RIGVED (5) ऋग्वेद
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
By :: Pt. Santosh Bhardwaj
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अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।
गुणातीतं निराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि।
[श्रीमद्भगवद्गीता 2.47]ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (1) :: ऋषि :- बुध, गविष्ठि या आत्रेय, देवता :- अग्नि, वरुण, छन्द :- त्रिष्टुप्।
अबोध्यग्निः समिधा जनानां प्रति धेनुमिवायतीमुषासम्। यह्वाइव प्र वयामुज्जिहाना: प्र भानवः सिस्रते नाकमच्छ॥
गौओं के तुल्य आगमनकारिणी उषा के उपस्थित होने पर अग्रि देव अध्वर्युओं के काष्ठ द्वारा प्रबुद्ध होते हैं। उनका शिखा समूह महान है एवं शाखा विस्तारकारी वृक्ष के तुल्य वह अन्तरिक्षाभिमुख प्रसूत होता है।[ऋग्वेद 5.1.1]
Arrival of Usha-dawn, like the cows leads the priests to ignite fire. Its flames are great-too high, directed towards the sky and broad like a vast tree.
अबोधि होता यजथाय देवानूर्ध्वो अग्निः सुमनाः प्रातरस्थात्।
समिद्धस्य रुशददर्शि पाजो महान्देवस्तमसो निरमोचि॥
होता अग्नि देव देवों के यजन के लिए प्रबुद्ध होते हैं। अग्नि देव प्रातः काल में प्रसन्न मन से ऊद्धर्वाभिमुख उत्थित होते हैं। समिद्ध अग्नि देव का दीप्तिमान् बल दृष्ट होता है। इस प्रकार के महान् देव अन्धकार से मुक्त कर देते हैं।[ऋग्वेद 5.1.2]
उत्थित :: उठा हुआ, जागा हुआ; elevated, extended, stretched.
The hosts become ready for the Yagy for the sake of Agni Dev. Agni Dev elevate in the morning happily. Power-might of glowing Agni Dev is visible. In this manner Agni Dev removes darkness.
यदीं गणस्य रशनामजीगः शुचिरङ्क्ते शुचिभिर्गोभिरग्निः।
आद्दक्षिणा युज्यते वाजयन्त्युत्तानामूर्ध्वो अधयज्जुहूभिः॥
जब अग्नि देव सङ्घात्मक जगत् के रज्जु रूप अन्धकार को ग्रहण करते हैं, तब वे प्रदीप्त हो करके दीप्त रश्मि द्वारा इस जगत् को प्रकाशमय करते हैं। इसके अनन्तर वे प्रवृद्धा और अन्नाभिलाषी घृत धारा के साथ युक्त होते हैं एवं उन्नत होकर ऊपरी भाग में विस्तृत उस घृतधारा को जिह्वाओं द्वारा पान करते हैं।[ऋग्वेद 5.1.3]
Agni Dev glow and removes darkness with his light. Thereafter, he is accompanied with the offerings of food grains & Ghee and rise upwards.
अग्निमच्छा देवयतां मनांसि चक्षूंषीव सूर्ये सं चरन्ति।
यदीं सुवाते उषसा विरूपे श्वेतो वाजी जायते अग्रे अह्नाम्॥
प्राणियों की आँखे जिस प्रकार से सूर्य देव के अभिमुख सञ्चरण करती हैं, उसी प्रकार से याजक गणों का मानस अग्नि देव के अभिमुख सञ्चरण करता है। जब विरूपा द्यावा-पृथ्वी उषा के साथ अग्नि देव को उत्पन्न करती है, तब प्रकृष्ट वर्ण (श्वेत) से युक्त होकर वाजी स्वरूप अग्नि देव प्रातः काल में उत्पन्न होते हैं।[ऋग्वेद 5.1.4]
The way the eyes of the living beings operate in front of the Sun, innerself-mind of the Ritviz operates around Agni Dev. Glowing white-brilliant Agni Dev is created-ignited by the heavens & earth in the morning.
जनिष्ट हि जेन्यो अग्रे अह्नां हितो हितेष्वरुषो वनेषु।
दमेदमे सप्त रत्ना दधानोऽग्निर्होता नि षसादा यजीयान्॥
उत्पादनीय अग्नि देव उषाकाल में प्रादुर्भूत होते हैं और दीप्ति युक्त होकर बन्धु भूत वन समूह में स्थापित होते हैं। इसके अनन्तर वे रमणीय सात ज्वाला (शिखा) धारित करके होता और याग योग्य होकर प्रत्येक घर में उपवेशन करते हैं।[ऋग्वेद 5.1.5]
Agni, capable of birth, is born in the beginning of the day; radiant-shinning, he is deposited in the friendly woods and then the adorable Agni, the offeror of the oblation, displaying seven precious rays, is seated in every house.
Agni dev gets up in the morning with Usha-dawn. He shines and establishes himself in the forests-jungles. Thereafter, he acquire 7 flames and then he is transferred to the houses.
अग्निर्होता न्यसीदद्यजीयानुपस्थे मातुः सुरभा उ लोके।
युवा कविः पुरुनिः ष्ठ ऋतावा धर्ता कृष्टीनामुत मध्य इद्धः॥
होता और यष्टव्य हो करके अग्रि देव माता पृथ्वी की गोद में आज्य आदि से सुगन्ध युक्त वेदरूप स्थान पर उपविष्ट होते हैं। वे पुत्र, कवि, बहुस्थान विशिष्ट यज्ञवान् और सभी के धारक हैं। याजक गणों के बीच में समिद्ध होकर रहते हैं।[ऋग्वेद 5.1.6]
The adorable Agni Dev, the offeror of the oblation, has sat down in a fragrant places in the lap of mother earth; youthful, wise, many-stationed, the celebrator of sacrifice, the sustainer of all, kindled he abides amongest the humans.
Agni Dev establishes himself at the site of the Yagy as per directives of the Ved, in the lap of mother earth possessing fragrances. He is the supporter-nurturer of the son, poets and presents himself at several places simultaneously amongest the Ritviz, aided with the woods.
प्र णु त्यं विप्रमध्वरेषु साधुमग्निं होतारमीळते नमोभिः।
आ यस्ततान रोदसी ऋतेन नित्यं मृजन्ति वाजिनं घृतेन॥
जो द्यावा-पृथ्वी को उदक द्वारा विस्तारित करते हैं, उन मेधावी, यज्ञफल साधक और होता अग्नि देव की स्तुति द्वारा याजक गण शीघ्र प्रार्थना करते हैं। यजमान अन्नवान अग्नि देव की घृत द्वारा नित्य परिचर्या करते हैं।[ऋग्वेद 5.1.7]
The Ritviz glorify Agni Dev with hymns, who is intelligent, the fulfiller of desires at sacrifices, the offer of oblations, who has charged heaven and earth with water and whom the Ritviz-hosts always worship with clarified butter as the bestower of food.
The Ritviz worship-pray intelligent Agni Dev, who is host of the Yagy, grants reward for the Yagy and nourish the earth & heavens with water. The hosts-Ritviz make offerings of Ghee for the sake of food grain possessor Agni Dev.
मार्जाल्यो मृज्यते स्वे दमूना: कविप्रशस्तो अतिथिः शिवो नः।
सहस्रशृङ्गो वृषभस्तदोजा विश्वाँ अग्ने सहसा प्रास्यन्यान्॥
संमार्जनीय अग्नि देव अपने स्थान में पूजित होते हैं। वेदान्त (प्रशान्त) मना है। कविगण उनकी प्रार्थना करते हैं। वे हम लोगों के लिए अतिथि के तुल्य पूज्य और सुखकर हैं। उनकी अपरिमित शिखाएँ हैं। वे अभीष्ट वर्षी और प्रसिद्ध बलशाली हैं। हे अग्नि देव! आप अपने से अतिरिक्त अन्य सब लोगों को बल द्वारा परिपूर्ण करते हैं।[ऋग्वेद 5.1.8]
संमार्जनीय :: झाड़ू, बुहारी, कूँचा; mop cloth, eraser, wiper.
Agni Dev is entitled to worship & is worshipped in his own abode; humble-minded, eminent among sages, our auspicious guest, the multiple-infinite rayed, the showerer of benefits, of well-known might. Hey Agni Dev! Surpass all others in strength.
Destroyer (wiper-eraser) of all evil Agni Dev is worshiped at his place-abode. The poets-intelligent people pray to him. He is like a guest for us and beneficial. His has infinite branches-flames. He grant-accomplish desires and is powerful-mighty. Hey Agni Dev! You enrich each one of us with strength.
प्र सद्यो अग्ने अत्येष्यन्यानाविर्यस्मै चारुतमो बभूथ।
ईळेन्यो वपुष्यो विभावा, प्रियो विशामतिथिर्मानुषीणाम्॥
हे अग्नि देव! आप यज्ञ को प्राप्त कर जिसके निकट चारुतम रूप से आविर्भूत होते हैं, उसके निकट से आप शीघ्र ही दूसरों को अतिक्रान्त करके गमन करते हैं। आप स्तुति योग्य, दीप्तिकर एवं विशिष्ट दीप्तिमान् है। आप प्राणियों के प्रिय और मनुष्यों के पूज्य है।[ऋग्वेद 5.1.9]
Hey Agni Dev! You quickly move to others as the beneficiary of the Yagy. You have been manifest; most beautiful, adorable, radiant-shining, loved-revered by the people, the guest of humans & deserve worship.
तुभ्यं भरन्ति क्षितयो यविष्ठ बलिमग्ने अन्तित ओत दूरात्।
आ भन्दिष्ठस्य सुमतिं चिकिद्धि बृहत्ते अग्ने महि शर्म भद्रम्॥
हे युवतम अग्निदेव! मनुष्यगण निकट से और दूर से आपकी पूजा करते हैं। जो आपकी अधिक प्रार्थना करता है, उसी की आप प्रार्थना ग्रहण करते हैं। हे अग्नि देव! आपके द्वारा प्रदत्त सुख बृहत्, महान् और स्तुति योग्य है।[ऋग्वेद 5.1.10]
Hey youthful Agni Dev! The humans worship you from far & wide. You accept the prayers of those who perform them regularly. Hey Agni Dev! The comforts-luxuries granted by you are great and appreciable.
आद्य रथं भानुमो भानुमन्तमग्ने तिष्ठ यजतेभिः समन्तम्।
विद्वान्पथीनामुर्व १ न्तरिक्षमेह देवान्हविरद्याय वक्षि॥
हे दीप्तिमान् अग्नि देव! आप आज दीप्तिमान् और समीचीन प्रान्त युक्त रथ पर देवों के साथ आरोहण करें। आपको रास्ता ज्ञात है। प्रभूत अन्तरिक्ष प्रदेश से होकर आप देवों को हव्य भक्षण के लिए इस स्थान में ले आते हैं।[ऋग्वेद 5.1.11]
समीचीन :: यथार्थ, ठीक, उचित, वाजिब; accurate, appropriate, suitable.
Hey radiant-aurous Agni Dev! Ride the suitable shining charoite and come to us with the demigods-deities. You are aware of the route. Bring-invoke the demigods-deities to the Yagy site for accepting offerings.
अवोचाम कवये मेध्याय वचो वन्दारु वृषभाय वृष्णे।
गविष्ठिरो नमसा स्तोममग्नौ दिवीव रुक्ममुरुव्यञ्चमश्रेत्॥
हम अत्रिवंशी लोग मेधावी, पवित्र, अभीष्टवर्षी और युवा अग्नि देव के उद्देश्य से वन्दना योग्य स्तवन का उच्चारण करते हैं। गविष्ठिर ऋषि आकाश में दीप्यमान, विस्तीर्ण गति विशिष्ट आदित्य के अग्नि देव के उद्देश्य से नमस्कार युक्त स्तोत्र का उच्चारण करते हैं।[ऋग्वेद 5.1.12]
We the descendants of Atri Vansh-clan, recite sacred hymns for the intelligent, accomplishments granting, youthful Agni Dev. Gavishthir Rishi recite the special Strotr meant for vast & radiant Adity in the sky, in the honour of Agni Dev.(12.05.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (2) :: ऋषि :- कुमार आत्रेय, वृश या जान, देवता :- अग्नि, छन्द :- शक्वरी, त्रिष्टुप्।
कुमारं माता युवतिः समुब्धं गुहा बिभर्ति न ददाति पित्रे।
अनीकमस्य न मिनज्जनासः पुरः पश्यन्ति निहितमरतौ॥
कुमार को पैदा करने वाली यौवन वती माता ने मार्ग में सञ्चरण करने वाले रथ चक्र द्वारा निहत देखकर गुहा बीच में धारित किया उसके पिता को नहीं दिया। लोग उसे हिंसित रूप में नहीं देख सके; किन्तु अरणि स्थान में स्थापित होने पर उसे फिर देख सके।[ऋग्वेद 5.2.1]
युवा माता अपने क्षत-विक्षत पुत्र को गुप्त रूप से पालती है और उसे पिता को नहीं देती; पुरुष उसके क्षत-विक्षत रूप को नहीं देखते हैं। उसे अरणि स्थान में देखें।
The young mother cherishes her mutilated boy in secret and do not give it to his father. The people can not see his mutilated body. When he was brought to the Yagy site (Arni Sthan) he could be seen.
कमेतं त्वं युवते कुमारं पेषी बिभर्षि महिषी जजान।
पूर्वीर्हि गर्भः शरदो ववर्धापश्यं जातं यदसूत माता॥
हे युवती! आप पिशाची होकर किस कुमार को धारित करती हो? पूजनीय अरणि ने इसे उत्पन्न किया है। अनेक संवत्सर पर्यन्त अरणि सम्बन्धी गर्भ वर्द्धित हुआ। इसके अनन्तर माता अरणि ने जिस पुत्र को उत्पन्न किया, उसे हमने देखा।[ऋग्वेद 5.2.2]
पिशाची :: पिशाच स्त्री; elfin.
Hey damsel! You are bearing the boy in spite of being elfin. The pious wood has evolved him. The womb related to the wood has grown for several years. Thereafter, the son produced by the Arni as mother has been seen by us.
हिरण्यदन्तं शुचिवर्णमारात्क्षेत्रादपश्यमायुधा मिमानम्।
ददानो अस्मा अमृतं विपृक्वत्किं मामनिन्द्राः कृणवन्ननुक्थाः॥
हमने समीपवर्ती प्रदेश से हिरण्य सदृश ज्वाला युक्त प्रदीप्त वर्ण और आयुध स्थानीय ज्वाला निर्माण करने वाले अग्नि देव को देखा। हम (वृश) ने उन्हें सर्वतोव्याप्त और अविनाशी स्तोत्र प्रदत्त किया। जो इन्द्र देव (परमैश्वर्युक्त अग्नि) को नहीं मानते हैं और जो उनकी प्रार्थना नहीं करते हैं, वे हमारा क्या कर लेंगे?[ऋग्वेद 5.2.3]
We have seen Agni Dev in golden attire, wearing arms-ammunition, producing flames in the nearby area. We worshiped him with the help of all pervading immortal Strotr-hymn. Indr Dev who do not recognise-worship him, can not harm us.
क्षेत्रादपश्यं सनुतश्चरन्तं सुमद्युथं न पुरु शोभमानम्।
न ता अगृभ्रन्नजनिष्ट हि षः पलिक्नीरिद्युवतयो भवन्ति॥
हम (वृश) ने गो समूह के तुल्य क्षेत्र में निगूढ़ भाव से सञ्चरण करने वाले एवं अनेक प्रकार से स्वयं शोभायमान अग्नि देव को देखा। पिशाची के आक्रमण काल वाली निर्वीर्य ज्वाला को वे ग्रहण नहीं करते हैं। अग्नि देव बार-बार प्रादुर्भूत होते हैं एवं उनकी वृद्धा ज्वाला युवती होती है।[ऋग्वेद 5.2.4]
निगूढ़ :: जो जल्दी समझ में न आए; दुरूह; दुर्बोध, अत्यंत गुप्त, रहस्यपूर्ण, छिपा हुआ, अव्यक्त, अप्रकट; hidden and not obvious at the moment, cryptic.
We found-observed radiant-beautiful Agni Dev in those regions where cow herds are present, passing quietly-secretly. He do not support-accept the weak flames generated while the ghosts attack. Agni Dev evolve again and again and his old flames renew their vigour (heat & light).
के मे मर्यकं वि यवन्त गोभिर्न येषां गोपा अरणश्चिदास।
य ईंजगृभुरव ते सृजन्त्वाजाति पश्व उप नश्चिकित्वान्॥
कौन हमारे राष्ट्र को गौओं के साथ नियुक्त करता है? उनके साथ क्या रक्षक नहीं था? जो हमारे राष्ट्र समूह पर आक्रमण करता है, वह विनष्ट है। अग्नि देव हम लोगों की अभिलाषा को जानते हैं, इसलिए वे हम लोगों के पशुओं के निकट आगमन करते हैं।[ऋग्वेद 5.2.5]
Who appoints the protectors-country with the cows? Were there no protectors with them? One who attacks our country is vanished-destroyed. Agni dev is aware of desires-motive. Hence he roam closely with our cows.
वसां राजानं वसतिं जनानामरातयो नि दधुर्मर्त्येषु।
ब्रह्माण्यत्रेरव तं सृजन्तु निन्दितारो निन्द्यासो भवन्तु॥
प्राणियों के स्वामी और लोगों के आवास भूत अग्नि देव को शत्रु गण मृत्यु लोक में छिपाकर रखते हैं। अत्रिगोत्रोत्पन्न वृश का स्तोत्र उन्हें मुक्त करें। निन्दा करने वाले लोग निन्दनीय होवें।[ऋग्वेद 5.2.6]
निन्दा :: बुराई करना, लानत, कलंक, धिक्कार, शाप, फटकार, गाली, तिरस्कार, परिवाद, भला-बुरा कहना; धिक्कार; blasphemy, reproach, damn, reprehension, taunt, decry.
The enemy hide Agni Dev, who is the master of living beings and supporter-nurturer, over the earth. Let the Strotr composed by Vrash, a descendent of Atri release him. Let the people who resort to blasphemy be condemned.
शुनश्चिच्छेपं निदितं सहस्राद्यूपादमुञ्चो अशमिष्ट हि षः।
एवास्मदग्ने वि मुमुग्धि पाशान्होतश्चिकित्व इह तू निषद्य॥
हे अग्नि देव! आपने अत्यन्त बद्ध शुनःशेप ऋषि को सहस्रों यूप से मुक्त किया; क्योंकि उन्होंने आपका स्तवन किया था। हे होता और विद्वान् अग्नि देव! आप इस वेदी पर उपवेशन करें। इस प्रकार से हम लोगों को सकल बन्धनों से करें।[ऋग्वेद 5.2.7]
Hey Agni Dev! You released-untied Shun Shep who was tied with the Yagy mast-poles, since he remembered you, recited Strotr. Hey host-Ritviz and enlightened Agni Dev! Occupy your seat at this Yagy site and release us from all bonds-ties.
हृणीयमानो अप हि मदैयेः प्र मे देवानां व्रतपा उवाच।
इन्द्रो विद्वाँ अनु हि त्वा चचक्ष तेनाहमग्ने अनुशिष्ट आगाम्॥
हे अग्नि देव! जब आप क्रोधित होते हैं, तब हमसे दूर हो जाते हैं। देवों के व्रत पालक इन्द्र देव ने हमसे यह कहा कि वे विद्वान हैं, उन्होंने आपको देखा है। हे अग्नि देव! उनके द्वारा अनुशिष्ट होकर हम आपके निकट उपस्थित होते हैं।[ऋग्वेद 5.2.8]
अनुशिष्ट :: अनुशासित, शिक्षित, आदिष्ट, निदेशित, पूछा हुआ, आदेश, शिक्षा, शासन; disciplined, ordered, directed.
Hey Agni Dev! You drift away from us on being angry. Enlightened Dev Raj Indr who accomplish the motives of demigods-deities informed us that he has seen you. On being disciplined-ordered by him, you stay with us.
वि ज्योतिषा बृहता भात्यग्निराविर्विश्वानि कृणुते महित्वा।
प्रादेवीर्मायाः सहते दुरेवाः शिशीते शृङ्गे रक्षसे विनिक्षे॥
वे अग्नि महान् विशेष तेजों से दीप्त होते हैं। वे अपनी महिमा के बल से समस्त पदार्थों को प्रकट करते हैं। अग्नि देव प्रवृद्ध होकर दुःख जनक आसुरी माया का नाश करते हैं। राक्षसों को विनष्ट करने के लिए अपनी ज्वालाओं को तीक्ष्ण करते हैं।[ऋग्वेद 5.2.9]
प्रवृद्ध :: अतिशय वृद्धि को प्राप्त, प्रौढ़, तलवार के 32 हाथों में से एक जिसे प्रसृत भी कहते हैं, इनमें तलवार की नोक से शत्रु का शरीर छू भर जाता है, अयोध्या के राजा रघु का एक पुत्र जो गुरु के शाप से 12 वर्ष के लिये राक्षस हो गया था, वृद्धि युक्त, खूब बढ़ा हुआ, खूब पक्का, विस्तृत, खूब फैला हुआ, विशाल, उग्र, घमंडी, गर्विष्ठ (को कहते हैं); grown up, mature, grown tremendously, aged.
Agni Dev is associate with great aura-radiance. He evolve all materials by virtue of his power. Agni Dev grow and destroy the demonic cast-spell. He sharpened-grow his flames to destroy the demons.
उत स्वानासो दिवि षन्त्वग्नेस्तिग्मायुधा रक्षसे हन्तवा उ।
मदे चिदस्य प्र रुजन्ति भामा न वरन्ते परिबाधो अदेवीः॥
अग्नि देव की शब्द करने वाली ज्वाला तीक्ष्ण आयुधों के तुल्य राक्षसों को विनष्ट करने के लिए द्युलोक में प्रादुर्भूत होती है। हर्ष के उत्पन्न होने पर अग्नि देव का क्रोध या दीप्ति समूह राक्षसों को पीड़ा देता है। बाधा देने वाली असुरों की सेना अग्नि देव को बाधा नहीं दे सकती।[ऋग्वेद 5.2.10]
Fierce flames of Agni Dev making sound, evolve to destroy the demons; like weapons. On being happy Agni Dev penalise the demons with his ferocity. Obstructing demon army can not block Agni Dev.
एतं ते स्तोमं तुविजात विप्रो रथं न धीरः स्वपा अतक्षम्।
यदीदग्ने प्रति त्वं देव हर्याः स्वर्वतीरप एना जयेम॥
हे बाहुभाव प्राप्त अग्नि देव! हम आपके स्तोता हैं। धीर और कर्म-कुशल व्यक्ति जिस प्रकार से रथ का निर्माण करता है, उसी प्रकार से हम आपके लिए इस स्तोत्र का निर्माण करते हैं। हे अग्नि देव! आप इन स्तोत्रों से प्रसन्न होकर विजय प्राप्त करने वाले स्वर्गिक सुख युक्त हों।[ऋग्वेद 5.2.11]
Hey Agni Dev attained by devotion! We are your worshipers. The manner in which an expert-skilled workman-craftsman build the charoite, we have composed this Strotr in your honour. Hey Agni Dev! Enjoy our prayers and be blessed with heavenly pleasure, comforts.
तुविग्रीवो वृषभो वावृधानोऽशत्रु १ र्यः समजाति वेदः। इतीममग्निममृता अवोचन्बर्हिष्मते मनवे शर्म यंसद्धविष्मते मनवे शर्म यंसत्॥
बहु ज्वाला विशिष्ट, अभीष्ट वर्षी तथा वर्द्धमान अग्नि देव निष्कण्टक भाव से शत्रुओं के धन का संग्रह करते हैं। इस बात को देवों ने अग्नि देव से कहा था कि वे यज्ञ करने वाले मनुष्यों सुख प्रदान करें और हव्य देने वाले याजकों को भी सुख प्रदत्त करें।[ऋग्वेद 5.2.12]
Growing, accomplishments granting Agni Dev accompanied with his special powers-furious flames, collects the wealth-booty of the demons. The demigods-deities asked Agni dev to grant comforts-luxuries to the Ritviz who make offerings in the Yagy.(14.05.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (3) :: ऋषि :- वसुश्रुत, आत्रेय, देवता :- अग्नि, वरुण, छन्द :- विराट, त्रिष्टुप्।
त्वमग्ने वरुणो जायसे यत्त्वं मित्रो भवसि यत्समिद्धः।
त्वे विश्वे सहसस्पुत्र देवास्त्वमिन्द्रो दाशुषे मर्त्याय॥
हे अग्नि देव! आप उत्पन्न होते ही वरुण देव के सदृश गुण वाले होते हैं। समिद्ध होकर आप हितकारी होते है। समस्त देवगण जब आपका अनुवर्तन करते हैं। हे बल पुत्र! आप हव्यदाता यजमान के लिए इन्द्र देव के सदृश पूजनीय हैं।[ऋग्वेद 5.3.1]
अनुवर्तन :: अनुसरण, समानता, उपयुक्तता, आज्ञा पालन, परिणाम; नतीजा, अनुकरण, समान आचरण; compliance, consequentiality.
Hey Agni Dev! You possess the charctrices-qualities, traits like Varun Dev, as soon as you evolve. You become beneficial when wood are offered to you. All demigods-deities follow you. Hey the son of might! You are worship able for the Ritviz-hosts just like Indr Dev.
त्वमर्यमा भवसि यत्कनीनां नाम स्वधावन्गुह्यं बिभर्षि।
अञ्जन्ति मित्र सुधितं न गोभिर्यद्दम्पती समनसा कृणोषि॥
हे अग्नि देव! आप कन्याओं के सम्बन्ध में अर्यमा-सूर्य होते हैं। हे हव्यवान् अग्नि देव! आप गोपनीय नाम धारण करते है। जब आप पति-पत्नी को एक मन वाला बना देते हैं, तब वे आपके मित्र के तुल्य गव्य द्वारा सिक्त करते हैं।[ऋग्वेद 5.3.2]
Hey Agni Dev! you are like Aryma-Sun for the girls. Hey offerings accepting Agni Dev! You possess un disclosed names-qualities. When you make the husband & wife possess same innerself, they behave like a friend with you and make offerings of milk, ghee, curd etc. for you.
तव श्रिये मरुतो मर्जयन्त रुद्र यत्ते जनिम चारु चित्रम्।
पदं यद्विष्णोरुपमं निधायि तेन पासि गुह्यं नाम गोनाम्॥
हे अग्नि देव! आपके आश्रय के लिए मरुद्गण अन्तरिक्ष का मार्जन करते हैं। हे रुद्र! आपके लिए वैद्युत लक्षण, अति विचित्र और मनोहर जो श्री विष्णु का अगम्य पद है, वह स्थापित हुआ है। उनके द्वारा आप उदक (जल, पानी) के गुह्य नाम का पालन करें।[ऋग्वेद 5.3.3]
मार्जन :: सफ़ाई, भूल, दोष आदि का परिहार; sweep, clear.
Hey Agni Dev! Marud Gan clear the space-sky for you. Hey Rudr! You have been awarded the lovely, amazing highest abode of Bhagwan Shri Hari Vishnu, with the charctrices of electricity. Hence, you cherish the mysterious name of the waters.
तव श्रिया सुदृशो देव देवाः पुरू दधाना अमृतं सपन्त।
होतारमग्निं मनुषो नि षेदुदुर्दशस्यन्त उशिजः शंसमायोः॥
हे अग्नि देव! आपकी समृद्धि के द्वारा इन्द्रादि देवगण दर्शनीय होते हैं। वे देवगण आपके प्रति अत्यन्त प्रीति धारित करके अमृत का स्पर्श करते हैं। ऋत्विक गण फलाभिलाषी मनुष्यों के लिए हव्य वितरण करते हुए होता अग्नि देव की सेवा करते हैं।[ऋग्वेद 5.3.4]
Hey Agni Dev ! Your grandeur make the demigods-deities glorious. The demigods-deities possess extreme love & affection for you while touching the elixir-Nectar. The Ritviz serve Agni Dev while distributing offerings to the humans.
न त्वद्धोता पूर्वो अग्ने यजीयान्न काव्यैः परो अस्ति स्वधावः।
विशश्च यस्या अतिथिर्भवासि स यज्ञेन वनवद्देव मर्तान्॥
हे अग्नि देव! आपसे भिन्न कोई अन्य होता नहीं है, यज्ञकारी नहीं है और कोई पुरातन भी नहीं है। हे अन्नवान्! भविष्यकाल में भी आपकी अपेक्षा कोई स्तुति योग्य नहीं होगा। हे देव! आप जिस ऋत्विक् के अतिथि रूप होते हैं, वह यजमान यज्ञ द्वारा शत्रु मनुष्यों को विनष्ट करता है।[ऋग्वेद 5.3.5]
Hey Agni Dev! No host-Ritviz, performer of Yagy neither exist nor is eternal. Hey possessor of food grains! None will be as revered as you for worship, in the future as well. Hey Dev! The Ritviz whose guest you are, is capable of vanishing the enemy.
वयमग्ने वनुयाम त्वोता वसूयवो हविषा बुध्यमानाः।
वयं समर्ये विदथेष्वह्नां वयं राया सहसस्पुत्र मर्तान्॥
हे अग्नि देव! हम आपके द्वारा रक्षित होकर शत्रुओं को पीड़ा प्रदान करेंगे। हम धनाभिलाषी हैं। हम लोग आपको हव्य द्वारा प्रवृद्ध करते हैं। हम लोग युद्ध में विजय प्राप्त करें और प्रतिदिन यज्ञ में बल प्राप्त करें। हे बल पुत्र! हम लोग धन व पुत्र प्राप्त करें।[ऋग्वेद 5.3.6]
Hey Agni Dev! Having been protected by you we will trouble the enemy. We wish to have riches-wealth. We make offerings to you to boost you. We should win the war and gain might-valour everyday in the Yagy. Hey the son of might-power! Let us get riches & son.
यो न आगो अभ्येनो भरात्यधीदघमघशंसे दधात।
जही चिकित्वो अभिशस्तिमेतामग्ने यो नो मर्चयति द्वयेन॥
जो मनुष्य हम लोगों के प्रति अपराध या पाप करता है, उस पाप कारी व्यक्ति के प्रति अग्नि पापाचरण करें-उसे पापी बनावें। हे विद्वान् अग्नि देव! जो हम लोगों को अपराध और पाप द्वारा प्रताड़ित करता है, उस पापकारी का आप नाश करें।[ऋग्वेद 5.3.7]
Hey Agni Dev! Ruin-vanish the person-evil doer, who commit sin-crime against us, torture-assault us, pay him in the same coin.
त्वामस्या व्युषि देव पूर्वे दूतं कृण्वाना अजयन्त हव्यैः।
संस्थे यदग्न ईयसे रयीणां देवो मर्तैर्वसुभिरिध्यमानः॥
हे अग्नि देव! पुरातन याजकगण आपको देवों का दूत बनाकर उषाकाल में यज्ञ करते हैं। हे अग्नि देव! हव्य संग्रह होने के अनन्तर आप द्युतिमान् होकर भी निवासप्रद मनुष्यों द्वारा समिद्ध होकर आगमन करते है।[ऋग्वेद 5.3.8]
Hey Agni Dev! The old-former Ritviz perform Yagy during dawn-Usha, establishing you as the messenger of the demigods-deities. You glow brightly on adding wood and making offerings-oblations arriving at the Yagy site.
अव स्पृधि पितरं योधि विद्वान्पुत्रो यस्ते सहसः सून ऊहे।
कदा चिकित्यो अभि चक्षसे नोऽग्ने कदाँ ऋतचिद्यातयासे॥
हे बल पुत्र! आप पिता है। जो विद्वान पुत्र आपके लिए हव्य प्रदान करता है, आप उसे पार कर देते हैं और उसे पाप से पृथक करते हैं। हे विद्वान् अग्निदेव! कब आप हम लोगों को देखेंगे? हे यज्ञ के प्रेरक कब आप हम लोगों को सन्मार्ग में प्रेरित करेंगे?[ऋग्वेद 5.3.9]
Hey son of might-power! You are a father. The enlightened son who make offerings-oblations for you isolate-shield him from sins. Hey enlightened Agni Dev! When will you take care-support us? Hey inspirer of Yagy, inspire us to righteous-virtuous path.
भूरि नाम वन्दमानो दधाति पिता वसो यदि तज्जोषयासे।
कुविद्देवस्य सहसा चकानः सुम्नमग्निर्वनते वावृधानः॥
हे निवासप्रद अग्नि देव! आप पालक है। आप उस हवि का सेवन करते हैं, जो आपके नाम की वन्दना करके दिया जाता है। याजक गण उससे पुत्र प्राप्त करता है। याजक गण के बहुत हव्य की अभिलाषा करने वाले और वर्द्धमान अग्नि देव बल युक्त होकर सुख प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 5.3.10]
Hey comfortable-granting residence, Agni Dev! You accept the offerings which are given in your name during worship-prayers. The Ritviz gets a son with that. Agni Dev empowered by the several offerings of the Ritviz Agni Dev grant them comforts.
त्वमङ्ग जरितारं यविष्ठ विश्वान्यग्ने दुरिताति पर्षि।
स्तेना अदृश्रन्रिपवो जनासोऽज्ञातकेता वृजिना अभूवन्॥
हे युवतम अग्नि देव! आप स्तोताओं को अनुगृहीत करने के लिए समस्त दुरितों (विघ्न) से पार कर देते हैं। चोर दिखाई देने लगते हैं। अपरिज्ञात चिह्न वाले शत्रु भूत मनुष्य हमारे द्वारा वर्जित किये जाते हैं।[ऋग्वेद 5.3.11]
Hey youthful Agni Dev! You clear all obstructions, troubles, difficulties, all calamities to obelize the Strota. The thieves are identified-detected along with the enemies and are isolated by us.
इमे यामासस्त्वद्रिगभूवन्वसवे वा तदिदागो अवाचि।
नाहायमग्निरभिशस्तये नो न रीषते वावृधानः परा दात्॥
ये स्तोम आपके अभिमुख गमन करते हैं अथवा हम निवासप्रद अग्नि देव के निकट उस याचमान अपराध का उच्चारण करते हैं। अग्नि देव हमारी स्तुति द्वारा वर्द्धित होकर हमें निन्दकों अथवा हिंसकों की ओर जाने से बचायें।[ऋग्वेद 5.3.12]
स्तोम :: यज्ञ करने वाला व्यक्ति, स्तुति, प्रार्थना, यज्ञ, एक प्रकार का यज्ञ, यज्ञकारी, समूह, राशि, दस धन्वंतर अर्थात् चालीस हाथ की एक माप, मस्तक, सिर, धन-दौलत, अनाज-शस्य, एक प्रकार की ईंट, लोहे की नोकवाला डंडा या सोंटा, बड़ी मात्रा, विशाल राशि, दूसरे को किराए पर मकान देना, सोम का दिन-दिवस; performer of the Yagy-Ritviz.
The performer of the Yagy move to you, and accept their guilt-sin. Let Agni Dev become powerful become happy with our worship-prayers and protect us from the cynic and the violent.(16.05.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (4) :: ऋषि :- वसुश्रुत, आत्रेय, देवता :- अग्नि, वरुण, छन्द :- त्रिष्टुप्।
त्वामग्ने वसुपतिं वसूनामभि प्र मन्दे अध्वरेषु राजन्।
त्वया वाजं वाजयन्तो जयेमाभि ष्याम पृत्सुतीर्मर्त्यानाम्॥
हे अपार धन के स्वामी अग्नि देव! हम आपके उद्देश्य से यज्ञ में प्रार्थना करते हैं। हे राजन्! हम अन्नाभिलाषी हैं। आपकी अनुकूलता से हम अन्न लाभ करें और शत्रु सेना को पराजित करें।[ऋग्वेद 5.4.1]
Hey master of unlimited wealth Agni Dev! We worship-pray you in the Yagy. Hey king-emperor! We desire food grains. Your favours will grant us food grains and enable us to defeat the enemy.
हव्यवाळग्निरजरः पिता नो विभुर्विभावा सुदृशीको अस्मे।
सुगार्हपत्याः समिषो दिदीह्यस्मद्र्य १ क्सं मिमीहि श्रवांसि॥
हव्य वाहक अग्नि देव वृद्धावस्था से रहित होकर हम लोगों के पालक बनें। हम लोगों के निकट वे सर्वव्याप्त दीप्यमान और दर्शनीय हों। हे अग्निदेव! आप शोभन गार्हपत्य युक्त अन्न को भली-भाँति से प्रदान करें। आप हम लोगों को प्रचुर मात्रा में अन्न-प्रदान करें।[ऋग्वेद 5.4.2]
Hey carrier of offerings-oblations, Agni Dev support-nurture us. You should be aurous-bright and illuminate entire space. Hey Agni Dev! Grant us sufficient food grains for our family.
विशां कविं विश्पतिं मानुषीणां शुचिं पावकं घृतपृष्ठमग्निम्।
नि होतारं विश्वविदं दधिध्वे स देवेषु वनते वार्याणि॥
हे ऋत्विको! आप लोग मनुष्यों के स्वामी, मेधावी, विशुद्ध, दूसरों को शुद्ध करने वाले, घृतपृष्ठ, होमनिष्पादक और सर्वविद अग्नि देव को धारित करें। अग्नि देव देवों के बीच में संग्रहणीय धन को हम लोगों के लिए विभाजित करें।[ऋग्वेद 5.4.3]
Hey Ritviz-priests! Own-patronise Agni Dev, who is intelligent, pure, capable of purifying others, has ghee over his back and aware of every thing. Let Agni Dev, divide-distribute the storable wealth amongest us.
जुषस्वाग्न इळया सजोषा यतमानो रश्मिभिः सूर्यस्य।
जुषस्व नः समिधं जातवेद आ च देवान्हविरद्याय वक्षि॥
हे अग्नि देव! इला (वेदी भूमि) के साथ समान प्रीति युक्त होकर और सूर्य को रश्मियों द्वारा यतमान होकर आप सेवा करें। हे जातवेदा! हम लोगों के काष्ठ की सेवा करें। हव्य भोजन करने के लिए देवों का आह्वान कर हव्य वहन करें।[ऋग्वेद 5.4.4]
यजमान :: यज्ञ करने वाला व्यक्ति, ब्राह्मणों से धार्मिक कृत्य कराने वाला व्यक्ति; the host.
Hey Agni Dev! Serve affectionately, accompanying the Sun rays as a host, over the Yagy site. Hey Jat Veda! Serve-consume our wood. Invite the demigods-deities for accepting offerings and carry the offerings-oblations.
जुष्टो दमूना अतिथिर्दुरोण इमं नो यज्ञमुप याहि विद्वान्।
विश्वा अग्ने अभियुजो विहत्या शत्रूयतामा भरा भोजनानि॥
आप पर्याप्त, दान्तमना और घर में आये हुए अतिथि के तुल्य पूज्य होकर हम लोगों के इस यज्ञ में आगमन करें। हे विद्वान् अग्निदेव! आप समस्त शत्रुओं को विनष्ट करें और शत्रुता करने वालों के धन का नाश करें।[ऋग्वेद 5.4.5]
Join our Yagy happily like a worship able guest. Hey intelligent Agni Dev! Destroy all enemies and their wealth-possessions.
वधेन दस्युं प्रहि चातयस्व वयः कृण्वानस्तन्वे ३ स्वायै।
पिपर्षि यत्सहसस्पुत्र देवान्त्सो अग्ने पाहि नृतम वाजे अस्मान्॥
हे अग्नि देव! आप अपने यजमानादि रूप पुत्र को अन्न प्रदान करते हैं और आयुध द्वारा दस्युओं का विनाश करते हैं। हे बल पुत्र! जिस कारण आप देवों को तृप्त करते हैं, उसी कारण से हे नेतृ श्रेष्ठ! आप हम लोगों की संग्राम में रक्षण करें।[ऋग्वेद 5.4.6]
Hey Agni Dev! You grant son and food grains to hosts-Ritviz, priests. Destroy the enemy with arms & ammunition. Hey son of might-power! The reason due to which you satisfy the demigods-deities, protect us in the war as a leader with the same logic.
वयं ते अग्न उक्थैर्विधेम वयं हव्यैः पावक भद्रशोचे।
अस्मे रयिं विश्ववारं समिन्वास्मे विश्वानि द्रविणानि धेहि॥
हे अग्नि देव! हम लोग शास्त्र द्वारा आपकी परिचर्या करेंगे। हम लोग हव्य द्वारा आपकी परिचर्या करेंगे। हे शोधक तथा हे कल्याणकर-दीप्ति विशिष्ट अग्नि देव! आप हम लोगों को सभी के द्वारा वरणीय धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 5.4.7]
Hey Agni Dev! We will serve you with the hymns-Strotr. We will serve you with offerings-oblations. Hey purifier and well wisher Agni Dev, possessing special qualities-traits! Grant us suitable & sufficient wealth.
अस्माकमग्ने अध्वरं जुषस्व सहसः सूनो त्रिषधस्थ हव्यम्।
वयं देवेषु सुकृतः स्याम शर्मणा नस्त्रिवरूथेन पाहि॥
हे बल के पुत्र अग्नि देव! जल, थल और पर्वत इन तीन स्थानों में निवास करने वाले आप हमारे यज्ञ में उपस्थित होकर हविष्यान्न का सेवन करें। हम देवों के लिए अच्छे कर्म करने वाले हों। आप तीनों (कायिक, वाचिक, मानसिक) पापों से हमारी रक्षा करते हुए हमें उत्तम आश्रय स्थान प्रदान कर सुखी करें।[ऋग्वेद 5.4.8]
Hey the son of might-power Agni Dev! The resident-possessor of water, land and mountains, join our Yagy and accept the offerings. We should perform pious, righteous, virtuous sacred deeds for the sake of demigods-deities. Protect us from the sins pertaining to the body, speech and the innerself and grant-comfort us with grant of the excellent place to live-survive.
विश्वानि नो दुर्गहा जातवेदः सिन्धुं न नावा दुरिताति पर्षि।
अग्ने अत्रिवन्नमसा गृणानो ३ स्माकं बोध्यविता तनूनाम्॥
हे जातवेदा! नाविक नौका द्वारा जिस प्रकार से नदी को पार करता है, उसी प्रकार से आप हम लोगों को समस्त दुःसह दुखों से पार करें। हे अग्नि देव! अत्रि के तुल्य हम लोगों के स्तोत्रों द्वारा प्रार्थित होकर आप हम लोगों के शरीर की रक्षा करें।[ऋग्वेद 5.4.9]
Hey Jat Veda Agni Dev! Sail us through the extreme pains-tortures just as a boats man crosses the river. Protect our bodies just like Atri Rishi, on being prayed-worshiped.
यस्त्वा हृदा कीरिणा मन्यमानोऽमर्त्यं मर्त्यो जोहवीमि।
जातवेदो यशो अस्मासु धेहि प्रजाभिरग्ने अमृतत्वमश्याम्॥
हे अग्नि देव! हम मरणशील है और आप अमर है। हम स्तुति युक्त हृदय से स्तवन करके बार-बार आपका आह्वान करते हैं। हे जातवेदा! हम लोगों को सन्तान प्रदान करें। हम जिससे सन्ततियों के अविच्छेद से अमरत्व लाभ प्राप्त कर सकें।[ऋग्वेद 5.4.10]
POSTERITY :: The offspring of one progenitor to the furthest generation, all future generations.Hey Agni Dev! we are mortals and you are immortal. We repeatedly worship-pray you with pure heart and invoke you. He Jat Veda! grant us progeny. We should be able to attain immortality by virtue of our posterity.
यस्मै त्वं सुकृते जातवेद उ लोकमग्ने कृणवः स्योनम्।
अश्विनं स पुत्रिणं वीरवन्तं गोमन्तं रयिं नशते स्वस्ति॥
हे जातवेदा अग्नि देव! आप जिस सुकर्म कृत याजक गण के प्रति सुखकर अनुग्रह करते है, वह याजकगण अश्व युक्त, पुत्र युक्त, वीर्य युक्त और गो युक्त होकर अक्षय धन-लाभ प्राप्त करता है।[ऋग्वेद 5.4.11]
Hey Jat Veda Agni Dev! The Ritviz obliged by you for conducting pious-virtuous deeds attain horses, sons, might-power, cows and imperishable wealth.(17.05.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (5) :: ऋषि :- वसुश्रुत, आत्रेय, देवता :- आप्रीसूक्त, छन्द :- गायत्री।
सुसमिद्धाय शोचिषे घृतं तीव्रं जुहोतन। अग्नये जातवेदसे॥
हे ऋत्विको! जातवेदा, दीप्तिमान् और सुसमिद्ध नामक अग्नि देव के लिए आप प्रभूत घृत से हवन करें।[ऋग्वेद 5.5.1]
प्रभूत :: उत्पन्न, उद्गम; ample, abundant.
Hey Ritviz! Perform Hawan-Yagy for the sake of shinning Jat Veda Agni Dev and fed with him wood with abundant Ghee.
नराशंसः सुषूदतीमं यज्ञमदाभ्यः। कविर्हि मधुहस्त्यः॥
नराशंस नामक अग्नि देव इस यज्ञ को प्रदीप्त करें। वे अहिंसनीय, मेधावी एवं हस्त विशिष्ट हैं।[ऋग्वेद 5.5.2]
Let Agni Dev named Narashans lit the Yagy. He is non violent, intelligent & animated.
ईळितो अग्न आ वहेन्द्रं चित्रमिह प्रियम्। सुखै रथेभिरूतये॥
हे अग्नि देव! आप प्रार्थित है। हम लोगों की रक्षा के लिए विचित्र एवं प्रिय इन्द्र देव को सुखकारी रथ द्वारा आप इस यज्ञ में ले आवें।[ऋग्वेद 5.5.3]
Hey Agni dev! We are requesting you to bring amazing and affectionate Indr Dev along with you, for our safety, in this Yagy, in the comfortable charoite.
ऊर्णप्रदा वि प्रथस्वाभ्य १ र्का अनूषत। भवा नः शुभ्र सातये॥
हे बर्हि! आप कम्बल के तुल्य मृदुभाव से विस्तृत होवें। स्तोता लोग प्रार्थना करते हैं। हे दीप्त! आप हम लोगों के लिए धनप्रद होवें।[ऋग्वेद 5.5.4]
Hey Barhi! Expand-extend like the blanket affectionately. The Stota are conducting prayers. Hey aurous! Grant us wealth.
देवीर्द्वारो वि श्रयध्वं सुप्रायणा न ऊतये। प्रप्र यज्ञं पृणीतन॥
हे सुगमन-साधिका यज्ञद्वार की अभिमानिनी देवियों! आप सब विमुक्त होवें और हम लोगों की रक्षा के लिए यज्ञ को पूर्ण करें।[ऋग्वेद 5.5.5]
Hey easily pleasing goddesses protecting the gates-door! You should be free and complete-accomplish the Yagy for our safety.
सुप्रतीके वयोवृधा यह्वी ऋतस्य मातरा। दोषामुषासमीमहे॥
सुरूपा, अन्न वर्द्धयित्री, महती और यज्ञ या उदक की निर्मात्री रात्रि तथा उषा देवी की हम लोग प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 5.5.6]
We worship beautiful, granting a lot of food grains, promoting the Yagy and producing water, goddesses Night & Usha.
वातस्य पत्मन्नीळिता दैव्या होतारा मनुषः। इमं नो यज्ञमा गतम्॥
हे अग्नि देव और आदित्य रूप दिव्य होताओं! आप दोनों हम मनुष्यों के इस यज्ञ में स्तुति से प्रेरित होकर वायु की गति से पधारें।[ऋग्वेद 5.5.7]
Hey divine hosts-Ritviz, with the characterices-traits of Agni dev & Adity! Both of you attend this Yagy moving-coming with the speed of air.
इळा सरस्वती मही तिस्रो देवीर्मयोभुवः। बर्हिः सीदन्त्वस्त्रिधः॥
इला, सरस्वती और मही नामक तीनों देवियाँ सुख प्रदान करें। वे हिंसा शून्य होकर हम याजक गणों के इस यज्ञ में पधारें।[ऋग्वेद 5.5.8]
Let goddesses Ila, Saraswati and Mahi grant comforts. They should be non violent & join our (Ritviz-hosts) Yagy.
शिवस्त्वष्टरिहा गहि विभुः पोष उत त्मना। यज्ञेयज्ञे न उदव॥
हे त्वष्टा देव! आप सुखकर होकर इस यज्ञ में आगमन करें। आप पोषक रूप से व्याप्त है। सब यज्ञों से आप हम लोगों की उत्कृष्ट रूप से रक्षा करें।[ऋग्वेद 5.5.9]
Hey Twasta Dev! Come to us comfortably in the Yagy. You pervade as a nurturer. Protect us excellently with the grace of all Yagy.
यत्र वेत्थ वनस्पते देवानां गुह्या नामानि। तत्र हव्यानि गामय॥
हे वनस्पति! आप जिस स्थान में देवों के गुप्त स्थानों को जानते हैं, उन स्थानों में हव्यादि पहुँचायें।[ऋग्वेद 5.5.10]
Hey Vegetation-Vanaspati Dev! Carry the oblations-offerings to the secret abodes of the demigods-deities, known to you.
स्वाहाग्नये वरुणाय स्वाहेन्द्राय मरुद्भ्यः। स्वाहा देवेभ्यो हविः॥
यह हव्य अग्नि देव और वरुण देव को स्वाहा रूप से प्रदत्त है, इन्द्र देव और मरुतों को भी स्वाहा रूप से प्रदत्त है तथा देवों को भी स्वाहा रूप से प्रदत्त है।[ऋग्वेद 5.5.11]
स्वाहा :: हविर्दान के समय उच्चारण किया जाने वाला एक शब्द, जो जलकर नष्ट हो गया हो, पूर्णतः विनष्ट; burnt completely.
This offering is meant for Agni Dev, Varun Dev, Indr Dev, Marud Gan and other demigods-deities as Swaha, to be burnt completely.(18.05.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (6) :: ऋषि :- वसुश्रुत, आत्रेय, देवता :- अग्नि, छन्द :- पंक्ति।
अग्निं तं मन्ये यो वसुरस्तं यं यन्ति धेनवः।
अस्तमर्वन्त आशवोऽस्तं नित्यासो वाजिन इषं स्तोतृभ्य आ भर॥
जो निवासप्रद हैं, जो सभी के लिए गृह के तुल्य आश्रय भूत हैं और जिन्हें गौएँ, शीघ्रगामी घोड़े तथा नित्य प्रवृत्त हव्य देने वाले याजकगण प्रसन्न करते हैं, हम उन अग्नि देव की स्तुति करते हैं। हे अग्नि देव! ऐसे याजकों के लिए धन-धान्य प्रदान करें।[ऋग्वेद 5.6.1]
We worship Agni Dev who provide asylum-dwellings, fast moving horses, cows & make offerings to please him. Hey Agni Dev! Grant wealth and eatables to the devotees.
सो अग्निर्यो वसुर्गृणे सं यमायन्ति धेनवः।
समर्वन्तो रघुद्रुवः सुजातासः सूरय इषं स्तोतृभ्य आ भर॥
जो अग्नि देव निवासप्रद रूप से प्रार्थित होते हैं, जिनके निकट गौएँ होमार्थ समागत होती हैं, द्रुतगामी घोड़े समागत होते हैं और सत्कुलोत्पन्न मेधावी भी समागत होते हैं, वे ही अग्निदेव है। हे अग्निदेव! स्तोताओं के लिए धन-धान्य प्रदान करें।[ऋग्वेद 5.6.2]
समागत :: जिसका आगमन हुआ हो, आगत, आया हुआ, प्रत्यावर्तित, वापस आया हुआ।
Agni Dev, who is worshiped by the intelligent people born in honourable families-clan, for granting asylum, cows & high speed horses; should grant wealth & eatables to the worshipers.
अग्निर्हि वाजिनं विशे ददाति विश्वचर्षणिः।
अग्नी राये स्वाभुवं स प्रीतो याति वार्यमिषं स्तोतृभ्य आ भर॥
सभी के कर्मों के दर्शक अग्निदेव यजमानों को अन्न व पुत्र प्रदत्त करते हैं। अग्निदेव प्रसन्न होकर सभी जगह व्याप्त और सभी के द्वारा वरणीय धन देने के लिए आते हैं। हे अग्निदेव! आप स्तोताओं को पर्याप्त पोषण प्रदान करें।[ऋग्वेद 5.6.3]
Agni Dev watches the deeds of every one, grant food grains and sons, pervades every place & grant wealth. Hey Agni Dev! Grant sufficient nourishment to the Stota.
आ ते अग्न इधीमहि द्युमन्तं देवाजरम्।
यद्ध स्या ते पनीयसी समिद्दीदयति द्यवीषं स्तोतृभ्य आ भर॥
हे अग्नि देव! आप दीप्तिमान् और वृद्धावस्था से रहित हैं। आपको हम सर्वतोभाव से प्रदीप्त करते हैं। आपकी वह स्तुति योग्य दीप्ति द्युलोक में दीप्त होती है। हे अग्नि देव! स्तोताओं को आप अन्न से परिपूर्ण करें।[ऋग्वेद 5.6.4]
सर्वतोभाव :: सब प्रकार से, पूर्ण रूप से, अच्छी तरह, भली-भाँति; properly, by all means.
Hey Agni Dev! You are radiant-aurous and free from old age. We lit you properly. Your light spread in the heavens. Grant sufficient food grains to the worshipers.
आ ते अग्न ऋचा हविः शुक्रस्य शोचिषस्पते।
सुश्चन्द्र दस्म विश्पते हव्यवाट् तुभ्यं हूयत इषं स्तोतृभ्य आ भर॥
हे दीप्ति समूह के स्वामी, आह्लादक, शत्रुओं के विनाशक, प्रजापालक और हव्य वाहक अग्निदेव! आप दीप्त है। आपके उद्देश्य से मन्त्रों के साथ हव्य दिया जाता है। हे अग्निदेव! स्तोताओं को ऐश्वर्य प्रदान करें।[ऋग्वेद 5.6.5]
Hey master of the radiance, pleasure-happiness granting, destroyer of the enemy, nurturer of the populace, carrier of the oblations-offerings Agni Dev. You are kindled. Offerings are made to you with the recitation of hymns. Hey Agni Dev! Grant grandeur to the worshipers.
प्रो त्ये अग्नयोऽग्निषु विश्वं पुष्यन्ति वार्यम्।
ते हिन्विरे त इन्विरे त इषण्यन्त्यानुषगिषं स्तोतृभ्य भर॥
ये लौकिकाग्नि गार्हपत्यादि अग्नि में समस्त वरणीय या अपेक्षित धन का पोषण करते हैं। ये प्रीतिदान करते है, ये चारों ओर व्याप्त होते हैं और ये अनवरत अन्न की इच्छा करते है। हे अग्रि देव! स्तोताओं को अभिष्ट अन्नादि से समृद्ध करें।[ऋग्वेद 5.6.6]
The Agni over the earth named Garhpaty etc., cherish, nurture-nourish the desired-cherished wealth. He spread love & affection and pervade all around. He crave for sacrificial food stuff. Hey Agni Dev! Enrich the worshipers-adorers with the desired goods and food grains.
तव त्ये अग्ने अर्चयो महि व्राधन्त वाजिनः।
ये पत्वभिः शफानां व्रजा भुरन्त गोनामिषं स्तोतृभ्य आ भर॥
हे अग्निदेव! आपकी वे रश्मियाँ अत्यन्त अधिक अन्न युक्त होकर वर्द्धित हो। वे रश्मियाँ पतन के द्वारा खुर युक्त गो समूह की इच्छा करें अर्थात् होम की आकांक्षा करें। हे अग्नि देव! स्तोताओं को अन्नादि से पूर्ण करें।[ऋग्वेद 5.6.7]
Hey Agni Dev! Let your rays enrich-grow accompanied by the food grains-offerings. Let the rays fall over the hoofed cows, cattle etc. & the Hawan-Yagy. Hey Agni Dev! Enrich the worshipers with food grains etc.
नवा नो अग्न आ भर स्तोतृभ्यः सुक्षितीरिषः।
ते स्याम य आनृचुस्त्वादूतासो दमेदम इषं स्तोतृभ्य आ भर॥
हे अग्नि देव! हम सब आपके स्तोता हैं। आप हम लोगों को नूतन गृह युक्त अन्न प्रदान करें। हम लोग जिससे आपकी प्रत्येक यज्ञगृह में अर्चना करके आपको दूत रूप से पाकर सुखी हो। हे अग्निदेव! स्तोताओं को अन्नादि से पूर्ण करें।[ऋग्वेद 5.6.8]
Hey Agni Dev! We are your worshipers. Grant-provide us new houses with food grains, so that we pray you in the Yagy house and become comfortable by having you as an ambassador. Hey Agni Dev! Enrich the worshipers with food grains etc.
उभे सुश्चन्द्र सर्पिषो दर्वी श्रीणीष आसनि।
उतो न उत्पुपूर्या उक्थेषु शवसस्पत इषं स्तोतृभ्य आ भर॥
हे आह्लादक अग्रि देव! आप घृत पूर्ण दर्वी द्वय को मुख में ग्रहण करते हैं। हे बल के पालयिता! आप इस यज्ञ में हम लोगों को फल द्वारा पूर्ण करें। हे अग्निदेव! स्तोताओं को अन्नादि से पूर्ण करें।[ऋग्वेद 5.6.9]
Hey granter of happiness and nourished by power-might, Agni Dev! Accept two spoon full of butter in your mouth. Hey Agni Dev! Reward us for the Yagy with food grains etc.
एवाँ अग्निमजुर्यमुर्गीर्भिर्यज्ञेभिरानुषक्।
दधदस्मे सुवीर्यमुत त्यदाश्वश्व्यमिषं स्तोतृभ्य आ भर॥
इस प्रकार से लोग अनुषक्त अग्नि देव के निकट प्रार्थना और यज्ञ के साथ गमन करते हैं और उन्हें स्थापित करते हैं। वे हम लोगों को शोभन पुत्र-पौत्रादि और वेगवान् अश्व प्रदान करें। हे अग्निदेव! स्तोताओं को अन्नादि से पूर्ण करें।[ऋग्वेद 5.6.10]
अनुषक्त :: संबद्ध, संलग्न; attached.
In this manner the populace-devotees worship-pray to Agni Dev, perform Yagy and establish him. Let Agni Dev grant us excellent sons, grandsons and fast moving horses. Hey Agni Dev! Enrich the Stota with food grains etc.(19.05.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (7) :: ऋषि :- इष, आत्रेय, देवता :- अग्नि, छन्द :- अनुष्टुप्, पंक्ति।
सखायः सं वः सम्यञ्चमिषं स्तोमं चाग्नये।
वर्षिष्ठाय क्षितीनामूर्जो नप्त्रे सहस्वते॥
हे मित्र ऋत्विजों! आप याजकगणों के लिए अत्यन्त प्रवृद्ध, बल के पुत्र और बलशाली अग्नि देव के उद्देश्य से अर्चना योग्य अन्न और प्रार्थना प्रदान करें।[ऋग्वेद 5.7.1]
Hey Ritviz! Request-pray to highly developed, grown up, son of might Agni Dev, food grains for the needy.
कुत्रा चिद्यस्य समृतौ रण्वा नरो नृषदने।
अर्हन्तश्चिद्यमिन्धते सञ्जनयन्ति जन्तवः॥
जिन्हें प्राप्त करके ऋत्विक गण प्रीत युक्त होते है, यज्ञ गृह में पूजा करके जिन्हें प्रदीप्त करते हैं एवं जिनके लिए जन्तुओं का उत्पादन करते हैं, वे अग्नि देव कहाँ है?[ऋग्वेद 5.7.2]
The Ritviz affectionately pray, lit & look for Agni Dev, for the evolution of living beings.
सं यदिषो वनामहे सं हव्या मानुषाणाम्।
उत द्युम्नस्य शवस ऋतस्य रश्मिमा ददे॥
जब हम अग्निदेव को अन्न प्रदान करते हैं और जब वे हम मनुष्यों के हव्य की सेवा करते हैं, तब वे द्योतमान अन्न की सामर्थ्य से उदक ग्राहक रश्मि को ग्रहण करते हैं।[ऋग्वेद 5.7.3]
Agni Dev accept the offerings of humans beings through the rays which collect-suck water, by virtue of the food grains as oblation.
स स्मा कृणोति केतुमा नक्तं चिद्दूर आ सते।
पावको यद्वनस्पतीन्प्र स्मा मिनात्यजरः॥
जब पावक और जरा रहित अग्नि देव वनस्पतियों को दग्ध करते हैं, तब वे रात्रि काल में भी दूर स्थित व्यक्ति को प्रज्ञापित करते हैं।[ऋग्वेद 5.7.4]
प्रज्ञापित :: जिसका प्रज्ञापन हुआ हो, जिसे सूचना दी गई हो; intimate, advertised, noticed.
When immortal free from aging Agni Dev, burn the forests-vegetation, people standing-located far away, too notice this.
अव स्म यस्य वेषणे स्वेदं पथिषु जुह्वति।
अभीमह स्वजेन्यं भूमा पृष्ठेव रुरुहुः॥
अग्नि देव की परिचर्या के कार्य में क्षरित घृतों को अध्वर्यु आदि ज्वालाओं के बीच में प्रक्षिप्त करते हैं। पुत्र जिस प्रकार से पिता की गोद में बैठता है, उसी प्रकार से घृत धारा इन अग्नि देव के ऊपर आरोहण करती है।[ऋग्वेद 5.7.5]
The priests pour Ghee into the flames of fire-Agni. The way son occupy the lap of his father, ghee too act like that.
यं मर्त्यः पुरुस्पृहं विदद्विश्वस्य धायसे।
प्र स्वादनं पितूनामस्ततातिं चिदायवे॥
याजक गण अग्नि देव के गुणों को जानते हैं। अग्नि देव अनेकों के द्वारा स्पृहणीय, सभी के धारक अन्नों के आस्वादक और याजक गणों के निवास प्रद हैं।[ऋग्वेद 5.7.6]
स्पृहणीय :: स्पृहा के योग्य, वांछनीय, प्राप्त करने योग्य, चाहने योग्य; enviable, preferable, preferential, desirable.
The priests-Ritviz are aware of the characterices-qualities of Agni Dev. He is desired by all, tastes food grains and grant residence to the hosts-Ritviz.
स हि ष्मा धन्वाक्षितं दाता न दात्या पशुः।
हिरिश्मश्रुः शुचिदन्नृभुरनिभृष्टत विषिः॥
अग्नि देव तृणच्छेदक पशुओं के तुल्य निर्जल एवं तृणकाष्ठ पूर्ण प्रदेश को भस्मि भूत करते हैं। वे सुवर्ण श्मश्रु विशिष्ट, उज्ज्वल दन्त, महान् और अप्रतिहत बल युक्त हैं।[ऋग्वेद 5.7.7]
Agni Dev destroys the straw, places where no one lives and has wood. He has golden beard, shinning teeth and great might-power.
शुचिः ष्म यस्मा अन्रिवत्प्र स्वधितीव रीयते।
सुषूरसूत माता क्राणा यदानशे भगम्॥
जिनके निकट लोग अत्रि के तुल्य गमन करते हैं, जो कुठार के तुल्य वृक्षादि का विनाश करते हैं, वे अग्नि देव दीप्त हैं। जो अन्न ग्रहण करते हैं और जो संसार के उपकारक हैं, माता अरणि ने उन्हीं अग्नि देव का प्रसव किया।[ऋग्वेद 5.7.8]
Agni Dev, who is visited by the people like Atri Rishi, destroys the trees like an axe and is radiant. He is produced by the wood, benefits the world and accept food grains as offerings-oblation.
आ यस्ते सर्पिरासुतेऽग्ने शमस्ति धायसे।
ऐषु द्युम्नमुत श्रव आ चित्तं मर्त्येषु धाः॥
हे हव्य भोजी अग्नि देव! आप सभी के धारक है। हम लोगों की स्तुतियों से आपको सुख प्राप्त होता है। आप स्तोताओं को धन व अन्न प्रदान करते हुए अन्तःकरण से दान करें।[ऋग्वेद 5.7.9]
Hey Agni Dev, eating-accepting offerings! You are the supporter-nurturer of all. You find pleasure in the sacred hymns recited by us for you. Grant wealth, food grains to the Stota-devotees and bless them from your innerself.
इति चिन्मन्युमध्रिजस्त्वादातमा पशुं ददे।
आदग्ने अपृणतोऽत्रिः सासह्याद्दस्यूनिषः सासह्यानॄन्॥
हे अग्नि देव! इसी प्रकार से दूसरों के द्वारा अकृत्य स्तोत्रों के उच्चारणकारी ऋषि आपसे पशु ग्रहण करते हैं। जो अग्नि देव को हव्य दान नहीं करता है, उस दस्यु को अत्रि ऋषि बारम्बार विनष्ट करें और विरोधियों को भी अनेकानेक बार विनष्ट करें।[ऋग्वेद 5.7.10]
Hey Agni Dev! The Rishis accept animals-cattle from you by the recitation of the Strotr which do not pertain to procedures. Let Atri rishi destroy the dacoits-demons and opponents, who do not make offerings in holy fire for Agni Dev.(22.05.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (8) :: ऋषि :- इष, आत्रेय, देवता :- अग्नि, छन्द :- जगती।
त्वामग्न ऋतायवः समीधिरे प्रत्नं प्रलास ऊतये सहस्कृत।
पुरुश्चन्द्रं यजतं विश्वधायसं दमूनसं गृहपतिं वरेण्यम्॥
हे बलकर्ता अग्नि देव! आप पुरातन है। अतः पुरातन यज्ञकारी आश्रय लाभ के लिए आपको भली-भाँति से प्रदीप्त करते हैं। आप अत्यन्त प्रीतिदायक, यागयोग्य, बहु अन्न विशिष्ट, गृहपति और वरणीय है।[ऋग्वेद 5.8.1]
Hey mighty-powerful Agni Dev! You are ancient-eternal. Hence, the ancient Yagy performers lit you properly, for asylum under you. You are affectionate, suitable-fit for the Yagy, possess several food grains, owner of the house and is acceptable.
त्वामग्ने अतिथिं पूर्व्यं विशः शोचिष्केशं गृहपतिं नि षेदिरे।
बृहत्केतुं पुरुरूपं धनस्पृतं सुशर्माणं स्ववसं जरद्विषम्॥
हे अग्नि देव! याजकगणों ने आपको गृहस्वामी के रूप से स्थापित किया। आप अतिथि के समान पूज्यनीय है। आप पुरातन, दीप्त शिखा विशिष्ट, प्रभूत केतु विशिष्ट, बहुरूप, धनदाता, सुखप्रद, सुरक्षक और जीर्णवृक्षों के विनाशक हैं।[ऋग्वेद 5.8.2]
Hey Agni Dev! The Ritviz-priests have established you as the lord of the house. You are adorable-revered like the guest. You are ancient-eternal, possess specific flames, has several shapes-sizes, grantor of ample abundant wealth, comforts, protection and destroyer of old dried trees.
त्वामग्ने मानुषीरीळते विशो होत्राविदं विविचिं रत्नधातमम्।
गुहा सन्तं सुभग विश्वदर्शतं तुविष्वणसं सुयजं घृतश्रियम्॥
हे सुन्दर धन विशिष्ट अग्नि देव! मनुष्यगण आपकी प्रार्थना करते हैं। आप होमविद्, विवेचक, रत्न दाताओं के बीच में श्रेष्ठ, गुहास्थित, सभी के दर्शन योग्य, प्रभूत ध्वनि युक्त यज्ञकारी और घृत ग्राहक हैं।[ऋग्वेद 5.8.3]
Hey possessor of beautiful wealth Agni Dev! Humans worship-pray you. You are a analyser, best amongest the gems-jewels donors, established in the cave, fit to be visible by all, having ample sound, performer-त्वामग्ने धर्णसिं विश्वधा वयं गीर्भिर्गृणन्तो नमसोप सेदिम।
स नो जुषस्व समिधानो अङ्गिरो देवो मर्तस्य यशसा सुदीतिभिः॥
हे अग्नि देव! आप सबको धारण करने वाले हैं। हम लोग बहुत प्रकार के स्तोत्र और नमस्कार द्वारा आपकी स्तुति करके आपके निकट उपस्थित होते हैं। आप हम लोगों को धन प्रदान करके प्रसन्न करें। हे अङ्गिरा के पुत्र अग्नि देव! आप भली-भाँति से प्रदीप्त होकर शिखाओं के साथ हम मनुष्यों को कीर्ति प्रदान करें।[ऋग्वेद 5.8.4]
Hey Agni Dev! you support-nurture every one. We come to you with salutations and recitation of Strotr-sacred hymns. Make us happy by granting us wealth. Angira's son, hey Agni Dev! You should be lit thoroughly with your flames and grant fame-glory to the us-humans.
त्वमग्ने पुरुरूपो विशेविशे वयो दधासि प्रत्नथा पुरुष्टुत।
पुरूण्यन्ना सहसा वि राजसि त्विषिः सा ते तित्विषाणस्य नाधृषे॥
हे अग्नि देव! आप बहुरूप युक्त होकर समस्त याजक गणों को पुराकाल के तुल्य अन्न प्रदान करते हैं। हे बहु स्तुत! आप अपने बल से ही बहुत अन्नों के स्वामी होते हैं। आप दीप्तिमान् हैं। आपकी तेजस्वी दीप्तियों का कोई दमन नहीं कर सकता।[ऋग्वेद 5.8.5]
Hey Agni Dev! You acquire several shapes-forms and provide food grains to the desirous, ever since. Hey worshiped by several! You become the master of several grains by virtue of your might-power. You are glorious-radiant. None can over power your flames-radiance.
त्वामग्ने समिधानं यविष्ठ्य देवा दूतं चक्रिरे हव्यवाहनम्।
उरुज्रयसं घृतयोनिमाहुतं त्वेषं चक्षुर्दधिरे चोदयन्मति॥
हे युवतम अग्नि देव! आप उत्तम प्रकार से प्रदीप्त होने वाले हैं। देवों ने आपको हवि वहन करने वाले दूत के रूप में प्रतिष्ठित किया है। देवों और मनुष्यों ने प्रभूत वेगशाली, घृतयोनि और आहूत अग्निदेव को बुद्धिप्रेरक, दीप्त और चक्षुः स्थानीय बनाकर धारण किया है।[ऋग्वेद 5.8.6]
Hey youngest Agni Dev! You lit in the best manner. The demigods-deities have established as the carrier of offerings-oblations. The demigods-deities & humans have accepted Agni Dev as the accelerated, acceptor of Ghee, revered as the inspirer of intelligence, radiant and locally visible with the eyes.
त्वामग्ने प्रदिव आहुतं घृतैः सुम्नायवः सुषमिधा समीधिरे।
स वावृधान ओषधीभिरुक्षितो ३ भि ज्रयांसि पार्थिवा वि तिष्ठसे॥
हे अग्नि देव! घृत द्वारा आहूत करके पुरातन तथा सुखाभिलाषी याजकगण आपको सुन्दर काष्ठों द्वारा प्रज्ज्वलित करते हैं। आप वर्द्धित होकर औषधियों द्वारा सिक्त होकर और पार्थिव अन्नों को व्यक्त करके अवस्थित करते हैं।[ऋग्वेद 5.8.7]
Hey Agni Dev! On being worshiped with Ghee, the desirous of comforts humans, ignite you in the beautiful pots. You grow, nurture the vegetation and engross the food grains.(23.05.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (9) :: ऋषि :- गय, आत्रेय, देवता :- अग्नि, छन्द :- अनुष्टुप्, पंक्ति।
त्वामग्ने हविष्मन्तो देवं मर्तास ईळते।
मन्ये त्वा जातवेदसं स हव्या वक्ष्यानुषक्॥
हे अग्नि देव! आप दीप्यमान देव है। होम साधक द्रव्यों से युक्त होकर हम आपकी प्रार्थना करते हैं। आप चराचर भूतजात को जानने वाले हैं। हम आपकी प्रार्थना करते हैं। आप हवन साधन हव्य का निरन्तर वहन करते हैं।[ऋग्वेद 5.9.1]
वहन :: धारक, शुद्ध लाभ, प्रभार, परिवहन, ले जाना; affordable, bearing, carry, carriage.
भूतजात :: मृत, दिवंगत, पितृगण; deceased, Manes-Pitres.
Hey Agni Dev! You are an aurous-radiant deity. We worship-pray you, equipped with the material required for the Hawan-Yagy. You know the entire deceased, Manes, Pitre Gan. You always carry the offerings-oblations to the demigods-deities.
अग्निर्होता दास्वतः क्षयस्य वृक्तबर्हिषः।
सं यज्ञासश्चरन्ति यं सं वाजासः श्रवस्यवः॥
समस्त (श्रौत-स्मार्त) यज्ञ जिन अग्नि देव का अनुगमन करते हैं, याजक गण की प्रभूत कीर्ति के सम्पदक हव्य जिन अग्नि देव को प्राप्त करते हैं, वह अग्नि देव हव्य दाता और कुशच्छेदक के गृह में होता रूप से प्रतिष्ठित होते हैं।[ऋग्वेद 5.9.2]
All Yagy-Hawan follow Agni Dev, who is established as the breaker of Kush grass, host for the offerings-oblations in the house of the performer-Ritviz for his progress and glory.
उत स्म यं शिशुं यथा नवं जनिष्टारणी।
धर्तारं मानुषीणां विशामग्निं स्वध्वरम्॥
आहारादि के पाक द्वारा मनुष्यों के पोषक और यज्ञ शोभाकारी अग्नि देव को अरणि द्वय नव शिशु के तुल्य उत्पन्न करते हैं।[ऋग्वेद 5.9.3]
The wooden logs evolve Agni Dev, the nurturer of humans and glorified in the Yagy, as a newly born baby supported by food grains-offerings.
उत स्म दुर्गृभीयसे पुत्रो न ह्वार्यार्णाम्।
पुरू यो दग्धासि वनाग्ने पशुर्न यवसे॥
हे अग्नि देव! कुटिल गति सर्प या वक्र गति अश्व के शिशु के तुल्य आप कष्ट पूर्वक धारित करने के योग्य है। तृण बीच में परित्यक्त पशु जिस प्रकार से तृण भक्षण करता है, उसी प्रकार से आप समग्र वन को भस्म कर देते हैं।[ऋग्वेद 5.9.4]
Hey Agni Dev! You can be born-possessed either like a wicked snake or the horse moving with curved-irregular speed. The way a lost-abandoned animal eats the straw, you burn-destroy the entire forest.
अध स्म यस्यार्चयः सम्यक्संयन्ति धूमिनः।
यदीमह त्रितो दिव्युप ध्मातेव धमति शिशीते ध्मातरी यथा॥
धूमवान अग्नि देव की शिखाएँ शोभन रूप से सभी जगह व्याप्त होती हैं। तीनों स्थानों में व्याप्त अग्नि देव अपनी ज्वाला को स्वयमेव अन्तरिक्ष में उपवर्द्धित करते हैं, जिस प्रकार से अस्त्रादि के द्वारा कर्मकार इन्हें संवर्द्धित करते हैं। ये कर्मकार द्वारा सन्धुक्षित अग्नि देव के तुल्य अपने को तीक्षण करते हैं।[ऋग्वेद 5.9.5]
सन्धुक्षित :: प्रज्वलित या उद्दीप्त किया हुआ; burning, glowing.
Flames of fire possessing smoke spread all around. Agni Dev present in the three abodes :- earth, heaven and the nether world, boost himself in the space-sky. He increase his fierceness-intensity just like the artisan.
तवाहमग्न ऊतिभिर्मित्रस्य च प्रशस्तिभिः।
द्वेषोयुतो न दुरिता तुर्याम मर्त्यानाम्॥
हे अग्रि देव! आप सभी के मित्र स्वरूप है। आपकी रक्षा द्वारा और आपका स्तवन करके हम शत्रु भूत मनुष्यों के पाप साधन कर्मों से दूर हों। आपकी रक्षा और आपके स्तोत्रों (रक्षा कवच) के द्वारा हम बाह्याभ्यन्तर शत्रुओं से दूर हो।[ऋग्वेद 5.9.6]
बाह्याभ्यंतर :: अंदर और बाहर, बाहरी और अंदर, बाह्य और आंतरिक रूप से, प्राणायाम का एक भेद जिसमें भीतर से निकलते हुए श्वास को धीरे धीरे रोकते हैं; inhaling and exhaling air in the lungs during Pranayam-Yog.
Hey Agni Dev! You should be friendly with every one. Protected by you and by worshiping-praying you, we should be away-saved, protected from the sins which are like enemies. We should be distanced with the external-unknown & internal-known enemies, by the recitation of the Protection Strotr.
तं नो अग्ने अभि नरो रयिं सहस्व आ भर।
स क्षेपयत्स पोषयद्भुवद्वाजस्य पृत्सु नो वृधे॥
हे अग्रि देव! आप बलवान् और हव्य वाहक है। आप हम लोगों के निकट प्रसिद्ध धन का आहरण करें। हम लोगों के शत्रुओं को पराभूत करके हम लोगों का पोषण करें। अन्न प्रदान कर युद्ध में हम लोगों के समृद्धि का विधान करें।[ऋग्वेद 5.9.7]
समृद्धि :: सफलता, कुशल, सौभाग्य, श्री, संपन्नता, धन, प्रचुरता, प्रफुल्लता, ख़ुशहाली; prosperity, affluence, flourishing.
Hey Agni Dev! You are mighty carrier of oblations-offerings. Grant us the famous wealth. Defeat our enemies and nourish us. Grant us food grains-stuff and ensure our victory-prosperity in the war-battle.(24.05.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (10) :: ऋषि :- गय, आत्रेय, देवता :- अग्नि, छन्द :- त्रिष्टुप्।
अग्न ओजिष्ठमा भर द्युम्नमस्मभ्यमध्रिगो।
प्र नो राया परीणसा रत्सि वाजाय पन्थाम्॥
हे अग्नि देव! आप हम लोगों के लिए अत्युत्कृष्ट धन प्रदान करें। आपकी अप्रतिहत गति है। आप हम लोगों को सभी जगह व्याप्त धन से युक्त करें और अन्न लाभ के लिए हम लोगों के पथ का निर्माण करें।[ऋग्वेद 5.10.1]
अप्रतिहत :: जिसे कोई रोक न सके, निर्बाध, अप्रभावित, अंकुश; continuous.
Hey Agni Dev! Grant us excellent wealth-riches. Your movements can not be blocked-checked by any one. Pave way for us to have sufficient wealth and food grains.
त्वं नो अग्ने अद्भुत क्रत्वा दक्षस्य महना।
त्वे असूर्य १ मारुहत्काणा मित्रो न यज्ञियः॥
हे अग्नि देव! आप सभी के बीच में आश्चर्यभूत हैं। आप हम लोगों के यज्ञादि कर्मों से प्रसन्न होकर के हम लोगों के लिए बल और धन को प्रदान करें। आपका जल असुरों को विनष्ट करने वाला है। आप सूर्य देव के समान यज्ञ कार्य को सम्पादित करें।[ऋग्वेद 5.10.2]
Hey Agni Dev! You are amazing. Be happy-pleased with us by virtue of deeds like Yagy-Hawan and grant us strength & wealth. Your might is destroying-destructive for the demons. Conduct-organise the Yagy like Sury Dev.
त्वं नो अग्न एषां गयं पुष्टिं च वर्धय।
ये स्तोमेभिः प्र सूरयो नरो मघान्यानशुः॥
हे अग्नि देव! प्रसिद्ध स्तवकारी मनुष्यगण आपकी प्रार्थना करके उत्कृष्ट धन लाभ करते हैं। हम भी आपकी प्रार्थना करते हैं। हम लोगों के लिए आप धन और पुष्टि का वर्द्धन करें।[ऋग्वेद 5.10.3]
Hey Agni Dev! The worshiper-the devout men who have propitiated you, who pray with the Strotr; get-attain excellent wealth-dwelling and prosperity. We too worship you. Give-provide us riches and nourishment.
ये अग्ने चन्द्र ते गिरः शुम्भन्त्यश्वराधसः।
शुष्मेभिः शुष्मिणो नरो दिवश्चिद्येषां बृहत्सुकीर्तिर्बोधति त्मना॥
हे आनन्ददायक अग्नि देव! जो लोग सुन्दर रूप से आपकी प्रार्थना करते हैं, वे अश्व व धन का लाभ करते हैं और वे बलशाली होकर अपने बल से शत्रुओं को विनष्ट करते हैं एवं स्वर्ग से भी बड़ी सुकीर्ति प्राप्त करते हैं। गय ऋषि ने आपको स्वयं जागृत किया है।[ऋग्वेद 5.10.4]
Hey pleasure granting Agni Dev! Those who worship-pray you as a beautiful entity, get horses & wealth, become powerful, defeat their enemy and attain name & fame much greater than the heavens. Gay Rishi invoked-evolved you himself.
तव त्ये अग्ने अर्चयो भ्राजन्तो यन्ति धृष्णुया।
परिज्मानो न विद्युतः स्वानो रथो न वाजयुः॥
हे अग्नि देव! आपकी अत्यन्त प्रगल्भ और दीप्तिमती रश्मियाँ सभी जगह व्याप्त विद्युत् के सदृश, शब्दायमान् रथ के सदृश और अन्नार्थियों के सदृश सभी जगह जाती हैं।[ऋग्वेद 5.10.5]
प्रगल्भ :: चतुर, होशियार, प्रतिभाशाली, संपन्न बुद्धि वाला, उत्साही, साहसी, हिम्मती, समय पर ठीक उत्तर देने वाला, हाजिर जवाब, निर्भय, निडर, बोलने में संकोच न रखने वाला, बकवादी, गंभीर, भरापुरा, प्रधान, मुख्य; profound
Hey Agni Dev! Your brilliant-profound rays reach every place just like electricity, the charoite making sound and the seekers of food grains.
नू नो अग्न ऊतये सबाधसश्च रातये।
अस्माकासश्च सूरयो विश्वा आशास्तरीषणि॥
हे अग्नि देव! आप शीघ्र ही हम लोगों की रक्षा धन प्रदान करके दारिद्रय दुःख का निवारण करें। हमारे पुत्र और मित्र आपकी स्तुतियाँ करके अपने मनोरथ को पूर्ण करें।[ऋग्वेद 5.10.6]
Hey Agni Dev! Grant us wealth quickly to protect us from poverty. Our son and friends worship-pray you with the recitations of hymns-Strotr to get their desires accomplished.
त्वं नो अग्ने अङ्गिरः स्तुतः स्तवान आ भर।
होतर्विभ्वासहं रयिं स्तोतृभ्यः स्तवसे च न उतैधि पृत्सु नो वृधे॥
हे अङ्गिरा! पुरातन महर्षियों ने आपकी प्रार्थना की है और इस समय के महर्षि भी आपकी प्रार्थना कर रहे हैं। धन महान् व्यक्तियों को भी अभिभूत करने वाला है, वह धन हमारे लिए लावें। हे देवों के आह्वानकारी! हम आपकी प्रार्थना करते हैं। आप हमें प्रार्थना करने का सामर्थ्य प्रदान करें एवं युद्ध में हमारी समृद्धि को बढ़ावें।[ऋग्वेद 5.10.7]
Hey Angira! Ancient-eternal Rishis & present the Mahrishis too are worshiping you. The wealth which mesmerise the great rich be awarded to us. Hey invoked by the demigods-deities! We are worshiping you. Grant us strength to pray you and encourage us, increase our prosperity in the war.(26.05.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (11) :: ऋषि :- सुतम्भर, आत्रेय, देवता :- अग्नि, छन्द :- जगती।
जनस्य गोपा अजनिष्ट जागृविरग्निः सुदक्षः सुविताय नव्यसे।
घृतप्रतीको बृहता दिविस्पृशा मद्वि भाति भरतेभ्यः शुचिः॥
लोगों के रक्षक, सदा प्रबुद्ध और सभी के द्वारा श्लाघनीय बल वाले अग्नि देव लोगों के नूतन कल्याण के लिए उत्पन्न हुए हैं। घृत द्वारा प्रज्वलित होने पर तेजोयुक्त और शुद्ध अग्नि देव ऋत्विकों के लिए द्युतिमान् होकर प्रकाशित होते हैं।[ऋग्वेद 5.11.1]
प्रबुद्ध :: चैतन्य, सचेत, जागा हुआ, जाग्रत, ज्ञानी, विद्वान, पंडित; illuminated, enlightened.
Protector of humans, always conscious, mighty Agni dev has evolved for the welfare of humans. Aurous-radiant Agni Dev shines on being fed with Ghee by the Ritviz.
यज्ञस्य केतुं प्रथमं पुरोहितमग्निं नरस्त्रिषधस्थे समीधिरे।
इन्द्रेण देवैः सरथं स बर्हिषि सीदन्नि होता यजथाय सुक्रतुः॥
अग्नि देव यज्ञ के केतु स्वरूप हैं। ये याजकगणों द्वारा पुरस्कृत होते हैं, पुरोभाग में स्थापित होते हैं। अग्नि देव इन्द्रादि देवों के तुल्य हैं। याजकों ने तीन स्थानों में इन्हें प्रज्वलित किया। शोभनकर्मा और देवों के आह्वानकारी अग्नि देव उस कुश युक्त स्थान पर यज्ञ के लिए प्रतिष्ठित होते हैं।[ऋग्वेद 5.11.2]
पुरोभाग :: अगला हिस्सा, अग्रभाग; anterior part.
Agni Dev is the host of Yagy, like the Ketu-dragon tail. He is rewarded by the Ritviz-priests and established in the anterior part of the Yagy site. He is icon to Indr Dev, demigods-deities. The Ritviz kindle him at three places. Doer of virtuous acts-deeds, affectionate of the demigods-deities Agni Dev acquires his Kush seat-Asan in the Yagy.
ICON :: लोकप्रिय, कठिनाई, मूर्ति, चित्र, प्रतिमा, प्रतिरूप, अनुसंकेत, अनुप्रतीक; looks like-identical.
असंमृष्टो जायसे मात्रोः शुचिर्मन्द्रः कविरुदतिष्ठो विवस्वतः।
घृतेन त्वावर्धयन्नग्न आहुत धूमस्ते केतुरभवद्दिवि श्रितः॥
हे अग्नि देव! आप मातृ स्वरूप अरणि द्वय से निर्विघ्न होकर जन्म ग्रहण करते है। आप पवित्र, कवि और मेधावी है। आप यजमानों द्वारा उदित होते है। पूर्व महर्षियों ने घृत द्वारा आपको वर्द्धित किया। हे हव्य वाहक! आपका अन्तरिक्ष व्यापी धूम केतु स्वरूप है; आपका प्रज्ञापक या अनुमापक है।[ऋग्वेद 5.11.3]
कवि :: शायर, चारण, भाट, सूत, सारिका, बन्दी, गवैया; minstrel, poet, bard.
प्रज्ञापक :: सूचित करनेवाला; illustrator, prompter.
Hey Agni Dev! You get birth out of the two wood pieces by rubbing. You are pious, poet, intelligent. You evolved by the Ritviz. Ancient Rishis evolved from Ghee. Hey carrier of offerings-oblations! You smoke engulf the entire space showing your presence.
अग्निर्नो यज्ञमुप वेतु साधुयाग्निं नरो वि भरन्ते गृहेगृहे।
अग्निर्दूतो अभवद्धव्यवाहनोऽग्निं वृणाना वृणते कविक्रतुम्॥
समस्त पुरुषार्थों के साधक अग्नि देव हमारे यज्ञ में आगमन करें। मनुष्य प्रत्येक घर में इन्हें स्थापित करते हैं। हव्य वाहक अग्नि देव देवों के दूत स्वरूप हैं। यज्ञ सम्पादक कहकर लोग अग्नि देव की स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 5.11.4]
Progenitor of all endeavours Agni Dev, join our Yagy. The humans establish him in their homes. He is the carrier of offerings-oblations to demigods-deities, like an ambassador. Humans worship-pray him as the doer-performer of the Yagy.
तुभ्येदमग्ने मधुमत्तमं वचस्तुभ्यं मनीषा इयमस्तु शं हृदे।
त्वां गिरः सिन्धुमिवावनीर्महीरा पृणन्ति शवसा वर्धयन्ति च॥
हे अग्नि देव! आपके उद्देश्य से यह सुमधुर वाक्य प्रयुक्त होता है। यह प्रार्थना आपके हृदय में सुख उत्पन्न करे। महानदियाँ जिस प्रकार से समुद्र को पूर्ण कर सबल करती है, उसी प्रकार से स्तुतियाँ आपको पूर्ण कर सबल करती हैं।[ऋग्वेद 5.11.5]
Hey Agni Dev! This composition is addressed to you. Let this poem-hymn create pleasure in your heart. The manner in which the mighty-great rivers nurture the ocean, let these hymns strengthen you.
त्वामग्ने अङ्गिरसो गुहा हितमन्वविन्दञ्छिश्रियाणं वनेवने।
स जायसे मथ्यमानः सहो महत्त्वामाहुः सहसस्पुत्रमङ्गिरः॥
हे अग्नि देव! आप गुहा बीच में निगूढ़ होकर और वन का आश्रय ग्रहण करके अवस्था करते हैं। अङ्गिराओं ने आपको प्राप्त किया। हे अङ्गिरा! आप विशेष बल के साथ मथित होने पर उत्पन्न होते हैं; इसी कारणवश सब आपको बल पुत्र कहते हैं।[ऋग्वेद 5.11.6]
Hey Agni Dev! You remain inside the caves and grow in the forests. Angiras obtained you. Hey Angira-Agni Dev! You evolve by the application of force in churning the wood and hence you are nick named Bal Putr.(27.05.2023)
ऋषि :-
प्राग्नये बृहते यज्ञियाय ऋतस्य वृष्णे असुराय मन्म।
घृतं न यज्ञ आस्ये ३ सुपूतं गिरं भरे वृषभाय प्रतीचीम्॥
अग्नि देव सामर्थ्यातिशय से महान्, याग योग्य और जलवर्षणकारी, असुर और अभीष्टवर्षी हैं। यज्ञ में इनके मुख के तुल्य हमारी स्तुतियाँ अग्नि देव के लिए प्रीतिकर हों।[ऋग्वेद 5.12.1]
Agni Dev is great, capable & fit for Yagy, causes rains, demonic and accomplish desires. Let our Stuti-prayers be adorable to him, like his mouth in the Yagy.
He becomes demonic, cruel, ruthless when he engulf the material objects & living beings.
ऋतं चिकित्व ऋतमिच्चिकिद्ध्यृतस्य धारा अनु तृन्धि पूर्वीः।
नाहं यातुं सहसा न द्वयेन ऋतं सपाम्यरुषस्य वृष्णः॥
हे अग्नि देव! हम यह प्रार्थना करते हैं, आप इसे जानें एवं इसका अनुमोदन करें तथा प्रचुर जल वृष्टि के लिए अनुकूल होवें। हम बल पूर्वक यज्ञ में विघ्नोत्पादक कार्य नहीं करते और न अवैध वैदिक कार्य में प्रवृत्त होते। आप दीप्तिमान् हैं और कामनाओं के पूरक हैं। हम आपकी ही प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 5.12.2]
Hey Agni Dev! We are worshiping-praying you, recognise-respond to our prayers favourably and cause rains. We neither create trouble in the Yagy forcibly nor inclined to practices against the Veds-traditions. You are aurous-radiant and accomplish the desires. We pray to you.
कया नो अग्न ऋतयन्नृतेन भुवो नवेदा उचथस्य नव्यः।
वेदा मे देव ऋतुपा ऋतूनां नाहं पतिं सनितुरस्य रायः॥
हे जलवर्षणकारी अग्नि देव! आप स्तुति योग्य है। हम लोगों के किस सत्य कार्य द्वारा आप हम लोगों की प्रार्थना को जानने वाले होंगे? ऋभुओं के रक्षा कर्ता और दीप्तिमान् अग्नि देव हमें जाने। हम अग्नि देव सम्भजनकर्ता हैं। अपने पशु आदि धन के स्वामी अग्नि देव को हम नहीं जानते अर्थात् निश्चित रूप से ही जानते है।[ऋग्वेद 5.12.3]
Hey bestower of rains Agni Dev! You deserve worship. Our which truthful acts will please you to respond to (accept-recognise) our prayers. Let the protector of Ribhus, aurous-radiant Agni Dev recognise us. We certainly know-recognise Agni Dev (his might & powers), the protector of cattle & wealth.
के ते अग्ने रिपवे बन्धनासः के पायवः सनिषन्त द्युमन्तः।
के धासिमग्ने अनृतस्य पान्ति क आसतो वचसः सन्ति गोपाः॥
हे अग्नि देव! कौन शत्रुओं का बन्धनकारी है? कौन संसार का रक्षक है? कौन दीप्तिमान् और कौन-कौन दानशील हैं? कौन असत्य धारकों का आश्रयदाता है? अथवा कौन अभिशापादि रूप दुष्ट वचन का उत्साहदाता है? अर्थात् अग्नि देव जैसा कोई पुरुष इस प्रकार का नहीं है।[ऋग्वेद 5.12.4]
दानशीलता :: दान देने की प्रवृति; generosity, tendency to donate-charity.
दुष्ट :: परेशान करने वाला, दूषित, सदोष; wicked, vicious.
Hey Agni Dev! Who tie-trap the enemies? Who is the protector of the universe? Who is radiant-aurous and generous? Who grants asylum to falsehood, encourages the curse and harsh words i.e., no human being is like Agni Dev is of this type.
सखायस्ते विषुणा अग्न एते शिवासः सन्तो अशिवा अभूवन्।
अधूर्षत स्वयमेते वचोभिर्ऋजूयते वृजिनानि ब्रुवन्तः॥
हे अग्नि देव! सभी जगह व्याप्त आपके ये मित्र जन पूर्व में आपकी उपासना के त्याग से असुखी हुए, पश्चात् आपकी आराधना करके फिर सौभाग्यशाली हुए। हम सरल आचरण करते हैं; फिर भी जो हमें असाधुभाव से कुटिलाचारी कहता है, वह हमारा शत्रु स्वयं अपना अनिष्ट करता है।[ऋग्वेद 5.12.5]
Hey Agni Dev! Your friends located all over became uncomfortable, when they stopped your worship, but later when they worshiped you again, they became lucky. We act in a simple manner. Still if a cunning, wicked, vicious become our enemy, he invite trouble for himself.
यस्ते अग्ने नमसा यज्ञमीट्ट ऋतं स पात्यरुषस्य वृष्णः।
तस्य क्षयः पृथुरा साधुरेतु प्रसर्स्त्राणस्य नहुषस्य शेषः॥
हे अग्नि देव! आप दीप्तिमान् और अभीष्ट पूरक हैं। जो हृदय से आपकी प्रार्थना करता है और आपके लिए यज्ञ का सम्यक् रूप से पालन करता है, उस याजकगण का घर विस्तीर्ण होता है। जो भली-भाँति से आपकी परिचर्या करता है। उस मनुष्य को सभी कामनाओं को सिद्ध करनेवाला पुत्र प्राप्त होता है।[ऋग्वेद 5.12.6]
विस्तीर्ण :: फैला हुआ, लंबा-चौड़ा, विशाल, विस्तृत; roomy, spacious, vast.
Hey Agni Dev! You are radiant-aurous and accomplish desires. One who worship you whole heartedly and conform to the Yagy; his house become spacious. One who serve you, is blessed with a son who accomplish all of his desires.(28.05.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (13) :: ऋषि :- सुतम्भर, आत्रेय, देवता :- अग्नि, छन्द :- गायत्री।
अर्चन्तस्त्वा हवामहे ऽर्चन्तः समिधीमहि। अग्ने अर्चन्त ऊतये॥
हे अग्नि देव! हम आपकी पूजा करके आह्वान करते हैं एवं प्रार्थना करके हम लोग अपनी रक्षा के लिए आपको प्रज्वलित करते हैं।[ऋग्वेद 5.13.1]
Hey Agni Dev! We worship-pray, ignite and invoke you for our safety-welfare.
अग्नेः स्तोमं मनामहे सिध्रमद्य दिविस्पृशः। देवस्य द्रविणस्यवः॥
आज हम लोग धनार्थी होकर दीप्तिमान् और आकाश स्पर्शी अग्नि देव की पुरुषार्थ साधक प्रार्थना का उच्चारण करते हैं।[ऋग्वेद 5.13.2]
We desirous of wealth, today perform-recite prayers devoted to radiant-aurous, Agni Dev towering-touching the sky to accomplish our endeavours.
अग्निर्जुषत नो गिरो होता यो मानुषेष्वा। स यक्षद्दैव्यं जनम्॥
जो अग्नि देव मनुष्यों के बीच में अवस्थान करके देवों का आह्वान करते हैं, वे अग्नि देव हम लोगों की स्तुतियों को ग्रहण करें और यज्ञीय हव्य को देवों को पहुचाएँ।[ऋग्वेद 5.13.3]
Agni Dev who invoke demigods-deities sitting amongest the humans, accept our prayers and carry the oblations-offerings to the demigods-deities.
त्वमग्ने सप्रथा असि जुष्टो होता वरेण्यः। त्वया यज्ञं वि तन्वते॥
हे अग्नि देव! आप सर्वदा हर्ष देने वाले हैं। आप होता और लोगों द्वारा वरणीय होकर स्थूल होते हैं। आपको प्राप्त कर याजकगण यज्ञ सम्पादित करते हैं।[ऋग्वेद 5.13.4]
Hey Agni Dev! You always create pleasure-happiness. You accomplish the desires of the hosts and others becoming visible acquiring figure, shape & size. The Ritviz perform-conduct Yagy having assessed you.
त्वामग्ने वाजसातमं विप्रा वर्धन्ति सुष्टुतम्। स नो रास्व सुवीर्यम्॥
हे अग्नि देव! आप अन्नदाता और स्तुति योग्य है। मेधावी स्तोता समुचित स्तुति द्वारा आपको संवर्द्धित करते हैं। आप हम लोगों को तेजस्वी बल प्रदान करें।[ऋग्वेद 5.13.5]
Hey Agni Dev! You grant us food grains and deserve worship. Intelligent Stota-worshipers boost-grow you. Grant us energetic strength, might & power.
अग्ने नेमिरराँ इव देवाँस्त्वं परिभूरसि। आ राधश्चित्रमृञ्जसे॥
हे अग्नि देव! नेमि जिस प्रकार से चक्र के अरों को वेष्टित करती है, उसी प्रकार से आप देवों के सब ओर हैं। आप हम लोगों को विभिन्न प्रकार का धन-धान्य प्रदान करें।[ऋग्वेद 5.13.6]
नेमि :: घेरा, पहिए का ढाँचा; rim.
वेष्टित :: लपेटा हुआ, आच्छादित; ढका हुआ, घेरा हुआ, लपेटा हुआ, रोका हुआ, अवरुद्ध, ऐंठा हुआ; enveloped.
अरे :: spokes.
Hey Agni Dev! The way the rim of the wheel is fixed tightly with the spokes rigidly, you too is attached with the demigods-deities. Grant us all kinds of wealth-riches.(29.05.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (14) :: ऋषि :- सुतम्भर, आत्रेय, देवता :- अग्नि, छन्द :- गायत्री।
अग्निं स्तोमेन बोधय समिधानो अमर्त्यम्। हव्या देवेषु नो दधत्॥
हे यजमान! आप अमर अग्नि देव को उत्तम स्तोत्र द्वारा प्रबोधित करें। इनके प्रदीप्त होने पर वे देवों के समक्ष हम लोगों के लिए हव्य पदार्थों को पहुँचावें।[ऋग्वेद 5.14.1]
प्रदीप्त :: जलता हुआ, जलाया हुआ, प्रकाशित, जगमगाता हुआ, उज्ज्वल, प्रकाशमान, उत्तेजित; alight, ablaze.
Hey Ritviz-host! Ignite-ablaze fire using excellent Strotr. When Agni Dev is radiant-ablaze, he will carry oblations-offerings to demigods-deities.
तमध्वरेष्वीळते देवं मर्ता अमर्त्यम्। यजिष्ठं मानुषे जने॥
मनुष्यगण दीप्तिमान्, अमर और मनुष्यों के बीच में परमाराध्य अग्निदेव की यज्ञस्थल में प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 5.14.2]
Humans worship highly esteemed, radiant, immortal Agni Dev at the Yagy site.
तं हि शश्वन्त ईळते स्रुचा देवं घृतश्श्रुता। अग्निं हव्याय वोळ्हवे॥
यज्ञस्थल में बहुत से स्तोता घृतसिक्त स्रुक के सहित देवों के निकट हव्य वहनार्थ दीप्तिमान् अग्निदेव की प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 5.14.3]
Several Stota-Ritviz make offerings with the Struck lacked-full of Ghee at the Yagy site, requesting Agni Dev to carry the offerings-oblations to the demigods-deities.
अग्निर्जातो अरोचत घ्नन्दस्युञ्ज्योतिषा तमः। अविन्दद्गा अपः स्वः॥
अरणि मन्थन से उत्पन्न अग्नि देव अपने तेज प्रभाव से अन्धकार को और यज्ञ विघातक राक्षसों को विनष्ट कर प्रदीप्त होते हैं। गौ, अग्नि और सूर्य, अग्नि देव से ही उत्पन्न हुए हैं।[ऋग्वेद 5.14.4]
Agni Dev, who evolve by rubbing the two wood pieces, remove darkness and destroy the demons who create hindrances in the Yagy. Cows, fire and Sun have evolved out of Agni Dev.
अग्निमीळेन्यं कविं घृतपृष्ठं सपर्यत। वेतु मे शृणवद्धवम्॥
हे मनुष्यों! आप उस ज्ञानी और आराध्य अग्नि देव की पूजा करें, जो ऊर्ध्वभाग में घृताहुति द्वारा प्रदीप्त होते हैं। ये हमारे इस आह्वान को सुनें और जानें।[ऋग्वेद 5.14.5]
Hey humans! Worship enlightened deity Agni Dev, who evolve in the front by making offerings of Ghee. Let him listen to our prayers and respond to them.
अग्निं घृतेन वावृधुः स्तोमेभिर्विश्वचर्षणिम्। स्वाधीभिर्वचस्युभिः॥
ऋत्विक गण घृत और स्तोम द्वारा स्तुत्यभिलाषी और ध्यान गम्य देवों के साथ सर्वद्रष्टा अग्नि देव को संवर्द्धित करते हैं।[ऋग्वेद 5.14.6]
The Ritviz-hosts boost Agni Dev, who visualise every thing along with the demigods-deities, who desire worship-prayers and invoked by concentrating in them.(30.05.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (15) :: ऋषि :- धरुण, आंगिरस, देवता :- अग्नि, छन्द :- त्रिष्टुप्।
प्र वेधसे कवये वेद्याय गिरं भरे यशसे पूर्व्याय।
घृतप्रसत्तो असुरः सुशेवो रायो धर्ता धरुणो वस्वो अग्निः॥
हवि स्वरूप घृत से अग्नि देव प्रसन्न होते हैं। वे बलवान्, सुख स्वरूप, धन के अधिपति, हविवार्हक गृहदाता, विधाता, क्रान्तदर्शी, स्तुति योग्य, यशस्वी और श्रेष्ठ हैं। ऐसे अग्निदेव के लिए हम स्तुतियों की रचना करते हैं।[ऋग्वेद 5.15.1]
Agni Dev become happy with the Ghee as offering. He is Godly, mighty, comfortable, master of riches, grant home-house to one who make offerings, radiant, deserve prayers, glorious-revered and excellent. We compose prayers in the honour of Agni Dev, who possessing such virtues-qualities.
ऋतेन ऋतं धरुणं धारयन्त यज्ञस्य शाके परमे व्योमन्।
दिवो धर्मन्धरुणे सेदुषो नॄञ्जातैरजाताँ अभि ये ननक्षुः॥
जो याजकगण स्वर्ग के धारक, यज्ञस्थल में आसीन, देवों को ऋत्विकों द्वारा प्राप्त करते हैं, वे याजकगण यज्ञधारक, सत्य स्वरूप अग्नि देव को यज्ञ के लिए उत्तम स्थान में अर्थात् उत्तम वेदी पर स्तोत्र द्वारा धारित करते हैं।[ऋग्वेद 5.15.2]
The hosts welcome demigods-deities who support heavens, positioned at the Yagy site. They establish Agni Dev at the best site-Vedi, with the help of Strotr.
अंहोयुवस्तन्वस्तन्वते वि वयो महद्दुष्टरं पूर्व्याय।
स संवतो नवजातस्तुतुर्यात्सिंहं न क्रुद्धमभितः परिष्ठुः॥
जो याजकगण मुख्य अग्नि देव के लिए राक्षसों द्वारा दुष्प्राप्य हवि स्वरूप अन्न प्रदान कर हैं, वे याजकगण निष्पाप कलेवर होते हैं। नवजात अग्नि देव क्रोधित सिंह के तुल्य संगत शत्रुओं को दूर करें। सभी जगह वर्त्तमान शत्रु मुझे छोड़कर दूर में अवस्थिति करें।[ऋग्वेद 5.15.3]
Those hosts-Ritviz who make offerings of food grains for Agni Dev rare for the demons become sinless. Let nascent Agni Dev repel the enemy like an angry lion. Let the current-present enemies settle away from me.
मातेव यद्भरसे पप्रथानो जनञ्जनं धायसे चक्षसे च।
वयोवयो जरसे यद्दधानः परि त्मना विषुरूपो जिगासि॥
सभी जगह प्रख्यात अग्नि देव जननी के तुल्य निखिल जन को धारित करते हैं। धारित करने के लिए और दर्शन देने के लिए सब लोग उनकी प्रार्थना करते हैं। जब वे धार्यमाण होते हैं, तब वे सब अन्न को जीर्ण कर देते हैं। नानारूप होकर ये सर्वभूतजात का परिगमन करते हैं।[ऋग्वेद 5.15.4]
निखिल :: अखिल, संपूर्ण, सारा, समस्त; complete, universal.
धार्यमाण :: धैर्यवान; being held, patience.
सर्वत्र प्रसिद्ध अग्नि सभी मनुष्यों को माता के समान धारण करते हैं। सब लोग धारण एवं दर्शन के निमित्त अग्नि की प्रार्थना करते हैं। धार्यमाण होते समय अग्नि सब अन्नों को पका देते हैं एवं नाना रूप होकर स्वयं सब प्राणियों के समीप जाते हैं।
Famous Agni Dev treat-nurture all human beings as mother, every where. Everyone prays for him for the sake of holding and seeing. At the time of grinding, the he cooks all the grains and in various forms, it goes close to all beings themselves.
Famous every where, Agni Dev support all living beings. Every one seek his support and pray to invoke him. He cooks the food grains on having patience and become close to living beings acquiring various forms.
वाजो नु ते शवसस्पात्वन्तमुरुं दोघं धरुणं देव रायः।
पदं न तायुर्गुहा दधानो महो राये चितयन्नत्रिमस्पः॥
हे द्युतिमान् अग्नि देव! पृथु कामनाओं के पूरक और धनधारक हविर्लक्षण अन्न आपके सम्पूर्ण बल की रक्षा करे। चोर जिस प्रकार से गुफा के बीच में छिपाकर चोरी किए हुए धन की रक्षा करता है, उसी प्रकार आप प्रचुर धन लाभ के लिए उत्तम मार्ग को प्रकाशित करें और अत्रि मुनि को प्रसन्न करें। [ऋग्वेद 5.15.5]
Hey radiant-aurous Agni Dev! Let Prathu accomplishing desires, possessor of riches and food grains for the offerings, protect your strength-might. The way a thief protect the stolen wealth and food grains inside the cave, you too guide the best route for abundant riches and please Atri Muni-sage.(31.05.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (16) :: ऋषि :- पूरु आत्रेय, देवता :- अग्नि, छन्द :- अनुष्टुप्, पंक्ति।
बृहद्वयो हि भानवेऽर्चा देवायाग्नये।
यं मित्रं न प्रशस्तिभिर्मर्तासो दधिरे पुरः॥
याजकगण जिन मित्रभूत अग्नि देव की याजक प्रकृष्ट स्तुतियों द्वारा प्रार्थना करके पुरोभाग में स्थापित करते हैं, उन द्युतिमान् अग्नि देव को महान् हविर्लक्षण अन्न आहुति में दिया जाता है।[ऋग्वेद 5.16.1]
Food grains are offered to friendly radiant Agni Dev, who is worshiped by the Ritviz, hosts, priests in the front-forward section of the Yagy site.
स हि द्युभिर्जनानां होता दक्षस्य बाह्वोः।
वि हव्यमग्निरानुषग्भगो न वारमृण्वति॥
जो अग्नि देव देवों के लिए हव्य वहन करते हैं, जो बाहुबल की प्रार्थना से युक्त हैं, वे अग्नि देव याजकगणों के लिए देवों का आह्वान करते हैं, वे सूर्य के सदृश मनुष्यों को विशेष रूप से वरणीय धन प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 5.16.2]
Agni Dev carries offerings-oblations to the demigods-deities, enabled by the might of worship-prayers and invoke them. He grants riches-wealth to the humans like the Sun.
अस्य स्तोमे मघोनः सख्ये वृद्धशोचिषः।
विश्वा यस्मिन्तुविष्वणि समर्ये शुष्ममादधुः॥
सभी ऋत्विक् हव्य और स्तोत्र द्वारा जिन बहुशब्द विशिष्ट स्वामी अग्नि देव में बल का आधान भली-भाँति से करते हैं, हम लोग उन्हीं प्रवृद्ध तेज वाले और धनवान् अग्नि देव की प्रार्थना करते हैं। हम लोग उनके साथ मैत्री करते हैं।[ऋग्वेद 5.16.3]
आधान :: स्थापन, रखना, ग्रहण, लेना, धारण, प्रयत्न, अग्निहोत्र के लिए अग्नि का स्थापन, गर्भ, गर्भाधान से पहले किया जाने वाला संस्कार, रेहन, बंधक रखना, पात्र; transfusion.
All hosts-Ritviz invoke Agni Dev, infuse might-power in him by virtue of offerings & Strotr-sacred hymns properly. We worship radiant, wealthy Agni Dev. We are friendly with him.
अधा ह्यग्न एषां सुवीर्यस्य महना।
तमिद्यह्वं न रोदसी परि श्रवो बभूवतुः॥
हे अग्नि देव! हम याजकगणों को आप सभी के द्वारा स्पृहणीय बल प्रदान करें। द्यावा-पृथ्वी ने सूर्य के तुल्य श्रवणीय अग्नि देव को परिगृहीत किया।[ऋग्वेद 5.16.4]
स्पृहणीय :: प्राप्त करने योग्य, वांछनीय, स्पृहा के योग्य, चाहने योग्य, ललचाने योग्य, covetable, coveted, enviable, preferable, admirable.
परिगृहीत :: पूरी तरह से ग्रहण करना, धारण करना; accession, received.
Hey Agni Dev! Grant us strength, power & might which is admirable by all. The earth and heavens have invested him with glory like the vast Sun.
नू न एहि वार्यमग्ने गृणान आ भर।
ये वयं ये च सूरयः स्वस्ति धामहे सचोतैधि पृत्सु नो वृधे॥
हे अग्नि देव! हम याजकगण आपकी प्रार्थना करते हैं। आप शीघ्र ही हमारे यज्ञ में पधारें और हमारे लिए वरणीय धन का सम्पादन करें। हम याजकगण स्तोता आपके लिए प्रार्थना करते हैं। हम लोगों को आप युद्ध में रक्षण साधनों से समृद्धि करें।[ऋग्वेद 5.16.5]
Hey Agni Dev! We Ritviz-hosts worship-pray you. Come quickly in our Yagy and arrange-give necessary money for it. Equip you with the means of protection in the battle-war.(31.05.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (17) :: ऋषि :- पूरु आत्रेय, देवता :- अग्नि, छन्द :- अनुष्टुप् पंक्ति।
आ यज्ञैर्देव मर्त्य इत्था तव्यांसमूतये।
अग्निं कृते स्वध्वरे पूरुरीळीतावसे॥
हे देव! ऋत्विक्गण अपने तेज से प्रवृद्ध अग्नि देव को स्तोत्रों द्वारा तृप्त करने के लिए आहूत करते हैं। स्तोतागण यज्ञकाल में रक्षा के लिए अग्निदेव की प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 5.17.1]
Hey Dev! The Ritviz make sacrifices, offerings-oblations to satisfy Agni Dev endowed with lustre for protection, by the recitation of Strotr, when the sacred rites are solemnized.
अस्य हि स्वयशस्तर आसा विधर्मन्मन्यसे।
तं नाकं चित्रशोचिषं मन्द्रं परो मनीषया॥
हे धर्म विशिष्ट स्तोतागण! आपका यश श्रेष्ठ है। आप प्रकृष्ट बुद्धि द्वारा उन्हीं अग्नि देव की वचन से प्रार्थना करें, जो दुःख रहित हैं, जिनका तेज विचित्र है और जो स्तुति योग्य है।[ऋग्वेद 5.17.2]
प्रकृष्ट :: खींचा या निकाला हुआ, उत्तम, श्रेष्ठ, मुख्य, प्रधान, तीव्र, प्रखर तेज; excellent, intensive.
Hey Ritviz performing specific rites! Your fame-glory is excellent. Worship Agni Dev with your excellent, intensive intelligence, who is free from sorrow-pains, whose radiance is amazing and who deserve worship.
अस्य वासा उ अर्चिषा य आयुक्त तुजा गिरा।
दिवो न यस्य रेतसा बृहच्छोचन्त्यर्चयः॥
जो अग्नि देव जगद्रक्षण समर्थ बल से और प्रार्थना से युक्त हैं, जो सूर्य के तुल्य द्युतिमान् हैं, जिनकी प्रभा से संसार व्याप्त है, जिन अग्नि देव की बृहती दीप्ति प्रकाशित होती है, उन्हीं अग्नि देव की प्रभा से आदित्य प्रज्ञावान् होते हैं।
[ऋग्वेद 5.17.3]
प्रज्ञावान :: बुद्धिमान, दूरदर्शी, प्राज्ञ; intelligent, prudent.
Agni Dev who is associated with worship-prayers, is capable of protecting the universe-world, is radiant-aurous like the Sun, whose lustre is pervades the whole universe, makes the Adity-Sun, prudent-intelligent.
अस्य क्रत्वा विचेतसो दस्मस्य वसु रथ आ।
अधा विश्वासु हव्योऽग्निर्विक्षु प्र शस्यते॥
सुन्दर बुद्धि वाले ऋत्विक् दर्शनीय अग्नि देव का यज्ञ करके धन और रथ प्राप्त करते हैं। यज्ञार्थ आहूत होने वाले अग्नि देव उत्पन्न होते ही सम्पूर्ण प्रजाओं द्वारा प्रार्थित होते हैं।[ऋग्वेद 5.17.4]
Ritviz blessed with prudence-intelligence perform Yagy devoted to Agni Dev to seek wealth-riches and charoite. As soon Agni Dev is invoked for the Yagy, by making offerings-oblations, he is worshiped by the masses.
नू न इद्धि वार्यमासा सचन्त सूरयः।
ऊर्जा नपादभिष्टये पाहि शग्धि स्वस्तय उतैधि पृत्सु नो वृधे॥
हे अग्नि देव! हम लोगों को शीघ्र ही वह वरणीय धन प्रदान करें, जिस धन को स्तोता लोग आपकी प्रार्थना करके प्राप्त करते हैं। हे बल पुत्र! हमें अभिलषित अन्न प्रदान करें, हम लोगों की रक्षा करें। हम मंगलकारक पशु आदि की याचना करते हैं। हे अग्नि देव! आप संग्राम में हम लोगों की समृद्धि के लिए सदैव उपस्थित रहें।[ऋग्वेद 5.17.5]
Hey Agni Dev! We should quickly get-attain that wealth for which the Stota worship you. Hey the son of might-power! Grant us desired food grains and protect us. We pray-request you for the auspicious-virtuous cattle. Hey Agni dev! You should always be present with us in the war-battle for our prosperity.(01.06.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (18) :: ऋषि :- पूरु आत्रेय, देवता :- अग्नि, छन्द :- अनुष्टुप्, पंक्ति।
प्रातरग्निः पुरुप्रियो विशः स्तवेतातिथिः।
विश्वानि यो अमर्त्यो हव्या मर्तेषु सायति॥
अग्नि देव बहुप्रिय हैं, याजक गणों के लिए धनदाता हैं और याजक गणों के गृहों में अभिगमन करते हैं। इस प्रकार के अग्नि देव प्रातः काल में प्रार्थित होते हैं। अमरणशील अग्नि देव याजकगणों के बीच में स्थित निखिल हव्य की कामना करते हैं।[ऋग्वेद 5.18.1]
Agni Dev is popular! He grants money to the Ritviz-hosts and visit their homes. He is worshiped in the morning. Immortal Agni Dev desires a comprehensive Yagy, present amongest the Ritviz.
द्विताय मृक्तवाहसे स्वस्य दक्षस्य मंहना।
इन्दुं स धत्त आनुषक्स्तोता चित्ते अमर्त्य॥
हे अग्नि देव! अत्रि पुत्र द्वित ऋषि विशुद्ध हव्य वहन करते हैं, आप उन्हें अपना बल प्रदान करें, क्योंकि वे सब काल में आपके लिए सोमरस का आनयन करते हैं और आपकी प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 5.18.2]
आनयन :: ले आना, लाना, उपनयन संस्कार; fetch.
Hey Agni Dev! Dwit Rishi, son of Atri conduct pure, pious, virtuous, righteous Yagy. Grant him strength since he extract-fetch Somras for you in every season & worship you.
तं वो दीर्घायुशोचिषं गिरा हुवे मघोनाम्।
अरिष्टो येषां रथो व्यश्वदावन्नीयते॥
हे अग्नि देव, हे अश्व दाता ! आप दीर्घगमन दीप्ति वाले है। धनवालों के लिए हम आपका आह्वान, स्तोत्रों द्वारा करते हैं, जिससे उन धनिकों का रथ शत्रुओं द्वारा अहिंसित होकर युद्ध में गमन करे।[ऋग्वेद 5.18.3]
Hey Agni Dev granting horses! You glow for a long time. We invoke you for the rich with the help of Strotr-sacred hymns so that the charoite of the rich is able to move unhurt by the enemies in the war.
चित्रा वा येषु दीधितिरासन्नुक्था पान्ति ये।
स्तीर्णं बर्हिः स्वर्णर श्रवांसि दधिरे परि॥
जिन ऋत्विकों द्वारा नाना प्रकार से यज्ञ विषयक कार्य सम्पादित होता है, जो मुख द्वारा स्तोत्रों की रक्षा करते हैं, उन ऋत्विकों द्वारा याजक गणों के स्वर्ग प्रापक यज्ञ में विस्तीर्ण कुशों के ऊपर अन्न स्थापित करते हैं।[ऋग्वेद 5.18.4]
The Ritviz who perform the activities related with the Yagy and protect it with Strotr, food grains are spread over the broad Kush leading the hosts to heavens.
ये मे पञ्चाशतं ददुरश्वानां सधस्तुति।
द्युमदग्ने महि श्रवो बृहत्कृधि मघोनां नृवदमृत नृणाम्॥
हे अमर अग्नि देव! आपकी प्रार्थना के अनन्तर जो धनदाता मुझे पचास घोड़े प्रदान करता है, आप उन धनवान मनुष्यों को दीप्ति शील परिचारक युक्त महान् अन्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 5.18.5]
Hey Immortal Agni Dev! The rich who grant me 50 horses during the prayers, is provided with the servants and ample food grains.(02.06.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (19) :: ऋषि :- वव्रि आत्रेय, देवता :- अग्नि, छन्द :- गायत्री, अनुष्टुप्, विरारूपा।
अभ्यवस्थाः प्र जायन्ते प्र वव्रेर्वत्रिश्चिकेत। उपस्थेमातुर्वि चष्टे॥
जो अग्नि देव माता पृथ्वी के पास स्थित होकर पदार्थ जात को देखते हैं, वे ही अग्नि देव वव्रि ऋषि की अशोभन दशा को जानें और उनके हव्य को ग्रहण कर उसका अपनोदन करें।[ऋग्वेद 5.19.1]
PATHETIC :: दिल को छूनेवाला, दयनीय, निराश, नाउम्मेद; disappointed, frustrated, hopeless, desperate, despondent, pathetic, heart warming, moving, dying, halcyon, low-spirited.
Agni Dev, who visualize-watch every thing closely over the earth, should be aware of the pathetic state-condition of Vavri Rishi. He should accept the offerings and help him.
जुहुरे वि चितयन्तोऽनिमिषं नृम्णं पान्ति। आ दृळ्हां पुरं विविशुः॥
आपके प्रभाव को जानकर जो लोग यज्ञ के लिए सदा आपका आह्वान करते हैं तथा जो लोग हवि और स्तुतियों के द्वारा आपके बल की रक्षा करते हैं, वे शत्रुओं द्वारा दुर्गम्य पुरी में प्रवेश करते हैं।[ऋग्वेद 5.19.2]
Those who are aware of your impact might-power, invoke you and hold Yagy. Those who protect your power by virtue of offerings-oblations & worship-prayers; enter-penetrate the highly protected cities of the enemies.
आ श्वैत्रेयस्य जन्तवो द्युमद्वर्धन्त कृष्टयः।
निष्कग्रीवो बृहदुक्थ एना मध्वा न वाजयुः॥
महान् स्तोत्रों का उच्चारण करने वाले अन्नाभिलाषी सुवर्णालङ्कार को गले में धारित करने वाले उत्पन्नशील मनुष्य ऋत्विगादि स्तोत्र द्वारा अन्तरिक्षवर्ती वैद्युत अग्रि देव के दीप्तिमान् बल को वर्द्धित करते हैं।[ऋग्वेद 5.19.3]
Progressive humans, reciting great-excellent sacred hymns-Strotr, desirous of food grains wearing gold ornaments-jewels in their neck, boost the power-might of radiant Agni Dev as electric spark-electricity in the space.
प्रियं दुग्धं न काम्यमजामि जाम्योः सचा।
धर्मो न वाजजठरोऽदब्धः शश्वतो दभः॥
पयोमिश्रित हव्य के तुल्य जिन अग्नि देव के जठर में अन्न है, जो स्वयं शत्रुओं द्वारा अहिंसित होकर सदा शत्रुओं के हिंसक हैं, द्यावा-पृथ्वी के सहायभूत वे ही अग्रि देव दुग्ध के तुल्य कमनीय और निर्दोष होकर हमारे स्तोत्र को सुनें।[ऋग्वेद 5.19.4]
Agni Dev who possess food grains in his stomach like offerings mixed with cow products (ghee, milk, curd), remain unharmed by the enemy but is always violent against the enemy, is always ready-willing to help earth & the heavens, should listen to our defectless attractive Strotr.
क्रीळन्नो रश्म आ भुवः सं भस्मना वायुना वेविदानः।
ता अस्य सन्धृषजो न तिग्माः सुसंशिता वक्ष्यो वक्षणेस्थाः॥
हे प्रदीप्त अग्नि देव! आप अपने द्वारा किए गए भस्म से वन में क्रीड़ा करते हैं। प्रेरक वायु द्वारा भली-भाँति से ज्ञायमान होकर आप हमारे अभिमुख होवें। आपकी शत्रु नाशक ज्वालाएँ हम याजक गणों के निकट सुकोमल हो अर्थात् कष्टकारी न हो।[ऋग्वेद 5.19.5]
Hey ignited-lit Agni Dev! You play with the ash of the forests converted to ashes by you. Inspired by Pawan-Vayu Dev you should be directed to us. Your flames should be soft i.e., trouble free towards us.(03.06.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (20) :: ऋषि :- प्रयस्वान् त्रिगण, देवता :- अग्नि, छन्द :- अनुष्टुप्, पंक्ति।
यमग्ने वाजसातम त्वं चिन्मन्यसे रयिम्।
तं नो गीर्भिः श्रवाय्यं देवत्रा पनया युजम्॥
हे अग्नि देव, हे अत्यन्त अन्न प्रद! हम लोगों द्वारा प्रदत्त जो हवि स्वरूप अन्न आप स्वीकार करते हैं, हम लोगों की स्तुतियों के साथ उसी हव्य रूप धन को आप देवों के निकट ले जावें।[ऋग्वेद 5.20.1]
Hey food grains granting Agni Dev! Carry the offerings-oblations made by us in the form of food grains along with the prayers-worship, to the demigods-deities.
ये अग्ने नेरयन्ति ते वृद्धा उग्रस्य शवसः।
अप द्वेषो अप ह्वरोऽन्यव्रतस्य सश्चिरे॥
हे अग्नि देव! जो भी मनुष्य पशु आदि धन से समृद्ध होकर आपको हव्य प्रदान नहीं करता है, वह अन्न या बल से अत्यन्त हीन होता है। जो व्यक्ति वेद से भिन्न अन्य कर्म करता है, वह असुर आपका विरोध भाजन होता है और आपके द्वारा हिंसित होता है।[ऋग्वेद 5.20.2]
Hey Agni Dev! The person who do not make offerings to you, in spite of being blessed with food grains-stuff, cattle, animals & might become too inferior-weak. A demonic person who act against the Ved become your target and is punished-hurt by you.
होतारं त्वा वृणीमहेऽग्ने दक्षस्य साधनम्।
यज्ञेषु पूर्व्यं गिरा प्रयस्वन्तो हवामहे॥
हे अग्नि देव! आप देवों के आह्वानकर्ता और बल के साधयिता है। हम लोग अन्नवान् आपका वरण करते हैं। यज्ञों में हम श्रेष्ठ अग्नि देव की स्तुति करते हैं।
[ऋग्वेद 5.20.3]
साध्यता :: साध्य होने की अवस्था, गुण या भाव, शक्यता, करणीयता, संभावना, रोग आदि को ठीक किए जाने की स्थिति में होना; practicability, feasibility.Hey Agni Dev! You are the one who invoke the demigods-deities and the means of strength-power. We the possessors of food grains, adopt you. We worship-pray excellent Agni Dev in the Yagy.
इत्था यथा त ऊतये सहसावन्दिवेदिवे।
राय ऋताय सुक्रतो गोभिः ष्याम सधमादो वीरैः स्याम सधमादः॥
हे बलवान् अग्नि देव! हम प्रतिदिन जिससे आपकी रक्षा प्राप्त करें, वैसा करें। हे सुक्रतु! हम लोग जिससे धन लाभ कर सकें और यज्ञ कर सकें, वैसा करें। हम लोग जिससे गौओं को प्राप्त करें और वीर पुत्रों को प्राप्त कर सुखी हों, वैसा ही करें।[ऋग्वेद 5.20.4]
सुक्रतु :: सत्कर्म करने वाला, पुण्यशील, अग्नि, शिव, इन्द्र, सूर्य, सोम, वरुण; performer of righteous, pious, virtuous deeds.
Hey mighty-powerful Agni Dev! Act in such a way that we attain your protection-shield. Hey Sukratu-performer of righteous, pious, virtuous deeds! Act in such a way that we are able to perform Yagy, earn money; have cows & get brave sons.(04.06.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (21) :: ऋषि :- सस आत्रेय, देवता :- अग्नि, छन्द :- अनुष्टुप्, पंक्ति।
मनुष्वत्त्वा नि धीमहि मनुष्वत्समिधीमहि।
अग्ने मनुष्वदङ्गिरो देवान्देवयते यज॥
हे अग्नि देव! मनु के तुल्य हम आपको स्थापित और प्रज्ज्वलित करते हैं। हे अङ्गारात्मक अग्नि देव! देवाभिलाषी मनुष्य याजकगणों के लिए आप देवों का यजन करें।[ऋग्वेद 5.21.1]
Hey Agni Dev! We meditate, upon you; like Manu, we kindle you & worship the demigods-deities on behalf of the worshippers, devout as Manu.
Hey Agni Dev! We establish-ignite you like Manu. Hey Agni Dev, a form of Rishi Angira! Invoke the demigods-deities for the humans who wish to worship-pray them.
त्वं हि मानुषे जनेऽग्ने सुप्रीत इध्यसे।
स्रुचस्त्वा यन्त्यानुषक्सुजात सर्पिरासुते॥
हे अग्नि देव! स्तोत्रों द्वारा प्रसन्न होकर आप मनुष्यों के लिए दीप्त होते है। हे सुजात! घृत युक्तान्न, हव्य विशिष्ट पात्र आपको निरन्तर प्राप्त करता है।[ऋग्वेद 5.21.2]
सुजात :: उत्तम कुल में उत्पन्न सुजन्मा, कुलीन, सुंदर; true-born, true-bred.
Hey Agni Dev! We lit-illuminate on being happy with the humans. Hey Sujat (born in glorious family)! The special pot filled with food grains mixed with Ghee, is continuously-regularly offered to you.
त्वां विश्वे सजोषसो देवासो दूतमक्रत।
सपर्यन्तस्त्वा कवे यज्ञेषु देवमीळते॥
हे क्रान्त दर्शी अग्नि देव! प्रसन्न होकर समस्त देवताओं ने आपको दूत बनाया, इसलिए परिचर्या करने वाले याजकगण आपके यज्ञ में देवों को बुलाने के लिए स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 5.21.3]
Hey illuminated-radiant Agni Dev! The demigods-deities appointed you as their ambassador, hence the Ritviz-hosts, pray-worship you for inviting them.
देवं वो देवयज्ययाग्निमीळीत मर्त्यः।
समिद्धः शुक्र दीदिह्यतस्य योनिमासदः ससस्य योनिमासदः॥
हे दीप्ति शील अग्नि देव! मनुष्य लोग देव यज्ञ के लिए आपकी प्रार्थना करते हैं। हवि द्वारा प्रवृद्ध होकर आप दीप्त होवें। आप सत्यभूत सृस ऋषि के स्वर्ग साधन यज्ञस्थल में देवरूप से प्रकट हों।[ऋग्वेद 5.21.4]
Hey radiant Agni Dev! The humans always worship you for the Dev Yagy. On making offerings, you should be illuminated. Invoke at the Yagy site of truthful Srasy Rishi as a deity.(05.06.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (22) :: ऋषि :- विश्वसामा आत्रेय, देवता :- अग्नि, छन्द :- अनुष्टुप्, पंक्ति।
प्र विश्वसामन्नत्रिवदर्चा पावकशोचिषे।
यो अध्वरेष्वीड्यो होता मन्द्रतमो विशि॥
हे विश्वसामा ऋषि! आप अत्रि ऋषि के तुल्य शोधक दीप्ति वाले उन अग्नि देव की अर्चना करें, जो यज्ञ में सब ऋत्विकों द्वारा स्तुत्य हैं, देवों के आह्वाता हैं और जो अत्यन्त स्तवनीय हैं।[ऋग्वेद 5.22.1]
Hey Vishwsama Rishi! Pray-worship Agni Dev, who is radiant like Atri Rishi, revered by all the Ritviz in the Yagy, invoke the demigods-deities and highly esteemed-revered.
न्य१ग्निं जातवेदसं दधाता देवमृत्विजम्।
प्र यज्ञ एत्वानुषगद्या देवव्यच स्तमः॥
हे याजकों! आप सब जातवेदा, द्युतिमान् और यज्ञ कारक अग्नि देव को स्थापित करें, जिससे आज देवों के प्रिय, यज्ञ साधन और हम लोगों के द्वारा दिये गये हव्य को अग्नि देव प्राप्त करें।[ऋग्वेद 5.22.2]
Hey Ritviz-hosts! You should ignite, establish Agni-fire for the Yagy so that Agni Dev dear to the demigods-deities, accomplishing the motive of the Yagy, accepts the offerings.
चिकित्विन्मनसं त्वा देवं मर्तास ऊतये।
वरेणस्य तेऽवस इयानासो अमन्महि॥
हे दीप्तिशील अग्नि देव! आपका हृदय ज्ञान युक्त है। आप हम लोग रक्षा के लिए हमारे निकट उपस्थित होते हैं। हम मनुष्य सम्भजनीय अग्नि देव को तृप्त करने के लिए प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 5.22.3]
Hey radiant-illuminate Agni Dev! You are enlightened. You come to us for protecting us. We humans, worship-pray Agni Dev to satisfy him.
अग्ने चिकिद्ध्य१स्य न इदं वचः सहस्य।
तं त्वा सुशिप्र दम्पते स्तोमैर्वर्धन्त्यत्रयो गीर्भिः शुम्भन्त्यत्रयः॥
हे बल पुत्र अग्नि देव! आप हमारे इस परिचरण स्तवन को जानें। हे सुन्दर हनू नासिका वाले, हे गृहपति! अत्रि के पुत्र स्तोत्रों द्वारा आपको वर्द्धित करते हैं और वचनों द्वारा अलंकृत करते हैं।[ऋग्वेद 5.22.4]
Hey the son of might Agni Dev! Listen-respond to our our prayer. Hey possessor of beautiful chin and nose, Hey Grah Pati! The sons of Atri boost you with Strotr and adore with words.(05.06.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (23) :: ऋषि :- धुम्र विश्वचर्षणि, आत्रेय, देवता :- अग्नि, छन्द :- अनुष्टुप्, पंक्ति।
अग्ने सहन्तमा भर द्युम्नस्य प्रासहा रयिम्।
विश्वा यश्चर्षणीरभ्या ३ सा वाजेषु सासहत्॥
हे अग्नि देव! आप मुझ धुम्र ऋषि के लिए एक बलशाली शत्रु विजेता पुत्र प्रदान करें। जो पुत्र स्तोत्रों से युक्त होकर संग्राम में निखिल शत्रुओं को पराजित करें।[ऋग्वेद 5.23.1]
Hey Agni Dev! Grant me-Dhumr Rishi, a mighty-powerful son who can win the enemy. Let him become protected by the Strotr and defeat-destroy the enemy.
तमग्ने पृतनाषहं रयिं सहस्व आ भर।
त्वं हि सत्यो अद्भुतो दाता वाजस्य गोमतः॥
हे बलवान् अग्नि देव! आप सत्य भूत, अद्भुत और गोयुक्त अन्न के दाता है। आप इस तरह का एक पुत्र प्रदत्त करें, जो सेनाओं का पराजित करने में समर्थ हो।[ऋग्वेद 5.23.2]
Hey mighty Agni Dev! You are truthful, amazing and grant food grains along with cows. Grant me a son who can defeat the enemy armies.
विश्वे हि त्वा सजोषसो जनासो वृक्तबर्हिषः।
होतारं सद्मसु प्रियं व्यन्ति वार्या पुरु॥
हे अग्नि देव! आप देवों के आह्वाता और सभी के प्रियकर है। समान प्रीति वाले और कुशच्छेद करने वाले निखिल ऋत्विक् यज्ञशाला में बहुविध धरणीय धन की याचना करते हैं।[ऋग्वेद 5.23.3]
Hey Agni Dev! You are the invoker of the demigods-deities and dear to every one. We request-pray for the wealth which can be put to various-several uses in the whole Yagy by the Ritviz-hosts, who pierce-clip the Kush grass.
स हि ष्मा विश्वचर्षणिरभिमाति सहो दधे।
अग्न एषु क्षयेष्वा रेवन्नः शुक्र दीदिहि द्युमत्पावक दीदिहि॥
हे अग्नि देव! लोक प्रसिद्ध विश्व चर्षिणि ऋषि शत्रुओं के हिंसक बल को धारित करें। हे द्युतिमान्! आप हमारे घर में धनयुक्त प्रकाश करें। हे पापशोधक अग्निदेव! आप दीप्तियुक्त और यशोयुक्त होकर दीप्यमान् होवें।[ऋग्वेद 5.23.4]
Hey Agni Dev! Let Charshini Rishi famous all over the whole world, bear-block the violent force-strength of the enemy. Hey radiant-aurous! Lit-illuminate our house with wealth. Hey cleanser of sins Agni Dev! You should be illuminated and have fame.(06.06.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (24) :: ऋषि :- बन्धु सुबन्धु, देवता :- अग्नि, छन्द :- द्विपदा, विराट्।
अग्ने त्वं नो अन्तम उत त्राता शिवो भवा वरूथ्यः॥
हे अग्निदेव! आप सम्भजनीय, रक्षक और सुखकर है। आप हमारे निकट पधारें।[ऋग्वेद 5.24.1]
सम्भजनीय :: एक साथ प्रार्थित; to be shared in or enjoyed or liked.
Hey Agni Dev! You are worshiped together, protector and blissful-comfortable. You should be close to us.
वसुरग्निर्वसुश्रवा अच्छा नक्षि द्युमत्तमं रयिं दाः॥
हे गृहदाता और अन्न दाता! आप हम लोगों के प्रति अनुकूल होकर अतिशय दीप्तिशील पशु स्वरूप धन हम लोगों को प्रदान करें।[ऋग्वेद 5.24.2]
Hey provider of house and food grains! You should be favourable to us and grant us extremely radiant-useful cattle and wealth to us.
स नो बोधि श्रुधी हवमुरुष्या णो अघायतः समस्मात्॥
हे अग्नि देव! हम लोगों को आप जानें। हम लोगों के आह्वान को श्रवण करें। समस्त पापाचारियों से हम लोगों की रक्षा करें।[ऋग्वेद 5.24.3]
Hey Agni Dev! Recognise-identify us. Respond to our prayers-invocation. Protect us from all the sinners.
तं त्वा शोचिष्ठ दीदिवः सुम्नाय नूनमीमहे सखिभ्यः॥
हे अपने तेज से प्रदीप्त अग्नि देव! हम लोग सुख के लिए और पुत्र के लिए आपसे याचना करते हैं।[ऋग्वेद 5.24.4]
Brightened with your own aura, hey Agni Dev! We worship-pray, request you for comforts, bliss and sons.(06.06.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (25) :: ऋषि :- वसूयू आत्रेय, देवता :- अग्नि, छन्द :- अनुष्टुप्।
अच्छा वो अग्निमवसे देवं गासि स नो वसुः।
रासत्पुत्र ऋषूणामृतावा पर्षति द्विषः॥
हे वसूयू ऋषियों! रक्षा के लिए आप लोग अग्नि देव का स्तवन करें। अग्निहोत्र के लिए याजक गणों के घर में रहने वाले अग्नि देव हम लोगों की कामना पूर्ण करें। ऋषियों के पुत्र सत्यवान् अग्नि देव हम लोगों की शत्रुओं से रक्षा करें।[ऋग्वेद 5.25.1]
Hey Basusu Rishis! Worship-pray to Agni dev for protection. Let Agni Dev present in the homes of the hosts, fulfil their desires. Let the son of Rishis truthful Agni Dev protect us from the enemies.
स हि सत्यो यं पूर्वे चिद्देवासश्चिद्यमीधिरे।
होतारं मन्द्रजिह्वमित्सुदीतिभिर्विभावसुम्॥
पूर्ववर्ती महर्षियों और देवताओं ने जिन अग्नि देव को प्रज्ज्वलित किया, जो अग्नि देव मोदन जिह्वा, शोभन दीप्ति से युक्त, अतिशय प्रभावान् और देवों के आह्वाता है, वे अग्नि देव सत्य संकल्पों से अटल हैं।[ऋग्वेद 5.25.2]
मोदन :: प्रसन्न होना, बात-चीत, हँसी-मजाक, खेल-तमाशे आदि के द्वारा मन का बहलना तथा चित्त-वृत्तियों का प्रफुल्लित होना, सुगन्ध फैलाना, मोद उत्पन्न करनेवाला, हँसी मज़ाक करना।
Rejoicing-bright-tongued Agni Dev who is ignited-kindled by the ancient Rishis and demigods-deities, brilliant, enlightened and invoker of demigods-deities is firm & determined.
स नो धीती वरिष्ठया श्रेष्ठया च सुमत्या।
अग्ने रायो दिदीहि नः सुवृक्तिभिर्वरेण्य॥
हे स्तुतियों द्वारा स्तूयमान और वरणीय अग्नि देव! आप हम लोगों के अतिशय प्रशस्य और अत्यन्त श्रेष्ठ परिचरणात्मक कर्म से और स्तोत्र से प्रसन्न होकर हम लोगों को धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 5.25.3]
प्रशस्य :: प्रंशसा के योग्य, प्रशंसनीय, श्रेष्ठ, उत्तम; praiseworthy, excellent.
Hey praise worthy, desirable worshiped with Stuti-sacred hymns, Agni Dev! Be happy with our excellent endeavours, serving others, Stuti-Strotr and grant us wealth.
अग्निर्देवेषु राजत्यग्निर्मर्तेष्वाविशन्।
अग्निर्नो हव्यवाहनोऽग्निं धीभिः सपर्यत॥
जो अग्नि देव देवों के बीच में देव रूप से प्रकाशित होते हैं, जो मनुष्यों के बीच आहवनीय रूप से प्रविष्ट होते हैं और जो हम लोगों के यज्ञों में देवता के लिए हव्य वहन करते हैं, हे यजमानों! स्तुतियों द्वारा आप लोग उन अग्नि देव की सेवा करें।[ऋग्वेद 5.25.4]
Agni Dev appear as a demigod amongest the demigods-deities, invoked by the humans, carry offerings to the demigods-deities, in our Yagy. Hey Ritviz, priests, hosts! Serve Agni Dev with the Strotr-prayers.
अग्निस्तुविश्रवस्तमं तुविब्रह्माणमुत्तमम्।
अतूर्तं श्रावयत्पतिं पुत्रं ददाति दाशुषे॥
हविदाता यजमानों को अग्नि देव एक ऐसा पुत्र प्रदान करें, जो बहुविध अन्नों से युक्त, बहुत स्तोत्र वाला उत्तम शत्रुओं द्वारा अहिंसित और अपने कर्म से पिता-पितामह आदि के यश को संसार में प्रख्यात करने वाला हो।[ऋग्वेद 5.25.5]
Let Agni Dev grant such a son to the Ritviz, who should possess various kinds of food grains, recite many Strotr, unharmed by the enemies and bringing good name-good will, glory for his father & forefathers,
अग्निर्ददाति सत्पतिं सासाह यो युधा नृभिः।
अग्निरत्यं रघुष्यदं जेतारमपराजितम्॥
अग्नि देव हम लोगों को उस तरह का पुत्र प्रदान करें, जो सत्य का पालन करने वाला हो और अपने परिजनों के साथ युद्ध में शत्रुओं को पराजित करने वाला हो इसके साथ ही हमें द्रुत वेग वाला और शत्रुओं को जीतने वाला अश्व भी प्रदान करें।[ऋग्वेद 5.25.6]
Let Agni Dev grant us a truthful son, capable of defeating the enemies with friends & relatives, along with a fast running horse.
यद्वाहिष्ठं तदग्नये बृहदर्च विभावसो।
महिषीव त्वद्रयिस्त्वद्वाजा उदीरते॥
जो श्रेष्ठतम स्तोत्र हैं, उससे अग्नि देव के लिए स्तुति की। हे तेजोधन अग्नि देव! हम लोगों को बहुत धन प्रदान करें; क्योंकि आपसे महान् धन उत्पन्न हुए हैं और निखिल अन्न भी आपसे हैं।[ऋग्वेद 5.25.7]
We should worship-pray Agni Dev with best compositions-prayers. Hey radiant Agni Dev! Grant us a lot of wealth since extreme-ultimate wealth has evolved out of you. Give us lots of food grains.
तव द्युमन्तो अर्चयो ग्रावेवोच्यते बृहत्।
उतो ते तन्यतुर्यथा स्वानो अर्त त्मना दिवः॥
हे अग्नि देव! आपकी शिखाएँ दीप्तिमती हैं। आप सोमलता पोषक पाषाण के सदृश महान् कहे जाते हैं। आप द्युतिमान् हैं। आप बादलों की गर्जना के सदृश्य शब्द से युक्त हैं।[ऋग्वेद 5.25.8]
Hey Agni Dev! Your flames are radiant-brilliant. You nourish-nurture Som Lata and termed-considered as strong as a rock. You possess roar like the clouds.
एवाँ अग्निं वसूयवः सहसानं ववन्दिम।
स नो विश्वा अति द्विषः पर्षन्नावेव सुक्रतुः॥
इस प्रकार से हम बलवान् अग्नि देव की प्रार्थना करते हैं। शोभनकर्ता अग्नि देव हम लोगों को समस्त शत्रुओं से उसी प्रकार पार करें, जिस प्रकार से नौका द्वारा नदी पार की जाती है।[ऋग्वेद 5.25.9]
We worship-pray Agni Dev, like this. Agni Dev preforming excellent-glorious deeds should swim-protect us from the enemies just as the river is crossed in a boat.(07.06.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (26) :: ऋषि :- वसूयू आत्रेय, देवता :- अग्नि, विश्वेदेवा, छन्द :- गायत्री।
अग्ने पावक रोचिषा मन्द्रया देव जिह्वया। आ देवान्वक्षि यक्षि च॥
हे शोधक और द्युतिमान् अग्नि देव! आप अपनी दीप्ति से और देवताओं को प्रसन्न करने वाली जिह्वा से यज्ञ में देवताओं को आमन्त्रित करें और उनका यजन करें।[ऋग्वेद 5.26.1]
Hey purifying-cleansing & radiant Agni Dev! Invite-invoke demigods-deities with your brightness and pleasing tongue and organise Yagy for them.
तं त्वा घृतस्नवीमहे चित्रभानो स्वर्दृशम्। देवाँ आ वीतये वह॥
हे घृतोत्पन्न और हे बहुविध रश्मि वाले अग्नि देव! आप सर्वद्रष्टा हैं। हम लोग आपसे याचना करते हैं कि हव्य भक्षण के लिए आप देवों को यहाँ बुलावें।[ऋग्वेद 5.26.2]
Hey Agni Dev evolved by Ghee and possessing several rays! You are aware of every thing. You request-pray you to invite demigods for eating-accepting offerings here.
वीतिहोत्रं त्वा कवे द्युमन्तं समिधीमहि। अग्ने बृहन्तमध्वरे॥
हे ज्ञान सम्पन्न अग्नि देव! आप हव्य-भक्षणशील, दीप्तिमान् और महान् है। हम लोग आपको यज्ञस्थल में प्रज्वलित करते हैं।[ऋग्वेद 5.26.3]
Hey enlightened Agni Dev! You eat the oblations-offerings, radiant-aurous and great. We ignite-invoke at the Yagy site.
अग्ने विश्वेभिरा गहि देवेभिर्हव्यदातये। होतारं त्वा वृणीमहे॥
हे अग्नि देव! सब देवताओं के साथ आप हव्यदाता याजक गण के यज्ञ में उपस्थित होवें । आप देवों के आह्वानकारी हैं। हम लोग आपसे प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 5.26.4]
Hey Agni Dev! You should come to the Yagy of the hosts making offerings, along with the demigods-deities. You are the invoker of demigods-deities. We pray-worship you.
याजकगणाय सुन्वत आग्ने सुवीर्यंवह। देवैरा सत्सि बर्हिषि॥
हे अग्नि देव! अभिषव करने वाले याजकगण को आप शोभन बल प्रदान करें एवं देवों के साथ कुशाओं पर विराजित हों।[ऋग्वेद 5.26.5]
अभिषव :: यज्ञादि के समय किया जाने वाला स्नान, यज्ञ, शराब चुआना, आसवन, काँजी; religious bathing, ablution preparatory to religious rites.
Hey Agni Dev! Grant extreme power-might to the Ritviz who takes bath prior to performing Yagy and occupy the Kush seat-mats along with the demigods-deities.
समिधानः सहस्रजिदग्ने धर्माणि पुष्यसि। देवानां दूत उक्थ्यः॥
हे सहस्रों को जीतने वाले अग्नि देव! हवि द्वारा प्रज्वलित होकर, प्रशस्यमान होकर और देवों के दूत होकर आप हम लोगों के यज्ञकर्म का पोषण करते हैं।[ऋग्वेद 5.26.6]
Hey winner of hundreds, Agni Dev! Ignited by the oblations, admired and being the ambassador of the deities-demigods, you support-nurture the Yagy.
न्य१ग्निं जातवेदसं होत्रवाहं यविष्ठ्यम्। दधाता देवमृत्विजम्॥
हे याजकों! आप लोग अग्नि देव को संस्थापित करें। वे भूतजात को जानने वाले, यज्ञ के प्रापक, युवतम द्युतिमान् और ऋत्विक् हैं।[ऋग्वेद 5.26.7]
Hey Ritviz-hosts! Establish-invoke Agni Dev. He is aware of the past, supporter of the Yagy, youngest, radiant and a Ritviz.
प्र यज्ञ एत्वानुषगद्या देवव्यचस्तमः। स्तृणीत बर्हिरासदे॥
तेजस्वी स्तोताओं द्वारा प्रदत्त हविष्यान्न आज देवताओं के निकट निरन्तर गमन करें। हे ऋत्विक्! आप अग्नि देव के बैठने के लिए कुश बिछावें।[ऋग्वेद 5.26.8]
तेजस्वी :: शानदार, शोभायमान, अजीब, हक्का-बक्का करने वाला, नादकार, तेज़, शीघ्र, कोलाहलमय, उग्र, प्रज्वलित, तीक्ष्ण, उत्सुक, कलहप्रिय majestic, stunning, rattling, fiery, full of aura-brightness.
Let the food grains-offerings made by the majestic Stota, move to the demigods-deities regularly. Hey Ritviz! Spread the Kush mat for seating Agni Dev.
एदं मरुतो अश्विना मित्रः सीदन्तु वरुणः। देवासः सर्वया विशा॥
मरुद्गण, देवभिषक अश्विनीकुमार, सूर्य, वरुण आदि देव अपने परिजनों के साथ कुश पर अधिष्ठित हों।[ऋग्वेद 5.26.9]
Let Marud Gan, Ashwani Kumars, Sun, Varun & other demigods-deities sit over the Kush mat along with their friends & relatives.(09.06.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (27) :: ऋषि :- त्रैवृष्ण, त्र्यरुण, पुरु, कुत्स, अश्वमेध, देवता :- अग्नि, इन्द्राग्री, छन्द :- त्रिष्टुप, अनुष्टुप्।
अनस्वन्ता सत्पतिर्मामहे मे गावा चेतिष्ठो असुरो मघोनः।
त्रैवृष्णो अग्ने दशभिः सहस्त्रैर्वैश्वानर त्र्यरुणश्चिकेत॥
हे मनुष्यों के नेता अग्नि देव! आप साधुओं के पालक, ज्ञान सम्पन्न, बलवान् और धनवान् है। त्रिवृष्ण के पुत्र त्र्यरुण नामक राजर्षि ने शकट संयुत दो वृषभ और दस सहस्र सुवर्ण मुद्राएँ मुझे प्रदान करके ख्याति प्राप्त की अर्थात् उसी दान के कारण सब लोगों ने उन्हें जाना।[ऋग्वेद 5.27.1]
Hey leader of the humans, Agni Dev! You are the nurturer of sages-ascetics, enlightened, mighty-powerful and rich. Trivrashn's son Raj Rishi Trayrun granted me a cart deploying two oxen and ten thousand gold coins, earning great name, fame-glory, the reason due to which public recognised him.
यो मे शता च विंशतिं च गोनां हरी च युक्ता सुधुरा ददाति।
वैश्वानर सुष्टुतो वावृधानोऽग्ने यच्छ त्र्यरुणाय शर्म॥
जिस त्र्यरुण ने मुझे सौ सुवर्ण मुद्राएँ, बीस गौएँ और रथ से युक्त भार वहन करने वाले दो अश्व दिये, हे वैश्वानर अग्निदेव! हम लोगों के द्वारा प्रार्थित होकर और हवि द्वारा वर्द्धमान होकर आप उस त्र्यरुण को सुख प्रदान करें।[ऋग्वेद 5.27.2]
Hey Vaeshwanar Agni Dev! On being requested-worshiped and grown by the offerings by us, grant comforts to Trayvarn who gave me hundred gold coins, twenty cows and a charoite deploying two horses, full of useful commodities..
एवा ते अग्ने सुमतिं चकानो नविष्ठाय नवमं त्रसदस्युः।
यो मे गिरस्तुविजातस्य पूर्वीर्युक्तेनाभि त्र्यरुणो गृणाति॥
हे अग्नि देव! हम बहुत सन्तान वालों की प्रार्थना से प्रसन्न होकर त्र्यरुण ने जैसे हमसे कहा, “यह ग्रहण करें, यह ग्रहण करें"। हे स्तुति योग्य अग्नि देव! उसी प्रकार आपकी प्रार्थना कामना करने वाले त्रसदस्यु ने भी मुझसे प्रार्थना की “यह ग्रहण करें, यह ग्रहण करें"।[ऋग्वेद 5.27.3]
Hey Agni Dev! Trayrun became happy with us, having many children and said "accept this, accept this". Hey Agni Dev deserving worship! On these lines, Trasdasyu too worshiped you & requested me, "accept this, accept this".
यो म इति प्रवोचत्यश्वमेधाय सूरये।
दददृचा सनिं यते ददन्मेधामृतायते॥
हे अग्नि देव! जब कोई भिक्षाभिलाषी आपकी प्रार्थना के साथ, धनदाता राजर्षि अश्वमेघ के निकट जाकर कहता है कि "हमें धन दें", तब वे उस याचक को धन देते हैं। हे अग्नि देव! यज्ञ की इच्छा करने वाले को अश्वमेध यज्ञ करने की बुद्धि प्रदान करें।[ऋग्वेद 5.27.4]
Hey Agni Dev! When someone desirous of alms worship you, goes to Rajrishi and pray him to donate him wealth, then Rajrishi grant him riches. Hey Agni Dev! Inspire one desirous of conducting Yagy to resort to Ashwmedh Yagy.
यस्य मा परुषाः शतमुद्धर्षयन्त्युक्षणः।
अश्वमेधस्य दानाः सोमाइव त्र्याशिरः॥
राजर्षि अश्वमेध द्वारा प्रदत्त अभिलाषाओं के पूरक सौ बैलों ने हमें हर्षित किया। हे अग्निदेव! दही, सत्तू और दूध आदि तीन द्रव्यों के मिश्रित सोम के समान वे बैल आपको आनन्दित करें।[ऋग्वेद 5.27.5]
Hundred oxen granted by Rajrishi Ashwmedh accomplishing desires have filled us with happiness. Hey Agni Dev! Let the bulls please you like Somras, just as the curd, roasted gram & barley and milk etc. pleases you.
इन्द्राग्नी शतदाव्यश्वमेधे सुवीर्यम्।
क्षत्रं धारयतं बृहद्दिवि सूर्यमिवाजरम्॥
हे इन्द्र देव और अग्नि देव! आप दोनों याचकों के लिए अपरिमित धन के दाता राजर्षि अश्वमेध को अन्तरिक्ष स्थित सूर्य की तरह शोभन बल के साथ महान् और अक्षय धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 5.27.6]
Hey Indr Dev & Agni Dev! Both of you grant-bestow upon unlimited wealth to Rajrishi Ashwmedh, like the glorious Sun in the space; for the needy.(11.06.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (28) :: ऋषि :- विश्र्वारात्रेयी, देवता :- अग्नि, छन्द :- जगती आदि।
समिद्धो अग्निर्दिवि शोचिरश्रेत्प्रत्यङ्ङ्गषसमुर्विया वि भाति।
एति प्राची विश्ववारा नमोभिर्देवाँ ईळाना हविषा घृताची॥
सम्यक् प्रकार से दीप्त अग्नि देव द्युतिमान् अन्तरिक्ष में तेज को प्रकाशित करते हैं और उषा के अभिमुख विस्तृत होकर विशेष शोभा पाते हैं। इन्द्रादि देवताओं का स्तवन करती हुई और पुरोडाश आदि से युक्त स्रुक को लेकर विश्व धारा पूर्व की ओर मुँह करके अग्नि देव के अभिमुख गमन करती है।[ऋग्वेद 5.28.1]
Properly lit Agni Dev fill the space with his aura and is glorified facing Usha-dawn. Vishw Dhara moves to east facing Agni Dev, praying Indr Dev & other demigods-deities, possessing Purodas in the Struk.
समिध्यमानो अमृतस्य राजसि हविष्कृण्वन्तं सचसे स्वस्तये।
विश्वं स धत्ते द्रविणं यमिन्वस्यातिथ्यमग्ने नि च धत्त इत्पुरः॥
हे अग्नि देव! आप भली-भाँति से प्रज्वलित होकर उदक के ऊपर प्रभुत्व करते हैं और हव्यदाता याजकगण द्वारा मङ्गलार्थ सेवित होते है। आप जिस याजकगण के निकट गमन करते हैं, वह पशु आदि समस्त धन को धारित करता है। हे अग्नि देव! आपके आतिथ्य योग्य हव्य को वह याजकगण आपके सम्मुख स्थापित करता है।[ऋग्वेद 5.28.2]
Hey Agni Dev! You ignite-glow properly, command water & served by the Ritviz-host making offerings for his welfare. The host in your proximity attain cattle-animals and wealth. Hey Agni Dev! The host place the offerings-oblations suitable to welcome you, in front of you.
अग्ने शर्ध महते सौभगाय तव द्युम्नान्युत्तमानि सन्तु।
सं जास्पत्यं सुयममा कृणुष्व शत्रूयतामभि तिष्ठा महांसि॥
हे अग्नि देव! आप हम लोगों के प्रभूत ऐश्वर्य के लिए और शोभन धन के लिए शत्रुओं का दमन करें। आपका धन या तेज उत्कृष्ट हों। हे अग्नि देव! आप दाम्पत्य कार्य को अच्छी तरह से सुनियमित करें और शत्रुओं के तेज को नष्ट करें।[ऋग्वेद 5.28.3]
Hey Agni Dev! Destroy the enemy for our grandeur and excellent wealth. Your aura and riches are excellent. Hey Agni dev! Ensure & regularise the married life, destroy the power-might of the enemy.
समिद्धस्य प्रमहसोऽग्ने वन्दे तव श्रियम्।
वृषभो द्युम्नवाँ असि समध्वरेष्विध्यसे॥
हे अग्नि देव! जब आप प्रज्वलित और दीप्तिमान् होते हैं, तब हम याजकगण आपकी दीप्ति का स्तवन करते हैं। आप कामनाओं के पूरक, धनवान् और यज्ञस्थल में भली-भाँति से दीप्त होते हैं।[ऋग्वेद 5.28.4]
Hey Agni Dev! We worship your aura-glow when you are lit. You accomplish desires, wealthy and glow properly at the Yagy site.
समिद्धो अग्न आहुत देवान्यक्षि स्वध्वर। त्वं हि हव्यवाळसि॥
हे अग्नि देव! याजकगणों द्वारा आहूत, शोभन यज्ञ वाले, भली-भाँति से दीप्त होकर आप इन्द्रादि देवों का यजन करें; क्योंकि आप हव्य का वहन करते हैं।[ऋग्वेद 5.28.5]
Hey Agni Dev! Worshiped by the Ritviz-priests in the Yagy, glow properly, pray to the demigods-deities since you support the Yagy.
आ जुहोता दुवस्यताग्निं प्रयत्यध्वरे। वृणीध्वं हव्यवाहनम्॥
हे ऋत्विक्! आप लोग हमारे यज्ञ में प्रवृत्त होकर हव्य वाहक अग्नि में हवन करें और उनका परिचरण तथा सम्भजन-स्वीकार करें एवं देवताओं के निकट हव्यवहनार्थ उनका वरण करें।[ऋग्वेद 5.28.6]
Hey Ritviz! You should be engaged in the Yagy and conduct Hawan in the fire, regulate it, accept Agni Dev for making offerings to the demigods-deities.(12.06.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (29) :: ऋषि :- गौरिवीति शाक्त्य, देवता :- इन्द्र या उशना, छन्द :- त्रिष्टुप्।
त्र्यर्यमा मनुषो देवताता त्री रोचना दिव्या धारयन्त।
अर्चन्ति त्वा मरुतः पूतदक्षास्त्वमेषामृषिरिन्द्रासि धीरः॥
हे इन्द्र देव! मनु यज्ञ में जो तीन गुण हैं तथा अन्तरिक्ष में उत्पन्न होने वाले जो रोचमाम वायु, अग्नि और सूर्यात्मक तेज हैं, उनको मरुतों ने धारित किया है। शुद्ध बल वाले मरुद्गण आपकी प्रार्थना करते हैं। आप बुद्धिमान् हैं, इन मरुतों को देखें।[ऋग्वेद 5.29.1]
Hey Indr Dev! Marud Gan have supported the three characterices-qualities, traits in the Yagy performed by Manu and the energy-radiance, aura generated in the space i.e., Rochmam Vayu, Agni and the Sun. Marud Gan having pure power worship you. You are intelligent, look at Marud Gan.
अनु यदी मरुतो मन्दसानमार्चन्निन्द्रं पपिवांसं सुतस्य।
आदत्त वज्रमभि यदहिं हन्नपो यह्वीरसृजत्सर्तवा उ॥
जब मरुतों ने अभिषुत सोमरस के पान से तृप्त इन्द्र देव की प्रार्थना की तब इन्द्र देव ने वज्र धारित किया और वृत्रासुर को मारा एवं वृत्र निरुद्ध महान् जल-राशि को स्वेच्छानुसार से बहने के लिए मुक्त किया।[ऋग्वेद 5.29.2]
When Marud Gan satisfied Indr Dev by offering him extracted Somras and prayed-requested him, he wore Vajr, killed Vrata Sur and allowed the stored-blocked water to flow freely.
उत ब्रह्माणो मरुतो मे अस्येन्द्रः सोमस्य सुषुतस्य पेयाः।
तद्धि हव्यं मनुषे गा अविन्ददहन्नहिं पपिवाँ इन्द्रो अस्य॥
हे बृहत् मरुतों! आप सब और इन्द्रादि सहित भली-भाँति से हमारे इस अभिषुत सोमरस का पान करें। आप लोगों के द्वारा यह सोमात्मक हव्य पिया जावे, जिससे यजमान गौओं को प्राप्त करें। इसी सोमरस को पीकर इन्द्र देव ने वृत्रासुर का वध किया।[ऋग्वेद 5.29.3]
बृहत् :: बहुत बड़ा, विशाल, बहुत भारी, दृढ़, पक्का, मजबूत, बलिष्ठ, पर्याप्त, उच्च, ऊँचा स्वर, एक मरुत् का नाम, पैघ, विशाल; large, comprehensive.
Hey mighty Marud Gan! Drink this Somras extracted by us along with Dev Raj Indr & others and grant cows to the Ritviz-priests. Indr Dev killed Vrata Sur after drinking Somras.
आद्रोदसी वितरं वि ष्कभायत्संविव्यानश्चिद्भियसे मृगं कः।
जिगर्तिमिन्द्रो अपजर्गुराणः प्रति श्वसन्तमव दानवं हन्॥
सोमपान के अनन्तर इन्द्र देव ने द्यावा-पृथ्वी को निश्चल किया। गमनशील होकर इन्होंने मृगवत् पलायमान वृत्रासुर को भयभीत किया। दनु पुत्र (वृत्र) छिप रहा था और भय से श्वास ले रहा था। इन्द्र देव ने उसके प्रपंच को नष्ट करके उसका वध किया।[ऋग्वेद 5.29.4]
भयभीत :: शंकित, भयानक, भयावह, भयंकर; frightened, fearful, afraid.
प्रपंच :: माया, भ्रांति, मोह, ग़लतफ़हमी, भुलावा; delusion, illusion, illusory creation, mundane affairs, cast, spell.
After drinking Somras, Indr Dev made earth and the heavens stationary became dynamic frightened Vrata Sur, made him run like a dear. Indr Dev destroyed the cast-spell, illusion and killed him.
अध क्रत्वा मघवन्तुभ्यं देवा अनु विश्वे अददुः सोमपेयम्।
यत्सूर्यस्य हरितः पतन्तीः पुरः सतीरुपरा एतशे कः॥
हे धनवान् इन्द्र देव! आपके इस कर्म से वह्नि आदि निखिल देवताओं ने आपके अनुक्रम से सोमरस पान के लिए दिया। आपने एतश के लिए सम्मुखवर्ती सूर्य के अश्वों का गतिरोध किया।[ऋग्वेद 5.29.5]
एतश :: शानदार, चमकदार, wonderful, shinning.
Hey rich Indr Dev! Having accomplished this deed, Vahni and all other demigods-deities sipped Somras, in their order-sequence. For performing this wonderful act you blocked the horses of Sury Dev-Sun.
नव यदस्य नवतिं च भोगान्त्साकं वज्रेण मघवा विवृश्चत्।
अर्चन्तीन्द्रं मरुतः सधस्थे त्रैष्टुभेन वचसा बाधत द्याम्॥
जब धनवान् इन्द्र देव ने वज्र द्वारा शम्बर के निन्यान्बे नगरों को एक साथ ही विनष्ट किया, तब मरुतों ने युद्ध भूमि में इनकी स्तुति त्रिष्टुप् छन्द में की। इस तरह से मरुतों के मन्त्रों द्वारा प्रार्थित होने पर दीप्त इन्द्र देव ने शम्बर असुर का वध किया।[ऋग्वेद 5.29.6]
When mighty-powerful Indr Dev destroyed the 99 cities-fortress of Shambar with Vajr all together, Marud Gan prayed him with the recitation of Trishtup Chhand. On been worshiped by the Mantr recited by Marud Gan aurous Indr Dev killed the demon Shambar.
सखा सख्ये अपचत्तूयमग्निरस्य क्रत्वा महिषा त्री शतानि।
त्री साकमिन्द्रो मनुषः सरांसि सुतं पिबद्वृत्रहत्याय सोमम्॥
इन्द्र देव के मित्र रूप अग्नि देव ने मित्र इन्द्र देव के कार्य के लिए सौ महिषों को शीघ्र पकाया। परमैश्वर्य युक्तं इन्द्र देव ने वृत्रासुर को मारने के लिए मनु सम्बन्धी तीन पात्रों में स्थित सोमरस को एक काल में ही पिया।[ऋग्वेद 5.29.7]
Friendly Agni Dev roasted 100 buffalos to get the endeavour of Indr Dev accomplished. Indr Dev having ultimate grandeur consumed-drunk the Somras in the three pots related with Manu in one go.
त्री यच्छता महिषाणामघो मास्त्री सरांसि मघवा सोम्यापाः।
कारं न विश्वे अह्वन्त देवा भरमिन्द्राय यदहिं जघान॥
हे इन्द्र देव! जब आपने तीन सौ महिषों के माँस का भक्षण किया, धनवान् होकर जब आपने तीन पात्रों में स्थित सोमरस का पान किया, जब आपने वृत्र का वध किया, तब सब देवताओं ने युद्ध के लिए सोमपान से पूर्ण इन्द्र देव का आह्वान किया।[ऋग्वेद 5.29.8]
Hey Indr Dev! You enriched & ate the meat of 300 buffalos, drunk the Somras kept in 3 pots, thereafter you killed Vratr, then the demigods-deities invoked you for the war.
उशना यत्सहस्यै ३ रयातं गृहमिन्द्र जूजुवानेभिरश्वैः।
वन्वानो अत्र सरथं यया कुत्सेन देवैरवनोर्ह शुष्णम्॥
हे इन्द्र देव! आप और कवि जब अभिभवन शील एवं द्रुतगामी अश्वों के साथ कुत्स के घर में उपस्थित हुए, तब आपने शत्रुओं को हिंसित करके कुत्स और देवताओं के साथ एक ही रथ पर आरूढ़ हुए। हे इन्द्र देव! शुष्ण नामक असुर का वध आपने ही किया।[ऋग्वेद 5.29.9]
अभिभवन :: काबू में करना; Overpowering, over coming.
Hey Indr Dev! When you and Kavi reached house of Kuts riding fast moving, riding the horses capable of over powering, you destroyed the enemy and rode the charoite along with Kuts & demigods-deities. Hey Indr Dev! You killed the
प्रान्यच्चक्रमवृहः सूर्यस्य कुत्सायान्यद्वरिवो यातवेऽकः।
अनासो दस्यूँरमृणो वधेन नि दुर्योण आवृणङ्मृध्रवाचः॥
हे इन्द्र देव! पहले ही आपने सूर्य के दो चक्कों में से एक चक्के को पृथक किया एवं दूसरे एक चक्के को आपने शब्द रहित असुरों को हत बुद्धि करके वज्र द्वारा संग्राम में मारा।[ऋग्वेद 5.29.10]
Hey Indr Dev! You detached one wheel of the charoite of Sun and stunned-speechless the demons by the second wheel killing them in the war with Vajr.
स्तोमासस्त्वा गौरिवीतेरवर्धन्नरन्धयो वैदथिनाय पिप्रुम्।
आ त्वामृजिश्वा सख्याय चक्रे पचन्पक्तीरपिबः सोममस्य॥
हे इन्द्र देव! गौरिवीति ऋषि के स्तोत्र आपको प्रवर्द्धित करें। आपने विदथि पुत्र ऋजिश्वा के लिए पिप्रु नामक असुर को मारा। ऋजिश्वा नाम वाले किसी ऋषि ने आपकी मित्रता के लिए पुरोडाश आदि को पकाकर आपको निवेदित किया। आपने ऋजिश्वा के सोमरस का पान किया।[ऋग्वेद 5.29.11]
प्रवर्द्धित :: amplify, prolong.
Hey Indr Dev! Let the Strotr-sacred hymns of Rishi Gouriviti amplify, prolong you. You killed the demon Pipu for the sake of Vidathi's son Rijishwa. Rijishwa cooked barley cakes for you and offered them to you. You drunk-enjoyed Somras offered by Rijishwa.नवग्वासः सुतसोमास इन्द्रं दशग्वासो अभ्यर्चन्त्यकैः।
गव्यं चिदूर्वमपिधानवन्तं तं चिन्नरः शशमाना अप व्रन्॥
नौ महीनों में समाप्त होने वाले और दस महीनों में समाप्त होने वाले यज्ञ को करने वाले अङ्गिरा लोग सोमाभिषव करके अर्चनीय स्तोत्रों द्वारा इन्द्र देव की प्रार्थना करते हैं। प्रार्थना करने वाले अङ्गिरा लोगों ने असुरों द्वारा आच्छादित गौ-समूह को मुक्त कर दिया।[ऋग्वेद 5.29.12]
Angiras accomplish the Yagy in a span of 9-10 months, worshiped Indr Dev with sacred hymns and extracted Somras. Worshiping Angiras freed the cows abducted-captivated by the demons.
CAPTIVATED :: मोहित, बंदी बनाना, मोह लेना, आकर्षण करना; capture, glamor, ravish, glamour, spellbind, fascinate, cast a spell.
कथो नु ते परि चराणि विद्वान्वीर्या मघवन्या चकर्थ।
या चो नु नव्या कृणवः शविष्ठ प्रेदु ता ते विदथेषु ब्रवाम॥
हे धनवान् इन्द्र देव! आपने जिस पराक्रम को प्रकट किया, हम उसको जानते हुए भी किस प्रकार से आपके लिए प्रकट करें कैसे स्तवन करें? हे बलवान् इन्द्र देव! आप जिस नूतन पराक्रम को प्रकट करेंगे, हम अपने यज्ञ में आपके उस पराक्रम का वर्णन करेंगे।[ऋग्वेद 5.29.13]
Hey rich Indr Dev! We are aware of your valour-bravery. How can we express our gratitude and worship you? Hey mighty-powerful Indr Dev! We will describe your valour-bravery in our Yagy.
एता विश्वा चकृवाँ इन्द्र भूर्यपरीतो जनुषा वीर्येण।
या चिन्नु वज्रिन्कृणवो दधृष्वान्न ते वर्ता तविष्या अस्ति तस्याः॥
हे इन्द्र देव! आप शत्रुओं द्वारा दुर्द्धर्ष्य हैं। आपने अपने प्रकृत बल से प्रत्यक्ष दृश्यमान सम्पूर्ण भुवनों को निर्मित किया। हे वज्र धर! शत्रुओं को शीघ्र ही विनष्ट करते हुए जो कुछ भी करते हैं, आपके उस बल या कर्म का निवारण कोई भी नहीं कर सकता।[ऋग्वेद 5.29.14]
दुर्द्धर्ष :: जिसका दमन करना कठिन हो। जिसे जल्दी दबाया या वश में न किया जा सके, जिसे परास्त करना या हराना कठिन हो, प्रचंड। प्रबल, धृतराष्ट्र के एक पुत्र का नाम, रावण की सेना का एक राक्षस
Hey Indr Dev! You can not be over powered by the demons. You created the visible abodes by your power. Hey Vajr wielding Indr Dev! Your endeavour to destroy the enemy is unmatched beyond their limits.
इन्द्र ब्रह्म क्रियमाणा जुषस्व या ते शविष्ठ नव्या अकर्म।
वस्त्रेव भद्रा सुकृता वसूयू रथं न धीरः स्वपा अतक्षम्॥
हे अतिशय बलवान् इन्द्र देव! हम लोगों ने आज आपके लिए जिन नूतन स्तोत्रों की रचना की, हम लोगों द्वारा विहित उन सकल स्तोत्रों को आप ग्रहण करें। हम धीमान्, शोभन कर्म करने वाले और धनाभिलाषी हैं। इन भजनीय स्तोत्रों को हम वस्त्र और रथ तुल्य आपको अर्पण करते हैं।[ऋग्वेद 5.29.15]
धीमान् :: बुद्धिमान्, प्रज्ञावान्; slowly, steady.
Hey extremely powerful Indr Dev! Accept the new compositions-hymns, Strotr by us. We are intelligent, prudent devoted to virtuous-pious deeds, desire wealth. We offer-present these worship able Strotr to you like cloths & chariots.(15.06.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (30) :: ऋषि :- बभ्रु आत्रेय, देवता :- इन्द्र ऋर्णचयेन्द्र, छन्द :- त्रिष्टुप्।
क स्य वीरः को अपश्यदिन्द्रं सुखरथमीयमानं हरिभ्याम्।
यो राया वज्री सुतसोममिच्छन्तदोको गन्ता पुरुहूत ऊती॥
हे वज्रधर! बहुतों द्वारा आहूत इन्द्र देव दान योग्य धन के साथ सोमाभिषव करने वाले याजक गण की इच्छा करते हुए रक्षा के लिए याजक गण के घर में जाते हैं। वे पराक्रमी इन्द्र देव कहाँ विद्यमान् हैं? अपने दोनों घोड़ों द्वारा आकृष्ट सुखकर रथ पर जाने वाले इन्द्र देव को किसने देखा है?[ऋग्वेद 5.30.1]
Hey the wielder of Vajr! Worshiped by many, visits the homes of those who extract Somras for their protection, with money for donation. Where is mighty Indr Dev!? Has any one seen Indr Dev riding his comfortable & attractive charoite deploying the two horses?
अवाचचक्षं पदमस्य सस्वरुग्रं निधातुरन्वायमिच्छन्।
अपृच्छमन्याँ उत ते म आहुरिन्द्रं नरो बुबुधाना अशेम॥
हमने इन्द्रदेव के गुह्य और उग्र स्थान को देखा। अन्वेषण करते हुए हम आधारभूत इन्द्र देव के स्थान में गये। हमने अन्य विद्वानों से भी इन्द्र देव के सम्बन्ध में पूछा। पूछे जाने पर यज्ञ के नेता और ज्ञानाभिलाषियों ने हमसे कहा कि हम लोगों ने इन्द्र देव को प्राप्त किया है।[ऋग्वेद 5.30.2]
We have seen the secret and furious-dangerous places of Indr Dev. We reached the base of Indr Dev while making discovery. We enquired other learned-scholars as well. On being enquired the head of the Yagy, the priest and inquisitives told us that we had had-invoked Indr Dev.
प्र नु वयं सुते या ते कृतानीन्द्र ब्रवाम यानि नो जुजोषः।
वेददविद्वाञ्छृणवच्च विद्वान्वहतेऽयं मघवा सर्वसेनः॥
हे इन्द्रदेव! आपने जिन कार्यों को किया है, सोमाभिषव करने पर हम स्तोता उनका वर्णन करते हैं। आपने भी हमारे लिए जिन कर्मों का सेवन किया है, उन कर्मों को इसके पहले नहीं जानने वाले लोग जानें। जो लोग जानते हैं, वे नहीं जानने वालों को श्रवण करावें। सब सेनाओं से युक्त होकर धनवान् इन्द्र देव अश्व पर आरोहण कर उन जानने वाले और सुनने वालों की ओर गमन करें।[ऋग्वेद 5.30.3]
Hey Indr Dev! We the Stota, describe your great deeds after extracting Somras. Let those who are unaware of your endeavours made for us, should also know them. Those who are unaware of his deeds should also be told about these. Let rich-wealthy Indr Dev have all his armies; ride the horse & move to those listening & describing his glory.
स्थिरं मनश्चकृषे जात इन्द्र वेषीदेको युधये भूयसश्चित्।
अश्मानं चिच्छवसा दिद्युतो वि विदो गवामूर्वमुस्त्रियाणाम्॥
हे इन्द्र देव! उत्पन्न होते ही आपने सब शत्रुओं को जीतने के लिए चित्त को स्थिर किया। अकेले ही आपने अनेक राक्षसों से युद्ध करने के लिए प्रस्थान किया। गौओं के आवरक पर्वत को आपने बल द्वारा विदीर्ण किया। आपने दूध देने वाली गौवों के समूह को प्राप्त किया।[ऋग्वेद 5.30.4]
Hey Indr Dev! You decided to win the enemies as soon as you were born. You alone moved to fight many demons. You destroyed the mountain blocking the cows with your might. You got the milk yielding cows.
परो यत्त्वं परम आजनिष्ठाः परावति श्रुत्यं नाम बिभ्रत्।
अतश्चिदिन्द्रादभयन्त देवा विश्वा अपो अजयद्दासपत्नीः॥
हे इन्द्र देव! आप सर्वप्रधान और उत्कृष्टतम हैं। दूर से ही श्रवणीय नाम को धारित करके जब आप उत्पन्न हुए थे, तब अग्नि आदि देवता भयभीत हुए। वृत्रासुर द्वारा पालित सकल उदक को इन्द्र देव ने वशीभूत कर लिया।[ऋग्वेद 5.30.5]
Hey Indr Dev! You are supreme and best. When you acquired name listened from a distance, (bearing a name widely renowned), demigods-deities like Agni Dev got afraid. Indr Dev controlled the water reserved by Vrata Sur.
तुभ्येदेते मरुतः सुशेवा अर्चन्त्यर्कं सुन्वन्त्यन्धः।
अहिमोहानमप आशयानं प्र मायाभिर्मायिनं सक्षदिन्द्रः॥
हे इन्द्र देव! ये स्तुति पाठ करने वाले सुखी मरुद्गण स्तोत्र द्वारा सुख उत्पन्न करते हैं। ये आपका ही स्तवन करते हैं और सोम लक्षण अन्न प्रदान करते हैं। जो वृत्रासुर समस्त जलराशि का आच्छादन करके गर्वित हुआ, अपनी शक्ति द्वारा इन्द्र देव ने उस कपटी और देवों को बाधा पहुँचाने वाले वृत्रासुर को नष्ट कर दिया।[ऋग्वेद 5.30.6]
Hey Indr Dev! Marud Gan who recite this prayer get comforts with this Strotr. They worship you and provide the grains having the characterices of Som. Deceptor troubling demigods-deities Vrata Sur who was proud of controlling the entire water bodies was destroyed by Indr Dev through his might.
वि षू मृधो जनुषा दानमिन्वन्नहन्गवा मघवन्त्संचकानः।
अत्रा दासस्य नमुचेः शिरो यदवर्तयो मनवे गातुमिच्छन्॥
हे धनवान् इन्द्र देव! हम लोग आपकी प्रार्थना करते हैं। आप देव पीड़क वृत्र को वज्र द्वारा पीड़ित करें। आपने जन्म से ही शत्रुओं का संहार किया है। इस युद्ध में आप हमारे सुख के लिए दस्यु नमुचि के सिर को काट डालें।[ऋग्वेद 5.30.7]
Hey wealthy Indr Dev! We worship-pray you. Torture-punish Vrata Sur who teased the demigods-deities. You killed the dacoits-demons soon after your birth. Cut the head of the dacoit Namuchi for our sake-comfort in the war.
युजं हि मामकृथा आदिदिन्द्र शिरो दासस्य नमुचेर्मथायन्।
अश्मानं चित्स्वर्यं १ वर्तमानं प्र चक्रियेव रोदसी मरुद्भ्यः॥
हे इन्द्र देव! आपने शब्द करने वाले और भ्रमणशील मेघ के तुल्य, दस्यु नमुचि असुर के मस्तक को चूर्ण करके हमारे साथ मित्रता की। उस समय मरुतों के प्रभाव से द्यावा-पृथ्वी के चक्र तुल्य घूमने लगीं।[ऋग्वेद 5.30.8]
Hey Indr Dev! You entered friendship with us after powdering the head of dacoit Namuchi who roared & was dynamic-movable like the clouds. At that moment the heaven & earth started moving-revolving like a wheel.
स्त्रियो हि दास आयुधानि चक्रे किं मा करन्नबला अस्य सेनाः।
अन्तर्ह्यख्यदुभे अस्य धेने अथोप प्रैद्युधये दस्युमिन्द्रः॥
दस्यु नमुचि ने स्त्रियों को युद्ध साधन बनाया। उस असुर की वह स्त्री सेना मेरा क्या कर लेगी? इस तरह सोचकर इन्द्र देव ने उन सेनाओं के बीच से उस असुर की दो प्रेयसी स्त्रियों को अपने घर में रख लिया और नमुचि से युद्ध करने के लिए प्रस्थान किया।[ऋग्वेद 5.30.9]
Dacoit Namuchi made the women a tool of war. Indr Dev thought that the women army could not harm him, kept two of Namuchi's lovers in his house and departed to fight demon Namuchi.
समत्र गावोऽभितोऽनवन्तेहेह वत्सैर्वियुता यदासन्।
सं ता इन्द्रो असृजदस्य शाकैर्यदीं सोमासः सुषुता अमन्दन्॥
जब गौएँ बछड़ों से विमुख हुई, तब उस समय वे नमुचि द्वारा अपहृत गौएँ इधर-उधर सभी जगह भटक रही थी। बभ्रु ऋषि द्वारा अभिषुत सोमरस से जब इन्द्र देव हर्षित हुए, तब समर्थवान् मरुतों के साथ इन्द्र देव ने बभ्रु की गौओं को बछड़ों के साथ मिला दिया।[ऋग्वेद 5.30.10]
When the cows were separated from their calf abducted by Namuchi, they started roaming hither & thither. When Indr Dev became happy-amused by drinking Somras offered by Babhru, he brought-joined the cows to the calf.
यदीं सोमा बभ्रुधूता अमन्दन्नरोरवृद्वृषभः सादनेषु।
पुरंदरः पपिवाँ इन्द्रो अस्य पुनर्गवामददादुत्रियाणाम्॥
जब बभ्रु के अभिषुत सोमरस ने इन्द्र देव को हर्षित किया, तब कामनाओं के पूरक इन्द्र देव ने युद्ध में महान् शब्द किया। पुरन्दर (नगर विनाशक) इन्द्र देव ने सोमरस का पान किया और बभ्रु को फिर से दुग्ध देने वाली गौएँ प्रदान की।[ऋग्वेद 5.30.11]
When Indr Dev was pleased with the Somras extracted-offered by Babhru Indr Dev made a loud sound, accomplishing desires. Purandar-destroyer of forts Indr Dev drunk Somras and granted milch cows to Babhru.
भद्रमिदं रुशमा अग्ने अक्रन्गवां चत्वारि ददतः सहस्रा।
ॠणंचयस्य प्रयता मघानि प्रत्यग्रभीष्म नृतमस्य नृणाम्॥
हे अग्नि देव! ऋणञ्चय राजा के किंकर रुशम देश वासियों ने मुझे चार हजार गौएँ देकर कल्याण कारक कर्म किया। नेताओं के बीच श्रेष्ठ नेता ऋणञ्चय राजा द्वारा प्रदत्त गौरूप रत्नों को मैंने ग्रहण किया।[ऋग्वेद 5.30.12]
Hey Agni Dev! King Rinachy's citizens of Kinkar country gave me four thousand cows as a welfare measure. I accepted cows amongest the best leaders like jewels.
सुपेशसं माव सृजन्त्यस्तं गवां सहस्त्रै रुशमासो अग्ने।
तीव्रा इन्द्रमममन्दुः सुतासोऽक्तोर्व्युष्टौ परितक्म्यायाः॥
हे अग्नि देव! ऋणञ्चय राजा के किंकर रुशम देश वासियों ने मुझे अलंकार और आच्छादन आदि से सुसज्जित घर तथा हजारों गौएँ दी। रात्रि के बीतने पर अर्थात् उषाकाल में सरस सोम ने इन्द्र देव को प्रसन्न किया। (गौओं को पाकर बभ्रु ने तुरन्त ही इन्द्र देव को सोमरस पिलाया)।[ऋग्वेद 5.30.13]
Hey Agni Dev! The residents-citizens of country Rusham King Rinachay decorated me, gave a house and thousands of cows. In the morning Indr Dev drunk Somras and became amused-happy.
औच्छत्सा रात्री परितक्म्या याँ ऋणञ्चये राजनि रुशमानाम्।
अत्यो न वाजी रघुरज्यमानो बभ्रुश्चत्वार्यसनत्सहस्रा॥
रुशम देश के राजा ऋणञ्चय के समीप में ही सभी जगह गमन करने वाली रात्रि बीत गई। बुलाये जाने पर बभ्रु ऋषि ने वेगवान् घोड़े के तुल्य चार हजार शीघ्रगामिनी गौओं को प्राप्त किया।[ऋग्वेद 5.30.14]
The night passed in proximity of king Rinachay of the country Rusham. On being invited Babhru Rishi got four thousand cows comparable to fast moving horses.
चतुः सहस्रं गव्यस्य पश्वः प्रत्यग्रभीष्म रुशमेष्वग्ने।
घर्मश्चित्तप्तः प्रवृजे य आसीदयस्मयस्तम्वादाम विप्राः॥
हे अग्नि देव! हमने रुशम देशवासियों से चार हजार गौएँ प्राप्त की। हम मेधावी हैं। यज्ञ के लिए महावीर के तुल्य सन्तप्त सुवर्ण कलश को हमने रुशम देश वासियों से दूध दूहने के लिए प्राप्त किया।[ऋग्वेद 5.30.15]
Hey Agni Dev! We the inhabitants of the country Rusham got four thousand cows. We obtained a golden pot comparable to Mahavir, for milking cows for the Yagy.(18.06.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (31) :: ऋषि :- अवस्यु आत्रेय, देवता :- इन्द्र या कुत्स, छन्द :- त्रिष्टुप्।
इन्द्रो रथाय प्रवतं कृणोति यमध्यस्थान्मघवा वाजयन्तम्।
यूथेव पश्वो व्युनोति गोपा अरिष्टो याति प्रथमः सिषासन्॥
धनवान् इन्द्र देव जिस रथ पर अधिष्ठान करते हैं, उस रथ का संचालन भी करते हैं। गोपालक जिस प्रकार से पशुओं के समूह को प्रेरित करते हैं, उसी प्रकार से इन्द्र देव शत्रुसेना को प्रेरित करते हैं। शत्रुओं द्वारा अहिंसित और देवश्रेष्ठ इन्द्र देव शत्रुओं के धन की कामना करते हुए गमन करते हैं।[ऋग्वेद 5.31.1]
Wealthy Indr Dev operate the charoite, he rides. The manner the cow herd growers move-drive the cattle, Indr Dev too drive the enemies. Unharmed by the enemy Indr Dev move-drive to capture-possess their opulence.
आ प्र द्रव हरिवो मा वि वेनः पिशङ्गराते अभि नः सचस्व।
नहि त्वदिन्द्र वस्यो अन्यदस्त्यमेनांश्चिज्जनिवतश्चकर्थ॥
हे हरि नामक अश्व वाले इन्द्र देव! आप हम लोगों के अभिमुख भली-भाँति से आवें; किन्तु हम लोगों के प्रति हीन मनोरथ उदासीन होवें। हे बहुविध धन वाले इन्द्र देव! आप हम लोगों का सेवन करें। हे इन्द्र देव! दूसरी कोई भी वस्तु आपसे श्रेष्ठ नहीं है। जिनको पत्नी नहीं है, उनको आप स्त्री प्रदान करते है।[ऋग्वेद 5.31.2]
Hey Indr Dev master of horses named Hari! Invoke before us duly organised-neutral to the bad intensions-motives. Hey possessor of various opulence Indr Dev! Utilize our services. None is greater-better than you. You grant wife to the unmarried.
उद्यत्सहः सहस आजनिष्ट देदिष्ट इन्द्र इन्द्रियाणि विश्वा।
प्राचोदयत्सुदुघा वव्रे अन्तर्वि ज्योतिषा संववृत्वत्तमोऽवः॥
जब सूर्य का तेज उषा के तेज से बढ़ जाता है, तब इन्द्र देव याजकगणों को निखिल धन प्रदान करते हैं। वे निवारक पर्वत के बीच से दुग्ध दायिनी निरुद्ध गौओं को मुक्त करते हैं और अपने तेज द्वारा सर्वत्र व्याप्त अन्धकार को दूर करते हैं।[ऋग्वेद 5.31.3]
When the intensity of Sun rays increase with dawn-day break i.e., Usha Indr Dev grant opulence to his worshipers. He liberate the milch cows held between the mountains and remove darkness with his aura all around.
अनवस्ते रथमश्वाय तक्षन्त्वष्टा वज्रं पुरुहूत द्युमन्तम्।
ब्रह्माण इन्द्रं महयन्तो अर्कैरवर्धयन्नहये हन्तवा उ॥
हे बहुजनाहूत इन्द्र देव! ऋभुओं ने आपके रथ को घोड़ों से संयुक्त होने के योग्य बनाया, त्वष्टा ने आपके वज्र को द्युतिमान् किया। इन्द्र देव की पूजा करने वाले अङ्गिरा लोगों ने अथवा मरुतों ने वृत्रासुर वध के लिए स्तुतियों द्वारा इन्द्र देव को संवर्द्धित किया।[ऋग्वेद 5.31.4]
Hey Indr Dev worshiped-prayed by many! Ribhus made your horses capable to be deployed, Twasta made your charoite movable. Worshipers of Indr Dev Angiras & Marud Gan promoted-boosted him with the prayers-sacred hymns.
BOOST :: बढ़ाना, बढ़ावा देना, प्रोत्साहन, सहारा, संवर्द्धित करना; promotion, encouragement, prompting, solicitation, jog, incentive, encouragement, stimulus, stimulation, boost, fillip, support, recourse, sustenance, anchor, mainstay.वृष्णे यत्ते वृषणो अर्कमर्चानिन्द्र ग्रावाणो अदितिः सजोषाः।
अनश्वासो ये पवयोऽरथा इन्द्रेषिता अभ्यवर्तन्त दस्यून्॥
हे इन्द्र देव! आप अभिलाषाओं के पूरक है। सेचन समर्थ मरुतों ने जब आपकी प्रार्थना की, तब सोमाभिषव करने वाले पत्थर भी प्रसन्न होकर संगत हुए। इन्द्र देव द्वारा प्रेषित होने पर अश्व हीन और रथ हीन मरुतों ने अभिगमन करके शत्रुओं को पराजित किया।[ऋग्वेद 5.31.5]
Hey Indr Dev! You accomplish the desires. When Marud Gan capable of watering-irrigation requested you, then the stones used for crushing-extracting Somras became happy-amused. Inspired by Indr Dev, though without horses & charoite, yet the Marud Gan attacked & defeated the enemies.
प्र ते पूर्वाणि करणानि वोचं प्र नूतना मघवन्या चकर्थ।
शक्तीवो यद्विभरा रोदसी उभे जयन्नपो मनवे दानुचित्राः॥
हे धनवान् इन्द्र देव! हम आपके पुरातन तथा नूतन कर्मों का स्तवन करते हैं। आपने जिन कार्यों को किया, हम उसे कहते हैं। हे वज्रधर इन्द्र देव! आप द्यावा-पृथ्वी को वशीभूत करके मनुष्यों के लिए विचित्र जल धारित करते है।[ऋग्वेद 5.31.6]
Hey wealthy Indr Dev! We narrate-describe your present & previous endeavours. Hey Vajr wielding Indr Dev! You mesmerize the heavens & earth and hold amazing water for the humans.
तदिन्नु ते करणं दस्म विप्राहिं यघ्नन्नोजो अत्रामिमीथाः।
शुष्णस्य चित्परि माया अगृभ्णाः प्रपित्वं यन्नप दस्यूँरसेधः॥
हे दर्शनीय तथा बुद्धिमान् इन्द्र देव! वृत्रासुर को मार करके आपने जो अपने बल को इस लोक में प्रकट किया, वह आपका ही कर्म है। आपने शुष्ण असुर की माया को जानकर उसे पकड़ा और युद्धस्थल में जाकर आपने असुरों को विनष्ट किया।[ऋग्वेद 5.31.7]
Hey beautiful-handsome Indr Dev! The might & valour which you demonstrated in this abode-world is your deed. You removes the cast of Shushn the demon, captured him and destroyed-vanished the demons in the war.
त्वमपो यदवे तुर्वशायारमयः सुदुघाः पार इन्द्र।
उग्रमयातमवहो ह कुत्सं सं ह यद्वामुशनारन्त देवाः॥
हे इन्द्र देव! नदी तट में प्रवृद्ध होकर अर्थात् अवस्था न करके यदु और तुर्वश राजाओं को आपने वनस्पतियों को बढ़ाने वाला जल प्रदान किया। हे इन्द्र देव! कुत्स के प्रति आक्रमण करने वाले भयानक शुष्ण को मारकर आपने कुंत्स को अपने घर में पहुँचा दिया। तब उशना और देवताओं ने आप दोनों की स्तुति की।[ऋग्वेद 5.31.8]
Hey Indr Dev! You granted water for irrigation to the kings Yadu & Turvash. Hey Indr Dev! You released Kuts from captivity, killed furious-dangerous Shushn and took him to his home. Then Ushna & demigods-deities prayed you.
इन्द्राकुत्सा वहमाना रथेना वामत्या अपि कर्णे वहन्तु।
निः षीमद्भ्यो धमथो निः षधस्थान्मघोनो हृदो वरथस्तमांसि॥
हे इन्द्र देव और कुत्स ! एक ही रथ पर आरूढ़ होकर आप दोनों को अश्व गण याजक गणों के निकट ले आयें। आप दोनों ने शुष्ण को उसके आवासभूत जल से दूर कर दिया। आप दोनों ने धनवान् याजक गणों के हृदय से अज्ञान रूपी अन्धकार को भी दूर कर दिया।[ऋग्वेद 5.31.9]
Hey Indr Dev & Kuts! Both of you rode the charoite together and the horses derived you to the Ritviz-worshipers. You removed-separated Sushn from his base, water. You removed the ignorance from the hearts-innerself of the worshipers-Ritviz.
वातस्य युक्तान्त्सुयुजश्चिदश्वान्कविश्चिदेषो अजगन्नवस्युः।
विश्वे ते अत्र मरुतः सखाय इन्द्र ब्रह्माणि तविषीमवर्धन्॥
हे इन्द्र देव! विद्वान् अवस्यु नामक ऋषि ने वायु तुल्य वेगवान् और रथ में भली भाँति से युक्त करने के योग्य अश्वों को प्राप्त किया। अवस्यु के मित्रभूत सकल स्तोताओं ने, स्तोत्रों द्वारा आपके बल को प्राप्त किया।[ऋग्वेद 5.31.10]
Hey Indr Dev! Rishi Avasyu got the horses, fast moving like the air & deployed them in the charoite. All Stota, friendly with Avasyu, attained your strength-power by virtue of Strotr.
सूरश्चिद्रथं परितक्म्यायां पूर्वकरदुपरं जूजुवांसम्।
भरच्चक्रमेतशः सं रिणाति पुरो दधत्सनिष्यति क्रतुं नः॥
पूर्व में जब एतश ऋषि के साथ सूर्य देव का युद्ध हुआ, तब इन्द्र देव ने सूर्य देव के वेगवान् रथ की गति को अवरुद्ध कर दिया। इन्द्र देव ने पूर्व में द्विचक्र रथ के एक चक्र का हरण कर उसी चक्र द्वारा वे शत्रुओं को विनष्ट करते हैं। हम लोगों को पुरस्कृत करके इन्द्र देव हम लोगों के यज्ञ का सेवन करें।[ऋग्वेद 5.31.11]
In past, when Atash Rishi fought with Sury Dev, Indr Dev blocked his fast moving charoite. He took off one wheel of his charoite out of the two and destroy the enemy with that wheel. Let Indr Dev reward us and join our Yagy.
आयं जना अभिचक्षे जगामेन्द्रः सखायं सुतसोममिच्छन्।
वदन्ग्रावाव वेदिं भ्रियाते यस्य जीरमध्वर्यवश्चरन्ति॥
हे मनुष्यों! आप लोगों को देखने के लिए इन्द्र देव सोमाभिषव करने वाले मित्र स्वरूप याजक गणों की इच्छा करते हुए आये। अध्वर्युगण जिस पत्थर का प्रेरण करते हैं, वह सोमाभिषव करने वाला पत्थर शब्द करता हुआ वेदी के ऊपर आरोहण करता है।[ऋग्वेद 5.31.12]
Hey humans! Indr Dev visited the friends desirous of Somras to see them. The stone used by the priests for extracting Somras ride-stay over the Yagy Vedi making sound.
ये चाकनन्त चाकनन्त नू ते मर्ता अमृत मो ते अंह आरन्।
वावन्धि यज्यूँरुत तेषु धेह्योजो जनेषु येषु ते स्याम॥
हे अमरमण शील इन्द्र देव! जो मनुष्य आपकी कामना करता है और शीघ्रता पूर्वक आपकी अभिलाषा करता है, उस मरण शील मनुष्य का कोई अनर्थ नहीं होता। आप याजक गणों का सेवन करें, उनके प्रति प्रसन्न होवें। जिन मनुष्यों के बीच में हम लोग स्तोता हैं, वे सब आपके हों। हे इन्द्र देव! आप उन मनुष्यों को बल प्रदान करें।[ऋग्वेद 5.31.13]
अनर्थ :: दुर्घटना, महाविपदा, भयंकर घटना, अनर्थ, सर्वनाश; disaster, perversion.Hey immortal Indr Dev! You accomplish the desires of one who wish to invoke you. He is protected from disasters. Be happy with the worshipers. Those who appoint us as Stota should belong to you. Hey Indr Dev! Grant them might-power.(18.06.2023)ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (32) :: ऋषि :- गातु आत्रेय, देवता :- इन्द्र, छन्द :- त्रिष्टुप्।
अदर्दरुत्समसृजो वि खानि त्वमर्णवान्बद्बधानाँ अरम्णाः।
महान्तमिन्द्र पर्वतं वि यद्वः सृजो वि धारा अव दानवं हन्॥
हे इन्द्र देव! आपने वर्षा करने वाले बादलों को विदीर्ण किया और मेघस्थ जल के निर्गमन द्वार को बनाया। हे इन्द्र देव! आपने प्रभूत मेघ को उद्घाटित करके जल बरसाया एवं दनु पुत्र वृत्रासुर का वध किया।[ऋग्वेद 5.32.1]
विदीर्ण :: चीर-फाड़ करना, तोड़ देना, टूटा हुआ, निहत; laciniate, fissured, teared-torn, cloven, cleft, rimose.
Hey Indr Dev! You teared the rain clouds, allowed to water stored in them to flow and killed Vrata Sur-son of Danu.
त्वमुत्साँ ऋतुभिर्बद्बधानाँ अरंह ऊधः पर्वतस्य वज्रिन्।
अहिं चिदुग्र प्रयुतं शयानं जघन्वाँ इन्द्र तविषीमधत्थाः॥
हे वज्रवान् इन्द्र देव! आप वर्षाकाल में निरुद्ध मेघों को बन्धन मुक्त करें। आप मेघ को बल सम्पन्न करें। हे उग्र इन्द्र देव! जल में शयन करने वाले वृत्रासुर को आपने मारा और अपने बल को प्रख्यात किया।[ऋग्वेद 5.32.2]
Hey Vajr wielding Indr Dev! Let the clouds rain during rainy season. Granted-invigorated the strength of the cloud. Hey furious Indr Dev! You killed Vrata Sur sleeping in the water and enhanced-boosted your reputation, fame & name.
त्यस्य चिन्महतो निर्मृगस्य वधर्जघान तविषीभिरिन्द्रः।
य एक इदप्रतिर्मन्यमान आदस्मादन्यो अजनिष्ट तव्यान्॥
अप्रतिद्वन्द्वी एक मात्र इन्द्र देव ने हवि प्रभूत हिरण के तुल्य शीघ्रगामी उस वृत्रासुर के आयुधों को अपने बल द्वारा विनष्ट कर दिया। उस समय वृत्रासुर के शरीर से दूसरा अतिशय बलवान असुर प्रसन्न हुआ।[ऋग्वेद 5.32.3]
Indr Dev without a rival, destroyed-annihilated the weapons of Vrata Sur who was quick like a deer, leading to added strength in the body of another demon.
त्यं चिदेषां स्वधया मदन्तं मिहो नपातं सुवृधं तमोगाम्।
वृषप्रभर्मा दानवस्य भामं वज्रेण वज्री नि जघान शुष्णम्॥
वर्षणशील बादलों के ऊपर प्रहार करने वाले वज्रधर इन्द्रदेव ने वज्र द्वारा बलवान् शुष्ण का वध किया। शुष्ण वृत्रासुर के क्रोध से उत्पन्न होकर अन्धकार में भ्रमण कर रहा था और सेचन समर्थ बादलों की रक्षा करते हुए वह समस्त प्राणियों के अन्न को स्वयं खाकर प्रसन्न होता था।[ऋग्वेद 5.32.4]Vajr wielding Indr Dev, who strike the rain clouds, struck mighty Shushn who was roaming full of anger protecting the rain clouds and eating happily, the food grains of all living beings.
त्यं चिदस्य क्रतुभिर्निषत्तममर्मणो विददिदस्य मर्म।
यदीं सुक्षत्र प्रभृता मदस्य युयुत्सन्तं तमसि हर्म्ये धाः॥
हे बलवान इन्द्र देव! मादक सोमरस के पान से हर्षित होकर आपने अन्धकार में निमग्न युद्धाभिलाषी वृत्रासुर को जाना। अपने को अवध्य समझने वाले वृत्रासुर के प्राण स्थान को आपने उसके कार्यों द्वारा जाना।[ऋग्वेद 5.32.5]
Hey mighty Indr Dev! You identified Vrata Sur desirous of war-fight, hiding under darkness. You identified-sensed the location of Vrata Sur's source of his energy (Pran Vayu); who considered himself immortal.
त्यं चिदित्था कत्पयं शयानमसूर्ये तमसि वावृधानम्।
तं चिन्मन्दानो वृषभः सुतस्योचैरिन्द्रो अपगूर्या जघान॥
वृत्रासुर सुखकर उदक के साथ जल में शयन करता हुआ अन्धकार में वर्द्धमान हो रहा था। अभिषुत सोमरस पान से हर्षित होकर अभिलाषाओं के पूरक इन्द्र देव ने वज्र को ऊपर उठाकर उसका वध किया।[ऋग्वेद 5.32.6]
Vrata Sur was sleeping-resting comfortably under water, growing under the shroud of darkness. Amused by drinking Somras, Indr Dev, who accomplish desires, killed him with Vajr.
Vrata Sur himself wanted to be killed-released from the incarnation as a demon.
उद्यदिन्द्रो महते दानवाय वधर्यमिष्ट सहो अप्रतीतम्।
यदीं वज्रस्य प्रभृतौ ददाभ विश्वस्य जन्तोरधमं चकार॥
जब इन्द्र देव ने उस प्रभूत दानव वृत्रासुर के प्रति विजयी वज्र को उठाया और जब वृत्रासुर पर उसके द्वारा भीषण प्रहार किया, तब उसे समस्त प्राणियों की अपेक्षा निम्नतम स्थिति में पहुँचा दिया।[ऋग्वेद 5.32.7]
Indr Dev raised Vajr-thunder Volt and struck furiously over Vrata Sur, leading him to lowest level of all species-living beings.
त्यं चिदर्णमधुपं शयानमसिन्वं वव्रं मह्याददुग्रः।
अपादमत्रं महता वधेन नि दुर्योण आवृणङ्मृध्रवाचम्॥
उग्र इन्द्र देव ने महान्, गमनशील बादलों को घेरकर शयन करने वाले, जल-रक्षक, शत्रुओं के संहारक और सभी को आच्छादित करने वाले वृत्रासुर को पकड़ लिया और उसके अनन्तर संग्राम में पाद रहित परिमाण रहित और जुम्भाभिभूत वृत्रासुर को अपने प्रभूत वज्र द्वारा क्षत-विक्षत कर दिया।[ऋग्वेद 5.32.8]
Furious Indr Dev, protector of water-clouds, destroyer of the enemies caught Vrata Sur who tortured all living beings, slept by controlling the movable clouds, in them. Dev Raj cut-slew Vrata Sur was dimensionless, into pieces in the war, loosing his limbs.
को अस्य शुष्मं तविषीं वरात एको धना भरते अप्रतीतः।
इमे चिदस्य ज्रयसो नु देवी इन्द्रस्यौजसो भियसा जिहाते॥
इन्द्र देव के शोषक बल का निवारण कौन कर सकता है? किसी के द्वारा भी अप्रतीयमान इन्द्र देव अकेले ही शत्रुओं के धन का हरण करते हैं। द्युतिमान् द्यावा-पृथ्वी वेगवान इन्द्र देव के बल से भयभीत होकर शीघ्र ही चलायमान होती हैं।[ऋग्वेद 5.32.9]
Who can escape from the might of Indr Dev? He alone snatch the wealth of the enemies. Radiant heaven & earth move due to the fear of Indr Dev.
न्यस्मै देवी स्वधितिर्जिहीत इन्द्राय गातुरुशतीव येमे।
सं यदोजो युवते विश्वमाभिरनु स्वधाव्ने क्षितयो नमन्त॥
स्वयं धारणशील और द्युतिमान् द्युलोक इन्द्र देव के लिए नम्र होकर रहता है। भूमि अभिलाषिणी स्त्री के तरह वह इन्द्र देव के लिए आत्मसमर्पण करती है। जब इन्द्रदेव अपने समस्त बल को प्रजाओं के बीच में स्थापित करते हैं, तब मनुष्यगण अनुक्रम से बलवान् इन्द्रदेव के लिए नमस्कार करते हैं।[ऋग्वेद 5.32.10]नम्र :: विनीत, सविनय, निरहंकार, विनयपूर्ण, सरल, सादा, संकोच, शर्मीला, विनयशील; meek, humble, unassuming.
Self sustaining radiant heaven is meek-humble towards Indr Dev. It surrender itself to Indr Dev like a woman, desirous of land. Humans salute-prostrate in front of Indr Dev sequentially, when he demonstrate-illustrate his might before the populace.
एकं नु त्वा सत्पतिं पाञ्चजन्यं जातं शृणोमि यशसं जनेषु।
तं मे जगृभ्र आशसो नविष्ठं दोषा वस्तोर्हवमानास इन्द्रम्॥
हे इन्द्र देव! हमने ऋषियों से श्रवण किया है कि आप मनुष्यों के बीच में मुख्य हैं, सज्जनों के पालक हैं, पञ्चजन मनुष्यों के हित के लिए उत्पन्न हुए हैं और यशोयुक्त हैं। दिन-रात प्रार्थना करने वाली और अपनी अभिलाषाओं को कहने वाली हमारी सन्तान स्तुति योग्य इन्द्रदेव को प्राप्त करें।[ऋग्वेद 5.32.11]
Hey Indr Dev! We have heard from the Rishis-sages that you are the leader of humans and nurture-nourish the gentle, born for their welfare and is revered-respected. Let our progeny devoted to prayers during the day & night explaining their desires invoke Indr Dev.
एवा हि त्वामृतुथा यातयन्तं मघा विप्रेभ्यो ददतं शृणोमि।
किं ते ब्रह्माणो गृहते सखायो ये त्वाया निदधुः काममिन्द्र॥
हे इन्द्र देव! हमने सुना है कि आप समय-समय पर जन्तुओं को प्रेरित करते हैं और स्तोताओं को धन प्रदान करते हैं, यह मिथ्या ही मालूम पड़ता है। हे इन्द्र देव! जो स्तोता आपमें अपनी अभिलाषा स्थापित करते हैं, आपके वे महान् मित्र आपसे क्या प्राप्त करते हैं?[ऋग्वेद 5.32.12]
Hey Indr Dev! We have heard that you inspire living beings from time to time and grant wealth to the Stota, though it appears false-wrong. What can your great friends get, who put their desires forward-in front of you?(19.06.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (33) :: ऋषि :- प्राजापत्य संवरण, देवता :- इन्द्र, छन्द :- त्रिष्टुप्।
महि महे तवसे दीध्ये नॄनिन्द्रायेत्था तवसे अतव्यान्।
यो अस्मै सुमतिं वाजसातौ स्तुतो जने समर्यश्चिकेत॥
सम्बरण ऋषि अत्यन्त दुर्बल हैं। हम महाबलवान् इन्द्र देव के लिए प्रभूत स्तोत्र करते हैं, जिससे हमारे समान मनुष्य बलवान् हों। युद्ध में अन्न लाभ के लिए प्रार्थित होने पर इन्द्र देव स्तोताओं के साथ हमारे प्रति अनुग्रह प्रदर्शन करें।[ऋग्वेद 5.33.1]
Sambaran Rishi is too weak. We recite ample-abundant Strotr for the sake of highly powerful-mighty Indr Dev, so that the humans are mighty like us. On being requested for food grains during the war, let Indr Dev oblige us as well, along with demigods-deities.
स त्वं न इन्द्र धियसानो अर्कैर्हरीणां वृषन्योक्त्रमश्रेः।
या इत्था मघवन्ननु जोषं वक्षो अभि प्रार्यः सक्षि जनान्॥
हे अभिलाषाओं को पूर्ण करने वाले इन्द्र देव! आप हम लोगों का ध्यान करते हुए एवं जो स्तोत्र आप में प्रेम उत्पन्न करें, उन स्तोत्रों द्वारा रथ में जुते हुए घोड़ों की लगाम को अपने हाथ में धारण करें। हे मघवन्! इस प्रकार से आप हमारे शत्रुओं को पराजित करें।[ऋग्वेद 5.33.2]
Hey desires accomplishing Indr Dev! Hold the reins of the horses deployed in the charoite, think of us and the Strotr which generate love for you in our hearts. Hey Maghvan-Indr Dev! In this manner we will be able to defeat the enemy.
न ते त इन्द्राभ्य १ स्मदृष्वायुक्तासो अब्रह्मता यदसन्।
तिष्ठा रथमधि तं वज्रहस्ता रश्मिं देव यमसे स्वश्वः॥
हे तेजोविशिष्ट इन्द्र देव! जो मनुष्य आपके भक्तों से भिन्न है और जो आपके साथ नहीं रहता, ब्रह्मकर्म से हीन होने के कारण वह मनुष्य आपका नहीं। हे वज्रधारी इन्द्र देव! इसलिए आप हमारे यज्ञ में आने के लिए उस रथ पर आरुण हों, जिस रथ का सञ्चालन आप स्वयं करते हैं।[ऋग्वेद 5.33.3]
Hey Indr Dev, possessor of special energy-power! The person who is different from your worshipers, is not associated with you, does not belong to you, being without the Brahm Karm-duties assigned by Brahma Ji. Hey Vajr wielding Indr Dev! Ride that charoite which is driven by you, while coming to join our Yagy.
पुरू यत्त इन्द्र सन्त्युक्था गवे चकर्थोर्वरासु युध्यन्।
ततक्षे सूर्याय चिदोकसि स्वे वृषा समत्सु दासस्य नाम चित्॥
हे इन्द्र देव! आपके अनेक वर्णनीय स्तोत्र हैं; इसीलिए आप उर्वरा भूमि के ऊपर जल वर्षण करने के लिए वृष्टि निरोध कारकों का संहार करते हैं। आप कामनाओं के पूरक हैं। आप सूर्य देव के अपने स्थान में वृष्टि प्रतिबन्ध कारक दासों के साथ युद्ध करके उनके नाम तक को नष्ट कर देते हैं।[ऋग्वेद 5.33.4]
Hey Indr Dev! There are several praise worthy-explanatory Strotr pertaining to you, hence you destroy the factors which block rains to fertile land. You accomplish desires. You destroy the slaves-factors in the abode of Sun, which obstruct rains.
वयं ते त इन्द्र ये च नरः शर्धो जज्ञाना याताश्च रथाः।
आस्माञ्जगम्यादहिशुष्म सत्वा भगो न हव्यः प्रभृथेषु चारुः॥
हे इन्द्र देव! हम लोग जो ऋत्विक याजकगण आदि हैं, वे सब आपके हैं। यज्ञ करके हम लोग आपके बल को बढ़ाते हैं और होम-हवन करने के लिये आपके निकट उपस्थित होते हैं। हे इन्द्र देव! आपका बल सर्वव्यापी है। आपके अनुग्रह से रणक्षेत्र में भग के तुल्य प्रशंसनीय (चारु) विश्वस्त सेवक आदि हमारे निकट आयें।[ऋग्वेद 5.33.5]
Hey Indr Dev! We all, the Ritviz, hosts etc. belong to you. We boost your power-might by performing Yagy. We come-approach you for conducting Hom-Hawan. Hey Indr Dev! Your power pervade all places. Let appreciable and reliable workers like Bhag come to us in the war.
पपृक्षेण्यमिन्द्र त्वे ह्योजो नृम्णानि च नृतमानो अमर्तः।
स न एनींवसवानो रयिं दाः प्रार्यः स्तुषे तुविमघस्य दानम्॥
हे इन्द्र देव!आपका बल पूजनीय है। आप सर्वव्यापी और अमरणशील हैं। अपने तेज से संसार को आच्छादित करके श्वेतवर्ण का प्रभूत धन हम लोगों को प्रदान करें। हम लोग प्रभूत धन देने वाले दाता से दान की प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 5.33.6]
Hey Indr Dev! You might deserve worship. You are immortal pervading every place. Illuminate the universe with your aura and grant us white coloured ample-abundant wealth. We request the donor who who donate ample wealth to us.
एवा न इन्द्रोतिभिरव पाहि गृणतः शूर कारून्।
उत त्वचं ददतो वाजसातौ पिप्रीहि मध्वः सुषुतस्य चारोः॥
हे शूर इन्द्र देव ! हम लोग आपकी प्रार्थना करते हैं और यजन करते हैं। आप रक्षा करके हम लोगों का पालन करें। युद्ध में आप अपने आच्छादक रूप को प्रदान करके हमारे अभिषुत सोमरस के द्वारा प्रसन्न होवें।[ऋग्वेद 5.33.7]
Hey brave Indr Dev! We worship-pray you and perform Yagy. Support, protect & nurture us. Be happy by drinking Somras extracted by us, granting us your protective form in the war.
उत त्ये मा पौरुकुत्स्यस्य सूरेस्त्रसदस्योर्हिरणिनो रराणाः।
वहन्तु मा दश श्येतासो अस्य गोरिक्षितस्य क्रतुभिर्नु सश्चे॥
गिरिक्षित गोत्रोत्पन्न पुरुकुत्स के पुत्र त्रसदस्यु हिरण्यवान् और प्रेरक हैं। उन्होंने हमें जो दस अश्व प्रदान किये, वे शुभ्रवर्ण वाले दसों अश्व हमें वहन करें। रथ नियोजनादि कार्यों द्वारा हम शीघ्र ही गमन करें।[ऋग्वेद 5.33.8]
Trasdasyu, son of Purukuts born in Girikshit dynasty is inspiring & possessor of gold. Let the ten white-fair coloured horses granted by him to us support-bear us. We should march quickly by managing the charoite.
उत त्ये मा मारुताश्वस्य शोणाः क्रत्वामघासो विदथस्य रातौ।
सहस्रा मे च्यवतानो ददान आनूकमर्यो वपुषे नार्चत्॥
मरुताश्व के पुत्र विदथ ने हमारे लिए जिन रक्त वर्ण और श्रेष्ठ (शीघ्र गामी) अश्वों को प्रदान किया, वे हमें वहन करें। उन्होंने हमको सहस्रों प्रकार के धन और अपने शरीर का अलंकार भी प्रदान किया।[ऋग्वेद 5.33.9]
Let the fast moving, red coloured horses granted to us Marutashrav's, son of Vidath bear-support us. They granted thousands of kinds wealth and jewels, ornaments for decorating our body.
उत त्ये मा ध्वन्यस्य जुष्टा लक्ष्मण्यस्य सुरुचो यतानाः।
मह्ना रायः संवरणस्य ऋषेर्व्रजं न गावः प्रयता अपि ग्मन्॥
पुत्र ध्वन्य ने हमें जो दीप्तिमान् और पराक्रमी अश्व प्रदान किया, वे हमें वहन करे। गौएँ जैसे वे गोचरण स्थान (गोष्ठ) को प्राप्त करती हैं, उसी प्रकार से उनके (ध्वन्य) द्वारा प्रदत्त महान् धन सम्बरण ऋषि के घर में उपस्थित हों।[ऋग्वेद 5.33.10]
Let the radiant & brave horses given to us by son Dhvany, bear-support us. Let the great wealth be present in the house-home of Sambaran Rishi granted by Dhvany, just like the cows occupy the cow shed.(20.06.2023)
ऋषि :-
जिनके शत्रु उत्पन्न नहीं हुए हैं और जो शत्रुओं का विनाश करते हैं, वे अक्षीण, स्वर्गप्रद और अपरिमित हव्य प्राप्त करते हैं। हे ऋत्विको! उन्हीं इन्द्र देव के लिए आप लोग पुरोडाश पकायें और अपने उचित कर्म को धारित करें। इन्द्र देव स्तोत्र वाहक और बहुस्तुत्य हैं।[ऋग्वेद 5.34.1]
अक्षीण :: जो क्षीण या दुबला-पतला) न हो, मोटा, हष्ट-पुष्ट, जो किसी तरह घटा न हो, अटूट, निरंतर, स्थायी, स्थिर, दृढ़, अक्षय, सदा भरपूर होनेवाला; unabated, unceasing.
His enemies are not born and he destroy the enemies, is unabated-unceasing, heavenly and get unlimited offerings. Hey Ritviz! Cook barley cakes for him and perform right-proper duties. Indr Dev is carrier of Strotr and worshiped by many people.
आ यः सोमेन जठरमपिप्रतामन्दत मघवा मध्वो अन्धसः।
यदींमृगाय हन्तवे महावधः सहस्रभृष्टिमुशना वधं यमत्॥
इन्द्र देव ने सोमरस द्वारा अपने उदर को परिपूर्ण किया और मधुर सोमरस के पान से प्रमुदित हुए, जबकि मृग नामक असुर को मारने की इच्छा करके उन्होंने अपरिमित तेज वाले महान वज्र को हाथ में उठाया।[ऋग्वेद 5.34.2]
Indr Dev filled his stomach with Somras and lifted great Vajr with infinite speed to kill the demons named Mrag.
यो अस्मै प्रंस उत वा य ऊधनि सोमं सुनोति भवति द्युमाँ अह।
अपाप शक्रस्ततनुष्टिमूहति तनूशुभ्रं मघवा यः कवासखः॥
जो याजक गण इन्द्र देव के लिए अहर्निश (दिन-रात) सोमाभिषव करते हैं, वे द्युतिमान् होते हैं। जो यजमान यज्ञ नहीं करते; लेकिन धर्म-सन्तति की कामना करते हैं और शोभनीय अलंकार आदि धारण करते हैं तथा धनवान होकर बुरे आचरण करने वालों पुरुषों से मित्रता करते हैं, ऐसे लोगों का इन्द्र देव परित्याग कर देते हैं।[ऋग्वेद 5.34.3]
The Ritviz-hosts who extract Somras day & night for Indr Dev become aurous-radiant. He rejects those who do not conduct Yagy, but are desirous of pious progeny, bear beautiful jams-jewels, ornaments and become friendly-intimate with the wicked on becoming rich.
यस्यावधीत्पितरं यस्य मातरं यस्य शक्रो भ्रातरं नात ईषते।
वेतीद्वस्य प्रयता यतंकरो न किल्बिषादीषते वस्व आकरः॥
जो मनुष्य यजमान के माता-पिता और भ्राता का वध करता है, उस यष्टा के पास इन्द्र देव नहीं जाते और उसके द्वारा प्रदत्त हव्य स्वीकार नहीं करते। वे धनाधिपति इन्द्र देव पाप से दूर रहते हैं।[ऋग्वेद 5.34.4]
Indr Dev neither visit the person-host, Ritviz who kills his parents & brothers nor accept his offerings. Wealthy Indr Dev keep-maintain distance from the sin-sinners.
न पञ्चभिदशभिर्वष्ट्यारभं नासुन्वता सचते पुष्यता चन।
जिनाति वेदमुया हन्ति वा धुनिरा देवयुं भजति गोमति व्रजे॥
शत्रुओं के वध के लिए इन्द्र देव पाँच या दस सहायकों की कामना नहीं करते। जो सोमाभिषव नहीं करता और बन्धुओं का पोषण नहीं करता, उसके साथ इन्द्र देव संगति नहीं करते हैं। शत्रुओं को कम्पायमान करने वाले इन्द्र देव उसे बाधा पहुँचाते हैं और उसका वध करते हैं। इन्द्र देव यज्ञ करने वाले याजकों को गौओं से युक्त गृह प्रदत्त करते हैं।[ऋग्वेद 5.34.5]
Indr Dev do not wish to have four or five companions-accomplices for killing the enemies. He do not keep-maintain company with one, who do not extract Somras and nourish-support his brothers. Indr Dev tremble-shake the enemies, obstruct them and kill them. He grant cows & houses to the people who conduct Yagy.
वित्वक्षणः समृतौ चक्रमासजोऽसुन्वतो विषुणः सुन्वतो वृधः।
इन्द्रो विश्वस्य दमिता विभीषणो यथावशं नयति दासमार्यः॥
संग्राम में शत्रुओं को क्षीण करने वाले इन्द्र देव रथ चक्र को वेगवान् करते हैं। सोमाभिषव नहीं करने वाले याजकगण से वे दूर रहते हैं और सोमाभिषण करने वाले यजमान को वर्द्धित करते हैं। विश्व शिक्षक और भय जनक स्वामी इन्द्र देव यथेच्छ कर्म सेवाकर्म करने वाले (मनुष्यों) को अपने वशीभूत कर लेते हैं।[ऋग्वेद 5.34.6]
Indr Dev, who weaken the enemy in the war increase the speed of the charoite wheels. He maintains distance from the Ritviz-people who do not extract Somras and boost the hosts, who do it. The Vishw Guru (teacher of the whole world), cause for fear, mesmerise-enchant the people who devote them selves to community welfare-service.
समींपणेरजति भोजनं मुषे वि दाशुषे भजति सूनरं वसु।
दुर्गे चन ध्रियते विश्व आ पुरु जनो यो अस्य तविषीमचुक्रुधत्॥
इन्द्र देव लोभियों के धन का हरण कर लते हैं और मनुष्यों की शोभा को बढ़ाने वाले उस धन को तथा बहुविध अन्य धन को लाकर यजन करने वाले याजक गणों को देते हैं अर्थात यज्ञ नहीं करने वालों का धन यज्ञ करने वालों को देते हैं। जो व्यक्ति इन्द्र देव को क्रोध युक्त करता है, वह व्यक्ति महान् कष्टों में घिर जाता है।[ऋग्वेद 5.34.7]
Indr Dev snatches the wealth of the greedy-avaricious and hand it over to the Ritviz. Any one who anger him is involved in various troubles, pains, tortures, difficulties.
सं यज्जनौ सुधनौ विश्वशर्धसाववेदिन्द्रो मघवा गोषु शुभ्रिषु।
युजं ह्य १ न्यमकृत प्रवेपन्युदीं गव्यं सृजते सत्वभिर्धुनिः॥
शोभन धन वाले और बृहत् साहाय्य वाले दो व्यक्ति जब शोभन गौओं के लिए परस्पर प्रतिद्वन्द्वी होते हैं, तब ऐसा जानकर इन्द्र देव यज्ञ करने वाले याजक गण की सहायता करते हैं। मेघों को कँपाने वाले इन्द्र देव उस यज्ञकारी याजक गण को गौ समूह प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 5.34.8]
When there are two rivals for acquiring cows, Indr Dev helps the Ritviz. Indr Dev, who shake-trembles the clouds, help the Ritviz involved in Yagy and grant-give him cows.
सहस्रसामाग्निवेशिं गृणीषे शत्रिमग्न उपमां केतुमर्यः।
तस्मा आपः संयतः पीपयन्त तस्मिन्क्षत्रममवत्त्वेषमस्तु॥
हे अङ्गनादि गुण विशिष्ट इन्द्र देव! हम अपरिमित धन के दाता, अग्नि वेश के शत्रि नामक राजर्षि की प्रार्थना करते हैं। वे उपमान भूत और प्रख्यात हैं। जलराशि उन्हें अच्छी तरह से सन्तुष्ट करें।[ऋग्वेद 5.34.9]
अँगना :: स्त्री, नारी, सुंदर अंगवाली स्त्री, कामिनी, सार्वभौम नामक उत्तर के दिग्गज की स्त्री, कन्या राशि, वृष, कर्क, कन्या, वृश्चिक, मकर और मीन राशियाँ; woman, beautiful woman.
उपमान :: वह वस्तु या व्यक्ति जिससे उपमा दी जाए; समानता, समरूपता, अभेद, अनुरूपता; resemblance, similarity, analogy.
Hey Indr Dev with special features for the women! We worship-pray Shatri, a Raj Rishi, the son of Agni Vesh, the donor of unlimited wealth. He possess resemblance, similarity, analogy and is famous.(22.06.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (35) :: ऋषि :-प्रभूवसुरांगिरस , देवता :- इन्द्र, छन्द :- अनुष्टुप्, पंक्ति ।
यस्ते साधिष्ठोऽवस इन्द्र क्रतुष्टमा भर।
अस्मभ्यं चर्षणीसहं सस्निं वाजेषु दुष्टरम्॥
हे इन्द्र देव! आपका जो अतिशय साधक कर्म है, उसे हमारे संरक्षण के लिए प्रयुक्त करें। आपका कर्म शत्रुओं को पराजित करने वाला अति शुद्ध और युद्ध में कठिनता से पार पाये जाने वाला है।[ऋग्वेद 5.35.1]
Hey Indr Dev! Use your protective power-measures for us. Your endeavours are meant to defeat the enemy, highly pure-pious and very difficult to over power you in the war.
यदिन्द्र ते चतस्रो यच्छूर सन्ति तिस्रः।
यद्वा पञ्च क्षितीनामवस्तत्सु न आ भर॥
हे शूर इन्द्र देव! चार वर्णों में जो आपका रक्षा कार्य है, तीन लोकों में जो आपका रक्षा कार्य विद्यमान है और जो पञ्चजन सम्बन्धी आपका रक्षा कार्य है, उस समस्त रक्षा कार्य को आप हम लोगों के लिए भली-भाँति से अभिपूरित करें।[ऋग्वेद 5.35.2]
पंचजन :: पंचजन का अभिप्राय पाँच व्यक्तियों :- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र और निषाद से है।
पाँच व्यक्ति :- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र और निषाद जो यज्ञ के सहभागी हैं।[ऋग्वेद]
शूद्र और निषाद (धर्मसूत्र में जिन्हें ब्राह्मण और शूद्र स्त्री से उत्पन्न वर्ण संस्कार माना गया है) यज्ञभागी थे। समस्त शूद्र यज्ञ के पात्र थे।[यास्क]
पंचजन शब्द का अर्थ है, चार वर्ण :- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र और पाँचवाँ निषाद।[निरुक्त]
ऋग्वेद में जातियों का वर्णन-विवरण नहीं है। सभी व्यक्ति समान थे और यज्ञ में निर्बाध हवि चढ़ाते थे। निषाद भी अप्रत्यक्ष रूप से यज्ञ याग के भाग थे।
याजक को तीन रात तक निषाद और वैश्य तथा राजन्य के साथ ठहरना होगा।[विश्वजित यज्ञ]
इस प्रकार आर्य समुदाय के निषाद आर्येत्तर थे।
गन्धर्व, पितर, देव, असुर-राक्षस, मनुष्य भी पंचजन कहे गए हैं।
Hey brave-mighty Indr Dev! Use your protective power-measures for the safety of the four Varn-castes & Panchjan 4 Varn :- Brahman, Kshatriy, Vaeshy, Shudr & Nishad as the fifth Varn, three abodes (earth, heavens, nether world), discharge your duty-liability for our sake.
आ तेऽवो वरेण्यं वृषन्तमस्य हूमहे।
वृषजूतिर्हि जज्ञिष आभूभिरिन्द्र तुर्वणिः॥
हे इन्द्र देव! आप इष्ट फलों को देने वाले, वृष्टि कर्ता और शीघ्र शत्रु संहारक हैं। आपका रक्षण कार्य वरणीय है। हम उसका आह्वान करते हैं। आप सर्वव्यापी मरुतों के साथ मिलकर हम सभी के लिए श्रेष्ठ दाता बनें।[ऋग्वेद 5.35.3]
Hey Indr Dev! You accomplish desires, cause rains and eliminate the enemy quickly. Your defence system is desirable. We invite you for our protection. Become the best donor joining the Marud Gan pervading all abodes.
वृषा ह्यसि राधसे जज्ञिषे वृष्णि ते शवः।
स्वक्षत्रं ते घृषन्मनः सत्राहमिन्द्र पौंस्यम्॥
हे इन्द्र देव! आप अभीष्ट फल वर्षक है। याजक गणों को धन देने के लिए आपने जन्म ग्रहण किया। आपका बल फल वर्षण करता है। आपका मन स्वभाव से ही बलवान् है और विरोधियों का दमनकारी है। हे इन्द्र देव! आपका पौरुष शत्रु संहारक है।[ऋग्वेद 5.35.4]
पौरुष :: पुरुषत्व, पुरुष की शक्ति, पुरुष होने का भाव; masculinity, manly strength, courage, vigour, virility.
Hey Indr Dev! You grant desires. You are born to grant wealth-riches to the Ritviz-hosts. Your might-power grant rewards. Your innerself is strong and repress-destroy the opponents. Your masculinity destroy the enemy.
त्वं तमिन्द्र मर्त्यममित्रयन्तमद्रिवः।
सर्वरथा शतक्रतो नि याहि शवसस्पते॥
हे इन्द्र देव! आप वज्रधारी हैं। आपका रथ सभी जगह अप्रतिहत गति से गमन करता है। आप सौ यज्ञों के अनुष्ठानकर्ता एवं बल के अधिपति हैं, जो मनुष्य आपके प्रति शत्रुता का आचरण करता है, आप उनके विरुद्ध चलते है।[ऋग्वेद 5.35.5]
अप्रतिहत :: जिसे कोई रोक न सके, निर्बाध, अप्रभावित, अंकुश; continuous.
अधिपति :: शासक, अधिपति, सर्वोच्च, अधिपति, श्रीमन्त, अधिपति, दूसरों पर अधिकार जमाना या बतलाना, अधिराज; overlord, lord, hegemonic.
Hey Indr Dev! You wield the Vajr. Your charoite moves-runs continuously. You are the performer of 100 Yagy and the lord of strength. Any one who opposes you, you act against him.
त्वामिवृत्रहन्तम जनासो वृक्तबर्हिषः।
उग्रं पूर्वीषु पूर्व्यं हवन्ते वाजसातये॥
हे शत्रुओं के हन्ता इन्द्र देव! यज्ञ करने वाले मनुष्य संग्राम में आपका ही आह्वान करते हैं, क्योंकि आप उग्र वीर और समस्त प्रजाओं के मध्य में पुरातन हैं।[ऋग्वेद 5.35.6]
Hey killer-slayer of the enemy Indr Dev! The fighter in the war invoke you since you are furious brave and eternal, amongest the populace.
अस्माकमिन्द्र दुष्टरं पुरोयावानमाजिषु।
सयावानं धनेधने वाजयन्तमवा रथम्॥
हे इन्द्र देव! आप हमारे रथ की रक्षा करें। यह रथ संग्राम में सब प्रकार के धन की इच्छा करता है, अनुचरों के साथ गमन करने वाला और दुस्तर है।[ऋग्वेद 5.35.7]
Hey Indr Dev! Protect our charoite. This charoite has the calibre, capacity to have all sorts of riches-wealth, moves along with the followers-servants and is intricate.
अस्माकमिन्द्रेहि नो रथमवा पुरन्ध्या।
वयं शविष्ठ वार्यंदिवि श्रवो दधीमहि दिवि स्तोमं मनामहे॥
हे इन्द्र देव! आप हमारे निकट आत्मीय होकर आवें। अपनी उत्कृष्ट बुद्धि द्वारा हमारे रथ की रक्षा करें। आप निरतिशय बलशाली और दीप्तिमान् हैं। आपके अनुग्रह से हम वरणीय धन या कीर्त्ति आप में स्थापित करते हैं। आप द्युतिमान् हैं इसलिए हम आपकी प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 5.35.8]
Hey Indr Dev! Join us as a friend & relative, well wisher. Protect our charoite with your prudence-brilliance. You are radiant and very powerful. By virtue of your obligation-kindness, we establish acceptable wealth & glory in you. You are aurous-radiant & hence we worship you.(24.06.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (36) :: ऋषि :-प्रभूवसुरांगिरस , देवता :- इन्द्र, छन्द :- त्रिष्टुप्, जगती।
स आ गमदिन्द्रो यो वसूनां चिकेतद्दातुं दामनो रयीणाम्।
धन्वचरो न वंसगस्तृषाणश्चकमानः पिबतु दुग्धमंशुम्॥
इन्द्र देव हमारे यज्ञ में आगमन करें। जो देव धनों को देना जानते हैं, वे किस तरह के हैं? इन्द्र देव धन के दाता हैं अथवा स्वभाव से ही दानी हैं। धनुष के साथ गमन करने वाले धानुष्क के तुल्य साहस पूर्ण गमन करने वाले और अत्यन्त तृषित इन्द्र देव अभिषुत सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 5.36.1]
तृषित :: प्यासा, पिपासु, आकुल, विकल; घबराया हुआ, विशेष कामना रखने वाला; thirsty.
Let Indr Dev join our Yagy. What is the configuration of the demigods-deities, who just donate wealth? Indr Dev is a donor, who moves bravely with his bow & wish to drink extracted Somras.
आ ते हनू हरिवः शूर शिप्रे रुहत्सोमो न पर्वतस्य पृष्ठे।
अनु त्वा राजन्नर्वतो न हिन्वन् गीर्भिर्मदेम पुरुहूत विश्वे॥
हे अश्व द्वय सम्पन्न शूर इन्द्र देव! हम लोगों के द्वारा दिया गया सोमरस पर्वत शिखर के तुल्य आपकी संहारक हनु प्रदेश में आरोहण करे। हे राजमान इन्द्र देव! तृण द्वारा जिस प्रकार से घोड़े तृप्त होते हैं, उसी प्रकार से हम आपको स्तुतियों द्वारा प्रसन्न करते हैं। हे इन्द्र देव! आप बहु स्तुत हैं।[ऋग्वेद 5.36.2]
Hey brave Indr Dev, lord of the horses duo! Let the Somras offered by us, move to your destructive chin region, like conquering the mountain. Hey emperor Indr Dev, worshiped by several people! We make you happy by the recitation of scared hymns just as the horse is satisfied by the straw.
चक्रं न वृत्तं पुरुहूत वेपते मनो भिया मे अमतेरिदद्रिवः।
रथादधि त्वा जरिता सदावृध कुविन्नु स्तोषन्मघवन्पुरूवसुः॥
हे बहु स्तुत, वज्रवान् इन्द्र देव! भूमि में वर्तमान चक्र के समान हमारा हृदय दारिद्रता के भय से कम्पायमान् हो रहा है। हे सर्वदा वर्द्धमान इन्द्र देव! स्तोता पुरुवसु ऋषि शीघ्र ही बहुलता से आपकी प्रार्थना करते हैं। आप रथ पर आरूढ़ हैं।[ऋग्वेद 5.36.3]
Hey Indr Dev, worshipped by many, possessing Vajr! We are afraid of poverty during this cycle-era, Yug over the earth. Hey always growing-progressing Indr Dev! Stota-worshipper Puruvasu quickly recited sacred hymns to pray-worship you. You are riding the charoite.
एष ग्रावेव जरिता त इन्द्रेयर्ति वाचं बृहदाशुषाणः।
प्र सव्येन मघवन्यंसि रायः प्र दक्षिणिद्धरिवो मा वि वेनः॥
हे इन्द्र देव! प्रभूत फल को भोगने वाले स्तोता अभिषव करने वाले पाषाण के तुल्य आपकी प्रार्थना करते हैं। हे धनवान् और हरि नामक अश्व वाले इन्द्र देव! आप बाँयें हाथ से धन दान करते हैं और दाहिनें हाँथ से भी धन दान करते हैं। आप हमारी कामनाओं को विफल न करें।[ऋग्वेद 5.36.4]
Hey Indr Dev! The Stota rewarded by you, worship you like the stone, which is poured water over it. Hey rich and the lord of horses named Hari, Indr Dev! You donate with both of your hands. Kindly accomplish our desires-do not turn down our requests.
वृषा त्वा वृषणं वर्धतु द्यौर्वृषा वृषभ्यां वहसे हरिभ्याम्।
स नो वृषा वृषरथः सुशिप्र वृषक्रतो वृषा वज्रिन्भरे धाः॥
हे इन्द्र देव! आप अभिलाषाओं के पूरक है। अभीष्टवर्षी द्यावा-पृथ्वी आपको संवर्द्धित करें। आप वर्षणकारी हों। घोड़े आपको यज्ञस्थल में वहन करते हैं। हे शोभन हनु वाले, वज्रधर इन्द्र देव! आपका रथ कल्याणकारी है। संग्राम में आप हम लोगों की रक्षा करें।[ऋग्वेद 5.36.5]
Hey Indr Dev, accomplish our desires! Let the desires accomplishing heaven & earth grow-flourish you. Please manage rains. Your horses take you to the site of Yagy. Hey Vajr wielding Indr Dev, having beautiful chin! Your charoite leads to our welfare. Protect us in the war.
यो रोहितौ वाजिनौ वाजिनीवान्त्रिभिः शतैः सचमानावदिष्ट।
यूने समस्मै क्षितयो नमन्तां श्रुतरथाय मरुतो दुवोया॥
हे इन्द्र देव के सहायक मरुतों! अन्नवान् श्रुतरथ राजा ने हमें लोहित वर्ण वाले दो अश्व और तीन सौ गौएँ प्रदान की। नित्य तरुण उस श्रुतरथ राजा के लिए सकल प्रजा परिचर्या सम्पन्न होकर प्रणाम करती है।[ऋग्वेद 5.36.6]
परिचर्या :: उत्तर रक्षा, बाद की देखभाल, अनुरक्षण; nursing, after-care.
Hey Marud Gan, accomplice-companions of Indr Dev! King Shrutrath granted us two red coloured-skinned horses. and three hundred cows. Entire populace salute the always young king Shrutrath, after discharging their duties & nursing.
ACCOMPLICE :: सहयोगी, सह-अपराधी, सहकारी; cooperative, co-operative, accessary, associate.(27.06.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (37) :: ऋषि :- अत्रि भौमा, देवता :- इन्द्र, छन्द :- त्रिष्टुप्।
सं भानुना यतते सूर्यस्याजुह्वानो घृतपृष्ठः स्वञ्चाः।
तस्मा अमृध्रा उषसो व्युच्छान्य इन्द्राय सुनवामेत्याह॥
यथाविधि रूप से आवाहित अग्नि में हव्य प्रदान करने से अग्नि देव प्रदीप्त होकर सूर्य रश्मियों के साथ आहूयमान होते हैं। जो याजकगण "इन्द्रदेव के लिए होम करो" यह कहता है, उस यजमान के लिए उषा अहिंसित होती है।[ऋग्वेद 5.37.1]
Agni Dev glow like the Sun rays on being invoked for making offerings procedurally. The Ritviz who chant, "conduct Hawan for Indr Dev", Usha-dawn rise harmlessly-innoxiously for him.
समिद्धाग्निर्वनवत्स्तीर्णबर्हिर्युक्तग्रावा सुतसोमो जराते।
ग्रावाणो यस्येषिरं वदन्त्ययदध्वर्युर्हविषाव सिन्धुम्॥
अग्नि को प्रदीप्त करने वाले और कुश को विस्तृत करने वाले याजक गण सम्भजन करते हैं। पाषाणोत्तोलन पूर्वक जिन्होंने सोमरस निःसृत किया, वे प्रार्थना करते हैं। जिस अध्वर्यु के पाषाण से सुमधुर शब्द होता है, वह अध्वर्यु हव्य लेकर नदी के किनारे यजन कार्य करते हैं।[ऋग्वेद 5.37.2]
The Ritviz-hosts spread Kush grass and ignite fire for worship-prayers. One who extract Somras by crushing it with stones generating sweet-melodious sound, conduct Yagy over the river bed-bank.
वधूरियं पतिमिच्छन्त्येति य ईं वहाते महिषीमिषिराम्।
आस्य श्रवस्याद्रथ आ च घोषात्पुरु सहस्रा परि वर्तयाते॥
पत्नी-पति की इच्छा करती हुई, यज्ञ में उसी का अनुगमन करती है। इन्द्र देव इसी प्रकार से अनुगामिनी महिषी का आनयन करते हैं। इन्द्र देव का रथ हम लोगों के निकट प्रचुर धन वहन करे। वह अधिक शब्द करता है। वह चारों ओर से सहस्र धन निःक्षेप करे।[ऋग्वेद 5.37.3]
महिषी :: भैंस, महिष, सम्राट् की पत्नी; empress.
आनयन :: ले आना, लाना, उपनयन संस्कार; fetch.
अनुगामिनी :: अनुगमन करने वाली, पीछे चलने वाली, आज्ञाकारिणी; the woman who follows.
निक्षेप :: फेंकना, भेजना; deposit, deposition.
The wife follows her husband in the Yagy. Indr Dev similarly fetch the empress who follows. Let the charoite of Indr Dev bear-possess a lot of wealth, generating a lot of sound; deposit money from all sides.
न स राजा व्यथते यस्मिन्निन्द्रस्तीव्रं सोमं पिबति गोसखायम्।
आ सत्वनैरजति हन्ति वृत्रं क्षेति क्षितीः सुभगो नाम पुष्यन्॥
जिनके यज्ञ में इन्द्र देव दुग्ध मिश्रित मद जनक सोमरस का पान करते हैं, वे राजा कभी व्यथित नहीं होते। वे राजा अनुचरों के साथ सभी जगह गमन करते हैं, शत्रुओं का संहार करते हैं, प्रजाओं की रक्षा करते हैं और सुख-सम्भोग से युक्त होकर इन्द्र देव की प्रार्थना का पोषण करते हैं।[ऋग्वेद 5.37.4]
The kings in who's Yagy Indr Dev drink intoxicating Somras, never feel disturbed. They move all around with their soldiers and destroy-kill the enemy; protect the populace, have all sorts of comforts & worship-pray Indr Dev.
पुष्यात्क्षेमे अभियोगे भवात्युभे वृतौ संयती सं जयाति।
प्रियः सूर्ये प्रियो अग्ना भवाति य इन्द्राय सुतसोमो ददाशत्॥
जो इन्द्र देव को अभिषेत सोमरस प्रदान करता है, वह बन्धु-बान्धवों का पोषण करता है, वह प्राप्त धन की रक्षा करने और अप्राप्त धन की प्राप्ति में समर्थ होता है, वह वर्तमान तथा नियत अहोरात्र को जीतता है। वह सूर्य देव और अग्नि देव दोनों का ही प्रियपात्र होता है।[ऋग्वेद 5.37.5]
One who offers Somras to Indr Dev, nurse-support his friends & relatives, protect the money he has, win the present and the fixed day & night, is dear to both Sun-Sury Dev and Agni Dev.(28.06.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (38) :: ऋषि :- अत्रि भौमा, देवता :- इन्द्र, छन्द :- अनुष्टुप्।
उरोष्ट इन्द्र राधसो विभ्वी रातिः शतक्रतो।
अधा नो विश्वचर्षणे द्युम्ना सुक्षत्र मंहय॥
हे सर्वदर्शी, हे शोभन धन वाले इन्द्र देव! आपने बहुत से कर्म किये। आप प्रभूत धन का महान् दान करते हैं। आप हम लोगों को महान् धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 5.38.1]
Hey Indr Dev, looking all over-around and possessing beautiful wealth! You accomplished several endeavours-deeds. You donate ample wealth. Grant us a lot of wealth-riches.
यदीमिन्द्र श्रवाय्यमिषं शविष्ठ दधिषे।
पप्रथे दीर्घश्रुत्तमं हिरण्यवर्ण दुष्टरम्॥
हे महाबल शाली हिरण्य वर्ण इन्द्र देव! यद्यपि आप सुप्रसिद्ध प्रचुर अन्न के अधिपति हैं; तथापि यह अत्यन्त दुर्लभ रूप से सभी जगह कीर्तित होता है।[ऋग्वेद 5.38.2]
दुर्लभ :: कठिनता से प्राप्त होनेवाला, दुष्प्राप्य, अति प्रशस्त; rare, in short supply.
Hey highly powerful-mighty, golden skinned-coloured Indr Dev! You are the lord of rare food grains, famous all around.
शुष्मासो ये ते अद्रिवो मेहना केतसापः।
उभा देवावभिष्टये दिवश्च ग्मश्च राजथः॥
हे वज्रधर इन्द्र देव! पूजनीय एवं विख्यात कर्म करने वाले मरुद्गण आपके बल स्वरूप हैं। आप और वे दोनों ही पृथ्वी के ऊपर स्वेच्छा से भ्रमण करते हुए सब पर शासन करते हैं।[ऋग्वेद 5.38.3]
Hey Vajr wielding Indr Dev! Worship able-revered & famous Marud Gan are akin-like your might. Both of you roam over the earth freely as per your wish-will and govern everyone.
उतो नो अस्य कस्य चिद्दक्षस्य तव वृत्रहन्।
अस्मभ्यं नृम्णमा भरास्मभ्यं नृमणस्यसे॥
हे वृत्र हन्ता इन्द्र देव ! हम लोग आपकी उपासना करते हैं। आप हम लोगों को किसी क्षमताशाली शत्रु का धन लाकर प्रदान करें; क्योंकि आप हम लोगों को धनाढ्य करने के अभिलाषा करते हैं।[ऋग्वेद 5.38.4]
Hey slayer of Vratr Indr Dev! We worship you. Bring wealth of some capable-mighty enemy for us since we desire to be rich.
नू त आभिरभिष्टिभिस्तव शर्मञ्छतकता।
इन्द्र स्याम सुगोपाः शूर स्याम सगोपाः॥
हे सौ यज्ञ करने वाले इन्द्र देव! आपके अभिगमन से हम शीघ्र ही समृद्ध हों। हे इन्द्र देव! आपके सुख में हम अंशभागी हों। हे शूर! आपके द्वारा हम सुरक्षित हों।[ऋग्वेद 5.38.5]
Hey performer of hundred Yagy, Indr Dev! Your movement will make us rich. Let us become participant in your comforts-happiness. Hey brave! Let us be protected by you.(28.06.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (39) :: ऋषि :- अत्रि भौम, देवता :- इन्द्र, छन्द :- अनुष्टुप्, पंक्ति।
यदिन्द्र चित्र मेहनास्ति त्वादातमद्रिवः।
राधस्तन्नो विदद्वस उभयाहस्त्या भर॥
हे वज्र धर इन्द्र देव! आपका रूप अत्यन्त विचित्र है। देने के लिए आपके पास जो महामूल्य धन है, हे धनवान् इन्द्र देव! उसे आप हम लोगों को दोनों हाथों से प्रदत्त करें।[ऋग्वेद 5.39.1]
Hey Vajr wielding, wealthy Indr Dev! Your figure (shape & size) is amazing. Grant us the precious wealth possessed by you, with both of your hands.
यन्मन्यसे वरेण्यमिन्द्र द्युक्षं तदा भर।
विधाम तस्य ते वयमकूपारस्य दावने॥
हे इन्द्र देव! जिस अन्न को आप श्रेष्ठ समझते हैं, वह अन्न हम लोगों को प्रदान करें। हम आपके उस श्रेष्ठ अन्न के दान पात्र हों।[ऋग्वेद 5.39.2]
Hey Indr Dev! Grant us the food grains, which you consider excellent-best. We should be eligible for your excellent food grains.
यत्ते दित्सु प्रराध्यं मनो अस्ति श्रुतं बृहत्।
तेन द्दळ्हा चिदद्रिव आ वाजं दर्षि सातये॥
हे वज्र धर इन्द्र देव! आपका मन दान देने के लिए विश्रुत और महान् है। आप हम लोगों को सारवान् अन्न प्रदान करने के लिए आदर प्रदर्शित करते हैं।[ऋग्वेद 5.39.3]
विश्रुत :: famous.
Hey Vajr wielding Indr Dev! Your innerself-mind is famous & inclined to make great donations. We show our gratitude for respect-granting us food grains having extract.
मंहिष्ठ वो मघोनां राजानं चर्षणीनाम्।
इन्द्रमुप प्रशस्तये पूर्वीभिर्जुजुषे गिरः॥
इन्द्र देव हवि लक्षण धन से युक्त हैं। वे आप लोगों के अत्यन्त पूजनीय मनुष्यों के वे अधिपति हैं। स्तोता लोग प्राचीन स्तोत्रों द्वारा प्रशंसा करने के लिए उनकी सेवा करते हैं।[ऋग्वेद 5.39.4]
Indr Dev possess the wealth with the charctrices of offerings. He is the lord of revered-respected, honoured humans. The Stota appreciate him with the eternal-ancient Strotr and serve him.
अस्मा इत्काव्यं वच उक्थमिन्द्राय शंस्यम्।
तस्मा उ ब्रह्मवाहसे गिरो वर्धन्त्यत्रयो गिरः शुभ्भन्त्यत्रयः॥
इन्द्र देव के लिए ही यह काव्य, वाक्य और उक्थ उच्चरित हुआ है। वे स्तोत्र वाहक हैं। अत्रि ऋषि के पुत्र उनके निकट ही स्तोत्रों को उच्च स्वर से उच्चारित कर उद्दीपित करते हैं।[ऋग्वेद 5.39.5]
उक्थ :: कथन, सूक्ति; spelled, stated.
उद्दीपित :: जागरित किया हुआ; awakened.
This composition-poetry, sentences are spelled-stated for Indr Dev. He is the carrier of the Strotr. The sons of Atri Rishi recite-spell, awake the Strotr in his proximity with loud voice.(28.06.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (40) :: ऋषि :- अत्रि भौमा, देवता :- इन्द्र, सूर्य, छन्द :- उष्णिक्, त्रिष्टुप् अनुष्टुप्।
आ याह्यद्रिभिः सुतं सोमं सोमपते पिब। वृषन्निन्द्र वृषभिर्वृत्रहन्तम॥
हे इन्द्र देव! हम लोगों के यज्ञ में आप उपस्थित हों। हे सोमरस के स्वामी इन्द्र देव! आकर पत्थरों-द्वारा अभिषुत सोमरस का पान करें। हे फल वर्षक, हे शत्रुओं के अतिशय हन्ता! फलवर्षी मरुतों के साथ आप सोमपान करें।[ऋग्वेद 5.40.1]
Hey Indr Dev! Join out Yagy. Hey the lord of Somras! Drink the Somras crushed & extracted with stones. Hey rewarding, slayer of the enemy! Drink Somras along with the Marud Gan, who accomplish desires.
वृषा ग्रावा वृषा मदो वृषा सोमो अयं सुतः। वृषन्निन्द्र वृषभिर्वृत्रहन्तम॥
अभिषव साधन पाषाण वर्षणकारी है। सोमपान जनित हर्ष वर्षणकारी है। यह अभिषुत सोम वर्षणकारी है। हे फल वर्षक! शत्रुओं के अतिशय हन्ता! फलवर्षी मरुतों के साथ आप सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 5.40.2]
The stones used to extract Somras leads to rains. Drinking of Somras grant rains. This extracted Somras draws rains. Hey rewarding, destroyer of the enemy! Drink Somras along with the Marud Gan, who accomplish desires.
वृषा त्वा वृषणं हुवे वज्रिञ्चित्राभिरूतिभिः। वृषन्निन्द्र वृषभिर्वृत्रहन्तम॥
वज्रधर इन्द्र देव! आप सोमरस के सेचन कर्ता और अभीष्ट वर्षी हैं। हम विचित्र रक्षा के लिए आपका आह्वान करते हैं। हे फलवर्षक शत्रुओं के अतिशय हन्ता! फलवर्षी मरुतों के साथ आप सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 5.40.3]
सेचन :: सिंचाई करना, सिंचन, पानी छिड़कना; pollination.
Hey Vajr wielding Indr Dev! Hey nurturer of Somras and desires accomplisher, we invoke you for our protection-safety. Hey rewarding slayer of the enemy! Drink-enjoy Somras along with the Marud Gan.
ऋजीषी वज्री वृषभस्तुराषाट्छुष्मी राजा वृत्रहा सोमपावा।
युक्त्वा हरिभ्यामुप यासदर्वाङ्माध्यन्दिने सवने मत्सदिन्द्रः॥
इन्द्र देव ऋजीषी और वज्रधर हैं। इन्द्र देव अभीष्टवर्षी, शत्रु संहारकर्ता, बलवान्, सभी के ईश्वर, वृत्र हन्ता और सोमपान कर्ता हैं। इस तरह के इन्द्र देव घोड़ों को रथ में नियोजित करके हम लोगों के अभिमुख पधारें और माध्यन्दिन सवन में सोमपान से हर्षित हों।[ऋग्वेद 5.40.4]
ऋजीषी :: कर्ता; nominative, singular, masculine.
Hey Vajr wielding, singularly doer Indr Dev! You are accomplisher of desires, slayer-killer of enemies, mighty-powerful, lord of all, killer of Vrata Sur and extractor of Somras. Let Indr Dev deploy horses in his charoite and come to us for drinking Somras during the day-noon.
यत्त्वा सूर्य स्वर्भानुस्तमसाविध्यदासुरः।
अक्षेत्रविद्यथा मुग्धो भुवनान्यदीधयुः॥
हे सूर्य देव! स्वर्भानु नामक असुर ने जब आपको अन्धकार से आच्छदित कर दिया, तब जैसे मनुष्य अन्धकार में अपने क्षेत्र या रास्ते को न जानकर भ्रमित हो जाता है, उसी प्रकार से सभी लोग तमिस्रा में सम्मोहित हो गये।[ऋग्वेद 5.40.5]
तमिस्रा :: अँधेरी रात, गहन-गहरा अँधेरा या अंधकार, क्रोध, द्वेष, राग आदि दूषित और तामसिक मनोविकार, अविद्या का वह रूप जो भोग-विलास की पूर्ति में बाधा पड़ने पर उत्पन्न होता है और जिससे मनुष्य क्रोध वैर आदि करने लगता है; darkness, anger, attachment.
Hey Sury-Sun Dev! When the demon Swarbhanu had covered-hidden you, every one became confused-illusioned unable to recognise their either the locality or the path.
स्वर्भानोरध यदिन्द्र माया अवो दिवो वर्तमाना अवाहन्।
गूळ्हं सूर्यं तमसापव्रतेन तुरीयेण ब्रह्मणाविन्ददत्रिः॥
हे इन्द्र देव! जब आपने सूर्य के अधोदेश में वर्त्तमान, स्वर्भानु असुर की द्युतिमान् माया को नष्ट किया, तब व्रत विघातक अन्धकार द्वारा समाच्छन्न सूर्य देव को अत्रि ने चार ऋचाओं द्वारा प्रकाशमान किया।[ऋग्वेद 5.40.6]
ऋचा :: incantation.
Hey Indr Dev! When you removed-eliminated the bright cast-illusion made by the demon Swarbhanu, the darkness spoiled the fasts-endeavours, Atri Rishi lit the Sun by four Mantr-sacred hymns.
मा मामिमं तव सन्तमत्र इरस्या द्रुग्धो भियसा नि गारीत्त्वं।
मित्रो असि सत्यराधास्तौ मेहावतं वरुणश्च राजा॥
सूर्य वाक्य :- हे अत्रि! ऐसी अवस्था वाले हम आपके हैं। अन्न की इच्छा से द्रोह करने वाले असुर भय जनक अन्धकार द्वारा हमें नहीं निगल जायें; इसलिए आप और वरुण देव दोनों हमारी रक्षा करें। आप हमारे मित्र और सत्य पालक हैं।[ऋग्वेद 5.40.7]
Sury Dev said :- Hey Atri! In this situation-condition, we belong to you. The demons desirous of food grains may not engulf us by virtue of fear some darkness, we request you and Varun Dev to protect us. You are our friend and stand by the truth.
ग्राव्णो ब्रह्मा युयुजानः सपर्यन् कीरिणा देवान्नमसोपशिक्षन्।
अत्रिः सूर्यस्य दिवि चक्षुराधात्स्वर्भानोरप माया अघुक्षत्॥
उस समय ऋत्विक् अत्रि ने सूर्य को उपदेश दिया, प्रस्तर खण्डों का घर्षण करके इन्द्र देव के लिए सोमाभिषव किया, स्तोत्रों द्वारा देवी की पूजा की और मन्त्र प्रभाव से अन्तरिक्ष में सूर्य देव चक्षु को स्थापित किया। उस समय उन्होंने स्वर्भानु की समस्त माया को दूर कर दिया।[ऋग्वेद 5.40.8]
At that moment Ritviz Atri advised Sury Dev, that he should rub the stones and extract Somras for Indr Dev, worshiped the Goddess-Maa Bhagwati and established Sury Dev Chakshu in the space eliminating-removing the darkness and cast-spell of Swarbhanu.
यं वै सूर्यं स्वर्भानुस्तमसाविध्यदासुरः।
अत्रयस्तमन्वविन्दन्नह्य १ न्ये अशक्नुवन्॥
असुर स्वर्भानु ने जिस सूर्य को अन्धकार द्वारा आच्छदित किया, अत्रि पुत्रों ने अवशेष में उन्हें मुक्त किया। दूसरा कोई ऐसा करने में समर्थ न हुआ।[ऋग्वेद 5.40.9]
Atri's sons liberated the Sun, which was engulfed with darkness by Swarbhanu. None other had this power.(29.06.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (41) :: ऋषि :- अत्रि भौमा, देवता :- विश्वेदेव, छन्द :- त्रिष्टुपादि।
को नु वां मित्रावरुणावृतायन्दिवो वा महः पार्थिवस्य वा दे।
ऋतस्य वा सदसि त्रासीथां नो यज्ञायते वा पशुषो न वाजान्॥
हे मित्र-वरुण देव! आप दोनों का यज्ञ करने की इच्छा करने में कौन याजक समर्थ हो सकता है? आप दोनों स्वर्ग, पृथ्वी और अन्तरिक्ष के किस स्थान में रहकर हम लोगों की रक्षा करते हैं और हव्यदाता याजकगण को पशु तथा धन से युक्त करते हैं।[ऋग्वेद 5.41.1]
Hey Mitr & Varun Dev! Who amongest the hosts-Ritviz is capable of conducting Yagy for your sake? Which of the abodes :- heavens, earth or the space, is there from where you reside & protect us? You grant animals and wealth to the Ritviz, who make offerings for you.
ते नो मित्रो वरुणो अर्यमायुरिन्द्र ऋभुक्षा मरुतो जुषन्त।
नमोभिर्वा ये दधते सुवृक्तिं स्तोमं रुद्राय मीळ्हुषे सजोषाः॥
हे मित्र, वरुण, अर्यमा, वायु, इन्द्र देव, ऋभुक्षा और मरुद्गण! आप सब देव हमारे शोभन और पाप वर्जित स्तोत्रों को ग्रहण करें। आप सब रुद्र के साथ प्रसन्न होकर पूजा ग्रहण करें।[ऋग्वेद 5.41.2]
Hey Mitr, Varun, Aryma, Vayu, Indr Dev, Ribhuksha and Marud Gan! All of you, demigods & deities, accept our sinless sacred hymns-Strotr. Accept the prayers happily along with Rudr-Bhagwan Shiv.
आ वां येष्ठाश्विना हुवध्यै वातस्य पत्मन्रथ्यस्य पुष्टौ।
उत वा दिवो असुराय मन्म प्रान्धांसीव यज्यवे भरध्वम्॥
हे अश्विनी कुमारो! आप दोनों दमनकारी हैं। हम आपके रथ को वायु वेग द्वारा वेगवान् करने के लिए आप दोनों का आह्वान करते हैं। हे ऋत्विकों! आप लोग द्युतिमान् और प्राणापहारक रुद्र के लिए उत्तम स्तोत्र और हव्य का सम्पादन करें।[ऋग्वेद 5.41.3]
दमनकारी :: अत्याचारी, उत्पीड़क, असह्य, सताने वाला, दबाने वाला; oppressive, repressive, suppressive.
Hey Ashwani Kumars! Both of you are repressive. We invoke you to accelerate your charoite to move with the speed like the air. Hey Ritviz! Make offerings with excellent Strotr-sacred hymns and make offerings for the sake of radiant Rudr who vanish the sins.
प्र सक्षणो दिव्यः कण्वहोता त्रितो दिवः सजोषा वातो अग्निः।
पूषा भगः प्रभृथे विश्वभोजा आजिं न जग्मुराश्वश्वतमाः॥
मेधावी लोग जिनका आह्वान करते हैं, जो यज्ञ का सेवन करते हैं, शत्रुओं का विनाश करते हैं और स्वर्गीय हैं, वे (वायु, अग्नि देव, पूषा) क्षिति आदि तीनों स्थानों में जायमान होकर सूर्य देव के साथ तुल्य रूप से स्नेह उत्पन्न करते हैं। ये सकल विश्व रक्षक देव यज्ञस्थल में शीघ्र पधारें, जिस प्रकार वेगवान् अश्व युद्ध में वेग से आगमन करते हैं।[ऋग्वेद 5.41.4]
क्षिति :: पृथ्वी, निवास-स्थान; earth, residence.
जायमन :: नवजात; nascent-newly born, nascent things or processes are just beginning and are expected to become stronger or to grow bigger.
The intelligent invoke Vayu, Agni & Pusha Dev, who accept the offerings of Yagy, destroy the enemy & are heavenly, stay over the earth nascently and generate love & affection like the Sun. Let the protectors of the whole world come to the Yagy quickly like the horses who arrive in the war-battle.
प्र वो रयिं युक्ताश्वं भरध्वं राय एषेऽवसे दधीत धीः।
सुशेव एवैरौशिजस्य होता ये व एवा मरुतस्तुराणाम्॥
हे मरुतों! आप लोग अश्व सहित धन का सम्पादन करें। स्तोता लोग गौ, अश्व आदि धन लाभ के लिए और प्राप्त धन की रक्षा के लिए आप लोगों की प्रार्थना करते हैं। उशिज पुत्र कक्षीवान् के होता अत्रि गमनशील अश्वों द्वारा सुखी हों। जो घोड़े वेगवान् हैं, वे आपके ही है।[ऋग्वेद 5.41.5]
Hey Marud Gan! Grant wealth & horses. The Stota-worshipers pray you for the sake of wealth, cow & horses and their protection thereafter. Let Atri the Ritviz of Kakshiwan, son of Ushij be happy with the fast moving strong horses, belonging to you.
प्र वो वायुं रथयुजं कृणुध्वं प्र देवं विप्रं पनितारमर्कैः।
इषुध्यव ऋतसापः पुरंधीर्वस्वीर्नो अत्र पत्नीरा धिये धुः॥
हे हमारे ऋत्विको! आप लोग द्युतिमान्, कामनाओं के विशेष पूरक या विप्रवत् पूज्य और स्तुति योग्य वायु देव को यज्ञ में जाने के लिए अर्चनीय स्तोत्रों द्वारा रथा पर आरूढ़ करें। गमनवती, यज्ञ ग्रहण कारिणी रूपवती और प्रशंसनीय देव पत्नियाँ हमारे यज्ञ में आगमन करें।[ऋग्वेद 5.41.7]
Hey our Ritviz! Let radiant, accomplisher of desires, worshiped like a Brahman, Vayu Dev ride the charoite, with the worship able Strotr for joining the Yagy. Let the beautiful, appreciable wives of the demigods-deities join our Yagy.
उप व एषे वन्द्येभिः शूषैः प्र यह्वी दिवश्चितयद्भिरकैः।
उषासानक्ता विदुषीव विश्वमा हा वहतो मर्त्याय यज्ञम्॥
हे अहोरात्राभिमानी देवों! आप दोनों महान् है। वन्दनीय स्वर्ग में रहने वाले देवों के साथ हम आप दोनों को सुखदायक और ज्ञापक मन्त्रों के साथ हव्य प्रदान करते हैं। हे देवों! आप दोनों सब कर्मों को जानकर याजकगण के यज्ञाभिमुख आगमन करें।[ऋग्वेद 5.41.7]
ज्ञापक :: ज्ञान प्राप्त कराने वाला, परिचय देनेवाला; enlightening, declaratory, showing.The deities of the day & night! Both of you are great. We make offerings to you, the resident of the heavens with the enlightening Mantr. Hey deities! Both of you come to the Yagy recognising the endeavours.
अभि वो अर्चे पोष्यावतो नॄन्वास्तोष्पतिं त्वष्टारं रराणः।
धन्या सजोषा धिषणा नमोभिर्वनस्पतींरोषधी राय एषे॥
आप सब बहुत लोगों के पोषक और यज्ञ के नेता है। स्तोत्रादि के द्वारा अथवा हवि देकर हम आपकी स्तुति धन-लाभ के लिए करते हैं। वास्तुपति त्वष्टा की हम प्रार्थना करते हैं। धन देने वाली और अन्यान्य देवों के साथ गमन करने वाली धिषणा (वाणी) की हम प्रार्थना करते हैं। वनस्पतियों और औषधियों की हम प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 5.41.8]
धिषणा :: ज्ञान, बुद्धि, भाषण, भजन की देवी; deity enlightenment, intelligence, speech and hymns.
You are the nurturer-nourisher of all humans and leaders of the Yagy. We pray-worship you with the Strotr & making offerings. We worship Twasta-the deity of Vastu. We worship deity Dhishna the deity of enlightenment, intelligence, speech and hymns who grants riches and accompany the demigods-deities. We worship the vegetation and medicines.
तुजे नस्तने पर्वताः सन्तु स्वैतवो ये वसवो न वीराः।
पनित आप्त्यो यजतः सदा नो वर्धान्न: शंसं नर्यो अभिष्टौ॥
वीरों के समान जगत् के संस्थापक मेघ विस्तृत दान के विषय में हम लोगों के प्रति अनुकूल हों। वे स्तुति योग्य, आप्त्य, यजनीय, मनुष्यों के हितकारी और हम लोगों की स्तुति से सदा प्रसन्न होकर हम लोगों को समृद्धवान् बनावें।[ऋग्वेद 5.41.9]
संस्थापक :: प्रतिष्ठापक, सरपरस्त, संरक्षक, प्रतिपालक; founder, promoter.Like the brave, founders of the universe clouds be compatible to us for donations. They are worshipable, well wishers of the humans and grant progeny. Let them be happy with our prayers-requests and make us rich.
COMPATIBLE :: अनुकूल, संगत, मुताबिक़; consistent, relevant, harmonious, coherent, logical, suited, favourable, congruent, congenial, propitious, homologous, congruous.वृष्णो अस्तोषि भूम्यस्य गर्भंत्रितो नपातमपां सुवृक्ति।
गृणीते अग्निरेतरी न शूषैः शोचिष्केशो नि रिणाति वना॥
हम वर्षणकारी, अन्तरिक्ष के गर्भ स्थानीय जल के रक्षक वैद्युत् अग्नि देव की पाप वर्जित शोभन स्तोत्रों द्वारा प्रार्थना करते हैं। अग्नि देव तीन स्थानों में व्याप्त और त्रिविध हैं। मेरे गमनकाल में सुखकर रश्मियों द्वारा मेरे ऊपर क्रुद्ध नहीं होते हैं, किन्तु प्रदीप्त ज्वाला धारित कर वे वनों को जलाते अर्थात् भस्मी भूत कर देते हैं।[ऋग्वेद 5.41.10]
We worship electric Agni Dev who cause rains, protect the water in space with the pious Strotr which remove-delete our sins. Agni Dev pervades the three abodes and act in three different ways. He do not get angry with me, while ready to move but engulf-burn the forests.
कथा महे रुद्रियाय ब्रवाम कद्राये चिकितुषे भगाय।
आप ओषधीरुत नोऽवन्तु द्यौर्वना गिरयो वृक्षकेशाः॥
हम अत्रि गोत्रोत्पन्न किस प्रकार से महान् रुद्र पुत्र मरुतों की प्रार्थना करें? सर्वविद् भगदेव को धन-लाभ के लिए कौन-सा स्तोत्र उच्चारित करें। जल देवता, औषधियाँ, द्युदेवता, वन और वृक्ष जिनके केश स्वरूप हैं, वे पर्वत हम लोगों की सदैव रक्षा करें।[ऋग्वेद 5.41.11]
How should we born in Atri clan, worship the great sons of Rudr, Marud Gan?! Which Strotr should we recite to worship enlightened Bhag Dev for having wealth? Let the mountains who's extensions are like the hair of the deity of water, medicines, deity of heaven, forests and trees, protect us.
शृणोतु न ऊर्जां पतिर्गिरः स नभस्तरीयाँ इषिरः परिज्मा।
शृण्वन्त्वापः पुरो न शुभ्राः परि स्रुचो बबृहाणस्याद्रेः॥
बल अथवा अन्न के अधिपति और आकाशचारी वायु हमारी स्तुतियों को श्रवण करें। नगर तुल्य उज्ज्वल, बड़े पर्वत के चतुर्दिक सरणशील जलधारा हमारी वाणी श्रवण करें।[ऋग्वेद 5.41.12]
सरणशील :: लचकदार, लचीला, तन्यक; flexible, resilient, elastic, pliable, springy, malleable, limber, inflectional, distensible, inflexional, inflective, distensible, non-rigid.Deity-lord of strength, food grains & air-Vayu Dev present in space should listen-respond to our prayers. Let the clean & radiant flowing in four directions resilient water, like the cities & large mountain listen to our speech, voice.विदा चिन्नु महान्तो ये व एवा ब्रवाम दस्मा वार्यं दधानाः।
वयश्चन सुभ्व १ आव यन्ति क्षुभा मर्तमनुयतं वधस्नैः॥
हे महान् मरुतों! आप लोग शीघ्र ही हमारे स्तोत्रों को जानें। हे दर्शनीयों! आपकी प्रार्थना करने वाले हम लोग श्रेष्ठ हव्य धारित करके आपकी प्रार्थना करते हैं। मरुद्गण अनुकूल भाव से आगमन करके क्षोभ द्वारा अभिभूत मनुष्य वैरियों को अस्त्रों द्वारा मार करके हम लोगों के निकट उपस्थित हों।[ऋग्वेद 5.41.13]
दर्शनीय :: प्रसिद्ध, मशहूर; beautiful, visible, notable.
Hey great Marud Gan! Respond to our prayers-Strotr quickly. Hey visible-beautiful! We the prayers, keep best offerings for you. Let Marud Gan favourably come close to us and kill the enchanted-mesmerised enemies with Astr.
आ दैव्यानि पार्थिवानिं जन्मापश्चाच्छा सुमखाय वोचम्।
वर्धन्तां द्यावो गिरश्चन्द्राग्रा उदा वर्धन्तामभिषाता अर्णाः॥
हम देव सम्बन्धी और पृथ्वी सम्बन्धी जन्म तथा जल-लाभ करने के लिए सुन्दर यज्ञ वाले मरुतों की प्रार्थना करते हैं। हमारी स्तुतियाँ वर्द्धमान हों। प्रीति दायक स्वर्ग समृद्धि सम्पन्न हों। मरुतों द्वारा परिपुष्ट नदियाँ जल पूर्ण हों।[ऋग्वेद 5.41.14]
We worship Marud Gan for beautiful Yagy pertaining to birth, demigods-deities & earth. Let our prayers-worship and the affectionate-lovely heavens grow-flourish. Let the rivers nourished by Marud Gan be full of water.
पदेपदे मे जरिमा नि धायि वरूत्री वा शक्रा या पायुभिश्च।
सिषक्तु माता मही रसा नः स्मत्सूरिभिर्ऋजुहस्त ऋजुवनिः॥
हम सदैव प्रार्थना करते हैं। जो उपद्रवों का निवारण करके हम लोगों की रक्षा करने में समर्थ होती है, वह सबकी निर्मात्री पूज्या भूमि हम लोगों की प्रार्थना को ग्रहण करें। प्रशस्त वचन वाले मेधावी स्तोताओं के प्रति वह प्रसन्न और अनुकूल हाथों से हम लोगों का कल्याण करें।[ऋग्वेद 5.41.15]
प्रशस्त :: प्रशंसा किया हुआ, प्रशंसा योग्य; appreciable, expansive, smashing.
We always keep on praying. Let the worshipable earth generating-evolving all, accept our prayers. It should be happy with those intelligent Stotas-Ritviz, hosts, who speak appreciable words and resort to our welfare.
कथा दाशेम नमसा सुदानूनेवया मरुतो अच्छोक्तौ।
मा नोऽहिर्बुध्न्योरिषे धादस्माकं भूदुपमातिवनिः॥
हम लोग किस प्रकार से उत्तम दानशील मरुतों की प्रार्थना करें? किस प्रकार वर्तमान स्तोत्र द्वारा मरुतों की सेवा करें? वर्तमान स्तोत्रों द्वारा मरुतों का स्तवन कैसे सम्भव है? अहिबुध्न्य देव हम लोगों का अनिष्ट न करे और शत्रुओं को विनष्ट करें।[ऋग्वेद 5.41.16]
How should we worship-pray Marud Gan, who make descent donation? How should we worship Marud Gan with the presently available Strotr? Deity Ahirbudhany should not harm us and destroy the enemy.
इति चिन्नु प्रजायै पशुमत्यै देवासो वनते मर्त्यो व आ देवासो वनते मर्त्यो वः। अत्रा शिवां तन्वो धासिमस्या जरां चिन्मे निर्ऋतिर्जग्रसीत॥
हे देवो! याजकगण सन्तान प्राप्ति के लिए और पशुओं के लिए आप लोगों की ही उपासना करते हैं। इस यज्ञ में निर्ऋति देवता कल्याणकार अन्न द्वारा हमारे शरीर का पोषण करें और वृद्धावस्था को दूर करें।[ऋग्वेद 5.41.17]
Hey demigods-deities! The hosts-Ritviz worship you for progeny and cattle-animals. Deity Nirrati nourish our bodies with beneficial food grains and keep us off old age.
तां वो देवाः सुमतिमूर्जयन्तीमिषमश्याम वसवः शसा गोः।
सा नः सुदानुर्मृळयन्ती देवी प्रति द्रवन्ती सुविताय गम्याः॥
हे द्युतिमान वसुओं! हम लोग आपकी उस प्रार्थना द्वारा गौ से बल कारक और हृदय पोषक अन्न प्राप्त करें। वह दान शीला और सुख दायिनी देवी हम लोगों के सुख के लिए यहाँ शीघ्र आगमन करें।[ऋग्वेद 5.41.18]
Hey radiant Vasus! Let us get nourishing & strengthening food grains from the cow by virtue of your prayers. Let the deity-goddess resorting to charity move here quickly, for our comforts.
अभि न इळा यूथस्य माता स्मन्नदीभिरुर्वशी वा गृणातु।
उर्वशी वा बृहद्दिवा गृणानाभ्यूर्ण्वाना प्रभृथस्यायोः॥
गौसमूह की निर्मात्री इला और उर्वशी नदियों के साथ हम लोगों के प्रति अनुकूल हों। निरतिशय दीप्तिशालिनी उर्वशी हम लोगों के यज्ञ आदि कार्य की प्रशंसा करके याजकगणों को दीप्ति द्वारा समाच्छादित करके यहाँ उपस्थित हों।[ऋग्वेद 5.41.19]
निरतिशय :: अद्वितीय, परमात्मा, ईश्वर; exceptional, relentlessly.
Ila & Urvashi rivers evolving cows groups should be favourable to us. Let exceptionally radiant Urvashi praise our deeds-endeavours like Yagy, granting radiance-aura to the Ritviz & be present here.
सिषक्तु न ऊर्जव्यस्य पुष्टेः॥
बल की वृद्धि व सम्यक् पोषण के लिए देवता लोग हमारी स्तुतियाँ ग्रहण करें।[ऋग्वेद 5.41.20]
Let the demigods-deities accept our prayers-worship for strengthening and proper nourishment.(02.07.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (42) :: ऋषि :- अत्रि भौम, देवता :- विश्वेदेव, रुद्र, छन्द :- त्रिष्टुप्, एकपदा विराट्।
प्र शंतमा वरुणं दीधिती गीर्मित्रं भगमदितिं नूनमश्याः।
पृषद्योनिः पञ्चहोता शृणोत्वतूर्तपन्था असुरो मयोभुः॥
प्रदत्त हव्य के साथ हम लोगों का निरतिशय सुखदायक स्तोत्र वरुण, मित्र, भग और आदित्य के निकट उपस्थित हैं। जो प्राण आदि पञ्चवायु के साधक हैं, जो विविध वर्ण के अन्तरिक्ष में अवस्थान करते हैं, जिनकी गति अबाधित है, जो प्राणदाता और सुख देने वाले है, वे वायुदेव हम लोगों का स्तोत्र श्रवण करें।[ऋग्वेद 5.42.1]
निरतिशय :: हद दरज़े का, बेहद, अद्वितीय, परम, जिसके आगे या जिससे बढ़कर और कुछ न हो, चश्म, परमात्मा, ईश्वर, परब्रह्म; unique, ultimate, almighty, God.
We approach Varun, Mitr, Bhag and Adity Dev with the ultimate Strotr & offerings-oblations. Let Vayu Dev who grant-consist of five forms of living sustaining force-Pran, stay in the space having vivid colours, moves freely, grant life and comforts, listen to our Strotr.
प्रति मे स्तोममदितिर्जगृभ्यात्सूनुं न माता हृद्यं सुशेवम्।
ब्रह्म प्रियं देवहितं यदस्त्यहं मित्रे वरुणे यन्मयोभु॥
हमारे हृदयंगम और सुखकर स्तोत्र को माता अदिति ग्रहण करें, जिस प्रकार से जननी अपने को ग्रहण करती है। अहोरात्राभिमानी देव मित्र और वरुण के उद्देश्य से हम मनोहर आनन्दायक और देवग्राह्य स्तोत्र प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 5.42.2]
हृदयंगम :: मर्मस्पर्शी, अच्छी तरह समझा हुआ, ठीक से याद किया हुआ; हृदयगत; inculcate, learning by heart.
Let Maa Aditi accept our inculcated Strotr causing comforts like a mother. We recite-compose attractive & acceptable Strotr for the sake of demigods-deities & the deities governing day and night and Mitr & Varun Dev.
उदीरय कवितमं कवीनामुनत्तैनमभि मध्वा घृतेन।
स नो वसूनि प्रयता हितानि चन्द्राणि देवः सविता सुवाति॥
हे ऋत्विको! आप लोग अतिशय क्रान्तदर्शी और पुरोवर्ती अग्नि देव को उद्दीप्त करें मधुर सोमरस और घृत द्वारा इन्हें अभिषिवत करें, वे सविता देव हम लोगों को शुद्ध, हितकर तथा आह्लादक सुवर्ण प्रदान करें।[ऋग्वेद 5.42.3]
Hey Ritviz! Invoke-lit highly radiant existing Agni Dev-deity of fire, offer him sweet Somras & Ghee. Let Savita Dev grant us pure, beneficial gold producing pleasure-happiness.
समिन्द्र णो मनसा नेषि गोभिः सं सूरिभिर्हरिवः सं स्वस्ति।
सं ब्रह्मणा देवहितं यदस्ति सं देवानां सुमत्या यज्ञियानाम्॥
हे इन्द्र देव! आप हम लोगों को प्रसन्न मन से गौएँ, अश्व और कल्याणकारी ऐवश्वर्य प्रदान करें। आप हमें यज्ञकर्म वाली और देवताओं को प्राप्त होने वाली बुद्धि प्रदान करें।[ऋग्वेद 5.42.4]
Hey Indr Dev! Grant us grandeur, cows and horses happily. Grant us intelligence that inspire us for Yagy and approach-invoke the demigods-deities.
देवो भगः सविता रायो अंश इन्द्रो वृत्रस्य संजितो धनानाम्।
ऋभुक्षा वाज उत वा पुरन्धिरवन्तु नो अमृतासस्तुरासः॥
भगदेव, धनस्वामी सविता, वृत्रहन्ता इन्द्र देव, भली-भाँति से धन के विजेता ऋभुक्षा, वाज़ और पुरन्धि आदि समस्त अमर शीघ्र ही हम लोगों के यज्ञ में उपस्थित होकर हम लोगों की रक्षा करें।[ऋग्वेद 5.42.5]
Let all the immortals :- Bhag Dev, lord of riches Savita, slayers of Vratr Indr Dev, winner of wealth Ribhuksha, Vaj and Purandhi join this Yagy quickly and protect us.
मरुत्वतो अप्रतीतस्य जिष्णोरजूर्यतः प्र ब्रवामा कृतानि।
न ते पूर्वे मघवन्नापरासो न वीर्यं १ नूतनः कश्चनाप॥
हम याजक गण मरुद्वान् इन्द्र देव के कार्यों का वर्णन करते हैं। वे युद्ध से कभी पलायमान नहीं होते। वे जयनशील और जरा रहित हैं। हे इन्द्र देव! आपके पराक्रम को कोई पुरातन पुरुष नहीं जान पाया, उनके पीछे होने वाले भी नहीं जान पाये। और क्या, किसी नवीन ने भी आपके पराक्रम को प्राप्त नहीं किया।[ऋग्वेद 5.42.6]
We, the Ritviz describe-appreciate the endeavours of Indr Dev and his associates Marud Gan. They are winning and free from aging. Hey Indr Dev! Neither your preceder nor the next to them could ascertain-assess your valour-bravery. Any one next to them could not do so.
उप स्तुहि प्रथमं रत्नधेयं बृहस्पतिं सनितारं धनानाम्।
य: शंसते स्तुवते शंभविष्ठः पुरूवसुरागमज्जोहुवानम्॥
हे अन्तरात्मा! आप अतिशय श्रेष्ठ और रमणीय धनदाता बृहस्पति देव की प्रार्थना करें। वे हविर्लक्षण धन के विभागकर्ता है। वे स्तोत्र कर्ता याजक गण को महान् सुख प्रदान करते हैं। आह्वान करने वाले याजक गण के निकट वे प्रभूत धन लेकर आगमन करते हैं।[ऋग्वेद 5.42.7]
अंतरात्मा :: जीवात्मा, प्राण; conscience.
रमणीय :: रमण योग्य, सुंदर; delightful, delectable.
Hey conscience! Pray-worship excellent, delightful and wealth granting Brahaspati Dev. He is the distributer of the offerings. He grant extreme comforts to the Ritviz and recitators of Strotr. When invoked, he comes to the invoker with best riches.
तवोतिभिः सचमाना अरिष्टा बृहस्पते मघवानः सुवीराः।
ये अश्वदा उत वा सन्ति गोदा ये वस्त्रदाः सुभगास्तेषु रायः॥
हे बृहस्पति देव! आपके द्वारा रक्षित होने पर मनुष्य अहिंसित, धनवान और सुन्दर युक्त होते हैं। आपके द्वारा अनुग्रहित होकर जो व्यक्ति अश्व, गौ और वस्त्र का दान करता है, वह धन प्राप्त करता है।[ऋग्वेद 5.42.8]
Hey Brahaspati Dev! The humans protected by you are unharmed, rich and beautiful-handsome. Any one obliged by you gets riches if he resort to donating cows, horses and cloths.
विसर्माणं कृणुहि वित्तमेषां ये भुञ्जते अपृणन्तो न उक्थैः।
अपव्रतान्प्रसवे वावृधानान्ब्रह्मद्विषः सूर्याद्यावयस्व॥
हे बृहस्पति देव! जो स्तुति प्रतिपादक हम लोगों को दान नहीं देकर स्वयं उपभोग करते हैं, जो व्रत धारित नहीं करते, जो मन्त्र विद्वेषी है, उनके धन को आप नष्ट करें। सन्तति सम्पन्न होकर; यद्यपि वह मनुष्य लोक में वर्द्धमान हो रहा है; तथापि आप उसे सूर्य से पृथक करें अर्थात् अन्धकार में रखें।[ऋग्वेद 5.42.9]
प्रतिपादक :: प्रतिपादन करने वाला, किसी मत को स्थापित करने वाला, उत्पादक, निर्वाह करने वाला, व्याख्यान करने वाला, उन्नायक, व्याख्याता; exponent, enunciator.
Hey Brahaspati Dev! Destroy the wealth of those enunciators of worship-prayers who consume every thing and do not make donations to us, do not resort to fasting and envy the Mantr. Even if he has progeny and growing in this world, let him keep in darkness away from the Sun light.
य ओहते रक्षसो देवष्वीतावचक्रेभिस्तं मरुतो नि यात।
यो वः शमींश शमानस्य निन्दात्तुच्छ्यान्कामान्करते सिष्विदानः॥
हे मरुतों! जो याजक देवयज्ञ में राक्षसों को बुलाता है अन्न, अश्व, कृषि आदि के द्वारा उत्पन्न भोग के लिए, जो अपने को क्लेश देता है और जो आपकी प्रार्थना करने वाले की निन्दा करता है, उस याजक को चक्र विहीन रथ द्वारा आप लोग अन्धकार में डुबो देते हैं।[ऋग्वेद 5.42.10]
Hey Marud Gan! The Ritviz who invite demons to the Yagy, torture himself for consumption of food grains, horses, agriculture and reproach-damn your worshipers, you remove excels from their charoite and put-shroud him under darkness.
तमु ष्टुहि यः स्विषुः सुधन्वा यो विश्वस्य क्षयति भेषजस्य।
यक्ष्वा महे सौमनसाय रुद्रं नमोभिर्देवमसुरं दुवस्य॥
हे ऋत्विजों! आप रुद्र देव की प्रार्थना करें, जिनके बाण और धनुष सुन्दर हैं, जो विरोधियों के नाशक हैं। जो समस्त औषधियों के ईश्वर हैं, उन्हीं रुद्र देव का यजन करें और महान् कल्याण के लिए द्युतिमान् और बलवान् या प्राण दाता रुद्र देव की सेवा करें।[ऋग्वेद 5.42.11]
Hey Ritviz! Worship-pray Rudr dev who possess beautiful-strong bow & arrow for destroying the opponents, is the lord of all medicines. Serve radiant, mighty and saviour of life Rudr Dev, who look to great welfare measures.
दमूनसो अपसो ये सुहस्ता वृष्णः पत्नीर्नद्यो विभ्वतष्टाः।
सरस्वती बृहद्दिवोत राका दशस्यन्तीर्वरिवस्यन्तु शुभ्राः॥
उदार मन वाले और चमस, अश्व, रथ, गौ आदि के निर्माण में कुशल हस्त ऋभुगण, वर्षणकारी इन्द्र की पत्नी गंगा आदि नदियाँ, विभु द्वारा कृत सरस्वती नदी और दीप्तिमती राका आदि अभीष्टवर्षी तथा दीप्त हैं। ये हम लोगों को धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 5.42.12]
Liberal hearted Ribhu Gan the creators of Chamas, horses, cows, charoite etc., rains showering Indr Dev & his wives like Maa Ganga etc., rivers like Saraswati & radiant Raka created by Vibhu grant accomplishments-desires, grant us wealth.
प्र सू महे सुशरणाय मेधां गिरं भरे नव्यसीं जायमानाम्।
य आहना दुहितुर्वक्षणासु रूपा मिनानो अकृणोदिदं नः॥
महान् और शोभन रक्षक इन्द्र देव या पर्जन्य (पर्जन्य तीसरे आदित्य हैं, जो कि मेघों में निवास करते हैं)। इनका मेघों पर नियंत्रण हैं। देवता के लिए हम अतिशय स्तुत्य और सद्योजात प्रार्थना समर्पित करते हैं। इन्द्र देव वर्षणकारी हैं। वे कन्या रूपिणी पृथ्वी के हित के लिए नदियों का रूप-विधान करते हैं और हम लोगों को जल प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 5.42.13]
पर्जन्य :: गरजता तथा बरसता हुआ बादल, मेघ, इंद्र, विष्णु, कश्यप ऋषि के एक पुत्र जिसकी गिनती गंधर्वों में होती है, पर्जन्य तीसरे आदित्य हैं, जो कि मेघों में निवास करते हैं; clouds causing rains.
We present newly composed prayers to worshipable great, beautiful protector Indr Dev or Parjany deity-demigod. Indr Dev is rain producing. They flow rivers for the earth which is like a girl-daughter for them and provide us water.
प्र सुष्टुतिः स्तनयन्तं रुवन्तमिळस्पतिं जरितर्नूनमश्याः।
यो अब्दिमाँ उदनिमाँ इयर्ति ए विद्याता रोदसी उक्षमाणः॥
हे स्तोताओं! आपकी शोभन प्रार्थना गर्जनशील और शब्दकारी उदक स्वामी पर्जन्य के पास पहुँचती है। वे मेघों को धारण कर जल वर्षण करके द्यावा-पृथ्वी को वैद्युतालोक से आलोकित करके गमन करते हैं।[ऋग्वेद 5.42.14]
Hey Stota! Your beautiful prayers reach Parjany lord of thunder clouds and noisy lord of water. He take the form of clouds, rain over the earth & heavens lightening by causing electric sparks in the sky.
एष स्तोमो मारुतं शर्धो अच्छा रुद्रस्य सूनूँर्युवन्यूँरुदश्याः।
कामो राये हवते मा स्वस्त्युप स्तुहि पृषदश्वाँ अयासः॥
हमारे द्वारा सम्पादित स्तोत्र रुद्र देव के तरुण पुत्र मरुतों के अभिमुख भली-भाँति से उपस्थित हों। हे मन! धन की इच्छा हम लोगों को निरन्तर उत्तेजित करती है। विविध पृषत् वर्ण के अश्वों पर बैठकर जो यज्ञ में आगमन करते हैं; उनकी प्रार्थना करें।[ऋग्वेद 5.42.15]
पृषत् :: चितला हिरन, चीतल पाढ़ा, राजा द्रुपद के पिता का नाम; name of a deer.
Let the Strotr composed by us reach the Marud Gan the young sons of Rudr Dev. Hey innerself-conscience! The desire of wealth continuously excite us. Let us worship those who come to the Yagy riding horses with the colours of Cheetal-deer.
प्रैष स्तोमः पृथिवीमन्तरिक्षं वनस्पतींरोषधी राये अश्याः।
देवोदेवः सुहवो भूतु मह्यं मा नो माता पृथिवी दुर्मतौ धात्॥
धन के लिए हमारे द्वारा विहित यह स्तोत्र पृथ्वी, स्वर्ग, वृक्ष और औषधियों के निकट आगमन करे। हमारे लिए सब देवों का दिव्य आह्वान हो। माता पृथ्वी हम लोगों को दुर्मति में स्थापित न करें।[ऋग्वेद 5.42.16]
विहित :: उचित, मुनासिब, विधि के अनुरूप होनेवाला; canonical, ordained.
दुर्मति :: दुर्बुद्धि, आठ संवत्सरों में से एक जिसमें दुर्भिक्ष-अकाल होता है; bad-negative thoughts-ideas.
अकाल :: अशुभ समय, भुखमरी (दुर्भिक्ष), असमय, अविनाशी; famine, dearth.
Let our Strotr ordained for wealth move closer to the earth, heavens, trees and vegetation-herbs. Let all demigods-deities be invoked for us. Mother earth should not put us in that Samvatsar-era which is dominated by hunger-famine & dearth.
उरौ देवा अनिबाधे स्याम॥
हे देवो! हम सभी निरन्तर निर्विघ्न होकर अतिशय सुख का भोग करें।[ऋग्वेद 5.42.17]
Hey demigods-deities! We all should experience undisturbed extreme comforts, enjoyment.
समश्विनोरवसा नूतनेन मयोभुवा सुप्रणीती गमेम।
आ नो रयिं वहतमोत वीराना विश्वान्यमृता सौभगानि॥
हम लोग अश्विनीकुमार की उस रक्षा को प्राप्त करें, जिसका पहले किसी ने भी अनुभव नहीं किया, जो आनन्ददायक तथा सुख सम्पन्न है। हे अमरणशील अश्विनी कुमारों! आप दोनों हम लोगों को ऐश्वर्य, वीर पुत्र और समस्त सौभाग्य प्रदान करें।[ऋग्वेद 5.42.18]
We should attain-experience that protection full of pleasure and comforts, by Ashwani Kumars, which has never been granted to any one. Hey immortal Ashwani Kumars! Both of you grant-provide us grandeur, brave sons and good luck.(05.07.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (43) :: ऋषि :- अत्रि भौमा, देवता :- विश्वेदेव, छन्द :- त्रिष्टुप्, एकपदा विराट्।
आ धेनवः पयसा तूर्ण्यर्था अमर्धन्तीरुप नो यन्तु मध्वा।
महो राये बृहती: सप्त विप्रो मयोभुवो जरिता जोहवीति॥
द्रुतगामिनी नदियाँ अहिंसित होकर मधुर रस के साथ हम लोगों के निकट आगमन करें। विशेष स्नेह उत्पन्न करने वाले स्तोता महान् धन लाभ के लिए आनन्ददायक सप्त महानदियों का आह्वान करें।[ऋग्वेद 5.43.1]
स्तोता :: स्तुति-प्रार्थना करने वाला;worshiper, praiser.
Fast moving rivers should bring the sweet sap (water) to us without harming. The Stota-worshiper creating special affection should invoke the great seven rivers for gaining great wealth.
आ सुष्टुती नमसा वर्तयध्यै द्यावा वाजाय पृथिवी अमृध्रे।
पिता माता मधुवचाः सुहस्ता भरे भरे नो यशसावविष्टाम्॥
हम अन्न-लाभ के लिए शोभन स्तव और हव्य द्वारा हिंसा रहित द्यावा-पृथ्वी को प्रसन्न करने की इच्छा करते हैं। प्रिय वचन, शोभन हस्त और यशोयुक्त मातृ-पितृ स्वरूपा द्यावा-पृथ्वी सम्पूर्ण यज्ञ में हम लोगों की रक्षा करें।[ऋग्वेद 5.43.2]
We wish to please harmless earth & heavens with beautiful verses-hymns and offerings for the sake of food grains. Let the revered-honoured, glorious earth & heavens, with beautiful hands and pleasing words protect us through the Yagy.
अध्वर्यवश्चकृवांसो मधूनि प्र वायवे भरत चारु शुक्रम्।
होतेव नः प्रथमः पाह्यस्य देव मध्वो ररिमा ते मदाय॥
हे अध्वर्युओं! आप लोग मधुर घृतादि हव्य प्रस्तुत करें और वह रमणीय तथा दीप्त सोमरस सबसे पहले वायु को अर्पित करें। हे वायु देव! आप होता के तुल्य इस सोमरस को अन्य देवों से पहले पियें। हे वायु देव! यह मधुर सोमरस आपकी प्रसन्नता के लिए हम देते हैं।[ऋग्वेद 5.43.3]
Hey priests! Present sweet Ghee and other offerings along with Somras to Vayu Dev. Hey Vayu Dev! Drink this Somras offered by the worshiper first, as compared to the other demigods-deities. We offer this sweet Somras for your pleasure.
दश क्षिपो युञ्जते बाहू अद्रिं सोमस्य या शमितारा सुहस्ता।
मध्वो रसं सुगभस्तिर्गिरिष्ठां चनिश्चदद्दुदुहे शुक्रमंशुः॥
ऋत्विकों की दसों अँगुलियाँ और दोनों बाहु पाषाण से युक्त होकर सोमरस अभिषव में प्रयुक्त होती हैं। कुशल हाथों वाले ऋत्विक् आनन्दित होकर मधुर सोम से शैलज रस का दोहन करते हैं, जिससे दीप्तिमान् सोमरस की धारा बहती है।[ऋग्वेद 5.43.4]
Both hands & ten fingers of the Ritviz are used to extract Somras by crushing with stone. Expert-skilled Ritviz happily extract sweet Somras crushing it with stones, forming a current.
असावि ते जुजुषाणाय सोमः क्रत्वे दक्षाय बृहते मदाय।
हरी रथे सुधुरा योगे अर्वागिन्द्र प्रिया कृणुहि हूयमानः॥
हे इन्द्र देव! आपकी सेवा के लिए, वृत्र वधादि कार्य के लिए, बल के लिए और महान् हर्ष के लिए सोमरस समर्पित किया जाता है। हे इन्द्र देव! इसलिए हम लोग आपका आह्वान करते हैं। आप प्रिय, सुशिक्षित और विनम्र अश्वद्वय को रथ में नियोजित करके हम लोगों के पास पधारें।[ऋग्वेद 5.43.5]
Hey Indr Dev! We serve you Somras for the killing of Vratr, extreme power and great pleasure. Hey Indr Dev! That's why, we invoke you. Deploy your dear, trained, polite horse duo in the charoite and come to us.
आ नो महीमरमतिं सजोषा ग्नां देवीं नमसा रातहव्याम्।
मधोर्मदाय बृहतीमृतज्ञामाग्ने वह पथिभिर्देवयानैः॥
हे अग्नि देव! आप हम लोगों के साथ प्रीयमाण होकर मधुर सोमपान से प्रहर्षित होने के लिए देव गन्तव्य मार्ग द्वारा गुना देवी को हम लोगों के निकट लावें। वह बलशालिनी देवी सभी जगह गमन करें और समस्त यज्ञ को जानें। हम स्तोत्रों के साथ उस देवी को हव्य समर्पित करते हैं।[ऋग्वेद 5.43.6]
Hey Agni Dev! Please bring Guna Devi to us happily, to be pleased by drinking Somras. Let that mighty goddess move all around and recognise our Yagy. We make offerings to her reciting Strotr.
अञ्जन्ति यं प्रथयन्तो न विप्रा वपावन्तं नाग्निना तपन्तः।
पितुर्न पुत्र उपसि प्रेष्ठ आ घर्मो अग्निमृतयन्नसादि॥
मेधावी अध्वर्युओं ने अग्नि के ऊपर हव्यपात्र स्थापित किया, जिस प्रकार से पिता की गोद में प्रियतम पुत्र बैठता है। उसी प्रकार स्थूलकाय पशु को वे सब अग्नि द्वारा तपा रहे हैं।[ऋग्वेद 5.43.7]
Intelligent priests placed the pot having offerings over the fire, like the dearest son who sits in his father's lap. In this manner they were giving heat to the giant animal with fire.
अच्छा मही बृहती शंतमा गीर्दूतो न गन्त्वश्विना हु॒वध्यै।
मयोभुवा सरथा यातमर्वाग्गन्तं निधिं धुरमाणिर्न नाभिम्॥
हम लोगों का यह पूजनीय, महान् और सुखदायक स्तोत्र अश्विनी कुमारों को इस स्थान में आह्वान करने के लिए दूत के तुल्य गमन करे। हे सुखदायक अश्वि द्वय! आप दोनों एक रथ पर बैठकर अर्पित सोम के निकट भारवाहक कील के तुल्य आगमन करें। जिस प्रकार से बिना कील वाली नाभि से रथ का निर्वहण नहीं होता, उसी प्रकार से बिना आपके सोमयाग का निर्वाह नहीं होता।[ऋग्वेद 5.43.8]
Let our revered great, comforting Strotr act as an ambassador for the Ashwani Kumars for invoking them at this place. Hey comforting Ashwani Kumars! Come riding the same charoite like the hub-nail supporting weight in its excel. The manner in which the hub support the charoite, the Yagy can not be conducted without your support-favour.
प्र तव्यसो नमउक्तिं तुरस्याहं पूष्ण उत वायोरदिक्षि।
या राधसा चोदितारा मतीनां या वाजस्य द्रविणोदा उत त्मन्॥
हम बलवान् और वेग पूर्वक गमन करने वाले पूषा तथा वायु देव की प्रार्थना करते हैं। ये दोनों देव धन और अन्न के लिए लोगों की बुद्धि को प्रेरित करें अथवा जो देव संग्राम के प्रेरक हैं, वे धनप्रदान करें।[ऋग्वेद 5.43.9]
We worship dynamic-accelerated mighty Pusha and Vayu Dev. Let both of them inspire the minds of public-populace for food grains and wealth or else, those who are the inspirer of war grant wealth.
आ नामभिर्मरुतो वक्षि विश्वाना रूपेभिर्जातवेदो हुवानः।
यज्ञं गिरो जरितुः सुष्टुतिं च विश्वे गन्त मरुतो विश्व ऊती॥
हे उत्पन्न मात्र को जानने वाले अग्नि देव! हम लोगों के द्वारा आवाहित होकर आप विविध (इन्द्र देव, वरुण आदि) नामधारी और विभिन्नाकृति निखिल मरुतों का यज्ञ में वहन करते है। हे मरुतों! आप सब रक्षा के साथ याजकगण के यज्ञ में शोभन फलवाली प्रार्थना में और पूजा में पधारें।[ऋग्वेद 5.43.10]
Hey Agni Dev, knowing the born-created! On being invited-invoked by us you support Marud Gan in the Yagy. Hey Marudu Gan! All of you should come-join the Yagy, associated with attractive rewarding prayers and Pooja.
आ नो दिवो बृहतः पर्वतादा सरस्वती यजता गन्तु यज्ञम्।
हवं देवी जुजुषाणा घृताची शग्मां नो वाचमुशती शृणोतु॥
हम सभी लोगों द्वारा पूजनीय सरस्वती देवी विद्युतमान् द्युलोक से यज्ञ स्थल में आगमन करें तथा महान् मेघ से आगमन करें। हमारी प्रार्थना से प्रसन्न होकर वह स्वेच्छा पूर्वक हमारे सम्पूर्ण सुखकर वचनों को श्रवण करें।[ऋग्वेद 5.43.11]
Let revered-honoured Devi-Goddess Saraswati come from radiant heavens through the great colouds in our Yagy. On being satisfied with our prayers-worship let her listen to our comforting-pleasing words, willingly.
आ वेधसं नीलपृष्ठं बृहन्तं बृहस्पतिं सदने सादयध्वम्।
सादद्योनिं दम आ दीदिवांसं हिरण्यवर्णमरुषं सपेम॥
बलवान्, पुष्टि कारक और स्निग्धाङ्ग बृहस्पति को यज्ञघर में स्थापित करें। वे घर में बीच में अवस्थित होकर सभी जगह प्रभा विस्तृत करते हैं। वे हिरण्यवर्ण और दीप्तिमान् हैं। हम लोग उनकी पूजा करते हैं।[ऋग्वेद 5.43.12]
स्निग्ध :: स्नेही, तेल युक्त, तैलीय, चिकना; affectionate, lubricated, oily.
Let Brahaspati Dev having mighty, nourishing and oily body, be established in the Yagy house-site. He will spread aura on being established in the middle-centre of the house. He has golden colour and radiant. We worship-pray him.
आ धर्णसिर्बृहद्दिवो रराणो विश्वेभिर्गन्त्वोमभिर्हुवानः।
ग्ना वसान ओषधीरमृधस्त्रिधातुशृङ्गो वृषभो वयोधाः॥
अग्नि देव सभी को धारित करते है। वे अत्यन्त दीप्तिशाली, अभीष्टवर्षी तथा शिखा और औषधि समूह द्वारा आच्छादित हैं। वे अप्रतिहत गति और त्रिविध शृङ्ग विशिष्टि (लोहित, शुक्ल और कृष्णवर्ण की ज्वालाओं से व्याप्त) हैं। वे वषर्ण कारी और अन्न दाता हैं। हम लोग उनका आह्वान करते हैं। वे सम्पूर्ण रक्षा के साथ यहाँ पधारें।[ऋग्वेद 5.43.13]
अप्रतिहत :: जिसे कोई रोक न सके, निर्बाध, अप्रभावित, अंकुश; dynamic, continuous.
Agni Dev support all. He is extremely radiant, accomplish desires and is covered by hair lock and the group of medicines (herbs). He is covered with unstoppable speed with three horns-peaks having red, white and black flames. He causes-leads to rains and grant food grains. Let him arrive here for our complete defence.
मातुष्पदे परमे शुक्र आयोर्विपन्यवो रास्थिरासो अग्मन्।
सुशेव्यं नमसा रातहव्याः शिशुं मृजन्त्यायवो न वासे॥
याजकगण के होता, हव्य पात्रधारी ऋत्विक गण जननी स्वरूप पृथ्वी के उज्ज्वल और अत्युत्कृष्ट स्थान पर गमन करते हैं। जीवन वृद्धि के लिए जिस प्रकार से लोग शिशु को वस्त्रों से आच्छादित करते हैं, उसी प्रकार वे नवजात कोमल प्रकृति अग्नि का पोषण, स्तुतियों के साथ हव्य प्रदान करके करते हैं।[ऋग्वेद 5.43.14]
The Hota-Ritviz holding the pot of offerings, go to the radiant-bright excellent place of the mother-goddess earth. The way they cover the newly born child with clothes for his growth, they make offerings with worship-prayers.
बृहद्वयो बृहते तुभ्यमग्ने धियाजुरो मिथुनासः सचन्त।
देवोदेवः सुहवो भूतु मह्यं मा नो माता पृथिवी दुर्मतौ धात्॥
हे अग्नि देव! आप बृहत्स्वरूप है। धर्मकार्य द्वारा जीर्ण होकर स्त्री-पुरुष एक साथ ही आपको प्रभूत अन्न प्रदान करते हैं। देवगण हमारे द्वारा भली-भाँति से आहूत होवें। जननी स्वरूप पृथ्वी हमारे प्रति विरुद्ध बुद्धि धारण न करें।[ऋग्वेद 5.43.15]
जीर्ण :: बासी, पुराना, नीरस, बेस्वाद, फीका, चिरकालिक, स्थायी, बहुकालीन, नष्ट, बरबाद किया हुआ, छिन्न-भिन्न; chronic, dilapidated, stale.
Hey Agni Dev! You are giant bodied-sized. On being dilapidated, old-tired woman & man together offer a lot of food grains. Let the demigods-deities be worshiped-prayed by us properly. Goddess earth like a mother should not posses thoughts against us.
उरौ देवा अनिबाधे स्याम॥
हे देवताओं! हम लोग आपके अनुग्रह से रहित और बाधा रहित सुख प्राप्त करें।[ऋग्वेद 5.43.16]
अनुग्रह :: कृपा; grace, favour.
Hey demigods-deities! Let us attain comforts without obligations and obstacles.
समश्विनोरवसा नूतनेन मयोभुवा सुप्रणीती गमेम।
आ नो रयिं वहतमोत वीराना विश्वान्यमृता सौभगानि॥
हे अमरणशील अश्विनी कुमारों! हम लोग अश्विनी कुमारों की उस रक्षा को प्राप्त करें, जिसका पूर्व में किसी ने भी अनुभव नहीं किया, जो आनन्द दायक तथा सुख सम्पन्न है। आप दोनों हम लोगों को ऐश्वर्य, वीर्य, पुत्र और समस्त सौभाग्य प्रदान करें।[ऋग्वेद 5.43.17]
Hey immortal Ashwani Kumars! Let us attain that protection of yours, which has not been accessed-experienced by anyone earlier; that is blissful and comfortable. Both of you grant grandeur, power, sons and good luck.(06.07.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (44) :: ऋषि :- अवत्सारा, कश्यप, देवता :- विश्वेदेव, छन्द :- जगती, त्रिष्टुप्।
तं प्रत्नथा पूर्वथा विश्वथेमथा ज्येष्ठतातिं बर्हिषदं स्वर्विदम्।
प्रतीचीनं वृजनं दोहसे गिराशुं जयन्तमनु यासु वर्धसे॥
प्राचीन समय के याजकगण, हमारे पूर्ववर्ती लोग, समस्त प्राणी और आधुनिक लोग जिस प्रकार से इन्द्र देव की प्रार्थना करके अपने मनोरथ पूर्ण करते हैं; हे अन्तरात्मा! उसी प्रकार से आप भी उनकी प्रार्थना करके मनोरथपूर्ण होवें। वे देवों के बीच में ज्येष्ठ, कुशासीन, सर्वज्ञ, हम लोगों के सम्मुखवर्ती, बलशाली, वेगवान् और जयशील हैं। इस प्रकार की स्तुति द्वारा आप उन्हें संवर्द्धित करें।[ऋग्वेद 5.44.1]
Hey conscience! Let our desires be accomplished the way the ancient Ritviz, our ancestors, all living beings and the modern people-populace of current era, worship Indr Dev; by you. He is senior amongest the demigods-deities, occupying the Mat made of Kush, all knowing, accelerated and a winner. Let him be promoted with such requests, worship-prayers.
श्रिये सुदृशीरुपरस्य याः स्वर्विरोचमानः ककुभामचोदते।
सुगोपा असि न दभाय सुक्रतो परो मायाभिर्ऋत आस नाम ते॥
हे इन्द्र देव! आप स्वर्ग में प्रभा विस्तारित करते है। अवर्षणकारी मेघ के बीच में जो सुन्दर जलराशि है, उसे मनुष्यों के हित के लिए समस्त दिशाओं में प्रेरित करते है। वर्षा आदि सुन्दर कर्म द्वारा आप मनुष्यों की रक्षा करें। प्राणियों का वध आप न करें। शत्रुओं की माया का आप नाश करते है। आपका नाम सत्यलोक में विद्यमान हैं।[ऋग्वेद 5.44.2]
Hey Indr Dev! You spread your aura in the space. Release the water accumulated in the non rain clouds in all directions. Protect the humanity by causing rains and not killing the living beings. You destroy the chant-cast of the enemy. Your name is established in the Saty Lok.
अत्यं हविः सचते सच धातु चारिष्टगातुः स होता सहोभरिः।
प्रसर्स्राणो अनु बर्हिर्वृषा शिशुर्मध्ये युवाजरो विस्रुहा हितः॥
अग्नि देव नित्य, फल साधक और विश्व धारक हव्य को सदैव वहन करते हैं। अग्नि देव अप्रतिहत गति, होम निर्वाहक और बल विधायक हैं। वे विशेषत: कुश के ऊपर बैठकर गमन करते हैं। फल वर्षणकारी, शिशु, युवा, वृद्धावस्था से रहित और औषधियों के मध्य स्थित है।[ऋग्वेद 5.44.3]
Agni Dev is for ever, grant rewards every day-regularly, carry the oblations-offerings for supporting the world. His movements are non stop able, support the house-home and strengthening. He occupy the Mat while travelling-moving. Grants the desires. He is free from childhood, youth and old age & established amongest the medicines.
प्र व एते सुयुजो यामन्निष्टये नीचीरमुष्मै यम्य ऋतावृधः।
सुयन्तुभिः सर्वशासैरभीशुभिः क्रिविर्नामानि प्रवणे मुषायति॥
इन याजक गणों के लिए यज्ञ को बढ़ाने वाली ये सूर्य की किरणें परस्पर भली-भाँति से संयुक्त होकर यज्ञ भूमि में गमन करने की अभिलाषा से अवतीर्ण होती हैं। वेग पूर्वक गमन करने वाली और सबका नियमन करने वाली इन समस्त किरणों द्वारा सूर्य जलराशि को निम्न देश में प्रेरण करते हैं।[ऋग्वेद 5.44.4]
The Sun rays support the Yagy by the Ritviz occurring to lit the Yagy site together. Moving with fast speed, they regulate all inspiring the water to occupy low lying land.
सञ्जर्भुराणस्तरुभिः सुतेगृभं वयाकिनं चित्तगर्भासु सुस्वरुः।
धारवाकेष्वृजुगाथ शोभसे वर्धस्व पत्नीरभि जीवो अध्वरे॥
हे अग्नि देव! आपका स्तोत्र अत्यन्त मनोहर है। जब निःसृत सोमरस काष्ठमय पात्र में गृहीत होता है और आप उस सोमरस को ग्रहण करके मनोहर स्तोत्र को सुनकर हर्षित होते हैं, तब उपासकों के बीच में आपकी विशेष शोभा होती है। हे जीवन दाता! यज्ञ में आप रक्षण करने वाली शिखा को सभी जगह वर्द्धित करें।[ऋग्वेद 5.44.5]
शोभा :: सौंदर्य, शोभा, सौम्यता, सौष्ठव, चमक, द्युति, आभा, आलोक, तेज, महिमा, प्रताप, प्रतिष्ठा, गर्व, यश, सुंदरता, चमक, कांति; glory, beauty, grace, lustre.
Hey Agni Dev! Your Strotr-prayer touches-reaches the heart. When the extracted Somras is stored in the wooden pot, you accept it and become happy listening to the pleasing-amusing Strotr-sacred hymns. At this moment you have a glorious-beautiful look. Hey life sustaining! Spread your life sustaining flames all around.
यादृगेव ददृशे तादृगुच्यते सं छायया दधिरे सिध्रयाप्स्वा। महीमस्मभ्यमुरुषामुरु ज्रयो बृहत्सुवीरमनपच्युतं सहः॥
यह वैश्व देवी जिस प्रकार दृष्ट होती है; उसी प्रकार वर्णित भी होती है। साधक दीप्ति के साथ उस जल के बीच में अपना रूप या प्रार्थना धारित करते हैं, वे देवता हम लोगों के द्वारा पूज्य प्रभूत धन, महावेग, असंख्य वीर्यशील पुत्र और अक्षम्य बल प्रदान करें।[ऋग्वेद 5.44.6]
This Vaeshv Devi-Goddess, is described the way, she appears. The practitioners recite the prayers in the water with light. Let the demigods-deities grant us enough wealth, accelerated speed, several mighty sons and strength.
वेत्यग्रुर्जनिवान्वा अति स्पृधः समर्यता मनसा सूर्यः कविः।
घ्रंसं रक्षन्तं परि विश्वतो गयमस्माकं शर्म वनवत्स्वावसुः॥
प्रकाशवान्, धन और सुख को प्रदान करने वाले, सभी के उत्पादक, उत्तम क्रान्तदर्शी, अपने उत्कंठित मन के कारण समस्त स्पर्धावान् ग्रह-नक्षत्रों में अग्रण्य रहने वाले सूर्य देव समस्त संसार की चारों ओर से सुरक्षा करते हैं। इसलिए हम उनकी प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 5.44.7]
उत्कंठित :: चिंतित, व्यग्र; anxious.
Radiant, wealth & comfort granting, producer of all, possessing excellent aura, with anxious mind, ahead of all constellations & planets Sury Dev-Sun grant security to the whole world. That's why we worship him.
ज्यायांसमस्य यतुनस्य केतुन ऋषिस्वरं चरति यासु नाम ते।
यादृश्मिन्धायि तमपस्यया विदद्य उ स्वयं वहते सो अरं करत्॥
हे देव श्रेष्ठ सूर्य देव या अग्नि देव! याजकगण आपके निकट आगमन करते हैं। आप उदयादि लक्षण द्वारा परिज्ञात होते हैं। ऋषि लोग आपका स्तवन करते हैं, जिससे आपका नाम वर्द्धित होता है। वे जिस वस्तु की कामना करते हैं, कार्य द्वारा उसे प्राप्त करते हैं और जो अपनी इच्छा से पूजा करते हैं, वे प्रचुर पुरस्कार प्राप्त करते हैं।[ऋग्वेद 5.44.8]
Hey deity Sury Dev/Agni Dev! The Ritviz move closer to you. You are recognised with dawn. The Rishi-sages worship-recite hymns in your favour to prolong your name. They attain the desired commodities by virtue of their endeavours. Those who worship you of their own, get plenty of rewards.
समुद्रमासामव तस्थे अग्रिमा न रिष्यति सवनं यस्मिन्नायता।
अत्रा न हार्दि क्रवणस्य रेजते यत्रा मतिर्विद्यते पूतबन्धनी॥
हम लोगों के इन समस्त स्तोत्रों के बीच में प्रधान स्तोत्र समुद्र के समान सूर्य के निकट उपस्थित हों। यज्ञगृह में जो उनका स्तोत्र विस्तीर्ण होता है, वह नष्ट नहीं होता। जिस स्थान में पवित्र सूर्य देव के प्रति चित्त समर्पित होता है, वहाँ उपासकों के हृदयगत मनोरथ विफल नहीं होते ।[ऋग्वेद 5.44.9]
विस्तीर्ण :: फैला हुआ, लंबा-चौड़ा, विशाल, विस्तृत, व्यापक, प्रशस्त, लंबा-चौड़ा, प्रचुर, प्रभूत; extensive, roomy, ample, spacious, vast.
Let the main Strotr be present amongst all Strotr like the ocean close to the Sun. His sacred hymns in the Yagy house be vast & ample without being vanished. A place where the innerself-conscience is devoted to the pious Sun, desires in the heart never fail.
स हि क्षत्रस्य मनसस्य चित्तिभिरेवावदस्य यजतस्य सध्रे:।
अवत्सारस्य स्पृणवाम रण्वभिः शविष्ठं वाजं विदुषा चिदर्ध्यम्॥
वह सविता देव सभी के द्वारा स्तुत्य हैं, सबकी कामनाओं के पूरक हैं। उनके निकट से हम क्षेत्र, मनस, अवद, यजत, सधि और अवत्सार नामक ऋषिगण सूर्यदेव की प्रार्थनाओं द्वारा उत्तम बलों और अन्नों की कामना करते हैं।[ऋग्वेद 5.44.10]
Savita is worshipable for all and accomplish the desires of everyone. We the Rishis-sages named Kshetr, Manas, Yajat, Sadhi and Avtsar desire of excellent might and food grains by virtue of dedication-prayers devoted to Savita-Dev-Sun.
श्येन आसामदितिः कक्ष्यो३ मदो विश्ववारस्य यजतस्य मायिनः। समन्यमन्यमर्थयन्त्येतवे विदुर्विषाणं परिपानमन्ति ते॥
विश्ववार, यजत और मायी ऋषि का सोमरस जनित मद प्रशंसनीय गमन श्येन पक्षी के तुल्य शीघ्रगामी है, अदिति के तुल्य विस्तृत और इच्छा पूरक है। वे सोमरस पान करने के लिए परस्पर प्रार्थना करते हैं और इसका प्रचुर पान करके हर्षित और पुष्ट होने की कामना करते हैं।[ऋग्वेद 5.44.11]
पुष्ट :: बलवान, तगड़ा, हट्टा-कट्टा, मज़बूत अंगवाला, प्रबल, मज़बूत, दबंग; strong, athletic, robust, sturdy.
पुष्टि :: स्थापना, प्रतिपालन; confirmation, vindication.
Intoxication cased by the Somras in the Rishis named Vishwvar, Yajat and Mayi make them move like Shyen-falcon & Aditi accomplishing the desires. They request each other to drink Somras sufficiently and pray to be happy and strong, nourished-vindication.
सदापृणो यजतो वि द्विषो वधीद्बाहुवृक्तः श्रुतवित्तर्यो वः सचा।
उभा स वरा प्रत्येति भाति च यदींगणं भजते सुप्रयावभिः॥
सदापृण, यजत, बाहुवृक्त, श्रुतवित् और तर्य ऋषि आप लोगों के साथ मिलकर शत्रु का संहार करें। वे ऋषि इस लोक और परलोक दोनों लोकों की सकल श्रेष्ठ कामनाओं का लाभ कर दीप्तिमान् हों; क्योंकि वे सुमिश्रित हव्य या स्तोत्र द्वारा विश्वदेवों की उपासना करते हैं।[ऋग्वेद 5.44.12]
Let the Rishis named Sadapran, Yajat, Bahuvrkt, Shrutvit and Tary destroy the enemies joining hands with you. Let them be glorious-radiant in the current and next abodes (births) with the accomplishment of excellent desires since they worship Vishw Dev with thoroughly mixed offerings-oblation and/or the Strotr.
सुतम्भरो याजकगणस्य सत्पतिर्विश्वासामूधः स धियामुदञ्चनः।
भरद्धेनू रसवच्छिश्रिये पयोऽनुब्रुवाणो अध्येति न स्वपन्॥
याजकगण अवत्सार के यज्ञ में सुतम्भर ऋषि सुन्दर फलों के पालन करने वाले होते हैं। समस्त यज्ञकार्य को ऊद्धर्व में उन्नीत करते हैं। गायें सुन्दर रसयुक्त दुग्ध प्रदान करती हैं। यह दुग्ध वितरित होता है। इस क्रम से घोषणा करके अवत्सार निद्रा का परित्याग कर अध्ययन करते हैं।[ऋग्वेद 5.44.13]
उद्धर्व :: ऊपर,उर्ध्व दिशा; excrescence, upward, vertical.
Sutambhar Rishi nourish beautiful rewards in the Yagy of Ritviz Avtsar. They progress the Yagy related deeds in an upward direction. The cows grant sweet-lovely milk, which is distributed. Avtsar Rishi make the announcements and resort to study discarding sleep.
यो जागार तमृचः कामयन्ते यो जागार तमु सामानि यन्ति।
यो जागार तमयं सोम आह तवाहमस्मि सख्ये न्योकाः॥
जो देवता सर्वदा गृह में जागृत रहते हैं, ऋचाएँ उनकी कामना करती हैं। जो देव सदैव जागरूक रहते हैं, स्तोत्रादि उन्हें प्राप्त करते हैं। जो देव सदैव जागरूक रहते हैं, उनसे यह अभिषुत सोम कहें कि "हमें स्वीकार करें। हे अग्निदेव! हम आपके नियत स्थान में सहवास करें"।[ऋग्वेद 5.44.14]
Sacred-holy hymns desires for the demigods-deities who are always awake. Sacred hymns-verses are obtained by those demigods-deities who are always awake. Extracted Somras should ask the awake demigods-deities that it was acceptable to them. Hey Agni Dev! Let us stay at your abode.
अग्निर्जागार तमृचः कामयन्तेऽग्निर्जागार तमु सामानि यन्ति।
अग्निर्जागार तमयं सोम आह तवाहमस्मि सख्ये न्योकाः॥
जो देवता सर्वदा गृह में जागृत रहते हैं, ऋचाएँ उनकी कामना करती हैं। जो देव सदैव जागरूक रहते हैं, स्तोत्रादि उन्हें प्राप्त करतें हैं। जो देव सदैव जागरूक रहते हैं, उनसे यह अभिषुत सोम कहें कि "हमें स्वीकार करें। हे अग्नि देव! हम आपके नियत स्थान में सहवास करें।[ऋग्वेद 5.44.15]
हे मनुष्यो! जो अग्नि के सदृश जागृत होता है, उसकी प्रशंसित बुद्धि वाले विद्यार्थी गण कामना करते हैं और जो अग्नि के सदृश वर्त्तमान जागृत होता है उसको भी सामवेद में कहे हुए विज्ञान प्राप्त होते हैं। अग्नि के सदृश वर्तमान जागृत होता है, उसको यह निश्चित स्थान युक्त सोमविद्या और ऐश्वर्य्य की इच्छा करने वाला, "आपकी मित्रता में मैं हूँ" ऐसा कहता है।
Hey humans! One who is awake like the fire, is desired by the intelligent student-scholar. One who is presently awake like the fire, too gets the sciences explained in Sam Ved. One who is awake-alert like fire-Agni Dev & desires of a pre determined abode along with Som Vidya (Ved); should say that I am friendly with you.(09.07.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (45) :: ऋषि :- सदापण आत्रेय, देवता :- विश्वेदेव, छन्द :- त्रिष्टुप्, पुरस्ताज्ज्योति।
विदा दिवो विष्यन्नद्रिमुक्थैरायत्या उषसो अर्चिनो गुः।
अपावृत व्रजिनीरुत्स्वर्गाद्वि दुरो मानुषीर्देव आवः॥
अङ्गिराओं की स्तुतियों से इन्द्र देव ने स्वर्ग से वज्र निक्षेप करके पणियों द्वारा अपहृत निगूढ़ गौओं का पुनः उद्धार किया। आगामिनी उषा की रश्मियाँ सभी जगह व्याप्त होती है। पुञ्जीभूत अन्धकार को विनष्ट करके सूर्य उदित होते हैं। मनुष्यों के गृह द्वारों को उन्होंने उन्मुक्त किया।[ऋग्वेद 5.45.1]
Indr Dev released the cows abducted by the demons named Panis, acknowledging the prayers-Stuti of Angiras. Rays at dawn cover the entire area. The Sun rises and vanish the darkness leading to opening of the doors by the household.
वि सूर्यो अमतिं न श्रियं सादोर्वाद् गवां माता जानती गात्।
धन्वर्णसो नद्य: १ खादोअर्णाः स्थूणेव सुमिता दृंहत द्यौः॥
पदार्थ जिस प्रकार से भिन्न-भिन्न रूप प्रकाशित करते हैं, उसी प्रकार से सूर्य देव अपनी दीप्ति विस्तारित करते हैं। किरण जाल की जननी उषा देवी सूर्य देव के आने की प्रतिक्षा करके विस्तृत अन्तरिक्ष से अवतीर्ण होती है। तट को विध्वंस करने वाली नदियाँ प्रवाहमान जल राशि के साथ प्रवाहित होती हैं। गृह में स्थापित स्तम्भ तुल्य स्वर्ग सुदृढ़ भाव से अवस्थान करता है।[ऋग्वेद 5.45.2]
अवस्थान :: ठहरना, स्थिति, सत्ता, स्थान, जगह, निवास स्थान, रहना, वास करना, रहने-ठहरने का स्थान, घर, रहने-ठहरने की अवधि, मौका; sojourn.
तट :: किनारा, पार, समुद्र-तट, तीर; coast, bank.
The Sun spread its rays, the way an object is seen in different forms. Usha appears from the space after waiting for the Sun. The river break the bank flowing the water. The pillars in the house sojourn like the heaven strongly.
अस्मा उक्थाय पर्वतस्य गर्भो महीनां जनुषे पूर्व्याय।
वि पर्वतो जिहीत साधत द्यौराविवासन्तो दसयन्त भूम॥
महान् स्तोत्रों के उत्पादक प्राचीनों के तुल्य जब तक हम प्रार्थना करते हैं, तब तक बादलों के गर्भ में स्थित जलराशि हमारे ऊपर गिरती है। मेघ से जल गिरता है। आकाश अपने कार्य का साधन करता है। सभी जगह परिचर्या करने वाले अङ्गिरा लोग कर्मानुष्ठान द्वारा उद्यत होते हैं।[ऋग्वेद 5.45.3]
परिचर्या :: ख़िदमत, सेवा, रोगी की देखभाल, तीमारदारी; after-care.
We recite the great Strotr composed by the ancestors, till the water present in the clouds fall over us. The clouds shower rains. The sky-space perform its functions. The Angiras become ready to perform the endeavours to serve.
सूक्तेभिर्वो वचोभिर्देवजुष्टैरिन्द्रा न्व १ ग्नी अवसे हुवध्यै।
उक्थेभिर्हि ष्मा कवयः सुयज्ञा आविवासन्तो मरुतो यजन्ति॥
हे इन्द्र देव, हे अग्नि देव! हम रक्षा के लिए देवों के द्वारा सेवनीय उत्कृष्ट स्तोत्रों से आप दोनों का आह्वान करते हैं। उत्तम प्रकार से यज्ञ करने वाले मरुतों के सदृश कर्म तत्पर परिचरण करने वाले ज्ञानी लोग स्तोत्रों द्वारा आप दोनों की पूजा करते हैं।[ऋग्वेद 5.45.4]
सेवनीय :: सेवन करने के योग्य, आराध्य, पूज्य; edible.
Hey Indr Dev & Agni Dev! We invoke you with the recitation of best Strotr-sacred hymns, liked-admired by the demigods-deities for our safety. The quickly moving enlightened people, worship-pray with the recitation of Strotr like the Marud Gan, who perform the Yagy in best possible manner.
एतो न्व १ द्य सुध्यो भवाम प्र दुच्छुना मिनवामा वरीयः।
आरे द्वेषांसि सनुतर्दधामायाम प्राञ्चो याजकगणमच्छ॥
इस यज्ञ में शीघ्र पधारें। हम लोग अच्छे कर्म करने वाले हों। विशेष रूप से आप हमारे शत्रुओं को विनष्ट करते हैं। प्रच्छन्न शत्रुओं को दूर करते हैं और याजकगणों के अभिमुख शीघ्र गमन करते हैं।[ऋग्वेद 5.45.5]
प्रच्छन्न :: ढका हुआ, आच्छादित, छिपा हुआ, आच्छन्न, चोर दरवाज़ा, खिड़की; disguised, hidden.
Come-join this Yagy quickly. Let us perform good deeds. You destroy our enemies specially. Repel the disguised-hidden enemies and quickly move to the Ritviz.
एता धियं कृणवामा सखायोऽप या माताँ ऋणुत व्रजं गोः।
यया मनुर्विशिशिप्रं जिगाय यया वणिग्वङ्कुरापा पुरीषम्॥
हे मित्रों! आओ, हम लोग स्तोत्र पाठ करें। जिसके द्वारा अपहृत गौओं का गोष्ठ उद्घाटित हुआ। जिसके द्वारा मनु ने हनु विहीन शत्रुओं को जीता और जिसके द्वारा वणिक् के तुल्य बहुफलाकांक्षी कक्षीवान् ने जल की इच्छा से वन में जाकर जल प्राप्त किया।[ऋग्वेद 5.45.6]
गोष्ठ :: गोशाला, एक ही प्रकार के पशुओं के रहने का स्थान जैसे :- अश्व गोष्ठ) गउशाला, गोआरी, गोकुल, गोठ, गोवारी, गोशाला, गोष्ठ, बथान, संदानिनी, संधानिनी, सन्दानिनी, सन्धानिनी, पशुओं को रखने का स्थान; cows shed-barn, cow house, cowshed, byre.
Hey friends! Come let us recite the Strotr by virtue of which the place where abducted cows were kept, was identified-found, discovered. Manu won-over come the enemies who lacked chin and Kakshiwan went to the jungle in search of water and got it, like a trader-businessman.
अनूनोदत्र हस्तयतो अद्रिरार्चन्येन दश मासो नवग्वाः।
ऋतं यती सरमा गा अविन्दद्विश्वानि सत्याङ्गिराश्चकार॥
इस यज्ञ में ऋत्विकों के हाथों द्वारा संचालित पाषाण खण्ड से शब्द उत्थित होता हैं, जिसके द्वारा नवग्वों और दशग्वों ने इन्द्र देव की पूजा की। यज्ञ में उपस्थित होकर सरमा ने गौओं को प्राप्त किया और अङ्गिराओं के समस्त स्तवादि कर्म सफल हुए।[ऋग्वेद 5.45.7]
In this Yagy the stones used by the Ritviz produced sound by virtue worship and Navgavs and Dashgavs worshiped Indr Dev. Sarma got cows by presenting himself in the Yagy and the Angiras all endeavours related to worship were accomplished.
विश्वे अस्या व्युषि माहिनायाः सं यद्गोभिरङ्गिरसो नवन्त।
उत्स आसां परमे सधस्थ ऋतस्य पथा सरमा विदद्गाः॥
इस पूजनीय उषा के उदयकाल में जब अङ्गिरा लोग प्राप्त गौओं के साथ मिले, तब उस उत्कृष्ट यज्ञशाला में उपयुक्त दुग्धस्राव होने लगा; क्योंकि सत्यमार्ग से सरमा ने गौओं को देखा था।[ऋग्वेद 5.45.8]
When Angiras met revered-honoured Usha with the cows, milk started flowing in the Yagy Shala-site, since Sarma had visualised the cows from Saty Marg-path to truth.
आ सूर्यो यातु सप्ताश्वः क्षेत्रं यदस्योर्विया दीर्घयाथे।
रघुः श्येनः पतयदन्धो अच्छा युवा कविर्दीदयद्गोषु गच्छन्॥
सात अश्वों के स्वामी सूर्य देव हम लोगों के सम्मुख उपस्थित हों; क्योंकि उन्हें दीर्घ प्रवास के लिए सुदूरवर्ती गन्तव्य स्थान में उपस्थित होना होगा। वे श्येन पक्षी के समान शीघ्रगामी होकर प्रदत्त हव्य के उद्देश्य से भ्रमण करते हैं। वे स्थिर यौवन तथा दूरदर्शी देव निज रश्मि के बीच में अवस्थान करके प्रभा विस्तारित करते हैं।[ऋग्वेद 5.45.9]
Let Sury Dev-Sun, the lord of seven horses, invoke before us; since he has be away from us at a distant place. He moves quickly like a falcon for accepting oblations-offerings. Far sighted deity-Sun present in his own rays, spread aura-light.
आ सूर्यो अरुहच्छुक्रमर्णोऽयुक्त यद्धरितो वीतपृष्ठाः।
उद्ना न नावमनयन्त धीरा आशृण्वतीरापो अर्वागतिष्ठन्॥
उज्जवल जलराशि के ऊपर सूर्य देव आरोहण करते हैं। जब वे कान्त पृष्ठ वाले अश्वों को रथ में नियोजित करते हैं, तब उन्हें बुद्धिमान् याजकगण, जिस प्रकार से जल के ऊपर नाव हो, उसी प्रकार से आनयन करते हैं। जलराशि उनके आदेश को श्रवण करके नीचे अवतीर्ण होती है।[ऋग्वेद 5.45.10]
कांत :: कोमल और मनोहर, प्रिय और रुचिकर, पति, शौहर, प्रेमी, जो व्यक्ति किसी के प्रति प्रेम या अनुराग रखता हो, रौनक, मन को लुभाने का कार्य, बसंत, पंसदीदा, प्रेमिका, मालिक; soft and lovely, dear.
Sury Dev rises up the bright-clean water. When he deploy his horses having soft and lovely back; the intelligentsia moves like the boat moving over water. Water acts-emerge following their orders.
धियं वो अप्सु दधिषे स्वर्षां ययातरन्दश मासो नवग्वाः।
अया धिया स्याम देवगोपा अया धिया तुतुर्यामात्यंहः॥
हे देवो! जिन प्रार्थनाओं से नवग्वों ने दस माह तक साध्य यज्ञ का अनुष्ठान किया; जल प्राप्त कराने वाली, उत्तम ऐश्वर्य देने वाली उन प्रार्थनाओं को हम धारित करते हैं। इन स्तुतियों से हम देवों द्वारा रक्षित हों और पाप कर्मों से भी दूर हों।[ऋग्वेद 5.45.11]
Hey demigods-deities! The prayers which the Navgavs followed for ten months, and carried out the accomplishing Yagy, we too adopt them to have water and grandeur. Let us be protected by the demigods-deities and distance ourselves from the sins.(11.07.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (46) :: ऋषि :- प्रतिक्षत्र आत्रेय, देवता :- विश्वेदेव, छन्द :- त्रिष्टुप्, जगती।
हयो न विद्वाँ अयुजि स्वयं धुरि तां वहामि प्रतरणीमवस्युवम्।
नास्या वश्मि विमुचं नावृतं पुनर्विद्वान्यथः पुरएत ऋजु नेषति॥
सर्वज्ञ प्रतिक्षत्र ने यज्ञभार में स्वयं को शकट में अश्व के तुल्य नियोजित किया। हम होता अथवा अध्वर्यु उस अलौकिक रक्षा विधायक भार को वहन करते हैं। इस भार वहन से हम छुटकारा प्राप्त करने की इच्छा नहीं करते, ऐसा भार बारम्बार हमारे प्रति समर्पित हों, ऐसी कामना भी हम नहीं करते। मार्गाभिज्ञ, अन्तर्यामी देव पुरोगामी होकर सरल मार्ग द्वारा मनुष्यों को ले जावें।[ऋग्वेद 5.46.1]
यज्ञभार :: यज्ञ सामग्री को ले जाने वाली गाड़ी, vehicle carrying sacrificial goods.
Aware of all-enlightened Pratikshtr, deployed himself in the vehicle carrying Yagy oblations-offerings. We the priests or hosts, bear the burden of protection of that divine vehicle carrying Yagy oblations. We do not wish to escape this duty and do not wish that this duty be given to us again & again. Let the demigods-deities possessing intuition-insight aware of the path should take the humans through some simple-easy route.
अग्न इन्द्र वरुण मित्र देवाः शर्धः प्र यन्त मारुतोत विष्णो।
उभा नासत्या रुद्रो अध ग्नाः पूषा भगः सरस्वती जुषन्त॥
हे अग्नि, इन्द्र, वरुण और मित्रादि देवों! आप सब हमें बल प्रदान करें। श्रीविष्णु और मरुत बल प्रदान करें। हे नासत्यद्वय! रुद्रदेव, देवपत्नियाँ, पूषा, भग और सरस्वती हम लोगों की पूजा से प्रसन्न हों।[ऋग्वेद 5.46.2]
नासत्य द्वय :: दो आश्विनि कुमार, उनमें से एक स्वास्थ के देवता हैं। मानव शरीर की देवी और भगवान् शिव की पुत्री ज्योति नासत्य की पत्नी थी। स्वास्थ्य लाभ का देवता सत्यवीर नासत्य का पुत्र था। दरसा दूसरे आश्विन हैं।
Hey Agni, Indr and Mitr etc. demigods-deities! You all grant us strength. Let Shri Hari Vishnu and Marud Gan grant us strength. Hey Nasty Duo-Ashwani Kumars! Let Rudr Dev, goddesses-wives of demigods-deities, Pusha, Bhag and Saraswati be happy-pleased with our worship-prayers.
इन्द्राग्नी मित्रावरुणादितिं स्वः पृथिवीं द्यां मरुतः पर्वताँ अपः।
हुवे विष्णुं पूषणं ब्रह्मणस्पतिं भगं नु शंसं सवितारमूतये॥
हम रक्षा के लिए इन्द्र देव, अग्नि देव, मित्र वरुण, अदिति, सूर्य, द्यावा-पृथ्वी, मरुद्गण, पर्वत, जल, विष्णु, पूषा, ब्रह्मणस्पति और सविता का आह्वान करते हैं।[ऋग्वेद 5.46.3]
We invoke Indr Dev, Agni Dev, Mitr & Varun, Aditi, Sury, heavens & earth, Marud Gan, Parwat, water, Vishnu, Pusha, Brahmanspati and Savita for our protection.
उत नो विष्णुरुत वातो अस्त्रिधो द्रविणोदा उत सोमो मयस्करत्।
उत ऋभव उत राये नो अश्विनोत त्वष्टोत विभ्वानु मंसते॥
श्रीविष्णु अथवा अहिंसाकारी वायुदेव अथवा धनदाता सोम हम लोगों को सुख प्रदान करें। ऋभुगण, अश्विनीकुमार, त्वष्टा और विभु हम लोगों को ऐश्वर्य प्रदान करने के लिए अनुकूल प्रेरणा प्रदान करें।[ऋग्वेद 5.46.4]
Let Shri Vishnu or non violent Vayu Dev or donor of Som-Moon grant us comforts. Let Ribhu Gan, Ashwani Kumars, Twasta & Vibhu favourably inspire-direct us to have grandeur.
उत त्यन्नो मारुतं शर्ध आ गमद्दिविक्षयं यजतं बर्हिरासदे।
बृहस्पतिः शर्म पूषोत नो यमद्वरूथ्यं १ वरुणो मित्रो अर्यमा॥
पूजनीय तथा स्वर्ग लोक में रहनेवाले मरुद्गण कुश के ऊपर उपवेशन करने के लिए हम लोगों के निकट आगमन करें। बृहस्पति, पूषा, वरुण, मित्र और अर्यमा हम लोगों को सम्पूर्ण गृहसम्बन्धी सुख प्रदान करें।[ऋग्वेद 5.46.5]
उपवेशन :: बैठना, स्थित होना, जमना, जमकर बैठ जाना, हार मान लेना; inclusion, sitting.
Worshipable and residents of heavens come to us and sit over the Kush Mat. Let Brahaspati, Pusha, Varun, Mitr and Aryma grant us comforts related to family-household.
उत त्ये नः पर्वतासः सुशस्तयः सुदीतयो नद्य१स्त्रामणे भुवन्।
भगो विभक्ता शवसावसा गमदुरुव्यचा अदितिः श्रोतु मे हवम्॥
उत्तम स्तुति वाले पर्वत और दानशीला नदियाँ हम लोगों की रक्षा करें। धनदाता भगदेव अन्न और रक्षा के साथ यहाँ आगमन करें। सभी जगह व्याप्त होने वाली देवमाता अदिति हमारे स्तोत्रों को श्रवण करें।[ऋग्वेद 5.46.6]
Let the mountains having excellent prayers and the rivers devoted to charity protect us. Let grantor of wealth Bhag Dev come to us with food grains for our protection. All pervading mother of demigods-deities respond, listen-attend to our Strotr.
देवानां पत्नीरुशतीरवन्तु नः प्रावन्तु नस्तुजये वाजसातये।
याः पार्थिवासो या अपामपि व्रते ता नो देवीः सुहवाः शर्म यच्छत॥
इन्द्रादि देवों की पत्नियाँ हम लोगों स्तुतियों को श्रवण कर हम लोगों की रक्षा करें। वे हम लोगों की इस तरह से रक्षा करें, जिससे हम लोग बलवान् पुत्र तथा प्रभूत अन्न लाभ प्राप्त करें। हे देवियों! आप सब पृथ्वी पर रहो या अन्तरिक्ष में उदकव्रत में निरत रहो; परन्तु हम लोग आपका उत्तम आह्वान करते हैं। आप सभी हम लोगों को सुख प्रदत्त करें।[ऋग्वेद 5.46.7]
Wives of demigods-deities like Indr Dev, goddesses listen to our prayers and protect us so that we can have strong sons & sufficient food grains. Hey goddesses! Whether you stay over the earth or remain-keep your self busy in the space performing-resorting to water fast, we make excellent invocation of you. All of you should grant us comforts-pleasures.
उत ग्ना व्यन्तु देवपत्नीरिन्द्राण्य१ग्नाय्यश्विनी राट्।
आ रोदसी वरुणानी शृणोतु व्यन्तु देवीर्य ऋतुर्जनीनाम्॥
हे देवियाँ! देवपत्नियाँ हव्य भक्षण करें। इन्द्राणी, अग्नायी, दीप्तिमती अश्विनी, रोदसी, वरुणानी आदि प्रत्येक हम लोगों की स्तुतियों को श्रवण करें। देवियाँ हव्य भक्षण करें। देवपत्नियों के बीच में जो ऋतुओं की अधिष्ठात्री देवी हैं, वे स्तोत्र श्रवण करें और हव्य का भक्षण करें।[ऋग्वेद 5.46.8]
Hey Goddesses! Let the wives of demigods-deities, Goddesses eat offerings. Indrani, Agnyani, Deepti Mati, Ashvini, Rodsi, Varunani listen-respond to our prayers. In between the wives of demigods-deities the Ritu's deity listen to our Strotr and eat the offerings.(11.07.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (47) :: ऋषि :- प्रतिरथ आत्रेय, देवता :- विश्वेदेव, छन्द :- त्रिष्टुप्।
प्रयुञ्जती दिव एति ब्रुवाणा मही माता दुहितुर्बोधयन्ती।
आविवासन्ती युवतिर्मनीषा पितृभ्य आ सदने जोहुवाना॥
परिचर्याकारिणी, नित्य तरुणी, पूजनीया और पूजिता उषा आहूत होकर शक्तिमती जननी तुल्य कन्या स्वरूप पृथ्वी का चैतन्य विधान करती हैं, मानवों के कार्य को प्रवर्तित करती हैं और द्युलोक से रक्षाकारी देवों के साथ यज्ञगृह में आगमन करती हैं।[ऋग्वेद 5.47.1]
विधान :: विधि निर्माण, संविधि, क़ानून, व्यवस्था; legislation, legislative, statute.
Always young, worshipable, serving-nursing Usha, on being worshipped enable-conscious mighty earth who is comparable to mother in the form of a girl & allows the humans to work and enters the Yagy site along with the protecting demigods-deities.
अजिरासस्तदप ईयमाना आतस्थिवांसो अमृतस्य नाभिम्।
अनन्तास उरवो विश्वतः सीं परि द्यावापृथिवी यन्ति पन्थाः॥
असीम और सर्वव्यापिनी रश्मियाँ प्रकाशन रूप अपने कर्त्तव्य का सम्पादन करके, अमर सूर्यमण्डल के साथ एकत्र उपवेशन करके द्यावा-पृथ्वी और अन्तरिक्ष में परितः गमन करती हैं।[ऋग्वेद 5.47.2]
Limitless, pervading all, rays accomplish the task of lighting the immortal Solar system, moves to the space of the earth & heavens.
उक्षा समुद्रो अरुषः सुपर्णः पूर्वस्य योनिं पितुरा विवेश।
मध्ये दिवो निहित: पृश्निरश्मा वि चक्रमे रजसस्पात्यन्तौ॥
उदक अथवा कामनाओं के सेचक, देवों के आनन्द विधायक, दीप्तिमान् और द्रुतगामी रथ ने जनक स्वरूप पूर्व दिशा में प्रवेश किया। पश्चात् स्वर्ग के बीच में निहित विभिन्न वर्ण और सर्वव्यापी सूर्य देव अन्तरिक्ष के उभय प्रान्त में अग्रसर हुए और जगत् की रक्षा की।[ऋग्वेद 5.47.3]
सेचक :: सींचने वाला, तर करनेवाला, छिड़कने वाला, बादल, मेघ; sprinkler.
Granting water, accomplishing desires, giving pleasure to demigods, radiant, accelerated charoite entered the east direction. Present in the heavens with vivid colours, all pervading Sury Dev-Sun moved to the two common regions and protected the world.
चत्वार ईं बिभ्रति क्षेमयन्तो दश गर्भं चरसे धापयन्ते।
त्रिधातवः परमा अस्य गावो दिवश्चरन्ति परि सद्यो अन्तान्॥
अपनी कल्याण कामना करके चार ऋत्विक् सूर्य को हवि द्वारा धारित करते हैं। दसों दिशाएँ निज गर्भजात आदित्य को दैनिक गति के लिए प्रेरित करती हैं। आदित्य की शीत, ग्रीष्म और वर्षा के भेद से त्रिविध रश्मियाँ अन्तरिक्ष की सीमा में द्रुतवेग से परिभ्रमण करती हैं।[ऋग्वेद 5.47.4]
With the desire of own welfare four Ritviz make offerings to Sury Dev. Ten direction who held Sun in their womb motivate-inspire Adity-Sun for daily routine motion. Three kinds of rays forming the winters, summer and rains of Sun-Adity enter the limits-boundaries of space with high speed.
इदं वपुर्निवचनं जनासश्चरन्ति यन्नद्यस्तस्थुरापः।
द्वे यदींबिभृतो मातुरन्ये इहेह जाते यम्या ३ सबन्धू॥
हे ऋत्विकों! यह पुरोभाग में दृश्यमान् शरीर मण्डल अतिशय स्तवनीय है। इसी मण्डल से नदियाँ प्रवाहित होती हैं। जलराशि इसमें अवस्थान करती है। अन्तरिक्ष से अन्य युग्म भूत समान बल अहोरात्र इसी से उत्पन्न हुए हैं; अतः वे इसे धारित करते हैं।[ऋग्वेद 5.47.5]
Hey Ritviz! The visible body formation is highly honoured-revered in the barley cakes. The rivers flow in this region. Water is stored-present here. Other dual opposite forces have evolved from the space like the day & night and hence it bear it.
वि तन्वते धियो अस्मा अपांसि वस्त्रा पुत्राय मातरो वयन्ति।
उपप्रक्षे वृषणो मोदमाना दिवस्पथा वध्वो यन्त्यच्छ॥
इसी सूर्य देव के लिए याजक गण स्तोत्र और यज्ञ का विस्तार करते हैं। इसी पुत्र स्वरूप सूर्य के लिए माताएँ तेजोरूप वस्त्र बुनती हैं। वर्षण कारी सूर्य देव के सम्पर्क से हर्षित होकर पत्नी स्वरूप रश्मियाँ आकाश मार्ग से होकर हम लोगों के पास आती हैं।[ऋग्वेद 5.47.6]
The Ritviz-priests recite sacred hymns-Strotr and extend the Yagy. The mother weave cloths for this radiant son like Sun. The rays of Sun causing rains travel to us through the sky.
तदस्तु मित्रावरुणा तदग्ने शं योरस्मभ्यमिदमस्तु शस्तम्।
अशीमहि गाधमुत प्रतिष्ठां नमो दिवे बृहते सादनाय॥
हे मित्र और वरुणदेव! इस स्तोत्र को ग्रहण करें। हे अग्नि देव! हम लोगों के विशुद्ध सुख के लिए इस स्तोत्र को ग्रहण करें। हम लोग स्थिति और प्रतिष्ठा प्राप्त करें। हम दीप्तिमान्, शक्तिमान् और सभी के आश्रयभूत सूर्य देव को नमस्कार करते हैं।[ऋग्वेद 5.47.7]
Hey Mitr & Varun Dev! Accept, our this Strotr. Hey Agni Dev! Accept our this Strotr for our pure comforts. Let us gain position and honour. We salute radiant, mighty and shelter granting Sun-Sury Dev.(14.07.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (48) :: ऋषि :- प्रतिभानुरात्रेय, देवता :- विश्वेदेवा, छन्द-जगती।
कदु प्रियाय धाम्ने मनामहे स्वक्षत्राय स्वयशसे महे वयम्।
आमेन्यस्य रजसो यदभ्र आँ अपो वृणाना वितनोति मायिनी॥
सभी के प्रिय और पूजनीय उस वैद्युत तेज की पूजा हम कब करेंगे? जो स्वाधीन बल है और जिनके सब अन्न अपने हैं। जब आच्छादनकारिणी या सेव्यमाना आग्नेय शक्ति प्रज्ञावती होकर परिमेय अन्तरिक्ष में बादलों के ऊपर वर्षा के जल को विस्तारित करती हैं।[ऋग्वेद 5.48.1]
When will we pray the dear and worshipable electric energy-aura? Who is independent and all food grains are his own! All pervading electric power establish over the limited clouds and extend the spheres-area of rains.
ता अत्नत वयुनं वीरवक्षणं समान्या वृतया विश्वमा रजः।
अपो अपाचीरपरा अपेजते प्र पूर्वाभिस्तिरते देवयुर्जनः॥
ऋत्विकों द्वारा प्राप्त करने योग्य ज्ञान को ये उषाएँ विस्तारित करती हैं, क्या? एक प्रकार की आवरक दीप्ति द्वारा सम्पूर्ण जगत् को व्याप्त करती हैं। देवाभिलाषी लोग निवृत्त और आगामिनी उषाओं को त्यागकर वर्तमान उषा के द्वारा अपनी बुद्धि को वर्द्धित करते हैं।[ऋग्वेद 5.48.2]
आवरक :: ढकनेवाला, परदा; folders, flap.
Do the Ushas extend the enlightenment fit for the Ritviz? A special kind of aura covers the entire universe. People desirous of invoking the demigods-deities increase-boost their intelligence by rejecting the previous Ushas and devotion to the new Usha.
आ ग्रावभिरहन्येभिरक्तुभिर्वरिष्ठं वज्रमा जिघर्ति मायिनि।
शतं वा यस्य प्रचरन्तत्स्वे दमे संवर्तयन्तो वि च वर्तयन्नहा॥
अहोरात्र में निष्पन्न सोमरस द्वारा हर्षित होकर इन्द्र देव मायावी वृत्रासुर के लिए दीर्घ वज्र को दीप्त करते हैं। इन्द्रात्मक आदित्य की शतसंख्यक रश्मियाँ दिवसों को भली-भाँति से निवर्तित परिभ्रमण करती हैं।[ऋग्वेद 5.48.3]
Devraj Indr become happy by drinking the Somras extracted during day & night and energise Vajr. The hundreds of rays of light emitted by Adity with the impact of Indr Dev revolve thoroughly.
तामस्य रीतिं परशोरिव प्रत्यनीकमख्यं भुजे अस्य वर्पसः।
सचा यदि पितुमन्तमिव क्षयं रत्नं दधाति भरहूतये विशे॥
परशु के तुल्य अग्नि देव की उस स्वाभाविक जाति को हम देखते हैं। रूपवान् आदित्य के रश्मि समूह का कीर्त्तन हम भोग के लिए करते हैं। वह अग्नि देव सहायक होकर यज्ञ स्थल में आह्वानकारी याजकगण को अन्न पूर्ण घर तथा रत्न प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 5.48.4]
परशु :: फरसा; halberd, hatchet, poleaxe.
We visualise the nature of Agni Dev which is like a Parshu-hatchet. We recite the names of Adity's rays for our consumption-welfare. Agni Dev assists the Ritviz who invoke him at the Yagy site, grant him food grains and gems-jewels.
स जिह्वया चतुरनीक ऋञ्जते चारु वसानो वरुणो यतन्नरिम्।
न तस्य विद्म पुरुषत्वता वयं यतो भगः सविता दाति वार्यम्॥
रमणीय तेज से आच्छादित होकर अग्नि देव अन्धकार और शत्रुओं को विनष्ट करते हैं तथा चारों ओर ज्वाला को विस्तारित करके जिह्वा द्वारा घृतादि का पान करते हैं। पुरुषत्व द्वारा कामनाओं को देने वाले अग्निदेव को हम नहीं जानते; क्योंकि ये महान् भजनीय सवितादेव वरणीय धन प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 5.48.5]
रमणीय :: रमण योग्य, सुंदर; delightful, delectable.
Agni Dev is surrounded with attractive glow-aura remove darkness and destroy the enemy, spread his flames all around and consume Ghee. We do not know the deity of fire, who award-fulfil desires by virtue of endeavours-efforts, since the great Savita Dev grant acceptable wealth-money, riches.
The Sun, Adity, Savita do have fire in them i.e., the component of Agni Dev.(15.07.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (49) :: ऋषि :- प्रतिप्रभ आत्रेय, देवता :- विश्वेदेव, छन्द :- त्रिष्टुप्।
देवं वो अद्य सवितारमेषे भगं च रलं विभजन्तमायोः।
आ वां नरा पुरुभुजा ववृत्यां दिवेदिवे चिदश्विना सखीयन्॥
अभी हम आप याजक गणों के लिए सविता और भगदेव का आवाहन करते हैं। क्योंकि ये याजकगणों को धन प्रदान करते हैं। हे नेतृ स्वरूप बहुभोग कर्ता अश्विनी कुमारों! आप दोनों से मित्रता की कामना करके हम प्रतिदिन आप दोनों का आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 5.49.1]
We are invoking Savita & Bhag Dev for the Ritviz, since they grant wealth-riches to them. Hey leaders and consumers of several offerings-oblations Ashwani Kumars! We seek-request your friendship and company invoking you everyday.
प्रति प्रयाणमसुरस्य विद्वान्त्सूक्तैर्देवं सवितारं दुवस्य।
उप ब्रुवीत नमसा विजानञ्ज्येष्ठं च रलं विभजन्तमायोः॥
हे स्तोताओं! शत्रुओं के निवारक सविता देव को पुनः वापस आता जानकर सूक्तों द्वारा उनकी स्तुति करें। वे मनुष्यों को श्रेष्ठ धन प्रदान करते हैं। नमस्कार अथवा हविर्विशेष से उनका स्तवन करें।[ऋग्वेद 5.49.2]
Hey Stotas! On seeing Savita Dev, the remover of the enemies, returning-coming back worship-pray him with sacred hymns-Strotr. He grant money to the excellent humans. Salute him and worship him with special offerings.
अदत्रया दयते वार्याणि पूषा भगो अदितिर्वस्त उस्रः।
इन्द्रो विष्णुर्वरुणो मित्रो अग्निरहानि भद्रा जनयन्त दस्माः॥
पोषक, भजनीय तथा अखण्डनीय अग्नि देव जिह्वा द्वारा वरणीय काष्ठ को दहन करते हैं अथवा वरणीय अन्न याजकगण को प्रदान करते हैं। सूर्य तेज को आच्छादित करते हैं। इन्द्र देव, श्री हरी विष्णु, वरुण, मित्र और अग्नि देव आदि दर्शनीय देव शोभन दिवस को उत्पन्न करते हैं।[ऋग्वेद 5.49.3]
Nourishing-nurturing, worshipable and unbreakable Agni Dev burn the wood with his tongue and provide food grains to the Ritviz. The Sun covers the energy (reduces-checks the intensity of his radiations). Indr Dev, Shri Hari Vishnu, Varun, Mitr & Agni Dev invoke extremely beautiful-enjoying day.
तन्नो अनर्वा सविता वरूथं तत्सिन्दधव इषयन्तो अनु ग्मन्।
उप यद्वोचे अध्वरस्य होता रायः स्याम पतयो वाजरत्नाः॥
किसी के द्वारा भी अपराजित सविता देव हम लोगों को अभिमत धन प्रदान करें। उस धन को देने के लिए स्पन्दनशील नदियाँ गमन करें। इसीलिए हम यज्ञ के होता स्तोत्र पाठ करते हैं। हम बहुविध धन के स्वामी हों, अन्न और बल से सम्पन्न हों।[ऋग्वेद 5.49.4]
Let undefeatable by any one, Savita Dev grant us unlimited wealth. Let the palpitating-pulsating rivers flow to grant that unlimited wealth. Hence, we the Stota-Hota of the Yagy recite Strotr. Let us become the owners of vivid wealth, food grains and might.
PALPITATION :: स्पंदन, धड़कन, घबराहट; flurry, bewilderment, dither, tizzy, pulsation, throb, flutter, quivering, vibration, pulsation, trembling.
प्र ये वसुभ्य ईवदा नमो दुर्ये मित्रे वरुणे सूक्तवाचः।
अवैत्वभ्वं कृणुता वरीयो दिवस्पृथिव्योरवसा मदेम॥
जिन याजकगणों ने वसुओं को गमनशील अन्न दिया और जिन्होंने मित्र तथा वरुण के लिए स्तोत्र पाठ किया, हे देवो! उन्हें महान् तेज व दीर्घतर सुख प्रदान करें। हम द्यावा-पृथ्वी की रक्षा प्राप्त कर हर्षित हों।[ऋग्वेद 5.49.5]
Hey demigods-deities! Grant energy-power and prolonging comforts to those Ritviz who provided food grains-offerings to the dynamic Vasus and recited Strotr for the sake of Mitr and Varun Dev. Let us become happy by having-receiving protection from heavens & earth.(16.07.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (50) :: ऋषि :- स्वस्त्यात्रेय , देवता :- विश्वेदेव, छन्द :- अनुष्टुप् पंक्ति।
विश्वो देवस्य नेतुर्मर्ती वुरीत सख्यम्।
विश्वः राय इषुध्यति द्युम्नं वृणीत पुष्यसे॥
सभी मनुष्य सविता देव से मित्रता की प्रार्थना करते हैं। सम्पूर्ण मनुष्य उनसे धन की कामना करते हैं। उनके अनुग्रह से सभी लोग पुष्टि के लिए पर्याप्त धन प्राप्त करते हैं।[ऋग्वेद 5.50.1]
अनुग्रह :: दया, सुघड़ता, इनायत, सुन्दर ढ़ंग, श्री, पक्षपात, अनुमति, अति कृपा, पत्र, इनायत; grace, favour, graciousness.
All humans worship-pray, request Savita Dev for his friendship. Entire populace get sufficient money for their nourishment by virtue of his grace.
ते ते देव नेतर्ये चेमाँ अनुशसे।
ते राया ते ह्या ३ पृचे सचेमहि सचथ्यैः॥
हे अग्रणी देव! आपके उपासक हम याजकगण तथा इन्द्रादि के उपासक होता प्रभृति आपके ही हैं। हम और वे दोनों ही धनयुक्त हों। हम लोगों की कामना पूर्ण करें।[ऋग्वेद 5.50.2]
प्रभृति :: इत्यादि, आदि, वगैरह; influence.
Hey leading deity! We, your worshipers Ritviz and the worshipers of Indr Dev etc. belong to you. Let us become rich along with them. Accomplish our desires-prayers.
अतो न आ नॄनतिथीनतः पत्नीर्दशस्यत।
आरे विश्वं पश्रेष्ठां द्विषो युयोतु यूयुविः॥
अतः इस यज्ञ में हम ऋत्विजों के अतिथि के तरह पूज्य देवों की सेवा करें। इसलिए इस यज्ञ में हविः प्रदान करके देव पत्नियों की सेवा करें। हे देवों! पृथक कर्ता देव समूह या सविता देव दूर मार्ग में वर्त्तमान समस्त वैरियों को या अन्य शत्रुओं को दूर करें।[ऋग्वेद 5.50.3]
वैरी :: शत्रु, दुश्मन, वैर करने वाला; enemy.
Hence we should serve the worshipable deities-demigods and the their wives-Goddesses in this Yagy like the guests of the Ritviz with offerings. Hey demigods-deities! Either isolating group of demigods-deities or Savita Dev repel the current enemies of those envious to us.
यत्र वह्निरभिहितो दुद्रवद्द्रोण्यः पशुः।
नृमणा वीरपस्त्योऽर्णा धीरेव सनिता॥
जिस यज्ञ में यज्ञ को वहन करने वाला यूप योग्य पशु यूप के निकट उपस्थित होता है, उस यज्ञ में सविता देव याजक गण को कुशल तथा धीर स्त्री के तुल्य गृह, भृत्यादि और धन प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 5.50.4]
धीर :: शांत स्वभाव वाला, नम्र, विनीत, विरक्त, शांत, दिलजमा, नाउम्मेद, निचला, संकोची, विनयशील, आडंबरहीन, निराश; demure, halcyon, steadfast, resolute, bold, patient, persevering, lasting, stable, constant, calm, self possessed, solemnness, sedate, solemn, grave, deep.
Savita Dev grant skilled-expert, passionless wife, riches, servants etc. to the Ritviz, who brings animal for the sake of Yagy to the pole for tiding it.
एषते देव नेता रथस्पतिः शं रयिः।
शं राये शं स्वस्तय इषः स्तुतो मनामहे देवस्तुतो मनामहे॥
हे नेता सविता देव! आपका यह धनवान् और सबको पालन करने वाला रथ हम लोगों का कल्याण करे। हम सब स्तुति योग्य सविता देव के स्तोता हैं, हम धन के लिए, सुख के लिए तथा अविनष्ट होने के लिए उनकी प्रार्थना करते हैं। हम सविता देव के स्तुतियों के साथ आपकी भी बारम्बार प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 5.50.5]
Hey leader Savita Dev! Let your wealth carrying and nurturer of all, charoite resort to our welfare. We all Stotas are the worshipers of honoured-revered Savita Dev and worship-pray him for riches, comforts, immortality. We worship you again & again along with the prayers devoted to Savita Dev.(16.07.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (51) :: ऋषि :- स्वस्त्यात्रेय, देवता :- विश्वेदेव, छन्द :- गायत्री, त्रिष्टुप्, उष्णिक्।
अग्ने सुतस्य पीतये विश्वैरूमेभिरा गहि देवेभिर्हव्यदातये॥
हे अग्नि देव! आप सोमरस के पान के लिए इन्द्रादि सम्पूर्ण रक्षक देवों के साथ हव्य देने वाले हम याजकगणों के पास पधारें।[ऋग्वेद 5.51.1]
Hey Agni Dev! Visit us, the Ritviz along with Devraj Indr and other protector demigods-deities, for drinking Somras.
ऋतधीतय आ गत सत्यधर्माणो अध्वरम्। अग्नेः पिबत जिह्वया॥
हे सत्य स्तुति वाले देवों! हे सत्य को धारित करने वालों आप सभी हमारे यज्ञ में आगमन करें और अग्नि की जिह्वा द्वारा घृत अथवा सोमरस आदि का पान करें।[ऋग्वेद 5.51.2]
Hey truly worshipable Deities! Hey truthful demigods-deities join our Yagy and sip-drink the Ghee and Somras with the tongue of Agni Dev.
विप्रेभिर्विप्र सन्त्य प्रातर्यावभिरा गहि। देवेभिः सोमपीतये॥
हे मेधाविन् अग्नि देव! प्रातः काल में आने वाले मेधावी देवताओं के साथ सोमरस के पान के लिए यहाँ पधारें।[ऋग्वेद 5.51.3]
Hey intelligent Agni Dev! Come to drink Somras alongwith the intelligent demigods-deities in the morning.
अयं सोमश्चमू सुतोऽमत्रे परि षिच्यते। प्रिय इन्द्राय वायवे॥
हे इन्द्र देव और वायु देव! पत्थरों से कूटकर अभिषुत हुआ सोमरस पात्रों में छानकर भरा जाता है, यह इन्द्रदेव और वायुदेव के लिए प्रिय है। इस सोमरस को पीने के लिए यहाँ पधारें।[ऋग्वेद 5.51.4]
Hey Indr Dev & Vayu Dev! Come to drink Somras crushed with stones and filtered for you, kept in the pots.
वायवा याहि वीतये जुषाणो हव्यदातये।
पिबा सुतस्यान्धसो अभि प्रयः॥
हे वायु देव! हवि देने वाले यजमान की प्रीति के लिए आप हव्यपान करने के लिए पधारें। आकर अभिषुत सोमरूप अन्न का भक्षण करें।[ऋग्वेद 5.51.5]
Hey Vayu Dev! Come for drinking Somras for the love of the Ritviz making offerings and eat the food grains in the containing-form of Somras.
इन्द्रश्च वायवेषां सुतानां पीतिमर्हथः।
ताञ्जुषेथामरेपसावभि प्रयः॥
हे वायु देव! आप और इन्द्र देव इस अभिषुत सोमरस का पान करने के योग्य हैं; इसीलिए अहिंसक होकर आप दोनों इस सोमरस का सेवन करें और सोमात्मक अन्न के उद्देश्य से आगमन करें।[ऋग्वेद 5.51.6]
Hey Vayu Dev! You alongwith Indr Dev is qualified to drink this extracted Somras. Invoke for the eating the food grains in the form of Somras, without being violent.
सुता इन्द्राय वायवे सोमासो दध्याशिरः।
निम्नं न यन्ति सिन्धवोऽभि प्रयः॥
इन्द्र देव तथा वायु देव के लिए दधि मिश्रित सोमरस अभिषुत हुआ है। हे इन्द्र देव और वायु देव! निम्नगामिनी नदियों के सदृश वह सोमरस आप दोनों के अभिमुख गमन करता है।[ऋग्वेद 5.51.7]
Hey Indr Dev & Vayu Dev! Somras mixed with curd has been extracted for you. It moves to you like the rivers flowing in the down ward direction.
सजूर्विश्वेभिर्देवेभिरश्विभ्यामुषसा सजूः। आ याह्यग्ने अत्रिवत्सुते रण॥
हे अग्नि देव! आप देवों के साथ मिलकर तथा अश्विनी कुमारों और उषा के साथ समान प्रीति स्थापित करके आगमन करें। यज्ञ में जिस प्रकार से अत्रि रमण करते हैं, उसी प्रकार आप भी अभिषुत सोमरस में रमण करें।[ऋग्वेद 5.51.8]
Hey Agni Dev! Come with demigods-deities, Ashwani Kumars & Usha friendly. Participate in the Yagy the way Atri Rishi does it.
सजूर्मित्रावरुणाभ्यां सजूः सोमेन विष्णुना। आ याह्यग्ने अत्रिवत्सुते रण॥
हे अग्नि देव! आप मित्र, वरुण, सोम तथा विष्णु के साथ मिलकर आगमन करें। यज्ञ में जिस प्रकार से अत्रि रमण करते हैं, उसी प्रकार आप भी अभिषुत सोमरस में रमण करें।[ऋग्वेद 5.51.9]
Hey Agni Dev! Come alongwith Mitr, Varun, Som-Moon and Bhagwan Shri Hari Vishnu. Participate in the Yagy the way Atri Rishi does it.
सजूरादित्यैर्वसुभिः सजूरिन्द्रेण वायुना। आ याह्यग्ने अत्रिवत्सुते रण॥
हे अग्नि देव! आप सूर्य, वसु गण, इन्द्र देव और वायु देव के साथ मिलकर यहाँ आगमन करें। यज्ञ में जिस प्रकार से अत्रि रमण करते हैं, उसी प्रकार आप भी अभिषुत सोमरस में रमण करें।[ऋग्वेद 5.51.10]
Hey Agni dev! Come here alongwith Sury-Sun, Vasu Gan, Indr Dev and Vayu Dev. Participate in the Yagy the way Atri Rishi does it.
स्वस्ति नो मिमीतामश्विना भगः स्वस्ति देव्यदितिरनर्वणः।
स्वस्ति पूषा असुरो दधातु नः स्वस्ति द्यावापृथिवी सुचेतुना॥
हम लोगों के लिए दोनों अश्विनी कुमार अविनश्वर कल्याण करें, भग कल्याण करें तथा देवी अदिति कल्याण करें। बलवान् अथवा सत्यशील और शत्रु संहारक अथवा बलदाता पूषा हम लोगों का मङ्गल करें। शोभन ज्ञान विशिष्ट द्यावा-पृथ्वी हम लोगों का मङ्गल करें।[ऋग्वेद 5.51.11]
अविनश्वर :: वह अक्षर और अविनश्वर है और जीवात्मा के रूप में प्रत्येक जीव में अवस्थित है, जिसका नाश न हो, परब्रह्म; immortal, imperishable, indestructible.
Let both Ashwani Kumars, the imperishable-immortal Brahm, Bhag and Devi Aditi resort to our welfare. Let truthful Pusha the grantor of might, destroyer of the enemy resort to our welfare. Let the heaven & earth resort to our welfare through specific means-knowledge.
स्वस्तये वायुमुप ब्रवामहै सोमं स्वस्ति भुवनस्य यस्पतिः।
बृहस्पतिं सर्वगणं स्वस्तये स्वस्तय आदित्यासो भवन्तु नः॥
कल्याण के लिए हम लोग वायु देव की प्रार्थना करते हैं और सोमरस का भी स्तवन करते हैं। सोम निखिल लोक के पालक हैं। सब देवों के साथ मन्त्र पालक बृहस्पति देव की प्रार्थना कल्याण के लिए करते हैं। अदिति के पुत्र देवगण अथवा अरुणादि द्वादश देव हम लोगों के लिए कल्याणकारी हों।[ऋग्वेद 5.51.12]
We worship Vayu Dev for our welfare and extract Somras for him. Som nourish-nurture the whole world. We worship Brahaspati Dev with all demigods-deities, who is the supporter of Mantr Shakti, for our welfare. Let the son of Aditi Demigods and the twelve Adity Gan be helpful to us i.e., resort to our welfare.
विश्वे देवा नो अद्या स्वस्तये वैश्वानरो वसुरग्निः स्वस्तये।
देवा अवन्त्वृभवः स्वस्तये स्वस्ति नो रुद्रः पात्वंहसः॥
इस यज्ञ में सम्पूर्ण देवता हम लोगों का कल्याण करें और रक्षा करें। मनुष्यों के नेता और गृहदाता अग्निदेव हम लोगों का कल्याण करें और रक्षा करें। दीप्तिमान् ऋभुगण भी हम लोगों का कल्याण व रक्षा करें। रुद्रदेव हम लोगों का कल्याण कर पाप से रक्षा करें।[ऋग्वेद 5.51.13]
Let all the demigods-deities resort to our welfare and protect us, in this Yagy. Let protector of humans and grantor of homes to us, resort to our welfare. Radiant-aurous Ribhu Gan too resort to our welfare and protect us. Let Rudr Dev resort to our welfare and protect us from sins.
स्वस्ति मित्रावरुणा स्वस्ति पथ्ये रेवति।
स्वस्ति न इन्द्रश्चाग्निश्च स्वस्ति नो अदिते कृधि॥
हे अहोरात्राभिमानी मित्र और वरुण देव! आप दोनों मंगल करें। हे हित मार्गाभिमानिनी धनवती देवी! कल्याण करें। इन्द्र देव और अग्नि देव दोनों ही हम लोगों का कल्याण करें। हे अदिति देवी! आप हम लोगों का कल्याण करें।[ऋग्वेद 5.51.14]
Hey Mitr & Varun Dev regulating day and night! Resort to our welfare. Hey Dhanwati Devi, adopting the welfare route! Resort to our welfare. Let both Indr Dev & Agni Dev resort to our welfare. Hey Aditi Devi! Resort to our welfare.
स्वस्ति पन्थामनु चरेम सूर्याचन्द्रमसाविव।
पुनर्ददताघ्नता जानता सं गमेमहि॥
सूर्य देव और चन्द्र देव जिस प्रकार से निरालम्ब मार्ग में राक्षसादि के उपद्रव के बिना विचरण करते हैं, उसी प्रकार से हम लोग भी मार्ग में सुख पूर्वक विचरण करें। प्रवास में चिरकाल हो जाने से भी अक्रुद्ध और स्मरण करने वाले मित्रों से हम मिलकर रहें।[ऋग्वेद 5.51.15]
The way-manner in which Sury Dev & Chandr Dev revolve without being disturbed by the demons on their orbits-path, we too move comfortably on our way. We should live friendly with those friends who are away from us without being angry and live together on being remembered.(17.07.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (52) :: ऋषि :- श्यावाश्व आत्रेय, देवता :- मरुत, छन्द :- अनुष्टुप् पंक्ति।
प्र श्यावाश्व धृष्णुयार्चा मरुद्भिर्ऋक्वभिः।
ये अद्रोघमनुष्वधं श्रवो मदन्ति यज्ञियाः॥
हे श्यावाश्व ऋषि! आप धीरता से स्तुति योग्य मरुतों की अर्चना करें। याग योग्य मरुद्गण प्रतिदिन हविर्लक्षण अहिंसक अन्न को प्राप्त करके प्रसन्न होते हैं।[ऋग्वेद 5.52.1
Hey Rishi Shyavashrv! Maintain your patience-cool while praying to revered-worshipable Marud Gan. Qualified for the Yagy, Marud Gan become happy on being offered the food grains obtained through non violent means.
ते हि स्थिरस्य शवसः सखायः सन्ति धृष्णुया।
ते यामन्ना धृषद्विनस्त्मना पान्ति शश्वतः॥
वे अविचलित बल के मित्र हैं, वे धीर हैं, वे मार्ग में भ्रमण करते हैं और स्वेच्छापूर्वक हमारे पुत्र एवं दासों की रक्षा करते हैं।[ऋग्वेद 5.52.2]
अविचलित :: उदासीन, शांत, स्थिर; undisturbed, unshaken, unmoved, nonchalant.
Unshaken-unmoved they are the friends of Bal, patience, move over their path and protect our sons and slaves.
ते स्पन्द्रासो नोक्षणोऽति ष्कन्दन्ति शर्वरीः।
मरुतामधा महो दिवि क्षमा च मन्महे॥
स्पन्दनशील और जलवर्षक मरुद्गण रात्रि का अतिक्रम करके गमन करते हैं। क्योंकि वे इस प्रकार के हैं; इसीलिए अब हम व्याप्त मरुतों के द्युलोक और भूमि में तेजों की प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 5.52.3]
स्पंदन :: संवेग, फड़फड़ाहट, नाड़ी-स्फुरण, कंपन, थरथराहट; flutter, quivering, vibration.
Fluttering and rain showering Marud Gan travel through the night, by virtue of their nature. Hence, we worship pray the aura-energy of the Marud Gan over the earth & heavens.
मरुत्सु वो दधीमहि स्तोमं यज्ञं च धृष्णुया।
विश्वे ये मानुषा युगा पान्ति मर्त्यरिषः॥
हे होताओं! आप लोग धीरतापूर्वक मरुतों को किसलिए स्तवन और हव्य प्रदान करते हैं? ये मरुद्गण मानवी युगों में हिंसकों से मरणशील मनुष्यों की रक्षा करते हैं।[ऋग्वेद 5.52.4]
Hey Hotas-Ritviz! Why do you worship Marud Gan with patience-patiently and make offerings? Marud Gan protect the mortal humans from the violent people.
PATIENTLY :: धैर्यपूर्वक, सब्र से, धीरज-धीरता से; perseveringly, forbearingly, imperturbably, quietly.
अर्हन्तो ये सुदानवो नरो असामिशवसः।
प्र यज्ञं यज्ञियेभ्यो दिवो अर्चा मरुद्भ्यः॥
हे होताओं! जो पूजनीय, सुन्दर दान विशिष्ट, कर्म के नेता और अधिक बल वाले हैं, ऐसे याग योग्य द्युतिमान् मरुतों को यज्ञ साधन हव्य प्रदान करें।[ऋग्वेद 5.52.5]
Hey Hotas! Make oblations-offerings for the radiant Marud Gan for the Yagy, who are worshipable, revered, make donations-resort to charity & endeavours-efforts, possessing excess might.
आ रुक्मैरा युधा नर ऋष्वा ऋष्टीरसृक्षत।
अन्वेनाँ अह विद्युतो मरुतो जर्रझतीरिव भानुरर्त त्मना दिवः॥
जल के नेता महान् मरुद्रण रोचमान आभरण विशेष से तथा आयुध विशेष से शोभायमान् होते हैं। बादलों के भेदन के लिए वे आयुध विशेष को प्रक्षेपित करते हैं। विद्युत शब्द करने वाली जलराशि के तुल्य मरुतों का अनुगमन करती हैं। द्युतिमान् मरुद्गणों की दीप्ति स्वयं निःसृत होती है।[ऋग्वेद 5.52.6]
रोचमान :: चमकता हुआ, शोभायुक्त; shinning, radiant, aurous.
आभरण :: गहना, आभूषण, भरण पोषण; pretties.
निःसृत :: निकला हुआ; derived.
Great leader of water, radiant Marud Gan are decorated with pretties and specific weapons. They launch specific weapons-missiles for tearing the clouds. Thunder volt follows them like the water. Radiance of Marud Gan comes out automatically.
ये वावृधन्त पार्थिवा य उरावन्तरिक्ष आ।
वृजने वा नदीनां सधस्थे वा महोदिवः॥
जो पृथ्वी सम्बन्धी मरुद्गण हैं और वर्द्धमान होते हैं, जो महान् अन्तरिक्ष में वर्द्धमान होते हैं, वे नदियों की धारा में तथा महान् द्युलोक के बीच में वृद्धि प्राप्त करें। इस प्रकार जल के लिए सभी जगह वर्द्धमान मरुत् बादलों का भेदन करने के लिए आयुध विशेष को प्रक्षेपित करते हैं।[ऋग्वेद 5.52.7]
Marud Gan related-concerned with the earth and growing, grow in the space. Let them grow-flourish in the rivers current and the heavens. Marud Gan are empowered to tear into the clouds with the launching of specific weapons-missiles.
शर्धो मारुतमुच्छंस सत्यशवसमृभ्वसम्।
उत स्म ते शुभे नरः प्र स्पन्द्रा युजतत्मना॥
हे स्तोताओं! मरुतों के उत्कृष्ट बल की प्रार्थना करें। उनका बल अत्यन्त प्रवृद्ध तथा सत्यमूल है। वर्षा करने वाले मरुद्गण, गमनशील होकर सबकी रक्षाबुद्धि से जल के लिए स्वयं नियोजित होते हैं।[ऋग्वेद 5.52.8]
प्रवृद्ध :: बढ़ी हुई; grown up.
Hey Stotas-worshipers! Let us pray-worship for the excellent strength-might of the Marud Gan. Their power is grown up and truthful. Rain causing dynamic Marud Gan organise the water for the protection of all.
उत स्म ते परुष्ण्यामूर्णा वसत शुन्ध्यवः।
उत पव्या रथानामद्रिं भिन्दं त्योजसा॥
मरुद्गण परुष्णी नामक नदी में अवस्थित रहते हैं और सबको शुद्ध करने वाली दीप्ति द्वारा अपने को आच्छादित करते हैं। वे अपने रथ चक्र के द्वारा बादलों और पर्वतों को विदीर्ण करते हैं।[ऋग्वेद 5.52.9]
Marud Gan are stationed-situated in the river known as Parushni and cover themselves with the radiance purifying every one. They tear-rock the clouds and the mountains, with the wheel of their charoite.
आपथयो विपथयोऽन्तस्पथा अनुपथाः।
एतेभिर्मह्यं नामभिर्यज्ञं विष्टार ओहते॥
जो मरुद्गण हम लोगों के अभिमुख मार्ग से गमन करते हैं, जो सभी जगह गमन करते हैं, जो गिरि कन्दराओं में गमन करते हैं और जो अनुकूल मार्ग गामी हैं, वे उपर्युक्त चारों नाम वाले मरुद्गण विस्तृत होकर हमारे यज्ञ के हविष्यान्न वहन करते हैं।[ऋग्वेद 5.52.10]
Marud Gan accept our offerings in the Yagy, move all around us every where, reside-stay in the mountains & caves, follows the favourable path.
अधा नरो न्योहतेऽधा नियुत ओहते।
अधा पारावता इति चित्रा रूपाणि दर्श्या॥
अभिमत वृष्ट्यादि के नेता संसार का अतिशय वहन करते हैं। स्वयं सम्मिलित करने वाले संसार का अतिशय वहन करते हैं। दूर देश अन्तरिक्ष में वे ग्रह, तारा, मेघ आदि को धारित करते हैं। इस प्रकार से उनके रूप नानाविधि और दर्शनीय होते हैं।[ऋग्वेद 5.52.11]
अभिमत :: अनुकूल, सम्मत, मनचाहा, स्वीकृत मत, व्यक्तिगत मत; opinion, consonant.
Favourable, Marud Gan! The leader of the rains etc., bear the excessive burden-load of the universe. They bear the planets, stars, clouds etc. In this manner they appear in different, various ways-forms.
छन्दःस्तुभः कुभन्यव उत्समा कीरिणो नृतुः।
ते मे के चिन्न तायव ऊमा आसन्दृशि त्विषे॥
छन्दों द्वारा प्रार्थना करने वाले और जल की इच्छा करने वाले स्तोता लोगों ने मरुतों की प्रार्थना की तथा प्यासे गौतम के पीने के लिए कूप का आनयन किया। उनमें मरुतों ने अदृश्य तस्करों के सदृश स्थित होकर हमारी रक्षा की तथा कितने ही प्राणरूप से दृश्यमान् होकर शरीर का बल साधन किया।[ऋग्वेद 5.52.12]
The Stotas worshiping Marud Gan with the Chhand-verses, hymns composed of six lines, desirous-needy of water; requested them and organised a well for the thirsty Gautom Rishi. They protected us like the invisible people and boosted strength in the body as the conscience, invoking themselves.
य ऋष्वा ऋष्टिविद्युतः कवयः सन्ति वेधसः।
तमृषे मारुतं गणं नमस्या रमया गिरा॥
हे श्यावाश्व ऋषि! जो मरुद्गण दर्शनीय विद्युत्रूपी आयुध से दीप्तिमान्, मेधावी और सभी के विधाता हैं, उन मरुद्गण की रमणीय प्रार्थना से आप परिचर्या करें।[ऋग्वेद 5.52.13]
Hey Shyavashrv Rishi! Serve-worship the Marud Gan with attractive sacred hymns, who are intelligent, wielding the thunderbolt as a weapon.
अच्छऋषे मारुतं गणं दाना मित्रं न योषणा।
दिवो वा धृष्णव ओजसा स्तुता धीभिरिषण्यत॥
हे ऋषि! आप हविर्दान तथा प्रार्थना के साथ मरुतों के निकट सूर्य देव के तुल्य उपस्थित होवें। हे बल द्वारा पराभूत करने वाले मरुतों! आप लोग द्युलोक से अथवा अन्य दोनों लोकों से हमारे यज्ञ में आगमन करें। हम सब आपकी प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 5.52.14]
पराभूत :: पराजित, परास्त, विनष्ट, ध्वस्त; defeated, overthrown.
Hey Rishi! Present yourself through offerings-oblations and worship near the Marud Gan, like the Sun. Hey defeating with might, Marud Gan! You should join our Yagy from either the heavens or the other two abodes-earth & the Nether world. We worship-request you.
नू मन्वान एषां देवाँ अच्छा न वक्षणा।
दाना सचेत सूरिभिर्यामश्रुतेभिरचिभिः॥
स्तोता शीघ्रता से मरुतों की प्रार्थना करके अन्य देवों की अभिप्राप्ति की कामना नहीं करते। स्तोता ज्ञान सम्पन्न, शीघ्र गमन में प्रसिद्ध तथा फलदाता मरुतों से अभिष्ट दान प्राप्त कर लेते हैं।[ऋग्वेद 5.52.15]
The Stotas quickly worship the Marud Gan without the desire of invoking other demigods-deities. The Stotas get rewards-desired donations from the enlightened, quick moving, famous, obelising Marud Gan.
प्र ये मे बन्ध्वेषे गां वोचन्त सूरयः पृश्निं वोचन्त मातरम्।
अधा पितरमिष्मिणं रुद्रं वोचन्त शिक्वसः॥
जिन प्रेरक मरुतों ने हमें अपने बन्धुओं के अन्वेषण में यह वचन कहा; उन्होंने देवता अथवा पृश्नि वर्ण (चितकबरी, छोटी गाय) गौ को माता बताया और अन्नवान अथवा गमनवान रुद्रदेव को अपना पिता बताया, वे समर्थवान् हैं।[ऋग्वेद 5.52.16]
पृश्नि वर्ण :: चितकबरी; brindle.
The inspiring Marud Gan in connection with our friend & relatives said that Prashni Varn cows are like mother and dynamic Rudr Dev who grant food grains like father.
सप्त मे सप्त शाकिन एकमेका शता ददुः।
यमुनायामधि श्रुतमुद्राधो गव्यं मृजे नि राधो अश्व्यं मृजे॥
सात-सात-सङ्ख्यक सर्वसमर्थ मरुद्गण एक-एक होकर हमें शत संख्यक गौ-अश्व प्रदान करें। इनके द्वारा प्रदत्त गोसमूहात्मक प्रसिद्ध धन को हम यमुना के किनारे प्राप्त करें। उनके द्वारा प्रदत्त अश्व समूहात्मक धन को प्राप्त करें।[ऋग्वेद 5.52.17]
Let Marud Gan in groups of seven, grant us hundreds of cows & horses in groups, over the banks of Yamuna.(18.07.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (53) :: ऋषि :- श्यावाश्व आत्रेय, देवता :- मरुत, छन्द :- गायत्री, बृहती, अनुष्टुप्, उष्णिक्, पंक्ति, ककुप् आदि।
को वेद जानमेषां को वा पुरा सुम्नेष्वास मरुताम्।
यद्युयुज्रे किलास्यः॥
कौन पुरुष मरुतों की उत्पत्ति को जानता है? कौन पहले मरुतों के सुख में वर्त्तमान था? जब उन्होंने पृथ्वी-पृश्नि को रथ में युक्त किया, तब इनके बलरक्षक सुख को कौन जानता था?[ऋग्वेद 5.53.1]
इन मरुतों का जन्म कौन जानता है? मरुतों का सुख सर्वप्रथम किसने अनुभव किया? जब इन्होंने रथ में पृश्नि को जोड़ा था, तब इनकी शक्ति किसने जानी?
Who knows the birth of Maruts? Who has formerly been participant of their enjoyments, by whom the spotted deer are harnessed in their chariots?
Who knows the birth of Marud Gan? Who was present under the comforts granted by Marud Gan? Who was aware of their protective powers generating comforts, when they deployed the earth in their charoite?
ऐतान्रथेषु तस्थुषः कः शुश्राव कथा ययुः।
कस्मै सत्रुः सुदासे अन्वापय इळाभिर्वृष्टयः सह॥
ये मरुद्गण रथ पर उपविष्ट हुए हैं, यह किसने सुना अथवा इनकी रथध्वनि को किसने सुना? यह किस प्रकार गमन करते हैं, यह कौन जानता है? अथवा देव आदि किस प्रकार इनका अनुगमन करें? किस दानशील के लिए बन्धु भूत वर्षक मरुद्गण, बहुत अन्न के साथ अवतीर्ण होंगे?[ऋग्वेद 5.53.2]
उपविष्ट :: आसीन, विराजमान, अध्यासीन, अभिनिविष्ट, बैठा हुआ, जमकर बैठा हुआ; seated, contained.
Who knew that Marud Gan had occupied the charoite or heard the sound of their charoite? Who knows their movements? How the demigods-deities follow them? For which donor, friendly Marud Gan will invoke with a lot of food grains?
ते म आहुर्य आययुरुप द्युभिर्विभिर्मदे।
नरो मर्या अरेपस इमान्पश्यन्निति ष्टुहि॥
सोमपान-जनित हर्ष के लिए द्युतिमान् अश्वों पर आरोहण करके जो मरुत् हमारे निकट आया, उन्होंने कहा, वे नेता, मनुष्यों के हितकर्ता और मूर्तिहीन हैं। इस प्रकार हम लोगों को स्थित देखकर उन्होंने कहा कि हे ऋषि! स्तवन करें।[ऋग्वेद 5.53.3]
The Marud Gan who came closer to the humans riding the charoite having consumed Somras said that they were formless leaders, inclined to human welfare. They saw us sitting and asked, Hey Rishis! Worship.
ये अञ्जिषु ये वाशीषु स्वभानवः स्रक्षु रुक्मेषु खादिषु।
श्राया रथेषु धन्वसु॥
हे मरुतो! जो दीप्ति आप लोगों के आभरण के आश्रय भूत है, जो आयुधों में है, जो माला विशेष में है, जो उरो भूषण में है और जो हस्तपाद स्थित कटक में हैं एवं जो दीप्ति रथ एवं धनुष में विद्यमान् है, उन समस्त दीप्तियों की हम वन्दना करते हैं।[ऋग्वेद 5.53.4]
कटक :: समूह, पैर का कड़ा; leg brace, spine.
Hey Marud Gan! We worship the radiance present in your pretties, weapons, rosary, ornaments of the neck, hands, leg brace, charoite, bow etc.
युष्माकं स्मा रथाँ अनु मुदे दधे मरुतो जीरदानवः।
वृष्टी द्यावो यतीरिव॥
हे शीघ्रदान देने वाले मरुतों! वृष्टि की सभी जगह गमनशील दीप्ति के तुल्य आप लोगों के दृश्यमान् रथ को देखकर हम हर्षित होते हैं और प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 5.53.5]
Quickly resorting to donation, hey Marud Gan! We become happy on seeing your charoite looking like the electric spark in the sky and worship.
आ यं नरः सुदानवो ददाशुषे दिवः कोशमचुच्यवुः।
वि पर्जन्यं सृजन्ति रोदसी अनु धन्वना यन्ति वृष्टयः॥
वे नेतृत्व करने वाले तथा शोभन दान वाले मरुद्गण हवि देने वाले याजकगण के लिए अन्तरिक्ष से जल धारक मेघ को बरसाते हैं। वे द्यावा-पृथ्वी के लिए मेघ को विमुक्त करते हैं। इसके अनन्तर वृष्टिप्रद मरुत् सभी जगह गमनशील उदक के साथ व्याप्त होते हैं।[ऋग्वेद 5.53.6]
Leader, resorting to donations-charity Marud Gan, shower rains for the Ritviz who make offerings for them. They release the clouds for earth & the heavens. Thereafter, the rain clouds move every where and shower rains.
ततृदानाः सिन्धवः क्षोदसा रजः प्र सस्रुर्धेनवो यथा।
स्यन्ना अश्वा इवाध्वनो विमोचने वि यद्वर्तन्त एन्यः॥
निर्भिद्यमान मेघ से निःसृत जलराशि उदक के साथ अन्तरिक्ष में प्रसारित होती हैं, जिस से दुग्ध सिञ्चन करने वाली नव प्रसूता गौ के मार्ग में जाने के लिए विमुक्त शीघ्रगामी अश्व के तुल्य नदियाँ महावेग से प्रवाहित होती हैं।[ऋग्वेद 5.53.7]
हे मनुष्यो! जिस प्रकार से दुग्ध देने वाली गौएँ वैसे जल से भूमि को तोड़ने वाली नदियाँ लोक को प्रस्रवित करती हैं और जैसे घोड़े दौड़ते हैं, वैसे जो शीघ्र जाने वाली नदियाँ विमोचन में मार्गों को बितातीं हैं, उनसे सम्पूर्ण उपकार ग्रहण करने चाहियें।
Unrestricted clouds move through the space with water like the newly pregnant cows producing milk, the rivers flow with great speed like the horses.
आ यात मरुतो दिव आन्तरिक्षादमादुत। माव स्थात परावतः॥
हे मरुतो! आप लोग लोक से, अन्तरिक्ष से अथवा इसी लोक से आगमन करें। दूर देश द्युलोक इत्यादि में अवस्थान न करें।[ऋग्वेद 5.53.8]
Hey Marud Gan! Move from other abode, space or this abode but do not move away to distant heavens.
मा वो रसानितभा कुभा क्रुमुर्मा वः सिन्धुर्नि रीरमत्।
मा वः परि ष्ठात्सरयुः पुरीषिण्यस्मे इत्सुम्नमस्तु वः॥
हे मरुतो! रसा, अनितभा और कुभा नाम की नदियाँ एवं सभी जगह गमन शील समुद्र आप लोगों को रोकें। जलमयी सरयू आप लोगों को निरुद्ध न करें। हम सब आपके आगमन जनित के तुल्य नदियाँ महावेग से प्रवाहित होती हैं।[ऋग्वेद 5.53.9]
Hey Marud Gan! Let rivers named Rasa, Anitbha and Kubha moving all around and the ocean stop you. Let Saryu river block your movement. Let all of us rivers flow with great speed like the speed of your arrival.
तं वः शर्धं रथानां त्वेषं गणं मारुतं नव्यसीनाम्। अनु प्र यन्ति वृष्टयः॥
आप लोगों के प्रेरक नूतन रथ के बल पर और दीप्त मरुद्गण का हम स्तवन करते हैं।[ऋग्वेद 5.53.10]
We worship Marud Gan, on the strength of their new radiant charoite.
शर्धशर्धं व एषां व्रातंव्रातं गणङ्गणं सुशस्तिभिः। अनु क्रामेम धीतिभिः॥
हे मरुतो! हम शोभन प्रार्थना और हविः प्रदानादि लक्षण कार्य द्वारा आपके बल को अविवक्षितगण का और सात-सात समुदायात्मक गण का अनुसरण करते हैं।[ऋग्वेद 5.53.11]
अविवक्षित :: जो अभिप्रेत या उद्धिष्ट न हो, जिसके विषय में कुछ कहा न जा सके, अनुद्दिष्टा; one nothing can be said about whom.
Hey Marud Gan! We worship & make offerings to you in groups of seven, along with the unpredictable people.
कस्मा अद्य सुजाताय रातहव्याय प्र ययुः। एना यामेन मरुतः॥
आज के दिन किस हव्य देने वाले याजक गण के पास प्रकृष्ट रथ द्वारा मरुद्गण गमन करेंगे?[ऋग्वेद 5.53.12]
Today to which Ritviz making offerings, will Marud Gan move in their charoite.
येन तोकाय तनयाय धान्यं १ बीजं वहध्वे अक्षितम्।
अस्मभ्यं तद्धत्तन यद्व ईमहे राधो विश्वायु सौभगम्॥
जिस दया युक्त हृदय से आप लोग पुत्र और पौत्र को अक्षय धान्य बीज बार-बार प्रदान करते हैं, उसी हृदय से हम लोगों को भी वह धान्य बीज प्रदान करें। क्योंकि हम लोग आपके निकट सर्वान्नोपेत अथवा आयुर्युक्त तथा सौभाग्यात्मक धन की याचना करते हैं।[ऋग्वेद 5.53.13]
Grant us the imperishable rice seeds with the heart full of pity with which you award it to sons and grandsons. We request you for the life prolonging-boosting food grains and auspicious wealth.
अतीयाम निदस्तिर: स्वस्तिभिर्हित्वावद्यमरातीः।
वृष्टी शं योराप उस्रि भेषजं स्याम मरुतः सह॥
हे मरुतो! हम लोग कल्याण द्वारा पापों का परित्याग करके निन्दक शत्रुओं को जीतें। आपके द्वारा वृष्टि के प्रेरित होने पर हम सुख, पाप निवारक उदक और गौ युक्त औषध प्राप्त करें।[ऋग्वेद 5.53.14]
निन्दक :: अपमानकारी, अपवादी, उपहासात्मक, निन्दक, मुँहफट, बुराई करने वाला, मानव द्वेषी; cynical, cynic, slanderer, satirical.
Hey Marud Gan! Let us win the sins through welfare means and overpower the cynical enemies. Rains being inspired by you, may provide us comforts, water removing of sins and the medicines along with cows.
सुदेवः समहासति सुवीरो नरो मरुतः स मर्त्यः। यं त्रायध्वे स्याम ते॥
हे पूजित और नेतृत्व कर्ता मरुतों! आप लोग जिसकी रक्षा करते हैं, वह देवों द्वारा अनुगृहीत और शोभन पुत्र-पौत्रादि से युक्त होता है। हम लोग उसी व्यक्ति के समान हों; क्योंकि हम लोग आपके ही हैं।[ऋग्वेद 5.53.15]
शोभन :: ललित, शोभनीय, संगत, उपयुक्त, स्वच्छ; seemly, decent, nice.
Hey revered-honoured Marud Gan! One who is protected by you is obliged by the demigods-deities and get decent-nice sons & grandsons. We should be like that person since we belong to you.
स्तुहि भोजान्त्स्तुवतो अस्य यामनि रणन्गावो न यवसे।
यतः पूर्वां इव सखरनु ह्वय गिरा गृणीहि कामिनः॥
हे ऋषि! प्रार्थना करने वाले इस याजक गण के यज्ञ में आप दाता मरुद्गण की प्रार्थना करें। तृणादि भक्षण करने के लिए गमन करने वाली गौओं के तुल्य मरुद्गण आनन्दित होते हैं। पुरातन मित्र के सदृश गमनशील मरुतों का आह्वान करें। स्तवन की इच्छा करने वाले मरुतों की वचन द्वारा प्रार्थना करें।[ऋग्वेद 5.53.16]
Hey Rishi! Pray to donor Marud Gan for the sake of this worshiper's Yagy. Marud Gan become happy like the roaming cows, eating straw. Invite-invoke Marud Gan like old friends. Recite sacred hymns for the sake of Marud Gan desirous of prayers.(20.07.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (54) :: ऋषि :- श्यावाश्व आत्रेय, देवता :- मरुत, छन्द :- जगती, त्रिष्टुप्।
प्र शर्धाय मारुताय स्वभानव इमां वाचमनजा पर्वतच्युते।
घर्मस्तुभे दिव आ पृष्ठयज्वने द्युम्नश्रवसे महि नृम्णमर्चत॥
मरुत्सम्बन्धी बल के लिए इस क्रियमाण प्रार्थना को प्रेषित करें अर्थात् मरुतों के बल की प्रशंसा करें। वे स्वयं तेजोविशिष्ट पर्वतों को विदीर्ण करने वाले, धर्मशोषक, द्युलोक से आने वाले और द्युतिमान् अन्न वाले हैं। इन्हें प्रचुर अन्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 5.54.1]
धर्मशोषक :: स्वधर्म त्यागी; apostate, renegade.
Appreciate the strength of Marud Gan. They are the destroyers of mountains, renegade, comes from the heavens and have bright food grains. Offer them food grains.
प्र वो मरुतस्तविषा उदन्यवो वयोवृधो अश्वयुजः परिज्रयः।
सं विद्युता दधति वाशति त्रितः खरन्त्यापोऽवना परिज्रयः॥
हे मरुतो! आपके गण प्रादुर्भूत होते हैं। वे दीप्तिमान् संसार की रक्षा के लिए जल के अभिलाषी, अन्न के वर्द्धयिता, गमन करने के लिए अश्वों को रथ में युक्त करने वाले सभी जगह गमनशील और विद्युत् के साथ सम्मिलित होने वाले हैं। उसी समय त्रित (मेघ या मरुद्गण) शब्द करते हैं और चतुर्दिक गमन करने वाली जलराशि भूमि पर गिरती हैं।[ऋग्वेद 5.54.2]
गण :: समूह, दल, जत्था, गिरोह, टोली, वर्ग, श्रेणी, अनुचर, सेवक, किसी समान उद्देश्य वाले लोगों का समूह, शिव के दूत या सेवकों का दल, समानता के आधार पर किसी व्यक्ति, जीवों या वस्तुओं का वह विभाग जिसके और उपविभाग किए जा सकते हों, (छंद शास्त्र) तीन वर्णों का वर्ग एवं समूह, जैसे :- जगण, तगण, नगण, भगण, यगण और सगण आदि; college, crew.
Hey Marud Gan! Your followers evolve-appear in groups. They are the protectors of the world, desirous of water, growers of food grains, use-deploy horses in the charoites every where and are associated with the clouds. At that moment the clouds make sound-thunder and the rains fall over the earth in the four directions.
विद्युन्महसो नरो अश्मदिद्यवो वातत्विषो मरुतः पर्वतच्युतः।
अब्दया चिन्मुहुरा ह्रादुनीवृतः स्तनयदमा रभसा उदोजसः॥
द्युतिमान् तेज वाले, वृष्टि आदि के नेता, आयुध से युक्त प्रदीप्त, पर्वत अथवा मेघ को विदीर्ण करने वाले, बारम्बार उदकदाता, वज्रक्षेपक, एकत्र शब्द करने वाले, उद्धतबल, मरुद्गण वृष्टि के लिए प्रकट होते हैं।[ऋग्वेद 5.54.3]
Possessors of electric power, leaders of rains etc., aurous possessing weapons, tearing into mountains or clouds, granting water repeatedly, launchers of thunder volt, create sound together, possessing the power of water Marud Gan appear for raining.
व्य१क्तूनुद्रा व्यहानि शिक्वसो वय१न्तरिक्षं वि रजांसि धूतयः।
वि यदज्राँ अजथ नाव ईं यथा वि दुर्गाणि मरुतो नाह रिष्यथ॥
हे रुद्र पुत्र मरुतो! आप लोग अहोरात्र को प्रवर्तित करें। हे सर्वसमर्थ! आप लोग अन्तरिक्ष तथा लोकों को विक्षिप्त करें। हे कम्पनकारी! आप लोग समुद्र गर्भस्थ नौका के समान मेघों को कम्पित करें। आप लोग शत्रुओं के नगरों को ध्वस्त करें। हे मरुतो! आप हिंसा न करें।[ऋग्वेद 5.54.4]
प्रवर्तित :: पदोन्नत, प्रवर्तित, (कक्षा में) चढ़ाया गया, उन्नत, प्रख्यापित; promote.
विक्षिप्त :: पागल, बावला, उन्मत्त, बेधड़क, अव्यवस्थित, उलझा हुआ, दीवाना, उन्मादी, उन्मत्त, सिड़ी, परेशान, भ्रांतचित; deranged, mad, insane.
Hey sons of Rudr! Extend-promote the day & night. Hey mighty-powerful! Agitate the space and abodes. Hey tremblor! Shake the clouds like the boat in the ocean. Destroy the cities of the enemy. Hey Marud Gan! Do not resort to violence.
तद्वीर्यंवो मरुतो महित्वनं दीर्घं ततान सूर्यो न योजनम्।
एता न यामे अगृभीतशोचिषोऽनश्वदां यन्त्र्ययातना गिरिम्॥
हे मरुतो! सूर्यदेव जिस प्रकार से बहुत दूर तक अपनी दीप्ति को विस्तारित करते हैं अथवा देवों के अश्व जिस प्रकार से गमन में दीर्घता को विस्तारित करते हैं, उसी प्रकार से आपके सुप्रसिद्ध वीर्य और महिमा को स्तोता लोग दूर तक विस्तारित करते हैं।[ऋग्वेद 5.54.5]
Hey Marud Gan! The way Sun extend his energy, the horses of demigods-deities extend their way; the Stotas extend your energy and glory to distant places.
अभ्राजि शर्धो मरुतो यदर्णसं मोषथा वृक्षं कपनेव वेधसः।
अध स्मा नो अरमतिं सजोषसश्चक्षुरिव यन्तमनु नेषथा सुगम्॥
हे वृष्टि के विधाता मरुतो! आप लोग उदकवान् मेघ को ताड़ित करते है। आपका बल शोभायमान होता है। हे परस्पर समान प्रीति वाले मरुतो! नेत्र जिस प्रकार से मार्गप्रदर्शन में नायक होता है, उसी प्रकार से आप लोग हमें सुगम मार्ग द्वारा धनादि के समीप ले जावें।[ऋग्वेद 5.54.6]
विधाता :: निर्माता, सर्जक; creator.
Hey creator of rain clouds, Marud Gan! You strike the clouds having water. Your might-power is demonstrated. Hey Marud Gan! You posses love and affection for each one of you. They way eyes show the path, you should direct us to riches-wealth through simple-clear way.
न स जीयते मरुतो न हन्यते न स्स्रेधति न व्यथते न रिष्यति।
नास्य राय उप दस्यन्ति नोतय ऋषिं वा यं राजानं वा सुषूदथ॥
हे मरुतो! आप लोग जिस मन्त्र द्रष्टा ब्राह्मण या राजा को सत्कर्म में प्रेरित करते हैं, वह दूसरों के द्वारा पराजित नहीं होता और नहीं हिंसित होता। वह न कभी क्षीण होता है, न पीड़ित होता है और न कोई बाधा प्राप्त करता है। उसका धन और उसकी रक्षा कभी नष्ट नहीं होती है।[ऋग्वेद 5.54.7]
मन्त्र द्रष्टा :: जो मंत्रों का अर्थ जानता हो, मंत्रों के अर्थ जानने और बताने वाला ऋषि; the Brahman-Rishi who explains-is aware of the theme-meaning of Mantr-sacred hymns.
Hey Marud Gan! Either the Brahman who know the theme of sacred hymns or the king inspired by you is never defeated or struck by others. He never become weak, tortured or obstructed. His wealth and protection are never lost.
नियुत्वन्तो ग्रामजितो यथा नरोऽर्यमणो न मरुतः कवन्धिनः।
पिन्वन्त्युत्सं यदिनासो अस्वरन्व्युन्दन्ति पृथिवीं मध्वो अन्धसा॥
नियुत्संज्ञक अश्वों से युक्त संघात्मक पदार्थों के विश्लेषयिता, नराकार अथवा नेता अथवा ग्रामजेता मनुष्य के तुल्य और सूर्यदेव की तरह दीप्त मरुद्गण उदकवान् होते हैं। जब वे स्वामी होते हैं, तब कूपादि निम्न प्रदेश को जलपूर्ण करते हैं और शब्दायमान होकर सुमधुर तथा सारभूत जल से पृथ्वी को सिंचित करते हैं।[ऋग्वेद 5.54.8]
नियुत्संज्ञक :: nominative, commander.
Marud Gan shinning like the Sun & leaders of humans, deploying horses & objects for striking, possess water. They over take the lower lands and fill them like wells, irrigate earth making lovely sounds.
प्रवत्वतीयं पृथिवी मरुद्भ्यः प्रवत्वती द्यौर्भवति प्रयद्भ्यः।
प्रवत्वतीः पथ्या अन्तरिक्ष्याः प्रवत्वन्तः पर्वता जीरदानवः॥
यह पृथ्वी मरुतों के लिए विस्तीर्ण प्रदेश वाली होती है। द्युलोक भी मरुतों के संचारण के लिए विस्तीर्ण होता है। अन्तरिक्ष स्थित मार्ग मरुतों के गमन के लिए विस्तीर्ण होता है। मरुतों के लिए ही मेघ या पर्वत शीघ्र जल वर्षक होते हैं।[ऋग्वेद 5.54.9]
This earth is extended-vast place for the Marud Gan. Heavens & the space too extends for the Marud Gan. The clouds and mountains quickly lead to rain showers fro the Marud Gan.
यन्मरुतः सभरसः स्वर्णरः सूर्य उदिते मदथा दिवो नरः।
न वोऽश्वाः श्रथयन्ताह सिस्रतः सद्यो अस्याध्वनः पारमश्नुथ॥
हे महाबल वाले सभी के नेता मरुतों तथा द्युलोक के नेता हैं! आप लोग सूर्य के प्रकट होने पर सोमरस के पान के लिए हर्षित होते हैं, उस समय आप लोगों के अश्व, गमन कार्य में आप लोग ही तीनों लोकों के सम्पूर्ण मार्ग को पार करते हैं।[ऋग्वेद 5.54.10]
Hey possessors of great might, leaders of all and the heaven, Marud Gan! You become happy for drinking Somras with the Sun rise; at that moment your horses quickly cross the three abodes.
अंसेषु व ऋष्टयः पत्सु खादयो वक्षःसु रुक्मा मरुतो रथे शुभः।
अग्निभ्राजसो विद्युतो गभस्त्योः शिप्राः शीर्षसु वितता हिरण्ययीः॥
हे मरुतो! आप लोगों के स्कन्ध प्रदेश में आयुध शोभायमान होते हैं। पैरों में कटक, वक्ष स्थल में हार और रथ के ऊपर शोभमान दीप्ति है। आप लोगों के दोनों हाथों में अग्रि दीप्त रश्मियाँ हैं और मस्तक पर विस्तीर्ण स्वर्ण की पगड़ी है।[ऋग्वेद 5.54.11]
पगड़ी :: साफ़ा, शिरावस्त्र, शिरोवेष, टोपी, अंग्रेजी टोपी के गिर्द धूप से बचाव के लिए लिपटा हुआ कपड़ा; turban, head-dress.
Hey Marud Gan! Your chest and the waist is covered with weapon-armours, rosary, has golden rings in the legs and your charoite is aurous-shinning. Both of your hands possess the rays of fire and the head is covered by golden turban.
तं नाकमर्यो अग्रभीतशोचिषं रुशत्पिप्पलं मरुतो वि धनुथ।
समच्यन्त वृजनातित्विषन्त यत्स्वरन्ति घोषं विततमृतायवः॥
हे मरुतों! जब आप लोग गमन करते हैं, तब अप्रतिहत दीप्तिशाली स्वर्ग और समुज्ज्वल जलराशि विचलित हो जाती है। जब आप लोग हमारे द्वारा प्रदत्त हव्य का भक्षण कर बलशाली होते हैं और उज्ज्वल भाव से दीप्ति प्रकाशित करते हैं एवं जब आप लोग उदक वर्षण की अभिलाषा प्रकट करते हैं, तब आप लोग भीषण रूप से गर्जना करते हैं।[ऋग्वेद 5.54.12]
अप्रतिहत :: जिसे कोई रोक न सके, निर्बाध, अप्रभावित, अंकुश; which/who can not be restrained-blocked, continuous.
Hey Marud Gan! When you move unrestrained-unrestricted, radiant heavens and the shinning water bodies are disturbed. When you consume the offerings-oblations made by us, you become mighty and become aurous with gentle feelings and lead to rains, making thunderous loud sound.
युष्मादत्तस्य मरुतो विचेतसो रायः स्याम रथ्यो वयस्वतः।
न यो युच्छति तिष्यो ३ यथा दिवो ३ स्मे रारन्त मरुतः सहस्रिणम्॥
हे विविध बुद्धि वाले मरुतो! हम लोग रथाधिपति हैं। हम लोग आपके द्वारा प्रदत्त धन और अन्न के स्वामी हैं। आपके द्वारा प्रदत्त धन कभी नष्ट नहीं होता, जिस प्रकार से आकाश से सूर्य देव कभी अलग नहीं होते हैं। हे मरुतो! हम लोगों को अपार धन द्वारा आनन्दित करें।[ऋग्वेद 5.54.13]
Hey Marud Gan possessing vivid intelligence! We are the owner of charoites, wealth and food grains granted by you. The manner in which Sun do not separate-isolate from the sky, the wealth given you is never lost. Hey Marud Gan! Make us happy with unlimited wealth-riches.
यूयं रयिं मरुतः स्पार्हवीरं यूयमृषिमवथ सामविप्रम्।
यूयमर्वन्तं भरताय वाजं यूयं धत्थ राजानं श्रुष्टिमन्तम्॥
हे मरुतो! आप लोग धन और स्पृहणीय पुत्र, सेवकादि हमें प्रदान करें। हे मरुतों! आप लोग सोम सहित ब्राह्मणों की रक्षा करें। हे मरुतो! आप लोग श्यावाश्व को धन और अन्न प्रदान करें। वे देवों का यजन करते हैं। हे मरुतो! आप लोग राजा को सुख प्रदान करें।[ऋग्वेद 5.54.14]
स्पृहणीय :: स्पृहा के योग्य, वांछनीय, प्राप्त करने योग्य, चाहने योग्य, प्राप्त करने योग्य, वांछनीय; covetable, enviable, preferable, preferential, desirable.
Hey Marud Gan! Grant us worthy-coveted sons, servants etc. Hey Marud Gan! Protect the Brahmans along with Som. Hey Marud Gan! Grant wealth and food grains to Shyavashv. He worship the demigods-deities. Hey Marud Gan! Grant comforts-pleasure to the king.
तद्वो यामि द्रविणं सद्यऊतयो येना स्व१र्ण ततनाम नॄँरभि।
इदं सु मे मरुतो हर्यता वचो यस्य तरेम तरसा शतं हिमाः॥
हे सद्यः रक्षणशील मरुतो! आप लोगों से हम धन की याचना करते हैं। सूर्य देव जिस प्रकार से अपनी रश्मि को दूर तक फैलाते हैं, उसी प्रकार से हम भी अपने पुत्र, सेवकादि को उसी धन से विस्तारित करें। हे मरुतो! आप लोग हमारे इस स्तोत्र को ग्रहण करें, जिससे हम सौ हेमन्त ऋतु का अतिक्रमण करें अर्थात् सौ वर्ष तक जीवित रहें।[ऋग्वेद 5.54.15]
सद्यः :: अव्यय, आज ही, इसी समय, अभी; currently.
Hey quickly-immediately protecting Marud Gan! We beg you money. The way Sun spread his rays, let us increase our sons, servants etc. with that money. Hey Marud Gan! Accept-respond to our prayer-Strotr in such a way that we survive for hundred years Hemant Ritu, season.(24.07.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (55) :: ऋषि :- श्यावाश्व आत्रेय, देवता :- मरुत, छन्द :- जगती, त्रिष्टुप्।
प्रयज्यवो मरुतो भ्राजदृष्टयो बृहद्वयो दधिरे रुक्मवक्षसः।
ईयन्ते अश्वैः सुयमेभिराशुभिः शुभं यातामनु रथा अवृत्सत॥
अतिशय यष्टव्य और दीप्त आयुध वाले मरुद्गण यौवन रूप प्रभूत अन्न धारित करते हैं। वे वक्ष: स्थल पर हार धारित करते हैं। सुख पूर्वक नियमन योग्य तथा शीघ्रगामी अश्व उन्हें वहन करते हैं। शोभन भाव से गमन करने वाले मरुतों के रथ सभी के पश्चात् गमन करते हैं।[ऋग्वेद 5.55.1]
यष्टव्य :: यज्ञ करने योग्य, देव पूजा-यज्ञ में बलि चढ़ाये जाने योग्य; highly revered, worshipable, deserving worship.
Worshipable, possessing divine weapons Marud Gan are youthful and have food grains. They wear necklace over their chest. Easily manoeuvring and fast moving horses carry them. Graceful charoites of Marud Gan drive after others.
स्वयं दधिध्वे तविषीं यथा विद बृहन्महान्त उर्विया वि राजथ।
उतान्तरिक्षं ममिरे व्योजसा शुभं यातामनु रथा अवृत्सत॥
हे मरुतो! आप लोग जैसा जानते हैं अर्थात् जो उचित समझते हैं, वैसी सामर्थ्य स्वयं धारित करते हैं, आपकी सामर्थ्य अप्रतिबद्ध है। हे मरुतो! आप लोग महान् और दीर्घ होकर शोभायमान हों, अन्तरिक्ष को बल द्वारा व्याप्त करें। शोभायमान भाव से अथवा उदक के प्रति गमन करने वाले मरुतों के रथ सभी के पश्चात् गमन करते हैं।[ऋग्वेद 5.55.2]
Hey Marud Gan! You act-behave as per your capacity-calibre. You should be great and graceful to occupy the space with might. Their charoites follow others who wish to have water, gracefully.
साकं जाताः सुभ्वः साकमुक्षिताः श्रिये चिदा प्रतरं वावृधुर्नरः।
विरोकिणः सूर्यस्येव रश्मयः शुभं यातामनु रथा अवृत्सत॥
महान् मरुद्गण एक साथ ही उत्पन्न हुए हैं और एक साथ ही वर्षक होते हैं। वे अतिशय शोभा के लिए सभी जगह वर्द्धमान हुए हैं। सूर्य रश्मि के समान वे यागादि कार्य के नेता तथा शोभा सम्पन्न हैं। शोभयमान भाव से गमन करने वाले मरुतों के रथ सभी के पश्चात् गमन करते हैं।[ऋग्वेद 5.55.3]
Great Marud Gan evolved together and lead to rains. They are well placed gracefully like the rays of Sun, as the leader of the endeavours like Yagy. Their chaoites move after others gracefully.
आभूषेण्यं वो मरुतो महित्वनं दिदृक्षेण्यं सूर्यस्येव चक्षणम्।
उतो अस्माँ अमृतत्वे दधातन शुभं यातामनु रथा अवृत्सत॥
हे मरुतो! आप लोगों की महत्ता स्तवनीय है। आप लोगों का रूप सूर्य के तुल्य दर्शनीय है। हमारे मोक्ष में अर्थात् स्वर्ग प्राप्ति के विषय में आप लोग हमारे सहायक हों। उदक के प्रति गमन करने वाले मरुतों के रथ सभी के पश्चात् गमन करते हैं।[ऋग्वेद 5.55.4]
Hey Marud Gan! Your might deserve worship. Your are beautiful like the Sun. Let you become helpful in our endeavours for attaining Moksh-Salvation. Their chariots follow others who intend to have water.
उदीरयथा मरुतः समुद्रतो यूयं वृष्टिं वर्षयथा पुरीषिणः।
न वो दस्त्रा उप दस्यन्ति धेनवः शुभं यातामनु रथा अवृत्सत॥
हे मरुतो! आप लोग अन्तरिक्ष से दृष्टि को प्रेरित करें। हे जल सम्पन्न! आप लोग वर्षा करें। हे दर्शनीयों अथवा शत्रु संहारको! आपकी प्रसन्नता से मेघ कभी भी शुष्क नहीं होते। उदक के प्रति गमन करने वाले मरुतों के रथ सभी के पश्चात् गमन करते हैं।[ऋग्वेद 5.55.5]
Hey Marud Gan! You look around-survey from the space for rains. Hey destroyers of enemy, graceful Marud Gan! Your charoites follow others, who are needy, desirous of water-rains.
यदश्वान्धूर्षु पृषतीरयुग्ध्वं हिरण्ययान्प्रत्यत्काँ अमुग्ध्वम्।
विश्वा इत्स्पृधो मरुतो व्यस्यथ शुभं यातामनु रथा अवृत्सत॥
हे मरुतो ! जब आप लोग रथ के अग्र भाग में पृषती अश्व को नियोजित करते हैं, तब हिरण्यवर्ण वाले कवच को उतार देते हैं। आप लोग समस्त संग्रामों में विजय प्राप्त करते है। उदक के प्रति गमन करने वाले मरुतों के रथ सभी के पश्चात् गमन करते हैं।[ऋग्वेद 5.55.6]
पृषती :: धब्बेदार; spotted.
Hey Marud Gan! When your deploy the spotted horses in front you remove the golden shield. You are winner in all wars-battles. Your charoites follow others who move-look for water.
न पर्वता न नद्यो वरन्त वो यत्राचिध्वं मरुतो गच्छथेदु तत्।
उत द्यावापृथिवी याथना परि शुभं यातामनु रथा अवृत्सत॥
हे मरुतो! पर्वत तथा नदियाँ आप लोगों के लिए प्रतिरोधक हों। आप लोग जिस किसी यज्ञादि स्थान में जाने के लिए संकल्प करते हैं, वहाँ जाते ही हैं। वर्षा करने के लिए आप लोग द्यावा-पृथिवी में व्याप्त होते है। उदक के प्रति गमन करने वाले मरुतों के रथ सभी के पश्चात् गमन करते हैं।[ऋग्वेद 5.55.7]
संकल्प :: विचार, प्रण, प्रस्ताव, समाधान, स्थिरता, चित्त की दृढ़ता, ठानना; resolution, resolve, determination.
Hey Marud Gan! You should be resistant to rivers and mountains. You resolve to visit spots like Yagy etc. and go there. You cover-pervade the heaven & earth for causing rains. You follow those who look for water in your charoite.
यत्पूर्व्यं मरुतो यच नूतनं यदुद्यते वसवो यच शस्यते।
विश्वस्य तस्य भवथा वेदसः शभं यातामन् रथा अवृत्सत॥
हे मरुतो! जो यागादि कार्य पूर्व में सम्पादित हुए हैं और जो अभी हो रहे हैं, हे वसुओ! जो कुछ मन्त्रगान होता है तथा जो कुछ स्तोत्र पाठ होता है, आप लोग वह सब जानें। उदक के प्रति गमन करने वाले मरुतों के रथ सभी के पश्चात् गमन करते हैं।[ऋग्वेद 5.55.8]
Hey Marud Gan! The worship-Yagy which used to be conducted-held earlier, are done at present as well. You should know-learn the Mantr and Strotr etc., recited there. Charoites of Marud Gan follow those who wish have water.
मृळत नो मरुतो मा वधिष्टनास्मभ्यं शर्म बहुलं वि यन्तन।
अधि स्तोत्रस्य सख्यस्य गातन शुभं यातामनु रथा अवृत्सत॥
हे मरुतो! आप लोग हमें सुखी करें। हम लोगों के द्वारा किसी अनिष्ट कार्य के हो जाने से जो आपको क्रोध उत्पन्न हुआ है, उससे हम लोगों को बाधा न पहुचाएँ। हम लोगों को अत्यन्त सुख प्रदान करें। प्रार्थना को सुनकर हम लोगों के साथ मित्रता करें। उदक के प्रति गमन करने वाले मरुतों के रथ सभी के पश्चात् गमन करते हैं।[ऋग्वेद 5.55.9]
अनिष्ट :: अवांछित, अशुभ, अहित, अमंगल; unwelcome, forbidding, mis happening.
Hey Marud Gan! Make us happy-blissful. Do not restrict-block us on being angry due to the mis happening-trouble caused by us to others. Grant us comforts. Be friendly listening-responding to our prayers. Your charoites follow others who move, looking for water.
यूयमस्मान्नयत वस्यो अच्छा निरंहतिभ्यो मरुतो गृणानाः।
जुषध्वं नो हव्यदातिं यजत्रा वयं स्याम पतयो रयीणाम्॥
हे मरुतो! आप लोग हमें ऐश्वर्य के समक्ष ले जावें। हम लोगों के स्तोत्र से प्रसन्न होकर हम लोगों को पापों से मुक्त करें। हे यजनीय मरुतो! आप लोग हम लोगों के द्वारा प्रदत्त हव्य ग्रहण करें, जिससे हम लोग विविध ऐश्वर्यों के स्वामी हों।[ऋग्वेद 5.55.10]
Hey Marud Gan! Grant us grandeur. Be happy with us responding to this Strotr-prayer and make us sinless. Hey worshipable Marud Gan! accept the offerings-oblations made by us, so that we acquire various grandeurs.(25.07.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (56) :: ऋषि :- श्यावाश्व आत्रेय, देवता :- मरुत, छन्द :- बृहती, सतोबृहती।
अग्ने शर्धन्तमा गणं पिष्टं रुक्मेभिरञ्जिभिः।
विशो अद्य मरुतामव ह्वये दिवश्चिद्रोचनादधि॥
हे अग्नि देव! रोचमान् आभरणों से युक्त और शत्रुओं को पराभूत करने वाले अथवा यज्ञ के प्रति उत्साहित होने वाले मरुतों का आह्वान करें। आज यज्ञ दिन में दीप्तिमान द्युलोक से हम लोगों के समक्ष आने के लिए मरुतों का आह्वान करते हैं।[ऋग्वेद 5.56.1]
रोचमान :: चमकता हुआ, शोभित होता हुआ, घोड़े की गरदन पर की एक भंवरी, कार्तिकेय का एक अनुचर, शोभा युक्त; shinning, glittering, radiant, aurous.
उत्साहित :: अंगारे जैसा लाल, अत्यन्त उत्तेजित, तत्परतापूर्वक किसी काम में लगने वाला, आनंदपूर्वक कोई काम करने वाला, जिसके मन में हर काम के लिए और हर समय उत्साह रहता हो; excited, red hot.
Hey Agni Dev! Invoke Marud Gan who are shinning-aurous, capable of defeating the enemy and excited-encouraged for the Yagy. Let them be invoked to join the Yagy with us.
यथा चिन्मन्यसे हृदा तदिन्मे जग्मुराशसः।
ये ते नेदिष्ठं हवनान्यागमन्तान्वर्ध भीमसंदृशः॥
हे अग्नि देव! जिस प्रकार से आप मरुद्गणों को अत्यन्त पूजित मानते हैं, उनका आदर करते हैं, उसी प्रकार से वे हम लोगों के समीप उपकारक भाव से आवें। जो आपके आह्वान सुनने मात्र से ही आगमन करते हैं, उन भयंकर मरुतों को हव्य प्रदान कर प्रवृद्ध करें।[ऋग्वेद 5.56.2]
प्रवृद्ध :: अतिशय वृद्धि को प्राप्त, प्रौढ़; grown up.
Hey Agni Dev! The manner in which you consider Marud Gan highly esteemed and respect them, similarly they should invoke-come you us for our welfare-benefit. Furious Marud Gan who respond to your call, let them grow-flourish by granting oblations-offerings.
मीळ्हुष्मतीव पृथिवी पराहता मदन्त्येत्यस्मदा।
ऋक्षो न वो मरुतः शिमीवाँ अमो दुध्रो गौरिव भीमयुः॥
पृथ्वी पर अधिष्ठित मनुष्य दूसरे व्यक्ति द्वारा अभिभूत होने पर जिस प्रकार से अपने प्रबल स्वामी के निकट गमन करता है, उसी प्रकार मरुत्सेना हर्षित होकर हम लोगों के निकट आगमन करती है। हे मरुतो! आप वृषभ के समान सेचन में समर्थ और विशिष्ट सामर्थ्यवान हैं।[ऋग्वेद 5.56.3]
अधिष्ठित :: स्थापित, स्थित, अधिकृत, नियोजित, व्यापार आदि में लगाया हुआ धन, लाभ के लिए निवेशित धन; enshrined.
अभिभूत :: पराजित किया हुआ, पीड़ित; overwhelmed.
सेचन :: सिंचाई करना, सिंचन, पानी छिड़कना; pollination
सामर्थ्यवान :: काबिल, सक्षम; powerful.
The way a person enshrined over the earth overwhelmed by the others moves to his strong lord, the army of Marud Gan comes to us happily. Hey Marud Gan! You are capable of fertilisation like the bull, capable and powerful.
निये रिणन्त्योजसा वृथा गावो न दुर्धुरः।
अश्मानं चित्स्वर्यं १ पर्वतं गिरिं प्र च्यावयन्ति यामभिः॥
कठिनता से हिंसनीय अश्व के तुल्य जो मरुद्गण अपने बल से सुगमतापूर्वक शत्रुओं को नष्ट करते हैं, वे गमन द्वारा शब्दायमान व्याप्त और संसार को पूर्ण करने वाले जल से युक्त मेघ को जल के लिए प्रेरित करते हैं।[ऋग्वेद 5.56.4]
हिंसनीय :: हिंसा करने योग्य, जिसकी हिंसा की जा सके या की जाने को हो; murdered, violently.
The Marud Gan who destroy their enemy easily like the horse who has to be killed violently, inspire the rain clouds making sound by moving for rains.
उत्तिष्ठ नूनमेषां स्तोमैः समुक्षितानाम्।
मरुतां पुरुतममपूर्व्यं गवां सर्गमिव ह्वये॥
हे मरुतो! आप लोग उठें। हम लोग स्तोत्र द्वारा वर्द्धित, जलराशि के समान समृद्धिशाली, बल सम्पन्न और अपूर्व मरुतों का (स्तोत्रों द्वारा) आह्वान करते हैं।[ऋग्वेद 5.56.5]
समृद्धशाली :: जिसके पास धन-दौलत हो या जो धन से संपन्न हो; prosperous.
Hey Marud Gan! Get up. We invoke-invite you by the recitation of sacred hymns-Strotr, you being prosperous like the vast reservoir of water & mighty.
युङ्ग्ध्वं ह्यरुषी रथे युङ्ग्ध्वं रथेषु रोहितः।
युङ्ग्ध्वं हरी अजिरा धुरि वोळ्हवे वहिष्ठा धुरि वोळ्हवे॥
हे मरुतो! आप लोग रथ में अरुणिम हिरणों को नियोजित करें। रथ समूह में रोहित वर्ण के अश्व को नियोजित करें। भार वाहन के लिए शीघ्र गमन करने वाले हरिद्वय को युक्त करें। जो वहन कार्य में सुदृढ़ हैं, उन्हें भार वहन के लिए इस रथ में नियोजित करें।[ऋग्वेद 5.56.6]
अरुणिम :: उदय होते हुए सूर्य की भांति लाल, रक्त की तरह लाल रंग; red colour like the rising Sun.
Hey Marud Gan! Deploy the red coloured deer, red like the rising Sun, in the charoite. Deploy the red coloured horses in the charoite for carrying load. For moving quickly-fast deploy red horses duo. Those capable of carrying loads, deploy them for carrying load in this charoite.
उत स्य वाज्यरुषस्तुविष्वणिरिह स्म धायि दर्शतः।
मा वो यामेषु मरुतश्चिरं करत्प्र तं रथेषु चोदत॥
हे मरुतो! रथ में नियोजित, दीप्तिमान् प्रभूत ध्वनिकारी और दर्शनीय वह अश्व आप लोगों की यात्रा में विलम्ब न करें। रथ में नियुक्त उस अश्व को आप लोग इस प्रकार से प्रेरित करें, जिससे वह विलम्ब उत्पन्न न करे।[ऋग्वेद 5.56.7]
Hey Marud Gan! Deploy the beautiful, radiant, neighing horse in the charoite to avoid delay. Run the horse in such a manner that it do not delay.
रथं नु मारुतं वयं श्रवस्युमा हुवामहे।
आ यस्मिन्तस्थौ सुरणानि बिभ्रती सचा मरुत्सु रोदसी॥
हम लोग मरुद्गण के उस अन्न पूर्ण रथ का आह्वान करते हैं, जिस रथ के ऊपर सुरमणीय जल को धारित करके मरुतों के साथ उनकी माता अधिष्ठित हैं।[ऋग्वेद 5.56.8]
रमणीय :: सुखद, रमणीय, सुहावना, ख़ुशगवार, मनोरम, रमणीय, सुहावना, ललित, आनंदकर, आनंदमय, हर्षजनक, आनंदपूर्ण, आनंदित, आनंद देने वाला; delightful, delectable, enjoyable.
We invoke the charoite of Marud Gan, full of food grains over which Marud Gan are seated with their mother, possessing delightful water.
तं वः शध रथेशुभं त्वेषं पनस्युमा हुवे।
यस्मिन्त्सुजाता सुभगा महीयते सचा मरुत्सु मीळ्हुषी॥
हे मरुतो! हम आप लोगों के उस रथ का आह्वान करते हैं, जो शोभाकारी, दीप्तिमान् और स्तुति योग्य हैं। जिसके बीच में सुजाता, सौभाग्यशालिनी मीहलुषी मरुद्गणों के साथ पूजित होती हैं।[ऋग्वेद 5.56.9]
We invoke your cohort, gracing the chariot, brilliant and adorable, amidst which the rain-bestowing goddess, of goodly origin and auspicious, is worshipped together with the Maruts.
Hey Marud Gan! We invoke your charoite which is beautiful, radiant and worth praying, in which their lucky cohort-goddess is worshiped along with the Marud Gan.(26.07.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (57) :: ऋषि :- श्यावाश्व आत्रेय, देवता :- मरुत, छन्द :- जगती, त्रिष्टुप्।
आ रुद्रास इन्द्रवन्तः सजोषसो हिरण्यरथाः सुविताय गन्तन।
इयं वो अस्मत्प्रति हर्यते मतिस्तृष्णजे न दिव उत्सा उदन्यवे॥
हे परस्पर सदयचित्त, सुवर्णमय रथारूढ़, इन्द्र देव के अनुसार रुद्र पुत्रों! आप लोग इस उद्देश्य पूर्ण यज्ञ में पधारें। हम आप लोगों के उद्देश्य से यह स्तोत्र पाठ करते हैं। आप लोग तृषार्त और जलाभिलाषी गौतम के निकट जिस प्रकार स्वर्ग से जल लाए थे, उसी प्रकार हम लोगों को अनुगृहीत करें।[ऋग्वेद 5.57.1]
Hey mutually agreeable, riding golden charoite, sons of Rudr, followers of Indr Dev! Join this useful Yagy. We recite this Strotr for you. The way your brought water for the thirsty and needy Gautom from the heavens, oblige us the same way.
वाशीमन्त ॠष्टिमन्तो मनीषिणः सुधन्वान इषुमन्तो निषङ्गिणः।
स्वश्वाः स्थ सुरथाः पृश्निमातरः स्वायुधा मरुतो याथना शुभम्॥
हे सुबुद्धि मरुतों! आप लोगों का भक्षण साधन आयुध, छुरिका, उत्कृष्ट धनुर्बाण, तूणीर और श्रेष्ठ अश्व तथा रथ है। आप लोग अस्त्रों द्वारा सुसज्जित होवें। हे पृश्नि पुत्रो! हमारे कल्याण के लिए आगमन करें।[ऋग्वेद 5.57.2]
सुबुद्धि :: श्रेष्ठ या अच्छी बुद्धि; सदबुद्धि; good sense, good-positive thoughts-ideas, intelligence.
Hey Marud Gan possessing good-positive thoughts-ideas, intelligence! Your means for eating are :- weapons, knife, excellent bows & arrow, excellent horses & charoite. Wield yourself with weapons-armour. Hey sons of Prashni! Arrive here for our welfare.
धूनुथ द्यां पर्वतान्दाशुषे वसु नि वो वना जिहते यामनो भिया।
कोपयथ पृथिवीं पृश्निमातरः शुभे यदुग्राः पृषतीरयुग्ध्वम्॥
हे मरुतो! आप लोग अन्तरिक्ष में मेघों को कम्पायमान करें, हव्य दाता को धन प्रदान करें। आप लोगों के आगमन भय से वन कम्पित होते हैं। हे पृश्नि पुत्रो, हे कोपन शील बलवालो! जब आप लोग जल के लिए अपने पृश्नि अश्व को रथ में नियोजित करते हैं, तब आपके क्राध से पृथ्वी भी क्षुब्ध हो जाती है।[ऋग्वेद 5.57.3]
Hey Marud Gan! Shake-agitate the cloud in the space and grant wealth to one who makes offerings for you. The forests become afraid due to your appearance. Hey sons of Prashni, mighty with anger-furiosity! When you deploy the spotted horses, even the earth shake.
वातत्विषो मरुतो वर्षनिर्णिजो यमाइव सुसदृशः सुपेशसः।
पिशङ्गाश्वा अरुणाश्वा अरेपसः प्रत्वक्षसो महिना द्यौरिवोरवः॥
मरुद्गण दीप्तिमान्, वृष्टि शोधक, यमज के तुल्य रूप, दर्शनीय-मूर्ति, श्याम वर्ण और अरुण वर्ण, अश्वों के स्वामी, निष्पाप और शत्रु क्षयकारी हैं। वे विस्तृत आकाश तुल्य विस्तारित हैं।[ऋग्वेद 5.57.4]
यमज :: जुड़वाँ बच्चे, वह घोड़ा जिसका एक ओर का अंग हीन और दुर्बल हो, अश्विनीकुमार; twins.
Marud Gan are radiant, rain causing, comparable to Ashwani Kumars, gracious, master of black & red coloured horses, sinless and destroyer of the enemy. They are comparable to the limitless, broad sky-space.
पुरुद्रप्सा अञ्जिमन्तः सुदानवस्त्वेषसंदृशो अनवभ्रराधसः।
सुजातासो जनुषा रुक्मवक्षसो दिवो अर्का अमृतं नाम भेजिरे॥
प्रभूत वारि वर्षण कारी, आवरण धारी, दान शील, उज्ज्वल मूर्ति, अक्षय धन सम्पन्न, सुजन्मा, वक्ष स्थल पर हार धारित करने वाले और पूजनीय मरुद्गण द्युलोक से आगमन करके अमृत प्राप्त करते हैं।[ऋग्वेद 5.57.5]
Rain causing, having protective shield, donor, radiant-aurous, possessing non vanishing wealth, born of high origin, bearing rosary over the chest revered-honourable Marud Gan arrive from the heavens to receive nectar-elixir.
ऋष्टयो वो मरुतो अंसयोरधि सह ओजो बाह्वोर्वो बलं हितम्।
नृम्णा शीर्षस्वायुधा रथेषु वो विश्वा वः श्रीरधि तनूषु पिपिशे॥
हे मरुतो! आप लोगों के स्कन्ध देश में आयुष विशेष, दोनों भुजाओं में शत्रु नाशक बल, सिर पर सुवर्ण मय पगड़ी, रथ के ऊपर आयुध प्रभृति और आपके सभी अंग विशिष्ट कान्ति से युक्त हैं।[ऋग्वेद 5.57.6]
स्कन्ध :: प्रकाण्ड, लोहे की पेटी, कन्धा, मेहराब के किसी एक सिरे और उसके छौखट के बीच का अंतर; shoulder, spandrel, trunk.
प्रभृति :: इत्यादि, आदि, वगैरह; etc., influence.
Hey Marud Gan! Your shoulders possess Ayush-longevity, strength to destroy the enemy in both arms, golden cap over the head, weaponry etc. over the charoite and all organs have special aura.
गोमदश्वावद्रथवत्सुवीरं चन्द्रवद्राधो मरुतो ददा नः।
प्रशस्तिं नः कृणुत रुद्रियासो भक्षीय वोऽवसो दैव्यस्य॥
हे मरुतो! आप लोग हम लोगों को बहुत सारी गौवें, अश्व, रथ, प्रशस्त पुत्र और स्वर्ण के साथ अन्न प्रदान करें। हे रुद्र पुत्रो! आप लोग हम लोगों की समृद्धि को बढ़ावें। हम आप लोगों की स्वर्गीय रक्षा का उपभोग करें।[ऋग्वेद 5.57.7]
Hey Marud Gan! Grant us many cows, horses, excellent sons, gold and food grains. Hey sons of Rudr! Enhance-boost our prosperity. Let us utilise-enjoy your heavenly protection.
हये नरो मरुतो मृळता नस्तुवीमघासो अमृता ऋतज्ञाः।
सत्यश्रुतः कवयो युवानो बृहद्गिरयो बृहदुक्षमाणाः॥
हे मरुतो! आप लोग हम लोगों के प्रति अनुकूल होवें। आप लोग नेतृत्व कर्त्ता, अतुल ऐश्वर्यशाली, अविनश्वर, वारिवर्षक, सत्य फल से प्रसिद्ध, ज्ञान सम्पन्न तरुण, प्रचुर स्तुति युक्त और प्रभूत वर्षण कारी हैं।[ऋग्वेद 5.57.8]
Hey Marud Gan! You should be favourable to us. You are leaders, possess unlimited wealth, immortal, rain causing, granting real-true rewards, enlightened-intellectuals and deserve a lot of worship.(27.07.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (58) :: ऋषि :- श्यावाश्व आत्रेय, देवता :- मरुत, छन्द :- त्रिष्टुप्।
तमु नूनं तविषीमन्तमेषां स्तुषे गणं मारुतं नव्यसीनाम्।
य आश्वश्वा अमवद्वहन्त उतेशिरे अमृतस्य स्वराजः॥
हम आज यज्ञ दिन में दीप्तिमान् और स्तुति योग्य मरुतों की स्तुति करते हैं। मरुद्गण शीघ्रगामी अश्वों के स्वामी, बलपूर्वक सभी जगह गतिशील, जल के अधिपति और निज प्रभा द्वारा प्रभान्वित हैं।[ऋग्वेद 5.58.1]
We will resort to the worship of self radiant Marud Gan, today. They own fast moving horses, reaches every where, preside over-controls ambrosial water-rains and possess aura.
त्वेषं गणं तवसं खादिहस्तं धुनिव्रतं मायिनं दातिवारम्।
मयोभुवो ये अमिता महित्वा वन्दस्व विप्र तुविराधसो नॄन्॥
हे होता! आप दीप्तिमान् बलशाली वलय मण्डित हस्त, कम्पन विधायक, ज्ञान सम्पन्न और धन दाता मरुतों की पूजा करें। जो सुखदाता हैं, जिनका महत्त्व अपरिमित है, जो अतुल ऐश्वर्य के स्वामी हैं, उन मरुतों की वन्दना करें।[ऋग्वेद 5.58.2]
वलय :: कंगन, वृत्त की परिधि; annulus, annulus abdominis.
Hey Hota! Worship the Marud Gan having annulus over their arms, cause trembling-shaking, vibrations, enlightened and providers of wealth. They grant comforts and possess unlimited significance & grandeur.
आ वो यन्तूदवाहासो अद्य वृष्टिं ये विश्वे मरुतो जुनन्ति।
अयं यो अग्निर्मरुतः समिद्ध एतं जुषध्वं कवयो युवानः॥
जो विश्व व्यापी मरुद्गण वर्षा को प्रेरित करते हैं, वे जल वाहक मरुद्गण अभी आप लोगों के निकट पधारें। हे तरुण और ज्ञान सम्पन्न मरुतो! आप लोगों के लिए जो अग्नि प्रज्वलित है, उसी के द्वारा आप लोग हव्यादि का प्रेमपूर्वक सेवन करें।[ऋग्वेद 5.58.3]
Let the entire universe pervading, carriers of waters-rains, inspire-cause rains Marud Gan come to us. Hey young & enlightened Marud Gan! Enjoy the offerings-oblations through the fire lit for you.
यूयं राजानमिर्यं जनाय विभ्वतष्टं जनयथा यजत्राः।
युष्मदेति मुष्टिहा बाहुजूतो युष्मत्सदश्वो मरुतः सुवीरः॥
हे पूजनीय मरुतो! आप लोग याजकगण को अथवा राजा को एक पुत्र प्रदान करें, जो दीप्तिमान्, शत्रुसंहारक और विम्ब द्वारा निर्मित हो। हे मरुतो! आप लोगों से ही अपने भुजबल शत्रुहन्ता, शत्रुओं के प्रति बाहु प्रेरक और असंख्य अश्वों के अधिपति पुत्र उत्पन्न होते हैं।[ऋग्वेद 5.58.4]
Hey honoured-revered Marud Gan! Grant a son either to the king or the Ritviz who is radiant, slayer of the enemy and produced through your cast. Hey Marud Gan! Its you who lead to birth of sons with your cast who destroy the enemy with the power of their arms & possessors of un accounted horses.
अरा इवेदचरमा अहेव प्रप्र जायन्ते अकवा महोभिः।
पृश्नेः पुत्रा उपमासो रभिष्ठाः स्वया मत्या मरुतः सं मिमिक्षुः॥
रथ के पहिए के समान आप लोग एक साथ ही उत्पन्न हुए हैं। दिवसों के तुल्य परस्पर समान हैं। पृश्नि के पुत्र समान रूप से ही उत्पन्न हुए हैं, कोई भी दीप्ति के विषय में निकृष्ट नहीं हैं। वेगगामी मरुद्गण स्वतः प्रवृत्त होकर भली-भाँति जल की वर्षा करते हैं।[ऋग्वेद 5.58.5]
You are born together like the wheel of the charoite and are mutually equal like days. The sons of Prashni have evolved equally-similarly. None is less in aura-powers as compared to the others. Self inspiring Marud Gan lead to sufficient rains automatically.
यत्प्रायासिष्ट पृषतीभिरश्वैर्वीळुपविभिर्मरुतो रथेभिः।
क्षोदन्त आपो रिणते वनान्यवोस्त्रियो वृषभः क्रन्दतु द्यौः॥
हे मरुतो! जब आप लोग पृषती अश्व द्वारा आकृष्ट दृढ़चक्र रथ पर आरूढ़ होकर आगमन करते हैं, तब वारिराशि गिरती है, वनों का नाश होता है और सूर्य किरण से सम्पृक्त वारिवर्षणकारी पर्जन्य अधोमुख होकर वर्षा के लिए शब्द करते हैं।[ऋग्वेद 5.58.6]
सम्पृक्त :: जिससे संपर्क हुआ हो, संबद्ध, मिश्रित, मिला हुआ, पूर्ण, भरा हुआ, लगा, जुड़ा; सटा हुआ; related.
पर्जन्य :: वर्षा के देवता के इंद्र, गरजता तथा बरसता हुआ बादल, मेघ, वर्षा, विष्णु, सूर्य, कश्यप ऋषि की स्त्री के एक पुत्र का नाम-जिसकी गिनती गंधर्वों में होती है; rattling clouds, rain clouds.
Hey Marud Gan! When who ride the charoite with strong wheels deploying spotted horses, then the rains fall and the forests-jungles are destroyed. The rain cloud lower in the down ward direction, creating thunderous sound for rains.
प्रथिष्ट यामन्पृथिवी चिदेषां भर्तेव गर्भं स्वमिच्छवो धुः।
वातान्ह्यश्वान्धुर्यायुयुज्रे वर्षं स्वेदं चक्रिरे रुद्रियासः॥
रुद्र मरुतों के आगमन से पृथ्वी उर्वरता को प्राप्त करती है। पति जिस प्रकार से अपनी पत्नी का गर्भ उत्पादन करते हैं, उसी प्रकार मरुद्गण पृथ्वी के ऊपर गर्भ स्थानीय सलिल स्थापित करते के पुत्र शीघ्रगामी अश्वों को रथ के अग्रभाग में नियोजित करके वर्षा उत्पन्न करते हैं।[ऋग्वेद 5.58.7]
सलिल :: पानी, जल; water.
Arrival of the Rudr Marud Gan increase the fertility of the soil-earth. The manner a husband establish foetus in his wife, the Marud Gan rain water over the earth-soil deploying the fast moving horses in their charoite.
हये नरो मरुतो मृळता नस्तुवीमघासो अमृता ऋतज्ञाः।
सत्यश्रुतः कवयो युवानो बृहद्गिरयो बृहदुक्षमाणाः॥
हे मरुतो! आप लोग हमारे प्रति अनुकूल होवें क्योंकि आप लोग नेता, विपुल ऐश्वर्यशाली, अविनश्वर, वारिवर्षक, सत्य फल से प्रसिद्ध, ज्ञान सम्पन्न, तरुण, प्रचुर स्तुति युक्त और प्रभूत वर्षणकारी हैं।[ऋग्वेद 5.58.8]
Hey Marud Gan! You should be favourable to us since you are leaders, possess a lot of grandeur, immortal, causing sufficient rains, enlightened, young and deserve worship.(28.07.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (59) :: ऋषि :- श्यावाश्व आत्रेय, देवता :- मरुत, छन्द :- जगती, त्रिष्टुप्।
प्र वः स्पळक्रन्त्सुविताय दावनेऽचर्या दिवे प्र पृथिव्या ऋतं भरे।
उक्षन्ते अश्वान्तरुषन्त आ रजोऽनु स्वं भानुं श्रथयन्ते अर्णवैः॥
हे मरुतो! कल्याण के लिए हव्यदाता होता आप लोगों की स्तुति भली-भाँति से करते हैं। हे होता! आप द्युतिमान द्युदेव का स्तवन करें। हे आत्मा! हम पृथ्वी का स्तवन करते हैं। मरुद्गण सर्वव्यापिनी जल को गिराते हैं। वे अन्तरिक्ष में दूर तक गमन करते हैं और मेघों के साथ अपने तेज को प्रकाशित करते हैं।[ऋग्वेद 5.59.1]
Hey Marud Gan! Those making offerings-oblations properly-duly, worship-pray you for their welfare-well being. Hey Hota! Worship the deity of heavens. Hey soul! We recite sacred hymns for the earth. Marud Gan shower rains all around. They travel widely through the space & shine the clouds with their aura.
अमादेषां भियसा भूमिरेजति नौर्न पूर्णा क्षरति व्यथिर्यती।
दूरेदृशो ये चितयन्त एमभिरन्तर्महे विदथे येतिरे नरः॥
प्राणियों से पूर्ण नौका जिस प्रकार से जल बीच में कम्पित होकर गमन करती है, उसी प्रकार मरुतों के भय से पृथिवी कम्पित होती है। वे दूर से ही दृश्यमान होने पर भी गति द्वारा परिज्ञात होते हैं। ये नेतृत्व कर्ता मरुद्गण द्यावा-पृथिवी के बीच में अधिक हव्य भक्षण के लिए चेष्टा करते हैं।[ऋग्वेद 5.59.2]
The earth tremble with fear of Marud Gan, the way a boat full of living beings shake in waters. They, though away, are identified by virtue of their motion. The leaders-Marud Gan try to consume the offerings between the earth & heavens.
गवामिव श्रियसे शृङ्गमुत्तमं सूर्यो न चक्षू रजसो विसर्जने।
अत्याइव सुभ्व१श्चारवः स्थन मर्या इव श्रियसे चेतथा नरः॥
हे मरुतो! आप लोग शोभा के लिए गौशृङ्ग के सदृश उत्कृष्ट शिरोभूषण धारित करते है। दिवस के नेता सूर्यदेव जिस प्रकार से निज रश्मि विकीर्ण करते हैं, उसी प्रकार आप लोग वृष्टि के लिए सर्वव्यापक अश्वों के तुल्य वेगवान व मनोहर हैं। हे नेता मरुतो! याजकगण आदि जिस प्रकार से यज्ञादि कार्य को जानते हैं, उसी प्रकार आप लोग भी जानते हैं।[ऋग्वेद 5.59.3]
Hey Marud Gan! You wear the excellent ornaments (head gear) of head for grace like the cows head-horns. The way the leader of the day Sun, spread his rays, you too pervade all places for rains & are fast like horses and gracious. Hey Marud Gan, the leaders! The way a Ritviz knows the Yagy, you too know the populace.
को वो महान्ति महतामुदश्नवत्कस्काव्या मरुतः को ह पौंस्या।
यूयं ह भूमिं किरणं न रेजथ प्र यद्धरध्वे सुविताय दावने॥
हे मरुतो! आप सभी पूजनीय है। आप लोगों की पूजा कौन कर सकता है? कौन आप लोगों के स्तोत्र का पाठ करने में समर्थ हो सकता है? कौन आप लोगों के वीरत्व की घोषणा कर सकता है? क्योंकि आप लोगों के द्वारा जलवर्षा होने से भूमि किरण के तुल्य कम्पित होने लगती है।[ऋग्वेद 5.59.4]
Hey Marud Gan! You are worshipable. Who can pray to you!? Who can recite the Strotr committed to you? Who can declare your valour-bravery? The soil start vibrating like the rays when you shower rains.
अश्वाइवेदरुषासः सबन्धवः शूराइव प्रयुधः प्रोत युयुधुः।
मर्याइव सुवृधो वावृधुर्नरः सूर्यस्य चक्षुः प्र मिनन्ति वृष्टिभिः॥
अश्वों के समान वेगगामी, दीप्तिमान् समान बन्धु वाले मरुद्गण वीरों के तुल्य युद्ध कार्य में व्याप्त है। समृद्धि सम्पन्न मनुष्यों के तुल्य नेता मरुद्गण अत्यन्त शक्तिशाली होकर वर्षा द्वारा सूर्य देव के तेज को क्षीण करते हैं।[ऋग्वेद 5.59.5]
As fast as horse, radiant Marud brothers are busy with warfare like brave warriors. The leaders of the rich Marud Gan, become very strong-mighty, powerful and diminish the shine of the Sun by virtue of rains.
ते अज्येष्ठा अकनिष्ठास उद्भिदोऽमध्यमासो महसा वि वावृधुः।
सुजातासो जनुषा पृश्निमातरो दिवो मर्या आ नो अच्छा जिगातन॥
मरुतों के बीच में कोई भी किसी की अपेक्षा, ज्येष्ठ या कनिष्ठ नहीं है। शत्रु संहारक मरुतों के बीच में कोई भी मध्यम नहीं है। सब तेजो विशेष से वर्द्धमान हैं। हे सुजन्मा! मानवों के हितकारी, पृश्निपुत्र मरुतों, आप लोग द्युलोक से हम लोगों के अभिमुख आगमन करें।[ऋग्वेद 5.59.6]
Marud Gan are equal in status and age. They all are equally competent in destroying the enemy. They all posses radiance-aura. Hey born of high origin! Committed to humans welfare, sons of Prashni Marud Gan invoke-come to us from the heavens.
वयो न ये श्रेणीः पप्तुरोजसान्तान्दिवो बृहतः सानुनस्परि।
अश्वास एषामुभये यथा विदुः प्र पर्वतस्य नभनूँरचुच्यवुः॥
हे मरुतो! आप लोग पंक्ति बद्ध होकर उड़ने वाले पक्षी के तुल्य बल पूर्वक विस्तीर्ण और समुन्नत नभो मंडल के उपरि भाग में होकर अन्तरिक्ष पर्यन्त गमन करते हैं। आपके अश्व मेघों को खण्ड-खण्ड करके वृष्टि पात करते हैं। आपके यह कर्म सभी देव और मनुष्य दोनों ही जानते हैं।[ऋग्वेद 5.59.7]
Hey Marud Gan! You move in the upper layers of the vast sky in line formation like the birds. You tear the clouds leading to rain fall. Both humans and the demigods-deities are aware of your endeavour.
मिमातु द्यौरदितिर्वीतये नः सं दानुचित्रा उषसो यतन्ताम्।
आचुच्यवुर्दिव्यं कोशमेत ऋषे रुद्रस्य मरुतो गृणानाः॥
द्युलोक और पृथिवी हम लोगों की पुष्टि के लिए वृष्टि उत्पादन करें। निरतिशय दान शीला उषा हम लोगों के कल्याण के लिए यत्न करें। हे ऋषि! ये रुद्र पुत्र आपके स्तवन से प्रसन्न होकर जल की वर्षा करें।[ऋग्वेद 5.59.8]
निरतिशय :: अद्वितीय, परमात्मा, हद दरज़े का, बेहद, परम, जिसके आगे या जिससे बढ़कर और कुछ न हो, परब्रह्म, ईश्वर; extreme, ultimate, Almighty, relentless.
Heavens & the earth shower rains for our nurture-nourishment. Let Usha resorting to extreme donations-charity, make efforts for our welfare. Hey Rishi-sage! Let the Rudr Putr Marud Gan become happy with your prayers and cause rains.(30.07.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (60) :: ऋषि :- श्यावाश्व आत्रेय, देवता :- मरुत, छन्द :- जगती, त्रिष्टुप्।
ईळे अग्नि स्ववसं नमोभिरिह प्रसत्तो वि चयत्कृतं नः।
रथैरिव प्र भरे वाजयद्भिः प्रदक्षिणिन्मरुतां स्तोममृध्याम्॥
हम श्यावाश्व ऋषि स्तोत्र द्वारा रक्षाकारी अग्नि देव की प्रार्थना करते हैं। वे अभी यज्ञ में उपस्थित होकर प्रसन्नतापूर्वक उस स्तोत्र को श्रवण करें। जिस प्रकार से रथ अभिमत स्थान को प्राप्त करता है, उसी प्रकार से हम अन्नाभिलाषी स्तोत्रों द्वारा अपने अभीष्ट का सम्पादन करते हैं। प्रदक्षिणा करके हम मरुतों के स्तोत्र को वर्द्धित करें।[ऋग्वेद 5.60.1]
We worship Agni Dev with the protective Strotr composed by Shyavashv Rishi. Let him be present in the Yagy and happily attend-listen to it. The manner in which the charoite reach its destination, let us accomplish our desire for food grains with the help of Strotrs. We will circumambulate Marud Gan promoting them with the Strotr.
आ ये तस्थुः पृषतीषु श्रुतासु सुखेषु रुद्रा मरुतो रथेषु।
वना चिदुग्रा जिहते नि वो भिया पृथिवी चिद्रेजते पर्वतश्चित्॥
हे उद्यतायुध रुद्र पुत्र मरुतो! आप लोग प्रसिद्ध अश्वों द्वारा आकृष्ट, शोभन तथा अक्ष समन्वित रथ पर आरूढ़ होकर गमन करें। जब आप लोग रथाधिरूढ़ होते हैं, तब वन भी आपके भय से कम्पित होते हैं।[ऋग्वेद 5.60.2]
Hey Marud Gan ready for the war! When you ride your beautiful charoite with balance wheels & axels deploying the famous attractive horses, the forests too start shaking-trembling with fear.
पर्वतश्चिन्महि वृद्धो बिभाय दिवश्चित्सानु रेजत स्वने वः।
यत्क्रीळथ मरुत ऋष्टिमन्त आपइव सध्र्यञ्चो धवध्वे॥
हे मरुतो! आप लोगों के द्वारा भयंकर शब्द किए जाने पर अत्यन्त पुराने और महान् पर्वत भी भयभीत हो जाते हैं और अन्तरिक्ष के उन्नत या विस्तृत प्रदेश भी कम्पायमान हो जाते हैं। हे मरुतो! आप सब आयुधवान हैं। जब आप लोग क्रीड़ा करते हैं तब मेघों के समान सम्मिलित होकर विशेष रूप से दौड़ते हैं।[ऋग्वेद 5.60.3]
क्रीड़ा :: खेल, नाटक, अभिनय, जुआ, क्रियाशीलता, आमोद-प्रमोद, उत्सव, आनंद, विनोद, चहल-पहल, विहार, विलास, आलिंगनों का आदान-प्रदान, रंग-रेली; sport, play, merriment, dalliance.
Hey Marud Gan! When you furious create thunderous-rattling sound very old and great mountains too become fearful and the high rise and broad places too start trembling-shaking. Hey Marud Gan. You all possess-wield weapons. When you sport playfully-fully run with the clouds.
वराइवेद्वैवतासो हिरण्यैरभि स्वधाभिस्तन्वः पिपिश्रे।
श्रिये श्रेयांसस्तवसो रथेषु सत्रा महांसि चक्रिरे तनूषु॥
विवाह के योग्य धनवान युवा जिस प्रकार सुवर्णमय अलंकार तथा उदक के द्वारा अपने शरीर को भूषित करता है, उसी प्रकार सर्वश्रेष्ठ, बलशाली मरुद्गण रथ के ऊपर एक साथ बैठकर अपने शरीर की शोभा के लिए तेज धारित करते हैं।[ऋग्वेद 5.60.4]
The way a rich young man decorate his body with gold ornaments and water, the best, mighty and powerful Marud Gan ride the charoite and bear aura-radiance over their body.
अज्येष्ठासो अकनिष्ठास एते सं भ्रातरो वावृधुः सौभगाय।
युवा पिता स्वपा रुद्र एषां सुदुघा पृश्निः सुदिना मरुद्भ्यः॥
ये मरुद्गण एक साथ ही उत्पन्न हुए हैं अथवा समान बल वाले हैं। परस्पर श्रेष्ठ और कनिष्ठ भाव से वर्जित हैं। ये मरुद्गण परस्पर भातृभाव से सौभाग्य के लिए वर्द्धमान होते हैं। नित्य तरुण तथा सत्कर्म के अनुष्ठानकारी मरुतों के पिता रुद्र और जननी स्वरूपा दोहन योग्या गौ, मरुतों के लिए उत्तम दिनों का निर्माण करती हैं।[ऋग्वेद 5.60.5]
These Marud Gan took birth together and posses equal might, power & strength. They do not have the feeling of excellence or junior-small, mutually. They grow with mutual brotherhood, good luck. Always youthful Rudr, the father of Marud Gan and motherly cows generate excellent days for them.
यदुत्तमे मरुतो मध्यमे वा यद्वावमे सुभगासो दिवि ष्ठ।
अतो नो रुद्रा उत वा न्व १ स्याग्ने वित्ताद्धविषो यद्यजाम॥
हे सौभाग्यशाली मरुतो! आप लोग उत्तम (उत्कृष्ट) द्युलोक में मध्यम द्युलोक में अथवा अधोद्युलोक में वर्तमान होते हैं। हे रुद्रो! उन स्थानों (तीनों लोकों) से हम लोगों के लिए आगमन करें। हे अग्नि देव! हम आज जो हवि प्रदान करते हैं, उन आहुतियों को आप ही जानें।[ऋग्वेद 5.60.6]
Hey lucky Marud Gan! You occupy the best-upper, middle and lower heavens. Hey Rudr! Move to these heavens for our sake. Hey Agni Dev! You are aware of the offerings made by us, today.
अग्निश्च यन्मरुतो विश्ववेदसो दिवो वहध्व उत्तरादधि ष्णुभिः।
ते मन्दसाना धुनयो रिशादसो वामं धत्त याजकगणाय सुन्वते॥
हे सर्वज्ञ मरुतो! आप और अग्नि देव द्युलोक के उत्कृष्टतर उपरि प्रदेश में अवस्थान करते हैं। आप लोग हमारे स्तवन और हव्य से प्रसन्न होकर शत्रुओं को कम्पायमान करके विनष्ट करें और सोमयाग करने वाले याजकगणों को अभिलषित धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 5.60.7]
Hey enlightened-aware of every thing, Marud Gan! You & Agni Dev occupy the excellent upper abodes in the heavens. You grant desired riches-wealth to the Ritviz who perform Som Yagy & make offerings for you destroying the enemies on being happy with our prayers.
अग्ने मरुद्भिः शुभयद्भिर्ऋक्वभिः सोमं पिब मन्दसानो गणश्रिभिः। पावकेभिर्विश्वमिन्वेभिरायुभिर्वैश्वानर प्रदिवा केतुना सजूः॥
हे वैश्वानर अग्नि देव! आप अपनी तेजस्वी ज्वालाओं से युक्त होकर शोभायमान, पूजनीय, गणभाव का आश्रय करने वाले, पवित्रता विधायक, प्रीति दायक और दीर्घ जीवी मरुतों के साथ सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 5.60.8]
Hey Vaeshwanar Agni Dev! Enjoy Somras along with long life Marud Gan. On being happy, you possess radiant flames nurturing the feeling of Gan for the Marud Gan who are revered-honourable, pious-pure, lovely.(30.07.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (61) :: ऋषि :- श्यावाश्व आत्रेय, देवता :- तरन्तमहिषी शशीयसी, छन्द :- गायत्री, अनुष्टुप्, बृहती, प्रकृति।
के ष्ठा नरः श्रेष्ठतमा य एकएक आयय। परमस्याः परावतः॥
हे श्रेष्ठतम नेताओं! आप लोग कौन हैं? दूर देश अर्थात् अन्तरिक्ष से आप लोग एक- एक करके उपस्थित होवें।[ऋग्वेद 5.61.1]
Hey greatest leaders! Who are you? Come-invoke from the space one by one.
क्व १ वोऽश्वाः क्वा ३ भीशवः कथं शेक कथा यय। पृष्ठे सदो नसोर्यमः॥
हे मरुतो! आप लोगों के अश्व कहाँ हैं? लगाम कहाँ है? शीघ्र गमन में समर्थ होते हैं? यह किस प्रकार का गमन है? अश्वों के पीठ पर की जीन और नासिका द्वय में बाँधने वाली रस्सी कहाँ स्थित है।[ऋग्वेद 5.61.2]
अश्व की जीन :: घोड़े आदि की पीठ पर रखने की गद्दी, चारजामा, काठी, कजाव; saddlebag.
Hey Marud Gan! Where are your horses? Where are their reins? Get ready for moving fast. What type of movement is this? where are the saddlebag and cord for passing through the two nostrils?
जघने चोद एषां वि सक्थानि नरो यमुः। पुत्रकृथे न जनयः॥
अश्वों के जघन देश में शीघ्र गमन के लिए कशाघात होता है। पुत्रोत्पादन काल में जिस प्रकार से रमणियाँ उरुद्वय को विवृत करती हैं, उसी प्रकार नेता मरुद्गण को उरुद्वय विवृत करने के लिए बाध्य करते हैं।[ऋग्वेद 5.61.3]
The goad is applied to their flanks, the riders make them spread their thighs apart, like women in bringing forth children.
परा वीरास एतन मर्यासो भद्रजानयः। अग्नितपो यथासथ॥
हे वीर शत्रु संहारको, हे मनुष्यों के लिए कल्याण करने वालों, हे शोभन जन्म वालों, मरुत्पुत्रों! आप लोग अग्नि में तपाये गए ताम्र के सदृश प्रदीप्त होते हैं।[ऋग्वेद 5.61.4]
Hey destroyers of enemy, resorting to humans welfare, born of high origin Marud Gan! You appear like copper heated in fire.
सनत्साश्र्व्यं पशुमुत गव्यं शतावयम्।
श्यावाश्वस्तुताय या दोर्वीरायोपब-र्बृहत्॥
श्यावाश्व ने जिसकी प्रार्थना की, जिसने वीर तरन्त को भुजपाश में बद्ध किया, उसी तरन्त महिषी शशीयसी ने हमें अश्व, गौ और सौ भेड़ें प्रदान कीं।[ऋग्वेद 5.61.5]
Whom Shyavashrv prayed, who enclosed brave Tarant in his arms, the same great person Tarant Shashiyasi granted us horse, cow and hundred sheep.
उत त्वा स्त्री शशीयसी पुंसो भवति वस्यसी। अदेवत्रादराधसः॥
जो पुरुष देवों की आराधना और धनदान नहीं करता, उस पुरुष की अपेक्षा स्त्री शशीयसी सब प्रकार से श्रेष्ठ है।[ऋग्वेद 5.61.6]
The person who do not worship demigods-deities and donate, woman Shashiyasi is better than him in all respects.
वि या जानाति जसुरिं वि तृष्यन्तं वि कामिनम्। देवत्रा कृणुते मनः॥
वह शशीयसी देवी व्यथित (ताड़ित-उपेक्षित) को जानती है, प्यासे को जानती है और धनाभिलाषी को जानती है अर्थात् कृपावश हो अभिमत धन प्रदान करती है। वह देवों के प्रीत्यर्थ बुद्धि प्रदान करती है अर्थात् देवों के प्रति अपने चित्त को समर्पित करती है।[ऋग्वेद 5.61.7]
That Shashiyasi Devi knows the troubled, thirsty and the one desirous of money & grant sufficient money to him. She grant intelligence creating love to demigods-deities or devote her innerself to them.
उत घा नेमो अस्तुतः पुमाँ इति ब्रुवे पणिः। स वैरदेय इत्समः॥
शशीयसी के अर्द्धाङ्गभूत पुरुष तरन्त की प्रार्थना करके भी हम कहते हैं कि उनका सम्पूर्ण रूप से स्तवन नहीं हुआ; क्योंकि वे दान के विषय में सदैव एकरूप हैं।[ऋग्वेद 5.61.8]
Even after worshiping the man Tarant; better half of Shashiyasi, we often say that she has not been worshiped-prayed properly, since for donations they constitute one entity.
उत मेऽरपद्युवतिर्ममन्दुषी प्रति श्यावाय वर्तनिम्।
वि रोहिता पुरुमीळ्हाय येमतुर्विप्राय दीर्घयशसे॥
यौवनवती शशीयसी ने मुदित मन से श्यावाश्व को पथ प्रदर्शित किया। उनके द्वारा प्रदत्त लोहित वर्ण वाले दोनों अश्व हमें यशस्वी, विज्ञ, पुरुमीह्न के निकट वहन करते हैं अर्थात् सुसज्जित रथ पर बैठाकर उसने ही हमें पुरुमीह्न के घर तक पहुँचा दिया।[ऋग्वेद 5.61.9]
Young Shashiyasi happily showed the path to Shyavashrv. The red coloured horse duo deployed in the decorated charoite carried us to famous, enlightened Purumihn.
यो मे धेनूनां शतं वैददश्विर्यथा ददत्। तरन्तइव मंहना॥
विददश्र्व के पुत्र पुरुमीह्न ने भी हमें तरन्त की ही तरह सौ गौवें और महामूल्यवान् धनादि प्रदान किया।[ऋग्वेद 5.61.10]
Vidadshrv's son Purumihn too granted us hundred cows and valuables.
य ई वहन्त आशुभिः पिबन्तो मदिरं मधु। अत्र श्रवांसि दधिरे॥
जो मरुद्गण शीघ्रगामी अश्वों पर आरूढ़ होकर हर्षविधायक सोमरस का पान करते हुए इस स्थान में आते हैं, वे मरुद्गण इस स्थान पर विविध स्तवन धारित करते हैं।[ऋग्वेद 5.61.11]
Those Marud Gan who ride the fast moving horses, drink Somras granting happiness, come to this place and are honoured with prayers-sacred hymns.
येषां श्रियाधि रोदसी विभ्राजन्ते। दिवि रुक्मइवोपरि॥
जिन मरुतों की कान्ति से द्यावा-पृथिवी भी परिव्याप्त होती है। ऊपर द्युलोक में रोचमान आदित्य के सदृश वे मरुद्गण रथ के ऊपर विशेष दीप्त होते हैं।[ऋग्वेद 5.61.12]
The earth & the heavens are pervaded with the radiance-aura of Marud Gan. They are specially glittering like Rochman Adity seated over the charoite.
युवा स मारुतो गणस्त्वेषरथो अनेद्यः। शुभंयावाप्रतिष्कुतः॥
वे मरुद्गण नित्य तरुण, दीप्त रथ विशिष्ट, अनिन्द्य, शोभन रूप से गमन करने वाले और अप्रतिहत गति हैं।[ऋग्वेद 5.61.13]
अनिंद्य :: प्रशंसनीय, सुंदर; appreciable, beautiful.
अप्रतिहत :: जिसे कोई रोक न सके, निर्बाध, अप्रभावित, अंकुश; continuous.
Those youthful Marud Gan occupy the special charoite, are extremely beautiful and move with un breakable, continuous speed.
को वेद नूनमेषां यत्रा मदन्ति धूतयः। ऋतजाता अरेपसः॥
जलवर्षणार्थ उत्पन्न अथवा यज्ञ में प्रादुर्भूत, शत्रुओं के कम्पक और निष्पाप मरुद्गण जिस स्थान पर हर्षित हुए, मरुतों के उस स्थान को कौन व्यक्ति जानता है?[ऋग्वेद 5.61.14]
Who knows the place-residence of sinless Marud Gan where they became happy, born to create rains or Yagy, torturing-shaking the enemies.
यूयं मर्तं विपन्यवः प्रणेतार इत्था धिया। श्रोतारो यामहूतिषु॥
हे स्तवाभिलाषी मरुतो! जो मनुष्य यजमान इस प्रकार प्रार्थना कर्म-द्वारा आप लोगों को आहूत होने प्रसन्न करता है, उसे आप लोग अभिमत स्वर्गादि स्थान प्रदान करते हैं। यज्ञ में पर आहूत होने आप लोग उस आह्वान को श्रवण करते हैं।[ऋग्वेद 5.61.15]
Hey worship loving Marud Gan! You grant desired heavens to the person who worship & make you happy with deeds-endeavours. On being worshiped in the Yagy you listen-respond to their prayers.
ते नो वसूनि काम्या पुरुश्चन्द्रा रिशादसः। आ यज्ञियासो ववृत्तन॥
हे शत्रु संहारक, पूजनीय, विविध धनशाली मरुतो! आप लोग हम लोगों को वाञ्छित धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 5.61.16]
Hey worshipable Marud Gan, possessing various kinds of wealth! Grant desired wealth to us.
एतं मे स्तोममूर्म्ये दार्भ्याय परा वह। गिरो देवि रथीरिव॥
हे रात्रि देवी! आप हमारे निकट से रथवीति के निकट इस मरुत्प्रार्थना को प्राप्त करें। यह प्रार्थना मरुतों के लिए की गई है। हे देवी! रथी जिस प्रकार से रथ के ऊपर विविध वस्तु रख कर गन्तव्य स्थान पर उसे ले जाता है, उसी प्रकार आप हमारे इन सकल स्तवन को वहन करें।[ऋग्वेद 5.61.17]
Hey Ratri Devi-goddess of night! Accept our prayers close to the Rathviti for the sake of Marud Gan. Hey Goddess! The way a charoite driver keep goods over it and lead them to the destination, you transfer our worship-prayers to them.
उत मे वोचतादिति सुतसोमे रथवीतौ। न कामो अप वेति मे॥
हे रात्रि देवी! सोमयज्ञ के पूर्ण होने पर रथवीति को आप यह कहना कि आपकी पुत्री के प्रति हमारी कामना कम नहीं हुई।[ऋग्वेद 5.61.18]
Hey Goddess of night! On completion of Som Yagy ask Rathviti that our love-desires for your daughter has not diminished.
एष क्षेति रथवीतिर्मघवा गोमतीरनु। पर्वतेष्वपश्रितः॥
वे धनवान रथवीति गोमती नदी के तट पर निवास करते हैं और बर्फ के पर्वतों में भी उनका निवास है।[ऋग्वेद 5.61.19]
Rich Rathviti resides by the side of Gomti river and the ice clade mountains too are her abode.(31.07.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (62) :: ऋषि :- श्रुतवित् आत्रेय, देवता :- मित्र, वरुण, छन्द :- त्रिष्टुप्।
ऋतेन ऋतमपिहितं धुवं वां सूर्यस्य यत्र विमुचन्त्यश्वान्।
दश शता सह तस्थुस्तदेकं देवानां श्रेष्ठं वपुषामपश्यम्॥
हम आप लोगों के आवासभूत, उदक द्वारा आच्छादित, शाश्वत और सत्यभूत सूर्य मण्डल का दर्शन करते हैं। उस स्थान में अवस्थित अश्वों को स्तोता लोग मुक्त करते हैं। उस मण्डल में हजारों की संख्या में रश्मियाँ अवस्थिति करती हैं। तेजोवान अग्नि देव आदि शरीरवान देवों के बीच में हमने सूर्यदेव के उस श्रेष्ठ मण्डल को देखा।[ऋग्वेद 5.62.1]
We visualise your eternal, truthful, basic abode the Sun, covered by water-clouds. The Stota release the horses kept there. Thousands of rays are present there. We observed the aurous-radiant excellent abode of Sun present between the aurous demigods-deities and Agni Dev.
तत्सु वां मित्रावरुणा महित्वमीर्मा तस्थुषीरहभिर्दुदुहे।
विश्वाः पिन्वथः स्वसरस्य धेना अनु वामेकः पविरा ववर्त॥
हे मित्र और वरुण! आप दोनों का यह माहात्म्य अत्यन्त प्रशस्त है, जिसके द्वारा निरन्तर परिभ्रमण कारी सूर्य देव दैनिक गति से सम्बद्ध स्थावर जल राशि को दुहते हैं। आप लोग स्वयं भ्रमण कारी सूर्य देव की प्रीतिदायक दीप्ति को वर्द्धित करते है। आप दोनों का एकमात्र रथ अनुक्रम से भ्रमण करता है।[ऋग्वेद 5.62.2]
प्रशस्त :: प्रशंसा किया हुआ, प्रशंसा योग्य; expansive, smashing.
Hey Mitr & Varun Dev! Your greatness is highly praiseworthy, by virtue of which rotating Sun extract water everyday. You yourself enhance the affectionate aura of Sury Dev-Sun. Your common charoite revolve sequentially.
अधारयतं पृथिवीमु॒त द्यां मित्रराजाना वरुणा महोभिः।
वर्धयतमोषधीः पिन्वतं गा अव वृष्टिं सृजतं जीरदानू॥
हे मित्र और वरुण देव! स्तोता लोग आपके अनुग्रह से राजपद प्राप्त करते हैं। आप दोनों अपनी सामर्थ्य से द्यावा-पृथिवी को धारण करते हैं। हे शीघ्र दानकर्ताओं! आप लोग औषधियों और गौओं को वर्द्धित करते हुए जलवर्षा करें।[ऋग्वेद 5.62.3]
Hey Mitr & Varun Dev! Stota attain government jobs due to your obligations. You support the earth & heavens by virtue of your strength-power. Hey Donors! Enhance the medicines (medicinal herbs-shrubs) and cows and shower rains.
आ वामश्वासः सुयुजो वहन्तु यतरश्मय उप यन्त्वर्वाक्।
घृतस्य निर्णिगनु वर्तते वामुप सिन्धवः प्रदिवि क्षरन्ति॥
हे मित्र और वरुण देव! आप दोनों के अश्व रथ में भली-भाँति से नियोजित होकर आप दोनों को वहन करें। सारथि के द्वारा नियन्त्रित होकर अनुवर्तन करें। जल का रूप आप दोनों का अनुसरण करता है। आप दोनों के अनुग्रह से पुरातन नदियाँ प्रवाहित होती हैं।[ऋग्वेद 5.62.4]
अनुसरण :: अनुगमन, अनुकरण, समान आचरण, अनुषंग, परिणामत, किसी नियम का कई स्थानों पर बार बार लगना; compliance, consequentiality, adherence, tropism.
Hey Mitr & Varun Dev! Let your horses be deployed properly in the charoite, carry you & adhere to compliance of charoite driver's directions. Due to your obligation ancient eternal river maintain their flow.
अनु श्रुताममतिं वर्धदुर्वी बर्हिरिव यजुषा रक्षमाणा।
नमस्वन्ता धृतदक्षाधि गर्ते मित्रासाथे वरुणेळास्वन्तः॥
हे अन्नवान तथा बल सम्पन्न मित्र और वरुण देव! आप दोनों विश्रुत शरीर दीप्ति को वर्द्धित करते हैं। यज्ञ जिस प्रकार से मन्त्र द्वारा रक्षित होता है, उसी प्रकार आप दोनों भी पृथ्वी का पालन करें। आप दोनों यज्ञ भूमि के मध्य में स्थित रथ पर अधिष्ठित होवें।[ऋग्वेद 5.62.5]
विश्रुत :: सुना हुआ, विख्यात, जिसे लोग अच्छी तरह से सुन चुके हों, जिसे सब लोग जान चुकें हों, प्रसिद्ध, प्रसन्न, खुश, ख़ुशी, वासुदेव के पुत्र, ब्रह्म पुराण, भगवान् श्री हरी विष्णु; heard-noticed by all, known to all, happiness, son of Vasu Dev, Bhagwan Shri Hari Vishnu.
Hey possessor of food grains and mighty Mitr & Varun Dev! You boost the aura of your body, heard-noticed by all. The way the Yagy is protected by Mantr, you protect the earth. Ride the charoite present at the centre of the Yagy site.
अक्रविहस्ता सुकृते परस्पा यं त्रासाथे वरुणेळास्वन्तः।
राजाना क्षत्रमहृणीयमाना सहस्रस्थूणं बिभृथः सह द्वौ॥
हे मित्र और वरुण देव! आप दोनों यज्ञभूमि में जिस याजकगण की रक्षा करते हैं, शोभन प्रार्थना करने वाले उस याजकगण के प्रति आप दोनों दान शील होकर उसकी रक्षा करें। उसे धनादि से परिपूर्ण हजारों स्तम्भों से युक्त गृह भी प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 5.62.6]
Hey Mitr & Varun Dev! The way you protect the Ritviz at the Yagy site, adhere to donations and protect the Ritviz who recite sacred hymns for you. Grant him wealth and house, having thousands of pillars.
हिरण्यनिर्णिगयो अस्य स्थूणा वि भ्राजते दिव्य १ श्वाजनीव।
भद्रे क्षेत्रे निमिता तिल्विले वा सनेम मध्वो अधिगत्र्यस्य॥
इनका रथ स्वर्णमय है और कीलकादि भी स्वर्णमय ही है। यह रथ विद्युत् के तुल्य अन्तरिक्ष में शोभा पाता है। हम लोग कल्याणकर स्थान में अथवा यूप यष्टि समन्वित यज्ञ भूमि में रथ के ऊपर सोमरस को स्थापित करें।[ऋग्वेद 5.62.7]
Their charoite is golden and its excel and the hook-nail too are made of gold. This charoite is glorified in the sky like electric spark. Let us place the Somras over the charoite at the Yagy site, welfare spot, where pillar-pole has been fixed.
हिरण्यरूपमुषसो व्युष्टावयःस्थूणमुदिता सूर्यस्य।
आ रोहथो वरुण मित्र गर्तमतश्चक्षाथे अदितिं दितिं च॥
हे मित्र और वरुण देव! आप लोग उषाकाल में सूर्य के उदित होने पर लौहकील समन्वित सुवर्ण मय रथ पर यज्ञ में जाने के लिए आरोहण करें एवं अदिति अर्थात् अखण्डनीय भूमि और दिति अर्थात् खण्डित प्रजा का अवलोकन करें।[ऋग्वेद 5.62.8]
Hey Mitr & Varun Dev! Ride the golden charoite having iron nail over the excel to reach the Yagy and view Aditi-unbreakable soil and Diti-breakable populace, at dawn-Usha when the Sun rises.
यद्वंहिष्ठं नातिविधे सुदानू अच्छिद्रं शर्म भुवनस्य गोपा।
तेन नो मित्रावरुणावविष्टं सिषासन्तो जिगीवांसः स्याम॥
हे दानशील तथा विश्व रक्षक मित्र और वरुण देव! जो सुख व्याघात रहित, अछित्र और बहुतम है, उस सुख को आप दोनों धारित करते हैं। उसी सुख द्वारा हम लोगों की रक्षा करें। हम लोग अभिलक्षित धन प्राप्त करते हुए शत्रुओं पर विजय प्राप्त करें।[ऋग्वेद 5.62.9]
Hey donor-munificent and friends of the world Mitr & Varun Dev! You possess the continuous and maximum felicity-comforts free from troubles. Protect us through that felicity-comfort. Let us gain victory over the enemy targeting the desired wealth.(01.08.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (63) :: ऋषि :- अर्चनाना आत्रेय, देवता :- मित्र, वरुण, छन्द :- त्रिष्टुप्।
ऋतस्य गोपावधि तिष्ठथो रथं सत्यधर्माणा परमे व्योमनि।
यमत्र मित्रावरुणावथो युवं तस्मै वृष्टिर्मधुमत्पिन्वते दिवः॥
हे उदक के रक्षक सत्य धर्म वाले मित्र और वरुणदेव! आप दोनों हमारे यज्ञ में आने के लिए निरतिशय आकाश में रथ के ऊपर आरूढ़ होते हैं। इस यज्ञ में आप दोनों जिस याजक गण की रक्षा करते हैं, उस याजकगण के लिए मेघ द्युलोक से सुमधुर जल की वर्षा करता है।[ऋग्वेद 5.63.1]
निरतिशय :: अद्वितीय, परमात्मा, ईश्वर; relentless
Hey truthful protectors of water Mir & Varun Dev! You ride your unique-unparalled charoite in the sky. The Ritviz protected by you in the Yagy gets rains showers having sweet water by the clouds from the heavens.
सम्राजावस्य भुवनस्य राजथो मित्रावरुणा विदथे स्वर्दृशा।
वृष्टिं वां राधो अमृतत्वमीमहे द्यावापृथिवी वि चरन्ति तन्यवः॥
हे स्वर्ग के द्रष्टा मित्र और वरुण देव! इस यज्ञ में राजमान होकर आप दोनों भुवन में शासन करते हैं। हम लोग आप दोनों निकट वृष्टि रूप धन तथा स्वर्ग की प्रार्थना करते हैं। आप दोनों की विस्तृत रश्मियाँ आकाश और पृथिवी के बीच में भ्रमण करती हैं।[ऋग्वेद 5.63.2]
Hey on lookers of heavens Mitr & Varun Dev! Presenting yourself in the Yagy you rule-preside in both the abodes (earth & heavens). We request-pray you for wealth in the form of rains & the heavens. Your rays-aura fills the sky and the earth.
सम्राजा उग्रा वृषभा दिवस्पती पृथिव्या मित्रावरुणा विचर्षणी।
चित्रेभिर भ्रैरुप तिष्ठथो रवं द्यां वर्षयथो असुरस्य मायया॥
हे मित्र और वरुण देव! आप दोनों अत्यन्त राजमान, उद्यत बल, वारिवर्षक, द्यावा-पृथिवी के पति और सर्वद्रष्टा है। आप दोनों महानुभाव विचित्र मेघों के साथ प्रार्थना श्रवण करने के लिए आगमन करें। पश्चात् वृष्टि विधायक पर्जन्य की सामर्थ्य द्वारा द्युलोक से जल की वर्षा करें।[ऋग्वेद 5.63.3]
राजमान :: चमकता हुआ, शोभित; shinning, brilliant.
उद्यत बल :: उत्प्लावन बल; buoyant force, vertical force, up thrust.
Hey Mitr & Varun Dev! You are extremely brilliant-shinning, acting vertically upwards, rain showering, lord-leaders of earth and viewers of every event-thing. Arrive here to listen to the prayers with the amazing clouds. Thereafter, shower rains from the heavens with the rattling clouds.
माया वां मित्रावरुणा दिवि श्रिता सूर्यो ज्योतिश्चरति चित्रमायुधम्।
तमभ्रेण वृष्ट्या गृहथो दिवि पर्जन्य द्रप्सा मधुमन्त ईरते॥
हे मित्र और वरुण देव! जब आप दोनों के अस्त्र भूत ज्योतिर्मय सूर्य देव अन्तरिक्ष में भ्रमण करते हैं, जब आप दोनों की माया स्वर्ग में प्रकट होती है। आप दोनों द्युलोक में मेघ और वर्षा द्वारा सूर्य देव की रक्षा करते है। हे पर्जन्य देव! मित्र और वरुण देव द्वारा प्रेरित होने पर आपके द्वारा सुमधुर जल बूँदें गिरती हैं।[ऋग्वेद 5.63.4]
अस्त्र :: हथियार, फेंककर चलाया जानेवाला हथियार; missile.
Hey Mitr & Varun Dev! When radiant Sury Dev-Sun revolve in the space-sky as your protectors, your spell-cast is observed in the heavens. You protect the Sun in the heavens with clouds & rains. Hey Parjany Dev! Inspired by Mitr & Varun Dev you begin with rains drops constituting sweet water.
रथं युञ्जते मरुतः शुभे सुखं शूरो न मित्रावरुणा गविष्टिषु।
रजांसि चित्रा वि चरन्ति तन्यवो दिवः सम्राजा पयसा न उक्षतम्॥
हे मित्र और वरुण देव! जिस प्रकार से वीर युद्ध के लिए अपने रथ को सुसज्जित करता है, उसी प्रकार मरुद्गण आप दोनों के अनुग्रह से जलवर्षा के लिए सुखकर रथ को सुसज्जित करते हैं। जल की वर्षा करने के लिए मरुद्गण विभिन्न लोकों में सञ्चरण करते हैं। हे राजमान देवो! आप दोनों मरुतों के साथ द्युलोक से हम लोगों के ऊपर जल की वर्षा करें।[ऋग्वेद 5.63.5]
Hey Mitr & Varun Dev! The way a soldier prepares his charoite for fight-war, Marud Gan keep their charoite ready for rains due to your obligations. For causing rains Marud Gan move to different abodes. Hey aurous-decorated deities! Both of you shower rains over us from the sky-heavens along with Marud Gan.
वाचं सु मित्रावरुणाविरावतीं पर्जन्यश्चित्रां वदति त्विषीमतीम्।
अभ्रा वसत मरुतः सु मायया द्यां वर्षयतमरुणामरेपसम्॥
हे मित्र और वरुण देव! आप दोनों के अनुग्रह से मेघ अन्न साधक, प्रभाव्यञ्जक और विचित्र गर्जन शब्द करते हैं। मरुद्गण अपनी प्रज्ञा के बल से बादलों की रक्षा भली-भाँति से करते हैं। उनके साथ आप दोनों अरुण वर्ण तथा निष्पाप आकाश से जल की वर्षा करते हैं।[ऋग्वेद 5.63.6]
Hey Mitr & Varun Dev! By virtue of your wishes-obligations clouds cause abundant rains for producing food grains making wonderful sounds. Marud Gan protect the clouds thoroughly with their ability-intellect. Thereafter, you produce rains looking reddish-purple.
धर्मणा मित्रावरुणा विपश्चिता व्रता रक्षेथे असुरस्य मायया।
ऋतेन विश्वं भुवनं वि राजथः सूर्यमा धत्थो दिवि चित्र्यं रथम्॥
हे विद्वान मित्र और वरुण देव! आप दोनों संसार के उपकारक वृष्ट्यादि कार्य द्वारा यज्ञ की रक्षा करते हैं। जल के वर्षक पर्जन्य की प्रज्ञा द्वारा उदक से समस्त भूतजात को दीप्ति करते हैं। पूज्य और वेगवान सूर्यदेव को द्युलोक में स्थापित करते हैं।[ऋग्वेद 5.63.7]
Hey enlightened-learned Mitr & Varun Dev! Both of you protect the Yagy with the beneficial rains. You glow the world with the rains caused by Parjany-rattling clouds and establish accelerated Sury Dev-Sun in the heavens-sky.(02.8.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (64) :: ऋषि :- अर्चना आत्रेय, देवता :- मित्र, वरुण, छन्द :- अनुष्टुप् पंक्ति।
वरुणं वो रिशादसमृचा मित्र हवामहे।
परि व्रजेव बाह्वोर्जगन्वांसा स्वर्णरम्॥
हे मित्र और वरुण देव! हम इस मन्त्र से आप दोनों का आह्वान करते हैं। बाहुबल से गौसमूह के सञ्चालक द्वय के समान शत्रुओं का विनाश करें और स्वर्ग के मार्ग को प्रदर्शित करें।[ऋग्वेद 5.64.1]
Hey Mitr & Varun Dev! We invoke you through this Mantr. Use your muscle power to operate the cow heard, destroy the enemy and pave -show the way for the heavens.
ता बाहवा सुचेतुना प्र यन्तमस्मा अर्चते।
शेवं हि जार्यं वां विश्वासु क्षासु जोगवे॥
आप दोनों प्रज्ञा सम्पन्न हैं। आप दोनों हम स्तुति कर्ता को अभिमत सुख प्रदान करें। हम शोभन हस्त द्वारा प्रार्थना करते हैं। आप दोनों द्वारा प्रदत्त स्तुति योग्य सुख सब स्थान में व्याप्त हैं।[ऋग्वेद 5.64.2]
शोभन :: ललित, शोभनीय, पयुक्त, उपयुक्त, स्वच्छ, संगत; suitable, seemly, decent, nice.
Both of you are enlightened. Grant desired pleasure to us, the worshipers. We worship with suitably (decent, nice) folded hands. The pleasure-comforts granted by you pervade every where.
यन्नूनमश्यां गतिं मित्रस्य यायां पथा।
अस्य प्रियस्य शर्मण्यहिंसानस्य सश्चिरे॥
हम अभी संगति प्राप्त करें। मित्र भूत अथवा मित्र द्वारा दर्शित मार्ग से हम गमन करें। अहिंसक मित्र का प्रिय सुख हमें घर में प्राप्त हो।[ऋग्वेद 5.64.3]
Let us enjoy your company and follow the track-path shown (guided) by the friends. We shall have the pleasure of meeting our non violent friend at our residence.
युवाभ्यां मित्रावरुणोपमं धेयामृचा।
यद्ध क्षये मघोनां स्तोतॄणां च स्पूर्धसे॥
हे मित्र और वरुण देव! हम आपके उस धन को धारित करें, जो धनवान् स्तोताओं के गृह में परस्पर कलह का कारण बनता हो।[ऋग्वेद 5.64.4]
Hey Mitr & Varun Dev! Let have your those riches, which cause domestic mutual trouble-quarrel in the houses of the rich Stotas.
आ नो मित्र सुदीतिभिर्वरुणश्च सधस्थ आ।
स्वे क्षये मघोनां सखीनां च वृधसे॥
हे मित्र, हे वरुण देव! आप दोनों सुन्दर दीप्ति से युक्त होकर हमारे गृह में पधारें। आप निश्चित ही पधारें और धनवान् मित्रों को समृद्धि युक्त करें।[ऋग्वेद 5.64.5]
Hey Mitr & Varun Dev! Invoke at our home having your beautiful aura and make the rich friends prosperous.
युवं नो येषु वरुण क्षत्रं बृहच बिभृथः।
उरु णो वाजसातये कृतं राये स्वस्तये॥
हे मित्र और वरुण देव! आप दोनों हमारी स्तुतियों के निमित्त हमारे लिए प्रचुर अन्न तथा बल धारित करते हैं। आप दोनों हमें अन्न, धन और कल्याण विशेष रूप से प्रदान करें।[ऋग्वेद 5.64.6]
Hey Mitr & Varun Dev! You possess enough-sufficient food grains and might for the sake of our prayers-sacred holy hymns. Specially, grant us food grains and wealth for our welfare.
उच्छन्त्यां मे यजता देवक्षत्रे रूशद्गवि।
सुतं सोमं न हस्तिभिरा पड्भिर्धावतं नरा बिभ्रतावर्चनानसम्॥
हे अधिनायक मित्र और वरुण देव! उषाकाल में सुन्दर किरण से युक्त प्रातः सवन में, देव-बल विशिष्ट गृह में आप दोनों पूजनीय होते हैं। उस घर में हमारे द्वारा अभिषुत सोमरस का आप दोनों अवलोकन करें। आप दोनों अर्चना से प्रसन्न होकर गमन साधन अश्वों पर बैठकर तत्काल आवें।[ऋग्वेद 5.64.7]
Hey leaders-lord Mitr & Varun Dev! You are worshiped during Usha-dawn with the beautiful rays accompanied with the might of deities in the specific-special homes. Inspect the Somras extracted by us in that house. On being pleased with the prayers, ride the horses and come to us, immediately.(03.08.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (65) :: ऋषि :- रातहव्य आत्रेय, देवता :- मित्र, वरुण, छन्द :- अनुष्टुप् पंक्ति।
यश्चिकेत स सुक्रतुर्देवत्रा स ब्रवीतु नः।
वरुणो यस्य दर्शतो मित्रो वा वनते गिरः॥
जो स्तोता देवों के बीच में आप दोनों की प्रार्थना जानता है, वही शोभनकर्म करने वाला है। वह शोभनकर्मा स्तोता हमें स्तुति विषयक उपदेश दें, जिनकी प्रार्थना को सुन्दर मूर्ति वाले मित्र और वरुण देव स्वीकार करते हैं।[ऋग्वेद 5.65.1]
The Stota who recognise you both amongest the demigods-deities is the doer of great deeds-endeavours. Let him guide in terms of worship-prayers who's prayers are laudation-accepted by graceful Mitr & Varun Dev.
ता हि श्रेष्ठवर्चसा राजाना दीर्घश्रुत्तमा।
ता सत्पती ऋतावृध ऋतावाना जनेजने॥
प्रशस्त तेज वाले और ईश्वर भूत मित्रा-वरुण दूर देश से आहूत होने पर भी आह्वान सुन लेते हैं। याजक गणों के स्वामी और यज्ञ के वर्द्धयिता वे दोनों प्रत्येक स्तोताओं के कल्याण विधानार्थं भ्रमण करते हैं।[ऋग्वेद 5.65.2]
Mitr & Varun Dev possessing great aura respond to the prayers even when they are away. Lord of the Ritviz and promoters of the Yagy they travel for the welfare-benefit of each Stota.
ता वामियानोऽवसे पूर्वा उप ब्रुवे सचा।
स्वश्वासः सु चेतुना वाजाँ अभि प्र दावने॥
आप दोनों पुरातन हैं। हम आप दोनों के निकट उपस्थित होकर रक्षा के लिए हम स्तवन करते हैं। वेगवान् अश्वों के अधिपति होकर हम अन्न प्रदानार्थ आप दोनों की प्रार्थना करते हैं। आप दोनों शोभन ज्ञान वाले है।[ऋग्वेद 5.65.3]
Both of you are ancient-eternal. We present ourselves before you and request you for our protection. We become the master-owner fast moving of horses and request you for the food grains. Both of you are enlightened.
मित्रो अंहोश्चिदादुरु क्षयाय गातुं वनते।
मित्रस्य हि प्रतूर्वतः सुमतिरस्ति विधतः॥
मित्र देव पापी स्तोता को भी विशाल घर में निवास करने का उपाय बताते हैं। हिंसक भक्त के लिए भी मित्र देव की शोभन बुद्धि रहती है।[ऋग्वेद 5.65.4]
Mitr Dev guide even the sinner Stota to get-live in a large house. Mitr Dev is kind even to the violent devotee.
वयं मित्रस्यावसि स्याम सप्रथस्तमे।
अनेहसस्त्वोतयः सत्रा वरुणशेषसः॥
हम याजक गण दुःख निवारक मित्र देव की विपुल रक्षा लिए अधिकारी होवें । वरुण देव के संतानरूप हो। हम लोग आपसे रक्षित होकर और निष्पाप होकर संयुक्त रूप से रहें।[ऋग्वेद 5.65.5]
Let us the Ritviz, qualify for protection from Mitr Dev who removes pain-sorrow. We should be like the progeny of Varun Dev. On being sinless & protected by you, let us live together.
युवं मित्रेमं जनं यतथः सं च नयथः।
मा मघोनः परि ख्यतं मो अस्माकमृषीणां गोपीथे न उरुष्यतम्॥
हे मित्र और वरुण देव! आप दोनों की हम प्रार्थना करते हैं। आप दोनों हमारे निकट आगमन करें। आकर समस्त अभिलषित वस्तु प्राप्त करें। हम अन्न युक्त हैं। हमारा परित्याग न करें। ऋषियों के अर्थात् हमारे पुत्रों का परित्याग न करें। सोमदेव यज्ञादि कार्य में हमारी रक्षा करें।[ऋग्वेद 5.65.6]
परित्याग :: पूर्णतः छोड़ देना, परित्यजन, आत्मसमर्पण, अधिकार त्याग, इंकार, अपदस्थ होना; abandonment, reject.
Hey Mitr & Varun Dev! We worship both of you. Both of you should invoke before us. Come and get the offerings-oblations. We are blessed with food grains. Do not abandon-reject us. Let Som Dev protect us in the virtuous deeds like Yagy.(04.08.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (66) :: ऋषि :- रातहव्य आत्रेय, देवता :- मित्र, वरुण, छन्द :- अनुष्टुप्।
आ चिकितान सुक्रतू देवौ मर्त रिशादसा।
वरुणाय ऋतपेशसे दधीत प्रयसे महे॥
हे स्तुति विज्ञाता मनुष्य! आप शोभन कर्म को करने वाले और शत्रुओं के हिंसक दोनों देवताओं का आह्वान करें। उदक स्वरूप, हविर्लक्षण, अन्नवान और पूजनीय वरुण देव को हव्य प्रदान करें।[ऋग्वेद 5.66.1]
विज्ञाता :: जिसे जानकारी हो, जानकार, ज्ञाता, भिज्ञ, अभिज्ञ, वाकिफ, वाक़िफ़, बाखबर, बाख़बर; aware, acknowledged.
Hey humans aware of sacred hymns! Invoke both deities slayer of the enemy and performers of virtuous deeds. Grant-provide offerings-oblations to Varun Dev who is in like the water, possessor of food grains and honourable-revered.
ता हि क्षत्रम विह्रुतं सम्यगसुर्य १ माशाते।
अध व्रतेव मानुषं स्व १ र्ण धायि दर्शतम्॥
आप दोनों का बल अहिंसनीय और असुर के लिए विनाशक है अर्थात् आप दोनों महान् बल वाले है। सूर्यदेव जिस प्रकार अन्तरिक्ष में दृश्यमान होते हैं, उसी प्रकार मनुष्यों के बीच में आप दोनों का दर्शनीय बल यज्ञ में स्थापित होता है।[ऋग्वेद 5.66.2]
Might of both of you is non violent and destroyer of demons. The way Sury Dev-Sun is visible in the sky your visible impact-might is observed in the Yagy amongest the humans.
ता वामेषे रथानामुर्वीं गव्यूतिमेषाम्।
रातहव्यस्य सुष्टुतिं दधृक्स्तोमैर्मनामहे॥
हे मित्र और वरुण देव! आप दोनों हव्य देने वाले की प्रकृष्ट प्रार्थना से प्रार्थित होते हैं और आवाहित होने पर अत्यन्त बड़े-बड़े मार्गों से भी गमन करते हैं।[ऋग्वेद 5.66.3]
Hey Mitr & Varun Dev! You both are worshiped by the prayers of the offerings-oblation providers and travel through long distances-roads on being invoked.
अधा हि काव्या युवं दक्षस्य पूर्भिरद्भुता।
नि केतुना जनानां चितेथे पूतदक्षसा॥
हे स्तुति योग्य और हे शुद्ध बल वाले देवद्वय! हम प्रवृद्धमान की पूरक प्रार्थना से आप दोनों प्रशंसित होते हैं। आप दोनों अनुकूल मन से याजक गणों के स्तोत्र को जानें।[ऋग्वेद 5.66.4]
प्रवृद्ध :: अतिशय वृद्धि को प्राप्त, प्रौढ़; grown up.
Hey worshipable, possessing pure might, duo demigods! You become happy with our growing prayers and honoured. Recognise the prayers of the Ritviz favourably.
तदृतं पृथिवि बृहच्छ्रव एष ऋषीणाम्।
ज्रयसानावरं पृथ्वति क्षरन्ति यामभिः॥
हे पृथिवी देवी! हम ऋषियों के प्रयोजन को सिद्ध करने के लिए आपके ऊपर प्रभूत जल अवस्थित है। गमनशील देवद्वय निज गतिविधि द्वारा अति प्रचुर परिमाण में जलवर्षा करते हैं।[ऋग्वेद 5.66.5]
Hey Prathvi Devi! We store-accumulate sufficient water over you for the sake of the Rishi Gan. Dynamic duo demigods, due to their own movements lead to rain showers in a high quantum.
आ यद्वामीयचक्षसा मित्र वयं च सूरयः।
व्यचिष्ठे बहुपाय्ये यतेमहि स्वराज्ये॥
हे दूरदर्शी मित्र और वरुण देव! हम और स्तोता लोग आप दोनों का आह्वान करते हैं। जिससे हम आपके सुविस्तीर्ण और बहुतों द्वारा संरक्षित राज्य में आ-जा सकें।[ऋग्वेद 5.66.6]
Hey far sighted Mitr & Varun Dev! We along with the Stotas invoke you, so that we can visit, come & go to your broad state protected by many.(04.08.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (67) :: ऋषि :- यजत आत्रेय, देवता :- मित्र, वरुण, छन्द :- अनुष्टुप्।
बळित्था देव निष्कृतमादित्या यजतं बृहत्।
वरुण मित्रार्यमन्वर्षिष्ठं क्षत्रमाशाथे॥
हे द्युतिमान् अदिति पुत्र मित्र, वरुण और अर्यमा देव! आप निश्चित रूप से अपराजेय, पूजनीय और अत्यन्त महान बल धारित करते हैं।[ऋग्वेद 5.67.1]
Hey radiant sons of Aditi Mitr, Varun & Aryma! You are definitely-certainly undefeatable, revered, worshipable and possess extremely great might.
आ यद्योनिं हिरण्ययं वरुण मित्र सदथः।
धर्तारा चर्षणीनां यन्तं सुम्नं रिशादसा॥
हे मनुष्यों के रक्षक तथा शत्रु संहारक, मित्र और वरुणदेव! जब आप लोग आनन्दजनक यज्ञभूमि में आगमन करते हैं, तब आप लोग हमें सुख प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 5.67.2]
Hey protectors of humans and destructors of the enemy, Mitr & Varun Dev! You provide pleasure-comforts to us when you arrive at the Yagy Bhumi-site.
विश्वे हि विश्ववेदसो वरुणो मित्रो अर्यमा।
व्रता पदेव सश्चिरे पान्ति मर्त्यं रिषः॥
सर्वविद् मित्र, वरुण, अर्यमा अपने-अपने स्थान के अनुरूप हमारे यज्ञ में सुशोभित होते हैं और हिंसकों से मनुष्यों की रक्षा करते हैं।[ऋग्वेद 5.67.3]
Enlightened-aware of everything Mitr, Varun & Aryma occupy their seats as per their designation-title in our Yagy and protect the humans from the violent people.
ते हि सत्या ऋतस्पृश ऋतावानो जनेजने।
सुनीथासः सुदानवो ऽ होश्चिदुरुचक्रयः॥
वे सत्यदर्शी, जलवर्षी और यज्ञ रक्षक हैं। वे प्रत्येक याजकगण को सत्पथ प्रदर्शित करते हैं और प्रचुर दान करते हैं। वे महानुभाव वरुणादि पापी स्तोताओं को भी प्रभूत धन प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 5.67.4]
They are truthful, rain showering and protectors of Yagy. They direct everyone to the path of truth and make donations-charity. The great deities Varun etc., give lots of wealth to the sinners as well.
को नु वां मित्रास्तुतो वरुणो वा तनूनाम्।
तत्सु वामेषते मतिरत्रिभ्य एषते मतिः॥
हे मित्र और वरुण देव! आप दोनों के बीच में सभी के द्वारा स्तुतियों से कौन अस्तूयमान है? अर्थात् आप दोनों ही स्तुतियोग्य हैं। हम लोग अल्पबुद्धि हैं। हम लोग आपका स्तवन करते है। अत्रि गोत्रज लोग आपका स्तवन करते हैं।[ऋग्वेद 5.67.5]
Hey Mitr & Varun Dev! Both of you are revered-honourable. We have little intellect. We worship-pray you. Descents of Atri Rishi worship-honour you.(05.08.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (68) :: ऋषि :- यजत आत्रेय, देवता :- मित्र, वरुण, छन्द :- गायत्री।
प्र वो मित्राय गायत वरुणाय विपा गिरा।
महिक्षत्रावृतं बृहत्॥
हे हमारे ऋत्विकों! आप लोग उच्च स्वर से मित्र और वरुण देव का भली-भाँति से स्तवन करें। हे प्रभूत बलशाली मित्र और वरुण देव! आप दोनों इस महायज्ञ में पधारें।[ऋग्वेद 5.68.1]
Hey our Ritvizs! Recite prayers devoted to Mitr & Varun Dev in loud voice. Hey abundantly powerful Mitr & Varun Dev! Both of you join this Yagy.
सम्राजा या घृतयोनी मित्रश्चोभा वरुणश्च।
देवा देवेषु प्रशस्ता॥
जो मित्र और वरुण देव दोनों ही परस्परापेक्षा सभी के स्वामी, जल के उत्पादक, द्युतिमान् और देवों के बीच में अतिशय स्तुत्य हैं, हे ऋत्विजों! आप लोग उन दोनों की प्रार्थना करें।[ऋग्वेद 5.68.2]
Mitr & Varun Dev who are the lords of of all, producer of water, radiant and esteemed amongest the demigods-deities. Hey Ritvizs! Worship both of them.
ता नः शक्तं पार्थिवस्य महो रायो दिव्यस्य। महि वां क्षत्रं देवेषु॥
वे दोनों देव हम लोगों को पार्थिव धन तथा दिव्य धन दोनों ही देने में समर्थ हैं। हे मित्र और वरुण देव! आप दोनों का पूजनीय बल देवों के बीच में प्रसिद्ध है। हम लोग उसका स्तवन करते हैं।[ऋग्वेद 5.68.3]
Both of these demigods are capable of granting both perishable & divine wealth. Hey Mitr & Varun Dev! Your worshipable might is famous amongest the demigods-deities. We recite prayers for them.
ऋतमृतेन सपन्तेषिरं दक्षमाशाते। अगुहा देवौ वर्धेते॥
उदक द्वारा यज्ञ का स्पर्शन करके वे दोनों देव अन्वेषणकारी प्रबुद्ध यजमान को अथवा हव्य को व्याप्त करते हैं। हे द्रोह रहित मित्रा-वरुण देव! आप दोनों प्रबुद्ध होते हैं।[ऋग्वेद 5.68.4]
स्पर्शन :: छूने की किया, स्पर्श करना, दान देना, संबंध; touching, donating.
द्रोह :: द्वेष, डाह, दुष्ट भाव, बदख़्वाहता, नमकहरामी, बेवफ़ाई, राज-द्रोहिता, दुष्टता, हानिकरता, नुक़सान देहता, कपट; treachery, disloyalty, malignancy, disloyalty, malevolence.
Both demigods touch the water in the Yagy-shower rains and favour the zealous worshippers. Hey malevolence free Mitra-Varun! Both of you may prosper.
वृष्टिद्यावा रीत्यापेषस्पती दानुमत्याः। बृहन्तं गर्तमाशाते॥
जिन दोनों के द्वारा अन्तरिक्ष वर्षणकारी होता है, जो दोनों अभिमत फल के प्रापक हैं, वृष्टि प्रद होने से जो अन्न के अधिपति हैं और जो दाता के प्रति अनुकूल हैं, वे दोनों महानुभाव यज्ञ के लिए महान् रथ पर आरूढ़ होते हैं।[ऋग्वेद 5.68.5]
The duo due to whom the sky become ready for rains, grants required rewards-accomplish desires, for causing rains they are the lords of food grains, favourable to the donors, ride the great charoite for the Yagy.(05.08.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (69) :: ऋषि :- उरुचक्रियात्रेय, देवता :- मित्र, वरुण, छन्द :- त्रिष्टुप्।
त्री रोचना वरुण त्रीरुत द्यून्त्रीणि मित्र धारयथो रजांसि।
वावृधानावमतिं क्षत्रियस्यानु व्रतं रक्षमाणावजुर्यम्॥
हे मित्र, हे वरुण देव! आप दोनों रोचमान तीन द्युलोकों को धारित करते हैं, तीन अन्तरिक्ष लोकों को धारित करते हैं और भूलोकों को धारित करते हैं। आप दोनों क्षत्रिय याजक गण के अथवा इन्द्र देव के रूप और कर्म की अविरत रक्षा करते हैं।[ऋग्वेद 5.69.1]
Hey Mitr & Varun Dev! Both of you support the radiant-shinning three heavens, three abodes in the space and the earths. You keep on protecting either the Kshatriy Ritviz's or Indr Dev's forms & endeavours.
इरावतीर्वरुण धेनवो वां मधुमद्वां सिन्धवो मित्र दुह्रे।
त्रयस्तस्थुर्वृषभासस्तिसृणां धिषणानां रेतोधा वि द्युमन्तः॥
हे मित्र और वरुण देव! आप दोनों की आज्ञा से गौएँ दुग्धवती होती हैं। स्पन्दनशील मेघ वा नदियाँ सुमधुर जल प्रदान करती हैं। आप दोनों के अनुग्रह से जलवर्षक मौर उदक धारक तथा द्युतिमान अग्रिदेव, वायुदेव और सूर्यदेव नामक तीन देव (पृथिवी, अन्तरिक्ष तथा द्युलोक) के अधिपति रूप में स्थित हैं।[ऋग्वेद 5.69.2]
Hey Mitr & Varun Dev! Cows yield milk, pulsating clouds and the river yield sweet water by virtue of your command, orders-directives. Due to your obligation the rains shower and the radiant Agni Dev, Vayu Dev and Sury Dev are established as the lords of earth, sky-space and the heavens.
प्रातर्देवीमदितिं जोहवीमि मध्यन्दिन उदिता सूर्यस्य।
राये मित्रावरुण सर्वतातेले तोकाय तनयायशं योः॥
प्रातः काल में और सूर्य के समृद्धि काल में अर्थात् माध्यन्दिन सवन में हम ऋषि देवों की द्युतिमति जननी अदिति का आह्वान करते हैं। हे मित्र और वरुण देव! हम धन, पुत्र, पौत्र, अरिष्ट शान्ति और सुख के लिए आप दोनों का यज्ञ में स्तवन करते हैं।[ऋग्वेद 5.69.3]
अरिष्ट :: कष्ट, क्लेश, आपत्ति, विपत्ति; ill-fated.
In the morning and period of Sun's progress i.e., mid day we Rishis invoke the radiant mother of demigods-deities. Hey Mitr & Varun Dev! We worship both of you in the Yagy with the desire of sons, grandsons, calming of bad luck, pleasures-comforts.
या धर्तारा रजसो रोचनस्योतादित्या दिव्या पार्थिवस्य।
न वां देवा अमृता आ मिनन्ति व्रतानि मित्रावरुणा ध्रुवाणि॥
हे द्युलोकोत्पन्न अदिति पुत्र द्वय! आप दोनों द्युलोक तथा भूलोक के धारणकर्ता हैं। हम दोनों आपका स्तवन करते हैं। हे मित्र और वरुण देव! आपके कार्य स्थिर हैं, उन कार्यों की हिंसा इन्द्रादि अमर देवगण भी नहीं कर सकते हैं।[ऋग्वेद 5.69.4]
Hey sons of Aditi born in the heaven, son duo! You support the heavens and the earth. We worship recite prayers in your honour. Hey Mitr & Varun Dev! Your endeavours are fixed and even Indr Dev and the immortal demigods-deities can not disturb-violate them.(05.08.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (70) :: ऋषि :- उरुचक्रियात्रेय, देवता :- मित्र, वरुण, छन्द :- गायत्री।
पुरूरुणा चिद्ध्यस्त्यवो नूनं वां वरुण। मित्र वंसि वां सुमतिम्॥
हे मित्र और वरुण देव! आप दोनों का रक्षण कार्य निश्चय ही अत्यन्त दीर्घतर है। हम आप दोनों की अनुग्रह बुद्धि का सम्भजन करें।[ऋग्वेद 5.70.1]
Hey Mitr & Varun Dev! Let your endeavours of protection prolong. Let us be assured by your obligations.
ता वां सम्यगद्गुह्वाणेषमश्याम धायसे। वयं ते रुद्रा स्याम॥
हे मित्र और वरुण देव! ईर्ष्या अथवा द्वेष न करने वाले आप दोनों की हम भली-भाँति प्रार्थना करते हैं। हमें आपकी मित्रता का लाभ प्राप्त होते हुए, अपार धन की प्राप्ति हो।[ऋग्वेद 5.70.2]
Hey Mitr & Varun Dev! We worship you for you do not have either envy or malice-hatred. Let us gain a lot of wealth due to your friendship.
पातं नो रुद्रा पायुभिरुत त्रायेथां सुत्रात्रा। तुर्याम दस्यून्तनूभिः॥
हे रुद्ररूप देव द्वय! आप दोनों रक्षण-साधनों से हमारी रक्षा करें। शोभन त्राण द्वारा पालन करें, अनिष्ट का निराकरण करें और अभिमत फल प्राप्त हों। हम अपने सामर्थ्य से शत्रुओं को पराजित कर सकें।[ऋग्वेद 5.70.3]
Hey deities having-possessing the form of Rudr Dev! Protect us through various means. Nourish-nurture us, eliminate the evil-forbidden and accomplish our desires. Let us become capable of defeating the enemy ourselves.
मा कस्याद्भुतक्रतू यक्षं भुजेमा तनूभिः। मा शेषसा मा तनसा॥
हे आश्चर्यजनक कर्म करने वाले मित्र और वरुण देव! हम अपने शरीर द्वारा किसी के पूजित (श्रेष्ठ) धन का भी उपभोग नहीं करते। हम आपके अनुग्रह से समृद्ध हैं। किसी के धन से शरीर पोषण भी नहीं करते। पुत्र-पौत्रों के साथ भी हम दूसरे के धन का उपभोग नहीं करते। हमारे कुल में कोई भी दूसरे के धन का उपभोग नहीं करता।[ऋग्वेद 5.70.4]
Hey Mitr & Varun Dev performing amazing deeds! We do not utilise other's wealth. We are rich by virtue of your blessings-obligations. We do not nourish our body with other's money. We do not use other's money with our sons & grandsons. None in our clan uses other's money.(06.08.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (71) :: ऋषि :- बाहुवृक्त आत्रेय, देवता :- मित्र, वरुण, छन्द :- गायत्री।
आ नो गन्तं रिशादसा वरुण मित्र बर्हणा। उपेमं चारुमध्वरम्॥
हे मित्र, हे वरुण देव! आप दोनों शत्रुओं के प्रेरक और हन्ता है। आप दोनों हमारे इस हिंसा वर्जित यज्ञ में आगमन करें।[ऋग्वेद 5.71.1]
प्रेरक :: संपदी, निष्पादी, सहायक, कारणभूत, उपकारी, कार्यान्वित करने वाला, क्रियाकारक, उत्तेजित करने वाला, उकसाने वाला; inciter, motivational, effector, conducive, actuator.
Hey Mitr & Varun Dev! You are the inciter & slayers of the enemy. Join us in this Yagy where no violence will occur.
विश्वस्य हि प्रचेतसा वरुण मित्र राजथः। ईशाना पिप्यतं धियः॥
हे प्रकृष्ट ज्ञान युक्त मित्र और वरुण देव! आप समस्त संसार के प्रशासक हैं और सभी पर अपना प्रभुत्व स्थापित करने वाले हैं। आप हमारी अभिलषित बुद्धि को तृप्ति प्रदान करें।[ऋग्वेद 5.71.2]
प्रभुत्व :: प्रधानता, अधिकार, प्राबल्य, शासन, अधिकार, बोलबाला, निर्दयता, अधिराज्य, राज्य, उपनिवेश; dominance, domination, dominion, ascendancy.
अभिलषित :: पोषित, दुलारा हुआ, इच्छित; desired, cherished, welcome.
Hey enlightened Mitr & Varun Dev! You are the administrator of the universe and establish your dominance over every one. Grant satisfaction to our cherished desires.
उप नः सुतमा गतं वरुण मित्र दाशुषः। अस्य सोमस्य पीतये॥
हे मित्र, हे वरुण देव! आप दोनों हमारे अभिषुत सोमरस के लिए आगमन करें। हम हवि देने वाले हैं। आप हमारे इस सोमरस को पीने के लिए यहाँ पधारें।[ऋग्वेद 5.71.3]
Hey Mitr & Varun Dev! Both of you come here to drink Somras extracted by us. We make offerings-oblations to you.(06.08.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (72) :: ऋषि :- बाहुवृक्त आत्रेय, देवता :- मित्र, वरुण, छन्द :- उष्णिक्।
आ मित्रे वरुणे वयं गीर्भिर्जुहुमो अत्रिवत्।
नि बर्हिषि सदतं सोमपीतये॥
हमारे गोत्र प्रवर्तक अत्रि के तुल्य लोग मन्त्र द्वारा आप दोनों (मित्र और वरुण देव) का आह्वान करते हैं। इसलिए हे मित्रा-वरुण! सोमरस के पान के लिए कुश के ऊपर अधिष्ठित होवें।[ऋग्वेद 5.72.1]
Hey Mitr & Varun Dev! People comparable to our Gotr-clan initiator Atri Rishi, invite you for drinking Somras. Come and be seated over the Kush Mat.
व्रतेन स्थो ध्रुवक्षेमा धर्मणा यातयज्जना।
नि बर्हिषि सदतं सोमपीतये॥
हे मित्र और वरुण देव! जगद्धारक कर्म के द्वारा आप दोनों स्थान च्युत नहीं होते। ऋत्विक् लोग आप दोनों को यज्ञ प्रदान करते हैं। इसलिए मित्रा-वरुण सोमरस के पान के लिए कुश के ऊपर उपवेशन करें।[ऋग्वेद 5.72.2]
उद्धारक :: रक्षक, बचानेवाला, तारक; saviour.
Hey Mitr & Varun Dev! You maintain your position-dignity by virtue of the endeavours as a saviour of the world. Ritviz provide you the share of the Yagy. Hence, come and be seated over the Kush Mat for drinking Somras.
मित्रश्च नो वरुणश्च जुषेतां यज्ञमिष्टये।
नि बर्हिषि सदतां सोमपीतये॥
हे मित्र और वरुण देव! आप दोनों हमारे यज्ञ को प्रसन्नता पूर्वक ग्रहण करें और पधारकर सोमरस के पान के लिए कुश के ऊपर उपवेशन करें।[ऋग्वेद 5.72.3]
Hey Mitr & Varun Dev! Happily accept our Yagy, come and sit over the Kush Mat and sip Somras.(07.08.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (73) :: ऋषि :- पौर आत्रेय, देवता :- अश्विनी कुमार, छन्द :- अनुष्टुप्।
यदद्य स्थः परावति यदर्वावत्यश्विना।
यद्वा पुरू पुरुभुजा यदन्तरिक्ष आ गतम्॥
हे अगणित यज्ञ में भोजन करने वाले अश्विनी कुमारों! आप दोनों दूरस्थ देश में हों या निकटवर्ती बहुत प्रदेशों में हों अथवा अन्तरिक्ष में हों, आप जहाँ भी हों, तथापि उन सब स्थानों से यहाँ आगमन करें।[ऋग्वेद 5.73.1]
DINE :: दोपहर का खाना खाना, मध्याह्न का भोजन करना, मध्याह्न का भोज देना; lunch.
Hey Ashwani Kumars! You dine in unaccounted Yagys. Where ever you are, far or near, space come to this place.
इह त्या पुरुभूतमा पुरू दंसांसि बिभ्रता।
वरस्या याम्यध्रिगू हुवे तुविष्टमा भुजे॥
हे अश्विनी कुमारों! आप दोनों बहुत याजकगणों के उत्साह दाता, विविध कर्मों के धारणकर्ता, वरणीय अप्रतिहत गति और अनिरुद्ध कर्मा हैं। इस यज्ञ में हम दोनों के समीप आप उपस्थित होवें। प्रभूततम भोग और रक्षा के लिए हम आप दोनों का आह्वान करते हैं।[ऋग्वेद 5.73.2]
अनिरुद्ध :: असीम, अजेय, विजयी, निर्विरोध; unlimited, boundless, unstoppable, victorious, unopposed, an incarnation of Bhagwan Shri Hari Vishnu, uncontrolled, unrestrained, without obstacles, name of grandson of Bhagwan Shri Krashn.
अप्रतिहत :: जिसे कोई रोक न सके, निर्बाध, अप्रभावित, अंकुश; continuous.
प्रभुतम :: जो हो चुका हुआ हो, निकला हुआ, उत्पन्न, उद्गत, बहुत अधिक, प्रचुर, पूर्ण, पूरा, पक्व; पका हुआ, उन्नत; sovereign.
Hey Ashwani Kumars! Both of you encourage the Ritviz, preform several-various boundless endeavours, possess continuous speed. We invite you for our protection and sovereignty.
ईर्मान्यद्वपुषे वपुश्चक्रं रथस्य येमथुः।
पर्यन्या नाहुषा युगा मह्ना रजांसि दीयथः॥
हे अश्विनी कुमारों! सूर्य देव की मूर्ति को प्रदीप्त करने के लिए आप दोनों ने रथ के एक दीप्तिमान चक्र को नियमित किया। अपनी सामर्थ्य से मनुष्यों के अहोरात्रादि काल को निरूपित करने के लिए अन्य चक्र द्वारा (तीनों लोकों में परिभ्रमण करते हैं।[ऋग्वेद 5.73.3]
Hey Ashwani Kumars! You regulated a wheel of the charoite of Bhagwan Sury to make him shine. You travel in the three abodes to regulate the two segments of the day by virtue of your power-might.
तदू षु वामेना कृतं विश्वा यद्वामनु ष्टवे।
नाना जातावरेपसा समस्मे बन्धुमेयथुः॥
हे व्यापक देवद्वय! हम जिस स्तोत्र द्वारा आप दोनों की प्रार्थना करते हैं, वह आप दोनों का स्तोत्र इस पुरवासी के द्वारा सुसम्पादित हो। हे पृथक उत्पन्न तथा निष्पाप देवद्वय! आप दोनों हमें प्रचुर परिमाण में अन्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 5.73.4]
Hey vast duo deities! The Strotr with which we worship you should be properly composes by the inhabitants of this abode. Hey born separately, deity duo! Both of you grant us food grains in sufficient quantity.
आ यद्वां सूर्या रथं तिष्ठद्रघुष्यदं सदा।
परि वामरुषा वयो घृणा वरन्त आतपः॥
हे अश्विनी कुमारों! जब आप दोनों की पत्नी सूर्या आप दोनों के सर्वदा शीघ्रगामी रथ पर आरोहण करती हैं, तब आरोचमान और दीप्त आतप-दीप्तियाँ आप दोनों के चतुर्दिक् विस्तृत होती हैं।[ऋग्वेद 5.73.5]
Hey Ashwani Kumars! When your wives Surya, ride your always quickly moving charoite, then bright-waving, resplendent rays of light encompass you.
युवोरत्रिश्चिकेतति नरा सुम्नेन चेतसा।
घर्मं यद्वामरेपसं नासत्यास्ना भुरण्यति॥
हे नेता अश्विनी कुमारों! हम लोगों के पिता अत्रि ने आप दोनों का स्तवन करके जब अग्नि देव के उत्ताप को सुखप्रद समझा, तब उन्होंने अग्नि दाहोपशम रूप सुख हेतु कृतज्ञ चित्त से आप दोनों के उपकार को स्मरण किया।[ऋग्वेद 5.73.6]
उत्ताप :: अत्यधिक गर्मी, दुःख; candescence, heat.
Hey leaders Ashwani Kumars! After worshiping you, when our father Atri Rishi found the candescence-heat and burning power of Agni Dev comfortable; he felt obliged and remembered both of you for the help.
उग्रो वां ककुहो ययिः शृण्वे यामेषु संतनिः।
यद्वां दंसोभिरश्विनात्रिर्नराववर्तति॥
हे नेता अश्विनी कुमारों! आप दोनों का दृढ़, उन्नत, गमनशील, सतत् विघूर्णित रथ यज्ञ में प्रसिद्ध है। आप दोनों के ही कार्य द्वारा हमारे पिता अत्रि आवर्तमान होते हैं अर्थात् आप दोनों के कार्य द्वारा उन्होंने परित्राण पाया।[ऋग्वेद 5.73.7]
आवर्तमान :: गोलाकार घूमना, चक्कर काटना; going round, revolving, advancing, proceeding.
परित्राण :: पूर्ण रक्षा, पूरा बचाव; complete protection, avoidance.
Hey Ashwani Kumars, the leaders! Your charoite is famous for its strength, height, motion-rotation; in the Yagy. Our father Atri Rishi got protection-rescued by virtue of your help.
मध्व ऊ षु मधूयुवा रुद्रा सिषक्ति पिप्युषी।
यत्समुद्राति पर्षथः पक्वाः पृक्षो भरन्त वाम्॥
हे मधुर सोमरस के मिश्रयिता देवों! हम लोगों की पुष्टिकर प्रार्थना आप लोगों के ऊपर मधुर रस सिंचन करती है। आप लोग अन्तरिक्ष की सीमा का अतिक्रमण करते हैं और पके हुए हविष्यान्नों से परिपूर्ण होते है।[ऋग्वेद 5.73.8]
मिश्रयिता :: एक में मिलाया हुआ, मिश्रण किया हुआ, मिला हुआ; mixers.
Hey mixers of sweet Somras, deities! Our nourishing prayers showers sweet sap over you. You cross the boundaries of the space-sky and get-obtain ripe-cooked offerings-oblations.
सत्यमिद्वा उ अश्विना युवामाहुर्मयोभुवा।
ता यामन्यामहूतमा यामन्ना मृळयत्तमा॥
हे अश्विनी कुमारों! पण्डित लोग आप दोनों को जो सुखदाता कहते हैं, वह निश्चय ही मधुर रस सिंचन करती है। आप लोग अन्तरिक्ष की सीमा का अतिक्रमण करते हैं और पके हुए हविष्यान्नों से परिपूर्ण होते है।[ऋग्वेद 5.73.9]
Hey Ashwani Kumars! The scholars-Pandits call you the providers of comforts-pleasure, since you shower sweet saps. You cross the limits of the space and avail cooked offerings-oblations.
इमा ब्रह्माणि वर्धनाश्विभ्यां सन्तु शंतमा।
या तक्षाम रथाँइवावोचाम बृहन्नमः॥
शिल्पी जिस प्रकार से रथों को प्रस्तुत करता है, उसी प्रकार हम लोग अश्विनी कुमारों को संवर्द्धित करने के लिए प्रार्थना प्रस्तुत करते हैं। वे स्तुतियाँ उन्हें प्रीतिकर हों।[ऋग्वेद 5.73.10]
The way a craftsman presents charoites, we present-compose prayers for the growth of Ashwani Kumars. Let our prayers be likes-admired by them.(08.08.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (74) :: ऋषि :- पौर आत्रेय, देवता :- अश्विनी कुमार, छन्द :- अनुष्टुप्।
कूष्ठो देवावश्विनाद्या दिवो मनावसू।
तच्छ्रवथो वृषण्वसू अत्रिर्वामा विवासति॥
हे स्तुति धन, धन वर्षणकारी देवद्वय! आज इस यज्ञ दिन में आप दोनों द्युलोक से आगमन करके भूमि पर स्थित हों और उस स्तोत्र को श्रवण करें, जिसे आपके उद्देश्य से अत्रि सर्वदा पाठ करते हैं।[ऋग्वेद 5.74.1]
Hey worship deserving, wealth showering duo deities! Come and join this Yagy from the heaven to the earth and listen to the Strotr always recited by Atri Rishi for you.
कुह त्या कुह नु श्रुता दिवि देवा नासत्या।
कस्मिन्ना यतथो जने को वां नदीनां सचा॥
वे दीप्तिमान् नासत्य द्वय कहाँ हैं? आज इस यज्ञ दिन में वे द्युलोक के किस स्थान में श्रुत हो रहे हैं? हे देवद्वय! आप दोनों किस यजमान के निकट आगमन करते हैं? कौन स्तोता आप दोनों की स्तुतियाँ का सहायक है?[ऋग्वेद 5.74.2]
नासत्य दो आश्विनों में से एक हैं। वह स्वास्थ के देवता हैं। मानव शरीर की देवी और शिव की पुत्री ज्योति नासत्य की पत्नी हैं। स्वास्थ्य लाभ के देवता सत्यवीर नासत्य के पुत्र हैं। दरसा दूसरे आश्विन हैं।
Hey radiant Nasaty duo! Where in the heavens are you present on the day of this Yagy and being heard? Hey duo deities! Which Ritviz you visit? Which Stota is associated in your worship-prayers?
कं याथः कं ह गच्छथः कमच्छा युञ्जाथे रथम्।
कस्य ब्रह्माणि रण्यथो वयं वामुश्मसीष्टये॥
हे अश्विनी कुमारों! आप दोनों किस याजकगण या यज्ञ के प्रति गमन करते हैं? जाकर किसके साथ मिलित होते हैं? किसके अभिमुखवर्ती होने के लिए रथ में अश्व योजना करते हैं? किसके स्तोत्र आप दोनों को प्रसन्न करते हैं? हम लोग आप दोनों को पाने की कामना करते हैं।[ऋग्वेद 5.74.3]
Hey Ashwani Kumars! Which Ritviz or the Yagy you visit-proceed! With whom do to meet-mix? For whom do you deploy your horses in the charoite? Which Strotr does make you both happy-gratified? We desire to have-receive you.
पौरं चिद्ध्युदप्रुतं पौर पौराय जिन्वथः।
यदीं गृभीततातये सिंहमिव द्रुहस्पदे॥
हे पौर सम्बन्धी अश्विनी कुमारों! आप दोनों पौर के निकट पौर को अर्थात् वारिवाहक मेघ को प्रेरित करें। जङ्गल में व्याधगण जिस प्रकार से सिंह को ताड़ित करते हैं, उसी प्रकार यज्ञ कर्म में व्याप्त पौर के निकट आप दोनों इसे ताड़ित करें।[ऋग्वेद 5.74.4]
पौर :: पुर का, नगर संबंधी, पुर में उत्पन्न होने वाला, नगर, निवासी, नागरिक; civic.
Hey Ashwani Kumars related with the cities! Direct the rain clouds towards the cities-human habitation. The way a hunter strike the lion, you should strike the rain clouds around the Yagy sites to make them rain.
प्र च्यवानाज्जुजुरुषो वव्रिमत्कं न मुञ्चथः।
युवा यदी कृथः पुनरा काममृण्वे वध्वः॥
आप दोनों ने जराजीर्ण च्यवन ऋषि के हेय, पुरातन, कुरूप को कवच तुल्य विमोचित किया। जब आप दोनों ने उन्हें पुनः युवा किया, तब उन्होंने सुरूपा कामिनी के द्वारा वाञ्छित मूर्ति को पाया।[ऋग्वेद 5.74.5]
Both of you granted-converted the old, ugly body of Chayvan Rishi like a shield. When you made him young again, then the beautiful desirous woman got you.
अस्ति हि वामिह स्तोता स्मसि वां संदृशि श्रिये।
नू श्रुतं म आ गतमवोभिर्वाजिनीवसू॥
हे अश्विनी कुमारों! इस यज्ञ स्थल में आप दोनों के स्तोता विद्यमान हैं। हम लोग समृद्धि के लिए आप दोनों के दृष्टि पथ में अवस्थान करें। आज आप लोग हमारा आह्वान श्रवण करें। आप लोग अन्न रूप धन से धनवान् हैं। आप लोग रक्षा के साथ यहाँ पधारें।[ऋग्वेद 5.74.6]
Hey Ashwani Kumars! Your worshipers are present-waiting in this Yagy. For our prosperity come to us. Listen-respond to our prayers. You are rich in food grains. Come here for our safety.
को वामद्य पुरूणामा वन्वे मर्त्यानाम्।
को विप्रो विप्रवाहसा को यज्ञैर्वाजिनीवसू॥
हे अन्नरूप धनवान अश्विनी कुमारों! असंख्य मर्त्यो के बीच कौन व्यक्ति आज सर्वापेक्षा आप दोनों को अधिक प्रसन्न करता है? हे ज्ञानियों द्वारा वन्दित अश्विनी कुमार! कौन ज्ञानी व्यक्ति आप दोनों को सबसे अधिक प्रसन्न करता है अथवा कौन याजकगण यज्ञ द्वारा आप दोनों को तृप्त करता है।[ऋग्वेद 5.74.7]
Hey Ashwani Kumars, rich in food grains! Who amongest the mortals make you happy? Hey Ashwani Kumars worshiped by the enlightened which learned-scholar please-appease you? Which Ritviz satisfy-please you with Yagy?
आ वां रथो रथानां येष्ठो यात्वश्विना।
पुरू चिदस्मयुस्तिर आङ्गुषो मर्त्येष्वा॥
हे अश्विनी कुमारों! अन्य देवताओं के रथों में सर्वापेक्षा वेगगामी और असंख्य शत्रु संहारी एवं सम्पूर्ण मनुष्य याजकगणों द्वारा प्रार्थित आप दोनों का रथ हम लोगों की हितकामना करके इस स्थान में आगमन करे।[ऋग्वेद 5.74.8]
असंख्य :: बेशुमार; innumerable, myriad, uncountable.
Hey Ashwani Kumars! Let your charoite fastest amongest the charoites of the demigods-deities and slayer of innumerable enemies, worshiped by the Ritviz, arrive here for our welfare.
शमू षु वां मधूयुवास्माकमस्तु चर्कृतिः।
अर्वाचीना विचेतसा विभिः श्येनेव दीयतम्॥
हे मधुमान अश्विनी कुमारों! आप दोनों के लिए बार-बार सम्पादित स्तोत्र हम श्येन पक्षी के समान सभी जगह गमनशील अश्व पर आरूढ़ होकर हम लोगों के अभिमुख आगमन करें।[ऋग्वेद 5.74.9]
Hey possessor of honey friendly Ashwani Kumars! You should move like the Shyen-falcon, riding your charoite to us, to listen-respond to the Strotr recited by us repeatedly.
अश्विना यद्ध कर्हि चिच्छुश्रूयातमिमं हवम्।
वस्वीरू षु वां भुजः पृश्ञ्चन्ति सु वां पृचः॥
हे अश्विनी कुमारों! आप दोनों जिस किसी स्थान में अवस्थान करें, किन्तु हमारा यह आह्वान श्रवण करें। हम यज्ञ में आपके निमित्त उत्तम अन्नों को अच्छी प्रकार से मिलाकर हविरूप प्रशंसित भोज्य पदार्थ निवेदित करते हैं।[ऋग्वेद 5.74.10]
Hey Ashwani Kumars! Where ever you live, listen-respond to our invocation. We present appreciable eatables as offerings-oblations to you.(09.08.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (75) :: ऋषि :- अवस्यु आत्रेय, देवता :- अश्विनी कुमार, छन्द :- पंक्ति।
प्रति प्रियतमं रथं वृषणं वसुवाहनम्।
स्तोता वामश्विनावृषिः स्तोमेन प्रति भूषति माध्वी मम श्रुतं हवम्॥
हे अश्विनी कुमारों! आप दोनों के स्तुतिकारी अवस्यु ऋषि आप दोनों के फलवर्षणकारी और धनवाहक रथ को विभूषित करते हैं। हे मधुविद्या को जानने वाले, आप दोनों हमारा आह्वान श्रवण करें।[ऋग्वेद 5.75.1]
Hey Ashwani Kumars! Avasyu Rishi decorate your charoite which grants rewards-accomplish desires and carries wealth. Hey experts-scholars of Madhu Vidya, attend-listen (respond) to our invitation.
अत्यायातमश्विना तिरो विश्वा अहं सना।
दस्रा हिरण्यवर्तनी सुषुम्ना सिन्धुवाहसा माध्वी मम श्रुतं हवम्॥
हे अश्विनी कुमारों! आप दोनों सब याजकगणों का अतिक्रमण करके इस स्थान में आगमन करें, जिससे हम समस्त विरोधियों को पराजित करें। हे शत्रुसंहारक! सुवर्णमय रथारूढ़, प्रशस्त धनसम्पन्न, नदियों को वेग प्रवाहित करनेवालो एवं मधुविद्या विशारद अश्विनीकुमारों! आप दोनों हमारा आह्वान श्रवण करें।[ऋग्वेद 5.75.2]
Hey Ashwani Kumars! You both come to us, discarding all other Ritviz, so that we are able to defeat our opponents. Hey destroyer of the enemies, experts in Madhu Vidya! Riding the golden charoite, possessing a lot of wealth, maintain-regulate the flow of rivers, respond to our invitation-invocation.
आ नो रत्नानि बिभ्रतावश्विना गच्छतं युवम्।
रुद्रा हिरण्यवर्तनी जुषाणा वाजिनीवसू माध्वी मम श्रुतं हवम्॥
हे अश्विनी कुमारों! आप दोनों हमारे लिए रत्न लेकर आगमन करें। हे हिरण्य रथाधिरूढ़, स्तुति योग्य, अन्नरूप धन वालों, यज्ञ में अधिष्ठान करने वालों एवं मधुविद्या विशारद अश्विनी कुमारों! आप दोनों हमारा आह्वान श्रवण करें।[ऋग्वेद 5.75.3]
Hey Ashwani Kumars! Both of you come with jewels for us. Hey riders of golden charoite, worship-prayer deserving, deity of the Yagy, possessor of wealth in the form of food grains, experts in Madhu Vidya, Ashwani Kumars! Respond to our invocation.
RIDER :: सवार, घुड़सवार; plunger, cavalier, cavalryman, equestrian, horseman, cavalier, cavalryman.
सुष्टुभो वां वृषण्वसू रथे वाणीच्याहिता।
उत वां ककुहो मृगः पृक्षः कृणोति वापुषो माध्वी मम श्रुतं हवम्॥
हे धन वर्षणकारी अश्विनी कुमारों! आप दोनों के स्तोता का स्तोत्र आप दोनों के उद्देश्य से उच्चारित होता है। आप दोनों का प्रसिद्ध, मूर्तिमान याजकगण एकाग्र चित्त होकर आप दोनों को हव्य प्रदान करते हैं। हे मधुविद्या विशारद! आप दोनों हमारा आह्वान श्रवण करें।[ऋग्वेद 5.75.4]
Hey wealth showering Ashwani Kumars! Your Stota recite the Strotr for you. Your famous Ritviz make offerings for you with great concentration-attention, sitting erect like a statue. Hey experts of Madhu Vidya! Listen-respond to our invitation.
बोधिन्मनसा रथ्येषिरा हवनश्रुता।
विभिश्र्च्यवानमश्विना नि याथो अद्वयाविनं माध्वी मम श्रुतं हवम्॥
हे अश्विनी कुमारों! आप दोनों विज्ञ मन वाले, रथाधिरूढ़, द्रुतगामी एवं स्तोत्र श्रवण कर्ता है। आप दोनों शीघ्र ही अश्व पर आरोहण करके कपटता विहीन च्यवन ऋषि के निकट उपस्थित हुए। हे मधुविद्या विशारद! आप दोनों हमारा आह्वान श्रवण करें।[ऋग्वेद 5.75.5]
Hey Ashwani Kumars! You are enlightened-knowledgeable, rider of the charoite, fast moving and listen-attend to the Strotr. You quickly rode the horses and reached cunning less Chayvan Rishi. Hey experts of Madhu Vidya! Listen-respond to our invocation.
आ वां नरा मनोयुजोऽश्वासः प्रुषितप्सवः।
वयो वहन्तु पीतये सह सुम्नेभिरश्विना माध्वी मम श्रुतं हवम्॥
हे नेता अश्विनी कुमारों! आप दोनों के सुशिक्षित, द्रुतगामी और विचित्र मूर्ति अश्व सोमरस पान के लिए ऐश्वर्य के साथ इस स्थान में आप दोनों को हमारी ओर लायें। हे मधुविद्या विशारद! आप दोनों हमारा आह्वान श्रवण करें।[ऋग्वेद 5.75.6]
Hey leaders, Ashwani Kumars! Let your trained-skilled amazing horses bring you here for drinking Somras. Come to us with your grandeur. Hey experts of Madhu Vidya! Listen-respond to our invocation.
अश्विनावेह गच्छतं नासत्या मा वि वेनतम्।
तिरश्चिदर्यया परि वर्तिर्यातमदाभ्या माध्वी मम श्रुतं हवम्॥
हे अश्विनी कुमारों! आप दोनों इस स्थान में आगमन करें। हे नासत्यद्वय! आप दोनों प्रतिकूल न होना। हे अजेय प्रभु! आप दोनों प्रच्छन्न प्रदेश से हमारे यज्ञगृह में आगमन करें। हे मधुविद्या विशारद! आप दोनों हमारा आह्वान श्रवण करें।[ऋग्वेद 5.75.7]
अजेय :: जिसे जीता न जा सके; invincible, insurmountable.
प्रच्छन्न :: छिपाया हुआ, तिरोभूत, तिरोहित, गुम, अव्यक्त, गुप्त, सुप्त, निहित, अंतर्निहित; disguised, hidden, undisclosed, latent.
Hey Ashwani Kumars! Visit this place. Hey Nasaty duo! Do not go against us. Hey invincible Prabhu-Lord! Come to join our Yagy from an undisclosed place. Hey comprehensively knowing Madhu Vidya! Respond to our invitation.
अस्मिन्यज्ञे अदाभ्या जरितारं शुभस्पती।
अवस्युमश्विना युवं गृणन्तमुप भूषथो माध्वी मम श्रुतं हवम्॥
हे जल के अधिपति अजेय अश्विनी कुमारों! इस यज्ञ में आप दोनों स्तवकारी अवस्यु के लिए अनुग्रह प्रदर्शन करें। हे मधुविद्या विशारद! आप दोनों हमारा आह्वान श्रवण करें।[ऋग्वेद 5.75.8]
Hey invincible lord of water, Ashwani Kumars! Show respect-gratitude towards Avasyu Rishi. Hey experts in Madhu Vidya! respond to our invitation.
अभूदुषा रुशत्पशुराग्निरधाय्यृत्वियः।
अयोजि वां वृषण्वसू रथो दस्रावमर्त्यो माध्वी मम श्रुतं हवम्॥
उषा विकसित हुई। समुज्ज्वल किरण सम्पन्न अग्निदेव वेदी के ऊपर संस्थापित हुए। धन वर्षणकारी, शत्रु संहारक अश्विनी कुमारों! आपका अनश्वर रथ नियोजित किया गया है। हे मधुविद्या विशारद! आप दोनों हमारा आह्वान श्रवण करें।[ऋग्वेद 5.75.9]
The Usha-dawn has evolved & grown. Agni Dev with brilliant rays has been establish over the Yagy Vedi. Hey wealth showering, slayers of enemy Ashwani Kumars! Your indestructible charoite has been readied. Hey experts in Madhu Vidya! Both of you respond to our prayers. (10.08.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (76) :: ऋषि :- अत्रि भौम, देवता :- अश्विनी कुमार, छन्द :- त्रिष्टुप्।
आ भात्यग्निरुषसामनीकमुद्विप्राणां देवया वाचो अस्थुः।
अर्वाञ्चा नूनं रथ्येह यातं पीपिवांसमश्विना धर्ममच्छ॥
उषाकाल में प्रबुध्यमान अग्नि देव दीप्ति होते हैं। मेधावी स्तोताओं के देवाभिलाषी स्तोत्र उद्गीत होते हैं। हे रथाधिपति अश्विनी कुमारों! आप दोनों आज इस यज्ञ स्थान में अवतीर्ण होकर इस सोमरस पूर्ण समृद्ध यज्ञ में आगमन करें।[ऋग्वेद 5.76.1]
प्रबुद्ध :: चैतन्य, सचेत, जागा हुआ, जाग्रत, ज्ञानी, विद्वान, पंडित, जिसे यथार्थ का ज्ञान हो, जानकार; awake, learned, illuminated, enlightened.
AFFFULENT :: धनी, संपन्न, समृद्ध, प्रचुर; wealthy, blessed, large, colliquation, enormous, exuberant, no end of.
Enlightened Agni Dev shines during Usha-day break. Intelligent Stotas desirous of demigods-deity's invocation, recite Strotr. Hey lord of the charoite Ashwani Kumars! Both of you come to this affluent Yagy having Somras.
न संस्कृतं प्र मिमीतो गमिष्ठान्ति नूनमश्विनोपस्तुतेहे।
दिवाभिपित्वेऽवसागमिष्ठा प्रत्यवर्तिं दाशुषे शंभविष्ठा॥
हे अश्विनी कुमारों! आप दोनों संस्कृत यज्ञ की हिंसा न करें; किन्तु यज्ञ के समीप शीघ्र आगमन करके स्तुति के भाजन होवें। प्रातः काल में रक्षा के साथ आप दोनों आगमन करें, जिससे अन्नाभाव न हो। आकर हव्यदाता याजकगण को सुखी करें।[ऋग्वेद 5.76.2]
Hey Ashwani Kumars! Do not kill any one in this Yagy where scholars-enlightened are participating. Arrive in the morning for our protection, so that there is no scarcity of food grains. Come and please-comfort the Ritviz.
उता यातं सङ्गवे प्रातरह्नो मध्यन्दिन उदिता सूर्यस्य।
दिवा नक्तमवसा शंतमेन नेदानीं पीतिरश्विना ततान॥
आप दोनों रात्रि के शेष में, गोदोहन-काल में, प्रातः काल में, सूर्य जिस समय अत्यन्त प्रवृद्ध होते हैं अर्थात् अपराह्न काल में; सायाह्न में, रात्रि में अथवा जिस किसी समय में सुखकर रक्षा के साथ आगमन करें। अश्विनी कुमारों को छोड़कर दूसरे देव सोमरस के पान के लिए प्रवृत्त नहीं होते।[ऋग्वेद 5.76.3]
Come late mid night, early morning, morning, Sun at his peak, night or when you can come comfortably. None of the demigods-deities intend to drink Somras discarding Ashwani Kumars.
इदं हि वां प्रदिवि स्थानमोक इमे गृहा अश्विनेदं दुरोणम्।
आ नो दिवो बृहतः पर्वतादाद्भ्यो यातमिषमूर्जं वहन्ता॥
हे अश्विनी कुमारों! यह उत्तर वेदी आप दोनों का निवास योग्य प्राचीन स्थान है। वैसे तो समस्त घर और आलय आप दोनों के ही हैं। आप दोनों वारिपूर्ण मेघ द्वारा समाकीर्ण अन्तरिक्ष से अन्न और बल के साथ हम लोगों के निकट आगमन करें।[ऋग्वेद 5.76.4]
Hey Ashwani Kumars! This Uttar Vedi-Yagy site in the North, is your ancient place good enough-suitable for residing. In fact all houses and the temples belong to you. Come through the space having clouds full of rain water, with food grains and might.
समश्विनोरवसा नूतनेन मयोभुवा सुप्रणीती गमेम।
आ नो रयिं वहतमोत वीराना विश्वान्यमृता सौभगानि॥
हम सब अश्विनी कुमारों की श्रेष्ठ रक्षा तथा सुख दायक आगमन के साथ संगत हों। हे अमरण शील अश्विनी कुमारों! आप दोनों हमें धन, सन्तति और समस्त कल्याण प्रदान करें।[ऋग्वेद 5.76.5]
Let us all be associated of Ashwani Kumars with their excellent protection and comfortable-pleasure granting arrival. Hey immortal Ashwani Kumars! Both of you grant us wealth, progeny and all sorts of welfare-comforts.(11.08.2023)ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (77) :: ऋषि :- अत्रि भौम, देवता :- अश्विनी कुमार, छन्द :- त्रिष्टुप्।
प्रातर्यावाणा प्रथमा यजध्वं पुरा गृध्रादररुषः पिबातः।
प्रातर्हि यज्ञमश्विना दधाते प्रशंसन्ति कवयः पूर्वभाजः॥
हे ऋत्विजों! अश्विनी कुमार प्रातः काल में ही सब देवों से पहले ही उपस्थित होते हैं, आप सब उनका यजन करें। वे अभिकांक्षी और नहीं देने वाले राक्षस प्रभृति के पूर्व ही हव्य पान करते हैं। अश्विनी कुमार प्रातः काल में यज्ञ का संभजन करते हैं। पूर्वकालीन ऋषिगण प्रातः काल में ही उनकी प्रशंसा करते हैं।[ऋग्वेद 5.77.1]
अभिकांक्षी :: इच्छा करनेवाला; aspirant.
Hey Ritviz! Pray to Ashwani Kumars. They arrive prior to all demigods-deities. They are aspirant and drink offerings prior to the demon Prabhrti, who do not give any thing. Ashwani Kumars accept oblations in the morning. Ancient Rishis-sages worshiped them in the morning only.
प्रातर्यजध्वमश्विना हिनोत न सायमस्ति देवया अजुष्टम्।
उतान्यो अस्मद्यजते वि चाव: पूर्व: पूर्वी याजकगणो वनीयान्॥
हे ऋत्विकों! प्रात:काल में ही आप लोग अश्विनी कुमारों का पूजन कर उन्हें हव्य प्रदान करें। सायंकालीन हव्य देवों के निकट जाने वाला नहीं जाता। देवगण उसे स्वीकार नहीं करते, वह हव्य असेवनीय हो जाता है। हमसे अन्य जो कोई सोम द्वारा उनका यजन करता है और हव्य द्वारा उन्हें तृप्त करता है; वह व्यक्ति देवों का संभजनीय होता है।[ऋग्वेद 5.77.2]
Hey Ritviz! Worship Ashwani Kumars and make offerings to them in the morning. Oblations made in the evening do not reach the demigods-deities. Such oblations-offerings are not acceptable to demigods-deities and can not be used-consumed. Any one other than us, who worship them with Somras and satisfy them with oblations is acceptable-approved in the morning, only.
हिरण्यत्वङ्मधुवर्णो घृतस्नुः पृक्षो वहन्ना रथो वर्तते वाम्।
मनोजवा अश्विना वातरंहा येनातियाथो दुरितानि विश्वा॥
हे अश्विनी कुमारो! आप दोनों का हिरण्य द्वारा आच्छादित, मनोहर वर्ण, जल वर्षण करने वाला, मन के तुल्य वेग वाला, वायु के सदृश वेगपूर्ण और अन्न को धारित करने वाला रथ आगमन करता है। उस रथ के द्वारा आप दोनों सम्पूर्ण दुर्गम मार्गों का अतिक्रमण करते हैं।[ऋग्वेद 5.77.3]
Hey Ashwani Kumars! Your charoite which is gold plated, beautifully coloured, rain showering, with the speed of the mind, accelerated like air and possessing food grains arrives. You cross the tough terrains in that charoite.
यो भूयिष्ठं नासत्याभ्यां विवेष चनिष्ठं पित्वो ररते विभागे।
स तोकमस्य पीपरच्छमीभिरनूर्ध्वभासः सदमित्तुतुर्यात्॥
जो याजकगण हविर्विभाग होने वाले यज्ञ में अश्विनी कुमारों को विपुल अन्न या हव्य प्रदान करता है, वह याजकगण कर्म द्वारा अपने पुत्र का पालन करता है। जो अग्नि देव को उद्दीप्त नहीं करते, वह सर्वदा हिंसित होते हैं।[ऋग्वेद 5.77.4]
The Ritviz who make offering and food grains to Ashwani Kumars, nourish his son with efforts. Those who do not ignite fire are always harmed.
समश्विनोरवसा नूतनेन मयोभुवा सुप्रणीती गमेम।
आ नो रयिं वहतमोत वीराना विश्वान्यमृता सौभगानि॥
हम सब अश्विनी कुमारों की श्रेष्ठ रक्षा तथा सुख दायक आगमन के साथ संगत हों। हे अमरण शील देवद्वय! आप दोनों हमें धन, पुत्र और समस्त कल्याण प्रदान करें।[ऋग्वेद 5.77.5]
Let all of us be granted excellent and comfortable protection with the arrival of Ashwani Kumars. Hey immortal deity duo! Both of you grant us wealth, son and all sorts of amenities-welfare.(12.08.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (78) :: ऋषि :- सप्तवध्रि आत्रेय, देवता :- अश्विनी कुमार, छन्द :- उष्णिक्, त्रिष्टुप्, अनुष्टुप्।
अश्विनावेह गच्छतं नासत्या मा वि वेनतम्।
हंसाविव पततमा सुताँ उप॥
हे अश्विनी कुमारों! इस यज्ञ में आप दोनों पधारें। हे नासत्य द्वय! आप दोनों स्पृहा शून्य न हों। जिस प्रकार से हंसद्वय निर्मल उदक के प्रति आगमन करते हैं, उसी प्रकार आप दोनों अभिषुत सोमरस के निकट आवें।[ऋग्वेद 5.78.1]
स्पृहा :: किसी अच्छे काम, चीज या बात की प्राप्ति अथवा सिद्धि के लिए मन में होने वाली अभिलाषा, इच्छा या कामना; appetency, aspiration, ambition, craving, eagerness, desire, covetousness.Hey Ashwani Kumars! Come to this Yagy. Hey Nasaty duo! You should be free from aspiration. The manner in which a pair of Swans is attracted towards clean water, you should come to the extracted Somras.
अश्विना हरिणाविव गौराविवानु यवसम्।
हंसाविव पततमा सुताँ उप॥
हे अश्विनी कुमारों! जिस प्रकार से हरिण और गौर मृग घास का अनुधावन करते हैं एवं जिस प्रकार से हंसद्वय निर्मल उदक के प्रति आगमन करते हैं, उसी प्रकार आप दोनों अभिषुत सोम के निकट अवतीर्ण हों।[ऋग्वेद 5.78.2]
Hey Ashwani Kumars! The way the deer and Gaur deer reach grass and the Swans reach the clean water, you should also come to the extracted Somras.
अश्विना वाजिनीवसू जुषेथां यज्ञमिष्टये।
हंसाविव पततमा सुताँ उप॥
हे अन्न के निमित्त निवासप्रद अश्विनी कुमारों! आप दोनों हमारे यज्ञ अभीष्ट सिद्धि के लिए आगमन करें। जिस प्रकार से हंसद्वय निर्मल उदक के प्रति आगमन करते हैं, उसी प्रकार आप दोनों अभिषुत सोमरस के निकट अवतीर्ण होवें।[ऋग्वेद 5.78.3]
Hey Ashwani Kumars reside granting, rich in food grains! Both of you come to our Yagy for accomplishments. The way Swan duo reach clean water you should also come to extracted Somras.
अत्रिर्यद्वामवरोहन्नृबी समजोहवीन्नाधमानेव योषा।
श्येनस्य चिज्जवसा नूतनेनागच्छतमश्विना शंतमेन॥
हे अश्विनी कुमारों! विनय करने पर स्त्री जिस प्रकार से पति को प्रसन्न करती है, उसी प्रकार हम लोगों के पिता अत्रि ऋषि ने आपकी प्रार्थना करके तुषाग्नि कुण्ड से मुक्ति प्राप्त की। आप दोनों श्येन पक्षी के नवजात वेग से सुखकर रथ द्वारा हम लोगों की रक्षा के लिए आगमन करें।[ऋग्वेद 5.78.4]
Hey Ashwani Kumars! The way a wife on being requested comfort her husband, our father Atri Rishi prayed you and you released him from Tushagni-fire. Arrive with the speed of falcon riding your comfortable charoite for our protection.
वि जिहीष्व वनस्पते योनिः सूष्यन्त्या इव।
श्रुतं मे अश्विना हवं सप्तवधिं च मुञ्चतम्॥
हे वनस्पति विनिर्मित पेटिके! प्रसव करने के लिए उद्यत स्त्री की योनि के तुल्य आप विस्तृत होवें। खुले हुए पेटिका की ओर संकेत है। आप दोनों हमारा आह्वान सुनकर आवें और मुझ सप्तवध्रि को मुक्त करें।[ऋग्वेद 5.78.5]
पेटिका :: संदूक, पेटी, छोटी पिटारी; cassette, portfolio, capsid, cabinet, pyxis, python.
Hey little box made of vegetation! Open like the vagina of a woman ready for delivery. This is an indication for the box. Both of you come and release me-Saptvadhri.
भीताय नाधमानाय ऋषये सप्तवध्रये।
मायाभिरश्विना युवं वृक्षं सं च वि चाचथः॥
हे अश्विनी कुमारों! आप दोनों भयभीत और निर्गमन के लिए प्रार्थना करने वाले ऋषि सप्तवध्रि के लिए माया द्वारा पेटिका को संगत और विभक्त करते हैं।[ऋग्वेद 5.78.6]
Hey Ashwani Kumars! You opened the box with enchantment-cast of the afraid-feared Rishi Saptvadhri, for his release when he prayed-requested you.
यथा वातः पुष्करिणीं समिङ्गयति सर्वतः।
एवा ते गर्भ एजतु निरैतु दशमास्यः॥
वायु जिस प्रकार सरोवर आदि को स्पन्दित करता है, उसी प्रकार आपका गर्भ संचालित हो। दस मास के अनन्तर गर्भस्थ जीव निर्गत हो।[ऋग्वेद 5.78.7]
The way the air pulsate the water in a lake, your foetus too move like that. The living being inside the womb should come out within ten months.
यथा वातो यथा वनं यथा समुद्र एजति।
एवा त्वं दशमास्य सहावेहि जरायुणा॥
वायु, वन और समुद्र जिस प्रकार से कम्पित होते हैं, उसी प्रकार दस मास पर्यन्त गर्भस्थ जीव जरायु के साथ बाहर प्रकट हो।[ऋग्वेद 5.78.8]
The way air, forests and the ocean vibrate; the living being should take birth within ten months.
दश मासाञ्छशयानः कुमारो अधि मातरि।
निरैतु जीवो अक्षतो जीवो जीवन्त्या अधि॥
दस मास पर्यन्त माता के गर्भ में अवस्थित जीव जीवित तथा अक्षत रूप से जीविता जननी से उत्पन्न हो।[ऋग्वेद 5.78.9]
The living being present in the mother's womb should take birth alive and the mother should remain unharmed.(12.08.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (79) :: ऋषि :- सत्यश्रवा आत्रेय, देवता :- उषा, छन्द :- पंक्ति।
महे नो अद्य बोधयोषो राये दिवित्मती।
यथा चिन्नो अबोधयः सत्यश्रवसि वाय्ये सुजाते अश्वसूनृते॥
हे दीप्तिमती उषा! आपने हम लोगों को जिस प्रकार से पहले प्रबोधित किया, उसी प्रकार आज भी प्रचुर धनप्राप्ति के लिए प्रबोधित करें। हे शोभन प्रादुर्भाव वाली! अश्वप्राप्ति के लिए लोग आपका स्तवन करते हैं। आप वय्यपुत्र सत्यश्रवा के प्रति अनुग्रह करें।[ऋग्वेद 5.79.1]
प्रबोधित :: जगाया हुआ, ज्ञान दिया हुआ; enlightened.
Hey radiant Usha! The manner in which you had awaken us earlier, awake us today as well for earning enough money. Hey beautiful affect possessing! We worship you for having horses. Please oblige Satyshrava, son of Vayy.
या सुनीथे शौचद्रथे व्यौच्छो दुहितर्दिवः।
सा व्युच्छ सहीयसि सत्यश्रवसि वाय्ये सुजाते अश्वसूनृते॥
हे सूर्यतनया उषा! आपने शुचद्रथ के पुत्र सुनीथि का अन्धकार दूर किया। हे शोभन प्रादुर्भाव वाली! अश्व प्राप्ति के लिए लोग आपका स्तवन करते हैं। आप वय्यपुत्र अतिशय बलवान् सत्यश्रवा का तमो निवारण करें।[ऋग्वेद 5.79.2]
Hey daughter of Sun, Usha! You remover the darkness-ignorance of Sunithi, son of Shuchdrath. Hey beautiful affect possessing! Remove the ignorance of mighty Satyshrava, son of Vayy.
सा नो अद्याभरद्वसुर्क्युच्छा दुहितर्दिवः।
यो व्यौच्छः सहीयसि सत्यश्रवसि वाय्ये सुजाते अश्वसूनृते॥
हे द्युलोक की दूहिता! आप धन आहरण करने वाली हैं। आप आज हम लोगों के तम का निवारण करें। हे सुजाता! अश्वप्राप्ति के लिए लोग आपका स्तवन करते हैं। आपने वय्यपुत्र अतिशय बलवान् सत्यश्रवा के तम का नाश किया।[ऋग्वेद 5.79.3]
दुहिता :: पुत्री, बेटी; daughter.
आहरण :: लेना, चित्र बनाना, आकर्षित करना, निकालना, बलाद्ग्रहण, बल से ग्रहण, ऐंठना, आहरण, बलपूर्वक ग्रहण; withdrawal, draw, exaction.
Hey daughter of heavens! You extract money. Remove our ignorance, today. Hey Sujata! We worship-pray you for possessing horses. You removed the darkness-ignorance of extremely powerful Satyshrava, the son of Vayy.
अभि ये त्वा विभावरि स्तोमैर्गृणन्ति वह्नयः।
मधैर्मघोनि सु॒श्रियो दामन्वन्तः सुरातयः सुजाते अश्वसूनृते॥
हे प्रकाशवती उषा ! जो ऋत्विक् स्तोत्र द्वारा आपका स्तवन करते हैं, वे ऐश्वर्य द्वारा समृद्धि-सम्पन्न और दान शील होते हैं। हे धनशालिनी सुजाता उषा! लोग अश्व प्राप्ति के लिए आपका स्तवन करते हैं।[ऋग्वेद 5.79.4]
Hey aurous Usha! The Ritviz who worship you with Strotr, get grandeur, prosperity and become donors. Hey rich Sujata Usha! People worship you for having horses.
यच्चिद्धि ते गणा इमे छदयन्ति मघत्तये।
परि चिद्वष्टयो दधुर्ददतो राधो अह्नयं सुजाते अश्वसूनृते॥
हे उषा देवी! धनप्राप्ति के लिए स्तोतागण आपकी प्रार्थना करते हैं। वे निश्चय ही ऐश्वर्य को धारित करते हैं और अक्षय हव्यादिरूप धन देते रहते हैं। हे जन्म से शोभावती उषादेवी! अश्वप्राप्ति के लिए लोग आपका स्तवन करते हैं।[ऋग्वेद 5.79.5]
Hey Usha Devi! The Stotas worship-pray you for money. They certainly get grandeur and keep on donating offerings (goods, food, etc.)-money. Hey lucky-auspicious since birth Usha Devi! People worship you for having horses.
ऐषु धा वीरवद्यश उषो मघोनि सूरिषु।
ये नो राधांस्यह्रया मघवानो अरासत सुजाते अश्वसूनृते॥
हे धनशालिनी उषा देवी! आप याजकगण स्तोताओं को वीर पुत्रादि से युक्त अन्न प्रदान करें, जिससे वे धनवान् होकर हम लोगों को प्रचुर परिमाण में धन प्रदान करें। हे शोभन जन्म वाली उषा देवी! अश्व प्राप्ति के लिए लोग आपका स्तवन करते हैं।[ऋग्वेद 5.79.6]
Hey Usha Devi, possessing wealth! Grant brave sons and food grains to the Ritviz-Stotas, so that they become rich and grant us money in sufficient quantity. Hey Usha Devi with beautiful evolution-occurrence! People worship you for having horses.
तेभ्यो द्युम्नं बृहद्यश उषो मघोन्या वह।
ये नो राधांस्यश्रव्या गव्या भजन्त सूरयः सुजाते अश्वसूनृते॥
हे धनशालिनी उषा देवी! जिस धनवान् ने हम लोगों को अश्व और गौओं से युक्त धन प्रदान किया, उस सम्पूर्ण याजकगण को आप धन और प्रभूत अन्न प्रदान करें। हे शोभन जन्म वाली उषा देवी! अश्व प्राप्ति के लिए लोग आपका स्तवन करते हैं।[ऋग्वेद 5.79.7]
Hey wealthy Usha Devi! Grant sufficient food grains and wealth to the donors who gave us horses, cows and money. Hey Usha Devi with beautiful evolution-occurrence! People worship you for having horses.
उत नो गोमतीरिष आ वहा दुहितर्दिवः।
साकं सूर्यस्य रश्मिभिः शुक्रै: शोचद्भिरर्चिभिः सुजाते अश्वसूनृते॥
हे द्युलोक की पुत्री उषा! आप सूर्य की शुभ्र रश्मि एवं प्रज्वलित अग्नि की प्रदीप्त ज्वाला के साथ हम लोगों की निकट अन्न और गौओं का आनयन करें। हे शोभन उत्पन्न वाली! अश्व प्राप्ति के लिये लोग आपका सत्वन करते हैं।[ऋग्वेद 5.79.8]
Hey daughter of heavens Usha! Come to us with the bright rays of Sun and ignited fire granting us cows and food grains. Hey born of beautiful origin! People worship you for having horses.
व्युच्छा दुहितर्दिवो मा चिरं तनुथा अपः।
नेत्त्वा स्तेनं यथा रिपुं तपाति सूरो अर्चिषा सुजाते अश्वसूनृते॥
द्युलोक की दुहिता उषादेवी! आप प्रकाश उत्पादित करें। हम लोगों के प्रति विलम्ब न करना। राजा शत्रुओं को जिस प्रकार से प्रताड़ित करते हैं, उसी प्रकार सूर्यदेव आपको रश्मि द्वारा सन्तप्त न करें। हे शोभन उत्पन्न वाली! अश्व प्राप्ति के लिए लोग आपका स्तवन करते हैं।[ऋग्वेद 5.79.9]
Hey daughter of heavens Usha! Generate light. Do not delay. Sury Dev-Sun should not punish-torture you like the king who punish his enemies. Hey born of beautiful origin! People worship you for having horses.
एतावद्वेदुषस्त्वं भूयो वा दातुमर्हसि।
या स्तोतृभ्यो विभावर्युच्छन्ती न प्रमीयसे सुजाते अश्वसूनृते॥
हे उषा देवी! जो प्रार्थित हुआ और जो प्रार्थित नहीं हुआ, यह सब हमें प्रदान करने में आप समर्थ है। हे दीप्तिमती! आप स्तोताओं के तम का नाश करती हैं किन्तु उनकी हिंसा नहीं करती। हे शोभन उत्पन्न वाली! अश्वप्राप्ति के लिए लोग आपका स्तवन करते हैं।[ऋग्वेद 5.79.10]
Hey Usha Devi! You are empowered to grant-give us the things whether they are requested or not. Hey radiant-shinning! You destroy the darkness-ignorance of the worshipers, but do not harm them. Hey born of beautiful origin! People worship you for having horses.(13.08.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (80) :: ऋषि :- सत्यश्रवा आत्रेय, देवता :- उषा, छन्द :- त्रिष्टुप्।
द्युतद्यामानं बृहतीमृतेन ऋतावरीमरुणप्सुं विभातीम्।
देवीमुषसं स्वरावहन्तीं प्रति विप्रासो मतिभिर्जरन्ते॥
दीप्तिमान् रथ पर आरोहित, सर्वव्यापिनी, यज्ञ में भली-भाँति पूजित, अरुण वर्ण, सूर्य की पुरोवर्तिनी और दीप्तिमती उषा का स्तवन ऋत्विक् लोग स्तोत्रों द्वारा करते हैं।[ऋग्वेद 5.80.1]
पूर्ववर्ती :: पहले रहनेवाला, पहले होनेवाला; predecessor, preceding.
Riding radiant charoite, all pervading, worshiped-prayed properly in the Yagy, red coloured, preceding-following the Sun and aurous Usha is worshiped by the Ritviz with the recitation of Strotr-sacred hymns.
एषा जनं दर्शता बोधयन्ती सुगान्यथः कृण्वती यात्यग्रे।
बृहद्रथा बृहती विश्वमिन्वोषा ज्योतिर्यच्छत्यग्रे अह्नाम्॥
दर्शनीय उषादेवी प्रसुप्त जनों को चैतन्य करती हैं और मार्गों को सुगम करके प्रभूत रथ पर आरोहण करती हैं एवं सूर्य देव के पुरोभाग में गमन करती हैं। महती और विश्व व्यापिनी उषा दिन के आरम्भ में प्रकाश का विस्तार करती हैं।[ऋग्वेद 5.80.2]
Beautiful Usha awake the sleeping people and make the roads easier, riding the charoite and moves ahead of the Sun. great and pervading the universe Usha extends the day.
एषा गोभिररुणेभिर्युजानास्त्रेधन्ती रयिमप्रायु चक्रे।
पथो रदन्ती सुविताय देवी पुरुष्टुता विश्ववारा वि भाति॥
रथ में अरुण वर्ण के बलीवर्दों को युक्त करके वे अक्षीण धनों को अविचलित करती हैं। दीप्तिमती, बहुस्तुता और सभी के द्वारा वरणीया उषादेवी मार्गों को प्रकाशित करके प्रकाशित होती है।[ऋग्वेद 5.80.3]
बलीवर्द :: बैल, सांड़; bull.
क्षीण :: जिसका क्षय हुआ हो, कमज़ोर, निर्बल; weak, emaciated, feeble.
Deploying the red coloured oxen in the charoite, she stabilize the imperishable wealth. Radiant, worshiped by numerous people accepted to all, desires accomplishing Usha Devi lit the roads.
एषा व्येनी भवति द्विबर्हा आविष्कृण्वाना तन्वं पुरस्तात्।
ऋतस्य पन्थामन्वेति साधु प्रजानतीव न दिशो मिनाति॥
प्रथम और मध्यम स्थान में अर्थात् ऊर्द्ध और बीच अन्तरिक्ष में अवस्थिति करके उषा अपनी मूर्ति को पूर्व दिशा में प्रकटित करती हैं। विशेष श्वेत वर्ण वाली उषा अभी ब्रह्माण्ड को प्रबोधित करके आदित्य के मार्ग को भली-भाँति से अनुधावन करती हैं। वे दिशाओं की हिंसा नहीं करती, बल्कि दिशाओं को प्रकाशित करती हैं।[ऋग्वेद 5.80.4]
Usha present in the up or middle space-sky arises in the east. Possessing special white colour, she energise-conscious, awake the universe and cleanse the path of Adity-Sun clear. She does not harm the directions, instead lit them.
एषा शुभ्रा न तन्वो विदानोर्ध्वेव स्नाती दृशये नो अस्थात्।
अप द्वेषो बाधमाना तमांस्युषा दिवो दुहिता ज्योतिषागात्॥
युक्त रमणी स्त्री के तुल्य अपने शरीर को प्रकाशित करती हुई और स्नान कर चुकने वाली के तुल्य उषा देवी हम लोगों के पुरोभाग में पूर्व की ओर उदित होती हैं। द्युलोक की पुत्री उषादेवी द्वेषक अन्धकार को बाधित करके तेज के साथ आगमन करती हैं।[ऋग्वेद 5.80.5]
Exhibiting her body like the woman who has taken bath, Usha Devi arises in the east. Daughter of the heavens Usha Devi remove darkness with her aura.
एषा प्रतीची दुहिता दिवो नॄन्योषेव भद्रा नि रिणीते अप्सः।
व्यूर्ण्यती दाशुषे वार्याणि पुनर्ज्योतिर्युवतिः पूर्वथाकः॥
द्युलोक की पुत्री उषादेवी पश्चिमाभिमुखी होकर कल्याण कारक वेश धारित करने वाली रमणी के तुल्य अपने रूप को प्रेरित करती हैं। वह हव्य देने वाले याजकगण को वरणीय धन प्रदान करती हैं। नित्य यौवन वाली उषा पूर्व के तुल्य अपनी दीप्ति प्रकाशित करती हैं।[ऋग्वेद 5.80.6]
Daughter of the heavens Usha Devi become helpful turning to West, like the young woman exposing her beauty. She grants offerings to the Ritviz and grant acceptable wealth. Always young Usha exhibit her ever young-new aura in the east.(14.08.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (81) :: ऋषि :- श्यावाश्व आत्रेय, देवता :- सविता, छन्द :- जगती।
युञ्जते मन उत युञ्जते धियो विप्रा विप्रस्य बृहतो विपश्चितः।
वि होत्रा दधे वयुनाविदेक इन्मही देवस्य सवितुः परिष्टुतिः॥
हे ऋत्विक्! यजमान लोग अपने मन को सब कर्मों में लगाते हैं। मेधावी, महान और स्तुति-योग्य सविता की आज्ञा से यज्ञकार्य में निविष्ट होते हैं। सविता देव की प्रार्थना अत्यन्त प्रभूत है।[ऋग्वेद 5.81.1]
Hey Ritviz! The hosts-household devote themselves to their jobs, work, endeavours. They perform Yagy under directions-orders of the intelligent, great and worshipable Savita Dev. Worship of Savita yields ample-abundant desired goods-riches.
विश्वा रूपाणि प्रतिमुञ्चते कविः प्रासावीद्भद्रं द्विपदे चतुष्पदे।
वि नाकमख्यत्सविता वरेण्योऽनु प्रयाणमुषसो वि राजति॥
मेधावी सविता देव स्वयं सम्पूर्ण रूप धारित करते हैं। वे मनुष्यों या पशुओं के गमनादि विषयक कल्याण को जानते हैं। सभी के प्रेरक रमणीय सविता देव स्वर्ग को प्रकाशित करते हैं। वे उषा उदित होने के पश्चात् प्रकाशित होते हैं।[ऋग्वेद 5.81.2]
Intelligent-wise Savita Dev shows grand exposure. He is aware of the welfare-benefits of humans & animals movements. All inspiring, adorable Savita Dev illuminate heavens. He rises after Usha-dawn.
यस्य प्रयाणमन्वन्य इद्ययुर्देवा देवस्य महिमानमोजसा।
यः पार्थिवानि विममे स एतशो रजांसि देवः सविता महित्वना॥
अग्नि आदि अन्यान्य देवगण द्युतिमान् सविता देव का अनुगमन करके महिमा और बल प्राप्त करते हैं अर्थात् सूर्य के उदय होने पर ही अग्नि होत्रादि कार्य होता है। जो सविता देव अपने माहात्म्य पृथिव्यादि लोक को परिच्छिन्न करते हैं, वे देव अत्यन्त शोभायमान हैं।[ऋग्वेद 5.81.3]
Agni Dev and several other demigods-deities follow aurous-shinning Savita Dev and attain glory & might. Agni Hotr, prayers, Hawan etc. are performed only after the Sun rise. Savita Dev illuminate the various abodes, including earth, displaying his grandeur.
उत यासि सवितस्त्रीणि रोचनोत सूर्यस्य रश्मिभिः समुच्यसि।
उत रात्रीमुभयतः परीयस उत मित्रो भवसि देव धर्मभिः॥
हे सविता देव! रोचमान तीनों लोकों में आप आगमन करते हैं और सूर्य की किरणों से मिलित होते हैं, आप रात्रि के दोनों छोरों को प्रभावित करके परिगमन करते हैं। हे सविता देव! आप जगद्धारक कर्म द्वारा मित्र नामक देव होते हैं।[ऋग्वेद 5.81.4]
Hey Savita Dev! You visit the three abodes possessing grandeur illuminating them with your rays. You affect the two ends of night while revolving. Hey Savita Dev! You possess the title "Mitr" Dev as as a protector of the world.
उतेशिषे प्रसवस्य त्वमेक इदुत पूषा भवसि देव यामभिः।
उतेदं विश्वं भुवनं वि राजसि श्यावाश्वस्ते सवितः स्तोममानशे॥
हे सविता देव! अकेले आप ही समस्त उत्पन्न संसार के अधिश्वर हैं। आप अपनी गमन सामर्थ्य से संसार के पोषणकर्ता हैं। आप संपूर्ण लोकों में विशिष्ट रूप से देदीप्यमान हैं। हे सविता देव! श्याश्च ऋषि आपका स्तवन करते हैं।[ऋग्वेद 5.81.5]
hey Savita Dev! You alone is the Lord of the universe. You nourish-nurture the universe-world due to your ability to revolve. You are illuminated in all abodes. Hey Savita Dev! Syashrach Rishi worship-pray you.(15.08.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (82) :: ऋषि :- श्यावाश्व आत्रेय; देवता :- सविता; छन्द :- अनुष्टुप्, गायत्री।
तत्सवितुर्वृणीमहे वयं देवस्य भोजनम्।
श्रेष्ठं सर्वघातमं तुरं भगस्य धीमहि॥
हम लोग सविता देव से प्रसिद्ध और भोग योग्य धन के लिए प्रार्थना करते हैं। सविता देव से हम भग के निकट से श्रेष्ठ, सर्वभोग प्रद और शत्रु संहारक धन प्राप्त करें।[ऋग्वेद 5.82.1]
We pray to Savita Dev to grant famous and consumable wealth. Let us receive such wealth from Savita Dev, in proximity of Bhag Rishi, which is excellent, useful and capable of destroying the enemy.
अस्य हि स्वयशस्तरं सवितुः कच्चन प्रियम्। न मिनन्ति स्वराज्यम्॥
सविता देव के स्वयं धारित, सर्वप्रिय और राजमान ऐश्वर्य को कोई असुर आदि भी नष्ट नहीं कर सकता।[ऋग्वेद 5.82.2]
The Godly grandeur, adorable can not be destroyed by the demons etc.
स हि रत्नानि दाशुषे सुवाति सविता भगः। तं भागं चित्रमीमहे॥
वह सविता और भजनीय भगदेव हम हव्य दाता को रमणीय धन प्रदान करते हैं। हम उस भजनीय भगदेव से रमणीय धन की याचना करते हैं।[ऋग्वेद 5.82.3]
रमणीय :: सुखद, ख़ुशगवार, आनंदमय, हर्षजनक, आनंदपूर्ण, आनंदित, आनंद देने वाला, मनोरम, सुहावना, ललित, आनंदकर; delectable, delightful, enjoyable.
Savita Dev and Bhag Dev grant adorable wealth to those who make offering-oblations for them. We pray-request Bhag Dev to grant us delightful goods-possessions.
अद्या नो देव सवितः प्रजावत्सावीः सौभगम्। परा दुःष्वप्न्यं सुव॥
हे सविता देव! आज के यज्ञ दिन में आप हम लोगों को पुत्रादि से युक्त सौभाग्य (धन) प्रदान करें एवं दुःख देने वाले स्वप्नों के तरह दरिद्रता को हमसे दूर करें।[ऋग्वेद 5.82.4]
Hey Savita Dev! On this day of Yagy, grant us sons, wealth and eliminate the poverty away from us.
विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परा सुव। यद्भद्रं तन्न आ सुव॥
हे सविता देव! आप हम लोगों के समस्त अमंगल को दूर करें एवं प्रजा, पशु और गृहादि रूप कल्याण को हम लोगों के अभिमुख प्रेरित करें।[ऋग्वेद 5.82.5]
Hey Savita Dev! Eliminate the all sorts of inauspiciousness and direct the welfare means pertaining to populace, cattle-animals and houses to us.
अनागसो अदितये देवस्य सवितुः सवे। विश्वा वामानि धीमहि॥
हम अनुष्ठान करने वाले प्रेरक सविता देव की आज्ञा से अखण्डनीया देवी अदिति के निकट निरपराधी हों। हम सम्पूर्ण रमणीय या वाञ्छित धन धारित करें।[ऋग्वेद 5.82.6]
अनुष्ठान :: समारोह, संस्कार, अनुष्ठान, विधि, रसम, धर्मक्रिया, धार्मिक उत्सव, आचार, आतिथ्य सत्कार, संस्कार, धार्मिक क्रिया, धार्मिक संस्कार, पद्धति, शास्रविधि; rituals, rite, ceremony.
By virtue of the orders-directives from inspiring Savita Dev towards this Yagy-ceremony; we should be free from criminality in front of Devi Aditi. Let us have adorable-desirable wealth.
आ विश्वदेवं सत्पतिं सूक्तैरद्या वृणीमहे। सत्यसवं सवितारम्॥
आज हम लोग इस यज्ञ दिन में स्तोत्रों के द्वारा सर्वदेव स्वरूप अनुष्ठाताओं के पालक और सत्य शासक या रक्षक सविता देव का संभजन करते हैं।[ऋग्वेद 5.82.7]
On this of Yagy, we worship-pray Savita Dev; the truthful Lord and our protector, with the help of Strotrs-sacred hymns.
य इमे उभे अहनी पुर एत्यप्रयुच्छन्। स्वाधीर्देवः सविता॥
जो सविता देव भली-भाँति से ध्यान करने योग्य हैं या सुन्दर कर्म वाले हैं। जो अप्रमत्त होकर दिन और रात के पुरोभाग में गमन करते हैं, उन सविता देव का हम इस यज्ञ दिन में सूक्तों के द्वारा उपासना करते हैं।[ऋग्वेद 5.82.8]
We worship-pray Savita Dev who perform great deeds, revolve day & night untired, deserve to be concentrated properly and perform.
य इमा विश्वा जातान्याश्रावयति श्लोकेन। प्र च सुवाति सविता॥
जो सविता देव समस्त उत्पन्न प्राणियों के निकट यश सुनाते हैं, जो सब प्राणियों को प्रेरित करते हैं, उन सविता देव का इस यज्ञ दिन में हम सूक्तों के द्वारा संभजन अथवा उपासना करते हैं।[ऋग्वेद 5.82.9]
We worship-pray Savita Dev on this day of Yagy with the help of Strotrs, who inspires all living organism & who's glory is narrated to all the evolved beings.(16.08.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (83) :: ऋषि :- भौम अत्रि; देवता :- पर्जन्य; छन्द :- त्रिष्टुप्, जगती, अनुष्टुप्।
अच्छा वद तवसं गीर्भिराभिः स्तुहि पर्जन्यं नमसा विवास।
कनिक्रद्वृषभो जीरदानू रेतो दधात्योषधीषु गर्भम्॥
हे स्तोता! आप बलवान् पर्जन्य देव के सम्मुख होकर उनकी प्रार्थना करें। स्तुति वचनों से उनका स्तवन करें। हविर्लक्षण अन्न से उनकी परिचर्या करें। जलवर्षक, दानशील, गर्जनकारी पर्जन्य वर्षा द्वारा औषधियों को गर्भ युक्त करते हैं।[ऋग्वेद 5.83.1]
पर्जन्य :: बरसने वाला बादल, मेघ; rain clouds.
Hey Stota! Worship mighty Parjany Dev with sacred hymns. Serve food grains as offerings to him. Showering rain clouds creating thunderous sound leads to the pollination and seed formation in the medicinal herbs.
वि वृक्षान् हन्त्युत हन्ति रक्षसो विश्वं बिभाय भुवनं महावधात्।
उतानागा ईषते वृष्ण्यावतो यत्पर्जन्यः स्तनयन् हन्ति दुष्कृतः॥
पर्जन्य वृक्षों को नष्ट करके राक्षसों का वध करते हैं और महान् वध द्वारा समग्र भुवन को भयाक्रान्त करते हैं। गरजने वाले पर्जन्य पापियों का संहार करते हैं, इसलिए निरपराधी भी वर्षण करने वाले पर्जन्य के निकट से भयभीत होकर पलायित हो जाते हैं।[ऋग्वेद 5.83.2]
निरपराधी :: निर्दोष, निरपराधी, बेगुनाह; innocent, non guilty, in culpable.
Thunderous clouds destroy the trees and kills the demons leading to fear-panic in the entire universe. Since, they kill the sinners, innocent -non guilty too become afraid and migrate-move.
रथीव कशयाश्वाँ अभिक्षिपन्नाविर्दूतान्कृणुते वय ३ अह।
दूरात्सिंहस्य स्तनथा उदीरते यत्पर्जन्यः कृणुते वर्ष्य१नभः॥
रथी जिस प्रकार से कशाघात द्वारा अश्वों को उत्तेजित करके योद्धाओं को आविष्कृत करते हैं, उसी प्रकार पर्जन्य भी मेघों को प्रेरित करके वारिवर्षक मेघों को प्रकटित करते हैं। जब तक पर्जन्य जलद समूह को अन्तरिक्ष में व्याप्त करते हैं, तब तक सिंह के तुल्य गरजने वाले मेघ का शब्द दूर से ही उत्पन्न होता है।[ऋग्वेद 5.83.3]
कशाघात :: कोड़े का आघात, चाबुक से वार करना; lashing.
The manner in which a charoite driver lashes the horses to incite to overtake the warriors, Parjany Dev inspire the rain clouds to shower. Water in the form of clouds pervade the sky leading to generation of roaring sound like the lion.
प्र वाता वान्ति पतयन्ति विद्युत उदोषधीर्जिहते पिन्वते स्वः।
इरा विश्वस्मै भुवनाय जायते यत्पर्जन्यः पृथिवीं रेतसावति॥
जब तक पर्जन्य वृष्टि द्वारा पृथ्वी की रक्षा करते हैं, तब तक वृष्टि के लिए हवा बहती रहती है, चारों ओर बिजलियाँ चमकती रहती हैं, औषधियाँ बढ़ती रहती हैं, अन्तरिक्ष स्रवित होता रहता है और सम्पूर्ण भुवन की हितसाधना में पृथिवी समर्थ होती रहती हैं।[ऋग्वेद 5.83.4]
Till when, Parjany Dev protect the earth with rains, wind flows favourably, lightening occurs all arounds, medicinal herbs grow, sky keep on drizzling and earth become capable of the welfare of the entire universe.
यस्य व्रते पृथिवी नन्नमीति यस्य व्रते शफवज्जर्भुरीति।
यस्य व्रत ओषधीर्विश्वरूपाः स नः पर्जन्य महि शर्म यच्छ॥
हे पर्जन्य! आपके ही कर्म से पृथ्वी अवनत होती हैं, आपके ही कर्म से पाद युक्त या खुर विशिष्ट पशु समूह पुष्ट होते हैं या गमन करते हैं। आपके ही कर्म से औषधियाँ विविध वर्ण धारित करती हैं। आप हम लोगों को महान् सुख प्रदान करें।[ऋग्वेद 5.83.5]
हे मेघ के सदृश वर्तमान विद्वान! जिस मेघ के कर्म से भूमि अत्यन्त नम्र होती और जिस मेघ के कर्म से खुर के तुल्य निरन्तर धारण करती है और जिस मेघ के कर्म में अनेक प्रकार की सोमलता आदि ओषधियाँ उत्पन्न होती हैं, उस मेघ की विद्या से युक्त वह आप हम लोगों के लिये बड़े गृह को दीजिये।
अवनत :: झुका हुआ, गिरा हुआ; accumbent, reclinate.
Hey Parjany Dev! Your endeavours leads to softening of soil, the animals are nourished, medicines like Som Lata grow. Grant us a big house blessed by the clouds.
दिवो नो वृष्टिं मरुतो ररीध्वं प्र पिन्वत वृष्णो अश्वस्य धाराः।
अर्वाङितेन स्तनयित्नुनेह्यपो निषिञ्चन्नसुरः पिता नः॥
हे मरुतो! आप लोग अन्तरिक्ष से हम लोगों के लिए वृष्टि प्रदान करें। वर्षण कारी और सर्व व्यापी मेघ की उदक धारा को क्षरित करें। हे पर्जन्य! आप जल सेचन करके गर्जन शील मेघ के साथ हम लोगों के अभिमुख आगमन करें। आप वारि वर्षक और हम लोगों के पालक है।[ऋग्वेद 5.83.6]
Hey Marud Gan! Grant rains from the space-sky & regulate them. Hey Parjany Dev! Come to us making the clouds shower rains. You are the showerer of rains and our nurturer.
अभि क्रन्द स्तनय गर्भमा धा उदन्वता परि दीया रथेन।
दृतिं सु कर्ष विषितं यसमा भवन्तूद्वतो निपादाः॥
पृथ्वी के ऊपर आप शब्द करें, गर्जन करें, उदक द्वारा औषधियों को गर्भधारित करावें, वारिपूर्ण रथ द्वारा अन्तरिक्ष में परिभ्रमण करें, उदकधारक मेघ को वृष्टि के लिए आकृष्ट करें, उस बन्धन को अधोमुख करें, उन्नत और निम्नतम प्रदेश को समतल करें।[ऋग्वेद 5.83.7]
Rattle over the earth, nourish-nurture the medicinal herbs, revolve in the sky in your charoite with water, attract the rain clouds, serving the earth break the bonds i.e., loosen the soil and level the elevated land.
महान्तं कोशमुदचा नि षिञ्च स्यन्दन्तां कुल्या विषिताः पुरस्तात्।
घृतेन द्यावापृथिवी व्यन्धि सुप्रपाणं भवत्वघ्न्याभ्यः॥
हे पर्जन्य! आप कोश स्थानीय महान् मेघ को ऊर्ध्वभाग में उत्तोलित करें एवं वहाँ से उसे नीचे की ओर क्षारित करें अर्थात् जल की वर्षा करावें। अप्रतिहत वेग शालिनी नदियाँ पूर्वाभिमुख या पुरोभाग में प्रवाहित हों। जल द्वारा द्यावा- पृथ्वी को आर्द्र करें। गौओं के लिए पीने योग्य सुन्दर जल प्रचुर मात्रा में हो।[ऋग्वेद 5.83.8]
Hey Parjany Dev! Raise the clouds to the middle-centre and then make them shower rains. Let the river flow facing the east. Wet the earth with water. Cows should have sufficient water to drink.
यत्पर्जन्य कनिक्रदत्स्तनयन् हंसि दुष्कृतः।
प्रतीदं विश्वं मोदते यत्किं च पृथिव्यामधि॥
हे पर्जन्य! जब आप गम्भीर गर्जन करके पापिष्ठ मेघों को विदीर्ण करते हैं, तब यह सम्पूर्ण विश्व और भूमि में अधिष्ठित चरचरात्मक पदार्थ हर्षित होते हैं अर्थात् वर्षा होने से सम्पूर्ण जगत् प्रसन्न होता है।[ऋग्वेद 5.83.9]
Hey Parjany Dev! The entire earth is filled with pleasure when you roar & tear the clouds, causing rains.
अवर्षीर्वर्षमुदु षू गृभायाकर्धन्वान्यत्येतवा उ।
अजीजन ओषधीर्भोजनाय कमुत प्रजाभ्योऽविदो मनीषाम्॥
हे पर्जन्य! आपने वर्षा की। अभी वर्षा संहारण करें। आपने मरुभूमियों को सुगम्य बनाने के लिए जलयुक्त किया। मनुष्यों के भोग के लिए औषधियों को उत्पन्न किया। आपने प्रजाओं द्वारा उत्तम स्तुतियाँ भी प्राप्त की।[ऋग्वेद 5.83.10]
Hey Parjany Dev! You caused rains and now stopped them. You led to rains shower in the desert lands and made them pleasant. Grew medicines for human consumption-welfare. In return the populace worshiped you.(17.08.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (84) :: ऋषि :- भौम अत्रि; देवता :- पृथ्वी; छन्द :- अनुष्टुप्।
बळित्था पर्वतानां खिद्रं बिभर्षि पृथिवि।
प्र या भूमिं प्रवत्वति मह्ना जिनोषि महिनि॥
हे पृथिवी देवी; हे मध्य-स्थान की देवी! आप यहाँ अन्तरिक्ष में पर्वतों या मेघों के भेदन को धारित करती हैं। आप बलशालिनी और श्रेष्ठ हैं; क्योंकि आप माहात्म्य द्वारा पृथ्वी प्रसन्न करती है।[ऋग्वेद 5.84.1]
हे अत्यन्त नीचे स्थान से युक्त आदर करने योग्य भूमि के सदृश वर्त्तमान! जो तुम मेघों के महत्त्व से भूमि को धारण करती इस प्रकार से सत्य को जिस कारण धारण करती हो तथा दीनता को विशेष करके नष्ट करती हो, इससे सत्कार करने योग्य हो।
Hey Prathvi-Earth Devi! You bear the mountains and clouds in the space-sky. You are mighty-powerful and the best. Hence you deserve worship.
स्तोमासस्त्वा विचारिणि प्रति ष्टोभन्त्यक्तुभिः।
प्र या वाजं न हेषन्तं पेरुमस्य स्यर्जुनि॥
हे विविध प्रकार से गमन करने वाली पृथ्वी देवी! स्तोता लोग गमन शील स्तोत्रों द्वारा आपका स्तवन करते हैं। हे अर्जुनी! आप शब्द करने वाले अश्व के सदृश जलपूर्ण मेघ को प्रक्षिप्त करती हैं।[ऋग्वेद 5.84.2]
प्रक्षिप्त :: फेंका हुआ, मिलाया हुआ, डाला हुआ, पीछे से जोड़ा हुआ, आगे की ओर निकला हुआ; projected.
Hey Prathvi Devi, revolving with various speeds! The Stotas worship you with dynamic-excellent Strotr. Hey Arjuni! You regulate the clouds having water like a neighing horse.
Earth revolves as a planet of the solar system. It spins around its own axis. Its speed at the poles is low and high at the equator.
दृळ्हा चिद्या वनस्पतीन्क्ष्मया दर्धर्ण्योजसा।
यत्ते अभ्रस्य विद्युतो दिवो वर्षन्ति वृष्टयः॥
हे पृथ्वी देवी! जब विद्योतमान अन्तरिक्ष से आपके सम्बन्धी मेघ जलवर्षा करते हैं, तब आप दृढ़ भूमि के साथ वनस्पतियों को धारित करती हैं अथवा वनस्पतियों को दृढ़ करके धारण करती हैं।[ऋग्वेद 5.84.3]
Hey Prathvi Devi! When clouds rain from the sky associated with lightening, you bear the vegetation in the tight soil.(17.08.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (85) :: ऋषि :- भौम अत्रि; देवता :- वरुण; छन्द :- त्रिष्टुप्।
प्र सम्राजे बृहदर्चा गभीरं ब्रह्म प्रियं वरुणाय श्रुताय।
वि यो जघान शमितेव चर्मोपस्तिरे पृथिवीं सूर्याय॥
हे अत्रि! आप भली-भाँति से राजमान, सभी जगह प्रसिद्ध और उपद्रवों के निवारक वरुण देव के लिए प्रभूत, दुरवगाह और प्रिय स्तोत्र का उच्चारण करें। पशुहन्ता जिस प्रकार से निहत पशुओं के चर्म को विस्तृत करता है, उसी प्रकार वे सूर्य देव के आस्तरणार्थ अन्तरिक्ष को विस्तारित करते हैं।[ऋग्वेद 5.85.1]
राजमान :: चमकता हुआ, दीप्त, शोभित; shinning, aurous.
दुरवगाह :: समझने में मुश्किल; difficult to understand.
आस्तरण :: ढकने या बिछाने की क्रिया, बिछौना; lining.
Hey Atri! Recite a solemn, profound and acceptable prayer to the royal and renowned Varun Dev, who has spread the sky-space as a bed for the Sun, just like a butcher who spreads the skin of the victim.
Hey Atri! You are aurous, famous. Recite such Strotr which are abundant and dear to Varun Dev. The way a butcher extend-spread the skin of animals the universe-sky expand for Sury Dev.
वनेषु व्य १ न्तरिक्षं ततान वाजमर्वत्सु पय उस्त्रियासु।
हृत्सु क्रतुं वरुणो अप्स्व १ ग्निं दिवि सूर्यमदधात्सोममद्रौ॥
वरुण देव वृक्षों के उपरिभाग में अन्तरिक्ष को विस्तारित करते हैं। अश्वों में बल, गौओं में दुग्ध और हृदय में संकल्प विस्तारित करते हैं। वे जल में अग्नि देव, अन्तरिक्ष में सूर्य और पर्वतों पर सोमलता स्थापित करते हैं।[ऋग्वेद 5.85.2]
Varun Dev expand-extend the space in its upper segment. He boost strength in the horses, increase milk in the cows and makes determination in the heart. He establish water in Agni-fire, Sun in the space and Som Lata in the mountains.
नीचीनबारं वरुणः कवन्धं प्र ससर्ज रोदसी अन्तरिक्षम्।
तेन विश्वस्य भुवनस्य राजा यवं न वृष्टिर्व्युनत्ति भूम॥
वरुण देव स्वर्ग, पृथ्वी और अन्तरिक्ष के हित के लिए मेघ के निम्न भाग को सछिद्र करते हैं। वर्षा जिस प्रकार से यव आदि शश्य को सिक्त करती है, उसी प्रकार अखिल भुवन के अधिपति वरुणदेव समग्र भूमि को आर्द्र करते हैं।[ऋग्वेद 5.85.3]
शस्य :: घास, तृण, दूब, तिनका, कुश; crops, grass.
Varun Dev condense the clouds in favour of the heavens, earth and the space. The way rains irrigate the vegetation, the lord of all abodes Varun Dev make the soil wet.
उनत्ति भूमिं पृथिवीमुत द्यां यदा दुग्धं वरुणो वष्ट्यादित्।
समभ्रेण वसत पर्वतासस्तविषीयन्तः श्रथयन्त वीराः॥
वरुण देव जब वृष्टि रूप जल की कामना करते हैं, तब वे पृथ्वी, अन्तरिक्ष और स्वर्ग को आर्द्र करते हैं। अनन्तर पर्वत समूह वारिदों के द्वारा शिखरों को आवृत्त करते हैं। मरुद्गण अपने बल से उत्साहित होकर मेघों को शिथिल करते हैं।[ऋग्वेद 5.85.4]
वारिद :: पहुँचा हुआ, दक्ष, आनेवाला, आगामी, आया हुआ, आगत, दूत, आगन्तुक, पहुँचने वाला, दाख़िल होने वाला, मौजूद, हाज़िर, प्रकट, वाक़िआ, घटना, नतीजा, अंजाम, जो पानी की तरफ़ जाता हो, शामिल या शरीक होने वाला, दाख़िल होने वाला, घटित होने वाला, reached, moving towards water.
Varun Dev wet the earth, space and the heavens when he think-desire of water. Thereafter, he covers the mountain cliffs with water. Marud Gan slows down the clouds with their might.
इमामू ष्वासुरस्य श्रुतस्य महीं मायां वरुणस्य प्र वोचम्।
मानेनेव तस्थिवाँ अन्तरिक्षे वि यो ममे पृथिवीं सूर्येण॥
हम प्रसिद्ध असुर हन्ता वरुण देव की इस महती प्रज्ञा की घोषणा करते हैं। जो वरुण देव अन्तरिक्ष में अवस्थित होकर मानदण्ड के समान सूर्य द्वारा पृथ्वी और अन्तरिक्ष को परिच्छिन्न करते हैं।[ऋग्वेद 5.85.5]
प्रज्ञा :: बुद्धि, बुद्धिमत्ता, सूचना, ज्ञान, भेदभाव, विवेक, पक्षपात, विभेदन, निर्णय, समझना, जानना, समझ-बूझ, समझ; intelligence, understanding, prudence, discrimination.
परिच्छिन्न :- परिच्छेद किया हुआ, घिरा हुआ; परिच्छेद, सीमायुक्त, परिमित, मर्यादित, विभक्त, विभाजित, अलग अलग किया हुआ, चारों ओर से कुछ कटा हुआ, जिसका उपचार किया गया हो; determinate, intersecting, determinate, quantity means a specified or determinate number or amount of something.
We declare the extreme understanding of demon slayer Varun Dev, who separate the earth and the space like a determinate, establishing himself in the space-sky.
इमामू नु कवितमस्य मायां महीं देवस्य नकिरा दधर्ष।
एकं यदुद्ना न पृणन्त्येनीरासिञ्चन्तीरवनयः समुद्रम्॥
प्रकृष्ट ज्ञान सम्पन्न और द्युतिमान् वरुण देव की सर्व प्रसिद्ध महती प्रज्ञा की हिंसा कोई नहीं कर सकता। जल सेचन कारिणी शुभ्र नदियाँ वारि द्वारा एक मात्र समुद्र को भी पूर्ण नहीं कर सकती है। यह वरुण देव का महान् कर्म है।[ऋग्वेद 5.85.6]
Enlightened with extreme knowledge aurous-shinning Varun Dev can not be harmed by any one. River can not fill the ocean with water completely. Its done by Varun Dev.
अर्यम्यं वरुण मित्र्यं वा सखायं वा सदमिद् भ्रातरं वा।
वेशं वा नित्यं वरुणारणं वा यत्सीमागश्चकृमा शिश्रथस्तत्॥
हे वरुण देव! यदि हम लोग कभी किसी दाता, मित्र, वयस्य, भ्राता, पड़ोसी अथवा गूँगे के प्रति कोई अपराध करे, तो उन अपराधों से हमें विमुक्त करें।[ऋग्वेद 5.85.7]
वयस्य :: मित्र, बराबर की उमर वाले; person of the same age.
Hey Varun Dev! Release us of the sins caused by harming a donor, friend, brother, a person of the same age, neighbour and dumb.
कितवासो यद्रिरिपुर्न दीवि यद्वा घा सत्यमुत यन्न विद्म।
सर्वा ता वि ष्य शिथिरेव देवाधा ते स्याम वरुण प्रियासः॥
हे वरुण देव! द्यूत क्रीड़ा में यदि हमने कोई प्रवञ्चना की हो तो बन्धनों को ढीला करने के तुल्य हमें उन समस्त अपराधों से मुक्त करें, जिससे हम आपके प्रिय पात्र हों।[ऋग्वेद 5.85.8]
Hey Varun Dev! If we have done cheating in gambling, release us from its sin, so that we become your affectionate-dear.(20.08.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (86) :: ऋषि :- भौम अत्रि; देवता :- इन्द्राग्नी; छन्द :- विराट्पूर्वा, अनुष्टुप्।
इन्द्राग्नी यमवथ उभा वाजेषु मर्त्यम्।
दृळ्हा चित्स प्र भेदति द्युम्ना वाणीरिव त्रितः॥
हे इन्द्र देव और अग्नि देव! आप दोनों युद्धों में मनुष्यों की रक्षा करते हैं। वे शत्रु सम्बन्धी द्युतिमान् धन को अतिशय भिन्न करते हैं। वे प्रति वादियों के वाक्य का खण्डन करते हैं और शत्रुओं के वाक्य के सदृश तीनों स्थानों में उपस्थित रहते हैं।[ऋग्वेद 5.86.1]
Hey Indr Dev & Agni Dev! Both of you protect the human beings in war. You differentiate-separate, distinguish the shinning wealth. You reject the statements of the opponents and occupy the three abodes like the words of the enemies.
या पृतनासु दुष्टरा या वाजेषु श्रवाय्या।
या पञ्च चर्षणीरभीन्द्राग्नी ता हवामहे॥
जो इन्द्र देव और अग्नि देव संग्राम में अनभिभवनीय हैं, जो संग्राम में या अन्न के विषय में स्तवनीय हैं और जो पञ्च श्रेणी के मनुष्यों की रक्षा करते हैं, उन दोनों महानुभावों का हम लोग स्तवन करते हैं।[ऋग्वेद 5.86.2]
We invoke Indr Dev and Agni Dev, who are irresistible in conflicts, renowned in battles & protect the five classes of humans.
We worship-pray Indr Dev and Agni Dev who are winners in war-conflict, worshiped for food grains and protector of humans.
तयोरिदमवच्छवस्तिग्मा दिद्युन्मघोनोः।
प्रति द्रुणा गभस्त्योर्गवां वृत्रघ्न एषते॥
इन दोनों का बल शत्रुओं को पराजित करने वाला है। क्योंकि जब ये दोनों देव एक रथ पर आरूढ़ होकर धेनुओं के उद्धारार्थ और वृत्रासुर के विनाशार्थ गमन करते हैं, तब इन दोनों धनवानों के हाथों में तीक्ष्ण वज्र विराजमान रहता है।[ऋग्वेद 5.86.3]
Their might defeats the enemy, since when they ride the charoite to release the cows and destruction of Vrata Sur, they possess sharp Vajr in their hands.
ता वामेषे रथानामिन्द्राग्नी हवामहे।
पती तुरस्य राधसो विद्वांसा गिर्वणस्तमा॥
हे गमनशील, धन के अधिपति सर्वज्ञ तथा निरतिशय वन्दनीय इन्द्र देव और अग्नि देव! युद्ध में रथ को प्रेरित करने के लिए हम लोग आप दोनों का आह्वान करते हैं।[ऋग्वेद 5.86.4]
Hey dynamic, lords of wealth, enlightened and worshipable Indr Dev & Agni Dev! We invoke you both, to inspire the charoite in war-battle.
ता वृधन्तावनु द्यून्मर्ताय देवावदभा।
अर्हन्ता चित्पुरो दधें ऽ शेव देवावर्वते॥
हे अहिंसनीय देवद्वय! आप दोनों अहिंसनीय हैं। हम लोग अश्व प्राप्ति के लिए आप दोनों की प्रार्थना करते हैं और सोमरस के तुल्य आगे स्थापित करते हैं।[ऋग्वेद 5.86.5]
Hey unhurt demigod duo! Both of you can not be harmed-hurt. We pray-request you both to have horses and establish you in front like Somras.
एवेन्द्राग्निभ्यामहावि हव्यं शूष्यं घृतं न पूतमद्रिभिः।
ता सूरिषु श्रवो बृहद्रयिं गृणत्सु दिघृतमिषं दिधृतम्॥
पत्थरों द्वारा कूटे हुए सोमरस के सदृश बल कारक हव्य सम्प्रति प्रवृत्त हुआ। आप दोनों ज्ञानियों को अन्न प्रदान करें। स्तोताओं को प्रभूत धन और अन्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 5.86.6]
Oblations-offerings capable of granting strength like the smashed Somras have been intended. Both of you should grant food grains to the intellectuals. Give wealth and food grains to the Stotas-hosts.(21.08.2023)
ऋग्वेद संहिता, पञ्चम मण्डल सूक्त (87) :: ऋषि :- एवयामरुत् आत्रेय; देवता :- मरुत; छन्द :- अति जगती।
प्र वो महे मतयो यन्तु विष्णवे मरुत्वते गिरिजा एवयामरुत्।
प्र शर्धाय प्रयज्यवे सुखादये तवसे भन्ददिष्टये धुनिव्रताय शवसे॥
एवया नामक ऋषि के वचन निष्पन्न स्तोत्र मरुतों के साथ श्री विष्णु के निकट उपस्थित हों एवं वे ही स्तोत्र बलशाली, पूजनीय, शोभनालंकृत, शक्ति सम्पन्न, स्तुति प्रिय, मेघ सञ्चालनकारी और द्रुत गामी मरुतों के निकट उपस्थित हों।[ऋग्वेद 5.87.1]
Let the Strotr recited by Rishi Avy be present by the Marud Gan & Bhagwan Shri Hari Vishnu. Let them reach fast moving Marud Gan who are praise-loving, mighty, worshipable, adorable, controlling the clouds.
प्र ये जाता महिना ये च नु स्वयं प्र विद्मना ब्रुवत एवयामरुत्।
क्रत्वा तद्वो मरुतो नाधृषे शवो दाना मह्ना तदेषामधृष्टासो नाद्रयः॥
जो महान् इन्द्र देव के सहित प्रादुर्भूत हुए हैं, जो यज्ञ-गमन विषयक ज्ञान के साथ प्रादुर्भूत हुए हैं, उन मरुतों का एवया मरुत् स्तवन करते हैं। हे मरुतों! आप लोगों का बल अभिमत फल दान से महान् है और अनभिभवनीय है। आप लोग पर्वत के तरह अटल हैं।[ऋग्वेद 5.87.2]
Avy Rishi worship the Marud Gan who took birth along with Indr Dev, possess the knowledge of Yagy and related subjects. Hey Marud Gan! Your strength is great and is not resisted being infinite & you are immoveable as mountains.
प्र ये दिवो बृहतः शृण्विरे गिरा सुशुकानः सुभ्व एवयामरुत्। न येषामिरी सधस्थ ईष्ट आँ अग्नयो न स्वविद्युतः प्र स्पन्द्रासो धुनीनाम्॥
जो दीप्त और स्वच्छन्दतया विस्तीर्ण स्वर्ग से आह्वान श्रवण करते हैं, अपने घर में अवस्थिति करने पर जिन्हें चालित करने में कोई समर्थ नहीं है, जो अपनी दीप्ति द्वारा दीप्तिमान् हैं, जो अग्नि के सदृश नदियों को संचालित करते हैं; एवयामरुत् प्रार्थना द्वारा उनकी उपासना करते हैं।[ऋग्वेद 5.87.3]
Avy Marut worship aurous-radiant, responding from the vast heavens, can not be moved when stationed-present inside their homes, regulate the rivers like Agni Dev.
स चक्रमे महतो निरुरुक्रमः समानस्मात्सदस एवयामरुत्। यदायुक्त त्मना स्वादधि ष्णुभिर्विष्पर्धसो विमहसो जिगाति शेवृधो नृभिः॥
मरुतों के स्वेच्छानुसार गमन करने वाले अश्व जब रथ में नियोजित होते हैं, तब एवयामरुत् उनके लिए अपेक्षा करते हैं। सर्वव्यापी मरुद्गण महान् तथा सर्वसाधारित स्थान अन्तरिक्ष से निर्गत हुए तथा परस्पर स्पर्द्धाकारी, बलशाली और सुखदाता मरुद्गण निर्गत हुए।[ऋग्वेद 5.87.4]
निर्गत :: बाहर आया हुआ, निःसृत; निकला हुआ; come forth, gone forth, issued, come forth.
Avy Marut awaits Marud Gan, when their horses capable of moving freely are deployed in the charoite. Pervading all, mighty, comforting, great, supporting the space-sky, Marud Gan appear-invoke.
स्वनो न वो ऽ मवान्रेजयषा त्वेषो ययिस्तविष एवयामरुत्। येना सहन्त ऋञ्जत स्वरोचिषः स्थारश्मानो हिरण्ययाः स्वायुधास इष्मिणः॥
हे मरुतों! आप लोग स्वाधीन तेजा, स्थिर दीप्ति, स्वर्गा भरण-भूषित और अन्न दाता हैं। आप लोग जिस शब्द से शत्रुओं को अभिभूत करके अपना कार्य सिद्ध करते हैं, वह प्रबल वारि वर्षणकारी, दीप्त, विस्तृत और प्रबुद्ध ध्वनि एवयामरुत् को कम्पित न करें।[ऋग्वेद 5.87.5]
Hey Marud Gan! You possess aura, shine, wear heavenly golden ornaments and are donor of food grains. The sound with which you control-over power the enemy and get your job accomplished is strong raining, radiant, loud; should not tremble Rishi Avy.
अपारो वो महिमा वृद्धशवसस्त्वेषं शवोऽवत्वेवयामरुत्। स्थातारो हि प्रसितौ संदृशि स्थन ते न उरुष्यता निदः शुशुक्कांसो नाग्नयः॥
हे समधिक बलशाली मरुतों! आप लोगों की महिमा अपार है, निरवधि है। आप लोगों की शक्ति एवयामरुत् की रक्षा करे। नियम युक्ति यज्ञ के सन्दर्शन विषय में आप लोग ही नियामक है। आप लोग प्रज्वलित अग्निदेव के सदृश दीप्त है। निन्दकों से आप लोग हमारी रक्षा करें।[ऋग्वेद 5.87.6]
निरवधि :: सीमारहित, निसीम, लगातार, निरंतर; limitless.
संदर्शन :: अच्छी तरह देखने की क्रिया, अवलोकन, घूरना, अपलक देखना, टकटकी लगाकर देखना, दृष्टि, निगाह, नज़र, परीक्षा, इम्तहान, ज्ञान, आकृति, सूरत, शक्ल, व्यवहार, दिखाना, प्रदर्शित करना; vision.
निन्दक :: अपमानकारी, अपवादी, उपहासात्मक, मुँहफट, बुराई करने वाला, मानव द्वेषी; चुगलखोर, आक्षेपक, निन्दोपाख्यान लेखक; cynical, cynic, detractor, backbiter, denigrator, satirist, slanderer, satirical.
Hey mighty Marud Gan! Your glory is boundless and limitless. let your strength protect Avy Rishi. You are the visionary of Niyam Yukti Yagy. You are radiant like burning fire. Protect us from the cynical-backbiters.
ते रुद्रासः सुमखा अग्नयो यथा तुविद्युम्ना अवन्त्वेवयामरुत्।
दीर्घं पृथु पप्रथे सद्म पार्थिवं येषामज्मेष्वा महः शर्धांस्यद्भुतैनसाम्॥
हे पूजनीय और अग्नि देव के तुल्य प्रभूत दीप्ति शाली रुद्र पुत्रो! एवयामरुत् की रक्षा करें। अन्तरिक्ष सम्बन्धी दीर्घ और विस्तीर्ण गृह मरुतों के द्वारा विख्यात होता है। निष्पाप मरुद्गण गमनकाल में प्रभूत शक्ति प्रकाशित करते हैं।[ऋग्वेद 5.87.7]
Hey adorable and abundantly radiant, son of Rudr Dev! Protect Avy Rishi. The long & vast house related to the sky-space is famous by virtue of Marud Gan. Sinless Marud Gan demonstrate their abundant strength.
अद्वेषो नो मरुतो गातुमेतन श्रोता हवं जरितुरेवयामरुत्।
विष्णोर्महः समन्यवो युयोतन स्मद्रथ्यो३न दंसनाप द्वेषांसि सनुतः॥
हे विद्वेष हीन मरुतों! आप लोग हमारे स्तोत्र के सन्निहित होवें एवं स्तवनकारी एवयामरुत् का आह्वान श्रवण करें। हे इन्द्र देव के साथ एकत्र यज्ञभाग प्राप्त करने वाले मरुतों! योद्धा लोग जिस प्रकार से शत्रुओं को पराजित करते हैं, उसी प्रकार से आप लोग हमारे गुप्त शत्रुओं को हमसे दूर करें।[ऋग्वेद 5.87.8]
सन्निहित :: समाविष्ट, दिए हुए, अंगभूत, संस्पर्शी, समीप, लगा हुआ; embedded, embodied, contiguous.
Hey Marud Gan, free from envy! You should be contiguous to our Strotr and attend to the invitation of Avy Rishi. Hey Marud Gan collecting the offerings of the Yagy along with Indr Dev! The way warriors defeat the enemy repel our secret enemies.
गन्ता नो यज्ञं यज्ञियाः सुशमि श्रोता हवमरक्ष एवयामरुत्।
ज्येष्ठासो न पर्वतासो व्योमनि यूयं तस्य प्रचेतसः स्यात दुर्धर्तवो निदः॥
हे यजन योग्य मरुतों! आप लोग हमारे यज्ञ में आगमन करें, जिससे यह यज्ञ सुसम्पन्न हो। आप लोग विघ्नों का नाश करने वाले हैं। हमारा आह्वान श्रवण करें। हे प्रकृष्ट ज्ञानसम्पन्न मरुतों! अत्यन्त वर्द्धमान विन्ध्यादि पर्वत के तुल्य अन्तरिक्ष में अवस्थान करके आप लोग निन्दकों के बीच में अजेय होकर उनके शासक बनें।[ऋग्वेद 5.87.9]
Hey worshipable Marud Gan! Join our Yagy for its success. You are the destroyer of our troubles. Listen our invocation. Hey enlightened Marud Gan! Become the ruler of the extra grown up mountains like Vindhyachal in the space and come through the backbiters unscathed.(21.08.2023)
आज 21.08.2023 को ऋग्वेद मंडल (5) का अँग्रेजी अनुवाद भगवान् वेदव्यास, माँ भगवती सरस्वती और गणपति की असीम कृपा से सम्पन्न हुआ। मेरी परदादी-बूढ़ी माँ, पिताजी के ताऊ, दादा-दादी, अम्मा-पिताजी के आशीर्वाद मैं यह कर पाया।
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संतोष महादेव-धर्म विद्या सिद्ध व्यास पीठ (बी ब्लाक, सैक्टर 19, नौयडा)