Friday, April 15, 2016

SHRIMAD BHAGWAD GEETA (10) श्रीमद्भगवद्गीता :: विभूति योग

विभूति योग
SHRIMAD BHAGWAD GEETA  
श्रीमद्भगवद्गीता
 CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM 
By :: Pt. Santosh Bhardwaj
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ॐ गं गणपतये नम:।
अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।
निराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि
[श्रीमद्भगवद्गीता 2.47]
श्रीभगवानुवाच :- 
भूय एव महाबाहो शृणु मे परमं वचः।
यत्तेऽहं प्रीयमाणाय वक्ष्यामि हितकाम्यया॥10.1॥ 
हे महाबाहो अर्जुन! मेरे परम वचन को तुम फिर भी सुनो, जिसे मैं, मुझमें अत्यन्त प्रेम रखने वाले तुम्हें, तुम्हारे हित की कामना से कहूँगा।
Bhagwan Shri Krashn addressed Arjun as Maha Baho (long armed)-one having might, physical strength and power! You listen to my words again which I am going to repeat-speak for your welfare, since you have extreme affection for ME. 
Image result for Images bhagwan shri krishna with chakraभगवान् की विभूतियों को जानने से उनमें मनुष्य का प्रेम-लगाव बढ़ता है। भगवान् ने अध्याय 7 में श्लोक 8 से 12 तक 17 विभूतियों का वर्णन किया है। अध्याय 9 में श्लोक 16 से 19 अन्य कार्य-कारण रूप से 37 विभूतियाँ बताईं हैं। अध्याय 8 के 14 तथा अध्याय 9 के 22 और 24 श्लोक में जो कुछ कहा है, उसकी पुनरावर्ती के लिए "फिर भी" शब्द का प्रयोग किया है। भगवान् ने विभिन्न अंशों-अध्यायों में, जो अपने समग्र रूप का वर्णन किया है, विशेषता बताई है, प्रभाव बताया है, उसी को वे अर्जुन के समक्ष एक परम सत्य-रहस्य के रूप में प्रकट कर रहे हैं। उनकी महत्ता, ऐश्वर्य और प्रभाव को जानना और समझना अत्यावश्यक है। उन्होंने स्पष्ट किया कि सूर्य को उपदेश देने वाले, 7 महर्षि, 4 सनकादि तथा 14 मनुओं को उत्पन्न करने वाले भी वही हैं। वे ज्ञान मार्ग की विशेषता, समझ, विवेक, विचार की महत्ता का वर्णन करते हैं। भक्ति मार्ग में श्रद्धा-विश्वास की प्रधानता का वर्णन करते हैं। साधक भगवत्प्रेम रखने वाला हो तो परमात्मा के वचन सहज ही उसके अंतरमन में जड़ जमा लेते हैं, जिससे उसमें रूचि, भक्ति और प्रेम का विकास होता है। यहाँ प्रभु ने विशेष प्रेम वश अर्जुन पर अनुग्रह-कृपा की है और उसकी मंगल कामना की है। यह कामना और भोग, सुख, आराम की कामना भिन्न हैं। प्राणी मात्र के हित की गई कामना रखने वाले को अनायास ही परमात्मा के सगुण और निर्गुण स्वरूपों की उपलब्धि हो जाती है।
Knowledge of the Supremacy (splendour, accomplishment, propriety, greatness, abundance, pervading, superhuman power, might, dominion, glory, grandeur) of the God enhances-boosts the affection of the individual with HIM. HE described 17 of them (distinguished characters-qualities) in chapter verse 7, 8-12. In chapter 9, HE discussed 37 of them through verse 16-19. Verse 14 of chapter 8 & Verse 22-24 of chapter 9, describes that the Almighty is mentioning the text-comprehension, already deliberated. God has disclosed HIS might through various means earlier. HE cleared all that to Arjun (for the welfare of those who study this text, irrespective of their faith). HE has said that HE is the one who had advised Sun to do his duty with devotion being HIS component only. HE says that the 7 Mahrishis, 4 Sanak & brothers (sons of Braham Ji-Rishis who always remain as a child) and 14 Manus; all are created by HIM, only. The path of enlightenment, prudence, intelligence, thinking-meditation and its importance-significance is described by HIM. HE gives credence to faith and devotion-worship in Bhakti Marg. HE always asks for doing own work-duty with devotion.  HE discussed all this with the desire-motive of Arjun's (Human's) welfare. The desire for the welfare of others, is appreciated by the Almighty, since it is not meant for own-personal welfare, comforts, gains etc. 
One who grasps the gist of this, achieves the Ultimate-the Almighty with & without characteristics. This sermon for the whole community irrespective of caste, creed, faith, country, language.
न मे विदुः सुरगणाः प्रभवं न महर्षयः।
अहमादिर्हि देवानां महर्षीणां च सर्वशः॥10.2॥
मेरे प्रकट होने को, न देवता जानते हैं और न महर्षि; क्योंकि मैं सब प्रकार से देवताओं का और महर्षियों का आदि-मूल हूँ।
Neither the demigods-deities (celestial controller), nor the Mahrishis, great saints-sages, are aware of my appearance, since I am the root cause, basis, origin of their creation-birth.
देवी-देवता गण, ऋषि-महर्षि परमात्मा से ही उदित-प्रकट हुए हैं। ज्ञान की दृष्टि से वे अन्य प्राणियों से ऊपर हैं। उनको भी परमात्मा के प्रकट-होने, अवतार ग्रहण करने के कार्य-कारण, समय, रहस्य का ज्ञान नहीं है। केवल भगवान् शिव-शंकर ही हैं, थोड़ा बहुत समझ पाते हैं, अन्य नहीं। इन सबमें जो सामर्थ्य, बल, प्रभाव, महत्ता है, वो सभी कुछ परमात्मा द्वारा दिया गया है। वे परमात्मा में लीन तो हो सकते हैं, परन्तु उन्हें समग्र रूप से जान नहीं सकते। उनसे पहले भी परमात्मा थे और बाद में भी रहेंगे। जिनका जन्म-मरण, लय होता रहता है, वे सीमित, बुद्धि, योग्यता, सामर्थ्य से असीमित-अनन्त प्रभु को जान नहीं सकते। देवता हो या दानव कोई भी उन्हें जानने की सामर्थ्य नहीं रखता।
Demigods, deities, sages, demons-giants or anyone else, is not granted-gifted with the capability to understand, know, identify the Almighty, HIS acts, incarnations, reason behind incarnations, the secrets, since they all are born out of HIM with limited capability-powers. HE is infinite with infinite powers-might. Those who are born out of HIM (demigods, deities) have micro-minute powers as compared to the God. They can assimilate in HIM, but cannot understand, identify, recognise HIM, unless, until HE HIMSELF desires so, for their welfare.
यो मामजमनादिं च वेत्ति लोकमहेश्वरम्।
असंमूढः स मर्त्येषु सर्वपापैः प्रमुच्यते॥10.3॥
जो मनुष्य मुझे अजन्मा, अनादि (चिरस्थायी, नित्य, सार्वकालिक) और सम्पूर्ण लोकों का स्वामी, महान, ईश्वर के रूप में मानता-जानता है और दृढ़ता से सन्देह रहित होकर इस तथ्य को स्वीकार कर लेता है, वह मनुष्यों में ज्ञानवान है और वह सम्पूर्ण पापों से मुक्त हो जाता है। 
One who has a firm faith-resolve, belief, determination that I am unborn, perennial (everlasting, endurable, tenable, deathless, eternal, regular, constant, frequent, perpetual), the master of all abodes and the master of all the lesser Gods, deities, demigods; is enlightened-learned amongest the humans and becomes free from all sins (by making efforts in the direction of Salvation).
मनुष्य को अपने कल्याण के लिए इतना ही जानना पर्याप्त है कि परमात्मा अजन्मा, आदि-अन्त रहित अर्थात अविनाशी, कालों का भी काल, ईश्वरों का भी ईश्वर, सम्पूर्ण लोकों का स्वामी है। केवल जानना-मानना ही पर्याप्त नहीं है, इसे वह दृढ़ता पूर्वक स्वीकार करे और जन्म-मृत्यु की श्रृंखला से स्वयं को मुक्त करने का सतत्-निरन्तर प्रयास करे। इससे उसे यह अहसास हो जायेगा कि संसार क्षण-भंगुर है, अस्थायी है और केवल मात्र परमात्मा ही उसका संगी-साथी है। परमात्मा के सगुण-निर्गुण, साकार-निराकार, रूप को तत्व से जानना, उसकी लीला, रहस्य, प्रभाव, ऐश्वर्य के विषय में संदेह रहित होना ही उसकी मुक्ति का साधन है। 
Its sufficient for  a human being to understand that the Almighty is eternal, for ever and the GOD of Gods, demigods, deities. HE is supreme and controls the time and death. One who has firm faith, resolve in HIM & HIS existence is sure to become free from the cycle of death and birth. He realises that the world-universe is not a permanent fixture and subject to perish. He believes that its only the God who is always on his side. The knowledge-understanding that the God has a form and is formless as well, helps him in his resolve to attain Salvation. HE has characteristics and is free from characteristics as well. One who grasps the gist of this basic text is entitled for Liberation-emancipation provided, he simultaneously acts in this direction. Realisation of the powers, might, secrets, acts of God and to be free from confusion-doubts in this regard helps him in assimilation in the Ultimate.
बुद्धिर्ज्ञानमसंमोहः क्षमा सत्यं दमः शमः। 
सुखं दुःखं भवोऽभावो भयं चाभयमेव च॥10.4॥
अहिंसा समता तुष्टिस्तपो दानं यशोऽयशः। 
भवन्ति भावा भूतानां मत्त एव पृथग्विधाः॥10.5॥
बुद्धि, ज्ञान, असम्मोह, क्षमा, सत्य, दम, शम तथा सुख, दुःख, उत्पत्ति, विनाश, भय, अभय और अहिंसा, समता, संतोष, तप, दान, यश और अपयश; प्राणियों के ये अनेक प्रकार के अलग-अलग बीस भाव मुझ से ही होते हैं।
Intelligence, enlightenment, disillusion, pardon, truth-austerity, self restraint-control & comforts-pleasure, pain-sorrow, training-discipline, tranquillity, evolution, destruction, fear, bravery-fearlessness, non violence, equanimity, satisfaction, asceticism, donation-charity, fame (goodwill, recognition, name), slander-defame are the 20 qualities-feelings, gestures which evolve due to the Almighty in the human beings.
मनुष्य के मस्तिष्क का विकास, सूझ-बूझ, बुद्धि-विवेक, चिन्तन-विचार शक्ति, दूरदृष्टि आदि ऐसे गुण हैं, जो उसे सन्मार्ग की ओर ले जा सकते हैं। सार-निस्सार, उचित-अनुचित, कर्तव्य-अकर्तव्य, साँख्य आदि ज्ञान के अंग हैं। मैं, मेरा, अपना, मोह है और संसार के प्रति विरक्ति असम्मोह है। अपने प्रति किये गए घोर अपराध-गुनाह, को शन करना, बर्दाश्त कर लेना और अपराधी को उसके किये गए कुकृत्य के लिए कहीं भी सज़ा न मिले, यह विचार मन में धारण कर लेना क्षमा है। ऐसा सत्य बोलना जो किसी बेगुनाह को सज़ा से मुक्त करा सके। जैसा देखा, सुना और समझा वैसा ही कहना। सत्य वह जो सुख का कारण बने। दम, शम, इन्द्रियों को अपने-अपने  विषयों से हटाकर अपने वश में करना दम और मन को सांसारिक भोगों के चिंतन से हटाना शम है। शरीर, मन इन्द्रियों को अनुकूल परिस्थिति से हृदय में जो प्रसन्नता होती है, वह सुख है। प्रतिकूल परिस्थिति, परिणाम से जो अप्रसन्नता होती है वह दुःख है। सांसारिक वस्तु, व्यक्ति, घटना, परिस्थिति, भाव आदि के उत्पन्न होने को भव और लीन होने को अभाव कहते हैं। अपने आचरण, भाव आदि के शास्त्र, लोक-मर्यादा के विरुद्ध होने पर अन्तःकरण में जो अनिष्ट-दुःख की आशंका होती है, वो भय है; इसके विपरीत भाव अभय-निडरता है। तन, मन, वचन और देश, काल, परिस्थिति में किसी भी प्राणी को कष्ट न पहुँचाना अहिंसा है। अनुकूल-प्रतिकूल घटना, व्यक्ति, काल, परिस्थिति उत्पन्न होने पर भी अंतःकरण-मन में किसी भी प्रकार की विषमता का न होना समता है। कम-ज्यादा जो भी जैसा भी मिल जाये, उसी में संतुष्ट रहना संतोष-संतुष्टि है। अपने कर्तव्य-धर्म के निर्वाह में किसी भी प्रकार के कष्ट, प्रतिकूल परिस्थिति का निर्वाह, व्रत-उपवास आदि तप हैं। अपनी नेक-ईमानदारी की कमाई का कुछ भाव सत्पात्र को देना दान है। अच्छे आचरण-वर्ताव, गुण, भाव, कार्यों के कारण समाज-देश में प्रसिद्धि, प्रशंसा यश है। समस्त प्राणियों में इन विभिन्न प्रकार के भावों, सत्ता, स्फूर्ति, शक्ति, आधार और प्रकाश परमात्मा से हुई प्राप्य है और वे ही इन सबके मूल में हैं। मत्त: योग, सामर्थ, प्रभाव का और पृथग्विधा: अनेक प्रकार की विभूतियों का द्योतक है। संसार में समस्त शुभ-अशुभ, विहित-निहित, निषिद्ध, सद्भाव-दुर्भाव आदि सभी कुछ भवत्वतलीला है। ये जो बीस भाव जो कि प्राणियों में बताये गए हैं, प्रभु से ही संचालित हैं। 
Intelligence, development of brain-mind, thoughtfulness, prudence, power to analyse and synthesise, farsightedness, memory-retention are the factors, which can guide one-humans to austerity, piousity, virtuousness, righteousness & the Ultimate-Almighty. Power to understand right or wrong, just or unjust, duty-religiosity are the organs of enlightenment-learning. The preoccupation of mind with I, My, Me, Mine & the ego are illusion-attachment and rejection of worldly possessions-attachment is relinquishment-rejection. Pardon is the quality which allows forgiveness to the culprit for his crime against one and not to think of punishing him under any circumstances. Truth is a quality to report the event as such and to protect an innocent person from punishment. Say what you saw, heard or perceived. Dam is controlling the sense organs and avoiding the subjects-objects of sensual pleasure & Sham is that tendency which forbids one from the thinking-imagination of enjoyments, comforts, luxuries of this destructible-perishable world. Pleasure is happiness attained from the situations, incidents-occurring, attainments in the heart & the pain is caused due to failure, anti-adverse situation, results. Evolution-creation of worldly goods, person, situation-incident, mood, feeling, projection is also Godly act in addition to destruction. Fear comes to one, when he acts against law, person, scriptures, ethics and the power-actions of dreaded criminals. Non violence is the tendency not to hurt-harm any organism, individual, creature through body, mind, thinking, heart-imagination and the speech. Equanimity is the parity of adverse & favourable situation, event, occurrence, person-organism, time-cosmic era-death & life, pleasure-pain. Satisfaction means to remain content with whatever has been obtained-earned honesty, through righteous-just means. Asceticism is bearing of difficulties happily, worship of God through fasting, meditating in the lonely places (caves, mountains, forests, jungles) and as a recluse. Donation-charity is the grant for social welfare through own honest-righteous earning to the deserving. Appreciation due to nice-good conduct-behaviour, dealing with others, goodness, qualities is name & fame. These qualities, characteristics, traits, factors comes to one from the Almighty-God, who is at the root of this universe & all that is happening. Assimilation in God, Liberation-emancipation, Salvation, Yog, strength, power, capacity, impact-effect and various other auspicious qualities are the gifts of the God and whatever is happening is just an act of the Supreme Lord. These 20 qualities of humans are directed-granted by the God. Thus everything-event is a play-act of the Almighty. 
Please refer to :: SALVATION: मोक्ष साधनाsantoshkipathshala.blogspot.com santoshsuvichar.blogspot.com
महर्षयः सप्त पूर्वे चत्वारो मनवस्तथा।
मद्भावा मानसा जाता येषां लोक इमाः प्रजाः॥10.6॥
7 महर्षि और उनसे भी पहले होने वाले 4 सनकादि तथा 14 मनु, ये सबके सब मेरे मन से पैदा हुए हैं और मुझ में भाव, श्रद्धा-भक्ति रखने वाले हैं, जिनके द्वारा उत्पन्न यह  सम्पूर्ण प्रजा संसार में उपस्थित है। 
The 7 Mahrishis and many before-prior to them, the 4 Sankadi-Rishis, who always remain as a child physically and the 14 Manus evolved through MY brain-head, innerself and are faithful-devoted to ME, are the progenitors of all the species-creatures, living beings in this world.
परमात्मा ने अपने मन (ब्रह्मा जी के माध्यम से) 25 विभूतियों-महर्षियों को उत्पन्न किया है, जो कि संसार के समस्त प्राणियों के जनक हैं। मरीचि, अंगिरा, अत्रि, पुलस्त्य, पुलह, क्रतु और वसिष्ठ ये सात वेदवेत्ता, आचार्य, प्रवृत्ति-धर्म का संचालन करने वाले हैं और प्रजापतियों के कार्य में नियुक्त हैं। सनक, सनन्दन, सनातन और सनत्कुमार इन चारों को ही ब्रह्मा जी ने तप करने पर सबसे पहले प्रकट किया। ये चारों 5 वर्ष की अवस्था वाले बालक के रूप में ही रहते हैं और भक्ति, ज्ञान और वैराग्य का प्रचार करते हुए घूमते रहते हैं। 14 मनु सृष्टि के उत्पादक और प्रवर्तक हैं। स्वयं भगवान् ही सृष्टि रचना हेतु ब्रह्मा जी के रूप में प्रकट हुए हैं। ये सभी भगवान् के प्रति श्रद्धा और भक्ति रखने वाले हैं। सप्त ऋषियों और 14 मनुओं ने विवाह किया और सृष्टि उत्पन्न की परन्तु सनकादि ने विवाह नहीं किया और उनके उपदेश से परमार्थी कार्यों में लगने वाली सम्पूर्ण प्रजा नादज, मौजूद है। निवृति परायण सभी साधु, संत, महापुरुष उनकी ही नादज प्रजा हैं। 
The Almighty himself appeared as Narayan, who in turn evolved Brahma Ji through his naval-Lotus. The first one to evolve from the forehead of Brahma Ji  were the 4 saints-sages called Sanat Kumars, namely :- Sanak, Sanandan, Sanatan & Sanat Kumar. They did not marry and always remain naked as a 5 year child. They are propagating faith, devotion towards the Almighty. All those who have relinquished the world or are the recluse and those who are devoted to the welfare of humanity are the followers-disciples of this form of the God. There after, 7 Maharishis evolved and they all married to evolve all forms of life (84,00,000 species, with sub divisions) in the 14 abodes and the earth. They are the educators who taught the text of Veds. From the division of the his body into into 2 segments by Brahma Ji as Manu & Shatrupa, all forms of life evolved. 
Please refer to :: EVOLUTION सृष्टि रचनाsantoshkipathshala.blogspot.com
एतां विभूतिं योगं च मम यो वेत्ति तत्त्वतः।
सोऽविकम्पेन योगेन युज्यते नात्र संशयः॥10.7॥
जो मनुष्य मेरी इस विभूति (प्रताप, महत्व, तेज, गौरव, ऐश्वर्य) को और योग सामर्थ्य को तत्व से जानता है अर्थात दृढ़ता से सन्देह रहित होकर स्वीकार कर लेता है, वह अविचल भक्ति योग से युक्त हो जाता है, इसमें कुछ भी सन्देह नहीं है। 
One who truly recognises-understands the gist of MY manifestations (majesty, greatness, power) and Yogic powers is united with ME by unswerving devotion. There is no doubt about it.
भगवान् की जितनी भी विभूतियाँ-ऐश्वर्य हैं, वे सभी योग सहित अलौकिक विलक्षण शक्ति, अनंत सामर्थ्य की द्योतक हैं। योग में स्थित परमात्म तत्व समता, सम्बन्ध और सामर्थ्य को प्रदर्शित करता है। निर्विकार-निष्काम होने पर मनुष्य में यह आंशिक-तात्कालिक क्षमता आ जाती है। प्रकृति से सम्बन्ध, इस क्षमता को क्षीण कर देता है। संसार में जितनी भी विशेषताएँ-प्रभाव, सामर्थ्य हैं, उनके मूल में कारण रूप से परमात्मा ही हैं। जो व्यक्ति पूर्ण रूप से दृढ़तापूर्वक भगवत्शरण ग्रहण कर लेता है, वह अविचल भक्ति योग से युक्त हो जाता है, जिसमें भगवान् के सिवाय अन्य कुछ भी नहीं है। जब अविचल रूप से यह मान लिया, समझ लिया कि भगवान् के अतिरिक्त अन्य किसी की सत्ता है ही नहीं, तो संशय का प्रश्न ही पैदा नहीं होता।
The powers of the Almighty are infinite. Yog is a means to achieve the divine powers-capabilities. The gist of the strength of God is reflected in Yog. One who is relinquished-free from defects, attains these powers partially-temporarily. Connection with the nature diminishes these powers. Any thing-activity which is Ultimate, excellent, superb is a reflection of the God's power. One who seeks shelter, asylum-refuge, protection under the Almighty attains the Bhakti Yog-Ultimate devotion, which does not allow one to deviate from the eternal-divine path. One who has understood-recognised that the Almighty is behind all that happening around, becomes free from all types of suspicion-doubt about the God.
अहं सर्वस्य प्रभवो मत्तः सर्वं प्रवर्तते।
इति मत्वा भजन्ते मां बुधा भावसमन्विताः॥10.8॥
मैं सारे संसार का प्रभव-मूल कारण हूँ और मुझ से ही सारा संसार प्रवृत्त हो रहा है अर्थात चेष्टा कर रहा है; यह मानकर मुझ में ही श्रद्धा-प्रेम रखते हुए बुद्धिमान भक्त मेरा ही भजन करते हैं और सब प्रकार से मेरी शरण में ही रहते हैं। 
I am the origin of all life forms & material-physical objects. Everything emanates from ME. The wise ones, who understand this adore ME with love & devotion and seek shelter, under ME.
सर्वस्व अर्थात समस्त प्राणी और भौतिक पदार्थ परमात्मा से ही उत्पन्न हुए हैं। परमात्मा स्वयं ही सृष्टि रूप से प्रकट हुए हैं। संसार में उत्पत्ति, स्थिति, प्रलय, पालन-पोषण, संरक्षण आदि समस्त चेष्टाएँ और कार्य; ये सभी कुछ परमात्मा से ही होते हैं। प्राणियों को सत्ता स्फूर्ति भी भगवान् से ही प्रदत्त है। प्राणी का भाव, आचरण, क्रिया तथा वस्तु-पदार्थ के मूल में स्वयं परमेश्वर ही हैं। उनके सिवाय इस सृष्टि का न कोई उत्पादक है और न संचालक। दृढ़ता से यह मानकर कि स्थूल, सूक्ष्म, कार्य-कारण तथा उनके अलावा अन्य कोई सर्वोपरि नहीं है, मनुष्य का आकर्षण, श्रद्धा, विश्वास, प्रेम प्रभु से हो जाता है। उनकी शरणागति से समता, निर्विकारता, निःशोकता, निश्चिन्तता, निर्भयता स्वयं ही स्वभाविक रूप से आ जाती है। जहाँ प्रभु हैं, वहाँ दैवी-सम्पत्ति स्वतः प्रकट हो जाती हैं। बुद्धिमान वही है जो, परमात्मा को सर्वस्व मानता है। भगवान् के प्रति भक्ति, भजन, जप-कीर्तन, चिंतन-ध्यान, कथा, कथन-श्रवण, अध्ययन आदि होने पर, मनुष्य का ह्रदय स्वतः उनकी ओर खिंच जाता है। 
The Almighty HIMSELF is a form of evolution. Each & everything, material-physical objects, all life forms have evolved from HIM. HE is behind evolution, stability-strength, destruction, nourishment-growth, patronization (aegis, preservation, maintenance, keeping, trusteeship, ward ship, custody, care, conservation, guardianship, patronage, protection, safeguard, mentor ship) and protection. These are the acts of God. The organism gains strength-power from HIM. The actions, behaviour, reflections, feelings, gestures, mood and the various commodities, all have the God at their root. None other than HIM manipulates-operates the universe. Strong determination, firm faith, micro-macro, minutest-largest, cause, action-result, all are HIS manifestations-forms & HE is the supreme Lord. The human being automatically comes to HIS fore. He is attracted towards HIM with faith, devotion, love-affection. Refuge, shelter, asylum, protection under HIM grants equanimity, freedom from defects, lack of pain-sorrow, carelessness-stability, fearlessness automatically to the individual. The presence of God provides divine pleasures-bliss automatically. One who is intelligent-prudent considers the Almighty his mentor-guardian. Love-affection, reading, writing, listening to HIS hymns-lyrics, asceticism, meditation-thinking, automatically move-drag one to the Almighty.
One becomes free from reincarnations having approached God.
मच्चित्ता मद्गतप्राणा बोधयन्तः परस्परम्।
कथयन्तश्च मां नित्यं तुष्यन्ति च रमन्ति च॥10.9॥
मुझ में चित्त रखने वाले, मुझ में प्राणों को अर्पण करने वाले, भक्त जन आपस में मेरे गुण, प्रभाव आदि को व्यक्त करते हुए और उनका वर्णन करते हुए नित्य-निरन्तर सन्तुष्ट रहते हैं और मुझ से ही प्रेम करते हैं। 
The devotees whose minds remain absorbed in ME and whose breath-life giving force (Pran Vayu) is absorbed in ME always discuss, debate, enlighten each other by remembering-recollecting MY characteristics-effects & always  remain content, delighted and love ME. 
स्वयं को परमात्मा में लगाना और चित्त को परमात्मा में लगाना भिन्न-भिन्न हैं। स्वयं को भगवान् में लगाने से चित्त स्वतः ही उनमें लग जाता है। केवल चित्त को लगाया और स्वयं संसार में लगे रहे तो उससे कठिनाई-मुश्किल तो होगी ही। चित्त-वृत्तियों को परमात्मा में लगाने से भगवत्प्रेम उत्त्पन्न होता है। धीरे-धीरे मन स्वतः उनमें लगना शुरू हो जाता है और साधक सच्चे हृदय से भगवान् को अर्पित हो जाता है। मन और प्राण प्रभु को अर्पण करने से जीवन और चेष्टाएँ उनके अधीन हो जाती हैं। ऐसे भक्तजन जब परस्पर मिलते हैं तो, प्रभु की लीलाओं, रहस्य, गुण, प्रभाव, तत्व आदि का कथन, श्रवण, चिंतन, मनन, विश्लेषण, बखान करते हैं, जिससे वे सन्तुष्ट हो जाते हैं और उनका मन प्रभु में लगता है और वे उनके और अधिक निकट हो जाते हैं। साधक की हर क्रिया, भाव का प्रवाह भगवान् में हो जाता है। इस प्रकार भक्त और भगवान् का भेद स्वतः स्वाभाविक रूप से नष्ट हो जाता है। वे भगवान् को प्रेम करते हैं और भगवान् उन्हें।
One has to devote himself to the Almighty, in To-To, i.e., complete surrender. His efforts are completely diverted, directed, channelized  into HIM. Or else, he may try to channelize his mind towards the God. In that case he himself remains absorbed in the worldly affairs and its sure to find it difficult to attain Salvation. Diversion of energies, efforts into the Almighty, ultimately develops-grows love & affection for the God. Slowly and gradually one is devoted to HIM from the depths of his heart. Now, all his efforts are put (diverted, directed) into the God. Such devotees meet to discuss, narrate, analyse, explain, hear, understand the characteristics-qualities, impact, gist, stories-deeds pertaining to the God and feel content-satisfied. All their efforts lead to the God. This process abolish the distinction between the devotee & the God. The devotee loves the God and HE too loves the devotee.
तेषां सततयुक्तानां भजतां प्रीतिपूर्वकम्।
ददामि बुद्धियोगं तं येन मामुपयान्ति ते॥10.10॥
उन नित्य-निरन्तर मुझ में लगे हुए और प्रेम पूर्वक मेरा भजन करने वाले भक्तों को मैं वह बुद्धि योग देता हूँ, जिससे उनको मेरी प्राप्ति हो जाती है।
I enlighten those devotees-practitioners, who are continuously busy reciting the lyrics-rhymes pertaining to ME, so that they can unite, absorb, assimilate, immerse in ME.
भगवान् के गुण, प्रभाव, रहस्य आदि का प्रेम पूर्वक लगातार स्मरण-भजन करना ही, उनमें लगे रहना है। ऐसे भक्त उनके सिवाय तत्व ज्ञान, समता, वैराग्य या अन्य कुछ भी नहीं चाहते। ऐसे भक्तों का किसी वस्तु, व्यक्ति से सम्बन्ध नहीं रहता। परमात्मा उनको सभी परिस्थितियों में एक रूप-सम रहने की शक्ति, बुद्धि योग प्रदान करते हैं। ईश्वर में चित्त-प्राण लगने पर, उसी में संतुष्ट रहना, प्रेम करना, उनमें पूर्णता का अनुभव-अहसास कराता है और उनको प्राप्त करने को कुछ भी शेष नहीं रहता। 
To be busy with the remembrance of the characteristics, effect-impact of the Almighty becomes the daily routine of the devotees, who are absorbed in HIM. They do not desire anything else like gist of the Ultimate, equanimity, relinquishment etc. etc. They detach completely from the material or living world or its inhabitants. The God grants them such prudence, intellect, enlightenment, qualities that they find absolute satisfaction-contentment, perfection, wholeness, love & affection that they do not crave for anything else. In fact they have obtained the desired-aimed.
तेषामेवानुकम्पार्थमहमज्ञानजं तमः।
नाशयाम्यात्मभावस्थो ज्ञानदीपेन भास्वता॥10.11॥
उन भक्तों पर कृपा करने के लिये ही उनके स्वरूप में रहने वाला, मैं उनके अज्ञान जन्य अन्धकार, देदीप्यमान ज्ञान स्वरूप दीपक के द्वारा नष्ट कर देता हूँ। 
To oblige the devotees, as an act of compassion for them, I who dwell within their innerself-consciousness, destroy the darkness born of out of ignorance by illuminating the lamp of transcendental knowledge-enlightenment.
भगवान् के भक्त समस्त सांसारिक इच्छाओं-भावनाओं से मुक्त है। वे मुक्ति तक की इच्छा नहीं रखते। उनके हृदय में प्रभु के अतिरिक्त अन्य कुछ भी नहीं है। वे परमात्मा के नाम, कीर्तन, भजन में प्रेम पूर्वक तल्लीन रहते हैं। परमात्मा का हृदय, उनके प्रति करुणा से द्रवित हो जाता है। भगवान् भक्तों को वरदान देने का आग्रह करते हैं तो, वे उसको विनय पूर्वक अस्वीकार कर देते हैं। इस अवस्था में प्रभु कृपा वश उनका अज्ञान नष्ट कर देते हैं। परमात्मा का स्वरूप जो प्राणी में विद्यमान है, वह जाग्रत हो जाता है। परमात्मा मनुष्य के संचित दुराग्रह, अज्ञान को नष्ट कर देते हैं और उसे परमात्म तत्व की उपलब्धि हो जाती है। 
The devotees are free from worldly desires. They do not want even relinquishment. They do not desire anything except the Almighty. They just recite the lyrics-hymns devoted to the God with love. The God becomes happy-pleased with them, just by their recitation of the verses pertaining to the HIM. The God wish to grant some boon to them but they politely refuge to accept them. The Almighty grants them enlightenment to clear the ignorance-illusion inherited by them. The Almighty present in the innerself-consciousness evolves in the devotee & destroys the accumulated negativity, illusion, ignorance present in the devotee by the impact of previous births. The devotee attains the gist of Eternity-enlightenment.
अर्जुन उवाच :: 
परं ब्रह्म परं धाम पवित्रं परमं भवान्। 
पुरुषं शाश्वतं दिव्यमादिदेवमजं विभुम्॥10.12॥
आहुस्त्वामृषयः सर्वे देवर्षिर्नारदस्तथा। 
असितो देवलो व्यासः स्वयं चैव ब्रवीषि मे॥10.13॥ 
परम ब्रह्म, परम धाम और महान पवित्र आप ही हैं। आप शाश्र्वत, दिव्य पुरुष, आदि देव, अजन्मा और सर्व व्यापक हैं, ऐसा आपको सब के सब ऋषि, देवर्षि नारद, असित, देवल तथा व्यास कहते हैं और स्वयं आप भी मेरे से यही कह रहे हैं। 
Arjun said :- You are the Supreme Being-Lord, Ultimate, Par Brahm Parmeshwar, the Supreme-Ultimate Abode. You are eternal, Supreme Purifier-purest, divine, the primal God, the unborn and the omnipresent. All saints and sages like Devrishi Narad, Asit, Dewal & Vyas assert this and YOU too is confirming-testifying this, now. 
अर्जुन ने अपने सामने प्रत्यक्ष रूप से विराजमान भगवान् की स्तुति करते हुए कहा कि आप स्वयं परब्रह्म परमेश्वर हैं। सारा संसार आप में ही व्याप्त है और आप इसके परम धाम हैं। आप ही पवित्रतम (जो स्वयं शुद्धतम और अन्य को भी शुद्ध करने वाला है) हैं। ग्रन्थों-वेद, पुराण, इतिहास आदि में देवऋषि नारद, असित और उनके पुत्र देवल ने, व्यास जी ने आपको शाश्वत, दिव्य पुरुष, आदि देव, अजन्मा और विभु कहा है। आत्मा के रूप में शाश्वत, सगुण-निराकार के रूप में दिव्य पुरुष, देवताओं और महृषियों आदि के रूप में आदि देव आप ही हैं। मूढ़ लोग आपको अज के रूप में नहीं जानते तथा असम्मूढ लोग आपको अज और अव्यक्त विभु, (जिसका संबंध वर्तमान से है, सर्व व्यापक, जो सब जगह जा या पहुँच सकता है, अपने स्थान से न हटने वाला), के रूप में जानते हैं। 
Arjun accepted all that said by Bhagwan Shri Krashn. He confirmed that Bhagwan Shri Krashn is the Supreme Lord-the Almighty. Whole universe is pervaded in HIM & HE is the Ultimate abode. He is purest and cleanse all. The great saints with divine origin like Devrishi Narad, Asit & his son Dewal, including Mahrishi Ved Vyas too, confirmed that. The scriptures, Veds, Purans, history etc. supported this. Arjun said that he too supported this. The God is forever-existing everywhere, creator of all, unborn, leader, eternal, self existent-deity Brahm,  mighty, powerful, eminent, supreme, able to, capable of, self-subdued, firm or self-controlled, all-pervading, pervading all material things.
सर्वमेतदृतं मन्ये यन्मां वदसि केशव।
न हि ते भगवन्व्यक्तिं विदुर्देवा न दानवाः॥10.14॥
हे केशव! मुझसे आप जो कुछ कह रहे हैं, यह सब मैं सत्य मानता हूँ। हे भगवन्! आपके प्रकट होने को न तो देवता और न ही दानव ही जानते हैं। 
Hey Keshav! I believe all that YOU have told me is true, a reality. Hey Almighty! Neither the demigods, deities, celestial controllers nor the demons understand YOUR appearance, incarnation, real nature. 
"केशव" क+अ+ईश से मिलकर बना है। "क" भगवान् ब्रह्मा, "अ" भगवान् विष्णु और "ईश" भगवान् शिव का द्योतक है। जब अर्जुन भगवान् श्री कृष्ण को केशव कहते हैं तो उनका तात्पर्य यह है कि आप ही संसार की उत्पत्ति, स्थिति और संहार करने वाले हैं। अर्जुन ने स्पष्ट किया कि भगवान् ने अपने प्रभाव व विभूतियों के विषय में जो कुछ कहा वो उसे मानते हैं। उन्होंने कहा कि आप ही सर्वोपरि हैं और जो कुछ हो रहा है, उसके मूल में भी आप ही हैं, इसमें कोई सन्देह नहीं है। यह विश्वास, आस्था-भक्ति, मोक्ष मार्ग है। देवता गण, दैवी शक्तियों और दानव, मायावी शक्तियों से परिपूर्ण होने के बावज़ूद प्रभु की लीला, प्रभाव, शक्तियों को नहीं जान सकते, तो फिर मनुष्य किसी श्रेणी में नहीं आता। देवता और दानवों की शक्तियाँ भी सीमित और नष्ट प्राय: हैं। हाँ, अगर प्रभु की कृपा हो तो उन्हें किसी हद तक जाना जा सकता है। बुद्धि, चमत्कार, सिद्धियाँ या अविष्कार भी प्रभु तक नहीं पहुँच सकते।
Keshav is combination of "क K" which represents Bhagwan Brahma-the creator, "अ A" for Bhagwan Vishnu the nurturer and "ईश ISH" comes for the destroyer Bhagwan Shiv. Arjun said that he believed that whatever had been described-discussed by the Shri Krashn-Almighty was true. HE was at the root-evolution of the universe. The faith, devotion, worship in the God, leads one to Salvation-emancipation, Moksh. The demigods-deities & the giants-demons, were equally incapable of knowing-understanding the God, in spite of the powers granted to them. However, one may know a little bit of it, momentarily, if the God desires so. The intelligence, miracles, powers and the innovations-researches can not lead one to HIM.
Its only Bhagwan Shiv, who knows a bit of the Almighty; being the source of all knowledge on earth and capable of visiting 14 universes including the one in which our earth is located. None, other than him has this power.
स्वयमेवात्मनात्मानं वेत्थ त्वं पुरुषोत्तम।
भूतभावन भूतेश देवदेव जगत्पते॥10.15॥
हे भूत भावन! हे भूतेश! हे देव देव! हे जगत्पते! हे पुरुषोत्तम! आप स्वयं ही अपने-आपसे अपने-आपको जानते हैं।
Hey Bhut (ancient, eternal, past) Bhawan, YOU are the  Creator of all beings just by means of YOUR thought-desire. Being the Lord of all beings and demigods-celestial rulers, YOU are Bhutesh, Dev-Dev (God of demigods-deities). Being the Nurturer of inertial-static living beings, who do not move and micro-macro organisms, YOU are the Supreme person, Lord, leader of the universe and is described as the Ultimate-best in all the abodes and the Veds. YOU alone know YOURSELF  by YOURSELF. 
सम्पूर्ण प्राणियों को संकल्प मात्र से उत्पन्न करने वाले आप भूत भावन हैं। समस्त प्राणियों और देवताओं के मालिक होने के कारण, आप भूतेश और देव-देव हैं। जड़-चेतन, स्थावर-जङ्गम मात्र जगत का पालन-पोषण करने वाले होने से, आप जगत पति हैं और समस्त पुरुषों में उत्तम होने से आप लोक और वेद में पुरुषोत्तम कहे गए हैं। अर्जुन ने भाव-विभोर होकर भगवान् को ये 5 सम्बोधन किये, जो उनके स्वरूप को प्रकट करते हैं। परमात्मा को सिवाय स्वयं उनके अन्य कोई नहीं जान सकता। उनका यह ज्ञान करण (वह माध्यम या साधन जिससे कोई वस्तु उत्पन्न या निर्मित की जाय अथवा कोई काम पूरा किया जाय) निरपेक्ष है, करण सापेक्ष नहीं। जिस प्रकार भगवान् स्वयं जो जानते हैं, उसी प्रकार मनुष्य को भी स्वयं को स्वतः पहचानना चाहिए। अपने आपको अपने स्वरूप का ज्ञान, सर्वथा करण-निरपेक्ष होता है। इसलिए इन्द्रियों, मन, बुद्धि, आदि से स्वरूप को नहीं जाना जा सकता। भगवान् का स्वरूप होने से मनुष्य भी करण निरपेक्ष है। 
The Almighty created the universe and the living beings, just by HIS determination. HE HIMSELF is a deity and the leader of all demigods-deities. HE nourishes all the species of the living beings whether micro-macro, movable or static. HE is the theme, master, Lord of all universes-abodes. HE is described as the Ultimate being in the Veds-the time less scriptures. HE is absolute and neutral to all efforts, mediums, objects utilised to perform, do some work, deed or even desire. The manner-way in which the God identifies HIMSELF; one should also identify himself. One can not identify himself by means of sense organs, mind or the intelligence. Self realisation comes through meditation, analysis and devotion to the God. However, the enlightened or the Almighty may himself help one in his endeavour.
वक्तुमर्हस्यशेषेण दिव्या ह्यात्मविभूतयः। 
याभिर्विभूतिभिर्लोकानिमांस्त्वं व्याप्य तिष्ठसि॥10.16॥ 
इसलिये जिन विभूतियों से आप इन सम्पूर्ण लोकों को व्याप्त करके स्थित हैं, उन सभी अपनी दिव्य विभूतियों का सम्पूर्णता से वर्णन करने में आप ही समर्थ हैं। 
Therefore, its only YOU, who can explain YOUR divine manifestation, glories, majesty (greatness, power) with which the entire universe is pervaded.
भगवान् में दृढ़ भक्ति होने का सुगम और सरल उपाय है, उनकी विभूतियों और योग को तत्व से जानना। इस प्रकार मनुष्य स्वयं-स्वाभाविक रूप से उनके प्रति आकर्षण महसूस करने लगता है और स्वतः उनकी और खिंच जाता है तथा भक्ति भाव से ओत-प्रोत  हो जाता है। अतः अर्जुन ने प्रभु से अनुरोध किया कि वे जिन विभूतियों से सम्पूर्ण लोकों और ब्रह्माण्ड में व्याप्त और स्थित हैं, उन अलौकिक, विलक्षण विभूतियों का विस्तार पूर्वक वर्णन करें। केवल और केवल भगवान् ही उन्हें जानने और व्यक्त-स्पष्ट करने में सक्षम हैं। अर्जुन ने प्रार्थना की कि प्रभु उन सबको पूरी तरह से कह दें और कुछ भी शेष न रखें। संसार में जो कुछ भी विशिष्टता दिखती है, वह परमात्मा की है न कि संसार की। संसार में विशेषता देखना भोग है और परमात्मा में विशेषता देखना विभूति है, योग है।  
Firm faith-devotion in the God is easy to attain by understanding his greatness & power through Yog and the gist. Arjun is keen to know the majestic powers and manifestations of the Almighty, which are sufficient to create interest in HIM, resulting in Ultimate devotion. God's manifestations allows one to be dragged to HIM gradually and filled with devotion. Arjun requested Bhagwan Shri Krashn to elaborate HIS manifestations through which HE had pervaded in the entire universe and the various abodes. Arjun wanted them to be explained in detail without hiding any thing from him. He was aware that only the God can describe his majestic powers, since its only HE who is aware of them. Any thing special, great, Ultimate in the universe its due to the God and not due to the nature. One who connects this greatness with nature, is specific about consumption, their utilisation; while the other one who sees Almighty's manifestations, divinity and Yog in it, proceeds towards assimilation in the Ultimate.
Almighty is omnipresent.
Nature is due to the Almighty but Almighty is independent of nature. Almighty can sustain each & every organism but even a single organism is not capable of holding-sustaining HIM.
कथं विद्यामहं योगिंस्त्वां सदा परिचिन्तयन्।
केषु केषु च भावेषु चिन्त्योऽसि भगवन्मया॥10.17॥
हे योगिन्! निरन्तर साङ्गोपांग चिन्तन करता हुआ मैं आपको कैसे जानूँ? और हे भगवन्! किन-किन भावों में आप मेरे द्वारा चिन्तन किये जा सकते हैं अर्थात किन-किन भावों में मैं आपका चिन्तन करूँ। 
Arjun asked the Yogeshwar Bhagwan Shri Krashn, ways and means through which he could resort to complete-entire, thorough dedication while meditating in HIM and know HIM. He asked different ways and means applicable for HIS worship-prayer, while concentrating in HIM.
जो मनुष्य परमात्मा की विभूति और योग के तत्व से वाकिफ-परिचित है, वो अविचल भक्ति योग से युक्त हो जाता है। जो मनुष्य अनन्य चित्त होकर नित्य-निरन्तर उनका चिन्तन करता है, उस योगी को प्रभु सरलता से प्राप्त ही जाते हैं। ऐसे भक्तों की कुशलता की चिंता स्वयं प्रभु करते हैं। श्री भगवान् ने उत्तर दिया कि अर्जुन जहाँ-जहाँ और जिस-जिस का चिंतन करें, उन्हें वहीं पर समझें। इस प्रकार हर वस्तु, परिस्थिति, समय-काल में उनका स्मरण होगा और संसार का चिन्तन उनमें परिणित हो जायेगा। भगवान् की कोई विभूति-महिमा गौंण या प्रमुख नहीं है, अपितु साधक की दृष्टि में ही प्रभु की विभूतियों का प्रमुख या गौंण में वर्गीकरण होता है। 
One who is aware of the significance-greatness and Yog associated with the Almighty. He becomes a determined devotee, having understood, realised this. One who meditate only in HIM is able to approach HIM easily. Such devotees are taken care of, by the Almighty HIMSELF. Bhagwan Shri Krashn replied that Arjun should think of HIM in each and every commodity-situation & time frame-era and he will find the God there. This will keep the Almighty in his mind and the thinking-consideration of the world will turn into the meditation, worship, prayer of the God. One can not discriminate between the qualities-characteristics of the Almighty as inferior or superior. This difference is man made.
विस्तरेणात्मनो योगं विभूतिं च जनार्दन।
भूयः कथय तृप्तिर्हि शृण्वतो नास्ति मेऽमृतम्॥10.18॥
हे जनार्दन! आप अपने योग-सामर्थ को और विभूतियों को विस्तार से फिर-पुनः कहिये, क्योंकि आपके अमृतमय कथन सुनते-सुनते, मेरी तृप्ति नहीं हो रही है। 
Hey Janardan-the protector of the humanity! Kindly explain YOUR yogic power and glory in detail since my desire to listen to YOUR majestic, nectar like words, remains unsatisfied.
अर्जुन को भगवान् के वचन अमृत के समान महसूस हुए। उन्होंने प्रभु से उनकी विभूतियों, योग शक्ति को विस्तार से सुनाने का आग्रह किया ताकि उनकी तृप्ति हो सके। अर्जुन को लगा कि इस वृतान्त के माध्यम से उनको गूढ़-ज्ञान, रहस्य की प्राप्ति हो जायेगी, जिसकी परिणति दृढ़ भक्ति में होती है। भगवान् की विभूति और योग को जानने का फल उनमें दृढ़ भक्ति का होना है। इससे प्रभु के प्रति भक्त के मन में खिंचाव पैदा होगा और भक्त का कल्याण हो जायेगा। 
Arjun felt that the words spoken by the Almighty were creating strong attraction in him towards devotion. The words granted him solace, tranquillity, peace and their impact on him was like (elixir, nectar) ambrosia. He was so much absorbed-immersed in them that he wished Bhagwan Shri Krashn to explain them again in detail. He developed desire to listen to them, since this knowledge was developing curiosity in him to know the secret-gist behind the Yogis-mysterious powers and HIS significance, greatness, manifestations. The impact of understanding, knowing, recognising the God is welfare & release. It create strong bonds between the Almighty & the devotee. More one knows the God, more he becomes close to him and his welfare is ensured.
कण-कण में भगवान् यही है। 
Minutest to largest particle is a segment of nature and nature is created by the Almighty. So, if one start perceiving the God in each and every entity, his Liberation is certain. This is equivalent to equanimity. This is the reason why Hindus worship before the idol of the Almighty, since it makes easy to concentrate in HIM.
The God pervades the entire universe.
श्रीभगवानुवाचहन्त ते कथयिष्यामि दिव्या ह्यात्मविभूतयः।
प्राधान्यतः कुरुश्रेष्ठ नास्त्यन्तो विस्तरस्य मे॥10.19॥
भगवान् श्री कृष्ण ने कहा, "हाँ ठीक है"। मैं अपनी दिव्य विभूतियों को तेरे लिये प्रधानता से संक्षेप में कहूँगा, क्योंकि हे कुरुश्रेष्ठ! मेरी विभूतियों के विस्तार का अन्त नहीं है।
Bhagwan Shri Krashn agreed with Arjun and called him excellent amongest the Kuru clan-dynasty and explained him further that HIS prominent divine manifestations-extensions were infinite and still HE would describe them in short.
भगवान् श्री कृष्ण ने अपनी विभूतियों के विस्तार पूर्वक वर्णन करने की जो प्रार्थना अर्जुन ने की, उसे उन्होंने स्वीकार कर लिया और कहा कि उनकी विभूतियों के विस्तार की कोई सीमा या अन्त नहीं है; वे अनन्त, अपार, अगाध, अगम हैं। वे दिव्य, अलौकिक, विलक्षण और अद्भुत भी हैं। उन्होंने अर्जुन को अपना विशाल रूप भी दिखाया था, ताकि उन्हें प्रभु की अदभुत  महिमा का अनुभव हो सके। फिर भी उन्होंने अपनी विभूतियों को संक्षेप में कहना-वर्णन करना स्वीकार कर लिया। प्रभु की महिमा का ज्ञान, साधारण मनुष्य को भौतिक शरीर, इन्द्रियों :- आँख, नाक, कान, मस्तिष्क के द्वारा नहीं हो सकता। जब भगवान् अर्जुन को कुरुश्रेष्ठ कहते हैं, तो वे स्पष्ट करते हैं कि अर्जुन कोई साधारण मानव नहीं हैं। अर्जुन स्वयं भगवान् के एक रूप-विस्तार "नर" हैं।
Bhagwan Shri Krashn had shown HIS vast form-exposure to Arjun; which he found very difficult to continue watching. HE agreed to the request made by Arjun to explain his manifestations-extensions in short. Almighty told Arjun that his powers-capabilities were infinite and it was not possible to describe-reveal them in detail. HE said that it was not possible for a common man to grasp, understand, realise them with the human body-form, incarnation. HE addressed Arjun as best-superior amongest the Kuru's. HE meant that HE was aware that Arjun was not an ordinary visionary-person. HE knew that Arjun was none other than his own incarnations as Nar. He wanted to oblige Arjun; so HE assured him that HE would explain them in short. The Almighty agreed to the request because all that HE told, had to be passed on to the masses being useful during the present cosmic era i.e., Kali Yug. He said that a human being in incapable to  understand all that due to his limited capacity, brain power, with the help of ears, eyes, nose, etc.
I have found that several Muslims distort the meaning of the Mantr, sacred hymns, Shloks and try to misguide-mislead Hindus and the humans else where. Interpretation of these Shloks-verses is found to be faulty-defective in several ways. Some of these impurities have been added deliberately by the Christian authors & Communists. One must read and resort to meditation, thinking & analysing, what has been said by the Almighty and try to attain Moksh, the Ultimate goal.
अहमात्मा गुडाकेश सर्वभूताशयस्थितः।
अहमादिश्च मध्यं च भूतानामन्त एव च॥10.20॥
हे नींद को जीतने वाले अर्जुन! सम्पूर्ण प्राणियों के आदि, मध्य तथा अन्त में मैं ही हूँ और सम्पूर्ण प्राणियों के अन्तःकरण-हृदय में स्थित आत्मा भी मैं ही हूँ। 
Hey Gudakesh-Arjun, (one who has won over sleep-fatigue)! I am the Supreme-Ultimate Spirit (or Super soul) present in the innerself (heart, psyche, gestures, mood) of all beings and I am present in the beginning, the middle and the end of all beings, events, happenings. 
The Almighty is forever, ever since.
परमात्मा ने अर्जुन को गुडाकेश इसलिए कहा क्योंकि उन्होंने नींद-थकान पर विजय प्राप्त कर ली थी, जो किसी सामान्य प्राणी की लिए असंभव है। अर्जुन-नर प्राणियों में सर्वश्रेष्ठ परमात्मा का रूप ही है। अतः अर्जुन स्वयं भगवान् के रूप नर हैं। भगवान् श्री कृष्ण ने अपनी विभूतियों के सन्दर्भ में स्पष्ट किया कि प्राणी-संसार के आदि, मध्य और अन्त में वे स्वयं ही उपस्थित रहते हैं। यहाँ यह भी स्पष्ट किया गया है कि समस्त चराचर, तत्व, स्थावर-जङ्गम, जड़-चेतन सभी के बीज वो ही हैं। परा और अपरा दोनों ही परमात्मा की अभिन्न विभूतियाँ हैं। आत्मा परमात्मा की पराप्रकृति हैं। 
The Almighty Bhagwan Shri Krashn addressed Arjun as Gudakesh, one who has won the sleep-fatigue. The innerself (mind & heart) of the organism is pervaded by HIM. The Almighty is at the root-base, cause of every activity, event, creation as the seed. HE constitutes the gist of the universe. All creations :- micro-macro, stationary-inertial & the stationary-movable including the whole universe are HIS manifestations-forms. The strength-power of the God called Para Shakti too is the Almighty HIMSELF.
आदित्यानामहं विष्णुर्ज्योतिषां रविरंशुमान्।
मरीचिर्मरुतामस्मि नक्षत्राणामहं शशी॥10.21॥
मैं अदिति के पुत्रों में विष्णु-वामन और प्रकाशमान वस्तुओं में किरणों वाला सूर्य हूँ। मैं मरुतों का तेज और नक्षत्रों का अधिपति चन्द्रमा हूँ।
The Almighty told Arjun that HE had his incarnations as Vaman (dwarf, who took gigantic form to recover all from the demon king Bahu Bali). HE was the son of Kashyap and Aditi, in the form of Vishnu and Vaman. HE was Sun amongest the radiant-visible objects, the energy, strength, power of the Maruts (the demigods associated with flow of wind, air-life sustaining form of all living beings), the demigods-deities and HE was the Moon as the king of constellations & the Brahmans.
महर्षि कश्यप और अदिति के पुत्रों में विष्णु अर्थात मुख्य वामन भगवान् हैं, जिन्होंने अवतार लेकर देवताओं का सर्वस्व हड़पने वाले दैत्य राजा बाहुबली से उनका सब कुछ दान स्वरूप ले लिया। चन्द्रमा, तारे, नक्षत्र, अग्नि, आदि जितनी भी प्रकाशमान वस्तुएँ हैं, उनमें सूर्य के रूप में व विष्णु नाम से स्वयं वही हैं। 49 मरुत गणों के तेज़ भी स्वयं परमात्मा ही हैं। 27 नक्षत्रों के अधिपति चन्द्रमा भी वे ही हैं। इन सबमें वे अवतार रूप में नहीं, अपितु विभूति रूप में अर्थात कार्य शक्ति के रूप में हैं। 
The Almighty took incarnation as Vaman-dwarf, the son of Maharishi Kashyap & his wife Aditi, from whom the entire evolution took place. In this form HE recovered everything belonging to the demigods snatched by the demons, Rakshas Raj Bahu Bali, in the form of donation. All radiant-shinning, lustrous objects including moon, constellations, stars, fire etc., shine due to the energy granted by HIM. HE is one of the Sun, who form 12 months of the year called Vishnu (Kartik Mas). He told Sun that there was no difference between HIM and the Almighty, since Sun is one of HIS forms-manifestations, only. There are 49 Marud Gans, son of Diti & Maharishi Kashyap, who were awarded the status of demigods by the king of heaven Dev Raj Indr, who regulate wind all over the universe; too have the force-might of the God behind them. The 27 constellations who regulate the movement of earth and other planets, too are granted capability to do that, perform and control the birth-death & the fortune of all humans, demigods, demons etc., all over the universe by the God. The king of these constellations Moon too, gets his strength-power from the Almighty. HE is the controlling-regulating force behind all these.
वेदानां सामवेदोऽस्मि देवानामस्मि वासवः।
इन्द्रियाणां मनश्चास्मि भूतानामस्मि चेतना॥10.22॥
मैं वेदों में साम वेद हूँ, देवताओं में इन्द्र हूँ, इन्द्रियों में मन हूँ और प्राणियों की चेतना हूँ। 
The Almighty stated that HE is Sam Ved amongest the Veds, Indr-the king of heaven, demigods-deities, Man (mind, heart, mood, psyche, gestures, innerself) amongest the senses and consciousness of the living beings.
वेदों की सस्वर गाये जाने वाली ऋचाएँ सामवेद में दी गईं हैं, जिनमें इन्द्र रूप में भगवान् की स्तुति की गई है। इसलिए सामवेद ईश्वर की विभूति है। सूर्य, चन्द्रमा सहित जितने भी देवता गण हैं, उनमें इन्द्र प्रमुख होने के कारण भगवान् की विभूति हैं। इन्द्र नाम के अतिरिक्त एक पद और समय-काल का द्योतक भी है। नाक, कान, आँख आदि में मन मुख्य है, क्योंकि प्राणी के समस्त कार्य कलापों को यही नियंत्रित करता है। इस विशेषता के कारण ही इन्द्रियों में मन प्रमुख और प्रभु की विभूति है। प्राणियों की चेतना शक्ति ही उन्हें सजीव बनाती है; इसलिए यह परमात्मा की विभूति है। 
The sacred hymns, verses-lyrics of the Veds which are sung with rhythm are termed as Sam Ved, which makes them superior to any other written or memorable text, making them unique, Ultimate-a form of the Almighty. The Strotr-verses describe the God as Indr-the king of heaven, deities, demigods. Indr is a designation in addition to being a name and means to describe time period-unit being associated with fixed tenure. Heart, associated with the brain and psych-mood makes it superior to other sense organs making it a quality of the God. Conscientiousness makes an object living-alive and thus its also a characteristic of the Almighty.
Conscientiousness :: कर्त्तव्य निष्ठा, ईमानदारी, शुध्द अन्तःकरण, धर्म शीलता-परायणता; honesty, integrity, justice, probity, righteousness, saintliness.
रुद्राणां शंकरश्चास्मि वित्तेशो यक्षरक्षसाम्।
वसूनां पावकश्चास्मि मेरुः शिखरिणामहम्॥10.23॥
रुद्रों में शंकर और यक्ष-राक्षसों में कुबेर मैं हूँ। वसुओं में पवित्र अग्नि और शिखर वाले पर्वतों में, सुमेरु मैं हूँ। 
The Almighty having appeared as Krashn over the earth to get rid of the sinners, tells Arjun that HE is Shankar-Bhagwan Shiv amongest the Rudr, Kuber (treasurer of the demigods & friend of Bhagwan Shiv) amongest the Yaksh & Rakshas-demons, Agni-fire amongest the Vasus (demigods) and Sumeru amongest the mountains bearing cliffs.
भगवान् ग्यारह रुद्रों यथा हर, बहुरुप, त्रयम्बक आदि प्रमुख और उनके अधिपति कल्याण स्वरूप भगवान् शंकर हैं। अतः वे परमात्मा की विभूति हैं। कुबेर यक्षों और राक्षसों के अधिपति और धनाध्यक्ष होने से प्रभु की विभूति हैं। धर, ध्रुव, सोम आदि आठ वसुओं में अनल-पावक अर्थात अग्नि देव यज्ञ की हवि को देवताओं को पहुँचाने काम करते हैं तथा ईश्वर के मुख हैं; अतः ईश्वर की विभूति हैं। सोने, ताँबे, चाँदी आदि के शिखरों वाले जितने पर्वत हैं; उनमें सुमेरु सोने और रत्नों के भण्डार होने के कारण भगवान् की विभूति है। जिन चीजों-वस्तुओं में विशेषता-महत्ता दिखती है, वे मूल रूप से परमात्मा की विभूतियाँ ही हैं। अतः इन विभूतियों में परमात्मा का चिन्तन होना चाहिए। 
There are 11 Rudr like Har, Bahu Rup, Trayambak and Bhagwan Shiv himself is a Rudr & being the welfare orientated, HE is an Ultimate-significant form of the Almighty. Kuber is the treasurer of the demigods and a close friend of Bhagwan Shiv, king of Yaksh and powerful amongest the demons, is important-significant and Ultimate form of the God. The fire-Agni is one of the the Vasu's. HE accepts all offerings for the demigods and works as the mouth of the Almighty & hence Ultimate. Sumeru mountain possesses the gold and deposits of jewels which other mountains do not possess. Therefore, it too is Ultimate. Anything which possesses one or the other excellence, is an Ultimate form, quality, characteristic of the God. One who meditate in any of these; meditate in the Almighty invariably.
When we recite "ॐ नमः शिवाय" we are praying the Almighty in the form of Bhagwan Shiv. When we say "ॐ गं गणपत्ये नमः" we are praying the Almighty in the form of Ganpati-Ganesh Ji Maha Raj.
पुरोधसां च मुख्यं मां विद्धि पार्थ बृहस्पतिम्।
सेनानीनामहं स्कन्दः सरसामस्मि सागरः॥10.24॥
हे पार्थ! पुरोहितों में मुख्य बृहस्पति को मेरा स्वरूप समझो। सेनापतियों में कार्तिकेय और जलाशयों में समुद्र मैं हूँ। 
The Almighty told Arjun that HE was the priest & adviser of the demigods-deities in the heaven in the form of Brahaspati. HE was the Supreme commander of the army of the demigods-celestial controllers, in the form of Bhagwan Kartikey and amongest the water reservoirs HE was the ocean.
धार्मिक क्रिया कर्म, रीति-रिवाज़, विधि-विधान के श्रेष्ठतम जानकर और देवताओं के मार्ग दर्शक देवगुरु बृहस्पति हैं। वे देवराज के कुल पुरोहित भी हैं। वे हर तरह से राक्षसों के गुरु शुक्राचार्य से श्रेष्ठ हैं, अतः वे परमात्मा की विभूति हैं। स्कन्द-भगवान् कार्तिकेय भगवान् शिव के पुत्र और देव सेनापति हैं। उनके 6 मुँख और 12 हाथ हैं। वे अद्वितीय और संसार के श्रेष्ठतम सेनापति हैं, अतः प्रभु की विभूति हैं। संसार में जितने भी जलाशय हैं, उन सबमें समुद्र ही श्रेष्ठतम हैं। अतः वह परमात्मा की विभूति हैं। पृथ्वी पर बारिश, बर्फ, बादल, नदी, झील आदि का अस्तित्व उन्हीं से है। 
Dev Guru Brahaspati (Priest, Mentor  & adviser of demigods) is the Ultimate and enlightened philosopher & guide of the demigods-deities. He is the family priest of Dev Raj Indr, as well. His advise is sought as and when there appear any difficulty-trouble in the heaven. He is much more versatile as compared to Shukrachary, the priest of the demons. He is authority on the traditions, trends, rituals, prayers etc., all over the universe. And hence, he is Ultimate and is a form of the Almighty. Bhagwan Kartikey is the Supreme commander of the army of the deities-demigods. He is blessed with 6 mouths and 12 hands. He is the elder son of Bhagwan Shiv and Maa Parwati-the divine Lords. He is an Ultimate expert of the warfare and hence a form of the Almighty. Ocean is the largest water body-reservoir over the earth and nurture the earth in the form of rains, rivers, lacks, clouds, fog. mist, ice etc. Due to this property, it is the Ultimate form of the God.
महर्षीणां भृगुरहं गिरामस्म्येकमक्षरम्।
यज्ञानां जपयज्ञोऽस्मि स्थावराणां हिमालयः॥10.25॥
महर्षियों में भृगु और वाणियों-शब्दों में एक अक्षर प्रणव (ॐ) मैं हूँ। सम्पूर्ण यज्ञों में जप यज्ञ, स्थिर रहने वालों में हिमालय मैं हूँ। 
Bhagwan Shri Krashn said that HE is Bhragu amongest the great sages and ॐ-OM (monosyllable cosmic sound) amongest the words-speeches. Amongest the Yagy-ritualistic performances with sacrifices in Agni-fire, HE is Jap Yagy-spiritual recitation of Mantr-lyrics, rhythms, sacred hymns and HE is Himalay-Everest mountain amongest the stationery-fixed objects.
परमात्मा ने भृगु, अत्रि और मरीचि आदि महृषियों में भृगु को अपनी विभूति इसलिये कहा है, क्योंकि उन्होंने ही परीक्षा करके बताया कि त्रिदेवों :- ब्रह्मा, विष्णु और महेश में, भगवान् विष्णु ही श्रेष्ठतम हैं। भगवान् विष्णु भृगु के चरण-चिन्हों को अपने वक्ष पर भृगुलता नाम से धारण किये हुए हैं। सबसे पहले तीन मात्रा वाला प्रणव प्रकट हुआ। तत्पश्चात त्रिपदा गायत्री और उससे वेद, वेदों से शास्त्र, पुराण आदि सम्पूर्ण वाङ्गमय जगत प्रकट हुआ। इसी प्रकार यज्ञ, दान और तप रूप क्रियाओं को प्रणव के उच्चारण से ही प्रारम्भ किये जाने से परमात्मा शब्दों में प्रणव हैं। भगवन्नाम जप एक ऐसा यज्ञ है, जिसमें किसी पदार्थ या विधि-विधान की आवश्यकता नहीं है। अतः यह यज्ञों में, गलती-त्रुटि की गुंजाइश-संभावना न होने से श्रेष्ठतम और प्रभु की विभूति है। हिमालय पर्वत ऋषि-मुनियों की तप स्थली, पवित्र नदियों गँगा, यमुना का उद्गम, नर-नरायण की आदि स्थान बद्रीनाथ, केदारनाथ, कैलाश आदि का प्रमुख पवित्र स्थल होने से स्थिरों में प्रभु की विभूति है। 
Out of the Mahrishis born as the sons of Bhawan Brahma, Bhragu is entitled to be the supreme, since it was he who testified that Bhagwan Shri Hari Vishnu was superior amongest the Tri Dev :- Brahma, Vishnu & Mahesh. In this process he struck the chest of Bhagwan Shri Hari Vishnu with his foot, which was held by Bhagwan Shri Hari Vishnu and HE jokingly closed numerous eyes present in his foot granting him enlightenment & attracted curse of Maa Laxmi that his decedents would never have sufficient money to survive-subsistence. The Almighty recognise him as his Ultimate form as a sage. HE is wearing the marks of Bhragu's foot over his chest as "Bhragu Lata". ॐ OM (primordial sound) is the syllable which appeared before evolution followed by Gayatri-divine prayer, which resulted into the appearance of Veds, Purans, scriptures, history etc. Therefore, the God is calling it to be HIS excellent character-quality, form. The recitation of the names of the God is free from procedure, methodology, sacrifices etc. Hence, it is considered to be the best form of prayer-worship, as there is rare-minimum chance of mistakes connected with sequence, offerings etc. Himalay-Everest is the place which is liked by the sages-ascetics to perform Yog, worship, prayers being isolated. Pious rivers like Ganga, Yamuna, Sahatr Dhara, appear here. Bhagwan Nar-Narayan are still practicing asceticism there, at Badri Nath. Bhagwan Shiv occupies Kaelash with Maa Parwati as his abode. Maa Bhagwati Parwati took incarnation as the daughter of Himalay. Gangotri & Yamunotri (Char Dhams) too are located here. It continues to supply water throughout the year into rivers like Saraswati, Brahm Putr etc. It results into rains in the entire northern region of India and controls the climate throughout the world. It is the highest mountain in the world. This is the reason the God is calling it his Supreme-Ultimate form.
अश्वत्थः सर्ववृक्षाणां देवर्षीणां च नारदः।
गन्धर्वाणां चित्ररथः सिद्धानां कपिलो मुनिः॥10.26॥
सम्पूर्ण वृक्षों में पीपल, देवऋषियों में नारद, गन्धर्वों में चित्ररथ और सिद्धों में कपिल मुनि मैं हूँ। 
I am the holy fig tree among the trees, Narad among the divine sages, Chitr Rath among the Gandharvs and Kapil Muni among the Siddh (An ascetic who has achieved enlightenment).
पीपल एक रोग नाशक-हर वक्त ऑक्सीजन देने वाला वृक्ष है और इसकी पूजा की जाती है। यह किसी भी स्थान पर उगने में समर्थ है। इसे भगवान् ने अपनी विभूति बताया है। देवऋषि नारद को परमात्मा का मन कहा गया है। वे पहले से पहले उनके अन्तःकरण में क्या है, यह जानकर उसकी भूमिका रच देते हैं। उन्होंने ही बाल्मीकि और वेदव्यास को रामायण और भागवत-महाभारत की रचना करने की प्रेरणा दी थी। नारद जी बात पर देव, गन्धर्भ, नाग, किन्नर, राक्षस-असुर आदि सभी विश्वास करते हैं, उनकी हर बात मानते है और उनसे सलाह भी लेते हैं। अतः वे भगवान् की विभूति हैं। सभी गन्दर्भों में चित्ररथ प्रमुख हैं और उन्हीं ने अर्जुन को गायन विद्या प्रदान की और वे भी परमात्मा की एक विभूति हैं। कपिल मुनि जन्मजात सिद्ध और भगवान् के अवतार हैं। वे साँख्य शास्त्र के आचार्य और सिद्धों के गणाधीश हैं। उन्हें भी प्रभु ने अपनी विभूति कहा है। इस सब विभूतियों में जो विलक्षणता प्रतीत होती है, वह मूलतः-तत्वतः परमात्मा की ही है।
Peepal-fig tree is a unique tree which releases oxygen throughout the day. 
Please refer to :: AYURVED (3) आयुर्वेद :: MEDICINAL USES OF TREES-PLANTS पादपों के औषधीय गुणsantoshkipathshala.blogspot.com
Its capable of curing various diseases. Its capable of growing in adverse conditions as well, to say :- over the mountains, walls etc. Therefore, its one of the Ultimate traits-form of the Almighty.  Narad Muni is a Dev Rishi & is said to be the innerself-psyche of the God who prepare grounds for the future action in advance by knowing his desire. He inspired Maharishi Balmiki to write Ramayan in advance and asked Bhagwan Ved Vyas to write Shrimad Bhagwat & Maha Bharat. Shri Mad Bhagwat Geeta is a part of Maha Bharat. He is the only one who is respected & believed by all species in this universe; including demigods, demons-giants, Nags-serpents, Gandarbh etc. They all consult him as well. It makes him a form of the God. Chitr Rath is best amongest the inferior demigods called Gandarbhs, who are specialists in dancing, music (instrumental & vocal) & singing. It was Chitr Rath who taught dancing & singing to Arjun, when he went to heaven in human incarnation during the period of his exile, which is otherwise prohibited for other living beings. Kapil Muni is an incarnation of the Almighty and amongest the 24 prominent forms-incarnations of the Almighty. He is an enlightened sage-Siddh. He taught Sankhy-enlightenment Yog for the welfare of humans. He is the head of Siddh Gan. This is the reason that he is an embodiment of the Almighty.
Please refer to :: KAPIL MUNI कपिल मुनि :: THE NARRATOR OF SANKHY YOG साँख्य शास्त्र-ज्ञान योग के प्रतिपादकsantoshkipathshala.blogspot.com
The quality-trait of being excellent (unique, distinguishing character, prodigy, novelty, singularity, sagacity) makes one a form of the Ultimate-the Almighty.
उच्चैःश्रवसमश्वानां विद्धि माममृतोद्भवम्।
ऐरावतं गजेन्द्राणां नराणां च नराधिपम्॥10.27॥
घोड़ों में अमृत के साथ समुद्र से प्रकट होने वाले उच्चै:श्रवा नामक घोड़े को, श्रेष्ठ हाथियों में ऐरावत नामक हाथी और मनुष्यों में राजा को मेरी विभूति मानो। 
During the churning of the ocean 14 jewels-Ultimate goods & personalities appeared. Amongest them the horse, which became the king of horses and named Uchcheshrawa along with Aerawat-the elephant, which appeared and became the king of elephants and both of them became the vehicles-carriers of Indr Dev-the king of heaven, are the Ultimate forms of the God as per HIS own admission. The Almighty says that HE is present over the earth in the form of the kings.
समुद्र मन्थन के परिणाम स्वरूप प्राप्त हुए 14 रत्नों में उच्चैः श्रवा नामक अश्व और ऐरावत नामक हाथी भी थे, जो कि देवराज इन्द्र के वाहन बने। उन्हें परमात्मा ने अपनी विभूति माना है, क्योंकि वे क्रमश: घोड़ों और हाथियों में श्रेष्ठतम और उनके राजा हैं। प्रजा का पालन, रक्षा-संरक्षण राजा का धर्म है। वह प्रजा पालक अर्थात प्रजा की सेवा, लालन-पालन, देखभाल के लिए है, न कि अधिकार जताने-प्रताड़ित करने के लिए। राजा को सामर्थ्य-शक्तियाँ परमात्मा से सदुपयोग के लिए प्राप्त हैं, न कि दुरूपयोग की लिए। अतः राजा  परमात्मा की विभूति है। 
Mythological churning of the ocean resulted into the appearance of the 14 jewels-Ultimate goods & divine personalities. Amongest them Uchcheshrawa was the divine horse accompanied by the divine elephant Aerawat. They both became the kings of the horses & the elephants, respectively. They are Ultimate in their category and hence are the forms of the God. 
Please refer to :: MYTHOLOGICAL CHURNING OF OCEAN समुद्र मंथनsantoshsuvichar.blogspot.com
The king-ruler, emperor has been declared to be his own form-representative, by the God till he is protecting, nurturing, serving the citizens-masses. As a matter of fact there had been kings who proclaimed to be God and reached hell. Its one way traffic. A king may have  a microscopic fraction of the characteristics, qualities, traits of the Almighty, but the reciprocal-inverse or the opposite is never true.
आयुधानामहं वज्रं धेनूनामस्मि कामधुक्।
प्रजनश्चास्मि कन्दर्पः सर्पाणामस्मि वासुकिः॥10.28॥
आयुधों में वज्र और धेनुओं में कामधेनु मैं हूँ। सन्तान उत्पत्ति का हेतु कामदेव मैं हूँ और सर्पों में वासुकि मैं हूँ। 
Bhagwan Shri Krashn told Arjun that HE was thunderbolt-Vajr among the weapons and Kam Dhenu amongest the cows. He was Kam Dev (Cupid) to continue with the process of evolution procreation and Vasuki among the serpents.
PROCREATION :: प्रसव, उत्पत्ति, सन्तान बढ़ाना; delivery, childbirth, childbearing, parturition, accouchement, origin, genesis, origination, provenance, produce, propagation, syngeneic, multiplication.
दधीचि ऋषि देवताओं के समस्त आयुधों यथा अस्त्र-शस्त्रों को उनकी सुरक्षा के निगल गए थे। मगर उनको पुनः उत्पन्न नहीं कर पाये, तो उन्होंने देवताओं को अपनी अस्थियों का दान कर दिया, जिनसे वज्र की रचना हुई। वज्र अस्त्र-शस्त्रों में श्रेष्ठ है। समुद्र मन्थन से उत्पन्न कामधेनु समस्त कामनाओं की पूर्ति में सक्षम हैं। अतः परमात्मा की विभूति हैं। ब्रह्मा जी, काम देव और चन्द्र देव संसार में धर्म के अनुकूल सन्तान उत्पत्ति के कारक हैं; इसलिए भगवान् की विभूति हैं। समुद्र मन्थन में सर्प वासुकि मन्दराचल पर्वत की मथानी बने, ताकि अमृत की प्राप्ति हो सके। अतः वे परमात्मा की विभूति हैं। इन सबमें विलक्षणता संसार में दृष्टिगोचर नहीं होती। 
Dadhichi swallowed the weapons of the demigods for their protection but could not reproduce them. In order to help the deities recover their weapons, he donated his bones to the demigods, from which they produced thunderbolt-Vajr, which became the main weapon of Dev Raj Indr-the king of heaven. Thunderbolt has become the greatest & most powerful weapon of the demigods, making it a form of the Almighty. During the process of the mythological churning of the ocean Kam Dhenu-the celestial cow capable of granting all boons, evolved. Thus, she is a form of the God. 
Please refer to :: KAM DHENU कामधेनुsantoshsuvichar.blogspot.com
Brahma Ji is associated with the evolution of living organism over the entire universe. Kam Dev and Chandr Dev are his forms to help in the process of regeneration, continuance-sustenance of all life forms and thus Kam Dev too is a prominent-major form of the God. The great serpent Vasuki Nag became the churning cord of the gigantic-mighty Mandrachal Parwat-mountain and hence, he too is a form of the Almighty. The uniqueness, greatness, peculiarity attached-associated with all these is unheard during the present times-current cosmic era, which makes them the absolute quality of the Almighty.
Please refer to :: EXCELLENT-ULTIMATE श्रेष्ठतम, सर्वोत्तम, सर्वोच्चsantoshsuvichar.blogspot.com
अनन्तश्चास्मि नागानां वरुणो यादसामहम्।
पितॄणामर्यमा चास्मि यमः संयमतामहम्॥10.29॥
नागों में अनन्त-भगवान् शेषनाग और जल-जन्तुओं का अधिपति वरुण मैं हूँ। पितरों में अर्यमा और शासन करने वालों में यमराज मैं हूँ। 
The Almighty as Shri Krashn revealed the secret to Arjun that HE was Anant-Bhagwan Shesh Nag among the hooded snakes, Varun the administrator of the reptiles-animals residing in water, Aryma among the Pitr and Yam-Dharm Raj among the rulers-administrators.
भगवान् अनन्त-शेष नाग, पृथ्वी को अपने मस्तिष्क पर धारण किये हुए हैं। वही भगवान् श्री हरी विष्णु की शेष शय्या हैं। परमात्मा जब भी अवतार ग्रहण करते हैं, वे भी उनके साथ-साथ जन्म लेते हैं। वो ही लक्ष्मण और वो ही बलराम जी हैं। समस्त जलचरों के स्वामी और अर्जुन को गाण्डीव धनुष प्रदान करने वाले जल के देवता वरुण भी वही हैं। 7 पितरों में प्रमुख अर्यमा हैं। प्राणियों को उनके कर्मों के अनुरूप गति प्रदान करने वाले और सारे संसार के नियंत्रण कर्ता यमराज हैं। ये सभी भगवान् की विभूतियाँ हैं। 
Bhagwan Anant-Shesh Nag has 1,000 hoods. He is bearing the earth over one of his hoods. He forms the bed of Bhagwan Shri Hari Vishnu in the Ksheer Sagar. He takes birth along with incarnation of the Almighty. He was Lakshman when Bhagvan Shri Ram appeared over the earth. This time he accompanied Bhagwan Shri Krashn as Bal Ram Ji. Varun is the nurturer of reptiles and water born animals. He landed his bow named Gandeev, to Arjun. Celestial ancestors-Manes are 7 in number and Aryma is Ultimate-topmost in them. Yam Raj controls the entire living world through their deeds awarding them specific abodes and birth in a particular-specific species, according to the accumulated deeds in infinite births. These four are the Ultimate forms of the deities-demigods in their categories and hence are the forms of the Almighty.
प्रह्लादश्चास्मि दैत्यानां कालः कलयतामहम्।
मृगाणां च मृगेन्द्रोऽहं वैनतेयश्च पक्षिणाम्॥10.30॥
दैत्यों में प्रह्लाद और गणना करने वालों में (ज्योतिषियों) में काल मैं हूँ तथा पशुओं में सिंह और पक्षियों में गरुड़ मैं हूँ। 
The Almighty elaborated that HE was Bhakt-devotee Prahlad among the demons-giants and Kal among those who calculated the time period i.e., astrologers, lion among the animals-beasts and Garud among the birds.
मह्रिषी कश्यप के दिति से उत्पन्न पुत्र दैत्य कहलाते हैं। उनमें प्रह्लाद जी भगवान् के परम भक्त और सर्वश्रेष्ठ हैं। वे भगवान् के परम प्रेमी और निष्काम होने की वजह से परमात्मा की विभूति हैं। आयु के परिमाण से प्रह्लाद जी अभी भी सुतल लोक में निवास करते हैं। व्यवस्था बनाये रखने के लिए काल विभाजन अत्यावश्यक है। ज्योतिषी गण भविष्य और भूत की गणना करते हैं। यमराज को काल और भगवान् शिव को महाकाल माना जाता है। अतः काल भगवान् की विभूति है। सिंह पशुओं में सबसे बलवान और जंगल का राजा माना जाता है, अतः वो प्रभु की विभूति है। मह्रिषी कश्यप की पत्नी विनता के पुत्र गरुड़ जी भगवान् विष्णु के वाहन हैं और पक्षियों में सर्वश्रेष्ठ होने के कारण पक्षियों के राजा भी हैं। उड़ते समय उनके पंखों से सामवेद की ऋचाएँ स्वतः ध्वनित होती हैं। अतः वे परमात्मा की विभूति हैं। 
Mahrishi Kashyap's sons from his wife Diti are called giants-demons. Prahlad Ji is a great devotee of the Almighty. He was the emperor of the demons but voluntarily deserted the throne for Andhak, Bhagwan Shiv & Maa Parwati's son, born as a blind child. He asked for Bhakti devotion as a boon to the Almighty. He nurture Ultimate devotion to the God and hence is an exceptional entity and Ultimate form of the God. He still resides in the Sutal Lok gifted by Bhagwan Vishnu to his grand son Raja Bahu Bali. Division of the cosmic era-time period into fragments is essential. Astrologers maintain records of the hierarchy in India. They are able to predict exact events of the future as well. Yam-Dharm Raj the deity of death & birth, virtues & sins is called Kal (Death). Bhagwan Shiv is called Maha Kal. It makes Kal as a distinctive quality of the Almighty. The God recognises HIMSELF as the ASHAY Kal. Lions constitute the top of the pyramid among the animals-beasts and he is the king of the jungle. Garud Ji is the vehicle of Bhagwan Vishnu & the king of birds. When he flies verses of Sam Dev evolves out of his feathers.
राम पवनः पवतामस्मि रामः शस्त्रभृतामहम्।
झषाणां मकरश्चास्मि स्रोतसामस्मि जाह्नवी॥10.31॥
पवित्र करने वालों में वायु और शस्त्र धारियों में राम मैं हूँ। जल-जन्तुओं में मगर मैं हूँ और नदियों में गङ्गा जी मैं हूँ। 
The Almighty said that HE is air amongest the purifiers, Ram among those who bear arms, crocodile among the animals who live in water and Ganga Ji among the river.
पवन-वायु को सर्वश्रेष्ठ शुद्धि कर्ता कहा गया है, क्योंकि वातावरण में अशुद्धि और जल की अशुद्धि को वायु ही दूर करती है। ऑक्सीजन समस्त प्रकार के जीवाणु, फफूँदी, बीजाणुओं, वायरस आदि को नष्ट करने में सक्षम है। नदी के जल में घुलने वाली ऑक्सीजन सभी प्रकार की अशुद्धिओं को समाप्त कर देती है। अतः पवन देव परमात्मा की विभूति हैं। भगवान् राम अवतार तो हैं ही, शस्त्र धारियों में सर्वश्रेष्ठ भी हैं और इसीलिए परमात्मा की विभूति हैं। मगर-घड़ियाल माँ गङ्गा का वाहन है और जल-जंतुओं में सबसे अधिक बलवान और जल में जाने की बाद और अधिक बलवान हो जाता है, अतः भगवान् की विभूति है। माँ गङ्गा जनकल्याण के लिए स्वर्ग से पृथ्वी पर पधारीं हैं। गङ्गा-यमुना के क्षेत्र में पैदा होने वाला धर्म-कर्म और भक्ति वान व्यक्ति अन्य स्थानों पर उत्पन्न लोगों से श्रेष्ठ है। गङ्गा जी पूरे वर्ष खेती-बाड़ी, पीने  उद्योग-धन्धों के लिए जल प्रदान करती हैं और इनका जल कभी खराब नहीं होता।
वर्तमान काल में प्रदूषण सभी सीमायें पार कर चुका है।
Please refer to :: DESCENT OF MAA GANGA OVER THE EARTH गँगावतरण CHAR DHAMS चार धाम :: PILGRIMAGE TIRTH STHAL तीर्थ यात्राsantoshkipathshala.blogspot.com 
इसी श्रेष्ठता के कारण वे परमात्मा की विभूति हैं। 
Air is the universal cleanser. It cleans the sky and the water side by side, due to the presence of oxygen in it. This is one of the life sustaining materials over the earth. It is one of the major component of the human body and essential for survival. Hence, this uniqueness make it an exemplary-exceptional quality of the Almighty. Oxygen is capable of killing germs, microbes, viruses, bacteria, fungus, protozoans etc., which are harmful to life. Bhagwan Shri Ram, an incarnation of the God is greatest amongest those who bear arms-weapons. HE relinquished Ravan & vanished the demons-giants, who tortured the humans-sages etc. HE is Ultimate amongest the warriors and hence an Ultimate form-incarnations of the God. Crocodile is considered to be the strongest amongest those animals, who reside in water in the rivers, ponds etc. and is the carrier of Maa Ganga. Maa Ganga is the purest amongest the rivers. One who is born over the earth in the periphery of Ganga & Yamuna is fortunate, since he has been granted an opportunity to perform pious acts-deeds, social service, welfare of the downtrodden to get rid of his accumulated sins. She brings water to planes throughout the year to cultivate and survive. It's water is composed of so many life sustaining herbs, minerals and elements which have a cleansing action over the human body. Hence, both Maa Ganga and her carrier Crocodile are considered to be the Ultimate forms of the God.
सर्गाणामादिरन्तश्च मध्यं चैवाहमर्जुन।
अध्यात्मविद्या विद्यानां वादः प्रवदतामहम्॥10.32॥ 
हे अर्जुन! सम्पूर्ण सृष्टियों के आदि, मध्य तथा अंत में मैं ही हूँ। विद्याओं में अध्यात्म विद्या-ब्रह्म विद्या और परस्पर शास्त्रार्थ करने वालों का (तत्व निर्णय के लिए जाने वाला) वाद मैं हूँ। 
The Almighty took the opportunity to establish that HE was the force behind all creations-evolution, at their beginning, middle and the end. HE was present at all points of time. HE constituted the Ultimate knowledge & the gist (nectar, theme, central idea, elixir) of it. HE was behind all opinions-sects and those who debated the gist of the Ultimate, their knowledge and arguments-logic pertaining to supreme self.
जितने भी सर्ग, उपसर्ग, सृष्टि के आदि मध्य और अन्त हैं, उन सभी में परमात्मा मौजूद रहते हैं। इस सम्बन्ध को जानने पर, मनुष्यों को हर वक्त, हर घड़ी भगवान् का स्मरण करना चाहिए। संसार का अभाव करके, निर्गुण परमात्मा का जानना, अध्यात्म विद्या है। इसमें निर्गुण स्वरूप की प्रभु सत्ता है। यह मनुष्य के लिए कल्याणकारी है। इसकी प्राप्ति के बाद मनुष्य को कुछ भी जानने-पढ़ने के लिए शेष नहीं रहता। परमात्मा से सम्बन्धित वाद-विवाद, शास्त्रार्थ, विचार-विमर्श परमात्मा के सच्चे स्वरूप को जानने के लिए है। इसमें व्यर्थ की तकरार के लिए कोई स्थान नहीं है। किसी भी राय को वाद का नाम दिया गया है। इसमें निष्कर्ष की सम्भावना नगण्य है। अतः यह भी भगवान् की विभूति है। आत्मज्ञान, अध्यात्म विद्या अथवा ब्रह्म विद्या परमात्मा की विभूति इसीलिए हैं। यह सबसे सरल, सुगम और प्रत्यक्ष अनुभव का विषय है। यह समझने की बात है कि "संसार में नित्य, अनवरत परिवर्तन हो रहा है, फिर भी शरीरी-आत्मा वही है और केवल शरीर बदल रहा है"। 
Various phases of cosmic era, their beginning, middle and the termination-dooms day (annihilation) see the God. One who knows, understands this, always keep remembering the Almighty. Elimination of the Universe and efforts to know the Almighty constitutes the "Atm Vidya", self realisation. The God is present at all points of time & HE is behind all creations, destruction, nurture with HIS might. This is Almighty's characteristics-traits, quality, factor less image. One who has identifies this, is willing to do his own welfare through righteous, virtuous, honest, pious means. Nothing is left to be acquired after this possession. That makes it, God's Ultimate form of spiritual knowledge. One might come to some conclusion about the God's real identity by debating (discussions, analysis) with others in an effort to seek their opinion. This opinion too becomes God's supreme form through the process of elimination-analysis & synthesis. However, no one can come to last & final opinion-conclusion, since the Almighty has infinite variants. One realises that HE is still the same in spite of the changing world, HIS physical-chronological age. The soul remains same but the body which bears it, has undergone tremendous change. This makes it supreme knowledge-realisation; a form of the Ultimate-Almighty.
अक्षराणामकारोऽस्मि द्वन्द्वः सामासिकस्य च।
अहमेवाक्षयः कालो धाताहं विश्वतोमुखः॥10.33॥
अक्षरों में अकार और समासों में द्वन्द समास (संस्कृत व्याकरण में वह अवस्था जब अनेक पदों का एक पद, अनेक विभक्तियों की एक विभक्ति या अनेक स्वरों का एक स्वर होता है) मैं हूँ। अक्षरकाल अर्थात काल का भी महाकाल तथा सब ओर मुख वाला धाता सबका पालन पोषण करने वाला, भी मैं ही हूँ। 
The Almighty asserts that HE is the first letter of the alphabets-syllables "अ" and  HE is the "I AM-ME, MY" the dual compound among the compound words. HE is the endless time and the Ultimate time (Maha Kal Bhagwan Shiv) side by side. HE is sustainer-nurturer and omniscient, having mouth in all directions.  
वर्णमाला में सबसे पहले अकार "अ" आता है। स्वर और व्यंजन दोनों में ही अकार मुख्य है। इसके बिना व्यञ्जनों का उच्चारण भी नहीं होता। अतः यह परमात्मा की विभूति है। द्वन्द समास वह शब्द है, जो दो शब्दों से मिलकर बनता 
 है और दोनों शब्दों में प्रधान है। अतः यह भी परमात्मा की विभूति हुआ। आदि देव परमात्मा अनन्त अनादि, कालातीत हैं। उनका कभी क्षय नहीं होता। सर्ग और प्रलय काल में समय की गणना को भगवान् सूर्य के अनुरूप-सन्दर्भ में किया जाता है। महाप्रलय में जब सूर्य भी लीन हो जाता, तब समय की गणना परमात्मा के सापेक्ष होती है। इसी वजह से प्रभु अक्षय काल हैं। सूर्य द्वारा निर्धारित काल ज्योतिष सम्बन्धित गणनाओं का आधार है, जो अक्षय काल है; वह परिवर्तनशील नहीं है। अतः अक्षर काल परमात्मा की विभूति है। परमात्मा हर वक्त हर घड़ी सभी प्राणियों को निहारते रहते हैं और सभी-सब के सब प्रकार के कार्य कलापों पर, उनकी पैनी नजर रहती है। इस लिहाज से प्रभु स्वयं अपनी विभूति स्वयं हैं।
The vowel "अ" (English has no equivalent for this sound. Its very near to A-a. A-a is close to "ए" of Hindi and Sanskrat. Almost all consonants have this sound attached with them. There are compound words which have two or more words, signifying each one of them. This leads to the Ultimate nature of this letter-alphabet, making it a form of the God. The Almighty is beyond the limits of time & is since ever, for ever. At the time of evolution & the doom's day the Sun losses its significance, since it too assimilate in the Almighty. At that occasion the Almighty is the absolute time scale, which makes HIM, HIS own excellence-Ultimate quality. The Almighty watches all living beings with HIS face in all directions, so that each and every one gets his due. This is again an Ultimate trait which makes HIM superior to all.
मृत्युः सर्वहरश्चाहमुद्भवश्च भविष्यताम्।
कीर्तिः श्रीर्वाक्च नारीणां स्मृतिर्मेधा धृतिः क्षमा॥10.34॥
सबका हरण करने वाली मृत्यु और भविष्य में उत्पन्न होने वाला मैं हूँ तथा स्त्री जाति, कीर्ति, श्री, वाक्, स्मृति, मेधा, घृति और क्षमा मैं हूँ। 
The Almighty stressed that HE is the all devouring death and also the origin of future beings and the seven qualities fame, prosperity, speech, memory, intellect, resolve and forgiveness amongest the women fore.
मृत्यु में हरण करने-छीनने की ऐसी क्षमता हैं कि प्राणान्त के पश्चात स्मृति तक नहीं रहती। यह परमात्मा की सामर्थ है। पूर्व जन्म की यादें कष्ट, यंत्रणा, चिन्ता, मोह आदि को बढ़ाने वाली ही होती है। सबको पैदा करने वाले भी वही हैं और उत्पत्ति के हेतु भी वो ही हैं, संसार की उत्पत्ति, स्थिति और प्रलय परमात्मा से ही है। स्त्री जाति में कीर्ति, श्री, वाक्, स्मृति, मेधा, घृति और क्षमा सर्वश्रेष्ठ हैं। कीर्ति, स्मृति, मेधा, घृति और क्षमा दक्ष प्रजापति की, श्री मह्रिषी भृगु तथा वाक् ब्रह्मा जी की कन्याएँ हैं। संसार में प्रतिष्ठा को कीर्ति कहते हैं। धन, सम्पत्ति, ऐश्वर्य, श्री कहलाते हैं। जिस वाणी को धारण करने से मनुष्य विद्वान, पण्डित, ज्ञानी कहलाता है, वह वाक् है। जो शक्ति पुरानी सीखी, समझी सुनी गईं बातों को फिर से याद दिलाती है, वो स्मृति है। जो शक्ति विद्या को ठीक तरीके से याद रखने में तथा बुद्धि की धारणा में सहायक है, वो मेधा है। मनुष्य के अपने निश्चय, सिद्धान्त, मान्यता पर बगैर विचलित हुए डटे रहना घृति है। अकारण अपराध करने पर शक्ति, सामर्थ होते हुए भी दण्ड न देना, क्षमा है। कीर्ति, श्री और वाक् प्राणियों की वाह्य मुखी विशेषताएँ हैं तथा स्मृति, मेधा, घृति और क्षमा अन्तःमुखी प्रतिभाएँ-विशेषताएँ हैं। इन सातों को परमात्मा ने अपनी विभूति बताया है। यदि किसी व्यक्ति में ये गुण प्रकट हों, तो उसे परमात्मा की विशेषता मानना चाहिए, उसकी स्वयं की नहीं। अपना गुण मानने से मनुष्य में अभिमान उत्पन्न होता है। 
Death has the unique quality of eliminating-wiping out, the previous memory. Memory of the previous births may cause pain agony, distress, attachment, undue botheration in the minds of the human beings. The death is a form, quality, excellent ability-uniqueness of the God. Death is followed by the birth. Evolution-creations, stabilisation and destruction are caused by the Almighty, in a cyclic manner-order. The women-fore have 7 names (titles, qualities, traits, characterises)  which are known for their Ultimate qualities. These 7 are Keerti Fame, recognition), Shri (wealth, property, money), Vak (speech, language), Smrati (memory), Medha (brilliance), Ghrati and Kshma. Keerti, Smrati, Medha & Kshma are the daughters of Daksh Praja Pati, Shri is the daughter of Mahrishi Bhragu, while Vak is the daughter of Brahma Ji. Prestige (fame, respect, honour, good, will) in the world is due to Keerti. Wealth, money, property, prosperity, vehicles, comforts, luxuries comes due to Shri. Smrati (remembrance, memory) helps in recollecting the old-previous deeds, events, learnt things. Medha provides help in properly assembling the knowledge, ability, learning and up keep of intelligence, prudence, cleverness, diplomacy. Ghrati-will power, determination is that ability of one, which helps him in maintaining his stand over principles, facts, belief, resolutions. Kshma-pardon is that ability which forbids one from punishing the guilty in spite of strength, power, capability. Vak-speech is the ability to communicate, express, describe, teach and granting of enlightenment, status as philosopher, scholar Pandit to the individual. Keerti, Shri & Vak are the external features, qualities, traits of an individual. Smrati, Medha, Ghrati &  Kshma are the internal characteristics of the bearer. 
As and when these qualities appear in one, he should consider them to be the gift of the Almighty not his own qualities, since it will lead to ego-pride in him.
बृहत्साम तथा साम्नां गायत्री छन्दसामहम्।
मासानां मार्गशीर्षोऽहमृतूनां कुसुमाकरः॥10.35॥
गायी जाने वाली श्रुतियों में बृहत्साम और सब छन्दों में गायत्री छन्द मैं हूँ। बारह महीनों में मार्गशीष और छः ऋतुओं में बसन्त में हूँ। 
The Almighty asserted that HE is Brahat Sam among the lyrics-hymns which are heard, Gayatri Chhand (metre, poetic composition). HE is Marg Sheesh (period of November-December) among the 12 months and spring among the 6 seasons.
सामवेद में बृहत्साम नामक एक गीति है, जिसमें परमेश्वर की स्तुति इन्द्र रूप में की गई है और इसे  सर्वश्रेष्ठ-सर्वोत्कृष्ट माना गया। अतः यह परमात्मा की विभूति है। गायत्री को वेदों की जननी कहते हैं, क्योंकि वेद इसी से प्रकट हुए हैं। स्मृतियों और शास्त्रों में गायत्री की बड़ी भारी महिमा है। गायत्री में स्वरूप, प्रार्थना और ध्यान :- इन तीनों में परमात्मा के ही होने से, इससे परमात्म तत्व की प्राप्ति होती है; इसीलिए यह भगवान् की विभूति है। मार्गशीष को वर्षा से अन्न पैदा करने वाला महीना माना गया है। महाभारत-काल  में नव वर्ष मार्गशीष से ही प्रारम्भ होता था। इन विशेषताओं के कारण भगवान् ने इसे अपनी विभूति बताया है। बसन्त के महीने में वृक्ष, लता, पौधों पर नए फूल और पत्ते आते हैं। मौसम सुहावना रहता है। न ज्यादा सर्दी और न ही ज्यादा गर्मी। इन्हीं विशेषताओं से यह भगवान् की विभूति है। 
Sam Ved is considered to be Ultimate poetic-rhythmic composition, which contains Brahat Sam which is among the lyrics-hymns, which are Ultimate to be sung-heard for the purpose of worshiping God. The God has been prayed-worshipped in the form of Indr-the king of heaven, who in fact is an Ultimate form of the God himself. Gayatri is a Mantr which is considered to be the best and curing, among the prayers. Gayatri is the origin of the Veds-the source of all knowledge. It is the Ultimate form of the God, a prayer and tool for meditation. These three are the God's Ultimate form, prayer and meditation & provides-grants the gist of the Almighty. Marg Sheesh is the 10th month of Indian-Hindu calendar, combining the British, English, international calendar with the Hindu-Indian system being 10th month; meaning December. This is the period when normal food grains like wheat, grow without being irrigated specially, followed by rains & presence of sufficient moisture. This is followed by pleasant weather and cosy cold. These qualities make this month as one of Almighty's forms. Spring-Basant is the month, which comes after swear-biting cold, chill. The plants bear new leaves, flowers. Its neither cold nor hot. The weather is romantic-cupid, making it excellent among all the seasons. Therefore, November-December and Spring are the Ultimate forms of weather i.e., the God.
द्यूतं छलयतामस्मि तेजस्तेजस्विनामहम्।
जयोऽस्मि व्यवसायोऽस्मि सत्त्वं सत्त्ववतामहम्॥10.36॥
छल करने वालों में जुआ और तेजस्वियों में तेज़ मैं हूँ। जीतने वालों की विजय मैं हूँ। निश्चय करने वालों का निश्चय और सात्विक मनुष्यों का सात्विक भाव मैं हूँ। 
The Almighty states that HE is gamble amongest the cheaters and brilliance of those who possess aura. HE is victory of the winners, determination of those who decide-who takes firm decision, determination i.e., resolution of the resolute; purity, piousness, righteousness, virtuousness, morality of the virtuous-honest or simply goodness of the good. 
छल, कपट, धोखा निकृष्ट-निंदनीय व्यवहार में आते हैं। इनमें निकृष्टतम जुए को माना गया। प्रभु मानव कल्याण के लिए दुष्टों से छल-प्रपञ्च भी करते हैं। बाहुबली का सर्वस्व, वृन्दा का सतीत्व छीनने की लिए उन्होंने छल का सहारा लिया। कूटनीति में दुश्मन को मात देने के लिए यह एक मान्य सिद्धान्त है। जरासंध को सीधे, आमने-सामने के युद्ध में हराने की बजाय उन्होंने छद्यम युद्ध-छापे मारी का सहारा लिया। बाली वध में ओट में आकर तीर चलाया।दुर्योधन की जाँघ पर भीम से वार करवाया। भीष्म पितामह के आगे शिखण्डी को खड़ा किया। कर्ण के रथ का पहिया फँसने पर उसे घेरा। काँटे से काँटा निकाला जाता है। उनकी माया का अंग होने के कारण जुआ परमात्मा की विभूति है। जूआ निंदनीय है; फिर भी विकट परिस्थिति में मनुष्य कोई अन्य उपाय नहीं मिलने से अपनी जिंदगी भी दाव पर लगा देता है। देवी आभा बहुत ही श्रेष्ठ, पवित्र, सात्विक व्यक्तियों में होती है। यह परमात्मा की विभूति तेज़ है। जैसे-जैसे कोई व्यक्ति ब्रह्मत्व की ओर बढ़ता है, उसमें तेज प्रकट होने लगता है। युद्ध, प्रतियोगिता, मुकाबला, विवाद-शास्त्रार्थ में विजय भगवान् की असीम कृपा का परिणाम और उनकी विभूति है। मनुष्य सन्मार्ग पर चलने का निश्चय बड़ी मुश्किल से कर पाता है। भक्ति भाव बनाए रखना और भी कठिन है; जिसके लिए दृढ़ निश्चय और आत्मबल की आवश्यकता पड़ती है। अतः निश्चय भी प्रभु की विभूति हुआ। रजोगुण और तमोगुण को दबाकर, सात्विक आचरण बेहद कठिन और मुश्किल होने से परमात्मा की विभूति है। 
Deception, cheating, forgery are among the worst behaviour of human beings. Gambling is one of them. The Almighty & Dev Raj Indr adopted cheating as a technique-tool to rescue the demigods-deities from the ill effects of the wretchedness of the demons, Rakshas, giants. God took the shape of a dwarf to deceive mighty king Bahu Bali, son of Virochan and grandson of Prahlad Ji, his virtuous devotees. Jalandhar the son of Samudr-the ocean and brother of Maa Laxmi became a curse for the demigods due to the support of his wife Vranda's chastity. There was no way out and the God turned himself into Jalandhar, leading to Jalandhar's death. Diplomacy too need deception for over powering the enemy. Bhagwan Ram had to hide behind a tree to eliminate Bali. Bhagwan Shri Krashn defeated Jara Sandh by utilising gorilla warfare techniques. HE eliminated Kal Nemi as well without touching him. One is led to take risk-gamble as a last resort. This is practically a gamble and thus gamble is God's one of the ultimate qualities. When someone moves to virtuousness, sainthood; an aura appears around his face. This aura is a gift & greatness of the God. Victory in the war is God's gift. Those who entangle in debate, competition, religious confrontations-arguments, wars get victory as a result of the mercy of the God. This victory is a sign of Almighty's kindness-greatness. Its really, extremely difficult to move on divine path away from wretchedness. Saintly behaviour, virtuousness, piousity, honesty, righteousness are very difficult to practice in a corrupt atmosphere, like the current one, all over the world including Bharat. Thus, Piousness is Godly and to decide to follow the path of truth needs firm determination making firmness a property of the Almighty.
The gamble-risk of life is Supreme sacrifice to protect, self, others, family, country etc. If one dies in  a virtuous war-in fight, he gets heaven  and if he survives, he enjoys rest of his life over the earth.
वृष्णीनां वासुदेवोऽस्मि पाण्डवानां धनंजयः।
मुनीनामप्यहं व्यासः कवीनामुशना कविः॥10.37॥
वृष्णि वंशियों में वासुदेव पुत्र श्री कृष्ण और पाण्डवों में अर्जुन में हूँ। मुनियों में वेद व्यास और कवियों में कवि शुक्राचार्य भी में ही हूँ। 
I am Shri Krashn, the son of Vasu Dev among the Vrashni clan, Arjun among the Pandavs, Ved Vyas among the saints and Shukrachary among the poets.
भगवान् श्री कृष्ण ने स्वयं को वृष्णि वंश में उत्पन्न विभूति कहा है, न कि अवतार जो कि वे हैं। पाण्डवों में अर्जुन उनकी एक श्रेष्ठ मूर्ति हैं। वेद का चार भागों में विभाजन, पुराण, उपपुराण और महाभारत रचना उनकी श्रेष्ठतम विभूतियाँ हैं, जो कि जन कल्याण की लिए प्रकाशित की गई हैं। धर्म से जुड़ी हुई कोई भी रचना व्यास जी की देन ही मानी जानी चाहिए। शुक्राचार्य को कवि के रूप में उनकी विभूति समझना चाहिए।
The Almighty revealed that HE as the son of Vasu Dev Ji, in the Vrashni Vanshi-clan & was HIS excellent creation, along with Arjun who took incarnation in the Pandu clan. It might make the purpose of HIS incarnation to Arjun and all those who were listening to HIM delivering the sermon in the battle field of Kurukshetr; clear. Still there are people who do not realise the excellence of the composition of Gita as the Supreme guide for the Kali Yug by Muni Ved Vyas Ji Maha Raj, who was one of HIS incarnations and excellent among the composers. To compare the poets, HE makes it clear that Shukrachary is HIS supreme form as a poet. Therefore, Veds, Puran, Up Puran, Vedant and Maha Bharat should not be considered poetic creations, since they reveal history, science, purpose of life, movement of soul in various incarnations, birth-death etc. Gita has been translated into almost all languages of the world. 
It has been discovered that the translation is inappropriate & not up to the mark in most-all cases, sending wrong notions-messages among the masses. Some times, the interpretations too are wrong and misleading.
Its clear that the Bhagwan Shri Krashn & Arjun, both are two forms of the Almighty just like water in two pots.
दण्डो दमयतामस्मि नीतिरस्मि जिगीषताम्।
मौनं चैवास्मि गुह्यानां ज्ञानं ज्ञानवतामहम्॥10.38॥
दमन करने वालों में दण्ड नीति और विजय चाहने वालों में नीति में हूँ। गोपनीय भावों में मौन में हूँ और ज्ञान वानों में ज्ञान मैं ही हूँ।
The Almighty said that HE is the force, power, might of the law & order (policy to punish, oppress, penalty, penalise, quash, repression, control, subduing, suppression, subjugation, penal code, oppression) to punish the guilty (criminal, offender, breaker of the code of conduct) and policy for the lover of victory-success. Among the confidential gestures, HE is silence and enlightenment among the learned (philosophers, scholars, educated).
समाज-संसार को दुष्ट लोगों-अपराधियों से मुक्त रखने, सन्मार्ग पर लाने के लिए नियम, कानून, दण्ड नीति, दण्ड संहिता की आवश्यकता होती है। परमात्मा ने कहा कि वे दण्ड नीति में नीति हैं। अतः यह उनकी विभूति है। नीति (धर्म, कूटनीति, राजनीति) का आश्रय लेकर ही विजय प्राप्त होती है। इसलिए नीति भी उनकी विभूति है। मौन की बहुत महिमा है। राजनीति में मौन-गोपनीयता बनाए रखना नितान्त-अत्यावश्यक है। मौन तपस्या का एक रूप भी है और भगवान् की विभूति भी। सामान्य ज्ञान से लेकर तत्व ज्ञान-ब्रह्म ज्ञान तक, भगवान् की विभूति हैं। 
Penal code, rule of law is essential to keep the criminals, notorious people at bay (under control). Punishment is essential to enforce discipline in the society. The Almighty HIMSELF is the policy-might to enforce law. The policy is essential to attain victory-success. Silence is ascetic and essential to run the government pertaining to confidentiality-secrecy. Silence is therefore, an ultimate quality representing the God.  The  enlightenment of the scholar-philosopher is the God HIMSELF.
यच्चापि सर्वभूतानां बीजं तदहमर्जुन।
न तदस्ति विना यत्स्यान्मया भूतं चराचरम्॥10.39॥
और हे अर्जुन! सम्पूर्ण प्राणियों का जो बीज-मूल कारण है, वह बीज भी मैं ही हूँ; क्योंकि वह चर-अचर कोई प्राणी नहीं है, जो मेरे बिना उत्पन्न हुआ हो अर्थात चर-अचर सब कुछ मैं ही हूँ। 
The Almighty stressed that HE was the root cause-seed of evolution of every entity, whether living or non living. Nothing animate or inanimate happen or exist without HIM.
भगवान् श्री कृष्ण ने अर्जुन को बताया कि संसार का निमित्त वही हैं। जड़-चेतन, चर-अचर, स्थावर-जङ्गम सभी कुछ वही हैं। उनके बगैर संसार में पत्ता भी नहीं हिलता। सत्व, रज और तम तीनों गुण भी प्रभु ही हैं। अतः मनुष्य को हर वस्तु, भाव, प्राणी में परमात्मा को ही देखना, सोचना, समझना चाहिए। 
The Almighty is the root cause, seed of every activity, happening, animate or inanimate. HE is behind every activity virtuous, divine, demonic or otherwise. One should remember that the God is present in each and every one-entity of the organisms or the material objects. Nothing is possible without HIM. However, HE appears as excellent character in some of his creations.
नान्तोऽस्ति मम दिव्यानां विभूतीनां परन्तप।
एष तूद्देशतः प्रोक्तो विभूतेर्विस्तरो मया॥10.40॥
हे परन्तप अर्जुन! मेरी दिव्य विभूतियों का कोई अन्त नहीं है। मैंने अपनी विभूतियों का जो विस्तार कहा है, वह संक्षिप्त और नाम मात्र का है।  
The Almighty addressed Arjun as an Ultimate ascetic and said that there was no end to his divine manifestations. HE had described them just to mention a few, in short.
परमात्मा की दिव्य विभूतियों का कोई अन्त नहीं है। दिव्य शब्द अलौकिकता-विलक्षणता का द्योतक-प्रतीक है। साधक के समक्ष दिव्यता केवल तभी प्रकट होती है, जब उसका उद्देश्य केवल भगवत्प्राप्ति होती है। भगवत तत्व राग-द्वेष रहित होकर, उन विभूतियों में केवल परमात्मा का चिंतन-स्मरण करना है। श्री भगवान् की विभूतियाँ अनन्त, असीम और अगाध हैं। उन्होंने विभूतियों का जो वर्णन किया है, वह संक्षिप्त और लौकिक दृष्टि से किया है। भगवान् ने कारण रूप से अध्याय 7 के 12 से 18 श्लोक तक, 17 विभूति, कार्य कारण रूप से अध्याय 9 के श्लोक 16 से 19 तक 37 विभूति, भावरूप से अध्याय 10 के श्लोक 4 और 5 तक 20 विभूति, व्यक्तिगत रूप से अध्याय 10 के श्लोक 6 में 25 विभूति, मुख्य रूप और अधिपति रूप से अध्याय 10 के श्लोक 20 से 38 तक 81 विभूति, सार रूप से अध्याय 10 श्लोक 39 की एक और प्रभाव रूप से अध्याय 15 श्लोक 12 से 15 तक 13 विभूतियाँ वर्णित की गई हैं। इसका तात्पर्य यह है कि सिवाय भगवान् के कहीं भी कुछ भी नहीं है। अपरिवर्तनशील सत्-परा और परिवर्तनशील असत्-अपरा दोनों ही परमात्मा की विभूतियाँ हैं। भोग बुद्धि वाले मनुष्य परमात्मा के प्रति आकर्षित न होकर इच्छाओं और काम में आसक्त होते हैं, जो कि उन्हें बन्धन में बाँधने वाला है। 
There is no end to the uniqueness-greatness of the Supreme qualities of the God. The term divine too, is symbolic to the God's Ultimate-Supreme characteristics. The divine character is visible to the practitioner-worshipper, when his goal is to attain the God. He prays to God without any desire, envy, attachment. His meditation, remembering, concentration, penetration in the divine characteristics, guides him further. The divine characteristics of the God are infinite, unending and too deep. The description of the Ultimate qualities-traits made by the Almighty is symbolic-in short, keeping in view the worldly humans, who have too short, memory, intelligence, limited vision & life span. The God described 17 characteristics on the basis of logic-reason in chapter 7 from verse 12 to 18 on the basis of action & reason, 37 characteristics in chapter 9 from verse 16 to 19 on the basis of feelings, 20 characteristics in chapter 10 from verse 4 to 5 on the basis of individuality, 25 characteristics in chapter 10 verse 6 mainly as the Supreme Lord, 81 characteristics in chapter 10 verse 20 to 38 as the extract-gist, one characteristic in chapter 10 verse 39 and as the effect-impact, 13 characteristics in chapter 15 verse 12 to 15. It means that there is nothing except the Almighty in this universe. Unchangeable Sat, Truth, Para and the changeable Asat-Apra too are his Ultimate-divine qualities, manifestations. One who indulges in sensuality-passions, pleasure-fun, sexuality, lasciviousness, comforts; alienate himself from the God and moves to attachments, which are binding, putting him to the unending course-trail of birth & death.
यद्यद्विभूतिमत्सत्त्वं श्रीमदूर्जितमेव वा।
तत्तदेवावगच्छ त्वं मम॥10.41॥
जो-जो ऐश्वर्य युक्त, शोभा युक्त और बल युक्त प्राणी तथा पदार्थ हैं, उन-उन को तुम मेरे ही तेज (योगबल अर्थात सामर्थ्य) के अंश से उत्पन्न हुई समझो। 
Bhagwan Shri Krashn made it clear to the humans through Arjun that who so ever or whatever is endowed with glory, brilliance and power; is a manifestation of his splendour-divinity.
भगवान् श्री कृष्ण ने अर्जुन के माध्यम से व्यास जी और गणेश जी के सहयोग से स्पष्ट किया कि अनन्त ब्रह्माण्डों में जहाँ कहीं, जो कुछ भी विलक्षण, सर्वोत्तम, सर्वोत्कृष्ट, अद्वितीय है, वह उनकी विभूति है। जिस किसी पदार्थ, वस्तु में अनोखापन-अत्युत्तम गुण है, वह परमात्मा की देन है। वस्तुओं में सुदर्शन चक्र, देवराज इन्द्र  का वज्र, ब्रह्मास्त्र, वरुण का  गाण्डीव धनुष आदि हैं, वे सभी परमात्मा प्रदत्त शक्ति से संचरित हैं। ऐश्वर्य, शोभा, सौंदर्य, बल-तेज़, योग्यता, विलक्षणता, आकर्षण, क्रिया, खोज प्रभु की कृपा-मर्जी से ही है, अन्यथा नहीं। 
Bhagwan Shri Krashn made it clear to all humans, demons-giants, deities-demigods that whatever is excellent-superb, is HIS creation anywhere in anyone of the infinite universes. HE selected Arjun as the medium, Bhagwan Ved Vyas as the narrator and Ganesh as the writer being best-excellent amongest their class. HE HIMSELF or HIS power-strength is behind unparalleled superiority. Sudarshan Chakr-Bhagwan Vishnu's disc, with thousand grooves, thunder bolt of Dev Raj Indr, Brahmastr, Nag Pash, Yam Pash, Mash of Dharm Raj, Gandeev Dhanush-Bow of Varun Dev given to Arjun were meaningless without the energy, power, might granted by the God. Wealth, luxuries, beauty, might, ability, exceptional features (qualities, endowments, निधि), attraction, researches-discoveries, actions (deeds, manoeuvres), are the God's manifestations-gifts. One should never be proud of his accomplishments, achievements, since its the Almighty, who has blessed him to perform, on HIS behalf. One should never nourish the ego-urge, that he had performed exceptionally well. People have reported throughout the world that they never imagined that they would be able to perform, do exemplary tasks exceptionally. They found someone-something else in them selves, who was behind the feat-accomplishment.
अथवा बहुनैतेन किं ज्ञातेन तवार्जुन। 
विष्टभ्याहमिदं कृत्स्नमेकांशेन स्थितो जगत्॥10.42॥
अथवा हे अर्जुन! तुम्हें इस प्रकार बहुत सी बातें जानने की क्या आवश्यकता है, जबकि मैं अपने किसी एक अंश से, इस सम्पूर्ण जगत् को व्याप्त करके स्थित हूँ अर्थात अनन्त बृह्मांड मेरे किसी एक अंश में स्थित हैं।
The Almighty advised Arjun not to be too much inquisitive, since any one of HIS component could hold-support the entire universe, which means that there are infinite number of universes, which are supported just by a single component of the God. 
भगवान् श्री कृष्ण ने कहा कि उन्होंने जो कुछ भी अर्जुन ने जानना चाहा था, वो तो पूरी तरह से स्पष्ट कर दिया; फिर भी उन्होंने अपनी तरफ से एक अति विशेष-महत्वपूर्ण जानकारी और भी दे दी। उन्होंने पूरी तरह से स्पष्ट कर दिया कि जिस ब्रह्माण्ड में पृथ्वी स्थित है, वो तो उनके एक सूक्ष्माति सूक्ष्म अंश के द्वारा सम्भाला जा रहा है और इस प्रकार के अनन्त ब्रह्माण्डों को उनके अनेकों-अनन्त रूप सँभालते हैं। यहाँ देखने वाली बात यह है कि साक्षात परब्रह्म परमेश्वर कलयुग का ज्ञान देने की लिए पृथ्वी पर उतर आए। यह उनकी असीम-महती कृपा और प्रेम है, हम सबके प्रति; जो गीता का यह गूढ़-गुप्त ज्ञान प्रदान किया। कलयुग में धर्म का 4 चरणों में से केवल एक चरण रहता है। कलयुग में केवल भगवन्नाम के भक्ति भाव से उच्चारण मात्र से मोक्ष प्राप्ति हो जाती है और मनुष्य जन्म और मृत्यु के बन्धन से छूट जाता है। गीता के इन 18 अध्यायों को जिसने समझा, माना चरितार्थ किया और स्वयं को परमात्मा के शरणागत-अधीन कर लिया, उसे मोक्ष और परमांनद प्राप्त अवश्य होगा और अगर अनन्य भक्ति प्राप्त हो गई, तो मोक्ष की जरूरत ही क्या है!?
The Almighty told Arjun that HE had answered all his questions- queries and added from his side that HE had come personally to the earth to help the Salvation seekers. HE HIMSELF appeared over the earth to quench the thirst of the inquisitive-knowledge seekers. The opportunity was rarest of rare. It was possible due to the grace-kindness of the God to guide the humans about the way, (method, procedure) they had to follow during the current cosmic era called Kali Yug, where the religion stands just over one leg instead of the usual 4. HIS conversation is significant, since it paves the way for release-Liberation, just by pronouncing the names of the Almighty. Out of the 4 cosmic era called Sat Yog, Treta Yug, Dwapar Yug and Kali Yug, its easy to attain-obtain release from the cycle of birth & death due to the inborn faculty-speciality of this era called Kali Yug. One who has understood the gist of this text and tries to follow the secret revealed here through these 18 lectures-sermons, is sure to attain the Ultimate-the Almighty, where there is nothing except bliss. If one has achieved devotion to the Almighty-God, there is no need for Salvation-Moksh any more.
ॐ तत्सदिति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्रे श्रीकृष्णार्जुनसंवादे विभूतियोगो नाम दशमोऽध्यायः॥10॥
इस प्रकार ॐ तत् सत् आदि भगवन्नामों के उच्चारण पूर्वक ब्रह्मविद्या और योगशास्त्रमय श्रीमद्भगवदतोपनिषद् रूप श्री कृष्णार्जुन संवाद में विभूति योग नामक दसवाँ अध्याय पूर्ण हुआ। 
In this way the 10th chapter of Shrimad Bhagwad Geeta Upnishad has been completed, describing the pronouncement of the Almighty's names Om, Tat, Sat of the Brahm Vidya-the Ultimate text in the form of a conversation between Bhagwan Shri Krashn & Arjun highlighting his significance, relevance & importance.
The revision of this chapter has been completed on 12.11.2023 at Noida by the extreme kindness and grace of the Almighty-God, Ganesh Ji Maha Raj and Maa Saraswati for the benefit of the esteemed pious readers, devotees of the God.
    
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संतोष महादेव-धर्म विद्या सिद्ध व्यास पीठ (बी ब्लाक, सैक्टर 19, नौयडा)

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