RIGVED (3) ऋग्वेद
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
By :: Pt. Santosh Bhardwaj
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अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।
गुणातीतं निराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि॥
[श्रीमद्भगवद्गीता 2.47]सोमस्य मा तवसं वक्ष्यग्ने वह्निं चकर्थ विदथे यजध्यै।
देवाँ अच्छा दीद्युञ्जे अद्रि शमाये अग्ने तवं जुषस्व॥
हे अग्रि देव! यज्ञ करने के लिए आपने मुझे सोम का वाहक बनाया, इसलिए मुझे बलवान् बनायें। हे अग्नि देव! मैं प्रकाशमान होकर देवों को लक्ष्य कर, अभिषवण के लिए, प्रस्तर खंड ग्रहण और प्रार्थना करता हूँ। आप मेरे शरीर की रक्षा करें-पुष्ट करें।[ऋग्वेद 3.1.1]
हे अग्नि देव! अनुष्ठान हेतु मुझे सोम रस प्रस्तुत करने को कहा, इसलिए मुझे शक्ति प्रदान करो। तेजस्वी होता देवताओं के प्रति सोम कूटने के लिए पत्थर हाथ में ग्रहण करता और वंदना करता है। तुम मेरे शरीर की सुरक्षा करो।
Hey Agni Dev! You have appointed me as the carrier of Somras for the Yagy. Make me capable of doing this. Hey Agni Dev! I hold stone in my hands to crush-extract Somras for the aurous demigods-deities. I pray to you. Protect my body.
प्राञ्चं यज्ञं चकृम वर्धतां गीः समिद्धिरग्निं नमसा दुवस्यन्।
दिवः शशासुर्विदथा कवीनां गृत्साय चित्तवसे गातुमीषुः॥
हे अग्नि देव! हमने भली-भाँति यज्ञ किया है। हमारी प्रार्थना वर्द्धित है। समिधा और हव्य द्वारा लोग अग्नि देव की परिचर्या करें। द्युलोक से आकर देवताओं ने स्तोताओं को स्तोत्र सिखाया। स्तोता गण स्तवनीय और प्रवृद्ध अग्निदेव की प्रार्थना करने की इच्छा करते हैं।[ऋग्वेद 3.1.2]
हे अग्ने! हमने उत्तम रूप से यज्ञ किया है, हमारी वंदना में वृद्धि हो। समिधा और हवि से हम अग्नि की सेवा करें। क्षितिज निवासी देवताओं ने वंदना करने वालों को श्लोक बताया। वदंनाकारी, वंदना के योग्य अग्नि की प्रार्थना करना चाहते हैं।
Hey Agni Dev! We have conducted the Yagy properly. Let the quantum of prayers-worship enhance further. Let us serve Agni Dev with Samidha (wood for Yagy) & offerings. Demigods-deities descended over the earth and taught Strotr-hymns to the Stota-Ritviz. The Stota wish to serve Agni Dev with prayers, who deserve it.
मयो दधे मेधिरः पूतदक्षो दिवः सुबन्धर्जनुषा पृथिव्याः।
अविन्दन्नु दर्शतम प्स्व १ न्तर्देवासो अग्निमपसि स्वसदृणाम्॥
जो मेघावी, विशुद्ध बलशाली और जन्म से ही उत्कृष्ट बन्धु हैं, जो द्युलोक के सुख का विधान करते हैं, उन्हीं दर्शनीय अग्नि देव को देवों ने यज्ञ कार्य के लिए, वहनशील नदियों के जल के बीच प्राप्त किया है।[ऋग्वेद 3.1.3]
जो प्रतापी अत्यन्त शक्तिशाली और जन्मजात श्रेष्ठमित्र हैं, जो नभ में सुख को स्थापित करते हैं, उन दर्शनीय अग्निदेव को देवताओं ने नदियों के जल में यज्ञ हेतु प्राप्त किया।
The demigods-deities have procured Agni Dev, who is intelligent, mighty & pure; who programmes the comforts-pleasures in the heavens, for the sake of Yagy in the waters of the rivers who could support-bear him.
अवर्धयन्त्सुभगं सप्त यह्वीः श्वेतं जज्ञानमरुषं महित्वा।
शिशुं न जातमभ्यारुरश्वा देवासो अग्निं जनिमन्वपुष्यन्॥
शोभन धन वाले, शुत्र और अपनी महिमा से दीप्तिशाली अग्निदेव के पैदा होते ही उन्हें सात नदियों ने संवर्धित किया। जिस प्रकार से अश्वी नवजात शिशु के पास जाती है, उसी प्रकार नदियाँ नवजात अग्निदेव के पास गई थीं। उत्पत्ति के साथ ही अग्नि देव को देवों ने दीप्तिमान् किया।[ऋग्वेद 3.1.4]
सुशोभित धन से परिपूर्ण, उज्ज्वल महिमावान दीप्तिमय अग्नि के प्रकट होते ही सप्त नदियों ने वृद्धि की। जैसे घोड़ी नवजात बालक को ग्रहण होती है वैसे ही नदियाँ संघ रचित अग्नि के निकट पहुँची। अग्नि के रचित होते ही देवताओं ने उन्हें दीप्ति से परिपूर्ण किया।
Seven rivers nourished Agni Dev, who glitters with beautiful wealth, glow with his own and enemies glory. The 7 rivers went to newly born-nascent Agni Dev just like a mare goes to her new born baby. Demigod-deities granted shine to Agni dev as soon as he was born.
शुक्रेभिरङ्गै रज आततन्वान् क्रतुं पुनानः कविभिः पवित्रैः।
शोचिर्वसानः पर्यायुरपां श्रियो मिमीते बृहतीरनूनाः॥
शुभ्रवर्ण तेज के द्वारा अन्तरिक्ष (आकाश) को व्याप्त करके अग्निदेव याजकगण को स्तुति के योग्य और पवित्र तेज के द्वारा परिशोधित करते हुए दीप्ति का परिधान करके याजकगण को अन्न और प्रभूत एवं सम्पूर्ण सम्पत्ति देते हैं।[ऋग्वेद 3.1.5]
उज्ज्वल रंग के तेज से अंतरिक्ष को ग्रहण कर अग्नि वंदनाकारी को तेज से शुद्ध करते तथा उसे अन्न धनादि प्रदान करते हैं।
Fare-bright coloured Agni Dev, deserving prayers-worship, pervades the sky, grant food & wealth to the devotees purifying them.
वव्राजा सीमनदतीरदब्धा यह्वीरवसाना अनग्नाः।
सना अत्र युवतयः सयोनीरेकं गर्भ दधिरे सप्त वाणीः॥
अग्नि देव जल के चारों ओर जाते हैं। यह जल अग्नि को नहीं बुझाता। अन्तरिक्ष के अपत्यभूत अग्नि से आच्छादित नहीं है, तो भी जल से वेष्ठित होने के कारण, नग्न भी नहीं है। सनातन, नित्य, तरुण एवं एक स्थान से उत्पन्न सात नदियोँ एक अग्रि का गर्भ धारित करती है।[ऋग्वेद 3.1.6]
अग्निदेव जल के चारों ओर गमन करते हैं। वह जल अग्नि को नहीं बुझाता और जल अग्नि के द्वारा नहीं सूखता। अंतरिक्ष के पुत्र रूप अग्नि देव वस्त्र द्वारा ढके नहीं जाते। परन्तु जल से ढके होने के कारण नंगे भी नहीं है। सनातन, नित्य और तरुण सात नदियाँ अग्नि को गर्भ रूप से धारण करती हैं।
Agni Dev circumambulate the water. The water does not extinguish fire-Agni. Unborn Agni Dev is not naked though uncovered, yet due to its presence in water its not naked. Eternal, regularly flowing, young born from the same source the 7 rivers bears Agni dev in their womb.
स्तीर्णा अस्य संहतो विश्वरूपा घृतस्य योनौ स्रवथे मधूनाम्अ।
अस्युरत्र धेनवः पिन्वमाना मही दस्मस्य मातरा समीची॥
जल-वर्षण के अनन्तर जल के गर्भ स्वरूप और अन्तरिक्ष में पुञ्जीभूत नानावर्ण अग्नि की किरणें रहती हैं। इस अग्नि में जल रूप स्थान गौएं सबकी प्रीति दायिका होती है। सुन्दर और महान द्यावा-पृथ्वी दर्शनीय अग्नि के माता-पिता है।[ऋग्वेद 3.1.7]
जल वृष्टि के पश्चात जल के गर्भ रूप अग्नि देव की विभिन्न रूप वाली रश्मियाँ विद्यमान होती हैं। उस सुन्दर अग्नि के माता-पिता धरा और अम्बर हैं।
Vivid coloured rays of Agni a form of womb of water, remain in the space after rain fall. Cows present in Agni as a form of water are loved by all. Great & beautiful sky & earth the parents of Agni.
Aggregated in the womb of the waters, rays of Agni spread abroad and omni form, are here effective for the diffusion of the sweet (Soma), like kine-cows full uddered, the mighty Heaven and Earth are the fitting parents of the graceful Agni.
बभ्राणः सूनो सहसो व्यद्यौद्दधानः शुक्रा रमसा वपूंषि।
श्रोतन्ति धारा मधुरो घृतस्य वृषा यत्र वावृधे काव्येन॥
हे बल के पुत्र अग्नि देव! सभी के द्वारा आपको धारित करने पर आप उज्ज्वल और वेगवान किरण धारित करके प्रकाशित हों। जिस समय अग्नि याजक गण के स्त्रोत्र द्वारा बढ़ते है, उस समय मधुर जलधारा गिरती है।[ऋग्वेद 3.1.8]
हे शक्ति पुत्र अग्नि देव! सभी के द्वारा धारण करने पर तुम उज्ज्वल और गति से परिपूर्ण किरणों द्वारा प्रकाशमान रहो। जब अग्नि यजमान के श्लोक में वृद्धि ग्रहण होती है तब महान जल की वृष्टि होती है।
Hey Agni Dev, son of Shakti (power, might)! On being help by all, should be more brilliant and shine by holding fast moving rays. When the Ritviz, (hosts of Yagy, singers of hymns) recite Strotr in your honour, it showers heavily.
पितुश्चिदूधर्जनुषा विवेद व्यस्य धारा असृजद्वि धेनाः।
गुहा चरन्तं सखिभिः शिवेभिर्दिवो यह्वीभिर्न गुहा बभूव॥
जन्म के साथ ही अग्रि ने पिता अन्तरिक्ष के अधसन जल-प्रदेश को जाना और अधस्तन सम्बन्धिनी धारा या वृष्टि और अन्तरिक्ष चारी वज्र को गिराया। हे अग्नि देव शुभकर्ता पवन आदि बन्धुओं के साथ अवस्थान करते और अन्तरिक्ष के अपत्यभूत जल के साथ गुहा में वर्तमान रहते हैं। इन अग्नि देव को कोई नहीं पाता।[ऋग्वेद 3.1.9]
प्रकट होते ही अग्नि ने अंतरिक्ष के निचले स्तर के जल प्रदेश को जान लिया और वृष्टि के लिए वज्र को गिराया। यह अग्नि श्रेष्ठ कर्मवाले वायु आदि बाँधवों सहित चलते और अतंरिक्ष में संतान भूत जलों सहित रहते हैं। तब तक अग्नि को कोई नहीं जान सकता।
As soon as he took birth, he identified the water bodies present in the sky and struck them Vajr leading to rain fall. Agni Dev is accompanied with his brothers Pawan (air, wind, Marud Gan) etc. remains in the water bodies. No one identifies Agni Dev.
At his birth he knew the udder of his parent and let forth its torrents and the sound of thunder, there was no one to detect him, lurking in the deep, with his auspicious associates, the winds-Marud Gan and the many waters reservoirs of the firmament-sky.
पितुश्च गर्भं जनितुश्च बच्ने पूर्वीरको अधयत्यीप्यानाः।
वृष्णे सपत्नी शुचये सबन्धू उभे अस्मै मनुष्ये ३ नि पाहि॥
अग्नि पिता (अन्तरिक्ष) और जनयिता का गर्भ धारित करते हैं। एक अग्नि बहुतर वृद्धि को प्राप्त औषधि का भक्षण करते हैं। सपत्नी और मनुष्यों को हित कारिणी द्यावा -पृथ्वी अभीष्ट वर्षी अग्नि के बन्धु है। हे अग्नि देव! आप द्यावा-पृथ्वी को अच्छी तरह बचाओ।[ऋग्वेद 3.1.10]
अग्नि देव माता-पिता की गोद को अकेले ही भर देते हैं। वह बढ़े हुए अग्नि औषधियों का भक्षण करते हैं। तुल्यरूप पति-पत्नी के तुल्य अम्बर धरा अग्नि के पोषककर्त्ता हैं। हे अग्ने ! तुम अम्बर और पृथ्वी की सुरक्षा करो।
Agni Dev blesses the parents with progeny. He consumes the medicines (herbs which grows quickly). Sky & earth like husband & wife, are related to Agni Dev, who is beneficial for humans, nourishing him. Hey Agni Dev! Protect the sky and the earth.
उरौ महाँ अनिबाधे ववर्थापो अग्निं यशसः सं हि पूर्वीः।
ऋतस्य योनावशयद्दमूना जामीनामग्निरपसि स्वसृणाम्॥
महान् अग्नि असम्बाध और विस्तीर्ण अन्तरिक्ष में वर्द्धित होते हैं, क्योंकि बहु अन्नवान् जल उनको अच्छी तरह वर्द्धित करता है। जल के जन्मस्थान अन्तरिक्ष में स्थित अग्नि भगिनी स्थानीया नदियों के जल में प्रशान्त चित्त से शयन करते हैं।[ऋग्वेद 3.1.11]
यह महान अग्नि विस्तार वाले अंतरिक्ष में बढ़ते हैं, वहाँ बहुत अन्न वाला जल उनकी भली-भाँति वृद्धि करता है। जल के गर्भ स्थान में निवास करने वाले अग्निदेव अपनी बहिन रूप नदियों के जल में क्रांतिपूर्वक रहते हैं।
Great Agni Dev grows in the broad sky-space, since the water having various food grains, nourishes him. Placed in the space, the birth place of rivers, Agni Dev lives in the rivers which are like his sisters.
अक्रो न बभ्रिः समिथे महीनां दिदृक्षेयः सूनवे भाऋजीकः।
उदुस्त्रिया जनिता यो जजानापां गर्भो नृतमो यह्वो अग्निः॥
जो अग्रिदेव समस्त संसार जनक (पिता), जल के गर्भभूत, मनुष्यों के सुरक्षक, महान, शत्रुओं के आक्रमणकर्ता, संग्राम में अपनी महती सेना के रक्षक, सभी के दर्शनीय और अपनी दीप्ति से प्रकाशमान हैं, उन्होंने ही याजकगण के लिए जल उत्पन्न किया।[ऋग्वेद 3.1.12]
जो अग्नि संसार के पिता, जल से उत्पन्न प्राणियों की रक्षा करने वाले शत्रुओं पर हमला करने वाले, युद्ध में सेना की रक्षा करने वाले, सभी को देखने योग्य तथा अपने तेज से प्रकाशित हैं। सुन्दर अरणि ने जल और औषधियों के गर्भ भूत तेजस्वी अग्नि को रचित किया।
The Agni Dev, who is the producer of the entire universe & water, protector of humans & the armies in the war, is admired-loved by all, is beautiful and shines with his own light.
अपां गर्भं दर्शतमोषधीनां वना जजान सुभगा विरूपम्।
देवासश्चिन्मनसा सं हि जग्मुः परिष्ठं जातं तव दुवस्यन्॥
सौभाग्यशाली अरणी ने दर्शनीय, विविध रूपवान तथा जल और औषधियों के गर्भभूत अग्नि देव को उत्पन्न किया। समस्त देवता लोग भी स्तुति-योग्य प्रमृद्ध तथा सद्योजात अग्नि के पास युक्त होकर गए। उन्होंने अग्नि की परिचर्या भी की।[ऋग्वेद 3.1.13]
समस्त देवता वंदना के योग्य वृद्धि किये गये तुरन्त अग्नि देव के निकट अत्यन्त वंदना परिपूर्ण हुए पहुँचे, अग्नि की उन्होंने सेवा की।
The lucky Arni (wood used for rubbing and producing fire) produced Agni Dev who is beautiful, has various shapes & sizes and is the basis of water and medicines (Ayur Vedic, herbs). All demigods-deities too went to Agni Dev enriched with hymns (prayers). They served Agni Dev, as well.
बृहन्त इद्भानवो भाऋजीकमग्निं सचन्त विद्युतो न शुक्राः।
गुहेव वृद्धं सदसि सो अन्तरपार कर्वे अमृतं दुहानाः॥
विद्युत् के समान महान सूर्यगण अगाध समुद्र के मध्य अमृत का दोहन करके, गुहा के तुल्य, अपने भवन अन्तरिक्ष में प्रवृद्ध और प्रभा द्वारा प्रदीप्त अग्नि का आश्रय प्राप्त करते है।[ऋग्वेद 3.1.14]
विद्युत के समान अत्यन्त कांतियुक्त सूर्य अत्यन्त गंभीर समुद्र में अमृत मंथन करने के समान अपने घर अंतरिक्ष में बढ़ते हुए प्रकाशमान अग्नि का आश्रय पाते हैं।
Great like the lightening-thunder volt, Sun-Sury Dev, churn elixir-nectar in the ocean & attain asylum under Agni Dev, in the space enriched with aura.
ईळे च त्वा याजकगणो हविर्भिरीळे सखित्वं सुमतिं निकामः।
देवैरवो मिमीहि सं जरित्रे रक्षा च नो दम्येभिरनीकैः॥
हव्य द्वारा मैं याजक आपको प्रार्थना करता हूँ। धर्म-क्षेत्र में बुद्धि पाने की इच्छा से आपके साथ बन्धुत्व के लिए प्रार्थना करता हूँ। देवों के साथ मुझे स्तोता के पशु आदि की और मेरी दुर्दम्य तेज के द्वारा रक्षा करें।[ऋग्वेद 3.1.15]
हे अग्निदेव! देवताओं सहित मुझ वंदना करने वाले के पशु आदि को तथा मेरी दमन योग्य सेना से रक्षा करो।
I, a Ritviz, pray to you. I request for intelligence-prudence in the Dharm Kshetr along with your brotherhood. Along with demigods-deities, protect me, my cattle-animals and my aura, along with demigods-deities.
उपक्षेतारस्तव सुप्रणीतेऽग्ने विश्वानि धन्या दधानाः।
सुरेतसा श्रवसा तुञ्जमाना अभि ष्याम पृतनायूँरदेवान्॥
हे सुनेता अग्नि देव! हम आपका आश्रय चाहते हैं। हम समस्त धन की प्राप्ति के लिए कारणीभूत कर्म करते और हव्य प्रदान करते हैं। हम आपको वीर्यशाली अन्न प्रदान करते हैं, जिससे अदेवों और अहितकारी शत्रुओं को जीत सकें।[ऋग्वेद 3.1.16]
हे नीतिवान अग्नि देव! हम तुम्हारा आश्रय चाहते हैं। हम समस्त धनों को ग्रहण करने वाला कार्य करते हुए हवि प्रदान करते हैं। हम तुमको पुष्टि दायक हवि प्रदान कर देव विरोधी शत्रुओं पर विजय ग्रहण कर सकें।
Hey real diplomatic leader! We wish asylum-shelter under you. We perform deeds essential for earning money-wealth and make offerings to you. We offer you that grain which is nourishing-energetic and helps in winning over powering the enemy.
आ देवानामभवः केतुरग्ने मन्द्रो विश्वानि काव्यानि विद्वान्।
प्रति मर्तां अवासयो दमूना अनु देवान्रथिरो यासि साधन्॥
हे अग्नि देव! आप देवों के स्तवनीय दूत हैं। आप समस्त स्तोत्रों के ज्ञाता हैं। आप मनुष्यों को उनके अपने-अपने घर में वास देते है। आप रथी हैं। आप देवों का कार्य साधन करते हैं और उनके पीछे-पीछे जाते है।[ऋग्वेद 3.1.17]
हे अग्नि देव! तुम देवों से प्रदर्शित इनके दूत हो। तुम समस्त श्लोकों को जानते हो। तुम मनुष्यों के वृष्टि करने वाले रथी हो। तुम देवताओं का कार्य साधन करने के लिए उनका अनुसरण करते हो।
Hey Agni Dev! You are the ambassador of the demigods-deities, who deserve worship. You are enlightened with all Strotr (hymns meant for worship). You grant protection to every human in his home. You are a great charioteer who make rain showers for the humans. You serve as a means to accomplish the motives of the demigods-deities and follow them.
नि दुरोणे अमृतो मर्त्यानां राजा ससाद विदधानि साधन्।
घृतप्रतीक उर्विया व्यद्यौदग्निर्विश्वानि काव्यानि विद्वान्॥
नित्य राजा अग्रि यश का साधन करके मनुष्यों के घर में बैठते हैं। अग्रि समस्त स्त्रोत्र
जानते हैं। अग्नि का अंग घृत के द्वारा दीप्तियुक्त है। विशाल अग्नि देव प्रकाशमान होते हैं।[ऋग्वेद 3.1.18]
नृप के सम्मुख अग्नि देव यज्ञ-साधन करते हुए साधक के घर में पधारते हो। आप स्तोत्रों समस्त धनों को ग्रहण करने वाला कार्य करत हुए हव्य प्रदान कर हम तुमको पुष्टि दायक हवि प्रदान कर देव विरोधी शत्रुओं पर विजय ग्रहण कर सकें। वे अग्नि देव सूर्य के समान प्रकाशित होते हैं
The king Agni resides the houses of the humans to generate glory, name-fame for them. Agni Dev is aware of all Strotr. The physique of Agni Dev is lit with Ghee. Huge-broad Agni Dev shines-is aurous.
आ नो गहि सख्येभिः शिवेभिर्महान्महीभिरूतिभिः सरण्यन्।
अस्मे रयिं बहुलं सन्तरुत्रं सुवाचं भागं यशसं कृधी नः॥
हे गमनेच्छु महान अग्रि देव! मंगल मयी मैत्री और महान रक्षा के साथ मेरे पास आयें और हमें बहुल निरुपद्रव शोभन स्तुति वाला और कीर्ति शाली धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 3.1.19]
हे विचरण करने के अभिलाषी अग्निदेव! कल्याणकारी मित्रता और महती सुरक्षा से परिपूर्ण हुए हमारे नजदीक पधारो और हमको अधिक संख्या में सुखप्रद सुशोभित प्रशंसा योग्य धन प्रदान करो।
Hey great Agni Dev, desirous of movement! Come to us for auspicious relations and protect us. Grant us the wealth which may grant us glory-respect & comforts.
एता ते अग्ने जनिमा सनानि प्र पूर्व्याय नूतनानि वोचम्।
महान्ति वृष्णे सवना कृतेमा जन्मञ्जन्मन् विहितो जातवेदाः॥
हे अग्नि देव! आप पुराण पुरुष है व आपको लक्ष्य करके इन सब सनातन और नवीन स्त्रोत्रों का हम पाठ करते हैं। सर्व-भूतज्ञ अग्नि मनुष्यों के बीच निहित है। उन अभीष्ट वर्षी को लक्ष्य करके हमने यह सब सवन किया है।[ऋग्वेद 3.1.20]
हे अग्नि देव! तुम प्राचीनतम हो। तुम्हारे प्रति हम प्राचीन और नये श्लोकों से प्रार्थना करते हैं। समस्त प्राणधारियों में विद्यमान अग्निदेव मनुष्यों में वास करते हैं। उन अभिष्टवर्षी अग्नि के प्रति ही हमने यह प्रार्थना की है।
Hey Agni Dev! You are eternal. We recite the ancient and new Strotr for you. All knowing Agni Dev is present in all humans. We have prayed to Agni Dev who accomplish all of our desires.
We humans, address you, hey Agni Dev! You make recitation of eternal as well as recent adorations & sacrifices solemnly to the showerer of benefits, who in every birth is established among men, cognizant of all that exists.
जन्मञ्जन्मन् निहितो जातवेदा विश्वामित्रेभिरिष्यते अजस्त्रः।
तस्य वयं सुमतौ यज्ञियस्यापि भद्रे सौमनसे स्थाम॥
सम्पूर्ण मनुष्यों में निहित और सर्व भूत अग्नि विश्वामित्र द्वारा अनवरत प्रदीप्त होते हैं। हम उसका अनुग्रह प्राप्त करके यगार्थ अग्नि देव का अभिलक्षणीय अनुग्रह प्राप्त करें।[ऋग्वेद 3.1.21]
सभी प्राणियों में व्याप्त अग्नि देव को विश्वामित्र ने चैतन्य किया। हम उनकी कृपा से यज्ञ योग्य अग्नि के प्रति उत्तम भाव रखें।
Agni Dev present in every human is kept lit-conscious by Vishwa Mitr. We make endeavours by having his blessings and attain accomplishments from glorious Agni Dev, who deserve our excellent feelings-regards.
इमं यज्ञं सहसावन् त्वं नो देवत्रा घेहि सुक्रतो रराणः।
प्र यंशी होतर्बृहतीरिषो नोऽग्ने महि द्रविणमा यजस्व॥
हे बलवान और शोभन कर्म वाले अग्रि देव! आप सदा बिहार करते-करते हमारे यश को देवों के पास ले जाते। देवों के बुलाने वाले हे अग्नि देव! हमें अन्न दो।[ऋग्वेद 3.1.22]
हे अग्नि देव! तुम शक्तिशाली और महान कार्य वाले हो। तुम हमारे अनुष्ठान को देवताओं के पास पहुँचाओ। हे देवताओं का आह्वान करने वाले अग्नि देव! हमको अन्न और धन प्रदान करो।
Hey mighty Agni Dev! You perform great deeds. Carry forward our endeavours (in the form of Yagy-auspicious jobs). You are the one who invoke demigods-deities. Hey Agni Dev! Grant us food grains.
इळामग्ने पुरुदंसं सनिं गोः शश्वत्तमं हवमानाय साध।
स्यान्नः सूनुस्तनयो विजावाग्ने सा ते सुमतिर्भूत्वस्मे॥
हे अग्नि देव! स्तोता को अनेक कर्मों के हेतुभूत और धेनु प्रदात्री भूमि हमें देवें। हमारे वंश का विस्तार करने वाला और सन्तति जनयिता एक पुत्र उत्पन्न हो। हे अग्नि देव! हमारे प्रति आपका अनुग्रह सदैव कायम रहे।[ऋग्वेद 3.1.23]
हे अग्नि देव! स्तुति करने वालों को अनेक कर्मों की साधक तथा गौ देने वाली जमीन प्रदान करो। हमारे वंश की वृद्धि करने वाला और संतान को जन्म देने वाला पुत्र प्रदान करो। हे अग्नि देव! हम पर दया करो।
Hey Agni Dev! Grant us that land which enables us for doing various auspicious jobs in addition to having cows. Grant us a son who should prolong our dynasty. Hey Agni Dev! You affection should always remain -continue with us.(17-22.08.2022)
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (2) :: ऋषि :- विश्वामित्र, गाथिन, देवता :- वैश्वानर, अग्रि, छन्द :- जगती।
वैश्वानराय धिषणामृतावृधे घृतं न पूतमग्नये जनामसि।
द्विता होतारं मनुपश्च वाघतो धिया रथं न कुलिशः समृण्वति॥
हम यज्ञ वर्द्धक वैश्वानर को लक्ष्य करके विशुद्ध घृत के तुल्य प्रसन्नतादायक प्रार्थना करेंगे। जिस प्रकार कुठार रथ का संस्कार करता है, उसी प्रकार मनुष्य और ऋत्विक् लोग देवों को बुलाने वाले गार्हपत्य और आहवनीय, इन दो प्रकार के रूपों वाले अग्नि देव का संस्कार करते हैं।[ऋग्वेद 3.2.1]
यज्ञ की वृद्धि करने वाले वैश्वानर देव के प्रति हम शुद्ध घृत के समान सुख प्रदान करने वाली वंदना करेंगे। जैसे दृढ़ मति से रथ को ठीक किया जाता है उसी प्रकार ही यजमान एवं ऋत्विक देवों का आह्वान करने वाले गार्हपत्य और आहानीय रूपों बाली अग्नि को संस्कारित करते हैं।
We will organise prayers in the honour of Vaeshwanar to appease him for the enhancement-completion of Yagy. The way the axe (tool kit) is used to repair-build the charoite, the humans and the Ritviz will perform rites to invite-invoke the demigods-deities, the way the rites for two forms of Agni Garhpaty and Avahniy are performed.
स रोचयज्जनुषा रोदसी उभे स मात्रोरभवत्पुत्र ईड्यः।
हव्यवाळग्निरजरश्चनोहितो दूळभो विशामतिथिर्विभावसुः॥
जन्म के साथ ही वे द्यावा-पृथ्वी को प्रकाशित करते हैं। वे माता-पिता के अनुकूल पुत्र हुए। हव्यवाही, जरा-रहित, अन्नदाता, अहिंसित और प्रभाधन अग्नि मनुष्यों के लिए अतिथि के समान पूज्य हैं।[ऋग्वेद 3.2.2]
वे अग्नि प्रकट होते ही पृथ्वी आकाश को प्रकाशमान करते हैं, हवि वहन करने वाले, अजर, अहिंसित, अन्न देने वाले, कांतियुक्त अग्नि प्राणियों में अतिथि के समान पूजनीय हैं।
They lit the earth and the sky immediately after their birth. They turned out to be sons favourable to the parents. Agni who carries offerings to demigods-deities, free from old age, non violent and aurous, is honourable-worship able for the humans.
क्रत्वा दक्षस्य तरुषो विधर्मणि देवासो अग्निं जनयन्त चित्तिभिः।
रुरुचानं भानुना ज्योतिषा महामत्यं न वाजं सनिष्यन्नुप ब्रुवे॥
ज्ञानी देवता लोग विपद् अर्थात् विपत्ति से उद्धार करने वाले बल के द्वारा यज्ञ में अग्नि को उत्पन्न करते हैं। जिस प्रकार से भारवाही अश्व की प्रार्थना करता है, उसी प्रकार मैं अन्नाभिलाषी होकर दीप्तिमान् तेज के द्वारा प्रकाशमान और महान् अग्नि देव की प्रार्थना करता हूँ।[ऋग्वेद 3.2.3]
मेधावीजन संकट में बचाने वाली शक्ति से अग्नि को अनुष्ठान में प्रकट करते हैं। जैसे वजन उठाने वाले घोड़े की प्रशंसा होती है, वैसे ही मैं अन्न की कामना से कांति परिपूर्ण अग्नि को पूजन करता हूँ।
The enlightened generate fire-Agni in the Yagy by using their power essential for protection in trouble-danger. The way the horse who carries load is prayed, I pray to aurous Agni Dev, with the desire of food grains.
आ मन्द्रस्य सनिष्यन्तो वरेण्यं वृणीमहे अह्रयं वाजमृग्मियम्।
रातिं भृगूणामुशिजं कविक्रतुमग्निं राजन्तं दिव्येन शोचिषा॥
मैं स्तुति योग्य वैश्वानर के श्रेष्ठ, लज्जा-रहित और प्रशंसनीय अन्न के अभिलाषी होकर भृगु वंशियों के अभिलाषप्रद, अभिलषणीय, प्रज्ञावान और स्वर्गीय दीप्ति के द्वारा शोभा वाले अग्नि देव का भजन करता हूँ।[ऋग्वेद 3.2.4]
वंदना के योग्य वैश्वानर के श्रेष्ठ प्रशंसनीय अन्न की इच्छा से भृगु ऋषि की अभिलाषा पूर्ण करने वाले, कामना करने योग्य, मेधावी अदभुत तेज से सुशोभित अग्नि की सेवा करता हूँ।
I being desirous of food grains from Vaeshwanar, recite-sing prayers in the honour of Agni Dev who is enlightened, lit with divine aura, deserve to be prayed for fulfilling-accomplishing desires of the Bhragu clan.
अग्निं सुम्नाय दधिरे पुरो जना वाजश्रवसमिह वृक्तबर्हिषः।
यतस्रुचः सुरुचं विश्वदेव्यं रुद्रं यज्ञानां साधदिष्टिमपसाम्॥
सुख की प्राप्ति के लिए ऋत्विक् लोग कुश को फैलाकर और स्रुक् को उठाकर अन्न दाता, अतीव प्रकाशक, समस्त देवों के हितैषी, दुःख नाशक और याजक गणों के यज्ञ-साधक अग्निदेव की प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 3.2.5]
सुख की कामना करने वाले ऋत्विगण कुशा को बिछाते और स्नुक को उठाकर अन्न देने वाले, तेजस्वी, हितकारी, दुखत्राता तथा यश साधक अग्नि की वंदना करते हैं।The Ritviz pray to Agni Dev, the benefactor of demigods-deities, with the desire of comforts by spreading Kush & raising the Struk, who grants food grains, relief from pain & sorrow and to ascertain the completion of their Yagy.
पावकशोचे तव हि क्षयं परि होतर्यज्ञेषु वृक्तबर्हिषो नरः।
अग्ने दुव इच्छमानास आप्यमुपासते द्रविणं धेहि तेभ्यः॥
हे पवित्र दीप्ति वाले और देवों को बुलाने वाले अग्निदेव! आपकी सेवा के अभिलाषी याजक गण यज्ञ में कुश फैलाकर आपके योग्य याग घर की सेवा करते हैं। अत: उन्हें धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 3.2.6]
शुद्ध तेल वाले देव आवाहक अग्निदेव! तुम्हारी सेवा करने के इच्छुक यजमान अनुष्ठान में कुश बिछाकर तुम्हारे यज्ञ स्थल को शोभायमान करते हैं। उनके लिए धन को प्रदान करो।
Hey Agni Dev, bearing pious aura and inviting-invoking the demigods-deities! The devotees who wish to serve you, spread Kush in the Yagy. Grant them wealth-money.
आ रोदसी अपृणदा स्वर्महज्जातं यदेनमपसो अधारयन्।
सो अध्वराय परि णीयते कविरत्यो न वाजसातये चनोहितः॥
अग्नि ने द्यावा-पृथ्वी और विशाल आकाश को भी पूर्ण किया। याजक गणों ने भी नवजात अग्नि को धारित किया। सभी जगह व्याप्त और अन्न दाता अग्नि देव अश्व के तुल्य अन्न लाभ के लिए लाए जाते हैं।[ऋग्वेद 3.2.7]
अग्नि ने क्षितिज और धरा को पूर्ण किया। यजमानों ने शीघ्र अग्नि को धारण किया। सर्वव्यापक अन्न प्रदान करने वाले अग्निदेव अश्व के समान अन्न ग्रहण करने को ज्योतिमान किय जाते हैं।
Agni Dev, pervaded the earth & the sky. The devotees, Ritviz too adopted the nascent Agni Dev. All pervading Agni Dev is lit to accept food grains like the horse.
He has filled both heaven and earth and the spacious firmament, he whom the performers of sacred rites have laid hold of as soon as born; he, the sage, the giver of food, is brought like a horse to the sacrificer, for the sake of obtaining food.
नमस्यत हव्यदातिं स्वध्वरं दुवस्यत दम्यं जातवेदसम्।
रथीर्ऋतस्य बृहतो विचर्षणिरग्निर्देवानामभवत्पुरोहितः॥
नेता और महान् यज्ञ के दर्शक जो अग्नि देवों के सम्मुख उपस्थित हुए थे, उन्हीं हव्य दाता, शोभन यज्ञ वाले, घर के हितैषी और सर्व भूतज्ञ अग्नि की पूजा और परिचर्या करें।[ऋग्वेद 3.2.8]
यज्ञ के दाता, दर्शनीय अग्नि देवताओं को प्राप्त हुए। हे हवि देने वाले, सुन्दर यज्ञ से युक्ति तथा यजमान का हित करने वाले हैं। उस अग्नि की प्रणाम पूर्वक सेवा करो।
Let the beginners of Yagy who were present before the demigods-deities serve all knowing Agni Dev, who is benefactor of Yagy & well wisher of the family.
तिस्रो यह्वस्य समिधः परिज्मनोऽग्नेरपुनन्नुशिजो अमृत्यवः।
तासामेकामदधुर्मर्त्ये भुजम लोकमु द्वे उप जामिमीयतुः॥
अमर देवों ने अग्नि की इच्छा करके महान् और जगत्-व्यापी अग्नि की पार्थिव, वैद्युतिक और सूर्य रूप तीन मूर्तियों को शोभित किया। उन्होंने तीनों मूर्तियों में से जगत्पालिका पार्थिव मूर्ति को मर्त्यलोक में रखा, शेष दो अन्तरिक्ष में चली गईं।[ऋग्वेद 3.2.9]
अमरत्व प्राप्त देवताओं ने अग्नि की इच्छा से विश्वव्यापी, अग्नि को पार्थिव बिजली और सूर्य रूप प्रदान किये। उन्होंने उन तीनों में से संसार के पोषणकर्त्ता पार्थिव अग्नि को पृथ्वी पर तथा शेष दोनों को क्षितिज में दृढ़ किया।
Immortal demigods-deities who desired Agni, established him in three forms viz. physical, electric and the Sun. They established the physical-material form over the earth and established the other two in the sky-space.
विशां कविं विश्पतिं मानुषीरिषः सं सीमकृण्वन्त्स्वधितिं न तेजसे।
स उद्वतो निवतो याति वेविषत्स गर्भमेषु भुवनेषु दीधरत्॥
धनाभिलाषी प्रजाओं ने अपने प्रभु मेधावी अग्नि देव को तलवार के तुल्य तीखी करने के लिए संस्कृत किया। वे उन्नत और निम्न प्रदेशों को व्याप्त करके गमन करते और समस्त भुवनों का गर्भ धारित करते हैं।[ऋग्वेद 3.2.10]
धन की अभिलाषा करने वाले प्राणियों ने अपने दाता अग्नि देव को तलवार के समान तीव्र करने के लिए संस्कारित किया। जो ऊँचे नीचे स्थलों को व्याप्त कर चलते हुए सभी लोगों में सभी जीवों को धारण करते हैं।
The populace which is desirous of having riches-money, have sharpened, enlightened Agni Dev like the edge of sword. He pervades all the regions whether low lying or elevated supporting all abodes and the living beings.
स जिन्वते जठरेषु प्रजज्ञिवान्वृषा चित्रेषु नानदन्न सिंहः।
वैश्वानरः पृथुपाजा अमर्त्यो वसु रत्ना दयमानो वि दाशुषे॥
नवजात और अभीष्टवर्षी वैश्वानर अग्नि नाना स्थानों में सिंह के तुल्य गर्जना करके अनेक जठरों में वर्धित होते हैं। वे अत्यंत तेजस्वी और अमर हैं। वे याजकगण को रमणीय वस्तु प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 3.2.11]
सद्यजात वैश्वानर अग्नि अभिष्टवर्धक हैं। वे सिंह के समान गर्जना करते हुए वृद्धि करते हैं। वे अविनाशी अत्यन्त तेज वाले हैं। यजमान को उपभोग्य वस्तु देते हैं।
Newly born-nascent Vaeshwanar Agni Dev roar like a lion and boost his powers. His is highly energetic-aurous & imperishable-immortal. He grant the desired useful-lovely objects to the worshipers.
वैश्वानरः प्रत्नथा नाकमारुहद्दिवस्पृष्ठं भन्दमानः सुमन्मभिः।
स पूर्ववज्जनयञ्जन्तवे धनं समानमज्मं पर्येति जागृविः॥
स्तोताओं द्वारा प्रार्थना किए जाने वाले वैश्वानर अग्नि देव चिरन्तन के तुल्य अन्तरिक्ष की पीठ-स्वर्ग पर चढ़ते हैं। प्राचीन ऋषियों के सदृश याजक गणों को धन देकर वे जागरूक होकर देवों के साधारित मार्ग पर ही सूर्य रूप से भ्रमण अर्थात् विचरण करते हैं।[ऋग्वेद 3.2.12]
वंदनाकारियों से पूजनीय अंतरिक्ष की पीठ, सूर्य जगत पर चढ़ते हैं। प्राचीन ऋषियों के तुल्य चैतन्य होकर यजमान को धन प्रदान करते हुए सूर्य रूप से विचरण करते हैं।
Vaeshwanar Agni Dev who is worshiped by the reciters of hymns, rides the space making heavens as the platform. He grants wealth to the worshipers and revolve over the route fixed by the demigods-deities as the Sun.
ऋतावानं यज्ञियं विप्रमुक्थ्य१मा यं दधे मातरिश्वा दिवि क्षयम्।
तं चित्रयामं हरिकेशमीमहे सुदीतिमग्निं सुविताय नव्यसे ॥
बलवान्, यज्ञार्ह, मेधावी, स्तुति योग्य और द्युलोक वासी जिन अग्नि देव को द्युलोक से लाकर वायु ने पृथ्वी पर स्थापित किया है, हम उन्हीं नाना गति वाले, पिंगल वर्ण किरण से युक्त और प्रकाशमान अग्नि देव से नया अर्थात् नूतन धन चाहते हैं।[ऋग्वेद 3.2.13]
महाबली, मेधावी, स्तुत्य, नभवासी जिस अग्नि को पवन ने आसमान से लाकर पृथ्वी पर प्रतिष्ठित किया। उन्हीं विभिन्न वेग वाले पीतवर्ण तेजस्वी अग्नि से हम नए धन की याचना करते हैं।
We wish to have new forms of money-riches from Agni Dev, who has yellow colour-tinge, moves with changing speeds, possess rays, deserve worship, is intelligent & has been brought to earth from the heavens by the inhabitants of heaven.
शुचिं न यामन्निषिरं स्वर्दृशं केतुं दिवो रोचनस्थामुषर्बुधम्।
अग्निं मूर्धानं दिवो अप्रतिष्कुतं तमीमहे नमसा वाजिनं बृहत्॥
प्रदीप्त यज्ञ में गमनकारी, समस्त पदार्थों के ज्ञान भूत, द्युलोक के पताका स्वरूप, सूर्य में अवस्थित, उषा काल में जागरूक, अन्नवान और महान् अग्नि देव की स्तोत्र द्वारा मैं प्रार्थना करता हूँ।[ऋग्वेद 3.2.14]
अनुष्ठान में प्रेरित करने वाले, ज्ञान के कारण भूत, दीप्तिमान, ध्वजा रूप, सूर्य, रूप से अवस्थित, उषा काल में चैतन्य होने वाली अग्नि की श्लोक द्वारा अर्चना करता हूँ।
I pray to Agni Dev with the Shlok-Mantr, hymns who visits the on going Yagy, know-aware of all materials, is like the flag of the heavens, present in the Sun, awake during the day break-Usha Kal, possess food grains.
मन्द्रं होतारं शुचिमद्वयाविनं दमूनसमुक्थ्यं विश्वचर्षणिम्।
रथं न चित्रं वपुषाय दर्शतं मनुर्हितं सदमिद्राय ईमहे॥
स्तुत्य, देवाह्वानकारी, सर्वदा शुद्ध, अकुटिल, दाता, श्रेष्ठ, विश्व दर्शक, रथ के तुल्य नाना वर्ण वाले, दर्शनीय रूप वाले मनुष्यों का सदा कल्याण करने वाले उन अग्नि देव के पास मैं धन की याचना करता हूँ।[ऋग्वेद 3.2.15]
वंदना के योग्य देवताओं का आह्वान करने वाले पवित्र, सीधे, श्रेष्ठ, सर्वज्ञाता, दर्शनीय, विभिन्न वर्ण वाले प्राणियों के लिए कल्याणकारी अग्निदेव से मैं धन की कामना करता हूँ।
I seek money from Agni Dev, who is honourable, always pure, excellent, viewing all, beautiful, well wishers of humans, having vivid colours like the charoite.(23-24.08.2022)
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (3) :: ऋषि :- विश्वामित्र, गाथिन, देवता :- वैश्वानर, अग्रि, छन्द :- जगती।
वैश्वानराय पृथुपाजसे विपो रत्ना विधन्त धरुणेषु गातवे।
अग्निर्हि देवाँ अमृतो दुवस्यत्यथा धर्माणि सनता न दूदुषत्॥
मेधावी स्तोता लोग, सन्मार्ग की प्राप्ति के लिए, बहु-बलशाली वैश्वानर को लक्ष्य कर यज्ञ में रमणीय स्तोत्रों का पाठ करते हैं। अमर अग्नि में हव्य प्रदान के द्वारा देवों की परिचर्या करते हैं। इसलिए कोई भी सनातन यज्ञ को दूषित नहीं कर सकता।[ऋग्वेद 3.3.1]
सन्मार्ग ग्रहण के हेतु बुद्धिवान वंदनाकारी अत्यन्त बलिष्ठ वैश्वानर के प्रति यज्ञ में सुन्दर वन्दना करते हैं। अविनाशी अग्नि देव हवि वहन करते देवों की सेवा करते हैं। इस प्राचीन अनुष्ठान को कोई अशुद्ध नहीं कर सकता।
Intelligent hymns reciters chant enchanting Strotr for attaining the righteous, pious, virtuous path by praying to Vaeshwanar Agni. They make offerings in the immortal Agni for the sake of demigods-deities to serve them. Hence none can contaminate eternal Yagy.
अन्तदूर्तो रोदसी दस्म ईयते होता निषत्तो मनुषः पुरोहितः।
क्षयं बृहन्तं परि भूषति द्युभिर्देवेभिरग्निरिषितो धियावसुः॥
हे दर्शनीय होता अग्नि देव! देवों के दूत होकर द्यावा-पृथ्वी के मध्य जाते हैं। देवों द्वारा प्रेरित धीमान् अग्नि याजक गण के सामने स्थापित और उपविष्ट होकर महान् यज्ञ घर को अलंकृत करते हैं।[ऋग्वेद 3.3.2]
ज्योतिवान होता अग्नि देवों के दूत हुए अम्बर-धरा के बीच विचरण करते हैं। देवताओं द्वारा प्रेरित मतिवान अग्नि वंदनाकारी के निकट दृढ़ हुए यज्ञशाला को सुशोभित करते हैं।
Aurous Agni Dev! You visit the earth and the sky (heavens) as the ambassador of the demigods-deities. Inspired by the demigods-deities, Agni Dev glorify the Yagy site in front of the devotees conducting Yagy.
केतुं यज्ञानां विदथस्य साधनं विप्रासो अग्नि महयन्त चित्तिभिः।
अपांसि यस्मिन्नधि संदधुर्गिरस्तस्मिन्त्सुम्नानि याजकगण आ चके॥
मेधावी लोग यज्ञ के केतु स्वरूप और यज्ञ के साधन भूत अग्नि को अपने वीर कर्म द्वारा पूजित करते हैं। जिन अग्नि में स्तोता लोग अपने-अपने करने योग्य कर्मों को अर्पण करते हैं, उन्हीं अग्नि देव से याजक गण सुख की आशा करते हैं।[ऋग्वेद 3.3.3]
यज्ञों को बढ़ाने वाले, यज्ञ कार्य को साधन करने वाले अग्नि को विद्वानजन अपने कर्म द्वारा पूजते हैं। स्तोताजन अपने कर्मों को जिस अग्नि को भेंट करते हैं, उन्हीं अग्नि में यजमान की कामनाएँ आश्रय प्राप्त करती हैं।
The enlightened worship Agni Dev as a form of Ketu (Dragon Tail), with the bravery-valour. The devotees offer their virtuous deeds to Agni Dev and expect comforts-pleasure from him.
पिता यज्ञानामसुरो विपश्चितां विमानमग्निर्वयुनं च वाघताम्।
आ विवेश रोदसी भूरिवर्पसा पुरुप्रियो भन्दते धामभिः कविः॥
यज्ञ के पिता, स्तोताओं के बल दाता, ऋत्विकों के ज्ञान हेतु और यज्ञादि कर्मों के साधन भूत अग्नि देव पार्थिव और वैद्युतादि रूप के द्वारा द्यावा-पृथ्वी में प्रवेश करते हैं। अत्यन्त प्रिय और तेजस्वी अग्नि देव याजकगण द्वारा प्रार्थित होते हैं।[ऋग्वेद 3.3.4]
यज्ञ, पिता, वंदना करने वालों को बल देने वाले बुद्धि के कारण तथा कर्मों के साधक अग्नि देव अपने पार्थिव और विद्युतादि रूप से लोकों में व्याप्त हुए यजमान द्वारा पूजित होते थे।
Agni Dev is worshipped by the Ritviz-devotees being the patron of Yagy, grants strength to the Ritviz, who are desirous of enlightenment, source of means for the Yagy enters the earth & sky in the form of material as well electricity.
The parent of sacrifices, the invigorator of the wise, the end of the rite, the instrumental action of the priests, Agni, who has pervaded heaven and earth in many forms, the friend of man, wise and endowed with splendours, is glorified by the worshipper.
चन्द्रमग्निं चन्द्ररथं हरिव्रतं वैश्वानरमप्सुषदं स्वर्विदम्।
विगाहं तूर्णिं तविषीभिरावृतं भूर्णि देवास इह सुश्रियं दधुः॥
आह्लादक, आह्लादजनक रथवाले, पिङ्गलवर्ण, जल के मध्य निवास करने वाले, सर्वज्ञ, सभी जगह व्याप्त, शीघ्रगामी, बलशाली, भर्ता और दीप्ति वाले वैश्वानर अग्नि देव को देवों ने इस लोक में स्थापित किया।[ऋग्वेद 3.3.5]
सबको आनन्द प्रदान करने वाले, सुवर्णमय रथ वाले, पीतरंग वाले, जल में निवास करने वाले, सर्वव्यापी द्रुतगामी, बलिष्ठ, ज्योतिमान, वैश्वानर अग्नि को देवों ने दृढ़ किया।
Pleasure granting, possessing the charoite full of comforts-pleasure, having yellow colour, resides in the middle of water, all knowing, pervading all, fast moving, mighty-powerful supporting-nurturing, aurous Vaeshwanar Agni Dev was established by the demigods-deities in this abode.
अग्निर्देवेभिर्मनुषश्च जन्तुभिस्तन्वानो यज्ञं पुरुपेशसं धिया।
रथीरन्तरीयते साधदिष्टिभिर्जीरो दमूना अभिशस्तिचातनः॥
जो यज्ञ-साधक देवों और ऋत्विकों के साथ कर्म द्वारा याजक गण के नानाविध यज्ञों को सम्पादित करते हैं, जो नेता, शीघ्रगामी, दान शील और शत्रुओं के नाशक हैं, वे ही अग्नि द्यावा पृथ्वी के बीच जाते हैं।[ऋग्वेद 3.3.6]
जो यज्ञ साधन करने वाले देवताओं और ऋत्विजों की संगति से विविध यज्ञ कर्मों को सम्पादित करते हैं। जो तीव्रगामी, दानी, अग्रणी और शत्रुओं का विनाश करने वाले हैं, वे अग्नि देव आकाश पृथ्वी के मध्य गमनशील हैं।
Agni Dev, who accomplish the Yagy, conduct it along with the humans & the demigods-deities in various ways. He is a leader, destroyer of the enemy, tends to make charity, moves to the earth & the sky.
अग्ने जरस्व स्वपत्य आयुन्यूर्जा पिन्वस्व समिषो दिदीहि नः।
वयांसि जिन्व बृहतश्च जागृव उशिग्देवानामसि सुक्रतुर्विपाम्॥
सुपुत्र और दीर्घ आयु हम प्राप्त करेंगे; इसलिए, हे अग्नि देव! आप देवों की प्रार्थना करें। अन्न द्वारा उन्हें प्रसन्न करें। हमारे धान्य के लिए भली-भाँति वृष्टि को संचालित करें। अन्न दान करें। सदा जागरणशील अग्निदेव! आप महान याजक गण को अन्न प्रदान करें; क्योंकि आप सुकर्मा और देवों के प्रिय हैं।[ऋग्वेद 3.3.7]
हे अग्ने! हमको सुन्दर पुत्र और लम्बी आयु ग्रहण कराने के लिए देवों का पूजन करो। हवि द्वारा उनको प्रसन्न करो। अन्न के लिए वर्षा को माँगो। तुम हमेशा चैतन्य रहते हो। इस यजमान को अन्न ग्रहण कराओ। तुम महान कार्य करने वाले देवताओं के मित्र हो।
Hey Agni Dev pray to demigods-deities (on our behalf) to bless us with obedient sons & long life. Appease them by offering them food grains. Properly control the rains for growing food grains. Donate food grains. Hey always awake Agni Dev! Grant food grains to the great devotees, since you perform auspicious deeds and is loved by the demigods-deities.
विश्पतिं यह्वमतिथिं नरः सदा यन्तारं धीनामुशिजं च वाघताम्।
अध्वराणां चेतनं जातवेदसं प्रशंसन्ति नमसा जूतिभिर्वृधे॥
मनुष्यों के प्रति महान, अतिथि भूत, बुद्धि नियन्ता, ऋत्विकों के प्रिय, यज्ञ के ज्ञापक, वेग युक्त और सर्व भूतज्ञ अग्नि देव की नेता लोग समृद्धि के लिए नमस्कार और प्रार्थना के द्वारा प्रशंसा करते हैं।[ऋग्वेद 3.3.8]
ज्ञापक :: ज्ञान प्राप्त कराने वाला, बोधक, बतलाने, जतलाने या परिचय देने वाला, सूचक या व्यंजक; गुरु या स्वामी।
मनुष्यों के स्वामी, अतिथि रूप, महान बुद्धि प्रेरक ऋत्विजों के स्नेह पात्र, यज्ञ का ज्ञापन करने वाले गतिवान अग्नि को श्रेष्ठ पुरुष प्रणामपूर्वक पूजा करते हैं।
The humans pray-worship Agni Dev, who is affectionate, eternal, controls the intelligence, dear to the Ritviz, accelerated and aware of all past; guides he humans for their growth.
The leaders the of holy rites praise with prostration, for the sake of increase, the mighty lord of people, the guest of men, the regulator eternally of acts, desired by the priests, the exposition of sacrifices, Jat Ved, endowed with divine energies.
विभावा देवः सुरणः परि क्षितीरग्निर्बभूव शवसा सुमद्रथः।
तस्य व्रतानि भूरिपोषिणो वयमुप भूषेम दम आ सुवृक्तिभिः॥
दीप्तिमान् स्तूयमान, कमनीय और सुन्दर रथ वाले अग्नि देव बल के द्वारा सारी प्रजा को व्याप्त करते हैं। हम अनेक के पालक और घर में निवासी अग्नि देव के समस्त कर्मों को सुन्दर स्तोत्र द्वारा प्रकाशित करेंगे।[ऋग्वेद 3.3.9]
प्रकाशवान, सुन्दर रथ से युक्त अग्नि देव शक्ति से अपनी प्रजा को व्याप्त करते हैं। उन अनेकों के पालनहार अग्नि देव के सभी कर्मों को हम श्रेष्ठ मंत्रों द्वारा प्रदीप्त करेंगे।
Aurous-shinning, beautiful-attractive, possessing beautiful charoite, Agni Dev pervades all organism. We will high light the glory of Agni Dev with the help of beautiful compositions-Strotr, hymns.
वैश्वानर तव धामान्या चके येभिः स्वर्विदभवो विचक्षण।
जात आपृणो भुवनानि रोदसी अग्ने ता विश्वा परिभूरसित्मना॥
हे विज्ञ वैश्वानर! आप जिस तेज के द्वारा सर्वज्ञ हुए हैं, मैं आपके उसी तेज का स्तवन करता हूँ। जन्म के साथ ही आप द्यावा-पृथ्वी और समस्त भुवनों को व्याप्त कर लेते है। हे अग्नि देव! आप अपने समस्त भूतों को व्याप्त करते हैं।[ऋग्वेद 3.3.10]
हे मेधावी वैश्वानर अग्निदेव! तुम अपने जिस तेज द्वारा सर्वज्ञ बनें, मैं तुम्हारे उसी तेज को प्रणाम करता हूँ तुम प्रकट होते हो। तुम धरा-अम्बर आदि सस्त संसारों में विद्यमान होते हुए जीव मात्र में रम जाते हो।
Hey enlightened Vaeshwanar! I pray to that aura-glory with which you became enlightened. You pervade the earth and the sky as soon as you are born. Hey Agni Dev! You pervades the entire past.
वैश्वानरस्य दंसनाभ्यो बृहदरिणादेकः स्वपस्यया कविः।
उभा पितरा महयन्नजायताग्निर्द्यावापृथिवी भूरिरेतसा॥
वैश्वानर के सन्तोष जनक कर्म से महान् धन होता है, क्योंकि वे सुन्दर यज्ञ आदि कर्म की इच्छा से याजक गणों को धन देते हैं। वे वीर्यशाली है। माता-पिता द्यावा-पृथ्वी की पूजा करते हुए उत्पन्न हुए है।[ऋग्वेद 3.3.11]
वैश्वानर अग्नि की दुःखनाशिनी क्रिया द्वारा श्रेष्ठ धन प्राप्त होता है। वे यज्ञादि श्रेष्ठ कर्मों की कामना से यजमान को धन दिया करते हैं। वह पौरुष युक्त अग्नि, नभ, पृथ्वी युक्त माता-पिता की वंदना करते हुए प्रकट होते हैं।
The endeavours of Vaeshwanar generate great wealth, since he grants the desirous Ritviz money for the sake of successful Yagy. He possess energy. He is born worshiping his parents i.e., the earth and the sky. (25-26.08.2022)
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (4) :: ऋषि :- विश्वामित्र, गाथिन, देवता :- आप्रीसूक्त, छन्द :- त्रिष्टुप्।
समित्समित्सुमना बोध्यस्मे शुचाशुचा सुमतिं रासि वस्वः।
आ देव देवान्यजथाय वक्षि सखा सखीन्त्सुमना यक्ष्यग्ने॥
हे समिद्ध अग्नि देव! अनुकूल मन से जागृत हों। आप अतीव गतिशील तेज से युक्त होकर हमारे ऊपर धन के लिये अनुग्रह करें। द्योतमान् अग्निदेव! देवों को आप यज्ञ में लावें। आप देवों के मित्र हैं। अनुकूल मन से मित्र देवों का यज्ञ करें।[ऋग्वेद 3.4.1]
हे अग्नि देव! तुम समृद्धि को प्राप्त होओ। अनुकूल मन से चैतन्य प्राप्त करो। तुम द्रुतगति वाले हो। अपने तेज से हम पर धन-युक्त वृष्टि करो। देवगणों को इस यज्ञ में लाओ, क्योंकि तुम देवताओं के मित्र हो। उत्तम मन से अपने मित्र देवताओं का पूजन करो।
Hey prosperous Agni Dev! Awake favourably through your innerself. Grant us wealth associating yourself with high energy. You are a friend of the demigods-deities. Hey energetic Agni Dev! Bring the demigods-deities to our Yagy with favourable innerself.
यं देवासस्त्रिरहन्नायजन्ते दिवेदिवे वरुणो मित्रो अग्निः।
सेमं यज्ञं मधुमन्तं कृधी नस्तनूनपाद्धृतयोनिं विधन्तम्॥
वरुण, मित्र और अग्नि जिन तनूनपात नामक अग्नि का प्रतिदिन तीन बार करके यज्ञ करते हैं, वे ही हमारे इस जल कारण यज्ञ को वृष्टि आदि फल दें।[ऋग्वेद 3.4.2]
वरुण, मित्र और अग्नि जिनका प्रतिदिन तीनों समय यज्ञ करते हैं, वे तनूनपात अग्नि हमारे जल की कामना वाले यज्ञ का फल वर्षा रूप में दें।
Tanunpat Agni for whom Yagy is conducted thrice by Varun, Mitr and Agni, shall grant us the reward of the Yagy in the form of rains.
प्र दीधितिर्विश्ववारा जिगाति होतारमिळः प्रथमं यजध्यै।
अच्छा नमोभिर्वृषभं वन्दध्यै स देवान्यक्षदिषितो यजीयान्॥
देवों के आह्वानकारी अग्नि के पास सर्वजन प्रिय प्रार्थना गमन करें। इला, प्रसन्नता उत्पन्न करने के लिए, प्रधान, अतीव अभीष्टवर्षी और वन्दनीय अग्नि देव के पास जावें। यज्ञ कर्म में कुशल अग्नि देव हमारे द्वारा प्रेरित होकर यज्ञ करें।[ऋग्वेद 3.4.3]
देवताओं का आह्वान वाले की प्यारी हो। उत्पन्न के लिए इला अभिष्ट पूरक पूज्य अग्नि के समीप पहुँचे। यज्ञ कुशल अग्निदेव हमारे लिए पूजन करें।
Let all of us make prayers for Agni Dev, who invoke-invite the demigods-deities. Ila should go to the leader Agni Dev, who is the leader, grants accomplishments and deserve worship. Agni Dev, an expert in organising-conducting Yagy should be inspired to perform Yagy for us.
बुध और इला |
वैवस्वत मनु के दस पुत्र हुए। उनके एक पुत्री भी थी इला, जो बाद में पुरुष बन गई।
वैवस्वत मनु ने पुत्र की कामना से मित्रावरुण यज्ञ किया। उनको पुत्री की प्राप्ति हुई, जिसका नाम इला रखा गया। उन्होंने इला को अपने साथ चलने के लिए कहा किन्तु इला ने कहा कि क्योंकि उसका जन्म मित्रावरुण के अंश से हुआ था, अतः उन दोंनो की आज्ञा लेनी आवश्यक थी। इला की इस क्रिया से प्रसन्न होकर मित्रावरुण ने उसे अपने कुल की कन्या तथा मनु का पुत्र होने का वरदान दिया।
कन्या भाव में उसने चन्द्रमा के पुत्र बुध से विवाह करके पुरूरवा नामक पुत्र को जन्म दिया।
तदुपरान्त वह सुद्युम्न बन गयी और उसने अत्यन्त धर्मात्मा तीन पुत्रों से मनु के वंश की वृध्दि की जिनके नाम इस प्रकार हैं :- उत्कल, गय तथा विनताश्व।
ऊर्ध्वो वां गातुरध्वरे अकार्यूर्ध्वा शोचींषि प्रस्थिता रजांसि।
दिवो वा नाभा न्यसादि होता स्तृणीमहि देवव्यचा वि बर्हिः॥
अग्नि और बर्हिरूप अग्नि के लिए यज्ञ में एक उन्नत मार्ग है। दीप्ति युक्त हव्य ऊपर जाता है। दीप्तिमान् यज्ञ घर के नाभि प्रदेश में होता उपविष्ट है। हम देवों के द्वारा व्याप्त कुश को बिछाये।[ऋग्वेद 3.4.4]
अनुष्ठान में अग्नि के लिए उन्नति का मार्ग निश्चित है। उज्जवल हवि ऊपर उठती है। ज्योतिवान यज्ञ के नाभि से होता स्थित है। हम देवों के लिए धरा पर कुश बिछा लेंगे।
There is an elevated path for Agni Dev & Barhirup Agni. Glowing-aurous offerings rise up (to heavens for the sake of demigods-deities). The aurous-brilliant Yagy is placed-organised at the nucleus-center of the house. Let us spread Kush (grass, mat for the demigods-deities).
सप्त होत्राणि मनसा वृणाना इन्वन्तो विश्वं प्रति यन्नृतेन।
नृपेशसो विदथेषु प्र जाता अभी ३ मं यज्ञं वि चरन्त पूर्वीः॥
जल द्वारा संसार के प्रसन्नकर्ता देवता लोग सप्त यज्ञ में जाते हैं। वे अकपट चित्त से याचित होकर नररूपी यज्ञजात प्रत्यक्ष होकर हमारे इस यज्ञ में आवें।[ऋग्वेद 3.4.5]
संसार को खुश करने वाले देव जल द्वारा अनुष्ठान को ग्रहण हैं। वे कोमल हृदय विनती किये जाने पर अग्नि रूप द्वार से हमारे यज्ञ में पधारकर प्रकट हों।
The demigods-deities who are please the universe with water, goes to the Sapt Yagy. They should come to our Yagy in the form of humans, clear heatedly-free mind.
The demigods-deities who gratify the universe with rain are present at the seven offerings of the ministering priests, when solicited with sincerity of mind; may the many deities who are engendered in sensible shapes at sacrifices come to this our rite.
आ भन्दमाने उषसा उपाके उत स्मयेते तन्वा ३ विरूपे।
यथा नो मित्रो वरुणो जुजोषदिन्द्रो मरुत्वाँ उत वा महोभिः॥
स्तूयमान (worth praising) अग्नि रूप रात और दिन, परस्पर आपस में संगत होकर या पृथक रूप से, सशरीर प्रकाशित होकर आयें। मित्र, वरुण या इन्द्र हमें जिस रूप से अनुगृहीत करते हैं, तेजस्वी होकर उसी रूप को धारित करें।[ऋग्वेद 3.4.6]
तेजस्वी :: शानदार, शोभायमान, अजीब, हक्का-बक्का करनेवाला, शोभायमान, नादकार, तेज़, शीघ्र, कोलाहलमय, उग्र, प्रज्वलित, तीक्ष्ण, उत्सुक, कलहप्रिय; majestic, stunning, rattling, fiery.
प्रकाशमान दिन और रात आपस में हँसते हुए विकसित हों। मित्र, वरुण और इन्द्र जिस रूप में हम पर दया करते हैं, वे तेजस्वी उसी रूप को हमारे लिए स्वीकार करें।
Let aurous Agni come-grow during the day & night. Adopt that majestic physical-embodiment form which Mitr, Varun or Indr Dev possess while showering bliss over us.
May the adored Day and Night, combined or separate, be manifest in bodily form, so that Mitr, Varun or Indr may rejoice us by their glories.
दैव्या होतारा प्रथमा न्यृञ्जे सप्त पृक्षासः स्वधया मदन्ति।
ऋतं शंसन्त ऋतमित्त आहुरनु व्रतं व्रतपा दीध्यानाः॥
मैं दिव्य और प्रधान अग्नि रूप दोनों होताओं को प्रसन्न करता हूँ। यज्ञाभिलाषी, सप्त और अन्नवान् ऋत्विक् लोग हव्य द्वारा अग्नि को प्रमत्त करते हैं। व्रत के रक्षक और दीप्तिशाली ऋत्विक् लोग प्रत्येक व्रत में यज्ञ रूप अग्नि देव को यही बात कहते हैं।[ऋग्वेद 3.4.7]
दिव्य और मुख्य अग्नि रूप दोनों होताओं की मैं प्रार्थना करता हूँ। यज्ञ की कामना से अन्न चाहने वाले ऋत्विक यज्ञ रूप अग्निदेव की प्रशंसा करते हैं।
I pray-appease the divine and the main-real forms of Agni Dev as the hosts-Ritviz. The seven Ritviz desirous of conducting-holding Yagy, ignite the fire-Agni possessing the food grains & making offerings. The Ritviz possessing aura, protecting the Yagy, appreciate Agni Dev.
I propitiate the two chief divine invokers of the demigods-deities, the seven offerors of sacrificial food, expectant of water, gratify Agni with oblations, the illustrious observers of sacred rites have saluted him in every ceremony as identifiable, verily, with water.
आ भारती भारतीभिः सजोषा इळा देवैर्मनुष्येभिरग्निः।
सरस्वती सारस्वतेभिरर्वाक् तिस्रो देवीर्बहिरेदं सदन्तु॥
भारती लोगों के साथ अग्नि-रूप भारती आयें, देवों और मनुष्यों के साथ इला आयें, अग्नि भी आयें। सारस्वत गणों के साथ सरस्वती भी आयें और ये तीनों देवियाँ आकर सम्मुखस्थ कुश पर बैठे।[ऋग्वेद 3.4.8]
सूर्य दीप्ती के साथ अग्नि रूप भारती ग्रहण हों। देवताओं के साथ मनुष्यों को इला ग्रहण हों। तेजस्वी विद्वानों के संग सरस्वती भी यहाँ पर पधारे। ये तीनों देवियाँ कुश के आसन पर विराजमान हों।
Let Bharti in the form of Agni come, Ila should come, associated with the demigods-deities. Devi Saraswati should come with the enlightened. The three Goddesses should come and occupy the Kushasan.
May Bharati, associated with the Bhartis, Ila with the demigods-deities and men and Agni and Devi Saraswati with the Sarasvatas, may the three goddesses sit down upon the sacred grass-Kushasan strewn before them.
तन्नस्तुरीपमध पोषयित्नु देव त्वष्टर्वि रराणः स्यस्व।
यतो वीरः कर्मण्यः सुदक्षो युक्तग्रावा जायते देवकामः॥
अग्नि रूप त्वष्टा देव, जिससे वीर, कर्म कुशल, बलशाली, सोमाभिषव के लिए प्रस्तर हस्त और देवाभिलाषी पुत्र उत्पन्न हो सके, सन्तुष्ट होकर आप हमें वैसा ही त्राण कुशल और पुष्टिकारी वीर्य प्रदान करें।[ऋग्वेद 3.4.9]
हे त्वष्टा! जिस वीर्य से कर्मवान, पराक्रमी सोम सिद्ध करने वाला, देवों का पूजक पुत्र रचित हो सके, तुम प्रसन्न होकर वैसा ही पुष्ट वीर्य हमको प्रदान करो।
Hey Twasta Dev, a form of Agni Dev! You should be pleased & satisfied with us to provide us with strong-powerful sperms and grant us such sons who are able, posses valour & can extract Somras.
वनस्पतेऽव सृजोप देवानग्निर्हविः शमिता सूदयाति।
सेदु होता सत्यतरो यजाति यथा देवानां जानिमानि वेद॥
हे अग्नि रूप वनस्पति! आप देवों को पास ले आयें। पशु के संस्कारक अग्नि देवों के लिए हव्य दें। वे ही यज्ञ-रूप देवता लोगों को बुलाने वाले अग्नि देव यज्ञ करें; क्योंकि वे ही देवों का जन्म जानते हैं।[ऋग्वेद 3.4.10]
हे वनस्पते! तुम देवों को यहाँ लाओ। प्राणी को संस्कारित करने वाले अग्निदेव आह्वान यज्ञ करें क्योंकि वे ही देवगणों के ज्ञाता हैं।
Hey vegetation, a form of Agni Dev! Bring-invoke demigods-deities here. Make offerings for the sake of Agni Dev who generate virtues in the living beings. Let Agni dev invite-invoke demigods-deities for the Yagy, since he has evolved them.
आ याह्यग्ने समिधानो अर्वाङिन्द्रेण देवैः सरथं तुरेभिः।
बर्हिर्न आस्तामदितिः सुपुत्रा स्वाहा देवा अमृता मादयन्ताम्॥
हे अग्नि देव! आप दीप्ति-युक्त होकर इन्द्र और शीघ्रताकारी देवों के साथ एक रथ पर हमारे सम्मुख पधारें। सुपुत्र युक्ता अदिति माता हमारे कुश पर बैठें। नित्य देवगण अग्निरूप स्वाहाकार वाले तृप्ति प्राप्त करें।[ऋग्वेद 3.4.11]
हे अग्नि देव! तुम प्रकाशवान हुए इन्द्र आदि देवताओं के साथ अदिति हमारे कुश को आसन पर विराजमान हों। अग्नि रूप से स्वाहाकार युक्त हुए देवगण संतुष्ट हों।
Hey Agni Dev! You should quickly come to us, in the charoite acquiring aura. Devi Aditi along with her able sons, occupy the Kushasan. Let the demigods-deities be satisfied everyday while making offerings in holy fire-Agni.(28-29.08.2022)
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (5) :: ऋषि :- विश्वामित्र, गाथिन, देवता :- अग्नि, छन्द :- त्रिष्टुप्।
प्रत्यग्निरुषसश्चेकितानोऽबोधि विप्रः पदवीः कवीनाम्।
पृथुपाजा देवयद्भिः समिद्धोऽप द्वारा तमसो वह्निरावः॥
अग्नि उषा को जानते हैं। मेधावी अग्नि ज्ञानियों के मार्ग पर जाने के लिए जागते हैं। अत्यन्त तेजस्वी अग्नि देवाभिलाषी व्यक्तियों के द्वारा प्रदीप्त होकर ज्ञान का द्वार उद्घाटित करते हैं।[ऋग्वेद 3.5.1]
अग्नि उषा के ज्ञाता हैं, वे विद्वानों का अनुकरण करने हेतु चैतन्य होते हैं। वे बहुत ही तेजस्वी हैं। देवताओं की इच्छा करने वाले मनुष्य उन्हें प्रज्वलित करते हैं, तब वे ज्ञान के द्वार खोलते हैं।
Agni Dev knows Usha. He become conscious to follow the path followed by the enlightened-intelligent. Majestic Agni Dev opens the gates of knowledge-enlightenment for those who wish to invoke-meet the demigods-deities.
प्रेद्वग्निर्वावृधे स्तोमेभिर्गीर्भिः स्तोतॄणां नमस्य उक्थैः।
पूर्वीर्ऋतस्य संदृशश्चकानः सं दूतो अद्यौदुषसो विरोके॥
पूज्य अग्नि स्तोताओं के स्तोत्र, वाक्य और मंत्र द्वारा वृद्धि पाते हैं। देवदूत अग्नि अनेक यज्ञों में दीप्ति प्राप्त करने की इच्छा से प्रातःकाल प्रकाशित होते हैं।[ऋग्वेद 3.5.2]
अर्चनीय अग्नि वन्दना करने वालों के श्लोक, वाणी और मंत्र से वृद्धि करते हैं। वे अग्नि देवों के सन्देश वाहक रूप से ज्योर्तिमय होने के अभिलाषी हुए उषा काल में प्रचलित होते हैं।
Honourable Agni Dev flourish-grow due to the Strotr, compositions-sentences and the Mantr. As the messenger of the demigods-deities Agni Dev, seek shine-aura in the morning.
अधाव्यग्निर्मानुषीषु विश्व१पां गर्भो मित्र ऋतेन साधन्।
आ हर्यतो यजतः सावस्थादभूद् विप्रो हव्यो मतीनाम्॥
याजकगणों के मित्र, यज्ञ के द्वारा अभिलाषा पूरी करने वाले और जल के पुत्र अग्नि देव मनुष्यों के मध्य स्थापित हुए हैं। अग्नि स्पृहणीय और यजनीय है। वे उन्नत स्थान पर बैठे है। ज्ञानी अग्रिदेव स्तोताओं की प्रार्थना के योग्य हुए हैं।[ऋग्वेद 3.5.3]
स्पृहणीय :: प्राप्त करने योग्य, वांछनीय; covetable, admirable
यजमानों के मित्र रूप अग्नि यज्ञ का अभिष्ट फल देने के लिए प्राणियों में विराजमान होते हैं। वे मतिवान स्तुति करने वालों की वन्दना के पात्र हैं।
Friend of the humans, accomplishing desires of the organisers of Yagy, son of Varun, Agni Dev has established himself amongest the humans. Desirable Agni Dev deserve worship-prayers. He has seated himself seated at an elevated site-place. Enlightened Agni Dev deserve prayers by the Ritviz.
मित्रो अग्निर्भवति यत्समिद्धो मित्रो होता वरुणो जातवेदाः।
मित्रो अध्वर्युरिषिरो दमूना मित्रः सिन्धूनामुत पर्वतानाम्॥
जिस समय अग्रिदेव समिद्ध होते हैं, उस समय मित्र बनते हैं। वे ही मित्र होता और सर्वज्ञ वरुण है। वे ही मित्र, दानशील अध्वुर्य और प्रेरक वायु हैं। वे ही नदियों और पर्वतों के मित्र होते हैं।[ऋग्वेद 3.5.4]
समिद्ध :: जलता हुआ, प्रज्वलित; rich.
अध्वर्यु :: यजुर्वेद के अनुरूप कर्म करनेवाला।
यज्ञ का संपादन करनेवाला। जब अग्निदेव प्रबुद्ध होते हैं, तब वे मित्र भाव से परिपूर्ण होते हैं। वे मित्र होता और सब को जानने वाले वरुण हैं। वे सखा भाव वाले दानमयी स्वभाव परिपूर्ण अध्वर्यु और शिक्षा देने वाले पवन रूप हैं। वे सरिताओं से भी मित्र भाव रखते हैं।
Agni Dev becomes a friend when he ignites. He is the friend host-Hota, Ritviz and all knowing Varun. He is Mitr-friend, organiser of the Yagy and the inspiring Pawan-Vayu Dev. He is a friend of the rivers and the mountains.
पाति प्रियं रिपो अग्रं पदं वेः पाति यहश्चरणं सूर्यस्य।
पाति नाभा सप्तशीर्षाणमग्निः पाति देवानामुपमादमृष्वः॥
सुन्दर अग्निदेव सर्वव्याप्त पृथ्वी के प्रिय स्थान की रक्षा करते हैं। महान अग्नि सूर्य के विहरण स्थान अन्तरिक्ष-आकाश की रक्षा करते हैं। अन्तरिक्ष के बीच मरुतों की रक्षा करते हैं और आकाश में देवों के प्रसन्नता हेतु यज्ञ की रक्षा करते हैं।[ऋग्वेद 3.5.5]
सर्वव्यापक अग्नि पृथ्वी के प्रिय स्थान के रक्षक हैं। वे सूर्य के विचरण के स्थान की सुरक्षा करते हैं। अंतरिक्ष में मरुद्गण को पोषण करते और देवों को हर्षित करने वाले अनुष्ठान को पुष्ट करते हैं।
All pervading beautiful Agni Dev protects the spots loved by the earth. Great Agni Dev protects the path adopted by the Sun. He protects the Maruts in the space. He protects the Yagy for the happiness of the demigods-deities, in the space-sky.
ऋभुश्चक्र ईड्यं चारु नाम विश्वानि देवो वयुनानि विद्वान्।
ससस्य चर्म घृतवत्पदं वेस्तदिदग्नी रक्षत्यप्रयुच्छन्॥
महान और समस्त ज्ञातव्यों के ज्ञाता अग्नि प्रशंसनीय और सुन्दर जल उत्पन्न करते हैं। अग्नि के निद्रित रहने पर भी उनका रूप दीप्तिमान रहता है। वे अग्नि सावधानी से उसकी रक्षा करते है।[ऋग्वेद 3.5.6]
सबके ज्ञाता महान, अग्नि प्रशंसा योग्य रमणीय जल को उत्पन्न करने वाले हैं। अग्नि की सुप्त रहने पर भी उनका रूप चमकता रहता है। वे अग्नि सावधानी से अपने रूप की सुरक्षा करते हैं।
Enlightened & great Agni Dev produces appreciable and admirable water. The aura of Agni Dev is visible even though he is sleeping. Agni dev carefully protect his form.
आ योनिमग्निर्घवन्तमस्थात्पृथुप्रमाणमुशन्तमुशानः।
दीद्यानः शुचिर्ऋष्व: पावकः पुनः पुनर्मातरा नव्यसी कः॥
दीप्तिमान विशेष रूप से प्रार्थना और स्वस्थान प्रिय अग्नि देव अधिरूढ़ हुए हैं। दीप्तिशाली शुद्ध, महान और पवित्र अग्नि माता-पिता द्यावा-पृथ्वी को नवीनतर करते हैं।[ऋग्वेद 3.5.7]
वंदना किये प्रकाशयुक्त अपने स्थान से प्रेम करने वाले अग्निदेव विराजमान हुए। वे प्रकाशवान, तेजस्वी, पवित्र, अग्नि, आकाश, पृथ्वी क्षेप अपने माता पिता को अभिनवता देते हैं।
Aurous Agni Dev deserving special prayers, took the seat, he loved. The great, bright, pure, Agni Dev grant new-unique forms (postures) to his parents the earth & the the sky.
Agni has taken his station-position in an asylum, brilliant, much lauded and as desirous of receiving him as he is to repair to it; radiant, pure, vast and purifying, he repeatedly renovates his parents, Heaven and the Earth.
सद्यो जात ओषधीभिर्ववक्षे यदी वर्धन्ति प्रस्वो घृतेन।
आपइव प्रवता शुम्भमाना उरुष्यदग्निः पित्रोरुपस्थे॥
जन्म लेते ही अग्निदेव औषधियों द्वारा घृत होते हैं। उस समय पथ प्रवाहित जल के तुल्य शोभित औषधियाँ जल द्वारा वर्द्धित होकर फल देती है। माता-पिता द्यावा-पृथ्वी के क्रोड में बढ़कर अग्नि हमारी रक्षा करें।[ऋग्वेद 3.5.8]
अग्नि अपने जन्म से औषधियों द्वारा रचित किये जाते हैं। उसी समय मार्ग में बहते हुए पानी के समान सुशोभित औषधियाँ जल द्वारा वृद्धि को ग्रहण होती और फल से परिपूर्ण होती हैं। धरा से आकाश तक उठती हुई अग्निदेव हमारे रक्षक हों।
Agni Dev is nurtured-nourished by the herbal medicines. The herbal medicines flowing in water grow and produce fruits. Let Agni Dev become our protector from the earth to sky.
उदु ष्टुतः समिधा यह्वो अद्यौद्वर्ष्मन्दिवो अधि नाभा पृथिव्याः।
मित्रो अग्निरीड्यो मातरिश्वा दूतो वक्षद्यजथाय देवान्॥
हमारे द्वारा प्रार्थना और दीप्ति द्वारा महान अग्नि ने पृथ्वी की नाभि या उत्तर वेदी पर स्थित होकर अन्तरिक्ष-आकाश को प्रकाशित किया। सभी के मित्र और स्तुति-योग्य अरणी प्रदीप्त अर्थात आकाश अग्नि देवों के दूत होकर यज्ञ में देवों को बुलायें।[ऋग्वेद 3.5.9]
हमारे द्वारा प्रदीप्त और स्तुत्य अग्नि सबके मित्र, पूजनीय और अरणियों द्वारा प्रदीप्त होते हैं। वे देवगणों के दूत होकर अनुष्ठान में उन्हें आमंत्रित करें।
Agni Dev ignited by us, lit the great earth & sky, positioned at the center of the earth, located in the northern site-hemisphere, having been worshiped-prayed by us. Worshiped by all, friend of all, lit by the woods, messenger of the demigods-deities, Agni Dev should invite the demigods-deities at the Yagy site.
Praised and nourished by the devotees, the mighty Agni, stationed on the altar, the navel, nucleus of the earth, in the form of the firmament, has shone brightly; may the friendly and adorable Agni who respires in the mid-heaven, the messenger of the demigods-deities, bring them to the sacrifice site-Yagy.
उदस्तम्भीत्समिधा नाकपृष्वो ३ ग्निर्भवन्नुत्तमो रोचनानाम्।
यदी भृगुभ्यः पति मातरिश्वा गुहा सन्तं हव्यवाहं समीधे॥
जिस समय मातरिक्षा ने भृगुओं या आदित्य-रश्मियों के लिए गुहास्ति और हव्य वाहक अग्नि को प्रज्वलित किया था, उस समय तेजस्वियों में श्रेष्ठ महान अग्नि देव ने अपने तेज द्वारा स्वर्ग को स्तब्ध कर दिया।[ऋग्वेद 3.5.10]
जब मातरिश्वा ने भृगुओं के लिए गुफा में विराजमान हवि वाहक अग्नि देव को चैतन्य किया तब तेजस्वी, श्रेष्ठ अग्नि देव ने अपने तेज से से सूर्य लोक को भी स्तब्ध कर दिया।
When Matrishwa ignited fire for the Bhragus, in the cave and brought Agni Dev to consciousness, the carrier of offerings, the excellent amongest the aurous-energetic stunned the heavens.
इळामग्ने पुरुदंसं सनिं गोः शश्वत्तमं हवमानाय साध।
स्यान्नः सूनुस्तनयो विजावाग्ने सा ते सुमतिर्भूत्वस्मे॥
हे अग्नि देव! आप स्तोताओं को अनेक कर्मों के हेतुभूत और धेनु प्रदात्री भूमि सदा प्रदत्त-प्रदान करें। हमारे वंश का विस्तारक और सन्तति जनयिता एक पुत्र है। यह हमारे प्रति आपका अनुग्रह है।[ऋग्वेद 3.5.11]
हे अग्ने! तुम अपने वंदनाकारी को असंख्य कार्यों के फल स्वरूप गवादि धन परिपूर्ण धरा सदैव देते रहो। हमारे वंश की वृद्धि करने वाला सन्तानोत्पादन में समर्थ पुत्र हों। यह सब तुम्हारी कृपा दृष्टि से ही सम्भव होगा।
Hey Agni Dev! Grant land & cows etc. to the worshipers as a result of their several deeds. We should have a son capable of continuing our clan. Its possible due to your blessings.(30.08.2022)
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (6) :: ऋषि :- विश्वामित्र, गाथिन, देवता :- अग्नि, छन्द :- त्रिष्टुप्।
प्र कारवो मनना वच्यमाना देवद्रीचीं नयत देवयन्तः।
दक्षिणावाडाजिनी प्राच्येति हविर्भरन्त्यग्नये घृताची॥
हे यज्ञ कर्ताओं! आप स्तोत्रों के मन्त्रोच्चारण के साथ देवताओं के पूजन में प्रयुक्त होने वाली अन्न युक्त स्त्रुवा को दक्षिण दिशा से लाकर पूर्व दिशा में हवि और घृत से परिपूर्ण कर अग्नि देव को अर्पित करो।[ऋग्वेद 3.6.1]
हे यज्ञ को करने वालों! तुम सोम की इच्छा करते हो। मंत्र से शिक्षा प्राप्त कर देवी आराधना में साधन रूप स्त्रुवा को यहाँ पर लाओ जिससे आह्वानीय अग्नि देव दक्षिण दिशा में ले जाते हैं। जिसका अगला भाग पूर्व दिशा में रहता है। वही धन परिपूर्ण अग्नि के लिए अन्न धारण करता है।
Hey organisers of Yagy-Ritviz! Move the Struva filled with Ghee & grains from South to east, with the recitation of Mantr-sacred hymns, making offerings in the Holy fire-Agni.
आ रोदसी अपृणा जायमान उत प्र रिक्था अथ नु प्रयज्यो।
दिवश्चिद्गने महिना पृथिव्या वच्यन्तां ते वह्नयः सप्तजिह्वाः॥
जन्म के साथ ही आप द्यावा-पृथ्वी को पूर्ण करें। याग-योग्य, महिमा द्वारा आप अन्तरिक्ष और पृथ्वी से प्रकृष्टतर हों और आपके अंशभूत विशिष्ट अग्नि देव की सप्त जिह्वाएं पूजित हों।[ऋग्वेद 3.6.2]
हे अग्नि देव! तुम प्रकट होते ही द्यावा-पृथ्वी को पूर्ण करो। यज्ञ के योग्य, महिमा से बढ़े हुए तुम अंतरिक्ष और पृथ्वी पर उठो और तुम्हारे अंश भूत पार्थिव अग्नि को प्राप्त जिह्वाएँ पूजी जायें।
Complete-pervade the sky & earth as soon as you are born. Good-suitable for the Yagy, you & fragment of you as special form of Agni Dev, should rise over the space & the earth and his 7 flames be worshiped.
As soon as Agni is born, it occupy both heaven and earth. You, for whom sacrifice is to be made, exceed in magnitude the firmament and the earth, may your seven-tongued fires be glorified.
द्यौश्च त्वा पृथिवी यज्ञियासो नि होतारं सादयन्ते दमाय।
यदी विशो मानुषीर्देवयन्ती प्रयस्वतीरीळते शुक्रमर्चिः॥
हे अग्नि देव! आप होता हैं, जिस समय देवाभिलाषी और हव्य युक्त मनुष्य आपके दीप्त तेज की प्रार्थना करते हैं, उस समय अन्तरिक्ष, पृथ्वी और यज्ञार्ह देवगण, यज्ञ-सम्पादन के लिए, आपकी ही स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 3.6.3]
हे अग्नि देव! तुम होता हो। जब देवी की इच्छा वाले हविदाता मनुष्य तुम्हारे तेज की प्रशंसा करते हैं, तब अंतरिक्ष, पृथ्वी और देव यज्ञ कर्म को सफल करने हेतु तुम्हें उपासित करते हैं।
Hey Agni Dev! You are the host-organiser of the Yagy. When the humans desirous of invoking the demigods-deities, with offerings, pray your shine-aura; the space, earth and demigods-deities desirous of making the Yagy successful, worship-pray you.
महान्त्सधस्थे ध्रुव आ निषत्तोऽन्तर्द्यावा माहिने हर्यमाणः।
आस्क्रे सपत्नी अजरे अमृक्ते सबदुघे उरुगायस्य धेनू॥
हे महान् व यजमानों के प्रिय अग्नि देव! द्यावा-पृथ्वी के बीच, महिमावाले अपने स्थान पर बैठे हैं। आक्रमणशील, सपत्नीभूता, जरारहिता, अहिंसिता और क्षीर प्रसविनी द्यावा-पृथ्वी अत्यन्त गमनशील अग्नि देव की गायें हैं।[ऋग्वेद 3.6.4]
यजमानों के मित्र श्रेष्ठ अग्नि आकाश और पृथ्वी के मध्यस्थ विराजमान हैं। समान प्रीति वाली, अजर, अहिंसित, आसमान-पृथ्वी, गतिमान अग्नि देव के लिए दूध देने वाली गाय के समान हैं।
Hey great and dear to the hosts Agni Dev! You have occupied the honourable seat-space between the space & earth. Earth & the sky are the cows of the attacker Agni Dev, accompanied with his wife, without old age, non violent, yielding milk for him.
व्रता ते अग्ने महतो महानि तव क्रत्वा रोदसी आ ततन्थ।
त्वं दूतो अभवो जायमानस्त्वं नेता वृषभ चर्षणीनाम्॥
हे अभीष्ट वर्षी अग्नि देव! आप सर्वोत्कृष्ट हैं। आपका कर्म महान् है। आपने यज्ञ द्वारा द्यावा-पृथ्वी को विस्तारित किया है। आप दूत हैं। उत्पन्न होने के साथ ही आप याजक गण के नेता बने।[ऋग्वेद 3.6.5]
हे अग्नि देव! तुम सर्वश्रेष्ठ हो। तुम उत्तम कार्य करने वाले हो। तुमने आकाश-धरती को अनुष्ठान कर्म द्वारा विस्तृत किया है। तुम दौत्य कर्म में कुशल हो। अभिष्टों को वृष्टि करने वाले, जन्म से ही यजमान के पूज्य बनते हैं।
Hey accomplishment showering Agni Dev! You are excellent. Your endeavours are great. You elongated the sky & the earth through the Yagy. You are a messenger-ambassador. You became the worship able leader- supreme for the hosts-Ritviz.
ऋतस्य वा केशिना योग्याभिर्धृतस्नुवा रोहिता घुरि धिष्व।
अथा वह देवान्देव विश्वान्त्स्वध्वरा कृणुहि जातवेदः॥
हे द्युतिमान् अग्नि देव! प्रशस्त केश वाले, रज्जु युक्त और घृत स्त्रावी रोहित नामक दोनों घोड़ों को यज्ञ के सम्मुख नियोजित करें। अनन्तर आप समस्त देवों को बुलावें। हे सर्वभूतज्ञ! आप उन्हें सुन्दर यज्ञ युक्त कीजिए।[ऋग्वेद 3.6.6]
हे तेजस्वी अग्नि देव! तुम सुन्दर केश वाले रस्सी से युक्त घृतस्त्रावी घोड़ों को सबके सम्मुख जोड़ो। फिर सभी देवताओं को अमंत्रित करो। तुम सबको यज्ञमय बनाओ।
Hey bright-brilliant Agni Dev! Deploy the horse with beautiful hair, tied with the cord,
Harness with traces, to your car, your long-maned, ruddy steeds, to come to the Yagy, bring hither, divine Jat Ved, all the demigods and make them propitious to the oblation.
दिवश्चिदा ते रुचयन्त रोका उषो विभातीरनु भासि पूर्वीः।
अपो यदग्न उशधग्वनेषु होतुर्मन्द्रस्य पनयन्त देवाः॥
हे अग्नि देव! जिस समय आप वन में जल का शोषण करते हैं, उस समय सूर्य से भी अधिक आपकी दीप्ति होती है। आप भली-भाँति प्रकाशमान पुरातन उषा के पीछे शोभित होते हैं। स्तोता लोग स्तुति योग्य अग्नि देव की प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 3.6.7]
हे अग्नि देव! तुम वन में जल को सुखाते हो। तब तुम्हारा प्रकाश सूर्य से भी अधिक प्रतीत होता है। तुम सुन्दर कांतिमती उषा के पीछे प्रकाशवान होते हो। स्तोतागण वंदना के पात्र होता रूप अग्नि देव की वंदना करते हैं।
Hey Agni Dev! When you absorb water in the forests-jungles, you brilliance is higher as compared to the Sun. You are visible behind the eternal-ancient Usha. The worshipers pray to Agni Dev, who deserve worship.
When, Agni, you abide in the woods, consuming the waters at your plural forms, then your rays illuminate the heavens and you shine like many former radiant dawns, the demigods-deities themselves commend the brilliancy of their praise-meriting invoker.
उरौ वा ये अन्तरिक्षे मदन्ति दिवो वा ये रोचने सन्ति देवाः।
ऊमा वा ये सुहवासो यजत्रा आयेमिरे रथ्यो अग्ने अश्वाः॥
विस्तीर्ण अन्तरिक्ष में जो देवगण हर्षित हैं, आकाश की दीप्ति में जो सब देवता हैं, 'उम' संज्ञक जो यजनीय पितर लोग भली-भाँति आहूत होकर आगमन करते हैं, रथी अग्नि के वो सब अश्व है।[ऋग्वेद 3.6.8]
जो देवगण विशाल अंतरिक्ष में सुखी हैं, जो देवता ज्योर्तिमान क्षितिज में वास करते हैं, जो "ऊम" संज्ञक पितरगण आह्वान पर आते हैं, वे समस्त रथ परिपूर्ण अग्नि देव के अश्व रूप हैं।
The happy-amused aurous demigods-deities in the broad space, the Pitres-Manes named Um invoke on being properly welcomed-invited and become the horses of Agni Dev driving the charoite.
ऐभिरग्ने सरथं याह्यर्वाङ्नानारथं वा विभवो ह्यश्वाः।
पत्नीवतस्त्रिंशतं त्रींश्च देवाननुष्वधमा वह मादयस्व॥
हे अग्नि देव! उक्त सब देवों के साथ एक रथ अथवा नाना रथों पर चढ़कर हमारे सामने आवें, क्योंकि आपके अश्व गण समर्थ हैं। तैंतीस देवों की उनकी स्त्रियों के साथ अन्न के लिए ले आवें और सोमरस द्वारा प्रसन्न करें।[ऋग्वेद 3.6.9]
हे अग्नि देव! उन सब देवों के युक्त रथारूढ़ हुए हमारे निकट पधारो। तुम्हारे अश्व तुम्हें यहाँ पर लायें। यहाँ पधारकर उन्हें सोम द्वारा बलिष्ठ बनाओ।
Hey Agni dev! Come riding either one or many charoites along with the 39 demigods-deities associated with their wives for food grains, since your horses are capable and treat them with Somras.
स होता यस्य रोदसी चिदुर्वी यज्ञंयज्ञमभि वृधे गृणीतः।
प्राची अध्वरेव तस्थतुः सुमेके ऋतावरी ऋतजातस्य सत्ये॥
देवताओं का आवाहन करने वाले अग्नि देव की आकाश-पृथ्वी समस्त यज्ञों में प्रार्थना करते हैं। रूप, जल और सत्य से परिपूर्ण पृथ्वी यज्ञाग्नि के अनुकूल स्थित है।[ऋग्वेद 3.6.10]
विस्तृत पृथ्वी सभी यज्ञों में जिन अग्निदेव की समृद्धि के लिए करती है।
Agni Dev is worshiped in all Yagy Karm, who invite-invoke the demigods-deities, by the sky & earth. Earth is favourable for carrying out Yagy with its form, water and truth.
इळामग्ने पुरुदंसं सनिं गोः शश्वत्तमं हवमानाय साध।
स्यान्नः सूनुस्तनयो विजावाग्ने सा ते सुमतिर्भूत्वस्मे॥
हे अग्नि देव! आप स्तोता को अनेक कर्मों के हेतुभूत और धेनुदात्री भूमि सदैव प्रदान करें। हमारे वंश का विस्तार करने वाला और सन्तति जनयिता एक पुत्र दें। हे अग्नि देव! हमारे प्रति आपका अनुग्रह है।[ऋग्वेद 3.6.11]
वे देवताओं के होता, बल सम्पन्न सुन्दर रूप वाले को विविध कर्मों की कारण भूत गौ-युक्त भूमि प्रदान करो। हमको वंश की वृद्धि करने वाला, संतान उत्पादन में समर्थ पुत्र प्रदान करो, यही तुम्हारा अनुग्रह होना चाहिये।
Hey Agni Dev! Grant land to the devotees for carrying various deeds-Karm, which has cows. Grant us a son who can further continue with our clan. Hey Agni dev! you should be favourable to us.
Hey Agni Dev! Grant land to the devotees for carrying various deeds-Karm, which has cows. Grant us a son who can further continue with our clan. Hey Agni dev! you should be favourable to us.(31.08.2022, 01.09.2022)
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (7) :: ऋषि :- विश्वामित्र, गाथिन, देवता :- अग्नि, छन्द :- त्रिष्टुप्।
प्र य आरुः शितिपृष्ठस्य धासेरा मातरा विविशुः सप्त वाणीः।
परिक्षिता पितरा सं चरेते प्र सर्स्त्राते दीर्घमायुः प्रयक्षे॥
श्वेत पृष्ठ वाले और सभी के धारक अग्रि देव की जो किरणें उत्तमता के साथ उठती हैं, वे मातृ-पितृ, रूपा द्यावा-पृथ्वी की चारों दिशाओं में प्रविष्ट होती हैं, सातों नदियों में भी प्रविष्ट होती हैं। चारों ओर वर्तमान मातृ-पितृ भूता द्यावा-पृथ्वी भली-भाँति फैली हुई हैं और अच्छी तरह यज्ञ करने के लिए अग्नि को दीर्घ जीवन प्रदान करती हैं।[ऋग्वेद 3.7.1]
उज्ज्वल पीठ वाले सर्वधारक अग्नि की ज्वालाएँ उत्तमत्ता से उन्नत होती हैं, आकाश पृथ्वी माता-पिता की भांति समस्त दिशाओं में विद्यमान होती है। अम्बर धरा माता-पिता समस्त और विस्तारिक हुए यज्ञ के लिए अग्नि देव को लम्बी उम्र प्रदान करते हैं।
The auspicious rays which evolve from the front portion-chest of Agni Dev enters the sky-earth, who are like father & mother, enter in all directions and the 7 rivers. Sky-earth pervade in all directions like father & mother, grants long life to Agni for conducting the Yagy smoothly.
दिवक्षसो धेनवो वृष्णो अश्वा देवीरा तस्थौ मधुमद्वहन्तीः।
ऋतस्य त्वा सदसि क्षेमयन्तं पर्येका चरति वर्तनिं गौः॥
द्युलोक वासी धेनु ही अभीष्ट वर्षी अग्रि का अश्व है। मधुर जल वाहिनी और प्रकाशवती नदियों में अग्नि देव निवास करते हैं। हे अग्नि देव! आप ऋत या सत्य के घर में रहना चाहते हुए अपनी ज्वाला देते है। हे अग्नि देव! एक गौ या मध्यमिका वाक् आपकी सेवा करती है।[ऋग्वेद 3.7.2]
ऋत (1). :: मुक्ति, मोक्ष, सत्य, उज्ज्वल दीप्त, पूजित; liberation, emancipation, truth, bright light, worshiped. (2). शीलोञ्छ वृत्ति से प्राप्त अन्न; food grains collected from the harvested crop fields left over by the farmers.
आकाशवासी धेनु ही अग्निदेव का अश्व है। मथुर जल को प्रवाहित करने वाली निर्मल नदियों में अग्नि का नाम है। हे अग्नि देव! तुम सत्य में निवास करना चाहते हो। हे अग्निदेव! तुम्हारी प्रेरणा से ही यह पृथ्वी सत्य व्यवहार पर अटल रहती है।
The cow present is the heavens is the horse of Agni Dev who make accomplishments. Agni Dev resides in the river possessing aura and carrying sweet water. Hey Agni Dev! You produce heat residing in the house of emancipation & the truth. Hey Agni Dev! Either a cow or Vak-speech serves you.
The sky-traversing steeds of the showerer of benefits are the kine of Agni; as he attains the divine rivers, bearers of sweet water. One sacred sound glorifies you and you are desirous of repose, pacifying your flames in the abode of the water in the firmament-heavens, sky.
आ सीमरोहत्सुयमा भवन्तीः पतिश्चिकित्वान्नयिविद्रयीणाम्।
प्र नीलपृष्ठो अतसस्य घासेस्ता अवासयत्पुरुधप्रतीकः॥
धनों में श्रेष्ठ धन के स्वामी, ज्ञानवान् और अधिपति अग्नि सुख से संयमनीय वड़वाओं में चढ़ गए। श्वेत पृष्ठ वाले और चारों ओर प्रसूत अग्रि ने वड़वाओं को सतत् गमन करने के लिए छोड़ दिया।[ऋग्वेद 3.7.3]
महान समृद्धि के स्वामी अर्थात अग्नि बड़वानलों में गढ़े रहते हैं। उज्जवल पीठ अग्नि देव में सदैव यशवान रहने हेतु बड़वानलों को विमुक्त किया।
The possessor of great wealth, enlightened and the leader; Agni Dev has occupied the Vadva-fire present under waters. Agni with bright exterior, has worshiped the Vadava (fire under the ocean) and has liberated them to move ahead, further.
महि त्वाष्ट्रमूर्जयन्तीरजुर्यं स्तभूयमानं वहतो वहन्ति।
व्यङ्गे भिर्दिद्युतानंः सद्यस्थ एकामिव रोदसी आ विवेश॥
बलकारिणी और प्रवहमाना नदियाँ अग्रि को धारित करती हैं। वे महान, त्वष्टा के पुत्र, जरा रहित और सम्पूर्ण संसार को धारित करने के अभिलाषी है। जिस प्रकार से पुरुष एक स्त्री के पास जाता है, उसी प्रकार अग्नि देव जल के पास प्रदीप्त होकर द्यावा-पृथ्वी में प्रवेश करते हैं।[ऋग्वेद 3.7.4]
प्रवाहमान नदियाँ अग्नि देव का पोषण करती हैं। त्वष्टा के पुत्र, अजर, श्रेष्ठ तथा समस्त संसार को धारण करने की कामना करते हैं। युवा पुरुष की भार्या के पास जाने के तुल्य जल के पास प्रदीप्त हुए अग्नि देव आकाश और पृथ्वी में विद्यमान होते हैं।
Rivers with strong current support Agni. The ageless great son of Twasta, wish to support the whole universe. The way a person goes to a woman, Agni Dev enters the sky & earth.
जानन्ति वृष्णो अरुषस्य शेवमुत ब्रघ्नस्य शासने रणन्ति।
दिवोरुचः सुरुचो रोचमाना इळा येषां गण्या माहिना गीः॥
लोग अभीष्टवर्षी और अहिंसक अग्नि के आश्रय जन्य सुख को जानते हुए महान अग्रि की आज्ञा में रत रहते हैं। जिन मनुष्यों के श्रेष्ठ स्तुति रूप वाक्य गणनीय होते हैं, वे द्युलोक के दीप्ति कर्ता और शोभन दीप्ति युक्त होकर देदीप्यमान होते हैं।[ऋग्वेद 3.7.5]
अभिलाषाओं के वर्षक, अहिंसक अग्नि की शरण से रचित सुख को जानने वाले उनकी आज्ञा में उपस्थित रहते हैं। जिन स्तोताओं की स्तुति रूपवाणी उल्लेखनीय होती है, वे नभ को प्रकाशित करने वाले सुशोभित हुए स्वयं ही प्रकाशमान होते हैं।
Populace who understand the comforts-pleasure under the asylum-protection of accomplishment-desires granting and non violent Agni Dev, obeys-follow him. The people who's excellent prayers are remarkable, turn into the source of glow-aura in the heavens-sky and establish them selves with aura-glow.
उतो पितृभ्यां प्रविंदानु घोषं महो महद्धयामनयन्त शूषम्।
उक्षा ह यत्र परि धानकोरनु स्वं धाम जरितुर्ववक्ष॥
महान से भी महान मातृ-पितृ स्थानीय द्यावा-पृथ्वी के ज्ञान के उपरान्त ऊँचे स्वर में की गई प्रार्थना से उत्पन्न सुख अग्नि के निकट जाता है। जलसेचन कर्ता अग्नि देव रात्रि के चारों ओर व्याप्त स्वकीय तेज स्तोता के पास भेजते हैं।[ऋग्वेद 3.7.6]
मातृ-पितृ भूता आकाश-पृथ्वी के प्रति की जाने वाली वंदना से प्रकट कल्याण भावनाएँ अग्नि देव को ग्रहण होती हैं, जल सींचने में समर्थवान अग्नि देव रात्रि में ज्योर्तिमान अपने तेज को प्रार्थना करने वाले को प्रेषित करते हैं।
The pleasure generated through the prayers sung in loudest voice, in favour of the earth & sky, who are like mother and father reaches Agni Dev. Creator of water Agni Dev, transfers his energy-aura pervading the night, to the recitators of hymns.
अध्वर्युभिः पञ्चभिः सप्त विप्राः प्रियं रक्षन्ते निहितं पदं वेः।
प्राञ्चो मदन्त्युक्षणो अजुर्या देवा देवानामनु हि व्रता गुः॥
पाँच अध्वर्युओं के साथ, सात होता गमनशील अग्रि के प्रिय स्थान की रक्षा करते हैं। सोम पान के लिए पूर्व की ओर जाने वाले अजर और सोम रस वर्षी स्तोता लोग प्रसन्न होते हैं, क्योंकि देवता लोग देव तुल्य स्तोताओं के यज्ञ में ही जाते हैं।[ऋग्वेद 3.7.7]
अध्वर्यु :: The chief priest, one who perform rituals of sacrifice in the Yagy.
पाँच से मुक्त सप्त होता, अग्निदेव के प्रियवास यज्ञ की रक्षा को सींचने वाले, मेहनत से न हारने वाले स्तोता हर्ष पाते हैं, क्योंकि उन देवताओं के सामने स्तोताओं के यज्ञ में देवता विराजते हैं।
7 Ritviz-hosts save-protect the site-place dear to Agni Dev, along with the 5 head priests. The ageless-immortal extractors of Somras going to the east become happy, since demigods-deities visits the Yagy of only those Yagy organisers who themselves are like the demigods-deities (virtuous).
दैव्या होतारा प्रथमा न्यृञ्जे सप्त पृक्षासः स्वधया मदन्ति।
ऋतं शंसन ऋतमित्त आहुरनु व्रतं व्रतपा दीध्यानाः॥
दैव्य होतृ द्वय स्वरूप दो मुख्य अग्रियों को मैं अलंकृत करता हूँ। सात जन होता सोम द्वारा प्रसन्न होते हैं। स्तोत्र कर्ता, यज्ञ रक्षक और दीप्ति शाली होता लोग "अग्रि ही सत्य है", ऐसा बोलते है।[ऋग्वेद 3.7.8]
अद्भुत होता स्वरूप दो अग्नियों को सजाता हूँ। सप्त होता सोम सिद्ध होने पर हर्षित होते हैं। ये होता वंदना करते हुए यज्ञ की सुरक्षा करते हुए अग्नि को ही सत्य बताते हैं।
I decorate the two main amazing forms of Agni (duo who are like the divine hosts). 7 organisers of Yagy become happy due to the accomplishment of Som. Those reciting Strotr, protectors of Yagy and the possessing aura-glow, say, "Agni is truth"
वृषायन्ते महे अत्याय पूर्वीर्वृष्णे चित्राय रश्मयः सुयामाः।
देव होतर्मन्द्रतरश्चिकित्त्वान्महो देवान्रोदसी एह वक्षि॥
देदीप्यमान और देवों को बुलाने वाले, हे अग्नि देव! आप महान, सभी का अतिक्रम करके रहनेवाले, नाना वर्णों वाले और अभीष्टवर्षक हैं। आपके लिए प्रभूत, अतीव विस्तृत और सभी जगह व्याप्त ज्वालाएँ वृष (बैल) के समान आचरण करती हैं। आप मादयिता और ज्ञानी हैं। आप पूज्य देवों और द्यावा-पृथ्वी को इस कर्म में बुलाते हैं।[ऋग्वेद 3.7.9]
अतिक्रम :: सीमा से आगे बढ़ना, नियम या मर्यादा का उल्लंघन, विपरीत व्यवहार, लाँघना।
देव आह्वान कर्त्ता एवं प्रकाशमान अग्नि श्रेष्ठ एवं अभिष्टवर्धक हैं। हे अग्निदेव! तुम्हारी आज्ञा के अनुसार ज्वालाएँ विस्तृत होती हुई, सर्वत्र व्याप्ती हैं तथा वृषभ तुल्य प्रभाव वाली होती हैं। तुम ज्ञानवान हो। हमारे यज्ञ कर्म में देवगणों, पृथ्वी और आकाश को बुलाने वाले हो।
Hey Agni Dev, possessing aura, you are one to invite the demigods-deities. You are great and remain independently, possessing various-several colours-shades and accomplish the desires. Your flames pervade each and every place like a bull. You are enlightened. You invite the revered-honoured deities-demigods & the sky-earth in our Yagy Karm.
Divine invoker of the demigods, the vast and wide spreading rays shed moisture for you, the mighty, the victorious, the wonderful, the showerer of benefits, you are all well known, joy-bestowing, bring hither the great demigods & heaven and earth.
पृक्षप्रयजो द्रविणः सुवाचः सुकेतव उषसो रेवदृषुः।
उतो चिदग्ने महिना पृथिव्याः कृतं चिदेनः सं महे दशस्य॥
हे सतत गमनशील अग्नि देव! जिस उषा काल में भली-भाँति अन्न द्वारा यज्ञ प्रारम्भ किया जाता है, जो उषाकाल शोभन वाक्य युक्त तथा पक्षियों और मनुष्यों के शब्दों से सुचिह्नित है, वही सब उषा काल धन युक्त होकर प्रकाशित होते हैं। हे अग्नि देव! अपनी विशाल महिमा के कारण आप याजकगण के किए हुए पापों को नाश करते हैं।[ऋग्वेद 3.7.10]
हमेशा गतिमान अग्नि देव के लिए जिस उषाकाल में हवि प्रदान करते हुए अनुष्ठान किया जाता है, वह उषाकाल सुसज्जित है। वह उषाकार धन ऐश्वर्य से परिपूर्ण हुआ प्रकाशमान होता है। हे अग्नि देव! तुम अपनी महती दया द्वारा यजमान कृत पापकर्म कर विनाश करते हो।
Hey continuously moving-wandering Agni Dev! The day break-Usha, in which the Yagy is begun with grains, accompanied with the human voices, -Strotr, is lit associated by wealth. Hey Agni Dev! Due to your divine glory the devotees become sinless.
इळामग्ने पुरुदंसं सनिं गोः शश्वत्तमं हवमानाय साध।
स्यान्नः सूनुस्तनयो विजावाग्ने सा ते सुमतिर्भूत्वस्मे॥
हे अग्नि देव! स्तोता को आप अनेक कर्मों की कारणभूता और धेनु प्रदात्री भूमि अथवा गो रूप देवता सदा प्रदान करें। हमें वंश विस्तारक और सन्तति जनयिता एक पुत्र प्रदान करें। हे अग्निदेव! हमारे प्रति आपका अनुग्रह है।
[ऋग्वेद 3.7.11]
हे अग्नि देव! स्तुति करने वाले को विविध कर्म और गौ आदि धन से युक्त जमीन दो। हमें वंश को बढ़ाने वाला, संतान उत्पन्न करने में सक्षम पुत्र प्रदान करो। हम तुम्हारा अनुग्रह चाहते हैं।
Hey Agni Dev! Grant land to the devotee to perform-conduct several activities-deeds and cows in the form of wealth. Grant us a son who should prolong our dynasty. We wish your blessing.(01.09.2022-07.09.2022)
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (8) :: ऋषि :- विश्वामित्र, गाथिन, देवता :- विश्वेदेवा, यूप, व्रश्चन, छन्द :- त्रिष्टुप्, अनुष्टुप्।
अञ्जन्ति त्वामध्वरे देवयन्तो वनस्पते मधुना दैव्येन।
यदूर्ध्वस्तिष्ठा द्रविणेह धत्ताद्यद्वा क्षयो मातुरस्या उपस्थे॥
हे वनस्पति देव! देवों के अभिलाषी अध्वर्यु लोग देव-सम्बन्धी मधु द्वारा आपको सिक्त करते हैं। आप चाहे उन्नत भाव से रहें या मातृ भूत पृथ्वी की गोद में ही शयन करें, हमें धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 3.8.1]
हे वनस्पते! देवों की इच्छा करने वाले अध्वर्यु अद्भुत सोमरस द्वारा तुम्हें सींचते हैं। तुम अंकुर रूप से धरा में विश्राम करो, चाहे ऊँचा उठो, हमको धन प्रदान करो।
Hey Vanaspati Dev! The Priests-Ritviz, nourish you with honey. Whether you are standing or sleeping in the lap of mother earth, grant us money.
समिद्धस्य श्रयमाणः पुरस्ताद्ब्रह्म वन्वानो अजरं सुवीरम्।
आरे अस्मदमतिं बाधमान उच्छ्रयस्व महते सौभगाय॥
हे यूप! आप समिद्ध अथवा आहवनीय नामक अग्नि की पूर्व दिशा में रहकर अजर, सुन्दर और अपत्य युक्त अन्न देते हुए एवं हमारे पाप को दूर करते हुए महती सम्पत्ति के लिए उन्नत होवें।[ऋग्वेद 3.8.2]
यूप :: किसी युद्ध में विजयी होने पर उसकी याद में बना स्तम्भ, वह खंभा जिसमें बलि दिया जाने वाला पशु बाँधा जाता है, यज्ञ का वह खंभा जिसमें बलि पशु बाँधा जाता है, वह स्तम्भ जो किसी विजय अथवा कीर्ति आदि की स्मृति में बनाया गया हो; स्तम्भ, खम्भा, विजय स्तम्भ, कीर्ति स्तम्भ, यज्ञ या यूप या तो खदिर-खैर की लकड़ी का होता है या बाँस का, होम-यज्ञ का खूँटा, बलि स्तंभ; sacrificial post, the post, mast, pole meant to sacrifice animals, the tower made in the memory of a war won, the tower to glorify the winners.
अपत्य :: संतान, वंशज; offspring.
हे यूप! तुम अग्नि की पूर्व दिशा में रहते हुए सुन्दर, जरा विमुख परिपूर्ण हमारे पापों को दूर करो। हमको श्रेष्ठतम धन ग्रहण करने हेतु उठो।
Hey Yup! You should rise for the creation of extreme wealth, being immortal-ageless, granting us food grains associated with the grant of progeny, while staying in east direction of Samiddh or Ahavneey Agni, eliminating our sins.
उच्छ्रयस्व वनस्पते वर्ष्मन्पृथिव्या अधि।
सुमिती मीयमानो वर्चो धा यज्ञवाहसे॥
हे वनस्पति! आप पृथ्वी के उत्तम यज्ञ-प्रदेश में उन्नत होवें। आप सुन्दर परिमाण से युक्त हैं। यज्ञ-निर्वाहक को अन्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 3.8.3]
हे वनस्पते! तुम धरा के जल आदि परिपूर्ण महान जगह पर वृद्धि करो। हे यज्ञ के पालक! यजमान को अन्न प्रदान करो।
Hey Vanaspati! You should rise-progress over the excellent place, suitable for Yagy, over the earth. You possess beautiful quantum. Grant food grains to the hosts for Yagy.
युवा सुवासाः परिवीत आगात्स उ श्रेयान्भवति जायमानः।
तं धीरासः कवय उन्नयन्ति स्वाध्यो ३ मनसा देवयन्तः॥
दृढ़ाङ्ग, सुन्दर जिह्वावाला तथा जिह्वा से परिवेष्टित यूप आता है। वह यूप ही समस्त वनस्पतियों की अपेक्षा उत्तम रूप से उत्पन्न है। ज्ञानी मेधावी लोग हृदय से देवों की इच्छा करके सुन्दर ध्यान के साथ उसे उन्नत करते हैं।[ऋग्वेद 3.8.4]
अटल अंग से युक्त सुन्दर जीभ वाला यूप प्रकट होता है। वह यूप सभी वनस्पतियों में उत्तम प्रकार वाला है। ज्ञानवान मेधावीजन देवगणों की इच्छा से निश्चय ध्यानपूर्वक मन से उसे बढ़ाते हैं।
Strong-stout Yup with beautiful tongue appears. This Yup is born excellently as compared to other Vanaspati-vegetation. Enlightened, intelligent people make the desire from the depth of their heart to invoke it.
जातो जायते सुदिनत्वे अह्नां समर्य आ विदथे वर्धमानः।
पुनन्ति धीरा अपसो मनीषा देवया विप्र उदियर्ति वाचम्॥
इस पृथ्वी पर वृक्ष रूप से उत्पन्न यूप मनुष्यों के साथ यज्ञ में सुशोभित होकर दिनों को सुदिन करता है। कर्मनिष्ठ और विद्वान् अध्वर्यु लोग यथाबुद्धि उसी यूप को प्रक्षालन द्वारा शुद्ध करते हैं। देवों के याजक और मेधावी होता वाक्य या मन्त्र का उच्चारण करते हैं।[ऋग्वेद 3.8.5]
वृक्ष रूप उन्नत हुआ यूप अनुष्ठान स्थान में मनुष्यों के साथ सुशोभित हुआ दिनों को मंगलमय बनाता है। कर्मवान मेधावी अध्वर्युगण अपनी बुद्धि के अनुसार ग्रुप को पानी से धोकर पवित्र करते हैं। देवताओं का यजन करने वाले विज्ञ होता श्लोक का उच्चारण करते हैं।
The Yup born as a tree on this earth, makes the days-life of the humans auspicious. Devoted and enlightened people-cleanse it, as per their wish. The brilliant hosts-Ritviz worshiping demigods-deities recite hymns.
यान्वो नरो देवयन्तो निमिम्युर्वनस्पते स्वधितिर्वा ततक्ष।
ते देवासः स्वरवस्तस्थिवांसः प्रजावदस्मे दिधिषन्तु रत्नम्॥
हे यूपो! देवाभिलाषी और कर्मों के नायक अध्वर्यु आदि ने आपको गड्ढे में फेंक दिया है। हे वनस्पति! कुठार ने आपको काटा है। आप दीप्तिमान् और काष्ठ खण्ड युक्त हो। हमें अपत्य के साथ श्रेष्ठ धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 3.8.6]
हे यूपो! देवताओं की अभिलाषा करने वाले कर्मों के पालक, अध्वर्युगण तुम्हें गड्ढे में फेंकते हैं। हे वनस्पते! तुम कुठार से काटे गये हो। तुम निर्मल लकड़ी वाले हो। इनको संतानयुक्त उत्तम धन दो।
Hey Yup! The Priests desirous of invoking demigods-deities, leader of the divine procedures, threw you in the pit. Hey Vanaspati! You have been cut-shaped with the axe. You are aurous possessing wood. Grant us progeny with wealth.
ये वृक्णासो अघि क्षमि निमितासो यतस्रुचः।
ते नो व्यन्तु वार्यं देवत्रा क्षेत्रसाधसः॥
जो फरसे से भूमि पर काटे जाते हैं, जो ऋत्विकों द्वारा गड्ढे में फेंके जाते हैं व जो यज्ञ
के साधक हैं, वे ही सब यूप देवों के पास हमारा हव्य ले जावें।[ऋग्वेद 3.8.7]
जो कुल्हाड़ी से काटे जाकर ऋत्विजों द्वारा गड्ढे में डाल दिये जाते हैं तथा जो अनुष्ठान का साधन करने वाले हैं, वे यूप हमारी हवियों को देवताओं के निकट पहुँचाये।
The Yup cut with the axe over the land, thrown into the pit and which are the means of performing Yagy, take the humans to demigods-deities.
आदित्या रुद्रा वसवः सुनीथा द्यावाक्षामा पृथिवी अन्तरिक्षम्।
सजोषसो यज्ञमवन्तु देवा ऊर्ध्वं कृण्वन्त्वध्वरस्य केतुम्॥
सुन्दर नायक आदित्य (सूर्य), रुद्र, वसु, द्यावा-पृथ्वी और विस्तीर्ण अन्तरिक्ष, ये सब मिलकर यज्ञ की रक्षा करें और यज्ञ की ध्वजा यूप को उन्नत करें।[ऋग्वेद 3.8.8]
आदित्य, रुद्र, वसु भली प्रकार संगत होकर सूर्य मंडल, पृथ्वी और अंतरिक्ष तीनों स्थानों में विद्यमान करें और अनुष्ठान का पोषण करें। वे ही यज्ञ की ध्वजारूपी अग्नि की वृद्धि करें।
Let the leader Adity-Sun, Rudr, Vasu, heavens-earth and the vast space-sky protect the Yagy as a joint effort and erect-raise the Yup.
हंसा इव श्रेणिशो यतानाः शुक्रा वसानाः स्वरवो न आगुः।
उन्नीयमानाः कविभिः पुरस्ताद्देवा देवानामपि यन्ति पाथः॥
दीप्त वस्त्र से आच्छादित, हंस के तुल्य श्रेणी पूर्वक गमन करने वाले और खण्ड युक्त यूप हमारे पास आयें। मेधावी अध्वर्यु आदि के द्वारा यज्ञ की पूर्व दिशा में उन्नीयमान तथा दीप्तिशाली समस्त दूप देवों का मार्ग प्राप्त करते हैं।[ऋग्वेद 3.8.9]
सुन्दर ध्वजा से ढके हुए, हंस के समाना श्रेणीबद्ध यूप हमको प्राप्त हों। विद्वान अध्वर्युओं के द्वारा पूर्व की ओर उठे हुए निर्मला रूप देवताओं के पथ पर अग्रसर होते हैं।
Let the Yup decorated with shining cloth-flags, which move-travel like the swan, having segments, come to us. The intelligent priests receive the Yup raised in the east direction of the Yagy, that follows the path of the demigods-deities.
शृङ्गाणीवेच्छङ्गिणां सं ददृश्रे चषालवन्तः स्वरवः पृथिव्याम्।
वाघद्भिर्वा विहवे श्रीषमाणा अस्माँ अवन्तु पृतनाज्येषु॥
स्वरूप वाले और मुक्त कण्टक यूप पृथ्वी के शृङ्गी पशुओं की सींग के तुल्य भली-भाँति दिखाई देते हैं। यह में ऋत्विकों की स्तुतियाँ सुनने वाले यूप युद्ध में हमारी रक्षा करें।[ऋग्वेद 3.8.10]
कांटे हटाने के बाद सुंदर हुए यूप पृथ्वी पर उत्पन्न सींगों वाले जानवरों के सींगों की भांति लगते हैं। यज्ञ में ऋत्विजों के स्तोत्र सुनने वाले, खूप लड़ाई में हमारी रक्षा करें।
Beautiful Yup, from which thorns have been removed, are seen clearly, like the horns of the animals over the earth. The Yup which listen to the hymns sung by the Ritviz, protect us in the war.
वनस्पते शतवल्शो वि रोह सहस्रवल्शा वि वयं रुहेम।
यं त्वामयं स्वधितिस्तेजमानः प्राणिनाय महते सौभगाय॥
हे छिन्न मूल स्थाणु! इस तीखी धार वाले फरसे ने आपको महान् सौभाग्य प्रदान किया है। आप हजार शाखाओं वाले होकर भली-भाँति उत्पन्न होवें। हम भी हजार शाखाओं वाले होकर भली-भाँति प्रादुर्भूत होवें।[ऋग्वेद 3.8.11]
हे वनस्पते! तुम मूल से पृथक हुए, तीक्ष्ण धार वाले कुठार ने तुम्हें अत्यन्त भाग्यवान बनाया। तुम हजारों शाखाओं से परिपूर्ण हुए, महान रूप से रचित होओ। हम भी सहस्त्र शाखा वाले बनकर उत्तम रूप से वृद्धि करें।
Hey uprooted fixed Yup! You have been blessed with great luck. You should born again with thousand branches. We too should progress with one thousand branches.(09.09.2022)
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (9) :: ऋषि :- विश्वामित्र, गाथिन, देवता :- अग्नि, छन्द :- बृहती, त्रिष्टुप्।
सखायस्त्वा ववृमहे देवं मर्तास ऊतये।
अपां नपातं सुभगं सुदीदितिं सुप्रतूर्ति मनेहसम्॥
हे अग्नि देव! आप जल के नप्ता, सुन्दर धन वाले, दीप्तिमान्, निरुपद्रवी एवं संसार के प्राप्तव्य हैं। हम आपके मित्र भूत मनुष्य हैं। अपनी रक्षा के लिए हम आपका वरण करते हैं।[ऋग्वेद 3.9.1]
हे अग्नि देव! तुम महान समृद्धिशाली, अविनाशी प्रकाशमान, उपद्रव पृथक संसार को ग्रहण होने वाले हो। हम मनुष्य तुम्हारे मित्र के समान हैं। तुमको अपने रक्षक रूप वरण करते हैं।
Hey Agni Dev! You are born out of water, possess good wealth, shinning-aurous, free from disturbances and accept the world-universe. We-humans are like your friends. We accept you as our protector.
कायमानो वना त्वं यन्मातॄरजगन्नपः।
न तत्ते अग्ने प्रमृषे निवर्तनं यद्दूरे सन्निहाभवः॥
हे अग्नि देव! आप समस्त वनों की रक्षा करते हैं। आप मातृ रूप जल में पैठकर शान्त होवें। आपका शान्त भाव सदा नहीं सहा जाता, इसलिए आप दूर में रहकर भी हमारे काठ के बीच उत्पन्न होते है।[ऋग्वेद 3.9.2]
हे अग्नि देव! तुम सभी वनों के रक्षक हो। तुम अपने शरणभूत जलों में निवास कर शांत होओ। तुम अपने शांत स्वभाव से जब उकता जाते हो, तब दूर रहते हुए भी हमारे कोष्ठ में प्रकट होते हो।
Hey Agni Dev! You protect the forests-jungles. You become quite by entering water, which is like your mother. Your inactiveness too can not be accepted, hence you appear in our wood, even though far-away from us.
अति तृष्टं ववक्षिथाथैव सुमना असि।
प्रप्रान्ये यन्ति पर्यन्य आसते येषां सख्ये असि श्रितः॥
हे अग्नि देव! स्तोता की अभिलाषा को आप विशेष रूप से वहन करने की इच्छा करते है। आप सन्तुष्ट रहते हैं। आप जिन सोलह ऋत्विकों के साथ मित्रता के साथ रहते हैं, उनमें से कुछ विशेष रूप से होम करने के लिए जाते हैं, अवशिष्ट मनुष्य चारों ओर ही बैठते हैं।[ऋग्वेद 3.9.3]
हे अग्निदेव! वंदना करने वालों की अभिलाषा की पूर्ति का तुम विचार करते हो। तुम हमेशा संतुष्ट रहते हो।
Hey Agni Dev! You are capable of fulfilling-accomplishing the desires of the devotee-one singing hymns in your honour. You remain satisfied. Some of the Ritviz come specially for Yawan-Yagy, out of the sixteen, with whom you are friendly. Remaining Ritviz sit around, to perform Yagy.
ईयिवांसमति स्त्रिधः शश्वतीरति सश्चतः।
अन्वीमविन्दन्निचिरासो अद्रुहोऽप्सु सिंहमिव श्रितम्॥
गुहा स्थित सिंह के सदृश, जल में छिपे हुए तथा शत्रुओं और बहु सेनाओं को हराने वाले अग्नि को द्रोह-रहित और चिरन्तन विश्व देवों ने प्राप्त किया था।[ऋग्वेद 3.9.4]
तुम्हारे मित्र भाव को प्राप्त करने वाले शत्रु और उनकी सेनाओं को हराने वाले अग्नि देव को, शून्य विश्वे देवताओं ने प्राप्त कर लिया।
Vishw Dev, free from enmity attained Agni Dev, who is like the lion inside the cave, hidden under waters and defeats the enemy and his several armies.
ससृवांसमिव त्मनाग्निमित्था तिरोहितम्।
ऐनं नयन्मातरिश्वा परावतो देवेभ्यो मथितं परि॥
जिस प्रकार से स्वच्छन्दगामी पुत्र को पिता खींच ले आता है, उसी प्रकार मातरिश्वा स्वेच्छा से छिपे हुए और मन्थन द्वारा प्राप्त अग्नि को देवों के लिए लाए थे।[ऋग्वेद 3.9.5]
जैसे स्वेच्छाकारी पुत्र को पिता अपनी ओर आकृष्ट करता है, वैसे ही इच्छापूर्वक समाये हुए अग्निदेव को मथकर मातरिश्वा देवों के लिए ले आये।
Matrishwa brought Agni to the demigods-deities, who had hidden himself of his own, like a father who brings his son who move freely.
प्रा तं त्वा मर्ता अगृभ्णत देवेभ्यो हव्यवाहन।
विश्वान्यद्यज्ञाँ अभिपासि मानुष तव क्रत्वा यविष्ठ्य॥
मनुष्यों के हितैषी और सदा तरुण हे अग्नि देव! अपनी महिमा से आप सभी यज्ञों का विशेष रूप से पालन करते हैं। इसलिए हे हव्य वाहन! मनुष्यों ने आपको देवीं के लिए ग्रहण किया है।[ऋग्वेद 3.9.6]
जैसे स्वेच्छाकारी पुत्र को पिता अपनी ओर आकृष्ट करता है, वैसे ही इच्छापूर्वक समाये हुए अग्निदेव को मथकर मातरिश्वा देवों के लिए ले आये।हे मनुष्यों के हितसाधक सतत युवा अग्निदेव! तुम अपनी महत्ता से यज्ञ के रक्षक हो। तुम हवि वहन करने वाले को प्राणियों ने देवताओं के लिए चुना है।
Always young and beneficial to the humans, hey Agni Dev! You support every Yagy due to your glory. Hey carrier of offerings to demigods-deities! You have been selected by the demigods-deities for this job.
तद्भद्रं तव दंसना पाकाय चिच्छदयति।
त्वां यदग्ने पशवः समासते समिद्धम पिशर्वरी॥
हे अग्नि देव! चूँकि सायंकाल में आपके सिद्ध होने पर आपके पास समस्त पशु बैठते हैं; इसलिए आपका यह सुन्दर कर्म बालक के तुल्य यज्ञ को भी फल प्रदान करके सन्तुष्ट करता है।[ऋग्वेद 3.9.7]
हे अग्निदेव! सायंकाल में प्रदीप्त होने पर पशु तुम्हारी शरण में बैठ जाते हैं। तुम्हारा उत्तम कर्म बच्चों के समान मूर्ख को भी अभिष्ट प्रदान कर संतुष्ट करता है।
Hey Agni Dev! The animals sits near you in the evening. Hence this gesture of yours, grants the reward like Yagy carried over small scale-comparable to a child.
आ जुहोता स्वध्वरं शीरं पावकशोचिषम्।
आशुं दूतमजिरं प्रत्नमीड्यं श्रुष्टी देवं सपर्यत॥
पवित्र दीप्ति वाले, काष्ठादि के मध्य सोए हुए और सुकर्मा अग्नि का होम करें। बहु व्याप्त, दूत स्वरूप, शीघ्रगामी, पुरातन स्तुति योग्य और दीप्तिमान अग्नि देव की शीघ्र पूजा करें।[ऋग्वेद 3.9.8]
उन काष्ठादि में सुप्त श्रेष्ठ कार्य वाले तथा शुद्ध दीप्ति वाले अग्निदेव का यजन करो। द्रुतगामी, प्राचीन, सर्व व्याप्त, सन्देशवाहक रूप पूजनीय अग्नि का यजन करो।
Worship-pray to aurous Agni Dev, hidden in the wood, performing auspicious-virtuous deeds. Pray quickly to Agni Dev, who is pervading in multiple objects, acts like an ambassador, eternal-ancient, who is like a demigod-deity.
त्रीणि शता त्री सहस्राण्यग्निं त्रिंशञ्च देवा नव चासपर्यन्।
औक्षन्घृतैरस्तृण न्बर्हिरस्मा आदिद्धोतारं न्यसादयन्त॥
तीन हजार तीन सौ उनतालीस देवों ने अग्नि की पूजा की है, घृत द्वारा उन्हें सिक्त किया है और उनके लिए कुश विस्तृत किया। तदुपरान्त उन्होंने अग्नि को होता मानकर कुशों के ऊपर बैठाया।[ऋग्वेद 3.9.9]
उन अग्निदेव को तैंतीस सौ उन्तालिस देवताओं ने पूजा, घृत से उन्हें सिंचित किया और उनके लिए कुश बिछाये हैं। फिर उन्होंने अग्नि को होता रूप में धारण कर कुश पर प्रतिष्ठित किया।
3,339 demigods worshiped-prayed Agni Dev and satisfied him with Ghee offering him a Kushasan. Later, they recognised Agni Dev as the Ritviz-host and let him be seated over the Kush Mat.(11.09.2022)
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (10) :: ऋषि :- विश्वामित्र, गाथिन, देवता :- अग्नि, छन्द :- उष्णिक्।
त्वामग्ने मनीषिणः सम्राजं चर्षणीनाम्। देवं मर्तास इन्धते समध्वरे॥
हे अग्नि देव! आप प्रजाओं के अधिपति और दीप्तिमान् हैं। आपको बुद्धिमान् मनुष्य उद्दीप्त करते हैं।[ऋग्वेद 3.10.1]
हे प्रजा स्वामी अग्निदेव तुम ज्योर्तिमान हो। तुम्हें मेधावीजन चैतन्य करते हैं।
Hey Agni Dev! You are aurous & the leader of populace. Intelligent humans glow-lit you.
त्वां यज्ञेष्वृत्विजमग्ने होतारमीळते। गोपा ऋतस्य दीदिहि स्वे दमे॥
हे अग्नि देव! आप होता और ऋत्विक् हैं। यज्ञ में अध्वर्यु आपकी प्रार्थना करते हैं। यज्ञ
के रक्षक होकर अपने घर (यज्ञशाला) में दीप्त होवें।[ऋग्वेद 3.10.2]
हे अग्नि देव! तुम होता हो। तुम ऋत्विक हो। अध्वर्युगण अनुष्ठान में तुम्हारा पूजन करते हैं। तुम अनुष्ठान घर में प्रकाशमान होकर अनुष्ठान की सुरक्षा करो।
Hey Agni Dev! You are the host-Ritviz (organiser of the Yagy). You are prayed-worshiped by the Priests. Become the protector of the Yagy and glow in the Yagy Shala-site of Yagy.
स घा यस्ते ददाशति समिधा जातवेदसे। सो अग्ने धत्ते सुवीर्यं स पुष्यति॥
हे अग्नि देव! आप जातवेदा हैं। आपको जो याजकगण समिन्धनकारी हव्य प्रदत्त करते हैं, वह सुवीर्य पुत्र प्राप्त करते और पशु, पुत्र आदि के द्वारा समृद्ध होते हैं।[ऋग्वेद 3.10.3]
हे अग्नि देव! तुम जन्म से ही मेधावी हो। जो यजमान तुमको हवि प्रदान करते हैं, वे श्रेष्ठ वीर्यवान पुत्र ग्रहण करते हुए पशु, पुत्र एवं समृद्धि द्वारा समृद्ध होते हैं।
Hey Agni Dev! You are intelligent since your birth. The hosts-Ritviz who make offerings to you obtain great-mighty son & cattle and become prosperous-rich.
स केतुरध्वराणामग्निर्देवेभिरा गमत्। अञ्जानः सप्त होतृभिर्हविष्मते॥
यज्ञ के प्रज्ञापक वही अग्नि सात होताओं द्वारा सिक्त होकर, याजकगण के लिए देवों के साथ आवें।[ऋग्वेद 3.10.4]
यज्ञ को प्रकाशित करने वाले अग्नि देव सात होताओं द्वारा घृत से सिंचित किये जाते हैं।
Agni Dev highlighting the Yagy, should accompany demigods-deities being offered Ghee by 7 hosts-Ritviz, priests.
प्र होत्रे पूर्व्यं वचोऽग्नये भरता बृहत्। विषां ज्योतींषि बिभ्रते न वेधसे॥
हे ऋत्विकों! मेधावी व्यक्तियों का तेज धारित करने वाले संसार के विधाता और देवों
को बुलाने वाले अग्नि को लक्ष्य करके आप लोग महान और प्राचीन वाक्य का सम्पादन करें।[ऋग्वेद 3.10.5]
वे संसार के रचियता देवगणों के आह्वानकर्त्ता अग्नि के लिए प्राचीन एवं महान श्लोकों का संपादन करने वाले हैं।
Hey Ritviz! You should begin-promote the ancient-eternal compositions, addresses to great Agni Dev who invite-invoke the Almighty and the demigods-deities.
अग्निं वर्धन्तु नो गिरो यतो जायत उक्थ्यः। महे वाजाय द्रविणाय दर्शतः॥
महान् अन्न एवं धन के लिए अग्नि देव दर्शनीय अर्थात् दर्शन करने योग्य हैं। जिस वाक्य के द्वारा अग्नि देव प्रशंसनीय होते हैं, हमारी वही स्तुति-रूप वाक्य उन्हें वर्द्धित करे।[ऋग्वेद 3.10.6]
अग्नि देव अन्न और धन के लिए दर्शन के योग्य हैं। जिस वाणी से उनकी प्रशंसा होती है, हमारी वही वाणी वंदना रूप में उन अग्नि देव को बढ़ाएँ।
Presence of Agni Dev is essential for the sake of food grains and wealth. The compositions, which praise Agni Dev, should be used as prayers-hymns for his growth.
अग्ने यजिष्ठो अध्वरे देवान्देवयते यज। होता मन्द्रो वि राजस्यति स्त्रिधः॥
हे अग्नि देव! आप यज्ञ कर्ताओं में श्रेष्ठ है। यज्ञ में याजकगणों के लिए देवों का याग करें। आप होता और यजमानों को हर्ष देते हैं। आप शत्रुओं को पराजित कर शोभा युक्त होते हैं।[ऋग्वेद 3.10.7]
हे अग्नि देव! अनुष्ठानकर्त्ताओं में तुम महान हो। यजमानों के लिए अनुष्ठान में देवों के प्रति यजन करो। तुम यजमानों को सुख प्रदान करने वाले देव रूप हो, शत्रुओं को हराकर सुशोभित होते हो।
Hey Agni Dev! You are the best amongest the organisers-performers of the Yagy. Conduct Yagy in the favour-honour of the demigods-deities for the sake of hosts-Ritviz. You fill the hosts & the Ritviz with happiness-pleasure. You attain glory by defeating the enemy.
स नः पावक दीदिहिं द्यमदस्मे सुवीर्यम्। भवा स्तोतृभ्यो अन्तमः स्वस्तये॥
हे पावक! आप हमें कान्तिवाला और शोभन शक्तिवाला धन प्रदान करें। स्तोताओं के कल्याण के लिए उनके पास जावें।[ऋग्वेद 3.10.8]
हे अग्निदेव! तुम पवित्र हो। हमको अत्यधिक सुशोभित, दमकता हुआ यश देकर वंदना करने वालों का मंगल करने के लिए उन्हें प्राप्त हो।
Hey Agni-Pavak! Make us aurous and grant us the wealth which deserve display. Visit the devotees-reciters of Strotr.
तं त्वा विप्रा विपन्यवो जागृवांसः समिन्धते। हव्यवाहममर्त्यं सहोवृधम्॥
हे अग्नि देव! हव्य वाहक, अमर और मंथन रूप बल द्वारा आप वर्द्धमान हैं। प्रबुद्ध मेधावी स्तोता लोग आपको भली-भाँति उद्दीप्त करते हैं।[ऋग्वेद 3.10.9]
हे अग्निदेव! तुम हवि वाहक हो। मंथन रूप बल से बढ़े हुए हो। अत्यन्त विद्वान वंदना करने वाले तुम्हें उत्तम प्रकार चैतन्य करते हैं।
Hey Agni Dev! You are immortal, carrier of offerings & vast due to the impact of strength obtained by churning. The enlightened-intelligent Stota-reciters glow you properly. (15.09.2022)
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (11) :: ऋषि :- विश्वामित्र, गाथिन, देवता :- अग्नि, छन्द :- गायत्री।
अग्निर्होता पुरोहितोऽध्वरस्य विचर्षणिः। स वेद यज्ञमानुषक्॥
अग्नि देव होता, पुरोहित और यज्ञ के विशेष द्रष्टा हैं। वे यज्ञ के स्वरूप को क्रम बद्ध जानते हैं।[ऋग्वेद 3.11.1]
अग्नि देव यज्ञ के होता, पंडित और विशेष द्रष्टा हैं। वे अनुष्ठान कार्य के पूर्ण ज्ञाता हैं।
Agni Dev is the host-Ritviz, priest and the enlightened viewer of the Yagy. He know the systematic method-procedure of the Yagy.
स हव्यवाळमर्त्य उशिग्दूतश्चनोहितः। अग्निर्धिया समृण्वति॥
हव्य वाहक, अमर, हव्याभिलाषी, देवों के दूत और अन्न प्रिय अग्नि देव प्रज्ञावान् हो रहे हैं।[ऋग्वेद 3.11.2]
वे हवि वहन करने वाले, अविनाशी, देवों के दूत, अग्नि रूप हवियों की इच्छा वाले, अग्निदेव अत्यन्त मेधावी हैं।
Agni Dev is desirous & carrier of the offerings, ambassador of the demigods-deities, likes food grains and is intelligent.
अग्निर्धिया स चेतति केतुर्यज्ञस्य पूर्व्यः। अर्थं ह्यस्य तरणि॥
हे यज्ञ के कर्त्ता स्वरूप और प्राचीन अग्नि देव! प्रज्ञा के बल से सब कुछ जानते हैं। इन अग्नि देव का तेज अन्धकार का विनाश करता है।[ऋग्वेद 3.11.3]
अनुष्ठान में कर्त्ता रूप, प्राचीन अग्नि अपनी मति की शक्ति से समस्त कार्यों के ज्ञाता हैं। इनका तेज अंधेरे को नष्ट करने में समर्थवान हो।
Hey patron of the Yagy & ancient-eternal Agni Dev! You know every thing on the strength of intelligence. The aura of Agni Dev removes darkness.
अग्निं सूनुं सनश्रुतं सहसो जातवेदसम्। वह्निं देवा अकृण्वत॥
हे बल के पुत्र! सनातन कहकर प्रसिद्ध तथा जातवेदा अग्नि को देवों ने हव्य वाहक नियुक्त किया है।[ऋग्वेद 3.11.4]
जातवेदा :: अग्नि, चित्रक वृक्ष, चीते का पेड़, अंतर्यामी, परमेश्वर, सूर्य; fire, Chitrak tree, God, omniscient.
प्राचीन रूप में विख्यात जन्म से ही मतिवान, शक्ति के पुत्र उन अग्नि देव को देवताओं ने हवि ग्रहण करने वाला बनाया।
Hey the son of strength-might! The demigods-deities have appointed you as the carrier of offerings recognising you as omniscient, ancient-eternal.
अदाभ्यः पुरएता विशामग्निर्मानुषीणाम्। तूर्णी रथः सदा नवः॥
हे मनुष्यों के नेता! शीघ्रकारी रथ के समान और सदा नवीन अग्नि देव की कोई हिंसा नहीं कर सकता।[ऋग्वेद 3.11.5]
मनुष्य के नायक जल्दी से कर्म करने वाले, रथ के समान और सतत युवा अग्नि देव की हिंसा करने में कोई सक्षम नहीं है।
Hey leader-well wisher of the humans! No one can harm always new Agni Dev who is comparable to fast moving charoite.
साह्वान्विश्वा अभियुजः क्रतुर्देवानाममृक्तः अग्निस्तुविश्रवस्तमः॥
सम्पूर्ण शत्रु सेना के विजेता, शत्रुओं द्वारा अवध्य और देवों के पोषण कर्ता अग्नि देव यथेष्ट मात्रा में विविध अन्नों से युक्त है।[ऋग्वेद 3.11.6]
शत्रु की समस्त सेना को हराने वाले, शत्रुओं द्वारा अवर्धनीय तथा देवताओं को पुष्ट करने वाले अग्नि देव अन्न से परिपूर्ण हैं।
The defeater of the enemy armies Agni Dev, who can not be killed by the enemy, nourishing the demigods-deities, possess sufficient quantity of food grains.
अभि प्रयांसि वाहसा दाश्वाँ अश्नोति मर्त्यः। क्षयं पावकशोचिषः॥
हव्य दाता मनुष्य, हव्य वाहक अग्नि द्वारा सम्पूर्ण अन्न प्राप्त करता है। ऐसा मनुष्य पवित्र कारक और दीप्ति विशिष्ट अग्नि देव से घर प्राप्त करता है।[ऋग्वेद 3.11.7]
हवि प्रदान करने वाला मनुष्य, हवि वहन करने वाले देव, अग्नि से समस्त अन्नों को प्राप्त करता है। वह शुद्ध करने वाली ज्योतिवान अग्नि को सुन्दर-वास स्थान ग्रहण कराते हैं।
One who makes offerings, gets all sorts of food grains from Agni Dev. He obtains house from purifying and aurous Agni Dev.
परि विश्वानि सुधिताग्नेरश्याम मन्मभिः विप्रासो जातवेदसः॥
हम मेघावी और जातवेदा अग्नि देव के स्तोत्रों द्वारा समस्त अभिलषित धन प्राप्त कर सकें।[ऋग्वेद 3.11.8]
स्वयं भू विद्वान, अग्नि देव की वंदना करते हुए हम सम्पूर्ण इच्छित धनों को प्राप्त करने वाले हों।
Let us get desired wealth-money from intelligent and omniscient Agni Dev by the recitation of Strotr-hymns.
अग्ने विश्वानि वार्या वाजेषु सनिषामहे। त्वे देवास एरिरे॥
हे अग्रि देव! हम सम्पूर्ण अभिलषणीय धन प्राप्त कर सकें। देवता लोग आपके ही भीतर प्रविष्ट हुए है।[ऋग्वेद 3.11.9]
हे अग्नि देव! हम सभी इच्छित धनों को प्राप्त करें, सभी देवता तुम्ही में वास हैं।
Hey Agni Dev! Let us obtain desired wealth-riches. The demigods-deities reside in you.(16.09.2022)
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (12) :: ऋषि :- विश्वामित्र, गाथिन, देवता :- अग्नि, छन्द :- गायत्री। Hey Indr & Agni Dev! You light the heavens. You should gain honours in every war-battle. Your strength-might is reflected in the victory of the war.(18.09.2022)
इन्द्राग्नी आ गतं सुतं गीर्भिर्नभो वरेण्यम्। अस्य पातं धियेषिता॥
हे इन्द्र और अग्नि देव! स्तुति-द्वारा आहूत होकर आप लोग स्वर्ग से तैयार किए हुए और वरणीय इस सोमरस को लक्ष्य कर पधारें। हमारी भक्ति के कारण आकर इस सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 3.12.1]
हे इन्द्राग्ने! श्लोकों द्वारा पुकारे जाने पर तुम अद्भुत वरण करने योग्य सोम के लिए यहाँ पर पधारो। हमारी तपस्या से हर्षित हुए इस सोम रस का पान करो।
Hey Indr & Agni Dev! On being addressed with the help of prayers, you should target this Somras, extracted in the heaven and drink it to oblige us due to our devotion.
इन्द्राग्नी जरितुः सचा यज्ञो जिगाति चेतनः। अया पातमिमं सुतम्॥
हे इन्द्र और अग्नि देव! स्तोता का सहायक, यज्ञ का साधक और इन्द्रियों का हर्ष वर्द्धक सोम प्रस्तुत है। इस अभिषुत सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 3.12.2]
हे इन्द्राग्ने। वंदना करने वाले की सहायता करने वाला, अनुष्ठान की साधन भूत इन्द्रियों को पुष्ट करने वाला सोम प्रस्तुत है। निचोड़े हुए सोम रस का पान करो।
Hey Indr & Agni Dev! Somras that helps the host, Yagy and the senses is ready to be served. Drink this Somras.
इन्द्रमग्निं कविच्छदा यज्ञस्य जूत्या वृणे। ता सोमस्येह तृम्पताम्॥
यज्ञ के साधक सोम द्वारा प्रेरित होकर स्तोताओं के सुख दाता इन्द्र और अग्नि देव की मैं सेवा करता हूँ। वे इस यज्ञ में सोमपान करके तृप्त होवें।[ऋग्वेद 3.12.3]
यज्ञ का साधन करने वाले सोम के द्वारा प्रेरणा प्राप्त कर स्तुति करने वालों को सुखी बनाने वाले, इन्द्र और अग्नि का मैं पूजन करता हूँ। ये दोनों इस यज्ञ में सोम रस का पान कर संतुष्ट हों।
I serve Indr & Agni Dev, who grant comforts-pleasure to the recitators of hymns, inspired by Somras. Consume the extracted Somras.
तोशा वृत्रहणा हुवे सजित्वानापराजिता। इन्द्राग्नी वाजसातमा॥
मैं शत्रु नाशक, वृत्रहन्ता, विजयी, अपराजिता और प्रचुर परिमाण में अन्न देने वाले इन्द्र और अग्नि देव को मैं बुलाता हूँ।[ऋग्वेद 3.12.4]
शत्रु का पतन करने वाले, वृत्र-संहारक, विजयशील, किसी के द्वारा न जीते जाने वाले और अनेक या अन्न प्रदान करने वाले इन्द्राग्नि का आह्वान करता हूँ।
I invoke Indr & Agni Dev who destroy the enemy, slayed Vratr, victorious, undefeated and grants unlimited food grains.
प्र वामर्चन्त्युक्थिनो नीथाविदो जरितारः। इन्द्राग्नी इष आ वृणे॥
हे इन्द्र और अग्रि देव! मन्त्र शाली होकर लोग आपकी पूजा करते हैं। स्तोत्र ज्ञाता स्तोता लोग आपकी अर्चना करते हैं। अन्न प्राप्ति के लिए मैं आपकी पूजा करता हूँ।[ऋग्वेद 3.12.5]
हे इन्द्राग्ने! स्तोतागण मंत्र द्वारा तुम्हें पूजते हैं। श्लोकों के ज्ञाता मेधावीजन तुम्हारी अर्चना करते हैं। अन्न प्राप्ति के लिए मैं तुम्हारी उपासना करता हूँ।
Hey Indr & Agni Dev! The devotees pray-worship you with the Mantr-sacred Mantr. The expert in Strotr, recite Strotr in your honour. I pray you for the sake of food grains.
इन्द्राग्नी नवतिं पुरो दासपत्नीरधूनुतम्। साकमेकेन कर्मणा॥
हे इन्द्र और अग्नि देव! आप लोगों ने एक ही बार की चेष्टा से दासों के नब्बे नगरों को एक साथ कम्पायमान किया था।[ऋग्वेद 3.12.6]
हे इन्द्राग्ने! तुम प्रथम चेष्टा में ही असुरों के नब्बे नगरों को एक साथ कंपित कर दिया।
Hey Indr & Agni Dev! You shacked-trembled 90 cities of the demons in single attempt.
इन्द्राग्नी अपसस्पर्युप प्र यन्ति धीतयः। ऋतस्य पथ्या३ अनु॥
हे इन्द्र और अग्नि देव! स्तोता लोग यज्ञ के मार्ग का लक्ष्य करके हमारे कर्म के चारों ओर आते हैं।[ऋग्वेद 3.12.7]
हे इंद्राग्ने! वंदना करने वाले विद्वान यज्ञ के पथ पर चलते हुए हमारे कर्मों को विस्तृत करते हैं।
Hey Indr & Agni Dev! The recitators of hymns target the goal of our Yagy and extend-enhance our deeds Yagy Karm.
इन्द्राग्नी तविषाणि वां सधस्थानि प्रयांसि च। युवोरप्तूर्यं हितम्॥
हे इन्द्र और अग्नि देव! आपका बल और अन्न आप दोनों के मध्य में एक साथ ही है। वृष्टि प्रेरण कार्य आप दोनों के बीच ही निहित है।[ऋग्वेद 3.12.8]
हे इन्द्राग्ने ! तुम दोनों की शक्ति और अन्न एक सा ही है। वृष्टि को प्रेरित करने वाला कार्य तुम्हीं दोनों में विद्यमान हैं।
Hey Indr & Agni Dev! You have combined strength and eatables. Both of you perform-conduct the job of producing rains.
इन्द्राग्नी रोचना दिवः परि वाजेषु भूषथः। तद्वां चेति प्र वीर्यम्॥
हे इन्द्र और अग्नि देव! आप स्वर्ग को प्रकाशित करने वाले हैं। आप युद्ध में सभी जगह विभूषित होवें आपकी सामर्थ्य उस युद्ध-विजय को भली-भाँति विदित करती है।[ऋग्वेद 3.12.9]
हे इन्द्राग्ने! तुम अद्भुत संसार को शोभायमान करते हो। संग्राम में होने वाली विजय तुम्हारी ही शक्ति का फल है।ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (13) :: ऋषि :- ऋषभ, विश्वामित्र, गाथिन, देवता :- अग्नि, छन्द :- अनुष्टुप्।
प्र वो देवायाग्नये बर्हिष्ठमर्चास्मै।
गमद्देवेभिरा स नो यजिष्ठो बर्हिरा सदत्॥
हे अध्वर्युओं! अग्नि देव को लक्ष्य करके यथेष्ट प्रार्थना करें। देवों के साथ वह हमारे पास आवें और याजक श्रेष्ठ अग्नि कुश पर बैठें।[ऋग्वेद 3.13.1]
हे अध्वर्युओ! अग्निदेव के लिए प्रार्थना करो। यह अग्नि देवों से युक्त पधारे। यजन करने वालों में सर्वोपरि अग्नि देव कुश को आसन पर विराजमान हों।
Hey priests! Let us perform Yagy for the sake of Agni Dev. Let him come to us with the demigods-deities. Let Agni Dev, best amongest the devotees, occupy the best cushion.
ऋतावा यस्य रोदसी दक्षं सचन्त ऊतयः।
हविष्मन्तस्तमीळते तं सनिष्यन्तोऽवसे॥
जिनके वशीभूत द्यावा-पृथ्वी हैं, जिनके बल की सेवा देवता लोग करते हैं, उनका संकल्प व्यर्थ नहीं होता।[ऋग्वेद 3.13.2]
आकाश जिसके आधीन है, देवगण जिनकी शक्ति की सेवा करते हैं, उन अग्नि का व्रत निरर्थक नहीं होता।
Who is served by the demigods-deities and who controls the earth & sky, prayers-worship meant for him never goes waste.
स यन्ता विप्र एषां स यज्ञानामथा हि षः।
अग्निं तं वो दुवस्यत दाता यो वनिता मघम्॥
वे मेधावी अग्नि ही इन याजक गणों के प्रवर्त्तक हैं। वे यज्ञ के प्रवर्तक हैं। वे सभी के प्रवर्तक है। अग्नि देव कर्म फल और धन के दाता हैं। आप उनकी सेवा करें।[ऋग्वेद 3.13.3]
मेधावी अग्निदेव यजमानों को शिक्षा देने वाले हैं। वे पुनः पुनः यह कर्म करते हैं। वे सबको लगातार कर्मों में लगाते हैं। वे प्राणियों को उनके कर्मों का फल देते हैं। वे धन प्रदान करते हैं। उन अग्नि देव की सेवा करनी चाहिये।
Intellectual Agni Dev is the mentor of the people performing Yagy. Agni Dev grants the reward of deeds and wealth. He should be served-worshiped.
स नः शर्माणि वीतयेऽग्निर्यच्छतु शंतमा।
यतो नः प्रुष्णवद्वसु दिवि क्षितिभ्यो अप्स्वा॥
वे अग्नि देव! हमारे भोग के लिए अतीव सुखकर घर प्रदान करें। समृद्धि-युक्त पृथ्वी आकाश और स्वर्ग लोक का धन अग्नि देव के पास से हमारे पास ले आवें।[ऋग्वेद 3.13.4]
वे अग्निदेव हमारे भोगने के योग्य महान धन और गृह प्रदान करें। अम्बर-धरा और अंतरिक्ष श्रेष्ठ अग्नि में संयुक्त हैं। वह हमको ग्रहण होता है।
Hey Agni Dev! Grant us an extremely comfortable house. Let Agni Dev bring the wealth of the earth, sky & heavens to us.
दीदिवांसमपूर्व्यं वस्वीभिरस्य धीतिभिः।
ऋक्वाणो अग्निमिन्धते होतारं विश्पतिं विशाम्॥
स्तोता लोग दीप्तिमान्, प्रतिक्षण नवीन, देवों के आह्वानकारी और प्रजाओं के पालक अग्नि देव को श्रेष्ठ स्तुति-द्वारा उद्दीपित करते हैं।[ऋग्वेद 3.13.5]
वंदना करने वाले मेधावीजन, प्रकाशमान नये देवों को पुकारने वाले, प्रजाओं का पोषण करने वाले अग्नि देव को मनोरम श्लोकों द्वारा प्रदीप्त करते हैं।
The recitators of hymns keep on glowing-burning of fire-Agni Dev, who invokes the demigods-deities and nourish the living beings; with the help of best Strotr-payers.
उत नो ब्रह्मन्नविष उक्थेषु देवहूतमः।
शं नः शोचा मरुद्धोऽग्ने सहस्रसातमः॥
हे अग्नि देव! स्तोत्र के समय में हमारी रक्षा करें। आप देवों के मुख्य आह्नानकर्ता हैं। मन्त्रोच्चारण-काल में हमारी रक्षा करें। आप सहस्र धनों के दाता है। मरुत लोग आपको वर्द्धित करते हैं। आप हमारे सुख की वृद्धि करें।[ऋग्वेद 3.13.6]
हे अग्ने स्तुति के समय हमारी रक्षा करो। तुम सहस्त्र संख्यक धन वाले हो, मरुद्गण तुम्हें बढ़ाते हैं। तुम हमारे सुख में वृद्धि करो।
Hey Agni Dev! Protect us, while we recite Strotr-hymns. You are the chief amongest those who invoke the demigods-deities. You grant us thousands kinds of wealth. Marud Gan support-encourage, promote you. Boost our comforts-pleasures.
नू नो रास्व सहस्रवत्तोकवत्पुष्टिमद्वसु।
द्युमदग्ने सुवीर्यं वर्षिष्ठमनुपक्षितम्॥
हे अग्नि देव! आप हमें पुत्र-युक्त, पुष्टि कारक, दीप्तिमान्, सामर्थ्यशाली, अत्यधिक और अक्षय्य सहस्र संख्यक धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 3.13.7]
हे अग्नि देव! तुम हमको पुत्र सहित पालने करने योग्य, ऐश्वर्य देने वाला, सभी कार्यों में समर्थ, क्षय न होने वाला बहुत सा या सहस्त्र संख्या वाला धन दो।
Hey Agni Dev! Grant us thousands types-kinds of imperishable wealth which nourishes us, can shine-glow us, grant us might, along with son.(19.09.2022)
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (14) :: ऋषि :- ऋषभ, विश्वामित्र, गाथिन, देवता :- अग्नि, छन्द :- त्रिष्टुप्।
आ होता मन्द्रो विदथान्यस्थात्सत्यो यज्वा कवितमः स वेधाः।
विद्युद्रथः सहसपुत्रो अग्निः शोचिष्केशः पृथिव्यां पाजो अश्रेत्॥
देवों को बुलाने वाले, स्तोताओं के आनन्द वर्द्धक, सत्य प्रतिज्ञ, यज्ञकारी, अतीव मेघा एवं संसार के विधाता अग्नि देव हमारे यज्ञ में अवस्थान करते हैं। उनका रथ द्युतिमान् है। उनकी शिखा उनका केश है। वे बल के पुत्र हैं। वे इस पृथ्वी पर प्रभा को प्रकट करते हैं।[ऋग्वेद 3.14.1]
प्रभा :: प्रकाश, कांति, शुभ्रता, दीप्ति, ज्वाला, लौ, प्रभा, चमक; effulgence, blaze, radiance.
प्रकट करना :: जताना, उधेड़ना, प्रकाशित करना, फैलाना, खोलना, प्रत्यक्ष करना, प्रकाशित करना; evince, reveal, unfold.
देवों का आह्वान करने वाले, वंदना करने वालों का सुख वृद्धि करने वाले, सत्यनिष्ठ यज्ञ का कार्य करने वाले, अत्यधिक बुद्धिमान, संसार के स्वामी, अग्निदेव हमारे यज्ञ में पधारते हैं। उनका रथ ज्योर्तिवान है। उनकी शिखा ही केशरूप हैं। वे शक्ति के पुत्र पृथ्वी पर अपना तेज रचित करते हैं।
Agni Dev invokes the demigods-deities, grant pleasure to the recitators of hymns, truthful, extremely intelligent, the master of the universe visits our Yagy. His charoite possess golden hue. His flames are his hair locks. He is born of might-Bal. He reveals radiance over the earth.
अयामि ते नमउक्तिं जुषस्व ऋतावस्तुभ्यं चेतते सहस्वः।
विद्वों आ वक्षि विदुषो नि षत्सि मध्य आ बर्हिरूतये यजत्र॥
हे यज्ञवान् अग्नि देव! आपको लक्ष्य करके नमस्कार करता हूँ। आप बलवान् और कर्म ज्ञापक है। आपको लक्ष्य करके नमस्कार किया जाता है, उसे ग्रहण अर्थात् स्वीकार करें। हे यजनीय! आप विद्वान हैं; विद्वानों को लेकर आयें। हमें आश्रय देने के लिए कुश पर बैठें।[ऋग्वेद 3.14.2]
हे यज्ञ युक्त अग्निदेव! मैं तुम्हें प्रणाम करता हूँ। तुम शक्तिशाली तथा कर्मों को प्रकट करने वाले हो। तुम्हारे प्रति जो प्रणाम किया है, उसे ग्रहण करो। हे यज्ञ योग्य अग्निदेव! तुम बुद्धिमान हो। विद्वानों के साथ आकार हमें आश्रय देने देने के लिए कुश पर बैठें।
Hey Agni Dev, associated with the Yagy! I salute you. You are mighty and working. Accept our salutations. Hey honourable-revered! You are enlightened. bring learned-scholars with you. Hey asylum granting, occupy the Kush Asan-cushion.
द्रवतां त उषसा वाजयन्ती अग्ने वातस्य पथ्याभिरच्छ।
यत्सीमञ्जन्ति पूर्व्यं हविर्भिरा वन्धुरेव तस्थतुर्दुरोणे॥
अन्न सम्पादक उषा और रात्रि आपको लक्ष्य करके जाते हैं। हे अग्नि देव! वायु मार्ग से आप उनके सम्मुख जायें, क्योंकि ऋत्विक् लोग हव्य द्वारा पुरातन अग्नि को भली-भाँति सिक्त करते है। युगद्वय के तुल्य परस्पर संसक्त उषा और रात्रि हमारे घर में बार-बार आकर निवास करें।[ऋग्वेद 3.14.3]
तुम वायु मार्ग से उनको ग्रहण होओ। ऋत्विग्गण उस प्राचीन अग्नि को हवि द्वारा भली-भांति सींचते हैं। दम्पत्ति के समान उषा और रात्रि बारबार आते हुए हमारे घरों में निवास करें। परस्पर संसक्त उषा और रात्रि तुम्हें प्राप्त होती हैं।
The growers-nourishers of food grains Usha-day break & Ratri-night target you to reach their goal. Hey Agni Dev! You should follow the arial route to reach them, since the Ritviz satisfy the ancient-eternal Agni-fire. Let the companions Usha and Ratri come to our house again & again.
मित्रश्च तुभ्यं वरुणः सहस्वोऽग्ने विश्वे मरुतः सुम्नमर्चन्।
यच्छोचिषा सहसस्पुत्र तिष्ठा अभि क्षितीः प्रथयन्त्सूर्यो नॄन्॥
हे बलवान् अग्नि देव! मित्र, वरुण और समस्त देवता आपको लक्ष्य करके स्तोत्र करते है; क्योंकि हे बल के पुत्र अग्नि देव! सूर्य आप है। मनुष्यों की पथ-प्रदर्शक किरणों को फैलाकर प्रभा में समान स्थित हैं।[ऋग्वेद 3.14.4]
हे शक्तिशाली अग्निदेव! मित्र, वरुणादि सभी देवता तुम्हारे प्रति स्तोत्र उच्चारण करते हैं, क्योंकि तुम शक्ति के पुत्र तथा साक्षात् सूर्य हो। तुम अपना पथ-प्रदर्शन करने वाली रश्मियों को विस्तृत कर आलोक में स्थित रहते हो।
Hey mighty-powerful Agni Dev! Mitr, Varun and all demigods-deities address you, while reciting the Strotr-hymns, since you are the son of Power-Bal. You are Sun. You are established in the aura (light, glow, rays) to guide the humans.
वयं ते अद्य ररिमा हि काममुत्तानहस्ता नमसोपसद्य।
यजिष्ठेन मनसा यक्षि देवानस्त्रेधता मन्मना विप्रो अग्ने॥
आज हाथ उठाकर अग्नि देव हम आपको शोभन हव्य प्रदान करेंगे। आप मेधावी हैं। नमस्कार से प्रसन्न होकर आप अपने मन में यज्ञाभिलाषा करते हुए प्रभूत स्तोत्रों द्वारा देवों की पूजा करें।[ऋग्वेद 3.14.5]
हे अग्निदेव! हम अपने हाथों से आज तुम्हें श्रेष्ठ हवि प्रदान करेंगे। तुम मेधावी और नमस्कार से हर्षित हुए यज्ञ की इच्छा करते हो। हमारे द्वारा देवों की उपासना करो।
Today, we will make beautiful offering to you by raising our hands. You are intelligent. Having been pleased by salutations, worship the demigods-deities in your innerself, with the help of powerful Strotr-hymns.
त्वद्धि पुत्र सहसो वि पूर्वीर्देवस्य यन्त्यूतयो वि वाजाः।
त्वं देहि सहस्रिणं रयिं नोऽद्रोघेण वचसा सत्यमग्ने॥
हे बल के पुत्र अग्नि देव! आपके पास से होकर याजकगण के पास प्रभूत रक्षण और अन्न प्राप्त होता है। प्रिय वचन द्वारा आप हमें अचल और सहस्र-संख्यक धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 3.14.6]
हे शक्ति से उत्पन्न अग्नि देव! तुम्हारी रक्षण शक्ति यजमान को ग्रहण होती है। तुम्हीं से वह अन्न ग्रहण करता है। तुम हमारे प्रिय श्लोकों से हर्षित हुए अनेकों संख्या वाला धन प्रदान करो।
Hey the son of might Agni Dev! The desirous get asylum-protection and food grains in your company. Having been pleased with our prayers-worship dear to you; you grant us unlimited wealth.
तुभ्यं दक्ष कविक्रतो यानीमा देव मर्तासो अध्वरे अकर्म।
त्वं विश्वस्य सुरथस्य बोधि सर्वं तदग्ने अमृत स्वदेह॥
हे समर्थ, सर्वज्ञ और दीप्तिमान् अग्नि देव! हम मनुष्य अर्थात् मानव हैं। हम आपको उद्देश्य करके यज्ञ में यह जो हव्य देते हैं, वह सब हव्य आप आस्वादित करो और समस्त याजकगणों की रक्षा करने के लिए जागृत होवें।[ऋग्वेद 3.14.7]
हे अग्निदेव! तुम समर्थ, सर्वत्र और प्रकाशमान हो। हम प्राणी तुम्हारे लिए जो हवि यज्ञ में देते हैं उस हवि को तुम स्वादिष्ट बनाओ और सभी यजमानों की रक्षा हेतु चैतन्य होओ।
Hey capable, enlightened-all knowing, shinning Agni Dev! We are humans. We make offerings in the Yagy for you. Make these offerings tasty and be alert to protect all the desirous-Ritviz.(24.09.2022)
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (15) :: ऋषि :- उत्कील, कात्य, देवता :- अग्नि, छन्द :- त्रिष्टुप्।
वि पाजसा पृथुना शोशुचानो बाधस्व द्विषो रक्षसो अमीवाः।
सुशर्मणो बृहतः शर्मणि स्यामग्नेरहं सुहवस्य प्रणीतौ॥
हे अग्नि देव! विस्तीर्ण तेज के द्वारा आप अतीव प्रकाशवान् हैं। आप शत्रुओं और दुष्ट राक्षसों का विनाश करें। अग्रि देव उत्कृष्ट, सुख दाता, महान् और उत्तम आह्वान वाले हैं। मैं उनके ही रक्षण में रहूँगा।[ऋग्वेद 3.15.1]
हे अग्ने! विशाल तेज वाले तुम अत्यन्त प्रकाशमान हो। तुम शत्रुओं और दुष्ट राक्षसों का पतन करो। सर्वश्रेष्ठ महान, सुख दाता और श्रेष्ठ आह्वान से परिपूर्ण हो। मैं तुम्हारी शरण में आने का इच्छुक हूँ।
Hey Agni Dev! You are possess extreme energy-aura. You kill the enemy and wicked demons. Agni Dev is great, grant excellent comforts-pleasure and has to be invoked. I would seek asylum, protection, shelter under him.
त्वं नो अस्या उषसो व्युष्टौ त्वं सूर उदिते बोधि गोपाः।
जन्मेव नित्यं तनयं जुषस्व स्तोमं मे अग्ने तन्वा सुजात॥
हे अग्नि देव! आप उषा के प्रकट होने और सूर्य के उदित होने पर हमारी रक्षा के लिए जागृत होवें। हे अग्नि देव! आप स्वयम्भू हैं। जिस प्रकार से पिता पुत्र को ग्रहण करता है, उसी प्रकार आप हमारी स्तुतियों को ग्रहण करें।[ऋग्वेद 3.15.2]
हे अग्नि देव! तुम उषा के प्रकट होने के पश्चात सूर्योदय काल में हमारी रक्षा के लिए प्रज्जवलित हो। तुम स्वयं प्रकट होने वाले हो। पिता के पुत्र को प्राप्त करने के समान तुम भी हमारी वंदना को प्राप्त करो।
Hey Agni Dev! You should be ready for our protection with the day break and Sun rise. Hey Agni Dev! You evolve of your own. You accept our requests-prayers as a father does for his son.
त्वं नृचक्षा वृषभानु पूर्वी: कृष्णास्वग्ने अरुषो वि भाहि।
वसो नेषि च पर्षि चात्यंहः कृधी नो राय उशिजो यविष्ठ॥
हे अभीष्ट वर्षक अग्नि देव! आप मनुष्यों के दर्शक है। आप अँधेरी रात में अधिक दीप्तिमान् होते है। आप बहुत ज्वाला विस्तृत करते हैं। हे पिता! हमें कर्म फल प्रदान करें। हमारे पाप का निवारण करें। हे युवा अग्नि देव! आप हमें धनाभिलाषी करें।[ऋग्वेद 3.15.3]
हे अग्नि देव! तुम अभिलाषीवर्षक हो। मनुष्यों को देखने वाले हो। तुम अंधकार से परिपूर्ण रात्रि में अधिक प्रकाशमान होते हो। तुम्हारी अनेकों ज्वालाएँ हैं। तुम पितृरूप से हमको कार्यों का परिणाम देते हो। हमारे पाप दूरस्थ करते हुए धन अभिलाषा वाले बनाओ।
Hey accomplishment granting Agni Dev! You keep an eye over the humans. You shine more during darkness. Your flames are wide-vast. Hey father! Grant us the reward of our deeds-endeavours. Eliminate our sins. Hey young Agni Dev! Generate desire for wealth in us.
अषाळहो अग्ने वृषभो दिदीहिं पुरो विश्वाः सौभगा संजिगीवान्।
यज्ञस्य नेता प्रथमस्य पायोर्जातवेदो बृहतः सुप्रणीते॥
हे अग्नि देव! शत्रु लोग आपको परास्त नहीं कर सकते। आप अभीष्टवर्षक है। आप समस्त शत्रु-पुरी और धन जीत करके प्रदीप्त होवें। हे सुप्रणीत और जातवेदा अग्नि देव! आप महान् आश्रयदाता और प्रथम यज्ञ के निर्वाहक होवें।[ऋग्वेद 3.15.4]
हे अग्नि देव! तुम्हें शत्रु परास्त नहीं कर सकते। तुम अभिष्टों की वर्षा करने वाले हो। तुम शत्रुओं की नगरी को धन सहित जीतकर प्रकाशित होते हो। तुम जन्म से ही मेधावी, उत्तम एवं आश्रय प्रदान करने वाले हो। तुम हमारे यज्ञ के सम्पादन करने वाले बनो।
Hey Agni Dev! The enemy can not defeat you. You accomplish the desires. You win the territories of the enemy with their wealth and shine. You are enlightened since birth. You should grant us asylum and accomplish our Yagy.
अच्छिद्रा शर्म जरितः पुरूणि देवाँ अच्छा दीद्यानः सुमेधाः।
रथो न सस्निरभि वक्षि वाजमग्ने त्वं रोदसी नः सुमेके॥
हे जगज्जीर्ण कर्ता अग्नि देव! आप सुमेधा और दीप्तिमान् हैं। देवों के लिए आप समस्त कर्मों को छिद्र-रहित करें। हे अग्नि देव! आप यहीं ठहरकर रथ के तुल्य देवों को लक्ष्य करके हमारा हव्य वहन करें। आप द्यावा-पृथ्वी को उत्तम रूप से युक्त करें।[ऋग्वेद 3.15.5]
हे अग्नि देव! तुम संसार को रोज प्राचीन बनाते हो। तुम महान बुद्धि वाले और ज्योर्तिमान हो। देवताओं के लिए तुम हमारे समस्त कार्यों को निर्दोष बनाओ। तुम रथ के समान यहाँ ठहरकर देवताओं के लिए हमारी हवियाँ पहुँचाओ। क्षितिज और धरा को हमारे अनुष्ठान से व्याप्त करो।
Hey Agni Dev! You torn-decay the world everyday. You possess the great intelligence and is aurous. Make all endeavours-Yagy meant for the demigods-deities free from defects. Grant better shape to the earth and the sky.
प्र पीपय वृषभ जिन्व वाजानग्ने त्वं रोदसी नः सुदोघे।
देवेभिर्देव सुरुचा रुचानो मा नो मर्तस्य दुर्मतिः परि ष्ठात्॥
हे अभीष्टवर्षक अग्नि देव! आप हमें वर्द्धित करें। हमें अन्न प्रदत्त करें। सुन्दर दीप्ति द्वारा आप सुशोभित होकर देवों के साथ हमारी द्यावा-पृथ्वी को दोहन के योग्य बनावें। जिससे मनुष्यों की दुर्बुद्धि हमारे पास न आवें।[ऋग्वेद 3.15.6]
हे अग्नि देव! तुम अभिष्टों की वर्षा करने वाले हो। तुम हमको अन्न प्रदान करो। श्रेष्ठ प्रकाश द्वारा शोभायमान तुम देवताओं के साथ मिलकर पृथ्वी-आकाश को अन्न दोहन के उपयुक्त करो। दुष्ट बुद्धि कभी भी हमारे पास न आने पाये।
Hey desire accomplishing Agni Dev! Grow us, make us progressive. Grant us food grains. Make the earth suitable for growing food grains in association with the demigods-deities. Do not let the wicked-viceful come to us.
इळामग्ने पुरुदंसं सनिं गोः शश्वत्तमं हवमानाय साध।
स्यान्नः सूनुस्तनयो विजावाग्ने सा ते सुमतिर्भूत्वस्मे॥
हे अग्नि देव! आप स्तोता को अनेक कर्मों की कारणीभूत और धन प्रदात्री भूमि सदा प्रदत्त करें। हमें वंशवर्द्धक और सन्तति-जनक एक पुत्र प्राप्त है। हे अग्नि देव! हमारे प्रति आपका (यह) अनुग्रह है।[ऋग्वेद 3.15.7]
हे अग्नि देव! तुम असंख्य कार्यों के कारणभूत, धन की वर्षा करने वाली पृथ्वी की वंदना करने वाले को वंश की वृद्धि करने वाला, सन्तानोत्पादन में समर्थवान पुत्र हमको मिले। तुम्हारी यह कृपा दृष्टि हम पर बनी रहनी चाहिये।
Hey Agni Dev! Grant fertile land to the recitators of Strotr-hymns to perform multiple deeds. Grant us a son who can prolong our dynasty. Hey Agni Dev! This your obligation upon us.(25.09.2022)
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (16) :: ऋषि :- उत्कील, कात्य, देवता :- अग्नि, छन्द :- प्रगाथ।
अयमग्निः सुवीर्यस्येशे महः सौभगस्य।
राय ईशे स्वपत्यस्य गोमत ईशे वृत्रहथानाम्॥
हे अग्नि देव! उत्तम सामर्थ्य वाले, महासौभाग्य के स्वामी, गौ आदि से युक्त, अपत्य वाले धन के अधिपति और वृत्र हन्ताओं के ईश्वर है।[ऋग्वेद 3.16.1]
हे अग्नि देव! तुम श्रेष्ठ सामर्थ्य से परिपूर्ण, महान सौभाग्य के अधिपति गवादिधनों से सम्पन्न, संतान से परिपूर्ण समृद्धियों के स्वामी तथा वृत्र को समाप्त करने वालों के नायक हो।
Hey Agni Dev! You are highly lucky, possess excellent capabilities, have cows, wealth and sons & is the leader of the slayers of Vratr.
इमं नरो मरुतः सश्चता वृधं यस्मिन्रायः शेवृधासः।
अभि ये सन्ति पृतनासु दूढ्यो विश्वाहा शत्रुमादभुः॥
हे नेता मरुतों! सौभाग्यवर्द्धक अग्नि में मिलो। अग्नि में सुख वर्द्धक धन है। मरुद्गण सेना वाले संग्राम में शत्रुओं को परास्त करते हैं। वे सदा ही शत्रुओं की हिंसा करते हैं।[ऋग्वेद 3.16.2]
हे मरुद्गण। तुम नायक रूप में सौभाग्य को बढ़ाने वाले अग्नि देव से युक्त हो जाओ। यह अग्निदेव सुख में वृद्धि करने वाले धन से युक्त हैं, जिस भूमि पर सेनाएँ युद्ध करती हैं, उसमें मरुद्गण के शत्रुओं को पराजित करते हैं। वे शत्रुओं के संहारक हैं।
Hey Marud Gan! You should join Agni Dev as a leader, promoting good luck. Agni Dev possess the wealth, which boosts pleasure-comforts. Marud Gan! Defeat the enemy in the battle field-war. You always destroy the enemy.
स त्वं नो रायः शिशीहि मीढ्वो अग्ने सुवीर्यस्य।
तुविद्युम्न वर्षिष्ठस्य प्रजावतोऽनमीवस्य शुष्मिणः॥
बहुधनशाली और अभीष्ट वर्षक अग्नि देव! हमें आप प्रभूत, प्रजा युक्त एवं आरोग्य, बल और सामर्थ्ययुक्त धन देकर तीक्ष्ण करें।[ऋग्वेद 3.16.3]
हे अग्नि देव! तुम अत्यन्त धन वाले एवं अभिष्टों की वर्षा करने वाले माने जाते हो। हमको संतान से परिपूर्ण, आरोग्य, शक्तिशाली और सामर्थ्य से परिपूर्ण धन प्रदान करके बढ़ोत्तरी प्रदान करो।
Possessor of vivid wealth desires accomplishing Agni Dev! Grant us wealth along with sons, good health, might and capability.
चक्रिर्यो विश्वा भुवनाभि सासहिश्चक्रिर्देवेष्वा दुवः।
आ देवेषु यतत आ सुवीर्य आ शंस उत नृणाम्॥
जो अग्नि देव संसार के कर्ता हैं, वे समस्त संसार में अनुप्रविष्ट होते हैं। भार को सहन करके अग्नि देवों के पास हव्य ले आते हैं। अग्नि स्तोताओं के सामने आते है, यज्ञ नेताओं के स्तोत्र में आते हैं और मनुष्यों के युद्ध में आते हैं।[ऋग्वेद 3.16.4]
वे अग्नि देव संसार के समस्त कार्यों को पूर्ण करते हुए उनमें विद्यमान हैं। वे समस्त भार को सहन करते हुए देवताओं को हवि पहुँचाते हैं। वे अग्नि की वंदना करने वालों से साक्षात्कार करते हैं। वे यज्ञों के अनुष्ठान करने वालों की स्तुतियों के प्रति आते हैं तथा युद्ध काल में रणक्षेत्र में विराजमान रहते हैं।
Agni Dev conduct all deeds in the universe, pervading it. He bears the entire load and carries the offerings to the demigods-deities. Agni Dev comes to the Strota and is a part of the hymns of the recited by them. He present himself in the battle field.
मा नो अग्नेऽमतये मावीरतायै रीरधः।
मागोतायै सहसस्पुत्र मा निदेऽप द्वेषस्या कृधि॥
हे बल के पुत्र अग्नि देव! आप हमें शत्रु ग्रस्त, वीर-शून्य, पशु हीन या निन्दनीय अर्थात् अपमानित नहीं करना। हमारे प्रति द्वेष न करें।[ऋग्वेद 3.16.5]
हे बलोत्पन्न अग्निदेव! तुम हमकों शत्रु से दुःखी न होने देना। हम वीरों से शून्य न होने पायें। पशुओं से रहित तथा निन्दा के पात्र भी न हों। तुम हमसे कभी नाराज न होना।
Hey Agni Dev produced by might! Do not let us be captured by the enemy maintaining our bravery. We should not be either without cattle or insulted. You should not be angry with us.
शग्धि वाजस्य सुभग प्रजावतोऽग्ने बृहतो अध्वरे।
सै राया भूयसा सृज मयोभुना तुविद्युम्न यशस्वता॥
हे सुभग अग्नि देव! आप यज्ञ में प्रभूत, अपत्यशाली और अन्न के अधीश्वर हैं। हे महाधन! आप हमें प्रभूत, सुखकर और यश को बढ़ाने वाला धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 3.16.6]
हे अग्नि देव! तुम यज्ञ में प्रकट हुए सन्तानवान समृद्धियों के स्वामी हो। हे वरणीय अग्नि देव! तुम अत्यन्त वैभवशाली हमको सुख प्रदान करने वाला, अनुष्ठान वृद्धि करने वाला, धन सम्पत्ति प्रदान करो।
Hey auspicious Agni Dev! You are the master of the various goods-wealth evolved through the Yagy, which grant sons and food grains. Hey ultimate wealth! Grant us the wealth which can give us pleasure & comforts, honour-respect.(26.09.2022)
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (17) :: ऋषि :- कात्य, गाथिन, देवता :- अग्नि, छन्द :- त्रिष्टुप।
समिध्यमानः प्रथमानु धर्मा समक्तुभिरज्यते विश्ववारः।
शोचिष्केशो घृतनिर्णि क्पावकः सुयज्ञो अग्निर्यजथाय देवान्॥
हे धर्म धारक अग्नि देव! ज्वालावाले केश से संयुक्त, सभी के स्वीकरणीय दीप्ति-रूप, पवित्र और सुक्रतु है। वे यज्ञ के आरम्भ में क्रमशः प्रज्वलित होकर देवों के यज्ञ के लिए घृतादि द्वारा सिक्त होते हैं।[ऋग्वेद 3.17.1]
अग्नि देव धर्म को धारण करने वाले, लपटों रूपी केश वाले, परम प्रदीप्त शुद्ध और सत्कर्मों के कर्त्ता हैं। वे यज्ञ के आरम्भ समय में प्रज्वलित होकर वृद्धि करते हुए देव यज्ञ को घृतादि से परिपूर्ण हवियों से सींचते हैं।
Hey Agni Dev, supporting-bearing Dharm! His flames are like hair. He is glowing, pious and producer of virtuous, righteous deeds. He ignites in the beginning of the Yagy and receives the offerings in the form of Ghee etc.
यथायजो होत्रमग्ने पृथिव्या यथा दिवो जातवेदश्चिकित्वान्।
एवानेन हविषा यक्षि देवान्मनुष्वद्यज्ञं प्र तिरेममद्य॥
हे अग्नि देव, हे जातवेदा! आप सर्वज्ञ हैं। पृथ्वी-द्युलोक को जिस प्रकार से हव्य प्रदान किया है, उसी प्रकार हमारे हव्य के द्वारा देवों का यज्ञ करें। मनु के तुल्य हमारे इस यज्ञ को पूर्ण करें।[ऋग्वेद 3.17.2]
हे अग्नि देव! तुम जन्म से ही मेधावी और सर्वज्ञ हो। तुमने जैसे धरती और आकाश को हवियाँ दी थी, वैसे ही हमारी हवियों को देते हुए देवताओं का पूजन करो। हमारे यज्ञ को मनु के समान ही सम्पन्न करो।
Hey Agni Dev! You are intelligent since your birth. The way you made offerings to the earth & the heaven, in the same manner perform the Yagy for the demigods-deities with our offerings, like Manu.
त्रीण्यायूंषि तव जातवेदस्तिस्र आजानीरुषसस्ते अग्ने।
ताभिर्देवानामवो यक्षि यज्ञ विद्वानथा भव याजकगणाय शं योः॥
हे जात वेदा! आपका अन्न आज्य, औषधि और सोम के रूप से तीन प्रकार का है। हे अग्नि देव! एकाह, आहोन और समगत नामक तीन उषा देवताएँ आपकी माताएँ हैं। आप उनके साथ देवों को हव्य प्रदान करें। आप विद्वान् है। आप याजकगण के सुख और कल्याण के कारण बनें।[ऋग्वेद 3.17.3]
आज्य :: वह घी जिससे आहुति दी जाए, दूध या तेल जो घी के स्थान पर आहुति में दिया जाए, यज्ञ में दी जानेवाली हवि, प्रातः कालीन यज्ञ का एक स्त्रोत।
हे जन्म से बुद्धिमान अग्निदेव! तुम्हारा अन्न आज्य (घी, घी की जगह काम आनेवाला पदार्थ तेल, दूध आदि) औषधि और सोम, तीनों रूपों वाला है। हे मेधावी! तुम उनके युक्त देवों को हवियाँ प्रदान करो। तुम यजमानों को सुख और कल्याण ग्रहण कराने में समर्थवान होओ।
Hey Agni Dev, intelligent from your birth! Your food grains are like the Ghee, medicines and Som. Hey Agni Dev! You make offerings with them. Ekah, Ahon and Samgat, the three Ushas, are your mothers. Carry out the offerings for the demigods-deities with them. You are enlightened. You should become the cause of pleasure & comforts for the Ritviz.
अग्निं सुदीतिं सुदृशं गृणन्तो नमस्यामस्त्वेड्यं जातवेदः।
त्वां दूतमरतिं हव्यवाहं देवा अकृण्वन्नमृतस्य नाभिम्॥
हे जातवेदा! आप दीप्तिशाली, सुदर्शन और स्तुति योग्य अग्नि है। हम आपको नमस्कार करते हैं। देवों ने आपको आसक्ति शून्य और हव्य-वाहक दूत बनाया तथा अमृत का केन्द्र मानकर आपका आस्वादन किया है।[ऋग्वेद 3.17.4]
हे अग्ने! तुम स्वयं दीप्तिमान, मेधावी, उत्तम दर्शन वाले स्तुत्य हो हम तुमको प्रणाम करते हैं। देवताओं ने तुमको मोह रहित हवि पहुँचाने वाले दौत्य कर्म (सन्देश देना, दूत का कार्य) में नियुक्त किया है। तुम अमृत के नाभि रूप हो।सन्देश वाहक
Hey Agni Dev! You are shinning-aurous, beautiful and prayer deserving. We salute you. The demigods-deities have made you free from attachments, carrier of offerings, courier and the center of nectar-elixir.
यस्त्वद्धोता पूर्वो अग्ने यजीयान्द्विता च सत्ता स्वधया च शंभुः।
तस्यानु धर्म प्र यजा चिकित्वोऽथा नो धा अध्वरं देववीतौ॥
हे अग्नि सर्वज्ञ देव! आपसे पहले और विशेष यज्ञ कर्ता जो होता मध्यम और उत्तम नामक दो स्थानों पर, स्वधा के साथ, बैठकर सुखी हुए थे, उनके धर्म को लक्ष्य करके विशेष रूप से यज्ञ करें। अनन्तर देवों की प्रसन्नता के लिए हमारे इस यज्ञ को धारित करें।[ऋग्वेद 3.17.5]
हे अग्नि देव! जो अनुष्ठान कर्त्ता होता मध्यम और उत्तम स्थानों पर स्वधा परिपूर्ण हुए सुखी हैं, तुम उनके दायित्व को देखते हुए अनुष्ठान करो। फिर देवताओं को हर्षित करने हेतु हमारे इस यज्ञ को धारण करो।
Hey Agni Dev! Target-the aim of those performers of Yagy, who have become happy-comfortable, occupying middle and the excellent positions in the Yagy along with Swadha-wood for performing Yagy. Carry out the Yagy for the pleasure of the demigods-deities.
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (18) :: ऋषि :- कत, विश्वामित्र गाथिन, देवता :- अग्नि, छन्द :- त्रिष्टुप।
भवा नो अग्ने सुमना उपेतौ सखेव सख्ये पितरेव साधुः।
पुरुद्रुहो हि क्षितयो जनानां प्रति प्रतीचीर्दहतादरातीः॥
हे अग्नि देव! जिस प्रकार से मित्र के प्रति और माता-पिता पुत्र के प्रति हितैषी होते हैं, उसी प्रकार हमारे सामने आने में प्रसन्न होकर हमारे हितैषी बनें। मनुष्यों के द्रोही मनुष्य हैं; इसलिए आप विरुद्धाचारी शत्रुओं को भस्मीभूत करें।[ऋग्वेद 3.18.1]
हे अग्नि देव! सखा अथवा माता-पिता के तुल्य हितैषी बनो। हमसे हर्षित रहो। जो हम मनुष्यों के शत्रु अन्य विरुद्ध व्यवहार वाले मनुष्य हैं, उनका पतन कर डालो।
Hey Agni Dev! You should be our well wisher like the friend and parents & be happy with us. The humans are the enemy of humans. Destroy those who act against humanity.
Be favourably disposed Agni Dev, on approaching us at this rite; be the fulfiller of our objects like a friend to a friend or parents to a child; since men are the grievous oppressors of men, destroy-perish the foes who come against us.
तपो ष्वग्ने अन्तराँ अमित्रान् तपा शंसमररुषः परस्य।
तपो वसो चिकितानो अचित्तान्वि ते तिष्ठन्तामजरा अयासः॥
हे अग्नि देव! अभिभवकर्ता शत्रुओं को भली-भाँति बाधा हो। जो सब शत्रु हव्य दान नहीं करते, उनके अभिलाषाओं को व्यर्थ कर दो। निवास दाता और सर्वज्ञ अग्नि देव! आप चञ्चल चित्त मनुष्यों को सन्तप्त करें। इसिलिए आपकी किरणें अजर और बाधा शून्य हैं।[ऋग्वेद 3.18.2]
हे अग्नि देव! शत्रुओं के मार्ग में बाधक बनो। जो दुष्ट हवि नहीं देते उनके अभिष्ट व्यर्थ हों। तुम पृथक निवास स्थान देने वाले एवं सर्वज्ञाता हो। जिनका हृदय चलायमान हो उन प्राणियों को दुःख दो। उनके लिए तुम्हारी जरा रहित रश्मियाँ बाधक बनें।
Hey Agni Dev! All sorts of troubles be created for the enemy. The enemy who do not make offerings in Yagy, all of their endeavours be nullified. Trouble the people whose innerself is flirters. Your rays are immortal and free from obstacles.
इध्मेनाग्न इच्छमानो घृतेन जुहोमि हव्यं तरसे बलाय।
यावदीशे ब्रह्मणा वन्दमान इमां धियं शतसेयाय देवीम्॥
हे अग्नि देव! मैं धनाभिलाषी होकर आपके वेग और बल के लिए समिक्षा और घृत के साथ हव्य प्रदान करता हूँ। स्तोत्र द्वारा आपकी प्रार्थना करके मैं जब तक रहूँ, तब तक मुझे धन प्रदान करें। इस प्रार्थना को अपरिमित धन दान के लिए दीप्त करें।[ऋग्वेद 3.18.3]
हे अग्ने! मैं धन की इच्छा से तुम गतिवान और शक्तिशाली को समिधा और घृत परिपूर्ण हवि प्रदान करता हूँ। मैं तुम्हारी वंदना करके जब तक शरीर में प्राण रहें तब तक मुझे धन प्रदान करते रहो। धन देने के लिए मेरी प्रार्थना को ज्योर्तिवान बनाओ।
Hey Agni Dev! I make offerings with Ghee for boosting your might & to have money (wealth, riches). I should continue reciting hymns in your favour till I survive. Make my prayers effective.
उच्छोचिषा सहसस्पुत्र स्तुतो बृहद्वयः शशमानेषु धेहि।
रेवदग्ने विश्वामित्रेषु शै योर्मर्मृज्मा ते तन्वं १ भूरि कृत्वः॥
हे बल के पुत्र अग्नि देव! आप अपनी दीप्ति से दीप्तिमान् बनें। प्रार्थित होकर आप प्रशंसक विश्वामित्र के वंशधरों को धन-युक्त करें, प्रभूत अन्न दान करें तथा आरोग्य और अभय प्रदान करें। कर्म कारक अग्नि देव! हम लोग बार-बार आपके शरीर का शोधन करते हैं।[ऋग्वेद 3.18.4]
हे बलोत्पन्न अग्निदेव! तुम अपने तेज से प्रदीप्त हो जाओ। तुम वैश्वामित्र के वंशजों द्वारा स्तुति किये जाकर उन्हें धन सम्पन्न बनाओ। अन्न देते हुए आरोग्य और निर्भयता भी प्रदान करो। तुम कर्म करने वाले हो। हम साधक निरन्तर साधना करेंगे।
Hey the son of might Agni Dev! You should shine-glow with your aura. Having being prayed-worshiped, you should grant money and food stuff to the off springs of Vishwa Mitr. We repeatedly keep on cleansing your body.
कृधि रत्नं सुसनितर्धनानां स घेदग्ने भवसि यत्समिद्धः।
स्तोतुर्दुरोणे सुभगस्य रेवत्प्रा करस्ना दधिषे वपूंषि॥
हे दाता अग्नि देव! धनों में श्रेष्ठ धन प्रदान करें। जिस समय आप समिद्ध होवें उस समय वैसा ही धन प्रदान करें। भाग्यवान् स्तोता के घर की और अपनी रूपवती दोनों भुजाओं को धन देने के लिए फैलावें।[ऋग्वेद 3.18.5]
हे अग्नि देव! तुम समस्त धनों के ज्ञाता हो, हमको धनों में जो महान धन है, वह धन प्रदान करो। तब तुम समिधाओं से परिपूर्ण होओ, तभी हमको प्रबुद्ध धन प्रदान करो। तुम अपने प्रकाशमान भुजाओं को वंदना करने वाले के गृह की तरफ धन के लिए बढ़ाओ।
Hey Agni Dev! Grant us the excellent wealth-riches. Grant us the money when you lit up through the Samidha-wood for Yagy. Extend your beautiful arms towards the house of the lucky Strota-Ritviz.
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (19) :: ऋषि :- गाथिन कौशिकी, देवता :- अग्नि, विश्वेदेव, छन्द :- त्रिष्टुप।
अग्नि होतारं प्र वृणे मियेधे गृत्सं कविं विश्वविदममूरम्।
स नो यक्षदेवताता यजीयान्ये वाजाय वनते मधानि॥
देवों के स्तोता, मेधावी, सर्वज्ञ और अमूढ़ अग्रि देव को हम इस यज्ञ में होत्र रूप से स्वीकार करते हैं। वे अग्नि सर्वापेक्षा यज्ञ परायण होकर हमारे लिए देवों का यज्ञ करें। धन और अन्न के लिए वे हमारे हव्य को ग्रहण करें।[ऋग्वेद 3.19.1]
अमूढ़ :: पंचतन्मात्र में से एक, अविशेष, महाभूत, अशांत और अधीर ।
हे अग्नि देव! तुम देवताओं के वंदनाकारी, सर्वज्ञ प्रज्ञावान हो। हम इस अनुष्ठान में तुम्हें होता रूप में प्राप्त करते हैं। वे अग्नि अनुष्ठान कार्यों में लगाकर देवों का यजन करें। वे धन और अन्न देने की कामना करते हुए हमारी हवियाँ स्वीकार करें।
We accept Agni Dev, who is the Stota of the demigods-deities, intelligent, eternal all knowing as the Hota-performer of Yagy. He should conduct this Yagy for he demigods-deities. He should accept the offerings praying for the food grains and money.
प्र ते अग्ने हविष्मतीमियर्म्यच्छा सुद्युम्नां रातिनी घृताचीम्।
प्रदक्षिणिद्देवतातिमुराणः सं रातिभिर्वसुभिर्यज्ञमश्रेत्॥
हे देव! मैं हव्य युक्त, तेजस्वी, हव्यदाता और धृत समन्वित जुहू को आपके सामने प्रदत्त करता हूँ। देवों के बहुमानकर्ता अग्निदेव हमारे दातव्य धन के साथ प्रदक्षिणा करके यज्ञ में सम्मिलित होवें।[ऋग्वेद 3.19.2]
जुहू :: पलाश की लक़ड़ी का बना हुआ एक प्रकार का अर्द्ध चंद्राकार यज्ञ-पात्र, पूर्व दिशा; a pot made of butea-wood having the shape of half moon, east.
हे अग्नि देव! मैं हवियुक्त हवि देने का साधन, धृत से पूर्ण जुहू को तुम्हारे सामने करता हूँ। वे देवगणों का सम्मान करने वाले अग्निदेव हमको देने वाले धन के सहित यज्ञ में भाग लें।
Hey Agni Dev! I place the butea-wooden pot filled with offerings, enriched with Ghee in front of you. Hey demigods-deities honouring Agni Dev circumambulate the Yagy site and join the Yagy with the money meant for us.
स तेजीयसा मनसा त्वोत उत शिक्ष स्वपत्यस्य शिक्षोः।
अग्ने रायो नृतमस्य प्रभूतौ भूयाम ते सुष्टुतयश्च वस्वः॥
हे अग्रि देव! जिसकी आप रक्षा करते हैं उसका मन अत्यन्त तेजस्वी हो जाता है। उसे उत्तम अपत्यवाला धन प्रदान करें। हे फलदानेच्छुक अग्नि देव! आप अतीव धन दाता है। हम आपकी महिमा से रक्षित होंगे तथा आपकी प्रार्थना करते हुए धनाधिपति होंगे।[ऋग्वेद 3.19.3]
हे अग्नि देव! तुम्हारी सुरक्षा ग्रहण कर साधक का मन अत्यन्त शक्ति प्राप्त करता है। उसे संतान परिपूर्ण धन प्रदान करो। तुम फल प्रदान करने की कामना वाले एवं श्रेष्ठ धन प्रदान करने वाले हो। हम तुम्हारी महती सुरक्षा से निर्भय होते हुए तुम्हारी प्रार्थना करेंगे और धन के स्वामी बनेंगे।
Hey Agni Dev! The innerself of one protected by you become energetic. Grant him money as well as progeny. You grant riches and protect us. We will worship-pray to you to become rich.
भूरीणि हि त्वे दधिरे अनीकाग्ने देवस्य यज्यवो जनासः।
स आ वह देवतातिं यविष्ठ शर्धो यदद्य दिव्यं यजासि॥
हे द्युतिमान् अग्नि देव! यज्ञ कर्ताओं ने आपको प्रभूत दीप्ति प्रदान की है। हे अग्नि देव! चूंकि आप यज्ञ में स्वर्गीय तेज की पूजा करते हैं; इसलिए देवों को बुलावें।[ऋग्वेद 3.19.4]
हे अग्नि देव! तुम प्रकाशवान हो। यज्ञ करने वालों ने तुम्हें प्रदीप्त किया है। तुम यज्ञ में विश्व तेज की साधना करने वाले हो, अतः देवगणों को आहूत करो।
Hey shinning Agni Dev! The organisers of Yagy have ignited you. Hey Agni Dev! Since you worship the divine aura, invoke-invite the demigods-deities.
यत्त्वा होतारमनजन्मियेधे निषादयन्तो यजथाय देवाः।
स त्वं नो अग्नेऽवितेह बोध्यधि श्रवांसि घेहि नस्तनूषु॥
हे अग्नि देव! चूंकि यज्ञ के लिए बैठे हुए दीप्तिशाली ऋत्विक् लोग यज्ञ में आपको होता कहकर सिक्त करते हैं, अतः आप हमारी रक्षा के लिए जागृत होवें और हमारे पुत्रों को अधिक अन्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 3.19.5]
हे अग्नि देव! अनुष्ठान में विराजमान मेधावी ऋषि गण तुम्हारे होता हैं। तुम हमारी सुरक्षा के लिए पधारो। हमारे पुत्रों को अन्नवान करो।
Hey Agni Dev! Since the aurous Ritviz nominate you as the Hota-organiser, light up for our protection and grant food grains to our sons.(05.10.2022)
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (20) :: ऋषि :- गाथी कौशिकी, देवता :- अग्नि, विश्वेदेव, छन्द :- त्रिष्टुप।
अग्निमुषसमश्विना दधिक्रां व्युष्टिषु हवते वह्निरुक्थैः।
सुज्योतिषो नः शृण्वन्तु देवाः सजोषसो अध्वरं वावशानाः॥
हे अग्नि देव! हव्य वाहक उषा के अधिकार दूर करते समय उषा, अश्विनी कुमारों और दधिक्रा नामक देवता को प्रार्थना के द्वारा बुलाते हैं। सुन्दर द्युतिमान् और परस्पर मिलित देवता लोग हमारे यज्ञ की अभिलाषा करके उस स्तुति को श्रवण करें।[ऋग्वेद 3.20.1]
हे हवि वाहक अग्नि देव! उषाकाल में अन्धकार का पतन करते हुए उषा अश्विद्वय और दधिक्रा नामक देवताओं को ऋचाओं से आहूत करते हैं। देवगण हमारे यज्ञ में आने की इच्छा करते हुए उन ऋचाओं को श्रवण करें।
Hey Carrier of offerings Agni Dev! Usha, Ashwani Kumars and Dadhikra-a demigod, are invoked with the recitation of hymns. Let the demigods-deities listen to the hymns to attend our Yagy.
अग्ने त्री ते वाजिना त्री षधस्था तिस्रस्ते जिल्हा ऋतजात पूर्वीः।
तिस्त्र उ ते तन्वो देववातास्ताभिर्नः पाहि गिरो अप्रयुच्छन्॥
हे अग्नि देव! आपका अन्न तीन प्रकार का है, आपका स्थान तीन प्रकार का है। हे यज्ञ सम्पादक अग्नि देव! देवों की उदर-पूर्ति करने वाली आपकी तीन जिव्हायें हैं। आपके तीन प्रकार के शरीर देवों के द्वारा अभिलषित है। अप्रमत्त होकर आप उन्हीं तीनों शरीरों के द्वारा हमारी स्तुति की रक्षा करें।[ऋग्वेद 3.20.2]
हे अग्नि देव! तुम्हारा तीन तरह का अन्न तथा तीन प्रकार का ही वास स्थान है, तुम यज्ञ को संपादन करने वाले हो। देवगणों को संतुष्ट करने वाली तीन जिह्वाओं से युक्त हो। तुम्हारे शरीर के तीन रूप हैं, जिनकी देवता अभिलाषा किया करते हैं। तुम आलस्य से रहित हुए अपने तीनों रूपों में हमारे श्लोकों की रक्षा करो।
Hey Agni Dev! Your food grains and residence are of three types. You possess three tongues to feed the demigods-deities. Your three types of bodies are desired by the demigods. Protect-save our prayers through your three bodies-configurations.
अग्ने भूरीणि तव जातवेदो देव स्वधावोऽमृतस्य नाम।
याश्च माया मायिनां विश्वमिन्व त्वे पूर्वीः संदधुः पृष्टबन्धो॥
हे द्युतिमान्, जातवेदा, मरण-शून्य और अन्नवान् अग्नि देव! देवों ने आपको अनेक प्रकार के तेज दिए हैं। हे संसार के तृप्तिकर्ता और प्रार्थित फलदाता अग्नि देव! मायावियों की जिन मायाओं को देवों ने आपको प्रदान किया है, वह सब आपमें ही निहित है।[ऋग्वेद 3.20.3]
हे अग्नि देव! तुम प्रकट हो। ज्ञानी, ज्योर्तिवान, अमर और अन्न परिपूर्ण हो । देवताओं ने तुम्हें तेज प्रदान किया है। तुम संसार को तृप्त करने वाले अभीष्ट फल प्रदान करने वाले हो। देवताओं ने तुमको जिन शक्तियों से परिपूर्ण किया है, वे शक्तियाँ हमेशा तुम में व्याप्त रहती हैं।
Hey eternal, immortal and the possessor of food grains Agni Dev! The demigods-deities have granted you three types of aura. Hey satisfying and granter of the material goods Agni Dev! Various types of enchanting powers granted by the demigods-deities, are embedded in you.
अग्निर्नेता भग इव क्षितीनां दैवीनां देव ऋतुपा ऋतावा।
स वृत्रहा सनयो विश्ववेदाः पर्षद्विश्वाति दुरिता गृणन्तम्॥
ऋतु कर्ता सूर्य के तुल्य जो अग्रि देवों और मनुष्यों के नियन्ता है, जो अग्नि सत्यकारों, वृत्र हन्ता, सनातन, सर्वज्ञ और धुतिमान् हैं, वे स्तोता के समस्त पापों को लंघाकर, पार ले जायें।[ऋग्वेद 3.20.4]
ऋतुओं को प्रकट करने वाले आदित्य के समान विश्व के नियंता सत्यकर्मों में प्रवृत्त वृत्र को मारने वाले, प्राचीन, सर्वज्ञाता और प्रकाशवान अग्निदेव, स्तुति करने वाले को सभी पापों से दूर करें।
Agni Dev, who is comparable to Bhagwan Sury-Sun is the regulator of the humans, is devoted to truth, is the slayer of Vratr, enlightened-all knowing and brilliant, should help the worshiper cross all the sins committed by him.
दधिक्रामग्निमुषसं च देवीं बृहस्पतिं सवितारं च देवम्।
अश्विना मित्रावरुणा भगं च वसून्रुद्र आदित्याँ इह हुवे॥
मैं दधिक्रा, अग्नि देव, देवी उषा, बृहस्पति, द्युतिमान् सविता, अश्विनी कुमार, भग, वसु, रुद्र और आदित्यों को इस यज्ञ में बुलाता हूँ।[ऋग्वेद 3.20.5]
दधिका, अग्नि, उषा, बृहस्पति, तेजस्वी, सूर्य दोनों अश्विनी कुमार, भव, वसु और समस्त आदित्यों का इस यज्ञानुष्ठान में आह्वान करता हूँ।
I invite-invoke the demigods-deities named Dadhikra, Agni dev, Usha, Brahaspati, Savita, Ashwani Kumars, Bhag, Vasu, Rudr and Aditys.(5.10.2022)
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (21) :: ऋषि :- गाथी कौशिकी, देवता :- अग्नि, छन्द :- अनुष्टुप् वादिना।
इमं नो यज्ञममृतेषु धेहीमा हव्या जातवेदो जुषस्व।
स्तोकानामग्ने मेदसो घृतस्य होतः प्राशान प्रथमो निषद्य॥
हे जातवेदा अग्नि देव! हमारे इस यज्ञ को देवों के पास समर्पित करें। वे हमारे हव्य का सेवन करें। हे होता! बैठकर सबसे पहले मेद और घृत के बिन्दुओं को भली-भाँति भक्षण करें।[ऋग्वेद 3.21.1]
हे अग्नि देव! हमारे इस यज्ञ को देवताओं के प्रति पहुँचाओ। हमारी हवियों का भक्षण करो।
Hey Agni Dev! Carry our offerings to the demigods-deities. Let them eat-enjoy our offerings beginning with fat & Ghee.
घृतवन्तः पावक ते स्तोकाः श्चोतन्ति मेदसः।
स्वधर्मन्देववीतये श्रेष्ठं नो धेहि वार्यम्॥
हे पावक! इस साङ्ग यज्ञ में घृत से दो बिन्दु आपके और देवों के पीने के लिए गिर रहे हैं। अतः हमें श्रेष्ठ और वरणीय धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 3.21.2]
तुम होता रूप हो। तुम हमारे अनुष्ठान में पधारकर प्राणवान घृत का भक्षण करो। हे हे अग्नि देव! तुम शुद्ध हो। इस यज्ञ में तुम्हारे तथा देवों के लिए घृत की बूदें टपक रही हैं। तुम हमको वरण करने योग्य श्रेष्ठ धन प्रदान करो।
Hey Agni Dev! You are like the Ritviz-organiser of the Yagy. Join our Yagy and enjoy nourishing-energetic Ghee. Grant us the excellent wealth.
तुभ्यं स्तोका घृतश्चतोऽग्ने विप्राय सन्त्य।
ऋषिः श्रेष्ठः समिध्यसे यज्ञस्य प्राविता भव॥
भजन के योग्य हे अग्नि देव! आप मेधावी हैं। घृतस्रावी सभी बिन्दु आपके लिए हैं। आप ऋषि और श्रेष्ठ हैं। आप प्रज्वलित होते हैं। इसलिए यज्ञपालक बनें।[ऋग्वेद 3.21.3]
हे अग्नि देव! तुम बुद्धिवान और यजन करने योग्य हो। घृत की टपकती हुई बूंदे तुम्हारे लिए हैं। तुम ऋषियों में उत्तम हो। तुम स्वयं प्रदीप्त होते हो। हमारे यज्ञ के रक्षक बनो।
Hey worship able Agni Dev! You are intelligent. The dropping drops of Ghee are meant for you. You are a Rishi-sage and excellent being. Ignite and support this Yagy.
तुभ्यं श्चोतन्त्यध्रिगो शचीवः स्तोकासो अग्ने मेदसो घृतस्य।
कविशस्तो बृहता भानुनागा हव्या जुषस्व मेधिर॥
हे सतत् गमनशील और शक्तिमान् अग्नि देव! आपके लिए मेदोरूप हव्य के सब बिन्दु क्षरित होते है। कवि लोग आपकी प्रार्थना करते है। महान् तेज के साथ पधारें। हे मेधावी! आप हमारे हव्य का सेवन करें।[ऋग्वेद 3.21.4]
हे अग्नि देव! तुम हमेशा गतिशील रहने वाले सर्वशक्ति सम्पन्न हो प्रेम रूप हवि की बूंदे तुमको। सींचती हैं। मेधावीजन तुम्हारा पूजन करते हैं। तुम श्रेष्ठ तेजस्वी और प्रज्ञावान हो। हमारी हवियों को प्राप्त करो।
Hey continuously moving-dynamic, mighty Agni Dev! The offerings saturated with the drops of Ghee, are meant for you. The poets pray-worship you. Come to us with the great aura. Hey intelligent! Enjoy the offerings.
ओजिष्ठं ते मध्यतो मेद उद्धृतं प्र ते वयं ददामहे।
श्चोतन्ति ते वसो स्तोका अधि त्वचि प्रति तान्देवशो विहि॥
हे अग्नि देव! हम अतीव सार-युक्त मेद, पशु के मध्य भाग से, उठाकर आपको देंगे। हे निवास प्रद अग्नि देव! चमड़े के ऊपर जो सब बिन्दु आपके लिए गिरते हैं, वे देवों में से प्रत्येक को विभाग करके प्रदान करें।[ऋग्वेद 3.21.5]
हे अग्नि देव! हम अत्यन्त साररूप स्नेह तुम्हें देंगे। निवासदाता, हे अग्नि देव! हवि की जो बूँदें तुम्हारे लिए गिरती हैं उनको देवगणों में बाँट दो।
Hey Agni Dev! We will offer you the fat, which is the extract of all eatables. Hey house-home granting Agni Dev! The drops of Ghee which drop over the skin be distributed amongest the demigods-deities. (7.10.2022)
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (22) :: ऋषि :- गाथी कौशिकी, देवता :- पुरीष्य, अग्नि, विश्वेदेवा, छन्द :- त्रिष्टुप्, अनुष्टुप्।
अयं सो अग्निर्यस्मिन्त्सोममिन्द्रः सुतं दधे जठरे वावशानः।
सहस्रिणं वाजमत्यं न सप्ति ससवान्सन्स्तूयसे जातवेदः॥
सोमाभिलाषी इन्द्र देव ने जिन अग्नि में अभिषुत सोमरस को अपने उदर में रखा था, वे ही अग्नि देव हैं। हे सर्वज्ञ अग्नि देव! जो हव्य नाना रूप वाला और अश्व के तुल्य वेग शाली है, उसकी आप सेवन करें। संसार आपकी प्रार्थना करता है।[ऋग्वेद 3.22.1]
सोम की इच्छा करने वाले इन्द्र देव ने छोड़े गये सोम को जिस अग्नि रूप पेट में रखा था, वह यह अग्नि ही है। हे अग्निदेव! तुम सर्वज्ञ हो। तुम उस अश्व के तुल्य तीव्र गति हवि का सेवन करो। संसार के सब प्राणधारी तुम्हारा पूजन करते हैं।
This is the Agni in who's stomach Indr Dev desirous of Som kept Som. Hey all knowing Agni Dev! The living beings in the universe prays to you to consume the offerings of different magnitude, having the speed of horse.
अग्ने यत्ते दिवि वर्चः पृथिव्यां यदोषधीष्वप्स्वा यजत्र।
येनान्तरिक्षमुर्वाततन्य त्वेषः स भानुरर्णवो नृचक्षाः॥
हे यज्ञनीय अग्नि देव! आपका जो तेज द्युलोक, पृथ्वी, औषधियों और जल में है, जिसके द्वारा आपने अन्तरिक्ष को व्याप्त किया है, वह तेज उज्ज्वल, समुद्र के तुल्य विशाल और मनुष्यों के लिए दर्शनीय है।[ऋग्वेद 3.22.2]
हे अग्नि देव! तुम यजन योग्य हो। तुम्हारा जो प्रकाश धरती, औषधि और जल में व्याप्त है तथा तुम्हारे जिस तेज के द्वारा अंतरिक्ष भी व्याप्त हुआ है, वह तेज समुद्र के समान गंभीर, सूर्य के सामान प्रकाशित एवं प्राणियों के लिए अद्भुत हैं।
Hey revered-honourable, worship able Agni Dev! Your energy-aura which pervades the heavens, earth, medicines, space and water is amazing, bright, as vast as the ocean and worth visualizing for the humans.
अग्ने दिवो अर्णमच्छा जिगास्यच्छा देवाँ ऊचिषे धिष्ण्या ये।
या रोचने परस्तात्सूर्यस्य याश्चावस्तादुपतिष्ठन्त आपः॥
हे अग्नि देव! आप द्युलोक के जल के समक्ष जा रहे हैं, प्राणात्मक देवों को एकत्र करते हैं। सूर्य के ऊपर अवस्थित रोचन नाम के लोक में और सूर्य के नीचे जो जल हैं, उन दोनों को आप ही प्रेरित करते हैं।[ऋग्वेद 3.22.3]
हे अग्नि देव! तुम क्षितिज के जल के समान प्रवाहमान हो। प्राणभूत देवगण को संगठित करने वाले हो । सूर्य के ऊपर संसार में या अतरिक्ष में जो जल है, उसे प्रेरित करने वाले हो।
Hey Agni Dev! You are dynamic like the water in heavens and unite the demigods-deities. You regulate the water in the abode, located above the Sun and below it.
It indicate the presence of vast ocean of water beyond the Sun in which the earth was submerged by Hiranykashipu and recovered by Bhagwan Shri Hari Vishnu through his incarnation Varah Avtar. Nasa has confirmed the presence of such reservoir of water.
पुरीष्यासो अग्नयः प्रावणेभिः सजोषसः।
जुषन्तां यज्ञमद्रुहोऽनमीवा इषो महीः॥
हे सिकता संमिश्रित अग्नि देव! खनन करने वाले हथियारों में मिलकर इस यज्ञ का सेवन करें। द्रोह रहित, रोगादि शून्य और महान् अन्न हमें प्रदान करें।[ऋग्वेद 3.22.4]
सिकता :: रेत-बालू, रेतीली भूमि, चीनी।
हे अग्नि देव! युद्ध क्षेत्र में हथियारों की संगति करते हुए युद्ध क्षेत्र को प्राप्त हो जाओ। तुम ऐसा धन हमको प्रदान करो, जिसके पराक्रम से हम शत्रुओं को दबाने वाले बनें तथा निरोगी रहें।
Hey Agni Dev mixed with sand! Participate in this Yagy associated the with the instruments-tools used for mining (tiling the fields). Grant us the best food grains free from ailments, capable of supressing the enemy.
इळामग्ने पुरुदंसं सनिं गोः शश्वत्तमं हवमानाय साध।
स्यान्नः सूनुस्तनयो विजावाग्ने सा ते सुमतिर्भूत्वस्मे॥
हे अग्नि देव! आपने स्तोता को अनेक कर्मों की कारणभूत और धेनु प्रदात्री भूमि सदैव प्रदान की है। हमारे वंश का विस्तारक और सन्तति-जनयिता एक पुत्र है। हे अग्नि देव! हमारे प्रति आपका अनुग्रह है।[ऋग्वेद 3.22.5]
हे अग्नि देव! वंदना करने वालों को कार्यों की प्रेरक और गवादि धन से परिपूर्ण धरा तुम प्रदान करते हो। हमारे वंश की वृद्धि करने वाला, सन्तानोत्पादन में समर्थवान पुत्र हमको प्रदान करो। यह कृपा हमारे प्रति होनी चाहिये।
Hey Agni Dev! You have always granted such land to the worshiper-devotees which is subjected to various uses. Grant us a son capable of promoting-continuing our clan. Your support-blessing should always be with us.(09.10.2022)
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (23) :: ऋषि :- भारत पुत्र देवश्रवा, देववात्, देवता :- अग्नि, विश्वेदेवा, छन्द :- त्रिष्टुप्।
निर्मथितः सुधित आ सधस्थे युवा कविरध्वरस्य प्रणेता।
जूर्यत्स्वग्निरजरो वनेष्यत्रा दधे अमृतं जातवेदाः॥
जो अग्रि मन्थन द्वारा उत्पन्न, याजक गण के घर में स्थापित, युवा, सर्वज्ञ, यज्ञ के प्रणेता, आसवेदा और महारण्य का विनाश करके भी स्वयं अजर हैं, वे ही अग्नि देव इस यज्ञ में अमृत धारित करते हैं।[ऋग्वेद 3.23.1]
घर्षण से रचित यजमान के घर में विद्यमान, सर्वज्ञाता, यज्ञकार्य के सम्पन्नकर्त्ता, स्वयं प्रज्ञावान, घोर वन का विनाश करने वाले अग्निदेव जरा विमुख हैं। वे यज्ञ में अमृत धारण करने वाले हैं।
Generated by rubbing-churning, present in the homes of the devotees, young, all knowing, inspirer of the Yagy, destroyer of the vast forests-jungles, immortal Agni dev bears elixir for the Yagy.
अमन्थिष्टां भारता रेवदग्निं देवश्रवा देववातः सुदक्षम्।
अग्ने वि पश्य बृहताभि रायेषां नो नेता भवतादनु द्यून्॥
भरत के पुत्र देवश्रवा और देववात सुदक्ष और धनवान अग्नि देव को मंथन द्वारा उत्पन्न करते हैं। हे अग्नि देव! आप बहुत धन साथ हमारी ओर देखें और प्रतिदिन हमारे लिये अन्न को लावें।[ऋग्वेद 3.23.2]
भारत के पुत्रों ने इन धन सम्पन्न अग्निदेव की अरणि मंथन द्वारा प्रकट किया है। हे अग्निदेव! बहुत से धन सहित तुम हमारी ओर देखो और हमको नित्य प्रति अन्न ग्रहण कराओ।
Devshrava & Devvat, the sons of Bharat generate skilled Agni-fire, the possessor of wealth by churning-rubbing woods. Hey Agni Dev! Look at us with a lot of money-riches and bring food stuff for us every day.
दश क्षिपः पूर्व्यं सीमजीजनन्त्सुजातं मातृषु प्रियम्।
अग्नि स्तुहि दैववातं देवश्रवो यो जनानामसद्वशी॥
दस अँगुलियों ने इन पुरातन और कमनीय अग्नि को उत्पन्न किया है। हे देवश्रवा! अरणि रूप माताओं के मध्य सुजात और प्रिय तथा देववात द्वारा उत्पादित अग्नि देव की प्रार्थना करें। वे ही अग्नि लोगों के वशवर्ती होते हैं।[ऋग्वेद 3.23.3]
हे पुरातन रमणीय अग्नि देव दसों अँगुलियों द्वारा उत्पन्न होते हैं। हे देवश्रवा! अरणि से उत्पन्न, अलौकिक, पवन से प्रकट हुए अग्नि देव की वंदना करो। वे अग्नि वंदना करने वालों के ही वशीभूत होते हैं।
वशीभूत :: मातहत, वशीभूत, अधीन किया हुआ, नरम किया हुआ; subdued, subjugated.
Devvat has generated this eternal-ancient and useful fire, with his ten fingers. Hey Devshrava! Pray to dear newly born Agni Dev amongest the woods. The Agni Dev worshiped by the humans is subdued, subjugated by them.
नि त्वा दधे वर आ पृथिव्या इळायास्पदे सुदिनत्वे अह्नाम्।
दृषद्वत्यां मानुष आपयायां सरस्वत्यां रेवदग्ने दिदीहि॥
हे अग्नि देव! सुदिन की प्राप्ति के लिए हम गोरूपिणी पृथ्वी के उत्कृष्ट स्थान में आपको स्थापित करते हैं। हे अग्नि देव! आप दृषद्वती (राजपूताने की सिकता में विनष्ट घग्घर नदी), आपया (कुरुक्षेत्रस्थ नदी) और सरस्वती (कुरुक्षेत्रीय सरस्वती नदी) के तटों पर रहने वाले मनुष्यों के घर में धन-युक्त होकर दीप्त होवें।[ऋग्वेद 3.23.4]
हे अग्नि देव! उत्तम दिवस की प्राप्ति के लिए हम इस धरा के शुद्ध स्थान में तुम्हें विद्यमान करते हैं। तुम दृषद्वती, आपया और सरस्वती इन तीनों नदियों के पास निवास करने वाले के घरों में धन से परिपूर्ण प्रदीप्त होओ।
Hey Agni Dev! We establish you in the earth possessing the form of a cow for having excellent period. Hey Agni Dev! You should shine-illuminate in the homes of the humans residing over the banks of Drashdwayati-Ghagghar in arid land-Rajasthan, Apya in Kurukshetr and Saraswati (in present day Haryana).
इळामग्ने पुरुदंसं सनिं गोः शश्वत्तमं हवमानाय साध।
स्यान्नः सूनुस्तनयो विजावाग्ने सा ते सुमतिर्भूत्वस्मे॥
हे अग्नि देव! आप स्तोता को अनेक कर्मों के कारण और धेनु प्रदात्री भूमि सदैव प्रदान करें। हमें वंश विस्तारक और सन्तति जनयिता एक पुत्र प्रदान करें। हे अग्नि देव! हमारे ऊपर आपका अनुग्रह है।[ऋग्वेद 3.23.5]
हे अग्नि देव! तुम वंदना करने वालों को कर्म युक्त तथा गवादि युक्त धरती प्रदान करो। हमारे वंश की वृद्धि करने वाला, संतान उत्पादन में सक्षम पुत्र को देकर यह अनुग्रह हम पर करो।
Hey Agni Dev! Grant fertile-cultivable land producing cows to the Strota-worshiper. Grant us son to prolong our clan-dynasty. Hey Agni Dev! Your blessings (protection, shelter, asylum) should always be available to us.(10.10.2022)
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (24) :: ऋषि :- विश्वामित्र गाथिन, देवता :- अग्नि, विश्वेदेवा, छन्द :- अनुष्टुप् गायत्री।
अग्ने सहस्व पृतना अभिमातीरपास्य।
दुष्टरस्तरन्नरातीर्वर्चो धा यज्ञवाहसे॥
हे अग्नि देव! आप शत्रु सेना को पराभूत अर्थात् परास्त करें। विघ्न-कर्ताओं को दूर करें। आपको कोई जीत नहीं सकता। आप शत्रुओं को जीत कर याजकगण को अन्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 3.24.1]
हे अग्निदेव! इस शत्रु नेता को पराजित करो। बाधा पहुँचाने वालों को भगा दो। तुम्हें कोई हरा नहीं सकता। तुम शत्रुओं को पराजित करके अपने यजमान को अन प्रदान करो।
Hey Agni Dev! Defeat the enemy army. Remove the obstacles. None can win you. Win the enemy and provide food grains to the needy, requesting for it.
अग्न इळा समिध्यसे वीतिहोत्रो अमर्त्यः। जुषस्व सू नो अध्वरम्॥
हे अग्रि देव! आप यज्ञ में प्रीतमान व अमर है। आपको उत्तर वेदी पर प्रज्वलित किया जाता है। आप हमारे यज्ञ को भली-भाँति सेवा करें।[ऋग्वेद 3.24.2]
हे अग्निदेव! तुम यज्ञ से प्रीति रखते हो। तुम मरणरहित हो। तुम उत्तम वेदी पर प्रज्वलित होते हो। तुम हमारे यज्ञ को उत्तम ढंग से संपादित करो।
Hey Agni Dev! You are immortal and have affinity-love for Yagy. You are ignited over the Uttar Vedi-Yagy site situated in the North direction. Take care-execute our Yagy properly.
अग्ने द्युम्नेन जागृवे सहसः सूनवाहुत। एवं बर्हिः सदो मम॥
हे अग्नि देव! आप अपने तेज से सदा जागृत हैं। आप बल के पुत्र हैं। मैं आपको बुलाता हूँ। मेरे इस कुश पर बैठें।[ऋग्वेद 3.24.3]
हे अग्नि देव! तुम अपने तेज से चैतन्य हो। तुम शक्ति के पुत्र का मैं आह्वान करता हूँ। मेरे कुश पर पधारो।
Hey Agni Dev! You are always awake with your aura. You are the son of might. I invoke you. Occupy this seat made of Kush grass.
अग्ने विश्वेभिरग्निभिर्देवेभिर्महया गिरः। यज्ञेषु य उ चायवः॥
हे अग्रि देव! जो आपके पूजक हैं, उनके यज्ञ में समस्त तेजस्वी अग्नियों के संग प्रार्थना की मर्यादा की रक्षा करें।[ऋग्वेद 3.24.4]
हे अग्निदेव! तुम अपनी प्रार्थना करने वालों के यज्ञ में समस्त ज्योतिमात अग्नियों से युक्त प्रार्थनाओं की पर्यादा को सुरक्षित करो।
Hey Agni Dev! Maintain the dignity of the worshipers along with the various forms of fire.
अग्ने दा दाशुषे रयिं वीरवन्तं परीणसम्। शिशीहि नः सनुमतः॥
हे अग्नि देव! आप हव्यदाता को वीर्य युक्त और प्रभूत धन प्रदान करें। हम पुत्र-पौत्र वाले हैं। हमें तीक्ष्ण करें।[ऋग्वेद 3.24.5]
हे अग्नि देव! तुम हवि प्रदान करने वालों को पौरुष से परिपूर्ण धन को प्रदान करो। धन से संतान परिपूर्ण हो, हमारी वृद्धि करो।
Hey Agni Dev! Grant mighty sons & wealth-riches to the ones who make offerings. We should have sons and grand sons. Make us progress.(11.10.2022)
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (25) :: ऋषि :- विश्वामित्र गाथिन, देवता :- अग्नि, इन्द्रानि, छन्द :- विराट्।
अग्ने दिवः सूनुरसि प्रचेतास्तना पृथिव्या उत विश्ववेदाः।
ऋधग्देवाँ इह यजा चिकित्वः॥
हे अग्नि देव! आप सर्वज्ञ, चित्रवान, द्युदेवता के पुत्र और पृथ्वी के तनय है। हे चेतनावान् अग्नि देव! आप देवों के इस यज्ञ में पृथक-पृथक यज्ञ करें।[ऋग्वेद 3.25.1]
हे अग्नि देव! तुम दिव्य, सर्वज्ञाता, अम्बर धरा के पुत्र तथा चैतन्य परिपूर्ण हो। तुम इस देव अनुष्ठान में पृथक-पृथक यजन कार्य करो।
Hey Agni Dev! You are divine, all knowing-enlightened, aware, son of the sky & the earth. Hey conscious Agni Dev! You should carry out-conduct Yagy in this programme, separately for the demigods-deities.
अग्निःसनोति वीर्याणि विद्वान्त्सनोति वाजममृताय भूषन्।
स नो देवाँ एह वहा पुरुक्षो॥
विद्वान् अग्नि देव सामर्थ्य प्रदान करते है। ये अपने को विभूषित करके देवों को अन्न प्रदान करते है। हे बहुविधि अन्न वाले अग्नि देव! हमारे लिए देवों को इस यज्ञ में उपस्थित करें।[ऋग्वेद 3.25.2]
अग्नि देव मेधावी हैं, सामर्थ्यदाता हैं और स्वयं शोभायमान होकर देवताओं को हवि पहुँचाते हैं। उनका अन्न विभिन्न तरह का है। हे अग्नि देव! देवगणों को हमारे यज्ञ में लाओ।
Enlightened Agni Dev provides calibre, power & strength. He grants food grains to the demigods-deities. The possessor of different types-varieties food grains Agni Dev, be present in our Yagy.
अग्निर्द्यावापृथिवी विश्वजन्ये आ भाति देवी अमृते अमूरः।
क्षयन्वाजैः पुरुश्चन्द्रो नमोभिः॥
सर्वज्ञ, जगत्पति, बहुदीप्ति युक्त, बल और अन्न वाले अग्नि संसार की माता, द्युतिमती और मरण-शून्या द्यावा पृथ्वी को प्रकाशित करते हैं।[ऋग्वेद 3.25.3]
सर्वज्ञानी, संसार के दाता, प्रदीप्तिमान शक्ति और अन्न से सम्पन्न अग्नि देव विश्व माता, तेजस्विनी, मरण रहित आकाश पृथ्वी को प्रकाशवान बनाते हो।
Enlightened, master of the universe, possessing various kinds of shine, aura, might and food grains Agni; light the mother of the universe, immortal, brilliant earth.
अग्न इन्द्रश्च दाशुषो दुरोणे सुतावतो यज्ञमिहोप यातम्।
अमर्धन्ता सोमपेयाय देवा॥
हे अग्नि देव! आप और इन्द्र देव यज्ञ की हिंसा न करके अभिषव प्रदाता इस घर में सोम पान के लिए पधारें।[ऋग्वेद 3.25.4]
हे अग्नि देव! तुम इन्द्र देव युक्त अनुष्ठान की सुरक्षा करते हुए सोम छानकर अर्पित करने वाले को इस गृह में सोम के लिए पधारो।
Hey Agni Dev! You accompanied with Indr Dev, protect the Yagy and come to home for accepting Somras.
अग्ने अपां समिध्यसे दुरोणे नित्यः सूनो सहसो जातवेदः।
सधस्थानि महयमान ऊती॥
हे बल के पुत्र, नित्य और सर्वज्ञ अग्नि देव! आश्रयदान द्वारा आप जीव लोकों को अलंकृत करले स्थान अन्तरिक्ष में सुशोभित होते हैं।[ऋग्वेद 3.25.5]
हे जलोत्पन्न अग्नि देव! तुम सर्वज्ञानी और नित्य हो। तुम अपनी शरण में प्राणियों को शोभित करते हुए जल के आश्रय स्थान अंतरिक्ष में स्थापित हो।
Hey the son of water-Varun, enlightened, for ever Agni Dev! You grant asylum to the living beings in the universe, establishing yourself in the space.(12.10.2022)
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (26) :: ऋषि :- विश्वामित्र गाथिन, आत्मा, देवता :- वैश्वानर अग्नि, मरुतादि, छन्द :- जगती।
वैश्वानरं मनसाग्निं निचाय्या हविष्मन्तो अनुषत्यं स्वर्विदम्।
सुदानुं देवं रथिरं वसूयवो गीर्भी रण्वं कुशिकासो हवामहे॥
हम कुशिक गोत्रोद्भूत है। धन की अभिलाषा से हव्य को एकत्रित करते हुए भीतर ही भीतर वैश्वानर अग्नि देव को जानकर स्तुति द्वारा उन्हें बुलाते हैं। वे सत्य के द्वारा अनुगत है; स्वर्ग का विषय जानते हैं, यज्ञ का फल देते हैं, उनके पास रथ है, वे इसलिए वह यज्ञ में आते हैं।[ऋग्वेद 3.26.1]
हम कौशिक जन धन की इच्छा से हवि संगठित करते हुए, वैश्वानर अग्नि का आह्वान करते हैं। वे सत्य मार्ग गामी, स्वर्ग के संबंध में जानने वाले हैं। यज्ञ का फल देने वाले हैं। वे अपने रथ से अनुष्ठान स्थल को ग्रहण होते हैं।
We the members of Kaushik family-clan make offerings and invoke Vaeshwanar Agni for the sake of wealth, money. He is truthful, understands-knows the heaven, possess the charoite and grant the rewards for the Yagy. That's why, he visits the Yagy.
तं शुभ्रमग्निमवसे हवामहे वैश्वानरं मातरिश्वानमुक्थ्यम्।
बृहस्पतिं मनुषो देवतातये विप्रं श्रोतारमतिथिं रघुष्यदम्॥
आश्रय प्राप्ति और याजक गण के यज्ञ के लिए उन शुभ, वैश्वानर, मातरिश्वा ऋचा योग्य, यज्ञपति, मेधावी, श्रोता, अतिथि और क्षिप्रगामी अग्नि देव को हम बुलाते हैं।[ऋग्वेद 3.26.2]
क्षिप्रगामी :: त्वरित, फुर्तीला, तेज; quick, fast, nimble, agile.
उन उज्ज्वल रंग वाले वैश्वानर, विद्युत रूप यज्ञ में शरण ग्रहण करने के लिए आहूत करते हैं।
We invoke-invite Vaeshwanar Agni in our Yagy for seeking asylum under him. He is intelligent, enlightened, listener, guest, auspicious, quick and the deity of the Yagy.
We invoke you for our own protection and for the devotions of mankind, the radiant Agni, Vaeshwanar, the illuminator of the firmament-world, the adorable lord of sacred rites, the wise, the hearer of supplications, the guest of man, the quick-moving.
अश्वो न क्रन्दञ्जनिभिः समिध्यते वैश्वानरः कुशिकेभिर्युगेयुगे।
स नो अग्निः सुवीर्यं स्वश्व्यं दधातु रत्नममृतेषु जागृविः॥
हिनहिनाने वाले घोड़े के बच्चे जिस प्रकार से अपनी माता के द्वारा वर्द्धित होते हैं, उसी प्रकार प्रतिदिन वैश्वानर अग्नि कौशिकों के द्वारा वर्द्धित होते है। देवों में जागरूक अग्निदेव हमें उत्तम अश्व, उत्तम वीर्य और उत्तम धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 3.26.3]
घोड़े का बच्चा :: colt, foal.
उच्च आवाज करने वाले अश्व का शिशु जैसे माता की शरण में वृद्धि पाता है। हे अग्नि देव! तुम देवताओं में चैतन्य हो। हमको उत्तम अश्व, पौरुष और श्रेष्ठ धन प्रदान करो।
The way the colt-foal is protected by its mother Vaeshwanar Agni is nursed by the Kaushiks. Let brilliant Agni Dev grant us horse, strength and excellent wealth.
प्र यन्तु वाजास्तविषीभिरग्नयः शुभे संमिश्लाः पृषतीरेयुक्षत।
बृहदुक्षो मरुतो विश्ववेदसः प्र वेपयन्ति पर्वतों अदाभ्याः॥
अग्रि रूप अश्व गण गमन करें; बली मरुतों के साथ मिलकर पृषती वाहनों को संयुक्त करें। सर्वज्ञ और अहिंसनीय मरुद्गण अधिक जलशाली और पर्वत समान मेघ को कम्पित करते हैं।[ऋग्वेद 3.26.4]
पृषत :: वायु का वाहन, पवन की सवारी; vehicle of Pawan-Vayu Dev.
अग्नि रूप अश्व, विद्वान मरुद्गण से संयुक्त हुए पृषती वाहनों को मिलावें। सर्वज्ञाता किसी के द्वारा भी हिंसित न होने वाले मरुद्गण जल राशि परिपूर्ण तथा पर्वत के समान बादल को कम्पायमान करते हैं।
Let the horses in the form-shape of Agni-fire move, along with the Marud Gan. Enlightened, non violent Marud Gan shake the clouds, like the mountains, possessing excess water.
अग्निश्रियो मरुतो विश्वकृष्टय आ त्वेषमुग्रमव ईमहे वयम्।
ते स्वानिनो रुद्रिया वर्षनिर्णिजः सिंहा न हेषक्रतवः सुदानवः॥
मरुद्रण अग्रि के आश्रित और संसार के आकर्षक है। उन्हीं मरुतों के दीप्त और उग्र आश्रय के लिए हम भली-भाँति याचना करते हैं। वर्षण रूप धारी, हरेवा (हिनहिनाना) शब्द कारी और सिंह के सदृश गरजने वाले मरुद्गण विशेष रूप से जल देते हैं।[ऋग्वेद 3.26.5]
हिनहिनाना :: हींसना; snort, neigh, horselaugh.
अग्नि के सहारे मरुत सागर को आकृष्ट करते हैं। हम उन्हीं मरुतों के उत्कृष्ट आश्रय की अभिलाषा करते हैं। वे वर्षा रूप वाले सिंह के समान गर्जनशील मरुद्गण जल दाता के रूप में विख्यात हैं।
Marud Gan dependent over the fire-Agni, attract the ocean. We desire-pray to seek asylum under these Marud Gan. Marud Gan who neigh-sound like the horse and roar like the lion specially, grant water-shower rains.
व्रातंव्रातं गणंगणं सुशस्तिभिरग्नेर्भामं मरुतामोज ईमहे।
पृषदश्वासो अनवभ्रराधसो गन्तारो यज्ञं विदथेषु धीराः॥
दल के दल और झुण्ड के झुण्ड स्तुति मंत्रों द्वारा हम अग्नि के तेज और मरुत् के बल
की याचना करते हैं। बिन्दु चिह्नित अश्व वाले और अक्षय धन-संयुक्त तथा धीर मरुद्गण हव्य के उद्देश्य से यज्ञ में जाते हैं।[ऋग्वेद 3.26.6]
अनेक श्लोकों द्वारा हम अग्नि के तेज और मरुदगण को शक्ति की अभिलाषा करते हैं। वे बिन्दु चिह्न वाले अश्व-युक्त मरुद्गण नष्ट न होने वाले धन के साथ हवि के लिए यज्ञ को प्राप्त होते हैं।
We request-pray for the strength-might of Agni Dev and Marud Gan, with the recitation of numerous-in bunches, Stuti Mantr (hymns meant for prayers). Patient Marud Gan, possessing spotted horses & imperishable wealth, come to the Yagy with the desire of offerings.
अग्निरस्मि जन्मना जातवेदा घृतं मे चक्षुरमृतं म आसन्।
अर्कस्त्रिधातू रजसो विमानोऽजत्रो धर्मों हविरस्मि नाम॥
मैं अग्नि या परब्रह्म जन्म से ही जातवेदा अथवा परतत्त्व-रूप हूँ। घृत अथवा प्रकाश ही मेरा नेत्र है। मेरे मुख में अमृत है। मेरे प्राण त्रिविध अर्थात् वायु, सूर्य, दीप्ति हैं। मैं अन्तरिक्ष को मापने वाला हूँ। मैं अक्षय उत्ताप हूँ। मैं हव्य रूप हूँ।[ऋग्वेद 3.26.7]
प्राण :: मार्मिकता, बड़ा जीवन बल, बड़ी जीवन-शक्ति, आत्मा, जी, जीव, व्यक्ति, रूह, जीवन काल, जन्म, जीव, जीवनी; life sustaining vital force, soul, vitality.
उत्ताप :: अत्यधिक गर्मी, दुःख; candescence, heat.
मैं अग्नि देव जन्म से ही मेधावी हूँ। अपने रूप को स्वयं प्रकट करता हूँ। रोशनी मेरी आँखें हैं। जिह्वा में अमृत है। मैं विविध प्राण परिपूर्ण एवं अंतरिक्ष का मापक हैं, मेरे तार का भी क्षय नहीं होता। मैं ही साक्षात हवि हूँ।
I am Agni or the Ultimate Almighty enlightened since birth. Ghee and light are my eyes. My mouth possess elixir-nectar. My vitals are air, Sun and aura. I measure the sky-universe. I am candescence, heat in the form of offerings.
त्रिभिः पवित्रैरपुपोद्ध्य १ र्कं हृदा मतिं ज्योतिरनु प्रजानन्।
वर्षिष्ठं रत्नमकृत स्वधाभिरादिद्द्यावापृथिवी पर्यपश्यत्॥
अन्तःकरण द्वारा मनोहर ज्योति को भली-भाँति जानकर अग्नि देव ने अग्नि, वायु, सूर्य रूप तीन पवित्र स्वरूपों से पूजनीय आत्मा को शुद्ध किया है। अग्नि देव ने अपने रूपों द्वारा अपने को अतीव रमणीय किया और दूसरे ही क्षण द्यावा-पृथ्वी को देखा।[ऋग्वेद 3.26.8]
सुन्दर ज्योति को मन से जानने वाले अग्निदेव ने अग्नि, पवन और सूर्य रूप धारण कर अपने को सक्षम बनाया। अग्नि ने इन रूपों में प्रकट होकर आकाश और पृथ्वी के दर्शन किये थे।
Agni Dev recognised the beautiful aura through his innerself and purified his soul by the three pious forms viz. fire, air and the Sun. Agni Dev; made himself very attractive and looked at sky & the earth immediately.
शतधारितुत् समक्षीयमाणं विपश्चितं पितरं वक्त्वानाम्।
मेळिं मदन्तं पित्रोरुपस्थे तै रोदसी पिपृतं सत्यवाचम्॥
शत (सौ) धार वाले स्त्रोत के तुल्य अविच्छिन्न प्रवाह वाले, विद्वान् पालक, वाक्यों का मेल कराने वाले माता-पिता की गोद में प्रसन्न और सत्य स्वरूप अग्नि को, हे द्यावा पृथ्वी! आप परिपूर्ण करें।[ऋग्वेद 3.26.9]
हे अम्बर-धरती! सौ धार वाले बादल की तरह अक्षुण, प्रवाह परिपूर्ण, मेधावी पोषणकर्त्ता, वाक्यों को मिलाकर बतलाने वाले, माता-पिता की गोद में हर्षित, सत्य स्वरूप अग्नि को परिपूर्ण करो।
Hey sky & earth! Replete the Agni, who is like the hundred branches of Strotr-clouds, enlightened, connecting sentences, truthful, happy in the lap of his parents.(14.10.2022)
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (27) :: ऋषि :- विश्वामित्र गाथिन, देवता :- ऋतव , छन्द :- जगती।
प्र वो वाजा अभिद्यवो हविष्मन्तो घृताच्या। देवाञ्जिगाति सुम्नयुः॥
ऋतुओं, स्रुक एवं हविवाले देवता, पशु, मास, अर्द्ध मास आदि आपके याजक गण के लिए सुख की इच्छा करते हैं और याजक गण देवों को प्राप्त करते हैं।[ऋग्वेद 3.27.1]
हे ऋत्विजों! स्नुक-परिपूर्ण, हवि वाले देवता, माह, अर्ध-माह आदि यजमान के लिए सुखी करने के अभिलाषी हैं। वह यजमान देवों की कृपादृष्टि ग्रहण करता है।
Hey Ritviz-organisers of Yagy! The demigods-deities pertaining to Struk, offerings, animals, months and half month etc., pray for the welfare of the desirous-Ritviz. The Ritviz attains the well wishes of the demigods-deities.
ईळे अग्नि विपश्चितं गिरा यज्ञस्य साधनम्। श्रुष्टीवानं धितावानम्॥
मेधावी, यज्ञ-निर्वाहक, वेगवान् और धनवान् स्तुति वचनों के द्वारा अग्नि देव की मैं पूजा करता हूँ।[ऋग्वेद 3.27.2]
यज्ञ सम्पन्नकर्त्ता, प्रज्ञावान, समृद्धिवान, गतिशील अग्नि देव को मैं श्लोकों द्वारा यजन करता हूँ।
I pray to Agni Dev, who is intelligent, accomplishes the Yagy, is accelerated-fast and wealthy, with the Strotr-sacred hymns.
अग्ने शकेम ते वयं यमं देवस्य वाजिनः। अति द्वेषांसि तरेम॥
हे दीप्तिमान् अग्नि देव! हव्य तैयार करके हम आपको यहीं रखेंगे और पाप से मुक्त होंगे।[ऋग्वेद 3.27.3]
हे अग्निदेव! तुम प्रकाशवान हो। हम हव्य तैयार कर तुम्हारी सेवा करेंगे और पाप से बच जायेंगे।
Hey glowing Agni Dev! We will prepare the offerings-Havy and keep it here & free ourselves from sins.
समिध्यमानो अध्वरे ३ग्निः पावक ईड्यः। शोचिष्केशस्तमीमहे॥
यज्ञ के समय प्रज्वलित, ज्वाला वाले केश से संयुक्त, पावक तथा पूजनीय अग्नि देव के हम अभिलषित फल की कामना करते हैं।[ऋग्वेद 3.27.4]
यज्ञ समय में प्रकट होने वाले ज्वाला युक्त केश वाले, पवित्रकर्त्ता, पूज्य, अग्निदेव के पास उपस्थित होकर मनवांछित फल मांगते हैं।
We desires our boons to be accomplished by Agni Dev, who is pious-pure, has hairs in the form of flames, worship able, ignited at the time of the Yagy.
पृथुपाजा अमर्त्यो घृतनिर्णिक्स्वाहुतः अग्निर्यज्ञस्य हव्यवाट्॥
प्रभूत तेज वाले, मरण-शून्य, घृत शोधन कर्ता और सम्यक् पूजित अग्नि देव यज्ञ का हव्य ले जायें।[ऋग्वेद 3.27.5]
रचित तेज से परिपूर्ण, अमृत, घृत को पवित्र करने वाले मानस रूप से अर्चन किये अग्नि देव यज्ञ की हवि को वहन करें।
Immortal, full of energy, Ghee purifying and worshiped mentally Agni Dev should take-collect the offerings.
तं सबाधो यतस्त्रुच इत्था धिया यज्ञवन्तः। आ चक्रुरग्निमूतये॥
यज्ञ विघ्न नाशक और हव्य युक्त ऋत्विकों ने स्रुक को संयत करके आश्रय प्राप्ति के लिए एवं प्रार्थना के द्वारा उन अग्नि देव को अपने अभिमुख किया।[ऋग्वेद 3.27.6]
यज्ञ में उपस्थित बाधाओं को समाप्त करने वाले, हवि से परिपूर्ण ऋत्विजों ने स्तुक को उठाकर शरण के लिए श्लोकों द्वारा अग्नि देव की पूजा करते हुए बढ़ाया।
To eliminate the obstacles in the Yagy, the Ritviz moved the Struva full of offerings, towards Agni Dev to worship him, chanting Shloks (Mantr-hymns).
होता देवो अमर्त्यः पुरस्तादेति मायया। विदथानि प्रचोदयन्॥
होम निष्पादक, अमर और द्युतिमान् अग्नि देव यज्ञ कार्य में लोगों को उत्तेजित करके यज्ञ कार्य की अभिज्ञता के सहयोग से अग्रगन्ता होते हैं।[ऋग्वेद 3.27.7]
यज्ञ सम्पादक, मरण रहित, प्रकाश युक्त अग्नि देव यज्ञ के अनुष्ठान में सबको प्रेरणा देते हुए सहयोग पूर्वक यज्ञ में अग्रणी बनते हैं।
Immortal and aurous leader Agni Dev, inspire all the people to accomplishing the Yagy.
वाजी वाजेषु धीयतेऽध्वरेषु प्र णीयते। विप्रो यज्ञस्य साधनः॥
बलवान् अग्रि देव को युद्ध में आगे स्थापित किया जाता है। यज्ञ काल में वे यथा स्थान निक्षिप्त होते है। वे मेधावी और यज्ञ-सम्पादक हैं।[ऋग्वेद 3.27.8]
अग्नि देव शक्तिशाली हैं। वे युद्ध में सब से पहले स्थान प्राप्त करते हैं। यज्ञ के समय अपने स्थान पर प्रतिष्ठित होते हैं। वे यज्ञ कार्यों के सम्पादनकर्त्ता और प्रज्ञावान हैं।
Mighty & intelligent Agni Dev acquires the front line in the battle-war. He is present at his place during the Yagy. He accomplishes all the procedures in the Yagy.
धिया चक्रे वरेण्यो भूतानां गर्भमा दधे। दक्षस्य पितरं तना॥
जो अग्नि देव कर्म द्वारा वरणीय है, भूतों के गर्भ रूप से अवस्थित है, पितृ स्वरूप है, उन्हीं अग्नि को दक्ष की पुत्री यज्ञ भूमि धारण करती है।[ऋग्वेद 3.27.9]
कार्यों के द्वारा वरण करने योग्य, भूतों के कारण रूप, पिता समान अग्नि देव को धरा धारण करती है, जो दक्ष पुत्री हैं।
Agni Dev who deserve to be accepted (is eligible) through the endeavours, possess all past, is like a father & is supported by the Yagy site-Dhara, the daughter of Daksh.
नि त्वा दधे वरेण्यं दक्षस्येळा सहस्कृत अग्ने सुदीतिमुशिजम्॥
हे बल सम्पादित अग्नि देव! आप उत्कृष्ट दीप्ति से युक्त, हव्याभिलाषी और वरणीय है। आपको दक्ष की तनया इला (वेदी-रूपा भूमि) धारित करती हैं।[ऋग्वेद 3.27.10]
हे शक्ति द्वारा रचित अग्नि देव! तुम महान दीप्तिवाले, हवियों की अभिलाषा वाले और वरण करने योग्य हो। तुम्हें दक्ष पुत्री इला धारण करती है।
Hey Agni Dev created by Shakti! You possess excellent aura, desirous of offerings and acceptable-eligible. You are supported by the daughter of Daksh, Ila.
अग्निं यन्तुरमप्तुरमृतस्य योगे वनुषः। विप्रा वाजैः समिन्धते॥
मेधावी भक्त लोग संसार के नियामक और जल के प्रेरक अग्नि देव को यज्ञ के सम्पादन के लिए अन्न द्वारा भली-भाँति उद्दीप्त करते हैं।[ऋग्वेद 3.27.11]
संसार के नियामक और जल को प्रेरित करने वाले अग्नि को यज्ञ कार्य सम्पन्न करने के लिए ज्ञानी व्यक्ति हवि द्वारा अच्छी जरह से प्रदीप्त करते हैं।
The enlightened-intelligent devotees invoke Agni Dev (ignite fire), who inspire water & is the regulator of the Yagy properly, by using food grains,
ऊर्जो नपातमध्वरे दीदिवांसमुप द्यवि। अग्निमीळे कविक्रतुम्॥
अन्न के नप्ता, अन्तरिक्ष के पास दीप्तिमान् एवं सर्वज्ञ अग्नि की या यज्ञ की मैं प्रार्थना करता हूँ।[ऋग्वेद 3.27.12]
प्राणियों को अन्न से वंचित न होने देने वाले अंतरिक्ष के पास प्रकाशवान अग्नि देव की मैं वंदना करता हूँ।
I pray-worship enlightened, aurous Agni Dev, close to the space, who do not let the living beings without food grains.
ईळेन्यो नमस्यस्तिरस्तमांसि दर्शतः। समग्निरिध्यते वृषा॥
पूजनीय, नमस्कार-योग्य, दर्शनीय और अभीष्टवर्षी अग्रि अन्धकार को दूर करते हुए
प्रज्वलित होते हैं।[ऋग्वेद 3.27.13]
वे अग्नि देव नमस्कार करने के योग्य, पूज्य दर्शनीय तथा अभिलाषाओं की वर्षा करने वाले हैं। वे प्रज्वलित होते ही अंधेरे का पतन करते हैं।
Revered-honourable, beautiful and desires accomplishing Agni Dev ignite and remove darkness.
वृषो अग्निः समिध्यतेऽश्वो न देववाहनः। तं हविष्मन्त ईळते॥
अभीष्टवर्षी और अश्व के तुल्य देवों के हव्य वाहक अग्नि प्रज्वलित होते हैं। हविष्मान् अग्नि देव की मैं पूजा करता हूँ।[ऋग्वेद 3.27.14]
अश्व के समान हवि वहन करने वाले, कामनाओं के वर्षक अग्नि देव प्रज्वलित होते हैं। मैं उन अग्नि की प्रार्थना करता हूँ।
Accomplishment granting and the carrier of offerings for the demigods-deities like the horse, Agni is ignited. I pray-worship Agni Dev.
वृषणं त्वा वयं वृषन्वृषणः समिधीमहि। अग्ने दीद्यतं बृहत्॥
हे अभीष्टवर्षी अग्नि देव! हम घृत आदि का सेचन करते हैं, आप जल का सेचन करते हैं। हम आपको दीप्त करते हैं। क्योंकि आप दीप्तिमान् और बृहत् हैं।[ऋग्वेद 3.27.15]
हे अग्नि देव! तुम इच्छाओं की वृष्टि करने वाले हो। तुम घृत आदि से सींचते हैं। तुम जल सींचते हो। हम तुम्हें प्रज्वलित करते हैं। तुम ज्योर्तिमान और श्रेष्ठ हो।
Hey accomplishments fulfilling Agni Dev! We nourish you with Ghee and water. We ignite you. You are aurous and excellent.(16.10.2022)
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (28) :: ऋषि :- विश्वामित्र गाथिन, देवता :- अग्नि, छन्द :- गायत्री, उष्णिक, त्रिष्टुप, जगती।
अग्ने जुषस्व नो हविः पुरोळाशं जातवेदः। प्रातः सावे धियावसो॥
हे जातवेदा अग्नि देव! आपका स्तोत्र ही धन प्रदायक है। प्रातः सवन में आप हमारे पुरोडाश और हव्य का सेवन करें।[ऋग्वेद 3.28.1]
पुरोडास :: यज्ञ में दी जाने वाली आहुति, जौ के आटे की टिकिया, सोमरस; cake of ground barley offered as an oblation in fire, sacrificial oblation offered to the demigods-deities, Ghee-clarified butter is offered in oblations to holy fire, with cakes of ground meal.
हे अग्नि देव! तुम जन्म से ही ज्योति से परिपूर्ण हों तुम्हारे श्लोक से शक्ति मिलती है। तुम हमारे पुरोडाश और हव्य का सवेरे समय से सेवन करो।
Hey Agni Dev! You possess illumination-brilliance since birth. Recitation of your Strotr grants strength. Make use of Purodas & offerings in the morning
पुरोळा अग्ने पचतस्तुभ्यं वा घा परिष्कृतः। तं जुषस्व यविष्ठ्य॥
हे युवतम अग्नि देव! आपके लिए पुरोडाश का पाक किया गया है; उसे संस्कृत किया गया है, आप उसका सेवन करें।[ऋग्वेद 3.28.2]
हे अग्ने! तुम अत्यन्त युवा हो। तुम्हारे लिए ही पुरोडाश पक्व किया और सिद्ध किया गया है। उसका सेवन करो।
Hey young Agni Dev! We have cooked Purodas for you & treated it with the recitation of sacred hymns. Eat it.
अग्ने वीहि पुरोळाशमाहुतं तिरोअह्न्यम्। सहसः सूनुरस्यध्वरे हितः॥
हे अग्नि देव! दिनान्त में सम्यक् प्रदत्त पुरोडास का भक्षण करें। आप बल के पुत्र हैं, अत: इस यज्ञ में निहित होवें।[ऋग्वेद 3.28.3]
हे अग्नि देव! श्रेष्ठ प्रकार से दिवस के अंत में दिये गये पुरोडाश का सेवन करो। तुम शक्ति के पुत्र हो, यज्ञ के कार्य में लगो।
Hey Agni dev! Eat the Purodas at the end of the day (dinner). You being the son of strength-Bal, participate in the Yagy.
Eat, Agni, the cakes and butter offered as the day disappears; you, son of strength, are stationed by us at the sacrifice site.
माध्यंदिने सवने जातवेदः पुरोळाशमिह कवे जुषस्व।
अग्ने यह्वस्य तव भागधेयं न प्र मिनन्ति विदथेषु धीराः॥
हे जात वेदा और मेधावी अग्नि देव! माध्यन्दिन सवन में पुरोडाश का सेवन करें। अध्वर्यु लोग यज्ञ में आपका भाग नष्ट नहीं करते (क्योंकि) आप महान हैं।[ऋग्वेद 3.28.4]
जातवेद :: अग्नि, चित्रक वृक्ष, चीते का पेड़, अंतर्यामी, परमेश्वर, सूर्य।
हे अग्नि देव! तुम विज्ञानी हो। मध्य सेवन में पुरोडाश स्वीकार करो। अध्वर्युगण तुम्हारे यज्ञ का भाग का विनाश नहीं करते।
Hey all knowing-omniscient (possess intuition), Agni Dev! You are intelligent. Eat the Purodas during the day (lunch). The priests-Ritviz do not waste your share of offerings in the Yagy.
अग्ने तृतीये सवने हि कानिषः पुरोळाशं सहसः सूनवाहुतम्।
अथा देवेष्वध्वरं विपन्यया या रत्नवन्तममृतेषु जागृविम्॥
हे बल के पुत्र अग्नि देव! तृतीय सवन में दिए गए पुरोदाश की आप इच्छा करें। अनन्तर अविनाशी, रत्नवान् और जागरणकारी सोम को प्रार्थना के साथ अमर देवों के पास स्थापित करें।[ऋग्वेद 3.28.5]
हे शक्ति रचित अग्निदेव! आप तीसरे सवन में दिये जाने वाले पुरोडाश की इच्छा करो। फिर उस समृद्धिवान चैतन्य सोम को देवगण के निकट वंदनापूर्वक विद्यमान करो।
Hey the son Bal-strength Agni Dev! You should desire-expect the Purodas in the third sacrifice as well. Thereafter, pray to imperishable, awake possessing jewels Som-Moon and establish-invoke the immortal demigods-deities.
अग्ने वृधान आहुतिं पुरोळाशं जातवेदः। जुषस्व तिरोअह्रयम्॥
हे जातवेदा अग्नि देव! दिन के अन्त में आप पुरोडाश रूप आहुति का सेवन करें।[ऋग्वेद 3.28.6] हे विज्ञानी अग्निदेव! तुम पुरोडाश रूप आहुति को दिन के अन्त में प्राप्त करो।
Hey intuitive Agni Dev! Use the offerings made of Purodas in the evening.(18.10.2022)
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (29) :: ऋषि :- विश्वामित्र गाथिन, देवता :- अग्नि, छन्द :- त्रिष्टुप, अनुष्टप, जगती।
मातरिश्वा :: यह अग्नि तथा उसको उत्पन्न करने वाले देवता के लिये प्रयुक्त किया गया है।
वृत्र के विश्वास था कि मेरा भेद कोई नहीं जानता। परन्तु मरुतों की सहायता और प्रेरणा द्वारा इन्द्रदेव ने वृत्र का भेद जान लिया। उन्हीं मरुतों ने हर्षवद्धित वाणी से तुम्हें प्रसन्न किया था।
Marud Gan assisted Indr Dev. Vrata Sur thought that none is aware of his secrets. Inspired by Marud Gan, Indr Dev decoded the secrets of Vrata Sur. These Marud Gan spoke sweet words to encourage you.
हे इन्द्र देव! मनु अनुष्ठान के तुल्य तुम मेरे यज्ञ को ग्रहण करते हुए स्थायी शक्ति के लिए सोमपान करो। तुम्हारे अश्व हरे रंग वाले हों। यज्ञ के पात्र मरुद्गण के साथ पधारो और अंतरिक्ष से जल की वर्षा करो।
Hey Indr Dev! Conduct the Yagy like Manu to attain eternal strength & drink the Somras. Hey possessor of green horses! Come with the Marud Gan to participate in the Yagy. Inspire the heavenly waters to produce rains.
हे इन्द्र देव! तुम निर्मल जल को ढकते हो। तुमने उस सोते हुए वृत्र को युद्ध में गिराया है। तुमने संग्राम में अश्व के समान जल को छोड़ दिया।
Hey Indr Dev! Since you cover the pure waters, you killed Vrata Sur in the war causing darkness. You released waters during the war as you free the horses during the war.
अस्तीदमधिमन्थनमस्ति प्रजननं कृतम्।
एतां विश्पत्नीमा भराग्निं मन्थाम पूर्वथा॥
यही अग्रिमन्थन एवं उत्पत्ति के साधन है। संसार रक्षक अरणि को ले आयें। पूर्व की तरह हम अग्रि का मन्थन करेंगे।[ऋग्वेद 3.29.1]
अरणि जगत की सुरक्षा करने में समर्थवान हैं, उसे लाओ। इसी के मंथन द्वारा अग्नि की उत्पत्ति होती है। पूर्वकाल की अपेक्षा हम अग्नि को मंथन के द्वारा प्रकट करेंगे।
Arni-wood, is the source of fire. It protects the world as well. We will produce fire by rubbing wood as before.
Fire can be produced by rubbing the wood with each other. Jungles fires lit up when dried wood stalk, bamboo ignite due to friction with the gust of high speed winds. It produced when stones strike each other as well, but the material for catching fire is essential.
अरण्योर्निहितो जातवेदा गर्भइव सुधितो गर्भिणीषु।
दिवेदिव ईड्यो जागृवद्भिर्ह विष्मद्भिर्मनुष्येभिरग्निः॥
गर्मिणी के गर्भ के तुल्य जातवेदा अग्नि काष्ठ (अरणि) द्वय में निहित है। अपने कर्म में जागरूक और हवि से युक्त अग्रि देव मनुष्यों के लिए प्रतिदिन पूजनीय हैं।[ऋग्वेद 3.29.2]
अरणियों में अग्निदेव गर्भयुक्त नारी के गर्भ के समान दृढ़ हैं। वे अपने कार्य में सदैव तैयार रहते हैं उन हवि से परिपूर्ण अग्नि को मनुष्य प्रतिदिन अर्चना करते हैं।
Fire is embedded in the wood. Agni Dev is awake, devoted to his duties, accept offerings by humans and is honoured-revered by them.
उत्तानायामव भरा चिकित्वान्त्सद्यः प्रवीता वृषणं जजान।
अरुषस्तूपो रुशदस्य पाज इळायास्पुत्रो वयुनेऽजनिष्ट॥
हे ज्ञानवान् अध्वर्यु! ऊर्ध्वमुख अरणि पर अधोमुख अरणि रखें। सद्यो गर्भयुक्त अरणि ने अभीष्टवर्षी अग्नि को उत्पन्न किया। उसमें अग्नि का दाहकत्व था। उज्ज्वल तेज से युक्त इला के पुत्र अग्नि देव अरणि में उत्पन्न हुए।[ऋग्वेद 3.29.3]
हे ज्ञानवान अध्वर्युओ! उर्ध्व मुख वाली अरणि पर नीचे मुख वाली अरणि रखो। तत्काल गरम होने वाली अरणि ने इच्छाओं की वर्षा करने वाले अग्निदेव को उत्पन्न किया। उस अग्नि में दाहक गुण था। श्रेष्ठ प्रकाश वाले इला पुत्र अग्निदेव अरणि द्वारा उत्पन्न हुए।
Hey enlightened-learned priests-Ritviz! Pile the top facing wood over the down ward facing wood. The woods which function as the womb of fire, ignite it. The fire captured the ability to burn. Accompanied with brightness Agni Dev, the son of Ila, appeared out of it.
इळायास्त्वा पदे वयं नाभा पृथिव्या अधि।
जातवेदो नि धीमहाग्ने हव्याय वोळ्हवे॥
हे जातवेदा अग्नि देव! हम आपको पृथ्वी के ऊपर, उत्तर वेदी के नाभि स्थल में हव्य वहन करने के लिए स्थापित करते हैं।[ऋग्वेद 3.29.4]
हे विज्ञानी अग्नि देव! हम तुम्हें पृथ्वी की नाभि रूप उत्तर वेदी में वहन करने के लिए विद्यमान करते हैं।
Hey enlightened Agni Dev! We establish you over the earth at the nucleus-center of the Uttar Vedi, to carry offerings.
मन्थता नरः कविमद्वयन्तं प्रचेतसममृतं सुप्रतीकम्।
यज्ञस्य केतुं प्रथमं पुरस्तादग्निं नरो जनयता सुशेवम्॥
नेता अध्वर्युगण, कवि, द्वैध-शून्य, प्रकृष्ट ज्ञानवान्, अमर, सुन्दर शरीर वाले अग्नि देव को मन्थन-द्वारा उत्पन्न करें। नेता अध्वर्युगण यज्ञ के सूचक, प्रथम और सुखदाता अग्नि को कर्म के प्रारम्भ में उत्पन्न करें।[ऋग्वेद 3.29.5]
हे अध्वर्युओं! महान ज्ञानी, अविनाशी कवि, दीप्ति से परिपूर्ण शरीर वाली अग्नि को अरणि मंथन से प्रकट करो। तुम अनुष्ठान कार्य में व्यक्ति का नेतृत्व करने वाले हो । जो अग्निदेव अनुष्ठान सूचक, सुख प्रदान करने वाले, प्रथम पूजनीय हैं, उन्हें पहले प्रकट करो।
Hey head priests! Invoke the immortal, enlightened, poet, free from duality Agni Dev possessing beautiful body. Let the head priests invoke the first one to be worshiped-prayed, comforting, representative Agni Age at the beginning of the Karm-Yagy.
यदी मन्थन्ति बाहुभिर्वि रोचतेऽश्वो न वाज्यरूपी वनेष्वा।
चित्रो न यामन्नश्विनोरनिवृतः परिवृणक्त्यश्मनस्तृणा दहन्॥
जिस समय हाथों से मन्थन किया जाता है, उस समय काष्ठ अग्नि देव अश्व के तुल्य, सुशोभित होकर और द्रुतगामी अश्विनी कुमार के विचित्र रथ के तुल्य शीघ्र गन्ता होकर शोभा धारित करते हैं। कोई भी अग्नि का मार्ग अवरूद्ध नहीं कर सकता। अग्नि ने तृण और उपल को भस्मीभूत कर उसे स्थान का परित्याग कर दिया।[ऋग्वेद 3.29.6]
उपल :: पत्थर, ओला, रत्न-जवाहरात, बादल-मेघ।
हाथों द्वारा अरणि-मंथन करने पर दो लकड़ियों से उत्पन्न वह अग्नि अश्व के समान शोभित तथा अश्विनी कुमारों के रथ के समान तीव्रगामी होकर सुशोभित होते हैं। उनके रास्ते को रोकने की शक्ति किसी में नहीं है। अग्नि देव रचित होते ही अपने कार्य में विज्ञ होते हैं।
When the wood is rubbed with the hands, Agni Dev decorated like the horse and fast moving Ashwani Kumar's charoite; is adorned. None can block the track-path of Agni Dev. Agni Dev consumed the straw & stone and leave that place.
जातो अग्नी रोचते चेकितानो वाजी विप्रः कविशस्तः सुदानुः।
यं देवास ईडयं विश्वविदं हव्यवाहमदधुरध्वरेषु॥
उत्पन्न अग्नि भी सर्वज्ञ, अप्रतिहत गमन और कर्म-कुशल है, इसलिए मेधावी लोग उनकी प्रार्थना करते हैं। वह कर्म फल प्रदान करके शोभा प्राप्त करते हैं। देवता लोगों ने पूजनीय और सर्वज्ञ अग्नि देव को यज्ञ में हव्य वाहक नियुक्त किया।[ऋग्वेद 3.29.7]
वे सब कार्यों के ज्ञाता तथा तेजस्वी हैं। अतः ज्ञानीजन इनकी पूजा करते हैं। वह कार्यों का फल प्रदान करते हुए शोभायमान होते हैं। उन पूज्य सर्वज्ञ अग्निदेव को देवों ने अनुष्ठान कार्य में हवि वहन करने वाला नियुक्त किया।
The enlightened-learned people worship-pray the ignited Agni, who is intuitive-all knowing. He grant the rewards of deeds and is adorned. The demigods-deities have appointed him as the carrier of offerings.
सीद होतः स्व उ लोके चिकित्वान्त्सादया यज्ञं सुकृतस्य योनौ।
देवावीर्देवान्हविषा यजास्यग्ने बृहद्यजमाने वयो धाः॥
हे होम-निष्पादक अग्नि देव! अपने ही स्थान पर बैठें। आप सर्वज्ञ है। याजकगण को पुण्य लोक में स्थापित करें। आप देवों के रक्षक है। हव्य के द्वारा देवों की पूजा करें। मैं यज्ञ करता हूँ, मुझे यथेष्ट अन्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 3.29.8]
हे अग्नि देव! तुम यज्ञ सम्पादक हो। अपने स्थान पर पधारो। तुम सबके जानने वाले हो यजमान को अलौकिक लोक प्राप्त कराओ। तुम देवगणों की रक्षा करने वाले हो हवि द्वारा देवताओं की अर्चना करो और मुझ यज्ञकर्त्ता को इच्छित धन प्रदान करो।
Hey Yagy accomplishing Agni Dev! Occupy your seat. You are aware of all events. Grant the abodes for the pious, to the desirous. You are the protector of demigods-deities. Pray the demigods-deities with the offerings. I perform the Yagy. Grant me desired-sufficient food grains.
कृणोत धूमं वृषणं सखायोऽस्रेधन्त इतन वाजमच्छ।
अयमग्निः पृतनाषाट् सुवीरो येन देवासो असहन्त दस्यून्॥
हे अध्वर्युगण! अभीष्टवर्षी धूम उत्पन्न कीजिये। आप सबल होकर युद्ध के समक्ष जायें। अग्नि वीर-प्रधान और सेना विजेता हैं। इन्हीं की सहायता से देवों ने असुरों को परास्त किया।[ऋग्वेद 3.29.9]
हे अध्वर्युओ! तुम अभिलाषाओं की वृष्टि करने वाले धूम को रचित करो। उससे शक्तिशाली होकर संग्राम में पहुँचो अग्निदेव पराक्रमियों में महान हैं। वे शत्रु सेना के विजेता हैं। देवताओं ने उन्हीं की सहायता से दैत्यों पर विजय प्राप्त की थी।
Hey Yagy performers! Generate the smoke which can accomplish-fulfil desires. Acquire strength and face the war. Agni Dev is brave, head-leader and the winner of the army. The demigods-deities defeated the demons with his help.
अयं ते योनिर्ऋत्वियो यतो जातो अरोचथाः।
तं जानन्नग्न आ सीदाथा वर्धया गिरः॥
हे अग्रि देव! ऋतु-काष्ठ (पलाश-अश्वत्यादि) वान् यह अरणि आपका उत्पत्ति स्थान इससे उत्पन्न होकर आप शोभा प्राप्त करें। यह जानकर आप बैठ जावे। इससे उत्पन्न होकर आप शोभा प्राप्त करें। आप यह जानकर उपवेशन (बैठे, पधारें) करें। हमारी प्रार्थना को वर्द्धित करें।[ऋग्वेद 3.29.10]
हे अग्निदेव! काष्ट वाली अरणि तुम्हारा प्राकट्य स्थल है। तुम इससे प्रकट होकर शोभायमान होओ। उसे पहचानते हुए पधारो और हमारी वंदना को बढ़ाओ।
Hey Agni Dev! You appear out of wood. Sit and be adorned. Promote our worship-prayers.
तनूनपादुच्यते गर्भ आसुरो नराशंसो भवति यद्विजायते।
मातरिश्वा यदमिमीत मातरि वातस्य सर्गो अभवत्सरीमणि॥
गर्भस्थ अग्नि को तनूनपात् कहा जाता है। जिस समय अग्रि देव प्रत्यक्ष होते हैं, उस समय यह आसुर नराशंस होते है। जिस समय अन्तरिक्ष में तेज का विकास करते हैं, उस समय मातरिश्वा (अग्निनाम) होते हैं। अग्नि देव के प्रसूत होने पर वायु की उत्पत्ति होती है।[ऋग्वेद 3.29.11]
सुनिर्मथा निर्मथितः सुनिधा निहितः कविः।
अग्ने स्वध्वरा कृणु देवान्देवयते यज॥
हे अग्निदेव! आप मेधावी और मन्थन के द्वारा उत्पन्न होते हैं। आपको अच्युत्तम स्थान में स्थापित किया जाता है। हमारा यज्ञ निर्विघ्न करें और देवाभिलाषी के लिए देवों की पूजा करें।[ऋग्वेद 3.29.12]
हे अग्नि देव! तुम ज्ञानवान तथा मन्थन से रचित हो। तुम महान स्थान में विद्यमान हो। हमारे यज्ञ को बिना बाधा के पूर्ण करो। हम देवताओं की इच्छा करने वाले के लिये, देवताओं का पूजन करो।
Agni Dev, who is pronounced by reverential attrition and deposited with reverential care and who is far-seeing, render our rites exempt from defects and worship the demigods-deities on behalf of the devout worshippers.
Hey Agni Dev! You are intelligent and evolve by rubbing-churning. You established at the best place. Accomplish our Yagy and pray for the devotees who wish to evoke demigods-deities.
अजीजनन्नमृतं मर्त्यासोSस्रेमाणं तरणि वीळुजम्भम्।
दश स्वसारोअग्रुव: समीची: पुमांसं जातमभि सं रभन्ते॥
मर्त्य ऋत्विक् लोगों ने अमर, अक्षय, दृढ़, दन्त विशिष्ट और पाप तारक अग्नि देव को उत्पन्न किया है। पुत्र सन्तान के तुल्य उत्पन्न अग्नि को को लक्ष्य करके बहन स्वरूप दस अँगुलियाँ परस्पर मिलकर आनन्द-सूचक शब्द करती है।[ऋग्वेद 3.29.13]
अक्षय :: अक्षीण, अटूट, सदा भरपूर होनेवाला; renewable, inexhaustible, unspent, unabated.
मरणधर्मा ऋत्विजों ने अक्षय, अविनाशी, अटल दाँतों वाले और पाप से उद्धार करने वाले अग्नि देव को प्रकट किया। संतान के समान उत्पन्न हुए उन अग्नि के प्रति भगिनी रूपिणी दसों अंगुलियाँ हर्ष-सूचक ध्वनि करती हैं।
Perishable Ritviz evolved Agni Dev who is immortal, inexhaustible, bearing rigid teeth and sin removing. Over the evolution of Agni Dev, who is like son, ten fingers create voices showing pleasure-happiness, like sisters.
प्र सप्तहोता सनकादरोचत मातुरुपस्थे यदशोचदूधनि।
न नि मिषति सुरणो दिवेदिवे यदसुरस्य जठरादजायत॥
अग्नि सनातन हैं। जिस समय सात मनुष्य उनका हवन करते हैं, उस समय वे शोभा पाते है। जिस समय वे माता के स्तन और क्रोड़ पर शोभा पाते हैं, उस समय देखने में वे सुन्दर मालूम पड़ते हैं। ये प्रतिदिन सजग रहते हैं, क्योंकि वे असुर के जहर से उत्पन्न हुए।[ऋग्वेद 3.29.14]
अग्नि प्राचीन है। सप्त होताओं द्वारा किये जाने वाले अनुष्ठान में अत्यन्त सुशोभित होते हैं। जब वे वनों में खेल करते हैं तब अत्यन्त यश से परिपूर्ण लगते हैं। वे हमेशा चैतन्य रहते हैं। वे राक्षसों के मध्य से रचित हुए हैं।
Agni Dev is eternal. When seven people conduct Yagy, he appears beautiful. When he lies over the breast and stomach of his mother, he appears beautiful. He is always alert, since he took birth amongest the demons.
अमित्रायुधो मरुतामिव प्रयाः प्रथमजा ब्रह्मणो विश्वमिद्विदुः।
द्युम्नवद्ब्रह्म कुशिकास एरिर एकएको दमे अग्निं समीधिरे॥
मरुतों के सदृश शत्रुओं के साथ युद्ध करने वाले और ब्रह्मा से प्रथम उत्पन्न कुशिक गोत्रोत्पन्न ऋषि लोग निश्चय ही सम्पूर्ण संसार को जानते है। अग्नि को लक्ष्य करके हव्य युक्त स्त्रोत्र का पाठ करते हैं। वे लोग अपने-अपने घर में अग्नि को दीप्त करते हैं।[ऋग्वेद 3.29.15]
शत्रुओं से मरुद्गण के समान युद्ध करने वाले ब्रह्म द्वारा उत्पन्न कौशिक ऋषियों ने समस्त संसार को जाना। वे अपने गृह में अग्नि को प्रदीप्त करते और उनके प्रति हवि देते हुए प्रार्थनाएँ करते हैं।
The Rishis born in the Kaushik clan, initially born out of Brahma Ji, fights like the Marud Gan. They recite Strotr for Agni Dev, making offerings simultaneously. They lit fire in their homes.
यदद्य त्वा प्रयति यज्ञे अस्मिन्होतश्चिकित्वोऽवृणीमहीह।
ध्रुवमया ध्रुवमुताशमिष्ठाः प्रजानन्विद्वाँ उप याहि सोमम्॥
होम-निष्पादक, विद्वान और सर्वज्ञ अग्नि देव! इस प्रवर्तित यज्ञ में आपका हम वरण करते है, इसलिए आप इस यज्ञ में देवों को हव्य प्रदान करें। नित्य स्तव करें। सोम की बात को जानकर उनके पास आये।[ऋग्वेद 3.29.16]
प्रवर्तित :: पदोन्नत, प्रवर्तित, (कक्षा में) चढ़ाया गया, उन्नत, प्रख्यापित; promulgated, promoted.यज्ञ कर्म सम्पन्न करने वाले, मेधावी, सर्वज्ञाता अग्निदेव को हम इस अनुष्ठान में दृढ़ करते हैं। हे अग्नि देव! इस यज्ञ में देवताओं को हवि प्रदान करो। उनकी प्रति दिन वंदना करो। सोम को सिद्ध हुआ जानकर उनको ग्रहण होओ।
Yagy performing, scholar and all knowing Agni Dev! We accept you in this promulgated Yagy. Hence, you make offerings to the demigods-deities in this Yagy. Pray to them every day & accept Somras extracted by us for you.(21.10.2022)
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (30) :: ऋषि :- विश्वामित्र गाथिन, देवता :- इन्द्र, छन्द :- त्रिष्टुप, अनुष्टुप, जगती।
इच्छन्ति त्वा सोम्यासः सखायः सुन्वन्ति सोमं दधति प्रयांसि।
तितिक्षन्ते अभिशस्तिं जनानामिन्द्र त्वदा कश्चन हि प्रकेतः॥
हे इन्द्र देव! सोमार्ह अर्थात् सोमयाग करने के लिए ऋत्विक् लोग आपकी प्रार्थना करने की इच्छा करते हैं। मित्र लोग आपके लिए सोमरस का अभिषवण करते हैं; कुछ हव्य धारित करते हैं; शत्रुओं की हिंसा को सहते हैं। आपकी अपेक्षा इस संसार में कौन दूसरा अधिक प्रसिद्ध है?[ऋग्वेद 3.30.1]
हे इन्द्र देव! सोम धारण करने वाले ऋत्विगण तुम्हारी वंदना करने की इच्छा करते हैं। सखागणा तुम्हारे लिए सोम को छानते हैं। उनमें से शत्रुओं की बाधाओं को वहन करते हुए हवि को धारण करते हैं। तुम्हारे अतिरिक्त संसार में अधिक प्रसिद्धि प्राप्त अन्य कौन है?
Hey Indr Dev! The Ritviz pray to you for extracting Somras. Friends extract-filter it and tolerate-bear the violence of the enemy. Who else other than you is more famous in the universe!?
न ते दूरे परमा चिद्रजांस्या तु प्र याहि हरिवो हरिभ्याम्।
स्थिराय वृष्णे सवना कृतेमा युक्ता ग्रावाणः समिधाने अग्नौ॥
हे हरि वर्ण अश्व वाले इन्द्र देव! दूरस्थ स्थान भी आपके लिए दूर नहीं हैं। हरि वर्ण अश्व से युक्त होकर शीघ्र पधारें। आप दृढ़ चित्त और अभीष्टवर्षी हैं। आपके ही लिए यह सब सवन किया। गया है। अग्नि देव के समिद्ध होने पर सोमाभिषव के लिए आप प्रस्तर खण्ड प्रयुक्त हुए हैं।[ऋग्वेद 3.30.2]
हे हरित रंग वाले घोड़े के साथ शीघ्र विराजो! तुम अटल विचार वाले तथा कामनाओं की वर्षा करने वाले हो। यह यज्ञ तुम्हारे लिए ही किया गया है। अग्नि के प्रदीप्त होने पर सोम कूटने के लिए पत्थर कार्य में लिए जाते हैं।
Hey Indr Dev possessing yellowish green coloured horse! Distant places are not far away for you. You are firm-determined and grants-accomplish desires. This Som Yagy has been committed for you. After igniting fire the job of crushing Som Valli is done, with the help of stones.
इन्द्रः सुशिप्रो मघवा तरुत्रो महाव्रातस्तुविकूर्मिऋघावान्।
यदुल्यो धा बाधितो मर्त्येषु क्व १ त्या ते वृषभ वीर्याणि॥
हे अभीष्टवर्षी इन्द्रदेव! आप परम ऐश्वर्यवाले है। आपका शिरत्राण सुन्दर है। आप धनवान्, विजेता, महान् मरुद्गण वाले, संग्राम में नानाविध कर्म करने वाले, शत्रु हिंसक और भयंकर है। युद्ध में बाधा प्राप्त करके मनुष्यों के प्रति आपने जो वीर्य धारित किया है, आपका वह वीर्य कहाँ है?[ऋग्वेद 3.30.3]
हे अभिलाषाओं की पुष्टि करने वाले इन्द्रदेव! तुम श्रेष्ठ समृद्धिशाली हो। तुम्हारा शिरस्त्राण देखने के योग्य है। विजयशील, धन से परिपूर्ण, मरुतों से परिपूर्ण, विविध कार्य वाले, शत्रुओं का पतन करने वाले तथा विकराल हो। तुमने मनुष्यों के लिए जो काम युद्धों में किये वह वीरता से परिपूर्ण कर्म कहाँ है?
Hey desire fulfilling Indr Dev! Your grandeur is ultimate. Your head gear is beautiful strong. You are wealthy, victorious, great, friend of Marud Gan, perform various kinds of acts in the war, enemy destroyer and furious.
त्वं हि ष्मा च्यावयन्नच्युतान्येको वृत्रा चरसि जिघ्नमानः।
तव द्यावापृथिवी पर्वतासोऽनु व्रताय निमितेव तस्थुः॥
हे इन्द्र देव! आपने अकेले ही दृढ़मूल राक्षसों को उनके स्थानों से मार गिराया है। वृत्रादि को मारा है। आपकी आज्ञा से द्यावा-पृथ्वी और पर्वत अचल हैं।[ऋग्वेद 3.30.4]
हे इन्द्र देव! तुमने अकेले ही अत्यन्त अटल राक्षसों को मार डाला। वृत्रादि का विनाश किया, आसमान धरती और शैल तुम्हारे कार्य से ही अचल हुए हैं।
Hey Indr Dev! You alone killed the firmly stationed-stabilized demons like Vrata Sur at their own pitch. Earth and sky and the mountains fixed due to your order.
Earth revolves round the Sun in its elliptical fixed orbit, in the sky and the mountains are fixed-stationary over it. Other speeds of the earth like spinning round its own axis too is fixed. Its north and south poles too are fixed.
उताभये पुरुहूत श्रवोभिरेको दृळ्हमवदो वृत्रहा सन्।
इमे चिदिन्द्र रोदसी अपारे यत्संगृभ्णा मघवन्काशिरित्ते॥
हे इन्द्र देव! बहुत लोगों के द्वारा आप आहूत और वीर्य युक्त हैं। अकेले ही आपने वृत्रासुर का वध करके देवों को जो अभय वाक्य प्रदान किया, वह ठीक है। हे मघवन्! आप अपार द्यावा-पृथ्वी को संयोजित करते हैं। आपकी ऐसी महिमा प्रख्यात है।[ऋग्वेद 3.30.5]
हे इन्द्र देव! तुम अनेकों द्वारा आहूत किये गये हो। तुम बहुत ही शक्तिशाली हो। तुमने अकेले ही वृत्र का वध कर देवगणों को निर्भय बनाया। तुम्हीं आसमान और पृथ्वी को कर्मों में लगाते हो। हे ईश्वर! तुम्हारी माया विख्यात है।
Hey Indr Dev! You have been worship by many people. You are mighty. You granted protection to the demigods-deities by killing Vrata Sur. Hey Madhvan! Its you who engage-coordinate the sky and the earth in their respective jobs-functions. you glory is spread all around.
प्र सू त इन्द्र प्रवता हरिभ्यां प्र ते वज्रः प्रमृणन्नेतु शत्रून्।
जहि प्रतीचो अनूचः पराचो विश्वं सत्यं कृणुहि विष्टमस्तु॥
हे इन्द्र देव! आपका अश्व युक्त रथ शत्रु को लक्ष्य करके निम्न मार्ग से शीघ्र आगमन करे। शत्रु का वध करते-करते आपका वज्र आवें। अपने सामने आने वाले शत्रुओं का विनाश करें। भागने वाले शत्रुओं का वध करें। संसार को यज्ञ युक्त करें। आपके अन्दर ऐसी सामर्थ्य निविष्ट है।[ऋग्वेद 3.30.6]
हे इन्द्रदेव! तुम्हारा अश्व परिपूर्ण रथ शत्रु के विरुद्ध शीघ्र पधारे। शत्रु को मृत करने वाला तुम्हारा वज्र कर्म करे। अपने निकट शत्रुओं का पतन करो। वाले शत्रुओं को समाप्त करो। संसार को अनुष्ठान कार्य करने वाला बनाओ तुममें ही ऐसी सामर्थ्य है।
Hey Indr Dev! Move your charoite towards the enemy, deploying the horses. Bring your Vajr with you, while killing the enemy. Kill every each & enemy who comes in front of you. Kill those enemies as well, who run away from the battle field. Let the whole world adopt Yagy practices, since this power is embedded in you.
यस्मै धायुरदधा मर्त्यायाभक्तं चिद्भजते गेह्यं१सः।
भद्रा त इन्द्र सुमतिघृताची सहस्त्रदाना पुरुहूत रातिः॥
हे इन्द्र देव! आप निरन्तर ऐश्वर्य को धारित करते हैं। आप जिस मनुष्य को दान करते हो, वह पहले अप्राप्त गृह सम्बन्धी वस्तुएँ, पशु, सुवर्ण आदि धन प्राप्त करता है। अनेक लोकों से आहूत, घृत, हव्य आदि से युक्त आपका अनुग्रह कल्याणदायी होता है। आपकी धन देने की शक्ति असीम है।[ऋग्वेद 3.30.7]
हे इन्द्र देव! तुम हमेशा ऐश्वर्यवान रहते हो। तुम जिसे प्रदान करते हो, वह उसे पहले प्राप्त नहीं था। यह ग्रह उपयोगी पशु सुवर्ण आदि को पाता है। तुम अनेकों द्वारा पूजित तथा मृतयुक्त हवि युक्त हो। तुम्हारे अनुग्रह में ही मंगल है। अन्न दान करने की तुम में असीम शक्ति है।
Hey Indr Dev! You always possess grandeur. One who is benefited by your donations-charity, first get house hold items, cattle, gold and other types of riches. Your are worshiped in various abodes & your obligation-kindness is always beneficial, which constitute of Ghee, offerings etc. You power to donate is great.
सहदानुं पुरुहूत क्षियन्तमहस्तमिन्द्र सं पिणक्वुणारुम्।
अभि वृत्रं वर्धमानं पियारुमपादमिन्द्र तवसा जघन्थ॥
अनेक लोकों से आहूत हे इन्द्र देव! आप दानवीर के साथ वर्त्तमान हैं। बाधक और गर्जनशील वृत्रासुर को हस्तहीन करके आपने चूर्ण-विचूर्ण कर डाला। हे इन्द्र देव! अपने बल से वर्द्धमान और हिंस्र वृत्रासुर को पैरों से हीन करके विनष्ट किया।[ऋग्वेद 3.30.8]
हे इन्द्र देव! तुम बहुतों द्वारा वन्दना किये गये हो। तुम दान से परिपूर्ण हो। तुम विघ्न प्रदान करने वाले गर्जनकारी वृत्र को हस्तविहीन तथा छिन्न-भिन्न करते हो। उस वृद्धि किये वृत्र को पंगु बनाकर अपनी सामर्थ्य से तुमने समाप्त कर दिया।
Hey Indr dev! You are revered-honoured in many abodes-Lok. You are bountiful-munificent. You destroyed Vrata Sur who used to create problems-obstacles loudly, chopping his arms and legs with your might.
नि सामनामिषिरामिन्द्र भूमिं महीमपारां सदने ससत्य।
अस्तभ्नाद्दयां वृषभो अन्तरिक्षमर्षन्त्वापस्त्वयेह प्रसूताः॥
हे इन्द्र देव! आपने महती अनन्ता और चला पृथ्वी को समभावापन्न करके उसके स्थान में निविष्ट किया। अभीष्टवर्षक इन्द्र देव ने द्युलोक और अन्तरिक्ष जिस प्रकार से पतित न हो, इस प्रकार धारित किया। हे इन्द्र देव! आपका प्रेरित जल पृथ्वी पर आवे।[ऋग्वेद 3.30.9]
हे इन्द्र देव! तुमने अनन्त, विस्तृत और वेगवान धरती को स्थापित किया। तुमने आसमान और धरती को ऐसे धारण किया जिससे वह न गिरे। हे इन्द्र देव! तुम्हारी प्रेरणा से जल धरती को प्राप्त हो।
Hey Indr Dev! You established earth which accelerates fast at its proper place (in solar orbit) by virtue of your might. You have balanced the earth and the sky-space so that they remain in their position-place. Hey Indr Dev! The water inspired by you showed shower over the earth.
The gravitational attraction keep the celestial objects in their place. Other forces are magnetic, electrostatic attraction etc.
अलातृणो वल इन्द्र व्रजो गोः पुरा हन्तोर्भयमानो व्यार।
सुगान्यथो अकृणोन्निरजे गाः प्रावन्वाणीः पुरुहूतं धमन्तीः॥
हे इन्द्र देव! अतीव हिंसक बल नाम का गोष्ठ भूत मेघ वज्र प्रहार के पहले ही डर कर टुकड़े-टुकड़े हो गया। गौ के निकलने के लिए इन्द्र देव ने मार्ग सुगम कर दिया। रमणीय शब्दायमान जल अनेक लोकों से आहूत इन्द्र देव के सम्मुख आए।[ऋग्वेद 3.30.10]
हे इन्द्र देव! जलों का श्रेष्ठ भूत बादल वज्र प्रहार से टुकड़े-टुकड़े हो गया। जल रूप गौ को निकालने का रास्ता तुमने आसान बनाया। ध्वनि करता हुआ रमणीय जल असंख्यों द्वारा वंदनीय होकर इन्द्रव के पास उपस्थित हुआ।
Hey Indr Dev! The potentially dangerous ghost named Bal teared into parts due to the fear of Vajr. The path for the liberation-movement of the cows was cleared-made easy. Lovely-tasty water from various abodes came forward to the revered-honourable Indr Dev.
एको द्वे वसुमती समीची इन्द्र आ पप्रौ पृथिवीमु॒त द्याम्।
उतान्तरिक्षादभि नः समीक इपो रथी: सयुजः शूर वाजान्॥
अकेले इन्द्रदेव ने ही पृथ्वी और द्युलोक को परस्पर संगत और धन युक्त करके परिपूर्ण किया। हे शूर! आप रथ वाले हैं। हमारे पास रहने के अभिलाषी होकर योजित अश्वों को अन्तरिक्ष से हमारे समक्ष प्रेरित करें।[ऋग्वेद 3.30.11]
इन्द्र देव ने अपने कर्म द्वारा नभ और पृथ्वी को असंगत कर अन्न धन से पूरा किया है। हे वीर इन्द्र! तुम रथी हो। हमारा साथ करने की इच्छा से रथ में जुते अश्वों को हमारे सम्मुख लाओ।
Indr Dev alone balanced the earth and the space-sky (heavens) mutually, and provided it with food grains. Hey mighty! You possess the charoite. You should desire-guide your horses to bring you to us from the heaven.
दिशः सूर्यो न मिनाति प्रदिष्टा दिवेदिवे हर्यश्वप्रसूताः।
सं यदानळध्वन आदिदश्वैर्विमोचनं कृणुते तत्त्वस्य॥
सूर्य इन्द्र देव के द्वारा प्रेरित है। वे अपने गमन के लिए प्रकाशित दिशाओं का प्रतिदिन अनुसरण करते हैं। जिस समय वह अश्व के द्वारा अपना मार्ग गमन समाप्त कर देते हैं, तब हमें मुक्त कर देते हैं, यह भी इन्द्रदेव के लिए ही करते हैं।[ऋग्वेद 3.30.12]
इन्द्र देव से ही सूर्य शिक्षा पाते हैं। वे ज्योर्तिवान दिशाओं में रोजाना विचरण करते हैं। जब वे अपने घोड़े युक्त अपना रास्ता पूर्ण कर लेते हैं।
Indr Dev guides-inspire the Sun to lit all the directions every day. when he complete his cycle with the horses, he releases us. He do it for the sake of Indr Dev.
दिदृक्षन्त उषसो यामन्नक्तोर्विवस्वत्या महि चित्रमनीकम्।
विश्वे जानन्ति महिना यदागादिन्द्रस्य कर्म सुकृता पुरूणि॥
गमनशील रात्रि के पश्चात् उषा के गत होने पर सब लोक महान् तथा विचित्र सूर्य तेज का दर्शन करने की इच्छा करते हैं। जिस समय उषा काल आ जाता है, उस समय सभी अग्रिहोत्र आदि कर्म को कर्तव्य समझने लगते हैं। कितने ही सत्कार्य इन्द्रदेव के हैं।[ऋग्वेद 3.30.13]
तब गतिमान रात्रि के पश्चात् उषा के चले जाने पर उन दिव्य श्रेष्ठ और तेजस्वी सूर्य के दर्शन करने को सभी उत्सुक होते हैं। जब उषा समय समाप्त हो जाता है तब व्यक्ति यज्ञादि कार्य में लग जाते हैं। इस प्रकार असंख्य महान कर्म इन्द्रदेव के ही हैं।
All abodes desire for the invocation of the Sun with his aura after the expiry-completion of night. With the day break-Usha, every one become busy his duties-job and Agnihotr etc. Such are the pious, righteous, virtuous deeds of Indr Dev.
महि ज्योतिर्निहितं वक्षणास्वामा पक्कं चरति विभ्रती गौः।
विश्वं स्वाद्म संभृतमुस्त्रियायां यत्सीमिन्द्रो अदधाद्भोजनाय॥
इन्द्र देव ने नदियों में महान् तेज वाला जल स्थापित किया। इन्होंने जल से स्वादुतर दधि, घृत और आदि, भोजन के लिए गौ में संस्थापित किया। नव प्रसूता गो दुग्ध धारित करके भ्रमण करती है।[ऋग्वेद 3.30.14]
इन्द्र देव ने उत्तम गुण वाले जल को नदियों में प्रयुक्त किया, इन्द्र ने अत्यन्त सुस्वादु दही घृत, खीर आदि भोजन को जल रूप से गौ में धारण किया। वह सभी प्रसूता धेनु दूध वाली हुई विचरण करती हैं।
Indr Dev established the water with great energy in the rivers. He established the tasty curd, Ghee, pudding-Kheer etc. in the cows for food stuff. Neonatal cows roam possessing milk.
इन्द्र दृह्य यामकोशाः अभूवन्यज्ञाय शिक्ष गृणते सखिभ्यः।
दुर्मायवो दुरेवा मर्त्यासो निषङ्गिणो रिपवो हन्त्वासः॥
हे इन्द्र देव! आप दृढ़ बनो। शत्रुओं ने मार्ग अवरूद्ध किया है। यज्ञ और प्रार्थना करने वाले तथा मित्रों को अभीष्ट फल प्रदान करें। शत्रुओं का वध करना उचित है। वे धीरे-धीरे जाते और हथियार फेंकते हैं। वे हत्यारे और तूणीर वाले हैं।[ऋग्वेद 3.30.15]
हे इन्द्र देव! तुम स्थिर हो जाओ। शत्रुओं ने बाधा उपस्थित की है। तुम अनुष्ठानकर्ता वंदनाकारी तथा किसी को उनका अभिष्ट फल प्रदान करो। शत्रुगण मन्दगति से चलते हुए अस्त्र चलाते हैं। वे धनुष बाण से परिपूर्ण हिंसक हैं। उनका विनाश करना उचित है।
Hey Indr Dev! You should become strong-determined & firm. The enemy has blocked your way. Grant the rewards to those, who conduct Yagy & prayers along with their friends & associates (for your success). Its justified to kill the enemy. The enemy slowly and gradually become unarmed. They are killers and posses bow & arrow.
The reward is in the form of asylum-protection granted to humanity. During this period the terrorists, traitors, assailants, murderers, abductors, butchers, rapists deserve death penalty.
सं घोषः शृण्वेवमैरमित्रैर्जही न्येष्वशनिं तपिष्ठाम्।
वृश्चेमधस्ताद्वि रुजा सहस्व जहि रक्षो मघवन् रन्ययस्व॥
हे इन्द्र देव! समीपस्थ शत्रुओं द्वारा छोड़ा हुआ वज्र नाद हम सुनते हैं। अतीव सन्ताप देने वाली इन सब अशनियों को इन सब शत्रुओं के सामने ही रखकर इनका विनाश कर समूल छेदन करे, विशेष रूप से बाधा से अभिभूत करे। आप राक्षसों का वध करें; तब हम यज्ञ सम्पन्न करेंगे।[ऋग्वेद 3.30.16]
हे इन्द्र देव! शत्रुओं द्वारा फेंके गये वज्र का शब्द हमको सुनाई देता है। घोर दुःख देने वाली तोप इत्यादि को शत्रुओं के सम्मुख नष्ट कर दो। शत्रुओं के कार्य में विघ्न देते हुए उन्हें समाप्त कर डालो। हे इन्द्र देव! राक्षसों का पतन करके अनुष्ठान कार्यों में लगी।
Hey Indr Dev! we hear the loud sounds generated by the launching of missiles. Destroy these guns-cannons with their origin-roots, in front of the enemy-demons, demonic people. Obstruct the enemy from doing any more-further harm. We will conduct Yagy as soon as you eliminate the enemies.
उद् रक्षः सहमूलमिन्द्र वृश्चा मध्यं प्रत्यग्रं वृहशृणीहि।
आ कीवतः सललूकं चकर्थ ब्रह्मद्विषे तपुषिं हेतिमस्य॥
हे इन्द्र देव! राक्षस कुल का समूल उन्मूलन अर्थात् नाश करें। उनका बीच भाग छेदे अग्रभाग विनष्ट करें। गमन शील राक्षस को दूर करें। यज्ञ विद्वेषी के प्रति सन्तापप्रद अस्त्र फेंकें।[ऋग्वेद 3.30.17]
हे इन्द्र देव! दैन्यों के वंश को जड़ से समाप्त करो। उनके बीच के भाग पर प्रहार करो। अगले हिस्से को नष्ट करते हुए उन्हें दूर करो। अनुष्ठान से द्वेष करने वाले पर कष्ट दायक रथियार चलाओ।
Hey Indr Dev! Destroy the demon's entire clan, family along with their roots ( the children and those in the womb). Strike at their middle-nucleus, navel. Remove the demons who are leaving and launch such arms-weapons over them which can cause pain to them.
स्वस्तये वाजिभिश्च प्रणेतः सं यन्महीरिष आसत्सि पूर्वीः।
रायो वन्तारो बृहतः स्यामास्मे अस्तु भग इन्द्र प्रजावान्॥
हे संसार के निर्वाहक इन्द्र देव! हमें आप अश्व से युक्त करें। हमें अविनाशी करें। आप जब हमारे निकट रहेंगे, तब हम महान् अन्न और प्रभूत धन का भोग करके बड़े हो सकेंगे और हमें पुत्र, पौत्रादि से युक्त धन प्राप्त हो।[ऋग्वेद 3.30.18]
हे इन्द्र देव! तुम संसार के पोषक हो। हमको अश्व युक्त बनाओ। हमको अमरत्व प्रदान करो। तुम्हारी समीपता प्राप्त कर हम श्रेष्ठ अन्न, धन, के उपभोग द्वारा वृद्धि को प्राप्त हों। हमको पुत्र-पौत्रादि के साथ धन प्रदान करो।
Hey nurturer of the universe Indr Dev! Provide us horses. Make us immortal. We will enjoy the great food grains and wealth, sons, grandsons in your proximity.
आ नो भर भगमिन्द्र द्युमन्तं नि ते देष्णस्य धीमहि प्ररेके।
ऊर्वइव पप्रथे कामो अस्मे तमा पृण वसुपते वसूनाम्॥
हे इन्द्र देव! हमारे लिए दीप्ति से युक्त धन ले आयें। आप दान शील हैं और हम आपके दान के पात्र हैं। हमारी अभिलाषा वडवानल के तुल्य बढ़ी हुई हैं। हे धनपति! हमारी अभिलाषा पूर्ण करें।[ऋग्वेद 3.30.19]
हे इन्द्र देव! हमारे लिए उज्जवल धन लेकर पधारो। तुम दान करने वाले हो और हम तुम्हारे दान को पाने योग्य हैं। हमारी अभिलाषा अत्यन्त वृद्धि की हुई है, तुम धन के स्वामी हो। हमारी इच्छा की पूर्ति करो।
Hey Indr Dev! Bring the clean-un stained wealth for us. You are a charitable person and we deserve donation-charity. Our desires have grown like the jungle fire. Hey the master of riches! Accomplish our desires-wishes.
इमं कामं मन्दया गोभिरश्वैश्चन्द्रवता राधसा पप्रथश्च।
स्वर्यवो मतिभिस्तुभ्यं विप्रा इन्द्राय वाहः कुशिकासो अक्रन्॥
हे इन्द्र देव! हमारी इस अभिलाषा को गौ, अश्व और दीप्ति वाले धन के द्वारा पूर्ण तथा उसके द्वारा हमें विख्यात करें। स्वर्गादि सुखाभिलाषी और कर्म कुशल कुशिक नन्दनों ने मन्त्र द्वारा आपकी स्तुति की है।[ऋग्वेद 3.30.20]
हे इन्द्र देव! हमारी गौ, अश्व और रमणीय फल वाली अभिलाषा को अपने दान द्वारा पूर्ण करो। उनसे हमको प्रसिद्धि प्राप्त हो। स्वर्ग की इच्छा करने वाले तथा सुख की प्राप्ति की इच्छा वाले कर्मवान कौशिकों ने उत्तम मंत्रों से तुम्हारी वंदना की है।
Hey Indr Dev! Accomplish our desires for cows, horses and the neat-clean wealth and make us famous. The skilled descendants of Kaushik who perform their duties, have prayed-worshiped you for the sake of the comforts-pleasures of the heavens.
आ नो गोत्रा दर्दृहृ गोपते गाः समस्मभ्यं सनयो यन्तु वाजाः।
दिवक्षा असि वृषभ सत्यशुष्मोऽस्मभ्यं सु मघवन्बोधि गोदाः॥
हे स्वर्गाधिपति इन्द्र देव! मेघ अर्थात् बादलों को विदीर्ण करके हमें जल दें। उपभोग के योग्य अन्न लेकर हमारे पास आयें। हे अभीष्ट वर्षक! आप धुलोक को व्याप्त करके स्थित होवें। हे सत्य बल मघवन्! हमें गौ प्रदान करें।[ऋग्वेद 3.30.21]
हे स्वर्ग के स्वामी इन्द्र देव! बादलों को छिन्न-भिन्न करके हमको जल प्रदान करो। उपभोग्य अन्न हमको ग्रहण हो। तुम अभिष्ट के वर्षक हो। अम्बर को विद्यमान करते हुए रहते हो, तुम सत्य की शक्ति से परिपूर्ण हो हमको धेनु प्रदान करो।
Hey the king of heaven Indr Dev! Converts the clouds into rains for us. Bring the useful food grains to us. Hey desires accomplishing! You pervade the universe and stabilize. Hey truthful Madhvan! Grant-give us cows.
शुनं हुवेम मघवानमिन्द्रमस्मिन्भरे नृतमं वाजसातौ।
शृण्वन्तमुग्रमूतये समत्सु घ्नन्तं वृत्राणि संजितं धनानाम्॥
हे इन्द्र देव! आप अन्न प्राप्त करें। आप युद्ध में उत्साह के द्वारा प्रवृद्ध, धनवान्, प्रभूत ऐश्वर्यवाले, नेतृ-श्रेष्ठ, स्तुति-श्रवण कर्ता, उम्र, युद्ध में शत्रु विनाशी और धन-विजेता है। आश्रय प्राप्ति के लिए हम ही आपको बुलाते हैं।[ऋग्वेद 3.30.22]
हे इन्द्र देव तुम अन्नवान हो युद्ध में उत्साहवर्द्धक बड़े हुए तुम अत्यन्त धन वाले, ऐश्वर्यशाली, नायकों में उत्तम, स्तुतियों को श्रवण करने वाले, भयंकर शत्रुओं का विनाश करने वाले और धनों को जीतने वाले हो हम तुम्हारे आश्रय के लिए तुम्हारा आह्वान करते हैं।
Hey Indr Dev! You are the possessor of food grains. You are the energetic, leader with zeal, grandeur, destroyer of the enemy & worship-prayers deserving. We invoke your for asylum under you.(29.10.2022)
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (31) :: ऋषि :- कुशिक, विश्वामित्र गाथिन, देवता :- इन्द्र, छन्द :- त्रिष्टुप।
शासद्वह्निर्दुहितुर्नत्पय्ं गाद्विद्वाँ ऋतस्य दीधितिं सपर्यन्।
पिता यत्र दुहितः सेकमृञ्जन्त्सं शग्म्येन मनसा दधन्वे॥
पुत्र हीन (जिसे पुत्र नहीं हैं) पिता रेतोधा जामाता को सम्मान युक्त करते हुए शास्त्र के अनुशासन के अनुसार पुत्री से उत्पन्न पौत्र (दौहित्र) के पास गया। अपुत्र पिता पुत्री को गर्भ रहेगा, ऐसा विश्वास करके शरीर धारित करता है।[ऋग्वेद 3.31.1]
जिसके पुत्र न हो, ऐसा मनुष्य अपनी पुत्री का योग्य व्यक्ति से विवाह करता हुआ दौहित्र को ग्रहण करता है।
The father without son, honoured his son in law and went to his daughter's son. A sonless father survive with the expectation that his daughter will produce a son.
The sonless father, regulating the contract, refers to his grandson-the son of his daughter and relying on the efficiency of the rite, honours his son in law) with valuable gifts; the father, trusting to the impregnation of the daughter, supports himself with a tranquil mind.
न जामये तान्वो रिक्थमारैक्चकार गर्भं सनितुर्निधानम्।
यदी मातरो जनयन्त वह्निमन्यः कर्ता सुकृतोरन्य ऋन्धन्॥
औरस पुत्र-पुत्री को धन नहीं देता। वह पुत्री को उसके भर्ता (पति) के रेतः सेचन का आधार बनाता है। यदि माता-पिता, पुत्र और कन्या, दोनों का ही उत्पादन करते हैं, तब उनमें से एक (पुत्र) उत्कृष्ट क्रिया-कर्म का अधिकारी होता है और दूसरा (पुत्री) सम्मान युक्त होता है।[ऋग्वेद 3.31.2]
वह पुत्र हीन मनुष्य पुत्री के गर्भ धारण के विश्वास पर जीवित रहता है और पुत्र से पुत्री को धन नहीं मिलता। वह पुत्री को उसके पति से सेचन कर्म द्वारा माता बनाता है। यदि माता-पिता के पुत्र और पुत्री दोनों ही रचित हों तो उनमें से पुत्र क्रिया कर्म करने का अधिकारी है तथा पुत्री सम्मान की अधिकारिणी है।
The sonless depends-survive over the embryo of his daughter (her son will perform the last rites of the maternal grand parents). If the parents produce the son as well as daughter, the son become entitled for their last rites and the daughter has to be honoured.
Please refer to :: Manu Smrati santoshkipathshala.blogspot.com
A son born of the body, does not transfer paternal wealth to a sister; he has made her the receptacle of the embryo of the husband; if the parents procreate children of either sex, one is the performer of holy acts, the other is to be enriched with gifts.
RECEPTACLE :: गोदाम, संदूक; storehouse, godown, storeroom, pantry, stockroom, box, chest, log cabin.
अग्निर्जज्ञे जुह्वा ३ रेजमानो महस्पुत्राँ अरुषस्य प्रयक्षे।
महान्र्भो मह्या जातेमेषां मही प्रवृद्धर्यश्वस्य यज्ञैः॥
हे इन्द्र देव! आप दीप्ति युक्त हैं। आपके यज्ञ के लिए ज्वाला द्वारा कम्पमान अग्नि ने यथेष्ट पुत्र रूप रश्मियों को उत्पन्न किया। इन रश्मियों का जल रूप गर्भ महान् है; औषधि रूप जन्म महान है। हे हर्यश्व, आपकी सोमाहुति द्वारा प्रयुक्त इन रश्मियों की प्रवृत्ति बड़ी है।[ऋग्वेद 3.31.3]
हे इन्द्र देव! तुम तेजस्वी हो, तुमने हमारे यज्ञ के लिए कंपित अग्नि के बल रूपी रश्मियों को प्रकट किया है। इस किरणों का गर्भ जल रूप है। इनका उत्तम जन्म औषधि रूप है। हे हरे घोड़े वाले इन्द्र देव! सोम द्वारा प्रेरित तुम्हारी इन किरणों के गर्भ महत्त्वपूर्ण होते हैं।
Hey Indr Dev! You possess glow-aura. The flickering flames have produced rays, as son, for your Yagy. The origin of these rays lies in water and birth as medicines. Hey Indr Dev, possessing green horses! The offerings made as Som, inspired as Som, are important for these rays.
अभि जैत्रीरसचन्त स्पृधानं महि ज्योतिस्तमसो निरजानन्।
तं जानतीः प्रत्युदायन्नुषासः पतिर्गवामभवदेक इन्द्रः॥
विजेता मरुद्गण वृत्र के साथ युद्ध करने वाले इन्द्र के साथ संगत हुए। सूर्य संज्ञक महान् तेज तमो रूप वृत्र से निर्गत होता है, इस बात को मरुतों ने जाना। जब उषाएँ इन्द्र देव को सूर्य जान करवे उनके समक्ष गई। इसलिए अकेले इन्द्र देव सारी रश्मियों के पति हुए।[ऋग्वेद 3.31.4]
वृत्र से युद्ध रत इन्द्र देव के संग मरुद्गण मिले थे। सूर्य रूप श्रेष्ठ तेज अंधकार रूप वृत्र के आवरण में भी मार्ग दर्शक हैं। इसे मरुद्गण जान गये। उषाओं ने इन्द्र देव को सूर्य समझा और उनके निकट पहुँची। तक एक मात्र इन्द्र देव ही समस्त रश्मियों के स्वामी हुए।
The Marud Gan associated themselves with Indr Dev in the war against Vratr. They realised that the Sun light shows the way in the darkness generated by Vratr. The Ushas, then went to Indr Dev considering him as Sun. Its then, that Indr Dev became their master.
वीळौ सतीरभि धीरा अतृन्दन्प्राचाहिन्वन्मनसा सप्त विप्राः।
विश्वामविन्दन्यथ्या मृतस्य प्रजानन्नित्ता नमसा विवेश॥
बुद्धिमान् और मेधावी सात अङ्गिरा लोगों ने सुदृढ़ पर्वत पर रोकी हुई गायों को खोज निकाला। वे गायें पर्वत पर हैं, ऐसा निश्चय करके जिस मार्ग से वहाँ गए, उसी मार्ग से लौट आयें। उन्होंने यज्ञ मार्ग में सभी गायों को प्राप्त किया। यह सब जानकर इन्द्र देव नमस्कार द्वारा, अङ्गिरा लोगों की सम्भावना करके पर्वत पर गए।[ऋग्वेद 3.31.5]
प्रज्ञावान सात अंगिराओं ने सुदृढ़ पर्वत पर रोकी हुई धेनुओं को ढूंढा पर्वत पर धेनुएँ हैं। यह विश्वास कर वे जिस पथ से वहाँ गये, उसी से लौटे। उन्होंने यज्ञ मार्ग द्वारा सभी धेनुओं को प्राप्त किया। अंगिराओं की प्रणामपूर्वक पूजा से प्रभावित इन्द्रदेव इस बात को जानकर पर्वत पर पहुँचे।
The enlightened & intelligent seven Angiras went to the mountain, where the cows were held. They returned by the same route, attaining all the cows for the Yagy. Having understood all this Indr Dev, reached the mountain to accompany Angiras.
विदद्यदी सरमा रुग्णभद्रेर्महि पाथः पूर्व्यं सध्र्यक्कः।
अग्रं नयत्सुपद्यक्षराणामच्छा रवं प्रथमा जानती गात्॥
जिस समय सरमा पर्वत के टूटे हुए द्वार पर पहुँची, उस समय इन्द्र देव ने अपने कहे हुए यथेष्ट अन्न को अन्यान्य सामप्रियों के साथ, उसे दिया। अच्छे पैरों वाली सरमा, शब्द पहचानकर सामने जाते हुए अक्षय गायों के पास पहुँच गई।[ऋग्वेद 3.31.6]
सरमा :: जाड़ा, सर्दी का मौसम, ठंड, शीतकाल; A strong, cold wind that blows down the valley of the Sarma river (which acts as a natural wind tunnel), reaching hurricane strength (uprooting trees) by the time it blows across the western shore and into Lake Baikal, speech-cheers in which the demigods delight together.
पर्वत के टूटे हुए द्वार पर जब सरमा गयी, तब इन्द्र देव ने अपने विचारानुसार उसे उसका मनचाहा प्रचुर अन्न तथा धन प्रदान किया। वह श्रेष्ठ पाँव वाली सरमा धेनुओं की ध्वनि को पहचानती हुई उनके निकट पहुँच गयी।
When Sarma reached the torn outlet-door of the mountain, Indr Dev granted her desired food grains and riches-wealth. Sarma having excellent feet, reached the imperishable cows recognising their voice.
अगच्छदु विप्रतमः सखीयन्नसूदयत्सुकृते गर्भमद्रिः।
ससान मर्यो युवभिर्मख स्वन्नथाभवदङ्गिराः सद्यो अर्चन्॥
अतीव मेधावी इन्द्र देव अंगिरा लोगों की मित्रता की इच्छा से गये। पर्वत ने महायोद्धा के लिये अपने गर्भस्थ गोधन को बाहर निकाला। शत्रु हन्ता इन्द्र देव ने तरुण मरुतों के साथ उन्हें प्राप्त किया। अंगिरा ने तत्काल उनकी पूजा की।[ऋग्वेद 3.31.7]
अत्यन्त प्रज्ञ संपन्न इन्द्र अंगिराओं के प्रति मैत्री पूर्ण कामना से वहाँ पहुँचे। पर्वत ने अपने छिपे हुए धन को श्रेष्ठ योद्धा के लिए प्रकट किया। शत्रु को मारने वाले इन्द्रदेव ने युवा मरुतों की सहायता से उन्हें प्राप्त किया। तब अंगिराओं ने उनकी अर्चना की।
Genius Indr Dev moved to the mountains with the desire of Angiras friendship. The mountain released the cows & the hidden wealth from its chest-inside. Slayer of Indr Dev received these along with the Marud Gan. Angira immediately worshiped them.
सतः सतः प्रतिमानं पुरोभूर्विश्वा वेद जनिमा हन्ति शुष्णम्।
प्र णो दिवः पदवीर्गव्युरर्चन्त्सखा सखीरँमुञ्चन्निरवद्यात्॥
जो इन्द्र देव उत्तम पदार्थ के प्रतिनिधि हैं, जो युद्ध भूमि में अग्रगामी हैं, जो सब उत्पन्न पदार्थों को जानते हैं, जिन्होंने शुष्ण का वध किया, वे ही दूरदर्शी और गोधन के अभिलाषी इन्द्र देव द्युलोक का सम्मान करते हुए हमें पाप से बचायें।[ऋग्वेद 3.31.8]
जो सभी ऐश्वर्यवानों में अग्रगण्य हैं, जो युद्ध क्षेत्र में सबसे आगे चलते हैं, जो सभी सम्पन्न पदार्थों के ज्ञाता हैं, जिन्होंने शुष्ण को समाप्त किया था जो इन्द्रदेव गौ धन की इच्छा वाले तथा अत्यन्त दूरदर्शी हैं वे हमको सम्मान प्रदान करते हुए पाप से सुरक्षा करते हैं।
Indr Dev who is the possessor of all grandeur and moves ahead of the army identifies all goods-creations in nature. He killed Shushn. He is intuitive, far sighted-can look into the future, desirous of cows; protect us from sins, while maintaining the glory of the heavens.
नि गव्यता मनसा सेदुरकैः कृण्वानासो अमृतत्वाय गातुम्।
इदं चिन्नु सदनं भूर्येषां येन मासाँ असिषासन्नृतेन॥
भीतर ही भीतर गोधन की प्राप्ति की इच्छा करके, स्तुति के द्वारा अमरता प्राप्त करने की युक्ति करते हुए यज्ञ-कार्य में लगें। इनके इस यज्ञ में यथेष्ट उपवेशन हैं। इन्होंने इस सत्य भूत यज्ञ के द्वारा महीनों को अलग करने की इच्छा की थी।[ऋग्वेद 3.31.9]
मेधावीजन अन्तःकरण में गौधन प्राप्ति की कामना से श्लोक द्वारा अमरत्व प्राप्ति का प्रयास करते हुए यज्ञ-कर्म में लगें। उनका यज्ञ ही श्रेष्ठ आश्रय रूप है। इन्होंने इस सत्य के कारण भूतयज्ञ के बल से महीनों को विभक्त किया।
The intelligent devote themselves to Yagy with the desire of cows & immortality with the help of sacred hymns. The Yagy performed-conducted by them is like the excellent asylum. They desired to have separate-different months by means of this Yagy.
संपश्यमाना अमदन्नभि स्वं पयः प्रलस्य रेतसो दुघानाः।
वि रोदसी अतपद्घोष एषां जाते निःष्ठामदधुर्गोषु वीरान्॥
अङ्गिरा लोग अपने गोधन को लक्ष्य करके पहले के उत्पन्न पुत्र की रक्षा के लिए दूध दुहकर हर्षित हुए। उनकी आनन्द ध्वनि द्यावा-पृथ्वी में व्याप्त हुई। पूर्व की ही तरह वे संसार में अवस्थित हुए और गायों की रक्षा के लिए वीर पुरुषों को नियुक्त किए।[ऋग्वेद 3.31.10]
अंगिरा वंशियों ने पहले रचित पुत्रों की सुरक्षा के लिए गौ-धन ग्रहण कर उनका दोहन किया और शरीर को पुष्ट बनाया। उनकी हर्ष अम्बर-धरा में विद्यमान हो गयी। वे पूर्वकाल के तुल्य ही संसार में रहे और धेनुओं की सुरक्षा के लिए उन्होंने पराक्रमियों को नियुक्त किया।
Angiras became happy by milking the cows for their already exiting sons. The sound of their pleasure echoed through the earth & sky. They appointed brave warriors for the protection of cows.
स जातेभिर्वृत्रहा सेदु हव्यैरुदुस्त्रिया असृजदिन्द्रो अर्कैः।
उरूच्यस्मै घृतवद्धरन्ती मधु स्वाद्म दुदुहे जेन्या गौः॥
इन्द्र देव ने मरुतों की सहायता से वृत्रासुर का वध किया। वे ही पूजनीय और होम योग्य है। मरुतों के साथ गायों का, यज्ञ के लिए दान किए थे। घृत युक्त हव्य धारिणी, प्रभूत हव्य दात्री और प्रशस्ता गौ ने इनके लिए स्वादुतर क्षीर आदि दिए।[ऋग्वेद 3.31.11]
क्षीर :: दूध, खीर, किसी वृक्ष आदि का सफ़ेद रस, कोई तरल पदार्थ, जल; latex.
इन्द्र देव ने मरुद्गणों सहित वृत्र का विनाश किया। वे ही पूजनीय हैं तथा यजन करने योग्य हैं। उन्होंने मरुद्गणों के साथ यज्ञ हेतु गायों का दान किया। घृत युक्त हवि वाली तथा श्रेष्ठ हवि देने वाली धेनु ने इनके लिए स्वादिष्ट क्षीर दिया।
Indr Dev vanished Vrata Sur with the help of Marud Gan. He deserve worship. He donated cows for the sake of Yagy, with Marud Gan. The honourable cows which provides offerings laced with Ghee, provides milk and pudding.
पित्रे चिच्चक्रुः सदनं समस्मै महि त्विषीमत्सुकृतो वि हि ख्यन्।
विष्कभ्नन्तः स्कम्भनेना जनित्री आसीना ऊर्ध्वं रभसं वि मिन्वन्॥
अङ्गिराओं ने पालक इन्द्र देव के लिए महान् और दीप्तिमान् स्थान संस्कार किए। सुकर्म शाली अंगिरा लोगों ने इन्द्र के उपयुक्त इस स्थान को विशेष रूप से दिखा दिया। यज्ञ में बैठकर उन लोगों ने जनयित्री द्यावा-पृथ्वी को स्तम्भ-रूप अन्तरिक्ष द्वारा रोककर वेगवान् इन्द्र देव को द्युलोक में संस्थापित किया।[ऋग्वेद 3.31.12]
उन पोषण कर्त्ता इन्द्र देव के लिए अंगिराओं ने अपने पवित्र एवं उज्जवल महान स्थान का संस्कार किया। श्रेष्ठ कर्म वाले अंगिराओं ने इन्द्र देव के योग्य इस सुन्दर स्थल को दिखाया। उन्होंने अनुष्ठान में विराजमान होकर अम्बर धरा के मध्य अतंरिक्ष रूप खम्बे का आरोपण कर इन्द्र देव को स्वर्ग में विद्यमान किया था।
The Angiras performed ritualistic procedures pertaining to auspicious and aurous sites for the nurturer Indr Dev. They showed these places to Dev Raj Indr. They sat in the Yagy and established Indr Dev in the heavens by blocking the sky & earth just like a column.
This is vertical alignment. The planets are aligned in horizontal positions around the Sun.
मही यदि धिषणा शिश्नथे धात्सद्योवृधं विभ्वं १ रोदस्योः।
गिरो यस्मिन्ननवद्याः समीचीर्विश्वा इन्द्राय तविषीरनुत्ताः॥
द्यावा-पृथ्वी के आपस में विश्लिष्ट होने पर यदि महान प्रार्थना इन्द्र देव को तत्क्षणात् वृद्धि प्राप्त और धारित क्षम करे, तो इन्द्र के प्रति दोष रहित सङ्गत है। फलतः इन्द्र का सारा बल स्वभाव सिद्ध है।[ऋग्वेद 3.31.13]
विश्लिष्ट :: विश्लेषण किया गया, अलग किया हुआ; specific.
आसमान धरती धिषणा में संयुक्त वाणी, उनके वर्णन में समर्थ न हो तो भी इन्द्र की वंदना द्वारा वृद्धि को प्राप्त होती हुई सुसंगत होती है। इन इन्द्र की सभी शक्तियाँ सामर्थ्य वाली हैं।
धिषणा :: ज्ञान, भजन, बुद्धि, देवी।
The prayers made by the sky & the earth separately grants growth to Indr Dev immediately. All the powers embedded in Indr Dev are self generating-growing.
The ritualistic sacrifices made by the devotees in the Yagy automatically help Indr Dev in rejuvenating.
मह्या ते सख्यं वश्मि शक्तीरा वृत्रघ्ने नियुतो यन्ति पूर्वीः।
महि स्तोत्रमव आगन्म सूरेरस्माकं सु मघवन्बोधि गोपाः॥
हे इन्द्र देव! मैं आपकी महती मित्रता के लिए प्रार्थना करता हूँ। आपकी शक्ति के लिए प्रार्थना करता हूँ। आप वृत्र हन्ता है। आपके पास अनेक अश्व वहन करने के लिए आते हैं। आप विद्वान् है। हम आपको महत संख्य, स्तुति और हव्य प्रदत्त करेंगे। हे इन्द्रदेव! आप ज्ञान रक्षक हैं। हमें दिव्य ज्ञान से प्रेरित करें।[ऋग्वेद 3.31.14]
हे इन्द्र देव! मैं तुम्हारे श्रेष्ठ मित्र भाव की वन्दना करता हूँ। तुम्हारी शक्ति के लिए विनती करता हूँ। तुम बहुत ही मेधावी हो। हम तुम्हें अपने हृदय से सखा भाव श्लोक और हवियाँ अर्पण करेंगे। हे इन्द्र देव! तुम हमारे रक्षक हो हमको मतिवान बनाओ।
Hey Indr Dev! I request your friendship. I pray for boosting-enhancement of your might-powers. You are the slayer of Vratr. We will make offerings to you like a friend. You are enlightened. You are the protector of learning. Grant us the divine knowledge i.e., the elixir-nectar of Brahm Gyan-Parmatm Tattv.
Please refer to :: ULTIMATE KNOWLEDGE ब्रह्म ज्ञान-परमात्म तत्व ALMIGHTY-THE GOD (2) GIST-EXTRACT santoshsuvichar.blogspot.com
महि क्षेत्रं पुरु श्चन्द्रं विविद्वानादित् सं खिभ्यश्चरथं समैरत्।
इन्द्रो नृभिरजनद्दीद्यानः साकं सूर्यमुषसं गातुमग्निम्॥
भली-भाँति समझकर इन्द्र देव ने मित्रों को महान क्षेत्र और यथेष्ट हिरण्य (सुवर्ण) दान किया। इसके अनन्तर उन्होंने उन लोगों को गौ आदि भी दान किया। वे दीप्तिमान् है। उन्होंने नेता मरुद्गण के साथ सूर्य, उषा, पृथ्वी और अग्नि को उत्पन्न किया।[ऋग्वेद 3.31.15]
इन्द्र देव ने भली-भांति विचारकर मित्रों को धरती और सुवर्ण रूप धन प्रदान किया। फिर उन्होंने गौआदि धन भी प्रदान किया। वे अत्यन्त तेजस्वी हैं। उन्होंने ही मरुद्गण सूर्य, उषा, धरती और अग्नि को उत्पन्न किया है।
Indr Dev donated vast tracts of land and sufficient gold to the friends. Thereafter, he donated cows as well. He & the Marud Gan produced the Sun, Usha, earth and Agni-fire.
अपश्चिदेष विभ्वो ३ दमूनाः प्र सध्रीचीरसृजद्विश्वश्चन्द्राः।
मध्वः पुनानाः कविभिः पवित्रैर्द्युभिर्हिन्वन्त्यक्तुभिर्धनुत्रीः॥
शान्त मना इन इन्द्र देव ने विस्तीर्ण परस्पर सङ्गत और संसार के लिये आनन्द दायक जल को उत्पन्न किया। वह माधुर्य युक्त सोम समूह को पवित्र अथवा अग्नि देव, सूर्य और वायु के द्वारा शोधित करके और समस्त संसार को प्रसन्न करके दिन-रात संसार को अपने व्यापार में प्रेरित करते हैं।[ऋग्वेद 3.31.16]
उन्होंने अत्यन्त गति वाले सुसंगत और संसार को परमानन्द देने वाले जल को प्रकट किया। वह मृदु सोमों को शुद्ध करते तथा अग्नि, सूर्य और पवन के द्वारा संग्राम करते हैं। वे ही समस्त संसार को आनन्द प्रदान करते हुए इस संसार को दिन और रात्रि में भी अपने कार्यों में लगाते हैं।
Indr Dev invoked-produced water for the pleasure of the vast universe. He inspire the entire world to engage in their routine duties, with the purification of Somras, by Agni Dev, the Sun and the Vayu-air.
अनु कृष्णे वसुधिती जिहाते उभे सूर्यस्य मंहना यजत्रे।
परि यत्ते महिमानं वृजध्यै सखाय इन्द्र काम्या ऋजिप्याः॥
सूर्य की महिमा से समस्त पदार्थों के धारित कर्ता और यज्ञार्ह दिन-रात क्रमानुसार घूम रहे हैं। ऋजु गति, मित्र-भूत और कमनीय मरुद्गण शत्रुओं को परास्त करने के लिए आपकी शक्ति का ही अनुसरण करने योग्य होते हैं।[ऋग्वेद 3.31.17]
सूर्य की महिमा से सभी पदार्थों को ग्रहण करने वाले एवं यश निर्वाहक दिन-रात्रि क्रम से घूमते रहते हैं। ॠतु रूप, मित्र भाव वाले मरुद्गण शत्रु पर विजय प्राप्त करने के लिए तुम्हारी शक्ति का आश्रय ग्रहण करते हैं।
Its by virtue of the glory (gravitational force-attraction ) of the Sun that all material objects are revolving in a cyclic order; the day & night occurs for performance-conducting Yagy. Formation of seasons, friendly behaviour of Marud Gan in conquering the enemy by them, occurs due to your might.
पतिर्भव वृत्रहन्त्सूनृतानां गिरां विश्वायुर्वृषभो वयोधाः।
आ नो गहि सख्येभिः शिवेभिर्महान्महीभिरूतिभिः सरण्यन्॥
हे वृत्र हन्ता इन्द्र देव! आप अविनाशी, अभीष्ट वर्षी और अन्नदाता है। हमारी प्रियतम प्रार्थना के स्वामी बनें। आप महान् है। यज्ञ में आप जाने के अभिलाषी हैं। महान् आश्रय और कल्याण वाहिनी मित्रता के लिए हमारे समक्ष पधारें।[ऋग्वेद 3.31.18]
हे इन्द्र देव! तुम वृत्र संहारक होकर अभिलाषाओं की वृष्टि करने वाले, अजर तथा अन्न प्रदान करने वाले हो। तुम हमारी प्रिय वंदनाओं के अधिपति होओ। तुम यज्ञ में पधारने की कामना वाले एवं उत्तम हो। तुम अपनी कल्याण वहन करने वाली मित्रता युक्त तथा श्रेष्ठ शरण से परिपूर्ण हुए हमको ग्रहण होओ।
Hey slayer of Vratr! You are imperishable-immortal, grants accomplishment food grains. You should be theme of dearest prayers. You are great. You desire to visit the Yagy. Come to us for granting welfare means & asylum.
तमङ्गिरस्वन्नमसा सपर्यन्नव्यं कृणोमि सन्यसे पुराजाम्।
द्रुहो वि याहि बहुला अदेवी: स्वश्च नो मघवन्त्सातये धाः॥
हे इन्द्र देव! आप पुरातन है। अङ्गिरा लोगों के तुल्य मैं आपकी पूजा करता हूँ। मैं आपकी प्रार्थना करने के लिए अभिनवता लाता हूँ। आप देव रहित द्रोहियों को मार डालते हैं। हे इन्द्र देव! हमें उपभोग के योग्य धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 3.31.19]
हे इन्द्र देव! तुम प्राचीन हो। अंगिराओं के समान मैं तुम्हारी प्रार्थना करता हूँ। मैं तुम्हारी वंदना हेतु नई प्रार्थनाएँ प्रस्तुत करता हूँ। तुम देवों के शत्रुओं को नष्ट करने वाले हो। हे इन्द्र देव! हमें उपयोग करने हेतु धन प्रदान करो।
Hey Indr Dev! You are ancient. I pray to you like the Angiras. I compose new hymns for worshiping you. You kill those who oppose the demigods-deities. Hey Indr Dev! Grant us useful commodities.
मिहः पावकाः प्रतता अभूवन्त्स्वस्ति नः पिपृहि पारमासाम्।
इन्द्र त्वं रथिर: पाहि नो रिषो मक्षूमक्षू कृणुहि गोजितो नः॥
हे इन्द्र देव! पवित्र जल चारों ओर फैला है। हमारे लिए अविनाशी जल-समूह के तीर को जल से पूर्ण करें। आप रथ वाले है। हमें शत्रु से बचायें। हमें शीघ्र गायों के विजेता बनावें।[ऋग्वेद 3.31.20]
हे इन्द्रदेव! अग्नि का तेज सब दिशाओं में व्याप्त हो गया है। हमारे इस महान तट को जल से पूर्ण करो। तुम रथ से परिपूर्ण हो, शत्रुओं से हमारी सुरक्षा करो, हमें धेनुओं को विजय करने योग्य शक्ति प्रदान करो।
Hey Indr Dev! Auspicious-pious, pure water is spread all around. Secure the shore with imperishable water for us. You possess the charoite. Protect us from the enemy. Make us the winners of cows.
अदेदिष्ट वृत्रहा गोपतिर्गा अन्तः कृष्णाँ अरुषैधामभिर्गात्।
प्र सूनृता दिशमान ऋतेन दुरश्च विश्वा अवृणोदप स्वाः॥
वृत्र हन्ता और गायों के स्वामी इन्द्र देव हमें गौ प्रदान करें। कृष्णों अथवा यज्ञ-विघातक असुरों को दीप्ति युक्त तेज के द्वारा विनष्ट करें। उन्होंने सत्य वचन से अङ्गिरा लोगों को प्रियतम गायें दान करके समस्त द्वारों को बन्द कर दिया।[ऋग्वेद 3.31.21]
वृत्र को मारने वाले हे इन्द्र! हमें गौएँ प्रदान करो। यज्ञ में बाधा उत्पन्न करने वाले राक्षसों को अपने प्रकाश युक्त तेज से समाप्त कर दो। उन्होंने सत्य के द्वारा अंगिराओं को रमणीय गाय दान कर तथा असत्य के सभी नामों को रोक दिया।
Hey slayers of Vratr and the master of cows, give us cows. Kill the demons & those who obstruct Yagy by the bright aura-energy. He stopped all the routes of demons by truthful means & granted best cows to Angiras.
शुनं हुवेम मघवानमिन्द्रमस्मिन्भरे नृतमं वाजसातौ।
शृण्वन्तमुग्रमूतये समत्सु घ्नन्तं वृत्राणि संजितं धनानाम्॥
हे इन्द्र देव! आप अन्न लाभ कर्ता, युद्ध में उत्साह द्वारा प्रवृद्ध धनवान्, प्रभूत ऐश्वर्य युक्त नेतृ श्रेष्ठ स्तुति श्रवण कर्ता, उग्र, संग्राम में शत्रु विनाशकारी और धन-जेता हैं। आश्रय प्राप्ति के लिए (हम) आपको बुलाते हैं।[ऋग्वेद 3.31.22]
हे इन्द्र देव! तुम अन्न का लाभ कराने वाले संग्राम में उल्लास द्वारा वृद्धि को ग्रहण हुए, धन से परिपूर्ण, समृद्धिशालियों में महान, स्तुतियों को सुनने वाले, विकराल, युद्धस्थल में शत्रुओं का विनाश करने वाले तथा धनों को जीतने वाले हो। शरण ग्रहण करने हेतु तुम्हारा आह्वान करता हूँ।
Hey Indr Dev! You grant food grains, encourage in the war-battle, possess grandeur, listens to excellent prayers, furious, kill the enemy in the war and wins wealth. We seek asylum-shelter, protection under you.(01.11.2022)
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (32) :: ऋषि :- विश्वामित्र गाथिन, देवता :- इन्द्र, छन्द :- त्रिष्टुप।
इन्द्र सोमं सोमपते पिबेमं माध्यंदिनं सवनं चारु यत्ते।
प्रप्रुथ्या शिप्रे मघवन्नृजी षिन्विमुच्या हरी इह मादयस्व॥
हे सोमपति इन्द्रदेव! इस माध्यन्दिन सवन के अवसर पर आप सोमपान करें; क्योंकि यह आपका प्रिय है। हे धनवान और ऋजीष सोम से युक्त इन्द्र देव! दोनों घोड़ों को रथ से खोलकर और उनके जबड़ों को घास से पूर्ण करके इस यज्ञ में उन्हें प्रसन्न करें।[ऋग्वेद 3.32.1]
हे इन्द्र देव! तुम सोम के स्वामी हो, इस मध्य सवन में सोमपान करो। यह सोम तुमको अत्यन्त प्रिय है। तुम धन से परिपूर्ण सोम से युक्त हो। अपने अश्वों को रथ से प्रथक करके उनके मुख को उत्तम घास से पूर्ण करते हुए उन्हें इस यज्ञ में आनन्द प्राप्त कराओ।
Hey master of Som, Indr Dev! Enjoy Somras during mid day, since you like it-its your favourite drink. You possess wealth & Som. Release both the horses from the charoite and feed them with grass to make them happy in the Yagy.
गवाशिरं मन्थिनमिन्द्र शुक्रं पिबा सोमं ररिमा ते मदाय।
बह्मकृता मारुतेना गणेन सजोषा रुद्रैस्तृपदा वृषस्व॥
हे इन्द्र देव! गव्य संयुक्त और मन्थन सम्पन्न नूतन सोमरस का पान करें। आपके हर्ष के लिए हम उसे प्रदान करते हैं। स्तोता मरुतों और रुद्रों के साथ जब तक तृप्ति न हो, तब तक सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 3.32.2]
हे इन्द्र देव! दुग्धादि से परिपूर्ण संस्कारित नवीन सोम का पान करो। तुम्हारी प्रसन्नता हेतु हम उसे भेंट करते हैं। तुम मरुद्गण और रुद्रों के साथ तृप्त होने तक सोमपान करो।
Hey Indr Dev! Drink Somras enriched with the milk. We offer it for pleasing you. Enjoy Somras along with the Stota, Marud Gan and the Rudr, till you are satisfied.
ये ते श्रुष्मं ये तविषीमवर्धन्नर्चन्त इन्द्र मरुतस्त ओजः।
माध्यन्दिने सवने वज्रहस्त पिबा रुद्रेभिः सगणः सुशिप्र॥
हे इन्द्र देव! जो मरुद्गण आपके शत्रु शोषक तेज को बढ़ाते हैं, वे ही मरुद्गण आपका बल वर्द्धित करते हैं, वे ही मरुद्रण प्रार्थना करके आपकी युद्ध-शक्ति को बढ़ाते हैं। हे वज्र हस्त शोभन शिरस्त्राण युक्त इन्द्र देव! माध्यन्दिन सवन में रुद्रों के साथ सोमपान करें।[ऋग्वेद 3.32.3]
हे इन्द्र देव! जो मरुद्गण शत्रु को सुखाने वाले तुम्हारे तेज की वृद्धि करते हैं, वे मरुद्गण ही तुम्हारे पराक्रम को बढ़ाने वाले भी हैं। वे मरुत ही वंदना से तुम्हारे युद्ध सामर्थ्य की वृद्धि करते हैं। तुम वज्र धारण कर, सुशोभित शिरस्त्राण हुए मुख्य सवन में रुद्रों के साथ सोम ग्रहण करो।
Hey Indr Dev! The Marud Gan who enhance-boost your power to suck-reduce the energy-strength of the enemy, increase your power-mighty as well. These Marud Gan pray and promote your power to fight in the war. Hey Vajr holding and head gear bearing Indr Dev! Drink Somras during the midday along with the Rudr.
त इन्न्वस्य मधुमद्विविप्र इन्द्रस्य शर्धो मरुतो य आसन्।
येभिर्वृत्रस्येषितो विवेदामर्मणो मन्यमानस्य मर्म॥
मरुद लोग इन्द्र के सहायक हुए। वृत्रासुर समझता था कि मेरा रहस्य कोई नहीं जानता। परन्तु मरुतों के द्वारा प्रेरित होकर इन्द्र देव ने वृत्रासुर का रहस्य जान लिया। ये ही मरुद्गण आपके लिए शीघ्र माधुर्य युक्त उत्साह वचन बोले।[ऋग्वेद 3.32.4]वृत्र के विश्वास था कि मेरा भेद कोई नहीं जानता। परन्तु मरुतों की सहायता और प्रेरणा द्वारा इन्द्रदेव ने वृत्र का भेद जान लिया। उन्हीं मरुतों ने हर्षवद्धित वाणी से तुम्हें प्रसन्न किया था।
Marud Gan assisted Indr Dev. Vrata Sur thought that none is aware of his secrets. Inspired by Marud Gan, Indr Dev decoded the secrets of Vrata Sur. These Marud Gan spoke sweet words to encourage you.
मनुष्वदिन्द्र सवनं जुषाणः पिबा सोमं शश्वते वीर्याय।
स आ ववृत्स्व हर्यश्व यज्ञैः सरण्युभिरपो अर्णा सिसर्षि॥
हे इन्द्र देव! मनु के यज्ञ के तुल्य आप मेरे इस यज्ञ का सेवन करते हुए शाश्वत बल के लिए सोमपान करें। हे हर्यश्व! यज्ञ योग्य मरुतों के साथ आप पधारें। गमनशील मरुतों के साथ अन्तरिक्ष से जल प्रेरित करें।[ऋग्वेद 3.32.5]हे इन्द्र देव! मनु अनुष्ठान के तुल्य तुम मेरे यज्ञ को ग्रहण करते हुए स्थायी शक्ति के लिए सोमपान करो। तुम्हारे अश्व हरे रंग वाले हों। यज्ञ के पात्र मरुद्गण के साथ पधारो और अंतरिक्ष से जल की वर्षा करो।
Hey Indr Dev! Conduct the Yagy like Manu to attain eternal strength & drink the Somras. Hey possessor of green horses! Come with the Marud Gan to participate in the Yagy. Inspire the heavenly waters to produce rains.
त्वमपो यद्ध वृत्रं जघन्वाँ अत्याँइव सर्तवाजौ।
शयानमिन्द्र चरता वधेन वद्रिवांसं परि देवीरदेवम्॥
हे इन्द्र देव! चूँकि आप दीप्तिमान् जल के आवरण कर्ता है, दीप्ति शून्य और शायन किए हुए वृत्रासुर को युद्ध में मार गिराया; इसलिए आपने युद्ध-समय में अश्व के सदृश जल को छोड़ दिया।[ऋग्वेद 3.32.6]हे इन्द्र देव! तुम निर्मल जल को ढकते हो। तुमने उस सोते हुए वृत्र को युद्ध में गिराया है। तुमने संग्राम में अश्व के समान जल को छोड़ दिया।
Hey Indr Dev! Since you cover the pure waters, you killed Vrata Sur in the war causing darkness. You released waters during the war as you free the horses during the war.
यजाम इन्नमसा वृद्धमिन्द्रं बृहन्तमृष्वमजरं युवानम्।
यस्य प्रिये ममतुर्यज्ञियस्य न रोदसी महिमानं ममाते॥
फलत: हम हव्य द्वारा प्रवृद्ध और महान्, अजर और नित्य तरुण स्तोतव्य इन्द्र देव की पूजा करते हैं। परिमाण शून्य, द्यावा-पृथ्वी यज्ञार्ह इन्द्र देव की महिमा को वर्णित नहीं कर सकती।[ऋग्वेद 3.32.7]
हवि द्वारा वृद्धि को प्राप्त अविनाशी, उत्तम, सतत युवा, स्तुति के पात्र इन्द्र की हम अर्चना करते हैं। महती आकाश और पृथ्वी भी इन्द्र की महिमा को सीमित करने में समर्थ नहीं हैं।
Hence, we pray to Indr Dev who is deserve worship, great, immortal, ever young, with the help of offerings in the Yagy. Vast space-sky and the earth too are incapable in describing the glory of Indr Dev.
Therefore, we sacrifice with reverence to the vast and mighty Indr Dev, who is adorable, undecaying-immortal, young, whose magnitude the unbounded heaven and earth have not measures, nor can measure.
इन्द्रस्य कर्म सुकृता पुरूणि व्रतानि देवा न मिनन्ति विश्वे।
दाधार यः पृथिवीं द्यामुतेमां जजान सूर्यमुषसं सुदंसाः॥
समस्त देवगण इन्द्र के कर्म सुकृत और बहुतर यज्ञादि की हिंसा नहीं कर सकते। इन्द्र देव भूलोक, द्युलोक और अन्तरिक्ष लोक को धारित किए हुए हैं। उनका कर्म रमणीय है। उन्होंने सूर्य और उषा को उत्पन्न किया है।[ऋग्वेद 3.32.8]
रमणीय :: रमण योग्य, सुंदर; delightful, delectable.
इन्द्र देव के महान कार्य, यज्ञादि वीरता में समस्त देवता मिलकर भी बाधा उत्पन्न नहीं कर सकते। वे अम्बर-पृथ्वी और अंतरिक्ष के धारण कर्त्ता हैं। उनके कार्य उत्तम हैं। उन्हीं ने सूर्य और उषा को प्रकट किया है।
Demigods-deities can not obstruct the great functions, Yagy etc. of Indr Dev. Indr Dev is supporting the space-sky and the earth. His deeds-endeavours are delightful, delectable. He has created the Sun and Usha.
देवराज इंद्र परमात्मा की एक विभूति हैं।
Dev Raj Indr is one of the superior-great forms-incarnations of the Almighty. Thus, here Indr is used for Almighty.
अद्रोध सत्यं तव तन्महित्वं सद्यो यज्जातो अपिबो ह सोमम्।
न द्याव इन्द्र तवसस्त ओजो नाहा न मासाः शरदो वरन्त॥
हे दौरात्म्य शून्य इन्द्र देव! आपकी महिमा ही यथार्थ महिमा है, क्योंकि आप उत्पन्न होकर ही सोमरस का पान करते है। आप बलवान् है। स्वर्गादि लोक आपके तेज का निवारण नहीं कर सकते, दिन, मास और वर्ष भी नहीं निवारण कर सकते।[ऋग्वेद 3.32.9]
हे इन्द्र देव! तुम्हारी अभिलाषा उत्तम है। तुम्हारी महिमा भी महान है। तुम प्रकट होकर ही सोमपान करते हो। तुम्हारे तेज को स्वर्गादि संसार, दिवस, माह, वर्ष कोई भी नहीं रोक सकता है।
Hey Indr Dev! Your glory & desires are supreme. You are mighty. He invoke and drink Somras. None, i.e., day, month or year can stop your aura-energy (your powers can not be restricted, blocked).
त्वं सद्यो अपिबो जात इन्द्र मदाय सोमं परमे व्योमन्।
यद्ध द्यावापृथिवी आविवेशीरथाभवः पूर्व्यः कारुधायाः॥
हे इन्द्र देव! उत्पन्न होने के साथ ही आपने सर्वोच्च स्वर्ग प्रदेश में रहकर तुरंत आनन्द प्राप्ति के लिए सोमरस का पान किया। जिस समय आप द्यावा-पृथ्वी में अनुप्रविष्ट हुए, उसी समय आप प्राचीन सृष्टि के विधाता हुए।[ऋग्वेद 3.32.10]
हे इन्द्र देव! तुमने उत्पन्न होते ही सबसे उत्तम लोक स्वर्ग में पधारकर हर्ष के लिए सोम ग्रहण किया। जब तुम नभ पृथ्वी में व्याप्त हुए तभी संपूर्ण सृष्टि के विधाता बन गए।
Hey Indr Dev! You enjoyed Somras soon after your evolution in the heaven. You became the nurturer-supporter of the earth & sky as soon as you pervaded.
अहन्नहिं परिशयानमर्ण ओजायमंनं तुविजात तव्यान्।
न ते महित्वमनु भूदध द्यौर्यदन्यया स्फिग्या ३ क्षामवस्थाः॥
हे इन्द्र देव! आपसे अनेक उत्पन्न हुए हैं। जो अहि अपने को बलवान् समझकर जल को परिवेष्टित किया, उसी अहि को प्रवृद्ध होकर आपने विनष्ट किया, परन्तु जिस समय आप पृथ्वी को एक कटि में छिपाकर अवस्थान करते हैं, उस समय स्वर्ग भी आपकी महिमा की तुलना नहीं कर सकता।[ऋग्वेद 3.32.11]
कटि :: कमर, सिकुड़ जाना, कूल्हा; waist, waistline, loin.
हे इन्द्र देव! तुमने बहुतों को रचित किया, जल को रोकने वाले अहंकारी अहि को तुमने समाप्त कर दिया। जब तुम धरा को कटि में छिपाकर चलते हो। तब स्वर्ग भी तुम्हारी महिमा की समता करने में समर्थवान नहीं होता।
Hey Indr Dev! You have evolved many objects & species. You killed demon Ahi when he tried to block water, hiding earth in waist. At this juncture, even the heaven could not describe your glory-greatness.
यज्ञो हि त इन्द्र वर्धनो भूदुत प्रियः सुतसोमो मियेधः।
यज्ञेन यज्ञमव यज्ञियः सन्यज्ञस्ते वज्रमहिहत्य आवत्॥
हे इन्द्र देव ! हमारा यज्ञ आपकी वृद्धि करता है। जिस कार्य में सोम अभिषुत होता है, वह आपका प्रिय है। हे यज्ञ योग्य, यज्ञ के लिए अपने याजक गण की आप रक्षा करें। अहि का विनाश करने के लिए यह यज्ञ आपके वज्र को दृढ़ करे।[ऋग्वेद 3.32.12]
हे इन्द्र देव! हमारा अनुष्ठान तुम्हारी वृद्धि करता है। जिस कार्य में सोम का संस्कार किया जाता है, वह कार्य तुमको प्रिय होता है। तुम यज्ञ के योग्य हो। अपने यजमान की अनुष्ठान कर्म के लिए सुरक्षा करो। अहि नाश करने के लिए यह यज्ञ तुम्हारे वज्र को शक्तिशाली बनावे।
Hey Indr Dev! Our Yagy boosts your powers. You love-like, the endeavours in which the Somras is extracted. You qualify to perform Yagy. Let the Yagy of the Ritviz-organisers be protected by you. Let this Yagy strengthen your Vajr for killing demob Ahi.
यज्ञेनेन्द्रमवसा चक्रे अर्वागैनं सुम्नाय नव्यसे ववृत्याम्।
यः स्तोमेभिर्वावृधे पूर्व्येभिर्यो मध्यमेभिरुत नूतनेभिः॥
पुरातन, मध्यतन और अधुनातन प्रार्थना द्वारा जो इन्द्र देव वर्द्धित होते हैं, उन्हीं इन्द्र देव को यजमान रक्षक यज्ञ के द्वारा, अपने समक्ष ले आते है; नवीन अर्थात् नूतन धन के लिए उन्हें आवर्तित करते हैं।[ऋग्वेद 3.32.13]
प्राचीन, मध्यकालीन तथा नवीन श्लोक से जो इन्द्रदेव वृद्धि करते हैं, उन्हीं इन्द्र को यजमान अपने रक्षक यज्ञ द्वार आमंत्रित करते हैं। नए धन के लिए वह उनका आह्वान करता है।
Ancient, in between the present & past and the new compositions-hymns strengthen you. Indr Dev is invited-invoked by the hosts-organisers, Ritviz through their protective routes. They invite Indr Dev for the sake of new kinds of wealth.
विवेष यन्मा धिषणा जजान स्तवै पुरा पार्यादिन्द्रमह्नः।
अंहसो यत्र पीपरद्यथा नो नावेव यान्तमुभये हवन्ते॥
जिस समय मैं मन ही मन में इन्द्र देव की प्रार्थना करने की इच्छा करता हूँ, तभी प्रार्थना करता हूँ। मैं दूरवर्ती अशुभ दिन के पूर्व ही इनकी प्रार्थना करता हूँ। अतः ये हमें दुःख के पार ले जावे। इसलिए दोनों तटों के रहनेवाले लोग जिस प्रकार से नौका चलाने वाले को पुकारते हैं, उसी प्रकार हमारे मातृ-पितृ कुलों के लोग इन्द्र देव को पुकारते हैं।[ऋग्वेद 3.32.14]
इन्द्रदेव की वंदना करने की जब मैं अभिलाषा करता हूँ, तभी प्रार्थना करने लगता हूँ। मैं उस अशुभ दूरवर्ती दिवस की शंका से पूर्व ही इन्द्रदेव का पूजन करता हूँ। वे इन्द्र देव हमें मुसीबतों से बचायें। नदी के दोनों किनारों के व्यक्ति जैसे नौका वाले को पुकारते हैं, वैसे ही हमारे मातृवंश के मनुष्य इन्द्र देव को बुलाते हैं।
I pray to Indr Dev by invoking him in my innerself. I perform-conduct prayers prior to the inauspicious events-day in future. Hence, he should take us away from pain-sorrow, misery. The way the people standing over the two banks of the river call the boats man, the people from my maternal side call him.
आपूर्णो अस्य कलशः स्वाहा सेक्तेव कोशं सिसिचे पिबध्यै।
समु प्रिया आववृत्रन्मदाय प्रदक्षिणिदभि सोमास इन्द्रम्॥
इन्द्र देव का कलश पूर्ण हुआ पानार्थ 'स्वाहा' शब्द का उच्चारण हुआ। जिस प्रकार से जल सेक्ता जल पात्र में जल सेक करता है, उसी प्रकार मैं सोम का सेचन करता हूँ। सुस्वादु सोम प्रदक्षिण करता हुआ इनके सम्मुख इनकी प्रसन्नता के लिए गमन करता है।[ऋग्वेद 3.32.15]
इन्द्र का कथन पूर्ण हो गया। पान के लिए स्वाहाकार की ध्वनि हुई जैसे जल सींचने वाला पात्र से जल सींचता है, वैसे ही मैं सोम को सिंचित करता हूँ। सुन्दर, सुस्वादु वाला सोम इन्द्र को प्रसन्न करने के लिए उनके सम्मुख जाता है।
The vase is filled for him with Som to welcome Indr Dev. I pour it out for you to drink, as a water-carrier pours water from his jar; may the grateful Som flow in reverence round Indr for his exhilaration.
The pot-jar of Indr Dev is filled with Somras, creating sound Swaha. The way a person driving water, I too extract Somras. The tasty-sweet Somras is offered to please him.
न त्वा गभीरः पुरुहूत सिन्धुर्नाद्रयः परि षन्तो वरन्त।
इत्था सखिभ्य इषितो यदिन्द्रा दृळ्हं चिदरुजो गव्यमूर्वम्॥
बहुलोकाहूत इन्द्र देव! गम्भीर सिन्धु अर्थात् सागर आपका निवारण नहीं कर सकता। उसके चारों ओर वर्त्तमान उपसागर आपका निवारण नहीं कर सकते; क्योंकि बन्धुओं द्वारा इस प्रकार प्रार्थित होकर आपने अति प्रबल गव्य उर्व का निवारण कर डाला।[ऋग्वेद 3.32.16]
हे इन्द्र देव! तुम अनेकों द्वारा आह्वान किये गये हो। गंभीर समुद्र तभी तुम्हें रोक नहीं सकता। समुद्र के चारों तरफ का उप समुद्र भी तुम्हें निवारण करने में समर्थवान नहीं हैं क्योंकि मित्रों की वंदना पर तुमने महावलिष्ठ वृत्र का निवारण कर दिया है।
Hey Indr Dev invoked by several people, demigods-deities! The calm-composed ocean too can not disobey-discard you. Seas around it, too can not reject-discard you, since strengthened by the friends & relatives you eliminated the highly powerful-mighty Vratr.
शुनं हुवेम मघवानमिन्द्रमस्मिन्भरे नृतमं वाजसातौ।
शृण्वन्तमुग्नमूतये समत्सु घ्नन्तं वृत्राणि संजितं धनानाम्॥
हे इन्द्र देव! आप अन्न प्रापक, युद्ध में उत्साह द्वारा प्रवृद्ध, धनवान्, प्रभूत ऐश्वर्य सम्पन्न नेतृ श्रेष्ठ, स्तुति-श्रवण कर्ता, उग्र, युद्ध में शत्रु विनाशी और धन जेता हैं। आश्रय-प्राप्ति के लिए हम आपको बाते है।[ऋग्वेद 3.32.17]
हे इन्द्र देव! तुम अन्न का लाभ करने वाले उत्साह से बढ़े हुए, धन और ऐश्वर्य से सम्पन्न, नायकों, में उत्तम, स्तुति श्रवण करने वाले, भयंकर युद्ध में समुद्र का विनाश करने वाले तथा धनों को विजय करने वाले हो। शरण प्राप्त करने के लिए मैं तुम्हारा आह्वान करता हूँ।
Hey Indr Dev! You are the giver of food grains, encouraging in the war, wealthy, a leader possessing grandeur, listens-reply to prayers, protected-safe in the war and winner of wealth. We invoke you for attaining protection, shelter, asylum under you.(03.11.2022)
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (33) :: ऋषि :- विश्वामित्र गाथिन, देवता :- नद्य, इन्द्र, छन्द :- त्रिष्टुप, अनुष्टुप्।
प्र पर्वतानामुशती उपस्थादश्वेइव विषिते हासमाने।
गावेव शुभ्रे मातरा रिहाणे विपाट्छुतुद्री पयसा जवेते॥
जल प्रवाह वती विपाशा और शुतुद्री नाम की दो नदियाँ पर्वत की गोद से सागर सङ्गमा भिलाषिणी होकर घुड़ साल से विमुक्त घोड़ियों के तुल्य स्पर्द्धा करती हुई, दो गायों के तुल्य सुशोभित होकर वत्सलेहाभिलाषिणी हो गायों के तुल्य वेग से समुद्र की ओर जाती है।[ऋग्वेद 3.33.1]
घुड़साल :: अस्तबल, भीड़, गुलमेख, टेक, दुहरा बटन, कफ़-बटन; stud, mews, stable.
जल से परिपूर्ण प्रवाह वाली विपासा और शुतद्री नदियाँ पहले के अंग से निकलकर समुद्र से मिलने की इच्छा वाली होकर, अश्व की शिला से विमुक्त, अश्व के तुल्य स्पर्द्धावान होती हुई, दो गौओं के तुल्य सुशोभित हुई गति से समुद्र की तरफ चलती हैं।
Two rivers named Vipasha and Samudri comes out of the mountains and flow towards the ocean, like the mare released from the stable, decorated like the affectionate cows, moving at high speed.
इन्द्रेषिते प्रसवं भिक्षमाणे अच्छा समुद्रं रथ्येव याथः।
समाराणे ऊर्मिभिः पिन्वमाने अन्या वामन्यामप्येति शुभ्रे॥
नदीद्वय, आपको इन्द्र देव प्रेरित करते हैं। आप उनकी प्रार्थना श्रवण करती है। दो रथियों के तुल्य समुद्र की ओर जाती हैं। आप एक सार प्रवाहित होकर, तरङ्ग द्वारा वर्द्धित होकर, परस्पर आस-पास जाती हुई सुशोभित हो रही हैं।[ऋग्वेद 3.33.2]
हे दोनों नदियों! इन्द्र तुम्हें प्रेरणा प्रदान करते हैं। तुम निरन्तर प्रार्थना सी करती हुई दो रथियों के समान समुद्र को प्राप्त करती हो। प्रवाहमान हुई तरंगों द्वारा बढ़कर निरंतर मिलने का प्रयास करती हुई सी चलती हो और शोभा पाती हो।
Hey river duo, inspired by Indr Dev! You move responding-listening to Indr Dev, towards the ocean, just as the charoites move. Moving with constant speed, you attain glory, moving side by side.
अच्छा सिन्धुं मातृतमामयासं विपाशमुर्वी सुभगामगन्म।
वत्समिव मातरा संरिहाणे समानं योनिमनु संचरन्ती॥
मातृ तुल्य सिन्धु नदी के पास उपस्थित हुआ हूँ, परम सौभाग्यवती विपाशा अर्थात् व्यास के पास उपस्थित हुआ हूँ। ये दोनों बछड़े को चाटने की इच्छा वाली गायों के तुल्य एक स्थान की ओर जाती हैं।[ऋग्वेद 3.33.3]
जननी के समान सिन्धु नदी और उत्तम सौभाग्यशाली विपाशा नदी को ग्रहण होता हूँ। यह दोनों वत्साभिलाषी धेनुओं को समान आश्रय स्थान की ओर जाती हैं।
I am present over the rive Sindhu, highly auspicious Vipasha, which are like mother. They move like the cows who lick their calf towards the ocean-their ultimate resting place to merge with it.
A Hindu respect-pray the rivers like a mother, since the rivers provide water to them for survival, cultivation, irrigation, civilization etc. The rivers are like mother to us.
एना वयं पयसा पिन्वमाना अनु योनिं देवकृतं चरन्तीः।
न वर्तवे प्रसवः सर्गतक्तः किंयुर्विप्रो नद्यो जोहवीति॥
हम दोनों नदियाँ इस जल से धुलकर देवकृत स्थान के सामने जाती हैं। हमारे जाने का उद्योग कार्य बन्द होने वाला नहीं है। किसलिए यह विप्र-ब्राह्मण हम दोनों नदियों को पुकारता है।[ऋग्वेद 3.33.4]
यह नदियाँ जल से पूर्ण हुई प्रदेशों की भूमि सींचती हुई परमात्मा के रचित स्थल पर चलती हैं। इनकी गति कभी रुकती नहीं, हम इन नदियों के अनुकूल होते ही ग्रहण होते हैं।
The rivers move to the places-pilgrim sites, irrigating-fertilizing the land-fields as per directive of Indr Dev. Their flow never stops. The Brahmans worship, pray-call these rivers.
The Brahmans-Priests, Vishwamitr, regularly carry out rituals Arti of the holy rivers.
रमध्वं मे वचसे सोम्याय ऋतावरीरुप मुहूर्तमेवैः।
प्र सिन्धुमच्छा बृहती मनीषावस्युरह्वे कुशिकस्य सूनुः॥
जलवती नदियों, मेरे सोम सम्पादक वचन के लिए एक क्षण के लिए जाने से विरत होवें। मैं कुशिक का पुत्र हूँ; प्रसन्नता के लिए महती प्रार्थना के द्वारा नदियों को अपने उद्देश्य की सिद्धि के लिए बुलाता हूँ।[ऋग्वेद 3.33.5]
हे जल से परिपूर्ण सरिताओं! मेरे सोम संपन्नता के कार्य की बात श्रवण करने के लिए एक क्षण भर के लिए चलते-चलते रुको। मैं कौशिक पुत्र विश्वामित्र बृहती प्रार्थना से प्रसन्नता प्राप्त कर और अपनी अभिष्ट पूर्ति हेतु इन नदियों का आह्वान करता हूँ।
Hey rivers halt for a moment, for me to carry out the task pertaining-related to Som. I Vishwamitr, son of Kaushik requests the rivers to come to help me to accomplish my desires.
इन्द्रो अस्माँ अरदद्वज्रबाहुरपाहन्वृत्रं परिधिं नदीनाम्।
देवोऽनयत्सविता सुपाणिस्तस्य वयं प्रसवे याम उर्वीः॥
वज्रबाहु इन्द्र देव ने नदियों के परिवेष्टक वृत्रासुर का वध करके हम दोनों नदियों को खोदा है। जगत्प्रेरक, सुहस्त और द्युतिमान् इन्द्र देव ने हमें प्रेरित किया है। इन्द्र की आज्ञा से हम प्रभूत होकर जाती हैं।[ऋग्वेद 3.33.6]
नदियों को रोकने वाले वृत्र का पतन कर वज्रधारी इन्द्र देन हम दोनों नदियों का मार्ग खोल दिया। श्रेष्ठ भुजाओं वाले, तेजस्वी तथा संसार को शिक्षा प्रदान की है। हम आदेश के निर्देश से विचरण करती हैं।
Indr Dev killed Vratr, who blocked the flow of the rivers and maintained their flow. Luminous Indr Dev, possessing best arks-hands, inspires the universe & he inspired us too. We flow to carry out the orders of Indr Dev.
प्रवाच्यं शश्वधा वीर्यं १ तदिन्द्रस्य कर्म यदहिं विवृश्चत्।
वि वज्रेण परिषदो जघानायन्नापोऽयनमिच्छमानाः॥
इन्द्र देव ने जिस तरह अहि-वृत्र को विदीर्ण किया, उनके उस वीर कार्य का सदा कीर्तन करना चाहिए। इन्होंने चारों ओर आसीन अवरोधन करने वाले लोगों को वज्र से विनष्ट किया। तब जल प्रवाह समुद्र से मिलने की इच्छा करते हुए प्रवाहित हुआ।[ऋग्वेद 3.33.7]
इन्द्र देव द्वारा वृत्र पतन के वीरता पूर्ण कर्म का हमेशा गान करना चाहिये। इन्द्र देव ने समस्त दिशाओं से बाधा प्रदान करने वालों को खोजकर वज्र से समाप्त कर डाला। तब विचरणशील जल आने लगा।
The manner in which Indr Dev, eliminated Ahi-Vratr, deserve to be always remembered-appreciated. Indr Dev discovered those who were creating obstructions and vanished-killed them leading to the flow of waters in the rivers.
एतद्वचो जरितर्मापि मृष्ठा आ यत्ते घोषानुत्तरा युगानि।
उक्थेषु कारो प्रति नो जुषस्व मा नो नि कः पुरुषत्रा नमस्ते॥
हे स्तोता! आप यह जो वाक्य घोषणा करते हैं। उसे नहीं भूलना। भविष्यत् यज्ञ-दिन में मन्त्र-रचना करके आप हमारी सेवा करें। हम दोनों नदियाँ आपको नमस्कार करती हैं। हमें पुरुष की तरह प्रगल्भ नहीं करना।[ऋग्वेद 3.33.8]
प्रगल्भता :: चतुराई, प्रतिभा; vulnerability, maturity, insolence, impertinence, cheekiness, outspokenness, venturesome ness.
हे वंदना करने वाले तुम अपने प्रण को मत भूलना। आने वाले युंग के दिवसों में स्तोत्र रचकर तुम हमारी अर्चना करना।
Hey worshiper-devotee! Never forget your proclamation and pray to us with the recitation of Mantr. We river duo salute you. Never ditch-forget us.
ओ षु स्वसारः कारवे शृणोत ययौ वो दूरादनसा रथेन।
नि षू नमध्वं भवता सुपारा अधोअक्षाः सिन्धवः स्त्रोत्याभिः॥
हे भगिनीभूत नदीद्वय! मैं विश्वामित्र प्रार्थना करता हूँ; श्रवण करो, मैं दूर देश से रथ और अश्व लेकर आता हूँ। आप निम्नस्थ बनो, ताकि मैं पार हो जाऊँ। हे नदीद्वय! स्रोतवत् जल के साथ रथ चक्र के अधोदेश में गमन करें।[ऋग्वेद 3.33.9]
हे परस्पर बहन रूप दोनों नदियों! मैं कौशिक वंदना करता हूँ। मैं सुदूर से रथ में घोड़ा जोत कर लाया हूँ। तुम नीची हो जाओ जिससे मैं तुम्हें पार कर सकूँ। श्लोक के जल के समान रथ चक्र के आधे भाग तक उच्च रहकर ही प्रवाहित हो।
Hey sister duo rivers! I Vishwamitr pray to you, listen-respond to my prayers. Please lay down a bit so that I can cross you. Move like the flow of a water fall in the lower part-section of the charoite.
आ ते कारो शृणवामा वचांसि ययाथ दूरादनसा रथेन।
नि ते नंसै पीप्यानेव योषा मर्यायेव कन्या शश्वचै ते॥
हे स्तोता! हमने आपकी सारी बातें सुनीं। आप दूर से आए हैं, इसलिए रथ और शकट के साथ गमन करें। जिस प्रकार से पुत्र को स्तनपान कराने के लिए माता और जिस प्रकार से मनुष्य को आलिङ्गन करने के लिए युवती स्त्री अवनत होती हैं, उसी प्रकार हम भी आपके लिए अवनत होती हैं।[ऋग्वेद 3.33.10]
आलिंगन :: प्रेमालिंगन, लिंगन, कोल, अंक, अंकवार, पकड़, बकल, बकसुआ; hug, embrace, clasp, hug.
हे वंदना करने वाले! हम नदियों ने तुम्हारी बात सुन ली है। तुम दूर से पधारे हो। अतः शकट और रथ के साथ जाओ। जिस तरह माता पुत्र को स्तनपान कराने की तथा पत्नी पति से मिलने को झुकती है उसी प्रकार हम भी तुम्हारे लिए झुकती हैं।
Hey worshiper-devotee! We heard-listened to you. Since, you have come from a distant place, hence you move with your charoite and cart. The way mother bend to feed her son and the woman bend to clasp-embrace her husband we too bow before you.
यदङ्ग त्वा भरताः संतरेयुर्गव्यन्ग्राम इषित इन्द्रजूतः।
अर्षादह प्रसवः सर्गतक्त आ वो वृणे सुमतिं यज्ञियानाम्॥
हे नदीद्वय! वास्तविकता तो यह है, भरत कुलोत्पन्न आपको पार करेंगे, चूँकि पार जाने के इच्छुक भरत वंशीय लोग इन्द्र द्वारा प्रेरित और आपके द्वारा अनुज्ञात होकर पार होंगे, चूँकि वे लोग पार होने की चेष्टा करते हैं और आपकी अनुमति पा चुके हैं, इसलिए मैं-विश्वामित्र सभी जगह आपकी प्रार्थना करूँगा। आप यज्ञार्ह हैं।[ऋग्वेद 3.33.11]
दोनों नदियों! भरत वंश वाले, तुम्हें पार करने की कामना वाले भारतीय, इन्द्र द्वारा प्रेरित तुम्हारे द्वारा पार किये जायेंगे। उस पार जाने का प्रयास करने वालों को तुम अनुमति दे चुकी हो। इसलिए मैं, विश्वामित्र तुम्हारी हमेशा प्रशंसा करूँगा। तुम पूजन करने योग्य हो।
Hey river duo! The descendants of Bharat clan will cross you, inspired by Devraj Indr & permitted by you. I will always pray-appreciate you, since you deserve worship.
अतारिषुर्भरता गव्यवः समभक्त विप्रः सुमतिं नदीनाम्।
प्र पिन्वध्वमिषयन्तीः सुराधा आ वक्षणाः पृणध्वं यात शीभम्॥
गोधनाभिलाषी भरतवंशीय लोग पार हो गये, ब्राह्मण लोग नदियों की सुन्दर प्रार्थना करते हैं। आप अन्न कारिणी और धन समन्विता होकर छोटी-छोटी नदियों को तृप्त और परिपूर्ण करते हुए शीघ्र गमन करें।[ऋग्वेद 3.33.12]
गोधन की इच्छा करने वाले भारतीय पार हो गये। विद्वानों ने नदियों का भली-भांति पूजन किया। तुम अन्न की कारण भूत तथा धन से सम्पन्न होकर छोटी नदियों को भी जल से पूर्ण करती हुई द्रुतगति से चलती रहो।
The descendants of Bharat clan crossed the river and the enlightened-Brahmans performed prayers. You are the cause, motive, source of food grains production and support small-inferior rivers filling them with water, while moving at fast speed.
उद्व ऊर्मिः शम्या हन्त्वापो योक्त्राणि मुञ्चत।
मादुष्कृतौ व्येनसाध्यौ शूनमारताम्॥
हे नदीद्वय! आपकी तरह इस प्रकार प्रवाहित हो कि युगकील उसके ऊपर रहे, आप रज्जु अर्थात् रस्सी को नहीं छूना। पाप शून्या, कल्याणकारिणी और अनिन्दनीया विपाशा-व्यास और शुतुद्री-सतलुज नदी इस समय न बढ़ें।[ऋग्वेद 3.33.13]
दोनों नदियों! तुम इस प्रकार से प्रवाहित होओ कि दोनों कीलें ऊपर रहें। तुम रज्जु को छूना नहीं। पाप से रहित कल्याण करने वाली अनिद्य विपाशा और शुतुद्री, तुम्हारी लहर इस समय अधिक ऊँची न उठे।
Hey river duo! Flow in such a manner that the two pointers of time-Yoke (Yug) remain up without touching the cord. The waves of sinless, beneficial Vyas & Satluj rivers, do not rise up at this juncture of time.
These pointers are aligned with Dhruv-a star, the location of which is almost fixed, with respect to Sapt rishi Mandal, aligned with the movements of planets and the Sun.
Hey rive duo! Let your waves flow in such a manner that the pin of the yoke may be above their waters, leave the traces full and may the two streams, exempt from misfortune or defect and uncensored, exhibit no (present) increase.(06.11.2022)
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (34) :: ऋषि :- विश्वामित्र गाथिन, देवता :- इन्द्र, छन्द :- त्रिष्टुप।
इन्द्रः पूर्भिदातिरद्दासमर्कैर्विदद्वसुर्दयमानो वि शत्रून्।
ब्रह्मजूतस्तन्वा वावृधानो भूरिदात्र आपणद्रोदसी उभे॥
पुर भेदी, महिमावाले और धनशाली इन्द्र देव ने शत्रुओं को मारते हुए तेज के द्वारा दासों को जीता। स्तोत्र द्वारा आकृष्ट, वर्द्धित शरीर और बहु अस्त्रधारी इन्द्र देव ने द्यावा-पृथ्वी को परिपूर्ण किया है।[ऋग्वेद 3.34.1]
अस्त्र :: स्वचालित-मन अथवा शब्दों से नियंत्रित युद्ध सामग्री, ब्रह्मास्त्र, नागास्त्र, पशुपात्र आदि; projectiles, missiles.
नगरों को ध्वस्त करने वाले, महिमावान, धनवान इन्द्र देव ने अपने तेज से दस्युओं का पतन कर उन्हें विजय कर लिया। उस मंत्र द्वारा आकृष्ट बनें और वृद्धि को पूर्ण किया।
Destroyer of the enemy forts, glorious, wealthy Indr Dev killed the enemies with his aura-mighty, valour, bravery and won-released the slaves. The Strotr recited by the devotees-worshipers made his body handsome-attractive and enlarged possessing various-several Astr and enriched the sky & earth.
मखस्य ते तविषस्य प्र जूतिमियर्मि वाचममृताय भूषन्।
इन्द्र क्षितीनामसि मानुषीणां विशां दैवीनामुत पूर्वयावा॥
हे इन्द्र देव! आप पूजनीय और बलवान् है। आपको अलंकृत करके, अन्न के लिए, आपकी प्रेरित प्रार्थना का मैं उच्चारण करता हूँ। आप मनुष्यों और देवों के अग्रगामी है।[ऋग्वेद 3.34.2]
हे इन्द्रदेव! तुम पूज्य और बलशाली हो। अन्न के लिए मैं तुमको सजाकर, तुम्हारी शिक्षा से ही श्लोक उच्चारण करता हूँ। तुम देवता और मनुष्य दोनों में अग्रगण्य हो।
Hey Indr Dec! You are revered & mighty. I decorate-worship you and pray to for food grains. You are the forward looking-moving (leader) amongest the humans & the demigods-deities.
इन्द्रो वृत्रमवृणोच्छर्धनीतिः प्र मायिनामभिनाद्वर्पणीतिः।
अहन्व्यंसमुशधग्व नेष्वाविर्धेना अकृणोद्राम्याणाम्॥
हे इन्द्र देव! आपका कर्म प्रसिद्ध है। आपने वृत्र को रोका। शत्रुओं के आक्रमण निवारक आपने मायावियों का विशेष रूप से वध किया। शत्रु वधाभिलाषी इन्द्र देव ने वन में छिपे स्कन्धहीन शत्रुओं का विनाश कर रात्रियों की गायों को आदिष्कृत किया।[ऋग्वेद 3.34.3]
हे इन्द्रदेव! तुम विख्यातकर्मा हो, तुमने वृत्र का निवारण किया था। शत्रुओं के आक्रमण को रोकने वाले इन्द्र ने उन माया करने वालों का विनाश किया। शत्रु को समाप्त करने की इच्छा करने वाले इन्द्र ने वन में छिपे हुए कंधाविहीन शत्रु को मार डाला। उन्होंने रमणीय गाओं को उत्पन्न किया।
Hey Indr dev! You are famous for your fabulous-wonderful deeds. You restrained Vrata Sur. You specially killed the elusive demons, being the obstructer of the attackers. You, desirous of eliminating the enemy, killed the headless beings-Skandh, hidden in the jungles-forests and evolved beautiful cows.
इन्द्रः स्वर्षा जनयन्नहानि जिगायोशिग्भिः पृतना अभिष्टिः।
प्रारोचयन्मनवे केतुमह्नामविन्दज्ज्योतिबृहते रणाय॥
स्वर्गदाता इन्द्र देव ने दिन को उत्पन्न करके युद्धाभिलाषी अङ्गिरा लोगों के सात परकीय सेना का अभिभव करके परास्त किया और मनुष्यों के लिए दिन के पताका स्वरूप सूर्य को प्रदीप्त किया। तब महायुद्ध के लिए ज्योति प्रकट हुई।[ऋग्वेद 3.34.4]
हे इन्द्र देव स्वर्ग ग्रहण करने वाले हैं। उन्होंने दिन को प्रकट कर युद्ध की इच्छा वाले अंगिराओं का साथ देकर उनके विरोधियों की सेना को परास्त किया। जिसके ध्वजरूपी सूर्य को मनुष्यों के लिए प्रकाशमान किया। इस प्रकार भीषण युद्ध के लिए तेज ग्रहण किया।
Heaven awarding Indr Dev helped the Angiras against the seven layered enemy army and evolved the Sun and gained energy, strength, power to fight a furious great war.
इन्द्रस्तुजो बर्हणा आ विवेश नृवद्दधानो नर्या पुरूणि।
अचेतयद्धिय इमा जरित्रे प्रेमं वर्णमतिरच्छुक्रमासाम्॥
बहुत धन का ग्रहण करके बाधा दात्री और वर्द्धमान शत्रु सेना के बीच इन्द्र देव बैठे। स्तोता के लिए, उन्होंने उषा को चैतन्यता प्रदान की और उनके शुक्र वर्ण तेज को वर्द्धित किया।[ऋग्वेद 3.34.5]
विघ्न पैदा करने वालों तथा पराक्रम में बढ़ी हुई शत्रु सेना के बीच धन को स्वीकार कर इन्द्र गए। प्रार्थना करने वालों के लिए उन्होंने उषा को चैतन्य कर श्वेत वर्ण को बढ़ाया।
Having accumulated a lot of wealth, Indr Dev seated himself in the mighty obstructing enemy army. He made Usha conscious and enhanced-increased the white colour for the sake of the devotees.
महो महानि पनयन्त्यस्येन्द्रस्य कर्म सुकृता पुरूणि।
वृजनेन वृजिनान्त्सं पिपेष मायाभिर्दस्यूँरभिभूत्योजाः॥
इन्द्र महान् है। उपासक लोग उनके प्रभूत सत्कर्मों की प्रशंसा करते हैं। बल द्वारा वे बलवानों को चूर-चूर करते हैं। पराभव-कर्ता ज्या सम्पन्न इन्द्र देव ने माया द्वारा दस्युओं को मार डाला।[ऋग्वेद 3.34.6]
उन श्रेष्ठ इन्द्र देव द्वारा किये गये श्रेष्ठ कर्मों का तपस्वी गण कीर्तन करते हैं। वे इन्द्र देव अपनी शक्ति से बड़े-बड़े शक्तिशालियों को कुचल डालते हैं उन विजेता इन्द्रदेव ने दस्युओं को अपनी अन्तर-नीति द्वारा कुचल डाला।
Indr Dev is great. The worshipers appreciate his auspicious, virtuous, righteous deeds. He destroy the enemy, the traitors-dacoits with diplomacy, might & elusive powers.
युधेन्द्रो मह्ना वरिवश्चकार देवेभ्यः सत्पतिश्चर्षणिप्राः।
विवस्वतः सदने अस्य तानि विप्रा उक्थेभिः कवयो गृणन्ति॥
देवताओं के स्वामी और मानवों के वर प्रदाता इन्द्र देव ने महायुद्ध में धन प्राप्त करके स्तोताओं को दान दिया। मेधावी स्तोता लोग याजकगण के घर में मन्त्र द्वारा इनकी कीर्ति की प्रशंसा करते है।[ऋग्वेद 3.34.7]
देवों के स्वामी और व्यक्तियों को शक्ति देने वाले इन्द्रदेव ने बृहद युद्ध में धन ग्रहण करने वंदना करने वालों को प्रदान किया। विद्वान स्तुतिकर्त्ता जब यजमान के भवन में मंत्रों द्वारा इन्द्र का ऐश्वर्य कीर्तन करते हैं।
The king of demigods-deities and the boons accomplishing of humans-devotees, Indr Dev collected lots of wealth and donated it to the devotees. The intelligent Ritviz, Strota praise this act of Indr Dev with the help of sacred hymns.
सत्रासाहं वरेण्यं सहोदां ससवांसं स्वरपश्च देवीः।
ससान यः पृथिवीं द्यामुतेमामिन्द्रं मदन्त्यनु धीरणासः॥
स्तोता लोग सभी के जेता, वरणीय, जल प्रद, स्वर्ग और स्वर्गीय जल के स्वामी इन्द्र देव के आनन्द में आनन्दित होते हैं। इन्द्र ने पृथ्वी, आकाश और स्वर्ग को दान कर दिया है।[ऋग्वेद 3.34.8]
सर्व विजयी, वरण करने योग्य, स्वर्ग के दाता, अलौकिक जलों के प्रतिनिधि इन्द्र के हर्षोल्लास होने पर स्तोतागण हर्ष प्राप्त करते हैं। वह इन्द्रदेव धरती आकाश और अंतरिक्ष को धारण करने वाले हैं।
The Strota-devotees feel pleasure when Indr Dev the conquer of all, acceptable-possessor water is amused. Indr Dev donated to earth, space & the heaven, supporting them.
ससानात्याँ उत सूर्य ससानेन्द्रः ससान पुरुभोजसं गाम्।
हिरण्ययमुत भोगं ससान हत्वी दस्यून्प्रार्थं वर्णमावत्॥
इन्द्र देव ने अश्व का दान किया, सूर्य का दान किया, अनेक लोगों के उपभोग के योग्य गोधन का दान किया, सुवर्णमय धन का दान किया तथा दस्युओं का वध करके आर्य वर्ण अर्थात् ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य जातियों की रक्षा की।[ऋग्वेद 3.34.9]
घोड़े, सूर्य, गोधन, रत्न और स्वर्ण आदि यह सभी इन्द्रदेव के दान रूप हैं। इन्होंने पापियों का पतन कर आर्यों की सदैव सुरक्षा की है। इन्द्र देव ने ही दान रूप दिन बनाया।
Indr Dev donated horses, Sun, cows, gold, jewels. He killed the demons and protected the Aryans-Brahmans, Kshatriy and the Vaeshy.
इन्द्र ओषधीरसनोदहानि वनस्पतीरँसनोदन्तरिक्षम्।
बिभेद बलं नुनुदे विवाचोऽथाभवद्दमिताभिक्रतूनाम्॥
इन्द्र देव ने प्राणियों के कल्याण के लिए औषधियों प्रदत्त की। दिन का अनुदान दिया, वनस्पतियों और अन्तरिक्षों को प्रदान किया। उन्होंने बलासुर का विभेदन किया, विरोधियों को दूर किया और युद्ध के आए हुए शत्रुओं का दमन किया।[ऋग्वेद 3.34.10]
दमन :: रोक, निरोध, नियंत्रण, पराजय, आधिपत्य, वशीकरण, शमन, दबाव, अवरोध, छिपाव, स्तंभन; suppression, repression, subjugation.
इन्होंने ही औषधियाँ प्रदान कीं तथा अंतरिक्ष और वनस्पतियाँ प्रदान कीं। उन्होंने बादल को विदीर्ण कर शत्रुओं को समाप्त किया। इन्द्र देव के सम्मुख जो भी विरोधी उपस्थित हुआ, उसी को उन्होंने समाप्त कर डाला।
Indr Dev provided medicines for the benefit of living beings. He made provision for the day in addition to vegetation and the space. He destroyed Bala Sur and repelled the opponents and subjugated them.
शुनं हुवेम मघवानमिन्द्रमस्मिन्भरे नृतमं वाजसातौ।
शृण्वन्तमुग्रमूतये समत्सु घ्नन्तं वृत्राणि संजितं धनानाम्॥
हे इन्द्र देव! आप अन्न प्राप्त कर्ता हैं। आप युद्ध में उत्साह द्वारा प्रवृद्ध होवें। आप धनवान् होवे, प्रभूत, वैभव, सम्पन्न होवें, नेतृ श्रेष्ठ होवें, स्तुति-श्रोता होवें, उम्र होवे, संग्राम में अरि-मर्दन और धन-विजेता होयें। आश्रयप्राप्ति के लिए हम आपका आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 3.34.11]
हे इन्द्रदेव! तुम अन्न प्राप्त करने में सक्षम हो। युद्ध में उल्लास द्वारा बढ़ाते हो। तुम धन से उत्पन्न हुए अपने वैभव से ही ऐश्वर्यवान हो। तुम नायकों में उत्तम तथा स्तुति को श्रवण करने वाले हो। तुम अपने उग्र कर्मों द्वारा युद्ध में शत्रु का नाश करते हुए धन जोतते हैं। हम आश्रम-धनों के लिए तुम्हारा आह्वान करते हैं।
Hey Indr Dev! You are capable of receiving food grains. Involve in the war with enhance morale. You should be wealthy, winner of wealth-riches, possess grandeur, provide excellent leadership, become a listen of prayers, destroy the enemy. We invoke you for having asylum, protection, shelter under you.(09.11.2022)
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (35) :: ऋषि :- विश्वामित्र गाथिन, देवता :- इन्द्र, छन्द :- त्रिष्टुप।
तिष्ठा हरी रथ आ युज्यमाना याहि वायुर्न नियुतो नो अच्छ।
पिबास्यन्धो अभिसृष्टो अस्मे इन्द्र स्वाहा ररिमा ते मदाय॥
हे इन्द्र देव ! हरि नाम के दोनों अश्व रथ में नियोजित किए जाते हैं। जिस प्रकार से वायु देव अपने नियुत नामक अश्वों की प्रतीक्षा करते हैं, उसी प्रकार आप भी इन दोनों की कुछ क्षण प्रतीक्षा करके हमारे सामने आवें और हमारा दिया हुआ सोमरस पिएँ। हम 'स्वाहा' शब्द का उच्चारण करके आपके आनन्द के लिए सोमरस प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 3.35.1]
हे इन्द्र! तुम्हारे हरे घोड़े रथ में जोड़े जाते हैं। जैसे पवन अपने अश्वों की प्रतीक्षा करते हैं वैसे ही तुम भी कुछ पल अपने अश्वों की प्रतीक्षा करके उनके साथ यहाँ पधारो। हम सोम को अर्पण करते हैं।
Hey Indr Dev! Your horses named Hari have been deployed in the charoite. The way Vayu Dev wait for his horses named Niyut, you too wait for a while and come to sip-enjoy Somras. We enchant Swaha and offer Somras for your pleasure.
उपाजिरा पुरुहूताय सप्ती हरी रथस्य धूर्ष्वा युनज्मि।
द्रवद्यथा संभृतं विश्वतश्चिदुपेमं यज्ञमा वहात इन्द्रम्॥
अनेक लोकों में आहूत इन्द्र देव के शीघ्र गमन के लिए रथ के अग्र भाग में द्रुतगामी अश्व द्वय को हम संयोजित करते हैं। विधिवत् अनुष्ठित इस यज्ञ में अश्व द्वय इन्द्र देव को ले आवें।[ऋग्वेद 3.35.2]
संयोजित :: संबद्ध, जोड़ा हुआ, बद्ध, मिला हुआ, युक्त, संगठित, संघटित; coordinated, connected, organized.
अनेकों द्वारा बुलाये गये इन्द्र के शीघ्र आने के लिए रथ के आगे दोनों घोड़ों को हम जोड़ते हैं। विधि पूर्वक किये जाते इस यज्ञ के अनुष्ठान में इन्द्र के दोनों घोड़े उन्हें यहाँ ले आयें।
We connect-deploy the high speed, fast moving horses in the front segment of the charoite for Indr Dev, who is revered in several abodes. The horse duo should bring Devraj Indr to this Yagy, initiated methodically-following all procedures.
उपो नयस्व वृषणा तपुष्पोतेमव त्वं वृषभ स्वधावः।
ग्रसेतामश्वा वि मुचेह शोणा दिवेदिवे सदृशीरद्धि धानाः॥
हे अभीष्टवर्षक और अन्नवान् इन्द्र देव! अपने वीर्यवान् और शत्रुभयत्राता अश्व द्वय को हमारे निकट ले आवें। आप इन याजक गण की रक्षा करें। रक्त वर्ण हरि नाम के अश्व द्वय को इस देव यजन स्थान में छोड़ दें। वे खावें। आप समान रूप वाले उपयुक्त धान्य अथवा भूँजे हुए जौ का भक्षण करें।[ऋग्वेद 3.35.3]
हे इन्द्रदेव! तुम इच्छाओं की वृष्टि करने वाले तथा अन्नों के स्वामी हो। शत्रु के भय से स्वतंत्र करने वाले अपने दोनों वीर अश्वों को यहां ले आओ और इस यजमान के रक्षक बनो। तुम दोनों अश्वों को खोलो। वे यहाँ भक्षण करें, तुम भी समान रूप वाले उपभोग्य धान्य का भक्षण करते हो।
Hey accomplish fulfilling, desires granting Indr Dev, having food grains! Bring your two powerful red coloured horses, which cause fear in the enemy, release them here to eat food in the sites close to the Yagy site, close to us. You should also take roasted food grains or barley.
ब्रह्मणाते ब्रह्मयुजा युनज्मि हरी सखाया सधमाद आशू।
स्थिरं रथं सुखमिन्द्रा धितिष्ठन्प्रजानन्विद्वाँ उप याहि सोमम्॥
हे इन्द्र देव! मन्त्र-द्वारा आपके अश्व द्वय नियोजित होते हैं तथा युद्ध में जिनकी समान प्रसिद्धि है, उन्हीं दोनों अश्वों को मन्त्र द्वारा हम नियोजित करते है। हे इन्द्र देव! आप विद्वान् हैं। आप समझकर सुदृढ़ और सुखकर रथ पर आरोहण कर सोमरस के पास आवें।[ऋग्वेद 3.35.4]
हे इन्द्र देव! तुम्हारे अश्व मंत्रों के द्वारा जुड़ते हैं। तुम्हारे युद्ध में सौ घोड़े प्रसिद्धि प्राप्त कर चुके हैं। उन्हीं को हम मंत्रों द्वारा जोड़ते हैं। हे इन्द्र देव! तुम बुद्धिमान हो। अपनी बुद्धि से सुखदायक रथ पर बैठकर सोम के समीप विराजो।
Hey Indr Dev! You connect your red horses, which are famous for participating in hundred wars, in the charoite by reciting Mantr. We too deploy them-control them with the help of the Mantr. Hey Indr Dev! You are enlightened. Be seated in the comfortable strong charoite and come to accept Somras.
मा ते हरी वृषणा वीतपृष्ठा नि रीरमन्याजकगणासो अन्ये।
अत्यायाहि शश्वतो वयं तेऽरं सुतेभिः कृणवाम सोमैः॥
हे इन्द्र देव! दूसरे याजक गण आपके वीर्यवान् और कमनीय पृष्ठों वाले हरिद्वय को आनन्दित करें, हम अभिषुत सोमरस के द्वारा यथेष्ट रीति से आपकी तृप्ति करेंगे। आप अनेक यजमानों का अतिक्रम करके शीघ्र आवें।[ऋग्वेद 3.35.5]
हे इन्द्र देव! यजमान तुम्हारे वीर, सुन्दर पीठ वाले दोनों अश्वों को आनन्द प्रदान करें। हम तुम्हें श्रेष्ठ प्रकार से सिद्ध किये गये सोम के द्वारा तृप्त करेंगे। तुम अनेक से यजमानों को पारकर शीघ्र यहाँ पधारो।
Hey Indr Dev! Let the Yajak (People performing Yagy)-Ritviz make your horse duo happy. We will serve you Somras and satisfy you. You should come to us, skipping many Yajak-Ritviz.
तवायं सोमस्त्वमेह्यर्वाङ् शश्वत्तमं सुमना अस्य पाहि।
अस्मिन्यज्ञे बर्हिष्या निषद्या दधिष्वेमं जठर इन्दुमिन्द्र॥
यह सोमरस आपका है। इसके सामने आवें और प्रसन्न चित्त होकर इस प्रभूत सोमरस का पान करें। हे इन्द्र देव! इस यज्ञ में कुश के ऊपर बैठकर इस सोम को जठर में रखें।[ऋग्वेद 3.35.6]
हे इन्द्र देव! यह सोम तुम्हारे लिए है, इसके समक्ष पधारो प्रसन्न मुख द्वारा इस सिद्ध सोम को ग्रहण करो। इस यज्ञ में कुश पर विराजमान होकर इस सोम को ग्रहण करो।
This Somras is for you. Come and accept it happily. Hey Indr Dev! Sit over the Kush cushion-mate, in this Yagy and sip Somras.
स्तीर्ण ते बर्हिः सुत इन्द्र सोमः कृता धाना अत्तवे ते हरिभ्याम्।
तदोकसे पुरुशाकाय वृष्णे मरुत्वते तुभ्यं राता हवींषि॥
हे इन्द्र देव! आपके लिए कुश फैलाए गए हैं। सोम अभिषुत हुआ है। आपके अश्व द्वय के भोजन के लिए धान्य तैयार है। आपका आसन कुश है, अनेक लोग आपकी प्रार्थना करते हैं। आप अभीष्ट वर्षी है। आपके पास मरुत्सेना है। आपके लिए हव्य विस्तृत है।[ऋग्वेद 3.35.7]
हे इन्द्र देव! यह कुश तुम्हारे लिए बिछाये गये हैं और सोम का संस्कार किया गया है। तुम्हारे दोनों अश्वों के लिए धान्य प्रस्तुत है। कुश तुम्हारा आसन है। अनेक विद्वान तुम्हारा पूजन करते हैं। तुम इच्छाओं की वर्षा करने वाले हो, तुम्हारे निकट मरुद्गण रूप सेना है तुम्हारे लिए विशाल हवियाँ प्रस्तुत हैं।
Hey Indr Dev! This Kush has been spread for you. Som has been extracted. Food grains are ready for your horses. Several people are worshiping-praying you. You accomplish desires. You have the army of Marud Gan. Offerings are ready for you.
इमं नरः पर्वतास्तुभ्यमापः समिन्द्र गोभिर्मधुमन्तमक्रन्।
तस्यागत्या सुमना ऋष्व पाहि प्रजानन्विद्वान्पथ्या ३ अनु स्वाः॥
हे इन्द्र देव! आपके लिए अध्वर्युगण, प्रस्तर और जल ने इस सोम दुग्ध को मधुर रस विशिष्ट किया है। दर्शनीय और विद्वान इन्द्र देव प्रसन्नचित्त होकर अपनी हितकर प्रार्थना को जान करके सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 3.35.8]
हे इन्द्र देव! अध्वर्यु, पाषाण और जल ने इस दूध से मिले हुए सोम को तुम्हारे लिए मधुरता से पूर्ण किया है। तुम मेधावी एवं दर्शनीय हो। हमारी इन प्रार्थनाओं को अपने हित में जानते हुए प्रसन्न मुख से सोम ग्रहण करो।
Hey Indr Dev! The priests have extracted Som, crushing it with stone, mixing milk & water in it happily. You are intelligent and beautiful. Accept our prayers and drink Somras.
याँ आभजो मरुत इन्द्र सोमे ये त्वामवर्धन्नभवन्गणस्ते।
तेभिरेतं सजोषा वावशानो ३ग्नेः पिब जिह्वया सोममिन्द्र॥
हे इन्द्र देव! सोम पान के समय में जिन मरुतों को आप सम्मानान्वित करते हैं, युद्ध में जो आपको वर्द्धित करते और आपके सहायक होते हैं, उन्हीं सभी मरुतों के साथ सोमपानाभिलाषी होकर अग्नि की जिह्वा (जीभ) द्वारा सोमपान करें।[ऋग्वेद 3.35.9]
हे इन्द्र देव! जिन मरुद्गण को सोमपान करते समय सम्मान परिपूर्ण करते हो उन मरुद्गण के संग सोम पीने की कामना करते हुए, अग्नि रूप जिह्वा द्वारा सोम रस पान करो।
Hey Indr Dev! Offer Somras to Marud Gan whom you honour and who assist you in the war. Enjoy Somras with them with the tongue in the form of fire-Agni.
इन्द्र पिब स्वधया चित्सुतस्याग्नेर्वा पाहि जिह्वया यजत्र।
अध्वर्योर्वा प्रयतं शक्र हस्ताद्धोतुर्वा यज्ञं हविषो जुषस्व॥
हे यजनीय इन्द्र देव! स्वधा अथवा अग्नि की जिव्हा द्वारा अभिषुत सोमरस का पान करें। शक्र, अध्वर्यु के हाथ से प्रदत्त सोम अथवा होता के भजनीय हव्य का भी सेवन करें।[ऋग्वेद 3.35.10]
शक्र :: ब्रह्माण्ड शास्त्र के अनुसार तैंतीसवें स्वर्ग (त्रयत्रिंश स्वर्ग) के राजा है। उन्हें "शक्रो देवानां इन्द्रः" (शक्र, देवताओं का राजा) भी कहा जाता है, शक्तिशाली; king of heaven, mighty.
दैत्यों का नाश करने वाले इंद्र, कुटज वृक्ष, कोरैया, अर्जुन वृक्ष, इंद्रजौ-कुटज बीज,
ज्येष्ठा नक्षत्र, जिसके अधिष्ठता देवता इंद्र हैं, उलुक पक्षी, चौदह की संख्या, भगवान् शिव का एक नाम, स्वामी-राजा, समर्थ-योग्य।
हे इन्द्र देव! तुम यजन के योग्य हो, अग्नि रूप जिह्वा द्वारा इस संस्कारित सोम का पान करो। अध्वर्युं द्वारा अर्पण किया सोम और होता द्वारा आहुति योग्य हवि को प्राप्त करो।
Hey revered-honoured Indr Dev! Drink-enjoy Somras with help of wood or the tongue as fire. Hey Shakr! Eat the offerings by the priests-devotees.
शुनं हुवेम मघवानमिन्द्रमस्मिन्भरे नृतमं वाजसातौ।
शृण्वन्तमुग्रमूतये समत्सु घ्नन्तं वृत्राणि संजितं धनानाम्॥
हे इन्द्र देव! आप अन्न प्रापक युद्ध में उत्साह द्वारा प्रवृद्ध हैं। आप धनवान्, प्रभूत ऐश्वर्य वाले, नेतृ श्रेष्ठ, स्तुति श्रोता, उग्र, संग्राम में शत्रुओं को मारने वाले और धन-विजेता हैं। आश्रय-प्राप्ति के लिए हम आपका आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 3.35.11]
हे इन्द्र देव! तुम अन्न लाभ वाले युद्ध में उल्लास से बढ़ते हो। तुम धन और ऐश्वर्य से युक्त नायकों की उत्तम स्तुति को श्रवण करने वाले, भयंकर युद्ध में शत्रु को मारने वाले और धन जीतने वाले हो। हम शरण प्राप्त करने हेतु तुम्हारा आह्वान करते हैं।
Hey Indr Dev! You grant-provide food grains, boosts moral in the war-battle. You are wealthy-rich, excellent leader, speaker and listener as well, slayer of the enemy in the war field, winner of wealth possessing grandeur.(11.11.2022)
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (36) :: ऋषि :- विश्वामित्र गाथिन, घोर आंगिरस, देवता :- इन्द्र, छन्द :- त्रिष्टुप।
इमामू षु प्रभृतिं सातये धाः शश्वच्छश्वदूतिभिर्यादमानः।
सुतेसुते वावृधे वर्धनेभिर्यः कर्मभिर्महद्भिः सुश्रुतो भूत्॥
हे इन्द्र देव! धन दान के लिए मरुतों के साथ सदा आकर विशेष रूप को धारित करें। जो इन्द्र विशाल कर्म के कारण प्रसिद्ध हैं, वे प्रत्येक सोमाभिषव में पुष्टिकर हव्य द्वारा वर्द्धित हुए हैं।[ऋग्वेद 3.36.1]
हे इन्द्र देव! धन प्रदान करने हेतु मरुद्गण के युक्त यहाँ पधारकर, विशेष तरह से सिद्ध किये गये इस सोम को प्राप्त करो। इन्द्र देव अपने श्रेष्ठ कार्यों के द्वारा प्रसिद्ध हैं तथा सोम सिद्ध किये जाने वाले कार्य में प्रत्येक बार पुष्टिदायक हवियों के द्वारा वृद्धि करते हैं।
Hey Indr Dev! Come here for donating money along with Marud Gan and drink Somras. Indr Dev who is famous for his gigantic tasks, has flourished-grown due to the nourishing offerings and Somras.
FLOURISH :: निखरा, विकास पाना, सफल होना, महत्त्व दिखलाना; be a success, succeed, be lucky to, be lucky enough to, prosper.
The offerings in the Hawan, Agni Hotr & Yagy made to the deities-demigods gives them strength, power & might and they in turn help the devotees and protect them. Its a two way process, give & take.
इन्द्राय सोमाः प्रदिवो विदाना ऋभुर्येभिर्वृषपर्वा विहायाः।
प्रयम्यमानान्प्रति षू गृभायेन्द्र पिब वृषधूतस्य वृष्णः॥
पूर्व समय में इन्द्र को लक्ष्य करके सोम दिया गया, जिससे इन्द्र देव कालात्मक, दीप्त और महान् हुए। हे इन्द्र देव! आप इस प्रदत्त सोम को ग्रहण करें। स्वर्गादि फल देनेवाले और प्रस्तर द्वारा अभिषुत सोमरस का पान करो।[ऋग्वेद 3.36.2]
पुरातन काल में इन्द्र के लिए सोम अर्पित किया गया था, जिससे वे नियम पालक, प्रकाशवान और श्रेष्ठ बने। हे इन्द्र! इस अर्पित सोम को ग्रहण करो। यह पत्थर द्वारा कूटा हुआ सोम अलौकिक फल देने वाला है। इसका तुम पालन करो।
In ancient times, Indr Dev was served Somras which made him aurous and great. Hey Indr Dev! You accept this Somras. This Somras extracted by crushing with stones grants-rejuvenate and awards the pleasures of the heavens.
Though elixir-nectar grants longevity-immortality to the demigods-deities yet regular dose Somras is essential for them; since it gives them good health, vigour and vitality.
पिबा वर्धस्व तव घा सुतास इन्द्र सोमासः प्रथमा उतेमे।
यथापिवः पूर्व्यां इन्द्र सोमाँ एवा पाहि पन्यो अद्या नवीयान्॥
इन्द्र देव सोमरस पान करें और परिपुष्ट बने। आपके लिए प्राचीन और नवीन सोम अभिषुत हुआ है। हे इन्द्र देव! आप स्तुति योग्य है। जिस प्रकार से आपने प्राचीन सोमरस का पान किया था, उसी प्रकार इस क्षण में नूतन सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 3.36.3]
हे इन्द्र देव! तुम्हारे लिए प्राचीन काल से विख्यात सोम अभिनव रूप में संस्कारित किया गया है, इसे पान करके पुष्ट होओ। तुम वंदना के योग्य हो। जैसे तुमने पुराने समय में सोम पिया था, वैसे ही इस समय सोम को पियो।
पुष्ट :: बलवान, तगड़ा, हट्टा-कट्टा, मज़बूत अंगवाला, प्रबल, मज़बूत, दबंग; strong, athletic, robust, sturdy.
Hey Indr Dev! Drink this Somras and become sturdy, strong & robust. This Somras has ben extracted for you with old and new techniques. Hey Indr Dev! You deserve worship. They way you drank Somras in ancient time, do it at present as well.
महाँ अमत्रो वृजने विरप्श्यु १ ग्रं शवः पत्यते घृष्णवोजः।
नाह विव्याच पृथिवी चनैनं यत्सोमासो हर्यश्वममन्दन्॥
जो इन्द्र देव अतीव शक्तिशाली हैं, जो युद्ध भूमि में शत्रुओं के विजेता हैं, जो शत्रुओं के आह्वान कर्ता हैं, उन्हीं इन्द्र का उम्र बल और दुर्धर्ष तेज सभी जगह विस्तृत हो रहा है। जिस समय हर्यश्च इन्द्र देव को सोमरस हर्षित करता है, इस समय पृथ्वी और स्वर्ग भी इन्द्र देव को संभालने में समर्थ नहीं हो सकते।[ऋग्वेद 3.36.4]
जो इन्द्र देव महाबली तथा शत्रुओं को जीतने वाले हैं, जो इन्द्र देव शत्रुओं को युद्ध में ललकारते हैं, उन इन्द्र का पराक्रम जीतने योग्य हो। उनका तेज सब जगह फैला है। जब अश्व युक्त इन्द्र को सोम पुष्ट करता है तब पृथ्वी और स्वर्ग भी इनको धारण करने की सामर्थ्य नहीं रखते।
The aura-brilliance of Indr Dev, who is potentially mighty, winner of the enemy in war, challenge the enemy; is spreading all around. When Indr Dev consume Somras, his powers-potentials boosts to such a high level that it become difficult for both the earth and the heaven to shield, control-check him.
महाँ उग्रो वावृधे वीर्याय समाचक्रे वृषभः काव्येन।
इन्द्रो भगो वाजदा अस्य गावः प्रजायन्ते दक्षिणा अस्य पूर्वीः॥
हे बली, उम्र, अभीष्ट वर्षक और दाता इन्द्र देव! वीर कीर्ति के लिए आप प्रवृद्ध हुए हैं, स्तोत्र के साथ मिल गए हैं। आपकी सब गायों ने दुग्धदायी होकर जन्म लिया है। आपका दान कर्म बहुत प्रसिद्ध है।[ऋग्वेद 3.36.5]
प्रवृद्ध :: अतिशय वृद्धि को प्राप्त, प्रौढ़; aged.
शक्तिशाली, वीर, इच्छाओं की वर्षा करने वाले, दानशील, इन्द्रदेव पराक्रम पूर्वक अनुष्ठान के लिए वृद्धि को ग्रहण हुए श्लोक में संगति करते हैं। इन्द्र की समस्त धेनु दुग्ध प्रदान करने वाली होकर प्रकट हुई हैं। इन्द्र देव के अत्यन्त दान करने वाले हैं।
Hey mighty, longevity & accomplishment granting, donor Indr Dev! Associated with the Strotr, you have grown tremendously. Your cows have returned on being milch-milking. Your charity is famous.
प्र यत्सिन्धवः प्रसवं यथायन्नापः समुद्रं रथ्येव जग्मुः।
अतश्चिदिन्द्रः सदसो वरीयान्यदीं सोमः पृणति दुग्धो अंशुः॥
जिस समय नदियाँ स्रोत का अनुकरण करके दूरस्थ समुद्र की ओर जाती हैं, उस समय रथों की भाँति जल भागता है। ठीक उसी प्रकार वरणीय इन्द्र देव इस अन्तरिक्ष से अभिषुत लता खण्ड-रूप अल्प सोमरस की ओर दौड़ते हैं।[ऋग्वेद 3.36.6]
सरिताएँ जब स्रोत के समान दूरस्थ समुद्र की ओर बहती हैं, तब रथ के समान जल दौड़ता है। उसी प्रकार धारण करने योग्य इन्द्र अंतरिक्ष में लता रूप प्रसिद्ध सोम की ओर जाते हैं।
When the rivers flow towards the ocean the water run fast like the charoite. In the same manner Indr Dev run towards Somras from the space-heaven.
समुद्रेण सिन्धवो यादमाना इन्द्राय सोमं सुषुतं भरन्तः।
अंशुं दुहन्ति हस्तिनो भरित्रैर्मध्वः पुनन्ति धारया पवित्रैः॥
समुद्र सङ्गमाभिलाषिणी नदियाँ जिस प्रकार से समुद्र को पूर्ण करती हैं, उसी प्रकार अध्वर्यु लोग इन्द्र देव के लिए अभिषुत सोमरस का सम्पादन करते हुए हाथों द्वारा लता का दोहन करते और प्रस्तर द्वारा धारारूप मधुर सोमरस का शोधन करते हैं।[ऋग्वेद 3.36.7]
समुद्र में मिलने की कामना करने वाली नदियाँ जैसे समुद्र को भरती हैं, वैसे ही इन्द्र देव के लिए अध्वर्युगण छाने गये सोम को संस्कारित करते हुए हाथों से सोमलता को दहते हैं और पाषाण द्वारा सोमरस को पवित्र करते हुए मधुरता परिपूर्ण बनाते हैं।
The way the river desire to assimilate in the ocean to fill it, the devotees-priests extract Somras with their own hands by crushing the Som Valli-Lata, with stone, to offer it to Indr Dev.
ह्रदाइव कुक्षयः सोमधानाः सभी विव्याच सवना पुरूणि।
अन्ना यदिन्द्रः प्रथमा व्याश वृत्रं जघन्वाँ अवृणीत सोमम्॥
इन्द्र का उदर तालाब के तुल्य सोम का आधार है। वह अकेले ही सात यज्ञों को व्याप्त करते हैं। इन्द्र ने प्रथम भक्षणीय सोम आदि का भक्षण किया, अनन्तर वृत्रासुर का वध करके देवों को उनका भाग प्रदान किया।[ऋग्वेद 3.36.8]
तालाब के समान इन्द्र का उदर सोम का आश्रय स्थान है, वे एक साथ ही बहुत यज्ञों को पूर्ण करते हैं। इन्द्र ने भक्षण योग्य सोम का सेवन किया है। फिर वृत्र को मारकर दानवों को भगा दिया।
The stomach of Indr Dev is the pond containing Somras. He alone pervade seven Yagy. Indr Dev initially ate Som etc. and then struck Vratr and run away the demons.
आ तू भर माकिरेतत्परि ष्ठाद्विद्मा हि त्वा वसुपतिं वसूनाम्।
इन्द्र यत्ते माहिनं दत्रमस्त्यस्मभ्यं तद्धर्यश्व प्र यन्धि॥
हे इन्द्र देव! शीघ्र धन दो। आपके इस धन को कौन रोक सकता है। हम आपको धनाधिपति जानते है। आपके पास जो पूजनीय धन है, उसे हमें प्रदान करें।[ऋग्वेद 3.36.9]
हे इन्द्र देव! शीघ्र ही धन को प्रदान करो। तुम्हारे दान को रोकने में कोई भी समर्थवान नहीं है। तुम धन के स्वामी हो, यह हम जानते हैं। तुम्हारा धन महान और अर्चना योग्य है, उसे हमें प्रदान करो।
Hey Indr Dev! Grant-give money quickly. None can stop-obstruct you from granting money. You are wealthy. You have the pure-pious wealth which deserve worship. Grant us that money.
अस्मे प्र यन्धि मघवन्नृजीषिन्निन्द्र रायो विश्ववारस्य भूरेः।
अस्मे शतं शरदो जीवसे धा अस्मे वीराञ्छश्वत इन्द्र शिप्रिन्॥
हे ऐश्वर्यवान् इन्द्र देव! आप उदार हृदय के हैं। आप सबके द्वारा वरणीय प्रभूत धन ऐश्वर्य हमें प्रदत्त करें। हे उत्तम शिरस्त्राण वाले इन्द्र देव! हमें जीवित रहने के लिए सौ वर्ष की आयु प्रदत्त करें और बहुत से वीर पुत्र भी प्रदान करें।[ऋग्वेद 3.36.10]
हे सरल प्रवृत्ति वाले मघवन! तुम सबके वरण करने योग्य हो। तुम हमें उत्तम प्रकार का धन दो। हमको सौ वर्ष की आयु तक जीवित रहने की सामर्थ्य प्रदान करो हमको चिरायुष्व और वीर पुत्र प्रदान करो।
Hey grandeur possessing Maghvan-Indr Dev! You are generous. Grant us the best wealth. Hey excellent head gear wearing Indr Dev! Grant us a life span of hundred years and brave sons.
शुनं हुवेम मघवानमिन्द्रमस्मिन्भरे नृतमं वाजसातौ।
शृण्वन्तमुग्रमूतये समत्सु घ्नन्तं वृत्राणि संजितं धनानाम्॥
हे इन्द्र देव! आप अन्न प्रापक यज्ञ में उत्साह द्वारा प्रवृद्ध हैं। आप धनवान्, प्रभूत वैभव वाले, नेतृवर, स्तुति-श्रवणकर्ता, प्रचण्ड, युद्ध में शत्रु नाशक और धन-विजेता हैं। आश्रय पाने के लिए हम आपको ही बुलाते हैं।[ऋग्वेद 3.36.11]
हे इन्द्र देव! तुम अन्न लाभ वाले संग्राम में उत्साह के साथ वृद्धि को ग्रहण होम हो। तुम धन और समृद्धि से परिपूर्ण, नायकों में उत्तम, वंदना के श्रवण करने वाले, विकराल युद्ध क्षेत्र में शत्रु का पतन करने वाले और धन को जीतने में समर्थ हो। शरण ग्रहण करने के लिए हम तुम्हारा आह्वान करते हैं।
Hey Indr Dev! You are intensively-actively involved in the Yagy to make available food grains. You possess wealth and grandeur. You are a leader, listener and narrator, slayer of the enemy in the war, winner of wealth. We call you for protection-asylum under you.(12.11.2022)
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (37) :: ऋषि :- विश्वामित्र, देवता :- इन्द्र, छन्द :- गायत्री:, अनुष्टुप्।
वार्त्रहत्याय शवसे पृतनाषाह्याय च। इन्द्र त्वा वर्तयामसि॥
हे इन्द्र देव! वृत्र विनाशक बल की प्राप्ति और शत्रु सेना के पराभव के लिए आपको हम प्रवर्त्तित करते है।[ऋग्वेद 3.37.1]
हे इन्द्र देव! वृत्र का पतन करने वाले धन को ग्रहण कराने वाले और शत्रु की सेना को पराजित करने के लिए तुम्हें प्रेरित करते हैं।
Hey Indr Dev! We encourage-incite you to destroy-kill Vratr and the defeat of the enemy army.
अर्वाचीनं सु ते मन उत चक्षुः शतक्रतो। इन्द्र कृण्वन्तु वाघतः॥
हे शतक्रतु इन्द्र देव! आपके मन और चक्षु को प्रसन्न करके स्तोता आपको प्रेरित करें।[ऋग्वेद 3.37.2]
हे शतकर्मा इन्द्र देव! तुम्हें हमारे मन और आँखों को खुशी प्रदान करते हुए प्रार्थना कराने वाले तुम्हारे सम्मुख पुकारें।
Hey Shatkratu-performer of hundred Yagy Indr Dev! Let the recitators of hymns inspire you, granting pleasure to your innerself and the eyes.
नामानि ते शतक्रतो विश्वाभिर्गीर्भिरीमहे। इन्द्राभिमातिषाह्ये॥
हे शतक्रतु इन्द्र देव! अभिमानी शत्रुओं के पराभय कर्ता युद्ध में समस्त स्तुतियों से आपके नामों का संकीर्तन करें।[ऋग्वेद 3.37.3]
हे इन्द्र! तुम शतकर्म वाले हो। अहंकारी शत्रुओं को हराकर युद्धक्षेत्र में हम तुम्हारी वंदना करते हुए यशगान करेंगे।
Hey performer of hundred Yagy Indr Dev! We will pray-worship you, having defeated the egoistic-proudy enemy in the war.
पुरुष्टुतस्य धामभिः शतेन महयामसि। इन्द्रस्य चर्षणी धृतः॥
इन्द्र देव सभी की स्तुति के योग्य, असीम तेजवान और मनुष्यों के स्वामी है। हम उनकी आराधना करते हैं।[ऋग्वेद 3.37.4]
हे इन्द्र! तुम सभी मनुष्यों द्वारा प्रार्थना करने योग्य हो। तुम्हारे तेज की कोई सीमा नहीं है। तुम मनुष्यों के स्वामी हो। हम तुम्हारी प्रार्थना करते हैं।
Hey Indr Dev! You possess highest level of power-mighty and the master of the humans. We pray-worship you.
इन्द्रं वृत्राय हन्तवे पुरुहूतमुप ब्रुवे। भरेषु वाजसातये॥
हे इन्द्र देव! वृत्र का विनाश करने और युद्ध में धन प्राप्ति के लिए बहुतों द्वारा आहूत आपका, हम आह्वान करते हैं।[ऋग्वेद 3.37.5]
हे इन्द्र देव! तुम्हारा अनेकों ने आह्वान किया है। वृत्र के समान शत्रुओं का पतन करने और धन ग्रहण करने के लिए हम भी तुम्हारा आह्वान करते हैं।
Hey Indr Dev, revered-honoured by several! We invoke you for the destruction of Vratr and collection of wealth in the war.
वाजेषु सासहिर्भव स्वामीमहे शतक्रतो। इन्द्र वृत्राय हन्तवे॥
हे शतक्रतु इन्द्र देव! युद्ध में आप शत्रुओं के पराभव-कर्ता है। हम वृत्रासुर के विनाश के लिए आपको प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 3.37.6]
हे सैकड़ों कार्यों में समर्थ इन्द्रदेव! तुम रणक्षेत्र में शत्रुओं को पराजित करने में समर्थ हो। वृत्र को मारने के लिए हम तुम्हारी वंदना करते हैं।
Hey performer of hundred Yagy Indr Dev! You are capable of defeating the enemy in the war. We request-pray you for the destruction of Vrata Sur.
घुम्नेषु पृतनाज्ये पृत्सुतुर्षु श्रवः सु च। इन्द्र साक्ष्वाभिमातिषु॥
संग्रामों में तेजस्वी धनों को प्राप्त करने के लिए सभी शक्तिशाली शत्रुओं का पराभव करने वाले इन्द्र देव! आप हमारे समस्त अहंकारी शत्रुओं को पराजित करें।[ऋग्वेद 3.37.7]
हे इन्द्र देव ! जो शत्रु अहंकारी हो, धन में प्रतिस्पर्धा करने वाले हों तथा वीर सैनिकों और शक्ति में हमें चुनौती देते हो, उनको तुम पराजित करो।
The defeater of the mighty enemy in the wars Indr Dev! Defeat all of our egoistic-proudy enemies.
शुष्मिन्तमं न ऊतये द्युम्निनं जागृविम्। इन्द्र सोमं शतक्रतो हेतु॥
हे शतक्रतु इन्द्र देव! हमारे आश्रय-लाभ के लिए अत्यन्त बलवान्, दीप्ति युक्त और स्वप्र निवारक सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 3.37.8]
शतकर्मा इन्द्रदेव! हमको शरण देने के लिए अत्यन्त शक्तिशाली, तेज सम्पन्न और दुःस्वप्नों का उपचार करने वाले सोम को ग्रहण करो।
Hey hundred Yagy conducting Indr Dev! Drink Somras which vanish the painful dreams, to grant us asylum, shelter.
इन्द्रियाणि शतक्रतो या ते जनेषु पञ्चसु। इन्द्र तानि त आ वृणे॥
हे शतक्रतु इन्द्र देव! पञ्च जनों में जो सब इन्द्रियाँ है, उनकी हम आपको ही जानते है।[ऋग्वेद 3.37.9]
हे शतकर्मा परिपूर्ण इन्द्रदेव! जो पाँच इन्द्रियाँ हैं, उन सभी से हम तुम्हारी महान शक्ति की वृद्धि करेंगे।
Hey hundred Yagy performing Indr Dev! We recognise the five sense organs as yours.
अगन्निन्द्र श्रवो बृहद्युम्नं दधिष्व दुष्टरम्। उत्ते शुष्मं तिरामसि॥
हे इन्द्र देव! प्रभूत अन्न आपके निकट जाये। शत्रुओं का दुर्धर्षु अन्न हमें प्रदान करें। हम आपके उत्कृष्ट बल की वर्धित करेंगे।[ऋग्वेद 3.37.10]
हे इंद्र देव! प्रचुर मात्रा में शत्रुओं का अन्न हमें दो। हम आपके बल में वृद्धि करेंगे।
Hey Indr Dev! Collect the food grains of the enemy in large quantity and give it to us,. we will ensure boosting your powers (by making offerings in Yagy).
अर्वावतो न आ गह्यथो शक्र परावतः।
उ लोको यस्ते अद्रिव इन्द्रेह तत आगहि॥
हे वज्रशाली इन्द्रदेव! आप दूर, पास तथा अपने उत्कृष्ट दिव्य लोक (इन्द्र लोक) से हमारे पास आयें।[ऋग्वेद 3.37.11]
हे इन्द्रदेव! तुम निकट या दूर जहाँ कहीं भी हो, वहीं हमारे निकट पधारो। तुम वज्र धारण करने वाले हो। तुम अपनी अद्भुत जगह से हमारे इस अनुष्ठान को ग्रहण होओ।
Hey Vajr carrying Indr Dev! Come to us from any where and participate in these holy rituals.(13.11.2022)
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (38) :: ऋषि :- प्रजापति, विश्वामित्र, देवता :- इन्द्र, छन्द :- त्रिष्टुप्।
अभि तष्टेव दीधया मनीषामत्यो न वाजी सुधुरो जिहानः।
अभि प्रियाणि मर्मृशत्पराणि कवींच्छामि संदृशे सुमेधाः॥
हे स्तोता! त्वष्टा के तुल्य, इन्द्र की प्रार्थना को जागृत करें। उत्कृष्ट, भारवाही और द्रुतगामी अश्व के तुल्य कर्म में प्रवृत्त होकर तथा इन्द्र के प्रिय कर्म के विषय पर चिन्ता कर मैं मेधावान होते हुए स्वर्गगत कवियों को देखने की इच्छा करता हूँ।[ऋग्वेद 3.38.1]
हे वंदना करने वालों! त्वष्टा के समान इन्द्र देव के श्लोकों को चैतन्य करो। उत्तम भार वहन करने वाले वेगवान, घोड़े के तुल्य कार्य में लगा हुआ इन्द्र देव के कार्यों का चिंतन करता हुआ मैं अपनी बुद्धि की वृद्धि करता हुआ स्वर्ग में पधारे हुए विद्वानों के दर्शनों की इच्छा करता हूँ।
Hey recitators! Activate the Shloks-Mantr meant for the worship of Indr Dev, like Twasta. I wish to see the intelligent poets (enlightened, learned, scholars), who were excellent like the fast moving horses carrying load, devoted to their duty liked-loved by Indr Dev & have gone to heaven.
इनोत पृच्छ जनिमा कवीनां मनोधृतः सुकृतस्तक्षत द्याम्।
इमा उ ते प्रण्यो ३ वर्धमाना मनोवाता अध नु धर्मणि ग्मन्॥
हे इन्द्र देव! कवियों के जन्म के सम्बन्ध में उन गुरुओं से पूछो, जिन्होंने मन संयम और पुण्य कार्य द्वारा स्वर्ग का निर्माण किया। इस समय इस यज्ञ में आपके लिए प्रणीत स्तुतियाँ वृद्धिङ्गत होकर, मन के तुल्य, वेग से जाती हैं।[ऋग्वेद 3.38.2]
हे इन्द्र देव! उन महापुरुषों के जन्म के सम्बन्ध में उनके गुरुओं से पूछो जिन्होंने मनोनिग्रह तथा पवित्र कार्यों के द्वारा अपने को स्वर्ग का भागीदार बनाया। इस यज्ञ में तुम्हारे लिए रची गई प्रार्थनाएँ वृद्धि को प्राप्त होती हुई, मन के वेग के समान गमन करती हैं।
Hey Indr Dev! Enquire the Gurus who created the heaven, about the birth of the poets (enlightened, learned, scholars), by controlling their innerself-mindset and pious, virtuous, righteous actions. The compositions-poetry, sacred hymns, prayers created-written for you, move as fast as the mind-brain.
नि षीमिदत्र गुह्या दधाना उत क्षत्राय रोदसी समञ्जन्।
सं मात्राभिर्ममिरे येमुरुर्वी अन्तर्मही समृते धायसे धुः॥
इस भूलोक में सभी जगह कवियों ने गूढ़ कर्म का विधान करके पृथ्वी और स्वर्ग को बल प्राप्ति के लिए अलंकत किया। उन्होंने मात्राओं या मूल तत्वों के द्वारा पृथ्वी और स्वर्ग का परिमाण भी किया। उन्होंने परस्पर मिलिता, विस्तीर्णा और महती द्यावा-पृथ्वी को सङ्गत किया और द्यावा-पृथ्वी के मध्य में धारितार्थ आकाश को स्तापित किया।[ऋग्वेद 3.38.3]
विद्वजनों ने पृथ्वी पर महान कार्य करते हुए पृथ्वी और अम्बर को जल प्राप्ति के लिए सजाया। उन्होंने गूढ़ तथ्यों द्वारा पृथ्वी और स्वर्ग को दृढ़ किया। उन्होंने व्यापक एवं विस्तृत धरा और अम्बर को सुसंगत किया तथा अम्बर और धरा के बीच अंतरिक्ष का स्थापन किया।
The enlightened-learned, scholars (scientists) performed intricate functions to fill the earth & heaven with force (gravitational, electrostatic attraction, centrifugal & centripetal forces). They fixed their relative positions as well. They coordinated the earth and the heaven in respect of limits-boundaries and generated the space-sky between them for communication.
आतिष्ठन्तं परि विश्वे अभूषञ्ग्र्यो वसानश्चरति स्वरोचिः।
महत्तद्वृष्णो असुरस्य नामा विश्वरूपो अमृतानि तस्थौ॥
समस्त कवियों ने रथ पर बैठे इन्द्र देव को विभूषित किया। स्वभावतः दीप्तिमान् इन्द्र दीप्ति से आच्छादित होकर स्थित हैं। अभीष्टवर्षी और उग्रकर्मा इन्द्रदेव की कीर्त्ति अद्भुत है। विश्वरूप धारित करके वे अमृत में अवस्थित है।[ऋग्वेद 3.38.4]
समस्त मेधावीजनों के रथ में विराजमान इन्द्रदेव को सजाया। अपने स्वभाव से ही तेजवान इन्द्र प्रकाशित हुए सुस्थित हैं। इच्छाओं की वर्षा करने वाले उग्रकर्मा इन्द्र विचित्र ऐश्वर्य वाले हैं। वे विश्वरूप को धारण करते तथा अमृत्व में व्याप्त हैं।
The intelligentsia decorated Indr Dev in his charoite. Naturally Indr Dev is seated with radiance. The glory of accomplishment-desires fulfilling, performing dangerous jobs Indr Dev is amazing-wonderful. He assumes the shape & size of the universe and pervade in the nectar-elixir.
The intelligentsia ornamented Indr Dev standing in his charoite and, clothed in beauty, he proceeds self-radiant; wonderful are the acts of that showerer of benefits, the influencer of consciences, who omni form, presides over the ambrosial waters-nectar-elixir.
असूत पूर्वो वृषभो ज्यायानिमा अस्य शुरुधः सन्ति पूर्वीः।
दिवो नपाता विदथस्य धीभिः क्षत्रं राजाना प्रदिवो दधाथे॥
हे अभीष्टवर्षक! सदा रहने वाले और सर्वश्रेष्ठ इन्द्र देव ने जल-सृष्टि की है। इस प्रभूत जल ने उनकी प्यास बुझाई। स्वर्ग के पौत्र स्वरूप और शोभायमान इन्द्र और वरुण द्युतिमान् यज्ञकर्ता की प्रार्थना से लाभ योग्य धन हमारे लिए धारित करते है।[ऋग्वेद 3.38.5]
इच्छाओं की वर्षा करने वाले, पुराने तथा सर्वोत्कृष्ट इन्द्र देव ने जलों को रचित किया। रचित हुए जल ने उनकी पिपासा का निवारण किया। स्वर्ग के पौत्र रूपी, सुशोभित इन्द्र और वरुण दोनों तेजस्वी वंदनाकारी के पूजन से हमारे लिए सुखकारी अन्न धारण करते हैं।
Desires encouraging-increasing, promoting excellent Indr Dev creating-generating water. This water quenched his thirst. Radiant-aurous Indr Dev & Varun Dev, who are like grand son of the heaven support-sustain food grains for us.
त्रीणि राजाना विदथे पुरूणि परि विश्वानि भूषथः सदांसि।
अपश्यमत्र मनसा जगन्वान्व्रते गन्धर्वां अपि वायुकेशान्॥
राजा इन्द्र और वरुण व्यापक और सम्पूर्ण सवन-त्रय को इस यज्ञ में अलंकृत करें। हे इन्द्र देव! आप यज्ञ में गए थे; क्योंकि मैंने इस यज्ञ में वायु के तुल्य केश विशिष्ट गन्धर्वों को भी देखा।[ऋग्वेद 3.38.6]
हे इन्द्र देव! वरुण व्यापक और सम्पूर्ण तीनों सदनों को इस यज्ञ में शोभित करो। हे इन्द्रदेव! तुम जिस यज्ञ में विराजमान हुए थे, वहाँ मैंने पवन के समान विशिष्ट केश वाले गंधर्वो के दर्शन किये थे।
Hey Indr Dev & Varun Dev! Glorify-embellish the three segments of the day in this Yagy. Hey Indr Dev! You visited the Yagy, where are I saw the the Gandharvs, waving their hair lock like the Vayu-Pawan Dev.
तदिन्न्वस्य वृषभस्य धेनोरा नामभिर्ममिरे सक्म्यं गोः।
अन्यदन्यदसूर्य १ वसाना नि मायिनो ममिरे रूपमस्मिन्॥
जो याजकगण लोग अभीष्टदाता इन्द्र के लिए गौओं के भोग योग्य हव्य को शीघ्र दुहते हैं, जिनके अनेक नाम हैं, उन्होंने नवीन असुर बल को धारित करते हुए एवं माया को विकसित करते हुए अपने-अपने रूप को इन्द्र देव को समर्पित किया।[ऋग्वेद 3.38.7]
इच्छाओं की वृष्टि करने वाले इन्द्र देव के लिए जो यजमान हवि योग्य रस को धेनुओं से दोहन करते हैं तथा जिन यजमानों के बहुत से नाम हैं, वे नये पराक्रम धारण कर अपने कर्मों को इन्द्र देव के लिए समर्पित करते हैं।
The Ritviz-devotees with various names, who milk the offerings (milk, cud, Ghee, cheese) good enough to be sacrificed in the Yagy, from the cows for the sake of Indr Dev who accomplish their desires, perform glorious deeds for Indr Dev.
तदिन्न्वस्य सवितुर्नकर्मे हिरण्ययीममतिं यामशिश्रेत्।
अ सुष्टुती रोदसी विश्वमिन्वे अपीव योषा जामानि वव्रे॥
सूर्य की स्वर्णमयी दीप्ति की कोई सीमा या तुलना नहीं कर सकता। इस दीप्ति के जो आश्रय है, उत्तम स्तुति द्वारा प्रार्थित होकर जिस प्रकार से माता सन्तान का आलिङ्गन करती है, उसी प्रकार सर्व व्यापक द्यावा-पृथ्वी को आलिङ्गित करते हैं।[ऋग्वेद 3.38.8]
सूर्य का स्वर्णमय प्रकाश असीमित है। जो इस आकाश के आश्रयभूत हैं, वे उत्तम प्रार्थनाओं द्वारा प्रशंसित होते हुए जननी द्वारा संतान का आलिंगन करने के समान सर्व व्याप्त आसमान धरती का आलिंगन करते हैं।
None can compare-compete with the brilliance of the Sun. He sustain the sky & the earth, like the mother who hug her progeny, having been worshiped-prayed with excellent sacred hymns.
युवं प्रत्नस्य साधथो महो यद्दैवी स्वस्तिः परि णः स्यातम्।
गोपाजिह्वस्य तस्थुषो विरूपा विश्वे पश्यन्ति मायिनः कृतानि॥
हे इन्द्र देव और वरुण देव! आप दोनों प्राचीन स्तोता का कल्याण करो अर्थात् उनको स्वर्गीय मङ्गल रूप श्रेय प्रदान करें। हमें चारों ओर से बचायें। इन्द्र देव की जीभ सबको अभय प्रदान करती है। इन्द्र स्थिर हैं। समस्त मायावी लोग उनकी नाना प्रकार की कीर्त्तियाँ देखते हैं।[ऋग्वेद 3.38.9]
हे इन्द्र और वरुण! प्राचीन श्लोक उच्चारण करने वाले का कल्याण करो। हमारी सब ओर से सुरक्षा करो।। इन्द्र देव की जिह्वा रूप वाणी सभी को कोमल बनाती है। इन्द्रदेव स्थिर मन वाले हैं। उनके विविध कर्मों को सभी मेधाविजन देखते हैं।
Hey Indr & Varun Dev! Both of you perform the welfare of the devotees who have been reciting hymns for long. Protect us from all directions-sides. The voice-speech of Indr Dev console-sooth every one assuring asylum-protection. The innerself of Indr Dev is calm, composed, at peace. All elusive-illusionary people-demons see (are afraid of) his various glorious deeds-acts.
शुनं हुवेम मघवानमिन्द्रमस्मिन्भरे नृतमं वाजसातौ।
शृण्वन्तमुग्रमूतये समत्सु घ्नन्तं वृत्राणि संजितं धनानाम्॥
हे इन्द्र देव! आप अन्न-लाभकर्ता यज्ञ-युद्ध में उत्साह द्वारा प्रवृद्ध, धनवान्, प्रभूत ऐश्वर्य से युक्त नेतृश्रेष्ठ, स्तुति श्रवणकर्ता, उग्र, युद्ध में शत्रु संहारक और धन-विजेता हैं। आश्रय प्राप्ति के लिए हम आपको बुलाते हैं।[ऋग्वेद 3.38.10]
हे इन्द्र देव! तुम अन्न लाभ वाले युद्ध में उत्साहपूर्वक वृद्धि को प्राप्त होते हैं। तुम धन और ऐश्वर्य से युक्त नेताओं में उत्तम वेदना श्रवण करने वाले, उग्र, युद्धभूमि में शत्रुओं का नाश करने वाले और धन को विजय करने वाले हों। आश्रय प्राप्ति हेतु तुम्हारा आह्वान करते हैं।
Hey Indr Dev! You grow in the Yagy-war with great zeal, in which the food grain is obtained. You are a great leader, a great listener, furious, destroyer of the enemy, winner of wealth, possessing grandeur. We invoke for the sake of asylum, protection, shelter.(16.11.2022)
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (39) :: ऋषि :- विश्वामित्र, गाथिन, देवता :- इन्द्र, छन्द :- त्रिष्टुप, पंक्ति।
इन्द्रं मतिर्हृद आ वच्यमानाच्छा पतिं स्तोमतष्टा जिगाति।
या जागृविर्विदथे शस्यमानेन्द्र यत्ते जायते विद्धि तस्य॥
हे इन्द्र देव! आप संसार के स्वामी हैं। हृदय से उच्चारित और स्तोताओं द्वारा सम्पादित स्तोत्र जब आपके समक्ष जाता है। तब आपको जगाकर यज्ञ में जो प्रार्थना कही जाती है और जो मुझी से ही उत्पन्न हैं, उसे आप जानें।[ऋग्वेद 3.39.1]
हे इन्द्र! तुम संसार के दाता हो। हृदय से निकले हुए तथा वंदना करने वालों के द्वारा सम्पादन किये हुए स्तोत्र तुम्हारे सम्मुख उपस्थित होते हैं। जो प्रार्थना मेरे द्वारा उत्पन्न है और तुम्हें चैतन्य कर यज्ञ में उच्चारण की जाती है, उसे ग्रहण करो।
Hey Indr Dev! You are the master of this universe. The Strotr-prayers, hymns emerged out of the innerself of the worshipers composed by me, wake you up, make you conscious.
दिवश्चिदा पूर्व्या जायमाना वि जागृविर्विदथे शस्यमाना।
भद्रा वस्त्राण्यर्जुना वसाना सेयमस्मे सनजा पित्र्या धीः॥
हे इन्द्र देव! सूर्य से भी पहले उत्पन्न जो प्रार्थना यज्ञ में उच्चारित होकर आपको जगाती है, वह प्रार्थना कल्याणकारी शुभ्र वस्त्र धारित करके हमारे पितरों के पास से ही आगत और सनातन है।[ऋग्वेद 3.39.2]
हे इन्द्र देव! जो प्रार्थना सूर्य उदय होने से भी पहले रचित होकर यज्ञ में उच्चारण की जाती हुई, तुम्हें चैतन्य करती है, वह कल्याण करने वाली उज्जवल प्रार्थना हमारे पुरखों से ग्रहण होने वाली सनातन है।
Hey Indr Dev! The prayers which awake-make you conscious, sung prior to Sun rise are ancient-eternal and arise from the manes wearing white cloths.
यमा चिदत्र यमसूरसूत जिह्वाया अग्र पतदा ह्यस्थात्।
वपूंषि जाता मिथुना सचेते तमोहना तपुषो बुध्न एता॥
यमक पुत्रों की माता ने उन्हें उत्पन्न किया। उनकी प्रशंसा करने के लिए मेरी जीभ का अगला भाग नृत्य कर रहा है। अन्धकार नाशक दिन के आदि में आगत मिथुन (जोड़ा) जन्म के साथ ही प्रार्थना में मिलता है।[ऋग्वेद 3.39.3]
अश्विदय की जननी ने उन्हें जन्म दिया, उनकी स्तुति के लिए मेरी जीभ का अग्रभाग चंचल हो उठा है। तम का विनाश करने वाले दिवस के प्रारम्भ में आते हुए दोनों प्रार्थनाओं से सुसंगति करती है।
The mother of Ashwani Kumars gave them birth. The front portion of my tongue is dancing to appreciate them. With the removal of darkness-day break both of them involve in recitation of prayers-worship.
नकिरेषां निन्दिता मर्त्येषु ये अस्माकं पितरो गोषु योधाः।
इन्द्र एषां दृंहिता माहिनावानुद्गोत्राणि ससृजे दंसनावान्॥
हे इन्द्र देव! हमारे जिन पितरों ने गोधन के लिए युद्ध किया, उनका पृथ्वी पर कोई भी निन्दक नहीं है। महिमा और कीर्त्ति वाले इन्द्र देव ने अङ्गिरा लोगों को समिद्ध गोवृन्द प्रदत्त किए।[ऋग्वेद 3.39.4]
निन्दक :: अपमानकारी, अपवादी, उपहासात्मक, मुँहफट; detractor, slanderer, satirical.
हे इन्द्र देव! गौधन प्राप्ति के लिए युद्ध करने वाले हमारे पितरों की धरा पर कोई निन्दा नहीं करता। अंगिराओं को समृद्धिवान, यशस्वी इन्द्र देव ने समृद्ध गोधन प्रदान किया।
समृद्धि :: प्रफुल्लता, ख़ुशहाली, सफलता, कुशल, सौभाग्य, श्री, संपन्नता, धन, प्रचुरता, श्री; prosperity, affluence, flourishing.
Hey Indr Dev! No one is critical, satirical about the Pitre-Manes over the earth, who fought for the cows. Affluent, glorious-honourable Indr Dev provided a lot of cows to Angiras.
सखा ह यत्र सखिभिर्नवग्वैरभिज्ञ्वा सत्वभिर्गा अनुग्मन्।
सत्यं तदिन्द्रो दशभिर्दशग्वैः सूर्यं विवेद तमसि क्षियन्तम्॥
अङ्गिरा लोगों के मित्र इन्द्र देव जिस समय घुटने के ऊपर जोर देकर गोधन की खोज में गए, उस समय अङ्गिरा लोगों के साथ अन्धकार में छिपे सूर्य को देख सके।[ऋग्वेद 3.39.5]
अंगिराओं के सखा इन्द्रदेव जब घुटने के बल से गोधन की खोज में पर्वत पर चढ़े तब उन अंगिराओं ने अंधेरे में छिपे सूर्य के दर्शन कर लिए।
When Indr Dev, a friend of Angiras climbed the mountain stressing over his keens, in search of cows, Angiras saw Sun hidden in darkness along with others.
इन्द्रो मधु संभृतमुस्त्रियायां पद्वद्विवेद शफवन्नमे गोः।
गुहा हितं गुह्यं गूळ्हमप्सु हस्ते दधे दक्षिणे दक्षिणावान्॥
इन्द्र ने प्रथम दुग्धदायी धेनुओं पर मधु सिञ्चित किया; पश्चात् चरण और खुर से युक्त धन ले आए। उदारचेता इन्द्र ने गुहामध्यस्थित, प्रच्छन्न और अन्तरिक्ष में छिपे मायावियों को अपने दायें हाथ से पकड़ा।[ऋग्वेद 3.39.6]
इन्द्रदेव ने प्रथम दूध देने वाली गायों पर मधुर रस सींचा, फिर चरण और खुर से युक्त उस गोधन को ले आए। गुफा में स्थिर, अंतरिक्ष में छिपे हुए मायामय दानव को इन्द्रदेव ने दायें हाथ द्वारा पकड़ लिया।
Initially Indr Dev, fed the milch cows with honey & then he brought the cows having legs & hoofs. Thereafter, Indr held the elusive demons hidden in the middle of the cave and the space.
ज्योतिर्वृणीत तमसो विजानन्नारे स्याम दुरितादभीके।
इमा गिरः सोमपाः सोमवृद्ध जुषस्वेन्द्र पुरुतमस्य कारोः॥
रात्रि से ही उत्पन्न होकर इन्द्र देव ने ज्योति धारित की। हम पाप से दूर भयशून्य स्थान में रहेंगे। हे सोमपा और सोम पुष्ट इन्द्र देव! बहुस्तोम विनाशक और स्तोत्रकारी की इस प्रार्थना का सेवन करें।[ऋग्वेद 3.39.7]
इन्द्र देव ने रात्रि के गर्भ से उत्पन्न होकर प्रकाश धारण किया। हम पाप रहित तथा निर्भय स्थान में रहने की कामना करते हैं। हे सोम पायी इन्द्र देव! तुम वंदना करने वाले की इस प्रार्थना को स्वीकृत करो।
धारण :: प्रतिधारण, ग्रहण, प्रतिकूल कब्ज़ा, holding, retention, assumption, hostile possession.
Indr Dev emerged out of night-darkness and possessed aura-glow, light. We will reside in a place free from fear & sins. Hey Somras drinking Indr Dev! Accept our prayer which can vanish destroy-destructions.
ज्योतिर्यज्ञाय रोदसी अनु ष्यादारे स्याम दुरितस्य भूरेः।
भूरि चिद्धि तुजतो मर्त्यस्य सुपारासो वसवो बर्हणावत्॥
यज्ञ के लिए सूर्य द्यावा-पृथ्वी को प्रकाशित करें। हम प्रभूत पाप से दूर रहेंगे। हे वसुओं! स्तुति द्वारा आपको अनुकूल किया जा सकता है। प्रभूत और समृद्ध धन को प्रभूत दानशील मनुष्य को प्रदत्त करें।[ऋग्वेद 3.39.8]
अनुष्ठान हेतु अम्बर और धरा को सूर्य प्रकाशमान करे। हम पाप से दूर रहने की कामना करते हैं। हे वसु देवों! तुम प्रार्थना के द्वारा अनुकूल होते हो। इस धन को उदार दानी मनुष्य के लिए प्रदान करो।
Let the Sun shine the earth and the space-heavens for conducting Yagy. Hey Vasus! You can be moulded by requests-prayers. Distribute this money-wealth amongest the deserving humans, who will use for donations-charity.
शुनं हुवेम मघवानमिन्द्रमस्मिन्भरे नृतमं वाजसातौ।
शृण्वन्तमुग्रमूतये समत्सु घ्नन्तं वृत्राणि संजितं घनानाम्॥
हे इन्द्र देव! आप अन्न-प्राप्ति कर्ता युद्ध में उत्साह द्वारा प्रवृद्ध, धनवान्, प्रभूत ऐश्वर्य सम्पन्न, नेतृ श्रेष्ठ, स्तुति श्रवणकर्ता, उग्र, संग्राम में शत्रु नाशक और धन विजेता है। आश्रय प्राप्ति के लिए हम आपको बुलाते हैं।[ऋग्वेद 3.39.9]
हे इन्द्र देव! तुम अन्न लाभ वाले युद्ध में हर्ष पूर्वक बढ़ते हो, धन और यश से युक्त, नेताओं में उत्तम, स्तुति श्रवण करने वाले, उग्र युद्ध भूमि में तुम शत्रुओं का संहार करने वाले तथा धन को विजय करने वाले हैं। आश्रय प्राप्ति के लिए हम तुम्हारा आह्वान करते हैं।
Hey Indr Dev! You obtain food grains, fight war with courage and destroy the enemy, winner & possessor of riches-wealth, grandeur, recite & listen to prayers-Stuti. We seek-invoke you for shelter, asylum, protection under you. (18.11.2022)
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (40) :: ऋषि :- विश्वामित्र, गाथिन, देवता :- इन्द्र, छन्द :- गायत्री ।
इन्द्र त्वा वृषभं वयं सुते सोमे हवामहे। स पाहि मध्वो अन्धसः॥
हे इन्द्र देव! आप अभीष्टपूरक हैं। अभिषुत सोमपान के लिए हम आपको बुलाते हैं। मद कारक और अन्न मिश्रित सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 3.40.1]
मद :: नशा, निंदनीय अहंकार, गर्व, उन्मत्तता, पागलपन, मतिभ्रम, मस्ती, मद्य, शराब; intoxicating.
मस्ती :: नशा, मदहोशी, खुमार, अर्द्धोन्मत्तता, बेसुधपन, गंदापन, मस्ती, पंकिलता, क्रमहीनता, बेढ़ंगापन; fun, inebriation, slobbery, sloppiness.हे इन्द्र देव! तुम इच्छाओं को पूर्ण करने वाले हो। इस संस्कारित सोम के लिए हम तुम्हारा आह्वान करते हैं। आनन्ददायक अन्न मिश्रित सोम का पान करो।
INTOXICATING :: alcoholic drink or a drug liable to cause someone to lose control of their faculties or behaviour, inebriating, spirituous, spiritous
vinous, exhilarating or exciting, rousing, stirring, stimulating, invigorating, electrifying, inspiring.
Hey Indr Dev! You accomplish the desires. We invite you to drink-enjoy the Somras extracted by us. This Somras mixed with food grains (wheat, barley, Sorghum vulgare-ज्वार) gives fun-pleasure, intoxication-inebriation.
Little quantity of wine, Ethyl Alcohol may help but large dozes are intoxicating. Somras is not wine.
इन्द्र क्रतुविदं सुतं सोमं हर्य पुरुष्टुत। पिबा वृषस्व तातृपिम्॥
हे बहुजन स्तुत इन्द्र देव! यह अभिषुत सोमरस बुद्धि वर्द्धक है। इसे पान करने की अभिलाषा को प्रकट करें और इस तृप्ति कारक सोमरस से जठर का सिञ्चन करें।[ऋग्वेद 3.40.2]
हे इन्द्र देव! तुम अनेकों द्वारा वंदित किये गये हो। यह छाता हुआ सोमरस बुद्धि की वृद्धि करने वाला है। इसे पान करने की इच्छा प्रकट करते हुए इस तृप्त करने वाले सोम से अपने उदर को सींचो।
Worshiped by majority, hey Indr Dev! This Somras boosts intelligence. Drink this Somras, which grant satisfaction as per your wish.
इन्द्र प्रणो धितावानं यज्ञं विश्वेभिर्देवेभिः। तिर स्तवान विश्पते॥
हे स्तूयमान, मरुत्पति इन्द्र देव! सम्पूर्ण यजनीय देवों के साथ आप हमारे इस हवि वाले यज्ञ में हवि स्वीकार कर इस यज्ञ को पूर्ण करें।[ऋग्वेद 3.40.3]
हे मरुतों के स्वामी इन्द्र सभी पूजन योग्य देवगणों के साथ हमारे इस हव्य युक्त यज्ञ की भली-भाँति वृद्धि करो।
Hey praiseworthy, leader of the Marud Gan, Indr Dev! Join our Yagy with the demigods-deities and complete it by accepting-making offerings.
इन्द्र सोमाः सुता इमे तव प्र यन्ति सत्यते। क्षयं चन्द्रास इन्दवः॥
हे सत्पति इन्द्र देव! हमारे द्वारा प्रदत्त, आह्लादक, दीप्त, अभिषुत सोमरस आपके जठर देश में जा रहा है। इसे धारित करें।[ऋग्वेद 3.40.4]
हे सत्य के स्वामी इन्द्रदेव! हमारे द्वारा दिया गया प्रसन्न मुख तेज से परिपूर्ण निष्यन्न सोम तुम्हारे पेट में प्रविष्ट हो रहा है। इसे धारण करो।
Hey truthful Indr Dev! Somras offered by us happily, aurous is entering your stomach. Bear it.
दधिष्वा जठरे सुतं सोममिन्द्र वरेण्यम्। तव द्युक्षास इन्दवः॥
हे इन्द्र देव! यह अभिषुत सोमरस सभी के द्वारा वरणीय है। इसे आप अपने जठर में धारित करें। यह सब दीप्त सोमरस आपके साथ द्युलोक में रहता है।[ऋग्वेद 3.40.5]
हे इन्द्र देव! यह निष्यत्र सोम सभी के लिए वरण करने योग्य है। इसे अपने उदर में रखो। यह अत्यन्त उज्जवल सोमरस तुम्हारे साथ स्वर्ग में वास करता है।
Hey Indr Dev! This Somras extract deserve to be accepted by all. Store-stock it in your stomach. This extremely pure, aurous-bright Somras stays in heavens, with you.
गिर्वणः पाहि नः सुतं मधोर्धाराभिरज्यसे। इन्द्र त्वादातमिद्यशः॥
हे स्तुति के योग्य इन्द्र देव! मदकारक सोम की धारा से आप प्रसन्न होते हैं; अतः हमारे अभिषुत सोमरस का पान करें। आपके द्वारा वर्द्धित अन्न ही हम लोगों को प्राप्त होता है।[ऋग्वेद 3.40.6]
हे इन्द्र देव! तुम पूजा के योग्य हो। तुम आह्वान योग्य सोम की धारा से प्रसन्न होते हो। हमारे इस प्रसिद्ध सोम को ग्रहण करो। तुम्हारे द्वारा वृद्धि को प्राप्त हुआ अन्न हमको प्राप्त होता है।
Hey worship deserving Indr Dev! You become happy by the stimulating, invigorating, electrifying, inspiring Somras. The food grains offered by us are accepted by you.
अभि द्युम्नानि वनिन इन्द्रं सचन्ते अक्षिता। पीत्वी सोमस्य वावृधे॥
देव याजकों की द्युतिमान्, क्षय रहित सोम आदि सम्पूर्ण हवि इन्द्र देव के अभिमुख जाती है। सोमरस का पान कर इन्द्रदेव वर्द्धित होते हैं।[ऋग्वेद 3.40.7]
देवगणों का यज्ञ करने वालों की उज्जवल, अक्षुण्ण, सोम युक्त हवियाँ इन्द्र के समक्ष उपस्थित होती हैं। इन्द्र देव की सोम पीने से वृद्धि होती है।
Indr Dev grows-progress by the energetic imperishable Somras and the offerings made by the devotees-Ritviz.
अर्वावतो न आ गहि परावतश्च वृत्रहन्। इमा जुषस्व नो गिरः॥
हे वृत्र विदारक इन्द्र देव! निकटतम प्रदेश से या अत्यन्त दूर देश से हमारी ओर पधारें। हमारी इस स्तुति-वाणी को आकर ग्रहण करें।[ऋग्वेद 3.40.8]
हे इन्द्र देव! तुमने वृत्र का शोषण किया था। तुम पास या दूरस्थ कहीं भी हो, वहीं से हमारी और आते हुए हमारी प्रार्थना को स्वीकार करो।
Hey slayer of Vratr, Indr Dev! Accept our prayers and come to us from the distant or near place.
यदन्तरा परावतमर्वावतं च हूयसे। इन्द्रेह तत आ गहि॥
हे इन्द्र देव! यद्यपि आप अत्यन्त दूर देश, निकटतम प्रदेश और बीच भाग देश में आहूत होते हैं; फिर भी सोमपान के लिए इस यज्ञ में पधारें।[ऋग्वेद 3.40.9]
हे इन्द्र देव! तुम दूर, निकट, या मध्य भाग में लाये जाते हो। तुम इस यज्ञ में सोमपान करने के लिए पधारो।
Hey Indr dev! Though you are present at a far away-distant place, yet come to us for drinking Somras in our Yagy.(20.11.2022)
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (41) :: ऋषि :- विश्वामित्र, गाथिन, देवता :- इन्द्र, छन्द :- गायत्री।
आ तू न इन्द्र मद्र्यग्घुवानः सोमपीतये। हरिभ्यां याह्यद्रिवः॥
हे वज्रधर इन्द्र देव! होताओं के द्वारा आहूत होने पर हमारे पास यज्ञ में आप सोमपान के लिए हरि नामक घोड़ों के साथ शीघ्र आवें।[ऋग्वेद 3.41.1]
हे वज्रिन! होताओं द्वारा पुकारे जाने पर हमारे इस अनुष्ठान में अपने अश्वों से युक्त सोमपान हेतु पधारो।
Hey Vajr wielding-holding Indr Dev! Come to the Yagy quickly, to accept Somras offered by the Ritviz-organisers of Yagy, along with your horses named Hari.
सत्तो होता न ऋत्वियस्तिस्तिरे बहिरानुषक्। अयुञ्जन्प्रातरद्रयः॥
हमारे यज्ञ में यथा समय ऋत्विज होता आपको बुलाने के लिए बैठे हैं। कुश परस्पर सम्बद्ध करके बिछा दिए गए हैं। प्रात: सवन में सोमाभिषेक के लिए प्रस्तर सब भी परस्पर सम्बद्ध किये हुए हैं, इसलिए सोमपान के लिए आये।[ऋग्वेद 3.41.2]
हे इन्द्र देव! ऋत्विक होता तुम्हारे आह्वान के लिए हमारे अनुष्ठान में पधारे हैं। एक-दूसरे से मिलाकर कुश बिछाये गये हैं। सेवेरे सवन में सोम सिद्ध हेतु पाषाण भी प्रस्तुत हैं। इसलिए सोमपान के लिए पधारो।
The Ritviz-Hota (organisers of Yagy) are ready to invoke you. The Kush Mat have been laid by connecting them together. The stones too have been joined together for the morning session (of Yagy) of Somabhishek-extracting Somras.
इमा ब्रह्म ब्रह्मवाहः क्रियन्त आ बर्हिः सीद। वीहि शूर पुरोळाशम्॥
हे स्तुति लभ्य इन्द्र देव! हम आपको प्रार्थना करते है, अत: इस यज्ञीय कुश पर बैठें। हे शूर हमारे द्वारा प्रदत इस पुरोडाश का भक्षण करें।[ऋग्वेद 3.41.3]
हे इन्द्र देव! तुम वंदना द्वारा प्राप्त होओ। तुम वीर हो, हमारे द्वारा दिये गये पुरोडाश का सेवन करो।
Hey Indr Dev, available through prayers-worship! Sit over this Kush Mat meant for he Yagy. Hey brave-mighty, eat this cookie made of barley flour, prepared by us.
रारन्धि सवनेषु पण एषु स्तोमेषु वृत्रहन्। उक्थेष्विन्द्र गिर्वणः॥
हे स्तुति पात्र और वृत्रहन्ता इन्द्रदेव! हमारे के तीनों सवनी में किये गये स्तोत्रों और उकथों में रमण करें।[ऋग्वेद 3.41.4]
उकथ :: कथन, उक्ति, स्तोत्र, सूक्ति, साम-विशेष, प्राण, ऋषभक नाम की औषधि।
हे इन्द्र देव! तुम वृत्र का संहार करने वाले और स्तुति के योग्य हो। हमारे यज्ञ में सवन त्रय में उच्चारित प्रार्थनाओं में प्राप्त हो जाओ।
Hey worship deserving slayer of Vratr, Indr Dev! You should be present-available in the three parts of the day (morning, midday & evening), for our prayers-worship, Yagy.
मतयः सोमपामुरुं रिहन्ति शवसस्पतिम्। इन्द्रं वत्सं न मातरः॥
महान सोमपायी और बलपति इन्द्र देव को स्तुतियाँ उसी प्रकार चाटती है, जिस प्रकार से गौ बछड़े को चाटती है।[ऋग्वेद 3.41.5]
सोम पान करने वाले, बलदाता, श्रेष्ठ इन्द्र को गौओं द्वारा बछड़ों को चाटने के समान स्तुतियाँ चाटती हैं।
Prayers, hymns lick great Somras drinking & mighty Indr Dev, just like the cows lick their calf.
स मन्दस्वा ह्यन्धसो राधसे तन्वा महे। न स्तोतारं निदे करः॥
हे इन्द्र देव! प्रभूत धन दान के लिए सोमरस के द्वारा आप शरीर को प्रसन्न करें, परन्तु मुझ स्तोता की निन्दित मत करें।[ऋग्वेद 3.41.6]
निन्दा :: बुराई करना, लानत, कलंक, धिक्कार, शाप, फटकार, गाली, तिरस्कार, परिवाद, भला-बुरा कहना; blasphemy, reproach, damn, reprehension, taunt, decry.
हे इन्द्र देव! धन प्रदान करने के लिए इस सोम के द्वारा अपनी देह को पुष्ट करो।मुझसे वंदना करने वाले की कभी निन्दा न हो।
Hey Indr Dev! Nourish your body to make donations-charity by drinking this Somras. I should not reproach those who pray-worship you.
वयमिन्द्र त्वायवो हविष्मन्तो जरामहे। उत त्वमस्मयुर्वसो॥
हे इन्द्र देव! हम आपको इच्छा करते हुए हवि से युक्त होकर आपकी प्रार्थना करते हैं। हे सभी के आश्रय दाता इन्द्र देव! आप भी हवि के स्वीकारणार्थ हमारी रक्षा करें।[ऋग्वेद 3.41.7]
हे इन्द्र देव! हम तुम्हारी इच्छा करते हुए हवि से परिपूर्ण प्रार्थना करते हैं। तुम हवि प्राप्त करने के समान हमारी सुरक्षा करो।
Hey Indr Dev! We make offerings with the wish-desire to attain you. Hey savoir-protector of all protect us.
मारे अस्मद्वि मुमुचो हरिप्रियार्वाड् याहि। इन्द्र स्वधावी मत्स्वेह॥
हे हरि अश्व प्रिय! हमसे दूर देश में घोड़ों को रथ से मत खोलो। हमारे निकट आयें। हे सोमवान इन्द्रदेव! आप इस यज्ञ में हर्षित बनें।[ऋग्वेद 3.41.8]
हे इन्द्र देव! तुम अपने अश्वों से प्यार करते हो। अश्वों को हमसे दूर खोलो। हमारे समीप आओ। इस यज्ञ में सोम से आनंद प्राप्त करो।
Hey Hari named horses, loving Indr Dev! Come to us, do not release the horses. Hey Somras enjoying Indr Dev! Enjoy this Yagy.
अर्वाञ्च त्वा सुखे रथे वहतामिन्द्र केशिना। घृतस्नू बहिरासदे॥
हे इन्द्र देव! जल से युक्त और लम्बे केश वाले यह घोड़े बैठने योग्य कुश के समक्ष आपको सुख पूर्वक रथ पर हमारे पास से आये।[ऋग्वेद 3.41.9]
हे इन्द्र देव! श्रम के स्वेद-पसीना से युक्त तुम्हारे लम्बे बालों वाले अश्व, तुम्हारे बैठने योग्य इस कुश के आसन के सामने, सुख देने वाले रथ से तुम्हें ले आएँ।
Hey Indr Dev! Let your horses with the hair wet with sweat, come to the Kush Mat in your comfortable charoite.(21.11.2022)
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (42) :: ऋषि :- विश्वामित्र, गाथिन, देवता :- इन्द्र, छन्द :- गायत्री।
उप नः सुतमा गहि सोममिन्द्र गवाशिरम्। हरिभ्यां यस्ते अस्मयुः॥
हे इन्द्र देव! हमारे दुग्ध मिश्रित अभिषुत सोमरस के पास आवें; क्योंकि आपका अश्व-संयुक्त रथ हमारी कामना करता है।[ऋग्वेद 3.42.1]
हे इन्द्र देव! हमारा सोम दुग्ध मिलाया हुआ प्रसिद्ध है। उसके निकट पधारो। तुम्हारा रथ अश्व युक्त हमसे मिलाने की कामना करता है।
Hey Indr Dev! Somras mixed with milk is ready for you. Come riding your charoite to participate-bless us in our Yagy.
तमिन्द्र मदमा गहि बर्हिःष्ठां ग्रावभिः सुतम्। कुविन्वस्य तृष्णवः॥
हे इन्द्र देव! इस सोमरस के पास पधारें। यह पत्थरों पर पीस कर निकाला गया है और कुशों पर रखा गया है। इसका प्रचुर परिमाण में पान करके आप शीघ्र तृप्त होवें।[ऋग्वेद 3.42.2]
हे इन्द्र देव! पाषाण से कूट कर छाना गया यह सोम कुश पर विराजमान है। तुम इसकी निकटकता ग्रहण करो। तम इसे यथेष्ट मात्रा में पान करके तृप्ति को ग्रहण होओ।
Hey Indr Dev! We have extracted Somras for you by crushing Som Valli with stones. Drink it in sufficient quantity and satisfy yourself.
इन्द्रमित्था गिरो ममाच्छागुरिषिता इतः। आवृते सोमपीतये॥
इन्द्र देव के लिए कही गई हमारी यह स्तुति-वाणी इन्द्र देव को सोमपानार्थ बुलाने के लिए इस यज्ञ देश से इन्द्र के निकट जावे।[ऋग्वेद 3.42.3]
हमारी वंदना रूप वाणी इन्द्रदेव के लिए उच्चारित होती हुई सोम ग्रहण के लिए इन्द्र का आह्वान करती हुई, यज्ञ स्थान में चलकर इन्द्र का सामीप्य ग्रहण करें।
Let our prayers, chants, hymns attract Indr Dev to this site of Yagy for enjoying Somras.
इन्द्रं सोमस्य पीतये स्तोमैरिह हवामहे। उक्थेभिः कुविदागमत्॥
स्तोत्रों और उकथों द्वारा सोमपान के लिए यज्ञ में हम इन्द्र देव को बुलाते हैं। अनेकों बार आह्वान करने पर ही इन्द्र देव यज्ञ में आते हैं।[ऋग्वेद 3.42.4]
स्तोत्रों द्वारा प्रशंसनीय प्रार्थनाओं द्वारा यज्ञ में सोम ग्रहण करने के लिए हम इन्द्र का आह्वान करते हैं। वे अनेक बार आह्वान किये गए इन्द्र हमारे यज्ञ में पधारें।
We invoke Indr Dev by the recitation of Strotr-sacred hymns and prayers to drink Somras in the Yagy. He comes-oblise after making requests several times.
इन्द्र सोमाः सुता इमे तान्दधिष्व शतक्रतो। जठरे वाजिनीवसो॥
हे शतक्रुत इन्द्र देव! आपके लिए सोमरस तैयार है, इसे जठर में धारित करें। आप अन्न धन हैं।[ऋग्वेद 3.42.5]
हे इन्द्रदेव! तम सैकड़ों कार्यों से परिपूर्ण हो। तुम्हारे लिए अनुष्ठान संस्कारित सोम प्रस्तुत है। इसे अपने उदर में धारण करो और हमारे लिए अन्न तथा धन प्रदान करो।
Hey, performer of hundred Yagy, Indr Dev! Somras is ready for you to drink and stoke it in the stomach. Grant us food grains.
विद्मा हि त्वा धनञ्जयं वाजेषु दघृषं करें। अघा ते सुम्नमीमहे॥
हे कवि इन्द्रदेव! युद्ध में आप शत्रुओं के अभिभव-कर्ता और धन विजेता है। हम आपको ऐसा ही जानते हैं, इसलिए हम आपसे धन की याचना करते हैं।[ऋग्वेद 3.42.6]
हे विद्वान, हे इन्द्रदेव! युद्ध भूमि में शत्रुओं को पराजित करने वाले तथा उनके धनों को जीतने वाले हो। ऐसा जानते हुए तुमसे धन माँगते हैं।
Hey enlightened-learned Indr Dev! You defeat the enemy in the war and wealth. We recognise you like this and request you for riches.
इममिन्द्र गवाशिरं यवाशिरं च नः पिब। आगत्या वृषभिः सुतम्॥
हे इन्द्र देव! हमारे इस यज्ञ में आकर गव्य मिश्रित तथा यव मिश्रित अभिषुत सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 3.42.7]
हे इन्द्र! हमारे यज्ञ में आकर यह दूध से मिला हुआ निष्पन्न सोमरस को पियो।
Hey Indr Dev! Join our Yagy and drink Somras mixed with milk.
तुभ्येदिन्द्र स्व ओक्ये सोमं चोदामि पीतये। एष रारन्तु ते हृदि॥
हे इन्द्र देव! आपके पीने के लिए ही इस अभिषुत सोमरस को हम आपके जठर में प्रेरित करते हैं। क्योंकि यह सोमरस आपके हृदय को तृप्त करेगा।[ऋग्वेद 3.42.8]
हे इन्द्र देव! इस सुसंस्कारित सोमरस को तुम्हारे ग्रहण करने के लिए ही हम तुम्हारे उदर में प्रवेश करते हैं। इससे तुम्हारा हृदय तृप्त होता हुआ संतुष्टि को ग्रहण करेगा।
Hey Indr Dev! We inspire you to drink this Somras since it will satisfy you.
त्वां सुतस्य पीतये प्रत्न मिन्द्र हवामहे। कुशिकासो अवस्यवः॥
हे पुरातन इन्द्र देव! हम कुशिक वंशोत्पन्न आपके द्वारा रक्षित होने की इच्छा करते हुए अभिषुत सोमपान के लिए स्तुति वचनों द्वारा आपको बुलाते हैं।[ऋग्वेद 3.42.9]
हे इन्द्रदेव! तम प्राचीन हो। हम कौशिकवंश ऋषिगण तुम्हारे द्वारा रक्षा साधन ग्रहण करने की इच्छा करते हुए, हम संस्कारित सोम को पीने के लिए सुन्दर प्रार्थना रूप वाणी से तुम्हारा आह्वान करते हैं।
Hey ancient-eternal Indr Dev! We the sages born in Kaushik clan desire asylum-shelter, protection under you. We request to drink this Somras extracted by while reciting Shloks.(23.11.2022)
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (43) :: ऋषि :- विश्वामित्र, गाथिन, देवता :- इन्द्र, छन्द :- त्रिष्टुप।
आ याह्यर्वाङुप वन्धुरेष्ठास्तवेदनु प्रदिवः सोमपेयम्।
प्रिया सखाया वि मुचोप बर्हिस्त्वामिमे हव्यवाहो हवन्ते॥
हे इन्द्र देव! जूए वाले रथ पर बैठकर आप हमारे पास आवें। यह सोम प्राचीन काल से ही आपके उद्देश्य से प्रस्तुत है, आप अपने प्रियतम सखा स्वरूप अश्व को कुश के निकट खोलें। ये ऋत्विक् सोमपान के लिए आपको बुला रहे हैं।[ऋग्वेद 3.43.1]
हे इन्द्र देव! तुम अपने जुते हुए परिपूर्ण रथ द्वारा हमको प्राप्त होओ। यह प्राचीन समय का सोम तुम्हारे लिए ही तैयार हुआ है। तुम अपने प्रिय मित्र रूप घोड़े को कुओं के निकट खोलो। यह ऋत्विजगण सोमपान के लिए तुम्हारा आह्वान करते हैं।
Hey Indr Dev! Come to us riding your charoite. This Somras is meant for you, ever since. Free your horses, which like dearest friend to you, near the Kush Mat. The organisers-Ritviz are inviting fro drinking Somras.
आ याहि पूर्वीरति चर्षणीराँ अर्य आशिष उप नो हरिभ्याम्।
इमा हि त्वा मतयः स्तोमतष्टा इन्द्र हवन्ते सख्यं जुषाणाः॥
हे स्वामी इन्द्र देव! आप समस्त पुरातन प्रजा का अतिक्रमण करके आवें। घोड़ों के साथ यहाँ आकर सोमपान करें, यही हमारी प्रार्थना है। स्तोताओं के द्वारा प्रयुक्त संख्याभिलाषिण स्तुतियाँ आपका आह्वान कर रही हैं।[ऋग्वेद 3.43.2]
हे इन्द्र देव! हे प्रभु! तुम सभी प्राचीन प्राणियों को लांघकर यहाँ आओ। अपने अश्व के साथ यहाँ आकर सोम ग्रहण करो। हमारी इस विनती पर ध्यान दो। यह मित्रता की अभिलाषी वाली प्रार्थनाओं स्तोताओं के मुख से उच्चारण की जाती हुई तुम्हें बुलाती है।
Hey Lord Indr Dev! Come to us discarding-ignoring your ancient populace. We request you to come here along with your horses to drink Somras. The sacred hymns by the worshipers are sung in loud voice in your honour to invoke-invite you.
आ नो यज्ञं नमोवृधं सजोषा इन्द्र देव हरिभिर्याहि तूयम्।
अहं हि त्वा मतिभिर्जोहवीमि घृतप्रयाः सधमादे मधूनाम्॥
हे द्योतमान इन्द्र देव! हमारे अन्न वर्द्धक यज्ञ में घोड़ों के साथ आप शीघ्र पधारें। घृत सहित अन्न रूप हवि लेकर हम सोमपान करने के स्थान में आपका स्तुति-द्वारा प्रभूत आह्वान कर रहे हैं।[ऋग्वेद 3.43.3]
हे इन्द्र देव! तुम ज्योर्तिवान हो। हमारे अन्न की वृद्धि करने वाले इस अनुष्ठान में अपने घोड़ों से युक्त शीघ्र पध करो। घृत सहित अन्न से परिपूर्ण हवि युक्त सोम पीने के लिए वंदनाओं द्वारा तुम्हें पुकारते हैं।
Hey aurous-glowing Indr Dev! Join our Yagy meant for growing more food grains, along with your horses. We invite-request you to drink Somras mixed with food grains and Ghee singing hymns-prayers.
आ च त्वामेता वृषणा वहातो हरी सखाया सुधुरा स्वङ्गा।
धानावदिन्द्रः सवनं जुषाणः सखा सख्युः शृणवद्वन्दनानि॥
हे इन्द्र देव! सेचन समर्थ, सुन्दर धुरा और शोभन अंग वाले, सखा स्वरूप ये दोनों घोड़े आपको यज्ञभूमि में रथ पर ले जाते हैं। भूँजे जौ से युक्त यज्ञ की सेवा करते हुए मित्र-स्वरूप इन्द्र देव हम स्तोताओं की स्तुतियाँ श्रवण करें।[ऋग्वेद 3.43.4]
हे इन्द्रदेव! तुम्हारे सेवन कार्य में समर्थ सुन्दर धुरा युक्त दोनों मित्र रूप रमणीय अश्व तुम्हें यज्ञ स्थान को प्राप्त कराते हैं। भुने हुए धान-युक्त सोम का सेवन करते हुए तुम मित्र भाव से हुई स्तुति करने वालों की वंदना सुनो।
Hey Indr Dev! Capable of serving you, possessing beautiful organs, friendly both horses deployed in the charoite having axel, take you to the Yagy site. Like a friend listen to our prayers while making offerings with roasted barley.
कुविन्मा गोपां करसे जनस्य कुविद्राजानं मघवन्नृजीषिन्।
कुविन्म ऋषिं पपिवांसं सुतस्य कुविन्मे वस्वो अमृतस्य शिक्षाः॥
हे इन्द्र देव! मुझे सभी का रक्षक बनावें। हे मघवन्, हे सोमवान् इन्द्र देव! मुझे सबका स्वामी बनावें। मुझे अतीन्द्रिय द्रष्टा (ऋषि) बनावें तथा अभिषुत सोम का पानकर्ता बनावें और मुझे अक्षय धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 3.43.5]
हे इन्द्रदेव! मुझे प्राणियों की सुरक्षा करने की सामर्थ्य प्रदान करो। तुम सोम से परिपूर्ण रहते हो, मुझे सभी का आधिपत्य प्रदान करो। मुझे ऋषि बनाओ और सोम को पीने योग्य बनाते हुए, कभी भी क्षय न होने वाला धन प्रदान करो।
Hey Indr Dev! Enable me to protect all living beings. Hey Somras possessing Indr Dev let me become lord of all. Enable to become a sage-Rishi capable of seeing future, drink Somras and possessor of imperishable wealth.
आ त्वा बृहन्तो हरयो युजाना अर्वागिन्द्र सधमादो वहन्तु।
प्र ये द्विता दिव ऋञ्जन्त्याताः सुसंमृष्टासो वृषभस्य मूराः॥
हे इन्द्र देव! महान् और रथ में संयुक्त हरि नामक मत्त घोड़े आपको हमारे समक्ष ले आवें। कामनाओं के वर्षक इन्द्र देव के अश्व शत्रुओं के विनाशक हैं। इनके हाथों से संस्पृष्ट होने पर वे घोड़े आकाश मार्ग से अभिमुख आते हुए और दिशाओं को द्विधा करते हुए गमन करते हैं।[ऋग्वेद 3.43.6]
हे इन्द्र देव! रथ में जुते हुए श्रेष्ठ अश्व तुम्हें हमारे सम्मुख लाएँ। तुम अभीष्ट वर्षक हो। तुम्हारे अश्व शत्रुओं का विनाश करने वाले हैं। इन्द्र के हाथों से चलते हुए वह अश्व दिशाओं में घूमते रहते हैं।
Hey Indr Dev! Let, the great horses named Hari, deployed in the charoite, bring you to us. Accomplishment granting Indr Dev's horses are destroyer of he enemy. Driven by Indr Dev, these horses are capable of moving in all directions.
इन्द्र पिब वृषधूतस्य वृष्ण आ यं ते श्येन उशते जभार।
यस्य मदे च्यावयसि प्र कृष्टीर्यस्य मदे अप गोत्रा ववर्थ॥
हे इन्द्र देव! आप सोमाभिलाषी है। आप अभीष्ट फल दायक और प्रस्तर द्वारा अभिषुत सोमरस का पान करें। सुपर्ण पक्षी आपके लिए सोमरस को लाया है। सोमपान जन्य हर्ष के उत्पन्न होने पर आप शत्रु भूत मनुष्यादि को पातित करते हैं एवं सोमजन्य हर्ष के उत्पन्न होने पर आप वर्षा ऋतु में मेघों को अपावृत करते हैं।[ऋग्वेद 3.43.7]
हे इन्द्र देव! तुम सोम की इच्छा करते हो। तुम इच्छित फल प्रदान करने वाले और पोषण द्वारा सिद्ध किये गये सोमरस को पीने वाले हो। श्येन तुम्हारे लिए सोम लाता है। सोम से रचित खुशी द्वारा तुम शत्रुता करने वाले व्यक्तियों को धराशायी करते हो।
Hey Indr Dev! You are desirous of drinking Somras. Drink the Somras extracted by crushing with stone, which accomplish desires. Shyen-Suparn bird has brought Somras for you. On being happy by drinking Somras you destroy the humans who are like enemy and condense-shower the clouds during the raining season.
शुनं हुवेम मघवानमिन्द्रमस्मिन्भरे नृतमं वाजसातौ।
शृण्वन्तमुग्रमूतये समत्सु घ्नन्तं वृत्राणि संजितं धनानाम्॥
हे इन्द्र देव! आप अन्न प्राप्त करें। आप युद्ध में उत्साह के द्वारा प्रवृद्ध, धनवान् प्रभूत, ऐश्वर्यवाले, नेतृ श्रेष्ठ, स्तुति श्रवण कर्ता, उग्र, युद्ध में शत्रु विनाशी और धन विजेता हैं। आश्रय प्राप्ति के लिए हम आपको बुलाते हैं।[ऋग्वेद 3.43.8]
हे इन्द्र देव! तम अन्न लाभ वाले बुद्धि में हर्ष से वृद्धि करते हो। धन और ऐश्वर्य से युक्त नायकों में श्रेष्ठ तथा स्तुतियों को श्रवण करने वाले हो। भयंकर युद्ध में शत्रु का नाश कर धन जीतते हो। सहारा प्राप्त करने के लिए हम तुम्हारा आह्वान करते हैं।
Hey Indr Dev! You collet the food grains and create pleasure in the mind. You possess grandeur, wealth, listen to the excellent prayers, is a great leader, furious & on being encouraged you destroy the enemy, win wealth.(25.11.2022)
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (44) :: ऋषि :- विश्वामित्र, गाथिन, देवता :- इन्द्र, छन्द :- बृहती।
अयं ते अस्तु हर्यतः सोम आ हरिभिः सुतः।
जुषाण इन्द्र हरिभिर्न आ गह्या तिष्ठ हरितं रथम्॥
हे इन्द्र देव! पत्थरों द्वारा अभिषुत, प्रीति वर्द्धक कमनीय सोमरस आपके लिए है। हरि नामक घोड़ों से युक्त, हरि द्वर्ण रथ पर आप बैठकर हमारे सम्मुख आगमन करें।[ऋग्वेद 3.44.1]
हे इन्द्र! यह सोम पाषाणों से कूटकर सिद्ध किया गया है। यह रति की वृद्धि करने वाला तथा रमणीय सोम तुम्हारे लिए है। तुम घोड़ों से परिपूर्ण रथ पर चढ़कर हमारे सम्मुख पधारो।
Hey Indr Dev! The Somras obtained after crushing with stone, that boosts sexual power-potency, is ready for you. Come riding the charoite called Hari Dwarn in which the horses named Hari are deployed.
Dev Raj Indr is the deity of senses and the sex organs. He regulate the sexual desires, sensuality in the mind. Chandr Dev and Kam Dev along with Rati and Preeti help him. He invited trouble for himself due to lust and lasciviousness. Undue sex drags one to hells and severe punishments. Brahma Ji himself possessed-suffered from this defect and improved-corrected himself on being objected to, by his son Angira Ji.
हर्यन्नुषसमर्चयः सूर्यं हर्यन्नरोचयः।
विद्वांश्चिकित्वान्हर्यश्च वर्धस इन्द्र विश्वा अभि श्रियः॥
हे इन्द्र देव! सोमाभिलाषी होकर आप उषा की अर्चना करते हैं तथा सोमाभिलाषी होकर आप सूर्य को भी प्रदीप्त करते हैं। हे हरि नामक घोड़ों वाले! आप विद्वान् है, हमारी मनोकामना के ज्ञाता हैं तथा अभिमत फल प्रदान से आप हमारी सम्पूर्ण सम्पत्ति को परिवर्तित करें।[ऋग्वेद 3.44.2]
हे इन्द्रदेव! तुम सोम की कामना वाले होकर सूर्य को प्रकाशवान बनाते हो। हे अश्वयुक्त इन्द्रदेव! तुम बुद्धिमान तथा इच्छाओं को जानने वाले हो। तुम मनवांछित फल देते हो तथा हमारे धन की वृद्धि करते हो।
Hey Indr Dev! Desirous of Somras you pray to Usha-day break and shine the Sun. Hey enlightened Indr Dev, having horses named Hari! You are aware of desires, fulfil them & increase our wealth.
द्यामिन्द्रो हरिधायसं पृथिवीं हरिवर्पसम्।
अधारयद्धरितोर्भूरि भोजनं ययोरन्तर्हरिश्चरत्॥
हरिद्वर्ण रश्मि वाले द्युलोक को तथा औषधियों से हरिद्वर्ण वाली पृथ्वी को इन्द्र देव ने धारित किया। हरिद्वर्ण वाली द्यावा-पृथ्वी के बीच में अपने घोड़ों के लिए ये प्रभूत भोजन प्राप्त करते हैं। इन्द्रदेव इसी द्यावा-पृथ्वी के बीच में भ्रमण करते हैं।[ऋग्वेद 3.44.3]
हरे वर्ण वाली रश्मियों से परिपूर्ण सूर्य जगत और हरे रंग वाली औषधियों से हरी हुई पृथ्वी को इन्द्र देव धारण करते हैं। हरित रंग वाले अम्बर-पृथ्वी के बीच इन्द्र अपने घोड़े के लिए भोजन लेते हैं तथा इसी अम्बर धरा के बीच विचरण करते हैं।
Indr Dev support the heaven possessing green rays and the earth full of green herbs. His horses gets sufficient food in between the green sky & earth roaming here.
जज्ञानो हरितो वृषा विश्वमा भाति रोचनम्।
हर्यश्वो हरितं धत्त आयुधमा वज्रं बाह्वोर्हरिम्॥
कामनाओं के पूरक, हरिद्वर्ण वाले इन्द्र देव जन्म ग्रहण करते ही सम्पूर्ण दीप्तिमान् लोकों को प्रकाशित करते हैं। हरि नामक घोड़ों वाले इन्द्र देव हाथों में हरिद्वर्ण आयुध धारित करते हैं। तथा शत्रुओं का प्राण संहारक वज्र धारित करते हैं।[ऋग्वेद 3.44.4]
अभीष्टों का फल प्रदान करने वाले इन्द्र उत्पन्न होते ही सभी लोकों को प्रकाशित करते हैं। हरे अश्वों वाले इन्द्र अपने हाथ में हरे रंग के शस्त्र धारण करते हुए शत्रुओं का विनाश करने वाला वज्र उठाते हैं।
Desires accomplishing Indr Dev possess green aura and fills all abodes with light. He has green coloured horses, hold green coloured arms & ammunition. To eliminate the enemy he hold Vajr which kills them.
इन्द्रो हर्यन्तमर्जुनं वज्रं शुक्रैरभीवृतम्।
अपावृणोद्धरिभिरद्रिभिः सुतमुद्रा हरिभिराजत॥
इन्द्र देव ने कमनीय, शुभ्र, क्षीरादि के द्वारा व्याप्त होने के कारण शुभ्र, वेगवान् और प्रस्तरों द्वारा अभिषुत सोमरस को अपावृत किया। पणियों द्वारा अपहृत गौओं को इन्द्र देव ने अश्वयुक्त होकर गुफा से बाहर निकाला।[ऋग्वेद 3.44.5]
इन्द्र ने उज्ज्वल दूध आदि द्वारा मिश्रित तथा पाषाणों द्वारा निष्पन्न सोम को प्रकट किया। उन्होंने घोड़ों को संग लेकर पणियों द्वारा चुराई गई गौओं को बाहर निकाला था।
Indr Dev drank the Somras extracted by crushing with white coloured stones, striking with speed-force, mixed with milk. He released the cows with the help of horses from the cave, stolen by the Panis.(27.11.2022)
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (45) :: ऋषि :- विश्वामित्र, गाथिन, देवता :- इन्द्र, छन्द :- बृहती।
आ मन्द्रैरिन्द्र हरिभिर्याहि मयूररोमभिः।
मा त्वा के चिन्नि यमन्विं न पाशिनोऽति धन्वेव ताँ इहि॥
हे इन्द्र देव! मादक और मयूरों के रोमों के सदृश रोमों से युक्त घोड़ों के साथ आप इस यज्ञ में आवें। जिस प्रकार से उड़ते पक्षी को व्याघ्र फाँस लेते हैं, वैसे कोई भी आपके मार्ग में प्रतिबन्धक नहीं हैं। पथिक मरुभूमि को जिस प्रकार से उल्लंघित कर जाते हैं, उसी प्रकार आप भी इन सकल बाधाओं का अतिक्रमण करके हमारे यज्ञ में शीघ्र पधारें।[ऋग्वेद 3.45.1]
हे इन्द्र देव! मोर के पंखों के समान सोम वाले, अश्वों के तुल्य इस अनुष्ठान स्थल को ग्रहण होओ। जैसे शिकारी उड़ते हुए पक्षियों को फाँस लेते हैं वैसे ही तुम्हारे रास्ते में बाधक बना हुआ तुम्हें न फाँस ले। जिस प्रकार रास्ता चलते यात्री मरुभूमि को पार करते हैं वैसे ही तुम भी सभी उपस्थित बाधाओं को पार कर हमारे अनुष्ठान में शीघ्र विराजमान होओ।
Hey Indr Dev! Join our Yagy along with the horses having feathers like the peacock. None should be able to catch you like the hunter who catches the flying birds. There should be no obstacle in your way. The way a traveller crosses the arid zones, deserts, you should also successfully over come all hurdles.
ARID ZONE :: शुष्क क्षेत्र, बंजर क्षेत्र, ऊसर क्षेत्र।
वृत्रखादो वलंरुजः पुरां दर्मो अपामजः।
स्थाता रथस्य हर्योरभिस्वर इन्द्रो दृळ्हा चिदारुजः॥
इन्द्र देव वृत्रहन्ता हैं। ये बादलों को विदीर्ण करके जल को प्रेरित करते हैं। इन्होंने शत्रु पुरी को विदीर्ण किया। इन्होंने हमारे समक्ष दोनों घोड़ों को चलाने के लिए रथ पर आरोहरण किया तथा इन्द्र देव ने बलवान् शत्रुओं को नष्ट किया।[ऋग्वेद 3.45.2]
इन्द्र देव वृत्र को मारकर बादलों को चीरकर जल को गिराते हैं। उन्होंने शत्रु के नगरों को नष्ट किया है। इन्द्र देव अश्वों को चलाने के लिए हमारे सम्मुख ही रथ पर आरूढ़ हुए हैं। इन्हीं इन्द्र देव ने शक्तिशाली शत्रुओं को मार दिया है।
Indr Dev is the slayer of Vratr. He tear the clouds and shower rains. He destroyed the cities of the enemy. He rode the charoite in front of us to move the horses and destroy the mighty enemies.
गम्भीराँ उदधींरिव क्रतुं पुष्यसि गाइव।
प्र सुगोपा यवसं धेनवो यथा ह्रदं कुल्या इवाशत॥
हे इन्द्र देव! साधु गोपगण जिस प्रकार से गौओं को यव आदि खाद्य पदार्थों से पुष्ट करते है, महावकाश समुद्र को जिस प्रकार आप जल द्वारा पुष्ट करते हैं, उसी प्रकार यज्ञ करने वाले, इस याजकगण को भी आप अभिमत फल प्रदान करके सन्तुष्ट करें। धेनुगण जैसे तृणादि को और छोटी सरिताएँ जैसे महाजलाशय को प्राप्त करती हैं, उसी प्रकार यज्ञीय सोमरस आपको प्राप्त करते हैं।[ऋग्वेद 3.45.3]
हे इन्द्र देव! जैसे साधु और ग्वाले अपनी धेनुओं को जौं आदि खाद्य पदार्थों द्वारा पोषण करते हैं तथा तुम जैसे जल द्वारा गंभीरतम समुद्र को पूर्ण करते हो, वैसे ही अनुष्ठान कर्मानुष्ठान में इस यजमान को भी उसका इच्छित फल प्रदान करके पुष्ट करो। जैसे धेनु घास आदि को ग्रहण करती है तथा छोटी नदियाँ विशाल जलाशयों को ग्रहण करती हैं, वैसे ही अनुष्ठान में संस्कारित सोम तुम्हें प्राप्त करता है।
Hey Indr Dev! The manner in which the sages and the cow herd grazers feed the cows with nourishing food, the ocean is filled with water you should satisfy the Ritviz conducting the Yagy. The way the cows get straw & grass, the small river lets reach ocean, Somras in the Yagy should also reach you.
आ नस्तुजं रयिं भरांशं न प्रतिजानते।
वृक्षं पकं फलमङ्कीव धूनुहीन्द्र संपारणं वसु॥
हे इन्द्र देव! जिस प्रकार से व्यवहारज्ञ पुत्र को पिता अपने धन का भाग दे देता है, उसी प्रकार शत्रुओं को परास्त करने वाला धनवान पुत्र हमें प्रदान करें। पके फलों के लिए जैसे अङ्कुश वृक्ष को चालित कर देता है, उसी प्रकार आप हमारी इच्छा को पूर्ण करने वाला धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 3.45.4]
हे इन्द्र देव! जैसे पिता अपने व्यवहार कुशल पुत्र को धन देता है, वैसे ही शत्रुओं को जीतने में समर्थ प्राप्ति योग्य धन तुम हमें प्रदान करो। जैसे पके फलों को अंकुशाकार टेढ़ा बांस झाड़कर गिरा देता है, वैसे ही हमारी कामना पूर्ण करने वाला फल दो।
Hey Indr Yagy! The way a father grants his wealth to his son, well versed with dealings in daily life with others. Grant us a son who can defeat the enemy. The way a hook falls the ripe fruits from the tree, you should also accomplish our desires of attaining wealth.
स्वयुरिन्द्र स्वराळसि स्मद्दिष्टिः स्वयशस्तरः।
स वावृधान ओजसा पुरुष्टुत भवा नः सुश्रवस्तमः॥
हे इन्द्र देव! आप धनवान् हैं, स्वर्ग के राजा हैं, सुवचन हैं और प्रभूत कीर्त्ति वाले हैं। बहुजन स्तुत! आप अपने बल से वर्द्धमान होकर हमारे लिए अतिशय शोभन अन्न वाले बनें।[ऋग्वेद 3.45.5]
हे इन्द्र देव! तुम धन से परिपूर्ण हो। अद्भुत संसार के स्वामी, श्रेष्ठ संकल्प वाले तथा सुन्दर कीर्ति वाले हो। अनेकों ने तुम्हारा पूजन किया है। तुम अपनी शक्ति से बड़े हुए हो। हमें अत्यन्त सुशोभित अन्न प्रदान करने वाले बनो।
Hey Indr Dev! You possess all sorts of wealth, the king of heaven, revered, speaks pleasing words and worshiped-revered by majority of the humans. Become mighty and grant us a lot of food grains.(27.11.2022)
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (46) :: ऋषि :- विश्वामित्र, गाथिन, देवता :- इन्द्र, छन्द :- त्रिष्टुप्।
युध्मस्य ते वृषभस्य स्वराज उग्रस्य यूनः स्थविरस्य घृष्वेः।
अजूर्यतो वज्रिणो वीर्या ३ णीन्द्र श्रुतस्य महतो महानि॥
हे इन्द्र देव! आप युद्ध करने वाले, अभिमत फल दाता, धनों के स्वामी, सामर्थ्यवान्, नितान्त तरुण, चिरन्तन, शत्रुओं को हराने वाले, जरा रहित, वज्रधारी और तीनों लोकों में विश्रुत हैं। आपका वीर्य महान् है।[ऋग्वेद 3.46.1]
विश्रुत :: सुना हुआ, विख्यात; famous, recognised.
हे इन्द्रदेव! तुम धनों के स्वामी, अभीष्ट फल प्रदान करने वाले, संग्राम में वृद्धि करने वाले, सामर्थ्य से परिपूर्ण, अजर शत्रुओं को पराजित करने वाले, अत्यन्त युवा, वज्र धारण करने वाले, शाश्वत और संसार त्रय में विख्याति ग्रहण हो।
Hey Indr Dev! You are a warrior always defeating the enemy, possess Vajr, accomplish desires, possessor of wealth, capable, young, famous in the three abodes and invincible.
INVINCIBLE :: अजेय, अपराजेय, जिसे जीता न सके; insurmountable, unbeaten, unconquerable, insuperable, inexpungable.
महाँ असि महिष वृष्ण्येभिर्धनस्पृदुग्र सहमानो अन्यान्।
एको विश्वस्य भुवनस्य राजा स योधया च क्षयया च जनान्॥
हे पूजनीय उग्र इन्द्र देव! आप महान् है। आप अपने धन को पार ले जाते हैं। पराक्रम से शत्रुओं को आप अभिभूत करते हैं। आप सम्पूर्ण संसार के एकमात्र राजा है। आप शत्रुओं का संहार कर साधु चरित जनों को स्थापित करें।[ऋग्वेद 3.46.2]
हे इन्द्रदेव! तुम उग्र कर्म वाले तथा पूजनीय हो। तुम अपने धन का सेवन करने वाले हो। अपने पराक्रम से शत्रुओं को आतंकित करते हो। तुम सम्पूर्ण संसार के एक मात्र स्वामी हो।
Hey worship able furious Indr Dev! You put the wealth to appropriate use. Enchant the enemy with your might-valour. You are the only king of the universe. Destroy the enemy and establish the sages, virtuous, righteous people.
प्र मात्राभी रिरिचे रोचमानः प्र देवेभिर्विश्वतो अप्रतीतः।
प्र मज्मना दिव इन्द्रः पृथिव्याः प्रोरोर्महो अन्तरिक्षादृजीषी॥
दीप्यमान् और सब प्रकार से अपरिमित सोमवान इन्द्र देव पर्वतों से भी श्रेष्ठ, बल में देवताओं से भी अधिक, द्यावा-पृथ्वी से भी अधिक श्रेष्ठ हैं और विस्तीर्ण, महान् अन्तरिक्ष से भी श्रेष्ठ हैं।[ऋग्वेद 3.46.3]
यह इन्द्र देव सोमयुक्त हैं, सभी प्रकार से असीमित तथा शैल से भी अधिक अडिग है। वह प्रकाशयुक्त देवगणों से भी अधिक शक्तिशाली है। यह आकाश और धरा से भी विस्तृत है तथा विशाल और महान अंतरिक्ष से भी उत्कृष्ट है।
Indr Dev is Aurous, infinite, possessor of Somras, mightier than the mountains, better than all demigods-deities in strength & power, better the the sky & earth, great, all pervading-vast and superior to the space.
उरुं गभीरं जनुषाभ्यु १ ग्रं विश्वव्यचसमवतं मतीनाम्।
इन्द्रं सोमासः प्रदिवि सुतासः समुद्रं न स्त्रवत आ विशन्ति॥
हे इन्द्र देव! आप महान् हैं, इसलिए गंभीर हैं तथा स्वभाव से ही शत्रुओं के लिए भयङ्कर हैं। आप सभी जगह व्याप्त है, स्तोताओं के रक्षक है। नदियाँ जिस प्रकार से समुद्र के अभिमुख गमन करती हैं, उसी प्रकार यह पूर्वकालिक अभिषुत सोमरस इन्द्र देव के अभिमुख गमन करे।[ऋग्वेद 3.46.4]
हे इन्द्रदेव! तुम अत्यन्त गंभीर एवं श्रेष्ठतम हो। तुम अपने स्वभाव से ही शत्रुओं के प्रति विकराल हो जाते हो। तम सर्व व्यापक एवं वंदना करने वालों की सुरक्षा करने वाले हो। जैसे नदियाँ समुद्र की ओर प्रस्थान करती हैं, वैसे ही यह पुराने समय से व्यहृत सोम सुविख्यात होकर इन्द्र देव की तरफ जाने वाला हो।
Hey Indr Dev! You are great, serious and furious to the enemy by nature. You pervade all, protect the devotees-worshipers. The way the rivers move towards the ocean, the Somras extracted earlier comes to you.
यं सोममिन्द्र पृथिवीद्यावा गर्भं न माता बिभृतस्त्वाया।
तं ते हिन्वन्ति तमु ते सृजन्यध्वर्यवो वृषभ पातवा उ॥
हे इन्द्र देव! माता जिस प्रकार गर्भधारित करती है, उसी प्रकार द्यावा-पृथ्वी आपकी कामना से सोमरस को धारित करती है। हे कामनाओं के पूरक, उसी सोम को अध्वर्यु लोग आपके लिए प्रेरित करते हैं और उसे आपके पीने के लिए शुद्ध करते हैं।[ऋग्वेद 3.46.5]
हे इन्द्र देव! गर्भ धारण करने वाली माता के समान तुम्हारी अभिलाषा करने वाले आसमान और धरती सोम को धारण करती है। तुम कामनाओं के पूर्ण करने वाले हो। अधवर्युगण उसी सोम को ग्रहण करते हैं।
Hey Indr Dev! The way the mother nourish-sustain the child in her womb, the sky & earth, sustain Somras. Hey desire accomplishing! The Ritviz-priests inspire you to drink Somras.(28.11.2022)
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (47) :: ऋषि :- विश्वामित्र, गाथिन, देवता :- इन्द्र, छन्द :- त्रिष्टुप्।
मरुत्वाँ इन्द्र वृषभो रणाय पिबा सोममनुष्वधं मदाय।
आ सिञ्चस्व जठरे मध्व ऊर्मिं त्वं राजासि प्रदिवः सुतानाम्॥
हे इन्द्र देव! आप जलवर्षक मरुत्वान् है। रमणीय पुरोडाशादि रूप अन्न से युक्त सोमरस को आप संग्राम और हर्ष के लिए ग्रहण करें। आप विशेष रूप से सोम संघात का जठर में सेक करें, क्योंकि आप पूर्वकाल से ही अभिषुत सोमों के स्वामी है।[ऋग्वेद 3.47.1]
हे इन्द्र देव! तुम मरुद्गण के मित्र तथा फल की वृष्टि करने वाले हो। तुम हवि रूप अन्न से परिपूर्ण सोम को युद्ध आदि के लिए तथा आनन्द वर्द्धन के लिए पान करो। तुम उस सोम को उदर में सींचो। तुम पुराने समय से ही सोमों के अधीश्वर हो।
Hey Indr Dev! You make the rain fall with the help of Marud Gan. Accept & enjoy Somras and the lobes made of barley as offerings. Let Somras be stored in your belly-stomach. You are the master-Lord of extracts from ancient times.
सजोषा इन्द्र सगणो मरुद्भिः सोमं पिब वृत्रहा शूर विद्वान्।
जहि शत्रूंरप मृधो नुदस्वाथाभयं कृणुहि विश्वतो नः॥
हे शूर इन्द्र देव! आप देवगणों से संगत, मरुद्गणों से युक्त, वृत्र हन्ता और कर्म विषय ज्ञाता हैं। आप सोमरस का पान करें। हमारे शत्रुओं का वध करें, हिंसक जन्तुओं का वध करें और हमें सभी जगह निर्भय करें।[ऋग्वेद 3.47.2]
हे इन्द्र देव! तुम पराक्रमी हो। तुम देवगणों के मित्र तथा मरुतों की सहायता को प्राप्त करने वाले हो। तुम वृत्र का संहार करने वाले तथा सभी कर्मों को जानते हो। तुम सोम ग्रहण करते हुए हमारे शत्रुओं को मार डालो। हिंसक जीवों को नष्ट कर डालो तथा हमको सभी ओर से निर्भय कर दो।
Hey Indr Dev! You are brave-mighty. You are helped by the demigods-deities and the Marud Gan. You are the slayers of Vrata Sur. Kill our enemies and the beasts. so that we can move-roam freely every where.
उत ऋतुभिर्ऋतुपाः पाहि सोममिन्द्र देवेभिः सखिभिः सुतं नः।
याँ आभजो मरुतो ये त्वान्वहन्वृत्रमदधुस्तुभ्यभोजः॥
हे ऋतुपा इन्द्र देव! सखा-स्वरूप मरुतों और देवों के साथ आप हमारे अभिषुत सोमरस का पान करें। युद्ध में सहायता पाने के लिए जिन मरुतों का आपने सेवन किया और जिन मरुतों ने आपको स्वामी माना, उन्हीं मरुतों ने आपको संग्राम में शत्रु हननादि-रूप पराक्रमवान् किया; तब आपने वृत्रासुर को मारा।[ऋग्वेद 3.47.3]
हे इन्द्र देव! तुम अपने सखा रूप देवों और मरुद्गणों को साथ लेकर हमारे संस्कारित सोम का पान करो। युद्ध में सहायता के लिए तुमने जिन मरुतों का साथ लिया था और जिन मरुतों ने तुम्हें अपना ईश्वर स्वीकार किया, उन्हीं मरुतों ने युद्ध में तुम्हारी शक्ति में वृद्धि की थी। फिर तुमने शत्रुओं का विनाश किया था।
Hey Indr Dev! Drink the Somras along with the friendly Marud Gan, demigods-deities. You took help from Marud Gan in the war and they accepted you as their Lord-leader. They destroyed the enemy in the war & you killed Vrata Sur.
ये त्वाहिहत्ये मघवन्नवर्धन्ये शाम्बरे हरिवो ये गविष्टौ।
ये त्वा नूनमनुमदन्ति विप्राः पिबेन्द्र सोमं सगणो मरुद्धिः॥
हे मघवन्, हे अश्ववन् इन्द्र देव! जिन मरुतों ने अहि हनन कार्य में बलिदान द्वारा, आपको संवर्द्धित किया। जिन्होंने आपको शम्बर वध में संवर्द्धित किया और जिन्होंने गौओं के लिए पणि असुरों के साथ युद्ध में संवर्द्धित किया। जो मेधावी मरुत आपको आज भी प्रसन्न कर रहे हैं, उन मरुद्गणों के साथ आप सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 3.47.4]
हे मघवन्! तुम अश्वों से युक्त हो। जिन मरुद्गणों ने तुम्हें दानव को मारने वाले कार्य में बढ़ाया था, जिन्होंने तुम्हें शम्बर को मारने के कार्य में शक्तिशाली बनाया तथा उन्होंने गौओं के लिए मनुष्यों के साथ हुए संग्राम में तुम्हें प्रवृत्त किया था। वे मरुद्गण प्रज्ञावान हैं। वे अब भी तुमको आनन्द प्रदान करने में लगे रहते हैं। तुम उन्हीं मरुतों सहित आकर सोम पियो।
Hey Maghvan Indr Dev! You possess horses. The intelligent Marud Gan helped you in killing Ahi, Shambar & took part in the war against Pani for releasing cows, are pleasing you. Drink Somras along with them.
मरुत्वन्तं वृषभं वावृधानमकवारिं दिव्यं शासमिन्द्रम्।
विश्वासाहमवसे नूतनायोग्रं सहोदामिह तं हुवेम॥
हे इन्द्र देव! आप मरुद्गण युक्त, जल वर्षी, प्रोत्साहक, प्रभूत शब्द विशिष्ट, दिव्य, शासनकर्ता, विश्व के अभिभविता, उग्र तथा बलप्रद हैं। हम नूतन आश्रय लाभ के लिए आपका आह्वान करते हैं।[ऋग्वेद 3.47.5]
हे इन्द्र देव! तुम मरुतों से परिपूर्ण हो। तुम जल की वृष्टि करते हो। संसार के नियन्ता तथा सम्राट हो। तुम विकराल कार्य वाले अत्यन्त शक्तिशाली हो। दिव्य तथा अद्भुत हो। हम तुम्हारा अभिनव आश्रय करने के लिए स्नेह पूर्वक आह्वान करते हैं।
Hey Indr Dev! You associate with Marud Gan, makes the rain fall, controls the universe, amazing, divine, furious & mighty-powerful. We request you to grant us asylum.(30.11.2022)
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (48) :: ऋषि :- विश्वामित्र, गाथिन, देवता :- इन्द्र, छन्द :- त्रिष्टुप्।
सद्यो ह जातो वृषभः कनीनः प्रभर्तुमावदन्धसः सुतस्य।
साधोः पिब प्रतिकामं यथा ते रसाशिरः प्रथमं सोम्यस्य॥
हे जल वर्षक, सद्यः उत्पन्न, कमनीय इन्द्र देव! हविर्युक्त सोमरूप अन्न के संग्रहकर्ता की रक्षा करें। प्रत्येक कार्य में सोमपान की इच्छा होने पर आप देवताओं के पहले गव्य मिश्रित साधु सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 3.48.1]
वे जल की वर्षा करने वाले, सद्याजात इन्द्र देव हवि से परिपूर्ण सोम को जोड़ने वाले के रक्षक हो। सोमपान की कामना करते हुए तुम दुग्धादि से परिपूर्ण सोम के देवों से पूर्व ही पान करो।
सद्योजात :: नवजात शिशु, जो अभी या कुछ ही समय पहले उत्पन्न हुआ हो, शिव का एक रूप या मूर्ति; new born, just born.
Hey rain causing, just born, lovely Indr Dev! Protect the stockist of Som, offerings and the food grains. Drink Somras mixed with cow milk prior to demigods-deities.
यज्जायथास्तदहरस्य कामेंऽशोः पीयूषमपिबो गिरिष्ठाम्।
तं ते माता परि योषा जनित्री महः पितुर्दम आसिञ्चदग्रे॥
हे इन्द्र देव! आप जिस दिन उत्पन्न हुए, उसी दिन पिपासित होने पर आपने पर्वतस्थ सोमलता के रस का पान किया। आपके महान पिता कश्यप के घर में आपकी युवती माता अदिति ने स्तन्यदान के पहले आपके मुँह में सोमरस का ही सिञ्चन किया।[ऋग्वेद 3.48.2]
हे इन्द्र देव! तुमने रचित होते ही प्यास लगने पर स्थित सोमलता का रसपान किया था। तुम्हारी जननी अदिति ने तुम्हारे पिता कश्यप के घर में स्तन पिलाने से पहले सोम रस को तुम्हारे मुख में डाल दिया था।
Hey Indr Dev! You drank Somras as soon as you were born. Your father sage Kashyap dropped Somras in your mouth prior to being fed with her milk by your mother Aditi.
उपस्थाय मातरमन्नमैट्ट तिग्ममपश्यदभि सोममूधः।
प्रयावयन्नचरद्गृत्सो अन्यान्महानि चक्रे पुरुधप्रतीकः॥
इन्द्र देव ने माता से प्रार्थना पुरःसर अन्न की याचना की और उसके स्तन में क्षीर रूप से स्थित दीप्ति सोमरस को देखा। गुत्स शत्रुओं को अपने स्थानों से उच्चालित कर सभी जगह विचरण करने लगे। नाना प्रकार से अङ्ग विक्षेपकर इन्द्र देव ने वृत्र हननादि बहुत से महान् कार्य किए।[ऋग्वेद 3.48.3]
इन्द्र देव ने जननी से अन्न की विनती की। तब उन्होंने सबके स्तन से दुग्ध रूप उज्ज्वल सोम का दर्शन किया। शत्रुओं का संहार करने के लिए देवगणों द्वारा अभिलाषा किये गये इन्द्र शत्रुओं के अपने से हटाते हुए घूमने लगे। उनके अंग-भंग करते हुए इन्द्रदेव ने वृत्र को मारा और अनेकों बल से परिपूर्ण श्रेष्ठ कार्य सम्पन्न किये।
When Indr Dev, requested his mother to feed him with food grains, he saw Somras in her milk. Indr started removing the enemies as desired by the demigods-deities. He killed Vratr chopping his organs-limbs and performed several great deeds.
उग्रस्तुराषाळभिभूत्योजा यथावशं तन्वं चक्र एषः।
त्वष्टारमिन्द्रो जनुषाभिभूयामुष्या सोममपिबच्चमूषु॥
शत्रुओं के लिए भयङ्कर, शीघ्र अभिभव कर्ता और पराक्रमवान इन्द्र देव ने अपने शरीर को नाना प्रकार का बनाया। इन्होंने अपनी सामर्थ्य से त्वष्टा नामक असुर को पराजित कर चमस स्थित सोमरस को चुराकर पिया।[ऋग्वेद 3.48.4]
वे इन्द्रदेव शत्रुओं के लिए भयंकर हैं। वे अपनी वीरता से शत्रुओं को जल्दी ही पराजित करते हैं। वे अपना रूप अनेक तरह का बनाने में समर्थ हैं। उन्होंने अपनी शक्ति से त्वष्टों को आधीन कर चमस में दृढ़ सोम का पान किया था।
Furious Indr Dev was quick to defeat the enemies. He took various shapes-forms. He defeated demon Twasta and drank the Somras present in the Chamas.
शुनं हुवेम मघवानमिन्द्रमस्मिन्भरे नृतमं वाजसातौ।
शृण्वन्तमुग्रमूतये समत्सु घ्नन्तं वृत्राणि संजितं घनानाम्॥
हे इन्द्र देव! आप अन्न प्राप्त करें। युद्ध में उत्साह के द्वारा प्रवृद्ध, धनवान्, प्रभूत, ऐश्वर्य वाले, नेतृ श्रेष्ठ, स्तुति श्रवण कर्ता, उग्र, युद्ध में शत्रु विनाशी और धन विजेता हैं। आश्रय प्राप्ति के लिए हम आपको बुलाते हैं।[ऋग्वेद 3.48.5]
प्रभूत :: जो हुआ हो, निकला हुआ, उद्गत, बहुत अधिक, प्रचुर, पूर्ण, पूरा, पक्व, पका हुआ, उन्नत, उद्गम; भूत, उत्पन्न, उद्गम; ample, excellent, outstanding, regeneratory, ample, sufficient, abundant.
हे इन्द्र देव! हे मधवन! तुम अन्न प्राप्त करने वाले युद्ध हर्ष द्वारा वृद्धि को प्राप्त होते हो। तुम धन और ऐश्वर्य युक्त, उत्तम नेतृत्व वाले तथा प्रार्थनाओं को श्रवण करने वाले हो। तुम भयंकर रूप वाले भीषण लड़ाई में शत्रु का नाश करते हुए धनों को जीतते हो। आश्रय प्राप्त करने के लिए हम तुम्हारा आह्वान करते हैं।
Hey Indr Dev! You collect-receive food grains. You are energetic, rich, possess ample grandeur, excellent leader-commander, listens-answers requests-prayers, furious destroyer in the war-battle and winner of money, wealth. We seek patronage-asylum under you.(01.12.2022)
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (49) :: ऋषि :- विश्वामित्र, गाथिन, देवता :- इन्द्र, छन्द :- त्रिष्टुप्।
शंसा महामिन्द्रं यस्मिन्विश्वा आ कृष्टयः सोमपाः काममव्यन्।
यं सुक्रतुं धिषणे विभ्वतष्टं घनं वृत्राणां जनयन्त देवाः॥
हे स्तोता! महान् इन्द्र देव की प्रार्थना करें। इन्द्र देव के द्वारा रक्षित होने पर सब मनुष्य यज्ञ में सोमपान कर अभीष्ट प्राप्त करते हैं। देवताओं और द्यावा-पृथ्वी ने ब्रह्मा द्वारा आधिपत्य के लिए नियुक्त शोभन कर्म वाले तथा पापों के हन्ता इन्द्र देव को उत्पन्न किया।[ऋग्वेद 3.49.1]
हे वंदना करने वालो! यह इन्द्र देव श्रेष्ठ हैं, इनकी प्रार्थना करो। इन्द्र देव द्वारा रक्षित हुए समस्त मनुष्य यज्ञ में सोमपान करते हैं और इच्छित फल प्राप्त करते हैं। देवगण तथा आकाश और पृथ्वी ने ब्रह्मा द्वारा संसार के स्वामी बनाये गये, श्रेष्ठ कार्य वाले, पाप विनाशक इन्द्र देव को प्रकट किया।
Hey recitators of sacred hymns-worshipers! Pray-worship Indr Dev. Being protected by Indr Dev, the Ritviz drink Somras in the Yagy. Indr Dev was appointed by Brahma Ji to rule and sky-earth & the demigods-deities evolved excellent performer Indr Dev to destroy the sins.
यं नु नकिः पृतनासु स्वराजं द्विता तरति नृतमं हरिष्ठाम्।
इनतमः सत्वभिर्यो ह श्रूषैः पृथुज्रया अमिनादायुर्दस्योः॥
युद्ध में अपने तेज से राजमान, हरि नामक घोड़ों से युक्त रथ पर स्थित, बल-युद्ध के नेता और संग्राम में सेनाओं को दो भागों में विभक्त करने वाले जिन इन्द्र देव को कोई भी अतिक्रान्त नहीं कर सकता, वे ही इन्द्र देव सेनाओं के उत्कृष्ट स्वामी हैं। वे युद्ध में शत्रु बल के शोषक मरुतों के साथ तीव्र वेग होकर शत्रुओं के प्राणों को नष्ट करते हैं।[ऋग्वेद 3.49.2]
युद्ध में अपने तेज से सुशोभित, अश्व जुते हुए रथ पर बैठे हुए बलवानों के युद्ध में नायक रूप लड़ती हुई सेनाओं को दो और विभक्त करने वाले जिन इन्द्र पर आक्रमण करने में कोई सक्षम नहीं है, वे इन्द्र उन सेनाओं के सेनापति हैं। युद्ध में शत्रुओं के पराक्रम को कम करने वाले मरुद्गण के साथ वे इन्द्र अत्यधिक बल वाले होकर शत्रुओं के जीवन को समाप्त करने में सक्षम हैं।
Indr Dev full of energy-aura takes part, seated over the charoite in which the horses named Hari have been deployed, as a leader-commander, being the excellent leader of demigods-deities army; divides the enemy army in two halves, can not be defeated by anyone.
सहावा पृत्सु तरणिर्नार्वा व्यानशी रोदसी मेहनावान्।
भगो न कारे हव्यो मतीनां पितेव चारुः सुहवो वयोधाः॥
जिस प्रकार से बलवान अश्व शत्रु बल का सन्तरण करता है, उसी प्रकार बलवान् इन्द्र देव संसार में शत्रुओं का नाश करते हैं। द्यावा-पृथ्वी को व्याप्त कर इन्द्र देव धनवान होते है। यज्ञ में पूषदेव के तुल्य हवनीय इन्द्र देव स्तुति करने वालों के पिता हैं। आहूत होकर कमनीय इन्द्र देव अन्नदाता होते हैं।[ऋग्वेद 3.49.3]
जैसे बलवान घोड़े शत्रुओं के निकट तेज गति से जाते हैं, वैसे ही वे सामर्थ्यवान इन्द्र देव स्पर्द्धा से परिपूर्ण युद्ध में अधिक वेगवान होते हैं। इन्द्र देव आकाश पृथ्वी को महान धनों से सम्पन्न करते हैं। यज्ञ में की जाने वाली वंदनाओं के वे पिता समान हैं। वे पुकारे जाने पर अन्न प्रदान करने वाले हैं।
The way the powerful horses moves fast towards the enemy, Indr Dev become quick-fast to destroy the enemy in the universe. He pervades the heavens & earth and possess lots of riches. He is like a father for those performing Yagy and grants food grains on being prayed-worshiped.
धर्ता दिवो रजसस्पृष्ट ऊर्ध्वो रथो न वायुर्वसुभिर्नियुत्वान्।
क्षपां वस्ता जनिता सूर्यस्य विभक्ता भाग धिषणेव वाजम्॥
इन्द्र देव द्युलोक तथा आकाश को धारित करते हैं। वे ऊर्ध्वगामी रथ के तुल्य वर्त्तमान हैं। वे गमनशील मरुतों के द्वारा सहायवान् हैं। वे रात्रि को आच्छादित करते हैं। सूर्य को उत्पन्न करते हैं और भजनीय कर्म फल रूप अन्न का उसी प्रकार विभाग करते हैं, जिस प्रकार से धनी का वाक्य धन विभाग करता है।[ऋग्वेद 3.49.4]
वे ऊपर की ओर चढ़ने वाले रथ के समान उन्नत हैं। वे मरुद्गणों की सहायता प्राप्त कर चुके हैं। वे रात्रि को तम करते तथा सूर्य को उदय करते हैं। वे कर्म के फल रूप अन्न को वैसे ही विभाजन करते हैं जैसे, धनवान व्यक्ति अपनी वाणी द्वारा धन का विभाजन करता है।
Indr Dev supports the heavens & the earth. He is like the charoite which moves up vertically. He is helped by the Marud Gan. He controls-generate the might and leads to Sun rise-day break. He distribute the food grains according to the deeds-endeavours of the performers, like the rich who issues instruction for the distribution of money.
Here the importance-significance of labour, endeavours, efforts is clearly mentioned, stressed by Bhagwan Shri Krashn in Shrimad Bhagwat Geeta. A person is bound to get the rewards & punishments according to his deeds, good-bad, virtuous-wicked, virtues-sin etc. Though one should pray-worship God, demigods, deities yet he must resort to work for his survival.
शुनं हुवेम मघवानमिन्द्रमस्मिन्भरे नृतमं वाजसातौ।
श्रण्वन्तमुग्रमूतये समत्सु घ्नन्तं वृत्राणि संजितं धनानाम्॥
हे इन्द्र देव! आप अन्न प्राप्त करें। आप युद्ध में उत्साह के द्वारा प्रवृद्ध, धनवान्, प्रभूत ऐश्वर्य वाले, नर श्रेष्ठ, स्तुति श्रवण कर्ता, उग्र, युद्ध में शत्रु विनाशी और धन विजेता हैं। आश्रय-प्राप्ति के लिए हम आपको बुलाते हैं।[ऋग्वेद 3.49.5]
हे भगवन्! तुम अन्न ग्रहण करने वाले संग्राम में उत्साह के द्वारा वृद्धि को ग्रहण होते हो। तुम धन और समृद्धि से परिपूर्ण, नेतृत्व से परिपूर्ण तथा वंदनाओं के श्रवण कर्त्ता हो। तुम उम्र कार्य करने वाले हो, युद्ध में शत्रुओं को विनाश करने में समर्थ हो। तुम धनों के विजेता हो। शरण पाने के लिए तुम्हारा आह्वान करते हैं।
Hey Indr Dev! You show your might in the war, in which the target is food grains. You enthusiastically take part in the war, possess grandeur, excellent leader-commander, respond to the prayers-worship of devotees, furious, destroyer of the enemy and winner of wealth. We seek shelter, asylum, protection under you.(02.12.2022)
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (50) :: ऋषि :- विश्वामित्र, गाथिन, देवता :- इन्द्र, छन्द :- त्रिष्टुप्।
इन्द्रः स्वाहा पिबतु यस्य सोम आगत्या तुभ्रो वृषभो मरुत्वान्।
ओरुव्यचाः पृणतामेभिरन्नैरास्य हविस्तन्व १: काममृध्याः॥
हे इन्द्र देव! यज्ञ में आकर स्वाहाकृत इस सोमरस का पान करें। जिन इन्द्र देव का यह सोमरस है, वे विघ्नकारियों के हिंसक याजकों के अभिमतफल वर्धक और मरुद्वान् हैं। अतिशय व्यापक इन्द्र देव हम लोगों के द्वारा दिए गए अन्न से तृप्त होवें। यह हव्य इन्द्र देव की अभिलाषा पूर्ण करें।[ऋग्वेद 3.50.1]
हे इन्द्र देव! हमारे यज्ञ में पधार कर इस सोम रस का पान करो। यह सोम जिन इन्द्र देव के लिए हैं, वे बाधा डालने वालों की हिंसा करने में समर्थ हैं। वे मरुतों से परिपूर्ण इन्द्र देव यज्ञ कर्त्ताओं पर पुष्पों की वर्षा करते हैं। वे अत्यन्त व्यापक हैं। हमारे द्वारा अर्पित अन्न से ही वे तृप्त हों। हवि उनको संतुष्ट करें।
Hey Indr Dev! Oblige us by participating and drinking Somras in this Yagy. This Somras is for Indr Dev who destroy the enemy in association with Marud Gan. Vast-broad Indr Dev should be satisfied with our offerings of food grains.
आ ते सपर्यू जवसे युनज्मि ययोरनु प्रदिवः श्रुष्टिमावः।
इह त्वा घेयुर्हरयः सुशिप्र पिबा त्व१स्य सुषुतस्य चारोः॥
हे इन्द्र देव! आपको यज्ञ में आने के लिए हम रथ को परिचारक अश्व युक्त करते हैं। आप पुरातन है, घोड़ों के वेग का अनुगमन करते हैं। हे शोभन हनु इन्द्र देव! घोड़े आपको यज्ञ में धारित करें। आप आकर इस कमनीय और भली-भाँति अभिषुत सोमरस का शीघ्र पान करें।[ऋग्वेद 3.50.2]
हे इन्द्र देव! तुम्हें अनुष्ठान में बुलाने के लिए हम रथ में अश्वों को जोड़ते हैं। वे तुम्हें प्राचीन काल से अश्वों का अनुगमन करने वालों को इस यज्ञ में लायें। तुम इस श्रेष्ठ प्रकार से सिद्ध किये गये सोम रस को यहाँ पधारकर पान करो।
Hey Indr Dev! Let the care takers deploy the horses in the charoite to bring you to our Yagy. You are ancient-eternal. Hey Indr Dev possessing beautiful chin! Come quickly and drink this excellent Somras extracted for you.
गोभिर्मिमिक्षं दधिरे सुपारमिन्द्रं ज्यैष्ठ्याय धायसे गृणानाः।
मन्दानः सोमं पपिवाँ ऋजीषिन्त्समस्मभ्यं पुरुधा गा इषण्य॥
स्तोताओं के अभिमत फल वर्षक और स्तुति द्वारा प्रसन्न करने योग्य इन्द्र देव को स्तोत्र करने वाले ऋत्विक लोग श्रेष्ठत्व और चिरकालीन प्राप्ति के लिए गव्य मिश्रित सोमरस के द्वारा धारित करते हैं। हे सोमवान् इन्द्र देव! प्रसन्न होकर आप सोमपान करें और स्तोताओं को अग्रिहोत्रादि कार्य सिद्धि के लिए बहुविध गौ प्रदान करें।[ऋग्वेद 3.50.3]
वंदना किये जाने वाले, अभीष्टों की वृद्धि करने वाले तथा प्रार्थनाओं से प्रसन्न होने वाले इन्द्र देव के वंदनाकारी ऋत्विक महान तत्व की प्राप्ति हेतु दुग्ध से परिपूर्ण सोम धारण करते हैं। हे इन्द्र देव! तुम सोम रस से परिपूर्ण हो। तुम हर्षिता पूर्वक सोम का पान करो और वंदना करने वालों को अनुष्ठान सिद्धि के लिए धेनु प्रदान करो।
The Ritviz pray-worship Indr Dev, offer him Somras mixed with cow milk to seek fulfilment of their desires and longevity. Hey Indr! Be cheerful, drink Somras and grant cows to the worshipers-Ritviz for conducting Agnihotr-Yagy, Hawan
इमं कामं मन्दया गोभिरश्वैश्चन्द्रवता राधसा पप्रथश्च।
स्वर्यवो मतिभिस्तुभ्यं विप्रा इन्द्राय वाहः कृशिकासो अक्रन्॥
हे इन्द्र देव! हमारी इस अभिलाषा को गौ, अश्व और दीप्ति वाले धन के द्वारा पूर्ण करें और उनके द्वारा हमें विख्यात करें। स्वर्गादि सुखाभिलाषी और कर्म कुशल कुशिक नन्दनों ने मन्त्र द्वारा आपकी स्तुति की है।[ऋग्वेद 3.50.4]
हमारी अभिलाषा को गाय, घोड़े और उत्तम धन से पूर्ण, करो। धन द्वारा हमको प्रसिद्धि प्राप्त हो। हे इन्द्रदेव! स्वर्ग सुख की अभिलाषा करने वाले कर्मवान कौशिकों ने मंत्रों द्वारा तुम्हारी वंदना की है।
Hey Indr! Accomplish our desires-needs for cows, horses and excellent wealth-riches like shinning Gold. We should become famous with these. The sons of Kaushik, well versed with the procedures-methods of conducting Yagy, prayed-worshiped you with the desires of the luxuries-comforts of heaven.
शुनं हुवेम मघवानमिन्द्रमस्मिन्भरे नृतमं वाजसातौ।
शृण्वन्तमुग्रमूतये समत्सु घ्नन्तं वृत्राणि संजितं धनानाम्॥
हे इन्द्र देव! आप अन्न प्राप्त करें। आप युद्ध में उत्साह के द्वारा प्रवृद्ध, धनवान्, प्रभूत ऐश्वर्य वाले, नेतृ श्रेष्ठ, स्तुति श्रवणकर्ता, उम्र, युद्ध में शत्रु विनाशी और धन विजेता है। हम आश्रय प्राप्ति के लिए आपको बुलाते हैं।[ऋग्वेद 3.50.5]
हे इन्द्रदेव! तुम अन्न को ग्रहण करते हो। युद्ध में उत्साह द्वारा वृद्धि करते हुए धन और समृद्धि के स्वामी बनते हो। तुम महान नेतृत्व शक्ति से परिपूर्ण हो तथा प्रार्थनाओं के सुनने वाले हो। तुम उग्र शक्ति वाले हो । युद्ध में शत्रुओं का पतन करके धन जीतते हो। हम शरण प्राप्ति हेतु तुम्हारा आह्वान करते हैं।
Hey Indr Dev! You show your might in the war, in which the target is food grains. You enthusiastically take part in the war, possess grandeur, excellent leader-commander, respond to the prayers-worship of devotees, furious, destroyer of the enemy and winner of wealth. We seek shelter, asylum, protection under you.(03.12.2022)
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (51) :: ऋषि :- विश्वामित्र, गाथिन, देवता :- इन्द्र, छन्द :- त्रिष्टुप्, जगती, गायत्री।
चर्षणीधृतं मघवानमुक्थ्य१मिन्द्रं गिरो बृहतीरभ्यनूषत।
वावृधानं पुरुहूतं सुवृक्तिभिरमर्त्य जरमाणं दिवेदिवे॥
अभिमत फल प्रदान से मनुष्यों के धारक, धनवान् उकथ द्वारा प्रशंसनीय, बल-धन आदि सम्पत्ति से प्रतिक्षण वर्द्धमान, स्तोताओं द्वारा बहुशः आहूत, मरण धर्म रहित और शोभन स्तुति वचन से प्रति दिन स्तूयमान इन्द्र देव की प्रभूत स्तुति वचनों से सब प्रकार से प्रार्थना की जावें।[ऋग्वेद 3.51.1]
अभिष्ट वस्तु प्रदान करके मनुष्यों के पोषण कर्त्ता, प्रशंसनीय, धन, परिधान और समृद्धि से लगातार वृद्धि करते हुए, वंदना करने वालों द्वारा अनेक बार पुकारे गये, अत्यन्त शोभायमान रूप गुणों से सुशोभित इन्द्र देव के श्लोकों का उच्चारण करें।
Indr Dev, who grant the desired commodities-boons on being prayed-worshiped every day several times, is supporter of humans, possess unlimited might-power & wealth, is immortal.
शतक्रतुमर्णवं शाकिनं नरं गिरो म इन्द्रमुप यन्ति विश्वतः।
वाजसनिं पूर्भिदं तूर्णिमप्तुरं धामसाचमभिषाचं स्वर्विदम्॥
इन्द्र सौ यज्ञ करने वाले, जल वाले, मरुतों से युक्त, समस्त संसार के नेता, अन्न के दाता, शत्रु पुरी के भेदक, युद्धार्थ शीघ्र गन्ता, मेघ भेदन द्वारा जल के प्रेरक, धन-प्रदाता, शत्रुओं के अभिभव कर्ता और स्वर्ग के प्रदाता हैं। इन्द्र के पास हमारी स्तुति वाणी सभी प्रकार से जावें।[ऋग्वेद 3.51.2]
इन्द्र देव अनेकों कर्म वाले मरुतवान, जलवान, सागर के अग्रणी अन्नदाता, शत्रु के नगरों को ध्वंस करने वाले, युद्ध के लिए शीघ्र गमन करने वाले, मेघ को भेदकर जल गिराने वाले, धन का दान करने वाले, शत्रुओं को पराजित करने वाले एवं स्वर्ग लाभ कराने वाले हैं। उन इन्द्र देव को हमारी वंदना रूप वाणी प्राप्त हो।
Let our prayers be responded by Indr Dev, who is the performer of hundred Yagy, is leader of the whole universe, grants food grains, quick to respond to war, enters the forts of enemy and destroys them, tear the clouds to shower rains, grants riches.
आकरे वसर्जरिता पनस्यतेऽनेहसः स्तुभ इन्द्रो दुवस्यति।
विवस्वतः सदन आ हि पिप्रिये सत्रासाहमभिमातिहनं स्तुहि॥
इन्द्र देव शत्रुओं के बल संहारक हैं, संग्राम में वे सबसे प्रार्थित होते हैं। वे निष्पाप स्तुतियों को सम्मानित करते हैं। अग्रिहोत्रादि करने वाले याजक गण के घर में सोमपान कर वे अत्यन्त प्रसन्न होते हैं। विश्वामित्र, मरुतों के साथ शत्रुओं के अभिभवकर्ता और शत्रु संहारक इन्द्र देव की प्रार्थना करें।[ऋग्वेद 3.51.3]
युद्ध के मैदान में सभी वंदना करते हैं। वे शत्रुओं के समूह का पतन करते हैं। वे हृदय से की गई वंदनाओं का सम्मान करते हैं। वे यज्ञकर्त्ता यजमान के घर में सोमपान करके परमानंद को प्राप्त होते हैं। हे विश्वामित्र! मरुद्गण सहित शत्रुओं को विनाश करने वाले इन्द्र देव की वंदना करो।
Indr Dev destroys the enemy in the battle field. He is honoured-revered by every one. He accepts the prayers performed with pure heart. He become very happy by drinking Somras at the house of the Ritviz-Yagy performers. Vishwamitr should pray to the destroyer of the enemy & their down fall, along with Marud Gan.
नृणामुत्वा नृतमं गीर्भिरुक्थैरभि प्र वीरमर्चता सबाधः।
सं सहसे पुरुमायो जिहीते नमो अस्य प्रदिव एक ईशे॥
हे इन्द्र देव! आप मनुष्यों के नेता और वीर है। राक्षसों द्वारा पीड़ित ऋत्विक स्तुतियों तथा उकथों द्वारा आपको भली-भाँति अर्चित करते हैं। वृत्रहननादि कर्म करने वाले इन्द्र देव बल के लिए गमनोद्यम करते हैं। एकमात्र पुरातन इन्द्र देव ही इस अन्न के ईश्वर हैं; इसलिए इन्द्र देव को नमस्कार है।[ऋग्वेद 3.51.4]
हे इन्द्र देव! तुम शक्तिशाली तथा मनुष्यों के नायक हो असुरों द्वारा संतापित हुए ऋत्विक तुम्हारी स्तुति मंत्रों द्वारा भली प्रकार करते हैं। तुम वृत्र को मारने के कर्म में पराक्रम के साथ जाते हो। पुरातन इन्द्र ही इस अन्न के दाता हैं। इसलिए मैं उन्हीं इन्द्र को नमस्कार करता हूँ।
Hey Indr Dev! You are mighty-powerful. The Ritviz tortured-teased by the demons pray-worship you with sacred hymns-Mantr. You show your might, valour in destroying Vratr-the demon. Eternal Indr Dev is the God of food grains. Hence, I pray-worship him.
पूर्वीरस्य निष्षिधो मर्त्येषु पुरू वसूनि पृथिवी बिभर्ति।
इन्द्राय द्याव ओषधीरुतापो रयिं रक्षन्ति जीरयो वनानि॥
मनुष्यों में इन्द्र देव का अनुशासन अनेकानेक प्रकार का है। शासक इन्द्र देव के लिए पृथ्वी बहुत धन धारित करती है। इनकी आज्ञा से द्युलोक, औषधियाँ, जल, मनुष्यों और वृक्ष उनके उपभोग योग्य धन की रक्षा करते हैं।[ऋग्वेद 3.51.5]
इन्द्र देव का अनुशासन मनुष्यों में व्यापक रूप से उपस्थित है। उनके लिए धरा ही श्रेष्ठ समृद्धि धारण करती है। इन्द्र देव के आदेश से ही सूर्य औषधियों, मनुष्यों और वृक्षों के उपभोग के लिए अन्न की सुरक्षा करते हैं।
Human beings are disciplined by Indr Dev in several ways. Mother earth bears lots of wealth for Indr Dev. To carry out his orders the heaven, medicines, water, humans and the trees protect the wealth for his consumption-use.
तुभ्यं ब्रह्माणि गिर इन्द्र तुभ्यं सत्रा दधिरे हरिवो जुषस्व।
बोध्या३पिरवसो नूतनस्य सखे वसोजरितृभ्यो वयो धाः॥
हे अश्ववान इन्द्र देव! आपके लिए स्तोत्रों और शस्त्रों को ऋत्विक लोग यथार्थ ही धारित करते हैं, आप उनको ग्रहण करें। हे सभी के निवासयिता और मित्रस्वरूप इन्द्रदेव! आप सर्वत्र व्याप्त हैं। यह अभिनव हवि आपको दी गई है, इसे ग्रहण कर स्तोताओं को अन प्रदान करें।[ऋग्वेद 3.51.6]
हे इन्द्र देव! तुम अश्ववान हो। ऋत्विग्गण तुम्हारे लिए स्तोत्रों को धारण करते हैं, उन्हें स्वीकार करो। तुम सबको आवास देने वाले मित्र स्वरूप हो। इस नई हवि को प्रणाम कर वंदना करने वालों को अन्न दो।
Hey Indr Dev! You are the Lord-master of horses. Bearing of Strotr and the Shastr-arms by the Ritviz for you, is justified. You are friendly and grant home to all and pervade every where. Accept this unique offering meant for you and provide food grains to the praying Strota-devotees.
इन्द्र मरुत्व इह पाहि सोमं यथा शायते अपिबः सुतस्य।
तव प्रणीती तव शूर शर्मन्ना विवासन्ति कवयः सुयज्ञाः॥
हे मरुतों से युक्त इन्द्र देव! शर्याति राजा के यज्ञ में जिस प्रकार से आपने अभिषुत सोमरस का पान किया, उसी प्रकार इस यज्ञ में सोमरस का पान करें। हे शूर! आपके निर्बाध निवास स्थान में स्थिर और सुन्दर यज्ञ करने वाले मेधावी याजकगण हवि के द्वारा आपकी परिचर्या करते हैं।[ऋग्वेद 3.51.7]
हे मरुतवान इन्द्र देव! जिस प्रकार तुमने शर्यात के अनुष्ठान में सोमपान किया था, उसी प्रकार इस अनुष्ठान में भी करो। तुम पराक्रमी हो। तुम्हारे रुकने के स्थान में मेधावी अनुष्ठानकर्त्ता हवि द्वारा तुम्हारी सेवा करते हैं।
Hey Indr Dev associated by the Marud Gan! The way you drank Somras in the Yagy conducted by the king Sharyati, drink it in this Yagy as well. Hey brave-mighty! The intelligent Ritviz-devotees conducting beautiful Yagy, serve to you with the offerings at the site of your stay.
स वावशान इह पाहि सोमं मरुद्भिरिन्द्र सखिभिः सुतं नः।
जातं यत्त्वा परि देवा अभूषन्महे भराय पुरुहूत विश्वे॥
हे इन्द्र देव! सोमरस की कामना करते हुए आप अपने मित्र मरुतों के साथ हमारे इस यज्ञ में अभिषुत सोमरस का पान करें। हे पुरुओं द्वारा आहूत इन्द्र देव! आपके जन्म-ग्रहण करते ही सब देवताओं ने आपको महासंग्राम के लिए भूषित किया।[ऋग्वेद 3.51.8]
महासंग्राम :: महासमर; great war, epic battle.
हे इन्द्र देव! सोम की कामना से अपने सखा मरुतों सहित हमारे यज्ञ में सुसंस्कारित सोम को ग्रहण करो। तुमको पुरुवंशियों ने आमंत्रित किया था। तुम्हारे उत्पन्न होते ही समस्त देवताओं ने महासमर के लिए तुम्हें प्रतिष्ठित किया था।
Hey Indr Dev! Drink Somras along with your friends Marud Gan in this Yagy. Hey Indr Dev, worshiped-prayed by the Puru dynasty! The demigods-deities designated you for the epic battle as soon you were born, evolved, appeared.
अप्तूर्ये मरुत आपिरेषोऽमन्दन्निन्द्रमनु दातिवाराः।
तेभिः साकं पिबतु वृत्रखादः सुतं सोमं दाशुषः स्वे सधस्थे॥
हे मरुतों! जल के प्रेरणा से इन्द्र देव आपके मित्र होते हैं। उन्हें आपने प्रसन्न किया। वृत्र विनाशक इन्द्र देव आपके साथ हवि देने वाले याजकगण के घर में अभिषुत सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 3.51.9]
हे मरुद्गण! जल को प्रेरित करने के कारण इन्द्र देव तुम्हारे मित्र बने हैं। जिनको तुमने हर्षित किया है वे वृत्र का विनाश करने वाले इन्द्रदेव, हविदाता यजमान के गृह मैं सुसिद्ध किये गये सोम का तुम्हारे संग विराजमान होकर पान करें।
Hey Marud Gan! Indr Dev is friendly with you, since you inspire the water (to evaporate and form clouds for rains). You made him happy. Let the slayer of Vratr Indr Dev drink clarified Somras at the house of the devotee-worshiper with you.
इदं ह्यन्वोजसा सुतं राघानां पते। पिबा त्वस्य गिर्वणः॥
हे धन के स्वामी स्तूयमान इन्द्र देव! उद्देश्यानुक्रम से बल द्वारा इस अभिषुत सोमरस का शीघ्र पान करें।[ऋग्वेद 3.51.10]
हे इन्द्र देव! तुम धनों के ईश्वर हो। तुम अभिलाषा पूर्वक इस सोम को अपनी शक्ति से शीघ्र पान करो।
Hey Indr Dev, lord of wealth! Drink this Somras quickly in the order of priorities of functions-targets, goals with your strength.
यस्ते अनु स्वधामसत्सुते नि यच्छ तन्वम्। स त्वा ममत्तु सोम्यम्॥
हे इन्द्र देव! आपके लिए जो अन्न मिश्रित सोमरस अभिषुत हुआ है, उसमें अपने शरीर को निमग्न करें। आप सोमपान के योग्य हैं। आपको वह सोमरस प्रसन्न करे।[ऋग्वेद 3.51.11]
हे इन्द्रदेव! तुम्हारे लिए जो अन्न से युक्त सोम संस्कारित किया है, वह अपने हृदय को उसमें लगाओ। तुम सोम ग्रहण करने के पात्र हो? यह सोम तुम्हें प्रसन्न रखें।
Hey Indr Dev! Accept this Somras mixed with the extracts of food grains. Its meant for you. It suits you and give you pleasure.
Food grains release ethyl alcohol-basic component of wine.
प्र ते अश्नोतु कुक्ष्योः प्रेन्द्र ब्रह्मणा शिरः। प्र बाहू शूर राधसे॥
हे इन्द्र देव! वह सोमरस आपकी दोनों कुक्षियों को व्याप्त करे, स्तोत्रों के साथ वह आपके शरीर को व्याप्त करे। हे शूर! धन के लिए वह आपकी दोनों भुजाओं को भी व्याप्त करे।[ऋग्वेद 3.51.12] कुक्षि :: कोख, पेट; stomach, abdomen.
हे इन्द्र देव! यह सोम तुम्हारी दोनों कुक्षियों में व्याप्त हो। श्लोकों से युक्त हुआ सोम तुम्हारे शरीर में व्याप्त हो। हे वीर! यह सोम धन के लिए तुम्हारी दोनों भुजाओं को पुष्ट बनाएं।
Hey Indr Dev! Let this Somras spread in both segments of your stomachs and pervade your body with the recitation of sacred hymns. Let it spread over your arms to possess wealth.(06.12.2022)
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (52) :: ऋषि :- विश्वामित्र, गाथिन, देवता :- इन्द्र, छन्द :- त्रिष्टुप्, जगती, गायत्री।
धानावन्तं करम्भिणमपूपवन्तमुक्थिनम्। इन्द्र प्रातर्जुषस्व नः॥
हे इन्द्र देव! भुने हुए जौ से युक्त, दधि मिश्रित, सत्तू से युक्त, सवनीय पुरोडाश से युक्त और शस्त्र वाले हमारे सोमरस का प्रातःसवन में आप सेवन करें।[ऋग्वेद 3.52.1]
सत्तू :: भुने हुए चने और जौ का आटा जिसे सामान्यतया गुड़ या शक़्कर मिलाकर गर्मियों में खाया जाता है। इसे उत्तर भारत, बिहार आदि हिंदी भाषी क्षेत्रों ज्यादातर प्रयोग किया जाता है। Its is mixture of roasted gram and barley flour is eaten during summers by adding jaggary or Shakkar-jaggary power, raw sugar, in Northern India, UP & Bihar. Its nourishing, easy to digest.
हे इन्द्र देव! इस मिश्रित दही, सत्तू और पुरोडाश से परिपूर्ण पाषाण द्वारा प्रस्तुत हमारे सोम को प्रातः सवन में ग्रहण करो।
Hey Indr Dev! Consume flour of roasted gram and barley by mixing it in curd, lobes of bread along with Somras in the morning as breakfast.
पुरोळाशं पचत्यं जुषस्वेन्द्रा गुरस्व च। तुभ्यं हव्यानि सिस्रते॥
हे इन्द्र देव! पके हुए पुरोडाश का आप सेवन करें। पुरोडाश के भक्षण के लिए उद्यम करे। क्योंकि हवन के योग्य यह पुरोडाश आदि हवि आपके लिए गमन करती है।[ऋग्वेद 3.52.2]
पुरोडास :: यज्ञ में दी जाने वाली आहुति, जौ के आटे की टिकिया, हवि का एक प्रकार जिसमें जौ की रोटी विशेष विधि से बनाई जाती थी; lobes of backed barley used as offerings in the Yagy. Its used for eating as well. cake of ground barley offered as an oblation in fire, sacrificial oblation offered to the demigods-deities, Ghee-clarified butter is offered in oblations to holy fire, with cakes of ground meal.
हे इन्द्र देव! परिपक्क पुरोडाश को खाओ। यज्ञ योग्य पुरोडाश तुम्हारे लिए प्रस्तुत होता है।
Hey Indr Dev! Eat this backed cake of barley. Purodash of superior quality used in the Yagy is ready for you.
आभिक्षीयं दधि क्षीरं पुरोडाश्यं तथौषधम्।
हविर्हैयंगवीनं च नाप्युपघ्नन्ति राक्षसा:॥[भट्टि]
पुरोळाशं च नो घसो जोषयासे गिरश्च नः। वधूयुरिव योषणाम्॥
हे इन्द्र देव! हमारे इस पुरोडाश का भक्षण कर हमारी इस श्रुति लक्षणा वाणी का उसी प्रकार सेवन करें, जिस प्रकार से स्त्री की भक्ति करने वाला कामी पुरुष युवती स्त्री का सेवन करता है।[ऋग्वेद 3.52.3]
हे इन्द्र देव! हमारे इस पुरोडाश को प्राप्त करो। हमारी इस सुनने के योग्य वाणी को भार्या के प्रेमी पति के समान सेवन करो।
Hey Indr Dev! Eat our Purodash like the dialogue delivered to the woman by a lascivious man.
पुरोळाशं सनश्रुत प्रातः सावे जुषस्व नः। इन्द्र क्रतुर्हि ते बृहन्॥
हे पुराण काल से प्रसिद्ध इन्द्र देव ! हमारे इस पुरोडाश का प्रातः सवन में सेवन करें, जिससे आपका कर्म महान् हो।[ऋग्वेद 3.52.4]
हे इन्द्र देव! तुम प्राचीन काल से ही प्रसिद्ध हो। हमारे पुरोडाश को प्रातः काल में भक्षण करते हुए अपने कर्म में महत्ता प्राप्त करो।
Hey Indr Dev! You are famous since ancient times. Consume our Purodash in the morning, so that you are capable of performing great deeds-endeavours.
माध्यन्दिनस्य सवनस्य धानाः पुरोळाशमिन्द्र कृष्वे॒ह चारुम्।
प्र यत्स्तोता जरिता तूर्ण्यर्थो वृषायमाण तप गीर्भिरीट्टे॥
हे इन्द्र देव! माध्यन्दिन सवन सम्बन्धी भुने जौ के कमनीय पुरोडाश का यहाँ आकर भक्षण करके संस्कृत करें। आपकी परिचर्या करने वाले, स्तुति के लिए त्वरित गमन (व्यय), इसलिए बैल के तुल्य इधर-उधर दौड़ने वाले, स्तोता जब प्रार्थना लक्षण वचनों से आपकी प्रार्थना करते हैं, तभी आप पुरोडाश आदि का भक्षण करते हैं।[ऋग्वेद 3.52.5]
हे इन्द्र देव! बीच वाले सवन में गवादि युक्त उत्तम पुरोडाश का यहाँ विराजमान होकर सेवन करो। तुम्हारे सेवक स्तुति के लिए उत्कंठित रहते हैं। तुम्हारी सेवा के लिए इधर-उधर विचरण करने वाले प्रार्थनाकारी श्लोकों से तुम्हारी आराधना करते हैं तथा पुरोडाश आदि को प्राप्त करते हैं।
Hey Indr Dev! Oblige us by eating our Purodash during the day. The devotees are eager to worship-pray you and move hither-thither like an ox-bull to serve you. You eat Purodash when the worshipers request you.
तृतीये धानाः सवने पुरुष्टुत पुरोळाशमाहुतं मामहस्व नः।
ऋभुमन्तं वाजवन्तं त्वा कवे प्रयस्वन्त उप शिक्षेम धीतिभिः॥
हे बहुजन स्तुत इन्द्र देव! तीसरे सवन में हमारे भुने जौ का और हुत पुरोडाश का भक्षण करें। हे कवि! आप ऋभु वाले तथा धन युक्त पुत्र वाले हैं। हम लोग हवि लेकर स्तुतियों द्वारा आपकी सेवा करते हैं।[ऋग्वेद 3.52.6]
ऋभु गण :: ऋभु, विभु व वाज यह तीन सुधन्वा आङ्गिरस के मानव योनि में पुत्र हैं और त्वष्टा के शिष्य बनकर तक्षण की शिक्षा ग्रहण करते हैं। उन्होंने कठिन साधना से उन्होंने देवत्व की उपलब्धि प्राप्त की। ऋषिगण उनकी स्तुति करते हैं।[बृहद्देवता 3.83, सायण] ऋग्वेद के सूक्त 1.20, 1.110, 1.161, 3.60, 4.33-37, 7.48, 10.76.1 ऋभुओं की स्तुति में हैं। शतपथ ब्राह्मण 14.2.2.9, तैत्तिरीय आरण्यक 4.9.2, 5.7.11, में सविता देव के साथ ऋभुओं का तादात्म्य कहा गया है। यास्क के निरुक्त 11.15 में ऋभुओं की निरुक्ति उरु भान्ति या ऋतेन भान्ति या ऋतेन भवन्ति के रूप में की गई है। इसी स्थान पर आदित्य रश्मियों को भी ऋभव: कहा गया है। इस निरुक्ति से संकेत मिलता है कि ऋभुओं का अधिकार ऋत् पर है, सत्य पर नहीं। किसी सत्य का मर्त्य स्तर पर साक्षात्कार करना ऋत् कहलाता है। अथर्ववेद 20.127.4 के आधार पर इसे शकुन विद्या कहा जा सकता है। सामान्य जीवन में सभी को विभिन्न रूपों में शकुन-अपशकुन होते हैं। जिस प्रकार पके हुए वृक्ष पर शकुन पक्षी बोलता है, उसी प्रकार रेभ का वाचन करो। अतः शकुन के सत्य होने के लिए यह आवश्यक है कि वृक्ष पूर्ण विकसित हो। रेभ वैदिक साहित्य का सार्वत्रिक शब्द है और यह ऋभु से सम्बन्धित हो सकता है। त्वष्टा ने एक चमस पात्र का निर्माण किया था। अग्निदेव ने देवताओं को दूत के रूप में जाकर उन तीनों से कहा कि एक चमस पात्र से चार चमस बना दें। उन्होंने स्वीकार कर लिया तथा चार चमस बना दिये। फलस्वरूप तीसरे सवन में स्वधा के अधिकारी हुए। उन्हें सोमपान का अधिकार प्राप्त हुआ तथा देवताओं में उनकी गणना होने लगी। उन्होंने अमरत्व प्राप्त किया। सुधन्वा पुत्रों में से कनिष्ठ बाज देवताओं से, मध्यम बिंबन वरुण से ज्येष्ठ ऋभुगण देवराज इन्द्र से सम्बन्धित हुए। उन्होंने अपने वृद्ध माता-पिता को पुन: युवा बना दिया। अश्विनी कुमारों के लिए तीन आसनों वाला रथ बनवाया, जो अश्व के बिना चलता था। देवराज इन्द्र के लिए रथ का निर्माण किया। देवताओं के लिए दृढ़ कवच बनाया तथा अनेक आयुधों का निर्माण भी किया। अग्नि वसु आदि देवतागण ऋभुओं के साथ सोमपान नहीं करना चाहते थे, क्योंकि उन्हें मनुष्य की गंध से डर लगता था। सविता तथा प्रजापति (ऋभुओं के दोनों पार्श्व में विद्यमान रहकर) उनके साथ सोमपान करते थे। ऋभुओं को स्तोत्र देवता नहीं माना गया है, यद्यपि प्रजापति ने उन्हें अमरत्व प्रदान कर दिया था। ऋभुओं को स्तोत्र देवता नहीं माना गया यद्यपि प्रजापति ने उन्हें अमरत्व प्रदान कर दिया था। |
हे इन्द्र देव! तुम पुरोडाश का सेवन करो। तुम ऋभुओं से परिपूर्ण तथा धन और पुत्रों से परिपूर्ण हो। हम हवियों से परिपूर्ण श्लोकों द्वारा तुम्हारी अर्चना करते हैं।
Hey Indr Dev, worshiped by a lot of people! Eat the Purodash and roasted barley in the third part of the day i.e., evening. Hey poet! You are associated Ribhu Gan, have wealth and sons. We make offerings while singing sacred hymns.
पूषण्वते ते चक्रमा करम्भं हरिवते हर्यश्वाय धानाः।
अपूपमद्धि सगणो मरुद्धिः सोमं पिब वृत्रहा शूर विद्वान्॥
हे शूर इन्द्र देव! आप पूषा नामक देव वाले हैं। आपके लिए हम वही मिला सत्तू बनाते हैं। आप हरि नामक घोड़े वाले हैं। आपके खाने के लिए हम भुना जौ तैयार करते हैं। मरुतों के साथ आप पुरोडाश का भक्षण करें। आप वृत्रासुर का वध करने वाले विद्वान् हैं अतः सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 3.52.7]
हे इन्द्र! तुम पूषा देवता से युक्त हो, तुम्हारे लिए यह दही से मिश्रित सत्तू तैयार है तथा अश्वान के लिए हम भुना हुआ जौं प्रस्तुत करते हैं, मरुद्गण सहित आकर पुरोडाश स्वीकार करो। तुमने वृत्र का संहार किया, तुम बुद्धिमान हो, इस सोम को ग्रहण करो।
Hey mighty-brave Indr Dev! You are associated with Pusha Dev. We are preparing Sattu mixed with curd for you. You possess the horses named Hari. We are preparing roasted barley for you. Eat Purodash along with Marud Gan. You are the enlightened who killed Vrata Sur. Hence drink Somras.
प्रति धाना भरत तूयमस्मै पुरोळाशं वीरतमाय नृणाम्।
दिवेदिवे सदृशीरिन्द्र तुभ्यं वर्धन्तु त्वा सोमपेयाय धृष्णो॥
हे अध्वर्युओं! इन्द्र देव के लिए शीघ्र भुना जौ प्रदान करें। यह नेतृतम हैं। इन्हें पुरोडाश प्रदत्त करें। हे शत्रुओं के अभिभव कर्ता इन्द्र देव! आपको लक्ष्य कर प्रतिदिन की गई प्रार्थना आपको सोमपान के लिए उत्साहित करे।[ऋग्वेद 3.52.8]
हे अध्वर्युओं! इन्द्र के लिए भुने जौं प्रस्तुत करो। यह नायकों में श्रेष्ठ हैं। इन्हें पुरोडाश प्रदान करो। हे इन्द्र देव । तुम शत्रुओं को दूर करने वाले हो। तुम्हारे लिए प्रतिदिन की जाने वाली वंदनाएँ सोमपान के कार्य में तुम्हें प्रोत्साहित करें।
Hey priests organising Yagy! Keep the roasted barley ready for Indr Dev. He is the supreme leader-commander. Offer him Purodash. Hey destroyer of the enemy Indr Dev! We have recited the prayer for you to sip Somras.(07.12.2022)
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (53) :: ऋषि :- विश्वामित्र, गाथिन, देवता :- इन्द्र और पर्वत, छन्द :- त्रिष्टुप्, जगती, अनुष्टुप, गायत्री, बृहती।
इन्द्रापर्वता बृहता रथेन वामीरिष आ वहतं सुवीराः।
वीतं हव्यान्यध्वरेषु देवा वर्षेथां गीर्भिरिळया मदन्ता॥
हे द्योतमान इन्द्र देव और पर्वत! महान् रथ पर मनोहर और सुन्दर पुत्र से युक्त अन्न लावें। हमारे यज्ञ में आप दोनों हव्य का भक्षण करें। हव्य द्वारा हर्षित होकर हमारे स्तुति लक्षण वचनों से वर्द्धित होवें।[ऋग्वेद 3.53.1]
हे इन्द्र देव, पर्वत! अपने महान रथ पर श्रेष्ठ संतान परिपूर्ण अन्न लाओ। तुम ज्योर्तिमान हो। हमारे यज्ञ में पधारकर हवि का सेवन करो। हवियों द्वारा पुष्ट होते हुए
हमारी श्रेष्ठ प्रार्थनाओं से वृद्धि को ग्रहण करो।
Hey Indr Dev & Parwat! Bring beautiful sons and food grains over your lovely charoite. On being happy by eating the offerings in our Yagy, become happy by listening to the prayers-hymns.
तिष्ठा सु कं मघवन्मा परा गाः सोमस्य नु त्वा सुषुतस्य यक्षि।
पितुर्न पुत्रः सिचमा रभे त इन्द्र स्वादिष्ठया गिरा शचीवः॥
हे मघवन्! इस यज्ञ में कुछ काल तक आप सुख पूर्वक निवास करें। हमारे यज्ञ से चले मत जावें, क्योंकि सुन्दर अभिषुत सोम द्वारा हम शीघ्र ही आपका यजन करते हैं। हे शक्ति सम्पन्न इन्द्र देव! मधुर वचनों द्वारा पुत्र जिस प्रकार से पिता आश्रय ग्रहण करता है, उसी प्रकार ही हम सुमधुर स्तुतियों द्वारा आपका आश्रय ग्रहण करते हैं।[ऋग्वेद 3.53.2]
हे इन्द्र देव! कुछ समय तक इस यज्ञ में आनन्द पूर्वक रहो। हमारे यज्ञ में उपस्थित रहो। हम रमणीक निष्पन्न सोम रस द्वारा तुम्हारा यज्ञ करते हैं। तुम अत्यन्त बली हो, जनक के वस्त्रों को मीठे वचन बोलते हुए शिशु पकड़ते हो।
Hey Indr Dev! Stay in our Yagy comfortably for some time. We perform-conduct Yagy with nicely extracted Somras. Hey mighty Indr Dev! We seek asylum under you like a son seeks shelter under his son. We desire protection under you by singing pleasing sacred hymns for you.
शंसावाध्वर्यो प्रति मे गृणीहीन्द्राय वाहः कृणवाव जुष्टम्।
एदं बर्हिर्यजमानस्य सीदाथा च भूदुक्थमिन्द्राय शस्तम्॥
हे अध्वर्युओं! हम दोनों प्रार्थना करेंगे। आप हमें उत्तर दें। हम दोनों इन्द्र देव के उद्देश्य से प्रीति युक्त प्रार्थना करते हैं। आप याजकगण के कुश के ऊपर उपवेशन करें। इन्द्र देव के लिए हम दोनों के द्वारा किया गया उकथ प्रशस्त है।[ऋग्वेद 3.53.3]
हे अध्वर्युओं! हम दोनों उन इन्द्रदेव की प्रार्थना करेंगे। तुम हमको सदुपदेश करो। हम इन्द्रदेव के प्रति श्रद्धा परिपूर्ण रहते हुए उनका पूजन करें। तुम यजमान के कुशारूप आसन पर विराजमान होओ। हमारे द्वारा प्रदत्त उक्त प्रार्थना इन्द्र देव के लिए आकृष्ट करने वाली हो।
Hey priests performing the Yagy! We will pray to Indr Dev. You guide us. Both of us pray-worship Indr Dev with love. Sit over the Kush mat. Prayers made by us will attract Indr Dev.
जायेदस्तं मघवन्त्सेदु योनिस्तदित्त्वा युक्ता हरयो वहन्तु।
यदा कदा च सुनवाम सोममग्निष्ट्वा दूतो धन्वात्यच्छ॥
हे मघवन्! स्त्री ही घर होती है और स्त्री ही पुरुषों का मिश्रण स्थान है। रथ में युक्त होकर अश्व आपको उस घर में ले जावे। हम जब कभी आपके लिए सोमरस को अभिषुत करेंगे, तब हमारे द्वारा प्रहित, दृतस्वरूप अग्नि देव आपके निकट गमन करें।[ऋग्वेद 3.53.4]
अभिषुत :: जो यज्ञ के लिए स्नान कर चुका हो, निचोड़ा हुआ, (अभिषेचन, अभिषेचनीय, अभिषेच्य, अभिसंग, अभिसंताप); यह अतीव मधुर सोम तुम्हारे लिये अभिषुत हुआ है; anointed, bathed for the Yagy, squeezed.
हे इन्द्र देव! नारी ही पुरुषों का वास स्थान है। रथयुक्त अश्व तुमको इस भवन में भेजें। हम जब कभी तुम्हारे सोम को संस्कारवान करें, तब हमारे द्वारा अभिषिक्त अग्नि दूत रूप से तुम्हें प्राप्त हो।
Hey Indr Dev! The wife constitute home, living with husband. Let the charoite deploying horses bring to that house. When ever we anoint, extract tasty, sweet Somras and chant Mantr, let Agni Dev approach-come to you.
परा याहि मघवन्नाच याहीन्द्र भ्रातरुभयत्रा ते अर्थम्।
यत्रा रथस्य बृहतो निधानं विमोचनं वाजिनो रासभस्य॥
हे मघवन्! आप हमारे इस यज्ञ में आगमन करें। हे पोषक! दोनों स्थानों में आपका प्रयोजन है; क्योंकि वहाँ घर में स्त्री है और यहाँ सोमरस है। गृह गमन के लिए आप महान् रथ के ऊपर अधिष्ठान करें।[ऋग्वेद 3.53.5]
हे इन्द्र देव! तुम दूरस्थ देश में विचरण करते हुए हमारे यहाँ पधारो। तुम सभी का पालन करने वाले हो, तुम्हारा प्रयोजन दोनों स्थानों पर है। जिस घर में नारी है, वहाँ सोम है। तुम रथ पर आरोहण कर ग्रह को ग्रहण करके अश्वों को खोल दो।
Hey Indr Dev! Visit our Yagy. Hey nurturer! You are desirous of both Home and Somras. For visiting your home ride the charoite (after drinking Somras).
अपाः सोममस्तमिन्द्र प्र याहि कल्याणीर्जाया सुरणं गृहे ते।
यत्रा रथस्य बृहतो निधानं विमोचनं वाजिनो दक्षिणावत्॥
हे इन्द्र देव! यहीं रुककर सोमरस का पान कर घर जावें। आपके रमणीय घर में मङ्गलकारिणी स्त्री और सुन्दर ध्वनि है। गृह गमन के लिए आप महान् रथ के ऊपर अवस्थान करें अथवा अश्व को रथ से विमुक्त करो इस यज्ञ में रुकें।[ऋग्वेद 3.53.6]
रमणीक :: मनोहर, आभासी, जाली, आनंदमय, हर्षजनक, आनंदपूर्ण, आनंदित, आनंद देने वाला, सुहावना, ललित, आनंदकर; delightful, delectable, enjoyable, colourful.
सुखद, रमणीय, सुहावना, ख़ुशगवारहे इन्द्र देव! तुम यहाँ आकर सोम पान करो। सोम पान करके ही गृह को गमन करना। तुम्हारे घर में सौभाग्यवती रमणीय नारी है। तुम गृह जाने के लिए रथ पर चढ़ो और यहाँ अश्वों को खोल दो।
Hey Indr Dev! Go to your house after drinking Somras. Your delightful, beautiful & attractive house has righteous-virtuous wife and auspicious pleasing-sounds. Either go to your house over the great charoite or release the horses and stay here.
इमे भोजा अङ्गिरसो विरूपा दिवस्पुत्रासो असुरस्य वीराः।
विश्वामित्राय ददतो मघानि सलत्रसावे प्र तिरन्त आयुः॥
हे इन्द्र देव! यज्ञ करने वाले ये भोज सुदास राजा के याजक हैं, नाना रूप हैं अर्थात् अङ्गिरा मेधातिथि आदि है। देवों से भी बलवान् रुद्र के पुत्र बलवान् मरुत मुझ विश्वामित्र के लिए अश्वमेध में महनीय धन देते हुए अन्न को भली-भाँति वर्द्धित करें।[ऋग्वेद 3.53.7]
हे इन्द्र देव! यह भोज और सुदास राजा की ओर से यत्न करते हैं। यह अंगिरा, मेधातिथि आदि अनेक रूप वाले हैं, देवगणों, बली रुद्र उत्पन्न मरुद्गण अश्वमेध यज्ञ में मुझ वैश्वामित्र को उत्तम धन प्रदान करो और अन्न की वृद्धि करो।
Hey Indr Dev! The performers of Yagy, Bhoj & Sudas are making offerings-sacrifices, with Angira & Medhatithi as the priests. Let Marut the son of mighty Rudr, mightier than the demigods-deities, provide me i.e., Vishwa Mitr with a lot of money and food grains.
रूपरूपं मघवा बोभवीति मायाः कृण्वानस्तन्वं १परि स्वाम्।
त्रिर्यद्दिवः परि मुहूर्तमागात्स्वैर्मन्त्रैरनृतुपा ऋतावा॥
इन्द्र देव जिस रूप की कामना करते हैं, उस रूप के हो जाते हैं। मायावी इन्द्रदेव अपने शरीर को नानाविध बनाते हैं। वे ऋतवान् होकर भी अऋतु में सोमपान करते हैं। वे स्वकीय स्तुति द्वारा आहूत होकर, स्वर्ग लोक से मुहूर्त बीच में तीनों सवनों में गमन करते हैं।[ऋग्वेद 3.53.8]
इन्द्र जैसी कामना करते हैं वैसा ही रूप बना लेते हैं। वे अपने शरीर को माया द्वारा विविध रूप को बनाने में समर्थ हैं। वे ऋतुओं को प्रेरित करने वाले होकर भी सोमपान करने में किसी ऋतु विशेष का ध्यान नहीं रखते। वे अपनी ही प्रार्थनाओं द्वारा पुकारे जाकर तीनों सवनों में पहुँचते हैं।
Indr Dev assumes desired body shape & size. Illusive Indr Dev mould his body in various ways. Though devoted to the seasonal changes yet he drink Somras in adverse situations as well. He mobilize in the three parts of the day as and when addressed by the devotees with prayers-worship.
Somras can be used in all seasons, all parts of the year. Dev Raj responds to the prayers, requests of the worshipers throughout the solar day.
महाँ ऋषिर्देवजा देवजूतोऽस्तभ्नात्सिन्धुमर्णवं नृचक्षाः।
विश्वामित्रो यदवहत्सुदासमप्रियायत कुशिकेभिरिन्द्रः॥
अत्यधिक सामर्थ्यवान्, अतीन्द्रियार्थ द्रष्टा द्योतमान तेजों के जनयिता, तेजों द्वारा आकृष्ट और अध्वर्यु आदि के उपदेष्टा विश्वामित्र ने जलवान सागर को निरुद्ध वेग किया। पिजवन के पुत्र सुदास राजा ने जब विश्वामित्र से यज्ञ कराया, तब इन्द्र देव ने कुशिक गोत्रोत्पन्न ऋषियों के साथ उत्तम व्यवहार किया।[ऋग्वेद 3.53.9]
अत्यन्त समर्थ, तेजस्वी तेजों को उत्पन्न करने वाले अध्वर्यु आदि को उपदेश देने वाले वैश्वामित्र ने जल से पूर्ण सागर को गति को बाँध दिया। जब उन वैश्वामित्र ने पिजवन पुत्र सुदास को यज्ञकर्म में लगाया, तब इन्द्रदेव ने कौशिकों के प्रति अपना श्रेष्ठ व्यवहार व्यक्त किया।
Highly capable, possessing intuition, producer of shine, Vishwa Mitr, preached the Ritviz who were attracted towards him due to his aura and regulated the flow of ocean currents. When king Sudas son of Pijvan managed to conduct-perform the Yagy by Vishwa Mitr, Indr Dev acted decently with the Kaushiks.
हंसाइव कृणुथ श्लोकमद्रिभिर्मदन्तो गीर्भिरध्वरे सुते सचा।
देवेभिर्विप्रा ऋषयो नृचक्षसो वि पिबध्वं कुशिकाः सोम्यं मधु॥
हे मेधावियों, हे अतीन्द्रियार्थ द्रष्टाओं, हे नेतृगण के उपदेशको, हे कुशिक गोत्रोत्पन्नों, हे पुत्रों! यज्ञ में पत्थरों द्वारा सोमरस के अभिषुत होने पर आप लोग स्तुतियों द्वारा देवताओं को प्रसन्न करते हुए श्लोक (मन्त्र) का भली-भाँति उच्चारण करें, जिस प्रकार से हँस शब्दों का भली-भाँति उच्चारण करते हैं। उसी प्रकार देवगण के साथ आप लोग मधुर सोम रस का पान करें।[ऋग्वेद 3.53.10]
हे विद्वानो! परमहंसी! हे ऋषियों! हम सभी को देखने वालों! तुम यज्ञ अनुष्ठान में पाषणों से सोम के संस्कारित होने पर प्रार्थनाओं से देवताओं को हर्षित करो। हंसों के तुल्य ऋग्वेद स्तोत्रों का उच्चारण करो। देवों के साथ मधुर सोम रस का पान करो।
Hey intellectuals, Kaushik clan descendants, possessor of intuition-power to peep into the future, preachers-guides of the Rishi-Muni conducting Yagy-Hawan! Recite-pronounce the sacred hymns-Mantr, Strotr properly to please-amuse the demigods-deities and enjoy Somras with them.
उप्र प्रेत कृशिकाश्चेतयध्वमश्वं राये प्र मुञ्चता सुदासः।
राजा वृत्रं जङ्घनत्प्रागपागुदगथा यजाते वर आ पृथिव्याः॥
हे कुशिक गोत्रोत्पन्नो, हे पुत्रो! आप लोग अश्व के समीप जाकर अश्व को उत्तेजित करें। धन के लिए सुदास के अश्व को छोड़ दें। राजा इन्द्र देव ने विघ्न कारक वृत्र का पूर्व, पश्चिम और उत्तर देश में वध किया। इसलिए सुदास राजा पृथ्वी के उत्तम स्थान में यज्ञ कार्य सम्पादित करें।[ऋग्वेद 3.53.11]
उत्तेजित :: उकसाना, भड़काना; excite, agitate, elated.
हे कौशिको! तुम अश्व के समीप जाकर इसे उत्तेजित करो। सुदास राजा के अश्व को धन के लिए छोड़ो। इन्द्रदेव ने बाधा उत्पन्न करने वाले पुत्र का पूर्व, पश्चिम तथा उत्तर में संहार किया। राजा सुदास ने महान भू-भाग में पावन कर्म संस्कार किया।
Hey descendants of Kaushik! Go to the horse and excite-agitate it. Let the horse of Sudas roam for money. Indr Dev killed Vrata Sur in east, West & North directions, so Sudas has conducted the Yagy at the most auspicious part-land of the earth.
The horse used to be released for conducting Ashw Medh Yagy, i.e., bringing the other kings to his fold and collect taxes from them.
य इमे रोदसी उभे अहमिन्द्रमतुष्टवम्। विश्वामित्रस्य ब्रह्मेदं भारतं जनम्॥
हे कुशिक पुत्रो! हमने द्यावा-पृथ्वी द्वारा इन्द्र देव की प्रार्थना की। स्तोता विश्वामित्र का यह इन्द्र विषयक स्तोत्र भरत कुल के मनुष्यों की रक्षा करे।[ऋग्वेद 3.53.12]
हे कौशिको। हमने क्षितिज धरा के सहयोग से इन्द्र देव की अर्चना की है, प्रार्थना करने वाले विश्वामित्र का इन्द्रदेव के प्रति कहा गया श्लोक भरत वंशियों की सुरक्षा करें।
Hey descendants of Kaushik! We worshiped Dev Raj Indr along with the heaven and the earth. Let this Strotr composed by Vishwa Mitr protect the Bharat clan-descendants.
विश्वामित्रा अरासत ब्रह्मेन्द्राय वज्रिणे। करदिन्नः सुराधसः॥
विश्वामित्र के वंशवालों ने वज्रधर इन्द्र के लिए स्तुति की। इन्द्र देव हम लोगों को उत्तम
से धन युक्त करें।[ऋग्वेद 3.53.13]
विश्वामित्र के वंशजों ने वज्रधारी इन्द्रदेव का पूजन किया है। वे इन्द्रदेव हमको महान धन से सुशोभित करें।
Descendants of Vishwa Mitr prayed-worshiped Indr Dev. Let Indr Dev reward us with valuables-riches.
किं ते कृण्वन्ति कीकटेषु गावो नाशिरं दुह्रे न तपन्ति धर्मम्।
आ नो भर प्रमगन्दस्य वेदो नैचाशाखं मघवन्रन्यया नः॥
हे इन्द्र देव! अनार्यों के निवास योग्य देशों में कीकट समूह के बीच में गौएँ आपके लिए क्या करेंगी? ये सोमरस के साथ मिश्रित होने के योग्य दुग्ध दान नहीं करती। दुग्ध प्रदान द्वारा वे पात्र को भी दीप्त नहीं करतीं। हे धनवान् इन्द्र देव! उन गौओं को आप हमारे निकट लावें और प्रमगन्द के धन का भी आनयन करें। हे मघवन्, नीच वंश वालों को आप नियमित करें।[ऋग्वेद 3.53.14]
कीकट :: मगध देश का प्राचीन वैदिक नाम, तंत्र के अनुसार चरणाद्रि-चुनार से लेकर गुद्धकुट-गिद्धौर तक कीकट देश है, मगध उसी के अंतर्गत है। घोड़ा, प्राचीन काल की एक अनार्य जाति आदि जो कोकट देश में बसती थी, निर्धन, गरीब, कृपण, कजुंस। Generally, barbarians, those people who did not follow any rule regulations, virtues inhabited the deserts lands in Arab countries.
हे इन्द्र देव! कीकट लोग जो कि अनार्य हैं, वे गायों का क्या उपयोग करते हैं? वे न तो दूध पीते हैं, न घृत निकालते हैं। हे इन्द्र देव! उन गायों को हमारे समीप ले आओ, अधिक धन प्राप्त करने की कामना से धन उधार देने वालों के धनों को भी प्राप्त करवा दो।
Hey Indr Dev! The cows will serve no purposes in the lands inhabited by the Keekat, being Anary-barbarians, ignorant, meat eaters. The cows there do not yield milk, good enough to be added to Somras. The milk pot do not shine with their milk. Hey Indr Dev! Bring these cows to us. Give us the valuable of those who land money for the sake of interest. Regulate-control the people low origin.
ससर्परीरमतिं बाधमाना बृहन्मिमाय जमदग्निदत्ता।
आ सूर्यस्य दुहिता ततान देवेष्वमृतमजुर्यम्॥
अग्नि देव को प्रज्वलित करने वाले ऋषियों द्वारा सूर्य से लाकर हम लोगों को दी गई, अज्ञान को बाधित करने वाली, रूप, शब्द तथा सभी जगह सर्पणशीला वाक (वचन) आकाश में प्रभूत शब्द करती हैं। सूर्य की पुत्री वाग्देवता इन्द्र देव आदि देवताओं के पास पत्थर रहित अमृत है।[ऋग्वेद 3.53.15]
अग्नि को चैतन्य करने वाले ऋषियों द्वारा सूर्य से ग्रहण कर, हमको दी गयी अज्ञान को हटाने वाली रूप और ध्वनि से परिपूर्ण लपकती हुई वाणी ध्वनि द्वारा ज्ञान को प्रकट करती है। सूर्य की दुहिता वाणी अमृत रूप अन्न को विस्तृत करती है।
The language, voice-speech provided to us, which eliminated ignorance, brought from the Sun by the Rishis-sages who ignite Agni-fire, elaborating structure, alphabets. (Thus we are able to converse-talk.) The daughter of Sun-Sury Narayan and Indr Dev who gave us language, has the elixir-nectar without stones.
ससर्परीरभरत्तूयमेभ्योऽधि श्रवः पाञ्चजन्यासु कृष्टिषु।
सा पक्ष्या ३ नव्यमायुर्दधाना यां मे पलस्तिजमदग्नयो ददुः॥
गद्य-पद्य रूप से सभी जगह सर्पणशीला वाग्देवता चारों वर्ण तथा निषाद में जो अन्न विद्यमान है, उससे अधिक अन्न हमें शीघ्र दें। दीर्घ आयु वाले जमदग्नि आदि मुनियों ने जिस वचन को सूर्य से लाकर हमें दिया, पक्षों के निर्वाहक सूर्य की पुत्री वह वाग्देवता, हमारे लिए नूतन अन्न दान प्रदान करें।[ऋग्वेद 3.53.16]
लपकती हुई गद्य रूपिणी वाणी सभी ओर से ज्ञान रूप अन्न को हमें दें। दीर्घजीवी ऋषियों ने जिस वाणी को सूर्य से प्राप्त कर हमकों दिया है, वह सूर्य की दुहिता वाणी हमको नव जीवन प्रदान करें।
Let the deity of speech grant us enlightenment in the form of food stuff. Let the words-voice, speech of the daughter of Sun Vagdevta, grant us new lease of life brought to us by the Rishis like Jamdagni.
स्थिरौ गावौ भवतां वीळुरक्षो मेषा वि वर्हि मा युगं वि शारि।
इन्द्रः पातल्ये ददतां शरीतोररिष्टनेमे अभि नः सचस्व॥
सुदास के यज्ञ में अवभृथ करने के उपरान्त यज्ञशाला से जाने की इच्छा करते हुए विश्वामित्र रथाङ्ग की प्रार्थना करते हैं। गोद्वय स्थिर होवें अक्ष दृढ़ होवें। दण्ड जिससे विनष्ट न हो, युग जिससे विनष्ट न हो, युग जिससे विशीर्ण न हो। पतनशील कीलकद्वा के विशीर्ण होने के पहले ही इन्द्रदेव धारित करें। हे अहिंसित नेमिविशिष्ट स्थ! आप हम लोगों के अभिमुख आगमन करें।[ऋग्वेद 3.53.17]
दोनों वृषभ स्थिर हों। धुर अटल हों, जिससे दंड नष्ट न हो, जुआ न सूख जाए, दोनों कीलें न उखड़ें। वे इन्द्र देव रथ को गिरने से बचाएँ। हे अरिष्ट नेमि रथ! तू हमको पथ में पहले जाता हुआ हमेशा प्राप्त हो।
Let both the horses be steady, the axle be strong, the pole should not be defective, the yoke should not be rotten. May Devraj Indr preserve the two yoke-pins from decay & the charoite with uninjured felloes (the outer rim of the wheel), to which the spokes are fixed, be ready for us.
FELLOES :: रथ के पहिये की बहरी सतह; the outer rim of the wheel.
बलं धेहि तनूषु नो बलमिन्द्रानळुत्सु नः।
बलं तोकाय तनयाय जीवसे त्वं लि बलदा असि॥
हे इन्द्र देव! आप हम लोगों के शरीर में बल प्रदान करें, हमारे बैलों को बल प्रदान करें और हमारे पुत्र-पौत्रों को चिरजीवी होने के लिए बल प्रदान करें, क्योंकि आप स्वयं बलप्रद हैं।[ऋग्वेद 3.53.18]
हे इन्द्र देव! तुम अत्यन्त शक्तिशाली हो। हमारे शरीर को जल से परिपूर्ण करो। हमारे ऋषभों को शक्तिशाली बनाओ, पुत्र-पौत्रादि को दीर्घ जीवी होने के लिए बल प्रदान करो।
Hey Indr Dev! You are mighty-powerful. Grant strength-power along with our oxen-bulls. Grant longevity (life span ranging from 400 years-100 years in Sat Yug to Kali Yug respectively) our sons and grandsons.
None is immortal-for ever. Maximum life one can enjoy is 8 Prardh, the life span of Bhagwan Shiv.
अभि व्ययस्व खदिरस्य सारमोजो धेहि स्पन्दने शिंशपायाम्।
अक्ष वीळो वीळित वीळयस्व मा यामादस्मादव जीहिपो नः॥
हे इन्द्र देव! रथ के खदिर-काष्ठ के सार को दृढ़ करें, रथ के शीशम के काष्ठ को दृढ़ करें। हम लोगों के द्वारा दृढ़ीकृत अक्ष, आप दृढ़ करें। हमारे गमनशील इस रथ से हमें फेंक मत देना।[ऋग्वेद 3.53.19]
हे इन्द्र देव! रथ के खदिर के काष्ठ के सार को दृढ़ बनाओ। शीशम के काष्ठ को भी दृढ़ करो। हे अक्ष! तुम हमारे द्वारा मजबूती से निर्मित किये गये हो। अतः स्थिर बनी। कहीं हमारे विचरणशील रथ से हमको पृथक न कर देना।
Hey Indr Dev! Enforce the wood Khadir & Sheesham used in the charoite. Give strength to the excel of our charoite. Do not through us away from our moving charoite.
अयमस्मान्वनस्पतिर्मा च हा मा च रीरिषत्।
स्वस्त्या गृहेभ्य आवसा आ विमोचनात्॥
वनस्पतियों द्वारा निर्मित यह रथ हम लोगों को त्यक्त न करे, न विनष्ट करे। जब तक हम लोग घर न प्राप्त करें, जब तक रथ चलता रहे और जब तक कि अश्व विमुक्त न हो जायें, तब तक हम लोगों का मङ्गल हो।[ऋग्वेद 3.53.20]
यह रथ वृक्षों की लकड़ियों द्वारा बनाया गया है। यह हमको छोड़ न दे। जब तक हमको गृह प्राप्त न हो, तब तक यह रथ चलता रहे और जब तक अश्वों का खोल न दिया जाये तब तक हमारा कल्याण हो।
This charoite made of wood, should neither reject nor destroy us. This charoite should continue moving till we reach our home-destination. The horses should not be released till our welfare is incomplete.
इन्द्रोतिभिर्बहुलाभिर्नो अद्य याच्छ्रेष्ठाभिर्मघञ्छूर जिन्व।
यो नो द्वेष्ट्यधरः सस्पदीष्ट यमु द्विष्मस्तमु प्राणो जहातु॥
हे शूर धनवान् इन्द्र देव! हम लोग शत्रुओं के हिंसक है। हम लोगों को आप प्रभूत और श्रेष्ठ आश्रम दान द्वारा प्रसन्न करें। जो हम लोगों से द्वेष करता है, वह निकृष्ट व पतित है। हम लोग जिससे द्वेष करते हैं, उसके प्राणों का हरण करें।[ऋग्वेद 3.53.21]
प्रभूत :: प्रचुर, विपुल, प्रभूत, ज़्यादा, विस्तृत, विस्तीर्ण; spacious, dominant, ample, abundant.
हे पराक्रमी! हे शत्रु संहारक इन्द्रदेव! तुम शत्रुओं का पतन करने के कर्म में पराक्रमी श्रेष्ठ सेनाओं से हमको परिपूर्ण करके विजय ग्रहण कराओ और हर्षित करो। हमसे शत्रुता करने वाला भली-भाँति नीचा देखे। जिससे हम द्वेष करें, उसके प्राण उसका त्याग करें।
Hey brave-mighty wealthy Indr Dev! We are the destroyers of the enemy. Grant us excellent spacious homes-Ashram, shelter. One who is envious to us is worst and degraded-depraved. Kill-destroy the people who are envious to us.
परशुं चिद्वि तपति शिम्बलं चिह्नि वृश्चति।
उखा चिदिन्द्र येपन्ती प्रयस्ता फेनमस्यति॥
हे इन्द्र देव! जिस प्रकार से कुठार को पाकर वृक्ष प्रतप्त होता है, उसी प्रकार हमारे शत्रु प्रतप्त हो। शाल्मली पुष्प जिस प्रकार से अनायास ही वृन्तच्युत हो जाता है, उसी प्रकार हमारे शत्रुओं के अवयव विच्छिन्न हो। प्रहत जलस्रावी स्थाली पाककाल में जिस प्रकार से फेनोद्गीर्ण करती है, उसी प्रकार मेरी मन्त्र सामर्थ्य से प्रहत होकर शत्रु मुख द्वारा फेनोद्गीर्ण करें।[ऋग्वेद 3.53.22]
हे इन्द्रदेव! जैसे तपती हुई पतीली उबलते हुए फेन निकालती है, वैसे ही हमारे शत्रुओं के मुख मार्गों को निकालें, जैसे सेमर का फूल अनायास ही छिन्न-भिन्न हो जाता है, वैसे ही हमारे शत्रुओं के तन कट कर गिर जायें। जैसे आग पर कुठार को तपाता है, वैसे ही शत्रु सेना संतप्त हो।
Hey Indr dev! The way-manner in which the tree is troubles by the axe, our enemy too be troubled-tortured. The way the flowers of Shalmali tree detach the body organs our our enemy fall out of their body. The manner in which a cooking pot pour froth may Mantr Shakti should make the enemy release blood from his mouth.
न सायकस्यचिकिते जनासो लोघं नयन्ति पशु मन्यमानाः।
नावाजिनं वाजिना हासयन्ति न गर्दभं पुरो अश्वान्नयन्ति॥
वसिष्ठ के भृत्यों से विश्वामित्र बोले, हे पुरुषों! अवसान करने वाले विश्वामित्र की मन्त्र-सामर्थ्य को आप लोग नहीं जानते हैं। तपस्या का क्षय न हो जाय, इसी लोभ से चुपचाप बैठे हुए को पशु मानकर ले जा रहे हैं। वसिष्ठ मेरे साथ स्पर्द्धा करने के योग्य नहीं हैं, क्योंकि प्राज्ञ व्यक्ति मूर्ख व्यक्ति को उपहासास्पद नहीं करते हैं, घोड़े के सामने गदहा नहीं लाया जाता है।[ऋग्वेद 3.53.23]
हे मनुष्य! अस्त्रादि के तुल्य अपने प्राणों का अंत करने वाले के अज्ञान को तुम नहीं जानते। वे लालच के वशीभूत हुए अपने को पशु के तुल्य आगे ले जाते हैं। ज्ञानी पुरुष अज्ञानी मनुष्य से सामना करके हंसी नहीं उड़वाते। क्योंकि घोड़े की तुलना गधा नहीं करता।
Vishwamitr told the associates of Vashishth, Hey Humans! You are not aware of the Mantr Shakti (power of the sacred hymns)-powers of Vishwamitr. You are carrying a person sitting quietly-performing ascetics, considering him an ass, due to your greed. Vashishth can not compete with me. Enlightened people do not make fun of the ignorant, while talking to him.
Vishwamitr is no match to Vashishth.
Please refer to :: ब्रह्म ऋषि वशिष्ठ (ब्रह्मा 1) VASHISHTH santoshhindukosh.blogspot.com
राज ऋषि विश्वामित्र ASCETIC VISHAWAMITR santoshhindukosh.blogspot.com
इम इन्द्र भरतस्य पुत्रा अपपित्वं चिकितुर्न प्रपित्वम्।
हिन्वन्त्यश्वमरणं न नित्यं ज्यावाजं परि णयन्त्याजौ॥
हे इन्द्र देव! भरत वंशीय अपगमन जानते हैं, गमन नहीं जानते हैं अर्थात् शिष्टों के साथ उनकी संगति नहीं है। संग्राम में सहज शत्रु के सदृश उन लोगों के प्रति वे अश्व प्रेरण करते हैं और धनुर्धारण करते है।[ऋग्वेद 3.53.24]
शिष्ट :: सभ्य, धीर और शांत; learned, polite.
हे इन्द्र देव! यह भरतवंशी प्रार्थक्य जानते हैं और मेल भी जानते हैं। ये संग्राम काल में प्रेरित अश्व के तुल्य धनुष की प्रत्यंचा का घोष करते हैं।
Hey Indr Dev! These sons of Bharat, understand severance-detach from Vashishth, not association with them; they urge their steeds against them as against a constant foe; they bear a stout bow for their destruction in battle.
SEVERANCE :: पृथक्करण, विच्छेद, विभाजन; dissolution, decomposable, caesura, Disruption, disunion.
Hey Indr Dev! The descendants of Bharat do not detach themselves from the learned-enlightened. They shot arrows over the enemies in the war.(12.12.2022)
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (54) :: ऋषि :- विश्वामित्र, वाच्या, प्रजापति, देवता :- विश्वेदेवा, छन्द :- त्रिष्टुप्।
इमं महे विदथ्याय शूषं शश्वत्कृत्व ईड्याय प्र जभ्रुः।
शृणोतु नो दम्येभिरनीकैः शृणोत्वग्निर्दिव्यैरजस्रः॥
महान् यज्ञ में मन्थन द्वारा निष्पाद्यमान और स्तुति योग्य अग्नि देव के उद्देश्य से यह सुखकारी स्तोत्र अनेकानेकों बार उच्चारित होता है। अग्नि देव घर में विद्यमान होकर तथा तेजोविशिष्ट होकर हमारे इस स्तोत्र को श्रवण करें। दिव्य तेज से निरन्तर युक्त होकर वह हमारे इस स्तोत्र को सुनें।[ऋग्वेद 3.54.1]
अध्ययन रूपी मंथन द्वारा प्रतिपादित श्लोक वंदना के योग्य हैं। इसका उत्तम अनुष्ठान में बार-बार उच्चारण किया जाता है। अपने गृह तेज से युक्त हुए अग्नि देव इस श्लोक का श्रवण करें। वे अपने अद्भुत तेज से लगातार पूर्ण करते हुए हमारी वंदनाओं पर ध्यान आकृष्ट करें।
This auspicious Strotr-sacred hymn devoted to Agni Dev, is recited several times in the great Yagy. Let Agni Dev be present in our home with radiance and listen to our Strotr, repeatedly.
महि महे दिवे अर्चा पृथिव्यै कामो म इच्छञ्चरति प्रजानन्।
ययोर्ह स्तोमे विदधेषु देवाः सपर्यवो मादयन्ते सचायोः॥
हे स्तोता! महती द्यावा-पृथ्वी की शाक्ति को जानते हुए आप उनकी अर्चना करें। मेरा मनोरथ सम्पूर्ण भोग का इच्छुक है जो कि सभी जगह वर्तमान है। पूजाभिलाषी देवगण सम्पूर्ण मनुष्यों के यज्ञ में द्यावा-पृथ्वी के प्रार्थना करने में मत्त होते हैं।[ऋग्वेद 3.54.2]
हे स्तुति कर्त्ता! तुम आसमान और धरती की अनन्त शक्ति को समझते हुए उन्हें पूजो। मैं सभी भोगों की अभिलाषा करता हूँ। मेरा मन सभी ओर है। अपनी अर्चना की कामना वाले देवता प्राणियों के यज्ञों में जाकर आसमान और पृथ्वी को पूर्ण करते हुए हर्ष प्राप्त करते हैं।
Hey recitators! Pray-worship the heaven & earth fully aware of their powers. I endeavour is to enjoy all sorts of amenities, comforts, luxuries, desires since they are available everywhere. The demigods-deities desirous of worship attend the Yagy by the humans compensating the heavens & the earth.
युवोर्ऋतं रोदसी सत्यमस्तु महे षु णः सुविताय प्र भूतम्।
इदं दिवे नमो अग्ने पृथिव्यै सपर्यामि प्रयसा यामि रत्नम्॥
हे द्यावा-पृथ्वी! आपका ऋत (अनृशंसता) यथार्थ है। आप हमारे महान् यज्ञ की समाप्ति के लिए समर्थ होवें। हे अग्नि देव! द्युलोक और पृथ्वी को नमस्कार है। हविर्लक्षण अन्न से मैं परिचर्या करते हुए उत्तम धन की याचना करता हूँ।[ऋग्वेद 3.54.3]
हे क्षितिज-धरा! तुम कार्य सत्य हो। तुम हमारे श्रेष्ठ अनुष्ठान को बिना रुकावट के पूर्ण कराने में समर्थवान होओ। हे अग्नि! मैं क्षितिज और धरा को प्रणाम करता हूँ। हवि रूप अन्न द्वारा सेवा करता है। मैं महान धन माँगता हूँ।
Hey Heaven and earth! May your truth be ever inviolable, be propitious to us for the due completion of the rite, this adoration Agni is offered to heaven and earth, I worship them with sacrificial food, I solicit of them precious wealth.
INVIOLABLE :: पवित्र, अनुल्लंघनीय, भ्रष्ट न करने योग्य; holy, pure, sanctified, pious, solemn.
Hey Heaven and earth! May your truth prevail. You should ensure the completion our great Yagy without interruption. Hey Agni Dev! I pray-worship both the heaven & the earth. Making offerings of food grains, I desire wealth from you.
उतो हि वां पूर्व्या आविविद्र ऋतावरी रोदसी सत्यवाचः।
नरश्चिद्वां समिथे शूरसातौ ववन्दिरे पृथिविं वेविदानाः॥
हे सत्य युक्त द्यावा-पृथ्वी! पुरातन सत्यवादी महर्षियों ने आपसे हितकर अर्थ प्राप्त किया। हे पृथ्वी! युद्ध में जाने वाले मनुष्यगण आपके माहात्म्य को जानकर आपकी ही वन्दना करते हैं।[ऋग्वेद 3.54.4]
हे सत्य धर्म वाली आसमान धरती पुरातन सत्य वक्ता ऋषियों ने तुमसे हित करने जाना अभिष्ट प्राप्त किया था। हे पृथ्वी! युद्ध भूमि को प्रस्थान करने वाले वीर भी तुम्हारी महिमा को जानते हुए तुम्हें प्रणाम करते हैं।
Hey truthful heaven & earth! The ancient truthful sages got useful money from you. Hey earth! The warriors going to the battle field pray-worship you fully aware of your might-power.
को अद्धा वेद क इह प्र वोचद्देवाँ अच्छा पथ्या ३ का समेति।
ददृश्र एषामवमा सदांसि परेषु या गुह्येषु व्रतेषु॥
उस सत्यभूत अर्थ को कौन जानता है? कौन उस जाने हुए अर्थ को बोलता है? कौन समीचीन पथ देवताओं के निकट ले जाता है? देवगण के द्युलोक स्थित नक्षत्रादि देखे जाते हैं। वे उत्कृष्ट और दुर्ज्ञेय व्रत में अवस्थिति करते हैं।[ऋग्वेद 3.54.5]
उसे सत्य के कारण रूप ज्ञाता कौन है? उस समझे हुए विषय को प्रकट करने वाला कौन है? यह आसान मार्ग कौन से हैं जो देवों की निकटता प्राप्त कराएँ। अद्भुत संसार की निचली जगह में नक्षत्र आदि प्रत्यक्ष दिखाई देते हैं। वे हमको उत्कृष्ट एवं कठिन व्रतों में लगते हैं।
Who is aware of the truth?! Who spell the meaning of the truthful words!? Which is the easiest way to take to the demigods-deities?! The constellations are seen-observed in the sky-heaven. It appears as if they are busy in excellent difficult ascetics.
कविनृचक्षा अभि षीमचष्ट ऋतस्य योना विघृते मदन्ती।
नाना चक्राते सदनं यथा वेः समानेन क्रतुना संविदाने॥
हे कवि! मनुष्यों के द्रष्टा सूर्य इस द्यावा-पृथ्वी को सभी जगह देखते हैं। जल के उत्पत्ति स्थान अन्तरिक्ष में हर्षकारिणी, रसवती और समान कर्मों द्वारा परस्पर ऐक्यभावापन्ना द्यावा-पृथ्वी पक्षियों के घोसलों के तुल्य अलग-अलग अनेकानेक स्थान को अधिकृत करती हैं।[ऋग्वेद 3.54.6]
मनुष्यों के ब्रह्मा सूर्य, आकाश और धरती को सभी ओर से देखते हैं। जल के प्राकट्य स्थान अंतरिक्ष में आनन्द देने वाली रस से युक्त हुई समान कर्म वाली आकाश पृथ्वी बहुत स्थानों पर घोंसला बनाने वाले पक्षियों के समान अनेक स्थानों को व्याप्त करती हैं।
The far-seeing beholder of mankind, the Sun, surveys-witness the heaven and earth, rejoicing when having moisture-waters in the firmament, both concurring in community of function, although they occupy various dwellings, like the diversified nests of a bird.
Sun observing-watching the humans, visualise-lit the earth & heavens all around-over. The earth & heavens which grant pleasure & fluids, pervade different places in the sky, the place of origin of water, like the birds having nests at various places.
समान्या वियुते दूरेअन्ते ध्रुवे पदे तस्थतुर्जागरूके।
उत स्वसारा युवती भवन्ती आदु ब्रुवाते मिथुनानि नाम॥
परस्पर प्रीति युक्त कर्म द्वारा ऐकमत्य प्राप्त, वियुक्त होकर वर्तमान अविनाशिनी द्यावा-पृथ्वी जागरणशील अनश्वर अन्तरिक्ष में नित्य तरुण भगिनीद्वय के तुल्य एक आत्मा से जायमान होकर ठहरी है। वे दोनों आपस में द्वन्द्व नाम अभिहित करती हैं।[ऋग्वेद 3.54.7]
परस्पर आकर्षण में बंधी अलग रहकर भी संग रहने वाली, जिनका कभी पतन नहीं होता, ऐसे अम्बर-धारा कभी भी नष्ट नहीं होने वाले अंतरिक्ष में दो तरुणी बहनों के तुल्य एक आत्मा बाली हुई, सृष्टि कार्य में समर्थ बनकर दृढ़ हैं।
The earth & the heaven are tide together by gravitational attraction-forces, though away from each other in the imperishable space and are never destroyed, like the two young sisters possessing same soul enabling the evolution of life.
विश्वेदेते जनिमा सं विविक्तो महो देवान्बिभ्रती न व्यथेते।
एजद्ध्रुवं पत्यते विश्वमेकं चरत्पतत्रि विषुणं वि जातम्॥
यह द्यावा-पृथ्वी समस्त भौतिक वस्तु को अवकाश दान द्वारा विभक्त करती हैं। महान् सूर्य, इन्द्र आदि अथवा सरित, समुद्र, पर्वत आदि को धारित करके भी व्यथित नहीं होती है। जङ्गमात्मक और स्थावरात्मक जगत् केवल एक पृथ्वी को ही प्राप्त करता है। चञ्चल पशु और पक्षिगण नाना रूप होकर द्यावा-पृथ्वी के बीच में ही अवस्थित होते हैं।[ऋग्वेद 3.54.8]
यह अम्बर-धरा समस्त भौतिक पदार्थों को प्रकट करती हुई सूर्य चन्द्रमा, नदी, समुद्र, पर्वत आदि को धारण करके भी कंपित नहीं हो सकती। स्थावर और जंगम पदार्थों से युक्त विश्व केवल पृथ्वी को ही प्राप्त करता है और चलायमान पशु पक्षी आदि जीव आकाश और धरती में ही व्याप्त होते हैं।
The sky-heaven & earth divides the entire material-cosmic objects (stars, planets, nebulae, black hole, galaxies etc.) with space. It never feel disturbed-perturbed by bearing the Sun, Indr-heavens etc. nether world, river, ocean, mountains. Dynamic-movable & the fixed objects, organism are present over the earth. The animals and the birds survive between the sky and the earth.
सना पुराणमध्येम्यारान्महः पितुर्जनितुर्जामि तन्नः।
देवासो यत्र पनितार एवैरुरौ पथि व्युते तस्थुरन्तः॥
हे द्यो! आप महान हैं, आप सबका जनन कर पालन करती है। सनातनता, पूर्वक्रमागता हम लोगों का जननत्व सब एक से ही उत्पन्न हुआ है। द्यौ बहन होती है। हम अभी उसका स्मरण करते हैं। द्युलोक में विस्तीर्ण और विविक्त आकाश में आपकी प्रार्थना करने वाले देवता अपने वाहनों के साथ स्थित हैं। वहाँ ठहरकर वे स्तोत्र श्रवण करते हैं।[ऋग्वेद 3.54.9]
हे आकाश-धरती तुम सभी की जन्मदात्री हो, सभी को घोषण तुम ही करती हो। तुम्हारी प्राचीनता, पहले क्रम से विकास और हमारा उत्पादन इन सभी का एक ही कारणभूत है। अम्बर भगिनी रूपा है। हम उन सभी का चिन्तन करते हैं। तुम्हारी प्रार्थना करने वाले देवगण अपने-अपने वाहनों पर आरूढ़ होकर तुम्हारा पूजन सुनते हैं।
Hey sky & earth! You are great. You evolve all and nourish them. Source of evolution is same-common. Sky and earth are like sisters. We pray-worship them. Demigods-deities present in the sky, stay there & pray-worship and recite Strotr for you.
इमं स्तोमं रोदसी प्र ब्रवीम्यृदूदराः शृणवन्नग्निजिह्वाः।
मित्रः सम्राजो वरुणो युवान आदित्यासः कवयः पप्रथानाः॥
हे द्यावा-पृथ्वी! आपके इस स्तोत्र का हम भली-भाँति उच्चारण करते हैं। सोमरस को पेट में धारण करने वाले, अग्नि रूपी जिह्वा वाले, भली-भाँति दीप्यमान, नित्य तरुण, कवि अपने-अपने कर्म को प्रकट करने वाले मित्र आदि देवता इस स्तोत्र को श्रवण करें।[ऋग्वेद 3.54.10]
हे आकाश-धरती! तुम्हारे स्तोत्र को भली प्रकार गाते हैं। सोम को उदरस्थ करने वाले, अग्नि रूप जिव्हा वाले, नित्य युवा, तेजस्वी, अपने कर्मों को प्रकट करने वाले मित्र आदि देवगण हमारी प्रार्थनाओं को सुनें।
Hey sky & earth! We recite your Strotr properly. Always young radiant Mitr & other demigods-deities, having Somras in their stomach-belly and tongue in the form of Agni-fire recite this Strotr.
हिरण्यपाणिः सविता सुजिह्वस्त्रिरा दिवो विदथे पत्यमानः।
देवेषु च सवितः श्लोकमश्रेरादस्मभ्यमा सुव सर्वतातिम्॥
दानार्थ स्वर्ण को हाथ में रखने वाले, शोभन वचन वाले सविता यज्ञ के तीनों सदनों में आकाश से आते हैं। हे सविता! आप स्तोताओं के स्तोत्र को प्राप्त करें। इसके अनन्त सम्पूर्ण अभिलषित फल को हम लोगों के लिए प्रेरित करें।[ऋग्वेद 3.54.11]
दान के लिए स्वर्ण को हाथ में लेने वाले, उत्तम संकल्प वाले सूर्य! तुम तीनों सयनों में अम्बर में आकर प्राप्त करते हो। हे सूर्य देव! तुम वन्दना करने वालों के श्लोकों को स्वीकार करो। फिर इच्छित धन को हमारे लिये प्रेरित करो।
Let golden-handed, soft-tongued Savita is descend from heaven to be present thrice daily at the sacrifice; accept, the praise-prayers recited by the worshippers and thereupon grant to us all our desires.
Savita appears in all the three parts of the day from the sky, with gold for donating in the hands. Hey Savita! Listen to the recitation of th Strotr for you by the singers-devotees. Let our the rewards-desired commodities-wishes be fulfilled.
सुकृत्सुपाणिः स्ववाँ ऋतावा देवस्त्वष्टावसे तानि नो धात्।
पूषण्वन्त ऋभवो मादयध्वमूर्ध्वग्रावाणो अध्वरमतष्ट॥
सुन्दर जगत् के कर्ता! कल्याणपाणि, धनवान्, सत्य सङ्कल्प त्वष्ट देव रक्षा के लिए हम लोगों को सम्पूर्ण अपेक्षित फल प्रदान करें। हे ऋभुओं! पूषा के साथ आप हम लोगों को धन प्रदान करके प्रसन्न करें। क्योंकि सोमाभिषेक के लिए प्रस्तर को उत्तोलन करनेवाले ऋत्विकों ने यह यज्ञ किया है।[ऋग्वेद 3.54.12]
हाथ वाले सुन्दर विश्व के रचयिता, सत्य-प्रतिज्ञ, धन से युक्त, त्वष्टा हमारी रक्षा के लिए आवश्यक साधन दें। हे तुम पूषा से युक्त होकर हमको धन प्रदान करते हुए पुष्ट बनाओ। पाषण को सोम-अभिषेक के लिए प्रेरित करने वाले इस अनुष्ठान को करते हैं।
May Twasta Dev, the able artificer, with his dextrous-hands, the possessor of wealth, the observer of truth, bestow upon us those essential things which are necessary for our preservation; Ribhus associated with Pusha, make us joyful, as they the priests-Ritviz, with uplifted stones, prepare the sacred libation.
Developer-producer of the beautiful world, truthful Twasta! Grant us desires boons-objects & riches with your hands, which you raise-use for protection & welfare. Hey Ribhu Gan! Amuse us by giving us money along with Pusha. The Ritviz have accomplished the job-Yagy involving Somras, by using stones-rocks.
विद्युद्रथा मरुत ऋष्टिमन्तो दिवो मर्या ऋतजाता अयासः।
सरस्वती शृण्वन्यज्ञियासो धाता रयिं सहवीरं तुरासः॥
द्योतमान् रथ वाले, आयुधवान् दीप्तिमान्, शत्रुओं के विनाशक, यज्ञोत्पन्न, सतत गमनशील, यज्ञार्ह मरुद्गण और वाग्देवता हमारे इस स्तोत्र को सुनें। हे त्वरान्वित मरुद्गण! हमें पुत्र विशिष्ट धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 3.54.13]
चमकते हुए रथ वाले, अस्त्रों से पूर्ण, तेजस्वी, शत्रुओं के नाशक, अनुष्ठान में प्रकट गतिमान मरुद्गण और वाकदेव हमारी वंदनाओं को श्रवण करें। है मरुतों! हमको पुत्र से सम्पन्न धन प्रदान करो।
Let dynamic Marud Gan, Vag Devta marching for the war, riding radiant charoite, dynamic, slayers of enemy, invoked during the Yagy, listen to our prayer-Strotr. Marching Marud Gan should grant us wealth useful for our sons.
विष्णुं स्तोमासः पुरुदस्ममर्का भगस्येव कारिणो यामनिग्मन्।
उरुक्रमः ककुहो यस्य पूर्वीर्न मर्धन्ति युवतयो जनित्रीः॥
धन का हेतुभूत यह स्तोत्र और अर्चनीय शस्त्र है, इस विस्तृत यज्ञ में बहुकर्मा श्रीविष्णु के निकट गमन करे। सबकी जनयित्री और परस्पर असङ्कीर्णा दिशाएँ, जिस श्री विष्णु को हिंसित नहीं करती हैं, वह श्री विष्णु उरु विक्रमी है। त्रिविक्रमावतार (वामन अवतार) में एक ही पैर से उन्होंने सम्पूर्ण जगत् को आक्रान्त किया।[ऋग्वेद 3.54.14]
धन का कारणभूत यह स्तोत्र और प्रजा के योग्य हवि इस श्रेष्ठ यज्ञ में अनेक कर्म करने वाले प्रभु विष्णु को प्राप्त हो। सब को जन्म देने वाली दिशाएँ विष्णु को नष्ट नहीं कर सकतीं। वे विष्णु अत्यन्त सामर्थ्यवान हैं। उन्होंने अपने एक पग से समस्त संसार को ढक लिया था।
May our praises and prayers, the causes of good fortune, attain at this sacrifice, reach Shri Hari Vishnu, the object of many rites; he, the wide-stepping; who commands the many-blending regions of space, the genitive raptors of all beings, do not disobey.
Let our prayer-Strotr for the sake of money reach Bhagwan Shri Hari Vishnu who perform several-various functions. All directions which produce all organism can not harm-vanish Shri Hari Vishnu. HIS incarnation Tri-Vikram-Vaman covered the three abodes in just one step.
इन्द्रो विश्वैर्वीर्यैः ३ पत्यमान उभे आ पप्रौ रोदसी महित्वा।
पुरंदरो वृत्रहा धृष्णुषेणः संगृभ्या न आ भरा भूरि पश्वः॥
सकल सामर्थ्य सम्पन्न इन्द्र देव ने द्यावा और पृथ्वी दोनों को महिमा द्वारा पूर्ण किया। शत्रुपुरी को विदीर्ण करने वाले वृत्रासुर को मारने वाले और शत्रुओं को पराजित करने वाली सेना वाले इन्द्र पशुओं का संग्रह करके हमें प्रचुर मात्रा में पशु प्रदान करें।[ऋग्वेद 3.54.15]
समस्त बलों से परिपूर्ण हुए इन्द्रदेव ने अम्बर और धरा दोनों को अपनी महती सामर्थ्य से पूर्ण किया। शत्रु के किलों को ध्वस्त करने वाले, वृत्र के संहारक और शत्रुओं को जीतने वाली सेना से परिपूर्ण इन्द्रदेव पशु-सम्पत्ति को भली प्रकार से संग्रहित करके हमें प्रदान करें।
The possessor of all power, mighty, strong Indr Dev granted glory to the heaven & earth. Let the destroyer of enemy's kingdom, slayer of Vratasur Indr dev grants us herds of cattle in sufficient numbers.
नासत्या मे पितरा बन्धुपृच्छा सजात्यमश्विनोश्चारु नाम।
युवं हि स्थो रयिदौ नो रयीणां दात्रं रक्षेथे अकवैरदब्धा॥
हे अश्विनी कुमारों! आप हम बन्धुओं की अभिलाषा की जिज्ञासा करने वाले हैं, हमारे पालक होवें। आप दोनों का मिलन कमनीय है। हे अश्विन! हमारे लिए आप उत्तम धन के देने वाले होवें। आपका तिरस्कार कोई भी नहीं करता है। आपको हम हवि देते हैं। आप शोभन कर्म द्वारा हमारा पालन करें।[ऋग्वेद 3.54.16]
हे अश्विद्वय! तुम हमसे बंधुत्व स्थापना की कामना करते हो। तुम हमारा पालन करने वाले बनो। हे अश्विनी! हम तुम्हारा आदर करने में समर्थ हैं। हम तुमको हव्यदान करते हैं। श्रेष्ठ कार्यों द्वारा हमारी रक्षा करो।
Hey Ashwani Kumars! You wish to establish brotherly relations with us. You should nurturer & protect us. Hey Ashwani! We honour-revere you.
महत्तद्वः कवयश्चारु नाम यद्ध देवा भवथ विश्व इन्द्रे।
सख ऋभुभिः पुरुहूत प्रियेभिरिमां धियं सातये तक्षता नः॥
हे कवि देवगण! आपका वह प्रभूत कर्म मनोहर है, जिससे आप लोग इन्द्र लोक में देवत्व प्राप्त करते हैं। हे बहुजनाहूत इन्द्र देव! आप प्रियतम ऋभुओं के साथ सख्यभावापत्र हैं। आप हमारी इस प्रार्थना को धनादिलाभ के लिए स्वीकार करें।[ऋग्वेद 3.54.17]
हे देवताओं! हे विद्वानों! तुम्हारा काम अत्यन्त श्रेष्ठ है जो तुम इन्द्र की सेवा में रहते हुए समृद्धि या विजय को ग्रहण करते हो। हे इन्द्रदेव! तुम अनेकों द्वारा आहूत किये गये हो। तुम्हारी मित्रता ऋभुओं को ग्रहण है। धन लाभ के लिए हमारे इस श्लोक को स्वीकृत करो।
Hey demigods-deities, enlightened! Your endeavours-actions through which you attain the status of demigods-deities in the abode of Devraj Indr are excellent. Hey Indr Dev worshiped by majority of the humans! You are friendly with the Ribhu Gan. Accept our Shlok-prayer for grant of riches-money.
अर्यमा णो अदितिर्यज्ञियासोऽदब्धानि वरुणस्य व्रतानि।
युयोत नो अनपत्यानि गन्तोः प्रजावान्नः पशुमाँ अस्तु गातुः॥
सर्वदा गमनशील सूर्य, देवमाता अदिति, यज्ञार्ह देवगण और अहिंसित कर्म करने वाले वरुण देव हम लोगों की रक्षा करें। वे हमारे मार्ग से पुत्रों के अहित कर्म को अथवा पतन कारक कर्म को दूर करें। हमारे घर को वे पशु आदि से तथा अपत्य से युक्त करें।[ऋग्वेद 3.54.18]
सदैव गतिमान सूर्य देव माता अदिति, देवता और अहिंसायुक्त वरुण हमारा पालन-पोषण करें। हमारे मार्ग से अहितकारी बाधाओं को दूर भगाएँ। हमारे घर को पशु और संतान आदि से सम्पन्न करें।
Let always moving-dynamic Sun, Dev Mata Aditi, demigods-deities of the Yagy and non violent Varun Dev protect our populace (friends, relatives, family). Remove-restrict our those action which may harm & lead us to hells. Clear our homes from unexpected troubles and give us cattle & progeny.
देवानां दूतः पुरुध प्रसूतोऽनागान्नो वोचतु सर्वताता।
शृणोतु नः पृथिवी द्यौरुतापः सूर्यो नक्षत्रैरुर्व १ न्तरिक्षम्॥
अग्रिहोत्र के लिए बहु देशों में प्रसूत या विहित और देवताओं के दूत अग्रिदेव हैं। कर्म साधन की विगुणता से हम सापराध है। हमें अग्नि देव सभी जगह निरपराध कहें। द्यावा-पृथ्वी, जल समूह, सूर्य और नक्षत्रों द्वारा पूर्ण विशाल अन्तरिक्ष हमारी प्रार्थना श्रवण करें।[ऋग्वेद 3.54.19]
यज्ञानुष्ठानों के लिए अग्नि देवों के दूत रूप से प्रसिद्ध हैं। वे हमको कर्म साधन से परिपूर्ण और अपराध वृत्ति से पृथक करें। अम्बर, धरा, जलाशय, सूर्य और नक्षत्रों से परिपूर्ण अंतरिक्ष हमारे श्लोकों को सुनें।
Agni Dev is famous-recognised as the ambassador of the demigods-deities for performing-conducting Yagy. Let us remain aloof from crimes-sins, wickedness, vices while performing our jobs-actions day to day rituals. Let the sky-heaven, earth, water reservoirs-ocean etc., Sun and the constellations-stars listen-respond to our prayers.
शृण्वन्तु नो वृषण: पर्वतासो ध्रुवक्षेमास इळया मदन्तः।
आदित्यैनों अदितिः शृणोतु यच्छन्तु नो मरुतः शर्म भद्रम्॥
हे अभिमत फल सेचक मरुद्गण! धन की कामना को पूर्ण करने वाले निश्चल पर्वत हविरन्न से प्रसन्न होकर हमारी प्रार्थना सुनें। अदिति अपने पुत्रों के साथ हमारी प्रार्थना सुनें। मरुद गण हमें कल्याणकर सुख दें।[ऋग्वेद 3.54.20]
वे मरुद्गण मनवांछित फलों की वर्षा करने वाले हैं। वे इच्छाओं का अभिष्ट पूर्ण करने वाले अचल पर्वत हवि युक्त अन्न से हर्ष प्राप्त कर हमारे श्लोकों पर ध्यान दो। अदिति अपने पुत्र देवताओं के साथ हमारी स्तुति सुनें और मरुदगण हमारा मंगल करने वाला धन प्रदान करें।
Let Marud Gan accomplishing our desires and granting riches listen-respond to our prayers, commit to our welfare & comforts, accepting our offerings of food grains. Let Aditi respond to our prayers along with her sons.
सदा सुगः पितुमाँ अस्तु पन्था मध्वा देवा ओषधीः सं पिपृक्त।
भगो मे अग्ने सख्ये न मृध्या उदायो अश्यां सदनं पुरुक्षोः॥
हे अग्नि देव! हमारा मार्ग सदा सुख से जानने योग्य तथा अन्नवान हो। हे देवताओं! मधुर जल से औषधियों को संसिक्त करें। हे अग्नि देव! आपसे मैत्री प्राप्त करने पर हमारा धन विनष्ट न हो। हम जिससे धन और प्रभूत अन्न के स्थान को प्राप्त करें।[ऋग्वेद 3.54.21]
हे अग्नि देव! हमारा मार्ग आसान हो। हम अन्न यात्रा में सफलता ग्रहण करो। हे देवताओं! औषधियों को मृदुरस से पूर्ण कर दो। हे अग्निदेव! हम तुम्हारे मित्र हो गये हैं। अतः हमारे धन का पतन न हो। हम धन को रचित करने वाले अन्न को ग्रहण करें।
Hey Agni Dev! Make our way easy-clear, granting us food grains. Hey demigods-deities! Fill the medicines with sweet sap. Hey Agni Dev! Being friendly with you, ensure safety of our belongings. We should get-occupy the places rich in food grains and earning.
स्वदस्व हव्या समिषो दिदीह्यस्मद्रय् १ क्सं मिमीहि श्रवांसि।
विश्वाँ अग्ने पृत्सु ताञ्जेषि शत्रूनहा विश्वा सुमना दीदिही नः॥
हे अग्नि देव! हवन योग्य हवि का आस्वादन कर हमारे अन्न को भली-भाँति प्रकाशित करें और उन अन्नों को हमारे अभिमुख करें। आप युद्ध में बाधा डालने वाले सभी शत्रुओं को जीतें और प्रफुल्लित मन वाले होकर आप हमारे सम्पूर्ण दिवसों को प्रकाशमय करें।[ऋग्वेद 3.54.22]
हे अग्नि देव! इस यज्ञ योग्य हवि का स्वाद लो। हमारे लिए अन्न का प्रकाश करो। युद्ध करने वाले सभी विघ्न-बाधाओं, शत्रुओं पर विजय प्राप्त करें और प्रसन्न मन से हमारे सभी दिवसों को प्रकाशित करो।
Hey Agni Dev! Enjoy the offerings for this Yagy. Lit out food grains. Win all enemies and remove all obstacles, enjoy and make our days full of pleasure i.e., lit our days.(18.12.2022)
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (55) :: ऋषि :- विश्वामित्र, वाच्या, प्रजापति, देवता :- विश्वेदेवा, छन्द :- त्रिष्टुप्।
उषसः पूर्वा अध यद्व्यूषुर्महद्वि जज्ञे अक्षरं पदे गोः।
व्रता देवानामुप नु प्रभूषन्महद्देवानामसुरत्वमेकम्॥
उदयकाल से प्राचीन उषा जब दग्ध होती है, तब अविनाशी सूर्य समुद्र से या आकाश में उदित होते हैं। सूर्य के उदित होने पर अग्निहोत्रादि के लिए तत्पर याजक गण कर्म करते हैं और शीघ्र ही देवताओं के समीप उपस्थित होते हैं। देवताओं का महान बल एक ही है।[ऋग्वेद 3.55.1]दग्ध :: दहन करना, अग्नि, दग्ध, दग्ध-क्षेत्र, दग्ध, भस्मीभूत, झुलसा हुआ, भुना हुआ; burnt out, burn, burnt, adust.
जब प्राचीन उषा उदयकाल के तेज से संतप्त होती है, तब आकाश से अमरत्व ग्रहण कर आदित्य उदय होते हैं। सूर्योदय होने पर यजमान अनुष्ठान कार्य करते हुए देवताओं की निकटता ग्रहण करते हैं। वे समस्त श्रेष्ठ देव तुल्य शक्ति से परिपूर्ण हैं।
The Sun rises in the sky, when ancient-old Usha is burnt. The Ritviz and performers of Yagy begin with the rituals presenting them selves in front of the demigods-deities. They possess the strength like the demigods-deities.
Usha-day break is for a very small interval of time. As the Sun rises its gone.
मो षू णो अत्र जुहुरन्त देवा मा पूर्वे अग्ने पितरः पदज्ञाः।
पुराण्योः सद्मनोः केतुरन्तर्महद्देवानामसुरत्वमेकम्॥
हे अग्नि देव! इस समय देवता हमें हिंसित न करें। देव पदवी को प्राप्त पुरातन पुरुष (पितर) हमें हिंसित न करें। यज्ञ के प्रज्ञापक, पुरातन द्यावा-पृथ्वी के बीच में उदित सूर्य हमें हिंसित न करे। देवताओं का महान् बल एक ही है।[ऋग्वेद 3.55.2]
हे अग्नि देव! देवता हमारा विनाश न करें। देवत्व प्राप्त पूर्वज हमको न मारें। यज्ञ की प्रेरणा देने वाले सूर्य, आकाश और पृथ्वी के बीच उदित होते हैं, वे हमारी हिंसा न करें। उन समस्त देवों की श्रेष्ठ शक्ति एक ही है।
Hey Agni Dev! Do not let the demigods-deities & the Sun occupying position between the earth & the sky harm us, possessing great and unequalled might.
Hey Agni Dev! The demigods-deities, Pitrs-Manes and the Sun placed in between the heaven & earth should not torture-tease us. The strength-power of the demigods-deities is excellent.
वि मे पुरुत्रा पतयन्ति कामाः शम्यच्छा दीद्ये पूर्व्याणि।
समिद्धे अग्नावृतमिद्वदेम महद्देवानामसुरत्वमेकम्॥
हे अग्नि देव! हमारी बहुत सी अभिलाषाएँ विविध दिशाओं में गमन करती है। अग्निष्टोमादि यज्ञ को लक्ष्य कर हम पुरातन स्तोत्र को दीप्त करते हैं। यज्ञार्थ अग्नि के दीप्त होने पर सत्य बोलेंगे। देवताओं का महान् बल एक ही है।[ऋग्वेद 3.55.3]
हे अग्नि देव! हमारी तरह-तरह की भिन्न-भिन्न अभिलाषायें विभिन्न दिशाओं में विचरण करती हैं। उन श्रेष्ठ से प्रकट हुए अग्नि के प्रति हम अपने प्राचीन श्लोकों को चैतन्य करते हैं। अग्नि से भली-भाँति प्रदीप्त होने पर श्लोक उच्चारण करें। सभी देवों का श्रेष्ठ पराक्रम एक ही है।
Hey Agni Dev! Our desires-ambitions directs in all directions. We target-aim the Agnishtom & other Yagy and recite the ancient-eternal Strotr for it. We will recite the Shlok-hymns after the ignition of fire. The strength of demigods-deities is the same.
By nature the mind is wavering-flickering. It travels in all directions. Good & bad, all sorts of desires plague it. The innerself has to be directed to the demigods-deities, the God-Almighty.
समानो राजा विभृतः पुरुत्रा शये शयासु प्रयुतो वनानु।
अन्या वत्सं भरति क्षेति माता महद्देवानामसुरत्वमेकम्॥
सर्वसाधारित के राजा दीप्यमान् अग्नि देव बहुत देशों में अग्नि होत्र के लिए स्थापित होते है। वे वेदी के ऊपर शयन करते हैं। अरणि-काष्ठ के ऊपर विभक्त होते हैं। द्यावा-पृथ्वी इनके माता-पिता हैं, उनमें अन्य अर्थात् द्युलोक इन्हें वृष्टि आदि के द्वारा पुष्ट करते हैं और अन्य माता वसुधा इन्हें केवल निवास देती है। देवताओं का महान् बल एक ही है।[ऋग्वेद 3.55.4]
हे प्रजा-स्वामी अग्नि देव! सभी स्थानों में यज्ञ कर्म के लिए स्थापित किये जाते हैं। वे वेदी पर रमण करते हैं। अरणियों से प्रकट होते हैं। इनके माता-पिता पृथ्वी और आकाश हैं। आकाश इनका वर्षा द्वारा पोषण करता है और पृथ्वी इनको आवास देती है। देवताओं का पराक्रम एक जैसा ही है।
The king of the populace, Agni Dev! Agni Dev is established in several countries-locations. He sleeps over the Vedi-Agni Kund. He appears out of the wood. The sky & the earth are his parents. The heavens nurture-nourish him for rains. Mother earth-Vasundhara provide him residence. The total-combined strength of the demigods-deities in one.
आक्षित्पूर्वास्वपरा अनूरुत्सद्यो जातासु तरुणीष्वन्तः।
अन्तर्वतीः सुवते अप्रवीतो महद्देवानामसुरत्वमेकम्॥
जीर्ण औषधियों में वर्त्तमान और नव्य औषधियों में गुणानुरूप से स्थित अग्नि या सूर्य सद्योजात, पल्लवित औषधियों के अभ्यन्तर में वर्तमान है। औषधियाँ बिना किसी पुरुष के रेतः संयोग से अग्नि के द्वारा गर्भवती होकर फल-पुष्प आदि को पैदा करती हैं। यह देवों का ऐश्वर्य है। देवताओं का महान् बल एक ही है।[ऋग्वेद 3.55.5]
प्राचीन औषधियों में रमे हुए और नई औषधियों में गुण के अनुरूप स्थित अग्नि देव सभी औषधियों के अन्तर में निवास करते हैं, वे औषधियाँ, बगैर वीर्यदान ग्रहण किये, अग्नि द्वारा गर्भवती हुई फल-पुष्पादि को रचित करने में समर्थ हैं। यह सब अग्नि देव की सामर्थ्य है। देवताओं का महान् बल एक ही है।
Agni Dev is present in old & new vegetation-herbs. The herbs-medicinal plants produce flowers & fruits without the combination of sperms just by the heat of fire-Agni Dev. This is due to the potential of Agni Dev. The demigods-deities possess great potential.
Its taught in botany that pollination occurs due to the insects, air, water or just by the shaking of plants. Hundreds of herbs and medicinal plants are seen producing flowers and fruits at places where there is no chance of the presence of insects.
शयुः परस्तादध नु द्विमाताबन्धनश्चरति वत्स एकः।
मित्रस्य ता वरुणस्य व्रतानि महद्देवानामसुरत्वमेकम्॥
दोनों लोकों के निर्माण कर्ता अथवा द्यावा-पृथ्वी रूप माता-पिता वाले सूर्य पश्चिम दिशा में अस्त वेला में शयन करते हैं, किन्तु उदय वेला में वे ही द्यावा- पृथ्वी के पुत्र सूर्य अप्रतिबद्ध गति होकर आकाश में अकेले चलते हैं। यह सकल कर्म मित्र और वरुण का है। देवताओं का महान् बल एक ही है।[ऋग्वेद 3.55.6]
सभी देवताओं में होते हुए सूर्य देव पश्चिम में विश्राम करते हैं। वे सूर्योदय काल में अकेले ही आसमान में निर्बाध गति से घूमते हैं। यह कर्म मित्र वरुण की प्रेरणा से होता है। वे दोनों समान पराक्रम वाले हैं। होतागण सुन्दर संकल्पों द्वारा महान श्लोकों का उच्चारण करते हैं। उन सभी देवताओं की वीरता एक जैसी है।
The Sun sets in the west in the evening and rise in the morning and travel alone in the sky, which is inspired by Mitr & Varun Dev. The power & might of demigods-deities is unique.
द्विमाता होता विदथेषु सम्राळन्वग्रं चरति क्षेति बुध्नः।
प्र रण्यानि रण्यवाचो भरन्ते महद्देवानामसुरत्वमेकम्॥
दोनों लोकों के निर्माता यज्ञ के होता तथा यज्ञ में भली-भाँति विराजमान अग्नि देव आकाश में सूर्य रूप से विचरण करते हैं। वे सब कर्मों के मूलभूत होकर भूमि में निवास करते हैं। देवताओं का महान बल एक ही है।[ऋग्वेद 3.55.7]
वे अग्नि देव अम्बर-धरा रूप दोनों संसार के रचनाकार हैं। वे अनुष्ठान में भली प्रकार रमण करते हैं और क्षितिज में सूर्य से विचरते हैं। वे ही इस पृथ्वी पर निवास करते हुए सभी कार्यों के कारण रूप हैं।
Producer of both the abodes heaven-earth, Agni Dev roam-move in the form of Sun in the sky, present in the Yagy as the Ritviz-Hota. He is the root of every deeds and locate himself over the earth. The combined strength of the demigods-deities is one.
Demigods-deities, humans & all organism draw their strength from the God-Almighty.
शूरस्येव युध्यतो अन्तमस्य प्रतीचीनं ददृशे विश्वमायत्।
अन्तर्मतिश्चरति निष्षिधं गोर्महद्देवानामसुरत्वमेकम्॥
युद्ध करने वाले शूर व्यक्ति के सामने आने वाली शत्रु सेना जिस प्रकार से पराङ्मुख दिखाई पड़ती है, उसी प्रकार समीप में वर्तमान अग्नि देव के अभिमुख आने वाला भूतजात पराङ्मुख होता दिखाई पड़ता है। सभी के द्वारा ज्ञायमान अग्नि देव जल को हिंसित करने वाली दीप्ति को बीच में धारित करते हैं। देवताओं का महान् बल एक ही है।[ऋग्वेद 3.55.8]
पराङ्मुख :: विमुख, विपरीत, विरुद्ध; adverse, opposite, reverse.
जिस तरह अधिक बलपूर्वक युद्ध करने वाले मनुष्य के सामने जो कोई आता है वह हार का मुख देखता है। उसी तरह अग्नि देव के सम्मुख जो भी आता है वह परागमुख दिखाई देता है। वे सर्वज्ञाता अग्नि देव सभी ओर उपस्थित हैं। उन देवताओं का एक ही उत्तम बल है।
The way the opposite army in front of the brave appears adverse, any one who confronts Agni Dev has to face defeat. Agni Dev is present every where possessing the glow, aura-radiance of water. The excellent might of demigods-deities is singular.
नि वेवेति पलितो दूत आस्वन्तर्महांश्चरति रोचनेन।
वपूंषि बिभ्रदभि नो वि चष्टे महद्देवानामसुरत्वमेकम्॥
पालक और देवों के दूत अग्नि देव औषधियों के बीच में अत्यन्त व्याप्त होकर वर्तमान हैं। वे सूर्य के साथ द्यावा-पृथ्वी के बीच में चलते है। नानाविध रूपों को धारित करते हुए वे हम लोगों को विशेष अनुग्रह दृष्टि से देखें। देवताओं का महान् बल एक ही है।[ऋग्वेद 3.55.9]
जैसे सूर्य, आकाश और पृथ्वी के मध्य अपनी अत्यन्त सामर्थ्य से उपस्थित रहता है, वैसे ही देवताओं के सन्देह वाहक प्राणी मात्र का पोषण करने वाली अग्नि औषधियों में व्याप्त हैं। विविध रूपधारी हमको अत्यन्त कृपा दृष्टि से देखें। समस्त देवताओं की उत्तम शक्ति एक ही है।
Nurturer, ambassador of the demigods-deities is widely present in the medicinal plants-herbs. He moves with Sun between the sky and the earth. He possess various-different shapes-sizes obliging the humans. The demigods-deities posses great power.
विष्णुर्गोपाः परमं पाति पाथः प्रियाधामान्यमृता दधानः।
अग्निष्टा विश्वा भुवनानि वेद महद्देवानामसुरत्वमेकम्॥
सर्वत्र व्याप्त सभी के रक्षक, प्रियतम और क्षय रहित तेज को धारित करने वाले अग्नि देव परम स्थान की रक्षा करते हैं अथवा लोक धारक जल को धारित करते हुए जल के स्थान अन्तरिक्ष की रक्षा करते हैं। अग्नि देव उन सम्पूर्ण भूतजात को जानते हैं। देवताओं का महान् बल एक ही है।[ऋग्वेद 3.55.10]
सर्वव्यापक, सभी के पोषणकर्त्ता, हितैषी कभी क्षीण न होने वाले अग्नि देव तेज को धारण करते हुए धरती आदि सभी लोकों के रक्षक हैं। वह अग्नि देव सभी भूतों को जानते हैं। वे सभी देवों में अद्वितीय एक ही उत्तम शक्ति है।
Pervading all places, protector of all bearing immortal radiance Agni Dev protects the Ultimate abodes. He protects the space as well keeping water with him. Agni Dev is aware of all those who are gone now-deceased. There is only one great power possessed by the demigods-deities.
Shuk Dev Ji Maharaj, son of Bhagwan Ved Vyas went to Sury Lok, which indicate that the Sun in it self is a place-abode of demigods-deities or the humans having a bright protective layer-shield in the form of fire. Radio waves emerging out of the Sun have been recorded by the scientists.
नाना चक्राते यम्या३ वपूंषि तयोरन्यद्रोचते कृष्णमन्यत्।
श्यावी च यदरुषी च स्वसारौ महद्देवानामसुरत्वमेकम्॥
मिथुनभूत अहोरात्र नानाविध रूप धारित करते हैं। कृष्ण वर्णा तथा शुक्ल वर्णा जो दोनों बहनें हैं, उनके बीच में एक दीप्ति शालिनी है और दूसरी कृष्ण वर्णा है। देवताओं का महान् बल एक ही है।[ऋग्वेद 3.55.11]
साँवले रंग वाली रात्रि और तेजोमय उज्जवल उषा दोनों बहनें सूर्य से रचित होती हुई जाग्रति और निद्रा के सिद्धान्तों में जीवों को डालने वाली विविध रूपों से परिपर्ण हैं। उन दोनों में एक तेज से चमकती तथा दूसरी अंधकार से काली रहती है। इन समस्त देवों ने उन सूर्य रूप अग्नि की एक ही उत्तम शक्ति है।
Night and day break are two sisters, one is dark & the other is bright created by the Sun. The night leads to sleep and the Usha wake up the Humans & organisms. The energy of the demigods-deities is derived from the Sun & Agni.
Shakti the mother nature is the source of all power-energy in the universe. Dev Raj Indr, Pawan Dev, Varun Dev, Sury Bhagwan can not operate without her. She is first one to be created by the Almighty Krashn from HIS left. She is the one who hold the stars, constellation and the planets in their orbits. She controls the galaxies.
माता च यत्र दुहिता च धेनू सबर्दुघे धापयेते समीची।
ऋतस्य ते सदसीळे अन्तर्महद्देवानामसुरत्वमेकम्॥
माता पृथ्वी और दुहिता द्युलोक स्वरूप दोनों क्षीर दायिनी धेनु जिस अन्तरिक्ष में परस्पर सङ्गत होकर अपने रस को एक दूसरे को पान कराती हैं, जल के स्थान भूत उस अन्तरिक्ष के बीच में स्थित द्यावा-पृथ्वी को हम प्रार्थना करते हैं। देवताओं का महान बल एक ही है।[ऋग्वेद 3.55.12]
धरती और आकाश दोनों ही जननी और पुत्री के समान हैं। धरती सभी जीवों को उत्पन्न कर उनका पालन-पोषण करने के कारण जननी और आकाश से वर्षा के जल को दूध के समान स्वीकार करने के कारण पुत्री रूप है। उसी प्रकार नभ, बादल, वर्षा आदि जीवों के पालनकर्त्ता होने से माता और धरती के जल को दूध के समान सींचकर पीने से पुत्री के समान हैं। यह दोनों ही गाय के समान अन्न, जल, रूप से दूध देने वाली हैं। उन गगन और पृथ्वी की हम वंदना करते हैं। यह दोनों देवगणों के एक ही उत्तम शक्ति द्वारा समर्थ हुई हैं।
The earth and the sky are the mother & daughter. They are complementary of each other. The earth produces all organism and nourish-nurture them like the mother and accept the rains like the milk from the sky like a daughter. They both grant food grains, water like milk of the cow. We worship the sky and the earth. The strength of the demigods-deities is one.
अन्यस्या वत्सं रिहती मिमाय कया भुवा नि दधे धेनुरूधः।
ऋतस्य सा पयसापिन्वतेळा महद्देवानामसुरत्वमेकम्॥
द्युलोक पृथ्वी के पुत्र अग्नि को उदक धारा रूप जिव्हा से चाटते हैं और मेघ द्वारा ध्वनि करते हैं। द्युरूपा धेनु को जल वर्जित करके अपने ऊध: प्रदेश को पुष्ट करती है। वह जल वर्जित पृथ्वी सत्य भूत सूर्य के जल से वर्षा काल में सिक्त होती है। देवताओं का महान बल एक ही है।[ऋग्वेद 3.55.13]
गाय के समान रस-वर्षा करने वाले अम्बर के जल को धरा बादल रूप धारण करती है। इस समय वह धरा के जल से रचित बादल को बछड़े के तुल्य चाटती हैं और विद्युत गर्जन के रूप से ध्वनि करती हुई भूमि को अन्न उत्पादक तथा पौष के वृष्टि जल से भली-प्रकार सींचती हैं। यह समस्त देवताओं की महान शक्ति का परिणाम है।
The cow-heaven lick the calf-Agni, the son of earth with their tongue and generate sound through the clouds and nourish-saturate the earth with rain water. The combined strength of the demigods-deities is one.
पद्या वस्ते पुरुरूपा वपूंष्यूर्ध्वा तस्थौ त्र्यविं रेरिहाणा।
ऋतस्य सद्म वि चरामि विद्वान्महद्देवानामसुरत्वमेकम्॥
पृथ्वी नाना प्रकार के शरीर को आच्छादित करती है। उन्नत होकर वे तीनों लोकों को व्याप्त करने वाले अथवा डेढ़ वर्ष की अवस्था वाले सूर्य को चाटती हुई अवस्थान करती हैं। सत्य भूत सूर्य के स्थान को जानते हुए हम उनकी परिचर्या करते हैं। देवताओं का महान् बल एक ही है।[ऋग्वेद 3.55.14]
शरीर को अनेक प्रकार से आकाश और पृथ्वी ढकती है। उन्नत होकर त्रिलोकी को व्याप्त करने वाले सूर्य को चाटती हुई सी चलती है। सत्य के कारण भूत सूर्य के स्थान को जानकर हम उनकी वंदना करते हैं। देवगणों का उत्तम बल एक है।
The earth wears bodies of many forms :- shapes and sizes. She abides on high cherishing her year and a half old (calf); knowing the abode of the truth-Sun. We worship her. The great and unequalled might of the demigods-deities is unique.
The earth covers the body in several ways. On being elevated it lick-touches the Sun, pervades the three abodes (earth, heaven, nether world) & serve the truthful Sun. We worship them. The strength-might of the demigods-deities is one.
पदे इव निहिते दस्मे अन्तस्तयोरन्यद् गुह्यमाविरन्यत्।
सध्रीचीना पथ्या३ सा विषूची महद्देवानामसुरत्वमेकम्॥
पद द्वय के तुल्य दर्शनीय अहोरात्र द्यावा-पृथ्वी के बीच में स्थापित हैं। उनके बीच में एक गूढ़ और अन्य आविर्भूत है। अहोरात्र का आपस में मिलन पथ पुण्यकारी और अपुण्यकारी दोनों को ही प्राप्त होता है। देवताओं का महान बल एक है।[ऋग्वेद 3.55.15]
आविर्भूत :: उत्पन्न, अभिव्यक्त, प्रकटित, अवतीर्ण, सामने आया हुआ; emerged.
दो पैरों के समान विचरणशील दिन-रात, आकाश और पृथ्वी के बीच विद्यमान हैं। ये दोनों दिव्य हैं, एक अंधकार का और दूसरा उजाले का पतन करने वाली है। उन दोनों का मार्ग पापी और पुण्यकर्मा दोनों को ही ग्रहण होता है। देवों की एक ही श्रेष्ठ शक्ति है।
Like two distinguished impressions, the day and night are complementary and visible between heaven and earth, one hidden, one manifest; the path of both is common and that is universal for good-pious and evil-wicked boosted by the great and unequalled might of demigods-deities.
Like the two legs, day & night are present between the earth & the sky. They appear as one entity. The combination of these two is available for the pious and wicked as well. The strength of demigods-deities is excellent.
आ धेनवो धुनयन्तामशिश्वी: सबर्दुघाः शशया अप्रदुग्धाः।
नव्यानव्या युवतयो भवन्तीर्महद्देवानामसुरत्वमेकम्॥
तेजस्विता युक्त, अमृतमय दुग्ध का दोहन करने वाली, शिशुओं से रहित, तरुणी गौएं प्रतिदिन नवीनता को धारित करके अमृत रस प्रदान करती हैं। देवताओं का महान बल एक ही है।[ऋग्वेद 3.55.16]
वर्षा करने के कारण सबकी प्रीति प्राप्त करने वाली, शिशु-विहीन, आकाश- व्यापिनी, सदैव नारी और नई स्वरूप वाली दिशाएँ कम्पायमान होती हैं। यह देवगणों की एक उत्तम सामर्थ्य का फल है।
Radiant young cows without progeny, yield milk like the nectar-elixir due to the capability-power of the demigods-deities.
यदन्यासु वृषभो रोरवीति सो अन्यस्मिन्यूथे नि दधाति रेतः।
स हि क्षपावान्त्स भगः स राजा महद्देवानामसुरत्वमेकम्॥
जल के वर्षक पर्जन्य रूप इन्द्र देव अन्य दिशाओं में मेघ द्वारा प्रभूत शब्द करते हैं। वे अन्य दिशा समूह में जल की वर्षा करते हैं। वे जल या शत्रु के क्षेपनवान हैं, सभी के द्वारा भजनीय हैं और सभी के राजा हैं। देवताओं का महान बल एक ही है।[ऋग्वेद 3.55.17]
पर्जन्य :: गरजता तथा बरसता हुआ बादल, मेघ, इंद्र, विष्णु, कश्यप ऋषि के एक पुत्र जिसकी गिनती गंधर्वों में होती है; rattling clouds.
पर्जन्य तीसरे आदित्य हैं, जो कि मेघों में निवास करते हैं। इनका मेघों पर नियंत्रण हैं। वर्षा के होने तथा किरणों के प्रभाव से मेघों का जल बरसता है। ये धरती के ताप को शान्त करते हैं और फिर से जीवन का संचार करते हैं। इनके बगैर धरती पर जीवन संभव नहीं।
वर्णशील मेघ, गौ के बीच स्थित वृषभ के समान, दिशाओं से शब्द करता हुआ जल वर्षा करता है। इन्द्र ही उसे इस कार्य में प्रेरित करते हैं। वे इन्द्र सबके द्वारा आराधना करने योग्य हैं और सबके दाता हैं।
Indr dev in the form of clouds make rattling sounds in all directions leading to rains. He is king & revered-honoured by all. The power of demigods-deities is one.
वीरस्य नु स्वश्वयं जनासः प्र नु वोचाम विदुरस्य देवाः।
षोळ्हा युक्ता पञ्चपञ्चावहन्ति महद्देवानामसुरत्वमेकम्॥
हे जनो! शूर इन्द्र देव के शोभन अश्वों का हम शीघ्र ही प्रभूत वर्णन करते हैं। देवता भी इनके अश्वों को जानते हैं। दो-दो मासों को मिलाने पर छः ऋतुएँ होती हैं, फिर हेमन्त और शिशिर को मिला देने पर पाँच ही ऋतुएँ होती हैं। ये ही इनके अश्व है। ये कालात्मक इन्द्र देव का वहन करती हैं। देवताओं का महान बल एक ही है।[ऋग्वेद 3.55.18]
हे मनुष्यों! हम इन्द्रदेव को सुशोभित अश्वों को उत्तम वर्णन करते हैं। देवगण उन इन्द्रदेव के अश्वों को जानते हैं। दो-दो माह को मिश्रित करके साल में छह ऋतुएँ होती हैं। हेमन्त और शिशिर को एक कर देने पर पाँच ऋतुएँ मानी जाती हैं। यह इन्द्रदेव के अश्व रूप ऋतुएँ सूर्य व इन्द्रदेव का यज्ञ करती हैं। देवताओं का श्रेष्ठ सामर्थ्य एक जैसा है।
Hey humans! Let us describe the beautiful horses of brave Indr Dev. The demigods-deities too recognise-know these horses. Taking two months at a time, there are 6 seasons. If we count Hemant & Shishir together (winters), number of seasons become 5. These seasons constitute the horses of Indr Dev. These seasons perform the Yagy of Sun & Indr Dev. This constitute the combined power of the demigods-deities.
देवस्त्वष्टा सविता विश्वरूपः पुपोष प्रजाः पुरुधा जजान।
इमा च विश्वा भुवनान्यस्य महद्देवानामसुरत्वमेकम्॥
अन्तर्यामी होने के कारण सभी के प्रेरक, नानाविध रूप विशिष्ट त्वष्टा देव बहुत प्रकार से प्रजाओं की उत्पत्ति करते हुए उनका पोषण करते हैं। ये सम्पूर्ण भुवन त्वष्टा के हैं। देवताओं का महान बल एक ही है।[ऋग्वेद 3.55.19]
त्वष्टादेव अन्तर्यामी होने से सबकी प्राप्ति कराने वाले हैं। वे अनेक रूप वाली प्रजाओं को रचित करने वाले हैं तथा यही उनका पालन पोषण करते हैं। यह समस्त संसार त्वष्टा का ही है। देवताओं की महान शक्ति एक जैसी है।
Possessing intuition Twasta inspire all, create & nourish-nurture several types-kinds of populace through various means assuming various forms, shapes, sizes. All abodes in the universe belong to Twasta. The power of the demigods-deities is one.
मही समैरचम्वा समीची उभे ते अस्य वसुना न्यृष्टे।
शृण्वे वीरो विन्दमानो वसूनि महद्देवानामसुरत्वमेकम्॥
इन्द्र देव ने महती और परस्पर संगत द्यावा पृथ्वी को पशु-पक्षियों से व्याप्त किया। वह द्यावा-पृथ्वी इन्द्र देव के तेज से अतिशय व्याप्त है। समर्थ इन्द्र देव शत्रुओं को हरा कर उनके धन को ग्रहण करने में विख्यात है। देवताओं का महान् बल एक ही है।[ऋग्वेद 3.55.20]
इन्द्र देव ने ही इस महत्तावान आकाश और धरती को सुसंगत कर, पशु-पक्षियों को प्रकट करने वाली बनाया। वे आकाश और धरती दोनों ही इन्द्र के तेज से व्याप्त हैं।
Indr Dev coordinated-linked the vast sky and the earth together and made them suitable for the survival-living of animals & birds. The energy-power of Indr Dev pervades the sky & earth. Indr Dev defeat the enemy and possess their wealth. The might-power of the demigods-deities is one.
इमां च नः पृथिवीं विश्वधाया उप क्षेति हितमित्रो न राजा।
पुरः सदः शर्मसदो न वीरा महद्देवानामसुरत्वमेकम्॥
विश्वघाता और हम लोगों के राजा इन्द्र देव इस पृथ्वी और अन्तरिक्ष में हितकारी मित्र के तुल्य निवास करते हैं। वीर मरुद्गण युद्ध के लिए इन्द्र देव के आगे जाते हैं। वे इनके घर में निवास करते हैं। देवताओं का महान बल एक ही है।[ऋग्वेद 3.55.21]
संसार को धारण करने वाले, हमारी पृथ्वी और आकाश के भी स्वामी, हित चिंतक साथियों से परिपूर्ण इन्द्र देव अपने आप तेजस्वी हुए प्राणधारियों का पोषण करते हैं। मरुद्गण संग्राम का अवसर ग्रहण होने पर इन्द्र देव के आगे-आगे चलते हैं और अद्भुत स्थानों पर वास करते हैं। देवों की महान सामर्थ्य एक जैसी है।
The supporter of the universe, master of our earth & the sky, will wisher of all, lives in the space-heavens like our friend. Brave Marud Gan moves ahead-forward of Indr Dev and occupy amazing place like home. The strength of the demigods-deities is one.
निष्षिध्वरीस्त ओषधीरुतापो रयिं त इन्द्र पृथिवी बिभर्ति।
सखायस्ते वामभाजः स्याम महद्देवानामसुरत्वमेकम्॥
हे पर्जन्यात्मक इन्द्रदेव! औषधियों ने आपसे सिद्धि पाई हैं, जल आपसे ही निःसृत हुआ है और पृथ्वी आपके भोग के लिए धन को धारित करती है। हम लोग भी आपके धन के भागी हो सकें। देवताओं का महान् बल एक ही है।[ऋग्वेद 3.55.22]
हे इन्द्र देव! यह धरती व्याधि-नाशिनी दवाइयों को पुष्ट करती है। जल धाराएँ भी तुम्हारे मित्र उत्तम यश को प्राप्त कर उनका भोग करने में सक्षम हों। देवगणों की महान शक्ति एक ही है।
Hey cloud forming Indr Dev! The herbal Ayurvedic medicines have attained saturation due to you. You create-generate the water streams-rivers etc. The earth possess wealth, to be used-consumed by you. The power of the demigods-deities is one.(22.12.2022)
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (56) :: ऋषि :- विश्वामित्र, वाच्या, प्रजापति, देवता :- विश्वेदेवा, छन्द :- त्रिष्टुप्।
न ता मिनन्ति मायिनो न धीरा व्रता देवानां प्रथमा ध्रुवाणि।
न रोदसी अद्रुहा वेद्याभिर्न पर्वता निनमे तस्थिवांसः॥
मायावी गण देवों की सृष्टि के अनन्तर होने वाले स्थिर और प्रसिद्ध कर्मों को हिंसित न करें, विद्वान लोग भी न करें। अचल पर्वतों को कोई झुका नहीं सकता।[ऋग्वेद 3.56.1]
देवों की पुष्टि से रचित होने वाले मायावी असुर महान कार्यों की हिंसा न करें। विद्वान भी उत्तम कार्यों को न छोड़ें। अम्बर-धरा भी प्रजाओं के साथ बाधा रहित रहें। अविचल पर्वतों को कोई झुका नहीं सकता।
Neither the elusive demons should interfere with the great endeavours of the demigods-deities after evolution nor the enlightened discard the appreciable-excellent deeds. The fixed mountains can not be tilted by any one.
षड्भाराँ एको अचरन्बिभर्वृतं वर्षिष्ठमुप गाव आगुः।
तिस्रो महीरुपरास्तस्थुरत्या गुहा द्वे निहिते दयेका॥
एक स्थायी संवत्सर वसन्त आदि छः ऋतुओं को धारित करता है। सत्य भूत और प्रवृद्ध आदित्यात्मक संवत्सर को रश्मियाँ प्राप्त करती हैं। चञ्चल लोकत्रय ऊपर-ऊपर अवस्थित हैं। स्वर्ग और अन्तरिक्ष गुहा में निहित हैं; मात्र एक पृथ्वी लोक ही प्रत्यक्ष दिखाई पड़ता है।[ऋग्वेद 3.56.2]
एक संवत्सर वसंतादि की रश्मियाँ प्राप्त होती हैं। तीनों लोक ऊपर ही स्थित हैं। स्वर्ग और अंतरिक्ष गुफा में स्थित हैं। केवल धरती ही दिखाई देती है।
A solar year constitutes of 6 seasons including spring. The rays of Sun spread through out that period. The quick-fast moving three abodes are located over the upper side-layer while the heaven and space are hidden inside a cave. Only the earth is visible.
त्रिपाजस्यो वृषभो विश्वरूप उत त्र्युधा पुरुध प्रजावान्।
त्र्यनीकः पत्यते माहिनावान्त्स रेतोधा वृषभः शश्वतीनाम्॥
तीन प्रकार के बलों से युक्त वीर, अनेक रूपों से युक्त, द्युलोक, अन्तरिक्ष और पृथ्वी से युक्त, अनेक रंगों से युक्त प्रज्ञावान्, तीनों लोकों में स्थित शक्ति रूपी, तीनों सेनाओं से युक्त, सूर्य देव का उदय होता है। वे अपनी किरणों द्वारा सम्पूर्ण औषधियों में प्राण ऊर्जा का संचार करते हैं।[ऋग्वेद 3.56.3]
ग्रीष्म, वृष्टि, हेमन्त ऋतुओं से परिपूर्ण जल की वृष्टि करने में समर्थ, त्रिलोकों को स्तन के तुल्य रस का दान करने वाले, प्रजा परिपूर्ण, ग्रीष्म, वर्षा, शीत गुण वाले महत्त्ववान संवत्सर प्राण शक्ति से परिपूर्ण हैं। यह संवत्सर जल धारण करके धरा को सीचने में समर्थवान हैं।
The Sun rises associated with three types of forces, possessing several forms, accompanied by the three abodes :- heaven, earth and the space, intelligent having several colours (VIBGYOR, violet, indigo, blue, green, yellow, orange, red. In addition to these several shades are observed). The Sun light provide energy to the herbal medicines.
अभीक आसां पदवीरबोध्यादित्यानामह्वे चारु नाम।
आपश्चिदस्मा अरमन्त देवी: पृथग्व्रजन्तीः परि षीमवृञ्जन्॥
संवत्सर इन सकल औषधियों (जड़ी-बूटियाँ, आयुवैदिक औषधियाँ) के समीप उनके पद स्वरूप जागृत हुआ है। मैं आदित्यों (चैत्रादि मासों) का मनोहर नाम उच्चारण करता हूँ। द्युतिमान् और स्वतन्त्र पथ द्वारा जाने वाला जल-समूह इस संवत्सर को चार महीनों तक वृष्टि द्वारा तृप्त करता है और आठ महीनों तक परित्याग कर देता है।[ऋग्वेद 3.56.4]
इन सभी औषधियों के पास उनके पद रूप से संवत्सर चैतन्य होता है। मैं उन आदित्यों के सुन्दर नामों को जानता हूँ। इस संवत्सर से स्वतंत्र मार्गगामी जल संगठन चार माह तक सुसंगति करता और आठ माह के लिए नियुक्त रहता है।
The solar year becomes conscious due to all these herbal medicines. I recite the names of the Sun-Adity (12 Adity, 12 months). The earth observes rains for 4 months and the remaining 8 months release the rain waters into the atmosphere (through evaporation etc.)
त्री षधस्था सिन्धवस्त्रिः कवीनामुत त्रिमाता विदथेषु सम्राट्। ऋतावरीर्योषणास्तिस्रो अप्यास्त्रिरा दिवो विदथे पत्यमानाः॥
हे नदियों! त्रिगुणित त्रिसंख्यक स्थान देवों का निवास स्थान है। तीनों लोकों के निर्माता, संवत्सर या सूर्य यज्ञ के सम्राट है। जलवती अन्तरिक्ष चारिणी इला, सरस्वती और भारती नामक तीन योषित यज्ञ के तीनों सवनों में पधारें।[ऋग्वेद 3.56.5]
हे नदियों! त्रिगुणात्मक और त्रिसंख्यक संसार में देवता वास करते हैं। संसार-त्रय के रचनाकार सूर्य अनुष्ठान के भी स्वामी हैं। अंतरिक्ष से चलने वाली जलवती इला, सरस्वती और भारती अनुष्ठान के तीनों सवनों में रहें।
Hey divine rivers! The universe having the three abodes heaven, earth sky/nether world & the three characterices constitute the abode of the demigods-deities. The creator of the solar year-Sun and the three abodes is the master of the Yagy. Let the pious-divine rivers :- Ila, Saraswati and Bharti which originate in the heaven be present in the three segments of the day, while the Yagy is conducted.
त्रिरा दिवः सवितर्वार्याणि दिवेदिव आ सुव त्रिर्नो अह्नः।
त्रिधातु राय आ सुवा वसूनि भग त्रातर्धिषणे सातये धाः॥
हे सभी के प्रेरक आदित्यदेव! द्युलोक (स्वर्ग) से आकर प्रतिदिन तीन बार श्रेष्ठ धन हम लोगों को प्रदत्त करें। हम लोगों के रक्षक हे सूर्य देव! हम लोगों को दिन के बीच में तीन बार अर्थात तीनों सवनों में पशु, सुवर्ण, रत्न और गोधन प्रदत्त करें। हे बुद्धिमान! हम लोगों को जिससे धन लाभ हो, वैसा ही करें।[ऋग्वेद 3.56.6]
हे सूर्य! तुम सबको शक्ति देते हो। प्रतिदिन तीनों सवनों में नभ में आकर हमको प्राप्त होते हुए सुन्दर उपभोग्य धन प्रदान करो। तुम हमारे पालनकर्त्ता हो, हमें दिन के तीनों सवनों में पशु, स्वर्ग, रत्न और गायादि धन प्रदान करो।
Hey inspirer of all Sury Narayan-Adity! Grant us riches-wealth, cattle, gold, gems & jewels and the cows, thrice a day, in the three segments of the day. Our protector Bhagwan Sury Narayan! Act the way-manner in which we gain money, riches, wealth.
त्रिरा दिवः सविता सोषवीति राजाना मित्रावरुणा सुपाणी।
आपश्चिदस्य रोदसी चिदुर्वी रत्नं भिक्षन्त सवितुः सवाय॥
सविता देव दिन में तीन बार हम लोगों को धन प्रदान करें। कल्याणकारी हाथों से युक्त, राजा, मित्रा-वरुण, द्यावा-पृथ्वी और अन्तरिक्ष आदि देवता सविता देव की वदान्यता से अपेक्षित अर्थ की याचना करते हैं।[ऋग्वेद 3.56.7]
हे मेधावी सूर्य! जिस तरीके से हमको धन लाभ हो सके, वही उपाय करो। वे सविता देव सवन में तीन बार हमको समृद्धि प्रदान करें। कल्याण रूप हाथ वाले राजा, सखा और अम्बर, वरुण और धरा तथा अंतरिक्ष आदि देवता सविता देव से समृद्धि की विनती करें।
Let intelligent Savita Dev-Sun grant us wealth thrice, during the three segments of the day (morning, noon, evening). We pray-request to Mitra-Varun, heaven & the earth, our benefactors to grant us wealth, riches, prosperity.
त्रिरुत्तमा दूणशा रोचनानि त्रयो राजन्त्यसुरस्य वीराः।
ऋतावान इषिरा दूळभासस्त्रिरा दिवो विदथे सन्तु देवाः॥
विनाश रहित और द्युतिमान तीन उत्तम स्थान हैं। इन तीनों स्थानों में कालात्मक संवत्सर के अग्नि देव, वायु और सूर्य नामक पुत्र शोभायमान होते हैं। यज्ञवान्, शीघ्रगामी और अतिरस्कृत देव गण दिन में तीन बार हमारे यज्ञ में आगमन करें।[ऋग्वेद 3.56.8]
सर्व विजेता प्रकाशवान, अविनाशी ये तीन उत्तम स्थान हैं। इन तीनों में अग्नि, पवन और सूर्य शोभित होते हैं। यज्ञ से युक्त तिरस्कृत न किये जाने वाले द्रुतगामी देवता तीनों सवनों में हमारे यज्ञ के अनुष्ठान में विराजें।
The three imperishable, radiant, excellent abodes are occupied by Agni Dev, Vayu-Pawan Dev and the Sun. Let the accelerated, dynamic demigods-deities invoke in our Yagy thrice, three segments of the day.(23.12.2022)
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (57) :: ऋषि :- विश्वामित्र, गाथिन, देवता :- विश्वेदेवा, छन्द :- त्रिष्टुप्।
प्र मे विविक्वाँ अविदन्मनीषां धेनुं चरन्तीं प्रयुतामगोपाम्।
सद्यश्चिद्या दुदुहे भूरि धासेरिन्द्रस्तदग्निः पनितारो अस्याः॥
हे विवेकवान इन्द्र देव! मेरी देवता विषयक प्रार्थना को इतस्ततः विहारिणी, एकाकिनी और रक्षक विहीना धेनु (गाय) के तुल्य अवगत करें। जिस स्तुति रूपा धेनु से तत्क्षण बहुत अपेक्षित फल दोहन किया जाता है, इन्द्र और अग्नि उस धेनु की प्रशंसा को स्वीकार करें।[ऋग्वेद 3.57.1]
हे बुद्धिमान इन्द्र देव! अकेले विहार करने वाली, रक्षक को पृथक धेनु के लिए हमको ग्रहण करें। जिस वंदना रूप से अभिलाषित फल दोहन की कामना की जाती है, उस प्रार्थना को इन्द्र देव और अग्नि देव दोनों ही ग्रहण करें।
Hey wise-prudent Indr Dev! Accept my prayers devoted to the demigods-deities for the cow who roams alone without the protector. Let the prayer in the form of cow granting boons immediately, be appreciate & accepted by Indr dev & Agni Dev.
इन्द्रः सु पूषा वृषणा सुहस्ता दिवो न प्रीताः शशयं दुदुह्रे।
विश्वे यदस्यां रणयन्त देवाः प्रवोऽत्र वसवः सुम्नमश्याम्॥
इन्द्र देव, पूषा एवं अभीष्टवर्षी कल्याणपाणि मित्रा-वरुण प्रीत होकर सम्प्रति अन्तरिक्षशायी मेघ का अन्तरिक्ष से दोहन करते हैं। हे निवास प्रद विश्वदेव गण! आप सब इस वेदि पर विहार करें, जिससे हम लोगों को आपके द्वारा प्रदत्त सुख प्राप्त हो।[ऋग्वेद 3.57.2]
इन्द्रदेव पूषा और इच्छा वृष्टि करने वाले मंगलहस्त सखा-वरुण अंतरिक्ष में विश्राम करने वाले बादल को अंतरिक्ष से दुहते हैं हे विश्वेदेवों! तुम महान निवास करने वाले हो। इस अनुष्ठान वेदी पर रमण करो जिससे हम तुम्हारे द्वारा दिये गये सुख को ग्रहण कर सकें।
Indr Dev, Pusha & Mitra-Varun granting boons with their hands, fulfil desires and extract the clouds in the space-sky. Hey Vishw Dev granting homes! Occupy this Yagy Vedi-seat so that we can enjoy the comforts-luxuries granted by you.
या जामयो वृष्ण इच्छन्ति शक्तिं नमस्यन्तीर्जानते गर्भमस्मिन्।
अच्छा पुत्रं धेनवो वावशाना महश्चरन्ति बिभ्रतं वपूंषि॥
जो वनस्पतियाँ जल वर्षक इन्द्र देव की शक्ति की वाञ्छा करती हैं, वे औषधियाँ नम्र होकर इन्द्र देव की गर्भाधान-शक्ति को जानती हैं। फलाभिलाषिणी, सबकी प्रीणयित्री औषधियाँ नाना रूपधारी व्रीहि, यव, नीवारादि शल्य स्वरूप पुत्र के अभिमुख विचरण करती हैं।[ऋग्वेद 3.57.3]
जल वर्षक इन्द्रदेव के बल की इच्छा करने वाली औषधियाँ नम्र होकर इन्द्र देव की गर्भाधान करने वाली क्षमता का ज्ञान ग्रहण करती हैं। फल की अभिलाषा करने वाली औषधियाँ गाय आदि पशुओं के अभिमुख होती हैं।
The plural plants that wish the showerer Indr, the power to cause rains appreciate, when manifest, the embryo blossom deposited in him, the kine desirous of reward come to the presence of the calf, invested with many forms.
The medicinal herbs aware of the power of Indr Dev to produce-cause rains, seek his help to produce-grow. The medicinal herbs desirous of rewards are admired by the cows and the cattle-animals.
अच्छा विवक्मि रोदसी सुमेके ग्राव्णो युजानो अध्वरे मनीषा।
इमा उ ते मनवे भूरिवारा ऊर्ध्वा भवन्ति दर्शता यजत्राः॥
यज्ञ में प्रस्तर धारित करके हम सुन्दर रूप विशिष्ट द्यावा-पृथ्वी की स्तुति-लक्षण वचन द्वारा प्रार्थना करते हैं। हे अग्नि देव! आपकी अतिशय वरणीय, कमनीय और पूज्य दीप्तियाँ मनुष्यों के लिए ऊर्ध्वगामी हो।[ऋग्वेद 3.57.4]
अनुष्ठान में सोम अभिषव करने वाले पाषाण के धारण करते हुए हम अम्बर-धरा की मधुर वाणी वंदना करती हैं! हे अग्निदेव! तुम्हारी वरण करने योग्य, पूजनीय एवं रमणीय प्रदीप्तियाँ मनुष्य के सम्मुख ऊपर उठती हैं।
We pray to the sky & earth in sweet voice having the stones for crushing Somvalli. Hey Agni Dev! Let the nice-decent prayers devoted to you, rise up vertically over the humans.
या ते जिह्वा मधुमती सुमेधा अग्ने देवेषूच्यत उरूची।
तयेह विश्वाँ अवसे यजत्राना सादय पायया चा मधूनि॥
हे अग्नि देव! आपकी जो मधुमती और प्रज्ञा शालिनी ज्वाला अत्यन्त व्याप्ति विशिष्ट होकर देवों के बीच में आह्वानार्थ प्रेरित होती है, उस जिह्वा से यजनीय देवों को हमारी रक्षा के लिए, इस कर्म में प्रतिष्ठित करें और उन देवों को हर्ष पूर्वक सोमपान करावें।[ऋग्वेद 3.57.5]
हे अग्नि देव! तुम्हारी ज्वाला रूप जिह्वा अत्यन्त रसवान, मधुवान और प्रज्ञावान हुई देवगणों के लिए है। अपनी उस जिह्वा के पूजन करने योग्य देवताओं को इस यज्ञ कर्म में हमारी रक्षा के लिए आमंत्रित करो और उन देवताओं को सोमपान कराकर आनन्दित करो।
Hey Agni Dev! Your flames granting pleasure and wisdom rising up, spread widely, inspire-invite the demigods-deities. Invite the demigods with your tongue-flame in the Yagy for our safety-protection, please-serve them Somras & honour them, happily.
या ते अग्ने पर्वतस्येव धारासश्चन्ती पीपयद्देव चित्रा।
तामस्मभ्यं प्रमतिं जातवेदो वसो रास्व सुमतिं विश्वजन्याम्॥
हे द्युतिमान् अग्नि देव! नाना रूपा और हम लोगों को छोड़कर अन्यत्र न जाने वाली आपकी जो अनुग्रह बुद्धि है, वह हम लोगों को अपेक्षित फल प्रदान द्वारा वर्द्धित करे, जिस प्रकार से मेघ की धारा वनस्पतियों को वर्द्धित करती है। हे निवास प्रद जात वेदा! हम लोगों को ऐसी अनुग्रह बुद्धि प्रदान करें और सर्वजन हितकारिणी शोभन बुद्धि प्रदान करें।[ऋग्वेद 3.57.6]
जातवेद :: अग्नि, चित्रक वृक्ष, चीते का पेड़, अंतर्यामी, परमेश्वर, सूर्य; fire, Chitrak tree, God, omniscient.
हे तेजस्वी अग्नि देव! हमको छोड़कर अन्य किसी के पास जाने वाली विविध रुपिणी तुम्हारी कृपा पूर्ण बुद्धि हमको अभिलाषित फल प्रदान करती हुई बढ़ावें, उस तरह जैसे बादल जल द्वारा वनस्पतियों की वृद्धि करता है। तुम स्वयं मतिवान एवं आश्रयदाता हो। हमको वही कृपापूर्ण मति प्रदान करो तथा सभी को कल्याण करने वाली मति से सुशोभित करो।
Hey radiant-lustrous Agni Dev! The way-manner in which the rains nourish-grow the vegetation, grant us the desires boons. Hey omniscient Agni Dev! You are brilliant and and protector. Grant the thinking, thoughts, ideas to us for the welfare of all.(25.12.2022)
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (58) :: ऋषि :- विश्वामित्र, गाथिन, देवता :- अश्विनी कुमार, छन्द :- त्रिष्टुप्।
धेनुः प्रत्नस्य काम्यं दुहानान्तः पुत्रश्चरति दक्षिणायाः।
आ द्योतनिं वहति शुभ्रयामोषसः स्तोमो अश्विनावजीगः॥
प्रीणयित्री उषा पुरातन अग्नि देव के लिए कमनीय दुग्ध का दोहन करती है। उषा पुत्र सूर्य उसके बीच में विचरण करते हैं। शुभ्र दीप्ति दिवस सभी के प्रकाशक सूर्य का वहन करता है। उसके पूर्व ही अश्विद्वय (अश्विनी कुमारों) के स्तोत्र का गान होता हैं।[ऋग्वेद 3.58.1]
प्राचीन अग्नि के लिए उषा रात्रि की पर ओस रूप रस बूदों को दुहती। फिर उषा का पुत्र सूर्य उनके बीच में विचरण करते हैं। उज्जवल ज्योति से परिपूर्ण सभी को प्रकाश प्रदान करने वाले सूर्य को घुमाता है। सूर्य उदय होने से पहले ही अश्विनी कुमार का पूजन करने वाले तत्पर रहते हैं।
The cow-dawn (Usha) yields the desired milk-dew drops, to the ancient-eternal Agni, the son of the south passes within the firmament-space; the bright-houred-day brings the illuminative Sun, the praiser awakes to glorify the Ashvins preceding the dawn.
Usha creates dew drops for the eternal Agni. Thereafter, Sun, the son of Usha roam through it. Sun shines for all. The worshipers are ready to pray to Ashwani Kumars prior to dawn.
सुयुग्वहन्ति प्रति वामृतेनोर्ध्वा भवन्ति पितरेव मेधाः।
जरेथामस्मद्वि पणेर्मनीषां युवोरवश्चकृमा यातमर्वाक्॥
हे अश्विनी कुमारों! उत्तम रूप से रथ में युक्त अश्वद्वय सत्य रूप रथ द्वारा आप दोनों को यज्ञ में ले आने के लिए वहन करते हैं। यज्ञ आपके लिए उन्मुख होते हैं, जिस प्रकार से माता-पिता को लक्ष्य कर पुत्र जाते हैं। हम लोगों के निकट से पणियों की आसुरी बुद्धि को विशेष रूप से नष्ट करें। हम लोग आपके लिए हवि प्रस्तुत करते हैं। आप हमारे पास आवें।[ऋग्वेद 3.58.2]
हे अश्विनी कुमारो! महान, श्रेष्ठ तथा सत्य रूप रथ द्वारा तुम को यज्ञ में लाने के लिए दो अश्व जोते जाते हैं। माता-पिता की ओर पुत्र के जाने के समान यज्ञ तुम्हारी ओर जाता है। हमारे निकट राक्षस और दैत्य कर्मियों को दूर हटाओ। हम तुम्हारे लिए हव्य देते हैं। तुम दोनों यहाँ आओ।
Hey Ashwani Kumars! Two horses are deployed in the charoite in excellent manner, representing truth, to bring you to the Yagy. The way the son goes to his parents, the Yagy comes to you. Destroy the demonic tendencies around us. We are making offerings to you. Come to us.
सुयुग्भिरश्वैः सुवृता रथेन दस्राविमं शृणुतं श्लोकमद्रेः।
किमङ्ग वां प्रत्यवर्ति गमिष्ठाहुर्विप्रासो अश्विना पुराजाः॥
हे अश्विनी कुमारों! सुन्दर चक्र विशिष्ट रथ पर आरोहण करके और उत्तम रूप से योजित अश्वों द्वारा वाहित होकर आप दोनों स्तुति कारियों के इस स्तोत्रों का श्रवण करें। हे अश्विनी कुमारों! पुरातन मेधावीगण क्या नहीं बोलते, जो हमारी वृत्ति हानि के विरुद्ध आप दोनों गमन करते है।[ऋग्वेद 3.58.3]
हे अश्विनी कुमारों! विशेष चक्र वाले सुन्दर रथ में सुशोभित अश्वों को जोड़ो और उस पर आरूढ़ होकर यहाँ पधारो। इस वंदनाकारी तुम दोनों का श्लोक उच्चारण करते हैं, उसे आकर सुनो तथा इस बात पर भी ध्यान आकृष्ट करो कि प्राचीन मतिवानों ने क्या प्रार्थना की, तुम दोनों उन्हीं के अनुकूल चलो।
Hey Ashwani Kumars! Listen-respond to the prayers (Strotr, hymns) of the devotees-worshipers, riding the beautiful charoite, deploying horses. Hey Ashwani Kumars! Respond to the prayers of the old wise men and act according to them, for the protection of our endeavours-Yagy etc.
आ मन्येथामा गतं कच्चिदेवैर्विश्वे जनासो अश्विना हवन्ते।
इमा हि वां गोऋजीका मधूनि प्र मित्रासो न ददुरुस्त्रो अग्रे॥
हे अश्विनी कुमारों! आप दोनों हमारी प्रार्थना को स्वीकार करें और अश्वों के साथ यज्ञ में आगमन करें। सब स्तोता स्तुति लक्षण वचनों से आप दोनों का आह्वान करते हैं। वे मित्र के तुल्य दुग्ध मिश्रित और हर्षकर हवि आप दोनों को प्रदान करते हैं। सूर्य उषा के आगे उदित होते हैं। इसलिए आगमन करें।[ऋग्वेद 3.58.4]
हे अश्विनी कुमारो! तुम दोनों को सभी सम्मान पूर्वक आमंत्रित करते हैं। उनके आह्वान पर ध्यान देकर अपने अश्वों के साथ यज्ञ में पधारो। वे तुम्हारे मित्र के समान आनन्दित दुग्ध आदि से निर्मित हव्य देते हैं। उषा के बाद आदित्य देव उदित हो रहे हैं। अतः शीघ्र आओ।
Hey Ashwani Kumars! Respond to our prayers and join the Yagy with your horses (deployed in the charoite). All worshipers invoke you with beautifully composed Strotr-hymns. They make offerings to you mixed with milk, happily. Sun follows Usha, hence come quickly.
तिरः पुरू चिदश्विना रजांस्याङ्गुषो वां मघवाना जनेषु।
एह या पथिभिर्देवयानैर्दस्राविमे वां निधयो मधूनाम्॥
हे अश्विनी कुमारों! नाना देशों को अपने तेज से तिरस्कृत करके आप दोनों देवयान पथ द्वारा इस स्थल में आगमन करें। हे धनवान अश्विनी कुमारों! आप दोनों के लिए स्तोताओं का स्तोत्र उद्घोषित होता है। हे शत्रुओं के क्षय कारक! आप दोनों के लिए ये मधुर सोम के पात्र विशेष रूप से तैयार किये गये हैं।[ऋग्वेद 3.58.5]
हे अश्विनी कुमारों! तुम दोनों की वाणी समस्त लोकों को ग्रहण हो। तुम्हारी वाणी संकटों को दूर करें। तुम दोनों विद्वानजनों के मार्गों में इस संसार में आगमन करो। तुम शत्रुओं का विनाश करने में समर्थवान हो। इस मधुर रसपूर्ण पुष्टि कारक सोम को तुम्हारे लिए ही पात्रों में निचोड़कर रखा गया है।
Hey Ashwani Kumars! Avoiding various countries over your travel route, come to our Yagy site, by divine aeroplane. Hey rich Ashwani Kumars! The Strotas recite hymns-Shloks in your honour. Hey reducer of the power-might of the enemies! This Somras kept in the pot has been specially produced-extracted for you.
पुराणमोकः सख्यं शिवं वां युवोर्नरा द्रविणं जह्नाव्याम्।
पुनः कृण्वानाः सख्या शिवानि मध्वा मदेम सह नू समानाः॥
हे अश्विनी कुमारों! आप दोनों की पुरातन मित्रता सबके लिए कल्याणकारी है। हे नेतृ द्वय! आप दोनों का धन जह्रुकुलजा में है। आप दोनों की सुखकर मित्रता को बारम्बार प्राप्त करके हम लोग मित्रभूत (आपके समान) होते हैं। हर्ष कारक सोम के द्वारा आप दोनों के साथ हम शीघ्र ही हर्षित होते हैं।[ऋग्वेद 3.58.6]
हे अश्विनी कुमारों! तुम्हारी मित्रता पुरातन और सभी को आवश्यक कल्याणकारी है। तुम दोनों सभी का नेतृत्व करने वाले हो। तुम दोनों का धन जहनु वंश वालों के लिए मंगलकारी हो। तुम दोनों के मैत्री भाव का सुख निरन्तर प्राप्त करें। हर्ष उत्पन्न करने वाले सोम को ग्रहण करते हुए हम भी तुम दोनों के साथ ही तुष्टि को प्राप्त करें।
Hey Ashwani Kumars! Your friendship is ancient, old-prolonged and is for the welfare of all. Hey leader duo! Let your wealth-riches be beneficial for the descendants of Jahnu clan. We should be benefited by your friendship time & again. Let us drink-have pleasure producing Somras, in your company.
अश्विना वायुना युवं सुदक्षा नियुद्भिश्च सजोषसा युवाना।
नासत्या तिरोअन्ह्ययं जुषाणा सोमं पिबतमस्त्रिधा सुदानू॥
शोभन सामर्थ्य से युक्त, नित्य तरुण, असत्य रहित एवम् शोभन फल के दाता हे अश्विनी कुमारों! वायु और नियुद्गण के साथ मिलकर अक्षीण और सोमपायी आप दोनों दिवस के शेष में सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 3.58.7]
हे अश्विनी कुमारों! तुम समस्त उपयुक्त सामर्थ्यो से परिपूर्ण हो, तुम मिथ्यात्व पृथक सतत युवा तथा शोभनीय धनों को प्रदान करने वाले हो। पवन तथा सिद्धान्तों से नियुक्त घोड़ों से परिपूर्ण हुए, यहाँ पधारकर अक्षय गुण वाले, सोमपान के लिए अभ्यासी तुम दोनों ही दिन के प्रकाश में सोमपान करो।
Hey Ashwani Kumars! Endowed with power, ever young, truthful, unwearied, munificent, accepters of libations, drink with Vayu and your steeds, rejoicing together, of the Soma libation offered at the close of day.
STEEDS :: घोड़ा, लड़ाई का घोड़ा; horse, equine, gee, stud horse.
Hey Ashwani Kumars! You are capable accomplishing auspicious desires, always young, truthful. Come riding your steeds & enjoy the Somras & Pawan Dev in rest of the day.
अश्विना परि वामिषः पुरूचीरीयुर्गीर्भिर्यतमाना अमृध्राः।
रथो ह वामृतजा अद्रिजूतः परि द्यावापृथिवी याति सद्यः॥
हे अश्विनी कुमारों! प्रचुर हवि आप लोगों के निकट गमन करती है। दोष रहित और कर्म कुशल स्तोता लोग स्तुति लक्षण वचनों द्वारा आप दोनों की परिचर्या करते हैं। स्तोताओं द्वारा आकृष्ट जल प्रद रथ द्यावा-पृथ्वी के बीच में सद्यः गमन करता है।[ऋग्वेद 3.58.8]
हे अश्विनी कुमारो। यह पर्याप्त हव्य तुमको प्राप्त होता है। कर्मों से चतुर तथा पार रहित, स्तुति करने वाला, द्वारा आकर्षित किया गया जलदायक रथ नभ और पृथ्वी के मध्य चलता है।
Hey Ashwani Kumars! Let these quantum of offerings reach you. Defectless & expert in rituals Agni Hotr, Yagy Strotas recite descent Strotr-hymns for you. Your charoites crossing the water bodies-ways between the earth & the sky attracted by the Strotas.
अश्विना मधुषुत्तमो युवाकुः सोमस्तं पातमा गतं दुरोणे।
रथो ह वां भूरि वर्पः करिक्रत्सुतावतो निष्कृतमागमिष्ठः॥
हे अश्विनी कुमारो! जो सोमरस अत्यन्त मधुर रसों से बना है, उसका पान करें। आप लोगों का धन दानकारी रथ सोमाभिषव करने वाले याजकगण के घर में अनेकानेक बार आगमन करता है।[ऋग्वेद 3.58.9]
हे अश्विनी कुमारो। तुम दोनों का धन देने वाला उत्तम रथ सोम सिद्ध करने वाले यजमान के शोभित घर में निरन्तर पहुँचता है।
Hey Ashwani Kumars! Enjoy the Somras extracted & mixed with highly sweet extracts. Your charoite with the wealth for donations move to the Ritviz who offer you Somras again & again.
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (59) :: ऋषि :- विश्वामित्र, देवता :- मित्र, आदित्य, छन्द :- त्रिष्टुप्, गायत्री।
मित्रो जनान्यातयति ब्रुवाणो मित्रो दाधार पृथिवीमु॒त द्याम्।
मित्रः कृष्टीरनिमिषाभि चष्टे मित्राय हव्यं घृतवज्जुहोत॥
स्तुत होने पर देवता सकल लोक को कृष्यादि कार्य में प्रवर्तित करते हैं। वृष्टि द्वारा अन्न और यज्ञ को उत्पन्न करते हुए मित्र देवता पृथ्वी और द्युलोक दोनों को धारित करते हैं। कर्मवान् मनुष्यों को चारों ओर से मित्र देवता अनुग्रह दृष्टि से देखते हैं। मित्र देव के निमित्त घृत विशिष्ट हव्य प्रदान करें।[ऋग्वेद 3.59.1]
देवगण उपासित होने पर समस्त संसार को कृषि आदि कार्यों के लिए प्रेरित करते हैं। वृष्टि द्वारा अन्न आदि को रचित करने वाले सखा, देवता, धरा और अम्बर दोनों को धारण करने वाले हैं। वे सखा देवता कार्य वाले मनुष्यों को सभी प्रकार से कृपा दृष्टि से देखते हैं। उन सखा देव के लिए घृत परिपूर्ण हवियाँ प्रदान करो।
On being worshiped, prayed the demigods-deities inspire the entire world to perform agriculture and other professions. Mitr Dev evolve the crops and Yagy, supporting the earth & heavens. Mitr helps-bless the endeavourers. Let the offerings made to Mitr Dev be specially prepared by mixing Ghee.
प्र स मित्र मर्तो अस्तु प्रयस्वान्यस्त आदित्य शिक्षति व्रतेन।
न हन्यते न जीयते त्वोतो नैनमंहो अश्नोत्यन्तितो न दूरात्॥
हे आदित्य! यज्ञ युक्त होकर जो मनुष्य आपको मित्र देव के साथ हविष्यान्न प्रदान करता है, वह अन्नवान होता है। आपके द्वारा रक्षित होकर वह मनुष्य किसी से भी विनष्ट और अभिभूत नहीं होता। आपको जो हवि देता है, उस पुरुष को दूर अथवा निकट से पाप छू नहीं सकता।[ऋग्वेद 3.59.2]
हे आदित्य! तुम्हें मित्र के साथ जो प्राणी हवियाँ प्रदान करता है, वह अन्न दाता हो। जो प्राणी तुम्हारा रक्षक है, उसकी हिंसा कोई नहीं कर सकता। तुम्हारे लिए जो प्राणी हवि देता है, उसके पास पाप नहीं फटकता।
Hey Adity! A person who makes offerings to you along with Mitr Dev for the Yagy become self sufficient in food grains. A person protected by you is never destroyed-killed and is not affected by the sins. One who makes offerings to you is free from sins either from far or near.
अनमीवास इळया मदन्तो मितज्ञवो वरिमन्ना पृथिव्याः।
आदित्यस्य व्रतमुपक्षियन्तो वयं मित्रस्य सुमतौ स्याम॥
हे मित्र! रोग वर्जित होकर अन्न लाभ से हर्षित होकर और पृथ्वी के विस्तीर्ण प्रदेश में मितजानु होकर हम सर्वत्र गामी सूर्य के व्रत (कर्म) के निकट अवस्थिति करते हैं। हम लोगों के ऊपर सूर्य देव सदैव अनुग्रह करते रहें।[ऋग्वेद 3.59.3]
अनुग्रह :: मेहरवानी, कृपा; grace, favour.
हे सखा! हम व्याधियों से बचें, अन्न प्राप्ति द्वारा पुष्ट हों। हम इस विशाल धरा पर अपनी जाँघों को सिकोड़कर आदित्य के व्रत का पोषण करते हैं। वे आदित्य हमारे प्रति अपनी कृपा दृष्टि रखें।
May we, exempt from disease, rejoicing in abundant food stuff, roaming free over the wide-expanse of the earth, diligent in the worship of Adity-Sun, ever be in the grace-favour of Mitr.
Hey Mitr Dev! Let us be protected from ailments-diseases, become happy due to the receipt of food grains, in the broad area-region of the earth, sitting contracting our thighs, observe fast for Adity Dev-Sun. Let Sun always favour us.
अयं मित्रो नमस्यः सुशेवो राजा सुक्षत्रो अजनिष्ट वेधाः।
तस्य वयं सुमतौ यज्ञियस्यापि भद्रे सौमनसे स्याम॥
नमस्कार योग्य, सुन्दर मुख विशिष्ट, स्वामी, अत्यन्त बल विशिष्ट और सभी के विधाता ये सूर्य देव प्रादुर्भूत हुए हैं। ये यज्ञार्ह हैं। इनके अनुग्रह और कल्याणकर वात्सल्य को हम याजकगण प्राप्त कर सकें।[ऋग्वेद 3.59.4]
यह आदित्य सुन्दर प्रकाश वाले पराक्रम में पड़े हुए, सबके दाता तथा प्रणाम करने योग्य हैं। हम यजमान इनकी दया और कल्याणकारी वात्सल्य भाव को प्राप्त करें। उन श्रेष्ठ संसार के प्रवर्तक आदित्यों की नमस्कारों से परिपूर्ण उपासना करनी चाहिए, वंदना करने वालों से वे आदित्य हर्षित होते हैं।
Sun who deserve worship-prayers, possess beautiful face, specific powers-might and the destiny of all, has evolved-arisen. He has arisen for Yagy to commence. Let us-the Ritviz, devotees attain his favours and affection.
महाँ आदित्यो नमसोपसद्यो यातयज्जनो गृणते सुशेवः।
तस्मा एतत्पन्यतमाय जुष्टमग्नौ मित्राय हविरा जुहोत॥
जो आदित्य देव महान हैं, जो सकल लोक के प्रवर्त्तक हैं, नमस्कार द्वारा उनकी उपासना करना उचित है। वे प्रार्थना करने वालों के प्रति प्रसन्न मुख होते हैं। स्तुति योग्य मित्र के लिए प्रीतिकर हवियाँ अग्नि में समर्पित करें।[ऋग्वेद 3.59.5]
हे वंदना कारियों! सखा देवता वंदना के पात्र हैं, उनके लिए स्नेहदायक हवियाँ अग्नि में अर्पित करो।
Its proper to worship-pray to the Sun who is the inspirer of all abodes, with salutations. He become happy with those, who pray-worship him. Let us make offerings for Mitr Dev deserving worship-prayers in the sacred fire.
मित्रस्य चर्षणीधृतोऽवो देवस्य सानसि। द्युम्नं चित्रश्रवस्तमम्॥
जल वृष्टि द्वारा मनुष्यों के धारक मित्र देव का अन्न और सभी के द्वारा भजनीय धन अतिशय कीर्ति युक्त है।[ऋग्वेद 3.59.6]
वर्षा के द्वारा प्राणियों को धारण करने वाले सखा देवता का प्रभाव अन्न आदि धन, यश और ज्ञान से परिपूर्ण होकर सभी के लिए सेवन करने योग्य तथा प्रदान करने वाला हो।
The food grains and wealth-riches of Mitr Dev, who is the supports-nurture the humans by making rain fall, deserve appreciation, glory & honour.
अभि यो महिना दिवं मित्रो बभूव सप्रथाः। अभि श्रवोभिः पृथिवीम्॥
जिन मित्र देव ने अपनी महिमा से द्युलोक को अभिभूत किया, उसी ने कीर्त्ति युक्त होकर पृथ्वी को प्रचुर अन्न विशिष्टा भी किया।[ऋग्वेद 3.59.7]
मित्र देवता ने अपनी महत्ता से नभ को वशीभूत किया है। उन्होंने कर्मों द्वारा अत्यन्त यशस्वी पृथ्वी को सेवन योग्य अन्न से युक्त किया।
Renowned Mitr Dev, who by his might presides over heavens, is the one who presides over the earth as well by the gifting of food grains-stuff.
Mitr Dev has pervaded the heavens-sky with his glory-greatness. He prepared the earth to produce food grains.
मित्राय पञ्च येमिरे जना अभिष्टिशवसे। स देवान्विश्वान्विभर्ति॥
निषाद को लेकर पाँचों वर्ण शत्रु जयक्षम और बल विशिष्ट मित्र के उद्देश्य से हव्य प्रदान करते हैं। वे मित्र देव अपने स्वरूप से समस्त देवगणों को धारित करते हैं।[ऋग्वेद 3.59.8]
ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र तथा निषाद यह पाँचों वर्ण शत्रुओं को विजय करने की क्षमता वाले सखा के प्रति सम्मान को प्रदर्शित करें। वे सखा अपने स्वरूप द्वारा ही समस्त देवों का पोषण करते हैं।
Let the 5 Varn :- Brahman, Kshatriy, Vaeshy, Shudr & Nishad honour-revere make offerings for Mitr Dev, who wins over the enemy. He support-nourish the demigods-deities with his powers.
मित्रो देवेष्वायुषु जनाय वृक्तबर्हिषे। इष इष्टव्रता अकः॥
देवों और मनुष्यों के बीच में जो व्यक्ति कुशच्छेदन करता है, उसे मित्र देव कल्याणकारी अन्नादि प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 3.59.9]
प्राणी विद्वानों, देवगणों एवं अन्य प्राणियों के कुश को काट कर लाता है, वह मित्र देवता उसके लिए कल्याणकारी अन्न देते हैं।
Mitr Dev is the deity who among demigods-deities and humans bestows food as the reward of pious acts upon the man who has prepared for him the lopped sacred grass-Kush.
A person who cuts Kush-sacred grass between the demigods-deities & the humans, is rewarded by Mitr Dev with beneficial food grains.(28.12.2022)
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (60) :: ऋषि :- विश्वामित्र, गाथिन, देवता :- ऋभुगण; इन्द्र, छन्द :- जगति।
इहेह वो मनसा बन्धुता नर उशिजो जग्मुरभि तानि वेदसा।
याभिर्मायाभिः प्रतिजूतिवर्पसः सौधन्वना यज्ञियं भागमानश॥
हे ऋभु गण! आप लोगों के कर्म को सब कोई जानता है। हे मनुष्य गण! आप सब सुधन्वा के पुत्र है। आप लोग जिस सकल कर्म द्वारा शत्रु पराभवोपयुक्त और तेजो विशिष्ट होकर यज्ञीय भाग को प्राप्त करते हैं, कामना काल में उस सकल कर्म को आप लोग जान जाते है।[ऋग्वेद 3.60.1]
हे ऋभुओं! तुम्हारी समृद्धि, कर्म और सामर्थ्य को सभी जानते हैं । हे मनुष्यों ! तुम सुधन्वा के कुल (वंशज) हो, तुम अपने जिन कर्मों द्वारा शत्रुओं को पराजित करने में उपयुक्त तथा विशिष्ट तेज से परिपूर्ण होकर अनुष्ठान भाग को ग्रहण करते हो। उस समस्त कर्म को तुम कामना करते ही जान लेते हो।
Hey Ribhu Gan! Everyone is aware of your endeavours-deeds. Hey Humans! You are the sons-descendants of Sudhanva. You know-learn the entire endeavours pertaining to the Yagy leading to the defeat of the enemy, as soon as you desire, possessing special aura-energy, power.
याभिः शचीभिश्चमसाँ अपिंशत यया धिया गामरिणीत चर्मणः।
येन हरी मनसा निरतक्षत तेन देवत्वमृभवः समानश॥
हे ऋभुओं! जिस शक्ति के द्वारा आप लोगों ने चमस (यज्ञ-पात्र) को विभक्त किया, जिस प्रज्ञा बल से गौ-शरीर में चर्म योजना की और जिस मनीषा के द्वारा इन्द्र के अश्व द्वय का निर्माण किया, उन्हीं समस्त कर्मों द्वारा आप लोगों ने यज्ञभागार्हत्व देवत्व प्राप्त किया है।[ऋग्वेद 3.60.2]
हे ऋभुओं! तुमने अपने जिस बल से चमस को पृथक किया था, जिस बुद्धि के बल से तुमने गौ देह के चर्म को जीता था तथा जिस ज्ञान से तुमने इन्द्र के दोनों अश्वों की रचना की थी, अपने उन्हीं कर्मों द्वारा तुम यज्ञ के भाग के अधिकारी बनकर देवत्व को प्राप्त कर सको।
Hey Ribhu Gan! You attained-acquired demigodhood by the division of Chamas-the Yagy pot into 4, managed-planned the skin craft for the cow through intelligence, created the two horses for Dev Raj Indr; for the offerings in the Yagy.
इन्द्रस्य सख्यमृभवः समानशुर्मनोर्नपातो अपसो दधन्विरे।
सौधन्वनासो अमृतत्वमेरिरे विष्टी शमीभिः सुकृतः सुकृत्यया॥
मनुष्य पुत्र ऋभु गण ने योगादि कर्म करके इन्द्र देव की मित्रता को प्राप्त किया। पूर्व में मरण धर्मा होकर भी वे इन्द्र देव के सखित्व से प्राण धारित करते हैं। सुधन्वा के पुण्य-कार्यकारी पुत्र गण कर्म बल और यज्ञादि बल से व्याप्त होकर अमृतत्व को प्राप्त हुए।[ऋग्वेद 3.60.3]
मनुष्यों के कुल ऋभुओं ने अनुष्ठान आदि कार्यों द्वारा इन्द्रदेव की मित्रता से शरीर में प्राण परिपूर्ण किये हैं। पुण्य कार्य करने वाले यह सुधन्वा के पुत्र कर्म की शक्ति से अविनाशी पद प्राप्त किये हैं।
Ribhu Gan born as humans attained the friendship of Dev Raj Indr by performing endeavours like Yagy. Though born as mortals, they attained immortality on the strength of their endeavours, Yagy etc.
इन्द्रेण याथ सरथं सुते सचाँ अथो वशानां भवथा सह श्रिया।
न वः प्रतिमै सुकृतानि वाघतः सौधन्वना ऋभवो वीर्याणि च॥
हे ऋभु गण! आप लोग इन्द्र देव के साथ एक रथ पर बैठकर कर सोमाभिषव के स्थान में गमन करें। इसके बाद मनुष्यों की प्रार्थना को ग्रहण करें। हे अमृत बल वाहक सुधन्वा के पुत्रो! आपके शोभन कार्यों की कोई तुलना नहीं कर सकता। हे ऋभुओं! आपकी सामर्थ्य की तुलना भी कोई नहीं कर सकता।[ऋग्वेद 3.60.4]
तुम इन्द्र सहित एक ही रथ पर चढ़कर सोम सिद्ध करने वाले स्थान में जाओ। फिर प्राणियों के श्लोकों को स्वीकार करो। हे सुधन्वा के पुत्रों! तुम अमृत के बल को वहन करने वाले हो। तुम्हारे उत्तम कर्मों को कोई नहीं रोक सकता। हे ऋभुगण! तुम्हारी शक्ति का सामना करने में कोई भी समर्थ नहीं है।
Hey Ribhu Gan! Ride the charoite of Indr Dev and reach the spot for extracting Somras. Thereafter accept-answer to the prayers of the humans. Hey sons of Sudhanva! None can match your powers-strength. You can bear the powers of elixir-nectar.
इन्द्र ऋभुभिर्वाजवद्भिः समुक्षितं सुतं सोममा वृषस्वा गभस्त्योः।
धियेषितो मघवन्दाशुषो गृहे सौधन्वनेभिः सह मस्त्वा नृभिः॥
हे इन्द्र देव! आप वाज (अन्न या ऋभुओं के भ्राता) विशिष्ट है। ऋभुओं के साथ आप अच्छी तरह से जल द्वारा सिक्त और अभिषुत सोमरस को दोनों हाथों से ग्रहण करके पान करें। हे मघवन्! आप स्तुति द्वारा प्रेरित होकर याजक गण के घर में सुधन्वा के पुत्रों के साथ सोमपान से हर्षित होते हैं।[ऋग्वेद 3.60.5]
हे इन्द्र देव! जैसे सूर्य वेगवान और तेजस्विनी किरणों को पुष्ट करता है, वैसे ही तुम धरा को शक्तिशाली और ज्ञानी जनों से पुष्ट करो। हे इन्द्र! तुम ऋभुओं के युक्त सोम पियो और प्रार्थनाओं के द्वारा आहूत हुए यजमान के गृह में सुधन्वों के साथ सोमपान ग्रहण करते हुए आनन्द का लाभ ग्रहण करो।
Hey Indr Dev! You are special to Ribhu Gan like brothers. Nourish the enlightened over earth just as Sun strengthen its rays. Accept Somras with Ribhu Gan in both hands. Inspired by you the devotees-Ritviz serve you Somras to drink it with Ribhu Gan at their homes.
इन्द्र ऋभुमान्वाजवान्मस्त्वेह नोऽस्मिन्त्सवने शच्या पुरुष्टुत।
इमानि तुभ्यं स्वसराणि येमिरे व्रता देवानां मनुषश्च धर्मभिः॥
हे बहु स्तुत इन्द्र देव! ऋभु और वाज से युक्त होकर तथा इन्द्राणी के साथ होकर हमारे इस तृतीय सवन में आनन्दित होवें। हे इन्द्र देव! तीनों सवनों में सोमपान के लिए ये दिन आपके लिए नियत हुए हैं। किन्तु देवों के व्रत और मनुष्यों के कर्मों के साथ सभी दिन आपके लिए नियत हुए हैं।[ऋग्वेद 3.60.6]
हे इन्द्रदेव! तुम अनेकों द्वारा स्तुत्य हो। तुम इंद्राणी के साथ तथा ऋभुओं से युक्त होकर हमारे तीसरे प्रहर में आनन्द प्राप्त करो। हे इन्द्र देव! दिन के तीनों कालों में यह काल तुम्हारे सोम ग्रहण करने के लिए निश्चित है। वैसे देवगणों के सभी वृतों और प्राणियों के सभी कर्मों द्वारा सभी दिवस तुम्हारी पूजा के लिए उत्तम है।
Hey Indr Dev! You are worshiped by many. Enjoy with Ribhu Gan & Indrani in the later part of the day. These days have been fixed for you to drink Somras in the three segments of the day. But you are eligible to drink Somras every day with the fasting of demigods-deities and the endeavours of humans.
इन्द्र ऋभुभिर्वाजिभिर्वाजयन्निह स्तोमं जरितुरुप याहि यज्ञियम्।
शतं केतेभिरिषिभिरायवे सहस्रणीथो अध्वरस्य होमनि॥
हे इन्द्र देव! आप स्तोताओं के अन्नों का सम्पादन करते हुए वाज युक्त ऋभुओं के साथ इस यज्ञ में स्तोताओं के स्तोत्रों के अभिमुख आगमन करें। मरुद्गण भी शत संख्यक गमन कुशल अश्वों के साथ याजक गण के सहस्र प्रकार से प्रमीत अध्वर के अभिमुख आगमन करें।[ऋग्वेद 3.60.7]
हे इन्द्र देव! वंदना करने वालों के लिए अन्न संपादन करते हुए, बलशाली, ऋभुगण युक्त वंदनाकारी की प्रार्थनाओं के प्रति इस अनुष्ठान में विराजो। शत-संख्यक कुशल घोड़ों के द्वारा मरुद्गण भी यजमान के हजारों संख्यक हिंसा रहित अनुष्ठान में आगमन करें।
Hey Indr Dev! Join the Yagy of the Ritviz accepting the offerings of food grains and the prayers-requests of Strota with Strotr-hymns. Let Marud Gan too join with trained thousand horses in the Yagy, which do not involve violence.(30.12.2022)
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (61) :: ऋषि :- विश्वामित्र, गाथिन, देवता :- उषा, छन्द :- त्रिष्टुप्।
उषो वाजेन वाजिनि प्रचेताः स्तोमं जुषस्व गृणतो मघोनि।
पुराणी देवि युवतिः पुरंधिरनु व्रतं चरसि विश्ववारे॥
हे अन्नवती व धनवती उषा! प्रकृष्ट ज्ञानवती होकर आप प्रार्थना करने वाले स्तोता की प्रार्थना को स्वीकार करें। हे सभी के द्वारा वरणीया, पुरातनी युवती के तुल्य शोभमाना और बहुस्तोत्रवती उषा! आप यज्ञकर्म को लक्ष्य कर आगमन करें।[ऋग्वेद 3.61.1]
युवती :: लड़की, बालिका; young woman, damsel, miss.
हे उषा! तुम धनेश्वर और अन्न प्रदान करने वाली हो। तुम महान ज्ञान से परिपूर्ण होकर वंदना करने वाले के लिए श्लोक को स्वीकृत करो। तुम सभी के द्वारा वरण करने योग्य हो, अतः प्राचीन कालीन युवती के तुल्य सुशोभित तथा अनेकों के श्लोंकों से परिपूर्ण होकर यज्ञ अनुष्ठान के लिए शीघ्र पधारो।
Hey possessor of food grains & wealth Usha! Possessing enlightenment, accept the prayers-requests of the Stota. Hey Usha, accepted by all, ancient-eternal young woman, beautiful-having grace and many Strotr! Come to participate-involve in the Yagy.
उषो देव्यमर्त्या वि भाहि चन्द्ररथा सूनृता ईरयन्ती।
आ त्वा वहन्तु सुयमासो अश्वा हिरण्यवर्णां पृथुपाजसो ये॥
हे मरण धर्म रहित, सुवर्णमय रथ वाली उषा देवी! आप प्रिय सत्य रूप वचन का उच्चारण करने वाली हैं। आप सूर्य किरण के सम्बन्ध से शोभायमान होवें। प्रभूत बल युक्त जो अरुण वर्ण अश्व हैं, वे सुख पूर्वक रथ में नियोजित किये जा सकते हैं। वे आपको लेकर यज्ञस्थल पर पधारें।[ऋग्वेद 3.61.2]
शोभायमान :: शानदार, अजीब, हक्का-बक्का करने वाला, सुरूप, मंजु, मंजुल, सुंदर, तेजस्वी, नादकार, तेज़, शीघ्र, कोलाहलमय; beautiful, stunning, rattling.
हे उषा! तुम मरण धर्म से युक्त हो, तुम्हारा रथ स्वर्णयुक्त है। तुम सत्यरूपी वचनों का उच्चारण करने वाली हो। किरणों की शोभा से सुशोभित होती हो। अरुण वर्ण वाले शक्तिशाली अश्व आसानी से तुम्हारे रथ से जुड़ते हैं। वे तुम्हें आहुत करें।
Hey immortal Usha! You speek sweet adorable words. You are lovely, glorious associated & revered with the Sun rays. Let the charoite deploying the horses of the colour of Arun bring you to the Yagy site.
उषः प्रतीची भुवनानि विश्वोर्ध्वा तिष्ठस्यमृतस्य केतुः।
समानमर्थं चरणीयमाना चक्रमिव नव्यस्या ववृत्स्व॥
हे उषा देवी! आप निखिल भूतजात के अभिमुख आगमनशीला, मरण धर्म रहिता और सूर्य की केतु स्वरूपा हैं। आप आकाश में उन्नत होकर रहती है। हे नवतरा उषा! आप एक मार्ग में विचरण करने की इच्छा करती हुई आकाश में चलने वाले सूर्य के रथाङ्ग के तुल्य पुनः-पुनः उसी मार्ग में चलती रहें।[ऋग्वेद 3.61.3]
हे उषे! तुम समस्त संसार के प्राणधारियों के सम्मुख पधारती हो। तुम मरण से रहित तथा सूर्य को सूचना देने वाली, समान रास्ते में चलती हुई, उच्च अम्बर में भ्रमण करती हो। तुम सूर्य के रथ के समान बारम्बार उस रास्ते पर चलो।
Hey Usha Devi! You awake-come to all the creatures in the universe. You are immortal-free from death, follow the same route-routine moving high in the sky, equivalent to the charoite of the Sun.
अव स्यूमेव चिन्वती मघोन्युषा याति स्वसरस्य पत्नी।
स्व१र्जनन्ती सुभगा सुदंसा आन्ताद्दिवः पप्रथ आ पृथिव्याः॥
जो धनवती उषा वस्त्र के तुल्य विस्तीर्ण अन्धकार को दूर करती हुई सूर्य की पत्नी होकर गमन करती है, वही सौभाग्यवती और सत्य कार्य शालिनी उषा द्युलोक और पृथ्वी के अन्तिम भाग तक प्रकाशित होती है।[ऋग्वेद 3.61.4]
वस्त्र के समान ढकने वाली घोर अंधेरे का नाश करने वाली, धन से युक्त उषा सूर्य की पत्नि के रूप में गमन करती है, वह बहुत ही सौभाग्यवती, शालीन और सत्कर्मों की साधिका है वही उषा क्षितिज और धरा को शोभा में प्रकाशमान होती है।
Usha travels like the wife of Sun, removing the darkness which covers the earth like a cloth. Fortunate, truthful Usha illuminate the horizon till the last corner-end of the earth.
अच्छा वो देवीमुषसं विभातीं प्र वो भरध्वं नमसा सुवृक्तिम्।
ऊर्ध्वं मधुधा दिवि पाजो अश्रेत्य रोचना रुरुचे रण्वसंदृक्॥
हे स्तोताओं! आप लोगों के समक्ष उषा देवी शोभायमान होती हैं। आप लोग नमस्कार द्वारा उनकी शोभन प्रार्थना करें। प्रार्थना को धारित करने वाली उषा आकाश में ऊर्ध्वाभिमुख तेज को आश्रित करती है। रोचनशीला और रमणीय दर्शना उषा अतिशय दीप्त होती है।[ऋग्वेद 3.61.5]
हे वंदना करने वालों! तुम्हारे सामने सुशोभित उषा प्रत्यक्ष होती है। तुम नमस्कार करके इनकी प्रार्थना अर्चना करो। उन प्रार्थनाओं को पुष्ट करने वाली उषा अम्बर के उन्नत तेज को धारण करती है।
Hey devotees-worshipers! Praise divine Usha with prostrations, shining upon you, the repository of sweetness manifests her brightness aloft in the sky and radiant and lovely lights the regions.
Hey worshipers-devotees! You come to the populace. Salute-prostrate before her and make prayers. Usha accept the prayers and supports the aura-brightness & illuminate the sky.
ऋतावरी दिवो अर्कैरबोध्या रेवती रोदसी चित्रमस्थात्।
आयतीमग्न उषसं विभाती वाममेषि द्रविणं भिक्षमाणः॥
जो उषा सत्यवती है, उसे सब लोग द्युलोक के तेज प्रभाव से जानते हैं। धनवती उषा नानाविध रूप से युक्त होकर द्यावा-पृथ्वी को व्याप्त करके रहती है। हे अग्नि देव! आपके सम्मुख आने वाली, भास माना उषा देवी से हवि की कामना करने वाले आप रमणीय धन को उपलब्ध करते हैं।[ऋग्वेद 3.61.6]
वह उषा अत्यन्त सुन्दर सुशोभित तथा तेजस्विनी है। उस सत्य से परिपूर्ण उषा को क्षितिज के तेज के रूप में प्रकट होने पर सभी पहचानते हैं । वह उषा धन एवं ऐश्वर्य से परिपूर्ण है और अनेक प्रकार से अम्बर-धरा से व्याप्त होती है। हे अग्नि देव! उषा तुम्हारे सम्मुख आती है। तुम उससे हवि की याचना करते हुए सुखकारी धनों को प्राप्त करते हो।
Everyone is aware of the aura of truthful Usha by virtue of the influence of heavens and she pervades the sky & earth. Hey Agni Dev! Usha come to you and you grant wealth to the desirous expecting offerings.
ऋतस्य बुध्न उषसामिषण्यन्वृषा मही रोदसी आ विवेश।
मही मित्रस्य वरुणस्य माया चन्द्रेव भानुं वि दधे पुरुत्रा॥
वृष्टि द्वारा जल के प्रेरक सूर्य सत्य भूत दिवस के मूल में उषा का प्रेरण करके विस्तीर्ण द्यावा-पृथ्वी के बीच में प्रवेश करते हैं। तदनन्तर महती उषा मित्र और वरुण की प्रभास्वरूपा होकर सोने के तुल्य अपनी प्रभा को चारों ओर प्रसारित करती है।[ऋग्वेद 3.61.7]
आदित्य ही वर्षा द्वारा जल गिराते हैं। वे सत्य रूप दिवस के आरम्भ में उषा को भेजकर आकाश धरती के मध्य प्रवेश करते हैं। फिर वह अत्यन्त महत्त्वशाली उषा मित्रा-वरुण की प्रभा के रूप में प्रकट होकर स्वर्ण के समान अपनी प्रदीप्त रूप में फैलाती है।
The Sun rises in between the sky & the earth inspiring rains and Usha. Thereafter, Usha spread like the aura of Mitra-Varun & the glittering gold.
ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (62) :: ऋषि :- विश्वामित्र, जमदग्नि, देवता :- इन्द्रा-वरुण, बृहस्पति, पूषा, सविता, सोम, मित्रा-वरुण, छन्द :- त्रिष्टुप, गायत्री।
इमा उ वां भृमयो मन्यमाना युवावते न तुज्या अभूवन्।
क्व १ त्यदिन्द्रावरुणा यशो वां येन स्मा सिनं भरथः सखिभ्यः॥
हे इन्द्रा-वरुण! शत्रुओं को वश में करने वाले आपके गतिशील शस्त्र सज्जनों की रक्षा करने वाले हैं, वे किसी के द्वारा नष्ट न हों। आप जिससे अपने मित्र बन्धुओं को अन्नादि प्रदत्त करते हैं, वह यश कहाँ स्थित है?[ऋग्वेद 3.62.1]
हे इन्द्रा-वरुण! सभी को ढकने वाले अंधकार के समान सभी को वशीभूत करने वाले तुम दोनों की विचरणशील क्रियाएँ जानी जाती हैं। वे क्रियाएँ तुम्हारे तपस्वियों के लाभ के लिए हैं तथा किसी तरह भी पतन के योग्य नहीं हैं।
हे इन्द्रा-वरुण! तुम्हारी यह कीर्ति और तेज कहाँ है? जिसके द्वारा तुम सखाओं के लिए अन्न और शक्ति की वृद्धि करते हो।
Hey Indr-Varun! Let your dynamic Shastr-weapons, which protect the gentle men & keep the enemies under control, never be destroyed by any one. Where is your might-power with which you grant food grains to the friends, relatives?!
अयमु वां पुरुतमो रयीयञ्छश्वत्तममवसे जोहवीति।
सजोषाविन्द्रावरुणा मरुद्भिर्दिवा पृथिव्या शृणुतं हवं मे॥
हे इन्द्रा-वरुण! धन की इच्छा करने वाले ये महान् याजक गण अन्न के लिए आप दोनों का सदैव आह्वान करते हैं। मरुद्गण, द्युलोक और पृथ्वी के साथ मिलकर आप दोनों मेरी प्रार्थना का श्रवण करें।[ऋग्वेद 3.62.2]
हे इन्द्रा-वरुण! धन की अभिलाषा करने वाले यह साधक तुम दोनों को अन्न की प्राप्ति के लिए आमंत्रित करते हैं। हे मरुतों! आकाश और धरती से संगत तुम मेरे श्लोकों को श्रवण करो।
Hey Indr Varun! The great Ritviz always invoke you for wealth & food grains. Marud Gan, heavens, earth and both of you listen-respond to my prayers-requests.
अस्मे तदिन्द्रावरुणा वसु ष्यादस्मे रयिर्मरुतः सर्ववीरः।
अस्मान्वरूत्रीः शरणैरवन्त्वस्मान्होत्रा भारती दक्षिणाभिः॥
हे इन्द्रा-वरुण! हम लोगों को उसी अभिलषित धन की प्राप्ति हो। हे मरुद्गण! सर्वकर्म-समर्थ पुत्र और पशुसंघ हम लोगों पास हो। सभी के द्वारा भजनीय देव पत्नियाँ द्वारा हम लोगों की रक्षा करें। होत्रा भारती उदार वचनों द्वारा हम लोगों का पालन करें।[ऋग्वेद 3.62.3]
हे इन्द्रा-वरुण! हमको शक्ति, अलौकिक ऐश्वर्य प्राप्त हो। तुम्हारी रक्षित सेनाएँ अपने शत्रु नाशक साधनों तथा शत्रुओं द्वारा हमारी रक्षा करें। सबका पालन करने वाली, प्रदान करने योग्य और उदार वचनों द्वारा हमारा पोषण करें।
Hey Indr Varun! Grant us divine wealth, comforts, luxuries and power. Hey Marud Gan! We should be blessed with sons capable of performing all sorts of endeavours-Karm and cattle. Let the revered-honoured by all, wives of the demigods-deities protect-nourish us with sweet-encouraging words.
बृहस्पते जुषस्व नो हव्यानि विश्वदेव्य। रास्व रत्नानि दाशुषे॥
हे समस्त देवताओं के हितकर बृहस्पति देव! हम लोगों के पुरोडाश (हवि) आदि का सेवन करें। तदनन्तर हवि देने वाले याजक गण को आप उत्तम धन दें।[ऋग्वेद 3.62.4]
हे बृहस्पते! तुम सभी सज्जनों को भलाई करने वाले हो। हमारे द्वारा दी जाने वाली हवि को स्वीकृत करो। हविदाता यजमान को महान तथा रमणीय धन प्रदान करो।
Hey well wisher of demigods-deities Brahaspati Dev! Eat the Purodas offered by us. Thereafter, grant wealth to the Ritviz-organisers of the Yagy.
शुचिमर्कैर्बृहस्पतिमध्वरेषु नमस्यत। अनाम्योज आ चके॥
हे ऋत्विको! आप लोग यज्ञ-समूह में अर्चनीय स्तोत्रों द्वारा विशुद्ध बृहस्पति की परिचर्या करें। मैं शत्रुओं द्वारा अपराजेय बल व पराक्रम की याचना करता हूँ।[ऋग्वेद 3.62.5]
हे ऋत्विजों! तुम महान श्लोकों द्वारा बृहस्पति को यज्ञ आदि शुभ कर्मों के मौकों पर प्रणाम द्वारा अर्चना करो। मैं उनसे ही शत्रु द्वारा कभी न झुकाए जा सकने वाले पराक्रम की याचना करता हूँ।
Hey Ritviz! Pray to Brahaspati Dev with the worship able sacred Strotr-hymns. I request power & might to be a winner against the enemy.
वृषभं चर्षणीनां विश्वरूपमदाभ्यम्। बृहस्पतिं वरेण्यम्॥
मनुष्यों के लिए अभिमत फल वर्षक, विश्वरूप नामक गोवाहन से युक्त अतिरस्करणीय और सभी के द्वारा भजनीय बृहस्पति देव के निकट मैं अभिमत फल की याचना करता हूँ।[ऋग्वेद 3.62.6]
समस्त व्यक्तियों में सभी सुखों की वर्षा करने में समर्थ, सभी आदर पाने योग्य, किसी के द्वारा भी हिंसित न होने वाले, शक्तिशाली सभी पर कृपा दृष्टि करने वाले उत्तम मार्ग पर शिक्षा देने वाले बृहस्पति सभी पदार्थों के जानने वाले हैं। उनको नमस्कार करो।
I worship-pray to the showerer of benefits over the humans, the omni form, the irreproachable, the excellent Brahaspati Dev.
I pray-request to Brahaspati Dev who is revered-honoured by all (the demigods-deities & the demons as well) grant-accomplish unlimited desires of the humans.
इयं ते पूषन्नाघृणे सुष्टुतिर्देव नव्यसी। अस्माभिस्तुभ्यं शस्यते॥
हे दीप्तिमान् पूषा! ये नीवनतम और शोभन स्तुति रूप वचन आपके लिए का उच्चारण हम लोग आपके लिए ही करते हैं।[ऋग्वेद 3.62.7]
हे पूषन! तुम सभी तरह से प्रकाशमान तथा प्रत्येक सुख की वर्षा करने में समर्थ हो। तुम्हारा वह अत्यन्त नया श्लोक सदैव वंदना करने के योग्य हो। इस उत्तम वंदना को हम तुम्हारे प्रति हमेशा उच्चारण करते रहें।
Hey radiant showerer of comforts Pusha Dev! We recite these excellent verses-hymns, compositions-Strotr in your honour.
तां जुषस्व मिरं मम वाजयन्तीमवा धियम्। वधूयुरिव योषणाम्॥
हे पूषा! मेरी उस प्रार्थना को स्वीकार करें। स्वीकार स्त्री के अभिमुख आगमन करता है, उसी प्रकार आप इस हर्षकारिणी प्रार्थना के अभिमुख आगमन करें।[ऋग्वेद 3.62.8]
पत्नी की इच्छा करने वाला मनुष्य जैसे चाहत करने वाली रमणी को स्नेह पूर्वक स्वीकार करता है। वैसे ही हे पूजन! मेरी उस ज्ञानमय तथा सत्यासत्य को जानने वाली और उत्तम धनावती मंत्र युक्त बुद्धि को स्नेह भावना पूर्वक स्वीकृत करो।
Hey Pusha Dev! Respond-accept our prayers, with the enlightened, truthful words, the way a person desirous of companion-wife does it.
यो विश्वाभि विपश्यति भुवना सं च पश्यति। स नः पूषाविता भुवत्॥
जो पूषा निखिल लोक को विशेष रूप से देखते हैं और उसे देखते हैं, वे ही पूषा हम लोगों का रक्षण करें।[ऋग्वेद 3.62.9]
जो पूषा सभी लोकों को समान रूप से देखते हैं तथा समस्त संसार को विविध दृष्टिकोण से देखते हैं, वह हमारे पोषक तथा सभी तरह से हमारे रक्षक हैं।
Let Pusha Dev who looks at the entire universe uniformly, nourish & protect us.
तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो नः प्रचोदयात्॥
जो सविता हम लोगों की बुद्धि को प्रेरित करता है, सम्पूर्ण श्रुतियों में प्रसिद्ध उस द्योतमान जगत्स्रष्टा परमेश्वर के संभजनीय परब्रह्मात्मक तेज का हम लोग ध्यान करते हैं।[ऋग्वेद 3.62.10]
जो सविता देव हमारी बुद्धियों को सन्मार्ग में प्रेरित करते हैं, उन पूर्ण तेजस्वी, सर्व-प्रकाशक, सर्वदाता, सर्वज्ञाता, सर्वश्रेष्ठ, परमात्मा के उस दिव्य-महान पापों का पतन करने वाले, तेज को धारण करते हुए उसी का ध्यान करें।
Savita Dev inspire-direct our mind-intelligent towards the virtuous, righteous, pious way. We should meditate-concentrate in the creator of the universe aware of all, Almighty, destroyer of sins.
देवस्य सवितुर्वयं वाजयन्तः पुरन्ध्या। भगस्य रातिमीमहे॥
हम लोग धनाभिलाषी होकर स्तुति द्वारा द्योतमान सविता से भजनीय धन के दान की याचना करते हैं।[ऋग्वेद 3.62.11]
हम सर्वप्रकाश, तेजोमय, सभी ऐश्वर्यों को देने वाले, सबके भजने योग्य, कल्याण रूप, सुखकारी सविता देव की दान बुद्धि की अन्न, बल और धन की इच्छा करते हुए धारणा सामर्थ्य से युक्त प्रार्थना द्वारा विनती करते हैं।
Desirous of wealth, we worship radiant Savita Dev.
देवं नरः सवितारं विप्रा यज्ञैः सुवृक्तिभिः। नमस्यन्ति धियेषिताः॥
कर्म नेता मेधावी अध्वर्यु गण बुद्धि द्वारा प्रेरित होकर यजनीय हवि और शोभन स्तोत्रों द्वारा सविता देवता की अर्चना करते हैं।[ऋग्वेद 3.62.12]
मेधावीजन महान कार्यों में प्रेरित करने वाली मति की शिक्षा से दोषों का समूल पतन करने में समर्थ, यज्ञादि महान कार्यों में प्रकाशक, सर्वप्रेरक तथा रचयिता सविता देव को नमस्कार और अर्चन करते हैं।
The enlightened-intellectual Ritviz guided-inspired by their mind-brain, make offerings and pray to Savita Dev with decent Strotr-hymns.
सोमो जिगाति गातुविद्देवानामेति निष्कृतम्। ऋतस्य योनिमासदम्॥
पथज्ञ सोम जाने वालों को स्थान दिखाते हैं। उपवेशन कारी देवों के लिए श्रेष्ठ यज्ञ-स्थान में गमन करते हैं।[ऋग्वेद 3.62.13]
सोम मेधावी जनों की प्रशंसा करता हुआ अनेक साधन सम्पन्न कर्मों के कारण उनकी शरण को प्राप्त करता है। वह अत्यन्त तुष्ट और सत्य के आश्रय से यज्ञ स्थान को जाता है।
Som, aware of the right path, proceeds by it; to the excellent seat of the demigods-deities, the place of sacrifice-Yagy.
Som aware of the right path, follows it & guide the intellectuals to the excellent Yagy spot for the demigods-deities.
सोमो अस्मभ्यं द्विपदे चतुष्पदे च पशवे। अनमीवा इषस्करत्॥
हे सोम! हम स्तोताओं के लिए एवम् द्विपदों, चतुष्पदों और पशुओं के लिए रोग रहित अन्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 3.62.14]
वह सोम हम दो पैर वाले मनुष्य के लिए तथा चार पैर वाले पशुओं के लिए भी व्याधि विमुख, स्वास्थ्यप्रद अन्नों को रचित करने में समर्थवान हो।
Hey Som Dev! Let us grant the Ritviz food grains for the double hoofed, four hoofed and the humans which can keep them free from ailments-diseases.
अस्माकमायुर्वर्धयन्निभिमातीः सहमानः। सोमः सधस्थमासदत्॥
हे सोम देव! हम लोगों की आयु को बढ़ाते हुए और कर्म विघातक शत्रुओं को अभिभूत करते हुए हम लोगों के यज्ञस्थान में प्रतिष्ठित हों।[ऋग्वेद 3.62.15]
वह सोम हमारी आयु में वृद्धि करता हुआ तथा शरीर की समस्त व्याधियों को शत्रु के समान पतन करता हुआ हमारे अनुष्ठान स्थान में हमारे साथ आकर निवास करें।
Hey Som Dev! Enhance our longevity & control-over power the enemies who create hurdles in our endeavours; establishing yourself at the Yagy site along with us.
आ नो मित्रावरुणा घृतैर्गव्यूतिमुक्षतम्। मध्वा रजांसि सुक्रतू॥
हे शोभन कर्मकारी मित्रा-वरुण! हम लोगों के गोष्ठ को दुग्ध पूर्ण करें। हम लोगों के आवास स्थान को मधुर रस से परिपूर्ण करें।[ऋग्वेद 3.62.16]
गोष्ठ :: गोशाला, एक ही प्रकार के पशुओं के रहने का स्थान जैसे :- अश्व गोष्ठ) गउशाला, गोआरी, गोकुल, गोठ, गोवारी, गोशाला, गोष्ठ, बथान, संदानिनी, संधानिनी, सन्दानिनी, सन्धानिनी; cow barn, cow house, cowshed, byre.
हे मित्रा-वरुण! तुम दोनों हमारे बीच में उत्तम कार्यों को करते हुए श्रेष्ठ आचरणों द्वारा ज्ञान युक्त मधुर वचनों से लोकों को सींचों।
Hey auspicious deeds performing Mitra-Varun! Let our byre have cattle yielding milk. Let our house have plenty of sweet sap (juices).
उरुशंसा नमोवृधा मह्ना दक्षस्य राजथः। द्राघिष्ठाभिः शुचिव्रता॥
हे विशुद्ध कर्मकारी मित्रा-वरुण! आप हविष्यान्न और स्तुतियों द्वारा पुष्ट होकर गरिमामय यश को प्राप्त करते हैं।[ऋग्वेद 3.62.17]
हे मित्रा-वरुण! तुम दोनों अत्यन्त शुद्ध व्यवहार कराने वाले हो। तुम प्रशस्त वंदनाओं से परिपूर्ण नमस्कार पूर्वक किये जाते हुए वृद्धि को ग्रहण होते हो। तुम अपनी अत्यन्त मनुष्यार्थ परिपूर्ण बल तथा शक्ति और ज्ञान के श्रेष्ठ सामर्थ्य से सुशोभित होओ।
Hey righteous, virtuous, pious deeds performing Mitra-Varun! You attain glory, honour being nourished with offerings of food grains and Strotr-sacred hymns.
गृणााना जमदग्निना योनावृतस्य सीदतम्। पातं सोममृतावृधा॥
हे मित्रा-वरुण! आप दोनों जमदग्नि नामक महर्षि द्वारा या अग्नि को प्रज्वलित करने वाले विश्वामित्र द्वारा प्रार्थित होकर यज्ञ देश में विराजें और प्रस्तुत सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 3.62.18]
हे मित्रा-वरुण! तुम प्रज्वलित अग्नि के समान सत्य को प्रकाशित करने वाले ज्ञानी के द्वारा उपदेश करते हुए परिपूर्ण हुए गृह के समान पधारो। दोनों सत्य के बल से प्राप्त हुए सोम रस का पान करो।
Hey Mitra-Varun! Being requested-invited either by Maharshi Jamdagni or by Vishwa Mitr come to the Yagy site and drink the Somras.(06.01.2023)
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संतोष महादेव-धर्म विद्या सिद्ध व्यास पीठ (बी ब्लाक, सैक्टर 19, नौयडा)
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