गर्भाधान संस्कार
HINDU PHILOSOPHY (4.1) हिन्दु दर्शन
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
By :: Pt. Santosh Bhardwaj
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गर्भाधान दो शब्दों गर्भ और आधान से मिलकर बना है अर्थात गर्भ को स्थापित करना। स्त्री के अंडाशय में पुरुष द्वारा शुक्राणुओं को स्थापित करना निषेचन क्रिया है जो मैथुन-सहवास या अन्य अप्राकृतिक साधनों द्वारा सम्पन्न की जा सकती है। स्त्री क्षेत्र और पुरुष बीज है। इस प्रक्रिया को शास्त्र संवत धार्मिक यज्ञ रूप में करना संस्कार है। यह प्रक्रिया सन्तति और कुल को जारी रखने, पितृऋण से मुक्त होने के लिए करने का विधान है।
The mating process leads to fertilisation of egg cell in woman's womb by the sperms-male cell from the male. The woman conceives when fertilisation takes place it leads to pregnancy. The fertilisation can be done through artificial means as well. The sperms are injected into the ovary of the woman who is willing to do so. The Hindu follows the procedures as per dictates of the scriptures. The woman is treated as the field and the male grants the seeds. This process is essential to keep the dynasty prolong. Its leads to the elimination of the Pitr debt or the debt of the Manes.
स्वेच्छाचार, कामाचार, पाशविक वृत्ति को नियंत्रित करने के लिए ऋषि, मुनियों ने विधानों की रचना की थी ताकि आध्यात्मिक भावना से युक्त सन्तान सुसंस्कृत माता-पिता के द्वारा सम्पन्न की जा सके। ईश्वर भक्ति, शम-दम, प्रार्थना, जप-तप, तीर्थ यात्रा, दान-पुण्य से मनुष्य के अन्तःकरण की शुद्धि है।
The great sages enlisted measures for the benefit of humans so that they could produce virtuous, pious, righteous progeny. It involves spirituality. The pair has to subject them to regular prayers, devotion to the Almighty. They should donation goods & money to genuine needy person, poor, down trodden, hungry etc. They may undertake rigorous pilgrimages and observe self control side by side.
शरीर और बाह्य करणों की शुद्धि संस्कारों से होती है। इसका प्रभाव सन्तान के मन, बुद्धि, चित्त तथा हृदय पर दिखाई देता है। गर्भाधान हेतु माता-पिता को सदाचार का पालन करना चाहिए। ऋतुकाल-माहवारी, निषिद्ध तिथियों, नक्षत्रों, पर्व तथा योग का ध्यान रखना चाहिये। सहवास प्रसन्न चित्त, देवपूजा और मंत्रोपचार, पवित्र मन-भाव, के साथ करना चाहिए।
स्वेच्छाचार, कामाचार, पाशविक वृत्ति को नियंत्रित करने के लिए ऋषि, मुनियों ने विधानों की रचना की थी ताकि आध्यात्मिक भावना से युक्त सन्तान सुसंस्कृत माता-पिता के द्वारा सम्पन्न की जा सके। ईश्वर भक्ति, शम-दम, प्रार्थना, जप-तप, तीर्थ यात्रा, दान-पुण्य से मनुष्य के अन्तःकरण की शुद्धि है।
The great sages enlisted measures for the benefit of humans so that they could produce virtuous, pious, righteous progeny. It involves spirituality. The pair has to subject them to regular prayers, devotion to the Almighty. They should donation goods & money to genuine needy person, poor, down trodden, hungry etc. They may undertake rigorous pilgrimages and observe self control side by side.
शरीर और बाह्य करणों की शुद्धि संस्कारों से होती है। इसका प्रभाव सन्तान के मन, बुद्धि, चित्त तथा हृदय पर दिखाई देता है। गर्भाधान हेतु माता-पिता को सदाचार का पालन करना चाहिए। ऋतुकाल-माहवारी, निषिद्ध तिथियों, नक्षत्रों, पर्व तथा योग का ध्यान रखना चाहिये। सहवास प्रसन्न चित्त, देवपूजा और मंत्रोपचार, पवित्र मन-भाव, के साथ करना चाहिए।
एवमेन: शमं याति बीजगर्भं-समुद्भवम्।
इस प्रकार संस्कारों के फलस्वरूप सन्तति स्वाभाविक रूप से संस्कार सम्पन्न और सुसंस्कृत होती है।[याज्ञवल्क्य स्मृति-आचारा 13]
"तामुदुह्य यथर्तु प्रवेशनम्" [प्रारस्कर-गृहसूत्र]
वधू को उद्वाहकर ऋतुकाल में प्रवेशन-गर्भाधान करना चाहिये।
"ऋणानि त्रीण्यपाकृत्य मनो मोक्षे निवेशयेत्" [मनुस्मृति]
पितृऋण से मुक्ति की इच्छा गर्भाधान संस्कार का पवित्र एवं आध्यात्मिक उद्देश्य है।
"प्रजया पितृभ्य:"
गर्भाधान पैतृक ऋण की मुक्ति का साधन बनता है यदि, पति-पत्नी दोनों स्वस्थ और योग्य हैं। एक दूसरे को हृदय से चाहते हैं और उनमें सन्तान उत्पन्न करने की तीव्र इच्छा है। देवपूजन और मन्त्रों के उच्चारण से ऐन्द्रिय सुख की इच्छा से रहित उचित वातावरण बनता है, तो यह यह प्रसङ्ग एक यज्ञ का रूप ले लेता है।[तैत्तिरीय संहिता 6.3.10.5]
The progeny obtained after observing rituals, self control-restraint, piousity is generally good, healthy, obedient, faithful & loyal. The pair should be healthy and free from bad habits-vices. The mating should be aimed at producing nice children not the physical sexual comforts-pleasures. This process is an esteemed measure called a Yagy.
Fertilisation is a scientific process meant for the production of children over the earth. The earth is an extract of the entire chain of past events. Water is an extracts of earth. The medicines are the extract of water. Extract of Ayur Vedic medicines are the flowers. The extract-output of flowers are the fruits. The male himself is the extract-basis of all fruits. The extract of the male are the sperms. To spread the sperms the Prajapati has created the woman. Both the husband & wife should produce the progeny by maintaining purity. For obtaining fair coloured children, they should eat Kheer (rice cooked in milk wit sugar)by putting Ghee-clarified butter, in it.
"स य इच्छेत् पुत्रो मे शुक्लो जायेत वेदमनुब्रवीत सर्वमायुरियादिति क्षीरौदनं पाचयित्वा सर्पिष्मन्तश्नीयाता मीश्वरौ जनयितवै" [बृहदारण्यकोपनिषद् 6.4.14]
गर्भाधान को सन्तानोत्पत्ति विज्ञान अथवा पुत्रमन्ध कर्म भी कहा जाता है। चराचर भूतों का रस-निचोड़ पृथ्वी है, पृथ्वी का रस जल है, जल का रस औषधियाँ हैं, औषधियों का रस पुष्प, पुष्पों का रस फल, फलों का रस (आधार) पुरुष है और पुरुष का रस (सार) शुक्र है। इस रस-शुक्र की स्थापना हेतु प्रजापति ने स्त्री की रचना की और दोनों के पवित्र सहवास से सन्तानोत्पत्ति होती है। यदि पुरुष चाहे कि मेरा पुत्र गौर वर्ण हो, वेदाध्ययन करे, पूरी आयु प्राप्त करे,सौ वर्ष तक जीये तो दोनों पति-पत्नी को चाहिये खीर बनाकर उसमें घी डालकर सेवन करें तो उन्हें वैसा ही पुत्र प्रपात होगा। Fertilisation is a scientific process meant for the production of children over the earth. The earth is an extract of the entire chain of past events. Water is an extracts of earth. The medicines are the extract of water. Extract of Ayur Vedic medicines are the flowers. The extract-output of flowers are the fruits. The male himself is the extract-basis of all fruits. The extract of the male are the sperms. To spread the sperms the Prajapati has created the woman. Both the husband & wife should produce the progeny by maintaining purity. For obtaining fair coloured children, they should eat Kheer (rice cooked in milk wit sugar)by putting Ghee-clarified butter, in it.
गर्भं देहि सिनी वालि धेहि पृथुष्टके। गर्भं ते अश्विनौ देवाधत्तां पुष्करत्रजौ॥[
हे प्रिये! सर्वव्यापी भगवान् श्री हरी विष्णु तेरी जननेंद्रिय को पुत्र की उत्पत्ति में समर्थ बनावें। भगवान् सूर्य तेरे तथा उत्पन्न होने वाले बालक के अंगों को विभागपूर्वक पुष्ट एवं दर्शनीय बनायें, विराट् पुरुष भगवान् प्रजापति मुझसे अभिन्न रूप में स्थित हो तुममें वीर्य का आधान करें। भगवान् धाता तेरे गर्भ का धारण और पोषण करें। हे देवी! जिसकी भूरि-भूरि स्तुति की जाती है, वह सिनीवाली (जिसमें चन्द्रमा की एक कला शेष रहती है, वह अमावस्या) तुम हो, तुम यह गर्भ धारण करो, धारण करो। देव अश्वनी कुमार (सूर्य और चन्द्रमा) अपनी किरण रूपी कमलों की माला धारण करके मुझसे अभिन्न रूप में तुममे गर्भ का आधान करें।[बृहदारण्यकोपनिषद् 6.4.21]
O dear! Let all pervading Bhagwan Shri Hari Vishnu make your genital organs capable of producing-nurturing a son. Let, Bhagwan Sury make your son's organs strong-handsome (healthy & virtuous) and beautiful-smart. Let, Virat Purush Bhagwan Prajapati (Maha Vishnu) be inseparable from me and place sperms in your ovary. Let, Bhagwan Dhata nourish your foetus. Hey Devi! You are The Siniwal-The Dark Night in which one phase of Moon remains. So, you bear this foetus. Let, The Ashwani Kumars (in the form of Sury-Sun & Chandr-Moon) bear the garland in the form of their rays identical to me and place the foetus in you.
प्रसव करने वाली स्त्री को सोष्यन्ति कहा गया है। मन्त्र पूर्वक जलसिंचन की क्रिया सुखद प्रसव में सहायक है। [बृहदारण्यकोपनिषद् 6.4.23]
The woman ready for delivery has been termed Soshyanti. The process become painless and yields pleasure to her if the delivery is carried out with the help of recitation of Mantr in addition to pouring of water.
It has been observed that the woman undergoing extreme pain during delivery relaxes, if she is made to deliver the child in a tub full of water.
प्रसव करने वाली स्त्री को सोष्यन्ति कहा गया है। मन्त्र पूर्वक जलसिंचन की क्रिया सुखद प्रसव में सहायक है। [बृहदारण्यकोपनिषद् 6.4.23]
The woman ready for delivery has been termed Soshyanti. The process become painless and yields pleasure to her if the delivery is carried out with the help of recitation of Mantr in addition to pouring of water.
It has been observed that the woman undergoing extreme pain during delivery relaxes, if she is made to deliver the child in a tub full of water.
ऋतौ तु गर्भशङ्कित्वात्स्नानं मैथुनिन: स्मृतम्।
अनृतौ तु यदा गच्छेच्छौचं मूत्रपूरीषवत्॥
अनृतौ तु यदा गच्छेच्छौचं मूत्रपूरीषवत्॥
ऋतुकाल में गर्भ रहने की आशंका रहती है। अतः गमन के अनन्तर पुरुष को आशिरस्क स्नान (मार्जन) करके आचमन-प्राणायाम करना चाहिये। किन्तु ऋतुकाल रहित समय में जो सहवास करता है, उसकी शुद्धि मूत्रपूरीषवत् होती है।[महर्षि पराशर, आचारदर्श]
Fertilisation of egg cell during menstrual cycle is doubtful. The male should undergo purification process. He should bathe without pouring water over the head. He should wash his legs-feet and hands. The genitals in both cases, the male and female deserve to cleaned just like cleaning urine and anus.
उभावप्यशुचि स्यातां दम्पती शयनं गतौ।
शयनादुत्थिता नारी शुचि: पुमान्॥
शयनादुत्थिता नारी शुचि: पुमान्॥
स्त्रियों के लिये स्नानादि की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि उनमें अशुचित्व नहीं है रहता। शयनकाल में स्त्री पुरुष दोनों में ही अशुचि रहती है। सहवास के अनन्तर उठ जाने पर पृथक हो जाने पर स्त्री शुचि ही रहती है किन्तु पुरुष में अशुचि आ जाती है, अतः उसे मार्जन-स्नानादि से पवित्र होना चाहिये।[वृद्धशातातप]
The women need not take bath after intercourse-mating. Both male & female become impure during mating. The woman who get up after mating may not need purification measures, but the male does. Therefore, the male should take thorough wash-bathing.
गर्भाधान के लिये उचित समय ::
गण्डानन्तं त्रिविधं त्यजेन्निधनजन्मर्क्षे च मूलान्तकं दास्त्रं पौष्णमथोपरागदिवसं पातं तथा वैधृतिम्।
पित्रो: श्राद्धदिनं दिवा च परिघाद्यर्थं स्वपत्नीगमे भान्युत्पातहतानि मृत्युभवनं जन्मर्क्षतः पापभम्॥
भद्राषष्ठीपर्वरित्ताश्च सन्ध्या-भौमार्कार्कीनाद्यरात्रीश्चतस्त्र:।
गर्भाधानं त्र्युत्तरेंद्वर्कमैत्र ब्राह्मस्वातीविष्णुवस्वम्बुभे सत्॥
नक्षत्र, तिथि तथा गण्डान्त, निधन-तारा, जन्म तारा, मूल, भरणी, अश्वनी, रेवती, ग्रहण-दिन, व्यतिपात, वैधृति, माता-पिता का श्राद्ध, दिन के समय, परिघ योग के आदि का आधा भाग, उत्पात से दूषित नक्षत्र, जन्म राशि या जन्म नक्षत्र से आठवाँ लग्न, पापयुक्त नक्षत्र या लग्न, भद्रा, षष्ठी, चतुर्दशी, अष्टमी, अमावस्या, पूर्णिमा, संक्रान्ति, सन्ध्या के दोनों समय, मंगलवार, रविवार और शनिवार रजोदर्शन से आरम्भ करके चार दिन; ये सब पत्नी गमन के लिये वर्जित हैं। शेष तिथियाँ सोमवार, वृहस्पति, शुक्र, बुधवार, तीनों उत्तरा, मृगशिरा, हस्त, अनुराधा, रोहिणी, स्वाती, श्रवण, धनिष्ठा और शततारका; ये गर्भाधान के लिये शुभ हैं।[मुहूर्त चिन्तामणि]
Auspicious time of mating for bearing-producing child :: Nakshtr, Tithi, Gandant, Nidhan Tara, Janm Tara, Mool, Bharni, Ashwani, Rewati, the day of eclipse, Vyatipat, Vaedhrati, Shraddh of parents, during the day, later Half of Paridhi Yog, disturbing constellations, Zodiac sign of birth, eighth house from constellation of Birth, sinner constellations or Zodiac, Bhadra, Shashthi, Chaturdashi, Ashtami, Amavasya, Purnima, Sankranti-conjunction, both periods of Sandhya (Morning evening prayers), Tuesday, Sunday and Saturday, four days period from the beginning of periods-menstrual cycle are prohibited for mating-intercourse. Other dates are auspicious. Monday, Thursday, Friday and Wednesday, Three Uttra, Mragshira, Hast, Anuradha, Rohini, Swati, Shrawan, Dhanishtha and Shattarka are favourable, suitable, auspicious for pregnancy.
गण्डान्त :: गण्डान्त योग को संतान जन्म के लिए अशुभ समय कहा गया है। इस समय यदि सन्तान जन्म लेती है तो गण्डान्त शान्ति कराने के बाद ही पिता को शिशु का मुख देखना चाहिए। तिथि गण्ड में बैल का दान, नक्षत्र गण्ड में गाय का दान और लग्न गण्ड में स्वर्ण का दान करने से दोष मिटता है।[पराशर] संतान का जन्म अगर गण्डान्त पूर्व में हुआ है तो पिता और शिशु का अभिषेक करने से और गण्डान्त के अतिम भाग में जन्म लेने पर माता एवं शिशु का अभिषेक कराने से दोष कटता है।
गण्डान्त :: गण्डान्त योग को संतान जन्म के लिए अशुभ समय कहा गया है। इस समय यदि सन्तान जन्म लेती है तो गण्डान्त शान्ति कराने के बाद ही पिता को शिशु का मुख देखना चाहिए। तिथि गण्ड में बैल का दान, नक्षत्र गण्ड में गाय का दान और लग्न गण्ड में स्वर्ण का दान करने से दोष मिटता है।[पराशर] संतान का जन्म अगर गण्डान्त पूर्व में हुआ है तो पिता और शिशु का अभिषेक करने से और गण्डान्त के अतिम भाग में जन्म लेने पर माता एवं शिशु का अभिषेक कराने से दोष कटता है।
Gandant describes the junction points in the natal chart, where the solar and lunar zodiacs meet and are directly associated with times of soul growth-spirituality. The Gandant points are located at the junctions of Pisces (Revti) and Aries (Ashvanī), Cancer (Ashlesha) and Leo (Magha), Scorpio (Jyeshtha) and Sagittarius (Mul). Moon or ascendant at birth-time of a person located within 48 minutes of these points represents a spiritual knot that must be untied in a particular lifetime.
व्यतिपात :: व्यतिपात योग की ऐसी महिमा है कि उस समय जप-तप, पाठ, प्राणायाम, माला से जप या मानसिक जप करने से भगवान् की और विशेष कर भगवान् सूर्य नारायण प्रसन्न होते हैं। जप करने वालों को, व्यतिपात योग में जो कुछ भी किया जाता है, उसका एक लाख गुना सुफल मिलता है। इस योग में किये जाने वाले कार्य से हानि ही हानि होती है। अकारण ही इस योग में किए गये कार्य से भारी नुकसान उठाना पड़ता है। किसी का भला करने पर भी अपना या दूसरे का बुरा ही होगा।
व्यतिपात :: व्यतिपात योग की ऐसी महिमा है कि उस समय जप-तप, पाठ, प्राणायाम, माला से जप या मानसिक जप करने से भगवान् की और विशेष कर भगवान् सूर्य नारायण प्रसन्न होते हैं। जप करने वालों को, व्यतिपात योग में जो कुछ भी किया जाता है, उसका एक लाख गुना सुफल मिलता है। इस योग में किये जाने वाले कार्य से हानि ही हानि होती है। अकारण ही इस योग में किए गये कार्य से भारी नुकसान उठाना पड़ता है। किसी का भला करने पर भी अपना या दूसरे का बुरा ही होगा।
आहाराचारचेष्टाभिर्यादृशीभि: समन्वितौ।
स्त्रीपुंसौ समुपेयातां तयो: पुत्रोSपि तादृश:॥
जो स्त्री-पुरुष, माता-पिता, देवता, ब्राह्मण की पूजा (सेवा-सत्कार) करते हैं, शौच (पवित्रता) तथा सदाचार का पालन करते हैं, वे महान् गुणशाली पुत्रों को उत्पन्न करते हैं। इसके विपरीत आचरण करने वाले माता-पिता निर्गुण सन्तान पैदा करते हैं।[सुश्रुतसंहिता, शारीर स्थान 2.46]
The husband & wife who resort to the service and well being of their parents, prayers of the demigods-deities, God, Brahmn and purity in day to day affairs produce the sons who have excellent qualities, traits, characterises. Those parents who act wild produce the progeny which lack good habits-qualities.
देवताब्राह्मणपरा: शौचाचारहिते रता:।
महागुणान् प्रसूयन्ते विपरीतास्तु निगुणान्॥
जिस भाव से स्त्री-पुरुष का मिलन होता है, उसी भाव से युक्त सन्तान होती है। इसलिये गर्भाधान के समय मन में सुयोग्य, उत्तम चरित्र से सम्पन्न, गुणवान तथा धर्मात्मा पत्रोत्तपत्ति का भाव रखना चाहिये।[सुश्रुतसंहिता, शारीर स्थान 3.35]
The feelings-desires pertaining to the progeny should be pious, righteous, virtuous since, the thoughts shape the mentality of the progeny at the time of fertilisation of the egg in the ovum of the wife during mating-intercourse. Piousness leads to the birth of such children who are disciplined, full of excellence, followers of the scriptures, religious practices, good habits, spirituality in addition to practicality in life.
गर्भ में पलने वाली सन्तान पर माता-पिता, घर-परिवार, वातावरण का पूरा प्रभाव पड़ता। माता-पिता अपना आचरण, आचार-व्यवहार, सन्तुलित, मर्यादा में रखना चाहिये। उनका खान-पान, विचार, संकल्प, रहन-सहन पूर्ण रूप से सात्विक होना चाहिये। माँस, मदिरा, नशे का सेवन घातक होता है। तेज मिर्च-मसाले नहीं खाने चाहिये। हरी सब्जियाँ, फल खायें और पर्याप्त दूध का सेवन करें। इस दौरान धार्मिक पुस्तकें, भजन-पूजन, मर्यादित फिल्मों को ही देखना चाहिये। अच्छे-भले लोगों की संगत करनी चाहिये। ज्यादा-घूमना-फिरना, आवागमन, राग-रंग अनुचित होता है। ज्यादा काम-काज, थकान संघातक होते हैं। जोर से चिल्लाकर बोलना, गुस्सा करना वर्जित है। रात को देर तक जागना, शोर शराबा करना घातक है। इस दौरान पति-पत्नी में समागम कदापि नहीं होना चाहिये। सुबह धीरे-धीरे घूमना लाभकारी है। कपड़े ढीले और साफ-सुथरे पहनने चाहिये। पेट को सही तरीके से ढँककर रखें। प्रह्लाद जी ने माता के गर्भ में ही नारद जी के आश्रम में रहकर हरी भक्ति प्राप्त की थी। अभिमन्यु ने गर्भ में ही चक्रव्यूह का भेदन सीखा था। हर प्रकार का कम्पन गर्भ में शिशु को प्रभावित करता है।
The progeny growing in the womb is directly affected by the environment, parents behaviour, interactions, dealings. The family atmosphere affects him the most. This is the period when the parents must have balance behaviour. The food, behaviour should be Satvik. There should be no place for vulgarity, meat, fish, food with high dose of spices. There should be no place for violence, vulgarity around even in films. Wine, drugs should be taboo. Reading-listening scriptures is a must. One should resort to regular morning & evening prayers. Morning walk is essential. Avoid fatigue over burden-load of work. Company of pious, virtuous, righteous, honest people is desirable. Avoid shouting & anger. Sleep at right time and avoid remaining awake for longer hours. Take rest at regular intervals. Take mild food with stress over nourishment, leafy vegetables, fruits. Avoid tight cloths like jeans and top. Cover the stomach as far as possible. Once pregnancy is there, never resort to intercourse. Prahlad Ji acquired Hari Bhakti while in the womb, when his mother stayed in the Ashram of Dev Rishi Narad. Abhimanyu learnt how to penetrate the Chakr Vyuh, while listening to the procedure described by his father Arjun to Subhadra his mother and Bhagwan Shri Krashn's sister, in the womb. Each & every vibration around affects the baby in the womb.
मरीचि के पुत्र कश्यप समस्त मैथुनी सृष्टि की उत्पत्ति हुई है। देवासुर संग्राम में दिति पुत्रों के संहार के बाद शोक से विह्वल दैत्य माता दिति ने तपस्या से अपने पीटीआई कश्यप जी को प्रसन्न किया और ऐसे बलशाली पुत्रों को प्राप्त करने की इच्छा व्यक्त की जो देवराज इन्द्र को परास्त करने में सक्षम हों। कश्यप जी ने उससे कहा कि अगर वो गर्भवस्था में उनके बताये हुए निर्देशानुसार आचरण नहीं करेगी तो गर्भ नष्ट हो जायेगा। कश्यप ने जो नियम बताये वो इस प्रकार हैं :-
नाभि स्पर्श मन्त्र :: इसके पश्चात् उसी दिन अथवा सोलह दिन के पहले किसी शुभ रात्रि के दूसरे प्रहर में दाहिने हाथ से अपनी स्त्री की नाभि का स्पर्श करते हुए यह मन्त्र पढ़ें :-
गर्भ में पलने वाली सन्तान पर माता-पिता, घर-परिवार, वातावरण का पूरा प्रभाव पड़ता। माता-पिता अपना आचरण, आचार-व्यवहार, सन्तुलित, मर्यादा में रखना चाहिये। उनका खान-पान, विचार, संकल्प, रहन-सहन पूर्ण रूप से सात्विक होना चाहिये। माँस, मदिरा, नशे का सेवन घातक होता है। तेज मिर्च-मसाले नहीं खाने चाहिये। हरी सब्जियाँ, फल खायें और पर्याप्त दूध का सेवन करें। इस दौरान धार्मिक पुस्तकें, भजन-पूजन, मर्यादित फिल्मों को ही देखना चाहिये। अच्छे-भले लोगों की संगत करनी चाहिये। ज्यादा-घूमना-फिरना, आवागमन, राग-रंग अनुचित होता है। ज्यादा काम-काज, थकान संघातक होते हैं। जोर से चिल्लाकर बोलना, गुस्सा करना वर्जित है। रात को देर तक जागना, शोर शराबा करना घातक है। इस दौरान पति-पत्नी में समागम कदापि नहीं होना चाहिये। सुबह धीरे-धीरे घूमना लाभकारी है। कपड़े ढीले और साफ-सुथरे पहनने चाहिये। पेट को सही तरीके से ढँककर रखें। प्रह्लाद जी ने माता के गर्भ में ही नारद जी के आश्रम में रहकर हरी भक्ति प्राप्त की थी। अभिमन्यु ने गर्भ में ही चक्रव्यूह का भेदन सीखा था। हर प्रकार का कम्पन गर्भ में शिशु को प्रभावित करता है।
The progeny growing in the womb is directly affected by the environment, parents behaviour, interactions, dealings. The family atmosphere affects him the most. This is the period when the parents must have balance behaviour. The food, behaviour should be Satvik. There should be no place for vulgarity, meat, fish, food with high dose of spices. There should be no place for violence, vulgarity around even in films. Wine, drugs should be taboo. Reading-listening scriptures is a must. One should resort to regular morning & evening prayers. Morning walk is essential. Avoid fatigue over burden-load of work. Company of pious, virtuous, righteous, honest people is desirable. Avoid shouting & anger. Sleep at right time and avoid remaining awake for longer hours. Take rest at regular intervals. Take mild food with stress over nourishment, leafy vegetables, fruits. Avoid tight cloths like jeans and top. Cover the stomach as far as possible. Once pregnancy is there, never resort to intercourse. Prahlad Ji acquired Hari Bhakti while in the womb, when his mother stayed in the Ashram of Dev Rishi Narad. Abhimanyu learnt how to penetrate the Chakr Vyuh, while listening to the procedure described by his father Arjun to Subhadra his mother and Bhagwan Shri Krashn's sister, in the womb. Each & every vibration around affects the baby in the womb.
मरीचि के पुत्र कश्यप समस्त मैथुनी सृष्टि की उत्पत्ति हुई है। देवासुर संग्राम में दिति पुत्रों के संहार के बाद शोक से विह्वल दैत्य माता दिति ने तपस्या से अपने पीटीआई कश्यप जी को प्रसन्न किया और ऐसे बलशाली पुत्रों को प्राप्त करने की इच्छा व्यक्त की जो देवराज इन्द्र को परास्त करने में सक्षम हों। कश्यप जी ने उससे कहा कि अगर वो गर्भवस्था में उनके बताये हुए निर्देशानुसार आचरण नहीं करेगी तो गर्भ नष्ट हो जायेगा। कश्यप ने जो नियम बताये वो इस प्रकार हैं :-
सन्ध्यायां नैव भोक्तव्यं गर्भिण्या वरवर्णिनि॥
न स्थातव्यं न गन्तव्यं वृक्षमूलेषु सर्वदा।
नोपस्करे षू पविशेन्मु सलोलू खलादिषु॥
जले च नावगाहेत शून्यागारं च वर्जयेत्।
वल्मीकायां न तिष्ठेत च चोद्विगन्मना भवेत्॥
विलिखेन्न नखैभूमिं नाङ्गारेण च भस्मना।
न श्यालु: सदा तिष्ठेद् व्यायामं च विवर्जयेत्॥
न तुषाङ्गारभस्मास्थिकपालेषु समाविशेत्।
वर्जयेत् कलहं लोकैगार्त्रभङ्गं तथैव च॥
न मुक्तकेशा तिष्ठेत नाशुचिः स्यात् कदाचन।
न शयीतोतरशिरा च चापरेशिराः कदाचिन्॥
न वस्त्रहीन नोद्विग्ना न चार्द्रचरणा सती।
न मुक्तकेशा तिष्ठेत नाशुचिः स्यात् कदाचन।
न शयीतोतरशिरा च चापरेशिराः कदाचिन्॥
न वस्त्रहीन नोद्विग्ना न चार्द्रचरणा सती।
नामङ्गलयां वदेद्वाचं न च हास्याधिका भवेत्॥
कुयार्तु गुरूशुश्रुषां नित्यं माङ्गलयतत्परा।
कुयार्तु गुरूशुश्रुषां नित्यं माङ्गलयतत्परा।
सर्वाषधीधि: कोष्णेन वारिणा स्नानमाचरेत्॥
कृतरक्षा सुभूषा च वास्तुपूजनतत्परा।
तिष्ठेत् प्रसन्नवदना भर्त्तु:प्रियहिते रता॥
दानशीला तृतियायां पार्वण्यं नक्तमाचरेत्।
दानशीला तृतियायां पार्वण्यं नक्तमाचरेत्।
इतिवृत्ता भवेन्नारी विशेषण तु गर्भिणी॥
यस्तु तस्या भवेत् पुत्रः शीलायुर्वृद्धिसंयुतः।
यस्तु तस्या भवेत् पुत्रः शीलायुर्वृद्धिसंयुतः।
अन्यथा गर्भपतनमवाप्नोति न संशयः॥
तस्मात्त्वमनया वृत्त्या गर्भेSअस्मिन् यत्नमाचर।
स्वस्त्यस्तु ते गमिष्यामि तथेत्युक्तस्तया पुनः॥
पश्यतां सर्वभूतानां तन्नैवान्तरधीयत।
तस्मात्त्वमनया वृत्त्या गर्भेSअस्मिन् यत्नमाचर।
स्वस्त्यस्तु ते गमिष्यामि तथेत्युक्तस्तया पुनः॥
पश्यतां सर्वभूतानां तन्नैवान्तरधीयत।
ततः सा कश्यापोक्तेन विविना समतिष्ठत॥
गर्भवती स्त्री को संध्याकाल में भोजन नहीं करना चाहिये। उसे न तो वृक्ष की जड़ पर बैठना चाहिये और न ही उसके नजदीक जाना चाहिये। वह घर की सामग्री मूसल, ओखली आदि पर न बैठे, जल में घुसकर स्न्नान न करे, सुनसान घर में न जाये, बिमवट (दीमक की बाम्बी) पर न बैठे। मन को उद्विघ्न न करे-परेशान न हो। नाख़ून से, लुहाठी से अथवा राख से भूमि पर रेखा न खींचे। सदा नींद में अलसाई हुई न रहे। कठिन परिश्रम न करे। भूसी, लुहाठी, भस्म, हड्डी और खोपड़ी पर न बैठे। लोगों के साथ वाद-विवाद न करे। शरीर को तोड़े-मरोड़े नहीं। बाल खोलकर न बैठे, अपवित्र न रहे, उत्तर दिशा की ओर सिरहाना करके एवं कहीं भी सर नीचे करके न सोये। नग्न होकर न रहे। उद्विघ्न चित्त होकर एवं भीगे पैरों से कभी न सोये। अमंगल सूचक बात न कहे। अधिक जोर से हँसे नहीं। नित्य मांगलिक कार्यों में तत्पर रहकर, गुरुजनों कीसेवा करे।आयुर्वेद के अनुरूप गर्भिणी के स्वास्थ्य के लिये उपयुक्त बताई गई सभी औषधियों से युक्त गुनगुने जल से स्न्नान करे। अपनी रक्षा का ध्यान रखे। स्वच्छ वेश-भूषा से युक्त रहे। वास्तु पूजन में तत्पर रहे। प्रसन्नमुख होकर सदा पति के हित में संलग्न रहे। तृतीया तिथि को दान करे। पर्व सम्बन्धी व्रत एवं नक्तव्रत का पालन करे।[मत्स्य पुराण 7.37-49]
जो गर्भिणी स्त्री ध्यानपूर्वक इन नियमों का पालन करती है उसके गर्भ से पुत्र उत्पन्न होता है जो शीलवान् एवं दीर्घायु होता है। इन नियमों का पालन न करने पर गर्भपात की आशंका बनी रहती है। पैदा होने वाला बच्चा दुष्चरित्र, कुल-समाज विरोधी, राक्षस वृत्ति वाला हो सकता है।[मत्स्य पुराण]
The pregnant woman should skip evening meals. She may consume easily digestible fruits. She should neither sit over the root of trees not go around. She should not sit over he pastel or mortar or other things which may tilt her leading to imbalance. She should not bathe by entering water bodies, where there is a chance of getting slipped or imbalance. She should never enter an uninhibited house since there is a chance of dangerous animals or a person-criminal hidden inside. She should not sit over the termite mould. Its better not to be puzzled. She should remain tension free. She should not bother others unnecessarily, as well. She should not scratch the soil with nails or some other object which may blow dust. Dust may enter the nails or nostrils having germs, virus, bacteria. She should have a sound sleep during night and avoid sleeping during the day. She should avoid laziness and remain mentally calm, cool & alert. She is not supposed to do hard work. Acts like dancing, gymnastics, tough physical exercises, should be avoided by her. She should travel in a vehicle where there is a chance of jerks. She should never sit over bones, skull, dust, straw pile, burning wood. She should not enter into arguments with others. She should avoid bending the body. She should never be naked. She should never keep the hair loose, impure, impious. She should never keep the head in North direction while asleep. She should never keep the head down while sleeping. She should be calm, at ease free from distractions while sleeping. Her feet should not be wet while going to bed. She should not utter words which are impious. Harsh language must be discarded. Should not laugh with loud sound. She should be busy with daily chores, routine and prayers along with auspicious activities. Its her duty to serve the elders, especially in laws. She should add the Ayur Vedic herbs prescribed for a pregnant woman in slightly warm, luck warm water for bathing. She should be aware-careful about her security. Her dress should be neat & clean. During this phase, she should perform all those tasks which have been prescribed in Vastu Shastr for the sanctity of the house and its household. She should maintain her person cleanliness. She should have a pleasant mood and willing to work in favour of her husband. On the third day of the lunar calendar she should donate to the needy, poor, downtrodden or the deserving person, including Brahmns and feed the cows and black dogs. She has to follow the rules & regulations pertaining to the festivals, fasting. The rules for fasting allows the women to eat at night.
She who follows these rules gives birth to a son who is pious, virtuous and blessed with long life. Failure to follow these rules may lead to abortion or birth of a deformed child. The child may be a crooked, criminal minded, against the society and just like a demon.The pregnant woman should skip evening meals. She may consume easily digestible fruits. She should neither sit over the root of trees not go around. She should not sit over he pastel or mortar or other things which may tilt her leading to imbalance. She should not bathe by entering water bodies, where there is a chance of getting slipped or imbalance. She should never enter an uninhibited house since there is a chance of dangerous animals or a person-criminal hidden inside. She should not sit over the termite mould. Its better not to be puzzled. She should remain tension free. She should not bother others unnecessarily, as well. She should not scratch the soil with nails or some other object which may blow dust. Dust may enter the nails or nostrils having germs, virus, bacteria. She should have a sound sleep during night and avoid sleeping during the day. She should avoid laziness and remain mentally calm, cool & alert. She is not supposed to do hard work. Acts like dancing, gymnastics, tough physical exercises, should be avoided by her. She should travel in a vehicle where there is a chance of jerks. She should never sit over bones, skull, dust, straw pile, burning wood. She should not enter into arguments with others. She should avoid bending the body. She should never be naked. She should never keep the hair loose, impure, impious. She should never keep the head in North direction while asleep. She should never keep the head down while sleeping. She should be calm, at ease free from distractions while sleeping. Her feet should not be wet while going to bed. She should not utter words which are impious. Harsh language must be discarded. Should not laugh with loud sound. She should be busy with daily chores, routine and prayers along with auspicious activities. Its her duty to serve the elders, especially in laws. She should add the Ayur Vedic herbs prescribed for a pregnant woman in slightly warm, luck warm water for bathing. She should be aware-careful about her security. Her dress should be neat & clean. During this phase, she should perform all those tasks which have been prescribed in Vastu Shastr for the sanctity of the house and its household. She should maintain her person cleanliness. She should have a pleasant mood and willing to work in favour of her husband. On the third day of the lunar calendar she should donate to the needy, poor, downtrodden or the deserving person, including Brahmns and feed the cows and black dogs. She has to follow the rules & regulations pertaining to the festivals, fasting. The rules for fasting allows the women to eat at night.
तदा प्रभुति व्यवायं व्यायाममतितर्पणमतिकर्षनं दिवास्वप्नं रात्रिजागरणं शोकं यानारोहणं भयमुत्कुटुकासनं चैकान्ततः स्नेहादिक्रियां शोणितमोक्षणं चाकाले वेगविधारणं च न सेवेत।
गर्भिणी स्त्री को गर्भ के लक्षण प्रकट होते ही व्यायाम, व्यसाय-मैथुन, समागम, अपतर्प-शरीर को घटाने वाला आचार-विहार (वज़न कम करना), अतिकर्षण-क्रश करना, दिन में सोना, रात में देर तक जगना, शोक, सवारी (घोड़े आदि जिनसे धचकी लगती हो), भय, उत्कट उकड़ू बैठना एकदम छोड़ देना चाहिये। उसे स्नेहादि क्रिया, रक्त मोक्षण (तथा मल-मूत्र आदि वेगों को नहीं रोकना चाहिये।[सुश्रुत संहिता शारीर स्थान 3.16]
रक्तमोक्षण :: दूषित रक्त को शरीर से निकालने की विधि को रक्त मोक्षण कहा गया है।शस्त्र अथवा त्वचा तथा रक्त वाहिनी के रोगों में रक्त मोक्षण से लाभ होता है।
Just as she conceives, the pregnant woman should reject physical exercises (fatigue, burden, over load) mating-intercourse, maneuvers to reduce weight, sleeping during the day keeping awake till late night, horse riding (including camel or elephant, any motorised vehicle, in case of emergency she should occupy the central seat), sitting over knees. Body massages should be avoided and urine and stools should be passed as soon as pressure is felt. She should not allow treatments for the purification of blood due to virus, bacteria etc, especially through the sucking blood by leeches.
गर्भवती महिला पहले दिन से से ही नित्य प्रसन्न मनवाली, पवित्र, अलकारों को धारण करे, श्वेत वस्र धारण करनेवाली शान्तिपरायण, मंगलकारी (स्वस्तिवाचन पढ़ने वाली) देवता-ब्राह्मण, गुरु (सास सुसर, घर के वृद्ध जन) की सेवा करने वाली हो; मलिन, विकृत या हीन अंगों का स्पर्श न करे।
शांति मन्त्र :: ॐ द्यौ: शान्तिरन्तरिक्षँ शान्ति: पृथिवी शान्तिराप: शान्तिरोषधय: शान्ति:। वनस्पतये: शान्तिर्विश्वे देवा: शान्तिर्ब्रह्म शान्ति: सर्वँ शान्ति: शान्तिरेव शान्ति: सा मा शान्तिरेधि॥ ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति॥
Soon after conception the woman should try to remain happy, wear such identifying marks so to show that she is pregnant. She may wear ornaments like Mangal Sutr, mark vermilion-sandal wood, saffron over her forehead. She should recite Shloks meant for peace and piousity, auspiciousness, prosperity. She should care devote herself to the demigods-deities, elders (in laws), Brahmns. She must maintain cleanliness and avoid touching defective of unclean organs.
दुर्गन्ध से बचे और बुरे दृश्यों को न देखे। बेचैनी करनी वाली कथा-कहानी न सुने। शुष्क, बासी, सड़े-गले अन्न को न खाये (बेकरी में बनी चीजें जैसे केक, डबलरोटी, बिस्कुट आदि, सिरका, काँजी, सभी तरह के आसव)। घर से बाहर निकलना, खाली घर, चैत्य-विहार, श्मशान, वृक्ष के नीचे रहना छोड़ दे। क्रोध एवं भी तथा निन्दित पदार्थों को, ऊँचे स्वर में बोलना आदि गर्भ को नुक्सान पहुँचाने वाली बातों को न करे। बार-बार तैल का अभ्यंग और उत्सादन (उबटन) आदि का प्रयोग न करे। शरीर से मेहनत न करे। गर्भ गिराने वाले अपथ्यों को न करे। शय्या, आसन कोमल, बिछे हुए, बहुत ऊँचे नहीं होने चाहियें। उनमें सहारा आश्रय रहना लेने वाले साधन हों और वे पीड़ा दायक न हों। मन को प्रिय, द्रव्य, मधुर रस की अधिकता, स्निग्ध, अग्निवर्धक, दीपनीय द्रव्यों से संस्कृत भोजन को खाये।[सुश्रुत संहिता, शारीर स्थान 10.3]
She should avoid foul smells and stop visualising disastrous scenes. Films depicting sex, porn, terror-fear must be discarded. Company of such people who use foul-filthy language should be discarded. Such stories which create tension-restlessness must be discarded. She should not eat stale or dry food. She should shun rotting foul smelling food items (fish, meat, liqueur). She should not move out of house alone or without proper-essential reason and must not enter a deserted place-house. Monasteries, cremation ground living under a tree are not allowed to her. She should abandon anger and obsolete (useless, broken) goods. She should not shout or talk in a loud voice. Repeated use of ointments like a mixture of sandal wood and vermilion, Besan (Gram power mixed with mustard oil) is harmful. She should not do physical labour, harsh-tough tasks. Those goods, medicines meant for abortion must not be consumed. Carrots seeds, egg-meat and wine, garlic, should be solemnly rejected. Her seat not be too high and it should fitted with attachments-aligned, meant for resting-comforting the body without generating stress or strain. Foods which are liked by her, liquid foods, oily foods, foods which increase appetite should be discarded during pregnancy.
सभी प्रकार के अति गुरु, अति उष्ण, अति तीक्ष्ण आहार, दारुण चेष्टाएँ गभिणी स्त्री के लिए निषिद्ध हैं। रक्त (गहरे रंग के) वस्त्र धारण न करे। मद कारक (नशा पैदा करने वाले) अन्न आदि पदार्थों का सेवन न करे। सवारी पर न चढ़े, माँस न खाये, इन्द्रियों के लिये हानिकारक सभी पदार्थों से दूर रहे। जिस वस्तु को त्यागने के लिये अनुभवी, वृद्ध स्त्रियाँ कहें उनका सेवन न करे। गर्भवस्था में स्त्री के लिए जो नियम उनका पालन न करने से गर्भ विकृत हो सकता है अथवा पूर्णतया नष्ट हो सकता है।[चरक संहिता 4.18]
All sorts of food items which are difficult to digest should be rejected by the pregnant woman. Udad, Udad Dal, meat, fish, egg Rajma, should be summarily rejected. Food item with sharp-pungent taste must be discarded. Food item which have warm impact like ginger should be discarded. She should not attempt any thing which is risky, stressing, painful, troubling fatigue causing. She must not consume narcotics, wine, drugs. Travelling is prohibited for her. Should should avoid animal ride. All sorts of activities which trouble her sense organs must be discarded. She should abide by the advice of experienced-mature, old women. The pregnant woman who do not follow these tenets may suffer from abortion or the child may be born with deformities mental weaknesses.
The pregnant woman should make efforts to stop consuming meat (fish, egg etc.)
दुर्गन्ध से बचे और बुरे दृश्यों को न देखे। बेचैनी करनी वाली कथा-कहानी न सुने। शुष्क, बासी, सड़े-गले अन्न को न खाये (बेकरी में बनी चीजें जैसे केक, डबलरोटी, बिस्कुट आदि, सिरका, काँजी, सभी तरह के आसव)। घर से बाहर निकलना, खाली घर, चैत्य-विहार, श्मशान, वृक्ष के नीचे रहना छोड़ दे। क्रोध एवं भी तथा निन्दित पदार्थों को, ऊँचे स्वर में बोलना आदि गर्भ को नुक्सान पहुँचाने वाली बातों को न करे। बार-बार तैल का अभ्यंग और उत्सादन (उबटन) आदि का प्रयोग न करे। शरीर से मेहनत न करे। गर्भ गिराने वाले अपथ्यों को न करे। शय्या, आसन कोमल, बिछे हुए, बहुत ऊँचे नहीं होने चाहियें। उनमें सहारा आश्रय रहना लेने वाले साधन हों और वे पीड़ा दायक न हों। मन को प्रिय, द्रव्य, मधुर रस की अधिकता, स्निग्ध, अग्निवर्धक, दीपनीय द्रव्यों से संस्कृत भोजन को खाये।[सुश्रुत संहिता, शारीर स्थान 10.3]
She should avoid foul smells and stop visualising disastrous scenes. Films depicting sex, porn, terror-fear must be discarded. Company of such people who use foul-filthy language should be discarded. Such stories which create tension-restlessness must be discarded. She should not eat stale or dry food. She should shun rotting foul smelling food items (fish, meat, liqueur). She should not move out of house alone or without proper-essential reason and must not enter a deserted place-house. Monasteries, cremation ground living under a tree are not allowed to her. She should abandon anger and obsolete (useless, broken) goods. She should not shout or talk in a loud voice. Repeated use of ointments like a mixture of sandal wood and vermilion, Besan (Gram power mixed with mustard oil) is harmful. She should not do physical labour, harsh-tough tasks. Those goods, medicines meant for abortion must not be consumed. Carrots seeds, egg-meat and wine, garlic, should be solemnly rejected. Her seat not be too high and it should fitted with attachments-aligned, meant for resting-comforting the body without generating stress or strain. Foods which are liked by her, liquid foods, oily foods, foods which increase appetite should be discarded during pregnancy.
सभी प्रकार के अति गुरु, अति उष्ण, अति तीक्ष्ण आहार, दारुण चेष्टाएँ गभिणी स्त्री के लिए निषिद्ध हैं। रक्त (गहरे रंग के) वस्त्र धारण न करे। मद कारक (नशा पैदा करने वाले) अन्न आदि पदार्थों का सेवन न करे। सवारी पर न चढ़े, माँस न खाये, इन्द्रियों के लिये हानिकारक सभी पदार्थों से दूर रहे। जिस वस्तु को त्यागने के लिये अनुभवी, वृद्ध स्त्रियाँ कहें उनका सेवन न करे। गर्भवस्था में स्त्री के लिए जो नियम उनका पालन न करने से गर्भ विकृत हो सकता है अथवा पूर्णतया नष्ट हो सकता है।[चरक संहिता 4.18]
All sorts of food items which are difficult to digest should be rejected by the pregnant woman. Udad, Udad Dal, meat, fish, egg Rajma, should be summarily rejected. Food item with sharp-pungent taste must be discarded. Food item which have warm impact like ginger should be discarded. She should not attempt any thing which is risky, stressing, painful, troubling fatigue causing. She must not consume narcotics, wine, drugs. Travelling is prohibited for her. Should should avoid animal ride. All sorts of activities which trouble her sense organs must be discarded. She should abide by the advice of experienced-mature, old women. The pregnant woman who do not follow these tenets may suffer from abortion or the child may be born with deformities mental weaknesses.
"सामिषमशनं यत्नात्प्रमदा परिवर्जयेदत्त: प्रभृति"
गर्भिणी स्त्री माँस युक्त भोजन का प्रयत्न पूर्वक त्याग कर दे।[निर्णय सिन्धु 3 पूर्वार्ध]The pregnant woman should make efforts to stop consuming meat (fish, egg etc.)
मुण्डन पिण्डदानं च प्रेतकर्म च सर्वश:।
न जीवत्पितृक: कुर्याद् गुर्विणीपतिरेव॥
गर्भणी के पति को मुण्डन, पिण्डदान तथा प्रेत क्रिया नहीं करनी चाहिये।[हेमाद्रि-चतुर्वर्ग चिन्तामणि, आचार्य कौण्डिल्य] The husband of the pregnant woman should not perform shaving of head, Pind Dan (offerings in the form of wheat-barley dough lobs) and the Pret Kriya (pacification of the deceased's soul) meant for the deceased.
उदन्वतोSम्भसि स्नानं नखकेशशादिकर्तनम्।
अन्तर्वत्न्या: पति: कुर्वन्न प्रजा जायते ध्रुवम्॥
समुद्र के जल में स्नान करने और नख, केश आदि के काटने से गर्भिणी पति की सन्तान नष्ट हो जाती है।[याज्ञवल्क्यस्मृति आचार्य विज्ञानेश्वर प्रणीत मिताक्षरा टीका]
The progeny is lost in the womb-abortion, if the pregnant woman's husband bathe in the ocean, cuts his nails or hair.
वपनं मैथुनं तीर्थ वर्जयेद् गर्भिणीपतिः।
श्राद्धं च सप्तमासान्मासादूर्ध्वं चानयत्र वेदवित्॥
गर्भिणी का पति मैथुन, मुण्डन, तीर्थयात्रा आदि। उसे गर्भ के सात महीने के होने तक श्राद्ध भी नहीं करना चाहिये।[आश्वलायन]
The husband of the pregnant woman should not involve in mating, pilgrimage and shaving the head. He should not perform Shraddh-homage to Manes till the foetus is seven months old.
क्षौरं शवानुगमनं नखकृन्तनं च युद्धादिवास्तुकरणं त्वतिदूरयानम्।
उद्वाहमौपनयनं जलधेश्च गाहमायुःक्षयार्थमिति गर्भिणिकापतीनाम्॥
बाल कटवाना, शव के साथ चलना, नाख़ून काटना, युद्धादि करना (किसी भी प्रकार का अवांछित लड़ाई-झगड़ा), गृहाराम्भ आदि कर्म, बहुत दूर की यात्रा, विवाह, उपनयन तथा समुद्र स्नान; ये सब गर्भिणी के पति की आयु को विनष्ट करने वाले होते हैं।[कालविधान और मुहूर्तदीपिका]
Hair dressing, walking along with dead body, cutting of nails, war-quarrel, unnecessary argument, house building etc., long-distant travel, marriage, rituals-Janeu ceremony, bathing in the oceans etc. leads to shortening of pregnant woman's husband's life span.
चूड़ाकरण (मुण्डन, शिखा) संस्कार अष्टम संस्कार है। अन्नप्राशन संस्कार करने के पश्चात चूड़ाकरण-संस्कार करने का विधान है। यह संस्कार पहले या तीसरे वर्ष में कर लेना चाहिये। द्विजातियों का पहले या तीसरे वर्ष में (अथवा कुलाचार के अनुसार) मुण्डन कराना चाहिये, ऐसा वेद का आदेश है।[मनुस्मृति]
Pregnant woman's husband should not neither climb a mountain nor opt for travelling by boat. He should not perform cremation shaving the head or growing the hair lock.
वपनं दहनं चैव चौलं च गिरीरोहणम्।
नावश्चारोहणं चैव वर्जयेद् गर्भिणीपति॥
गर्भवती स्त्री का पति दाह, मुण्डन, चूड़ाकरण, पर्वतारोहण और नौका वहन आदि कर्म न करे।[गालव ऋषि-रत्न संग्रह] चूड़ाकरण (मुण्डन, शिखा) संस्कार अष्टम संस्कार है। अन्नप्राशन संस्कार करने के पश्चात चूड़ाकरण-संस्कार करने का विधान है। यह संस्कार पहले या तीसरे वर्ष में कर लेना चाहिये। द्विजातियों का पहले या तीसरे वर्ष में (अथवा कुलाचार के अनुसार) मुण्डन कराना चाहिये, ऐसा वेद का आदेश है।[मनुस्मृति]
Pregnant woman's husband should not neither climb a mountain nor opt for travelling by boat. He should not perform cremation shaving the head or growing the hair lock.
"सा यद्यदिच्छेत्तत्तस्यै दापयेत्, लब्धदौहृदा हि वीर्यवन्तं चिरायुषं च पुत्रं जनयति"
दोहद गर्भकालीन इच्छा या गर्भिणी की अभिलाषा को कहते हैं। ऐसी स्त्री अन्नपानादि द्रव्यों की इच्छा रखती है तो दोहवाति कहलाती है। चार माह का गर्भ इन्द्रिय विषयों की इच्छा करने लगता है जिससे उस स्त्री को दो हृदय वाली कहा जाता है। ऐसी अवस्था में स्त्री की उचित इच्छा का प्रतिघात होने से सन्तान विकृत होती है। अतः उचित जरूरतों की पूर्ति आवश्यक है। इससे सन्तान गुणवान, वीर्यशाली और चिरायु होती है। इस काल में स्त्री जिस चीज की कामना करती है, वह उन्हीं पदार्थों के समान शरीर, आचार और स्वभाववाली सन्तान को उत्पन्न करती है। उसकी इच्छाओं के अनुरूप ही उसका सन्तान होती है।[सुश्रुत संहिता, शारीर स्थान 3.18]
Once the foetus is four months old, its heart palpitating & it starts desiring for food. Thus the woman is called bearing two hearts. During this phase her genuine desires may be fulfilled. Crushing of her desires leads to the defective progeny in terms limbs, mentality. Fulfilment of her wishes during this phase-period leads to the birth of a good child, who has long life. The mentality-destiny is shaped as per the women's mentality in this period. The child's body, mental state evolves as per its deeds in previous incarnations.
आयुष्य मन्त्र ::
"सा यद्यदिच्छेत्तत्तदस्यै दद्यादन्यत्र गर्भोपघातकरेभ्यो भावेभ्य:"
गर्भिणी स्त्री को खाने के लिये वही वस्तुएँ दी जानी चाहिये जो उसे प्रिय अर्थात (शारीरिक और मानसिक रूप से) लाभकारी हों। इससे उसके गर्भ की रक्षा होती है।[चरक शारीर 4.17]
The pregnant woman should be served with only those food items which are good for her physical and mental health. It helps in the protection of her foetus.
दौर्ह्रदयदस्याप्रदानेन गर्भो दोषमवाप्नुयात्।
वैरूप्यं मरणं वापि तस्मात् कार्यं प्रियं स्त्रियाः॥
गर्भिणी की खाने-पीने की शास्त्र सम्मत अभिलाषाओं को पूरा करने से गर्भ सुरक्षित, विकारमुक्त, दोषरहित हो जाता है और उसके नष्ट होने की संभावना नहीं रहती।[याज्ञवल्क्य स्मृति प्रायश्चित 79]
चार महिने के गर्भस्थ शिशु का ह्रदय धड़कने लगता है और यह रक्त वाहिनियों के माध्यम से पोषण ग्रहण करने लगता है। वह अपने पूर्ववर्ती-पूर्वजन्मों के संस्कारों के आधीन भोजन की इच्छा करता है। वह इच्छा माँ के माध्यम से प्रकट होती है।
The pregnant should be served such healthy food which is prescribed in scriptures to protect the foetus in the womb, its well being, making it defectless, safe and healthy. It eliminates the chances of abortion, ensures safe delivery protecting both mother and the child.
The heart of the foetus start palpitating soon after four months and it start nourishment through its blood carriers. It makes desires for the food as per impressions of its previous incarnations.
कार्य विधि METHODOLOGY ::
After the marriage, the woman should pray to Bhagwan Sury wearing ornaments and new cloths after four days of menstrual cycle is over, maintaining silence along with her husband with the above mentioned Mantr.
उसके बाद उसी दिन या षोडश रात्रि के पहले किसी दिन जब गर्भाधानानुकूल तिथि-नक्षत्र युक्त शुभ दिन उपस्थित हो, उस दिन सूर्यावलोकन आदि करके, गणेश जी महाराज, माँ अम्बिका-भगवती ग़ौरी पार्वती की पूजा करके, स्वस्तिपुण्याहवाचन, षोडश मातृका पूजन, वसोर्धारा पूजन, आयुष्य मन्त्र जप तथा सांकल्पिक विधि से नान्दी मुख श्राद्ध; स्त्री पति के साथ करे।
The woman along with her husband should perform Nandi Mukh Shraddh, on the same day or the expiry of 16 nights when suitable constellation formation or a suitable date is available, having prayed to Bhagwan Sury-Sun, Ganesh Ji Maharaj and Maa Bhagwati Ambe-Parwati. She should perform, "Swasti Punyah Vachan, Shodas Matrka Pujan, Vasordhara Pujan, recitation of Ayushy Mantr" with the help of procedures described in scriptures for such performances.
षोडश मातृका ::
कार्य विधि METHODOLOGY ::
ॐ आदित्यं गर्भं पयसा समङ्धि सहस्रस्य प्रतिमां विश्वरूपम्।
परि वृङ्धि हरसा माSभि मनस्था: शतयूषं कृणुहि चीयमान:॥
विवाह के अनन्तर रजोदर्शन के बाद चौथे दिन ऋतुस्नान करके स्त्री प्रातः काल आभूषण आदि से सुसज्जित होकर तथा नवीन वस्त्र धारण कर मौनव्रत करके पति के साथ भगवान् सूर्य के सम्मुख हाथ जोड़कर उपरोक्त आराधना करे। After the marriage, the woman should pray to Bhagwan Sury wearing ornaments and new cloths after four days of menstrual cycle is over, maintaining silence along with her husband with the above mentioned Mantr.
उसके बाद उसी दिन या षोडश रात्रि के पहले किसी दिन जब गर्भाधानानुकूल तिथि-नक्षत्र युक्त शुभ दिन उपस्थित हो, उस दिन सूर्यावलोकन आदि करके, गणेश जी महाराज, माँ अम्बिका-भगवती ग़ौरी पार्वती की पूजा करके, स्वस्तिपुण्याहवाचन, षोडश मातृका पूजन, वसोर्धारा पूजन, आयुष्य मन्त्र जप तथा सांकल्पिक विधि से नान्दी मुख श्राद्ध; स्त्री पति के साथ करे।
The woman along with her husband should perform Nandi Mukh Shraddh, on the same day or the expiry of 16 nights when suitable constellation formation or a suitable date is available, having prayed to Bhagwan Sury-Sun, Ganesh Ji Maharaj and Maa Bhagwati Ambe-Parwati. She should perform, "Swasti Punyah Vachan, Shodas Matrka Pujan, Vasordhara Pujan, recitation of Ayushy Mantr" with the help of procedures described in scriptures for such performances.
षोडश मातृका ::
गौरी पद्मा शची मेधा, सावित्री विजया जया।
देवसेना स्वधा स्वाहा, मातरो लोकमातरः॥
धृतिः पुष्टिस्तथा तुष्टिः, आत्मनः कुलदेवता।
गणेशेनाधिका ह्येता, वृद्धौ पूज्याश्च षोडश॥
वसोर्धारा ::
ॐ वसो: पवित्रमसि शतधारं, वसो: पविमसि सहस्रधारम् देवस्त्वा सविता पुनातु वसो:; पवित्रेण शत धारेण सुत्वा, कामधुक्ष: स्वाहा।
ॐ आयुष्यं वर्चस्यं रायस्पोषमौभ्विदम्।
इदं हिरण्य वर्चस्वज्जैत्राया विशतादुमाम्॥
नतद्रक्षां सिन पिशाचास्तरन्ति देवानामोज: प्रथमजं त्व्योतत्। यो विभत्र्ति दाक्षायणं हिरण्यं स देवेषु कृणुते दीर्घमायुः स मनुष्येषु कृणुते दीर्घमायुः॥
यदाबन्ध्रन्दाक्षयाणा हिस्यं शतानीकाम समन्स्य।
यन्म आबन्धामि शतशारदाया युष्मान् जरदष्टिर्यधासम्॥
यदापुष्यं चिरं देवाः सप्त कल्पान्त जीविषु ददुस्तेनायुषा सम्यक् जीवन्तु शरदः शतम्। दीर्घा नागा नगा नद्योऽन्त स्सप्तार्णवा दिश। अनन्तेनायुषा तेन जीवन्तु शरदः शतम्। सत्यानि पञ्च भूतानि विनाशरहितानि च। अविनाश्यायुषा तद्व ज्जीवन्तु शरदः शतम्॥
गर्भाधान सम्बन्धी ये क्रियाएँ-विधान प्रथम गर्भाधान के पहले केवल एक बार करने की आवश्यकता है। अगर अज्ञानतावश पहली बार यह नहीं किया जा सके तो जातक को दूसरी-अगली बार इसे करना चाहिये। जातक को इन्हें विस्तार पूर्वक जानना हो तो संस्कार दीपक, कर्मकाण्ड प्रदीप जैसे ग्रथों का अध्ययन करना चाहिये।
These-Shloks, procedural rituals-methodology have to be adopted prior to first pregnancy. If one is unable to do so, he may do it next time. Details of these methods have been explained in Sanskar Deepak, Karm Kand Pradeep etc. scriptures-books.
सर्वांगपूर्ण विधि ::
प्रतिज्ञा-संकल्प :- ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु: श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णो-राज्ञया प्रवर्तमानस्य ब्रह्मणो द्वितीयपरार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे जम्बूद्वीपे भारतवर्षे आर्यावर्तैकदेशे (यदि जातक काशी में हो तो अविमुक्तवाराणसीक्षेत्रे आनन्दवने गौरीमुखे त्रिकन्टकविराजिते महाश्मशाने भगवत्या उत्तरवाहिन्या भागीरथ्या वामभागे)...नगरे/ग्रामे/क्षेत्रे षष्टिसंवत्सराणां मध्ये ...संवत्सरे..अयने...ऋतौ...मासे...पक्षे...तिथौ...नक्षत्रे...योगे...करणे...वासरे...राशिस्थिते...सूर्ये...राशिस्थिते चन्द्रे शेषेषु ग्रहेषु यथायथाराशिस्थानस्थितेषु सत्सु एवं ग्रहगुणगणविशिष्टे शुभमुहूर्ते...गौत्र: सपत्नीक:..शर्मा/गुप्त/राणा/गुप्तोSहं अस्या: वध्वा: संस्कारातिशयद्वारा अस्यां जनिष्यमाणसर्वगर्भाणां बीजगर्भसमुद्भवैनोनिबर्हणद्वारा श्रीपरमेश्वरप्रीतये गर्भाधानसंस्कारं करिष्ये। तत्पूर्वाङ्गत्वेन गणेशाम्बिकापूजनं स्वस्तिपुण्याहवाचनं मातृकापूजनं वसोर्धारापूजनं आयुष्यमन्त्रजपं साङ्कल्पिकेन विधिना नान्दीमुखश्राद्धं च करिष्ये।
तत्पश्चात विधि-विधान पूर्वक गणपति, माँ अम्बिका पूजन-आराधना, पञ्चांग आदि कर्म करें। नाभि स्पर्श मन्त्र :: इसके पश्चात् उसी दिन अथवा सोलह दिन के पहले किसी शुभ रात्रि के दूसरे प्रहर में दाहिने हाथ से अपनी स्त्री की नाभि का स्पर्श करते हुए यह मन्त्र पढ़ें :-
ॐ विष्णुर्योनिं कल्पयतु त्वष्टा रूपाणि पि:शतु।
आसिञ्चतु प्रजापतिर्धाता गर्भं दधातुते॥
स्त्री का अभिमन्त्रण :: पूर्व अथवा उत्तर दिशामुख होकर अपनी पत्नी को निम्न मन्त्र से अभिमंत्रित करें :-
ॐ गर्भ धेहि सिनीवालि गर्भं धेहि पृथुष्टुके।
गर्भं ते अश्वनौ देवावाधत्तां पुष्करस्रजौ॥
वीर्यदान :: तदनन्तर स्वस्थ और प्रसन्न मन से अपनी प्रसन्न, उद्वेग रहित, पति को चाहने वाली स्त्री को उत्तम शय्या पर दो घड़ी रात बीत जाने के बाद वीर्यदान करें। इस प्रक्रिया में निम्न मन्त्र का उच्चारण करें :-
ॐ गायत्रेण त्वा छन्दसा परिगृह्णामि त्रैष्टुभेन त्वा छन्दसा परिगृह्णामि जागतेन त्वा छन्दसा परिगृह्णामि। सूक्ष्मा चासि शिवा चासि स्योना चासि सुषदा चास्युर्जस्वती चासि पयस्वती च॥ [शु. यजु. 1.27]
ॐ रेतो मूत्रं वि जहाति योनिं प्रविशदिन्द्रियम्।
गर्भों जरायुणाSSवृत उल्बं जहाति जन्मना॥
ऋतेन सत्यमिन्द्रियं विपानं शुक्रमन्धस इन्द्रस्येन्द्रियमिदं पयोSमृतं मधु॥[शु.यजु. 17.76]
One may involve in mating with his wife with the desire of progeny on suitable date and constellation formation. He should ensure he and his wife both have perfect health and good mood. The process may begin around midnight. The Mantr given above may be recited. One should cool, calm, composed, happy and free from tensions (aberrations).
हृदया लम्भन विधि :: अभिगमन-वीर्यदान के बाद पवित्र होकर स्त्री को अपने वामभाग में बैठाकर, उसके दाहिने कन्धे के ऊपर से हाथ ले जाकर उसके हृदय देश को स्पर्श करे। उस समय यह मन्त्र उच्चारण करे :-
तदनन्तर ताम्बूल आदि का सेवनकर रात्रि में सुखपूर्वक शयन करे। प्रातःकाल स्नानादि से निवृत्त होकर ब्राह्मण भोजन का संकल्प करे। आचार्यादि ब्राह्मणों को दक्षिणा प्रदानकर मातृकाओं का विसर्जन करे।
After that he may consume beetle leaves and sleep comfortably. In the morning he should take bath and take oath for the feeding Brahmns. He should distribute gifts. alms to the elders, Brahmns etc. and retire the Matrkas i.e., immerse the remains of the Yagy-Hawan in ponds, flowing waters.
With the changing times, values-morals, culture are eroding and very few people are aware of the procedures to be adopted for the mating as per scriptures. Its merely animal sex now a days. The procedures are typical and intricate for a normal human being. One may adopt Sankalp-Oath as follows and grants sufficient money-Dakshina to the Brahmns, who perform these rites for him and recite the Mantrs given earlier as per direction of the Purohit-Achary.
हृदया लम्भन विधि :: अभिगमन-वीर्यदान के बाद पवित्र होकर स्त्री को अपने वामभाग में बैठाकर, उसके दाहिने कन्धे के ऊपर से हाथ ले जाकर उसके हृदय देश को स्पर्श करे। उस समय यह मन्त्र उच्चारण करे :-
ॐ यत्ते सुसीमे हृदयं विधि चन्द्रमसि श्रितम्।
वेदाहं तन्मां तद्विद्यात्पश्येम शरदः शतं जीवेम शरदः शत: श्रुणुयाम शरदः शतम्॥
After mating one should cleanse himself, let his wife sit to his left, move his hand over her right shoulder, touch her heart-breasts and recite the above Mantr. तदनन्तर ताम्बूल आदि का सेवनकर रात्रि में सुखपूर्वक शयन करे। प्रातःकाल स्नानादि से निवृत्त होकर ब्राह्मण भोजन का संकल्प करे। आचार्यादि ब्राह्मणों को दक्षिणा प्रदानकर मातृकाओं का विसर्जन करे।
After that he may consume beetle leaves and sleep comfortably. In the morning he should take bath and take oath for the feeding Brahmns. He should distribute gifts. alms to the elders, Brahmns etc. and retire the Matrkas i.e., immerse the remains of the Yagy-Hawan in ponds, flowing waters.
With the changing times, values-morals, culture are eroding and very few people are aware of the procedures to be adopted for the mating as per scriptures. Its merely animal sex now a days. The procedures are typical and intricate for a normal human being. One may adopt Sankalp-Oath as follows and grants sufficient money-Dakshina to the Brahmns, who perform these rites for him and recite the Mantrs given earlier as per direction of the Purohit-Achary.
संकल्प :: ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु: श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णो-राज्ञया प्रवर्तमानस्य ब्रह्मणो द्वितीयपरार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे जम्बूद्वीपे भारतवर्षे आर्यावर्तैकदेशे (यदि जातक काशी में हो तो अविमुक्तवाराणसीक्षेत्रे आनन्दवने गौरीमुखे त्रिकन्टकविराजिते महाश्मशाने भगवत्या उत्तरवाहिन्या भागीरथ्या वामभागे)...नगरे/ग्रामे/क्षेत्रे षष्टि-संवत्सराणां मध्ये ...संवत्सरे..अयने...ऋतौ...मासे...पक्षे...तिथौ...नक्षत्रे...योगे...करणे...वासरे...राशिस्थिते...सूर्ये...राशिस्थिते चन्द्रे शेषेषु ग्रहेषु यथायथाराशिस्थानस्थितेषु सत्सु एवं ग्रहगुणगणविशिष्टे शुभमुहूर्ते...शर्मा/गुप्त/राणा/गुप्तोSहं अस्मिन् गर्भाधानसंस्कारकर्मणि स्वस्तिपुण्याहवाचनं षोडश-मातृकापूजनं वसोर्धारापूजनं आयुष्यमंत्रजपं सांकल्पिकनान्दीश्राद्धं इत्येतेषां कर्मणां शास्त्रोक्तविधिपरिपालनोद्देश्येन स्वर्णं (निष्क्रयद्रव्यं)...गोत्राय ब्राह्मणाय भवते सम्प्रददे।
ऐसा उच्चारण करके ब्राह्मण को दक्षिणा प्रदान करे। तदनन्तर गर्भाधानात्मक मन्त्रों का अपकर्षण करे।
Having said this, one should grant Dakshina to the Brahmn and complete the ceremony with the recitation of the prescribed Mantrs.
अपकर्षण हेतु संकल्प ::
ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु: अद्य यथोक्तगुणविशिष्टतिथ्यादौ अस्याः मम भार्यायाः प्रथमगर्भातिशयद्वारा अस्यां जनिष्यमाण सर्वगर्भाणां बीजगर्भसमुद्भवैनोनिबर्हणार्थ गर्भाधानसंस्कारसम्बन्धि- निशिवहितकर्मसम्बन्धिमन्त्रणां अज्ञानादेहितुभिः पाठासम्भवात् सम्प्रति अपकृष्य गर्भाधानाख्यसंस्कारसम्बन्धीमन्त्रणां पाठं ब्राह्मणद्वारा कारयित्वा गर्भाधानाख्यसंस्कारं करिष्ये।
नाभि स्पर्श हेतु मन्त्र ::
ॐ विष्णुर्योनि कल्पयतु त्वष्टा रूपाणि पिंशतु।
असिञ्चतु प्रजापतिर्धाता गर्भं दधातु ते॥
भगवान् विष्णु तुम्हारी योनि को पत्रोत्पत्ति के हेतु सक्षम बनायें। सवितादेव हम दोनों के पुत्र को दर्शन योग्य बनायें। प्रजापति मेरे हृदय में स्थित होकर तुझमें वीर्य का आधान करें। धाता तुम्हारे गर्भ को पुष्ट करें।
धाता :: धाता दूसरे आदित्य हैं । इन्हें श्री विग्रह के रूप में जाना जाता है। ये प्रजापति के रूप में जाने जाते हैं। जन समुदाय की सृष्टि में इन्हीं का योगदान है। जो व्यक्ति सामाजिक नियमों का पालन नहीं करता है और जो व्यक्ति धर्म का अपमान करता है, उन पर इनकी नजर रहती है। इन्हें सृष्टिकर्ता भी कहा जाता है।
Let Bhagwan Shri Hari Vishnu prepare-enable your uterus for bearing a son. Savita Dev-Sun make our on handsome-smart. Prajapati (Brahma JI) may acquire my heart (body) and transfer the sperm in your uterus. Let Dhata nourish your foetus.
If an individual in unable to recite this prayer in Sanskrat, he may do so in Hindi or English. It will benefit him equally and serve the purpose provided he do so with dedication.
अभिमन्त्रण मन्त्र ::
Hey, Siniwali Devi-goddess & Prathushtka Devi bearing broad thighs! Kindly grant power to wear pregnancy to this woman-my wife. Let both Ashwani Kumars wearing garlands made of Louts flowers nourish your foetus.
वीर्य दान का मन्त्र ::
अभिमन्त्रण मन्त्र ::
ॐ गर्भ धेहि सीनिवालि गर्भं धेहि पृथुष्टुके।
गर्भं ते अश्विनौ देवावाधत्तां पुष्करस्रजौ॥
हे सीनिवालि देवी! एवं हे विस्तृत जंघनों वाली पृथुष्टुका देवी! आप इस स्त्री को गर्भ धारण करने की सामर्थ्य प्रदान करें। कमलों की माला से सुशोभित दोनों अश्वनी कुमार तेरे गर्भ को पुष्ट करें। Hey, Siniwali Devi-goddess & Prathushtka Devi bearing broad thighs! Kindly grant power to wear pregnancy to this woman-my wife. Let both Ashwani Kumars wearing garlands made of Louts flowers nourish your foetus.
वीर्य दान का मन्त्र ::
ॐ गायत्रेण त्वा छन्दसा परिग्रह्रामि त्रैष्टुभेन त्वा छन्दसा परिग्रह्रामि जागतेन त्वा परिग्रह्रामि। सूक्ष्मा चासि शिवा चासि स्योना चासि सुषदा चास्युर्जसवती चासि पयस्वती च॥
मैं तुम्हें गायत्री, त्रिष्टुभ् तथा जगती छन्द के द्वारा ग्रहण करता हूँ। हे वेदभूमे! तुम शोभना हो। तुम शान्त हो। तुम सुख स्वरूप हो। तुम आनन्द से बैठने योग्य हो। तुम अन्नवाली हो और तुम जलवाली हो।[शु.यजु. 1.27]
I accept you through Gayatri, Trishtubh and Jagti Chhand! Hey Ved Bhume! You are cute-beautiful. You are quite-passive. You are like pleasure. You are embodiment of pleasure. You are meant to have comforts. You have food grains and you have water.
The pennies discharges sperms in the vagina. It rejects urine else where. The foetus rejects the membrane soon after birth. Its a law. The association of right-correct is acceptable. The Som drink (Som Ras) after purifying gives strength-power to the sense organs, body. The milk should be like elixir to the Indr.
Som is rare but milk can be consumed by the person to gain strength. Indr is synonym to Indriy-senses, here. Indr represents the almighty as well.
ह्रदयालम्भन मन्त्र ::
Hey Devi-goddess bearing attractive hair (Used for wife, here)! I understand your mood-gestures, heart, looking all around (the earth, sky and the Luna). At this moment please consider me your husband. In this manner we should look forward for 100 years, survive for 100 years and hear for 100 hundred years.
The pair pray to God that they may survive for 100 years in healthy state, free from diseases & perfect mental state.
ॐ रेतो मूत्रं वि जहाति योनिं प्रविशदिन्द्रियम्। गर्भों जरायुणाSSवृतं उलबं जहाति जन्मना॥ऋतेन सत्यमिन्द्रियं विपानं शुक्रमन्थस इन्द्रस्येन्द्रियमिदं पयोSमृतं मधु॥[शु.यजु. 19.76]
मनुष्य की जननेंद्रिय योनि में प्रविष्ट होकर उसमें वीर्य का आधान करती है, परन्तु वही अन्यत्र मूत्र का परित्याग करती है। इसी प्रकार जरायु से लिपटा हुआ गर्भ जन्म लेने पर झिल्ली को छोड़ देता है। इस सत्य नियम से यही सत्य निकलता है कि उचित का साथ स्वीकार्य है। अतः शुद्ध करके पिया गया सोम इन्द्रियों को बल देने वाला होता है। यह दूध भी इन्द्र के लिये अमृत स्वरूप हो। The pennies discharges sperms in the vagina. It rejects urine else where. The foetus rejects the membrane soon after birth. Its a law. The association of right-correct is acceptable. The Som drink (Som Ras) after purifying gives strength-power to the sense organs, body. The milk should be like elixir to the Indr.
Som is rare but milk can be consumed by the person to gain strength. Indr is synonym to Indriy-senses, here. Indr represents the almighty as well.
ह्रदयालम्भन मन्त्र ::
ॐ यत्ते सुसीमे हृदयं दिवि चन्द्रमसि श्रितम्।
वेदाहं तन्मां तद्विद्यात्पश्येम शरदः शतं जीवेम शरदः शतम् श्रुणुयाम शरदः शतम्॥
हे सुन्दर सीमन्त वाली देवी! मैं द्युलोक, आकाश तथा चन्द्रमा में स्थित तुम्हारे हृदय को जानता हूँ, किन्तु वह हृदय-चित्त इस समय मुझे पतिभाव वाला समझे। इस प्रकार सम्मनस्क होकर हम दोनों सौ वर्षों तक देखें, सौ वर्षों तक जीवित रहें और सौ वर्षों तक सुनें। Hey Devi-goddess bearing attractive hair (Used for wife, here)! I understand your mood-gestures, heart, looking all around (the earth, sky and the Luna). At this moment please consider me your husband. In this manner we should look forward for 100 years, survive for 100 years and hear for 100 hundred years.
The pair pray to God that they may survive for 100 years in healthy state, free from diseases & perfect mental state.
सा यदि गर्भं न दधीत सिंहृा स्वेतपुष्प्या उपोष्य पुष्पेण मूल पुत्थाप्या चतुर्थेSहनि स्नातायां निशायामुदपेषं पिष्ट्वा दक्षिणस्यां नासिकायामसिञ्चति॥
यदि स्त्री गर्भ धारण नहीं कर पा रही हो तो उसका पति पुष्य नक्षत्र में शुभ दिन देखकर उपवास करे और श्वेत पुष्पवाली कण्टकारिका-भटकटैया या कटेरी अथवा शिफ़ा की जड़ उखाड़ लाये और उसको जल के साथ पीसकर उसका रस स्त्री के दाहिने नथुने से सुँघाये तथा कुछ बूंदें नाक में छोड़े। इस प्रक्रिया के दौरान उसे निम्न मन्त्र का उच्चारण भी करते रहना चाहिये।
In case his wife is unable to conceive the husband should uproot either Kantkarika-Bhatkaeya or Kateri or Shipha bearing white flowers and let her smell the paste of its roots prepared in water and drop a few drops in her nostrils as well. He should recite the Mantr quoted above, while performing this.
In case his wife is unable to conceive the husband should uproot either Kantkarika-Bhatkaeya or Kateri or Shipha bearing white flowers and let her smell the paste of its roots prepared in water and drop a few drops in her nostrils as well. He should recite the Mantr quoted above, while performing this.
ॐ इयमोषधी त्रायमाणा सहमाना सरस्वती।
अस्य अहं बृहत्या: पुत्र: पितुरिव नाम जग्रभम्॥
यह बृहती-कण्टकारी नामक औषधि व्याधियों का नाश करने वाली तथा रक्षा करने वाली है। यह उत्पन्न दोषों को दूर करती है तथा वाणी का परिष्कार करनेवाली है। इस स्त्री-मेरी पत्नी का पुत्र समान ही गुणवाला हो।
This Herb named Brahati-Kantkari is capable of removing the diseases-ills,-odds and protects the consumer. It cure the defects in the body and corrects the defects in speech-voice, tongue. Let the son produced by this woman-my wife have characters identical to me.
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संतोष महादेव-सिद्ध व्यास पीठ, बी ब्लाक, सैक्टर 19, नौयडा
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