HINDU TRADITIONS
हिन्दु रीति-रिवाज
(SCIENTIFIC PURSUIT वैज्ञानिक दृष्टि कोण)
HINDU PHILOSOPHY (11) हिंदु दर्शन
हिन्दु रीति-रिवाज
(SCIENTIFIC PURSUIT वैज्ञानिक दृष्टि कोण)
HINDU PHILOSOPHY (11) हिंदु दर्शन
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
By :: Pt. Santosh Bhardwaj
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अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।
निराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि।
[श्रीमद्भगवद्गीता 2.47]
QUARANTINE :: Everyone is running for safety from Corona-COVID 19 Virus. No hand shake, kissing-smooch, hugging-embracing. Restrict your self to NAMASTE नमस्ते। Everyone is running for safety from Corona-COVID 19 Virus. No hand shake, kissing-smooch, hugging-embracing. Restrict your self to NAMASTE नमस्ते।
It proves the point behind untouchability-छुआछूत।
It proves the myth behind foreign visit as well. Most of the flue, aids, viral fevers, plague came to INDIA from abroad. It proves the point behind Eating VEGETARIAN FOOD.
हर साल रथ यात्रा के ठीक पहले भगवान् जगन्नाथ स्वयं बीमार पड़ते हैं। उन्हें बुखार एवं सर्दी हो जाती है। बीमारी की इस हालत में उन्हें Quarantine-isolate किया जाता है, जिसे मंदिर की भाषा में अनासार कहा जाता है भगवान को 14 दिन तक एकांतवास यानी Isolation में रखा जाता है। Isolation की इस अवधि में भगवान् के दर्शन बंद रहते हैं एवं भगवान को जड़ी बूटियों का पानी आहार में दिया जाता है यानी तरल भोजन और यह परंपरा हजारों साल से चली आ रही है।
क्वारेंटाईन अर्थात सूतक अर्थात एक दूसरे से और अशुद्धि-गंदगी से बचना और सफाई पर ध्यान देना। सूतक का भारतीय संस्कृति में अनादि काल से पालन किया जा रहा है। मृतक के शव में भी दूषित जीवाणु होते हैं। हाथ मिलाने से भी जीवाणुओं का आदान-प्रदान होता है। हिन्दु शवों को जलाकर नहाते हैं और विदेशी नहाने से बचते हैं।
बच्चे का जन्म होता है तो जन्म ‘‘सूतक’’ लागू करके मँ-बेटे को अलग कमरे में रखते हैं, महिने भर तक, मतलब क्वारेंटाईन करते हैं।
कोई मृत्यु होने पर परिवार सूतक में रहता है, लगभग 12 दिन तक सबसे अलग, मंदिर में पूजा-पाठ भी नहीं। सूतक के घरों का पानी भी नहीं पिया जाता।
शव का दाह संस्कार हेतु जो लोग अंतिमयात्रा में जाते हैं, उन्हे सबको सूतक लगती है, वह अपने घर जाने के पहले नहाते हैं, फिर घर में प्रवेश मिलता हैं।
मल विसर्जन करते हैं तो कम से कम 3 बार साबुन से हाथ धोते हैं, तब शुद्ध होते हैं तब तक क्वारेंटाईन रहते हैं। बल्कि मलविसर्जन के बाद नहाते हैं, तब शुद्ध मानते हैं।
जिस व्यक्ति की मृत्यु होती है उसके उपयोग किये सारे चारपाई-पलँग रजाई-गद्दे चादर तक ‘‘सूतक’’ मानकर बाहर फेंक देते हैं।
घर-परिवार में सदैव होम हवन किया जाता है ताकि वातावरण शुद्ध रहे। हवन सामग्री और आम की लकड़ी में विषाणुओ-जीवाणुओं को नष्ट करने के गुण हैं।
आरती में हर दिन कपूर जलाने से घर के जीवाणु मरते हैं।
वातावरण को शुद्ध करने के लिये मंदिरों में शंखनाद किया जाता है।
मंदिरों में बड़ी-बड़ी घंटियों की ध्वनि आवर्तन से अनंत सूक्ष्म जीव स्वयं नष्ट हो जाते हैं।
भोजन में माँस भक्षण की इजाज़त नहीं है।
भोजन करने के पहले अच्छी तरह हाथ धोये जाते हैं।
घर में पैर धोकर अंदर जाना और जुटे-चप्पल घर के बाहर उतरना।
नहाने के पानी में नीम की पत्तियों का इस्तेमाल किया जाता है।
कुंभ और सिंहस्थ के अवसर पर नदी के बहते हुए शुद्ध जल से स्नान किया जाता है। आजकल तो नदियाँ स्वयं प्रदूषण का शिकार हैं।
बीमार व्यक्तियों को नीम से नहलाया जाता है।
भोजन में हल्दी को अनिवार्य है।
चन्द्र और सूर्यग्रहण में भोजन न बनाया जाता है और न ही किया जाता है।
किसी को भी छूने से बचना अर्थात छुआछूत।
दूर से हाथ जोडक़र अभिवादन करना।
उत्सवों में घर-मंदिरों में सुन्दर काण्ड का पाठ करके, धूप-दीप हवन करके वातावरण को शुद्ध करना।
होली में कपूर, पान का पत्ता, लोंग, गोबर के उपले और हविष्य सामग्री सिर्फ वातावरण को शुद्ध करने के लिये जलाई जाते हैं।
नववर्ष व नवरात्री पर पुरे 9 दिन घरों में आहूतियाँ दी जायेंगी वातावरण की शुद्धी के लिये।
देवी पूजन के नाम पर घर में साफ-सफाई करके घर को जीवाणुओं से क्वरेंटाईन -मुक्त करेंगे।
गोबर को लीपने और भोजन के लिये जलाने से हजारों जीवाणुओं नष्ट होते हैं। व्यर्थ धुएँ से हमेशा बचें।
दीपावली पर घर के कोने-कोने को साफ करते हैं, चूना पोतकर जीवाणुओं को नष्ट करते हैं, पूरे सलीके से विषाणु मुक्त घर बनाते हैं। आजकल की लिपाई-पुताई से दीवारों पर खतरनाक रसायनों की परत-परत चढ़ाई जाती है।
हर दिन कपड़े भी धोकर पहनते हैं।
हिन्दु उन जीवाणुओं को भी महत्व देते हैं जो शरीर पर सूक्ष्म प्रभाव डालते हैं। देव संस्कृति में सूतक-क्वारेंटाईन का विशेष महत्व है। यह हिन्दु की जीवन शैली है क्योंकि वह समझदार और वैज्ञानिक तकनीकों का धर्म के नाम पर अनादि कल से ही प्रयोग कर रहा है।
हिन्दु सुसंस्कृत, समझदार, अतिविकसित महान संस्कृति को मानने वाले हैं।
क्वारेंटाईन अर्थात सूतक अर्थात एक दूसरे से और अशुद्धि-गंदगी से बचना और सफाई पर ध्यान देना। सूतक का भारतीय संस्कृति में अनादि काल से पालन किया जा रहा है। मृतक के शव में भी दूषित जीवाणु होते हैं। हाथ मिलाने से भी जीवाणुओं का आदान-प्रदान होता है। हिन्दु शवों को जलाकर नहाते हैं और विदेशी नहाने से बचते हैं।
बच्चे का जन्म होता है तो जन्म ‘‘सूतक’’ लागू करके मँ-बेटे को अलग कमरे में रखते हैं, महिने भर तक, मतलब क्वारेंटाईन करते हैं।
कोई मृत्यु होने पर परिवार सूतक में रहता है, लगभग 12 दिन तक सबसे अलग, मंदिर में पूजा-पाठ भी नहीं। सूतक के घरों का पानी भी नहीं पिया जाता।
शव का दाह संस्कार हेतु जो लोग अंतिमयात्रा में जाते हैं, उन्हे सबको सूतक लगती है, वह अपने घर जाने के पहले नहाते हैं, फिर घर में प्रवेश मिलता हैं।
मल विसर्जन करते हैं तो कम से कम 3 बार साबुन से हाथ धोते हैं, तब शुद्ध होते हैं तब तक क्वारेंटाईन रहते हैं। बल्कि मलविसर्जन के बाद नहाते हैं, तब शुद्ध मानते हैं।
जिस व्यक्ति की मृत्यु होती है उसके उपयोग किये सारे चारपाई-पलँग रजाई-गद्दे चादर तक ‘‘सूतक’’ मानकर बाहर फेंक देते हैं।
घर-परिवार में सदैव होम हवन किया जाता है ताकि वातावरण शुद्ध रहे। हवन सामग्री और आम की लकड़ी में विषाणुओ-जीवाणुओं को नष्ट करने के गुण हैं।
आरती में हर दिन कपूर जलाने से घर के जीवाणु मरते हैं।
वातावरण को शुद्ध करने के लिये मंदिरों में शंखनाद किया जाता है।
मंदिरों में बड़ी-बड़ी घंटियों की ध्वनि आवर्तन से अनंत सूक्ष्म जीव स्वयं नष्ट हो जाते हैं।
भोजन में माँस भक्षण की इजाज़त नहीं है।
भोजन करने के पहले अच्छी तरह हाथ धोये जाते हैं।
घर में पैर धोकर अंदर जाना और जुटे-चप्पल घर के बाहर उतरना।
नहाने के पानी में नीम की पत्तियों का इस्तेमाल किया जाता है।
कुंभ और सिंहस्थ के अवसर पर नदी के बहते हुए शुद्ध जल से स्नान किया जाता है। आजकल तो नदियाँ स्वयं प्रदूषण का शिकार हैं।
बीमार व्यक्तियों को नीम से नहलाया जाता है।
भोजन में हल्दी को अनिवार्य है।
चन्द्र और सूर्यग्रहण में भोजन न बनाया जाता है और न ही किया जाता है।
किसी को भी छूने से बचना अर्थात छुआछूत।
दूर से हाथ जोडक़र अभिवादन करना।
उत्सवों में घर-मंदिरों में सुन्दर काण्ड का पाठ करके, धूप-दीप हवन करके वातावरण को शुद्ध करना।
होली में कपूर, पान का पत्ता, लोंग, गोबर के उपले और हविष्य सामग्री सिर्फ वातावरण को शुद्ध करने के लिये जलाई जाते हैं।
नववर्ष व नवरात्री पर पुरे 9 दिन घरों में आहूतियाँ दी जायेंगी वातावरण की शुद्धी के लिये।
देवी पूजन के नाम पर घर में साफ-सफाई करके घर को जीवाणुओं से क्वरेंटाईन -मुक्त करेंगे।
गोबर को लीपने और भोजन के लिये जलाने से हजारों जीवाणुओं नष्ट होते हैं। व्यर्थ धुएँ से हमेशा बचें।
दीपावली पर घर के कोने-कोने को साफ करते हैं, चूना पोतकर जीवाणुओं को नष्ट करते हैं, पूरे सलीके से विषाणु मुक्त घर बनाते हैं। आजकल की लिपाई-पुताई से दीवारों पर खतरनाक रसायनों की परत-परत चढ़ाई जाती है।
हर दिन कपड़े भी धोकर पहनते हैं।
हिन्दु उन जीवाणुओं को भी महत्व देते हैं जो शरीर पर सूक्ष्म प्रभाव डालते हैं। देव संस्कृति में सूतक-क्वारेंटाईन का विशेष महत्व है। यह हिन्दु की जीवन शैली है क्योंकि वह समझदार और वैज्ञानिक तकनीकों का धर्म के नाम पर अनादि कल से ही प्रयोग कर रहा है।
हिन्दु सुसंस्कृत, समझदार, अतिविकसित महान संस्कृति को मानने वाले हैं।
Neo-convent educated Indian along with those who acquired some knowledge of English considered Customs-Traditions in Hinduism as superstitions. Advent of science and continued research has found startling facts and evidence pertaining to them. They can not be merely brushed aside as taboo-superstitions, now. These traditions are based on practical applications and handed over from one generations to the next, through ages. Though the common person is not aware of the basics-reality, he continued following them ritually.
भारत में एक समय ऐसा आया जबकि थोड़ी सी भी अंग्रेजी पढ़े-लिखे लोगों ने भारतीय परम्पराओं, रीति-रिवाजों, मान्यताओं का मजाक-मखौल उड़ाना शुरू कर दिया। वे ऐसा स्वयं को दूसरों से अलग, ऊँचा, सभ्य, विकसित दिखाने हेतु करते थे। नई खोजों ने बगैर शक यह सिद्ध कर दिया है कि आज का विज्ञान अभी महज बुनियादी अवस्था-शैशवावस्था में है। हमारा इतिहास महज 3,000 से 5,000 वर्षों का नहीं अपितु खरबों-खरबों साल का है। हमारी मान्यताएँ पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही हैं। आधार हीन-बेबुनियाद ज्ञान स्वतः नष्ट हो जाता है। सामान्य व्यक्ति को यह सब जानकारी धर्म का जामा पहनाकर दी गई है और वो इसके ऊपर ज्यादा दिमांग लगाना-माथा पच्ची करना नहीं चाहता।
(1). IMMERSING COINS IN RIVERS :: The general reasoning given for this act is that it brings Good Luck. However, scientifically speaking, in the ancient times, most of the currency used was made of copper. Copper produces copper sulphate which is a disinfectant. Copper is a vital metal very useful to the human body. Throwing coins in the river was one way our fore-fathers ensured we intake sufficient copper as part of the water as rivers were the only source of drinking water. Gold and Silver have disinfecting properties. They kill germs, fungus, bacteria, virus, microbes.
सामान्यतया हम ऐसा मानते हैं की जल में मुद्रा परवाह से भाग्य अच्छा होगा। जैसे की सभी जानते हैं कि अति प्राचीन काल से मुद्रा को सोना, चाँदी, ताँबा आदि से बनाया जाता था। सोने और चाँदी में जीवाणुओं से लड़ने की शक्ति-क्षमता होती है। ताँबा पानी में रहकर कॉपर सल्फेट बनाता है जो कि एंटी बैक्टीरियल, मिक्रोब, फंगल, वायरस है। सफेदी-पुताई में नीला थोथा-कॉपर सल्फेट का इस्तेमाल इसी वजह से किया जाता था।
(2). GREETING WITH FOLDED HANDS :: In Hindu culture, people greet each other with folded hands, by joining their palms-termed as Namaskar, Nameste, Pranam. This is a way to pay respect to elders. This process brings the finger tips together. The finger tips have been identified as pressure points, regulating the whole body, specifically eyes, ears and the mind. Kissing, shaking hands transfers germs and DNA to the opposite person. Absence of physical touch forbade transference of DNA or infections in the form of germs.
Think of the people who do not wash hands after cleaning stools-faecal matter.
प्राचीन भारतीय परम्परा में मिलने पर अपने से बड़ों को प्रणाम-नमस्कार-नमस्ते करने का रिवाज है। चूमने, हाथ मिलाने से पसीने के माध्यम से DNA का प्रवाह सम्मुख व्यक्ति के शरीर में हो जाता है जो कि अक्सर घातक होता है। हाथों को जोड़कर नमस्ते करते वक्त दोनों हाथों की उँगलियाँ परस्पर मिलकर दबाब बनाती हैं, जो कि शरीर के विभिन्नं अंगों का संचालन करने में सहायक है। खासकर ऑंखें, कान और दिमाग पर इसका अच्छा प्रभाव पड़ता है।
(3). CHARAN SPARSH-TOUCHING OF FEET OF ELDERS-RESPECTED (Bowing-prostrating in front of elders, Brahmns, Sages, Parents) :: This is not just respecting-honouring elders. When one bows the accumulated gas is released from his stomach and other parts of the body, providing relief from gastric trouble and indigestion. Bending is a good exercise-a component of Sury Namaskar, for the back bone. Flexibility of the back bone spinal cord is enhanced. Blood circulation in the brain increases, providing relief from pain. The moment one touches the feet of the revered his energy-sentiments are shared like the sharing of charges in two electric condensers. Positive energy, vibrations, healing start immediately. Youthfulness helps the old, fragile, revered in gaining strength. Remember that the thought-ideas should be pious, virtuous, righteous, while offering penances-respect. Those who lay down before the deities statues too experience solace and peace of mind.
The learned, saints always avoid their feet to be touched by any one, since it too spread various diseases, germs, viruses, fungus, bacteria pathogens etc.
The learned, saints always avoid their feet to be touched by any one, since it too spread various diseases, germs, viruses, fungus, bacteria pathogens etc.
बड़े-बूढ़े बुजुर्ग व्यक्तियों के चरण स्पर्श करने की प्रथा भारत में आदि काल से चली आ रही है। पैर छूने के लिए झुकने से पेट और शरीर के अन्य अंगो में भरी हुई गैस निकल जाती है। रीढ़ की हड्डी को आराम मिलता है। सर में खून का संचार होता है। इससे पेट, हाजमा और सिरदर्द ठीक होता है। पैर स्पर्श करते ही स्पर्शकर्ता और श्रद्धेय की ऊर्जा का समावेश होने लगता है। स्पर्शकर्ता में उत्तम विचार-सद्भावना का उदय होता है। मन निर्मल हो जाता है। सभी व्यक्ति यह श्रद्धा पूर्वक-दिल से करें। श्रद्धेय के पैरों को पिण्डली तक धीरे-धीरे दवाएँ। उन्हें आराम मिलगा और साधक को आशीर्वाद। विनीत व्यक्ति के मार्ग की बढ़ाएं दूर होंगी। यह प्रक्रिया लोग भगवान् के मंदिर में देवी-देवताओं के सम्मुख भी अपनाते हैं। ख्याल रहे दुर्भावना-क्रोध को मन से निकाल कर ही यह सब करें।
(4). WEARING OF TOE RINGS (Bichhua, बिछुआ) BY WOMEN :: Normally toe rings are worn on the second foot finger. A particular nerve from the second toe connects the uterus and passes to heart. Wearing toe ring on this finger strengthens the uterus. It will keep the bearer healthy by regulating the blood flow and menstrual cycle will be regularised. As Silver is a good conductor, it also absorbs polar energies from the earth and passes it to the body.
भारत में लड़की को पाँव की दूसरी ऊँगली में बिछुआ पहनाया जाता है। इसका सीधा संबंध गर्भाशय और हृदय से है। यहाँ पाई जाने वाली नाड़ियाँ गर्भाशय और हृदय से जुडी होती हैं। चाँदी एक सुचालक और जीवाणु नाशक है। यह बिछुआ दबाब को भी नियंत्रित करता है। मासिक धर्म को नियंत्रित करने में भी इसका योगदान है।
(5). APPLICATION OF VERMILION-SANDALWOOD PASTE ON FOREHEAD :: The place considered to be the third eye of Bhagwan Shiv is in fact a spot which radiates energy. It signifies a major nerve point between the eye brows. Application of Kum-Kum between this space, protects one from negative energy released by the opponents, wicked, vicious, viceful, evil, inauspicious and the like. Women apply, fix Bindi, ready made spangle ornamenting on the forehead. This leads to the automatic pressing of AGYA CHAKR-GURU CHAKR (Agya: Order, Command) located at the base-housed at the upper end of the spinal cord-vertebral column, at the point of transition, from the spine to the brain. Development of one's wisdom and humanity is completed here, bridging the divine consciousness. Its energy is experienced in the center of the forehead between the eyebrows, just over the nose. It facilitates the blood supply to the face muscles.
यह स्थान भगवान शिव की तीसरी आँख को दर्शाता है, जहाँ से ऊर्जा का प्रवाह होता है। यहीं पर दोनों आँखों के बीच एक प्रमुख स्नायु-नाड़ी केन्द्र स्थित है। यहाँ बिंदी, टीका, तिलक, त्रिपुण्ड लगाने से विपक्षी की बुरी नजर का दुष्प्रभाव नहीं पड़ता। महिलाएँ यहाँ सिंदूर-कुमकुम-रोली-चन्दन आदि का तिलक श्रृंगार हेतु लगाती हैं। इससे आज्ञा चक्र जाग्रत हो उठता है।
Please refer to :: KUNDLINI कुण्डलिनी santoshkipathshala.blogspot.com
(6). APPLICATION OF SINDUR-VERMILION BETWEEN THE SEGREGATED HAIR BY WOMEN :: Indian women find it auspicious to fill the parting of hair with Sindur, vermilion, Lead Oxide (Pb3O4). Due to its intrinsic properties, Lead, besides controlling blood pressure, stimulates, activates, controls, regulates sexual drive. Women are 8 times sexier than the male. Sindur is prohibited for the widows and unmarried women. Sindur should be applied right up to the pituitary gland where all our feelings are centred. It absorbs the harmful-vicious radiations as well.
Presence of lead in the body is harmful.
भारतीय महिलाएँ किसी भी धर्म, जाति, वर्ग की क्यों न हों वे सिंदूर जरूर लगती हैं। आजकल की आजाद ख्याल औरतें इससे भले ही परहेज क्यों न करें। सिंदूर सिर के ऊपर माँग के बीचों-बीच लगाया जाता है। आजकल की महिलाएँ माँग, फैशन के अनुरूप निकालती हैं। यह शीशे का ऑक्साइड लाल रंग का होता है और रक्तचाप को सही स्तर पर बनाये रखने में मदद करता है। यह कामेच्छा को उचित स्तर पर बनाये रखता है। विधवाएँ और कुँआरी लड़कियाँ इसका प्रयोग नहीं करतीं। इसको पिट्यूटरी ग्लैंड तक, जहाँ सभी भावनाओं का वास है, लगाया जाता है। यह अवांछित-हानिकारक विकिरणों से महिलाओं को मुक्त रखता है।
(7). BELLS IN TEMPLES :: One rings bells hanging from the roof of the temple-the inner sanctum (Garbh Gudi or Garbh Grah or womb chamber) as soon as he enters it. The effect is enchanting. The echo-sound reverberates continuously, creating a soothing impact over the brain. Ringing temple bells or the once ringing at home while performing prayers & the conchs keep evil forces away [Agam Shastr]. It describes the sound as melodious-liked by the God. The ringing of bells clears the mind and helps one stay sharp and keep him with full concentration over devotional purposes. The sound creates a unity-unison of the Left and Right halves of the human brain. The bell produces a sharp and enduring sound, which lasts for a minimum of 7 seconds in echo mode, due to the soothing vibrations-effect. The duration of echo is good enough to activate all the seven healing centres in our body. This results in relieving our brain from all negative thoughts.
मन्दिर में प्रवेश करते ही, भक्तजन घण्टियाँ बजाते हैं। इसका प्रभाव मोहित, आकर्षित, सम्मोहन करने वाला है। घण्टी की प्रतिध्वनि मस्तिष्क पर अच्छा, शान्ति-सुखदायक प्रभाव डालती है। घण्टाध्वनि बुरे प्रभावों को दूर करती है [आगम शास्त्र]। परमात्मा को यह आवाज पसन्द है। यह ध्वनि हमारा ध्यान पूजा-आराधना, चिन्तन में बढ़ाती है। इस ध्वनि की विशेषता यह है कि यह मस्तिष्क के दोनों भागों को एकसार करती है। यह ध्वनि अपना प्रभाव 7 सेकंड से ज्यादा समय के लिए बनाये रखती है और शरीर के अन्दर उपस्थित 7 संवेदना केन्द्रों को नियमित करती है। हमारा मन बुराई से दूर भागने लगता है।
(7.1) BLOWING CONCH शंख का पूजा में महत्व :: हिन्दु धार्मिक मान्यता के अनुसार कोई भी पूजा, हवन, यज्ञ आदि शंख और घण्टा ध्वनि के बिना पूर्ण नहीं माना जाता है। धार्मिक शास्त्रों के अनुसार शंख बजाने से भूत-प्रेत, अज्ञान, रोग, दुराचार, पाप, दुषित विचार और गरीबी का नाश होता है। शंख बजाने की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। महाभारत काल में श्रीकृष्ण द्वारा कई बार अपना पंचजन्य शंख बजाया गया था। आधुनिक विज्ञान के अनुसार शंख बजाने से हमारे फेफड़ों का व्यायाम होता है, श्वास संबंधी रोगों से लड़ने की शक्ति मिलती है। पूजा के समय शंख में भरकर रखे गए जल को सभी पर छिड़का जाता है, जिससे शंख के जल में कीटाणुओं को नष्ट करने की अद्भूत शक्ति होती है। साथ ही शंख में रखा पानी पीना स्वास्थ्य और हड्डियों और दाँतों के लिए बहुत लाभदायक है।
(8). NAV RATR VRAT :: Nav Ratra comes twice a year followed by change of weather-seasons. Food consumed during the two seasons is slightly different. People adopt fasting during these days. One can shed some weight feeling energetic and smart. One offer prayers and subject himself to meditation-asceticism. Normally, people discard fish-meat and non vegetarian food. Excess of sugar and salt are avoided. Non vegetarian food in not meant for the humans. Length of human intestine is 14 feet as compared to that of carnivorous-meat eaters, which have a 20 feet long intestine. Carnivores eat raw food while humans eat cooked food. Carnivores run 50-120 Km every day, while the humans eat meat and take plenty of rest. One is protected from the diseases which comes to him by eating flash-meat. Gastric trouble-indigestion too do not trouble him. Meat eaters are affected by heart trouble and high blood pressure.
नव रात्र व्रत साल में दो बार आते हैं। इस समय हिन्दु धर्माम्वली व्रत रखते है और मँस-मीट अंडा मच्छी नहीं खाते। व्रत रखने से वजन कम हो जाता है, चुस्ती-फुर्ती आती है। पूजा-पाठ, ध्यान-समाधि, भजन-कीर्तन आदि से मन परमात्मा में लगता है। इससे एकाग्रता बढ़ती है। माँसाहारी जीवों की आँतें 20 फुट लम्बी और मनुष्य की आँतें मात्र 14 फुट लम्बी होती हैं। पशु माँस खाकर 50-120 किलो मीटर दौड़ता-भागता है, मगर मनुष्य माँस खाकर सो जाता है। पशु लाल-कच्चा माँस कहते है और मनुष्य पकाकर खाता है। माँस न खाने से उन बीमारियों का खतरा तो पूरी तरह टल ही जाता है जो मनुष्यों को पशुओं से लगती हैं। गैस, अपच जैसी बीमारियों से मुक्ति अलग। हृदय रोग और उच्च रक्त चाप से मुक्ति अलग।
(9). FASTING :: Root cause of many diseases is the accumulation of toxic materials in the digestive system. Regular cleansing of toxic materials keeps one healthy. Due to fasting, the digestive organs get rest and all body mechanisms are cleansed and corrected. Fast is good for heath and the occasional intake of warm lemon juice during the period of fasting prevents the flatulence. Human body is composed of 2/3 of water. This factor make humans prone to the impact of moon and other heavenly bodies. It results in all sorts of imbalances in the body, making some people tense, irritable and violent. Fasting acts as antidote, since it lowers the acid content in the body helping the individual retain sanity. Major health benefits include caloric restriction like reduced risks of cancer, cardiovascular diseases, diabetes, immune disorders etc. As a matter of fact its of great value in weight control.
Please refer to :: FASTING व्रत-उपवास santoshsuvichar.blogspot.com
शरीर एक ऐसी मशीन है जो हर वक्त काम करती रहती है। उसे भी आराम की जरूरत है। यह आराम उसे व्रत-उपवास से मिलता है। कभी भी, कहीं भी, कुछ भी खा लेने से, शरीर में अनेक प्रकार के अनवांछित पदार्थ इकट्ठे होते रहते हैं। उनका क्षरण करने में भूखा रहना-एक समय भोजन न करना, केवल निम्बू पानी पर रहना बहुत उपयोगी है। शरीर का एक तिहाई पानी होने के कारण यह चन्द्र और अन्य आकाशीय पिण्डों से तुरन्त प्रभावित हो जाता है। अन्य ग्रह भी शरीर पर अपना पूरा प्रभाव दिखाते हैं, जिससे यह व्याधि-बीमारी-रोगों की चपेट में आ जाता है। व्रत इन सबका एक सटीक-उपयुक्त उपचार है। व्रत के दौरान निम्बू पानी या केवल गर्म पानी का सेवन करते रहना चाहिये। वजन कम करने में तो यह बहुत ही ज्यादा सहायक है। व्रत के दौरान फलों का सेवन एक उचित मात्रा में करना चाहिये।
(10). PLANTATION OF TULSI AT HOME :: Tulsi Sacred or Holy Basil, has the status of mother, the nurturer, Goddess. This is recognised-identified as a religious and spiritual devout in many parts of the world. It is icon to Sanjeevni Booti due to its medicinal properties. It functions as an antibiotic-anti dot. Its useful in cough, cold, fever & boosts immunity. Its normally kept outside the doors to repel insects and mosquitoes from entering the house. It's believed that snakes do not dare to go near a Tulsi plant.
तुलसी माँ संजीवनी के समान है और अनेक बिमारियों से निज़ात दिलाती है। अमरीका आदि मुल्कों में इसे पवित्र बेसिल के नाम से जाना जाता है और बड़े पैमाने पर इसका इस्तेमाल चटनी के रूप में किया जाता है। यह आम तौर पर घर के बाहर रखी जाती है ताकि कीट-पतंग, मच्छर अन्दर न आयें। साँप भी इससे दूर ही रहता है।
Please refer to :: AYURVED (3) आयुर्वेद :: MEDICINAL USES OF TREES-PLANTS पादपों के औषधीय गुण bhartiyshiksha.blogspot.com
(11). WORSHIPPING PEEPAL (HOLY FIG) :: Peepal is probably the only tree, which produces oxygen even at night. Its considered to be an incarnation of Bhagwan Vishnu. Its new leaves are often eaten by the moneys.
पीपल को भगवान् विष्णु का अवतार कहा जाता है। शायद यही एकमात्र वृक्ष है जो कि हर वक्त जीवन दायिनी ऑक्सीजन प्रदान करता है।
Please refer to :: PEEPAL (Holy fig) TREE पीपल वृक्ष AYURVED (3) आयुर्वेद :: MEDICINAL USES OF TREES-PLANTS पादपों के औषधीय गुण bhartiyshiksha.blogspot.com
(12). EATING FOOD WHILE SITTING ON FLOOR :: It is regarding sitting in the Sukhasan posture while eating. Sukhasan is the posture one normally use for Yogasan. The small intestine is brought to the straight down posture. Food straight way go to the stomach. Sufficient air gets mixed with the breath during this process. Digestion is improved significantly and the circulatory system to remain active.
कमर सीधी करके भोजन करना स्वास्थ्य के लिए लाभकारक है। इससे आँतें, आमाशय सीधी स्थिति में रहते हैं। खून का दौरा सही दिशा में और सामान्य रहता है। सुखासन योग के लिए एक अच्छा आसान है जिससे थकान नहीं होती।
Please refer to :: KUNDLINI कुण्डलिनी santoshkipathshala.blogspot.com
(13). IDOL WORSHIP :: One essentially needs a goal-target for concentration. Image formation is a must to meditate and to perform ascetic practices. Its extremely difficult to make a mental image and reach the Ultimate, initially. So, the Hindu looks for a temple, a statue, drawing, image to fix his energies in the Almighty. This process is called Sakar-shape formation of worship. The next stage may be Nirakar, which comes through practice. More is the practice, more is one close to the God. In fact the image of the deity protects one from distraction of the brain in roaming in all possible directions. However, the Jyotir Ling is like the living deity-Bhagwan Shiv, one may choose-select to fix-concentrate his brain.
साधना के हेतु-ध्यान लगाने के लिए मनुष्य को कुछ साधन तो चाहिये। कभी गुरु, कभी माँ-बाप तो कभी मूर्ति-तस्वीर। वैसे तो भगवान् हमारे अन्तःकरण में विराजमान हैं, परन्तु एक चित्र, छाया, मूर्ति ध्यान केंद्रित करने में सहायक है। शुरू-शुरू में तो यह नितान्त आवश्यक है। परन्तु निरन्तर अभ्यास से मन-आत्मा परमात्मा में लीन होने लगती है। मन की गति को लगाम लग जाती है। भटकाव बंद हो जाता है। मूर्ति परमात्मा के साकार रूप से जोड़ती और मानसिक साधना-तपस्या निराकार से जोड़ देती है। यह अभ्यास का विषय है। वास्तिवकता तो यह है कि मन चंचल-बेलगाम घोड़े की तरह है जो कि दिशाहीन है, किसी भी दिशा में कभी भी भागने लगता है। ज्योतिर्लिग में तो भगवान् शिव साक्षात स्वयं विराजमान हैं और ध्यान केन्द्रित करने में सहायक हैं।
(14). HAIR LOCK OVER THE HEAD शिखा-चुटिया :: प्राचीन काल से ही ऋषि-मुनि सिर पर शिखा-चुटिया रखते आ रहे हैं। ब्राह्मण और गुरुजन इस काल में शिखा धारण करते हैं। चाणक्य की शिखा तो विश्व प्रसिद्ध है। आयुर्वेद के प्रणेता सुश्रुत ऋषि ने ब्रह्म रन्ध्र को जो कि सिर में शीर्ष स्थल पर मौजूद है, को अधिपति-जो सब को संचालित करता है, की संज्ञा प्रदान की। यह मानव शरीर का एक मर्म स्थल है। यहाँ सभी नाड़ियों का संगम होता है। शिखा-चोटी इस स्थल की रक्षा करती है। शरीर के निम्न अंगों को संचालित करती हुई सुषम्ना नाड़ी यहां तक आती है। ब्रह्म रन्ध्र सातवें चक्र का शीर्ष स्थल भी है। यह मनुष्य को ओज-तेज प्रदान करता है।
(14.1). शिखा के नीचे सुषुम्ना नाड़ी होती है, कपाल तन्त्र के अन्य खुली जगहोँ (मुण्डन के समय यह स्थिति उत्पन्न होती है) की अपेक्षा अधिक संवेदनशील होता है। जिसके खुली होने के कारण वातावरण से ऊष्मा व अन्यब्रह्माण्डिय विद्युत-चुम्बकी य तरंगोँ का मस्तिष्क से आदान प्रदान बड़ी ही सरलता से हो जाता है और इस प्रकार शिखा न होने की स्थिति मेँ स्थानीय वातावरण के साथ साथ मस्तिष्क का ताप भी बदलता रहता है। मस्तिष्क को सुचारु, सर्वाधिक क्रियाशिल और यथोचित उपयोग के लिए इसके ताप को नियंन्त्रित रहना अनिवार्य होता है। जो शिखा न होने की स्थिति मेँ एकदम असम्भव है। क्योँकि शिखा (लगभग गोखुर के बराबर) इस ताप को आसानी से सन्तुलित कर जाती है और उष्मा की कुचालकता की स्थिति उत्पन्न करके वायुमण्डल से उष्मा के स्वतः आदान प्रदान को रोक देती है।
(14.2). जिस जगह शिखा (चोटी) रखी जाती है, यह शरीर के अंगों, बुद्धि और मन कोनियंत्रित करने का स्थान भी है। शिखा एक धार्मिक प्रतीक तो है ही साथ ही मस्तिष्क के संतुलन का भी बहुत बड़ा कारक है।
(14.3). शिखा का आकार गाय के पैर के खुर के बराबर होना चाहिए। सिर में बीचों बीच सहस्राह चक्र होता है। शरीर में पाँच चक्र होते हैं, मूलाधार चक्र जो रीढ़ के नीचले हिस्से में होता है और आखिरी है, सहस्राह चक्र जो कि सिर पर होता है। इसका आकार गाय के खुर के बराबर ही माना गया है। शिखा रखने से इस सहस्राह चक्र का जागृत करने और शरीर, बुद्धि व मन पर नियंत्रण करने में सहायता मिलती है। शिखा का हल्का दबाव होने से रक्त प्रवाह भी संतुलित रहता है और मस्तिष्क को इसका लाभ मिलता है।
(14.4). मृत्यु के समय आत्मा शरीर के द्वारों से बाहर निकलती है (मानव शरीर में नौ द्वार बताये गए हैं, दो आँखे, दो कान, दो नासिका छिद्र, दो नीचे के द्वार, एक मुँह) और दसवाँ द्वार यही शिखा या सहस्राह चक्र जो सिर में होता है। यदि प्राण इस चक्र से निकलते हैं तो साधक की मुक्ति निश्चत है और सिर पर शिखा होने के कारण प्राण बड़ी सरलता से निकल जाते हैं और मृत्यु हो जाने के बाद भी शरीर में कुछ अवयव ऐसे होते हैं जो आसानी से नहीं निकलते, इसलिए जब व्यक्ति को मरने पर जलाया जाता है तो सिर अपने आप फटता है और वह अवयव बाहर निकलता है। यदि सिर पर शिखा होती है तो उस अवयव को निकलने की जगह मिल जाती है। शवदाह क्रिया में कपाल क्रिया इसीलिये की जाती है।
(14.5). शिखा रखने से मनुष्य प्राणायाम, अष्टांगयोग आदि यौगिक क्रियाओं को ठीक-ठीक कर सकता है। शिखा रखने से मनुष्य की नेत्र ज्योति सुरक्षित रहती है। शिखा रखने से मनुष्य स्वस्थ, बलिष्ठ, तेजस्वी और दीर्घायु होता है।
Sushrut described Brahm Randhr-the peak over the head, as the Adhipati-Supreme or the Marm-most sensitive point in the human body. Here stands the nexus of all nerves. The Shikha-Choti (lock) protects this spot. The Sushumana (nerve) reaches here from the lower segments of the body. Brahm Randhr constitutes the highest, seventh Chakr, with the thousand-petalled lotus. It is the center of wisdom. The knotted Shikha-the lock helps boost this center and conserve its subtle energy known as Ojas-Aura.
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(15). EATING HABITS :: Normally one starts with spicy food and take some sweets at the end. Spices are medicines having curing character. Never consume more spices. They begin-initiates proper digestion of food with the secretion of enzymes and help in the conversion of cellulose, proteins and carbohydrates into digestible sugars, which can be absorbed easily by the small intestine. Sweets change taste in the mouth.
खाद्यान्न में मिर्च-मसाले उसे ज़ायकेदार-स्वाद बना देते हैं। मसाले कभी भी ज्यादा मात्रा में नहीं खाने चाहिए। प्रत्येक मसाला औषधि गुणों से युक्त होता है। ये मनुष्य को उत्तम स्वास्थ्य प्रदान करते हैं, यदि उचित मात्रा में लिए जायें। इनसे पेट में एन्जाइम्स की उत्पत्ति होती है जो कि कार्बोहाइड्रेट्स, सेल्यूलोस, प्रोटीन्स को आसानी से पाचनशील शुगर्स में बदल देते हैं। मिठाई सामान्यतया मुँह का स्वाद बदलने के लिए होती है।
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(16). APPLICATION OF HENNA-MAHDI OVER HANDS-FEET :: Its medicinal characters have been recognised. It relieves one, from stress, headaches and fever. The girls and married women apply its paste over their hands and the feet due to this reason to avoid the excitement, nervous breakdown before and during the marriage celebrations. Hands and feet contain the nerves which end up over their tips. Old man and women apply this to colour hair, since its a natural dye which protects scalp.
मेंहदी के औषधि गुणों को पहचान कर उनका सदुपयोग किया जाता है। मेंहदी तनाव, सरदर्द और बुखार में राहत देती है। शादी के वक्त लड़की को अत्यधिक तनाव से गुजरना पड़ता है। नाड़ियाँ हाथ और पैरों के पौरुओं तक पहुँचती हैं। अतः मेंहदी का लेपन-रचाना किया जाता है। स्त्रियों को हर तीज-त्यौहार पर मेंहदी लगाने का शौक होता है और इसे श्रंगार-प्रसाधन के तौर पर इस्तेमाल किया जाने लगा है। आम तौर पर अवस्था बढ़ने पर सफेद बालों को रंगने में भी इसका उपयोग होता है, क्योंकि यह एक प्राकृतिक रंग और सर में ठंडक प्रदान करती है।
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(17). WEARING BANGLES-ORNAMENTS :: Women is more sensitive as compared to the man. She is prone to microbes, germs, virus, bacteria, fungus. Gold and Silver have anti microbe properties. This is the reason why the rich and mighty prefer gold utensils. One eat betel leaves studded with Gold-Silver foil. Sweets too are laced with Gold and Silver foil due to this reason. Moving-cluttering bangles keeps the flow of blood steady and regular. In fact Indians are supposed to wear bracelets, rings, anklets in hands and legs, in addition to rings in the ears. Flow of blood produce charges in the body which are channelized by these ornaments.
स्त्री को पुरुष की अपेक्षा कोमलांगी समझा जाता है। इसलिए उसे बचपन से आभूषणों का प्रयोग करने को कहा जाता है। सोने-चाँदी में रोगाणुओं-जीवाणुओं से लड़ने-प्रतिरोध उत्तपन्न करने की क्षमता है। इसी वजह से भारत में पान और मिठाइयों पर सोने चाँदी का वर्क लगाने-खाने का रिवाज है। पैर-हाथ में चूड़ी-कड़े इसी वजह से पहने जाते हैं। मर्दों को कन छेदन और कुण्डल पहनने को कहा जाता है। लोग तो अपने दाँतों में भी सोना जड़वा लेते हैं। रक्त प्रवाह के दौरान काफी बड़ी मात्रा में आवेश-विद्युत कण-इलेक्ट्रान आदि उत्त्पन्न होने हैं, जिनको उदासीन करने के लिए भी ये अनिवार्य हैं। कर्ण का दाँत सोने का था जिसे भगवान् श्री कृष्ण ने अर्जुन के सामने उसकी मृत्यु के समय उसकी महानता बताने के लिए माँगा था।
(18). PIERCING OF EARS :: Its believed that piercing of the ears might help in the development of intellect, power of thinking and decision making faculties. It helps in speech-restraint. Talkativeness-too much talking, fritters away life sustaining energy. It reduces impertinent behaviour and the ear-channels become free frum disorders. Bible has stressed over this ritual. During the current age-era, people do it as a mark of fashion. As a matter of fact the hole in the ear is used to wear golden ornaments which protects them from infections regularly. The ears of one who is born in MUL Nakshtr should be pierced, as will help the family, later.
विद्वान लोग यह मानते हैं कि कन छेदन से मेधा-शक्ति का विकास होता है। निर्णय लेने की क्षमता बढ़ती है। ज्यादा-बातचीत ऊर्जा की नाशक है। यह ज्यादा-फालतु बोलने पर प्रतिबंद्ध लगाता है। कान की बिमारियों से राहत प्रदान करता है। कान में स्वर्ण-जड़ित आभूषण पहनने से मनुष्य की जीवाणुओं से रक्षा हो जाती है। बाइबल में भी इसके ऊपर काफी जोर दिया गया है। आजकल के लौंडे-लपाडे इसे फैशन के लिये इस्तेमाल करते हैं। किसी भी बहाने से सही एक उचित चीज का उचित प्रयोग तो है।
(19). PROPER DIRECTION FOR SLEEPING :: Human body carries currents which transform in to magnetic field. One should align the body in north-south direction in such a way that the head is in the south, south-east or purely east. This will help in easing blood pressure, heart ailments and ascertain proper flow of blood into the head. Our blood, which is a significant constituent of the body which 2/3 water, constitutes of haemoglobin-a compound containing iron. Headache, Alzheimer’s Disease, Cognitive Decline, Parkinson disease and brain degeneration are some of the complications resolved by sleeping in this manner.
मानव-शरीर में हर वक्त खून का प्रवाह होने से विद्युत आवेश उत्तपन्न होता है जो कि चुंबकीय क्षेत्र में परिवर्तित हो जाता है ऐसा होने से उसका प्रभाव मन-मष्तिष्क और शरीर पर पड़ने लगता है। शरीर का दो तिहाई भाग पानी से बना है, जिसमें लगभग 5 लीटर खून होता है। हीमोग्लोबीब खून का एक विशिष्ट यौगिक है, जिसमें लोह तत्व होता है। लोहा चुम्बक से आकर्षित होता है। सोते वक्त सर की दिशा दक्षिण, दक्षिण-पूर्व अथवा पूर्व रखने से शरीर में रक्त संचार सही तरीके से होने लगता है, जिससे उच्च रक्तचाप, सरदर्द, हृदय-रोग जैसी बिमारियों का समाधान हो जाता है।
(20). DEEPAWALI CELEBRATIONS :: It coincides with the change of seasons. Monsoon is retards, temperatures start falling, attack of insects which cause various diseases, is on the rise. Repairs, renovation, cleaning, beatifications are carried out at this occasion. This prompts cleaning of walls and application of lime added with copper sulphate (Cu2SO4) which are most common insecticides. A fresh coat removes dampness as well. Winter cloths are out and needs to be placed in the Sun light. It coincides with sowing season and cutting of sugar cane crop as well.
दीपावली से ही मौसम बदलने की शुरुआत हो जाती है। मानसून वापस चला जाता है, तापमान कम होना शुरू हो जाता है। कीड़े-मकोड़ों की वृद्धि होने लगती है। मकान मरम्मत-सफाई माँगने लगता है। अतः चूना-पुताई भी कराया जाता है। पुताई में चूना और नीला थोथा मिलाया जाता है जो कि सूक्ष्म जीवाणुओं और कीड़े-मकोड़ों को मारने में सक्षम है। यह घर की सीलन और बदबू को भो दूर करता है। यहीं से बुआई का वक्त शुरू हो जाता है गन्ने की फसल भी तैयार होने को होती है।
(21). OFFERING WATER TO THE SUN-SUN SALUTING :: This is one of the most common tradition followed by the Hindus. They get up early in the morning and become fresh before Sun rise. They perform prayers and complete the morning rituals. This is one the several rituals they follow. A pot full of water mixed with honey, milk, Tulsi leaves is offered to the rising Sun, when it become lustrous-shinning, its no more red in appearance. While the red rays are dangerous for the eyes due to their infra red nature-high wave length and low frequency. Several other radiations (VIBGYOR) are obtained, when these rays pass through water which are soothing to the eyes and the brain.
यह आस्था में रंगा हुआ एक ऐसा वैज्ञानिक चमत्कार है जो कि प्रत्येक हिन्दु अनुभव करता है। उगते और ढ़लते हुए सूर्य को देखना नहीं चाहिये, क्योंकि वह लालिमा लिए हुए रहता है और उससे बड़ी तरंग दैर्ध्य और न्यून आवर्ती की तरंगें निकलती हैं। जब जल-अर्ध्य दिया जाता है तो विकिरण संतुलित होकर आँखों से मिलते हैं, जिससे विनाई-नेत्र ज्योति बढ़ती है। इस जल में शहद, गंगा जल, तुलसी, दूध आदि को मिला दिया जाता है।
(22). AUSPICIOUSNESS, AUSTERITY BEHIND VISITING A HINDU TEMPLES :: Visiting temples is a kind of penance-prayer devoted to the Almighty. Sweeping the flour, painting the walls, offering of fruits, cloths, money, flowers; pouring water-milk, curd, honey, ghee over the statue are some alternate forms of prayer. Sitting in front of the deity's statue and concentrating-creating a mental image, of the God in one's mind, too is prayer. Sanatan Dharm-Hinduism has a rich heritage, culture and tradition. There are thousand's of mesmerising Hindu temples across the country & else where with different distinguished design, shape, locations. Vastu Shastr has been utilized and the knowledge of scriptures-Ved, Puran is applied. Visiting temples grant blessing, boons, fulfilment of desires, calm, better mind set and peace of mind. It gives power to face the difficult phases of life.
(22.1). LOCATION, DESIGN & STRUCTURE :: Temples are deliberately built at a place where the positive energy is available abundantly from the the magnetic and electric field conveyances of north-south poles. The idol of God is set in the core center of the temple, known as Garbh Grah or Mool Sthan. Ideally, the structure of the temple is built after the idol has been placed in a high positive wave eccentric place. This Mool Sthan is the place where earth’s magnetic field-waves are discovered to be extreme.
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(22.2). REMOVAL OF FOOT WEAR :: Temples are the sacred places where magnetic and electric fields with positive energy exists. Temples were used to be built in such a manner that the floor at the center of the temple were good conductors of positive vibrations allowing them to pass through one's feet to the earth. Hence, it is essential to walk bare footed, while one enter the core center of the temple. Shoes and Chappals are used everywhere and they tend to acquire impurities in the form of dust, garbage, germs, virus, harmful enzymes, bacteria, fungus and protozoans.
(22.3). RINGING OF BELLS :: It activates the senses specially the hearing. People who are visiting the temple should and will Ring the bell before entering the inner temple (Garbh Gudi, Garbh Grah, Mool Sthan or womb-chamber) where the main idols are placed. These bells were fixed in such a manner that they produce a sound in unison to create resonance-echo symmetrically, on either side i.e., left and the right. The bells produces a sharp and enduring sound which lasts for minimum of 7 seconds, in echo mode. The duration of echo is good enough to activate all the seven healing centres in one's body. This results in emptying our brain from tensions. This bell sound is also absorbed by the idol and vibrated within the Garbh Gudi for a certain period of time.
(22.4). VASTU-ANCIENT HINDU ARCHITECTURE & ENGINEERING :: Temples are engineering marbles employing excellent techniques-blue prints, skills, architecture, resonance, echo, vibrations, symmetry, orientation with the 10 directions connected with the walls & the foundation. They create soothing impact over the visitors if they enter the temples with pure thoughts, ideas, desires. The idols too have mesmerising impact over the devotees. As a matter of fact, gathering of a large number of people seeking renunciation make the environment religious, pious, virtuous, righteous.
(22.5). LIGHTING OF CAMPHOR, GUGAL, AGARBATTI, DHOOPBATTI, MUSTERED OIL-GHEE, EARTHEN-METAL (GOLD-SILVER) LAMPS IN FRONT OF THE IDOL :: All these articles have the properties of disinfectants. Most of these articles liberate pleasant smells which develop good mood, happiness and congenital environment all around. One never experienced suffocation inside the chambers of the temples. In fact most of the substances which are allowed to ignite inside, contains medicinal properties which enters the lungs and gets mixed with the blood re leaving the devotees of a number of diseases. Soothing impact of Gold, Silver and copper over the human body is universally recognised.
(22.6). OFFERING FLOWERS, SCENTS, FRAGRANCES :: These are the articles admired by each and every one. They creates pleasant environment there. Mind experiences calmness, freshness and improved energy levels.
(22.7). DRINKING CHARNAMRAT चरणामृत पञ्चगव्य :: Charnamrat is prepared by mixing Ganga Jal, cow urine, curd, honey, milk, Tulsi (Holy Basil) leaves. 5-10 grams of charnamrat is offered to the devotees as prashad. This is an Ayur Vedic composition which cures a number of diseases automatically, like soar throats, fever & common cold, coughs, respiratory disorders-ailments, formation of kidney stone & heart disorders. Normally the preparation is stored in silver, copper or gold vessels which have curative impact over one's body.
(22.8). ENCOMPASS-CIRCUMAMBULATION दक्षिणा-परिक्रमा :: This is a process in which the devotees moves round the temple or the idol 7-9 times in clockwise order. The walk involved in the process activates the blood vessels inside the lungs, which smoothly absorbs the medicinal properties of offerings to the God, present in the air of the temple.
(22.9). APPLICATION OF VERMILION-TURMERIC (हल्दी) SAFFRON, SANDALWOOD PASTE (चन्दन) MARK OVER THE FOREHEAD :: It leads to automatic activation of the Agya Nadi Chakr over the fore head. This is the place where the energies of the humans are radiated or absorbed in either positive or negative manner. It relaxes one by facilitating smoother flow of blood in the brain. Agya: Order, Command.
Location of Agya Chakr: It’s based-housed at the upper end of the spinal cord-vertebral column, at the point of transition, from the spine to the brain. Development of one's wisdom and humanity is completed here, bridging the divine consciousness. Its energy is experienced in the center of the forehead between the eyebrows, just over the nose.
तिलक विधि :: तिलक लगाने के लिए हाथ की चार अंगुलियों को प्रयोग किया जाता है। किस अंगुली से किसको तिलक लगाना है, इसके नियम :-
(1). तर्जनी (INDEX) :- दाहिने हाथ की तर्जनी अंगुली से पितृ गणों को अर्थात पिण्ड को तिलक किया जाता है।
(2). मध्यमा (MIDDLE) :- दाहिने हाथ की मध्यमा अंगुली से स्वय तिलक धारण किया जाता है।
(3) अनामिका (RING) :- दाहिने हाथ की अनामिका अंगुली से भगवान् व देवों का तिलक किया जाता है।
(4) अंगूठा (THUMB) :- दाहिने हाथ के अंगूठे से अतिथि को किया जाता है।
(22.10). OFFERING OF BANANA-COCONUT FRUITS :: These are termed as sacred fruits due to their composition. Generally they remain uneaten by the birds, insects etc.
(22.11). RITUALS, PRAYERS, RHYMES, MANTR & SHLOK :: Recitation of these has purifying impact over one due to the waves-vibrations generated in the atmosphere of the temple, which are so devised that the curative effect is observed soon there after. Mantr in the forms of Shlok are the coded symbolic verses which activate certain mystic forces, if recited with proper tone.
(23). लकड़ी के खड़ाऊँ :: पैरों में लकड़ी के खड़ाऊँ इसलिए पहनी जाती थीं, क्योंकि हमारे शरीर में निरन्तर विद्युत धारा का उत्पादन और संचार होता है। यह ऊर्जा शरीर में रक्त वाहनियों-धमनियों, शिराओं तथा नसों के माध्यम से संचारित होती है। अगर इसको धरती से जोड़ दिया जाये तो इसका प्रवाह उसमें हो जाता है। खड़ाऊँ लकड़ी की बनी होने से विद्युत की कुचालक होती हैं और ऊर्जा का निरन्तर प्रवाह बना रहता है। कपड़ा और चमड़ा दोनों ही नमी सोखते है और भीगने पर जल सोख लेते है और विद्युत का प्रवाह कर देते हैं। यह इस बात को भी सुनिश्चित करता है कि विद्युत का झटका न लगे।
Ancient Hindu tradition of wearing wooden shoes-chapples is supported by logic-reasoning. Wood is a non conductor of electricity and obstruct the flow of charges. Human body continuously generate charges, which flow through the blood vessels, veins, arteries and the nerves. It protects one from electric shocks, as well. The moment one moves barefoot these charges enter the earth sucking the vital energy-life supporting force. Cotton socks absorb sweat and make the cotton shoes conducting. Leather too absorbs moisture quickly, making it conducting that why one is not allowed to wear shoes in sacred-religious places.
निशीथ काल :: रात्रि में 12 बजे से निशीथ-निषिद्ध काल (प्रेत काल) प्रारम्भ हो जाता है। निशीथ काल रात्रि को वह समय है जो समान्यत: रात 12 बजे से रात 3 बजे की बीच होता है। आमजन इसे मध्यरात्रि या अर्ध रात्रि काल कहते हैं। शास्त्रनुसार यह समय अदृश्य शक्तियों, भूत व पिशाच का काल होता है। इस समय में यह शक्ति अत्यधिक रूप से प्रबल हो जाती हैं।
अदृश्य पाशविक, पैशाचिक शक्तियाँ दिखाई नहीं देतीं, किंतु बहुधा मनुष्यों पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं, जिससे जीवन अस्त-व्यस्त हो उठता है और व्यक्ति दिशाहीन हो जाते हैं।
साल के कुछ दिनों को छोड़कर जैसे दीपावली, 4 नवरात्रि, जन्माष्टमी व शिवरात्रि पर निशीथ काल महानिशीथ काल बन कर शुभ प्रभाव देता है जबकि अन्य समय में दूषित प्रभाव देता है।
सनातन धर्म के शास्त्र अनुसार अग्नि को बुझा कर उत्सव मनाना अंधेरे के देवता असुर का आवाहन करने के बराबर माना गया है।
मन्दिर में देव दर्शन :: परम्परा हैं कि किसी भी मन्दिर में दर्शन के बाद बाहर आकर मन्दिर की पैड़ी या ऑटले पर थोड़ी देर बैठना। मन्दिर की पैड़ी पर बैठ कर निम्न श्लोक बोलना चाहिए :-
अनायासेन मरणम्, बिना देन्येन जीवनम्।
देहान्त तव सानिध्यम्, देहि मे परमेश्वरम्॥
"अनायासेन मरणम्" अर्थात् बिना तकलीफ के हमारी मृत्यु हो और कभी भी बीमार होकर बिस्तर पर न पड़ें, कष्ट उठाकर मृत्यु को प्राप्त ना हों चलते फिरते ही हमारे प्राण निकल जाएं।
"बिना देन्येन जीवनम्" अर्थात् परवशता का जीवन ना हो। कभी किसी के सहारे ना रहना पड़े। जैसे कि लकवा हो जाने पर व्यक्ति दूसरे पर आश्रित हो जाता है वैसे परवश या बेबस ना हों।
"देहांते तव सानिध्यम" अर्थात् जब भी मृत्यु हो तब भगवान् के सम्मुख हो। जैसे भीष्म पितामह की मृत्यु के समय स्वयं (भगवान् श्री कृष्ण) उनके सम्मुख जाकर खड़े हो गए। उनके दर्शन करते हुए प्राण निकले।
"देहि में परमेशवरम्" हे परमेश्वर ऐसा वरदान हमें देना।
गाड़ी, लड़का, लड़की, पति, पत्नी, घर, धन इत्यादि (अर्थात् संसार) नहीं माँगना है, यह तो भगवान् हमारी पात्रता-प्रारब्ध के अनुरूप स्वतः देते हैं। इसीलिए दर्शन करने के बाद बैठकर यह प्रार्थना अवश्य करनी चाहिए। यह प्रार्थना है, याचना नहीं है। याचना साँसारिक पदार्थों के लिए होती है। जैसे कि घर, व्यापार,नौकरी, पुत्र, पुत्री, साँसारिक सुख, धन या अन्य बातों के लिए जो माँग की जाती है वह याचना है ।
'प्रार्थना' शब्द के 'प्र' का अर्थ होता है 'विशेष' अर्थात् विशिष्ट, श्रेष्ठ और 'अर्थना' अर्थात् निवेदन। प्रार्थना का अर्थ हुआ विशेष निवेदन।
मन्दिर में भगवान् की प्रतिमा का दर्शन सदैव खुली आँखों से करना चाहिए, निहारना चाहिए। हाँ वहाँ प्रार्थना करते वक्त आँखें बंद की जा सकती हैं।
दर्शन के बाद जब बाहर आकर बैठें, तब नेत्र बंद करके जो दर्शन किया हैं उस स्वरूप का ध्यान करें। मन्दिर से बाहर आने के बाद, पैड़ी पर बैठकर स्वात्मा का ध्यान करें, नेत्र बंद करें।
कान छिदवाने की परम्परा :: इससे सोचने की शक्ति बढ़ती है। जबकि डॉक्टरों का मानना है कि इससे बोली अच्छी होती है और कानों से होकर दिमाग तक जाने वाली नस का रक्त संचार नियंत्रित रहता है।
माथे पर कुमकुम-तिलक :: आंखों के बीच में माथे तक एक नस जाती है। कुमकुम या तिलक लगाने से उस जगह की ऊर्जा बनी रहती है। माथे पर तिलक लगाते वक्त जब अंगूठे या उंगली से प्रेशर पड़ता है, तब चेहरे की त्वचा को रक्त सप्लाई करने वाली मांसपेशी सक्रिय हो जाती हैं। इससे चेहरे की कोशिकाओं तक अच्छी तरह रक्त पहुंचता है। इससे कुदृष्टि से रक्षा भी होती है।
जमीन पर बैठकर भोजन करना :: पाल्थी मारकर बैठना एक प्रकार का योग आसन है। इस पोजीशन में बैठने से मस्तिष्क शांत रहता है और भोजन करते वक्त अगर दिमाग शांत हो तो पाचन क्रिया अच्छी रहती है। इस पोजीशन में बैठते ही खुद-ब-खुद दिमाग से सन्देश एक पेट तक जाता है, कि वह भोजन के लिये तैयार हो जाये।
हाथ जोड़कर नमस्ते करना :: जब सभी उंगलियों के शीर्ष एक दूसरे के संपर्क में आते हैं और उन पर दबाव पड़ता है। एक्यूप्रेशर के कारण उसका सीधा असर हमारी आँखों, कानों और दिमाग पर होता है, ताकि सामने वाले व्यक्ति को हम लंबे समय तक याद रख सकें।
भोजन की शुरुआत तीखे से और अंत मीठे से :: तीखा खाने से हमारे पेट के अंदर पाचन तत्व एवं अम्ल सक्रिय हो जाते हैं। इससे पाचन तंत्र ठीक तरह से संचालित होता है। अंत में मीठा खाने से अम्ल की तीव्रता कम हो जाती है। इससे पेट में जलन नहीं होती है।
पीपल की पूजा करना :: यह भगवान्इ श्री हरी विष्णु का प्रतीक है। पीपल एक मात्र ऐसा पेड़ है, जो रात में भी ऑक्सीजन प्रवाहित करता है।
दक्षिण की तरफ सिर करके सोना :: बुरे सपने नहीं आते, भूत प्रेत का साया नहीं होगा, इसलिये उत्तर की ओर पैर करके सोयें।
जब हम उत्तर की ओर सिर करके सोते हैं, तब हमारा शरीर पृथ्वी की चुंबकीय तरंगों की सीध में आ जाता है। शरीर में मौजूद आयरन यानी लोहा दिमाग की ओर संचारित होने लगता है। इससे अलजाइमर, परकिंसन, या दिमाग संबंधी बीमारी होने का खतरा बढ़ जाता है। यही नहीं रक्तचाप भी बढ़ जाता है।
सूर्य नमस्कार :: सुबह उठकर सूर्य को जल चढ़ाते हुए नमस्कार करने की परम्परा है। पानी के बीच से आने वाली सूर्य की किरणें जब आंखों में पहुँचती हैं, तब हमारी आँखों की रौशनी अच्छी होती है।
सिर पर चोटी रखना :: जिस जगह पर चुटिया रखी जाती है उस जगह पर दिमाग की सारी नसें आकर मिलती हैं। इससे दिमाग स्थिर रहता है और इंसान को क्रोध नहीं आता, सोचने की क्षमता बढ़ती है।
व्रत रखना :: इससे पाचन क्रिया अच्छी होती है और फलाहार लेने से शरीर का हानिकारक पदार्थों में कमी आती है, यानी उसमें से खराब तत्व बाहर निकलते हैं। व्रत करने से कैंसर का खतरा कम होता है। हृदय संबंधी रोगों, मधुमेह, आदि रोग भी जल्दी नहीं लगते।
चरण स्पर्श करना :: मस्तिष्क से निकलने वाली ऊर्जा हाथों और सामने वाले पैरों से होते हुए एक चक्र पूरा करती है। इसे ऊर्जा का प्रवाह कहते हैं। इसमें दो प्रकार से ऊर्जा का प्रवाह होता है या तो बड़े के पैरों से होते हुए छोटे के हाथों तक या फिर छोटे के हाथों से बड़ों के पैरों तक। इससे पेट की गैस भी बाहर निकल जाती है।
सिंदूर लगाना :: इसमें में हल्दी, चूना और पारा होता है। यह मिश्रण शरीर के रक्त चाप को नियंत्रित करता है। इससे यौन उत्तेजनाएं भी बढ़ती हैं, इसीलिये विधवा औरतों के लिये सिंदूर लगाना वर्जित है। इससे तनाव में कमी आती है।
तुलसी के पेड़ की पूजा :: तुलसी की पूजा करने से घर में समृद्धि आती है। सुख शांति बनी रहती है। तुलसी इम्यून सिस्टम को मजबूत करती है। लिहाजा अगर घर में पेड़ होगा, तो इसकी पत्तियों का इस्तेमाल भी होगा और उससे बीमारियां दूर होती हैं।
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संतोष महादेव-सिद्ध व्यास पीठ, बी ब्लाक, सैक्टर 19, नौयडा