Friday, November 13, 2015

PIOUS & WICKED DEEDS AND THEIR RESULT :: MANU SMRATI (12) मनु स्मृति :: शुभ-अशुभ कर्म और उनका फल

MANU SMRATI (12) मनु स्मृति
(शुभ-अशुभ कर्म और उनका फल)
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
By :: Pt. Santosh Bhardwaj
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ॐ गं गणपतये नम:।
अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।
निराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि
[श्रीमद्भगवद्गीता 2.47]

इस अध्याय में शरीरोत्पत्ति का, स्वर्ग लाभ और नरक प्राप्ति कराने वाले कर्मों का, अभ्युदय और निःश्रेयस प्राप्त करने वाले कर्मों का, तप और विद्या के फल का, शास्त्रों में अप्राप्य का, विद्वान्‌ ब्राह्मण द्वारा निर्णय कराने का, ब्रह्मवेत्ता की पहचान का तथा परमपद की प्राप्ति के उपाय तथा सर्वत्र समदृष्टि का वर्णन हुआ है।
चातुर्वर्ण्यस्य कृत्स्नोऽयमुक्तो धर्मस्त्वयाऽनघः।
कर्मणां फलनिर्वृत्तिं शंस नस्तत्त्वतः पराम्॥12.1॥
हे अनध! चारों वर्णों के धर्म को आपने कहा। अब जन्मान्तर में शुभाशुभ कर्मों का जो फल मिलता है, उसे कहिये। 
O-Hey sinless! You have described the Dharm-duties of all the four Varn (Genetic division of Humans). Now, please tell the outcome of deeds fair & foul, virtues & sins in various incarnations-births.
स तानुवाच धर्मात्मा महर्षीन्मानवो भृगुः।
अस्य सर्वस्य शृणुत कर्मयोगस्य निर्णयम्॥12.2॥
धर्मात्मा मनु के पुत्र भृगु ने महृषियों से कहा, "इस सम्पूर्ण कर्मयोग का निर्णय सुनो"
Bhragu-the virtuous son of Manu Ji asked the sages to listen to the impact of deeds i.e., Karm Yog.
शुभाशुभफलं कर्म मनोवाग्देहसंभवम्।
कर्मजा गतयो नॄणामुत्तमाधममध्यमः॥12.3॥
शुभाशुभ फल देने वाले कर्म का उत्पत्ति स्थान मन, वाणी और देह हैं। कर्म से ही मनुष्यों की उत्तम, मध्यम और अधम गति होती है। 
The source of bad or good outcome (reward & punishment) are innerself (psyche, gesture, mind, mood), speech and the body. Karms-deeds yield the Ultimate, normal or worst outcome-result, impact to the organism-creature.
तस्येह त्रिविधस्यापि त्र्यधिष्ठानस्य देहिनः।
दशलक्षणयुक्तस्य मनोविद्यात्प्रवर्तकम्॥12.4॥
उस शरीर सम्बन्धी त्रिविध (तीनों उत्तम, मध्यम, अधम) और दस लक्षण से युक्त तीनों (मन, वाणी, शरीर) अधिष्ठानों के आश्रय में रहने वाले धर्मों का प्रवर्तक मन ही होता है। 
The innerself constituting of ten characteristics of the three organs (innerself, speech & body) is the regulator of all the Dharm-deeds (things ought to be done) through the body, experiencing the three kinds of impact-output (excellent, average and the poor-worst). 
पुरुष मन से जो विचार करता है, वही वाणी से बोलता है और जो वाणी से बोलता है वही कर्म करता है। [तैतिरीय उपनिषद]
The humans speak what they think and implement their ides through the body.
परद्रव्येष्वभिध्यानं मनसाऽनिष्टचिन्तनम्।
वितथाभिनिवेशश्च त्रिविधं कर्म मानसम्॥12.5॥
दूसरे का धन अपहरण करना, अन्याय करना-चित्त में दूसरे के अनिष्ट का चिंतन करना, मिथ्या अभिनिवेश (स्वर्ग नहीं है, जो कुछ है वह शरीर ही है) करना; ये तीनों प्रकार के अशुभ फल देने वाले मानस कर्म हैं। 
Planning to snatch other's (1). belongings (property, wealth, money etc.), (2). harming & that (3). there is nothing other than this body i.e., life after death does not exist, whatever is there is just the body, nothing else; are the three kinds of mental sins which award inauspicious yield-results-punishments.
Harming, teasing others in anyway, mentally or physically, adherence to false doctrines-notions, are sinful mental action. An atheist, who consider that the God does not exist and he is free to do any thing, is also equally sinful.
पारुष्यमनृतं चैव पैशुन्यं चापि सर्वशः।
असंबद्धप्रलापश्च वाङ्मयं स्याच्चतुर्विधम्॥12.6॥
कठोर और झूँठ बोलना, दूसरे के दोषों को बताना और बिना अभिप्राय के वचन बोलना ये चार प्रकार के अशुभ फ़ल देने वाले वाणी के कर्म हैं। 
Speaking plain truth-harsh words and telling lies, describing other's faults and speaking anything without motive i.e., useless talk-gossip, which may not be liked by others, are the four kinds of words which leads to inauspicious results.
Abusive language and talking idly are verbal evils-action.
अदत्तानामुपादानं हिंसा चैवाविधानतः।
परदारोपसेवा च शारीरं त्रिविधं स्मृतम्॥12.7॥
किसी की (न दी हुई) वस्तु को बल पूर्वक ले लेना-छीन लेना, बिना विधान के हिंसा करना और पर स्त्री का सेवन; ये तीनों शारीरिक दुष्कर्म हैं। 
Snatching others belongings by force, undue-unnecessary violence and raping other's women-wife are physical crimes-sins.
These three kinds of wicked actions are performed through the body.
मानसं मनसैवायमुपभुङ्क्ते शुभाशुभम्।
वाचा वाचा कृतं कर्म कायेनैव च कायिकम्॥12.8॥
मन से किये हुए कर्म का फल मन से, वाणी से किया हुआ वचन से, देह से किया हुआ कर्म का फल देह को भुगतना-भोगना पड़ता है। 
One has to bear the outcome of thoughts through the innerself, that of speech-words through the promises-vows, listening and those performed physically through the body.
शरीरजैः कर्मदोषैर्याति स्थावरतां नरः।
वाचिकैः पक्षिमृगतां मानसैरन्त्यजातिताम्॥12.9॥
शरीर से उत्पन्न कर्मदोषों के फलों से मनुष्य स्थावरता, वाचिक दोषों से पक्षी और मृगत्व को और मानस दोषों से चाण्डालादि जाति-योनि को प्राप्त होता है। 
One moves to fixed species (trees, plants, shrubs etc.) due to the wrong deeds performed bodily, to birds or deer like species due to the evil deeds done verbally-speech and to the birth as a Chandal for the ill deeds performed mentally.
वाग्दण्डोऽथ मनोदण्डः कायदण्डस्तथैव च।
यस्यैते निहिता बुद्धौ त्रिदण्डीति स उच्यते॥12.10॥
वाग्दण्ड, मनोदण्ड और देहदण्ड ये जिसके बुद्धि में स्थित हैं, उसको त्रिदण्डी कहते हैं अर्थात जो बुद्धि, मन, वचन और शरीर से दुष्कर्मों से अलग रहता है। 
One who controls his tongue-speech, thoughts-Man and the body is called Tridandi. He do not indulge in sins pertaining to speech-words, intelligence-prudence and the body.
त्रिदण्डमेतन्निक्षिप्य सर्वभूतेषु मानवः।
कामक्रोधौ तु संयम्य ततः सिद्धिं नियच्छति॥12.11॥
जो मनुष्य काम-क्रोध का संयम करके सभी प्राणियों के साथ इस त्रिदण्ड (बुद्धि, मन, वचन और शरीर से दुष्कर्मों से अलग रहना) का व्यवहार करता है, वह सिद्धि को प्राप्त होता है। 
One who controls-subdues his sensualities-passions and the anger-aggression and behaves with all the creatures-organism according to Tridand attains complete accomplishment-success. 
योऽस्यात्मनः कारयिता तं क्षेत्रज्ञं प्रचक्षते।
यः करोति तु कर्माणि स भूतात्मोच्यते बुधैः॥12.12॥
जो व्यक्ति शरीर का ज्ञाता है, उसे क्षेत्रज्ञ कहते हैं और जो कर्मों को करता है, उसको पण्डित लोग भूतात्मा कहते है। 
One who aware of his body and makes it perform deeds is called Kshetragy and the one who perform deeds is termed Bhutama.
जीवसंज्ञोऽन्तरात्माऽन्यः सहजः सर्वदेहिनाम्।
येन वेदयते सर्वं सुखं दुःखं च जन्मसु॥12.13॥
जीव संज्ञक अन्तरात्मा इससे भिन्न है, जो कि सब प्राणियों में सहज है और जिससे जन्म के सभी सुख और दुःखों को जाना जाता है। 
The soul is different than the Kshetr (body) and present in all living beings which experiences all pleasure & pains of taking birth i.e., in the present species.
तावुभौ भूतसम्पृक्तौ महान्क्षेत्रज्ञ एव च।
उच्चावचेषु भूतेषु स्थितं तं व्याप्य तिष्ठतः॥12.14॥
वे दोनों (आत्मा और शरीर-क्षेत्र) महान् और क्षेत्रज्ञ से (पञ्चभूतों से) मिलकर सभी छोटे-बड़े जीवों में स्थित होकर उस परमात्मा के आश्रय में रहते हैं। 
The soul and the body unite of small to large organisms and depend over the Almighty.
असंख्या मूर्तयस्तस्य निष्पतन्ति शरीरतः।
उच्चावचानि भूतानि सततं चेष्टयन्ति याः॥12.15॥
उस परमात्मा के शरीर से असँख्य मूर्तियाँ निकलती हैं जो छोटे-बड़े सभी जीवों को सत्कर्म में प्रवृत करती हैं। 
Innumerable forms (of the almighty) moves out of the Almighty which impel the organisms from small to large organisms in pious deeds.
पञ्चभ्य एव मात्राभ्यः प्रेत्य दुष्कृतिनां नृणाम्।
शरीरं यातनार्थोयमन्यदुत्पद्यते ध्रुवम्॥12.16॥
पापात्मा मनुष्यों के पञ्चभौतिक शरीर से ही एक सूक्ष्म शरीर निश्चय करके परलोक में दुःख भोगने के लिये उत्पन्न होता है। 
A minute body of the sinner-wicked emanate-emerges from his dead remains and is destined to suffer in next birth-incarnation, hells.
तेनानुभूयता यामीः शरीरेणेह यातनाः।
तास्वेव भूतमात्रासु प्रलीयन्ते विभागशः॥12.17॥
पापात्मा मनुष्य उस शरीर से यमयातना का अनुभव करके फिर उन्हीं भूतों की मात्राओं में यथा-विभाग लीन होते हैं। 
Having undergone torments-suffering imposed by Yam Raj-deity of death, the sinner is once again made to take birth
सोऽनुभूयासुखोदर्कान्दोषान्विषयसङ्गजान्।
व्यपेतकल्मषोऽभ्येति तावेवोभौ महौजसौ॥12.18॥
वह शरीरधारी विषय भोग से उत्पन्न यमलोकगत यातनाओं के उपभोग करने के बाद पाप रहित होकर महातेजस्वी महत्तत्व और परमात्मा दोनों का आश्रित होता है।
Having suffered for his faults, which are produced by attachment to sensual objects and which results in misery-agony, tortures becomes free to be face to face with Mahatatv & the Almighty.
तौ धर्मं पश्यतस्तस्य पापं चातन्द्रितौ सह।
याभ्यां प्राप्नोति सम्पृक्तः प्रेत्येह च सुखासुखम्॥12.19॥
वे दोनों महत और परमात्मा अनालस्य होकर उसके धर्म और पाप को देखते हैं, जिससे (धर्म और अधर्म से) युक्त होकर जीव इस लोक और परलोक में सुख और दुःख पाता है। 
The Mahatatv and the Almighty watch the organism performing virtuous or wretched (evil, sinful) i.e., merit and guilt; deeds continuously untiringly leading the creature to attain pleasure or pain in present & the next abodes.
यद्याचरति धर्मं स प्रायशोऽधर्ममल्पशः।
तैरेव चावृतो भूतैः स्वर्गे सुखमुपाश्नुते॥12.20॥
वह जीव यदि अधिक धर्म और थोड़ा पाप करता है तो उन भूतों (पंचभूतों) के रूप में जन्म लेकर स्वर्ग में सुख भोगता है। 
The creature is entitled to heaven if he commit more virtuous deeds as compared to sins.
यदि तु प्रायशोऽधर्मं सेवते धर्ममल्पशः।
तैर्भूतैः स परित्यक्तो यामीः प्राप्नोति यातनाः॥12.21॥
यदि वह जीव अधिक पाप और कम धर्म-कर्म करता है तो उन भूतों से परित्यक्त होकर यम यातना भोगता है। 
If the organism performs more evil (unpious, wretched) deeds as compared to Dharm-pious (virtuous, righteous, honest, truthful) deeds, he is made to suffer by the tortures, pain inflicted by Yam the deity of death & Dharm (in hells & lower species).
यामीस्ता यातनाः प्राप्य स जीवो वीतकल्मषः।
तान्येव पञ्च भूतानि पुनरप्येति भागशः॥12.22॥
वह जीव यम यातना को भोगकर फिर उन्हीं पञ्चतत्वों का यथाभाग आश्रय लेता है। 
The organism with minute body, having undergone the torments, tortures-punishments grated to him by Yam Raj-Dharm Raj again depend over the basic ingredients Panch Tatv i.e., takes birth in incarnations dependent over the rest of his deeds.
एता दृष्ट्वाऽस्य जीवस्य गतीः स्वेनैव चेतसा।
धर्मतोऽधर्मतश्चैव धर्मे दध्यात्सदा मनः॥12.23॥
अपने चित्त से जीव की धर्म और अधर्म से उत्पन्न गति को देखकर सदा धर्म में मन लगावे। 
One should take this postulate to his heart-innerself and having understood the movement of soul into inferior or superior incarnations, devote himself to virtuous-pious deeds.
सत्त्वं रजस्तमश्चैव त्रीन्विद्यादात्मनो गुणान्।
यैर्व्याप्येमान्स्थितो भावान्महान् सर्वानशेषतः॥12.24॥
आत्मा के सत्व, रज और तम ये तीन गुण हैं; जिनसे व्याप्त होकर यह आत्मा सभी स्थावर-जङ्गमरूप सृष्टि में होता है। 
Satv (purity-piousness), Raj (attachments, desires, allurements, passions) & Tam laziness, ignorance, cruelty, eating undesirable) are the three characterises of the soul which compels the soul to take birth in movable or fixed organisms (trees-plants etc.).
यो यदेषां गुणो देहे साकल्येनातिरिच्यते।
स तदा तद्गुणप्रायं तं करोति शरीरिणम्॥12.25॥
इन गुणों में जो गुण जिसके शरीर में जब सम्पूर्ण रूप से अधिक-प्रधान होता है, तब वह उस शरीर को प्रायः उसी गुण का कर देता है। 
The dominant basic character present in the body & the soul makes the human body act according to that.
सत्त्वं ज्ञानं तमोऽज्ञानं रागद्वेषौ रजः स्मृतम्।
एत द्वयाप्तिमदेतेषां सर्वभूताश्रितं वपुः॥12.26॥
ज्ञान सत्व गुण का, अज्ञान तमोगुण का और राग-द्वेष रजोगुण का लक्षण है। इन गुणों के स्वरूप से व्याप्त सभी प्राणियों की शारीरिक गति-विधि होती है। 
Gyan-enlightenment represent Satv, ignorance (idiocy, stupidity) represent Tamo Gun while attachment and jealousy represent Rajo Gun. The functioning of a human being entirely depend over these characterises.
तत्र यत्प्रीतिसंयुक्तं किं चिदात्मनि लक्षयेत्।
प्रशान्तमिव शुद्धाभं सत्त्वं तदुपधारयेत्॥12.27॥
जो आत्मा में कुछ भी प्रीति से युक्त हो, प्रशान्त और निर्मल मालूम होता हो उसे सत्वगुण से युक्त जानना चाहिये। 
One having attachment-affection for the Supreme Soul, deep calm-quite and pure-pious has Satv Gun present in him.
यत्तु दुःखसमायुक्तमप्रीतिकरमात्मनः।
 तद्रजो प्रतिपं विद्यात्सततं हारि देहिनाम्॥12.28॥
जो दुःख से युक्त हो, आत्मा को अप्रीतिकारक हो और सर्वदा विषय की इच्छा वाला हो वह सतोगुण के विरोधी रजोगुण से युक्त होता है। 
One who is worried-full of sorrow & pain, un-affectionate to the soul (Almighty-God, athiest) and is always desirous of passions, sensualities, sexuality, lasciviousness is opposite of Satogun and is in possession of Rajogun.
यत्तु स्यान्मोहसंयुक्तमव्यक्तं विषयात्मकम्।
अप्रतर्क्यमविज्ञेयं तमस्तदुपधारयेत्॥12.29॥
जो मोह से युक्त (विवेक रहित) हो, अप्रकट विषयों, अतर्क्य, अविज्ञेय हो वह तमो गुणी होता है। 
One who is illusioned-attached (delusioned, imprudent, indiscernible, ignorant, duffer-idiot, fool), who do not like logic (reasoning, argument), unaware of the existence of God is Tamoguni.
त्रयाणामपि चैतेषां गुणानां यः फलोदयः।
अग्र्योमध्यो जघन्यश्च तं प्रवक्ष्याम्यशेषतः॥12.30॥
इन तीनों गुणों का जो उत्तम, मध्यम और अधम फलोदय है, उसको निःशेष कहता हूँ। 
Now, I shall elaborate the excellent, normal (average-medium), poor impact of these three characterises. 
वेदाभ्यासस्तपो ज्ञानं शौचमिन्द्रियनिग्रहः।
धर्मक्रियात्मचिन्ता च सात्त्विकं गुणलक्षणम्॥12.31॥
वेदाभ्यास, तपस्या, शास्त्रों का ज्ञान, पवित्रता, इन्द्रियों का शमन-निग्रह, धर्म कार्य और आत्मा का चिन्तन ये, सात्विक लक्षण हैं। 
Practice of Veds, ascetics, knowledge & understanding of scriptures with application, piousity,  controlling sensuality-passions, performing Dharm Kary-Varnashram Dharm and meditation of the Soul-Almighty are Satvik-Pious characterises.
आरम्भरुचिताऽधैर्यमसत्कार्यपरिग्रहः।
विषयोपसेवा चाजस्रं राजसं गुणलक्षणम्॥12.32॥
फल की इच्छा से कर्म करना, अधैर्य, निन्दनीय कर्मों का आचरण और सदा विषय भोग करना, ये रजोगुण के लक्षण। 
Performing for the sake of reward, lack of patience, doing vicious-sinful deeds (wicked, vices) and involvement in passions-sensuality, sexuality, lasciviousness, comforts are the characterises of Rajogun.
लोभः स्वप्नोऽधृतिः क्रौर्यं नास्तिक्यं भिन्नवृत्तिता।
याचिष्णुता प्रमादश्च तामसं गुणलक्षणम्॥12.33॥
लोभ, स्वप्न, निद्रालुता, असन्तोष, क्रूरता, नास्तिकता, अनाचार, याचकवृत्ति, प्रमाद (धर्माचरण में), ये तमोगुण के लक्षण हैं। 
Covetousness-greediness, dreaming, sleepiness, pusillanimity, cruelty, atheism, intoxication-arrogance, leading an evil life, habit of soliciting favours and inattentiveness, are the marks of the quality of Tamogun. 
त्रयाणामपि चैतेषां गुणानां त्रिषु तिष्ठताम्।
इदं सामासिकं ज्ञेयं क्रमशो गुणलक्षणम्॥12.34॥
तीनों काल में विद्यमान इन तीनों गुणों के लक्षण संक्षेप में जानना चाहिये। 
Its desirable to know these three characterises in brief, present in all three aspects of time viz. Past, Present & the Future.
यत्कर्म कृत्वा कुर्वंश्च करिष्यंश्चैव लज्जति।
तज्ज्ञेयं विदुषा सर्वं तामसं गुणलक्षणम्॥12.35॥
जिस कर्म को मनुष्य करके, करते हुए अथवा आगे करता है और इसमें लज्जत होता है  उसे पंडित लोग तमोगुण का लक्षण कहते हैं। 
Something-act which a man feel shy-ashamed while doing, after doing or to do in future is called Tamogun.
येनास्मिन्कर्मणा लोके ख्यातिमिच्छति पुष्कलाम्।
न च शोचत्यसम्पत्तौ तद्विज्ञेयं तु राजसम्॥12.36॥
जिस कर्म से इस लोक में बहुत प्रसिद्धि की इच्छा मनुष्य करता है और असम्पत्ति में जिस कर्म को नहीं सोचता, उस कर्म को रजोगुण का लक्षण कहते हैं। 
The desire of name, fame, publicity, honours by doing a certain act in this world and one do not repent-feel ashamed or guilty on failure, is termed a characteristic of Rajogun.
यत्सर्वेणेच्छति ज्ञातुं यन्न लज्जति चाचरन्।
येनतुष्यति चात्माऽस्य तत्सत्त्वगुणलक्षणम्॥12.37॥
जिस कर्म से कर्त्ता की यह इच्छा हो कि यह सबको ज्ञात हो और जिसको करते हुए लज्जित न होना पड़े और जिस कर्म से आत्मा को संतोष होता हो उस कर्म को सत्वगुण का लक्षण कहते हैं। 
The virtuous, pious, righteous, honest, truthful deed which do not lead the doer to shame and is known to all, which fills him with satisfaction of having done accomplished something good for the society-others is Satvik Gun.
तमसो लक्षणं कामो रजसस्त्वर्थ उच्यते।
सत्त्वस्य लक्षणं धर्मः श्रैष्ठ्यमेषां यथोत्तरम्॥12.38॥
तमोगुण का लक्षण काम, अर्थ (धन) में निष्ठा रजोगुण का और धर्माचरण सतोगुण का लक्षण है और ये उत्तरोत्तर श्रेष्ठ हैं। 
Sensuality (sexuality, Lasciviousness, passions, lust) is the characteristic of Tamogun, inclination towards earning (money, wealth accumulations, property through fair or foul means) is the characteristic of Rajogun and following the tenets of Dharm-Varnashram Dharm is the characteristic of Satogun.
येन यस्तु गुणेनैषां संसरान्प्रतिपद्यते।
तान्समासेन वक्ष्यामि सर्वस्यास्य यथाक्रमम्॥12.39॥
इन गुणों (सत्वादि) में जो जिस गति को प्राप्त होता है, इस जगत में उन गतियों को यथावत कहता हूँ। 
I am describing the rebirth-incarnation of the organism under the influence of these characterises.
देवत्वं सात्त्विका यान्ति मनुष्यत्वं च राजसाः।
तिर्यक्त्वं तामसा नित्यमित्येषा त्रिविधा गतिःमनु स्मृति 12.40॥
सात्विक मनुष्य देवत्व को, राजसिक मनुष्यत्व को और तामसिक वृत्ति वाला व्यक्ति तिर्यक (कीट-पतंग) योनि को प्राप्त होता है। नित्य इन तीनों प्रकृतियों की यही तीन गति होती हैं। 
The Satvik :- virtuous (righteous, pious, honest, truthful) gets Devatv-incarnations demigods-deities, the Rajsik :- money minded (attached, bonded, egoistic, ambitious) gets birth as a human being and the Tamsik :- goes to the species of insects, worms. This is the threefold course of transmigration after death.
त्रिविधा त्रिविधैषा तु विज्ञेया गौणिकी गतिः।
अधमा मध्यमाSग्र्या च कर्मविद्या विशेषतःमनु स्मृति 12.41॥
गुणभेद से बनी हुई यह त्रिविध गति है। वह कर्म और विद्या की विशेषता से उत्तम, मध्यम और श्रेष्ठ तीन प्रकट की हो जाती है। 
This threefold course of transmigration turns into good, better, best (normal, average, excellent) as per the deeds and education-enlightenment.
स्थावराः कृमिकीटाश्च मत्स्याः सर्पाः सकच्छपाः।
पशवश्च मृगाश्चैव जघन्या तामसी गतिःमनु स्मृति 12.42॥
स्थावर (वृक्षादि), कृमि, कीट, मछली, सर्प, कछुआ, पशु और मृग ये सब तमोगुण की गति हैं। 
Trees-plants, insects, worms, fishes, snakes, tortoises, cattle and deer, are the movements of a deceased depending upon his Tamsik :- sinful, viceful, wretched, criminal, viceful deeds.
हस्तिनश्च तुरङ्गाश्च शूद्रा म्लेच्छाश्च गर्हिताः।
सिंहा व्याघ्रा वराहाश्च मध्यमा तामसी गतिः॥12.43॥
हाथी, घोड़े, शूद्र, निन्दित म्लेच्छ जाति, सिंह, व्याघ्र और सूअर; ये तामस वृत्ति की गतियाँ हैं। Rebirth as elephant, horse, Shudr and Mallechchh-despicable barbarians (Christian & Muslim), lion, tiger and boar-pig is resulted by Tamas Gun.
चारणाश्च सुपर्णाश्च पुरुषाश्चैव दाम्भिकाः।
रक्षांसि च पिशाचाश्च तामसीषूत्तमा गतिः॥12.44॥
चारण, गरुड़, दाम्भिक पुरुष, राक्षस और पिशाच; ये तामसी गुण की उत्तम गतियाँ हैं। Rebirth as Charan (servants), Garud-a bird, one full of proud-egoistic, Rakshas-demons & Giants and Pishach occurs as  a result of a bit superior impact of Tamsik Gun.
झल्ला मल्ला नटाश्चैव पुरुषाः शस्त्रवृत्तयः।
द्यूतपानप्रसक्ताश्च जघन्या राजसी गतिः॥12.45॥
झल्ला (लाठी चलाने वाला), मल्ल (पहलवान), नट, शस्त्र जीवी, जुआ और मदिरा पीने वाला; ये रजोगुण की अधम गति है। 
Rebirth as one who use wield stick-baton, wrestler, juggler-Nat, warrior, gambler, drunkard is the outcome a the worst of Rajogun.
राजानः क्षत्रियाश्चैव राज्ञां चैव पुरोहिताः।
वादयुद्धप्रधानाश्च मध्यमा राजसी गतिः॥12.46॥
राजा, क्षत्रिय, राजाओं के पुरोहित और विवाद करने में प्रधान; ये राजसिक  गुण  की मध्यम गति है। 
One may get birth as a king, Kshatriy, priests of the king or as a debater for possessing Rajsik Gun as a middle level-average movement. 
गन्धर्वा गुह्यका यक्षा विबुधानुचराश्च ये।
तथैवाप्सरसः सर्वा राजसीषूत्तमा गतिः॥12.47॥
गन्दर्भ, गुह्यक, यक्ष, देवताओं के अनुचर (विद्याधर) और अप्सरा; ये रजोगुण की उत्तम गति हैं।
Rebirth as a Gandarbh, Guhyak, servants of demigods-Vidyadhar & Nymphs are the superior forms of Rajogun.
तापसा यतयो विप्रा ये च वैमानिका गणाः।
नक्षत्राणि च दैत्याश्च प्रथमा सात्त्विकी गतिः॥12.48॥
तापस (वानप्रस्थ), सन्यासी, ब्राह्मण, वैज्ञानिक, नक्षत्र और दैत्य; ये सत्वगुण की अधम गति हैं। 
Rebirth as an ascetic, hermit-wanderer, Recluse, Brahmn, scientist, Nakshtr & giants are the lowermost movements of soul for possessing Satvik Gun.
यज्वान ऋषयो देवा वेदा ज्योतींषि वत्सराः।
पितरश्चैव साध्याश्च द्वितीया सात्त्विकी गतिः॥12.49॥
यज्ञकर्त्ता, ऋषि, देवता, वेदाभिमानी, ज्योति (ध्रुवादी), वत्सर (वर्ष), पितृगण, साध्यगण; ये सत्व गुण की मध्यम गति हैं। 
Performers of Yagy-sacrificers, sages, demigods, learners of Veds, heavenly lights (Dhruv etc.), years, the Manes-Pitr and the Sadhygan constitute the middle level of rebirth as an outcome of Satvgun possessed by the doers.
ब्रह्मा विश्वसृजो धर्मो महानव्यक्तमेव च।
उत्तमां सात्त्विकीमेतां गतिमाहुर्मनीषिणः॥12.50॥
ब्रह्मा, विश्वसृज (मरिचि आदि), धर्म महान और अव्यक्त; इनको महर्षियों ने सत्वगुण की उत्तम गति कहा है। 
Brahma Ji-the creators of the universe (Marichi etc.), Dharm & the greatest beings, and the nondescript (indiscernible) have been  categorised as the excellent movement of a person as a result of performance-possession of Satv Gun by the Mahrishis-sages.
एष सर्वः समुद्दिष्टस्त्रिप्रकारस्य कर्मणः।
त्रिविधस्त्रिविधः कृत्स्नः संसारः सार्वभौतिकः॥12.51॥ 
सब प्राणियों से सम्बन्धित, तीन प्रकार के कर्मों की, ये तीन प्रकार के गतियों को कहा। 
The movement of soul into next incarnation as a result-outcome of its deeds of the three types viz. Satv Gun, Rajogun and the Tamogun, have been described.
इन्द्रियाणां प्रसङ्गेन धर्मस्यासेवनेन च ।
पापान्संयान्ति संसारानविद्वांसो नराधमाः॥12.52॥
इन्द्रियों के प्रसङ्ग से और धर्म का आचरण न करने से मूर्ख अधम मनुष्य इस संसार में पाप योनि को प्राप्त होते हैं। 
The idiots and the depraved who involve in passions-sensuality, sexuality, lasciviousness and those who do not adopt the path of religion i.e., failure to follow Varnashram Dharm, moves to the species meant for the sinner-the vilest births.
यां यां योनिं तु जीवोऽयं येन येनेह कर्मणा।
क्रमशो याति लोकेऽस्मिंस्तत्तत्सर्वं निबोधत॥12.53॥
इस संसार में जिन-जिन कर्मों द्वारा जिन-जिन योनियों को जीव प्राप्त होते हैं, उन सबको कर्म से सुनो। 
Now, listen to the deeds and movement to specific species as a result of these deeds gradually, one buy one.
Nursing grudge against some one, desires or ambitions may lead to reincarnation repeatedly, often leading to hells or inferior species like insects, worms, birds animals, trees etc.
बहून्वर्षगणान्घोरान्नरकान्प्राप्य तत्क्षयात्।
संसारान्प्रतिपद्यन्ते महापातकिनस्त्विमान्॥12.54॥
महापातकी मनुष्य अनेकों वर्ष तक घोर नर्क प्राप्त कर, पाप का नाश होने पर इन योनियों (आगे बताई गई) को प्राप्त करते हैं। 
The greatest sinners obtain birth in these species after undergoing rigorous punishments in dreaded hells for innumerable years and on being relieved of the sins. 
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श्वसूकरखरोष्ट्राणां गोजाविमृगपक्षिणाम्।
चण्डालपुक्कसानां च ब्रह्महा योनिमृच्छति॥12.55॥
ब्रह्मम हत्या करने वाला क्रम से कुत्ता, सूअर, गधा, ऊँट, गौ, बकरा, भेड़, मृग, पक्षी, चाण्डाल और पुक्कस (एक प्राचीन अन्त्यज, नीच और बर्बर जाति) योनि को प्राप्त करता है। 
The slayer of a Brahmn gets rebirth as a dog, pig, ass-donkey, camel, cow, goat, sheep, deer, bird, Chandal  and a Pukkas (an ancient barbarian & cruel caste), respectively.
कृमिकीटपतङ्गानां विड्भुजां चैव पक्षिणाम्।
हिंस्राणां चैव सत्त्वानां सुरापो ब्राह्मणो व्रजेत्॥12.56॥
मदिरा पीने वाला ब्राह्मण, कृमि, कीट, पतङ्ग, विष्टा भोजी (गुबरीला) और हिंसा करने वाले जन्तु की योनि में उत्पन्न होती है। 
The Brahman (or anyone) who consumes wine-liqueur gets rebirth as insects, worms, insects & birds which eats shit-ordure and the wild animals-beasts; respectively. 
लूताहिसरटानां च तिरश्चां चाम्बुचारिणाम्।
हिंस्राणां च पिशाचानां स्तेनो विप्रः सहस्रशः॥12.57॥
सोना चुराने वाला ब्राह्मण मच्छर, साँप, गिरगिट, पक्षी, जल में रहने वाले (ग्राह आदि) और हिंसा करने वाले पिशाचों की योनि में उत्पन्न होता है। 
The Brahman (or anyone) who steals gold gets rebirth as  mosquitoes & spiders, snakes and lizards-chameleon, of aquatic animals (like crocodile) and Pishachs who eat flesh and involve in violence.
तृणगुल्मलतानां च क्रव्यादां दंष्ट्रिणामपि।
क्रूरकर्मकृतां चैव शतशो गुरुतल्पगः॥12.58॥
गुरु पत्नी गमन करने वाले तृण, गुल्म, लता, कच्चा माँस खाने वाले पक्षी (गिद्ध आदि) और दाँत  वाले (हिंसक आदि) तथा क्रूर कर्म करने वाले बधिक आदि दुष्ट योनियों में सैंकड़ों बार जन्म लेते हैं। 
Those who enters into sexual relations with the wife of the Guru-teacher (elder brothers, honourable people etc.) gets rebirth hundreds of times as straw-grass, creeper-climbers, eaters of red-raw meat like vultures-kites, carnivores-beasts, butchers performing cruel acts.  
हिंस्रा भवन्ति क्रव्यादाः कृमयोऽभक्ष्यभक्षिणः।
परस्परादिनः स्तेनाः प्रेत्यान्त्यस्त्रीनिषेविणः॥12.59॥
हिंसा करने वाले और कच्चे माँस को खाने वाले (गृद्ध आदि) बनते हैं। अभक्ष्य खाने वाले कृमि होते हैं। सुवर्ण की चोरी करने वाले परस्पर माँस खाने वाले कुत्ते आदि होते हैं और चाण्डाल की स्त्री के साथ गमन करने वाले प्रेत होते हैं। 
Those who resort to violence and eaters of red-raw meat become vultures. Those who eat prohibited food (meat, fish, egg) become worms. One who steal gold become animal who eat one another like dogs. One who intercourse with a Chandal woman become Pret (phantom, sprite, apparition, ghost, waff, phantasm, evil spirit).
संयोगं पतितैर्गत्वा परस्यैव च योषितम्।
अपहृत्य च विप्रस्वं भवति ब्रह्मराक्षसः॥12.60॥
पतित के संग संसर्ग रखने वाला, दूसरे की स्त्री के साथ सम्बन्ध रखने वाला और ब्राह्मण का धन हरण करने वाला ब्रह्म राक्षस होता है। 
One who enters into sexual relations with a depraved-wretched (characterless) woman (prostitute, society girl, call girls, concubine, actresses), sexual relations with a married woman and snatch the wealth of a Brahman become a Brahm Rakshas-fierce demon spirits (they eat flesh & meat of animals & humans).
मणिमुक्ताप्रवालानि हृत्वा लोभेन मानवः।
विविधानि च रत्नानि जायते हेमकर्तृषु॥12.61॥
जो मनुष्य लोभवश मणि, काँसा, मोती, मूँगा और अनेक प्रकार के रत्नों का अपहरण करता है, वह सुनार बनता है। 
One who steals precious stones-jewels, bronze, pearls or coral or any of the ornaments-jewellery, gets rebirth as a goldsmith.
धान्यं हृत्वा भवत्याखुः कांस्यं हंसो जलं प्लवः।
मधु दंशः पयः काको रसं श्वा नकुलो घृतम्॥12.62॥
धान चुराने वाला मूसा, काँसा चुराने वाला हँस, जल चुराने वाला प्लव पक्षी, मधु चुराने वाला दंस, दूध चुराने वाला कौआ, रस चुराने वाला कुत्ता और घी चुराने वाला नेवला बनकर पैदा होता है। 
हंस :: Swan.
One who steal paddy become a rat, on stealing Bronze he become a Hans (cob, swan), water thief become a bird called Palav, thief of honey is reborn as Dans, thief of milk is born as a  crow, thief of extracts become a dog and the thief of Ghee-butter oil become an ichneumon in next birth.
मांसं गृध्रो वपां मद्गुस्तैलं तैलपकः खगः।
चीरीवाकस्तु लवणं बलाका शकुनिर्दधि॥12.63॥
माँस चुराने वाला गृद्ध, चर्बी चराने वाला मदगुप पक्षी, तेल चुराने वाला तैलपक पक्षी, नमक चुराने वाला झिल्ली पक्षी और दही चुराने वाला बलाका पक्षी बनता है। 
One who steal meat become a vulture, thief of fat of dead animals (grease, adeps, axungia), become a bird called Madgup, thief of oil takes rebirth as a bird called Taelpak, thief of salt become a bird called Jhilli and the thief of curd become a bird called Balaka.
कौशेयं तित्तिरिर्हृत्वा क्षौमं हृत्वा तु दर्दुरः।
कार्पासतान्तवं क्रौञ्चो गोधा गां वाग्गुदो गुडम्॥12.64॥
कौशेय (रेशमी वस्त्र) चुराने वाला तीतर पक्षी और वस्त्र चुराने वाला मेंढ़क, ऊनी वस्त्र चुराने वाला कौआ पक्षी, गाय चुराने वाला गौ और गुड़ चुराने वाला वाग्गुद पक्षी होता है। 
One who steal silk cloths become partridge, for stealing linen a frog, for stealing woollen cloth a crow, for stealing a cow a cow, for stealing jaggery Vaggud a bird (flying fox) in next birth.
छुच्छुन्दरिः शुभान्गन्धान्पत्रशाकं तु बर्हिणः।
श्वावित्कृतान्नं विविधमकृतान्नं तु शल्यकः॥12.65॥
अच्छे गन्ध वाले (केसर, कस्तूरी आदि) चुराने वाला छुछुन्दर, पत्ता और शाक चुराने वाला मोर, पकाया हुआ अन्न चुराने वाला श्रावित और अपक्क अन्न चुराने वाला शल्यक होता है। 
For stealing fine perfumes one become a musk-rat, for stealing leaves-vegetables one becomes peacock, for stealing cooked food of various kinds a Shravit-porcupine, for stealing uncooked food a Shalyak-hedgehog, in next birth.
बको भवति हृत्वाऽग्निं गृहकारी ह्युपस्करम्।
रक्तानि हृत्वा वासांसि जायते जीवजीवकः॥12.66॥
अग्नि चुराने वाला बगुला, उपस्कर (छलनी, सूप-छाज आदि) चुराने वाला दीमक और रंगे हुए वस्त्रों को चुराने वाला चकोर बनता है। 
One who steals fire become a heron, for stealing household utensils like sieve one becomes termite, for stealing dyed clothes a partridge, ptarmigan in next birth.
वृको मृगैभं व्याघ्रोऽश्वं फलमूलं तु मर्कटः।
स्त्रीमृक्षः स्तोकको वारि यानान्युष्ट्रः पशूनजः॥12.67॥
मृग और हाथी चुराने वाला भेड़िया, घोड़ा चुराने वाला बाघ, फल-मूल चुराने वाला वानर, स्त्री चुराने वाला भालू, पीने का पानी चुराने वाला पपीहा, यान (गाड़ी, रथ, रब्बा, कार, दुपहिया वाहन आदि) चुराने वाला ऊँट और साधारण पशुओं को चुराने वाला बकरा होता है। 
One who steals deer and elephant becomes wolf, for stealing horse one becomes tiger, thief of fruits & roots becomes Vanar-monkey, for stealing woman one becomes bear, for stealing water one becomes a black-white cuckoo, for stealing vehicles a camel, for stealing cattle a he-goat in following birth.
यद्वा तद्वा परद्रव्यमपहृत्य बलान्नरः।
अवश्यं याति तिर्यक्त्वं जग्ध्वा चैवाहुतं हविः॥12.68॥
जिस किसी प्रकार से बलात् दूसरे का द्रव्य हरण कर और हवन के लिये रखी हुई हवि (घी आदि) को खाकर मनुष्य निश्चय ही तिर्यक् योनि में जाता है। 
One who forcibly grab (snatch, loot) other's wealth (property, money, belongings) or eats the holy goods meant for prayers, Pooja inevitably- definitely goes to the species of insects in coming births.
स्त्रियोऽप्येतेन कल्पेन हृत्वा दोषमवाप्नुयुः।
एतेषामेव जन्तूनां भार्यात्वमुपयान्ति ताः॥12.69॥
स्त्रियाँ भी इस प्रकार चोरी करने पर पाप की भगिनी होती हैं और अन्त में पूर्वोक्त पाप के कारण उपरोक्त जंतुओं की स्त्रियाँ होती हैं। 
The women folk who commit such thefts too acquire sins and become the females of the animals who had committed such sins, in their next births. 
स्वेभ्यः स्वेभ्यस्तु कर्मभ्यश्च्युता वर्णा ह्यनापदि।
पापान्संसृत्य संसारान्प्रेष्यतां यान्ति शत्रुषु॥12.70॥
निरापद अवस्था में चारों वर्ण यदि अपने-अपने कर्मों से च्युत हो जायें, तो संसार में पाप योनि को प्राप्त होकर शत्रु के दास होते हैं। 
If the humans belonging to the four Varn-castes discard their Varnashram Dharm in spite of being safe (period of peace & harmony under a pious king), they get rebirth as slaves of the enemy.
वान्ताश्युल्कामुखः प्रेतो विप्रो धर्मात्स्वकाच्च्युतः।
अमेध्यकुणपाशी च क्षत्रियः कटपूतनः॥12.71॥
यदि ब्राह्मण अपने कर्म से भ्रष्ट हो जाये तो वमन खाने वाला उल्का मुख नाम का प्रेत होता है। क्षत्रिय अपने कर्म से भ्रष्ट हो जाये तो वह विष्टा और मुर्दा खाने वाला कटपूतन नाम का प्रेत होता है। 
The Brahmn who do not abide by his duties-Dharm, become a Pret (wretched spirit)  called Ulka Mukh who eats the vomited food. A Kshatriy becomes a Pret-phantom who eats shit and dead humans-corpses & is called Katputan Pret, if he fails to discharge his duties prescribed by the scriptures.
मैत्राक्षज्योतिकः प्रेतो वैश्यो भवति पूयभुक्।
चैलाशकश्च भवति शूद्रो धर्मात्स्वकाच्च्युतः॥12.72॥
यदि वैश्य अपने कर्म से रहित हो तो पीव खाने वाला मैत्राक्ष ज्योतिक नामक प्रेत होता है और शूद्र अपने कर्म से च्युत हो तो चैलाशक नाम का प्रेत होता है। 
A Vaeshy is reborn as a Pret named Jyotik who eats pus, in case he fails to discharge his duties as a businessman-tradesman. A Shudr get rebirth as  a Pret called Chaelashak if he fails to discharge-honour his duties.
यथा यथा निषेवन्ते विषयान् विषयात्मकाः।
तथा तथा कुशलता तेषां तेषूपजायते॥12.73॥
विषयों को चाहने वाले जैसे-जैसे विषयों का सेवन करते जाते हैं, वैसे-वैसे उनकी उन विषयों में रूचि बढ़ती जाती है। 
The interest in sensualities-passions keep on increasing with the indulgence of one, in them.
The ever growing interest in passions spoil one's present and the next birth, simultaneously.
तेऽभ्यासात्कर्मणां तेषां पापानामल्पबुद्धयः।
सम्प्राप्नुवन्ति दुःखानि तासु तास्विह योनिषु॥12.74॥
अल्प बुद्धि वाले उन पापकर्मो के अभ्यास से जन्म दर जन्म उन-उन योनियों में उत्पन्न होकर दुखों को झेलते हैं। 
Imprudent people with low intelligence keep on getting birth in inferior species repeatedly, due to their deep involvement in passions, sensuality, sexuality, passions, lasciviousness and suffer for their sinfulness.
तामिस्रादिषु चाग्रेषु नरकेषु विवर्तनम्।
असिपत्रवनादीनि बन्धनछेदनानि च॥12.75॥
पापात्मा तामिस्त्र आदि उग्र नरकों में वास करते हैं। असिपत्र आदि और बन्धनच्छेदन आदि नरकों को भोगते हैं। 
The sinner are moved to Tamistr, Asi Patr and Bandhanchchhedan hells to suffer and undergo extreme pain, tortures.
विविधाश्चैव सम्पीडाः काकोलूकैश्च भक्षणम्।
करम्भवालुकातापान्कुम्भीपाकांश्च दारुणान्॥12.76॥
पापात्मा अनेक प्रकार की पीड़ाएँ झेलते हैंऔर कौए तथा उल्लू का भोजन बनते हैं। तपे हुए बालू पर चलना पड़ता है और कुम्भीपाक की कठिन यातनाओं को भोगना पड़ता है।
The depraved-sinners are subjected to numerous tortures, torments, pains and become the food of crow & owl. They have to walk barefoot over hot-scorching sand and bear the acute troubles-tortures of Kumbhi Pak hells.
संभवांश्च वियोनीषु दुःखप्रायासु नित्यशः।
शीतातपाभिघातांश्च विविधानि भयानि च॥12.77॥
दुःख प्राय: वियोनियों की योनि में जन्म लेकर जाड़ा-गरमी के कष्ट और अनेक प्रकार  के भय से ग्रस्त रहते हैं।  
They get rebirth in the species meant for tortures of natures like extreme heat & cold & have to face constant fears.
असकृद् गर्भवासेषु वासं जन्म च दारुणम्।
बन्धनानि च काष्ठानि परप्रेष्यत्वमेव च॥12.78॥
बारम्बार गर्भ में वास करते हैं, दुःखद जन्म लेते हैं। अनेक प्रकार के बन्धनों को भोगते हैं और दूसरों के दास होते हैं। 
They repeatedly enter the womb and get painful & agonising birth. They suffer from numerous ties-bonds, fetters & imprisonment and become slaves of others.
बन्धुप्रियवियोगांश्च संवासं चैव दुर्जनैः।
द्रव्यार्जनं च नाशं च मित्रामित्रस्य चार्जनम्॥12.79॥
अपने प्रिय बन्धुओं का वियोग, दुर्जनों के साथ सहवास, द्रव्य का लाभ और हानि, मित्र तथा शत्रु के झगड़े लगे रहते हैं। 
As a result-outcome of the vicious deeds one faces separation from his near & dear, living with the wicked-sinners, profit & loss and quarrel-anonymity with friends & the enemy in next births.
जरां चैवाप्रतीकारां व्याधिभिश्चोपपीडनम्।
क्लेशांश्च विविधांस्तांस्तान्मृत्युमेव च दुर्जयम्॥12.80॥
ऐसा बुढ़ापा जिसका प्रतिकार न हो, अनेक प्रकार की व्याधियाँ-रोगों का कष्ट और भी अनेक प्रकार के क्लेशों को सहते हुए दुर्गम मृत्यु को पाते हैं। 
The sinners are subjected to an old age in which there is no remedy for the odds (troubles, tortures, difficulties, tensions), various incurable ailments-diseases, illness-fatigue and several pains-sorrows leading to unpleasant death in next birth.
As a matter of fact the troubles for the sinners begin in the current birth simultaneously and they face jail term, isolation, troubles, tensions and all sorts of odds.
यादृशेन तु भावेन यद्त्कर्म निषेवते।
तादृशेन शरीरेण तत् तत्फलमुपाश्नुते॥12.81॥
मनुष्य जिन-जिन भावों से जो-जो कर्म करता है, वैसे ही शरीर से वह उन-उन कर्मों के फल को भोगता है। 
The feeling-thoughts, disposition of mind (piousity-wretchedness, helping-harming others, neutrality-absoluteness) behind doing something (activity, action) leads to experiencing the result-outcome (punishment, reward) for the deeds performed by an individual in next & current births.
As one sows, so shall he reap.
एष सर्वः समुद्दिष्टः कर्मणां वः फलोदयः।
नैःश्रेयसकरं कर्म विप्रस्येदं निबोधत॥12.82॥
यह सब कर्मों का फल तुमसे कहा। अब यह ब्राह्मण के निश्रेस (मुक्ति) देने वाले कर्मों  को सुनो। 
Output of the deeds have been described. Now, hear the deeds which grant liberation to the Brahman from life & death i.e., reincarnations.
One has to rise to the status of a real Brahman and then make efforts to seek liberation-Salvation. However, its equally possible to attain Salvation directly from lower Varns.
वेदाभ्यासस्तपोज्ञानमिन्द्रियाणां च संयमः।
अहिंसा गुरुसेवा च निःश्रेयसकरं परम्॥12.83॥
वेदाभ्यास, तपस्या, ज्ञान, इन्द्रियों का संयम, अहिंसा और गुरु सेवा; ये सब मुक्ति देने वाले हैं।
Studying the Ved, ascetics-austerities, Gyan-knowledge (knowing the Almighty), the subjugation of the organs-controlling sensualities, passions-lasciviousness, non violence and serving the Guru (elders, sages, parents, learned, Brahmns) are capable of granting Liberation to one. 
सर्वेषामपि चैतेषां शुभानामिह कर्मणाम्।
किञ्चिच्छ्रेयस्करतरं कर्मोक्तं पुरुषं प्रति॥12.84॥
इन सभी (वेदाभ्यास आदि) शुभ कर्मों में कोई एक ही कर्म अन्य कर्मों से अधिक श्रेयकर है, पुरुष के लिये है। 
Any of these deeds may turn to more yielding-more efficacious than the other deeds for a virtuous, righteous, pious person-devotee for securing supreme happiness-bliss.
सर्वेषामपि चैतेषामात्तमज्ञानं परं स्मृतम्। 
तद्धयंग्रयं सर्वविद्यानां प्राप्तये ह्यमृतं ततः॥12.85॥
इन सभी कर्मों में आत्मज्ञान सबसे श्रेष्ठ है, क्योंकि वही सभी विद्याओं में श्रेष्ठ है। उससे अमृतत्व प्राप्त होता है। 
Self realisation is excellent of all these field of knowledge, since, it grants immortality to the practitioner.
षण्णामेषां तु सर्वेषां कर्मणां प्रेत्य चेह च।
श्रेयस्करतरं ज्ञेयं सर्वदा कर्म वैदिकम्॥12.86॥
इन छः कर्मों में वैदिक धर्म ही इस लोक और परलोक, दोनों लोकों के लिये कल्याणकारी है। 
Out of these six field of deeds, Vaedik Dharm is the best and paves the way for the benefit of the practitioner in this and the next world.
वैदिके कर्मयोगे तु सर्वाण्येतान्यशेषतः।
अन्तर्भवन्ति क्रमशस्तस्मिंस्तस्मिन्क्रियाविधौ॥12.87॥
वैदिक कर्मयोग में ईश्वर की उपासना में सम्पूर्ण क्रियाओं का क्रमशः विधि द्वारा अन्तर्भाव (मेल, मन में समाहित होना) होता है। 
Assimilation-incorporation of all deeds pertaining to the prayers of Almighty of all Vaedik Karm Yog takes place sequentially & methodically, in this manner.
सुखाभ्युदयिकं चैव नैःश्रेयसिकमेव च।
प्रवृत्तं च निवृत्तं च द्विविधं कर्म वैदिकम्॥12.88॥
सुख और अभ्युदय को करने वाला तथा मुक्ति को देने वाला, इस तरह प्रवृत और निवृत्त दो प्रकार के वैदिक कर्म हैं। 
The Vaedic deeds are of two types :- (1). One tends to acquire comforts & rise in the social strata and (2). which inclines one to Liberation. 
The first lures one to sensualities, sexuality, passions-lasciviousness, luxuries, comforts, peaking heights in the society, worldly affairs and the second types of deeds intends-forces one to Assimilation in God, i.e., emancipation, Salvation-Moksh. 
इह चामुत्र वा काम्यं प्रवृत्तं कर्म कीर्त्यते।
निष्कामं ज्ञातपूर्वं तु निवृत्तमुपदिश्यते॥12.89॥
संसार में (सुखादि के लिये) अथवा स्वर्गादि प्राप्ति के लिये जो काम (निष्काम -अकाम) कर्म किये जाते हैं, उन्हीं प्रवृत्त और ज्ञानपूर्वक किये गये निष्काम कर्म को निवृत्त कहते हैं। 
The functions, deeds performed with motive for attaining comforts or the heaven are Pravratt (Deeds done to get something with desire) and the deeds which are performed without motive (to help others, upliftment of society, improving the environment, propagating culture, ethics, values) are termed Nivratt (unattached).
Do pious, august deeds without the desire for return and keep on performing devotion in the feet of the Almighty, under HIS asylum and one is through the vast ocean called reincarnation, life & death.
प्रवृत्तं कर्म संसेव्यं देवानामेति साम्यताम्।
निवृत्तं सेवमानस्तु भूतान्यत्येति पञ्च वै॥12.90॥ 
प्रवृत्त कर्म सेवन करके मनुष्य देवताओं की समानता को प्राप्त होता है और निवृत्त को करके भूतों (पञ्चमहाभूतों को जीत लेता है, जन्म-मरण से मुक्त हो जाता है)  लेता है अर्थात पुनजन्म नहीं होता।  
Pravratt-the deeds which leads to indulgence in worldly affairs may lead one to heaven while the Nivratt deeds are sure to help one tide over the vast ocean of tortures, pains, sorrow, anguish leading to relinquishing the individual from the Panch Maha Bhut i.e., the elements which ties-bonds, leads to repeated life and death.
सर्वभूतेषु चात्मानं सर्वभूतानि चात्मनि।
समं पश्यन्नात्मयाजी स्वाराज्यमधिगच्छति॥12.91॥  
सभी प्राणियों में अपने को और सभी प्राणियों को अपने में देखता हुआ ब्राह्मण (साधक, जातक) अवराज्य-ब्रह्मत्व को पाता है। 
One who identifies himself in all other organisms and all other organism in himself attains equanimity and achieves the Brahmatv i.e., assimilation in the God-Almighty.
यथोक्तान्यपि कर्माणि परिहाय द्विजोत्तमः।
आत्मज्ञाने शमे च स्याद्वेदाभ्यासे च यत्नवान्॥12.92॥
द्विजोत्तम यथोक्त-शास्त्रोक्त कर्मों को छोड़कर भी आत्मज्ञान, इन्द्रिय निग्रह और वेदाभ्यास में यत्नशील रहे। 
The enlightened Brahman-who excels amongest the community of Brahmns, should continue endeavours in self realisation, controlling senses and practice of Veds, even if he misses the duties prescribed by the scriptures.
एतद्धि जन्मसाफल्यं ब्राह्मणस्य विशेषतः।
प्राप्यैतत्कृतकृत्यो हि द्विजो भवति नान्यथा॥12.93॥ 
विशेषकर ब्राह्मण के जन्म लेने की सफलता इसी में है। इसको पाकर द्विज कृत-कृत्य होता है, अन्यथा नहीं। 
The success of birth as a Brahman lies in the fulfilment of obligations prescribed by the scriptures. Sole purpose of reincarnation as a Brahman is achieved, for which one should be grateful to the God.
Birth as a Brahman is the best possible opportunity granted by the God to a human being-soul, to get Salvation.
पितृदेवमनुष्याणां वेदश्चक्षुः सनातनम्।
अशक्यं चाप्रमेयं च वेदशास्त्रमिति स्थितिः॥12.94॥
पितरों, देवताओं और मनुष्यों का सनातन नेत्र वेद ही हैं। वेद शास्त्र अशक्य और अप्रमेय हैं। 
The Ved is the eternal eye of the Manes, demigods and the humans; they are beyond doubt, self proved.
या वेदबाह्याः स्मृतयो याश्च काश्च कुदृष्टयः।
सर्वास्ता निष्फलाः प्रेत्य तमोनिष्ठा हि ताः स्मृताः॥12.95॥
जो स्मृतियाँ वेद से बाहर हैं, जो कुतर्क युक्त हैं, वे सब परलोक के लिये निष्फल होती हैं, क्योंकि वे तमोनिष्ठ हैं। 
The Smratis-treatises, commentaries, doctrines, which goes out of context-reference of Veds, which contradict Veds, associated with vague-unnecessary, unwanted logic, arguments, reason are sufficient to send one to Hells, since they are Tamo Guni in nature.
There are the people (Muslims, Christians, atheists, seculars Hindus, Communists) who raise doubts due to imprudence, foolishness and try to give wrong interpretations of Veds. The Britishers and the Germans did their best to malign Veds but failed. Entire science is based over Veds and sufficient proofs are already brought forwards to prove the authenticity of Veds. This is blasphemy.
During congress regime 7 education ministers were Muslims, most of them were semi literate. Nehru-himself was a Muslim & was greatly influenced by communism-socialism. They falsified the Veds in text books and passed wrong information to the learners basically Hindus.
At present see what is happening :- Facebook and wordpress.com have blocked my blogs bhartiyshiksha.blog.com and hindutv.wordpress.com
Both are against Hinduism and the BJP.
Face posts were solely responsible or attacks over Hindu community in Bangal Desh recently. Muslims are using this plate form for drug abuse, terrorist activities, hatred against others. It blocked my blog bhartiyshiksha.blogspot.com but allowed such shameful activities. I daily find several videos over it, which are grossly related to porn, prostitution.
Principle, moral, ethics, culture, Dharm carries no weight over Face Book. Its only money earned by hook or crook.
Face Book, WhatsApp, Instagram all stopped working on 04.10. 2021. I am unable to reconnect WhatsApp on my laptop. 
Face Book and WhatsApp have close connection. A video circulated-forwarded over WhatsApp many times, becomes objectionable when its posted over face Book to check its authenticity & they start threatening.  
COMMUNITY-SOCIAL STANDARDS :: Its social standards are purely arbitrary, governed by whims, fancy and caprice, designed to earn more & more money by hook or crook, fair or foul means. Zuckerberg  started his carrier by stealing the data of his colleagues.
Face Book is a social media site used by the Indians without understanding the troubles they are inviting. It blocked the blog bhartiyshiksha.blogspot.com by saying that its against their community norms. 
Is HINDUTV, ENGLISH CONVERSATION, SEX EDUCATION, AYURVED, ANCIENT SYSTEM OF EDUCATION, PALMISTRY hurting it?! Certainly not. You cannot praise either Modi or Yogi over FACE BOOK. 
फेसबुक पर आपकी पहचान चोरी हो सकती है। आपकी डाटा को बेचा जाता है। ब्लैक मेल हेतु अश्लील वीडियो दिखाये और VIRAL किये जाते हैं। आपके बैंक-Patym खाते को खाली कर दिया जाता है। लड़कियों को शादी के जाल में फँसाया जाता है। जासूसी के लिये इसका प्रयोग हो रहा है। प्रेम प्रसंग में फाँस कर आपकी रकम को उड़ा लिया जाता है। अभी कुछ दिन पहले कई लोगों का कत्ल FACEBOOK पोस्ट्स की वजह से किया गया। यह आतंकवादियों का प्रिय है। इसको ड्रग्स बेचने के लिये किया जाता है। सरकार के विरुद्ध प्रचार में प्रयोग किया जाता है। भारत विरोधी गतिविधियों में लिप्त लोग इसका धड्ड्ले से इस्तेमाल करते हैं। यह और इसका मालिक हिन्दु और हिन्दुत्व के ख़िलाफ़ है। इसकी शुरुआत ही पहचान चोरी से हुई। जितना जल्दी हो अपनी और अपने परिवार की फोटो इसके ऊपर से हटायें। 
Its very-very clear that Face Book is pro Muslims, Pro Congress and grossly BJP.
Its in favour of the falsehood propagated by the political parties in India and abroad. Its against the facts written about the Muslims, British, Amenity international. Its against the high lighting historical events pertaining to slavery of India by the British and the Muslims.
The government of India has banned the its use by the army personnel.
The innocent girls are lures through Face Book, raped, sold & resold over Face Book.
Hindu girls are subjected to Love Jihad using Face Book as a tool.
Its widely used by black mailers, terrorists, Jihadis, Love Jihadis.
It a fact that it has stolen & sold the data of its users.
Its a platform used by call girls, prostitutes, gay sexists, druggists and those involved in anti social activities.
Number of its users suffering due to dating with wrong people is always increasing. 
The innocent girls are lured and subjected to exploitation.
Face book Inc has not done enough to protect users from discrimination, falsehood & incitement to violence, an external civil rights audit found on Wednesday, adding to pressure on the company in midst of an advertiser boycott.[09.07.2020]
GOVERNMENT OF INDIA MUST ACT TO BAN IT IMMEDIATELY. IT HURTS FACE BOOK WHEN ANY THING PERTAINING TO HINDUS & INDIAN HISTORY, WITH HISTORICAL SUPPORT IS PUBLISHED OVER THIS BLOG. IT IS GROSSELY IMPARTIAL.
FACE BOOK BLOCKS ALMOST EVEY VIDEO POSTED BY ME.
उत्पद्यन्ते च्यवन्ते च यान्यतोऽन्यानि कानिचित्।
तान्यर्वाक्कालिकतया निष्फलान्यनृतानि च॥12.96॥
जो कोई भी शास्त्र वेद से बहिर्भूत (जो बाहर हुआ हो, बाहर का-बाहरी, अलग-जुदा, पृथक्), वे उत्पन्न होते हैं और नष्ट हो जाते हैं और अर्वाचीन काल के होने के कारण निष्फल होते हैं। 
The literature, scriptures which goes out of the domain of Veds are written and lost in due course of time. This is true for the writings of present world i.e., Modern, recent, new; as well.
चातुर्वर्ण्यं त्रयो लोकाश्चत्वारश्चाश्रमाः पृथक्।
भूतं भव्यं भविष्यं च सर्वं वेदात्प्रसिध्यति॥12.97॥
चारों वर्ण, तीनों लोक, चारों आश्रम और भूत, भव्य और भविष्य; ये तीनों काल वेद से ही सिद्ध होते हैं। 
The Veds give sufficient proof to prove the existence of four divisions of humans species into Varn-castes (Brahmn, Kshatriy, Vaeshy & Shudr), the three abodes (Heaven, Earth & the Nether world), division of life span of humans into four stages (Brahmchary-celibate, Grahasth, Vanprasth & the Sanyas), division of time into past, present & the future.
शब्दः स्पर्शश्च रूपं च रसो गन्धश्च पञ्चमः।
वेदादेव प्रसूयन्ते प्रसूतिर्गुणकर्मतः॥12.98॥
शब्द, स्पर्श, रूप, रस और पाँचवाँ गन्ध; ये सब प्रसूति गुण कर्मानुसार वेद से ही उत्पन्न होते हैं। 
Sound, touch, colour, taste and fifthly smell are the characterises produced from the Veds just like the child-pregnancy in a woman.
प्रसूति :: गर्भवती स्त्री; Child bed, Parturition, childbirth,  expulsion of one or more new born infants from a woman's uterus, delivery, childbearing, the child receives a name after the days of the child bed have elapsed, confinement, maternity, motherhood, the feelings and needs felt by a mother for her offspring. labour.  
बिभर्ति सर्वभूतानि वेदशास्त्रं सनातनम्।
तस्मादेतत् परं मन्ये यत्जन्तोरस्य साधनम्॥12.99॥ 
सनातन वेदशास्त्र ही सभी प्राणियों का पालन-पोषण करता है। इसलिये यह जीवों का उत्तम पुरुषार्थ है, यह हम मानते हैं। 
The saints-sages (Rishis, Brahm Rishi, Mah Rishi, Dev Rishi) believe that the eternal Ved Shastr nourishes-grows all creatures-organisms. Its the excellent endeavour of all living beings. 
सेनापत्यं च राज्यं च दण्डनेतृत्वमेव च।
सर्वलोकाधिपत्यं च वेदशास्त्रविदर्हति॥12.100॥
सेनापतित्व, राज्य, दण्ड विधान और सभी लोकों का स्वामित्व; यह सब वेदज्ञ ही करने लायक है। 
Only one who is well versed with Veds is qualified to become an army commander, king, justice or the master of all abodes.
यथा जातबलो वह्निर्दहत्यार्द्रानपि द्रुमान्।
तथा दहति वेदज्ञः कर्मजं दोषमात्मनः॥12.101॥
जैसे तीव्र अग्नि हरे पेड़ों को भी जला देती है, उसी प्रकार वेदज्ञ अपने किये हुए कर्म के दोषों का भी नाश कर देता है। 
Vedagy, Brahman, one who is thoroughly-well versed with the Veds is capable of eliminating the impact of the defects of his deeds-sins just like the strong fire which engulfs & burns the green trees-jungles.
वेदशास्त्रार्थतत्त्वज्ञो यत्र तत्राश्रमे वसन्।
इहैव लोके तिष्ठन्स ब्रह्मभूयाय कल्पते॥12.102॥
वेद शास्त्र के अर्थ के तत्व को जानने वाला चाहे जिस आश्रम में बास करता हो, इस लोक में ही ब्रह्मत्व को प्राप्त कर लेता है। 
One who knows (understand & practice) the gist of the meaning-theme behind a certain verse-Veds is able to attain Brahmatv (Godhood-the title of Bhagwan) in the current birth irrespective of the stage of life (either Brahmchary, Grahasthashram, Vanprasth, Sanyas or Varn i.,e Brahman, Kshatriy, Vaeshy, Shudr) 
अज्ञेभ्योग्रन्थिनः श्रेष्ठा ग्रन्थिभ्यो धारिणो वराः।
धारिभ्यो ज्ञानिनः श्रेष्ठा ज्ञानिभ्यो व्यवसायिनः॥12.103॥
मूर्खों से (की तुलना में) ग्रन्थ पढ़ने वाले श्रेष्ठ होते हैं। ग्रन्थ पढ़ने वालों से धारण करने वाले श्रेष्ठ, धारण करने वालों से ज्ञानी श्रेष्ठ और ज्ञानियों से भी निष्काम कर्म करने वाला श्रेष्ठ होता है। 
One who studies the Veds (scriptures, history, Puran, Upnishad, Ramayan, Mahabharat) is superior-distinguished to the fools (ignorant, idiots, stupids, imprudent, mindless or the one who fails to apply his brain), one who studies the scriptures and act accordingly, is superior to the one who has just read them without going into depth, the enlightened is superior to the one who grasped the gist of Veds and the one who perform the deeds without any motive after grasping the Veds, analysing them.
तपो विद्या च विप्रस्य निःश्रेयसकरं परम्।
तपसा किल्बिषं हन्ति विद्ययाऽमृतमश्नुते॥12.104॥
तप और विद्या ब्राह्मण के लिये परम् कल्याणकारी है। तप सदा पाप का नाश करता है और विद्या मुक्ति दिलाती है। 
Ascetics &  learning of scriptures are meant for the ultimate benefit-welfare of the Brahman. Ascetics removes all sins and learning grants Salvation, detachment from the world, reincarnations.
The Brahman can easily achieve Supreme Bliss by resorting to austerities and learning of Veds.
प्रत्यक्षं चानुमानं च शास्त्रं च विविधागमम्।
त्रयं सुविदितं कार्यं धर्मशुद्धिमभीप्सता॥12.105॥ 
धर्म शुद्धि की इच्छा रखने वाले को प्रत्यक्ष, अनुमान और अनेक प्रकार के आगम शास्त्र (सगुण ईश्वर की उपासना की व्याख्यान करने वाले शास्त्र); इन तीनों का अच्छी तरह ज्ञान कर लेना चहिये।
The Brahmn who wish to purify-cleanse himself (Dharm Shuddhi-absolute purity) should be well versed with visible, guess and various kinds of Agam Shastr.
The three kinds of evidence, perception, inference and the sacred Institutes which comprise the tradition of many established schools, must be thoroughly understood & applied in life-day to day living by the Brahman who desires Ultimate purity.
आर्षं धर्मोपदेशं च वेदशास्त्राSविरोधिना।
यस्तर्केणानुसंधत्ते स धर्मं वेद नैतरः॥12.106॥
वेद शास्त्र से अविरुद्ध ऋषियों से कहा हुआ जो धर्मोपदेश है, उसे जो तर्क द्वारा अनुसन्धान करता है, वही वेद को जानता है, दूसरा नहीं। 
One who analyse (through reasoning, logic, argument) the doctrines propounded by the great sages (Rishi, Mahrishi, Brahmrishi, Devrishi) pertaining to Dharm (How to carry out one's duties-responsibility in this world, deeds.) only knows the Veds 
जिस प्रकार दूध को जमाकर दही और दही को बिलोकर घी निकलता है, उसी प्रकार मन्थन, चिन्तन, विचार करने से सत्य-ईश्वर का ज्ञान होता है। 
The manner in which the milk is turned into curd and then churned to obtain butter oil-Ghee, one can come to the truth-The Almighty; by repeated efforts to know HIM and assimilate in HIM. 
नैःश्रेयसमिदं कर्म यथोदितमशेषतः।
मानवस्यास्य शास्त्रस्य रहस्यमुपदिश्यते॥12.107॥
इस प्रकार यह सम्पूर्ण मुक्ति का साधन कहा है। अब मानव शास्त्र रहस्य को कहता हूँ।
In this manner, I have described the means for the liberation of soul from reincarnation. Now, let me deliberate (describe, discuss)  secrets of humans i,e.,  Manav Shastr.
अनाम्नातेषु धर्मेषु कथं स्यादिति चेद्भवेत्
यं शिष्टा ब्राह्मणा ब्रूयुः स धर्मः स्यादशङ्कितः॥12.108॥
धर्मों में जिनका नाम करण नहीं किया गया है, प्रसंग उपस्थित होने पर कैसे करना चाहिये; ऐसे प्रसंग में जो धर्मष्ट ब्राह्मण बतलावें उसे ही करना चाहिये। 
What remains undescribed should be dealt with the consultation of the Brahmans well versed with Dharm, traditions, scriptures, rituals, mores, methodology-procedures etc. 
The learned-enlightened truthful, virtuous, Brahmans should think over the matter, its pros & cons, impact in future over the individual & the society and only then out to conclusion. Some times these opinions become land mark judgements and persists for long-long times. They are respected and followed as such.
धर्मेणाधिगतो यैस्तु वेदः सपरिबृंहणः।
ते शिष्टा ब्राह्मणा ज्ञेयाः श्रुतिप्रत्यक्षहेतवः॥12.109॥
धर्म के नियम से जिन ब्राह्मणों ने वेदाङ्ग के साथ वेद को प्राप्त किया है, वे ही शिष्ट ब्रह्मण हैं और वे ही श्रुति को प्रत्यक्ष करने में हेतु। 
A Shisht Brahman is one who has obtained the Vedang (branches-interpretations of Veds i.e., Purans & Upnishads, commentaries, Brahmans etc.) from his Guru in unbroken chain just by hearing and remembering it. 
Such matters have been discussed in the past as well and preserved simultaneously. India has millions of hand written manuscripts in Sanskrat which are still waiting to be published and translated. In the absence of enlightened Pandits-scholars the gigantic task remain unaccomplished. Let us wait & watch God's desire. A defective, misleading, wrong translation is of no use and on contrary yield adverse results.
I have come across many translation of Ved and found that none of them resemble with each other.
दशावरा वा परिषद्यं धर्मं परिकल्पयेत्।
त्र्यवरा वापि वृत्तस्था तं धर्मं न विचालयेत्॥12.110॥
दस शिष्ट ब्राह्मणों की एक दशावरा धर्म परिषद की कल्पना करे अथवा दस के अभाव में सदाचार से युक्त तीन ब्राह्मणों की त्र्यवरा धर्म परिषद की कल्पना करे। यह परिषद जिस धर्म की व्यवस्था करे वही धर्म है, उसमें शंका न करे। 
In case an issue arises (tit-bits) which have not been explained in scriptures, the society should call a meeting (joint session) of ten Shish-enlightened Brahman or three Brahmans observing excellent moral character and let them decide-settle the issue and the society should accept the judgement without doubt. 
The king should follow the verdict and implement it without hitch. However, he may suggest amendments as per doctrine of prevailing rituals, mores, cultures, place, law.
त्रैविद्यो हेतुकस्तर्की नैरुक्तो धर्मपाठकः।
त्रयश्चाश्रमिणः पूर्वे परिषत्स्याद्दशावरा॥12.111॥
तीन वेदज्ञ, एक न्याय शास्त्र का ज्ञाता, एक मीमांसक, एक निरुक्त को जानने वाला, एक धर्म शास्त्र को जानने वाला, तीन पूर्व आश्रम वाले (ब्रह्मचर्य, गृहस्थ और वानप्रस्थ को भोगने वाले); इन दसों से दशावरा परिषद्  बनती है। 
The Dashavara Council-Board constitutes of three Brahmns enlightened with Veds, one expert in judiciary, one critic-one expert in Hindu Philosophy-mythology, one expert in Nirukt, one expert in Dharm Shastr-religious matters, one each from Brahmchary Ashram, Grahasth Ashram and Vanprasth ashram.
निरुक्त वैदिक ग्रंथों में शब्दों की व्युत्पत्ति (etymology) का विवेचन है। यह हिन्दु धर्म के छः वेदांगों में से एक है अर्थात व्याख्या और व्युत्पत्ति सम्बन्धी व्याख्या। इसमें मुख्यतः वेदों में आये हुए शब्दों की पुरानी व्युत्पत्ति का विवेचन है। निरुक्त में शब्दों के अर्थ निकालने के लिये छोटे-छोटे सूत्र दिये हुए हैं। इसके साथ ही इसमें कठिन एवं कम प्रयुक्त वैदिक शब्दों का संकलन (glossary-dictionary) भी है। संस्कृत के प्राचीन व्याकरण (grammarian) यास्क को इसका जनक माना जाता है।
इसका उद्देश्य शब्दों के दुरूह अर्थ को स्पष्ट करना है। 
  "अर्थावबोधे निरपेक्षतया पदजातं यत्रोक्तं तन्निरुक्तम्" 
अर्थ की जानकारी की दृष्टि से स्वतंत्र रूप से जहाँ पदों का संग्रह किया जाता है, वही निरुक्त है। शिक्षा प्रभृत्ति छह वेदांगों में निरुक्त की गणना है।[ऋग्वेदभाष्य भूमिका सायण]  
"निरुक्त श्रोत्रमुचयते" 
निरुक्त को वेद का कान है।[पाणिनि शिक्षा] 
इस शिक्षा में निरुक्त का चतुर्थ स्थान है। उपयोग की दृष्टि से एवं आभ्यंतर तथा बाह्य विशेषताओं के कारण वेदों में यह प्रथम स्थान रखता है। निरुक्त की जानकारी के बिना वेद के दुर्गम अर्थ का ज्ञान सम्भव नहीं है।
पाँच प्रकार का निरुक्त :: (1). वर्णागम (अक्षर बढ़ाना), (2). वर्ण विपर्यय (अक्षरों को आगे पीछे करना), (3). वर्णाधिकार (अक्षरों को वदलना), (4). नाश (अक्षरों को छोड़ना) और (5). धातु के किसी एक अर्थ को सिद्ब करना। [काशिका वृत्ति]
काशिका वृत्ति में यास्क ने शाकटायन, गार्ग्य, शाकपूणि मुनियों के शब्द-व्युत्पत्ति के मतों-विचारों का उल्लेख किया है तथा उस पर अपने विचार दिए हैं।
ऋग्वेदविद्यजुर्विच्च सामवेदविदेव च।
त्र्यवरा परिषद्ज्ञेया धर्मसंशयनिर्णये॥12.112॥
एक ऋग्वेद को जानने वाला, एक यजुर्वेद को जानने वाला और एक सामवेद को जानने वाला, इन तीनों से धर्म के संशय का निवारण करने के लिये त्र्यवरा धर्म परिषद होती है। 
The Trayvara Parishad is constituted of one expert in Rig Ved, One in Yajur Ved and one in Sam Ved for clearing the doubts pertaining to-arising in the implementation of Dharm.
एकोऽपि वेदविद्धर्मं यं व्यवस्येद् द्विजोत्तमः।
स विज्ञेयः परो धर्मो नाज्ञानामुदितोऽयुतैः॥12.113॥
एक भी वेद को जानने वाला उत्तम ब्रह्मण जिस धर्म की व्यवस्था करे वह परम धर्म समझना चाहिये। एक सहस्त्र मूर्खों (वेद को न जानने वालों का निर्णय धर्म नहीं होता। 
The duties, responsibilities prescribed, doctrine propounded by a Brahman who has the thorough knowledge, understanding of Ved & he is practising it should be followed without hitch. The opinion of even one thousand duffers (unaware of Veds) should be summarily discarded-rejected.
Such a Brahman is generally impartial, aware of social obligations, responsibilities, religious practices and the law of the land.
अव्रतानाममन्त्राणां जातिमात्रोपजीविनाम्।
सहस्रशः समेतानां परिषत्त्वं न विद्यते॥12.114॥
ब्रह्मचर्यादि व्रतों से हीन, वेद मंत्रों से शून्य, केवल जाति मात्र से जीने वाले (अर्थात जो केवल ब्राह्मण कहलाता है) हजारों ब्राह्मणों के एकत्र होने से वह धर्म परिषद् नहीं हो सकती। 
A council can not be a Dharm Parishad by the conglomeration of thousands of people who do not observe chastity-celibacy, do not know Ved Mantr and are Brahmns for the namesake only,  by caste.
यं वदन्ति तमोभूता मूर्खा धर्ममतद्विदः।
तत्पापं शतधा भूत्वा तद्वक्तॄननुगच्छति॥12.115॥
धर्म को न जानने वाले, तमोगुण से भरे हुए मूर्ख, जिस किसी को प्रयाश्चित धर्मोपदेश करते हैं, वह पाप सौ गुना होकर, उन बताने वाले के ऊपर सवार हो जाता है। 
Those idiots who are unaware of Dharm and are full of negativity, suffer from hundreds  times of sin by virtue of prescribing-suggesting to a person against the Dharm.
The Christian missionaries, Britishers, Germans, so called secular Hindus, Communists, impostors, Muslims like Jakir & other Muslims are giving wrong interpretations of Hindu Dharm and misguiding, misleading the world all over the earth. One should be extremity cautious while listening or reading their writings. Social sites (Face Book, wordpress.com) & the media are hand in gloves with them and are busy labelling-castigating the blogs, writings of Ved Nishth Brahmans as abusive, derogatory, against their policy norms. For them Hindu Philosophy, Sex education, Sury dynasty, Brahman dynasty, English conversation, Palmistry, astrology, ancient System of education in India, Chanky Niti, Kautily Arth Shastr are derogatory for them. In fact the owners of these social sites are against Hinduism and its philosophy. They promote undesirable, illicit sex, porn, child porn, through vulgar sites-millions in number. America is the biggest culprit in this regard, where they are based.
एतद्वोऽभिहितं सर्वं निःश्रेयसकरं परम्।
अस्मादप्रच्युतो विप्रः प्राप्नोति परमां गतिम्॥12.116॥
यह सब निःश्रेयस (मोक्ष) साधक धर्म तुमसे कहा। इससे च्युत न होने वाला ब्राह्मण परमगति को पाता है।
This treatise which grants Moksh-Salvation to the Brahman who follows it, has been deliberated. 
The Ultimate-Bliss, the Almighty is attained by the practitioner, never to return to earth or any other form, species.
एवं स भगवान्देवो लोकानां हितकाम्यया।
धर्मस्य परमं गुह्यं ममेदं सर्वमुक्तवान्॥12.117॥
इस प्रकार उन भगवान् देव ने लोकों के हित की दृष्टि से मुझ से धर्म का गोप्य विषय कहे। 
In this manner the Almighty deliberated the most confidential-secret postulates for the benefit of the residents of the three abodes, which have been transferred to you.
सर्वमात्मनि सम्पश्येत्सत्चासत्च समाहितः।
सर्वं ह्यात्मनि सम्पश्यन्नाधर्मे कुरुते मनः॥12.118॥
समाहित (एकाग्र) चित्त होकर सत् (शुभ कर्म) असत् (अशुभ कर्म) सभी अपने में देखे। उपरोक्त सभी पदार्थों को अपने में देखने वाला पुरुष अधर्म में मन नहीं लगाता। 
One should concentrate and observe the pious & impious, auspicious & inauspicious deeds, characters in him & rectify the sins. One who judge himself in this manner discards the Adharm, impious, inauspicious deeds, motives, desires.
आत्मैव देवताः सर्वाः सर्वमात्मन्यवस्थितम्।
आत्मा हि जनयत्येषां कर्मयोगं शरीरिणाम्॥12.119॥
सभी देवता आत्मा ही हैं, सम्पूर्ण जगत आत्मा में हीअवस्थित है, इन शरीर-धारियों के कर्मयोग का निर्माण आत्मा ही करता है। 
All demigods-deities are constituents of God and the entire universe is settled in the God. The God fixes the destiny, Karm Yog, Karm Fal of all the creatures-organism.
Birth, rebirth, result of all deeds-endeavours, out come, rewards, punishments are deliberated by the God with the help of Trinity :- Brahma Ji, Bhagwan Vishnu & Bhagwan Shiv-Mahesh.
 खं संनिवेशयेत्खेषु चेष्टनस्पर्शनेऽनिलम्।
पक्तिदृष्ट्योः परं तेजः स्नेहेऽपो गां च मूर्तिषु॥12.120॥
मनसीन्दुं दिशः श्रोत्रे क्रान्ते विष्णुं बले हरम्।
वाच्यग्निं मित्रमुत्सर्गे प्रजने च प्रजापतिम्॥12.121॥
आकाश को आकाश (अपने शरीर के भीतर वाले आकाश में) में निवेशित करें। चेष्टा और स्पर्श में वायु को, पेट और नेत्र को अग्नि में, परम् तेज को जल में, बाहर के जल को पार्थिव भाग में पृथ्वी को, मन में चन्द्रमा को, कान में दिशाओं को, चरण में विष्णु को, बल में शंकर को, वाणी में अग्नि को, मित्र को मलद्वार में और जननेन्द्रिय में प्रजापति को लीन करें। 
The practitioner-devotee, Yogi should endeavour to concentrate-direct the sky in the sky (air in the stomach) in his stomach. Efforts and touch should be merged with the air, stomach and eyes with fire, Ultimate Tej-energy in the water, water (external) into the destructible-perishable earth, the innerself-Man in the Moon, the ears into directions, feet in Bhagwan Shri Hari Vishnu, the power-strength in Bhagwan Shiv, the speech in fire, the Mitr in anus and the sense organs should be assimilated into the Prajapati-Brahma Ji.
प्रशासितारं सर्वेषामणीयांसमणोरपि।
रुक्माभं स्वप्नधीगम्यं विद्यात्तं पुरुषं परम्॥12.122॥
शासन करने वाला, सभी के अणुओं से अतिसूक्ष्म, सुवर्ण के समान कान्ति वाला, स्वप्नावस्था के बुद्धि से जानने योग्य है। उस परम पुरुष को जाने। 
One who governs all, the Almighty; is smaller than the smallest molecule, has an aura like gold and has to be identified in a state of trans-sleep, through the intelligence. 
एतमेके वदन्त्यग्निं मनुमन्ये प्रजापतिम्।
 इन्द्रमेके परे प्राणमपरे ब्रह्म शाश्वतम्॥12.123॥
इसी परम पुरुष को अग्नि, कोई प्रजापति, मनु, कोई इन्द्र, कोई प्राण और कोई शाश्वत (सनातन) ब्रह्म कहता है। 
People call HIM by different names like Agni-fire, Prajapati-Brahma, Manu, Indr, Pran-life force (air vital), Eternal-imperishable, ever since & for ever, i.e., the Brahm.
एष सर्वाणि भूतानि पञ्चभिर्व्याप्य मूर्तिभिः।
जन्मवृद्धिक्षयैर्नित्यं संसारयति चक्रवत्॥12.124॥
वह परमात्मा सभी प्राणियों के भूतात्मक शरीर में व्याप्त होकर जन्म वृद्धि और विनाश के द्वारा नित्य चन्द्र की तरह घूमता है। 
The Almighty pervades the perishable bodies of all organism-living beings and moves like the Moon (increasing and decreasing in phases) through birth, growth and death.  
एवं यः सर्वभूतेषु पश्यत्यात्मानमात्मना।
स सर्वसमतामेत्य ब्रह्माभ्येति परं पदम्॥12.125॥
इस प्रकार जो मनुष्य सभी प्राणियों में आत्मरूप से अपने आपको देखता है, वह सबमें समता को प्राप्त कर, परम पद ब्रह्मत्व को पाता है। 
One who identifies himself in all living beings-creatures, attains equanimity and attains the Ultimate-highest, title-designation a person can achieve called Brahmatv.
इत्येतन्मानवं शास्त्रं भृगुप्रोक्तं पठन्द्विजः।
भवत्याचारवान्नित्यं यथेष्टां प्राप्नुयाद् गतिम्॥12.126॥
भृगु के कहे हुए इस मानव शास्त्र को पढ़कर द्विज, नित्य आचारवान होकर, अभीष्ट गति को पाता है।
A Brahmn attains the desired title, by becoming a pious, virtuous, righteous, honest, dedicated person by studying this treatise Manav Shastr, revealed by Bhragu for the welfare of Man Kind.
By the grace of Almighty, Ganesh Ji Maha Raj, Maa Bhagwati Saraswati & Mahrishi Ved Vyas, this treatise has been concluded and presented to the pious august readers for their welfare, today i.e., Friday, April 5, 2019, 2.18 AM.
Complete revision of the text has been completed today i.e., 15.10.2022, at Noida, at 4.50AM by the grace of the Almighty, Ganpati Maharaj, Maa Bhagwati Saraswati and Bhagwan Ved Vyas and is devoted to the pious, virtuous, honest, rightest learners-devotees of the God.
 
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संतोष महादेव-धर्म विद्या सिद्ध व्यास पीठ 
(बी ब्लाक, सैक्टर 19, नौयडा)

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