा बर्हिरु तिस्तिराणा। 
तीव्रैः सोमैः परिषिक्तेभिरर्वागेन्द्राग्री सौमनसाय यातम्॥
अग्नि के अच्छी तरह प्रज्ज्वलित होने पर दोनों अध्वर्युओं ने पात्र से घृत सेचन करके कुश विस्तारित किया। हे इन्द्र और अग्निदेव! चारों ओर अभिषुत तीव्र सोमरस द्वारा आकृष्ट होकर कृपा करने के लिए हमारे पास आवें।[ऋग्वेद 1.108.4]
हे अग्ने! अग्नि के प्रदीप्त होने पर हमने हवियों को घृतयुक्त किया तथा कुश को बिछाया है। हम स्त्रुव लिए खड़े हैं। तुम दोनों आकर सोम रस से संतुष्ट हो जाओ।
Hey Agni! Both of you spreaded the Kush mat, having ignited the fire by pouring ghee in it.  Hey Indr & Agni Dev! Both of you come here to drink Somras.
यानीन्द्राग्नी चक्रथुर्वीर्याणि यानि रूपाण्युत वृष्ण्यानि। 
या वां प्रत्नानि सख्या शिवानि तेभिः सोमस्य पिबतं सुतस्य॥
हे इन्द्र और अग्निदेव! आप लोगों ने जो कुछ वीरता के कार्य किये हैं, जितने रूप विशिष्ट जीवों की सृष्टि की है, जो कुछ वर्षण किया है तथा आप लोगों का जो कुछ प्राचीन कल्याण कर बन्धुत्व है, वह सब लेकर आवें और अभिषुत सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 1.108.5]
हे इन्द्राग्ने! तुम यदि क्षितिज-धरा, पवंत और औषधि, जल आदि में जहां कहीं भी हो वहीं से मेरे निकट आकर सोम का सेवन करो।
Hey Indr Dev & Agni Dev! You are brotherly ever since. You have performed great deeds for the welfare of the living beings. You together cause rains. Come together and drink this Somras extracted & reserved for you.
यदब्रवं प्रथमं वां वृणानो ३ यं सोमो असुरैर्नो विहव्यः। 
तां सत्यां श्रद्धामभ्या हि यातमथा सोमस्य पिबतं सुतस्य॥
पहले ही कहा था कि आप दोनों का वरण करके आपको सोमरस द्वारा प्रसन्न करूँगा, वही कपटहीन श्रद्धा देखकर पधारें और अभिषुत सोमरस पान करें। यह सोमरस हमारे ऋत्विकों की विशेष आहुति के योग्य हैं।[ऋग्वेद 1.108.6]
तुम क्षितिज के बीच में सूर्य के चढ़ने पर स्वेच्छा पूर्वक विश्राम कर रहे हो तो भी यहाँ पधारकर इस सोम को पियो। 
As has been said, we will pray-worship you and please-make you happy. We have extracted this Somras for you and is good enough for making offerings in the holy fire. Please come to us from the houses of those who are busy in the Yagy-prayers and drink Somras.
यदिन्द्राग्री मदधः स्वे दुरोणे यद्ब्रह्मणि राजनि वा यजत्रा।
अतः पर वृषणावा हि यातमथा सोमस्य पिबतं सुतस्य॥
हे यज्ञ पात्र इन्द्र और अग्निदेव! यदि अपने घर में प्रसन्न होकर निवास करते हो, यदि पूजक वा राजा के प्रति प्रसन्न होकर रहते हो तो हे अभीष्ट दातृ द्वय! इन सारे स्थानों से आकर अभिषुत सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 1.108.7]
हे पूज्य इन्द्राग्ने! तुम जिस यजमान के घर में पुष्ट हो रहे हो, वहाँ से मेरे समीप आकर सोम रस का पान करो।
Hey mighty Indr & Agni Dev! Please come us to drink Somras from the houses of the devotees & the kings who are too happy with you. 
यदिन्द्राग्नि यदुषु तुर्वशेषु यद्द्रुह्युष्वनुषु पूरुषु स्थः। 
अतः परि वृषणावा हि यातमथा सोमस्य पिबतं सुतस्य॥
हे इन्द्र और अग्निदेव! यदि आप लोग तुर्वश, द्रुह्य, अनु और पुरुगण के बीच रहते हो तो हे अभीष्ट दातृ द्वय! उन सब स्थानों से आकर अभिषुत सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 1.108.8]
हे पौरुष युक्त इन्द्राग्ने! तुम यदुओं, तुर्वशी, दूहाओ, पुरुषों में रहते हो, वहाँ से आकर सोम रस पियो।
Hey boon granting duo Indr & Agni! If you reside with the Turvash, Druhy, Anu and Puru Gan, hey duo come to us from all these places and drink Somras. Please fulfil our desires.
यदिन्द्राग्नि अवमस्यां पृथिव्यां मध्यमस्यां परमस्यामुत स्थः। 
अतः परि वृषणावा हि यातमथा सोमस्य पिबतं सुतस्य॥
हे इन्द्राग्नी! यदि आप लोग निम्न पृथ्वी, अन्तरिक्ष अथवा आकाश में रहते हो तो भी, हे अभीष्ट दातृ द्वय! उन सारे स्थानों से आकर अभिषुत सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 1.108.9]
हे वीर्यवान इन्द्राग्ने! तम यदि निम्म्र धरती, अंतरिक्ष और आकाश में स्थित हो तो मेरे समीप आकर सोम पान करो।
Hey boon granting duo Indr & Agni! If you reside over the lower earth, space or the sky, still you come to us to drink Somras. Please fulfil our desires.
यदिन्द्राग्नि परमस्यां पृथिव्यां मध्यमस्यामवमस्यामुत स्थः। 
अतः परि वृषणावा हि यातमथा सामस्य पिबतं सुतस्य॥
हे इन्द्राग्नि! आप लोग यदि उच्च पृथ्वी (आकाश), मध्य पृथ्वी (अन्तरिक्ष) अथवा निम्न पृथ्वी पर निवास करते हो तो भी, हे अभीष्ट दातृ द्वय! उन सब स्थानों से आकर अभिषुत सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 1.108.10]
हे इन्द्राग्ने ! यदि तुम अन्य पृथिव्यादि लोकों में हो तो भी यहाँ आकर सोम रस को पियो।
Hey boon granting duo Indr & Agni! Even if you reside over the upper earth, middle earth or the lower earth please come to us and drink Somras. Please fulfil our desires.
यदिन्द्रीग्नी दिवि ष्ठो यत्पृथिव्यां यत्पर्वतष्वोषधीष्वप्सु। 
अतः परि वृषणावा हि यातमथा सोमस्य पिबतं सुतस्य॥
हे इन्द्र और अग्निदेव! यदि आप आकाश, पृथ्वी, पर्वत, शस्य अथवा जल में निवास करते हो तो भी, हे अभीष्ट दातृ द्वय! उन सब स्थानों से आकर अभिषुत सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 1.108.11]
हे इन्द्राग्ने! तुम यदि क्षितिज धरा, पर्वत औषधि, जल आदि में जहाँ कहीं भी हो वहीं से मेरे निकट आकर सोम रस का सेवन करो।
Hey boon granting duo Indr & Agni! Even if you are present in the sky, earth, mountains, vegetation or the waters, please come to us, drink Somras and grant our wishes-desires.
यदिन्द्राग्नी उदिता सूर्यस्य मध्ये दिवः स्वधया मादयेथे। 
अतः परि वृषणावा हि यातमथा सोमस्य पिबतं सुतस्य॥
हे इन्द्र और अग्निदेव! सूर्य के उदित होने पर दीप्तिमान् अन्तरिक्ष में यदि आप लोग अपने तेज से हृष्ट होते हो तो भी, हे अभीष्ट दातृ द्वय! उन सारे स्थानों से आकर अभिषुत सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 1.108.12]
हे इन्द्राग्ने ! यदि तुम क्षितिज के बीच में सूर्य के चढ़ने पर स्वेच्छा से विश्राम कर रहे हो तो भी यहाँ पधारकर इस सोम को पीयो।
Hey boon granting duo Indr & Agni! Even if you becoming strong with the rising Sun, please come to us, drink Somras and fulfil our desires-wishes.
एवेन्द्राग्री पपिवांसा सुतस्य विश्वासमभ्यं सं जयतं धनानि। 
तन्नो मित्रो वरुणो मामहन्तामदितिः सिन्धुः पृथिवी उत द्यौः॥
हे इन्द्र और अग्निदेव! इस प्रकार अभिषुत सोमरस का पान करके हमें समस्त धन प्रदान करें। हमारी मनोवांछित कामना पूर्ति में मित्र, वरुण, अदिति, सिन्धु, पृथिवी और आकाश के सभी देव सहायक हो।[ऋग्वेद 1.108.13]
हे इन्द्राग्ने! इस निष्पन्न सोम रस को पीकर सभी धनों को जीतो मित्रवरुण, अदिति, समुद्र, धरती और आकाश हमारी विनती का अनुमोदन करो।
Hey Indr & Agni Dev! Please come, drink Somras and give us money. Let Mitr, Varun, Aditi, Sindhu, Earth & the sky-space become helpful in the fulfilment of our desires, by supporting us.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (109) :: ऋषि :- कुत्स आंगिरस, देवता :- इंद्राग्नि,  छंद :- त्रिष्टुप्।  
वि ह्यख्यं मनसा वस्य इच्छन्निन्द्राग्री ज्ञास उत वा सजातान्। 
नान्या युवत्प्रमतिरस्ति मह्यं स वां धियं वाजयन्तीमतक्षम्॥1॥
इन्द्र और अग्नि देव! मैं धन प्राप्ति के लिए, आप लोगों की मित्रता चाहता हूँ। आपने ही मुझे उत्तम बुद्धि दी है; अन्य किसी ने नहीं। इसलिए आपकी सामर्थ्य, शक्ति प्रभाव और क्षमता को बढ़ाने वाले स्तोत्रों की हम रचना करते हैं।[ऋग्वेद 1.109.1]
हे इन्द्राग्ने! अपने हित के लिए मैंने अपने कुटुम्बियों की तरफ भी देख लिया परन्तु तुम्हारे तुल्य कृपा दृष्टि करने वाले अन्यत्र कहीं नहीं मिला, मैंने तुम्हारे चाहने वाले श्लोक की उत्पत्ति की।
Hey Indr & Agni Dev! I want to be friendly with you for the sake of money. Its you who has awarded me virtuous intelligence, none else. Therefore, I compose the verses which boosts your power, might, capability.
अश्रवं हि भूरिदावत्तरा वां विजामातुरुत वा घा स्यालात्। 
अथा सोमस्य प्रयती युवभ्यामिन्द्राग्नी स्तोमं जनयामि नव्यम्॥2॥
हे इन्द्र और अग्नि देव! आप लोग अयोग्य दामाद अथवा साले की अपेक्षा से भी अधिक बहुत प्रकार का धन प्रदान करते हैं, ऐसा सुना है। इसलिए हे इन्द्र और अग्निदेव! आपके सोमरस प्रदान काल में पढ़ने योग्य एक नया स्तोत्र निष्पादित करता हूँ।[ऋग्वेद 1.109.2]
अयोग्य :: अनुपयुक्त, बेकार, नालायक, मूर्ख, अनाड़ी; ineligible, unfit, unworthy, inept, non deserving, unqualified.
हे इन्द्राग्ने! तुम अयोग्य जामाता और साले से भी अधिक धन दान करने वाले हो। मैं तुम्हें सोम रस भेंट करता हुआ, श्लोक रचता हूँ।
Hey Indr & Agni Dev! I have learnt that you grant money, much more beyond the expectations of unqualified, non deserving son in law of the brother in law. I am composing a verse for you which you can read/listen while drinking Somras.
मा च्छेझ रश्मीरिति नाधमानाः पितॄणां शक्तीरनुयच्छमानाः। 
इन्द्राग्निभ्यां कं वृषणो मदन्ति ता ह्यद्री घिषणाया उपस्थे॥3॥
हमारी सन्तान का हनन न करें। पितरों की शक्ति वंशानुगत हो, ऐसी प्रार्थना से युक्त हमें, हे सामर्थ्यवान् इन्द्र और अग्निदेव! आपकी कृपादृष्टि से सुखदायक आनन्द की प्राप्ति हो। इन देवताओं को सोमरस प्रदत्त करने के लिए दो पत्थर सोमपात्रों के पास स्थापित हो।[ऋग्वेद 1.109.3]
संतान की लड़ी न काटें। इस विनती के साथ पूर्वजों के अनुकरण में शक्तिशाली इन्द्र और अग्नि के द्वारा प्रसन्नता पाने को यह सोम कूटने का पाषाण धर्म पर पड़ा है।
Please do not destroy-kill our progeny. We pray to you that the power of Pitr-Manes to perpetuate the descendents, continue.  Hey mighty Indr & Agni Dev! Let us gain comforts & pleasures due to your blessings. We shall keep two stones to crush Somras for the sake of demigods-deities.
युवाभ्यां देवी धिपणा मदायेन्द्राग्नी सोममुशती सुनोति। 
तावश्विना भद्रहस्ता सुपाणी आ धावतं मधुना पृङ्क्तमप्सु॥4॥
हे इन्द्र और अग्निदेव! आपके लिए दीप्तिमती प्रार्थना की कामना करके आपके हर्ष के लिए सोमरस का निर्माण करते हैं। आप अश्व युक्त, शोभन बाहुयुक्त और सुपाणि हैं। आप लोग शीघ्र आएँ और मधुर सोमरस को जलों से मिश्रित करें।[ऋग्वेद 1.109.4]
सुपाणि :: beautiful-handed; skilful, dexterous, dexterous-handed, a trinket for the nose of females.
हे इन्द्राग्ने! तुम्हारी इच्छा लिए ही यह सोम कूटा जा रहा है। हे सुन्दर कल्याण-रूप हाथों वाले इन्द्राग्नि! शीघ्र पधारो। सोम को मृदुजलों से परिपूर्ण करो।
Hey Indr & Agni Dev! We are extracting Somras for your pleasure, with the prayers for your well being. You possess horses, virtuous hands which perform the welfare of the humans. Please come to us quickly and mix the Somras in water.
युवामिन्द्राग्नी वसुनो विभागे तवस्तमा शुश्रव वृत्रहत्ये। 
तावासद्या बर्हिषि यज्ञे  अस्मिन्प्र चर्षणी मादयेथां सुतस्य॥5॥
हे इन्द्र और अग्निदेव! प्रार्थना करने वालों के मध्य में धनविभाग में रत रहकर वृत्रहनन में अतीव बल प्रकाशित किया ऐसा सुना है। सर्वदर्शिद्वय! आप लोग हमारे इस यज्ञ में कुश पर बैठकर अभिषुत सोमरस का पान करके हृष्ट बनें।[ऋग्वेद 1.109.5]
हे इन्द्राग्ने! तुम धन वितरित करने और शत्रु का पतन करने में अत्यन्त शक्तिशाली हो। इस अनुष्ठान में कुश पर विराजमान कर निष्पन्न सोम से आनन्द ग्रहण करो।
Hey Indr & Agni Dev! In spite of being busy in the distribution of wealth amongest your worshipers, you killed Vratr-the demon, this is what we have learnt. Please occupy the cushions made of Kush grass and drink Somras and become strong, in our Yagy.
प्र चर्षणिभ्यः पृतनाहवेषु प्र पृथिव्या रिरिचाथे दिवश्च। 
प्र सिन्धुभ्यः गिरिभ्यो महित्वा प्रेन्द्राग्नी विश्वा भुवनात्यन्या॥6॥
हे इन्द्र और अग्निदेव! युद्ध के समय बुलाये जाने पर आप लोग आकर अपने महत्त्व द्वारा सभी मनुष्यों में श्रेष्ठ बनें। पृथ्वी, आकाश, नदी और पर्वत आदि की अपेक्षा भी श्रेष्ठ बनें। आप अन्य सभी भवनों की अपेक्षा श्रेष्ठ हैं।[ऋग्वेद 1.109.6]
हे इन्द्राग्ने! तुम मानवों से बढ़कर लड़ाई में ताड़ना करते हो। तुम पृथ्वी और आकाश से भी श्रेष्ठ हो। तुम शैलों, समुद्रों और अन्य सभी लोकों से भी बढ़कर हो। 
Hey Indr & Agni Dev! On being invited in a war by the humans, you show your might, power & dignity. You are superior to the earth, sky, rivers and the mountains.
आ भरतं शिक्षतं वज्रबाहू अस्माँ इन्द्राग्नी अवतं शचीभिः।
इमे नु ते रश्मयः सूर्यस्य येभिः सपित्वं पितरो न आसन्॥7॥
हे वज्र-हस्त इन्द्र और अग्निदेव! हमारे गृहों को धन से युक्त करें, हमें शिक्षित करें और अपने बड़ों से हमारी रक्षा करें। सूर्य की जिन रश्मियों के द्वारा हमारे पूर्व पुरुष इकट्ठे हुए थे, वे यहीं है।[ऋग्वेद 1.109.7]
हे वज्रिन! हे अग्ने! तुम दोनों धनों को लाकर हमें दो। अपनी शक्ति से हमारी रक्षा करो। ये वही सूर्य किरणें हैं जो हमारे पूर्वजों को भी प्राप्त थीं।
Hey Vajr wearing-yielding Indr & Agni Dev! Please provide money for our homes, educate us and protect us from those, who are mightier than us. Here are the rays of Sun which brought our ancestors together.
पुरंदरा शिक्षतं वज्रहस्तास्माँ इन्द्राग्नी अवतं भरेषु। 
तन्नो मित्रो वरुणो मामहन्तामदितिः सिन्धुः पृथिवी उत द्यौः॥8॥
हे वज्र हस्त पुरन्दर इन्द्र और अग्निदेव! हमें धन प्रदान करें। लड़ाई में हमें बचावें। मित्र, वरुण, अदिति, सिन्धु, पृथ्वी और आकाश सभी हमारी कामना पूर्ति में सहयोग प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.109.8]
हे दुर्ग भंजक इन्द्राग्ने! हमें इच्छित फल दो। युद्धों में हमारी सुरक्षा करो। सखा, वरुण, अदिति और क्षितिज हमारी वंदना को अनुमोदित करें।
Hey Vajr yielding, destroyers of the forts Indr & Agni Dev! Grant us money. Protect us in war-battle. Let Mitr, Varun, Aditi, Sindhu-ocean, Earth & Akash (the Sky, space) cooperate with us in the fulfilment of desires-wishes.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (110) :: ऋषि :- कुत्स आंगिरस, देवता :- ऋभुगण,  छंद :- जगती, त्रिष्टुप्।  
ततं मे अपस्तदु तायते पुनः स्वादिष्ठा धीतिरुचथाय शस्यते। 
अयं समुद्र इह विश्वदेव्यः स्वाहाकृतस्य समु तृष्णुत ऋभवः॥1॥
हे ऋभुगण! पहले मैंने बार-बार यज्ञानुष्ठान किया; इस समय पुनः करता हूँ एवं उसमें आपकी प्रशंसा के लिए अत्यन्त मधुर स्तोत्र पढ़ा जाता है। यहाँ सभी देवों के लिए यह सोमरस प्रस्तुत हुआ है। स्वाहा शब्द के उच्चारण के साथ अग्नि में उस रस के अर्पित होने पर उसका पान कर तृप्त होवें।[ऋग्वेद 1.110.1]
हे ऋभुओं! जो पूजन कर्म मैंने पहले किया था, वह अब फिर करता हूँ। तुम्हारे लिए श्लोक उच्चारण करता हूँ। यह समुद्र सा विशाल गुणवाला सोम समस्त देवों के लिए है। स्वाहा युक्त होम होने पर तुम इससे अत्यन्त तृप्त होओ।
Hey Ribhu Gan! I repeat the Yagy, Hawan, Agni Hotr and prayers done earlier. A very loving (pleasing) Strotr is very recited in your honour in those prayers. Here is the Somras for you. Accept that extract as the offering is made in the fire by saying Swaha and get satisfied.
आभोगयं प्र यदिच्छन्त ऐतनापाकाः प्राञ्चो मम के चिदापयः। सौधन्वनासश्चरितस्य भूमनागच्छत सवितुर्दाशुषो गृहम्॥2॥
हे ऋभुगण! आप मेरे जातिभ्राता हैं। जिस समय आप लोगों का ज्ञान अपरिपक्व था, उस पूर्व समय में आप लोगों ने पीने के लिए सोमरस की इच्छा की थी। हे सुधन्वा के पुत्र! उस समय अपने कर्म या तपस्या के महत्त्व द्वारा आप लोग हविर्दानशील सविता के घर पधारे थे।[ऋग्वेद 1.110.2]
हे सुधन्वा पुत्रो! जब तुम सोमरस की कामना से विचरो तब तुम अपने महत्त्व से सूर्य के भवन में जा पहुँचे।
Hey Ribhu Gan, the son of Sudhanva! You belong to my clan, Varn, caste. You desired for Somras when your knowledge was incomplete-immature. You had reached Savita's house on the strength of Tapsaya-ascetic practices.
तत्सविता वोऽमृतत्वमासुवदगोह्यं यच्छ्वयन्त ऐतन। 
त्यं चिच्चमसमसुरस्य भक्षणमेकं सन्तमकृणुता चतुर्वयम्॥3॥
जिस समय आप लोग प्रकाशमान सविता को अपने सोमरस पान की इच्छा बताने आये थे और त्वष्टा के बनाये उस एक सोमरस पात्र के चार टुकड़े किये, उस समय सविता ने आपको अमरता प्रदत्त की थी।[ऋग्वेद 1.110.3]
हे ऋभुगण! सूर्य ने तुमको अमर तत्त्व प्रदान किया, क्योंकि तुमने उनसे  अपनी कामना व्यक्त की और त्वष्टा के सोम-भक्ष करने वाले चमस को चार भागों में बाँट दिया। महणधर्मा ऋभुओं ने अपने लगातार कर्मों द्वारा अमरत्व पाया।
The bright Sun granted you immortality, when visited him with the desire of drinking Somras and moulded the Som pot prepared by Twasta, into 4.
विष्टी शमी तरणित्वेन वाघतो मर्तासः सन्तो अमृतत्वमानशुः। 
सौधन्वना ऋभवः सूरचक्षसः संवत्सरे समपृच्यन्त धीतिभिः॥4॥
ऋभुओं ने शीघ्र कर्मानुष्ठान किया और ऋत्विकों के साथ मिले, इसलिए मनुष्य होकर भी अमरत्व प्राप्त किया। उस समय सुधन्वा के पुत्र ऋभु लोग सूर्यदेव की तरह प्रकाशित होकर सावित्सरिक यज्ञों में हव्य के अधिकारी हुए।[ऋग्वेद 1.110.4]
वे सूर्य के समान तेजस्वी हुए। वर्ष भर में अनुष्ठान कार्य में जुड़े। निकटस्थों से वंदना किये गये ऋभुजों ने उत्तम पद माँगते हुए देवत्व की इच्छा की।
Ribhu Gan quickly performed the rites, met the Ritviz and hence attained immortality, though they are humans. They, the son of Sudhanva, qualified-entitled themselves for the offerings in the Yagy and got Aura in their bodies.
क्षेत्रमिव वि ममुस्तेजनेनं एकं पात्रमृभवो जेहमानम्। 
उपस्तुता उपमं नाधमाना अमर्त्येषु अव इच्छमानाः॥5॥
ऋभुओं ने पार्श्वचर्तियों के स्तुतिपात्र होकर उत्कृष्ट सोमरस की आकांक्षा करके और देवों में हव्य की कामना करके उसी प्रकार तीक्ष्ण अस्त्र द्वारा एक यज्ञपात्र को चार भागों में विभक्त किया, जिस प्रकार से मानदण्ड लेकर खेत मापा जाता है।[ऋग्वेद 1.110.5]
बाँस के खेत को नापने के तुल्य चौड़े मुख के पात्र को इन्होंने नापा। 
Ribhu's qualified themselves to be prayed-respected. Their desire for Somras was so great that they used a sharp tool and divided the Yagy pot into 4, just like the measurement of the field, with precision-perfectness.
आ मनीषामन्तरिक्षस्य नृभ्यः स्रुचेव घृतं जुहवाम विद्मना। 
तरणित्वा ये पितुरस्य सश्चिर ऋभवो वाजमरुहन्दिवो रजः॥6॥
हम अन्तरिक्ष के नेता ऋभुओं को पात्र स्थित धृत अर्पित करके ज्ञान द्वारा उनकी स्तुति करते हैं। इन ऋभुदेवों ने अपने पिता के संग सतत क्रिया शील रहकर दिव्य लोक और अन्तरिक्ष लोक से अन्न का उत्पादन करने में सामर्थ्य प्राप्त की।[ऋग्वेद 1.110.6]
स्नूच द्वारा घी डालने से ऋभुओं के प्रति ज्ञान के द्वारा वंदना अर्पित की। उन ऋभुओं ने जनक के कर्मों का अनुसरण कर आकाश के अन्न को पाया। 
We pray to the leaders of the space Ribhu Gan, by offering ghee (in Agni Hotr), who attained the knowledge-ability of growing food grains in the sky-space, actively with the help of their father by making continuous-rigorous  efforts.
ऋभुर्न इन्द्रः शवसा नवीयानृभुर्वाजेभिर्वसुभिर्वसुर्ददिः। 
युष्माकं देवा अवसाहनि प्रियेभि तिष्ठेम पृत्सुतीरसुन्वताम्॥7॥
शक्ति युक्त होने से ऋभु देव सदैव तरुण जैसे ही प्रतीत होते हैं और इन्द्रदेव के तुल्य ही सम्पन्न भी है। शक्तियों और धन-सम्पदाओं से युक्त ये ऋभु हमको ऐश्वर्य प्रदत्त करने वाले है। हे देवो! आपके स्मरणीय साधनों से संरक्षित हम किस शुभ समय में यज्ञीय कर्मों से रहित अर्थात् जो यज्ञ नहीं करते हैं, ऐसे रिपुदल पर विजय प्राप्त करेगें।[ऋग्वेद 1.110.7]
ऋभु अपने पराक्रम से इन्द्र के समान हुए। वे बलों द्वारा धन देने वाले हैं। हे देवगण! हम तुम्हारी रक्षा में रहकर मन चाहे दिनों में ही सोम द्रोहियों की सेनाओं को परास्त करें। 
The Ribhu Gan looks young on being associated with power, mighty, strength and looks like Indr Dev. Having become powerful, they have acquired power to grant wealth, comforts. Hey demigods-Ribhu Gan having been protected by you, we will win the enemy, who do not conduct Yagy.
निश्चर्मण ऋभवो गामपिंशत सं वत्सेनासृजता मातरं पुनः। 
सौधन्वनासः स्वपस्यया नरो जिव्री युवाना पितराकृणोतन॥8॥
ऋभुगण! आपने चमड़े से गौ को आच्छादित किया और गौ को बछड़े से संयुक्त किया। हे सुधन्वा के पुत्र! आपने अपने सत्प्रयास से वृद्ध माता-पिता को पुनः युवा कर दिया।[ऋग्वेद 1.110.8]
हे ऋभुओ! तुमने चर्म से धेनुएँ बनायी। माता से बछड़े का योग किया। श्रेष्ठ कार्यों की कामना से वृद्ध माता-पिता को युवावस्था प्रदान की।
Hey Ribhu Gan! You covered the cows body with leather and joined the calf with its mother. Hey the sons of Sudhanva! you granted youth to your parents by making fruitful efforts.
वाजेभिर्ने वाजसातावविड्ढयृभुमाँ इन्द्र चित्रमा दर्षि राधः। 
तन्नो मित्रो वरुणो मामहन्तामदितिः सिन्धुः पृथिवी उत द्यौः॥9॥
हे इन्द्रदेव! ऋभुओं के साथ मिलकर अन्नदान के समय हमें अन्न प्रदान करते हैं, विचित्र धन प्रदान करते हैं। हमारी यह कामना मित्र, वरुण, अदिति, सिन्धु, पृथ्वी  और आकाश के देवताओं को अनुमोदित करें।[ऋग्वेद 1.110.9]
हे इन्द्रदेव! ऋभुओं युक्त तुम संग्रामों में अपने बल से हमारी सुरक्षा करना और दिव्य धनों को प्रकट करना। सखा, वरुण, अदिति, समुद्र, धरा और क्षितिज हमारी वन्दना को अनुमोदित करें।
Hey Indr Dev! You grant us food grains and amazing wealth in association with the Ribhu Gan. Let Mitr, Varun, Aditi, Sindhu, Earth and the sky recommend to the demigods-deities our wishes-desires.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (111) :: ऋषि :- कुत्स आंगिरस, देवता :- ऋभुगण,  छंद :- जगती, त्रिष्टुप्। 
तक्षत्रथं सुवृतं विद्मनापसस्तक्षन्हरी इन्द्रवाहा वृषण्वसू।
तक्षन्पितृभ्यामृभवो युवद्वयस्तक्षन्वत्साय मातरं सचाभुवम्॥1॥
उत्तम ज्ञानशाली और शिल्पी ऋभुओं ने अश्विनी कुमारों के लिए सुनिर्मित रथ प्रदान किया और इन्द्र के रथ के वाहक हरि नामक बलवान् दोनों घोड़ों को निर्मित किया। ऋभुओं ने अपने माता-पिता को यौवन और बछड़े को सहचरी गौ का प्रदान की।[ऋग्वेद 1.111.1]
ज्ञान द्वारा कार्यों में नियुक्त ऋभुओं ने श्रेष्ठ रथ की उत्पत्ति की। इन्द्रदेव के इस भ्रमण वाले रथ के लिए अश्व बनाये। माता-पिता के लिए युवावस्था को प्रेरित किया और बछड़े के संग रहने वाली जननी की उत्पत्ति की।
The divine artisans Ribhus, who were blessed with excellent knowledge, skills & ability produced an excellent chariot for Ashwani Kumars, in addition to the two strong horses called Hari for the chariote of Indr Dev. They granted youth to their parents (made them young) and created the cow for the calf as its mother.
आ नो यज्ञाय तक्षत ऋभुमद्वयः क्रत्वे दक्षाय सुप्रजावतीमिषम् यथा क्षयाम सर्ववीरया विशा तन्नः शर्धाय घासथा स्विन्द्रियम्॥2॥
हमारे यज्ञ के लिए उज्ज्वल अन्न प्रदान करें। हमारे यज्ञ और बल के लिए सन्तान हेतु भूत अन्न प्रदान करें, जिससे हम सारी वीर सन्ततियों के साथ आनन्द से रहें। हमारे बल के लिए ऐसा ही अन्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.111.2]
हे ऋभुओ! यज्ञ कर्मों के लिए हमको स्वास्थ्य प्रदान करो। कर्म करने के लिए सामर्थ्य चाहिये। अतः उत्तम प्रजा से युक्त अन्न की रचना करो। हे उत्तम बल धारण करने वाली! हम वीर संतति लिए विद्यमान हो।
Create-generate excellent-best quality grains for our Yagy. Produce excellent grains which existed in the past, for our Yagy and the offspring-progeny. Create, generate, produce such grains for us which can give us strength & power.
आ तक्षत सातिमस्मभ्यमृभवः सातिं रथाय सातिमर्वते नरः।
सातिं नो जैत्रीं सं महेत विश्वहा जामिमजामिं पृतनासु सक्षणिम्॥3॥
हे ऋभुगण! हमें अन्न प्रदान करें। हमारे रथ के लिए धन प्रदान करें। हमारे घोड़ों के लिए अन्न प्रदान करें। संसार हमारे जयशील धन की प्रतिदिन पूजा करे और हम रणक्षेत्र में अपने बीच उत्पन्न या अनुत्पन्न शत्रुओं को पराजित कर सकें।[ऋग्वेद 1.111.3]
हे ऋभुओ! हे उत्तम बल धारण करने वाले ऋभुगण, उत्तम प्रजा से युक्त अन्न की रचना करो। हमारे रथ और अश्वों के लिए अन्न, शक्ति आदि ग्रहण कराओ।  हमारे विजय दिलाने वाले और शत्रुओं को दबाने वाले सुरक्षा साधनों की वृद्धि करो।
Hey Ribhu Gan! Grant us food grains, money to maintain our chariots, food grains for our horses. Let our wealth be protected and we should be able to defeat the enemy in the battle field-war.
ऋभुक्षणमिन्द्रमा हुव ऊतय ऋभून्वाजान्मरुतः सोमपीतये।
उभा मित्रावरुणा नूनमश्विना ते नो हिन्वन्तु सातये धिये जिषे॥4॥
अपनी रक्षा के लिए महान् इन्द्र को तथा ऋभु, विभु, वाज और मरुतों को सोमपान के लिए हम बुलाते है। मित्र, वरुण और अश्विनीकुमारों को भी बुलाते हैं। वे हमारे धन, यज्ञ, कर्म और विजय को सिद्धि प्रदत्त करें।[ऋग्वेद 1.111.4]
अपनी रक्षा तथा सोम पान के लिए इन्द्र, ऋभुगण, बाज, मरुद्गण, मित्र, वरुण, अश्विनी कुमारों का मैं आह्वान करता हूँ। वे धन की प्राप्ति, श्रेष्ठ बुद्धि और जल के लिए हमें प्रेरित करें।
We call-invite great Indr Dev, Ribhu Gan, Vibhu, Vaj & Marud Gan to drink Somras for our protection. We call Mitr, Varun and Ashwani Kumars too, for drinking Somras. Let them provide-grant us with money, success, victory and actions, performances-endeavours. 
ऋभुर्भराय सं शिशातु सातिं समर्यजिद्वाजो अस्माँ अविष्टु। 
तन्नो मित्रो वरुणो मामहन्तामदितिः सिन्धुः पृथिवी उत द्यौः॥5॥
संग्राम के लिए हमें ऋभु धन प्रदान करें। युद्ध में विजयी वाज हमारी रक्षा करें। मित्र, वरुण, अदिति, सिन्धु, पृथ्वी और आकाश हमारी यह प्रार्थना पूर्ण करें।[ऋग्वेद 1.111.5]
युद्ध के लिए ऋभुगण हमको धन प्रदान करें। संग्रामों की जीतने वाले बाज हमारे रक्षक हों। सखा, अदिति वरुण, समुद्र, धरा और क्षितिज हमारी इस वंदना को अनुमोदित करें। ऋभुगण अग्रणी मनुष्य थे। 
अंगिरा वेष में सुधन्वा के ऋभु, विभु और बाज नामक तीन पुत्र थे। वे अपने श्रेष्ठ कर्मों द्वारा देवता बन गये। (Sudhanva had three sons named Ribhu, Vibhu and Baj. They became demigods by virtue of their excellent deed. 
Let Ribhu Gan give us money to fight. Winners of war, Vaj-Baj, protect us. Let Mitr, Varun, Aditi, Sindhu, Prathvi-Earth and the sky fulfil our this prayer.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (112) :: ऋषि :- कुत्स आंगिरस, देवता :- द्यावा, पृथिवी, अग्रि, अश्विनी कुमार,  छंद :- जगती, त्रिष्टुप्। 
ईळे द्यावापृथिवी पूर्वचित्तयेऽग्निं धर्म सुरुचं यामन्निष्टये। 
याभिर्भरे कारमंशाय जिन्वथस्ताभिरू षु ऊतिभिरश्विना गतम्
अश्विनी कुमारों को पहले बताने के लिए द्यावा-पृथ्वी की मैं स्तुति करता हूँ। इन दोनों के आने पर उनकी पूजा के लिए प्रदीप्त और शोभन कान्ति से युक्त अग्निदेव की स्तुति करता हूँ। हे अश्विद्रय! आप लोग युद्ध में अपना भाग पाने के लिए जिन सब उपायों के साथ शंख बजाते हैं, उन सभी उपायों के साथ पधारें।[ऋग्वेद 1.112.1]
मैं चैतन्य के लिए क्षितिज धरा की वंदना करता हूँ। फिर अश्विनी कुमारों के शीघ्र आगमन के लिए महान कान्ति से परिपूर्ण अग्नि का पूजन करता हूँ। हे अश्विनों! जिस सुन्दर सुरक्षा साधनों से युद्ध में धन जीत कर प्रदान करते हो, उनके संग यहाँ विराजो।
I pray to Prathvi-the Earth to reveal-explain to Ashwani Kumars, my concern. I pray to Agni Dev who has aura on the arrival of Ashwani Kumars. Hey Ashwani Kumars! You blow conch in the war to receive your share. Please come here with all those methods-procedures which  can grant us the money won in the war.
युवोर्दानाय सुभरा असश्चतो रथमा तस्थुर्वचसं न मन्तवे। 
याभिर्धियोऽवथः कर्मन्निष्टये ताभिरू षु ऊतिभिरश्विना गतम्
जिस प्रकार न्याय वाक्यों से युक्त पण्डित के पास शिक्षा के लिए लोग जाते हैं, हे अश्विद्वय! वैसे ही अन्य देवों में अनासक्त स्तोता लोग शोभन स्तुति के साथ अनुग्रह प्राप्ति की आशा में आपके रथ के पास आकर खड़े होते हैं। हे अश्विद्वय! आप लोग जिन उपायों के साथ यज्ञ सम्पादन के लिए बुद्धिमान लोगों की रक्षा करते हैं, उन उपायों के साथ यहाँ पधारें।[ऋग्वेद 1.112.2]
हे अश्विनी कुमारो! जैसे कर्मों में सम्पत्ति के लिए महापुरुषों के सभी ओर खड़े रहते हैं, वैसे ही तुम्हारे रथ के चारों ओर खड़े रहकर स्तोताजन गान के योग्य श्लोकों के साथ स्थिर होते हैं। जिन रक्षा के साधनों को अभिष्ट सिद्धि के लिए प्रेरित करते हो। उनके साथ यहाँ आ जाओ।
The worshippers-devotees continue standing by the side of your chariot to seek favours, like the learned-enlightened people, who visit the Pandits (scholars, enlightened people, philosophers) to seek blessing and Gyan-knowledge. Please come to protect us and use those means utilised by you to save the populace.  
युवं तासां दिव्यस्य प्रशासने विशां क्षयथो अमृतस्य मज्पनाँ। 
याभिर्धेनुमस्वं पिन्वथो नरा ताभिरू षु ऊतिभिरश्विना गतम्
हे नेतृद्वय! आप दोनों दिव्य लोक में निर्मित हुए सोमरस के पान से अमर और बलशाली बनें और उसी बल से इन सभी प्रजाजनों पर शासन भी करते रहें। आपने जिन चिकित्सा प्रणाली से सन्तान न देने वाली अर्थात् बन्ध्या गौओं को प्रजनन योग्य हृष्ट-पुष्ट और दूध देने वाली बनाया, उन संरक्षण साधनों के साथ आप हमारे यहाँ निश्चित रूप से पधारें।[ऋग्वेद 1.112.3]
हे अश्विनी कुमारों! तुम क्षितिजस्त अमृत की शक्ति से प्रजाओं पर राज्य करने में समर्थ हो। जिस प्रकार से तुमने वन्धया गौओं को दूध से परिपूर्ण किया, उनके संग पधारो।
Hey leader deo-Ashwani Kumars! You should become immortal, strong and gain strength by drinking the Somras extracted in divine abodes. Protect and rule the populace with this might attained by you. You made the cows fertile, strong and to Milch. Please come to us with all these means, methods, procedures adopted do all this.
याभिः परिज्या तनयस्य मज्यना द्विमाता तूर्षु तरणिर्विभूषति। याभिस्त्रिमन्तुरभवद्विचक्षणस्ताभिरू षु ऊतिभिरश्विना गतम्
दो माताओं (अरणियों) से उत्पन्न वायुदेव और अग्निदेव गति युक्त होकर शोभायमान होते हैं तथा कक्षीवान् ऋषि जिन तीन साधनारूपी यज्ञों से ज्ञानयुक्त हुए, हे अश्विनी कुमारों आप उन रक्षा कारणों से हमारे पास पधारे।[ऋग्वेद 1.112.4]
हे अश्विनो! जिन उपायों से द्विमातृक अग्नि पुत्र यजमान के पराक्रम से उत्पन्न होकर तेज से सुशोभित होते हैं तथा जिन उपायों से "कक्षीवान्" तीन यज्ञों के ज्ञाता महापुरुष हुए, उन उपायों के साथ यहाँ आओ।
Please visit us with those methods-means, with which Agni Dev-Fire & the Pawan Dev-Air got honours, having born out of two woods & Rishi Kakshivan attained enlightened by conducting three Yagy in the form of rigorous practices.
याभी रेभं निवृतं सित मद्भ्य उद्वन्दनमैरयतं स्वर्दृशे। 
याभिः कण्वं प्र सिषासन्तमावतं ताभिरू षु ऊतिभिरश्चिना गतम्
हे अश्विद्वय! जिन उपायों से आप लोगों ने असुरों द्वारा कुएँ में फेंके हुए व पाश से बँधे हुए रेभ नामक ऋषि को तथा बन्दन नाम के ऋषि को भी जल से बचाया था। जिस प्रकार साधना में रत कण्व ऋषि को संरक्षण साधनों द्वारा उचित रीति से सामर्थ्यवान् बनाया, उन्हीं संरक्षण युक्त साधनों के साथ आप हमारे यहाँ पधारें।[ऋग्वेद 1.112.5]
हे अश्विदेवो! जिन उपायों से कुएँ में पड़े हुए बन्धन परिपूर्ण "रेभ" ऋषि को जल से बाहर निकाला और इसी प्रकार "वन्दन" ऋषि को बचाया तथा जिन उपायों से कण्व ऋषि की सुरक्षा की, उनके साथ यहाँ पधारो।
Hey Ashwani deo! Please come to us with the means, methods, procedures with which you brought out the Rishis named Vandan & Rebh, who were tied by the demons with ropes and thrown into the well and you made Kavy Rishi strong and capable, who was busy with meditation-ascetics. 
याभिरन्तकं जसमानमारणे भुज्युं याभिरव्यथिभिर्जिजिन्वथुः। 
याभिः कर्कन्धुं  वय्यं  च जिन्वथस्ताभिरू षु ऊतिभिरश्चिना गतम्
कुँए में फेंककर असुर लोग जिस समय अन्तक नाम के राजर्षि की हिंसा कर रहे थे, उस समय आप लोगों ने जिन उपायों द्वारा उनकी रक्षा की थी, जिस कड़ी मेहनत से तुग्र पुत्र भुज्यु को सुरक्षित किया तथा असुरों द्वारा पीड़ित कर्कन्धु और वय्य नाम के मनुष्यों की रक्षा की थी, उनके साथ पधारें।[ऋग्वेद 1.112.6]
हे अश्विदेवो! जिन साधनों से कुएँ में डालकर हिंसा किये जाते अंतक ऋषियों को बचाया, समुद्र में पड़े भुज्यु की रक्षा की, कर्कन्ध और वय्य की रक्षा की उन साधनों के साथ यहाँ पर पधारो।
Hey Ashwani deo! Please come to us with the means, methods, procedures with which you saved Antak-the Rajrishi, who was trown into the well & tortured by the demons, protected Bhujyu-the son of Tugr and Karkandhu & Vayy-named humans.
याभिः शुचन्तिं धनसां सुषंसदं तप्तं घर्ममोम्यावन्तमत्रये। 
यभिः पृश्निगुं पुरुकुत्समावतं ताभिरू षु ऊतिभिरश्विना गतम्
हे अश्विनी कुमारों! जिन उपायों द्वारा शुचन्ति नामक व्यक्ति को धन और शोभन गृह प्रदान किया व अत्रि ऋषि के लिए तपते हुए कारागार को शीतल किया तथा पृश्निगु व पुरुकुत्स की रक्षा की, आप उन्हीं सुरक्षा साधनों से युक्त होकर हमारे यहाँ पधारें।[ऋग्वेद 1.112.7]
हे अश्विदेवो! जिन साधनों से सुचिति को श्रेष्ठ धन और निवास दिया, अत्रि को दग्घ करने वाली अग्नि के ताप से बचाया, पृश्निगु और पुरुकुत्स की सुरक्षा उनके लिए पधारो।
Hey Ashwani Kumars! Please come to us with the means, methods, procedures with which you provided wealth & comfortable house to Shuchanti, cooled the hot prison for Atri Rishi, protected Prashnigu & Purukuts.
याभिः शचीभिर्वृषणा परावृजं प्रान्धं श्रोणं चक्षस एतवे कृथः। 
याभिर्वर्तिकां ग्रसिताममुञ्चतं ताभिरू षु ऊतिभिरश्विना गतम्
हे अभीष्ट वर्षिद्वय! आपने परावृज ऋषि, ऋजाश्च और श्रोण को दृष्टि और पैर प्रदत्त किये, भेड़िये द्वारा मुख में पकड़ी हुई एवं दाँतों से घायल चिड़िया को अपनी शक्ति से छुड़ाकर से आरोग्यता की, उन आरोग्यप्रद चिकित्सा साधनों के साथ आप हमारे यहाँ पधारें।[ऋग्वेद 1.112.8]
हे अश्विदेवो! जिन शक्तियों से अंधे, लूले, परावृज को आँखें और पाँव प्रदान किये, जिन साधनों में भेड़िये द्वारा ग्रसित “बेटरी" की सुरक्षा की, उनके परिपूर्ण यहाँ पधारो।
Hey Ashwani Kumars! Please come to us with the means, methods, procedures with which you gave eye sight and legs to Pravraj Rishi, Rijashch & Shron, released the bird caught by the wolf in his mouth and granted it good health.
याभिः सिन्धुं मधुमन्तमसश्चतं वसिष्ठं यभिरजरावजिन्वतम्। 
याभिः कुत्सं श्रुतर्यं नर्यमावतं ताभिरू षु ऊतिभिरश्चिना गतम्॥
हे अजर अश्विनी कुमारों! जिन उपायों द्वारा मधुमयी नदी को प्रवाहित किया, जिन उपायों द्वारा वसिष्ठ, कुत्स, श्रुतर्य तथा नर्य नाम के ऋषियों की शत्रुओं से रक्षा की उन्हीं संरक्षक साधनों के साथ हमारे यहाँ पधारें।[ऋग्वेद 1.112.9]
हे अजर अश्विदेवो! जिन साधनों से आपने मधुमयी नदी को बहा दिया। जिन साधनों से वशिष्ठ, कुत्स और क्षुतर्थ की रक्षा की, उनके साथ यहाँ आओ। 
Hey immortal Ashwani Kumars! Please come to us with the means, methods, procedures with which you cleared the flow of Madhumayi river, protected Vashishth, Kuts, Rutary and Nary Rishi.
याभिर्विश्पलां धनसामथव्र्यं सहस्रमीळ्ह आजावजिन्वतम्। 
याभिर्वशमश्र्व्यं प्रेणिमावतं ताभिरू षु ऊतिभिरश्विना गतम्॥
हे अश्विनी कुमारों! जिस शक्ति से आप दोनों ने सहस्रों वीरों द्वारा लड़े जा रहे युद्धभूमि में अथर्वकुल में उत्पन्न धनदात्री विश्पला की सहायता की और प्रेरणाप्रद अश्वराज के पुत्र वश ऋषि को सुरक्षित किया। आप उन्हीं रक्षा साधनों से यहाँ पधारो।[ऋग्वेद 1.112.10]
हे अश्विद्वय! जिन साधनों से धन की इच्छा करने वाले और पेंगु विश्पला! को असंख्य धन देने वाले युद्ध में जाने की शक्ति दी। जिन साधनों से स्तुति करते हुए अश्वराज के पुत्र “वश" ऋषि की रक्षा की, उनके साथ यहाँ आओ। 
Hey Ashwani Kumars! Please come to us with the means, methods, procedures with which you helped Dhandatri Vishpala, born in Atharv clan who was fighting with hundreds of warriors and saved the son of Ashvraj called Rishi.
याभिः सुदानू औशिजाय वणिजे दीर्घश्रवसे मधु कोशो अक्षरत्। 
कक्षीवन्तं स्तोतारं याभिरावतं ताभिरू षु ऊतिभिरश्र्विना गतम्॥
हे दानशील अश्विनी कुमारों! जिन उपायों द्वारा दीर्घतमा की उशिकू नामक स्त्री के पुत्र वणिक वृत्ति दीर्घश्रवा को मेघ से जल प्रदान किया था और उशिकू के पुत्र स्तोता कक्षीवान् की रक्षा की उनके साथ यहाँ पधारे।[ऋग्वेद 1.112.11]
हे कल्याणकारी अश्विद्वय! जिन साधनों से वर्णकर (वैश्य) उशिज के पुत्र दीर्घश्रवा के लिए वर्षा की तथा जिनके वंदनाकारी कक्षीवान की सुरक्षा की, उनके संग पधारो।
Hey Ashwani Kumars inclined to charity-donations! Please come to us with the means, methods, procedures with which you gave rain water to the son of Dirghtma born out of the woman named Ushiku, named Vanik Vrati and protected Stota Kashivan son of Ushiku.
याभी रसां क्षोदसोद्नः पिपिन्वथुरनश्र्वं याभा रथमावतं जिषे। 
याभिस्त्रिशोक उस्त्रिया उदाजत ताभिरू षु ऊतिभिरश्विना गतम्॥
हे अश्विनी कुमारों! जिन उपायों द्वारा नदियों के तटों को जल से परिपूर्ण किया और अपने अश्व रहित रथ को विजय के लिए चलाया तथा आपके जिन उपायों से कण्वपुत्र त्रिशोक नामक ऋषि ने अपनी अपहृत गौ को प्राप्त किया, उन उपायों के साथ पधारें।[ऋग्वेद 1.112.12]
हे अश्विद्वय! जिन साधनों से नदी किनारे को तुमने जलों से परिपू किया, जिन साधनों के बिना अश्वों के रथ को चलाया तथा जिन साधनों से त्रिशोक ने धेनुओं को हाँकने की शिक्षा पायी, उनके संग पधारो।
Hey Ashwani Kumars! Please come to us with the means, methods, procedures with which you filled the rivers with water, drove your chariote which did not have horses for victory and helped the Son of Kavy Rishi Trishok recovere his abducted cow.
याभिः सूर्यं परियाथः परावति मन्धातारं क्षैत्रपत्येष्वावतम्। 
याभिर्विप्रं प्र भरद्वाजमावतं ताभिरू षु ऊतिभिरश्विना गतम्॥
जिन उपायों द्वारा दूर स्थित सूर्य के पास उन्हें ग्रहण के अन्धकार से मुक्त करने के लिए जाते हैं। जिस प्रकार से क्षेत्रपति के कार्य में मान्धाता राजर्षि की रक्षा की और जिन उपायों द्वारा अन्नदान कर भरद्वाज ऋषि की रक्षा की, उनके साथ पधारें।[ऋग्वेद 1.112.13]
हे अश्द्वियों! जिन साधनों से दूरवर्ती सूर्य को प्राप्त होते हो, जिन उपायों से मान्धाता की क्षेत्रपति के कार्य में रक्षा की और भरद्वाज ऋषि को जिन उपायों से बचाया, उनके साथ यहाँ आओ।
Hey Ashwani Kumars! Please come to us with the means, methods, procedures with which you went to the Sun to free-release him from the darkness of eclipse, the way-manner in which you helped Rajrishi Mandhata in the deeds works related with the land and provided food grains to Rishi Bhardwaj
याभिर्महामतिथिग्वं केशोजुवं दिवोदासं शम्बरहत्य आवतम्। 
याभिः पूर्भिद्य त्रसदस्युमावतं ताभिरू षु ऊतिभिरश्विना गतम्
जिन उपायों द्वारा महान् अतिथि वत्सल और असुरों के भय से जल में बैठे हुए दिवोदास को शम्बर असुर के हनन काल में बचाया था तथा जिन उपायों द्वारा नगर विनाश रूप समर में पुरुकुत्स पुत्र सदस्यु ऋषि की रक्षा की थी, हे अश्विनी कुमारो! उनके साथ यहाँ पधारें।[ऋग्वेद 1.112.14]
जिन साधनों से तुमने अतिथि प्रेमी दिवोदास को शम्बर सहित युद्ध करते हुए रक्षा की तथा त्रसदस्यु को युद्ध में बचाया, इन साधनों सहित आ जाओ।
Hey Ashwani Kumars! Please come to us with the means, methods, procedures with which you protected Divo Das, who served the guests to his level best & who was hiding in water due to the fear of the demon Shambar and saved Sadasyu Rishi, the son of Purukuts in a fearsome battle.
याभिर्वम्रं विपिपानमुपस्तुतं कलिं याभिर्वित्तजानिं दुवस्यथः। 
याभिर्व्यश्वमुत पृथिमावतं ताभिरू षु ऊतिभिरश्विना गतम्॥
हे अश्विनी कुमारों! आपने जिन साधनों से सोमरस का पान करने वालों की, वभ्र ऋषि की, पत्नी सहित कलि नाम के ऋषि की रक्षा की और जिन उपायों द्वारा अश्वरहित पृथि नाम के बैन राजर्षि की रक्षा की थी, उनके साथ यहाँ पधारें।[ऋग्वेद 1.112.15]
हे अश्विनी कुमारों! जिन साधनों से वभ्र ऋषि की उपस्तुत की नारी पाने पर कलि ऋिषि की सुरक्षा की तथा जिन साधनों से व्यश्रव और पृथि को बचाया, उनके संग पधारो।
Hey Ashwani Kumars! Please come to us with the means, methods, procedures with which you saved-protected the Rishi named Kali along with the wife of Vrabh Rishi and Prathi Rishi-Baen Rajrishi who was without the horse. 
याभिर्नरा शयवे याभिरत्रये याभिः पुरा मनवे गाआपीषथुः। 
याभिः शारीराजतं स्यूमरश्मये ताभिरू षु अतिभिरश्चिना गतम्
हे नेतृद्वय! जिन उपायों द्वारा शत्रु, अग्रि और पहले मनु को गमन मार्ग दिखाने की इच्छा की थी और स्यूमरश्मि ऋषि के लिए उनके शत्रुओं के ऊपर बाण चलाया था, हे अश्विनी कुमारो! उन उपायों के साथ यहाँ पधारे।[ऋग्वेद 1.112.16]
हे अश्विनी कुमारो! शयु, अत्रि और मनु के लिए जिन साधनों ने मार्ग दिखाया तथा स्यूम रश्मि की सुरक्षा के लिए उनके शत्रु पर बाण चलाया उन साधनों से युक्त पधारो।
Hey Ashwani Kumars! Please come to us with the means, methods, procedures with which you desired to show the sky path to Shatru, Agni and Manu and shot arrow at the enemy of Rishi Syumrshmi.
याभिः पठर्वा जठरस्य मज्मनाग्निर्नादीदेच्चित इद्धो अज्मन्ना। 
याभिः शर्यातमवथो महाधने ताभिरू ताभिरू षु ऊतिभिरश्विना गतम्॥
जिन उपायों द्वारा पठव नाम के राजर्षि शरीर बल से संग्राम में काष्ठ युक्त प्रज्वलित की तरह दीप्तिमान् हुए थे और जिन उपायों द्वारा युद्ध क्षेत्र में शर्यात नामक राजा की रक्षा की थी, हे अश्विनी कुमारों! उन उपायों के साथ यहाँ पधारें।[ऋग्वेद 1.112.17]
हे अश्विद्वय! जिस शक्ति के साधन से तेज समूह युक्त अग्नि के समान पढर्वा को युद्ध में प्रकाशित किया तथा शयति की युद्ध में रक्षा की, उनके साथ आओ।
Hey Ashwani Kumars! Please come to us with the means, methods, procedures with which you established Rajrishi Pathav (just like a source of fire & light produced from wood) as a source of light-energy in the battle field  and saved the king Sharyat. 
याभिरङ्गिरो मनसा निरण्यथोऽग्रं गच्छयो विवरे गोअर्षासः। 
याभिर्मनुं शूरभिषा समावतं ताभिरू षु ऊतिभिरश्विना गतम्
हे अङ्गिरा! हे अश्विनी कुमारों की स्तुति करें। जिन उपायों से आप लोग अन्तःकरण से प्रसन्न हुए थे, जिनसे पणि द्वारा अपहृत गौ के प्रच्छन स्थान में सभी देवताओं से पहले पहुँचे थे और जिन्हें अन्न देकर शूर मनु की रक्षा की थी, हे अश्विनीकुमारी उन उपायों के साथ यहाँ पधारें।[ऋग्वेद 1.112.18]
हे अंगिराओ! हे अश्विद्वय! जिन सुरक्षा साधनों से तुम प्रसन्नचित्त होते हो, जिनसे पणि द्वारा अपहरण धेनु के स्थान में समस्त देवों से आगे गये, जिनसे मनु को अग्नि से परिपूर्ण किया, उनके युक्त यहाँ विराजो।
Hey Angira worship-pray to Ashwani Kumars. Hey Ashwani Kumars! Please come to us with those means, methods, procedures with which your innerself was filled with pleasure-happiness and you brought the demigods-deities to the take back the cows abducted by Pani gave food grains to Manu and saved him.
याभिः पत्नीर्विमदाय न्यूहथुरा घ वा याभिररुणीरशिक्षतम्। 
याभिः सुदास ऊहथुः सुदेव्यं ताभिरू षु ऊतिभिरश्विना गतम्
जिन उपायों से विमद ऋषि को पत्नी दी, जिन्हें लाल रंग की गायें प्रदत्त की और पिजवन पुत्र सुदास राजा को यथेष्ट धन प्रदान किया, हे अश्विनीकुमारों। उनके साथ यहाँ पधारें।[ऋग्वेद 1.112.19]
हे अश्विनी कुमारों जिन साधनों से तुमने विभेद को पत्नी से युक्त किया। प्राणियों के लिए अरुण उधाएँ प्रेरित की, सुदास को दिव्य धन प्रदान किया, उनके साथ पधारो।
Hey Ashwani Kumars! Please come to us with the means, methods, procedures with which you granted-gave a wife to Vimad Rishi, gave red coloured cows and gave sufficient money to the king Sudas, the son of Pijwan.
याभिः शंताती भवथो ददाशुषे भुज्युं याभिरवथो याभिरध्रिगुम्। 
ओम्यावतीं सुभरामृतस्तुभं ताभिरू पु ऊतिभिरश्विना गतम्
हे अश्विनी कुमारों! जिन उपायों से आप हव्य देने वाले को सुख प्रदान करते हैं, आपने तुग्र पुत्र भुज्यु और देवों के अध्रिगु की रक्षा को थी तथा ऋतस्तुभ ऋषि को सुखकर पुष्टि कारक अन्न प्रदान किया था, उनके साथ यहाँ पधारें।[ऋग्वेद 1.112.20]
हे अश्विदय! जिन साधनों से तुम हविदाता को सुख देते हो। अनुष्ठान की सुरक्षा करते हो, जिनसे अध्रिगु देववाणी और ऋतु के अर्चन की सुरक्षा करते हो। उनके संग यहाँ पधारो।
Hey Ashwani Kumars! Please come to us with the means, methods, procedures with which you granted comforts & pleasure to those who made offerings, you protected Bhujyu the son of Tugr, protected Adhirgu & gave nourishing food grains to Ritstubh Rishi. 
याभिः कृशानुमसने दुवस्यथो जवे याभिर्यूनो अर्वन्तमावतम्। 
मधु प्रियं भरथो यत्सरभ्यस्ताभिरू षु ऊतिभिरश्चिना गतम्
हे अश्विनी कुमारो! जिन उपायों द्वारा आपने सोमपाल कृशानु की समर में रक्षा की और युवा पुरुकुत्स के अश्व को  वेग प्रदान किया तथा मधु मक्षिकाओं को मधु दिया, उनके साथ यहाँ पधारें।[ऋग्वेद 1.112.21]
हे अश्विद्वय! जिन साधनों से युद्ध में कृशानु को बचाया, जिनसे युवा पुरुकुत्स के अश्व को वेग से चलाया, जिन साधनों से मधुमक्खियों को शहद दिया, उनके सहित आओ।
Hey Ashwani Kumars! Please come to us with the means, methods, procedures with which you protected Sompal Krashanu in war, accelerated the horse of Purukuts and gave honey to Madhu Makshikas.
याभिर्नरं गोषुयुधं नृषाह्ये क्षेत्रस्य साता तनयस्य जिन्वथः। 
याभी रथाँ अवथो याभिरर्वतस्ताभिरू षु ऊतिभिरश्चिना गतम्
हे अश्विनी कुमारो! गौ प्राप्ति के लिए जिन उपायों द्वारा युद्धकाल में मनुष्यों की आप रक्षा करते हैं और जिनकी भूमि और धन की प्राप्ति में सहायता करते हैं तथा जिन उपायों द्वारा मनुष्य अथवा यजमान के रथों और अश्वों की रक्षा करते हैं, उनके साथ यहाँ पधारें।[ऋग्वेद 1.112.22]
हे अश्विद्वय! जिन साधनों से गौ आदि धन के लिए युद्ध में प्राणियों की रक्षा करते हो, जिनसे रथ और अश्वों की रक्षा करते हो, उनके सहित पधारो।
Hey Ashwani Kumars! Please come to us with the means, methods, procedures with which you protect the humans with the means of getting cows, land & money and protect the chariots and horses of humans or the Yagy performers, house holds.
याभिः कुत्समार्जुनय शतक्रतू प्र तुवींतिं प्र च दभीतिमावतम्। 
याभिर्ध्वसन्ति पुरुषन्तिमावतं ताभिरू षु ऊतिभिरशिवा गतम्
हे शतक्रतु अश्वनी कुमारो! आप दोनों जिन उपायों से अर्जुन के पुत्र कुत्स तुर्वी और दधीति को तथा ध्वसन्ति व पुरुषन्ति ऋषि को संरक्षित किया, उन उपायों के साथ यहाँ पधारें।[ऋग्वेद 1.112.23]
हे महाबलिष्ठ अश्विद्वय! जिन सुरक्षा साधनों से अर्जुन पुत्र कुत्स, तुर्वोति, दर्भाति, ध्वसन्ति और पुरुषन्ति की तुमने सुरक्षा की उन साधनों सहित यहाँ पधारो।
Hey mighty Ashwani Kumars! Please come to us with the means, methods, procedures with which you both protected Kuts Tuvi & Dadhichi the sons of Arjun and saved Dhvsanti & Purushanti Rishis.
अप्नस्वतीमश्विना वाचमस्मे कृतं नो दस्रा वृषणा मनीषाम्।
अद्यूत्येऽवसे नि ह्वये वां वृधे च नो भवतं वाजसातौ॥
हे अभीष्टवर्षी अश्विनी कुमारो! हमारे वाक्य को विहित कर्म युक्त करें; हमारी बुद्धि को वेद ज्ञान समर्थ करें। हम प्रकाशहीन रात्रि के शेष प्रहर में रक्षा के लिए आपको बुलाते हैं। अन्नप्राप्ति के लिए हम आप दोनों का आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 1.112.24]
हे अश्विदेवो! हमारे संकल्प और बुद्धि को कर्म युक्त करो। मैं निष्कपट कार्यों में सुरक्षा हेतु आपका आवाह्न करता हूँ। द्वन्द्व में हमारी वृद्धि करो।
Hey desire fulfilling Ashwani Kumars! Please make our words meaningful-sinless, make our minds capable of understanding-interpreting the Veds. We call you in the dark nights in the last segment-quarter. We pray-request both of you for the food.
द्युभिरक्तुभिः परि पातमस्मानरिष्टेभिरश्विना सौभगेभिः। 
तन्नो मित्रो वरुणो मामहन्तामदितिः सिन्धुः पृथिवी उत द्यौः॥
हे अश्विनी कुमारो! दिन और रात्रि में हमें विनाश रहित सौभाग्य द्वारा बचावें। मित्र, वरुण, अदिति, सिन्धु, पृथ्वी और आकाश आपके द्वारा दिये गए धनों की रक्षा में हमारे सहायक।[ऋग्वेद 1.112.25]
हे अश्विदेवो! दिन और रात्रि चौबीस घंटों में भी विनाश रहित सौभाग्यों द्वारा हमारी सभी तरफ से सुरक्षा करी। सखा, वरुण, समुद्र, अदिति, धरती और आकाश हमारी इस विनती को अनुमोदित करें।
Hey Ashwani Kumars! Please protect us throughout the day & night with good luck. Let Mitr, Varun, Aditi, Sindhu, Prathvi-Earth & Akash-sky become helpful to us in protecting the wealth granted by you.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (113) :: ऋषि :- कुत्स आंगिरस, देवता :- उषा, रात्रि आदि,  छंद :- त्रिष्टुप् पंक्ति।
इदं श्रेष्ठं ज्योतिषां ज्योतिरागाचित्रः प्रकेतो अजनिष्ट विभ्वा।  
यथा प्रसूता सवितुः सवायँ एवा रात्र्युषसे योनिमारैक्
ज्योतियों में श्रेष्ठ यह ज्योति (उषा) आई हैं। उषा की विचित्र और जगत्प्रकाशक रश्मि भी व्याप्त होकर प्रकाशित हुई है। जैसे रात्रि सविता द्वारा प्रसूत हैं, वैसे ही रात्रि ने भी उषा की उत्पत्ति के लिए जन्म स्थान की कल्पना की है अर्थात् रात्रि सूर्य की सन्तान है और उषा रात्रि की सन्तान हैं।[ऋग्वेद 1.113.1]
यह दीप्तियों में महान दीप्ति प्रकट हुई। दिव्य प्रकाश सर्वत्र फैल गया। रात ने जैसे सूर्य से जन्म लिया था, वैसे ही उषा के लिए अपना स्थान ने दिया।
Excellent (the best, greatest) amongst the rays of light Usha has come. It spread the divine light in the universe. The way, Ratri-night is born out of Savita, Usha is born out of Savita.
रुशद्वत्सा रुशती श्वेत्यागादारैगु कृष्णा सदनान्यस्याः। 
समानबन्यू अमृते अनूची द्यावा वर्णं चरत आमिनाने
दीप्तिमती शुभ्र वर्णा सूर्य माता उषा पधारी हैं। कृष्ण वर्णा रात्रि अपने स्थान को गई है। रात्रि और उषा दोनों ही सूर्य की बन्धुत्व सम्पन्ना और भरण रहिता हैं। ये एक-दूसरे के पीछे आती हैं और एक-दूसरे के वर्ण का विनाश करती हैं।[ऋग्वेद 1.113.2]
श्वेत रंग के बछड़े के समान चमकती हुई उषा आ गई। रात्रि ने इसके लिए स्थान छोड़ दिया। ये दोनों आपस में बंधी हुई ऊपर आकाश में क्रमपूर्वक गति करती हुई एक दूसरे के रंग को समाप्त कर देती हैं। 
Bright, white coloured, Usha has arrived. The dark coloured night has gone to its place of origin. Both of these Usha and night are complementary of the Sun and vanish the colour of each other, coming one after another. 
समानो अध्वा स्वस्त्रोरनन्तस्तमन्यान्या चरता दवाशिष्टे।  
न मेथते न तस्थतुः सुमेके नक्तोषासा समनसा विरूपे
इन दोनों बहनों (उषा और रात्रि) का एक ही अनन्त सञ्चरण मार्ग दीप्तिमान् सूर्य द्वारा निर्दिष्ट है। वे दोनों एक के पश्चात् एक उसी मार्ग पर भ्रमण करती हैं। समस्त पदार्थों को उत्पन्न करने वाली रात्रि और उषा विभिन्न रूप धारण करने पर भी समान मनयुक्ता है। वे आपस में बाधा नहीं देतीं और न ही कहीं रुकती हैं।[ऋग्वेद 1.113.3]
इन दोनों वाहनों का रास्ता एक ही है, उन पर देवों का शिक्षा से यह बार-बार यात्रा करती है। एक हृदय वाली वह उषा और रात्रि विभिन्न रंग की है और परस्पर टकतराती नहीं है।
The path of both of these sisters is the one followed by the Sun. The travel over the same path one after another. Though they have different shades, yet they are identical in nature (tendencies-working). They do not interfere with one another.
भास्वती नेत्री सूनृतानामचेति चित्रा वि दुरो न आवः। 
प्रार्ष्या जगद्वयु नो रायो अख्यदुषा अजीगर्भुवनानि विश्वा
हम प्रभा संयुक्ता सूमृत वाक्य नेत्री विचित्रा उषा देवी को जानते हैं; उन्होंने हमारा द्वार खोल दिया। उन्होंने सम्पूर्ण संसार को प्रकाश युक्त करके हमारे धन को प्रकाशित किया। उन्होंने समस्त लोकों अपनी किरणों से प्रकाशमय कर दिया।[ऋग्वेद 1.113.4]
प्रार्थनाओं से प्राप्त कांतिमयी उषा आयी। उसने हमारे लिए कर्म के क्षेत्र का दरवाजा खोल दिया। संसार को कार्यों में प्रेरित कर धनों को प्रकट किया। उसने सब भुवनों को प्रकाश से परिपूर्ण कर दिया।
We know-identify Usha, who opens our doors (which were shut at night). She lighted the whole universe and our money-wealth. She lighted all abode, higher and lower, with its rays.  
जिह्यश्ये चरितवे मघोन्याभोगय इष्टये राय उ त्वम्। 
दभ्रं पश्यद्भ्य उर्विया विचक्ष उषा अजीगर्भुवनानि विश्वा
जो लोग टेढ़े होकर शयन करते हैं, उनमें से किसी को भोग के लिए, किसी को यज्ञ के लिए और किसी को धन के लिए सबको अपने-अपने कर्मों के लिए उषा देवी को जागरित किया। जो थोड़ा देख सकते हैं, उनकी विशेष रूप से दृष्टि के लिए उषा अन्धकार दूर करती हैं। विस्तीर्ण उषा ने समस्त लोकों को प्रकाशित कर दिया।[ऋग्वेद 1.113.5]
सिकुड़कर सोते हुए यह धनेश्वरी उषा चैतन्य करती है वह भोग, अर्चना, धन, दृष्टि, आरोग्य की शिक्षा प्रदान करती समस्त भुवनों की दीप्ति से भर देती है। राज्य, कीर्ति, अनुष्ठान, अपेक्षित कर्म और आजीविका और मनुष्यों को प्रेरित करने वाली उषा ने समस्त भुवनों पर अधिकार जमा लिया। 
Devi Usha wake up, make conscious all those who are sleeping with bended legs. Some of them awake for enjoyment, some for Yagy and others for earning money to accomplish their targets, desires. Usha Devi spread light to all abodes. Even those with low visibility can see now.
क्षत्राय त्वं श्रवसे त्वं महीया इष्टये त्वमर्थमिव त्वमित्यै। 
विसदृशा जीविताभिप्रचक्ष उषा अजीगर्भुवनानि विश्वा
किसी को धन के लिए, किसी को अन्न के लिए, किसी को महायज्ञ के लिए और किसी को अभीष्ट प्राप्ति के लिए उषा देवी जगाती हैं। उन्होंने विविध जीविकाओं के प्रकाश के लिए समस्त लोकों को प्रकाशमय कर दिया।[ऋग्वेद 1.113.6]
यह निर्मल वसना युवती सभी पार्थिव धना का दाता है। वह आकाश की पुत्री सौभाग्य से खिल उठती है। वह आज यहाँ खिल उठे।
Some are awaken for earning money, some for food grains, some for conducting a huge-large scale Yagy and for attaining the desires targets. She lighted all abodes to make the inhabitants earn their livelihood through various deeds, professions-jobs, endeavours.
एषा दिवो दुहिता प्रत्यदर्शि व्युच्छन्ती युवतिः शुक्रवासाः। 
विश्वस्येशाना पार्थिवस्य वस्व उषो अद्येह सुभगे व्युच्छ
वह नित्य यौवन सम्पन्ना, शुभ्र वसना, आकाश की पुत्री उषा देवी अन्धकार को दूर करती हुई मनुष्यों को दृष्टिगोचर हुई हैं। वह सम्पूर्ण पार्थिव धनों की अधीश्वरी हैं। हे सुभगे! आप आज यहाँ अन्धकार दूर करें।[ऋग्वेद 1.113.7]
प्रतिदिन आने वाली उषाओं में यह उषा विगत उषाओं की राह पर चलती है। यह जीवित को प्रेरणा देने वाली उषा मृतवत् को भी चैतन्य कर देती है।
सुभगा :: सौभाग्यवती स्त्री, सधवा, ऐसी स्त्री जो अपने पति को प्रिय हो, प्रियतमा पत्नी, कार्तिकेय की एक अनुचरी, पाँच वर्ष की बालिका, संगीत में एक प्रकार की रागिनी, तुलसी, हलदी, नीली दूब, केवटी मोथा, कस्तूरी,  प्रियंगु, सोन केला, बेला; deity-goddess who grant god luck.
The ever-always young, clothed in white clothed, the daughter of the sky removes darkness is visualised by the humans. She is the Goddess of all physical-material wealth. Hey Subhage (the deity-goddess of good luck)! Please remove the darkness of this place. 
परायतीनामन्वेति पाथ आयतीनां प्रथमा शश्वतीनाम्। 
व्युच्छन्ती जीवमुदीरयन्त्युषा मृतं कं चन बोधयन्ती
पहले की उषायें जिस अन्तरिक्ष मार्ग से गई हैं, उसी से उषा जाती हैं और आगे अनन्त उषायें भी उसी मार्ग का अनुगमन करती हैं। उषा अन्धकार को दूर करके तथा प्राणियों को जागृत करके मृतवत् संज्ञा शून्य लोगों को चैतन्यता प्रदान करती हैं।[ऋग्वेद 1.113.8]
हे उषे! तुमने हविदान के लिए अग्नि ज्योर्तिमान की और सूर्य की ज्योति से अंधकार को मिटा दिया। यज्ञ में संलग्न मनुष्यों के लिए प्रकाश प्रदान किया।
The consecutive infinite Ushas follow the same path-tract. The remove the darkness and make the living being conscious. Those busy with Yagy get light.
उषो यदग्निं समिधे चकर्थ वि यदावश्चक्षसा सूर्यस्य।  
यन्मानुषान्यक्ष्यमाणाँ अजीगस्तद्देवेषु चकृषे भद्रमनः
हे उषादेवी! आपने होमार्थ अग्नि प्रज्वलित की, सूर्य के प्रकाश से अन्धकार को दूर किया और यज्ञरत मनुष्यों को अन्धकार से मुक्त किया; इसलिए आपने देवताओं के उपकार के लिए कार्य किया।[ऋग्वेद 1.113.9]
तुम्हारा यह कर्म देवगणों के लिए भी हितकर है। जो उषाएँ खिली हैं और जो अब खिलेंगी वह निकटस्थ उषा कितनी देर ठहरेगी, जो बीती हुई उषाओं का इतना विचार करती तथा आगे आने वालियों का हर्ष करती है।
Hey Usha Devi! You ignited the fire to perform Yagy, removed darkness with the light from the Sun, cleared the Yagy conducting people from darkness. You did this to do favours for demigods-deities.
कियात्या यत्समया भवाति या व्यूषुर्याश्च नूनं व्युच्छान्। 
अनु पूर्वाः कृपते वावशाना प्रदीध्याना जोषमन्याभिरेति
उषा कब से उत्पन्न होती है और उत्पन्न होंगी? वर्तमान उषा पूर्व की उषाओं का साग्रह अनुसरण करती हैं और आने वाली उषायें इन दीप्तिमती उषा का अनुधावन करेंगी।[ऋग्वेद 1.113.10]
जिन्होंने पुरानी उषाओं को खिलते हुए देखा, वे मरकर चले गये। इसे हम देखते हैं और आने वाली उषाओं को वे देखेंगे जो आगे आएँगे।
अनुधावन :: वे जो सूत्रों, विनय और अभिधर्म के अनुसार शुद्धि की बारीकी निरूपित करते हैं, (उदाहरण :- केवल पुस्तकों का अनुधावन करते हैं, उनका मर्म या आन्तरिक अभिप्राय नहीं समझते), पीछा, लक्ष्य, धंधा, chase, backside, target, goal, aim, objective, destination, pursuit, trade, pursuit, metier. 
Since when, Usha has been appearing and when will it appear (take birth)?! The present Ushas follow the Ushas which appeared earlier. The next-new Ushas will follow the path of the earlier Ushas.
ईयुष्टे ये पूर्वतरामपश्यन्व्युच्छन्तीमुषसं मर्त्यासः। 
अस्माभिरू नु प्रतिचक्ष्याभूदो ते यन्ति ये अपरीषु पश्यान्
जिन मनुष्यों ने अतीव प्राचीन समय में आलोक प्रकाशित करते हुए देवी उषा को देखा था, वे इस समय नहीं है। हम उषा देवी को देखते हैं; आगे जो लोग उषा देवी को देखेंगे, वे भी आ रहे हैं।[ऋग्वेद 1.113.11]
हे उषे! सत्य की पराजित करने वाली, सिद्धान्तों में दृढ़ वंदनाओं की प्रेरक देवों के लिए, हवि धारक महान तुम आज यहाँ प्रकट होओ। प्राचीन समय में धन से परिपूर्ण उषा प्रकट होती थी।
Those humans who had seen the earlier Ushas lighting the universe are not present-surving now. We see the Usha Devi at present & ,those who will birth next will also Usha Devi.   
यावयद्वेषा ऋतपा ऋतेजाः सुम्रावरी सूनृता ईरयन्ती।  
सुमङ्गलीर्बिभ्रती देववीतिमिहाघोषः श्रेष्ठतमा व्युच्छ
उषा देवी द्वेष करने वाले निशाचरों को दूर करती हैं, यज्ञ का पालन करती हैं, यज्ञ के लिए आविर्भूत होती हैं, सुख देती हैं और सूनृत शब्द प्रेरण करती हैं। उषा देवी कल्याण कारिणी हैं और देवों का वाञ्छित यज्ञ धारण करती है। हे उषादेवी! आप उत्तम रूप से आज इस स्थान पर आलोक प्रकाशित करें।[ऋग्वेद 1.113.12]
आज उषा ने संसार को प्रकाशमान किया है। भविष्य में तू भी खिलेगी अजर-अमर यह उषा अपनी कामना से वेगवान है। उषा अपने तेज से आकाश में चमक उठी। उसने काले अंधकार को दूर कर दिया।
सूनृत :: सत्य और प्रिय भाषण, सत्य, धर्म की पत्नी का नाम, उत्तानपाद की पत्नी का नाम, एक अप्सरा का नाम, ऊषा, खाद्य, आहार, उत्कृष्ट संगीत; comfort granting.
Usha Devi target-eliminate the demons-giants, who are active at night (निशाचर) nourish the Yagy & is evolved for the Yagy, grant comfort-pleasure and spread bliss. Usha Devi looks after the welfare and looks after the benefit of living beings. We pray to her to light the place where we live.
शश्वत्पुरोषा व्युवास देव्यथो अद्येदं व्यावो मघोनी।  
अथो व्युच्छादुत्तराँ अनु द्यूनजरामृता चरति स्वधाभिः
पहले उषा देवी प्रतिदिन उदित होती थीं; आज भी धनवती उषा इस संसार को अन्धकार से मुक्त करती है; इसी प्रकार आगे भी दिन-दिन उदित होंगी, क्योंकि वे अजरा और अमरा होकर अपने तेज से भ्रमण करती हैं।[ऋग्वेद 1.113.13]
जीवों को चैतन्य करती हुई वह अरुण अश्वों वाले रथ में बैठकर जाती है। पालक तथा वरणीय धनों को दिलाने वाली यह उषा ज्ञान के लिए निर्मल प्रकाश को भरती हुई विगत उषाओं को दिलाने वाली यह उषा ज्ञान के लिए निर्मल प्रकाश को भरती हुई विगत उषाआ से भी अत्यधिक महत्त्व वाली है।
Usha Devi used to evolve earlier and still eliminate the darkness of this world. New Ushas will appear day after another day since they are immortal and moves fast.
व्यञ्जिभिर्दिव आतास्वद्यौदप कृष्णां निर्णिजं देव्यावः। प्रबोधयन्त्यरुणेभिरश्वैरोषा याति सुयुजा रथेन
आकाश की विस्तृत दिशाओं को आलोक युक्त तेज से उषा देवी दीप्तिमान करती हैं। इन्होंने रात्रि के काले रूप को दूर कर सोये हुए प्राणियों को जगाकर ये अरुण अश्व वाले रथ से आ रही हैं।[ऋग्वेद 1.113.14]
हे मनुष्यों! उठो, हम सभी के प्राण-रूप सूर्य आ गये। अंधकार दूर हो गया। उषा ने सूर्य के लिए रास्ता बनाया। हम उम्र की वृद्धि करने वाली जगह में पहुँच गये। कांतिमती उषाओं की वंदना करने वाला चुने हुए शब्दों को निकालता है।
Usha Devi fills the sky-universe with light. She wakes up the living beings, coming riding the chariot deployed with the horses called Arun.
आवहन्ती पोष्या वार्याणि चित्रं केतुं कृणुते चेकिताना। 
ईयुषीणामुपमा शश्वतीनां विभातीनां प्रथमोषा व्यश्चैत्
उषा देवी पोषक और वरणीय धन लाकर और सबको चैतन्यता देकर विचित्र रश्मि से प्रकाशित करती हैं। यह विगत उषाओं में अन्तिम हैं और आने वाली उषाओं में सर्वप्रथम हैं, इसलिए अपने उत्तम रूप और श्रेष्ठ आभा से प्रकाशमय हो रही हैं।[ऋग्वेद 1.113.15]
हे उषे! आज उस वंदनाकारी के लिए ग्रहण होकर सन्तति परिपूर्ण उम्र को प्रदान करो। गौ धन और वीर संतान वाली उषाएँ हविदाता के लिए प्रकट होती हैं। उन अश्व देने वालियों को वंदना परिपूर्ण होने पर सोम निष्पन्नकर्त्ता पवन वेग से प्राप्त करें। 
Usha Devi makes the world conscious and bring the nourishing money with amazing rays of light. She is the last amongst the previous Ushas and first amongst the next evolving Ushas. That's why she is glittering with excellent aura.
उदीर्ध्वं जीवो असुर्न आगादप प्रागात्तम आ ज्योतिरेति। 
आरैक्पन्थां यावे सूर्यायागन्म यत्र प्रतिरन्त आयुः
हे मनुष्यों! उठो, हमारा शरीर संचालक जीवन आ गया है। अन्धकार समाप्त हो गया व आलोक आया है। उषा देवी ने सूर्य देव के जाने के लिए रास्ता बना दिया हैं। हे उषादेवी! जिस देश में आप अन्न प्रदान करके उसे बढ़ाती हो, वहाँ हम भी जायेंगे।[ऋग्वेद 1.113.16]
सूर्य के लिए रास्ता बनाया। हम उम्र की वृद्धि करने वाल उषाओं की वंदना करने वाला चुने हुए शब्दों को निकालता है। हे उषादेवी! आज उस वंदनाकारी के लिए ग्रहण होकर सन्तति परिपूर्ण उम्र को प्रदान करो।
Hey humans get up. The time-moment for us to operate, perform live, survive has come. Darkness has ended and the glow of the day has come-arrived. Hey Usha Devi! We will come to the land where you provide food and make it progress. 
स्यूमना वाच उदियर्ति वह्निः स्तवानो रेभ उषसो विभातीः। 
अद्या तदुच्छ गृणते मघोन्यस्मे आयुर्नि दिदीहि प्रजावत्
स्तुति करने वाले मनुष्य प्रभावती उषा की स्तुति करके सुग्रंथित वेदवाक्य का उच्चारण करते है। हे धनवती उषादेवी! आज उन प्रार्थना करने वाले मनुष्यों का अन्धकार दूर कर उन्हें सन्तान और धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.113.17]
गौ धन और दर संतान वाली उषाएँ हविदाता के लिए प्रकट होती हैं। उन अश्व देने वालियों को वंदना परिपूर्ण होने पर सोम निष्पन्नकर्त्ता पवन वेग से प्राप्त करें।
The worshiping humans pray to shinning usha Devi, with the verses in the holy books having the stanzas from the Veds. Hey wealth granting Usha! You give-grant progeny and money to those who pray-worship you.  
या गोमतीरुषसः सर्ववीरा व्युच्छन्ति दाशुषे मर्त्याय। 
वायोरिव सूनृतोनामुदर्के ता अश्वदा अश्नवत्सोमसुत्वा
जो गौ संयुक्त और सर्व वीर सम्पन्न उषायें वायु की तरह शीघ्र सूनृत स्तुति के समाप्त होने पर हव्य देने वाले मनुष्य का अन्धकार विनष्ट करती हैं, वे अश्व दात्री उषाएँ सोम यज्ञ सम्पादित करने वाले साधकों के पास जाती हैं।[ऋग्वेद 1.113.18]
हे वरणीय उषे! तुम देख पाता अदिति के मुख रूप और अनुष्ठान की ध्वजा रूप होकर महत्तापूर्वक चमको हमारी मंत्र रूपी वंदनाओं की प्रशंसा करती प्रकट होओ और हमें यशस्वी बनाओ।
The Ushas associated-accompanied with cows, with all powers moves with the speed of air-wind closer to the humans making offerings in the Hawan Kund, performing Som Yagy, destroy the darkness & grant horses to them. 
माता देवानामदितेरनीकं यज्ञस्य केतुर्बृहती वि भाहि। 
प्रशस्तिकृद्ब्रह्मणे नो व्युच्छा न जने जनय विश्ववारे
हे उषादेवी! आप देवों की माता हैं, अदिति की प्रतिस्पर्द्धिनी है। आप यज्ञ का प्रकाश हैं व विस्तीर्ण होकर किरण प्रदान करती हैं। हमारे स्तोत्र की प्रशंसा करके हमारे ऊपर उदित होती हैं। हे सबकी वरणीया उषे! हमें श्रेष्ठ मार्ग से उत्तम लोकों में ले चलें।[ऋग्वेद 1.113.19]
हे वरणीय उषे! तुम देव माता अदिति के मुखरूप और अनुष्ठान की ध्वजा रूप होकर महत्तापूर्वक चमको। तुम हमारी मंत्र रूपी वंदनाओं की प्रशंसा करती प्रकट होओ और हमें यशस्वी बनाओ।
Hey Usha Devi! You are the mother of demigods-deities and a competitor of Dev Mata Aditi. You are the light-spirit of the Yagy and provide illumination with long-broad rays. You appreciate our prayers and rise over us. Hey all boon granting Usha Devi! You are affectionate-acceptable to all. Please take us-elivate us to the upper abode through the best path.
यच्चित्रमन उषसो वहन्तीजानाय शशमानाय भद्रम्। 
तन्नो मित्रो वरुणो मामहन्तामदितिः सिन्धुः पृथिवी उत द्यौः
उषायें जो कुछ विचित्र और ग्रहण योग्य धन लाती हैं, वह यज्ञ सम्पादक स्तोता के कल्याण स्वरूप है। मित्र, वरुण, अदिति, सिन्धु, पृथ्वी और आकाश हमारी इस प्रार्थना को पूर्ण करें।[ऋग्वेद 1.113.20]
उषाएँ जिन दिव्य गुणों को लाती हैं, वे यज्ञकर्त्ता और स्तोता को मंगलकारी हों। मित्र, वरुण, अदिति, समुद्र, धरती और आकाश हमारी इस विनती को अनुमोदित करें।
Ushas bring amazing wealth acceptable to all. She is like the Stota-one who conduct Yagy for the welfare of the humanity. Let Mitr, Varun, Aditi, Sindhu-ocean, Dharti-earth and Akash-sky accomplish-complete our prayer.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (114) :: ऋषि :- कुत्स आंगिरस, देवता :- रुद्र  छंद :- जगती, त्रिष्टुप्।
इमा रुद्राय तवसे कपर्दिने क्षयद्वीराय प्र भरामहे मतीः। 
यथा शमसद्विपदे चतुष्पदे विश्वं पुष्टं ग्रामे अस्तिन्ननातुरम्
महान् कपर्दी या जटाधारी और दुष्टों के विनाश स्थान रुद्र को हम यह मननीय स्तुति अर्पण करते हैं, ताकि द्विपद और चतुष्पद सुस्थ रहें और हमारे इस ग्राम में सब लोग पुष्ट और रोग शून्य रहें।[ऋग्वेद 1.114.1]
पराक्रमियों के स्वामी, जटिल रुद्र के लिए वंदनाएँ करते हैं। दुपाये, चौपाये सुखी हों। इस ग्राम के निवासा समस्त प्राणधारी निरोगी रहते हुए पुष्ट हों।
We offer this great poem (verse, Strotr, Stuti, prayer) to Rudr-Bhagwan Shiv, who has matted hair and who is the slayer of the wicked-sinner & keeps  the living being moving over two or four legs remain healthy, happy and to keep all the residents of our locality healthy-free from diseases. 
मृळा नो रुद्रोत नो मयस्कृधि क्षयद्वीराय नमसा विधेम ते। 
यच्छं च योश्च मनुरायेजे पिता तदश्याम तव रुद्र प्रणीतिषु
हे रुद्रदेव! आप सुखी हों; हमें सुखी करें। आप दुष्टों के विनाशक हैं। हम नमस्कार के साथ आपकी प्रार्थना करते हैं। पिता या उत्पादक मनु ने जिन रोगों से उपशम और जिन भयों से उद्धार पाया था; हे रुद्रदेव आपके उपदेश से हम भी वह प्राप्त करें।[ऋग्वेद 1.114.2]
हे रुद्र! दया दृष्टि करो। सुख प्रदान करो। तुम वीरों के स्वामी को हम नमस्कार करें। जिस प्रकार से अनुष्ठान द्वारा मनु ने प्राप्त किया था, उसे हम तुमसे ग्रहण करें।
Hey Rudr Dev! You should be happy and keep us happy-comfortable. You are the destroyer-slayer of the wicked. We prostrate before and sing prayers devoted to you. Let us be granted those means with which Manu over powered the diseases-ailments and the fears, by you.
अश्याम ते सुमतिं देवयज्यया क्षयद्वीरस्य तव रुद्र मीढ्वः। 
सुम्नायन्निद्विशो अस्माकमा चरारिष्टवीरा जुहवाम ते हविः
हे अभीष्टदाता रुद्रदेव! आप दुष्टों के क्षयकारी अथवा ऐश्वर्यशाली मरुतों से युक्त हैं। हम देवयज्ञ द्वारा आपका अनुग्रह प्राप्त करें। हमारी सन्तानों के सुख की कामना करके उनके पास पधारें। हम भी प्रजा का हित देखकर आपको हव्य प्रदान करेंगे।[ऋग्वेद 1.114.3]
हे रुद्र हम तुम्हारे उपासक देव की अर्चना द्वारा तुम वीरों के दाता की दया दृष्टि प्राप्त करें। तुम हमारी संतान को सुख प्रदान करो। हर्षित वीरों से युक्त हम तुमको हवि भेंट करें।
Hey desire fulfilling-granting Rudr Dev! You are the protector of the brave and slayer of the wicked. You are an associate of the Maruts. We should get your blessings through Dev Yagy. Please come to bless our progeny. We make offering to you to seek the welfare of the general public-populace.
त्वेषं वयं रुद्रं यज्ञसाधं वङ्कुं कविमवसे नि ह्वयामहे।
आरे अस्मद्दैव्यं हेळो अस्यतु सुमतिमिद्वयमस्या वृणीमहे
रक्षण के लिए हम दीप्तिमान्, यज्ञ साधक, कुटिल गति और मेधावी रुद्र का आह्वान करते है। वह हमारे पास से अपना क्रोध दूर करें। हम उनका अनुग्रह चाहते हैं।[ऋग्वेद 1.114.4]
हे रुद्र हम तुम्हारे उपासक देव की अर्चना द्वारा तुम वीरों के दाता की दया दृष्टि प्राप्त करें। तुम हमारी संतान को सुख प्रदान करो। हर्षित वीरों से युक्त हम तुमको हवि भेंट करें। हम क्षितिज के समान घोर रूप वाले, लाल रंग वाले जटाधारी तथा श्रेष्ठतम रुद्र का नमस्कारपूर्वक आह्वान करते हैं। 
We invite intelligent & brilliant Rudr, who move with typical-devious speed. He should not be angry with us. We desire his blessings.
दिवो वराहमरुषं कपर्दिनं त्वेषं रूपं नमसा नि ह्वयामहे।
हस्ते बिभ्रद्धेषजा वार्याणि शर्म वर्म च्छर्दिरस्मभ्यं यंसत्
हम उन स्वर्गीय उत्कृष्ट वराह की तरह दृढाङ्ग, अरुणवर्ण, कपर्दी, दीप्तिमान् और उज्ज्वल रूप धर रुद्र को नमस्कार करके बुलाते हैं। हाथ में वरणीय भेषज धारण करके वे हमें सुख, वर्म और गृह प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.114.5]
दीप्त, यज्ञ सिद्ध करने वाले, तिरछी गति वाले मेधावी रुद्र का रक्षा हेतु हम आह्वान करते हैं। देवगणों के क्रोध को शांत करें। हम उनका अनुग्रह चाहते हैं। वे वरणीय औषधियों को हाथ में धारण कर हमको सुखी बनाने तथा अपने सुरक्षा साधनों द्वारा निर्भय बनायें। 
We salute Rudr Dev who is fair coloured, with long hair, as strong as the Varah (an incarnation of Bhagwan Shri Hari Vishnu). Let him possess medicines for us and grant us comforts-pleasures, protective shield and house-home.
वर्म :: कवच, जिरह बख्तर; hauberk, protective shield. 
इदं पित्रे मरुतामुच्यते वचः स्वादोः स्वादीयो रुद्राय वर्धनम्।
रास्वा च नो अमृत मर्तभोजनं त्मने तोकाय तनयाय मृळ
मधु से भी अधिक मधुर यह स्तुति वाक्य मरुतों के पिता रुद्र के उद्देश्य से उच्चारित किया जाता है। इससे स्तोता की वृद्धि होती है। हे मरण रहित रुद्रदेव! मनुष्यों का भोजन रूप अन्न  हमें प्रदान करें। मुझको व मेरे पुत्र को तथा पौत्र को सुख प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.114.6]
मरुद्गणों के जनक रुद्र के लिए इस आह्वान करते हैं। मरुद्गणों के जनक रुद्र के लिए इस मधुर श्लोक का हम उच्चारण करते हैं। हे अविनाशी रुद्र! हमको सेवनीय पदार्थ प्रदान करो। हम पर और हमारी संतान पर कृपा करो।
This verse, as sweet as honey is meant for the father of the Maruts. It helps (leads to the progress of those) those who recite it. Hey immortal Rudr! kindly grant food to the humans. Grant pleasure to me, my son and grand son. 
मा नो महान्तमुत मा नो अर्भकं मा न उक्षन्तमुत मा न उक्षितम्।
मा नो वधिः पितरं मोत मातरं मा नः प्रियास्तन्वो रुद्र रीरिषः
हे रुद्रदेव! हममें से वृद्धों को मत मारना, बच्चों को न मारना, सन्तानोत्पादक युवक को न मारना तथा गर्भस्थ शिशु को भी न मारना। हमारे पिता का वध न करना, माता की हिंसा न करना तथा हमारे प्रिय शरीर में आघात मत करना।[ऋग्वेद 1.114.7]
हे रुद्रदेव! हमारे वृद्ध, बालक, युवा, सब वृद्धि को ग्रहण हों, पुत्र युवावस्था वालों को मृत न करो। हमारे शरीरों को संताप न देना। 
Hey Rudr Dev! Please do not kill our elders, children, the youth capable of producing children and the children in the womb. Please do not kill our father & mother and do not harm our bodies.
मा नस्तोके तनये मा न आयौ मा नो गोषु मा नो अश्वेषु रीरिषः।
वीरान्मा नो रुद्र भामितो वधीर्हविष्मन्तः सदमित्त्वा हवामहे
हे रुद्रदेव! हमारे पुत्र, पौत्र, मनुष्य, गौ और अश्व को मत मारना। आप क्रोधित होकर वीरों की हिंसा मत करना, क्योंकि हव्य प्रदान कर हम सदैव आपका ही आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 1.114.8]
हे रुद्रदेव! हमारे पराक्रमियों के पतन के लिए आक्रोश न करो। हम हमेशा ही हवि प्रदान करते हुए तुम्हारा आह्वान करते हैं।
Hey Rudr Dev! Please do not kill our son, grandson, humans and the horses. Kindly, do not kill our brave warriors on being angry, since we continue to make offerings to you and always invite-remember you.
उप ते स्तोमान्पशुपाइवाकरं रास्वा पितर्मरुतां सुम्नमस्मे।
भद्रा हि ते सुमतिर्मृळयत्तमाथा वयमव इत्ते वृणीमहे
जिस प्रकार से चरवाहे सायंकाल अपने स्वामी के पास पशुओं को लौटा देते हैं, हे रुद्रदेव! इसी प्रकार मैं आपके स्तोत्र आपको अर्पित करता हूँ। आप मरुतों के पिता है, हमें सुख प्रदान करें। आपका अनुग्रह अत्यन्त सुखकर और कल्याणकारी है। हम आपका रक्षण चाहते हैं।[ऋग्वेद 1.114.9]
हे मरुतों के पिता रुद्रदेव! पशु रक्षक अपने पशुओं के दाता को भेंट करता है, वैसे ही मैंने तुम्हारे लिए श्लोक भेंट किये हैं। तुम हमको सुख दो। तुम्हारी बुद्धि कल्याण करने वाली है। हम तमसे रक्षा की प्रार्थना करते हैं।
The way the herds men bring back their cattle back to their master in the evening, Hey Rudr Dev! similarly, I make offerings to you in the form of recitation of the Strotr (Shloks, Mantr, holy verses). Hey the father of the Maruts! Grant us comforts-pleasures. Your blessings are pleasing leading to our welfare. We seek protection, shelter, asylum under you.
आरे ते गोघ्नमुत पूरुषघ्नं क्षयद्वीर सुप्रमस्मे ते अस्तु। 
मृळा च नो अधि च ब्रूहि देवाधा च नः शर्म यच्छ द्विवर्हाः
हे दुष्टों के विनाशक रुद्रदेव! आपका गौहनन साधन और मनुष्य हनन साधन अस्त्र दूर रहे। हम आपका दिया सुख प्राप्त करें। हे दप्तिमान् रुद्रदेव! हमारे पक्ष में रहना। आप पृथ्वी और अन्तरिक्ष के अधिपति हैं, हमें सुख प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.114.10]
हे पराक्रमियों के स्वामी रूद्र देव! तुम्हारा पशु और मनुष्यों को समाप्त करने वाला अस्त्र दूर पहुँचे। हम पर तुम्हारी कृपा दृष्टि रहे। तुम हम पर दया दृष्टि रखो और हमारा समर्थन प्राप्त करते हुए शरण प्रदान करो। रक्षा की अभिलाषा में "रुद्र को प्रणाम" ऐसा प्रण हमने उच्चारण किया है।
Hey the slayer of the wicked! Please keep the Astr (the weapons which target the enemy just by the recitation of Mantr-coaded verses). We should be able to attain-enjoy the comforts-pleasures granted by you.  Hey shinning Rudr Dev! You should always be on our side-in our favour. You are the master of the earth and the space-sky. We salute you with the desire of protection.
अवोचाम नमो अस्मा अवस्यवः शृणोतु न हवं रुद्रो मरुत्वान्। 
तन्नो मित्रो वरुणी मामहन्तामदितिः सिन्धुः पृथिवी उत द्यौः॥
हमने रक्षा की कामना करके कहा है। उन रूद्र देव को नमस्कार है। मरुतों के साथ हमारा आह्वान श्रवण करें। मित्र, वरुण, अदिति, सिन्धु, पृथ्वी और आकाश हमारी इस प्रार्थना  स्वीकार करें।[ऋग्वेद 1.114.11]
वे रुद्र, मरुद्गण के साथ हमारे आह्वान को सुनें। सखा, वरुण, अदिति, समुद्र, धरती और आसमान हमारी इस विनती को अनुमोदित करें।
We recited this Shlok-Mantr with the desire of protection, shelter, asylum under you. We salute you. Please listen to our prayers along with the Maruts. Let Mitr, Varun, Aditi, Sindhu, Prathvi-earth and the Akash-sky accept our prayer-worship.
भगवान् का विकराल रूप ही रुद्र है। रुद्र ही शिव-शंकर हैं।
Rudr is the furious form of Bhagwan Shiv. He perform Tandav when angry. He is Mahesh, the destroyer.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (115) :: ऋषि :- कुत्स आंगिरस, देवता :- सूर्य,  छन्द :- त्रिष्टुप्।
चित्रं देवानामुदगादनीकं चक्षुर्मित्रस्य वरुणस्याग्नेः। 
आप्रा द्यावापृथिवी अन्तरिक्षं सूर्य आत्मा जगतस्तस्थुषश्च
विचित्र तेज युक्त तथा मित्र, वरुण और अग्नि के चक्षु स्वरूप सूर्य उदित हुए हैं। उन्होंने द्यावा पृथ्वी और अन्तरिक्ष को अपनी किरणों से परिपूर्ण किया है। सूर्य जंगम और स्थावर दोनों की आत्मा हैं।[ऋग्वेद 1.115.1]
विचित्र :: बहुरंगा, रंग-बिरंगा, अजीब, अनोखा, विलक्षण; weird, bizarre, quaint, pied. 
देवगण का विचित्र सुख-रूप रथ तथा सखा, वरुण, अग्नि का नेत्र रूप सूर्य उदित हो गया। जंगम स्थावर को प्राणरूप सूर्य ने क्षितिज धरा और अंतरिक्ष को समस्त तरफ से प्रकाशमान कर दिया। 
The Sun as the eye of Mitr, Varun and Agni-fire, rises with amazing-quaint energy. He has filled the earth, all living beings whether movable or fixed with light.
सूर्यो देवीमुषसं रोचमानां मर्यो न योषामभ्येति पश्चात्। 
यत्रा नरो देवयन्तो युगानि वितन्वते प्रति भद्राय भद्रम्
जिस प्रकार से पुरुष स्त्री का अनुगमन करता है, उसी प्रकार से सूर्य देव भी दीप्तिमयी उषा के पीछे-पीछे आते हैं। इसी समय देवाभिलाषी मनुष्य बहुयुग प्रचलित यज्ञ कर्म को सम्पन्न करते हैं, वहाँ उन साधकों एवं कल्याणकारी यज्ञीय कर्मों को सूर्यदेव अपने प्रकाश से प्रकाशित करते हैं।[ऋग्वेद 1.115.2]
मनुष्यों के नारी के पीछे जाने के समान, सूर्य कांतिमती उषा के पीछे जाता है। उस समय उपासक जन युगों तक कल्याणकारी प्रभाव डालने के लिए कल्याणदाता यज्ञ को बढ़ाते हैं।
The Sun follows dashing Usha just as the humans follow women. At this moment the devotees, sages, ascetics perform-conduct Yagy with the desire to attain the divine hood-divinity. Sun light the welfare means adopted by those doing Yagy for the welfare of humanity.
भद्रा अश्वा हरितः सूर्यस्त चित्रा एतग्वा अनुमाद्यासः। 
नमस्यन्तो दिव आ पृष्ठमस्थुः परि द्यावापृथिवी यन्ति सद्यः
सूर्य के कल्याण रूप हरि नाम के विचित्र घोड़े इस मार्ग से जाते हैं। वे सबके स्तुति भाजन है। हम उनको नमस्कार करते हैं। वे आकाश के पृष्ठ देश में उपस्थित हुए हैं। वे घोड़े तत्काल ही द्युलोक और भूलोक की चारों दिशाओं की परिक्रमा कर डालते हैं।[ऋग्वेद 1.115.3]
कल्याण स्वरूप, स्वर्णिम रंग वाले दीप्ति परिपूर्ण मार्ग से विचरण करने वाले लगातार वन्दना किये जाते सूर्य के अश्व क्षितिज की पीठ पर पैर रखते हैं और उसी दिन क्षितिज और धरा का चक्कर काट लेते हैं।
The bizarre horses named Hari, the embodiment of human welfare follows this tract. They are prayed by every one. We salute them. They are present over the surface of the sky. These horses revolve round the entire universe & the earth, in all directions, quickly.
तत्सूर्यस्य देवत्वं तन्महित्वं मध्या कर्तोर्विततं सं जभार। 
यदेदयुक्त हरितः सधस्थादाद्रात्री वासस्तनुते सिमस्मै
सूर्य देव का ऐसा ही देवत्व और माहात्म्य है कि वे मनुष्यों के कर्म समाप्त होने से पूर्व ही अपनी विशाल किरण के जाल का उपसंहार कर डालते हैं। जिस समय सूर्य अपने रथ से हरि नाम के घोड़ों को खोलते हैं, उस समय सभी लोकों में रात्रि अन्धकार रूप आवरण विस्तारित करती है।[ऋग्वेद 1.115.4]
अन्धकार को दूरस्थ करना सूर्य का अद्भुत कांतिमती उषा के पीछे प्रभाव डालने के लिए कल्याणदाता यज्ञ को बढ़ाते हैं। कल्याण स्वरूप, स्वर्णिम रंग वाले दीप्ति परिपूर्ण मार्ग से विचरण करने वाले लगातार वंदना किये जाते सूर्य के अश्व क्षितिज की पीठ पर पैर रखते हैं और उसी दिन क्षितिज और धरा का चक्कर काट लेते हैं। अन्धकार को दूरस्थ करना सूर्य का अद्भुत कार्य है।
The divinity & significance of Sury Bhagwan-The Sun, lies in the fact that he accomplish-finish the web-net of the rays, just before the humans complete-accomplish their ventures-endeavours. The moment Sun releases his horses named Hari, all abodes are filled with darkness. 
तन्मित्रस्य वरुणस्याभिचक्षे सूर्यो रूपं कृणुते द्योरुपस्थे। 
अनन्तमन्यद्रुशदस्य पाजः कृष्णमन्यद्धरितः सं भरन्ति
मित्र और वरुण को देखने के लिए आकाश के बीच सूर्य देव अपना ज्योतिर्मय रूप प्रकाशित करते हैं। सूर्य के हरि नाम के घोड़े एक ओर अपना अनन्त दीप्तिमान् बल धारित करते हैं तो दूसरी ओर कृष्ण वर्ण अन्धकार करते हैं।[ऋग्वेद 1.115.5]
जब वह अपने सुनहरी अश्वों को हटाते हैं तब रात अपना काला वस्त्र फैलाती है। सखा और वरुण के देखने को सूर्य आकाश की गोद में उस विख्यात रूप को प्रकट करते हैं। उनके सुनहरी अश्व अपने प्रकाश से युक्त पराक्रम को प्रत्यक्ष कर दूसरी ओर अंधेरा कर देते हैं। 
To see Mitr & Varun, the Sun show his bright form in the sky. The horses of Sury Bhagwan-The Sun, on one side acquire their infinite strength & power and on the other side they cause the darkness of black colour. 
अद्या देवा उदिता सूर्यस्य निरंहसः पिपृता निरवद्यात्। 
तन्नो मित्रो वरुणो मामहन्तामदितिः सिन्धुः पृथिवी उत द्यौः
हे सूर्य की किरणों! सूर्योदय होने पर आज हमें पाप से मुक्त करें। मित्र, वरुण, अदिति, सिन्धु पृथ्वी और आकाश हमारी इस प्रार्थना को अंगीकार करें।[ऋग्वेद 1.115.6]
हे देवगण! आज सूर्य उदित होने पर हमको पाप कर्मों तथा निंदा से बचाओ। सखा, वरुण, अदिति, समुद्र, धरा और क्षितिज हमारी इस वंदना को अनुमोदित करें।
Hey the Sun rays! Please release-relieve us of the sins before the dawn-day break. Let Mitr, Varun, Sindhu, Prathvi & Akash accept our this prayer.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (116) :: ऋषि :- कक्षीवान् , देवता :- अश्विनी कुमार,  छन्द :- त्रिष्टुप्।
नासत्यभ्यां बर्हिरिव प्र वृञ्जे स्तोमाँ इयर्म्यभ्रियेव वातः। 
यावर्भगाय विमदाय जायां सेनाजुवा न्यूहतू रथेन
यज्ञ के लिए जिस प्रकार यजमान कुश का विस्तार करता है तथा वायु बादलों को नाना दिशाओं में प्रेरित करती हैं, उसी प्रकार मैं अश्विनी कुमारों को प्रभूत स्तोत्र समर्पित करता हूँ। वीर सैनिकों के साथ रथ द्वारा चलने वाले अश्विनी कुमार युवा विमद राजर्षि की पत्नी (जो स्वयंवर) में प्राप्त हुई थीं) उन्हें घर तक पहुँचाते हैं।[ऋग्वेद 1.116.1]
सत्य रूप अश्विद्वय के लिए श्लोक तैयार करता हूँ। ऐसी शिक्षा दिया करता हूँ जैसे पवन जलों के अभिप्रेरित करता है। अश्विनी कुमारों ने विमद की पत्नी को सैन्य शिक्षा द्वारा विमद के यहाँ पहुँचा दिया।
The manner-way in which a host extend his Kush grass mate for the Yagy, the wind spread-carries the clouds in various directions, I too offer the excellent Strotr-verse to Ashwani Kumars. Ashwani Kumars accompanied the wife of young Rajrishi Vimad to his house, who was selected by his wife in the Swayamvar (an ancient method of selection of husband by the daughters of the kings). 
वीळुपत्मभिराशुहेमभिर्वा देवानां वा जूतिभिः शाशदाना। 
तद्रासभो नासत्या सहस्त्रमाजा यमस्य प्रधने जिगाय
हे नासत्यद्वय! आकाश में अतिवेग से चलने वाले देवताओं की गति से चलने वाले, वाहनों से भी अधिक तेज गति से जाने वाले आपके वाहनों के संयुक्त हुए रासभ ने यम को आनन्दित करने वाले युद्ध में हजारों सैनिकों वाले शत्रु पर विजय प्राप्त की।[ऋग्वेद 1.116.2]
रासभ :: गधा, गर्दभ, खर; jackass. 
हे असत्य रहित अश्विद्वय! तुम शक्ति पूर्वक उड़ने वाले द्रुतगामी अश्वों से उत्साहित हुए थे। यम के प्रिय उस युद्ध प्रतियोगिता में तुम्हारे वाहन ने सहस्त्रों पर विजय प्राप्त की। 
Hey truthful Ashwani Kumars! Your vehicles which had deployed the asses-donkeys and run with much higher speed of the chariots of the demigods-deities, led to the victory, slayed thousands of warriors in the battle i.e., Yam the deity of death was pleased.
तुग्रो ह भुज्युमश्विनोदमेघे रयिं न कश्चिन्ममृवाँ अवाहाः। 
तमूहथुर्नौभिरात्मन्वती-भिरन्तरिक्षप्रुद्भिरपोदकाभिः
हे अश्विनी कुमारों! जिस प्रकार से कोई मृत्यु को प्राप्त होने वाला मनुष्य धन का त्याग करता है, वैसे ही तुग्र नाम के राजर्षि ने बड़े कष्ट से अपने पुत्र भुज्यु को सेना के साथ शत्रुओं पर विजय के लिए नौका से समुद्र में भेजा था। मध्य समुद्र में निमग्न भुज्यु को आपने अपनी नौका द्वारा तुग्र के पास पहुँचाया था। आपकी नौका जल के ऊपर अन्तरिक्ष में चलने वाली और अप्रविष्ट जल वाली (पनडुब्बी) है अर्थात् आपकी नौका में जल नहीं प्रवेश नहीं कर सकता।[ऋग्वेद 1.116.3]
हे अश्विदेवो! तुग्र ने भुज्य को समुद्र में उसी प्रकार त्याग दिया जैसे मृतक धन को त्याग देता है। तुम उसे अपनी अंतरिक्ष गामिनी वायुयानो (नावों) द्वारा ले जाओ। 
The manner-way, a person waiting for the death, rejects his wealth,  king-Rajrishi Tugr posted his son to Bhujyu to the battle field in boats. You carried Bhujyu from the mid ocean in your boat. Your boat is capable of moving both in the space and water i.e., water can not enter it.
Here submarine has been described which was capable of moving in the space like soccer's-UFO, unidentified flying objects.
Rajrishi is a king who protects his subjects from the enemy but live like the ascetics-saints. King Janak, the father of Mata Sita was a person of this type. Janak is a title of the dynasty of kings who ruled erstwhile Nepal. Please refer to JANAK DYNASTY जनक वंश santoshkipathshala.blogspot.com
तिस्रः क्षपस्त्रिरहातिव्रजद्भिर्नासत्या भुज्युमूहथुः पतङ्गैः। 
समुद्रस्य धन्वन्नार्द्रस्या पारे त्रिभी रथैः शतपद्भिः षळश्वैः
हे नासत्यद्वय (सत्य स्वभाव, one who never tells lies, always speaks the truth)! अति गहन समुद्र से दूर जहाँ मरुस्थल है, वहाँ तीन दिन और तीन रात्रि निरन्तर चलते हुए अत्यन्त वेग से गमनशील सौ चक्रों व छः घोड़ों से युक्त यंत्रों वाले पक्षी के तुल्य आकाश मार्ग से जाते हुए तीनों यानों द्वारा आप दोनों ने भुज्यु को उसके निवास स्थान अर्थात् घर पहुँचाया था।[ऋग्वेद 1.116.4]
हे असत्य विमुख अश्विद्वय! तुम तीन रात्रि और दिन तक द्रुतगति के चलते हुए रथ द्वारा भुज्यु को समुद्र के पार शुष्क स्थान पर ले आये।
Hey Nasaty Dway! You took Bhujy to his house far away from the ocean in the desert, travelling three days & three nights with very high speed, in three aircrafts having hundred wheels and six horses in the space-sky, like a bird.
अनारम्भणे तदवीरयेथामनास्थाने अग्रभणे समुद्रे। 
यदश्विना ऊहथुर्भुज्युमस्तं शतारित्रां नावमातस्थिवांसम्
हे अश्विनी कुमारों! आप लोगों ने अवलम्बन शून्य, भू प्रदेश रहित, ग्रहणीय शाखादि वस्तु रहित समुद्र में यह कार्य किया था। सौ डाँडो वाली नौका में भुज्यु को बैठाकर तुग्र के पास पहुँचाया था।[ऋग्वेद 1.116.5]
हे अश्विद्वय! बिना आधार के समुद्र में पड़े भुज्य को सौ चापों वाली नाव के साथ घर पहुँचाया। यह तुम्हारा अत्यधिक वीरता पूर्ण कर्म है। 
Hey Ashwani Kumars! You did this where there was no support, no land, no material aid in the ocean. You used the boat with 100 oars and took Bhujy to his father Tugr.
यमश्विना ददथुः श्वेतमश्वमघाश्चाय शश्वदित्स्वस्ति। 
तद्वां दात्रं महि कीर्तेन्यं भूत्यैद्वो वाजी सदमिद्धव्यो अर्थः
हे अश्विनी कुमारों! अवध्य अश्व के स्वामी पेदु नाम के राजर्षि को आपने जो सफेद रंग का घोड़ा दिया था, उस अश्व ने पेदु का प्रतिदिन जयरूप से मंगल किया। आपका वह दान महान् और कीर्तनीय हुआ। राजर्षि पेदु का वह उत्तम अश्व हमारे लिए सदैव पूजनीय है।[ऋग्वेद 1.116.6]
हे अश्विद्वय! दुष्ट अश्वों वाले राजा पैदु को तुमने कल्याणकारी श्वेत रंग का अश्व प्रदान किया। तुम्हारा यह महादान प्रशंसा के योग्य है। वह अश्व सदैव युद्धों में विजेता रहा।
Hey Ashwani Kumars! You gave the white horse to Rajrishi Pedu, the master of the horse which had not to be killed, did auspicious deeds for him. That horse of Pedu deserve worship from us.
युवं नरा स्तुवते पजियाय कक्षीवते अरदतं पुरंधिम्। 
कारोतराच्छफादश्वस्य वृष्णः शतं कुम्भाँ असिञ्चतं सुरायाः
हे नेतृदय! आपने अङ्गिरा के कुल में उत्पन्न कक्षीवान् को स्तुति करने पर प्रचुर बुद्धि प्रदान की। जिस प्रकार से सुरापात्र के मुख से सुरा निकाली जाती है, उसी प्रकार से आपके सेचन समर्थ अश्व के खुर से आपने शत कुम्भ सुरा का सिञ्चन किया था।[ऋग्वेद 1.116.7]
सेचन :: खेती-बारी के लिए खेतों आदि में नाली आदि के द्वारा जल पहुँचाने की क्रिया ताकि उनमें नमी बनी रहे, भूमि को पानी से सींचना, सिंचाई, पानी के छींटे देना, छिड़काव, अभिषेक, धातुओं की ढलाई, पानी से सीचने की क्रिया या भाव; pollinate.
हे पराक्रमी! तुमने वन्दना करते हुए कक्षीवान की मति को प्रशस्त किया और वीर्यवान घोड़े के खुर रूप गढ़े से जल की वृष्टि की।
Hey leaders duo! You granted sufficient intelligence to Kakshivan who was born in the family of Angira he when prayed-worshiped you. The way wine is extracted from the pot containing wine, you extracted wine known Shat Kumbh, with the help of your horse, who crushed it.
हिमेनाग्निं घ्रंसमवारयेथां पिआपतीमूर्जमस्मा अधत्तम्। 
ऋबीसे अत्रिमश्विना-वनीतमुन्निन्यथुः सर्वगणं स्वस्ति
हे अश्विनी कुमारों! आप दोनों ने प्रचण्ड अग्निदेव को हिमयुक्त शीतल जल से बुझा दिया। असुरों द्वारा अपने राज्य के लिए संघर्ष रत अँधेरे कारागृह में रखे गये अत्रि ऋषि को सहयोगियों के साथ कारावास तोड़कर आपने मुक्त किया और शरीर से कमजोर हुए अत्रि ऋषि को पौष्टिक व शक्ति बढ़ानेवाला आहार देकर हृष्ट-पुष्ट किया।[ऋग्वेद 1.116.8]
हे अश्विद्वय! तुमने प्रज् अग्नि को शीतल से शांत किया। इसे अन्न परिपूर्ण शक्ति दी। तुमने अग्नि को शीतल से शांत किया। इसे अन्न परिपूर्ण शक्ति दी। तुमने असुरों द्वारा अंधकार पूर्ण वारिधि में गिराये गये अत्रि को प्रकाश में निकाला। 
Hey Ashwani Kumars! You extinguished the fierce fire-Agni with iced water. You freed Atri Rishi along with his associated, from the prison of the demons, who were fighting for their empire. Atri Rishi was supported with nourishing food.
परावतं नास्तयानुदेथामुच्चाबुध्नं चक्रथुर्जिलबारम्। 
क्षरन्नापो न पायनाय राये सहस्त्राय तृष्यते गोतमस्य
हे नासत्यद्वय! आप मरुस्थल में गौतम ऋषि के पास कूप उठा लाये और कूप का तलभाग ऊपर तथा मुखभाग नीचे कर दिया। उस जल को गौतम ऋषि के आश्रम तक ले जाकर हजारों प्यासों को जल उपलब्ध कराया।[ऋग्वेद 1.116.9]
हे सत्य रूप अश्विद्वय! तुमने मरुभूमि में गौतम ऋषि के समीप कूप को भेजा। उसे उलटा कर सहस्त्र प्यासों के लिए जल की वर्षा की। 
Hey the Truthful duo! You took the well to Gautom Rishi in the desert and inverted it. This water quenched the thirst of thousands of the thirsty people. 
जुजुरुषो नासत्योत वव्रिं प्रामुञ्चतं द्रापिमिव च्यवानात्। 
प्रातिरतं जहितस्या-युर्दस्त्रादित्पतिमकृणुतं कनीनाम्
हे नासत्यद्वय अश्विनी कुमारों! जिस प्रकार से शरीर का आवरण खोलकर फेंका जाता है, उसी प्रकार से ही आपने जीर्ण च्यवन ऋषि की शरीर व्यापिनी जरा खोलकर फेंकी और उन्हें दीर्घायु प्रदत्त कर सुन्दर कन्याओं का पति बना दिया।[ऋग्वेद 1.116.10]
हे सत्य रूप, विकराल अश्विद्वय! तुमने वृद्ध च्यवन का बुढ़ापा कवच के समान हटा दिया और अश्वों द्वारा परित्यक्त ऋषि की आयु को बढ़ाकर कन्याओं का पति बना दिया।
Hey truthful Ashwani Kumars! The manner in the body shell is thrown away, you removed the dilapidated body of Chayvan Rishi and made him young, granted him long age and made him husband of beautiful girls. 
तद्वां नरा शंस्यं राध्यं चाभिष्टिमन्नासत्या वरूथम्। 
यद्विद्वांसो निधिमिवाप-गूळ्हमुद्दर्शतादूपथुर्वन्दनाय
हे नेता नासत्यद्वय! आपका वह इष्ट वरणीय कार्य हमारे लिए प्रशंसनीय और आराध्य है। गहरे कुएँ में पड़े उन वन्दन ऋषि को आपने गुप्त स्थान में गड़े धन के सदृश निकाला। आपका यह सराहनीय कार्य स्तुति के योग्य है।[ऋग्वेद 1.116.11]
हे मिथ्यात्वहीन अश्विन देव! इच्छा के योग्य तुम्हारा रक्षक सामर्थ्यवान पूजनीय तथा प्रशंसनीय है। तुमने अदृश्य हुए कोष से तुल्य वंदन को कुएँ से निकाला।
Hey truthful leaders! The efforts made by you deserve praise & appreciation and deserve worship-prayers. You brought out Vandan Rishi out of the well like the treasure buried in the secret chambers. This act of yours, deserve appreciation.
तद्वां नरा सनये दंस उग्रमाविष्कृणोमि तन्यतुर्न वृष्टिम्। 
दध्यङ् ह यन्मध्वाथर्वणो वामश्वस्य शीष्र्णा प्र यदीमुवाच
हे नेतृद्वय! जिस प्रकार से बादलों की गर्जना होने वाली वृष्टि को प्रकट करता है, वैसे ही मैं धनप्राप्ति के लिए आपके उस उग्र कर्म को प्रकट करता हूँ, अथर्वा के पुत्र दधीचि ऋषि ने घोड़े के मुख से आपको मधु विद्या का ज्ञान अर्थात् अभ्यास कराया था।[ऋग्वेद 1.116.12]
हे पराक्रमियों! जैसे बादल का गर्जन वर्षा को प्रकट करता है, वैसे ही मैं तुम्हारे उग्र कार्य को प्रकट करता हूँ। तुम्हारे लिए अथर्वा के पुत्र दध्यड़ ने अश्व के सिर को मधु विद्या सिखायी।
Hey leaders duo! The manner in which the clouds roar to show-declare rain fall, I disclose your fierce deed-action to attain wealth & money.  Dadhich Rishi, the son of Athrva taught you granted you this secret knowledge called Madhu Vidya, with the mouth of a horse. 
अजहवीन्नासत्या करें वां महे यामन्पुरुभुजा पुरंधिः। 
श्रुतं तच्छासुरिव वध्रिमत्या हिरण्यहस्तमश्विनावदत्तम्
हे बहुलोक पालक नासत्यद्वय! आप अभिमत फलदाता है। बुद्धिमती वध्रिमती नाम की ऋषिपुत्री ने पूजनीय स्तोत्र द्वारा आपको बार-बार पुकारा था। जिस प्रकार से शिष्य शिक्षक की कथा सुनता है, वैसे ही आपने वध्रिमती का आह्वान सुना। आपने उसे हिरण्यहस्त नामक पुत्र प्रदान किया।[ऋग्वेद 1.116.13]
अनेकों के पोषणकर्त्ता असत्य रहित अश्विद्वय! तुम्हें वह्निमतों ने आहूत किया तुमने हर्षित होकर हिरण्यहस्त नामक पुत्र उसे प्रदान किया।
Hey truthful duo, nurturing many abodes-Loks! You grant the desired boons. The intelligent Buddhimati Vadhrimati, the daughter of a Rishi, repeatedly called you with sacred verses-Strotr. The way-manner the student listens to the stories narrated by the teacher you attended the invitation of Vadhrimati. You granted him the son named Hirany Hast. 
आस्नो वृकस्य वर्तिकामभीके युवं नरा नासत्यामुमुक्तम्।
उतो कविं पुरुभुजा युवं ह कृपमाणकृणुतं विचक्षे
हे नेता नासत्यद्वय! आपने भेड़िए के मुख से चिड़िया को मुक्त कराया। आपने एक नेत्रहीन कवि की प्रार्थना करने पर उसे देखने की शक्ति प्रदान की।[ऋग्वेद 1.116.14]
हे मिथ्यात्व रहित अश्विदेवो! तुमने बटेरी को भेड़िये के मुख से निकाला और रोते हुए कण्व को देखने की शक्ति प्रदान की।
Hey truthful leaders duo! You released the bird from the mouth of the wolf. You granted eye sight to blind poet listening-attending to his prayers. 
चरित्रं हि वेरिवाच्छेदि पर्णमाजा खेलस्य परितक्म्यायाम्। 
सद्यो जङ्घामायसीं विश्पलायै धने हिते सर्तवे प्रत्यधत्तम्
राजा खेल की पत्नी विश्पला का एक पैर युद्ध में पक्षी की पंख की तरह कट गया था। हे अश्विनीकुमारों! उसी रात्रि काल में उस विश्पला को युद्ध प्रारंभ होने के पूर्व आक्रमण करने के लिए लोहे का पाँव लगाकर आप दोनों ने युद्ध करने योग्य बना दिया।[ऋग्वेद 1.116.15]
राज खेल की पत्नी का पैर युद्ध में कट गया। तुमने उसे चलने के लिए लोहे की टांग बना दी।
The leg of the queen of the king Khel was cut during war like the feather of the bird. Hey Ashwani Kumars! You fitted an iron leg to Vishpla's body prior to the beginning of the fight-battle the same night. 
शतं मेषान्वृक्ये चक्षदानमृज्राश्वं तं पितान्धं चकार। 
तस्मा अक्षी नासत्या विचक्ष आधत्तं दस्रा भिषजावनर्वन्
जिन ऋजाश्व राजर्षि ने अपनी वृकी को खाने के लिए सौ भेड़ों को काट डाला था, उनको उनके पिता (वृषागिर) ने क्रुद्ध होकर नेत्रहीन कर दिया। ऋजाश्व के दोनों नेत्र किसी भी वस्तु को देखने में असमर्थ हो गये। हे भिषज दक्ष नासत्यद्वय! आपने ऋजाश्व की आँखें अच्छी कर दी अर्थात् उसे नेत्रज्योति प्रदान कर दीं।[ऋग्वेद 1.116.16]
हे मिथ्यात्व रहित विकराल रूप वाले भिषको! वृकी को खाने के लिये सौ मेष काट देने के दण्ड स्वरूप ऋजाश्रव को उसके पिता ने अंधा कर दिया था। उसके लिए तुमने सर्वश्रेष्ठ ज्योति वाली आँखें प्रदान कीं। 
Vrashagir blinded his son Rijashrav, a Rajrishi for slaughtering 100 sheep to feed his Vraki, in a fit of anger. Both the eyes of Rijashrav were unable to see-visualize any thing. Hey the experts in identifying the medicinal properties of plants & vegetation, truthful Ashwani Kumars! You restored-granted eye sight to Rijashrav.
आ वां रथं दुहिता सूर्यस्य कावातिष्ठदर्वता जयन्ती। 
विश्वे देवा अन्वमन्यन्त हद्भिः समु श्रिया नासत्या सचेथे
हे अश्विनी कुमारों! सूर्य की पुत्री उषा प्रतिस्पर्धा में जीतकर आपके रथ पर आरूढ़ हो गई। सम्पूर्ण देवताओं ने उनका अभिनन्दन किया, तब आप दोनों भी उषा से शोभायुक्त हुए।[ऋग्वेद 1.116.17]
हे अश्विद्वय! सूर्य-पुत्री तुम्हारे द्वारा त्रिजित हुई, तुम्हारे रथ पर चढ़ गई उस समय तुम्हारे घोड़े तेजी से दौड़कर सबसे पहले काष्ठ खंड (घुड़दौड़ में विजय के लिए चिह्न स्वरूप) के पास पहुँचे। तब देवताओं ने तुम्हारे कार्य का हार्दिक अनुमोदन किया।
Hey Ashwani Kumars! Daughter of Sun Usha won the competition and rode your chariot. All demigods-deities honoured three of you and both of you too were dignified.
यदयातं दिवोदासाय वर्तिर्भरद्वाजायाश्विना हयन्ता। 
रेवदुवाह सचनो रथो वां वृषभश्च शिंशुमारश्च युक्ता
हे अश्विनी कुमारों! जब आप दोनों अन्नदान करने वाले राजर्षि दिवोदास और भरद्वाज के गृह में गये, तब उपभोग्य धन से परिपूर्ण रथ आपको वहाँ ले गया। उस समय आपके रथ को शक्तिशाली और शत्रुओं का नाश करने वाले घोड़े खींच रहे थे। आपकी यह विलक्षण सामर्थ्य शक्ति है।[ऋग्वेद 1.116.18]
हे अश्विद्वय! जब तुम दिवोदास और भरद्वाज के घर लिए चले तब तुम्हारा रथ समृद्धि से पूर्ण था। उस रथ में ऋषभ और ग्राह जुते थे।
Hey Ashwani Kumars! When you visited the houses of Divo Das & Bhardwaj well known for donating food, your chariot was full of useful wealth, money, amenities for them. 
रयिं सुक्षत्रं स्वपत्यमायुः सुवीर्यं नासत्या वहन्ता। 
आ जह्नावीं समनसोप वाजैस्त्रिरह्रो भागं दधतीमयातम्
हे नासत्यद्वय! हवि रूप अन्नों द्वारा तीनों कालों में पूजा करने वाली महर्षि जनु की सन्तानों को आप बल, संतति, वैभव, सम्पदा और पराक्रमशाली जीवन प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 1.116.19]
पराक्रम :: शौर्य, विक्रम, बल, पुरुषार्थ, अभियान, साहसिक कार्य, सामर्थ्य, बल, शक्ति, भगवान् श्री हरी विष्णु, पुरुषार्थ, पौरुष, उद्योग; ability, achievement, courage, exploit, gallantry, heroism, might, power, valour. 
हे असत्य रहित अश्विनी कुमारो! हवि रूप अन्न के तीन भाग देने वाले जनु की संतान को तुमने सुन्दर राज परिपूर्ण समृद्धि और पुरुष संयुक्त उम्र को प्रदान किया। 
Hey truthful duo! You granted might, progeny, glory, wealth-property and valour to the sons of Mahrshi Janu, who performed the three prayers (morning, mid day-noon & evening) with the offerings of food grains
परिविष्टं जाहुषं विश्वतः सीं सुगेभिर्नक्तमूहथू रजोभिः। 
विभिन्दुना नासत्या रथेन वि पर्वताँ अजरयू अयातम्
हे नासत्यद्वय! आप अजर हैं। जिस समय राजा जाहुष शत्रुओं द्वारा चारों ओर से घिर गये, उस समय आप अपने सर्वभेदकारी रथ से रातों-रात उन्हें सरल मार्ग से बाहर निकाल ले गये व पर्वतों को चीरते हुए दूर निकल गये।[ऋग्वेद 1.116.20]
मिथ्यात्व रहित अजर अश्विदेवो! तुम शत्रु से घिरे जाहुष को रातों-रात सुगम्य राह से ले चले और अपने रथ से शैल को चीरकर निकल गए।
Hey truthful duo! You are immune to ageing (ever young, ever green, one who does not grow old). You saved king Jahush when he was surrounded by the enemy from all directions, in the chariot which could overcome all troubles-obstacles, crossing the mountains within the night.
एकस्या वस्तोरावतं रणाय वशमश्विना सनये सहस्रा। 
निरहतं दुच्छुना इन्द्रवन्ता पृथुश्रवसो वृषणावरातीः
हे अभीष्टवर्षक अश्विनी कुमारों! आप दोनों ने वश नामक ऋषि को हजारों प्रकार के असंख्य धनों को प्राप्ति के लिए एक दिन में पूर्ण संरक्षणों से युक्त कर दिया व आप दोनों ने राजा इन्द्र के साथ मिलकर राजा पृथुश्रवा को कष्ट देने वाले शत्रुओं का मर्दन किया।[ऋग्वेद 1.116.21]
हे अश्विदेवो! इन्द्र के साथ तुमने एक दिन में हजारों सुंदर धनों को पाने के लिए वंश ऋषि को मदद दी और पृथुश्रवा के दुश्मनों को मार दिया।
Hey desire accomplishing Ashwani Kumars! You both, granted all sorts of wealth, amenities to the Rishi names Vash with in a day and eliminated the enemies of king Prathushrava with the help of Dev Raj Indr.
शरस्य चिदार्चत्कस्यावतादा नीचादुच्चा चक्रथुः पातवे वाः। 
शयवे चिन्नासत्या शचीभिर्जसुरये स्तर्यं पिप्यथुर्गाम्
हे नासत्यद्वय! ऋचत्क के पुत्र शर नामक स्तोता के पीने के लिए आपने कूप नीचे से जल को ऊपर किया। आप दोनों ने अपनी शक्ति से अतिकृषकाय शयु नामक ऋषि के लिए प्रसवशून्य गाय को दुग्धवती बना दिया।[ऋग्वेद 1.116.22]
हे अश्विद्वय तुमने ऋचत्क के पुत्र शिर की प्यास बुझाने को गहरे कुएँ के जल को ऊँचा किया और परिश्रान्त शत्रु के लिए वन्ध्या धेनु को दूध से परिपूर्ण कर दिया। 
Hey truthful duo! You inverted the well upside down to let Shar the son of Richtk. Both of you made the infertile cow to yield milk for the sake of Shayu Rishi who had become extremely weak and fragile.
अवस्यते स्तुवते कृष्णियाय ऋजूयते नासत्या शचीभिः। 
पशुं न नष्टमिव दर्शनाय विष्णाप्वं ददथुर्विश्वकाय
हे नासत्यद्वय! आप दोनों की प्रार्थना करने वाले व अपनी रक्षा के इच्छुक सरल मार्ग से जाने वाले कृष्ण पुत्र विश्वक के नष्ट हुए पुत्र विष्णाप्व के खोये हुए पशु के तुल्य (खोजकर) आप दोनों ने अपनी सामर्थ्य शक्तियों से दर्शनार्थ उपस्थित कर दिया।[ऋग्वेद 1.116.23]
हे अश्विदेवो! तुम्हारी सुरक्षा चाहने वाले कृष्ण ऋषि के पुत्र विश्वक को तुमने शत्रु के समान खोये हुए पुत्र विष्णायु से मिला दिया। 
Hey truthful duo! You traced and presented Vishnapv, the lost-dead son of Krashn Putr Vishvak, who prayed-worshiped both of you and followed the right-straight path-route, with your amazing powers.
दश रात्रीरशिवेना नव द्यूनवनद्धं श्नथितमप्स्व १ न्तः। 
विप्रुतं रेभमुदनि प्रवृक्तमुन्निन्यथुः सोममिव स्रुवेण
असुरों द्वारा पाश से बँधे, कुएँ में गिरे हुए और शत्रुओं द्वारा आहत होकर रेभ नामक ऋषि के दस रात नौ दिन जल में पड़े रहने की व्यथा से सन्तप्त और जल में विप्लुत होने पर आपने उन्हें उसी प्रकार कुएँ से निकाल लिया जिस प्रकार अध्वर्यु स्रुव से सोमरस निकालता है।[ऋग्वेद 1.116.24]
हे अश्विदेवो! स्व से सोम निकलने के तुल्य दस रात्रि और नौ दिन तक जल में पाशों से बंधे हुए आहूत "रेभ" ऋषि को तुमने बाहर निकाला।
You rescued Rishi Rebh, who was injured-hit by the demons & enemies, tied with roles and thrown in the well for 10 days and 9 nights in water and pained; just like Struv meant for making offerings in the Yagy and collecting Somras.
प्र वां दंसांस्यश्विनाववोचमस्य पतिः स्यां सुगवः सुवीरः। 
उत पश्यन्नश्नु-वन्दीर्घमायुरस्तमिवेज्जरिमाणं जगम्याम्
हे अश्विनीकुमारों! आपके पूर्वकृत कार्यों का मैंने वर्णन किया। मैं शोभन गौ और वीर से युक्त होकर इस राष्ट्र का अधिपति बनूँ। जिस प्रकार से गृहस्वामी निष्कंटक घर में प्रवेश करता है, वैसे ही मैं भी नेत्रों से स्पष्ट देखकर और दीर्घ आयु भोगकर वृद्धावस्था को प्राप्त करूँ।[ऋग्वेद 1.116.25]
हे अश्विदेवो! मैंने तुम्हारा यशगान किया है, मैं सुन्दर धेनुओं और वीरों से युक्त होकर देश का दाता बनूँ। आँखों से स्पष्ट देखता हुआ लम्बी आयु प्राप्त कर वृद्धावस्था प्रवेश करूँ।
Hey Ashwani Kumars! I have described the deeds you committed-performed in the past. I wish, I could become the king of this country along with  descent cows and brave warriors. The manner in which a house owner enters his house without any hesitation-trouble, let me have long life and become old watching clearly with my eyes.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (117) :: ऋषि :- कक्षीवान् , देवता :- अश्विनी कुमार,  छन्द :- पंक्ति, त्रिष्टुप्। 
मध्वः सोमस्याश्विना मदाय प्रत्नो होता विवासते वाम्। 
बर्हिष्मती रातिर्विश्रिता गीरिषा यातं नासत्योप वाजैः
हे अश्विनी कुमारों! आपका चिरन्तन होता, आपके हर्ष के लिए मधुर सोमरस के साथ आपकी अर्चना करता है। कुश के ऊपर हव्य स्थापित किया हुआ है, ऋत्विकों द्वारा स्तुत और प्रस्तुत हुआ है। हे नासत्यद्वय! अन्न और बल लेकर हमारे पास पधारें।[ऋग्वेद 1.117.1]
हे असत्य रहित अश्विदेवो! प्राचीन आह्वाता तुम्हें मधुर सोम से सींचता है। प्रदान करने योग्य हवि कुशा पर प्रस्तुत है। स्तुति उच्चारित की जा रही है। तुम दोनों अन्न शक्ति युक्त यहाँ पधारो। 
Hey Truthful Ashwani Kumars! Your worshiper (one ready to conduct Yagy, Hawan, Agni Hotr) from the ancient times, get Somras ready to welcome you. He prays to you. He has placed the offerings over the Kush mate. Rhymes are sung in your honour. Please come to us-bless us, with the food grains and grant us strength, power & might.
यो वामश्विना मनसो जवीयान्रथः स्वश्वो विश आजिगाति। 
येन गच्छथः सुकृतो दुरोणं तेन नरा वर्तिरस्मभ्यं यातम्
हे अश्विनी कुमारों! मन की अपेक्षा भी वेगवान् और शोभन अश्व युक्त रथ समस्त प्रजावर्ग के सामने जाता है और जिस रथ से आप लोग शुभ कर्मा लोगों के घर जाते हैं, हे नेतृद्वय! उसी रथ से हमारे घर पधारें।[ऋग्वेद 1.117.2]
हे अश्विदेवो! मन से अधिक वेग वाले रथ से तुम मान के घर  को प्राप्त करते हो। उसी से हमारे घर आओ। 
Hey Ashwani Kumars, the duo in leadership! Your chariot which is faster than the speed of the innerself (mind, brain, thoughts) moves to the populace. You visit the people who are engaged in virtuous, pious, righteous acts. Please come to riding your chariot.
ऋषि नरावंहसः पाञ्चजन्यमृबीसादत्रिं मुञ्चथो गणेन। 
मिनन्ता दस्योरशिवस्य माया अनुपूर्वं वृषणा चोदयन्ता
हे नेतृद्वय अभीष्ट वर्षक द्वय! आपने शत्रुओं की हिंसा करके और क्लेश देने वाली दस्यु माया का आनुपूर्विक निवारण करके पाँच श्रेणियों द्वारा पूजित अत्रि ऋषि को शत द्वार यन्त्र गृह के पापतुषानल से सन्तानादि के साथ मुक्त किया।[ऋग्वेद 1.117.3]
हे पुरुषार्थी अश्विद्वय! असुरों की दुःख रूपी माया को दूर करते हुए तुमने समस्त वर्षों से पूजित अत्रि को तुम पाप वाले स्थान (पीड़ा दायक यंत्र गृह) से परिवार के साथ मुक्त किया। 
Hey leadership duo granting boons! You released Atri Rishi, who is worshiped by 5 categories of two legged living beings, with his family,  from the prison of the dacoit, demon called Maya, who had locked you in machine powered-operated torture chamber. 
अश्वं न गूळ्हमश्विना दुरेवैर्ऋषिं नरा वृषणा रेभमप्सु। 
सं तं रिणीथो विप्रुतं  दंसोभिर्न वां जूर्यन्ति पूर्व्या कृतानि॥
हे नेतृद्वय अभीष्ट वर्षक द्वय! दुर्दान्त दानवों द्वारा जल में निगूढ़ रेभ ऋषि को आप लोगों ने निकालकर पीड़ित अश्व की तरह उनका विनष्ट अवयव अपनी दवाओं से ठीक कर दिया। आपके पहले के कार्य निश्चित रूप से अद्भुत हैं।[ऋग्वेद 1.117.4]
हे अश्विद्वय! अश्वों के समान, दुष्टों द्वारा जल में छिपाएँ भिन्न-भिन्न शरीर वाला रेभ ऋषि के अंगों को तुमने जोड़ दिया। तुम्हारे पुराने कर्मों में कभी न्यूनता नहीं आती।
Hey leadership duo granting boons! You brought out Rebh Rishi, who was captured by the cruel, demons below water and corrected-repaired his body organs by using medicines. Your deeds, acts, actions are amazing-wonderful.
सुषुप्वांसं न निर्ऋतेरुपस्थे सूर्यं न दस्रा तमसि क्षियन्तम्। 
शुभे रुक्मं न दर्शतं निखातमुदूपथुरश्विना वन्दनाय
हे दस्त्र अश्विनी कुमारों! पृथ्वी के ऊपर सुषुप्त मनुष्य की तरह और अन्धकार में क्षय प्राप्त सूर्य के शोभन दीप्तिमान् आभूषण की तरह तथा दर्शनीय उस कुएँ में गिरे बन्दन ऋषि को आप लोगों ने निकाला था।[ऋग्वेद 1.117.5]
हे अश्विद्वय! मृत्यु की गोद में सोने के तुल्य, अंधेरे में छिपे सूर्य के समान, गड़े हुए स्वर्ण के समान वंदन ऋषि को निकालकर तुमने सुशोभित किया।
Hey Ashwani Kumars! You recovered-brought out Bandan Rishi from the well, who was there like the Sun without light-aura or golden ornaments.
तद्वां नरा शंस्यं पज्रियेण कक्षीवता नासत्या परिज्मन्। 
शफादश्वस्य वाजिनो जनाय शतं कुम्भाँ असिञ्चतं मधूनाम्
हे नेता नासत्यद्वय! अङ्गिरा वंशीय कक्षीवान् मैं मनोनुकूल द्रव्य की प्राप्ति की तरह आपका अनुष्ठान उद्घोषित करूँगा, क्योंकि आपने शीघ्र गामी घोड़ों के खुरों से निकाले हुए मधु से संसार में सैकड़ों घड़े पूर्ण कर दिये।[ऋग्वेद 1.117.6]
हे अश्विद्वय! तुम्हारा सब ओर फैला हुआ कर्म कक्षीवान द्वारा प्रशंसित किया गया है। तुमने दौड़ते हुए अश्व के खुर से प्राणी के लिए पर्याप्त पानी बरसाया।
Hey truthful leadership duo! Kakshivan, born in Angir clan announced the conduction of Yagy, since your fast running horses extracted hundreds of piture-urns of honey with the help of their hoofs.
युवं नरा स्तुवते कृष्णियाय विष्णाप्वं ददथुर्विश्वकाय। 
घोषायै चित्पितृषदे दुरोणे पतिं जूर्यन्त्या अश्विनावदत्तम्
हे नेतृद्वय! कृष्ण के पुत्र विश्वकाय के द्वारा आप लोगों की स्तुति करने पर विनष्ट पुत्र विष्णापु को आप लोग लाये। हे अश्विनी कुमारों! कोढ़ होने के कारण बुढ़ापे तक पिता के घर में अविवाहिता रहने पर घोषा नाम की ब्रह्म वादिनी स्त्री के कुष्ठ को दूर कर उसे पति प्रदान किया।[ऋग्वेद 1.117.7]
हे अश्विद्वय! तुमने स्तोता “विश्वक" को उसका पुत्र “विष्णायु" दिया और जनक के घर पर वृद्धावस्था को प्राप्त होती हुई "घोषा" को प्रदान किया।
Hey leadership duo-Ashwani Kumars! You brought back to life the son of Krashn  called Vishwkay, when he prayed to you. You recovered Ghosha from leprosy, who was devoted to the Brahm-The Almighty & remained unmarried till her old age. You granted her a husband.
युवं श्यावाय रुशतीमदत्तं महः क्षोणस्याश्विना कण्वाय। 
प्रवाच्यं तद्वृषणा कृतं वां यन्नार्षदाय श्रवो अध्यधत्तम्
हे अश्विनी कुमारों! आपने कुष्ठ रोग ग्रसित श्यामवर्ण ऋषि को अच्छा कर दीप्तिमती स्त्री दी। आँखे न रहने से वे कभी नहीं चल सकते थे, आपने उन्हें नेत्र ज्योति प्रदान की। हे अभीष्टवर्षिद्वय! बहरे नृषद पुत्र को आपने सुनने की शक्ति प्रदान की, आपके ये सभी कार्य प्रशंसनीय हैं।[ऋग्वेद 1.117.8]
हे अश्विद्वय! तुमने सांवले रंग वाले कण्व को उज्जवल रंग वाली बड़े गृह की बेटी भार्या रूप में ग्रहण करायी। तुमने नुषद के पुत्र को कीर्ति प्रदान की। तुम्हारा यह काम वर्णन करने लायक है। 
Hey Ashwani Kumars! You recovered the dark skinned Rishi suffering from leprosy and was unable to walk, granted him eye sight and got him married. Hey boon granting-desires fulfilling leadership duo! You granted the power to hear to the son of Nrashad. All your endeavours-deeds deserve appreciation.
पुरू वर्पांस्यश्विना दधाना नि पेदव ऊहथुराशुमश्वम्। 
सहस्रसां वाजिनमप्रतीतमहिहनं श्रवस्यं तरुत्रम्
बहुरूपधारी अश्विनी कुमारों! आपने राजर्षि पेदु को शीघ्र चलने वाले अश्व दिये। वे अश्व हजारों तरह के धन प्रदान करते थे। वह बलवान् शत्रुओं द्वारा अपराजेय, शत्रुहन्ता, स्तुतिपात्र और विपत्ति में रक्षा करने वाले थे।[ऋग्वेद 1.117.9]
हे अश्विद्वय! तुम असंख्य रूप धारणा करने वाले हो।"पेदु" के लिए तुम गतिवान घोड़े को लाए जो कभी पीछे न हटने वाला, अधिक धन देने वाला, शत्रुओं के समीप निडर होकर जाकर उन्हें मारने में सहायक तथा विजय प्राप्त कराने में सक्षम था।
Hey Ashwani Kumars! You are capable of acquiring vivid-various shapes, sizes, figures, bodies. You gave fast moving horses to Rajrishi Pedu. These horses were capable of thousands of types of riches-money. They could not be defeated by strong enemy-armies, deserved respect & prayers, gave protection in an hour of need and they could eliminate the enemy as well.
एतानि वां श्रवस्या सुदानू ब्रह्माङ्गुषं सदनं रोदस्योः। 
यद्वां पज्रासो अश्विना हवन्ते यातमिषा च विदुषे च वाजम्
हे दानवीर अश्विनी कुमारों! आपकी ये वीर कीर्तियाँ सबको जाननी चाहिए। आप धुलोक भूलोक रूप वर्तमान हैं। आपको प्रसन्न कर घोषणीय मन्त्र निष्पन्न हुआ है। हे अश्विनी कुमारों! जिस समय अङ्गिराकुल के यजमान आपको बुलाते हैं, उस समय आप दोनों अन्न लेकर आवें तथा मुझ यजमान को बल प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.117.10]
हे कल्याणकारी अश्विदेवो! तुम्हारे कर्म श्रवण के योग्य हैं। वेद मंत्र तुम्हारा श्लोक और आकाश एवं पृथ्वी वास स्थान है। जब तुम्हें अंगिराओं ने बुलाया तब तुम अन्न और बल के सहित आओ।
Hey donor Ashwani Kumars! Everyone must know your greatness, glory. You reside both in the space & over the earth. Your appeasement-happiness led to the creation-composition of an enchanting Mantr-verse, poem. Please come to the hosts from the Angira clan, when they call you, give them food grains and grant me strength, power, might.  
सूनोर्मानेनाश्विना गृणाना वाजं विप्राय भुरणा रदन्ता। 
अगस्त्ये ब्रह्मणा वावृधाना सं विश्पलां नासत्यारिणीतम्
हे पोषक नासत्यद्वय! कुम्भ के पुत्र अगस्त्य ऋषि की स्तुति से स्तुत होकर और मेधावी भरद्वाज ऋषि को अन्नदान कर तथा अगस्त्य द्वारा मंत्रवर्द्धित होकर आपने विश्पला को निरोगी बना दिया।[ऋग्वेद 1.117.11]
हे पोषणकर्त्ता अश्विदेवो! पुत्र के समान भक्ति से आगस्त्य ने वदंना की। वंदनाओं से वृद्धि को प्राप्त हुए तुमने उस मेधावी भरद्वाज को अन्न दिया और विरपला को स्वस्थ किया।
Hey nurturing-nursing, nourishing Ashwani Kumars! You became happy-pleased with the prayers of August Rishi, the son of Kumbh, gave food grains to Bhardwaj and acquired capability to cure Vishpala attending-responding to the Mantr Shakti of August. 
कुह यान्ता सुष्टुतिं काव्यस्त दिवो नपाता वृषणा शयुत्रा। 
हिरण्यस्येव कलशं निखातमुदूपथुर्दशमे अश्विनाहन्॥
हे आकाश पुत्रद्वय अभीष्टवर्षक! उशना की स्तुति सुनने के लिए कहाँ उसके घर की ओर जाते हो? हिरण्यपूर्ण कलश की तरह कुएँ में गिरे रेभ ऋषि को आपने दसवें दिन निकाला था।[ऋग्वेद 1.117.12]
हिरण्य :: सोना-सुवर्ण, शुक्राणु-वीर्य।
हे अश्विद्वय! “शंयु" के रक्षक काव्यमय वंदना से आने वाले तुमने स्वर्ण के कलशों के तुल्य गढ़े हुए “रेभ" को दसवें दिन निकला-मुक्त किया। 
Hey boon granting duo, Ashwani Kumars, stationed in the space! You visit the house of Ushna to respond to his request-prayers. You recovered Rebh Rishi on the tenth day, when he had fallen in the well which was like an urn containing sperms.
युवं च्यवानमश्विना जरन्तं पुनर्युवानं चक्रथुः शचीभिः। 
युवो रथं दुहिता सूर्यस्य सह श्रिया नासत्यावृणीत
हे अश्विनीकुमारों! भैषज्यरूप कार्य द्वारा आपने वृद्ध च्यवन ऋषि को युवा कर दिया। हे नासत्यद्वय! सूर्य पुत्री सूर्या (उषा) कान्ति के साथ आपके रथ पर आरूढ़ हुई।[ऋग्वेद 1.117.13]
हे अश्विदय! तुमने वृद्ध"च्यवन" को युवा बनाया। सूर्य की पुत्री ने शोभा से युक्त ही तुम्हारा वरण किया है।
Hey Ashwani Kumars! You turned old & fragile Chayvan Rishi into a young man, by treating him with the vegetation (herbs). Hey truthful duo! Usha, the daughter of Sun rode your chariot with her shine-aura, glow. 
युवं तुग्राय पूर्व्येभिरेवैः पुनर्मन्यावभवतं युवाना। 
युवं भुज्युमर्णसो निः समुद्राद्विभिरूहथुर्ऋज्रेभिरश्वैः
हे दुःख विदारक द्वय! तुग्र जैसे पहले स्तोत्र द्वारा आपकी स्तुति कर आप दोनों की अर्चन करते थे, क्योंकि उनके पुत्र भुज्यु को आप महासागर से गमनशील नौका और तेज चलने वाले अश्व द्वारा ले आये थे।[ऋग्वेद 1.117.14]
हे अश्विद्वय! तुमको पुरातन श्लोक से तुग्र ने स्मरण किया। तुम पक्षी की चाल से उड़ने वाले अश्वों द्वारा "भुज्यु" को समुद्र निकाल लाये।
Hey sorrow relieving Duo!  Tugr continued praying you with the ancient Shloks-verses since you brought his son Bhujyu back who was drowning in the ocean, by using fast moving boats and horses. 
अजोहवीदश्विना तौग्रयो वां प्रोळ्हः समुद्रमव्यथिर्जगन्वान्।
निष्टमूहथुः सुयुजा रथेन मनोजवसा वृषणा स्वस्ति
हे अश्विनी कुमारों! पिता तुग्र द्वारा समुद्र में भेजे हुए और जल में डूबते हुए भुज्यु ने सरलता से समुद्र पार करके आपका आवाहन किया। हे मनोवेग सम्पन्न अभीष्टवर्षिद्वय! आप दोनों उत्कृष्ट अश्व युक्त रथ पर भुज्यु को लेकर आये।[ऋग्वेद 1.117.15]
हे अश्विदेवो! तुग्र पुत्र ने बार-बार तुम्हारा आह्वान किया। वह समुद्र में बहता हुआ भी दर्द में रहता था उसे अत्यन्त वेगवान रथ से तुम निकाल लाए। 
Hey Ashwani Kumars! Bhujyu who was sent to the ocean by his father Tugr, was carried away-swayed by the ocean currents, remembered-prayed you. You relieved him and he easily crossed the ocean. Hey desire fulfilling duo! Both of you then brought Bhujyu to his father in the chariot which had excellent horses.
अजोहवीदश्विना वर्तिका वामास्नो यत्सीममुञ्चतं वृकस्य।
वि जयुषा ययथु: सान्वद्रेर्जातं विष्वाचो अहतं विषेण
हे अश्विनी कुमारों! जिस समय आप लोगों ने वृक के मुख से वर्त्तिका नाम की चिड़िया ने छुड़ाया, उस समय उसने आपका ही आवाहन किया था। आप लोग विजयी रथ द्वारा जाहुष को लेकर पर्वत पर चले गये। आपने विष्वाङ्ग असुर के पुत्र का विषैले तीर से वध किया।[ऋग्वेद 1.117.16] 
हे अश्विद्वय! वृत्तिका ने तुम्हारा आह्वान किया। तुमने उसे भेड़िये के मुँह से निकाला। जीतने वाले रथ से पर्वत पर गये। तुमने “विश्वा" के पुत्र को विष परिपूर्ण अस्त्र से समाप्त कर डाला।
Hey Ashwani Kumars! The bird named Vartika prayed you, when you released her from the clutches of Vrak-the wolf. You rode the chariot which was victorious, going to the mountain carrying Jahush. You killed the son of Vishwang-the demon, with a poisonous arrow. 
शतं मेषान्वृक्ये मामहानं तमः प्रणीतमशिवेन शन पित्रा। 
आक्षी ऋज्राश्वे अश्विनावधत्तं ज्योतिरन्धाय चक्रथुर्विचक्षे॥
जबकि ऋजाश्व ने वृकी के लिए सौ भेड़ों का वध किया, तब उनके क्रुद्ध पिता ने उन्हें अन्धा बना दिया। इसके अनन्तर आपने उन्हें नेत्र ज्योति प्रदान की और देखने के लिए आप लोगों ने अन्धे को नेत्र प्रदान किया।[ऋग्वेद 1.117.17]
हे अश्विद्वय! वृकी को सौ भेड़े देने वाले ऋजाश्व को उसके पिता ने अंधा बना दिया। तुमने उसे नेत्र देकर उनमें प्रकाश भर दिया। वृकी ने अन्धे ऋजास्व के लिए वंदना की।
When Rijashrav killed 100 sheep for feeding the Vraki-she wolf, his father blinded in a fit of anger. You provided him eye sight. Vraki prayed for the blind Rijashrav.
शुनमन्धाय भरमह्वयत्सा वृकीरश्विना वृषणा नरेति। 
जारः कनीनइव चक्षदान ऋज्राश्वः शतमेकँ च मेषान्
ऋजाश्व के अन्धा होने पर वृकी ने उसके सुख के लिए इस प्रकार से प्रार्थना करने लगी कि हे सामर्थ्यवान् नेतृत्व प्रदान करने वाले देवों! युवा जार के द्वारा तरुणी का सर्वस्व समर्पित कर देने के समान बिना समझे ऋजाश्व ने मुझे एक सौ भेड़ें खाने के लिए दी थीं।[ऋग्वेद 1.117.18]
ऋजास्व ने अल्हड़पन (मनमौजीपन, बेपरवाही, निर्द्वद्वता, बालसुलभ मस्ती और लापरवाही; inexperience, ignorance, childishness, carefreeness) से अमितव्ययी होकर तरुण सार के समान एक सौ भेड़ें काट डाली थीं। 
When Rijashrav became blind, the Vraki prayed to the capable Ashwani Kumars-the duo to restore eyesight to Rijashravaddressing them as capable leadership granting demigods-deities! Young Rijashrav killed the sheep due to his ignorance.
मही वामूतिरश्विना मयोभूरुत स्त्रामं धिष्ण्या सं रिणीथः।
अथा युवामिदह्वयत्पुरंधिरागच्छतं सीं वृषणाववोभिः 
हे स्तुतिपात्र अश्विनी कुमारों! आपका रक्षा कार्य सुख का कारण है, आपने रोगियों के अंगों को ठीक किया, अतः प्रभूत बुद्धिशालिनी घोषा ने आपको रोग निवृत्ति के लिए बुलाया। हे अभीष्टदातृद्वय! अपने रक्षण कार्य के साथ पधारें।[ऋग्वेद 1.117.19]
हे अश्विद्वय! तुम सुख देने में सक्षम हो। अंगहीन को अंग देते हो। इसलिए विश्मला ने तुम्हें आमंत्रित किया था, तब तुमने उसकी रक्षा की थी।
Hey prayer deserving Ashwani Kumars! Protection by you leads to pleasure.  Since, you cured the organs of the diseased, the intelligent Ghosha invited you to cure her. Hey leadership duo! Please come for protecting-sheltering us.
अधेनुं दस्रा स्तर्यं विषक्तामपिन्वतं शयवे अश्विना गाम्। 
युवं शचीभिर्विमदाय जायां न्यूहथुः पुरुमित्रस्य योषाम्
हे दस्त्रु द्वय! शयु ऋषि के लिए आपने कृशा प्रसव शून्या (जिसे सन्तान न हो सके) और दुग्ध रहिता गौ को दुग्ध पूर्ण किया। आपने अपने कर्म द्वारा पुरुमित्र राजा की पुत्री को विमद ऋषि की पत्नी बनाया।[ऋग्वेद 1.117.20]
हे अश्विद्वय! तुमने शयु के लिए बांझ गाय को दूध से परिपूर्ण किया। तुमने पुरुमित्र की पुत्री को विमद की पत्नी बनाया। 
Hey Ashwani Kumars! You restored milk in the infertile old cow. You got the daughter of the king Purumitr to Vimad Rishi. 
यवं वृकेणाश्विना वपन्तेषं दुहन्ता मनुषाय दस्त्रा। 
अभि दस्युं बकुरेणा धमन्तोरु ज्योतिश्चक्रथुरार्याय
हे अश्विनी कुमारों! आपने विद्वान् मनु के लिए हल द्वारा खेत जुतवा कर जौ उत्पन्न कराकर अन्न के लिए वर्षा की और अपने वज्र द्वारा दस्यु का वध करके मनुष्यों का परम उपकार किया।[ऋग्वेद 1.117.21]
हे अश्विद्वय! तुमने खेत जुतवाकर अन्न पैदा कर वज्र से दैत्यों को समाप्त करते हुए मनुष्यों का परम हित किया।
Hey Ashwani Kumars! You let the fields ploughed for the enlightened Manu and killed the dacoit-demon with your Vajr leading to ultimate welfare of the humanity.
आथर्वणायाश्विना दधीचेऽश्र्व्यं शिरः प्रत्यैरयतम्। 
स वां मधु प्र वोचदृतायन्त्वाष्ट्रं यद्दत्रावपिकक्ष्यं वाम्
हे अश्विनी कुमारों! आपने अथर्वा ऋषि के पुत्र दधीचि ऋषि के कन्धे पर अश्व का मस्तक जोड़ दिया। दधीचि ने भी सत्य की रक्षा कर इन्द्रदेव से प्राप्त मधुविद्या आपको प्रदत्त की। हे दस्त्र द्वय! वही विद्या आप लोगों में प्रवर्ग (किसी वर्ग या श्रेणी का छोटा विभाग या श्रेणी, हवन करने की अग्नि, category) विद्या रहस्य हुई थी।[ऋग्वेद 1.117.22]
हे आश्विद्वय! तुमने अथर्वा के पुत्र "दध्य के अश्व को सिर जोड़ा। तब उसने इन्द्रदेव से ग्रहण मधु विद्या तुम्हें सिखायी। वह विद्या तुम को अत्याधिक शक्ति देने वाली हुई।
Hey Ashwani Kumars! You joined the head of a horse to the shoulder of the son of Athrava Rishi, named Dadhichi. Dadhichi too, in turn taught you Madhu Vidhya. This knowledge became useful in igniting fire for Hawan-Yagy and granted immense power.
सदा कवी सुमतिमा चके वां विश्वा धियो अश्विना प्रावतं मे। 
अस्मे रयिं नासत्या बृहन्तमपत्यसाचं श्रुत्यं रराथाम्
हे मेधाविद्वय! मैं सदा आपकी कृपा के लिए प्रार्थना करता हूँ। आप मेरे सारे कार्यों की रक्षा करते हैं। हे नासत्यद्वय! आप हमें अच्छी सुसंतति से युक्त उत्तम धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.117.23]
हे अश्विद्वय ! मैं तुम्हारी दया बुद्धि की विनती करता हूँ। तुम मेरे कार्यों की रक्षा करने वाले हो। हमको संतान से युक्त अनिंद्य धन दे दो।
Hey prudent duo! I always pray for your blessings. You protect all of my endeavours. Hey truthful duo! You grant us excellent progeny and best riches.  
हिरण्यहस्तमश्विना रराणा पुत्रं नरा वध्रिभत्या अदत्तम्। 
त्रिधा ह श्यावमश्विना विकस्तमुज्जीवस ऐरयतं सुदानू
हे दानशील और नेता अश्विनी कुमारों! आपने वभ्रिमती को हिरण्यहस्त नाम का पुत्र प्रदान किया। हे दानशील अश्विनी कुमारों! आपने तीन भागों में विभक्त श्याव ऋषि को जीवित किया।[ऋग्वेद 1.117.24]
हे अश्विद्वय! तुमने वधिमति को हिरण्यहस्त नामक पुत्र प्रदान किया। तुमने तीन टुकड़ों में विभक्त हुए "श्वायु" ऋषि को जोड़कर जीवित कर दिया।
Hey leadership duo inclined to charity! You granted the son named Hiranyhast to Vabhrimati. You made alive Syav-Shravayu Rishi, whose body was cut into three pieces.
एतानि वामश्विना वीर्याणि प्र पूर्व्याण्यायवोऽवोचन्। 
ब्रह्म कृण्वन्तो वृषणा युवभ्यां सुवीरासो विदथमा वदेम
हे अश्विनी कुमारों! आपके इन शौर्य युक्त कार्यों की सभी मनुष्य प्रशंसा करते रहे हैं। हे अभीष्टदातृद्वय! हम भी आपकी स्तुति करके वीर पुत्र आदि से युक्त होकर यज्ञ को पूर्ण करते हैं।[ऋग्वेद 1.117.25]
हे अश्वि देवो! तुम्हारे प्राचीन पराक्रमी कार्यों को पूर्वजों ने कहा। तुम्हारी वदंना करते हुए सुन्दर और पराक्रमी पुत्रादि से परिपूर्ण होकर अनुष्ठान कार्य में लगाते हैं।
Hey Ashwani Kumars! All humans praise all of your deeds added with valour-might. Hey boon granting duo! We too commit ourselves with our mighty sons to your worship & Yagy.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (118) :: ऋषि :- कक्षीवान्, देवता :- अश्विनी कुमार,  छन्द :- पंक्ति, त्रिष्टुप्। 
आ वां रथो अश्विना श्येनपत्वा सुमृळीकः स्ववाँ यात्वर्वाङ्। 
यो मर्त्यस्य मनसो जवीयान्त्रिवन्धुरो वृषणा वातरंहाः॥
हे अश्विनी कुमारों! श्येन पक्षी की तरह शीघ्रगामी, सुखकर और धनयुक्त आपका रथ हमारे सामने आवे। हे अभीष्टवर्षक द्वय! आपका वह रथ मनुष्य के मन की तरह गतिवान् व त्रिबन्धनाधारभूत और वायुवेगी है।[ऋग्वेद 1.118.1]
हे अश्विद्वय! वज्र के तुल्य उड़ने वाला परम समृद्धिवान तुम्हारा रथ यहाँ पधारे। वह रथ पवन के समान गति वाला और अत्यन्त वेगवान है।
Hey Ashwani Kumars! Let your comfortable chariot possessing all amenities & riches come to us like, the Shyen bird. Your chariot is fast moving like the mind-innerself representing the three bonds in the human body. 
Please refer to :: TRIPLE BOND त्रिविधि बन्धन santoshsuvichar.blogspot.com
त्रिवन्धुरेण त्रिवृता रथेन त्रिचक्रेण सुवृता यातमर्वाक्। 
पिन्वतं गा जिन्वतमर्वतो नो वर्धयतमश्विना वीरमस्मे
हे अश्विनी कुमारों! आप तीन पहियों से युक्त तीन बन्धनों वाले त्रिकोणाकृति एवं उत्तम तेज चलने वाले रथ पर आरूढ़ होकर हमारे यहाँ पधारें। आप हमें दुधारू गौवें, तेज गति से चलने वाले अश्व और शूरवीर पुत्र प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.118.2]
 हे अश्विद्वय! तुम तीन काष्ट वाले रथ से यहाँ पर विराजो। हमारी धेनुओं को दूध वाली करो, अश्वों को वेगवान बनाओ और पराक्रमियों की उन्नति करो। 
Hey Ashwani Kumars! Please come to us riding your fast moving chariot with three wheels & axles and trigonal in shape. Please give milch cows, fast running horses and brave sons.
प्रवद्यामना सुवृता रथेन दस्त्राविमं शृणुतं श्लोकमद्रेः। 
किमङ्ग वां प्रत्यवर्ति गमिष्ठाहुर्विप्रासो अश्विना पुराजाः
हे दस्त्रद्वय अश्विनी कुमारों! अपने शीघ्रगामी और शोभनगति रथ द्वारा आकर सेवा परायण स्तोता का यह मंत्र श्रवण करें। क्या पहले के विद्वान् यह नहीं बोले कहे थे कि आप स्तोताओं की दरिद्रता दूर करने के लिए सर्वदा जाते हैं?[ऋग्वेद 1.118.3]
हे अश्विद्वय! उतरते हुए रथ से सोम कूटने का शब्द सुनो, तुम्हें पितर, निर्धनता नष्ट करने वाला कहते हैं।
Hey Ashwani Kumars-duo! Please come in your glorious fast moving chariot and listen to the Strotr-prayer sung by the devotee in your honour. Did not the ancient sages-scholars said that you come to remove the poverty of your worshipers?
आ वां श्येनासो अश्विना वहन्तु रथे युक्तास आशवः पतङ्गाः। 
ये अप्तुरो दिव्यासो न गृध्रा अभि प्रयो नासत्या वहन्ति
हे अश्विनी कुमारों! रथ में योजित, शीघ्रगन्ता, उछलने में बहादुर और श्येन पक्षी की तरह वेग विशिष्ट आपके घोड़े आपको लेकर आवें। हे नासत्य द्वय जल की तरह शीघ्रगति अथवा आकाशचारी गृध्र की तरह शीघ्रगति वे घोड़े आपको हव्यान्न के सामने ले आवें।[ऋग्वेद 1.118.4]
हे अश्वि देवो! तीव्रग्रति वाले अश्वों से युक्त रथ में यहाँ आओ। वे आसमान में विचरते हुए पक्षी की तरह आपको यहाँ लाते हैं। 
Hey Ashwani Kumars! Let your horses which are good at jumping, deployed in the chariot, brave, fast moving like the Shyen bird bring you here. Hey truthful duo! Your horse who moves fast like water and the vultures in the sky, bring you to us with the offerings of food grain. 
आ वां रथं युवतिस्तिष्ठदत्र जुष्टी नरा दुहिता सूर्यस्य। 
परि वामश्वा वपुषः पतङ्गा वयो वहन्त्वरुषा अभीके
हे नेतृ दय! प्रसन्न होकर सूर्य देव की युवा पुत्री (उषा) आपके रथ पर आरुढ़ हुईं। इस रथ में जोते गये लाल रंग के शरीर एवं आकृति से पक्षी के तुल्य आकाश में उड़ने वाले घोड़े आप दोनों को हमारे घर अथवा यज्ञस्थल के समीप ले आवें।[ऋग्वेद 1.118.5]
हे अश्विदेवो! हर्षितादाता सूर्य पुत्री हमारे रथ पर विराजमान थी। उस रथ को आपके सहित पक्षी रूप अरुण रंग के अश्व यहां पर लावें। 
Hey leadership duo! Usha, the daughter of the Sun, appeased with you rode your chariot. Let the horses deployed in the chariot had red colour & had the shape of birds, bring you to either our house or the site of the Yagy.
उद्वन्दनमैरतं दंसनाभिरुद्रेभं दस्त्रा वृषणा शचीभिः। 
निष्टौग्रयं पारयथः समुद्रात्पुनश्र्च्यवानं चक्रथुर्युवानम्
हे कामवर्षि द्वय! अपने कार्य द्वारा आपने बन्दन ऋषि को बचाया। अपने कार्य द्वारा आपने रेभ ऋषि को कुएँ से निकाला। आपने तुग्र पुत्र भुज्यु को समुद्र से पार कराया। च्यवन ऋषि को पुनः युवा बना दिया।[ऋग्वेद 1.118.6]
हे उग्रकर्मा अश्विद्वय! तुमने वंदना का उद्वार किया, रेभ को बचाया। तुम्रपुत्र को सागर से निकाला और च्यवन को युवावस्था दी। 
Hey desire fulfilling duo! You protected Bandan Rishi, recovered Rebh Rishi from the well, moved Bhujyu the son of Tugr across the ocean and granted Youth to Chayvan Rishi.
युवमत्रयेऽवनीताय तप्तमूर्जमोमानमश्विनावधत्तम्।  
युवं कण्वायापिरिप्ताय चक्षुः प्रत्यधत्तं सुष्टुतिं जुजुषाणा
हे अश्विनी कुमारों! आपने रोके हुए अत्रि की प्रदीप्त अग्नि शिक्षा को निवारित किया और उन्हें रस युक्त अन्न प्रदान किया। स्तुति ग्रहण करके आपने अन्धकार में प्रविष्ट कण्व ऋषि को नेत्र प्रदान किया।[ऋग्वेद 1.118.7]
हे अश्विद्वय! तुमने जलाये गये अत्रि को सुख देने वाला जन्म प्रदान किया। कण्व की प्रार्थना स्वीकार कर उनको नेत्र दिये।
Hey Ashwani Kumars! You granted relief to Atri whose hairlock was burnt by fire and fed him with liquid food. You accepted the prayers of Kavy Rishi and restored his eye sight. 
युवं धेनुं शयवे नाधितायापिन्वतमश्विना पूर्व्याय। 
अमुञ्चतं वर्तिकामंहसो निः प्रति जङ्घां विश्पलाया अधत्तम्
हे अश्विनी कुमारों! प्रार्थना करने पर प्राचीन शयु ऋषि की दुग्ध रहिता गौ को आप दोनों ने दुग्धवती किया। आपने वृक रूप पाप से वर्तिका को मुक्त किया। आपने विश्पला की एक टूटी टाँग के स्थान पर लोहे की टाँग लगा दी।[ऋग्वेद 1.118.8]
हे अश्विनो! प्रार्थी "शयु की धेनु" को दूध देने वाली बनाया, "वृत्तिका" का कष्ट दूर किया और "विश्पला" की जांघ ठीक की।
Hey Ashwani Kumars! You made the cow of Shyu Rishi fertile, milk yielding-milch, when he prayed to you. You relieved Vartika from the sin earned by way of Vrak. You fitted the iron leg replacing Vishpla's broken leg.
युवं श्वेतं पदव इन्द्रजूतमाहिहनमश्विनादत्तमश्वम्। 
जोहूत्रमर्यो अभिभूति मुग्रं सहस्त्रां वृषणं वीड्वङ्गम्
हे अश्विनी कुमारों! आपने पेदु राजा को श्वेत वर्ण अश्व दिये। वह अश्व इन्द्र द्वारा गये थे, शत्रुओं का नाश करने वाले और युद्ध में शब्द करने वाले तथा वैरियों का वध करने वाले उग्र और हजारों प्रकार का धन देने वाले थे। जिनका शरीर दृढ़ाङ्ग था और वह तेज थे।[ऋग्वेद 1.118.9]
हे अश्विद्वय! तुमने पेदु को इन्द्रदेव द्वारा प्रेरित, शत्रुनाशक विकराल समृद्धिशाली श्वेत रंग का अश्व प्रदान किया। 
Hey Ashwani Kumars! You gave white coloured horses to king Pedu. These horses given by Dev Raj Indr, were noise producing and the slayer of the enemy. They use to provide thousands of kinds of riches-goods. Their body was strong and they were fast moving.
ता वां नरा स्ववसे सुजाता हवामहे अश्विना नाधमानाः। 
आ न उप वसुमता रथेन गिरो जुषाणा सुविताय यातम्
हे नेतृद्वय शोभन जन्मा अश्विनी कुमारों! हम धन प्राप्त व रक्षा के लिए आपका आवाहन करते हैं। हमारी स्तुति स्वीकार करके आप दोनों धन युक्त रथ पर बैठकर हमें सुख देने के लिए हमारे सम्मुख आवें।[ऋग्वेद 1.118.10]
हे अश्विद्वय! हम अपनी रक्षा के हेतु तुम्हारा आह्वान करते हैं। तुम हमारी प्रार्थनाओं को स्वीकार कर धन से युक्त रथ से हमारे समीप आओ। 
Hey leadership duo, born with glory, Ashwani Kumars! We pray to you for receiving money, wealth and protection from you. Please accept our request-prayers and come to us in the chariot full of money, to give us money, comforts and amenities.
आ श्येनस्य जवसा नूतनेनास्मे यातं नासत्या सजोषाः। 
हवे हि वामश्विना रातहव्यः शश्वत्तमाया उषसो व्युष्टौ
हे नासत्य द्वय! समान प्रीति युक्त होकर श्येन पक्षी के तेज वेग की तरह हमारे निकट पधारें। हे अश्विनीकुमारों! हव्य लेकर नित्य उषा के उदित होते ही हम आपको बुलाते हैं।[ऋग्वेद 1.118.11]
हे अश्विद्वय। तुम बाज की चाल से हमारे समीप आओ। मैं इस उषाकाल में हवि हाथ में लिए तुम्हारा आह्वान करता। 
Hey truthful duo! you should come to us full of affection with fast speed like the Shyen bird. Hey Ashwani Kumars! We invite you in the morning everyday-day break, having offerings for you.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (119) :: ऋषि :- कक्षीवान्, दीर्घतमसा, देवता :- अश्विनी कुमार,  छन्द :- जगती, त्रिष्टुप्।
आ वां रथं पुरुमायं मनोजवं जीराश्वं यज्ञियं जीवसे हुवे। 
सहस्रकेतुं वनिनं शतद्वसुं श्रुष्टीवानं वरिवोधामभि प्रयः
हे अश्विनी कुमारों! जीवन धारण के लिए अन्न के निमित्त मैं आपके रथ का आवाहन करता हूँ। वह रथ बहुविध गति, विशिष्ट मन की तरह चलने वाला, वेगवान् अश्व से युक्त यज्ञ पात्र, सहस्त्र केतु युक्त, शतधन युक्त, सुखकर और धन प्रदान करने वाला है।[ऋग्वेद 1.119.1]
हे अश्विद्वय मैं जीवन धारण के लिए तुम्हारे मतिवान, वेगवान श्रेष्ठ अश्व वाले, युज्क, ध्वजा परिपूर्ण, सम्पत्ति से परिपूण रथ को हवियों की तरफ आकृष्ट करता हूँ।
Hey Ashwani Kumars! I invite-call your chariot for receiving food grains to survive. That chariot is capable of moving with different speed and can be operated just by thinking of the destination. The chariot is driven by fast moving horses, has the pot for performing Yagy, carries various kinds of wealth & is comfortable.
ऊर्ध्वा धीतिः प्रत्यस्य प्रयामन्यधायि शस्मन्त्समयन्त आ दिशः। 
स्वदामि धर्म प्रति यन्त्यूतय आ वामूर्जानी रथमश्विनारुहत्
उस रथ के गमन करने पर अश्विनी कुमारों की प्रशंसा में हमारी बुद्धि ऊपर उठ जाती है। हमारी स्तुतियाँ अश्विनी कुमारों को प्राप्त होती है। मैं हव्य को स्वादिष्ट करता हूँ। सहायक ऋत्विक लोग आते हैं। हे अश्विनी कमारों! सूर्य पुत्री उषा आपके रथ पर बैठी हैं।[ऋग्वेद 1.119.2]
इस रथ के चलने पर हम ऊपर देखते हैं। सभी ओर से वंदनाएँ इकट्ठी होती हैं। मैं यज्ञ हवि को सुस्वादु बनाता हूँ। ऋत्विज उसकी ओर जाते हैं। हे अश्विद्वय! तुम्हारे रथ पर सूर्य की पुत्री आरूढ़ है। 
When this chariot moves we look-stare up. We make prayers in the honour of Ashwani Kumars. I make the offerings tasty. Assistant priests are coming to accomplish the Yagy, in your presence. Usha, the daughter of Sun is accompanying you.
सं यन्मिथः पस्पृधानासो अग्मत शुभे मखा अमिता जायवो रणे। 
युवोरह प्रवणे चेकिते रथो यदश्विना वहथः सूरिमा वरम्
जिस समय यज्ञ परायण असंख्य जयशील मनुष्य युद्ध में धन के लिए परस्पर युद्ध करने के लिए एकत्रित होते हैं, हे अश्विनी कुमारों! उस समय आपका रथ पृथ्वी पर आता हुआ प्रतीत होता है। उसी रथ पर बैठकर आप लोग अपने याजकों के लिए श्रेष्ठ धन लावें।[ऋग्वेद 1.119.3]
हे अश्विदेवो! परस्पर ईर्ष्यालु परन्तु हर्षितोचित वाले पराक्रमी वीर द्वारा कीर्ति प्राप्ति के लिए संगठित होते हैं। तब तुम्हारा रथ नीचे उतरता जाना जाता है। उसी से तुम वंदना करने वाले पराक्रमी के लिए वरणीय धनों को लाते हो।
When hundreds of devotees quarrel-fight for money, your chariot appears to be landing over the earth. You bring money in that chariot for those devotees who desire it. 
युवं भुज्यं भुरमाणं विभिर्गतं स्वयुक्तिभिर्निवहन्ता पितृभ्य आ।
यासिष्टं वर्तिर्वृषणा विजेन्यं दिवोदासाय महि चेति वामवः
हे अभीष्ट वर्षक द्वय! पक्षियों के सदृश आकाश में उड़ने वाले वाहन द्वारा आपने तुग्र पुत्रः भुज्यु को उसके माता-पिता पास पहुँचाया। दिवोदास को भी आप दोनों का सहयोग और संरक्षण प्राप्त हुआ।[ऋग्वेद 1.119.4]
हे अश्विदेवो! समुद्र की लहरों में समाकर नष्ट प्राय हुए भज्यु को तुमने स्वयं जुड़ने वाले अश्वों द्वारा ले जाकर उसके भवन पहुँचाया। दिवोदास को जो आपने रक्षा की, वह प्रसिद्ध ही है।
Hey desire accomplishing duo! You carried Bhujyu, the son of Tugr in the vehicle which flew like birds, to his parents. Divo Das too obtained your protection-shelter. 
युवोरश्विना वपुषे युवायुजं रथं वाणी येमतुरस्य शर्ध्यम्। 
आ वां पतित्वं सख्याय जग्मुषी योषावृणीत जेन्या युवां पती
हे अश्विनी कुमारों! आपके प्रशंसनीय दोनों घोड़े आपके संयोजित रथ को उसकी सीमा सूर्य तक समस्त देवताओं के पहले ले गये। कुमारी उषा ने इस प्रकार विजित होकर मैत्री भाव के कारण, "आप दोनों मेरे पति हो" यह कहकर आपको पति बना लिया।[ऋग्वेद 1.119.5]
हे अश्विद्वय तुम्हारे सुन्दर घोड़ों ने स्वयं जुतकर शोभित रथ को उचित स्थान पर पहुँचाया। सूर्य ने सखा भाव के लिए पधारकर "तुम मेरे परमेश्वर हो" कहकर तुम्हें वरण किया।
Hey Ashwani Kumars! Your appreciable horses take your chariot to Sun & the demigods-deities. Goddess Usha, pleased with your friendly behaviour accepted both of you as her husband.
युवं रेभं परिषूतेरुरुष्यथो हिमेन धर्मं परितप्तमत्रये। 
युवं शयोरवसं पिप्यथुर्गवि प्र दीर्घेण वन्दनस्तार्यायुषा
आपने रेभ ऋषि को चारों ओर के उपद्रवों से बचाया आपने अत्रि ऋषि के लिए हिम द्वारा अग्नि को शान्त किया। आपने शयु की गौ को दुग्धवती बनाया तथा आपने बन्दन ऋषि को दीर्घ आयु प्रदत्त की।[ऋग्वेद 1.119.6]
हे अश्विद्वय! तुमने रेभ की रक्षा की। अत्रि के लिए अग्नि को ठंडे जल से शांत किया। शत्रु की गाय को पर्याश्विनी बनाया और वंदन दीर्घ आयु प्रदान की।
You saved-protected Rebh Rishi from disturbances-nuisance and calmed down fire with ice, for Atri Rishi. You made the cow of Shyu milch & granted long life to Bandan Rishi.
युवं वन्दनं निर्ऋतं जरण्यया रथं न दस्रा करणा समिन्वथः। 
क्षेत्रादा विप्रं जनथो विपन्यया प्र वामत्र विधते दंसना भुवत्
जिस प्रकार से पुराने रथ को शिल्पी नया कर देता हैं, हे निपुण दस्त्रद्वय! उसी प्रकार आपने भी अति वृद्ध वन्दन ऋषि को पुनः युवा बना दिया। गर्भ में स्थित वामदेव द्वारा आपकी प्रार्थना करने पर आप दोनों उन मेधावी को गर्भ से पृथ्वी लोक में ले आये। आपका सहयोग ही मनुष्यों की सुरक्षा करता है।[ऋग्वेद 1.119.7]
हे अश्विद्वय! तुमने अपनी कुशलता से वन्दन के जीर्ण हुए शरीर रथ समान ठीक किया। वंदनाओं से हर्षित हुए तुम गर्भस्थ शिशु को भी मेधावी बनाते हो। तुम्हारा कार्य यजमान की सुरक्षा करना है।  
The way a mechanic overhaul the vehicle-chariot, you made Vandan Rishi young again (You brought his youth back). Vam Dev prayed to you while in the womb. You led his birth and brought to the earth. Its you who's cooperation protects the humans. 
अगच्छतं कृपमाणं परावति पितुः स्वस्य त्यजसा निबाधितम्। 
स्वर्वतीरित ऊतीर्युवोरह चित्रा अभीके अभवन्नभिष्टयः
भुज्यु के पिता तुम्र ने उनका परित्याग कर दिया। भुज्यु ने दूसरे देश में कष्ट पाने पर आप दोनों की कृपा के लिए प्रार्थना की। आप उनके पास गये। आपका यह रक्षण कार्य अत्यधिक अद्भुत व प्रशंसा के योग्य है।[ऋग्वेद 1.119.8]
हे अश्वि देवो! दूर देश में रुदन करते हुए भज्यु के समीप तुम गये। तुम्हारी अलौकिक रक्षाओं ने वह आश्चर्य चकित कार्य किया। 
Bhujyu's father Tugr disowned him. Bhujyu prayed to you when he faced trouble in other country. You went to him and helped him. Your amazing deeds of sheltering Bhujyu deserve appreciation.
उत स्या वां मधुमन्मक्षिकारपन्मदे सोमस्यौशिजो हुवन्यति। 
युवं दधीचो मन आ विवासथोऽथा शिरः प्रति वामध्यं वदत्
जिस प्रकार मधुमक्खी मधुर स्वर में गुंजन करती हैं, उसी प्रकार सोमरस पान की प्रसन्नता में उशिक् के पुत्र कक्षीवान् आपको बुलाते हैं। आपने जब दधीचि ऋषि का मन प्रसन्न किया, तब उनके अश्व मस्तक ने आपको मधुविद्या प्रदान की।[ऋग्वेद 1.119.9]
गायत्री में सन्निहित मधु विद्या का उपनिषदों में वर्णन इस प्रकार है :-
तत्सवितुर्वरेण्यम्। मथुवाता ऋतायते मधक्षरन्ति सिन्धवः। माध्वीनः सन्त्वोषधीः। भू स्वाहा भगदेवस्य धीमहि मधुनक्त मतोषसो मधुमत्यार्थिव रजः॥
मधुयोररस्तु नः पिता भुवः स्वाहा थियो योनः प्रचोदयात्। 
मधु मान्नो वनस्पतिमधू मा अस्तु सूर्य माध्वीर्गावो नः स्वः स्वाहा। 
सवांव मदुमती रहभेवेद संभूर्भूव स्वः स्वाहा॥
तत्सवितुर्वरेण्यं :- मधु वायु चले, नदी और समुद्र रसमय होकर रहें। औषधियाँ हमारे लिए सुखदायक हों।
भगदेवस्य धीमहि :- रात्रि और दिन हमारे लिए सुखकारी हों, पृथ्वी की रज हमारे लिये मंगलमय हो दयुलोक हमें सुख प्रदान करें।
यो योनः प्रचोदयात् :- वनस्पतियाँ हमारे लिए रसमयी हो। सूर्य हमारे लिये सुखप्रद हो उसकी रश्मियों हमारे लिए कल्याणकारी हो। सब हमारे लिए हों में सबके लिये मधुर बन जाऊँ।
Please refer to :: मधु विद्या santoshhindukosh.blogspot.com
इस मधुर मक्षिका ने मीठी वाणी से तुम्हारी वंदना की। कक्षीवान ने सोम रस के आनन्द में तुम्हें पुकारा। तुमने दध्य हृदय को आकृष्ट करके उस पर रखे अश्व सिर में मधु विद्या की शिक्षा ली है। 
The way the honey bee buzz in sweet sound, the son of Ushik, Kakshiwan call for enjoying Somras. when we pleased the innerself of Dadhichi Rishi, he granted you Madhu Vidya with his mouth which was that of a horse.
युवं पेदवे पुरुवारमश्विना स्पृधां श्वेतं तरुतारं दुवस्यथः।
शर्यैरभिद्यं पृतनासु दुष्टरं चर्कृत्यमिन्द्रमिव चर्षणीसहम्
हे अश्विनी कुमारों! आपने पेदु राजा को शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने वाले शुभ्रवर्ण अश्व प्रदान किये। वह अश्व युद्ध में रत, दीप्तिमान् युद्ध में पराजित न होने वाले, समस्त कार्यों को पूर्ण करने वाले और इन्द्रदेव की तरह मनुष्यों पर विजय प्राप्त करने वाले थे।[ऋग्वेद 1.119.10]
हे अश्विदेवो! तुमने पेटु के लिए युद्ध विजेता, कुशल, अनेकों द्वारा इच्छित शत्रुओं को वशीभूत करने में इन्द्रदेव समान श्वेत वर्ण का अश्व प्रदान किया।
Hey Ashwani Kumars! You awarded white coloured horses to king Pedu, which helped in his victory. These horses were skilled in warfare, undefeated, able to accomplish all endeavours and helping hands to humans like Indr Dev.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (120) :: ऋषि :- उशिवपुत्र, कक्षीवान्, दीर्घतमसा, देवता :- अश्विनी कुमार,  छन्द :- गायत्री, उष्णिक, अनुष्टुप।
का राधद्धोत्राश्विना वां को वां जोष उभयोः। 
कथा विधात्यप्रचेताः
हे अश्विनी कुमारो! कौन-सी स्तुति आपको प्रसन्न कर सकती? आप दोनों को कौन परितुष्ट कर सकता है? एक अज्ञानी जीव आपकी सेवा कैसे कर सकता है?[ऋग्वेद 1.120.1]
हे अश्विदेवों! तुम किस प्रार्थना को चाहते हो? तुम्हें कौन प्रसन्न कर सकता है? एक अज्ञानी व्यक्ति तुम्हारी साधना किस प्रकार से करें? 
Hey Ashwani Kumars! Which prayer can satisfy you!? How can an ignorant serve-pray to you?!
विद्वांसाविद्दुरः पृच्छेदविद्वानित्थापरो अचेताः। 
नू चिन्नु मर्ते अक्रौ
अनभिज्ञ प्राणी इस प्रकार उन दोनों सर्वज्ञों की परिचर्या के उपायभूत मार्ग की जिज्ञासा करता है। अश्विनीकुमारों के सिवा सभी अज्ञ हैं। शत्रुओं द्वारा जिन पर आक्रमण नहीं हो सकता; ऐसे दोनों अश्विनी कुमार शीघ्र ही मनुष्यों पर कृपा करते हैं।[ऋग्वेद 1.120.2]
अज्ञानी व्यक्ति इन विद्वानों से ही वंदना और उपासना के तरीकों का ज्ञान ग्रहण करें। इन अश्विनी कुमारों के तुल्य सभी अज्ञानी हैं। मनुष्यों पर वे शीघ्र कृपा दृष्टि करते हैं।
The ignorant should learn the methods-procedures of worship from them. As compared to Ashwani Kumars all beings are ignorant. Ashwani Kumars who can not be attacked by the enemy, should take pity over the humans.
ता विद्वांसा हवामहे वां ता नो विद्वांसा मन्म वोचेतमद्य। 
प्रार्चद्दयमानो युवाकुः
हे सर्वज्ञ द्वय! हम आपका आह्वान करते हैं। आप अभिज्ञ हैं, हमें मननीय स्तोत्र बतायें। उन्हीं से मैं आपकी कामना करते हुए हव्य प्रदान करके प्रार्थना करता हूँ।[ऋग्वेद 1.120.3]
हे अश्विद्वय! हम महापुरुषों का ही आह्वान करते हैं। हमको प्रार्थना योग्य मंत्र बताये। तुमको हवि प्रदान करने वाला मैं अत्यन्त भक्ति से प्रणाम करता हूँ।
Hey enlightened duo! We invite-welcome you. Please yield-disclose the Mantr for your worship-prayers. I make offerings in your honour. 
वि पृच्छामि पाक्या न देवान्वषट्कृतस्याद्भुतस्य दस्रा। 
पातं च सह्यसो युवं च रभ्यसो नः
मैं आपकी ही जिज्ञासा करता हूँ, अपनी परिपक्व बुद्धि से जिज्ञासा नहीं करता। हे दस्त्रद्वय! "वषट्" शब्द के साथ अग्नि में प्रदत्त अद्भुत और पुष्टिकर सोमरस का पान करें और हमें सामर्थ्य युक्त बल प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.120.4]
हे अश्विद्वय! मै शिशु के समान देवगण के यज्ञ के सम्बन्ध में जानना चाहता हूँ। अधिक शक्तिशाली और भयंकर प्राणी से हमारी रक्षा करो।
I am curious about you. I wish to know more about you as an infant. Hey Ashwani Kumars! Let us make offerings in Agni-fire, offer you Somras. Kindly grant us capability, strength & protect us from the dangerous animals..
प्र या घोषे भृगवाणे न शोभे यया वाचा यजति पज्रियो वाम्। 
प्रैषयुर्न विद्वान्
आपकी जो स्तुति घोषा पुत्र सुहस्ति और भृगु द्वारा उच्चारित होकर सुशोभित हुई थी, उसी स्तुति द्वारा वज्र वंशीय ऋषि में कक्षीवान् आपकी अर्चना करता हूँ। इसलिए मैं स्तुतिज्ञ अन्न की प्राप्ति में सफल हो सकूँ।[ऋग्वेद 1.120.5]
तुम्हारी वंदना रूपी वाणी भृगु के तुल्य व्यवहार के वाले घोषा के पुत्र में सुशोभित हुई, जिसके द्वारा पज्रिवंशी तुम्हारा पूजन करता हूँ।
Your prayers recited by Suhasti the son of Ghosha & Bhragu got appreciation. I Kakshivan, of Vajr clan sing the same prayer. It gave me the food grains meant for offerings. 
श्रुतं गायत्रं तकरींनस्याहं चिद्धि रिरेभाश्विना वाम्। 
आक्षी शुभस्पती दन्
हे शोभनीय कर्मों के प्रतिपालक! गति रहित ऋषि अर्थात् अन्ध ऋजाश्च की स्तुति श्रवण करें। उसने मेरे सदृश स्तुति करके दोनों नेत्र प्राप्त किये। इसी प्रकार मेरा मनोरथ भी पूर्ण करें।[ऋग्वेद 1.120.6] 
यह वाणी अत्यन्त ज्ञान से भरी हुई हो। हे अश्विदेवो! तुम मेरी एक प्रार्थना श्रवण करो। मैंने तुम्हारी ही प्रार्थना की है। तुम अंधों को आँखें प्रदान करते हो, मेरी भी मनोकामना पूरी करो। 
Hey the patron of all deeds, endeavours, ventures, this prayer constitutes of enlightenment. Blind Rajashrv got his eyes by singing-reciting this prayer. Let my desires be fulfilled by this means.
युवं ह्यास्तं महो रन्युवं वा यन्निरततंसतम्। 
ता नो वसू सुगोपा स्यातं पातं नो वृकादघायोः
हे गृहदातृ द्रय! आपने महान् धनदान किया है और उसे फिर लुप्त कर दिया। आप दोनों हमारे श्रेष्ठ रक्षक बनें। पापी भेड़िये और चोरों से से हमारी रक्षा करें।[ऋग्वेद 1.120.7]
हे अश्विद्वय! तुम विशाल धन देते हो। हमारी रक्षा करो और पाप कर्म वाले चोरों से हमको बचाओ।
Hey house providing duo! You provided unlimited wealth to us. Let you become our protector. Please save us from wolfs and the thieves.
मा कस्मै धातमभ्यमित्रिणे नो माकुत्रा नो गृहेभ्यो धेनवो गुः।
स्तनाभुजो अशिश्वीः
किसी भी शत्रु के सामने पराजित न हों। हमारे घर से दुग्ध वती गायें, बछड़ों से अलग होकर, किसी अगम स्थान को न चली जायें।[ऋग्वेद 1.120.8]
हे अश्विदेवो! तुम हमको शत्रु से पराजित न कराओ। हमारी दूध वाली धेनुएँ बछड़े से न बिछड़े तथा अन्य स्थान को ग्रहण न हो।
Please ensure that we are not defeated by any enemy. Our milk yielding milk should not move to deserted-lonely places out of our reach, leaving behind the calf.  
दुहीयन्मित्रधितये युवाकु राये च नो मिमीतं वाजवत्यै।
इषे च नो मिमीतं धेनुमत्यै
जो आपको लक्ष्य कर आपकी स्तुति करता है, वह मित्रों की रक्षा के लिए धन प्राप्त करता है। हमें अन्न युक्त धन व गौ प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.120.9]
हे अश्विद्वय! तुम्हारे आराधक मित्रों के लाभार्थ तुमसे विनती करें। तुम हमें शक्ति और धनों से परिपूर्ण करो। 
Any one who recite this prayer to you, receives wealth for the protection of his friends & relatives. Grant us cows and wealth along with food grains.
अश्विनोरसनं रथमनश्वं वाजिनीवतोः।
तेनाहं भूरि चाकन
मैंने अन्न देने वाले अश्विनी कुमारों का अश्व रहित, परन्तु गमन समर्थ, रथ प्राप्त कर लिया। उसके द्वारा मैं अनेक प्रकार के लाभ प्राप्त करने की कामना करता हूँ।[ऋग्वेद 1.120.10]
I have attained the chariot of food granting Ashwani Kumars, which is without the horses, but is capable of moving. I desire of receiving various gains by means of that.
गौओं और अन्नों की प्राप्ति की शक्ति दो। मैंने अश्विनी कुमारों से बिना अश्वों के चलने वाले रथ को अनाज के साथ प्राप्त किया है। 
अयं समह मा तनूह्याते जनाँ अनु। 
सोमपेयं सुखो रथः
हे धनपूर्ण रथ! मैं सामने ही हूँ। मुझे समृद्ध करें। उस सुखकर रथ पर आरूढ़ होकर अश्विनी कुमार स्तोताओं के सोमपान करने के लिए याज्ञिक जनों के पास जाते हैं।[ऋग्वेद 1.120.11] 
मैं उसके द्वारा श्रेष्ठ ऐश्वर्य प्राप्ति की आशा करता हूँ। हे धनयुक्त रथ! मुझे बढ़ा। यह सुखकारी रथ सोम रस पीने योग्य स्थानों में पहुंचकर मनुष्यों को प्राप्त होता है। 
Hey chariot full of amenities, I am before you, please enrich me. Ashwani Kumars ride that chariot to move to the devotees-hosts performing Yagy and drink Somras.
अघ स्वप्नस्य निर्विदेऽभुञ्जतश्च रेवतः। 
उभा ता बस्त्रि नश्यतः
मैं प्रातः काल के स्वप्न से घृणा करता हूँ और जो धनी दूसरे का प्रतिपालन नहीं करता, उसे भी घणित समझता हूँ। ये दोनों ही शीघ्र नाश को प्राप्त होते हैं।[ऋग्वेद 1.120.12]
प्रातः कालीन स्वप्न और सम्पदा का उपभोग न करने वाले धनिक दोनों ही प्रकार से उपेक्षा के पात्र हैं। ये शीघ्र ही नष्ट हो जाते हैं।
I hate those who discard the dreams in the morning at the time of waking up and the rich who do not care for others. Such people are bound to perish quickly.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (121) :: ऋषि :- औशिज, कक्षीवान्, देवता :- विश्वेदेवा,   इन्द्र, छन्द :- पंक्ति, त्रिष्टुप्।
कदित्या नृँ: पात्रं देवयतां श्रवग्दिरो अङ्गिरसां तुरण्यन्। 
प्र यदानड्विश आ हर्म्यस्योरु क्रंसते अध्वरे यजत्रः॥
मनुष्यों के पालन कर्ता और गौरूप धन के दाता इन्द्र देव कब देवाभिलाषी अङ्गिरा लोगों की स्तुति श्रवण करेंगे? जिस समय वे गृहपति यजमान के ऋत्विकों को सामने देखते हैं, उस समय वे यज्ञ में यजनीय होकर प्रभूत उत्साह से कामनाओं को पूर्ण करते हैं।[ऋग्वेद 1.121.1]
मनुष्यों के रक्षक इन्द्रदेव भक्त अंगिराओं की वंदना कब सुनेंगे? ये जब गृहस्थ यजमान के सभी यज्ञकर्त्ताओं को अपने सभी तरफ देखोगे तब अत्यन्त उत्साह पूर्वक जल्दी से प्रकट होंगे।
When will the protector and nurture of humans, Indr Dev listen-respond to the prayers of the Angiras? When he observe the priests busy with the Yagy for the household-host, he accomplish their desires with great zeal.
स्तम्भीद्ध द्यां स धरुणं प्रुषायदृभुर्वाजाय द्रविणं नरो गोः। 
अनु स्वजां महिषश्चक्षत व्रां मेनामश्वस्य परि मातरं गोः॥
उन्होंने स्थिररूप से आकाश को धारित किया। वे असुरों द्वारा अपहृत गायों के नेता हैं। वे विस्तीर्ण प्रभा से युक्त होकर सारे प्राणियों के द्वारा सेवनीय हैं और खाद्य के लिए जीवन धारक वृष्टिजल की वर्षा करते हैं। महान् सूर्यरूप इन्द्रदेव अपनी पुत्री उषा के पञ्चात् उदित होते हैं। उन्होंने घोड़ी से गायें उत्पन्न की।[ऋग्वेद 1.121.2]
बुद्धिमान वीर पुरुष ने आकाश को ग्रहण किया। अन्न के लिए धेनुओं को पुष्ट किया और धन के लिए धरती को सींचा। उन्होंने अपनी श्रेष्ठता से उत्पन्न प्रजाओं पर दया की। अश्व-घोड़ा (सूर्य) की नारी को धरती माता बनाया। उषाओं के स्वामी इन्द्र अंगिराओं के आह्वान पर नित्य जाते थे।
He supports-stabilize the sky. He nourished the earth (as a cow) for yielding the food grains. He resort to rainfall for irrigating the soil for producing food grains. He adopts the form of horse to support earth as cow. He rises in the morning as Sun with his daughter Usha.
Here Dev Raj Indr represents Bhagwan Shri Hari Vishnu, since the God is addressed as Indr else where.
Dev raj Indr is a prime-supreme form of Bhagwan Shri Hari Vishnu.
नक्षद्धवमरुणी: पूर्व्यं राट् तुरो विशामङ्गिरसामनु द्यून्। 
तक्षद्वज्रं नियुतं तस्तम्भद्द्यां  चतुष्पदे नर्याय द्विपादे॥
वे अरुण वर्ण उषा को रंजित करके हमारा उच्चारित पुरातन मंत्र श्रवण करें। वे प्रतिदिन अङ्गिरा गोत्र वालों को अन्न प्रदान करें। उन्होंने हननशील वज्र बनाया। वे मनुष्यों, चतुष्पदों और द्विपदों के हित के लिए, दृढ़ रूप से आकाश को धारित करते हैं।[ऋग्वेद 1.121.3]
उन्होंने शोषणशील वज्र निर्मित किया और दुपाये, चौपाये के लिए क्षितिज को धारण किया।
Let the bright yellow coloured (Dev Raj Indr) amuse Usha and listen to the ancient Mantr recited by us. Let him provide food grains to the descendents of Angira clan. He made the Vajr, a destroyer-weapon. He bears-holds the horizon-sky for the sake of the humans, two & four legged animals.
अस्य मदे स्वर्यं दा ऋतायापीवृतमुस्त्रियाणामनीकम्। 
यद्ध प्रसर्गे त्रिककुम्निवर्तदप द्रुहो मानुषस्य दुरो वः
इस सोमपान से प्रसन्न होकर आपने स्तुतिपात्र और पणि द्वारा छिपाई हुई गौओं को यज्ञ के लिए दान किया। जिस समय त्रिलोक श्रेष्ठ इन्द्र देव युद्ध में रत होते हैं, उस समय वे मनुष्यों के क्लेशदाता पणि असुर का द्वार गौओं के निकलने के लिए खोल देते हैं।[ऋग्वेद 1.121.4]
हे इन्द्रदेव! तुमने इस सोम से संतुष्ट होकर धेनुओं का संगठन सचमुच दान किया। जब तुम्हारा त्रिकोण वज्र शत्रुओं का हनन करता है तब, मनुष्यों को कष्ट देने वाले पणि के दरवाजों को धेनुओं को निकलने के लिए खोल देता है।
On being happy with the offering-drinking of Somras, you opened the gates of Pani-a demon, who had hidden the cows, for those who were praying to you (for donation to Brahman, priests). When Indr Dev is busy in a war, his Vajr, opens the gates of the demon Pani, so that the cows move out of his prison-holding.
तुभ्यं पयो यत्पितरावनीतां राधः सुरेतस्तुरणे भुरण्यू।
शुचि यत्ते रेक्ण आयजन्त सबदुघायाः पय उस्त्रियायाः॥
क्षित्रकारी आपके लिए संसार के पालक पिता द्यौ और माता पृथ्वी समृद्धिशाली और उत्पादन शक्ति युक्त दुग्ध लावें। जिस समय उन्होंने दुग्धवती गौओं का विशुद्ध दुग्ध आपके सामने रखा था, उस समय आपने पणि के द्वार को खोल दिया।[ऋग्वेद 1.121.5]
जल्दी कार्य करने वाले इन के लिए माता-पिता, धरती और आकाश उत्पादन शक्ति से युक्त बलशाली दूध लाए थे। उस समय अमृत रूपी दूध वाली धेनु का दूध रूप धन तुमको प्रस्तुत किया था।
Let the worshippers bring milk for you which provide strength, prosperity, affluence to you; being the nurturer of the heavens & the earth. When they served you, the cows pure milk, you opened the gates of Pani withholding the cows, after abducting them.
अध प्र जज्ञे तरणिर्ममत्तु प्र रोच्यस्या उषसो न सूरः।
इन्दुर्येभिराष्ट्र स्वेदुहव्यैः स्रुवेण सिञ्चञ्जरणाभि धाम॥
इस समय इन्द्रदेव प्रकट होकर उषा के समीप में विद्यमान सूर्य की तरह दीप्तिमान् हुए हैं। उत्तम मधुर पदार्थों की हवि प्रदत्त करने वाले यजमानों द्वारा देवराज इन्द्र के लिये यज्ञस्थल पर स्रुव द्वारा सोमरस प्रदत्त किया जाता है। इस प्रकार के सोमरस से अभिषिंचित होकर वे आनन्दित होते हैं।[ऋग्वेद 1.121.6]
तब द्रुतगामी सूर्य रूप इन्द्रदेव उषा के निकट दीप्तिमय हुए। यह शत्रु विजयी हमको हर्षित करें। जैसे दमकती हुई हवियों से स्रुवा के द्वारा सिंचन करता हुआ सोम साधकों के मनों को ग्रहण होता है।
At present Indr Dev has appeared and is seen with Usha. Those hosts who make offerings with the best goods, provide Somras to Indr Dev with Struv-a wooden spoon, at the Yagy site. Dev Raj Indr is amused by drinking Somras.
स्विध्मा यद्वनधितिरपस्यात्सूरो अध्वरे परि रोधना गोः। 
यद्ध प्रभासि कृत्व्याँ अनु द्यूननर्विशे पश्विषे तुराय॥
जिस समय सूर्य किरण द्वारा प्रकाशित मेघमाला जल वर्षण करने के लिए तत्पर होती है, उस समय प्रेरक इन्द्रदेव यज्ञ के लिए वर्षा के आवरण का निवारण करते हैं। हे इन्द्रदेव जिस समय आप सूर्य रूप से कर्म के दिन में किरण प्रदान करते हैं, उस समय गाड़ीवान, पशुओं की रक्षा करने वाले और गतिशील पुरुष अपने-अपने कार्यों को पूर्ण करते हैं।[ऋग्वेद 1.121.7]
हे इन्द्रदेव! महापुरुषों के यज्ञ में इंद्रियों को निग्रह करने वाला तेज चमकता है। गाड़ीवान् पशुओं की रक्षा करने वाले और तीव्रता से कार्य करने वाले सभी मनुष्य अपने कर्मों को करते हैं। वह तुम्हारे किरण दान का ही प्रतिफल है।
When the clouds are ready for showering by the inspiration of the rays of Sun, you prepare a protective shield for the Yagy. When you appear as Sun, the cart drivers, animal protectors and the dynamic-great people complete-accomplish their jobs. 
अष्टा महो दिव आदो हरी इह द्युम्राम्ना  साहमभि योधान उत्सम्।  
हरिं यत्ते मन्दिनं दुक्षन्वृधे गोरभसमद्रिभिर्वाताप्यम्
जिस समय ऋत्विक् लोग आपके वर्द्धन के लिए मनोहर, प्रसन्नकर, बलदायक और आपके उपभोग्य सोम को पत्थरों द्वारा कूटकर रस निकालते हैं, उस समय हर्षदायक सोमरस के उपभोक्ता अपने हरि नाम के दोनों घोड़ों को दस्त्रयज्ञ में सोमपान करावें। आप युद्ध निपुण हैं। हमारे धन हरण करने वाले शत्रुओं का नाश करें।[ऋग्वेद 1.121.8]
हे इन्द्रदेव! दीप्ति के छिपाने वाले कूप का खंडन करने के लिए तुम व्यापक क्षितिज से आठ अश्वों को लाये। उसी समय साधकों ने तुम्हारे लिए दूध में भीगे हुए सोम रस को पाषाणों से कूटा।
Let the devotees-hosts conducting the Dastr Yagy, smash Som with stones, extract Somras which grants happiness, strength and serve it to your horses named Hari. You are an expert in war fare. Crush those who abduct-snatch, loot our money-wealth. 
त्वमायसं प्रति वर्तयो गोर्दिवो अश्मानमुपनीतमृभ्वा। 
कुत्साय यत्र पुरुहूत वन्वज्छुष्णमनन्तैः परियासि वधैः॥
हे बहुलोक पूजापात्र इन्द्रदेव! आपने ऋभु द्वारा आकाश से लाये गये शीघ्रगामी और लौहमय वज्र को तीव्र गति से शुष्ण असुर की ओर फेंका, उस समय आप कुत्स ऋषि की रक्षा के लिए शुष्ण को चारों ओर से घेरकर अनेकानेक हननशील अस्त्रों द्वारा मार रहे थे।[ऋग्वेद 1.121.9]
अनेकों द्वारा आहूत इन्द्र ने त्वष्टा द्वारा प्रयुक्त लौह वज्र को चर्म द्वारा आकाश से फेंका। उस समय शुष्ण को अस्त्रों से घेरकर कुत्स की रक्षा की। (वज्र को फेंकते समय चमड़े के दस्ताने पहन लिये जाते हैं।) 
Hey prayer deserving in various abodes-Loks, Indr Dev! You launched the Iron Vajr brought by Ribhu through the sky, over the demon called Shushn and protected Kuts Rishi, by surrounding the demon Shushn from all sides-directions, with various Astr-Shastr (weapons) capable of killing-destroying the target.
पुरा यत्सूरस्तमसो अपीतेस्तमद्रिवः फलिगं हेतिमस्य। 
शुष्णस्य चित्परिहितं यदोजो दिवस्परि सुग्रथितं तदादः॥
हे वज्रधारिन्! जिस समय सूर्य अन्धकार के साथ संग्राम से मुक्त हुए, उस समय आपने उनके मेघ रूप शत्रु का विनाश कर दिया। उस शुष्ण का जो बल सूर्य को आच्छादित किए हुए था और सूर्य को ग्रसित किये हुए था, उसे आपने नष्ट कर दिया।[ऋग्वेद 1.121.10]
हे वज्रिन! सूर्य के अधकार में विलीन होने से पहले ही वृत्र की ओर वज्र छोड़ो। क्षितिज के ऊपर शुष्ण (अनावृष्टि रूपी दैत्य) की जो अमोघ शक्ति है, उसे भेद डालो। 
Hey Vajr holder Dev Raj Indr! You destroyed the enemy in the form of clouds, when the Sun came out of darkness. The power-cast of Shushn, which had engulfed the Sun was destroyed by you. 
अनु त्वा मही पाजसी अचक्रे द्यावाक्षामा मदतामिन्द्र कर्मन्। 
त्वं वृत्रमाशयानं सिरासु महो वज्रेण सिष्वपो वराहुम्॥
हे इन्द्रदेव! महान् बली और सर्वव्यापक द्युलोक और भूलोक ने वृत्रासुर के वध में आपको उत्साहित किया। आपने उस सर्वत्र व्यापक और श्रेष्ठ हारयुक्त वृत्रासुर को अपने महान् वज्र से गहरे जल में फेंक दिया।[ऋग्वेद 1.121.11]
हे इन्द्रदेव! श्रेष्ठ क्षितिज और धरा तुम्हारे वृत्र-वध कर्म से अत्यन्त पुष्ट हुए हैं। तुमने उस वाराह के तुल्य वृत्र को अपने घोर वृण से समाप्त जलाशायी कर दिया।
Hey Indr Dev! Most powerful, all pervading heavens and the earth inspired-encouraged you to kill-eliminate Vrata Sur, a demon. You throw the excellent necklac wearing Vrata Sur who had pervaded all directions, with your great Vajr. 
The demons were experts in casting spell over all living beings. In Hindi it is called मायाजाल-Maya Jal, मरीचिका-Marichika. 
त्वमिन्द्र नर्यो याँ अवो नॄन्तिष्ठा वातस्य सुयुजो वहिष्ठान्। 
यं ते काव्य उशना मन्दिनं दावृत्रहणं पार्यं ततक्ष वज्रम्॥
हे इन्द्रदेव! आप मनुष्यों के मित्र है। आप जिन अश्वों की रक्षा करते हैं, उन वायुतुल्य शोभन और वाहक अश्वों पर विराजें। कवि के पुत्र उना ने जो हर्षदायक वज्र आपको दिया था, आपने उसी वृत्रध्वंसक और शत्रुनाशक वज्र को तीक्ष्ण बनाया।[ऋग्वेद 1.121.12]
हे इन्द्रदेव! तुम जिन प्राणियों का हित करने वाले अश्वों का पालन करते हो, उन पर चढ़ो। कवि के पुत्र उशना ने वृत्र नाशक वज्र तुम्हें दिया था, उसे तीक्ष्ण करो। 
Hey Indr Dev! You are a friends of the humans. Come here riding those horses which are protected by you and are decorated like the air. You sharpened the amusing Vajr, capable of destroying the enemy, which was given to you by the son of Kavi called Una and you killed the demon Vratr with it. 
त्वं सूरो हरितो रामयो नॄन्भरच्चक्रमेतशो नायमिन्द्र। 
प्रास्य पारं नवतिं नाव्यानामपि कर्तमवर्तयोऽयज्यून्॥
हे सूर्यरूप इन्द्रदेव! हरि नामक अश्वों को रोकें। इनका एतश नाम का घोड़ा रथ का चक्का खींचता है। आपने नौका द्वारा नब्बे नदियों के पार पहुँच कर, वहाँ यज्ञ का विरोध करने वालों को फेंककर विलक्षण कार्य पूर्ण किया।[ऋग्वेद 1.121.13]
हे इन्द्र! तुमने सूर्य के स्वर्णिम अश्वों को मार्ग रोक दिया था। वह रथ के पहिए को नहीं चला सका। तुमने अनाज्ञिकों और असुरों को नब्बे नदियों के पार फेंक दिया। 
Hey Indr Dev having the form of Sun-Sury! Stop-control the horses named Hari. The horse called Etash pulls the wheel of the chariote. You crossed the 90 rivers and threw away those opposing the conduction of Yagy and accomplished the amazing feat.
त्वं नो अस्या इन्द्र दुर्हणायाः पाहि वज्रिवो दुरितादभीके। 
प्र नो वाजान्रथ्योअश्वबुध्यानिषे यन्धि श्रवसे सूनृतायै॥
हे वज्रधर इन्द्रदेव! आप हमें इस दुर्दान्त दरिद्रता से बचावें, निकट में होने वाले युद्ध में हमें पाप कर्मों से बचाये। उन्नत कीर्ति और सत्य के लिए हमें रथ, अश्व और धन आदि प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.121.14]
 हे वज्रिन! तुम इस निकटवर्ती दारिद्रय रूप पाप से हमारी सुरक्षा करो। अन्न, कीर्ति, प्रिय एवं सत्यवाणी, रथ, अश्व आदि हमकों प्रदान करो।
Hey Vajr holding Indr Dev! Protect us from the troubling-torturous poverty and the sins which may occur in near future. Provide us horses, chariote and money for extreme progress and truth. 
मा सा ते अस्मत्सुमतिर्वि दसद्वाजप्रमहः समिषो वरन्त।
आ नो भज मघवन्गोष्वर्यो मंहिष्ठास्ते सघमादः स्याम॥
हे धन के लिए पूजनीय इन्द्रदेव! हमारे पास से अपना अनुग्रह न हटावें। हमें अन्न से पुष्ट करें। हे मघवन्! आप धनपति हैं। हमें गौ प्रदान करें। हम आपकी पूजा में तत्पर है इसलिए, हमें पुत्र, पौत्र आदि के साथ धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.121.15]
हे शक्ति के कारण भूत प्रतापी, समृद्धिवान इन्द्रदेव! तुम्हारी जो दयामति हमारी ओर है वह कम न हो। हमारे निकट अन्न का भण्डार रहे। हमको धेनु प्रदान करो। हम तुम्हारी प्रार्थना करते हुए तुष्टि को प्राप्त हों।
Hey Indr Dev, worshiped for money! Maintain your grace over us. Nurture us with food grains. Make us rich. You are the master of all riches. We are devoted to you. Grant us sons, grand sons, riches, money & wealth.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (122) :: ऋषि :- कक्षीवान्, देवता :- विश्वेदेवा,   इन्द्र, छन्द :- पंक्ति, त्रिष्टुप्।
प्र वः पान्तं रघुमन्यवोऽन्धो यज्ञं रुद्राय मीळ्हुषे भरध्वम्। 
दिवो अस्तोष्यसुरस्य वीरैरिषुध्येव मरुतो रोदस्योः॥
क्रोध से रहित ऋत्विकों आप लोग कर्म फलदाता रुद्रदेव को पालनशील और यज्ञ साधन अग्नि अर्पित करें। मैं भी उन द्युलोक के देव और उनके अनुचर एवं स्वर्ग और पृथ्वी के मध्यस्थवासी मरुद्गण की स्तुति करता हूँ। जिस प्रकार से तूणीर द्वारा शत्रुओं का वध किया जाता है, उसी प्रकार रुद्रदेव भी वीर मरुतों के साथ शत्रुओं का वध करते हैं।[ऋग्वेद 1.122.1]
हे द्रुतगामी मरुद्गण! हम रुद्र के लिए अन्न रूप हविदान करते हैं। मैं उन क्षितिज के वीरों के युक्त उनकी वंदना करता हूँ। वे क्षितिज और धरा के वीरों के तुल्य शस्त्र धारण कर शत्रुओं को निरस्त करते हैं।
Hey hosts-households conducting Yagy! Offer Agni-fire to Rudr Dev who sanctions-grants the rewards & punishments of the deeds performed by you, for conducting the Yagy. I too pray to the demigods of the heavens, their followers & inhabitants-Marud Gan who reside between the heavens & the earth. The way the arrows in the quiver are used to kill the enemy, the Rudr Dev along with the Marud Gan, too eliminate the enemies.  
पत्नीव पूर्वहूतिं वावृधध्या उषासानक्ता पुरुधा विदाने। 
स्तरीर्नात्कं व्युतं वसाना सूर्यस्य श्रिया सुदृशी हिरण्यैः
जिस प्रकार से स्वामी के प्रथम आह्वान पर पत्नी शीघ्र आती है, उसी प्रकार अहोरात्र देवता नाना प्रकार की स्तुतियों द्वारा स्तुत होकर हमारे प्रथम आह्वान पर शीघ्र पधारें। अरिमर्दन सूर्य की तरह उषादेवी सोने की किरणों से युक्त होकर और विशाल रूप धारण कर सूर्य की शोभा से शोभित हों।[ऋग्वेद 1.122.2]
पति के पुकारने पर भार्या शीघ्र उपस्थित होती हैं, वैसे ही अहोरात्र देवता हमारे प्रथम आह्वान पर विराजें। रात्रि धूम्र वर्ण के वस्त्र वाली है और उषा सूर्य की किरणों से युक्त अत्यधिक सुन्दर दिखाई पड़ती है।
The way-manner in which the wife come quickly on being called by her husband, the demigods of the Ahoratr (Day & night, midnight), having been worshiped in various, manners with several hymns, verses come quickly on just being requested. Let Usha Devi having rays with golden hue, acquire large-huge proportion & be embellished, like the Sun who is a destroyer of the evil.
ममत्तु नः परिज्मा वसर्हा ममत्तु वातो अपां वृषण्वान्। 
शिशीतमिन्द्रापर्वता युवं नस्तन्नो विश्वे वरिवस्यन्तु देवाः॥
वसन योग्य और सर्वतोगामी सूर्यदेव हमारी प्रसन्नता बढ़ावें। जलवर्षण करने वाला वायु हमारा आनन्द बढ़ावें। इन्द्रदेव और मेघ हमारी बुद्धि को विकसित करें। विश्वेदेवगण हमें यथेष्ट अन्न प्रदान करने की कृपा करें।[ऋग्वेद 1.122.3]
वसन :: परिधान, पोशाक, वस्र, लबादा, वस्त्र, पोशाक, कपड़ा, तैयार कपड़े, धूप और ऊष्मा; garment.
दिन वाला गतिमान सूर्य हमको प्रसन्नता प्रदान करने वाला हो। जल वर्षक पवन हमको आनन्द करे। इन्द्रदेव और पर्वत हमें उत्साहित करें। विश्वेदेवा हमें धन दान करें।
Let Sun-Sury Dev, who is always moving and giving us Sun light, amuse us. Let the wind which leads to rains, amuse us. Let Indr Dev and the rain showers lead to development of intelligence. Let Vishw Dev Gan provide us sufficient food grains.
उत त्या मे यशसा श्वेतनायै व्यन्ता पान्तौशिजो हुवध्यै। 
प्र वो नपातमपां कृणुध्वं प्र मातरा रास्पिनस्यायोः
अश्विनी कुमारों की स्तुति उशिक् पुत्र कक्षीवान् के द्वारा की जाती है। हे मनुष्यों! माता-पिता के तुल्य पृथ्वी, आकाश और रक्षा-साधनों द्वारा अग्नि देवता के निमित्त उत्तम प्रार्थना करें।[ऋग्वेद 1.122.4]
हे ऋत्विजों! मुझ उशिज-पुत्र के लिए हवि-भक्षक और पूजनीय अश्विनी कुमारों का आह्वान करो। हे मानवों! तुम जलों के पुत्र की अर्चना करो और स्तोताओं की मातृभूमि धरती और आकाश की भी वंदना करो।
Ashwani Kumars are prayed-worshiped by Kakshiwan, the son of Ushik. Hey humans!  Pray to earth, who is equivalent to the mother & father (parents), sky (heavens) & the Agni with the help of the excellent Strotr meant for protection.
आ वो रुवण्युमौशिजो हुवध्यै घोषेव शंसमर्जुनस्य नंशे। 
प्र वः पूष्णे दावन आँ अच्छा वोचेय वसुतातिमग्नेः
हे देवगण! मैं उशिक् का पुत्र कक्षीवान् हूँ। मैं आपके लिए कहने योग्य स्तोत्र का आह्वान के लिए पाठ करता हूँ। हे अश्विनी कुमारों! जिस प्रकार से अपने शरीर में श्वेतवर्ण (त्वचारोग) के विनाश के लिए घोषा नामक ब्रह्मवादिनी महिला ने आपकी स्तुति की थी, उसी प्रकार मैं भी स्तुति करता हूँ। हे देवों! मैं धन देने वाले पूषा देव की और वैभव सम्पदा के लिए अग्निदेव की स्तुति करता हूँ।[ऋग्वेद 1.122.5]
हे मनुष्यों! मैं उशिज पुत्र कक्षीवान गर्जनशील इन्द्रदेव का तुम्हारे लिए आह्वान करता हूँ। घोषा नामक स्त्री ने रोग निवृत्ति के लिए अश्विद्वय का आह्वान किया, वैसे ही मैं भी आह्वान करता हूँ। मैं दानशील पूषा की वंदना करता हुआ अग्नि सम्बन्धी धनों की विनती करता हूँ। 
Hey demigods-deities! I am Ushik, the son of Kakshiwan. I am reciting the the Strotr addressed to you. Hey Ashwani Kumars! The manner in which the truthful woman Ghosha suffering from skin diseases, prayed to you, I too pray to you. Hey demigods-deities! I pray to Pusha Dev & Agni Dev, who grant wealth & amenities. 
श्रुतं मे मित्रावरुणा हवेमोत श्रुतं सदने विश्वतः सीम्। 
श्रोतु नः श्रोतुराति: सुश्रोतुः सुक्षेत्रा सिन्धुरद्भिः
हे मित्र और वरुणदेव! मेरा आह्वान श्रवण करें। यज्ञगृह में समस्त आह्वान श्रवण करें। प्रसिद्ध धनशाली जलाभिमानी देव खेतों में जल बरसाकर हमारा आह्वान श्रवण करें।[ऋग्वेद 1.122.6]
हे सखा और वरुण! मेरी विनती सुनो। यज्ञ भवन तथा सभी ओर से मेरे आह्वान पर ध्यान दो। हमारे खेतों में जल वर्षक इन्द्रदेव वर्षा करें। 
Hey Mitr & Varun Dev! Kindly listen, pay attention to us. Please respond to all invitations in the Yagy place. Let the deities of rains respond to our prayers and shower over our fields. 
स्तुषे सा वां वरुण मित्र रातिर्गवां शता पृक्षयामेषु पज्रे। 
श्रुतरथे प्रियरथे दधानाः सद्यः पुष्टिं निरुन्धानासो अग्मन्
हे मित्र और वरुणदेव! हम आपकी प्रार्थना करते हैं। जहाँ घोड़े तेज गति से चलाये जाते हैं, ऐसे युद्ध में शूरवीर ही जिनकी सँख्या विदित न हो अर्थात् असँख्य हों, ऐसे गौरूपी धन को प्राप्त करते हैं। आप दोनों उस प्रसिद्ध एवं अपने प्रिय रथ पर आरूढ़ होकर शीघ्रता से यहाँ आकर हमें पुष्टि प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.122.7]
हे मित्रावरुण! मैं तुम्हारी प्रार्थना करता हूँ। तुम मुझ वज्रवंशी को सौ धेनु प्रदान करो। सुसज्जित रथ में बैठकर शीघ्र यहाँ आओ और मुझे पुष्ट करो। 
Hey Mitr & Varun Dev! We pray to you. The war in which horses run with fast speed, the number of warriors is huge (undisclosed-uncertain), win cows as wealth. Both of you ride your favourite chariote, come here quickly and nourish us.
अस्य स्तुषे महिमघस्य राधः सचा सनेम नहुषः सुवीराः। 
जनो यः पज्रेभ्यो वाजिनीवानश्वावतो रथिनो मह्यं सूरिः
मैं महान् धन वाले देवों के धन की स्तुति करता हूँ। हम मनुष्य हैं, इसलिए शोभन पुत्र-पौत्र आदि से युक्त होकर हम, इस धन का उपभोग करें। जो देवगण अङ्गिरा गोत्र में उत्पन्न राजा कक्षीवान् के लिए अन्न प्रदान करते हैं, जो अश्व और रथ देते हैं, मैं उनकी स्तुति करता हूँ।[ऋग्वेद 1.122.8]
 मैं इन श्रेष्ठ वैभवशाली देवों की प्रार्थना करता हूँ। हम मनुष्य इस सुन्दर धन का उपभोग करें। वे देव अंगिराओं को अनेक अन्न प्रदान करते और मुझे अश्व रथ आदि परिपूर्ण धन प्रदान करते हैं।
I pray-honour those demigods-deities who grant us huge wealth. Being humans, we should use this wealth along with our sons & grandsons. I pray-worship those demigods-deities who grant food grain, horses & chariote to the king Kakshiwan, the descendent of Angira. 
जनो यो मित्रावरुणावभिध्रुगपो न वां सुनोत्यक्ष्णयाध्रुक्। 
स्वयं स यक्ष्मं हृदये नि धत्त आप यदीं होत्राभिर्ऋतावा॥
हे मित्र और वरुणदेव! जो आपका द्रोही अर्थात् विरोधी है, जो किसी प्रकार से आपसे द्रोह या द्वेष करते हैं, जो आपके लिए सोमरस का अभिषव अर्थात् निर्मित नहीं करते, वह अपने हृदय में यक्ष्मा रोग धारण करते हैं। सत्य मार्ग पर चलने वाला और आपके निमित्त मंत्र युक्त स्तुतियाँ करने वाला निःसंदेह ही आपका कृपापात्र होता है।[ऋग्वेद 1.122.9]
हे सखा वरुण जो द्रोही कुटिलता पूर्वक तुम्हारे लिए सोम निष्पन्न नहीं करता। वह अपने मन में यक्ष्मा व्याधि धारण करता है। जो नियमपूर्वक निर्वाह करता हुआ तुम्हारी स्तुतियाँ करता हुआ सोम रस तैयार करता है वह तुम्हारी कृपा का पात्र होता है। 
Hey Mitr & Varun Dev! One who is your opponent, desert you, do not prepare-offer Somras to you suffers from tuberculosis. The truthful devotee following righteous-virtuous path is always being obliged by you.
स व्राधतो नहुषो दंसुजूतः शर्धस्तरो नरां गूर्तश्रवाः। 
विसृष्टरातिर्याति बाळ्हसृत्वा विश्वासु पृत्सु सदमिच्छूरः॥
हे देवो! ऐसा मनुष्य शत्रुओं को नष्ट करने वाला, अश्वयुक्त, तेजोमय व यजमानों के प्रति उदार प्रवृत्ति का होते हुए समस्त युद्धों में अत्यधिक सामर्थ्यवान् होता है।[ऋग्वेद 1.122.10]
वह प्राणी धनवान, शक्तिशाली, श्रेष्ठ यश वाला त्यागी होता हुआ शत्रुओं को पराजित करता है। वह भयंकर प्राणियों से भी नहीं डरता।
Hey demigods duo! Such a person eliminates the enemy, has horses, possess aura-brilliance, kind, liberal to the hosts-household conducting Yagy and excels in all wars.
अध ग्मन्ता नहुषो हवं सूरेः श्रोता राजानो अमृतस्य मन्द्राः। 
नभोजुवो यन्निरवस्य राधः प्रशस्तये महिना रथवते॥
हे आकाश में स्थित देवों! मनुष्यों की प्रार्थना को श्रवण कर यहाँ पधारने वाले आप अपने बल द्वारा अहित करने वाले दुष्टों की सम्पदा को श्रेष्ठ वीरों को प्रदत्त कर, हमें आनन्द प्रदान करने वाले अमृतस्वरूप यज्ञ प्रदान करने वाले, अमृतस्वरूप यज्ञ की ओर  प्ररित करते हो।[ऋग्वेद 1.122.11]
हे हर्षदाता, अविनाशी देवो! वंदनाकारी का आह्वान सुनो। तुम क्षितिज में वेग से चलते हुए प्रस्थान कर बुलाने वाले को महत्वपूर्ण धनों को प्रदान करते हो।
Hey demigods stationed in the sky-heavens! You rush to protect the humans with your might on listening to their prayers-worship and grant the wealth of the wicked to them-the excellent warriors. You amuse us, gift-grant the Yagy which is like elixir-nectar and motivate us to conduct Yagy. 
एवं शर्धं धाम यस्य सूरेरित्यवोचन्दशतयस्य नंशे। 
द्युम्नानि येषु वसुताती रारन्विश्वे सन्वन्तु प्रभृथेषु वाजम्॥
जिस यजमान की दसों इन्द्रियों के बलदायक अन्न की प्राप्ति के लिए हम आये हैं, उसे हमने मनुष्यों को विजय प्राप्त करने वाला बल प्रदान किया, देवों ने ऐसा कहा। इन देवों का प्रकाशमान अन्न और धन अत्यन्त शोभित होता है। ऐसे उत्तम यज्ञ में देवता लोग अन्न प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 1.122.12]
जिस वंदनाकारी ने दस चमसों में रखे हुए सोम के लिए हमारा आह्वान किया है, उसके लिए शक्ति धारण करेंगे। देवताओं ने ऐसा कहा है कि इन देवों में कीर्ति और धन शोभा प्राप्त करते हैं। ये देव हमारे अनुष्ठानों में अन्न सेवन करें।
The demigods said that they had come-visited to grant the food grains to strengthen the host's 10 sense organs, so that he could win. The food grains and the wealth granted by these demigods is excellent. The demigods provide best food grains in the excellent Yagy.
मन्दामहे दशतयस्य धासेर्द्विर्यत्पञ्च बिभ्रतो यन्त्यन्ना। 
किमिष्टाश्व इष्टरश्मिरेत ईशानासस्तरुष ऋञ्जते नॄन्॥
इन्द्रियाँ दस प्रकार की हैं, इसलिए ऋत्विक् लोग दस अवयवों से युक्त अन्न धारण करके गमन करते हैं। हम विश्वदेवों की स्तुति करते हैं। इष्टात्व और इष्टरश्मि नाम के राजा शत्रुतारक वरुणादि का क्या अनिष्ट कर सकते हैं।[ऋग्वेद 1.122.13]
ऋत्विज दस चमसों में रखे सोम रूपी अन्न से पुष्ट करते चलते हैं। अभीष्ट अश्व तथा अभीष्ट रसो वाले प्राणी क्या स्वयं सामर्थ्य वाले हैं?
The sense organs are of ten types. Hence, the host-those performing Yagy, make provision for the food grains containing ten components. We pray to the Vishw Devs. The kings named Ishtatv & Ishtrashmi can not harm the demigods including Varun Dev, who protect the humanity. 
हिरण्यकर्णं मणिग्रीवमर्णस्तन्नो विश्वे वरिवस्यन्तु देवाः। 
अर्को गिरः सद्य आ जग्मुषीरोस्स्राश्चाकन्तूभयेष्वस्मे॥
समस्त देवतागण हमें कानों में स्वर्ण आभूषण व गले में मणियों को धारण किये हुए उत्तम पुत्र प्रदान करें और हमारे द्वारा की गई स्तुतियों और घृताहुतियों को दोनों प्रकार के यज्ञों में यथाशीघ्र अंगीकार करें।[ऋग्वेद 1.122.14]
वे देव ही इन प्राणियों को और इनके विजयशील अश्वों को प्रेरित करते हैं। विश्वेदेवा हमको कानों में स्वर्ण, गर्दन में मणि पहनने वाले सुशोभित पुत्र को देने की कामना करें। 
Let all demigods give us the sons, who wear golden ornaments and jewels in their neck and ears. They should accept our prayers & offerings having Ghee in both types of Yagy as fast as possible-quickly.
चत्वारो मा मशर्शारस्य शिश्वस्त्रयो राज्ञ आयवसस्य जिष्णोः। 
रथो वां मित्रावरुणा दीर्घाप्साः स्यूमगभस्तिः सूरो नाद्यौत्॥
शत्रुओं का नाश करने वाले मशर्शार राजा के चार पुत्र और विजयी आयवस राजा के तीन पुत्र हमें कष्ट देते हैं। हे मित्रावरुण देवो! आप दोनों का विशालकाय व सुख देने वाला रश्मियों से युक्त रथ सूर्य देवता के समान कान्तिमय है।[ऋग्वेद 1.122.15] 
उषा काल में वंदना और हव्य को प्राप्त करें। हे सखा वरुण मशशर सम्राट के चार और आयवश सम्राट के तीन बालकों को अश्व मिले हैं। तुम्हारा अति सुन्दर सुसज्जित रथ सूर्य के तुल्य चमकता है।
The 4 sons of the king Mashrshar  and 3 sons of victorious king Ayvas torture-trouble us. Hey Mitra Varun Devs! Both of you have huge and glittering chariote which shine like the Sun Dev.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (123) :: ऋषि :- दैर्घतमस, कक्षीवान्, देवता :- उषा,   इन्द्र, छन्द :- त्रिष्टुप्।
पृथू रथो दक्षिणाया अयोज्यैनं देवासो अमृतासो अस्थुः। 
कृष्णादुदस्थादर्या विहायाश्चिकित्सन्ती मानुषाय क्षयाय
उषा का रथ अश्वयुक्त हुआ। अमर देवगण उस रथ पर आरूढ़ हुए। कृष्ण वर्ण अन्धकार से उत्थित, पूजनीय, विचित्र गतिमती और मनुष्य के निवास स्थानों का रोग दूर करने वाली उषा उदित हुई।[ऋग्वेद 1.123.1]
दक्षिण की ओर उषा का रथ मुड़ गया। अमर देव इस पर सवार हो गये। व्याधियों का पतन करने वाली उषा क्षितिज से उठ पड़ी।
विचित्र :: चितला, बहुरंगा, रंग-बिरंग, अजीब, अनोखा, विलक्षण; bizarre, quaint, pied.
Chariote of Usha was deployed with the horses. The immortal demigods-deities rode it. Worshipable, Usha rose to illuminate, remove darkness, with bizarre speed to remove diseases the abodes of the humans. 
पूर्वा विश्वस्माद्भुवनादबोधि जयन्ती वाजं बृहती सनुत्री। 
उच्चा व्यख्यद्युवतिः पुनर्भूरोषा अगन्प्रथमा पूर्वहूतौ
समस्त जीवों के पहले उषा जागती हैं। उषा अन्न देने वाली, महती और संसार को सुख प्रदत्त करती हैं। वह युवती हैं; बार-बार आविर्भूत होती हैं और ऊँचे स्थान से सबको देखते हुए हमारे आवाहन पर सबसे पहले आती हैं।[ऋग्वेद 1.123.2]
धन को जीतने वाली उषा सबसे पहले जागी। वह युवती है। बार-बार प्रकट होती है। हमारे आह्वान पर वह सर्वप्रथम पधारती है। 
Usha is the first one to awake the creatures-organisms. She grants the food grains and pleasure, comforts. She is young and rise again and again. She is the first one to appears when we call her.
यदद्य भागं विभजासि नृभ्य उषो देवि मर्त्यत्रा सुजाते। 
देवो नो अत्र सविता दमूना अनागसो वोचति सूर्याय
हे उषादेवी! आप मनुष्यों की पालिका हैं। आप सभी मनुष्यों को जो प्रकाश प्रदान करती हैं, उसी दान के प्रति प्रेरित करने वाले सूर्यदेव के सामने हमें पाप रहित बनावें।[ऋग्वेद 1.123.3]
हे उत्तम प्रकाश से उत्पन्न उषे! तुम प्राणियों को प्रकाश और अन्न का भाग देती हो । दान के प्रेरक, देव, सूर्य उदय होने पर हमको पाप से रहित मानकर ग्रहण करें।
Hey Usha Devi! You are the nurturer of all humans. The light provided to us you, should make us sinless just like the donations from Sun-Sury Dev.
गृहंगृहमहना यात्यच्छा दिवेदिवे अधि नामा दधाना। 
सिषासन्ती द्योतना शश्वदागादग्रमग्रामिद्भजते वसूनाम्
उषा प्रतिदिन नभ्र भाव से हर एक प्राणी के घर की ओर जाती हैं। ये भोगेच्छाशालिनी और द्युतिमती प्रतिदिन आगमन करतीं और हव्यरूपी धन का श्रेष्ठ भाग ग्रहण करती हैं।[ऋग्वेद 1.123.4]
नित्य उषा अपने श्रेष्ठ रूप से प्रत्येक गृह में जाती है। वह कांतिमयी सदव अभिलाषा करती हुई महान धनो को वितरित करती है।
Usha politely moves to the house of all beings-organism. She comes everyday with fast speed, for the fulfilment of her desires and accept the best component of the offerings. 
भगस्य स्वसा वरुणस्य जामिरुषः सूनृते प्रथमा जरस्व। 
पश्चा स दध्या यो अघस्य धाता जयेम तं दक्षिणया रथेन
हे सूनृता उषादेवी! आप सूर्य की भगिनी और वरुण देव की सहजाता हैं। आप सर्वश्रेष्ठ हैं। समस्त देवता आपकी स्तुति करते हैं। इसके अनन्तर जो दुःख का उत्पादक है, वह आवे। आपकी सहायता से ही हम उसे पराजित करें।[ऋग्वेद 1.123.5]
हे दया मयी उषे! तुम भग (सूर्य) की बहन और वरुण की पुत्री हो। तुम प्रार्थना के स्वर सुनो। पापियों को पीछे फेंक दो, उन्हें हम तुम्हारे द्वारा प्रेरित रथ से हटा दें।
सूनृता :: सत्य और प्रिय भाषण, सत्य, धर्म की पत्नी का नाम, उत्तानपाद की पत्नी का नाम, एक अप्सरा का नाम, ऊषा (को कहते हैं), खाद्य-आहार (को कहते हैं), उत्कृष्ट संगीत; truth and dear speech, truth, name of the wife of Dharm, Uttanapad's wife's name, the name of a heavenly nymph, Usha, Food. Diet, excellent music. 
Hey truthful Usha! You are the sister of Sun & daughter of Varun Dev (possess the characters of both Sun-Sury Dev & Varun Dev). You are the best. All demigods-deities pray-worship you. Any one-the sinner who causes pain, sorrow, worries may come and we will expel-repel him.
उदीरतां सूनृता उत्पुरंधीरुदग्नयः शुशुचानासो अस्थुः। 
स्पार्हा वसूनि तमसापगूळ्हाविष्कृण्वन्त्युषसो विभातीः
अपने मुख द्वारा हम पवित्र स्तोत्रों का गायन करें और अपनी बुद्धि उत्तम कर्मों में लगायें। जलती हुई अग्नि विद्य-वृद्धि को देने वाली हो। तेजस्वी उषा अन्धकार में छुपे हुए धनों को प्रकाशित करें।[ऋग्वेद 1.123.6]
हमारे मुख प्रार्थना गायें, बुद्धियाँ उन्मुख हों, प्रदीप्त अग्नि वृद्धि को ग्रहण हों। अत्यन्त कांतिवाली उषा अंधकार में छिपे हुए धन को प्रकट करें। 
Let us recite pious, pure, virtuous, righteous songs :- Strotr, hymns, Mantr, with our mouth and use our intelligence to perform excellent Satvik-virtuous deeds. The burning fire should move us ahead, grant us success. Bright Usha should show the concealed treasures.
अपान्यदेत्यभ्यन्यदेति विषुरूपे अहनी सं चरेते। 
परिक्षितोस्तमो अन्या गुहाकरद्यौदुषाः शोशुचता रथेन
विलक्षण रूपवान् दोनों अहोरात्र-देवता व्यवधान-रहित होकर चलते हैं। एक जाते हैं, एक आते हैं। पर्यायगामी दोनों देवताओं में एक पदार्थों को छिपाते हैं तथा उषा अतीव दीप्तिमान् हो उसे प्रकाशित करती हैं।[ऋग्वेद 1.123.7]
एक के हटने पर दूसरा आता है। अलग अलग रूप वाले रात्रि और दिन गतिशील हैं। एक समस्त पदार्थों को छिपाता है और दूसरा दीप्तिमान रथ द्वारा प्रकट करता है।
एक सूर्योदय से अपर सूर्योदय पूर्व का समय अहोरात्र है। अहश्च रात्रश्च अहोरात्र इस प्रकार यह द्वन्द्व समास से बना शब्द है। वैदिक ग्रंथों में तिथि के जगह प्रयुक्त शब्द अहोरात्र है। एक तिथि वह समय होता है, जिसमें सूर्य और चंद्रमा के बीच का देशांतरीय कोण बारह अंश बढ़ जाता है।
एक अहोरात्रम् एक दिन और रात का समय है। एक सूर्योदय से अपर सूर्योदय पूर्वका समय अहोरात्र है। "अहश्च रात्रश्च अहोरात्र" इस प्रकार द्वन्द समास से बना शब्द है। वैदिक ग्रन्थौं में तिथि के जगह प्रयुक्त शब्द अहोरात्र है। 
ऊष्ण कटिबन्धीय मापन :: 
एक याम = 7½ घटि,
8 याम अर्ध दिवस = दिन या रात्रि,
एक अहोरात्र = नाक्षत्रीय दिवस (जो कि सूर्योदय से आरम्भ होता है)
एक तिथि वह समय होता है, जिसमें सूर्य और चंद्र के बीच का देशांतरीय कोण बारह अंश बढ़ जाता है। वैदक तिथि पत्र के प्रयोग करने वाले कुछ लोग चन्द्रकला विशेष और सूर्योदयसे सम्बद्ध अहोरात्र को ही एक तिथि मानते है। वह अमान्त चन्द्रमास कभी 29 दिन का और कभी 30 दिन का होता है। यदि 14 वें दिन मे ही चन्द्रकला क्षीण हो तो उस दिन कृष्ण चतुर्दशी टुटा हुआ मानकर अमावास्या माना जाता है दोनों दिन के कृत्य उसी दिन किया जाता है। पंचांग सम्बद्ध तिथियाँ तो दिन में किसी भी समय आरम्भ हो सकती हैं और इनकी अवधि उन्नीस से छब्बीस घंटे तक हो सकती है।
एक पक्ष या पखवाड़ा = पंद्रह तिथियाँ,
एक मास = 2 पक्ष (पूर्णिमा से अमावस्या तक कॄष्ण पक्ष और अमावस्या से पूर्णिमा तक शुक्ल पक्ष),
एक ॠतु = 2 मास,
एक अयन = 3 ॠतुएं,
एक वर्ष = 2 अयन।
The amazing demigods-deities controlling the day & night, constituting Ahoratr, moves continuously without being interrupted. One comes and the other goes. One of them hides the material objects, while the other is illuminated by Usha.
सदृशीरद्य सदृशीरिदु श्वो दीर्घं सचन्ते वरुणस्य धाम। 
अनवद्यास्त्रिंशतं योजनान्येकैका क्रतुं परि यन्ति सद्यः
उषा देवी जैसी आज है, वैसी ही कल भी विशुद्ध है। प्रतिदिन वह वरुण या सूर्य के अवस्थित स्थान से तीस योजन आगे अवस्थित होती है। एक-एक उषा उदय-काल में ही गमन-आगमन रूप कार्य को पूर्ण करती है।[ऋग्वेद 1.123.8]
उषा जैसी आज है, कल भी वैसी ही थी। वह वरुण के स्थान में बहुत दूर तक निवास करती है। यह तीसों दिन आकाश के चारों ओर चक्कर काटती रहती है तथा प्रतिदिन अपने नियत स्थान को प्राप्त होती है।
Usha is pure-pious. She is the same today & the tomorrow. She is always ahead of the Sun & Varun (water bodies, ocean) by 30 Yojan. Each Usha-day break, completes the function of arriving completely (The time is fixed and controlled by the Sun and the constellations).
जानत्यह्नः प्रथमस्य नाम शुक्रा कृष्णादजनिष्ट श्वितीची। 
ऋतस्य योषा न मिनाति धामाहरहर्निष्कृतमाचरन्ती
उषा दिन के प्रथमांश के आगमन का काल जानती है। वह स्वयं ही दीप्त और श्वेतवर्ण है। कृष्णवर्ण से उनकी उत्पत्ति हुई है। वह सूर्यलोक में मिश्रित होती है, किन्तु उनको हानि नहीं पहुँचाती, बल्कि उसकी शोभा बढ़ाती है।[ऋग्वेद 1.123.9]
दिन के प्रारम्भिक समय को जानती हुई अंधकार से चमकती उषा रचित हुई है। यह युवती प्रतिदिन नियत स्थान पर पहुँच जाती है तथा सिद्धान्त का उल्लंघन कभी नहीं करती।
The shinning & fair-white coloured Usha constitutes of the first section-part of the day. She is born out of black colour. She reaches the destination without harming them.  
कन्येव तन्वाशाशदानाँ एषि देवि देवमियक्षमाणम्। 
संस्मयमाना युवतिः पुरस्तादाविर्वक्षांसि कृणुषे विभाती
हे देवि! कन्या की तरह अपने अंगों को विकसित करके आप दान परायण और दीप्तिमान् सूर्य के निकट जावें। अनन्तर युवती की तरह अतीव प्रकाश युक्त होकर, कुछ हँसती हुई, सूर्य के सामने अपना वक्षस्थल प्रकट करो।[ऋग्वेद 1.123.10]
हे देवी! तुम कन्या के समान अपने बदन को विकसित करके प्रकाश वान सूर्य को प्राप्त होती हो। फिर नारी की तरह कांतिमयी तुम मुस्कराती हुई मन के देश को खोल देती हो।
Hey Goddess! Develop your organs and move to the bright Sun who is intended to donations. Thereafter, expose the front part of your body, having light over it, smiling like a young girl.
सुसंकाशा मातृमृष्टेव योषाविस्तन्वं कृणुषे दृशे कम्। 
भद्रा त्वमुषो वितरं व्युच्छ न तत्ते अन्या उषसो नशन्त
माता के द्वारा सुशोभित की गई नवयुवती के तुल्य ये रूपवती उषा अपनी प्रकाश किरण रूपी शरीर के अंगों को मानों दिखाने के लिए प्रकट हो रही हैं। हे उषे! आप मनुष्यों का कल्याण करती हुई विस्तृत क्षेत्र में प्रकाशित रहें। अन्य उषायें आपके तेज की समानता नहीं कर सकतीं।[ऋग्वेद 1.123.11]
हे उषे! जननी द्वारा उबटन कर शुद्ध की हुई कन्या के तुल्य रूपवती तुम अपनी देह को प्रदर्षित करती हो। हे कल्याणकारिणी! दूर तक प्रकाशमान होओ। विगत उषायें अब तुम्हारी कांति को ग्रहण नहीं करेंगी।
Beautiful Usha is appearing like a young girl decorated by her mother, demonstrating her body organs-parts. Hey Usha you should be engaged in human welfare lighting a vast area. Other Usha, who appeared prior to you can not compare-compete with you in terms of energy-brightness. 
अश्वावतीर्गोमतीर्विश्ववारा यतमाना रश्मिभिः सूर्यस्य। 
परा च यन्ति पुनरा च यन्ति भद्रा नाम वहमाना उषासः
अश्व और गौ से सम्पन्न, सर्वकालीन और सूर्य रश्मियों के साथ तम निवारण के लिए चेष्टा विशिष्ट उषा-देवियाँ कल्याणकर नाम धारण करके जाती और आती हैं।[ऋग्वेद 1.123.12]
घोड़े और गौ से युक्त वरणीय सूर्य की किरणों से स्पर्द्धा वाली उषायें मंगलमयी रूपों को धारण करती हुई चली जाती हैं और लौट-लौट कर आती हैं। 
Fresh-new Ushas are always accompanied with horses & the cows, removes darkness, adopts new names-nomenclature and attend-intend to human welfare.
ऋतस्य रश्मिमनुयच्छमाना भद्रंभद्रं क्रआपस्मासु धेहि। 
उषो नो अद्य सुहवा व्युच्छास्मासु रायो मघवत्सु च स्युः
हे उषादेवी! ऋतु या सूर्य की रश्मि का अनुधावन करती हुई हमें कल्याण कारिणी प्रज्ञा (intelligence, prudence, understanding) प्रदान करें। हम आपका आवाहन करते हैं। अन्धकार दूर करें और हमें ऐश्वर्यवानों को प्रचुर मात्रा में धन सम्पदा प्रदत्त करें।[ऋग्वेद 1.123.13]
हे उषा! ऋतु की डोरी के अनुकूल चलती हुई हमें सद्बुद्धि दो। हम तुम्हारा आह्वान करते हैं। तुम आसमान से धरती के लोक को भर दो और हमको धन प्रदान करो।
Hey Usha Devi! Please grant us intelligence, prudence, understanding, firmness in our endeavours-actions. We invite you. Please remove darkness and grant us riches in sufficient quantity.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (124) ::  ऋषि :- कक्षीवान्,  दौर्घतमस, देवता :- उषा, छन्द :- त्रिष्टुप्। 
उषा उच्छन्ती समिधाने अग्ना उद्यन्त्सूर्य उर्विया ज्योतिरश्रेत्। 
देवो नो अत्र सविता न्वर्थ प्रासावीद् द्विपत्प्र चतुष्पदित्यै
अग्नि के प्रदीप्त होने पर उषादेवी, अन्धकार का नाश करती हुई, सूर्योदय की तरह प्रभूत ज्योति फैलाती है। हमारे व्यवहार के लिए सविता द्विपद और चतुष्पद से संयुक्त धन प्रदान करती हैं।[ऋग्वेद 1.124.1]
अग्नि के प्रदीप्त होने, उषा के आविर्भूत होने और सूर्य के उदय होने पर विशाल ज्योति फैल गयी। फिर सविता देव ने दुपायों और चौपायों को कार्यों में प्रेरित किया।
With the lightening of fire, Usha Devi vanishes the darkness and spreads light initiated-obtained from the Sun. She inspires the two & four legged to start work.
अमिनती दैव्यानि व्रतानि प्रमिनती मनुष्या युगानि। 
ईयुषीणामुपमा शश्वतीनामायतीनां प्रथमोषा व्यद्यौत्
उषा देवी देव-सम्बन्धी व्रतों में विघ्न नहीं करती, मनुष्यों की आयु का लगातार ह्रास करती हैं। निरन्तर आने वाली विगत उषाओं के अन्त में और भविष्य में आनेवाली उषाओं में यह सबसे पहले प्रकाशित होती हैं।[ऋग्वेद 1.124.2]
देव सिद्धान्तों में उदय व्यक्तियों को क्षीण करने वाली लगातार विमल होती हुई उषा में साकार हुई। भविष्य में आने वाली उषाओं में यह प्रथम उषा मुस्करा रही है।
She never interfere, create trouble, obstruction in the endeavours, goals, targets of the humans, who's age is reducing continuously. She occurs in between the Ushas of the past and the once going to appear in future.
एषा दिवो दुहिता प्रत्यदर्शि ज्योतिर्वसाना समना पुरस्तात्। 
ऋतस्य पन्थामन्वेति साधु प्रजानतीव न दिशो मिनाति
उषा देवी स्वर्ग-पुत्री हैं। वह प्रकाश-द्वारा आच्छादित होकर धीरे-धीरे पूर्व दिशा की ओर दिखाई देती हैं। उषा मानो सूर्य का अभिप्राय जानकर ही उनके मार्ग पर अच्छी तरह भ्रमण करती है। वह कभी दिशाओं में अवरोधक नहीं बनती।[ऋग्वेद 1.124.3]
ज्योर्तिमय वसन धारण किए यह आकाश की पुत्री अचानक सामने आ गई। यह नियमों में अटल रहती हुई सभी दिशाओं को जानती है और उन्हें समाप्त नहीं होने देती। 
She is visible in the east increasing the intensity of the light gradually. She is aware of the wish of the Sun and never create hurdle in any of the directions.
उपो अदर्शि शुन्ध्युवो न वक्षो नोधाइवाविरकृत प्रियाणि। 
अद्मसन्न ससतो बोधयन्ती शश्वत्तमागात्पुनरेयुषीणाम्
जिस प्रकार से सूर्य देव अपना वक्षःस्थल प्रकटित करते हैं और नोधा ऋषि ने जैसे अपनी प्रिय वस्तु का आविष्कार किया है, उसी प्रकार उषा देवी ने भी अपने को आविष्कृत किया, जैसे गृहिणी जागकर सबको जगाती है, वैसे ही भविष्य में आने वाली उषाओं में सबसे पहले ये देवी उषा दुबारा जागृत करने के लिए पधारी हैं।[ऋग्वेद 1.124.4]
जैसे सूर्य अपना वक्षस्थल दिखाते हैं, नोधा अपनी प्यारी वस्तुओं को बजाते हैं, वैसे ही उषा ने अपने को प्रकट किया है। गृहस्थी वाली पत्नी सबसे पहले जागती और फिर सबको जगाती है। उषा भी उसी के समान व्यवहार करती है।
The way the Sun reveals his front (face, chest) and Nodha Rishi has invented his desired entity-good, Usha too has presented herself and wake up all just like the house wife who wake up first and wake up all.
पूर्वे अर्धे रजसो अप्त्यस्य गवां जनित्र्यकृत प्र केतुम्। 
व्यु प्रथते वितरं वरीय ओभा पृणन्ती पित्रोरुपस्था
विस्तृत आकाश के पूर्व भाग में उत्पन्न होकर उषा दिशाओं को चेतना युक्त करती है। उषा पितृ स्थानीय स्वर्ग और पृथ्वी के अन्तराल में रहकर अपने तेज से देवों को परिपूर्ण करके विस्तृत और विशिष्ट रूप से प्रख्यात हुई है।[ऋग्वेद 1.124.5]
गवादि को रचित करने वाली उषा ने अंतरिक्ष के बीच में ध्वजा रूप तेज को प्रकट किया। वह क्षितिज-धरा रूप माता-पिता की गोद को भरती हुई सर्वत्र फैलती है। 
She rises in the east of the vast sky and makes all directions conscious. She position herself in between the heaven and the earth energise the demigods-deities with her energy and spreads all over-in all directions.
एवेदेषा पुरुतमा दृशे कं नाजामिं न परि वृणक्ति जामिम्। 
अरेपसा तन्वा शाशदाना नार्भादीषते न महो विभाती
इस तरह अत्यन्त विस्तृत होकर उषा देवी सरलता से दर्शन निमित्त मनुष्यादि और देवादि में से किसी का भी परित्याग नहीं करती। प्रकाश शालिनी उषा छोटों से दूर न रहते हुए बड़ों का भी परित्याग नहीं करती तथा भेद रहित होकर सभी को प्रकाशित करती हैं।[ऋग्वेद 1.124.6]
प्रत्यक्ष में श्रेष्ठ यह उषा अपने पराये का स्मरण रखे बिना सभी को ग्रहण होती है। यह पाप रहित शरीर से वृद्धि करती हुई छोटे या बड़े किसी से भी नहीं हटती। 
She spreads each & every where and makes everything visible to both humans & the demigods-deities. She never distinguish between the large & small, micro or macro. For her all being are equal.
अभ्रातेव पुंस एति प्रतीची गर्तारुगिव सनये धनानाम्। 
जायेव पत्य उशती सुवासा उषा हस्रेव नि रिणीते अप्सः
भ्रातृ हीन बहन जिस प्रकार निराश्रित होने पर वापस अपने माता-पिता के पास चली जाती है या धन रहित विधवा स्त्री के तुल्य यह उषा देवी नूतन वस्त्रों को धारित कर पति रूप सूर्य से मिलने हेतु मुस्कुराती हुई अपने किरण रूपी सौंदर्य को प्रकट करती हैं।[ऋग्वेद 1.124.7]
बिना भाई की बहिन के समान उषा पश्चिम की ओर मुँह करके चलती है। धन की प्राप्ति के लिए रथारूढ़ होने वाले के समान विजयिनी बनी हुई सुन्दर वस्त्र धारण कर शोभा से युक्त स्त्री के समान अपना स्वरूप दिखाती है।
She moves to the west like the sister who has no brother. She act like one who ride the chariote to win and gain money, wearing beautiful dresses. She smiles exposing her beauty as the rays. 
स्वसा स्वस्त्रे ज्यायस्यै योनिमारैगपैत्यस्याः प्रतिचक्ष्येव । 
व्युच्छनती रश्मिभिः सूर्यस्याञ्ज्यङ्क्ते  समनगाइव व्रा:
भगिनी रूपिणी रात्रि ने बड़ी बहन (उषा) को अपर रात्रि रूप उत्पत्ति स्थान प्रदान करके एवं उषा को जगाकर स्वयं चली जाती है। सूर्य किरणों से अन्धकार हटाकर उषा विद्युद्राशि की तरह जगत् को प्रकाशित करती है।[ऋग्वेद 1.124.8]
रात्रि रूपी बहिन, अपनी ज्येष्ठ बहिन उषा के लिए जगह छोड़ती हुई हटती है। उत्सव में जाने वाली स्त्रियों के तुल्य सूर्य की किरणों से अपने को सजाती है। 
Night, like an elder sister give the place to rise and goes off-moves away. Usha lit the universe with the help of Sun and removes darkness like the electric spark-lightening.
आसां पूर्वासामहसु स्वसॄणामपरा पूर्वामभ्येति पश्चात्। 
ताः प्रत्लवन्नव्यसीर्जूनमस्मे रेवदुच्छन्तु सुदिना उषासः
जो उषायें पहले गमन कर चुकी हैं, उनके बीच में अन्तिम उषा के पीछे से एक-एक नई देवी उषा क्रम से जाती हैं। उन प्राचीन उषाओं के सदृश नई उषा हमें धन से युक्त करने के लिए प्रकट हों।[ऋग्वेद 1.124.9]
इन समस्त बहन रूपिणी उषाओं में पहली दूसरी के पीछे-पीछे प्रतिदिन चलती है। उन प्राचीन उषाओं के समान नवीन तथा उषा प्रकट होकर हमको धनों से परिपूर्ण करें। 
The new Usha rises between the Ushas which had occurred earlier and the last Usha. She should give us money-wealth the earlier Ushas.
प्र बोधयोषः पृणतो मघोन्यबुध्यमानाः पणयः ससन्तु। 
रेवदुच्छ मघवद्भ्यो मघोनि रेवत्स्तोत्रे सूनृते जारयन्ती
हे धनवती उषा! हविर्दाताओं को जागृत करें। पणिलोग न जागकर निद्रा में पड़े रहें। हे धनशालिनी! धनी यजमानों को समृद्धि प्रदान करें। हे सुनृते! आप समस्त प्राणियों को क्षीण करती हुई यजमान को समृद्धि प्रदान करती हैं।[ऋग्वेद 1.124.10]
हे धनवती उषे! दानशीलों को चैतन्य करो, लोभी लोग सोते रहें। तुम प्राणियों की आयु क्षय करने वाली प्राणियों को धन से युक्त करो और स्तोता के लिए धनवाली होकर फैलो।
Hey wealth-money granting Usha! Awake the Yagy performers to make offerings. Let the greedy keep lying-sleeping. Make the living beings, who are reducing their age-longevity gradually (becoming aged) wealthy-rich and spread all around for the one who is praying to you.
अवेयमश्वैद्युवतिः पुरस्ताद्युङ्क्ते गवामरुणानामनीकम्। 
वि नूनमुच्छादसति प्र केतुर्गृहंगृहमुप तिष्ठाते अग्निः
युवती उषादेवी पूर्व दिशा से आती हैं। उनके रथ में सात अश्व जुते हैं। वह दिन की सूचना करके रूप रहित अन्तरिक्ष में अन्धकार का निवारण करती है। उनका आगमन होने पर घर-घर में आग जलती है।[ऋग्वेद 1.124.11]
यह युवती पूर्व दिशा से उतर रही है। इसके रथ में अरुण ऋषभ जुते हैं। जब मुस्करायेंगी तब इसका प्रकाश व्याप्त होगा और गृह-गृह में अग्नि प्रदीप्त होगी। 
Young Usha Devi rises in the east. Her chariote has deployed 7 horses. She informs of the day break and remove the darkness. Her arrival leads to igniting fire in house to house. 
उत्ते वयश्चिद्वसतेरपप्तन्नरश्च ये पितुभाजो व्युष्टौ। 
अमा सते वहसि भूरि वाममुषो देवि दाशुषे मर्त्याय
हे उषादेवी! आपके उदय होने पर चिड़ियाँ अपने घोंसले से ऊपर उड़ती हैं। अन्न प्राप्ति में आसक्त होकर मनुष्य ऊपर मुँह करके जाते हैं। हे देवि! देव पूजन गृह में अवस्थित हव्य दाता मनुष्य के लिए प्रभूत धन ले आवें।[ऋग्वेद 1.124.12]
हे उषे! तुम्हारे खिलते ही पक्षी भी घोंसले को त्याग देते हैं। मनुष्य भी अन्न के लिए कार्य करने लगते हैं। तुम हविदाता को अत्यन्त धन देने वाली हो।
Hey Usha Devi! The birds fly over their nest with your rise & spread. The humans start making efforts for having food grains. Hey Devi! Bring sufficient money for the one who is preparing for holding Yagy. 
अस्तोढं स्तोम्या ब्रह्मणा मेऽवीवृधध्वमुशतीरुषासः। 
युष्माकं देवीरवसा सनेम सहस्रिणं च शतिनं च वाजम्
हे स्तुति-पात्र उषाओं! मेरे मन्त्र द्वारा आप स्तुत हैं। मेरी समृद्धि की इच्छा करके हमें वर्द्धित करें। हे देवियों! आपकी रक्षा प्राप्त करके ही हम सहस्त्रसंख्यक और शतसंख्यक धन करेंगे।[ऋग्वेद 1.124.13]
हे पूजनीय उषाओं। मेरे श्लोक तुम्हारी वंदना करें। तुम वृद्धि को प्राप्त होओ और तुम्हारे रक्षा के साधनों पर निर्भर रहते हुए हम अनगिनत धन प्राप्त करें।Hey prayer deserving Ushas! Let you be worshiped through my Strotr. Let me progress through your desire. We will attain hundred-thousand times wealth, due to your worship & protection-shelter.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (125) ::  ऋषि :- कक्षीवान्,  दौर्घतमस, देवता :- स्वनयस्य, दानस्तुति, छन्द :- त्रिष्टुप्, जगती। 
प्राता रत्नं प्रातरित्त्वा दधाति तं चिकित्वान्प्रतिगृह्या नि धत्ते। 
तेन प्रजां वर्धयमान आयू रायस्पोषेण सचते सुवीरः
दानशील मनुष्यों के दान को विद्वान् प्रातःकाल ग्रहण करते हैं और सूर्योदय से पूर्व उठकर सूर्य की किरणों में सन्निहित प्राण तत्व रूपी धनों के लाभ से कृत-कृत होते हुए वह दीर्घायु व सन्तान से युक्त होते हैं।[ऋग्वेद 1.125.1]
दानशील व्यक्ति सवेरा होते ही धन दान करता है। विद्वान उसे ग्रहण करते हैं। वह उस धन से संतान, उम्र और शक्ति से परिपूर्ण हुआ रक्षित होता है।
The scholars, pandits, Brahmans accept the donations from those who make charity, in the morning. They get up early in the morning and gain the energy present in the rays of Sun, which boosts longevity and make them strong & fertile to have progeny.
सुगुरसत्सुहिरण्यः स्वश्वो बृहदस्मै वय इन्द्रो दधाति। 
यस्त्वायन्तै वसुना प्रातरित्वो मुक्षीजयेव पदिमुत्सिनाति
जो दान देने वाले मनुष्य प्रातःकाल उठकर किसी माँगने वाले याचक को रस्सी से पाँव बाँधने के सदृश अपार धन प्रदत्त करते हैं, ऐसे दानी मनुष्य श्रेष्ठ गौओं, अश्वों व स्वर्ण से युक्त होते हैं। इनको इन्द्र देवता अतिश्रेष्ठ अन्न और धन प्रदत्त करते हैं।[ऋग्वेद 1.125.2]
वह अनेक गौ, अश्व और स्वर्ण से परिपूर्ण होता है। इन्द्रदेव उस दानी को श्रेष्ठतम सामर्थ्य प्रदान करते हैं। वे प्रातः काल ही प्रस्थान कर धनों से उसे समृद्ध कर देते हैं।
One who get up early in the morning to donate, is blessed with cows, horses and gold. Dev Raj Indr grant them excellent food grains and riches.
आयमद्य सुकृतं प्रातरिच्छन्निष्टेः पुत्रं वसुमता रथेन। 
अंशोः सुतं पायय मत्सरस्य क्षयद्वीरं वर्धय सूनृताभिः
मैं यज्ञ के त्राता शोभनकर्मा को देखने की इच्छा करके, सुसज्जित रथ पर आरुढ़ होकर आज उपस्थित हुआ हूँ। दीप्तिशाली मादक सोम के अभिषुत रस का पान करें। प्रभूत वीर पुत्रादि विशिष्ट को प्रिय और सत्य वाक्य द्वारा समृद्ध करें।[ऋग्वेद 1.125.3]
मैं आज शोभन कर्म वाले यज्ञ को देखने की इच्छा से रथ पर चढ़कर आ गया। हे यजमान! तुम बालकों के दाता इन्द्र को प्रसन्नतापूर्वक सोम रस निचोड़कर पिलाओ और प्रार्थना कर उन्हें प्रसन्न करो।
I have come to see the virtuous person holding Yagy, in a decorated chariote. Let host (house hold conducting Yagy) offer Somras to the children happily. Keep the children happy by means of prayers and truthful words.
उप क्षरन्ति सिन्धवो मयोभुव ईजानं च यक्ष्यमाणं च घेनवः। 
पृणन्तं च पुपरिं च श्रवस्यवो घृतस्य धारा उप यन्ति विश्वतः
दुग्धवती और कल्याणदायिनी गायें यजमान और यज्ञ संकल्पकारी के पास जाकर दुग्ध प्रदान करती हैं। समृद्धि के कारणभूत घृतधारा, तर्पणकारी और हितकारी पुरुषों के पास चारों ओर से उपस्थित होती हैं।[ऋग्वेद 1.125.4]
कल्याणकारिणी गौ रूप नदियाँ अनुष्ठान की अभिलाषा करने वाले यजमान के सम्मुख प्रवाहमान होती हैं। अनुष्ठान की कामना करने वाले दानी को घी की धारायें समस्त ओर से ग्रहण होती हैं।
The milch cows pertaining to human welfare goes to the person holding Yagy and provide him with milk. A lot of Ghee is available to the person who is going to make offerings in the holy fire-Yagy, intending-committed to human welfare.
नाकस्य पृष्ठे अधि तिष्ठति श्रितो यः पृणाति स ह देवेषु गच्छति। 
तस्मा आपो घृतमर्षन्ति सिन्धवस्तस्मा इयं दक्षिणा पिन्वते सदा
जो व्यक्ति देवों को प्रसन्न करता है, वह स्वर्ग के पृष्ठ देश में अवस्थान कर देवों के बीच गमन करता है। प्रवहमान जल उसके पास तेजोविशिष्ट सार प्रदान करता है। पृथ्वी शस्य आदि से सफल होकर उसे सन्तोष प्रदान करती है।[ऋग्वेद 1.125.5]
दानी का स्वर्ग में भी आदर होता है। वह देवगणों में पहुँचता है। नदियाँ उसके लिए जल रूपी घृत प्रवाह करती हैं। उसकी दी हुई दक्षिणा हमेशा वृद्धि करती रहती हैं। दानियों के पास अनेक ऐश्वर्य हैं।
A person who resort to charity-donations (to the genuine needy, Brahmans) makes the demigod-deities happy and reserve his birth in the heavens. The rivers flow for him full of Ghee. Donations continuously help him in making progress. He is blessed with riches, comforts, amenities.
दक्षिणावतामिदिमानि चित्रा दक्षिणावतां दिवि सूर्यासः। 
दक्षिणावन्तो अमृतं भजन्ते दक्षिणावन्तः प्र तिरन्त आयुः
जो व्यक्ति दान देता है, उसी को ये सारी मणि-मुक्तादि वस्तुएँ प्राप्त होती हैं। दान दाता के लिए द्युलोक में सूर्य रहते हैं। दान देने वाले ही जरा-मरण शून्य स्थान प्राप्त करते हैं। दानदाता दीर्घ आयु प्राप्त करते हैं।[ऋग्वेद 1.125.6]
दानी के लिए ही आकाश में सूर्य स्थित है। दानी अपने दान रूपी अमृत से ही दीर्घ आयु प्राप्त करता है। दानी कष्ट नहीं पाता। उसे पाप नहीं घेरता।
The donor finds a place in the abode of the Sun and is blessed with jewels over the earth. He is elevated to the abode where he is not affected by old age or death. He gains longevity over he earth as well.
This is a period when billions are flowing into the hands of mercenaries, terrorists for waging war against Hindus. Christians missionaries are bent upon conversions in India by using the donations. In some cases perhaps, the donor in not aware of the intentions of the receivers. Muslims call it Jihad. They take oath 5 times a day to eliminate any one & every one who is a non Muslim. The worst possible thing is that they are killing innocent Muslims; what to talk of others. It has been found that the money received as donation is grossly misused for political purposes.
मा पृणन्तो दुरितमेन आरन्मा जारिपुः सूरयः सुव्रतासः। 
अन्यस्तेषां परिथिरस्तु कश्चिदपुणन्तमभि सं यन्तु शोकाः॥
जो देवों को प्रसन्न रखता है, उसे दुःख और पाप नहीं मिलते, शोभन-व्रतशाली मनुष्य श्री वृद्धावस्था से ग्रसित नहीं होते। देवों के प्रीति प्रदाता और स्तुति कर्ता से भिन्न पुरुषों को पाप आश्रित करता है। जो देवों को प्रसन्न नहीं करते, उन्हें शोक प्राप्त होता है।[ऋग्वेद 1.125.7]
सिद्धान्तों में स्थिर वंदनाकारी क्षीण नहीं होता। उनसे भिन्न व्यक्ति ही पाप के शिकार होते हैं। समस्त लोक दानशील को ही ग्रहण होते हैं।
A person who keep the demigods-deities happy remains free from sins, sorrow, worries. Those people who undertake fasting are not troubled by old age. 
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (126) ::  ऋषि :- कक्षीवान्,  दौर्घतमस, देवता :- विद्वांस, छन्द :- त्रिष्टुप्। 
अमन्दान्त्सोमान्प्र भरे मनीषा सिन्धावधि क्षियतो भाव्यस्य। 
यो मे सहस्रममिमीत सवानतूर्तो राजा श्रव इच्छमानः
सिन्धु निवासी भावयव्य पुत्र स्वनय के लिए अपने बुद्धि बल से बहुसंख्यक स्तोत्र सम्पादित करता हूँ। हिंसा विरहित राजा ने कीर्त्ति प्राप्ति की इच्छा से मेरे लिए हजार सोम यज्ञों का अनुष्ठान सम्पादित किया है।[ऋग्वेद 1.126.1]
मैं सिन्धु नदी के किनारे पर निवास करने वाले राजा भाव्य के लिए बुद्धि द्वारा श्लोक उन्हें भेंट करता हूँ। उस राजा ने कीर्ति की इच्छा से मेरे लिए हजारों अनुष्ठान किये हैं।
I wrote and presented many Strotr-Shlok (Verses), for Swnay, the son of Bhavyay the resident of Sindhu (present Afghanistan). The king conducted one thousand Som Yagy free from violence for me, to attain honour. 
शतं राज्ञो नाधमानस्य निष्काञ्छतमश्वान्प्रयतान्त्सद्य आदम्। 
शतं कक्षीवाँ असुरस्य गोनां दिवि श्रवोऽजरमा ततान
स्वर्ग में चारों ओर अक्षुण्ण कीर्ति को व्याप्त राजा ने कक्षीवान् को सौ स्वर्ण मुद्रायें, सौ वेगशील घोड़े और सौ श्रेष्ठ बैल प्रदत्त किए थे।[ऋग्वेद 1.126.2]
मुझ कक्षीवान से भेंट करते हुए राजा ने सौ स्वर्णहार, सौ सुन्दर घोड़े और सौ धेनु दान की। 
The king attained imperishable fame-honour in the heavens and he gave me 100 gold coins, 100 fast running horses and 100 excellent oxen.  
उप मा श्यावा: स्वनयेन दत्ता वधूमन्तो दश रथासो अस्तु: 
षष्टि: सहस्रमनु गव्यमागात्सनत्कक्षीवां अभिपित्वे अह्नाम्
स्वनय द्वारा दिए गए श्रेष्ठ वर्णों के अश्वों से युक्त व श्रेष्ठ स्त्रियों से युक्त दस रथ हमारे यहाँ आये हैं। दिन की प्रारम्भिक वेला में राजा से कक्षीवान् ने साठ हजार गौओं को प्राप्त किया।[ऋग्वेद 1.126.3]
उस राजा की कीर्ति क्षितिज तक व्याप्त हो रही है। स्वन्य के दिये हुए विभिन्न रंगों के घोड़ें और दस रथ मुझे ग्रहण हुए। साठ हजार धेनु भी मिलीं, जिन्हें मुझ कक्षीवान ने प्राप्त कर अपने पिता को भेंट कर दिया।
The glory of the king is spreading till the horizon. Ten chariots deploying 10 horses of excellent colours and having excellent women have come to us, granted by Swnay. Kakshiwan received 60,000 cows in the morning and gave them to his father.
चत्वारिंशद्दशरथस्य शोणाः सहस्त्रस्याग्रे श्रेणिं नयन्ति। 
मदच्युतः कृशनावतो अत्यान्कक्षीवन्त उदमृक्षन्त पत्राः
हजार गायों के सामने, दसों रथों में चालीस लोहित वर्ण के अश्व पंक्ति बद्ध होकर चलने लगे। कक्षीवान् के अनुचर उनके लिए घास आदि जुटाकर मदमत्त और स्वर्णाभरण विशिष्ट एवं सतत गमनशील अर्थों की मालिश करने लगे।[ऋग्वेद 1.126.4]
लोहित :: लहू के रंग का, सुबह का सूर्य लोहित वर्ण का होता है; blood red colour.
हजार गौओं की पंक्ति के आगे दस रथ चले आए। स्वर्णाभूषणों से युक्त घोड़ों को कक्षीवान के पुत्र मिलने लगे।
40 blood red coloured horses deployed in 10 chariots moved in front of 1,000 cows in ques. Servants of Kakshivan fed them with grass. The horses were decorated with gold ornaments. The king's servants messaged the horses.  
पूर्वामनु प्रयतिमा ददे वस्त्रीन्युक्ताँ अष्टावरिधायसो गाः। 
सुबन्धवो ये विश्याइव व्रा अनस्वन्तः श्रव ऐषन्त पज्राः
हे बन्धुगण! पूर्व के दान का स्मरण करके आपके लिए तीन और आठ, सब ग्यारह रथ मैंने ग्रहण कर बहुमूल्य गायों को लिया है। ये सब प्रेमपूर्वक रहने वाली प्रजाओं-परिवारों के सदृश रहकर स्थादि युक्त होकर श्रेय की कामना करें।[ऋग्वेद 1.126.5]
हे वज्र वंशियों! मैं प्रथम दान के अनुसार तुम्हारे निमित्त तीन जुते हुए रथ और आठ उत्तम गायें लाया हूं। कुटुम्ब वाले वज्र वंशीजन शकट से युक्त होकर यश की इच्छा करने वाले हैं। 
Hey members of Vajr clan (brothers)! I accepted the first donation by you in the form of 11 chariots and valuable cows. Let them live-survive together like a family leading to glory & honour. 
आगधिता परिगधिता या कशीकेव जङ्गहे। 
ददाति मह्यं यादुरी याशूनां भोज्या शता
यह सम्भोग योग्य रमणी (रोमशा) अच्छी तरह आलिङ्गित होकर सूत वत्सा नकुली की तरह चिरकाल तक रमण करती है। यह बहुरेतो युक्ता रमणी मुझे (स्वनय राजा को) बहुत बार भोग प्रदान करती है।[ऋग्वेद 1.126.6]
मेरी पत्नी सहस्वामिनी के रूप में मुझ (स्यनज राजा) को सैकड़ों प्रकार के भोज्य पदार्थ और समृद्धि प्रदान करती है। वह मेरी अत्यन्त स्नेह रखने वाली सहधर्मिणी है। 
नकुली :: एक लता, यवतिक्ता औषध के रूप में प्रयुक्त होती है; fervour, female mongoose.
This young woman, my wife, fit for sex, decorates herself and lives with me for long. She provides me (king Swnay) hundred kinds of recipes and adds to my wealth. She adds to my sexual comforts-pleasure like a Nakuli (a herb, female mongoose).
उपोप में परा मृश मा मे दभ्राणि मन्यथाः।
सर्वाहमस्मि रोमशा गन्धारी णामिवाविका
पत्नी पति से कहती है :- मेरे पास आकर मुझे अच्छी तरह स्पर्श करें। यह न जानना कि मैं कम रोमवाली अतः भोग के योग्य नहीं हूँ। मैं गान्धारी मेषी की तरह लोमपूर्णा और पूर्णावयवा हूँ।[ऋग्वेद 1.126.7]
भार्या कहती है कि मेरे निकट पधार कर स्पर्श करो। मुझे अल्प रोम वाली समझो। मैं गांधारी के तुल्य रोम वाली अवयवों से पूर्ण हूँ। हे प्रियतम! तुम मेरे सम्पूर्ण अंगों, गुणों और घर के कार्य को तनिक भी हानिकारक नहीं पाओगे।
The woman tells her husband that he should come close to her and touch her properly. She says that she has few bristles and is fir for intercourse-mating. You will not find any defect in me like Gandhari Meshi. She revealed that she had matured and had soft bristles over her body.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (127) ::  ऋषि :- परुच्छेपो, देवता :- अग्नि, छन्द :- अत्यष्टि अतिधृति। 
अग्निं होतारं मन्ये दास्वन्तं वसुं सूनुं सहसो जातवेदसं विप्रं न जातवेदसम्। य ऊर्ध्वया स्वध्वरो देवो देवाच्या कृपा। घृतस्य विभ्राष्टिमनु वष्टि शोचिषाजुह्वानस्य सर्पिषः
विद्वान् ब्राह्मण की तरह प्रज्ञावान्, बल के पुत्र स्वरूप, सबके निवास भूमि रूप और अत्यन्त दानशील अग्नि देव को मैं होता कहकर सम्मानित करता हूँ। यज्ञ निर्वाहकारी अग्नि उत्कृष्ट देवपूजन में समर्थ होकर चारों ओर फैली हुई घृत की दीप्ति का अनुसरण करके अपनी शिखा द्वारा उस घृत को स्वीकार करते हैं।[ऋग्वेद 1.127.1]
मैं सर्व रचित प्राणधारियों के ज्ञाता, शक्ति के पुत्र अग्नि की देवी का आह्वान करने वाला मानता हूँ। वे यज्ञ प्रवर्तक घृत को अपनी लपटों से अनुसरण कर देवगण की कृपाओं को प्राप्त कराते हैं।
I felicitate Agni Dev as the host who is very intelligent, son of might-power (Shakti), like the ground for each & everyone and extremely charitable-resorting to donations. The fire-Agni Dev capable in worshipping the demigods-deities, spreads in all directions, accepting ghee-clarifies butter, with its tip, as offering, accomplishing the Yagy.
यजिष्ठं त्वा यजमाना हुवेम ज्येष्ठमङ्गिरसां विप्र मन्मभिर्विप्रेभिः शुक्र मन्मभिः। परिज्मानमिव द्यां होतारं चर्षणीनाम् शोचिष्केशं वृषणं यमिमा विशः प्रावन्तु जूतये विशः
हे मेघावी शुभ्र दीप्ति अग्निदेव! हम यजमान हैं। हम मनुष्यों के उपकार के लिए मननशील और अत्यन्त प्रसन्नतादायक मन्त्र द्वारा अङ्गिरा लोगों में श्रेष्ठ आपका आवाहन करते हैं। सर्वतोगामी सूर्य की तरह आप यजमानों के लिए देवों का आवाहन करते हैं। केश की तरह विस्तृत ज्वाला विशिष्ट और अभीष्टवर्षी हैं। यजमान लोग मनोवांछित फल पाने के लिए आपको प्रसन्न करते हैं।[ऋग्वेद 1.127.2]
हे मेधावी प्रदीप्तिमान अग्ने! अंगिराओं में तुम सबसे उत्तम श्लोकों से आहूत करते हो। वे तुम्हारे ज्वाला रूप वाले हैं। तुम अभिष्टों की वर्षा करते हो और प्रदीप्त हुए आकाश की ओर जाते हो। तुमको ये प्राणी अपनी रक्षा के निमित्त धारण करते हैं।
यजमान :: यज्ञ करनेवाला व्यक्ति, ब्राह्मणों से धार्मिक कृत्य करानेवाला व्यक्ति; host.
Hey intelligent & bright Agni Dev! We are the priests-hosts conducting the Yagy, pray to you as the best amongest the Angiras (descendents of Rishi Angira) and invite you for the humans welfare, with the help of the Mantr which grant happiness-pleasure. You invite the demigods-deities like the Sun, in all directions for the benefit of the hosts. Your flames are capable of fulfilling the desires of the hosts, who make you happy.
स हि पुरू चिदोजसा विरुक्मता दीद्यानोभवति द्रुहंतर: परशुर्न द्रुहंतरः। वीळु चिद्यस्य समृतौ श्रुवद्वनेव यत्स्थिरम्। निष्षहमाणो यमते नायते धन्वासहा नायते
अग्निदेव अतीव दीप्ति से संयुक्त ज्वाला द्वारा भली-भाँति दीप्यमान हैं। वे शत्रुओं के छेदनार्थ परशु की तरह विनाश करने में दक्ष हैं। उनके साथ मिलने पर दृढ़ और स्थिर वस्तु भी जल की तरह शीर्ण हो जाती है। शत्रुओं का विनाश करने वाले धनुर्धर जैसे नहीं भागते, उसी प्रकार से अग्निदेव भी शत्रुओं को परास्त किये बिना नहीं मानते।[ऋग्वेद 1.127.3]
वे प्रचण्ड रूप से दहकते हुए अग्नि शत्रुओं का शोषण करते हैं। अत्यन्त स्थिर भी उनको छूने से भिन्न-भिन्न हो जाता है। वे तेजस्वी धनुर्धारी के समान डटे रहते हैं, कभी वे पीठ नहीं दिखाते। 
परशु :: फरसा; halberd, hatchet, poleaxe.
Agni Dev is lit with joint flames with great brightness. He is able to destroy the enemy like the Parshu-a weapon like the sharp axe. The solid goods melt just like water on meeting him. The way the archer do not do not leave the battle filed, he too do not retract without killing-vanishing the enemies.
दृळ्हा चिदस्मा अनु दुर्यथा विदे तेजिष्ठाभिररणिभिर्दाष्ट्यवसेऽग्नये दाष्ट्यवसे। प्र यः पुरूणि गाहते तक्षद्वनेव शोचिषास्थिरा चिदन्ना नि रिणात्योजसा नि स्थिराणि चिदोजसा
जैसे विद्वान् पुरुष को द्रव्य दान किया जाता है, उसी प्रकार अग्निदेव को सारवान् हव्य मन्त्रानुक्रम से प्रदान किया जाता है। तेजोविशिष्ट यज्ञादि द्वारा अग्निदेव हमारी रक्षा के लिए स्वर्गादि प्रदान करते हैं। यजमान भी रक्षा के लिए अग्निदेव को हव्य देते हैं। यजमान के द्वारा प्रदत्त हव्य में प्रवेश करके अग्निदेव अपनी ज्योतिः शिखा से उसे वन की तरह जला डालते हैं। अग्निदेव अपनी ज्योति द्वारा अन्नादि का परिपाक करते और तेज के द्वारा दृढ़ द्रव्य को विनष्ट करते हैं।[ऋग्वेद 1.127.4]
अत्यन्त दृढ़ द्रव्यों को समाप्त करने में सामर्थ्यवान हैं। हम इस अग्नि के लिए अन्न धारण करते हैं।
परिपाक :: परिणाम, उत्पादन, तैयार माल, परिपाक, फळ; maturity, aftermath, product. 
The way a scholar-Pandit is granted-provided with money, offerings are made in Agni with sacred hymns. Agni Dev accepts our offerings through the energetic Yagy and grant us heavens. Agni Dev engulf the offerings with his flames, just like burning the forests. Agni Dev digest the offerings including hard objects.
तमस्य पृक्षमुपरासु धीमहि नक्तं यः सुदर्शतरो दिवातरादप्रायुषे दिवातरात्। आदस्यायुर्ग्रभणवद्वीळु शर्म न सूनवे। भक्तमभक्तमवो व्यन्तो अजरा अग्नयो व्यन्तो अजराः
रात्रि में अग्नि देव दिन से भी अधिक दर्शनीय हो जाते हैं। दिन में ये तेजस्विता से शून्य रहते हैं। हम अग्नि के उद्देश्य से वेदी के पास हव्य प्रदान करते हैं। जैसे पिता के पास पुत्र दृढ़ और सुखकर गृह प्राप्त करता है, उसी प्रकार अग्निदेव भी अन्न ग्रहण करते हैं। भक्त और अभक्त को समझकर ही ये दोनों की रक्षा करते हैं। अग्निदेव हव्य भक्षण करके अजर हो जाते हैं।[ऋग्वेद 1.127.5]
ये अग्नि रात में दर्शनीय होते हैं। ये दिन में पूर्ण तेजस्विता प्राप्त नहीं करते। सुत के लिए जनक की शरण के समान सहारा देते हैं। भक्त या अभक्त सभी का अन्न खाते हैं। हवि भक्षण करने वाले ये कभी वृद्ध नहीं होते।
Agni Dev is more visible at night as compared to the day. We make offerings to Agni Dev in the Yagy Kund-fire pot. Agni Dev accepts the food grains, just like the son who feel comfortable with his father. He protects both the devotee and non devotee. Agni Dev accepts the offerings and become free from aging-old age.
स हि शर्धो न मारुतं तुविष्वणिरप्नस्वतीषूर्वरास्विष्टनिरार्तनास्विष्टनिः। आदद्धव्यान्याददिर्यज्ञस्य केतुरर्हणा। अध स्मास्य हर्षतो हृषीवतो विश्वेजुषन्त पन्थां नरः शुभे न पन्थाम्
मरुत् के बल की तरह स्तवनीय अग्निदेव यथेष्ट ध्वनि से युक्त हैं। कर्म कारिणी श्रेष्ठ भूमि से पर अग्निदेव का यज्ञ करना उचित है। सेना विजय करने के लिए अग्निदेव का याग करना उचित है। ये हव्य भक्षण करते हैं। वे सर्वत्र दानशील और यज्ञ की पताका हैं। वे सर्वत्र पूजनीय हैं। यजमानों के लिए हर्षदाता और प्रसन्न अग्निदेव के मार्ग की निर्भय राजपथ की तरह सुख प्राप्ति के लिए सभी लोग सेवा करते हैं।[ऋग्वेद 1.127.6]
मरुतों के तुल्य यह अग्नि उर्वरा और मरुभूमि में अनुष्ठान योग्य हैं। वह अनुष्ठान में ध्वज रूप हुए हव्य भक्षण करते हैं। अग्नि के उत्तम मार्ग का अनुसरण करते हुए इन सभी की उपासना करें।
सेना :: वाहिनी, लाम, लशकर, दल-बल, फौज; army, military, forces.
Agni Dev deserve worship-prayers just like Marud Gan. They are associated with sound while burning. Its better to perform Yagy at a place which is suitable for performances (endeavours, deeds, work). To win an army, Agni worship-prayers may be conducted. Agni Dev resort to charity every where and is the flag mast-sign of the Yagy. He deserve worship every where. He grant pleasure-happiness to the worshipers. He is worshiped-prayed for comforts-pleasure by everyone.
द्विता यदीं कीस्तासो अभिद्यवो नमस्यन्तउपवोचन्त भृगवो मथ्नन्तो दाशा भृगवः। अग्निरीशे वसूनां शुचिर्यो धर्णिरेषाम्। प्रियाँ अपिधीर्वनिषीष्ट मेधिर आ वनिषीष्ट मेधिरः 
श्रौत और स्मार्त्त, उभय प्रकार के अग्निदेव का गुण कहने वाले दीप्तिशाली नमस्कार प्रवीण और हव्य दाता भृगु गोत्रज महर्षि लोग हवि देने के लिए अरणि द्वारा अग्नि देव का मन्थन करके स्तुति करते हैं। प्रदीप्त अग्नि देव सारे धनों के अधीश्वर हैं। ये यज्ञ वाले हैं और भली-भाँति प्रिय हव्य भक्षण करने वाले हैं। अग्निदेव मेधावी हैं और वे अन्य देवताओं को भी उनका भाग प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 1.127.7]
श्रुति विहित कर्म को 'श्रौत' एवं स्मृति विहित कर्म को 'स्मार्त' कहते हैं। श्रौत एवं स्मार्त कर्मों के अनुष्ठान की विधि वेदांग कल्प के द्वारा नियंत्रित है। वेदांग छह हैं और उनमें कल्प प्रमुख है। पाणिनीय शिक्षा उसे 'वेद का हाथ' कहती है। कल्प के अंतर्गत श्रौतसूत्र, गृह्यसूत्र, धर्मसूत्र और शुल्बसूत्र समाविष्ट हैं। इनमें श्रौतसूत्र श्रौतकर्म के विधान, गृह्यसूत्र स्मार्तकर्म के विधान, धर्मसूत्र सामयिक आचार के विधान तथा शुल्बसूत्र कर्मानुष्ठान के निमित्त कर्म में अपेक्षित यज्ञशाला, वेदि, मंडप और कुंड के निर्माण की प्रक्रिया को कहते हैं।
श्रौत सूत्र के अनुसार अनुष्ठानों की दो प्रमुख संस्थाएँ हैं, जिन्हें हवि: संस्था तथा सोम संस्था कहते हैं। स्मार्त अग्नि पर क्रियमाण पाक संस्था है। इन तीनों संस्थाओं में सात सात प्रभेद हैं, जिनके योग से 21 संस्थाएँ प्रचलित हैं। हवि: संस्था में देवता विशेष के उद्देश्य से समर्पित हविर्द्रव्य के द्वारा याग किया जाता है। सोम संस्था में श्रौताग्नि पर सोमरस की आहुति की जाती है तथा पश्वालंभन भी विहित है। इसलिए ये पशुययाग हैं। इन संस्थाओं के अतिरिक्त अग्निचयन, राजसूय और अश्वमेध प्रभृति याग तथा सारस्वतसत्र प्रभृति सत्र एवं काम्येष्टियाँ हैं।
श्रौतकर्म के दो प्रमुख भेद हैं। नित्य कर्म जैसे अग्नि होत्र-हवन तथा नैमिति कर्म जो किसी प्रसंगवश अथवा कामना विशेष से प्रेरित होकर यजमान करता है। स्वयं यजमान अपनी पत्नी के साथ ऋत्विजों की सहायता से याग कर सता है। यजमान द्वारा किए जानेवाले क्रिया-कलाप, ऋत्विजों के कर्तव्य, प्रत्येक कर्म के आराध्य देवता, याग के उपयुक्त द्रव्य, कर्म के अंग एवं उपांगों का सांगोपांग वर्णन तथा उनका पौर्वापर्य क्रम, विधि के विपर्यय का प्रायश्चित्त और विधान के प्रकार का विधिवत् विवरण श्रौत सूत्र का एक मात्र लक्ष्य है।
श्रौत कर्मों में कुछ कर्म प्रकृति कर्म होते हैं। इनके सांगोपाग अनुष्ठान की प्रक्रिया का विवरण श्रौत सूत्रों ने प्रतिपादित किया है। जिन कर्मों की मुख्य प्रक्रिया प्रकृति कर्म की रूप रेखा में आबद्ध होकर केवल फल विशेष के अनुसंधान के अनुरूप विशिष्ट देवता या द्रव्य और काल आदि का ही केवल विवेचन है वे विकृति कर्म हैं, कारण श्रौत सूत्र के अनुसार 'प्रकृति भाँति विकृति कर्म करो' यह आदेश दिया गया है। इस प्रकार श्रौत सूत्रों के प्रतिपाद्य विषय का आयाम गंभीर एवं जटिल हो गया है, कारण कर्मानुष्ठान में प्रत्येक विहित अंग एवं उपांग के संबंध में दिए हुए नियमों का प्रतिपालन अत्यंत कठोरता के साथ किया जाना अदृष्ट फल की प्राप्ति के लिए अनिवार्य है।
श्रौत कर्म के अनुष्ठान में चारों वेदों का सहयोग प्रकल्पित है। ऋग्वेद के द्वारा होतृत्व, यजुर्वेद के द्वारा अध्वर्यु कर्म, सामवेद के द्वारा उद्गातृत्व तथा अथर्ववेद के द्वारा ब्रह्मा के कार्य का निर्वाह किया जाता है। अतएव श्रौत सूत्र वेद चतुष्टयी से संबंध रखते हैं। यजमान जिस वेद का अनुयायी होता है उस वेद अथवा उस वेद की शाखा की प्रमुखता है। इसी कारण यज्ञीय कल्प में प्रत्येक वेदशाखानुसार प्रभेद हो गए हैं जिन पर देशाचार, कुलाचार आदि स्वीय विशेषताओं का प्रभाव पड़ा है। इस कारण कर्मानुष्ठान की प्रक्रिया में कुछ अवांतर भेद शाखा भेद के कारण चला आ रहा है और हर शाखा का यजमान अपने अपने वेद से संबद्ध कल्प के अनुशासन से नियंत्रित रहता है। इस परंपरा के कारण श्रौतसूत्र भी वेदचतुष्टयी की प्रभिन्न शाखा के अनुसार पृथक् पृथक् रचित हैं।
भृगुओं ने मुख ऊँचा कर जब इनका यशगान ने किया और अग्नि के पास जाकर हवियाँ दी, तब धनों के दाता अग्नि ने संतुष्ट होने पर प्रसन्नता प्रकट की। हे प्रजाओं के दाता, पालक अग्ने! तुम्हें ग्रहण करने के लिए आहूत करते हैं। तुम प्राणियों के अतिथि हो। जनक के समान तुमसे ये मरण धर्मा प्राणी अमरत्व प्राप्त करते हैं। तुम देवताओं की हवि रूप पराक्रम पहुँचाते हो।
Strotr & Smart are the two kinds of endeavours-deeds, which are performed-conducted by the descendents of Bhragu Rishi, who rub pieces of wood-Arni to obtain fire for the Yagy. Ignited-burning fire (Agni Dev) is the demigod of all sorts of wealth. He resort to Yagy and digest all offerings in the Yagy. He is very intelligent and carry forward the share of the demigods-deities to them.
विश्वासां त्वा विशां पतिं हवामहे सर्वासांसमानं दम्पतिं भुजे सत्यगिर्वाहसं भुजे। अतिथिं मानुषाणां पितुर्न यस्यासया। अमी च विश्वे अमृतास आ वयो हव्या देवेष्वा वयः
समस्त यजमानों के रक्षक व सभी मनुष्यों के एक से गृहपालक, सर्वसम्मत फल विशिष्ट, स्तुति वाहक और मनुष्य आदि के लिए अतिथि की तरह पूज्य अग्निदेव को भोग के लिए हम आवाहित करते हैं। जैसे पुत्र लोग पिता के पास जाते हैं, वैसे ही हव्य के लिए ये सारे देवता अग्रिदेव के पास आते हैं। ऋत्विकगण भी देवों के यज्ञ काल में अग्निदेव को हव्य प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 1.127.8]
हे अग्ने! तुम देव अर्चन के लिए प्रकट होते हो। तुम्हारी खुशी ही शक्ति है। ज्ञान से ही यशस्वी हो। हे जरा पृथक! मनुष्य इसलिए तुम्हारी सेवा करते हैं। आराधकों! शक्ति से विजेता, सवेरे जागने वाले हितकारक अग्नि के लिए तुम्हारी वाणी श्लोक पाठ करें। बन्दीजन जैसे वन्दना करते हैं, वैसी यजमान हवियों से परिपूर्ण हुआ अग्नि का पूजन करता है।
Hey Agni Dev, we invite you, being the protector of the hosts, priests, households, grants the award related to certain endeavours, conveys the prayers to the related deity-demigod and is honourable-revered for the humans. The way a son goes to his father, the demigods-deities comes to you. The priests & host make offerings to you during the period they perform-conduct Yagy. 
त्वमग्ने सहसा सहन्तमः शुष्मिन्तमोजायसे देवतातये रयिर्न देवतातये। शुष्मिन्तमो हि ते मदो द्युम्निन्तम उत क्रतुः। अघ स्मा ते परि चरन्त्यजर श्रुष्टीवानो नाजर
जिस प्रकार से देवों के यजन के लिए धन पैदा होता है, उसी प्रकार हे अग्निदेव! आप भी देवों के यज्ञार्थ उत्पन्न होते हैं। अपने बल से आप शत्रुओं के पराभवकर्ता और अतीव तेजस्वी है। आपका आनन्द अत्यन्त बलदाता है। आपको यज्ञ अत्यन्त फलप्रद है। हे अजर और हे भक्तों के जरा निवारक अग्निदेव! इसीलिए यजमान लोग दूतों की तरह आपकी पूजा करते हैं।[ऋग्वेद 1.127.9]
हे अग्ने! देवगणों के सखा तुम हमारे समीप रहते हुए हितकारी धनों को लाओ। इस धरती में भोगों का उपभोग करने में हमें शक्ति प्रदान करो। अपने स्तोताओं को पराक्रम से युक्त करो।
The way money is grown for worshiping the deities-demigods, you grow for the welfare of demigods-deities. You lead to the defeat of the enemy and is energetic-brilliant. Your pleasure grants extreme strength & power. The Yagy leads to strengthening you. Hey ever young, remover of the old age of the worshippers, Agni Dev! This is the reason why the hosts pray to you like a messenger.
प्र वो महे सहसा सहस्वत उषर्बुधे पशुषे नाग्नये स्तोमो बभूत्वग्नये। प्रति यदीं हविष्मान्विश्वासु क्षासु जोगुवे। अग्रे रेभो न जरत ऋषूणां जूर्णिर्होत ऋषूणाम्
हे स्तोतागण! हविवाले यजमान इन अग्निदेव के लिए सारी वेदी भूमि पर बार-बार गमन करते हैं, इसलिए आपका स्तोत्र उस पूज्य शत्रु पराभवकारी प्रातः काल में जागरणशील और पशुदाता अग्निदेव की प्रीति उत्पन्न करने में समर्थ हैं। धनवान् के पास जैसे बन्दी स्वयं करता है, वैसे ही होतागण पहले देवों में श्रेष्ठ अभिदेव की स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 1.127.10]
आहूत करते है तुम के अतिथि हो। जनक के समान तुमसे ये मरण धर्मा प्राणी अमरत्व प्राप्त करते हैं। तुम देवताओं को हवि रूप पराक्रम पहुँचाते हो। हे -अग्ने! तुम देव अर्चन के लिए प्रकट होते हो। तुम्हारी खुशी ही शक्ति है। ज्ञान से ही यशस्वी हो। हे जरा पृथक! मनुष्य इसलिए तुम्हारी सेवा करते हैं।
Hey hosts! Those who are making sacrifices to Agni Dev move repeatedly to the Yagy Vedi. Hence, the prayers are made by you to the revered Agni Dev, who is capable of defeating the enemy, who gets up early in the morning and grant cattle. The way the needy goes to the rich, the hosts go to the best among the demigods-deities Agni Dev for prayers-worship.
स नो नेदिष्ठं दद्य्शान आ भराग्ने देवेभिः सचनाः सुचेतुना महो रायः सुचेतुना। महि शविष्ठ नस्कृधि संचक्षे भुजे अस्यै। महि स्तोतृभ्यो मघवन्त्सुवीर्यं मथीरुग्रो न शवसा॥
हे अग्निदेव! समीप से दीप्तिमान दिखाई देने वाले आप सभी देवताओं द्वारा पूज्यनीय हैं। आप कृपा करके उत्तम धन से हमें परिपूर्ण करें। हे सामर्थ्यवान् अग्नि देव! दीर्घायुष्य के लिए उपभोग्य पदार्थों को प्रदत्त करके आप हमें यशस्वी बनायें। हे ऐश्वर्य युक्त अग्निदेव! आप अपने याचकों को उत्तम शौर्य सम्पन्न व पराक्रमी बनायें तथा अपनी सामर्थ्य शक्ति द्वारा शत्रुओं का वध करें।[ऋग्वेद 1.127.11]
आराधकों! शक्ति से विजेता, सवेरे जागने वाले हितकारक अग्नि के लिए तुम्हारी वाणीं श्लोक पाठ करें। बन्दीजन जैसे वन्दना करते हैं, वैसी यजमान हवियों से परिपूर्ण हुआ अग्नि का पूजन करता है। हे अग्ने! देवगणों के सखा तुम हमारे समीप रहते हुए हितकारी धनों को लाओ। इस धरती में भोगों का उपभोग करने में हमें शक्ति प्रदान करो। अपने स्तोताओं को पराक्रम से युक्त करो।
Hey Agni Dev! You have aura visible from near and you are respected by the demigods-deities. Please grant us riches. Grant us the food stuff which will make us strong, long lived and glorious. Hey opulence, grandeur possessing Agni Dev! Grant bravery and strength to your worshipers and destroy the enemy with your might.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (128) ::  ऋषि :- परुच्छेपो, देवता :- अग्नि, छन्द :- अत्यष्टि। 
अयं जायत मनुषो धरीमणि होता यजिष्ठ उशिजामनु व्रतमग्निः स्वमनु व्रतम्। विश्वश्रुष्टिः सखीयते रयिरिव श्रवस्यते। अदब्यो होता नि षददिळस्पदे परिवीत इळस्पदे
देवों को बुलाने वाले और अतीव यज्ञशील, ये अग्निदेव फल प्रार्थियों के और अपने हवि भोजन के उद्देश्य से मनुष्यों द्वारा अरणी मन्थन से उत्पन्न होते हैं। मित्रता की भावना करने वालों को यह सर्वस्व और धन की कामना करने वालों के लिए धन का अक्षय भण्डार प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 1.128.1]
हे पूजनीय होता! अग्नि मनुष्यों द्वारा अरणियों से रचित हुए, तपस्वियों की सभी बात सुनते हैं। वे यशस्वी को धन के समान हैं। कदापि पीड़ित न होने वाले होता रूप से पूजा स्थान में पधारते हैं।
Agni Dev, who invites the demigods-deities to the Yagy, is himself extremely dedicated to the Yagy and evolve by rubbing two pieces of wood, called Arni. He evolves to grant the reward of the endeavours (Pious, Satvik deeds of the hosts) and accept the offerings. He grants imperishable riches-wealth to those who are friendly. 
तं यज्ञसाधमपि वातयामस्मृतस्य पथा नमसा हविष्मता देवताता हविष्मता। स न ऊर्जामुपाभृत्यया कृपा न जूर्यति। यं मातरिश्वा मनवे परावतो देवं भाः परावतः
हम लोग यज्ञानुष्ठान और घृत आदि से युक्त तथा नम्रता से सम्पन्न स्तोत्र द्वारा बहु हव्य वाले और देव यज्ञ में साधक अग्निदेव की परितोष के साथ सेवा करते हैं। वे अग्निदेव हमारे हव्य रूप अत्र को लेने में समर्थ होकर नाश को नहीं प्राप्त होंगे। मनु के लिए मातरिश्वा ने अग्निदेव को दूर से लाकर प्रज्वलित किया। उसी प्रकार हमारे यज्ञस्थल पर दूर से आकर हमारी यज्ञशाला में अग्निदेव हविरूप अन्न को ग्रहण करें।[ऋग्वेद 1.128.2]
परितोष :: इच्छा पूर्ति से होनेवाली प्रसन्नता, संतोष; fulfilment, satisfaction, contentment.
हम अत्यन्त विनम्र हुए यज्ञ अनुष्ठान में घृतादि परिपूर्ण हवि भेंट करते हुए अग्नि का पूजन करते हैं। वे हमारी हवियों को प्राप्त कर वृद्धि करेंगे। जैसे मातरिश्वा ने अग्नि को दूर से लाकर जंगल के लिए प्रदीप्त किया, वैसे हमारे यज्ञ स्थान में अग्नि दूर से आकर प्रदीप्त होता है।
We feel satisfied-content when we serve Agni Dev, in the Dev Yagy (Yagy meant for the demigods-deities) in which several offerings like Ghee are made. Agni Dev will not vanish by accepting our offerings in the form of food grains. The way Matrishwa brought Agni Dev from a distant place for Manu, the same way you come to us from a distant place and accept our offerings in the form of foods grains.
एवेन सद्यः पर्येति पार्थिवं मुहुर्गी रेतो वृषभः कनिक्रदद्दधद्रेतः कनिक्रदत्। शतं चक्षाणो अक्षभिर्देवो वनेषु तुर्वणिः सदो दधान उपरेषु सानुष्वग्निः परेषु सानुषु
सदैव स्तुति किये जाने वाले हवि सम्पन्न अभीष्ट फल दाता और सामर्थ्यशाली अग्निदेव शब्द करके जाते हुए तत्काल पार्थिव वेदी के चारों ओर शब्द करके आते हैं। ये अग्निदेव स्तोत्र ग्रहण करके अग्र स्थानीय शिखा द्वारा चारों ओर प्रकाशमान होते हुए उच्च स्थानीय श्रेष्ठ यज्ञ में तत्काल पधारते हैं।[ऋग्वेद 1.128.3]
सदा पूजनीय हवि युक्त, अभीष्ट दाता, समर्थ अग्नि वेदी के चारों ओर शब्द करते हुए प्राप्त होते हैं। वे स्तोत्र ग्रहण करते हुए श्रेष्ठ यज्ञ में तुरन्त प्रदीप्त होते हैं।
Agni Dev, who is always prayed-worshiped & grants the desired rewards-boons, comes making sound round the Yagy place-Vedi. He accept the prayers and shows off with its front place-point around the Yagy Peeth-place in the excellent Yagy.
स सुक्रतुः पुरोहितो दमेदमेऽग्निर्यज्ञस्याध्वरस्य चेतति कृत्वा यज्ञस्य चेतति। क्रत्वा वेधा इषू यते विश्वा जातानि पस्पशे। यतो घृतश्रीरतिथिरजायत वह्निर्वेधा अजायत
शोभन कर्मा और पुरोहित अग्निदेव, प्रत्येक यजमान के घर में अहिंसा युक्त यज्ञ को जान सकते हैं। ये कर्म के द्वारा यज्ञ को जान सकते हैं। वे कर्मों के विविध फलदाता बनकर यजमान के लिए अन्न की कामना करते हैं। ये हव्यादि को ग्रहण करते हैं; क्योंकि वे घृत भक्षी अतिथि के रूप में उत्पन्न हुए है। इनके प्रवृद्ध होने पर हव्यदाता विविध फल प्राप्त करते हैं।[ऋग्वेद 1.128.4]
पंडित रूप अग्नि यजमान के गृह में अविनाशी अनुष्ठान के ज्ञाता हैं। वे कार्यों की शक्ति देने की कामना से हवि प्राप्त करते हैं। वे अतिथि रूप से घृत भक्षण करने वाले हविदाता को अभिष्ट प्रदान करते हैं। 
Agni Dev who is committed to Satvik-virtuous deeds, can identify the the Yagy free from violence, of the host. He recognises the Yagy by virtue of its nature, Karm-tendency. He become the deity granting rewards of the endeavours to the hosts and blesses them with food grains. On being blessed, the hosts making offerings gets various rewards-fulfilment of their desires-boons.
क्रत्वा यदस्य तविषीषु पृञ्चतेऽग्नेरवेण मरुतां न भोज्येषिराय न भोज्या। स हि ष्मा दानमिन्वति वसूनां च मज्मना। स नस्त्रासते दुरितादभिह्रुतः
जैसे मरुद्गण भक्षणीय द्रव्य को एक में मिलाते हैं, इन अग्नि को जैसे भक्ष्य द्रव्य दिया जाता है, वैसे ही यजमान लोग कर्म द्वारा अग्नि की प्रबल शिखा में तृप्ति के लिए भक्षणीय द्रव्य मिलाते हैं। अपने धन के अनुसार यजमान हव्य प्रदान करता है। जो पाप हमारा हरण करता है, उस हरणकारी दुःख और हिंसक पाप से अग्निदेव हमें बचाये।[ऋग्वेद 1.128.5]
जैसी मरुद्गण भक्ष्य द्रव्य को इकट्ठा करते हैं, वैसे ही प्राणी भक्ष्य पदार्थ को इकट्ठा करके अग्नि को हवि देते हैं। तब वह दान की प्रेरणा करते हुए हविदाता को पाप कर्म से बचाते हैं।
The way Marud Gan mixes the eatable offerings together, Agni Dev is offered the eatables, the same way hosts make offerings to Agni Dev in his brilliant flames. The host make offerings as per his capability. Let Agni Dev protect us from the sins which torture, worry us, giving pain-sorrow.
विश्वो विहाया अरतिर्वसुर्दधे हस्ते दक्षिणे तरिणिर्न शिश्रथच्छ्रवस्यया न शिश्रथत्। विश्वस्मा इदिषुध्यते देवत्रा हव्यमोहिषे विश्वस्मा इत्सुकृते वारमृण्वत्यग्निर्द्वारा व्यृण्वति
हे विश्वात्मक! महान् और विराम रहित अग्नि देव सूर्य की तरह दाहिने हाथ में धन रखते हैं। उनका यह हाथ यज्ञ कारी के लिए मुक्त हस्त खुला रहता है। केवल हवि पाने की आशा से अग्निदेव उसे नहीं छोड़ते। हे अग्निदेव! आप समस्त हवि कामी देवताओं के लिए हवि का वहन करते हैं और उत्तम कर्म करने वालों के निमित्त धन प्रदान करते हैं। आप उनके लिए वहन करते हैं और उत्तम कर्म करनेवालों के निमित्त धन प्रदान करते हैं। आप उनके लिए धनकोश को पूर्ण रूप से खोल देते है।[ऋग्वेद 1.128.6]
अग्नि रूप से समस्त स्थायी दायें हाथ में लेकर हितार्थ त्यागते हैं। वे वंदनाकारी की हवियाँ देवों को पहुँचाते हैं। सुकर्म वालों को महान धन भण्डार के दरवाजे खोल देते हैं।
Hey entire universe pervading Agni Dev! You always have riches in your hands, just like the Sun-Sury Dev. Your feasts are open for the one who is conducting the Yagy. You do not release the riches just for the sake of accepting offerings. You carry the offerings for the demigods-deities and grant amenities to those who perform virtuous deeds. Your purse-treasures are always open for those performing righteous, pious, honest, truthful, virtuous deeds.
स मानुषे वृजने शंतमो हितोग्निर्यज्ञेषु जेन्यो न विश्पतिः प्रियो यज्ञेषु विश्पतिः। स हव्या मानुषाणामिळा कृतानि पत्यते। स नस्त्रासते वरुणस्य धूर्तेर्महो देवस्य धूर्तेः
मनुष्य के पाप निमित्तक यज्ञ में अग्निदेव विशेष हितकारी है। विजयी राजा की तरह यज्ञ के स्थल में ये मनुष्य के पालक और प्रिय है। यजमानों की यज्ञवेदी में रखे हव्य के लिए ये आते हैं। हिंसक यज्ञ बाधक के भय से और उन महान् पाप देव की हिंसा से ये हमारा उद्धार करें।[ऋग्वेद 1.128.7]
वे अग्नि वेदी में राजा के तुल्य विद्यमान किये गये हैं। सभी मनुष्यों की वदंनाएँ के संग दी हुई हवियों के स्वामी हैं। वह हमें वरुणादि देवगण के कोप से बचाते हैं।
Agni Dev is present in the Yagy as the king. He is the master of all prayers-worships conducted during the Yagy, like a king and is dear to humans and nurtures them. He arrives to accept the offerings available in the Yagy. Let him protect us from all types-sorts of violence and the sins. 
अग्निं होतारमीळते वसुधितिं प्रियं चेतिष्ठमरतिं न्येरिरे हव्यवाहं न्येरिरे। विश्वायुं विश्ववेदसं होतारं यजतं कविम्। देवासो रण्वमवसे वसूयवो गीर्भी रण्वं वसूयवः॥ 
धन को धारण करने वाले सभी के प्रिय उत्तम बुद्धि देने वाले और कहीं न रुकने वाले अग्निदेव की ऋत्विक गण स्तुति करते और उन्हें भली-भाँति प्राप्त किये हुए हैं। हव्य वाही प्राणियों के प्राणरूप सर्वप्रज्ञा समन्वित देवों को बुलाने वाले यजनीय और मेधावी अग्निदेव को ऋत्विकों ने अच्छी तरह प्राप्त कर लिया है। ऋत्विकगण धन की कामना से प्रेरित होकर अपने संरक्षण के लिए उन मन को हरण करने वाले अग्निदेव के स्तोत्रों का गान करते हुए प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 1.128.8]
धन धारक अत्यन्त चैतन्य, प्रिय होता अग्नि की यजमान अर्चना करते हैं। सबके प्राण रूपी धनेश यजन योग्य मेधावी अग्नि के पास सभी देवगण धन की कामना वाले की रक्षा के लिए पहुँचते हैं।
Custodian of all wealth, dear to all, granting excellent intelligence-prudence, never stopping-resting Agni Dev is worshiped by the hosts-priests and all of them have attained him. He is the soul of those who make offerings & invites all demigods-deities to the Yagy site. Those who desire money-wealth, riches, amenities pray to him with the help of Strotr, hymns.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (129) ::  ऋषि :- परुच्छेपो, देवता :- इन्द्र, छन्द :- अत्यष्टि, शक्वरी
यं त्वं रथमिन्द्र मेधसातयेऽपाका सन्त मिषिर प्रणयसि प्रानवद्य नयसि। सद्यश्चित्तमभिष्टये करें वशश्च वाजिनम्। सास्माकमनवद्य तूतुजान वेघसामिमां वाचं न वेघसाम्
हे हर्ष सम्पन्न यज्ञगामी इन्द्रदेव! यज्ञ लाभ के लिए रथ पर चढ़कर जिस प्रभूत ज्ञान युक्त यजमान के पास जाते हो और जिसे धन और विद्या में उन्नत करते हो, उसे तुरन्त सफल मनोरथ और हव्यशाली बना दें। हे हर्षयुक्त इन्द्रदेव! हम पुरोहितों में भी पुरोहित हैं, हमारे स्तवन करने पर आप शीघ्रता से हमारी स्तुति और हव्य ग्रहण करते हैं।[ऋग्वेद 1.129.1]
हे बलिष्ठ इन्द्रदेव! तुम अपने रुके हुए रथ को अनुष्ठान में पहुँचाने के लिए वृद्धि करते हो। तुम हमारी सुरक्षा करो, शक्ति और हमारी वाणी को ज्ञानियों की वाणी के तुल्य सुनो।
Hey Indr Dev, filled with bliss! You ride your chariote to reach the Yagy spot of the talented-enlightened host, grant him riches, wisdom-knowledge and make his endeavours successful. We are the priests of the enlightened. Please come to us quickly, when we pray-worship you and accept he offerings.
स श्रुधि यः स्मा पृतनासु कासु चिद्दक्षाय्य इन्द्र भरहूतये नृभिरसि प्रतूर्तये नृभिः। यः शूरैः स्वः सनिता यो विप्रैर्वाजं तरुता। तमीशानास इरधन्त वाजिनं पृक्षमत्यं न वाजिनम्
हे इन्द्रदेव! आप युद्ध के नायक है। आप मरुतों के साथ प्रधान-प्रधान युद्धों में स्पर्द्धा के साथ शत्रु-संहार करने में समर्थ हैं। वीरों के साथ आप स्वयं संग्राम में सुख का अनुभव करते हैं। ऋत्विकों की स्तुति करने पर आप उन्हें अन्न प्रदान कर हमारी स्तुति श्रवण करें। प्रार्थना परायण ऋत्विक लोग गमनशील अन्नवान इन्द्रदेव की अश्व की तरह सेवा करते हैं।[ऋग्वेद 1.129.2]
हे इन्द्रदेव! तुम युद्ध में आहूत होने पर शक्ति देने में समर्थवान हो। मतिवान के संग अनुष्ठान की शिक्षा प्रदान करते हो। द्वन्द्व के लिए वेगवान अश्वों को पुकारने के तुल्य समृद्धिवान तपस्वी तुम्हारी तपस्या करते हैं।
Hey Indr Dev! You are the commander-chief in the battle-war. You are capable in destroying the enemy with the help of Marud Gan. You find pleasure in fighting with the brave. You grant food stuff to those who worship you. The host serve you as a horse for attaining riches.
दस्मो हि ष्मा वृषणं पिन्वसि त्वचं कं चिद्यावीरररुं शूर मर्त्यं परिवृणक्षि मर्त्यम्। इन्द्रोत तुभ्यं तद्दिवे तद्रुद्राय स्वयशसे। मित्राय वोचं वरुणाय सप्रथः सुमृळीकाय सप्रथः
हे इन्द्रदेव! आप शत्रुओं का नाश करके वृष्टि पूर्ण त्वचा रूप मेघ का भेदन कर जल गिराते हो और मर्त्य की तरह गमनशील मेघ को पकड़कर उसे वृष्टि रहित करके छोड़ देते हो। ये इन्द्रदेव शत्रुओं के विनाश के लिए रुद्र के तुल्य भयंकर, मित्र के समान हितैषी, श्रेष्ठ, सुखप्रद और सभी के द्वारा वरणीय है।[ऋग्वेद 1.129.3] 
हे वीर! तुम त्वचा रूपी बादल को तोड़ते हो। विरोधियों के समीप नहीं जाते! मैं तुम्हारे लिए आकाश, रुद्र और वरुण के लिए उस प्रसद्धि श्लोक को कहता हूँ। 
Hey Indr Dev! You destroy the enemy, make the clouds rain, squeeze their water and allow them to go. You are furious like the Rudr for the enemy, well wisher like a friend, excellent, blissful and acceptable to all.
अस्माकं व इन्द्रमुश्मसीष्टये सखायं विश्वायुं प्रासहं युजं वाजेषु प्रासहं युजम्। अस्माकं ब्रह्मोतयेऽवा पृत्सुषु कासु चित। नहि त्वा शत्रुः स्तरते स्तृणोषि यं विश्वं शत्रुं स्तृणोषि यम्
हे ऋत्विकों! हम अपने यज्ञ में इन्द्रदेव को चाहते हैं। ये हमारे मित्र सर्वयज्ञ गामी शत्रुओं के अभिभव कारी और हमारे सहायक हैं। वे यज्ञ विघ्नकारियों को पराभूत करके मरुतों में सम्मिलित है। हे इन्द्रदेव! आप हमारे पालन के लिए हमारी रक्षा करें। रण क्षेत्र में आपके विरुद्ध कोई शत्रु खड़ा नहीं हो सकता। आप ही समस्त शत्रुओं का नाश करते हैं।[ऋग्वेद 1.129.4]
 मनुष्यों! हमारी रक्षा के लिए सबके प्राण इन्द्र से प्रार्थना करते हैं। इन्द्र! सभी युद्धों में हमारे रक्षक हों। तुम्हारा पराक्रम उल्लंघन के योग्य नहीं है। तुम सभी शत्रुओं के दल पर छा जाते हो।
Hey priests! We want the presence of Indr Dev in our Yagy. He is our friend who participate in every Yagy, destroyer of the enemy and helpful to us. He defeats the trouble creators with the help of Marud Gan. Hey Indr Dev! Please protect & nurture us. None can face you in the battle-war. You destroyer every enemy.
नि षू नमातिमतिं कयस्य चित्तेजिष्ठाभिररणिभिर्नेतिभिरुप्राभिरुग्रोतिभिः। नेषि णो यथा पुरानेनाः शूर मन्यसे। विश्वानि पूरोरप पर्षि वह्निरासा वह्निनों अच्छ
हे उग्र इन्द्रदेव! अपने भक्त यजमान के विरुद्धाचारी को उग्र रक्षण कार्य रूप तेजो मय उपायों से विदीर्ण कर देते हैं। जैसे आप पहले हमारे पूर्वजों को मार्ग दिखाकर ले गये थे, वैसे हो हमें भी ले जायें। संसार आपको निष्पाप जानता है। हे इन्द्रदेव! आप संसार के पालन कर्ता होकर मनुष्यों के सारे पापों को दूर करते हुए हमारे समक्ष यज्ञ फल लाकर अनिष्टों का विनाश करें।[ऋग्वेद 1.129.5]
 हे उग्र कर्म वाले इन्द्रदेव! शत्रु के मिथ्याभिमान को भंग करो। अपने सुरक्षा साधनों से उचित मार्ग पर चलो। तुम पाप रहित हो, अग्रणी होकर मनुष्यों के पाप दूर करते हो। तुम हमारे निकट ठहरो।
अनिष्ट :: अवांछित, अशुभ, अहित, अमंगल; unwelcome, forbidden, undesirable.
Hey furious Indr Dev! You protect your worshiper and neutralise the person who act against your worshiper, with the help of energetic means. You guided our ancestors earlier and now show us the right path. Whole universe recognises you as free from sins. Hey Indr Dev! You nurture-support the entire universe, abolish the sins and bring-grant us the reward of our Yagy, vanishing the forbidden-unwelcome, bad omens.  
प्र तद्वोचेयं भव्यायेन्दवे हव्यो न य इषवान्मन्म रेजति रक्षोहा मन्म रेजति। स्वयं सो अस्मदा निदो वधैरजेत दुर्मतिम्। अव स्रवेदघशंसोऽवतरमव क्षुद्रमिव स्रवेत्
भव्य चन्द्र के लिए हम इस स्तोत्र को उच्चारित करते हैं। चन्द्र आग्रह के साथ हमारे कर्म के उद्देश्य से राक्षस विनाशी और बुलाने योग्य इन्द्रदेव की तरह आते हैं। वे स्वयं हमारे निन्दक व दुर्बुद्धि के वध का उपाय उद्भूत करके उसे दूर कर देंगे। अल्प जल के समान ही शत्रुओं का समूल नाश करें।[ऋग्वेद 1.129.6]
मैं सोम से विनती करुं जो इन्द्र को आमंत्रित करने योग्य श्लोक की प्रेरणा देते हैं। वह निदंक की कुमति को हमसे दूर करें। पाप का साधक नष्ट होकर गिरे।
We recite this Strotr for the glorious Chandr Dev-Moon. He comes to us on being stressed-invited, requested for killing demons like the always welcome Indr Dev. He will remove the wickedness, vices, foul thoughts in our mind. Let him vanish all enemies with the roots. 
Lasciviousness, imprudence, ego, wickedness, vices, foul thoughts, thinking of undesirable are our enemies.
वनेम तद्धोत्रया चितन्त्या वनेम रयिं रयिवः सुवीर्यं रण्वं सन्तं सुवीर्यम्। दुर्मन्मानं सुमन्तुभिरेमिषा पृचीमहि। आ सत्याभिरिन्द्रं द्युम्नहूतिभिर्यजत्रं द्युम्नहूतिभिः
हे इन्द्रदेव! हम स्तोत्र द्वारा आपका गुण-कीर्तन करके आपको भजते हैं। हे धनवान् इन्द्रदेव! हम सामर्थ्यवान्, रमणीय, सदा वर्त्तमान और पुत्र भृत्यादि विशिष्ट धन का उपभोग कर, आपकी महिमा अज्ञेय महिमा का गुणगान करते हैं। हम उत्तम स्तोत्र और अन्न प्राप्त करते हुए यज्ञ निष्पादक इन्द्र देव को यज्ञाभिलाष फल देने वाले और यशोवर्द्धक आह्वान द्वारा प्राप्त हों।[ऋग्वेद 1.129.7]
अज्ञेय :: रहस्यपूर्ण, गूढ़, अज्ञानी, निर्बोध; enigmatic, nascent. 
हे इन्द्र! हम ध्यान से पराक्रम से युक्त रमणीय, रक्षा वाले धन को माँगते हैं। सुन्दर श्लोक और हवियों से हर्ष प्राप्त करते हैं। सत्य हार्दिक आह्वान करते हुए तुम्हें पूजते हैं। 
Hey Indr Dev! We pray to you with the help of Strotr, hymns. Hey rich Indr Dev! We praise you for being blessed with amenities-wealth, sons, servants, specific riches, provided by you. Let us attain Indr Dev with the help of excellent Strotr-hymns, who grant us the desired result-outcome of the Yagy conducted by us, boosting our glory.
Generally, the humans crave-desire for heavens, but that is not the Ultimate. We must crave for the Ultimate, the Almighty,.
Heaven is a place where we can enjoy sensualities, lasciviousness, sexuality alienating our self from the God. One has to come back to earth after having a temporary stay in the heaven. But once we are with the God no rebirth-reincarnation.
प्रप्रा वो अस्मे स्वयशोभिरूती परिवर्ग इन्द्रो दुर्मतीनां दरीमन्दुर्मतीनाम्। स्वयं सा रिषयध्यै या न उपेषे अत्रैः। हतेमसन्न वक्षति क्षिप्ता जूर्णिर्न वक्षति
हे ऋत्विको! आपके और हमारे लिए इन्द्र देव यशस्कर आश्रय दान द्वारा दुर्बुद्धि लोगों के विनाशक संग्राम में प्रवृद्ध हों और उन्हें विदीर्ण करें। हमारे भक्षक शत्रुओं ने हमारे विरुद्ध हमारे नाश के लिए जो वेगवती सेना भेजी थी, वह सेना स्वयं हत हो गई है, हमारे पास पहुँची भी नहीं, शत्रुओं के पास भी नहीं लौटी।[ऋग्वेद 1.129.8]
हे मनुष्यों! तुम्हारे और हमारे रक्षक इन्द्रदेव बुरी मति वालों को दूरस्थ करें। उन्हें चीर डाले। जो बर्धी हमारे लिए दैत्यों ने चलाई है, वह लौटकर उन्हीं को समाप्त करे।
Hey priests, hosts, humans! Let Indr Dev protect us by fighting the wicked and eliminate them. The army sent to us by our enemies could not reach us. It got killed (by Indr Dev. Marud Gan) and it did not return back.
त्वं न इन्द्र राया परीणसा याहि पथाँ अनेहसा पुरो याह्यरक्षसा। सचस्व नः पराक आ सचस्वास्तमीक आ। पाहि नो दूरादारादभिष्टिभिः सदा पाह्यभिष्टिभिः
हे इन्द्र देव! राक्षस शून्य और पाप रहित मार्ग से प्रचुर धन लेकर हमारे पास आवें। आप दूर देश और निकट से आकर हमारे साथ मिलें। आप दूर और निकट प्रदेश से, यज्ञ निर्वाह के लिए हमारी रक्षा करें। यज्ञ निर्वाह करके सदा हमें पालित करें।[ऋग्वेद 1.129.9]
हे इन्द्रदेव! तुम धन के लिए हमको ग्रहण होओ। तुम दूरस्थ हो तो भी हमारे संग रहो। दूर या पास जहाँ कहीं भी रहो हमारी सुरक्षा करो।
Hey Indr Dev! Let the demons free from sins, come to us with sufficient money from space. Whether far or near, you should be with us and protect us for the successful conduction of our Yagy. Support-nurture us for the Yagy. 
त्वं न इन्द्र राया तरूषसोग्रं चित्त्वा महिमा सक्षदवसे महे मित्रं नावसे। ओजिष्ठ त्रातरविता रथं कं चिदमर्त्य। अन्यमस्माद्रिरिषेः कं चिदद्रिवो रिरिक्षन्तं चिदद्रिवः
हे इन्द्र देव! जिस धन से हमारी विपत्तियों का नाश हो सकता है, उसी धन से हमारा उद्धार करें। आप उग्र रूप है। जैसी मित्र की महिमा है, हमारी रक्षा के लिए आपकी भी वैसी हो महिमा है। हे बलवत्तम, हमारे रक्षक, त्राता और अमर इन्द्रदेव! किसी भी रथ पर चढ़कर पधारें। शत्रुओं का नाश करने वाले इन्द्र देव हमें छोड़कर सभी को बाधा दें। शत्रुओं का वध करने वाले तथा जो कुकर्म में लगे हुए हैं, ऐसे शत्रुओं का नाश करें।[ऋग्वेद 1.129.10]
हे अत्यन्त बलिष्ठ, पालक, अमर इन्द्र! तुम हमको धन के साथ प्राप्त हो जाओ। 
Hey Indr Dev! Please rescue us with that money, which can remove-destroy all of our troubles. You are furious. You have the glory which a friend should possess for our safety. Hey strong, protector and immortal Indr Dev! Come riding any vehicle-chariote. Hey the slayer of the enemy, block everyone (trouble creators) except us. Kill those enemies who are engaged in sins, wickedness, vices.
पाहि न इन्द्र सुष्टुत स्त्रिघोऽवयाता सदमिद्दुर्मतीनां देवः सन्दुर्मतीनाम्। हन्ता पापस्य रक्षसस्त्राता विप्रस्य मावतः। अधा हि त्वा जनिता जीजनद्वसो रक्षोहणं त्वा जीजनद्वसो
हे शोभन स्तुति से युक्त इन्द्र देव! दुःख से हमें बचाओ; क्योंकि आप सदा दुष्टों को नीचा दिखाते हैं। हमारी स्तुति से प्रसन्न होकर यज्ञ विघ्नकारियों का दमन करें। आप पाप एवं राक्षसों के हन्ता और हमारे समान बुद्धिमानों के रक्षक हैं। हे जगन्निवास इन्द्रदेव! इसीलिए परमेश्वर ने आपको उत्पन्न किया क्योंकि राक्षसों के विनाश के लिए आपकी उत्पत्ति हुई है।[ऋग्वेद 1.129.11] 
पापियों का विनाश करने वाले असुरों के नाशक, स्तोताओं के रक्षक, पीड़ाओं से हमारी रक्षा करो। हे धनेष, वज्रिन! इसलिए तुम प्रकट हुए हो।
Hey Indr Dev! You are worshiped-prayed with the lovely Strotr. You dominate the wicked-vicious, so protect us from worries, pains, sorrow. Be happy with our prayers and repress those, who create trouble in the Yagy. You are the destroyer of the sin, the demons and protector of the intelligent-prudent. Hey supporter of the humans, the Almighty has created you for the destruction of the demons-giants.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (130) ::  ऋषि :- परुच्छेपो, देवता :- इन्द्र, छन्द :- अत्यष्टि, त्रिष्टुप्
एन्द्र याह्युप नः परावतो नायमच्छा विदथानीव सत्पतिरस्तं राजेव सत्पतिः। हवामहे त्वा वयं प्रयस्वन्तः सुते सचा। पुत्रासो न पितरं वाजसातये मंहिष्ठं वाजसातये
जिस प्रकार यज्ञशाला में ऋत्विकों के पति यजमान हैं और जैसे नक्षत्रों के पति चन्द्रमा अस्ताचल हो जाते हैं, वैसे ही आप भी पुरोवर्ती सोम की तरह स्वर्ग से हमारे पास पधारें। जैसे पुत्र लोग अन्न भक्षण के लिए पिता को बुलाते हैं, वैसे ही हम आपका सोमाभिषव के लिए आवाहन करते हैं। ऋत्विकों के साथ हव्य ग्रहण करने के लिए महान् इन्द्रदेव को हम यहाँ बुलाते हैं।[ऋग्वेद 1.130.1]
जैसे अग्नि अनुष्ठान को ग्रहण होती है, वैसे ही हे इन्द्रदेव! तुम दूरस्थ हो तो भी हमको ग्रहण होओ। हम सोम निचोड़कर शक्ति के लिए तुम्हारा आह्वान करते हैं। पुत्र द्वारा पिता को पुकारने के समान हम तुम्हें पुकारते हैं।
The way the leader of the Yagy, in the Yagy Shala (spot where Yagy is being held) of the Ritviz-priests is the host, the leader of the constellations Moon sets, the same way you should also come to us from the heaven. The way the sons call their father to accept food, we too invite to have Somras and the offerings.
पिबा सोममिन्द्र सुवानमद्रिभिः कोशेन सिक्तमवतं न वंसगस्तातृषाणो न वंसगः। मदाय हर्यताय ते तुविष्टमाय धायसे। आ त्वा यच्छन्तु हरितो न सूर्यमहा विश्वेव सूर्यम्
जैसे शोभन गति वृषभ पिपासित होकर कुएँ के जल के को पीता है, हे रमणीय गति इन्द्रदेव! वैसे ही तृप्ति, पराक्रम, महत्त्व और आनन्दोत्पत्ति के लिए प्रस्तर द्वारा अभिषुत और जलसिक्त अथवा दशापवित्र द्वारा शोधित सोमरस का आप पान करें। जैसे हरि नामक अश्व सूर्य को लाते हैं, वैसे ही आपके अश्वगण प्रतिदिन आपको लेकर आवें।[ऋग्वेद 1.130.2]
हे इन्द्रदेव! पत्थर से निचोड़े गये इस सोम का पान करो। यह तुम्हारी शक्ति, कांति और पुष्टि का वर्द्धक हो। तुम्हारे अश्व सूर्य के अश्वों के तुल्य यहाँ प्रस्थान करें।
The way a beautifully decorated ox-bull moving with attractive speed, moves to the well and drink water, the same  way, hey Indr Dev, you should come to us and drink the Somras, which has been extracted by crushing it with stones, treated with water and purified in ten ways. The way the horses named Hari of the Sun brings him, your horses should also bring you here.
अविन्दद्दिवो निहितं गुहा निधिं वेर्न गर्भं परिवीतमश्मन्यनन्ते अन्तरश्मनि। व्रजं वज्री गवामिव सिषासन्नङ्गिरस्तमः। अपावृणोदिष इन्द्रः परीवृता द्वार इषः परीवृताः
जैसे चिड़ियाँ दुर्गम स्थान में अपने बच्चों की रक्षा करके उन्हें प्राप्त करती है, वैसे ही इन्द्रदेव ने भी अत्यन्त गोपनीय स्थान में स्थापित और अनन्त तथा महान् प्रस्तर राशि में परिवेष्टित सोमरस को स्वर्ग से प्राप्त किया। अङ्गिरा लोगों ने अग्रगण्य वज्रधारी इन्द्रदेव को जिस प्रकार पहले, सोमपान की इच्छा से गोशाला को प्राप्त किया था, वैसे ही सोमरस को भी पाया। इन्द्र देव ने चारों ओर मेघावृत और अन्न विस्तारित किया।[ऋग्वेद 1.130.3]
अंगिराओं के प्रधान इन्द्र ने पावन की गुफा में छिपे हुए खजाने को ढूंढकर पाया। उन्होंने गाँओं के गोष्ठ के समान उसे खोल दिया।
The way the birds hide their chickens in very tough & secret places, Indr Dev too hide the Somras and then got it, in the heaven. The manner Angira clan-descendents welcomed Indr Dev in the cow shed, they got Somras in the cow shed. Indr Dev created clouds in all directions and spread the food grains (to grow).
दाद्दहाणो वज्रमिन्द्रो गभस्त्योः क्षद्मेव तिग्ममसनाय से श्यदहिहत्याय सं श्यत्। संविव्यान ओजसा शवोभिरिन्द्र मज्मना। तष्टेव वृक्षं वनिनो नि वृश्चसि परश्चेव नि वृश्चसि
इन्द्रदेव दोनों हाथों में अच्छी तरह वज्र धारण करके, जैसे मंत्रों द्वारा जल को तीक्ष्ण किया जाता है, वैसे ही शत्रु के प्रति फेंकने के लिए वज्र के तीक्ष्ण होने पर भी उसे और भी तीक्ष्ण करते हैं, वृत्रासुर के विनाश के लिए अपने वज्र को और भी तीक्ष्ण करते हैं। हे इन्द्रदेव जैसे वृक्ष काटने वाले वृक्ष को काटते हैं, वैसे ही आप अपनी शक्ति, तेज और शारीरिक बल से वर्द्धित होकर हमारे शत्रुओं का वध करते हैं, मानो उन्हें कुल्हाड़ी से काटते हैं।[ऋग्वेद 1.130.4]
इन्द्र ने वज्र को खूब तेज किया। हे इन्द्र! तुम पराक्रम से युक्त होकर उस वृत्र को बढ़ई के समान काटते हो। 
Indr Dev sharpens the Vajr the way the Mantrs are made more effective with the help of water and sharpen it prior to striking it over Vrata Sur. Indr Dev kills the enemies the way a wood-tree cutter cuts the trees with his might and physical strength.
त्वं वृथा नद्य इन्द्र सर्तवेऽच्छा समुद्रमसृजो रथाँइव वाजयतो रथाँइव इत। ऊतीरयुञ्जत समानमर्थमक्षितम्। धेनूरिव मनवे विश्वदोहसो जनाय विश्वदोहसः
हे इन्द्रदेव! आपने समुद्र की ओर गमन करने के लिए रथ की तरह नदियों को अनायास बनाया। जैसे योद्धा रथ को बनाते हैं, वैसे ही आपने भी बनाया। जैसे मनु के लिए गायें सर्वार्थदाता है और जैसे समर्थ मनुष्य के लिए गायें सर्व दुग्धप्रद है, वैसे ही हमारी अभिमुखिनी नदियाँ एक ही प्रयोजन से जल एकत्रित करती है।[ऋग्वेद 1.130.5]
हे इन्द्रदेव! तुमने नदियों को समुद्र की ओर जाने के लिए रथों के तुल्य त्यागा है। इन नदियों के पतन न होने वाले धन का संपादन किया है, जैसे धेनु मनुष्यों को पुष्टि-प्रद धन प्रदान करती हैं।
Hey Indr Dev! You created the rivers negotiable, for moving towards the ocean just like the chariote, at random. The way warriors keep the chariote ready, you too prepare it. The way the cows provide every thing to Manu and the capable humans yielding milk, the rivers too have water.
The cows & the rivers are essential for civilisation.
इमां ते वाचं वसूयन्त आयवो रथं न धीरः स्वपा अतक्षिषुः सुम्नाय त्वामतक्षिषुः। शुम्भन्तो जेन्यं यथा वाजेषु विप्र वाजिनम। अत्यमिव शवसे सातय घना विश्वा धनानि सातये
जैसे कर्म कुशल और धीर मनुष्य रथ बनाता है, वैसे ही धनाभिलाषी मनुष्यों ने आपकी यह स्तुति की है। उन्होंने अपने कल्याण के लिए आपको प्रसन्न किया। जिस प्रकार संसार में दिग्विजयी की प्रशंसा की जाती है, वैसे ही हे मेधावी और दुर्द्धर्ष इन्द्रदेव! उन्होंने आपकी प्रशंसा की है। जैसे युद्ध में अश्व की प्रशंसा होती है, वैसे ही बल, धन रक्षण और मंगलों की प्राप्ति के लिए आपकी प्रशंसा होती है।[ऋग्वेद 1.130.6]
दुर्द्धर्ष :: जिसका दमन करना कठिन हो, जिसे जल्दी दबाया या वश में न किया जा सके, जिसे परास्त करना या हराना कठिन हो, प्रचंड,  प्रबल, धृतराष्ट्र के एक पुत्र का नाम, रावण की सेना का एक राक्षस; one who can not be controlled-over powered, won.
दिग्विजयी :: The conqueror who has won-controlled territories world wide, conquest of territory in all directions, widespread fame. 
हे इन्द्रदेव! धन के इच्छुक प्राणियों ने तुम्हारे लिए श्लोकों की रचना की। उसी प्रकार जैसे कुशल कारीगर रथ बनाता है, वे तुम्हारा शृंगार करते हैं। तुम्हारे अश्वों को सजाते हैं। धन की प्राप्ति के लिए वह सब करते हैं।
The way a skilled artisan constructs a chariote with patience, the humans desiring money-riches have sung this prayer in your glory-honour. They have amused you for their welfare. The way a conqueror is praised-appreciated in the world, hey Indr Dev! You are praised an an intelligent and furious person who cannot be controlled-defeated, won, over powered. They way the horse is praised in the war, you are praised for protection of wealth, auspicious events & power-strength.
भिनत्पुरो नवतिमिन्द्र पूरवे दिवोदासाय महि दाशुषे नृतो वज्रेण दाशुषे नृतो। अतिथिग्वाय शम्बरं गिरेरुग्रो अवाभरत् महो धनानि दयमान् ओजसा विश्वा घनान्योजसा
युद्ध के समय नृत्यकर्ता इन्द्रदेव! आपने हविःप्रद और अभीष्टदाता दिवोदास राजा के लिए नब्बे नगरों को अपने वज्र से नष्ट किया। हे उग्र इन्द्रदेव! आपने अतिथि सेवक दिवोदास राजा के लिए पर्वत से शम्बर असुर को नीचे फेंक दिया और दिवोदास राजा को अपनी शक्ति से अपार धन प्रदान किया इतना ही नहीं उन्हें समस्त प्रकार के धन दिये।[ऋग्वेद 1.130.7]
हे इन्द्रदेव! तुमने पुरु और दिवोदास के लिए शत्रु के किलों को ध्वस्त किया। अपने तेज से अति विश्व को श्रेष्ठ धन प्रदान किया और शम्बर को पर्वत से गिरा दिया। 
Hey Indr Dev! You dance (kill the enemies) while fighting. You destroyed 90 cities with your Vajr, for the sake of king Divo Das, who used to make offerings, regularly. Hey furious Indr Dev! You threw Shambar, a demon from the mountains for protecting Divo Das and granted him immense wealth.  
इन्द्रः समत्सु यजमानमार्यं प्रावद्विश्वेषु शतमूतिराजिषु स्वमीळ्हेष्वाजिषु। मनवे शासदव्रतान्त्वचं कृष्णामरन्धयत्। दक्षन्न विश्वं ततृषाणमोषति न्यर्शसानमोषति
युद्ध में इन्द्रदेव आर्य यजमान की रक्षा करते हैं। असँख्य बार रक्षा करने वाले ये समस्त युद्धों में उसकी रक्षा करते हैं। ये मनुष्यों के लिए व्रत शून्य व्यक्तियों पर शासन करते हैं। इन्होंने कृष्ण नामक असुर की काली त्वचा उखाड़कर उसका वध किया और उसे जला डाला। इतना ही नहीं इन्होंने समस्त हिंसकों को जला डाला और समस्त निष्ठुर व्यक्तियों को भरभूत कर दिया।[ऋग्वेद 1.130.8]
निष्ठुर :: हृदयहीन, कठोर, दयाभाव से शून्य; vandal, Strict, feeling lees, heartless, ruthless, stonyhearted.
आर्य ::
सर्वदाभिगत: सद्भि: समुद्र इव सिन्धुभि:।
आर्य: सर्वसमश्चैव सदैव प्रियदर्शन:॥ 
जिस प्रकार नदियाँ समुद्र में पहुँचती हैं, उसी प्रकार उसके पास सदा सज्जनों का समागम रहता है। वे आर्य हैं, वे समदृष्टि हैं और सदा प्रिय दर्शन है।[बाल्मी.बाल. 1.16]
आर्य शब्द में उदारता, नम्रता, श्रेष्ठता, सरलता, साहस, पवित्रता, दया, निर्बल-संरक्षण, ज्ञान के लिए उत्सुकता, सामाजिक कर्तव्य-पालन आदि सब उत्तम गुणों का समावेश हो जाता है। मानवीय भाषा में इससे उत्तम और कोई शब्द नहीं है। इन्द्रदेव ने आपने तपस्वी की अत्यन्त सुरक्षा की, व्रतहीनों को दण्ड दिया। वे दस्युओं और लालचियों को समाप्त करने वाले हैं।
Indr Dev protects the Ary in battle-war. He protected the Ary innumerable times in the battle field. He controls those who do not follow the tenants of Dharm-one who do not follow Dharm, Varnashram Dharm. He killed the demon called Krashn, having black skin by removing his skin. He burnt off those who were ruthless & violent. 
Just being Hindu or Sanatani does not mean that one is a Ary. 
सूरश्चक्रं प्र वृहज्जात ओजसा प्रपित्वे वाचमरुणो मुषायतीशान आ मुषायति। उशना यत्परावतोऽजगन्नूतये करे। सुम्नानि विश्वा मनुषेव तुर्वणिरहा विश्वेव तुर्वणिः
सूर्य देवता का रथ चक्र ग्रहण करने पर इन्द्र देव के शरीर में बल की वृद्धि हुई। इन्द्र देव ने उस चक्र को फेंका और अरुण वर्ण रूप धारित करके शत्रुओं के पास जाते ही उन्हें शान्त कर दिया। हे वीर कर्मा इन्द्रदेव! उशना की रक्षा के लिए जैसे आप दूरस्थित स्वर्ग से पधारे थे, वैसे ही हमारे समस्त सुख-साधन धन के साथ हमारे पास शीघ्र आवें। दूसरों के पास भी आप इसी प्रकार आते हैं, हमारे पास प्रतिदिन पधारें।[ऋग्वेद 1.130.9]
सूर्योदय होते ही प्रकाश पुंज बढ़ा, उसकी लाली ने पापियों की वाणी छीन ली। हे इन्द्र! तुम स्नेहवश दूर से रक्षा के लिए यहाँ आए। तुम जल्दी से सभी धनों को प्राप्त कराते हो। 
Indr Dev adopted the Rath Chakr-the elliptical path of Bhagwan Sury and had enormous energy in his body. He came out of the elliptical path and had the colour of the Sun-golden hue leading to silencing-neutralising (making them energy less-powerless) the enemy. He Indr Dev! Please come to us quickly, the way, you reached to protect Ushna from the heavens and grant us all sorts of amenities, comforts, luxuries. The way you visit the other Ritviz, hosts, priests, Purohits who conduct Yagy everyday, you come to us too, in this manner.
स नो नव्येभिर्वृषकर्मन्नुक्थैः पुरां दर्तः पायुभिः पाहि शग्मैः। दिवोदासेभिरिन्द्र स्तवानो वावृधीथा अहोभिरिव द्यौः
हे जल वर्षक और नगर विदारक इन्द्र देव! हमारे नये मन्त्र से संतुष्ट होकर विविध प्रकार की रक्षा और सुख देते हुए हमारा पालन करें। हम दिवोदास के गोत्रज हैं; आपकी हम स्तुति करते हैं। आप दिन में सूर्य की तरह हमारी स्तुति से प्रसन्न हो जावें।[ऋग्वेद 1.130.10]
शत्रु दुर्ग-भंजक इन्द्रदेव! तुम नये श्लोकों, अनुष्ठानों और सहायताओं से हमारी सुरक्षा करो। दिवोदास के वंशजों की वंदना से दिन से क्षितिज के वृद्धि करने के तुल्य मति को ग्रहण होओ।
Hey rain shower creator Indr Dev! You should be happy-satisfied with our new prayer-Mantr and protect us, granting all sorts of facilities. We belong to the Devi Das clan-dynasty and pray-worship you. You should become happy with us, with our prayer, like the Sun, who become happy with us.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (131) ::  ऋषि :- परुच्छेपो, देवता :- इन्द्र, छन्द :- अत्यष्टि
इन्द्राय हि द्यौरसुरो अनम्नतेन्द्राय मही पृथिवी वरीमभिर्द्युम्नसाता वरीमभिः। इन्द्रं विश्वे सजोषसो देवासो दधिरे पुरः। इन्द्राय विश्वा सवनानि मानुषा रातानि सन्तु मानुषा
विशाल द्युलोक स्वयं इन्द्रदेव के पास नतमस्तक हुआ है। विस्तृता पृथ्वी वरणीय स्तुति द्वारा इन्द्र के पास नतमस्तक हुई। अन्न के लिए यजमान लोग वरणीय हव्य द्वारा नतमस्तक हुए। समस्त देवों ने एक मत से इन्द्रदेवता को अग्रणी माना। मनुष्यों के सारे यज्ञ और मनुष्यों के सारे दानादि इन्द्रदेव के सुख के निमित्त हों।[ऋग्वेद 1.131.1]
इन्द्रदेव के लिए क्षितिज नत हुआ, धरा झुक गई, यजमान अनेक अन्न के लिए झुका है। समस्त देवों ने संगठित होकर एक मत से इन्द्रदेव को अग्रगण्य बनाया। मनुष्यों द्वारा दी गई सोम परिपूर्ण आहुतियाँ इन्द्रदेव को ग्रहण हों।
Entire universe bowed before Indr Dev. Prathvi sung a prayer and bowed before Dev Raj Indr. The priests bowed before him for the sake of food grains-stuff, making offerings. All demigods-deities considered-accepted him as their leader. Let all Yagy, Hawans, Agni Hotr be meant for the demigods-deities. 
विश्वेषु हि त्वा सवनेषु तुञ्जते समानमेकं वृषमण्यवः पृथक् स्वः सनिष्यवः पृथक्। तं त्वा नावं न पर्षाणिं शूषस्य धुरि धीमहि। इन्द्रं न यज्ञैश्चितयन्त आयव: स्तोमेभिरिन्द्रमायवः
हे इन्द्रदेव! आपके पास अभिमत फल की प्राप्ति की आशा में प्रत्येक सवन में यजमान लोग आपको हव्य प्रदान करते हैं। आप सबके लिए एक तुल्य हैं। स्वर्ग प्राप्ति के लिए केवल आपको ही हव्य दिया जाता है। जैसे नदी पार होने के समय नौका खड़ी की जाती है, वैसे ही हम सेना के आगे आपको खड़ा करते हैं। यज्ञ व स्तुति द्वारा हम मनुष्यगण इन्द्रदेव को प्रसन्न करते हैं।[ऋग्वेद 1.131.2]
सवन :: बलि, उपहार, अग्नि का एक नाम, वशिष्ठ के एक पुत्र का नाम, चंद्रमा, यज्ञ, सोमपान, यज्ञस्नान, सोनापाठा, श्योनाक वृक्ष, बच्चा जनना, प्रसव
भृगु के एक पुत्र का नाम; रोहित मन्वंतर के सप्तर्षियों में से एक ऋषि का नाम; स्वायंभुव मनु के एक पुत्र का नाम, सोमलता को निचोड़कर रस निकालना; offerings, gifts, a name of Agni-fire, Yagy, drinking Somras.
हे इन्द्र! सभी सोमयागों में यजमान सभी के प्रतिनिधि रूप तुम्हें हव्य देते हैं। नौका के समान पार लगाने वाले इन्द्र को यज्ञ द्वारा चैतन्य करते हुए सेना के सम्मुख स्थापित करते हैं। प्राणी श्लोकों द्वारा उसका ध्यान करते हैं।
Hey Indr Dev! People come to you all the time with the expectation of being rewarded-granting of desires, wishes, making offerings. You consider them at par-equal. People make offerings for you with the desire of attaining heaven. The way a boat is deployed to cross the river, we place you in front of the army. We the humans make you pleased with the help of Yagy and prayers-worship.
वि त्वा ततस्त्रे मिथुना अवस्यवो व्रजस्य साता गव्यस्य निःसृजः सक्षन्त इन्द्र निःसृजः। यद्गव्यन्ता द्वा जना स्वर्यन्ता समूहसि। आविष्करिक्रषणं सचाभुवं वज्रमिन्द्र सचाभुवम्
हे इन्द्रदेव! आपके सेवक और निष्पाप यजमान अपनी पत्नी के साथ आपकी तृप्ति के लिए, बहुसंख्यक गोधन की प्राप्ति के लिए बहुत हव्य दान करते हुए आपके उद्देश्य से यज्ञ विस्तारित करते हैं। वे गोधन चाहते हैं और स्वर्ग जाने के लिए उत्सुक है। आप उनको अभीष्ट प्रदान करें। क्योंकि आप अभीष्टवर्धक है। आपने अपने सहजन्मा और चिर-सहचर वज्र को प्रकट किया।[ऋग्वेद 1.131.3]
हे इन्द्रदेव! सुरक्षा को चाहने वाले गृहस्थ अपनी भार्या युक्त धेनुओं की ग्रहणता के लिए तुम्हारे चारो ओर एकत्रित होते हैं। उनके अनुष्ठान आदि कार्यों से अभीष्ट फल ग्रहण होता है। तुमने अपने साथ रहने वाले वज्र को प्रकट किया है।
Hey Indr Dev! Your servants-followers and the sinless hosts-priests, conduct Yagy along with their wife with the desire of getting lots of cows and the heaven, making numerous offerings. You should grant them, what they desire (deserve) since, you are capable of granted boons. You have evolved Vajr, who is always with you & born with you.
विदुष्टे अस्य वीर्यस्य पूरवः पुरो यदिन्द्र शारदीरवातिरः सासहानो अवातिरः। शासस्तमिन्द्र मर्त्यमयज्युं शवसस्पते। महीममुष्णाः पृथिवीमिमा अपो मन्दसान इमा अपः
हे इन्द्रदेव! मनुष्य आपकी महिमा जानते हैं। आपने जिन शत्रुओं की परिखा आदि से दृढ़ीकृत नगरियों को नष्ट कर उन्हें पराजित किया, वह कथा मनुष्य जानते हैं। हे दलपति इन्द्रदेव! आपने यज्ञ विघातक मनुष्य पर शासन किया तथा असुरों की विशाल पृथ्वी और जलराशि को सरलता से जीतकर अन्नादि को प्राप्त किया।[ऋग्वेद 1.131.4]
हे इन्द्रदेव! तुम्हारी शक्ति को प्राणी-जानते है। तुमने अयाज्ञिकों के गढ़ों को नष्ट किया है। तुमने उन शत्रुओं का दंड दिया है। तुमने विस्तृत धरती और जलों पर विजय प्राप्त की है।
Hey Indr Dev! Humans are aware of your glory. They know the story of the destruction of the cities-fortifications of the demons-enemies. Hey group leader Indr Dev! You ruled-tamed the humans who used to destroy Yagy and won the land & the oceans-captured occupied by the demons and gained food stuff-grains.
आदित्ते अस्य वीर्यस्य चर्किरन्मदेषु वृषन्नुशिजो यदाविथ सखीयतो यदाविथ। चकर्थ कारमेभ्यः पृतनासु प्रवन्तवे। ते अन्यामन्यां नद्यं सनिष्णत श्रवस्यन्तः सनिष्णत
हे इन्द्रदेव! सोमपान कर प्रसन्न होने पर मनोरथ पूर्ण करने वाले बनें। आप यजमानों व बन्धुता कामी यजमानों की रक्षा किया करते हैं, इसलिए वे आपकी वृद्धि के निमित्त अपने यज्ञों में बार-बार सोमरस प्रदान करते हैं। युद्ध सुख के भोग के लिए आपने सिंहनाद किया। यजमान लोग आपसे नाना प्रकार की भोग्य वस्तुएँ पाते हैं, विजय द्वारा प्राप्त अन्न की इच्छा करते हुए आपके पास आते हैं।[ऋग्वेद 1.131.5]
हे इन्द्र देव! सोम रस से आनन्द ग्रहण कर अभीष्ट फल देने वाले बनो, तपस्वियों के रक्षक बनो। आप यजमान के लिए तुम द्वन्द्रों में प्रवृत्त होते हो। समस्त प्राणी आपसे अन्न ग्रहणता की कामना करते हैं। 
Hey Indr Dev! Have Somras and be amused to fulfil the desires of the devotees. You protect the devotees, hosts, priests and those performing Yagy for your sake and hence they make offerings in their Yagy for your growth & glory, offering you Somras. You roared to enjoy the comforts gained in the war-battle. Those performing Yagy get numerous goods for comforts, enjoyment and they come to you for having the food stuff-grains after the victory.
उतो नो अस्या उषसो जुषेत ह्यर्कस्य बोधि हविषो हवीमभिः स्वर्षाता हवीमभिः। यदिन्द्र हन्तवे मृधो वृषा वज्रिञ्चिकेतसि। आ मे अस्य वेधसो नवीयसो मन्म श्रुधि नवीयसः
हे इन्द्रदेव! आप प्रातःकाल में आहुतियों को ग्रहण करने वाले व यज्ञादि कार्यों के समय उच्चारण होने वाली स्तुतियों को सुनें। हे इन्द्रदेव! नये-नये रचित स्तोत्रों द्वारा स्तोताओं की इच्छाओं को आप जाने तथा उन कार्यों के प्रति सजग रहें, जो शत्रुओं का संहार करने वाले हैं। हे इन्द्रदेव! मैं मेधावी व असाधारण स्तुतिवाला हूँ, मेरा दिव्य स्तोत्र श्रवण करें।[ऋग्वेद 1.131.6]
हे इन्द्रदेव! हमारे प्रातःकालीन यज्ञ में हमारी हवियाँ स्वीकार करो और हमारी प्रार्थनाओं पर ध्यान दो। हे वज्रिन! तुम शत्रुओं को मारने वाले हो। मुझ असाधारण बुद्धि वाले के सुन्दर श्लोक को सुनो।
Hey Indr Dev! Please accept the offerings made in the morning by us and listen to the Strotr, prayers sung in you glory-honour. Know the desires-wishes of those who pray to you with the help of newly written-composed prayers, be alert towards their deeds-endeavours which are meant for destroying the enemy. Hey Indr Dev! I am brilliant and composed of extra ordinary prayers, in your honour-glory. Listen to my divine compositions.
त्वं तमिन्द्र वावृधानो अस्मयुरमित्रयन्तं तुविजात मर्त्यं वज्रेण शूर मर्त्यम्। जहि यो नो अघायति शृणुष्व सुश्रवस्तमः। रिष्टं न यामन्नप भूतु दुर्मतिविश्वाप भूतु दुर्मतिः
अनेकानेक गुण विशिष्ट हे शूर इन्द्रदेव! आपने हमारी स्तुति से वृद्धि पाई है और हमारे प्रति संतुष्ट हुए। जो व्यक्ति हमारे प्रति शत्रुता का आचरण करता है और जो हमें दुःख पहुँचाता है, उसे वज्र द्वारा नष्ट करें। हे श्रवण के लिए उत्कण्ठित इन्द्रदेव! मार्ग में थके-माँदै व्यक्ति को दुर्बुद्धि मनुष्य कष्ट पहुँचाते हैं, ऐसे सभी दुर्मति मनुष्य हमारे पास से दूर हो जावें।[ऋग्वेद 1.131.7]
हे इन्द्रदेव! तुम हमारी सुरक्षा के लिए वृद्धि करते हुए उन लोगों का शोषण करो जो हमको कष्टमय करता है। हे पराक्रमी! तुम्हारे वज्र की मार से दुष्टमति वाले पीड़ित दूर भाग जायें।
Hey possessor of numerous abilities-characterises, brave Indr Dev! You progressed with our prayers and got satisfied with our prayers. One who has anonymity with us and who pains-tortures us, be relinquished by your Vajr.  Hey Indr Dev! You are eager to listen to our requests-prayers. Those depraved, who inflict injuries, pain to the tired persons be repelled away from us.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (132) ::  ऋषि :- परुच्छेपो, देवता :- इन्द्र, छन्द :- अनुष्टुप, गायत्री, धृति, अत्यष्टि।
त्वया वयं मघवन्पूर्व्ये धन इन्द्रत्वोताः सासह्याम पृतन्यतो वनुयाम वनुष्यतः। नेदिष्ठे अस्मिन्नहन्यधि वोचा नु सुन्वते। अस्मिन्यज्ञे वि चयेमा भरे कृतं वाजयन्तो भरे कृतम्
हे सुख संयुक्त इन्द्रदेव! आपके द्वारा रक्षित होकर हम हिंसक प्रवृत्ति वाले शत्रुओं को परास्त करेंगे। आप हिंसा करने वाले दुष्टों का वध करें। इन समीपस्थ दिवसों में आप अपने साधकों को प्रेरित करें। उत्तम कर्मों के लिए संघर्ष करने वाले हम याजकगण इस यज्ञ में आपका वरण करते हैं। हम शक्ति से युक्त होकर युद्ध नेतृत्व की योग्यता में दक्ष हो।[ऋग्वेद 1.132.1]
हे इन्द्रदेव! हम तुम्हारी सुरक्षा साधनों से सम्पन्न होकर शत्रुओं को पराजित करें। उनको अधिक कष्ट दें। सोम निष्पन्न कर्त्ता को उत्साहित करो जिससे हम द्वन्द्व में अपार धनों को जीतें। इन्द्रदेव ने प्रातः जागकर आह्वान करने वाले यजमान के लिए प्रकट शत्रुओं का नाश किया है।
Hey Indr Dev, you are associated with comforts (sensual pleasure, passions)! Under your protection-shelter, we will be able to defeat those who are violent. You should destroy-kill the wicked, villains, sinners, depraved who resort to violence. You should inspire your devotees for performing virtuous deeds. We the devotees, accept you as a deity for conducting the Yagy. We should be strengthened and trained in leadership qualities in the war-battle.
स्वर्जेषे भर आप्रस्य वक्मन्युषर्बुधः स्वस्मिन्नञ्जसि क्राणस्य स्वस्मिन्नञ्जसि अहन्निन्द्रो यथा विदे शीर्ष्णाशीर्ष्णोपवाच्यः। अस्मत्रा ते सध्रय्क्सन्तु रातयो भद्रा भद्रस्य रातयः
शत्रु वध के लिए इधर-उधर दौड़ने वाले वीर पुरुषों के स्वर्ग साधन तथा कपटादि रहित मार्ग स्वरूप संग्राम के आगे इन्द्र देवता प्रातः काल में जागृत हुए याज्ञिकों के शत्रुओं का विनाश करते हैं। सर्वज्ञ की तरह इन्द्र देवता की मस्तक झुकाकर स्तुति करना हम सबका कर्त्तव्य है। हे इन्द्र देव! आपका दिया हुआ धन हमारे लिए ही स्थिर हैं।[ऋग्वेद 1.132.2]
इन्द्र  देव ने प्रातः जागकर आह्वान करने वाले यजमान के प्रकट शत्रुओं का नाश किया। है उस इन्द्र को सर्वज्ञ मानकर प्रार्थना करो। हे इन्द्र! तुम्हारा प्रदान किया ऐश्वर्य हमारा कल्याण करे। 
Indr Dev vanish the enemies of the hosts-priests, who get up in the morning. Indr Dev grant heaven to the brave, who chase the enemies. We should bow before Indr Dev, considering him as enlightened, all knowing. Hey Indr Dev! The wealth granted to us by you be stable with us.
तत्तु प्रयः प्रत्नथा ते शुशुक्वनं यस्मिन्यज्ञे वारमकृण्वत क्षयमृतस्य वारसि क्षयम्वि। तद्वोचेरध द्वितान्तः पश्यन्ति रश्मिभिः। स घा विदे अन्विन्द्रो गवेषणो बन्युक्षिद्धयो गवेषणः
हे इन्द्रदेव! जिस यश को आपने प्रतिष्ठित स्थान बनाया है, वहाँ पूर्ववत् ही लाभ के लिए तेजस्वी अन्न उपलब्ध है। सत्य की महिमा से सुशोभित उस स्थान पर पहुँचाने वाले आप उसी सत्य मार्ग को हमें दिखायें। सूर्य रश्मियों से सभी लोग दोनों लोकों के मध्य में स्थित मेघरूप में आपके ही दर्शन होते हैं। आप ही गौओं के प्रदाता होने के साथ सत्यधाम के ज्ञाता है और यजमानों को गौ प्रदान करने वाले हैं, ऐसा सर्वप्रसिद्ध है।[ऋग्वेद 1.132.3]
ये पुष्टिकारक हविया तुम्हारे लिए हैं। तुम्हारे पितरों ने यज्ञ द्वारा काया क्षय को पराक्रम से रोक दिया। वे इन्द्र यजमानों के लिए गौओं के देने की कामना वाले माने गये हैं।
Hey Indr Dev! Energetic food stuff be available at those places which have been glorified by you. Show us the way leading to truth-glorified for truth. You are visible between the two abodes (heaven & the earth) in the form of clouds. You grant-provide us cows and aware of the abode of truth. You are famous for giving cows to the priests-hosts.
नू इत्था ते पूर्वथा च प्रवाच्यं यदङ्गिरोभ्योऽवृणोरप व्रजमिन्द्र शिक्षन्त्रप व्रजम्। ऐभ्यः समान्या दिशास्मभ्यं जेषि योत्सि च। सुन्वद्ध्यो रन्धया कं चिदव्रतं हृणायन्तं चिदव्रतम्
हे इन्द्र देव! पूर्वकाल की तरह आपका कर्म इस समय भी सबकी प्रशंसा के योग्य है। आपने अङ्गिरा लोगों के लिए वर्षा कर उनकी अपहृत गौओं को जीतकर कर उन्हें ले जाने का मार्ग दिखाया। उसी प्रकार ही आप हमारे लिए भी ऐश्वर्यों को जीतकर प्रदत्त करें। आपने यज्ञ का विरोध करने वाले व क्रोधित होकर पापकर्म करने वालों को यज्ञादि श्रेष्ठ कर्म करने वाले के हित के लिए विनष्ट कर दिया।[ऋग्वेद 1.132.4]
हे इन्द्रदेव! पिछले के समान तुम्हारे वर्तमान पराक्रम का भी कीर्तिगान करना चाहिये। तुमने अंगिराओं को धेनु जीत कर दी। तुम द्वन्द्व में विजय प्राप्त कराने वाले होओ। अनुष्ठान विरोधियों को सोम निष्पन्न कर्त्ता के आधीन करो।
Hey Indr Dev! Your deeds are appreciable-commanding like the previous ones. You showered-rains for the Angiras, won back their abducted cows and showed them the way to reach their destination. Similarly, you should win amenities-comforts for us. You destroyed those who opposed Yagy and the ones who indulged in sinful acts on being angry, for the welfare of those, who were engaged in pious, virtuous, righteous deeds, acts, endeavours.
सं यञ्जनान् क्रतुभिः शूर ईक्षयद्धने हिते तरुषन्त श्रवस्यवः प्र यक्षन्त श्रवस्यवः। तस्मा आयुः प्रजावदिद्वाधे अर्चन्त्योजसा। इन्द्र ओक्यं दिधिषन्त धीतयो देवाँ अच्छा न धीतयः
हे शूर इन्द्रदेव! कर्म द्वारा मनुष्यों के विषय में आप यथार्थ विचार करते हैं, इसलिए अन्नाभिलाषी यजमानगण अभिमत धन प्राप्त करके शत्रुओं का विनाश करते हैं। वे अन्नाभिलाषी होकर विशेष रूप से यज्ञ करते हैं। आपके उद्देश्य से प्रदत्त अन्न पुत्रादि प्राप्ति का कारण है। अपनी शक्ति से शत्रुओं के निवारण के लिए लोग आपकी पूजा करते हैं। यज्ञ करने वाले लोग आपके पास ही निवास स्थान प्राप्त करते हैं, जिस प्रकार से याज्ञिकगण देवों के पास ही रहते हैं।[ऋग्वेद 1.132.5]
इन्द्रदेव प्राणियों को विवेक बुद्धि देते हैं। यज्ञ की कामना से शत्रुओं पर आक्रमण करते हैं। यजमान यज्ञ करते हुए तुमसे सम्पत्ति माँगते हैं। उनके श्लोक सभी देवगणों को लक्ष्य करते हुए इन्द्र में ही फैल जाते हैं।
Hey brave Indr Dev! You consider & analyse the deeds of the humans, grant them desired money & food stuff and they destroy their enemies. They perform-organise Yagy with the desire of food grains, sons etc. They pray-worship you, so that they can destroy their enemies. Those perform Yagy to get their abode near you, the way Ritviz reside by the side of the demigods-deities.
युवं तमिन्द्रापर्वता पुरोयुधा यो नः पृतन्यादप तंतमिद्धतं वज्रेण तंतमिद्धतम्। दूरे चत्ताय च्छंत्सद्गहनं यदिनक्षत्। अस्माकं शत्रून्परि शूर विश्वतो दर्मा दर्षीष्ट विश्वतः
हे पर्वत और इन्द्रदेव! आप दोनों अग्र गामी होकर जो शत्रु हमारे विरोध में सेना एकत्रित करते हैं, उन सबको विनष्ट करें। वज्र प्रहार द्वारा उन सबको विनष्ट करें। यह वज्र अत्यन्त दूरगामी शत्रुओं का भी विनाश करने में सक्षम और अति गहन स्थान पर भी व्याप्त होता है। हे शूर इन्द्रदेव! आप हमारे समस्त शत्रुओं को त्रिविध उपायों द्वारा विदीर्ण करते हैं। आपका शत्रु विदारक वज्र विविध उपायों से शत्रुओं को विदीर्ण करता है।[ऋग्वेद 1.132.6]
हे इन्द्र! हमसे युद्ध करने की इच्छा करने वालों को तुम आगे बढ़कर हटाओ। तुम्हारा वज्र दूर से ही शत्रुओं को नष्ट करने में सक्षम है। हे इन्द्रदेव! शत्रुओं को सभी ओर से चीर डालो।
Hey Indr Dev & the mountains! You should be present in the front row of the army, to destroy the enemy armies gathered against us. Destroy them by striking Vajr over them. The Vajr is capable of locating & destroying distant enemies and is capable of striking at unreachable-secret places. Hey brave Indr Dev! You destroy our enemies in three ways. Your Vajr is capable of destroying-eliminating the enemy by different methods-ways.
 ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (133) ::  ऋषि :- परुच्छेपो, देवता :- इन्द्र, छन्द :- त्रिष्टुप्, अनुष्टुप, गायत्री, धृति, अत्यष्टि।
उभे पुनामि रोदसी ऋतेन द्रुहो दहामि सं महीरनिन्द्राः। 
अभिव्लग्य यत्र हता अमित्रा वैहस्थानं परि तृळ्हा अशेरन्
हम इन्द्र देवता का विरोध और द्रोह करने वालों का हनन करते हैं, जो यज्ञ की शक्ति से दोनों लोकों को पवित्र बनाते हैं। जहाँ बहुत सँख्या में भी शत्रुओं का वध होता है, वहाँ मृत शरीरों से रणभूमि श्मशान से भी अत्यधिक भयंकर लगती है।[ऋग्वेद 1.133.1]
मैं क्षितिज और पृथ्वी को अनुष्ठान द्वारा शुद्ध करता हूँ। इन्द्रदेव के विद्रोहियों और उनकी धरा को जलाता हूँ। उस स्थान पर शत्रु द्वारा मारे गये और खड्डों में डाल दिये गये।
We eliminate-kill, destroy those who opposes or revolt against Indr Dev who purify the two abodes (earth & the heaven) with his might. The war-battle field where enemy is killed in large numbers; looks even more furious-dangerous than the cremation ground.
अभिव्लग्या चिदद्रिवः शीर्षा याआपतीनाम्। 
छिन्धि वटूरिणा पदा महावटूरिणा पदा
हे शत्रु भक्षक इन्द्रदेव! शत्रुओं की सेना के सिर आप अपने वाहन ऐरावत हाथी के पैरों से कुचल दें क्योंकि उसके पैर अत्यधिक विस्तीर्ण हैं।[ऋग्वेद 1.133.2]
हे वज्रिन! शत्रु सेनाओं को हाथी के पैरों से कुचल डालो।
Hey destroyer of the enemy, Indr Dev! Crush the heads of the enemy army with the feet of Eravat (your divine elephant), since his feet are too broad.  
अवासां मघवञ्जहि शर्धो याआपतीनाम्। 
वैहस्थानके अर्मक महावैलस्थे अर्मके
हे मघवन् इन्द्रदेव! इस हिंसावती सेना का बल आप नष्ट कर उसे महान् श्मशान में फेंक दें।[ऋग्वेद 1.133.3]
मघवन् :: देवराज इन्द्र, 12 जैन चक्रवर्ती सम्राटों में से एक, एक उल्लू, शची-देवराज इन्द्र की पत्नी।
हे इन्द्रदेव! उनकी शक्ति का पतन करो और कुचलकर गहरे खड्डे में डाल दो।
Hey Indr Dev! Destroy this violent army and throw it in the vast-great cremation ground.
यासां तिस्रः पञ्चाशतोऽभिव्लङ्गैरैपावपः। 
तत्सु ते मनायति तकत्सु ते मनायति
हे इन्द्रदेव! इस प्रकार आपने त्रिगुणित पचास सेनाओं का विनाश किया। आपके इस कार्य को लोग अत्यधिक प्रशंसा करते हैं, किन्तु आपके लिए तो यह कार्य अत्यन्त सामान्य है।[ऋग्वेद 1.133.4]
हे इन्द्रदेव! तुमने उनकी तीन गुना सेनाओं को नष्ट कर डाला, तुम्हारा यह कार्य श्रेष्ठतम है। तुम्हारे लिए यह काम बहुत छोटा है।
Hey Indr Dev! You vanished fifty armies with triple strength of the enemies. Your efforts are lauded-appreciated by the humans open heartedly, but this a small-ordinary thing for you.
पिशङ्गभृष्टिमम्भृणं पिशाचिमिन्द्र सं मृण। 
सर्वं रक्षो नि बर्हय
हे इन्द्रदेव! कुछ रक्तवर्ण, अति भयंकर और शब्दकारी असुरों को नष्ट करते हुए समस्त अनार्यों का अन्त कर दें।[ऋग्वेद 1.133.5]
हे इन्द्रदेव! क्रोध से लाल हुए उन तुच्छ असुरों का सर्वनाश करो। सभी दानवों को समाप्त कर दो।
Hey Indr Dev! Vanish all the slightly red coloured, very dangerous and loud sound making demons & the wretched-Anary.
अवर्मह इन्द्र दादृहि श्रुधी नः शुशोच हि द्यौः क्षा न भीषाँ अद्रिवो घृणान्न भीषाँ अद्रिवः शुष्मिन्तमो हि शुष्मिभिर्वधैरुग्रेभिरीयसे। अपूरुषघ्नो अप्रतीत शूर सत्वभिस्त्रिसप्तैः शूर सत्वभिः
हे इन्द्र देव! आप हमारी प्रार्थना पर भयंकर राक्षसों की सामर्थ्य शक्ति को क्षीण करके उनका अन्त करें। दिव्यलोक भी पृथ्वी पर हो रहे अत्याचारों से शोकातुर हो गया है। हे वज्रधारी इन्द्रदेव! जिस अग्नि से सभी वस्तुएँ भस्म हो जाती हैं, उसी प्रकार से आपके भय से शत्रु भी दुःखित हो जाते हैं। बलवान सेना को सुदृढ़ शस्त्रबल द्वारा सुसज्जित करके आप शत्रुओं के पास जाते हैं। क्योंकि आप अपने शूरवीरों की रक्षा करने में तत्पर रहते हैं। हे शूरवीर इन्द्रदेव! आप विशाल सैन्य शक्ति के साथ रणक्षेत्र में पधारते हैं।[ऋग्वेद 1.133.6]
हे वज्रिन! तुम उन भयंकर असुरों को विदीर्ण करो। हमारी वंदना सुनो। दिप्तीमान अग्नि से डर कर जिस प्रकार कोई शोक प्रकट करे, उसी प्रकार तुम्हारे डर से सभी शत्रु शोक प्रकट करें। तुम शत्रुओं से द्वन्द्व करने को जाते हो। तुम पराक्रमी किसी से पराजित होने वाले तथा यजमानों को पीड़ित नहीं होने देते हो।
Hey Indr Dev! Please remove the strength-power of the demons and kill them, taking notice of our prayers-requests. The divine abodes too are worried because of the tortures meted out to the inhabitants of the earth by the Anary. Hey Vajr yielding Indr Dev! The fire which destroy every thing causes fear amongest the enemies as well. You attack the enemies by properly managing the mighty armed forces, since you are ready to protect the brave. Hey brave Indr Dev! You reach the battle field with larger armies.
Humans like Muchukund Ji, king Dashrath were always willing to help the demigods against the demons, giants, Anary. Both of them led the demigods-deities to victory over the demons. 
Anary (Mallechchh, the inhabitants of the Arab world had always been troublesome for the civilised, disciplined, cultured) like today.
वनोति हि सुन्वन्क्षयं परीणसः सुन्वानो हि ष्मा यजत्यव द्विषो देवानामव द्विषः सुन्वान इत्सिषासति सहस्खा वाज्यवृतः। सुन्वानायेन्द्रो ददात्याभुवं रयिं ददात्याभुवं रयिं ददात्याभुवम्
हे इन्द्रदेव! अभिषव करने वाला यजमान गृह प्राप्त करता है। सोमयज्ञ करने वाला चारों ओर के शत्रुओं का विनाश करता है। देवताओं के शत्रुओं का भी विनाश करता है। मुक्त इन्द्रदेव यजमानों को हजारों प्रकार के धन प्रदत्त कर उन्हें वैभव प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 1.133.7]
सोम निष्पन्नकर्त्ता यजमान, गृह स्वामी देवगणों के शत्रुओं को भगाता है और अजेय होकर सहस्त्रों धनों की कामना करता है। इंद्र उसे अधिक धन देते हैं।
Hey Indr Dev! The host who takes bath (prior to Yagy, prayers, worship, rituals) gets a house. One who conducts Som Yagy eliminates the enemies all around, in addition to the detractors-enemies of the demigods-deities. Indr Dev freely grant amenities, comforts. luxuries to the hosts & the priest performing prayers-Yagy.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (134) ::  ऋषि :- परुच्छेपो, देवता :- वायु, छन्द :- अत्यष्टि।
आ त्वा जुवो रारहाणा अभि प्रयो वायो, वहन्त्विह पूर्वपीतये सोमस्य पूर्वपीतये। ऊर्ध्वा ते अनु सूनृता मनस्तिष्ठतु जानती। नियुत्वता रथेना याहि दावने वायो मखस्य दावने
हे वायु देवता! शीघ्र गामी और बलवान् अश्व आपको अन्न के उद्देश्य से और देवों के बीच प्रथम सोमपान के लिए इस यज्ञ में ले आवें। हमारी प्रिय, सत्य और उच्च स्तुति अच्छी तरह आपके गुणों की व्याख्या करती है। वह आपके अनुकूल हैं। आप अपने रथ द्वारा आहुतियों को ग्रहण करने के लिए इस यज्ञ में पधारें।[ऋग्वेद 1.134.1]
हे वार्यों! सोम पान के लिए वेगवान अश्व तुम्हें पहले से ही यहाँ लावें। हमारी वंदना रूपी वाणी उन्नत हुई तुम्हारे गुणों को जानती है। वह तुम्हारे अनुकूल हो। तुम जुते हुए रथ से परिपूर्ण हुए हविदाता को ग्रहण होओ।
Hey-Pawan-Vayu Dev (The deity of air)! Let the fast moving horses deployed in the chariote bring you to the spot of the Yagy for drinking Somras & offerings in the form of food grains. Our prayers describe your characterises with the help of our attractive, true, high quality verses-poems, which suits you. 
मन्दन्तु त्वा मन्दिनो वायविन्दवोऽस्मत्क्राणासः सुकृता अभिद्यवो गोभिः क्राणा अभिद्यवः। यद्ध क्राणा इरध्यै दक्षं सचन्त ऊतयः। सध्रीचीना नियुतो दावने धिय उप ब्रुवत ईं धियः
हे वायु देवता! मादकतोत्पादक, हर्षजनक, सम्यक प्रस्तुत, उज्ज्वल और मन्त्र द्वारा हूयमान सोमरस आपको आनन्दित करे। श्रम में लगे हुए पुरुषार्थी मनुष्य, विवेक युक्त, दान और रक्षण हेतु आपकी प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 1.134.2]
हुयमान :: यज्ञ, बलि, आहुति, नैवेद्य; offering, oblation, prey, victim, Ahuti, holocaust, immolation, being offered in oblation.
हे वायु! हमारे प्रभावशाली, सुपुष्ट सोमरस तुम्हें पुष्ट करें दूध के प्रभाव से युक्त हुए इन सोमों के प्रति चलने के लिए तुम्हारे घोड़े पराक्रम प्राप्त करें। स्तोताओं की प्रार्थनाओं के प्रति पराक्रम से आएँ।
Hey Pawan Dev! Let the Somras which causes pleasure-happiness, toxication, offered as per schedule, treated by the recitation of Mantr in the Yagy as oblation, amuse-please you. The prudent who are engaged in their endeavours pray to you for charity and protection. 
वायुर्युङ्क्ते रोहिता वायुररुणा वायू रथे अजिरा धुरि वोळ्हवे वहिष्ठा धुरि वोळ्हवे। प्र बोधया पुरंधिं जार आ ससतीमिव। प्र चक्षय रोदसी वासयोषसः श्रवसे वासयोषसः
भारवहन के लिए वायु देवता लोहितवर्ण, गमनशील अश्व रथ में नियोजित करते हैं; क्योंकि ये भार वहन में अत्यन्त समर्थ हैं। जिस प्रकार थोड़ी निद्रा मैं आई स्त्री को उसका प्रेमी जगा देता है, उसी प्रकार आप भी बहुयज्ञ प्रबोधित यजमान को जागृत करते हैं। आप आकाश और पृथ्वी को प्रकाशित करते हुए उषा को हव्य ग्रहण के लिए स्थापित करते हैं।[ऋग्वेद 1.134.3]
चलने के लिए लाल रंग के घोड़ों को वायु देव उनके रथ में जोड़ते हैं। वे रथ की धुरी में सुनहरे द्रुतगामी अश्वों को जोड़कर प्रेमी द्वारा सोती हुई नारी को जगाने के तुल्य को जगाते हैं। वे कीर्ति के लिए उषा को स्थित करते हैं। 
Pawan Dev deploys red coloured fast moving horses in his chariot since they are good at carrying weight. You awake the host carrying out Yagy just like a woman who awakes her lover. You establish Usha to spread light in the space and the earth.
तुभ्यमुषासः शुचयः परावति भद्रा वस्त्रा तन्वते दंसु रश्मिषु चित्रा नव्येषु रश्मिषु। तुभ्यं धेनुः सबर्दुघा विश्वा वसूनि दोहते। अजनयो मरुतो वक्षणाभ्यो दिव आ वक्षणाभ्यः
हे वायु देव! दीप्ति युक्त उषाएँ, दूर देश में आपके लिए ही घरों को ढ़ँकने वाली किरणों से कल्याणकारी वस्त्र को विस्तारित करती हैं; नई किरणों से विचित्र वस्त्रों का विस्तार कर अमृत बरसाने वाली गायें आपके ही लिए समस्त धन प्रदान करती है। आपने वर्षा और नदियों के उत्पादन के लिए अन्तरिक्ष से मरुतों को उत्पादित किया।[ऋग्वेद 1.134.4]
हे वायुदेव! चमकती हुई उषाएँ दूर देश तक स्थित घरों में तुम्हारे लिए किरण रूपी वस्त्रों को फैलाती हैं। अनेक रंगों वाली किरणों को बढ़ाती हैं। अमृत रूपी दूध वाली धेनुएँ तुम्हारे लिए सभी धनों को दोहन करती हैं। तुमने वहाँ के लिए मरुतों को प्रकट किया है। 
Hey Pawan Dev! Bright Ushas spread over the houses like a useful cloth-covering and nectar yielding cows yield all sorts of riches. You have established Marud Gan in the space for causing rain and the rivers.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (135) ::  ऋषि :- परुच्छेपो, देवता :- वायु, छन्द :- अष्टि, अत्यष्टि।
स्तीर्णं बर्हिरुप नो याहि वीतये सहस्रेण नियुता नियुत्वतेशतिनीभिर्नियुत्वते तुभ्यं हि पूर्वपीतये देवा देवाय येमिरे। प्र ते सुतासो मधुमन्तो अस्थिरन्मदाय क्रत्वे अस्थिरन्
हे नियुत अश्व वाले वायु देवता! आप हजारों अश्वों से नियोजित रथ पर बैठकर यहाँ पधारें। आपके लिए यहाँ कुशासन बिछाया गया है। ऋत्विजों ने आपके लिए ही सोमरस निर्मित किया है। इस मधुर सोमरस का पान करके आप आनंदित व बलयुक्त होवें।[ऋग्वेद 1.135.1]
हे वायुदेव! हवि सेवन के लिए बिछी हुई कुशा को ग्रहण होओ। ऋत्विजों ने तुम्हारे सेवन के लिए पहले से ही सोम रस तैयार रखा है। निष्पन्न सोम तुमको शक्ति देगा और पुष्ट करेगा।
Hey Pawan-Vayu Dev! You should ride the chariot in which thousands of horses have been deployed and come here. Kushasan-mat made of Kush Grass has been laid here for you to sit. Those who are engaged in Yagy have extracted Somras for you. Drink this Somras, be amused & fresh, strong.
तुभ्यायं सोमः परिपूतो अद्रिभिः स्पार्हा वसानः परि कोशमर्षति शुक्रा वसानो अर्षति। तवायं भाग आयुषु सोमो देवेषु हूयते। वह वायो नियुतो याह्यस्मयुर्जुषाणो याह्यस्मयुः
हे वायु देवता! आपके लिए पत्थरों से कूटकर शोधित किया हुआ तथा वांछित तेजस्विता को धारित किया हुआ सोमरस कलश में स्थापित किया गया है। मनुष्यों के द्वारा सर्वप्रथम आपका ही आवाहन किया जाता है। हे वायु देव! आप अश्वों द्वारा यहाँ पधार कर मधुर शुद्ध व कान्तिवान् सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 1.135.2]
हे वायुदेव! यह सिद्धस्थ किया गया सोम शक्ति धारण करता हुआ कलश की ओर बढ़ता है। यह सोम हवि से परिपूर्ण किया जाता है। हम अभिलाषा करने वालों की तरफ तुम अपने घोड़ों को प्रेरित करो।
Hey Vayu Dev! Somras crushed with stones, purified possessing energy has been stored in the pot-Kalash. The humans invite you first. Hey Vayu Dev! You ride the horses and sip-enjoy the sweet, aurous, pure Somras.
आ नो नियुद्धिः शतिनीभिरध्वरं सहस्त्रिणीभिरुप याहि वीतये वायो। हव्यानि वीतये। तवायं भाग ऋत्वियः सरश्मिः सूर्ये सचा। अध्वर्युभिरमाणा अयंसत वायो शुक्रा अयंसत
हे वायु देवता! आप सैकड़ों और हजारों अश्वों पर सवार होकर अभिमत सिद्धि और हव्य मक्षण के लिए हमारे यज्ञ में पधारे। यही आपका भाग है; यह सूर्य के तेज से युक्त व ऋत्विकों के द्वारा निर्मित हुआ है। यह सोमरस का आपके बल को बढ़ाने वाला है।[ऋग्वेद 1.135.3]
अभिमत :: राय, सुझाव, विचार, मत, सम्मति, इष्ट, मनचाही बात, वांछित, मनोनीत, सम्मत, अनुमत, राय के मुताबिक, मनचाहा; desired.
हे वायुदेव! सैकड़ों हजारों के द्वारा हमारे यज्ञ में सम्मलित होकर हवि को स्वीकार करो। यह तुम्हारा भाग सूर्य के समान तेज वाला है। अध्वर्युओं ने तुम्हारे लिए यह सोम रस अर्पित किया है।
Hey Vayu Dev! Please come to our Yagy, riding thousands of horses to accept the offerings & accomplishments. Its your share prepared by the Ritviz possessing the energy of the Sun. This Somras will boost your power, energy, strength.
आ वां रथो नियुत्वान्वक्षदवसेऽभि प्रयांसि सुधितानि वीतये वायो। हव्यानि वीतये। पिबतं मध्वो अन्धसः पूर्वपेयं हि वां हितम्। वायवा चन्द्रेण राधसा गतमिन्द्रश्च राधसा गतम्
हे वायु देवता! हमारी रक्षा के लिए इन्द्रदेव के साथ आप अश्व नियोजित रथ द्वारा यहाँ पधार कर हमने जो सोमरस तैयार किया है, उस सोमरस का पान करें। यह सोमरस इन्द्र देवता के साथ आपको भी आनन्द देने वाला है।[ऋग्वेद 1.135.4]
हे वायो! सुन्दर हवि रूप अन्नों की ओर तुम्हारा रथ रक्षापूर्वक चले। तुम मधुर सोम रस को ग्रहण करो। तुम उज्जवल धनों से युक्त हुए इन्द्र सहित पधारो।
Hey Vayu Dev! Please with Indr Dev for protecting us in the chariot in which horses have been deployed and sip Somras. This Somras will give you pleasure-amusement like Indr Dev.  
आ वां धियो ववृत्युरध्वराँ उपेममिन्दुं मर्मृजन्त वाजिनमाशुमत्यं न वाजिनम्। तेषां पिबतमस्मयू आ नो गन्तमिहोत्या। इन्द्रवायू सुतानामद्रिभिर्युवं मदाय वाजदा युवम्
हे इन्द्र देव और वायु देवता! हमारे स्तोत्रादि आप लोगों को यज्ञ में आने के लिए प्रेरित करते हैं। जैसे शीघ्रगामी अश्च को परिमार्जित किया जाता है, वैसे ही कलश से लाये हुए सोमरस को ऋत्विक् लोग परिमार्जित करते हैं। अध्वर्युओं (यजुर्वेद विहित कार्य करने वालों) द्वारा बने हुए इस सोमरस का पान करें। हमारी रक्षा के लिए यज्ञ में पधारें। आप दोनों अन्न देने वाले हैं, इसलिए हमारे प्रति प्रसन्न होकर आनन्द देने के लिए पत्थरों के द्वारा कूटकर जो यह सोमरस बनाया गया है, उसको पीवें।[ऋग्वेद 1.135.5]
हे इन्द्र देव और वायु देव! हमारी वंदनाएँ तुम्हें अनुष्ठान की ओर आकृष्ट करें। ऋत्विजों ने रस छानकर रखा है, उसे यहाँ पर पधार कर पान करो और हमारी सुरक्षा करो।
Hey Indr Dev & Vayu Dev!  Let our prayers-worship Strotr inspire you to join our Yagy. The way a fast moving horse is readied, similarly the Somras in the Kalash is readied for both of you. Let the organisers of the Yagy too sip the Somras. Please come to protect us. Both of you grant us food grains. 
इमे वां सोमा अप्स्वा सुता इहाध्वर्युभिर्भरमाणा अयंसत वायो शुक्रा अयंसत। एते वामध्यसृक्षत तिरः पवित्रमाशवः। युवायवोऽति रोमाण्यव्यया सोमासो अत्यव्यया
हमारे इस यज्ञकार्य में अभिषुत और अध्वर्युओं द्वारा गृहीत यह दीप्त सोमरस निश्चय ही आप दोनों के लिये ही हैं। यह यथेष्ट सोमरस निश्चय ही आपके लिए टेढ़े तीरछी धारा के पात्र में डाला जाता है। इस प्रकार का सोमरस आपको प्राप्त हो। अखण्डित रोम तन्तुओं से छन कर सोमरस अति संरक्षक गुणों से युक्त हो जाता है।[ऋग्वेद 1.135.6]
अध्वर्यु :: यजुर्वेद में बतलाए गए कर्म करने वाला ऋत्विक, यज्ञ में यजुर्वेद का मंत्र पढ़ने वाला व्यक्ति; the priests and the organises, hosts reciting Mantr in the Yagy.
हे वायु देव! अध्वर्युओं द्वारा प्राप्त हुए निष्पन्न सोम रस प्रस्तुत है। ये तुम दोनों के लिए ऊनी वस्त्र से छाने गये हैं। 
The Somras in this Yagy is prepared by the organisers; is definitely meant for both of you. Its poured in an inclined position-condition, in the pot meant for sipping. Let this be available to both of you. When this is extracted through the unbroken fibre, its full of highly protective powers
अति वायो ससतो याहि शश्वतो यत्र ग्रावा वदति तत्र गच्छतं गृहमिन्द्रश्च गच्छतम्। वि सूनृता दहशे रीयते घृतमा पूर्णया नियुता याथो अध्वरमिन्द्रश्च याथो अध्वरम्
हे वायु देवता! आप निद्रालु यजमानों का अतिक्रमण करके उस गृह में जायें, जिसमें प्रस्तर का शब्द होता है। इन्द्रदेव भी उसी गृह में जावें। जिस गृह में प्रिय और सत्य स्तुति का उच्चारण होता है, जिस घर में घृत जाता है, उसी यज्ञस्थान में पुष्ट नियुत घोड़ों के साथ जावें। हे इन्द्रदेव! आप भी वहाँ पधारें।[ऋग्वेद 1.135.7]
हे वायु! सभी सो रहे व्यक्तियों को जगाते हुए, आओ। सोम को कूटने के पत्थर के शब्द से आकर्षित होओ। 
Hey Vayu Dev! You just cross the sleeping organisers of the Yagy and move to that room where sound of the rattling stones is heard. Let, Indr Dev too visit that house-room. You should visit that house riding the strong horses, where Yagy is held, in which pleasing truth prevails & Ghee is used. Let Indr Dev accompany.
अत्राह तद्वहेथे मध्व आहुतिं यमश्वत्थमुपतिष्ठन्त जायवोऽस्मे ते सन्तु जायवः। साकं गावः सुवते पच्यते यवो न ते वाय उप दस्यन्ति धेनवो नाप दस्यन्ति धेनवः
हे इन्द्र देव और वायु देवता! आप इस यज्ञ में मधु के समान उस आहुति को धारण करें, जिसके लिए विजेता यजमान पर्वत आदि प्रदेशों में जाते हैं। हमारे विजेता लोग यज्ञ का निर्वाहन करने में समर्थ हों। गायें आपके लिए अमृतरूपी दूध देती हैं और जौ से बनाया हुआ हव्य तैयार होता है। हे वायुदेवता! ये गायें आपके लिए कभी कम न हों, न ही किसी के द्वारा इनका अपहरण हो।[ऋग्वेद 1.135.8]
हे इन्द्र और वायुदेव! तुम इस मधुर सोम की आहुति प्राप्त करो। इस पीपल रूप सोम को अजय व्यक्ति पान करते हैं। हमारी गौएँ क्षीण न हों। 
Hey Indr & Vayu Dev! You should accept those offerings, for which the winning organisers of the Yagy visit mountainous regions. Our winners should be able to complete-finish the Yagy.  The cows yield the milk which is comparable to the nectar, which is used for preparing offerings with barley. Hey Vayu Dev! Our cows should never be reduced in numbers and they should never be stolen or abducted. 
इमे ये ते सु वायो बाह्वोजसोऽन्तर्नदी ते पतयन्त्युक्षणो महि व्राधन्त उक्षणः धन्वञ्चिद्ये अनाशवो जीराश्चिदगिरौकसः। सूर्यस्येव रश्मयो दुर्नियन्तवो हस्तयोर्दुर्नियन्तवः
हे वायु देवता! ये जो आपके बलशाली युवा बैलों के समान और अत्यन्त हृष्ट-पुष्ट घोड़े है, वे आपको स्वर्ग और पृथ्वी पर ले जाते हैं, ये अन्तरिक्ष में भी गमन करने में देर नहीं करते, ये शीघ्रगामी हैं, इनकी गति नहीं रुकती। सूर्य किरणों की तरह इनकी गति का रोकना कठिन है।[ऋग्वेद 1.135.9]
हमारा अन्न परिपक्व हो जाये। ये तुम्हारे शक्तिशाली वृषभ नदी रूपी प्रवाह में दौड़ते ये मरुस्थल में भी नष्ट नहीं होते। ये सूर्य की किरणों के समान अबाध वेग वाले हैं।
Hey Vayu Dev! Your powerful-strong horses which are comparable to the strong young oxen-bull, are capable of taking you to the earth, heavens and even in the space. They are fast moving and their movements can not be obstructed. Their movement can not be blocked just like the Sun rays.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (136) ::  ऋषि :- परुच्छेपो, देवता :- मित्रा वरुण, छन्द :- अत्यष्टि, त्रिष्टुप्।
प्र सु ज्येष्ठं निचिराभ्यां बृहन्नमो हव्यं मतिं भरता मृळयद्भयां स्वादिष्ठं मृळयद्भयाम्। ता सम्राजा घृतासुती यज्ञेयज्ञ उपस्तुता। अथैनोः क्षत्रं न कुतश्चनाघृषे देवत्वं नू चिदाधृषे
हे मनुष्यों! घृतयुक्त हवियों का सेवन करने वाले मित्र और वरुण देव यज्ञ में स्तुति के योग्य हैं। हम उत्तम श्रद्धा और भक्ति से युक्त होकर उनकी स्तुति करते हैं (क्योंकि उनका क्षात्रबल व देवत्व कभी क्षीण नहीं होता।[ऋग्वेद 1.136.1]
हे मनुष्यों! नमस्कार पूर्वक सखा और वरुण के लिए सोम संपादन करो। वे घृत युक्त हवि यज्ञों में वंदना किये जाते हैं और उनका देवत्व कदापि कम नहीं होता।
Hey humans! Demigods Mitr & Varun who consume the offerings with Ghee deserve prayers-worship. We pray to them with devotion & honour (Their character as a warrior, mighty-power, strength never fades) 
अदर्शि गातुरुरवे वरीयसी पन्था ॠतस्य समयंस्त रश्मिभिश्चक्षुर्भगस्य रश्मिभिः। द्युक्षं मित्रस्य सादनमर्यम्णो वरुणस्य च। अथा दधाते बृहदुक्थ्यं वय उपस्तुत्यं बृहद्वयः
श्रेष्ठ उषा देवी विस्तृत यज्ञ की ओर जाती हैं, ऐसा देखा गया है। शीघ्र गामी सूर्य देव का पथ व्याप्त हुआ है। सूर्य की किरणों से मनुष्य की आँखें खुलती हैं। मित्र, अर्यमा और वरुणदेव तेजस्विता से युक्त हुए हैं। गृह प्रकाश से परिपूर्ण हुए; इसलिए आप दोनों के लिए आहुतियों के रूप में प्रशंसनीय हविष्यान्न अर्पित किया जाता है, जिसे आप अंगीकार करें।[ऋग्वेद 1.136.2]
सूर्य का विशाल मार्ग सिद्धान्त रूप डोरी पर थमा हुआ है। सखा, अर्यमा और वरुण की जगह अत्यन्त उज्ज्वल है। वे वहाँ से श्रेष्ठ शक्ति प्रदान करते हैं।
Usha Devi gradually moves to the site of the Yagy. The path-way of fast moving Sury Dev-Sun has broadened (entire universe is filled with light). The humans open their eyes due to the rays of Sun. Mitr, Aryma & Varun Dev have attained energy-glory. The houses-homes, the site of the Yagy, have been lit with Sun light. Hence, offerings are made for you and you should accept them.
ज्योतिष्मतीमदितिं धारयत्क्षितिं स्वर्वतीमा सचेते दिवेदिवे जागृवांसा दिवेदिवे। ज्योतिष्मत्क्षत्रमाशाते आदित्या दानुनस्पती। मित्रस्तयोर्वरुणो यातयज्जनोऽर्यमा यातयज्जनः
यजमान ने ज्योतिष्मती, सम्पूर्ण लक्षणा और स्वर्ग प्रदायिनी वेदी बनाई। आप लोग सदैव जागरूक रहकर और प्रतिदिन वहाँ उपस्थित होकर तेज और बल प्राप्त करें। आप लोग माता अदिति के पुत्र और सर्व प्रकार का दान देने वाले हैं। मित्र और वरुण लोगों को उत्तम कार्य में लगाते हैं। अर्यमा भी इसी प्रकार करते हैं।[ऋग्वेद 1.136.3]
धरती की धारक और आसमान से युक्त अदिति की मित्र-वरुण प्रतिदिन सेवा करते हैं। ये दान के दाता आदित्य तेजस्वी हैं। सोम मित्र और वरुण को सुख प्रदान करे।
The host (one conducting Yagy) has constructed the Vedi (structure for making offerings in holy fire), having all virtuous characterises, capable of granting heavens. You should be present there and attain energy & strength. You are the sons of Mata Aditi and able to make all sorts of donations-charity. Mitr, Varun and Aryma inspire the humans to to do pious, truthful, righteous, virtuous deeds.
अयं मित्राय वरुणाय शंतमः सोमो भूत्ववपानेष्वाभगो देवो देवेष्वाभगः। तं देवासो जुषेरत विश्वे अद्य सजोषसः। तथा राजाना करथो यदीमह ऋतावाना यदीमहे
मित्र और वरुणदेव के लिए यह सोमरस प्रसन्नतादायक हैं। वे दोनों नीचे मुख करके इसका पान करें। दीप्यमान सोम देवों की सेवा के उपयुक्त हैं। समस्त देवगण अतीव प्रसन्न होकर इसका पान करें। हे प्रकाशशाली मित्र और वरुणदेव! आप उत्तम कर्मों की प्रेरणा देने वाले हो, हमारी अभीष्ट कामनाओं को निश्चित रूप से पूर्ण करें।[ऋग्वेद 1.136.4]
देवता उससे प्रसन्नचित्त हों, सभी देवता समान अभिलाषा से उसका सेवन करें। वह हमारी इच्छा के अनुसार ही कार्य करें।
This Somras will grant pleasure to Mitr & Varun. They should sip it by lowering their moth. All demigods-Deities should too drink it with extreme pleasure. Hey shinning Mitr & Varun! You inspire us to do virtuous deeds. You should fulfil all our desires-wishes.  
यो मित्राय वरुणायाविधज्जनोऽनर्वाणं तं परि पातो अंहसो दाश्वांस मर्तमंहसः। तमर्यमाभि रक्षत्यृजूयन्तमनु व्रतम्। उक्थैर्य एनोः परिभूषति व्रतं स्तोमैराभूषति व्रतम्
मित्र और वरुण देव के प्रति जो सेवाभाव रखते हैं, उनके द्वारा किये गये कार्यों की आप महिमा वर्णित करते हैं; उनकी वो पापरूपी कर्मों से रक्षा करते करते हैं।[ऋग्वेद 1.136.5]
सखा वरुण की सेवा करने वाले को वे शत्रु और पापों से बचाते हैं। हविदाता की सुरक्षा करते हैं।
Mitr & Varun Dev protect those from sins (wicked-deeds, vices) who possess attitude for serving and describe their glory.
नमो दिवे बृहते रोदसीभ्यां मित्राय वोचं वरुणाय मीळ्हुषे सुमृळीकाय मीळ्हुषे। इन्द्रमग्निमुप स्तुहि द्युक्षमर्यमणं भगम्। ज्योग्जीवन्तः प्रजया सचेमहि सोमस्योती सोमस्योती सचेमहि
मैं प्रकाशशाली और महान् सूर्य को नमस्कार करता हूँ। पृथ्वी, आकाश, मित्र, वरुण और रुद्रदेव को भी नमस्कार करता हूँ। ये सब अभीष्ट फल और सुख देने वाले हैं। आप इन्द्र, अग्नि, दीप्तिमान् अर्यमा और भगदेव की स्तुति कीजिये, क्योंकि ये सभी देव हमें सन्तानादि प्रदान कर हमारी रक्षा करते हैं।[ऋग्वेद 1.136.6]
जो इनके सिद्धान्तों को मानता हुआ वंदना करता है, उसकी अर्यमा सुरक्षा करते हैं। श्रेष्ठ आकाश धरती, मित्र और वरुण को प्रणाम करता हूँ। हम इन्द्र, अग्नि, अर्थमा, भाग की समीप से वंदना करें और पत्र आदि से युक्त हुए रक्षाओं को प्राप्त करें। देवताओं श्रेष्ठ भाग की समीप से वंदना करें और पुत्र आदि से युक्त हुए रक्षाओं को प्राप्त करें।
I salute the great shinning Sun. I salute the Prathvi-earth, Akash-sky, Mitr, Varun, Rudr Dev as well. They all are capable of granting the desired boon, rewards, pleasure & comforts. You should worship Indr Dev, Agni-fire, shinning Aryma and Bhag Dev; since they grant us progeny and protection-shelter.
ऊती देवानां वयमिन्द्रवन्तो मंसीमहि स्वयशसो मरुद्भिः। अग्निर्मित्रो वरुणः शर्म यंसन्तदश्याम मघवानो वयं च
इन्द्र, अग्नि, मित्र और वरुण देव हमें सुख प्रदान करें। हम देवताओं की कृपा से सुख, यश और बल आदि को प्राप्त करें। हम अन्न से संयुक्त होकर उसी सुख का भोग करें।[ऋग्वेद 1.136.7]
देवताओं की सुरक्षा से हमारी ओर आकृष्ट हुए और उनके साथी मरुतों की प्रशंसा करें। अग्नि वरुण, सखा हमारे आश्रय दाता हैं। उनसे हम अभिष्ट धन ग्रहण करें।
Let Indr, Agni, Mitr & Varun Dev grant us comforts, pleasure. We should gain comfort, honour (name & fame) and strength. We should have plenty of food stuff to enjoy and live comfortably.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (137) ::  ऋषि :- परुच्छेपो, देवता :- मित्र, वरुण, छन्द :- अतिशक्वरी
सुषुमा यातमद्रिभिर्गोश्रीता मत्सरा इमे सोमासो मत्सरा इमे आ राजाना दिविस्पृशास्मत्रा गन्तमुप नः। इमे वां मित्रावरुणा गवाशिरः सोमाः शुक्रा गवाशिरः
हम पत्थर के टुकड़े से सोम चुआते हैं। हे मित्रावरुण! आप यहाँ पधारें। दूध मिला और तृप्ति करने वाला सोमरस तैयार है। यह सोमरस तृप्ति देने वाला है। आप राजा, स्वर्ग में रहने वाले और हमारे रक्षक है। हमारे यज्ञ में पधारें। आपके ही लिए यह सोमरस दूध में मिलाया गया है, क्योंकि दूध में मिलाया गया सोमरस विशुद्ध होता है।[ऋग्वेद 1.137.1]
हे मित्रावरुण! हमने सोम रस निष्पन्न कर लिया है। तुम दोनों यहाँ पधारकर इस दूध मिश्रित हुए पुष्टि कारक सोम को पियो और हमारे रक्षक बनो।
We have extracted Somras. Hey Mitra Varun! Please come here. Somras mixed in milk is ready for you, enhancing its power & purity. . It grants satisfaction-contentment. You are kingly, our protector, residing in the heaven. Please Join our Yagy.   
इम आ यातमिन्दवः सोमासो दध्याशिरः सुतासो दध्याशिरः। उत वामुषसो बुधि साकं सूर्यस्य रश्मिभिः। सुतो मित्राय वरुणाय पीतये चारुर्ऋताय पीतये
हे मित्रावरुण! यहाँ पधारें। यह अभिषुत तरल सोमरस दही के साथ मिलाया हुआ है। उषा के उदयकाल में ही हो अथवा सूर्य की किरणों के साथ ही हो, आपके लिए यह सोमरस अभिषुत है। यह सुन्दर सोमरस यज्ञस्थल में मित्र और वरुण के पीने के लिए है।[ऋग्वेद 1.137.2]
हे मित्रावरुण! यह सोम दही परिपूर्ण हो। तुम दोनों उषाकाल होते ही पधारो। तुम दोनों के लिए इस अनुष्ठान कार्य में सोम निष्पन्न किया गया है।
Hey Mitr Varun! Please oblige us by joining our Yagy. Pure Somras mixed in curd is ready for you. 
तां वां धेनुं न वासरीमंशुं दुहन्त्यद्रिभिः सोमं दुहन्त्यद्रिभिः। अस्मत्रा गन्तमुप नोऽर्वाञ्चा सोमपीतये। अयं वां मित्रावरुणा नृभिः सुतः सोम आ पीतये सुतः
दुग्धवती गाय की तरह आपके लिए ऋत्विक गण बहुत रस वाले सोमरस को पत्थरों से कूटकर सोमवल्लियों से रस निचोड़ते हैं। आप हमारे रक्षक हैं। सोमपान के लिए हमारे सामने व हमारे पास पधारें। हे मित्र और वरुणदेव! आप दोनों के पीने के लिए ही याज्ञिकों द्वारा सोमरस अभिषुत किया गया है।[ऋग्वेद 1.137.3]
हे मित्रावरुण! तुम दोनों के लिए प्राणियों ने सोम का गौ-दुग्ध के समान दोहन किया है। तुम हमारी रक्षा करने वाले सोमरस का पान करने के लिए हमारी ओर आओ। हमने तुम्हारे पीने के लिए सोम निष्पन्न किया है।
Hey Mitr Varun! The Somras has been extracted for you by crushing the Somvalli (a vine), like the cow's milk. Please oblige us joining us and sipping this, readied for you the organisers of the Yagy.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (138) ::  ऋषि :- परुच्छेपो, देवता :- पूषा, छन्द :- अत्यष्टि
प्रप्र पूष्णस्तुविजातस्य शस्यते महित्वमस्य तवसो न तन्दते स्तोत्रमस्य न तन्दते। अर्चामि सुम्नयन्नहमन्त्यूतिं मयोभुवम्। विश्वस्य यो मन आयुयुवे मखो देव आयुयुवे मखः
अनेक मनुष्यों द्वारा पूजित पूषा (सूर्य) देव की शक्ति की महिमा सर्वत्र प्रशंसा प्राप्त करती है। कोई उसे मारना नहीं चाहता। पूषा के स्तोत्र की विश्रान्ति नहीं है। मैं सुख पाने की इच्छा से पूषा की पूजा करता हूँ। वे तत्काल सहायता करते हुए हर्ष प्रदान करते हैं। वे पूषा यज्ञ वाले है। वे समस्त मनुष्यों के मन के साथ मिल जाते है।[ऋग्वेद 1.138.1]
पूषा (सूर्य) का बहुत अधिक महत्व है। उसकी शक्ति कम नहीं होती। उसका श्लोक हमेशा वृद्धि करने वाला है। मैं कल्याण की कामना से उसे नमस्कार करता हूँ। उसने समस्त हृदयों को आकृष्ट कर लिया है।
The glory of Pusha (Sun) is recognised & appreciated everywhere by several humans. None wants to kill it. There is no end to the Strotr pertaining to Pusha. I pray-worship Pusha with the desire-will of getting comforts-pleasure. He quickly deliver help and grant pleasure. Pusha stands for Yagy. He occupies a place in the innerself (mind, heart & soul) of the humans.
प्र हि त्वा पूषन्नजिरं न यामनि स्तोमेभिः कृण्व ऋणवो यथा मृध उष्ट्रो न पीपरो मृधः। हुवे यत्त्वा मयोभुवं देवं सख्याय मर्त्यः। अस्माकमाङ्गूषाधुम्निनस्कृधि वाजेषु द्युमिनस्कृधि
जिस प्रकार से शीघ्र चलने वाले घोड़े की प्रशंसा होती है, वैसे ही, हे पूषन्। मंत्रों द्वारा मैं आपकी प्रशंसा करता हूँ। ऊँट की तरह आप हमें हिंसक शत्रुओं से सुरक्षित रखते हैं। आप से सुख प्रदत्त करने वाले देवता हैं और मैं मनुष्य हूँ, मित्रता पाने के लिए मैं आपका आवाहन करता हूँ। मेरी आवाहन की शक्ति को बढ़ावें और मुझे संग्राम में विजयी बनावें।[ऋग्वेद 1.138.2]
हे पृषा! शीघ्रगामी प्राणी को राह में श्रेष्ठ दिशा बताने के समान तुम्हें श्लोक से प्रेरणा करता हूँ जिससे तुम हमारे शत्रुओं को दूर करो। मैं तुम्हारा आह्वान करता हूँ। मुझे युद्धों में शक्तिशाली बनाओ।
Hey Pusha! The way a fast moving horse is appreciated, similarly, I appreciate you with the help of Mantr (hymns). You protect us from violent enemies like a camel. Demigods-deities attain pleasure-comforts from you. I am a human requesting you for friendship. Please boost my power of request-invitation (inciting, invoking) and make be win in the war-struggle.
यस्य ते पूषन्त्सख्ये विपन्यवः क्रत्वा चित्सन्तोऽवसा बुभुज्रिर इति कृत्वा बुभुज्रिरे। तामनु त्वा नवीयसी नियुतं राय ईमहे। अहेळमान उरुशंस सरी भव वाजेवाजे सरी भव
हे पूषन्! आपकी मित्रता प्राप्त करके विशेष यज्ञ द्वारा आपको प्रसन्न करते हुए, स्तोत्र परायण यजमान आपके द्वारा रक्षित होकर नाना प्रकार के भोग भोगते हैं। आपका संरक्षण प्राप्त कर आपके पास से असँख्य धन चाहते हैं। हे बहुतों के द्वारा स्तवनीय पूषादेव! हमारा अनादर न करके हमारे सामने आवें और युद्धकाल में हमारे अग्रगामी बनायें।[ऋग्वेद 1.138.3]
हे पूषन! तुम्हारी वंदना में लगे हुए मनुष्य ही तुम्हारी रक्षाओं को ग्रहण कर सकें। हम ज्ञान से सम्पन्न हुए नये श्लोक द्वारा तुम से असंख्य धन की विनती करते हैं। तुम हम पर क्रोध मत करो। प्रत्येक संग्राम में हमारे सहायक बनो।
Hey Pusha! We enjoy in several ways after attaining your friendship,
by virtue of special-significant Yagy. We wish to acquire unlimited riches-wealth under your protection, asylum, shelter. Hey, revered by many, Pusha! Don't ignore us, come to us and make us able to occupy front row in a war-fight.
अस्या ऊ षु ण उप सातये भुवोऽहेळमानो ररिवाँ अजाश्व श्रवस्यतामजाश्व। ओ षु त्वा ववृतीमहि स्तोमेभिर्दस्म साधुभिः। नहि त्वा पूषन्नतिमन्य आघृणे न ते सख्यमपहह्नु वे
हे अज वाहन वाले पूषन्! हमारे लाभ के लिए अनादर न कर और दानशील होकर हमारे पास पधारें। हे अजाश्च पूषन्। हम अन्न चाहते हैं। हमारे पास आवें। हे शत्रुहन्ता पूषन्! हम उत्तम स्तोत्रों से आपकी स्तुति करते हैं। हे जलवर्षक पूषादेव! हम आपके द्वारा अनादर से परे रहें और आपकी मैत्री से कभी वंचित न हो अर्थात् आपकी मित्रता हमें सदैव प्राप्त होती रहे।[ऋग्वेद 1.138.4]
अज :: (1). ईश्वर, अजन्मा, जिसका जन्म न हो, जन्म के बन्धन से रहित, अजन्मा,  स्वयंभू।
 (2). बस्त, छाग, छगल आदि, बकरा, भेड़।
 (3). नहि जातो न जायेहं न जनिष्ये कदाचन, 
क्षेत्रज्ञ: सर्वभूतानां, तस्मादहमज: स्मृत
मैं न तो उत्पन्न हुआ, न होता हूँ और न ही होने वाला हूँ, सभी प्राणियों का क्षेत्रज्ञ हूँ, इसी लिये लोग मुझे अज कहते हैं।[महाभारत]   
(4). ब्रह्मा जी, भगवान् श्री हरी विष्णु, भगवान् शिव, चंद्र देव और कामदेव को भी अज कहते हैं। 
(5). शव क्रिया में अज का महत्त्वपूर्ण स्थान है, क्योंकि वह पूषा का प्रतिनिधी और प्रेत का मार्गदर्शक माना जाता है।[अथर्ववेद-अन्त्येष्टि सूक्त]
(6). ब्रह्मा :- जो व्यापज विरज अज अकल अनीह अभेद है।[मानस 1.50]
(6.1). लगन बाचि अज सबहि सुनाई।[मानस 1.91]
(6.2). बकरा :- तदपि न तजत स्वान, अज, खर ज्यों फिरत विषय अनुरागे।[तुलसी ग्रं. पु. 516]
(7). महाराज दशरथ अयोध्या के (रघुवंशी, सूर्यवंशी, इक्ष्वाकु कुल) राजा थे। वे राजा अज व इन्वदुमती के पुत्र थे।[वाल्मीकि रामायण]
हे अजाश्व पूषन! तुम दान के लिए क्रोध से रहित हुए यहाँ आओ। हम यश की अभिलाषा करते हैं। हम तुम्हारा तिरस्कार नहीं कर सकते। आपके मित्र-भाव की आलोचना नहीं करते। तुम अद्भुत कर्मवाले श्लोक पर ध्यान दो।
Hey goat rider Pusha! Please do not neglect us, become a donor and come to us. We want food stuff. Hey slayer of the enemy! We pray to you with the help of decent hymns-Shloks. Hey rain causing Pusha! We should be blessed with your friendship.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (139) ::  ऋषि :- परुच्छेपो, देवता :- विश्वेदेवा, आदि, छन्द :- अधि, बृहती, अत्यष्टि
अस्तु श्रौषट् पुरो अग्निं धिया दध आ नु तच्छर्धो दिव्यं वृणीमह इन्द्रवायू वृणीमहे॥ यद्ध क्राणा विवस्वति नाभा संदायि नव्यसी। अध प्र सू न उप यन्तु धीतयो देवाँ अच्छा न धीतयः
मैंने भक्ति के साथ सामने अग्नि की स्थापना की है। अग्नि की स्वर्गीय शक्ति की मैं प्रशंसा करता हूँ। इन्द्र और वायु देवता की प्रशंसा करता हूँ। चूँकि पृथ्वी की दीप्तिमान् नाभि या यज्ञस्थान को लक्ष्य कर नई अर्थकरी स्तुति बनाई गई है, इसलिए अग्नि देवता उसे श्रवण करें। पश्चात् जैसे हमारे क्रिया-कर्म अन्यान्य देवों के पास जाते हैं, वैसे ही इन्द्र और वायु देवता के पास भी जावें।[ऋग्वेद 1.139.1]
अर्थकरी :: जिससे आमदनी हो, धन प्रदान करने वाला; which grants, evolves money-riches.
मैंने पहले अग्नि को धारण किया। अब दिव्य मरुद्गण को वरण करता हूँ। इन्द्र और पवन का वरण करता हूँ। मेरी वंदना सूर्य रूप को ग्रहण हो।
I have ignited the holy fire with due respect and devotion. I appreciate the heavenly-divine powers of Agni. A new poem (verse, Strotr, Mantr, Shlok) has been composed (evolved) which grants money-riches, which addresses the center place-navel, the place of Yagy over the earth. Hence, let Agni Dev listen-enjoy it. The way various pious deeds (rituals, offerings) reach the demigods-deities, let them reach Indr Dev & Vayu-Pawan Dev. 
यद्ध त्यन्मित्रावरुणावृतादध्याददाथे अनृतं मन्युना दक्षस्य स्वेन मन्युनायुवोरित्याधि सद्मस्वपश्याम हिरण्ययम्। घीभिश्चन मनसा स्वेभिरक्षभिः सोमस्य स्वेभिरक्षभिः
हे कर्म कुशल मित्र और वरुणदेव! आप अपनी शक्ति द्वारा सूर्य के पास से जो अविनाशी जल प्राप्त करते हैं, वह हमें यथेष्ट मात्रा में प्रदान करते हैं, इसलिए हम क्रिया, कर्म, ज्ञान और सोमरस में आसक्त इन्द्रियों की सहायता से यज्ञशाला में आप लोगों का ज्योतिर्मय रूप देखें।[ऋग्वेद 1.139.2]
हे मित्रवरुण! तुम अपने तेज से असत्य का निवारण करने वाले हो। हमने तुम्हारे स्थान में स्वर्णिम तेज के दर्शन किये हैं।
Hey skilled-expert in Karm-rituals Mitr & Varun Dev! You receive the imperishable water from the Sun with your powers and give-grant it to us in sufficient quantity. So, we should see-perceive your aurous-shinning image in the Yagy Shala (place of Yagy) with the help of our senses & the action-functional organs in the actions, Karm-efforts, Gyan-enlightenment & Somras.
युवां स्तोमेभिर्देवयन्तो अश्विनाश्श्रावयन्तइव श्लोकमायवो युवां हव्याभ्या३यवः युवोर्विश्वा अधि श्रियः पृक्षश्च विश्ववेदसा। प्रुषायन्ते वां पवयो हिरण्यये रथे दस्रा हिरण्यये
हे अश्विनी कुमारों! स्तुति द्वारा आपको अपना देवता बनाने की इच्छा से यजमान लोग श्लोक सुनाते और हव्य लेकर आपके सामने जाते हैं। हे सर्वधन सम्पन्न अश्विनीकुमारों! वे लोग आपकी कृपा से सब तरह के धन-धान्य और अन्न प्राप्त करते हैं। आपके सोने के रथ की नेमियाँ मधु गिराती है। उसी रथ पर आप हव्य ग्रहण करते हैं।[ऋग्वेद 1.139.3]
हे अश्विदेवो! हम आपकी वंदना करते हैं। हवियाँ प्रदान करते हैं, संबोधन और अन्न तुम्हारे आश्रित हैं। तुम्हारे रथ के पहिये की धारा घृत की वृष्टि करती हैं।
Hey Ashwani Kumars!  The humans pray to you to adopt-recognise you as their deity-patron and the hosts, priests recite the Shlok and come to you with the offerings. Hey possessors of all riches, Ashwani Kumars! The devotees get all sorts of amenities food stuff, riches due to your blessings. The axels of your chariote shower honey and you receive all offerings over that chariote.
अचेति दस्रा व्युनाकमृण्वथो युञ्जते वां रथयुजो दिविष्टिष्वध्वस्मानो दिविष्टिषु अधि वां स्थाम वन्धुरे रथे दस्त्रा हिरण्यये। पथेव यन्तावनुशासता रजोऽञ्जसा शासता रजः
हे दस्त्र द्वय! आपके मन की बात सब जानते हैं। आप स्वर्ग में जाना चाहते हैं। आपके सारथि लोग स्वर्ग पथ में रथ नियोजित करते हैं। निरालम्ब होते हुए भी अश्व गण रथ को नष्ट नहीं करते। हे अश्विनी कुमारों! बन्धनाधार भूत वस्तु से युक्त सोने के बने रथ पर हम आपको बैठाते हैं। आप लोग सरल मार्ग से स्वर्ग में जाते हो और शत्रुओं को परास्त करते हुए विशेष रूप से वृष्टि की व्यवस्था करते हो।[ऋग्वेद 1.139.4]
तेजस्वी अश्विनी कुमारो! तुम ही आकाश मार्ग को प्रशस्त करते हो और यज्ञों के लिए अश्व जोतते हो। तुम विकराल कर्म वाले हो। तुम सुनहरी रथ की पीठ पर बैठे हुए सीधी राह से चलते हो। तुम अन्तरिक्ष के दाता हो।
Hey Ashwani Kumars! Everyone is aware of your innerself. You wish to go to the heavens. Your chariote drivers deploy your golden chariot over the way to heavens. Though without support, the horses do not destroy the chariot.  You move to the heavens through a simple-straight way. You defeat the enemy and arrange for special rains.
शचीभिर्नः शचीवसू दिवा नक्तं दशस्यतम्। 
मा वां रातिरूप दसत्कदा चनास्मद्रातिः कदा चन
हमारे क्रिया कर्म ही आपका धन हैं। हमारे क्रिया कर्म के लिए दिन-रात अभीष्ट प्रदान करें। न तो आपका दान बन्द हो और न हमारा।[ऋग्वेद 1.139.5]
हे बली ऐश्वर्यशाली अश्विद्वय! दिन में और रात्रि में भी धन प्रदान करते रहो। तुम्हारा दिया हुआ धन कभी कम न हो और हमारा दान भी बढ़ता रहे।
Our offerings, prayers, worship constitute your assets. Let us obtain-get the desired to continue with the Yagy, rituals Vedic practices. Neither you stop donations nor we people stop the prayers, worship, rituals etc. 
वृषन्निन्द्र वृषपाणास इन्दव इमे सुता अद्रिषुतास उद्भिदस्तुभ्यं सुतास उद्भिदः ते त्वा मन्दन्तु दावने महे चित्राय राधसे। गीर्भिर्गिर्वाहः स्तवमान आ गहि सुमृळीको न आ गहि
हे अभीष्ट वर्षक इन्द्रदेव! अभीष्टवर्षी के पान के लिए यह सोमरस अभिषुत हुआ है। यह पत्थरों के द्वारा कूटकर बनाया गया है। सोमरस पर्वत पर उत्पन्न हुआ है। वह आपके लिए अभिषुत हुआ है। विविध विचित्र लाभों के लिए यथास्थान प्रदत्त सोमरस आपको तृप्त करें। हे स्तुति योग्य! हम आपकी स्तुति करते हैं। हमारे ऊपर प्रसन्न होकर पधारें।[ऋग्वेद 1.139.6]
हे इन्द्रदेव! पराक्रमियों के लिए पेय पाषाणों द्वारा निष्पन्न सोम की बूँदें यहाँ उपस्थित हैं। मैं तुम्हें विभिन्न धनों के लिए तृप्त करें। हे वंदनाओं को ग्रहण करने वाले! तुम हमारी ओर आकर हम पर कृपा दृष्टि करो। 
Hey desire fulfilling Indr Dev! This Somras has been extracted for you by crushing it with stones. The creeper of Somras grew over the mountains. Let it satisfy you so that you grant us boons and fulfil our desires.  You deserve felicitation. We pray-worship you. You should be happy with us and come to us. 
ओ षू णो अग्ने शृणुहि त्वमीळितो देवेभ्यो ब्रवसि यज्ञियेभ्यो राजभ्यो यज्ञियेभ्यः यद्ध त्यामङ्गिरोभ्यो धेनुं देवा अदत्तन। वि तां दुहे अर्यमा कर्तरी सचाँ एष तां वेद मे सचा
हे अग्निदेव! हमारी स्तुतियों से प्रसन्न होकर हमारी प्रार्थना पर ध्यान दें। हे देवों! आपने अपनी गौओं को अंगिराओं के लिए प्रदत्त किया और उन गौओं को एकत्रित करते हुए अर्यमा ने उनको दूहा।[ऋग्वेद 1.139.7]
हे अग्निदेव! हमारी प्रार्थनाओं पर ध्यान दो। देवताओं के सम्मुख निवेदन करो। हे देवगण! जब तुमने धेनुएँ विजयकर अंगिराओं को प्रदान की तब अर्यमा ने उसका कूप में दोहन किया।
Hey Agni Dev! Be amused-happy with our prayers and pay attention to our requests (for fulfilment of desires). You offered-presented your cows to Angira who collected them & milked them. 
मो षु वो अस्मदभि तानि पौंस्या सना भूवन्धुमानि मोत जारिषुरस्मत्पुरोत जारिषुः यद्वश्चित्रं युगेयुगे नव्यं घोषादमर्त्यम्। अस्मासु तन्मरुतो यच्च दुष्टरं दिघृता यच्च दुष्टरम्
हे मरुतों! आपका नित्य और प्रसिद्ध बल हमें पराजित न करे। हमारा धन कम न हो। हमारा नगर क्षीण न हो। आपको जो कुछ नूतन, विचित्र, मनुष्य दुर्लभ और शब्द करने वाला है, वह युग-युग में हमारा ही रहे। जिस धन को शत्रु लोग नष्ट नहीं कर सकते, वह हमारा है। आप जिस दुर्लभ धन को धारण करते हैं, वह हमारा हैं। जिस धन को शत्रु नहीं नष्ट कर सकता, वह भी हमारा है।[ऋग्वेद 1.139.8]
हे मरुद्गण! तुम्हारे पराक्रमी कार्यों को हम भूल न पायें। तुम्हारी कीर्ति अक्षुण्ण रहे। तुम्हारा दिव्य कार्य युग-युग में गुंजायमान है। वह कष्ट से तारने वाला कार्य हमको धारण कराओ।
Hey Marud Gan! You regular and famous might should not defeat-trouble us. Our assets should remain intact. Whatever fascinate-attract you, amazing, new, rare and sound developing should remain with us for ages (Yug after another).The wealth which cannot be destroyed by the enemy should remain with us. The rare, difficult to possess riches along with the wealth which you bear & the one which cannot be stolen-snatched by the enemy should be ours.
दध्यङह मे जनुषं पूर्वो अङ्गिराः प्रियमेधः कण्वो अत्रिर्मनुर्विदुस्ते मे पूर्वे मनुर्विदुः तेषां देवेष्वायतिरस्माकं तेषु नाभयः। तेषां पदेन मह्या नमे गिरेन्द्राग्नी आ नमे गिरा
प्राचीन दधीचि, अङ्गिरा, प्रियमेघ कण्व, अत्रि और मनु मेरे जन्म की बात जानते हैं। ये पूर्व काल के ऋषि और मनु मेरे पूर्व पुरुषों को भी जानते हैं, क्योंकि वे महर्षियों में दीर्घायु हैं और मेरे जीवन के साथ उनका सम्बन्ध है। वे महान् हैं, इसलिए मैं उनकी स्तुति करते हुए। उन्हें नमस्कार करता हूँ।[ऋग्वेद 1.139.9]
प्राचीन ऋषि दध्य, अंगिरा, प्रियमेध, कण्व, अत्रि और मनु मेरे जन्म के ज्ञाता हैं और अलौकिक गुणों से युक्त हैं। उन अत्यन्त गौरवशाली इन्द्र और अग्नि को प्रणाम पूर्वक वंदना करता हूँ।
The ancient sages Dadhichi, Angira, Priymegh Kavy, Mitr & Manu know about my birth. They know the ancient Rishis-sages, Manu and my ancestors-Pitrs as well, since they are long lived and related with my life. They are great and hence I pray to them. I salute-revere them. 
होता यक्षद्वनिनो वन्त वार्यं बृहस्पतिर्यजति वेन उक्षभिः पुरुवारेभिरुक्षभिः जगृभ्मा दूरआदिशं श्लोकमद्रेरध त्मना। अधारयदररिन्दानि सुक्रतुः पुरू सद्मानि सुक्रतुः
यज्ञ करने वाले अभीष्ट सिद्धि के लिए यज्ञ करें और कल्याणकारी बृहस्पति, सामर्थ्यप्रद और विभिन्न लोगों द्वारा वांछित सोमरस से यज्ञ पूर्ण करें। दूर से आने वाली पत्थरों द्वारा सोमवल्ली कूटने की ध्वनि को हम श्रवण करते हैं। अति उत्तम कर्मरूपी यज्ञीय कार्य को करने वाले मनुष्य जल और अन्नादि से सम्पन्न रहते हैं।[ऋग्वेद 1.139.10]
होता (सूर्य, याचक) अग्नि याज्मा पढ़ते और हवि के देवता हवि डालते हैं। बृहस्पति निष्पन्न सोमों द्वारा अनुष्ठान करते हैं।
Let the hosts conform (अनुरूप) to Yagy for the fulfilment of their desires-wishes and Dev Guru Brahaspati who conform to welfare lead to accomplishment of the Yagy with Somras which is desired by various-several people. We listen to the sound of crushing the Somvalli through a distance. Those who are involved in the excellent endeavours like Yagy have sufficient quantity of water and food grain.
Dev Guru Brahaspati who is identified with the excellent deeds should conform to 11 deeds.
याज्या :: वह ऋचा जो यज्ञ के समय उच्चरित की जाती है। वह स्तोत्र जिससे अन्तरिक्ष लोक पर विजय हासिल की जा सकती है; The Strotr which are recited at this occasion are termed Yajya. 
ये देवासो दिव्येकादश स्थ पृथिव्यामध्येकादश स्थ। अप्सुक्षितो महिनैकादश स्थ ते देवासो यज्ञमिमं जुषध्वम्
जो देवता स्वर्ग में ग्यारह हैं, पृथ्वी के ऊपर ग्यारह हैं, जब अन्तरिक्ष में रहते हैं, तब भी ग्यारह ही रहते हैं। वे सभी हमारे द्वारा दी गयी आहुतियों को ग्रहण करते हैं।[ऋग्वेद 1.139.11]
उत्तम कर्मा बृहस्पति ने प्रसूत पर भी ग्यारह हों, अपने महत्त्व से अंतरिक्ष में भी ग्यारह हों, इस प्रकार जलों को धारण किया है। हे देवगण! तुम आकाश में ग्यारह हो, पृथ्वी! तुम तैंतीस देवगणों के साथ मेरे यज्ञ को ग्रहण करो।
The major demigods present in the heavens are 11, those over the earth are 11 and those in the space too are 11. They all should accept our offerings.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (140) ::  ऋषि :- दीर्घतमा, देवता :- अग्नि, आदि, छन्द :- जगती, त्रिष्टुप्। 
वेदिषदे प्रियधामाय सुद्युते धासिमिव प्र भरा योनिमग्नये। वस्त्रेणेव वासया मन्मना शुचिं ज्योतीरथं शुक्रवर्णं तमोहनम्
अध्वर्यु (यजुर्वेद विहित कार्य करने वाले) वेदी पर बैठे हुए, अपने प्रिय धाम उत्तर वेदी पर, प्रीति सम्पन्न और प्रकाशशील अग्नि के लिए आप अन्नवान् वेदी बनावें। उस पवित्र ज्योति से संयुक्त, दीप्तवर्ण और अन्धकार विनाशी स्थान के ऊपर वस्त्र की तरह मनोहर कुश को बिछावें।[ऋग्वेद 1.140.1]
हे मनुष्यों! वेदी में विद्यमान, ज्योर्तिवान, अग्नि के लिए हवियाँ सम्पादन करो उस शुद्ध दीप्ती रूप रथ वाले, अंधकार के नाशक, अग्नि को अपने श्लोकों से वज्र के तुल्य ढको।
Let the hosts construct seat for sitting, Hawan Kund-Uttar Vedi (fire place) & a Vedi for having food grains to make offerings, with love & devotion to brilliant fire, in conformity with Yajur Ved. Let Kush  (dried grass) be spread over the sitting space lit by light and the fire removing darkness.
अभि द्विजन्मा त्रिवृदन्नमृज्यते संवत्सरे वावृधे जग्धमी पुनः। 
अन्यस्यासा जिह्वया जेन्यो वृषा न्यन्येन वनिनो मृष्ट वारणः
दो काष्ठों के मन्थन द्वारा उत्पन्न अग्नि आज्य, पुरोडाश और सोम नाम के तीन अन्नों को सम्मुख लाकर भक्षण करते हैं। अग्नि के द्वारा भक्षित धन-धान्यादि, संवत्सर के बीच पुनः वृद्धि को प्राप्त होते हैं। अभीष्टवर्षी अग्निदेव! एक ही रूप धारण करके सहायता से वृद्धि को प्राप्त होते हैं। अग्निदेव दूसरे प्रकार का रूप धारित करके, सबको दूर करके, वन वृक्षों को जलाते हैं।[ऋग्वेद 1.140.2]
दो बार प्रकट होने वाली अग्नि तीन प्रकार से अन्नों को ग्रहण करने और भक्षण किये अन्न को वर्ष भर में ही वृद्धि कर देते हैं। हर एक मुख से हवि भक्षण करते और दूसरे से वन वृक्षों को निःशेष करते हैं।
The fire produced by the rubbing of two wood pieces engulf three kinds of grains :- Ajy, Purodas & Som. These grains burnt by fire are again produced seasonally. Agni Dev-the deity of fire engulf the forests as well.
कृष्णप्नुतौ वेविजे अस्य सक्षिता उभा तरेते अभि मातरा शिशुम्। प्राचाजिह्व ध्वसयन्तं तृषुच्युतमा साच्यं कुपयं वर्धनं पितुः
अग्नि के दोनों काष्ठ चलते हैं। कृष्ण वर्ण होकर दोनों ही एक ही कार्य करते हैं और शिशुरूप अग्नि को प्रकाशित करते हैं। शिशु की शिखारूपिणी जिव्हा पूर्वाभिमुखिनी है। यह अन्धकार को दूर कर शीघ्र उत्पन्न होते हैं। धीरे-धीरे लकड़ी के चूर्णों में मिलते हैं। बहुत प्रयत्न से इनकी रक्षा करनी होती है। यह रक्षक को समृद्धि प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 1.140.3] 
इससे प्रज्वलन से काली हुई इसकी दोनों जननी कम्पित होती हैं। यह आगे वाले, गतिवान, भिन्न वर्ण, द्रुतगामी हैं। इनके अश्व पवन की प्रेरणा से जुड़ते हैं।
Both the pieces of wood used for producing fire start burning, become black and produce light. Initially, it bends-moves eastwards and removes darkness. Slowly and gradually it start turning into powder-ashes. The fire thus produced is kept carefully, for use in future. It grants progress to the one, who keep it safe.
मुमुक्ष्योमनवे मानवस्यते रघुद्रुवः कृष्णसीतास ऊ जुवः। 
असमना अजिरासो रघुष्यदो वातजूता उप युज्यन्त आशवः
अग्नि की शिखाएँ लघुगति, कृष्णमार्गी, अस्थिर चित्ता, गमनशीला, कम्पनशीला, वायुचालिता व्याप्ति संयुक्ता मोक्ष मदा और मनस्वी यजमान के लिए उपयोगिनी है।[ऋग्वेद 1.140.4]
यह अग्नि पृथ्वी को सभी ओर से छूती है। यह शब्दवान जब साँस लेते हैं, तब इनकी चिनगारियाँ फैलती हुई, तम का नाश करती हुई बढ़ती हैं।
The flames of fire touches the earth from all sides-directions. They move slowly killing darkness, are unstable like spark, vibrate with air leading to Salvation-Moksh and useful to the organisers of Yagy.
Agni-fire is capable of burning everything to ashes. On acquiring high temperature it decomposes the material into plasma & pure energy forms. One who conform to Yagy with the desire of Moksh may attain it, in due course of time.
आदस्य ते ध्वसयन्तो वृथेरते कृष्णमभ्वं महि वर्पः करिक्रतः। 
यत्सीं महीमवनिं प्राभि मर्मृशदभिश्वसन्त्स्तनयन्नेति नानदत्
जिस समय अग्निदेव गर्जना करके श्वास को फेंककर बार-बार विस्तीर्ण पृथ्वी को छूकर शब्द करते हैं, उस समय अग्नि के सारे स्फुल्लिंग एक साथ चारों ओर जाते हैं। वे अन्धकार का विनाश कर चारों ओर जाते और कृष्णवर्ण मार्ग में उज्ज्वल रूप प्रकाशित करते हैं।[ऋग्वेद 1.140.5] 
जो अग्नि पीले रंग वाली बूटियों को आच्छादित करने के तुल्य घेरते हैं, ऋषभ के तुल्य गर्जन करते और शक्ति द्वारा शरीर को चमकाते हैं। वह वश में न आने वाले ऋषभ के तुल्य अग्नि लपट रूप सींगों को हिलाते हैं।
Agni Dev make roaring sound like snorting, spread with sparks in all directions remove darkness and lit the way.
The sparks are comparable to the bull moving his horns too frequently-violently.
भूषन्न योऽधि बभ्रूषु नम्नते वृषेव पत्नीभ्येति रोरुवत्। 
ओजायमानस्तन्वश्च शुम्भते भीमो न शृङ्गा दुविधाव दुर्गृभिः
अग्नि देव पीले औषधियों को भूषित करके उनके बीच उतरते हैं। जिस प्रकार से वृषभ गायों की ओर दौड़ता है, वैसे ही शब्द करते हुए अग्निदेव दौड़ते हैं। क्रमशः अधिक तेजस्वी होकर अपने शरीर को प्रकाशित करते हैं। दुर्द्धर्ष रूप धारण करके भयंकर पशु की तरह सींग को घुमाते हैं।[ऋग्वेद 1.140.6]
वह अग्नि देव प्रकट होकर औषधियों को ग्रहण करते हैं। लम्बी शिलाएँ अग्नि को छूती हैं। वे मृत प्रायः होते हुए भी अग्नि से मिलने के लिए प्राणवान हो उठती हैं। 
Agni Dev acquire-engulf (burn) the yellow herbs and run like the bull who rush to the cows. It make him more bright-brilliant (shinning). He acquire dangerous proportions and move all around like a fierce animal.
स संस्तिरो विष्टिरः सं गृभायति जानन्नेव जानतीर्नित्य आ शये। 
पुनर्वर्धन्ते अपि यन्ति देव्यमन्यद्वर्पः पित्रोः कृण्वते सचा
अग्निदेव कभी छिपकर, कभी विराट् होकर औषधियों को व्याप्त करते हैं, मानो यजमान का अभिप्राय जानकर ही अपनी अभिप्राय जानने वाली शिखा को आश्रित करते हैं। शिखाएँ पुनः बढ़कर याग योग्य अग्नि को व्याप्त करती है एवं सब मिलकर पृथ्वी और स्वर्ग का अपूर्व रूप विस्तृत करती है।[ऋग्वेद 1.140.7] 
वे उनके प्रभाव से गति को ग्रहण होती हैं। उनमें अद्भुत गुण भर जाते हैं। फिर ये अग्नि औषधियाँ मिलाकर धरा और क्षितिज को अद्भुत गुण बनाते हैं।
Agni Dev digest the herbs either in hidden state or vide proportions as if he is understanding the desires of he host The flames spread and make extensions over the earth and the heavens. 
Several herbs are used as offerings in the holy fire (Agnihotr, Hawan). These herbs have the power to eliminate several diseases. Their fumes eliminate various germs, virus, bacteria, fungus, harmful microbes. Their impact is experienced over he earth as well as the heavens, since Agni Dev is the mouth of the demigods-deities for accepting offerings. This is called FUME THREPHY.
तमग्रुवः केशिनीः सं हि रेभिर ऊर्ध्वास्तस्आर्पप्रुषीः प्रायवे पुनः। 
तासां जरां प्रमुञ्चन्नेति नानददसुं परं जनयञ्जीवमस्तृतम्
शीर्ष स्थानीय और आगे स्थित शिखायें अग्नि का आलिङ्गन करती हैं, मृतवत् होने पर भी अग्नि का आगमन जानकर ऊर्ध्वमुख होकर ऊपर उठती हैं। अग्निदेव शिखाओं की वृद्धावस्था को छुड़ाकर उन्हें उत्कृष्ट सामर्थ्य और अखण्ड जीवन प्रदान करते हुए गर्जना करते हुए आते हैं।[ऋग्वेद 1.140.8]
अग्नि देव उनका वृद्धापन मिटाते हुए गर्जन करते हैं।
The flames of Agni-fire at the top & front move ahead even though appearing to be dead and rise in an upward direction. Agni Dev frees the flames from their agility, grant them a new lease of life, roaring loudly.
अधीवासं परि मातू रिहन्नह तुविग्रेभिः सत्वभिर्याति वि ज्रयः। 
वयो दधत्पद्वते रेरिहत्सदानु श्येनी सचते वर्तनीरह
पृथ्वी माता के ऊपर के ढक्कन आदि को चाटते-चाटते अग्नि प्रभूत शब्द कर्ता प्राणियों के साथ वेग से गमन करते हैं। पाद विशिष्ट पशुओं को आहार देते हैं। अग्निदेव सदा चाटते हैं और क्रमश: जिस मार्ग से जाते हैं उसे काला करते जाते हैं।[ऋग्वेद 1.140.9]
धरती रूप जननी के परिधान रूप तृण, दवाई आदि को चाटते हुए अग्नि विजयशील के समान चले जाते हैं। फिर दो पायें और चार पार्यों को पराक्रम देते हैं। वे जिधर से निकलते हैं, उधर ही उनके पीछे का रास्ता काला होता जाता है।
Licking the upper surface of the mother earth, Agni Dev produce sound of his own, while spreading-moving fast, leaving the space behind him blackened. He provide food stuff to all two & four legged.
अस्माकमग्ने मघवत्सु दीदिह्यध श्वसीवान्वृषभो दमूनाः। 
अवास्या शिशुमतीरदीदेर्वर्मेव युत्सु परिजर्भुराणः
हे अग्निदेव! हमारे धनाढ्य घर को अपनी ज्वालाओं से प्रकाशित करें तथा शत्रुओं को नष्ट करने वाले अपने श्वास द्वारा शैशवस्था का त्याग करके संग्राम में हमारा रक्षा कवच बनते हुए प्रकाशमान हों।[ऋग्वेद 1.140.10]
हे अग्नि! तुम दान शील के घर से प्रदीप्त होते हुए ऋषभ के समान सांस लेते हो। फिर ऐसे लगते हो, जैसे कोई किशोरावस्था ग्रहण पराक्रमी कवच धारण कर द्वन्द्व की तरफ आता हुआ चमकता है।
Hey Agni Dev! You should lit our prosperous house with your aura-shine and become a shield for us in the war-battle by rejecting your infancy & ejecting your breath to destroy the enemy. 
इदमग्ने सुधितं दुर्धितादधि प्रियादु चिन्मन्मनः प्रेयो अस्तु ते। 
यत्ते शुक्रं तन्वो३ रोचते शुचि तेनास्मभ्यं वनसे रत्नमा त्वम्
हे अग्निदेव! यह जो लकड़ी के ऊपर सावधानी से हव्य रखा गया है, वह आपकी मनोनुकूल प्रिय वस्तु से भी प्रिय हैं। आपके शरीर की शिक्षा से जो निर्मल और दीप्त तेज निकलता है, उसके साथ आप हमें रत्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.140.11] 
हे अग्ने! यह विशेष प्रकार से निवेदन किया गया श्लोक तुम्हें अधिक प्यारा हो। तुम्हारा निर्मल और प्रकाश से युक्त शरीर चमकता है। हमारे लिए रमणीय धनों को देने वाले बन जाओ।
Hey Agni Dev! The offerings placed over the wood carefully are as your wish-liking. The divine hue (aura, light) coming out of your body should be accompanied with jewels for us.
रथाय नावमुत नो गृहाय नित्यारित्रां पद्वतीं रास्यग्ने। 
अस्माकं वीराँ उत नो मघोनो जनाँश्च या पारयाच्छर्म या च
हे अग्निदेव! आप हमारे घर के सदस्यों और वीरों को इस प्रकार की यज्ञ रूप नौका प्रदत्त करें जो उन्हें संसार-सागर से पार उतार सके और सुखों से सम्पन्न  करें।[ऋग्वेद 1.140.12]
हे अग्ने! तुम हमारे घर के व्यक्तियों को या योद्धा के लिए ऐसी अनुष्ठान रूप नौका प्रदान करो जो हम सभी को पार लगाती शरण रूप बने। 
Hey Agni Dev! You should provide our family members with a boat in the form of a Yagy, which can swim us across the vast ocean in the form of life (worldly affairs) associated-accompanied with all pleasure, comforts & luxuries.
अभी नो अग्न उक्थमिज्जुगुर्या द्यावाक्षामा सिन्धवश्च स्वगूर्ताः। 
गव्यं यव्यं यन्तो दीर्घाहिषं वरमरुण्यो वरन्त
हे अग्निदेव! हमारे स्तोत्र आपकी प्रार्थना करने वाले हैं। आकाश, पृथ्वी और अपने आप प्रवाहित होने वाली (सभी) नदियाँ हमें अन्नादि प्रदान करें। हम गाय के द्वारा दिये गये दूध को पीकर बल प्राप्त करें। दुग्ध यज्ञ को ग्रहण करो।[ऋग्वेद 1.140.13]
हे अग्ने! श्लोको की वृद्धि करो। क्षितिज-धरा और स्वर्ग की विचरण शील नदियाँ हमको वरणीय अन्न, शक्ति ग्रहण कराने वाली हों।
Hey Agni Dev!  Our verses (Strotr, hymns) are meant for your worship-prayers. Let sky, earth and the river flowing of their own provide us  food grains. We should become strong by drinking the milk obtained from the cows. Let is become a Yagy performed with milk for attaining milk.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (141) ::  ऋषि :- दीर्घतमा, देवता :- अग्नि, आदि, छन्द :- जगती, त्रिष्टुप्
बळित्था तद्वपुषे धायि दर्शतं देवस्य भर्गः सहसो यतो जनि। 
यदीमुप ह्वरते साधते मतिर्ऋतस्य धेना अनयन्त सस्रुतः
प्रकाशमान अग्निदेव का दर्शनीय तेज वास्तव में इस प्रकार लोग शरीर के लिए धारण करते हैं। वह तेज शरीर बल या अरणि मन्थन से उत्पन्न हुआ है। अग्नि के तेज का आश्रय प्राप्त कर मेरा ज्ञान अपनी अभीष्ट सिद्धि कर सकता है; इसलिए अग्निदेव के लिए स्तुति और हव्य अर्पित किया जाता है।[ऋग्वेद 1.141.1]
जिस शक्ति से रचित हुए हैं, उसी शक्ति रूप दर्शनीय तेज को धारण करते हैं। उनकी कृपा दृष्टि से ही अभिष्ट सिद्धि प्राप्त होती है। सत्य वाणियाँ प्रवाहमान होती हैं। 
People bear-acquire the energy produced by Agni-fire. This energy-aura is produced by rubbing the wood pieces. This knowledge of this energy produced from fire can help me in my accomplishments. Therefore, Agni Dev is prayed-worshiped and offerings are made in it.
पृक्षो वपुः पिआपान्नित्य आ शये द्वितीयमा सप्तशिवासु मातृषु। 
तृतीयमस्य वृषभस्य दोहसे दशप्रमतिं जनयन्त योषणः
प्रथम भौतिक अग्नि के रूप में अन्न को पकाने वाले और शरीर का पोषण करने वाले, द्वितीय कल्याणवाहिनी सप्त मातृकाओं में रहते हैं, तृतीय इस अभीष्ट वर्षी अग्नि के दोहन के लिए रहते हैं। इस प्रकार से दसों दिशाओं में पूजनीय अग्निदेव को अँगुलियाँ मन्थन के द्वारा उत्पन्न करती हैं।[ऋग्वेद 1.141.2]
सप्त मातृका :: ब्रह्माणी, वैष्णवी, माहेश्वरी, इन्द्राणी, कौमारी, वाराही और चामुण्डा अथवा नारसिंही। इन्हें मातर भी कहते हैं।
अन्न साधक अग्नि देव अन्नों में लीन रहते हैं। दूसरे सात कल्याणकारिणी मातृ रूपी धातुओं में विद्यमान होते हैं, तीसरे अग्नि को सिद्ध करने वाले धूल से अग्नि को रचित किया।
In physical state Agni-fire is meant for cooking and nourishing the body Firstly,  secondly it is present in the beneficial-welfare causing 7 Matraka and thirdly, its meant for accomplishment. In this manner the revered Agni Dev is produced with the use of 10 fingers in all the 10 directions.
निर्यदीं बुध्नान्महिषस्य वर्पस ईशानासः शवसा क्रन्त सूरयः। 
यदीमनु प्रदिवो मध्व आधवे गुहा सन्तं मातरिश्वा मथायति
चूँकि महायज्ञ के मूल से सिद्धि करने वाले ऋत्विक् अरणि मन्थन द्वारा अग्नि को उत्पन्न करते हैं, अनादि काल से अच्छी तरह फैलाने के लिए गुहास्थित अग्निदेव को वायुदेवता चालित करते हैं।[ऋग्वेद 1.141.3]
मातरिश्वा प्राचीन काल से अग्नि को पानी में क्रम-पूर्वक मंथन करते हैं। 
The organisers of the Yagy (hosts, Ritviz) produce fire by rubbing the wood for the accomplishment of their Super sacrifices (Maha Yagy). Vayu-Pawan Dev spreads the Agni-fire, since ancient times.
प्र यत्पितुः परमान्नीयते पर्या पृक्षुधो वीरुधो दंसु रोहति। 
उभा यदस्य जनुषं यदिन्वत आदिद्यविष्ठो अभवद्घृणा शुचिः
अग्नि की उत्कृष्टता की प्राप्ति के लिए अग्नि को उत्पन्न-प्रकट जाता है, आहार के लिए वाञ्छित लताएँ अग्नि की शिखाओं पर चढ़ जाती है और अध्वर्यु (यजुर्वेद विहित कार्य करने) तथा यजमान दोनों ही अग्नि की उत्पत्ति के लिए चेष्टा करते हैं; तब पावन अग्निदेव प्रकट होकर तेजस्वी और बलवान् होते हैं।[ऋग्वेद 1.141.4]
जब अग्नि को उत्कृष्टता के लिए सभी ओर ले जाते हैं, तभी वे दवाइयों पर चढ़ते हैं। जब वे अरणि मंथन द्वारा प्रकट होते हैं, तब वे पवित्र हुए युवा रूप हो जाते हैं। 
Both, the host & the priests make efforts to produce fire-Agni, because of its excellence. Agni Dev rides the flames to accept the offerings, become aurous-possessing aura, strong-mighty.
आदिन्मातृराविशद्यास्वा शुचिरहिंस्यमान उर्विया वि वावृधे। 
अनु यत्पूर्वा अरुहत्सनाजवो नि नव्यसीष्ववरासु धावते
मातृरूपिणी दिशाओं के मध्य में अग्निदेव हिंसा रहित होकर बढ़े हैं, इस समय प्रदीप्त होकर उन्हीं के मध्य बैठे हैं। स्थापन समय में पहले जो सब औषधियाँ (जड़ी, बूटियाँ) प्रक्षिप्त हुई थी, उनके ऊपर ये चढ़ गये चढ़ गये।[ऋग्वेद 1.141.5]
अग्नि मातृ-रूपिणी दिशाओं में बढ़े तथा उन्हीं में व्याप्त हुए। वे सतत् गतिवान बढ़ी तथा नवीन सभी प्रकार की औषधियों की ओर गति करते हैं। विश्वधारक अग्नि मति शक्ति द्वारा पोषण के लिए मनुष्यों के श्लोकों को ग्रहण होते हैं।
Agni Dev occupies his seat in his brilliant form amongest all the directions with out becoming violent. He rides-ignites, the medicines (herbs) offered to him, prior to being installed-initiation of the Yagy.
आदिद्धोतारं वृणते दिविष्टिषु भगमिव पपृचानास ऋञ्जते। 
देवान्यत्क्रत्वा मज्मना पुरुष्टुतो मर्तं शंसं विश्वाधा वेति धायसे
हवि का सम्पर्क करने वाले यजमान धुलोक निवासियों की प्रसन्नता के लिए होम सम्पादक अग्नि देव का वरण करते हैं और राजा की तरह उनकी आराधना करते हैं। ये अग्नि देवता बहुतों के स्तुति योग्य और विश्वरूप हैं। ये यज्ञ सम्पन्न और बलशाली हैं। ये देवों और स्तुति योग्य मर्त्य यजमानों, दोनों के लिए अन्न की कामना करते हैं।[ऋग्वेद 1.141.6]
इसलिए उन्हें होता रूप में वरण किया जाता है। वे देवता और यजमान दोनों के लिए अन्न की इच्छा करते हैं।
The organisers of the Yagy conduct Yagy for the pleasure-sake of the residents of the upper abodes (demigods-deities) and accept Agni Dev as the priest to do the desired and pray-worship him as a king. Agni Dev deserve the prayers-worship of several hosts, is eternal & pervades the entire universe. He wishes for sufficient food grains for both the host-Pitrs and the demigods.
वि यदस्थाद्यजतो वातचोदितो ह्वारो न वका जरणो अनाकृतः। 
तस्य पत्मन्दक्षुषः कृष्णजंहसः शुचिजन्मनो रज आ व्यध्वनः
जिस प्रकार से विदूषक आदि बड़ी सरलता से लोगों को हँसा देते हैं, उसी प्रकार से वायु द्वारा परिचालित यजनीय अग्नि चारों और व्याप्त होते हैं। अग्नि दहन कर्ता है, उनका जन्म पवित्र हैं, उनका मार्ग कृष्ण वर्ण है और उनके मार्ग में कुछ भी स्थिरता नहीं है। इसीलिए उनके मार्ग में अन्तरिक्ष स्थित है।[ऋग्वेद 1.141.7]
विदूषक :: दिल्लगीबाज़, ठठोल, ठट्ठेबाज, भांड, गंवार, उजड्ड, मसख़रा, clown, jester, joker, buffoon.
जब पूज्य अग्नि पवन की प्रेरणा से बाधा रहित वेग करती हैं तब उनकी यात्रा समाप्त होने पर काली राह तथा उसमें धूल ही अवशिष्ट रहती है। रथ से यात्रा करने वाले तेजस्वी के समान वे अम्बर की यात्रा करते हैं।
The way-manner in which a joker easily make the public laugh, Agni Dev surrounds the entre space guided-governed by Vayu-Pawan Dev to grant pleasure-happiness. Agni is combustible. His birth is pure-pious. His way-path is black and nothing is stable in his way. Hence he resides in the space-sky.
रथो न यातः शिक्कभिः कृतो द्यामङ्गेभिररुषेभिरीयते। 
आदस्य ते कृष्णासो दक्षि सूरयः शूरस्येव त्वेषथादीषते वयः 
रस्सी में बँधे रथ की तरह अपने चञ्चल अंग की सहायता से अग्निदेव स्वर्ग को जाते हैं। उनका मार्ग कालिमा युक्त है, क्योंकि वे लकड़ियों को जलाने वाले हैं। वीरों से भयभीत होकर शत्रुओं के भागने के समान ही इनकी ज्वालाओं को देखकर पक्षी गण भी भाग जाते हैं।[ऋग्वेद 1.141.8]
चञ्चल ::  बेचैन, सक्रिय, चंचल, शरारती, जीवंत; fickle, active, voluble, perk, volatile. 
हे अग्ने! उन काले दस्युओं को तुम नष्ट करते हो। तुम्हारे उपासक वीरों के समान पराक्रम प्राप्त करते हैं।
Agni Dev moves to the heavens with the help of his active organs. His path is full of darkness, since he burns the woods. The birds fly on visualizing his flames just like the enemy, who fled seeing the brave warriors. 
त्वया ह्यग्रे वरुणो धृतव्रतो मित्रः शाशद्रे अर्यमा सुदानवः। 
यत्सीमनु क्रतुना विश्वथा विभुररान्न नेभिः परिभूरजायथाः
हे अग्निदेव! वरुण, सूर्य और अर्यमा देव आपकी सामर्थ्य के बीच उत्तम दान के व्रतों का निर्वाहन करते हैं। आप विश्वात्मा रूप होकर समस्त संसार में व्याप्त और सर्वत्र बलशाली रूप में प्रकट होते हैं।[ऋग्वेद 1.141.9]
हे अग्ने! घृत नियमा वरुण, दानशील अर्थमा और सखा तुम्हारे द्वारा शिक्षा पाते हैं। जैसे रथ का पहिया अरों (डण्डों) को व्याप्त करके रहता है, उसी प्रकार अनुष्ठान कार्यों द्वारा अग्नि देव प्रकट होते हैं।
Hey Agni Dev! Varun, Sury-Sun, Aryma undergoes excellent deeds pertaining to donations and discharging of decisions-duties. You pervade the entire universe and reveal yourself as powerful-mighty.
त्वमग्ने शशमानाय सुन्वते रत्नं यविष्ठ देवतातिमिन्वसि। 
तं त्वा नु नव्यं सहसो युवन्वयं भगं न कारे महिरत्न धीमहि
हे युवा अग्निदेव! जो आपकी स्तुति करते हैं और आपके लिए अभिषव करते हैं, आप उनका रमणीय हव्य लेकर देवताओं को प्रदान करते हैं। हे तरुण, महाधन और बल पुत्र अग्निदेव! आप स्तवनीय और हवि भोक्ता हैं। स्तुति काल के समय हम राजा की तरह आपकी अर्चना करते हैं।[ऋग्वेद 1.141.10] 
हे अत्यन्त युवा अग्नि देव! तुम सोम निष्पन्न करने वाले वंदनाकारी को वैभव योग्य धन प्रेरित करते हो। हम अपने कर्म के लिए भग के समान तुम्हारी प्रार्थना करते हैं।
Hey youthful Agni Dev! You take-carry the lovely offerings of those devotees, who pray-worship you; to the demigods-devotees. Hey young extremely rich, son of power-might! You deserve to be worshiped and awarded offerings. We pray to you as a king during prayers.
अस्मे रयिं न स्वर्थं दमूनसं भगं दक्षं न पपृचासि धर्णसिम्। 
रश्मीरिव यो यमति जन्मनी उभे देवानां शंसमृत आ च सुक्रतुः
हे अग्निदेव! आप जैसे हमें अत्यन्त प्रयोजनीय और उपास्य धन देते हो, वैसे ही उत्साही, जनप्रिय और विद्याध्ययन में चतुर पुत्र प्रदान करें। जिस प्रकार अग्निदेव अपनी किरणों को विस्तारित करते हैं, उसी प्रकार अपने जन्माधार (आकाश और पृथ्वी) को आप विस्तारित करते हैं। हमारे यज्ञ में यज्ञ करने वाले अग्निदेव की स्तुति को विस्तारित करते हैं।[ऋग्वेद 1.141.11]
हे अग्ने! हमारे कार्य के लिए धन और गृह के लिए सौभाग्य प्रदान करो। तुम दोनों लोकों को रासों के हम अपने कर्म के लिए धन और गृह के लिए सौभाग्य प्रदान करो।
Hey Agni Dev! The way you grant us preplanned-organised, wealth-riches, grant us sons who as energetic, admired by the masses and intelligent in acquiring knowledge. The way Agni Dev boosts his rays-energy, similarly the your parents (The Sun & the Earth) do propagate you. Those who are attending-participating in our Yagy boosts-propagate the prayers meant for Agni Dev.
उत नः सुद्योत्मा जीराश्वो होता मन्द्रः शृणवच्चन्द्ररथः। 
स नो नेषन्नेषतमैरमूरोऽग्निर्वामं सुवितं वस्यो अच्छ
अग्निदेव प्रकाशशील, द्रुतगामी अश्व से संयुक्त होता, आनन्दमय, सोने के रथ वाले, अप्रतिहत शक्ति और प्रसन्न स्वभाव वाले हैं। क्या वे हमारा आवाहन सुनेंगे? क्या वे हमें सिद्धि दाता कर्म द्वारा अनायास लक्ष्य और अभिवांछित स्वर्ग की ओर ले जायेंगे?[ऋग्वेद 1.141.12]
तुम दोनों लोकों को रासों के समान वश में रखने और हवन में हमारी प्रार्थना को देवता के समीप पहुँचाते हो। अत्यन्त तेजस्वी अश्वों से युक्त दमकते हुए रथ वाले अग्ने! हमारे आह्वान को सुनो। तुम हमको काम्य सुख देते हुए हमारा कल्याण करो।
Agni Dev is the possessor shinning-brilliant, chariote deploying fast moving horses, has unlimited power-might with always happy postures-mood. Will he respond to our prayers!? Will he take us to the heaven unexpectedly, craved by us?!
अस्ताव्यग्निः शिमीवद्भिरर्कै: साम्राज्याय प्रतरं दधानः। 
अमी च ये मघवानो वयं च मिहं न सूरो अति निष्टतन्युः
जिस प्रकार से सूर्यदेव मेघों में ध्वनि उत्पन्न करते हैं, उसी प्रकार से अग्निदेव के लिए यजमान और ऋषिगण अर्थात् ऋत्विक् लोग उच्च स्वर में इनकी स्तुति करते हैं। तभी ये अग्निदेव स्तोत्र युक्त वाणियों द्वारा आनन्दित होते हैं। [ऋग्वेद 1.141.13]
हमने श्रेष्ठ समृद्धि के लिए अत्यन्त बलिष्ठ अग्नि देव का पूजन किया है। वे अत्यन्त वृद्धि को ग्रहण हों और हम भी उसी प्रकार से वृद्धि करें जैसे बादल ऊपर की ओर चढ़ता है।
The way-manner in which the Sun induce-produce roaring sound in the clouds, the hosts-organisers of the Yagy too pray-worship Agni Dev loudly-rhythmically. It then, that Agni Dev become happy-pleased.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (142) ::  ऋषि :- दीर्घतमा, देवता :- अग्नि, आदि, छन्द :- अनुष्टुप, उष्णिक
समिद्धो अग्र आ वह देवाँ अद्य यतस्रुचे। 
तन्तुं तनुष्व पूर्व्यं सुतसोमाय दाशुषे
हे समिद्ध नामक अग्निदेव! जो यजमान स्रुक् ऊँचा किये हुए हैं, उनके लिए आज आप देवों को बुलावें। जिस हव्यदाता यजमान ने होम का अभिषव किया है, उसकी वृद्धि के लिए पूर्वकालीन यज्ञ को विस्तारित करें।[ऋग्वेद 1.142.1]
समिद्ध :: जलता हुआ, प्रज्वलित, प्रदीप्त,  उत्तेजनायुक्त, उत्तेजित,  अग्नि में डाला हुआ, अग्नि में न्यस्त; perfect, inflamed, ignited.
हे अग्ने! तुम दीप्तिमान होकर वृद्धि करते हुए आज इस यजमान के लिए देवगण को लाओ। इस सोम अभिकर्त्ता के लिए प्राचीन अनुष्ठान की वृद्धि करो। 
Hey ignited-inflamed Agni Dev! Please bring the demigods-deities for the sake of the host-Yagy organiser, who has raised the Struk (spoon for making offerings in holy fire-Agnihotr like Ghee). Let the Yagy organised previously be extended for the sake of the growth-progress of the host-devotee.
घृतवन्तमुप मासि मधुमन्तं तनूनपात्। 
यज्ञं विप्रस्य मावतः शशमानस्य दाशुषः
हे तनूनपात् नामक अग्निदेव! मेरे समान जो हव्यदाता और मेघावी यजमान आपकी स्तुति करता है, उसके घृत और मधु से संयुक्त यज्ञ में आकर यज्ञ समाप्ति पर्यन्त रहें।[ऋग्वेद 1.142.2]
तनूनपात् :: अग्नि, आग, चीते का वृक्ष-औषधि के रूप में काम आने वाला एक पेड़, चीता, चीतावर, चित्रक, प्रजापति के पोते का नाम, घी-घृत, मक्खन; son of himself, self-generated (as in lightning or by the attrition of the wood, a sacred form of fire (mainly-generally used in some verses-hymns).
हे अग्ने! तुम मुझ वंदनाकारी हविदाता के घी, शहद से परिपूर्ण अनुष्ठान में अनुष्ठान की समाप्ति तक वास करो।
Hey self-automatically appearing Agni Dev! You should join the Yagy using Ghee & honey, conducted by people like us and stay till it lasts. 
शुचिः पावको अद्भुतो मध्वा यज्ञं मिमिक्षति। 
नराशंसस्त्रिरा दिवो देवो देवेषु यज्ञियः
देवों में स्वच्छ, पवित्र, अद्भुत, द्युतिमान् और यज्ञ सम्पादक नाराशंस नामक अग्निदेव स्वर्ग लोक से आकर हमारे यज्ञ को मधु से मिश्रित करें।[ऋग्वेद 1.142.3]
नाराशंस :: मनुष्यों की प्रशंसा या स्मृति से संबंध रखने वाला, तीन पितृगण :- ऊम, और्व और आत्र्य, यज्ञादि में उक्त पितृगणों के निमित्त छोड़ा जाने वाला सोमरस, वह पात्र जिसमें उक्त सोमरस छोड़ा जाता है, वैदिक रुद्र दैवत्य मंत्र जिसमें मनुष्यों की प्रशंसा की गई है।
पवित्र कर्त्ता, प्रकाशवान देवताओं में देव, प्राणियों द्वारा पूजनीय अग्नि हमारे यज्ञ को तीन बार मधुर रस से सीचें।
Let pious, clean, pure, possessed with brightness and revered-appreciation deserving Agni Dev come to our Yagy to make offerings with honey & Somras. 
ईळितो अग्न आ वहेन्द्रं चित्रमिह प्रियम्। 
इयं हि त्वा मतिर्ममाच्छा सुजिह्व वच्यते
हे अग्नि देव! आपका नाम ईलित है। आप विचित्र और प्रिय इन्द्र को यहाँ ले आयें। हे सुजिह्व (सुन्दर जीभ वा वाणी से युक्त, शोभन ज्वाला वाली) देव! आपके लिए मैं स्तोत्रों का पाठ करता हूँ।[ऋग्वेद 1.142.4]
ईलित :: प्रशंसित, praised, implored, requested.
सुजिह्व :: सुन्दर जीभ वा वाणी से युक्त; शोभन ज्वालावाली; fire, flame, virtuous, demeanour, the Sun, lustrous, purifying, to make pure-free from anything that debases, pollutes, adulterates or contaminates, burning gas or vapor, as from wood or coal, that is undergoing combustion, a portion of ignited gas or vapor, a state, process or instance of combustion in which fuel or other material is ignited and combined with oxygen, giving off light, heat, and flame.
हे अग्नि देव! हम तुम्हारी वंदना करते हैं। तुम इन्द्र को यहाँ लाओ, मेरा यह श्लोक तुम्हारे लिए ही कहा गया है। 
 Hey Agni Dev! Ilit-praised, is of your names. Please bring amazing and lovely Indr Dev here. Hey Sujivh (pleasing words spoken-possessing admirable voice)! I recite hymns-prayers in your honour.
स्तृणानासो यतस्रुचो बर्हिर्यज्ञे स्वध्वरे। 
वृञ्जे देवव्यचस्तममिन्द्राय शर्म सप्रथः
स्रुक धारण करने वाले ऋत्विक् लोग इस यज्ञ में अग्नि रूप कुश को फैलाते हैं और देवों के आवाहन कर्ता विशाल यज्ञ स्थल को इन्द्रदेव के लिए शोभायमान करते हैं।[ऋग्वेद 1.142.5]
स्रुक धारण करने वाले ऋत्विज अनुष्ठान स्थान में कुशाओं को बिछाते तथा देवताओं को आह्वान करने वाले व्यापक अनुष्ठान मंडल को इन्द्रदेव के लिए सजाते हैं।
The Ritviz (hosts & the priests) holding Yagy spread the Kush-used for sitting as cushion, which is a form of fire (when ignited) and decorate the Yagy site to welcome Indr Dev.
वि श्रयन्तामृतावृधः प्रयै देवेभ्यो महीः। 
पावकासः पुरुस्पृहो द्वारो देवीरसश्चतः
महिमा युक्त यज्ञ की वृद्धि करने वाले पवित्र, सर्वथा अलग-अलग दिव्य दरवाजे अर्थात द्वार यज्ञ के निमित्त देवताओं के लिए खोल दिये जायें।[ऋग्वेद 1.142.6]
यज्ञ की वृद्धि वाले, शुद्ध, इच्छा के योग्य, देवों के लिए विशाल यज्ञ द्वार को खोल दो।
Let the glorious, divine doors-gates be opened for the demigods-deities meant for the glorious-majestic Yagy.
आ भन्दमाने उपाके नक्तोषासा सुपेशसा। 
यह्वी ऋतस्य मातरा सीदतां बर्हिरा सुमत्
सभी के स्तुति पात्र, परस्पर सन्निहित, सुन्दर, महान्, यज्ञ निर्माता और अग्नि रूप रात्रि और उषा स्वयं आकर विस्तृत कुशाओं पर विराजें।[ऋग्वेद 1.142.7]
सन्निहित :: समीपस्थ, निकट या साथ का, पड़ोस का, साथ या पास रखा हुआ, ठहरा हुआ, स्थित, आसन्न, उपस्थित, ठहराया या टिकाया हुआ, जमाया हुआ; near & dear, close to each other.
सबके पूजनीय पात्र, सुन्दर कांति वाले, उत्तम, अग्नि रूप रात-दिन हमारी कुशाओं पर आकर विराजें। 
Let Usha in the form of night, deserving prayers-worship from all, beautiful, near & dear, close to each, other conducting Yagy should come and occupy the broad mates made of Kush.
मन्द्रजिह्वा जुगुर्वणी होतारा दैव्या करौ। 
यज्ञं नो यक्षतामिमं सिध्रमद्य दिविस्पृशम्
देवों की उन्मादक शिक्षा से युक्त, सदा स्तुति शील यजमानों के मित्र, अग्रि रूप दिव्य दोनों होता हमारे इस सिद्धि प्रद और स्वर्ग स्पर्शी यज्ञ का अनुष्ठान करें।[ऋग्वेद 1.142.8]
सुन्दर जिह्वा वाले, स्तोताओं की अभिलाषा वाले, शक्तिशाली अग्नि रूप दोनों होता इस सिद्धि दायक यज्ञ को बढ़ाएँ।
Both the hosts-organisers possessing the knowledge-education (pious, virtuous, righteous knowledge) from the demigods-deities, always busy in prayers-worship conduct our Yagy which grants accomplishments and the heavens.
शुचिर्देदेष्वर्पिता होत्रा मरुत्सु भारती। 
इळा सरस्वती मही बर्हिः सीदन्तु यज्ञियाः
शुद्ध, देवों की मध्यस्था, होम सम्पादिका भारती, इला और सरस्वती; ये अग्नि की तीनों मूर्तियाँ यज्ञ के उपयुक्त होकर कुशों पर विराजमान हों।[ऋग्वेद 1.142.9]
देवताओं द्वारा स्थापित अनुष्ठानों को सिद्ध करने वाली, शुद्ध वाणीरूप भारती, सरस्वती और इला ये तीनों हमारी कुशाओं पर विराजमान हों।
Let Mata Bharti, Ila and Saraswati-the three form of Agni, who accomplish the commitments-endeavours of the demigods-deities, occupy suitable seats made of Kush in the Yagy.
तन्नस्तुरीपमद्भुतं पुरु वारं पुरु त्मना। 
त्वष्टा पोषाय वि ष्यतु राये नाभा नो अस्मयु:
त्वष्टा हमारे मित्र हैं। वे स्वयं अच्छी तरह हमारी पुष्टि और समृद्धि के लिए मेघ के नाभि स्थित व्याप्त अद्भुत और असंख्य प्राणियों की भलाई करने वाला जल बरसावें।[ऋग्वेद 1.142.10]
हमारे सखा स्वामी त्वष्टा अपने आप ही हमको पुष्ट करने वाले अन्न के लिए जल वृष्टि करें।
Let Twasta-our friend, make clouds to rain for our nourishment, wealth-progress, placing himself at the amazing navel-centre of the clouds, for the welfare-benefit of innumerable organisms-living beings.
अवसृजन्नुप त्मना देवान्यक्षि वनस्पते। 
अग्निर्हव्या सुषूदति देवो देवेषु मेधिरः
हे अग्नि रूप वनस्पति! इच्छानुसार ऋत्विकों को भेजकर स्वयं देवों का यज्ञ सम्पन्न करें। द्युतिमान् और मेघावान् अग्निदेव देवताओं के बीच हव्य भेजते हैं।[ऋग्वेद 1.142.11]
मेघावान् :: धारणा-धारणा शक्तिवाला जिसकी स्मरण शक्ति तीव्र हो, संकल्प शक्ति; One with determination, memory, reminder power is intense.
हे वनस्पते! तुम स्वयं ही देवताओं के पास जाकर यज्ञ करो। बुद्धिमान अग्निदेव देवताओं हेतु प्रेरित करते हैं।
Hey vegetation in the form of Agni Dev! Depute, hosts-Ritviz of your choice to accomplish the Yagy.
पूषण्वते मरुत्वते विश्वदेवाय वायवे। 
स्वाहा गायत्रवेपसे हव्यमिन्द्राय कर्तन
पूषा और मरुतों से युक्त समस्त देवता, वायु और इन्द्रदेव के लिए हवियाँ प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.142.12] 
पूषा और मरुतों से युक्त विश्वदेव रूपी पवन के लिए हवन करो। इन्द्र को लक्ष्य कर हवियों को दो। 
Let us make offerings for the sake of Pusha, Marud Gan, all demigods-deities, Pawan-Vayu & Indr Dev.
स्वाहाकृतान्या गह्युप हव्यानि वीतये। 
इन्द्रा गहि श्रुधी हवं त्वां हवन्ते अध्वरे
हे इन्द्रदेव! हमारा स्वाहा कार युक्त हव्य खाने के लिए पधारें। ऋत्विक् लोग यज्ञ में आपका आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 1.142.13] 
हे इन्द्रदेव! हमारे श्लोकों की ओर आकर हवि का सेवन करो। हे इन्द्रदेव! हमारे मंत्रों की ओर पधारकर हवि का सेवन करो। हमारे आह्वान को सुनो। हम तुम्हें अनुष्ठान में बुलाते हैं।
Hey Indr Dev! Please come to accept our offerings with the pronouncing Swaha. The Ritviz are inviting you.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (143) ::  ऋषि :- दीर्घतमा, देवता :- अग्नि, छन्द :- जगती, त्रिष्टुप्।
प्र तव्यसीं नव्यसीं धीतिमग्नये वाचो मतिं सहसः सूनवे भरे। 
अपां नपाद्यो वसुभिः सह प्रियो होता पृथिव्यां न्यसीदत्वियः
अग्नि बल के पुत्र, जल के नप्ता, यजमान के प्रियतम और होम के सम्पादक हैं। वे यथा समय धन के साथ वेदी पर विराजते हैं। उनके लिए मैं यह नवीन और शुभ फल वर्द्धक यज्ञ आरम्भ करता हूँ और स्तुति पाठ करता हूँ।[ऋग्वेद 1.143.1]
अग्निदेव शक्ति के पुत्र हैं। उनके लिए नवीन श्लोक भेट करता हूँ, वे जलों से रचित हैं और होता के रूप में धनों के साथ अनुष्ठान स्थान में विराजमान हैं।
Agni Dev is the son of Bal (power, might), is a creation of water, dear to the organisers & the patron of Yagy. He occupies the seat of the Yagy at the due-opportunate time. I am praying to him and reciting this Strotr (hymn, prayer) in his honour prior to beginning the auspicious Yagy..
स जायमानः परमे व्योमन्याविरग्निरभवन्मातरिश्वने। 
अस्य क्रत्वा समिधानस्य मज्मना प्र द्यावा शोचिः पृथिवी अरोचयत्
परम आकाश देश में उत्पन्न होकर अग्नि देवता सबसे पहले मातरिश्वा अथवा वायु के पास प्रकट हुए। अनन्तर इन्धन द्वारा अग्नि देव बढ़े और प्रबल कर्म द्वारा उनकी दीप्ति से स्वर्ग और पृथ्वी प्रदीप्त हुई।[ऋग्वेद 1.143.2]
वह अग्नि मातरिश्वा के लिए उच्चस्थ क्षितिज में प्रकट हुए हैं। उनके उज्जवल कर्म से क्षितिज और धरा दोनों प्रकाशमान हुए। 
Having born in space-sky, he appeared before Vayu-Pawan Dev, close to Matrishwa. Thereafter he enhanced with the availability of the fuel. Due to his strong endeavours, both the earth and the heavens were illuminated.
अस्य त्वेषा अजरा अस्य भानवः सुसंदृशः सुप्रतीकस्य सुद्युतः। 
भात्वक्षसो अत्यक्तुर्न सिन्धवोऽग्ने रेजन्ते अजराः
इन अग्नि देव की प्रचण्ड तेजस्विता जीर्णता से हीन है। सुन्दर मुखार विन्दु वाली इनकी तेजस्वी किरणें सभी ओर संव्याप्त होकर प्रकाशित होती हैं, दीप्तिमान शक्ति युक्त और रात्रि के अन्धकार को पार करते हुए इन अग्निदेव की ज्वालारूपी किरणें सदैव जागृत और क्षय रहित होकर कभी भयभीत न होते हुए सदैव जागृत रहती हैं।[ऋग्वेद 1.143.3]
उनके अजर प्रकाश और चमकती चिनगारी रूपी रश्मियाँ शक्तिशाली हैं।
Brilliance of Agni Dev is free from aging. His bright rays spread in all directions. He clears darkness of night and keep awake all the time.
यमेरिरे भृगवो विश्ववेदसं नाभा पृथिव्या भुवनस्य मज्मना। 
अग्निं तं गीर्भिर्हिनुहि स्व आ दमे य एको वस्वो वरुणो न राजति
भृगु वंश में उत्पन्न यजमानों ने अपने सामने जीवों के बल के लिए उत्तर वेदी पर जिन संवर्धनशाली अग्निदेव को स्थापित किया है, अपने घर में ले जाकर उनकी स्तुति करें क्योंकि अग्नि देव प्रधान हैं और वरुण की तरह सम्पूर्ण धनों के स्वामी है।[ऋग्वेद 1.143.4]
उन समुद्र के समान शव को भृगुओं ने अपने पराक्रम से प्रेरित किया, उनकी वंदना करें। हे वरुण के समान सभी धनों के एक मात्र दाता हैं।
The Ritviz-hosts who got birth in Bhragu Vansh (Bhragu clan) have established the Yagy Vedi in the east for the growth of Agni Dev. Take this fire to homes and pray to him, since Agni Dev is the leader and the master of all amenities-wealth. 
न यो वराय मरुतामिव स्वनः सेनेव सृष्टा दिव्या यथाशनिः। अग्निर्जम्भैस्तिगितैरत्ति भर्वति योधो न शत्रून्त्स वना न्यृञ्जते
जिस प्रकार से वायु के शब्द, पराक्रमी राजा की सेना और द्युलोक में उत्पन्न वज्र का कोई निवारण नहीं कर सकता, उसी प्रकार जिन अग्निदेव का कोई निवारण नहीं कर सकता, वे ही अग्निदेव वीरों की तरह तीखे दाँतों से शत्रुओं का भक्षण और विनाश तथा वनों का दहन करते हैं।[ऋग्वेद 1.143.5]
जो अग्नि मरुतों के ध्वनि, आक्रामक सेना और अम्बर के वज्र के समान बाधा विमुख हैं, वे वनों को नष्ट करते हैं और वनों को योद्धाओं द्वारा शत्रुओं को भून डालने के समान ही जला डालते हैं।
The manner in which the flow of air & the sound produced by it while moving, cannot be curtailed by the army of a might king & the Vajr produced in the heavens, none can eat-digest the Agni Dev; since Agni Dev eats-digest the enemies biting the enemy with his sharp teeth and burn the forests-jungles.
कुविन्नो अग्निरुचथस्य वीरसद्वसुष्कुविद्वसुभिः काममावरत्। 
चोदः कुवित्तुतुज्यात्सातये धियः शुचिप्रतीकं तमया धिया गृणे
अग्निदेव बार-बार हमारे उक्त स्तोत्र को सुनने की इच्छा करें। हे धनशाली अग्निदेव! धन द्वारा बार-बार आप हमारी इच्छा पूर्ण करें। हे यज्ञ-प्रवर्त्तक अग्निदेव! यज्ञ-लाभ के लिए, हमें बार-बार प्रेरित करें; मैं ऐसी स्तुति द्वारा सुदृश्य अग्नि देवता की प्रार्थना करता हूँ।[ऋग्वेद 1.143.6]
अग्नि हमारे श्लोक की इच्छा करते हुए धन की कामना को पूर्ण करें। हमारे लाभ के लिए कार्यों को प्रेरित करें। मैं अग्नि की प्रार्थना करता हूँ। 
Let Agni Dev desire to listen to the Shlok-hymn sung by us, above. Hey rich-wealthy Agni Dev! You should fulfil our desire for riches-money, again and again. Inspire us to conduct Yagy for the accomplishment our wishes. I pray to beautiful-lovely Agni Dev with the help of such hymns-verses.
घृतप्रतीकं व ऋतस्य धूर्षदमग्निं मित्रं न समिधान ऋञ्जते। 
इन्धनो अक्रो विदथेषु दीद्यच्छुक्रवर्णामुदु नो यंसते धियम्
आपके यज्ञ निर्वाहक और प्रदीप्त अग्नि को मित्र की तरह जलाकर विभूषित किया जाता है। अच्छी तरह चमकती ज्वाला वाले अग्नि देव यज्ञ स्थल में प्रदीप्त होकर हमारी विशुद्ध यज्ञ विषयक बुद्धि को प्रबुद्ध करते हैं।[ऋग्वेद 1.143.7]
अग्नि को जलाने वाले यजमान धूर्त चिह्न को सखा बनाने की इच्छा रखते हैं। ये उजाले के दुर्ग के समान यज्ञ में प्रज्वलित होकर हमारे मन को उत्तम वंदना की ओर प्रेरित करते हैं।
Agni Dev who supports-sustain the Yagy, is decorated by making-energising him. Let Agni Dev with his bright flames at the Yagy site grow-develop our intelligence (prudence) pertaining to the Yagy.
अप्रयुच्छन्नप्रयुच्छद्भिरग्ने शिवेभिर्नः पायुभिः पाहि शग्मैः। 
अदब्येभिरदृपिते-भिरिष्टेऽनिमिषद्भिः परि पाहि नो जाः
हे अग्निदेव! हमारे ऊपर कृपा करके सदैव अवहित, माङ्गलिक और सुखकर आश्रय देकर हमारी रक्षा करें। हे सर्वजन वाञ्छनीय अग्निदेव! उत्पन्न होकर आप हिंसा न करते हुए व अजेय और एकनिष्ठ भाव से हमारी रक्षा अच्छी प्रकार से करें।[ऋग्वेद 1.143.8]
हे अग्निदेव! लगातार विश्राम-विमुख कल्याण रूप तुम हमारी सुरक्षा करो, तुम क्लेश रहित और निद्रा रहित सामर्थ्यो से परिपूर्ण हों। हमारी संतान की सभी ओर से सुरक्षा करो।
Hey Agni Dev! You should protect us-grant us asylum & fulfil our auspicious (virtuous, righteous) wishes. Hey Agni Dev, desired by all! Having lit-grown, protect us unilaterally as a winner.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (144) ::  ऋषि :- दीर्घतमा, देवता :- अग्नि, छन्द :- जगती।
एति प्र होता व्रतमस्य माययोर्ध्वा दधानः शुचिपेशसं धियम्। 
अभि स्रुचः क्रमते दक्षिणावृतो या अस्य धाम प्रथमं ह निंसते
बहुदर्शी होता, अपनी उच्च और शोभन बुद्धि के बल से अग्नि की सेवा करने के लिए जा रहे हैं और प्रदक्षिणा करके स्रुक् धारण कर रहे हैं। इसी स्रुक् से अग्नि में प्रथम आहुति देते हैं।[ऋग्वेद 1.144.1]
CIRCUMAMBULATION
 प्रदक्षिणा
देवह्वाता अग्नि यज्ञ की ओर श्लोंको को शक्ति प्रदान करते हुए जाते हैं। वे स्त्रुचों से आहुति ग्रहण करते हुए उठते हैं। अग्नि की लपटें देवस्थान में वेदों से घिरे हुए अनुष्ठान से निकलती हैं।
The hosts-organisers of the Yagy wilt multiple aims-targets (desires, wishes) are moving to serve the Agni with their intelligence, circumambulating (प्रदक्षिणा) the Yagy site, holding Struv in their hands making first offerings to Agni-fire with it. 
अभीमृतस्य दोहना अनूषत योनौ देवस्य सदने परीवृताः।
अपामुपस्थे विभृतो यदावसदध स्वधा अधयद्याभिरीयते
सूर्य की किरणों में चारों ओर फैली जल धारा उनकी उत्पत्ति के स्थान सूर्य लोक में फिर नई होकर उत्पन्न होती है। जिस समय जिसकी गोद में आदर के साथ अग्नि देव रहते हैं, उसी समय लोग अमृतमय जल पीते हैं और अग्नि, विद्युत् अग्नि के रूप में मिलते हैं।[ऋग्वेद 1.144.2]
जलों की गोद में अन्तर्हित रहे अग्नि देव ने प्रकट होकर अपना गुण प्राप्त किया।
The flowing water present in the the rays of Sun, refreshes itself in the Sun-its origin. Agni Dev resides with love & honour in its lap making humans consume it as nectar, leading Agni-fire to combine with electric spark-lightening.
युयूषतः सवयसा तदिद्वपुः समानमर्थं वितरित्रता मिथः। 
आदीं भगो न हव्यः समस्मदा वोळ्हुर्न रश्मीन्त्समयंस्त सारथिः
समान अवस्था वाले होता और अध्वर्यु (यजुर्वेद विहित कार्य करने वाले) एक ही प्रयोजन की सिद्धि के लिए परस्पर सहायता देकर अग्नि के शरीर में अपना-अपना कार्य पूर्ण करते हैं। अनन्तर जैसे सूर्य देव अपनी किरणें विस्तारित करते हैं, वैसे ही आहवनीय अग्नि देव हमारी दी हुई घृताहुति को ग्रहण करते हैं।[ऋग्वेद 1.144.3]
एक रूप वाली दोनों अरणियाँ आपस में मिलकर उज्ज्वल रूप वाले की अभिलाषा करती हैं। वे अग्नि देव आह्वान के योग्य हैं। द्वारा रास पकड़ने की तरह अग्नि देव हमारी घृत धारा को स्वीकार करते हैं।
People of the same age and those performing Yagy as per directions-instructions of Yajur Ved are making offerings in the holy fire. It leads to extension of the Sun light and Agni Dev respond to the prayers by accepting the offerings of Ghee.
There is close relation between the rays of Sun, water and fire. Hydrogen-protons are the basic ingredients for formation of higher elements, compounds. They lead to formation of oxygen & water.
यमीं द्वा सवयसा सपर्यतः समाने योना मिथुना समोकसा। 
दिवा न नक्तं पलितो युवाजनि पुरू चरन्नजरो मानुषा युगा
समान अवस्था वाले, एक यज्ञ में वर्तमान और एक कार्य में नियुक्त दोनों मनुष्य जिन अग्नि देव की दिन-रात पूजा करते हैं, वे अग्निदेव चाहे वृद्ध हों, चाहे युवा, उन दोनों मनुष्यों का हव्य भक्षण करते हुए अजर हुए हैं।[ऋग्वेद 1.144.4]
समान आयु वाले दो प्राणी अग्नि दे व की दिन-रात अर्चना करते हैं। वे अग्नि देव कभी वृद्ध नहीं होते। युवा रहते हुए भी हवि भक्षण करते हैं।
Two people of the same age, busy with the Yagy praying-worshiping (serve) Agni Dev, making Agni Dev to remain young consuming the offerings made by them. 
तमीं हिन्वन्ति धीतयो दश व्रिशो देवं मर्तास ऊतये हवामहे। 
धनोरधि प्रवत आ स ऋण्वत्यभिव्रजद्धिर्वयुना नवाधित
दसों अँगुलियों आपस में अलग होकर उन प्रकाश देने वाले अग्निदेव को प्रसन्न करती हैं। हम मनुष्य है। अपनी रक्षा के लिए अग्निदेव को बुलाते हैं। जैसे धनुष से वाण निकलता है, उसी प्रकार अजयलित अग्नि चारों ओर स्नोताओं की स्तुतियों अर्थात् प्रार्थनाओं को ग्रहण करता है।[ऋग्वेद 1.144.5]
दस उँगलियाँ उस अग्नि देव की सेवा करती हैं। हम उन्हें सुरक्षा के लिए आहूत करते हैं। वे बाण की गति के समान चलते हुए नवीन वंदनाओं को धारण करते हैं।
The ten fingers together amuse Agni Dev producing light. The humans invite-call (pray) to Agni Dev for their defence. The speed with which an arrow is shot from the bow, Agni Dev accept the prayers-offerings of the devotees with the same speed.
त्वं ह्यग्ने  दिव्यस्य राजसि त्वं पार्थिवस्य पशुपाइय त्मना। 
एनी त एते बृहती अभिश्रिया हिरण्ययी वकरें बर्हिराशाते
अग्नि देव पशुओं की रक्षा करने वालों के तुल्य अपनी शक्ति से स्वर्ग और पृथ्वी पर रहने वाले लोगों के ईश्वर हैं। इसलिए महती ऐश्वर्यवती, हिरण्यमयी, मंगल शब्द कारिणी शुभवर्णा और प्रसन्ना द्यावा पृथ्वी आपके यज्ञ में आती हैं।[ऋग्वेद 1.144.6]
हे अग्नि देव! तुम क्षितिज और पृथ्वी के प्राणधारियों के स्वामी हो। वह समृद्धि संयुक्त दोनों ही तुम्हारे अनुष्ठान को ग्रहण होते हैं।
Agni Dev is the God of the inhabitants of heavens & earth, being the protector of all animals. Due to this reason magnificent, golden looking, producing auspicious words-chants, amusing earth participate in the Yagy.
अग्रे जुषस्व प्रति हर्य तद्वचो मन्द्र स्वधाव ऋतजात सुक्रतो। 
यो विश्वतः प्रत्याङ्ङसि दर्शतो रण्वः संदृष्टौ पिआपाँइव क्षयः
हे अग्निदेव! आप हव्य का उपभोग करें, अपना स्तोत्र सुनने की इच्छा करें। हे स्तुत्य, अन्नवान् और यज्ञ के लिए उत्पन्न तथा यज्ञशाली अग्निदेव! आप सम्पूर्ण संसार के अनुकूल, सबके दर्शनीय, आनन्दोत्पादक और यथेष्ट अन्नशाली व्यक्ति की भाँति सबके आश्रय स्थान है।[ऋग्वेद 1.144.7] 
हे प्रसन्न मन वाले, अपनी इच्छानुसार बली, यज्ञोत्पन्न अग्ने! प्रसन्न होकर इस श्लोक को स्वीकार करो। तुम अत्यन्त रमणीक और ऐश्वर्यों से परिपूर्ण हो।
Hey Agni Dev! Consume our offerings and listen to the Strotr sung in your honour. Hey worship-prayers deserving, possessor of food grains born-produced for Yagy, Agni Dev! You are favourable to the whole world, glorious, amusing and protector of the all humans-organisms (living beings) like one who possess sufficient food grains.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (145) ::  ऋषि :- दीर्घतमा, देवता :- अग्नि, छन्द :- जगती, त्रिष्टुप्।
तं पृच्छता स जगामा स वेद स चिकित्वाँ ईयते सा न्वीयते। 
तस्मिन्सन्ति प्रशिषस्तस्मिन्निष्टयः स वाजस्य शवसः शुष्मिणस्पतिः
हे मनुष्यों! आप अग्निदेव से पूछें, क्योंकि वे सर्वत्र गमनशील, सर्वज्ञाता, ज्ञानी, निश्चित रूप से सर्वत्र व्याप्त हैं, वही चैतन्य हैं, वे ही यान हैं, वे ही शीघ्रगन्ता है, उन्हों के पास शासन करने की योग्यता है, अभीष्ट वस्तु भी उन्हीं के पास है। वह अन्न, बल आदि के अधिष्ठाता है।[ऋग्वेद 1.145.1]
यान :: Going, moving, walking, riding,  voyage, journey, Marching against, attacking, (one of the six Guns-characterises or expedients in politics), अहितान् प्रत्यभीतस्य रणे यानम् A procession, train, A conveyance, vehicle, carriage, chariot; यानं सस्मार कौबेरम् A litter, palanquin, A ship, vessel, The method of arriving at knowledge in Buddhism, the means of release from repeated births, महायान, हीनयान, An aeroplane विमान, A road, way, आसनम् marching and sitting quiet, आस्तरणम् a carriage cushion, a carpenter, riding in a carriage-a ship, boat, a small boat. भङ्गः shipwreck, मुखम् the forepart of a carriage, the part where the yoke is fixed. यात्रा :- a sea-voyage; Buddh. यानम् driving or riding in a carriage. शाला :- a coach house; यानशालां जगाम ह, स्वामिन् the owner of a vehicle; यानस्य चैव यातुश्च यानस्वामिन एव च। 
हे अग्निदेव! सर्वज्ञाता, सर्वत्र विचरणशील, सभी के वंदनापात्र, अभिष्ट परिपूर्ण एवं महाशक्तिशाली हो।
Hey humans! Let us ask-question to Agni Dev, who is capable of moving every where, knows every thing, enlightened, pervades all, conscious, fast moving-reacting (listening, a fast moving carrier possessed with the power-ability to rule. He has all desired commodities being the leader-administrator.  
तमित्पृच्छन्ति न सिमो वि पृच्छति स्वेनेव धीरो मनसा यदग्रभीत्। 
न मृष्यते प्रथमं नापरं वचोऽस्य क्रत्वा सचते अप्रदॄषितः
बुद्धिमान् लोग ही अधिक जिज्ञासु होते हैं, इसलिए धैर्यशाली लोग प्रत्येक कार्य को समय से पहले ही पूर्ण कर लेते हैं। वह किसी के कथन को श्रवण नहीं करते। ऐसे ही लोग अग्निदेव की क्षमता को प्राप्त कर पाते हैं। यदि यह कहा जाये दम्भ विहीन मनुष्य ही अग्निदेव का आश्रय प्राप्त करता है।[ऋग्वेद 1.145.2]
उस अग्नि देव को सभी जानते हैं। उनके विषय में पूछना अनुचित है। दृढ़ हृदय वाला किसी पहले और पश्चात की बातें नहीं भूलता। इसलिए अहंकार से शून्य अग्नि का सहारा लेता है।
The intelligent (prudent, clever) is more curious-anxious; hence he, possessing patience, is able to complete his target before time. He will not wait for orders-instructions from any one. He do not care-regard the advice of anyone. Only such people are able to achieve the calibre-power of Agni Dev. A person free from falls pride, Id, ego, super ego is able to attain asylum ,shelter  protection under Agni Dev.
Listen to what others say, but do what you decide-desire.
तमिद्गच्छन्ति जुह्वस्तमर्वतीर्विश्वान्येकः शृणवद्वचांसि मे। पुरुप्रैषस्ततुरिर्यज्ञसाधनोऽच्छिद्रोतिः शिशुरादत्त सं रभः
सब जुहू अग्नि को लक्ष्य कर जाते हैं। स्तुतियाँ भी अग्नि के लिए ही हैं। अग्नि देव मेरी समस्त स्तुतियाँ सुनते हैं। वह बहुतों के प्रवर्तक, तारयिता और यज्ञ के साधन हैं। उनकी रक्षा शक्ति छिद्र शून्य है। वह शिशु की तरह शान्त और यज्ञ के अनुष्ठाता है।[ऋग्वेद 1.145.3]
जुहू :: पलाश की लकड़ी का बना हुआ एक अर्ध चंद्राकार यज्ञ पात्र जिससे घृत की आहुति दी जाती हैं, पूर्व दिशा, अग्नि की जिह्वा, अग्निशिखा,अध्यर्यु, चंद्रमा।  
इसी अग्नि को आहुतियाँ और प्रार्थनाएँ प्राप्त होती हैं। वह आह्वानों को सुनने वाले हैं। यज्ञ को सिद्ध करने वाला तथा शिशु के समान पराक्रम बुद्धि को ग्रहण होता है।
This Agni is prayed-worshipped by all. All Strotr prayers are meant-targeted for him. He listens to our prayers. He is the saviour of many and a means for the Yagy. His protection is unquestionable. He is quite like an infant.
उपस्थायं चरति यत्समारत सद्यो जातस्तत्सार युज्येभिः। 
अभि श्वान्तं मृशते नान्द्ये मुदे यदीं गच्छन्त्युशतीरपिष्ठितम्
जब यजमान अग्नि को उत्पन्न करने की चेष्टा करता है, तभी अग्निदेव प्रकट होते हैं। उत्पन्न होकर ही तुरन्त योजनीय वस्तु के साथ मिल जाते हैं। तब यह अग्निदेव यजमानों को अभीष्ट फल प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 1.145.4]
अग्नि देव प्रकट होते ही विचरण शील हैं। वे तुरन्त ही हवियों को प्राप्त कर लेते हैं और थके हुए मनुष्यों की थकावट को मिटाकर खुशी प्रदान करते हैं।
As soon as the Ritviz-host tries to evolve fire, Agni Dev appears. He dissolves in the desired commodities and grant the boons (fulfil the wishes-desires of the devotees).
स ईं मृगो अप्यो वनर्गुरुप त्वच्युपमस्यां नि धायि। 
व्यब्रवीद्वयुना मर्त्येभ्योऽग्निर्विद्वाँ ऋतचिद्धि सत्यः
अन्वेषण परायण और प्राप्तव्य वन के गामी अग्निदेव त्वचा की तरह इन्धन के बीच स्थापित हुए हैं। विद्वान्, यज्ञ ज्ञाता और यथार्थवादी अग्निदेव मनुष्य को यज्ञकर्म से प्रेरित करते हुए उसे ज्ञान युक्त बनाते हैं।[ऋग्वेद 1.145.5]
वन में विचरण करने वाले अग्निदेव ईंधन से प्राप्त होते हैं। मेधावी यज्ञ ज्ञाता अग्नि प्राणियों में रहकर यज्ञ-कर्म में प्रेरित करता हुआ ज्ञान देता है।
Agni Dev is obtained from the woods as fuel (calibre, power to perform) to the ones who search him. The enlightened aware of Yagy and the realistic Agni Dev encourages the humans busy in endeavours (Yagy) and provide them knowledge.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (146) ::  ऋषि :- दीर्घतमा, देवता :- अग्नि, छन्द :- त्रिष्टुप्।
त्रिमूर्धानं सप्तरश्मिं गृणीषेऽनूनमग्निं पित्रोरुपस्थे। 
निषत्तमस्य चरतो ध्रुवस्य विश्वा दिवो रोचनापप्रिवांसम्
पिता-माता की गोद में अवस्थित, सवनत्रयरूप, मस्तकत्रय से युक्त, सप्त छन्दोरू, सप्त रश्मियों से युक्त और विकलता शून्य अग्नि देव की स्तुति करें। सर्वत्रगामी, अविचलि प्रकाशमान और अभीष्ट वर्षक अग्निदेव का तेज चारों ओर व्याप्त हो रहा है।[ऋग्वेद 1.146.1] 
विकलता :: व्यग्रता, हैरानी, परेशानी, बाधा, रुकावट; perplexity. 
हे मनुष्य! तीन मस्तक वाले, सात रश्मियों वाले, पूर्ण रूप वाले, क्षितिज और धरा के बीच विराजमान और प्रकाशमान नक्षत्रों में तेज रूप से लीन इस अग्नि का पूजन करो। इस वीर अग्नि ने आकाश और धरती को सभी ओर से व्याप्त किया है। 
Present in the lap of his parents, having three heads and seven rays with complete form, free from perplexity, prayed-worshiped with seven Strotr, stationed between the horizon and the earth, Agni Dev should be prayed. The aura of Agni Dev who fulfils the desires-motives of the devotees is spreading in all directions uniformly.
उक्षा महाँ अभि ववक्ष एने अजरस्तस्थावितऊतिर्ऋष्वः। 
उर्व्याः पदो दधाति सानौ रिहन्त्यूधो अरुषासो अस्य
फलदाता अग्निदेव अपनी महिमा से स्वर्ग और पृथ्वी को व्याप्त किये हुए हैं। अजर और पूज्य अग्निदेव हमारी रक्षा करके अवस्थित है। भूमि के शीर्ष पर अपने पैरों को रखकर खड़े हुए इनकी प्रदीप्त ज्वालाएँ आकाश में सर्वत्र व्याप्त होती हैं।[ऋग्वेद 1.146.2] 
वह जरा रहित और साधनों से परिपूर्ण है। धरती के सिर पर अपने पैरों को रखकर खड़े हुए इसकी ज्वालाएँ बादल रूपी सन्तान को चाटती हैं।
The glory of wish fulfilling Agni Dev spread-pervades the heavens & the earth. Never aging, honourable-revered Agni Dev is ready for our protection. He station his feet over the earth and his flames spread all around in the sky.
समानं वत्समभि संचरन्ती विष्वग्धेनू वि चरतः सुमेके। 
अनपवृज्याँ अध्वनो मिमाने विश्वान्केताँ अघि महो दधाने
सेवा कार्य में चतुर दो गायें एक बछड़े के सामने जाती है। वह निन्दनीय विषय से शून्य मार्ग का निर्माण और सब तरह की बुद्धि या प्रज्ञा अधिक मात्रा में धारित करती हैं।[ऋग्वेद 1.146.3]
ये धरा रूप धेनु साझे के बछड़े रूप अग्नि को ग्रहण कर समस्त इच्छाओं को धारण करती हुई विचरण करती हैं।
The earth in the form of cow adopts Agni Dev as her calf and roam all around fulfilling the wishes of the devotees. She discard the  condemnable-blameable subjects, make her way through the space, possessing the intelligence.
धीरासः पदं करेंयो नयन्ति नाना हृदा रक्षमाणा अजुर्यम्। 
सिषासन्तः पर्यपश्यन्त सिन्धुमाविरेभ्यो अभवत्सूर्यो नॄन्
विद्वान् और मेघावी लोग अज्ञेय अग्नि देव को अपने स्थान पर स्थापित करते हैं; बुद्धि बल से, नाना उपायों द्वारा उनकी रक्षा करते हैं। यज्ञ फल का भोग करने की इच्छा से फल दाता अग्नि देव की सेवा करते हैं। उनके पास सूर्य रूप में अग्नि देव प्रकट होते हैं।[ऋग्वेद 1.146.4]
मेधावी ऋषिगण की रक्षा करते हुए उनको राह दिखाते हैं, उन्होंने अग्नि की चाहना से समुद्र को सभी ओर से देखा, तब प्राणियों का कल्याण करने वाला सूर्य उत्पन्न हुआ।
The intellectuals & the learned establish Agni Dev at his proper place and protect him through several means, using their wisdom.  The organisers of Yagy serve Agni Dev in all possible ways to seek the rewards of their endeavours. Agni Dev appear before them in the form of Sun for their welfare.
दिदृक्षेण्यः परि काष्ठासु जेन्य ईळेन्यो महो अर्भाय जीवसे। 
पुरुत्रा यदभवत्सूरहैभ्यो गर्भेभ्यो मघवा विश्वदर्शतः
अग्निदेव चाहते हैं कि उन्हें सब दिशाओं के निवासी देख सकें। वे सदा जयशील और स्तुति योग्य हैं। वे शुद्ध और महान्, सबके जीवन स्वरूप हैं। धनवान् और सबके दर्शनीय अग्निदेव अनेक स्थानों में बालक के समान, यजमानों के लिए पिता के समान रक्षक और पालनकर्ता हैं।[ऋग्वेद 1.146.5]
दिशाओं के विजेता अग्नि देव छोटे-बड़े शरीर धारियों के लिए जीवन दाता हुए। वे धन और प्रजाओं को प्रकट करने में समर्थ हैं।
Agni Dev wish to be seen by the humans in all directions. He, as the winner deserve worship. He is like the life for every one, being great and pure. Agni Dev is wealthy-rich & beautiful like a child at many places and yet like father for the protection of the Ritviz-organisers of the Yagy.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (147) ::  ऋषि :- दीर्घतमा, देवता :- अग्नि, छन्द :- त्रिष्टुप्।
कथा ते अग्ने शुचयन्त आयोर्ददाशुर्वाजेभिराशुषाणाः। 
उभे यत्तोके तनये दधाना ऋतस्य सामन्रणयन्त देवाः
हे अग्निदेव! आपकी उज्ज्वल और शोषक शिखाएँ किस प्रकार से अन्न के साथ आयु प्रदान करती हैं, जिससे पुत्र, पौत्र आदि के लिए अन्न और आयु प्राप्त कर यजमान लोग याज्ञिक सामवेद का गायन कर सकते हैं?[ऋग्वेद 1.147.1]
हे अग्निदेव! तुम्हारी प्रकाशमान रश्मियाँ बल से परिपूर्ण जीवन प्रदान करती हैं। वे पुत्र-पौत्रादि की वृद्धि करती हुई पुष्टि करती हैं।
Hey Agni Dev! How the bright and nourishing your flames provide-grant food grains and longevity, so that the hosts-Ritviz (organisers of the Yagy) are able to recite the verses of Sam Ved for acquiring food stuff and longevity for their sons & grand son!? 
बोधा मे अस्य वचसो यविष्ठ मंहिष्ठस्य प्रभृतस्य स्वधावः। 
पीयति त्वो अनु त्वो गृणाति वन्दारुस्ते तन्वं वन्दे अग्ने
हे युवा और अन्नवान् अग्निदेव! मेरे द्वारा अत्यन्त पूज्य और अच्छी तरह सम्पादित स्तुति ग्रहण करें। कोई आपकी हिंसा करता और कोई आपकी पूजा करता है। मैं तो आपका उपासक हूँ, इसलिए मैं आपकी पूजा करता हूँ।[ऋग्वेद 1.147.2]
हे अत्यन्त युवा अग्ने! मेरे इस सम्मान योग्य श्लोक को सुनो। एक मनुष्य आपको कष्ट पहुँचाता है और एक वंदना करता है। मैं तो आपकी वंदना करने वाला हूँ।
Hey ever-always young, possessing food grains, Agni Dev! Please accept the prayers sung by me with great honour. Some people hurt-dishonour (contempt) you and the others worship-pray you. I am your devotee and thus I worship you. 
ये पायवो मामतेयं ते अग्ने पश्यन्तो अन्धं दुरितादरक्षन्। 
ररक्ष तान्सुकृतो विश्ववेदा दिप्सन्त इद्रिपवो नाह देभुः
हे अग्निदेव! आपकी जिन प्रसिद्ध और पालक रश्मियों ने (ममता के पुत्र और अन्धे दीर्घतमा को) नेत्र हीन होने से बचाया था, उन सुखकर शिखाओं की सर्व प्रज्ञा युक्त आप रक्षा करें। विनाश की कामना करने वाले शत्रु लोग (कभी भी) हिंसा न करने पावें।[ऋग्वेद 1.147.3]
प्रज्ञा :: भेदभाव, विवेक, पक्षपात, विभेदन, निर्णय, समझना, समझौता, जानना, बूझ, ज्ञप्ति, बुद्धि, बुद्धिमत्ता, बुद्धिमानी, सूचना, ज्ञान; intelligence, understanding, discrimination.
हे अग्नि देव! तुम्हारी रक्षा से युक्त भक्तों ने ममता के अंधे सुत को बचाया। उन श्रेष्ठ कर्मों वाले की तुमने रक्षा की। तुम्हें शत्रु किसी प्रकार छल नहीं सकते।
Hey Agni Dev! Protect us with your comfortable and discriminating flames with which you saved Deerghtma, the son of Mamta from being blind. Do not let the enemy planning to destroy us through violence.
यो नो अग्ने अररिवाँ अघायुररातीवा मर्चयति द्वयेन। 
मन्त्रो गुरुः पुनरस्तु सो अस्मा अनु मृक्षीष्ट तन्वं दरुक्तैः
हे अग्नि देव! जो हमारे लिए पाप चाहते हैं, स्वयं दान नहीं करते, मानसिक और वाचनिक दो प्रकार के मंत्रों द्वारा हमारी निन्दा करते हैं, ऐसे कपटी लोगों का स्वभाव ही उन्हीं के सर्वनाश का कारण बनें।[ऋग्वेद 1.147.4]
हे अग्ने! ईर्ष्या से युक्त अदानशील पापी हमको कपट से दुःख देता है। उसका वह कुविचार उसी को भार स्वरूप हो और वह उसी को समाप्त करे।
Hey Agni Dev! Let the nature of deceptive enemies who always think ill of us (wish to harm us), never donate and defame-slur us, with both thoughts-mental and speech, destroy themselves. 
उत वा यः सहस्य प्रविद्वान्मर्तो मर्तं मर्चयति द्वयेन। 
अतः पाहि स्तवमान स्तुवन्तमग्ने माकिर्नो दुरिताय धायीः
हे बल के पुत्र अग्निदेव! जो मनुष्य जान-बूझकर दोनों तरह के मंत्रों से मनुष्य की निन्दा करता है, मैं प्रार्थना करता हूँ, हे स्तूयमान अग्नि देव! उनके द्वारा हमारी रक्षा करते हुए हमें पापकर्मों से मुक्त करें।[ऋग्वेद 1.147.5]
स्तूयमान :: Being praised.
हे बलशाली! जो मनुष्य छल से किसी को कष्टमय करना चाहता है, उससे वंदनाकारी की सुरक्षा करो। हम दुःखी न हों।
Hey, the son of might-power, Agni Dev! I pray to you, the praise worthy Agni Dev, for protection against those people, who knowing-willingly, deprave-slur (torture) us and free us from all sorts of sinful acts.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (148) ::  ऋषि :- दीर्घतमा, देवता :- अग्नि, छन्द :- त्रिष्टुप्।
मथीद्यदीं विष्टो मातरिश्वा होतारं विश्वाप्सुं विश्वदेव्यम्। 
नि यं दधुर्मनुष्यासु विक्षु स्वर्ण चित्रं वपुषे विभावम्
वायु देवता ने लकड़ी के अन्दर प्रवेश कर विविध रूपशाली, समस्त देवों के कार्य में नपुण और देवों का आवाहन करने वाले अग्निदेव को बढ़ाया। पहले देवों ने इनको विलक्षण प्रकाशवाले सूर्य की तरह मनुष्यों और ऋत्विकों की यज्ञ सिद्धि के लिए स्थापित किया।[ऋग्वेद 1.148.1]
उन सर्वस्वरूप वाले देव-स्वरूप होता का मातरिश्वा ने मन्थन किया और उस सूर्य के तुल्य दैदीप्यमान अग्नि को देवगण ने मनुष्यों में स्थापित किया।
Vayu-Pawan Dev entered the wood and promoted-ignited fire-Agni Dev, who has several-various forms, invites the demigods-deities and perform their various functions.  
ददानमिन्न ददभन्त मन्याग्निर्वरूथं मम तस्य चाकन्। 
जुषन्त विश्वान्यस्य कर्मोपस्तुतिं भरमाणस्य कारोः
अग्नि देव को सन्तोष दायक हव्य देने से ही शत्रु लोग मुझे नष्ट नहीं कर सकते। ये मेरे द्वारा प्रदत्त स्तोत्र आदि के अभिलाषी है। जिस समय स्तोता अग्रि की स्तुति करते हैं, उस समय सारे देवता उनके दिये हुए हव्य को ग्रहण करते हैं।[ऋग्वेद 1.148.2]
श्लोक उच्चारण करते हुए मुझे शत्रु पीड़ित न कर पाये। मेरी वंदना सुनकर अग्नि ने आश्रय प्रदान किया और मेरे श्लोकों को सभी देवताओं ने स्वीकार किया।
Just by making satisfactory offerings to Agni Dev, the enemies fail to destroy me. He wish to accept the Strotr-prayers recited by me for him. When the hosts-Ritviz pray to Agni Dev, all the demigods-deities accept the offerings.
नित्ये चिन्नु यं सदने जगृभ्रे प्रशस्तिभिर्दधिरे यज्ञियासः। 
प्र सू नयन्त गृभयन्त इष्टावश्वासो न रथ्यो रारहाणाः
याज्ञिक लोग जिन अग्नि देव को नित्य अग्नि गृह में ले जाते और स्तुति के साथ स्थापित करते हैं, उसे वे तीव्रगामी अर्थात् अति तेज चलने वाले रथ के अश्वों के तुल्य उत्पन्न करते हैं।[ऋग्वेद 1.148.3]
यजमानों ने जिसे स्वीकार कर प्रार्थनाओं में स्थापित किया और रथ में अश्व जोड़ने के समान आगे बढ़ाया।
The Ritviz carry Agni Dev to the spot of the Yagy, make prayers and energise it, like the fastest moving horses. 
पुरूणि दस्मो नि रिणाति जम्भैराद्रोचते वन आ विभावा। 
आदस्य वातो अनु वाति शोचिरस्तुर्न शर्यामसनामनु द्यून्
विनाशक अग्निदेव सब प्रकार के वृक्षों को वनों में अपनी शिखाओं या दाँतों से विनष्ट करके जंगल में सभी ओर प्रकाश विखेरते हैं। इसके अनन्तर जैसे धनुर्द्धारी के पास से वेग के साथ तीर जाता है, उसी तरह अग्नि की ज्वाला वायु की अनुकूलता पाकर छोड़े गये तीर तुल्य वेग से आगे जाती हैं।[ऋग्वेद 1.148.4]
अद्भुत अग्नि वृक्षों का वर्णन करता है और प्रकाश वन में चमकता है। इसकी दमकती हुई ज्वाला को पवन तीक्ष्ण रूप में बढ़ाता है।
Destroyer Agni Dev burn all sorts of vegetation (trees, plants, shrubs etc.) with his hair locks and teeth and spread light throughout the forest-jungle. Thereafter, the flames spread like the arrow shot by an archer aided by Vayu-Pawan Dev.
Air-oxygen is essential for fire.
न यं रिपवो न रिषण्यवो गर्भे सन्तं रेषणा रेषयन्ति। 
अन्धा अपश्या न दभन्नभिख्या नित्यास ई प्रेतारो अरक्षन्
अरणि के गर्भ में अवस्थित जिन अग्निदेव को शत्रु या अन्य हिंसक दुःख नहीं दे सकते, अन्धा भी जिनका माहात्म्य नष्ट नहीं कर सकता, उन्हीं की अविचल भक्ति वाले यजमान विशेष रूप से तृप्ति प्रदान करके रक्षा करते हैं।[ऋग्वेद 1.148.5]
माहात्म्य :: महानता; greatness, glory, efficacy of a deity or god.
जिसे अप्रकट रहने पर हिंसक पीड़ित न कर सकें और अंधे इसके महात्मय को न मिटा सकें। इसके स्नेह करने और प्रतिदिन धारण करने वाले ही इस अग्नि की सुरक्षा करते रहे हैं।
The devotees of Agni Dev, who is present in the wood, cannot be troubled-tortured by the enemy, even a blind cannot vanish his glory-greatness. Having satisfied him with their wisdom, offerings, they are protected by him.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (149) ::  ऋषि :- दीर्घतमा, देवता :- अग्नि, छन्द :- विराट्।
महः स राय एषते पतिर्दन्निन इनस्य वसुनः पद आ। 
उप ध्रजन्तमद्रयो विधन्नित्
जब वे अग्निदेव धन-सम्पदा प्रदत्त करने के लिए हमारे यज्ञों में पधारते हैं, तब पत्थरों द्वारा कूटकर बनाये गये सोमरस से उनका अभिनन्दन किया जाता है। [ऋग्वेद 1.149.1] 
वह अत्यन्त समृद्धिवान धन प्रदान करने के लिए यज्ञ में पधारते हैं। सोम कूटने के पाषाण उनके लिए रस तैयार करते हैं।
Agni Dev is welcomed when he come to our Yagy to us grant-provide wealth-riches, Somras extracted by crushing with stones,  is offered to him. 
स यो वृषा नरां न रोदस्योः श्रवोभिरस्ति जीवपीतसर्गः। 
प्र यः सत्राणः शिश्रीत योनौ
मनुष्यों की तरह जो अग्निदेव स्वर्ग और पृथ्वी में यश के साथ रहते हैं, वे प्राणियों के लिए उपयुक्त सृष्टि का निर्माण करते हैं। वे प्रदीप्त होकर यज्ञ वेदी में स्थापित होते हैं।[ऋग्वेद 1.149.2]
जो क्षितिज और धरा में यशस्वी रहते हैं, उन्हें छोड़कर जीव कष्ट भोगते हैं। वह अग्निदेव वेदी में वास करते हैं।
Agni Dev resides both in the heavens & the earth with glory & honour. He create excellent habitat for the living beings. He is lit and established-placed in the Yagy Vedi. 
आ यः पुरं नार्मिणीमदीदेदत्यः कविर्नभन्योनार्वा। 
सूरो न रुरुकाञ्छतात्मा
वे अग्निदेव मेधावी हैं, वे सूर्य के समान तेजस्वी, शीघ्रगामी अश्व एवं वायु के सदृश गतिशील हैं। यजमान यज्ञ वेदी पर इन्हीं को प्रज्ज्वलित करते हैं।[ऋग्वेद 1.149.3]
जिसने प्राणी और शरीर में दोहन किया, वह अग्नि शीघ्रगामी अश्वों के समान प्रसंशनीय है।
Agni Dev is brilliant. He is shinning like Sun, fast moving like the horses and the wind (air, Pawan-Vayu Dev). The Ritviz ignite fire in the Yagy Vedi.
अभि द्विजन्मा त्री रोचनानि विश्वा रजांसि शुशुचानो अस्थात्। 
होता यजिष्ठो अपां सधस्थे
द्विजन्मा अग्निदेव दीप्यमान तीनों लोकों में प्रकाश करते और सारे रचनात्मक संसार का भी प्रकाशित करते हैं। वे देवों के आह्वानकर्ता हैं। ये होता अग्निदेव जलों के मध्य में भी विद्यमान हैं।[ऋग्वेद 1.149.4]
दो जन्म वाले अग्नि देव तीनों ज्योतियों और सभी लोकों को प्रकाशित करते हैं। ये अत्यन्त पूजनीय होता के रूप में नियुक्त हुए हैं।
Twice born Agni Dev lit the three abodes (Heavens, earth & the netherworld) and lit the constructive structural universe as well. He invite the demigods-deities in the Yagy (on behalf of the hosts, organisers, Ritviz priests). The Agni Dev station himself in between the water bodies.
अयं स होता यो द्विजन्मा विश्वा दधे वार्याणि श्रवस्या। 
मर्तो यो अस्मै सुतुको ददाश
जो अग्निदेव द्विजन्मा हैं, वे ही होता हैं, वे ही हव्य प्राप्ति की अभिलाषा से सारा वरणीय धन धारित करते हैं। जो मनुष्य इनको हव्य प्रदान करता है, वह उत्तम पुत्र प्राप्त करता है।[ऋग्वेद 1.149.5]
वह दो जन्म वाले दैवों को पुकारने वाले हैं। जो मनुष्य इनको हवि प्रदान करते हैं, उसे वह वरणीय धन और कीर्ति देने वाले हैं।
Twice born Agni Dev is the host bearing the riches-wealth for the sake of receiving offerings. One who make offerings for him in the Yagy is blessed with a son.
Agni Dev carry out the job of inviting demigods-deities when someone organise the Yagy. He is the mouth of the demigods-deities. 
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (150) ::  ऋषि :- दीर्घतमा, देवता :- अग्नि, छन्द :- उष्णिक्।
पुरु त्वा दाश्वान्वोचेऽरिरग्ने तव स्विदा । 
तोदस्येव शरण आ महस्य
हे अग्निदेव! मैं आपको हव्य प्रदान कर आपके लिए नाना प्रकार की प्रार्थनाएँ करता हूँ। जैसे महान् स्वामी के घर में सेवक होता है, उसी प्रकार मैं आपके पास हूँ।[ऋग्वेद 1.150.1]
हे अग्निदेव! आपकी शरण लेने का इच्छुक वंदनाकारी हवि प्रदान करता हुआ बार-बार आह्वान करता है।
Hey Agni Dev! I make offering for you and make several-different kinds of requests-prayers. I serve you considering you a mighty master. 
I seek your protection, shelter, asylum.
व्यनिनस्य धनिनः प्रहोषे चिदररुषः। 
कदा चन प्रजिगतो अदवयोः
हे अग्नि देव! जो धनी होते हुए श्रद्धाहीन व कृपण है और देवों के अनुशासन को नहीं मानने वाले ऐसे स्वेच्छाचारी नास्तिकों को आप अपनी कृपादृष्टि कदापि प्रदान न करें।[ऋग्वेद 1.150.2] 
कृपण :: सूम, कंजूस, लोभी, लालची; miserly, niggard.
स्वेच्छाचारी :: सनकी, अपनी मन-मर्जी करने वाले, नैतिक नियमों की अनिवार्यता स्वीकार न करने वाला; autocratic, wayward, antinomian, vagrant. 
वे अग्नि देवों से द्वेष करने वालों के आग्रह पूर्ण आह्वान पर नहीं जाते।
Hey Agni Dev! You should not be kind to those who are rich but faithless-devotion less & miserly-niggard; do not follow the dictates of the demigods-deities, are atheist & wayward. 
स चन्द्रो विप्र मर्त्यो महो व्राधन्तमो दिवि। 
प्रप्रेत्ते अग्ने वनुषः स्याम
हे मेधावी अग्निदेव! जो मनुष्य आपका यज्ञ करता है, वह स्वर्ग में चन्द्रमा की तरह सबको आनन्द देने वाला होता है; इसलिए हम सदैव आपके प्रति श्रद्धा भावना से प्रेरित रहें।[ऋग्वेद 1.150.3]
मेधावी :: प्रतिभाशाली, चमकदार, प्रतिभावान, चमकीला, शिक्षित, बुद्धिमान, शिक्षित, प्रज्ञ, बुद्धिजीवी का, सुजान, समझदार, चतुर, दूरंदेश, प्रखर-तीक्ष्ण बुद्धि वाला; meritorious, brilliant, sagacious, intelligent. 
हे मेधावी अग्निदेव! वह प्राणी अत्यन्त प्रतापी होता है, वह सबको प्रसन्न करता है। तुम्हारे साधक सदैव वृद्धि को प्राप्त हों।
Hey sharp minded Agni Dev! One who conduct-organises Yagy for yourself-in your honour, enjoy in the heavens like Chandr Dev-Moon. Hence we should always be devoted to you.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (151) ::  ऋषि :- दीर्घतमा, देवता :- मित्र, वरुण, अग्नि, छन्द :- जगती।
मित्रं न यं शिम्या गोषु गव्यवः स्वाध्यो विदथे अप्सु जीजनन्। 
अरजेतां रोदसी पाजसा गिरा प्रति प्रियं यजतं जनुषामवः
गोधनाभिलाषी और स्वाध्याय सम्पन्न यजमानों ने गोधन की प्राप्ति और मनुष्यों की रक्षा के लिए मित्र की तरह प्रिय और यजनीय जिन अग्नि देव को अन्तरिक्ष भव जल के मध्य में कर्म द्वारा उत्पन्न किया, उनकी ध्वनि और तेजोमयी शक्ति से दिव्य लोक अर्थात् स्वर्ग और पृथ्वी लोक कम्पायमान होते हैं।[ऋग्वेद 1.151.1]
ज्योति की कामना से ध्यानरत देवतागण ने जीव मात्र की सुरक्षा के लिए श्लोक तुल्य पूजनीय अग्नि को जलों से रचित किया, प्रकट होने पर उसकी शक्ति और बाणी के प्रभाव से क्षितिज और पृथ्वी कम्पित हो गये।
The earth & the heavens trembled by the sound and energy which were produced by Agni Dev as dear as Mitr to the hosts, who was evolved by the hosts-Ritviz between the space-sky, earth & the water, who were self studying desired cow heard. 
यद्ध त्यद्वां पुरुमीळ्हस्य सोमिनः प्र मित्रासो न दधिरे स्वाभुवः। 
अध क्रतुं विदतं गाआपर्चत उत श्रुतं वृषणा पस्त्यावतः
चूँकि मित्रवत् ऋत्विकों ने आपके लिए अभीष्टदायी और अपने कर्म में समर्थ सोमरस धारण किया है, इसलिए पूजक के घर पधारें। आप अभीष्ट वर्षी है। आप गृह के स्वामी का आह्वान श्रवण करें।[ऋग्वेद 1.151.2]
हे मित्रावरुण। ऋत्विजों ने तुम्हारे अभिष्टदायी सोमरस को अर्पित किया। इसलिए साधक के गृह जाकर उसका आह्वान सुनो।
Since, the friendly hosts-Ritviz have extracted Somras for you, which helps in seeking the desired boons-commodities, hence you should visit the house of the devotee. Please listen to the request-prayer of the house holds.  
आ वां भूषन्क्षितयो जन्म रोदस्योः प्रवाच्यं वृषणा दक्षसे महे। 
यदीमृताय भरथो यदर्वते प्र होत्रया शिम्या वीथो अध्वरम्
अभीष्ट वर्षक मित्रावरुण! मनुष्य लोग महाबल की प्राप्ति के लिए द्यावा पृथ्वी से आपके प्रशंसनीय जन्म का कीर्तन करते हैं, क्योंकि आप यजमान के यज्ञ फलरूप मनोरथ को देते हुए स्तुति और हव्य युक्त यज्ञ ग्रहण करते हैं।[ऋग्वेद 1.151.3]
हे मित्रावरुण! तुम्हारी वर्णन योग्य रचना क्षितिज पृथ्वी से बताई गई है। तुम दैवीय सिद्धान्तों का पालन करते हो और अपने आराधकों के लिए प्रकट होते हो। तुम श्रेष्ठ यज्ञों में वंदनाओं द्वारा ग्रहण होते हो।
Hey desire fulfilling Mitra-Varun! The humans pray to the heavens & the earth to attain extreme power & strength, sing the rhymes describing your birth; since you grant the boons to the Ritviz-hosts and accept their offerings. 
प्र सा क्षितिरसुर या महि प्रिय ऋतावानावृतमा घोषथो बृहत्यु। 
युवं दिवो बृहतो दक्षमाभुवं गां न धुर्युप युञ्जाथे अपः
हे पर्याप्त बलशाली मित्रावरुण! जो यज्ञ भूमि आपको प्रिय है, उसकी व्यापक वृद्धि करें। आप दोनों सत्य ज्ञान का उद्घोष करें। जिस प्रकार से बैल हल के जुए में जुड़े होते हैं, उसी प्रकार से आप समस्त मंगल कार्यों में संलग्न होवें।[ऋग्वेद 1.151.4]
हे मित्रवरुण! तुमको यह प्राणी अत्यन्त प्रिय हैं। तुम नियमों की उच्चवाणी में घोषणा करने वाले हो। तुम बैल को धुरे में जोतने के समान विस्तृत आकाश में सामर्थ्य को जोड़ते हो। 
Hey sufficient strength possessing Mitra-Varun! Enhance the Yagy site loved by you. Spell the truth loudly. You should be associated with our pious-righteous endeavours like the bullocks deployed in the plough.
मही अत्र महिना वारमृण्वथोऽरेणवस्तुज आ सद्मन्धेनवः। 
स्वरन्ति ता उपरताति सूर्यमा निम्रुच उषसस्तकरीरिव
हे मित्रावरुण! आप अपनी महिमा से जिन गायों को वरणीय प्रदेश में ले जाते हैं, उन्हें कोई नष्ट नहीं कर सकता। वे दूध देती हैं और गोशाला में लौट आती हैं। जिस प्रकार से चोरी करने वाले को देखकर मनुष्य चिल्लाने लगते हैं, उसी प्रकार ये गायें प्रातःकाल और सायंकाल को उपरिस्थित सूर्य की ओर देखकर चीत्कार करती हैं।[ऋग्वेद 1.151.5]
हे सखा और वरुण! तुम वरणीय धनों को ग्रहण करने वाले हो। गृह में रहने वाली गौएँ सवेरे और सायंकालीन क्षितिज में उड़ते हुए पक्षियों के समान सूर्य को देखती हुई रंभाती हैं।
Hey Mitra-Varun! No one can destroy the cows taken to the places where they are esteemed. They yield milk and return to the cow shed. The way the people start crying siting the thief, the cows start mowing in the morning and evening to be milked. 
आ वामृताय केशिनीरनूषत मित्र यत्र वरुण गाआपर्चथः।
अव त्मना सृजतं पिन्वतं धियो युवं विप्रस्य मन्मनामिरज्यथः
हे मित्रावरुण! आप जिस यज्ञ में यज्ञ भूमि को सम्मान युक्त करते हैं, उसमें केश की तरह अग्नि की शिखा यज्ञ के लिए आपकी पूजा करती है। आप निम्र मुख से वृष्टि प्रदान कर हमारे कर्म को सम्पन्न करें। आप ही मेधावी यजमान की मनोहर स्तुति के स्वामी हैं।[ऋग्वेद 1.151.6]
हे सखा और वरुण! जब तुम धर्म की राह की उन्नति करते हो, तो यज्ञ में स्थित ज्वालाएँ तुम्हारी वंदना करती हैं। तुम ऋषियों के स्तोत्र के दाता हो। हमारी प्रार्थनाओं की वृद्धि करो।
Hey Mitra-Varun! The flames honour-worship you in the Yagy patronised by you. You shower bliss by lowering your mouths and accomplish our Yagy. You deserve the worship-prayers by the intelligent Ritviz-the hosts.
यो वां यज्ञैः शशमानो ह दाशति कविर्होता यजति मन्मसाधनः। 
उपाह तं गच्छथो वीथो अध्वरमच्छा गिरः सुमतिं गन्तमस्यमयू
जो मेधावी होम निष्पादक और मनोहर यज्ञों के साधन से संयुक्त यजमान यज्ञ के लिए आपके उद्देश्य से स्तुति करते हुए हव्य प्रदान करता है, उस बुद्धिशाली यजमान के लिए यज्ञ में पधारें। हमारे ऊपर अनुग्रह करते हुए हमारी स्तुति स्वीकार करें।[ऋग्वेद 1.151.7]
हे मित्रावरुण! जो स्तोता यज्ञ में तुम्हारे लिए हवि प्रदान करता है और जो श्लोक कवि तुम्हारी वंदना करता है, तुम दोनों उसे प्राप्त होते हुए उसके हवन को सफल बनाते हो। अतः हमारी प्रार्थनाओं को सुनकर यहाँ आओ।
Oblige by visiting the intelligent-prudent hosts in their joint Yagy who felicitate-honour you and make offering. Respond to our prayers and accept our prayers-worships.
युवां यज्ञैः प्रथमा गोभिरञ्जत ऋतावाना मनसो न प्रयुक्तिषु। 
भरन्ति वां मन्मना संयता गिरोऽद्दप्यता मनसा रेवदाशाथे
हे सत्यवादी मित्रावरुण! जिस प्रकार से इन्द्रिय का प्रयोग करने के लिए पहले मन का प्रयोग करना होता है, उसी प्रकार यजमान गण अन्य देवों के पहले गव्य द्वारा आपको पूजित करते हैं। आसक्त चित्त से यजमान लोग आपकी स्तुति करते हैं। आप मन में दर्प न करके हमारे समृद्ध कार्य में उपस्थित हों।[ऋग्वेद 1.151.8]
हे घृत नियमा मित्रावरुण! जो व्यक्ति अपने अनुष्ठानों में हार्दिक भावना से तुम्हारी अर्चना करते हैं वे दृढ़ तपस्या से तुम्हारी वदंना करते हैं। वह तुम्हें ग्रहण हों।
Hey truthful Mitra-Varun! The way the mental make up is there for action by the organs, the Ritviz-priests pray to you prior to the demigods-deities. The hosts worship you with attachment. Please oblige us associating yourself with our endeavours forgetting ego-pride.
रेवद्वयो दधाथे रेवदाशाथे नरा मायाभिरितऊति माहिनम्। 
न वां द्यावोऽहभिर्नेत  सिन्धवो न देवत्वं पणयो नानशुर्मघम्
हे मित्रावरुण! आप दोनों की देवत्व क्षमताओं को आकाश, अहोरात्र, नदियाँ व पणि नामक दैत्य भी अपने हाँथों से स्पर्श नहीं कर सकते, अपनी (सम्पूर्ण) शक्तियों को सुरक्षित करते हुए हमें वैभवपूर्ण उपयोगी सम्पादाएँ प्रदत्त करें।[ऋग्वेद 1.151.9]
हे मित्रावरुण! तुम धन से परिपूर्ण शक्ति के धारक हो। मानसिक शक्ति से सुरक्षा साधन परिपूर्ण हुए तुम सर्वश्रेष्ठ बनते हो। दिन, रात, नदियाँ और प्राणी तुमसे देवत्व नहीं प्राप्त कर सके, प्राणधारियों को तुम्हारा हाल भी नहीं मिला।
Hey Mitra-Varun! The parameters-limits of your powers-strength cannot be suppressed or even touched by the sky, Ahoratr (day, night), rivers and the demon called Pani with their hands. You should grant us comforts-luxuries by using your might.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (152) ::  ऋषि :- दीर्घतमा, देवता :- मित्र, वरुण, अग्नि, छन्द :- त्रिष्टुप्।
युवं वस्त्राणि पीवसा वसाथे युवोरच्छिद्रा मन्तवो ह सर्गाः। 
अवातिरतमनृतानि विश्व ऋतेन मित्रावरुणा सचेथे
हे स्थूल मित्र और वरुण देव! आप तेजोरूप वस्त्र धारण करें। आपकी सृष्टि सुन्दर और दोष शून्य है। आप सारे असत्य का विनाश करते हुए सत्य के साथ युक्त होवें।[ऋग्वेद 1.152.1]
हे मित्रा वरुण! तुम दोनों तेज रूप वस्त्रों को धारण करते हो, तुम्हारी सृष्टियाँ सुन्दर और छिद्र विमुख हैं। तुम प्रत्येक प्रकार से असत्य से दूर रहते हुए सत्य के मित्र हो।
Hey embodied Mitra-Varun! You wear the dresses in the form of aura. Your creations are defectless and beautiful. You should destroy the falsehood and support the truth.
एतच्चन त्वो वि चिकेतदेषां सत्य मन्त्रः कविशस्त ॠघावान्। 
त्रिरश्रिं हन्ति चतुरश्रिरुग्रो देवनिदो ह प्रथमा अजूर्यन्
हे मित्र और वरुण देव! आप दोनों ही कर्म का अनुष्ठान करते हैं। दोनों सत्यवादी मंत्रित्व निपुण, कवियों के स्तवनीय और शत्रुओं का नाश करने करने वाले हैं। ये पराक्रमी वीर त्रिधारा और चतुर्धारा युक्त शस्त्रों को नष्ट करने वाले हैं। दैवी अनुशासनों की अवहेलना करने वालों का ये सर्वनाश कर देते हैं। ऋषिगण इनके इस कार्य को जानते हैं।[ऋग्वेद 1.152.2]
ऋषियों के वाक्य सच हैं कि सखा वरुण चतुर्गुण शस्त्रों से शोभावान हैं और वे त्रिगुणात्मक शस्त्रों वाले को समाप्त करते हैं। इनके महत्व को कोई नहीं जानता। देव निन्दकों को ये सर्वप्रथम समाप्त करते हैं। पद-रहित उषा पद से युक्त प्राणियों के आगे जाती हैं, इसके कर्म को कौन जानता है?
Hey Mitra-Varun! Both of you undertake endeavours-Karm. Both of you are expert in ministership (counselling, guiding, advising), revered by the poets and destructor of the enemy. These warriors possessing valour destroys the the arms & ammunition directed in 3-4 directions. They vanish those who do not follow the dictated the Mother nature-Maa Bhagwati. The Rishis (saints & sages) are aware of it.
अपादेति प्रथमा पद्वतीनां कस्तद्वां मित्रावरुणा चिकेत। 
गर्भो भारं भरत्या चिदस्य ऋतं पिपर्त्यनृतं नि तारीत्
हे मित्रा-वरुण! पद संयुक्त मनुष्यों के आगे पद शून्या उषा आती हैं, यह जो आपका कर्म है, इसे कौन जानता है? दिवा रात्रि के पुत्र सूर्य देव सत्य की पूर्ति और असत्य का विनाश करके सारे संसार का भार वहन करते हैं।[ऋग्वेद 1.152.3]
रात का गर्भस्थ पुत्र सूर्य इस संसार का भार वहन करता हुआ सत्य को ग्रहण करता और असत्य को समाप्त करता है।
Hey Mitra-Varun! Who is aware of your actions that makes Usha (without legs) ahead of the humans (two legged)!? Sun born out of the night established the truth, vanish the falsehood and support the universe.
प्रयन्तमित्परि जारं कनीनां पश्यामसि नोपनिपद्यमानम्। 
अनवपृग्णा वितता वसानं प्रियं मित्रस्य वरुणस्य धाम
हम देखते हैं कि उषा के जार सूर्य देव क्रमागत चलते हैं, कभी भी बैठते नहीं। विस्तृत तेज से आच्छादित सूर्य देव मित्रा-वरुण के प्रिय पात्र है।[ऋग्वेद 1.152.4]
हम प्रशस्त तेज रूप वस्त्र धारी मित्रा-वरुण की जगह की ओर उषाओं की कांति क्षीण करने वाले सूर्य को अगे बढ़ता देखते हैं। मित्रा-वरुण का स्थान कभी पीछे नहीं रहता।
Mitra-Varun accompany Usha & Sury Dev moving sequentially, without rest. Sun possessing the vast-wide aura is a dear companion of Mitra-Varun.
अनश्वो जातो अनभीशुरर्वा कनिक्रदत्पतयदूर्ध्वसानुः। 
अचित्तं ब्रह्म जुजुषुर्युवानः प्र मित्रे धाम वरुणे गृणन्तः
सूर्य देव के न तो अश्व हैं, न लगाम; परन्तु वे शीघ्र गमन शील और अतीव शब्द कर्ता हैं। वे क्रमश: ही ऊपर चढ़ते हैं। संसार इन सब अचिन्तनीय और विशाल कर्मों को मित्र और वरुण देव का मानकर उनकी स्तुति और सेवा करता है।[ऋग्वेद 1.152.5]
बिना अश्व और बिना रस्सी वाला आदित्य प्रकट होते ही ऊँचा चढ़ता और ध्वनि करता है। मित्रा-वरुण के स्थान रूपी सूर्य की मनुष्यगण वंदना करते हैं।
Sun-Sury Dev, without the horses and the strings rises up at a fast speed-pace making sound. The universe worship Mitra-Varun considering this to be their endeavours.
आ धेनवो मामतेयमवन्तीर्ब्रह्मप्रियं पीपयन्त्सस्मिन्नूधन्। 
पित्वो भिक्षेत वयुनानि विद्वानासाविवासन्नदितिमुरुष्येत्
प्रीति प्रदायक गायें विशाल कर्म प्रिय ममता के पुत्र को (मुझे) अपने स्तन से उत्पन्न से दूध तृप्त करें। शब्द ज्ञान के ज्ञाता मित्र और वरुण का उचित पोषण प्राप्त करें। आपकी उपासना से साधक मृत्यु पर विजय प्राप्त कर ले।[ऋग्वेद 1.152.6]
हे मित्रा-वरुण! स्नेहदायिनी धेनु मुझ ममता के पुत्र को अपने स्तन से रचित दुग्ध पान कराये। धर्म-मार्ग वाले अन्न मांगे और तुम्हारी सेवा करते हुए अनुष्ठान की वृद्धि करें।
Let the loving-affectionate cows feed me with the milk from their udder. We should get suitable nourishment through Mitra-Varun, who are enlightened with the knowledge of words-dictionary. The devotees contain death with the blessings of Mitra-Varun.
आ वां मित्रावरुणा हव्यजुष्टिं नमसा देवाववसा ववृत्याम्। 
अस्माकं ब्रह्म पृतनासु सह्या अस्माकं वृष्टिर्दिव्या सुपारा
हे देव मित्रा-वरुण! हमारे द्वारा विनम्रता पूर्वक स्तवन किये गये स्तोत्रों को श्रवण कर आप दोनों यहाँ उपस्थित होवें। आहुतियों को ग्रहण करके आप हमें युद्ध में विजय श्री प्रदान करावें और दिव्य वृष्टि अर्थात् सुन्दर वर्षा करके हमें अकाल और दुःख-दरिद्रता से मुक्ति प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.152.7]
हे मित्रावरुण! मैं अपनी रक्षा के लिए प्रणाम पूर्वक हविदान करूँ। हमारी स्तुतियों के प्रभाव से युद्ध में हमारे शत्रु वशीभूत हों तथा अलौकिक वर्षा कर हमको दुःखों से पार लगाएँ।
Hey Mitra-Varun! Kindly accept the prayers recited-sung by us in your honour and come to us. Please accept the offerings and grant us victory in the war-battle. Manage divine rains and free us from famine, sorrow-worries and poverty.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (153) ::  ऋषि :- दीर्घतमा, देवता :- मित्र, वरुण, छन्द :- त्रिष्टुप्।
यजामहे वां महः सजोषा हव्येभिर्मित्रावरुणा नमोभिः। 
घृतैघृतस्नू अघ यद्वामस्मे अध्वर्यवो न धीतिभिर्भरन्ति
हे जल वर्षक और महान् मित्रा-वरुण! चूँकि हमारे अध्वर्यु (यजुर्वेद विहित कार्य करने वाले) लोग अपने कार्य से आपको पोषण करते हैं; इसलिए हम समान प्रीति युक्त होकर हव्य, घृत और नमस्कार द्वारा आपकी प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 1.153.1]
हे जल रूप घृत वर्षक मित्रावरुण! हम घृत परिपूर्ण हवियों से नमस्कार पूर्वक तुम्हारी आराधना करते हैं। हमारे अध्यवर्यु तुमको हवि भेंट करते हैं।
Hey rain causing Mitra-Varun! Since, our Ritviz (Priests, Purohits) adopt the methods-means described in Yajur Ved for performing Yagy-Hawan for making offerings to you, we too make offerings of ghee and salute you with great love & affection. 
प्रस्तुतिर्वां धाम न प्रयुक्तिरयामि मित्रावरुणा सुवृक्तिः। 
अनक्ति यद्वां विदथेषु होता सुम्नं वां सूरिर्वृषणावियक्षन् 
हे मित्रा-वरुण! हम आपका स्तवन करते हैं और सदैव आपका ही ध्यान करते हैं। ज्ञानी याजक आप दोनों की स्तुति करते हैं। वे आपके आनन्द प्राप्ति की कामना करते हैं।[ऋग्वेद 1.153.2]
हे मित्रा-वरुण तुम्हारी प्रार्थना तेज की प्रेरक है। इसलिए मैं श्रेष्ठतम वंदनाओं से तेज ग्रहण करता जो होता तुम्हें अर्चन करने की कामना करता और तुम्हें हर्षित करना चाहता है वह अनुष्ठान में तुमको घृत से परिपूर्ण हवि देता है।
Hey Mitra-Varun! We recite hymns-rhymes, prayers in your honour and always meditate-concentrate in you. The enlightened devotees, performing Yagy pray to both of you. They make efforts to amuse-please you.
पीपाय धेनुरदितिर्ऋताय जनाय मित्रावरुणा हविर्दे। 
हिनोति यद्वां विदथे सपर्यन्त्स रातहव्यो मानुषो न होता
हे मित्रा-वरुण! जब हम हवि प्रदत्त करने वाले मननशील होता आपकी अर्चना करते हुए यज्ञ में आहुतियाँ प्रदान करते हैं तब आप दोनों ही सत्य मार्ग पर सुदृढ़ रहने वाले और हव्य प्रदान करने वाले साधकों को आपकी पोषक किरणें हर प्रकार का सुख प्रदान करती हैं।[ऋग्वेद 1.153.3]
हे मित्रा-वरुण! "रातहव्य" के यज्ञ कर्म से प्रसन्न हुए तुमने उसकी गौ को दूध देने वाली किया था। वैसे ही यजमान तुम्हें हवि देता हुआ अपनी गौओं को अत्याधिक दूध वाली होने की याचना करता है।
Hey Mitra-Varun! Favourable waves-vibrations from you, grant bliss-pleasure to the devotees-us, when we-the thoughtful, make offerings to you, adopting rigidly (with firm determination), the path of truth making offerings in the Yagy.
उत वां विक्षु मद्यास्वन्धो गाव आपश्च पीपयन्त देवीः। 
उतो नो अस्य पूर्व्यः पतिर्दन्वीतं पातं पयस उस्त्रियायाः
हे मित्र और वरुणदेव! दिव्य गौएँ, अन्न और जल आपके भक्त यजमानों के लिए, आपको प्रसन्न करें। हमारे यजमान के पूर्व पालक अग्नि देव दानशील हों और आप क्षीर वर्षिणी गाय का दूध पीवें।[ऋग्वेद 1.153.4] 
क्षीर :: दुध-पय, क्षीरसार-मक्खन, द्रव या तरल पदार्थ, जल-पानी, पेड़ों का रस या दूध, निर्यास, खीर, सरल नामक वृक्ष का गोंद।
क्षीरधि :- समुद्र, क्षीर सागर, दूध का समुद्र।
क्षीरनिधि :- समुद्र; सागर।
क्षीरनिधिशायी :- भगवान् श्री हरी विष्णु।
क्षीर सागर :- पुराण वर्णित सात समुद्रों में से एक समुद्र, पुराणवर्णित  दूध से भरा हुआ समुद्र जिसमें भगवान् नारायण शेष शय्या पर सोते हैं, क्षीरनिधि।
आक्षीर :- वनस्पति का दूध; पेड़-पौधों के तनों या पत्तों से निकलने वाला सफ़ेद गाढ़ा द्रव्य।
नीरक्षीर :- पानी और दूध।
नीरक्षीर विवेक :- अच्छाई और बुराई में अंतर करने की क्षमता, सम्यक न्याय का विवेक।
हे स्त्री-पुरुषों! आपके गज और साधनों की वृद्धि हो। आपको पर्याप्त गौ दुग्ध प्राप्त हो जिससे शरीर हर प्रकार से पुष्ट रहे।
Hey Mitra-Varun! Let the divine cows, food grains and water make your devotees happy. Nurturer of our Ritviz, the earlier nurturer Agni Dev be charitable and drink the milk of cows.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (154) ::  ऋषि :- दीर्घतमा, देवता :- विष्णु, छन्द :- त्रिष्टुप्।
विष्णोर्नु कं वीर्याणि प्र वोचं यः पार्थिवानि विममे रजांसि। 
यो अस्कभायदुत्तरं सधस्थं विचक्रमाणस्त्रेधोरुगायः
मैं श्री हरी विष्णु के वीरता पूर्ण कार्य का शीघ्र ही कीर्त्तन करूँगा। उन्होंने वामन अवतार में तीनों लोकों को अपने पैरों से मापा-नापा था। उन्होंने ऊपर के सत्यलोक को भी स्तम्भित किया। उन्होंने तीन बार पृथ्वी पर अपना पैर रखे। इसीलिए संसार उनकी स्तुति करता है।[ऋग्वेद 1.154.1]
मैं विष्णु की वीरता का वर्णन करता हूँ। उन्होंने तीन डग में जगत को नाप लिया था और क्षितिज को दृढ़ किया था। विष्णु के तीन डग में समस्त लोक वास करते हैं।
I will recite the rhymes-hymns in the honour of Bhagwan Shri Vishnu and his valour. HE measured the three abodes with HIS feet during Vaman Avtar (Incarnation of Bhagwan Shri Hari Vishnu during the period of demon king Bahu Bali-grandson of Prahlad Ji) HE made the Saty Lok immovable-stationary. HE put his feet thrice over the earth, therefore the world-universe pray to HIM. 
प्र तद्विष्णुः स्तवते वीर्येण मृगो न भीमः कुचरो गिरिष्ठाः। 
यस्योरुषु त्रिषु विक्रमणेष्वधिक्षियन्ति भुवनानि विश्वा
क्योंकि भगवान् श्री हरी विष्णु के तीन पाद क्षेप में सारा संसार निहित है, इसलिए भयंकर, हिंस्र, गिरि कन्दराओं में रहने वाले वन्य पशुओं की तरह संसार भगवान् श्री हरी विष्णु के वीरता की प्रशंसा करता है।[ऋग्वेद 1.154.2]
अतः पर्वत पर वास करने वाले डरावने पशुओं के समान यह संसार विष्णु जी की ऋग्वेद वीरता की प्रशंसा करता है। जिन विष्णु ने अकेले ही अपने तीन डग में तीनों लोकों को नाप लिया उन महाबली विष्णु की बहुत से जीव प्रार्थना करते हैं।
Since, the entire universe is pervaded in the three steps of Bhagwan Shri Hari Vishnu, hence the whole world appreciate HIS valour like the dangerous, violent animals residing in the caves of the mountains 
प्र विष्णवे शूषमेतु मन्म गिरिक्षित उरुगायाय वृष्णे। 
य इदं दीर्घ प्रयतं सधस्थमेको विममे त्रिभिरित्यदेभिः
उन्मत्त प्रदेश में रहने वाले अभीष्ट वर्षक और सब लोकों में प्रशंसित श्री हरी विष्णु के महाबल के और स्तोत्रों का उच्चारण करते हैं। उन्होंने अकेले ही एकत्र अवस्थित और अति विस्तीर्ण नियत लोकत्रय को तीन बार के पद क्रमण द्वारा माप दिया।[ऋग्वेद 1.154.3]
उन्मत्त :: नशे में चूर, मतवाला, पागल, एक राक्षस का नाम, जिसके मस्तिष्क-बुद्धि में विकार आ गया हो, जो आपे में न हो, मदांध, सनकी, बावला; frantic, frenetic. 
जिन अकेले ने त्रिगुणात्मक पृथ्वी नभ और सभी लोकों को ग्रहण किया है वे विष्णु अक्षय, स्वतंत्रता में प्रसन्न रहते हैं औश्न प्राणियों को मधुर अन्न आदि से युक्त करते हैं।
Those people who live in disturbed places and those inhibiting the three abodes, pray-appreciate Bhagwan Shri Hari Vishnu reciting prayers-Strotr pertaining to his valour, might & power. HE alone covered the entire universe in just three steps.
यस्य त्री पूर्णा मधुना पदान्यक्षीयमाणा स्वधया मदन्ति। 
य उ त्रिधातु पृथिवीमुत द्यामेको दाधार भुवनानि विश्वा
जिन श्री विष्णु का ह्रास हीन, अमृत पूर्ण और त्रिसंख्यक पद क्षेप अन्न द्वारा मनुष्यों को हर्ष देता है, उन्हीं श्री हरी विष्णु ने अकेले ही धातुत्रय, पृथ्वी, स्वर्ग लोक और समस्त भुवनों को धारण कर रखा है।[ऋग्वेद 1.154.4]
मैं विष्णु के उस विशाल पद की शरण चाहता हूँ, जहाँ देवों के स्वामित्व को मानने वाले मनुष्य आश्वासन ग्रहण करते हैं।
The 3 foot fall of Shri Hari Vishnu bearing nectar, are free from depletion-erosion, grants food grains & pleasure to the humans. HE alone is supporting-bearing the earth, heavens and all abodes.
तदस्य प्रियमभि पाथो अश्यां नरो यत्र देवयवो मदन्ति। 
उरुक्रमस्य स हि बन्धुरित्या विष्णोः पदे परमे मध्व उत्सः
देवाकांक्षी मनुष्य जिस प्रिय मार्ग को प्राप्त करके दृष्ट होते हैं, मैं भी उसी को प्राप्त करूँ। उस महा पराक्रमी श्री हरी विष्णु के परम पद में मधुर (अमृत आदि का) क्षरण है। श्री हरी विष्णु वास्तव में मित्र हैं।[ऋग्वेद 1.154.5]
विष्णु ही बन्धु हैं, उनका परमपद ही अमृतादि (मधुरता) का केन्द्र है।
I should also follow-adopt the path-method, followed by the people desirous of attaining the demigods-deities. HE is Ultimate, true friend, having Ultimate valour-might.
ता वां वास्तून्युश्मसि गमध्यै यत्र गावो भूरिशृङ्गा अयासः। 
अत्राह तदुरुगायस्य वृष्णः परमं पदमव भाति भूरि
जिन सब स्थानों में उत्तम शृङ्ग वाली और शीघ्र गामी गायें हैं, उन्हीं सब स्थानों में आप दोनों (देवराज इन्द्र और श्री हरी विष्णु) के जाने के लिए मैं श्री हरी विष्णु की प्रार्थना करता हूँ। इन सब स्थानों में बहुत लोगों के स्तवनीय और अभीष्ट वर्षक श्री विष्णु का परम पद यथेष्ट स्फूर्त्ति प्राप्त करता है।[ऋग्वेद 1.154.6]
हे इन्द्र और विष्णु! हम तुम दोनों के उस स्थान की इच्छा करते हैं जहाँ अत्यन्त शक्तिशाली सिद्ध रूप गायें हैं। वन्दना के योग्य विष्णु का ऊँचा पद तेज से परिपूर्ण है।
I pray to both of you :- Dev Raj Indr & Bhagwan Shri Hari Vishnu, to lead-guide us to those places, where the fast moving cows & with excellent horns. This Ultimate place-seat of Bhagwan Shri Hari Vishnu grants vigour, energy & power.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (155) ::  ऋषि :- दीर्घतमा, देवता :- विष्णु, इन्द्रा-विष्णु, छन्द :- जगती।
प्र वः पान्तमन्धसो धियायते महे शूराय विष्णवे चार्चत। 
या सानुनि पर्वतानामदाभ्या महस्तस्थतुरर्वतेव साधुना॥
हे अध्वर्यु गण! आप स्तुति प्रिय और महावीर इन्द्र देव और श्री हरी विष्णु के लिए पीने योग्य सोमरस निर्मित करें। वे दोनों दुर्द्धर्ष और महिमा वाले हैं। वे मेघ के ऊपर इस तरह भ्रमण करते है, मानों सुशिक्षित अश्व के ऊपर भ्रमण करते हैं।[ऋग्वेद 1.155.1]
दुर्धर्ष :: जिसे वश में करना कठिन हो, जिसे परास्त करना या हराना कठिन हो, प्रबल, प्रचंड, उग्र, जिसे दबाया न जा सके, दुर्व्यवहारी, महाभारत कालीन हस्तिनापुर में सम्राट धृतराष्ट्र का एक पुत्र, रामायण काल में रावण की सेना का एक राक्षस; difficult to be assaulted, controlled defeated, overpowered.
Hey Ritviz-households! You should prepare Somras for the sake of Dev Raj Indr and Bhagwan Shri Hari Vishnu, who deserve to be honoured-revered. They can neither be defeated nor controlled by any one. They move over the clouds just like one who rides a trained horse.
त्वेषमित्था समरणं शिमीवतोरिन्द्राविष्णू सुतपा वामुरुष्यति। 
या मर्त्याय प्रतिधीयमानमित्कृशानोरस्तुरसनामुरुष्यथः
हे इन्द्र देव और श्री हरी विष्णु! आप लोग दृष्टपद हो, इसलिए यज्ञ में बचे हुए सोमरस पीने वाले यजमान आपके दीप्तिपूर्ण आगमन की प्रशंसा करते हैं। आप लोग मनुष्यों के लिए, शत्रु विमर्दक अग्नि से प्रदातव्य अन्न सदैव समर्पित करते हैं।[ऋग्वेद 1.155.2]
हे मनुष्यों! अपने रक्षक सोम रूप अन्न को इन्द्रदेव और विष्णु के लिए सिद्ध करो। वे दोनों उन्नत कर्म वाले किसी के बहकावे में नहीं आते।
Hey Indr Dev and Shri Hari Vishnu! Those who consume the left over Somras appreciate your arrival in the Yagy since you fulfil-grant the desired boons. You grant food grains to the humans yielded by the enemy destroyer Agni Dev.
ता ईं वर्धन्ति मह्यस्य पौंस्यं नि मातरा नयति रेतसे भुजे। 
दधाति पुत्रोऽवरं परं पितुर्नाम तृतीयमधि रोचने दिवः
समस्त प्रसिद्ध आहुतियाँ इन्द्रदेव के महान् पौरुष को बढ़ाती हैं। ये ही सबकी मातृभूता धावा पृथ्वी के रेत, तेज और उपभोग के लिए वही शक्ति प्रदान करते हैं। पुत्र का नाम निकृष्ट है और पिता का नाम उत्कृष्ट है। द्युलोक के दीप्तिमान् प्रदेश में तृतीय नाम पौत्र का नाम है अथवा वह द्युलोक में रहने वाले इन्द्रदेव और श्री हरी विष्णु के अधीन है।[ऋग्वेद 1.155.3]
रेत :: वीर्य-शुक्र, पारा-पारद, जल, प्रवाह-बहाव, धारा, बालू; sperms, send, flow.
हे इन्द्र और विष्णु तुम कर्मों के फल देने वाले दाता हो। तुम्हारे लिए साधक सोमरस निचौड़कर तैयार रखता है। तुम शत्रु द्वारा लक्ष्य कर फेंके गये बाणों से उसकी रक्षा करने में सक्षम हों। समस्त आहुतियाँ इन्द्रदेव की शक्ति-वीर्य को पुष्ट करती हैं।
Major offerings enhance-boost the valour-power of Indr Dev. Its he, who grant the power to consume, energy-aura and the sperms. The name of son is Nikrasht-worst & that of father is Utkrasht-excellent. The third entity shinning-glittering in the heavens is the grandson. They are under the control of Indr Dev and Bhagwan Shri Hari Vishnu.
Sperms are the carriers of genetic material to next generation from grandfather to grandson.
तत्तदिदस्य पौंस्यं गृणीमसीनस्य त्रातुरवृकस्य मीळ्हुषः। 
यः पार्थिवानि त्रिभिरिद्विगामभिरुरु क्रमिष्टोरुगायाय जीवसे
हम सबके स्वामी, पालक, शत्रु हीन और युवा श्री हरी विष्णु के पौरुष की स्तुति करते हैं। इन्होंने प्रशंसनीय लोक की रक्षा के लिए तीन बार पाद विक्षेप द्वारा समस्त पार्थिव लोकों की विस्तृत रूप से परिक्रमा की।[ऋग्वेद 1.155.4]
इन्द्र देव वर्षा से अन्न प्रदान करते हैं। अन्न रूप वीर्य रज से पुत्र प्राप्ति होती है। उसी से तृतीय से नाम पुत्र हुआ। प्राणधारियों की रचना इन्द्रदेव और विष्णु के अधिकार में हैं। सबके दाता, रक्षक, शत्रु से परे, युवा विष्णु के बल-वीर्य की हम प्रार्थना करते हैं। 
We pray the valour & might of our master, nurturer, free from enemies and young Shri Hari Vishnu. For the protection of the appreciable abodes his three footfalls circumbulated the physical abodes.
द्वे इदस्य क्रमणे स्वर्दृशोऽभिरख्याय मर्त्यो भुरण्यति। 
तृतीयमस्य नकिरें दधर्षति वयश्चन पतयन्तः पतत्रिणः
मनुष्य गण कीर्तन करते हुए स्वर्ग दर्शी श्री हरी विष्णु के दो पाद क्षेप प्राप्त करते हैं। उनके तीसरे पाद क्षेप को मनुष्य नहीं पा सकते। आकाश में उड़ने वाले पक्षी या मरुत भी नहीं प्राप्त कर सकते।[ऋग्वेद 1.155.5]
जिन्होंने संसार की रक्षा के लिए तीन डग रखकर ही सभी लोकों को लांघ डाला। सब मनुष्य इन विष्णु के दो पदों को ही देख सकते हैं। तीसरे पद तक पहुँचने का कोई भी साहस नहीं करता। क्षितिज में विचरण करने वाले मरुद्गण भी नहीं ग्रहण कर सकते। 
Those praying to Shri Hari Vishnu, who looked at the heavens, can see-perceive HIS two steps only. HIS third foot fall can not be seen by the humans. Neither the birds flying in the sky nor the Marud Gan can see it. 
चतुर्भिः साकं नवति च नामभिश्चक्रं न वृत्तं व्यतींरवीविपत्। 
बृहच्छरीरो विमिमान ऋकभिर्युवाकुमारः प्रत्येत्याहवम् 
श्री हरी विष्णु ने गति विशेष द्वारा विविध स्वभाव शाली काल के चौरानबें अंशों को चक्र की तरह वृत्ताकार परिचालित कर रखा है। श्री हरी विष्णु विशाल स्तुति से युक्त और स्तुति द्वारा जानने योग्य हैं। वे नित्य, युवा और अकुमार हैं। मनुष्यों द्वारा आवाहित किये जाने पर यज्ञ की ओर आगमन करते हैं।[ऋग्वेद 1.155.6]
व्यापक वंदनाओं से परिपूर्ण विष्णु ने काल के चौरानवें (अंशों) को चक्र की तरह घुमाया। वंदना करने वाले उन्हें ध्यान से खोजते और आह्ववान करते हैं।
Bhagwan Shri Vishnu has rotated the 94 degrees-divisions of the KAL-time in an cyclic order. HE deserved to be prayed-worshiped & known. HE is always young. As and when remembered by the humans-invited HE comes to the Yagy.
As a matter of practice the Hindu invite all the demigods-deities in all of his celebrations, functions, rituals, prayers, Yagy etc. etc.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (156) ::  ऋषि :- दीर्घतमा, देवता :- विष्णु, छन्द :- त्रिष्टुप, जगती।
भवा मित्रो न शेव्यो घृतासुतिर्विभूतद्युम्न एवया उ सप्रथाः। 
अधा ते विष्णो विदुषा चिदर्ध्यः स्तोमो यज्ञश्च राध्यो हविष्मता
हे विष्णु देव! मित्र की तरह आप हमारे सुख दाता, घृताहुति भाजन, प्रकृत अन्नवान्, रक्षा शील और पृथु व्यापी हो। विद्वान् यजमान द्वारा आपके स्तोत्र बार-बार कहने योग्य हैं और मनुष्यों द्वारा हवि रूप अन्न समर्पित करते हुए सम्पन्न किया गया यज्ञ स्तुति योग्य है।[ऋग्वेद 1.156.1]
हे विष्णो! जल उत्पादन करने वाले, अत्यन्त यशस्वी, रक्षक, विशाल सखा के तुल्य सुख प्रदान करने वाले हो। तुम्हारे श्लोक को मेधावी जन पुष्ट करते हैं।
Hey Vishnu Dev! You grant us comforts, protection, accept our offerings in the form of Ghee, provide us food grains, produce water-rains and pervades like king Prathu (an incarnation of God, who made the earth worth living). The learned Ritviz-hosts recite Strotr in your honour repeatedly. The Yagy conducted by the humans in your honour deserve appreciation.
यः पूर्व्याय वेधसे नवीयसे सुमज्जानये विष्णवे ददाशति। 
यो जातमस्य महतो महि ब्रवत्सेदु श्रवोभिर्युज्यं चिदभ्यसत्
जो व्यक्ति प्राचीन मेधावी, नित्य नवीन और स्वयं उत्पन्न या जगन्मादनशीला स्त्री वाले श्री हरी विष्णु को हव्य प्रदान करता है, जो महानुभाव इनकी पूजनीय आदि कथा कहते हैं, वे ही इनके समीप स्थान पाते हैं।[ऋग्वेद 1.156.2]
तुम्हारा अनुष्ठान हविदाता यजमान सम्पन्न करते हैं। जो प्रतापी पूजनीय स्वयंभू विष्णु के लिए हवि देता है और उनके यज्ञों का वर्णन करता है वह सभी को जीत लेता है।
The intelligent-prudent who either make offerings to Bhagwan Shri Hari Vishnu or recite his stories-prayers are able to approach him.
तमु स्तोतारः पूर्व्यं यथा विद ऋतस्य गर्भ जनुषा पिपर्तन। 
आस्य जानन्तो नाम चिद्विवक्तन महस्ते विष्णो सुमतिं भजामहे
हे स्तोताओं! प्राचीन यज्ञ के गर्भ भूत श्री हरी विष्णु को जैसा जानते हो, वैसे ही स्तोत्र आदि के द्वारा उनको प्रसन्न करें। श्री हरी विष्णु का नाम जानकर कीर्तन करें। हे श्री हरी विष्णु! आप महानुभाव है, आपकी बुद्धि की हम उपासना करते हैं।[ऋग्वेद 1.156.3]
हे स्तोताओं! प्रकृति के गर्भ रूपी विष्णु को तुम जानते हो। इनका गुणगान कर इनको हर्ष प्राप्त कराओ।
Hey devotees (Ritviz)! Let Bhagwan Shri Hari Vishnu, the root (basic cause) of all Yagy, be pleased by reciting his names, singing hymns-rhymes devoted to HIM. Hey Hari Vishnu! You are gentle by nature and hence, thus we pray-worship you.
तमस्य राजा वरुणस्तमश्विना क्रतुं सचन्त मारुतस्य वेधसः। 
दाधार दक्षमुत्तममहर्विदं व्रजं च विष्णुः सखिवाँ अपोर्णुते
राजा वरुण देव और अश्विनी कुमार ऋत्विकों के साथ यजमान के यज्ञ रूप श्री हरी विष्णु की सेवा करते हैं। अश्विनी कुमार और श्री हरी विष्णु मित्र होकर उत्तम और दिनज्ञ बल धारित करके मेघों का आच्छादन छिन्न-भिन्न कर देते हैं।
हे विष्णो। हम तुम्हारी कृपा प्राप्त करें। मरुतों को प्रेरणा देने वाले इन विष्णु की कामना में वरुण और अश्विनी कुमार हमेशा तैयार रहते हैं।
Varun Dev & Ashwani Kumars serve Bhagwan Shri Vishnu, along with the Ritviz-hosts conducting Yagy; who is a form of the Yagy. Ashwani Kumars and Bhagwan Shri Hari Vishnu join hands to disrupt the clouds (which would have caused disruption in the Yagy).
आ यो विवाय सचथाय दैव्य इन्द्राय विष्णुः सुकृते सुकृत्तरः। अजिन्वत्रिषधस्थ आर्यमृतस्य भागे यजमानमाभजत्
जो स्वर्गीय और अतिशय शोभन कर्मा श्री हरी विष्णु शोभन कर्मा इन्द्र देव के साथ मिलकर आते हैं, उन्हीं मेधावी तीनों लोकों में पराक्रम शाली श्री हरी विष्णु ने आगमन करने वाले यजमान को प्रसन्न करके यज्ञ का भाग प्रदान किया।[ऋग्वेद 1.156.5]
विष्णु की सखा परिपूर्ण दिन को ग्रहण करने वाले महान शक्ति को धारण करते हुए अधंकार को मिटाकर ज्योति रचित करते हैं। महान कार्य वाले विष्णु और इन्द्र देव की सेवा में तैयार रहते हैं। वे त्रिलोक्य स्वामी ईश्वर से यजमान को अनुष्ठान-फल का भागीदार बनाते हैं।
Bhagwan Shri Hari Vishnu associate with Indr Dev and oblige the Ritviz-the host organising the Yagy. They grant the reward of the Yagy to one who conduct the Yagy.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (157) ::  ऋषि :- दीर्घतमा, देवता :- अश्विनी कुमार, छन्द :- त्रिष्टुप, जगती।
अबोध्यग्निज्र्म  उदेति सूर्यो व्युषाश्चन्द्रा मह्यावो अर्चिषा। आयुक्षातामश्विना यातवे रथं प्रासावीद्देवः सविता जगत्पृथक्॥
भूमि के ऊपर अग्नि देव जागे, सूर्य देव उदित हुए। विराट् उषा अपने तेज द्वारा सबको प्रसन्न करके अन्धकार को दूर करती हैं। हे अश्विनी कुमारों! आप आने के लिए अपना रथ नियोजित करें। सम्पूर्ण संसार को अपने-अपने कर्मों में सविता ने उनके कर्मों में प्रवृत्त कर दिया।[ऋग्वेद 1.157.1]
अग्निदेव चैतन्य हुए, सूर्य उदित हुए, आनंददायिनी उषा ज्योति के साथ पधारी। अश्विदेवों ने रथों को जोड़ा और सविता देव ने संसार को उत्तम शिक्षा प्रदान की।
Agni Dev became conscious, Sun rose, vast Usha's energy-aura made every one happy and removed darkness. Hey Ashwani Kumars! You should deploy your chariote to arrive here. Savita has engaged the whole world-living beings in their schedule (endeavours, works) 
यद्युञ्जाथे वृषणमश्विना रथं घृतेन नो मधुना क्षत्रमुक्षतम्। 
अस्माकं ब्रह्म पृतनासु जिन्वतं वयं धना शूरसाता भजेमहि
हे अश्विनी कुमारों! जिस समय आप लोग वृष्टि दाता रथ को तैयार करते हैं, उस समय मधुर जल द्वारा हमारा बल बढ़ावें। हमारी प्रजाओं में ज्ञान की वृद्धि करें। हम वीर संग्राम शत्रुओं को पराजित करते हुए उनके धनों को प्राप्त करें।[ऋग्वेद 1.157.2]
हे रथ को जोतने वाले अश्वि देवो! हमारी मातृभूमि को मधु और घृत से सिंचित करो। हमारी वंदनाओं को युद्ध में शक्तिशाली बनाओ। हम युद्ध में व्यापक धन को जीत कर प्राप्त करें।
Hey Ashwani Kumars! You deploy your chariote to make rain showers to provide sweet water. Make the populace knowledgeable-enlightened. Let us win the enemy in the battle-war and get their riches. 
अर्वाङत्रिचक्रो मधुवाहनो रथो जीराश्वो अश्विनोर्यातु सुष्टुतः। 
त्रिवन्धुरो मघवा विश्वसौभगः शं न आ वक्षद्विपदे चतुष्पदे
अश्विनी कुमारों का तीन पहियों वाला, मधु युक्त, तेज घोड़ों से संयुक्त प्रशंसित, तीन बन्धनों वाला धनपूर्ण और सर्वसौभाग्य सम्पन्न रथ हमारे समक्ष आवे और हमारे द्विपद और चतुष्पद को सुख प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.157.3]
तुम्हारा तीन पहियों वाला रथ, धनो से युक्त द्रुतगामी हमारी प्रार्थनाओं द्वारा प्रत्यक्ष हो और हमारे दुपाये तथा चौपाये पशुओं को सुखी बनाएँ। 
Let the chariote of Ashwani Kumars, run over three wheels, possessing sweetness-honey, deploying fast moving-running horses, having the three bonds, with wealth and capable of granting auspiciousness come and grant comforts to the living beings having either two of four legs.
आ न ऊर्जं वहतमश्विना युवं मधुमत्या नः कशया मिमिक्षतम्। 
प्रायुस्तारिष्टं नी रपांसि मृक्षतं सेधतं द्वेषो भवतं सचाभुवा॥
हे अश्विनी कुमारों! आप दोनों हमें प्रचुर मात्रा में अन्न प्रदान करें। हमें मधु (शहद) से भरा हुआ पात्र प्रदान करें तथा हमें दीर्घायु प्रदान कर हमारे सभी विकारों को दूर करें और द्वेषियों का विनाश कर हमारे समस्त कर्मों में सहायक बनें।[ऋग्वेद 1.157.4]
हे अश्विद्वय! तुम हमको बलशाली बनाओ। मीठे रस से हमको सींचों। हमारी आयु की वृद्धि करो। पापों को दूर करो, शत्रुओं को हटाओ और हर प्रकार से हमारी सहायता करो।
Hey Ashwani Kumars! Both of you grant us food grains in sufficient quantity. Grant us the urn full of honey and remove all of our defects (ailments, illness, diseases). Grant us long life and destroy the envious helping us in all of our endeavours, efforts, goals, targets.
Ashwani Kumars are the doctors-physicians of demigods-deities. They are the sons of Sun-Sury Bhagwan-Narayan. Honey has amazing curative effect-powers. 
युवं ह गर्भं जगतीषु धत्थो युवं विश्वेषु भुवनेष्वन्तः। 
युवमग्निं च वृषणावपश्च वनस्पतींरश्विनावैरयेथाम्॥
हे अश्विनी कुमारों! आप दोनों गमन शील गौओं और सम्पूर्ण संसार के प्राणियों में अन्तः स्थित गर्भ की रक्षा करें। हे अभीष्ट वर्षक द्वय! अग्नि, जल और वनस्पतियों को प्रेरित करें।[ऋग्वेद 1.157.5]
हे अश्विद्वय! तुम गौओं में गर्भ धारण करते हो। तुम अग्नि, जल और वनस्पतियों को आकृष्ट करते हो।
Hey Ashwani Kumars! You should protect the bomb-zygote of the moving cows and all living beings. Hey boon-desire granting duo, inspire the Agni-fire (Agni Dev), water (Varun Dev) and vegetation.
युवं ह स्थो भिषजा भेषजेभिरथो ह स्थो रथ्याराथ्येभिः। 
अथो ह क्षत्रमधि धत्थ उग्रा यो वां हविष्मान्मनसा ददाश
हे अश्विनी कुमारों! आप दोनों उत्तम औषधियों से युक्त श्रेष्ठ वैद्य है तथा उत्तम रथ से युक्त श्रेष्ठ रथी भी हैं। हे पराक्रमी अश्विनी कुमारों! जो आपके निमित्त श्रद्धा युक्त होकर हविष्यादि प्रदत्त करते हैं, उन्हें आप दोनों क्षात्र धर्म के निर्वाह के लिए शौर्य और ऐश्वर्य प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 1.157.6]
पराक्रमी :: शूर, वीर, पुरुषार्थी; mighty, chivalric.
हे उग्र अश्वि द्वय! तुम औषधि वाले वैद्य हो, रथ वाले रथी हो। तुम्हारे लिए जो मन से हवि प्रदान करता है, उसे तुम समृद्धिवान बनाते हो।
Hey Ashwani Kumars! Both of you are excellent physicians-doctors and chariote drivers too. Hey mighty-chivalric! One who make offerings to you, is granted the power to discharge his duties (Dharm) as a Kshatriy (Warriors, marshal caste) and attain amenities-wealth, comforts, luxuries.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (158) ::  ऋषि :- दीर्घतमा, देवता :- अश्विनी कुमार, छन्द :- त्रिष्टुम्, अनुष्टुप्।
वसू रुद्रा पुरुमन्तू वृधन्ता दशस्यतं नो वृषणावभिष्टौ। 
दस्त्रा ह यद्रेक्ण औचथ्यो वां प्र यत्सत्राथे अकरोंभिरूती
हे अभीष्ट वर्षक, निवास दाता, पाप हन्ता, बहुज्ञानी, स्तुति द्वारा बर्द्धमान और पूजित अश्विनी कुमारों! हमें अभीष्ट फल प्रदान करें, क्योंकि उचथ्य के पुत्र दीर्घतमा आपकी प्रार्थना करते हैं और आप प्रशंसनीय रीति से उसे आश्रय प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 1.158.1]
हे अश्वि देवो! उच्चय पुत्र दीर्घतमा द्वारा माँगे गये सुरक्षा साधन परिपूर्ण धनों को हमें प्रदान करो।
Hey the desires fulfilling-boon granting, shelter providing-protector, enlightened, available by prayers worshiped Ashwani Kumars! Grant us the desired reward-result. Uchathy's son requests-prays you. You grant him asylum through appreciable means-methods.
को वां दाशत्सुमतये चिदस्यै वसू यद्धेथे नमसा पदे गोः। 
जिगृतमस्मे रेवती: पुरंधीः कामप्रेणेव मनसा चरन्ता॥
हे निवास प्रद अश्विनी कुमारों! आपके इस अनुग्रह के सामने कौन आपको हव्य प्रदान कर सकता है? अपने यज्ञीय स्थान पर हमारी स्तुति सुनकर अन्न के साथ आप लोग बहुत धन देना चाहते हैं। शरीर पुष्टिकर, शब्दायमाना और बहुत दूध देने वाली गायें प्रदान करें। यज की अभिलाषा पूर्ण करने के लिए आप लोग कृत संकल्प होकर विचरण करते हैं।[ऋग्वेद 1.158.2]
हे अश्विद्वयो! तुम वेदी स्थान में हमारे लिए नमस्कारों से जिस मति को धारण करते हो, उस धन से परिपूर्ण मति को हमारे अभिष्ट पूर्ण करने में लगाओ।
Hey asylum granting Ashwani Kumars! Please accept our offerings at the Yagy site, give us a lot of money and food grains. Give us cows which yield nourishing milk. You are always willing-ready to grant the desires of the Ritviz-the host in the Yagy. 
युक्तो ह यद्वां तौग्र्याय पेरुर्वि मध्ये अर्णसो धायि पज्र:। 
उप वायवः शरणं गमेयं शूरो नाज्म पतयद्भिरेवैः
हे अश्वनी कुमारों! तुग्र के पुत्र भुज्यु की रक्षा के लिए आपने गति शील यान को समुद्र के मध्य में ही अपनी शक्ति से स्थिर किया। वीर पुरुष जिस प्रकार युद्ध में जाते हैं, उसी प्रकार से ही संरक्षण पूर्ण आश्रय प्राप्ति के लिए हम आप दोनों के पास पहुँचे।[ऋग्वेद 1.158.3]
हे अश्विद्वय! तुग्र का जो पुत्र समुद्र में डाला गया था, उसे पार लगाने को तुम्हारा रथ जोड़ा गया था। जैसे तुम द्रुतगामी घोड़ों से युद्ध में पहुँचते हो, वैसे ही मैं तुम्हारी शरण प्राप्त करूँ।
Hey Ashwani Kumars! You stationed (made is stationary) your plane in the middle of the ocean with your power, for saving the son of Tugr called Bhujyu. The way the brave-warriors goes to the war, we come to you for seeking protection and asylum under you. 
उपस्तुतिरौचथ्यमुरुष्येन्या मामिमे पतत्रिणी वि दुग्याम्। 
मा मामेघो दशतयश्चितो धाक् प्र यद्वां बद्धस्त्मनि खादति क्षाम्
हे अश्विनी कुमारों! आपकी स्तुति दीर्घतमा की रक्षा करे। प्रति दिन घूमने वाले अहोरात्र हमें जीर्ण-शीर्ण न करें। दस बार प्रज्वलित अग्नि भी मुझे जला न सके, क्योंकि आपके आश्रित यह व्यक्ति पाशबद्ध होकर पृथ्वी पर असहाय अवस्था में पड़ा है।[ऋग्वेद 1.158.4]
हे अश्विद्वय! ये प्रार्थना उच्च पुत्र की रक्षा करें, ये गतिमान दिन और रात मुझे कमजोर न करें। दस गुणा ढेर वाला ईंधन मुझे न जलाएँ। तुम्हारे आश्रय को प्राप्त मैं धरती पर झुका हूँ।
Hey Ashwani Kumars! Let your prayers protect Dirghtama. Rotating-cycling day & night should not weaken us. The fire with 10 times of its normal strength, should not be able to burn me. I am lying over the earth, tied with ropes.
न मा गरन्नद्यो मातृतमा दासा यदीं सुसमुब्धमवाधुः। 
शिरो यदस्य त्रैतनो वितक्षत्स्वयं दास उरो अंसावपि ग्ध॥
अचध्य के पुत्र दीर्घतमा को दस्युओं ने पाशों में जकड़कर नदी में फेंक दिया, तब मातृ रूपा उन नदियों ने उन्हें संरक्षण प्रदान किया। जब त्रैतन नामक असुर ने सिर, छाती और कन्धे को काटने का प्रयत्न किया तब आपके संरक्षण के कारण आपका वह सेवक सुरक्षित रहा। इसके विपरीत त्रैतन असुर के ही अंग कट गये।[ऋग्वेद 1.158.5]
हे अश्विद्वय! मातृ रूप सरिता का जल भी मुझे डुबोने में असमर्थ रहे। दस्युओं ने इस संग्राम में बाँधकर फेंक दिया। "त्रैतन" असुर ने जब मेरा सिर काटने की चेष्टा की तब वह अग्नि आप ही कन्धों से आहत हुआ।
When Dirghtama, the son of Achadhy was thrown into the river, tied with ropes, the rivers in the form of mothers granted him asylum. When the demon Traetan tried to cut his head, chest and the shoulders, he remained safe due to your patronage. On the other hand the organs of Traetan were chopped off. 
दीर्घतमा मामतेयो जुजुर्वान्दशमे युगे। 
अपामर्थं यतीनां ब्रह्मा भवति सारथिः
ममता के पुत्र ऋषि दीर्घतमा एक सौ ग्यारहवें वर्ष में वृद्धावस्था को प्राप्त हुए। ये ब्रह्म ज्ञान से युक्त, सभी का संचालन करने वाले सारथी के सदृश बने। इन्होंने संयमशील उत्तम कर्मों द्वारा धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चारों पुरुषार्थों को प्राप्त किया।[ऋग्वेद 1.158.6]
ममता का दीर्घतमा दस काल पश्चात् वृद्ध हुआ। कर्मफल की कामना से प्रार्थना करने वाले स्तोता रथ युक्त हुए।
Rishi Dirghtama became aged after 110 years. He was enlightened and became the patron of all like the chariote driver. He attained Dharm, Arth, Kam & Moksh the four goals (aims, targets) of being a human being.
One gets birth as a human being to discharge his duties as per Varnashram Dharm. He should earn sufficient money to support his family and discharge his financial liabilities. He should marry and produce progeny. Sex should be used as a means for producing next generation, not for lust, satiation of passions. Sensuality, sexuality, lasciviousness is harmful-dangerous. Having fulfilled all of his liabilities one should opt for retirement from active life, transferring his assets, responsibilities to the son.
We are passing through Kali Yug, hence one should have sufficient money to look after our own self without depending over the progeny.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (159) ::  ऋषि :- दीर्घतमा, देवता :- द्यावा पृथिवी, छन्द :- जगती।
प्र द्यावा यज्ञैः पृथिवी ऋतावृधा मही स्तुषे विदथेषु प्रचेतसा। 
देवेभिर्ये देवपुत्रे सुदंससेत्था धिया वार्याणि प्रभूषतः
यज्ञ वर्द्धक, महान् और यज्ञ कार्य में चैतन्यकारी द्यावा-पृथिवी की मैं विशेष रूप से स्तुति करता हूँ। यजमान उनके पुत्र स्वरूप हैं। उनके कर्म को मनोवांछित धन प्रदान करते हैं। उनके कर्म सुन्दर हैं। अनुग्रह करते हुए वे यजमानों को मनोवांछित धन प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 1.159.1]
अनुष्ठानों को पुष्ट करने वाली, ज्ञान वर्द्धिनी क्षितिज धरा की मैं प्रार्थना करता हूँ। यजमान उनके पुत्र हैं। वे देवगण के साथ वरणीय धनों से धन देती हैं।
I specially pray to the great earth and the sky, who enhance-boost Yagy and make us conscious. The Ritviz-hosts are like their sons. They provide sufficient money to promote their endeavours. Their endeavours like granting money to the Ritviz are appreciable-beautiful.
उत मन्ये पितुरद्रुहो मनो माआर्पहि स्वतवस्तद्धवीमभिः। 
सुरेतसा पितरा भूम चक्रतुरुरु प्रजाया अमृतं वरीमभिः
मैंने आह्वान मंत्र द्वारा निर्द्रोह और पितृ स्थानीय द्युलोक के उदार और उत्तम मन को जाना है। मातृ स्थानीय पृथ्वी के मन को भी जाना है। पिता-माता (द्यावा-पृथ्वी) अपनी शक्ति से पुत्रों का भली-भाँति रक्षण करते हुए उन्हें प्रगतिशील बनाया।[ऋग्वेद 1.159.2]
मैं क्षितिज रूप पिता और धरा रूप माता के महत्व का चिन्तन करता हूँ। उन अत्यन्त पुरुषार्थियों ने जीवों को प्रकट किया और अन्नों को निर्मित किया।
I have recognised the earth & the sky (horizon) due to meditation. I have understood that the earth is mother. Its the parents (mother & father) who make their progeny progressive-efficient.
Food grains are produced over the earth to feed-nurture the living beings. For the Hindu, earth is the mother.
ते सूनवः स्वपसः सुदंससो मही जजुर्मातरा पूर्वचित्तये। 
स्थातुश्च सत्यं जगतश्च धर्मणि पुत्रस्य पाथः पदमद्वयाविनः
आपकी सन्तान, सुकर्मा और सुदर्शन प्रजायें आपके पहले के अनुग्रह को स्मरण करके आपको महान् और माता कहकर जानते हैं। पुत्र स्वरूप स्थावर और जंगम पदार्थ द्यावा-पृथ्वी के अतिरिक्त और किसी को नहीं जानते। आप उनकी रक्षा के लिए अबाध स्थान प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.159.3]
सुदर्शन :: प्रिय, दिलकश, आकर्षक; comely, nice-looking.
अनुग्रह :: दया, सुघड़ता, इनायत, सुंदर ढंग, श्री, पक्षपात, अनुमति, अति कृपा, पत्र, इनायत; grace, favour, graciousness.
हे आसमान पृथ्वी! श्रेष्ठ कर्म वाले कुशल पुत्र रूपी प्रजागण तुम्हें जननी मानते हैं। तुम स्थावर, जंगम में सत्य स्थापित करने के लिए सूर्य के स्थान की रक्षा करते हो।
Your progeny and the pious, comely, nice looking populace remember your grace earlier and consider you as a great mother. The immovable-stationary and movable living beings do not know any one except the horizon and the earth. Please make sufficient arrangements-space for their protection.
ते मायिनो ममिरे सुप्रचेतसो जामी सयोनी मिथुना समोकसा। 
नव्यंनव्यं तन्आपा तन्वते दिवि समुद्रे अन्तः करेंयः सुदीतयः
द्यावा-पृथ्वी सहोदरा भगिनी और एक स्थान पर रहने वाले जोड़े हैं। वे प्रज्ञायुक्त और चैतन्यकारी हैं। किरणें उनका विभाग करती हैं। अपने कार्य में निरत और सुप्रकाशित रश्मियाँ द्योतमान अन्तरिक्ष के बीच नये-नये सूत्रों को विस्तारित करती हैं।[ऋग्वेद 1.159.4]
प्रज्ञायुक्त :: prudent, wise or judicious in practical affairs, sagacious, discreet or circumspect, sober. 
आकाश और धरती एक स्थान से उत्पन्न हुए सहोदरा हैं। वे प्रजा से युक्त हैं। रश्मियाँ उनका विभाजन करती हैं और नए सूत्रों को प्रकट करती हैं।
The sky-horizon and the earth are twins and live in a pair. They are conscious and discreet. Rays of light divide-differentiate between them. They perform their assigned duties and give rise to new equations-compositions.
तद्राधो अद्य सवितुर्वरेण्यं वयं देवस्य प्रसवे मनामहे। 
अस्मभ्यं द्यावापृथिवी सुचेतुना रयिं धत्तं वसुमन्तं शतग्विनम्
आज सविता देवता की आज्ञा के अनुसार उस वरणीय धन को चाहते हैं। हमारे ऊपर द्यावा-पृथ्वी अनुग्रह करके गृह आदि और शत-शत गौओं से युक्त धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.159.5]
वे द्यावा-धरा! सविता की शिक्षा में स्थिर तुमसे हम उस अत्यन्त श्रेष्ठ धन की विनती करते हैं तुम हमको श्रेष्ठ निवास तथा गवादि परिपूर्ण समृद्धि को प्रदान करो। 
We wish to acquire the wealth as per the directives of Savita. Let Both sky and the earth favour us and grant house, hundreds of cows and riches.  
द्यावा पृथ्वी :: आकाश और पृथ्वी को भी देव वर्ग में रखा गया है। इनका आह्वान एक साथ जोड़कर ही किया गया है। पृथ्वी का ऋग्वेद की तीन ऋचाओं में स्वतंत्र वर्णन है, पर धौः का अलग से वर्णन नहीं मिलता। ये दोनों पितरा-मातरा (पिता-माता) के रूप में भी संबोधित किए गए हैं। द्यावा-पृथ्वी को सृष्टि के जीवों के सृजन और पालन-पोषण कर्ता के रूप में माना गया है। ऋचाओं में कहा गया है कि ये द्यावा पृथ्वी पूरी सृष्टि को समृद्धि देते हैं। वे पवित्र हैं।
शक्ति उपासना का मूल आधार आद्य ग्रन्थ ऋग्वेद की द्यावा-पृथ्वी हैं, जिसमें पृथ्वी स्त्री मानी गई है और आकाश पुरुष।
ऋग्वेद ने वरूण देव जिन्होंने विस्तृत द्यावा-पृथ्वी की स्थापना की, इन्होंने ही आकाश और नक्षत्रों को प्रेरित कर पृथ्वी को प्रशस्त किया, को पहिया युक्त कहा है। 
द्युलोक से ऊपर जो कुछ भी है और पृथ्वी से नीचे जो कुछ भी है जिसे हम द्यावा-पृथ्वी कहते हैं।
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (160) ::  ऋषि :- दीर्घतमा, देवता :- द्यावा-पृथ्वी, छन्द :- जगती।
ते हि द्यावापृथिवी विश्वशंभुव ऋतावरी रजसो धारयत्करी।  
सुजमन्मनी घिषणे अन्तरीयते देवो देवी धर्मणा सूर्यः शुचिः
द्यावा-पृथ्वी संसार के लिए सुख दायिनी, यज्ञवती, जल उत्पन्न करने के लिए चेष्टा युक्त, सुजाता और अपने कार्य में निपुण हैं। द्योतमान्-अग्नि और शुचि सूर्य द्यावा-पृथ्वी के मध्य में अपने-अपने कार्यों द्वारा सदैव गमन करते हैं।[ऋग्वेद 1.160.1]
सुजाता :: सुजाता ने भगवान बुद्ध को भोजन कराया था, सुजाता अष्टावक्र ऋषि की माता थीं, उत्तम कुलोत्प्न्न; name of the woman who offered meals to Bhagwan Budh, name of Rishi Ashtawakr's mother, well born.
अंतरिक्ष को अग्नि में धारण करने वाली क्षितिज धरा सभी को सुख प्रदान करने वाली है। उनके मध्य सूर्य प्रतिदिन नियम पूर्वक विचरणशील हैं।
The combination of earth and the horizon-sky are meant to provide comforts, create showers-rains, inspire for Yagy, active, well born and skilled in their job. The fire-Agni and the Sun keep on cycling between them.
उरुव्यचसा महिनी असश्चता पिता माता च भुवनानि रक्षतः। 
सुधृष्टमे वपुष्येन रोदसी पिता यत्सीमभि रूपैरवासयत्
विशाल, विस्तीर्ण और परस्पर वियुक्त माता-पिता (द्यावा-पृथ्वी) प्राणियों की रक्षा करते है। मनुष्यों के मंगल के लिए ही द्यावा-पृथ्वी मानो सचेष्ट हैं, क्योंकि पिता समस्त पदार्थों को रूप प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 1.160.2]
अत्यन्त व्यापक और विशाल क्षितिज और धरा पिता और जननी रूप से सभी लोकों का पोषण करते हैं, जैसे पिता अपने बालक को महान वस्त्रों से आच्छादित करता है।
The wide-vast corelated horizon & the earth support the living beings. They act for the well being of the organism like the father who provide all materials-commodities to the progeny. 
स वह्निः पुत्रः पित्रोः पवित्रवान्पुनाति धीरो भुवनानि मायया। 
धेनुं च पृश्निं वृषभं सुरेतसं विश्वाहा शुक्रं पयो अस्य दुक्षत
पिता-माता (द्यावा-पृथ्वी) के पुत्र सूर्य हैं। वे धीर और फलदाता हैं। अपनी बुद्धि से वे समस्त भूलोक को प्रकाशित करते हैं। वे शुक्ल वर्ण धेनु (पृथ्वी) और सेचन कार्य में समर्थ वृष (द्युलोक) को भी प्रकाशित करते हैं। वे द्युलोक से निर्मल दूध दुहते हैं।[ऋग्वेद 1.160.3]
धीर :: शांत स्वभाव वाला, नम्र, विनीत; passionless, halcyon.
वह माता-पिता को भार वहन करने वाला सूर्य अपने पराक्रम से संसार को पवित्र करता है। वह अनेक रंगों वाली धरती रूपी गौ और पौरुष युक्त आसमान रूपी वृषभ करता हुआ धरती से रस रूपी दुग्ध का दोहन करता है।
Sun is the son of the earth and the sky. He is passionless-halcyon and grant rewards lighten the earth. He nourish and lighten the earth and the heavens. He milch the heavens.
Its the Sun, who is essential for life over the earth.
अयं देवानामपसामपस्तमो यो जजान रोदसी विश्वशंभुवा। 
वि यो ममे रजसी सुक्रतूययाजरेभिः स्कम्भनेमिः समानृचे
वे देवों में देवोत्तम और कर्मियों में कर्म श्रेष्ठ हैं। उन्होंने सर्व सुखदाता द्यावा-पृथ्वी को प्रकट किया और प्राणियों के सुख के लिए द्यावा-पृथ्वी को विभक्त करके सुदृढ़ खूँटे में इन्हें स्थिर कर रखा है।[ऋग्वेद 1.160.4]
देवताओं में महान परमात्मा महान कर्मा है। उसने क्षितिज धरा को रचित किया। उसी ने अपनी प्रजा से दोनों जगत को नापा और जीर्ण न होने वाले स्तम्भों पर टिका दिया। 
The Almighty in the form of Sun (Sury Narayan) is best amongest the performers. Its he who made the horizon & the earth visible. Its he who provide all sorts-kinds of comforts-amenities and divided the sky & the earth and makes them stable.
The Sun is at the core of the planetary system. Its gravitational force keep the solar system well knit-tied and functional. Newton's laws and Kepler's laws just describe this phenomenon. Veds describe the various forces at length.
ते नो गृणाने महिनी महि श्रवः क्षत्रं द्यावापृथिवी धासथो बृहत्ये। 
येनाभि कृष्टीस्ततनाम विश्वहा पनाय्यमोजो अस्मे समिन्वतम्
हे द्यावा-पृथ्वी! हम आपकी स्तुति करते हैं। आप महान् है, हमें प्रभूत अन्न और बल प्रदान करें, जिससे हम सदैव पुत्रादि प्रजा का विस्तार करें। हमारे शरीर में प्रशंसनीय बल की वृद्धि करें।[ऋग्वेद 1.160.5] 
हे क्षितिज धरा! तुम हमारे लिए श्रेष्ठ समृद्धि और शक्ति को धारण करो जिससे धन प्रजाओं का विस्तार हो।
Hey horizon and the earth! We pray-worship you. You are great. Grant us nourishing food grains and strength-power, so that we are able to extend our family lineage-lining. Add appreciable might to our bodies.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (161) ::  ऋषि :- दीर्घतमा, देवता :- ऋभृगण, छन्द :- जगती, त्रिष्टुप्।
किमु श्रेष्ठः किं यविष्ठो न आजगन्किमीयते दूत्यं कद्यदूचिम। 
न निन्दिम चमसं यो महाकुलोऽग्ने भ्रातर्दुण इद्भूतिमूदिम
जो हमारे पास आये हैं, वे क्या हमसे ज्येष्ठ हैं या छोटे? ये क्या देवों के दूत कार्य के लिए आये हैं। इन्हें क्या कहना होगा? इन्हें कैसे पहचानेंगे? हे माता अग्रि! हम चमस की निन्दा नहीं करेंगे, क्योंकि वह महाकुल में उत्पन्न है। उस काष्ठमय चमस के स्मृति की हम व्याख्या करेंगे।[ऋग्वेद 1.161.1]
निन्दा :: बुराई करना; taunt, decry.    
वे महान और युवा हमारे पास आये हैं, वे क्या दौत्य कर्म के लिए आये हैं? हे अग्ने! हमने चमस की निंदा नहीं की है। हमने तो उस काष्ठ के कार्यों को ही कहा है।
Those who have come to us, are seniors or juniors! Have they come to execute the endeavours of the demigods-deities! How to reply them? How to recognise them? Hey mother fire-Agni! We will not either taunt or decry Chamas, since he is born in a high-prestigious family-clan. We will explain the details pertaining to the Chamas made of wood.
एकं चमसं चतुरः कृणोतन तद्वो देवा अब्रुवन्तद्व आगमम्। 
सौधन्वना यद्येवा करिष्यथ साकं देवैर्यज्ञियासो भविष्यथ
अग्नि ने कहा, सुधन्वा के पुत्र, एक चमस को चार बनाओ; देवों ने यह बात कहकर मुझे भेजा है। मैं आपको कहने आया हूँ। आप लोग यह कार्य कर सकते हैं और ऐसा करने पर आप लोग देवों के साथ यज्ञांशभागी बनेंगे।[ऋग्वेद 1.161.2]
हे सुधन्वा के पुत्रों! मैं देव आज्ञा से तुम्हारे सम्मुख आया हूँ। तुम एक चमस में चार कर दो। ऐसा करने पर देवताओं के साथ तुम भी अनुष्ठान का भाग ग्रहण करोगे।
Agni Dev said, "Hey the sons of Sudhanva! Make four Chamas out of the one Chamas, this is the directive of the demigods-deities".  I have come to tell you this. You are capable of doing this. Its execution will entitle to the share of the Yagy.
अग्निं दूतं प्रति यदब्रवीतनाश्वः कर्त्वो  रथ उतेह कर्त्व:। 
धेनुः कर्त्वा युवशा कर्त्वा द्वा तानि भ्रातरनु वः कृत्व्येमसि
हे अग्नि देव! देवों ने अपने दूत अग्नि के प्रति जो-जो कार्य बताये हैं, उनमें से रथ का निर्माण करना होगा, गौ का सृजन करना होगा अथवा माता-पिता को फिर युवा करना होगा? हे भ्रातृवर आपके उन समस्त कार्यों को करके अन्त में कर्म फल के लिए आपके पास आयेंगे।[ऋग्वेद 1.161.3]
हे देव बन्धुओं! तुमने अग्नि को दूत बनाया है। हमको अश्व और धेनु बनाकर दो। जनक-जननी को युवावस्था दो। इन कार्यों के पश्चात हम तुम्हारे सम्मुख उपस्थित होंगे।
Hey Agni Dev! Demigods-deities have assigned the duties to his agent-ambassador Agni prepare a chariote, cows and make the parents young. Hey brothers having executed all these functions-duties, we will come back to you for the reward (outcome, result) of this all. 
चकृवांस ॠभवस्तदपृच्छत केदभूद्यः स्य दूतो न आजगन्। 
यदावाख्यच्च मसाञ्चतुरः कृतानादित्त्वष्टा ग्रास्वन्तन्र्यानजे
हे ऋभुगण! वह कार्य करके आपने पूछा कि जो दूत हमारे पास आये थे, वह कहाँ गये? जिस समय ब्रह्मा जी ने चमस के चार टुकड़े देखे, उसी समय वह स्त्रियों में छिप गया।[ऋग्वेद 1.161.4]
हे ऋभुगण कार्य करने के बाद ही तुमने पूछा कि जो दूत नारियों को देखकर शर्म से क्यों छिप गया? 
Hey Ribhu Gan! Having accomplished the assigned job, you enquired about the messenger-ambassador, where had it hidden themselves? When Brahma Ji saw 4 pieces of the Chamas, it hide itself amongest the women.
हनामैनाँ इति त्वष्टा यदब्रवीच्चमसं ये देवपानमनिन्दिषुः। 
अन्या नामानि कृण्वते सुते सचाँ अन्यैरेनान्कन्या नामभिः स्परत्
जिस समय त्वष्टा ने कहा कि जिन्होंने देवताओं के पान पात्र चमस का अपमान किया है, उनका वध करना होगा, उस समय से ऋभुगण ने सोमरस तैयार होने पर दूसरा नाम ग्रहण किया और कन्या या उनकी माता ने उसी नाम से पुकारकर उन्हें प्रसन्न किया।[ऋग्वेद 1.161.5]
त्वष्टा ने कहा कि जिन्होंने देवों के पीने के पात्र चमस की निन्दा की, उन्हें हम समाप्त कर दें। तब ऋभुओं ने सीम तैयार होने पर दूसरा नाम दिया और त्वष्टा की कन्या ने भी इसी नाम से उच्चारण कर हर्षित किया।
Ribhu Gan adopted a different name (replica of Chamas was created by them) on Somras being ready, when Twasta said that those who had insulted the pot of the demigods-deities had to be killed. Their daughters and the mother called them by that name and made them happy.
इन्द्रो हरी युयुजे अश्विना रथं बृहस्पतिर्विश्वरूपामुपाजत। 
ऋभुर्विध्वा वाजो देवाँ अगच्छत स्वपसो यज्ञियं भागमैतन
इन्द्र देव ने अपने अश्वों को सजाया, अश्विनी कुमारों ने रथ तैयार किया और बृहस्पति ने विश्व रूपा गौ को स्वीकार किया। इसलिए हे ऋभु, विभु और वाज! आप देवों के पास जाये। हे पुण्य कर्ता लोग! आप यज्ञ भाग ग्रहण करें।[ऋग्वेद 1.161.6]
इन्द्र ने अश्वों को जोड़ा, अश्विदेवों ने रथ को जोड़ा, बृहस्पति ने धेनु को पुकारा। ऋभु, विश्वा एवं बाज, ये देवगणों के समीप गए तथा यज्ञ भाग प्राप्त किया। 
Dev Raj Indr deployed his horses, Ashwani Kumars made their chariote ready and Brahaspati accepted the cow in the form of the universe. Hence Hey pious Ribhu, Vibhu and Vaj, go the demigods-deities and accept your share of the Yagy. 
निश्चर्मणो गामरिणीत घीतिभिर्या जरन्ता युवशा ताकृणोतन। 
सौधन्वना अश्वादश्वमतक्षत युक्त्वा रथमुप देवाँ अयातन
हे सुधन्वा के पुत्रों! आपने आश्चर्यजनक कौशल से मृत गाय के शरीर का चमड़ा लेकर उससे गौ उत्पन्न को, जो पिता-माता वृद्ध थे, उन्हें फिर युवा बना दिया और एक अश्व से अन्य अश्व उत्पन्न किये, इसलिए रथ तैयार करके देवों के सामने जावें।[ऋग्वेद 1.161.7]
हे सुधन्वा पुत्रो! तुमने अपने कर्मों से चर्म द्वारा धेनु को दोबारा जीवन प्रदान किया तुमने वृद्ध माता-पिता को युवावस्था प्रदान की। तुमने अश्वों से अश्व उत्पन्न किये और रथ को जोड़कर देवगणों के सम्मुख उपस्थित हुए है।
Hey the sons of Sudhanva! You amazingly produced a cow from the dead cow's skin, using wonderful skills-expertise. Made the aging- old parents young and produced several horses from one horse. Deploy the chariote and go to the demigods-deities. 
DNA-body cells can be used to reproduce the identical species-twins. The cells from the dead remains can also be used to produce new-identical beings. There are several examples in the scriptures like that of King Ven & Prathu.
इदमुदकं पिबतेत्यब्रवीतनेदं वा घा पिबता मुञ्जनेजनम्। 
सौधन्वना यदि तन्नेव हर्यथ तृतीये घा सवने मादयाध्यें
हे देवो! आपने कहा था, हे सुधन्वा के पुत्रों आप लोग इसी सोमरस का पान करें। यदि इन दोनों में आपकी इच्छा न हो, तो तीसरे सवन में सोमरस पीकर अत्यन्त तृप्त हो जावें।[ऋग्वेद 1.161.8]
देवगण तुमने कहा था कि हे सुधन्वा पुत्रों! मूंज से निचोड़े रस का पान करो या जलपान करो। यदि इन दोनों में से किसी को भी पान करना नहीं चाहते तो तीसरे सायंकाल में सोम को पियो।
Hey demigods-deities! You asked the sons of Sudhanva to sip-drink Somras. In case, you have no desire at this moment, you may drink it in the third segment of the day i.e, evening (morning, noon and the evening) and become satisfied.
आपो भूयिष्ठा इत्येको अब्रवीदग्निर्भूयिष्ठ इत्यन्यो अब्रवीत्। 
वधर्यन्तीं बहुभ्यः प्रैको अब्रवीदृता वदन्तश्चमसाँ अपिंशत
ऋभुओं में से एक ने कहा, जल ही सबसे श्रेष्ठ है, एक ने अग्नि को श्रेष्ठ बताया और तीसरे ने पृथ्वी को। सत्य कहकर उन्होंने चारों चमसों का निर्माण किया।[ऋग्वेद 1.161.9]
एक ने जल को, दूसरे ने अग्नि को और तीसरे ने धरा को महान कहा। ऐसी सत्य बात कहते हुए उन ऋभुओं ने चमसों की उत्पत्ति की। 
The first Ribhu said that the fire is best, the second said that the water is best and the third said that the earth is best said; having revealed the truth, they constructed the four Chamas.
श्रोणामेक उदकं गामवाजति मांसमेकः पिंशति सूनयाभृतम्। 
आ निम्रचः शकृदेको अपाभरत्किं स्वित्पुत्रेभ्यः पितरा उपावतुः
एक रक्त बाहर भूमि पर रखते है, दूसरे छूरे से कटे माँस को रखते हैं और तीसरे माँस से मल आदि अलग करते हैं। किस प्रकार पिता-माता (यजमान दम्पत्ती) पुत्रों (ऋभुओं) का उपकार कर सकते हैं?[ऋग्वेद 1.161.10]
एक ने लड़की की ओर झाँका, दूसरे ने माँस को अलग किया, तीसरे ने सूर्य अस्त से पहले ही पुरीष को उठा लिया। माँ-बाप बेटों का क्या हित कर सकते हैं।
The first one is used to remove the blood and place it over the earth, the second one is used to remove the meat and the third one is used to isolate the excreta. How can the hosts-husband & wife, oblige the sons-the Ribhu's?
उद्वत्स्वस्मा अकृणोतना तृणं निवत्स्वपः स्वपस्यया नरः। 
अगोह्यस्य यदसस्तना गृहे तदद्येदमृभवो नानु गच्छथ
हे प्रभूत दीप्तिशाली ऋभुओं! आप नेता हैं। प्राणियों के भले के लिए आप ऊँचे स्थान पर ब्रीहि, जौ आदि तृण उत्पन्न करते हैं और सत्कर्म करने की इच्छा से नीचे के प्रदेश में जल उत्पन्न करते हैं। आप अब तक सूर्य मण्डल में विश्राम रत रहे; अब इस प्रक्रिया का अनुगमन क्यों नहीं करते?[ऋग्वेद 1.161.11]
प्रभूत :: जो हुआ हो,  निकला हुआ, उत्पन्न, उद्गत, बहुत अधिक, प्रचुर,  पूर्ण, पूरा, पक्व, पका हुआ, उन्नत; excellent, regeneratory.
हे ऋभुओं! तुमने श्रेष्ठ कर्म की कामना से इन प्राणियों के लिए उच्च स्थान में तृषादि को, नीचे स्थान में जलों को प्रकट किया। तुम अब तक सूर्य मंडल में सोते रहे। अब तुम वैसा ही कर्म क्यों नहीं करते?
Hey excellent aura possessing Ribhu Gan! You are a leader. You generate the food grains, straw, barley etc. and generate water in low lying regions with the desire of auspiciousness. You have been resting in the Sun so far. Do something beneficial.
संमील्य यद्भुवना पर्यसर्पत क स्वित्तात्या पितरा व आसतुः। 
अशपत यः करस्नं व आददे यः प्राब्रवीत्प्रो तस्मा अब्रवीतन
हे ऋभुओं! जिस समय आप जलधर में भूतों को मिलाकर चारों ओर जाते हैं, उस समय संसार के पिता-माता कहाँ रहते हैं? जो लोग आपको हाथ पकड़कर रोकते हैं, उन्हें नीचा दिखावें। जो (कटु) वचन द्वारा आपको रोकता है, उसकी भर्त्सना करें।[ऋग्वेद 1.161.12]
हे ऋभुगण! जब तुम भुवनों को छिपाकर चारों ओर भ्रमण करते हो, तब तुम्हारे माता-पिता कहाँ रहते हैं? जो तुम्हारा हाथ पकड़कर विनती करते हैं, तुम उन्हें संकल्प देते हो। जो तुम्हारी प्रशंसा करता है, उसे तुम अग्रणी बनाते हो।
Hey Ribhus! Where does your parents live, when you mix up hide-cloud the other abodes mixing them up with the past!? Let down- reproach those, who obstruct you by holding your hands.
सुषुप्वांस ऋभवस्तदपृच्छतागोह्य क इदं नो अबूबुधत्। 
श्वानं बस्तो बोधयितारम ब्रवीत्संवत्सर इदमद्या व्यख्यत
हे ऋभुओं! आप सूर्य मण्डल में शयन करके सूर्य देव से पूछते हैं कि, "हे सूर्य देव! किसने हमारे कर्म को जागृत किया"। तब वे कहते हैं, वायु देव ने आपको जगाया। वर्ष बीत चला, इस समय आप लोग पुनः संसार को प्रकाशमान करें।[ऋग्वेद 1.161.13]
हे ऋभुओ! सूर्य मंडल में सोने के पश्चात चैतन्य होकर तुमने पूछा कि “किसने हमें जगाया"? सूर्य ने कहा कि पवन देव ने तुम्हें जगाया। वर्ष भर व्यतीत हो गया, अब फिर अपने कर्मों को प्रकाशित करो।
Hey Ribhus! You sleep in the Sun system and ask the Sun, "Why have you awaken us"! He replies, "Vayu Dev awoke you". A lot of Time has elapsed, now you lit the universe.
दिवा यान्ति मरुतो भूम्याग्निरयं वातो अन्तरिक्षेण याति। 
अद्भिर्याति वरुणः समुद्रैर्युष्माँ इच्छन्तः शवसो नपातः
हे बल के नप्ता ऋभुओं! आपके दर्शन की इच्छा से मरुत् स्वर्ग लोक से आ रहे हैं, अग्नि देव पृथ्वी से आते हैं, वायुदेव आकाश से आते हैं और वरुण देव समुद्र जल के साथ आते हैं।[ऋग्वेद 1.161.14] 
नप्ता :: बेटे का बेटा, grandson.
हे ऋभुओ! तुमसे मिलने को मरुद्गण नभ से आ रहे हैं। अग्नि पृथ्वी से और पवन अंतरिक्ष से तथा वरुण जल रूपी समुद्र मार्ग से चले जाते हैं।
Hey Ribhus, the grandson of might (power, force, strength)! To see you, Maruts are comings from the heaven, Agni Dev is coming from the earth, Vayu Dev is coming from the sky and Varun Dev is coming with the water from ocean.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (162) :: ऋषि :- दीर्घतमा, देवता :- अश्व, छन्द :- त्रिष्टुप्।
मा नो मित्रो वरुणो अर्यमायुरिन्द्र ऋभुक्षा मरुतः परि ख्यन्।
यद्वाजिनो देवजातस्य सप्तेः प्रवक्ष्यामो विदथे वीर्याणि॥
चूँकि हम यज्ञ में देवजात और द्रुत गति अश्व के वीर कर्म का भजन करते हैं, इसलिए मित्र, वरुण, अर्यमा, आयु, इन्द्र, ऋभुक्षा और वायु आदि सभी देवता सदैव हमारे अनुकूल रहें और हमसे अलग न हो।[ऋग्वेद 1.162.1]
सखा, वरुण, अर्यमा, वायु, इन्द्र और मरुद्गण हमसे नियुक्त न हों। हम देवों के अत्यन्त वेगवान, अश्व के वीरता पूर्ण कर्मों का अनुष्ठान में वर्णन करते हैं।
Since, we recite prayers devoted to Dev Jat and the fast moving horses, Mitr, Varun, Aryma, Ayu, Indr, Ribhuksha and Vayu etc. demigods-deities should remain in favour our favour and never move away-depart from us.
यन्निर्णिजा रेक्णसा प्रावृतस्य रातिं गृभीतां मुखतो नयन्ति। 
सुप्राङजो मेम्यद्विश्वरूप इन्द्रापूष्णोः प्रियमप्येति पाथः
सुन्दर स्वर्णाभरण से विभूषित अश्व के सामने ऋत्विक् लोग उत्सर्ग के लिए अज अर्थात् बकरे को पकड़कर ले जाते हैं। विविध वर्ण के अज शब्द करते हुए सामने जाते हैं और वह इन्द्र और पूषा के प्रिय हव्य को प्राप्त करते हैं।[ऋग्वेद 1.162.2]
उत्सर्ग :: त्यागना, बलिदान; ejecta, egestion, dedication, devotion, effusion, emission, excreta, excretion, sacrifice.
हम दमकते हुए वस्त्रों और स्वर्ण सहित आभूषणों से अश्व सुसज्जित आगे विभिन्न रंग वाली सामग्री ले जाते हैं। वह इन्द्र और पूषा के लिए प्रिय हो। 
The Ritviz take the goat for sacrifice in front of the horse decorated with golden ornaments. Several species of the goats come forward making sound and become favourite offerings for Indr & Pusha.
एष छागः पुरो अश्वेन वाजिना पूष्णो भागो नीयते विश्वदेव्यः। 
अभिप्रियं यत्पुरोळाशमर्वता त्वष्टेदेनं सौश्रवसाय जिन्वति
बलवान् अश्वों के आगे जब यह अज (बकरा) लाया जाता है, तब यजमान इस अश्व के साथ अज को प्रिय लगने वाले पुरोडाष आदि का भाग प्रदान कर यशस्वी होते हैं।[ऋग्वेद 1.162.3]
सब देवगण योग्य पूषा का भाग ले जाते हैं, जिसे त्वष्टा अत्यन्त पुष्टिप्रद बनाने के लिए प्रेरित करते हैं।
When this goat is brought in front of the powerful-strong horses, the Ritviz make offerings liked by the horses & the goat.
यद्धविष्यमृतुशो देवयानं त्रिर्मानुषाः पर्यश्वं नयन्ति। 
अत्रा पूष्णः प्रथमो भाग एति यज्ञं देवेभ्यः प्रतिवेदयन्नजः
जब ऋत्विक् लोग देवों के लिए प्राप्त करने योग्य अश्व को समय-समय पर तीन बार अग्नि के पास ले जाते हैं, तब पूषा के प्रथम भाग का अज देवों के यज्ञ की बात का प्रचार करके आगे आते हैं।[ऋग्वेद 1.162.4]
जहाँ प्राणी नियत काल में देवताओं के प्राप्त कराने योग्य घोड़े को घुमाते हैं, वहाँ पूषा का भाग देवगणों के यज्ञ को विख्यात करता हुआ चलता है।
When the Ritviz-Brahmans (Priests) bring the horse meant for the demigods-deities, thrice near the fire, they declare the offerings meant for Pusha (his share of offerings in the form of goat) to appreciate-honour the Yagy.
It does not mention animal sacrifices. 
होताध्वर्युरावया अग्निमिन्धो ग्रावग्राभ उत शंस्ता सुविप्रः। 
तेन यज्ञेन स्वरंकृतेन स्विष्टेन वक्षणा आ पृणध्वम्
होता (देवों को बुलाने वाले), अध्वर्यु (यज्ञ नेता), आवया (हव्य दाता), अग्नि सिद्ध (अग्नि प्रज्वलन कर्त्ता), ग्राव प्राभ (प्रस्तर-द्वारा सोमरस निकालने वाले), शंस्ता (नियमानुसार कर्म का अनुष्ठान करने वाले) और ब्रह्मा (सब यज्ञ कार्यों के प्रधान सम्पादक) प्रसिद्ध, अलंकृत और सुन्दर यज्ञ द्वारा नदियों को (जल से) पूर्ण करें।[ऋग्वेद 1.162.5]
अनुष्ठान :: संस्कार, धार्मिक क्रिया, उत्सव-संस्कार, पद्धति, शास्र विधि, आचार, आतिथ्य सत्कार; rituals, rites, ceremonies.
समारोह, संस्कार, अनुष्ठान, विधि, रसम, धर्म क्रिया होता, अध्वर्यु, प्रस्थाता, अग्नीत, ग्राव, स्तुत, प्रशस्ता वे सभी अत्यन्त शोभित हुए हमारी हवियों वाले सस्वर यज्ञ को परिपूर्ण करें। यूप काटने वाले, यूप ढोने वाले, यूप के लिए चषाल को गाढने वाले और अनुष्ठान के लिए अनिवार्य पात्र तैयार करने वाले, सभी का प्रयास हमको उत्साहजनक हो। 
Let the hosts, chief priest, those making offerings, igniting fire, extracting Somras, systematic conducting of rituals, rites, ceremonies; chief organisers fill the rivers with water in a beautifully organised and decorated Yagy. 
यूपव्रस्का उत ये यूपवाहाश्चषालं ये अश्वयूपाय तक्षति। 
ये चार्वते पचनं संभरन्त्युतो तेषामभिगूर्तिर्न इन्वतु
जो यूप के योग्य वृक्ष काटते हैं, जो यूप वृक्ष ढोते हैं, जो अश्व को बाँधने के यूप के लिए काष्ठ मण्डप आदि तैयार करते हैं, जो अश्व के लिए पाक पात्र का संग्रह करते हैं, इन सबके द्वारा हमारे लिए हितकारी कार्य हों।[ऋग्वेद 1.162.6]
यूप :: यज्ञ में वह खंभा जिसमें बलि का पशु बाँधा जाता है; toggle.  
यूप काटने वाले, यूप ढोने वाले, यूप के लिए चषाल को गढ़ने वाले और अनुष्ठान के लिए अनिवार्य पात्र तैयार करने वाले, सभी का प्रयास हमको उत्साह जनक हो।
Let the efforts of those who cut the tree and make the Yup-pole (toggle) to tie animals in a Yagy, carriers of Yup, boundary to hold the horse etc. be beneficial to us.
उप प्रागात्सुमन्मेऽधायि मन्म देवानामाशा उप वीतपृष्ठः। 
अन्वेनं विप्रा ऋषयो मदन्ति देवानां पुष्टे चकृमा सुबन्धुम् 
हे मनोहर पृष्ठ विशिष्ट अश्व! देवों की आशा पूर्ति के लिए पधारें। देवों की पुष्टि के लिए हम उसे अच्छी तरह बाँधेंगे। मेधावी ऋत्विक् लोग आनन्दित हों। हमारा मनोरथ स्वयं सिद्ध हों।[ऋग्वेद 1.162.7]
उज्जवल पीठ वाला घोड़ा देवगण की तरफ मुख करके खड़ा है। मेरा श्लोक रुचिकर है। मेधावी ऋषि इसका समर्थन करते हैं। देवगण को संतुष्ट करने के लिए हमने यह उत्तम श्लोक तैयार किया है।
Hey horse with strong back! Come to fulfil the desires of the demigods-deities. We will tie him properly for the satisfaction of the demigods-deities. Let the brilliant Ritviz be happy. Let our purpose be accomplished automatically. 
य द्वाजिनो दाम संदानमर्वतो या शीर्षण्या रशना रज्जुरस्य। 
यद्वा घास्य प्रभृतमास्येतृणं सर्वा ता ते अपि देवेष्वस्तु
जिस रस्सी से घोड़े की गर्दन बाँधी जाती है, जिससे उसके पैर बाँधे जाते हैं, जिस रस्सी से उसका सिर बाँधा जाता है, वे सब रस्सियाँ और अश्व के मुख में डाली जाने वाली घासें देवों के पास आयें।[ऋग्वेद 1.162.8]
गतिवान घोड़े की रास और मुँह में डाली हुई घास आदि या घोड़े की जो वस्तुएँ हों, वे सभी देवगणों की हों।
Let the cord with which the neck, legs and the head of the horse are tied and grass to be offered to the horse (put in its mouth) come to the demigods-deities.
यदश्वस्य क्रविषो मक्षिकाश यद्वा स्वरौ स्वधितौ रिप्तमस्ति। 
यद्धस्तयोः शमितुर्यन्नखेषु सर्वा ता ते अपि देवेष्वस्तु
अश्व का जो कच्चा माँस ही मक्खी खाती हैं, काटने या साफ करने के समय हथियार में जो लग जाता है और छेदक के हाथों और नाखूनों में जो लग जाता है, वह सब देवों के पास जावें।[ऋग्वेद 1.162.9]
जो कच्चा भाग मक्खियाँ खाती हैं, जो भाग तापदायक कर्मों में लग जाता है तथा जो कार्यरत नरों के हाथ में लग जाता है, वे सभी देवताओं यज्ञ को परिपूर्ण करें।
Let raw meat eaten by the flies, remains over the cutters & cleaners and that which remains in the hands & the nails of the cutter, reach the demigods-deities.
यदूवध्यमुदरस्यापवाति य आमस्य क्रविषो गन्धो अस्ति। 
सुकृता तच्छमितारः कृण्वन्तूत मेधं शृतपाकं पचन्तु
उदर अर्थात् पेट का जो अजीर्ण अंश बाहर हो जाता है और अपक्व माँस का जो लेशमात्र बचा रहता है, उसे छेदक निर्दोष अर्थात् पवित्र करके उस माँस को देवों के लिए पकावें।[ऋग्वेद 1.162.10]
थोड़े पके अन्न और गंध परिपूर्ण भक्षण सामग्री को सिद्ध करने वाले श्रेष्ठ प्रकार से शुद्ध करके प्रस्तुत करें।
The undigestible segment of the stomach and the uncooked meat should be purified and prepared for the demigods-deities.
यत्ते गात्रादग्निना पच्यमानादभि शूलं निहतस्यावधावति। 
मा तद्भूम्यामा श्रिषन्मा तृणेषु देवेभ्यस्तदुशद्भ्यो रातमस्तु
हे अश्व! आग में पकाते समय आपके शरीर से जो रस निकलता और जो अंग शूल से आबद्ध रहता है, वह मिट्टी में गिरकर तिनकों में न मिल जाय। यज्ञ भाग चाहने वाले देवों का वह आहार बनें।[ऋग्वेद 1.162.11]
हे अश्व! क्रोधाग्नि द्वारा जलते हुए तेरे शरीर से जो अत्यन्त स्वेद-रूप रस टपके वह भूमि सात न हो जाये, बल्कि उससे देव गण का उत्साह वर्द्धन हो।
Hey horse! While cooking the juice-liquid that comes off of your body; should not be mixed with the straw, when it falls over the ground. It should become the food of those demigods-deities who desire the offerings of the Yagy. 
ये वाजिनं परिपश्यन्ति पक्कं य ईमाहुः सुरभिर्निर्हरति। 
ये चार्वतो मांसभिक्षामुपासत उतो तेषामभिगूर्तिर्न इन्वतु
जो लोग चारों ओर से अश्व का पकना देखते हैं, जो कहते हैं कि गन्ध मनोहर है, देवों को दें और जो माँस-भिक्षा की आशा करते हैं, उनका संकल्प हमारा ही है।[ऋग्वेद 1.162.12]
घोड़े को अत्यन्त आक्रोशित देखते हैं। वे उनके सम्मुख से हट जाने को कहते हैं। तब उसके महान दिखाई देने के कारण समस्त पराक्रमी उसे ग्रहण की विनती करते हैं, इससे भी अश्वों, स्वामी और पराक्रमी का उत्साह वर्द्धन होता है।
Those who see the horse being cooked from all sides say that the smell is good. Give it to the demigods-deities. They expect some meat as begging. Their determination-idea (desire) matches us.
Meat eating is taboo in Hinduism. If the demigods-deities desire meat, they must have been meat eaters in their earlier births. Bhavishy Puran says that at least two viceroys (Christians) of British empire and Akbar (a Muslim) had attained heaven. Heaven is a place to satisfy sensualities, sexuality, passions, lasciviousness. There one can not make efforts for Moksh-emancipation. Ultimately such souls return to earth.
There are references in scriptures that the sacrificial horse was converted into camphor by using Mantr Shakti.
यन्नीक्षणं मांस्पचन्या उखाया या पात्राणि यूष्ण आसेचनानि।  ऊष्मण्यापिधाना चरूणामङ्काः सूनाः परि भूषन्त्यश्वम्
माँस पाचन की परीक्षा के लिए जो काष्ठाभानु लगाया जाता है, जिन पात्रों में रस रक्षित होता है, जिन आच्छादनों से गर्मी रहती है, जिस वेतस शाखा से अश्व का अवयव पहले चिह्नित किया जाता है और जिस क्षुरिका से चिह्नानुसार अवयव काटे जाते हैं, वो सब अश्व का माँस प्रस्तुत करते हैं।[ऋग्वेद 1.162.13]
मन को अच्छे लगने वाले, परिपाक करने वाले, सिंचन योग्य जो पात्र हैं, इनसे अश्व को सुभूषित करते हैं।
The wooden staff used for examining meat, the pots in which meat is saved are kept warm. The branch of the Vetas tree (Cane) is used to identify the organ of the horse which has to be cut to extract meat.
निक्रमणं निषदनं विवर्तनं यच्च पड्वीशमर्वतः। 
यच्च पयौ यच्च घासिं जघास सर्वा ता ते अपि देवेष्वस्तु
जहाँ अश्व गये थे, जहाँ बैठा था, जहाँ लेटा था, जिससे उसके पैर बाँधे गये थे, जो उसने पिया था तथा जो घास उसने खाई थी, वो सब देवों के पास जावें।[ऋग्वेद 1.162.14]
अश्व का भागना बैठना, लेटना, जल पीना, खाना जो कुछ कर्म हैं, वे सभी देवगणों के आधीन हैं। 
Let every thing like the places visited by the horse, where it laid to rest, where its feet were tied, the water drunk by it and the grass consumed by it should go to the demigods-deities.
मा त्वाग्निर्ध्वनयीद्भूमगन्धिर्मोखा भ्राजन्त्यभि विक्त जघ्रिः। 
इष्टं वीतमभिगूर्तं वषट्कृतं तं देवासः प्रति गृभ्णन्त्यश्वम्
हे अश्वगण! आपका निकलना, आनन्दित होना, पलटना, पीना-खाना आदि समस्त क्रियाएँ देवताओं के संरक्षण में हो।[ऋग्वेद 1.162.15]
हे अश्व! तुझे अग्नि का आँखों में घुस जाने वाला धुँआ कभी पीड़ित न करे। तुम सुन्दर अश्व को देवता स्वीकार करो।
Hey (sacrificial) horse! All of your activities-actions like movement, happiness, turning, eating & drinking etc. must be under the supervision of the deities-demigods.
यदश्वाय वास उपस्तृणन्त्यधीवासं या हिरण्यान्यस्मै। 
संदानमर्वन्तं पड्वीशं प्रिया देवेष्वा यामयन्ति
जिस आच्छादन योग्य वस्त्र से अश्व को आच्छादित किया जाता है, उसको जो सोने के गहने दिये जाते हैं, जिससे उसका सिर और पैर बाँधे जाते हैं, वो समस्त देवों के लिए प्रिय है। ऋत्विक लोग देवताओं को यह सब प्रदान करते है।[ऋग्वेद 1.162.16]
जो अश्वों को वस्त्राभूषणों से सुसज्जित करते हैं, वे देवगण को हर्षित करते हैं।
The cloth used for covering the horse, fixing the ornaments used to decorate it, for covering its head and tying its legs; are liked by the demigods-deities. The Ritviz make all these offerings to the demigods-deities.
यत्ते सादे महसा शूकृतस्य पाष्ण्र्या वा कशया वा तुतोद। 
स्रुचेव ता हविषो अध्वरेषु सर्वा ता ते ब्रह्मणा सूदयामि
हे अश्व! जोर से नाक से ध्वनि करते हुए गमन करने पर चाबुक के आघात से जो कष्ट उत्पन्न हुआ है, वो सब कष्ट मैं उसी प्रकार मंत्र द्वारा आहुति में देता हूँ, जिस प्रकार से स्रुक द्वारा हव्य दिया जाता है।[ऋग्वेद 1.162.17]
हे अश्व! तेरे हाँफने से या थम जाने पर तुझे जो दुःख हुआ है, उसे मैं मंत्र द्वारा निवृत करता हूँ। 
Hey horse! I relieve you of the pain which was caused to you by striking you with the whip, with the help of Mantr.
चतुस्त्रिंशद्वाजिनो देवबन्धोवङ्क्रीरश्वस्य स्वधितिः समेति। 
अच्छिद्रा गात्रा वयुना कृणोत परुष्परुरनुघुष्या वि शस्त
हे ऋषियों! देवों के मित्र इस अश्व के चौतीस अंगों को अच्छी प्रकार प्राप्त करने वाले आप, इनके प्रत्येक अंग को स्वस्थ बनाकर समस्त त्रुटियों को दूर कर दें।[ऋग्वेद 1.162.18]
हे पराक्रमियों! वेगवान घोड़े की पीठ की पसलियों पर अस्त्र पहुँच सकता है। इसलिए उसके शरीर का निवारण न करो। उसे अभ्यास द्वारा पूर्ण शिक्षित बनाओ।
Hey sages! Make the 34 organs of this horse healthy-perfect to make it acceptable to the demigods-deities.
एकस्त्वष्टुरश्वस्या विशस्ता द्वा यन्तारा भवतस्तथ ऋतुः। 
या ते गात्राणामृतुथा कृणोमि ताता पिण्डानां प्र जुहोम्यग्नौ
सूर्य रूपी अश्व को सम्वत्सर विभाजित करता है। इसके दो विभाग उसके नियन्ता होते हैं अर्थात् उत्तरायण और दक्षिणायन। वह दो मासों की ऋतुओं में विभाजित होता है। यज्ञ में शरीर के अलग-अलग अंगों की पुष्टि के उद्देश्य से ऋतु सम्बन्धी अनुकूल पदार्थों की आहुतियाँ प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 1.162.19]
संवत्सर :: Samvatsar  is a Sanskrat term for a solar year. In the medieval era literature, a Samvatsar refers to the Jovian year, that is a year based on the relative position of the planet Jupiter, while the solar year is called Varsh. A Jovian year is not equal to a solar year based on the relative position of Earth and Sun. A Jovian year is defined in Indian calendars as the time Brahaspati (Jupiter) takes to transit from one constellation to the next relative to its mean motion.
हे अश्व! चालाक नर तुम पर निमंत्रण रखते हैं। तेरे अंगों को मैं कुशल नियन्ता के अधिकार में करूँ।
Horse in the form of path of the Sun is divided by the solar year into two parts the Northern Hemisphere and the Southern Hemisphere. These two are further sub divided into seasons. While conducting the Yagy offerings are made as per the season to make the body organs strong.
मा त्वा तपत्प्रिय आत्मापियन्तं मा स्वधितिस्तन्वआ तिष्ठिपत्ते। 
मा ते गृध्नुरविशस्तातिहाय छिद्रा गात्राण्यसिना मिथू कः
हे अश्व! आप जिस समय देवों के पास जाते हो, उस समय आपको प्रिय देह आपको कष्ट प्रदान न करें। आपके शरीर को खड्ग अधिक क्षति ग्रस्त न करे। माँस-लोलुप और अकुशल व्यक्ति भी आपके पापों के अतिरिक्त आपके (अन्य) अंगों पर खड्ग का प्रहार न सके।[ऋग्वेद 1.162.20]
हे घोड़े! चलते समय तुम्हें कोई दुःख न दे। तेरे हृदय में शस्त्र प्रवेश न करें। कोई मूर्ख प्राणी लोभ वश तेरे तन पर आघात न करे।
Hey horse! None should harm you, when you visit the demigods-deities. Your body should remain unaffected by the attack of sword etc. weapons. Those desirous of your meat and the unskilled people should not be able to strike your organs. 
न वा उ एतन्प्रियसे न रिष्यसि देवाँ इदेषि पथिभिः सुगेभिः। 
हरी ते युञ्जा पृषती अभूतामुपास्थाद्वाजी धुरि रासभस्य
हे अश्व! आप न तो मरते हो और न संसार आपकी हिंसा करता है। आप उत्तम मार्ग से देवों के पास जाते हैं। इन्द्रदेव के हरि नाम के दोनों घोड़े और मरुतों के पृषती नाम के दोनों वाहन आपके रथ में नियोजित किये गये हैं। अश्वनी कुमारों के वाहन रासभ के स्थान पर आपके रथ में कोई शीघ्रगामी रथ नियोजित किया जायगा।[ऋग्वेद 1.162.21]
हे अश्व! तेरे सखा रहेंगे। अग्नि देवों के रथ में रास की जगह पर भी कोई अश्व जोता जायेगा।
Hey horse! Neither you die nor the world harm-kill you. You move to the demigods-deities through excellent means-path (ways). The horses named Hari and the chariots named Prashti of Marud Gan have been deployed in your chariot. Some other vehicle will be deployed in your chariot instead of the vehicle named Rasabh of the Ashwani Kumars.
सुगव्यं नो वाजी स्वश्र्व्यं पुंसः पुत्राँ उत विश्वापुषं रयिम्। 
अनागास्त्वं नो अदितिः कृणोतु क्षत्रं नो अश्वो वनतां हविष्मान्
यह अश्व हमें गौ और अश्व से युक्त तथा संसार रक्षक, धन प्रदान करते हुए हमें पुत्र प्रदान करे। तेजस्वी अश्व हमें पाप कर्मों से बचावें। हविर्भूत अश्व हमें शारीरिक बल प्रदत्त करें।[ऋग्वेद 1.162.22]
तेजस्वी :: शानदार, शोभायमान, अजीब, हक्का-बक्का करने वाला, नादकार, तेज़, शीघ्र, कोलाहलमय, उग्र, प्रज्वलित, तीक्ष्ण, उत्सुक, कलह प्रिय; majestic, full of aura-brightness, stunning, rattling, fiery.
वह अश्व सुन्दर गवादि परिपूर्ण धनो से एवं पुत्रादि से परिपूर्ण करने वाला हो। अदिति हमारे पापों को दूर करें। यह अन्न परिपूर्ण धन हमको शक्ति प्रदान करे।
Let this horse grant us cows & horses, protect the world, give us money and son. The majestic (stunning, rattling, fiery) should protect us from sins and grant us might, strength & power.
In Strotr, its felt that the translation to Hindi is improper-incorrect.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (163) ::  ऋषि :- दीर्घतमा, देवता :- अश्व, छन्द :- त्रिष्टुप्।
This Strotr is devoted to Ashw (Horse) a demigod-deity.
यदक्रन्दः प्रथमं जायमान उद्यन्त्समुद्रादुत वा पुरीषात्।
श्येनस्य पक्षा हरिणस्य बाहू उपस्तुत्यं महि जातं ते अर्वन्॥
हे अश्व! आपका महान् जन्म सबकी स्तुति योग्य है। अन्तरिक्ष या जल से पहले उत्पन्न होकर यजमान के अनुग्रह के लिए महान शब्द करते हो। श्येन पक्षी के पंखों की तरह आपके पंख है और हिरण के पैरों की तरह आपके भी पैर हैं।[ऋग्वेद 1.163.1]
हे अश्व! तुम्हारा जन्म भी कथन योग्य है। तुम अंतरिक्ष या जल से निकलकर अत्यन्त ध्वनि करते हो। तुम्हारे बाज के तुल्य पंख और हिरण के तुल्य पाँव हैं।
Hey Ashw! Your birth-appearance, deserve prayer. You make loud sound for the sake of the host-Ritviz prior to the appearance of the space and the water. Your feather is like Shyen-a bird and your feet are like that of the deer. 
यमेन दत्तं त्रित एनमायुनगिन्द्र एणं प्रथमो अध्यतिष्ठत्। 
गन्धर्वो अस्य रशनामगृभ्णात्सूरादश्वं वसवो निरष्ट॥
यम या अग्नि ने अश्व दिये, त्रित या वायु ने उसे रथ में नियोजित किया। रथ पर पहले इन्द्र चढ़े और गन्धर्वों या सोमों ने उसकी लगाम को धारण किया। वसुओं द्वारा सूर्यमण्डल से निकाले जाने वाले इस अश्व की हम स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 1.163.2]
यम द्वारा दिये गये इस घोड़े को त्रित ने जोड़ा। इन्द्रदेव ने इस पर प्रथम बार सवारी की। गन्धर्व ने उसकी लगाम पकड़ी।
The horses were granted by Yam & Agni Dev, Trit or Vayu deployed them in the chariote. Indr rode the chariote first and the Gandharvs & Soms held the reins. We pray to this chariote drawn by the Vasus through the Sury Mandal (Solar System).
असि यमो अस्यादित्यो अर्वन्नसि त्रितो गुह्येन व्रतेन।
असि सोमेन समया विपृक्त आहुस्ते त्रीणि दिवि बन्धनानि॥
हे अश्व! आप यम, आदित्य और गोपनीय व्रतधारी त्रित है। आप सोम के साथ संयुक्त हैं। पुरोहित लोग कहते हैं कि द्युलोक में आपके तीन बन्धन स्थान हैं।[ऋग्वेद 1.163.3]
Hey Ashw! You are Yam, Adity and the Trit-trio, holding-conducting the Vrat secretly. You are associated with Som. The Purohit-priests says that you are available at three places in the heavens.
त्रित :: एक ऋषि का नाम जो ब्रह्मा जी के मानस पुत्र माने जाते हैं, गौतम मुनि के तीन पुत्रों में से एक जो अपने दोनों भइयों से अधिक तेजस्वी और विद्वान् थे। एक देवता, जिन्होंने सोम बनाया था।
त्रित मुनि का यज्ञ :: भरतश्रेष्ठ! जैसे पापी मनुष्य अपने-आपको नरक में डूबा हुआ देखता है, उसी प्रकार तृण, वीरुध और लताओं से व्याप्त हुए उस कुँए में अपने आपको गिरा देख मृत्यु से डरे और सोमपान से वंचित हुए विद्वान त्रित अपनी बुद्धि से सोचने लगे कि मैं इस कुँए में रहकर कैसे सोमरस का पान कर सकता हूँ। इस प्रकार विचार करते-करते महातपस्वी त्रित ने उस कुँए में एक लता देखी, जो दैव योग से वहाँ फैली हुई थी। मुनि ने उस बालू भरे कूप में जल की भावना करके उसी में संकल्प द्वारा अग्नि की स्थापना की और होता आदि के स्थान पर अपने आपको ही प्रतिष्ठित किया। तत्पश्चात् उन महातपस्वी त्रित ने उस फैली हुई लता में सोम की भावना करके मन ही मन ऋग, यजु और साम का चिन्तन किया। नरेश्वर! इसके बाद कंकड़ या बालू-कणों में सिल और लोढ़े की भावना करके उस पर पीस कर लता से सोमरस निकाला। फिर जल में घी का संकल्प करके उन्होंने देवताओं के भाग नियत किये और सोमरस तैयार करके उसकी आहुति देते हुए वेद-मन्त्रों की गम्भीर ध्वनि की। राजन! ब्रह्म वादियों ने जैसा बताया है, उसके अनुसार ही उस यज्ञ का सम्पादन करके की हुई त्रित की वह वेदध्वनि स्वर्ग लोक तक गूँज उठी। महात्मा त्रित का वह महान यज्ञ जब चालू हुआ, उस समय सारा स्वर्ग लोक उद्विग्न हो उठा, परन्तु किसी को उसका कोई कारण नहीं जान पड़ा। तब देव गुरु बृहस्पति ने वेद मन्त्रों के उस तुमुलनाद को सुनकर देवताओं से कहा, "देवगण! त्रित मुनि का यज्ञ हो रहा है, वहाँ हम लोगों को चलना चाहिये"।
वे महान तपस्वी हैं। यदि हम नहीं चलेंगे तो वे कुपित होकर दूसरे देवताओं की सृष्टि कर लेंगे। बृहस्पति जी का यह वचन सुनकर सब देवता एक साथ हो उस स्थान पर गये, जहाँ त्रित मुनि का यज्ञ हो रहा था। वहाँ पहुँच कर देवताओं ने उस कूप को देखा, जिसमें त्रित मौजूद थे। साथ ही उन्होंने यज्ञ में दीक्षित हुए महात्मा त्रित मुनि का भी दर्शन किया। वे बड़े तेजस्वी दिखायी दे रहे थे। उन महाभाग मुनि का दर्शन करके देवताओं ने उनसे कहा, "हम लोग यज्ञ में अपना भाग लेने के लिये आये हैं"। उस समय महर्षि ने उनसे कहा, "देवताओं! देखो, में किस दशा में पड़ा हूँ। इस भयानक कूप में गिरकर अपनी सुधबुध खो बैठा हूँ"। महाराज! तदनन्तर त्रित ने देवताओं को विधिपूर्वक मन्त्रोच्चारण करते हुए उनके भाग समर्पित किये। इससे वे उस समय बड़े प्रसन्न हुए। विधि पूर्वक प्राप्त हुए उन भागों को ग्रहण करके प्रसन्न चित्त हुए देवताओं ने उन्हें मनोवान्छित वर प्रदान किया। मुनि ने देवताओं से वर माँगते हुए कहा, "मुझे इस कूप से आप लोग बचावें तथा जो मनुष्य इसमें आचमन करे, उसे यज्ञ में सोमपान करने वालों की गति प्राप्त हो"। राजन! मुनि के इतना कहते ही कुँए में तरंगमालाओं से सुशोभित सरस्वती लहरा उठी। उसने अपने जल के वेग से मुनि को ऊपर उठा दिया और वे बाहर निकल आये। फिर उन्होंने देवताओं का पूजन किया।[महाभारत शल्य पर्व 36.20-55]
हे देवों! तुमने इसे सूर्य से ग्रहण किया। हे अश्व! तू यम रूप है, सूर्य रूप है और गोपनीय नियम वाला त्रित है। तू सोम से युक्त है आसमान में तेरे बंधन को तीन स्थान बताए गए हैं। 
त्रीणि त आहुर्दिवि बन्धनानि त्रीण्यप्सु त्रीण्यन्तः समुद्रे। 
उतवे मे वरुण्श्छन्त्स्यर्वन्यत्रा त आहुः परमं जनित्रम्॥
हे अश्व! द्युलोक में आपके तीन बन्धन (वसुगण, सूर्य और द्युस्थान) है। जल या पृथ्वी में आपके तीन बन्धन (अन्न, स्थान और बीज) हैं। अन्तरिक्ष में आपके तीन बन्धन (मेघ, विद्युत् और स्तनित) है। आप ही वरुण हैं। पुरातत्वविदों ने जिन सब स्थानों में आपके परम जन्म का निर्देश किया है, वह आप हमें बताते हैं।[ऋग्वेद 1.163.4]
स्तनित :: बादल की गरज, मेघ गर्जन, बिजली की कड़क, ताली बजाने का शब्द, करतल ध्वनि, गरजता हुआ, गर्जित, आवाज़ या ध्वनि करता हुआ,  ध्वनित, शब्दायमान; rattling sound of the clouds.
हे अश्व! नभ जल और अंतरिक्ष में तेरे तीन तीन बंधन स्थान बताए गए हैं। तू ही वरुण और जहाँ पर तेरा जन्म स्थान है, उसे बताते हैं।
Hey Ashw! You are tied to Vasu Gan, Sury-Sun and the horizon in space. Over the earth & the water you are present in food grains, place-site & the seeds. In the space you are tied to clouds, electricity and the rattling sound of he clouds. You are a form of Varun Dev. The historians-scriptures tells us the places of your origin.
इमा ते वाजिन्नवमार्जनानीमा शफानां सनितुर्निधाना। 
अत्रा ते भद्रा रशना अपश्यमृतस्य या अभिरक्षन्ति गोपाः॥
हे अश्व! मैंने देखा है, ये सब स्थान आपके अंगशोधक हैं। जिस समय आप यज्ञांश का भोजन करते हैं, उस समय आपके पैरों के चिह्न यहाँ पड़ते है। आपकी जो फलप्रद लगाम सत्यभूत यज्ञ की रक्षा करती है, उसे भी यहाँ देखा है।[ऋग्वेद 1.163.5]
हे अश्व! ये तुमको शुद्ध करने वाली जगह है। ये तुम्हारे पद-चिह्नों वाले स्थान हैं। यहाँ तुम्हारी कल्याणकारी रस्सियाँ रखी हैं। यज्ञ पोषक इनकी सुरक्षा करते देखे जाते हैं।
Hey Ashw (horse)! All these places (items, things) cleanse your body. I have seen the spots-places (points) where hoofs fall, when you eat the offerings in the Yagy and your reins protecting the truthful Yagy.
आत्मानं ते मनसारादजानामवो दिवा पतयन्तं पतङ्गम्। 
शिरो अपश्यं पथिभिः सुगेभिररेणुभिर्जेहमानं पतत्रि॥
हे अश्व! दूर से ही मन द्वारा मैंने आपके शरीर को पहचाना। आप नीचे से अन्तरिक्ष मार्ग में सूर्य मण्डल में जाते हैं। मैंने देखा आपका सिर धूलि शून्य, सुखकर मार्ग से शीघ्र गति से क्रमश: ऊपर उठता है।[ऋग्वेद 1.163.6]
हे अश्व! मैंने तुम्हारे शरीर को अपने मन से ही पहचान लिया है। तुमको आसमान में उड़ते हुए देखा है। तुम धूल से रहित राह से जाने का प्रयत्न करते हो। तुम द्रुत वेग से चलते हुए सिर को ऊंचा उठाते हो।
Hey Ashw! I have recognised your body though a distance with the help of my mind (insight, innerself, consciousness).You move to the Sury Mandal (core-inside of the Sun, where life forms are present) from the lower space. I saw-found your clean head without dust, rising-moving upwards comfortably with fast-high speed.
अत्रा ते रूपमुत्तममपश्यं जिगीषमाणमिष आ पदे गोः। 
यदा ते मर्तो अनु भोगमानळाद्विसिष्ठ ओषधीरजीगः॥
मैं देखता हूँ, आपका उत्कृष्ट रूप पृथ्वी पर चारों ओर अन्न के लिए आगमन करता है। हे अश्व! जिस समय मनुष्य भोग लेकर आपके पास जाता है, उस समय आप ग्रास योग्य तृण आदि का भक्षण करते हैं।[ऋग्वेद 1.163.7]
हे अश्व! तुम्हारा महान शरीर धरा पर अन्नो को जीतने के लिए विचरण करता है। जब मनुष्य तुम्हारे भक्षणार्थ तृणादि लाता है, तब तुम उसे खुशी-खुशी भक्षण करते हो।
Hey Ashw! I see your excellent body coming over to the earth for food grains-stuff. Hey Ashw! When humans comes to you with offerings, you eat suitable mouthful straw (single bite).  
अनु त्वा रथो अनु मर्यो अर्वन्ननु गावोऽनु भगः कनीनाम्। 
अनु व्रातासस्तव सख्यमीयुरनु देवा ममिरे वीर्यं ते॥
हे अश्व! आपके पीछे-पीछे अश्व जाता है, मनुष्य आपके पीछे जाते हैं, स्त्रियों का सौभाग्य आपके पीछे जाता है। दूसरे अश्वों ने आपको अनुगमन करके मित्रता प्राप्त की है। देवगण आपके वीरकर्म की प्रशंसा करते हैं।[ऋग्वेद 1.163.8]
अश्व! तुम्हारे पीछे रथ चलते हैं। मनुष्य, गौ आदि भी तुम्हारे पीछे ही चलते हैं। स्त्रियों का सौभाग्य तुम्हारे पीछे चलता है। अन्य घोड़े तुम्हारे संग चलते हुए सखा भाव रखते हैं।
Hey Ashw! Other Ashw-horse, humans, fortune-good luck of women follows you. Other horses followed you and became friendly with you. The demigods-deities praise your valour.
VALOUR :: निर्भयता, साहस, शूर-वीरता, हिम्मत; दिलेरी, निर्भयता, पराक्रम,  बहादुरी,  वीरता,  शूरता,  साहस, वीरत्व; bravery, hardihood, heroine, pluck, stoutness, valiance, chivalry, gallantry, metal, grit, stout-heart, courageousness, daring, effrontery, intrepidity, courage, fearlessness, courageousness, braveness, intrepidity, pluck, pluckiness, nerve, backbone, spine, heroism, stout-heartedness, manliness, audacity, boldness, spirit, fortitude, mettle, dauntlessness.
हिरण्यशृङ्गोऽयो अस्य पादा मनोजवा अवर इन्द्र आसीत्। 
देवा इदस्य हविरद्यमायन्यो अर्वन्तं प्रथमो अध्यतिष्ठत्॥
अश्व का सिर सोने का है और उसके पैर लोहे के तथा वेगशाली हैं। वेग के सम्बन्ध में तो इन्द्रदेव भी लघु है। देवगण अश्व के हव्य भक्षण के लिए यहाँ पधारते हैं, किन्तु इन्द्रदेव पहले से ही यहाँ उपस्थित रहते हैं।[ऋग्वेद 1.163.9]
देवगण तुम्हारे पीछे वीर्य, कार्य के प्रशंसक हैं। इस घोड़े का सिर स्वर्ण से सजा हुआ है। इसके पैरों में लोहे का आवरण चढ़ा है। देवता भी इससे आकर्षित होते हैं। इन्द्र इस अश्व पर सबसे पहले सवार हुए थे। 
The head of the fast running horse-Ashw is golden and its feet are made of iron. Its faster than Dev Raj is respect of speed. The demigods-deities present themselves here to ensure that the horse eats-accepts the offerings, while Dev Raj Indr is already present.
ईर्मान्तासः सिलिकमध्यमासः सं शूरणासो दिव्यासो अत्याः। 
हंसाइव श्रेणिशो यतन्ते यदाक्षिषुर्दिव्यमज्ममश्वाः॥
सूर्य देव के रथ को खींचने वाले और सदैव चलने वाले पुष्ट जंघाओं और वक्ष वाले अश्व पंक्ति बद्ध होकर हंसों के तुल्य चलते हैं, तब वे स्वर्ग मार्ग में दिव्यता को प्राप्त होते हैं।[ऋग्वेद 1.163.10]
जब यह अश्व भव्य मार्ग में चलता है तब उसके साथी घोड़ों के साथ चलती हुई पंक्ति हंसों को पंक्ति जैसी लगती है।
When the horses pulling the chariote of Bhagwan Sury Narayan having strong thighs and strong chest, moving in a que like swans attain divinity through the heavens. 
तव शरीरं पतयिष्णवर्वन्तव चित्तं वातइव ध्रजीमान्। 
तव शृङ्गाणि विष्ठिता पुरुत्रारण्येषु जर्भुराणा चरन्ति॥
हे अश्व! आपका शरीर शीघ्रगामी है, आपका चित्त भी वायु भी की तरह शीघ्रगन्ता है। आपकी विशेष प्रकार से स्थित दीप्तियाँ जंगलों में दावानल के रूप में विद्यमान है।[ऋग्वेद 1.163.11]
हे अश्व! तू उड़ने में समर्थवान है। तू पवन वेग से चलता है। तू विविध स्थानों में भ्रमणशील है।
Hey fast moving, horse-Ashw! Your are fast moving like wind and capable of flying. You travel through various places like forests-jungles. You are present in the forests like the fire which engulfs the jungles.
उप प्रागाच्छसनं वाज्यर्वा देवद्रीचा मनसा दीध्यान:।  
अजः पुरो नीयते नाभिरस्यानु पश्चात्करेंयो यन्ति रेभाः॥
वह द्रुतगामी अश्व आसक्त चित्त से देवों का ध्यान करते हुए वध स्थान में जाता है। उसके मित्र अज उसके आगे-आगे ले जाया जाता है। स्तोता पीछे-पीछे पाठ करते हुए चलते हैं।[ऋग्वेद 1.163.12]
कुशल घोड़ा युद्ध क्षेत्र की तरफ जाता हुआ वंदना के योग्य होता है। अन्य अश्व जो उसके संग जन्म लेते हुए भी इसका बंधु रूप है, संग चलता है। मेधावी जन उसके संग आगे चलते हैं।
That fast moving horse moves to the site of sacrifice-slaughter remembering the demigods-deities. Its friend goat moves ahead of him. The devotees follows him chanting Shloks. 
उप प्रागात्परमं यत्सवस्थमवां अच्छा पितरं मातरं च 
अद्या देवातमी हि गम्या अथा शास्ते दाशुषे वार्याणि॥
द्रुतगामी अश्व पिता और माता को प्राप्त करने के लिए उत्कृष्ट और एक निवास योग्य स्थान पर गमन करता है। हे याजक! आप भी अच्छे गुणों से युक्त होकर देवत्व को प्राप्त करते हुए देवताओं से अपार वैभव प्राप्त करें।[ऋग्वेद 1.163.13]
ऐसा परम श्रेष्ठ स्थान को प्राप्त हुआ वीर देवगणों के समीप पहुँचता है। उसे प्रदान करने वाला घोड़ा का मालिक यजमान वरणीय धन प्राप्त करता है।
The fast moving horse-Ashw moves to the excellent place for living, with his parents. Hey Yagy performers, you too should have righteous-virtuous qualities to attain demigodhood and all sorts of amenities like the demigods-deities.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (164) ::  ऋषि :- दीर्घतमा, देवता :- विश्वेदेवा, छन्द :- त्रिष्टुप्, जगती, प्रभृति आदि ।
अस्य वामस्य पलितस्य होतुस्तस्य भ्राता मध्यमो अस्त्यश्नः। 
तृतीयो भ्राता घृतपृष्ठो अस्यात्रापश्यं विश्पतिं सप्तपुत्रम्
हमने संसार का पालन करने वाले सूर्य देव को सात पुत्रों के साथ देखा है। उसका मध्य अन्तरिक्ष में जाना वाला भ्राता वायु और तीसरा भ्राता तेजस्विता को प्रदान करने वाले अग्निदेव हैं।[ऋग्वेद 1.164.1]
आह्वान योग्य, सुन्दर सूर्य के समान भाई पवन और कनिष्ट भाई अग्नि हैं। मैं यहाँ प्रजा पोषक रश्मियों से परिपूर्ण सूर्य को देखता हूँ।
We have seen-visualised the Sun, who nourishes-nurture the universe, with his 7 sons.  His brother Pawan-Vayu (air) can reach the middle of the space. His third bother Agni grant aura-brilliance.
Higher we go rare-thin is the air. Generally its very close to the earth.
सप्त युञ्जन्ति रथमेकचक्रमेको अश्वो वहति सप्तनामा। 
त्रिनाभि चक्रमजरमनर्वं यत्रेमा विश्वा भुवनाधि तस्थुः
सूर्य देव के एक चक्र रथ में सात घोड़े नियोजित किये गये हैं। एक ही अश्व सात नामों से रथ का वहन करता है। चक्र की तीन नाभियाँ हैं। वे न तो कभी शिथिल होती हैं न जीर्ण; सारा संसार उनका आश्रय प्राप्त करता है।[ऋग्वेद 1.164.2]
एक पहिये वाले रथ  के संग अश्व जुतते हैं। इस अक्षय और तीन नाभि वाले पहिए को एक अश्व ले जाता है। समस्त संसार इस पहिये के आश्रित है। सात पहिए वाले निकट रथ को सात घोड़े खींचते हैं।
The chariote of the Sun completes one cycle with three axles deploying 7 horses. They are neither dilapidated nor they become loose-weak. The whole universe gets protection-shelter under them. Same horse is deployed with 7 different names.
इमं रथमधि ये सप्त तस्थुः सप्तचक्रं सप्त वहन्त्यश्वाः। 
सप्त स्वसारो अभि सं नवन्ते यत्र गवां निहिता सप्त नाम
जो सात सप्त-चक्र, रथ का अधिष्ठान करते हैं, वे ही सात अश्व हैं, वे ही इस रथ को वहन करते हैं। सात किरणें इस रथ के समक्ष आती हैं। इसमें सात किरणें या स्वर हैं।[ऋग्वेद 1.164.3]
सात पहिये वाले इस को सात घोड़े खींचते हैं। रश्मि रूप सात बहिने इस रथ के आगे चलती हैं।
The seven horses pulls this chariote. Seven rays moves ahead of this chariote.
को ददर्श प्रथमं जायमानमस्थन्वन्तं यदनस्था बिभर्ति। 
भूम्या असुरसृगात्मा क्व स्वित्को विद्वांसमुप गात्प्रष्टुमेतत्
पहले उत्पन्न हुए को किसने देखा था? किस समय अस्थि रहिता (प्रकृति) ने अस्थि युक्त (संसार) को धारण किया? पृथ्वी से प्राण और रक्त उत्पन्न हुए; परन्तु आत्मा कहाँ से उत्पन्न हुई? विद्वान् के पास कौन इस विषय की जिज्ञासा करने जायेगा?[ऋग्वेद 1.164.4]
पहले जन्म वाले को देखा है? उस अस्थि-रहित ने अस्थि-युक्त को धारण किया। धरती पर प्राण और रक्त उत्पन्न हुआ। लेकिन आत्मा कहाँ से उत्पन्न हुई? इस विषय को जानने के लिए विद्वानों के समीप कौन जाएगा?
Who saw the first-initially born!? When did the bone free (earth-nature) got the bones?! Sensation and blood grew from the earth but from where did the soul came?! Who will go to the enlightened to seek answer to these queries-questions.
पाकः पृच्छामि मनसाविजानन्देवानामेना निहिता पदानि। 
वत्से बष्कयेऽधि सप्त तन्तून्वि तत्निरे करेंय ओतवा उ
मैं अज्ञानी हूँ, कुछ समझ में न आने से पूछ रहा हूँ। ये सब संदिग्ध बातें देवों के लिए भी रहस्यमयी है। एक वर्ष के गोवत्स या सूर्य के वेष्टन के लिए मेधावियों ने जो सात सोमयज्ञ प्रस्तुत किये, वे क्या है?[ऋग्वेद 1.164.5]
मैं अज्ञानी हूँ। समझ में न आने के कारण ही यह सब पूछता हूँ। नवयुवक बछड़े के लिए विद्वानों ने सात सूत्र की रस्सी प्रकट की। वे क्या हैं? नवयुवक बछड़े से तात्पर्य ग्रह नक्षत्र आदि से है और सात सूत्र की रस्सी का तात्पर्य सूर्य के आकर्षण बल से है।
I am ignorant. I am unable to grasp these intricate things, that's why I am asking you. These things are full of secrets even for the demigods-deities. One year old calf is tied with seven cords. The intelligent-prudent have advised seven Som Yagy, please explain.
The planets revolve round the Sun due to the gravitational attraction.
अचिकित्वाञ्चिकितुषश्चिदत्र करीन्पृच्छामि विझने न विद्वान्। 
वि यस्तस्तम्भ षळिमा रजांस्यजस्य रूपे किमपि स्विदेकम्
मैं अज्ञानी हूँ। कुछ न जानकर ही ज्ञानियों के पास जानने की इच्छा से पूछता हूँ। जिन्होंने इन छः लोकों को रोक रखा है, जो जन्म रहित रूप से निवास करते हैं, वे क्या एक हैं?[ऋग्वेद 1.164.6]
मैं अज्ञानी होने के कारण पूछता हूँ, "जिसने इन छ: लोकों को स्थिर किया है, वे अजन्मा क्या एक ही हैं"? 
Being ignorant, I am asking the enlightened, who is holding the six abodes tied together. Who is the unborn (force, Almighty), is he single entity?!
इह ब्रवीतु य ईमङ्ग वेदास्य वामस्य निहितं पदं वेः। 
शीर्ष्ण: क्षीरं दुह्रते गावो अस्य वव्रिं वसाना उदकं पदापुः
गमनशील और सुन्दर सूर्यदेव का स्वरूप अतीव निगूढ़ है। वे सबके मस्तक स्वरूप हैं। उनकी किरणें दूध दुहती तथा अति विशाल तेज से युक्त होकर उसी प्रकार पुनः जलपान करती है। जो यह सब कथाएँ जानते हैं, वे उसका वर्णन करें।[ऋग्वेद 1.164.7]
कौन इस आदित्य रूपी पक्षी के स्थान का जानकार है? इनकी रश्मियाँ रूपी गायें तेज का दोहन करती हैं, वे जल पीने जाती हैं धरती माता नभ में स्थित सूर्य को वृष्टि के लिए पूजती हैं।
The real form of Sury Dev-the Sun is very intricate. He is like the head of everyone. Its rays extracts the milk-nectar associated with brightness (energy explosion) and sips the water. Those who knows all these facts should describe them.
Rays of Sun evaporated water, which rises up in the space and thereafter breaks into highly charged ions of hydrogen and oxygen. The movement of the Sun rays to earth-planets and other abodes is cyclic. It grants energy in the form of heat & light and then sucks it back in the form of highly charged particles, which on reaching Sun again yield Helium and energy. 
माता पितरमृत आ बभाज धीत्यग्रे मनसा सं हि जग्मे। 
सा बीभत्सर्गर्भरसा निविद्धा नमस्वन्त इदुपवाकमीयुः
माता (पृथ्वी) वर्षा के लिए पिता या धुलोक में स्थित सूर्यदेव को अनुष्ठान द्वारा पूजती है। इसके पहले ही पिता भीतर ही भीतर उसके साथ संगत हुए थे। गर्भधारण की इच्छा से माता गर्भरस से निबिद्ध हुई थी। अनेक प्रकार के शस्य उत्पन्न करने के लिए आपस में बातचीत भी की था।[ऋग्वेद 1.164.8]
यह गर्भेच्छा से वर्षा रूपी गर्भ से सींची गई, तब प्राणियों ने अन्न प्राप्त कर प्रार्थना की। प्रदक्षिणा करती हुई धरा गर्भभूत जल राशि के लिए ठहरी, तब वर्षा रूप वर्ल्स ने ध्वनि की और विश्व रूप वाली धेनु शस्य स्यामला हुई।
Mother earth prays to father Sun for yielding water-rains. It leads to production of vegetation.
Rains are controlled by Dev Raj Indr, Varun Dev, Vayu-Pawan Dev, clouds and even the Agni Dev. When we consider Sun as Sury Narayan, he becomes the source of all forms of energy, controlled by these demigods-deities.  
युक्ता मातासीद्धुरि दक्षिणाया अतिष्ठद्गर्भो वृजनीष्वन्तः। 
अमीमेद्वत्सो अनु गामपश्यद्विश्वरूप्यं त्रिषु योजनेषु
पिता (द्युलोक) अभिलाषा की पूर्ति में समर्थ पृथ्वी का भार वहन करने में नियुक्त हुए। गर्भभूत जलराशि मेघमाला के बीच थी। वृष्टि जल ने शब्द किया और तीन (मेघ, वायु और किरण) के योग से विश्व रूपिणी गौ (पृथ्वी) हुई अर्थात् पृथ्वी  शस्याच्छादिता हुई।[ऋग्वेद 1.164.9]
ये आदित्य तीन जननी और तीन पिताओं को धारण करता हुआ उच्च स्थान पर स्थित है। वे थकते नहीं। देवगण क्षितिज की पीठ पर विराजमान हुए के सम्बन्ध में चर्चा करते हैं।
Sun as a father figure is capable of supporting the earth (due to gravitational forces). The large quantity of water is held by the clouds. The rains create-produce sound by the support of the clouds, air-wind and the Sun rays to make the earth green with vegetation.
The earth is termed as Gau-cow in scriptures. It goes to Bhagwan Shri Hari Vishnu to reveal ever increasing tortures-wickedness of the Kshatriy clan. Prathu make endeavours to milk it means, make it fertile.
तिस्त्रो मातॄस्त्रीन्पितॄन्बिभ्रदेक ऊर्ध्वस्तस्थौ नेमव ग्लापयन्ति। 
मन्त्रयन्ते दिवो अमुष्य पृष्ठे विश्वविदं वाचमविश्वमिन्वाम्
एक मात्र सूर्यदेव तीन माता (पृथ्वी, अन्तरिक्ष और आकाश) और तीन पिता (अग्नि, वायु और सूर्य) को धारित करते हुए ऊपर स्थित हैं, उन्हें आलस्य नहीं आता। धुलोक की पीठ पर देवता लोग सूर्य के सम्बन्ध में वार्ता करते हैं। उस वार्ता को कोई नहीं जानता; परन्तु उसमें सबकी बातें रहती हैं।[ऋग्वेद 1.164.10]
धारण :: ग्रहण; retention, assumption, hostile, possession.
आदित्य तीन जननी और तीन पिताओं को धारण करता हुआ उच्च स्थान पर स्थित है। वे थकते नहीं। देवगण क्षितिज की पीठ पर विराजमान हुए सूर्य के सम्बन्ध में चर्चा करते हैं।
The Sun supports-holds the three mothers (earth, space & sky) & three fathers (Agni-fire, Vayu-air and itself), without laziness. The demigods-deities discuss this, in the heavens. None other knows what they talk, but it involves the discussions of every one.
द्वादशारं नहि तज्जराय वर्वर्ति चक्रं परि द्यामृतस्य। 
आ पुत्रा अग्ने मिथुनासो अत्र सप्त शतानि विंशतिश्च तस्थुः
सत्यात्मक आदित्य का बारह अरों (राशियों) से युक्त चक्र स्वर्ग के चारों ओर बार-बार भ्रमण करता और कभी पुरातन नहीं होता। अग्निदेव इस चक्र में पुत्र स्वरूप सात सौ बीस (तीन नौ साठ दिन और तीन सौ साठ रात्रियाँ) निवास करते है।[ऋग्वेद 1.164.11]
सूर्य का बारह राशि रूप अरों से युक्त रथ चक्र नभ के चारों ओर लगातार फिरता है। वह कभी पुराना नहीं होता। चक्र के सात सौ बीस पुत्र रूपी बंधु स्थिर हैं।
The chariote of Sun having 12 axels (12 constellations) moves around the heaven without being old-tired (torn). Agni Dev remains in it for for 720 periods (360 days & 360 nights). 
पञ्चपादं पितरं द्वादशाकृतिं दिव आहुः परे अर्धे पुरीषिणम्। 
अथेमे अन्य उपरे विचक्षणं सप्तचक्रे षळर आहुरर्पितम्
पाँच पैरों (ऋतुओं) और बारह रूपों (महीनों) से संयुक्त सूर्य देव जिस समय द्युलोक के पूर्वार्द्ध में रहते हैं, उस समय उनको कोई-कोई जलदाता कहते है। दूसरे कोई-कोई छः अरों (ऋतुओं) और सात चक्रों (रश्मियों) से संयुक्त रथ पर द्योतमान सूर्य को अर्पित कहते हैं, जबकि वे द्युलोक के आधे भाग में रहते हैं।[ऋग्वेद 1.164.12]
पांच पैर और बारह रूप से युक्त जलों के दाता को आसमान के परे अर्द्ध भाग में स्थिर बताते हैं। दूसरे व्यक्ति उन्हें सात पहिए और छः अरों वाले रथ पर सवार बताते हैं। उस भ्रमण करते हुए पाँच अरों वाले रथ चक्र में समस्त संसार दृढ़ है।
When the Sun is in the eastern horizon, its associated with five legs (seasons) and 12 forms (months), is addressed as the giver of water. When its associated with six axels (seasons) and seven cycles (rays), its called as Arpit by some.
पञ्चारे चक्रे परिवर्तमाने तस्मिन्ना तस्थुर्भुवनानि विश्वा।  
तस्य नाक्षस्तप्यते भूरिभारः सनादेव न शीर्यते सनाभिः
नियत परिवर्तमान पाँच ऋतुओं या अरों (खूँटों) से युक्त चक्र पर सारे भुवन विहित हैं। उसका अक्ष प्रभूत भारवहन में नहीं थकता। उसकी नाभि सदा समान रहती है, कभी जीर्ण-शीर्ण नहीं होती।[ऋग्वेद 1.164.13]
उनका धुरा बहुत भार ढोने पर भी क्षीण नहीं होता है। अक्षय चक्र भ्रमण करता हुआ सूर्य का नेत्र दमकता है। उसी में समस्त भुवन दृढ़ हैं।
All abodes are aligned over the axels having changeable five seasons. Its axel never tire. Its axels is always fit and torn. 
All abodes are well-knit and maintain their position around the Sun.  
सनेमि चक्रमजरं वि वावृत उत्तानायां दश युक्ता वहन्ति। 
सूर्यस्य चक्षू रजसैत्यावृतं तस्मिन्नार्पिता भुवनानि विश्वा
समान नेमि से संयुक्त और अजीर्ण कालचक्र निरन्तर भ्रमण करता रहता है। एक साथ दस (पंच लोकपाल और निषाद, ब्राह्मण आदि पंच वर्ण) ऊपर मिलकर पृथ्वी को धारित करते हैं। सूर्य का नेत्ररूप मण्डल वर्षा के जल में छिप गया है। समस्त प्राणी और जगत् भी उसमें विलीन हो जाता है।[ऋग्वेद 1.164.14]
अक्षय भ्रमण करता हुआ सूर्य का नेत्र दमकता है। उसी में समस्त भुवन दृढ़ हैं। 
The axel is common, continue moving without being torn. The ten forces (5 Lok Pal & 5 Varns-Brahmans, Kshatriy, Vaeshy, Shudr & the Nishad)) together maintain the earth. The exposure of the Sun in the form of eye is masked by the rains (clouds). All living beings and the universe assimilate in it.
साकंजानां सप्तथमाहुरेकजं षळिद्यमा ऋषयो देवजा इति। 
तेषामिष्टानि विहितानि धामशः स्थात्रे रेजन्ते विकृतानि रूपशः॥
एक साथ जन्में जोड़ से रहने वाले छः और सातवाँ यह सभी एक से उत्पन्न हुए। परिवर्तित हुए रूपों में वे अपने-अपने इष्टकर्म में रथ अपने-अपने धामों में उपस्थित होकर सक्रिय रहते हैं।[ऋग्वेद 1.164.15]   
सहजता ऋतुओं में अधिक मास वाली सातवीं ऋतु अकेले ही रहती है। छः ऋतुएँ आपस में जुड़ी हुई हैं और क्रमशः गमन करती हैं। वे रूप भेद से युक्त हुई अपने दाता के लिए घूमती हैं।
Born together in pairs, the seasons live together. The sixth & the seventh season are tied together. The seventh season is extra. They revolve round their producer.
In Hindu calendar, there is provision for the extra month, the thirteenth. Similarly, the seventh season too occurs. It depends upon the interaction-movement of the Sun, Moon and the constellations. This system is scientific and based upon our knowledge of Astronomy & Astrology. 
स्त्रियः सतीस्ताँ उ मे पुंस आहुः पश्यदक्षण्वान्न वि चेतदन्यः। 
कविर्यः पुत्रः स ईमा चिकेत यस्ता विजानात्स पितुष्पितासत्॥
किरणें स्त्री होकर भी पुरुष रूप हैं। यह सूक्ष्म दृष्टि युक्त ही देख सकते हैं, दूरदर्शी पुत्र ही इसका अनुभव कर सकते हैं। जो यह जान लेता है, वह पिता का भी पिता हो जाता है।[ऋग्वेद 1.164.16]
रश्मि नारी रूप होरक भी मनुष्य के तुल्य है। उन्हें नेत्रवान मेधावी ही जानते हैं। जो जान लेते हैं वे पितामह अनुभवी हैं।
Though the rays are female yet they are like males. This can be observed only by that person, who is a visionary-enlightened. One who identifies this is like a grand father.
अवः परेण पर एनावरेण पदा वत्सं बिभ्रती गौरुदस्थात्। 
सा कद्रीची कं स्विदर्धं परागात्क्व स्वित्सूते नहि यूथे अन्तः
हे वत्स! अग्नि का पिछला भाग सामने के पैर से और सम्मुख भाग पीछे के पैर से धारण हुए गौ, आदित्य रश्मि या आहुति ऊपर की ओर जाती हैं। वह कहाँ जाती हैं!? यह किस आधे भाग से परे निकलकर जन्म देती हैं। समूह के बीच प्रसव नहीं करती।[ऋग्वेद 1.164.17]
अम्बर ने नीचे धरा के ऊपर वत्स को धारण करती हुई रश्मि ऊपर उठती है। वे कहाँ जाती और कहाँ विश्राम करती हैं। जो आकाशस्थ सूर्य पृथ्वी पर स्थित अग्नि देव की पूजा करते हैं, वे अवश्य हैं। 
Hey disciple-child! The cow carries the rear of Agni over its front legs-feet and the forward-front part-portion, over its hind legs, in this way, the rays or the offerings move in an upward direction. Where does it go?! With which half it produce? It do not give birth in the open.
अवः परेण पितरं यो अस्यानुवेद पर एनावरेण। 
करीयमानः क इह प्र वोचद्देवं मनः कुतो अधि प्रजातम्
जो अघ: स्थित (अग्नि) लोकपालक की सूर्य के साथ और उद्धर्व स्थित की अध:स्थित के साथ उपासना करते हैं, वे ही मेधावी की तरह आचरण करते हैं। किसने ये सब बातें कही है? कहाँ से यह अद्भुत आचरण वाला मन उत्पन्न हुआ है?[ऋग्वेद 1.164.18]
जो आकाशस्थ सूर्य पृथ्वी पर अग्निदेव की पूजा करते हैं, वे अवश्य ही महापुरुष हैं। इन बातों को किसने बताया? कहाँ से वह दिव्याचरण वाला हृदय उत्पन्न हुआ।
Those who pray to Sun and Agni Dev over the earth are prudent scholars-learned. Who has said this!? Where has the amazing Man-innerself originated, which follows-adopts itself to divine behaviour?!
ये अर्वाञ्चस्तों उ पराच आहुर्ये पराञ्चस्ताँ उ अर्वाच आहुः। 
इन्द्रच या चक्रथुः सोम तानि धुरा न युक्ता रजसो वहन्ति
जिन्हें विद्वान् लोग अधोमुख कहते हैं, उन्हीं को उर्ध्वमुख भी कहते हैं और जिन्हें उर्ध्वमुख कहते हैं, उन्हें अधोमुख भी कहते हैं। हे सोम! आपने और इन्द्रदेव ने जो मण्डल द्वय निर्मित किया है, वह युग युक्त अश्व आदि की तरह समस्त संसार का भार वहन करता है।[ऋग्वेद 1.164.19]
अधोमुख :: उलटा, औंधा;  downward.
जिसका मुँह नीचे की ओर हो। जो इधर आते हैं, उधर जाने वाले भी कहे जाते हैं। जो उधर जाते हैं उन्हें इधर आने वाला कहा जाता है। सोम और इन्द्र ने जो लोक बनाये वे मनुष्य मात्र का भार वहन करते हैं।
Those who are called downward are called upward & vice versa by the learned-studied. Hey Som-Moon! The abodes created by you and Dev raj Indr are capable of bearing the load of the whole universe-world.
द्वा सुपर्णा सयुजा सखाया समानं वृक्षं परि षस्वजाते। 
तयोरन्यः पिप्पलं स्वाद्वत्त्यनश्नन्नन्यो अभि चाकशीति॥ 
दो पक्षी (जीवात्मा और परमात्मा) मित्रता के साथ एक वृक्ष या शरीर में रहते हैं। उनमें एक (जीवात्मा) स्वादु पिप्पल का भक्षण करता है और दूसरा (परमात्मा) कुछ भी भक्षण नहीं करता, केवल द्रष्टा है।[ऋग्वेद 1.164.20] 
दो पक्षी पेड़ों पर वास करते हैं उनमें से एक स्वादिष्ट फल भक्षण करता है और दूसरा कुछ भी भक्षण नहीं करता, केवल देखता रहता है। जीवात्मा और ईश्वर दो पक्षी हैं। एक सांसारिक भोगों में संलिप्त है और दूसरा केवल देखता है।
Two birds reside over a tree or the body, friendly, together. The living being eats the tasty fruits while the other-Almighty is a silent spectator. HE just watches.
यत्रा सुपर्णा अमृतस्य भागमनिमेषं विदथाभिस्वरन्ति। 
इनो विश्वस्य भुवनस्य गोपाः स मा धीर: पाकमत्रा विवेश
जिनमें सुन्दर गति रश्मियाँ, कर्तव्य ज्ञान से अमृत का अंश लेकर सदैव जाती हैं और जो धीर भाव से समस्त भुवनों की रक्षा करते हैं, मेरे अल्पज्ञ होने पर भी उन्होंने मुझे स्थापित किया है।[ऋग्वेद 1.164.21]
जिसमें मनुष्य अमर भाव के चिंतनार्थ लगातार प्रार्थना करते हैं, यह लोक पालक सबका दाता मुझ मूर्ख में ही विद्यमान है। 
One in whom the beautiful rays are merging, which carries the ambrosia of dedication towards duties, who protects all abodes; has established me, though I have little knowledge.
यस्मिन्वृक्षे मध्वदः सुपर्णा निविशन्ते सुवते चाधि विश्वे। 
तस्येदाहुः पिप्पलं स्वाद्वग्रे तन्त्रोन्नशद्यः पितरं न वेद
जिस (आदित्य) वृक्ष पर जलग्राही किरणें रात को बैठतीं और संसार के ऊपर प्रातःकाल दीप्ति प्रकट करती हैं; विद्वान् लोग उनका फल प्रापणीय बताते हैं। जो व्यक्ति पिता (सूर्य या परमात्मा) को नहीं जानता, वह इस फल को नहीं प्राप्त करता।[ऋग्वेद 1.164.22]
जिस वृक्ष में सभी मधुर रस की इच्छा करने वाले निवास करते हैं और प्रजा की उत्पत्ति में लगे रहते हैं, उसके आगे के भाग में स्वादिष्ट फल लगे बताते हैं। जो प्राणी पिता को नहीं जानता, वह उसके फल को नहीं पा सकता।
The rays which absorbs water, settle over the tree (Adity-Sun) and reappear in the morning. The learned describe the outcome of this as rewarding. One who is not aware of the father (Sun, Almighty) never gains from the outcome of this activity. 
यद्गायत्रे अघि गायत्रमाहितं त्रैष्टुभाद्वा त्रैष्टुभं निरतक्षत। 
यद्वा जगज्जगत्याहितं पदं य इत्तद्विदुस्ते अमृतत्वमानशुः
जो पृथ्वी पर गायत्री छन्द, अन्तरिक्ष में त्रिष्टुप् छन्द और आकाश में जगती छन्द को स्थापित करने वाले को जान लेता है, वह देवताओं को प्राप्त कर लेता है।[ऋग्वेद 1.164.23]
धरा पर गायत्री छन्द, अंतरिक्ष में त्रिष्टुप छंद और अम्बर में जगती छन्द जिसने स्थिर किया, उसे जो जानता है वह देवत्व ग्रहण कर चुका है।
One who knows the Gayatri Chhand over the earth, Trishtup Chhand in the space and Jagti Chhand in the sky attains the demigods-deities. 
गायत्रेण प्रति मिमीते अर्कमर्केण साम त्रैष्टुभेन वाकम्। 
वाकेन वाकं द्विपदा चतुष्पदाक्षरेण मिमते सप्त वाणीः
उन्होंने गायत्री छन्द द्वारा पूजन मंत्र की सृष्टि की, अर्चना मंत्र द्वारा सामवेद को बनाया, त्रिष्टुप् द्वारा यर्जुवाक्यों की रचना की, द्विपाद और चतुष्पाद वचन के द्वारा अनुवाक् तथा अक्षर योजना द्वारा सातों छन्दों की रचना की।[ऋग्वेद 1.164.24]
गायत्री छन्द से जिन्होंने ऋचायें निर्माण की, ऋचाओं में सोम को रचा। त्रिष्टुप छंद से वायु वाक्य बनाया। दो पद और चार पद वाली वाणी से वाक उत्पत्ति की। अक्षर से सातों छन्द निर्मित किये।
They created the Mantr for Puja-prayers with the Gayatri Chhand, created Sam Ved with the Archna Mantr, used Trishtup to generate sentences for Yajur Ved, used Dwipad & Chaturpad to write Anuwak and the alphabet system to write seven Chhand.
जगता सिन्धुं दिव्यस्तभायद्रथंतरे सूर्य पर्यपश्यत्। 
गायत्रस्य समिधस्तित्र आहुस्ततो मह्ना प्र रिरिचे महित्वा
ब्रह्मा जी ने सूर्य देवता के माध्यम से आकाश में जल को स्थित कर दिया। वर्षा के माध्यम से जल सूर्य और पृथ्वी संयुक्त होते हैं। सब सूर्य और धुलोक में सन्निहित प्राण, जल-वृष्टि के द्वारा पृथ्वी पर प्रकट होता है। गायत्री के तीन चरण ब्रह्मा के तेज से ही शक्ति पाते हैं।[ऋग्वेद 1.164.25]
जगती से आकाश में जलों को स्थापित किया। रथंतर सोम में सूर्य को देखा। गायत्री के तीन चरण हैं, अतः वह पराक्रम और महत्व में सबसे बढ़ी हुई है।
Brahma Ji established water through the Sun. Sun and the earth are connected through rains. The souls present in the Sun and the space, appear over the earth through the rains. The three stanzas of Gayatri gets strength-energy from the the energy of Brahma Ji.
उप ह्वये सुदुघां धेनुमेतां सुहस्तो गोधुगुत दोहदेनाम्। 
श्रेष्ठं सवं सविता साविषन्नोऽभीद्धो धर्मस्तदु षु प्र वोचम्
मैं इस दुग्धवती गौ को बुलाता हूँ। दूध दुहने में निपुण व्यक्ति उसे दूहता है। हमारे सोमरस के उत्तम भाग को सविता देव ग्रहण करें, क्योंकि उससे उनका तेज प्रवृद्ध होगा। इसलिए मैं उनका आवाहन करता हूँ।[ऋग्वेद 1.164.26]
मैं इस आसानी से दुही जाने वाली धेनु को बुलाता हूँ। कुशल दोहन कर्त्ता इसे दुहे। सविता हमको उत्साहित करें। मैं उनके तेज के लिए आह्वान करता हूँ।
I call the milch cow. An expert in milking milk her. Let Savita Dev accept the best of our Somras. It will increase his aura-energy. I invite him.
हिङ्कण्वती वसुपत्नी वसूनां वत्समिच्छन्ती मनसाभ्यागात्। 
दुहामश्विभ्यां पयो अध्न्येयं सा वर्धतां महते सौभगाय
धनशाली गाय बछड़े के लिए मन ही मन व्यग्र होकर रँभाती हुई आती है। कभी भी वध न करने योग्य गौ को मानव समुदाय के महान् सौभाग्य की वृद्धि करती हुई प्रचुर मात्रा में दुग्ध प्रदान करती है।[ऋग्वेद 1.164.27]
बछड़े की कामना से रंभाती हुई दुग्धवती गाय हमको प्राप्त हुई। वह अहिंसा के योग्य अश्विनी कुमारों के लिए दूध दे, सौभाग्य लाभ को बढ़ाये।
The cow come mooing for her calf. It never deserve killing being auspicious for the humanity, providing sufficient milk.
गौरमीमेदनु वत्सं मिषन्तं मूर्धानं हिङ्ङकृणोन्मातवा उ। 
सक्काणं घर्ममभि वावशाना मिमाति मायुं पयते पयोभिः
आँखें नीचे किए हुए बछड़े के पास जाकर गौ रम्भाती है। बछड़े के सिर को चाटते हुए वात्सल्य पूर्ण शब्द करती है। उसके मुँह के पास अपने दूध से भरे थनों को ले जाती हुई शब्द करती है। वह दुग्धपान कराते हुए (स्नेह से) शब्द करते हुए (अपने) बछड़े को शान्त करती हैं।[ऋग्वेद 1.164.28]
नेत्र बंद करते हुए बछड़े की पीछे ध्वनि करती हुई गाय बछड़े के मुख को चाटती है। इसके होठों को थन से लगाने कर कामना से वृद्धि करती हुई रम्भाती है। उसके थनों में दूध पूर्ण हो जाता है।
The cow moo, keeping its eyes low, moving to the calf. It licks the head of the calf. Bring its head to her udder. Calms down the calf by feeding him. 
अयं स शिङ्क्ते येन गौरभीवृता मिमाति मायुं ध्वसनावधि श्रिता। 
सा चित्तिभिर्नि हि चकार मर्त्य विद्युद्धवन्ती प्रति वव्रिमौहत
गाय के चारों ओर घूमकर बछड़ा अव्यक्त शब्द करता है और गोचर भूमि पर गाय 'हम्बा' शब्द करती है। गाय पशु ज्ञान द्वारा मनुष्यों को लज्जित करती हैं और द्योतमान् होकर अपना रूप प्रकट करती है।[ऋग्वेद 1.164.29]
बछड़ा निःशब्द गाय के सभी ओर घूमता है। धेनु रंभाती हुई अपनी पशु चेष्टाओं से प्राणी को लजाती है, परन्तु निर्मल दूध देकर उसे प्रसन्न करती है।
The calf roams around the cow quietly. The cows moos. Cow shames the humans due to her sense of recognition.
The calf can recognise her mother out of 1,000 cows and vice versa.
अनच्छये तुरगातु जीवमेजदध्रुवं मध्य आ पस्त्यानाम्। 
जीवो मृतस्य चरति स्वधाभिरमर्त्यो मर्त्येना सयोनिः
श्वास प्रक्रिया द्वारा अस्तित्व में रहने वाला जीव जब शरीर से चला जाता है, तब यह शरीर गृह में निश्चल पड़ा रहता है। मरण शील शरीरों के साथ रहने वाली आत्मा अविनाशी है अर्थात् इसका कभी विनाश नहीं होता। इसलिए अविनाशी आत्मा अपनी धारण करने की शक्तियों से युक्त होकर सभी जगह भ्रमण करती है।[ऋग्वेद 1.164.30]
चंचल चित्त वाला, श्वास परिपूर्ण जीव अपने गृह में अह्निवल रूप से वास करता है। मरण धर्म वालों को अन्न से परिपूर्ण होता हुआ वह अमरजीव स्वधा के भक्षण करता हुआ वास करता है।
Respiration-breathing keep the organism alive. When the soul depart the living being become motionless-dead. The soul which reside in the perishable bodies is immortal-forever. Hence it roams everywhere keeping its powers with it.
 अपश्यं गोपामनिपद्यमानमा च परा च पथिभिश्चरन्तम्। 
स सध्रीचीः स विषूचीर्वसान आ वरीवर्ति भुवनेष्वन्तः
सभी ओर फैलने वाली तेजस्विता को धारित करते हुए समस्त लोकों में विराजित सूर्य देव को हम देखते हैं। समीपस्थ और दूरस्थ मार्गों में गतिमान् सूर्य देव हमेशा गति युक्त रहकर भी कभी नहीं गिरते, क्योंकि वे सम्पूर्ण संसार का संरक्षण करते हैं।[ऋग्वेद 1.164.31]
मैं इन रक्षा करने वाले आदित्य को अंतरिक्ष में गमन करते देखता हूँ। वे किरण युक्त वस्त्रों से आच्छादित हुए सभी लोकों में विचरते हैं।
We watch-observe Sun (Sury Dev) moving around all abodes bearing aura. We never see Sun falling when its either far or close to earth, while speeding up-revolving, it protects the entire universe.
 य ई चकार न सो अस्य वेद य ईं ददर्श हिरुगिन्नु तस्मात्। 
स मातुर्योना परिवीतो अन्तर्बहुप्रजा निॠतिमा विवेश
जिसने जीव को बनाया है, वह भी इसे नहीं जानता, जिसने इसे देखा है, उससे भी यह लुप्त रहता है। मातृयोनि के बीच वेष्टित होकर यह प्रजाओं की उत्पत्ति करता हुआ स्वयं अस्तित्व खो देता है।[ऋग्वेद 1.164.32]
जिसने रचा, वह भी इसे नहीं जानता और जिसने इसे देखा, उससे वह छिपा है। वह मातृ गर्भ से टिका हुआ अधिक प्रजा वाला नाश को पहुँचा है।
He who created the living being, do not know it. It remains hidden from the one who saw it. It looses its identity, stationing it self in the mother's gentles creating the populace.  
द्यौर्मे पिता जनिता नाभिरत्र बन्धुर्मे माता पृथिवी महीयम्। 
उत्तानयोश्चम्वो ३ योनिरन्तरत्रा पिता दुहितुर्गर्भमाधात्
स्वर्ग मेरा पालक और जनक है, पृथ्वी की नाभि मेरा मित्र है और यह विस्तृत पृथ्वी मेरी माता है। आकाश और पृथ्वी के बीच अन्तरिक्ष है। वहाँ पिता (धु) दूरस्थिता (पृथ्वी) का गर्भ उत्पादन करता है।[ऋग्वेद 1.164.33]
अम्बर मेरा पोषणकर्त्ता पिता है, विस्तारित धरा मेरी जननी है, अम्बर-धरा के बीच अंतरिक्ष योनि रूप है, वहाँ पिता गर्भस्थापन करता है।
The heaven is my creator, and nurturer, earth's navel-womb is my friend, this braod earth is my mother. There is space bwetween the earth and the sky. There my father establishes the fetus.
पृच्छामि त्वा परमन्तं पृथिव्याः पृच्छामि यत्र भुवनस्य नाभिः। 
पृच्छामि त्वा वृष्णो अश्वस्य रेतः पृच्छामि वाचः परमं व्योम
मैं आपसे पूछता हूँ, पृथ्वी का अन्त कहाँ है? मैं आपसे पूछता हूँ, संसार की नाभि (उत्पत्ति-स्थान) कहाँ है? मैं आपसे पूछता हूँ, सेचन समर्थ अश्व का रेत क्या हैं? मैं आपसे पूछता हूँ, समस्त वाक्यों का परम स्थान कहाँ है?[ऋग्वेद 1.164.34]
मैं तुमसे धरा का छोर पूछता हूँ। जगत की नाभि कहाँ है? यह जानना चाहता हूँ। अश्व का वीर्य कहाँ है और वाणी का परम स्थान कौन सा है?
I want to know (1). the end-extension of the earth, (2). the origin of the universe, (3). what is the sperm of the horse which is capable of reproduction? I wish to know the ultimate origin of speech (language)? 
इयं वेदिः परो अन्तः पृथिव्या अयं यज्ञो भुवनस्य नाभिः। 
अयं सोमो वृष्णो अश्वस्य रेतो ब्रह्मायं वाचः परमं व्योम
यह वेदी ही पृथ्वी का अन्त है, यह यज्ञ ही संसार की नाभि है, यह सोम ही सेचन समर्थ अश्व  का रेत है और यह ब्रह्मा या ऋत्विक वाक्य का परम स्थान है।[ऋग्वेद 1.164.35]
वेदी धरा का अन्त है। अनुष्ठान संसार की नाभि है, अश्व का वीर्य सोम है। ब्रह्मा वाणी का परम स्थान है।
Vedi (site-place, construction for the Yagy) is the ultimate place over the earth, the Yagy is the nucleus of the earth, the Som-Moon is the seed-sperm and the Brahma (Brahma Ji) is the ultimate speech-truth.
सप्तार्धगर्भा भुवनस्य रेतो विष्णोस्तिष्ठन्ति प्रदिशा विधर्मणि। 
ते धीतिभिर्मनसा ते विपश्चितः परिभुवः परि भवन्ति विश्वतः
सात किरणें आधे वर्ष तक वृष्टि को उत्पन्न करके तथा संसार में वृष्टिदान द्वारा जगत् का सारभूत होकर श्री हरी विष्णु के कार्य में नियुक्त है। वे ज्ञाता और सर्वतोगामी हैं। वे प्रज्ञा द्वारा भीतर ही भीतर सम्पूर्ण संसार को व्याप्त किये हुए हैं।[ऋग्वेद 1.164.36]
लोक के वीर्य रूप सात अर्ध गर्भ विष्णु की आज्ञा से नियमों में रहते हैं। बुद्धि और मन के द्वारा लोक को सभी ओर से घेर लेते हैं।
Seven rays (of light from the Sun) have been posted-appointed with the job of nourishing the entire universe through rains for half of the year, as an extract. They are aware of all directions and are capable of moving every where. They internally pervade the entire universe.
न वि जानामि यदिवेदमस्मि निण्यः संनद्धो मनसा चरामि। 
यदा मागन्प्रथमजा ऋतस्यादिद्वाचो अश्नुवे भागमस्याः
मैं यह हूँ कि नहीं, मैं नहीं जानता; क्योंकि मैं मूर्ख हृदय हूँ, अच्छी तरह आबद्ध होकर पागलों की तरह रहता हूँ। जिस समय ज्ञान का प्रथम उन्मेष होता है, उसी समय मैं वाक्य का अर्थ समझ सकता हूँ।[ऋग्वेद 1.164.37]
मैं नहीं जानता कि मैं क्या हूँ? मेरे मूर्ख और अर्द्ध विक्षिप्त के समान हूँ। जब मुझे ज्ञान का प्रथमांश प्राप्त होता है, तभी मैं किसी वाक्य को समझ पाता हूँ।
Since, I am idiot, I do not know whether I exists or not. I survive like a mad. I am able to understand the meaning of a sentence-statement when the first part of it is clear.
अपाङप्राङेति स्वघया गृभीतोऽमर्त्यो मर्त्येना सयोनिः। 
ता शश्वन्ता विषूचीना वियन्ता न्यन्यं चिक्युर्न नि चिक्युरन्यम्
नित्य अनित्य के साथ एक स्थान पर रहता है; अन्नमय शरीर प्राप्त कर वह कभी अधोदेश और कभी ऊर्ध्वदेश में जाता है। वे सदैव एक साथ रहते हैं, इस संसार में सर्वत्र एक साथ जाते हैं; परलोक में भी सब स्थानों पर एक साथ जाते हैं। संसार इनमें एक को (अनित्य को) पहचान सकता है दूसरे (आत्मा) को नहीं।[ऋग्वेद 1.164.38]
अमर, मरणधर्मा के संग रहता है। अन्नमय शरीर पाकर वह कभी ऊपर कभी नीचे जाता है। ये दोनों विरुद्ध गति वाले हैं। संसार उनमें से एक को पहचानता है, परन्तु दूसरे को नहीं जानता। जीव अमर है और देह मृत हो जाती है, संसार शरीर को तो भली-भाँति जानता है, पर जीव के विषय में असमंजस में पड़ा है। 
Immortal-for ever (soul) lives with the perishable-mortal (body). They mover either up or down after acquiring the body made from the food grains. They move together in the physical world. The world recognises the body but not the soul.
ऋचो अक्षरे परमे व्योमन्यस्मिन्देवा अधि विशे निषेदुः। 
यस्तन्त्र वेद किमृचा करिष्यति य इत्तद्विदुस्त इमे समासते
समस्त देवता महा आकाश के समान मन्त्राक्षरों पर उपवेशन किये हुए हैं, इस बात को जो नहीं जानता, वह ऋचा से क्या करेगा? इस बात को जो जानता है, वह सुख से रहता है।[ऋग्वेद 1.164.39]
ऋचाएँ उच्च स्थान को प्राप्त हैं। सभी देवता उनका सहारा लिए हुए हैं जो इस बात को नहीं जानता वह ऋचा से क्या लाभ उठायेगा? जो इस बात को जानता है वह प्रसन्न रहता है।
All demigods-deities depend over the verses-hymns. One who is unaware of it, has nothing to do with the sacred hymns. One knows it live comfortable. 
सूयवसाद्भगवती हि भूया अथो वयं भगवन्तः स्याम। 
अद्धि तृणमध्ये विश्वदानी पिब शुद्धमुदकमाचरन्ती
हे अहननीया शोभन शस्य गौ! घास आदि का भक्षण कर यथेष्ट दुग्धवती बनें। ऐसा करने पर हम भी प्रभूत धन वाले हो जायेंगे। सदैव घास चरते हुए और सर्वत्र भ्रमण करते हुए निर्मल जल का पान करो।[ऋग्वेद 1.164.40]
हे शेर के अयोग्य सुन्दर भाग्य वाली गौ! तू तृण का सेवन करने वाली है। इनको भी भाग्यशाली बना। तुम घास का भक्षण करती हुई कोमल जल पीने वाली हो। 
Hey grass eating cow! You should become milk yielding having eaten grass and other vegetation. Drink clean water while roaming to eat grass.
गौरीर्मिमाय सलिलानि तक्षत्येकपदी द्विपदी सा चतुष्पदी। 
अष्टापदी नवपदी बभूवुषी सहस्राक्षरा परमे व्योमन्
मेघ निनाद रूपिणी और अन्तरिक्ष विहारिणी वाक, वृष्टि जल की सृष्टि करते हुए शब्द करती है। वह कभी एक पदी, कभी द्विपदी, कभी चतुष्पदी, कभी अष्टपदी और कभी नवपदी होती है। कभी-कभी तो सहस्राक्षर परिमिता होकर, अन्तरिक्ष के ऊपर स्थित होकर शब्द करती है।[ऋग्वेद 1.164.41]
जलों को शिक्षा देने वाली विद्युत ध्वनिवान हुई। वह उन्नत अम्बर में एक, चार, आठ और नौ पदों से हजार अक्षर वाली हुई है।
The electricity (thunder volt) make sounds in the sky generating water. It acquires one, two, four. eight, nine dimensions. Some times it acquire thousand dimensions and generate sound.
तस्याः समुद्रा अधि वि क्षरन्ति तेन जीवन्ति प्रदिशश्चतस्त्रः। 
ततः क्षरत्यक्षरं तद्विश्वमुप जीवति
उसके पास से समस्त मेघ वर्षा करते हैं, उसी से चारों दिशाओं में आश्रित भूतों की रक्षा होती है। उसी से जल उत्पन्न होता है और उसी जल से सारे जीव प्राण धारण करते हैं।[ऋग्वेद 1.164.42]
उसी विद्युत से समुद्र प्रवाहमान है, उससे चारों दिशायें जीवित हैं। उससे बादल जलवृष्टि करते हैं और उसी से संसार प्राणवान है।
That electric spark leads to rains and protects the living beings-species of all kinds. It produces water and the whole world survives due to it.
शकमयं धूममारादपश्यं विषूवता पर एनावरेण। 
उक्षाणं पृश्निमपचन्त वीरास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन्
मैंने पास ही सूखे गोबर से उत्पन्न धूम को देखा। चारों दिशाओं में व्याप्त निकृष्ट धूम के बाद अग्नि को देखा। ऋत्विक् लोग शुक्लवर्ण वृष या फलदाता सोम का पाक करते हैं। उनका यही प्रथम अनुष्ठान है।[ऋग्वेद 1.164.43]
मैंने गोबर से रचित धूमाग्नि को विलम्ब से देखा। चारों दिशाओं में व्याप्त धूम के मध्य अग्नि को देखा। ऋत्विजों ने यहाँ सोम को ग्रहण किया। यह उनका पहला कर्म है।
I witnessed the smoke emerging out of the dry dung. Having seen the smoke spreading in all directions, I saw the fire. Those performing-conducting the Yagy observe the white coloured bull and the Moon, initially. Its their first -effort-endeavour.  
त्रयः केशिन ऋतुथा वि चक्षते संवत्सरे वपत एक एषाम्। 
विश्वमेको अभि चष्टे शचीर्भिध्राजिरेकस्य ददृशे न रूपम्
केशयुक्त तीन व्यक्ति (अग्नि, आदित्य, वायु) वर्ष के बीच यथा समय भूमि का परिदर्शन करते हैं। उनमें एक जन-व्यक्ति पृथ्वी का क्षौर कर्म करते हैं, दूसरे अपने कार्य द्वारा परिदर्शन करते हैं और तीसरे का रूप नहीं देखा जाता, केवल गति देखी जाती है।[ऋग्वेद 1.164.44]
क्षौर कर्म  :: केश, दाढ़ी-मूँछ और नखों को कतर कर देह को सजाना क्षौरकर्म के अंतर्गत आता है। व्रत के लिए इसका विधान है। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार व्रत, उपासना, श्राद्ध आदि में जो क्षौरकर्म नहीं करता, वह अपवित्र बना रहता है।
भोजन के उपरांत क्षौर का निषेध है, पर व्रत और तीर्थ में यह निषेध नहीं माना जाता।
ऐसा मानते हैं कि रविवार को क्षौर कर्म दुःखदायी, सोमवार को सुख, मङ्गल को मृत्यु, बुध को  धन, बृहस्पति को मान हनन, शुक्र को शुक्राणुओं का क्षय, शनिवार को समस्त दोष उत्पन्न करता है।  
केशयुक्त तीन देवता नियम क्रम से दर्शन देते हैं। एक वर्ष में होता है, एक बलों से संसार को देखता है और एक का रूप दिखाई नहीं पड़ता है, केवल वेग ही दिखाई पड़ता है। (यहाँ सूर्य, अग्नि और वायु से अभिप्राय है।)
Three demigods-deities watches-observe the earth sequentially throughout the year. One of them trims the earth's unwanted growths, second shows the way, the third can not be observed-seen, only its speed can be experienced.
चत्वारि वाक्परिमिता पदानि तानि विदुर्ब्राह्मणा ये मनीषिणः। 
गुहा त्रीणि निहिता नेङ्गयन्ति तुरीयं वाचो मनुष्या वदन्ति
"वाक्" चार प्रकार की मेधावी योगी उसे जानते हैं। उसमें तीन गुहा में निहित हैं, प्रकट नहीं हैं। चौथे प्रकार की वाक् मनुष्य बोलते हैं।[ऋग्वेद 1.164.45] 
वाणी विद्वान उसके ज्ञाता हैं। उसके तीन पद अज्ञात हैं और चौथे पद को मनुष्य बोलते हैं।
The four dimensions of speech-expression are understood by four kinds of Yogis. Three of them are hidden within. Only the fourth type of humans can speak.
इन्द्रं मित्रं वरुणमग्निमाहुरथो दिव्यः स सुपर्णो गरुत्मान्। 
एकं सद्विप्रा बहुधा वदन्त्यग्निं यमं मातरिश्वानमाहुः
मेधावी लोग इन आदित्य को इन्द्र, मित्र, वरुण और अग्नि कहा करते हैं। ये स्वर्गीय, पक्षवाले (गरुड़) और सुन्दर गमन वाले हैं। ये एक हैं, तो भी इन्हें अनेक कहा गया है। इन्हें अग्नि, यम और मातरिश्वा भी कहा जाता है।[ऋग्वेद 1.164.46]
उसे इन्द्र, सखा या वरुण कहते हैं। वही क्षितिज में सूर्य है। अग्नि, यम और मातरिश्वा है। मेधावी जन एक ब्रह्मा का असंख्य रूप में वर्णन करते हैं। 
The prudent identify Aditya as Indr, Mitr, Varun and Agni. He is Sun at the horizon. He is Garud the winged, moving beautifully. He is termed as Agni, Yam & Matrishwa as well. 
कृष्णं नियानं हरयः सुपर्णा अपो वसाना दिवमुत्पतन्ति। 
त आववृत्रन्त्सदना दृतस्यादिद्घृतेन पृथिवी व्युद्यते
सुन्दर गति वाली और जल हारिणी सूर्य किरणें कृष्ण वर्ण और नियंत गति मेघ को जल पूर्ण करते हुए धुलोक में गमन करती हैं। वह वृष्टि के स्थान से नीचे आती हैं और पृथ्वी को जल से अच्छी तरह भिगोती हैं।[ऋग्वेद 1.164.47]
काले मेघ रूपी घोंसले में किरण रूपी सुनहरे पक्षी जल को प्रेरित करते हुए नभ में उड़ते हैं। जब वे आकाश से लौटते हैं, तब धरती जल से भीग जाती है। The beautifully moving rays of Sun, sucks the water and turn it into black clouds and let it roam in the sky. These clouds come down to rain and drench the earth with water.
द्वादश प्रधयश्चक्रमेकं त्रीणि नभ्यानि क उ तच्चिकेत। 
तस्मिन्त्साकं त्रिशता न शङ्कवोऽर्पिताः षष्टिर्न चलाचलासः
बारह परिधियाँ (रश्मियाँ), एक चन्द्र (वर्ष) और तीन नाभियाँ हैं। यह बात कौन जानता है? इस चन्द्र (वर्ष) में तीन सौ साठ खूँटे हैं।[ऋग्वेद 1.164.48]
जिसके बारह घेरे, एक चक्र और तीन नाभियाँ हैं, उस रथ का ज्ञाता कौन है? उसमें तीन सौ आठ मेखें ठुकी हुई हैं। वे कभी ढीली नहीं होती। (इसका आशय वर्ष और उसके दिनों की सँख्या से है।)
It has twelve perimeters (months), one Moon (year) and three nuclei (three main seasons-summer, winter and rains). The Moon has 360 pegs.
यस्ते स्तनः शशयो यो मयोभूर्येन विश्वा पुष्यसि वार्याणि। 
यो रत्नधा वसुविद्यः सुदत्रः सरस्वति तमिह धातवे कः
हे सरस्वती! आपके शरीर में रहने वाला जो गुण संसार के सुख का कारण है, जिससे सारे वरणीय धनों की आप रक्षा करती हैं, जो गुण बहुरत्नों का आधार है, जो समस्त धन प्राप्त किये हुए हैं और जो कल्याणवाही है, इस समय हमारे पान के लिए उसे प्रकट करें।[ऋग्वेद 1.164.49]
हे सरस्वती! तुम्हारी देहस्थ गुण सुखदायक और वरणीय वस्तुओं के पोषक है। रत्नधारा और दानशील है। उसे हमारी ओर प्रेरित करो।
Hey Saraswati! Let the excellence present in you, which is the source of all comforts-pleasure & protect all amenities, be granted-gifted to us. Its the source of qualities and develop-grow the tendency of charity in us. 
यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन्। 
ते ह नाकं महिमानः सचन्त यत्र पूर्वे साध्याः सन्ति देवाः
यजमानों ने अग्नि द्वारा यज्ञ किया है, क्योंकि वही प्रथम धर्म है। वह माहात्म्य आकाश में एकत्रित है, जहाँ पहले से ही साधना करने वाले देवता निवास करते हैं।[ऋग्वेद 1.164.50]
यजमानों ने अग्नि से अनुष्ठान किया। वही प्रथम धर्म था। वे कर्मवान अपने महत्व से स्वर्ग के निकट वहीं साध्य देव वास करते हैं।
The hosts, households, devotees performed Yagy with Agni-fire, since that is first Dharm-duty. The excellence-piousness of that is stored in the sky-heavens, where the demigods-deities reside.
समानमेतदुदकमुच्चैत्यव चाहभिः। 
भूमिं पर्जन्या जिन्वन्ति दिवं जिन्वन्त्यग्नयः
जल एक ही तरह का है, कभी ऊपर और कभी नीचे जाता आता है। प्रसन्नता देने वाले बादल भूमि को प्रसन्न करते हैं तथा अग्निदेव द्युलोक को प्रसन्न करते हैं।[ऋग्वेद 1.164.51]
जल का एक ही रूप है जो कभी ऊपर जाता है और कभी नीचे आता है।
Water has just one form, which keeps on moving up & down.
Ice, clouds, frost, fog, snow are physical states of water. Chemically its composed of hydrogen (two atoms) and oxygen (one atom).
दिव्यं सुपर्णं वायसं बृहन्तमपां गर्भं दर्शतमोषधीनाम्। 
अभीपतो वृष्टिभिस्तर्पयन्तं सरस्वन्तमवसे जोहवीमि
सूर्यदेव स्वर्गीय सुन्दर गति वाले, गमनशील, प्रकाण्ड जल के गर्भोत्पादक और ओषधियों के प्रकाशक हैं। वे वर्षा के जल द्वारा जलाशय को पूर्ण और नदी को पालित करते हैं। रक्षा के लिए हम उनका आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 1.164.52]
मेघ वर्षा द्वारा धरती को तृप्त करता है और अग्नियाँ नभ को प्रसन्न करती हैं। जलों और औषधियों के कारण भूत सम्मुख प्राप्त हुए स्तोताओं के लिए मैं वर्षा द्वारा तृप्त करता हूँ।
Sun moves with the beautiful speed of the heavens, produces water and grows medicines as well.
Its observed that continuity is lost in one after another Shlok-hymn, which indicate that the missing Shloks are not available.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (165) ::  ऋषि :- अगस्त्य, देवता :- इन्द्रादि, छन्द :- त्रिष्टुप्।
कया शुभा सवयसः सनीळाः समान्या मरुतः सं मिमिक्षुः। 
कया मती कुत एतास एतेऽर्चन्ति शुष्मं वृषणो वसूया
समान वयस्क और एक स्थान निवासी मरुद्गण सर्वसाधारण की दुर्जेय शोभा से युक्त होकर पृथ्वी पर सिञ्चन करते हैं। मन में क्या सोचकर वे किस देश से आये हैं? आकर जल वर्षीय गण धन लाभ की कामना से क्या बल की अर्चना करते है?[ऋग्वेद 1.165.1]
इन्द्र समव्यस्क और बराबर स्थान वाले मरुद्गण तुल्य शोभा से परिपूर्ण हैं। ये किस मत में, किस देश से पधारे हैं? क्या वे पराक्रमी धन लाभ की कामना से शक्ति की अर्चना करते हैं।
Marud Gan of the same age, live together at one place (in Marut Lok) and cause rains-showers to nurse the earth. Where have they come from with plans & programmes? Do they want to have wealth-riches & strength 
कस्य ब्रह्माणि जुजुषुर्युवानः को अध्वरे मरुत आ ववर्त। 
श्येनाँइव ध्रजतो अन्तरिक्षे केन महा मनसा रीरमाम
तरुण वयस्क मरुद्गण किसका हव्य ग्रहण करते हैं? वे अन्तरिक्षचारी श्येन पक्षी की तरह है। यज्ञ से उन्हें कौन हटा सकता है? किस प्रकार के महास्तोत्रों द्वारा हम उन्हें आनन्दित करें?[ऋग्वेद 1.165.2]
तरुण मरुद्गण किसकी हवियाँ प्राप्त करते हैं? उनको यज्ञ में कौन हटा सकता है? अंतरिक्ष में भ्रमण करने वाले बाज पक्षी के तुल्य इन मरुतों को किस महान श्लोक से पूजन करें।
How do the young Marud Gan accept the offerings? They are like the Shyen bird flying in the sky. Who can replace in the Yagy? With which Strotr-hymns we please them-make them happy?
कुतस्त्वमिन्द्र माहिनः सन्नेको यासि सत्पते किं त इत्था। 
सं पृच्छसे समराणः शुभानैर्वोचेस्तन्नो हरिवो यत्ते अस्मे 
हे साधु पालक और पूज्य इन्द्रेव! आप अकेले कहाँ जा रहे हैं? आप क्या ऐसे ही हैं? हमारे साथ मिलकर आपने ठीक ही पूछा है। हे हरि वाहन! हमारे लिए जो वक्तव्य है, वह मीठे वचनों से कहें।[ऋग्वेद 1.165.3]
हे श्रेष्ठ कर्मवालों का पालन करने वाले इन्द्र! तुम स्वयं कहाँ जाते हो? तुम्हारा अभिष्ट क्या है? हे शोभनीय! तुम सबकी बात पूछते हो, हमसे जो कहना चाहो, कहो।
Hey virtuous, pious, righteous people's supporter Indr Dev! Where are going alone? What is your aim-goal, target? You should guide us-tell us what to do.
ब्रह्माणि मे मतयः शं सुतासः शुष्म इयर्ति प्रभृतो मे अद्रिः। 
आ शासते प्रति हर्यन्त्युक्थेमा हरी वहतस्ता नो अच्छ
समस्त हव्य मेरा है, सभी स्तुतियाँ मेरे लिए सुखकर है, प्रस्तुत सोमरस मेरा है। मेरा दृढ़ वज्र शत्रुओं पर फेंके जाने पर व्यर्थ नहीं होता। यजमान लोग मेरी ही प्रार्थना करते हैं, स्तुतियाँ मेरी प्रशंसा करती हुई मेरी ओर आती हैं। ये हरि नाम के दोनों घोड़े हव्य लाभ के लिए मेरा ही वहन करते हैं। ऐसा इन्द्रदेव का कथन है।[ऋग्वेद 1.165.4]
इन्द्र :- ये वंदनायें और निष्पक्ष सोम मुझे सुख प्रदान करते हैं। मेरा दृढ़ वज्र शत्रुओं पर व्यर्थ नहीं जाता। मनुष्य मेरी अर्चना करते और उनके श्लोक मुझे ग्रहण होते ये दोनों घोड़े मुझे ले जाते हैं।
Dev Raj Indr says that the entire offerings belong to me, all prayers-wishes gives pleasure to me. Som Ras is offered to me is mine. Thunder volt targeted by me over the enemy never mis the target. The hosts-priests pray to me. Prayers, Strotr come to me praying me. These two horses named Hari, carry the offerings made to me. 
अतो वयमन्तमेभिर्युजानाः स्वक्षत्रेभिस्तन्वः शुम्भमानाः। 
महोभिरेताँ उप युज्महे न्विन्द्र स्वधामनु हि नो बभूथ
हे इन्द्रदेव! हम महातेज से अपने शरीर को अलंकृत करके, निकटवर्ती और बली अश्वों से युक्त होकर यज्ञस्थान में जाने के लिए शीघ्र ही तैयार हुए हैं। आप बल के संग हमारे साथ ही रहें।[ऋग्वेद 1.165.5]
मरुद्गण :- हे इन्द्र! समीप रहने वालों के समान हम अपनी शक्ति से शरीरों को ससज्जित करते हैं। अपने पराक्रम से इन घोड़ों को रथ में जोतते हैं। तुम हमारे स्वभाव को जानते हो।
Marud Gan said, "We have contained extreme aura-radience in our body, to move to the nearest place of Yagy, readied the horses with valour. You are aware of our might".
क स्या वो मरुतः स्वधासीद्यन्मामेकं समधत्ताहिहत्ये।
अहं ह्युग्रस्तविषस्तुविष्मा न्विश्वस्य शत्रोरनमं वधस्नैः
हे मरुद्गणों! आपका वह बल कहाँ था, जिसे आपने वृत्रासुर के वध के समय अकेले मुझ में स्थापित किया था? मैं (इन्द्र) स्वयं ही शक्तिशाली, बलवान् और शूरवीर हूँ, मैंने अपने वद्र द्वारा कठोर से कठोर शत्रुओं को भी झुकने के लिए बाध्य कर दिया।[ऋग्वेद 1.165.6]
इन्द्र :- हे मरुद्गण! वृत्र वध के कार्य में तुमने मुझे अकेले ही लगाया। तब तुम्हारा पूर्वत स्वभाव कहाँ था? मैं विकराल बलिष्ठ और दुर्जय हूँ। मैंने अपने शत्रुओं पर वज्र से विजय प्राप्त कर ली।
Hey Marud Gan! You empowered me with your power & might when I killed Vrata Sur. I posses power, strength & valour. I have to defeat the worst possible enemies with my Vajr-Thunder Volt.
भूरि चकर्थ युज्येभिरस्मे समानेभिर्वृषभ पौंस्येभिः। 
भूरीणि हि कृणवामा शविष्ठेन्द्र क्रत्वा मरुतो यद्वशाम॥
हे अभीष्ट वर्षी इन्द्रदेव! हम एक तुल्य पौरुषवाले हैं। हमारे साथ मिलकर आपने बहुत कुछ किया है। हे बलवत्तम इन्द्रदेव! हमने भी बहुत कार्य किये हैं। हम मरुत हैं, इसलिए कार्य द्वारा हम वर्षा आदि की कामना करते हैं।[ऋग्वेद 1.165.7]
मरुद :- हे वीर! तुमने हमारे सहित मिलकर बहुत वीर कर्म किया है। हे महाबली इन्द्र! हम मरुद्गण भी अपने मनोबल से जो चाहें कर सकते हैं।
Hey boons-accomplishment granting Indr Dev! We possess same level of valour-might. We have accomplished several feats-deeds together. Hey mighty Indr Dev! We too accomplished many feats. We are Marud Gan, hence we desire for rain showers.
वधीं वृत्रं मरुत इन्द्रियेण स्वेन भामेन तविषो बभूवान्। 
अहमेता मनवे विश्वश्चन्द्राः सुगा अपश्चकर वज्रबाहुः
हे मरुतो! मैंने क्रोध के समय विशाल पराक्रमी बनकर अपने बाहुबल से वृत्रासुर को पराजित किया। मैं वज्रबाहु हूँ। मैं मनुष्यों के लिए व सबकी प्रसन्नता के लिए सुन्दर वर्षा किया करता हूँ।[ऋग्वेद 1.165.8]
इन्द्र :- हे मरुतो! मैंने अपने क्रोध से, पराक्रम से वृत्र का वध किया। मैंने ही वज्र धारण कर, प्राणियों के लिए जल-वर्षा की।
Hey Marud Gan! I turned into a great warrior due to anger and defeated Vrata Sur with my muscle power. I am Vajr Bahu (one who's arms made of thunder volt). I shower rains for the appeasement of humans and all others.
अनुत्तमा ते मघवन्नकिर्नु न त्वावँ अस्ति देवता विदानः। 
न जायमानो नशते न जातो यानि करिष्या कृणुहि प्रवृद्ध॥
हे इन्द्रदेव! आपका सभी कर्म उत्तम है। आपके समान कोई देवता विद्वान् नहीं है। हे अतीव बलशाली इन्द्रदेव! आपने जो कर्त्तव्य कर्मों को किया हैं, उन्हें न तो कोई पहले कर सका, न आगे कर सकेगा।[ऋग्वेद 1.165.9]
मरुद :- हे समृद्धि शालिन! हे इन्द्रदेव! तुमसे बढ़कर कोई धनवान नहीं है। तुम्हारे तुल्य कोई विख्यात देव नहीं है। तुम्हारे कार्यों की समानता न कोई पूर्व में कर सका और न ही अब कर सकता है।
Hey Indr Dev! All your deeds-functions are superb-excellent. None of the demigods-deities matches you, in terms of knowledge-enlightenment. Hey extremely powerful Indr Dev! The deeds accomplished by you are unmatched and none will be able to achieve that in future.
एकस्य चिन्मे विभ्वस्त्वोजो या नु दधृष्वान्कृणवै मनीषा। 
अहं ह्युग्रो मरुतो यानि च्यवमिन्द्र इदीश एषाम्
मैं अकेला हूँ। मेरा ही बल सर्वत्र व्याप्त है; मैं जो चाहूँ, तत्काल कर सकता हूँ; क्योंकि हे मरुतो! मैं उग्र और विद्वान् हूँ एवं जिन धनों का मुझे पता है, उनका मैं ही स्वामी हूँ।[ऋग्वेद 1.165.10]
इन्द्र :- हे मरुद गण! एक मेरा बल ही फैला हुआ रहता है। मैं अत्यन्त बुद्धिमान और प्रसिद्ध उग्रकर्मा हूँ। मैं जो चाहूँ वही करने में सक्षम हूँ, जो धन संसार में है, उसका मैं दाता हूँ।
I am alone. My power pervades all around and I am capable of doing the desired immediately-at once. Hey Marud Gan! I am furious and enlightened. I am the master of entire wealth known to me. 
अमन्दन्मा मरुतः स्तोमो अत्र यन्मे नरः श्रुत्यं ब्रह्म चक्र। 
इन्द्राय वृष्णे सुमखाय मह्यं सख्ये सखायस्तन्वे तनूभिः
हे मरुतो! इस सम्बन्ध में आपने मेरा जो प्रसिद्ध स्तोत्र किया है, वह मुझे आनन्दित करता है। मैं अभीष्ट फलदाता, ऐश्वर्यशाली, विभिन्न रूपों वाला और आपके योग्य मित्र हूँ।[ऋग्वेद 1.165.11] 
इन्द्रदेव :- हे मरुतो! तुम्हारे श्लोक से मैं आनंदित हुआ। वह श्लोक तुमने  मुझे मानकर रचा है। मैं तुम्हारा सखा अभीष्ट फल प्रदान करने वाला हूँ। 
Hey Marud Gan! You have composed a famous hymn devoted to me, which amuses me. I grant the desired boons-accomplishments, capable of possessing different-various forms and your friend.
एवेदेते प्रति मा रोचमाना अनेद्यः श्रव एषो दधानाः।
संचक्ष्या मरुतश्चन्द्रवर्णा अच्छान्त मे छदयाथा च नूनम्
हे मरुतो! आप सोने के रंग के हैं। मेरे लिए प्रसन्न होकर दूरस्थ कीर्ति और अन्न धारण करते हुए मुझे अच्छी तरह से प्रकाश और तेज द्वारा आच्छादित करें।[ऋग्वेद 1.165.12]
इन्द्रदेव :- हे मरुतो तुमने अनिद्य कीर्ति और महान शक्तियों को धारण कर मेरे लिए प्रकट होकर आनंदित किया। मैं अब भी तुम्हारे कार्यों से प्रसन्नचित्त हूँ।
Hey Marud Gan! You body possess golden hue-colour. On being happy-delighted, you granted long lasting fame to me and covered me bright light-aura.
को न्वत्र मरुतो मामहे वः प्र यातन सखींरच्छा सखायः। 
मन्मानि चित्रा अपिवातयन्त एषां भूत नवेदा म ऋतानाम्
हे मरुतो! कौन मनुष्य आपकी पूजा करता है? आप सबके मित्र हैं। आप यजमान के सामने आवें। हे मरुतो! आप दिव्य धन की प्राप्ति के उपायभूत बनें और सत्य कर्म को जानें।[ऋग्वेद 1.165.13]
अगस्त्य :- हे मरुतो! यहाँ कौन तुम्हारी वंदना करता है? तुम सबके सखा हो। अपने मित्र उपासक के समीप जाओ। तुम श्रेष्ठ धनों की प्राप्ति में कारणभूत बनते हुए कर्मों की प्रेरणा करो। 
Hey Marud Gan! Who worships you here? You are friendly with everyone. You should come face to face with the hosts. Hey Marud Gan! You should become cause-means for attaining the divine wealth  and discover the truth.
आ यद्दुवस्याद्दुवसे न कारुरस्माञ्चक्रे मान्यस्य मेधा। 
ओ षु वर्त्त मरुतो विप्रमच्छेमा ब्रह्माणि जरिता वो अर्चत्
हे मरुतो! स्तोत्र द्वारा परिचरण समर्थ, स्तुति कुशल और मान्य ऋत्विक् की बुद्धि आपकी सेवा के लिए हमारे सामने आती है। हे मरुतो! मैं मेधावी हूँ। मेरे सामने आवें। आपके प्रसिद्ध कर्म को लक्ष्य कर स्तोता आपका पूजन करते है।[ऋग्वेद 1.165.14]
सेवा करने वाले से हर्षित होकर पारितोषिक देने के तुल्य इन्द्र देव ने मुझे कवित्व प्रदान किया है। हे मरुदगण! तुम प्रार्थनाकर्त्ता के सम्मुख पधारो।
Hey Marud Gan! The Ritviz-hosts conducting Yagy-prayers come to us for worship. Hey Marud Gan ! I am genius. Come to me. The devotees pray to you for your divine functions.
एष वः स्तोमो मरुत इयं गीर्मान्दार्यस्य मान्यस्य कारोः। 
एषा यासीष्ट तन्वे वयां विद्यामेषं वृजनं जीरदानुम्
हे मरुतो! यह स्तोत्र और यह स्तुति माननीय और प्रसन्नतादायक है। यह शरीर पुष्टि के लिए आपके पास जाती है। हम अन्न, बल और दीर्घ आयु अथवा विजय, शील और दान प्राप्त करें।[ऋग्वेद 1.165.15] 
हे मरुद्गण! मान पुत्र मान्दार्य कवि का यह श्लोक तुम्हारे लिए हो। तुम मेरे शरीर को बल प्रदान करने के लिए अन्न से परिपूर्ण प्रस्थान करो। हम अन्न, शक्ति और दान मति को ग्रहण करें।
Hey Marud Gan! Let this hymn by the poet Mandary, son of Man be pleasing to you. Let us attain donations, food grains, might-power, longevity, victory and modesty-piety.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (166) ::  ऋषि :- मैत्र, वरुण, अगस्त्य, देवता :- मरुत्, छन्द :- जगती, त्रिष्टुप्।
तन्नु वोचाम रभसाय जन्मने पूर्व महित्वं वृषभस्य केतवे। 
ऐधेव यामन्मरुत स्तुविष्वणो युधेव शक्रास्तविषाणि कर्तन
फलवर्षक् यज्ञ के सुसम्पादन के लिए मरुतों के शीघ्र आकर उपस्थित होने के लिए उनके प्रसिद्ध प्रर्वतन महात्म्य को कहता हूँ। हे विशाल ध्वनि से युक्त और सब कार्यों में समर्थ मरुद्गण! आपके यज्ञस्थल में जाने के लिए प्रस्तुत होने पर जैसे समिधा तेज से आवृत होती है, वैसे ही आप लोग युद्ध में जाने के लिए प्रभूत बल धारण करते हैं।[ऋग्वेद 1.166.1]
हे श्रेष्ठ गर्जनशील मरुतो! तुम इन्द्रदेव के ध्वज रूप एवं वेगवान गण हो। हम तुम्हारे पुरातन महत्व को बताते हैं। हे समर्थ! तुम तेजवन्त हुए योद्धाओं के समान पराक्रमी कर्म करते हो। 
I am narrating the glory of the Maruts to come quickly to accomplish the Yagy. Hey Marud Gan! You are accompanied with loud sounds-thunder and are capable of carrying out great deeds. When you prepare to depart for the war the Samidha-wood for the Yagy is ignited and you depart for the war-battle.
नित्यं न सूनुं मधु बिभ्रत उप क्रीळन्ति क्रीळा विदथेषु घृष्वयः। 
नक्षन्ति रुद्रा अवसा नमस्विनं न मर्धन्ति स्वतवसो हविष्कृतम्
औरस पुत्र की तरह प्रिय मधुर हव्य धारण करके घर्षणकारी मरुद्गण प्रसन्न चित्त से यज्ञ में क्रीड़ा किया करते हैं। विनीत यजमान की रक्षा के लिए रुद्रगण मिलते हैं। उनका बल उनके अधीन हैं, वे कभी यजमान को कष्ट नहीं देते।[ऋग्वेद 1.166.2]
द्वन्द्व में शत्रुओं का घर्षण करने वाले, शिशु के समान मधुर क्रीड़ा परिपूर्ण इन्द्रपुत्र मरुद्गण नमस्कार करने वाले की सुरक्षा करते हैं, वे हविदाता को दुःखी नहीं होने देते। 
The thunderous Marud Gan accept the lovely & sweet offerings and enjoy in the Yagy happily. The Rudr Gan too come to protect the polite performer of the Yagy. Their power, strength & might is under their control and they never trouble-tease the hosts. 
यस्मा ऊमासो अमृता अरासत रायस्पोषं च हविषा ददाशुषे। 
उक्षन्त्यस्मै मरुतो हिताइव पुरू रजांसि पयसा मयोभुवः
जिस हवि देने वाले यजमान की आहुति से प्रसन्न होकर सर्वरक्षक, अमर और सुखोत्पादक मरुद्गण यथेष्ट धन देते हैं, उसी यजमान के हितकारी मित्र की तरह आप लोग समस्त संसार की उपजाऊ भूमि को जल से अच्छी तरह सींचते हैं।[ऋग्वेद 1.166.3]
मृत्यु से रक्षा करने वाले मरुद्गण हवि दाता को अत्यन्त धन प्रदान करते हो। उसके प्रदेश को, मित्रों को समवर्षा से सींचते हो।
The immortal Marud Gan, who protect every one, provide sufficient wealth to the host on being happy, leading to comforts. They irrigate the soil to make it fertile like a beneficial friend.
आ ये रजांसि तविषीभिरव्यत प्र व एवासः स्वयतासो अध्रजन्। 
भयन्ते व विश्वा भुवनानि हर्म्या चित्रो वो यामः प्रयतास्वृष्टिषु
हे मरुतो! आपके अश्वगण अपने बल से सारे संसार का भ्रमण करते हैं, वे अपने ही रथ पर आरुढ़ होकर जाते हैं। आपकी यात्रा अत्यन्त आश्चर्यमयी है। हथियार उठाने पर जैसे लोग संसार में भयभीत होते हैं, उसी तरह समस्त भुवन और अट्टालिकायें आपके यात्रा काल में भयभीत होती है।[ऋग्वेद 1.166.4]
हे मरुद्गण! तुमने अपने पराक्रम से देशों का भ्रमण किया है। तुम्हारे वाहन आगे उड़ते हैं। तब सभी लोक काँप जाते हैं। जैसे हथियार उठाकर चलने वाले वीर को देखकर सभी कंपित होते हैं, वैसे ही यह भवन तुम्हारे वेग से काँपते हैं।
Hey Marud Gan! Your horses travel around the world, with their might-power over their charoite. Your journey is amazing. The manner in which the populace-world become afraid over raising of arms-weapons, the huge-tall buildings become afraid (tremble).
यत्त्वेषयामा नदयन्त पर्वतान्दिवो वा पृष्ठं नर्या अचुच्यवुः। 
विश्वो वो अज्मन्भयते वनस्पती रथीयन्तीव प्र जिहीत ओषधिः
मरुतों का गमन अत्यन्त प्रदीप्त है। वे जिस समय पर्वतों-गह्वरों को ध्वनित करते अथवा मनुष्यों के हित के लिए अन्तरिक्ष के ऊपरी भाग में चढ़ते हैं, उस समय उनके पथ के समस्त विरोधी भयभीत हो जाते और रथ पर बैठी हुई स्त्री की तरह औषधियाँ एक स्थान से दूसरे स्थान पर चली जाती हैं।[ऋग्वेद 1.166.5]
हे मरुतो! तुम तेजवान, गतिमान मनुष्यों के हितकारी और पर्वतों को गुंजायमान करने वाले हो। तुम अम्बर की पीठ कम्पायमान करते हो। तुम्हारे डर से वृक्ष, रथ पर चढ़ी हुई नारी के तुल्य, इधर से उधर हिलते हैं।
Hey Marud Gan! Your movements are stunning but useful to the living beings. Your vibrate-create ripples in the sky. The trees start shaking like the woman riding a charoite.
यूयं न उग्रा मरुतः सुचेतुनारिष्टग्रामाः सुमतिं पिपर्तन। 
यत्रा वो दिद्युद्रदति क्रिविर्दती रिणाति पश्व: सुधितेव बर्हणा
हे उग्र मरुतो! सद्बुद्धि के साथ आप लोग अहिंसक होकर हमें सदबुद्धि प्रदान करें। जिस समय आपकी क्षेपणशील और दन्तविशिष्ट विद्युत् दर्शन करती हैं, उस समय आप शत्रु सेना का संहार करते हुए हिंसक पशुओं का भी वध कर देते हैं।[ऋग्वेद 1.166.6]
हे विकराल मरुतो! हमारे कल्याण की कामना से अपनी बुद्धि को दया की ओर प्रेरित करें। जब तुम्हारी बिजली रूप तलवार चमकती है, तब वह बर्धी के सामान जन्तुओं का विनाश करती है। 
Hey furious Marud Gan! You should grant us virtues. When lightening appears, it destroys-kills the predatory animals and the enemy armies.
प्र स्कम्भदेष्णा अनवभ्रराधसोऽलातृणासो विदथेषु सुष्टुताः। 
अर्चन्त्यर्कं मदिरस्य पीतये विदुर्वीरस्य प्रथमानि पौंस्या
जिनका दान अविरत है, जिनका धन भ्रंश रहित है, जिनका शत्रु वध पर्याप्त है और जिनकी स्तुति सुगीत है, वे मरुद्गण सोमरस पाने के लिए स्तुति करते हैं, क्योंकि वे लोग ही इन्द्रदेव की प्रथम वीर कीर्त्ति को जानते हैं।[ऋग्वेद 1.166.7]
जिनका दिया हुआ धन स्थिर है, वे मरुद्गण सोम के लिए इन्द्र की प्रशंसा करते हुए उनकी शक्ति और मेरे कर्मों को जानने वाले हैं।
The Marud Gan pray to Dev Raj Indr for having Somras. Their donations are continuous and wealth is imperishable. They are synonym to the death of the enemy. They are aware of the glory, fame of Dev Raj Indr.
शतभुजिभिस्तमभिह्रुतेरघात्पूर्भी रक्षता मरुतो यमावत। 
जनं यमुग्रास्तवसो विरप्शिन: पाथना शंसात्तनयस्य पुष्टिषु
हे मरुतो! आपने जिस व्यक्ति को कुटिल पाप से बचाया है, हे उग्र और बलवान् मरुद्गण! आपने जिस मनुष्य को पुत्रादि पुष्टि साधन द्वारा निन्दा से बचाया है, उसे असंख्य योग्य वस्तुओं द्वारा प्रति पालित करें।[ऋग्वेद 1.166.8]
हे विकराल कार्य शक्ति वाले मरुद्गण! तुमने जिस पर कृपा दृष्टि की है उसे तुम अनेकों घातों से बचाते हो और उसकी पुत्र आदि साधन द्वारा सुरक्षा करते हो।
Hey furious and mighty Marud Gan! You are a saviour-protector of the humans. You save-restrain them from sins, protect their sons. You save them from defame and support them by granting them unlimited useful commodities.
विश्वानि भद्रा मरुतो रथेषु वो मिथस्पृध्येव तविषाण्याहिता। 
अंसेष्वा वः प्रपषेषु खादयोऽक्षो वश्चक्रा समया वि वावृते
हे मरुतो! समस्त कल्याण देने वाले पदार्थ आपके रथ पर स्थापित है। आपके स्कन्ध देश में परस्पर स्पर्द्धा वाले आयुध है। आपके लिए विश्राम स्थान पर भोजन तैयार है। आपके सारे चक्र अक्ष के पास भ्रमण करते हैं।[ऋग्वेद 1.166.9]
हे मरुद्गण! सभी कल्याण, समस्त शक्ति तुम्हारे रथ पर स्थापित है तुम्हारे कंधे पर स्पर्धा से परिपूर्ण आयुध रहते हैं। तुम्हारा धुरा दोनों पहियों को सही ढंग से भ्रमण कराता है।
Hey Marud Gan! All means of luxury, welfare are present-available over your charoite. Weapons-arms & ammunition for all sorts of fight are present over your shoulders. Food is ready at the place of your rest. All your cycles move around the axles of the charoite.
भूरीणि भद्रा नर्येषु बाहुषु वक्षःसु रुक्मा रभसासो अञ्जयः। 
अंसेष्वेताः पविषु क्षुरा अधि वयो न पक्षान्व्यनु श्रियो घिरे
मनुष्यों की हितकारिणी भुजाओं पर मरुद्गण अनन्त कल्याण साधक द्रव्य धारण करते हैं, वक्षः स्थल में कान्ति युक्त और सुन्दर रूप संयुक्त सोने के आभूषण धारण करते हैं। स्कन्ध देश में श्वेत वर्ण की माला धारण करते हैं। वज्र सदृश आयुध पर क्षुर धारण करते हैं। जिस प्रकार से पक्षी पंख धारण करते हैं, उसी प्रकार से मरुद्गण लक्ष्मी को धारण करते हैं।[ऋग्वेद 1.166.10]
हे मरुद्गण! तुम्हारी भुजाएँ प्राणी की भलाई के साधन में तत्पर रहती हैं। तुम्हार हृदय देश कल्याणकारी स्वर्णहारों से सजा हुआ है और कंधे विकराल आयुधों से युक्त हैं। पक्षी जैसे पंख ग्रहण करते हैं, वैसे ही तुमने शक्ति ग्रहण कर रखी है।
Hey Marud Gan! Your arms are always ready to help-benefit the living beings. Your chest is decorated with golden ornaments. Your shoulders possess  dangerous-furious weapons. The Marud Gan possess wealth just like the birds having feathers.
महान्तो मह्ना विभ्वोविभूतयो दूरेदृशो ये दिव्या इव स्तृभिः। 
मन्द्राः सुजिह्वाः स्वरितार आसभिः संमिश्ला इन्द्रे मरुतः परिष्टुभः
जो मरुद्गण महान्, महिमान्वित, विभूतिमान् और आकाश में स्थित नक्षत्रों की तरह दूर तक प्रकाशित होते हैं, जो प्रसन्न हैं, जिनकी जिह्वा सुन्दर है, जिनके मुख से शब्द होता है, जो इन्द्र के सहायक हैं और जो स्तुति युक्त हैं, वे हमारे यज्ञ स्थल में पधारें। [ऋग्वेद 1.166.11]
महान समृद्धिशाली, शक्तिशाली, अम्बर में नक्षत्रों के तुल्य दैदिप्यमान, गंभीर, ध्वनि से परिपूर्ण, सुन्दर जीभ और मधुर गान वाले मरुद्गण ध्वनिशील, हुए इन्द्र के सहयोगी हैं।
The great, glorious, shinning like stars-constellations in the sky, happy with sweet voice-speech, helpers of Dev Raj Indr and deserve prayers-worship, Marud Gan join us in the Yagy.   
तद्वः सुजाता मरुतो महित्वनं दीर्घं वो दात्रमदितेरिव व्रतम्। 
इन्द्रश्चन त्यजसा वि ह्रुणाति तज्जनाय यस्मै सुकृते अराध्वम्
हे सुजात मरुद्गण! आपका माहात्म्य प्रसिद्ध है और आपका दान अदिति के व्रत की तरह अविच्छिन्न है। आप जिस पुण्यात्मा यजमान को दान देते हैं, उसके प्रति इन्द्रदेव कभी कुटिलता नहीं करते।[ऋग्वेद 1.166.12]
हे उत्तम प्रकार से प्रकट मरुतो! तुम्हारा नाम अदिति के नियम के समान स्थिर है। इसलिए तुम श्रेष्ठ हो। जिस श्रेष्ठ कर्म वाले को तुम धन देते हो, उसके धन को इन्द्र भी नहीं छीनते।
Hey excellent Marud Gan! Your greatness and charity is unbroken-forever like the the fast-determination of Aditi-Dev Mata. Dev Raj Indr never snatch the wealth given by you to the devotees.
तद्वो जामित्वं मरुतः परे युगे पुच्छंसममृतास आवत। 
अया धिया मनवे श्रुष्टिमाव्या साकं नरो दंसनैरा चिकित्रिरे
हे मरुद्गण! आपकी मित्रता प्रसिद्ध और चिरस्थायी है। अमर होकर आप लोग स्तुति द्वारा हमारी भली-भाँति रक्षा करते हैं। याचना पूर्वक मनुष्यों की स्तुति की रक्षा करते हुए उनके साथ मिलकर और उनका नेतृत्व स्वीकार कर कर्म द्वारा सब जान जाते हैं।[ऋग्वेद 1.166.13]
हे अविनाशी मरुतो! तुमने अपने बन्धु भाव के कारण प्राचीन श्लोकों की भली भांति सुरक्षा की है। तुमने मनुष्यों की वंदना स्वीकृत करके उन्हें कर्मों का ज्ञान प्रदान किया।
Hey Marud Gan! Your friendship is forever-ever lasting. Being immortal, you protect us through prayers-worship by us. You accept the prayers by the humans and accept their leadership and learn every thing, get their every detail.
You grant enlightenment to the humans.
येन दीर्घं मरुतः शूशवाम युष्माकेन परीणसा तुरासः। 
आ यत्ततनन्वृजने जनास एभिर्यज्ञेभिस्तदभीष्टिमश्याम्
हे वेगवान् मरुतो! आपके महान् आगमन पर हम दीर्घ कर्म यज्ञ को वर्द्धित करते हैं। उसके में मनुष्य विजयी होता है। इन सब यज्ञों द्वारा मैं आपका शुभ आगमन प्राप्त कर सकूँ।[ऋग्वेद 1.166.14]
हे वेगवान मरुद्गण! हम तुम्हारी दया से चिर काल तक वृद्धि को प्राप्त हों। जिन कर्मों से प्राणी जीत हासिल करता है और यश को प्राप्त करता है, अपनी इस कामना को मैं इन यज्ञों से प्राप्त करूँ।
Hey fast moving Marud Gan! Over your arrival-visit we extend our Yagy, leading to our victory, glory. Let me welcome you in the Yagy.
एष वः स्तोमो मरुत इयं गीर्मान्दार्यस्य मान्यस्य कारोः। 
एषा यासीष्ट तन्वे वयां विद्यामेषं वृजनं जीरदानुम्
हे वीर मरुतो! महान् कवि द्वारा रचना किये गए स्तोत्र वाणी द्वारा आपको आनन्द और प्रसन्नता प्रदान करने वाले आपके शरीर के बल की वृद्धि करने वाले और आपके अभिलाषाओं को पूर्ण करने वाले हैं। हमें भी आप इसी प्रकार अन्न, बल और विजय श्री शीघ्रतापूर्वक प्रदान करे।[ऋग्वेद 1.166.15]
हे मरुद्गण! मान-पुत्र मान्दार्य कवि का यह श्लोक और वाणी तुम्हारे लिए हो। तुम हमारे शरीर को शक्ति प्रदान करने के लिए अन्न के साथ जाओ। हम अन्न शक्ति और दानशील स्वभाव को ग्रहण करें।
Hey mighty Marud Gan! Let the compostions-Strotr by the great poets grant you pleasure-amusement. It enhances-boosts  your power-might fulfil your desires. You should grant us food grains, valour-might and victory quickly.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (167) ::  ऋषि :- अगस्त्य, देवता :- इन्द्र, मरुत्, छन्द :- त्रिष्टुप्।
सहस्रं त इन्द्रोतयो नः सहस्त्रमिषो हरिवो गूर्ततमाः। 
सहस्रं रायो मादयध्यै सहस्रिण उप नो यन्तु वाजाः
हे इन्द्रदेव! आप हजारों प्रकार से (हमारी) रक्षा करें। आपकी रक्षाएँ हमारे पास आवें। हे हरि नामक अश्ववाले इन्द्रदेव! आपके पास हजार प्रकार के प्रशंसनीय अन्न हैं; वे हमें प्राप्त हो। हे इन्द्रदेव! आपके पास हजारों प्रकार का धन है। हमारी तृप्ति के लिए वे भी हमें प्राप्त हो।[ऋग्वेद 1.167.1]
हे अश्व सम्पन्न इन्द्रदेव! तुम्हारे अनेक सुरक्षा पालक हमको प्राप्त हों, अनेक सा अन्न और प्रचुर धन राशि हमको असीमित शक्ति के साथ मिले।
Hey Indr Dev! Protect us through all thousands-means available with you. Hey the possessor of the horse named Hari, Indr Dev! We should get thousands kinds of food grains available with you. You have thousands of types of possessions-wealth. Let them be available to us for our comforts-satisfaction.
आ नोऽवोभिर्मरुतो यान्त्वच्छा ज्येष्ठेभिर्वा बृहद्दिवैः सुमायाः। 
अध यदेषां नियुतः परमाः समुद्रस्य चिद्धनयन्त पारे
आश्रय देने के लिए मरुद्गण हमारे पास आवें। सद्बुद्धि मरुद्गण प्रशस्यतमः और महादीप्ति संयुक्त धन के साथ हमारे पास पधारें, क्योंकि उनके नियुत नाम के श्रेष्ठ अश्व समुद्र के उस पार से भी धन ले आते हैं।[ऋग्वेद 1.167.2]
अत्यन्त मेधावी मरुद्गण अपने सुरक्षा साधनों और श्रेष्ठतम धन के साथ हमारी ओर पधारो! उनके अश्व समुद्र के पार हिन-हिनाते हुए प्रतीत होते हैं।
Let intellectual Marud Gan come to us with appreciable wealth. Their excellent horses named Niyut bring wealth across the oceans. 
मिम्यक्ष येषु सुधिता घृताची हिरण्यनिर्णिगुपरा न ऋष्टिः। 
गुहा चरन्ती मनुषो न योषा सभावती विदथ्येव सं वाक्
सुव्यवस्थित, जलवर्षक और सुवर्ण वर्ण विद्युत् मेघमाला की तरह अथवा निगूढ़ स्थान में अवस्थित मनुष्य की पत्नि की तरह या कही गई यज्ञीय वाणी की तरह इन मरुतों के साथ मिलती है।[ऋग्वेद 1.167.3]
प्राणियों की गुप्त रूप से रहने वाली पत्नियों के समान उन मरुद्गण की चमकती हुई स्वर्णिम कटार, म्यान में रहती और निकलती है। वह विद्युत रूपा विदुषी के समान ओजस्वी वाणी से युक्त है। बिजली कभी चमकती, कभी छिपती और कभी कड़कती है) द्रुत गतिमान मरुद्गण को यह विद्युत एकांत निवासिनी भार्या के तुल्य या अनुष्ठान में उच्चारण की जाने में वाली वेद वाणी के तुल्य ग्रहण होती है। 
Well organised-systematic, rain showering and lightening; like the shy-hidden wives, meets the Marud Gan and becomes visible like the hymns-recitations of the Veds.
परा शुभ्रा अयासो थव्या साधारण्येव मरुतो मिमिक्षुः। 
न रोदसी अप नुदन्त घोरा जुषन्त वृधं सख्याय देवाः
साधारण स्त्री की तरह आलिंगन-परायण विद्युत् के साथ शुभवर्ण, अतिगमन शील और उत्कृष्ट मरुद्रण मिलते है। भयंकर मरुद्रण द्यावा-पृथ्वी को नहीं हटाते। देवता लोग मैत्री के कारण उनकी समृद्धि का उपाय करते हैं।[ऋग्वेद 1.167.4] 
साधारण स्त्री के तुल्य इस चमकती हुई बिजली ने मरुद्गण को वरण किया। तब वह सूर्य के तुल्य चाल वाली मरुद्गण को के ग्रहण हुई।
The extremely fast-quick moving Marud Gan meets like lightening & hugging a common woman. They do not disturb the sky and the earth. The demigods-deities make efforts for their progress due to friendship.
जोषद्यदीमसुर्या सचध्यै विषितस्तुका रोदसी नृमणाः। 
आ सूर्येव विधतो रथं गात्त्वेषप्रतीका नभसो नेत्या
मरुतों की अपनी पत्नी बिजली आलुलायित केश और अनुरक्त मन से मरुतों के संगम के लिए उनकी सेवा करती है। जिस प्रकार से सूर्या अश्विनी कुमारों के रथ पर आरूढ़ होती है, उसी प्रकार प्रदीप्ता वयवा रोदसी चंचल मरुतों के रथ पर चढ़कर शीघ्र आती है।[ऋग्वेद 1.167.5]
हे मरुद्गण! तुमने अन्यन्त तेज वाली युवावस्था प्राप्त दामिनी को अपने रथ पर चढ़ाया।
Lightening, the wife of Marud Gan serves them with love. The way the Surya (Sun light) rides the charoite of Ashwani Kumars bright lightening rides the charoite of the naughty (playful-fickle) Marud Gan. 
आस्थापयन्त युवतिं युवानः शुभे निमिश्लां विदथेषु पज्राम्। 
अर्को यद्वो मरुतो हविष्मान्गायद्गाथं सुतसोमो दुवस्यन्
यज्ञ आरम्भ होने पर वर्षादान के लिए तरुण युवा तरुणी रोदसी को रथ पर बैठाते हैं। बलवती रोदसी (पृथ्वी, स्वर्ग) नियमानुरूप उनके साथ मिलती है। उसी समय अर्चन मंत्रयुक्त हव्यदाता और सोमाभिषवकारी यजमान मरुतों की सेवा करते हुए स्तोत्रों का पाठ करते हैं।[ऋग्वेद 1.167.6]
उस समय सोम अभिषवकर्त्ता हवि देते हुए श्लोक गान करने लगे। इन मरुदगण के कथन बल का मैं यथावत वर्णन करता हूँ। 
The earth & the sky rides (takes part in the process) the charoite prior to the Yagy leading to showers. It interact with them as per rule-process. The hosts making offerings make prayers using Mantr-hymns for the service of the Marud Gan.
प्र तं विवक्मि वक्म्यो य एषां मरुतां महिमा सत्यो अस्ति। 
सचा यदीं वृषमणा अहंयुः स्थिरा चिज्जनीर्वहते सुभागाः
मरुतों की महिमा सबकी प्रशंसनीय और अमोघ है। मैं उसका वर्णन करता हूँ। उनकी रोदसी वर्षणाभिलाषिणी, अहंकारिणी और अविनश्वरा है। यह सौभाग्यशालिनी, उत्पत्तिशील और प्रजा को धारण करती है।[ऋग्वेद 1.167.7]
अमोघ :: अचूक (औषधिया अस्त्र), जो निष्फल न हो, जो निरर्थक या व्यर्थ न हो,  सफल, लक्ष्यभेदी।
उसकी मानिनी वर्षाणाभिलाषी, अटल विचार वाली है। वह मानिनी सौभाग्यवती हुई प्रजाओं को ग्रहण करती है।
Glory-majesty of the Marud Gan deserve appreciation and it never goes waste. The earth and the sky desires rains which leads to growth & good luck. It supports the populace-living beings.
पान्ति मित्रावरुणाववद्याच्चयत ईमर्यमो अप्रशस्तान्। 
उत च्यवन्ते अच्युता ध्रुवाणि वावृध ई मरुतो दातिवारः
मित्र, वरुण और अर्यमा इस यज्ञ को निन्दा से बचाते हैं और उसके अयोग्य पदार्थ का विनाश करते हैं। हे मरुतों! आपके जल देने का समय जब आता है, तब वे मेघों के बीच एकत्रित जल की वर्षा करते हैं।[ऋग्वेद 1.167.8]
सखा और वरुण, यज्ञ निंदकों से सुरक्षा करते हैं। अर्यमा उनको नष्ट करते हैं। हे मरुद्गण जब तुम्हारा जल त्यागने का समय आता है और तब निश्चल बादल भी डिग जाते हैं।
Mitr, Varun & Aryma protects this Yagy from blasphemy, reproach & damn. They destroy the unwanted-unsuitable (undesirable) goods. Hey Marud Gan! When the time for showers arrives, they set themselves in the clouds and shower the accumulated water.
नहीं नु वो मरुतो अन्त्यस्मे आरात्ताच्चिच्छवसो अन्तमापुः । 
ते धृष्णुना शवसा शूशुवांसोऽर्णो न द्वेषो धृषता परि ष्ठू: 
हे मरुतो! हमारे बीच किसी ने भी अत्यन्त दूर से भी आपके बल का अन्त नहीं पाया।
दूसरों को पराजित करने वाले बल के द्वारा वृद्धि कर जलराशि की तरह अपनी शक्ति से शत्रुओं पर विजय प्राप्त करते हैं।[ऋग्वेद 1.167.9]
हे मरुद्गण! तुम्हारा बल असीमित हैं। उसका पता न समीप से लगता है न दूर से। तुम अत्यन्त सामर्थ्यवान हो। तुम जल के समान बढ़कर शक्तिशाली हुए शत्रुओं को हरा देते हो। 
Hey Marud Gan! None of us has been able to assess your might-power either from near or far. By increasing the might to defeat others, like the stores-accumulated water you win-over power the enemy.
वयमद्येन्द्रस्य प्रेष्ठा वयं श्वो वोचेमहि समर्थे। 
वयं पुरा महि च नो अनु द्यून्तन्न ऋभुक्षा नरामनु ष्यात्
आज हम इन्द्रदेव के प्रियतम होकर यज्ञ में उनकी महिमा का गान करेंगे। हमने पहले भी इनके माहात्म्य का गान किया और प्रतिदिन गान करते है। इसलिए ये महान् इन्द्रदेव हमारे लिए अनुकूल बने रहें।[ऋग्वेद 1.167.10]
आज हम इन्द्रदेव के अत्यन्त प्रिय बनेंगे। कल हम उन्हीं को पुकारेंगे। पूर्व में भी उनको पुकारते रहे हैं। वे श्रेष्ठतम इन्ददेव और हमारे अनुकूल हों।
Let us become dear to Indr Dev and sing his glory. We earlier sung described this glory. Let great-mighty Indr Dev be favourable to us.
एष वः स्तोमो मरुत इयं गीर्मान्दार्यस्य मान्यस्य कारोः। 
एषा यासीष्ट तन्वे वयां विद्यामेषं वृजनं जीरदानुम्
हे मरुतो! कवि मान्दर्य की यह स्तुति आपके लिए है। इच्छानुसार उसकी शरीर पुष्टि के लिए आपके पास आती है। हम भी अन्न, बल और दीर्घायु प्राप्त करें।[ऋग्वेद 1.167.11]
हे मरुद्गण! मान पुत्र मान्दार्य का श्लोक तुम्हारे लिए है। तुम शरीर को शक्ति देने हेतु समृद्धि से युक्त यहाँ पर पधारो और अन्न, शक्ति तथा दानशील स्वभाव को ग्रहण कराओ।
Hey Marud Gan! Poet-Rishi Mandary has composed this prayer for you. You should arrive here to nourish us. Let us obtain food grains, might-power and long life.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (168) ::  ऋषि :- अगस्त्य, देवता :- मरुत्, छन्द :- जगती, त्रिष्टुप्।
यज्ञायज्ञा वः समना तुतुर्वणिर्धियंधियं वो देवया उ दधिध्वे। 
आ वोऽर्वाचः सुविताय रोदस्योर्महे ववृत्यामवसे सुवृक्तिभिः
हे मरुद्गणों। समस्त यज्ञों में आपका समान आग्रह है। आप अपने समस्त कर्मों को देवताओं के पास ले जाने के लिए धारण करते हैं, इसलिए द्यावा-पृथ्वी की भली-भाँति रक्षा करने के लिए उत्कृष्ट स्तोत्र द्वारा आपको अपने पास बुलाने के लिए आवाहन करता हूँ।[ऋग्वेद 1.168.1]
हे मरुद्गण! समस्त यज्ञों में तुम अपने एकाग्र हृदय वाले यजमान को प्रत्येक श्लोक में वृद्धि करते और उसे देवकर्मों के लिए धारण करते हो। मैं क्षितिज-धरा की सुरक्षा के लिए महान वंदनाओं द्वारा अपनी ओर पुकारता हूँ।
Hey Marud Gan! You have equal rights over all Yagy. You bear-carry forward all endeavours to the demigods-deities. Hence, I invite you to protect the sky-horizon and the earth with the help of excellent Strotr-hymn.
वव्रासो न ये स्वजाः स्वतवस इषं स्वरभिजायन्त धूतयः। 
सहस्त्रियासो अपां नोर्मय आसा गावो वन्द्यासो नोक्षणः
स्वयं उत्पन्न, स्वाधीन बल और कम्पनशील मरुद्रण मानों मूर्तिमान होकर अन्न और स्वर्ग के लिए प्रकट होते हैं। असंख्य और प्रशंसनीय गौ जिस प्रकार दूध देती हैं, उसी प्रकार से जल-तरंग के समान वे उपस्थित होकर जलदान करते हैं।[ऋग्वेद 1.168.2]
हे मरुतो! तुम अपने आप रचित स्वयं शक्तिशाली अन्न के लिए प्रकट होते हो। वे जल की लहरों के समान तथा पयस्विनी धेनुओं के तुल्य दान करते हैं।
Hey Marud Gan! You appear for giving the food grains developed by you with your own endeavours-efforts and strength. The manner in which several appreciable cows grant milk, you appear like water waves & give us water.
सोमासो न ये सुतास्तृप्तांशवो हृत्सु पीतासो दुवसो नासते। 
ऐषामंसेषु रम्भिणीव रारभे हस्तेषु खादिश्च सं दधे
सुसंस्कृत शाखावाली सोमलता, अभिषुत और पीत होकर जिस प्रकार से हृदय के बीच परिचारिका की तरह कार्य करती है, उसी प्रकार से ध्यान किये जाने पर मरुद्गण भी करते हैं। उनके अंशदेश में स्त्री की तरह आयुधविशेष आलिंगन करता है। मरुतों के हाथ में हस्तत्राण और कर्त्तन है।[ऋग्वेद 1.168.3]
जैसे उत्तम शाखा वाले सोम रस पीने के लिए अत्यन्त प्रसन्न होते हैं। वैसे ही मरुद्गण मंगलकारी होते हैं। उनकी भुजाओं पर शस्त्र और हाथों में कंगन और कटार सजे हुए हैं।
The way the virtuous-learned female servants serve the Somras with happiness to Marud Gan, they too reciprocate on being remembering them-meditating in them. Their hands possess arms and protective covers over the arms bracelets and dagger.
अव स्वयुक्ता दिव आ वृथा ययुरमर्त्याः कशया चोदत त्मना। 
अरेणवस्तुविजाता अचुच्यवुर्दृळ्हानि चिन्मरुतो भ्राजदृष्टयः
आपस में मिलने हेतु मरुद्गण अनायास स्वर्ग से आते हैं। हे अमर मरुतो! अपने ही वाक्यों से हमारा उत्साह बढ़ावें। निष्पाप, अनेक यज्ञों में प्रादुर्भूत और प्रदीप्त मरुद्गण दृढ़ पर्वतों को भी कम्पायमान् कर देते हैं।[ऋग्वेद 1.168.4]
मरुद्गण नभ से आते हैं। हे अविनाशी मरुतो! अपने ओजस्वी शब्दों हमारा उत्साह वर्द्धन करो। अनेक यज्ञों में आने वाले तुम अटल शैल को भी कंपित करते हो।
Marud Gan come from the heavens to meet one another. Hey immortal Marud Gan! Encourage us with your speech. Sinless brilliant Marud Gan appearing in various Yagy, tremble-shake the mountains.
को वोऽन्तर्मरुत ऋष्टिविद्युतो रेजति त्मना हन्वेव जिह्वया। 
धन्वच्युत इषां न यामनि पुरुप्रैषा अहन्योनैतशः
हे भुजलक्ष्मी से सुशोभित मरुद्गण! जिस प्रकार जिह्वा दोनों जबड़ों को चालित करती है, उसी प्रकार से ही आपके बीच रहकर कौन आपको परिचालित करता है। आप लोग स्वयं परिचालित होते हैं। जिस प्रकार से जलवर्षी मेघ परिचालित होता है, जिस प्रकार से दिन में मेघ चलता है, उसी प्रकार से बहु फलेच्छ यजमान अन्न प्राप्ति के लिए आपको परिचालित करते हैं।[ऋग्वेद 1.168.5]
आयुधों से शोभायमान मरुतो! तुम्हें कौन शिक्षा देता है? जैसे बादल अपने आप चलता है, वैसे ही तुम अपने आप परिचालित होते हो। यजमान तुम्हें अन्न ग्रहण प्राप्ति के लिए पुकारता है।
Hey armed Marud Gan! Who move-channelize you like the tongue between the jaws? You are self governed. The hosts-Yagy performers govern-request you with the desire of high food grain yield, leading to movement of clouds yielding rains.
क स्विदस्य रजसो महस्परं कावरं मरुतो यस्मिन्नायय। 
यच्च्यावयथ विथुरेव संहितं व्यद्रिणा पतथ त्वेषमर्णवम्
हे मरुतो! जिस जल के लिए आप अन्तरिक्ष से आते हैं, उस विशाल वृष्टि जल का आदि और अन्त कहाँ है? शिथिल घास की तरह जिस समय आप जलराशि को गिराते हो, उस समय वज्र द्वारा दीप्तिमान् मेघ को आप विदीर्ण करते हैं।[ऋग्वेद 1.168.6]
हे मरुद्गण! उस मेघ मंडल का आद्यान्त कहाँ है? जब तुम तृणों के समान बादलों को छिन्न-भिन्न करते हो तब जलों को उनसे अलग कर धरती पर वर्षा करते हो।
Hey Marud Gan! Where is the beginning and end of the vast water reservoir of rains, for which you come from the space?! When you make it rain-tear off the clouds, the water stored in the clouds is struck with lightening.
सातिर्न वोऽमवती स्वर्वती त्वेषा विपाका मरुतः पिपिष्वती। 
भद्रा वो रातिः पृणतो न दक्षिणा पृथुज्रयी असुर्येव जञ्जती
हे मरुतो! जिस प्रकार का आपका धन है, उसी प्रकार का दान भी है। दान के सम्बन्ध में आपके सहायक इन्द्रदेव है। उसमें सुख और दीप्ति है। उसका फल परिपक्व है। उससे कृषिकार्य का भी मंगल होता है। वह दाता की दक्षिणा की तरह शीघ्र फलदाता है। वह सूर्य की जयशील शक्ति के तुल्य है।[ऋग्वेद 1.168.7]
हे मरुद्गण तुम्हारे रक्षा के साधन सशक्त, चमकते हुए अटल शत्रुओं को पीस देने वाले हैं। तुम्हारा दान यजमान को दक्षिणा के समान आनन्दप्रद और वर्षा के समान स्थायी प्रभाव वाला है।
Hey Marud Gan! Your wealth-possessions and charity are alike.  Indr Dev is helpful to you in donations-charity. Its yield is lauding. It results in good harvest, high yield of crops like the donation by the virtuous donor. This is like the imperishable glory of the Sun.
प्रति ष्टोभन्ति सिन्धवः पविभ्यो यदभ्रियां वाचमुदीरयन्ति। 
अव स्मयन्त विद्युतः पृथिव्यां यदी घृतं मरुतः प्रुष्णुवन्ति
जिस समय वज्र मेघ सम्भूत शब्द उच्चारित करते हैं, उस समय उनसे क्षरण शील जल परिचालित होता है। जिस समय मरुद्गण पृथ्वी पर जल सेचन करते हैं, उस समय विद्युत् नीचे की ओर मुख करके पृथ्वी पर प्रकट होती है।[ऋग्वेद 1.168.8]
बादलों के गरजने की प्रतिध्वनि करती नदियाँ तीव्र गतिवान होती हैं। बिजली नीचे को मुख करके मुस्कराती है और मरुद्गण धरा पर जल पुष्टि करते हैं।
When the thunderous sound is generated, water capable of cutting-eroding clay-soil see the rivers flowing with high speed. When the Marud Gan shower rains over the earth, the lightening strikes-smiles over the earth with its mouth down.
असूत पृश्निर्महते रणाय त्वेषमयासां मरुतामनीकम्। 
ते सप्सरासोऽजनयन्ता भ्वमादित्स्वधामिषिरां पर्यपश्यन्
प्रश्नि ने महासंग्राम के लिये प्रदीप्त गमन युक्त मरुद्गण को उत्पन्न किया। समान रूप वाले मरुतों ने जल उत्पन्न किया। इसके पश्चात संसार ने अभिलषित अन्न आदि प्राप्त किये।[ऋग्वेद 1.168.9]
पृश्नि ने महासंग्राम के लिए चपल मरुद्गण का प्रसव किया। उन तुल्य रूप वाले मरुतों ने जल प्रकट किया और मनुष्यों ने शक्तिदाता अन्न के दर्शन किये।
Prashni created the aurous moving Marud Gan for the fierce war. Marud Gan alike in gestures-face created water. After this, the universe-world obtained the food grains.
एष वः स्तोमो मरुत इयं गीर्मान्दार्यस्य मान्यस्य कारोः। 
एषा यासीष्ट तन्वे वयां विद्यामेषं वृजनं जीरदानुम्
हे मरुतो! कवि मान्य मान्दर्य का यह स्तोत्र आपके लिए है, यह स्तुति आपके लिए है। अपने शरीर की पुष्टि के लिए आपके पास आते हैं। हम भी अन्न, बल और दीर्घायु प्राप्त करें।[ऋग्वेद 1.168.10]
हे मरुद्गण! मान के पुत्र मान्दार्य कवि का यह श्लोक तुम्हारे लिए है। तुम तन को पराक्रम देने वाले और अन्न के साथ यहां आओ। हमें अन्न, बल और दानशील बुद्धि की प्राप्ति करावें।
Hey Marud Gan! This composition-Strotr by poet-Rishi Mandary is for you. We come to you-request you, for the nourishment of our bodies. Let us attain food grains, strength, longevity and inclination of mind, leading to charity social welfare.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (169) ::  ऋषि :- अगस्त्य, देवता :- इन्द्र, छन्द :- चतुष्पदा, विराट्।
महश्चित्त्वमिन्द्र यत एतान्महश्चिदसि त्यजसो वरूता।
स नो वेधो मरुतां चिकित्वान्त्सुम्ना वनुष्व तव हि प्रेष्ठा
हे इन्द्र देव! आप निश्चय ही महान् हैं; क्योंकि आप रक्षक और महान् मरुतों का परित्याग नहीं करते। आप मरुतों के स्वामी हैं और हमें भली-भाँति जानते हैं। आप अपनी प्रिय वस्तु हमें प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.169.1]
हे उत्पत्ति करने वाले इन्द्रदेव! तुम उद्वेग और आक्रोश से बचाते हो। तुम मरुतों के स्वामी हो। हम पर कृपा दृष्टि रखो और हमें सुखी बनाओ।
Hey Indr Dev! You are definitely great, since do not part away-separate with the great Marud Gan. You are the master of the Marud Gan. Please grant us the commodities dear to you.
अयुज्रन्त इन्द्र विश्वकृष्टीर्विदानासो निष्षिधो मर्त्यत्रा। 
मरुतां पृत्सुतिर्हासमाना स्वर्मीळ्हस्य प्रधनस्य सातौ
हे इन्द्र देव! आप शत्रुओं को युद्ध में भगाने वाले, सम्पूर्ण मनुष्यों के ज्ञाता मरुद्गणों का सहयोग पाने वाले हैं। मरुद्गणों की सेना युद्ध के प्रारम्भ होने पर आनन्दित होते हुए सुख का अनुभव प्राप्त करती है।[ऋग्वेद 1.169.2]
हे इन्द्रदेव! तुम्हारे दान को जानने वाली प्रजाएँ  तुम्हें ग्रहण करती हैं। मरुतों की सेना द्वन्द्व में तुम्हें अत्यन्त संग्राम साधन ग्रहण कराती हैं।
Hey Indr Dev! You make the enemy retreat-run away from the battle ground. You know all humans and seek-obtain the help of Marud Gan. The army of the Marud Gan feel pleasure at the onset of war with the enemy.
अम्यक्सा त इन्द्र ॠष्टिरस्मे सनेम्यभ्वं मरुतो जुनन्ति। 
अग्निश्चिद्धि ष्यातसे शुशुकानापो न द्वीपं दधति प्रयांसि
हे इन्द्र देव! आपका प्रसिद्ध वज्रायुध ॠष्टि हमारे लिए मेघ के पास जाता है। ये मरुद्रण सदैव वर्षा करते हैं। विस्तृत यज्ञ के लिए अग्निदेव प्रदीप्त हुए। जिस प्रकार से जल द्वीप को धारण करता है, उसी प्रकार से अग्निदेव हव्य को धारण करते हैं।[ऋग्वेद 1.169.3]
हे इन्द्र देव! तुम्हारा विख्यात शस्त्र वज्र मेघ की ओर जाता है। मरुद्गण हमारे लिए जलों को गिराते हैं। जैसे अग्नि लकड़ी में शीघ्रता से चलती है और जल टापुओं के चारों ओर रहता है, वैसे ही मरुद्गण इसको अन्नों से पूर्ण करते हैं।
Hey Indr Dev! Your famous Vajr moves towards the clouds. The Marud Gan produce rains for us. The way water support an island, Agni Dev contain offerings.
त्वं तू न इन्द्र तं रयिं दा ओजिष्ठया दक्षिणयेव रातिम्। 
स्तुतश्च यास्ते चकनन्त वायोः स्तनं न मध्वः पीपयन्त वाजैः
हे इन्द्र देव! आप अपने दान योग्य धन का दान करें। आप दाता हैं। हम लोग प्रचुर दक्षिणा द्वारा आपको प्रसन्न करते हैं, क्योंकि आप शीघ्र वर प्रदान करने वाले हैं। स्तोता लोग आपकी स्तुति करते हैं। जिस प्रकार स्तन मधुर और पौष्टिक दुग्ध से पुष्ट होते हैं, उसी प्रकार से हम भी आपको अन्न आदि के द्वारा पुष्ट करते हैं।[ऋग्वेद 1.169.4]
हे इन्द्र देव! दक्षिणा के समान वृद्धि किया हुआ जो धन अपने सखा को प्रदान किया है, वही धन हमें भी प्रदान करो। मधुर दुग्ध से जैसे नारी के स्तन पुष्ट होते हैं वैसे ही हमारी वंदनाओं से तुम अन्नादि से पुष्ट करो।
Hey Indr Dev! Donate your wealth which is suitable for charity. You are a donor. We please-make you happy with lots of offerings. The hosts-performers of Yagy pray-worship you. The way the udder are filled with milk, we too make you strong with the food grains etc. 
त्वे राय इन्द्र तोशतमाः प्रणेतारः कस्य चिद्य्तायोः। 
ते षु णो मरुतो मृळयन्तु ये स्मा पुरा गातूयन्तीव देवाः
हे इन्द्र देव! आपका धन अत्यन्त प्रीति दाता और यजमान का यज्ञ निर्वाह कारी है। जो मरुद्गण पहले ही यज्ञ में जाने के लिए तैयार हो जाते हैं, वे हमें सुख प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.169.5]
हे इन्द्रदेव! तुम्हारा धन अत्यन्त सत्यताप्रद, तृष्टिप्रद तथा आगे बढ़ाने वाला है। जो मरुद्गण प्राचीन समय से नियमों पर अटल रहते आये हैं, वे हम पर अत्यन्त अनुग्रह करें।
Hey Indr Dev! You possessions-wealth grants affection & love and helps the hosts in conducting the Yagy. The Marud Gan who willing -ready for the Yagy grant us pleasure-comforts.
प्रति प्र याहीन्द्र मीळ्हुषो नॄन्महः पार्थिवे सदने यतस्व। 
अध यदेषां पृथुबुध्नास एतास्तीर्थे नार्यः पौंस्यानि तस्थुः
हे इन्द्र देव! आप जल-सेचक हैं। पुरुषार्थी और विशाल मेघ के सामने जावें। अन्तरिक्ष प्रदेश में रहकर चेष्टा करें। रणक्षेत्र में शत्रुओं के पराक्रम की तरह मरुतों के विस्तीर्ण पैर अश्वगण मेघों पर आक्रमण करते हैं।[ऋग्वेद 1.169.6]
हे इन्द्र देव! तुम पुरुषार्थी बादलों के निकट पधारकर अपना पुरुषार्थ प्रकट करो। मरुतों के वाहन बादलों पर धावा बोलने को प्रस्तुत हैं।
Hey Indr Dev! You produce & store-accumulate water. You move to the laborious clouds and make efforts in the space. The legs & hoofs of the Marud Gan's horses strike the clouds like attacking the enemy.
प्रति घोराणामेतानामयासां मरुतां शृण्व आयतामुपब्दिः। 
ये मर्त्यं पृतनायन्त मूमैर्ऋणावानं न पतयन्त सर्गैः
हे इन्द्र देव! भयंकर कृष्ण वर्ण और गमनशील मरुतों के आने का शब्द सुनाई देता है। जिस प्रकार से अधम शत्रु का विनाश किया जाता है, उसी प्रकार से मनुष्यों की रक्षा के लिये मरुद्गण प्रहारों द्वारा सेना बल संयुक्त शत्रुओं का विनाश करते हैं।[ऋग्वेद 1.169.7]
चित्र-विचित्र, द्रुतगामी मरुतों का गर्जन सुनाई पड़ता है। अधम योद्धाओं को समाप्त करने के तुल्य मरुद्गण शत्रुओं के समाप्त कर देते हैं।
Hey Indr Dev! The sound of the marching columns of the vividly coloured fast moving Marud Gan is heard. The way they destroy the depraved enemy, they vanish the joint armies of the dreaded enemies for the protraction of humans.
त्वं मानेभ्य इन्द्र विश्वजन्या रदा मरुद्भिः शुरुधो गोअग्राः। 
स्तवाने स्तवसे देव देवैर्विद्यामेषं वृजनं जीरदानुम्
हे इन्द्र देव! समस्त प्राणी आपसे ही उत्पन्न हुए हैं। मरुतों के साथ अपने सम्मान के लिये आप दुःख नाशिका और जल धारिणी मेघ पंक्ति को विदीर्ण करें। हे देव! स्तूयमान देवगण आपकी स्तुति करते हैं। आप हमें अन्न, बल और दीर्घायु प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.169.8]
हे इन्द्र देव! मरुतों के युक्त पधारकर मान पुत्रों के लिए सभी के रचनाकर्त्ता जलों को गवादि युक्त प्रकट करो। तुम पूजनीय देवगण के साथ वंदित किये जाते हो। हम अन्न, शक्ति और दानमय स्वभाव को ग्रहण करें।
Hey Indr Dev! All living beings have born out of you. For the protection of the honour, glory of the Marud Gan, you should tear off-destroy the clouds (make them rain). Hey Dev! The stunning demigods-deities are praying to you. You should grant us food grains, strength and longevity.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (170) ::  ऋषि :- अगस्त्य, देवता :- इन्द्र, छन्द :- अनुष्टुप्, बृहती, त्रिष्टुप्। 
न नूनमस्ति नो श्वः कस्तद्वेद यदद्भतम्। 
अन्यस्य चित्तमभि संचरेण्यपुताधीतं वि नश्यति
आज या कल कुछ नहीं है। अद्भुत कार्य की बात कौन कह सकता है? अन्य मनुष्यों का मन अत्यन्त चञ्चल होता है, जो अच्छी तरह पढ़ा जाता है, वह भी विस्मृत हो जाता है।[ऋग्वेद 1.170.1]
हे इन्द्र देव! आज और कल कुछ भी नहीं है। जो नहीं हुआ उसे कौन जानता है? जिन मनुष्यों का मन चंचल है, वे चिन्तन किये हुए को भी भूल जाते हैं।
There is nothing like today or tomorrow. What can one say of the amazing deeds. The humans whose innerself (mind, heart, psyche, mood) is fickle  forget whatever is learnt or meditated.
किं न इन्द्र जिघांससि भ्रातरो मरुतस्तव। 
तेभिः कल्पस्व साधुया मा नः समरणे वधीः
अगस्त्य ने कहा, हे इन्द्र देव! आप क्यों मुझे मारना चाहते हैं? मरुद्रण तो आपके भाई हैं। उनके साथ यज्ञ का भाग अच्छी तरह ग्रहण करें। युद्ध के समय हमें विनष्ट न करें। ([ऋग्वेद 1.170.2]
हे इन्द्र देव! तुम क्या मुझे समाप्त करना चाहते हो? मरुद्गण तुम्हारे भ्राता हैं। उनके संग भली-भांति यज्ञ भाव ग्रहण करते करो। हमको संग्राम काल में समाप्त मत करना। 
Hey Indr Dev! Why do you want to kill me? Marud Gan are your brothers. Accept the share of offerings from the Yagy. Do not kill us in the war.
किं नो भ्रातरगस्त्य सखा सन्नति मन्यसे। 
विद्मा हि ते यथा मनोऽस्मभ्यमिन्न दित्ससि
हे भ्राता अगस्त्य! मित्र होकर आप हमें क्यों अपमानित कर रहे हैं? आपका मन जिस
भावना से ग्रसित है, उसे हम भली-भाँति जानते हैं, आप हमारा भाग हमें नहीं देना चाहते हैं।[ऋग्वेद 1.170.3]
इन्द्र देव ने कहा, हे अगस्त्य! सखा होकर हमारा आदर नहीं करते हो? हम तुम्हारे मन को जानते हैं! तुम हमें देना नहीं चाहते?
Hey bother August! Why are you insulting us, in spite of our friend? We understand your inner feeling-sentiments. You do not want to share of offerings with us.
अरं कृण्वन्तु वेदिं समग्निमिन्धतां पुरः। 
तत्रामृतस्य चेतनं यज्ञं ते तनवावहै
ऋत्विकगण आप वेदी को सजावें और समक्ष अग्नि को प्रज्वलित करें। उसके बाद उसमें आप और हम अमृत के सूचक यज्ञ को करें।[ऋग्वेद 1.170.4]
हे ऋत्विजों! वेदो को सुसज्जित करो। अग्नि को प्रदीप करो। फिर हम अमृत के समान गुणदाता यज्ञ का विस्तार करें।
Hey Ritviz! You decorate the Vedi-site of Yagy and ignite the fire. Thereafter let us hold the Yagy which is like ambrosia, nectar. 
त्वमीशिषे वसुपते वसूनां त्वं मित्राणां मित्रपते धेष्ठः। 
इन्द्र त्वं मरुद्भिः सं वदस्वाध प्राशान ऋतुथा हवींषि
हे धन के अधिपति, हे मित्रों के मित्रपति! आप ईश्वर हैं, आप सबके आश्रय स्वरूप हैं। आप मरुद्गणों से कहें कि हमारा यज्ञ पूर्ण हुआ है। हमारे द्वारा दी गई आहुतियों का सेवन करें।[ऋग्वेद 1.170.5]
अगस्त्य ने कहा हे धनपते! तुम धनों के स्वामी हो। हे मित्रपते! तुम मित्रों के शरण रूप हो। हे इन्द्रदेव! तुम मरुतों के साथ समानता शरण रूप हो। हे इन्द्रदेव! तुम मरुतों के साथ बराबरी वाले हो, हमारी हवियाँ ग्रहण करो।
Hey the overlord, hegemonic of wealth! You are the lord of friendship. You are the protector of all. Ask the Marud Gan that our Yagy has been accomplished. Accept the offerings made by us.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (171) ::  ऋषि :- अगस्त्य, देवता :- इन्द्र, मरुत्,  छन्द :- त्रिष्टुप्।
प्रति व एना नमसाहमेमि सूक्तेन भिक्षे सुमतिं तुराणाम्। 
रराणता मरुतो वेद्याभिर्नि हेळो धत्त वि मुचध्यमश्वान्
हे मरुतो! मैं नमस्कार और स्तुति करता हुआ आपके पास आता हूँ और आपकी दया चाहता हूँ। हे मरुतो! स्तुति द्वारा आनन्दित चित्त से क्रोध का परित्याग कर रुकने की कृपा करें।[ऋग्वेद 1.171.1] 
हे मरुतो! मैं प्रणाम करता हुआ तुम्हारे नजदीक आता हूँ। तुम गतिवानों से दया की विनती करता हूँ। तुम वंदनाओं से प्रसन्न होकर आक्रोश को शांत करो। अपने रथ से अश्वों को खोल दो।
Hey Marud Gan! I have come to you to greet and pray you and desire your favours-mercy, kindness. Hey Marud Gan! Be happy with our requests & prayers, reject your anger & stay with us. Release-untie the horses from your charoite.
एष वः स्तोमो मरुतो नमस्वान्हृदा तष्टो मनसा धायि देवाः। 
उपेमा यात मनसा जुषाणा यूयं हि ष्ठा नमस इधासः
हे मरुतो! हमारे स्तोत्रों को ध्यान पूर्वक श्रवण करें। इन स्तोत्रों से आनन्दित होकर आप हमारे पास आयें और हमारे हविरूप अन्न की वृद्धि करें।[ऋग्वेद 1.171.2]
हे मरुदगण! प्रणामों से युक्त हमारा तुम्हारा यह श्लोक मन से रचा गया और मन में स्वीकार किया गया है। इसलिए इसे स्वीकार करते हुए स्नेह वश यहाँ आओ। तुम निश्चय ही हव्यान्न को बढ़ाते हो।
Hey Marud Gan! Listen to the prayers by us. Be happy, come to us, accept the offerings and increase our stock of food stuff.
स्तुतासो नो मरुतो मृळयन्तूत स्तुतो मघवा शंभविष्ठः। 
ऊर्ध्वा नः सन्तु कोम्या वनान्यहानि विश्वा मरुतो जिगीषा
हे मरुद्गण हे इन्द्रदेव! हमारी प्रार्थनाओं से प्रसन्न होकर आप हमें सुख और सौभाग्य प्रदत्त करे, जिससे हमारा शेष जीवन सुखमय, प्रशंसनीय और वैभव युक्त हो।[ऋग्वेद 1.171.3]
वंदना किये जाने पर मरुद्गण हम पर कृपा दृष्टि करें। वंदना करने पर इन्द्रदेव भी शांति दाता हों। हे मरुतो! हमारी आयु के दिन रमणीय सुख से परिपूर्ण महान और विजय पूर्ण रहें।
Hey Marud Gan & Indr Dev! Being happy with our prayers-worship, grant us comforts and good luck so that rest of our life is appreciable and full of majesty.
अस्मादहं तविषादीषमाण इन्द्राद्भिया मरुतो रेजमानः। 
युष्मभ्यं हव्या निशितान्यासन्तान्यारे चकृमा मृळता नः
हे मरुतो! हम इस बलवान् इन्द्रदेव के भय से भयभीत होकर कम्पायमान होते हुए पलायित होते हैं। आपके निमित्त रखी हुई हवियों को हमने एक ओर हटा दिया है। हम अपने सुख के लिए आपकी कृपा दृष्टि चाहते हैं।[ऋग्वेद 1.171.4]
हे मरुद्गण! हम इन शक्तिशाली इन्द्र के डर से भागते हुए एक कम्पायमान होते रहते हैं। तुम्हारे लिए जो हव्य तैयार रखा था, उसे हमने दूर कर लिया। अब तुम हम पर दया करो।
Hey Marud Gan! We are trembling & running away due to the fear of Indr Dev. We have kept the offerings aside and seek your favours-mercy. 
येन मानासश्चितयन्त उस्त्रा व्युष्टिषु शवसा शश्वतीनाम्। 
स नो मरुद्भिर्वृषभ श्रवो धा उग्र उग्रेभिः स्थविरः सहोदाः
हे इन्द्र देव! आप बल स्वरूप हैं। आपके माननीय अनुग्रह से किरणें प्रतिदिन उषा के उदयकाल में प्राणियों को चैतन्यता प्रदान करती हैं। हे अभीष्टवर्षी, उग्र बलप्रदायी और पुरातन इन्द्रदेव! आप उग्र मरुतों के साथ अन्न ग्रहण करें।[ऋग्वेद 1.171.5] 
हे वीर इन्द्रदेव! तुम्हारी शक्ति से प्रेरित हुई उषायें नित्य खिलती और प्राणधारियों को जाग्रत करती हैं। तुम विकराल कार्य वाले, मरुतो के संग हमारे लिए अन्न को धारण करो।
Hey Indr Dev! You are a form of strength & might. Due to your grace-kindness, Usha make the living beings conscious. Hey accomplishments-desires fulfilling eternal Indr Dev! You should accept food along with the Marud Gan.
त्वं पाहीन्द्र सहीयसो नॄन्भवा मरुद्भिरवयातहेळाः। 
सुप्रकेतेभिः सासहिर्दधानो विद्यामेषं वृजनं जीरदानुम्
हे इन्द्र देव! प्रभूत बलशाली मरुतों की रक्षा करें। उनके प्रति क्रोधी न बनें। मरुद्गण उत्तम प्रजा वाले हैं। उनके साथ शत्रुओं के विनाशक बनें और हमारी रक्षा करें, जिससे हम अन्न, बल और दीर्घायु को प्राप्त करें।[ऋग्वेद 1.171.6]
हे अजेय इन्द्र देव! तुम उन मेधावी मरुतों के साथ अपने क्रोध को शांत करो। शत्रुओं को पराजित करते हुए हमारी रक्षा करो। हम अन्न, बल प्राप्त करें और हमारा स्वभाव दानशील हो।
Hey invincible Indr Dev! Protect the Marud Gan possessing abundant might. Do not be angry with them. Marud Gan are the protector of the populace. Join them to vanish-kill the enemy and protect us, so that we get food and strength.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (172) ::  ऋषि :- अगस्त्य, देवता :- मरुत्, छन्द :- जगती ।
चित्रो वोऽस्तु यामश्चित्र ऊती सुदानवः। मरुतो अहिभानवः
हे दानशील और उत्कृष्ट दीप्तिवाले मरुद्गणो! यज्ञ में आपका आगमन विचित्र हैं। आपका आगमन हमें रक्षित करे।[ऋग्वेद 1.172.1]
हे कल्याणकारी मरुतों! तुम्हारा आगमन हमारी सुरक्षा का प्रत्यक्ष कारण बने।
Hey beneficial, protective excellent aura possessing Marud Gan! Your arrival at the Yagy is amazing. Your arrival may protect us.
आरे सा वः सुदानवो ऋञ्जती शरुः। आरे अश्मा यमस्यथ 
हे दान शील मरुद्गणों! शत्रुओं की ओर चलाये गये आपके विनाशक अस्त्र हमसे दूर जाकर गिरे। जिससे आप शत्रुओं का संहार करते हैं वह वज्र भी हमसे दूर रहे।[ऋग्वेद 1.172.2]
हे कल्याणदाता मरुद्गण! तुम्हारे नाशक शस्त्र हमसे दूर रहें। जिस अस्त्र को फेंकते हो, वह हमसे दूर जाकर गिरे।
Hey protector, beneficial Marud Gan! Let the weapons projected by the enemy fall away from us.  The Vajr with which you eliminate the enemy should also be away from us. 
तृणस्कन्दस्य नु विशः परि वृङ्क सुदानवः। ऊर्ध्वान्त्रः कर्त जीवसे 
हे दाता मरुद्गणों! तृण के तुल्य नीच होने पर भी मेरी प्रजाओं को बचाते हुए हमें उन्नत करें, जिससे हम भी बच जावें।।[ऋग्वेद 1.172.3] 
हे मंगलमय मरुद्गण! तृण के समान अवनति के प्राप्त होने पर भी हमारे सम्मान की रक्षा नहीं करना। हमें ऊँचा उठाओ जिसमें हम पूर्ण आयु तक जीवित रह सकें।
Hey donator Marud Gan! Protect our populace which is too low in status like the straw, boost us, so that we too are protected-survived to attain our full age.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (173) ::  ऋषि :- अगस्त्य, देवता :- इन्द्र,  छन्द :- विराट्।
गायत्साम नभन्यं १ यथा वेरर्चाम तद्वावृधानं स्वर्वत्। 
गावो धेनवो बर्हिष्यदव्धा आ यत्सद्मानं दिव्यं विवासान्
हे स्वर्गीय इन्द्र देव! उद्गाता अर्थात् सामवेद पाठी प्रसन्नता पूर्वक सामवेद का गान करते हैं, जिसे आप समझ सकें। हम उस वर्द्धमान और स्वर्ग प्रदाता स्तोत्र की पूजा करते हैं। दुग्धवती और हिंसा रहित गायें जिस प्रकार कुशासन पर बैठने के समय आपकी सेवा करती हैं, उसी प्रकार मैं भी पूजा करता हूँ।[ऋग्वेद 1.173.1]
उद्गाता :: उच्च स्वर में सामवेद का गान करने वाला ऋत्विज। सोमयज्ञों के अवसर पर साम या स्तुति मंत्रों के गाने का कार्य उद्गाता का अपना क्षेत्र है। यज्ञ में सामवेदीय कृत्य करने वाला गायन करने वाला ऋत्विज्।
स्थाना गायक पक्षी के तुल्य अद्भुत सोम को पायें। हम उससे ज्ञान की ज्योति करते हुए उसका मान करें। हिंसा से पृथक पयस्विनी धेनु कुश पर विराजमान इन्द्र देव की सेवा करती हैं। हविदाता यजमान अध्वर्युओ के साथ हव्य प्रदान करते हुए इन्द्र देव को अर्चन करते हैं।
Hey the lord of heavens Indr Dev! The Ritviz reciting-sing Sam Ved in loud voice, in such a way you are able to understand-grasp it. We-The Ritviz pray this Strotr which give us progress and grant us heaven. 
अर्चषा वृषभिः स्वेदुहव्यैमृगो नाश्नो अति यज्जुगुर्यात्। 
प्र मन्दयुर्मनां गूर्त होता भरते मर्यो मिथुना यजत्रः
हव्य देने वाले यजमान हव्य प्रदाता अध्वर्यु आदि के साथ अपने दिए हव्य द्वारा इन्द्र देव की पूजा करते हैं। उस समय हवि सेवन के इच्छुक इन्द्र देव सिंह के तुल्य अपने भक्ष्य की कामना करते हैं और तेजस्वी ऋत्विक् का सामर्थ्य वर्धक अपना हविष्यान इन्हें समर्पित करते हैं।[ऋग्वेद 1.173.2]
हे इन्द्र देव! तुम अत्यन्त पूजनीय हो। तुम्हारी स्मृति की इच्छा से प्राणी होता यज्ञ का आयोजन करते हैं। होता रूप सूर्य चारों ओर फैला है। 
Hey Indr Dev! The Riviz-Hota (organiser of the Yagy) pray to you and make offerings. You accept the offerings like a lion to enhance-boost the capabilities of the devotee.  
नक्षद्धोता परि सद्म मिता यन्भरद्गर्भमा शरदः पृथिव्याः। 
क्रन्ददश्वो नयमानो रुवद्गौरन्तर्दूतो न रोदसी चरद्वाक्
होम सम्पादक अग्निदेव परिमित गार्हपत्यादि स्थान में चारों ओर व्याप्त हैं और शरत्काल के और पृथ्वी के गर्भस्थानीय अन्न को ग्रहण करते हैं। अश्व की तरह शब्द करके (हिनहिनाना), बैल को तरह शब्द करके अन्न लेकर आकाश और पृथ्वी के मध्य में दूत स्वरूप वार्ता करते हैं।[ऋग्वेद 1.173.3]
हिनहिनाना :: हींसना; snort, neigh, horse laugh. 
हिनहिनानावे शरद से पूर्व रूप अन्न को पृथ्वी में धारण करते हैं। अश्व की तरह शब्द करते हुए अन्न युक्त, गगन और धरती के बीच दूत के समान कार्य करते हैं। 
Agni Dev as the organiser-conductor of the Yagy pervades all around the Yagy site. He accepts the food grains from the earth during chilly winters. He neigh like a horse and bellow like a bull and acts like a mediator-middle man between the earth and the sky.
ता कर्माषतरास्मै प्र च्यौलानि देवयन्तो भरन्ते। 
जुजोषदिन्द्रो दस्मवर्चा नासत्येव सुग्म्यो रथेष्ठाः
हम इन्द्र देव के उद्देश्य से अत्यन्त व्यापक हव्य प्रदान करते हैं। देवाभिलाषी यजमान सुन्दर स्तोत्र का पाठ करते हैं। दर्शनीय तेज वाले अश्विनी कुमारों की तरह जानने योग्य और रथ पर अवस्थित इन्द्रदेव हमारे स्तोत्र को ग्रहण करें।[ऋग्वेद 1.173.4]
इन्द्रदेव के लिए यह हव्य अधिक रुचिकर किया है। यजमान महान श्लोकों को अर्पण करते हैं। अश्विनी कुमारों के तुल्य तेजस्वी रथ उन्हें स्वीकृत करें। 
We make offerings for the pleasure (to please) of Indr Dev. The devotees who wish to attain (see, visualise, to be face to face with) the demigods-deities recite beautiful compositions. Let Indr Dev accept our prayers seated over the charoite like the Ashwani Kumars. 
तमु ष्टुहीन्द्रं यो ह सत्वा यः शूरो मघवा यो रथेष्ठाः।
प्रतीचश्चिद्योधीया न्वृषण्वान्ववव्रुषश्चित्तमसो विहन्ता
हे होता! जो इन्द्रदेव अनन्त बलवाले, शौर्य्यवान्, बलवान् रथ पर आरूढ़, सामने के योद्धाओं में श्रेष्ठ योद्धा, वन आदि वाले और मेघ आदि के विनाशक हैं, उनकी स्तुति करें।[ऋग्वेद 1.173.5]
हे मनुष्यों! उस महाबलिष्ठ दृढ़ इन्द्रदेव की वंदना करो। यह सभी से अधिक वीर एवं अंधकार को समाप्त करने वाले हैं।
Hey hosts-humans! Let us pray to Indr Dev, who is a great warrior, riding a strong charoite, capable of destroying great enemy warriors, forests and the clouds. 
प्र यदित्था महिना नृभ्यो अस्त्यरं रोदसी कक्ष्ये नास्मै।
सं विव्य इन्द्रो वृजनं न भूमा भर्ति स्वधावाँ ओपशमिव द्याम्
हे इन्द्र देव! अपनी महिमा से कर्मनिष्ठ यजमानों को स्वर्ग आदि फल देने में आप समर्थ हैं। द्यावा पृथ्वी उनकी कक्षा की पूर्ति के लिए पर्याप्त नहीं है। जिस प्रकार अन्तरिक्ष पृथ्वी को वेष्टित करता है, उसी प्रकार वे भी अपनी प्रतिभा से तीनों लोकों को व्याप्त करते हैं। जिस प्रकार बैल अनायास श्रृंग धारण करता है, उसी प्रकार अन्नवान् इन्द्रदेव भी स्वर्ग को अनायास धारित करते हैं।[ऋग्वेद 1.173.6]
जो इन्द्रदेव अपनी महिमा से अग्रगण्य हैं, उनकी पूर्ति के लिए गगन और धरती भी पर्याप्त नहीं है। उन इन्द्रदेव ने धरती को बालों के समान और नभ को मुकुट के समान स्वीकार किया है।
Hey Indr Dev! You are capable of accomplishing the wishes of devotees who make efforts and desire to be granted a place in the heavens. Neither the sky nor the earth are capable of approving their desires. The manner in the sky sustain-support the earth, you are capable of pervading the three abodes (earth, heavens, the Nether world).
समत्सु त्वा शूर सतामुराणं प्रपथिन्तमं परितंसयध्यै। 
सजोषस इन्द्रं मदे क्षोणी: सूरिं चिद्ये अनुमदन्ति वाजैः
हे शूर इन्द्र देव! युद्ध भूमि में साधुओं के बल प्रद और उत्तम मार्ग रूप हैं। मरुद्गण आपको स्वामी कहकर आनन्दित होते हैं। वे आपके परिजन हैं। आपके आनन्द के लिए सब लोग समान आनन्दित होकर आपको अलंकृत करने की चेष्टा करते हैं।[ऋग्वेद 1.173.7]
हे परक्रमी इन्द्र देव! धरा आदि संसार तुम एक हृदय वाले सत्पुरुषों को वरण करने योग्य पराक्रमी को शोभायवान करते हैं और तुम्हारे उपास्य को अन्नादि से परिपूर्ण करते हैं।
Hey might Indr Dev! You are a patron & protector of the saintly in the war. The Marud Gan consider you as their patron. You are friendly with them and maintain family relations & ties. All humans make efforts to please you. 
एवा हि ते शं सवना समुद्र आपो यत्त आसु मदन्ति देवीः। 
विश्वा ते अनु जोष्या भूद्गौ: सूरीश्चिद्यदि धिषा वेषि जनान्
यदि अन्तरिक्ष स्थित और प्रकाशमान जल प्रजाओं के लिए आपको सुखा कर यदि सारे स्तोत्र आदि आपको प्रसन्न करें और यदि आप वृष्टि-प्रदान आदि कर्म द्वारा स्तोताओं की कामना पूर्ण करें, तो आपका सवन सुखकर हैं।[ऋग्वेद 1.173.8]
हे इन्द्रदेव! सोम की आहुतियाँ अंतरिक्ष में लीन होकर प्रजा को सुखी करें। ये वंदनाएँ तुम्हें प्रसन्न करती हैं, तब वाणी तुम्हारी सेवा करती है। तुम वंदना करने वालों की प्रार्थना की इच्छा करते हो।
Your worship leads to comforts-happiness, when you release rains leading to endeavours by the humans. They make you happy by the recitation of hymns Strotr.
असाम यथा सुषखाय एन स्वभिष्टयो नरां न शंसैः। 
असद्यथा न इन्द्रो वन्दनेष्ठास्तुरो न कर्म नयमान उक्था
हे प्रभु इन्द्र देव! हम मित्र के तुल्य आपके साथ जैसा व्यवहार करते हैं, वैसा ही व्यवहार आप भी हमारे साथ करें। हमारी स्तोत्र रूप वाणियाँ आपसे अभीष्ट की पूर्ति करावें। आप हमारी स्तुतियों को सुनकर हमें कर्म करने की प्रेरणा प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.173.9]
हे स्वामिन! तुम वही करो जिससे हम तुम्हारे सखा बन सके और हमारी प्रार्थनाएँ तुमसे अभिष्ट प्राप्त कर सकें। तुम्हारी प्रार्थनाओं को श्रवण करते हुए कर्म सम्पादन करने वाले बनो।
Hey lord Indr Dev! We treat you as a friend & you should also reciprocate. Let our prayers inspire you to help us in accomplishment of our desired goals-targets. Motivate-inspire us to perform, responding-answering to our calls-payers.
विष्पर्धसो नरां शंसैरस्माकासदिन्द्रो वज्रहस्तः। 
मित्रायुवो न पूर्पतिं सुशिष्टौ मध्यायुव उप शिक्षन्ति यज्ञैः
याज्ञिकों के सदृश ही स्तोता लोग भी इन्द्र देव की स्तुति अर्थात् प्रार्थना करते हैं, ताकि वज्र धारण करने वाले इन्द्र देव की मित्रता उन्हें प्राप्त हो। जिस प्रकार नगर के स्वामी की हितैषी लोग पूजा करते हैं, उसी प्रकार ही हमारे बीच अवस्थानाभिलाषी अध्वर्यु लोग हव्यादि द्वारा इन्द्रदेव की पूजा करते हैं।[ऋग्वेद 1.173.10]
जैसे प्रशंसा करने पर स्पर्द्धा वाला मनुष्य सहृदय बन जाता है, वैसे ही वज्रधारी इन्द्रदेव हमारे प्रति हो जायें। जैसे नगर के योग्य अधिकारी के सुशासन से सभी वंदना करते हैं वैसे ही हम इन्द्रदेव की अर्चना करेंगे।
The Ritviz pray to Indr Dev to seek the blessings of Vajr yielding Indr Dev as a friend. The way the governors of the cities pray to Indr Dev as a lord, the devotees too pray to him.
यज्ञो हि ष्मेन्द्रं कश्चिदृन्धञ्जुहुराणश्चिन्मनसा परियन्। 
तीर्थे नाच्छा तातृषाणमोको दीर्घो न सिध्रमा कृणोत्यध्वा
जिस प्रकार यज्ञ परायण व्यक्ति यज्ञ द्वारा इन्द्र की वृद्धि करता है और कुटिल गति व्यक्ति मन ही मन सदा चिन्ता परायण रहता है, जिस प्रकार तीर्थ मार्ग में सम्मुख स्थित जल तत्काल जल प्यासे व्यक्ति को निराश करता है।[ऋग्वेद 1.173.11]
यदि कोई व्यक्ति मन से कुटिल हुआ यज्ञ में इन्द्र की अर्चना करता है तो लम्बी राह से प्यासे को शीघ्र जल प्राप्त होने के समान उस कुटिल मन वाले का यज्ञ फल की ओर नहीं जाता।
The efforts, prayers (worship) of the person engaged in Yagy (pious, virtuous, righteous activities) leads to rewards while a cheat-fraudsters fail to achieve his  nasty designs.
मो षू ण इन्द्रात्र पृत्सु देवैरस्ति हि ष्मा ते शुष्मिन्नवयाः।
महश्चिद्यस्य मीळ्हुषो यव्या हविष्मतो मरुतो वन्दते गीः
हे बलवान् इन्द्र देव! युद्ध काल में मरुतों के साथ आप हमें नहीं छोड़ना; क्योंकि आपके लिए यज्ञ का भाग स्वतंत्र है। हमारी फल-समन्वित स्तुति महान, हविष्मान् और जलदाता मरुद्गणों की वन्दना करती है।[ऋग्वेद 1.173.12]
हे शक्तिशाली इन्द्रदेव तुम संग्राम में हमसे विमुक्त न रहो। हे देवगण के साथ तुम्हारा हव्य भाग भी प्रस्तुत है। तुम्हारे साक्षी मरुद्गण को भी हम हवि प्रदान करते हैं।
Hey might Indr Dev! Do not desert the Marud Gan in the war. We have reserved a portion of offerings in the Yagy for you. We pray-request the Marud Gan with the desire of rains and make offerings in the form of fruits and flowers.
एष स्तोम इन्द्र तुभ्यमस्मे एतेन गातुं हरिवो विदो नः। 
आ नो ववृत्याः सुविताय देव विद्यामेषं वृजनं जीरदानुम्
हे हरि वाहन इन्द्र देव! हमारे यह स्तोत्र आपके निमित्त है। आप हमारे यज्ञ के उद्देश्य को समझें और हमें अन्न और धनादि से पूर्ण करें, जिससे हमारा कल्याण हो सके।[ऋग्वेद 1.173.13]
हे घोड़ों के सहित इन्द्रदेव! यह श्लोक तुम्हारा ही है। इसके द्वारा हमारे रास्ते पर आओ। कल्याण के लिए हमारी ओर भ्रमण करो। हम अन्न और बल की प्राप्ति करते हुए उत्तम स्वभाव वाले हों।
Hey Indr Dev, rider of the horses named Hari! This hymn-Strotr is for you. You should realise our desire-endeavour grant us food stuff, riches leading to our benefit.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (174) ::  ऋषि :- अगस्त्य, देवता :- इन्द्र,  छन्द :- त्रिष्टुप्। 
त्वं राजेन्द्र ये च देवा रक्षा नॄन्याह्यसुर त्वमस्मान्। 
त्वं सत्पतिमघवा नस्तर्मत्रस्त्वं सत्यो वसवानः सहोदाः
हे इन्द्र देव! आप समस्त संसार के और सभी देवताओं के राजा हैं। आप मनुष्यों को रक्षा करते हैं। असुर से आप हमारी रक्षा करें। आप साधुओं के पालक, धनवान् और हमारा उद्धार करने वाले हैं। आप सत्य और बल प्रदान करने वाले हैं। आपने अपने तेज से सबको आच्छादित कर दिया है।[ऋग्वेद 1.174.1]
उद्धार कर्ता :: saviour, emancipator
मुक्तिदाता, उद्धारक, उद्धारकर्ताहे इन्द्र देव! तुम समस्त संसार के स्वामी हो तुम हमारी भी पोषण करो। हमारे पराक्रमियों की सुरक्षा करो। तुम सत्कर्म कर्त्ताओं के उद्धार कर्त्ता हो। तुम धन और शक्ति के दाता हो।
Hey Indr Dev! You are the protector, lord of the humans and the demigods-deities. Save us from the wicked-demons. You nurse the saints-sages and our saviour-emancipator. You grant us truth, riches & power-might. You have pervades all with your aura. 
दनो विश इन्द्र मृध्रवाचः सप्त यत्पुरः शर्म शारदीर्दर्त्। 
ऋणोरपो अनवद्यार्णा यूने वृत्रं पुरुकुत्साय रन्धीः
हे अनिन्दनीय इन्द्र देव! जिस समय आपने संवत्सर पर्यन्त दृढ़ी कृत सात भवनों को नष्ट किया था, उसी समय कठोर वचन बोलने वाले शत्रु सैनिकों को भी नष्ट कर दिया था। आपने गति शील जल दिये और आपने युवा पुरुकुत्स राजा के लिए वृत्रासुर का वध किया।[ऋग्वेद 1.174.2]
संवत्सर :: Its a Sanskrat term for a year which refer to Jovian year, that is a year based on the relative position of the planet Jupiter.
हे इन्द्र देव! तुमने अपमान करने वाले व्यक्तियों को धनहीन और शक्तिहीन बना दिया। तुमने उनके किलों को ध्वस्त कर दिया और जल को प्रवाहमान किया। युवा पुरुकुत्स के शत्रु को उसके अधिकार में कराया।
Hey revered Indr Dev! You destroyed the seven buildings (enemy forts) over a Jovian year and killed the harsh spoken soldiers of the enemy. You made the water move and killed Vrata Sur for the sake of young Purukuts.
अजा वृत इन्द्र शूरपत्नीर्द्यां च येभिः पुरुहूत नूनम्र। 
रक्षो अग्निमशुषं तूर्वयाणं सिंहो न दमे अपांसि वस्तोः
हे इन्द्र देव! आप राक्षसों की सारी नगरियों में जाते हैं और वहाँ से हे पुरुहूत! अनुचरों के साथ स्वर्ग लोक में जाते हैं। वहाँ अशोषक और शीघ्रकारी अग्नि की सिंह की तरह रक्षा करते हैं, जिससे कि वह अपने गृह में अपना कर्तव्य पूर्ण कर सके।[ऋग्वेद 1.174.3]
पुरुहूत :: जिसका आह्रान बहुतों ने किया हो, जिसकी बहुत से लोगों ने स्तुति की हो,
इन्द्र। 
हे बहुतों द्वारा आहुत इन्द्रदेव! तुम वीरों द्वारा रक्षा करने वालों की सेनाओं को प्रेरित करो। तुम जिस अग्नि से प्रकाश को प्राप्त होते हो उस वन राज के समान अग्नि को हमारे गृह में स्थापित करो।
Hey Indr Dev! You attack the cities-forts of the demons and move to heavens thereafter along with your followers. There you protect the fire which is like the lion so that the domestic works, duties, functions can be completed-accomplished.
शेषन्नु त इन्द्र सस्मिन्योनौ प्रशस्तये पवीरवस्य मह्ना। 
सृजदर्णांस्यव यद्युधा गास्तिष्ठद्धरी धृषता मृष्ट वाजान्
हे इन्द्र देव! आपकी महिमा को बढ़ाने के लिए वज्र के प्रहार से रण भूमि में असुर लोग धराशायी होकर गिर पड़े। जिस समय आपने योद्धा शत्रुओं के पास जाकर उनके द्वारा रोके हुए जलों को पुनः प्रवाहित किया, उसी समय आप अपने दोनों अश्वों पर आरूढ़ हो गये। आपने अपनी घर्षक और आसुरी-संहारक क्षमता से अपने सैनिकों को संरक्षित किया।[ऋग्वेद 1.174.4]
हे इन्द्र! तुम्हारी प्रशंसा के लिए वज्र के पराक्रम से शत्रु मारकर सो गए। उस समय तुमने जल और गौओं को छोड़ा तथा शत्रु को धनहीन बनाया।
Hey Indr Dev! Your glory boosted up by the slaying of the wicked-demons when they fell down in the war field by the striking of Vajr. You released the water blocked by them and rode your two horses protecting the own soldiers from the demonic strike. 
वह कुत्समिन्द्र यस्मिञ्चाकन्त्स्यूमन्यू ॠज्रा वातस्याश्वा। 
प्र सूरश्चक्रं वृहतादभीकेऽभि स्पृधो यासिषद्वज्रबाहुः
हे इन्द्र देव! आप जिस यज्ञ में कुत्स ऋषि की कामना करते हैं, उसमें अपने वशीभूत, सरलगामी और वायु के समान वेगशाली अश्वों को परिचालित करते हैं। युद्ध में सूर्यदेव अपने चक्र को और इन्द्र देव अपने वज्र को शत्रु सेना की ओर उन्मुख करें।[ऋग्वेद 1.174.5]
हे इन्द्र देव! तुम कुत्स की इच्छा करते हुए शीघ्रगामी, सुखदायक अश्वों को चलाते हो। तब सूर्य अपने रथ चक्र को निकट लाते हैं और तुम वज्र धारण कर शत्रुओं का सामना करते ह्मे।
Hey Indr Dev! You move your fast running horses, who move fast like the wind-storm, towards the Yagy site of Kuts Rishi. Let Sun divert his disc-wheel and Indr Dev his Vajr towards the enemy army.
जघन्वाँ इन्द्र मित्रेरूञ्चोदप्रवृद्धो हरिवो अदाशून्। 
प्र ये पश्यन्नर्यमणं सचायोस्त्वया शूर्ता वहमाना अपत्यम्
हे हरि वाहन इन्द्र देव! आपने स्तोत्र द्वारा प्रवृद्ध होकर दान-रहित और यजमानों के विघ्नकारी लोगों का विनाश किया। जिन्होंने आपको आश्रयदाता रूप से देखा और जो आपको हव्य प्रदान करते हैं, वे आपसे संतान प्राप्त करते हैं।[ऋग्वेद 1.174.6]
हे इन्द्र देव! तुमने अपने मित्रों को संतान देने वाले अदानशीलों का विनाश किया जो तुम्हें प्राणियों के प्रिय रूप से देखते हैं वे संतानयुक्त हुए सदैव स्थिर रहते हैं।
Hey Indr Dev, riding the horses named Hari! You destroy those who do not donate and kill the disturbing elements, in response to the Strotr recited by the hosts-devotees. They look at you as a protector granting them asylum and they make offerings for you. You bless them with progeny.
रपत्कविरिन्द्रार्कसातौ क्षां दासायोपबर्हणीं कः। 
कर्रेत्तस्रो मघवा दानुचित्रा नि दुर्योणे कुयवाचं मृधि श्रेत्
हे इन्द्र देव! पूजनीय अन्न की प्राप्ति के लिए विद्वान् लोग आपकी स्तुति करते हैं। तब आपने शत्रुओं का वघ करके उन्हें पृथ्वी रूपी शय्या पर शयन करा दिया। इन्द्र देव ने तीन भूमियों के दान द्वारा विचित्र कार्य किये और दुर्योणि राजा के लिए कुयवाच राक्षस का वध किया।[ऋग्वेद 1.174.7]
हे इन्द्र देव! अन्न की प्राप्ति हेतु ऋषियों ने तुम्हारी वंदना की। तुमने तीन भूमियों का दिव्य दान दिया। संग्राम में दुर्योण के लिए कुयवाच को मरवाया।
Hey Indr Dev! The enlightened-learned worship you for the sake of quality foods stuff. At this moment you kill the enemy and lay them over the soil. Indr Dev donation three pieces of land and performed amazing deeds. You killed demon called Kuywach  for the sake of Duryon in the war. 
सना ता त इन्द्र नव्या आगुः सहो नभोऽविरणाय पूर्वी:। 
भिनत्पुरो न भिदो अदेवरियो वधरदेवस्य पीयोः
हे इन्द्र देव! नये ऋषिगण आपके सनातन प्रसिद्ध वीर कर्म की स्तुति करते हैं। आपने अनेक हिंसकों को संग्राम में विनष्ट किया। आपने देवशून्य विपक्ष नगरों को नष्ट किया और शत्रुओं का अस्त्र भी नष्ट कर दिया।[ऋग्वेद 1.174.8]
हे इन्द्र देव! तुम्हारे प्राचीन वीरता की नये ऋषियों ने वंदना की। तुमने किलों को ध्वस्त कर डाकुओं को छिन्न-भिन्न किया तथा देव शून्य निन्दक का अस्त्र नीचे झुकाया।
Hey Indr Dev! New Rishi Gan pray-worship mentioning your bravery and killing of the many violent enemies in the war. You destroyed the forts belonging to the opposition, along with their arms and ammunition.
त्वं धुनिरिन्द्र धुनिमतीर्ऋणोरषः सीरा न स्त्रवन्तीः। 
प्र यत्समुद्रमति शूर पर्षि पारया तुर्वशं यदुं स्वस्ति
हे शूर इन्द्र देव! आप शत्रुओं में कोलाहल उत्पन्न करने वाले हैं। इसीलिए आप प्रवहमाना सीरा नाम की नदी की तरह तरंग युक्त जल पृथ्वी पर गिराते हैं। जिस समय आप समुद्र को परिपूर्ण करते हैं, उस समय आपने तुर्वश और यदु के मंगल के लिए उनको पार उतारा।[ऋग्वेद 1.174.9]
हे इन्द्र देव! तुम शत्रुओं को कंपित करने वाले हो। तुमने जलों को नदियों के रूप में प्रवाहित किया। तुमसे समुद्र को परिपूर्ण किया। तुर्वश और यदु को पार लगाया।
Hey brave-mighty Indr Dev! You generate unrest uproar-clamour in the enemy. You make the rain showers fall over the earth like the river Seera creating waves-vibrations. When you fill the ocean, you move Turvash and Yadu cross it.
त्वमस्माकमिन्द्र विश्वध स्या अवृकतमो नरां नृपाता। 
स नो विश्वासां स्मृधां सहोदा विद्यामेषं वृजनं जीरदानुम्
है इन्द्र देव! आप सदा हमारे श्रेष्ठ रक्षक बने और प्रजाओं का पालन करें। हमारे सैनिकों को बल प्रदान करें, जिससे हम अन्न, बल और दीर्घायु प्राप्त हो सके।[ऋग्वेद 1.174.10]
हे इन्द्र! तुम हमारे हो। तुम प्राणियों की हिंसा के रक्षक हो। तुम हमको युद्धों में विजय हासिल कराते हो। हम ज्ञान, अन्न और लम्बी आयु प्राप्त करें।
Hey Indr Dev! You are our best protector. Grant strength to our warriors so that we are able to gain food grains, strength and longevity.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (175) :: ऋषि :- अगस्त्य, देवता :- इन्द्र, छन्द :- अनुष्टुप्, त्रिष्टुप्, बृहती।
मत्स्यपायि ते महः पात्रस्येव हरिवो मत्सरो मदः।
वृषा ते वृष्ण इन्दुर्वाजी सहस्त्रसातमः॥
हे हरिवाहन इन्द्रदेव! हर्षकर, अभीष्टवर्षी, आह्लादकारी, अन्नवान्, असीम दान वाले और महानुभावों द्वारा सोमरस जिस प्रकार पात्र में स्थापित किया जाता है, उसी प्रकार आप भी प्रसन्न होकर सोमरस का पान करते हुए आनन्द की अनुभूति करें।[ऋग्वेद 1.175.1]
महानुभाव :: excellency, gentleman.सज्जन, महानुभाव, भद्र मनुष्य, भद्रपुस्र्ष, शिष्ट मनुष्य, भलामानुसहे इन्द्र देव! आह्लादकारी सोम का पान किया, तुम पुष्ट हो गए। वह वीर्यवान पौष्टिक, विजेता सोम तुम्हारे लिए ही है।
Hey the rider of the horses named Hari Indr Dev! Pleasure creating, accomplishments fulfilling, food grains producing, donors store Somras in a pot for you to drink it and enjoy.
आ नस्ते गन्तु मत्सरो वृषा मदो वरेण्यः।
सहावाँ इन्द्र सानसिः पृतनाषाळमर्त्यः॥
हे इन्द्र देव! हर्षकर, अभीष्ट वर्षी, तर्पयिता, वरणीय, सहायवान्, शत्रु सैन्य विनाशक और अविनाशी सोमरस आपको प्राप्त हों।[ऋग्वेद 1.175.2]
हे इन्द्र देव! हमारा वह पौष्टिक एवं आह्लादकारी पेय तुम्हें ग्रहण हो। तुम बलिष्ठ, धन ग्रहण करने वाले शत्रु की वशीभूत करने वाले अमर हो।
Hey Indr Dev! Please accept the pleasure generating, accomplishment fulfilling, acceptable, helpful, enemy destroyer and imperishable Somras.
त्वं हि शूरः सनिता चोदयो मनुषो रथम्।
सहावान्दस्युमव्रतमोषः पात्रं न शोचिषा॥
हे इन्द्र देव! आप शूर और दाता है। मैं मनुष्य हूँ, मेरा मनोरथ पूर्ण करें। आप सहायवान् है। जिस प्रकार से अग्नि अपनी ज्वाला से पात्र को जलाता है, उसी प्रकार से आप व्रत रहित असुरों को जलायें।[ऋग्वेद 1.175.3]
हे इन्द्र देव! तुम शक्तिशाली तथा धन प्राप्त करके प्राणियों की ओर प्रेरित करने वाले हो। पात्र को ज्वाला से जलाने के तुल्य तुम राक्षसों को दंड देते हो।
Hey Indr Dev! You are brave and giver. I am a human being. Please accomplish my endeavours-desires. The way the fire heats up the pot, you burn the demons (wicked, sinners, immoral).
मुषाय सूर्य करें चक्रमीशान ओजसा।
वह शुष्णाय वधं कुत्सं वातस्याश्चैः॥
हे मेधावी इन्द्र देव! आप ईश्वर हैं। अपनी सामर्थ्य से अपने सूर्य के दो चक्रों में से एक का हरण कर लिया। शुष्ण का वध करने के लिए कर्त्तन साधन वज्र लेकर वायु के समान वेग वाले अश्व के साथ आयें।[ऋग्वेद 1.175.4]
हे प्रतापी इन्द्र! तुम ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिए सूर्य के रथ से गति प्राप्त करते हो। शुष्णवध के लिए पवन के घोड़ों में वज्र सहित प्राप्त हो जाओ।
Hey genius Indr Dev! You are a form of God. You reduced the two cycles of the Sun to one with your might-capability. Come to us riding the horses which moves fast like wind for killing Shusn-a demon with the Vajr.
शुष्मिन्तमो हि ते मदो द्युम्रिन्तम उत क्रतुः।
वृत्रघ्ना वरिवोविदा मंसीष्ठा अश्वसातमः॥
हे अनेक अश्व दाता इन्द्र देव! आपकी प्रसन्नता सब को शक्ति देने वाली एवं आपके श्रेष्ठ कर्म प्रचुर अन्न प्रदत्त करने वाले हैं। हमें वृत्रासुर का संहार करने वाले आयुध प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.175.5]
हे इन्द्र! तुम्हारी खुशी ही शक्ति है। तुम्हारा वचन कीर्ति है। तुम अश्व आदि के दाता, वृत्र नाशक और धन ग्रहण करने वालों के स्वामी हो।
Hey many horses provider Indr Dev! Your happiness grant strength to all and your excellent endeavours provide sufficient food grains. Grant us the weapons to kill Vrata Sur.
यथा पूर्वेभ्यो जरितृभ्य इन्द्र मयइवापो न तृष्यते बभूथ।
तामनु त्वा निविदं जोहवीमि विद्यामेषं वृजनं जीरदानुम्॥
हे इन्द्र देव! हम स्तुतियों द्वारा आपका आवाहन करते हैं, जिससे हम अन्न, धन, बल और दीर्घायु को प्राप्त करें। दुःखी स्तोताओं को आप सुखी करें और प्यासे स्तोताओं को जल प्रदान कर तृप्त करें।[ऋग्वेद 1.175.6]
हे इन्द्रदेव! जैसे तुमने प्राचीन वंदना करने वालों को सुख प्रदान किया। वैसे ही प्यासे को जल देने के समान मुझे भी सुख प्रदान करो।
Hey Indr Dev! We pray to you with the help of Stuti-hymns and invite you give us food grains, wealth, strength and longevity. Make the worried devotees happy. Grant water to the thirsty.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (176) ::  ऋषि :- अगस्त्य, देवता :- इन्द्र,  छन्द :- अनुष्टुप्, त्रिष्टुप्। 
मत्सि नो वस्यइष्टय इन्द्रमिन्दो वृषा विश।
ऋघायमाण इन्वसि शत्रुमन्ति न विन्दसि
हे सोम देव! धन प्राप्ति के लिए इन्द्र देव को प्रसन्न करें। अभीष्ट वर्षी इन्द्र देव के मध्य में प्रवेश करें। प्रसन्न होकर शत्रुओं का विनाश करते हुए क्रमश: आप व्याप्त होते हैं, इसलिए किसी शत्रु को समीप नहीं आने देते।[ऋग्वेद 1.176.1]
हे इन्द्र देव! हमें कल्याण प्राप्त कराने हेतु आह्लाद से परिपूर्ण होओ। यह सोम तुम्हारे शरीर में प्रवेश करे। तुम क्रोध में भर रहे हो परन्तु शत्रु हमारे सामने नहीं आना चाहता।
Hey Som Dev (Moon)! Let us make Indr Dev happy for the sake of wealth. Join Indr Dev. You eliminate the enemy on being happy and do not let the enemy come close. 
तस्मिन्ना वेशया गिरो य एकश्चर्षणीनाम्। 
अनु स्वधा यमुप्यते यवं न चर्कृषद् वृ
हे इन्द्र देव! आप मनुष्यों के अद्वितीय अधीश्वर हैं। आप यथारीति जौ की तरह हमारा अभीष्ट सार्थक करते हैं।[ऋग्वेद 1.176.2]
उसे इन्द्रदेव की प्रार्थनाएँ भेंट करो, उन मनुष्यों के अद्वितीय अधीश्वर की हवियाँ प्रदान करो। वे हमारे कर्म सिद्ध करते हैं।
Hey Indr Dev! you are the lord of the humans. You accomplish our desires- (goals, targets, endeavours). Let us make offerings to him.
यस्य विश्वानि हस्तयोः पञ्च क्षितीनां वसु। 
स्पाशयस्व यो अस्मध्रुग्दिव्ये वाशनिर्जहि
जिन इन्द्र देव के हाथों में ब्राह्मणादि चार वर्ण और निषाद की वैभव सम्पदा है, ऐसे ही आप हमारे विद्रोहियों को पराजित करें और आकाश से गिरने वाली तड़ित विद्युत के समान उनको नष्ट करें।[ऋग्वेद 1.176.3]
हे इन्द्र देव! तुम्हारे हाथें से प्राणी की पाँच जातियों का सम्पूर्ण धन है। वह इन्द्र हमारे विरोधियों को वज्र से नष्ट करें।
The assets of the four Varn & the Nishad etc. are with you (protected by you). You should defeat our enemy and destroy them like the strike of lightening-thunder Volt.
असुन्वन्तं समं जहि दूणाशं यो न ते मयः। 
अस्मभ्यमस्य वेदनं दद्धि सूरिश्चिदोहते
हे इन्द्र देव! जो लोग सोम रस का अभिषव नहीं करते और जिनका विनाश करना दुःसाध्य है, उनका वध करें; क्योंकि वे आपके सुख के कारण नहीं हैं। उनकी धन-सम्पदा को हमें प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.176.4]
अभिषव  :: यज्ञादि के समय किया जाने वाला स्नान, यज्ञ, सोमरस चुआना, आसवन, ख़मीर, काँजी, यज्ञ में स्नान, सोमरस खींचना-चुवाना, सोमलता को कुचलकर गारना या निचोड़ना, सोमरस पान, राजायारोहण, अधिकारप्राप्ति।
हे इन्द्र देव! सोम का अभिषव न करने वालों तथा मुश्किल से वश में आने वालों को मार दो। क्योंकि वे तुम्हें सुखी नहीं कर सकते। उनका धन हमें प्रदान करो। तुम्हारा स्तोता धन प्राप्त के योग्य है।
Hey Indr Dev! Those who do not extract Somras (for the sake of demigods, deities) are sure to perish. Kill them, since they cause worries-trouble. Let their wealth, assets, riches be given to us.
आवो यस्य द्विबर्हसोऽर्केषु सानुषगसत्। 
आजाविन्द्रस्येन्दो प्रावो वाजेषु वाजिनम्
हे सोम देव! स्तोत्रों के उच्चारण के समय उपस्थित रहकर आपने जिन दो प्रकार के (स्तोत्र :- ज्ञानयज्ञ, आहुपरक :- हविर्यज्ञ) यज्ञों को करने वाले यजमानों की रक्षा की, उसी प्रकार युद्ध के समय इन्द्रदेव की रक्षा करें।[ऋग्वेद 1.176.5]
हे सोम! इन्द्रदेव के श्लोक में जो लगातार लीन रहता है, तुम उसकी सहायता करते हो तुम उस वेगवान इन्द्रदेव की संग्राम में सुरक्षा करो।
Hey Som Dev! The way you protected the hosts-Ritviz in the Yagy, by presenting your self at the time of the recitation of sacred hymns-Strotr by them, you should also protect Indr Dev. 
यथा पूर्वेभ्यो जरितृभ्य इन्द्र मयइवापो न तृष्यते बभूथ। 
तामनु त्वा निविदं जोहवीमि विद्यामेषं वृजनं जीरदानुम्
हे इन्द्र देव! आपकी प्राचीन स्तुतियों द्वारा हम आपका आवाहन करते हैं, ताकि हम अन्न, बल और दीर्घायु प्राप्त करें।[ऋग्वेद 1.176.6]
हे इन्द्र देव! तुम प्यासे को पानी के समान प्राचीन स्तोता को सुख देने वाले हुए। मैं भी उसी प्रार्थना से तुम्हारा आह्वान करता हूँ। तुम अन्न, पराक्रम और धनशील स्वभाव प्राप्त करो।
Hey Indr Dev! We invite you by the recitation of the eternal-ancient hymns-Strotr to get food grains, strength and longevity.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (177) ::  ऋषि :- अगस्त्य, देवता :- इन्द्र,  छन्द :- त्रिष्टुप्। 
आ चर्षणिप्रा वृषभो जनानां राजा कृष्टीनां पुरुहूत इन्द्रः। 
स्तुतः श्रवस्यन्नवसोप मद्रिग्युक्त्वा हरी वृषणा याह्यर्वाङ्
मनुष्यों के प्रीतिदायक, सबके इच्छित वर्षक, मनुष्यों के स्वामी और बहुतों के द्वारा आहूत इन्द्रदेव हमारे पास आवें। हे इन्द्रदेव! हमारी स्तुति श्रवण कर दोनों तरुण अश्वों को रथ में नियोजित कर हव्य ग्रहण करने और रक्षा के लिए हमारे समक्ष पधारें।[ऋग्वेद 1.177.1]
आहूत :: संयोजित, आहूत, बुलायी गयी, आमन्त्रित; summoned, convened.
मनुष्यों के पोषक, महान स्वामी, स्तुत्य अनुष्ठान की इच्छा करने वाले इन्द्रदेव अपने शक्तिशाली अश्वों को रथ में जोड़कर सुरक्षा के लिए यहाँ पधारें।
Hey dear to humans, accomplishment-desires fulfilling of everyone, lord of humans and invited by many, Indr Dev! Hey Indr Dev! Listen-Answer our prayers, deploy the young horses in the charoite, come to us, accept the offerings and protect us.
ये ते वृषणो वृषभास इन्द्र ब्रह्मयुजो वृषरथासो अत्याः। 
ताँ आ तिष्ठ तेभिरा याह्यर्वाङ हवामहे त्वा सुत इन्द्र सोमे
हे इन्द्र देव! आपके जो तरुण, उत्तम मंत्र द्वारा रथ में योजनीय वर्षक और रथ से युक्त घोड़े हैं, उन पर आरूढ़ होकर हमारे समक्ष आवें।[ऋग्वेद 1.177.2]
हे इन्द्र देव! तुम्हारे पुष्ट, उन्नतशील श्लोक द्वारा रथ में जुतने वाले अश्व हैं, उन पर सवार होकर पधारो।
Hey Indr Dev! Deploy your young horses in the charoite, treat them with the excellent hymns leading to success of all plans & programs and come to us.
आ तिष्ठ रथं वृषणं वृषा ते सुतः सोमः परिषिक्ता मधूनि। 
युक्त्वा वृषभ्यां वृषभ क्षितीनां हरिभ्यां याहि प्रवतोप मद्रिक्
हे इन्द्र देव! आप अभीष्ट वर्षक रथ पर आरूढ़ होवें, क्योंकि आपके लिए मनोरथ दाता सोमरस तैयार है, मधुर घृत आदि भी तैयार है।[ऋग्वेद 1.177.3]
हम सोम निचोड़कर तुम्हारा आह्वान करते हैं। हे इन्द्र देव! तुम्हारे लिए सोम रस अभिषव किया गया है। तुम अभीष्ट वर्षक रथ पर चढ़ो।
Hey Indr Dev! Ride the charoite that leads to fulfilment of wills and come to us. Somras is ready for you along with sweet Ghee.
अयं यज्ञो देवया अयं मियेध इमा ब्रह्माण्ययमिन्द्र सोमः। 
स्तीर्णं बर्हिरा तु शक्र प्र याहि पिबा निषद्य वि मुचा हरी इह
हे इन्द्र देव! देवों के उद्देश्य से यह यज्ञ किया जाता है। यह यज्ञीय पशु ये मंत्र, यह सोमरस और यह बिछाया हुआ कुश आपके लिए तैयार है। आप शीघ्र पधारें और यहाँ आसन पर बैठकर सोमरस का पान करें और यहीं पर आप अपने हरि नाम के दोनों घोड़ों की खोल दें।[ऋग्वेद 1.177.4]
शक्तिवान अश्वों से युक्त रथ को यहाँ पर लाओ। हे इन्द्रदेव! देवताओं द्वारा किया जाने वाला यह यज्ञ, श्लोक, यह सोम और यह कुश का आसन है। तुम शीघ्रता से आकर अपने अश्वों को ले लो और आसन पर विराजमान होकर सोम का पान करो।
Hey Indr Dev! This Yagy has been organised of the sake of demigods-deities. The animals for the Yagy, Mantr, Somras and the cushion made of Kush are ready. Come here fast, be seated over the cushion of Kush and enjoy Somras. Release your both of your versatile horses
ओ सुष्टुत इन्द्र याह्यर्वाङुप ब्रह्माणि मान्यस्य कारोः। 
विद्याम वस्तोरवसा गुणन्तो विद्यामेषं वृजनं जीरदानुम्
इन्द्र देव हमारे द्वारा अच्छी तरह स्तुत होकर माननीय स्तोता के मंत्र को उपलक्ष्य करके हमारे समक्ष पधारें। हम स्तुति करते हुए आपका आश्रय प्राप्त कर अनायास निवास स्थान प्राप्त करेंगे। साथ ही अन्न, बल और दीर्घायु भी प्राप्त करेंगे।[ऋग्वेद 1.177.5]
हे इन्द्र देव! तुम मान पुत्र के श्लोकों को सुनकर प्रत्यक्ष होओ। हम वंदना करते हुए तुम्हारी सुरक्षा ग्रहण करें और अन्न शक्ति तथा दानशील स्वभाव को ग्रहण करें।
Hey Indr Dev! Having noticed our prayed-worshipped with revered hymns-Strotr respond to us. We will attain your support and get food grains, might and longevity.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (178) ::  ऋषि :- अगस्त्य, देवता :- इन्द्र,  छन्द :- त्रिष्टुप्।
यद्ध स्या त इन्द्र श्रुष्टिरस्ति यया बभूथ जरितृभ्य ऊती। 
मा नः कामं महयन्तमा घग्विश्वा ते अश्यां पर्याप आयोः
हे इन्द्र देव! जिस समृद्धि के द्वारा आप स्तोताओं की रक्षा करते हैं, वह सर्वत्र प्रसिद्ध है। आप हमें महान् बनाने की अभिलाषा को नष्ट न करे। आपके लिए जो वस्तु प्राप्तव्य और भोग्य है, वह सब हमें भी प्राप्त हो।[ऋग्वेद 1.178.1]
हे इन्द्र देव! तुम अपने जिस साधन से प्रार्थनाकारी की सुरक्षा करते हो, उसे रोकने से हमारी इच्छा नष्ट हो जायेगी, अतः ऐसा न करो मैं प्राप्तव्य और उपभोग्य वस्तुओं को ग्रहण करुँ।
Hey Indr Dev! Its well known that you protect your devotees who perform Yagy and grant him sufficient riches. Do not kill our desire to become great. Let all useful goods and comforts be available to us.
न घा राजेन्द्र आ दमनें या नु स्वसारा कृणवन्त योनौ। 
आपश्चिदस्मै सुतुका अवेषन्गमन्न इन्द्रः सख्या वयश्च
परस्पर भगिनी स्वरूप अहोरात्र अपने जन्म स्थान में जो वृष्टि रूप कर्म करते हैं, राजा इन्द्रदेव वह हमारा कर्म नष्ट न करें। बल का कारण हव्य इन्द्रदेव के लिए व्याप्त होता है। इन्द्र देव हमें मित्रता और अन्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.178.2]
मंगल की दात्री, रात्रि और उषा दोनों बहनें जो कर्म करती हैं, इनके कर्मों को न रोकें। इन्द्र हमको मैत्री और अन्न प्रदान करें।
Datri, Ratri and Usha perform for our welfare at the place of their origin, leading to rains. Do not obstruct them & our endeavours. The offerings may reach Indr Dev. Let Indr Dev grant us friend ship and food stuff.
जेता नृभिरिन्द्रः पृत्सु शूरः श्रोता हवं नाधमानस्य कारोः। 
प्रभर्ता रथं दाशुष उपाक उद्यन्ता गिरो यदि च त्मना भूत्
हे विक्रमशाली इन्द्र देव! युद्ध नेता मरुद्गणों के साथ युद्ध में जय-लाभ करते हुए अनुग्रहार्थी स्तोता का आह्वान श्रवण करें। जिस समय स्वयं स्तुति वाक्य को वरण करने की इच्छा करते हैं, उस समय हव्य देने वाले यजमान के पास (अपना) रथ से जाते हैं।[ऋग्वेद 1.178.3] 
इन्द्र विजेता, याचक की पुकार सुनने वाले, उपासक के सम्मुख रथ को ले जाने वाले हैं। वे स्वयं ही स्तुतियों को प्रेरित करते हैं।
Hey valour possessing Indr Dev! Accept the offerings of the Ritviz-hosts while fighting along with Marud Gan and accept our invitation. When you wish to accept the prayers of the hosts, you move your charoite to them. You inspire the hosts for prayers.
एवा नृभिरिन्द्रः सुश्रवस्था प्रखादः पृक्षो अभि मित्रिणो भूत्। 
समर्य इषः स्तवते विवाचि सत्राकरें यजमानस्य शंसः
इन्द्र देव उत्तम धन लाभ की इच्छा से यजमान द्वारा दिया हुआ अन्न, प्रचुर मात्र में भक्षण हुए और सहायता करने वाले यजमान के शत्रुओं को पराजित करते हैं। विभिन्न आह्वानों की ध्वनियों से युक्त युद्ध में सत्य पालक इन्द्र यजमान के कर्म की प्रसिद्धि करते हुए हव्य को स्वीकार करते हैं।[ऋग्वेद 1.178.4]
उत्तम यज्ञ की अभिलाषा वाले इन्द्रदेव अपने यजमान की हवियों को रुचिपूर्वक प्राप्त करते हैं। यजमान की वंदना को सत्य सिद्ध करने वाले ध्वनियों के श्लोक से वन्दनीय किये जाते हैं। 
Indr eat the offerings made by the hosts-Ritviz in enough quantity and defeat their enemy. Associated by various sounds-enchantments of various invitations, truthful Indr Dev promote the cause-endeavours of the devotees and accept their offerings.
त्वया वयं मघवन्निन्द्र शत्रूनभि ष्याम महतो मन्यमानान्। 
त्वं त्राता त्वमु नो वृधे भूर्विद्यामेषं वृजनं जीरदानुम्
हे इन्द्र देव! आपकी सहायता लेकर हम उन शत्रुओं का वध करेंगे, जो अपने को अवध्य समझते हैं। आप हमारे भ्राता है। आप हमारे धन के वर्धक बनें ताकि हम अन्न, बल और दीर्घायु प्राप्त करें।[ऋग्वेद 1.178.5]
हे इन्द्र देव! हम तुम्हारे पराक्रम से शत्रुओं को वश में करें। तुम हमारी रक्षा करो और तुम बुद्धिकर्त्ता हो। हम अन्न, बल और दानमय स्वभाव को प्राप्त करें।
Hey Indr Dev! We will kill those enemies who consider them selves immortal, with your help. You are our brother. You should promote-increase our wealth-riches granting us food stuff, might and longevity.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (179) ::  ऋषि :- लोपामुद्रा, अगस्त्य, देवता :- रति,  छन्द :- त्रिष्टुप्, बृहती।
पूर्वीरहं शरदः शश्रमाणा दोषा वस्तोरुषसो जरयन्तीः। 
मिनाति श्रियं जरिमा तनूनामप्यू नु पत्नीर्वृषणो जगम्युः
लोपामुद्रा कहती हैं :- हे अगस्त्य! अनेक वर्षों से मैं दिन-रात बुढ़ापा लाने वाली उषाओं में आपकी सेवा करके श्रान्त हुई हूँ। बुढ़ापा शरीर के सौन्दर्य व क्षमताओं का नाश कर देता है; इसलिए उत्तम संतान की प्राप्ति के लिए सामर्थवान् पुरुष ही पत्नियों के पास जायें।[ऋग्वेद 1.179.1]
श्रान्त :: श्रम के कारण शिथिल होना; exhausted,  a weary, fatigued, tired, description.
लोपामुद्रा महर्षि अगस्त्य की पत्नी थीं। इनको वरप्रदा और कौशीतकी भी कहते हैं। इनका पालन-पोषण विदर्भराज निमि या क्रथपुत्र भीम ने किया, इसलिए इन्हें वैदर्भी भी कहते थे। महर्षि अगस्त्य से विवाह हो जाने पर राजवस्त्र और आभूषण का परित्याग कर, इन्होंने पति के अनुरूप वल्कल एवं मृगचर्म धारण किया। महर्षि अगस्त्य द्वारा प्रहलाद के वंशज इत्वल से पर्याप्त धन ऐश्वर्य प्राप्त होने पर दोनों में समागम हुआ, जिससे दृढस्यु' नामक पराक्रमी पुत्र की उत्पत्ति हुई। भगवान् श्री राम अपने वनवास में लोपामुद्रा तथा अगस्त्य से मिलने उनके आश्रम गए थे। वहाँ ऋषि ने उन्हें उपहार स्वरूप धनुष, अक्षय तूणीर तथा खड्ग दिए थे। लोपामुद्रा ने माता सीता को साड़ी भेंट की जो कभी मैली नहीं होती थी। 
लोपामुद्रा :- मैं वर्षों से दिन-रात जरा की सन्देश वाहिका उषाओं में तुम्हारी सेवा करती हूँ। वृद्धावस्था शरीर सौन्दर्य को समाप्त करती है। इसलिए यौवन काल में ही पति-पत्नी गृहस्थ धर्म का पालन करके उसके उद्देश्य को पूर्ण करें।
Lopa Mudra, wife of August Rishi told him that she was fatigued by serving him day & night. Old age looses the beauty-charm of the body. Hence, a woman should make endeavours to carry out the duties of Grahasthashram-house hold, family life i.e., reproduction. She said that the male should mate with his wife only when he is sexually fit & fine i.e., potent.
ये चिद्धि पूर्व ऋतसाप आसन्त्साकं देवेभिरवदन्नृतानि ते।  
चिदवासुर्नह्यन्तमापु: समू नु पत्नीर्वृषभिर्जगम्युः
हे अगस्त्य! जो प्राचीन और सत्य रक्षक लोग देवताओं के साथ रहते थे, उन्होंने भी संतान उत्पत्ति के कार्य का निर्वाहन किया और अन्त तक ब्रह्मचर्य व्रत का पालन नहीं किया। काम में समर्थ ऐसे पुरुषों को उन्हीं के अनुकूल पत्नियाँ प्राप्त हुई।[ऋग्वेद 1.179.2]
धर्म पालन पुरातन ऋषि-देवताओं से सच बोला करते थे। वे क्षीण हो गये तथा जीवन के परम फल को प्राप्त नहीं हुए, इसलिए पति-पत्नी को संयमशील विद्या के अध्ययन में रत विद्वान को भी उपयुक्त दशा में काम भाव प्राप्त होता है और वह अनुकूल पत्नी को प्राप्त कर संतान उत्पादन का कार्य करता है।
Hey August! The ancient truthful people who accompanied the demigods, too followed the procedure & dictates, pertaining to reproduction and avoided chastity till end. Such people who were potent got the wives who too were like them.
न मृषा श्रान्तं यदवन्ति देवा विश्वा इत्स्पृधो अभ्यश्नवाव। 
जयावेदत्र शतनीथमाजिं यत्सम्यचा मिथुनावभ्यजाव
अगस्त्य ऋषि कहते हैं :- हमारी साधना व्यर्थ नहीं गई, क्योंकि देवता लोग रक्षा करते है। हम सारे भोगों का उपभोग कर सकते हैं। यदि हम दोनों चाहें तो इस संसार में हम सैकड़ों भोगों के साधन प्राप्त कर सकते हैं।[ऋग्वेद 1.179.3]
अगस्त्य :- हमने व्यर्थ में परिश्रम नहीं किया। देवगण हमारे रक्षक हैं। हम स्पर्द्धा करने वालों को वश में करते और सैकड़ों साधनों का उपभोग करते हैं। 
August said that their labour was noted since the demigods protected them. They were capable of enjoying all sorts of comforts & luxuries.
नदस्य मा रुधतः काम आगन्त्रित आजातो अमुतः कुतश्चित्।
लोपामुद्रा वृषणं नी रिणाति धीरमधीरा धयति श्वसन्तम्
यद्यपि मैं जय और संयम में नियुक्त हूँ तथापि इसी कारण या किसी भी कारण, मुझ में काम का समावेश हो गया है। सेचन करने वाली लोपामुद्रा पति के साथ संगत है। घास पर संयम रखने वाले धीर पुरुष ही काम वेग पर नियन्त्रण कर पाते है।[ऋग्वेद 1.179.4]
नर-नारी संयुक्त रूप से गृहस्थ सेवन के लिए मुझे ग्रहण हों, धैर्यवान व्यक्ति को मैं धारण करूँ।
Though I am engaged in controlling self, yet due to this or some other reason the sensuality-sexuality is troubling me. Lopa Mudra who is determined and controls her self, is with her husband. 
इमं नु सोममन्तितो हृत्सु पीतमुप ब्रुवे। 
यत्सीमागश्चकृमा तत्सु मृळतु पुलुकामो हि मर्त्यः
सोमरस के समीप जाकर उसका पान करता हुआ शिष्य कहता है कि मनुष्य तो अनेक इच्छाओं का दास है। अगर इस इच्छा के कारण मेरे मन में कोई विकार उत्पन्न हुआ हो तो यह सोमरस अपने प्रभाव से उसे शुद्ध कर दे।[ऋग्वेद 1.179.5]
शिष्य :- मैं मन से पान किये हुए इस सोम की प्रार्थना करता हूँ। यदि हमसे कोई भूल हुई हो तो उसे वे माफ करें क्योंकि प्राणी अनेक इच्छाओं से युक्त होता है।
The disciple-student (follower) sips Somras and says that a humans being is slave of desires-wishes, wants. If some sort of defect has creped into his mind, it should be removed by the Somras due to its impact-effect. 
अगस्त्यः खनमानः खनित्रैः प्रजामपत्यं बलमिच्छमानः। 
उभौ वर्णावृषिरुग्रः पुपोष सत्या देवेष्वाशिषो जगाम
उग्र ऋषि अगस्त्य ने अनेक उपायों का उद्भावन करके, बहुत पुत्रों और बल की इच्छा करके काम और तप दोनों वरणीय वस्तुओं का पालन किया और देवताओं से यथार्थ आशीर्वाद को प्राप्त किया।[ऋग्वेद 1.179.6]
विभिन्न साधनाओं से अगस्त्य ऋषि ने अनेक संतान और बल की कामना से दोनों वरणीय वस्तुओं को पुष्ट किया और देवताओं से सच्चे आशीर्वाद को प्राप्त किया।
August Rishi used various ways & means, desired many sons and strength, accomplished-attained both sex and ascetics, having blessings of the demigods.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (180 ::  ऋषि :- अगस्त्य, देवता :- अश्विनी कुमार,  छन्द :- त्रिष्टुप्।
युवो रजांसि सुयमासो अश्वा रथो यद्वां पर्यर्णांसि दीयत्। 
हिरण्यया वां पवयः प्रुषायन्मध्वः पिबन्ता उषसः सचेथे
हे अश्विनी कुमारों! जिस समय आप शोभन गति वाले घोड़े आपको लेकर अभिमत प्रदेश में जाते हैं, उस समय आपके हिरण्यमय रथ की नेमि अभिमत प्रदान करती है, इसलिए आप उषाकाल में सोमरस का पान करते हुए यज्ञ में आगमन करते हैं।[ऋग्वेद 1.180.1]
अभिमत :: अनुकूल, अनुगुण, सुरीला, सामंजस्यपूर्ण; favourite, beloved.
हे अश्विनी कुमारों! तुम्हारे अश्व आकाश में भी गतिमान हैं। तुम्हारा रथ समुद्र के चारों ओर चलता हुआ वर्धक होता है। तुम मधुर रस का पान करते हुए उषाओं के साथ चलते हो।
Hey Ashwani Kumars! When your gracefully running horses pulls the charoite with golden hue towards the favourite places, you sip Somras in the morning hours (dawn-day break).   
युवमत्यस्याव नक्षथो यद्विपत्मनो नर्यस्य प्रयज्योः। 
स्वसा यद् वां विश्वगूर्ती भराति वाजायेट्टे मधुपाविषे च
हे सर्वस्तृत मधुपायी अश्विनी कुमारों! जिस समय आपकी बहिन स्थानीय उषा उपस्थित होती हैं, जिस समय अन्न और बल के लिए यजमान आपको स्तुति करता है, उस समय आपको सततगन्ता, विचित्र गतिशील, मनुष्य हितैषी और विशिष्ट रूप से पूजनीय रथ निम्नाभिमुख जाता है।[ऋग्वेद 1.180.2]
हे मधुर पायी अश्विद्वय! तुम वंदनाओं के योग्य हो। जब उषा प्रकट होती है, तब तुम अत्यन्त पूजनीय रथ पर सवार होकर यजमान की अन्न, शक्ति प्राप्ति की वंदनाओं के प्रति जाते हो।
Hey honey consuming Ashwani Kumars! The hosts (devotees, Ritviz) pray to you for food stuff and strength in the presence of your sister Usha (dawn), when you ride the revered charoite, moving with constant & amazing speed.  
युवं पय उस्त्रियायामधत्तं पकमामायामव पूर्व्यं गोः। 
अन्तर्यद्वनिनो वामृतप्सू ह्वारो न शुचिर्यजते हविष्मान्
हे सत्य रूप अश्विनी कुमारो! आपने गायों में दुग्ध स्थापित किया। आपने अप्रसूता गौओं में भी दुग्ध का संचार किया और वनों में जागरूक रहने वाले विशुद्ध स्वभाव वाले यजमान हवि वाले यज्ञ में आपकी स्तुति करते है।[ऋग्वेद 1.180.3]
हे सत्य स्वरूप अश्विद्वय! तुमने धेनुओं को पयस्विनी बनाया है। वन-वृक्षों के बीच हमेशा जागरुक यजमान तुम्हारे लिए हवि देता हुआ पूजन करता है।
Hey truthful Ashwani Kumars! You made the cows milch. The pure hearted host-devotees pray to you and make offerings in the Yagy.
युवं ह घर्मं मधुमन्तमत्रयेऽपो न क्षोदोऽवृणीतमेषे। 
तद्वां नरावश्विना पश्वइष्टी रथ्येव चक्रा प्रति यन्ति मध्वः
हे नराकार अश्विनी कुमारों! आपने अत्रि मुनि की सहायता की इच्छा से दीप्त दुग्ध और घृत को जल प्रवाह की तरह प्रवाहित किया, इसलिए आपके लिए अग्नि में यज्ञ किया जाता है। निम्म्र देश में रथ चक्र की तरह सोमरस आपके लिए आता है।[ऋग्वेद 1.180.4]
अश्विद्वय! तुमने सहायता की इच्छा करने वाले अत्रि के लिए अग्नि के ताप को जल के समान शीतल कर दिया। इसलिए अग्नि में तुम्हारे लिए हवन किया जाता है और रथ के पहिये की तरह सोम रस तुम्हारी ओर जाता है।
Hey Ashwani Kumars in the form of humans! You desired to help Atri made milk & ghee flow like water (for them). Sacrifices are offered to you in holy fire. Somras comes to you just as the movement of charoite wheels.  
आ वां दानाय ववृतीय दस्रा गोरोहेण तौग्र्यो न जिद्रि:। 
अपः क्षोणी सचते माहिना वां जूर्णो वामक्षुरंहसो यजत्रा
हे यजनीय अश्विनी कुमारों! वृद्ध तुग्र राजा के पुत्र की तरह मैं स्तुति द्वारा अभिमत लाभ के लिए आपको यज्ञ देश में ले आऊंगा। आपकी महिमा से द्यावा-पृथ्वी परस्पर संव्याप्त है। यह अतिवृद्ध ऋषि पाप मुक्त होकर दीर्घ जीवन को प्राप्त करें।[ऋग्वेद 1.180.5]
हे अश्विद्वय! मैं प्राचीन काल में हुए "तुंग" राजा के पुत्र के तुल्य प्रार्थना करता हुआ, धेनु के लिए अपनी ओर पुकारता हूँ। तुम्हारी समृद्धि से धरा जलों से पूर्ण होती और तुम्हारी कृपा दृष्टि से पाप का फन्दा भी छूट जाता है। 
Hey prayer deserving Ashwani Kumars! I will take you to the Yagy site by pleasing you with the recitation of hymns like the son of old-aged Tugr. Your glory is spread over the earth & the horizon. Let this too old Rishi-sage become free from sins and survive for long.
नि यद्युवेथे नियुतः सुदानू उप स्वधाभिः सृजथः पुरंधिम्। 
प्रेषद्वेषद्वातो न सूरिरा महे ददे सुव्रतो न वाजम्
हे शोभन दान वाले अश्विनी कुमारों! जिस समय आप नियुत नाम के घोड़ों को रथ में नियोजित करते हैं, उस समय अन्न से पृथ्वी को भर देते हैं, इसलिए वायु की तरह स्तोता गण आप दोनों को तृप्त करते हैं। उत्तम कर्म वाले व्यक्ति की तरह स्तोता अपने जीवन के लिए अन्न को ग्रहण करते हैं।[ऋग्वेद 1.180.6]
हे नभ अश्विद्वय! जब तुम अश्वों को जोतते हो, तब अन्नों वाली वृद्धि देते हो। उस समय सुखी हुआ स्तोता और अपने महत्त्व के लिए अन्न बल प्राप्त करता है।
Hey plentiful donors Ashwani Kumars! You fill the earth with lot of food grains, when you deploy your horses named Niyut. Hence, the devotees the hosts-Ritviz satisfy you with prayers-hymns. The devotees accept the food grains for their survival like one who perform excellent deeds.
वयं चिद्धि वां जरितारः सत्या विपन्यामहे वि पणिर्हितावान्। 
अधा चिद्धि ष्माश्विनावनिन्द्या पाथो हि ष्मा वृषणावन्तिदेवम्
हे स्तुति पात्र और अभीष्ट वर्षी अश्विनीकुमारों! हम भी आपके स्तोता और सत्य प्रतिज्ञ होकर विभिन्न प्रकार से स्तुति करते हैं। द्रोण कलश स्थापित हुआ है। आप देवों के साथ सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 1.180.7]
द्रोण कलश :: यज्ञ आदि में सोम छानने का वैकंक लकड़ी का बना हुआ एक प्राचीन पात्र।
हे अश्विद्वय! हम सत्यभाषी स्तोता श्रद्धापूर्वक तुम्हारी प्रार्थना करते हैं। तुम अभीष्ट दाता तुम अभीष्ट दाता और अनिंद्य हो, देवताओं के पास बैठकर सोम ग्रहण करो।
Hey prayers deserving, accomplishments granting-desire (wishes) fulfilling Ashwani Kumars! We pray to you in different manners, with pure heart to stick to truth. Dron Kalash, the pot for keeping Somras has been kept ready for you and the demigods-deities.
युवां चिद्धि ष्माश्विनावनु द्यून्विरुद्रस्य प्रस्रवणस्य सातौ। 
अगस्त्यो नरां नृषु प्रशस्त: काराधुनीव चितयत्सहस्त्रैः
हे अश्विनी कुमारों! कर्म निर्वाहक लोगों में श्रेष्ठ अगस्त्य ऋषि ग्रीष्म ऋतु के दुःख निवारक स्तोत्र की प्राप्ति के लिए शब्द उत्पन्न करने वाले शङ्ख आदि की तरह हजार स्तुतियों द्वारा आपको प्रति दिन जगाते हैं।[ऋग्वेद 1.180.8]
हे अश्विद्वय! महान कर्मवान अगस्त्य कष्ट निवारक श्लोक की प्राप्ति के लिए शंखों के समान गर्जते हुए हजारों वंदनाओं से तुम्हें चैतन्य करते हैं।
Hey Ashwani Kumars! Best amongest the performers, Maharshi August awake you with the recitations of thousands of Strotr & blowing of conch, which can reduce-vanish the pangs of summers. 
प्र यद्वहेथे महिना रथस्य प्र स्पन्द्रा याथो मनुषो न होता। 
धत्तं सूरिभ्य उत वा स्वव्यं नासत्या रयिषाचः स्याम
हे सत्य का पालन करने वाले गतिशील अश्विनी कुमारों! आप दोनों अपने रथ में बैठकर वेग के साथ यज्ञ करने वाले के पास पहुँचते हैं और उसे अश्वों से युक्त करते हैं, उसी प्रकार से हमें भी धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.180.9]
हे अश्विद्वय! तुम महिमा वाले रथ से यात्रा करते हो और होता के समान आते हो। प्रार्थनाओं को सुन्दर अश्व प्रदान करते हो। तुम असत्य से परे हो, हमको धन प्रदान कराओ।
Hey truthful fast moving Ashwani Kumars! The way-manner in which you reach the Yagy performers, riding your charoite with fast speed and associate it with the horses, bless us with riches in the same manner.
तं वां रथं वयमद्या हुवेम स्तोमैरश्विना सुविताय नव्यम्। 
अष्टिनेमिं परि द्यामियानं विद्यामेषं वृजनं जीरदानुम्
हे अश्विनी कुमारों! चारों ओर आकाश में भ्रमण करने वाला आपका रथ हमारे पास आवे, जिससे हम अन्न, बल और दीर्घायु को प्राप्त कर सकें।[ऋग्वेद 1.180.10]
हे अश्विद्वय! नभ में घूमने वाले तुम्हारे रथ का हम आह्वान करते हैं। हम अन्न, पराक्रम और आय लाभ करें।
Hey Ashwani Kumars! Let your charoite roaming all around the sky, come to us and bless us with food grains, valour-might and boosting of income.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (181) ::  ऋषि :- अगस्त्य, देवता :- अश्विनी कुमार,  छन्द :- त्रिष्टुप्।
कदु प्रेष्ठाविषां रयीणामध्वर्यन्ता यदुन्निनीथो अपाम्अ। 
अयं वां यज्ञो अकृत प्रशस्ति वसुधिती अवितारा जनानाम्
हे प्रियतम धनधारी और मनुष्यों के आश्रयदाता अश्विनी कुमारो! आप यज्ञ हेतु जल, अन्न और धन-सम्पदाओं को प्रेरित करते हैं। इस यज्ञ में आप की ही प्रशंसा होती है। वह क्रम किस समय से आप प्रारम्भ करेंगे?[ऋग्वेद 1.181.1]
हे अश्विद्वय! अन्न, धन और जल में ऐसा क्या है जिसे अनुष्ठान पूर्ण करने की कामना करते हुए ऊपर ही उठाये हुए हो? इस अनुष्ठान में तुम्हारी ही प्रशंसा होती है।
Hey possessor riches-wealth, protector of humans Ashwani Kumars! You provide water, food grains, riches to join Yagy. Its you who is appreciated for the Yagy. When will you begin with the series of the Yagy?!
आ वामश्वासः शुचयः पयस्या वातरंहसो दिव्यासो अत्याः। 
मनोजुवो वृषणो वीतपृष्ठा एह स्वराजो अश्विना वहन्तु
हे अश्विनी कुमारो! आपके दीप्तिशाली, वृष्टिमान करने वाले, वायु की तरह वेग वाले, स्वर्गीय गतिशील, मन की तरह वेगवान् युवा और शोभन पृष्ठ वाले अश्व आपको इस यज्ञ में ले आवें।[ऋग्वेद 1.181.2]
हे अश्विदय! पवन के तुल्य प्रचण्ड शीघ्रगामी, गतिवान, शोभनीय उज्जवल घोड़े तुम्हें यहाँ लायें।
Hey Ashwani Kumars! Let your horses with shinning back, running as fast as wind and the mind bring you here in the Yagy. 
आ वां रथोऽवनिर्न प्रवत्वान्त्सृप्रवन्धुरः सुविताय गम्याः। 
वृष्णः स्थातारा मनसो जवीयानहंपूर्वो यजतो धिष्ण्या यः
हे ऊँचे स्थान के योग्य और रथासीन अश्विनीकुमारों! भूमि की तरह अत्यन्त विस्तृत, उत्तम मित्र वाले, वर्षा करने में समर्थ, मन की तरह वेगवाले, अहंकारी और यजनीय रथ को यज्ञ में ले आयें।[ऋग्वेद 1.181.3]
हे प्रशंसनीय कर्म वाले अश्विद्वय! तुम्हारा रथ कल्याण के लिए यहाँ आए। वह अत्यन्त गतिवान महान और पूजने योग्य है। 
Hey Ashwani Kumars deserving high position, riding the charoite! Bring your charoite here which is wide, capable of causing rains & welfare, moves as fast as the mind, deserving worship. 
इहेह जाता समवावशीतामरेपसा तन्वा नामभिः स्वैः।
जिष्णुर्वामन्यः सुमखस्य सूरिर्दिवो अन्यः सुभगः पुत्र ऊहे
हे अश्विनी कुमारो! आपने सूर्य और चन्द्र के रूप से जन्म ग्रहण किया। आप पाप शून्य हैं। आपके शरीर सौन्दर्य और नाम महिमा के कारण मैं बार-बार आपकी स्तुति करता हूँ। आप एक यज्ञ प्रवर्तक होकर संसार को धारण करते हैं और दूसरे द्युलोक के पुत्र रूप होकर विविध रश्मियों को धारण करते हुए संसार को धारित किए हुए हैं।[ऋग्वेद 1.181.4]
प्रवर्तक :: उत्प्रेरक, क्रियावर्द्धक, क्रियात्मक, चालू करने वाला, प्रणेता, जनक, संवर्धक; originator, promoters, activator.
हे अश्विद्वय! तुम अपराध रहित तन से प्रकट होकर स्तुतियाँ प्राप्त करते हो। तुममें दूसरा नभ का पुत्र हुआ। सौभाग्य को धारण करता है।
Hey Ashwani Kumars! You are like Sun & the Moon, free from sins. Let me describe-elaborate your glory and beauty with the help of chosen Strotr. As a promotor of Yagy and the second son of the space-horizon (sky) you bear-support the universe possessing various rays.  
प्र वां निचेरुः ककुहो वशाँ अनु पिशङ्गरूपः सदनानि गम्याः। 
हरी अन्यस्य पीपयन्त वाजैर्मथ्रा रजांस्यश्विना वि घोषैः
हे अश्विनी कुमारो! आपमें से एक का श्रेष्ठ और पीतवर्ण रथ इच्छानुसार हमारे यज्ञ गृह में पधारे और दूसरे के मन्थन से उत्पन्न घोड़े, अन्नों और मन्त्रों सहित लोकों को पुष्टि प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 1.181.5]
हे अश्विद्वय! तुम दोनों में से एक का अत्यन्त गतिमान रथ इच्छा वालों के घरों को ग्रहण हो और दूसरों के घोड़े मन्त्रों से पुष्ट होते हुए हमारी प्रार्थनाओं से प्रसन्न हो।
Hey Ashwani Kumars! The excellent yellowish charoite of one of you should come to our house, of its own. The second charoite should  produce us horses, food stuff and give strength to all abodes with the help of Mantr-hymns.
प्र वां शरद्वान्वृषभो न निष्षाट् पूर्वीरिषश्चरति मध्व इष्णन्। 
एवैरन्यस्य पीपयन्त वाजैर्वेषन्तीरूर्ध्वा नद्यो न आगुः
हे अश्विनी कुमारो! आप दोनों में से एक शत्रुओं की सेना को हराने वाला और अन्न में विद्यमान मीठे रस की उत्पत्ति के लिए सर्वत्र विचरण करने वाला है। दूसरे के अन्नों को समृद्ध करने वाली ऊर्ध्वगामी नदियों को वेगपूर्वक प्रवाहित करते हुए आप दोनों हमारे पास पधारें।[ऋग्वेद 1.181.6]
हे अश्विद्वय! तुम दोनों में से एक रथ अन्नों में विचरण करता है तथा दूसरे के भ्रमण से फूलती हुई जल धारायें हमको सींचती हैं।
Hey Ashwani Kumars! Either of you is capable of defeating the enemy and roam all around to generate sweet sap in the food grains. The other one makes the rivers flowing with high speed to enrich the food grains. Both of you come to us. 
असर्जि वां स्थविरा वेधसा गीर्बाळ्हे अश्विना त्रेधा क्षरन्ती। 
उपस्तुताववतं नाधमानं यामन्नयामञ्छृणुतं हवं मे
हे विधाता अश्विनी कुमारो! आपकी स्थिरता की प्राप्ति के लिए अत्यन्त स्थिर स्तुतियाँ रची जाती हैं। वह तीन तरह से आपके पास जाती हैं। आप प्रशंसित होकर याचना करने वाले की रक्षा हेतु उसका आवाहन श्रवण करते हैं।[ऋग्वेद 1.181.7]
हे अश्विद्वय! तुम्हारी दृढ़ता के लिए वंदनाएँ निर्मित की जाती हैं। वे तीन प्रकार से तुम्हारे लिए ग्रहण होती हैं। तुम विनती करने वाले यजमान के रक्षक बनों और चलते हुए या रुककर मेरी पुकार को सुनो।
Hey Ashwani Kumars, a form of the God! Hymns are composed for your strength and stability. These prayers-hymns reach you in three ways. You listen to these prayers to help the devotees-those who want your blessings, for their protection. 
उत स्या वां रुशतो वप्ससो गीस्त्रिबर्हिषि सदसि पिन्वते नॄन्। 
वृषा वां मेघो वृषणा पीपाय गोर्न सेके मनुषो दशस्यन्
हे सामर्थ्यवान् अश्विनी कुमारो! यह स्तोत्र वाणी आप दोनों का गुणगान करते हुए तीन कुशासनों से युक्त यज्ञ-स्थल में मनुष्यों को परिपुष्ट करती हैं। इस प्रकार गौ दूध देकर पौष्टिकता से प्रदान करती है, उसी प्रकार आपकी प्रेरणा से मेघ भी जल (पोषण) प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 1.181.8]
हे अश्विद्वय! तुम दोनों के प्रदीप्त रूप का गान करने वाली वाणी यज्ञ ग्रह के प्राणियों को बढ़ाने वाली है। तुम्हारा जल वर्षा द्वारा धेनुओं के समान मधुर हो।
Hey capable Ashwani Kumars! These Strotr-compositions appreciate you  and strengthen the Yagy of the humans through three Kushasan (cushions made of Kush grass). The way the milk yielded by the cow grant strength-nourishment, the clouds too rain and grant nourishment.  
युवां पूषेवाश्विना पुरंधिरग्निमुषां न जरते हविष्मान्। 
हुवे यद्वां वरिवस्या गृणानो विद्यामेषं वृजनं जीरदानुम्
हे अश्विनी कुमारो! पूषा की तरह बहु प्रज्ञाशाली और हविष्मान् यजमान अग्निदेव और उषादेवी की तरह आपकी स्तुति करता है। जिस समय पूजा में रत स्तोता आपकी स्तुति करता है, उस समय यजमान भी आपकी स्तुति करता है, जिससे हम अन्न, बल और दीर्घायु प्राप्त कर सकें।[ऋग्वेद 1.181.9]
हे अश्विनी कुमारो! पूजा की तरह अत्यन्त बुद्धिमान हविदाता अग्नि और उषा के समान तुम्हारी प्रार्थना करता हूँ। मैं तुम्हारी सेवा करता हुआ आह्वान करता हूँ। मैं अन्न, बल, और दानशीलता प्राप्त करूँ।
Hey Ashwani Kumars! The prudent hosts-Ritviz who have calibre like Pusha, making offerings to Agni Dev and Usha, pray to you. When the Strotr reciting worshiping person pray to you and the hosts too pray to you, so as to attain food grains, strength-power and longevity.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (182) ::  ऋषि :- अगस्त्य, देवता :- अश्विनी कुमार,  छन्द :- त्रिष्टुप्, जगती।
अभूदिदं वयुनमो षु भूषता रथो वृषण्वान्मदता मनीषिणः। 
धियंजिन्वा धिष्ण्या विश्पलावंसू दिवो नपाता सुकृते शुचिव्रता
हे मनीषी ऋत्विकों! हमारी ऐसी धारणा हो रही है कि अश्विनी कुमारों का अभीष्ट वर्षी रथ उपस्थित है। उसके आगे जाकर उनकी प्रतीक्षा करें। वे पुण्यात्माओं के कर्म को करते हैं। वे स्तुति योग्य हैं। उन्होंने विश्पला का हित किया था। वे स्वर्ग के नप्ता हैं। उनका कर्म पवित्र है।[ऋग्वेद 1.182.1]
नप्ता :: लड़की या लड़के की संतान, नाती या पोता; grandson or grand daughter.
हे विद्वानों! अश्विनी कुमारो के उत्तम रथ को स्वयं सजाओ। वे बुद्धि को प्रेरित करने वाले पूजनीय "विश्पला" की भलाई करने वालों तथा महान कर्म वालों के लिए सिद्धान्तों से परिपूर्ण रहते हैं। 
Hey learned (scholars)! We believe that the charoite of the wish fulfilling Ashwani Kumars has arrived-present here. Let us move to welcome them. They support those who perform virtuous-pious, righteous deeds. They deserve worship. They helped Vishpala. They are the grand children of the heavens. Their endeavours are pious. 
इन्द्रतमा हि धिष्ण्या मरुत्तमा दस्त्रा दंसिष्ठा रथ्या रथीतमा। 
पूर्ण रथं वहेथे मध्व आचितं तेन दाश्वांसमुप याथो अश्विना
हे अश्विनी कुमारो! आप अवश्य ही इन्द्र श्रेष्ठ, स्तुति योग्य, मरु श्रेष्ठ, शत्रु नाशक, उत्कृष्ट कर्मचारी, स्थवान् और रथियों में उत्तमोत्तम हैं। आप मधु पूर्ण है। आप चारों ओर सन्नद्ध रथ को ले जाते हैं। उसी रथ पर आरूढ़ होकर हव्यदाता के पास जावे।[ऋग्वेद 1.182.2]
हे अश्विनी कुमारो! तुम इन्द्र और मरुद्गण के समान, रथियों में उत्तम रथी, भयंकर कार्य को करने वाले हो तुम मधुर रस से परिपूर्ण रथ के साथ हविदाता की ओर प्राप्त हो जाओ। 
Hey Ashwani Kumars! You are like Dev Raj Indr & Marud Gan, best amongest the charoite riding warriors. You perform furious deeds. You move to those who make offerings; in a charoite which has sweet juices-saps. 
किमत्र दस्रा कृणुथः किमासाथे जनो यः कश्चिदहविर्महीयते। 
अति क्रमिष्टं जुरतं पणेरसुं ज्योतिर्विप्राय कृणुतं वचस्यवे
हे अश्विनी कुमारो! यहाँ क्या करते है? यहाँ क्यों हैं? हव्य शून्य जो कोई भी व्यक्ति पूजनीय हुआ हो, उसे आप पराजित करें। यज्ञ न करने वालों के प्राणों का हरण करें। मैं मेधावी आपकी स्तुति का अभिलाषी हूँ। मुझे ज्योति प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.182.3]
हे अश्वि देवो! तुम यहाँ क्या करते हो? जो कोई हवि न देने वाला पूजनीय बन गया हो, उसे पराजित करो, उसको मार डालो, मुझ स्तोता को प्रकाश अवश्य दो।
Hey Ashwani Kumars, what for are you here! Defeat those who do not conduct Yagy, is without making offerings to demigods-deities. I am requesting you to have eye sight, capability to see.
जम्भयतमभितो रायतः शुनो हतं मृधो विदथुस्तान्यश्विना। 
वाचंवाचं जरितू रलिनीं कृतमुभा शंसं नासत्यावतं मम
हे नासत्य अश्विनी कुमारो! जो श्वान की तरह जघन्य शब्द करते हुए हमारे विनाश के लिए आते हैं, उन्हें विनष्ट करें। वे लड़ाई करना चाहते हैं, उन्हें मार डालें। उन्हें मारने का उपाय आप जानते हैं। आप दोनों हम स्तोताओं की प्रत्येक स्तोत्र वाणी को धन-सम्पदा से हुए हमारे प्रशंसनीय स्तोत्रों की रक्षा करें।[ऋग्वेद 1.182.4]
हे असत्य रहित अश्विदेवो! हिंसक कुत्तों के तुल्य हम पर धावा बोलने वालों का पतन करो। तुम उन्हें जानते हो। मेरे के श्लोक को सत्य साबित करते हुए सुरक्षा करो।
Hey truthful Ashwani Kumars! Vanish those who come to attack like violent dogs.  Those who want to fight should be killed by  you. Protect our Strotr sung in your glory-honour.
युवमेतं चक्रथुः सिन्धुषु प्लवमात्मन्वन्तं पक्षिणं तौग्र्याय कम्। 
येन देवत्रा मनसा निरूहथुः सुपप्तनी पेतथुः क्षोदसो महः
हे अश्विनी कुमारो! तुग्र राजा के पुत्र के भुज्यु के लिए आपने समुद्र-जल में प्रसिद्ध, दृढ़ और पक्ष-विशिष्ट नौका बनाई। देवों में आपने ही कृपा करके नौका द्वारा उनको निकाला। सहसा आकर आपने महासमुद्र से उनका उद्धार किया।[ऋग्वेद 1.182.5]
हे अश्विद्वय! तुमने तुग्र के पुत्र के लिए नाव बनाकर सुरक्षा की। देवताओं को चाहने वालों को समुद्र से उबार लिया। 
Hey Ashwani Kumars! You suddenly reached the ocean to save the son king Tugr named Bhujyu, by building a strong boats. 
अवविद्धं तौग्र्यमप्स्वन्तरनारम्भणे तमसि प्रविद्धम्। 
चतस्त्रो नावो जठलस्य जुष्टा उदश्विभ्यामिषिताः पारयन्ति
जल के मध्य में नीचे की ओर मुख करके गिराया हुआ तुग्र पुत्र भुज्यु अवलम्बन रहित अन्धकार के बीच अति पीड़ित हुआ। अश्विनी कुमारों द्वारा भेजी गई सागर के बीच चार नौकाएँ। पहुँच गई और उसे ऊपर उठाकर समुद्र के पार पहुँचा दिया।[ऋग्वेद 1.182.6]
जलों में सिर के बल गिरे हुए निराश्रित तुग्र के पुत्र की अश्विनी कुमारों को चार नौका प्राप्त हुई।
Tugr's son Bhujyu was hanging in the dark  with head in the down ward direction when the four boats reached there and protected him and sailed him across the ocean.
कः स्विद्वृक्षो निष्ठितो मध्ये अर्णसो यं तौग्र्यो नाधितः पर्यषस्वजत्। 
पर्णा मृगस्य पतरोरिवारभ उदश्विना ऊहथुः श्रोमताय कम्
हे अश्विनी कुमारो! तुम्र पुत्र भुज्यु ने याचक होकर जल के मध्य जिस निश्चल वृक्ष का आलिंगन किया, वह वृक्ष क्या हैं? आपने उसे सुरक्षित उठाकर विपुल कीर्त्ति प्राप्त की।[ऋग्वेद 1.182.7]
वह कौन सा पेड़ था जिससे समुद्र में गिरा हुआ तुग्र पुत्र चिपट गया? हे अश्वि देवो! तुमने कीर्ति प्राप्ति के लिए उसे बचाया।
Hey Ashwani Kumars! You earned great honour & respect by saving Bhujyu the son of Tugr who had clasped the stationary tree. What is the name of that tree.  
तद्वां नरा नासत्यावनु ष्याद्यद्वां मानास उचथमवोचन्। 
अस्मादद्य सदसः सोम्यादा विद्यामेषं वृजनं जीरदानुम्
हे नराकर अश्विनी कुमारो! आपके पूजकों अथवा आपके स्तोताओं ने जो आपकी स्तुति की है, उसे आप ग्रहण करें। इस सोमयाग के यज्ञस्थल से हम अन्न, बल, ऐश्वर्य को प्राप्त करें।[ऋग्वेद 1.182.8]
हे असत्य विमुख अश्विदेवों! मान के पुत्रों द्वारा सोमयाग में गाया श्लोक तुम्हारे अनुकूल हो और हम अन्न, शक्ति और दानमय स्वभाव को ग्रहण करें।
Hey truthful Ashwani Kumars! Please accept the hymns-Strotr sung in the Som Yagy by your devotees and grant us with food grains, strength and comforts.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (183) ::  ऋषि :- अगस्त्य, देवता :- अश्विनी कुमार,  छन्द :- त्रिष्टुप्।
तं युञ्जाथां मनसो यो जवीयान् त्रिवन्धुरो वृषणा यस्त्रिचक्रः। 
येनोपयाथः सुकृतो दुरोणं त्रिधातुना पतथो विर्न पर्णैः
हे अभीष्ट वर्षी अश्विनी कुमारो! जो रथ मन की अपेक्षा भी अति वेगशाली है, जिसमें तीन सारथि स्थान और तीन चक्र हैं, जिसमें अभीष्ट वर्षी और धातुत्रय विशिष्ट हैं, जिस रथ पर चढ़कर जिस प्रकार से पक्षी पंखों के बल जाता है, उसी प्रकार से आप सुकृतकारी के घर उसी रथ से जाते हैं।[ऋग्वेद 1.183.1]
हे अश्वि देवो! उस हृदय से भी अधिक गति वाले रथ के द्वारा श्रेष्ठ कर्म वाले यजमान के गृह को पक्षी के तुल्य गति से ग्रहण होओ। 
Hey accomplishment fulfilling Ashwani Kumars! You reach the home of the devotees, riding the charoite which has three drivers seats and three cycles (modes of navigation), has provisions for distribution, is faster than the speed of the mind, moves like the birds fly over the feathers.
सुवृद्रथो वर्तते यन्नभि क्षां यत्तिष्ठथः क्रआपन्तानु पृक्षे। 
वपुर्वपुष्या सचतामियं गीर्दिवो दुहित्रोषसा सचेथे
हे अश्विनी कुमारो! आप संकल्पवान् होकर हव्य के लिए जिस रथ पर आरूढ़ होते हैं, वही आपको भली भाँति आवर्त्तनकारी रथ देवयजन भूमि के पास ले जाता है। आप आकाश की पुत्री उषा को प्राप्त होकर हमारी स्तुतियों से आनन्दित होवें।[ऋग्वेद 1.183.2]
हे अश्विदेवो! आसानी से मुड़ने वाला तुम्हारा रथ दोनों मेधावियों को चढ़ाकर धरा पर हव्य के लिए जाता है। तुम दोनों अम्बर की पुत्री उषा से परिपूर्ण होओ और मेरी प्रार्थना से शोभा परिपूर्ण हो।
Hey Ashwani Kumars! Determined, you ride the charoite and move to the site of Yagy for accepting the offerings of the devotee. You should be blessed by Usha (move at dawn) and enjoy the hymns sung by the hosts conducting Yagy. 
आ तिष्ठतं सुवृतं यो रथो वामनु व्रतानि वर्तते हविष्मान्। 
येन नरा नासत्येषयध्यै वर्तिर्याथस्तनयाय त्मने च
हे नराकार नासत्यद्वय! जो रथ हविवाले यजमान के कर्म का लक्ष्य करके जाता है, आप जिस रथ से यज्ञशाला जाने की इच्छा करते हैं, उसी रथ पर चढ़कर यजमान के पुत्र और अपने के हित की प्राप्ति के लिए यज्ञशाला में आवें।[ऋग्वेद 1.183.3]
हे असत्य रहित अश्विदेवो! आसानी से घूमने वाले अपने रथ पर चढ़ो। वह हविदाताओं के कर्म अनुष्ठानों के अनुसार चलता है। उस पर सवार होकर तुम यजमान और उसके पुत्रों के लिए यज्ञ में जाते हो।
Hey truthful duo! You ride the charoite which leads to the hosts-Ritviz's Yagy site, making offerings for you. You perform the welfare of the host along with his son.
मा वां वृको मा वृकीरा दधर्षीन्मा परि वर्त्तमुत माति धक्तम्। 
अयं वां भागो निहित इयं गीर्दस्राविमे वां निधयो मधूनाम्
हे अश्विनी कुमारो! आपकी कृपा से वृक और वृकी मुझ पर आक्रमण न करें। मेरे अतिरिक्त दूसरे को दान न करें। यही आपका हव्य भाग है, यही आपकी स्तुति है, यही आपके लिए सोमरस का पात्र है।[ऋग्वेद 1.183.4]
वृक :: भेड़िये और कुत्ते का वर्णसंकर; wolf, lupin, hybrid of the wolf and the furious dog.
हे अश्वि देवो! मुझ पर व्रक-वृकी का आक्रमण न हो। तुम हमको उलांघकर मत जाओ। हमारी जगह को न छोड़ो। यह अनुष्ठान भाग, मधुर रस परिपूर्ण पात्र और वंदनाएँ तुम्हारे लिए ही हैं।
Hey Ashwani Kumars! Do not let the male & female lupine attack me. You should accept your share of offerings & prayers along with Somras and oblige me.
युवां गोतमः पुरुमीळ्हो अत्रिर्दस्त्रा हवतेऽवसे हविष्मान्। 
दिशं न दिष्टामृजूयेव यन्ता मे हवं नासत्योप यातम्
हे अश्विनी कुमारो! जिस प्रकार से मार्ग में जाने के लिए पथिक रास्ता बताने वाले को बुलाता है, उसी प्रकार हे गौतम! पुरुमीड़ और अत्रि हव्य ग्रहण करके तृप्त करने के लिए आपका आवाहन करते हैं। मेरे आवाहन को सुनकर पधारें।[ऋग्वेद 1.183.5]
हे अश्वि द्वय! गौतम परुमील और अत्रि हवि के लिए तुम्हारा आह्वान करते हैं। जैसे सीधे रास्ते पर चलने वाला लक्ष्य पर शीघ्र पहुँच जाता है, वैसे ही तुम मेरे आह्वान की तरफ शीघ्र अतिशीघ्र पहुँचो।
Hey Ashwani Kumars! The manner in which a traveller ask one to know the way, Gautom, Purumeed and Arti invite you to accept the offerings. Please respond to my prayers-requests and come.
अतारिष्म तमसस्पारमस्य प्रति वां स्तोमो अश्विनावधायि। 
एह यातं पथिभिर्देवयानैर्विद्यामेषं वृजनं जीरदानुम्
हे अश्विनी कुमारो! आपके कृपा से हम अन्धकार के पार चले जायेंगे। आपके उद्देश्य से यह स्तुति रची गई है। देवों के गन्तव्य पथ यज्ञ में पधारें ताकि हम अन्न, बल और दीर्घायु प्राप्त कर सकें।[ऋग्वेद 1.183.6]
हे अश्वि देवो! हम इस अंधेरे से पार उतर गये हैं। हमने तुम्हारे श्लोकों को स्वीकार कर लिया है। तुम यहाँ देवपथ में आओ। हम अन्न शक्ति और दानपूर्ण स्वभाव को अर्जित करें। 
Hey Ashwani Kumars! We move across the darkness (ignorance) with your blessings. We have composed this hymn-Strotr in your honour. Come to the point of the move-elevation of the demigods-deities, so that we can have food grains, might and longevity.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (184) ::  ऋषि :- अगस्त्य, देवता :- अश्विनी कुमार,  छन्द :- त्रिष्टुप्।
ता वामद्य तावपरं हुवेमोच्छन्त्यामुषसि वह्निरुक्थैः। 
नासत्या कुह चित्सन्तावर्यो दिवो नपाता सुदास्तराय
अन्धकार का विनाश करने के लिए उषा देवी के आने पर हम आज के यज्ञ में और दूसरे दिन के यज्ञ में आपका आवाहन करते हैं। हे अश्विनी कुमारो! आप असत्य शून्य और द्युलोक के नेता हैं। आप जहाँ कहीं भी रहें, स्तोता आर्य ऋग्वेदीय मंत्र द्वारा विशिष्ट दानशील यजमान के लिए आपकी स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 1.184.1]
हे असत्य रहित अश्विदेवो! तुम विख्यात धन के दाता हो। उषा के प्रकट होने पर हम तुम्हारी वंदना गीतों द्वारा आह्वान करते हैं। 
Hey truthful Ashwani Kumars! We invite you to the Yagy today and tomorrow with the arrival of Usha (dawn, day break). You are the leader of heavens. The hosts performing Yagy pray to you with the helps hymns for the sake of the hosts-Ritviz, who are great donors.
अस्मे ऊ षु वृषणा मादयेथामुत्पणींहितमूर्म्या मदन्ता। 
श्रुतं मे अच्छोक्तिभिर्म तीनामेष्टा नरा निचेतारा च कर्णैः
हे अभीष्टवर्षी अश्विनी कुमारो! सोमरस से बलवान् होकर आप हमारी तृप्ति करें और पणियों का समूल नाश करें। हे नेतृद्वय! आपको सामने लाने के लिए हम जो तृप्तिप्रद स्तुति करते हैं, उसे श्रवण करें, क्योंकि आप लोग स्तुति के अन्वेषक और सञ्चय करने वाले हैं।[ऋग्वेद 1.184.2]
हे अश्विदेवो। तुम सोम की धारा से अत्यन्त आह्वलादमय होकर लालचियों का पतन करो। मेरी प्रार्थनाओं की इच्छा वाले तुम आकर स्वयं मेरी वंदना संकल्पों को सुनो।
Hey accomplish fulfilling Ashwani Kumars! Enjoy Somras and crush the greedy. Hey leaders! Listen to the Strotr-hymn we sing for honouring and  satisfying you.
श्रिये पूषन्निषुकृतेव देवा नासत्या वहतुं सूर्यायाः। 
वच्यन्ते वां ककुहा अप्सु जाता युगा जूर्णेव वरुणस्य भूरेः
हे सूर्य-चन्द्र रूपी अश्विनी कुमारो! कल्याण प्राप्ति के लिए तीर की तरह शीघ्रगामी होकर सूर्य की पुत्री को ले जावें। पूर्व युग की तरह यज्ञ काल में सम्पादित स्तुति महान् वरुण देव की प्रसन्नता के लिए आपकी स्तुति करती है।[ऋग्वेद 1.184.3]
हे संसार-पालक अश्विदेवो! जल से उत्पन्न श्रेष्ठ अश्व तुम्हें सर्व के विवाहोत्सव की ओर ले आते हैं। वरुण की तृप्ति के लिए प्रभात में की जाने वाली प्रार्थना तुम्हें प्राप्त होती हैं।
Hey Sun & Moon like Ashwani Kumars! Be quick and bring the daughter of Sun-Usha for the welfare of Yagy performing people. The way prayers were conducted to please Varun Dev in ancient times, we do worship you alike.
अस्मे सा वां माध्वी रातिरस्तु स्तोमं हिनोतं मान्यस्य कारोः। 
अनु यद्वां श्रवस्या सुदानू सुवीर्याय चर्षणयो मदन्ति
हे मधु पात्र वाले अश्विनी कुमारो! आप कवि मान्य की स्तुति अंगीकार करें। आपका दान हमारे उद्देश्य से प्रदत्त हों। हे शुभ फल प्रदाता अश्विनी कुमारो! अन्न की इच्छा से और बलशाली यजमान के हित के लिए पुरोहित आपके साथ हर्षित हों।[ऋग्वेद 1.184.4]
हे माधुर्यमय कल्याण करने वाले अश्विदेवो! तुम्हारा दिया हुआ धन हम पर रहे। तुम मान के पुत्र के श्लोक को प्रेरित करो। साधकगण यज्ञ की कामना से शक्ति के लिए उस श्लोक को बढ़ाते हैं। 
Hey Ashwani Kumars holding the pot of honey! Accept the prayers of poet Many. Your charity be aimed at us. Hey auspicious reward granting Ashwani Kumars! The mighty-strong hosts & Ritviz are happy with the desire of food grains.
एष वां स्तोमो अश्विनावकारि मानेभिर्मघवाना सुवृक्ति। 
यातं वर्तिस्तनयाय त्मने चागस्त्ये नासत्या मदन्ता
हे अन्नवान् अश्विनी कुमारो! आपके लिए हव्य के साथ यह पापों का नाश करने वाला स्तोत्र रचित हुआ है। अगस्त्य ऋषि के प्रति प्रसन्न होकर यजमान के पुत्रादि और अपने सुख भोग के लिए यज्ञ भूमि में आगमन करें।[ऋग्वेद 1.184.5]
हे अश्विदेवो! तुम्हारे लिए मान के पुत्रों ने इस शक्ति से परिपूर्ण श्लोक की उत्पत्ति की। तुम मुझ अगस्त्य पर हर्षित होकर मेरे पुत्र के लिए गृह में पधारो।
Hey food grain possessing Ashwani Kumars! This Strotr has been composed for you offerings to you and vanishing sins. Let August Rishi be happy and join the Yagy for the sake of the host and his sons and granting them comforts.
अतारिष्म तमसस्पारमस्य प्रति वां स्तोमो अश्विनावधायि। 
एह यातं पथिभिर्देवयानैर्विद्यामेषं वृजनं जीरदानुम्
हे अश्विनी कुमारो! आपकी कृपा से हम अन्धकार को पार कर जायेंगे। आपके लिए ही यह स्तव रचित हुआ है। देवों के गन्यव्य पथ से यज्ञ में आवें, ताकि हम अन्न, बल और दीर्घायु प्राप्त कर सकें।[ऋग्वेद 1.184.6]
हे अश्विद्वय! हम अंधेरे से पार लग गये हैं। तुम्हारे लिए श्लोक आरम्भ किया है, इसके प्रति देवों के योग्य मार्ग से आओ। हम अन्न शक्ति और दानमय स्वभाव को ग्रहण करें।
Hey Ashwani Kumars! Let us over come darkness-ignorance due to your blessings. This Strotr has been composed for you. Follow the path of the demigods-deities and come to the Yagy, so that we are able to get food grains, strength and longevity.
Hey Ashwani Kumars! Let us over come darkness-ignorance due to your blessings. This Strotr has been composed for you. Follow the path of the demigods-deities and come to the Yagy, so that we are able to get food grains, strength and longevity.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (185) ::  ऋषि :- अगस्त्य, देवता :- द्यावा-पृथिवी,  छन्द :- त्रिष्टुप्।
कतरा पूर्वा कतरापरायोः कथा जाते करेंयः को वि वेद। 
विश्वं त्मना बिभृतो यद्ध नाम वि वर्तते अहनी चक्रियेव
हे कवि गण!  धुलोक और पृथ्वी लोक में पहले कौन उत्पन्न हुआ है, पीछे कौन उत्पन्न हुआ है, यह किसलिए उत्पन्न हुए हैं, यह बात कौन जानता है? दिन और रात्रि का निर्माण करने वाले दोनों समस्त संसार को धारण कर चक्र के समान घूमते अर्थात् भ्रमण करते रहते हैं।[ऋग्वेद 1.185.1]
हे ऋषियों! आकाश और पृथ्वी में कौन पहले और कौन बाद में रचित हुआ? इस बात को जानने वाला कौन है? ये दोनों अपने आप समस्त पदार्थों को धारण करती और दिन-रात के तुल्य विचरण करती है, वह न चलने वाली, बिना पैरों के आकाश पृथ्वी पैरों वाले शरीर धारियों को माता-पिता के समान गोद में धारण करती है। 
Hey Rishi Gan-sages! Who was born first, the earth or the sky? What is purpose behind their origin? Both of them keep on revolving bearing-supporting the entire-whole universe. 
भूरिं  द्वे अचरन्ती चरन्तं पद्वन्तं गभमपदी दधाते। 
नित्यं न सूनुं पित्रोरुपस्थे द्यावा रक्षतं पृथिवी नो अभ्वात्
पाद रहित और अविचल द्यावा पृथ्वी पादयुक्त तथा सचल गर्भस्थित प्राणियों को माता-पिता की गोद में पुत्र की तरह धारण करते हुए हमें पापों से बचायें।[ऋग्वेद 1.185.2]
हे आकाश पृथ्वी! हमारी डर से सुरक्षा करो। अक्षय, शुद्ध प्रकाशित, अमर, पूजनीय, धन की प्रार्थना करता हूँ। स्तोता के लिए उसे उत्पन्न करो और भयों से हमारी सुरक्षा करो।
Free from legs-rigid (immovable looking) sky & the earth bear all stationary & movable living beings-organism like mother & father protecting us from all fears-sins.  
अनेहो दात्रमदितेरनर्वं हुवे स्वर्वदवधं नमस्वत्। 
तद्रोदसी जनयतं जरित्रे द्यावा रक्षतं पृथिवी नो अभ्वात्
हम माता अदिति से पाप रहित, अक्षीण, हिंसा रहित, अन्न युक्त और स्वर्ग तुल्य धन के लिए प्रार्थना करते हैं। द्यावा पृथ्वी स्तोता यजमान के लिए वही धन उत्पन्न करते हुए उन्हें महापापों से बचावें।[ऋग्वेद 1.185.3]
दिन-रात्रि परिपूर्ण, देवों में पीड़ा रहित, अन्न से युवा, सुरक्षा वाली, अद्भुत गुणों से परिपूर्ण आकाश पृथ्वी मेरे अनुकूल रहें।
We request-pray to Dev Mata (mother of demigods-deities) Aditi for sinless, violence free, possessing food grains heaven like riches. Earth & sky create such wealth for the Stota hosts, Ritviz. 
अतप्यमाने अवसावन्ती अनु ष्याम रोदसी देवपुत्रे। 
उभे देवानामुभयेभिरह्नां द्यावा रक्षतं पृथिवी नो अभ्वात्
हम प्रकाशमान दिन और रात्रि के उभयविध धन के लिए दुःख-रहित और अन्न द्वारा तृप्तिकारी धावा पृथ्वी का अनुगमन कर सकें। हे द्यावा पृथ्वी! आप हमें महापापों से बचायें।[ऋग्वेद 1.185.4]
हे आकाश पृथ्वी! भयानक डरों से हमारी सुरक्षा करो। संग चलने वाली, सदैव तरुण, तुल्य सोम परिपूर्ण, भगिनी भूत, क्षितिज-धरा, माता-पिता की गोद रूप है।
Let us earn-create wealth-assets through day & night, which is free from pains-sorrow following the sky & the earth. Hey Sky & Earth! Protect us from sins-fears.
संगच्छमाने युवती समन्ते स्वसारा जामी पित्रोरुपस्थे। 
अभिजिघ्रन्ती भुवनस्य नाभिं द्यावा रक्षतं पृथिवी नो अभ्वात्
परस्पर संसक्त, सदा युवा, समान सीमा से संयुक्त, भगिनी भूत और मित्र सदृश द्यावा पृथ्वी माता-पिता के क्रोड स्थित और प्राणियों के नाभि-स्वरूप, जल का घ्राण करते हुए हमें महापाप से बचायें।[ऋग्वेद 1.185.5]
क्रोड़ :: गोद; lap.
हे अम्बर-धरा! भयावह डर से हमारी सुरक्षा करो। विस्तीर्ण बाल स्थान, महान रक्षाओं से युक्त आकाश और धरती का देवगणों की प्रसन्नता के लिए आह्वान करता हूँ। यह आश्चर्य रूप वाले जल को धारण करने में सक्षम हैं। यह हमारी महान पाप में रक्षा करें।
Joined-connected together, always young, having common boundaries, like sister and friend; the sky & the earth protect us, from great dangers, sins-fears, holding us in their lap.
उर्वी सद्मनी बृहती ॠतेन हुवे देवानामवसा जनित्री। 
दधाते ये अमृतं सुप्रतीके द्यावा रक्षतं पृथिवी नो अभ्वात्
देवों की प्रसन्नता के लिए मैं विस्तीर्ण निवास भूत, महानुभाव और शस्यादि-समुत्पादक छावा पृथ्वी को यज्ञ के लिए बुलाता हूँ। इनका रूप आश्चर्यजनक है और ये जल धारण करते है। हे द्यावा पृथ्वी! हमें महापाप से बचावें।[ऋग्वेद 1.185.6]
प्रतीत्य समुत्पाद :: अविद्या, संस्कार विज्ञान, नामरूप, षडायतन, स्पर्श, वेदना, तृष्णा, उपादान, भय, जाति और दुःख से बारहों पदार्थ जो उत्तरोत्तर संबद्ध हैं और क्रमात् एक दूसरे से उत्पन्न होते हैं।
समुत्पाद :: having same origin.
मैं इस यज्ञ में विस्तीर्ण, अनेक रूपवाली, असीमित आकाश और पृथ्वी की पूजा करता हूँ। यह सौभाग्यवती सभी पदार्थ और मनुष्यों को धारण करती है। हे आकाश-पृथ्वी! हमारी महापाप से सुरक्षा करो।
I invite the sky & earth for Yagy, for the sake of the demigods-deities, over this vast living abode bearing greenery, having the same-common origin. They have amazing figures (shapes & sizes) and they bear water. Hey earth & the sky! protect us from sins-fears, worries.
उर्वी पृथ्वी बहुले दूरेअन्ते उप ब्रुवे नमसा यज्ञे अस्मिन्द। 
दधाते ये सुभगे सुप्रतूर्ती द्यावा रक्षतं पृथिवी नो अभ्वात्
महान् पृथु, अनेक आकारों से विशिष्ट और अनन्त द्यावा पृथ्वी की यज्ञस्थल में मैं नमस्कार मंत्र द्वारा स्तुति करता हूँ। हे सौभाग्यवती और उद्धार कुशला द्यावा पृथ्वी! आप संसार को धारण करके हमें महा पाप से बचावें।[ऋग्वेद 1.185.7]
हे आकाश-पृथ्वी! देवगण, बन्धुगण, जमाता आदि के प्रति हमने जो पाप किये हों वे इस श्लोक से अनुष्ठान द्वारा दूर हो जायें। तुम हमको महापाप से बचाओ।
Hey vivid forms acquiring Sky & Earth! I salute you with the help of prayer Mantr-hymns, in the Yagy conducted by king Prathu. You protects us from the sins of high magnitude.
देवान्वा यच्चकृमा कच्चिदागः सखायं वा सदमिज्जास्पतिं वा। 
इयं धीर्भूया अवयानमेषां द्यावा रक्षतं पृथिवी नो अभ्वात्
हम देवों के पास जो सदा अपराध करते हैं, मित्र और जामाता के प्रति जो सब अपराध करते हैं, हमारा वह यज्ञ उन सब पापों को दूर करे।[ऋग्वेद 1.185.8]
मनुष्यों की भलाई करने वाली अम्बर धरा मुझे शरण प्रदान करें और  पोषण करती हुई मेरे संग रहें।
Let our Yagy vanish our sins pertaining to the demigods-deities, friends other people. 
उभा शंसा नर्या मामविष्टामुभे मामूती अवसा सचेताम्। 
भूरि चिदर्य: सुदास्तरायेषा मदन्त इषयेम देवाः
स्तुति योग्य और मनुष्यों के हितकर द्यावा पृथ्वी मुझे आश्रय प्रदान करे। आश्रयदाता द्यावा पृथ्वी आश्रय देने के लिए मेरे साथ मिलें। हे देवो! हम आपके स्तोता हैं, अन्न द्वारा आपको तृप्त करते हुए प्रचुर दान के लिए प्रचुर अन्न की कामना करते हैं।[ऋग्वेद 1.185.9]
मनुष्यों की भलाई करने वाली अम्बर धरा मुझे शरण प्रदान करें और  पोषण करती हुई मेरे संग रहें। हे देवगण! हम तुम्हारे स्तोता हवि रूप अन्न देकर तुम्हें प्रसन्न करते हैं और दान के लिए धन मांगा करते हैं।
Let the sky & earth shelter us who are beneficial to the revered-honourable people. Let both earth &sky join together to protect me. Hey demigods-deities (Sky & earth), we are your worshipers praying you for enough food grains for self and donation.
ऋतं दिवे तदवोचं पृथिव्या अभिश्रावाय प्रथमं सुमेधाः। 
पातामवद्याद्दुरितादभीके पिता माता च रक्षतामवोभिः
पिता रूप आकाश और माता रूप पृथ्वी अपने रक्षा-साधनों द्वारा हमें संरक्षित करें। अत्यन्त समीप रहने वाले ये दोनों हर प्रकार के अनिष्टों से (सदैव) हमारी रक्षा करते हुए तृप्तिकर वस्तु द्वारा हमें पालित करें।[ऋग्वेद 1.185.10] 
मैंने आसमान और पृथ्वी के लिए सत्य का कथन किया है। आसमान पृथ्वी निन्दा और अनिष्ट से हमारे रक्षक हों और माता-पिता के समान हमारा पालन करें।
Father & mother figure  sky & the earth should protect us through their all means. Let them provide us with resources granting us satisfaction.
इदं द्यावापृथिवी सत्यमस्तु पितर्मातर्यदिहोपब्रुवे वाम्। 
भूतं देवानामवमे अवोभिर्विद्यामेषं वृजनं जीरदानुम्
हे माता और हे पिता! आपके लिए इस यज्ञ में मैंने जो स्तोत्र पढ़े हैं, उन्हें सार्थक करें। हे द्यावा पृथ्वी! आश्रयदान द्वारा आप स्तोताओं के निकटवर्ती बनें, ताकि हम अन्न, बल और दीर्घायु प्राप्त कर सकें।[ऋग्वेद 1.185.11] 
हे पिता-माता रूप आकाश पृथ्वी! मैंने जो कुछ तुम्हारी भलाई के लिए कहा है, वह सत्य हो। तुम देवों से सत्य सुरक्षा करने वाली बनो। हम अन्न शक्ति और दानमयी स्वभाव को ग्रहण करें।
Hey parents figures sky & the earth! Make the Strotr useful I have read in this Yagy in your honour. You should be close to those who worship you (sing Strotr for seeking your favours) so that we get food grains, strength and longevity.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (186) ::  ऋषि :- अगस्त्य, देवता :- विश्वेदेवा,  छन्द :- त्रिष्टुप्।
आ न आ न इळाभिर्विदथे सुशस्ति विश्वानरः सविता देव एतु। 
अपि यथा युवानो मत्सथा नो विश्वं जगदभिपित्वे मनीषा
अग्निदेव और सविता हमारी स्तुतियों को श्रवण करके भूस्थानीय देवों के साथ (इस) यज्ञ स्थल में पधारें। हे वरुण देव! हमारे यज्ञ में अपनी इच्छा से पधार कर समस्त संसार की तरह हमें भी प्रसन्न करें।[ऋग्वेद 1.186.1]
सर्वप्रेरक सविता देव हमारी वंदनाओं के प्रति अनुष्ठान में पधारें। हे युवा देवों! तुम यहाँ पधारकर प्रसन्न होते हुए हमें भी सुखी करो।
Let Agni Dev & Savita Dev listen-respond to our prayers and oblige us by coming to this Yagy site. Hey Varun Dev! Come to our Yagy of your own and oblige us too, the way you keep the entire universe-world happy.
आ नो विश्व आस्क्रा गमन्तु देवा मित्रो अर्यमा वरुणः सजोषाः । 
भुवन्यथा नो विश्वे वृधासः करन्त्सुषाहा विथुरं न शवः
शत्रुओं के ऊपर आक्रमण करने वाले मित्र, वरुण और अर्यमा ये सब समान प्रीति युक्त होकर (यहाँ) आगमन करें और हमारी वृद्धि करें। शत्रुओं को पराजित करते हुए अन्नहीन न करें।[ऋग्वेद 1.186.2]
सखा, अर्यमा और वरुण ये एक जैसे हृदय वाले देवगण एक साथ इस यज्ञ में पधारें। वे हमारी वृद्धि के कारण हों और प्रयास पूर्वक हमारी शक्ति क्षीण न होने दें।
Let Mitr, Varun and Aryma, who attack the enemy, come here with love-affection and lead to our progress. While defeating the enemy protect out food grains. 
प्रेष्ठं वो अतिथिं गृणीषेऽग्निं शस्तिभिस्तुर्वणिः सजोषाः। 
असद्यथा नो वरुणः सुकीर्तिरिषश्च पर्षदरिमूर्तः सूरिः
हे देवगण! मैं क्षिप्रकारी और आपकी तरह प्रीति युक्त होकर आपके श्रेष्ठ अतिथि (अग्निदेव) की स्तुति मन्त्रों द्वारा करता हूँ। उत्तम कीर्ति वाले दिग्गज विद्वान् वरुण हमारे ही होवें। ये शत्रुओं के प्रति हुंकार करते हुए अन्न द्वारा हमें परिपूर्ण करें।[ऋग्वेद 1.186.3]
क्षिप्रकारी :: शीघ्र काम करने वाला; one who acts quickly-swiftly, fast to accomplish the job.
मनुष्यों में तुम्हारे प्रिय अग्नि की वन्दना करता हूँ। वे हमारी प्रार्थना द्वारा शत्रुओं को विजय करें और हमसे प्रेम करें। वदंना करने पर वरुण हमको अन्नों से पूर्ण कर यशस्वी बनायें।
Hey demigods-deities! I act swiftly and pray to Agni Dev with prayer Mantr-hymns & love. Let Varun Dev who is revered & honourable, become ours, alarm-warn the enemy and give us sufficient food grains. 
उप व एषे नमसा जिगीषोषासानक्ता सुदुघेव धेनुः। 
समाने अहन्विमिमानो अर्कं विषुरूपे पयसि सस्मिन्नूधन्
हे देवो! दिन-रात नमस्कार करते हुए पाप-विजय के लिए दुग्धवती धेनु की तरह आपके पास उपस्थित होते हैं। हम यथासमय अधः स्थान से एक मात्र उत्पन्न नाना रूप खाद्य द्रव्य मिश्रित करके लाये हैं।[ऋग्वेद 1.186.4]
हे विश्वे देवताओं! हम वदंना करते हुए दिन-रात विजय की इच्छा से पयस्विनी धेनु के समान विद्यमान रहते हैं। मैं भी उसी तरह प्रणाम सहित तुम्हारी अर्चना करता हूँ। 
Hey Demigod-deities! We salute you through out the day & night, over come the sins and present ourselves in front of you like a milch cow. We have procured the rare food items and mixed various extracts-juices (liquids) in it for you.
उत नोऽहिर्बुध्न्योमयस्कः शिशुं न पिप्युषीव वेति सिन्धुः। 
येन नपातमपां जुनाम मनोजुवो वृषणो यं वहन्ति
अहिर्बुध्न नामक अन्तरिक्ष चारी देव हमें सुख प्रदान करें। सिन्धु पुत्र की तरह हमें प्रसन्न करें। हम जल के नप्ता अग्नि देव की स्तुति करते हुए प्राप्त हुए हैं। मन की तरह वेग शाली मेघ उन्हें ले जाते हैं।[ऋग्वेद 1.186.5] 
नभ में स्थित सर्प के समान आचरण वाली विद्युत हमें सुखी बनायें। सिंधु बछड़े के समान हमारा पोषण करें। उसके अश्व द्वारा हम जलोत्पन्न अग्नि देव को प्राप्त करें। मन के समान गति वाले अश्व उन्हों ले जाते हैं।
Demigod named Ahirbudhn, who occupies the space-sky, grant us comforts and make us happy like the son of the ocean. We have been praying like the grand children of water and devoted ourselves to the prayers of Agni Dev. The clouds who are as strong-quick as the Man (brain, psyche, mood, mind) carries them. 
उत न ई त्वष्टा गन्त्वच्छा स्मत्सूरिभिरभिपित्वे सजोषाः। 
आ वृत्रहेन्द्रश्चर्षणि प्रास्तुविष्टमो नरां न इह गम्याः
त्वष्टा हमारे सामने आयें। यज्ञ के कारण त्वष्टा स्तोताओं के साथ समान प्रीति सम्पन्न हों। अती विशाल, वृत्र घातक और मनुष्यों के अभीष्ट पूरक इन्द्रदेव हमारे यज्ञस्थल में पधारें।[ऋग्वेद 1.186.6]
प्रार्थना कारियों के साथ समान स्नेह रखने वाले त्वष्टा हमारी ओर आयें। वृत्र के शोषण कर्त्ता मनुष्यों के रक्षक, महा बलिष्ठ इन्द्रदेव यहाँ पधारें।
Let Twasta come to us. Let Twasta become full of love & affection like the hosts. Huge, killer of Vratr and human's desire fulfilling, Indr Dev come to our Yagy.
उत न ईं मतयोऽश्वयोगाः शिशुं न गावस्तरुणं रिहन्ति। 
तमी गिरो जनयो न पत्नी: सुरभिष्टमं नरां नसन्त
जिस प्रकार से गौवें बछड़ों को चाटती हैं, वैसे ही अश्व तुल्य हमारा मन युवा इन्द्र देव की स्तुति करता है। जिस प्रकार से स्त्रियाँ पति को प्राप्त कर सन्तान वाली होती हैं, उसी प्रकार से हमारी स्तुति अतिशय यशोयुक्त इन्द्रदेव को प्राप्त होकर फल प्रदान करती हैं।[ऋग्वेद 1.186.7]
धेनुओं द्वारा बछड़ों को चाटने के तुल्य घोड़े संयोजन करने वाली हमारी वंदनाएँ इन्द्र देव को ग्रहण होती हैं।
The way the cow lick her calf, our innerself (Man, mind, brain, psyche, mood) comparable to the horse, pray to youthful Indr Dev. The way the women get progeny from their husband; our prayers to highly revered-honourable Dev Raj Indr grant our desires.
उत न ईं मरुतो वृद्धसेनाः स्मद्रोदसी समनसः सदन्तु। 
पृषदश्वासोऽवनयो न रथा रिशादसो मित्रयुजो न देवाः
अतीव बलशाली, समान प्रीतियुक्त, पृषत् नाम के अश्व से युक्त, अवनत स्वभाव और शत्रु भक्षक मरुद्गण, मित्रता करने वाले ऋषियों की तरह द्यावा पृथ्वी के पास से एकत्रित होकर हमारे इस यज्ञ में पधारें।[ऋग्वेद 1.186.8]
अवनत :: विनीत, नीचा, झुका हुआ, नत, गिरा हुआ, पतित, अधोगत, अस्त होता हुआ, नम्र; bowed, cernuous, depressed, downcast
उन्नत हृदय वाले, शत्रु भक्षक मित्रों के पक्षपाती मरुद्गण नभ और पृथ्वी में मिलकर ऋषियों के समान हवन में बैठें। उनके बिन्दु रूप अश्व जल प्रवाह के समान हैं।
Highly powerful, possessing love & affection, having the horse named Prashat, having mild-cordial behaviour and destroyer of the enemy Marud Gan, like the Rishis who prefer friendship come along with the sky and the earth come to join our Yagy.
प्र नु यदेषां महिना चिकित्रे प्र युञ्जते प्रयुजस्ते सुवृक्ति। 
अध यदेषां सुदिने न शरुर्विश्वमेरिणं प्रुषायन्त सेनाः
मरुतों की महिमा प्रसिद्ध है; क्योंकि वे स्तुति का प्रयोग जानते हैं। अनन्तर जिस प्रकार से प्रकाश संसार को व्याप्त करता है, उसी प्रकार सुदिन में अन्धकार विनाशक मरुतों की वृष्टि प्रद सेना समस्त अनुर्वर देशों में उत्पादिका शक्ति से सम्पन्न करती है।[ऋग्वेद 1.186.9]
जब से इन मरुतों की महिमा का सही ढंग से ज्ञान हुआ है तभी से कुशा बिछाने वाले यजमान यज्ञ कर्मों में प्रयुक्त हुए। इनको सेनाएँ बाण के समान गति से मरुस्थल को सीचने में सक्षम हैं।
Greatness-glory of Marud Gan is famous, since they know how to make prayers-Stuti. The way the Sun lit the universe, the army of Marud Gan capable of eliminating darkness (due to clouds) on a fine day, lead to rains in desert, unfertile land and nourish the soil with grow crops.
प्रो अश्विनाववसे कृणुध्वं प्र पूषणं स्वतवसो हि सन्ति। 
अद्वेषो विष्णुर्वात ऋभुक्षा अच्छा सुम्राय ववृतीय देवान्
हे ऋत्विको! हमारी रक्षा के लिए अश्विनी कुमारों और पूषा की स्तुति करें। द्वेष से रहित श्री विष्णु, वायुदेव और इन्द्रदेव नाम के स्वतंत्र बल विशिष्ट देवताओं की स्तुति करें। सुख के लिए मैं समस्त देवगणों की स्तुति करता हूँ।[ऋग्वेद 1.186.10]
हे मनुष्यों! सुरक्षा के लिए अश्विदेवों को आगे बढ़ाओ। पूषा को भी आगे लाओ। द्वेष विमुख, विष्णु पवन और ऋभुओं के स्वामी इन्द्रदेव समस्त शक्तियों को अपने अधिकार में रखते हैं। सुख के लिए मैं सभी देवों को सामने बुलाता हूँ। 
Hey Ritviz! Let us pray to Pusha and Ashwani Kumars for our protection. Pray to enmity free Bhagwan Shri Hari Vishnu, Vayu Dev, Dev Raj Indr and the demigods-deities empowered with special powers-might. I pray to all demigods-deities for happiness and pleasure.
इयं सा वो अस्मे दीधितिर्यजत्रा अपिप्राणी च सदनी च भूयाः। 
नि या देवेषु यतते वसूयुर्विद्यामेषं वृजनं जीरदानुम्
हे यजनीय देवगणों! आपकी अनुपम ज्योति हमारे लिए प्राण दाता और निवास स्थान बनें। आपकी अन्नवती ज्योति देवगणों को प्रकाशित करे, ताकि हम अन्न, बल और दीर्घायु को प्राप्त कर सकें।[ऋग्वेद 1.186.11]
हे पूजनीय देवताओं। तुम्हारी भक्ति हमको जीवन देने वाली हो। हम श्रेष्ठ स्थान प्राप्त करें। तुम्हारी दात्री शक्ति देवताओं को प्रेरित करें जिससे हम अन्न, बल और उदार वृत्ति वाले हों।
Hey prayer deserving demigods-deities! Your divine energy-light may become a source of life and place to live, for us. Your divine vision granting food stuff, may grant us food grains, might and liberal nature.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (187) ::  ऋषि :- अगस्त्य, देवता :- अन्न,  छन्द :- अनुष्टुप, बृहती, गायत्री।
पितुं नु स्तोषं महो धर्माणं तविषीम्। 
यस्य त्रितो व्योजसा वृत्रं विपर्वमर्दयत्
मैं क्षिप्रकारी होकर विशाल, सबके धारक और बलात्मक पितु (अन्न) की स्तुति करता हूँ। उनकी ही शक्ति से इन्द्रदेव ने वृत्रासुर के अंगों को काटकर उसका वध किया।[ऋग्वेद 1.187.1]
अब मैं शक्तिशाली अन्न का पूजन करता हूँ, जिसकी शक्ति से "त्रित" ने वृत्र के जोड़ को तोड़कर समाप्त कर डाला।
I quickly pray to food grain-food stuff, which supports all, give strength. With the strength of which Dev Raj Indr chopped the organs of Vrata Sur. 
स्वादो पितो मधो पितो वयं त्वा ववृमहे। अस्माकमविता भव
हे स्वादु पितु, हे मधुर पितु! हम आपकी सेवा करते हैं। आप हमारी रक्षा करें।[ऋग्वेद 1.187.2]
हे सुस्वादु अन्न! तू मधुर है, हमने तेरा वरण किया है, तू हमारा रक्षक हो।
Hey tasty, sweet food! We serve-worship you. Protect us.  
उप नः पितवा चर शिवः शिवाभिरूतिभिः। 
मयोभुरद्विषेण्यः सखा सुशेवो अद्वयाः
हे पितु आप मंगलमय है। कल्याणवाही आश्रयदान द्वारा हमारे पास आकर हमें सुख प्रदान करें। हमारे लिए आपका रस अप्रिय न हो। आप हमारे लिए मित्र और अद्वितीय सुखकर बने।[ऋग्वेद 1.187.3]
हे अन्न! तू कल्याण स्वरूप है। अपनी सुरक्षाओं से युक्त हमारी तरफ आ। तू स्वास्थ्य दाता हमको हानिकारक न हो और अद्वितीय सखा के समान सुखकर रहो।
Hey food, you are auspicious! Being our benefactor, come and provide us pleasure. Hey protector of our health! You should be like a friend to us & we should not be harmed. 
BENEFACTOR :: दान देने-करनेवाला; grantor, presenter, conducive, helpful, accommodating, promoter, instrumental.
तव त्ये पितो रसा रजांस्यनु विष्ठिताः। दिवि वाताइव श्रिताः
हे पितु! जिस प्रकार से वायु देवता अन्तरिक्ष का आश्रय प्राप्त किये हुए हैं, उसी प्रकार ही आपका रस समस्त संसार के अनुकूल व्याप्त है।[ऋग्वेद 1.187.4] 
हे अन्न! पवन के अंतरिक्ष में आश्रय लेने के समान तेरा इस संसार में फैला है।
Hey food! The way in which the air is dependent over the sky, your sap is favourable to the whole universe.
तव त्ये पितो ददतस्तव स्वादिष्ठ ते पितो। 
प्र स्वाद्मानो रसानां तुविग्रीवाइवेरते
हे स्वादुतम पितु! जो लोग आपकी प्रार्थना करते हैं, वे भोक्ता हैं। आपकी कृपा से वे आपको दान देते हैं। आपके रस का आस्वादन करने वालों की गर्दन ऊँची होती है।[ऋग्वेद 1.187.5] 
हे पालक और सुस्वादु अन्न! तुम्हारा दान करने वाले तुम्हारी दया चाहते हैं। तुम्हारे सेवन कर्त्ता तुम्हारी अर्चना करते हैं। तुम्हारी प्रार्थना रस आस्वाद न करने वालों की ग्रीवा को उन्नत और अटल करता है।
Hey tastiest food grain! Those who donate you, desire your blessings. Its your mercy that they donate you. Those who taste your sap, keep their neck high and determined-firm.
त्वे पितो महानां देवानां मनो हितम्। 
अकारि चारु केतुना तवाहिमवसावधीत्
हे पितु! महान् देवों ने आप में ही अपने मन को निहित किया है। आपको तीव्र बुद्धि और आश्रय द्वारा ही अहि का वध किया गया।[ऋग्वेद 1.187.6]
हे अन्न! श्रेष्ठ देवों का हृदय तुझमें ही रखा है। तुम्हारी शरण में सुन्दर कार्य किये जाते हैं। तुम्हारी सुरक्षा से ही इन्द्रदेव ने वृत्र को समाप्त किया था।
Hey food grain! Great demigods-deities concentrated their innerself in you. Its your sharp intellect and protection that Ahi was killed. 
यददो पितो अजगन्विवस्व पर्वतानाम्। 
अत्रा चिन्नो मधो पितोऽरं भक्षाय गम्याः
जिस समय मेघ प्रसिद्ध जल को लाते हैं, उस समय हे मधुर पितु हमारे सम्पूर्ण भोजन के लिए हमारे पास पधारें।[ऋग्वेद 1.187.7]
हे अन्न! बादलों में जो विख्यात जल रूप धन है, उसके द्वारा मधुर हुए हमारे सेवन के लिए ग्रहण हो।
Hey sweet food grain! Let all sorts of food grains come to us for food (lunch & dinner), when the clouds bring water.
यदपामोषधीनां परिंशमारिशामहे। वातापे पीव इद्भव
हम यथेष्ट जल और जौ आदि औषधियों को खाते हैं, इसलिए हे शरीर! आप स्थूल बनें।[ऋग्वेद 1.187.8]
हे अन्न! हम जलों और दवाइयों का कम अंश सेवन करते हैं। तू वृद्धि को प्राप्त हो।
Hey body! We consume sufficient barley and water to keep fit, healthy, handsome. 
यत्ते सोम गवाशिरो यवाशिरो भजामहे। वातापे पीव इद्भव
हे सोम देव! आपके जौ आदि और दुग्ध आदि से मिश्रित अंश का हम भक्षण करते हैं। इसलिए हे शरीर! आप स्थूल बनें।[ऋग्वेद 1.187.9] 
हे सोम! हम तुम्हारे दूध से मिश्रित खिचड़ी रूपी अन्न का सेवन करते हैं। अतः तू वृद्धि को प्राप्त हो।
Hey Som Dev-Moon! We consume barley and milk to keep our fit & fine.
करम्भ ओषधे भव पीवो वृक उदारथिः। वातापे पीव इद्भव
हे करम्भ औषधि! आप स्थूलता सम्पादक, रोगनिवारक और इन्द्रियोद्दीपक बनें। हे शरीर! आप स्थूल बनें।[ऋग्वेद 1.187.10] 
करम्भ ::  दही चावल या जौ को मिलाकर बनाया गया भोज्य पदार्थ, रम्भा का भाई, महिसासुर का पिता, कलिंग की राजकुमारी-देवातिथि की माता जिसका विवाह पुरुवंश में हुआ, शकुनि का पुत्र-देवरथ का पिता, एक औषधि का नाम; a preparation of curd mixed with rice or barley-meal. 
हे औषधि रूप अन्न! तू शरीर उत्पत्ति के अनुकूल, पुष्टिप्रद, व्याधि नाशक और उद्दीपन करने वाला है। तू वृद्धि को प्राप्त हो।
Hey Karambh-a medicine! You grant us a strong body, remove diseases and energise the sense organs. Hey body! You should become strong-healthy.
तं त्वा वयं पितो वचोभिर्गावो न हव्या सुषूदिम। 
देवेभ्यस्त्वा सधमादमस्मभ्यं त्वा सधमादम्
हे पितु! गौवों के पास जिस प्रकार हव्य गृहीत होता है, उसी प्रकार से ही आपके पास स्तुति द्वारा हम रस ग्रहण करते हैं। यह रस देवों को ही नहीं, हमें भी बलवान् बनाता है।[ऋग्वेद 1.187.11] 
हे अन्न! धेनु जैसे सेवनीय दुग्ध को बहाती है वैसे ही तुमसे वंदना द्वारा हम रस प्राप्त करते हैं। तू देवों को हर्षित करने वाला हमको भी संतुष्ट करता है।
Hey grains! The way the cow give us milk, you give us sap-extract which we obtain by worshiping you. This extract should make strong like the demigods-deities. 
A Hindu farmer worship the crops. The first lot is worshipped as soon it arrives home. Sugar cane too, is worshipped. 
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (188) ::  ऋषि :- अगस्त्य, देवता :-अग्नि,  छन्द :- अनुष्टुप, बृहती, गायत्री।
समिद्धो अद्य राजसि देवो देवैः सहस्त्रजित्। दूतो हव्या कविर्वह
हे अग्नि देव। ऋत्विकों द्वारा भली-भाँति आज समिद्ध नामक अग्नि सुशोभित होते हैं। हे  सहस्रजित् देव! आप कवि और दूत हैं। आप भली भाँति हव्य ग्रहण करें।[ऋग्वेद 1.188.1]
समिद्ध, तनूनपात्, इड्य अग्नि के रूप हैं।  
हे सहस्त्रों के विजेता अग्नि! तुम ऋत्विजों द्वारा शोभायमान किये जाते हो। तुम हवि वाहक दौत्य कर्म में निपुण हो।
Hey Agni Dev! The Ritviz worship the Agni named Samiddh. He winner of thousands! You are a poet and messenger. Accept the offerings whole heartedly. 
तनूनपादृतं यते मध्वा यज्ञः समज्यते। दधत्सहस्त्रिणीरिषः
पूजनीय तनूनपात् नामक अग्रिदेव हजारों प्रकार से अन्न धारण करके यजमान के लिए मधुर रसों का संचार करते हैं।[ऋग्वेद 1.188.2]
नियम पालक मनुष्य के लिए अनुष्ठान माधुर्य परिपूर्ण होता है। देहों के रक्षक अग्नि हजारों प्रकार के रसों को धारण करते हैं।
Revered fire in the form of Tanunpat bears thousands of food grains and flow the sweet sap for the hosts-Ritviz.
आजुह्वानो न ईड्यो देवाँ आ वक्षि यज्ञियान्। अग्ने सहस्रसा असि
हे इड्य नामक अग्नि देव! आप हमारे द्वारा आहूत होकर हमारे लिए यज्ञ भागी देव गणों को बुलावें। हे अग्निदेव! आप असीम अन्न के दाता है।[ऋग्वेद 1.188.3]
हे अग्ने! तुम आहूत होकर अनुष्ठान में भाग ग्रहण करने वाले देवों को पुकारो। तुम असंख्य अन्नों के दाता हो।
Hey Idy Agni!  Having invited by us, invite the demigods-deities to accept their share of offerings. Hey Agni Dev! You grant us unlimited food grains.
प्राचीनं बर्हिरोजसा सहस्रवीरमस्तृणन्। यत्रादित्या विराजथ
हजारों वीरों वाले और पूर्वाभिमुख में अग्र भाग से युक्त जिस अग्निरूप कुश पर आदित्य लोग बैठे हैं, उसे ऋत्विकगण मंत्र के द्वारा आच्छादित करते हैं।[ऋग्वेद 1.188.4]
हे आदित्यों! जिस हजार वीरों के योग्य अग्नि रूप कुश को ऋत्विज मंत्र द्वारा बिछाते हैं, उस पर तुम विराजमान हो।
The Ritviz treat the Kush mat over which Adity Gan equivalent to thousands warriors, sit facing east.
विराट् सम्राडिभ्वीः प्रभ्वीर्बहीश्च भूयसीश्च याः। दुरो घृतन्यक्षरन्
अनेकानेक यज्ञों द्वारा से घृत की वर्षा करने वाले अग्निदेव परमात्मा के तुल्य विभु, तेजस्वी और विराट् शासक हैं।[ऋग्वेद 1.188.5]
विभु :: सर्वव्यापक, महान्, ब्रह्म, जीवात्मा।
सबके शासक, बलवान, सशक्त अग्नि-रूप यज्ञ द्वारों पर घी की बरसात करते हैं।
Agni Dev is equivalent to the God energetic, pervading all and is a great ruler, showering ghee in the Yagy.
All demigods-deities are forms of God which perform the specific function assigned to them. A soul is the smallest component of the God present in each and living being. 
सुरुक्मे हि सुपेशसाधि श्रिया विराजतः। उषासावेह सीदताम् 
दीप्त आभरण से युक्त और सुन्दर रूप से संयुक्त अग्नि रूप दिवा-रात्रि अतीव शोभायमान होकर विराजते हैं।[ऋग्वेद 1.188.6]
सुन्दर रूप और शोभा से परिपूर्ण उष्ण रात्रि में सुशोभित होती है, वे यहाँ विराजमान हों।
Agni Dev bears beautiful ornaments accompanied by the flames, make the night beautiful.
प्रथमा हि सुवाचसा होतारा दैव्या करी। यज्ञं नो यक्षतामिमम् 
सबसे उत्तम प्रखर वाणी के प्रयोक्ता, दिव्य गुणों से युक्त, मेधावी होता हमारे इस यज्ञ को पूर्ण करें।[ऋग्वेद 1.188.7]
प्रिय भाषी, मेधावी, प्रमुख अद्भुत होता अग्नि हमारे अनुष्ठान में पधारें।
The Yagy performers associated by divine characterises possessing excellent speech-voice accomplish-carry out our Yagy.
भारतीळे सरस्वति या वः सर्वा उपब्रुवे। ता नश्चोदयत श्रिये
हे अग्नि रूपिणी भारती, सरस्वती और इला! मैं आप सबका आवाहन करता हूँ। आप तीनों हमें ऐश्वर्य विभूतियों की ओर प्रेरित करें।[ऋग्वेद 1.188.8]
हे भारती इला और सरस्वती देवियों! तुम्हारे पास आकार प्रार्थना करता हूँ, जिससे मुझे ऐश्वर्य प्राप्त हो सके, वही करो।
Hey Bharti, Saraswati and Ila in the form of fire-Agni! I invite you all. You three direct-motivate us to all sorts of opulence, grandeur.
ऐश्वर्य :: वैभव, शोभा, ईश्वरता-ईश्वरीय गुण, आधिपत्य, ईश्वरीय संपदा, ईश्वरीय विभूति, धन संपत्ति, अणिमा, शोभा, महिमा आदि आठों सिद्धियों से प्राप्त अलौकिक शक्ति; opulence, grandeur, glory.
विभूति :: बहुतायत, वृद्धि, बढ़ती, विभव, ऐश्वर्य, संपत्ति-धन, लक्ष्मी, विविध सृष्टि, प्रभुत्व, बड़ाई, सृष्टि, ताकत, शक्ति, महत्ता, प्रतिष्ठा, उच्च पद, विस्तार, प्रसार, प्रवृत्ति, प्रकृति, स्वभाव; Majesty, ash, magnificence, an outstanding personality, personage. 
दिव्य या अलौकिक शक्ति जिसके अंतर्गत अणिमा, महिमा, गरिमा, लधिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व ये आठ सिद्धियाँ हैं। योगदर्शन के विभूतिपाद में इसका वर्णन है कि किन-किन साधनाओं से कौन-कौन सी विभूतियाँ प्राप्त होती हैं।
भगवान् शिव के अंग में चढ़ाने की राख या भस्म। देवी भागवत, शिवपुराण आदि में भस्म या विभूति धारण करने का माहत्म्य विस्तार से वर्णित है।
भगवान् विष्णु का वह ऐश्वर्य जो नित्य और स्थायी माना जाता है।
एक दिव्यास्त्र जो राजऋषि विश्वामित्र ने भगवान् श्री राम को दिया था।
त्वष्टा रूपाणि हि प्रभुः पशून्विश्वान्त्समानजे। तेषां नः स्फातिमा यज 
अग्नि स्वरूप त्वष्टा रूप देने में समर्थवान् हैं। वह समस्त पशुओं का रूप व्यक्त करते हैं। हे त्वष्टा! हमें अत्यधिक पशु प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.188.9]
अग्नि स्वरूप त्वष्टा रूप देने वाले हैं। उन्होंने पशुओं को प्रकट किया है।
Twasta like the Agni, is capable of giving various forms to the organism. They exhibit the forms of all animals. Hey Twasta! Grant us a lot of cattle.उप त्मन्या वनस्पते पाथो देवेभ्यः सृज। अग्निर्हव्यानि सिष्वदत्
हे अग्निरूप वनस्पति! आप देवों का पशु रूप अन्न उत्पन्न करें। अग्नि देव सम्पूर्ण हव्यों को स्वादिष्ट करें।[ऋग्वेद 1.188.10]
हे त्वष्टा! यज्ञ द्वारा हमारे पशुओं की वृद्धि करो। हे अग्नि स्वरूप वनस्पते! अपनी शक्ति से अद्भुत अन्न रचित करो। हे अग्ने! हमारे हव्य को सुस्वादु बनाओ। 
Hey vegetation in the form of fire-Agni! Create the food grains-stuff for the demigods-deities in the form of animals. Let Agni Dev, make all eatables tasty.
पुरोगा अग्निर्देवानां गायत्रेण समज्यते। स्वाहाकृतीषु रोचते
देवों के अग्रगामी अग्निदेव गायत्री छन्द से लक्षित हुआ करते हैं। स्वाहा देने के समय
वे प्रदीप्त होते हैं। [ऋग्वेद 1.188.11] 
देवों में अग्रणी अग्नि गायत्री छन्द द्वारा आयोजित किये जाते हैं। वह स्वाहा करने पर दीप्तीमान होते हैं।
Hey Agni Dev moving ahead of demigods-deities! You are organised by the recitation of Gayatri Mantr and ignite when we recite Swaha (Ahuti).
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (189) ::  ऋषि :- अगस्त्य, देवता :-अग्नि,  छन्द :- त्रिष्टुप्।
अग्ने नय सुपथा राये अस्मान्विश्वानि देव वयुनानि विद्वान्। 
युयोध्यस्मज्जुहुराणमेनो भूयिष्ठां ते नमउक्तिं विधेम
हे दीप्ति विशिष्ट अग्नि देव! आप समस्त प्रकार के ज्ञान जानते हैं, इसलिए हमें अच्छे मार्ग से धन की ओर ले जावें। आप कुटिल पाप को हमारे पास से हटावें। हम बारम्बार आपको प्रणाम करते हैं।[ऋग्वेद 1.189.1]
हे अश्विदेव! तुम सिद्धान्तों के ज्ञाता हो। हमको सुमार्गगामी बनाओ। पाप को दूरस्थ करो। हम तुम्हें नमस्कार करते हैं। 
Hey bright Agni Dev! You are enlightened. Take us to the acquisition of wealth through pious means. Remove the sins away from us. We repeatedly salute you; pay our obeisance to you. 
OBEISANCE :: अभिवादन, आदर, श्रद्धा, सम्मान, इज़्ज़त, दण्डवत प्रणाम; paying respect-honour.
अग्ने त्वं पारया नव्यो अस्मान्त्स्वस्तिभिरति दुर्गाणि विश्वा।
पूश्च पृथिवी बहुला न उर्वी भवा तोकाय तनयाय शं योः
हे अग्नि देव आप नूतन हैं। स्तुति के कारण हमें आप समस्त दुर्गम पापों से मुक्त करें। हमारा नगर व हमारी भूमि प्रशस्त हैं। आप हमारे पुत्रों और हमारी सन्तानों को सुख प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.189.2]
हे अग्निदेव! वंदना किये जाने पर तुम हमको कष्टों से पार लगाओ। तुम हमारे लिए प्रशस्त नगरी वाले बनो। तुम हमारी संतानों की बीमारियों को शांत करने और डर का पतन करने वाले हो। 
Hey Agni Dev! You are always new-fresh! Make us free from sins on account of Stuti-obeisance, prayers offered to. Our abodes :- city and homes should be safe. Grant comforts-pleasure to our sons and progeny.
अग्ने त्वमस्मद्युयोध्यमीवा अनग्नित्रा अभ्यमन्त कृष्टीः। 
पुनरसम्भ्यं सुविताय देव क्षां विश्वेभिरमृतेभिर्यजत्र
हे अग्निदेव! आप हमारे पास से सभी रोगों को दूर करें। जो अग्निहोत्र नहीं करते या जो हमारे विद्रोही हैं, उन्हें भी हटावें। हे देव! आप हमें उत्तम फल देने के लिए जिनकी मृत्यु कभी नहीं होती, ऐसे देवों के साथ यज्ञशाला में पधारें।[ऋग्वेद 1.189.3]
हे अग्नि देव! तुम बीमारियों को हमसे दूर रखो जो व्यक्ति अग्नि से परे हैं उन्हें ही बीमारी होनी चाहिये। तुम देवताओं के साथ हमारी धरती को सुख से परिपूर्ण बनाओ।
Hey Agni Dev! Remove all diseases-ailments, illness away from us. Remove the detractors & those who do not conduct Yagy-Agni Hotr. Hey Dev! Come to our Yagy Shala-site along with the demigods-deities who are immortal.
None is for ever. One who is born has to die. The demigods-deities too have a specific life span and they assimilate themselves into Brahma Ji after one Kalp-one day of Brahma Ji. This is a continuous cycle.
पाहि नो अग्ने पायुभिरजस्त्रैरुत प्रिये सदन आ शुशुकान्। 
मा ते भयं जरितारं यविष्ठ नूनं विदन्मापरं सहस्वः
हे अग्नि देव! आप सतत आश्रयदान द्वारा हमारा पालन करें। हमारे प्रिय यज्ञगृह में चारों और दीप्त युक्त बने हैं। हे युवा अग्नि देव आपके स्तोता समस्त प्रकार के भय से मुक्त रहें तथा आपकी सामर्थ्य से अन्य संकटों में समय (हम) भी निर्भय रहे।[ऋग्वेद 1.189.4]
निर्भय :: निडर; fearless, intrepid.
हे अग्निदेव! हमारे प्रिय भवन में प्रदीप्त हुए तुम अपने रक्षा के साधनों से हमारा हमेशा पालन पोषण करो। तुम्हारे वंदनाकारी को कभी भी भय न लगे। 
Hey Agni Dev! You nourish-protect us regularly-continuously. Our lovely Yagy shade should be lit from all sides. Hey young Agni Dev! Your devotees should remain free from all fears and we too should be fearless.
मा नो अग्नेSव सृजो अघायाविष्यवे रिपवे दुछुनायै। 
मा दत्वते दशते मादते नो मा रीषते सहसावन्परा दाः॥
हे अग्नि देव! हमें अन्न ग्रासि, हिंसक और शुभ का नाश करने वाले शत्रुओं के हाथ में न देना। हमें दन्त विशिष्ट और दंशक सर्प आदि के हाथ में नहीं सौपना। दन्त शून्य शृंगादि वाले पशुओं को नहीं सौपना। हे बलवान् अग्नि देव! हिंसा करने वाले राक्षसों के हाथ भी हमें न सौपना।[ऋग्वेद 1.189.5]
हमको डंक मारने वाले! (सर्पादि) या बिना दाँत वाले, सींग आदि से परिपूर्ण हिंसकों के ही सुपुर्द करो। 
Hey Agni Dev! Do not hand over-surrender us to the violent and impious enemy, canine animals, snakes, with-without horns animals, demons. 
वि घ त्वार्वांऋतजात यंसद्गृणानो अग्ने तन्वे वरूथम्।
विश्वाद्रिरिक्षोरुत वा निनित्सोरभिद्रुतामसि हि देव विष्पट्
हे यशोत्पन्न अग्नि देव। आप वरणीय हैं। शरीर पुष्टि के लिए स्तुति करते हुए लोग आपको प्राप्त करके समस्त हिंसक और निन्दक व्यक्तियों के हाथों से अपने को बचाते हैं। हे अग्नि देव! जो आपके सामने कुटिल आचरण करते हैं, ऐसे दुष्टों का आप दमन करें।[ऋग्वेद 1.189.6]
वरणीय :: धारण करने योग्य; selectable, worthy of being chosen, splendid, fine.
हे सिद्धान्तों के लिए रचित अग्नि देव! तुम वंदना किये जाने पर निंदकों और हिंसकों से बचने वाले और कुटिल मनुष्यों का पतन करने वाले हो।
Hey revered Agni Dev! You deserve to be selected. We pray for the nourishment-growth of our body reciting prayers-Stuti and protect us from the depraved, violent persons. hey Agni Dev! Punish those who are crooked-thugs leading to their down fall. 
त्वं ताँ अग्र उभयान्वि विद्वान्वेषि प्रपित्वे मनयो यजत्र। 
अभिषित्वे मनवे शांस्यो भूर्ममृजेन्य उशिग्भिर्नाक्र:
हे यजनीय अग्नि देव! आप यज्ञ करने वाले और न करनेवाले इन दोनों से परिचित होते हुए उषा काल में यज्ञकर्ता को प्राप्त होते हैं और यज्ञ में उपस्थित यजमान को आप अभीष्ट फल प्रदत्त करते हैं तथा उसे अच्छे मार्ग की ओर प्रेरित करते हैं। (इसलिए) यजमान भी आपको सदैव सुशोभित करते हैं।[ऋग्वेद 1.189.7]
हे अग्ने! तुम यज्ञ कर्त्ता और यज्ञहीन दोनों प्रकार के प्राणियों को जानकर ही उषाकाल में यज्ञकर्त्ता को प्राप्त होते हो। तुम सूर्य अस्त के बाद भी साधक से विमुक्त न हो। यजमान तुम्हें हमेशा सुशोभित करते हैं।
Hey honourable worth inviting in the Yagy, Agni Dev! You are aware of both :- the one ones who perform Yagy and the ones who abstain from Yagy and is available to those at dawn who conduct Yagy. You accomplish the desires of the hosts-Ritviz and reward them as well, inspiring them to pious, righteous, way. Hence the hosts too welcome and honour you.
अवोचाम निवचनान्यस्मिन्मानस्य सूनुः सहसाने अग्नौ। 
वय सहस्त्रमृषिभिः सनेम विद्यामेषं वृजनं जीरदानुम्
यज्ञ के उत्पन्नकर्ता और शत्रुओं का संहार करने वाले इन अग्नि देवता के लिए हम सभी प्रकार के स्तोत्रों का गान करते हैं। हम इन इन्द्रिय रूपी ऋषियों को सामर्थ्यवान् बनाकर नाना प्रकार के ऐश्वर्यो का उपभोग करें तथा अन्न, बल और दीर्घायु को प्राप्त कर [ऋग्वेद 1.189.8]
हम मान के पुत्रों ने इस विजयशील अग्नि की वंदना की ऋषियों के साथी असंख्य धनों का उपयोग करें और धन, बल एवं उदार मनोवृत्ति से युक्त हों।
We pray Agni Dev through all means, who begin the Yagy and destroy all enemies; with the help of Strotr (hymns, Mantr). We maintain-nourish, make strong, our senses & functional organs and enjoy all amenities-pleasures and get strength and longevity.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (190) ::  ऋषि :- अगस्त्य, देवता :-बृहस्पति,  छन्द :- त्रिष्टुप्।
अनर्वाणं वृषभं मन्द्रजिह्वं बृहस्पतिं वर्धया नव्यमर्कैः। 
गाथान्यः सुरुचो यस्य देवा आशृण्वन्ति नवमानस्य मर्ताः
हे होता! अभीष्टवर्षी मधुर भाषी और स्तुति योग्य बृहस्पति को पूजा-साधक मंत्रों द्वारा वर्द्धित करें। वे स्तोता का परित्याग नहीं करते। दीप्ति युक्त और स्तूय मान बृहस्पति देव की गाथा का पाठ करने वाले पाठक, देवगण और मनुष्यगण स्तुति सुनाते हैं।[ऋग्वेद 1.190.1] 
परित्याग :: परित्यजन, आत्मसमर्पण, अधिकार त्याग, इंकार, अपदस्थ होना, उपेक्षा, अवहेलना;  abandonment, reject, discard, avoidance, preterition.
हे मनुष्यों द्वेष रहित पूजनीय बृहस्पति को श्लोकों द्वारा अर्चना करो। वे स्तोता से विमुक्त नहीं होते। देवताओं में पूज्य उनके वचनों को देवगण और प्राणी सभी सम्मान पूर्वक सुनते हैं। 
Hey humans, hosts, Ritviz! Pray-worship Brahaspati with the help of sacred hymns (Strotr, Mantr). He never abandon (discard, reject) the devotee. Brilliant-aurous Brahaspati Dev's words-advises are respected (cared, responded) by the demigods-deities and humans.
The demons-giants too respect him and care for his words. 
तमृत्विया उप वाचः सचन्ते सर्गो न यो देवयतामसर्जि। 
बृहस्पतिः स ह्यञ्जो वरांसि विभ्वाभवत्समृते भातरिश्वा
वर्षा ऋतु सम्बन्धी स्तुतियाँ सृजन कर्तृरूप बृहस्पतिदेव के पास जाती हैं। वे देवाभिलाषियों को फल देते हैं। वे सम्पूर्ण संसार को व्यक्त करते हैं। वे स्वर्ग व्यापी मातरिश्वा की तरह वरणीय फल उत्पन्न करके यज्ञ के लिए सम्भूत हुए है।[ऋग्वेद 1.190.2]
मातरिश्वा :: यह अग्नि तथा उसको उत्पन्न करने वाले देवता के लिये प्रयुक्त किया गया है (ऋग्वेद 3.5.9)। मनु के लिये मातरिश्वा ने अग्नि को दूर से लाकर प्रदीप्त किया था। ऋग्वेद के एक प्रसिद्ध यज्ञकर्ता और गरुड़ के पुत्र का भी यही नाम है।अंतरिक्ष में चलने वाला पवन (वायु, हवा), एक प्रकार की अग्नि; which moves through space-sky, a kind of fire.
वर्षा के समान प्रार्थनाएँ बृहस्पति को प्राप्त होती हैं। वे संसार को व्यक्त करने वाले हैं तथा मातरिश्वा के समान फल देने वाले हैं।
Prayers made for rains are answered by Brahaspati Dev. He support those who wish to reach the demigods-deities. He represents the whole universe. He rewards the devotees for the Yagy like air-Pawan Dev. 
As per astrology the rise of Brahaspati (knowledge, understanidng) is essential for marriage. 
उपस्तुतिं नमस उद्यतिं च श्लोकं यंसत्सवितेव प्र बाहू। 
अस्य क्रत्वाहन्योयो अस्ति मृगो न भीमो अरक्षसस्तुविष्मान्
जिस प्रकार से सूर्य की किरणें प्रकाशित करने की चेष्टा करती है, उसी प्रकार से बृहस्पतिदेव यजमानों की स्तुति, अन्न, दान और मंत्रों को स्वीकार करने की चेष्टा करते हैं। राक्षसों और शत्रुओं से रहित बृहस्पतिदेव की शक्ति से दिवस कालीन सूर्य देव भयंकर जन्तुओं की तरह बलशाली होकर भ्रमण करते हैं।[ऋग्वेद 1.190.3]
सविता द्वारा दीप्ति और ताप प्रदान करने के तुल्य बृहस्पति तपस्वी को प्रार्थना और नमस्कार को ग्रहण करने के लिए सचेष्ट रहते हैं। इन हिंसा रहित बृहस्पति की शक्ति से ही सूर्य भयंकर वन पशु के तुल्य विचरण करते हैं।
The manner in which the Sun rays lit the universe, Brahaspati too accept the prayers of the devotees and offerings in the form of food grains, donations and recitation of Mantr to oblige them. Free from the enmity of any one and the demons Sun moves like a dangerous beast freely due to the strength of Brahaspati.
The Hindus observe fasting on Thursday to seek his blessings of Dev Guru Brahaspati and make donations to the deserving and the desirous. 
अस्य श्लोको दिवीयते पृथिव्यामत्यो न यंसद्यक्षभृद्विचेताः। 
मृगाणां न हेतयो यन्ति चेमा बृहस्पतेरहिमायाँ अभि द्यून्
भूलोक और द्युलोक में बृहस्पति देव की कीर्ति व्याप्त है। ये सूर्य देव की तरह पूजित हव्य धारण करते हैं। वे प्राणियों में चैतन्यता देते हुए फल प्रदान करते हैं। इनका आयुध शिकारी पुरुषों के अस्त्रों की तरह है। उनका आयुध मायावियों व कपटी असुरों को मारता है।[ऋग्वेद 1.190.4]
मायावी :: करामाती, ज्ञानी, दाना, सिद्ध, मायावी, बाज़ीगर, मायावी, झूठा, धोखेबाज़, कपटी, ढोंगी, उठाईगीरा, जादूगर, मायावी, करामाती, ऐन्द्रजालिक; charlatan, sorcerer, magician.
आकाश और धरती पर बृहस्पति का ऐश्वर्य फैला हुआ है। वे सूर्य के समान हवि धारण करने वाले हैं। उनका शस्त्र माया मुर्गों के पीछे सदा भागता है।
His glory is spreaded over the earth and the heavens.  He is worshiped like the Sun and accept the offerings made by the devotees. His weapons are like the arms of the hunters and kill those who under take elusive tactics in the war.
The demons are expert in elusive tactics in war. 
ये त्वा देवोस्त्रिकं मन्यमानाः पापा भद्रमुपजीवन्ति पज्राः। 
न दूढ्येअनु ददासि वामं बृहस्पते चयस इत्पियारुम्
हे बृहस्पति देव! जो पापी लोग कल्याणकारी बृहस्पतिदेव को वृद्ध बैल जानते हैं, उन्हें आप वरण करने योग्य धन न देना। हे बृहस्पति देव! जो सोम यज्ञ करता है, उस पर आप निःसन्देह कृपा करते हैं।[ऋग्वेद 1.190.5]
हे बृहस्पते! जो धन के घमण्ड से युक्त हुए अपराधी, तुम्हे वृद्ध बैल मानकर अपने गर्व से जीवित हैं, उन्हें उन सुखों के वरणीय धन नहीं देते। तुम उन अपराधियों से दूर रहा करते हो।
Hey  Brahaspati Dev! You do not oblige those sinners who consider you like an old bull. Do not grant them riches. You undoubtedly oblige the person who conducts Som Yagy.
सुप्रैतुः सूयवसो न पन्था दुर्नियन्तुः परिप्रीतो न मित्रः। 
अनर्वाणो अभि ये चक्षते नोऽपीवृता अपोर्णुवन्तो अस्थुः
हे बृहस्पति देव! आप सुखगामी और सुखाद्य विशिष्ट यजमान के मार्ग रूप और दुष्टहन्ता राजा के मित्र हैं। जो हमारी निन्दा करते हैं, उनके सुरक्षित होने पर भी आप उन्हें (अपनी) रक्षा से हीन करें।[ऋग्वेद 1.190.6] 
हे बृहस्पते! तुम सुमार्ग पर चलने वाले व्यक्तियों के लिए मार्ग रूप और दुष्टों पर राज्य करने वाले के सखा के तुल्य हो जो हमारे द्वेष करते हैं वे क्लेशों से घिरे रहें। 
Hey Brahaspati Dev! You are a friend of the king who kills the wicked-viceful and the Ritviz-Yajman; granting them comforts, pleasure and nourishing food. Do not protect a person who criticise, torture, deprave us.
सं यं स्तुभोऽवनयो न यन्ति समुद्रं न स्रवतो रोधचक्राः। 
स विद्वाँ उभयं चष्टे अन्तबृहस्पतिस्तर आपश्च गृध्रः
जिस प्रकार से मनुष्य राजा से मिलता है, तटद्वय वर्त्तिनी नदी जैसे समुद्र में मिलती है, उसी प्रकार से समस्त स्तुतियाँ बृहस्पति देव में मिलती हैं। वे विद्वान् है। आकाशचारी पक्षी की तरह बृहस्पति रूप से जल और तट दोनों को देखते हैं अथवा वृष्टिकामी अभिज्ञ बृहस्पति देव मध्य में स्थित होकर तट और जल दोनों को उत्पन्न करते हैं।[ऋग्वेद 1.190.7]
भंवर परिपूर्ण गंभीर जल वाली प्रव नदियाँ जैसे समुद्र को ग्रहण होती हैं, वैसे हमारी प्रार्थनाएँ बृहस्पति को ग्रहण होती है। वे किनारे और जल दोनों के तुल्य हमारे कार्यक्रमों को सिद्ध दृष्टि से देखते हैं।
The way a needy meets the king, rivers meet the ocean, all prayers-worship reach-merge Brahaspati Dev. Brahaspati Dev watches-observes the river banks like a bird flying in the sky. 
Brahaspati Dev grants learning, knowledge, enlightenment and Maa Saraswati grants education and Ganesh Maharaj grants intelligence & prudence. 
एवा महस्तुविजातस्तुविष्मान्बृहस्पतिर्वृषभो धायि देवः। 
स नः स्तुतो वीरवद्धातु गोमद्विद्यामेषं वृजनं जीरदानुम्
इसी रूप से बृहस्पतिदेव महान्, बलवान्, आशय के अनुकूल वर्षा करने वाले, दीप्तिमान् होकर और बहुतों के उपकार के लिए उत्पन्न हुए हैं। उनका स्तवन करने पर वे हमें वीर संतान प्रदान करें, जिससे हम अन्न, बल और दीर्घायु को प्राप्त कर सकें।[ऋग्वेद 1.190.8] 
बलवान, श्रेष्ठ, पूजनीय, बृहस्पति अनेक के परोपकार के लिए प्रकट होते हैं। ये हमारी वंदना से प्रसन्न होकर हमको बीर संतान तथा गाय आदि धन प्रदान करें। हम
अन्न, शक्ति, और उत्तम स्वाभाव वाले हों। 
Brahaspati has evolved to grant the wishes of many, is great, powerful, strong and rain causing-generating, as per need and glowing. 
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (191) ::  ऋषि :- अगस्त्य, देवता :-अप्तृण-जल, औषधि, सूर्य ,  छन्द :- महापंक्ति, महाबृहती, अनुष्टुप्, अत्यन्त।
कङ्कतो न कङ्कतोऽथो सतीनकङ्कतः। 
द्वाविति प्लुषी इति न्यदृष्टा अलिप्सत
कम विष वाले अधिक विष वाले, जलीय कम विष वाले दो प्रकार के जलचर और स्थलचर जलाने वाले प्राणी और अदृश्य प्राणी मुझे विष द्वारा अच्छी तरह लिप्त किए हुए हैं।[ऋग्वेद 1.191.1]
जहरीले और जहर पृथक, जल में वास करने वाले अल्पविष परिपूर्ण दोनों प्रकार के जलचर और थलचर जलन पैदा करने वाले प्रत्यक्ष और अदृश्य जीव विषय द्वारा घेरे हुए हैं।
I have been surrounded by the poisonous creatures. Some of them have little and some has more poison in them.  Water born and those living on land visible and invisible living beings too have contaminated me.
Virus, bacteria, fungus, pathogens, microbes are present all around us and are generally microscopic & invisible. They are present in air and water well. Cow is a carrier of platyhelminths. Other than these, flat worm, ring worm are quite common. Pig contains ascaris. Bird flue is quite common. Still majority of the populace eat meat. Corona too has come to humans from bats. Aids virus came to humans from the anus of the monkey. Malaria-dengue comes from mosquitoes. Bed bug hides in the sofa set, beds etc. Lice reside in the hair.
I live in Noida and its very unfortunate that Noida, Ghaziabad and Delhi are in the highest polluting cities in the world. The smog, air contain harmful dust & antigens. The water supplied too is very filthy. It led to acquiring cancer by me. 
अदृष्टान्हन्त्यायत्थो हन्ति परायती। 
अथो अबध्नती हन्त्यथो पिनष्टि पिंधती
जो औषधि खाता है, वह दिखाई न देने वाले विषधर प्राणी को नष्ट करता है और प्रत्यावर्तन काल में उसे विनष्ट करता है। यह कुटी और पीसी हुई (औषधि) विषधर जीवों के विष को समाप्त कर देती है।[ऋग्वेद 1.191.2]
प्रत्यावर्तन :: एकान्तरण, परिवर्तन, पुनरावर्तन, पलटाव; repatriation, alternation, reversion, relapse.
औषधि उन अदृश्य जीवों और उनके जहर को मार देती है। वह कूटी, पीसी, जाकर भी विषैले जन्तुओं को नष्ट कर देती है।
One eats the medicine destroys the poisonous organisms during the intake of it. Either are grinded or crushed-smashed medicine vanish the poison.
शरासः कुशरासो दर्भासः सैर्या उत। 
मौञ्जा अदृष्टा बैरिणाः सर्वे साकं न्यलिप्सत
शर, कुशर, दर्भ, सैर्य, मुज, वीरण आदि धासों में छिपे विषधर जीव-जन्तु अवसर मिलते ही लिपट जाते हैं।[ऋग्वेद 1.191.3]
शर, कुशर, दर्भ, सैर्य, मोंज और वैरिण नामक घासों में छिपे हुए जीव विषयुक्त करते हैं।
The poisonous organism stick to the various kinds of grasses named :- Shar, Kushar, Darbh, Saery, Munj, Viran etc.
नि गावो गोष्ठे असददन्नि मृगासो अविक्षत। 
नि केतवो जनानां न्यदृष्टा अलिप्सत
जिस समय गाँवें गोष्ठ में बैठी रहती हैं, जिस समय हरिण, अपने-अपने स्थानों पर विश्राम करते हैं और जिस समय मनुष्य निद्रा में रहता है, उस समय अदृश्य विषधर ये जीव बाहर निकलकर उनसे लिपट जाते हैं।[ऋग्वेद 1.191.4]
जब गौएँ अपने गोष्ठ में बैठती हैं, हिरन अपने स्थान पर आराम करते हैं और प्राणी सुप्तावस्था में होता है तब ये विषैले जीव उन्हें विषयुक्त करते हैं।
The poisonous organism stick-attack the cows, deer and the humans while they are either sleeping or taking rest-inactive.
एत उ त्ये प्रत्यदृश्रन्प्रदोषं तस्करेंइव। 
अदृष्टा विश्वदृष्टाः प्रतिबुद्धा अभूतन
ये विषधर चोरों की तरह रात्रि में ही दिखाई देते हैं। ये छिपे रहने पर भी सभी को देखते है। इसलिए इनसे सावधान रहना चाहिए।[ऋग्वेद 1.191.5]
वे अदृश्य और प्रकट विषैले जीव चोरों के समान रात्रि की प्रतीक्षा करते हैं। इसलिए उनसे सावधान रहने की आवश्यकता है।
These visible & invisible poisonous being are active at night like a thief. They watch every one, hiding themselves. One has to to very carful with respect to them. 
द्यौर्व: पिता पृथिवी माता सोमो भ्रातादितिः स्वसा। 
अदृष्टा विश्वदृष्टास्तिष्ठतेलयता सु कम्
स्वर्ग पिता, पृथ्वी  माता, सोम भ्राता और अदिति बहन है। अदृष्ट समदर्शी लोग आप विश्राम करते हैं। जिस समय मनुष्य निद्रा में रहता है, उस समय अदृश्य विषधर ये जीव बाहर निकलकर उनसे लिपट जाते हैं।
हे जहरीले प्राणियों! आकाश तुम्हारा पिता, धरती माता और सोम भाई, अदिति बहन हैं। तुम प्रकट और अप्रकट दोनों प्रकार के जीव अपने अपने स्थान पर ही रहो, सूख पूर्वक विश्राम करो।
Heaven is your father, earth is your mother, Moon is your brother and Aditi (mother of demigod-deities) is your sister. You-invisible poisonous beings take rest in your places of hiding. As soon as the humans sleep you attack them.
ये अंस्या ये अङ्गया: सूचीका ये प्रकङ्कताः।
अदृष्टाः किं चनेह वः सर्वे साकं नि जस्यत
जो विषधर स्कन्ध वाले है, जो अंग वाले (सर्प) हैं, जो सूचीवाले (वृश्चिकादि) हैं, जो अतीव विषधर हैं, वैसे अदृष्ट विषधर जीव-जन्तुओं का यहाँ क्या काम है? ये सभी विषैले जीव एक साथ हमें कष्ट न पहुँचायें अर्थात् हमसे दूर चले जायें।[ऋग्वेद 1.191.7]
हे जहरीले प्राणियों! तुम कन्धे से जलने वाले शरीर से विचरणशील, सुई की तरह डंक मारने वाले, अत्यन्त विष परिपूर्ण अदृश्य एवं प्रत्यक्ष, जितनी तरह के भी हो, हमारे पास से दूर चले जाओ।
Let all poisonous creatures move away from us. All those creatures which move with the help of shoulders, creepers, those who wriggle and those who sting should not harm us move away from us.
उत्पुरस्तात्सूर्य एति विश्वदृष्टो अदृष्टहा। 
अदृष्टान्त्सर्वाञ्जम्भयन्त्सर्वाश्च यातुधान्यः
पूर्व दिशा में सूर्यदेव उदित होते हैं, वे समस्त संसार को देखते और अदृष्ट विषधरों का विनाश करते हैं। वे सभी अदृष्टों और राक्षसी वा महोरगी का विनाश करते हैं।[ऋग्वेद 1.191.8]
सबके सामने प्रयत्न, अदृष्ट जीवों को भी दिखाने वाले, अदृश्य विषधरों और दानव, वृत्ति वाले हिंसक पशुओं को विनाश करने वाले सूर्य पूर्व से उदित होते हो।
The Sun rises in the east and kill all sorts of invisible harmful creatures-organism. He kills the demonic and the canine animals as well.
Sun light is essential in homes and offices in addition to cross ventilation.
उदपप्तदसौ सूर्यः पुरु विश्वानि जूर्वन्। 
आदित्यः पर्वतेभ्यो विश्वदृष्टो अदृष्टहा
सूर्यदेव बड़ी संख्या में विषों का विनाश करते हुए उदित होते हैं। सर्वदर्शी और अदृश्यों के विनाशक सूर्यदेव जीवों के मंगल के लिए उदित होते हैं।[ऋग्वेद 1.191.9]
सभी विश्व द्वारा देखे जाने वाले, अदृष्ट प्राणियों के नाशक अदिति पुत्र सूर्य अनेक प्रकार से सभी विषों का विनाश करने के लिए, शैल से भी ऊँचे उठे हुए हैं।
With the Sun rise majority of harmful-poisonous microscopic organisms are destroyed-killed. Sun rises for the welfare of all living beings. 
Ultra violet and infra red rays are capable of killing all sorts of microbes, antigens.
सूर्ये विषमा सजामि दृति सुरावतो गृहे। 
सो चिन्नु न मसति नो वयं मरामारे अस्य योजनं हरिष्ठा मधु त्वा मधुला चकार
शौण्डिक के गृह में चमड़े से बने सुरापात्र की तरह मैं सूर्य मण्डल में विष फेकता हूँ। जिस प्रकार से पूजनीय सूर्यदेव प्राणत्याग नहीं करते। उसी प्रकार से हम भी प्राण त्याग नहीं करते। अपने अश्वों पर आरूढ़ होकर सूर्यदेव इस विष का निवारण करते हैं और मधुला विद्या इस विष को अमृत में परिणत कर देती है।[ऋग्वेद 1.191.10]
शौण्डिक के घर में मद्य पात्र के समान सूर्य मंडल में विष को प्रेरित करता हूँ। सूर्य का उससे पतन नहीं होगा। हम भी नहीं मरेंगे। वे अश्व पर सवार सूर्य विष का अमृत में परिवर्तन कर देते हैं।
Shoundik discard the poisons carried-kept in a skin vessel in the atmosphere-environment. The way Sun is not lost, I too remain alive. Sun riding his horses removes the impact affect of the poison. The science of pathogens tackles this menace and converts the poisons into ambrosia, nectar Amrat.
इयत्तिका शकुन्तिका सका जघास ते विषम्। 
सो चिन्नु न मराति नो वयं मरामारे अस्य योजनं हरिष्ठा मधु त्वा मधुला चकार
जिस प्रकार से क्षुद्र शकुन्तिका पक्षी ने आपका विष खाकर उगल दिया, उसने प्राण त्याग नहीं किया, उसी प्रकार से हम भी प्राण त्याग नहीं करेंगे। अश्व द्वारा परिचालित होकर सूर्यदेव दूर स्थित विष को दूर करते हैं और मधुला विद्या इस विष को अमृत में परिणत कर देती है।[ऋग्वेद 1.191.11]
जैसे क्षुद्र शकुनि (पक्षी) ने तेरा जहर खाकर उगल दिया, वह उससे मरा नहीं, वैसे ही हम भी नहीं मरेंगे, अश्वारूढ़ सूर्य दूर रहकर भी हमसे विष को दूर रखते हैं तथा विष को माधुर्य देते हैं।
The way small Shakuntika bird eats poison and vomit, without being killed, we too shall survive. Driven by the horses the Sun removes the poisons and converts the poisons into nectar by using Madhula Vidya-science of converting poisons into nectar.
त्रिः सप्त विष्णुलिङ्गका विषस्य पुष्पमक्षन्। 
ताश्चिन्नु न मरन्ति नो वयं मरामार अस्य योजनं हरिष्ठा मधु त्वा मधुला चकार
अग्निदेव की सातों जिह्वाओं में से प्रत्येक में श्वेत, लोहित और कृष्णादि तीन वर्ण अथवा इक्कीस प्रकार के पक्षी विष की पुष्टि का विनाश करते हैं। वे कभी नहीं मरते, उसी प्रकार हम भी प्राण त्याग नहीं करते। अश्व द्वारा परिचालित होकर सूर्यदेव दूर स्थित विष का हरण करते हैं और मधुला विद्या इस विष को अमृत में परिणत कर देती है।[ऋग्वेद 1.191.12]
अग्नि ने इक्कीस प्रकार के विषों को बल का भक्षण कर लिया। उसकी ज्वालाएँ अमर हैं। हम भी नहीं मर सकते। अश्वारूढ़ सूर्य ने दूरस्थ विष को भी नष्ट कर दिया और विष को मधुरता प्रदान की।
The seven flames of fire-Agni are capable of killing 21 types of poisons present in the birds (germs, virus, bacteria, fungus etc.) The birds carries them without being killed and we too will survive. Madhula Vidya converts these poisons into nectar.
Each and every century finds the out break of epidemic, which kills millions of people. There is mention of Corona in the Shastr. Pure vegetarians can easily survive the onslaught of it. Please refer to :: CORONA-DEADLY CHINES VIRUS over my blogs.
नवानां नवतीनां विषस्य रोपुषीणाम्। 
सर्वासामग्रभं नामारे अस्य योजनं हरिष्ठा मधु त्वा मधुला चकार 
मैं सभी विषनाशक निन्यानबे नदियों के नामों का कीर्तन करता हूँ। अश्व द्वारा चालित होकर सूर्यदेव दूर स्थित विष का निवारण करते हैं और मधुला विद्या इस विष को अमृत में परिणत कर देती है।[ऋग्वेद 1.191.13]
मैंने विष नाशक निन्यानवें क्रियाओं को जान लिया है। रथ पर सवार सूर्य दूर से भी विष को अमृत में बदल देते हैं, 
I recite the names of  all 99 rivers which are capable of killing germs microbes etc. Driven by the horses Sury Dev-the Sun removes these poisons and the Madhula Vidya converts these poisons into nectar.
Maa Ganga is well knows for containing anti microbes properties. In fact a large number of rivers flowing from the mountains acquires the property of germicide due to the assimilation of vital herbs in them. Rivers flowing from the mountains possessing Sulphur too acquire such properties.
त्रिः सप्त मयूर्यः सप्त स्वसारो अग्रुवः। 
तास्ते विषं वि जभ्रिर उदकं कुम्भिनीरिव
जिस प्रकार से स्त्रियाँ घड़े में जल ले जाती हैं, उसी प्रकार से इक्कीस मयूरियाँ (पक्षी) और सात नदियाँ आपके विष को दूर करें।[ऋग्वेद 1.191.14]
हे विष, से परिपूर्ण प्राणी! घड़े में नारियाँ जल ले जाती हैं, जैसे ही इक्कीस और भगिनी रूप सात नदियाँ तुम्हारे विष को दूरस्थ करती हैं। 
The way the women carries water in the Ghada-earthen pot, picher, 21 female peacock and 7 rivers remove your poisons.
इयत्तकः कुषुम्भकस्तकं भिनद्मयश्मना। 
ततो विषं प्र वावृते पराचीरनु संवतः
अति सूक्ष्म-सा यह विषैला कीड़ा अर्थात् कीट हैं। हमारी ओर आने वाले छोटे से छोटे कीट को हम पत्थर से मार देते हैं। जिससे उसका विष अर्थात् जहर अन्य दिशाओं में चला जाता है।[ऋग्वेद 1.191.15] 
वह छोटा सा नकुल तुम्हारी देह का विष खींच ले अन्यथा उस नीच को मैं पत्थर ढेलों से मार डालूँगा। शरीर का विष चूसकर दूर देशों का चला जाये। 
Let the small Nakul suck the poison from your body, move else where otherwise I will kill it with pebbles.
कुषुम्भकस्तदब्रवीगिरेः प्रवर्तमानकः।
वृश्चिकस्यारसं विषमरसं वृश्चिक ते विषम्
पर्वत से आने वाले नेवला ने यह कहा कि वृश्चिक अर्थात् बिच्छू का विष प्रभावहीन है। हे वृश्चिक (बिच्छू)! तुम्हारे विष का प्रभाव नहीं।[ऋग्वेद 1.191.16]
नकुल ने शैल से निकल कर कहा, बिच्छू का विष प्रभाव से शून्य है। हे वृश्चिक! तेरे विष प्रभाव नहीं है। 
The mongoose coming from the hills told the scorpion that his poison was neutralised.
जल, औषधि और सूर्य में विषनाशक शक्ति है। इसलिए यहाँ इनकी प्रार्थना की गई है।
Water, medicines and Sun kills germs, microbes and antigens, hence they are described her. Flowing waters gradually become free from all sorts of contamination by the addition of atmospheric oxygen in it. 
Today, 21.03.2022 at 7.07 AM, at Noida-UP, India, I have completed the first chapter of Rig Ved due to the blessings of Ganpati, Maa Saraswati, Bhagwan Ved Vyas and the Almighty. 
मैं यह अध्याय अपनी अम्मा श्रीमती धर्मवती भारद्वाज और अपने पिताजी श्री विद्या भूषण भारद्वाज को समर्पित कर रहा हूँ; जिन्होंने मुझे पढ़ा-लिखकर इस योग्य बनाया।
    
Contents of these above mentioned blogs are covered under copyright and anti piracy laws. Republishing needs written permission from the author. ALL RIGHTS ARE RESERVED WITH THE AUTHOR.
 संतोष महादेव-धर्म विद्या सिद्ध व्यास पीठ (बी ब्लाक, सैक्टर 19, नौयडा)