Wednesday, November 6, 2013

CONCEPTIONS IN HINDUISM हिंदु धार्मिक अवधारणा :: HINDU PHILOSOPHY (3.1) हिंदु दर्शन

CONCEPTIONS IN HINDUISM
हिंदु धार्मिक 
अवधारणा
HINDU PHILOSOPHY (3.1) हिंदु दर्शन
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
By :: Pt. Santosh Bhardwaj
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Video link :: https://youtu.be/f8RaHvJUeqE
ॐ गं गणपतये नम:।
अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।
निराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि
[श्रीमद्भगवद्गीता 2.47]
Dharm means duty, carrying out of social obligations & has nothing to do with any ideology. Its purely a matter of faith. The Brahm is Par Brahm Parmeshwar-the Almighty. Its truth, virtues-piousity, righteousness, honesty. Religion has nothing to with opinions, ideology, philosophy. Its unbiased and beneficial to the devotee. It does not find grievances-faults with one who does not observe religious practices. It has no complaint against the atheist as well or one who does not believe religion. It does not compel any one to join. If some one forces others to discard it he commits a crime-sin.
CONCEPTION :: विचार, धारणा, संकल्पना; conceptual, impression, conviction, idolum, consideration, contemplation.
GOD IS ONE एकेश्वरवाद :: The Almighty is one. Hinduism firmly believe that there is only one God-The Almighty. His incarnations are divine & number less. He appeared to help the humans & deities. The learned-enlightened do not find any difference of opinion, discrepancy, confusion with it. Variations are observed due to regional variations. However there are deities and demigods who perform specific functions. This is divine division of labour. The Hindu has firm faith in the existence of demigods, deities which are 33,00,00,000 in number. Each and every deity has to perform its duty. The Almighty is Supreme. He guides each and every activity, process, endeavour. Our universe has Trinity of Gods, called Brahma, Vishnu and Mahesh. They are not the only one forming trinity. Infinite galaxies have infinite numbers of universes, each having this trinity. However the Ultimate is Brahm-the Almighty who takes care of all abodes. 
Muslims too advocate unilateralism of God.
There is only one religion which is eternal-since ever, for ever, called Sanatan Dharm or Hindu Dharm. This is ancient beyond the limits of time and physical boundaries. 
Hindus follow various routes to assimilate in the Almighty, like Karm Yog, Gyan Yog, Bhakti Yog, asceticism, equanimity, social welfare, prayers, worship, fasts, pilgrimages etc..
Hindu knows that there are various abodes other than this earth which are inhabited by divine and physical-mortal beings.
Hindu has firm faith in life after death, reincarnation, impact of deeds, truth & virtues.
A Hindu finds the presence of God in each and every species and commodity.
धर्म का किसी तरह की विचारधारा से कोई भी संबंध नहीं है, बल्कि सिर्फ और सिर्फ ब्रह्म ज्ञान से संबंध है। ब्रह्म ज्ञान के अनुसार प्राणी मात्र सत्य है। सत्य का अर्थ यह भी और वह भी दोनों ही सत्य है। सत् और तत् मिलकर बना है सत्य।
अनन्त काल की लंबी परंपरा के कारण हिंदु धर्म में अनेक मतान्तर (difference of opinions, discrepancies, confusions) हो सकते हैं। इनका समाधान निकलता है शास्त्रार्थ से। शास्त्रार्थ वाद-विवाद नहीं है; अपितु प्रमाण, युक्ति, सुझावों का समावेश है। समय, काल, देश-स्थान के अनुरूप मर्यादाएँ, मान्यताएँ बदलती रहती हैं, रीति-रिवाज बदलते रहते हैं मगर धर्म का स्वरूप अपरिवर्तनीय है। 
अनेकानेक पूजा-पाठ, प्रार्थना, पद्धतियाँ, तीज-त्यौहार हैं, मगर उन्हें मानने की कोई बाध्यता नहीं है। 
गाय, नाग, बंदर, बैल आदि को पवित्र समझकर उनकी उपयोगिता के अनुरूप पूजा करते हैं। यह पूजा प्रतीकात्मक है। 
ग्रह नक्षत्रों की पूजा ज्योतिष, कर्म फल-दोष को दूर करने के लिए की जाती है। ग्रह-नक्षत्र केवल पिण्ड मात्र नहीं हैं, उनका दैवीय रूप भी है। वे हमेशां प्राणी की हर तरह से समुचित सहायता के लिए तत्पर रहते हैं। 
GUIDING PRINCIPLES :: A Hindu has firm faith in scriptures, epics & history. Veds constitutes the guiding principles of Hindu society, faith, culture. way of living. Unfortunately the Veds which are available these days are edited versions, which are just one sixth of the original text. Interpretations of Veds are different due to personal greed-egoistic attitude. Such interpretation are not binding over others. Saints, scholars, philosophers, enlightened sit together to sort out the ambiguities-misinterpretations.
वर्ण व्यवस्था :: ब्रह्मा जी से चारों वर्णों की उत्त्पत्ति हुई। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र। 
CASTE SYSTEM जाति प्रथा :: The division of society into castes by Manu is based over financial-economic considerations, in addition to division of labour, physical strength, tolerance, intelligence, which is purely scientific and systematic. It do not produce discrepancies-difference of opinion, which are the result of selfish-egoistic person interests. Inheritance plays vital role in acquisition of skill and ability to perform certain traits, trades, crafts, warfare, teaching & learning.
जाति बिरादरी कार्य के अनुरूप है और शास्त्रीय प्रमाण उपलब्ध हैं, जो कि यह सिद्ध करते हैं कि जाति परिवर्तनीय है। वर्तमान काल तो इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है। शूद्र राजा और व्यवसायी हो गए हैं। ब्राह्मणों के बच्चे उच्च अंक-श्रेणी पाकर भी नौकरी के लिए दर-दर भटक रहे हैं। 
धर्म संस्थापक :: इस धर्म का कोई संस्थापक नहीं है, क्योंकि धर्म का कोई संस्थापक नहीं हो सकता। वेदों का ज्ञान परमेश्वर से त्रिदेवों ने सुना फिर 4 ऋषियों ने सुना। ये 4 ऋषि हैं :- अग्नि, वायु, अंगिरा और आदित्य। हर मन्वन्तर में ऋषि, मनु, इन्द्र अलग होते हैं। ये ही हैं मूल रूप से प्रथम संस्‍थापक। भगवान् के अवतार धर्म की पुनर्स्थापना का कार्य सम्पादन करते हैं। भगवान् श्री कृष्ण जो कि पूर्ण अवतार अर्थात अवतारी हैं, ही परब्रह्म परमेश्वर हैं। 
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥
हे भरत वंशी अर्जुन! जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब मैं अपने आपको साकार रूप से प्रकट करता हूँ।[श्रीमद् भगवद्गीता 4.7]
Hey Arjun-the descendant of Bharat! Whenever there is a decay (loss, downfall) of Dharm-religion and growth of injustice (toxicity), then I manifest Myself (take a form). 
धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि का तात्पर्य है भगवद् प्रेमी, धर्मात्मा, सदाचारी, निरपराध और निर्बल मनुष्यों पर नास्तिक, पापी, दुराचारी और ताकतवर दुष्ट प्रवृति के लोगों का अत्याचार बढ़ जाना। इसी वक्त परमात्मा साकार रूप ग्रहण करके अवतार लेते हैं। सुख पाने की इच्छा मनुष्य से निकृष्ट कार्य-पाप कर्म करवाती है और उसकी आसक्ति बढ़ती जाती है। कलियुग में तो धर्म का एक ही चरण शेष रह जायेगा और पाप बढ़ता जायेगा। कलियुग में प्रमुख रूप से कलियुग का असर रहता है और गौण रूप में अन्य युग भी विराजमान रहते हैं। कर्म में सकाम भाव की अभिवृद्धि होती है। कलियुग की विशेषता यह है कि इसमें मात्र हरिनाम जपने, कृष्ण लीलाओं का स्मरण-बखान करने-सुनने से ही मुक्ति मार्ग प्रशस्त हो जाता है। 
The timing of the incarnation of the Almighty is very important. He reveals (appears, takes a physical form) when the masses start facing tortures (troubles, tensions) from the mighty (wicked, cruel, vicious, terrorists, sinners, ignorant, barbarians, atheists, Hippocrates, governments) etc. Desire to have comforts (wealth, passions) forces one to indulge in sins. His attachment enhances with the satisfaction of each desire. Kali Yug is left with only one characteristic-quality of Dharm, i.e., TRUTH. Other Yug Saty, Treta and Dwapar coexist but with negligible presence-strength. People indulge in prayers-worship with the motive of acquisition of more and more of every thing. The speciality of Kali Yug lies in its power to grant Salvation just by the recitation of the names of God with devotion (purity of heart, dedication to the service of mankind-truth).
भगवान् परशुराम ने धर्म की स्थापना हेतु 21 बार अहंकारी क्षत्रियों का विनाश किया। भगवान् श्री राम ने धर्म की स्थापना के लिए दैत्य, दानवों-राक्षसों का संहार किया। मोहिनी रूप धारण करके देताओं को अमृत पिलाया। 
ANIMAL HUMAN SACRIFICE पशु अथवा मानव बलि ::
मा नो गोषु मा नो अश्वेसु रीरिष:।[ऋग्वेद 1.114.8]
हमारी गायों और घोड़ों को मत मार।
Hinduism does not advocate human or animal sacrifice of any kind-nature. 
इममूर्णायुं वरुणस्य नाभिं त्वचं पशूनां द्विपदां चतुष्पदाम्। 
त्वष्टु: प्रजानां प्रथमं जानिन्नमग्ने मा हिश्सी परमे व्योम॥[यजु.13.50]
उन जैसे बालों वाले बकरी, ऊँट आदि चौपायों और पक्षियों आदि दो पगों वालों को मत मार। 
न कि देवा इनीमसि न क्या योपयामसि। 
मन्त्रश्रुत्यं चरामसि॥[सामवेद 2.7]
देवों! हम हिंसा नहीं करते और न ही ऐसा अनुष्ठान करते हैं, वेद मंत्र के आदेशानुसार आचरण करते हैं।
मूर्ति पूजा ::
न तस्य प्रतिमा अस्ति यस्य नाम महाद्यश:। 
हिरण्यगर्भस इत्येष मा मा हिंसीदित्येषा यस्मान जात: इत्येष:॥ 
[यजुर्वेद 32]
जिस परमात्मा की हिरण्यगर्भ, मा मा और यस्मान जात आदि मंत्रों से महिमा की गई है, उस परमात्मा (आत्मा) का कोई प्रतिमान नहीं। अग्‍नि‍ वही है, आदि‍त्‍य वही है, वायु, चंद्र और शुक्र वही है, जल, प्रजापति‍ और सर्वत्र भी वही है। वह प्रत्‍यक्ष नहीं देखा जा सकता है। उसकी कोई प्रति‍मा नहीं है। उसका नाम ही अत्‍यं‍त महान है। वह सब दि‍शाओं को व्‍याप्‍त कर स्‍थि‍त है।[यजुर्वेद]
मनुष्य जिस भी मूर्त या मृत रूप की पूजा, आरती, प्रार्थना या ध्यान कर रहे हैं, वह ईश्‍वर नहीं है, ईश्वर का स्वरूप भी नहीं है।[केनोपनिषद]
जो कुछ भी दृष्टिगोचर हो रहा है यथा :- मनुष्‍य, पशु, पक्षी, वृक्ष, नदी, पहाड़, आकाश आदि; जो कुछ भी श्रवण किया आज रहा है यथा संगीत, गर्जना आदि केवल इंद्रियों का विषय है, ईश्वरीय नहीं है। ईश्वर के द्वारा हमें देखने, सुनने और सांस लेने की शक्ति प्राप्त होती है। जानकार निराकार सत्य को मानते हैं, जो कि सनातन सत्य है। वेद के अनुसार ईश्‍वर की न तो कोई प्रति‍मा या मूर्ति‍ है और न ही उसे प्रत्‍यक्ष रूप में देखा जा सकता है। भक्त भी अच्छी तरह जनता है कि मूर्ति-प्रतिमा केवल माध्यम है, भगवान् नहीं है, बल्कि उसका काल्पनिक रूप-छवि है।यह केवल भक्त को ध्यान केंद्रित करने में सहायक है। 
Idol-statue worship is purely ritualistic in nature-symbolic. A Hindu knows the difference between God and static-inertial object in the shape of statue-idol.
सती प्रथा :: Hinduism do not advocate woman self immolation with the dead body of her husband. Some instances are there which are purely voluntary. Mata Sati immolated her in Yogic-divine fire and her husband Bhagwan Shiv is still present.
Hinduism is against self immolation, burning, selling of women. It gives highest honour to the women in the society.
अंधविश्वास, टोटके और लोक परंपरा :: यदि किसी घटना का साक्ष्य, प्रमाण, पुनरावर्ती अनेकानेक लोगों के समक्ष, विभिन्न स्थानों पर, परिस्थियों में, समय पर हो तो वह रिवाज बन जाती है, भले ही उसका कोई कारण ज्ञात न हो। 
यदि काली बिल्ली बाएं से दायें रास्ता काट जाये, तो थोड़ी देर के लिए रुक जाना भला। 
यात्रा के लिए जाते समय अगर कोई पीछे से टोक दे तो थोड़ी देर के लिए रुक जाना भला। 
मंगलवार को हनुमान जी की आराधना का दिन होने और गुरुवार को वृहस्पति की पूजा का दिन होने से इन दोनों दिन बाल ना कटवाना और दाढ़ी न बनवाना। 
घर, वाहन या दुकान के बाहर नींबू-मिर्च लटकाना। 
अगर कोई आगे से छींक दे तो कार्य को थोड़ी देर के लिए टाल देना भला। 
घर से बाहर निकलते वक्त अपना दाँया पैर ही पहले बाहर निकालना चाहिए।
जूते-चप्पल उल्टे नहीं रखने चाहिए। 
रात में किसी पेड़ के नीचे नहीं सोना चाहिए क्योंकि वे रात में कार्बन डाइ ऑक्साइड छोड़ते हैं। 
रात में बैंगन, दही, कढ़ी, चने, राजमा, अरबी, छोले, चावल और खट्टे पदार्थ नहीं खाने चाहिए, क्योंकि ये बादी करते हैं, गैस बनाते हैं और अपच-एसिडिटी करते हैं। 
रात में झाडू इसलिए नहीं लगाते, क्योंकि रात्रि में निशाचर, वेश्याएँ दुष्ट शक्तियाँ मुखर होती हैं। खड़ी झाड़ू की सींक से दुर्घटना हो सकती है।
अंजुली से या खड़े होकर जल नहीं पीना चाहिए, क्योंकि इस प्रक्रिया से घुटने का दर्द हो सकता है। 
बाँस का प्रयोग काठी बनाने के लिए किया जाता है। बाँस जलने पर विस्फोटक की तरह कार्य करता है और दुर्घटना हो सकती है।
मुर्दे की काठी को घर से बाहर निकालते वक्त पैर पहले बाहर निकलते हैं।
सूतक-पातक अशुद्धि विचार :: मनुष्य के जीवन में आने वाली कठिनाइयों, परेशानियों, कष्टों के पीछे एक  कारण सूतक के नियमों का पालन नहीं करना भी हो सकता है। सूतक का सम्बन्ध “जन्म एवं मृत्यु  के” निम्मित से हुई अशुद्धि से है। जन्म के अवसर पर जो "नाल काटा" जाता है और जन्म होने की प्रक्रिया में अन्य प्रकार की जो हिंसा होती है, उसमे लगने वाले दोष अथवा पाप के प्रायश्चित स्वरुप “सूतक” माना जाता है।
जन्म के बाद नवजात शिशु की पीढ़ियों को हुई अशुचिता :- 
3 पीढ़ी तक :- 10 दिन, 
4 पीढ़ी तक :- 10 दिन, 
5 पीढ़ी तक :- 6 दिन,
एक रसोई में भोजन करने वालों के पीढ़ी नहीं गिनी जाती, वहाँ पूरा 10 दिन का सूतक माना है।
प्रसूति (नवजात की माँ) को 45 दिन का सूतक रहता है।  
प्रसूति स्थान 1 माह तक अशुद्ध है। इसीलिए कई लोग जब भी अस्पताल से घर आते हैं तो स्नान करते हैं। 
विवाहिता पुत्री :- पीहर में जनै तो परिवार को 3 दिन का, ससुराल में जन्म दे तो उन्हें 10 दिन का सूतक रहता है और पीहरियों को कोई सूतक नहीं रहता।
नौकर-चाकर, भृत्य वर्ग अपने घर में जन्म दे तो 1 दिन का, बाहर दे तो स्वामियों के परिवार को कोई सूतक नहीं लगता।
पालतू पशुओं :- घर के पालतू गाय, भैंस, घोड़ी, बकरी इत्यादि को घर में बच्चा होने पर स्वामियों को 1 दिन का सूतक रहता है। किन्तु घर से दूर-बाहर जन्म होने पर कोई सूतक नहीं रहता।
बच्चा देने वाली गाय, भैंस और बकरी का दूध, क्रमशः 15 दिन, 10 दिन और 8 दिन तक “अभक्ष्य/अशुद्ध” रहता है।
पातक :: इसका सम्बन्ध “मरण के” निम्मित से हुई अशुद्धि से है। मरण के अवसर पर "दाह-संस्कार" में इत्यादि में जो हिंसा होती है, उसमें लगने वाले दोष और पाप के प्रायश्चित स्वरुप “पातक” माना जाता है।
मरण के बाद हुई अशुचिता :-
3 पीढ़ी तक – 12 दिन,
4 पीढ़ी तक – 10 दिन, 
5 पीढ़ी तक – 6 दिन,
ध्यान दें :- जिस दिन "दाह-संस्कार" किया जाता है, उस दिन से पातक के दिनों की गणना होती है, न कि मृत्यु के दिन से।
यदि घर का कोई सदस्य बाहर, विदेश में है, तो जिस दिन उसे सूचना मिलती है, उस दिन से शेष दिनों तक उसके पातक लगता है। 
अगर 12 दिन बाद सूचना मिले तो स्नान-मात्र करने से शुद्धि हो जाती है। 
गर्भपात :- किसी स्त्री के यदि गर्भपात हुआ हो तो, जितने माह का गर्भ पतित हुआ, उतने ही दिन का पातक मानना चाहिए। 
घर का कोई सदस्य "तपस्वी' साधु सन्यासी" बन गया हो तो, उस साधु सन्त को, उसे घर में होने वाले जन्म-मरण का सूतक-पातक नहीं लगता किन्तु स्वयं उसका ही मरण हो जाने पर उसके घर वालों को 1 दिन का पातक लगता है।
विशेष :- किसी अन्य की शवयात्रा में जाने वाले को 1 दिन का, मुर्दा छूने वाले को 3 दिन और मुर्दे को कन्धा देने वाले को 8 दिन की अशुद्धि जाननी चाहिए।
घर में कोई "आत्मघात "करले तो 6 महीने का पातक मानना चाहिए। 
यदि कोई स्त्री अपने पति के मोह, निर्मोह से "आग लगाकर जल मरे," बालक पढ़ाई में फेल होकर या कोई अपने ऊपर दोष देकर "आत्महत्या" कर  मरता है तो इनका पातक बारह पक्ष याने 6 महीने का होता है। 
उसके अलावा भी कहा है कि जिसके घर में इस प्रकार "अपघात" होता है, वहाँ छह महीने तक कोई बुद्धिमान मनुष्य भोजन अथवा जल भी ग्रहण नहीं करता है। वह मन्दिर नहीं जाता और ना ही उस घर का द्रव्य मंदिर जी में चढ़ाया जाता है।  
जहाँ आत्महत्या हुई है, उस घर का पानी भी 6 माह तक नहीं पीना चाहिए। एवं अनाचारी स्त्री-पुरुष के हर समय ही पातक रहता है।
सूतक-पातक की अवधि में “देव शास्त्र, गुरु” का पूजन, प्रक्षाल, आहार आदि धार्मिक क्रियाएं वर्जित होती हैं।
इन दिनों में मन्दिर के उपकरणों को स्पर्श करने का भी निषेध है। यहाँ तक की गुल्लक में रुपया डालने का भी निषेध बताया गया है। दान पेटी में दान भी नहीं देना चाहिए।
देव-दर्शन, प्रदक्षिणा, जो प्रार्थना पहले से याद हैं, विनती, स्तुति बोलना, भाव-पूजा करना, हाथ की अँगुलियों पर जाप देना  शास्त्र सम्मत है। 
कहीं-कहीं लोग सूतक-पातक के दिनों में मन्दिर ना जाकर इसकी समाप्ति के बाद मन्दिर से गंधोदक लाकर शुद्धि के लिए घर-दुकान में छिड़कते हैं, ऐसा करके नियम से घन-घोर पाप का बन्ध  करते हैं। 
यह सत्य है, नहीं मानने पर दुःख, कष्ट, तकलीफ, होगी ही।
Hinduism is purely scientific, logical in nature. The beliefs have been given the shape of religion for those who are unable to grasp the reason-science behind it.



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संतोष महादेव-सिद्ध व्यास पीठ, बी ब्लाक, सैक्टर 19, नौयडा

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