MANHANDI PUR BALA JI मेहंदीपुर बालाजी

MANHANDI PUR BALA JI 
मेहंदीपुर बालाजी
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
By :: Pt. Santosh Bhardwaj
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ॐ गं गणपतये नम:।
अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।
निराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि
[श्रीमद्भगवद्गीता 2.47]
मेंहदीपुर बालाजी को दुष्ट आत्माओं से छुटकारा दिलाने के लिए दिव्य शक्ति से प्रेरित हनुमानजी का विश्व प्रसिद्द मंदिर है। यहाँ दूर-दूर से पीड़ितों को उपचार के लिये हनुमान जी महाराज जी शरण में लाया जाता है।गंभीर रोगियों को लोहे की जंजीर से बाँधकर मंदिर में लाया जाता है। भूत-प्रेत, ऊपरी बाधाओं के निवारणार्थ यहाँ आने वालों का ताँता लगा रहता है। ऐसे लोग यहाँ से बिना दवा और तंत्र-मंत्र के स्वस्थ होकर लौटते हैं।
मेहंदीपुर राजस्थान के दौसा जिले के पास दो पहाडिय़ों के बीच बसा हुआ है। यह मंदिर जयपुर-बांदीकुई-बस मार्ग पर जयपुर से लगभग 65 किलोमीटर दूर है।
यह दिल्ली से सीधी बस से जुड़ा है। यह मंदिर करीब 1 हजार साल पुराना है। यहाँ पर एक बहुत विशाल चट्टान में हनुमान जी की आकृति स्वयं ही उभर आई थी जिसे हनुमान जी का स्वरूप माना जाता है। इनके चरणों में छोटी सी कुण्डी है, जिसका जल कभी समाप्त नहीं होता। 
शनिवार और मंगलवार को यहाँ आने वाले भक्तों की संख्या लाखों में पहुँच जाती है।
मुस्लिम शासकों  ने इस मूर्ति को नष्ट करने का प्रयास किया। हर बार ये बादशाह असफ़ल रहे। वे इसे जितना खुदवाते गए मूर्ति की जड़ उतनी ही गहरी होती चली गई। थक हार कर उन्हें अपना यह कुप्रयास छोड़ना पड़ा। 1910 ई. में बालाजी ने अपना सैकड़ों वर्ष पुराना चोला स्वतः ही त्याग दिया। भक्तजन इस चोले को लेकर समीप वर्ती मंडावर रेलवे स्टेशन पहुँचे, जहाँ से चोले को गंगा में प्रवाहित करने लिये ले जाना था। स्टेशन मास्टर ने चोले को निःशुल्क ले जाने से रोका और उसका लगेज करने लगा। लेकिन चमत्कारी चोला कभी मन भर ज्यादा हो जाता और कभी दो मन कम हो जाता। असमंजस में पड़े स्टेशन मास्टर को अंततः चोले को बिना लगेज ही जाने देना पड़ा और उसने भी बालाजी के चमत्कार को नमस्कार किया। इसके बाद बालाजी को नया चोला चढ़ाया गया। एक बार फिर से नए चोले से एक नई ज्योति दीप्यमान हुई।
प्रेतराज सरकार :: बालाजी मंदिर में प्रेतराज सरकार दण्डाधिकारी पद पर आसीन हैं। प्रेतराज सरकार के विग्रह पर भी चोला चढ़ाया जाता है। प्रेतराज सरकार को दुष्ट आत्माओं को दण्ड देने वाले देवता के रूप में पूजा जाता है। भक्तिभाव से उनकी आरती, चालीसा, कीर्तन, भजन आदि किए जाते हैं। बालाजी के सहायक देवता के रूप में ही प्रेतराज सरकार की आराधना की जाती है। यहाँ आने पर ही मालूम चलता है कि भूत और प्रेत किस तरह से मनुष्य को परेशान करते हैं। दुखी व्यक्ति को मंदिर में आकर तीनों देवगणों को प्रसाद चढाना पड़ता है। बालाजी को लड्डू प्रेतराज सरकार को चावल और कोतवाल-भैरव को उड़द का प्रसाद चढ़ाया जाता है। इस प्रसाद में से दो लड्डू रोगी को खिलाए जाते हैं। शेष प्रसाद पशु पक्षियों को डाल दिया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि पशु पक्षियों के रूप में देवताओं के दूत ही प्रसाद ग्रहण कर रहे होते हैं। 
प्रसाद का लड्डू खाते ही रोगी व्यक्ति झूमने लगता है। भूत प्रेतादि स्वयं ही उसके शरीर में आकर चिल्लाने लगते हैं। कभी वह अपना सिर धुनता है, कभी जमीन पर लोटने लता है। पीड़ित लोग यहाँ पर अपने आप जो करते हैं वह एक सामान्य आदमी के लिए संभव नहीं है। इस तरह की प्रक्रियाओं के बाद वह बालाजी की शरण में आ जाता है, पर उसे हमेशा के लिए इस तरह की परेशानियों से मुक्ति मिल जाती है। बालाजी महाराज के मंदिर में प्रातः और सायं लगभग चार-चार घंटे पूजा होती है।
कोतवाल श्री भैरव देव :: 
PRET RAJ SARKAR
कोतवाल श्री भैरव देव भगवान् शिव के अवतार हैं और उनकी ही तरह भक्तों की थोड़ी सी पूजा-अर्चना से ही प्रसन्न भी हो जाते हैं। भैरव महाराज चतुर्भुजी हैं। उनके हाथों में त्रिशूल, डमरू, खप्पर तथा प्रजापति ब्रह्मा का पांचवां कटा शीश रहता है । वे कमर में बाघाम्बर नहीं, लाल वस्त्र धारण करते हैं। वे भस्म लपेटते हैं। उनकी मूर्तियों पर चमेली के सुगंध युक्त तिल के तेल में सिन्दूर घोलकर चोला चढ़ाया जाता है।
श्री बाल भैरव और श्री बटुक भैरव, भैरव देव के बाल रूप हैं। भक्तजन प्रायः भैरव देव के इन्हीं रूपों की आराधना करते हैं। भैरव देव बालाजी महाराज की सेना के कोतवाल हैं। बालाजी मन्दिर में इनके भजन, कीर्तन, आरती और चालीसा श्रद्धा से गाए जाते हैं। प्रसाद के रूप में इनको उड़द की दाल के वड़े और खीर का भोग लगाया जाता है। किन्तु भक्तजन बूंदी के लड्डू भी चढ़ाते हैं। सामान्य साधक भी बालाजी की सेवा-उपासना कर भूत-प्रेतादि उतारने में समर्थ हो जाते हैं। इस कार्य में बालाजी उसकी सहायता करते हैं। वे अपने उपासक को एक दूत देते हैं , जो नित्य प्रति उसके साथ रहता है।
BHAINRON BABA
किसी वक्त में मेहंदीपुर घोर जंगल था। घनी झाड़ियाँ थी, शेर-चीता, बघेरा आदि जंगल में जंगली जानवर पड़े रहते थे। चोर-डाकूऒ का इस गाँव में डर था। मंदिर  संस्थापक महन्त जी को स्वप्न दिखाई दिया और स्वप्न की अवस्था में वे उठ कर चल दिए। उन्हें ये पता नही था कि वे कहाँ जा रहे हैं। स्वप्न की अवस्था में उन्होंने अनोखी लीला देखी एक ऒर से हज़ारों दीपक जलते आ रहे हैं। हाथी घोड़ो की आवाजें आ रही हैं। एक बहुत बड़ी फौज चली आ रही है। उस फौज ने श्री बालाजी महाराज जी, श्री भैरो बाबा, श्री प्रेतराज सरकार, को प्रणाम किया और जिस रास्ते से फौज आयी उसी रास्ते से फौज चली गई और गोसाई जी महाराज वहाँ पर खड़े होकर, सब कुछ देखते रहे। उन्हें कुछ डर सा लगा और वो अपने गाँव की तरफ चल दिये घर जाकर वो सोने की कोशिश करने लगे परन्तु उन्हे नींद नही आई। बार-बार उसी स्वप्न के बारे में विचार करने लगे। जैसे ही उन्हें नींद आई उन्हें वही तीन मूर्तियाँ दिखाई दीं। विशाल मंदिर दिखाई दिया और उनके कानों में वही आवाज आने लगी और कोई उनसे कह रहा था कि बेटा उठो मेरी सेवा और पूजा का भार ग्रहण करो। मैं अपनी लीलाओं का विस्तार करूँगा। और कलयुग में अपनी शक्तियाँ दिखाऊॅंगा। अब यह स्पष्ट था कि रात में जो कुछ देखा था वो सर्वसत्य था।
SHRI  BALA JI
गोसाई जी ने पहले तो इस पर ध्यान नही दिया फिर जब  श्री बालाजी महाराज ने स्वप्न में दर्शन दिए और कहा कि बेटा मेरी पूजा करो तो दूसरे दिन गोसाई जी महाराज उठे और मूर्तियों के पास पहुँचे उन्होंने देखा कि चारों ओर से घण्टा, घडियाल और नगाड़ों की आवाज़ आ रही हैं, किंतु कुछ दिखाई नही दिया।  इसके बाद गोसाई महाराज नीचे आए और अपने पास लोगों को इकट्ठा किया और अपने सपने के बारे में बताया। जो लोग सज्जन थे, उन्होने मिल कर एक छोटी सी तिवारी बना दी। लोगों ने भोग की व्यवस्था करा दी। बालाजी महाराज ने उन लोगों को बहुत चमत्कार दिखाए। जो दुष्ट लोग थे उनकी समझ में कुछ नही आया। श्री बाला जी महाराज की प्रतिमा-विग्रह जहाँ से निकली थी, लोगों ने उन्हे देखकर सोचा कि वह कोई कला है। तो वह मूर्ति फिर से लुप्त हो गई फिर लोगों ने श्री बाला जी महाराज से क्षमा माँगी तो वो मूर्तियाँ दिखाई देने लगी। श्री बाला जी महाराज की मूर्ति के चरणों में एक कुंड है। जिसका जल कभी ख़त्म नही होता है। रहस्य यह है कि श्री बालाजी महाराज के ह्रदय के पास के छिद्र से एक बारिक जलधारा लगातार बहती है। उसी जल से भक्तों को छींटे लगते हैं।
चोला चढ़ जाने पर भी जलधारा बन्द नही होती है। इस तरह तीनों देवताओं की स्थापना हुई। श्री बाला जी महाराज, प्रेतराज सरकार, भैरो बाबा और जो समाधि वाले बाबा हैं उनकी स्थापना बाद में हुई। श्री बालाजी महाराज ने गोसाई जी महाराज को साक्षात दर्शन दिए थे। समाधि वाले बाबा ने ही राजा को अपने स्वपन की बात बताई। राजा को यकीन नही आया। राजा ने मूर्ति को देखकर कहा ये कोई कला है। इससे बाबा की मूर्ति अन्दर चली गयी। तो राजा ने खुदाई करवायी तब भी मूर्ति का कोई पता नही चला। तब राजा ने हार मानकर बाबा से क्षमा माँगी और कहा हे श्री बाला जी महाराज! हम अज्ञानी हैं मूर्ख हैं। हम आपकी शक्ति को नहीं पहचान पाये हमें अपना बच्चा समझ कर क्षमा कर दो। तब बालाजी महाराज की मूर्तियाँ बाहर आईं। मूर्तियाँ बाहर आने के बाद राजा ने गोसाई जी महाराज की बातों पर यकीन किया और गोसाई जी महाराज को पूजा का भार ग्रहण करने की आज्ञा दी। राजा ने श्री बाला जी महाराज जी का एक विशाल मन्दिर बनवाया। गोसाई जी महाराज ने श्री बाला जी महाराज जी की बहुत वर्ष तक पूजा की, जब गोसाई जी महाराज वृद्धा अवस्था में आये तो उन्होंने श्री बालाजी महाराज की आज्ञा से समाधि ले ली। उन्होंने श्री बाला जी महाराज से प्रार्थना की कि श्री बाला जी महाराज मेरी एक इच्छा है कि आपकी सेवा और पूजा का भार मेरा ही वंश करे। तब से आज तक गोसाई जी महाराज का परिवार ही पूजा का भार सम्भाल रहे हैं। यहाँ पर लगभग 1,000 वर्ष पहले बाला जी प्रकट हुए थे। बालाजी में अब से पहले 11 महंत जी सेवा कर चुके हैं। इस तरह से बालाजी की स्थापना हुई। ये तो कलयुग के अवतार हैं। संकट मोचन हैं।  मेहंदीपुर के आस-पास के इलाके में संकट वाले आदमी बहुत कम हैं। क्योंकि लोगों के मन में बालाजी के प्रति बहुत आस्था है। कहते हैं कि जिनके मन में विश्वास है, बालाजी महाराज उन्ही के संकट काटते हैं।
It was during 1994 when one encountered a person who just touched the hand and said a lot about the future, which was almost correct. One himself is a Palmist. He asked one to visit Bala Ji. It was  accepted. After taking bath in the early morning, one had the opportunity to see all that described above. Prayers were attended with honour and respect to the deity. It was noticed that some girls and perfectly normal people were recreating the drama as if they were affected by wicked souls. When they were looked by one, they quietly disappeared.

    
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संतोष महादेव-धर्म विद्या सिद्ध व्यास पीठ (बी ब्लाक, सैक्टर 19, नौयडा)