CHRISTIANS & MUSLIMS(MALLECHCHH म्लेच्छवंश)CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISMBy :: Pt. Santosh Bhardwajdharmvidya.wordpress.com hindutv.wordpress.com santoshhastrekhashastr.wordpress.com bhagwatkathamrat.wordpress.com jagatgurusantosh.wordpress.com santoshkipathshala.blogspot.com santoshsuvichar.blogspot.com santoshkathasagar.blogspot.com bhartiyshiksha.blogspot.com santoshhindukosh.blogspot.com palmistryencylopedia.blogspot.comsantoshvedshakti.blog.spot.comVIDEO LINK :: https://youtu.be/hI268Fx3Ue8ॐ गं गणपतये नम:।अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।गुणातीतं निराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि।[श्रीमद्भगवद्गीता 2.47]
राजा वेन अत्याचारी और दुराचारी था, जिसे ब्राह्मणों ने मार डाला। उसके शरीर का दोहन करके जो पुत्र पैदा हुआ वो महाराज पृथु के रूप में प्रसिद्द हुआ। पृथु ने वेन के वर्तमान जन्म के बारे में पता किया तो उसे अरब-खाड़ी देशों (Gulf countries), मरुस्थल में पाया। वेन मुक्ति के बाद वह माता पार्वती और भगवान् शिव के पुत्र के रुप में पैदा हुआ और अन्धक नाम से राक्षसों का राजा हुआ और भगवान् शिव ने उसे दण्ड स्वरूप एक करोड़ वर्षों तक अपने त्रिशूल की नोंक पर टाँगे रक्खा। उसके पश्चात वह भृंगी नाम से शिव गण कहलाया। [भविष्य पुराण]
त्रेता युग में लगभग 18 लाख साल पहले जब भगवान् राम ने समुद्र को सुखाने के लिए वाण चढ़ाया तो समुद्र ने प्रकट होकर उनकी आराधना की। तब समुद्र के कहने पर भगवान् श्री राम ने उस वाण को अरब प्रदेश-मरुस्थल में उस स्थान पर छोड़ा, जहाँ भयंकर डाकू लोग रहते थे (वर्तमान अरब देश)।
राजा नहुष के पुत्र ययाति के 5 पुत्र हुए, जिनमें से 3 पुत्र म्लेच्छ देशों के राजा हुए। अरब देशों, फ़ारस, खाड़ी प्रदेशों, सहारा सहित पूरा यूरोप मल्लेच्छ प्रदेश कहलाता है।
ययाति के पुत्रों से प्रारम्भ वंश :: (1). यदु से यादव, (2). तुर्वसु से यवन (Europeans, present day Jews and Christians), (3). दुह्यु से भोज, (4). अनु से मल्लेछ (Present day Muslims), (5). पुरु से पौरव।
The Mallechchh Vansh (Muslims & Christians are a tributary of Chandr Vansh which in itself is a tributary of Sury Vansh Sun Dynasty). The Jews have heir origin in Vrahaspati-Jupiter.
गंधार नरेशों को द्रुहु का वंशज बताया गया है। ययाति के पांच पुत्रों में से एक द्रुहु था। ययाति के प्रमुख 5 पुत्र थे :- (1). पुरु, (2). यदु, (3). तुर्वस, (4).अनु और (5). द्रुहु। इन्हें वेदों में पंचनंद कहा गया है। पांचों पुत्रों ने अपने-अपने नाम से राजवंशों की स्थापना की। यदु से यादव, तुर्वसु से यवन, द्रुहु से भोज, अनु से मलेच्छ और पुरु से पौरव वंश की स्थापना हुए। ययाति ने दक्षिण-पूर्व दिशा में तुर्वसु को (पंजाब से उत्तरप्रदेश तक), पश्चिम में द्रुह्मु को, दक्षिण में यदु को (आज का सिन्ध-गुजरात प्रांत) और उत्तर में अनु को मांडलिक पद पर नियुक्त किया तथा पुरु को संपूर्ण भूमंडल के राज्य पर अभिषिक्त कर स्वयं वन को चले गए।[मत्स्य पुराण 48.6; वायु पुराण 99.9]
तुर्वस :: नहुष के बड़े पुत्र यति थे जो सन्यासी हो गए, इसलिए उनके दुसरे पुत्र ययाति राजा हुए। ययाति के पुत्रों से ही समस्त वंश चले। ययाति के पाँच पुत्र थे। देवयानी से यदु और तुर्वस-तर्वासु तथा शर्मिष्ठा से दृहू, अनु, एवं पुरु। यदु से यादवों का यदुकुल चला, जिसमें आगे चलकर भगवान् श्री कृष्ण ने जन्म लिया। दृहू से भोज तथा पुरु चले। तुर्वस-तर्वासु से मलेछ-मलेच्छ वंश चला।
द्रुह्मु का वंश :: द्रुह्मु के वंश में राजा गांधार हुए। ये आर्यावर्त के मध्य में रहते थे। बाद में द्रुहुओं को इक्ष्वाकु कुल के राजा मंधातरी ने मध्य एशिया की ओर खदेड़ दिया। पुराणों में द्रुह्यु राजा प्रचेतस के बाद द्रुह्युओं का कोई उल्लेख नहीं मिलता।
प्रचेतस के बारे में लिखा है कि उनके 100 बेटे अफगानिस्तान से उत्तर जाकर बस गए और म्लेच्छ कहलाए। ययाति के पुत्र द्रुह्यु से बभ्रु का जन्म हुआ। बभ्रु का सेतु, सेतु का आरब्ध, आरब्ध का गांधार, गांधार का धर्म, धर्म का धृत, धृत का दुर्मना और दुर्मना का पुत्र प्रचेता हुआ। प्रचेता के 100 पुत्र हुए, ये उत्तर दिशा में म्लेच्छों के राजा हुए।
राजा संवरण भगवान् सूर्य की पुत्री से विवाह करके सूर्य लोक चले गए। त्रेता युग का अंत काल आने पर पृथ्वी पर लगातार 2 वर्षों तक वर्षा हुई जिससे पृथ्वी समुद्र में विलीन हो गई। तत्पश्चात झंझावातों के प्रभाव से भूमि दिखने लगी और अगस्त्य ऋषि के तेज़ के प्रभाव से समुद्र सुख गया और 5 वर्षों में पृथ्वी वनस्पति सम्पन्न हो गई तो भगवान् सूर्य की आज्ञा से राजा संवरण अपनी पत्नी तपती, महर्षि वशिष्ठ और तीनों वर्णों के लोगों के साथ पुनः पृथ्वी पर आ गये। इसी काल में श्मश्रु पाल (दाढ़ी रखने वाले) मरुदेश (अरब, ईरान, ईराक) के शासक हुए।
कुरु वंश के राजा क्षेमक की मृत्यु मलेच्छों द्वारा हुई। उनके पुत्र प्रद्योत ने मल्लेच्छ यज्ञ किया जिसमें मलेच्छों का विनाश हुआ। राजा प्रद्योत को म्लेच्छ हन्ता कहा जाने लगा। मलेच्छ रूप में स्वयं कलि ने ही राज्य किया था। कलि ने अपनी पत्नी सहित भगवान् नारायण की पूजा कर दिव्य स्तुति की जिससे खुश होकर भगवान् नारायण प्रकट हुए और आश्वासन दिया कि विभिन्न रुपों में प्रकट होकर वे कलि की मदद् करेंगे क्योंकि कई मायनों में कलि अन्य युगों से श्रेष्ठ है। प्रद्योत के वेदवान् और उनके सुनन्द हुआ जो बगैर सन्तति के ही मृत्यु को प्राप्त हुआ। वरदान के प्रभाव से आदम और हव्यवति (हौवा-हव्वा) की उत्पत्ति हुई और तभी से आर्यावर्त सभी प्रकार से क्षीण होने लगा और मलेच्छों का बल बढ़ने लगा। द्वापर युग के 8,202 वर्ष रह जाने पर भूमि म्लेच्छों के प्रभाव में आने लगी। आदम और हव्यवति, दोनों ही इन्द्रियों का दमन करके भगवान् के ध्यान में मग्न रहते थे, मगर धूर्त कलि ने हौवा को धोखा देकर गूलर के पत्तों में लपेटकर दूषित वायु युक्त फल खिला दिया, जिससे भगवान् विष्णु की आज्ञा भंग हो गई और उनके अनेक पुत्र हुए जो सभी मलेच्छ थे। आदम पत्नी सहित स्वर्ग चला गया। उसका श्वेत नामधारी विख्यात श्रेष्ठ पुत्र हुआ, जिसकी आयु 1,200 वर्ष थी।
श्वेत का पुत्र अनुह (नूह), जिसका कीनाश नाम का पुत्र था। महल्लल उसका पुत्र हुआ। जिसका पुत्र मानगर था। मानगर के विरद और उसके भगवान् विष्णु का भक्ति परायण पुत्र हनूक हुआ। अध्यात्म तत्व प्राप्त कर, म्लेच्छ धर्म पालन करते हुए भी वह सशरीर स्वर्ग चला गया।
म्लेच्छों के धर्म :: भगवान् विष्णु की भक्ति, अग्निपूजा, अहिंसा, तपस्या, इन्द्रिय दमन।
हनूक के मतोच्छिल, उसके लोमक और लोमक के न्यूह हुआ। न्यूह के सीम, शम और भाव हुए। न्यूह आत्मध्यानम परायण विष्णु भक्त था। भगवान् विष्णु ने उसे स्वप्न में दर्शन देकर कहा कि वो सभी जीवों के साथ नाव पर सवार हो जाये, क्योंकि 7 दिनों बाद प्रलयंकारी वर्षा का योग था। 40 दिन लगातार बारिश हुई। न्यूह 88,000 ब्रह्मवादी मुनियों के पास बदरी क्षेत्र में पहुँच गया। संसार के शेष सभी प्राणी नष्ट हो गए।
न्यूह पुनः भगवान् विष्णु की भक्ति में लीन रहने लगा, जिससे प्रसन्न होकर भगवान् विष्णु ने उसके वंश की वृद्धि की। राजा न्यूह ने भगवान् से ऐसी लिपि प्रारम्भ करने को कहा जो दायें हाथ से बायें हाथ की तरफ चले। उसे भी भगवान् की स्वीकृति प्राप्त हो गई और हिब्रू, अरबी, फ़ारसी, उर्दू जैसी भाषाओँ का प्रादुर्भाव हुआ। यह ब्राह्मी लिपि-भाषा की अपशब्दावली है। न्यूह ने अपने पुत्रों के नाम सिम, हाम तथा याकूत कर दिये।
याकूत के 7 पुत्र हुए जिनके नाम हैं :- जुम्र, माजूज, मादी, यूनान, तुवलोम, सक तथा तीरास। जुम्र के 10 पुत्र हुए।
यूनान के 4 संतानें हुईं :- इलीश, तरलीश, कित्ती और हूदा।
न्यूह के दूसरे पुत्र के हाम-शम के 4 पुत्र थे :- कुश, मिश्र, कूज और कनआँ।
कुश के 6 पुत्र हुए :- सवा, हबील, सर्वत, उरगम, सवतिया और महाबली निमरूह। इनकी भी क्रमशः कलन, सिना, रोरक, अक्कद, बावुन और रसना देशक नामधारी सन्तानें हुईं।
न्यूह के पुत्र सिम ने 500 साल तक राज्य किया। सिम के बेटे अर्कन्सद ने 434 वर्ष, उसके पुत्र सिंहल ने 460 साल तक राज्य किया। उसके पुत्र इब्र ने भी 460 वर्ष तक शासन किया। उसका बेटा फ़लज 240 साल तक राजा रहा। फलज का पुत्र रऊ था, जिसने 235 वर्ष तक शासन किया। उसके पुत्र जूज़ ने 235 वर्ष शासन किया। उसका पुत्र नहूर था, जिसने 160 वर्ष तक राज्य किया। नहूर का पुत्र ताहर था, जिसने 160 साल शासन किया। तहर के अविराम, नहूर और हारन नामक पुत्र हुए। माँ भगवती सरस्वती के श्राप से ये राजा म्लेच्छ भाषा-भाषी हो गये और आचार-व्यवहार में भी अधम साबित हुए। इन शासकों-राजाओं के नाम पर ही उनके राज्यों-नगरों के नाम भी पड़े।
कलियुग के 2,000 वर्ष व्यतीत होनेपर पृथ्वी पर अधिकांश भाग में मलेच्छों का असर बढ़ गया। तभी उनका मूषा नाम का आचार्य-पूर्व पुरुष हुआ। 3,000 साल बीत जाने पर मेलच्छ देशों में शकों का राज्य कायम हो गया। कलियुग के 3,710 व्यतीत हो जाने पर प्रमर-परमार नामक राजा के यहाँ महामद-मुहम्मद, महामर नाम का पुत्र हुआ जिसने 3 वर्षों तक राज्य किया। उसके देवापि नामक पुत्र हुआ।
शालिवाहन के वंश में 10 राजा हुए जिन्होंने 500 वर्षों तक राज्य किया। 10 वें राजा राजा भोज हुए। उन्होंने गान्धार, म्लेच्छ और कश्मीर के राजाओं को परास्त किया। उसी प्रसंग में महामद नाम का म्लेच्छ अपने आचार्य और शिष्य मण्डल के साथ उनके समक्ष मरुप्रदेश में उपस्थित हुआ। राजा भोज को मरुस्थल में विद्यमान भगवान् शिव-महादेव के दर्शन हुए। भगवान् शिव ने राजा भोज को कहा कि महामायावी त्रिपुरासुर को वहाँ दैत्यराज बलि द्वारा गया है और भगवान् शिव से वरदान पाकर वह दैत्य समुदाय को बढ़ा रहा है। वह महामद अयोनिज है।Mishr & Mishra (मिश्र, मिश्रा) are the titles-surnames of devout Hindu-Brahmans in India. They are synonym to Mistr. Mishr was one of the 10 sons of KAASHYAP (काश्यप), son of Kashyap (कश्यप)-the sage from whom the entire living world-organism have originated-evolved. Present day Kashmir was place, where Kashyap performed his ascetics (तपस्या). Mishr selected Mistr as the place of work for him self. This place acquired the name Mistr after him. He educated 10,000 people and imparted the knowledge of Ved, Puran, Upnishad, Brahmns etc. It came to be recognized as the seat of learning and Hinduism (Sanatan Dharm, as it was known at that time). Later this group was forced-enticed to be converted to Buddhism and ultimately to Muslimism. Muslimism is seen as a mirror image of Hinduism. Genetics may reveal that the genes-chromosomes-DNA of this belt across India up to Indonesia, Thailand etc., is identical.
मुसलमानों की उत्पति ::
लिंड्गच्छेदी शिखाहीनः श्मश्रुधारी सदूषकः।
उच्चालापी सर्वभक्षी भविष्यति जनोमम॥भविष्य पुराण 3.3.1.25॥
विना कौलं च पश्वस्तेषां भक्ष्या मतामम।
मुसलेनैव संस्कारः कुशैरिव भविष्यति॥भविष्य पुराण 3.3.1.26॥
तस्मान्मुसलवन्तो हि जातयो धर्मदूषकाः।
इति पैशाचधर्मश्च भविष्यति मया कृतः॥भविष्य पुराण 3.3.1.27॥
भविष्य पुराण लिखे हुए 5,000 से ज्यादा वर्ष व्यतीत हो चुके हैं। इसमें कलियुग का वर्णन विस्तार से दिया गया है। यह गीता प्रेस गोरखपुर द्वारा प्रकाशित किया गया है और इसका अनुवाद भी प्रामाणिक है। Rund stands for the body of Nandini-cow, from whose body the people, called Gurand or Mallech, emerged, when Vishwa Mitr attacked Vashishth to capture Nandini. Vishwa Mitr was defeated and turned to asceticism.Mallechs too are the children-progeny of Mahrishi Kashyap. This is in addition to the Mallechs who originated from Brahma Ji.Humans like Muchukund Ji, king Dashrath were always willing to help the demigods against the demons, giants, Anary. Both of them led the demigods-deities to victory over the demons. Anary (Mallechchh, the inhabitants of the Arab world had always been troublesome for the civilised, disciplined, cultured) like today.In practice-behaviour, they are close to the animals which mate with their progeny, siblings, aunt etc. They buy sell women, push them into prostitution etc.Mallechs (The Yavan, Europeans, red mouthed) originated from Surbhi the cow of Vashishth when Raj Rishi Vishwa Mitr attacked the Ashram to steal Surbhi. At present they have two branches :- The first one, which dominates in desert regions (Muslims) and the second one dominates in Rome, Europe, America, Australia (Christians).The progeny of a Brahman and cow Surbhi, Christians, eats beef-cow meat i.e., the meat of the mother.VANAR CLAN :: In Sanskrit, Gurandi stands for English. Bhagwan Ram fulfilled the desire of 7 Vanar (men with tail and face like the monkeys, Bhagwan Shri Ram killed Bali considering him to be an animal) who wanted to marry the daughters of Rawan, born out his relationship with Dev Kanyas-Divine Girls. They were awarded the 7 islands created by Jalandher-the son of Samudr (Ocean) and brother of Laxmi Ji-the Goddess of wealth to rule, by Bhagwan Shri Ram. They were Vikat, Vrajeel (Brazil), Jal, Berlin (Germany), Sinhal (Cyclon-Shri Lanka, Jav (Java), Sumatr (Sumatra). Descendants of Vikat having the face of Vanar came to India for trade. Queen Viktawati (Victoria), wife of King Vikat, Ruled the country through Asht Kaushal Marg (Parliament). 7 Gurunds ruled the country for 64 years. 8th one Vardil ruled the country judiciously but was overpowered by Mur a Demon sent by Demon Emperor from Sutal by Bahu Bali, 9th one Macaulay was an educationist, 10th one Lord Bevel who ruled the country as per the dictates of Raj Dharm (rule of law) religiously, he went to heaven after his death.Basically all Christians were Hindus called Jews.
रेगिस्तान की धरती पर एक पिशाच जन्म लेगा जिसका नाम महामद (महा घमण्डी-सिरफ़िरा) होगा, वो एक ऐसे धर्म की नींव रखेगा जिसके कारण मानव जाति त्राहि माम कर उठेगी। वो असुर कुल सभी मानवों को समाप्त करने की चेष्टा करेगा। उस धर्म के लोग अपने लिंग के अग्रभाग को जन्म लेते ही काटेंगे, उनकी शिखा (चोटी) नहीं होगी। वो बकरों की तरह दाढ़ी, मूँछ रखेंगे। वो बहुत शोर करेंगे और मानव जाति को नाश करने की चेष्टा करेंगे। राक्षस-पैशाच कर्मों को बढ़ावा देंगे एवं वे अपने को मुसलमान कहेंगे और ये असुर धर्म कालान्तर में स्वतः समाप्त हो जायेगा।
More than 5,000 years since the writing of Bhavishy Puran. It has described the period of next 4,80,000 years in detail by the name of Kali Yug. It has been published by Geeta Press, Gorakh Pur and the translation from Sanskrat to Hindi is authentic.
A demon-devil will get birth in the deserts by the name of Maha Mad (Insane, arrogant man, Egoistic). He will found-establish a religion which will crush humanity in all sorts of manners. The demon clan will try to vanish all religions observed by others. Their followers will cut the front skin-web of their pennies and sport beard like goats, but will not have hair locks. They will make a lot of hue and cry. All sorts of demonic activities (terrorism, rape, abduction, sale & trafficking of women, drinking wine, destruction of places of worship, breaking of idols, meat eating, butchering cows) will be promoted-followed by them. They will call themselves Musalman and will perish automatically under the burden of their sins.
Mohammad was born in a Brahmn family of priests. He was a rogue from his early childhood and remained illiterate as a result of it. He converted Purans to Kuran-Quran and Manu Samrati into rule book of Muslims-Islam by the name of Sharia, with gross violations, distortions. Its almost anti-opposite of the virtues, piousity, righteousness described in Hinduism. It advocates all sorts of sins.
भगवान् शिव के ऐसा कहने पर भगवत इच्छा जानकर राजा भोज वापस आ गए। म्लेच्छों को द्वापर के समान आर्यधर्म का पालन करते देख कलि ने भगवान् श्री कृष्ण की 12 वर्ष तक तपस्या की। भगवान् ने कहा कि वे अपने अंश माध्यम से अग्नि वंशी प्रजाओं का विनाश करेंगे और म्लेच्छवंशीय राजाओं को प्रतिष्ठित करेंगे। तत्पश्चात सहोद्दीन (मोहम्मद गोरी) भारत को लूट कर चला गया और पृथ्वीराज चौहान ने वीरगति पाई।
म्लेच्छ और पैशाच धर्म का अनुयायी महामोद (महमूद) राजनीय नामक नगर का अधिपति था, उसने बहुत से नगरों को लूटकर धन एकत्र किया और कुंभपाल को दिया। कुंभपाल का पुत्र देवपाल था।
वीर विक्रमादित्य के पौत्र शालिवाहन ने सिंहासन पर बैठने के बाद म्लेच्छों और आर्यों की अलग-अलग देश मर्यादा स्थापित की। म्लेच्छों को सिंधु प्रदेश के उसपार का क्षेत्र प्रदान किया। हूण देश के मध्य स्थित पर्वत पर उन्होंने एक सुन्दर पुरुष को देखा जो श्वेत वस्त्र धारण किये हुए था। उसने बताया कि वह कुमारी के गर्भ से उत्पन्न हुआ था। उसने स्वयं को म्लेच्छ धर्म का प्रचारक और सत्यव्रत में स्थित बताया। उसने कहा कि सत्य का विनाश होने पर वह म्लेच्छ प्रदेश में मसीह बनकर आया और दस्युओं के मध्य भयंकर ईशामसी नाम से एक कन्या उत्पन्न हुई। उसी को म्लेच्छों से प्राप्तकर उसने मसीहत्व पाया। उसने इसाई धर्म कहा ::
सबसे पहले मानस और दैहिक मल निकालकर शरीर को पूर्णतः निर्मल कर लेना चाहिये। फिर इष्ट देवता का जप करना चाहिये। सत्य वाणी बोलनी चाहिये। न्याय से चलना चाहिये। मन को एकाग्र कर सूर्यमण्डल में स्थित परमात्मा की पूजा करनी चाहिये। क्योंकि सूर्य और ईश्वर में समानता है। परमात्मा अचल हैं और सूर्य भी अचल हैं। सूर्य भूतों के सार का चारों ओर से आकर्षण करते हैं। ऐसे कृत्य से वो मसीहा विलीन हो गई, पर मेरे ह्रदय में विशुद्ध कल्याणकारिणी ईश-मूर्ति प्राप्त हुई है, इसलिए मेरा नाम ईशामसीह प्रतिष्ठित हुआ। यह जानकर राजा शालिवाहन ने उस म्लेच्छ-पूज्य को प्रणाम किया और दारुण म्लेच्छ स्थान में प्रतिष्ठित किया।
The Christians crucified Jesus-Isa Masih and are now praying him. But they do not try to follow what he had said. He said that first you clean your body and mind thoroughly. After this one should pray to the deity who can resolve his issues-solve his problems. Speak the truth. Concentrate the mind and pray to the Almighty centred around the Sun. There is similarity between the Sun and the God. The Almighty and the Sun both are for ever. Sun grants the gist of the events of the past-scriptures.EVOLUTION OF YAVAN :: Vishwamitr with his army arrived at the hermitage of sage Vashishth. The sage welcomed him and offered a huge banquet to the army, that was produced by Sabla-a Kam Dhenu. Vishwamitr asked the sage to part with Sabla and instead offered thousand of ordinary cows, elephants, horses and jewels in return. However, the sage refused to part with Sabla, who was necessary for the performance of the sacred rituals and charity by the sage. Agitated, Vishwamitr seized Sabla by force, but she returned to her master, fighting the king's men. She hinted Vashishth to order her to destroy the king's army and the sage followed her wish. Intensely, she produced Pahlav warriors, who were slain by Vishwamitr's army. So, she produced warriors of Shak-Yavan lineage. From her mouth, emerged the Kambhoj, from her udder Barvaras, from her hind Yavans and Shaks and from pores on her skin, Harits, Kirats and other foreign warriors. Together, the army of Sabla killed Vishwamitr's army and all his sons. This event led to a great rivalry between Vashishth and Vishwamitr, who renounced his kingdom and became a great sage to defeat Vashishth.
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By :: Pt. Santosh Bhardwaj
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ॐ गं गणपतये नम:।
अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।
गुणातीतं निराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि।
[श्रीमद्भगवद्गीता 2.47]
राजा वेन अत्याचारी और दुराचारी था, जिसे ब्राह्मणों ने मार डाला। उसके शरीर का दोहन करके जो पुत्र पैदा हुआ वो महाराज पृथु के रूप में प्रसिद्द हुआ। पृथु ने वेन के वर्तमान जन्म के बारे में पता किया तो उसे अरब-खाड़ी देशों (Gulf countries), मरुस्थल में पाया। वेन मुक्ति के बाद वह माता पार्वती और भगवान् शिव के पुत्र के रुप में पैदा हुआ और अन्धक नाम से राक्षसों का राजा हुआ और भगवान् शिव ने उसे दण्ड स्वरूप एक करोड़ वर्षों तक अपने त्रिशूल की नोंक पर टाँगे रक्खा। उसके पश्चात वह भृंगी नाम से शिव गण कहलाया। [भविष्य पुराण]
त्रेता युग में लगभग 18 लाख साल पहले जब भगवान् राम ने समुद्र को सुखाने के लिए वाण चढ़ाया तो समुद्र ने प्रकट होकर उनकी आराधना की। तब समुद्र के कहने पर भगवान् श्री राम ने उस वाण को अरब प्रदेश-मरुस्थल में उस स्थान पर छोड़ा, जहाँ भयंकर डाकू लोग रहते थे (वर्तमान अरब देश)।
त्रेता युग में लगभग 18 लाख साल पहले जब भगवान् राम ने समुद्र को सुखाने के लिए वाण चढ़ाया तो समुद्र ने प्रकट होकर उनकी आराधना की। तब समुद्र के कहने पर भगवान् श्री राम ने उस वाण को अरब प्रदेश-मरुस्थल में उस स्थान पर छोड़ा, जहाँ भयंकर डाकू लोग रहते थे (वर्तमान अरब देश)।
राजा नहुष के पुत्र ययाति के 5 पुत्र हुए, जिनमें से 3 पुत्र म्लेच्छ देशों के राजा हुए। अरब देशों, फ़ारस, खाड़ी प्रदेशों, सहारा सहित पूरा यूरोप मल्लेच्छ प्रदेश कहलाता है।
ययाति के पुत्रों से प्रारम्भ वंश :: (1). यदु से यादव, (2). तुर्वसु से यवन (Europeans, present day Jews and Christians), (3). दुह्यु से भोज, (4). अनु से मल्लेछ (Present day Muslims), (5). पुरु से पौरव।
The Mallechchh Vansh (Muslims & Christians are a tributary of Chandr Vansh which in itself is a tributary of Sury Vansh Sun Dynasty). The Jews have heir origin in Vrahaspati-Jupiter.गंधार नरेशों को द्रुहु का वंशज बताया गया है। ययाति के पांच पुत्रों में से एक द्रुहु था। ययाति के प्रमुख 5 पुत्र थे :- (1). पुरु, (2). यदु, (3). तुर्वस, (4).अनु और (5). द्रुहु। इन्हें वेदों में पंचनंद कहा गया है। पांचों पुत्रों ने अपने-अपने नाम से राजवंशों की स्थापना की। यदु से यादव, तुर्वसु से यवन, द्रुहु से भोज, अनु से मलेच्छ और पुरु से पौरव वंश की स्थापना हुए। ययाति ने दक्षिण-पूर्व दिशा में तुर्वसु को (पंजाब से उत्तरप्रदेश तक), पश्चिम में द्रुह्मु को, दक्षिण में यदु को (आज का सिन्ध-गुजरात प्रांत) और उत्तर में अनु को मांडलिक पद पर नियुक्त किया तथा पुरु को संपूर्ण भूमंडल के राज्य पर अभिषिक्त कर स्वयं वन को चले गए।[मत्स्य पुराण 48.6; वायु पुराण 99.9]
तुर्वस :: नहुष के बड़े पुत्र यति थे जो सन्यासी हो गए, इसलिए उनके दुसरे पुत्र ययाति राजा हुए। ययाति के पुत्रों से ही समस्त वंश चले। ययाति के पाँच पुत्र थे। देवयानी से यदु और तुर्वस-तर्वासु तथा शर्मिष्ठा से दृहू, अनु, एवं पुरु। यदु से यादवों का यदुकुल चला, जिसमें आगे चलकर भगवान् श्री कृष्ण ने जन्म लिया। दृहू से भोज तथा पुरु चले। तुर्वस-तर्वासु से मलेछ-मलेच्छ वंश चला।
द्रुह्मु का वंश :: द्रुह्मु के वंश में राजा गांधार हुए। ये आर्यावर्त के मध्य में रहते थे। बाद में द्रुहुओं को इक्ष्वाकु कुल के राजा मंधातरी ने मध्य एशिया की ओर खदेड़ दिया। पुराणों में द्रुह्यु राजा प्रचेतस के बाद द्रुह्युओं का कोई उल्लेख नहीं मिलता।
प्रचेतस के बारे में लिखा है कि उनके 100 बेटे अफगानिस्तान से उत्तर जाकर बस गए और म्लेच्छ कहलाए। ययाति के पुत्र द्रुह्यु से बभ्रु का जन्म हुआ। बभ्रु का सेतु, सेतु का आरब्ध, आरब्ध का गांधार, गांधार का धर्म, धर्म का धृत, धृत का दुर्मना और दुर्मना का पुत्र प्रचेता हुआ। प्रचेता के 100 पुत्र हुए, ये उत्तर दिशा में म्लेच्छों के राजा हुए।
राजा संवरण भगवान् सूर्य की पुत्री से विवाह करके सूर्य लोक चले गए। त्रेता युग का अंत काल आने पर पृथ्वी पर लगातार 2 वर्षों तक वर्षा हुई जिससे पृथ्वी समुद्र में विलीन हो गई। तत्पश्चात झंझावातों के प्रभाव से भूमि दिखने लगी और अगस्त्य ऋषि के तेज़ के प्रभाव से समुद्र सुख गया और 5 वर्षों में पृथ्वी वनस्पति सम्पन्न हो गई तो भगवान् सूर्य की आज्ञा से राजा संवरण अपनी पत्नी तपती, महर्षि वशिष्ठ और तीनों वर्णों के लोगों के साथ पुनः पृथ्वी पर आ गये। इसी काल में श्मश्रु पाल (दाढ़ी रखने वाले) मरुदेश (अरब, ईरान, ईराक) के शासक हुए।
कुरु वंश के राजा क्षेमक की मृत्यु मलेच्छों द्वारा हुई। उनके पुत्र प्रद्योत ने मल्लेच्छ यज्ञ किया जिसमें मलेच्छों का विनाश हुआ। राजा प्रद्योत को म्लेच्छ हन्ता कहा जाने लगा। मलेच्छ रूप में स्वयं कलि ने ही राज्य किया था। कलि ने अपनी पत्नी सहित भगवान् नारायण की पूजा कर दिव्य स्तुति की जिससे खुश होकर भगवान् नारायण प्रकट हुए और आश्वासन दिया कि विभिन्न रुपों में प्रकट होकर वे कलि की मदद् करेंगे क्योंकि कई मायनों में कलि अन्य युगों से श्रेष्ठ है। प्रद्योत के वेदवान् और उनके सुनन्द हुआ जो बगैर सन्तति के ही मृत्यु को प्राप्त हुआ। वरदान के प्रभाव से आदम और हव्यवति (हौवा-हव्वा) की उत्पत्ति हुई और तभी से आर्यावर्त सभी प्रकार से क्षीण होने लगा और मलेच्छों का बल बढ़ने लगा। द्वापर युग के 8,202 वर्ष रह जाने पर भूमि म्लेच्छों के प्रभाव में आने लगी। आदम और हव्यवति, दोनों ही इन्द्रियों का दमन करके भगवान् के ध्यान में मग्न रहते थे, मगर धूर्त कलि ने हौवा को धोखा देकर गूलर के पत्तों में लपेटकर दूषित वायु युक्त फल खिला दिया, जिससे भगवान् विष्णु की आज्ञा भंग हो गई और उनके अनेक पुत्र हुए जो सभी मलेच्छ थे। आदम पत्नी सहित स्वर्ग चला गया। उसका श्वेत नामधारी विख्यात श्रेष्ठ पुत्र हुआ, जिसकी आयु 1,200 वर्ष थी।
श्वेत का पुत्र अनुह (नूह), जिसका कीनाश नाम का पुत्र था। महल्लल उसका पुत्र हुआ। जिसका पुत्र मानगर था। मानगर के विरद और उसके भगवान् विष्णु का भक्ति परायण पुत्र हनूक हुआ। अध्यात्म तत्व प्राप्त कर, म्लेच्छ धर्म पालन करते हुए भी वह सशरीर स्वर्ग चला गया।
म्लेच्छों के धर्म :: भगवान् विष्णु की भक्ति, अग्निपूजा, अहिंसा, तपस्या, इन्द्रिय दमन।
हनूक के मतोच्छिल, उसके लोमक और लोमक के न्यूह हुआ। न्यूह के सीम, शम और भाव हुए। न्यूह आत्मध्यानम परायण विष्णु भक्त था। भगवान् विष्णु ने उसे स्वप्न में दर्शन देकर कहा कि वो सभी जीवों के साथ नाव पर सवार हो जाये, क्योंकि 7 दिनों बाद प्रलयंकारी वर्षा का योग था। 40 दिन लगातार बारिश हुई। न्यूह 88,000 ब्रह्मवादी मुनियों के पास बदरी क्षेत्र में पहुँच गया। संसार के शेष सभी प्राणी नष्ट हो गए।
न्यूह पुनः भगवान् विष्णु की भक्ति में लीन रहने लगा, जिससे प्रसन्न होकर भगवान् विष्णु ने उसके वंश की वृद्धि की। राजा न्यूह ने भगवान् से ऐसी लिपि प्रारम्भ करने को कहा जो दायें हाथ से बायें हाथ की तरफ चले। उसे भी भगवान् की स्वीकृति प्राप्त हो गई और हिब्रू, अरबी, फ़ारसी, उर्दू जैसी भाषाओँ का प्रादुर्भाव हुआ। यह ब्राह्मी लिपि-भाषा की अपशब्दावली है। न्यूह ने अपने पुत्रों के नाम सिम, हाम तथा याकूत कर दिये।
याकूत के 7 पुत्र हुए जिनके नाम हैं :- जुम्र, माजूज, मादी, यूनान, तुवलोम, सक तथा तीरास। जुम्र के 10 पुत्र हुए।
यूनान के 4 संतानें हुईं :- इलीश, तरलीश, कित्ती और हूदा।
न्यूह के दूसरे पुत्र के हाम-शम के 4 पुत्र थे :- कुश, मिश्र, कूज और कनआँ।
कुश के 6 पुत्र हुए :- सवा, हबील, सर्वत, उरगम, सवतिया और महाबली निमरूह। इनकी भी क्रमशः कलन, सिना, रोरक, अक्कद, बावुन और रसना देशक नामधारी सन्तानें हुईं।
न्यूह के पुत्र सिम ने 500 साल तक राज्य किया। सिम के बेटे अर्कन्सद ने 434 वर्ष, उसके पुत्र सिंहल ने 460 साल तक राज्य किया। उसके पुत्र इब्र ने भी 460 वर्ष तक शासन किया। उसका बेटा फ़लज 240 साल तक राजा रहा। फलज का पुत्र रऊ था, जिसने 235 वर्ष तक शासन किया। उसके पुत्र जूज़ ने 235 वर्ष शासन किया। उसका पुत्र नहूर था, जिसने 160 वर्ष तक राज्य किया। नहूर का पुत्र ताहर था, जिसने 160 साल शासन किया। तहर के अविराम, नहूर और हारन नामक पुत्र हुए। माँ भगवती सरस्वती के श्राप से ये राजा म्लेच्छ भाषा-भाषी हो गये और आचार-व्यवहार में भी अधम साबित हुए। इन शासकों-राजाओं के नाम पर ही उनके राज्यों-नगरों के नाम भी पड़े।
कलियुग के 2,000 वर्ष व्यतीत होनेपर पृथ्वी पर अधिकांश भाग में मलेच्छों का असर बढ़ गया। तभी उनका मूषा नाम का आचार्य-पूर्व पुरुष हुआ। 3,000 साल बीत जाने पर मेलच्छ देशों में शकों का राज्य कायम हो गया। कलियुग के 3,710 व्यतीत हो जाने पर प्रमर-परमार नामक राजा के यहाँ महामद-मुहम्मद, महामर नाम का पुत्र हुआ जिसने 3 वर्षों तक राज्य किया। उसके देवापि नामक पुत्र हुआ।
शालिवाहन के वंश में 10 राजा हुए जिन्होंने 500 वर्षों तक राज्य किया। 10 वें राजा राजा भोज हुए। उन्होंने गान्धार, म्लेच्छ और कश्मीर के राजाओं को परास्त किया। उसी प्रसंग में महामद नाम का म्लेच्छ अपने आचार्य और शिष्य मण्डल के साथ उनके समक्ष मरुप्रदेश में उपस्थित हुआ। राजा भोज को मरुस्थल में विद्यमान भगवान् शिव-महादेव के दर्शन हुए। भगवान् शिव ने राजा भोज को कहा कि महामायावी त्रिपुरासुर को वहाँ दैत्यराज बलि द्वारा गया है और भगवान् शिव से वरदान पाकर वह दैत्य समुदाय को बढ़ा रहा है। वह महामद अयोनिज है।
Mishr & Mishra (मिश्र, मिश्रा) are the titles-surnames of devout Hindu-Brahmans in India. They are synonym to Mistr. Mishr was one of the 10 sons of KAASHYAP (काश्यप), son of Kashyap (कश्यप)-the sage from whom the entire living world-organism have originated-evolved. Present day Kashmir was place, where Kashyap performed his ascetics (तपस्या). Mishr selected Mistr as the place of work for him self. This place acquired the name Mistr after him. He educated 10,000 people and imparted the knowledge of Ved, Puran, Upnishad, Brahmns etc. It came to be recognized as the seat of learning and Hinduism (Sanatan Dharm, as it was known at that time). Later this group was forced-enticed to be converted to Buddhism and ultimately to Muslimism. Muslimism is seen as a mirror image of Hinduism. Genetics may reveal that the genes-chromosomes-DNA of this belt across India up to Indonesia, Thailand etc., is identical.
मुसलमानों की उत्पति ::
मुसलमानों की उत्पति ::
लिंड्गच्छेदी शिखाहीनः श्मश्रुधारी सदूषकः।
उच्चालापी सर्वभक्षी भविष्यति जनोमम॥भविष्य पुराण 3.3.1.25॥
विना कौलं च पश्वस्तेषां भक्ष्या मतामम।
मुसलेनैव संस्कारः कुशैरिव भविष्यति॥भविष्य पुराण 3.3.1.26॥
तस्मान्मुसलवन्तो हि जातयो धर्मदूषकाः।
इति पैशाचधर्मश्च भविष्यति मया कृतः॥भविष्य पुराण 3.3.1.27॥
भविष्य पुराण लिखे हुए 5,000 से ज्यादा वर्ष व्यतीत हो चुके हैं। इसमें कलियुग का वर्णन विस्तार से दिया गया है। यह गीता प्रेस गोरखपुर द्वारा प्रकाशित किया गया है और इसका अनुवाद भी प्रामाणिक है। Rund stands for the body of Nandini-cow, from whose body the people, called Gurand or Mallech, emerged, when Vishwa Mitr attacked Vashishth to capture Nandini. Vishwa Mitr was defeated and turned to asceticism.
Mallechs too are the children-progeny of Mahrishi Kashyap. This is in addition to the Mallechs who originated from Brahma Ji.
Humans like Muchukund Ji, king Dashrath were always willing to help the demigods against the demons, giants, Anary. Both of them led the demigods-deities to victory over the demons.
Anary (Mallechchh, the inhabitants of the Arab world had always been troublesome for the civilised, disciplined, cultured) like today.
In practice-behaviour, they are close to the animals which mate with their progeny, siblings, aunt etc. They buy sell women, push them into prostitution etc.
Mallechs (The Yavan, Europeans, red mouthed) originated from Surbhi the cow of Vashishth when Raj Rishi Vishwa Mitr attacked the Ashram to steal Surbhi. At present they have two branches :- The first one, which dominates in desert regions (Muslims) and the second one dominates in Rome, Europe, America, Australia (Christians).
The progeny of a Brahman and cow Surbhi, Christians, eats beef-cow meat i.e., the meat of the mother.
VANAR CLAN :: In Sanskrit, Gurandi stands for English. Bhagwan Ram fulfilled the desire of 7 Vanar (men with tail and face like the monkeys, Bhagwan Shri Ram killed Bali considering him to be an animal) who wanted to marry the daughters of Rawan, born out his relationship with Dev Kanyas-Divine Girls. They were awarded the 7 islands created by Jalandher-the son of Samudr (Ocean) and brother of Laxmi Ji-the Goddess of wealth to rule, by Bhagwan Shri Ram. They were Vikat, Vrajeel (Brazil), Jal, Berlin (Germany), Sinhal (Cyclon-Shri Lanka, Jav (Java), Sumatr (Sumatra). Descendants of Vikat having the face of Vanar came to India for trade. Queen Viktawati (Victoria), wife of King Vikat, Ruled the country through Asht Kaushal Marg (Parliament). 7 Gurunds ruled the country for 64 years. 8th one Vardil ruled the country judiciously but was overpowered by Mur a Demon sent by Demon Emperor from Sutal by Bahu Bali, 9th one Macaulay was an educationist, 10th one Lord Bevel who ruled the country as per the dictates of Raj Dharm (rule of law) religiously, he went to heaven after his death.
Basically all Christians were Hindus called Jews.
रेगिस्तान की धरती पर एक पिशाच जन्म लेगा जिसका नाम महामद (महा घमण्डी-सिरफ़िरा) होगा, वो एक ऐसे धर्म की नींव रखेगा जिसके कारण मानव जाति त्राहि माम कर उठेगी। वो असुर कुल सभी मानवों को समाप्त करने की चेष्टा करेगा। उस धर्म के लोग अपने लिंग के अग्रभाग को जन्म लेते ही काटेंगे, उनकी शिखा (चोटी) नहीं होगी। वो बकरों की तरह दाढ़ी, मूँछ रखेंगे। वो बहुत शोर करेंगे और मानव जाति को नाश करने की चेष्टा करेंगे। राक्षस-पैशाच कर्मों को बढ़ावा देंगे एवं वे अपने को मुसलमान कहेंगे और ये असुर धर्म कालान्तर में स्वतः समाप्त हो जायेगा। More than 5,000 years since the writing of Bhavishy Puran. It has described the period of next 4,80,000 years in detail by the name of Kali Yug. It has been published by Geeta Press, Gorakh Pur and the translation from Sanskrat to Hindi is authentic.
A demon-devil will get birth in the deserts by the name of Maha Mad (Insane, arrogant man, Egoistic). He will found-establish a religion which will crush humanity in all sorts of manners. The demon clan will try to vanish all religions observed by others. Their followers will cut the front skin-web of their pennies and sport beard like goats, but will not have hair locks. They will make a lot of hue and cry. All sorts of demonic activities (terrorism, rape, abduction, sale & trafficking of women, drinking wine, destruction of places of worship, breaking of idols, meat eating, butchering cows) will be promoted-followed by them. They will call themselves Musalman and will perish automatically under the burden of their sins.
Mohammad was born in a Brahmn family of priests. He was a rogue from his early childhood and remained illiterate as a result of it. He converted Purans to Kuran-Quran and Manu Samrati into rule book of Muslims-Islam by the name of Sharia, with gross violations, distortions. Its almost anti-opposite of the virtues, piousity, righteousness described in Hinduism. It advocates all sorts of sins.
भगवान् शिव के ऐसा कहने पर भगवत इच्छा जानकर राजा भोज वापस आ गए। म्लेच्छों को द्वापर के समान आर्यधर्म का पालन करते देख कलि ने भगवान् श्री कृष्ण की 12 वर्ष तक तपस्या की। भगवान् ने कहा कि वे अपने अंश माध्यम से अग्नि वंशी प्रजाओं का विनाश करेंगे और म्लेच्छवंशीय राजाओं को प्रतिष्ठित करेंगे। तत्पश्चात सहोद्दीन (मोहम्मद गोरी) भारत को लूट कर चला गया और पृथ्वीराज चौहान ने वीरगति पाई।
म्लेच्छ और पैशाच धर्म का अनुयायी महामोद (महमूद) राजनीय नामक नगर का अधिपति था, उसने बहुत से नगरों को लूटकर धन एकत्र किया और कुंभपाल को दिया। कुंभपाल का पुत्र देवपाल था।
वीर विक्रमादित्य के पौत्र शालिवाहन ने सिंहासन पर बैठने के बाद म्लेच्छों और आर्यों की अलग-अलग देश मर्यादा स्थापित की। म्लेच्छों को सिंधु प्रदेश के उसपार का क्षेत्र प्रदान किया। हूण देश के मध्य स्थित पर्वत पर उन्होंने एक सुन्दर पुरुष को देखा जो श्वेत वस्त्र धारण किये हुए था। उसने बताया कि वह कुमारी के गर्भ से उत्पन्न हुआ था। उसने स्वयं को म्लेच्छ धर्म का प्रचारक और सत्यव्रत में स्थित बताया। उसने कहा कि सत्य का विनाश होने पर वह म्लेच्छ प्रदेश में मसीह बनकर आया और दस्युओं के मध्य भयंकर ईशामसी नाम से एक कन्या उत्पन्न हुई। उसी को म्लेच्छों से प्राप्तकर उसने मसीहत्व पाया। उसने इसाई धर्म कहा ::
सबसे पहले मानस और दैहिक मल निकालकर शरीर को पूर्णतः निर्मल कर लेना चाहिये। फिर इष्ट देवता का जप करना चाहिये। सत्य वाणी बोलनी चाहिये। न्याय से चलना चाहिये। मन को एकाग्र कर सूर्यमण्डल में स्थित परमात्मा की पूजा करनी चाहिये। क्योंकि सूर्य और ईश्वर में समानता है। परमात्मा अचल हैं और सूर्य भी अचल हैं। सूर्य भूतों के सार का चारों ओर से आकर्षण करते हैं। ऐसे कृत्य से वो मसीहा विलीन हो गई, पर मेरे ह्रदय में विशुद्ध कल्याणकारिणी ईश-मूर्ति प्राप्त हुई है, इसलिए मेरा नाम ईशामसीह प्रतिष्ठित हुआ। यह जानकर राजा शालिवाहन ने उस म्लेच्छ-पूज्य को प्रणाम किया और दारुण म्लेच्छ स्थान में प्रतिष्ठित किया।
The Christians crucified Jesus-Isa Masih and are now praying him. But they do not try to follow what he had said. He said that first you clean your body and mind thoroughly. After this one should pray to the deity who can resolve his issues-solve his problems. Speak the truth. Concentrate the mind and pray to the Almighty centred around the Sun. There is similarity between the Sun and the God. The Almighty and the Sun both are for ever. Sun grants the gist of the events of the past-scriptures.
EVOLUTION OF YAVAN :: Vishwamitr with his army arrived at the hermitage of sage Vashishth. The sage welcomed him and offered a huge banquet to the army, that was produced by Sabla-a Kam Dhenu. Vishwamitr asked the sage to part with Sabla and instead offered thousand of ordinary cows, elephants, horses and jewels in return. However, the sage refused to part with Sabla, who was necessary for the performance of the sacred rituals and charity by the sage. Agitated, Vishwamitr seized Sabla by force, but she returned to her master, fighting the king's men. She hinted Vashishth to order her to destroy the king's army and the sage followed her wish. Intensely, she produced Pahlav warriors, who were slain by Vishwamitr's army. So, she produced warriors of Shak-Yavan lineage. From her mouth, emerged the Kambhoj, from her udder Barvaras, from her hind Yavans and Shaks and from pores on her skin, Harits, Kirats and other foreign warriors. Together, the army of Sabla killed Vishwamitr's army and all his sons. This event led to a great rivalry between Vashishth and Vishwamitr, who renounced his kingdom and became a great sage to defeat Vashishth.
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संतोष महादेव-सिद्ध व्यास पीठ, बी ब्लाक, सैक्टर 19, नौयडा