Saturday, August 10, 2013

JEWS DYNASTY यहूदी वंश

JEWS DYNASTY 
यहूदी वंश
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
By :: Pt. Santosh Bhardwaj
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Video link :: https://youtu.be/nLqpdn2fBEk
ॐ गं गणपतये नम:।
अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।
गुणातीतं निराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि
[श्रीमद्भगवद्गीता 2.47]
देव गुरु वृहस्पति की एक पत्नि जुहू (जौहरा) भी थी, जिससे जौहर करने वाले जुहार शब्द से अभिवादन करने वाले यहूदी वंश तथा जौहरी (कायस्थ) तथा युद्ध में आगे लड़ने वाला हरावल दस्ता जुझाइऊ वीर उत्पत्र हुए। ये सब व्रार्हस्पत्य थे। भरद्वाज वंश को मत्स्य पुराण में सबसे कुलीन वंश कहा गया है।
Dev Guru Vrahaspati had another wife called Jouhar from whom the Jews originated and were settled in Jerusalem-Israel.
वर्तमान काल में यहूदियों का इतिहास लगभग 4,000 वर्ष तक ही उपलब्ध है। उनका प्रभाव क्षेत्र मिस्र में नील नदी से लेकर वर्तमान इराक़ के दजला-फुरात नदी के बीच था। आज का इसरायल एक मात्र यहूदी राष्ट्र है।यहूदी येरूशलेम के आसपास के यूदा नामक प्रदेश के निवासी हैं। यह प्रदेश याकूब के पुत्र यूदा के वंश परम्परा से मिला था। 
यहूदी :- याकूब का पुत्र यहूदा।[बाइबल]
इनका मूल पुरूष अब्राहम था, जिस वजह से ये इब्रानी भी कहलाते हैं। याकूब का दूसरा नाम था इजरायल, इस कारण इब्रानी और यहूदी के अतिरक्ति उन्हें इजरायली भी कहा जाता है। यहूदियों पर जर्मनी के निवासियों ने स्वयं को शुद्ध जाति अथवा आर्य कहते हुए भयंकर अत्याचार किये, जिस वजह से उन्हें हिटलर की प्रताड़नाओं से बचने के लिये जर्मनी छोड़ना पड़ा। उनको पुनः उनके मूल प्रदेश में स्थान दिया गया। आज वे पूरे विश्व में अनेकों स्थानों पर (भारत सहित) अल्पसंख्यक समुदाय के रूप में बसे हैं। 
यहूदियों को (en:Jew) भी कहा जाता है। उनका मूल निवास निवास स्थान पश्चिम एशिया में (आज का इसरायल) है, जिसका जन्म 1,947 के बाद हुआ। इनका मुख्य व्यवसाय व्यापार है।
यहूदी धर्म इसाई और इस्लाम धर्म का पूर्ववर्ती है। इन तीनों धर्मों को संयुक्त रूप से इब्राहिमी भी कहा जाता था। 
इन तीनों धर्मों का मूल हिब्रू है। यहूदी धर्म को माननेवाले विश्व में करीब 1.43 करोड़ हैं, जो विश्व की जनसंख्या के मात्र 0.2% हैं।
बाबिल (बेबीलोन) के निर्वासन से लौटकर, इज़रायली जाति मुख्य रूप से येरूसलेम तथा उसके आसपास के यूदा (Judah) नामक प्रदेश में बस गई। इस कारण इज़रायलियों के धार्मिक एवं सामाजिक संगठन को यूदावाद (यूदाइज़्म, Judaism) भी कहा जाता था।  
उस समय येरूसलेम का मंदिर यहूदी धर्म का केंद्र बना।

यहूदी-देवगुरु बृहस्पति की संतान
"ॐ गुं गुरुभ्यो नमः"
देव गुरु वृहस्पति की एक पत्नी जुहू-जौहरा भी थी, जिनसे जौहर करने वाले जुहार शब्द से अभिवादन करने वाले यहूदी वंश का निकास हुआ। यहूदी देवगुरु बृहस्पति की संतान हैं। जिस प्रकार से शांति प्रिय अग्नि-पूजक पारसियों पर घोर अत्याचार करके उन्हें ईरान से मुसलमानों ने निकाला था; उसी तरह मुसलमानों ने यहूदियों को जेरुशलम से निकाला था। जिस तरह भारत में 4,500 मन्दिरों को ध्वस्त करके उनकी जगह मस्जिदें बनाई गईं, उसी तरह यहूदी मन्दिरों को ध्वस्त करके उनके ऊपर मस्जिदें खड़ी कर दी गईं। यहूदियों की पूजा पद्धति में हिन्दुओं की पूजा-पाठ की समता स्पष्ट दिखाई देती है। ईसाई समाज को निकास यहूदियों से ही है।
इनका गहरा रिश्ता मिस्र वासियों था जिनको कश्यप ऋषि के पुत्र महर्षि मिश्र ने शिक्षित किया था।

JEWS DYNASTY 
यहूदी वंश
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
By :: Pt. Santosh Bhardwaj
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JEWS :: PROGENY OF JUPITER-MANTOR OF DEMIGODS-FDEITIES
Salutation to Jupiter, Brahaspati the Mentor of demigods-deities. Jews are the progeny of Juhu-Johra, One of the wives of Jupiter. The way peaceful Parsis were expelled from Iran by the invader Muslims torturing them, the Jews too were forced to migrate to other countries. The way mosques were erected over the Hindu temples using the statues in the walls by keeping their face inside, the Jews temples were demolished by the invaders and mosques were built over them. There are several examples where Temples have been excavated under the mosques. Christianity evolved out of Jews.
The Egyptians were educated and refined by the son of Maharshi Kashyap's knows as Mishr. They had close relations with Jews.
JEWS DYNASTY 
यहूदी वंश
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
By :: Pt. Santosh Bhardwaj
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निर्वासन के बाद एज्रा, नैहेमिया, आगे, जाकारिया और मलाकिया इस धार्मिक नव जागरण के नेता बने। 537 ई.पू. में बाबिल से जाकर पहला काफ़िला येरूसलेम लौटा। जिसमें यूदा वंश के 40,000 लोग थे। उन्होंने मंदिर तथा प्राचीर का जीर्णोंद्धार किया। बाद में और काफिले लौटे। यूदा के वे इजरायली अपने को ईश्वर की प्रजा समझने लगे। बहुत से यहूदी, जो बाबिल में धनी बन गए थे, वहीं रह गये। बाबिल तथा अन्य प्रदेशों के निर्वासित लोगों का केंद्र येरूसलेम ही बना रहा। 
वे प्रधान याजक के नेतृत्व में ही अपनी धार्मिक मर्यादाओं का निर्वाह करते थे। वो याह्वे-ईश्वर को ही राजा मानते थे। बाइबिल में उनकी परम्पराओं और मान्यताओं का कुछ वर्णन उपलब्ध है। 
यूदावाद अंतियोकुस चतुर्थ (175-164 ई.पू.) तक शाँति पूर्वक बना रहा, किंतु इस राजा ने उनके ऊपर यूनानी संस्कृति थोपने का प्रयास किया जिसके फलस्वरूप मक्काबियों के नेतृत्व में यहूदियों ने उसका विरोध किया।
उनकी मान्यता है कि ईश्वर एक है और उसके अवतार या स्वरूप नहीं है, लेकिन वो अपने दूतों के माध्यम से सन्देशों को प्रसारित करता है। उनकी  पूजा-प्रार्थना पद्धति में स्वर लहरी वेद मंत्रो के उच्चारण से मिलती जुलती है। 
हिब्रू भाषा भाषियों के अनेक पैगम्बर यथा :- नूह, इब्राहीम, मूसा, दाऊद, सुलेमान, यशायाह हुए मगर उन्होंने अपनी मूल प्रवृत्तियों को नहीं छोड़ा। 
प्राचीन फारसियों, यूनानियों और रूमियों से लेकर अरबों और यूरोपीय लोगों तक यहूदी नियम-कायदों और मान्यतायें ::
प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से तोरा के बुनियादी उपदेशों और मान्यताओं को स्वीकार किया जाता रहा है। 
सभी मनुष्य केवल  एक ईश्वर के प्रति जवाब देह हैं, जो न्याय और दया का स्त्रोत्र है। 
यह विश्व वस्तुतः एक अच्छा स्थान है और जीवन का एक उद्देश्य होता है।
हम पृथ्वी के खिदमतगार हैं, जिन्हें उसकी देखभाल करने और उसे आदर्श बनाने के लिए यहाँ रखा गया है।
मानव जीवन के मूल्य को किसी तराजू या पैमाने से मापा नहीं जा सकता है।
ईश्वर प्रत्येक व्यक्ति को अच्छे व बुरे में से एक को चुनने की शक्ति प्रदान करता है।
प्रत्येक बच्चे को नैतिक शिक्षा दी जानी चाहिए।
ईश्वर उनसे प्रेम करता है जो अपने स्वयं के परिश्रम से आजीविका कमाते हैं।
सभी नागरिकों के पास उनकी संपत्ति के अधिकार हैं।
व्यक्ति के अधिकार, राज्य की सत्ता से पहले आते हैं।
कानून से ऊपर कोई प्राधिकारी नहीं है।
हम सभी पर ज़रूरतमंदों की देखभाल करने की जिम्मेदारी है।
हमें उनका सम्मान करना चाहिए जो हमसे अलग हैं और हमारे धर्म का पालन नहीं करते हैं।
सभी राष्ट्रों को एक-दूसरे के साथ शांतिपूर्ण ढंग से रहना सीखना चाहिए।
यहूदी लोग, पैगम्बरों द्वारा वचन दिए गए समय के प्रति आशान्वित हैं, एक ऐसा समय आयेगा, जिसमें सारे यहूदी अपनी मातृभूमि लौटेंगे, पूरे विश्व में सामंजस्य होगा और समस्त मानव जाति का व्यवसाय, ईश्वर को जानना होगा। यह स्पष्ट है कि मनुष्य  तेजी से एक ऐसे ही युग की ओर बढ़ रहे हैं। ईश्वर करे वह युग मनुष्यों की कल्पना से भी पहले साकार हो जाए।
यहूदियों का मिस्र के फराओं के साथ सम्बन्ध :: मूसा के नेतृत्व में वे इसरायल आए। ईसा के 1,100 साल पहले जैकब के 12 संतानों के आधार पर अलग-अलग यहूदी कबीले बने। ये दो खेमों में बँट गए :- (1).  जो 10 कबीलों का बना था, इसरायल कहलाया और (2). जो बाकी के दो कबीलों से बना था वो जुडाया कहलाया। 10 कबीलों वाले इसरायल का क्या हुआ इसका पता नहीं है। जुडाया पर बेबीलन का अधिकार हो गया। बाद में ईसा पूर्व सन् 800 के आसपास यह असीरिया के अधीन चला गया। फ़ारस के हखामनी शासकों ने असीरियाइयों को ईसा पूर्व 530 तक हरा दिया तो यह क्षेत्र फ़ारसी शासन में आ गया। इस समय जरदोश्त के धर्म का प्रभाव यहूदी धर्म पर पड़ा। यूनानी विजेता सिकन्दर ने जब दारा तृतीय को ईसा पूर्व 330 में हराया तो यह यहूदी ग्रीक शासन में आ गए। सिकन्दर की मृत्यु के बाद सेल्यूकस के साम्राज्य और उसके बाद रोमन साम्राज्य के अधीन रहने के बाद ईसाइयत का उदय हुआ। इसके बाद यहूदियों को यातनाएं दी जान लगी। सातवीं सदी में इस्लाम के उदय तक उन्हें परेशानी का सामना करना पड़ा। उसके बाद तुर्क, मामलुक शासन के समय इनका पलायन इस क्षेत्र से आरंभ हुआ। बीसवीं सदी के आरंभ में कई यहूदी यूरोप से आकर आज के इसरायली क्षेत्रों में बसने लगे।
यहूदी इब्राहीम, इसहाक और याकूब की संतानें हैं। वे 3,300 से भी अधिक वर्ष पहले ईश्वर के साथ एक करार के माध्यम से एक कौम बन गए थे।
इब्राहीम ने दुनिया के सामने सबसे पहले यह घोषणा की कि ईश्वर केवल एक ही है। उनका विश्वास एक ऐसे ईश्वर में था जो सर्वव्यापी है पर फिर भी सभी वस्तुओं से परे है। उन्होंने सिखाया कि ईश्वर अपनी दुनिया में न्याय और दया चाहता है और लोगों को उनके कर्मों के लिए जवाबदेह ठहराता है।
इब्राहीम को अपनी आस्था का प्रचार-प्रसार करने के लिए कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा और अपने जीवन को जोख़िम में डालना पड़ा। उनके पुत्र इसहाक ने उनके मार्ग का अनुसरण किया और इसहाक के मार्ग का अनुसरण किया उनके पुत्र याकूब ने, जिन्हें ईश्वर ने इसराइल नाम दिया। और उनको यह वचन दिया गया था कि उनकी संतानों को कनान की भूमि दी जाएगी जिसे आज इसराइल देश के नाम से जाना जाता है। वे अपने पूर्वजों के अभियान को आगे बढ़ाने के लिए चुने गए व्यक्ति होंगे।
याकूब और उनकी संतानों को एक अकाल के कारण कनान छोड़ कर मिस्र जाना पड़ा। वहाँ उनके वंशजों को ग़ुलाम बना लिया गया। कई वर्ष बाद, ईश्वर ने उन्हें मुक्त कराने और उन्हें उसी भूमि पर वापस लाने के लिए मूसा को भेजा, जिस भूमि का वचन ईश्वर ने उनके पूर्वजों को दिया था। रास्ते में सिनाई पर्वत पर मूसा ने ईश्वर के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करते हुए इंसानों और सृष्टिकर्ता के बीच एक करार करवाया।
ईश्वर ने इंसानों से कहा कि वे धर्मोपदेशकों और पवित्र लोगों का राष्ट्र होंगे। पुरुष और स्त्रियाँ, नेता और मजदूर, सभी इंसान सिनाई पर्वत की तराई में खड़े रहे। उनमें से हरेक ने ईश्वर की आवाज को सीधे उन सभी से बात करते सुना, जो उन्हें इस करार के 10 बुनियादी नियम बता रही थी। इसके बाद ईश्वर ने उन शब्दों को नीलम की दो तख्तियों पर उकेर दिया।
सिनाई मरुस्थल में 40 वर्ष के समय के दौरान ईश्वर ने मूसा को कई कायदे-कानून सिखाए। मूसा को ईश्वर ने जो कुछ सिखाया वे उसे लोगों को सिखाते और समझाते थे। लोगों से कहा गया कि वे उन कायदे-कानूनों पर चर्चा करें और अपने बच्चो को भी सिखायें। मूसा ने ईश्वर की बताई सभी बातें पाँच पुस्तकों में लिख दीं। 40 वर्षों की समाप्ति पर, सभी से उन पुस्तकों की अपनी-अपनी प्रतियाँ बनाने और उनका अध्ययन करने को कहा गया। मूसा की लिखी इन पाँच पुस्तकों और मौखिक रूप से बताए गए अलिखित कायदे-कानूनों और उनकी व्याख्याओं को एक साथ मिलाकर तोरा कहा जाता है जिसका अर्थ है  शिक्षा या उपदेश।
तोरा के करार ने एक नये समाज की स्थापना की जो कई प्रकार से उस समय के अन्य समाजों से बिल्कुल अलग था। जैसे कि नियम-कायदे निरपेक्ष थे :- न केवल लोगों के नेतृत्व कर्ता, बल्कि स्वयं ईश्वर भी नियम-कायदों के करार से बँधे थे। प्रत्येक बच्चे को इन नियम-कायदों की शिक्षा देना आवश्यक था। कानूनी समानता ने सभी नागरिकों को बराबर स्थिति में ला खड़ा किया। इसके अलावा, समाज के सभी लोग एक-दूसरे के कल्याण के लिए उत्तरदायी हो गए और ईश्वर के संबंध में यह समझा जाता था कि वह उसे पुकारने वाले सभी लोगों के लिए समान रूप से सुलभ व सुगम्य है :- विशेष रूप से पीड़ितों और कुचले हुए लोगों के लिए।
इस करार को कभी बंद नहीं किया गया। किसी प्रमाणित यहूदी न्यायधिकरण अदालत के समक्ष जो भी व्यक्ति इसकी सभी आवश्यकताओं को स्वीकार कर लेता है, उसे यहूदी मान लिया जाता है। पर अच्छा इंसान बनने के लिए यहूदी बनना आवश्यक नहीं है। इब्राहीम से पहले आने वाले नूह का करार समस्त मानव जाति के लिए साझा नागरिक नियम-कायदों का एक समूह है।
मूसा के बाद कई पैगम्बर हुए जिन्होंने लोगों को तोरा को कायम रखने के लिए प्रेरित भी किया और मलामत भी की। इनमें से कई पैगम्बरों के कहे शब्द हिब्रू बाइबल की 24 पुस्तकों में लिखे हुए हैं। बाइबल की पारंपरिक व्याख्या और विस्तार के काफ़ी बड़े हिस्से को बाद में, मिशना और तल्मूद में लिखा गया।
करार होने के बाद से जितना समय गुजरा है, उसमें यहूदियों को उनके देश से दो बार निकाला जा चुका है और वे विश्व के लगभग हर स्थान पर बस चुके हैं। एक अनुमान के अनुसार, आज विश्वभर में लगभग 1.50 करोड़ यहूदी फैले हुए हैं। ईश्वर उन्हें जहाँ भी ले गया है, हर स्थान पर उन्होंने फिर से अपने तोरा का सहारा लिया है और यह खोजा है कि वह हर परिस्थिति में किस प्रकार लागू होता है।
यहूदी हिन्दु सम्बन्ध :: विश्व के केवल दो समुदाय ऐसे हैं, जो पुनर्जन्म को मानते हैं :- (1). यहूदी और (2). हिन्दु। 
यहूदी पंथ को Judaism कहा जाता है जो कि Yeduism (यदु की सन्तान) का अपभ्रंश हो सकता है।
सौराष्ट्र यदु लोगों का प्रदेश था। भगवान् श्री कृष्ण की द्वारिका उसी प्रदेश में है। वहाँ के शासक जाडेजा कहलाते हैं। जाडेजा यह "यदु-ज" शब्द का वैसा ही अपभ्रंश है जैसे Judaism है। 
जाडेजा और Judaism दोनों का अर्थ है, यदु उर्फ जदुकुलवंशी। 
उसी पंथ का दूसरा नाम है Zionism. उसका उच्चार है "जायोनिज्म्" जो "देवनिज्म्" का अपभ्रंश हो सकता है। 
भगवान्दे श्री कृष्ण देव थे, अत: उनका यदुपंथ देवपंथ कहलाने लगा। "द"  या "ध" का अन्य देशों में "ज" उच्चारण होने लगा।
जैसे बौद्ध पंथ का उच्चारण चीन, जापान में "जेन्" बौद्ध पंथ किया जाता है,  उसी प्रकार "देवनिजम्" का उच्चार ज्ञायोनिजम हुआ।
यहूदी परम्परा के प्रथम नेता अब्रह्म (Abraham ) माने गए हैं। यह "ब्रह्म" शब्द का अपभ्रंश है। उनके दूसरे नेता "मोजेस्" कहलाते हैं, जो महेश शब्द का विकृत उच्चार प्रतीत होता है। 
मोझेस् की जन्मकथा भगवान् श्री कृष्ण की जन्म कथा से मेल खाती है, अत: वह महा-ईश भगवान् श्री कृष्ण ही हैं, ऐसा निष्कर्ष निकाला जा सकता है। 
महाभारत युद्ध के पश्चात्, द्वारिका प्रदेश में शासकों के अभाव से लूटपाट, दंगे आदि आरम्भ हुए। भूकम्प आदि से सागर तटवर्ती प्रदेश जलमग्न होने लगा। अत: यादव लोग टोलियाँ बनाकर, अन्यत्र जा बसने के लिए निकल पड़े। कुल 22 टोलियों में वे निकले। उनमें से10  टोलियाँ उत्तर की ओर कश्मीर की दिशा में चल पड़ी और कश्मीर, रूस आदि प्रदेशों में जा बसीं।अन्य12  टोलियाँ इराक़, सीरिया, फ़िलिस्तीन, जेरूसलेम, मिस्र, ग्रीस आदि देशों में जा बसीं।
मध्य एशिया के 12  देशों में यदुवंशियों की वही 12  टोलियाँ हैं। वही यहूदियों की 12 टोलियाँ कहलाती हैं।[इसका ऐतिहासिक साक्ष्य उपलब्ध नहीं है।] 
भगवान् श्री कृष्ण के गौलोक पलायन के पश्चात् यहूदी लोगों को जब कठिन और भीषण अवस्था में द्वारिका प्रदेश त्यागना पड़ा, तभी से यहूदी लोगों ने मातृभूमि से बिछड़ने के दिन गिनने शुरू किए। उसी को यहूदियों का pass over कहा जाता है। उसका अर्थ है मातृभूमि त्यागने के समय से आरम्भ की गई कालगणना।
यहूदी बाइबल में कृष्ण का बाल (यह बलराम जी के लिये भी प्रयुक्त हो सकता है।) नाम स्पष्टतः उल्लेखित है। हिब्रू भाषा यानी "हरिबूते इति हब्रू"।यहूदियों की भाषा का नाम “हिब्रू" है। यहूदियों के आंग्ल ज्ञानकोष का नाम है Encyclopaedia Judaica. उसमें "हब्रु" शब्द का विवरण देते हुए कहा है कि उस शब्द का पहला अक्षर "ह" है। 
वह परमात्मा के नाम का संक्षिप्त रूप है। अब देखिए कि उपरोक्त विवरण में दो न्यून हैं। एक न्यून तो यह है कि "ह" से निर्देशित होने वाला यहूदियों के ईश्वर  का पूरा नाम क्या है? यह उन्होंने स्पष्ट नहीं किया।  
"हरि" यह भगवान् श्री हरी विष्णु-कृष्ण के लिये प्रयुक्त होता है। उसी का "ह" अद्याक्षर है। अब दूसरा न्यून यह है कि यहूदी ज्ञानकोष वालों ने हिब्रू शब्द में 'ब्रू 'अक्षर क्यों लगा है? ब्रु अक्षर का तो बड़ा महत्त्व है। "ब्रूते" यानी बोलता है, इस संस्कृत शब्द का वह अद्याक्षर है। अतः हिब्रू का अर्थ है "हरि (यानी कृष्ण) बोलता था वह भाषा"। ठीक इसी व्याख्यानुसार संस्कृत और हब्रू में बड़ी समानता है।
यहूदी लोगों वा धर्मचिह्न, यहूदी लोगों के मन्दिर को Synagogue कहते हैं।
उसका वर्तमान उच्चारण “सिनेगॉग" मूल संस्कृत "संगम" शब्द है। "संगम" शब्द का अर्थ है "सारे मिलकर प्रार्थना करना"।
संकीर्तन, संतसमागम आदि शब्दों का जो अर्थ है वही सिनेगॉग उर्फ संगम शब्द का अर्थ है।
यहूदी मन्दिरों पर षट्कोण चिह्न खींचा जाता है। वह वैदिक संस्कृति का शक्तिचक्र है। देवीभक्त उस चिह्न को देवी का प्रतीक मानकर उसे पूजते हैं।वह एक तांत्रिक चिह्न है। घर के प्रवेश द्वार के अगले आँगन में हिन्दु महिलाएं रंगोली में वह चिह्न खींचती हैं।
यहूदी लोगों में David नाम होता है, वह "देवि + द" यानी 'देविद' देवी का दिया पुत्र !इस अर्थ से डेविदु उर्फ डेविड कहलाता है। अरबों में उसी का अपभ्रंश 'दाऊद ' हुआ है। अतः हब्रू और अरबी दोनों संस्कृतोद्भव भाषाएँ हैं।
भारत में यादव का उच्चारण जाधव और जाडेजा जैसे बना, वैसे ही यदु लोग यहूदी, ज्यूडेइस्टस्, ज्यू और झायोनिटस् कहलाते हैं। निर्देशित देश ज्यू लोग,
जब द्वारिका से निकल पड़े तो उन्हें साक्षात्कार हुआ जिसमें उन्हें कहा गया कि "Canaan प्रदेश तुम्हारा होगा"।
"कानान" यह कृष्ण कन्हैया जैसा ही कृष्ण प्रदेश का द्योतक था।
यहूदी लोगों को भविष्यवाणी के अनुमार भटकते-भटकते सन् 1,946 में उनकी अपनी भूमि प्राप्त हो ही गई, जिसका नाम उन्होंने Israel रखा, जो Isr-ईश्वर और ael-आलय; इस प्रकार का "ईश्वरालय" संस्कृत शब्द है।
यहूदी लोगों की परम्परा वैदिक संस्कृति और संस्कृत भाषा से निकली है।
हिटलर उनसे टकराकर नामशेष हो गया। मुसलमान भी यहूदियों से टकराने के लिए आतुर हैं तो उनका भी हिटलर जैसा ही अन्त होगा।
यहूदी ग्रन्थ की भविष्यवाणी कृस्ती बायबल का Testament नाम का जो पूर्व खण्ड है उससे समय समय पर ईश्वर का अवतरण होता है ऐसी भविष्यवाणी है। वह भगवद्गीता से ही यहूदी धर्मग्रन्थ में उतर आई है। भगवद्गीता में भगवान् श्री कृष्ण कहते हैं :- 
यदा यदा हि धर्मस्यग्लानिर्भवति भारत। 
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्
यहूदी नेता Moses की जन्म कथा भगवान् श्री कृष्ण की जन्म कथा जैसी ही है। 
भगवान् श्री कृष्ण का जैसा विराट रूप कुरुक्षेत्र में अर्जुन ने देखा वैसा ही विराट रूप यहूदी लोगों ने रेगिस्तान में मोझेस का देखा, ऐसी यहूदियों की दन्त कथा है।
पूर्ववर्ती पर्वत यदुईशालयम् उर्फ जेरूसलेम नगरी में दो पहाड़ियाँ हैं।
उनमें से पूर्व की पहाड़ी पर Dome on the Rock और अलअक्सा नाम के दो प्राचीन वैदिक मन्दिर हैं, जो सातवीं शताब्दी से मुसलमानों के कब्जे में होने के कारण मस्जिदें कहलाती हैं।
Dome on the Rock :: यह स्वयम्भू महादेव का मन्दिर है और अल्अक्सा अक्षय्य भगवान् श्री कृष्ण का मन्दिर है। वहाँ पर शक्तिपीठ भी है।
पूर्व वर्ती पहाड़ी पर ये मन्दिर बनाए जाना उनकी वैदिक विशेषता का द्योतक है।
जिस प्रकार भारत में दो कुटुम्बों के बुजुर्गों से विवाह प्रस्ताव सम्मत होने पर युवक-युवतियों के विवाह होते हैं वैसी ही प्रथा यहूदियों में भी है। वे भी भारतीयों की तरह प्रेम विवाह को अच्छा नहीं समझते। वैदिक विवाहों के लिए मण्डप बनाए जाते हैं। यहूदियों को भी वही प्रथा है। वे भी मण्डपों में विवाह संस्कार कराना शुभ समझते हैं।
यहूदियों में भी अनेक दीप लगाकर वैसा ही एक त्यौहार मनाया जाता है जैसे भारतीय लोग दीपावली मनाते हैं। वृक्ष पूजन वैदिक संस्कृति में जिस प्रकार तुलसी, पीपल, बड़ आदि वृक्षों का पूजन किया जाता है, उन्हें पानी दिया जाता है और उनकी परिक्रमा की जाती है, वैसे ही यहूदी भी वृक्षों को पूज्य मानते हैं।
यही शत्रु मुसलमान लोग यहूदियों को उतना ही कट्टर शत्रु मानते हैं जितना वे भारत के हिन्दू लोगों को मानते हैं।
यहूदियों में वेदों का उल्लेख मार्कोपोलो के प्रवास वर्णन के ग्रन्थ में पृष्ठ 346 पर एक टिप्पणी इस प्रकार है :– Much has been written about the ancient settlement of Jews at Kaifungfu (in China). One of the most interesting papers on the subject is in Chinese Reposi tory, Vol.XX. It gives the translation of a Chinese Jewish inscription. Here is a passage with respect to the Israeli tish religion we find an inquiry that its first ancestor, Adam came originally from India and that during the (period of the) Chau State the sacred writings were already in existence. The sacred writings embodying eternal reason consist of 53 sections. The principles therein contained are very abstruse and the external reason therein revealed is very mysterious being treated with the same veneration as Heaven. The founder of the religion is Abraham, who is considered the first teacher of it. Then came Moses, who established the law and handed down the sacred writings. After his time this religion entered China. 
अर्थात चीन के कायपुंगफू नगर में यहूदियों की एक बस्ती थी, जिसके बारे में बहुत कुछ लिखा जा चुका है। उसमें एक बड़ा ही रोचक लेख Chinese Repository नाम के ग्रन्थ के बीसवें खण्ड में सम्मिलित है। चीन में प्राप्त एक यहूदी शिलालेख का वह अनुवाद है। उसमें ऐसा उल्लेख है कि "यहूदियों के मूल धर्मसंस्थापक अँडम् (यह "आदिम" ऐसा संस्कृत शब्द है। उसी से इस्लामी भाषा में आदमी यह शब्द बना है) भारत निवासी था। 
चौ शासन के पूर्व ही उनके पवित्र ग्रन्थ उपलब्ध हो गए थे। उन ग्रन्थों में अनादि, अनन्त तत्स्व का विवरण 53  भागों में प्रस्तुत है।
उसके तत्त्व बड़े गूढ़ हैं और उसमें दिया अनादि अनन्त का वर्णन बड़ा रहस्यमय है। प्रत्यक्ष परमात्मा के जितना ही उनका महत्त्व माना गया है।
यहूदियों की प्रार्थना सुनने पर तो ऐसा लगता जैसे संस्कृत में श्लोक ही सुन रहे हैं।
This is a hypotheses, only and need more & more elaboration and proof.
यह पोलैंड के उन सब यहूदियों के सूटकेस हैं, जिनको कंसरंट्रेशन कैंप में भेजा गया था।
सिर्फ़ द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ही यूरोप के लगभग 26 देशों में 60 लाख से ज़्यादा यहूदी मार दिए गए, उनकी 64% आबादी को बहुत संचालित तरीक़े से मार डाला गया।
उसके पहले और बाद में भी इनको मारा गया, करोड़ों की आबादी को मारा। ईसाइयों ने इसलिए मारा क्यूँकि उनकी किताब में इनको जीसस के साथ धोखा करने वाला बताया गया। जिहादियों ने इसलिए मारा क्यूँकि यह पॉलीथिस्ट थे।
यहूदी भी बहुत शांतिप्रिय थे, हथियार चलाना आता नहीं था, व्यापारी थे, नरसंहार सहते गए, मरते गए, वापस लड़े नहीं।
1,933 से जर्मनी के शासक हिटलर ने यहूदी लोगों की निर्मम हत्या करना आरम्भ किया । उसका यह सिद्धान्त था कि जर्मनी के मूल निवासी आर्यावर्त से उद्गमीत आर्यवंश के श्रेष्ठ मानव हैं और जर्मनी में रहने वाले यहूदी लोग कोई हीन जाति के पराए लोग होने के कारण उनका अन्त करना उसका परम कर्तव्य था। इस दुराग्रही, निराधार सिद्धान्त से प्रेरित होकर हिटलर ने लगभग 70 लाख यहूदी लोगों का अन्त किया।
फिर किसी तरह सदियों में दुनिया में सब जगह से बचे हुए यहूदी इक्कठा हुए और अपना एक देश बनाया-इजराइल।
इस देश के बनते ही इस पर आस-पास के 5 जिहादी देशों ने हमला कर दिया। कोई मदद नहीं, कोई दोस्त नहीं, था तो बस एक दूसरे का साथ। यहूदियों ने ठान लिया था कि बस, अब और नहीं मरेंगे, अब मारेंगे। सारे यहूदी अपने घरों से निकल गए, चाकू, छुरी, हथौड़ा जो मिला वो लेकर तीन दिन तक जिहादियों से लड़े। चौथे दिन अमरीका ने मदद भेजी और तीन दिन के भीतर इजराइल ने जिहादियों की फूंक निकाल दी और अब तक निकाल रहा है।
अरब मुल्क और इजराइल की 1,967 की लड़ाई :: अरब लोगों को याद है कि इस्राएल के  963 सैनिक शहीद हुए थे। लेकिन मिस्र के 15,000, सीरिया के 2,500, जॉर्डन के 700 सैनिक मारे गए थे अर्थात इस्राएल की तुलना में उनके 18 गुना अधिक सैनिक मारे गए थे।
इस्राएल के 15 सैनिक बंदी बनाए गए थे, लेकिन मिस्र के 4,338, सीरिया के 591, जॉर्डन के 533 सैनिकों को इस्राएल ने बंदी बना लिया था। अर्थात इस्राएल की तुलना में उनके 364 गुना अधिक सैनिकों को इस्राएल ने बंदी बना लिया था।
उस ज़ंग में भी चौधराहट करने अपने फाइटर प्लेन के साथ पाकिस्तान ज़ंग के मैदान में पहुँचा था, लेकिन इस्राएल के पहले ही रेले में उसके फाइटर प्लेन चिथड़ा हो गए थे और पाकिस्तान अपने प्राण बचाने के लिए दूसरे दिन ही ज़ंग का मैदान छोड़कर भाग खड़ा हुआ था।
उस ज़ंग में इस्राएल के 46 फाइटर प्लेन और 400 टैंक नष्ट हुए थे, लेकिन इस्राएल की तुलना में उनके दस गुना अधिक, 470 फाइटर प्लेन तथा इस्राएल से साढ़े 3 गुना अधिक, उनके 1400 टैंक नष्ट हो गए थे।
इस्राएल ने केवल 6 दिन में ही लड़ाई खत्म कर के जीत भी ली और सैकड़ों वर्ग किलोमीटर जमीन भी उनसे छीन ली थी।
इस वक़्त इजराइल में अंदरूनी कलह का माहौल है। कुछ यहूदी नेता सत्ता की खातिर फिलिस्तीनियों से सहयोग ले रहे हैं जो इजराइल के लिये घातक सिद्ध हो सकता है।[29.06.2021]
ISRAEL BELONG TO JEWS :: Yes, it does, and it does since 1,500 years Before Christ (BC), for which the Old Testament is an undisputable piece of evidence. It is as important a proof, as Ramayan is for the Hindus to prove that Ayodhya was the kingdom of Lord Ram. But just because the Mughals conquered the province, and Mir Baki, one of the generals of Babur, had the Babri Masjid constructed at the birth place of Lord Ram in 1528, two years after the First Battle of Panipat, the Hindus were told that Ayodhya belonged to the Mughals, and they should forget that it ever belonged to them. 
So was the case with Kashmir, after Akbar annexed it in1586. Thereafter, the state was ruled by Muslim Governors, and over a period of time, the Hindus were forcibly converted, and finally came a time, when the ethnic cleansing of the Kashmiri Pandits was brutally executed in Jan 1,990. And now, not only Pakistan, but also a majority of the Muslim countries around the world, including the Palestinians, support their cause, who claim it to be an exclusive land of the Kashmiri Muslims. But what about the Kashmiri Hindus, Sikhs and Christians, the original inhabitants of the land ? Where do they go ?
Israelis share the same fate, as that of Kashmiri Hindus, and the Arab nations have tried their level best to brutally execute the ethnic cleansing of Jews, for the last 75 years, in spite of the fact that the Jews, Christians and Mohammad Ans share a common ancestry. They all are the descendants of Abraham.
United by a common ancestry, they are all divided by religion. Unfortunately the Jews, surrounded by Muslim countries, which are supported by the rest of the Muslim majority nations of the world, are fighting a war of survival. Their only fault and disadvantage is that they are a miniscule minority, and the age-old adage, 
"जिसकी लाठी उसकी भैंस"
 is as relevant today, as it was during any other period of history. The Arabs have the advantage of using oil as a weapon to arm-twist other nations, and had USA not come to support Israel, every time it was attacked by a coalition of Arab nations, Israel would have ceased to exist by now. However, India too has now openly come out in support of Israel for the first time during the last 75 years, since she herself is a victim of the Muslim terrorism, and no country, an organization, or a political party with a strong moral fibre can ever support terrorism for narrow gains. Hence, this puts India on a moral high ground.
To understand the true picture, let's briefly go through the history of Israel ; straight from the Old Testament.
Abraham came to Palestine in circa 1,900 BC. Issacs was born to Abraham, and Jacob was born to Issacs. Jacob was given the name Israel (Genesis-Chapter 35 refers). When he returned from Mesopotamia, God appeared to him and blessed him, by saying, "Your name is Jacob, but from now on it will be Israel. I am Almighty God. Have many children. Nations will be descended from you, and you will be the ancestor of kings".
He had 12 sons, who became the ancestors of the 12 tribes of Israel. The most prominent of these sons was Joseph, who becomes advisor to the king of Egypt. However, the descendants of Jacob (Israel) were enslaved in Egypt during the period circa 1,700 to 1,250 BC.
Moses led Israelites out of Egypt in circa 1,250 BC. Israelites wandered in wilderness. During this time Moses received the Law of Mount Sinai (circa 1,250-1,210 BC). Israel remained a loose confederation of tribes, and leadership was exercised by heroic figures known as the Judges.
The United Israelite Kingdom was ruled by Saul, followed by David and then Solomon, from 970 to 931BC.
In 931 BC, the the following two Israeli kingdoms were formed :
(1). Judah (Southern Kingdom).
(2). Israel (Northern Kingdom).
Jerusalem fell to the Persian invasion in Jul 587 or 586 BC and Jews were taken into exile in Babylonia. The Edict of Cyrus allowed Jews to return to Israel in 538 BC and foundation of new temple was laid in 537 BC. The restoration of the walls of Jerusalem was carried out during the period 445 to 443 BC.
Alexander the Great established Greek rule in Palestine in 333 BC. Jewish revolt under Judas Maccabeus re-established Jewish independence and Palestine was ruled by Judas' family and descendants, the Hasmorneans from 166 to 63 BC.
The Roman general Pompey took Jerusalem in 63 BC. Palestine was then ruled by puppet kings appointed by Rome, one of whom was Herald the Great who ruled from 37 BC to 4 BC.
This was followed by the birth of Lord Jesus in 6 BC (the last page of New Testament of the Bible refers) and later Prophet Mohammad in 7th century AD. After the conquest of Mecca by Prophet Mohammad, the Arabs began a systematic conquest of spreading Islam at the point of sword, subjugating nation after nation, and moving from continent to continent. At one point of time they succeeded in conquering the land of Israel too, the way Mughals had conquered Hindustan. 
During WW II, the Jews who survived the Nazi holocaust had to be settled somewhere, and there could not have been be a better place for them than the hallowed land of their ancestors, where a large number of Jews were already residing. And thus Israel, once again, came into existence and was given a membership of the UNO. Finally they had been provided with an opportunity to lead a peaceful life.
Unfortunately, the coalition of Arabs nations was the one which immediately attacked Israel in 1948, then again in 1967, and once again in 1973, and now again in 2023, every time using surprise as the principal means of offensive. And all these wars are excluding many others conflicts from time to time. Israel has been fighting a war of survival for the last 75 years, but it never initiated a war against the Palestinians or any other Arab nation; the onus of that lies squarely with the coliation of Arab nations. Israel is only excercising its Right to Self Defence. The Arabs do not want a non-Muslim nation to exist among them. It is like a thorn in their chest, which needs to be removed.
The Arabs were conquers. But conquerer has no right to ask the native inhabitants of a nation to move out of the once-upon-a-time conquered territories. It is akin to the Mughals asking the Hindus to vacate the territories of Hindostan, just because they had ruled it once upon time, They must learn to co-exist with Israelis.
Moreover, an average Christian's dislike for the Jews stems from the fact that it was a Jew King who had crucified Jesus Christ. It is like hating Muslims now because of the misdeeds of Aurangzeb.
Hence, the million dollar question that needs to be answered is : "Is the demand of the Arab nations to vacate Israel morally or legally justified ?" 
Well, now you be the judge and your time starts now.

    
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संतोष महादेव-सिद्ध व्यास पीठ, बी ब्लाक, सैक्टर 19, नौयडा

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