Monday, March 10, 2014

PRE NATAL RITES पुंसवन संस्कार :: HINDU PHILOSOPHY (4.2) हिन्दु दर्शन

पुंसवन संस्कार 
 HINDU PHILOSOPHY (4.2) हिन्दु दर्शन 
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
By :: Pt. Santosh Bhardwaj
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ॐ गं गणपतये नम:।
अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।
निराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि
[श्रीमद्भगवद्गीता 2.47]
"पुंस सवनं स्पन्दनात्पुरा"[याज्ञ.आचार.11]
इस संस्कार से भ्रूण नर-पुरुष का शरीर धारण करता है। 
The foetus attains the physique of a male due to this procedure.
"पुमान् सूयते येन कर्मणा तदिदं पुंसवनम्"
जिस कर्म से पुरुष का प्रसव-पुत्र का जन्म हो, उस गर्भ सस्कार का नाम पुंसवन है। 
The procedure which leads to birth of a male child is termed as Punsvan. 
पुंसवन अर्थात गर्भ में किञ्चित सवन-स्पन्दन, गति, हिलना-डुलना आदि होने लगे, तब यह संस्कार किया जाना चाहिये। इसको स्पन्दन से पूर्व भी क्या जा सकता है। 
Punsvan means movement of the foetus in the womb i.e., palpitation, motion, tilting. It may be performed prior to movement of the foetus.
जन्म से पहले किया जाने वाला यह संस्कार गर्भाधान के उपरांत किया जाता है। गर्भधान के होने के बाद से ही स्त्री को बेहद सावधानी से रहना चाहिये, क्योंकि तीसरे और चौथे महीने तथा आठवें महीने में गभपात की आशंका रहती है; इसीलिए गर्भ की रक्षा हेतु इन महीनों में पुंसवन और सीमन्तोन्नयन सस्कार का विधान है।  
Since, during the 3rd, 4th and the 8th months of pregnancy, there is great danger of abortion. This procedure is adopted prior to birth of the child after pregnancy-conception. The pregnant woman should be extremely careful during this phase. Its due to this reason that Punsvan and Seemantonnyan Sanskars are performed. 
गर्भ जब तीन माह का हो उस समय पुंसवन संस्कार करना चाहिये। चार मॉस तक गर्भ में नर-मादा का भेद नहीं होता, अतः लिंग भेद की उत्पत्ति के पहले ही इसे किया जाना चाहिये। [व्यास स्मृति]
Punsvan Sanskar should be performed when the fetus is 3 months old. Till 4 months of pregnancy, its not possible to differentiate the sex (male or female) of the fetus. Therefore, it has to be performed prior to determination of sex. 
जीवितो वाक्यकरणात् क्षयाहे भूरिभोजनात्। 
गयायां पिण्डदानाच्य त्रिभि: पुत्रस्य पुत्रता
पुत्र की सार्थकता इसमें हैं कि वह जीते जी माता-पिता की आज्ञा का पालन करे, उनके मरने के बाद क्षयाय तिथि को उनके निमित्त ब्राह्मण भोजन कराये और गया में पिण्डदान करे।पुंसवन संस्कार का मूल उद्देश्य यही है। [देवीभागवत 6.4.15]
The birth of a son is fruitful-rewarding in obeying his parents directives-orders and feed Brahmns after their death on the date of their death during Shraddh period and conduct Shraddh Karm in Gya. 
This is the motive behind performing Punsvan Sanskar. 
पुंसवन (गर्भ संस्कार अथवा क्षेत्र संस्कार) :: 
पुंसवन संस्कार गर्भावस्था का है, अतः गर्भस्थ संस्कार होने के कारण इसे प्रत्येक गर्भावसर पर करना चाहिये।[धर्मसिन्धु] 
Its a procedure to be adopted on being pregnant. Therefore it may be held with each pregnancy.
यह मातृक्षेत्र का संस्कार है, अतः पुंसवन तथा सीमन्तोन्नयन को केवल एक बार करना चाहिये।[आचार्य विज्ञानेश्वर]
This procedure is mother based; therefore it should be performed only once.
ये दोनों ही क्षेत्र संस्कार हैं, अतः इन्हें पहली बार गर्भ ठहरने पर ही करना चाहिये, प्रत्येक गर्भ ठहरने पर नहीं।
Punsvan and Seemantonnyan  are female related procedures, therefore they may be performed only after pregnancy. They need not be repeated each and every time of pregnancy. 
सकृच्च संस्कृता नारी सर्वगर्भेषु संस्कृता। 
यं यं गर्भं प्रसूयेत स सर्व: संस्कृतो भवेत्॥ 
गर्भिणी स्त्री पहली बार संस्कार हो जाने पर ही संस्कृत हो जाती है और उसे दुबारा उस प्रक्रिया से गुजरने की जरूरत नहीं रहती। फिर भी इस व्यवस्था को देशाचार के अनुरूप निभाया जाता है।  
The woman is considered to have undergone the Punsvan and Seemantonnyan Sanskars with the first pregnancy and need not be inducted over each occasion of pregnancy. However, the opinion depend over the regional feeling, traditions.
गर्भ के दूसरे अथवा तीसरे महीने अथवा जैसे ही इसका पता लगे इसको करना चाहिए।  अगर भूल से यह छूट भी जाये तो इसे सीमन्तोन्नयन के साथ कर लेना चाहिए।  
Punsvan Sanskars may be done in the second, third month after pregnancy or as soon pregnancy is noticed. If one misses this procedure it may be performed with Seemantonnyan Sanskar.
व्यक्ते गर्भे तृतीय तु मासे पुंसवनं भवेत्। 
गर्भेSव्यक्त तृतीये चेच्चतुर्थे मासि वा भवेत्[वीरमित्रोदय-आचार्य शौनक]
तीसरे महीने में गर्भ के लक्षण प्रकट हो जायें तो तीसरे ही महीने में अन्यथा चौथे महीने में इसे कर लेना चाहिये। 
Achary Shounak says that it may be carried if the signs of pregnancy are there in the third month itself, other wise it has to be held in the fourth month. 
अनवलोभन कर्म-गर्भ रक्षण :: 
येन कर्मणा जातो गर्भो नावलुप्यते तदनवलोभनम्।  
जिस क्रिया के द्वारा गर्भ की रक्षा हो वह अनवलोभन कर्म है। 
The actions which protects the fetus are termed as Anvalobhan. 
इसका उद्देश्य गर्भ को पुष्ट करना है। यह पुंसवन संस्कार की सहयोगी-पूरक क्रिया है। यह भी गर्भ धारण के चतुर्थ माह में जब चन्द्रमा पुष्य आदि परुषवाची नक्षत्र में हो, पुंसवन संस्कार के साथ की जाती है। इसमें विशेष विधि से श्वेत दुर्वारस का सेचन गर्भिणी के दक्षिण नासिका छिद्र में अँगूठे के अग्र भाग से किया जाता है और पति के द्वारा उसके हृदय का स्पर्श किया जाता है। [चरक और सुश्रुत] 
The aim is to nourish the fetus. Its a complementary activity of Punsvan Sanskar. Its carried out when the fetus is four months old & the Moon is present in the Pushy Nakshtr representing a male, along with Punsvan Sanskar. A special procedure is adopted for dropping the fluid-extract (white fluid) obtained from Durva grass and dropped in the left nostril of the pregnant woman with the help of the tip of thumb, followed by touching of heart-Brest of the wife by the husband.
जातक को चाहिए कि ज्योतिषी-पुरोहित के द्वारा निर्दिष्ट शुभ मुहूर्त में नित्य क्रिया करके स्नानादि से पवित्र होकर पूर्वमुख होकर अपने दाहिने भाग में पत्नी को बैठाकर दीप प्रज्वलित करके आचमन, प्राणायाम, आसन शुद्धि आदि के द्वारा पुंसवन संस्कार सम्पन्न करने के लिये निम्न संकल्प करे। उस समय पत्नी को उपवास रखना चाहिये।
CONDUCTING PUNSVAN SANSKAR :: The expecting father should consult his astrologer-Priest to choose a suitable-favourable time to conduct the Punsvan Sanskar. He should refresh himself by bathing etc., occupy a seat facing east, lighten a lamp (earthen, brass, silver or gold), perform procedures like pouring water, Pranayam (deep breathing, relaxing and releasing air through the nostrils), purifying of the seat; let his fasting wife sit by his left side and be ready for Sankalp-oath-vow as follows (He should perform all these actions under the guidance-instructions of the family priest) :-
संकल्प :- ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु: श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णो-राज्ञया प्रवर्तमानस्य ब्रह्मणो द्वितीयपरार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे जम्बूद्वीपे भारतवर्षे आर्यावर्तैकदेशे (यदि जातक काशी में हो तो अविमुक्तवाराणसीक्षेत्रे आनन्दवने गौरीमुखे त्रिकन्टकविराजिते महाश्मशाने भगवत्या उत्तरवाहिन्या भागीरथ्या वामभागे)...नगरे/ग्रामे क्षेत्रे...षष्टिसंवत्सराणां...मध्ये...संवत्सरे..अयने...ऋतौ...मासे...पक्षे...तिथौ...नक्षत्रे...योगे...करणे...वासरे...राशिस्थिते...सूर्ये...राशिस्थिते चन्द्रे शेषेषु ग्रहेषु यथायथाराशिस्थानस्थितेषु सत्सु एवं ग्रहगुणगणविशिष्टे शुभमुहूर्ते...गौत्र: सपत्नीक:..शर्मा/गुप्त/राणा/गुप्तोSहं ममस्यां भार्यायां विद्यमानगर्भपुंस्त्वप्रतिपादनबीजगर्भसमुद्भवैनोनिबर्हणद्वारा  पुंरुपतोदयप्रतिरोध-कर्मपरिहार द्वारा च श्रीपरमेश्वरप्रीतये पुंसवनाख्यसंस्कारकर्म करिष्ये। तत्र पूर्वाङ्गतया गणेशाम्बिकापूजनं स्वस्तिपुण्याहवाचनं मातृकापूजनं साङ्कल्पिकेन विधिना नान्दीमुखश्राद्धं च करिष्ये।
तत्पश्चात विधि-विधान पूर्वक गणपति, माँ अम्बिका पूजन-आराधना, पञ्चांग आदि कर्म करें। 
Having undertaken the vow one should resort to prayers dedicated to Ganpati Maharaj and Maa Amba in addition to Panchang Karm etc.
पुंसवन सस्कार प्रधान कर्म :: मातृपूजा आदि सम्पन्न करके वट वृक्ष के निचले भाग में उत्पन्न हुए अंकुरों तथा शाखाओं के ऊपर अग्रभाग में उत्पन्न हुए नए पत्तों के बीच में पैदा हुए अंकुरों तथा कुश की जड़ और सोमलता (सोमलता* न होने पर पुटिका या दूब घास से काम चलायें) को लाकर साफ पानी के साथ पीसकर, उसके रस को साफ़ कपड़े से छानकर किसी बर्तन में सुरक्षित कर लें। उसके बाद पति, पत्नी की नाक के दाहिने छेद में इस रास को डाले।
Having completed Matrka Pujan, one should collect and crush the new leaves grown near the root of a Banyan tree & the roots of Kush grass mixed with Som Lata, filter the extract-juice in a clean cloth, store it in a pot and drop it in the right nostril of his wife.
*(1). सोमाभावे पूतिका पूतिकाभावे दूर्वा।
[कात्यायन श्रौत सूत्र] 
(2). सोमलताभावे गुडूचीलता ब्राह्मी व ग्राह्या। 
[संस्कार भास्कर-ईश्वर भट्टी] 
आचमन :: रस को डालते हुए इन दो मन्त्रों का पाठ करे :- 
ॐ हिरण्य गर्भ: समवर्तताग्रे भूतस्य जात: पतिरेक आसीत्। 
स दाधार पृथिवीं द्यामुतेमां कस्मै देवाय हविषा विधेम 
अद्भ्य: सम्भृतः पृथिव्यै रसाच्च विश्वकर्मण: समवर्तताग्रे। 
तस्य त्वष्टा विदधद् रूपमेति तन्मर्त्यस्य देवत्वमाजानमग्रे॥ 
After dropping the juice in his wife's nostrils, he should recite the two Mantr mentioned above.
वीर्यवान् पुत्र प्राप्ति के लिए सकाम प्रयोग :: वीर्यवान् पुत्र के कामना हो तो पति जल से भरे एक पात्र को भार्या की गोद में रखकर अनामिका अँगुली से स्त्री के गर्भ का स्पर्श करते हुए निम्न मन्त्र का पाठ करते हुए गर्भ का अभिमन्त्रण करे :- 
ॐ सुपर्णोंSसि गरुत्माँस्त्रिवृत्ते शिरो गायत्रं चक्षुर्बृहद्रथन्तरे पक्षौ। 
स्तोम आत्मा छन्दा स्यङ्गानि यजूसि नाम॥ 
साम ते तनूर्वामदेव्यं यज्ञायज्ञियं पुच्छं धिष्ण्या: शफा:। 
सुपर्णोSसि  गरुत्मान् दिवं गच्छ स्वः पत
For the sake of a capable son one should place a pot full of water in his wife's lap, touch the foetus-stomach with his Sun finger and recite the above mentioned two Mantr.  
दक्षिणा संकल्प :: तत्पश्चात ब्राह्मण को दक्षिणा देनी चाहिये और दस अथवा यथाशक्ति ब्राह्मणों को निम्न संकल्प के साथ भोजन कराना चाहिये। 
ॐ अद्य यथोक्तगुणविशिष्टतिथ्यादौ...गोत्र:...शर्मा/वर्मा/गुप्तोSहं कृतस्यास्य पुंसवनाख्यकर्मण: साद्गुणयार्थमिमां दक्षिणां ब्राहणेभ्यो विभज्य दास्ये। यथासंख्याकान् ब्राह्नाणान् भोजयिष्ये। 
After completion of rituals for praying for a capable son, one should decide to pay sufficient Dakshina (money & gifts) to Brahmns, along with serving them food, reciting the above text inserting the names of the invited Brahmns where dots appear. One may opt for feeding 10 Brahmans or as per his ability-financial position. 
अभिषेक विधि :: तत्पश्चात आचार्य कलश के जल से निम्न मन्त्रों का पाठ करते हुए अभिषेक करें :- 
ॐ पय: पृथिव्यां पय ओषधीषु पयो दिव्यन्तरिक्षे पयो धा:। 
पयस्वती: प्रदिश: सन्तु मह्यम्॥ 
ॐ पञ्च नद्य: सरस्वतीमपि यन्ति सस्त्रोतस:। सरस्वती तु पञ्चधा सो देशेSभवत्सरित्॥ॐ वरुणस्योत्तम्भनमसि वरुणस्य स्कम्भसर्जनी स्थो वरुणस्य ऋतसदन्यसि वरुणस्य  ऋतसदनमसि वरुणस्य  ऋतसदनमा सीद॥ 
ॐ पुनन्तु मा देवजना: पुनन्तु मनसा धिय:। पुनन्तु विश्वा भूतानि जातवेद: पुनीहि मा   ॐ देवस्य त्वा सवितुः प्रसवेSश्विनोर्बाहुभ्यां पूष्णो हस्ताभ्याम्। 
सरस्वत्यै वाचो यन्तुर्यन्त्रिये दधामि बृहस्पतेष्ट्वा साम्राज्येनाभि षिञ्चाम्यसौ॥
[शु.य. 9.30]
अभिषेक के अनन्तर ब्राह्मणों का आशीर्वाद ग्रहण करके मातृगणों का विसर्जन करे और 
"अनेन पुँसवनाख्येन  कर्मणा भगवान् श्रीपरमेश्वर: प्रियताम्"  
कहकर कर्म भगवान् को निवेदित कर दे। 
Thereafter, the priest should perform the ceremony by offering water and recitation of the Mantr quoted above. Ultimately, the host should lead to the immersion of Matrgan after seeking blessings from the Brahmans and offer his pious deeds to the Almighty with the recitation of the last Mantr.
यदि जातक पुंसवन संस्कार उचित समय-अवसर पर न कर सके तो उसे यह सब कुछ सीमन्तोन्नयन संस्कार करते हुए कर लेने चाहिये। पञ्चाङ्ग पूजन तथा हवन आदि कार्य सम्पन्न करके पुंसवन की विधि पूरी करके उसके बाद सीमन्तोन्नयन की विधी-प्रक्रिया पूरी कर लेनी चाहिये। 
Failure to perform the activities associated with Punsvan Sanskar may be followed by the completion of all this acts with Simantonnyan Sanskar. It may begin with the worship of Panchang and Hawan for the completion of Punsvan Sanskar followed by Simantonnyan.

    
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संतोष महादेव-सिद्ध व्यास पीठ, बी ब्लाक, सैक्टर 19, नौयडा

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