RIG VED (1) ऋग्वेद
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
By :: Pt. Santosh Bhardwaj
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अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।
निराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि॥
[श्रीमद्भगवद्गीता 2.47]
ऋग्वेद संहिता में कुल 20 छन्दों का प्रयोग हुआ है। इनमें भी निम्न सात छन्द प्रमुख हैं।
(1). गायत्री :- 24 अक्षर, (2). उषिणक :- 28 अक्षर, (3). अनुष्टुप :- 32 अक्षर, (4). बृहती :- 36 अक्षर, (5). पंकित :- 40 अक्षर, (6). त्रिष्टुप :- 44 अक्षर और
(7). जगती :- 48 अक्षर।
ऋग्वेद की संहिता के मण्डल, सूक्त सँख्या और ऋषियों के नामों का विवरण ::
मण्डल | सूक्त संख्या | महर्षियों के नाम |
---|---|---|
(1). | 191 | मधुच्छन्दा:, मेधातिथि, दीर्घतमा:, अगस्त्य, गोतम, पराशर आदि। |
(2). | 43 | गृत्समद एवं उनके वंशज |
(3). | 62 | विश्वामित्र एवं उनके वंशज |
(4). | 58 | वामदेव एवं उनके वंशज |
(5). | 87 | अत्रि एवं उनके वंशज |
(6). | 75 | भरद्वाज एवं उनके वंशज |
(7). | 104 | वशिष्ठ एवं उनके वंशज |
(8). | 103 | कण्व, भृगु, अंगिरा एवं उनके वंशज |
(9). | 114 | ऋषिगण, विषय-पवमान सोम |
(10). | 191 | त्रित, विमद, इन्द्र, श्रद्धा, कामायनी इन्द्राणी, शची आदि। |
इन मन्त्रों के द्रष्टा ऋषियों में गृत्समद, विश्वामित्र, वामदेव, अत्रि, भरद्वाज, वसिष्ठ, भृगु और अंगिरा प्रमुख हैं। वैदिक नारियाँस्त्रियाँ भी मन्त्रों की द्रष्टा रही हैें। प्रमुख ऋषिकाओं के रूप में वाक आम्भृणी, सूर्या, सावित्री, सार्पराज्ञी, यमी, वैवस्वती, उर्वशी, लोपामुद्रा, घोषा आदि के नाम उल्लेखनीय हैें।
ॐ ब्रह्माण्ड की अनाहत ध्वनि है। इसे अनहद नाद भी कहते हैं। सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में यह अनवरत जारी है। इसे प्रणवाक्षर (प्रणव+अक्षर) भी कहते है प्रणव का अर्थ होता है "प्रकर्षेण नूयते स्तूयते अनेन इति, नौति स्तौति इति वा प्रणवः"।
जिस समय परमेष्ठी ब्रह्मा जी पूर्व सृष्टि का ज्ञान सम्पादन करने के लिये एकाग्रचित्त हुए, उस समय उनके हृदयाकाश से कण्ठ-तालु आदि स्थानों से, संघर्ष से रहित एक अत्यन्त विलक्षण अनाहत नाद प्रकट हुआ। जब जीव अपनी मनोवृत्तियों को रोक लेता है, तब उसे भी इस अनाहत नाद का अनुभव होता है। बड़े-बड़े योगी उसी अनाहत नाद की उपासना करते हैं और उसके प्रभाव से अन्तःकरण के द्रव्य, अधिभूत क्रिया-अध्यात्म और कारक-अधिदैव रूप मल को नष्ट करके वह परमगति रूप मोक्ष प्राप्त करते हैं, जिसमें जन्म-मृत्यु संसार चक्र नहीं है। उसी अनाहत नाद से "अ " कार, "उ" कार और "म" कार रूप तीन मात्राओं से युक्त "ॐ कार" प्रकट हुआ। इस ॐ कार की शक्ति से ही प्रकृति अव्यक्त से व्यक्त रूप में परिणित हो जाती है। ॐ कार स्वयं व्यक्त एवं अनादि है और परमात्म स्वरूप होने से स्वयं प्रकाश भी है।
जिस परम वस्तु को भगवान् ब्रह्म अथवा परमात्मा के नाम से कहा जाता है, उसके स्वरूप का बोध भी ॐ कार के द्वारा ही होता है।
परब्रह्म परमेश्वर-परमात्मा के तीन प्रकार के नाम :: ॐ, तत् और सत्।
पिताहमस्य जगतो माता धाता पितामहः।
वेद्यं पवित्रमोंकार ऋक्साम यजुरेव च ॥9.17॥
इस ब्रह्माण्ड का पिता, माता, आश्रय तथा पितामह में ही हूँ। जानने योग्य पवित्र ओंकार, ऋग्वेद, सामवेद और यजुर्वेद भी मैं ही हूँ।
समूचे ब्रह्माण्ड के आश्रय दाता परमात्मा स्वयं हैं। वही पिता, माता, पितामह, ज्ञान के आधार, प्रणव (ॐ ओम), वेद :- ऋग्वेद, सामवेद और यजुर्वेद वे वही हैं।
HE supports the universe, HE is the father, the mother and the grandfather; the object of knowledge, the sacred syllable OM-Pranav and the Veds, the goal, the Lord-master, the witness, the abode, the refuge-shelter, the friend, the origin, the dissolution, the foundation, the substratum (बुनियाद, foundation, underlay, basis, substructure, ground, basis, base, foundation, footing, backbone, नीचे का तल-आधार, आश्रय, shelter, resort, refuge, concealment, asylum, अध:स्तर, आधार, नींव, basis and the immutable seed).
वेदों की विधि को ठीक-ठीक जानना वेध कहलाता है। कामना पूर्ती अथवा निवृति के लिए किये गए वैदिक कर्म, शास्त्रीय क्रतु आदि अनुष्ठान, विधि विधान सांगोपांग होना अनिवार्य है। यह क्रिया वेध है और ईश्वर का स्वरूप ही है। यज्ञ, दान, तप जो निष्काम मनुष्य को पवित्र करते हैं, वह पवित्रता भगवत्स्वरूप है। क्रतु, यज्ञ आदि के अनुष्ठान के प्रारम्भ में जो ॐ का उच्चारण किया जाता है, उससे ही ऋचाएँ अभीष्ट फल देती हैं। वैदिकों के लिए प्रणव "ॐ", का उच्चारण प्रमुख है। अतः प्रणव भी भगवान् का एक रूप है। क्रतु, यज्ञ आदि विधि-विधान को बताने वाले ग्रन्थ ऋग्वेद, सामवेद और यजुर्वेद हैं। इनमें नियताक्षर वाले मन्त्रों की ऋचाएँ हैं, जिनको ऋग्वेद कहते हैं। जिसमें स्वर सहित गाने वाले मन्त्र हैं, वे सामवेद और अनियताक्षर वाले मन्त्र यजुर्वेद हैं। ये सभी वेद भगवत्स्वरूप हैं।
Vedh is a term to know-understand the Veds properly in their true form. To get the desired fruit-result of the ritualistic deeds, its essential to know-understand the proper procedure, methods, systems. The procedure-practice is Vedh and a form of the God. Yagy-sacrifices in holy fire, donations-charity thereafter and the ascetic practices, which are for the undesired results meant for the social benefit-welfare are meant to purify the doer and are the concepts-images of the God. Om "ॐ" is the root word used as a prefix before uttering-singing the verses described in the Veds, which leads to desired outcome of the verses (Shloks, Mantr, Richas-sacred verses). For the utterances-speaking singing, the Ved Mantr OM is the main initial syllable. Therefore, OM is a form of the God. Rig Ved, Sam Ved and the Yajur Ved are the holy books-scriptures describing the basis concept, texts, procedures and so they are the form of God. The Richas, Mantr, Shloks describing the text-prose, having fixed number of syllables form the Rig Ved. The Veds Sam Ved & Yajur Ved, which are sung with rhythm having syllables which are not fixed, too are the forms of God. Veds are the embodiment of the God.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मंडल सूक्त (1) :: ऋषि :- मधुच्छन्दा, वैश्वामित्र, देवता :- अग्निः, छंद :- गायत्री।
ॐ अग्निमीले पुरोहितं यज्ञस्य देवमृत्विजम होतारं रत्नधातमम।
हम अग्निदेव की स्तुति करते हैं, जो यज्ञ (श्रेष्ठ तम पारमार्थिक कर्म) के पुरोहित (आगे बढाने वाले), देवता (अनुदान देनेवाले), ऋत्विज (समयानुकूल यज्ञ का सम्पादन करने वाले), होता (देवों का आवाहन करनेवाले) और याचकों को रत्नों से (यज्ञ के लाभों से) विभूषित करने वाले है।[ऋग्वेद 1.1.1]
पहले प्रकाशित यज्ञ करने वाला, देव-दूत, सत्य मुक्त अग्नि देव का पूजन करता हूँ।
We pray to the Agni Dev-demigod of fire who lightens the Yagy, who is a messenger of the demigods, truthful and grants various accomplishments to those who perform Yagy-holy sacrifices in fire.
Agni is a form-extension of the Almighty. He is the mouth of the demigods, accepts offerings and carries them to the demigods-deities.
अग्नि पूर्वेभिॠषिभिरिड्यो नूतनैरुत। स देवाँ एह वक्षति॥
जो अग्नि देव पूर्व कालीन ऋषियों (भृगु, अंगिरादि) द्वारा प्रशंसित है। जो आधुनिक काल में भी ऋषि कल्प वेदज्ञ विद्वानों द्वारा स्तुत्य है, वे अग्नि देव इस यज्ञ में देवों का आवाहन करें।[ऋग्वेद 1.1.2]
पूर्व समय में जिनकी ऋषियों ने आराधना की थी तथा वर्तमान में भी ऋषि गण जिनकी वन्दना करते हैं, उन अग्नि देव को मैं यज्ञ में निमंत्रित करता हूँ।
Agni Dev who was appreciated by the Rishis in earlier Kalp and the present Rishi-Mahrishis, enlightened scholars too appreciate him, should invite the demigod-deities to perform this Yagy.
अग्निना रयिमश्न्वत् पोषमेव दिवेदिवे। यशसं वीरवत्तमम्॥
(स्तोता द्वारा स्तुति किये जाने पर) ये बढा़ने वाले अग्निदेव मनुष्यों (यजमानों) को प्रतिदिन विवर्धमान (बढ़ने वाला) धन, यश एवं पुत्र-पौत्रादि वीर पुरूष प्रदान करने वाले हैं।[ऋग्वेद 1.1.3]
अग्नि देव धनों को दिलाने वाले, पोषक तथा अमरत्व प्रदान करने वाले हैं।
Agni Dev grants wealth, brave progeny, nourishment and immortality.
अग्ने यं यज्ञमध्वरं विश्वत: परिभूरसि। स इद्देवेषु गच्छति॥
हे अग्निदेव! आप सबका रक्षण करने में समर्थ हैं। आप जिस अध्वर (हिंसा रहित यज्ञ) को सभी ओर से आवृत किये रहते हैं, वही यज्ञ देवताओं तक पहुँचता है।[ऋग्वेद 1.1.4]
हे अग्ने! तुम जिस यज्ञ में विराजमान सर्वथा रहते हो, उसमें बाधा असम्भव है।
Hey Agni Dev! You are capable of protecting the devotees. The Yagy which is free from violence (animal sacrifice) is acceptable to the demigods-deities.
Hinduism do not promote animal killing either for eating or sacrifices in holy fire & the ritualistic prayers.
अग्निहोर्ता कविक्रतु: सत्यश्चित्रश्रवस्तम:। देवि देवेभिरा गमत्॥
हे अग्निदेव! आप हवि प्रदाता, ज्ञान और कर्म की संयुक्त शक्ति के प्रेरक, सत्य रूप एवं विलक्षण रूप युक्त हैं। आप देवों के साथ इस यज्ञ में पधारें।[ऋग्वेद 1.1.5]
वह यज्ञ स्वर्ग में स्थित देवताओं को सन्तुष्ट करता है।
Hey Agni Dev! You grant-provide the material for conducting the Yagy. You are a common figure-feature to encourage & gain enlightenment and do virtuous-pious deeds. You are the symbol of truth possess an unique figure. Please bless us with your presence in this Yagy along with the demigods-deities.
यदग्ङ दाशुषे त्वमग्ने भद्रं करिष्यसि। तवेत्तत् सत्यमग्ङिर:॥
हे अग्निदेव! आप यज्ञ करने वाले यजमान का धन, आवास, संतान एवं पशुओं की समृद्धि करके जो भी कल्याण करते है, वह भविष्य के किये जाने वाले यज्ञों के माध्यम से आपको ही प्राप्त होता है।[ऋग्वेद 1.1.6]
हे अग्नि देव! तुम हवि वाहक, विद्या कर्म के प्रेरक, अमर होकर यशस्वी देवगणों सहित यज्ञ को प्राप्त हो। हे अग्नि देव! तुम हवि दाता का कल्याण करने वाले हो। अवश्य ही वह कर्म तुम्हें ग्रहण होता है।
Hey Agni Dev! Everything you grant to the performer of Yagy in the form of wealth, progeny, growth of cattle is received by you through the Yagy later.
उप त्वाग्ने दिवेदिवे दोषावस्तर्धिया वयम्। नमो भरन्त एमसि॥
हे जाज्वलयमान अग्निदेव! हम आपके सच्चे उपासक है। श्रेष्ठ बुद्धि द्वारा आपकी स्तुति करते है और दिन-रात, आपका सतत् गुणगान करते हैं। हे देव! हमें आपका सान्निध्य प्राप्त हो।[ऋग्वेद 1.1.7]
हे अग्ने! हम चौबीस घंटे बुद्धि और मन से नमस्कार पूर्वक तुम्हारी निकटता ग्रहण करते हैं!
Hey lustrous Agni Dev! We are your true devotees. We worship you with our pure-excellent intelligence and keep on reciting your excellence throughout the day & night. Hey Agni Dev! Let us be granted your close proximity.
राजन्तमध्वराणां गोपांमृतस्य दीदिविम्। वर्धमानं स्वे दमे॥
हम गृहस्थ लोग दिप्तिमान, यज्ञों के रक्षक, सत्य वचन रूप व्रत को आलोकित करने वाले, यज्ञ स्थल में वृद्धि को प्राप्त करने वाले अग्नि देव के निकट स्तुति पूर्वक आते हैं।[ऋग्वेद 1.1.8]
हे अग्ने! तुम यज्ञ को उज्जवल करने वाले, सत्य की रक्षा करने वाले, स्वयं प्रकाशवान तथा सहज वृद्धि को प्राप्त होते हो।
We the household, come closer to you-the lustrous & bright Agni Dev illuminating the truth, gaining growth in the Yagy, while praying-worshiping you.
Fire is an essential and integral part of human life. It helps in growing plants-shrubs, medicinal plants, helps in cooking, destroys the waste, provides heat during winters. It helps in moving vehicles. It helps the humans in several ways. It is essential for cremation of the dead body after death.
स न: पितेव सूनवेग्ने सूपायनो भव। सचस्वा न: स्वस्तये॥
हे गाहर्पत्य अग्ने! जिस प्रकार पुत्र को पिता (बिना बाधा के) सहज की प्राप्त होता है, उसी प्रकार आप भी (हम यजमानों के लिये) बाधा रहित होकर सुख पूर्वक प्राप्त हों। आप हमारे कल्याण के लिये हमारे निकट रहे।[ऋग्वेद 1.1.9]
हे अग्ने! जिस प्रकार पुत्र के निकट पिता स्वयं पहुँच जाता है, वैसे ही तुम हमको सुगमता से प्राप्त होओ। इसलिए तुम हमारे लिए कल्याणकारी बनो।
Hey Agni! You should be easily accessible to us, like a father to his son, accordingly-similarly you should be available to us-the host performing Yagy without any obstacles and remain with us for our welfare-well being.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मंडल सूक्त 2 :: ऋषि मधुच्छन्दा वैश्वामित्र, देवता :- वायु, इन्द्र, मित्रा-वरुण, छन्द गायत्री।
वायवा याहि दर्शतेमे सोमा अरंकृता:। तेषां पाहि श्रुधी हवम्॥
हे प्रियदर्शी वायुदेव! हमारी प्रार्थना को सुनकर यज्ञ स्थल पर आयें। आपके निमित्त सोम रस प्रस्तुत है, इसका पान करें।[ऋग्वेद 1.2.1]
हे प्रियदर्शन वार्यो! यहाँ पर पधारो, तुम्हारे लिए यह सुप्रसिद्ध सोम रखा है, उसे पीते हुए हमारे संकल्पों पर ध्यान आकृष्ट करो।
Hey Vayu Dev-the lover of goodness! Please come to this spot meant for Yagy and drink the Somras.
The Yagy is perform for the fulfilment of some desire. The deities-demigods are invited to the Yagy so that they help the organiser fulfill the objective.
वाय उक्वेथेभिर्जरन्ते त्वामच्छा जरितार:। सुतसोमा अहर्विद:॥
हे वायुदेव! सोमरस तैयार करके रखने वाले, उसके गुणों को जानने वाले स्तोतागण स्तोत्रों से आपकी उत्तम प्रकार से स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 1.2.2]
हे वार्यो! यह सोम निष्पन्न करने वाले और उसके गुणों को जानने वाले वंदनाकारी तेरा गुणगान करते हुए पूजन करते हैं।
Hey Vayu Dev-the deity of air! Those who prepare the Somras, knows its qualities pray to you while appreciating you.
वायो तव प्रपृञ्चती धेना जिगाति दाशुषे। उरूची सोमपीतये॥
हे वायुदेव! आपकी प्रभावोत्पादक वाणी, सोमयाग करने वाले सभी यजमानों की प्रशंसा करती हुई एवं सोम रस का विशेष गुणगान करती हुई, सोमरस पान करने की अभिलाषा से दाता (यजमान) के पास पहुँचती है।[ऋग्वेद 1.2.3]
हे वायु! तुम्हारे हृदय को छूने वाली वाणी सोम की इच्छा से दाता को शीघ्र प्राप्त होती है।
Hey Vayu Dev! your soothing (consoling, pleasing) words in the form of the verses of Sam Ved reaches the performer of Yagy, who offer you Somras.
इन्द्रवायू उमे सुता उप प्रयोभिरा गतम्। इन्दवो वामुशान्ति हि॥
हे इन्द्रदेव! हे वायुदेव! यह सोमरस आपके लिये अभिषुत किया (निचोड़ा) गया है। आप अन्नादि पदार्थो से साथ यहाँ पधारें, क्योंकि यह सोमरस आप दोनों की कामना करता है।[ऋग्वेद 1.2.4]
हे इन्द्र तथा वायु! यहाँ सोम इस प्रस्तुत है। यह तुम्हारे लिए ही है; अतः अन्न आदि सहित आओ।
Hey Indr Dev! Hey Vayu Dev! This Somras has been extracted for you, so please come to us with the food grain etc.
वायविन्द्रश्च चेतथ: सुतानां वाजिनीवसू। तावा यातमुप द्रवत्॥
हे वायुदेव! हे इन्द्रदेव! आप दोनों अन्नादि पदार्थो और धन से परिपूर्ण है एवं अभिषुत सोमरस की विशेषता को जानते है। अत: आप दोनों शीघ्र ही इस यज्ञ में पदार्पण करें।[ऋग्वेद 1.2.5]
हे वायु! हे इन्द्र! तुम अन्न सहित सोमों के त्राता हो इसलिए शीघ्र आगमन करो।
Hey Indr Dev! Hey Vayu Dev! You provide us with food grain and other essential commodities and knows the qualities of Somras. So, kindly oblige us by joining this Yagy-our efforts.
वायविन्द्रश्च सुन्वत आ यातमुप निष्कृतम्। मक्ष्वि१त्था धिया नरा॥
हे वायुदेव! हे इन्द्रदेव! आप दोनों ही बड़े सामर्थ्यशाली हैं। आप यजमान द्वारा बुद्धिपूर्वक निष्पादित सोम के पास अति शीघ्र पधारें।[ऋग्वेद 1.2.6]
हे वायु और इन्द्रदेव! इस सिद्ध किये गये सोम रस के निकट शीघ्र पधारो। तुम दोनों ही योग्य पदार्थों को ग्रहण करते हो।
Hey Indr Dev! Hey Vayu Dev! Both of you are powerful-capable. Please join this Yagy in which Somras is being offered.
मित्रं हुवे पूतदक्षं वरुणं च रिशादसम्।
धियं घृताचीं साधन्ता॥
घृत के समान प्राण प्रद वृष्टि सम्पन्न कराने वाले मित्र और वरुण देवों का हम आवाहन करते हैं। मित्र हमें बलशाली बनायें तथा वरुणदेव हमारे हिंसक शत्रुओं का नाश करें।[ऋग्वेद 1.2.7]
पवित्र शक्ति वाले मित्र और शत्रु नाशक वरुण का मैं आह्वान करता हूँ।
We invite Mitr Dev & Varun Dev, who shower rains which are like Ghee which nourishes us. Let Mitr make us strong and Varun Dev destroy our violent enemies.
ऋतेन मित्रावरुणावृतावृधारुतस्पृशा। क्रतुं बृहन्तमाशाथे॥
सत्य को फलितार्थ करने वाले सत्य यज्ञ के पुष्टिकारक देव मित्रा-वरुण! आप दोनों हमारे पुण्यदायी कार्यों (प्रवर्तमान सोमयाग) को सत्य से परिपूर्ण करें।[ऋग्वेद 1.2.8]
ये मित्र वरुण! सत्य से वृद्धि को प्राप्त होने वाले, सत्य-स्वरूप तथा सत्य महानता को प्राप्त यज्ञ को सम्पन्न करने वाले हैं।
Hey Mitra-Varun! You enrich the Yagy which strengthen out efforts-endeavours pertaining to virtues, values, ethics, truth.
कवी नो मित्रावरुणा तुविजाता उरुक्षया। दक्षं दधाते अपसम्॥
अनेक कर्मो को सम्पन्न कराने वाले विवेकशील तथा अनेक स्थलों में निवास करने वाले मित्रा-वरुण! हमारी क्षमताओं और कार्यों को पुष्ट बनाते हैं।[ऋग्वेद 1.2.9]
ये सखा, वरुण, शक्तिशाली, सब जगह विद्यमान हैं और जल द्वारा कार्यों को प्रेरित करते हैं। समस्त कर्मों और अधिकारों वश में करने वाले हैं।ये ज्ञान और कर्म को प्रेरित करने वाले हैं।
Mitra-Varun! You help us perform our prudent deeds at various places and enhance-boost our capabilities.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मंडल सूक्त 3 :: ऋषि मधुच्छन्दा वैश्वामित्र। देवता :- 1-3 अश्विनी कुमार, 4.6 इन्द्र, 7-9 विश्वेदेवा, 10-12 सरस्वती सरश्वती, छन्द गायत्री।
अश्विना यज्वरीरिषो द्रवपाणी शुभस्पती। पुरुभुजा चनस्यतम्॥
हे विशालबाहो! शुभ कर्म पालक, द्रुत गति से कार्य सम्पन्न करने वाले अश्विनी कुमारो! हमारे द्वारा समर्पित हविष्यान्नों से आप भली प्रकार सन्तुष्ट हों।[ऋग्वेद 1.3.1]
हे विशाल भुजाओं वाले शुभ कार्यों के सम्पादक द्रुत कार्यकारी अश्विद्वय! अनुष्ठान के अन्न से सन्तुष्टि को प्राप्त होओ।
Hey huge armed! Hey Ashwani Kumars! You perform the auspicious deeds with high speed-quickly. You should be thoroughly satisfied-content with the offerings containing food grain etc., made by us.
अश्विना पुरुदंससा नरा शवीरता धिया। धिष्ण्या वनतं गिर:॥
असंख्य कर्मो को संपादित करनेवाले धैर्य धारण करने वाले बुद्धिमान, हे अश्विनी कुमारो! आप अपनी उत्तम बुद्धि से हमारी वाणियों (प्रार्थनाओं को स्वीकार करें।[ऋग्वेद 1.3.2]
हे अश्विनी कुमारो! तुम विभिन्न कार्यों को सम्पन्न करने वाले, धैर्य और बुद्धि दो। अतः अपने हृदय से हमारी वंदना पर ध्यान आकर्षित करो।
Hey Ashwani Kumars! You perform millions-unaccountable deeds with patience. Please accept our prayers made with pure heart, through your intellect.
दस्ना युवाकव: सुता नासत्या वृक्तबर्हिष:। आ यातं रुद्रवर्तनी॥
रोगों को विनष्ट करने वाले, सदा सत्य बोलने वाले रूद्र देव के समान (शत्रु संहारक) प्रवृत्ति वाले, दर्शनीय हे अश्विनी कुमारो! आप यहाँ आये और बिछी हुई कुशाओं पर विराजमान होकर प्रस्तुत संस्कारित सोम रस का पान करें।[ऋग्वेद 1.3.3]
हे शत्रु-संहारक वीरो! तुम झूठ से बचने वाले, दुर्धष रास्ते पर चलने वाले हो। इस छने हुए सोमरस को पीने के लिए यहाँ आ जाओ।
Hey Ashwani Kumars! You abide by the truth and destroy the diseases & the enemy like Rudr-Bhagwan Shiv. We invite you to come to us and enjoy the Somras by sitting over the mat made with Kush grass.
Dev Raj Indr denied Somras to Ashwani Kumars and grant them the status of main demigods, being the son of Bhagwan Sury-Sun. Chaywan Rishi having being obliged by Ashwani Kumars installed them to the status of full-specific demigods.
इन्द्रा याहि चित्रभानो सुता इमे त्वायव:। अण्वीभिस्तना पूतास:॥
हे अद्भुत दीप्तिमान इन्द्रदेव! अँगुलियों द्वारा स्रवित, श्रेष्ठ पवित्ररा युक्त यह सोम रस आपके निमित्त है। आप आयें और सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 1.3.4]
हे कांतिमान इन्द्र! दसों अंगुलियों से सिद्ध किये पवित्रता पूर्वक तुम्हारे सम्मुख रखे इस सोम रस के लिए यहाँ पधारो।
Hey Indr Dev! You possess aura (around your body). This Somras purified with the help of 10 fingers is meant for you. Please come & accept it.
इन्द्रा याहि धियेषितो विप्रजूतः सुतावत:। उपब्रम्हाणि वाघत:॥
हे इन्द्रदेव! श्रेष्ठ बुद्धि द्वारा जानने योग्य आप, सोमरस प्रस्तुत करते हुये ऋत्विजों के द्वारा बुलाये गये हैं। उनकी स्तुति के आधार पर आप यज्ञशाला में पधारें।[ऋग्वेद 1.3.5]
हे इन्द्र मस्तिष्कों से प्रार्थना किया हुआ तुम सोम सिद्ध करने वाले वंदनाकारी के पूजन से उसे ग्रहण करो।
Hey Indr Dev! You can be recognised through pure mind only. We the people performing Yagy invite-pray to you to come to the Yagy site.
इन्द्रा याहि तूतुजान उप ब्रम्हाणि हरिव:। सुते दधिष्व नश्चन:॥
हे अश्व युक्त इन्द्रदेव! आप स्तवनों के श्रवणार्थ एवं इस यज्ञ में हमारे द्वारा प्रदत्त हवियों-हविष्यों का सेवन करने के लिये यज्ञ शाला मे शीघ्र ही पधारें।[ऋग्वेद 1.3.6]
हे अश्व परिपूर्ण इन्द्रदेव! तुम हमारी वंदना सुनने को शीघ्रता से यहाँ पधारो और यज्ञ में हमारी हवियों को प्राप्त करो।
Hey Indr Dev! You deserve to be invited through prayers, please come to us-the site of the Yagy to accept the offerings.
ओमासश्चर्षणीधृतो विश्वे देवास् आ गत। दाश्वांसो दाशुष: सुतम्॥
हे विश्व देव! आप सबकी रक्षा करने वाले, सभी प्राणियों के आधारभूत और सभी को ऐश्वर्य प्रदान करने वाले हैं। अत: आप इस सोम युक्त हवि देने वाले यजमान के यज्ञ में पधारें।[ऋग्वेद 1.3.7]हे विश्वेदेवा! तुम रक्षक, धारणकर्ता और दाता हो। इसलिए इस हविदाता के यज्ञ को प्राप्त होओ।
Hey Vishw Deva! You are the protector of all, basis of all organisms-living beings and grant all sorts of comforts-amenities. Hence, please come to this Yagy site associated with offerings of Somras.
विश्वे देवासो अप्तुर: सुत्मा गन्त तूर्णय:। उस्ना इव स्वसराणि॥
समय-समय पर वर्षा करने वाले हे विश्वदेवा! आप कर्म कुशल और द्रुतगति से कार्य करने वाले हैं। आप सूर्य रश्मियों के सदृश गति शील होकर हमें प्राप्त हो।[ऋग्वेद 1.3.8]
हे विश्व-देवा! तुम कर्मवान और शीघ्रता करने वाले हो। आप सूर्य की किरणों के समान ज्ञान दाता बनकर आओ।
Hey Vishw Deva! You shower rain from time to time, perform all your deeds at great speed-quickly with expertise. You should be as fast as the Sun rays and reach to us-come to the site of the Yagy to bless us.
विश्वे देवासो अस्निध एहिमायासो अद्रुह:। मेधं जुषण्त वह्रय:॥
हे विश्वदेवा! आप किसी के द्वारा वध न किये जाने वाले, कर्म कुशल, द्रोह रहित और सुखप्रद है। आप हमारे यज्ञ में उपस्थित होकर हवि का सेवन करें।[ऋग्वेद 1.3.9]
हे विश्वेदेवा! तुम किसी के भी द्वारा समाप्त न किये जाने वाले, चालाक, निर्वैर तथा सुख-साधक हो। हमारे अनुष्ठान को ग्रहण होकर अन्न प्राप्त करो।
Hey Vishw Deva! You can not be killed by any one, expert in your endeavours (helping the devotees), do not go against anyone granting comforts-amenities to the devotees. Please come to us and accept the offerings.
सरस्वती- सूक्त ::
पावका न: सरस्वती वाजेभिर्वाजिनीवती। यज्ञं वष्टु धियावसु:॥
पवित्र बनाने वाली, पोषण देने वाली, बुद्धीमत्ता पूर्वक ऐश्वर्य प्रदान करने वाली सरस्वती! ज्ञान और कर्म से हमारे यज्ञ को सफल बनायें।[ऋग्वेद 1.3.10]
हे पवित्र करने वाली सरस्वती! तुम बुद्धि द्वारा अन्न और धन को प्रदान करने वाली हो। मेरे इस यज्ञ को सफल बनाओ।
Hey Saraswati! You make us pure, nourish and grant intellect-prudence associated with all sorts of amenities-comforts. Please make our Yagy-endeavours successful by granting us enlightenment-intelligence, amenities.
चोदयित्री सूनृतानां चेतन्ती सुमतीनाम्। यज्ञं दधे सरस्वती॥
सत्यप्रिय (वचन) बोलने की प्रेरणा देने वाली, मेधावी जनों को यज्ञानुष्ठान की प्रेरणा (मति) प्रदान करने वाली देवी सरस्वती, हमारे इस यज्ञ को स्वीकार करके हमें अभीष्ट वैभव प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.3.11]
सत्य कर्मों की प्रेरक उत्तम बुद्धि को प्रशस्त करने वाली यह सरस्वती हमारे यज्ञ को स्वीकार करने वाली हैं।
सरस्वती-विद्या दु:खों को नष्ट करने वाली और सत्यवाणियों को प्रेरणा देने वाली है। ज्ञानी ऐसे वाणी बोलता है जो प्रिय होती है, दूसरों के दुःखों को दूर करने वाली और सत्य-यथार्थ होती है यह उत्तम मतियों-विचारों को चेतने वाली होती है। ज्ञानी के मस्तिष्क में कुमति और कुविर आते ही नहीं है । यह रसवती विद्या मनुष्यों में श्रेष्ठ कर्मों को स्थापित करती है। ज्ञानी उत्तम कर्म ही करता है; खोटे, निकृष्ट और पापपूर्ण कर्म नहीं करता है।
Let Devi Saraswati inspire us to speak the truth, the genius to conduct Yagy, accept our Yagy and grant us with desired amenities, wealth.
महो अर्ण: सरस्वती प्र चेतयति केतुना। धियो विश्वां वि राजति॥
जो देवी सरस्वती नदी रूप में प्रभूत जल को प्रवाहित करती हैं; वे सुमति को जगाने वाली देवी सरस्वती, सभी याजकों की प्रज्ञा को प्रखर बनाती हैं।[ऋग्वेद 1.3.12]
सरस्वती विशाल ज्ञान-समुद्र को उज्ज्वल करने वाली है। यही सब बुद्धियों को ज्ञान की ओर प्रेरित करती है।
यह सरस्वती-विद्या ज्ञान का विशाल समुद्र है। यह ज्ञान के प्रकाश के द्वारा आराधक को प्रकृष्ट चेतना प्राप्त कराती है, उसके जीवन को ज्ञान-ज्योति से द्योतित (चमका देती है) कर देती है। यह विद्या सम्पूर्ण ज्ञानों को विशेष रूप से प्रकाशित-प्रकट कर देती है।
The Devi Saraswati who make the water flow in the river, increase-awake the pious-auspiciousness, strengthen the wisdom of the devotees.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मंडल, सूक्त 4, द्वितीय अनुवाक :: ऋषि :- मधुच्छन्दा वैश्वामित्र, देवता :- इन्द्र, छन्द :- गायत्री।
सुरूपकृलुमूतये सुदुघामिव गोदुहे। जुहूमसि द्यविद्यवि॥
गो दोहन करने वाले के द्वारा, प्रतिदिन मधुर दूध प्रदान करने वाली गाय को जिस प्रकार बुलाया जाता है, उसी प्रकार हम अपने संरक्षण के लिये सौन्दर्य पूर्ण यज्ञ कर्म सम्पन्न करने वाले इन्द्र देव का आह्वान करते है।[ऋग्वेद 1.4.1]
दुहने हेतु गौ को पुकारने वाले के समान, अपनी सुरक्षा के लिए हम उत्तम कर्मा इन्द्रदेव का आह्वान करते हैं।
The manner in which a person who extract milk from the cow calls her, with affection & regard, we invite Indr Dev who perform excellent deeds, for the protector of our Yagy.
उप न: सवना गहि सोमस्य सोमपा: पिब। गोदा इन्द्रेवतो मद:॥
सोम रस का पान करने वाले हे इन्द्रदेव! आप सोम ग्रहण करने हेतु हमारे सवन (यज्ञ, सोमरस का तर्पण और पान) यज्ञों में पधार कर, सोम रस पीने के बाद प्रसन्न होकर याजकों को यश, वैभव और गौंए प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.4.2]
हे सोमपान इन्द्रदेव! सोमपान के लिए हमारे अनुष्ठान का सामिप्य करो। तुम समृद्धिवान हर्षित होकर हमको गवादि धन प्रदान करने वाले हो।
Hey Indr Dev you enjoy Somras! Please come to our Yagy, have Somras and grant name-fame, wealth-amenities and cows.
अथ ते अन्तमानां विद्याम सुमतीनाम्। मा नो अति ख्य आ गहि॥
सोमपान कर लेने के अनन्तर हे इंद्रदेव! हम आपके अत्यन्त समीपवर्त्ती श्रेष्ठ प्रज्ञावान पुरूषों की उपस्थिति में रहकर आपके विषय में अधिक ज्ञान प्राप्त करें। आप भी हमारे अतिरिक्त अन्य किसी के समक्ष अपना स्वरूप प्रकट न करें अर्थात अपने विषय में न बताएँ।[ऋग्वेद 1.4.3]
तुमसे निकट संपर्क प्राप्त कर, बुद्धिमानों के संपर्क में रहकर, हमने तुम्हें जाना है। तुम हमारे विपरीत न रहना, तुम हमें न त्याग कर हमें प्राप्त हो जाओ।
Hey Indr Dev! After drinking the Somras let us be very close to you along with genius & prudent people to attain more knowledge-information about you.
परेहि विग्नमस्तृतमिन्द्रं पृच्छा विपश्चितम्। यस्ते सखिभ्य् आ वरम्॥
हे ज्ञान वानों! आप उन विशिष्ट बुद्धि वाले, अपराजेय इन्द्रदेव के पास जाकर मित्रों बन्धुओं के लिये धन ऐश्वर्य के निमित्त प्रार्थना करें।[ऋग्वेद 1.4.4]
हे मनुष्यों! तुम अपराजित, कर्मवान, इन्द्रदेव के निकट जाकर अपने भाई-बन्धुओं के लिए महान समृद्धि को ग्रहण करो।
Hey learned-enlightened! Please go the Indr Dev who has special-specific intelligence, talent, who is undefeated and pray-request for money, wealth & amenities for your friends and relatives.
उत ब्रुवन्तु नो निदो निरन्यतश्चिदारत। दधाना इन्द्र इद्दुव:॥
इन्द्रदेव की उपासना करने वाले उपासक इन्द्रदेव के निन्दकों को यहाँ से अन्यत्र निकल जाने हो कहें; ताकि वे यहाँ से दूर हो जायें।[ऋग्वेद 1.4.5]
इंद्रदेव के उपासक उसी की आराधना करते हुए इन्द्रदेव के निन्दकों को यहाँ से दूर जाने को कहें, जिससे वे दूर से भी दूर भाग जायें।
Those who are devoted to Indr Dev, should ask the people who speak against him to go away.
उत न: सुभगाँ अरिर्वोचेयुर्दस्म कृष्टय:। स्यामेदिन्द्रस्य शर्मणि॥
हे इन्द्रदेव! हम आपके अनुग्रह से समस्त वैभव प्राप्त करें, जिससे देखने वाले सभी शत्रु और मित्र हमें सौभाग्यशाली समझें।[ऋग्वेद 1.4.6]
हे शत्रु नाशक इन्द्र! तुम्हारे सम्पर्क में रहने से शत्रु और मित्र सभी हमको कीर्तिवान बनाते हैं।
Hey Indr Dev! We shall attain all sorts of amenities-wealth, such that all those enemies and friends who watch us, should consider us lucky-blessed.
एमाशुमाशवे भर यज्ञश्रियं नृमादनम्। पतयन्मन्दयत् सखम्॥
(हे याजको!) यज्ञ को श्री सम्पन्न बनाने वाले, प्रसन्नता प्रदान करने वाले, मित्रों को आनन्द देने वाले, इस सोम रस को शीघ्र गामी इन्द्रदेव को अर्पित करें।[ऋग्वेद 1.4.7]
Hey the performer of the Yagy! Please offer Somras to Indr Dev, who is quick to make the Yagy successful, grant pleasure to friends-devotees.
अस्य पीत्वा शतक्रतो घनो वृत्राणामभव:। प्रावो वाजेषु वाजिनम्॥
हे सैकड़ों यज्ञ सम्पन्न करने वाले इन्द्रदेव! इस सोमरस को पीकर आप वृत्र-प्रमुख शत्रुओं के संहारक सिद्ध हुये है, अत: आप संग्राम भूमि में वीर योद्दाओं की रक्षा करें।[ऋग्वेद 1.4.8]
यज्ञ को प्रकाशित करने वाले, आनन्दप्रद, प्रसन्नता पूर्वक तथा यज्ञ वाले इन्द्र! इस सोमपान से बलिष्ठ तुम, राक्षसों के नाशक हुए इसी पराक्रम से युद्धों में सेनाओं की रक्षा करते हो।
Hey Indr Dev you have successfully organised hundreds of Yagy! Please drink this Somras and protect the armies of demigods-humans by killing the demons headed by Vrata Sur.
तं त्वा वाजेषु वाजिनं वाजयाम: शतक्रतो। धनानामिन्द्र सातये॥
हे शतकर्मा इन्द्रदेव! युद्धों में बल प्रदान करने वाले आपको हम धन की प्राप्ति के लिये श्रेष्ठ हविष्यान्न अर्पित करते हैं।[ऋग्वेद 1.4.9]
हे शतकर्मा इन्द्रदेव! युद्धों में शक्ति प्रदान करने वाले तुमको हम समृद्धि के लिए हविष्यान्न भेंट करते हैं। धन रक्षक कष्टों को दूर करने वाले, अनुष्ठान करने वालों से स्नेह करने वाले इन्द्रदेव की वंदनाएँ गाओ।
Hey the performer of hundreds of Yagy, Indr Dev! We offer excellent sacrifices to you to seek strength for the war and money-wealth to conduct it.
यो रायो३वनिर्महान्त्सुपार: सुन्वत: सखा। तस्मा इन्द्राय गायत॥
हे याजको! आप उन इन्द्रदेव के लिये स्तोत्रों का गान करें, जो धनों के महान रक्षक, दु:खों को दूर करने वाले और याज्ञिकों से मित्रवत भाव रखने वाले हैं।[ऋग्वेद 1.4.10]
Hey the performers of Yagy! Let us sing verses in the honour of Indr Dev, who is the great protector of wealth and is friendly with the performs of Yagy and relieves them of pains, sorrow.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त 5 :: ऋषि :- मधुच्छन्दा वैश्वामित्र, देवता :- इन्द्र, छन्द :- गायत्री।
आ त्वेता नि षिदतेन्द्रमभि प्र गायत। सखाय: स्तोमवाहस:॥
हे याज्ञिक मित्रो! इन्द्रदेव को प्रसन्न करने ले लिये प्रार्थना करने हेतु शीघ्र आकर बैठो और हर प्रकार से उनकी स्तुति करो।[ऋग्वेद 1.5.1]
हे वंदना करने वाले साथियों! यहाँ पर पधारो और इंद्रदेव के गुणों का वर्णन करो।
Hey friends conducting-participating in Yagy! Come here to please Indr Dev by reciting his prayers.
पुरूतमं पुरूणामीशानं वार्याणाम्। इन्द्रं सोमे सचा सुते॥
हे याजक मित्रो! सोम के अभिषुत होने पर एकत्रित होकर संयुक्त रूप से सोमयज्ञ में शत्रुओं को पराजित करने वाले ऐश्वर्य के स्वामी इन्द्रदेव की अभ्यर्थना करो।[ऋग्वेद 1.5.2]
सभी संगठित होकर सोमरस को सिद्ध करो और इंद्रदेव की वंदनाओं गाओ।
Hey friends conducting-participating in Yagy! Let us jointly conduct prayers in the honour of Indr Dev who is the master of all amenities & defeats the enemies by offering him Somras (extracting Somras).
स घा नो योग आ भुवत् स राये स् पुरन्द्याम्। गमद् वाजेभिरा स न:॥
वे इन्द्रदेव हमारे पुरुषार्थ को प्रखर बनाने में सहायक हों, धन-धान्य से हमें परिपूर्ण करें तथा ज्ञान प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करते हुये पोषक अन्न सहित हमारे निकट आयें।[ऋग्वेद 1.5.3]
वह इन्द्र ग्रहण योग्य धन को हमें ग्रहण करायें तथा सुमति प्रदान करे अपने विभिन्न बलों से युक्त हमको ग्रहण हों।
Let Indr Dev be helpful in making us capable in enabling us in achieving our targets-endeavours. Let him make us rich & enlightened. He should always be with us (behind our back to support us.).
यस्यं स्ंस्थे न वृण्व्ते हरी समत्सु शत्रव:। तस्मा इन्द्राय गायत॥
हे याजको! संग्राम में जिनके अश्वों से युक्त रथों के सम्मुख शत्रु टिक नहीं सकते, उन इन्द्रदेव के गुणों का आप गान करें।[ऋग्वेद 1.5.4]
जिसके घोड़े जुते हुए रथ के पास शत्रु डट नहीं सकते, उन्हीं इंद्रदेव के गीत गाओ।
The enemy can not stand before the chariot of Indr Dev when the horses are ready to drive it, let us pray him.
सुतओआव्ने सुता इमे शुचयो यन्ति वीतये। सोमासो दध्याशिर:॥
यह निचोड़ा और शुद्ध किया हुआ दही मिश्रित सोमरस, सोमपान की इच्छा करने वाले इन्द्रदेव के निमित्त प्राप्त हो।[ऋग्वेद 1.5.5]
यहाँ शोभित सोमरस सोमपायी इनके लिए स्वतः ही प्राप्त हो जाता है।
The finely extracted Somras mixed with curd, should be ready for Indr Dev, who is desirous of drinking it (ready to accept it as an offering).
त्वं सुतस्य पीतवे सद्यो वृद्धो अजायथा:। इन्द्र ज्यैष्ठय्याय सुक्रतो॥
हे उत्तम कर्म वाले इन्द्रदेव! आप सोमरस पीने के लिये देवताओं में सर्वश्रेष्ठ और ज्येष्ठ हैं।[ऋग्वेद 1.5.6]
हे उत्तम कर्ता इन्द्र! तुम सोमपान द्वारा उन्नत के लिए हमेशा तत्पर रहते हो।
Performer of excellent deeds, hey Indr Dev! You are senior most amongest the demigods to drink Somras.
आ त्वा विशन्त्वाशव: सोमास इन्द्र गिर्वण:। शं ते सन्तु प्रचेतसे॥
हे इन्द्रदेव! तीनों सवनों में व्याप्त रहने वाला यह सोम, आपके सम्मुख उपस्थित रहे एवं आपके ज्ञान को सुखपूर्वक समृद्ध करे।[ऋग्वेद 1.5.7]
हे पूजनीय! यह सोमरस तेरे मन में समा जाए तुझे प्रसन्नता प्रदान करे। ज्ञानी व्यक्ति तुझे सुख कारक हों।
Hey Indr Dev! Let this Somras be always to ready-available to you throughout the day (three phases of the day :- morning, noon and evening) and enhance-enrich your enlightenment.
त्वा स्तोमा अवीवृधन् त्वामुक्था शतक्रतो। त्वां वर्धन्तु नो गिर:॥
हे सैकड़ों यज्ञ करने वाले इन्द्रदेव! स्तोत्र आपकी वृद्धि करें। यह उक्थ (स्तोत्र) वचन और हमारी वाणी आपकी महत्ता बढाये।[ऋग्वेद 1.5.8]
हे शतकर्मा इन्द्र इस स्तोत्र मधुर वाणियों से प्रतिष्ठा को प्राप्त होने की सामर्थ्य में कमी नहीं आती, जिसमें समस्त शक्तियों का समावेश है, वह इन्द्रदेव हजारों के पोषण करने की सामर्थ्य हमको प्रदान करें।
Hey the performer of thousand Yagy, Indr Dev! We pray for strengthening you. Let our prayers enhance-boost your significance-importance i.e., you should be capable of protecting us.
अक्षितोति: सनेदिमं वाजामिन्द्र: सहस्त्रिणम्। यस्मिन्ं विश्वानि पौंस्या॥
रक्षणीय की सर्वथा रक्षा करने वाले इन्द्रदेव बल पराक्रम प्रदान करने वाले विविध रूपों में विद्यमान सोम रूप अन्न का सेवन करे।[ऋग्वेद 1.5.9]
जिसकी सामर्थ्य कमी नहीं आती, जिनमें समस्त शक्तियों का समावेश है, वे इन्द्रदेव हजारों का पोषण करने की सामर्थ्य हमें प्रदान करें।
Indr Dev capable of protecting the entitled-deserving, should consume the various grains which contain Somras.
मा नो मर्ता अभि द्रुहन् तनूमामिन्द्र गिर्वण:। ईशानो यवया वधम्॥
हे स्तुत्य इन्द्रदेव! हमारे शरीर को कोई भी शत्रु क्षति न पहुँचाये। हमारी कोई हिंसा न कर सके। आप हमारे संरक्षक रहे।[ऋग्वेद 1.5.10]
हे पूजनीय इन्द्र! हमारे शरीर को भी शत्रु हानि न पहुँचा सके, हमारी कोई हिंसा न कर सके। तुम सब तरह से समर्थ हो।
Hey prayer deserving Indr Dev! Let no enemy be capable of harming us. You should be our protector.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मंडल सूक्त 6 :: ऋषि-मधुच्छन्दा वैश्वामित्र। देवता :- 1-3, 5, 7-8, 10 इन्द्र, 4-9 मरुद् गण, छन्द :- गायत्री।
युञ्जन्ति ब्रध्नमरुषं चरन्तं परि तस्थुश्ष:। रोचन्ते रोचना दिवि॥
वे ईश्वर (इन्द्र देव) द्युलोक में आदित्य रूप में, भूमि पर अहिंसक अग्नि रूप में, अंतरिक्ष में सर्वत्र प्रसरणशील वायु रूप में उपस्थित हैं। उन्हें उक्त तीनों लोकों के प्राणी अपने कार्यों में देवत्व रूप से सम्बद्ध मानते है। द्युलोक में प्रकाशित होने वाले नक्षत्र-ग्रह उन्हीं इन्द्र के स्वरूपांश है अर्थात तीनों लोकों की प्रकाशमयी-प्राणमयी शक्तीयों के वे ही एकमात्र संगठक है।[ऋग्वेद 1.6.1]
सूर्य रूप में प्रतिष्ठित इंद्रदेव के अहिंसक रूप से समस्त पदार्थ सम्बन्धी सर्व लोकों के प्राण धारी भी इसी से सम्बन्ध जोड़ते हैं।
The Almighty is present in the three abodes in the form of Sun, fire & air in non violent form.
Here Indr is used for Almighty-God.
युञ्जन्त्यस्य काम्या हरी विपक्षसा रथे।शोणा धृष्णू नृवाहसा॥
इन्द्रदेव के रथ में दोनों ओर रक्तवर्ण, संघर्षशील मनुष्यों को गति देने वाले दो घोड़े नियोजित रहते हैं।[ऋग्वेद 1.6.2]
उस इन्द्रदेव के रथ में के शत्रु का मर्दन करने वाले पराक्रमी मनुष्यों को सवार कराकर युद्ध स्थल में हेतु अश्व जुते हुए रहते हैं।
Two horse having red colour are deployed in the chariot of Indr Dev to help the humans struggling to attain their goal.
The humans and all other species having two hands make efforts to survive in this world. The pious, virtuous make efforts to attain Salvation-Moksh.
केतुं कृण्वन्नकेतवे पेशो मर्या अपेशसे। समुषद्धिरजायथा:॥
हे मनुष्यो! तुम रात्रि में निद्राभिभूत होकर, संज्ञा शून्य निश्चेष्ट होकर, प्रात: पुन: सचेत और सचेष्ट होकर मानों प्रतिदिन नवजीवन प्राप्त करते हो। प्रति दिन जन्म लेते हो।[ऋग्वेद 1.6.3]
हे मनुष्यो! अज्ञानी को ज्ञान देने वाला, असुन्दर को सुन्दर बनाता हुआ यह सूर्य रूपी इन्द्र किरणों द्वारा प्रज्वलित होता है।
Hey Humans! You sleep during the night relieving all your senses and become active during the day.
With the Sun rise, the rays of Sun fills the humans with vigour & vitality and he strive for their growth. They have to act in such a manner that all their responsibilities-duties to Varnashram Dharm are fulfilled and then they have to make effort for social welfare, equanimity and the Moksh ultimately.
आदह स्वधामनु पुनर्गर्भत्वमेरिरे। दधाना नाम यज्ञियम्॥
यज्ञीय नाम वाले, धारण करने में समर्थ मरुत वास्तव में अन्न की (वृद्धि की) कामना से बार-बार (मेघ आदि) गर्भ को प्राप्त होते है।[ऋग्वेद 1.6.4]
अन्न प्राप्ति की इच्छा से यज्ञोपयोगी हुए मरुद्गण गर्भ को बादल में रचने वाले हैं।
The Marut Gan, bearing the names as per the Yagy-endeavour, effort, turn the air into clouds with the desire to produce food grain.
वीळु चिदारुजत्नुभिर्गुहा चिदिन्द्र वह्रिभि:। अविन्द उस्त्रिया अनु॥
हे इन्द्रदेव! सुदृढ़ किले को ध्वस्त करने में समर्थ, तेजस्वी मरुद् गणों के सहयोग से आपने गुफा में अवरुद्ध गौओं (किरणों) को खोजकर प्राप्त किया।[ऋग्वेद 1.6.5]
हे इन्द्र! सुदृढ़ दुर्गों के भी भेदक हो। तुमने गुफा में छपी हुई गायों को मरुद्गण की सहायता से प्राप्त किया है।
Hey Indr Dev! Being capable of demolishing a strong fort with the help of Marud Gan you released the cows trapped in the cave.
देवयन्तो यथा मतिमिच्छा विदद्वसुं गिर:। महानूषत् श्रुतम्॥
देवत्व प्राप्ति की कामना वाले ज्ञानी ऋत्विज्, महान यशस्वी, ऐश्वर्यवान वीर मरुद्गणों की बुद्धिपूर्वक स्तुति करते है।[ऋग्वेद 1.6.6]
देवत्व-ग्रहणता की अभिलाषा से वन्दना करने वाले उन समृद्धिवान और ज्ञानी मरुद्गणों को अपनी तेज बुद्धि से वंदना करते हैं।
The enlightened performer of Yagy, pray the Marud Gan who are famed-honourable, possessed with all amenities and are brave; through their intelligence.
इन्द्रेण सं हि दृक्षसे सञ्जग्मानो अबिभ्युषा। मन्दू समानवर्चसा॥
सदा प्रसन्न रहने वाले, समान् तेज वाले मरुद् गण निर्भय रहने वाले इन्द्रदेव के साथ संगठित अच्छे लगते है।[ऋग्वेद 1.6.7]
यह इन्द्र के सहगामी मरुद्गण निडर हैं और इन्द्र देव तथा मरुद्गण एक से ही तेज वाले हैं।
The Marud Gan who are always happy, fearless, having aura, associate themselves with Indr Dev.
अनवद्यैरभिद्युभिर्मख: सहस्वदर्चति। गणैरिन्द्रस्य काम्यै:॥
इस यज्ञ में निर्दोष, दीप्तिमान्, इष्ट प्रदायक, सामर्थ्यवान मरुद् गणों के साथी इन्द्रदेव के सामर्थ्य की पूजा की जाती है।[ऋग्वेद 1.6.8]
इस यज्ञ में निर्दोष और यशस्वी मरुद्गणों के सखा इन्द्र को शक्तिमान समझकर अर्चना की जाती है।
In this Yagy the Indr, who is sinless, glittering, capable of granting boons, associate of mighty Marud Gan is prayed-worshipped.
अत: परिज्मन्ना गहि दिवो वा रोचनादधि। समस्मिन्नृञ्जते गिर:॥
हे सर्वत्र गमनशील मरुद् गणों! आप अंतरिक्ष से, आकाश से अथवा प्रकाशमान द्युलोक से यहाँ पर आयें, क्योंकि इस यज्ञ में हमारी वाणी आपकी स्तुति कर रही है।[ऋग्वेद 1.6.9]
हे सर्वत्र विचरने प्रीतो! तुम अंतरिक्ष, पाताल या सूर्य लोक से यहाँ आ जाओ। इस अनुष्ठान में संगठित समस्त तुम्हारी वंदना करते हैं।
Hey Marud Gan! You are capable of movement every where, the space, sky and the divine abodes. Please come here to bless us. We are enchanting verses (Shlok-Mantr) in your honour.
इतो वा सातिमीमहे दिवो वा पार्थिवादधि। इन्द्र महो वा रजस:॥
इस पृथ्वी लोक, अन्तरिक्ष लोक अथवा द्युलोक से कहीं से भी प्रभूत धन प्राप्त कराने के लिये, हम इन्द्रदेव की प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 1.6.10]
धरा, क्षितिज और अंतरिक्ष से धन ग्रहण कराने के लिए हम इंद्रदेव की विनती करते हैं।
We pray-worship Indr Dev who is capable of helping us in bringing wealth from earth, space and the heavenly abodes (for conducting Yagy).
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मंडल सूक्त 7 :: ऋषि :- मधुच्छन्दा वैश्वामित्र, देवता :- इन्द्र, छन्द :- गायत्री।
इन्द्रमिद् गाथिनो बृहदिन्द्रमर्केभिरर्किण:। इन्द्रं वाणीरनूषत॥
सामगान के साधकों द्वारा गाये जाने योग्य बृहत्साम की स्तुतियों (गाथा) से देवराज इन्द्र को प्रसन्न किया जाता है। इसी तरह याज्ञिकों ने भी मन्त्रोच्चारण के द्वारा इन्द्रदेव की प्रार्थना की है।[ऋग्वेद 1.7.1]
सोम गाय को और विद्वानों ने मंत्रों द्वारा इंद्रदेव की आराधना की। हमारी वाणी भी इन्द्रदेव का पूजन करती है।
Dev Raj Indr is pleased by the practitioners of Sam Gan by singing the verses (Mantr-Shlok) of Brahtsam. Similarly, those performing-organising Yagy too prayed to Indr Dev using Mantr.
इन्द्र इद्धर्यो: सचा सम्मिश्ल आ वचोयुजा। इन्द्रो वज्री हिरण्य:॥
संयुक्त करने की क्षमता वाले वज्रधारी, स्वर्ण मण्डित इन्द्रदेव, वचन मात्र के इशारे से जुड़ जाने वाले अश्वों के साथी है।[ऋग्वेद 1.7.2]
इन्द्रदेव अपने संकल्प मात्र से दोनों अश्वों को एक साथ जोड़ते हैं। वे वज्र के धारण करने वाले और स्वर्ण के समान रूपमान हैं।
Indr Dev holding Vajr-thunderbolt, has a body glittering like gold. The horses of his charoite joins it just by thinking about it.
The horses represent valour, strength and might. Indr is a friend of those who unite just by indication. He is not with those who nurse ego-grudge in their minds.
"वीर्य वा अश्व:" के अनुसार पराक्रम ही अश्व है। जो पराक्रमी समय के संकेत मात्र से संगठित हो जायें, इन्द्र देवता उनके साथी हैं। जो अंहकारवश बिखरे रहते है, वे इन्द्र के प्रिय नही है।
इन्द्रो दीर्घाय चक्षस आ सूर्य रोहयद् दिवि। वि गोभिरद्रियमैरयत्॥
देव शक्तियों के संगठक इन्द्रदेव ने विश्व को प्रकशित करने के महान उद्देश्य से सूर्य देव को उच्चाकाश में स्थापित किया, जिसने अपनी किरणों से पर्वत आदि समस्त विश्व को दर्शनार्थ प्रेरित किया।[ऋग्वेद 1.7.3]
सुदूर दिखाई पड़ने के लिए इन्द्र ने सूर्य को स्थापित किया और सूर्य की किरणों से अंधकार रूपी राक्षस को मिटाया।
Indr Dev who united the pious-virtuous demigods, established Sun-Sury Dev to illuminate the world-universe.
इन्द्र वाजेषु नो२व सहस्त्रप्रधेनेषु च। उग्र उग्राभिरूतिभि:॥
हे वीर इन्द्रदेव! आप सहस्त्रों प्रकार के धन लाभ वाले छोटे-बड़े संग्रामों में वीरता पूर्वक हमारी रक्षा करें।[ऋग्वेद 1.7.4]
हे प्रचण्ड योद्धा इन्द्र! तुम सहस्त्र प्रकार के भयंकर युद्धों में अपनी रक्षा के साधनों द्वारा हमारी रक्षा करो।
Hey Indr Dev! Please protect us in the wars of large & small dimensions through your might, power & valour leading to the earning of thousands kinds of amenities-wealth.
इन्द्र वयं महाधन इन्द्रमभें हवामहे। युंज वृत्रेषु वज्रिणम्॥
हम छोटे-बड़े सभी जीवन संग्रामों में वृत्रासुर के संहारक, वज्रपाणि इन्द्रदेव जो सहायतार्थ बुलाते हैं।[ऋग्वेद 1.7.5]
हमारे बंधुओं की रक्षा के लिए इन्द्र वज्र धारण करते हैं। वह इन्द्र हमको धन या अधिक से अधिक ऐश्वर्य के लिए प्राप्त हों।
We call-request the slayer of Vrata Sur, Indr Dev holding Vajr for protecting-helping us, in all our fights whether small to large.
स नो वृषन्नमुं चरुं सत्रापदावन्नापा वृधि। अस्मभ्यमप्रतिष्कुत:॥
सतत दानशील, सदैव अपराजित; हे इन्द्रदेव! आप हमारे लिये मेघ से जल की वृष्टि करें।[ऋग्वेद 1.7.6]
हे पराक्रमी एवं दाता इन्द्रदेव! हमारे लिए उस बादल को छिन्न-भिन्न करो। तुम कभी भी हमारे लिए नहीं, नहीं कहते हो।
Hey undefeated Indr Dev! You keep on performing donations-charity. Please let the clouds shower rains for us.
तुञ्जेतुञ्जे य उत्तरे स्तोमा इन्द्रस्य वज्रिण:। न विन्धे अस्य सुष्टुतिम्॥
प्रत्येक दान के समय, वज्रधारी इन्द्र के सदृश दान की (दानी की) उपमा कहीं अन्यंत्र नहीं मिलती। इन्द्रदेव की इससे अधिक उत्तम स्तुति करने में हम समर्थ नहीं हैं।[ऋग्वेद 1.7.7]
इन्द्रदेव के दान की उपमा मुझे कहीं ना मिलती। उसकी अधिकतम उत्तम वन्दना किस प्रकार से करें।
There is no parallel to Indr Dev for charity. We are unable to sing a better verse as compered to this in your honour.
Indr Dev attained this title only after performing 1,000 Yagy in which enormous amount of goods were distributed amongest the Brahmn & the needy, poor.
वृषा यूथेव वंसग: कृष्टीरियर्त्योजसा। ईशानो अप्रतिष्कुत:॥
सबके स्वामी, हमारे विरूद्ध कार्य न करने वाले, शक्तिमान इन्द्रदेव अपनी सामर्थ्य के अनुसार, अनुदान बाँटने के लिये मनुष्यों के पास उसी प्रकार जाते हैं जैसे वृषभ गायों के समूह में जाता है।[ऋग्वेद 1.7.8]
गायों के झुण्ड में चल बल के समान वह सर्वश्रेष्ठ इन्द्र अपने पराक्रम से प्राणियों को प्रेरित करते हैं।
Our protector-master Indr Dev comes to the humans for distributing grants-rewards as per their deeds as a bull goes to the cows.
य एकश्चर्षणीनां वसूनामिरन्यति। इन्द्र: पञ्व क्षितिनाम्॥
इन्द्रदेव, पाँचों श्रेणियों के मनुष्य (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र और निषाद) और सब ऐश्वर्य संपदाओं के अद्वितीय स्वामी हैं।[ऋग्वेद 1.7.9]
इन्द्र पाँचों श्रेणियों के मानवों और ऐश्वर्यों के एक मात्र स्वामी हैं।
Indr Dev is the sole headmaster of the 5 kinds of humans :- Brahmn, Kshatriy, Vaeshy, Shudr and the Nishad and he is the unique-unquestionable owner-master of all amenities, wealth, comforts.
इन्द्र वो विश्वतस्परि हवामहे जनेभ्य:। अस्माकमस्तु केवल:॥
हे ऋत्विजो! हे यजमानों! सभी लोगों में उत्तम, इन्द्रदेव को, आप सब के कल्याण के लिये हम आमंत्रित करते हैं, वे हमारे ऊपर विशेष कृपा करें।[ऋग्वेद 1.7.10]
मित्रों हम तुम कल्याण के लिए सभी के अग्र पुरुष इंद्रदेव का आह्वान करते हैं, यह केवल हमारे हैं।
Hey the performer of Yagy and the guests! Hey Indr Dev, you are best amongest all people, we invite you-worship you, for the benefit of all. Please grant us benevolence-favours.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मंडल सूक्त 8 :: ऋषि :- मधुच्छन्दा वैश्वामित्र, देवता :- इन्द्र, छन्द :- गायत्री।
एन्द्र सानसिं रयिं सजित्वानं सदासहम्। वर्षिष्ठमूतये भर॥
हे इन्द्रदेव! आप हमारे जीवन संरक्षण के लिये तथा शत्रुओं को पराभूत करने के निमित्त हमें ऐश्वर्य से पूर्ण करें।[ऋग्वेद 1.8.1]
हे इंद्रदेव! हमारे उपभोग के लिए उपयुक्त अन्न ग्रहण कराने वाले तथा सुरक्षा करने में समर्थवान धन प्रदान करो।
Hey Indr Dev! Kindly bless us with sufficient money to sustain and overpower our enemies.
नि येन मुष्टिहत्यया नि वृत्रा रुणधामहै। त्वोतासो न्यवर्ता॥
उस ऐश्वर्य के प्रभाव और आपके द्वारा रक्षित अश्वों के सहयोग से हम मुक्के का प्रहार कर (शक्ति प्रयोग द्वारा) शत्रुओं को भगा दें।[ऋग्वेद 1.8.2]
उस धन की शक्ति से बलिष्ठ हुए हम मुक्के के वार द्वारा रक्षित अश्वों के सहयोग से अपने देश के शत्रुओं को भगा दें।
By making use of the money granted-provided by you and the horses protected by you, we should be able to repel the enemy just by giving it a punch.
इन्द्र त्वोतास आ वयं वज्रं घना ददीमहि। जयेम सं युधि स्पृध:॥
हे इन्द्रदेव! आपके द्वारा संरक्षित होकर तीक्ष्ण वज्रों को धारण कर हम युद्ध में स्पर्धा करने वाले शत्रुओं पर विजय प्राप्त करें।[ऋग्वेद 1.8.3]
हे इन्द्रदेव! तुम्हारी सुरक्षा से उत्साहित हुए हम तीव्र शस्त्रों को धारण कर विद्रोह करने वालों पर विजय हासिल करें।
Hey Indr Dev! Having been protected by you, we should wear the arm & ammunition and win the enemy & the competitors, compelling us for the war.
वयं शूरेबिरस्तृभिरिन्द्र त्व्या युजा वयम्। सासह्याम पृतन्यत:॥
हे इन्द्रदेव! आपके द्वारा संरक्षित कुशल शस्त्र चालक वीरों के साथ हम अपने शत्रुओं को पराजित करें।[ऋग्वेद 1.8.4]
हे इन्द्र देव! हम कुशल वीरों सहित सेना से युक्त हुए, तुम्हारी सहायता से अपने शत्रुओं को वशीभूत करें।
Hey Indr Dev! We should be able to over power the enemy with the help of warriors who are thoroughly trained-skilled in the use of weapons under your protection.
महाँ इन्द्र: परश्च नु महित्वमस्तु वज्रिणे। द्यौर्न प्रथिना शव:॥
हमारे इन्द्रदेव श्रेष्ठ और महान है। वज्रधारी इन्द्रदेव का यश द्युलोक के समान व्यापक होकर फैले तथा इनके बल की चतुर्दिक प्रशंसा हो।[ऋग्वेद 1.8.5]
इन्द्र महान और सर्वश्रेष्ठ महिमावान हैं, उन वज्रधारी का बल अम्बर के समान विशाल है।
Indr Dev is great & excellent. Name & fame of Vajr wearing-holding Indr may spread to every nook & corner of the universe-three abodes :- earth, heaven & the nether world & and his ability, prudence and might be appreciated every where.
समोहे वा य आशत नरस्तोकस्य सनितौ। विप्रासो वा धियायव:॥
जो संग्राम में जुटते हैं, जो पुत्र के निर्माण में जुटते हैं और बुद्धि पूर्वक ज्ञान-प्राप्ति के लिये यत्न करते हैं, वे सब इन्द्रदेव की स्तुति से इष्टफल पाते हैं।[ऋग्वेद 1.8.6]
रणक्षेत्र को प्रस्थान करने वाले, सन्तान की इच्छा से युक्त अथवा ज्ञान को चाहने वाले सभी इन्द्रदेव की आराधना से अभीष्ट फल प्राप्त करते हैं।
Those who assemble in the battle field, make efforts for having a son & attaining knowledge by using intelligence, get the rewards-fruit of worshiping-praying to Indr Dev.
य: कुक्षि: सोमपातम: समुद्र इव पिन्वते। उर्वीरापो ब काकुद:॥
अत्यधिक सोमपान करने वाले इन्द्रदेव का उदर समुद्र की तरह विशाल हो जाता है। वह (सोमरस) जीभ से प्रवाहित होने वाले रसों की तरह सतत द्रवित होता रहता है। सद आद्र बनाये रहता है।[ऋग्वेद 1.8.7]
सोमपायी इन्द्रदेव की समृद्धि के तुल्य विशाल है।वह जिह्वा से जल के तुल्य हमेशा एक रस रहता है।
The belly of Indr Dev spread like the ocean by consuming Somras and the serum-liquid which grow at his tongue maintain the humidity levels.
Humidity is essential for rains. Indr Dev is the deity of rains-rain God.
एवा ह्यस्य सूनृता विरप्शी गोमती मही। पक्वा शाखा न दाशुषे॥
इन्द्रदेव की अति मधुर और सत्यवाणी उसी प्रकार सुख देती है, जिस प्रकार गो धन के दाता और पके फल वाली शाखाओं से युक्त वृक्ष यजमानों (हविदाता) को सुख देते हैं।[ऋग्वेद 1.8.8]
इन्द्र देव की मीठी और सत्यवाणी अनेक से गौ-धन के दाता एवं पके फलवाली शाखा के समान भरी-पूरी है।
Sweet voice associated with truth grant comforts & pleasures to the performer of Yagy, just like the donors of cows and the trees giving away ripe fruit.
एवा हि ते विभूतय ऊतय इन्द्र मावते। सद्यश्चित् सन्ति दाशुषे॥
हे इन्द्रदेव! हमारे लिये इष्टदायी और संरक्षण प्रदान करने वाली जो आपकी विभूतियाँ है, वे सभी दान देने (श्रेष्ठ कार्य मे नियोजन करने) वालों को भी तत्काल प्राप्त होती हैं।[ऋग्वेद 1.8.9]
हे इन्द्रदेव! तुम्हारी सामर्थ्य मुझ जैसे उपासक के लिए तुरन्त रक्षा करने वाली और अभिष्टदात्री है।
Hey Indr Dev! Your various titles-powers grant us (the protected), the desired accomplishments and are available to those who make donations, immediately (at once).
एवा ह्यस्य काम्या स्तोम् उक्थं च शंस्या। इन्द्राय सोमपीतये॥
दाता की स्तुतियाँ और उक्त वचन अति मनोरम एवं प्रशंसनीय है। ये सब सोमपान करने वाले इन्द्रदेव के लिये हैं।[ऋग्वेद 1.8.10]
इन्द्र देव का गुणगान और वंदनाएँ सोम-पान के लिए गाई जाती हैं।
Prayers-worship by the donor and his above words deserve appreciation, generate pleasure addresses to Indr Dev.
इंद्रदेव परमात्मा विभूति हैं और सभी प्रकार से सम्मान प्रशंसा योग्य हैं।
Indr Dev represents the greatness, majesty, power & the valour of the Almighty and deserve all sorts of appreciation.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मंडल सूक्त 9 :: ऋषि :- मधुच्छन्दा वैश्वामित्र, देवता :- इन्द्र, छन्द :- गायत्री।
इन्द्रेहि, मत्स्यन्धसो विश्वेभि: सोमपर्वभि:। महाँ अभिष्टिरोजसा॥
हे इन्द्रदेव! सोमरूपी अन्नों से आप प्रफुल्लित होते हैं। अत: अपनी शक्ति से दुर्दान्त शत्रुओं पर विजय श्री वरण करने की क्षमता प्राप्त करने हेतु आप (यज्ञशाला में) पधारें।[ऋग्वेद 1.9.1]
हे इंद्रदेव! पधारो! सोमपान करके हर्षित हो। तो अपनी शक्ति के द्वारा पूजनीय हो। हर्षिता प्रद सोम को समस्त कर्मों और पुरुषार्थों के करने वाले के लिए सिद्ध करो।
Hey Indr Dev! You are pleased-become happy, by the grains like the Som. Please come to our Yagy Shala-place of holding Yagy to attain the ability to over power-over come the dreaded enemy by your power-might.
एमेनं सृजता सुते मन्दिमिन्द्राय मन्दिने। चक्रिं विश्वानि चक्रये॥
हे याजको! प्रसन्नता देने वाले सोमरस को निचोड़कर तैयार करो तथा सम्पूर्ण-समस्त कार्यो के कर्ता इन्द्र देव के सामर्थ्य बढ़ाने वाले इस सोम को अर्पित करो।[ऋग्वेद 1.9.2]
हर्षिता प्रद सोम समस्त कर्मों और पुरुषार्थों के करने वाले लिए सिद्ध करो।
Hey worshipers! Extract the Somras which produce happiness-pleasure, offer it to Dev Raj Indr to boost his ability, capability, strength.
मतस्वा सुशिप्र मन्दिभि: स्तोमेभिर्विश्वचर्षणे। सचैषु सवनेष्वा॥
हे उत्तम शस्त्रों से सुसज्जित (अथवा शोभन नासिका वाले), इन्द्रदेव! हमारे इन यज्ञों में आकर प्रफुल्लता प्रदान करने वाले स्तोत्रों से आप आनन्दित हो।[ऋग्वेद 1.9.3]
हे सुन्दर रूप वाले सर्वेश्वर इन्द्रदेव! इस सोम के उत्सव में विराजो और श्लोकों से हर्षिता को ग्रहण होओ।
Hey Indr Dev decorated with excellent weapons (having a beautiful nose)! Please come to our Yagy and enjoy the verses granting pleasure.
असृग्रमिन्द्र ते गिर: प्रति त्वामुदहासत। अजोषा वृषभं पतिम्॥
हे इन्द्रदेव! आपकी स्तुति के लिये हमने स्तोत्रों की रचना की है। हे बलशाली और पालनकर्ता इन्द्रदेव! इन स्तुतियों द्वारा की गई प्रार्थना को आप स्वीकार करें।[ऋग्वेद 1.9.4]
इंद्रदेव! तुम्हारे लिए जो प्रार्थनायें की गई हैं वे सभी तुमको ग्रहण हुई हैं।
Hey Indr Dev! We have written-composed verses in your honour. Hey mighty, nourishing Indr Dev! Please accept our prayers in the form of these verses.
सं चोदय चित्रमर्वाग्राध इन्द्र वरेण्यम्। असदित्ते विभु प्रभु॥
हे इन्द्रदेव! आप ही विपुल ऐश्वर्यो के अधिपति हैं, अत: विविध प्रकार के श्रेष्ठ ऐश्वर्यों को हमारे पास प्रेरित करें अर्थात हमें श्रेष्ठ ऐश्वर्य प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.9.5]
हे इन्द्रदेव! विभिन्न श्रेष्ठ समृद्धियों को हमारी ओर प्रेरित क्योंकि तुम भी प्राप्त सिद्धियों के स्वामी हो।
Hey Indr Dev! You are the master of-possessor of all sorts of amenities, pleasures, comforts. Kindly grant us amenities.
अस्मान्त्सु तत्र चोदयेन्द्र राते रभस्वत:। तुविद्युम्न यशस्वत:॥
हे प्रभूत् ऐश्वर्य सम्पन्न इन्द्रदेव! आप वैभव की प्राप्ति के लिये हमें श्रेष्ठ कर्मो में प्रेरित करें, जिससे हम परिश्रमी और यशस्वी हो सकें।[ऋग्वेद 1.9.6]
दे अनन्त ऐश्वर्य वाले इन्द्रदेव! पराक्रम-वीर्य से सम्पन्न व्यक्तियों को कर्म के लिए उत्तम प्रेरणा दो।
Hey possessor of unlimited amenities! Kindly inspire, guide, direct us to perform such deeds, which can help us in attaining such amenities, comforts, pleasures & make us laborious, celebrity & glorious.
सं गोमदिन्द्र वाजवदस्मे पृथु श्रवो बृहत्। विश्वायुर्धेह्याक्षितम्॥
हे इन्द्रदेव! आप हमें गौओ, धन-धान्य से युक्त अपार वैभव एवं अक्षय पूर्णायु प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.9.7]
हे इन्द्रदेव! गाय, पराक्रम आयु से परिपूर्ण, अमर कीर्ति को हमें प्रदान करो।
Hey Indr Dev! Kindly bless us with cows, riches-wealth associated with glory and imperishable complete age.
अस्मे धेहि श्रवो बृहद् द्युम्न सहस्रसातमम्। इन्द्र रा रथिनीरिष:॥
हे इन्द्रदेव! आप हमें प्रभूत यश एवं विपुल ऐश्वर्य प्रदान करें तथा बहुत से रथों में भरकर अन्नादि प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.9.8]
हे इन्द्र! उत्तम यश, सहस्त्र-संख्यक, धन और रथों से पूर्ण ऐश्वर्य हमको प्रदान करो।
Hey Indr Dev! Kindly bless us with imperishable glory, riches-wealth, all sorts of amenities and chariots loaded with food grain etc.
वसोरिन्द्र वसुपतिं गीर्भिर्गृणन्त ऋग्मियम्। होम गन्तारमूतये॥
धनों के अधिपति, ऐश्वर्यों के स्वामी, ऋचाओं से स्तुत्य इन्द्रदेव का हम स्तुति पूर्वक आवाहन करते हैं। वे हमारे यज्ञ में पधार कर, हमारे ऐश्वर्य की रक्षा करें।[ऋग्वेद 1.9.9]
ऐश्वर्य के स्वामी, पूजनीय गतिशील इन्द्र को वन्दना पूर्वक धन की रक्षा के लिए आह्वान करते हैं।
We invite Indr Dev-the master of all amenities, pleasures, prayed-worshiped through verses in his honour, in our Yagy to protect our amenities, pleasures, comforts.
सुतेसुते न्योकसे बृहद् बृहत एदरि:। इन्द्राय शूषमर्चति॥
सोम को सिद्ध (तैयार) करने के स्थान यज्ञ स्थल पर यज्ञकर्ता, इन्द्रदेव के पराक्रम की प्रशंसा करते है।[ऋग्वेद 1.9.10]
सोम को सिद्ध करने स्थान पर उपासक गण इंद्र बुलाते हैं।
Those who perform-conduct Yagy, praise the valour & might of Indr Dev at the place of extracting Somras & invite him.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मंडल सूक्त 10 :: ऋषि :- मधुच्छन्दा वैश्वामित्र, देवता :- इन्द्र, छन्द :- अनुष्टुप्।
Those who perform-conduct Yagy, praise the valour & might of Indr Dev at the place of extracting Somras & invite him.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मंडल सूक्त 10 :: ऋषि :- मधुच्छन्दा वैश्वामित्र, देवता :- इन्द्र, छन्द :- अनुष्टुप्।
गायन्ति त्वा गायत्रिणो ऽर्चन्त्यर्कमर्किण:।
ब्रह्माणस्त्वा शतक्रत उद्वंशमिव येमिरे॥
हे शतक्रतो (सौ यज्ञ या श्रेष्ठ कर्म करने वाले) इन्द्रदेव! उद्गातागण (गायन करने वाला, सामवेद का गान करने वाला ऋत्विज; the Yagy performers singers praising the deity, singers of Sam Ved) आपका आवाहन करते है। स्तोता गण पूज्य इन्द्रदेव का मंत्रोच्चारण द्वारा आदर करते हैं। बाँस के ऊपर कला प्रदर्शन करने वाले नट के समान ब्रह्मा नामक ऋत्विज श्रेष्ठ स्तुतियों द्वारा इन्द्रदेव को प्रोत्साहित करते हैं।[ऋग्वेद 1.10.1]
हे शतकर्मा इन्द्रदेव! गायक तुम्हारा कीर्तिगान करते और अर्चना करने वाले तुम्हें पूजते हैं तथा वन्दनाकारी अपनी प्रार्थनाओं तुम्हें उन्नत करते हैं।
Hey hundred Yagy conducting Indr Dev! The organisers of the Yagy sing in favour of you, your excellent acts to invite you in the Yagy. The organisers of the Yagy called Brahma acting like a juggler-acrobats pray to you with decent prayers for you.
यत्सानो: सानुमारुहद् भूर्यस्पष्ट कर्त्वम्।
तदिन्द्रो अर्थं चेतति यूथेन वृष्णिरेजति॥
जब यजमान सोमवल्ली, समिधादि के निमित्त एक पर्वत शिखर से दूसरे पर्वत शिखर पर जाते है और यजन कर्म करते है, तब उनके मनोरथ को जानने वाले इष्ट प्रदायक इन्द्रदेव यज्ञ में जाने को उद्यत होते हैं।[ऋग्वेद 1.10.2]
एक स्थान दूसरे स्थान पर पहुँचने वाले यजमान से अभिष्ट के ज्ञानी इन्द्र देव मरुद्गण युक्त अभिष्ट वर्णन के लिए अनुष्ठान में पहुँचते हैं।
Indr Dev gets excited to reach the Yagy site, when the performer of Yagy move from one mountain cliff to another to collect Samidha-special kind of wood-herbs (Jadi-Booti) for offering sacrifices in the Yagy-holy fire.
युक्ष्वा हि केशिना हरी वृषणा कक्ष्यप्रा।
अथा न इन्द्र सोमपा गिरामुअपश्रुतिं चर॥
हे सोमरस ग्रहिता इन्द्रदेव! आप लम्बे केश युक्त, शक्तिमान, गन्तव्य तक ले जाने वाले दोनों घोड़ों को रथ मे नियोजित करें। तपश्चात् सोमपान से तृप्त होकर हमारे द्वारा की गयी प्रार्थनायेँ सुने।[ऋग्वेद 1.10.3]
हे सोमपायी इन्द्रदेव! बालों वाले अपने अश्वों को रथ में जोतकर हमारी प्रार्थना सुनने के लिए आओ।
Hey receptor of Somras Indr Dev! Please deploy your strong-divine horses bearing hair around their neck, come to us, get satisfied by drinking Somras and listen to the prayers sung by us.
एहि स्तोमाँ अभि स्वराभि गृणीह्या रुव।
ब्रम्ह च नो वसो सचेन्द्र यज्ञं च वर्धय॥
हे सर्व निवासक इन्द्रदेव! हमारी स्तुतियों का श्रवण कर आप उद्गाताओं, होताओं एवं अध्वर्युवों (यज्ञ करानेवाले श्रेष्ठ यजुर्वेदी पुरोहित, आचार्य, पुरोधा, कर्मकांडी ब्राह्मण; Best among the priests), को प्रशंसा से प्रोत्साहित करें।[ऋग्वेद 1.10.4]
हे इन्द्रदेव! यहाँ आ हमारी प्रार्थनाओं का अनुमोदन करो। हमारे साथ गाओ और हमारे कर्मों का अनुम करते हुए वृद्धिकारक बनो।
Hey Indr Dev you are capable of residing at all places! Please encourage the singers of Sam Ved, organisers of Yagy and the expert Brahmns skilled in organising the Yagy.
उक्थमिन्द्राय शंस्यं वर्धनं पुतुनिष्षिधे।
शक्रो यथा सुतेषु णो रारणत् सख्येषु च॥
हे स्तोताओ! आप शत्रु संहारक, सामर्थ्यवान इन्द्रदेव के लिये, उनके यश को बढ़ाने वाले उत्तम स्तोत्रों का पाठ करें जिससे उनकी कृपा हमारी सन्तानों एवं मित्रों पर सदैव बनी रहे।[ऋग्वेद 1.10.5]
शत्रु-संहारक इंद्रदेव की वृद्धि के लिए श्लोकों का गान करो, जिनसे व सभी के मध्य पधारकर हर्ष ध्वनि करें।
Hey the singers, recite the verses in the honour of Indr Dev to extend-spread his glory & honour to please him for blessing our progeny & friends.
Normally, we conduct prayers of deities, demigods & the God to please them and extract favours from him. Those who perform prayers of the Almighty without motive-selflessly, devote themselves to the God, does better.
तमित् सखित्व ईमहे तं राते त्ं सुवीर्ये।
स शक्र उत न्: शकदिन्द्रो वसु गयमानः॥
हम उन इन्द्रदेव के पास मित्रता के लिये धन प्राप्ति और उत्तम बल वृद्धि के किये स्तुति करने जाते हैं। वे इन्द्रदेव बल एवं धन प्रदान करते हुये हमें संरक्षित करते हैं।[ऋग्वेद 1.10.6]
मित्रता, धन-प्राप्ति और सामर्थ्य के लिये इन्द्रदेव से ही प्रार्थना करते हैं। वही इन्द्रदेव हमको धनवान और बलशाली बनात सुरक्षा करता है।
We approach Indr Dev for his friendship, seeking riches-wealth & money, gathering strength. Indr Dev grant us asylum-protection, strength & wealth.
सुविवृत्तं सुनिरजमिन्द्र त्वादातमिद्यशः।
गवामप व्रजं वृधि कृणुष्व राधो अद्रिवः॥
हे इन्द्रदेव! आपके द्वारा प्रदत्त यश सब दिशाओ में सुविस्तृत हुआ है। हे वज्रधारक इन्द्रदेव! गौओ को बाड़े से छोड़ने के समान हमारे लिये धन को प्रसारित करें।[ऋग्वेद 1.10.7]
हे इन्द्रदेव! तुम्हारा दिया हुआ यश सब ओर फैल गया है। हे व्रजिन! गौशालाओं को खोलकर हमको बहुत सा गौ धन प्राप्त कराओ।
Hey Indr Dev! Your glory has reached far & wide, in all (10) directions, all over the universe. Hey Thunder Volt wearing Indr Dev! Kindly open the cow sheds to grant us sufficient cows.
Cows are at the root of economy. In fact they form the backbone of any economy. They give us milk (curd, cheese, Ghee & several sweets), calf, bull-oxen (transport, agriculture), dung-manure (fuel, gas, compost), leather, horns, boons. Their urine can cure several diseases. They contain hundreds of enzymes in their body beneficial for the humans. Those who eat their meat-beef, invite trouble for themselves, since they are primary hosts for dangerous worms and the virus capable of spreading dangerous diseases.
नहि त्वा रोदसी उभे ऋघायमाणमिन्वतः।
जेषः स्वर्वतीरपः सं गा अस्मभ्यं धूनुहि॥
हे इन्द्रदेव! युद्ध के समय आपके यश का विस्तार पृथ्वी और् द्युलोक तक होता है। दिव्य जल प्रवाहों पर आपका ही अधिकार है। उनसे अभिषिक्त (Anointed, Consecrated) कर हमें तृप्त करें।[ऋग्वेद 1.10.8]
हे इन्द्रदेव! आपकी क्रोधित अवस्था में आकाश या धरती पर कोई भी आपको धारण करने में सक्षम नहीं होता। तुम आकाश से वृद्धि करो और हमको गौएँ प्रदान करो।
अभिषेक :: मन्त्रोच्चारण करते हुए शंख से सुगन्धित जल छोड़ने को अभिषेक कहते हैं।
अभिषिक्त :: Anoint, consecrate.
Hey Indr Dev! During war your glory spreads all over the universe including earth. You are the master of divine sources of water (medicines). Please anoint, consecrated us with that divine water.
आशुत्कर्ण श्रुधी हवं नू चिद्दधिष्व मे गिरः।
इन्द्र स्तोममिमं मम कृष्वा युजश्चिदन्तरम्॥
भक्तों की स्तुति सुनने वाले, हे इन्द्रदेव! हमारे आवाहन को सुनें। हमारी वाणियों को चित्त में धारण करें। हमारे स्तोत्रों को अपने मित्र के वचनों से भी अधिक प्रीति पूर्वक धारण करें।[ऋग्वेद 1.10.9]
हे सभी की सुनने वाले इन्द्रदेव! मेरी भी प्रार्थना सनो। इन प्रार्थनाओं को स्वीकृत करो। अपने मित्र से भी अधिक निकटस्थ मानों।
Hey Indr Dev! You listen-respond to the prayers of the devotees. Please bear with our words-prayers & keep them in your inner self-mind. Kindly, accept our prayers like a person close to you, more than a friend.
विद्मा हि त्वा वृषन्तमं वाजेषु हवनश्रुतम्।
वृषन्तमस्य हूमह ऊर्तिं सहस्त्रासातमाम्॥
हे इन्द्रदेव! हम जानते हैं कि आप बल सम्पन्न हैं तथा युद्धों में हमारे आवाहन को आप सुनते हैं। हे बलशाली इन्द्रदेव! आपके सहस्त्रों प्रकार के धन के साथ हम आपका संरक्षण भी चाहते हैं ।[ऋग्वेद 1.10.10]
हे इन्द्रदेव! हम जानते हैं कि आप श्रेष्ठ पुरुषार्थी हैं। आप संग्राम काल में हमारी वंदनाओं को सुनते हैं। हे अभीष्ट! अपनी सुरक्षा के लिए हम आपका आह्वान करते हैं।
Hey Indr Dev! We are aware that you are powerful and respond to our requests during war (endeavours, efforts). We seek asylum, shelter, protection under you with thousands of amenities possessed by you.
आ तू न इन्द्र कौशिक मन्दसानः सुतं पिब।
नव्यमायुः प्र सू तिर कृधी सहस्त्रासामृषिम्॥
हे कुशिक के पुत्र इन्द्रदेव! आप इस निष्पादित सोम का पान करने के लिये हमारे पास शीघ्र आयें। हमे कर्म करने की सामर्थ्य के साथ नवीन आयु भी दें। इस ऋषि को सहस्त्र धनों से पूर्ण करें।[ऋग्वेद 1.10.11]
हे कुशिक के पुत्र! तुम सोम रस के पीने के लिए यहाँ आ जाओ। मेरी उम्र की वृद्धि करते हुए इस सहस्त्र संख्यक धन का उत्तम स्वामी बनाओ।
[कुशिक पुत्र विश्वामित्र के समान उत्त्पत्ति के कारण इन्द्र को कुशिक पुत्र सम्बोधन दिया गया है।]
Hey the son of Kushik-Indr Dev! Please come here to drink Somras. Please grant us strength to do our works in addition to new lease of life. Please grant thousands of amenities to this Rishi-prayer.
परि त्वा गिर्वणो गिर इमा भवन्तु विश्वतः।
वृद्धायुमनु वृद्द्यो जुष्ता भवन्तु जुष्टयः॥
हे स्तुत्य इन्द्रदेव! हमारे द्वारा की गई स्तुतियाँ सब ओर से आपकी आयु को बढ़ाने वाली सिद्ध हो।[ऋग्वेद 1.10.12]
हे पूजनीय इन्द्र! हमारी ये पूजन सब ओर फैली हुई हैं। तुम बढ़ी हुई उम्र वाले हो, इन पूजनीय से तुम्हारी प्रीति हो।
Hey prayer deserving Indr Dev! Let our prayers enhance-boost your life-longevity in all directions.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मंडल सूक्त 11 :: ऋषि :- जेतामाधुच्छन्दस, देवता :- इन्द्र, छन्द :- अनुष्टुप्।
इन्द्रं विश्वा अवीवृधन्त्समुद्रव्यचसं गिरः।
रथीतमं रथीनां वाजानां सतपर्ति पतिम्॥
समुद्र के तुल्य व्यापक, सब रथियों में महानतम, अन्नों के स्वामी और सत्प्रवृत्तियों के पालक इन्द्रदेव को समस्त स्तुतियाँ अभिवृद्धि प्रदान करती हैं।[ऋग्वेद 1.11.1]
अंतरिक्ष के तुल्य विशाल, रथियों में महान, अन्न के स्वामी तथा आराष्ट सुरक्षा करने वाले इन्द्र की हमारे श्लोक वृद्धि करते हैं।
RATHI रथी :: Rathi is an ancient unit which describes number soldiers in an army unit or column.
The prayers sung in favour of Indr Dev, who is as broad as the ocean, excellent-at the top of all army commanders (supreme commander), master of all sorts of food grains and possesses Satvik Gun-divine qualities to enhances-boosts his powers.
अर्द्धरथी :: पत्ती, सेनामुख, गुल्म तथा गण के नायक। एक प्रशिक्षित योद्धा, जो एक से अधिक अस्त्र अथवा शस्त्रों का प्रयोग जानता हो तथा वो युद्ध में एक साथ 2,500 सशस्त्र योद्धाओं का सामना अकेले कर सकता हो।
रथी :: वाहिनी, पृतना, चमु और अनीकिनी के नायक। एक ऐसा योद्धा जो दो अर्धरथियों या 5,000 सशस्त्र योद्धाओं का सामना एक साथ कर सके। इसके अतिरिक्त उसकी योग्यता एवं निपुणता कम से कम दो अस्त्र एवं दो शस्त्र चलाने में हो।
अतिरथी :: अनेक अस्त्र एवं शस्त्रों को चलने में माहिर। युद्ध में 12 रथियों या 60,000 सशस्त्र योद्धाओं का सामना एक साथ कर सकता हो। एक अक्षौहिणी सेना का नायक।
महारथी :: सभी ज्ञात अस्त्र शस्त्रों को चलने में माहिर, दिव्यास्त्रों का ज्ञाता। 12 अतिरथियों अथवा 7,20,000 सशस्त्र योद्धाओं का सामना करने में समर्थ। ब्रह्मास्त्र का ज्ञाता। एक से अधिक अक्षौहिणी सेना का नायक।
अतिमहारथी :: 12 महारथी श्रेणी के योद्धाओं अर्थात 86,40,000 सशस्त्र योद्धाओं का सामना अकेले कर सकता हो साथ ही सभी प्रकार के दैवीय शक्तियों का ज्ञाता हो। वाराह, नृसिंह, राम, कृष्ण एवं कहीं-कहीं परशुराम को भी अतिमहारथी की श्रेणी में रखा जाता है। देवताओं में कार्तिकेय, गणेश तथा वैदिक युग में इंद्र, सूर्य, यम, अग्नि एवं वरुण को भी अतिमहारथी माना जाता है। आदिशक्ति की दस महाविद्याओं और रुद्रावतार विशेषकर वीरभद्र और हनुमान जी महाराज को भी अतिमहारथी कहा जाता है। मेघनाद की गिनती अतिमहारथियों में की जाती है, ऐसा कोई भी दिव्यास्त्र नहीं था जिसका ज्ञान उसे न था। वह ब्रह्मास्त्र, नारायणास्त्र एवं पाशुपतास्त्र का ज्ञाता था। केवल पाशुपतास्त्र को छोड़ कर लक्ष्मण जी को भी समस्त दिव्यास्त्रों का ज्ञान था, अतः उन्हें भी इस श्रेणी में रखा जाता है।
महामहारथी :: 24 अतिमहारथियों अर्थात 20,73,60,000 सशस्त्र योद्धाओं का सामना करने में समर्थ। दैवीय एवं महाशक्तियाँ का स्वामी। केवल त्रिदेवों (ब्रह्मा, विष्णु एवं रूद्र) एवं आदिशक्ति को ही इतना शक्तिशाली समझा जाता है।
सख्ये त इन्द्र वाजिनो मा भेम शवसस्पते।
त्वामभि प्र णोनुमो जेतारमपराजितम्॥
हे बल रक्षक इन्द्रदेव! आपकी मित्रता से हम बलशाली होकर किसी से न डरें। हे अपराजेय-विजयी इन्द्रदेव! हम साधक गण, आपको प्रणाम करते हैं।[ऋग्वेद 1.11.2]
हे शक्ति के स्वामी इंद्र! तुम्हारी मित्रता हमारे भय को दूर कर हमें शक्तिशाली बनाये। तुम हमेशा विजय प्राप्त करते हो। हम तुम्हारा पूजन करते हैं।
Hey protector of power Indr Dev! Having become strong after becoming your friend, we should not be afraid with anyone. Hey undefeated Indr Dev! We, the devotees; salute you.
पूर्वीरिन्द्रस्य रातयो न वि दस्तन्त्यूतयः।
यदी वाजस्य गोमतः स्तोतृभ्यो मंहते मघम्॥
देवराज इन्द्र की दानशीलता सनातन है। ऐसी स्थिति में आज के यजमान भी स्तोताओं को गवादि सहित अन्न दान करते हैं, तो इन्द्रदेव द्वारा की गई सुरक्षा अक्षुण्ण रहती है।[ऋग्वेद 1.11.3]
इन्द्रदेव का दान प्रसिद्ध है। स्तोताओं आदि धन तथा बल देने वाला इन्द्र साधकों को निरन्तर देता ही रहता है।
Indr Dev's tendency to donate is eternal. In this state, the hosts of today, who donate food grain & cows etc. remain protected by Indr Dev.
पुरां भिन्दुर्युवा कविरमितौजा अजायत।
इन्द्रो विश्वस्य कर्मणो धर्ता वज्री पुरुष्टुतः॥
शत्रु के नगरों को विनष्ट करने वाले हे इन्द्रदेव! युवा, ज्ञाता, अतिशक्तिशाली, शुभ कार्यों के आश्रयदाता तथा सर्वाधिक कीर्ति-युक्त होकर विविधगुण सम्पन्न हुये हैं।[ऋग्वेद 1.11.4]
इन्द्र स्तुत्य, दुर्गों का भेदन करने वाले, युवा, होशियार, महापराक्रमी, कर्मों के करने वज्रधारी प्रकट हुए।
Hey the destroyer of enemies forts Indr Dev! The young, learned, extremely powerful, protector of virtuous deeds, anointed with glory have been associates with various qualities.
त्वं वलस्य गोमतोऽपावरद्रिवो बिलम्।
त्वा देवा अबिभ्युषस्तुज्यमानस आविषुः॥
हे वज्रधारी इन्द्रदेव! आपने गौओं (सूर्य की किरणों) को चुराने वाले असुरों के व्युह को नष्ट किया, तब असुरों से पराजित हुये देवगण आपके साथ आकर संगठित हुए।[ऋग्वेद 1.11.5]
हैं वर्जिन! वृत्त और गौओं वाली गुफा के खोले जाने पर पीड़ित देवताओं ने तुमसे अभय प्राप्त किया।
Hey the Thunder Volt wearing Indr Dev! When you destroyed the formations of the Asur-wicked (demons, Rakshas, giants) the demigods defeated by the demons came and joined you.
तवांह शूर रातिभिःप्रत्यायं सिन्धुमावदन्।
उपातिष्ठन्त गिर्वणो विदुष्टे तस्य कारवः॥
संग्रामशूर हे इन्द्रदेव! आपकी दानशीलता से आकृष्ट होकर हम होतागण (यज्ञ या हवन कराने वाला, पुरोहित, यज्ञ में आहुति देने वाला) पुनः आपके पास आये हैं। हे स्तुत्य इन्द्रदेव! सोमयाग मे आपकी प्रशंसा करते हुये, ये ऋत्विज एवं यजमान आपकी दानशीलता को जानते है।[ऋग्वेद 1.11.6]
हे इन्द्र! निष्पन्न सोम का गुण सभी को बताकर तुम्हारे धन दान देने के प्रभाव से मैं फिर पधारा हूँ।
Hey great warrior Indr Dev! We the performers of Yagy have come to you attracted by tendency to donate-charity. Hey prayer deserving Indr Dev! Enchanting your glory with the verses of Sam Ved, these performers of Yagy are aware of tendency to donate-charity.
विदुष्टे तस्य मेधिरास्तेषां श्रवांस्युत्तिर॥
हे इन्द्रदेव! अपनी माया द्वारा आपने शुष्ण (एक राक्षस) को पराजित किया। जो बुद्धिमान आपकी इस माया को जानते हैं, उन्हें यश और बल देकर वृद्धि प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.11.7]
हे पूजनीय इन्द्रदेव! तुम्हारी निकटता ग्रहण करने वाले तुम्हें भली-भाँति जानते हैं। हे इंद्रदेव!अपने अपनी माया से उस मायावी दुष्ट शुष्ण नामक राक्षस पर विजय प्राप्त।तुम्हारी इस महिमा को जो मेधावी जानते हैं उनकी वृद्धि करो।
Hey Indr Dev! You defeated the demon called Shushn with your illusionary powers. Please grant progress to those intellectuals who know-identify your calibre in this art of illusion.
इन्द्रमीशानमोजसाभि स्तोमा अनूषत।
सहस्त्र यस्य रातय उत वा सन्ति भूयसी:॥
स्तोतागण, असँख्यों अनुदान देने वाले, ओजस् (बल प्राक्रम) के कारण जगत के नियन्ता इन्द्रदेव की स्तुति करने लगे।[ऋग्वेद 1.11.8]
अपने बल से संसार पर शासन करने वाले इन्द्र का स्तोताताों यशगान किया। वे अनेकों प्रकार से भी अधिक ऐश्वर्यों के दाता हैं।
The devotees, Yagy performers begun with the prayers of Indr Dev who grants unlimited doles-amenities, due to his powers, majesty.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मंडल सूक्त 12 :: ऋषि :- मेधातिथि कण्व, देवता :- अग्नि, छटवी ऋचा के प्रथम पाद के देवता निर्मथ्य अग्नि और आहवनीय अग्नि, छन्द :- गायत्री।
अग्निं दूतं वृणीमहे होतारं विश्ववेदसम्। अस्य यज्ञस्य सुक्रतुम्॥
हे सर्वज्ञाता अग्निदेव! आप यज्ञ के विधाता हैं, समस्त देवशक्तियों को तुष्ट करने की सामर्थ्य रखते हैं। आप यज्ञ की विधि व्यवस्था के स्वामी हैं। ऐसे समर्थ आपको हम देव दूत रूप में स्वीकार करते है।[ऋग्वेद 1.12.1]
हम देवदूत, आह्वान करने वाले, समस्त सिद्धियों के स्वामी, अनुष्ट सम्पादन करने वाले अग्नि का वरण करते हैं।
Hey all knowing Agni Dev! You are the master of the Yagy with the power to satisfy all divine powers. You are the master of the management of the Yagy. You being capable, we accept you as the messenger of the Almighty-God.
अग्निमग्निं हवीमभिः सदा हवन्त विश्पतिम्। हव्यवाहं पुरुप्रियम्॥
प्रजापालक, देवों तक हवि पहुँचाने वाले, परमप्रिय, कुशल नेतृत्व प्रदान करने वाले हे अग्निदेव! हम याजक गण हवनीय मंत्रों से आपको सदा बुलाते है।[ऋग्वेद 1.12.2]
प्रजा-पोषक, हविवाहक अनेकों के प्रिय अग्नि का मंत्रों द्वारा यजमान आह्वान करते हैं।
Nurturer of the populace, carrier of offerings to the demigods, provider of skilled leadership, Hey Agni Dev! We the organiser, of the Yagy invite you with the help of divine verses.
अग्ने देवाँ इहा वह जज्ञानो वृक्तबर्हिषे। असि होता न ईड्यः॥
हे स्तुत्य अग्निदेव! आप अरणि मन्थन से उत्पन्न हुये हैं। आस्तीर्ण (बिछे हुये) कुशाओं पर बैठे हुये यजमान पर अनुग्रह करने हेतु आप (यज्ञ की) हवि ग्रहण करने वाले देवताओं को इस यज्ञ में बुलायें।[ऋग्वेद 1.12.3]
हे अग्ने! कुश बिछाने वाले यजमान के लिए प्रदीप्त हुए तुम देवताओं को आमंत्रित करो, क्योंकि तुम हमारे लिए पूजनीय हो।
Hey Agni Dev! You have evolved by the rubbing of wood. Kindly, invite the demigods to occupy these cushions, made of Kush grass for accepting the offerings in the Yagy.
ताँ उशतो वि बोधय यदग्ने यासि दूत्यम्। देवैरा सत्सि बर्हिषि॥
हे अग्निदेव! आप हवि की कामना करने वाले देवों को यहाँ बुलाएँ और इन कुशा के आसन पर देवों के साथ प्रतिष्ठित हों।[ऋग्वेद 1.12.4]
हे अग्ने! तुम देवताओं के दौत्य कर्म में नियुक्त हो, इसलिए हव्य चाहने वाले देवताओं को आमंत्रित करो और उनके साथ इस कुशासन पर विराजमान हो जाओ।
Hey Agni Dev! Please invite the demigods desirous of accepting the offerings and occupy these Kushasan (seats, cushions) made of Kush grass.
घृताहवन दीदिवः प्रति ष्म रिषतो दह। अग्ने त्वं रक्षस्विनः॥
घृत आहुतियों से प्रदीप्त हे अग्निदेव! आप राक्षसी प्रवृत्तियों वाले शत्रुओं को सम्यक रूप से भस्म करें।[ऋग्वेद 1.12.5]
हे दैदीप्यमान अग्ने! तुम घृत से दीप्तिमान हुए हमारे शत्रुओं को नष्ट करो।
Illuminated by the fire produced with Ghee, Hey Agni Dev! Please turn the enemies with demonic tendencies to ashes.
अग्निनाग्निः समिध्यते कविर्गृहपतिर्युवा। हव्यवाड्जुह्वास्यः॥
यज्ञ स्थल के रक्षक, दूरदर्शी, चिरयुवा, आहुतियों को देवों तक पहुँचाने वाले, ज्वालायुक्त आहवनीय यज्ञाग्नि को अरणि मन्थन द्वारा उत्पन्न अग्नि से प्रज्वलित किया जाता है।[ऋग्वेद 1.12.6]
मेधावी, गृह रक्षक, हवि वाहक और जुहू मुख वाले अग्नि को अग्नि से प्रज्वलित हैं।
Protector of the site of the Yagy, farsighted, always young, carrier of offerings to the demigods, the fire of the Yagy is produced-ignited by rubbing woods.
कविमग्निमुप स्तुहि सत्यधर्माणमध्वरे। देवममीवचातनम्॥
हे ऋत्विजो! लोक हितकारी यज्ञ में रोगों को नष्ट करने वाले, ज्ञानवान अग्निदेव की स्तुति आप सब विशेष रूप से करें।[ऋग्वेद 1.12.7]
मेधावी, सत्यनिष्ट, शत्रु नाशक अग्नि की अनुष्ठान-कर्म में पास से वंदना करो।
Hey the organisers of the Yagy! Let us specifically pray to enlightened Agni Dev, who destroys the diseases-sins in the Yagy fire for the sake of the welfare of masses-public.
यस्त्वामग्ने हविष्पतिर्दूतं देव सपर्यति। तस्य स्म प्राविता भव॥
देवगणों तक हविष्यान्न पहुँचाने वाले, हे अग्निदेव! जो याजक, आप (देवदूत) की उत्तम विधि से अर्चना करते हों, आप उनकी भली भाँति रक्षा करें।[ऋग्वेद 1.12.8]
हे अग्ने! तुम देवदूत की जो यजमान सेवा करता है, उसकी तुम सुरक्षा करने वाले हो।
Hey carrier of offerings to the demigods-deities, Agni Dev! The organisers of the Yagy (with the desires) who pray to you with excellent procedures (Karm Kand), you protect them thoroughly.
यो अग्निं देववीतये हविष्माँ आविवासति। तस्मै पावक मृळय॥
हे शोधक अग्निदेव! देवों के लिए हवि प्रदान करने वाले जो यजमान आपकी प्रार्थना करते हैं, आप उन्हें सुखी बनायें।[ऋग्वेद 1.12.9]
दे पावक! जो यजमान हवि देने के लिए अग्नि के निकट जाकर प्रार्थना करे, उसका कल्याण करो।
Hey Agni Dev! Please make the organisers of the Yagy-blissful-happy, who make offerings for the demigods-deities.
स नः पावक दीदिवोऽग्ने देवाँ इहा वह। उप यज्ञं हविश्च नः॥
हे पवित्र दीप्तिमान अग्निदेव! आप देवों को हमारे यज्ञ में हवि ग्रहण करने के निमित्त ले आएँ।[ऋग्वेद 1.12.10]
हे पवित्र अग्नि! को प्राप्त हुए हमारे यज्ञ में हवि ग्रहण करने के लिए देवताओं को यहाँ ले लाओ।
Hey pious-virtuous bright Agni Dev! Please bring the demigods-deities to accept offerings in our Yagy.
स न स्तवान आ भर गायत्रेण नवीयसा। रयिं वीरवतीमिषम्॥
हे अग्निदेव! नवीनतम गायत्री छन्द वाले सूक्त से स्तुति किये जाते हुये आप हमारे लिये पुत्रादि, ऐश्वर्य और बलयुक्त अन्नों को भरपूर प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.12.11]
हे अग्ने! नवीन श्लोकों से वंदित किये जाते हुए तुम हमको धन पुत्र और अन्न के प्रदाता बनो।
Hey Agni Dev! Being prayed with the new Sukt (prayers) please grant us sons, amenities and sufficient food grains, which have ingredients to grant strength-nourishment.
अग्ने शुक्रेण शोचिषा विश्वाभिर्देवहूतिभिः। इमं स्तोमं जुषस्व नः॥
हे अग्निदेव! अपनी कान्तिमान दीप्तियों से देवों को बुलाने के निमित्त हमारी स्तुतियों को स्वीकार करें।[ऋग्वेद 1.12.12]
हे अग्ने! तुम कांतिमान और देवों को पुकारने में समर्थवान हो। हमारी इस स्तुति-प्रार्थना को स्वीकार करो।
Hey Agni Dev! Please accept our request-prayers to invite demigods-deities with the help of your bright-glittering flames.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मंडल सूक्त 13 :: ऋषि :- मेधातिथि काण्व, देवता :- (1). इध्म अथवा समिद्ध अग्नि, (2). तनूनपात्, (3). नराशंस, (4). इळा, (5). बर्हि, (6). दिव्यद्वार्, (7). उषासानक्ता, (8). दिव्यहोता प्रचेतस, (9). तीन देवियाँ :- सरस्वती, इळा, भारती, (10). त्वष्टा, (11). वनस्पति, (12). स्वाहाकृति; छन्द :- गायत्री।
सुसमिद्धो न आ वह देवाँ अग्ने हविष्मते। होतः पावक यक्षि च॥
पवित्रकर्ता, यज्ञ सम्पादन कर्ता, हे अग्निदेव! आप अच्छी तरह प्रज्वलित होकर यजमान के कल्याण के लिये देवताओं का आवाहन करें और उनको लक्ष्य करके यज्ञ सम्पन्न करें अर्थात देवों के पोषण के लिये हविष्यान्न ग्रहण करें।[ऋग्वेद 1.13.1]
हे समिधा वाले अग्निदेव! हमारे यजमान के लिए देवों को अनुष्ठान में लाकर उनका अर्चन कराओ।
Hey purifying, Yagy conductor Agni Dev! Please ignite thoroughly for the holding of Yagy, invite the demigods-deities, conduct the Yagy directed towards them and accept the offerings for them.
मधुमन्तं तनूनपाद् यज्ञं देवेषु नः कवे। अद्या कृणुहि वीतये॥
उर्ध्वगामी, मेधावी हे अग्निदेव! हमारी रक्षा के लिये प्राणवर्धक-मधुर हवियों को देवों के निमित्त प्राप्त करें और उन तक पहुँचायेँ।[ऋग्वेद 1.13.2]
हे मेधावी अग्ने! तुम शरीर की सुरक्षा करने वाले हो, हमारे अनुष्ठान को देवों के उपभोग हेतु ग्रहण कराओ।
Hey upward moving Agni Dev! Please accept & forward the life sustaining, relishing offerings to the demigods-deities for our protection.
नराशंसमिह प्रियमस्मिन्यज्ञ उप ह्वये। मधुजिह्वं हविष्कृतम्॥
हम इस यज्ञ में देवताओं के प्रिय और आह्लादक (मदुजिह्ल) अग्निदेव का आवाहन करते हैं। वह हमारी हवियों को देवताओं तक पहुँचाने वाले हैं, अस्तु, वे स्तुत्य हैं।[ऋग्वेद 1.13.3]
मनुष्यों द्वारा प्रशंसित प्रिय व अग्नि देव को इस अनुष्ठान में पुकारता हूँ। वह मधुजिह्वा और हवि के सम्पादक हैं।
We invite Agni Dev, who is favourite of demigods-deities and relishes the offerings. He forward the offerings to them and hence deserve worship-prayers.
अग्ने सुखतमे रथे देवाँ ईळित आ वह। असि होता मनुर्हितः॥
मानवमात्र के हितैषी, हे अग्निदेव! आप अपने श्रेष्ठ-सुखदायी रथ से देवताओं को लेकर (यज्ञस्थल पर) पधारें। हम आपकी वन्दना करते है।[ऋग्वेद 1.13.4]
हे हमारे द्वारा पूजनीय अग्निदेव! तुम अत्यन्त सुखकारी रथ में देवताओं को यहाँ पर ले आओ।
Hey well wisher of the humanity, Agni Dev! We request you to please bring the demigods-deities in your luxurious charoite to the Yagy site.
स्तृणीत बर्हिरानुषग्घृतपृष्ठं मनीषिणः। यत्रामृतस्य चक्षणम्॥
हे मेधावी पुरुषो! आप इस यज्ञ में कुशा के आसनों को परस्पर मिलाकर इस तरह से बिछायें कि उस पर घृतपात्र को भली प्रकार से रखा जा सके, जिससे अमृत तुल्य घृत का सम्यक् दर्शन हो सके।[ऋग्वेद 1.13.5]
इस अनुष्ठान में मानव द्वारा होता नियुक्त किये गये हो। हे विद्वानों! आपस में मिली हुई कुशा को घृतपात्र रखने के लिए बताओ।
Hey intellectuals! Please place the Kush cushions joined together, in such a way that the Ghee-which is like the elixir-nectar, is visual.
वि श्रयन्तामृतावृधो द्वारो देवीरसश्चतः। अद्या नूनं च यष्टवे॥
आज यज्ञ करने के लिये निश्चित रूप से ऋत (यज्ञीय वातावरण) की वृद्धि करने वाले अविनाशी दिव्यद्वार खुल जाएँ।[ऋग्वेद 1.13.6]
आप यज्ञ सम्पादन के लिए यज्ञशाला के प्रकाशित द्वार को खोलो। वे कपाट सब आपस में मिले हुए न रहें।
Let the divine imperishable gates be opened for holding the Yagy to enhance its impact.
नक्तोषासा सुपेशसास्मिन्यज्ञ उप ह्वये। इदं नो बर्हिरासदे॥
सुन्दर रूपवती रात्रि और उषा का हम इस यज्ञ में आवाहन करते हैं। हमारी ओर से आसन रूप में यह बर्हि (कुश) प्रस्तुत है।[ऋग्वेद 1.13.7]
सुन्दर लगने वाली रात्रि को और दिन को कुशासन पर विराजने हेतु पुकारता हूँ।
We invite the night & day break to participate in this Yagy and offer this cushion to them.
ता सुजिह्वा उप ह्वये होतारा दैव्या कवी। यज्ञं नो यक्षतामिमम्॥
उन उत्तम वचन वाले और मेधावी दोनों (अग्नियों) दिव्य होताओं को यज्ञ में यजन के निमित्त हम बुलाते हैं।[ऋग्वेद 1.13.8]
उन सुन्दर जिह्वा बाले, मेधावी, दोनों अद्भुत होताओं अग्नि व सूर्य को यज्ञ में यजन-कर्म हेतु पुकारता हूँ।
We invite the two Agni who are intellectuals, speak excellent words as divine performers of Yagy.
इळा सरस्वती मही तिस्रो देवीर्मयोभुवः। बर्हिः सीदन्त्वस्रिधः॥
इळा, सरस्वती और मही ये तीनों देवियाँ सुखकारी और क्षयरहित हैं! ये तीनों बिछे हुए दीप्तिमान कुश के आसनों पर विराजमान हों।[ऋग्वेद 1.13.9]
इला सरस्वती और मही, ये तीनों देवियाँ सुख प्रदान करने वाली हैं। वे इस कुश आसन को ग्रहण करें।
The three goddesses :- Ila, Saraswati & Mahi who grants comforts and are imperishable should occupy the glittering-divine cushions-seats.
इह त्वष्टारमग्रियं विश्वरूपमुप ह्वये। अस्माकमस्तु केवलः॥
प्रथम पूज्य, विविध रूप वाले त्वष्टादेव का इस यज्ञ में आवाहन करते हैं, वे देव केवल हमारे ही हों।[ऋग्वेद 1.13.10]
मैं अग्रगण्य, अनेक रूप वाले, त्वष्टा (अग्नि) का अनुष्ठान में आह्वान करता हूँ, वे हमारे ही रहें।
We invite Twasta-Agni having various forms, who is honoured first, in this Yagy to become our own.
अव सृजा वनस्पते देव देवेभ्यो हविः। प्र दातुरस्तु चेतनम्॥
हे वनस्पतिदेव! आप देवों के लिये नित्य हविष्यान्न प्रदान करने वाले दाता को प्राणरूप उत्साह प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.13.11]
हे वनस्पति देव! यजमान को ज्ञान देने के लिए देवताओं के लिए हवि समर्पण करो।
Hey Vanaspati Dev (deity of vegetation)! Please give grains for offerings to the holder of the Yagy, to be used as offerings for the demigods-deities.
स्वाहा यज्ञं कृणोतनेन्द्राय यज्वनो गृहे। तत्र देवाँ उप ह्वये॥
हे अध्वर्यु! आप याजकों के घर में इन्द्रदेव की तुष्टी के लिये आहुतियाँ समर्पित करें। हम होता वहाँ देवों को आमन्त्रित करते हैं।[ऋग्वेद 1.13.12]
हे ऋत्विजों! यजमान के घर में "स्वाहा' करते हुए इन्द्र के लिए यज्ञ करो। उसमें हम देवताओं का आह्वान करते हैं।
अध्वर्यु :: यजुर्वेद के अनुरूप कर्म करनेवाला, यज्ञ का संपादन करनेवाला; one who holds-conducts Yagy in accordance with Yajur Ved.
Hey performer of Yagy! Please give offerings to those conducting the Yagy to serve them to Indr Dev. We-the people conducting Yagy invite the demigods-deities.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मंडल सूक्त 14 :: ऋषि :- मेधातिथि कण्व, देवता :- विश्वेदेवता, छन्द :- गायत्री।
ऐभिरग्ने दुवो गिरो विश्वेभिः सोमपीतये। देवेभिर्याहि यक्षि च॥
हे अग्निदेव! आप समस्त देवों के साथ इस यज्ञ में सोम पीने के लिये आयें एवं हमारी परिचर्या और स्तुतियों को ग्रहण करके यज्ञ कार्य सम्पन्न करें।[ऋग्वेद 1.14.1]
हे अग्नि देव! इन देवताओं को साथ लेकर सोम पीने के लिए पधारो। हमारी अर्चना और प्रार्थना तुम्हें ग्रहण हों। हमारे यज्ञ में देवताओं की उपासना करो।
परिचर्या :: उत्तर रक्षा, बाद की देखभाल, अनुरक्षण; after-care.
Hey Agni Dev! Please visit our Yagy along with the demigods-deities accept Somras, prayers and our services.
आ त्वा कण्वा अहूषत गृणन्ति विप्र ते धियः। देवेभिरग्न आ गहि॥
हे मेधावी अग्निदेव! कण्व ऋषि आपको बुला रहे हैं, वे आपके कार्यो की प्रशंसा करते हैं। अतः आप देवों के साथ यहाँ पधारे।[ऋग्वेद 1.14.2]
हे अग्नि देवता आपको कण्व-वंश पुकारते हैं। वे तुम्हारे गुण गाते हैं। तुम देवताओं को साथ लेकर सोमपान हेतु पधारो!
Hey brilliant (sagacious, intelligent) Agni Dev! Kanv Rishi is calling-inviting you. He appreciates your deeds. So, please come here along with the demigods-deities.
इन्द्रवायू बृहस्पतिं मित्राग्निं पूषणं भगम्। आदित्यान्मारुतं गणम्॥
यज्ञशाला में हम इन्द्र, वायु, बृहस्पति, मित्र, अग्नि, पूषा, भग, आदित्यगण और मरुद्गण आदि देवों का आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 1.14.3]
वायु, बृहस्पति, सखा, अग्नि, पूषा, भग, आदित्य और मरुद्गणों का आह्वान करो।
We evocate-invite the demigods-deities Indr, Vayu-Pawan, Mitr, Agni, Pusha, Bhag, Adity Gan, Marud Gan etc.
प्र वो भ्रियन्त इन्दवो मत्सरा मादयिष्णवः। द्रप्सा मध्वश्चमूषदः॥
कूट-पीस कर तैयार किया हुआ, आनन्द और हर्ष बढा़ने वाला यह मधुर सोमरस अग्निदेव के लिये चमसादि पात्रों में भरा हुआ है।[ऋग्वेद 1.14.4]
तृप्त करने वाले प्रसन्नता के पात्रों में ढके बिंदु-रूप सोम यहाँ उपस्थित हैं।
The Somras which boosts pleasure-happiness, has been processed-prepared after smashing-grinding for Agni Dev, has been kept in leather & other pots.
ईळते त्वामवस्यवः कण्वासो वृक्तबर्हिषः। हविष्मन्तो अरंकृतः॥
कण्व ऋषि के वंशज अपनी सुरक्षा की कामना से, कुश आसन बिछाकर हविष्यान्न व अलंकारों से युक्त होकर अग्निदेव की स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 1.14.5]
कण्व-वंशीय तुमसे रक्षा याचना करते हुए, कुश बिछाकर हव्यादि सामग्री से युक्त हुए तुम्हारी वन्दना करते हैं।
Descendants of Kanv Rishi pray to Agni Dev for their safety by laying-spreading cushion for him, to offer him various eatables & Somras, having decorated themselves with ornaments-jewels.
घृतपृष्ठा मनोयुजो ये त्वा वहन्ति वह्नयः। आ देवान्सोमपीतये॥
अतिदीप्तिमान पृष्ठभाग वाले, मन के संकल्प मात्र से ही रथ में नियोजित हो जाने वाले अश्वों (से नियोजित रथ) द्वारा आप सोमपान के निमित्त देवों को ले आएँ।[ऋग्वेद 1.14.6]
तुम्हारी इच्छा मात्र से रथ में जुड़ने वाले अश्व तुम्हें ले जाते हैं। ऐसे तुम सोमपान के लिए यहाँ पधारो।
Please bring the demigods-deities in the chariots with highly shinning front, the horses of which can be controlled-deployed just by mental actions-commands.
तान्यजत्राँ ऋतावृधोऽग्ने पत्नीवतस्कृधि। मध्वः सुजिह्व पायय॥
हे अग्निदेव! आप यज्ञ की समृद्धी एंव शोभा बढा़ने वाले पूजनीय इन्द्रादि देव को सपत्नीक इस यज्ञ में बुलायें तथा उन्हें मधुर सोमरस का पान करायें।[ऋग्वेद 1.14.7]
हे अग्ने! उन पूज्य तथा अनुष्ठान की वृद्धि करके देवों को भार्या युक्त मधुर सोम रस का पान कराओ।
Hey Agni Dev! Please invite the demigods-deities on our behalf to enhance-boost the riches and glory of this Yagy, along with the revered Indr Dev and his wife (Shuchi-Indrani) to drink the tasty Somras.
ये यजत्रा य ईड्यास्ते ते पिबन्तु जिह्वया। मधोरग्ने वषट्कृति॥
हे अग्निदेव! यजन किये जाने योग्य और स्तुति किये जाने योग्य जो देवगण हैं, वे यज्ञ में आपकी जिह्वा से आनन्द पूर्वक मधुर सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 1.14.8]
हे अग्ने! पूजनीय और पूजा योग्य देवगण तुम्हारी जिह्वा के माध्यम से मधुर सोम रस का पान करें।
Hey Agni Dev! The glorious-revered demigods-deities should enjoy the tasty Somras through your tongue with pleasure.
आकीं सूर्यस्य रोचनाद्विश्वान्देवाँ उषर्बुधः। विप्रो होतेह वक्षति॥
हे मेधावी होता रूप अग्निदेव! आप प्रातः काल में जागने वाले विश्वदेवि को सूर्य रश्मियों से युक्त करके हमारे पास लाते हैं।[ऋग्वेद 1.14.9]
हे मेधावी अग्नि रूप होता! सवेरे जगाने वाले विश्वे देवों को सूर्य मण्डल से पृथक कर यहाँ पर आओ।
Hey brilliant Agni Dev! You bring the Vishw Devi associated with the rays of Sun to us.
विश्वेभिः सोम्यं मध्वग्न इन्द्रेण वायुना। पिबा मित्रस्य धामभिः॥
हे अग्निदेव! आप इन्द्र वायु मित्र आदि देवों के सम्पूर्ण तेजों के साथ मधुर सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 1.14.10]
Hey Agni Dev! Please enjoy the tasty-sweet Somras along with Indr Dev and the other demigods-deities with their powers-energies.
त्वं होता मनुर्हितोऽग्ने यज्ञेषु सीदसि। सेमं नो अध्वरं यज॥
हे मनुष्यों के हितैषी अग्निदेव! आप होता के रूप में यज्ञ में प्रतिष्ठ हों और हमारे इस हिंसा रहित यज्ञ को सम्पन्न करें।[ऋग्वेद 1.14.11]
हे अग्नि देव! हमारे द्वारा प्रतिष्ठित होता रूप तुम यज्ञ में विराजमान होते हो। अतः इस यज्ञ को सम्पन्न करो।
Hey human friendly Agni Dev! You should be associated with the Yagy as a host-organiser and carry out our Yagy in which no violence has been done.
युक्ष्वा ह्यरुषी रथे हरितो देव रोहितः। ताभिर्देवाँ इहा वह॥
हे अग्निदेव! आप रोहित नामक रथ को ले जाने में सक्षम, तेजगति वाली घोड़ियों को रथ में जोतें एवं उनके द्वारा देवताओं को इस यज्ञ में लाएँ।[ऋग्वेद 1.14.12]
हे अग्नि देव! तुम स्वर्णिम और रक्त वर्ण वाले अश्वों को अपने रथ में जोतकर देवगणों को यज्ञ में ले आओ।
Hey Agni Dev! Please deploy the female horses who are capable, fast moving in the charoite named Rohit to bring the demigods-deities in this Yagy.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मंडल सूक्त 15 :: ऋषि :- मेधातिथि कण्व, देवता :- (प्रतिदेवता ऋतु सहित) 1-5, इन्द्रदेव :- 1, 5, मरुद्गण :- 2, त्वष्टा :- 3, अग्नि :- 4, 7-10, 12, मित्रावरुण :- 6, अश्विनी कुमार :- 11, छन्द :- गायत्री।
इन्द्र सोमं पिब ऋतुना त्वा विशन्त्विन्दवः। मत्सरासस्तदोकसः॥
हे इन्द्रदेव! ऋतुओं के अनुकूल सोमरस का पान करें, ये सोमरस आपके शरीर में प्रविष्ट हो, क्योंकि आपकी तृप्ति का आश्रयभूत साधन यही सोम है।[ऋग्वेद 1.15.1]
हे इन्द्रदेव! ऋतु युक्त सोमपान करो। ये सोम तुम्हारे शरीर में प्रविष्ट होकर सन्तुष्टि के साधन बने।
Hey Indr Dev! please drink Somras according to the season. Let it become the source of contentment-satisfaction in you.
मरुतः पिबत ऋतुना पोत्राद्यज्ञं पुनीतन। यूयं हि ष्ठा सुदानवः॥
दानियाँ में श्रेष्ठ हे मरुतो! आप पोता नामक ऋत्विज् के पात्र से ऋतु के अनुकूल सोमरस का पान करें एवं हमारे इस यज्ञ को पवित्रता प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.15.2]
हे मरुद्गणों! ऋतु के युक्त सोमपात्र से सोमपान करो। तुम कल्याण दाता मेरे यज्ञ को शुद्ध करो।
Hey the excellent Marud Gan in the universe! Please consume the Somras through the pot of the host named Pota, as per the season and purify this Yagy.
अभि यज्ञं गृणीहि नो ग्नावो नेष्टः पिब ऋतुना। त्वं हि रत्नधा असि॥
हे त्वष्टा देव! आप पत्नि सहित हमारे यज्ञ की प्रशंसा करे, ऋतु के अनुकूल सोमरस का पान करें! आप निश्चय ही रत्नों को देने वाले हैं।[ऋग्वेद 1.15.3]
हे त्वष्टा देव! देव पत्नियों से युक्त हमारे अनुष्ठान की भली-भाँति प्रशंसा करो और ऋतु-युक्त सोमपान करो। तुम अवश्य ही रत्नों को देने वाले हो।
Hey Twasta Dev! Please appreciate-join our Yagy-effort, drink Somras as per the season. You are sure to give us jewels.
अग्ने देवाँ इहा वह सादया योनिषु त्रिषु। परि भूष पिब ऋतुना॥
हे अग्निदेव! आप देवों को यहाँ बुलाकर उन्हें यज्ञ के तीनों सवनों (प्रातः, माध्यन्दिन एवं साँय) में आसीन करें। उन्हें विभूषित करके ऋतु के अनुकूल सोम का पान करें।[ऋग्वेद 1.15.4]
हे अग्नि देव! देवताओं को यहाँ लाकर दोनों यज्ञ स्थानों में बैठाओ, उनको विभूषित करते हुए सोमपान करो।
Hey Agni Dev! Please bring the demigods-deities to join the Yagy which has to continue during the three parts of the day :- morning, noon & the evening. Let them be honoured and offered Somras as per the season.
ब्राह्मणादिन्द्र राधसः पिबा सोममृतूँरनु। तवेद्धि सख्यमस्तृतम्॥
हे इन्द्रदेव! आप ब्रह्म को जानने वाले साधक के पात्र से सोमरस का पान करे, क्योंकि उनके साथ आपकी अविच्छिन्न मित्रता है।[ऋग्वेद 1.15.5]
हे इन्द्र! ब्राह्मणाच्छसि पात्र में ऋतुओं के अनुसार सोमरस ग्रहण करो। क्योंकि तुम्हारी मित्रता कभी नष्ट नहीं होती।
Hey Indr Dev! Please consume Somras through the pot of the devotee-practitioner who knows the Brahm since you are inseparable from him.
युवं दक्षं धृतव्रत मित्रावरुण दूळभम्। ऋतुना यज्ञमाशाथे॥
हे अटल व्रत वाले मित्रावरुण! आप दोनों ऋतु के अनुसार बल प्रदान करने वाले हैं। आप कठिनाई से सिद्ध होने वाले इस यज्ञ को सम्पन्न करते हैं।[ऋग्वेद 1.15.6]
हे दृढ़ व्रत वाले मित्रावरुण! दोनों कार्यों में व्याप्त हुए तुम ऋतु के युक्त हमारे अनुष्ठान में आते हो।
Hey Mitra Varun with firm determination! You grant strength in both the seasons. Its you who makes this Yagy successful, which is difficult to conduct-perform.
द्रविणोदा द्रविणसो ग्रावहस्तासो अध्वरे। यज्ञेषु देवमीळते॥
धन की कामना वाले याजक सोमरस तैयार करने के निमित्त हाथ में पत्थर धारण करके पवित्र यज्ञ में धन प्रदायक अग्निदेव की स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 1.15.7]
धन की इच्छा वाले यजमान सोम तैयार करने के लिए पाषाण धारण कर धन दाता अग्नि की उपासना करते हैं।
The organisers of the Yagy keep stone in their hands to prepare Somras & pray to Agni Dev, who provides money-riches for the pious Yagy.
द्रविणोदा ददातु नो वसूनि यानि शृण्विरे। देवेषु ता वनामहे॥
हे धन प्रदायक अग्निदेव! हमें वे सभी धन प्रदान करें, जिनके विषय में हमने श्रवण किया है। वे समस्त धन हम देवगणों को ही अर्पित करते हैं।[ऋग्वेद 1.15.8]
(देव शक्तियों से प्राप्त विभूतियों का उपयोग देवकार्यों के लिये ही करने का भाव व्यक्त किया गया है।)
हे द्रविणोदा अग्ने! हमको सभी सुने गये धनों को दो, हम उन धनों को देवार्पण करते हैं।
Hey money-riches provider Agni Dev! Please give us all those riches which have been heard by us, to offer them (spend for the sake of demigods-deities) to demigods-deities in their honour.
द्रविणोदाः पिपीषति जुहोत प्र च तिष्ठत। नेष्ट्रादृतुभिरिष्यत॥
हे धन प्रदायक अग्निदेव! नेष्टापात्र (नेष्टधिष्ण्या स्थान-यज्ञ कुण्ड) से ऋतु के अनुसार सोमरस पीने की इच्छा करते हैं। अतः हे याजक गण! आप वहाँ जाकर यज्ञ करें और पुन: अपने निवास स्थान के लिये प्रस्थान करें।[ऋग्वेद 1.15.9]
वह धन दाता अग्नि सोमपान के लिए इच्छुक हैं। उन्हें आहुति प्रदान करो और अपने स्थान को प्राप्त हो ओ। शीघ्रता करो। ऋतुओं सहित नेष्टा पात्र से सोमरस पिलाओ।
Hey riches giver Agni Dev! You wish to drink Somras as per the season with the pot called Neshta. Hey organisers of the Yagy! Please proceed with the conduction of the Yagy and move to your houses.
यत्त्वा तुरीयमृतुभिर्द्रविणोदो यजामहे। अध स्मा नो ददिर्भव॥
हे धन प्रदायक अग्निदेव! ऋतुओं के अनुगत होकर हम आपके निमित्त सोम के चौथे भाग को अर्पित करते हैं, इसलिये आप हमारे लिये धन प्रदान करने वाले हो।[ऋग्वेद 1.15.10]
है धनदाता! ऋतुओं युक्त आपको चतुर्थ बार सोम अर्पण करते हैं। तुम हमारे लिए धन प्रदान करने वाले बनो।
Hey riches granting Agni Dev! We offer you Somras as per the season, the fourth time, that's why you grant us riches-money.
अश्विना पिबतं मधु दीद्यग्नी शुचिव्रता। ऋतुना यज्ञवाहसा॥
दिप्तिमान, शुद्ध कर्म करने वाले, ऋतु के अनुसार यज्ञवाहक हे अश्विनी कुमारो! आप इस मधुर सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 1.15.11]
अग्नि में प्रकाशमान, नियमों में स्थिर, ऋतु के संग, अनुष्ठान के निर्वाहक अश्विनी कुमारों! इस मधुर सोम पोषण तथा अनुष्ठान का निर्वाह करने वाले हो।
Hey aura bearing, performer of pious deeds, conductor of Yagy as per the season, Ashwani Kumars! Please drink this Somras.
गार्हपत्येन सन्त्य ऋतुना यज्ञनीरसि। देवान्देवयते यज॥
हे इष्टप्रद अग्निदेव! आप गार्हपत्य के नियमन में ऋतुओं के अनुगत यज्ञ का निर्वाह करने वाले हैं, अतः देवत्व प्राप्ति की कामना वाले याजकों के निमित्त देवों का यजन करें।[ऋग्वेद 1.15.12]
देवताओं की अभिलाषा करने वाले यजमान के लिए देवार्चन करो।
Hey accomplishment granting Agni Dev! You follow the rules as per the domestic norms-rules for conducting the Yagy. Hence pray to those demigods-deities who grant divinity to the hosts.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मंडल सूक्त 16 :: ऋषि :- मेधातिथि कण्व, देवता :- इन्द्र, छन्द :- गायत्री।
आ त्वा वहन्तु हरयो वृषणं सोमपीतये। इन्द्र त्वा सूरचक्षसः॥
हे बलवान इन्द्रदेव! आपके तेजस्वी घोड़े सोमरस पीने के लिये आपको यज्ञस्थल पर लाएँ तथा सूर्य के समान प्रकाशयुक्त ऋत्विज् मन्त्रों द्वारा आपकी स्तुति करें।[ऋग्वेद 1.16.1]
हे अभिष्टक वर्षक इन्द्रदेव! तुम अपने प्रकाशमान रूप वाले अश्वों को सोम पान के लिए यहाँ पर पधारो।
Hey desires granting-fulfilling Indr Dev! Let your energetic horses bring you at the site of the Yagy, to drink Somras and those (hosts) performing Yagy, bearing the aura like the Sun worship you with the most powerful Mantr.
इमा धाना घृतस्नुवो हरी इहोप वक्षतः। इन्द्रं सुखतमे रथे॥
अत्यन्त सुखकारी रथ में नियोजित इन्द्रदेव के दोनों हरि (घोड़े) उन्हें (इन्द्रदेव को) घृत से स्निग्ध हवि रूप धाना (भुने हुये जौ) ग्रहण करने के लिये यहाँ ले आएँ।[ऋग्वेद 1.16.2]
इन्द्रदेव के दोनों अश्व उन्हें सुख दायक रूप में विराजम कर घृत से स्निग्ध धान्य के पास ले आयें।
The two horses driving the comfortable charoite of Indr Dev, should bring him to accept the barley roasted in Ghee.
इन्द्रं प्रातर्हवामह इन्द्रं प्रयत्यध्वरे। इन्द्रं सोमस्य पीतये॥
हम प्रातःकाल यज्ञ प्रारम्भ करते समय मध्याह्नकालीन सोमयाग प्रारम्भ होने पर तथा सांयकाल यज्ञ की समाप्ति पर भी सोमरस पीने के निमित्त इन्द्रदेव का आवाहन करते है।[ऋग्वेद 1.16.3]
हम उषाकाल में इन्द्र देव का आह्वान करते हैं। अनुष्ठान सम्पादन समय में सोमपान करने के लिए इन्द्र देवता का आह्वान करते हैं।
We invite Indr Dev to participate in the Yagy, drink Somras at the beginning of day prior to beginning of the Yagy, noon and the evening at the close of the Yagy.
उप नः सुतमा गहि हरिभिरिन्द्र केशिभिः। सुते हि त्वा हवामहे॥
हे इन्द्रदेव! आप अपने केसर युक्त अश्वों से सोम के अभीष्ट स्थान के पास आएँ। सोम के अभिषुत होने पर हम आपका आवाहन करते है।[ऋग्वेद 1.16.4]
हे इन्द्र! अपने लम्बे केश वाले अश्वों के साथ यहाँ पर पधारो। सोमरस छानंकर तैयार हो जाने पर हम तुम्हारा आह्वान करते हैं।
Hey Indr Dev we invite you to the Yagy to begin with the rites of the Yagy along with your horses who have long hairs & smell of saffron.
सेमं न स्तोममा गह्युपेदं सवनं सुतम्। गौरो न तृषितः पिब॥
हे इन्द्रदेव! हमारे स्तोत्रों का श्रवण कर आप यहाँ आएँ। प्यासे गौर मृग के सदृश व्याकुल मन से सोम के अभीष्ट स्थान के समीप आकर सोम का पान करें।[ऋग्वेद 1.16.5]
व्याकुल :: बेचैन, परेशान, व्यस्त; distraught, disturbed.
हे इन्द्र! सोम रस ग्रहण करने के लिए हमारे श्लोकों से यहाँ पर आकर प्यासे हिरन के समान सोमपान करो।
Hey Indr Dev! Please come here-at the destination of the Yagy & Somras, hearing-listening to our enchantments of verses (Shlok, Mantr, Sukt, Strotr) like a thirsty deer, to sooth your disturbed innerself.
इमे सोमास इन्दवः सुतासो अधि बर्हिषि। ताँ इन्द्र सहसे पिब॥
हे इन्द्रदेव! यह दीप्तिमान सोम निष्पादित होकर कुशाआसन पर सुशोभित है। शक्ति वर्धन के निमित्त आप इसका पान करें।[ऋग्वेद 1.16.6]
है इन्द्रदेव! यह परम बलवाले, निष्पन्न सोम कुशासन पर रखे हैं, तुम उन्हें शक्तिवर्द्धन के लिए पान करो।
Hey Indr Dev! The aura bearing Somras has been placed over the cushion made of Kush grass. Please drink it to boost your energy-strength.
अयं ते स्तोमो अग्रियो हृदिस्पृगस्तु शंतमः। अथा सोमं सुतं पिब॥
हे इन्द्रदेव! यह स्तोत्र श्रेष्ठ, मर्मस्पर्शी और अत्यन्य सुखकारी है। अब आप इसे सुनकर अभिषुत सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 1.16.7]
हे इन्द्रदेव! यह महान श्लोक मर्मस्पर्शी और सुख का कारणभूत हैं। तुम इसे सुनकर तुरन्त ही इस निष्पन्न सोम का पान करो।
Hey Indr Dev! This piece of verse (stanza, Sukt, Strotr)) is excellent touches the heart and grant bliss. Please have Somras listening to it.
विश्वमित्सवनं सुतमिन्द्रो मदाय गच्छति। वृत्रहा सोमपीतये॥
सोम के सभी अभीष्ट स्थानों की ओर इन्द्रदेव अवश्य जाते हैं। दुष्टों का हनन करने वाले इन्द्रदेव सोमरस पीकर अपना हर्ष बढाते हैं।[ऋग्वेद 1.16.8]
जिस स्थान पर सोम रस छाना जाता है, वहीं पर सोमपान के लिए उससे उत्पन्न प्रसन्नता प्राप्ति के लिए राक्षसों को मारने वाले इन्द्र अवश्य ही पहुँचते हैं।
Indr Dev who is the killer of the demons-Rakshas (wicked, sinners), reaches the site of the Somras, drink it and gather bliss.
सेमं नः काममा पृण गोभिरश्वैः शतक्रतो। स्तवाम त्वा स्वाध्यः॥
हे शतकर्मा इन्द्रदेव! आप हमारी गौओं और अश्वों सम्बन्धी कामनायें पूर्ण करें। हम मनोयोग पूर्वक आपकी स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 1.16.9]
हे महाशक्तिशाली इन्द्र! गाय और अश्वादि-युक्त धनों वाली हमारी सभी इच्छाएँ पूर्ण करें। हम ध्यान पूर्वक तुम्हारी वन्दना करते हैं।
Hey 100 Yagy performing Indr Dev! Please accomplish our desire for cows & horses. We are praying with full concentration-attention of mind.
Deposits of coal & petroleum are present over the earth even since, but our ancestors never touched them, since they caused pollution. Sucking of petroleum disturbs the inner balance of earth and causes earthquakes. Cows & horses were deployed in numerous ways for human welfare. These practices, skills have almost have forgotten after Maha Bharat.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मंडल सूक्त 17 :: ऋषि :- मेधातिथि कण्व, देवता :- इन्द्रा-वरुण, छन्द :- गायत्री।
इन्द्रावरुणयोरहं सम्राजोरव आ वृणे। ता नो मृळात ईदृशे॥
हम इन्द्र और वरुण दोनों प्रतापी देवों से अपनी सुरक्षा की कामना करते हैं। वे दोनों हम पर इस प्रकार अनुकम्पा करें, कि हम सुखी रहें।[ऋग्वेद 1.17.1]
मैं सम्राट इन्द्रदेव और वरुण से चाहता हूँ कि ये दोनों हम पर कृपा दृष्टि रखें।
We expect-desire both the mighty Indr Dev & Varun Dev, to protect us in such a way that we remain happy-comfortable.
गन्तारा हि स्थोऽवसे हवं विप्रस्य मावतः। धर्तारा चर्षणीनाम्॥
हे इन्द्रदेव और वरुणदेवो! आप दोनों मनुष्यों के सम्राट, धारक एवं पोषक हैं। हम जैसे ब्राह्मणों के आवाहन पर सुरक्षा ले लिये आप निश्चय ही आने को उद्यत रहते हैं।[ऋग्वेद 1.17.2]
हे मनुष्यों के स्वामी! हम ब्राह्मणों के पुकारने पर सुरक्षा के लिए अवश्य पधारो!
Hey Indr Dev & Varun Dev! Both of you are the emperors, sustain and nurturer of the humans. You are always willing-ready to help-protect the Brahmns.
अनुकामं तर्पयेथामिन्द्रावरुण राय आ। ता वां नेदिष्ठमीमहे॥
हे इन्द्रदेव और वरुणदेवो! हमारी कामनाओं के अनुरूप धन देकर हमें संतुष्ट करें। आप दोनों के समीप पहुचँकर हम प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 1.17.3]
हे इन्द्रदेव व वरुण। हमको अभिष्ट धन प्रदान करके संतुष्ट करें। हम तुम्हारी निकटता चाहते हैं।
Hey Indr Dev & Varun Dev! Please grant riches as per our desires to satisfy us. We pray to by approaching you.
The requirements of the Brahmns are minimum. They are content with whatever is available to them. But with changing times, everything is changing.
युवाकु हि शचीनां युवाकु सुमतीनाम्। भूयाम वाजदाव्नाम्॥
हमारे कर्म संगठित हो, हमारी सद्बुद्धि संगठित हो, हम अग्रगण्य होकर दान करने वाले बनें।[ऋग्वेद 1.17.4]
शक्ति तथा सुबुद्धि प्राप्ति की कामना से हम तुम्हारी अभिलाषा करते हैं। हम अन्न-दान करने वालों में अग्रणी रहें।
Our efforts and intelligence should function unitedly and we should come forward to donate.
The Brahmn accept money, grants, donations and distribute them to the needy after keeping a fraction of it for their family.
इन्द्रः सहस्रदाव्नां वरुणः शंस्यानाम्। क्रतुर्भवत्युक्थ्यः॥
इन्द्रदेव सहस्त्रों दाताओं में सर्वश्रेष्ठ हैं और वरुणदेव सहस्त्रों प्रशंसनीय देवों में सर्वश्रेष्ठ हैं।[ऋग्वेद 1.17.5]
सहस्त्रों धन दाताओं में इन्द्र ही उत्तम हैं। पूजा को स्वीकार करने वालों में वरुण उत्तम हैं।
Indr Dev is excellent amongest the donors and Varun Dev is excellent amongest the demigods-deities who deserve appreciation.
तयोरिदवसा वयं सनेम नि च धीमहि। स्यादुत प्ररेचनम्॥
आपके द्वारा सुरक्षित धन को प्राप्त कर हम उसका श्रेष्ठतम उपयोग करें। वह धन हमें विपुल मात्रा में प्राप्त हो।[ऋग्वेद 1.17.6]
उनकी रक्षा से हम धन को प्राप्त कर उसका उपभोग करें। वह धन प्रचुर परिमाण से संचित हो।
We should put the protected money received from you to its best possible use. We should get such money in abundance.
इन्द्रावरुण वामहं हुवे चित्राय राधसे। अस्मान्सु जिग्युषस्कृतम्॥
हे इन्द्र-वरुण देवो! विविध प्रकार के धन की कामना से हम आपका आवाहन करते हैं। आप हमें उत्तम विजय प्राप्त कराएँ।[ऋग्वेद 1.17.7]
हे इन्द्र और वरुण। अनेक प्रकार के धनों के लिए हम तुम्हारा आह्वान करते हैं। हमको उत्तम ढंग से जय लाभ करा दो।
Hey Indr Dev & Varun Dev! We invite-invoke (pray) to you to obtain different forms money in various ways. You should grant us success-victory.
For the Brahmn generally, the riches account in the form of cows, horses & house.
इन्द्रावरुण नू नु वां सिषासन्तीषु धीष्वा। अस्मभ्यं शर्म यच्छतम्॥
हे इन्द्रा-वरुण देवो! हमारी बुद्धि सम्यक् रूप से आपकी सेवा करने की इच्छा करती है, अतः हमें शीघ्र ही निश्चय पूर्वक सुख प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.17.8]
हे इन्द्रदेव और वरुण! तुम दोनों प्रेम भाव रखते हुए हमको अपनी शरण प्रदान करो।
Hey Indr Dev & Varun Dev! We wish to serve you as per our intelligence & prudence. So, grant us comforts with dedication.
The Brahm wish to pray to the Almighty, do social welfare, learn & teach Ved, scriptures peacefully.
प्र वामश्नोतु सुष्टुतिरिन्द्रावरुण यां हुवे। यामृधाथे सधस्तुतिम्॥
हे इन्द्र-वरुण देवो! जिन उत्तम स्तुतियों के लिये हम आप दोनों का आवाहन करते हैं एवं जिन स्तुतियों को साथ-साथ प्राप्त करके आप दोनों पुष्ट होते हैं, वे स्तुतियाँ आपको प्राप्त हों।[ऋग्वेद 1.17.9]
हे इन्द्रदेव और वरुण। जो सुन्दर वन्दना तुम्हारे लिए करता हूँ और जिन वन्दना की तुम पुष्टि करते हो, उन वन्दनाओं को प्राप्त करो।
Hey Indr & Varun! We pray to you with the help of selected, excellent verses (Shlok, Mantr, Sukt, Strotr) to invite-invoke you to make you capable to protect the humans.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मंडल सूक्त 18 :: ऋषि :- मेधातिथी काण्व, देवता :- 1-3, ब्रह्मणस्पति, 4 :- इन्द्र, ब्रह्मणस्पति, सोम, 5 :- ब्रह्मणस्पति, दक्षिणा, 6-8 :- सदसस्पति, 9 :- नराशंस, छन्द :- गायत्री।
सोमानं स्वरणं कृणुहि ब्रह्मणस्पते। कक्षीवन्तं य औशिजः॥
हे सम्पूर्ण ज्ञान के अधिपति ब्रह्मणस्पति देव! सोम का सेवन करने वाले यजमान को आप उशिज् के पुत्र कक्षीवान की तरह श्रेष्ठ प्रकाश से युक्त करें।[ऋग्वेद 1.18.1]
हे ब्रह्मणस्पते! मुझ सोम निचोड़ने वाले को उशिज के पुत्र कक्षीवान के तुल्य व्याति प्रदान करो।
Hey the lord of all knowledge Brahmanspati Dev! Please grant enlightenment-brilliance to the host who drinks Som like Kakshivan-the son of Ushij.
यो रेवान्यो अमीवहा वसुवित्पुष्टिवर्धनः। स नः सिषक्तु यस्तुरः॥
ऐश्वर्यवान, रोगों का नाश करने वाले, धन प्रदाता और पुष्टि वर्धक तथा जो शीघ्र फल दायक है, वे ब्रह्मणस्पति देव हम पर कृपा करें।[ऋग्वेद 1.18.2]
धनवान, रोगनाशक, धनों के ज्ञाता, पुष्टिवर्द्धक, शीघ्र फल दायक ब्रह्मणस्पति हम पर कृपा दृष्टि करें।
Possessor of amenities, destroyer of illness-diseases, grantor of riches and nourishment, grantor of immediate reward for efforts-endeavours Brahmanspati Dev should be pleased with us.
मा नः शंसो अररुषो धूर्तिः प्रणङ्मर्त्यस्य। रक्षा णो ब्रह्मणस्पते॥
हे ब्रह्मणस्पति देव! यज्ञ न करनेवाले तथा अनिष्ट चिन्तन करने वाले दुष्ट शत्रु का हिंसक, दुष्ट प्रभाव हम पर न पड़े। आप हमारी रक्षा करें।[ऋग्वेद 1.18.3]
ईश्वर को न मानने वाले नास्तिक हमें वश में न कर सके।
Hey Brahmanspati Dev! Those who do not perform Yagy, think ill of others, violent, evil (wicked, vicious) should not affect us.
स घा वीरो न रिष्यति यमिन्द्रो ब्रह्मणस्पतिः। सोमो हिनोति मर्त्यम्॥
जिस मनुष्य को इन्द्र देव, ब्रह्मणस्पति देव और सोम देव प्रेरित करते हैं, वह वीर कभी नष्ट नही होता।[ऋग्वेद 1.18.4]
इन्द्र से संगठन की, ब्रह्मणस्पति देव से श्रेष्ठ मार्ग दर्शन की एव सोम से पोषण की प्राप्ति होती है। इनसे युक्त मनुष्य क्षीण नही होता। ये तीनों देव यज्ञ में एकत्रित होते हैं। यज्ञ से प्रेरित मनुष्य दुःखी नहीं होता वरन देवत्व प्राप्त करता है।
हम मरण धर्मा व्यक्ति हिंसित न हों, अतः हे ब्रह्मणस्पते! हमारी रक्षा कीजिये। इन्द्र, सोम और ब्रह्मणस्पति द्वारा प्रेरणा प्राप्त प्राणी कभी दुखित नहीं होता है।
The brave-warrior who is inspired by Indr Dev, Brahmanspati Dev and the Moon-Som Dev, never perish.
Presence of Indr Dev, Brahmanspati Dev and Som Dev assures that the host performing the Yagy will never have sorrow-pains and achieve Devatv-demigod hood. Indr Dev provides the ability to manage-unite, Brahmanspati gives excellent guidance and the Som Dev leads to nourishment. The trio meets in the Yagy.
त्वं तं ब्रह्मणस्पते सोम इन्द्रश्च मर्त्यम्। दक्षिणा पात्वंहसः॥
हे ब्रह्मणस्पति देव! आप सोमदेव, इन्द्रदेव और दक्षिणादेवी के साथ मिलकर यज्ञादि अनुष्ठान करने वाले मनुष्य की पापों से रक्षा करें।[ऋग्वेद 1.18.5]
हे ब्रह्मणस्पत्ते! तुम सोम, इन्द्र और दक्षिणा उस प्राणी की पापों से रक्षा करो।
Hey Brahmanspati Dev! You along with Som Dev, Indr Dev and Dakshina Devi should protect the host performing Yagy from sins.
सदसस्पतिमद्भुतं प्रियमिन्द्रस्य काम्यम्। सनिं मेधामयासिषम्॥
इन्द्र देव के प्रिय मित्र, अभीष्ट पदार्थों को देने में समर्थ, लोकों का मर्म समझने में सक्षम सद्सस्पति देव (सत्प्रवृत्तियों के स्वामी) से हम अद्भुत मेधा प्राप्त करना चाहते है।[ऋग्वेद 1.18.6]
दिव्य रूप वाले इन्द्रदेव के प्रिय तथा पोषक अग्नि से धन और सुमति को विनती करता हूँ।
We should to gain amazing (wonderful, marvellous) brilliance (merit, intellect, mental vigour) from Sadspati Dev, who is capable of granting all material goods, understands the gist of the universe-the three abodes (Heavens, Earth & the Nether world) & friend of Indr Dev.
यस्मादृते न सिध्यति यज्ञो विपश्चितश्चन। स धीनां योगमिन्वति॥
जिनकी कृपा के बिना ज्ञानी का भी यज्ञ पूर्ण नहीं होता, वे सदसस्पति देव हमारी बुद्धि को उत्तम प्रेरणाओं से युक्त करते हैं।[ऋग्वेद 1.18.7]
जिसकी कृपादृष्टि के बिना ज्ञानी का अनुष्ठान पूर्ण नहीं होता, वह अग्नि देव हमको उचित मार्ग दर्शन देते हैं। जिनमें सदश्यता नहीं है, ऐसे विद्वानों द्वारा यज्ञीय प्रयोजनों की पूर्ति नहीं होती।
Without the approval of whom, the Yagy of even the learned is incomplete, that Sadspati Dev should fill over intelligence with excellent inspirations.
आदृध्नोति हविष्कृतिं प्राञ्चं कृणोत्यध्वरम्। होत्रा देवेषु गच्छति॥
वे सदसस्पतिदेव हविष्यान्न तैयार करने वाले साधकों तथा यज्ञ को प्रवृद्ध करते हैं और वे ही हमारी स्तुतियों को देवों तक पहुँचाते हैं।[ऋग्वेद 1.18.8]
अग्निदेव ही प्राप्त हवियों को समृद्ध कर यज्ञ की वृद्धि करते हैं। यजमान की प्रार्थनाएँ देवताओं को प्राप्त होती हैं।
Sadspati Dev inspires the devotees, who prepare offerings (food mixtures) for the Yagy and take their prayers to the demigods-deities.
नराशंसं सुधृष्टममपश्यं सप्रथस्तमम्। दिवो न सद्ममखसम्॥
द्युलोक से सदृश अति दीप्तिमान्, तेजवान, यशस्वी और मनुष्यों द्वारा प्रशंसित वे सदसस्पति देव को हमने देखा है।[ऋग्वेद 1.18.9]
प्रतापी, विख्यात तथा यशस्वी मनुष्यों द्वारा वन्दना किये और पूजनीय अग्नि को मैंने देखा है।
We have witnessed Sadspati Dev who possess aura, tremendous energy and appreciated-honoured by the humans.
ऋग्वेद संहिता प्रथम मंडल सूक्त 19 :: ऋषि :- मेधातिथि कण्व, देवता :- अग्नि और मरुद्गण, छन्द :- गायत्री।
प्रति त्यं चारुमध्वरं गोपीथाय प्र हूयसे। मरुद्भिरग्न आ गहि॥
हे अग्निदेव! श्रेष्ठ यज्ञों की गरिमा के संरक्षण के लिये हम आपका आवाहन करते हैं, आपको मरुतों के साथ आमंत्रित करते हैं, अतः देवताओं के इस यज्ञ में आप पधारें।[ऋग्वेद 1.19.1]
हे अग्नि! सुशोभित अनुष्ठान में सोमपान करने के लिए तुम्हारा आह्वान करता हूँ। मरुद्गणों के संग यहाँ पधारो।
Hey Agni Dev! We invite you to join this Yagy to maintain its glory & excellence, along with the Marud Gan. Kindly oblige us.
नहि देवो न मर्त्यो महस्तव क्रतुं परः। मरुद्भिरग्न आ गहि॥
हे अग्निदेव! ऐसा न कोइ देव है, न ही कोई मनुष्य, जो आपके द्वारा सम्पादित महान कर्म को कर सके। ऐसे समर्थ आप मरुद्गणों से साथ आप इस यज्ञ में पधारें।[ऋग्वेद 1.19.2]
हे अग्ने! तुम्हारे तुल्य कोई देवता या मनुष्य श्रेष्ठतम नहीं है, जो तुम्हारी शक्ति का सामना कर सके। तुम मरुतों के संग विराजो।
Hey Agni Dev! There is no human or demigod who matches-equals you and initiate-perform the great deed-Yagy. Having the capability, please join us along with the Marud Gan.
ये महो रजसो विदुर्विश्वे देवासो अद्रुहः। मरुद्भिरग्न आ गहि॥
मरुद्गण पृथ्वी पर श्रेष्ठ जल वृष्टि की विधि जानते है या क्षमता से सम्पन्न हैं। हे अग्निदेव! आप उन द्रोह रहित मरुद्गणों के साथ इस यज्ञ में पधारें।[ऋग्वेद 1.19.3]
जो विश्वेदेवा किसी से शत्रुता नहीं रखते और उत्तम अंतरिक्ष के ज्ञाता हैं। हे अग्ने! उनके सहित आओ।
Hey Agni Dev! The Marud Gan are blessed with the capacity-power & technique to shower rains over the earth. Please join us with the Marud Gan; who have no enemies.
य उग्रा अर्कमानृचुरनाधृष्टास ओजसा। मरुद्भिरग्न आ गहि॥
हे अग्निदेव! जो अति बलशाली, अजेय और अत्यन्त प्रचण्ड सूर्य के सदृश प्रकाशक हैं। आप उन मरुद्गणों के साथ यहाँ पधारें।[ऋग्वेद 1.19.4]
हे अग्ने! जिन उग्र और अजेय, बलशाली मरुतों ने वृष्टि की थी, श्लोकों से वंदना किये हुए उन मरुतों के साथ यहाँ आओ।
Hey Agni Dev! Please join us along with the Marud Gan who are strong & invincible bearing energy-aura like the Sun
ये शुभ्रा घोरवर्पसः सुक्षत्रासो रिशादसः। मरुद्भिरग्न आ गहि॥
जो शुभ्र तेजों से युक्त तीक्ष्ण, वेधक रूप वाले, श्रेष्ठ बल-सम्पन्न और शत्रु का संहार करने वाले हैं। हे अग्निदेव! आप उन मरुतों के साथ यहाँ पधारें।[ऋग्वेद 1.19.5]
हे अग्ने! जो शोभायुक्त और उग्र रूप धारण करने वाले हैं जो बलशाली और शत्रुओं के संहारकर्ता हैं, उन्हीं मरुद्गणों सहित आ जाओ।
Hey Agni Dev! Join us along with the Marud Gan who are penetrating-sharp, have power and are capable of destroying the enemy.
ये नाकस्याधि रोचने दिवि देवास आसते। मरुद्भिरग्न आ गहि॥
हे अग्निदेव! ये जो मरुद्गण सबके उपर अधिष्ठित, प्रकाशक, द्युलोक के निवासी हैं, आप उन मरुदगणों के साथ पधारें।[ऋग्वेद 1.19.6]
हे अग्ने! स्वर्ग से ऊपर प्रकाशमान संसार में जिन मरुतों का निवास है, उन्हें संग लेकर प्रस्थान करो।
Hey Agni Dev! Please join our venture-Yagy along with the Marud Gan who are designated as the highest (among the demigods), reside over the heavens & are brilliant.
य ईङ्खयन्ति पर्वतान्तिरः समुद्रमर्णवम्। मरुद्भिरग्न आ गहि॥
हे अग्निदेव! जो पर्वत सदृश विशाल मेघों को एक स्थान से दूसरे सुदूरस्थ दूसरे स्थान पर ले जाते हैं तथा जो शान्त समुद्रों में भी ज्वार पैदा कर देते हैं (हलचल पैदा कर देते है), ऐसे उन मरुद्गणों को साथ लेकर आप इस यज्ञ में पधारे।[ऋग्वेद 1.19.7]
हे अग्ने! मेघों का संचालन करने वाले और जल को समुद्र में गिराने वाले मरुतों के संग यहाँ विराजो।
Hey Agni Dev! Please come here along with the Marud Gan who move the clouds which are like the mountains & shake the ocean waters generating tides in it.
आ ये तन्वन्ति रश्मिभिस्तिरः समुद्रमोजसा। मरुद्भिरग्न आ गहि॥
हे अग्निदेव! जो सूर्य की रश्मियों के साथ सर्व व्याप्त होकर समुद्र को अपने ओज से प्रभावित करते हैं, उन मरुतों के साथ आप यहाँ पधारें।[ऋग्वेद 1.19.8]
हे अग्ने! सूर्य की किरणों के साथ सर्वत्र व्याप्त और समुद्र को बलपूर्वक चलायमान करने वाले मरुतों के साथ यहाँ आओ।
Hey Agni Dev! Please associate the Marud Gan with us, who adds up their energy with the Sun rays and affect the oceans waters with their aura-energy.
अभि त्वा पूर्वपीतये सृजामि सोम्यं मधु। मरुद्भिरग्न आ गहि॥
हे अग्निदेव! सर्वप्रथम आपके सेवनार्थ यह मधुर सोमरस हम अर्पित करते हैं, अतः आप मरुतों के साथ यहाँ पधारें।[ऋग्वेद 1.19.9]
हे अग्ने! आपके पीने के लिए सुमधुर सोम रस प्रस्तुत कर रहा अतः तुम मरुतों के साथ यहाँ आ जाओ।
Hey Agni Dev! We initiate by serving this sweet Somras to you, hence please visit us along with the Marud Gan.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मंडल सूक्त 20 :: ऋषि :- मेधातिथि कण्व, देवता :- ऋभुगण, छन्द :- गायत्री।
अयं देवाय जन्मने स्तोमो विप्रेभिरासया। अकारि रत्नधातमः॥
ऋभुदेवों के निमित्त ज्ञानियों ने अपने मुख से इन रमणीय स्तोत्रों की रचना की तथा उनका पाठ किया।[ऋग्वेद 1.20.1]
यह श्लोक विद्वानों ने ऋभु देवों के लिए रमणीक छन्द में रचित किया है।
The enlightened-learned created these delightful-enjoyable Strotr-verses and recited them in the honour of Ribhu Devs.
य इन्द्राय वचोयुजा ततक्षुर्मनसा हरी। शमीभिर्यज्ञमाशत॥
जिन ऋभुदेवों ने अति कुशलतापूर्वक इन्द्रदेव के लिये वचन मात्र से नियोजित होकर चलने वाले अश्वों की रचना की, ये शमी आदि यज्ञ (यज्ञ पात्र-चमस एक प्रकार के पात्र का नाम है, जिसे भी देव भाव से सम्बोधित् किया गया है; अथवा पाप शमन करने वाले देवों) के साथ यज्ञ में सुशोभित होते हैं।[ऋग्वेद 1.20.2]
जिन प्रभुओं ने अपने हृदय में इन्द्रदेव के संकल्प मात्र से जुत जाने वाले अश्वों की उत्पत्ति की, वे हमारे अनुष्ठान में स्वयं ही विद्यमान हैं।
The Ribhu Devs created the horses who moves just by listening to the words (order, directions) for Indr Dev with great expertise-skill, along with creating highly revered the pots called Chamas.
तक्षन्नासत्याभ्यां परिज्मानं सुखं रथम्। तक्षन्धेनुं सबर्दुघाम्॥
जिन ऋभुदेवों ने अश्विनी कुमारों के लिये अति सुखप्रद सर्वत्र गमनशील रथ का निर्माण किया और गौओं को उत्तम दूध देने वाली बनाया।[ऋग्वेद 1.20.3]
उन्होंने अश्विनी कुमारों के लिए सुख प्रदान करने वाले रथ की उत्पत्ति की। दुग्ध रूप अमृत देने वाली गौओं को बनाया।
The Ribhu Devs created the extremely comfortable charoite for Ashwani Kumars and made the cows give high quality nourishing milk.
युवाना पितरा पुनः सत्यमन्त्रा ऋजूयवः। ऋभवो विष्ट्यक्रत॥
अमोघ मन्त्र सामर्थ्य से युक्त, सर्वत्र व्याप्त रहने वाले ऋभुदेवों ने माता-पिता में स्नेहभाव संचरित कर उन्हें पुनः जवान बनाया।[ऋग्वेद 1.20.4]
[यहाँ जरावस्था दूर करने की मन्त्र विद्या का संकेत है।]
सत्याशय, सरल स्वभाव वाले स्नेही, निस्वार्थी ऋभुओं ने अपने माता-पिता को पुनः युवावस्था प्रदान की।
Ribhu Devs who were truthful, pervading all over, in all directions & full of affection for their parents made them young, by making use of their ability in the Mantr Shakti.
सं वो मदासो अग्मतेन्द्रेण च मरुत्वता। आदित्येभिश्च राजभिः॥
हे ऋभुदेवो! यह हर्षप्रद सोम रस इन्द्र देव, मरुतों और दीप्तिमान् आदित्यों के साथ आपको अर्पित किया जाता है।[ऋग्वेद 1.20.5]
हे इन्द्र! मरुद्गण और आदित्य के सहित तुम्हारे लिए यह सोम रस प्रस्तुत है।
Hey Ribhu Devs! This Somras is offered to you along with Indr Dev, Marud Gan and the Adity-Sun.
उत त्यं चमसं नवं त्वष्टुर्देवस्य निष्कृतम्। अकर्त चतुरः पुनः॥
त्वष्टादेव के द्वारा एक ही चमस तैयार किया गया था, ऋभुदेवों ने उसे चार प्रकार का बनाकर प्रयुक्त किया।[ऋग्वेद 1.20.6]
त्वष्टा ने जो नवीन चमस-पात्र प्रस्तुत किया था, ऋभुओं ने उसके स्थान पर चार चमस बना दिए।
The pot called Chamas made by Twasta, meant for performing the Yagy, was given four different shapes by the Ribhu Devs.
ते नो रत्नानि धत्तन त्रिरा साप्तानि सुन्वते। एकमेकं सुशस्तिभिः॥
वे उत्तम स्तुतियों से प्रशंसित होने वाले ऋभुदेव! सोमयाग करने वाले प्रत्येक याजक को तीनों कोटि के सप्तरत्नों अर्थात इक्कीस प्रकार के रत्नों (विशिष्ट कर्मो) को प्रदान करें। (यज्ञ के तीन विभाग है :- हविर्यज्ञ, पाकयज्ञ एवं सोमयज्ञ। तीनों के सात-सात प्रकार है। इस प्रकार यज्ञ के इक्कीस प्रकार कहे गये हैं।)।[ऋग्वेद 1.20.7]
वे श्रेष्ठ प्रकार से वन्दना किये जाते हुए ऋभुगण सोम सिद्ध करने वालों को एक-एक कर इक्कीस रत्न प्रदान करें।
Let the Ribhu Devs grant 21 jewels to the performer of Som Yagy.
The Yagy had three categories :- Havir Yagy, Pak Yagy & Som Yagy; which had been split into 21 categories.
अधारयन्त वह्नयोऽभजन्त सुकृत्यया। भागं देवेषु यज्ञियम्॥
तेजस्वी ऋभुदेवों ने अपने उत्तम कर्मो से देवों के स्थान पर अधिष्ठित होकर यज्ञ के भाग को धारण कर उसका सेवन किया।[ऋग्वेद 1.20.8]
ऋभुगण अविनाशी उम्र ग्रहण कर देवों के बीच रहते हुए अनुष्ठान भाग ग्रहण करते हैं।
The Ribhu Devs having aura, attained the honourable place (position, seat) amongest the demigods-deities by virtue of their brilliance, got a part of the offerings and utilised it.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मंडल सूक्त 21 :: ऋषि :- मेधातिथि कण्व, देवता :- इन्द्राग्नि, छन्द :- गायत्री।
इहेन्द्राग्नी उप ह्वये तयोरित्स्तोममुश्मसि। ता सोमं ओमापातामा॥
इस यज्ञ स्थल पर हम इन्द्र एवं अग्निदेव का आवाहन करते हैं, सोमपान के उन अभिलाषियों की स्तुति करते हुए सोमरस पीने का निवेदन करते हैं।[ऋग्वेद 1.21.1]
इन्द्रदेव और अग्नि का इस अनुष्ठान स्थल पर आह्वान करता हूँ। उन्हीं का पूजन करता हुआ सोमपान करने के लिए दोनों से विनती करता हूँ।
We invite Dev Raj Indr & Agni Dev to sip Somras at this Yagy site by chanting prayers.
ता यज्ञेषु प्र शंसतेन्द्राग्नी शुम्भता नरः। ता गायत्रेषु गायत॥
हे ऋत्विजो! आप यज्ञानुष्ठान करते हुये इन्द्र एवं अग्निदेव की शास्त्रों (स्तोत्रों) से स्तुति करे, विविध अंलकारों से उन्हें विभूषित करें तथा गायत्री छन्द वाले सामगान (गायत्र साम) करते हुये उन्हें प्रसन्न करें।[ऋग्वेद 1.21.2]
हे मनुष्यों इन्द्र और अग्नि का पूजन करो, उन्हें अलंकृत कर श्लोक-गान करो।
Hey hosts-Yagy performers! Make Indr Dev & Agni Dev happy-pleased through prayers-verses related to Sam songs (Gayatr Sam), decorate them with various ornaments-jewels while conducting Yagy.
ता मित्रस्य प्रशस्तय इन्द्राग्नी ता हवामहे। सोमपा सोमपीतये॥
सोमपान की इच्छा करने वाले मित्रता एवं प्रशंसा के योग्य उन इन्द्र एवं अग्निदेव को हम सोमरस पीने के लिये बुलाते हैं।[ऋग्वेद 1.21.3]
इन्द्रदेव और अग्नि को सखा की प्रशंसा हेतु तथा सोमपान करने के लिए बुलाया करते हैं।
We invite Indr Dev & Agni Dev who deserve appreciation and friendship for drinking Somras.
उग्रा सन्ता हवामह उपेदं सवनं सुतम्। इन्द्राग्नी एह गच्छताम्॥
अति उग्र देवगण एवं अग्निदेव को सोम के अभीष्ट स्थान (यज्ञस्थल) पर आमन्त्रित करते हैं, वे यहाँ पधारें।[ऋग्वेद 1.21.4]
उग्र :: तीव्र, हिंसक, हिंस्र, प्रचंड, उत्तेजित, प्रंचड, गरम मिज़ाज, अतिक्षुब्ध; furious, fiery, hot blooded, violent. frantic.
उग्रदेव इन्द्र और अग्नि को सोमयज्ञ में आह्वान करते हैं। वे दोनों यहाँ पर पधारें।
We invite the fiery demigods-deities & Agni Dev at this site to participate in Som Yagy.
ता महान्ता सदस्पती इन्द्राग्नी रक्ष उब्जतम्। अप्रजाः सन्त्वत्रिणः॥
देवों में महान वे इन्द्र अग्निदेव सत्पुरुषों के स्वामी(रक्षक) हैं। वे राक्षसों को वशीभूत कर सरल स्वभाव वाला बनाएँ और मनुष्य भक्षक राक्षसों को मित्र-बान्धवों से रहित करके निर्बल बनाएँ।[ऋग्वेद 1.21.5]
हे उत्तम समाज की रक्षा करने वाले इन्द्र और अग्नि! तुम दोनों दुष्टों को वशीभूत करो। नर भक्षी दानव संतानहीन हों।
Greatest amongst the demigods Indr Dev & Agni Dev, who are the protector of the virtuous, should control and make the demons simple & kill-eliminate the demons-giants along with their friends & relatives i.e., kill their descendant as well; who eat humans.
तेन सत्येन जागृतमधि प्रचेतुने पदे। इन्द्राग्नी शर्म यच्छतम्॥
हे इन्द्राग्ने! सत्य और चैतन्य रूप यज्ञस्थान पर आप संरक्षक के रूप में जागते रहें और हमें सुख प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.21.6]
हे इन्द्राग्ने! उस सत्य, चैतन्य यज्ञ के हेतु जागकर हमको सहारा प्रदान करें।
Hey Indr Dev & Agni Dev! You should be awake as the protector of truth and consciousness at the site of the Yagy and grant us comforts-pleasure.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त 22 :: ऋषि मेधातिथि काण्व, देवता :- 1-4 अश्विनी कुमार, 5-8 सविता, 9-10 अग्नि, 11 देवियाँ, 12 इन्द्राणी, वरुणानी, अग्यानी, 13-14 द्यावा-पृथ्वी, 16 विष्णु (देवगण), 17-21 विष्णु। छन्द :- गायत्री।
प्रातर्युजा वि बोधयाश्विनावेह गच्छताम्। अस्य सोमस्य पीतये॥
हे अध्वर्युगण! प्रातःकाल चेतनता को प्राप्त होने वाले अश्विनी कुमारों को जगायें। वे हमारे इस यज्ञ में सोमपान करने के निमित्त पधारें।[ऋग्वेद 1.22.1]
है अग्ने! प्रातः काल सचेत होने वाले अश्विनी कुमारों को अनुष्ठान में आने के लिए जगाओ।
अध्वर्यु :: यज्ञ करानेवाले श्रेष्ठ यजुर्वेदी पुरोहित, आचार्य, पुरोधा, कर्मकांडी ब्राह्मण, यजुर्वेद के अनुरूप कर्म करनेवाला, यज्ञ का संपादन करनेवाला; one who holds-conducts Yagy in accordance with Yajur Ved, best among the priests, enchanters of Yajur Ved, best amongest the priests.
Please wake up Ashwani Kumars, when they are conscious in the morning and invite them to this Yagy to drink Somras.
या सुरथा रथीतमोभा देवा दिविस्पृशा। अश्विना ता हवामहे॥
ये दोनों अश्विनी कुमार सुसज्जित रथों से युक्त महान रथी हैं। ये आकाश में गमन करते हैं। इन दोनों का हम आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 1.22.2]
[यहाँ मंत्र शक्ति से चालित, आकाश मार्ग से चलने वाले यान (रथ) का उल्लेख किया गया है।]
वे दोनों सुशोभित रथ से परिपूर्ण अतिरथी तथा क्षितिज को स्पर्श करने वाले हैं। हम उनका आह्वान करते हैं।
Ashwani Kumars are great warriors, having chariots (aeroplanes) loaded with arms & weapons, who moves through the sky-space.
या वां कशा मधुमत्यश्विना सूनृतावती। तया यज्ञं मिमिक्षतम्॥
हे अश्विनी कुमारो! आपकी जो मधुर सत्य वचन युक्त कशा (चाबुक वाणी) है, उससे यज्ञ को सिंचित करने की कृपा करें।[ऋग्वेद 1.22.3]
(वाणी रूपी चाबुक से स्पष्ट होता है कि अश्विनी कुमारों के यान मंत्र चालित हैं। मधुर एवं सत्य वचनों से यज्ञ का सिंचन भी किया जाता है। कशा-चाबुक से यज्ञ के सिंचन का भाव अटपटा लगते हुये भी युक्ति संगत है।)
हे अश्विनी कुमारो! तुम दोनों का मधुर, प्रिय और सत्य रूपी जो चाबुक है,उसके सहित आकार यज्ञ को सींचो।
Hey Ashwani Kumars! Please nurse our Yagy with your soothing voice, which is like the true whip (coded languages used to move the aeroplane).
नहि वामस्ति दूरके यत्रा रथेन गच्छथः। अश्विना सोमिनो गृहम्॥
हे अश्विनी कुमारो! आप रथ पर आरूढ होकर जिस मार्ग से जाते हैं, वहाँ से सोमयाग करने वाले जातक का घर दूर नही हैं।[ऋग्वेद 1.22.4]
(पूर्वोक्त मंत्र में वर्णित यान की तीव्र वेग का वर्णन है।)
हे अश्विनी कुमारो! तुम दोनों जिस मार्ग से प्रस्थान करते हो, उससे सोमयाग वाले यजमान का भवन दूर नहीं है।
Hey Ashwani Kumars! The house of the person who is conducting Som Yagy is not far away from the path adopted by you, riding your charoite-aeroplane.
हिरण्यपाणिमूतये सवितारमुप ह्वये। स चेत्ता देवता पदम्॥
यजमान को (प्रकाश-उर्जा आदि) देने वाले हिरण्यगर्भ (हाथ में सुवर्ण धारण करने वाले या सुनहरी किरणों वाले) सविता देव का हम अपनी रक्षा के लिये आवाहन करते हैं। वे ही यजमान के द्वारा प्राप्तव्य (गन्तव्य) स्थान को विज्ञापित करनेवाले हैं।[ऋग्वेद 1.22.5]
मैं उस स्वर्ण हस्त वाले सूर्य का आह्वान करता हूँ। वे यजमान को श्रेष्ठ प्रेरणा देंगे।
The hosts invite the Savita Dev (Bhagwan Sury), having golden hands (rays of light glittering like gold) for their safety.
अपां नपातमवसे सवितारमुप स्तुहि। तस्य व्रतान्युश्मसि॥
हे ऋत्विज! आप हमारी रक्षा के लिये सविता देवता की स्तुति करें। हम उनके लिये सोमयागादि कर्म सम्पन्न करना चाहते है। वे सविता देव जलों को सुखा कर पुनः सहस्त्रों गुणा बरसाने वाले हैं।[ऋग्वेद 1.22.6]
(सौर शक्ति से जल के शोधन, वर्षण एवं शोचन की प्रक्रिया का वर्णन इस ऋचा में है।)
जलों को आकृष्ट करने वाले सूर्य को रक्षण हेतु बुलाकर हम अनुष्ठान करने की कामना करते हैं।
Hey hosts-doers of Yagy! Please pray to Bhagwan Sury Narayan for protecting us. We wish to organise Som Yagy and other related deeds. Savita Dev-Sun, initially dry the water-evaporate & then shower it back with increased capacity-thousands of times as compared to the evaporated water.
विभक्तारं हवामहे वसोश्चित्रस्य राधसः। सवितारं नृचक्षसम्॥
समस्त प्राणियों के आश्रयभूत, विविध धनों के प्रदाता, मानव मात्र के प्रकाशक सूर्य देव का हम आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 1.22.7]
धन एवं ऐश्वर्य को बाँटने वाले मनुष्यों के द्रष्टा सूर्य का आह्वान करते हैं।
We invite Bhagwan Sury, who provides shelter to all organism, grants wealth, glow-lit the whole universe.
सखाय आ नि षीदत सविता स्तोम्यो नु नः। दाता राधांसि शुम्भति॥
हे मित्रो! हम सब बैठकर सविता देव की स्तुति करें। धन-ऐश्वर्य के दाता सूर्य देव अत्यन्त शोभायमान हैं।[ऋग्वेद 1.22.8]
हे मित्रों सभी ओर बैठकर धन दाता सूर्य की आराधना करो। वह अत्यन्त सुशोभित हैं।
Hey friends! Let us sit together and pray to Bhagwan Sury-Sun. The Sun who gives wealth-amenities, is stunning-beautiful (glorious)
अग्ने पत्नीरिहा वह देवानामुशतीरुप। त्वष्टारं सोमपीतये॥9॥
हे अग्निदेव! यहाँ आने की अभिलाषा रखने वाली देवों की पत्नियों को यहाँ ले आएँ और त्वष्टादेव को भी सोमपान के निमित्त बुलायेँ।[ऋग्वेद 1.22.9]
हे अग्नि देव! अभिलाषा वाली देव पत्नियों को यज्ञ में लाओ। सोमपान के लिए त्वष्टा को यहाँ ले लाओ।
Hey Agni Dev please bring the wives of the demigods who wish to accompany us and Twasta Dev for accepting-drinking Somras.
आ ग्ना अग्न इहावसे होत्रां यविष्ठ भारतीम्। वरूत्रीं धिषणां वह॥
हे अग्नि देव! देव पत्नियों को हमारी सुरक्षा के निमित्त यहाँ ले आयेँ। आप हमारी रक्षा के लिये अग्नि पत्नि होत्रा, आदित्य पत्नि भारती, वरणीय वाग्देवी धिवणा आदि देवियों को भी यहाँ ले आयें।[ऋग्वेद 1.22.10]
हे युवावस्था प्राप्त अग्नि देव! हमारी सुरक्षा हेतु होता, भारतीय, वरुणी और धिपणा देवियों को यहाँ लाओ।
Hey Agni Dev! Please bring your wife Hotra, Bharti the wife of Sun, Vag Devi Dhivna for our protection.
अभि नो देवीरवसा महः शर्मणा नृपत्नीः। अच्छिन्नपत्राः सचन्ताम्॥
अनवरुद्ध (बिना अवरोध के, निर्विघ्न, बेरोकटोक) मार्ग वाली देव पत्नियाँ मनुष्यों को ऐश्वर्य देने मे समर्थ हैं। वे महान सुखों एवं रक्षण सामर्थ्यो से युक्त होकर हमारी ओर अभिमुख हों।[ऋग्वेद 1.22.11]
पराक्रमी भार्या, द्रुतगामी देवियाँ अमर रक्षण-सामर्थ्यों से हमको शरण प्रदान करें।
The women folk of the demigods, who are not blocked-restricted (in any way) & are capable of granting wealth-amenities to the humans, should look to us associated with great comforts-pleasures.
इहेन्द्राणीमुप ह्वये वरुणानीं स्वस्तये। अग्नायीं सोमपीतये॥
अपने कल्याण के लिए सोमपान के लिए हम इन्द्राणी, वरुणानी और अग्नायी का आवाहन करते है।[ऋग्वेद 1.22.12]
अपने मंगल के लिए इन्द्राणी, वरुण-भार्या और अग्नि देव की भार्या को सोमपान करने के लिए आह्वान करता हूँ।
We invite Indrani-wife of Dev Raj Indr, Varunani-wife of Varun Dev & the wife of Agni Dev for our welfare.
मही द्यौः पृथिवी च न इमं यज्ञं मिमिक्षताम्। पिपृतां नो भरीमभिः॥
अति विस्तारयुक्त पृथ्वी और द्युलोक हमारे इस यज्ञ कर्म को अपने-अपने अंशों द्वारा परिपूर्ण करें। वे भरण-पोषण करनेवाली सामग्रियों (सुख-साधनों) से हम सभी को तृप्त करें।[ऋग्वेद 1.22.13]
श्रेष्ठ आकाश और पृथ्वी ऐसे यज्ञ को सींचने की अभिलाषा करते हुए हमको पोषण शक्ति प्रदान करें।
Let the earth and the heavens add up to-contribute to our Yagy through their share and satisfy us by providing us with nourishment and amenities.
तयोरिद्घृतवत्पयो विप्रा रिहन्ति धीतिभिः। गन्धर्वस्य ध्रुवे पदे॥
गन्धर्व लोक के ध्रुवस्थान में आकाश और पृथ्वी के मध्य में अवस्थित घृत के समान (सार रूप) जलों (पोषक प्रवाहों) को ज्ञानी जन अपने विवेक युक्त कर्मों (प्रयासों) द्वारा प्राप्त करते हैं।[ऋग्वेद 1.22.14]
आकाश और पृथ्वी के मध्य गन्धर्वों के स्थान में ज्ञानी जन ध्यान पूर्वक घृत के समान जल पीते हैं।
The enlightened receives the extracts like the Ghee between the earth & sky at a fixed place (Dhruv Sthan) by means of their deeds aided with prudence.
स्योना पृथिवि भवानृक्षरा निवेशनी। यच्छा नः शर्म सप्रथः॥
हे पृथ्वी देवी! आप सुख देने वाली, बाधा हरने वाली और उत्तमवास देने वाली हैं। आप हमें विपुल परिमाण में सुख प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.22.15]
हे पृथ्वी! तुम सुखदायिनी, विघ्न रहित और श्रेष्ठ वास देने वाली हो तथा हमको सहारा प्रदान करो।
Hey mother earth! You give us comforts-pleasure, remove our troubles and provide excellent place to live. Please grant us comforts in sufficient quantity.
अतो देवा अवन्तु नो यतो विष्णुर्विचक्रमे। पृथिव्याः सप्त धामभिः॥
जहाँ से (यज्ञ स्थल या पृथ्वी से) विष्णुदेव ने (पोषण परक) पराक्रम दिखाया, वहाँ (उस यज्ञीय क्रम से) पृथ्वी से सप्त धामों से देवतागण हमारी रक्षा करें।[ऋग्वेद 1.22.16]
जिस सप्त जगह वाली धरा पर विष्णु ने पाद-क्रमण किया उसी धरा पर देवगण हमारी सुरक्षा करें।
The demigods-deities should protect us via the seven holy regions-Yagy sites, where Bhagwan Shri Hari Vishnu showed HIS might
इदं विष्णुर्वि चक्रमे त्रेधा नि दधे पदम्। समूळ्हमस्य पांसुरे॥
यह सब विष्णुदेव का पराक्रम है, तीन प्रकार के (त्रिविध-त्रियामी) उनके चरण हैं। इसका मर्म धूलि भरे प्रदेश में निहित है।[ऋग्वेद 1.22.17]
(त्रिआयामी सृष्टि के पोषण का जो पराक्रम दिखाता है, उसका रहस्य अन्तरिक्ष धूलि (सुक्ष्म कणों) के प्रवाह मे सन्निहित है। उसी प्रवाह से सभी प्रकार के पोषक पदार्थ बनते-बिगड़ते रहते हैं।)
विष्णु ने इस संसार को तीन पैर रखकर विजय किया। इनके धूल लगे पाँव में ही पूरी सृष्टि लीन हो गयी।
All these creations are due to the might-power of Bhagwan Shri Hari Vishnu, who covered the entire universe in just three steps (earth, heavens and the nether world). The gist-secret of these creations is revealed in the fine particles surrounding the universe.
त्रीणि पदा वि चक्रमे विष्णुर्गोपा अदाभ्यः। अतो धर्माणि धारयन्॥
विश्वरक्षक, अविनाशी, विष्णुदेव तीनों लोकों में यज्ञादि कर्मों को पोषित करते हुये तीन चरणों से जग में व्याप्त है अर्थात तीन शक्ति धाराओं (सृजन, पोषण और परिवर्तन) द्वारा विश्व का संचालन करते हैं।[ऋग्वेद 1.22.18]
सभी की रक्षा करने वाले, किसी से धोखा न खाने वाले, नियम पालक विष्णु ने तीन पैर रखे।
Bhagwan Shri Hari Vishnu pervades the whole universe covering it in three steps by means of Yagy and virtuous deeds.
विष्णोः कर्माणि पश्यत यतो व्रतानि पस्पशे। इन्द्रस्य युज्यः सखा॥
हे याजको! सर्वव्यापक भगवान् विष्णु के सृष्टि संचालन सम्बन्धी कार्यो (सृजन, पोषण और परिवर्तन) ध्यान से देखो। इसमें अनेकानेक व्रतों (नियमों,अनुशासनों) का दर्शन किया जा सकता है। इन्द्र (आत्मा) के योग्य मित्र उस परम सत्ता के अनुकूल बनकर रहे। (ईश्वरीय अनुशासनों का पालन करें)।[ऋग्वेद 1.22.19]
विष्णु के पराक्रम को देखो। जिनके पराक्रम से सभी नियम स्थिति हैं। वे इन्द्र के साथी और मित्र हैं।
Hey organisers of the Yagy! Observe the functions related to creation, nourishment & change in the functioning of the universe, which involve various rules-regulations, determinations. Let every one behave as per wish of the Ultimate-Almighty just like Dev Raj Indr.
तद्विष्णोः परमं पदं सदा पश्यन्ति सूरयः। दिवीव चक्षुराततम्॥
जिस प्रकार सामान्य नेत्रों से आकाश में स्थित सूर्य देव को सहजता से देखा जाता है, उसी प्रकार विद्वज्जन अपने ज्ञान चक्षुओं से विष्णुदेव (देवत्व के परमपद) के श्रेष्ठ स्थान को देखते हैं।[ऋग्वेद 1.22.20]
(ईश्वर दृष्टिमय भले ही न हो, अनुभूतिजन्य अवश्य है।)
क्षितिज की ओर विस्तार पूर्वक देखने वाला नेत्र विष्णु के परमपद को देखना चाहता है। ज्ञानीजन उस पद को लगातार अपने मन में देखते हैं।
The manner in which common men see the Sun, the enlightened see the Almighty with their insight the Ultimate abode of the Almighty.
तद्विप्रासो विपन्यवो जागृवांसः समिन्धते। विष्णोर्यत्परमं पदम्॥
जागरूक विद्वान स्तोतागण विष्णुदेव के उस परमपद को प्रकाशित करते हैं अर्थात जन सामान्य के लिये प्रकट करते है।[ऋग्वेद 1.22.21]
विष्णु के सर्वोच्च पद को वंदना करने वाले चेतन, ज्ञानीजन, भली-भांति प्रकाशित करते हैं।
The enlightened-learned describe the Ultimate abode of the Almighty to the common men.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मंडल सूक्त 23 :: ऋषि :- मेधातिथि काण्व, देवता 1 वायु, 2-3 इन्द्र वायु, 4-6 मित्रा-वरुण, 7-9 इन्द्र-मरुत्वान, 10-12 विश्वेदेवा, 13-15 पूषा, 16-23 आपः देवता, 23-24 अग्नि, छन्द :- अनुष्टुप।
तीव्राः सोमास आ गह्याशीर्वन्तः सुता इमे। वायो तान्प्रस्थितान्पिब॥
हे वायुदेव! अभिषुत सोमरस तीखा होने से दुग्ध मिश्रित करके तैयार किया गया है, आप आएँ और उत्तर वेदी के पास लाये गये इस सोम रस का पान करें।[ऋग्वेद 1.23.1]
हे वायो! आओ, यह गति वाले दुग्ध से मिले हुए और छने हुए सोम रस रखे हैं। इनका पान करो।
अभिषुत :: जो यज्ञ के लिए स्नान कर चुका हो, निचोड़ा हुआ; ready, extracted.
तीखा :: खट्टा, कटु, कसैला, कठोर, काटू, चरपरा, गरम, जलानेवाला, जला देने वाला; spicy, tart, acrid, scalding.Hey Vayu Dev (deity of air)! The extracted Somras being tart, it has been added with milk. Please come to drink it, near the Yagy site, in the North direction.
उभा देवा दिविस्पृशेन्द्रवायू हवामहे। अस्य सोमस्य पीतये॥
जिनका यश दिव्य लोक तक विस्तृत है, ऐसे इन्द्र और वायु देव को हम सोमरस पीने के लिये आमंत्रित करते है।[ऋग्वेद 1.23.2]
क्षितिज को स्पर्श करने वाले इन्द्रदेव और पवन देवता का हम सोमपान हेतु आह्वान करते हैं।
The glory of whom, is extended up to the divine abodes, such Indr Dev & Vayu-Pawan Dev is being invited to sip Somras.
इन्द्रवायू मनोजुवा विप्रा हवन्त ऊतये। सहस्राक्षा धियस्पती॥
मन के तुल्य वेग वाले, सहस्त्र चक्षु वाले, बुद्धि के अधीश्वर इन्द्र एवं वायु देव का ज्ञानीजन अपनी सुरक्षा के लिये आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 1.23.3]
मन की भाँति द्रुतगामी, सहस्त्र चक्षु, कर्मशील इन्द्र और वायु को अपनी रक्षा के लिए ज्ञानी मनुष्य आमंत्रित करते हैं।
The enlightened welcome Indr Dev & Pawan Dev who are as fast as the innerself, has thousand eyes, are the deity of intelligence, for their safety.
मित्रं वयं हवामहे वरुणं सोमपीतये। जज्ञाना पूतदक्षसा॥
सोमरस पीने के लिये यज्ञ स्थल पर प्रकट होने वाले परम पवित्र एवं बलशाली मित्र और वरुण देव का हम आवाहन करते है।[ऋग्वेद 1.23.4]
मित्र और वरुण को सोमरस ग्रहण करने के लिए हम बुलाते हैं। वे पवित्र और शक्तिशाली हैं।
We invite-welcome Varun Dev, who is extremely pure-virtuous, strong-powerful to appear at the Yagy site and consume Somras.
ऋतेन यावृतावृधावृतस्य ज्योतिषस्पती। ता मित्रावरुणा हुवे॥
सत्य मार्ग पर चलने वाले का उत्साह बढाने वाले, तेजस्वी मित्रा-वरुण का हम आवाहन करते है।[ऋग्वेद 1.23.5]
सत्य से यज्ञ को बढ़ाने वाला प्रकाश के पालक मित्र और वरुण का आह्वान करता हूँ।
तेजस्वी :: शानदार, शोभायमान, अजीब, हक्का-बक्का करनेवाला, नादकार, तेज़, शीघ्र, कोलाहलमय, उग्र, तीक्ष्ण, प्रज्वलित, उत्सुक, कलहप्रिय; rattling, fiery, glorious.
We invite glorious Mitra-Varun who encourage one who follows the virtuous, righteous, pious path of truth.
वरुणः प्राविता भुवन्मित्रो विश्वाभिरूतिभिः। करतां नः सुराधसः॥
वरुण एवं मित्र देवता अपने समस्त रक्षा साधनों से हम सबकी रक्षा करते हैं। वे हमें महान वैभव सम्पन्न करें।[ऋग्वेद 1.23.6]
वरुण मेरे रक्षक बने, सखा भी सुरक्षा करें और ये दोनों मुझे धनपति बनायें।
Mitr & Varun protects us through all of their means. Let them provide us with great amenities-riches.
मरुत्वन्तं हवामह इन्द्रमा सोमपीतये। सजूर्गणेन तृम्पतु॥
मरुद्गणों के सहित इन्द्रदेव को सोमपान के निमित्त बुलाते हैं। वे मरुद्गणों के साथ आकर तृप्त हों।[ऋग्वेद 1.23.7]
मरुतों से युक्त इन्द्रदेव का हम आह्वान करते हैं। वे सोमपान हेतु यहाँ पधारकर तृप्त हों।
We invite Indr Dev along with Marud Gan to come and drink Somras. Let him be satisfied.
इन्द्रज्येष्ठा मरुद्गणा देवासः पूषरातयः। विश्वे मम श्रुता हवम्॥
दानी पूषादेव के समान इन्द्रदेव दान देने में श्रेष्ठ हैं। वे सब मरुद्गणों के साथ हमारे आवाहन को सुने।[ऋग्वेद 1.23.8]
पूषा दाता हैं और दाताओं में प्रमुख हैं। वे मरुदगण हमारे आह्वान को सुनें।
Indr Dev is an excellent donor like the Pusha Dev. He should come-accept our invitation along with all Marud Gan
हत वृत्रं सुदानव इन्द्रेण सहसा युजा। मा नो दुःशंस ईशत॥
हे उत्तम दानदाता मरुतो! आप अपने उत्तम साथी और बलवान इन्द्र के साथ दुष्टों का हनन करें। दुष्टता हमारा अतिक्रमण न कर सके।[ऋग्वेद 1.23.9]
हे सुशोभित दानी मरुतो! तुम बलिष्ठ और सहायक इन्द्रदेव से युक्त शत्रुओं को समाप्त कर डालो। कहीं दुष्ट व्यक्ति हम पर शासन न करने लगें।
दुष्ट :: पापी, दोषपूर्ण, बुरा, नटखट, हानिकारक, उत्पाती; evil, wicked, vicious.
Hey excellent donor Marud Gan! Please crush the evil-wicked with the help of your best friend and powerful Indr Dev. Don't let the evil over power us.
विश्वान्देवान्हवामहे मरुतः सोमपीतये। उग्रा हि पृश्निमातरः॥
सभी मरुद्गणों को हम सोमपान के निमित बुलाते हैं। वे सभी अनेक रंगों वाली पृथ्वी के पुत्र महान् वीर एवं पराक्रमी है।[ऋग्वेद 1.23.10]
सब मरुत नाम वाले देवों के सोमपान के लिए आमंत्रित करते हैं। वे उग्र और आकाश की संतान है।
We invite all the fierce Marud Gan for consuming Somras. They are mighty & brave and the sons of earth having vivid colours.
जयतामिव तन्यतुर्मरुतामेति धृष्णुया। यच्छुभं याथना नरः॥
वेग से प्रवाहित होने वाले मरुतों का शब्द विजयवाद के सदृश गुन्जित होता है, उससे सभी मनुष्यों का मंगल होता है।[ऋग्वेद 1.23.11]
मरुतों का गर्जन विजय नाद के समान है, उससे प्राणियों का कल्याण होता है।
The blowing Marud Gan produce a sound like the victory signs-sounds. They ensure humans welfare.
हस्काराद्विद्युतस्पर्यतो जाता अवन्तु नः। मरुतो मृळयन्तु नः॥
चमकने वाली विद्युत से उत्पन्न मरुद्गण हमारी रक्षा करें और प्रसन्नता प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.23.12]
विद्युत का प्रकाश कर हंसमुख सूर्य से उत्पन्न मरुद्गण हमारे रक्षक हों और हमारा कल्याण करें।
Let the Marud Gan born out of lightening, protect us and give us pleasure.
आ पूषञ्चित्रबर्हिषमाघृणे धरुणं दिवः। आजा नष्टं यथा पशुम्॥
हे दिप्तीमान पूषादेव! आप अद्भूत तेजों से युक्त एवं धारण शक्ति से सम्पन्न हैं। अत: सोम को द्युलोक से वैसे ही लायें जैसे खोये हुये पशु को ढूँढ़कर लाते है।[ऋग्वेद 1.23.13]
हे प्रकाश से परिपूर्ण पूषा! जैसे खोये हुए पशु को ढूँढकर लाते हैं, वैसे ही तुम कुशा से परिपूर्ण, अनुष्ठान धारक सोम को ले आओ।
Hey shinning-stunning Pusha Dev! You are blessed with amazing (wonderful, marvellous) powers. Hence, trace-search the Som-Moon in the heavens just as a lost cattle is found.
पूषा राजानमाघृणिरपगूळ्हं गुहा हितम्। अविन्दच्चित्रबर्हिषम्॥
दीप्तिमान पूषादेव ने अंतरिक्ष गुहा में छिपे हुये शुभ्र तेजों से युक्त सोम राजा को प्राप्त किया।[ऋग्वेद 1.23.14]
समस्त ओर से प्रकाशमान पूषा ने गुफा में छिपे हुए कुश सहित सम्राट सोम को ग्रहण किया।
Glittering-bright Pusha Dev traced-found the king Som-Moon, having aura & brightness, in the space-sky tunnel.
उतो स मह्यमिन्दुभिः षड्युक्ताँ अनुसेषिधत्। गोभिर्यवं न चर्कृषत्॥
वे पूषादेव हमारे लिये याग के हेतुभूत सोम के साथ वसंतादि षट्ऋतुओं को क्रमशः वैसे ही प्राप्त कराते हैं, जैसे यवों (जौ) के लिये कृषक बार-बार खेत जोतता है।[ऋग्वेद 1.23.15]
वह युवा सुघटित और ऋतुओं को सोमों द्वारा ग्रहण करता रहे, जैसे कृषक जौ को बार-बार ग्रहण करता है।
The Pusha Dev arrange-manage Som-Moon along with the six seasons in an order just like the farmer, who plough the field for producing barley.
अम्बयो यन्त्यध्वभिर्जामयो अध्वरीयताम्। पृञ्चतीर्मधुना पयः॥
यज्ञ की इच्छा करने वालों के सहायक, मधुर रस-रूप जल प्रवाह माताओं के सदृश पुष्टि प्रद है। वे दुग्ध को पुष्ट करते हुये यज्ञ मार्ग से गमन करते है।[ऋग्वेद 1.23.16]
(यज्ञ द्वारा पुष्टि प्रदायक रस प्रवाहों के विस्तार का उल्लेख है।)
यश की इच्छा करने वालों को मातृ-भूत जल हमारा बंधु रूप है और वह दुग्ध को पुष्ट करता हुआ यज्ञ-मार्ग से चलता है।
He is helpful to those who are performing Yagy by flowing sweet waters just like nursing mothers. He enriches the milk while flowing along the route of the Yagy.
अमूर्या उप सूर्ये याभिर्वा सूर्यः सह। ता नो हिन्वन्त्वध्वरम्॥
जो ये जल सूर्य में (सूर्य किरणो में) समाहित है अथवा जिन जलों के साथ सूर्य का सान्निध्य है, ऐसे वे पवित्र जल हमारे यज्ञ को उपलब्ध हों।[ऋग्वेद 1.23.17]
(उक्त दो मंत्रो में अंतरिक्ष किरणों द्वारा कृषि का वर्णन है। खेत में अन्न दिखता नहीं, किन्तु उससे उत्पन्न होता है। पूषा-पोषण देने वाले देवो (यज्ञ एवं सूर्प आदि) द्वारा सोम (सूक्षम पोषक तत्व) बोया और उपजाया जाता है।)
जो जल सूर्य के पास स्थित है दुग्ध अथवा सूर्य जिनके साथ है, वे हमारे यज्ञ को सींचें।
Let Pusha Dev make available the pure-pious waters, which are embedded in the Sun rays
अपो देवीरुप ह्वये यत्र गावः पिबन्ति नः। सिन्धुभ्यः कर्त्वं हविः॥
हमारी गायें जिस जल का सेवन करती है, उन जलों का हम स्तुतिगान करते हैं। (अंतरिक्ष एवं भूमी पर) प्रवाहमान उन जलों के निमित्त हम हवि अर्पण करते हैं।[ऋग्वेद 1.23.18]
जिन जलों को हमारी गायें पीती हैं, उन जलों को हम चाहते हैं। जो जल बह रहा है, उसे हवि देनी है।
We praise-appreciate the water which is drunk by our cows. We make offerings to these waters.
अप्स्वन्तरमृतमप्सु भेषजमपामुत प्रशस्तये। देवा भवत वाजिनः॥
जल में अमृतोपम गुण है। जल में औषधीय गुण हैं। हे देवो! ऐसे जल की प्रशंसा से आप उत्साह प्राप्त करें।[ऋग्वेद 1.23.19]
जलों में अमृत है, जलों में औषधि है, जलों की महिमा से उत्साह ग्रहण करो।
Hey deities-demigods! You should be encouraged by the appreciation of waters which are just like elixir, nectar, ambrosia having the qualities of medicines.
अप्सु मे सोमो अब्रवीदन्तर्विश्वानि भेषजा।
अग्निं च विश्वशम्भुवमापश्च विश्वभेषजीः॥
मुझ (मंत्र द्रष्टा मुनि) से सोमदेव ने कहा है कि जल समूह में सभी औषधियाँ समाहित हैं। जल में ही सर्व सुख प्रदायक अग्नितत्व समाहित हैं। सभी औषधियाँ जलों से ही प्राप्त होती हैं।[ऋग्वेद 1.23.20]
सोम के कथन के अनुसार जल ही औषधि तत्व है। उसने सर्व सुख दाता और आरोग्य देने वाले जलों का गुण वर्णन किया है।
Som told the sage who is addressed in stanza that all medicines are embedded in waters along with pleasure giving Agni.
आपः पृणीत भेषजं वरूथं तन्वे मम। ज्योक्च सूर्यं दृशे॥
हे जल समूह! जीवन रक्षक औषधियों को हमारे शरीर में स्थित करें, जिससे हम निरोग होकर चिरकाल तक सूर्य देव का दर्शन करते रहें।[ऋग्वेद 1.23.21]
हे जलो! चिरकाल तक सूर्य के दर्शन के लिए, निरोग रहने के लिए, शरीर की रक्षा करने वाली औषधि को मेरी काया में स्थित करो।
Hey the cluster of waters! Let the life saving medicines-drugs be inserted in our body, so we may be able to see the Sun with good health for ever.
इदमापः प्र वहत यत्किं च दुरितं मयि।
यद्वाहमभिदुद्रोह यद्वा शेप उतानृतम्॥
हे जलदेवो! हम याजकों ने अज्ञानवश जो दुष्कृत्य किये हों, जान-बुझकर किसी से द्रोह किया हो, सत्पुरुषों पर आक्रोश किया हो या असत्य आचरण किया हो तथा इस प्रकार के हमारे जो भी दोष हों, उन सबको बहाकर दूर करें।[ऋग्वेद 1.23.22]
हे जलो! मेरे अन्दर जो पाप स्थित है, उसको बहा दो। मेरे द्रोह-भाव, अपगंध और मिथ्याचरण को प्रताड़ित करो।
Hey deities-demigods of water! Let all our-performers of Yagy, sins, truthless ness, ill treatment-misbehaviour with the virtuous, flow out of body (mind & soul) committed due to ignorance,
आपो अद्यान्वचारिषं रसेन समगस्महि।
पयस्वानग्न आ गहि तं मा सं सृज वर्चसा॥
आज हमने जल में प्रविष्ट होकर अवभृथ स्नान किया है, इस प्रकार जल में प्रवेश करके हम रस से आप्लावित हुये हैं! हे पयस्वान! हे अग्निदेव! आप हमें वर्चस्वी बनाएँ, हम आपका स्वागत करते हैं।[ऋग्वेद 1.23.23]
आज मैंने जलों को पाया है। उन्होंने मुझे रस से परिपूर्ण किया है।
Let the bathing after conducting the Yagy make us virtuous. We welcome you. You have filled us with vigour-vitality.
सं माग्ने वर्चसा सृज सं प्रजया समायुषा।
विद्युर्मे अस्य देवा इन्द्रो विद्यात्सह ऋषिभिः॥
हे अग्निदेव! आप हमें तेजस्विता प्रदान करें। हमें प्रजा और दीर्घ आयु से युक्त करें। देवगण हमारे अनुष्ठान को जानें और इन्द्रदेव ऋषियों के साथ इसे जानें।[ऋग्वेद 1.23.24]
हे अग्ने! जलों से युक्त प्रस्थान कर मुझे तेजस्वी बनाओ। हे अग्ने! मुझे तेजस्वी करो। प्रजा और पवन से परिपूर्ण करो। हे देवगण, ऋषिगण और इन्द्रदेव मेरे पूजन को स्वीकार करें।
Hey Agni Dev! Kindly grant us energy-vitality. Make up long lived along with the masses-public. Let the demigods-deities recognise our Yagy-efforts. Hey deities-demigods, Rishi Gan-sages, Indr Dev, accept our prayers-requests.
Two third of human body is made up of water. Water is essential for life. Water is essential for producing medicines. Its basic ingredient of medicines. Fire is embedded in water.***
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मंडल सूक्त 24 :: ऋषि :- शुन: शेप आजीगर्ति (कृत्रिम देवरात वैश्वामित्र), देवता :: प्रजापति :- 1 अग्नि :- 2, सविता :- 3-4, सविता अथवा भग :- 5, वरुण 6-15 छन्द :- त्रिष्टुप :-1, 2, 3-15, गायत्री :- 3-5।
कस्य नूनं कतमस्यामृतानां मनामहे चारु देवस्य नाम।
को नो मह्या अदितये पुनर्दात्पितरं च दृशेयं मातरं च॥
हम अमर देवों में से किस देव के सुन्दर नाम का स्मरण करें? कौन से देव हमें महती अदिति पृथ्वी को प्राप्त करायेंगे? जिससे हम अपने पिता और माता को देख सकेंगे।[ऋग्वेद 1.24.1]
मैं किस देव के सुन्दर नाम का उच्चारण करूँ? कौन मुझे महती अदिति को देगा, जिससे मैं पिता और माता को देख सकूँ!?
Recitation of the honourable & immortal names of which demigod will provide us Aditi & help us make-bring us close to the earth to facilitate us meet our parents!?
अग्नेर्वयं प्रथमस्यामृतानां मनामहे चारु देवस्य नाम।
स नो मह्या अदितये पुनर्दात्पितरं च दृशेयं मातरं च॥
हम अमर देवों में प्रथम अग्निदेव के सुन्दर नाम का मनन करें। वह हमें महती अदिति को प्राप्त करायेंगे, जिससे हम अपने माता-पिता को देख सकेंगे।[ऋग्वेद 1.24.2]
अमरत्व ग्रहण देवों में सर्वप्रथम अग्नि का नामोच्चार करें। वह मुझे अदिति को देवें और मैं माता-पिता को देख पाऊँ।
Let us recite the names of Agni Dev who stands first in the immortal demigods to provide us Aditi & help us see-meet our parents.
अभि त्वा देव सवितरीशानं वार्याणाम्। सदावन्भागमीमहे॥
हे सर्वदा रक्षणशील सविता देव! आप वरण करने वाले योग्य धनों के स्वामी हैं, अतः हम आपसे ऐश्वर्यों के उत्तम भाग को माँगते हैं।[ऋग्वेद 1.24.3]
हे सतत रक्षणशील एवं वरणीय धनों के स्वामी सविता देव! तुमसे हम सभी ऐश्वर्यों की कामना करते हैं।
O always moving Savita Dev! You are the master of the riches one should have; so we request you to give us the best part of the comforts-amenities.
यश्चिद्धि त इत्था भगः शशमानः पुरा निदः। अद्वेषो हस्तयोर्दधे॥
हे सवितादेव! आप तेजस्विता युक्त, निन्दा रहित, द्वेष रहित, वरण करने योग्य धनों को दोनों हाथों से धारण करने वाले हैं।[ऋग्वेद 1.24.4]
हे सूर्य, सत्य, अनित्य, पूजनीय द्वेष रहित तथा सेवनीय धन को तुम ग्रहण करने वाले हो।
निन्दा :: कलंक, तिरस्कार, परिवाद, धिक्कार, भला-बुरा, लानत, शाप, फटकार, गाली; blasphemy, reproach, damn, reprehension.
Hey Savita Dev! You wear the jewels-ornaments which are shinning-glittering, free from defects-blasphemy, envy.
भगभक्तस्य ते वयमुदशेम तवावसा। मूर्धानं राय आरभे॥
हे सवितादेव! हम आपके ऐश्वर्य की छाया में रहकर संरक्षण को प्राप्त करें। उन्नति करते हुये सफलताओं के सर्वोच्च शिखर पर पहुँचकर भी अपने कर्तव्यों को पूरा करते रहें।[ऋग्वेद 1.24.5]
हे समृद्धिशाली सूर्य! तुम्हारी सुरक्षा में आश्रित हम तुम्हारे सेवक समद्धि साधनों की वृद्धि में लगे रहते हैं। आप हमारी सुरक्षा करें।
Hey Savita Dev! Let us progress under your protection and reach the peaks of success while discharging our duties.
नहि ते क्षत्रं न सहो न मन्युं वयश्चनामी पतयन्त आपुः।
नेमा आपो अनिमिषं चरन्तीर्न ये वातस्य प्रमिनन्त्यभ्वम्॥
हे वरुणदेव! ये उड़ने वाले पक्षी आपके पराक्रम, आपके बल और सुनिति युक्त क्रोध (मन्युं) को नही जान पाते। सतत गमनशील जलप्रवाह आपकी गति को नहीं जान सकते और प्रबल वायु के वेग भी आपको नहीं रोक सकते।[ऋग्वेद 1.24.6]
हे वरुण! तुम्हारे अखण्ड राज्य, वय और क्रोध को यह उड़ते हुए पक्षी नहीं पहुँच पाते। लगातार चलते हुए और प्रबल पवन की चाल भी तुम्हारी गति को रोक नहीं पाती।
Hey Varun Dev! These flying birds can not assess your valour-power, anger generated associated with your just policies. Continuously flowing waters too cannot asses your flow-speed, even the strong gust of air can not prevent your movements.
अबुध्ने राजा वरुणो वनस्योर्ध्वं स्तूपं ददते पूतदक्षः।
नीचीना स्थुरुपरि बुध्न एषामस्मे अन्तर्निहिताः केतवः स्युः॥
पवित्र पराक्रम युक्त राजा वरुण (सबको आच्छादित करने वाले) दिव्य तेज पुञ्ज सूर्य देव को आधार रहित आकाश में धारण करते हैं। इस तेज पुञ्ज सूर्य देव का मुख नीचे की ओर और मूल ऊपर की ओर है। इसके मध्य में दिव्य किरणें विस्तीर्ण होती चलती हैं।[ऋग्वेद 1.24.7]
पवित्र बल युक्त वरुण अंबर के ऊपर की ओर तेज समूह को स्थापित करते हैं। इस तेज़ समूह का मुख नीचे और जड़ ऊपर है। यह हमारे अन्दर स्थित होकर बुद्धि रूप निवास करें।
Varun Dev associated with pious valour establishes Sury Dev (Sun) having bright rays-aura in the sky without any support-base. This aura faces downwards with roots in upper direction. In between the upper and lower surfaces, divine rays shines.
उरुं हि राजा वरुणश्चकार सूर्याय पन्थामन्वेतवा उ।
अपदे पादा प्रतिधातवेऽकरुतापवक्ता हृदयाविधश्चित्॥
राजा वरुण देव ने सूर्य गमन के लिये विस्तृत मार्ग निर्धारित किया है, जहाँ पैर भी स्थापित न हो, ऐसे अंतरिक्ष स्थान पर भी चलने के लिये मार्ग विनिर्मित कर देते हैं। और वे हृदय की पीड़ा का निवारण करने वाले हैं।[ऋग्वेद 1.24.8]
वरुण ने सूर्य के पैर रखने की व्यवस्था की है। वे वरुण मेरे मन को दुःख देने वाले को भी पराजित करने में समर्थवान हैं।
Varun Dev has established the path for the movement of Sun at a place where there is no place to put the foot. He removes the pain in the heart. (Varun Dev is competent to defeat one who pains my heart.)
शतं ते राजन्भिषजः सहस्रमुर्वी गभीरा सुमतिष्टे अस्तु।
बाधस्व दूरे निरृतिं पराचैः कृतं चिदेनः प्र मुमुग्ध्यस्मत्॥
हे वरुणदेव! आपके पास असंख्य उपाय है। आपकी उत्तम बुद्धि अत्यन्त व्यापक और गम्भीर है। आप हमारी पाप वृत्तियों को हमसे दूर करें। किये हुए पापों से हमें विमुक्त करें।[ऋग्वेद 1.24.9]
हे वरुण देव! तुम्हारे निकट अनेक उपाय है। तुम्हारी कल्याणकारी बुद्धि गम्भीर और दूर तक जाने वाली है। तुम पाप की शक्ति को समाप्त करो। हमारे द्वारा किये गये पापों से हमको मुक्त करो।
Hey Varun Dev! You have numerous means-solutions to eliminate our sins their impact with your excellent intellect, which is very sharp and stable.
अमी य ऋक्षा निहितास उच्चा नक्तं ददृश्रे कुह चिद्दिवेयुः।
अदब्धानि वरुणस्य व्रतानि विचाकशच्चन्द्रमा नक्तमेति॥
ये नक्षत्रगण आकाश में रात्रि के समय दिखते हैं, परन्तु दिन में कहाँ विलीन होते हैं!? विशेष प्रकाशित चन्द्रमा रात में आता है। वरुण राजा के नियम कभी नष्ट नहीं होते हैं।[ऋग्वेद 1.24.10]
ये तारे रूप सकर्षि उन्नत स्थान में बैठे हुए रात में दिखाई देते हैं। वे दिन में कहीं लुप्त हो जाते हैं। चन्द्रमा भी रात्रि में ही प्रकाशित होता चलता है। वरुण के नियम अटल हैं।
The stars & constellations are seen at night but disappears during the day. Specially lit Moon is visible at night. The rules-laws framed by Varun Dev are rigid-unchangeable (questionable).
तत्त्वा यामि ब्रह्मणा वन्दमानस्तदा शास्ते यजमानो हविर्भिः।
अहेळमानो वरुणेह बोध्युरुशंस मा न आयुः प्र मोषीः॥
हे वरुणदेव! मन्त्ररूप वाणी से आपकी स्तुति करते हुये हुए आपसे याचना करते हैं। यजमान हविस्यात्र अर्पित करते हुये कहता है :- हे बहु प्रशंसित देव! हमारी उपेक्षा न करें, हमारी स्तुतियों को जानें। हमारी आयु को क्षीण न करें।[ऋग्वेद 1.24.11]
हे वरुण मंत्रों से युक्त वाणी से वन्दना करता हुए तुमसे ही विनती करता हूँ। हवि वाला यजमान, क्रोध न करने की आपसे प्रार्थना करता हुआ दीर्घायु माँगता है।
Hey Varun Dev! We pray to you by using the Mantr and make requests to you. Please do not neglect-ignore us. Please recognise our prayers & grant us longevity. Please do not reduce our age.
तदिन्नक्तं तद्दिवा मह्यमाहुस्तदयं केतो हृद आ वि चष्टे।
शुनःशेपो यमह्वद्गृभीतः सो अस्मान्राजा वरुणो मुमोक्तु॥
रात-दिन में (अनवरत) ज्ञानियों के कहे अनुसार यही ज्ञान (चिन्तन) हमारे हृदय में होते रहता है कि बन्धन में पड़े शुनःशेप ने जिस वरुण देव को बुलाकर मुक्ति को प्राप्त किया, वही वरुण देव हमें भी बन्धनों से मुक्त करें।[ऋग्वेद 1.24.12]
रात और दिन यही बात मेरे मस्तिष्क में उठती है कि बन्धन में पड़े शुनः शेप ने वरुण को पुकारा था, वह हमको भी बन्धनसे स्वतंत्र-मुक्त करें।
We keep on remembering the words of the enlightened-learned that Shun Shep called-prayed Varun Dev to be liberated from the bonds-ties through the day & night. The Varun Dev should liberate us too i.e., grant us salvation.
शुनःशेपो ह्यह्वद्गृभीतस्त्रिष्वादित्यं द्रुपदेषु बद्धः।
अवैनं राजा वरुणः ससृज्याद्विद्वाँ अदब्धो वि मुमोक्तु पाशान्॥
तीन स्तम्भों में बँधे हुये शुनः शेप ने अदिति पुत्र वरुण देव का आवाहन करके उनसे निवेदन किया कि वे ज्ञानी और अटल वरुण देव उसके पाशों को काटकर उसे बन्धन मुक्त करें।[ऋग्वेद 1.24.13]
पकड़े जाने पर काष्ठ के तीन स्तम्भों से बाँधे गए शुनः शेप ने अदिति पुत्र वरुण का आह्वान किया वे वरुण विद्वान और कभी धोखा न खाने वाले हैं। वे मेरे पासों को काट कर स्वतंत्र करें।
Shun Shep who was tied to three poles (for human sacrifice) called-prayed to the enlightened & determined Varun Dev, son of Aditi, to cut his bonds and set him free.
अव ते हेळो वरुण नमोभिरव यज्ञेभिरीमहे हविर्भिः।
क्षयन्नस्मभ्यमसुर प्रचेता राजन्नेनांसि शिश्रथः कृतानि॥
हे वरुणदेव! आपके क्रोध को शान्त करने के लिये हम स्तुति रूप वचनों को सुनाते हैं। हविर्द्रव्यों के द्वारा यज्ञ में सन्तुष्ट होकर हे प्रखर बुद्धि वाले राजन! आप हमारे यहाँ वास करते हुये हमें पापों के बन्धन से मुक्त करें।[ऋग्वेद 1.24.14]
हे वरुण! हमारे प्रार्थनीय वचनों से अपने क्रोध को निवारण करो। तुम प्रखर बुद्धि वाले हमारे यहाँ निवास करते हुए हमारे पापों के बन्धनों को ढीला करो।
To pacify you, hey Varun Dev, we make prayers to remove your anger with prayers. Hey King! You are gifted with sharp intellect, be satisfied with the offerings made in the Yagy by us. Please stay with us-here and free us from the sins.
उदुत्तमं वरुण पाशमस्मदवाधमं वि मध्यमं श्रथाय।
अथा वयमादित्य व्रते तवानागसो अदितये स्याम॥
हे वरुणदेव! आप तीनों ताप रूपी बन्धनों से हमें मुक्त करें। आधिदैविक, आधिभौतिक और आध्यात्मिक पाश हमसे दूर हों तथा मध्य के एवं नीचे के बन्धन अलग करें! हे सूर्य पुत्र! पापों से रहित होकर हम आपके कर्मफल सिद्धांत में अनुशासित हों, दयनीय स्थिति में हम न रहें।[ऋग्वेद 1.24.15]
हे वरुण! हमारे ऊपर के पाश को ऊपर और नीचे के पाश को नीचे खींचकर बीच के पाश को काट डालो। हम आपके नियम में चलते हुए अपराध मुक्त रहें।
Hey Varun Dev! Please liberate us from Adhidaevik, Adhibhotik and Adhyatmik bonds including those bonds-ties which appear in between and later as well. We should be disciplined by disassociating ourselves from the sins as per your reward & punishment (Karm Fal-destiny), principles. We should be disciplined & never face poverty.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मंडल सूक्त 25 :: ऋषि :- शुन: शेप आजीगर्ति इत्यादयः, देवता :- वरुण, छन्द :- गायत्री।
यच्चिद्धि ते विशो यथा प्र देव वरुण व्रतम्। मिनीमसि द्यविद्यवि॥
हे वरुणदेव! जैसे अन्य मनुष्य आपके व्रत अनुष्ठान में प्रमाद करते है, वैसे ही हमसे भी आपके नियमों में कभी-कभी प्रमाद हो जाता है; कृपया इसे क्षमा करें।[ऋग्वेद 1.25.1]
प्रमाद :: लापरवाही, असावधानी, खिलने वाला पौधा, भारी भूल, भयंकर त्रुटि, negligence, bloomer, incautiousness, carelessness.
अनुष्ठान :: संस्कार, धार्मिक क्रिया, पद्धति, शास्रविधि, धार्मिक उत्सव, आचार, आतिथ्य सत्कार, समारोह, रसम; ceremonies, rituals, rites.
हे वरुण देव! जैसे तुम्हारे व्रतानुष्ठान में व्यक्ति प्रमाद करते हैं, वैसे ही हम भी तुम्हारे सिद्धान्त आदि को तोड़ डालते हैं।
Sometimes we become careless-negligent in following the rules & regulations-procedures of prayers-Vrat, rites & rituals. Kindly pardon-forgive us.
मा नो वधाय हत्नवे जिहीळानस्य रीरधः। मा हृणानस्य मन्यवे॥2॥
हे वरुणदेव! आपने अपने निरादर करने वाले का वध करने के लिये धारण किये गये शस्त्र के सम्मुख हमें प्रस्तुत न करें। अपनी क्रुद्ध अवस्था में भी हम पर कृपा कर क्रोध ना करें।[ऋग्वेद 1.25.2]
हे वरुण! अपमान करने वालों को सजा उसकी हिंसा है। हमको यह सजा मत दो, हम पर क्रोध न करो।
Hey Varun Dev! Please do not subject us to murder with weapons for ignoring-insulting you. Even if angry; please have mercy over us.
वि मृळीकाय ते मनो रथीरश्वं न संदितम्। गीर्भिर्वरुण सीमहि॥
हे वरुणदेव! जिस प्रकार रथी अपने थके हुए घोड़ों की परिचर्या करते हैं, उसी प्रकार आपके मन को हर्षित करने के लिये हम स्तुतियों का गान करते हैं।[ऋग्वेद 1.25.3]
हे वरुण! प्रार्थना द्वारा हम आपकी कृपा चाहते हैं। ठीक उसी प्रकार जैसे अश्व का स्वामी उसके घावों पर पट्टियाँ बाँधता है।
Hey Varun Dev! We wish to assuage your feelings (make you happy) just like the driver of the charoite who takes care-serve his tired horses.
परा हि मे विमन्यवः पतन्ति वस्यइष्टये। वयो न वसतीरुप॥
हे वरुणदेव! जिस प्रकार पक्षी अपने घोसलों की ओर दौड़ते हुये गमन करते हैं, उसी प्रकार हमारी चंचल बुद्धियाँ धन प्राप्ति के लिये दूर-दूर तक दौड़ती है।[ऋग्वेद 1.25.4]
घोंसलों की ओर दौड़ने वाली चिड़ियों के समान हमारी क्रोध रहित बुद्धियाँ धन की प्राप्ति के लिए दौड़ती है।
Hey Varun Dev! Our fickle-agile mind looks to various sources of income-earnings far & wide just like the birds which fly to their nest.
कदा क्षत्रश्रियं नरमा वरुणं करामहे। मृळीकायोरुचक्षसम्॥
बल ऐश्वर्य के अधिपति सर्वद्रष्टा वरुण देव को कल्याण के निमित्त हम यहाँ (यज्ञस्थल में) कब बुलायेंगे अर्थात यह अवसर कब मिलेगा?[ऋग्वेद 1.25.5]
अखण्ड समृद्धि वाले दूरदर्शी वरुण की कृपा प्राप्ति हत उन्हें अपने यज्ञ में ले आवेंगे।
When will we have the opportunity of inviting Varun Dev-who is the master of might & amenities and capable of visualising every thing, to the Yagy site.
तदित्समानमाशाते वेनन्ता न प्र युच्छतः। धृतव्रताय दाशुषे॥
व्रत धारण करना वाले (हविष्यमान) दाता यजमान के मंगल के निमित्त, ये मित्र और वरुण देव हविष्यान की इच्छा करते हैं, वे कभी उसका त्याग नहीं करते। वे हमें बन्धन से मुक्त करें।[ऋग्वेद 1.25.6]
हवि की कामना वाले सखा-वरुण, निष्ठावान यजमान की साधारण हवि को भी नहीं त्यागते।
Mitr & Varun Dev desire to have the offerings of the Yagy for the benefit-welfare of he host conducting Yagy associated with fast. Let them make us free from the cycles of death & rebirth-grant Salvation.
वेदा यो वीनां पदमन्तरिक्षेण पतताम्। वेद नावः समुद्रियः॥
हे वरुण देव! आकाश में उड़ने वाले पक्षियों के मार्ग को और समुद्र में संचार करने वाली नौकाओं के मार्ग को भी आप जानते हैं।[ऋग्वेद 1.25.7]
हे वरुण देव! आप उड़ने वाले पक्षियों के क्षितिज-मार्ग और समुद्र की नौका-मार्ग के पूर्ण ज्ञाता है।
Hey Varun Dev! You are aware of the route followed by the birds flying in the sky and boats navigating in the ocean.
वेद मासो धृतव्रतो द्वादश प्रजावतः। वेदा य उपजायते॥
नियम धारक वरुणदेव प्रजा के उपयोगी बारह महिनों को जानते हैं और तेरहवें मास (मल मास, अधिक मास, पुरुषोत्तम मास) को भी जानते है।[ऋग्वेद 1.25.8]
वे घृत-नियम वरुण, प्रजाओं के उपयोगी बारह महीनों को तथा तेरहवें अधिक मास को भी जानते हैं।
Varun Dev who frame the rules and implement them, knows the twelve months in a year including the Purushottom Mass (thirteenth month-extra month) meant for the welfare of humans.
वेद वातस्य वर्तनिमुरोरृष्वस्य बृहतः। वेदा ये अध्यासते॥
वे वरुणदेव अत्यन्त विस्तृत, दर्शनीय और अधिक गुणवान वायु के मार्ग को जानते हैं। वे उपर द्युलोक में रहने वाले देवों को भी जानते हैं।[ऋग्वेद 1.25.9]
वे मूर्धा रूप से स्थित, विस्तृत, उन्नत, उत्तम वायु के मार्ग को भली-भाँति जानते हैं।
Varun Dev knows well the broad, good looking, scenic, possessing good qualities path of air; in addition to the demigods-deities residing in upper abodes-heavens.
नि षसाद धृतव्रतो वरुणः पस्त्यास्वा। साम्राज्याय सुक्रतुः॥
प्रकृति के नियमों का विधिवत पालन कराने वाले, श्रेष्ठ कर्मों में सदैव निरत रहने वाले वरुण देव प्रजाओं में साम्राज्य स्थापित करने के लिये बैठते हैं।[ऋग्वेद 1.25.10]
सिद्धान्त में स्थिर, सुन्दर प्रज्ञावान वरुण प्रजाजनों में साम्राज्य विद्यमान करने के लिए विराजते हैं।
Varun Dev who is always inclined to virtuous, righteous, pious deeds, is established to ensure the following-implementations of the rules of nature.
अतो विश्वान्यद्भुता चिकित्वाँ अभि पश्यति। कृतानि या च कर्त्वा॥
सब अद्भुत कर्मो की क्रिया विधि जानने वाले वरुणदेव, जो कर्म संपादित हो चुके हैं और जो किये जाने वाले हैं, उन सबको भली-भाँति देखते हैं।[ऋग्वेद 1.25.11]
जो घटनाएँ हुई या होने वाली हैं, उन सभी को वे मेधावी वरुण इस स्थान से देखते हैं।
Varun Dev is aware of the methodology of the amazing deeds & watches carefully the deeds accomplished and those deeds which remains to be completed.
स नो विश्वाहा सुक्रतुरादित्यः सुपथा करत्। प्र ण आयूंषि तारिषत्॥
वे उत्तम कर्मशील अदिति पुत्र वरुण देव हमें सदा श्रेष्ठ मार्ग की ओर प्रेरित करें और हमारी आयु को बढ़ायें।[ऋग्वेद 1.25.12]
वे महान मति वाले वरुण हमको सदैव सुन्दर मार्ग प्रदान करें और हमको आयुष्मान करें।
Let Varun Dev, son of Aditi (Dev Mata), let us inspire to the virtuous, pious, righteous path (of Bhakti) and enhance our longevity-age.
बिभ्रद्द्रापिं हिरण्ययं वरुणो वस्त निर्णिजम्। परि स्पशो नि षेदिरे॥
सुवर्णमय कवच धारण करके वरुणदेव अपने हृष्ट-पुष्ट शरीर को सुसज्जित करते हैं। शुभ्र प्रकाश किरणें उनके चारों ओर विस्तीर्ण होती हैं।[ऋग्वेद 1.25.13]
स्वर्ण कवच से उन्होंने अपना मर्म भाग ढक लिया है।
Varun Dev has covered his handsome body-figure with golden shield. Bright rays of light spread around him.
न यं दिप्सन्ति दिप्सवो न द्रुह्वाणो जनानाम्। न देवमभिमातयः॥
हिंसा करने की इच्छा वाले शत्रु-जन (भयाक्रान्त होकर) जिनकी हिंसा नही कर पाते, लोगों के प्रति द्वेष रखने वाले, जिनसे द्वेष नहीं कर पाते, ऐसे वरुणदेव को पापीजन स्पर्श तक नहीं कर पाते।[ऋग्वेद 1.25.14]
उनके चारों ओर समाचार वाहक उपस्थित हैं। जिन्हें शत्रु धोखा नहीं दे सकते, विद्रोह करने वाले जिनसे द्रोह करने में सफल नहीं हो सकते, उन वरुण से कोई शत्रुता नहीं कर सकता।
The violent enemy are unable to harm (kill) him due to fear, those who are envious with others cannot be envious with him. The sinners can not even touch-reach him.
उत यो मानुषेष्वा यशश्चक्रे असाम्या। अस्माकमुदरेष्वा॥
जिन वरुणदेव ने मनुष्यों के लिये विपुल अन्न भण्डार उत्पन्न किया है; उन्होंने ही हमारे उदर में पाचन सामर्थ्य भी स्थापित की है।[ऋग्वेद 1.25.15]
जिस वरुण ने मनुष्य के लिए अन्न की भरपूर स्थापना की है, वह हमारे पेट में अन्न ग्रहण करने की सामर्थ्य प्रदान करता है।
Varun Dev who has generated a big deposit of food grain, has given the power to digest the food in our stomach.
परा मे यन्ति धीतयो गावो न गव्यूतीरनु। इच्छन्तीरुरुचक्षसम्॥
उस सर्वद्रष्टा वरुणदेव की दृष्टि, कामना करने वाली हमारी बुद्धि तक, वैसे ही उन तक पहुँचती है, जैसे गौएँ श्रेष्ठ बाड़े की ओर जाती हैं।[ऋग्वेद 1.25.16]
दूरदर्शी वरुण की इच्छा करती हुई मनोवृत्तियाँ निवृत्त होकर वैसे ही हो जाती हैं, जैसे चरने की जगह की ओर गौएँ जाती हैं।
The sight of all visualising Varun Dev reaches our minds, just like the cows which moves to the beast cowshed.
सं नु वोचावहै पुनर्यतो मे मध्वाभृतम्। होतेव क्षदसे प्रियम्॥
होता (अग्निदेव) के समान हमारे द्वारा लाकर समर्पित की गई हवियों का आप अग्निदेव के समान भक्षण करे, फिर हम दोनों वार्ता करेंगे।[ऋग्वेद 1.25.17]
मेरे द्वारा सम्पादित मधुर हवि को अग्नि के समान प्रीतिपूर्वक भक्षण करो। फिर हम दोनों मिलकर वार्तालाप करेंगे।
Please eat (consume, accept) the offerings made by us, like the host-Agni Dev and thereafter we will talk together.
दर्शं नु विश्वदर्शतं दर्शं रथमधि क्षमि। एता जुषत मे गिरः॥
दर्शनीय वरुण को उनके रथ के साथ हमने भूमि पर देखा है। उन्होंने हमारी स्तुतियाँ स्वीकारी हैं।[ऋग्वेद 1.25.18]
सबके देखने योग्य वरुण को, अनेक रथ सहित पृथ्वी पर मैंने देखा है। उन्होंने मेरी प्रार्थनाएँ स्वीकार कर ग्रहण कर ली हैं।
We have seen beautiful & handsome (admirable) Varun Dev over the earth and he accepted our prayers.
इमं मे वरुण श्रुधी हवमद्या च मृळय। त्वामवस्युरा चके॥
हे वरुणदेव! आप हमारी प्रार्थना पर ध्यान दें, हमें सुखी बनायें। अपनी रक्षा के लिये हम आपकी स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 1.25.19]
हे वरुणदेव! मेरे आह्वान को सुनो। मुझ पर आज कृपा दृष्टि रखो।
Hey Varun Dev! Please notice our prayers and make us happy. We pray to you for our protection.
त्वं विश्वस्य मेधिर दिवश्च ग्मश्च राजसि। स यामनि प्रति श्रुधि॥
हे मेधावी वरुणदेव! आप द्युलोक, भूलोक और सारे विश्व पर आधिपत्य रखते हैं, आप हमारे आवाहन को स्वीकार कर "हम रक्षा करेंगे" ऐसा प्रत्युत्तर दे।[ऋग्वेद 1.25.20]
मुझ पर कृपा दृष्टि करने की कामना वाले तुम्हें मैंने बुलाया है। हे मेधावी वरुण देव! तुम क्षितिज और धरा के स्वामी हो। तुम हमारे आह्वान का उत्तर दो।
Hey brilliant Varun Dev! You rule the upper abodes, earth and the whole universe. Kindly, accept our invitation and assure us that you will protect us.
उदुत्तमं मुमुग्धि नो वि पाशं मध्यमं चृत। अवाधमानि जीवसे॥
हे वरुणदेव! हमारे उत्तम (ऊपर के) पाश को खोल दें, हमारे मध्यम पाश काट दें और हमारे नीचे के पाश को हटाकर, हमें उत्तम जीवन प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.25.21]
हे वरुण देव। ऊपर के बन्धन को खींचों, मध्य के बन्धन को काटो और नीचे के पाश को भी खींचकर हमको जीवन प्रदान करो।
Hey Varun Dev! Cut the upper, middle & the lower knots and grant us excellent life-longevity.***
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मंडल सूक्त 26 :: ऋषि :- शुन: शेप आजीगर्ति, देवता :- अग्नि, छन्द :- गायत्री।
वसिष्वा हि मियेध्य वस्त्राण्यूर्जां पते। सेमं नो अध्वरं यज॥1॥
हे यज्ञ योग्य अन्नों के पालक अग्निदेव! आप अपने तेज रूप वस्त्रों को पहनकर हमारे यज्ञ को सम्पादित करें।[ऋग्वेद 1.26.1]
हे पूजनीय, योग्य, बलिष्ठ अग्नि देव! तुम अपने तेज रूप वस्त्र को धारण कर अनुष्ठान को सम्पन्न करो।
Hey nursor of food grains good enough as offerings in the Yagy, Agni Dev! Please conduct the Yagy with aura-brilliance as your clothing.
नि नो होता वरेण्यः सदा यविष्ठ मन्मभिः। अग्ने दिवित्मता वचः॥2॥
सदा तरुण रहने वाले, हे अग्निदेव! आप सर्वोत्तम होता (यज्ञ सम्पन्न कर्ता) के रूप में यज्ञ कुण्ड में स्थापित होकर स्तुति वचनों का श्रवण करें।[ऋग्वेद 1.26.2]
हे अग्ने! तुम सतत, युवा, कुशल, तेजस्वी हो। इस यजमान के वंदना संकल्पों से विराजमान होओ।
Hey, always young Agni Dev! Please be established as the best host conducting Yagy, in the Yagy hearth (Hawan Kund) and listen to the prayers made-recited in your honour.
आ हि ष्मा सूनवे पितापिर्यजत्यापये। सखा सख्ये वरेण्यः॥3॥
हे वरण करने योग्य अग्निदेव! जैसे पिता अपने पुत्र के, भाई अपने भाई के और मित्र अपने मित्र के सहायक होते है, वैसे ही आप हमारी सहायता करें।[ऋग्वेद 1.26.3]
हे वरणीय अग्ने! जिस प्रकार पिता पुत्र को, भाई-भाई को एवं सखा-सखा को वस्तुएँ दे देते हैं, उसी प्रकार तुम हमारे दाता बनो।
Hey always acceptable Agni Dev! You should be like the father to the son, brother like the brother and friend for a friend to us and help us.
आ नो बर्ही रिशादसो वरुणो मित्रो अर्यमा। सीदन्तु मनुषो यथा॥4॥
जिस प्रकार प्रजापति के यज्ञ में मनु आकर शोभा बढा़ते हैं, उसी प्रकार शत्रुनाशक वरुण देव, मित्र देव एवं अर्यमा देव हमारे यज्ञ मेँ आकर विराजमान हों।[ऋग्वेद 1.26.4]
शत्रुओं को पराजित करने वाले, वरुण, मित्र और अर्यमा प्राणी के समान कुशों पर विराजमान हों।
The way Manu increases glory in the Yagy conducted by Prajapati; similarly enemy slayer Varun, Mitr Dev & Aryama Dev come and be seated here, in our Yagy.
पूर्व्य होतरस्य नो मन्दस्व सख्यस्य च। इमा उ षु श्रुधी गिरः॥5॥
पुरातन होता हे अग्निदेव! आप हमारे इस यज्ञ से और हमारे मित्र भाव से प्रसन्न हों और हमारी स्तुतियों को भली प्रकार से सुनें।[ऋग्वेद 1.26.5]
हे पुरातन होता! तुम इस यज्ञ और हमारे मित्र भाव से प्रसन्न हो जाओ। हमारी प्रार्थनाओं को उत्तम ढंग से सुनने की कृपा करें।
Ancient host, hey Agni Dev! You should be happy with our tendency of friendship and listen to our prayers-recitations carefully.
यच्चिद्धि शश्वता तना देवंदेवं यजामहे। त्वे इद्धूयते हविः॥6॥
हे अग्निदेव! इन्द्र, वरुण आदि अन्य देवताओं के लिये प्रतिदिन विस्तृत आहुतियाँ अर्पित करने पर भी सभी हविष्यमान आपको ही प्राप्त होते है।[ऋग्वेद 1.26.6]
हे अग्ने! नित्य प्रति विभिन्न देवताओं को उपासित करते हुए भी हम तुमको ही हवि अर्पित करते हैं।
Hey Agni Dev! Even though we makes large scale offerings to Dev Raj Indr, Varun Dev and other demigods-deities, all goods reaches you.
प्रियो नो अस्तु विश्पतिर्होता मन्द्रो वरेण्यः। प्रियाः स्वग्नयो वयम्॥7॥
यज्ञ सम्पन्न करने वाले प्रजा पालक, आनन्द वर्धक, वरण करने योग्य, हे अग्निदेव! आप हमें प्रिय हो तथा श्रेष्ठ विधि से यज्ञाग्नि की रक्षा करते हुये हम सदैव आपके प्रिय रहें।[ऋग्वेद 1.26.7]
वे अग्नि संसार के स्वामी और होता हैं। हम शोभा परिपूर्ण अग्नि वाले होकर, उनके प्रिय बनें।
We should be dear to Agni Dev, who is the protector of populace, enhances happiness & is acceptable to us. Kindly protect the fire lit in the Yagy in best possible manner.
स्वग्नयो हि वार्यं देवासो दधिरे च नः। स्वग्नयो मनामहे॥8॥
जैसे उत्तम अग्नि से युक्त हो कर दैदीप्यमान ऋत्विजों ने, हमारे लिये ऐश्वर्य को धारण किया है, वैसे ही हम उत्तम अग्नि से युक्त होकर इनका (ऋत्विज) का स्वागत करते है।[ऋग्वेद 1.26.8]
शोभनीय अग्नि देवता के साथ देवताओं ने जैसे हमारे लिए ऐश्वर्य धारण किया है, वैसे ही हम सुन्दर अग्नियों से युक्त होकर तुमको पूजते हैं।
The manner in which the shining-glittering hosts have accepted the best fire (Agni Dev) with the best amenities, we should also be added-aided with the best fire and welcome these hosts.
अथा न उभयेषाममृत मर्त्यानाम्। मिथः सन्तु प्रशस्तयः॥9॥
अमरत्व को धारण करने वाले हे अग्निदेव! आपके और हम मरणशील मनुष्यों के बीच स्नेहयुक्त और प्रशंसनीय वाणियों का आदान प्रदान होता रहे।[ऋग्वेद 1.26.9]
हे मरण-धर्म रहित अग्ने! तुम्हारी ओर हम मरण शील प्राणियों की प्रशंसा से युक्त वाणियाँ आपस में स्नेही वाली हों।
Hey immortal Agni Dev! Friendly-loving relations between you and the mortal humans should continue aided by appreciable words.
विश्वेभिरग्ने अग्निभिरिमं यज्ञमिदं वचः। चनो धाः सहसो यहो॥10॥
बल के पुत्र (अरणि मन्थन के रूप शक्ति से उत्पन्न) अग्निदेव! आप (आहवनीयादि) अग्नियों के साथ यज्ञ में पधारें और स्तुतियों को सुनते हुये अन्न (पोषण) प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.26.10]
हे बल पुत्र अग्नि देव! तुम सब अग्नियों से युक्त होकर हमारी वाणी से प्रसन्न हो जाओ।
Hey the son of force-power Agni Dev! Please come to the Yagy with various forms of fire which deserve to be here, listen to the prayers made by us and grant grains-nourishment.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मंडल सूक्त 27 :: ऋषि :- शुन: शेप आजीगर्ति, देवता :- 1-12 अग्नि, 13 देवतागण, छन्द 1-12 गायत्री, 13 त्रिष्टुप।
अश्वं न त्वा वारवन्तं वन्दध्या अग्निं नमोभिः। सम्राजन्तमध्वराणाम्॥
तमोनाशक, यज्ञों के सम्राट स्वरूप हे अग्निदेव! हम स्तुतियों के द्वारा आपकी वन्दना करते हैं। जिस प्रकार अश्व अपनी पूँछ के बालों से मक्खी-मच्छर दूर भगाता है, उसी प्रकार आप भी ज्वालाओं से हमारे विरोधियों को दूर भगायें।[ऋग्वेद 1.27.1]
हे अग्निदेव! तुम बालों वाले अश्व के समान हो। यज्ञों के सम्राट समान विद्यमान अग्नि की वंदनाओं द्वारा अर्चना हेतु मैं उपस्थित हूँ।
Hey Agni Dev-the destroyer (remover) of darkness, the king of Yagy! We pray to you with the help of hymns. Please repel our opponents with your flames just like the horse who chase-throws away mosquitos and flies.
HYMES :: भजन, स्तोत्र, स्तवन; ode, psalm, prayer, eulogy, panegyric, praise, song of praise.
स घा नः सूनुः शवसा पृथुप्रगामा सुशेवः। मीढ्वाँ अस्माकं बभूयात्॥
हम इन अग्निदेव की उत्तम विधि से उपासना करते हैं। वे बल से उत्पन्न, शीघ्र गतिशील अग्निदेव हमें अभिष्ट सुखों को प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.27.2]
वह शक्ति के पुत्र, विशाल विचरण शक्ति वाले, शोभनीय सुख के ज्ञाता, अभीष्टवर्षक अग्नि देव हमारे हों।
We pray to Agni Dev with the best procedures. Agni Dev, who was born by force, is fast moving may kindly grant us all comforts, amenities.
Fire is produced when two pieces of wood are rubbed together with force or stones are struck or rubbed with each other with force (force of friction).
स नो दूराच्चासाच्च नि मर्त्यादघायोः। पाहि सदमिद्विश्वायुः॥
हे अग्निदेव! सब मनुष्यों के हित चिन्तक आप दूर से और निकट से, अनिष्ट चिन्तन से सदैव हमारी रक्षा करें।[ऋग्वेद 1.27.3]
हे सर्वत्र विचरण शील अग्नि देव! तुम हमको दूर या पास से भी, अपराध करने की कामना वालों से हमेशा बचाते रहें।
Hey Agni Dev! Please always protect us from the ill will of everyone-humans (colleague, friends, relatives etc.)
इममू षु त्वमस्माकं सनिं गायत्रं नव्यांसम्। अग्ने देवेषु प्र वोचः॥
हे अग्निदेव! आप हमारे गायत्री परक प्राण पोषक स्तोत्रों एवं नवीन अन्न (हव्य) को देवों तक (देव वृत्तियों के पोषण हेतु) पहुँचाये।[ऋग्वेद 1.27.4]
हे अग्निदेव! हमारे इस हवि दान और नवीन श्लोकों को देवों के सम्मुख श्रेष्ठ प्रकार से वर्णन करो।
Hey Agni Dev! Please carry forward our offerings (food grains) and the life protecting hymns of Gayatri to the demigods-deities.
आ नो भज परमेष्वा वाजेषु मध्यमेषु। शिक्षा वस्वो अन्तमस्य॥
हे अग्निदेव! आप हमें श्रेष्ठ (आध्यात्मिक), मध्यम (आधिदैविक) एवं कनिष्ठ (आधिभौतिक) अर्थात सभी प्रकार की धन सम्पदा प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.27.5]
हे अग्निदेव! हमको श्रेष्ठ संसार ग्रहण कराओ। मध्य संसार में उत्पन्न होने वाले अन्नों में हमें भी भागीदार बनाओ और निकटस्थ धन को हमें प्रदान करो। हे अनेक सामर्थ्य वाले अग्नि देव! तुम धन को बाँटते हो।
Hey Agni Dev! Kindly bless us with all amenities of life, ranging from lower to highest level.
विभक्तासि चित्रभानो सिन्धोरूर्मा उपाक आ। सद्यो दाशुषे क्षरसि॥
सात ज्वालाओं से दीप्तिमान हे अग्निदेव! आप धनदायक हैं। नदी के पास आने वाली जल तरंगों के सदृश आप हविष्यान्न दाता को तत्क्षण (श्रेष्ठ) कर्म फल प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 1.27.6]
समुद्र की परिधि में बहने वाले जल के तुल्य तुम यजमान के प्रा्वेद लिए अतिशीघ्र प्रवाहमान होते हो।
Hey Agni Dev glittering with 7 flames! You provide wealth (gold, money) to the worshippers. You grant the best out come-rewards of the deeds-endeavours to the host-one performing Yagy, just like the waves in the river waters, reaching the banks.
यमग्ने पृत्सु मर्त्यमवा वाजेषु यं जुनाः। स यन्ता शश्वतीरिषः॥
हे अग्निदेव! आप जीवन संग्राम में जिस पुरुष को प्रेरित करते हैं, उनकी रक्षा आप स्वयं करते हैं। साथ ही उसके लिये पोषक अन्नों की पूर्ति भी करते हैं।[ऋग्वेद 1.27.7]
वह अग्नि देव मनुष्यों के स्वामी, हमकों अश्वों द्वारा संग्राम से पार लगाते हैं तथा ज्ञान द्वारा धन प्राप्त कराते हैं।
Hey Agni Dev! One inspired by in the struggles of life, is protected by you. You provide him with sufficient food grains for his nourishment.
नकिरस्य सहन्त्य पर्येता कयस्य चित्। वाजो अस्ति श्रवाय्यः॥
हे शत्रु विजेता अग्निदेव! आपके उपासक को कोई पराजित नहीं कर सकता, क्योंकि उसकी (आपके द्वारा प्रदत्त) तेजस्विता प्रसिद्ध है।[ऋग्वेद 1.27.8]
हे विजयशील! उस पूर्वोक्त प्राणी को कोई वश में नहीं कर सकता क्योंकि उसका पराक्रम वर्णन करने योग्य हो जाता है। हे अग्नि देव! तुमने युद्धों में जिसकी रक्षा की तथा युद्धों की ओर जिसको प्रेरित किया, वह दृढ़ ऐश्वर्य प्राप्त करने वाला प्राणी सदैव स्वतंत्र रहता है।
Hey enemy defeating Agni Dev! No one can defeat your worshipers, since they possess the energy-power granted by you.
स वाजं विश्वचर्षणिरर्वद्भिरस्तु तरुता। विप्रेभिरस्तु सनिता॥
सब मनुष्यों के कल्याणकारक वे अग्निदेव जीवन-संग्राम में अश्व रूपी इन्द्रियों द्वारा विजयी बनाने वाले हैं। मेधावी पुरुषों द्वारा प्रशंसित वे अग्निदेव हमें अभीष्ट फल प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.27.9]
वह अग्नि देव मनुष्यों के स्वामी, हमकों अश्वों द्वारा संग्राम से पार लगाते हैं तथा ज्ञान द्वारा धन प्राप्त कराते हैं।
The Agni Dev, who benefit all humans, help us with the help of our organs-which are like the horse, let us win in the war of life-struggles. Appreciated by the genius, Let Agni Dev grant us the desired rewards-out put of our endeavours.
जराबोध तद्विविड्ढि विशेविशे यज्ञियाय। स्तोमं रुद्राय दृशीकम्॥
स्तुतियों से देवों को प्रबोधित करने वाले हे अग्निदेव! ये यजमान, पुनीत यज्ञ स्थल पर दुष्टता, विनाश हेतु आपका आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 1.27.10]
हे वंदनाओं के ज्ञाता अग्नि देव! हमको मनुष्यों के पूजनीय रुद्र के लिए सुन्दर श्लोक की शिक्षा प्रदान करो।
Hey Agni Dev! The hosts invite you with the help of highly esteemed hymns-prayers, at the Yagy site to vanish the wicked, depraved, sinners, viceful.
स नो महाँ अनिमानो धूमकेतुः पुरुश्चन्द्रः। धिये वाजाय हिन्वतु॥
अपरिमित धूम्र-ध्वजा से युक्त, आनन्द प्रद, महान वे अग्निदेव हमें ज्ञान और वैभव की ओर प्रेरित करें।[ऋग्वेद 1.27.11]
Agni Dev associated with the flag of smoke, pleasure granting highly esteemed may give us enlightenment and amenities-wealth.
स रेवाँ इव विश्पतिर्दैव्यः केतुः शृणोतु नः। उक्थैरग्निर्बृहद्भानुः॥
विश्व पालक, अत्यन्त तेजस्वी और ध्वजा सदृश गुणों से युक्त दूर दर्शी वे अग्नि देव वैभवशाली राजा के समान हमारी स्तवन रूपी वाणियों को ग्रहण करें।[ऋग्वेद 1.27.12]
वे अपरिमित धुम्र-ध्वज वाली अग्नि अत्यन्त दीप्तिमान है। वे हमको बुद्धि और शक्ति प्रदान करें। प्रजा के स्वामी, देवताओं से संबंधित, ज्ञानदाता, महान प्रकाश वाले वह अग्नि देव हमारे श्लोकों को ऐश्वर्यों वालों के समान सुने ।
Let Agni Dev who is the nurturer of the whole world, extremely energetic-possessing aura-brilliance, possessing the characterises of flag, far sighted-visionary accept our prayers-hymns to him.
नमो महद्भ्यो नमो अर्भकेभ्यो नमो युवभ्यो नम आशिनेभ्यः।
यजाम देवान्यदि शक्नवाम मा ज्यायसः शंसमा वृक्षि देवाः॥
बड़ों, छोटों, युवकों और वृद्धों को हम नमस्कार करते हैं। सामर्थ्य के अनुसार हम अग्नि देव सहित देवों का यजन करें। हे देवो! अपने से बड़ो के सम्मान में हमारे द्वारा कोई त्रुटी न हो।[ऋग्वेद 1.27.13]
अनुज, अग्रज, युवक, वृद्ध सभी को हम नमस्कार करें। हम शक्ति सम्पन्न हों। देवताओं को पूजने वाले हों। हे देवगण! मैं अपने बड़ों का हमेशा आदर करता रहूँ।
We salute the elders, youngers, youth and the aged. We honour Agni Dev & the demigods-deities as per our capability. Kindly ensure that no mistake is committed by us in honouring our elders (Pitr Gan, Dev Gan, Rishi Gan Deities & the ALMIGHTY).
ऋग्वेद-संहिता - प्रथम मंडल सूक्त 28 :: ऋषि :- शुन: शेप आजीगर्ति, देवता :- 1-4 इन्द्र, 5-6 उलूखल, 7-8 उलूखल मूसल, 9 प्रजापति, हरिश्चन्द्रः, अधिषवणचर्म अथवा सोम, छन्द :- 1-6 अनुष्टुप, 7-9 गायत्री।
यत्र ग्रावा पृथुबुध्न ऊर्ध्वो भवति सोतवे। उलूखलसुतानामवेद्विन्द्र जल्गुलः॥
हे इन्द्रदेव! जहाँ (सोमवल्ली) कूटने के लिए बड़ा मूसल उठाया जाता है (अर्थात सोमरस तैयार किया जाता है), वहाँ (यज्ञशाला में) उलूखल से निष्पन्न सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 1.28.1]
हे इन्द्रदेव! जहाँ कूटने के लिए दृढ़ पत्थर का मूसल उठाया जाता है, वहां निष्पन्न किये सोमों को बारम्बार सेवन करो।
Hey Indr Dev! Please come to drink Somras at the place-The Yagy Shala, where big pestle is raised to crush Somvalli to extract Somras in the mortar.
यत्र द्वाविव जघनाधिषवण्या कृता। उलूखलसुतानामवेद्विन्द्र जल्गुलः॥
हे इन्द्रदेव! जहाँ दो जंघाओ के समान विस्तृत, सोम कुटने के दो फलक रखे है, वहाँ (यज्ञशाला में) उलूखल से निष्पन्न सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 1.28.2]
हे इन्द्र देव! जहां दो जंघाओ के तुल्य सोम कूटने वाले सिल-बट्टे या दो फलक रखे हैं, उनमें तैयार किये हुए सोम रस का पान करो।
Hey Indr Dev! Come to the Yagy Shala where two big panels like the thighs have been kept to extract Somras & drink Somras.
यत्र नार्यपच्यवमुपच्यवं च शिक्षते। उलूखलसुतानामवेद्विन्द्र जल्गुलः॥
हे इन्द्रदेव! जहाँ गृहिणी सोमरस कूटने का अभ्यास करती हैं, वहाँ (यज्ञशाला में) उलूखल से निष्पन्न सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 1.28.3]
जहाँ नारी सोमरस तैयार करने के लिए मूसल से कूटने के लिए डालने निकालने का अभ्यास करती हैं, हे इन्द्र देव! वहाँ जाकर सोम रस को ग्रहण करो।
Hey Indr Dev! Please sip Somras at a place-site, where the housewives practice crushing of Somras with mortar.
यत्र मन्थां विबध्नते रश्मीन्यमितवा इव।
उलूखलसुतानामवेद्विन्द्र जल्गुलः॥
हे इन्द्रदेव! जहाँ सारथी द्वारा घोड़े को लगाम लगाने के समान (मथनी को) रस्सी से बाँधकर मन्थन करते है, वहाँ (यज्ञशाला में) उलूखल से निष्पन्न सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 1.28.4]
सारथी द्वारा अश्व को रास से बाँधने की तरह जहाँ मंथन-दंड ( मथानी) को रस्सी में बाँधकर मंथन करते हैं, उस स्थान को प्राप्त कर सोम रस का सेवन करो।
Hey Indr Dev! Please come to the site where the horses churn the dasher for extracting Somras, while the Charioteer holds the reins of the horses to use the dasher.
यच्चिद्धि त्वं गृहेगृह उलूखलक युज्यसे।
इह द्युमत्तमं वद जयतामिव दुन्दुभिः॥
हे उलूखल! यद्यपि घर-घर में तुम से काम लिया जाता है, फिर भी हमारे घर में विजय दुन्दुभि के समान उच्च शब्द करो।[ऋग्वेद 1.28.5]
हे अरवल! तुम घर-घर में कार्य हेतु जाते हो, फिर भी हमारे इस गृह में विजय-दुंदभि के तुल्य ध्वनि करो।
Hey Mortar! Please sound like the trumpet in a war after victory in war, in our house, even though you are used from door to door.
उत स्म ते वनस्पते वातो वि वात्यग्रमित्।
अथो इन्द्राय पातवे सुनु सोममुलूखल॥
हे उलूखल-मूसल रूपे वनस्पति! तुम्हारे सामने वायु विशेष गति से बहती है। हे उलूखल! अब इन्द्रदेव के सेवनार्थ सोमरस का निष्पादन करो।[ऋग्वेद 1.28.6]
हे ऊखल-मूसल वनस्पते! वायु तुम्हारे सामने विशेष चाल से चलती है।
Hey Pastel & mortar made of wood! Air blows a specific speed in front of you, when Somvalli is crushed in you. Hey mortar! Please make Somras ready to be sipped by Indr Dev.
आयजी वाजसातमा ता ह्युच्चा विजर्भृतः। हरी इवान्धांसि बप्सता॥
यज्ञ के साधन रूप पूजन योग्य वे उलूखल और मूसल दोनों, अन्न (चने) खाते हुये इन्द्रदेव के दोनों अश्वों के समान उच्च स्वर से शब्द करते हैं।[ऋग्वेद 1.28.7]
हे ऊखल! उस इन्द्रदेव को पीने के लिए सोम सिद्ध करो। महान बल को देने वाले पूजन योग्य ये ऊखल और मूसल दोनों अन्नों का सेवन करते हुए अश्व के समान ऊँची ध्वनि से बोलते हैं।
The pastel & mortar make roaring sound like the two horses deployed in the charoite of Indr Dev, when grains (gram) are crushed in them.
ता नो अद्य वनस्पती ऋष्वावृष्वेभिः सोतृभिः। इन्द्राय मधुमत्सुतम्॥
दर्शनीय उलूखल एवं मूसल रूपे वनस्पते! आप दोनों सोमयाग करने वालों के साथ इन्द्रदेव के लिये मधुर सोमरस का निष्पादन करो।[ऋग्वेद 1.28.8]
हे ऊखल-मूसल रूप वनस्पते! तुम सोम! सिद्ध करने वालों के लिए मधुर सोमों का इन्द्रदेव के लिए निष्पीड़ित करो।
Hey wood stock in the form of beautiful-good looking pastel & mortar! Get ready sweet Somras with the help of the hosts conducting Som Yagy for Indr Dev.
उच्छिष्टं चम्वोर्भर सोमं पवित्र आ सृज। नि धेहि गोरधि त्वचि॥
उलूखल और मूसल द्वारा निष्पादित सोम को पात्र से निकाल कर पवित्र कुशा के आसन पर रखें और अवशिष्ट को छानने के लिये पवित्र चर्म पर रखें।[ऋग्वेद 1.28.9]
ऊखल और मूसल द्वारा कूटे गए सोम को पात्र से निकालकर पवित्र कुश पर रखो, अवशिष्ट को चर्म-पात्र में रखो।
The Som Valli crushed with the help of pastel & mortar, be placed over the cushion made of Kush grass and after extracting Somras, place it over pious skin.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मंडल सूक्त 29 :: ऋषि :- शुन: शेप आजीगर्ति, देवता :- इन्द्र, छन्द :- पंक्ति।
यच्चिद्धि सत्य सोमपा अनाशस्ता इव स्मसि।
आ तू न इन्द्र शंसय गोष्वश्वेषु शुभ्रिषु सहस्रेषु तुवीमघ॥
हे सत्य स्वरूप सोमपायी इन्द्रदेव! यद्यपि हम प्रशंसा के पात्र तो नहीं हैं, तथापि हे ऐश्वर्यशाली इन्द्रदेव! हमें सहस्त्रों श्रेष्ठ गौएँ और घोड़े प्रदान करके सम्पन्न बनायें।[ऋग्वेद 1.29.1]
हे सत्य स्वरूप सोमपायी इन्द्रदेव! यद्यपि हम निराश से हुए पड़े हैं। फिर भी तुम अत्यन्त पुष्ट सहस्रों गौ-अश्वों को प्रदान कर हमको सन्तुष्ट करो ।
Hey the figure-embodiment of truth, Somras drinking Indr Dev! Though we do not deserve appreciation, yet hey master of all amenities Indr Dev! Please make us rich by giving us thousands of best-excellent cows and horses.
शिप्रिन्वाजानां पते शचीवस्तव दंसना।
आ तू न इन्द्र शंसय गोष्वश्वेषु शुभ्रिषु सहस्रेषु तुवीमघ॥
हे इन्द्रदेव! आप शक्तिशाली, शिरस्त्राण धारण करने वाले, बलों के अधीश्वर और ऐश्वर्यशाली हैं। आपका सदैव हम पर अनुग्रह बना रहे। हे ऐश्वर्यशाली इन्द्रदेव! हमें सहस्त्रों श्रेष्ठ गौंएँ और घोड़े प्रदान करके सम्पन्न बनायें।[ऋग्वेद 1.29.2]
हे शक्तिशाली! हे सुन्दर नासिका परिपूर्ण इन्द्रदेव! आपकी कृपा दृष्टि हमको हमेशा मिली है। हमको सहस्त्रों गौ-अश्व प्रदान करो।
Hey Indr Dev! You are mighty, helmet wearing, deity of powers and rich-wealthy! Your blessings should always be available to us. Hey master of all amenities Indr Dev! Make us rich by granting us thousands of best cows & horses.
नि ष्वापया मिथूदृशा सस्तामबुध्यमाने।
आ तू न इन्द्र शंसय गोष्वश्वेषु शुभ्रिषु सहस्रेषु तुवीमघ॥
हे इन्द्रदेव! दोनों दुर्गतियाँ (विपत्ति और दरिद्रता) परस्पर एक दूसरे को देखती हुई सो जायें। वे कभी न जागें, वे अचेत पड़ी रहें। हे ऐश्वर्यशाली इन्द्रदेव! हमें सहस्त्रों श्रेष्ठ गौएँ और घोड़े प्रदान करके सम्पन्न बनायें।[ऋग्वेद 1.29.3]
Let both kinds of troubles catastrophe-misadventures & poverty, sleep looking at each other. They should always be senseless-sleeping. Hey prosperous-royal Indr Dev! Please make us rich by giving thousands of best cows & horses to us.
दुर्गती :: दुर्दशा; बुरी गति, विपत्ति, दरिद्रता, विपरीत परिस्थिति; catastrophe, misadventures.
ससन्तु त्या अरातयो बोधन्तु शूर रातयः।
आ तू न इन्द्र शंसय गोष्वश्वेषु शुभ्रिषु सहस्रेषु तुवीमघ॥
हे इन्द्रदेव! हमारे शत्रु सोते रहें और हमारे वीर मित्र जागते रहें। हे ऐश्वर्यशाली इन्द्रदेव! हमें सहस्त्रों श्रेष्ठ गौएँ और घोड़े प्रदान करके सम्पन्न बनायें।[ऋग्वेद 1.29.4]
हे इन्द्रदेव! आपस में देखने वाली दोनों (विपत्ति और दरिद्रता) को अचेत कर दो। वे कभी भी जागरण शील न रहें। हमकों अनेक संख्याओं वाली गौ और अश्वों से परिपूर्ण करो।
Hey Indr Dev! Let our enemy continue sleeping and our well wishers-friends keep awake. Hey prosperous-royal Indr Dev! Make us rich-wealthy by giving us excellent thousands of cows & horses.
समिन्द्र गर्दभं मृण नुवन्तं पापयामुया।
आ तू न इन्द्र शंसय गोष्वश्वेषु शुभ्रिषु सहस्रेषु तुवीमघ॥
हे इन्द्रदेव! कपट पूर्ण वाणी बोलने वाले शत्रु रूप गधे को मार डालें। हे ऐश्वर्यशाली इन्द्रदेव! हमें सहस्त्रों श्रेष्ठ गौएँ और घोड़े प्रदान करके सम्पन्न बनायें।[ऋग्वेद 1.29.5]
हे इन्द्रदेव! इस पाप से परिपूर्ण वंदना करने वाले गधे के तुल्य, हमारे शत्रु को समाप्त कर डालो। हमको हजारों गौएँ और अश्व प्रदान करो।
Hey Indr Dev! Kindly kill the enemy in the form of ass, who speak deceptive words. Hey prosperous-royal Indr Dev! Make us rich-wealthy by giving us thousands of best cows & horses.
पताति कुण्डृणाच्या दूरं वातो वनादधि।
आ तू न इन्द्र शंसय गोष्वश्वेषु शुभ्रिषु सहस्रेषु तुवीमघ॥
हे इन्द्रदेव! विध्वंशकारी बवंडर वनों से दूर जाकर गिरें। हे ऐश्वर्यशाली इन्द्रदेव! हमें सहस्त्रों श्रेष्ठ गौएँ और घोड़े प्रदान करके सम्पन्न बनायें।[ऋग्वेद 1.29.6]
कुटिल चाल वाली पवन जंगम से भी दूर रहें। तुम हमको गौ धन आदि के दाता बनो।
Hey Indr Dev! Let the destructive typhoons-hurricanes fall away from the forests. Hey prosperous-royal Indr Dev! Make us rich-wealthy by giving us thousands of excellent cows & horses.
सर्वं परिक्रोशं जहि जम्भया कृकदाश्वम्।
आ तू न इन्द्र शंसय गोष्वश्वेषु शुभ्रिषु सहस्रेषु तुवीमघ॥
हे इन्द्रदेव! हम पर आक्रोश करने वाले सब शत्रुओं को विनष्ट करें। हिंसकों का नाश करें। हे ऐश्वर्यशाली इन्द्रदेव! हमें सहस्त्रों श्रेष्ठ गौंएँ और घोड़े प्रदान करके सम्पन्न बनायें।[ऋग्वेद 1.29.7]
Hey Indr Dev! Kindly kill-slay the enemies who grow angry with us. Hey prosperous-royal Indr Dev! Make us rich-wealthy by giving us thousands of cows & horses.
हे इन्द्रदेव! हमारे अशुभ चिंतन करने वाले व्यक्तियों को समाप्त कर डालो। हिंसकों को समाप्त करो। अनेकों गौएँ और अश्व प्रदान करो।
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मंडल, सूक्त 30 :: ऋषि :- शुनः शेप आजीगर्ति, देवता :- 1-16 इन्द्र, 17-19 अश्विनीकुमार, 20-22 उषा, छन्द :- 1-10, 12-15 तथा 17-22 गायत्री, 11 पादनिचृत् गायत्री, 16 त्रिष्टूप्।
आ व इन्द्रं क्रिविं यथा वाजयन्तः शतक्रतुम्। मंहिष्ठं सिञ्च इन्दुभिः॥
जिस प्रकार अन्न की इच्छा वाले, खेत में पानी सींचते हैं, उसी तरह हम बल की कामना वाले साधक इन महान इन्द्र देव को सोमरस से सींचते हैं।[ऋग्वेद 1.30.1]
हे मनुष्यों! तुमको बाहु-शक्ति ग्रहण करने की कामना से महाबलिष्ठ इन्द्रदेव को हम दुर्ग के तुल्य चारों ओर से खींचते हैं।
The manner in which desirous of grains-good crops irrigate the crops, we serve Somras to Indr Dev for want of power-might.
शतं वा यः शुचीनां सहस्रं वा समाशिराम्। एदु निम्नं न रीयते॥
नीचे की ओर जाने वाले जल के समान सैकड़ों कलश सोमरस, सहस्त्रों कलश दूध में मिश्रित होकर इन्द्रदेव को प्राप्त होता है।[ऋग्वेद 1.30.2]
नीचे की तरफ़ जाने वाले जल के तुल्य सहस्त्रों कलश दुग्ध से मिलाने के लिए सैकड़ों कलश गिरते हुए सोम को इन्द्रदेव ग्रण करते हैं।
The manner hundreds of Kalash (urn, pitcher) of water moves downwards, thousands of Kalash of milk mixed with Somras is received by Indr Dev.
सं यन्मदाय शुष्मिण एना ह्यस्योदरे। समुद्रो न व्यचो दधे॥
समुद्र में एकत्र हुये जल के सदृश सोमरस इन्द्रदेव के पेट में एकत्र होकर उन्हें हर्ष प्रदान करता है।[ऋग्वेद 1.30.3]
पानी के लिए विस्तृत हुए समुद्र के समान इन्द्र बलकारी सोम के लिए अपने उदर को बड़ा करते हैं।
Somras fills Indr Dev with joy having being accumulated in his belly-stomach like the water stored in the ocean.
अयमु ते समतसि कपोत इव गर्भधिम्। वचस्तच्चिन्न ओहसे॥
हे इन्द्रदेव! कपोत जिस स्नेह के साथ गर्भवती कपोती के पास रहता है, उसी प्रकार यह सोमरस आपके लिये प्रस्तुत है। आप हमारे निवेदन को स्वीकारें।[ऋग्वेद 1.30.4]
हे इन्द्र! यह सोम रस तुम्हारे लिए ही है। तुम इसे कबूतर द्वारा अपनी कबूतरी को प्राप्त करने के समान प्रेम से पा सकते हो।
Hey Indr Dev! The manner in which a pigeon lives with his pregnant mate affectionately, this Somras will be with you. Please accept Somras offered by us.
स्तोत्रं राधानां पते गिर्वाहो वीर यस्य ते। विभूतिरस्तु सूनृता॥
जो (स्तोतागण), हे इन्द्र! हे धनाधिपति! हे स्तुतियों के आश्रयभूत! हे वीर! (इत्यादि) स्तुतियाँ करते है, उनके लिये आपकी विभूतियाँ प्रिय एवं सत्य सिद्ध हों।[ऋग्वेद 1.30.5]
हे धनेश्वर! जिसके मुख में आपकी पूजनीय मधुर वाणी है। उसकी प्रार्थनाओं से प्राप्त होने वाले उसके भवन में ऐश्वर्य भर दो, उसकी वाणी मधुर और सत्य हो।
Requests made to you by the hosts as Hey Indr, Hey Dhanadhi Pati-master of riches! Hey asylum of all prayers! Hey Veer-warrior! etc. should become fruitful and true to them
ऊर्ध्वस्तिष्ठा न ऊतयेऽस्मिन्वाजे शतक्रतो। समन्येषु ब्रवावहै॥
सैकड़ों यज्ञादि श्रेष्ठ कार्यों को सम्पन्न करने वाले हे इन्द्रदेव! संघर्षों (जीवन संग्राम) में हमारे संरक्षण के लिये आप प्रयत्नशील रहें। हम आप से अन्य (श्रेष्ठ) कार्यों के विषय में भी परस्पर विचार-विनिमय करते रहें।[ऋग्वेद 1.30.6]
हे महाबलिष्ठ इन्द्रदेव! इस संग्राम में सुरक्षा के लिए उठो। हम दोनों भली-भाँति मंत्रणा करें।
Hey Indr Dev! You grant accomplishment in hundreds of excellent endeavours like the Yagy. Protect, grant asylum to us in the battle of life. Allow us to consult you in other virtuous, righteous, pious, Satvik deeds.
योगेयोगे तवस्तरं वाजेवाजे हवामहे। सखाय इन्द्रमूतये॥
सत्कर्मों के शुभारम्भ में एवं हर प्रकार के संग्राम में बलशाली इन्द्रदेव का हम अपने संरक्षण के लिये मित्रवत आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 1.30.7]
हे मित्र! हम प्रत्येक कर्म या संग्राम के प्रारम्भ में महाबलिष्ठ इन्द्र का आह्वान करते हैं।
We invite the mighty Indr Dev at the beginning of an endeavour-venture to protect us like a friend.
आ घा गमद्यदि श्रवत्सहस्रिणीभिरूतिभिः। वाजेभिरुप नो हवम्॥
हमारी प्रार्थना से प्रसन्न होकर वे इन्द्रदेव निश्चित ही सहस्त्रों रक्षा साधनों तथा अन्न, ऐश्वर्य आदि सहित हमारे पास आयेंगे।[ऋग्वेद 1.30.8]
यदि इन्द्र देव ने हमारी पुकार सुन ली तो वह अनेक रक्षा साधनों और शक्तियों के साथ अवश्य ही उपस्थित होंगे।
On being please-satisfied with our prayers Indr Dev will come to us with thousands of means of protection (war equipment, arms & ammunition), food grains and all amenities.
अनु प्रत्नस्यौकसो हुवे तुविप्रतिं नरम्। यं ते पूर्वं पिता हुवे॥
हम सहायता के लिये स्वर्गधाम के वासियों के पास पहुँचकर उन्हें नेतृत्व प्रदान करने वाले इन्द्रदेव का आवाहन करते हैं। हमारे पिता ने भी ऐसा ही किया था।[ऋग्वेद 1.30.9]
मैं अपने अग्रणी शक्ति स्वरूप इन्द्रदेव को पूर्वजों की तरह पुकारता हूँ। हे इन्द्रदेव! हमारे पिता श्री भी आपको पुकारते हैं।
We invite-pray to inhabitants of heavens led by Indr Dev like our forefathers (ancestors).
तं त्वा वयं विश्ववारा शास्महे पुरुहूत। सखे वसो जरितृभ्यः॥
हे विश्व वरणीय इन्द्रदेव! बहुतों द्वारा आवाहित किये जाने वाले आप, स्तोताओं के आश्रयदाता और मित्र हैं। हम ऋत्विज गण आवाहनों से उन स्तोताओं को अनुगृहीत करने की प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 1.30.10]
हे वरणीय इंद्रदेव! बहुतों द्वारा बुलाये जाने पर तुम पूजा करने वालों के शरणदाता मित्र हो। हम तुम्हारे आह्वान की अभिलाषा करते हैं।
Hey widely accepted (prayed) Indr Dev! You are invited-prayed by many hosts and you grant them protection like a friend.
अस्माकं शिप्रिणीनां सोमपाः सोमपाव्नाम्। सखे वज्रिन्सखीनाम्॥
हे सोम पीने वाले वज्रधारी इन्द्रदेव! सोम पीने के योग्य हमारे प्रियजनों और मित्रजनों में आप ही श्रेष्ठ सामर्थ्य वाले हैं।[ऋग्वेद 1.30.11]
हे सोमपायी वजिन! सोम से शक्तिशाली हुए हमारे मित्रों के लिए मित्र हो।
Hey Thunder Volt wearing, Somras drinking Indr Dev! You have the might, capability, highest calibre & you are the best amongest our friends-well wisher who drink Somras.
तथा तदस्तु सोमपाः सखे वज्रिन्तथा कृणु। यथा त उश्मसीष्टये॥
हे सोम पीने वाले वज्रधारी इन्द्रदेव! आप हमारी इच्छा पूर्ण करें। हम इष्ट प्राप्ति के निमित्त आपकी कामना करें और वह पूर्ण हो।[ऋग्वेद 1.30.12]
हे सोमपायी वज्रिन! यह अभिलाषा पूरी करो कि हम अपने अभिष्ट के लिए सदा तुम्हारा ही कामना किया करें।
Hey Thunder Volt wearing, Somras drinking Indr Dev, accomplish all our desires. All of our desires pertaining to accomplishments, goals-targets and visualizing the deities-Almighty may be fulfilled.
रेवतीर्नः सधमाद इन्द्रे सन्तु तुविवाजाः। क्षुमन्तो याभिर्मदेम॥
जिन (इन्द्रदेव) की कृपा से हम धन-धान्य से परिपूर्ण होकर प्रफुल्लित होते हैं। उन इन्द्रदेव के प्रभाव से हमारी गौएँ भी प्रचुर मात्रा में दुग्ध-घृतादि देने की सामर्थ्य वाली हों।[ऋग्वेद 1.30.13]
इन्द्र के प्रसन्न चित्त होने पर हमारी गौएँ अत्यधिक दूध दें जिससे हम अधिक पुष्ट बन सकें।
Our cows should yield sufficient milk & Ghee (clarified butter) and we should possess riches-wealth by the grace-kindness of Indr Dev.
आ घ त्वावान्त्मनाप्त स्तोतृभ्यो धृष्णवियानः। ऋणोरक्षं न चक्र्योः॥
हे धैर्यशाली इन्द्रदेव! आप कल्याणकारी बुद्धि से स्तुति करने वाले स्तोताओं को अभीष्ट पदार्थ अवश्य प्रदान करें। आप स्तोताओं को धन देने के लिये रथ के चक्रों को मिलाने वाली धुरी के समान ही सहायक है।[ऋग्वेद 1.30.14]
हे इन्द्र देव! आपकी वंदना करने पर आप स्वयं ही पहिये की धुरी के समान भाग्य को घुमाकर धन प्रदान करते हो।
Hey patience bearing Indr Dev! Kindly grant the desired rewards to those who pray with the idea of common welfare of the masses. You are helpful to the hosts-practitioner of Dharm-duty like the axle of the charoite joining the wheels.
आ यद्दुवः शतक्रतवा कामं जरितॄणाम्। ऋणोरक्षं न शचीभिः॥
हे इन्द्रदेव! आप स्तोताओं द्वारा इच्छित धन उन्हें प्रदान करें। जिस प्रकार रथ की गति से उसके अक्ष को भी गति मिलती है, उसी प्रकार स्तुतिकर्ताओं को धन की प्राप्ति हो।[ऋग्वेद 1.30.15]
हे इन्द्रदेव! साधकों की तपस्या और इच्छा के अनुसार ही तुम पहिये की धुरी के समान निर्धनता को पलट देते हो।
Hey Indr Dev! Kindly give money-riches to those-devotees who make prayers. The way the charoite gets speed by virtues of the axel, similarly the devotees should get money.
शश्वदिन्द्रः पोप्रुथद्भिर्जिगाय नानदद्भिः शाश्वसद्भिर्धनानि।
स नो हिरण्यरथं दंसनावान्स नः सनिता सनये स नोऽदात्॥
सदैव स्फूर्तिवान, सदैव (शब्दवान) हिनहिनाते हुये तीव्र गतिशील अश्वों के द्वारा जो इन्द्रदेव शत्रुओं के धन को जीतते है; उन पराक्रमशील इन्द्रदेव ने अपने स्नेह से हमें सोने का रथ (अकूत-वैभव) दिया है।[ऋग्वेद 1.30.16]
इन्द्रदेव हमेशा ही शत्रुओं के धन को अपनी स्फूर्ति परिपूर्ण अश्वों के द्वारा जीतता रहा है। आपने प्रेमवश हमको स्वर्ण का रथ प्रदान किया है।
हिनहिनाना :: हींसना; snicker, neigh, horselaugh.
The energetic, fast moving, enthusiastic Indr Dev moving over the charoite pulled by the horses making sound (snicker, neigh, horselaugh), wins the enemy of their wealth, that Indr dev has given us a lot of money due to his affection & love.
आश्विनावश्वावत्येषा यातं शवीरया। गोमद्दस्रा हिरण्यवत्॥
हे शक्तिशाली अश्विनीकुमारों! आप बलशाली अश्वों के साथ अन्नों, गौओं और स्वर्णादि धनों को लेकर यहाँ पधारें।[ऋग्वेद 1.30.17]
हे भीषण बल वाले अश्विनी कुमारों! तुम घोड़ों की गति से गौ और स्वर्गादि धन सहित यहां आओ।
Hey powerful-mighty Ashwani Kumars (sons of Bhagwan Sury)! Please come here with strong-powerful horses, food grains, cows and wealth in the form of gold & jewels.
समानयोजनो हि वां रथो दस्रावमर्त्यः। समुद्रे अश्विनेयते॥
हे अश्विनी कुमारों! आप दोनों के लिये जुतने वाला एक ही रथ आकाशमार्ग से जाता है। उसे कोई नष्ट नही कर सकता।[ऋग्वेद 1.30.18]
हे अश्विनी कुमारो! तुम दोनों के लिए जुतने वाला एक ही रथ आकाश पथ में चलता है, जिसे कोई नष्ट नहीं कर सकता।
Hey Ashwani Kumars! The only charoite meant for you, moves through the space-sky and no one can destroy it.
न्यघ्न्यस्य मूर्धनि चक्रं रथस्य येमथुः। परि द्यामन्यदीयते॥
हे अश्विनी कुमारों! आप के रथ (पोषण प्रक्रिया) का एक चक्र पृथ्वी के मूर्धा भाग में (पर्यावरण चक्र के रूप में) स्थित है और दूसरा चक्र द्युलोक में सर्वत्र गतिशील है।[ऋग्वेद 1.30.19]
हे अश्विनी कुमारों! तुमने अपने रथ के पहिए को पर्वत पर स्थित किया है तथा दूसरा पहिया अम्बर के चारों ओर चलता है।
One of the cycles of charoite passes through the heavens and the other one covers the earth, in the form of environment-seasons.
कस्त उषः कधप्रिये भुजे मर्तो अमर्त्ये। कं नक्षसे विभावरि॥
हे स्तुति-प्रिय, अमर, तेजोमयी उषे! कौन मनुष्य आपका अनुदान प्राप्त करता है? किसे आप प्राप्त होती हैं? (अर्थात प्रायः सभी मनुष्य आलस्यादि दोषों के कारणा आप का लाभ पूर्णतया नहीं प्राप्त कर पाते)।[ऋग्वेद 1.30.20]
हे पापों का विनाश करने वाली उषे! कौन मरणधर्मा मनुष्य तुम्हारे सुख को ग्रहण कर सकता है?
Hey prayer loving, immortal, energetic Usha-day break! Who receives your blessings, who attains you!? The lazy is deprived of your benefits.
वयं हि ते अमन्मह्यान्तादा पराकात्। अश्वे न चित्रे अरुषि॥
हे अश्व (किरणों) युक्त चित्र-विचित्र प्रकाश वाली उषे! हम दूर अथवा पास से आपकी महिमा समझने में समर्थ नहीं हैं।[ऋग्वेद 1.30.21]
हे अश्वों के तुल्य विचरण करने वाली कांतिमयी उषे तुम क्रोध विमुख का ही हमसे पास या दूर चिंतन किया है।
Hey portraying different curious forms of rays, Usha! Whether close or far from you, we are unable to understand your glory-might, value.
त्वं त्येभिरा गहि वाजेभिर्दुहितर्दिवः। अस्मे रयिं नि धारय॥
हे द्युलोक की पुत्री उषे! आप उन (दिव्य) बलों के साथ यहाँ आयें और हमें उत्तम ऐश्वर्य धारण करायें।[ऋग्वेद 1.30.22]
Hey the daughter of the heavens Usha! Please come here and enrich us with the best amenities.
हे क्षितिज सुते! तुम उन बला के साथ यहाँ पधारो, जिनके द्वारा श्रेष्ठ समृद्धि की हमारे लिए स्थापना क सको।
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मंडल सूक्त 31 :: ऋषि :- हिरण्य स्तूप अंङ्गिरस, देवता :- अग्नि, छन्द :- जगती 8, 16, 18 त्रिष्टुप।
त्वमग्ने प्रथमो अङ्गिरा ऋषिर्देवो देवानामभवः शिवः सखा।
तव व्रते कवयो विद्मनापसोऽजायन्त मरुतो भ्राजदृष्टयः॥
हे अग्निदेव! आप सर्वप्रथम अंगिरा ऋषि के रूप में प्रकट हुये, तदनन्तर सर्वद्रष्टा, दिव्यता युक्त, कल्याणकारी और देवों के सर्वश्रेष्ठ मित्र के रूप में प्रतिष्ठित हुए। आप के व्रतानुशासन से मरूद गण क्रान्तदर्शी कर्मों के ज्ञाता और श्रेष्ठ तेज आयुधों से युक्त हुये हैं।[ऋग्वेद 1.31.1]
हे अग्नि देव! तुम अंगिरा ऋषि से पहले होकर भी उनके और हमारे मंगल की इच्छा करने वाले सखा हो। मेधावी ज्ञान और कार्य वाले चमकते हुए शास्त्रों वाले मरुदगण तुम्हारे नियम में प्रकट हुए हैं।
Hey Agni Dev! At first, you appeared as Rishi-sage Angira and then established as a visionary of everything (Time, events), associated with divinity, benefiting best friend of demigods-deities. Its you by virtue of who's discipline-determination, the Marud Gan-aware of energetic endeavours, have been armed with the best, sharp weapons (Astr-Shastr, Ayudh).
त्वमग्ने प्रथमो अङ्गिरस्तमः कविर्देवानां परि भूषसि व्रतम्।
विभुर्विश्वस्मै भुवनाय मेधिरो द्विमाता शयुः कतिधा चिदायवे॥
हे अग्निदेव! आप अंगिराओं में आद्य और शिरोमणि हैं। आप देवताओं के नियमों को सुशोभित करते हैं। आप संसार में व्याप्त तथा दो माताओं वाले दो अरणियों से समुद्भूत होने से बुद्धिमान हैं। आप मनुष्यों के हितार्थ सर्वत्र विद्यमान रहते हैं।[ऋग्वेद 1.31.2]
हे अग्ने! तुम अंगिराओं में और उत्तम और प्रथम हो। तुम देवगणों को नियमों से शोभायमान करते हो। लोक व्यापक दो माथे वाले! प्राणियों की भलाई के लिये विद्यमान हो।
आद्य :: आदि कालीन, अनगढ़, प्रारम्भिक, प्राचीन, प्रथम, प्रथम जात; proto, primitive, primordial, primeval.
Hey Agni Dev! You are the eldest-senior most and best amongest the Angira (sons of Angira). You promote the rules-regulations for the demigods-deities. You pervade the entire universe and born out of two mothers (pieces of wood) & is intelligent. You are present every where for the benefit of the humans.
त्वमग्ने प्रथमो मातरिश्वन आविर्भव सुक्रतूया विवस्वते।
अरेजेतां रोदसी होतृवूर्येऽसघ्नोर्भारमयजो महो वसो॥
हे अग्निदेव! आप ज्योतिर्मय सूर्य देव के पूर्व और वायु के भी पूर्व आविर्भूत हुए। आपके बल से आकाश और पृथ्वी काँप गये। होता रूप में वरण किये जाने पर आपने यज्ञ के कार्य का सम्पादन किया। देवों का यजन कार्य पूर्ण करने के लिये आप यज्ञ वेदी पर स्थापित हुए।[ऋग्वेद 1.31.3]
हे अग्ने! तुम सुन्दर कर्म की इच्छा से प्रकट हुए हो। होता के ग्रहण करने पर तुम्हारे पराक्रम से धरती आकाश कम्पायमान हो जाते हैं। इसी कारण तुमने यज्ञ का भार उठाकर देवगणों का पूजन किया है।
Hey Agni Dev! You evolved prior to brilliant Sury Dev-Sun and Pawan Dev-Air. You might trembled the earth & sky. You performed the deeds pertaining to Yagy, when accepted-appointed as a host. You acquired the holy seat-Yagy Vedi to accomplish the prayers-worship offered to the demigods-deities.
त्वमग्ने मनवे द्यामवाशयः पुरूरवसे सुकृते सुकृत्तरः।
श्वात्रेण यत्पित्रोर्मुच्यसे पर्या त्वा पूर्वमनयन्नापरं पुनः॥
हे अग्निदेव! आप अत्यन्त श्रेष्ठ कर्म वाले हैं। आपने मनु और सुकर्मा-पुरूरवा को स्वर्ग के आशय से अवगत कराया। जब आप मातृ-पितृ रूप दो काष्ठों के मन्थन से उत्पन्न हुये, तो सूर्य देव की तरह पूर्व से पश्चिम तक व्याप्त हो गये।[ऋग्वेद 1.31.4]
हे अग्निदेव! तुम अत्यन्त महान कार्य वाले हो। तुमने मनु और पुरुरवा सम्राट को स्वर्ग के सम्बन्ध में बताया था। जब तुम मातृ-भूत दो काष्ठों में रचित होते हो। तब तुम्हें पूर्व की ओर ले जाते हैं।
Hey Agni Dev! You perform the excellent deeds. You explained the essentials of heaven to Manu & Sukarma (Pururav). You were born out of two woods in the form of mother & father and established like Sun from East to West.
त्वमग्ने वृषभः पुष्टिवर्धन उद्यतस्रुचे भवसि श्रवाय्यः।
य आहुतिं परि वेदा वषट्कृतिमेकायुरग्रे विश आविवाससि॥
हे अग्निदेव! आप बड़े बलिष्ठ और पुष्टि वर्धक है। हवि दाता, स्त्रुवा हाथ में लिये स्तुति को उद्यत है, जो वषटकार (आहुति, हवि) युक्त आहुति देता है, उस याजक को आप अग्रणी पुरुष के रूप में प्रतिष्ठित करते हैं।[ऋग्वेद 1.31.5]
हे पोषण शक्ति वाले अग्नि देव! स्त्रुव हाथ में लिए हवि दाता तुम्हारी वन्दना करता है तथा वषट्कार सहित आहुति देता है। तुम प्रधान पुरुष उन यजमानों को प्रकाशित करते हो।
वषट :: शब्दांश-अव्य, एक शब्द जिसका उच्चारण यज्ञ के समय अग्नि में आहुति देते समय किया जाता है। अंगन्यास और करन्यास में शिखा और मध्यमा के साथ इसका व्यवहार होता है।
Hey Agni Dev! You are mighty and nourishing. One who make offerings & is ready to make offerings using Vashatkar (syllable), you establish him as a leader.
त्वमग्ने वृजिनवर्तनिं नरं सक्मन्पिपर्षि विदथे विचर्षणे।
यः शूरसाता परितक्म्ये धने दभ्रेभिश्चित्समृता हंसि भूयसः॥
हे विशिष्ट द्रष्टा अग्निदेव! आप पापकर्मियों का भी उद्धार करते है। बहुसंख्यक शत्रुओं का सब ओर से आक्रमण होने पर भी थोड़े से वीर पुरुषों को लेकर सब शत्रुओं को मार गिराते हैं।[ऋग्वेद 1.31.6]
हे विशिष्ट इष्टा अग्नि देव! तुम पाप कर्मियों का भी उद्धार करते हो। तुम संग्राम उपस्थित होने पर थोड़े से कर्म वीरों द्वारा भी बहुसंख्यक पापियों का पतन करा देते हो।
Hey farsighted Agni Dev! You relinquish the sinners as well (who resort to virtues, worship, devotion). You slay the enemy in large numbers with the help of just a few brave soldiers.
त्वं तमग्ने अमृतत्व उत्तमे मर्तं दधासि श्रवसे दिवेदिवे।
यस्तातृषाण उभयाय जन्मने मयः कृणोषि प्रय आ च सूरये॥
हे अग्निदेव! आप अपने अनुचर मनुष्यों को दिन-प्रतिदिन अमरपद का अधिकारी बनाते हैं, जिसे पाने की उत्कट अभिलाषा देवगण और मनुष्य दोनों ही करते रहते हैं। वीर पुरुषों को अन्न और धन द्वारा सुखी बनाते हैं।[ऋग्वेद 1.31.7]
हे अग्नि देव! तुम उस सेवक को भी अविनाशी पद देकर यशस्वी बनाते हो, उस पद की देवता और प्राणी दोनों ही इच्छा करते हैं। तुम अपने साधकों को अन्न और धन के द्वारा सुखी करते हो।
Hey Agni Dev! You make your followers able to attain immortality, desired by both demigods-deities & the humans. You make the brave happy-comfortable, rich with food grains and wealth.
त्वं नो अग्ने सनये धनानां यशसं कारुं कृणुहि स्तवानः।
ऋध्याम कर्मापसा नवेन देवैर्द्यावापृथिवी प्रावतं नः॥
हे अग्निदेव! प्रशंसित होने वाले आप हमें धन प्राप्त करने की सामर्थ्य दें। हमें यशस्वी पुत्र प्रदान करें। नये उत्साह के साथ हम यज्ञादि कर्म करें। द्यावा-अन्तरिक्ष, पृथ्वी और देव गण सब प्रकार से रक्षा करें।[ऋग्वेद 1.31.8]
हे अग्नि देव! हमको धन-प्राप्ति की योग्यता प्रदान करो। तपस्वी को यशस्वी बनाओ।हम नवीन उमंग से भी उद्धार वाले पापियों का पतन करा देते हो।
Hey Agni Dev! Having been appreciation (prayed, worshipped) you bless us with wealth and worthy-glorious sons. Let the space, earth and all demigods-deities bless us (due to your patronage).
त्वं नो अग्ने पित्रोरुपस्थ आ देवो देवेष्वनवद्य जागृविः।
तनूकृद्बोधि प्रमतिश्च कारवे त्वं कल्याण वसु विश्वमोपिषे॥
हे निर्दोष अग्निदेव! सब देवों में चैतन्य रूप आप हमारे मातृ-पितृ (उत्पन्न करने वाले) हैं। आप ने हमें बोध प्राप्त करने की सामर्थ्य दी, कर्म को प्रेरित करने वाली बुद्धि विकसित की। हे कल्याणरूप अग्निदेव! हमें आप सम्पूर्ण ऐश्वर्य भी प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.31.9]
हे अग्नि देव! तुम उस सेवक को भी अविनाशी पद देकर यशस्वी बनाते हो, उस पद की देवता और प्राणी दोनों ही इच्छा करते हैं। तुम अपने साधकों को अन्न और धन के द्वारा सुखी करते हो।
Hey pious (pure) Agni Dev! You are consciousness amongest all the demigods-deities & is like our parents. You provided us the intelligence to understand-analyses & inspired us to perform (endeavours, Karm). Hey embodiment of welfare! Grant us all sorts of amenities.
त्वमग्ने प्रमतिस्त्वं पितासि नस्त्वं वयस्कृत्तव जामयो वयम्।
सं त्वा रायः शतिनः सं सहस्रिणः सुवीरं यन्ति व्रतपामदाभ्य॥
हे अग्निदेव! आप विशिष्ट बुद्धि-सम्पन्न, हमारे पिता रूप, आयु प्रदाता और बन्धु रूप हैं। आप उत्तम वीर, अटल गुण सम्पन्न, नियम-पालक और असंख्यों धनों से सम्पन्न हैं।[ऋग्वेद 1.31.10]
हे अग्नि देव! हमको धन-प्राप्ति की योग्यता प्रदान करो। तपस्वी को यशस्वी बनाओ। हम नवीन उमंग से अनुष्ठान आदि कार्य करें। देवों से युक्त क्षितिज धरा हमारे रक्षक हों।
Hey Agni Dev! Like our father, brother you grants us longevity & has the special intelligence. You are an excellent warrior, gifted with firmness-determination, adhering to rules-regulations having uncountable wealth-riches.
त्वामग्ने प्रथममायुमायवे देवा अकृण्वन्नहुषस्य विश्पतिम्।
इळामकृण्वन्मनुषस्य शासनीं पितुर्यत्पुत्रो ममकस्य जायते॥
हे अग्निदेव! देवताओं ने सर्वप्रथम आपको मनुष्यों के हित के लिये राजा रूप में स्थापित किया। तपश्चात जब हमारे (हिरण्यस्तूप ऋषि) पिता अंगिरा ऋषि ने आपको पुत्र रूप में आविर्भूत किया, तब देवताओं ने मनु की पुत्री इळा को शासन-अनुशासन (धर्मोपदेश) कर्त्री बनाया।[ऋग्वेद 1.31.11]
हे अग्निदेव! देवताओं ने तुमको मनुष्यों की भलाई करने लिये स्वामी बनाया है। मेरे पिता अंगिरा ऋषि) के पुत्र से जब तुम रचित हुए तब देवों ने इड़ा को मनु की उपदेशिका बनाया है।
Hey Agni Dev! At first-initially the demigods-deities installed you as the king of humans. Later when our father Angira fathered you, Manu's daughter Ila was established as the governor of administration-rule & discipline.
त्वं नो अग्ने तव देव पायुभिर्मघोनो रक्ष तन्वश्च वन्द्य।
त्राता तोकस्य तनये गवामस्यनिमेषं रक्षमाणस्तव व्रते॥
हे अग्निदेव! आप वन्दना के योग्य हैं। आप रक्षण साधनों से धन युक्त हमारी रक्षा करें। हमारी शारीरिक क्षमता को अपनी सामर्थ्य से पोषित करें। शीघ्रतापूर्वक संरक्षित करने वाले आप, हमारे पुत्र-पौत्रादि और गवादि पशुओं के संरक्षक हों।[ऋग्वेद 1.31.12]
हे अग्निदेव! तुम कृपा करने वाले हमारे पिता के समान ही हो। हम तुम्हारे सहारे हैं। तुम सहस्त्रों धनों के कर्ता हो और सबसे उत्तम वीर हो। तुम अपनी कृपा से धनी हुए हमारे शरीरों का पोषण और रक्षण करो। अविलम्ब हमारी संतान और पशुओं की रक्षा करो।
O Agni Dev! You deserve worship. Please protect us by acquiring weapons (Astr-Shastr). Nourish our physical strength & patronise our son & grand sons along with our cows.
त्वमग्ने यज्यवे पायुरन्तरोऽनिषङ्गाय चतुरक्ष इध्यसे।
यो रातहव्योऽवृकाय धायसे कीरेश्चिन्मन्त्रं मनसा वनोषि तम्॥
हे अग्निदेव! आप याजकों के पोषक हैं, जो सज्जन हविदाता आपको श्रेष्ठ, पोषक हविष्यान्न देते हैं, आप उनकी सभी प्रकार से रक्षा करते हैं। आप साधकों (उपासकों) की स्तुति हृदय से स्वीकार करते हैं।[ऋग्वेद 1.31.13]
हे अग्निदेव! तुम पूजन के पालन कर्त्ता हो। जिसने तुमको अहिंसित हवि दी है और जो निरस्त्र है, उसे तुम सभी ओर से देखते हो। तुम अपने साधक की इच्छा पर ध्यान देते हो।
Hey Agni Dev! You are the nurturer of those who pray to you. Those hosts performing Yagy, make offerings of best-excellent nourishing food grains are protected by you, by all means. You accept the prayers of the devotees from the depth of your heart.
त्वमग्न उरुशंसाय वाघते स्पार्हं यद्रेक्णः परमं वनोषि तत्।
आध्रस्य चित्प्रमतिरुच्यसे पिता प्र पाकं शास्सि प्र दिशो विदुष्टरः॥
हे अग्निदेव! आप स्तुति करने वाले ऋत्विजों को धन प्रदान करते हैं। आप दुर्बलों को पिता रूप में पोषण देने वाले और अज्ञानी जनों को विशिष्ट ज्ञान प्रदान करने वाले मेधावी हैं।[ऋग्वेद 1.31.14]
हे अग्निदेव! उत्तम अभिष्ट धन की ऋत्विज के लिए साध्य करते हो। तुम कमजोर के पिता और मूर्ख को ज्ञान का प्रकाश देने वाले हो।
Hey Agni Dev! You shower riches over the hosts performing Yagy. You are the genius who nourish the weak & fragile, give special kind of intelligence to the ignorant devotees.
त्वमग्ने प्रयतदक्षिणं नरं वर्मेव स्यूतं परि पासि विश्वतः।
स्वादुक्षद्मा यो वसतौ स्योनकृज्जीवयाजं यजते सोपमा दिवः॥
हे अग्निदेव! आप पुरुषार्थी यजमानों की कवच रूप में सुरक्षा करते हैं। जो अपने घर में मधुर हविष्यान्न देकर सुखप्रद यज्ञ करता है, वह घर स्वर्ग की उपमा के योग्य होता है।[ऋग्वेद 1.31.15]
हे अग्नि देव! तुम दक्षिणा वाले यजमान के लिए कवच के तुल्य रक्षक हो। जो अपने गृह में मृदु अग्नि हवि से सुख प्रदान करने वाले अनुष्ठान के करता है, वह स्वर्गीय उपमा का अधिकारी होता है।
Hey Agni Dev! You provide a protective shield to the hosts who resort to endeavours-perform Yagy (Karm, studies, social welfare). The host-devotee engaged in such Yagy and make offerings of sweets, finds his home comparable to the heavens.
इमामग्ने शरणिं मीमृषो न इममध्वानं यमगाम दूरात्।
आपिः पिता प्रमतिः सोम्यानां भृमिरस्यृषिकृन्मर्त्यानाम्॥
हे अग्निदेव! आप यज्ञ कर्म करते समय हुई हमारी भूलों को क्षमा करें; जो लोग यज्ञ मार्ग से भटक गये हैं, उन्हें भी क्षमा करें। आप सोम याग करने वाले याजकों के बन्धु और पिता हैं। सद्बुद्धि प्रदान करने वाले और ऋषि कर्म के कुशल प्रणेता है।[ऋग्वेद 1.31.16]
हे अग्निदेव! तुम हमारे यज्ञ में हुई भूलों को माफ करो। जो कुमार्ग में बहुत बढ़ गया है, उसे क्षमा करो। तुम सोम वाले यजमान के मित्र, जनक और उस पर कृपा करने वाले हो।
Hey Agni Dev! Please excuse us for the mistakes committed by us. Forgive those as well, who have deviated from their virtuous path while conducting the Yagy. You are like the father & brother of those who conduct Som Yagy. You provide virtuous, righteous, pious intelligence and inspire to perform the duties of the Rishis (saints, sages).
मनुष्वदग्ने अङ्गिरस्वदङ्गिरो ययातिवत्सदने पूर्ववच्छुचे।
अच्छ याह्या वहा दैव्यं जनमा सादय बर्हिषि यक्षि च प्रियम्॥
हे पवित्र अंगिरा अग्निदेव! (अंगों में व्याप्त अग्नि) आप मनु, अंगिरा (ऋषि), ययाति जैसे पुरुषों के साथ देवों को ले जाकर यज्ञ स्थल पर सुशोभित हों। उन्हें कुश के आसन पर प्रतिष्ठित करते हुए सम्मानित करें।[ऋग्वेद 1.31.17]
हे अग्ने! हे अंगिरा! तुम दोनों हमारे अत्यधिक पवित्र यज्ञ को प्राप्त हो जाओ पूर्वकाल में मनु, अंगिरा, ययाति के यज्ञ में आने वाले देवताओं को आमंत्रित कर कुश पर विद्यमान करते हुए उनका अर्चन करो।
Hey pious Angira-Agni Dev (son of rishi Angira)! Please be present at the Yagy site along with Manu, Angira, people like Yayati. Let them be seated over the cushions made of Kush grass, honouring them.
एतेनाग्ने ब्रह्मणा वावृधस्व शक्ती वा यत्ते चकृमा विदा वा।
उत प्र णेष्यभि वस्यो अस्मान्सं नः सृज सुमत्या वाजवत्या॥
हे अग्निदेव! इन मंत्र रूप स्तुतियों से आप वृद्धि को प्राप्त करें। अपनी शक्ति या ज्ञान से हमने जो यजन किया है, उससे हमें ऐश्वर्य प्रदान करें। बल बढाने वाले अन्नों के साथ शुभ मति से हमें सम्पन्न करें।[ऋग्वेद 1.31.18]
हे अग्निदेव! इस मंत्र रूप वंदनाओं से वृद्धि को ग्रहण होओ। यह वंदना बल ज्ञान से तुम्हारे लिए ही हमने ग्रहण की है। तुम हमको समृद्धि प्रदान करो और शक्ति देने वाली बुद्धि प्रदान करो।
Hey Agni Dev! You should grow with the prayers made by us in the form of hymns and gain strength. Provide us with the amenities as per our power-capability, learning-knowledge in conducting the Yagy. Please enrich us with the food grains, which boost our pious mind.
The food we eat affects our brain & working as well. Pure vegetarian food, without any sort of drugs-narcotics, keeps our brain healthy and motivate us to follow the right path, leading to Salvation (emancipation-Moksh).
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मंडल सूक्त 32 :: ऋषि :- हिरण्यस्तूप अङ्गिरस, देवता :- इन्द्र, छन्द :- त्रिष्टुप।
इन्द्रस्य नु वीर्याणि प्र वोचं यानि चकार प्रथमानि वज्री।
अहन्नहिमन्वपस्ततर्द प्र वक्षणा अभिनत्पर्वतानाम्॥
मेघों को विदिर्ण कर पानी बरसाने वाले, पर्वतीय नदियों के तटों (embarkments) को निर्मित करने वाले वज्रधारी, पराक्रमी इन्द्रदेव के कार्य वर्णनीय है। उन्होंने जो प्रमुख वीरतापूर्ण कार्य किये, वे ये ही हैं।[ऋग्वेद 1.32.1]
प्राचीन काल में वज्रधारी इन्द्र देव ने जो पराक्रम किये, उन्हें बताता हूँ। पहले इन्होंने मेघ को समाप्त किया, फिर वृष्टि को। प्रवाहमान नदियों के लिए रास्ता निर्माण किया।
Accomplishments of Thunder Volt wearing Indr Dev as a warrior are praiseworthy-descriptive. He made the clouds rain, built embankments of mountainous rivers.
अहन्नहिं पर्वते शिश्रियाणं त्वष्टास्मै वज्रं स्वर्यं ततक्ष।
वाश्रा इव धेनवः स्यन्दमाना अञ्जः समुद्रमव जग्मुरापः॥
इन्द्र देव के लिये त्वष्टा देव ने शब्द चालित वज्र का निर्माण किया, उसी से इन्द्र देव ने मेघों को विदिर्ण कर जल बरसाया। रंभाती हुयी गौओं के समान वे जल प्रवाह वेग से समुद्र की ओर चले गये।[ऋग्वेद 1.32.2]
इन इन्द्र देव के लिए त्वष्टा ने ध्वनिकारक वज्र को उत्पन्न किया, जिससे पर्वत में रुके हुए बादल को मारकर जल निकाला। वे तब रंभाती हुई गायों के तुल्य सीधे समुद्र को चले गये।
Twasta Dev made thunder volt for Indr Dev, which functions just uttering words-orders, used by him to shower rains from the clouds. The rain waters moved to the oceans making roaring sounds like the cows.
वृषायमाणोऽवृणीत सोमं त्रिकद्रुकेष्वपिबत्सुतस्य।
आ सायकं मघवादत्त वज्रमहन्नेनं प्रथमजामहीनाम्॥
अतिबलशाली इन्द्रदेव ने सोम को ग्रहण किया। यज्ञ में तीन विशिष्ट पात्रों में अभिषव (यज्ञादि के समय किया जाने वाला स्नान) किये हुये सोम का पान किया। ऐश्वर्यवान इन्द्रदेव ने बाण और वज्र को धारण कर मेघों में प्रमुख मेघ को विदीर्ण किया।[ऋग्वेद 1.32.3]
ऋषभ के तुल्य शक्ति से इन्द्रदेव ने सोम का वरण किया। त्रिकुद के यज्ञ में सींचे हुए सोम का पान किया। धनेश इन्द्रदेव ने वज्र को स्वीकार कर बादलों में उत्पन्न जल को बेधा।
Mighty Indr Dev accepted Som Ras after bathing for the Yagy. Indr Dev having riches-amenities shot arrows & Thunder Volt to tear clouds (for rains).
यदिन्द्राहन्प्रथमजामहीनामान्मायिनाममिनाः प्रोत मायाः।
आत्सूर्यं जनयन्द्यामुषासं तादीत्ना शत्रुं न किला विवित्से॥
हे इन्द्रदेव! आपने मेघों में प्रथम उत्पन्न मेघ को वेध दिया। मेघ रूप में छाये धुन्ध (मायावियों) को दूर किया, फिर आकाश में उषा और सूर्य को प्रकट किया। अब कोई भी अवरोधक शत्रु शेष न रहा।[ऋग्वेद 1.32.4]
हे इन्द्रदेव! तुमने मेघों में उत्पन्न प्रथम मेघ (वृत) का वध किया, प्रपंचियों को विनाश किया फिर सूर्य, उषा और पाताल को प्रकट किया। तब कोई शत्रु शेष नहीं रहा।
Hey Indr Dev! You targeted the first cloud from amongest the clouds and tore it, cleared the fog (& mist) and unfolded-cleared Usha (the morning break, first rays of light) and Bhawan Sury Narayan. Now, no enemy was left.
अहन्वृत्रं वृत्रतरं व्यंसमिन्द्रो वज्रेण महता वधेन।
स्कन्धांसीव कुलिशेना विवृक्णाहिः शयत उपपृक्पृथिव्याः॥
इन्द्र देव ने घातक दिव्य वज्र से वृत्रासुर का वध किया। वृक्ष की शाखाओं को कुल्हाड़े से काटने के समान उसकी भुजाओं को काटा और तने की तरह इसे काटकर भूमि पर गिरा दिया।[ऋग्वेद 1.32.5]
इन्द्र ने घोर अंधकार करने वाले वृत्रासुर को भीषण वज्र से पेड़ों के तनों के समान काट डाला। तब वह पृथ्वी पर गिर पड़ा।
Indr Dev killed Vrata Sur with deadly-fearsome divine Vajr (thunder Volt). Cut his arms like the branches of a tree, the way an axe cuts the stem of the tree and downed him over the ground.
अयोद्धेव दुर्मद आ हि जुह्वे महावीरं तुविबाधमृजीषम्।
नातारीदस्य समृतिं वधानां सं रुजानाः पिपिष इन्द्रशत्रुः॥
अपने को अप्रतिम योद्धा मानने वाले मिथ्या अभिमानी वृत्र ने महाबली, शत्रु वेधक, शत्रु नाशक इन्द्र देव को ललकारा और इन्द्र देव के आघातों को सहन न कर गिरते हुये नदियों के किनारों को तोड़ दिया।[ऋग्वेद 1.32.6]
मिथ्याभिमानी वृत्र ने महाशक्तिशाली, शत्रुनाशक, अत्यन्त गति वाले इन्द्रदेव को और बहते हुए वृत्र ने नदियों को भी पीस डाला। पाँव और हाथियों से हीन वृत्र इन्द्रदेव से संग्राम की कामना व्यक्त की।
Vrat who nourished false pride-ego challenged Indr Dev who penetrates the enemy and destroyed him. Vrata Sur could not bear the strikes made by Indr Dev and fell down, breaking the banks of rivers.
अपादहस्तो अपृतन्यदिन्द्रमास्य वज्रमधि सानौ जघान।
वृष्णो वध्रिः प्रतिमानं बुभूषन्पुरुत्रा वृत्रो अशयद्व्यस्तः॥
हाथ और पाँव के कट जाने पर भी वृत्र ने इन्द्रदेव से युद्ध करने का प्रयास किया। इन्द्र देव ने उसके पर्वत सदृश कन्धों पर वज्र का प्रहार किया। इतने पर भी वह वर्षा करने में समर्थ इन्द्र देव के सम्मुख वह डटा रहा। अन्ततः इन्द्र देव के आघातों से ध्वस्त होकर भूमि पर गिर पड़ा।[ऋग्वेद 1.32.7]
इन्द्रदेव ने उसके कंधे पर वज्र का प्रहार कया। तब वह क्षत-विक्षत हो धराशायी हो गया।
In spite of cutting his hands and legs he tried to fight-resist Indr Dev. Indr Dev then struck his shoulders. Still he did not escape and resisted Indr dev. Ultimately he fell down due to the strikes made by Indr Dev.
नदं न भिन्नममुया शयानं मनो रुहाणा अति यन्त्यापः।
याश्चिद्वृत्रो महिना पर्यतिष्ठत्तासामहिः पत्सुतःशीर्बभूव॥
जैसे नदी की बाढ़ तटों को लाँघ जाती है, वैसे ही मन को प्रसन्न करने वाले जल (जल अवरोधक) वृत्र को लाँघ जाते हैं। जिन जलों को वृत ने अपने बल से आबद्ध किया था, उन्हीं के नीचे वृत्र मृत्यु शय्या पर पड़ा सो रहा है।[ऋग्वेद 1.32.8]
जैसे नदी किनारों को पार कर ती है, वैसे ही हृदय को हर्षित करने वाले जल वृत्र को पार करते हैं। जो वृत्र अपनी शक्ति से जलों को रोक रहा था, वही अब उसके नीचे पड़ा हुआ सो रहा है।
The way the river crosses the banks, the waters which makes one happy, crossed Vrata Sur. The water bodies (oceans, rivers, lakes) controlled by Vrata Sur covered his dead remains-body.
नीचावया अभवद्वृत्रपुत्रेन्द्रो अस्या अव वधर्जभार।
उत्तरा सूरधरः पुत्र आसीद्दानुः शये सहवत्सा न धेनुः॥
वृत्र की माता झुककर कर वृत्र का संरक्षण करने लगी, इन्द्र देव के प्रहार से बचाव के लिये वह वृत्र पर सो गयी। फिर भी इन्द्र देव ने नीचे से उस पर प्रहार किया। उस समय माता ऊपर और पुत्र नीचे था, जैसे गाय अपने बछड़े के साथ सोती है।[ऋग्वेद 1.32.9]
वृत्र की माता उसकी रक्षा के लिए उसके शरीर पर तिरछी होकर छा गई। परन्तु इन्द्र के प्रहार करने पर वह बछड़े के साथ गौ के समान सो गई।
Vrata Sur's mother tried to protect him, the way a cow tries to save her calf. She covered him by her body but Indr Dev struck him from below.
अतिष्ठन्तीनामनिवेशनानां काष्ठानां मध्ये निहितं शरीरम्।
वृत्रस्य निण्यं वि चरन्त्यापो दीर्घं तम आशयदिन्द्रशत्रुः॥
एक स्थान पर न रुकने वाले अविश्रांत (मेघ रुप) जल-प्रवाहों के मध्य वृत्र का अनाम शरीर छिपा रहता है। वह दीर्घ निद्रा में पड़ा रहता है, उसके ऊपर जल प्रवाह बना रहता है।[ऋग्वेद 1.32.10]
स्थितिहीन अविश्रान्त जलों के बीच गिरे हुए वृत्रासुर के शरीर को जल समझते हैं। वह चित्त नींद में लीन पड़ा है।
Vrata Sur's unidentified body remains covered under the waters just like the clouds moving hither & thither. He remains in deep sleep and waters keep on flowing over him.
दासपत्नीरहिगोपा अतिष्ठन्निरुद्धा आपः पणिनेव गावः।
अपां बिलमपिहितं यदासीद्वृत्रं जघन्वाँ अप तद्ववार॥
पणि नामक असुर ने जिस प्रकार गौओं अथवा किरणों को अवरूद्ध कर रखा था, उसी प्रकार जल-प्रवाहों को अगतिशील वृत्र ने रोक रखा था। वृत्र का वध कर वे प्रवाह खोल दिये गये।[ऋग्वेद 1.32.11]
जैसे गौएँ छिपी हुई थी, वैसे ही जल भी रुके हुए थे। इन्द्रदेव ने वृत्र को समाप्त उसके दरवाजे को खोल दिया।
Vrata Sur had blocked the flow of waters just like the demon named Pani, who had blocked the path of cows and rays of light. These water bodies were made to flow by killing Vrata Sur.
अश्व्यो वारो अभवस्तदिन्द्र सृके यत्त्वा प्रत्यहन्देव एकः।
अजयो गा अजयः शूर सोममवासृजः सर्तवे सप्त सिन्धून्॥
हे इन्द्रदेव! जब कुशल योद्धा वृत्र ने वज्र पर प्रहार किया, तब घोड़े की पूँछ हिलाने के तरह, बहुत आसानी से आपने अविचलित भाव से उसे दूर कर दिया। हे महाबली इन्द्रदेव! सोम और गौओं को जीतकर आपने (वृत्र के अवरोध को नष्ट कर) गंगादि सरिताओं को प्रवाहित किया।[ऋग्वेद 1.32.12]
हे पराक्रमी! तुमने गौ और सोमों को जीतकर सातों समुद्रों को प्रवाहमान किया।
Hey Indr Dev! When skilled warrior Vrata Sur attacked Vajr, you repelled him just as the horse moves his tail, you repelled him without being disturbed. Hey mighty warrior Indr Dev! You won Somras and cows and let the rivers like Maa Ganga flow.
नास्मै विद्युन्न तन्यतुः सिषेध न यां मिहमकिरद्ध्रादुनिं च।
इन्द्रश्च यद्युयुधाते अहिश्चोतापरीभ्यो मघवा वि जिग्ये॥
युद्ध में वृत्र द्वारा प्रेरित भीषण विद्युत, भयंकर मेघ गर्जन, जल और हिम वर्षा भी इन्द्र देव को रोक नही सके। वृत्र के प्रचण्ड घातक प्रयोग भी निरर्थक हुए। उस युद्ध मे असुर के कर प्रहार को इन्द्रदेव ने निरस्त करके उसे जीत लिया।[ऋग्वेद 1.32.13]
वृत्र द्वारा छोड़ी हुई विद्युत, बादल की गर्जना, जल-वृष्टि भीषण वज्र भी इन्द्र देव को न छू सके। इस संग्राम में इन्द्रदेव ने उसे हर तरह से जीत लिया।
Strikes by Vrata Sur in the war with dangerous electricity-currents (lightening), thunderous sound of clouds, heavy rainfall and his deadly strikes could not stop Indr Dev & he won Vrata Sur. Indr Dev countered all his strikes and nullified them.
अहेर्यातारं कमपश्य इन्द्र हृदि यत्ते जघ्नुषो भीरगच्छत्।
नव च यन्नवतिं च स्रवन्तीः श्येनो न भीतो अतरो रजांसि॥
हे इन्द्रदेव! वृत्र का वध करते समय यदि आपके हृदय में भय उत्पन्न होता तो किस दूसरे वीर को असुर वध के लिये देखते? ऐसा करके आपने निन्यानबे (लगभग सम्पूर्ण) जल प्रवाहों को बाज पक्षी की तरह सहज ही पार कर लिया।[ऋग्वेद 1.32.14]
हे इन्द्र देव! तुमने वृत्र पर हमला करते हुए क्या किसी अन्य आक्रमणकारी को देखा, जिसके करण तुम बाज पक्षी के समान निन्यान्वें सरिताओं के पार चले गये।
Hey Indr Dev! How could we see-observe any other warrior kill-slay Vrata Sur, had you not been fearless throughout. While achieving this feat you crossed 99 (categories of water bodies, almost all water bodies) like an hawk-eagle easily.
इन्द्रो यातोऽवसितस्य राजा शमस्य च शृङ्गिणो वज्रबाहुः।
सेदु राजा क्षयति चर्षणीनामरान्न नेमिः परि ता बभूव॥
हाथों में वज्र धारण करने वाले इन्द्र देव मनुष्य, पशु आदि सभी स्थावर-जंगम प्राणियों के राजा हैं। शान्त एवं क्रूर प्रकृति के सभी प्राणी उनके चारों ओर उसी प्रकार रहते है, जैसे चक्र की नेमि के चारों ओर उससे अरे होते हैं।[ऋग्वेद 1.32.15]
वज्रधारी इन्द्रदेव सभी स्थावर जंगम, प्राणियों के दाता हैं। प्राणियों पर शासन करते हैं। पहियों की लीक जैसे रथ को धारण करती है, वैसे ही इन्द्र ने इन सभी को व्यवस्थित कर लिया है।
Thunder Volt bearing Indr Dev is the king of all humans, animals, fixed species and gigantic organisms. All sorts of organisms-living beings keep on revolving him, like the spikes of a Chakr-disk.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मंडल सूक्त 33 :: ऋषि :- हिरण्यस्तूप अङ्गिरस, देवता :- इन्द्र, छन्द :- त्रिष्टुप .
एतायामोप गव्यन्त इन्द्रमस्माकं सु प्रमतिं वावृधाति।
अनामृणः कुविदादस्य रायो गवां केतं परमावर्जते नः॥
गौओं को प्राप्त करने की कामना से युक्त मनुष्य इन्द्रदेव के पास जायें। ये अपराजेय इन्द्रदेव हमारे लिए गोरूप धनों को बढ़ाने की उत्तम बुद्धि देंगे। वे गौओं की प्राप्ति का उत्तम उपाय करेंगें।[ऋग्वेद 1.33.1]
गौ की इच्छा करने वाले हम इन्द्रदेव के सम्मुख उपस्थित हों। हे बाधा नाशक! हमारे धन की वृद्धि करते हुए, हमारी गौओं की कामना को पूर्ण करेंगे।
Human being desirous of having cows should approach Indr Dev. Undefeated Indr Dev will help-guide us increase our riches in the form of cows. They will make best use of cows.
उपेदहं धनदामप्रतीतं जुष्टां न श्येनो वसतिं पतामि।
इन्द्रं नमस्यन्नुपमेभिरर्कैर्य स्तोतृभ्यो हव्यो अस्ति यामन्॥
श्येन पक्षी के वेग पूर्वक घोंसले में जाने के समान हम उन धन दाता इन्द्रदेव के समीप पहुँचकर स्तोत्रों से उनका पूजन करते हैं। युद्ध में सहायता के लिए स्तोताओं द्वारा बुलाये जाने पर अपराजेय इन्द्रदेव अविलम्ब पहुँचते है।[ऋग्वेद 1.33.2]
जैसे युद्ध में वन्दना कारी पुकारते हैं, उस इन्द्रदेव का कोई सामना नहीं कर सकता। मैं उन धन दाता इन्द्रदेव की उपयुक्त श्लोकों से अर्चना करता हुआ इच्छा करता हूँ। सेना वाले इन्द्रदेव ने वन्दना कारियों के पक्ष में तुणीर कस लिए।
The manner in which the bird called Shyen moves fast to its nest we too approach Indr Dev and pray-worship him with the help of hymns. Dev Raj Indr moves quickly to the needy to protect them in the war. (or the hosts, performing Yagy) who are praying to him.
नि सर्वसेन इषुधीँरसक्त समर्यो गा अजति यस्य वष्टि।
चोष्कूयमाण इन्द्र भूरि वामं मा पणिर्भूरस्मदधि प्रवृद्ध॥
सब सेनाओं के सेनापति इन्द्रदेव तरकसों को धारण कर गौओं एवं धन को जीतते हैं। हे स्वामी इन्द्रदेव! हमारी धन प्राप्ति की इच्छा पूरी करने में आप वैश्य की तरह विनिमय जैसा व्यवहार न करें।[ऋग्वेद 1.33.3]
प्रजाओं के मालिक इन्द्रदेव वादि धन को जोतने में समर्थवान हैं। हे इन्द्रदेव! तुम हमारे सहित विनिमय करने बाले न बनो।
Indr the commander of all armies wins the cows & wealth by tying quiver (bow & arrow). Hey master Indr Dev! Please do not behave like a trader-businessman to fulfill our desire for riches.
वधीर्हि दस्युं धनिनं घनेनँ एकश्चरन्नुपशाकेभिरिन्द्र।
धनोरधि विषुणक्ते व्यायन्नयज्वानः सनकाः प्रेतिमीयुः॥
हे इन्द्रदेव! आपने अकेले ही अपने प्रचण्ड वज्र से धनवान दस्यु वृत्र का वध किया। जब उसके अनुचरों ने आपके ऊपर आक्रमण किया, तब यज्ञ विरोधी उन दानवों को आपने दृढ़ता पूर्वक नष्ट कर दिया।[ऋग्वेद 1.33.4]
हे इन्द्रदेव! सहायक मरुतों के साथ अपने भीषण वज्र से बहुत धन के चोर वत्र को तुमने मारा।
Hey Indr Dev! You alone killed Vrat-the dacoit (demon) with the sharp Thunder Volt, when his servants raided you. You killed the demons who were against Yagy (rituals during prayer-worship) with firmness.
परा चिच्छीर्षा ववृजुस्त इन्द्रायज्वानो यज्वभि स्पर्धमानाः।
प्र यद्दिवो हरिव स्थातरुग्र निरव्रताँ अधमो रोदस्योः॥
हे इन्द्रदेव! याजकों से स्पर्धा करने वाले अयाज्ञिक मुंँह छिपाकर भाग गये। हे अश्व-अधिष्ठित इन्द्रदेव! आप युद्ध में अटल और प्रचण्ड सामर्थ्य वाले हैं। आपने आकाश, अंतरिक्ष और पृथ्वी से धर्म-व्रत हीनों को हटा दिया है।[ऋग्वेद 1.33.5]
फिर उस वृत्र के अनुचरों ने संगठित होकर तुम पर हमला किया, तब वे यज्ञ कर्म वालों के सामने से अयाज्ञिक भाग गये। हे घोड़े से परिपूर्ण, संग्राम में डटे रहने वाले भीषण इन्द्रदेव! तुमने क्षितिज और धरा पर दुढ़ व्रतहीनों को निःशेष कर दिया।
Hey Indr Dev! Opponents of the hosts conducting Yagy have retreated-run away. Hey horse riding Indr Dev! You are firm & stable during a war having tremendous energy (power, might, strength). You have removed-killed those who do not follow the tenets of Dharm from sky-space, earth.
अयुयुत्सन्ननवद्यस्य सेनामयातयन्त क्षितयो नवग्वाः।
वृषायुधो न वध्रयो निरष्टाः प्रवद्भिरिन्द्राच्चितयन्त आयन्॥
उन शत्रुओं ने इन्द्रदेव की निर्दोष सेना पर पूरी शक्ति से प्रहार किया, फिर भी हार गये। उनकी वही स्थिति हो गयी, जो शक्तिशाली वीर से युद्ध करने पर नपुंसक की होती है। अपनी निर्बलता स्वीकार करते हुये वे सब इन्द्रदेव से दूर चले गये।[ऋग्वेद 1.33.6]
अयाज्ञिकों ने अनिन्ध इन्द्रदेव से लड़ने की कामना की तब पराक्रमियों के संग कायरों के संग्राम करने के तुल्य परास्त हुए।
The enemy attacked the armies of Indr Dev who had not committed any thing wrong against the demons, but lost like eunuchs-impotent against the brave-mighty. Accepting their defeat-weakness, they moved away.
त्वमेतान्रुदतो जक्षतश्चायोधयो रजस इन्द्र पारे।
अवादहो दिव आ दस्युमुच्चा प्र सुन्वत स्तुवतः शंसमावः॥
हे इन्द्रदेव! आपने रोने या हँसने वाले इन शत्रुओं को युद्ध करके मार दिया, दस्यु वृत्र को ऊँचा उठाकर आकाश से नीचे गिराकर जला दिया। आपने सोमयज्ञ करने वालों और प्रशंसक स्तोताओं की रक्षा की।[ऋग्वेद 1.33.7]
हे इन्द्र देव! तुमने रोते और हँसते हुए वृत्रों को युद्ध में मार डाला। चोर वृत्र को ऊपर उठाकर आकाश से जलाकर गिराया।
Hey Indr Dev! You killed the enemy who either laughed or wept, raised Vratasur, throw him down and burnt. You protected the devotees-hosts who performed Som Yagy.
चक्राणासः परीणहं पृथिव्या हिरण्येन मणिना शुम्भमानाः।
न हिन्वानासस्तितिरुस्त इन्द्रं परि स्पशो अदधात्सूर्येण॥
उन शत्रुओं ने पृथ्वी के उपर अपना आधिपत्य स्थापित किया और स्वर्ण-रत्नादि से सम्पन्न हो गये, परन्तु वे इन्द्रदेव के साथ युद्ध में ठहर ना सके। सूर्य देव के द्वारा उन्हें दूर कर दिया गया।[ऋग्वेद 1.33.8]
फिर तुमने सोम वालों की प्रार्थनाओं से प्रसन्नता प्राप्त की उन वृत्रों ने पृथ्वी को दबा लिया, वे स्वर्ण रत्नादि से युक्त हुए। लेकिन वे इन्द्र को नहीं जीत सके। इन्द्र ने उन्हें सूर्य के माध्यम से भगा दिया।
Those enemies (Vratasur & demons) established their rule over the earth and became rich with gold & jewels, but could not withstand in front of Dev Raj Indr. Bhagwan Sury-Sun repelled them.
परि यदिन्द्र रोदसी उभे अबुभोजीर्महिना विश्वतः सीम्।
अमन्यमानाँ अभि मन्यमानैर्निर्ब्रह्मभिरधमो दस्युमिन्द्र॥
हे इन्द्रदेव! आपने अपनी सामर्थ्य से द्युलोक और भूलोक का चारों ओर से उपयोग किया। हे इन्द्रदेव! आपने अपने अनुचरों द्वारा विरोधियों पर विजय प्राप्त की। आपने मन्त्र शक्ति से (ज्ञान पूर्वक किये गये प्रयासों से) शत्रु पर विजय प्राप्त की।[ऋग्वेद 1.33.9]
हे इन्द्रदेव! तुमने क्षितिज-धरा का सभी ओर से उपयोग किया है। तुमने अपने भक्तों द्वारा विरोधियों को पराजित किया। तुम्हारी मंत्र रूप वंदनाओं ने शत्रु पर विजय प्राप्त की।
Hey Indr Dev! You utilised the upper abodes-heaven and the earth as per your might-strength. Hey Indr Dev! You won the enemies with the help of the demigods-deities. The prayers-hymns in the form of Mantr made you win the enemy.
न ये दिवः पृथिव्या अन्तमापुर्न मायाभिर्धनदां पर्यभूवन्।
युजं वज्रं वृषभश्चक्र इन्द्रो निर्ज्योतिषा तमसो गा अदुक्षत्॥
मेघ रूप वृत्र के द्वारा रोक लिये जाने के कारण जो जल द्युलोक से पृथ्वी पर नहीं बरस सके एवं जलों के अभाव से भूमी श्स्य श्यामला न हो सकी, तब इन्द्रदेव ने अपने जाज्वल्यमान वज्र से अन्धकार रूपी मेघ को भेदकर गौ के समान जल का दोहन किया।[ऋग्वेद 1.33.10]
बादल गगन धरती की सीमा प्राप्त नहीं कर सकते और गर्जन करते हुए अंधकारादि कर्मों से भी सूर्य रूपी इन्द्र को नहीं ढक सकते। लेकिन इन्द्र अपने सहायक वज्र से बादल से जलों को गाय के समान दुह लेता है।
The earth could not acquire greenery when the rains were intercepted by Vratasur in the form of clouds from outer space-sky, Indr Dev pierced the darkness with shining Vajr-Thunderbolt and obtained rains like the milking of cows.
अनु स्वधामक्षरन्नापो अस्यावर्धत मध्य आ नाव्यानाम्।
सध्रीचीनेन मनसा तमिन्द्र ओजिष्ठेन हन्मनाहन्नभि द्यून्॥
जल इन ब्रीहि (ब्रीहि :- वर्षा ऋतु में बिना पौध रोपण के उगाई जाने वाली धान की फसल) यवादि रूप अन्न वृद्धि के लिये (मेघों से) बरसने लगे। उस समय नौकाओं के मार्ग पर (जलों में) वृत्र बढ़ता रहा। इन्द्रदेव ने अपने शक्ति साधनों द्वारा एकाग्र मन से अल्प समयावधि में ही उस वृत्र को मार गिराया।[ऋग्वेद 1.33.11]
इच्छानुसार बहने वाले जलों से वृत्र वृद्धि करने लगा, तब इन्द्रदेव ने उसे अपने शक्ति साधना द्वारा समाप्त कर दिया।
The rains were set in to water the crops like barley and the ones which were grown using less water. The waters in the rivers and navigation tracts started increasing by the efforts-manoeuvre of Vratasur. Indr Dev concentrated his mind and energy and killed Vratasur in a short span of time.
न्याविध्यदिलीबिशस्य दृळ्हा वि शृङ्गिणमभिनच्छुष्णमिन्द्रः।
यावत्तरो मघवन्यावदोजो वज्रेण शत्रुमवधीः पृतन्युम्॥
इन्द्रदेव ने गुफा में सोये हुए वृत्र के किलों को ध्वस्त करके उस सींग वाले शोषक वृत्र को क्षत-विक्षत कर दिया। हे ऐश्वर्यशाली इन्द्रदेव! आपने सम्पूर्ण वेग और बल से शत्रु सेना का विनाश किया।[ऋग्वेद 1.33.12]
इन्द्रदेव ने भूमि की गुफा में शयन करते हुए वृत्र के दुर्गों का भेदन किया और उस सींग वाले को प्रताड़ना दी। हे धनवान इन्द्रदेव! तुमने अपनी शक्ति-वेग से शत्रु को समाप्त कर दिया।
Indr Dev demolished the forts of exploiter Vratasur who had horns & who slept in a cave and teared him into bits-pieces. Hey opulent Indr Dev! You finished the enemy armies with all your might-power.
अभि सिध्मो अजिगादस्य शत्रून्वि तिग्मेन वृषभेणा पुरोऽभेत्।
सं वज्रेणासृजद्वृत्रमिन्द्रः प्र स्वां मतिमतिरच्छाशदानः॥
इन्द्रदेव का तीक्ष्ण और शक्तिशाली वज्र शत्रुओं को लक्ष्य बनाकर उनके किलों को ध्वस्त करता है। शत्रुओं को वज्र से मारकर इन्द्रदेव स्वयं अतीव उत्साहित हुए।[ऋग्वेद 1.33.13]
इन्द्र के वज्र ने शत्रुओं को लक्ष कर तीक्ष्ण वर्षा के जल से उनके दुर्गों को छिन्न-भिन्न कर दिया, उन्हें वत्र से मारकर स्वयं उत्साहित हुआ।
The sharp and powerful Vajr-Thunderbolt targeted the enemies and their forts and demolished-destroyed them. Indr Dev was excited having killed the enemy with his Vajr.
आवः कुत्समिन्द्र यस्मिञ्चाकन्प्रावो युध्यन्तं वृषभं दशद्युम्।
शफच्युतो रेणुर्नक्षत द्यामुच्छ्वैत्रेयो नृषाह्याय तस्थौ॥
हे इन्द्रदेव! कुत्स ऋषि के प्रति स्नेह होने से आपने उनकी रक्षा की और अपने शत्रुओं के साथ युद्ध करने वाले श्रेष्ठ गुणवान दशद्यु ऋषि की भी आपने रक्षा की। उस समय अश्वों के खुरों से धूल आकाश तक फैल गई, तब शत्रु भय से जल में छिपने वाले श्वैत्रेय नामक पुरुष की रक्षाकर आपने उसे जल से बाहर निकाला।[ऋग्वेद 1.33.14]
हे इन्द्र देव! तुम जिस कत्म को चाहते थे उसकी तुमने सुरक्षा करते हुए, दशायु नामक ऋषभ को भी बचाया। अश्वों के खुरों से धूल उड़कर क्षितिज तक व्याप्त हो गयी। तब भी तुम युद्ध क्षेत्र में खड़े रहे।
Hey Indr Dev! You protected Rishi Kuts due to your affection for him along with talented Rishi Dashdhyu who fought along with you. The dust produced by the hoofs of the horses filled the sky and then you saved-protected the person named Shaevtrey and pulled him out of water.
आवः शमं वृषभं तुग्र्यासु क्षेत्रजेषे मघवञ्छ्वित्र्यं गाम् ।
ज्योक्चिदत्र तस्थिवांसो अक्रञ्छत्रूयतामधरा वेदनाकः॥
हे धनवान इन्द्रदेव! क्षेत्र प्राप्ति की इच्छा से सशक्त जल-प्रवाहों में घिरने वाले श्वित्र्य (व्यक्ति विशेष) की आपने रक्षा की। वहीं जलों में ठहरकर अधिक समय तक आप शत्रुओं से युद्ध करते रहे। उन शत्रुओं को जलों के नीचे गिराकर आपने मार्मिक पीड़ा पहुँचायी।[ऋग्वेद 1.33.15]
हे इन्द्रदेव! धरती की इच्छा से जल में गये हुए श्वेत्रेय की तुमने रक्षा की। जल पर रुककर अनन्तकाल तक युद्ध करते रहे। शत्रुओं के पराक्रम को तुमने जल के नीचे पहुँचा दिया।
Hey rich-wealthy Indr Dev! You protected-saved Shrivtry who was surrounded by fast moving waters while trying to seek-clear (reclaim) land. You fought the enemy staying there. You pushed the enemy into water and caused immense-poignant pain to them.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मंडल सूक्त 34 :: ऋषि :- हिरण्यस्तूप अङ्गिरस, देवता :- अश्विनी कुमार, छन्द :- जगती, 9,12 त्रिष्टुप।
त्रिश्चिन्नो अद्या भवतं नवेदसा विभुर्वां याम उत रातिरश्विना।
युवोर्हि यन्त्रं हिम्येव वाससोऽभ्यायंसेन्या भवतं मनीषिभिः॥
हे ज्ञानी अश्विनी कुमारो! आज आप दोनों यहाँ तीन बार (प्रातः, मध्यान्ह, सायं) आयें। आप के रथ और दान बड़े महान है। सर्दी की रात एवं आतप युक्त दिन के समान आप दोनों का परस्पर नित्य सम्बन्ध है। विद्वानों के माध्यम से आप हमें प्राप्त हों।[ऋग्वेद 1.34.1]
मेधावी अश्विनी कुमारों। यहाँ आज तीन बार आओ। तुम्हारा मार्ग और दान दोनों ही व्यापक हैं। सर्दियों में वस्त्रों के सहारे की भाँति हमको तुम्हारा ही सहारा है। तुम विद्वानों के माध्यम से हमको ग्रहण होओ।
आतप :: गरमी, धूप, दुःख देनेवाला; Sun.
Hey enlightened Ashwani Kumars! Please come here trice a day (morning, noon & the evening). Both of your charity-donations and the chariot are extensive-great. Both of you are related like the winters and warmness-heat during the day. We avail-contact you by means of the learned-scholars.
त्रयः पवयो मधुवाहने रथे सोमस्य वेनामनु विश्व इद्विदुः।
त्रय स्कम्भास स्कभितास आरभे त्रिर्नक्तं याथस्त्रिर्वश्विना दिवा॥
मधुर सोम को वहन करने वाले रथ में वज्र के समान सुदृढ़ पहिये लगे हैं। सभी लोग आपकी सोम के प्रति तीव्र उत्कंठा को जानते हैं। आपके रथ में अवलम्बन के लिये तीन खम्बे लगे हैं। हे अश्विनीकुमारो! आप उस रथ से तीन बार रात्रि में और तीन बार दिन में गमन करते हैं।[ऋग्वेद 1.34.2]
तुम्हारे मिष्ठान ढ़ोने वाले रथ में तीन पहिए हैं। देवगणों ने यह बात चन्द्रमा की प्यारी पत्नी के विवाह के समय जानी। उसमें सहारे के लिए तीन खम्बे लगे हैं। हे अश्विनी कुमार! तुम उस रथ से रात्रि में तीन-तीन बार गमन करते हो।
The chariot carrying sweet-tasty Somras, is fitted with wheels as strong as Vajr. Everyone knows your desire for Somras. Your chariot has three poles for support. Hey Ashwani Kumars you travel thrice by your chariot during the night.
समाने अहन्त्रिरवद्यगोहना त्रिरद्य यज्ञं मधुना मिमिक्षतम्।
त्रिर्वाजवतीरिषो अश्विना युवं दोषा अस्मभ्यमुषसश्च पिन्वतम्॥
दोषों को ढँकने वाले हे अश्विनी कुमारो! आज हमारे यज्ञ में दिन में तीन बार मधुर रसों से सिंचन करें। प्रातः, मध्यान्ह एवं सांय तीन प्रकार के पुष्टिवर्धक अन्न हमें प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.34.3]
हे दोषों के ढकने वाले अश्विनी कुमारों! तुम दिन में तीन बार विशेषकर आज तीन बार यज्ञ को मृदु रस से सींचों और दिन रात में तीन बार हमारे लिए अन्नों की लाओ।
Hey Ashwani Kumars! You hide-cover the defects. Nourish our Yagy with sweet extracts thrice. Give (grant, provide) us with nourishing foods.
त्रिर्वर्तिर्यातं त्रिरनुव्रते जने त्रिः सुप्राव्ये त्रेधेव शिक्षतम्।
त्रिर्नान्द्यं वहतमश्विना युवं त्रिः पृक्षो अस्मे अक्षरेव पिन्वतम्॥
हे अश्विनी कुमारो! हमारे घर आप तीन बार आयें। अनुयायी जनों को तीन बार सुरक्षित करें, उन्हें तीन बार तीन विशिष्ट ज्ञान करायें। सुख प्रद पदार्थो को तीन बार हमारी ओर पहुँचाये। बल प्रदायक अन्नों को प्रचुर परिमाण मे देकर हमें सम्पन्न करें।[ऋग्वेद 1.34.4]
हे कुमारद्वय! तुम तीन बार हमारे भवन में आओ। तुम अपने अनुयायी व्यक्तियों को तीन बार सुरक्षित करो। हमको तीन बार सुखदायक पदार्थ एवं तीन बार ही दिव्य अन्न प्राप्त कराओ।
Hey Ashwani Kumars! Come to our house thrice. Protect the followers thrice and enlighten them thrice with specific knowledge. Enrich us with comforting goods in sufficient quantity thrice. Enrich us with nourishing food (which enhance-boost power) thrice.
त्रिर्नो रयिं वहतमश्विना युवं त्रिर्देवताता त्रिरुतावतं धियः।
त्रिः सौभगत्वं त्रिरुत श्रवांसि नस्त्रिष्ठं वां सूरे दुहिता रुहद्रथम्॥
हे अश्विनी कुमारो! आप दोनों हमारे लिए तीन बार धन इधर लायें। हमारी बुद्धि को तीन बार देवों की स्तुति में प्रेरित करें। हमें तीन बार सौभाग्य और तीन बार यश प्रदान करें। आप के रथ में सूर्य पुत्री (उषा) विराजमान हैं।[ऋग्वेद 1.34.5]
हे अश्विद्व! हमें तीन बार धन प्रदान करो। हमारी वृत्रियों को तीन बार देव की आराधना में प्रेरित करो। हमको सौभाग्य और कीर्ति तीन-तीन बार दो। तुम्हारे रथ पर सूर्य पुत्री (ऊषा) चढ़ी हुई हैं।
Hey Ashwani Kumars! Bring wealth to us thrice. Direct our brain towards the demigods-deities thrice for prayers-enchanting hymns. Grant us good luck and honour thrice. Usha, the daughter of Sun is riding your chariot.
त्रिर्नो अश्विना दिव्यानि भेषजा त्रिः पार्थिवानि त्रिरु दत्तमद्भ्यः।
ओमानं शंयोर्ममकाय सूनवे त्रिधातु शर्म वहतं शुभस्पती॥
हे शुभ कर्म पालक अश्विनी कुमारो! आपने तीन बार हमें (द्युस्थानीय) दिव्य औषधियाँ, तीन बार पार्थिव औषधियाँ तथा तीन बार जलौषधियाँ प्रदान की हैं। हमारे पुत्र को श्रेष्ठ सुख और संरक्षण दिया है और तीन धातुओं (वात, पित्त, कफ) से मिलने वाला सुख, आरोग्य एवं ऐश्वर्य प्रदान किया है।[ऋग्वेद 1.34.6]
हे अश्विद्ववयः! हमें रोग का विनाश करने वाली औषधियाँ तीन बार दो। पार्थिव औषधियों तीन बार दो। जलों से तीन बार रोगों का नाश करो। हमारी संतान की रक्षा करो तथा हमें सुख प्रदान करो। सब सुखों को तिगुने रूप में हमें प्रदान करो।
Hey the nurturer of virtuous-pious deeds, Ashwani Kumars! You provided-granted us divine medicines, physical medicines and medicines pertaining to water in the upper abodes-heavens. You sheltered our son with excellent comforts-luxuries along with the comforts, good health and amenities from the three factors affecting health (Kaf-cough, Pitt, Vat).
त्रिर्नो अश्विना यजता दिवेदिवे परि त्रिधातु पृथिवीमशायतम्।
तिस्रो नासत्या रथ्या परावत आत्मेव वातः स्वसराणि गच्छतम्॥
हे अश्विनी कुमारो! आप नित्य तीन बार यजन योग्य हैं। पृथ्वी पर स्थापित वेदी के तीन ओर आसनों पर बैठें। हे असत्य रहित रथारूढ़ देवो! प्राण वायु और आत्मा के समान दूर स्थान से हमारे यज्ञों में तीन बार आयें।[ऋग्वेद 1.34.7]
हे अश्विद्वय! तुम प्रति दिन तीन बार पूजन करने के योग्य हो। तुम पृथ्वी पर तीन बार तीन लपटों वाले कुशासन पर जाओ। हे असत्य रहित रथी! आत्मा द्वारा शरीरों को ग्रहण करने के तुल्य तुम तीन यज्ञों को ग्रहण कराओ।
Hey Ashwani Kumars! You deserve prayers thrice a day. Occupy the cushions around the Yagy Vedi-site covering three sides. Hey truthful demigods riding the chariot, come to us from the place equally away from the life force-energy (Pran Vayu) and the soul, thrice in our Yagy.
त्रिरश्विना सिन्धुभिः सप्तमातृभिस्त्रय आहावास्त्रेधा हविष्कृतम्।
तिस्रः पृथिवीरुपरि प्रवा दिवो नाकं रक्षेथे द्युभिरक्तुभिर्हितम्॥
हे अश्विनी कुमारो! सात मातृ भूत नदियों के जलों से तीन बार तीन पात्र भर दिये हैं। हवियों को भी तीन भागों में विभाजित किया है। आकाश में ऊपर गमन करते हुए आप तीनों लोकों की दिन और रात्रि में रक्षा करते हैं।[ऋग्वेद 1.34.8]
हे अश्विद्वय! सप्त मातृ भूत जलों द्वारा हमने तीन बार सोमों को सिद्ध किया है। यह तीन कलश भरकर हवि भी तैयार की है। तुम आकाश के ऊपर चलते हुए तीनों लोकों की रक्षा करते हो।
Hey Ashwani Kumars! Three pitchers-urns are filled with the waters obtained from the 7 pious rivers designated as mothers, the offeings have been divided into three parts. You protect the three abodes (heaven, earth, nether world) while passing in the space throughout the day & night.
क्व त्री चक्रा त्रिवृतो रथस्य क्व त्रयो वन्धुरो ये सनीळाः।
कदा योगो वाजिनो रासभस्य येन यज्ञं नासत्योपयाथः॥
हे सत्य निष्ठ अश्विनी कुमारो! आप जिस रथ द्वारा यज्ञ स्थल मे पहुँचते है, उस तीन छोर वाले रथ के तीन चक्र कहाँ हैं? एक ही आधार पर स्थापित होने वाले तीन स्तम्भ कहाँ हैं!? अति शब्द करने वाले बलशाली (अश्व या संचालक यंत्र) को रथ के साथ कब जोड़ा गया था?[ऋग्वेद 1.34.9]
हे अश्विद्वय! जिस रथ के द्वारा तुम अनुष्ठान को ग्रहण होते हो, उस त्रिकोण रथ के तीन पहिये किधर लगे हैं? रथ के आधार भूत तीनों काष्ठ कहाँ हैं? तुम्हारे रथ में शक्तिशाली गर्दभ कब संयुक्त किया जायेगा?
Hey truthful Ashwani Kumars! Where are the three wheels of the triangular chariot in which you reach the site of the Yagy!? Where are the three supporting poles joined to one point. When was the machines (or the horses) producing a lot of sound connected with the chariot!?
आ नासत्या गच्छतं हूयते हविर्मध्वः पिबतं मधुपेभिरासभिः।
युवोर्हि पूर्वं सवितोषसो रथमृताय चित्रं घृतवन्तमिष्यति॥
हे सत्यशील अश्विनी कुमारो! आप यहाँ आएँ। यहाँ हवि की आहुतियाँ दी जा रही हैं। मधु पीने वाले मुखों से मधुर रसों का पान करें। आप के विचित्र पुष्ट रथ को सूर्य देव उषाकाल से पूर्व, यज्ञ के लिए प्रेरित करते है।[ऋग्वेद 1.34.10]
हे अश्विद्वय! आओ मैं हव्य देता हूँ। अतः मधुपान करने वाले सुखों से मधुर इवियों को स्वीकार करो। उषाकाल से पूर्व तुम्हारे घृत से युक्त रथ को यज्ञ में आने के लिए प्रेरणा देते हैं।
Hey truthful Ashwani Kumars! Please come here. Offerings are made here (in the Yagy). Enjoy sweet-relishing drinks with the mouth which consumes honey. The Sun (Sury Bhagwan, their father) inspires your amazing chariot prior to the day break for the Yagy.
आ नासत्या त्रिभिरेकादशैरिह देवेभिर्यातं मधुपेयमश्विना।
प्रायुस्तारिष्टं नी रपांसि मृक्षतं सेधतं द्वेषो भवतं सचाभुवा॥
हे अश्विनी कुमारो! आप दोनों तैंतीस देवताओं सहित हमारे इस यज्ञ में मधु पान के लिए पधारें। हमारी आयु बढ़ायें और हमारे पापों को भली-भाँति विनष्ट करें। हमारे प्रति द्वेष की भावना को समाप्त करके सभी कार्यों में सहायक बने।[ऋग्वेद 1.34.11]
हे असत्य रहित अश्वियो! तुम तैंतीस देवताओं के साथ यहाँ पर आकर मधु पान ग्रहण करो। हमको उम्र प्रदान कर पापों को हटाओ। शत्रुओं को भगाकर हमारे अन्दर निवास करो।
Hey Ashwani Kumars! Please come to our Yagy along with the 33 major demigods (out of the 33 crore demigods), enjoy honey (or either wine or Somras)
आ नो अश्विना त्रिवृता रथेनार्वाञ्चं रयिं वहतं सुवीरम्।
शृण्वन्ता वामवसे जोहवीमि वृधे च नो भवतं वाजसातौ॥
हे अश्विनी कुमारो! त्रिकोण रथ से हमारे लिये उत्तम धन-सामर्थ्यो को वहन करें। हमारी रक्षा के लिए आवाहनों को आप सुने। युद्ध के अवसरों पर हमारी बल-वृद्धि का प्रयास करें।[ऋग्वेद 1.34.12]
हे अश्विद्वयों! त्रिकोण रथ द्वारा पराक्रमियों से परिपूर्ण समृद्धि को यहाँ लाओ। तुम्हारा आह्वान करता हूँ। तुम संग्रामों में हमारी शक्ति में वृद्धि करो।
Hey Ashwani Kumars! Please support our requirements (wealth, comforts) through your triangular chariot. Answer our prayers for protection. Enhance our power-might at the occasion of war-fight.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मंडल सूक्त 35 :: ऋषि :- हिरण्यस्तूप अङ्गिरस, देवता :- प्रथम मन्त्र का प्रथम पाद :- अग्नि, द्वितिय पाद :- मित्रावरुण, तृतीय पाद :-रात्रि, चतुर्थ पाद :- सविता, 2-11 सविता, छन्द: - त्रिष्टुप, 1.9 जगती।
ह्वयाम्यग्निं प्रथमं स्वस्तये ह्वयामि मित्रावरुणाविहावसे।
ह्वयामि रात्रीं जगतो निवेशनीं ह्वयामि देवं सवितारमूतये॥1॥
कल्याण की कामना से हम सर्वप्रथम अग्निदेव की प्रार्थना करते हैं। अपनी रक्षा के लिए हम मित्र और वरुण देवों को बुलाते हैं। जगत को विश्राम देने वाली रात्रि और सूर्य देव का हम अपनी रक्षा के लिए आह्वान (evoke, invite, call) करते है।[ऋग्वेद 1.35.1]
कल्याण के लिए अग्नि, सखा और वरुण का आह्वान करता हूँ और प्राणधारियों को विश्राम देने वाली रात्रि तथा सूर्य देवता को सुरक्षा के लिए आह्वान करता हूँ।
First of all we pray-worship Agni Dev for our welfare. For our protection we invite demigods-deities Mitr & Varun. The night which gives rest to the universe is invited-invoked along with Sun to protect us.
आ कृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यं च।
हिरण्ययेन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन्॥2॥
सविता देव गहन तमिस्त्रा युक्त अन्तरिक्ष पथ में भ्रमण करते हुए, देवों और मनुष्यों को यज्ञादि श्रेष्ठ कर्मों में नियोजित करते हैं। वे समस्त लोकों को देखते (प्रकाशित करते) हुए स्वर्णिम (किरणों से युक्त) रथ से आते हैं।[ऋग्वेद 1.35.2]
अंधकार पूर्ण समय में विचरण करते हुए प्राण धारियों को चैतन्य करने वाले सूर्य स्वर्ण के रथ से हमको ग्रहण होते हैं।
Savita Dev-Sun travelling through the dark path keep busy (engage, involve) the demigods-deities & the humans in excellent (pious, virtuous) deeds like Yagy. He lightens all the abodes coming, in his chariot which has golden colour-hue rays.
याति देवः प्रवता यात्युद्वता याति शुभ्राभ्यां यजतो हरिभ्याम्।
आ देवो याति सविता परावतोऽप विश्वा दुरिता बाधमानः॥
स्तुत्य सविता देव ऊपर चढ़ते हुए और फिर नीचे उतरते हैं, निरंतर गतिशील रहते हैं। वे सविता देव तमरूपी पापों को नष्ट करते हुए अति दूर से उस यज्ञशाला में श्वेत अश्वों के रथ पर आसीन होकर आते हैं।[ऋग्वेद 1.35.3]
वे सूर्य देव निचले मार्गों या उच्च मार्गों पर श्वेत अश्वों से परिपूर्ण रथ पर विचरण करते हैं। वे अंधकार आदि को समाप्त करते हुए नजर आते हैं।
Pray able Savita Dev-Sun gradually rise up and then comes down gradually maintaining his motion-speed. He destroys all sins in the form of darkness visits the Yagy Shala-location of Yagy, riding white horses.
अभीवृतं कृशनैर्विश्वरूपं हिरण्यशम्यं यजतो बृहन्तम्।
आस्थाद्रथं सविता चित्रभानुः कृष्णा रजांसि तविषीं दधानः॥
सतत परिभ्रमण शील, विविध रूपों में सुशोभित, पूजनीय, अद्भूत रश्मि-युक्त सविता देव गहन तमिस्त्रा को नष्ट करने के निमित्त प्रचण्ड सामर्थ्य को धारण करते हैं तथा स्वर्णिम रश्मियों से युक्त रथ पर प्रतिष्ठित होकर आते हैं।[ऋग्वेद 1.35.4]
पूज्य एवं अद्भुत रश्मियों से युक्त सूर्य अंधकार से युक्त लोकों के लिए शक्ति को धारण करते हैं। वे स्वर्ण साधनों से युक्त रथ पर आरूढ़ होते हैं।
Continuously moving Savita Dev, having vivid forms, honourable, having amazing rays destroys the deep darkness with his might & comes in his chariot bearing golden rays-aura.
वि जनाञ्छ्यावाः शितिपादो अख्यन्रथं हिरण्यप्रउगं वहन्तः।
शश्वद्विशः सवितुर्दैव्यस्योपस्थे विश्वा भुवनानि तस्थुः॥
सूर्य देव के अश्व श्वेत पैर वाले हैं, वे स्वर्ण रथ को वहन करते हैं और मानवों को प्रकाश देते हैं। सर्वदा सभी लोकों के प्राणी सविता देव के अंक में स्थित हैं अर्थात उन्हीं पर आश्रित हैं।[ऋग्वेद 1.35.5]
श्वेत आश्रम वाले, जुओं को बाँधने वाले स्नान से युक्त रथ को चलाते हुए सूर्य के अश्वों ने प्राणियों को प्रकाश दिया। समस्त व्यक्ति और लोक सूर्य के अंक में ही स्थित हैं।
The horses of Sury Dev have white legs who pulls his golden chariot and gives Sunlight to the humans. The creatures-organisms, living beings of all abodes are dependent over them for their lives.
तिस्रो द्यावः सवितुर्द्वा उपस्थाँ एका यमस्य भुवने विराषाट्।
आणिं न रथ्यममृताधि तस्थुरिह ब्रवीतु य उ तच्चिकेतत्॥
तीनों लोकों में द्यावा और पृथिवी ये दोनों लोक सूर्य के समीप हैं अर्थात सूर्य से प्रकाशित हैं। एक अंतरिक्ष लोक यमदेव का विशिष्ट द्वार रूप है। रथ के धुरे की कील के समान सूर्यदेव पर ही सब लोक (नक्षत्रादि) अवलम्बित हैं। जो यह रहस्य जाने, वे सबको बतायें।[ऋग्वेद 1.35.6]
तीनों लोकों में सूर्य के निकट धरा स्थित है। एक अंतरिक्ष यमलोक का द्वार रूप है। रथ के पहिये की अगली कील पर अवलम्बित रहने के तुल्य समस्त नक्षत्र सूर्य पर अवलम्बित हैं।
Out of the three abodes (heavens, earth and the nether world) the heaven & the earth are near the Sun meaning thereby that they are being illuminated by the Sun. One of the abode in the universe acts as the gate of Yam Lok-the abode of the deity of death. All abodes depend over the Sun just like the axle of the chariot. One who knows this secret should reveal it to others.
The gravitational force of the Sun binds the planets, moons which revolves around it.
वि सुपर्णो अन्तरिक्षाण्यख्यद्गभीरवेपा असुरः सुनीथः
क्वेदानीं सूर्यः कश्चिकेत कतमां द्यां रश्मिरस्या ततान॥
गम्भीर, गतियुक्त, प्राणरूप, उत्तम प्रेरक, सुन्दर दीप्तिमान सूर्य देव अंतरिक्षादि को प्रकाशित करते हैं। ये सूर्य देव कहाँ रहते हैं? उनकी रश्मियाँ किस आकाश में होंगी? यह रहस्य कौन जानता है?[ऋग्वेद 1.35.7]
गम्भीर कम्पन से युक्त, सुन्दर प्राण युक्त सविता ने अंतरिक्ष को प्रकाशित किया है। वह सूर्य किधर रहता है, इसकी किरणें किस आकाश में फैली हुई हैं, यह कौन कह सकता है?
Serious, moving, who is like the life giving force, inspiring in excellent ways-manners, beautifully shining Sury Dev-Sun illuminates the universe. Where does he live, what is, where is his abode, where are his rays, who knows this secret!?
अष्टौ व्यख्यत्ककुभः पृथिव्यास्त्री धन्व योजना सप्त सिन्धून्।
हिरण्याक्षः सविता देव आगाद्दधद्रत्ना दाशुषे वार्याणि॥
हिरण्य दृष्टि युक्त (सुनहली किरणों से युक्त) सविता देव पृथ्वी की आठों दिशाओं, उनसे युक्त तीनों लोकों, सप्त सागरों आदि को आलोकित करते हुए दाता (हविदाता) के लिए वरणीय विभूतियाँ लेकर यहा आयें।[ऋग्वेद 1.35.8]
सूर्य ने पृथ्वी की आठों दिशाओं को मिलाने वाले तीनों कोणों और सातों समुद्रों को प्रकाशित किया है। वह स्वर्णिम नेत्र वाले सूर्य साधक को धन देने के लिए यहाँ आयें।
Associated with golden rays, Savita Dev illuminates the 8 directions of the earth, the three abodes connected with it & the seven seas-oceans may bring gifts-excellencies here.
हिरण्यपाणिः सविता विचर्षणिरुभे द्यावापृथिवी अन्तरीयते।
अपामीवां बाधते वेति सूर्यमभि कृष्णेन रजसा द्यामृणोति॥
स्वर्णिम रश्मियों रूपी हाथों से युक्त विलक्षण द्रष्टा सविता देव द्यावा और पृथ्वी के बीच संचरित होते हैं। वे रोगादि बाधाओं को नष्ट कर अन्धकार नाशक दीप्तियों से आकाश को प्रकाशित करते हैं।[ऋग्वेद 1.35.9]
स्वर्ण के हाथ वाले सर्व द्रष्टा सूर्य आकाश और पृथ्वी के बीच गति करते हैं। वे रोग आदि बाधाओं को समाप्त कर अंधकार नाशक तेज से आकाश को व्याप्त कर देते हैं।
Savita Dev who is an excellent visionary, with golden rays like his hands moves-transect through the heavens & the earth. He vanish the obstructions like diseases with his rays which removes the darkness and illuminates the sky.
हिरण्यहस्तो असुरः सुनीथः सुमृळीकः स्ववाँ यात्वर्वाङ्।
अपसेधन्रक्षसो यातुधानानस्थाद्देवः प्रतिदोषं गृणानः॥
हिरण्य हस्त (स्वर्णिम तेजस्वी किरणों से युक्त) प्राणदाता कल्याणकारक, उत्तम सुखदायक, दिव्य गुण सम्पन्न सूर्य देव सम्पूर्ण मनुष्यों के समस्त दोषों को, असुरों और दुष्कर्मियो को नष्ट करते (दूर भगाते) हुए उदित होते हैं। ऐसे सूर्यदेव हमारे लिए अनुकूल हों।[ऋग्वेद 1.35.10]
सुवर्णपाणि, प्राणावान, महान कृपालु, समृद्धिवान सूर्य हमारे सम्मुख पधारें। वे सूर्य प्रतिदिन राक्षसों का दमन करते हुए वहाँ ठहरें।
Sury-Savita Dev associated with divine powers-qualities, having golden hue rays around him, grant life, benefit the organisms, grants comforts, repel the demons and sinners, rise. Such Sun Dev should be favourable to us.
ये ते पन्थाः सवितः पूर्व्यासोऽरेणवः सुकृता अन्तरिक्षे।
तेभिर्नो अद्य पथिभिः सुगेभी रक्षा च नो अधि च ब्रूहि देव॥
हे सवितादेव! आकाश में आपके ये धूलरहित मार्ग पूर्व निश्चित हैं। उन सुगम मार्गो से आकर आज आप हमारी रक्षा करें तथा हम (यज्ञानुष्ठान करने वालों) को देवत्व से युक्त करें।[ऋग्वेद 1.35.11]
हे सूर्य! क्षितिज में तुम्हारे धूल रहित पुराने मार्ग सुनिर्मित हैं। इन रास्तों से प्रस्थान कर हमारी सुरक्षा करो जो मार्ग हमारे अनुकूल हों, बताओ।
Hey Savita Dev! Your path in the sky is free from dust, is fixed. Travelling through comfortable routes please come & protect us and make us divine.
ऋग्वेद संहिता प्रथम मंडल सूक्त 36 :: ऋषि :- कण्व धौर, देवता :- अग्नि, 13-14 यूप, छन्द :- बाहर्त प्रगाथ-विषमा बृहती, समासतो बृहती, 13 उपरिष्टाद बृहती।
प्र वो यह्वं पुरूणां विशां देवयतीनाम्।
अग्निं सूक्तेभिर्वचोभिरीमहे यं सीमिदन्य ईळते॥1॥
हम ऋत्विज अपने सूक्ष्म वाक्यों (मंत्र शक्ति) से व्यक्तियों में देवत्व का विकास करने वाली महानता का वर्णन करते हैं; जिस महानता का वर्णन (स्तवन) ऋषियों ने भली प्रकार किया था।[ऋग्वेद 1.36.1]
हे मनुष्यो! तुम बहुसंख्यक मनुष्य देवों की इच्छा करते हो। तुम्हारे लिये हम उन श्रेष्ठ अग्नि के सूक्त संकल्पों द्वारा वन्दना करते हैं। उनकी अन्य मनुष्य भी प्रार्थना करते हैं।
We the practitioners of Veds, describe the greatness of generating demigod hood in humans with the help of Mantr Shakti-sacred hymns, which was explained by the sages-Rishis thoroughly.
जनासो अग्निं दधिरे सहोवृधं हविष्मन्तो विधेम ते।
स त्वं नो अद्य सुमना इहाविता भवा वाजेषु सन्त्य॥
मनुष्यों ने बलवर्धक अग्निदेव का वरण किया। हम उन्हें हवियों से प्रवृद्ध करते हैं। अन्नों के दाता हे अग्निदेव! आज आप प्रसन्न मन से हमारी रक्षा करें।[ऋग्वेद 1.36.2]
प्राणियों ने जिस शक्तिवर्द्धक अग्नि को ग्रहण किया, हम उसको हवियों से सन्तुष्ट करें। दानी! तुम खुश होकर इस युद्ध में हमारी रक्षा करो।
प्रवृद्ध :: अतिशय वृद्धि को प्राप्त, प्रौढ़; grow, to develop.
We grow the Agni-fire which was accepted-followed by us with great determination-firmness. Hey giver-grantor of foods, Agni Dev! Protect us happily.
प्र त्वा दूतं वृणीमहे होतारं विश्ववेदसम्।
महस्ते सतो वि चरन्त्यर्चयो दिवि स्पृशन्ति भानवः॥
देवों के दूत, होता रुप, सर्वज्ञ हे अग्निदेव! आपका हम वरण करते हैं, आप महान और सत्य रूप हैं। आपकी ज्वालाओं की दीप्ति फैलती हुई आकाश तक पहुँचती है।[ऋग्वेद 1.36.3]
हे सम्पूर्ण ऐश्वर्य वाले देव दूत और होता! हम तुम्हारा वरण करते हैं। तुम श्रेष्ठ और सत्य रूप हो। तुम्हारी लपटें आकाश की ओर उठती हैं।
Hey Agni Dev! You are the messenger of demigods-deities, the embodiment of hosts performing Yagy, all knowing-enlightened. WE follow you. You are great and represents truth. The brightness of your flame reaches the skies.
देवासस्त्वा वरुणो मित्रो अर्यमा सं दूतं प्रत्नमिन्धते।
विश्वं सो अग्ने जयति त्वया धनं यस्ते ददाश मर्त्यः॥
हे अग्निदेव! मित्र, वरुण और अर्यमा ये तीनों देव आप जैसे पुरातन देवदूत को प्रदीप्त करते हैं। जो याजक आपके निमित्त हवि समर्पित करते है, वे आपकी कृपा से समस्त धनों को उपलब्ध करते हैं।[ऋग्वेद 1.36.4]
हे अग्निदेव! पुरातन पुरुष को वरुण, सखा और अर्यमा प्रकाशमान करते हैं। तुमको हवि प्रदान करने वाला तपस्वी समस्त धनों को ग्रहण करता है।
Hey Agni Dev! Mitr, Varun and Aryma, these three demigods-deities flourish-grow you (make you shine). Those hosts-household who make offerings in the Yagy for you, get all sorts of riches, wealth, amenities, comforts.
मन्द्रो होता गृहपतिरग्ने दूतो विशामसि।
त्वे विश्वा संगतानि व्रता ध्रुवा यानि देवा अकृण्वत॥
हे अग्निदेव! आप प्रमुदित करने वाले, प्रजाओं के पालक, होता रुप, गृह स्वामी और देवदूत हैं। देवों के द्वारा सम्पादित सभी शुभ कर्म आप से सम्पादित होते हैं।[ऋग्वेद 1.36.5]
हे अग्निदेव! तुम हृदय को हर्षित करने वाले, प्रजाओं के स्वामी, घर के पोषक और देवदूत हो। देवों के समस्त कार्य तुमसे मिलते हैं।
प्रमुदित :: मगन, आनंदित, संतोषमय, हँसमुख, विनोदपूर्ण, प्रकुल्ल, उत्साहयुक्त, आनंदपूर्ण, फुरतीला; merry, sprightly.
Hey Agni Dev! You make the followers-worshipers happy, nourishes them as the host-household and is a deity-messenger of the demigods-deities. All auspicious deeds pertaining to the demigods-deities are conducted by you.
Agni Dev is the mouth of the demigods-deities. All offerings made in holy fire Yagy, Hawan, Agni Hotr reaches the particular demigod-deity.
त्वे इदग्ने सुभगे यविष्ठ्य विश्वमा हूयते हविः।
स त्वं नो अद्य सुमना उतापरं यक्षि देवान्सुवीर्या॥
हे चिर युवा अग्निदेव! यह आपका उत्तम सौभाग्य है कि सभी हवियाँ आपके अन्दर अर्पित की जाती है। आप प्रसन्न होकर हमारे निमित्त आज और आगे भी सामर्थ्यवान देवों का यजन किया करें अर्थात देवों को हमारे अनुकूल बनायें।[ऋग्वेद 1.36.6]
हे युवा अग्नि देव! तुम सौभाग्यशाली हो क्योंकि तुम में भी सभी हवियाँ डाली जाती हैं। तुम प्रसन्न होकर हमारे लिए आज और आगे भी बलशाली देवताओं का पूजन करो
Hey always young Agni Dev! Its your great luck that the offerings for the demigods-deities are made in you. You should be happy with us and make the demigods-deities in our favour at present and in future as well, by conducting Yagy for the mighty-capable demigods-deities.
तं घेमित्था नमस्विन उप स्वराजमासते।
होत्राभिरग्निं मनुषः समिन्धते तितिर्वांसो अति स्रिधः॥
नमस्कार करने वाले उपासक स्वप्रकाशित इन अग्निदेव की उपासना करते हैं। शत्रुओं को जीतने वाले मनुष्य हवन-साधनों और स्तुतियों को प्रदीप्त करते हैं।[ऋग्वेद 1.36.7]
प्रणाम करने वाले प्राणी स्वयं प्रकाशित अग्नि देव की अर्चना करते हैं । शत्रुओं से डरे हुए प्राणी प्रार्थनाओं द्वारा अग्नि को प्रदीप्त करते हैं।
The worshippers bow (slute, prostrate) before self lighting-brillant Agni Dev. The winners of war keep the fire in Yagy ignited by making prayers, recitations of hymns aimed at him.
घ्नन्तो वृत्रमतरन्रोदसी अप उरु क्षयाय चक्रिरे।
भुवत्कण्वे वृषा द्युम्न्याहुतः क्रन्ददश्वो गविष्टिषु॥
देवों ने प्रहार कर वृत्र का वध किया। प्राणियों के निवासार्थ उन्होंने द्यावा-पृथिवी और अंतरिक्ष का बहुत विस्तार किया। गौ, अश्व आदि की कामना से कण्व ने अग्नि को प्रकाशित कर आहुतियों द्वारा उन्हें बलिष्ठ बनाया।[ऋग्वेद 1.36.8]
देवी ने प्रहारपूर्वक वृत्र को जीतकर त्रिलोकी का विस्तार किया। अभीष्ट वर्षक अग्नि देव आह्वान करने पर मुझ कण्व को गवादि धन प्रदान करें।
The demigods attacked Vrat and killed him. They expanded the higher abodes and the earth worth living for the organism-living beings. Kavy Rishi strengthened Agni Dev for want of cows & horses by making offerings in it.
(Kavy Rishi adopted & took care of Shakuntla, the daughter of Vishwa Mitr & Menka-the nymph.)
सं सीदस्व महाँ असि शोचस्व देववीतमः।
वि धूममग्ने अरुषं मियेध्य सृज प्रशस्त दर्शतम्॥
यज्ञीय गुणों से युक्त प्रशंसनीय हे अग्निदेव! आप देवता के प्रीति-पात्र और महान गुणों के प्रेरक है। यहाँ उपयुक्त स्थान पर पधारें और प्रज्वलित हों। घृत की आहुतियों द्वारा दर्शन योग्य तेजस्वी होते हुए सघन धूम्र को विसर्जित करें।[ऋग्वेद 1.36.9]
हे अग्ने! आओ, विराजमान हो जाओ। देवताओं को जानने वाले, तुम चैतन्य हो जाओ। श्रेष्ठतम लालिमा लिए सुन्दर धुएँ को फैलाओ।
Hey possessor of the divine qualities of Yagy, Agni Dev! You are the loved one of the demigods-deities and inspire higher values, morals, charactrices-qualities, virtues. Please at the auspicious place and get ignited. Discharge the visible-dense smoke produced by the offerings of Ghee.
यं त्वा देवासो मनवे दधुरिह यजिष्ठं हव्यवाहन।
यं कण्वो मेध्यातिथिर्धनस्पृतं यं वृषा यमुपस्तुतः॥
हे हविवाहक अग्निदेव! सभी देवों ने पूजने योग्य आपको मानव मात्र के कल्याण के लिए इस यज्ञ में धारण किया। मेध्यातिथि और कण्व ने तथा वृषा (इन्द्र) और उपस्तुत (अन्य यजमान) ने धन से सन्तुष्ट करने वाले आपका वरण किया।[ऋग्वेद 1.36.10]
हे हवि वाहक अग्नि देव! तुम पूजने योग्य को देवताओं ने मनु के लिए इस संसार में दृढ़ किया है। तुम धन से सन्तुष्ट करने वाले को कण्व और मेधातिथि ने वृषा और उपस्तु को ग्रहण किया।
Hey the carrier of offerings Agni Dev! The demigods-deities adorned you in this Yagy for the welfare-benefit of the mankind. Medhya Tithi, Kanvy, Vrasha-Indr Dev and the hosts too adorned you for being satisfied by riches.
यमग्निं मेध्यातिथिः कण्व ईध ऋतादधि।
तस्य प्रेषो दीदियुस्तमिमा ऋचस्तमग्निं वर्धयामसि॥
जिन अग्निदेव को मेध्या तिथि और कण्व ने सत्य रूप कर्मों से प्रदीप्त किया, वे अग्नि देव देदीप्यमान हैं। उन्हीं को हमारी ऋचायें भी प्रवृद्ध करती हैं। हम भी उन अग्निदेव को संवर्धित करते हैं।[ऋग्वेद 1.36.11]
जिस अग्नि को मेधातिथि और कण्व ने यज्ञ हेतु प्रज्वलित किया, वह अग्नि दीप्तिमान है। इन ऋचाओं द्वारा हम उस अग्नि की वृद्धि करते हैं।
The holy fire-Agni Dev, ignited-lit by Rishi Medhya Tithi & Knavy with truthful Karm-deeds is glittering. to too are enriching-supporting it with the recitation of Hymns.
रायस्पूर्धि स्वधावोऽस्ति हि तेऽग्ने देवेष्वाप्यम्।
त्वं वाजस्य श्रुत्यस्य राजसि स नो मृळ महाँ असि॥
हे अन्नवान अग्ने! आप हमें अन्न-सम्पदा से अभिपूरत करें। आप देवों के मित्र और प्रशंसनीय बलों के स्वामी हैं। आप महान हैं। आप हमें सुखी बनाएं।[ऋग्वेद 1.36.11]
हे अन्न प्रदान करने वाले अग्नि देव! हमारे भण्डारों को भरो। तुम देवताओं के मित्र और समृद्धि के स्वामी हो।
Hey the giver of food grains Agni Dev! Let us be enriched with food grains. You are the friend of demigods-deities and the master of appreciable forces. You are great. Make us happy-comfortable.
ऊर्ध्व ऊ षु ण ऊतये तिष्ठा देवो न सविता।
ऊर्ध्वो वाजस्य सनिता यदञ्जिभिर्वाघद्भिर्विह्वयामहे॥
हे काष्ठ स्थित अग्निदेव! सर्वोत्पादक सविता देव जिस प्रकार अंतरिक्ष से हम सबकी रक्षा करते हैं, उसी प्रकार आप भी ऊँचे उठकर, अन्न आदि पोषक पदार्थ देकर हमारे जीवन की रक्षा करें। मन्त्रोच्चारण पूर्वक हवि प्रदान करने वाले याजक आपके उत्कृष्ट स्वरूप का आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 1.36.13]
हे श्रेष्ठ! हम पर कृपा दृष्टि रखो। तुम हमारी सुरक्षा के लिए सर्वोच्च रूप से खड़े हो जाओ। तुम उन्नत बल के प्रदाता हो। हम विद्वजनों की सहायता से पूजन करते हैं। तुम उन्नत हुए पाप से हमारी सुरक्षा करो।
Hey Agni Dev, present in the wood! The manner the Sun protect us by stationing himself in the space, you should also rise and protect out lives by giving us food grains and nourishing goods. The hosts invite-pray to you in your higher attire-form with the recitation of sacred Hymns.
ऊर्ध्वो नः पाह्यंहसो नि केतुना विश्वं समत्रिणं दह।
कृधी न ऊर्ध्वाञ्चरथाय जीवसे विदा देवेषु नो दुवः॥
ये यूपस्थ अग्ने! आप ऊँचे उठकर अपने श्रेष्ठ ज्ञान द्वारा पापों से हमारी रक्षा करें, मानवता के शत्रुओं का दहन करें, जीवन मे प्रगति के लिए हमे ऊँचा उठाये तथा हमारी प्रार्थना देवों तक पहुँचाए।[ऋग्वेद 1.36.14]
मनुष्य भक्षकों को भस्म कर हमको जाओ। तुम उन्नत बल के प्रदाता हो। हम विद्वजना का सहायता तुम उन्नत हुए पाप से हमारी सुरक्षा करो। मनुष्य भक्षकों को भस्म कर हमको जीवन में प्रगति करने के लिए ऊपर उठाओ।
यूप :: किसी युद्ध में विजयी होने पर उसकी याद में बना स्तम्भ, वह खंभा जिसमें बलि दिया जाने वाला पशु बाँधा जाता है, यज्ञ का वह खंभा जिसमें बलि पशु बाँधा जाता है, वह स्तम्भ जो किसी विजय अथवा कीर्ति आदि की स्मृति में बनाया गया हो; the post, mast, pole meant to sacrifice animals, the tower made in the memory of a war won, the tower to glorify the winners.
Hey Agni Dev, present in the tower to glorify the winners! Please rise upwards and protect us with the help of your enlightenment, kill the enemies of civilisation, raise us for progress in life and forward our prayes to demigods-deities.
पाहि नो अग्ने रक्षसः पाहि धूर्तेरराव्णः।
पाहि रीषत उत वा जिघांसतो बृहद्भानो यविष्ठ्य॥
हे महान दीप्तिवाले, चिरयुवा अग्निदेव! आप हमें राक्षसों से रक्षित करें, कृपण धूर्तो से रक्षित करें तथा हिंसक और जघन्यों से रक्षित करें।[ऋग्वेद 1.36.15]
हमारे कार्यों को देवताओं के प्रति निवेदित करो। हे अग्नि देव! दैत्यों से हमारी सुरक्षा करो। दान करने वालों की भी सुरक्षा करो। तुम श्रेष्ठ दीप्ति वाले, निपट युवा और हिंसकों से रक्षा करने वाले हो, अत: हमारी रक्षा करो।
Glorious, shining, illustrious, glittering, immortal Agni Dev! Please protect us from the demons-giants, cunning, depraved, violent, heinous, crafty.
ILLUSTRIOUS :: प्रसिद्ध, शानदार, चमकीला; magnificent, spectacular, superb, splendid, stunning, famous, renowned, famed, legendary, popular, vivid, flamboyant, luminous, flashy, brilliant.
धूर्त :: कुटिल, छली, चालाक, शरारती, शातिर, कपटी, धोखेबाज़, चतुर; sly, crafty, artful, Machiavellian.
घनेव विष्वग्वि जह्यराव्णस्तपुर्जम्भ यो अस्मध्रुक्।
यो मर्त्यः शिशीते अत्यक्तुभिर्मा नः स रिपुरीशत॥
अपने ताप से रोगादि कष्टों को मिटाने वाले हे अग्ने! आप कृपणों को गदा से विनष्ट करें। जो हमसे द्रोह करते है, जो रात्रि में जागकर हमारे नाश का यत्न करते हैं, वे शत्रु हम पर आधिपत्य न कर पायें।[ऋग्वेद 1.36.16]
हे संताप देने वाली दाढ़ों वाले अग्नि देव! स्थिर सोटे से मारने के तुल्य दान न देने वाले को समाप्त करो। हमारे विद्रोहियों और रात में हमारे लिए अस्त्र पैनाने वालों के आधिपत्य को रोको।
Remover of diseases, pains with your heat, hey Agni Dev! Please destroy the wicked with your Mac. Those who deceive-cheat us & the ones who remain awake at night, the enemy should not be able to over power-control us.
अग्निर्वव्ने सुवीर्यमग्निः कण्वाय सौभगम्।
अग्निः प्रावन्मित्रोत मेध्यातिथिमग्निः साता उपस्तुतम्॥
उत्तम पराक्रमी हे अग्निदेव, जिन्होंने कण्व को सौभाग्य प्रदान किया, हमारे मित्रों की रक्षा की तथा मेध्यातिथि और उपस्तुत (यजमान) की भी रक्षा की है।[ऋग्वेद 1.36.17]
अग्नि ने मेरे लिए सौभाग्य की कामना की है। उन्होंने मेधातिथि और उपस्तु की धन ग्रहणता के लिए सुरक्षा की है।
अग्निना तुर्वशं यदुं परावत उग्रादेवं हवामहे।
अग्निर्नयन्नववास्त्वं बृहद्रथं तुर्वीतिं दस्यवे सहः॥
अग्निदेव के साथ हम तुर्वश, यदु और उग्रदेव को बुलाते है। वे अग्निदेव नववास्तु, ब्रहद्रथ और तुर्वीति (आदि राजर्षियों) को भी ले चलें, जिससे हम दुष्टों के साथ संघर्ष कर सकें।[ऋग्वेद 1.36.18]
तुर्वशु यद् और उग्रदेव को अग्नि के साथ दूर से बुलाते हैं। वे नावस्त्व, बृहद्रथ और तुर्वाति को भी यहाँ बुलाओ।
We invite Turvash, Yadu & Ugra Dev along with Agni Dev. Agni Dev should be associated with Nav Vastu, Brahdrath & Turveeti etc. Raj Rishi (kings turned into sages) so that we can fight the wicked (vicious, sinners).
नि त्वामग्ने मनुर्दधे ज्योतिर्जनाय शश्वते।
दीदेथ कण्व ऋतजात उक्षितो यं नमस्यन्ति कृष्टयः॥
हे अग्निदेव! विचारवान व्यक्ति आपका वरण करते हैं। अनादिकाल से ही मानव जाति के लिए आपकी ज्योति प्रकाशित है। आपका प्रकाश आश्रमों के ज्ञान वान ऋषियों में उत्पन्न होता है। यज्ञ में ही आपका प्रज्वलित स्वरूप प्रकट होता है। उस समय सभी मनुष्य आपको नमन वन्दन करते हैं।[ऋग्वेद 1.36.19]
हे ज्योतिर्मान अग्ने! तुमको प्राणियों के लिए मनु ने स्थापित किया है। तुम यज्ञ के लिए प्रकट होकर हवि के लिए संतुष्ट हो जाओ। साधक तुमको प्रणाम करते हैं।
Hey Agni Dev! The thoughtful wise-enlightened person adore you. You are the enlightening source ever since. Your flame-prudence appears in the sages in the Ashram (abode of the Rishis & the Guru, place meant for ascetic practices). Your shinning form appears in the Yagy. All humans adore, salute, prostrate before at that moment.
त्वेषासो अग्नेरमवन्तो अर्चयो भीमासो न प्रतीतये ।
रक्षस्विनः सदमिद्यातुमावतो विश्वं समत्रिणं दह॥
अग्निदेव की ज्वालाएं प्रदीप्त होकर अत्यन्त बलवती और प्रचण्ड हुई हैं। कोई उनका सामना नहीं कर सकता। हे अग्ने! आप समस्त राक्षसों, आतताइयों और मानवता के शत्रुओं को नष्ट करें।[ऋग्वेद 1.36.20]
अग्नि की दीप्तिमान ज्वालाएँ शक्तिशाली और उग्र होती हैं, उनका सामना नहीं किया जा सकता। हे अग्निदेव! तुम राक्षसों और मनुष्य भक्षियों (man eaters) को नष्ट करो।
The flames of Agni Dev have become fierce, strong & powerful. No one can face-resist them. Hey Agni Dev! Kindly vanish-destroy the enemies of civilisation (culture, values, morals, ethics, piousness etc.) the demons (man eaters, terrorists, rapists, invaders, cruel).
ऋग्वेद संहिता प्रथम मंडल सूक्त 37 :: ऋषि :- कण्व धौर, देवता :- मरुद्गण, छन्द :- गायत्री।
क्रीळं वः शर्धो मारुतमनर्वाणं रथेशुभम्। कण्वा अभि प्र गायत॥
हे कण्व गोत्रीय ऋषियो! क्रीड़ा युक्त, बल सम्पन्न, अहिंसक वृत्तियों वाले मरुद्गण रथ पर शोभायमान हैं। आप उनके निमित्त स्तुतिगान करें।[ऋग्वेद 1.37.1]
हे कण्वगोत्र वाले ऋषियों क्रीड़ा परिपूर्ण अहिंसित मरुद्गण रथ पर सुशोभित हैं। उनके लिए बंदना गान करो।
Hey Rishis from the Kavy clan! The playful, strong-mighty, non violent Marud Gan are riding their chariot. You should sing hymns in their honour.
ये पृषतीभिरृष्टिभिः साकं वाशीभिरञ्जिभिः। अजायन्त स्वभानवः॥
हे मरुद्गण स्वदीप्ति से युक्त धब्बों वाले मृगों (वाहनों) सहित और आभूषणों से अलंकृत होकर गर्जना करते हुए प्रकट हुए हैं।[ऋग्वेद 1.37.2]
वे अपने आप दीप्ति वाले, विन्दु चिह्न से परिपूर्ण महिरच-वाहन शस्त्रों युद्धों में ललकारों, आभूषणादि से परिपूर्ण रचित हुए हैं।
These marud Gan have appeared with the aura-brilliance of their own, spotted deers-vehicles and decorated with ornaments-armours & weapons creating roaring sound.
इहेव शृण्व एषां कशा हस्तेषु यद्वदान्। नि यामञ्चित्रमृञ्जते॥
मरुद्गणों के हाथों में स्थित चाबुकों से होने वाली ध्वनियाँ हमें सुनाई देती हैं, जैसे वे यहीं हो रही हों। वे ध्वनियाँ संघर्ष के समय असामान्य शक्ति प्रदर्शित करती हैं।[ऋग्वेद 1.37.3]
इनके हाथों में चाबुक का शब्द हम सुन रहे हैं । यह अद्भुत चाबुक युद्ध में शक्ति बढ़ाने बाली है।
We are hearing the sound of whips in their hands, as if they are here-close to us. These sounds shows-liberate unusual powers during confrontation-war.
प्र वः शर्धाय घृष्वये त्वेषद्युम्नाय शुष्मिणे। देवत्तं ब्रह्म गायत॥
हे याजको! आप बल बढ़ाने वाले, शत्रु नाशक, दीप्तिमान मरुद्गणों की सामर्थ्य और यश का मंत्रों से विशिष्ट गान करें।[ऋग्वेद 1.37.4]
वे मरुद्गण तुम्हारी शक्ति को बढ़ाते हैं और प्रतापी बनाते हैं। उन शत्रुनाशक की प्रार्थना करो।
Hey performer of Yagy! Recite the special prayers meant to boost the capability, power, strength, might of the glorious Marud Gan who destroys the enemy.
प्र शंसा गोष्वघ्न्यं क्रीळं यच्छर्धो मारुतम्। जम्भे रसस्य वावृधे॥
हे याजको! आप किरणों द्वारा संचरित दिव्य रसों का पर्याप्त सेवन कर बलिष्ठ हुए उन मरुद्गणों के अविनाशी बल की प्रशंसा करें।[ऋग्वेद 1.37.5]
दुग्धदात्री गायों ऋषभ से क्रीड़ा करने वाले मरुद्गणों की वंदना करो। वह वर्धा रूप रस को पान कर वृद्धि को ग्रहण हुए हैं।
Hey Yagy performers! Appreciate the unending powers of the Marud Gan who acquire-consume the divine extracts through the rays and become strong-powerful.
को वो वर्षिष्ठ आ नरो दिवश्च ग्मश्च धूतयः। यत्सीमन्तं न धूनुथ॥
द्युलोक और भूलोक को कम्पित करनेवाले हे मरुतो! आप में वरिष्ठ कौन है? जो सदा वृक्ष के अग्रभाग को हिलाने के समान शत्रुओं को प्रकम्पित कर दे।[ऋग्वेद 1.37.6]
क्षितिज धरा को कम्पायमान करने वाले मरुतो! तुमसे बड़ा कौन है? तुम वृक्ष की डालियों के तुल्य संसार को हिलाते हो।
Hey Marud Gan, capable of trembling-vibrating the earth and the upper abodes! Who is your leader-senior amongest you, who can shake the enemies just like the upper branches of the tree?
नि वो यामाय मानुषो दध्र उग्राय मन्यवे। जिहीत पर्वतो गिरिः॥
हे मरुद्गणों! आपके प्रचण्ड संघर्ष आवेश से भयभीत मनुष्य सुदृढ़ सहारा ढूँढता है, क्योंकि आप बड़े पर्वतों और टीलों को भी कँपा देते हैं।[ऋग्वेद 1.37.7]
हे मरुतो! तुम्हारी गति और गुस्से से भय ग्रस्त मनुष्यों ने सुदृढ़ स्तम्भ खड़े किये हैं तुम बड़े जोड़ों वाले पर्वतों को भी कम्पायमान कर देते हो।
Hey Marud Gan! You shake large mountains & hillocks when in fearce mode-mood. The afraid person looks to hideout-shelter in this state.
येषामज्मेषु पृथिवी जुजुर्वाँ इव विश्पतिः। भिया यामेषु रेजते॥
उन मरुद्गणों के आक्रमणकारी बलों से यह पृथ्वी जरा-जीर्ण नृपति की भाँति भयभीत होकर प्रकम्पित हो उठती है।[ऋग्वेद 1.37.8]
उन मरुतों की गति से पृथ्वी वृद्ध राजा के समान भय से काँपती है।
The earth start trembling-shaking, like and old fragile person, when the Marud Gan are in attacking-war mode-mood.
स्थिरं हि जानमेषां वयो मातुर्निरेतवे। यत्सीमनु द्विता शवः॥
इन वीर मरुतों की मातृभूमि आकाश स्थिर है। ये मातृभूमि से पक्षी के वेग के समान निर्बाधित होकर चलते हैं। उनका बल दुगुना होकर व्याप्त होता है।[ऋग्वेद 1.37.9]
उनका जन्म स्थान स्थित है। उनकी मातृ-भूमि आकाश में पक्षी की गति भी निर्बाध है। उनका बल दुगुना होकर फैला है।
The brave fighters Marud Gan's place of birth space is stationary-fixed, so they move like birds without any obstacles-opposition. It enhance-doubles their power, strength, might.
उदु त्ये सूनवो गिरः काष्ठा अज्मेष्वत्नत। वाश्रा अभिज्ञु यातवे॥
शब्द नाद करने वाले मरुतों ने यज्ञार्थ जलों को निःसृत किया। प्रवाहित जल का पान करने के लिए रंभाति हुई गौएं घुटने तक पानी में जाने के लिए बाध्य होती हैं।[ऋग्वेद 1.37.10]ये अंतरिक्ष में रचित मरुद्गण विचरण के लिए जल का विस्तार करते हैं और ध्वनि करने वाली गायों को घुटने-घुटने जल में ले जाते हैं।
The sound producing Marud Gan expelled-repelled water so that the cows can move into the flowing waters till their knees, for drinking it.
त्यं चिद्घा दीर्घं पृथुं मिहो नपातममृध्रम्। प्र च्यावयन्ति यामभिः॥
विशाल और व्यापक, न बिंध सकने वाले, जल वृष्टि न करने वाले मेघों को भी वीर मरुद्गण अपनी तेज गति से उड़ा ले जाते है।[ऋग्वेद 1.37.11]
अवश्य ही मरुद्गण उस व्यापक अवध्य वेन पुत्र को अपनी चाल से कँपाते हैं।
The Marud Gan moves away the large clouds, which can not be pierced, and are without water with thier high speed.
मरुतो यद्ध वो बलं जनाँ अचुच्यवीतन। गिरीँरचुच्यवीतन॥
हे मरुतो! आप अपने बल से लोगों को विचलित करते हैं, आप पर्वतों को भी विचलित करने में समर्थ हैं।[ऋग्वेद 1.37.12]
मरुद्गण चलते हैं, तब आपस में बातें करते हैं। उनके उस शब्द को कौन सुनते हैं।
Hey Marud Gan! You disturb the humans due to your power. You are capable of disturbing-dislocating mountains as well.
Typhoons, tornado, cyclones, twister, avalanche and even Tsunami are the different forms of fierce Marud Gan.
यद्ध यान्ति मरुतः सं ह ब्रुवतेऽध्वन्ना। शृणोति कश्चिदेषाम्॥
जिस समय मरुद्गण गमन करते हैं, तब वे मध्य मार्ग में ही परस्पर वार्ता करने लगते हैं। उनके शब्द को भला कौन नहीं सुन लेता है? (सभी सुन लेते है।)।[ऋग्वेद 1.37.13]
हे मरुतों! तुमने अपनी शक्ति से मनुष्यों को कार्य में प्रेरित किया है। तुम्हीं बादलों को प्रेरित करने वाले हो।
When the Marud Gan move, they talk together and are heard by everyone.
प्र यात शीभमाशुभिः सन्ति कण्वेषु वो दुवः। तत्रो षु मादयाध्वै॥
हे मरुतो! आप तीव्र वेग वाले वाहन से शीघ्र आएं, कण्व वंशी आपके सत्कार के लिए उपस्थित हैं। वहाँ आप उत्साह के साथ तृप्ति को प्राप्त हों।[ऋग्वेद 1.37.14]
हे मरुतो! वेग वाले वाहन से शीघ्र आओ। यहाँ कण्व वंशी और अन्य विद्वान एकत्रित हैं। उनके द्वारा प्रसन्नता प्राप्त करो।
Hey Marud Gan! Please come here with high speed. Kavy Vanshi have gathered here to welcome you. You will be satisfied-satiated there.
अस्ति हि ष्मा मदाय वः स्मसि ष्मा वयमेषाम्। विश्वं चिदायुर्जीवसे॥
हे मरुतो! आपकी प्रसन्नता के लिए यह हवि-द्रव्य तैयार है। हम सम्पूर्ण आयु सुखद जीवन प्राप्त करने के लिए आपका स्मरण करते है।[ऋग्वेद 1.37.15]
हे मरुतो! तुम्हारे हर्ष के लिए हवि प्रस्तुत है। हम आयु प्राप्त करने के लिए यहाँ उपस्थित हैं।
Hey Marut! For your happiness pleasure this drink (Somras) in the form of offerings is ready. We pray-worship you for comfortable life.
ऋग्वेद संहिता प्रथम मंडल सूक्त 38 :: ऋषि :- कण्व धौर, देवता :- मरुद्गण, छन्द-गायत्री।
कद्ध नूनं कधप्रियः पिता पुत्रं न हस्तयोः। दधिध्वे वृक्तबर्हिषः॥
हे स्तुति प्रिय मरुतो! आप कुश के आसनों पर विराजमान हो। पुत्र को पिता द्वारा स्नेह पूर्वक गोद में उठाने के समान, आप हमें कब धारण करेंगे?[ऋग्वेद 1.38.1]
हे वंदनाओं को चाहने वालों मरुतो! तुम्हारे हेतु कुशा का आसन बिछाया गया है। पिता द्वारा पुत्र को धारण करने के तुल्य तुम हमें कब धारण करोगे?
Hey Marud Gan! Please be seated over the Kushasan (cushion made of Kush grass). When will you adopt us like the father carrying his son in the lap (granting protection, shelter, asylum), keeping round the shoulders!?
क्व नूनं कद्वो अर्थं गन्ता दिवो न पृथिव्याः। क्व वो गावो न रण्यन्ति॥
हे मरुतो! आप कहाँ हैं? किस उद्देश्य से आप द्युलोक में गमन करते हैं? पृथ्वी में क्यों नही घूमते? आपकी गौएं आपके लिए नहीं रम्भाती क्या? अर्थात आप पृथ्वी रूपी गौ के समीप ही रहें।[ऋग्वेद 1.38.2]
हे मरुतो! तुम अब कहाँ हो? किसलिए क्षितिज मार्ग में विचरण करते हो? पृथ्वी पर क्यों विचरण नहीं करते? तुम्हारी धेनु तुम्हें नहीं बुलाती?
Hey Maruto! Where are you? What is the purpose behind your roaming in the space? Why do not you come to the earth? Do your cows not Moo-call you?
क्व वः सुम्ना नव्यांसि मरुतः क्व सुविता। क्वो विश्वानि सौभगा॥
हे मरुद्गणों! आपके नवीन संरक्षण साधन कहाँ है? आपके सुख-ऐश्वर्य के साधन कहाँ हैं? आपके सौभाग्यप्रद साधन कहाँ हैं? आप अपने समस्त वैभव के साथ इस यज्ञ में आयें।[ऋग्वेद 1.38.3]
हे मरुतो! तुम्हारी अभिनव कृपाएँ, शुभ और सौभाग्य कहाँ है?
Hey Marud Gan! Where are new means of protection (well wishes, good luck)? Where are your means of comforts, luxuries, amenities? Where are means of granting good luck-destiny? Please come to this Yagy with all your glory.
यद्यूयं पृश्निमातरो मर्तासः स्यातन। स्तोता वो अमृतः स्यात्॥
हे मातृभूमि की सेवा करने वाले आकाश पुत्र मरुतो! यद्यपि आप मरणशील हैं, फिर भी आपकी स्तुति करने वाला अमरता को प्राप्त करता है।[ऋग्वेद 1.38.4]हेआकाश पुत्रो! यद्धपि तुम मरण धर्मा पुरुष हो, तुम्हारा स्तोता अमर और शत्रु से कभी पराजित होने वाला हो।
Hey sons of space Marud Gan! You serve the mother land. Though you are perishable, yet those who worship you become immortal.
मा वो मृगो न यवसे जरिता भूदजोष्यः। पथा यमस्य गादुप॥
जैसे मृग, तृण को असेव्य (untouchable, which can not be used-consumed or rejected) नहीं समझता, उसी प्रकार आपकी स्तुति करने वाला आपके लिए अप्रिय न हो (आप उस पर कृपालु रहें), जिससे उसे यमलोक के मार्ग पर न जाना पड़े।[ऋग्वेद 1.38.5]
जिस प्रकार घास के मैदान में मृग आहार प्राप्त करता है पर मृग के लिए घास असेवनीय नहीं होती उसी प्रकार स्तोता भी सेवा प्राप्त करता रहे, जिससे उसे यम मार्ग में न जाना पड़े।
The manner in which the deer do not consider grass as non consumable, one worshiping-praying you should not be disliked by you. You should always be kind to him, so that he has not to follow the route-path of Yam Lok-the abode of the deity of death.
मो षु णः परापरा निरृतिर्दुर्हणा वधीत्। पदीष्ट तृष्णया सह॥
अति बलिष्ठ पाप वृत्तियाँ हमारी दुर्दशा कर हमारा विनाश न करें, प्यास (अतृप्ति) से वे ही नष्ट हो जायें।[ऋग्वेद 1.38.6]बारम्बार ग्रहण होने वाले पाप के बल हमारी हिंसा न करें। वह तृण के तुल्य समाप्त हो जाए।
The strong tendencies leading us to sins, should not be able to destroy-over power us. They should be eliminated for want of nourishment.
One should never be tempted by sensualities, sexuality, lasciviousness, sins, vices, wickedness, greed etc. Whole hearted efforts should be made to resist-repel them.
सत्यं त्वेषा अमवन्तो धन्वञ्चिदा रुद्रियासः। मिहं कृण्वन्त्यवाताम्॥
यह सत्य ही है कि कान्तिमान, बलिष्ठ रूद्रदेव के पुत्र वे मरुद्गण, मरु भूमि में भी अवात स्थिति से वर्षा करते हैं।[ऋग्वेद 1.38.7]
वे कांतिमय रुद्र के पुत्र मरुद्गण मरु भूमि में पवन सहित वृष्टि करते हैं।
The shinning, strong sons of Rudr Dev, the Marud Gans rain in desert regions as well without discrimination, in the absence of winds.
वाश्रेव विद्युन्मिमाति वत्सं न माता सिषक्ति। यदेषां वृष्टिरसर्जि॥
जब वह मरुद्गण वर्षा का सृजन करते हैं तो विद्युत रम्भाने वाली गाय की तरह शब्द करती है, (जिस प्रकार) गाय बछड़ों को पोषण देती है, उसी प्रकार वह विद्युत सिंचन करती है।[ऋग्वेद 1.38.8]
रम्भाने वाली धेनु के तुल्य जब विद्युत कड़कड़ाती है और वृष्टि होती है, तब बछड़े का पोषण करने वाली गाय के समान ही मौन हुई बिजली मरुतों की सेवा करती है।
The electric streak create the sound of mooing cows, while feeding their calf, when the Marud Gan create rain showers.
दिवा चित्तमः कृण्वन्ति पर्जन्येनोदवाहेन। यत्पृथिवीं व्युन्दन्ति॥
मरुद्गण जल प्रवाहक मेघों द्वारा दिन में भी अंधेरा कर देते हैं, तब वे वर्षा द्वारा भूमि को आद्र करते हैं।[ऋग्वेद 1.38.9]
जल वर्षक मेघों से मरुद्गण दिन में भी अंधेरा कर देते हैं। उस समय वे पृथ्वी को वर्षा से सींचते हैं।
While watering the earth, the Marud Gan make it dark during the day with the rain carrying clouds.
अध स्वनान्मरुतां विश्वमा सद्म पार्थिवम्। अरेजन्त प्र मानुषाः॥
मरुतों की गर्जना से पृथ्वी के निम्न भाग में अवस्थित सम्पूर्ण स्थान प्रकम्पित हो उठते हैं। उस कम्पन से समस्त मानव भी प्रभावित होते हैं।[ऋग्वेद 1.38.10]मरुतों की गर्जना से पृथ्वी पर बने हुए भवन तथा प्राणी भी काँपने लगते हैं।
All structures in the lower regions of the earth start shaking-trembling by the roars of the clouds, affecting the humans.
मरुतो वीळुपाणिभिश्चित्रा रोधस्वतीरनु। यातेमखिद्रयामभिः॥
हे अश्वों को नियन्त्रित करने वाले मरुतो! आप बलशाली बाहुओं से, अविच्छिन्न गति से शुभ्र नदियों की ओर गमन करें।[ऋग्वेद 1.38.11]
हे मरुद्गण! तुम स्थिर खुर वाले लगातार चाल वाले अश्वों द्वारा उज्जवल नदियों की ओर गति करो।
Hey controller of horses Marud Gan! You should move with unbroken speed-regular speed towards the holy-pious rivers, with your mighty arms.
स्थिरा वः सन्तु नेमयो रथा अश्वास एषाम्। सुसंस्कृता अभीशवः॥
हे मरुतो! आपके रथ बलिष्ठ घोड़ों, उत्तम धुरी और चंचल लगाम से भली प्रकार अलंकृत हों।[ऋग्वेद 1.38.12]
हे मरुतो! तुम्हारे पहिये की गति, रथ की धुरी और रासें श्रेष्ठ हों तथा घोड़े दृढ़ व बलशाली बनें।
Hey Marud Gan! Your chariot should be decorated with strong horses, excellent excel and reins.
अच्छा वदा तना गिरा जरायै ब्रह्मणस्पतिम्। अग्निं मित्रं न दर्शतम्॥
हे याजको! आप दर्शनीय मित्र के समान ज्ञान के अधिपति अग्नि देव की, स्तुति युक्त वाणियों द्वारा प्रशंसा करें।[ऋग्वेद 1.38.13]
सखा के समान वेद-रक्षक अग्नि को साध्य बनाकर वन्दना संकल्पों का उच्चारण करो।
Hey hosts performing Yagy! You should pray to Agni Dev-the leader of knowledge with the help of hymns like a close-fast friend.
मिमीहि श्लोकमास्ये पर्जन्य इव ततनः। गाय गायत्रमुक्थ्यम्॥
हे याजको! आप अपने मुख से श्लोक रचना कर मेघ के समान इसे विस्तारित करें। गायत्री छ्न्द में रचे हुये काव्य का गायन करें।[ऋग्वेद 1.38.14]
अपने मुख से श्लोकों को रचित करो। मेघों को समान श्लोकों की वृद्धि करो। शास्त्रों के अनुकूल स्तोत्र का गायन करो।
Hey hosts! You should recite Shloks-verses with your mouth and propagate it all over & recite the poems from Gayatri Chhand.
वन्दस्व मारुतं गणं त्वेषं पनस्युमर्किणम्। अस्मे वृद्धा असन्निह॥
हे ऋत्विजो! आप कान्तिमान, स्तुत्य, अर्चन योग्य मरुद्गणों का अभिवादन करें, यहाँ हमारे पास इनका वास रहे।[ऋग्वेद 1.38.15]
कांतिमान, पूजनीय और प्रार्थनाओं से युक्त मरुतों की पूजा करो। वे महान हमारे यहाँ वास करें!
Hey performer of Yagy! You should welcome & pray-worship the Marud Gan bearing aura.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मंडल सूक्त 39 :: ऋषि :- कण्व धौर, देवता :- मरुद्गण, छन्द :- बाहर्त प्रगाथ (विषमा बृहती, समासतो बृहती)।
प्र यदित्था परावतः शोचिर्न मानमस्यथ।
कस्य क्रत्वा मरुतः कस्य वर्पसा कं याथ कं ह धूतयः॥
हे कम्पाने वाले मरुतो! आप अपना बल दूरस्थ स्थान से विद्युत के समान यहाँ पर फेंकते हैं, तो आप (किसके यज्ञ की ओर) किसके पास जाते हैं? किस उद्देश्य से आप कहाँ जाना चाहते हैं? उस समय आपका लक्ष्य क्या होता है?।[ऋग्वेद 1.39.1]
हे कम्पायमान करने वाले मरुतो! जब तुम दूर से ही धारा के तुल्य अपने तेज को इस स्थान पर फेंकते हो तब तुम किसके अनुष्ठान से आकृष्ट होते और किसके निकट जाते हो?
Hey Marud Gan, creating shaking waves! To whose Yagy, do you transfer your force-might (energy) like electricity to distant places, with what purpose and what is your goal-target at that time-moment?
स्थिरा वः सन्त्वायुधा पराणुदे वीळू उत प्रतिष्कभे।
युष्माकमस्तु तविषी पनीयसी मा मर्त्यस्य मायिनः॥
आपके हथियार शत्रु को हटाने मे नियोजित (employed, planned, prearranged, target) हों। आप अपनी दृढ़ शक्ति से उनका प्रतिरोध करें। आपकी शक्ति प्रशंसनीय हो। आप छद्म वेषधारी मनुष्यों को आगे न बढ़ायें।[ऋग्वेद 1.39.2]
हे मरुतो! तुम्हारे शस्त्र शत्रुओं का नाश करने को दृढ़ हो। स्थिरतापूर्वक शत्रुओं को रोकें। तुम्हारी शक्ति पूजनीय हो। धोखा करने वालों की हमारे पास प्रशंसा न हो।
Your arms & ammunition has been programmed to remove-destroy the enemy. You should resist them with great determination-will power. Your might should be appreciated. Don't let the impostors proceed further-forward.
परा ह यत्स्थिरं हथ नरो वर्तयथा गुरु।
वि याथन वनिनः पृथिव्या व्याशाः पर्वतानाम्॥
हे मरुतो! आप स्थिर वृक्षों को गिराते, दृढ़ चट्टानों को प्रकम्पित करते, भूमि के वनों को जड़ विहीन करते हुए पर्वतों के पार निकल जाते हैं।[ऋग्वेद 1.39.3]
हे मरुतो! तुम पेड़ों को गिराते, पत्थरों को घुमाते और पृथ्वी के नए वृक्षों के मध्य से तथा पर्वतों में छिद्र करके निकल जाते हो।
Hey Marud Gan-Maruto! You move-proceed forward, pulling down stationary trees, strong rocks-hills, cliffs, destroying the forests through the mountains.
नहि वः शत्रुर्विविदे अधि द्यवि न भूम्यां रिशादसः।
युष्माकमस्तु तविषी तना युजा रुद्रासो नू चिदाधृषे॥
हे शत्रु नाशक मरुतो! न द्युलोक में और न पृथ्वी पर ही, आपके शत्रुओं का आस्तित्व है। हे रूद्र पुत्रो! शत्रुओं को क्षत-विक्षत करने के लिए आप सब मिलकर अपनी शक्ति विस्तृत करें।[ऋग्वेद 1.39.4]
हे शत्रु नाशक मरुतो! आकाश और पृथ्वी पर तुम्हारा कोई शत्रु नहीं है। हे रुद्र पुत्रो! तुम मिलकर शत्रुओं के दमन के लिए शक्ति को बढ़ाओ।
Hey, the slayre of enemy Maruto! Your enemies are non existent either in the heavens or the earth. Hey the sons of Rudr! Cut-chop the enemies into pieces and enhance your boost (strength-power) together.
प्र वेपयन्ति पर्वतान्वि विञ्चन्ति वनस्पतीन्।
प्रो आरत मरुतो दुर्मदा इव देवासः सर्वया विशा॥
हे मरुतो! मदमत्त हुए लोगों के समान आप पर्वतों को प्रकम्पित करते हैं और पेड़ों को उखाड़ कर फेंकते हैं। अतः आप प्रजाओं के आगे-आगे उन्नति करते हुए चलें।[ऋग्वेद 1.39.5]
वे मरुद्गण पर्वतों को कम्पाते हुए पेड़ों को अलग-अलग करते हैं। हे मरुतो! तुम मदमत्त के समान प्रजागण के साथ आगे चलो।
Hey Maruto! You shake the mountains and unroot the trees like intoxicated person. So, move ahead the populace for their progress.
उपो रथेषु पृषतीरयुग्ध्वं प्रष्टिर्वहति रोहितः।
आ वो यामाय पृथिवी चिदश्रोदबीभयन्त मानुषाः॥
हे मरुतो! आपके रथ को चित्र-विचित्र चिह्नों से युक्त (पशु आदि) गति देते हैं, उनमें लाल रंग वाला अश्व धुरी को खींचता है। तुम्हारी गति से उत्पन्न शब्द भूमि सुनती है, मनुष्य गण उस ध्वनि से भयभीत हो जातें हैं।[ऋग्वेद 1.39.6]
हे मरुतो! तुमने बिन्दु परिपूर्ण हिरणों के रथ में जोड़ा है। लाल हिरण सबसे आगे जुड़ा है।पृथ्वी तुम्हारी प्रतीक्षा करती है। मनुष्य तुम से भयग्रस्त हो गये हैं।
Hey Maruto! Your chariot is accelerated-pulled by the spotted animals like deer-deployed in the front. Red coloured horse pulls the axel. The earth listens the sound produced by your chariot and the humans become afraid due to that sound.
आ वो मक्षू तनाय कं रुद्रा अवो वृणीमहे।
गन्ता नूनं नोऽवसा यथा पुरेत्था कण्वाय बिभ्युषे॥
हे रूद्र पुत्रो! अपनी सन्तानों की रक्षा के लिए हम आपकी स्तुति करते हैं। जैसे पूर्व समय में आप भययुक्त कण्वों की रक्षा के निमित्त शीघ्र गये थे, उसी प्रकार आप हमारी रक्षा के निमित्त शीघ्र पधारें।[ऋग्वेद 1.39.7]
हे रुद्र पुत्रो! सन्तान की सुरक्षा के लिए हम आपकी प्रार्थना कर रहे हैं। जैसे तुम पूर्व काल में सुरक्षा के लिए पधारे थे, वैसे ही भयग्रस्त यजमान के निकट पधारो।
Hey the sons of Rudr (Maha Dev)! We pray-worship you for the welfare of our progeny. The speed with which you reached the afraid Kanvy, come to protect us as well.
युष्मेषितो मरुतो मर्त्येषित आ यो नो अभ्व ईषते।
वि तं युयोत शवसा व्योजसा वि युष्माकाभिरूतिभिः॥
हे मरुतो! आपके द्वारा प्रेरित या अन्य किसी मनुष्य द्वारा प्रेरित शत्रु हम पर प्रभुत्व जमाने आयें, तो आप अपने बल से, अपने तेज से और रक्षण साधनों से उन्हें दूर हटा दें।[ऋग्वेद 1.39.8]
हे मरुतो! तुम्हारे द्वारा सहयोग प्राप्त या किसी दूसरे द्वारा उकसाया हुआ शत्रु हमारे सम्मुख आए तो तुम उसे शक्ति, तेज, और रक्षक साधनों द्वारा दूर हटा दो।
Hey Maruto! If an enemy inspired-provoked by you or someone else-humans come to overpower-control us, please repel him by your might, energy and the arms & ammunition.
असामि हि प्रयज्यवः कण्वं दद प्रचेतसः।
असामिभिर्मरुत आ न ऊतिभिर्गन्ता वृष्टिं न विद्युतः॥
हे विशिष्ट पूज्य, ज्ञाता मरुतो! कण्व को जैसे आपने सम्पूर्ण आश्रय दिया था, वैसे ही चमकने वाली बिजलियों के साथ वेग से आने वाली वृष्टि की तरह आप सम्पूर्ण रक्षा साधनों को लेकर हमारे पास आयें।[ऋग्वेद 1.39.9]
हे पूजनीय मेधावी मरुतो! तुमने कण्व को सम्पूर्ण ऐश्वर्य दिया था। बिजलियों से वर्षा के लिए होने के समान सभी रक्षा के साधनों से युक्त हुए हमको प्राप्त हो जाओ।
Hey specially worshipped, intelligent Maruto! The way you sheltered-protected the Kanvy, similarly come fast to asylum us associated with the lightening with all means of protection.
असाम्योजो बिभृथा सुदानवोऽसामि धूतयः शवः।
ऋषिद्विषे मरुतः परिमन्यव इषुं न सृजत द्विषम्॥
हे उत्तम दानशील मरुतो! आप सम्पूर्ण पराक्रम और सम्पूर्ण बलों को धारण करते हैं। हे शत्रु को प्रकम्पित करने वाले मरुदगणों, ऋषियों से द्वेष करने वाले शत्रुओं को नष्ट करने वाले बाण के समान आप शत्रु घातक (शक्ति) का सृजन करें।[ऋग्वेद 1.39.10]
हे मंगलमय मरुतो! तुम अत्यन्त तेजस्वी हो। हे कम्पित करने वाले! तुम समस्त शक्ति से परिपूर्ण हो। अतः ऋषियों से बैर करने वालों के प्रति अपनी उग्रता को प्रेरित करो।
Hey excellent donor Maruto! You are associated with valour and all types of forces. Hey enemy trembling-shaking Marud Gan, create the Shakti Van (arrow) to destroy the enemy.
ऋग्वेद संहिता प्रथम मंडल सूक्त 40 :: ऋषि :- कण्व धौर, देवता :- ब्रह्मणस्पति, छन्द :- बाहर्त प्रगाध (विषमा बृहती, समासतो बृहती)।
उत्तिष्ठ ब्रह्मणस्पते देवयन्तस्त्वेमहे।
उप प्र यन्तु मरुतः सुदानव इन्द्र प्राशूर्भवा सचा॥
हे ब्रह्मणस्पते, आप उठें! देवों की कामना करने वाले हम आपकी स्तुति करते हैं। कल्याणकारी मरुद्गण हमारे पास आयें। हे इन्द्रदेव! आप ब्रह्मणस्पति के साथ मिलकर सोमपान करें।[ऋग्वेद 1.40.1]
हे ब्रह्मणस्पते, उठो! देवों की इच्छा करने वाले हम तुम्हारी वन्दना करते हैं।कल्याणकारी मरुद्गण हमारे सम्मुख पधारें। हे इन्द्रदेव! तुम अति शीघ्र यहाँ विराजो।
Hey Brahmanspate, get up! We, desirous of meeting demigods-deities, pray to you. Marud Gan, who look to our welfare should come to us. Hey Indr Dev! You should come quickly.
त्वामिद्धि सहसस्पुत्र मर्त्य उपब्रूते धने हिते।
सुवीर्यं मरुत आ स्वश्व्यं दधीत यो व आचके॥
साहसिक कार्यों के लिये समर्पित हे ब्रह्मणस्पते! युद्ध में मनुष्य आपका आवाहन करतें है। हे मरुतो! जो धनार्थी मनुष्य ब्रह्मणस्पति सहित आपकी स्तुति करता है, वह उत्तम अश्वों के साथ श्रेष्ठ पराक्रम एवं वैभव से सम्पन्न हो।[ऋग्वेद 1.40.2]
हे शक्ति पुत्र ब्रह्मणस्पते! धनवान होने पर मनुष्य सुन्दर अश्वों और शक्ति से परिपूर्ण समृद्धि को ग्रहण करता है। ब्रह्मणस्पति हमको ग्रहण हो। प्रिय सत्य रूप वाणी हमकों ग्रहण हो।
Devoted to courageous jobs, Hey Brahmanspate! The humans invite you in the battle field (for their protection). Hey Maruto! One desirous of excellent horses, valour and wealth, pray to you with the Brahmanspate; should be blessed with the fulfilment of desires.
प्रैतु ब्रह्मणस्पतिः प्र देव्येतु सूनृता।
अच्छा वीरं नर्यं पङ्क्तिराधसं देवा यज्ञं नयन्तु नः॥
ब्रह्मणस्पति हमारे अनुकूल होकर यज्ञ में आगमन करें। हमें सत्यरूप दिव्यवाणी प्राप्त हो। मनुष्यों के हितकरी देवगण हमारे यज्ञ में पंक्तिबद्ध होकर अधिष्ठित हों तथा शत्रुओं का विनाश करें।[ऋग्वेद 1.40.3]
देवगण पञ्च हवि से परिपूर्ण हमारे अनुष्ठान में मनुष्यों की भलाई के लिए विराजें।
Brahmanspate should be favourable to us in participate in our Yagy. We should attain truthful divine voice. The demigods-deities who are favourable to the humans should honoured in ques (i.e., one by one) should destroy the enemy.
यो वाघते ददाति सूनरं वसु स धत्ते अक्षिति श्रवः।
तस्मा इळां सुवीरामा यजामहे सुप्रतूर्तिमनेहसम्॥
जो यजमान ऋत्विजों को उत्तम धन देते हैं, वे अक्षय यश को पाते हैं। उनके निमित्त हम (ऋत्विज गण) उत्तम पराक्रमी, शत्रु नाशक, अपराजेय, मातृभूमि की वन्दना करते हैं।[ऋग्वेद 1.40.4]
ऋत्विज को श्रेष्ठ धन देने वाला यजमान अक्षय धन प्राप्त करता है। उसके लिए हम शत्रु के द्वारा न मारी जाने वाली इड़ा (धरती, पृथ्वी, वाणी) को यज्ञ में आमंत्रित करते हैं।
The host carrying out Yagy, who grants excellent gifts-money to those Brahmns conducting Yagy for him, attains imperishable honours. We the Brahmns performing Yagy for them-the hosts pray-invite Ida-mother earth who is best amongest the warriors, slayer of enemies & is undefeated.
प्र नूनं ब्रह्मणस्पतिर्मन्त्रं वदत्युक्थ्यम्।
यस्मिन्निन्द्रो वरुणो मित्रो अर्यमा देवा ओकांसि चक्रिरे॥
ब्रह्मणस्पति निश्चय ही स्तुति योग्य (उन) मंत्रों को विधि से उच्चारित कराते हैं, जिन मंत्रों में इन्द्र, वरुण, मित्र और अर्यमा आदि देवगण निवास करते हैं।[ऋग्वेद 1.40.5]
ब्रह्मणस्पति ही शास्त्र सम्मत मंत्र का उच्चारण करते हैं। उस मंत्र में वरुण, इन्द्र, मित्र और अर्यमा का वास है।
Brahmanspate surely-definitely recite those Mantr-Shlok with proper methodology-pronunciation which are meant for the worship of Dev Raj Indr, Varun Dev and Aryma etc. demigods.
These Mantr are the abode of these demigods-deities.
तमिद्वोचेमा विदथेषु शम्भुवं मन्त्रं देवा अनेहसम्।
इमां च वाचं प्रतिहर्यथा नरो विश्वेद्वामा वो अश्नवत्॥
हे नेतृत्व करने वालो-देवताओ! हम सुखप्रद, विघ्ननाशक मंत्र का यज्ञ में उच्चारण करते हैं। हे नेतृत्व करने वाले देवो! यदि आप इस मन्त्र रूप वाणी की कामना करते हैं, (सम्मानपूर्वक अपनाते है) तो यह सभी सुन्दर स्तोत्र आपको निश्चय ही प्राप्त हों।[ऋग्वेद 1.40.6]
मनुष्यों! यदि उस मंत्र रूप वाणी को चाहते हो तो हमारे समस्त सुन्दर संकल्प तुमको ग्रहण हों। हे देवगण! सुखकारक, बाधा नाशक मंत्र का, अनुष्ठान में हम उच्चारण करें।
Hey leading demigods! We recite those Mantr in the Yagy which cause comforts, slay the enemy. Hey leading demigods! If you desire these Mantr with grace, you should get them.
को देवयन्तमश्नवज्जनं को वृक्तबर्हिषम्।
प्रप्र दाश्वान्पस्त्याभिरस्थितान्तर्वावत्क्षयं दधे॥
कुश-आसन बिछाने वाले के पास कौन आयेंगे? (ब्रह्मणस्पति आयेंगें।) आपके द्वारा हविदाता याजक अपनी सन्तानों, पशुओं आदि के निमित्त उत्तम घर का आश्रय पाते हैं।[ऋग्वेद 1.40.7]
देवों की अभिलाषा करने वाले के पास कौन आयेगा? देवत्व की कामना करने वालों के पास भला कौन आयेंगे? (ब्रह्मणस्पति आयेंगें।) कुश बिछाने वाले के पास कौन आयेगा? हविदाता यजमान अन्य प्राणियों सहित पशु, पुत्र आदि से युक्त घर के लिए चल चुका है।
Who will come to the person laying cushions? Brahmanspati will come. The hosts making offerings in the Yagy are sheltered-protected by you along with their progeny, cattle in excellent comfortable houses.
उप क्षत्रं पृञ्चीत हन्ति राजभिर्भये चित्सुक्षितिं दधे।
नास्य वर्ता न तरुता महाधने नार्भे अस्ति वज्रिणः॥
ब्रह्मणस्पति देव, क्षात्रबल की अभिवृद्धि कर राजाओं की सहायता से शत्रुओं को मारते हैं। भय के सम्मुख वे उत्तम धैर्य को धारण करते हैं। ये वज्रधारी बड़े युद्धों या छोटे युद्धों में किसी से पराजित नहीं होते।[ऋग्वेद 1.40.8]
ब्रह्मणस्पति अपनी शक्ति की वृद्धि करके सम्राट के संग होकर शत्रु का पतन करते हैं। डर के समय सुख देने वाले होते हैं। वे वज्रधारी संग्रामों में किसी से दबते नहीं हैं।
Bramanspati Dev enhance-promote the warrior-Kshatriy tendencies in the kings and slay the enemy in large or small battle-war. They maintain their cool-patience in a situation-position of fear and are not defeated. The Thunder Volt bearing are not defeated.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मंडल सूक्त 41 :: ऋषि :- कण्व धौर, देवता :- वरुण, मित्र एवं अर्यमा; 4-6 आदित्यगण, छन्द :- गायत्री।
यं रक्षन्ति प्रचेतसो वरुणो मित्रो अर्यमा।
नू चित्स दभ्यते जनः॥
जिस याजक को, ज्ञान सम्पन्न वरुण, मित्र और अर्यमा आदि देवों का संरक्षण प्राप्त है, उसे कोई भी नहीं दबा सकता।[ऋग्वेद 1.41.1]
उत्कृष्ट ज्ञानी वरुण, सखा और अर्यमा जिसकी सुरक्षा करें, उस व्यक्ति को कोई दबा नहीं कर सकता।
The host-conducting Yagy, having been protected by enlightened demigods Varun, Mitr and Aryma can not be defeated.
यं बाहुतेव पिप्रति पान्ति मर्त्यं रिषः।
अरिष्टः सर्व एधते॥
अपने बाहुओं से विविध धनों को देते हुए, वरुणादि देवगण जिस मनुष्य की रक्षा करते हैं, वह शत्रुओं से अंहिसित होता हुआ वह वृद्धि पाता है।[ऋग्वेद 1.41.2]
अपने हाथ से विभिन्न धन प्रदान करते हुए वरुणादि देवगण इसकी सुरक्षा करते हैं, उसे कोई शत्रु समाप्त नहीं कर सकता, बल्कि वह समस्त ओर से वृद्धि करता है।
The practitioner of Yagyic prayers under the protection of demigods like Varun can not be killed by the enemies. He progress more & more.
वि दुर्गा वि द्विषः पुरो घ्नन्ति राजान एषाम्।
नयन्ति दुरिता तिरः॥
राजा के सदृश वरुणादि देवगण, शत्रुओं के नगरों और किलों को विशेष रूप से नष्ट करते हैं। वे याजकों को दुःख के मूल भूत कारणों (पापों) से दूर ले जाते हैं।[ऋग्वेद 1.41.3]
वरुणादि देवता साधकों के कष्टों का नाश करते, शत्रुओं को मारते और दुखों को दूर कर देते हैं।
The demigods like Varun Dev acts like a king and destroy the cities and forts of the enemy. The cleanse-eliminate the sins of the devotees.
सुगः पन्था अनृक्षर आदित्यास ऋतं यते।
नात्रावखादो अस्ति वः॥
हे आदित्यो! आप के यज्ञ में आने के मार्ग अति सुगम और कण्टकहीन हैं। इस यज्ञ में आपके लिए श्रेष्ठ हविष्यान समर्पित हैं।[ऋग्वेद 1.41.4]
हे आदित्यों! यज्ञ को प्राप्त करने के लिए तुम्हारी राह में कोई बाधा नहीं है, इस यज्ञ में तुम्हारे लिए हवि-रूप श्रेष्ठ भाजन प्रस्तुत हैं।
Hey Adityo! Your way to this Yagy site is easy & painless. Excellent-best offerings are presented-reserved for you in this Yagy.
यं यज्ञं नयथा नर आदित्या ऋजुना पथा।
प्र वः स धीतये नशत्॥
हे आदित्यो! जिस यज्ञ को आप सरल मार्ग से सम्पादित करते हैं, वह यज्ञ आपके ध्यान में विशेष रूप से रहता है। वह भला कैसे विस्मृत हो सकता है!?[ऋग्वेद 1.41.5]
हे पुरुषों! जिस यज्ञ को तुम साधारण विधान से करते हो, वह यज्ञ आदित्यों को प्राप्त हो।
Hey Adityo! The Yagy carried out with simple means remain in your notice for special care. How can you forget it?!
स रत्नं मर्त्यो वसु विश्वं तोकमुत त्मना।
अच्छा गच्छत्यस्तृतः॥
हे आदित्यो! आपका याजक किसी से पराजित नही होता। वह धनादि रत्न और सन्तानों को प्राप्त करता हुआ प्रगति करता है।[ऋग्वेद 1.41.6]
तुम्हारा तपस्वी किसी से पराजित नहीं होता। वह उपभोग्य धन और सन्तानों को ग्रहण करता है।
Hey Adityo! Your devotee is not defeated by any one. He progress enriched with progeny, jewels and wealth.
कथा राधाम सखाय स्तोमं मित्रस्यार्यम्णः। महि प्सरो वरुणस्य॥
हे मित्रो! मित्र, अर्यमा और वरुण देवों के महान ऐश्वर्य साधनों का किस प्रकार वर्णन करें? अर्थात इनकी महिमा अपार है।[ऋग्वेद 1.41.7]
हे मित्रों और अर्यमा के श्लोक का हम कैसे साधन करें। सपा के हविरूप भोजन को किस प्रकार सिद्ध करें।
Hey Mitro! How can the towering amenities-riches, virtues of the Mitr, Varun and Aryma be described?! Its beyond the limits of words-speech.
मा वो घ्नन्तं मा शपन्तं प्रति वोचे देवयन्तम्।
सुम्नैरिद्व आ विवासे॥
हे देवो! देवत्व प्राप्ति की कामना वाले साधकों को कोई कटु वचनों से और क्रोध युक्त वचनों से प्रताड़ित न करने पाये। हम स्तुति वचनों द्वारा आपको प्रसन्न करते हैं।[ऋग्वेद 1.41.8]
हे देवगण! यजमान की हिंसा करने के इच्क्षुक अथवा उसके प्रति कठोर वचन कहने की बात तुमसे नहीं कहता।
Hey demigods-deities! No one should be able to tease-torture those hosts through bad-foul words (derogatory words) and anger. We appese you with prayers.
चतुरश्चिद्ददमानाद्बिभीयादा निधातोः।
न दुरुक्ताय स्पृहयेत्॥
जैसे जुआ खेलने में चार पांसे गिरने तक भय रहता है, उसी प्रकार बुरे वचन कहने से भी डरना चाहिये। उससे स्नेह नहीं करना चाहिए।[ऋग्वेद 1.41.9]
मैं तो प्रार्थनाओं से तुम्हें खुश करता हूँ। चारों प्रकार से गंदे कर्म वालों को वश में रखने वाले से डरना चाहिये किंतु दुर्वचन बोलने वालों को पास न बैठाएँ।
The manner in which the dices in gamble fear a person, one should be afraid of foul derogatory words-language. Such people who speak bad words, do not deserve love-affection, proximity.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मंडल (सूक्त 42) :: ऋषि :- कण्व धौर, देवता :- पूषा, छन्द :- गायत्री।
सं पूषन्नध्वनस्तिर व्यंहो विमुचो नपात्। सक्ष्वा देव प्र णस्पुरः॥
हे पूषा देव! हम पर सुखों को न्योछावर करें। पाप मार्गों से हमें पार लगायें। हे देव! हमें आगे बढा़यें।[ऋग्वेद 1.42.1]
हे पूजन! हमको कष्टों से पार लगाओ और हमारे पापों को समाप्त करो। हमारे गामी बनो।
Hey Pusha Dev! Shower bliss over us. Make us swim us over the path of sin, vices, wickedness. Hey Dev! Promote us-enhance our progress.
यो नः पूषन्नघो वृको दुःशेव आदिदेशति। अप स्म तं पथो जहि॥
हे पूषा देव! जो हिंसक, चोर जुआ खेलने वाले हम पर शासन करना चाहते हैं, उन्हें हम से दूर करें।[ऋग्वेद 1.42.2]
हे पूषादेव! हिंसक चोर, जुआ खेलने वाले जो हम पर राज करना चाहते उन्हें हम से दूर कर दो।
Hey Pusha Dev! The violent gamblers, who wish to rule-over power us should be repelled away from us.
अप त्यं परिपन्थिनं मुषीवाणं हुरश्चितम्। दूरमधि स्रुतेरज॥
हे पूषा देव! मार्ग में घात लगाने वाले तथा लूटने वाले कुटिल चोर को हमारे मार्ग से दूर करके विनष्ट करें।[ऋग्वेद 1.42.3]
मार्ग में रोकने वाले, चोरी, लूटपाट करने वाले, कुटिल दस्यू हमारे रास्ते से हटाओ।
धात लगाना :: ambush.
Hey Pusha Dev! Remove, repel, destroy the crooked thief who wish to ambush, loot, tortur us on the way.
त्वं तस्य द्वयाविनोऽघशंसस्य कस्य चित्। पदाभि तिष्ठ तपुषिम्॥
आप हर किसी दुहरी चाल चलने वाले कुटिल हिंसकों के शरीर को पैरों से कुचल कर खड़े हों अर्थात इन्हें दबाकर रखें, उन्हें बढ़ने न दे।[ऋग्वेद 1.42.4]
हे पुषन्! तुम पाप को बढ़ावा देने वाले तथा क्रोधी को अपने से कुचल डालो।
You should over power-control the wicked, violent, crooked with your legs and don't let them move further.
आ तत्ते दस्र मन्तुमः पूषन्नवो वृणीमहे। येन पितॄनचोदयः॥
हे दुष्ट नाशक, मनीषी पूषादेव! हम अपनी रक्षा के निमित्त आपकी स्तुति करते हैं। आपके संरक्षण ने ही हमारे पितरों को प्रवृद्ध किया था।[ऋग्वेद 1.42.5]
हे विकराल कर्म वाले ज्ञानी पूषादेव! तुम्हारी रक्षा के लिए हम प्रार्थना करते हैं। इस रक्षा ने हमारे पूर्व पुरुषों को भी बढ़ाया था।
Hey the destroyer of the wicked, viceful, enlightened Pusha Dev! We pray to you for our protection. You protected our Manes-ancestors and made them progress.
अधा नो विश्वसौभग हिरण्यवाशीमत्तम। धनानि सुषणा कृधि॥
हे सम्पूर्ण सौभाग्ययुक्त और स्वर्ण आभूषणों से युक्त पूषादेव! हमारे लिए सभी उत्तम धन एवं सामर्थ्यो को प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.42.6]
हे परम सौभाग्यशाली, रथ वाले पूषादेव! हमारे लिए सुसाध्य धनों को प्राप्त करने की सामर्थ्य दो।
Hey lucky, ornamented with gold, Pusha Dev! Grant us excellent riches, strength-power.
अति नः सश्चतो नय सुगा नः सुपथा कृणु। पूषन्निह क्रतुं विदः॥
हे पूषा देव! कुटिल दुष्टों से हमें दूर ले चलें। हमें सुगम-सुपथ का अवलम्बन प्रदान करें एवं अपने कर्तव्यों का बोध करायें।[ऋग्वेद 1.42.7]
झगड़ों में फंसे हुए हमको शत्रुओं से दूर ले जाओ। हमको आसान मार्ग अवलम्बी बनाओ।
Hey Pusha Dev! Take us away from the wicked, guide us to the simple way and tell us our duties.
अभि सूयवसं नय न नवज्वारो अध्वने। पूषन्निह क्रतुं विदः॥
हे पूषा देव! हमें उत्तम जौ (अन्न) वाले देश की ओर ले चलें। मार्ग में नवीन संकट न आने पायें। हमें अपने कर्तव्यों का ज्ञान करायें।(हम इन कर्तव्यों को जाने)।[ऋग्वेद 1.42.8]
हे पूजन! हमारी सुरक्षा के लिए शक्ति प्रदान करो। जहाँ कृषि के उपयुक्त धरा हो। हमको वहाँ ले चलो। रास्ते में कोई नया कष्ट न आवे। हमारी सुरक्षा लिये बलशाली होओ।
Hey Pusha Dev! Take us to the country-place enriched with best food grains. Ensure that new tensions-tortures don't come in our way. Make us strong and tell us our duties (do's and don't).
शग्धि पूर्धि प्र यंसि च शिशीहि प्रास्युदरम्। पूषन्निह क्रतुं विदः॥
हे पूषा देव! हमें सामर्थ्य दें। हमें धनों से युक्त करें। हमें साधनों से सम्पन्न करें। हमें तेजस्वी बनायें। हमारी उदरपूर्ति करें। हम अपने इन कर्तव्यों को जाने।[ऋग्वेद 1.42.9]
हे सामर्थवान पूषन! हमको अभिलाषी धन प्रदान करो। हमें तेजस्वी बनाओ। हमारी उदर पूर्ति करो। हमारे लिए शक्ति ग्रहण करो।
Hey Pusha Dev! Make us capable & strong. Enrich us with means of production-working to earn our livelihood and our working-duties.
न पूषणं मेथामसि सूक्तैरभि गृणीमसि। वसूनि दस्ममीमहे॥
हम पूषा देव को नहीं भूलते! सूक्तों में उनकी स्तुति करते हैं। प्रकाशमान सम्पदा हम उनसे माँगते हैं।[ऋग्वेद 1.42.10]
हम देव की निंदा नहीं वन्दना करते हैं। उस दिव्य देव से धन माँगते हैं।
We do not forget Pusha Dev! We pray him with the help of Sukt-divine phrases. We request for enlightenment (education, learning), the knowledge which can guide us, pave our way.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त 43 :: ऋषि :- कण्व धौर, देवता :- रुद्र, (1-6) रुद्र मित्रावरुण, (7-9) सोम, छन्द :- गायत्री अनुष्टुप।
कद्रुद्राय प्रचेतसे मीळ्हुष्टमाय तव्यसे। वोचेम शंतमं हृदे॥
विशिष्ट ज्ञान से सम्पन्न, सुखी एवं बलशाली रूद्र देव के निमित्त किन सुख प्रद स्तोत्रों का पाठ करें।[ऋग्वेद 1.43.1]
मेधावी, अभिष्ट, वर्षक व महाबली रूद्र लिए किस प्रकार सुखकारक प्रार्थना का पाठ करें।
Which prayers-hymns should be recited to please enlightened, blessed with special knowledge, blissful, powerful Rudr Dev.
यथा नो अदितिः करत्पश्वे नृभ्यो यथा गवे। यथा तोकाय रुद्रियम्॥
अदिति हमारे लिये और हमारे पशुओं, सम्बन्धियों, गौओं और सन्तानों के लिये आरोग्य-वर्धक औषधियों का उपाय (अन्वेषण-व्यवस्था) करें।[ऋग्वेद 1.43.2]
जिससे पृथ्वी, हमारे पशु, मनुष्य, गौ, सन्तानों आदि के लिए रुद्र सम्बन्धी औषधि को पैदा करें।
Let Aditi-the mother of demigods-deities, produce medicines for protection from diseases and enhance-boost immunity for humans-our progeny, relatives, cattle, cows
यथा नो मित्रो वरुणो यथा रुद्रश्चिकेतति। यथा विश्वे सजोषसः॥
मित्र, वरुण और रूद्रदेव जिस प्रकार हमारे हितार्थ प्रयत्न करते हैं, उसी प्रकार अन्य समस्त देवगण भी हमारा कल्याण करें।[ऋग्वेद 1.43.3]
जिससे सखा वरुण और रुद्र देवता एवं संतान प्रीति वाले अन्य सभी देवता हमसे तृप्त हो जायें।
The manner in which Mitr, Varun Dev & Rudr Dev make efforts for our benefit-welfare, other demigods-deities should also make endeavours.
गाथपतिं मेधपतिं रुद्रं जलाषभेषजम्। तच्छंयोः सुम्नमीमहे॥
हम सुखद जल एवं औषधियों से युक्त, स्तुतियों के स्वामी, रूद्र देव से आरोग्यसुख की कामना करते हैं।[ऋग्वेद 1.43.4]
हम प्रार्थनाओं को बढ़ाने वाले, यज्ञ के स्वामी, सुख स्वरूप दवाइयों से युक्त रुद्र से आरोग्य और सुख की विनती करते हैं।
We pray to Rudr Dev, who is the master of comfortable water possessing medicines for good health and pleasure due to it.
यः शुक्र इव सूर्यो हिरण्यमिव रोचते। श्रेष्ठो देवानां वसुः॥
सूर्य सदृश सामर्थ्यवान और स्वर्ण सदृश दीप्तिमान रूद्रदेव सभी देवों में श्रेष्ठ और ऐश्वर्यवान हैं।[ऋग्वेद 1.43.5]
सूर्य के समान चमकते हुए, स्वर्ण की भाँति चमकते हुए वे रुद्र देवों में महान और समृद्धि के स्वामी हैं।
Rudr Dev possessing aura like Sun and the glittering gold, is uppermost amongest the demigods-deities.
शं नः करत्यर्वते सुगं मेषाय मेष्ये। नृभ्यो नारिभ्यो गवे॥
हमारे अश्वों, मेढ़ों, भेड़ो, पुरुषों, नारियों और गौओ के लिए वे रूद्र देव सब प्रकार से मंगलकारी हैं।[ऋग्वेद 1.43.6]
हमारे घोड़े, मेढ़ा और गवादि के लिए वे रुद्रदेव कल्याणकारी हों।
Rodr Dev is beneficial to our horses, sheep, goats, men, women and the cows. Let he be beneficial to us, in all possible manners.
अस्मे सोम श्रियमधि नि धेहि शतस्य नृणाम्। महि श्रवस्तुविनृम्णम्॥
हे सोमदेव! हम मनुष्यों को सैकड़ों प्रकार का ऐश्वर्य, तेज युक्त अन्न, बल और महान यश प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.43.7]
हे सोम! मनुष्यों में लीन सौ गुनी समृद्धि प्रदान करो।
Hey Som Dev! Grant us-the humans, hundreds of kinds of amenities-comforts, food grains full of energy, strength-power and great honours.
मा नः सोमपरिबाधो मारातयो जुहुरन्त। आ न इन्दो वाजे भज॥
सोमयाग में बाधा देने वाले शत्रु हमें प्रताड़ित न करें। कृपण और दुष्टों से हम पीड़ित न हों। हे सोमदेव! आप हमारे बल में वृद्धि करें।[ऋग्वेद 1.43.8]
हे सोम! हमको शक्ति युक्त श्रेष्ठ कीर्ति प्रदान करो। सोमयोग में विघ्न देने वाले हमको दुख न दो। शत्रु हमको न सताएँ। हे सोम! हमें शक्ति प्रदान करो।
Hey Som Dev-Moon! Don't let the enemy over power, torture-tease, punish us. We should not suffer at the hands of the viceful, wicked, sinners. Please enhance-boost out strength & power.
यास्ते प्रजा अमृतस्य परस्मिन्धामन्नृतस्य।
मूर्धा नाभा सोम वेन आभूषन्तीः सोम वेदः॥
हे सोमदेव! यज्ञ के श्रेष्ठ स्थान में प्रतिष्ठित आप अमृत से युक्त हैं। यजन कार्य में सर्वोच्च स्थान पर विभूषित प्रज्ञा (wisdom, intelligence, understanding, को आप जानें।[ऋग्वेद 1.43.9]
हे सोम! श्रेष्ठ स्थान वाले तुम संसार के मूर्धा (crown) के समान अपनी प्रजा पर स्नेह करो। तुम अपने को विभूषित करने वाली प्रजा को जानने वाले बनो।
प्रज्ञा :: समझना, समझौता, जानना, बूझ, ज्ञप्ति, भेदभाव, विवेक, पक्षपात, विभेदन, निर्णय, बुद्धि, बुद्धिमत्ता, बुद्धिमानी, सूचना, ज्ञान; intelligence, understanding, discrimination.
Hey Som Dev! You placed at the best position-place of the Yagy, possess the nectar, ambrosia, Amrat. You should recognise the best intellect for the Yagy.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (44) :: ऋषि :- प्रस्कण्व काण्व, देवता :- अग्नि, (1-2) अग्नि, अश्विनीकुमार, उषा, छन्द :- बाहर्त प्रगाथ (विषमा बृहती, समसतो बृहती)।
अग्ने विवस्वदुषसश्चित्रं राधो अमर्त्य।
आ दाशुषे जातवेदो वहा त्वमद्या देवाँ उषर्बुधः॥
हे अमर अग्निदेव! उषा काल में विलक्षण शक्तियाँ प्रवाहित होती हैं, यह दैवी सम्पदा नित्यदान करने वाले व्यक्ति को दें। हे सर्वज्ञ! उषाकाल में जाग्रत हुए देवताओं को भी यहाँ लायें।[ऋग्वेद 1.44.1]
हे अविनाशी, सर्व भूतों के ज्ञानी, अग्निदेव! तुम ही दाता के लिए विभिन धन ग्रहण कराओ और प्रातः काल में जागने वाले देवों को भी यहाँ लाओ।
Hey immortal Agni Dev! Amazing powers flow at the time of day break-dawn. Give this divine wealth to the person who make donations everyday. Hey All knowing! Let all the demigods-deities come to this place at dawn.
जुष्टो हि दूतो असि हव्यवाहनोऽग्ने रथीरध्वराणाम्।
सजूरश्विभ्यामुषसा सुवीर्यमस्मे धेहि श्रवो बृहत्॥
हे अग्निदेव! आप सेवा के योग्य देवों तक हवि पहुँचाने वाले दूत और यज्ञ में देवों को लाने वाले रथ के समान हैं। आप अश्विनिकुमारों और देवी उषा के साथ हमें श्रेष्ठ, पराक्रमी एवं यशस्वी बनायें।[ऋग्वेद 1.44.2]
हे अग्ने! वास्तव में तुम देवदूत, हविवाहक और अनुष्ठानों के रक्षक रूप हो। ऐसे तुम अश्विनी कुमारों और उषा के युक्त श्रेष्ठ वीरता से परिपूर्ण हुए हमको कीर्ति ग्रहण कराने वाले बनो।
Hey Agni Dev! You are the chariot-carrier and the agent who carries the offerings to the demigods-deities. Let us be made potential-capable along with Ashwani Kumars and Usha (the rays of Sun at dawn).
अद्या दूतं वृणीमहे वसुमग्निं पुरुप्रियम्।
धूमकेतुं भाऋजीकं व्युष्टिषु यज्ञानामध्वरश्रियम्॥
उषाकाल में सम्पन्न होने वाले यज्ञ, जो धूम्र की पताका एवं ज्वालाओं से सुशोभित हैं, ऐसे सर्वप्रिय देवदूत, सबके आश्रय एवं महान अग्निदेव को हम ग्रहण करते हैं और श्री सम्पन्न बनते हैं।[ऋग्वेद 1.44.3]
धनवान प्रिय, धूमध्वजा वाले उषाकाल में प्रकाशित यज्ञों में यज्ञ रूप से सुशोभित अग्नि का आज हम दौत्य कर्म के लिए वरण करते हैं। हे अविनाशी, सर्वभूतों के ज्ञानी, अग्निदेव! तुम हविदाता के लिए विभिन्न धन ग्रहण कराओ और प्रात: काल में जागने वाले देवों को भी यहाँ लाओ।
We accept asylum under Agni Dev, who is decorated with the fumes & flames, admired by all demigods-deities as a messenger and who makes us rich.
श्रेष्ठं यविष्ठमतिथिं स्वाहुतं जुष्टं जनाय दाशुषे।
देवाँ अच्छा यातवे जातवेदसमग्निमीळे व्युष्टिषु॥
हम सर्वश्रेष्ठ, अतियुवा, अतिथिरूप, वन्दनीय, हविदाता, यजमान द्वारा पूजनीय, आहवनीय, सर्वज्ञ अग्निदेव की प्रतिदिन स्तुति करते हैं। वे हमें देवत्व की ओर ले चलें।[ऋग्वेद 1.44.4]
सबसे श्रेष्ठ युवा, सहज प्राप्य अतिथि रूप, यजमान के लिए प्रसन्न रहने वाले, सभी भूतों के ज्ञाता अग्निदेव का उषाकाल से वन्दना करता हूँ। हे अग्ने! वास्तव में तुम देवदूत, हविवाहक और अनुष्ठानों के रक्षक रूप हो।
We worship Agni Dev who is always young, excellent-best, honourable guest, make offerings as a host, is a host himself and respectable-honourable, all knowing-enlightened. Let him takes to divine hood.
स्तविष्यामि त्वामहं विश्वस्यामृत भोजन।
अग्ने त्रातारममृतं मियेध्य यजिष्ठं हव्यवाहन॥
अविनाशी, सबको जीवन (भोजन) देने वाले, हविवाहक, विश्व का त्राण करने वाले, सबके आराध्य, युवा हे अग्निदेव! हम आपकी स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 1.44.5]
हे अविनाशी पोषक हवि वाहक, पूज्य अग्निदेव! मैं तुम जैसे रक्षक की वन्दना करता हूँ।
त्राण :: रक्षा, बचाव, आश्रय, शरण; defence, salvation.
We pray-worship youthful Agni Dev! who is imperishable, nourishing, carrier of offerings, protector-shelter giving to the whole world.
सुशंसो बोधि गृणते यविष्ठ्य मधुजिह्वः स्वाहुतः।
प्रस्कण्वस्य प्रतिरन्नायुर्जीवसे नमस्या दैव्यं जनम्॥
मधुर जिह्वावाले, याजकों की स्तुति के पात्र, हे तरुण अग्निदेव! भली प्रकार आहुतियाँ प्राप्त करते हुए आप याजकों की आकांक्षा को जानें। प्रस्कण्व (ज्ञानियों) को दीर्घ जीवन प्रदान करते हुए आप देवगणों को सम्मानित करें।[ऋग्वेद 1.44.6]
हे अत्यन्त युवा अग्निदेव! तुम पूजनीय मृदु-जिह्वा, आसानी से ग्रहण हो। वन्दना करने वालों की तरफ ध्यान आकृष्ट करो और आयु की वृद्धि करते हुए देवताओं की उपासना करो।
प्रस्कण्व :: ज्ञानी, ऋषि, मंत्रदृष्ट्रा, मुनि, मंत्रकार, वाज, आप्त, गोत्रकार, गोत्र प्रवर्तक; sages ascetics having mention in the Veds.
Description of Praskavy in RIG VED ऋग्वेद में प्रस्कण्व का वर्णन :: वत्स, ऊर्ध्वग्रीव, ऋषभ, बभ्रु, यवापमरुत, शंयु , देवव्रत, पायु, श्रुतविद, नहुष, सांबमित्र, कूर्म, श्यावस्व, गृत्समद, सोमहूति, रोचिसा, कक्षीवान, नोधा, परुच्छेय, सव्य, सौभारि, गोषूक्ति, प्रस्कण्व, उत्कल, अवस्य, हिरण्यस्तूप, जेत, पुरुमिल्ल, साध्वस, त्रसदस्यु, द्युम्निक, सौभर, विश्ववर, गतु, रोमेश, सर्पि, शशकर्ण, अश्वसूक्ति, निपतिथि, वसूज, देवातिथि।
शौलायन एक गोत्रकार ऋषि थे ।
संवरण का वर्णन पुराणों में मिलता है ।
वीतहव्य ने योग द्वारा अपने प्राण निकाल दिए ।
SYNONYMS प्रस्कण्व के पर्यायवाची :- वत्स ऋषि, ऊर्ध्वग्रीव ऋषि, ऊर्ध्वग्रीव, ऋषभ, रिषभ, रिषभ ऋषि, ऋषभ ऋषि, बभ्रु ऋषि, यवापमरुत, यवापमरुत ऋषि, वत्स, शंयु ऋषि, शंयु, देवव्रत ऋषि, शौलायन ऋषि, शौलायन, संवरण ऋषि, पायु ऋषि, श्रुतविद, श्रुतविद ऋषि, नहुष ऋषि, नहुष, सांबमित्र, कूर्म ऋषि, श्यावस्व ऋषि, श्यावस्व, गृत्समद, गृत्समद ऋषि, सोमहूति, सोमहूति ऋषि, रोचिसा ऋषि, कक्षीवान, कक्षीवान ऋषि, नोधा ऋषि, परुच्छेय ऋषि, परुच्छेय, वीतहव्य ऋषि, सव्य ऋषि, सौभारि ऋषि, सौभारि, गोषूक्ति ऋषि, प्रस्कण्व ऋषि, उत्कल, उत्कल ऋषि, अवस्य ऋषि, अवस्य, हिरण्यस्तूप ऋषि, जेत, जेत ऋषि, साम्बमित्र, पुरुमिल्ल, पुरुमिल्ल ऋषि, गोषूक्ति, साध्वस ऋषि, साध्वस, त्रसदस्यु ऋषि, त्रसदस्यु, देवव्रत, द्युम्निक ऋषि, द्युम्निक, सव्य, बभ्रु, नोधा, सौभर, सौभर ऋषि, विश्ववर ऋषि, गतु, गतु ऋषि, विश्ववर, कूर्म, रोमेश ऋषि, वीतहव्य, रोमेश, प्रस्कण्व, हिरण्यस्तूप, रोचिसा, संवरण, सर्पि ऋषि, शशकर्ण, शशकर्ण ऋषि, अश्वसूक्ति ऋषि, अश्वसूक्ति, निपतिथि ऋषि, वसूज ऋषि, देवातिथि ऋषि, देवातिथि, सर्पि, पायु, निपतिथि, वसूज।
Hey young Agni Dev! You have a sweet tongue, deserve prayers-worship by the hosts. Please fulfil the desires of the devotees, grant longevity to the enlightened, decorate-honour, the Praskavy.
होतारं विश्ववेदसं सं हि त्वा विश इन्धते।
स आ वह पुरुहूत प्रचेतसोऽग्ने देवाँ इह द्रवत्॥
होता रूप सर्वभूतों के ज्ञाता, हे अग्निदेव! आपको मनुष्यगण सम्यक रूप से प्रज्वलित करते हैं। बहुतों द्वारा अहूत (invoked, invited) किये जाने वाले हे अग्निदेव! प्रकृष्ट (Excellent, intensive) ज्ञान सम्पन्न देवों को तीव्र गति से यज्ञ में लायें।[ऋग्वेद 1.44.7]
हे यश वाले! तुमको प्राणी श्रेष्ठ प्रकार से प्रज्वलित करते हैं। तुम अत्यन्त देवों को इस स्थान पर लाओ।
सम्यक :: समुदाय, समूह, पूरा, सब, समस्त, उचित, उपयुक्त, ठीक, सही, मनोनुकूल, पूरी तरह से, सब प्रकार से, अच्छी तरह, भली-भाँति; diligently.
Hey Agni Dev! You are aware of the past of all times, as host for the Yagy, sacrifices. You are lit-ignited by the humans diligently either in person or in groups with due respect. Please bring the demigods-deities enriched with intensive, excellent knowledge in the Yagy.
सवितारमुषसमश्विना भगमग्निं व्युष्टिषु क्षपः।
कण्वासस्त्वा सुतसोमास इन्धते हव्यवाहं स्वध्वर॥
श्रेष्ठ यज्ञों को सम्पन्न कराने वाले हे अग्निदेव! रात्रि के पश्चात् उषाकाल में आप सविता, उषा, दोनों अश्विनीकुमारों, भग और अन्य देवों के साथ यहाँ आयें। सोम को अभिषुत करने वाले, हवियों को पहुँचाने वाले ऋत्विज गण, आपको प्रज्वलित करते हैं।[ऋग्वेद 1.44.8]
हे सुन्दर यज्ञ वाले अग्नि देव! तुम प्रात:काल और रात्रि में उषा अश्विद्वय भग और अग्नि देवगणों को यहाँ लाओ। सोम निष्पन्न (conclude, carried out, accomplish) कर्त्ता यजमान तुम हविवाहक को प्रदीप्त करते हो।
अभिषुत :: जो यज्ञ के लिए स्नान कर चुका हो, निचोड़ा हुआ, (अभिषेक, अभिषेचन, अभिषेचनीय, अभिषेच्य, अभिसंग, अभिसंताप)।
Hey Agni Dev! You accomplish the excellent-best Yagy. After the night in the morning please bring Savita, Usha, both Ashwani Kumars, Bhag and other demigods-deities. The hosts who have extracted the Somras, bathed and are ready to make offering ignite-lit you.
पतिर्ह्यध्वराणामग्ने दूतो विशामसि।
उषर्बुध आ वह सोमपीतये देवाँ अद्य स्वर्दृशः॥
हे अग्निदेव! आप साधकों द्वारा सम्पन्न होने वाले यज्ञों के अधिपति और देवों के दूत हैं। उषाकाल में जाग्रत देव आत्माओं को आज सोमपान के निमित्त यहाँ यज्ञस्थल पर लायें।[ऋग्वेद 1.44.9]
हे अग्ने! तुम अनुष्ठान के स्वामी और प्रजा-दूत हो। तुम सवेरे चैतन्य, प्रकाशदर्शी देवगण को सोम पीने के लिए यहाँ लाओ।
Hey Agni Dev! You are the leader-head of the Yagy and the demigods-deities. Please bring them here in the morning for drinking Somras at the Yagy site.
अग्ने पूर्वा अनूषसो विभावसो दीदेथ विश्वदर्शतः।
असि ग्रामेष्वविता पुरोहितोऽसि यज्ञेषु मानुषः॥
हे विशिष्ट दीप्तिमान अग्निदेव! विश्व दर्शनीय आप उषाकाल के पूर्व ही प्रदीप्त होते हैं। आप ग्रामों की रक्षा करने वाले तथा यज्ञों, मानवों के अग्रणी नेता के समान पूजनीय हैं।[ऋग्वेद 1.44.10]
हे प्रकाश रूप धन के स्वामी! सभी के दर्शन योग्य तुम पूर्वकाल में भी उषाओं के संग दीप्तिमान किये गये हो। व्यक्तियों के लिए तुम गाँवों के रक्षक और यज्ञ में पण्डित बनो।
Hey Agni lit with special glow-aura! You are lit before the day break and make the world visible. You are the protector of the country, respected by the humans and the Ritvij-Pandit to carry out the Yagy like a leader.
नि त्वा यज्ञस्य साधनमग्ने होतारमृत्विजम्।
मनुष्वद्देव धीमहि प्रचेतसं जीरं दूतममर्त्यम्॥
हे अग्निदेव! हम मनु की भाँति आपको यज्ञ के साधन रूप, होता रूप, ऋत्विज रूप, प्रकृष्ट ज्ञानी रूप, चिर पुरातन और अविनाशी रूप में स्थापित करते हैं।[ऋग्वेद 1.44.11]
हे अग्ने! तुम देव की अर्चना के साधन, होता, ऋत्विज, ज्ञानी, वेगवान, दूत और अविनाशी हो। मनु के समान ही हम भी तुम्हें अपने भवनों में स्थापित करते हैं।
Hey Agni Dev! We establish you as a means, host, Ritvij, enlightened, ancient and imperishable entity in the Yagy.
यद्देवानां मित्रमहः पुरोहितोऽन्तरो यासि दूत्यम्।
सिन्धोरिव प्रस्वनितास ऊर्मयोऽग्नेर्भ्राजन्ते अर्चयः॥
हे मित्रों में महान अग्निदेव! आप जब यज्ञ के पुरोहित रूप में देवों के बीच दूत कर्म के निमित्त जाते हैं, तब आपकी ज्वालायें समुद्र की प्रचण्ड लहरों के समान शब्द करती प्रदीप्त होती हैं।[ऋग्वेद 1.44.12]
हे मित्रों के हितैषी अग्ने! जब यज्ञ में पुरोहित रूप से तुम देव कर्मों को प्राप्त होते हो। तब तुम्हारी ज्वालाएँ सागर की लहरों के समान वेग और ध्वनि वाली होकर दमकती हैं।
Hey Agni Dev, you are the best amongest the friends! When you visit the demigods-deities as a messenger, your flames shine-glow, roar like the intense waves of the ocean.
श्रुधि श्रुत्कर्ण वह्निभिर्देवैरग्ने सयावभिः।
आ सीदन्तु बर्हिषि मित्रो अर्यमा प्रातर्यावाणो अध्वरम्॥
प्रार्थना पर ध्यान देने वाले हे अग्निदेव! आप हमारी स्तुति स्वीकार करें। दिव्य अग्निदेव के साथ समान गति से चलने वाले, मित्र और अर्यमा आदि देवगण भी प्रातःकालीन यज्ञ में आसीन हों।[ऋग्वेद 1.44.13]
हे अग्ने! हमारे सुनने योग्य वन्दना संकल्पों को सुनो। सखा, अर्यमा और सवेरे जगाने वाले देवों के युक्त अनुष्ठान कुश पर पधारते हो।
Hey Agni Dev, you pay attention to our prayers! Let demigods-deities like Mitr, Aryma take seat in the Yagy, in the morning.
शृण्वन्तु स्तोमं मरुतः सुदानवोऽग्निजिह्वा ऋतावृधः।
पिबतु सोमं वरुणो धृतव्रतोऽश्विभ्यामुषसा सजूः॥
उत्तम दानशील, अग्निरूप जिह्वा से यज्ञ को प्रवृद्ध करने वाले मरुद्गण इन स्तोत्रों का श्रवण करें। नियम पालक वरुण देव, अश्विनी कुमारों और देवी उषा के साथ सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 1.44.14]
मंगलकारी अग्नि की जिह्वा से हवि आस्वादन करने वाले मरुद्गण में हमारी वन्दनाओं को सुने। दृढ़ सिद्धान्त वाले वरुण, अश्विद्वय और उषा के साथ सोमपान करें।
Marud Gan who are excellent donors with the tongue like fire should listen-pay attention to our hymns-prayers & sip Somras along with Varun Dev, who implement-follows the rules-regulation, law; Usha Devi & Ashwani Kumars.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (45) :: ऋषि :- प्रस्कण्व काण्व, देवता :- अग्नि, (10) उत्तरार्ध :- देवगण, छन्द :- अनुष्टुप्।
त्वमग्ने वसूँरिह रुद्राँ आदित्याँ उत।
यजा स्वध्वरं जनं मनुजातं घृतप्रुषम्॥
वसु, रुद्र और आदित्य आदि देवताओं की प्रसन्नता के निमित्त यज्ञ करने वाले हे अग्निदेव! आप घृताहुति से श्रेष्ठ यज्ञ सम्पन्न करने वाले मनु की सन्तानों का सत्कार करें।[ऋग्वेद 1.45.1]
हे अग्नि देव! वसु, रुद्र और आदित्यों का इस अनुष्ठान में पूजन करो। अनुष्ठान परिपूर्ण घृत, अन्नवर्धक, मनु पुत्र देवों का अर्चन करो।
Hey the performer of Yagy for the appeasement of Vasu, Rudr & Adity etc. demigods-deities, Agni Dev! Please welcome the progeny of Manu, who perform best Yagy with the offerings of Ghee.
श्रुष्टीवानो हि दाशुषे देवा अग्ने विचेतसः।
तान्रोहिदश्व गिर्वणस्त्रयस्त्रिंशतमा वह॥
हे अग्निदेव! विशिष्ट ज्ञान सम्पन्न देवगण, हविदाता के लिए उत्तम सुख देते हैं। हे रोहित वर्ण वाले अश्व (अर्थात रक्तवर्ण की ज्वालाओं से सुशोभित) स्तुत्य अग्निदेव! उन तैंतीस कोटि देवों को यहाँ यज्ञस्थल पर लेकर आयें।[ऋग्वेद 1.45.2]
हे अग्ने! देवगण मेधावी हविदाता के सुख की अभिलाषा करने वाले हैं। तुम रोहित नामक घोड़े वाले हो। हे पूज्य! उन तैंतीस देवों को यहाँ लाओ।
Hey Agni Dev! The demigods-deities enlightened with specific-special learning-knowledge, provide excellent comforts to the host-Yagy performers. Hey possessor of colour of the horse called Rohit, worship deserving Agni Dev, please bring the 33 crore-kinds of demigods-deities to this spot.
प्रियमेधवदत्रिवज्जातवेदो विरूपवत्।
अङ्गिरस्वन्महिव्रत प्रस्कण्वस्य श्रुधी हवम्॥
हे श्रेष्ठकर्मा ज्ञान सम्पन्न अग्निदेव! जैसे आपने प्रिय, मेधा, अत्रि, विरूप और अंगिरा के आवाहनों को सुना था वैसे ही अब प्रस्कण्व के आवाहन को भी सुनें।[ऋग्वेद 1.45.3]
हे सर्व प्राणियों के ज्ञाता, महान, कर्म वाले अग्ने! जैसी प्रिय मेधा, राक्षि, विरूप और अंगिरा की पुकार तुमने सुनी थी, वैसे ही अब तुम प्रस्कण्व की पुकार सुनो।
Hey Agni Dev, enlightened with excellent deeds! The way you obliged Priy, Medha, Atri, Virup & Angira; listen to the prayers of Praskavy as well.
महिकेरव ऊतये प्रियमेधा अहूषत।
राजन्तमध्वराणामग्निं शुक्रेण शोचिषा॥
दिव्य प्रकाश से युक्त अग्निदेव, यज्ञ में तेजस्वी रूप में प्रदिप्त हुए। महान कर्मवाले प्रियमेधा ऋषियों ने अपनी रक्षा के निमित्त अग्निदेव का आवाहन किया।[ऋग्वेद 1.45.4]
श्रेष्ठ ज्योति वाले अग्निदेव अनुष्ठान में प्रकाशमान होते हैं। प्रिय मेघ-वंश वालों ने अग्नि के लिए पुकारा था।
Agni Dev appeared in the Yagy fire accompanied with divine light. Priy Medha Rishis who perform great deeds, conducted the Yagy for their protection-safety.
घृताहवन सन्त्येमा उ षु श्रुधी गिरः।
याभिः कण्वस्य सूनवो हवन्तेऽवसे त्वा॥
घृत आहुति भक्षक हे अग्निदेव! कण्व के वंशज, अपनी रक्षा के लिए जो स्तुतियाँ करते हैं, उन्हीं स्तुतियों को आप सम्यक रूप से सुने।[ऋग्वेद 1.45.5]
हे घृत से अनुष्ठान करने योग्य, दाता अग्ने! कण्व-पुत्र जिन प्रार्थनाओं से अपनी सुरक्षा के लिए तुम्हें बुलाते हैं। उन वन्दनाओं को ध्यान पूर्वक सुनो।
Hey Ghee eater, Agni Dev! Please attentively listen to the prayers made by the descendants of Kavy Rishi.
त्वां चित्रश्रवस्तम हवन्ते विक्षु जन्तवः।
शोचिष्केशं पुरुप्रियाग्ने हव्याय वोळ्हवे॥
प्रेमपूर्वक हविष्य को ग्रहण करने वाले, हे यशस्वी अग्निदेव! आप आश्चर्यजनक वैभव से सम्पन्न हैं। सम्पूर्ण मनुष्य एवं ऋत्विज गण यज्ञ सम्पादन के निमित्त आपका आवाहन करते हुए हवि समर्पित करते हैं।[ऋग्वेद 1.45.6]
हे अद्भुत कीर्ति वाले अग्निदेव! तुम अनेकों के प्रिय हो। तुम प्रकाश वाले का हवि के लिए आह्वान करते हैं।
वैभव :: भव्यता, तेज, प्रताप, शान, आडंबर, ठाट-बाट, चमक, महिमा, गौरव, बड़ाई, राज-प्रताप ; grandeur, splendour, majesty, pomp.
Hey honourable Agni Dev; you accept the offerings with love! You possess amazing grandeur. All humans and those (Yaksh, Gandarbh, Rakshas etc.) conducting Yagy, invite you while making offerings.
नि त्वा होतारमृत्विजं दधिरे वसुवित्तमम्।
श्रुत्कर्णं सप्रथस्तमं विप्रा अग्ने दिविष्टिषु॥
हे अग्निदेव! होता रूप, ऋत्विजरूप, धन को धारण करने वाले, स्तुति सुनने वाले, महान यशस्वी आपको विद्वज्जन स्वर्ग की कामना से यज्ञ में स्थापित करते हैं।[ऋग्वेद 1.45.7]
हे अग्ने! होता, ऋत्विज, धन को जानने वाले, विख्यात विनती सुनने वाले, तुमको महापुरुषों ने स्वर्ग प्राप्ति की कामना से यज्ञों में स्थापित किया है।
Hey Agni Dev! The hosts, having riches, listeners of prayers, honourable & the enlightened people lit you in the Yagy, for the sake-purpose of attaining heavens.
आ त्वा विप्रा अचुच्यवुः सुतसोमा अभि प्रयः।
बृहद्भा बिभ्रतो हविरग्ने मर्ताय दाशुषे॥
हे अग्निदेव! हविष्यान्न और सोम को तैयार रखने वाले विद्वान, दानशील याजक के लिये महान तेजस्वी आपको स्थापित करते है।[ऋग्वेद 1.45.8]
हे अग्ने! निष्पन्न सोम और हवि वाले विद्वानजनों ने आपको मरणधर्मा यजमान के लिए दृढ़ किया है।
Hey Agni Dev! The enlightened donor, performer of Yagy prepare offerings & Somras for you, bearing great shine-aura.
प्रातर्याव्णः सहस्कृत सोमपेयाय सन्त्य।
इहाद्य दैव्यं जनं बर्हिरा सादया वसो॥
हे बल उत्पादक अग्निदेव! आप धनों के स्वामी और दानशील हैं। आज प्रातःकाल सोमपान के निमित्त यहाँ यज्ञस्थल पर आने को उद्यत देवों को बुलाकर कुश के आसनों पर बिठायें।[ऋग्वेद 1.45.9]
हे शक्ति उत्पन्न अग्ने! तुम दाता और धन के स्वामी हो। सवेरे आने वाले देवगण को कुश पर विराजमान कर सोमपान के लिए तैयार करो।
Hey Agni Dev! You are the producer of might (force, power, strength). Let the demigods-deities, willing-ready to sip-drink, consume Somras come here and acquire seats-cushions made of Kush grass, in the morning at the site of the Yagy.
अर्वाञ्चं दैव्यं जनमग्ने यक्ष्व सहूतिभिः।
अयं सोमः सुदानवस्तं पात तिरोअह्न्यम्॥
हे अग्निदेव! यज्ञ के समक्ष प्रत्यक्ष उपस्थित देवगणों का उत्तम वचनों से अभिवादन कर यजन करें। हे श्रेष्ठ देवो! यह सोम आपके लिए प्रस्तुत है, इसका पान करें।[ऋग्वेद 1.45.10]
हे अग्ने! यह निचोड़ा हुआ सोम प्रस्तुत है, इसका पान करो।
Hey Agni Dev! Let the demigods-deities present for the Yagy be welcomed with excellent dialogues. Hey excellent, best demigods-deities, this Somras is ready to be served to you. Please accept it.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (46) :: ऋषि :- प्रस्कण्व काण्व, देवता :- अश्विनी कुमार, छन्द :- गायत्री।
एषो उषा अपूर्व्या व्युच्छति प्रिया दिवः। स्तुषे वामश्विना बृहत्॥
यह प्रिय अपूर्व (अलौकिक) देवी उषा आकाश के तम का नाश करती है। देवी उषा के कार्य में सहयोगी हे अश्विनी कुमारो! हम महान स्तोत्रों द्वारा आपकी स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 1.46.1]
जो प्रिय उषा पहले दिखाई नहीं दी, वह क्षितिज से प्रकट होती है। हे अश्विनी कुमारों! मैं हृदय में तुम्हारी प्रार्थना करता हूँ।
This fresh-new Usha (day break, Sun rise, first rays of light) removes the darkness from the sky. Usha Devi is helpful in your endeavours. Hey Ashwani Kumars! We pray-worship you with the help of great-revered hymns.
या दस्रा सिन्धुमातरा मनोतरा रयीणाम्। धिया देवा वसुविदा॥
हे अश्विनी कुमारो! आप शत्रुओं के नाशक एवं नदियों के उत्पत्तिकर्ता है। आप विवेकपूर्वक कर्म करने वालों को अपार सम्पति देने वाले हैं।[ऋग्वेद 1.46.2]
जो समुद्र में रचित हृदय से समृद्धि का उत्पादन करने वाले तथा ध्यान से धनों के ज्ञाता हैं, उनका पूजन करता हूँ।
Hey Ashwani Kumars! You are the destroyer of enemies-evil and producer of rivers. The person who perform prudently, is blessed-granted amenities, comforts by you.
वच्यन्ते वां ककुहासो जूर्णायामधि विष्टपि। यद्वां रथो विभिष्पतात्॥
हे अश्विनी कुमारो! जब आपका रथ पक्षियों की तरह आकाश में पहुँचता है, तब प्रशंसनीय स्वर्गलोक में भी आप के लिये स्तोत्रों का पाठ किया जाता है।[ऋग्वेद 1.46.3]
हे अश्विद्वय! जब तुम्हारा रथ अंतरिक्ष में जाता है, तुम्हारी सब वंदनायें करते हैं।
Hey Ashwani Kumars! When your chariot reaches the sky like birds, prayers are held even in the appreciable heavens with the help of revered hymns.
हविषा जारो अपां पिपर्ति पपुरिर्नरा। पिता कुटस्य चर्षणिः॥
हे देव पुरुषो! जलों को सुखाने वाले, पिता रूप, कार्य द्रष्टा सूर्यदेव (हमारे द्वारा प्रदत्त) हवि से आपको संतुष्ट करते हैं अर्थात सूर्यदेव प्राणि मात्र के पोषण ले लिए अन्नादि पदार्थ उत्पन्न करके प्रकृति के विराट यज्ञ में आहुति दे रहे हैं।[ऋग्वेद 1.46.4]
हे व्यक्तियों! जलों से स्नेह करने वाले धन पूरक, ग्रह पालक और दृष्टा अग्नि हमारी हवि से तुम्हें परिपूर्ण करते हैं।
Hey divine humans-demigods-deities! Sun who dries the water bodies, is like father and perceives every activity, satisfies you with offerings.
Ashwani Kumars are the Sun of Sun.
No life is possible on earth, since vegetation produces food for all creatures & need Sun light. Chlorophyll present in the leaves of the plants produces food. Rays of Sun evaporate water, which turn into rain showers. Some of this water decomposed and reaches back to Sun to work as fuel for the Sun.
आदारो वां मतीनां नासत्या मतवचसा। पातं सोमस्य धृष्णुया॥
असत्यहीन, मनन पूर्वक वचन बोलने वाले हे अश्विनी कुमारो! आप अपनी बुद्धि को प्रेरित करने वाले एवं संघर्ष शक्ति बढ़ाने वाले इस सोम रस का पान करें।[ऋग्वेद 1.46.5]
हे मिथ्यात्व रहित अश्विद्वयों! हमारे आदर पूर्वक वचनों को स्वीकार करते हुए, प्रार्थनाओं द्वारा प्रेरित सोम को नि:शंक ग्रहण करो।
Hey truthful, prudent Ashwani Kumars! Please accept this Somras, which boosts intelligence and physical strength-power to counter evils.
या नः पीपरदश्विना ज्योतिष्मती तमस्तिरः। तामस्मे रासाथामिषम्॥
हे अश्विनी कुमारो! जो पोषक अन्न हमारे जीवन के अंधकार को दूर कर प्रकाशित करने वाला हो, वह हमें प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.46.6]
हे अश्विनी कुमारो! दीप्ति से परिपूर्ण और अन्धेरे से अलग धन को हमारे पोषणार्थ प्रदान करो।
Hey Ashwani Kumars ! Grant us the food which nourishes us and keeps our lives away from darkness.
Money-riches are used to buy food grains to obtain nourishment.
आ नो नावा मतीनां यातं पाराय गन्तवे। युञ्जाथामश्विना रथम्॥
हे अश्विनी कुमारों! आप दोनों अपना रथ नियोजितकर हमारे पास आयें। अपनी श्रेष्ठ बुद्धि से हमें दुःखों के सागर से पार ले चलें।[ऋग्वेद 1.46.7]
हे अश्विनी कुमारों! हमारी वंदनाओं के स्नेहपूर्ण पाश में बंधकर हमको समुद्र रूपी कष्टों से पार करो। अपने रथ में अश्वों को जोड़ो।
Hey Ashwani Kumars! Deploy your horses in your chariot and come to us to free us from pain, sorrow, worries with the help of your excellent intellect-genius.
अरित्रं वां दिवस्पृथु तीर्थे सिन्धूनां रथः। धिया युयुज्र इन्दवः॥
हे अश्विनी कुमारों! आपके आवागमन के साधन द्युलोक (की सीमा) से भी विस्तृत हैं। (तीनों लोकों में आपकी गति है।) नदियों, तीर्थ प्रदेशों में भी आपके साधन है, (पृथ्वी पर भी) आपके लिये रथ तैयार है। (आप किसी भी साधन से पहुँचने में समर्थ हैं।) आप के लिये यहाँ विचारयुक्त कर्म द्वारा सोमरस तैयार किया गया है।[ऋग्वेद 1.46.8]
हे अश्विनी कुमारो! तुम्हारा जहाज समुद्र से भी विशाल है। समुद्र के किनारे पर तुम्हारा रथ खड़ा है तथा यहाँ सोम रस भी तैयार है।
Hey Ashwani Kumars! You are capable of reaching even beyond the boundaries of heavens. You have means for navigation in the rivers and the ocean as well. Please come to us to enjoy Somras which has been duly extracted methodically.
दिवस्कण्वास इन्दवो वसु सिन्धूनां पदे। स्वं वव्रिं कुह धित्सथः॥
कण्व वंशजों द्वारा तैयार सोम दिव्यता से परिपूर्ण है। नदियों के तट पर ऐश्वर्य रखा है। हे अश्विनी कुमारो! अब आप अपना स्वरूप कहाँ प्रदर्शित करना चाहते हैं?[ऋग्वेद 1.46.9]
हे कण्व वंशियों! सोम दिव्य गुणों से परिपूर्ण हुआ है। समुद्र के किनारे पर ऐश्वर्य है।
The extract-Somras produced by the descendants of Kavy Rishi, full of divinity, is stocked at the river bank, sea shore. Hey Ashwani Kumats! Please come and oblige us.
अभूदु भा उ अंशवे हिरण्यं प्रति सूर्यः। व्यख्यज्जिह्वयासितः॥
अमृतमयी किरणों वाले हे सूर्यदेव! अपनी आभा से आप स्वर्णतुल्य प्रतीत हो रहे हैं। इसी समय श्यामल अग्निदेव, ज्वालारूप जिह्वा से विशेष प्रकाशित हो चुके हैं। हे अश्विनी कुमारो! यही आपके शुभागमन का समय है।[ऋग्वेद 1.46.10]
हे अश्विद्वय! तुम अपना स्वरूप कहाँ रखना चाहते हो? उषा काल में सूरज सोने की आभा युक्त ज्योतिर्मय हो गया। अग्नि श्याम रंग का होता हुआ अपनी लपट रूप जिह्वा से प्रकट होने लगा।
Hey Sury Narayan-Sun! You are appearing like glittering gold due to your bright-golden rays. The greyish Agni Dev has evolved with his flames. Hey Ashwani Kumars! This is the most appropriae-oppotunate time for your arrival.
In the morning the household ignite wood for preparing food and the fire produces smoke which is greyish.
अभूदु पारमेतवे पन्था ऋतस्य साधुया।
अदर्शि वि स्रुतिर्दिवः॥
द्युलोक से अंधकार को पार करती हुई, विशिष्ट प्रभा प्रकट होने लगी है, जिससे यज्ञ के मार्ग अच्छी तरह से प्रकाशित हुए हैं। अतः हे अश्विनी कुमारो! आपको आना चाहिये।[ऋग्वेद 1.46.11]
पार जाने के लिए यज्ञ रूप श्रेष्ठ मार्ग है। उसमें से निकलती हुई आकाश की पगडंडी दिखाई दे रही है।
The aura is appearing from the heavens lightening the path. The site of Yagy is visible properly. Hey Ashwani Kumars! Please come.
Yagy is one of the means of achieving greatness, heavens. It may help in achieving Moksh (Salvation, assimilation in the God, Liberation, emancipation).
तत्तदिदश्विनोरवो जरिता प्रति भूषति। मदे सोमस्य पिप्रतोः॥
सोम के हर्ष से पूर्ण होने वाले अश्विनी कुमारो के उत्तम संरक्षण का स्तोतागण भली प्रकार वर्णन करते हैं।[ऋग्वेद 1.46.12]
स्तोता सोम के आनंद से परिपूर्ण करने वाले अश्विदेवों की रक्षा की बार-बार सराहना दो।
Those praying to Ashwani Kumars appreciate the shelter, protection, asylum granted to them, who are happy with the right to accept Somras.
वावसाना विवस्वति सोमस्य पीत्या गिरा। मनुष्वच्छम्भू आ गतम्॥
हे दीप्तिमान (यजमानों के) मन में निवास करने वाले, सुखदायक अश्विनी कुमारो! मनु के समान श्रेष्ठ परिचर्या करने वाले यजमान के समीप निवास करने वाले (सुखप्रदान करने वाले हे अश्विनीकुमारो!) आप दोनों सोमपान के निमित्त एवं स्तुतियों के निमित्त इस याग में पधारें।[ऋग्वेद 1.46.13]
हे प्रकाशमय आकाश के निवासी सुखदायक अश्विनी कुमारो! मनु की प्रार्थनाओं से उनको प्राप्त होने के समान हमारी वंदना से हमको प्राप्त होओ।
Hey aura possessing Ashwani Kumars! You acquire the hearts of the hosts like Manu Maharaj. Both of you should come to us and enjoy Somras & listen to the divine hymns-prayers.
युवोरुषा अनु श्रियं परिज्मनोरुपाचरत्। ऋता वनथो अक्तुभिः॥
हे अश्विनी कुमारो! चारों ओर गमन करने वाले आप दोनों की शोभा के पीछे-पीछे देवी उषा अनुगमन कर रहीं हैं। आप रात्रि में भी यज्ञों का सेवन करते हैं।[ऋग्वेद 1.46.14]
हे अश्विद्वय! तुम चारों ओर विचरण करने वालों की शोभा के पीछे-पीछे उषा फिर रही है। तुम रात्रि में हवियों की कामना करो।
Hey Ashwani Kumars! You move in all the 10 directions followed by Usha. You accept the offerings at night as well.
उभा पिबतमश्विनोभा नः शर्म यच्छतम्। अविद्रियाभिरूतिभिः॥
हे अश्विनी कुमारो! आप दोनों सोमरस का पान करें। आलस्य न करते हुये हमारी रक्षा करें तथा हमें सुख प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.46.15]
हे अश्विनी कुमारो! तुम दोनों सोमपान करते हुए अपनी रक्षाओं से हमको सुख प्रदान करो।
Hey Ashwani Kumars! Both of you enjoy Somras. Protect us without laziness and grant us pleasure-happiness.
Being considered inferior, Ashwani Kumars were not entitled to drink Somras. Chayvan Rishi on being rejuvenated by them granted them the right to enjoy Somras, on the strength of his asceticism.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मंडल सूक्त 47 :: ऋषि :- प्रस्कण्व कण्व, देवता :- अश्विनी कुमार, छन्द :- बाहर्त प्रगाथ (विषमा बृहती, समासतो बृहती)।
अयं वां मधुमत्तमः सुतः सोम ऋतावृधा।
तमश्विना पिबतं तिरोअह्न्यं धत्तं रत्नानि दाशुषे॥
हे यज्ञ कर्म का विस्तार करने वाले अश्विनी कुमारो! अपने इस यज्ञ में अत्यन्त मधुर तथा एक दिन पूर्व शोधित सोमरस का आप सेवन करें। यज्ञकर्ता यजमान को रत्न एवं ऐश्वर्य प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.47.1]
ये यज्ञ वर्द्धक अश्विनी कुमारो! यह अत्यन्त मधुर सोम तुम्हारे लिए निचोड़ा गया है। उसको पियो और हविदाता को रत्नादि धन प्रदान करो।
Hey Yagy promoting-extending Ashwani Kumars! This sweet-tasty Somras has been extracted for you. Accept this and grant riches, comforts, amenities to the hosts-household conducting-performing Yagy.
त्रिवन्धुरेण त्रिवृता सुपेशसा रथेना यातमश्विना।
कण्वासो वां ब्रह्म कृण्वन्त्यध्वरे तेषां सु शृणुतं हवम्॥
हे अश्विनी कुमारो! तीन वृत्त युक्त (त्रिकोण), तीन अवलम्बन वाले अति सुशोभित रथ से यहाँ आयें। यज्ञ में कण्व वंशज आप दोनों के लिए मंत्र युक्त स्तुतियाँ करते हैं, उनके आवाहन को सुनें।[ऋग्वेद 1.47.2]
हे अश्विद्वय! अपने तीन काठों से परिपूर्ण त्रिकोण सुन्दर रथ से हमको ग्रहण होओ। यह कण्ववंशी अपने अनुष्ठान में मंत्र परिपूर्ण वंदनाएँ अर्पण करते हैं, उनको ध्यान पूर्वक सुनो।
Hey Ashwani Kumars come here, riding your three dimensional beautiful-glorious chariot. The descendants of Kavy are making prayers to you with decent hymns. Please listen to these hymns, recitations in the form of Mantr.
अश्विना मधुमत्तमं पातं सोममृतावृधा।
अथाद्य दस्रा वसु बिभ्रता रथे दाश्वांसमुप गच्छतम्॥
हे शत्रु नाशक, यज्ञ वर्द्धक अश्विनी कुमारो! अत्यन्त मीठे सोमरस का पान करें। आज रथ में धनों को धारण कर हविदाता यजमान के समीप आयें।[ऋग्वेद 1.47.3]
हे यज्ञ वर्द्धक विकराल अश्विनी कुमारों! तुम मधुर सोमरस का पान करो। फिर अपने रथ में धनों को धारण करते हुए हविदाता की ओर पधारो।
Hey Yagy protector, enemy slayer Ashwani Kumars! Enjoy the extremely sweet-relishing Somras. Please come to the hosts with wealth for them.
त्रिषधस्थे बर्हिषि विश्ववेदसा मध्वा यज्ञं मिमिक्षतम्।
कण्वासो वां सुतसोमा अभिद्यवो युवां हवन्ते अश्विना॥
हे सर्वज्ञ अश्विनी कुमारो! तीन स्थानों पर रखे हुए कुश-आसन पर अधिष्ठित होकर आप यज्ञ का सिंचन करें। स्वर्ग की कामना वाले कण्व वंशज सोम को अभिषुत कर आप दोनों को बुलातें हैं।[ऋग्वेद 1.47.4]
हे सर्वज्ञाता अश्विद्वय! तीन स्थानों में रखे हुए कुश पर विराजमान होकर मधु रस से यज्ञ का संचालन करो। स्वर्ग की अभिलाषा से सोम को निष्पन्न करने वाले कण्ववंशी तुम्हारा आह्वान करते हैं।
Hey all knowing-enlightened Ashwani Kumars! Please occupy the Kush Asan-cushions placed at three points-locations and complete this Yagy. The descendents of Kavy, desirous heavens are calling-requesting you.
याभिः कण्वमभिष्टिभिः प्रावतं युवमश्विना।
ताभिः ष्वस्माँ अवतं शुभस्पती पातं सोममृतावृधा॥
यज्ञ को बढ़ाने वाले शुभ कर्मो के पोषक, हे अश्विनी कुमारो! आप दोनों ने जिन इच्छित रक्षण-साधनों से कण्व की भली प्रकार रक्षा की, उन साधनों से हमारी भी भली प्रकार रक्षा करें और प्रस्तुत सोम रस का पान करें।[ऋग्वेद 1.47.5]
हे अनुष्ठान वर्द्धक सुकर्मों का पालन करने वाले अश्विद्वय! जिन साधनों से तुमने कण्व की सुरक्षा की थी, उनसे हमारी भी सुरक्षा करो और इस सोम रस का पान करो।
Hey protector of auspicious acts-endeavours, Ashwani Kumars! The way you protected Kavy, protected us as well. Here is the Somras ready to be enjoyed by you.
सुदासे दस्रा वसु बिभ्रता रथे पृक्षो वहतमश्विना।
रयिं समुद्रादुत वा दिवस्पर्यस्मे धत्तं पुरुस्पृहम्॥
शत्रुओं के लिए उग्ररूप धारण करने वाले हे अश्विनी कुमारो! रथ में धनों को धारण कर आपने सुदास को अन्न पहुँचाया। उसी प्रकार अन्तरिक्ष या सागरों से लाकर बहुतों द्वारा वाञ्छित धन हमारे लिए प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.47.6]
हें उग्र कर्मा अश्विद्वय! रथ में धन को धारण कर तुमने सुदास नामक सम्राट को अन्न पहुँचाया। उसी प्रकार अंतरिक्ष या क्षितिज से अनेक कामना योग्य धन हमारे लिए स्थापित करो।
Hey Ashwani Kumars! You become ferocious for the enemy. You delivered various kinds of jewels in your chariot either from the space or the ocean, to have food grains to king Sudas (to support his populace during scarcity).
यन्नासत्या परावति यद्वा स्थो अधि तुर्वशे।
अतो रथेन सुवृता न आ गतं साकं सूर्यस्य रश्मिभिः॥
हे सत्य समर्थक अश्विनी कुमारो! आप दूर हो या पास हों, वहाँ से उत्तम गतिमान रथ से सूर्य रश्मियों के साथ हमारे पास आयें।[ऋग्वेद 1.47.7]
हे असत्य रहित अश्विद्वय! तुम दूर हो या निकट, सूर्य की किरणों के साथ घूमने वाले रथ से हमको प्राप्त हो जाओ।
Hey supporter of truth, Ashwani Kumars! Where ever you are, far or wide, please come to us in your accelerated chariot, with the rays of Sun light.
अर्वाञ्चा वां सप्तयोऽध्वरश्रियो वहन्तु सवनेदुप।
इषं पृञ्चन्ता सुकृते सुदानव आ बर्हिः सीदतं नरा॥
हे देव पुरुषो, अश्विनी कुमारो! यज्ञ की शोभा बढ़ाने वाले आपके अश्व आप दोनों को सोमयाग के समीप ले आयें। उत्तम कर्म करनेवाले और दान देने वाले याजकों के लिये अन्नों की पूर्ति करते हुए आप दोनों कुश के आसनों पर बैठें।[ऋग्वेद 1.47.8]
हे पुरुषों! यज्ञ में जाने वाले अश्व सोम याग में तुम्हें हमारे सम्मुख ले आयें। श्रेष्ठ कार्य और दान वाले यजमान को ताकत से युक्त करते हुए तुम कुश के आसनों पर विराजो।
Hey divine beings, Ashwani Kumars! The decorated horses which increases the glory of the Yagy, should bring both of you to the site of the Yagy. Please occupy the seats while granting best food grains to the performer of the Yagy who perform excellent deeds and make donations.
तेन नासत्या गतं रथेन सूर्यत्वचा।
येन शश्वदूहथुर्दाशुषे वसु मध्वः सोमस्य पीतये॥
हे सत्य समर्थक अश्विनी कुमारो! सूर्य सदृश तेजस्वी जिस रथ से दाता याजकों के लिए सदैव धन लाकर देते रहे हैं, उसी रथ से आप मीठे सोमरस पान के लिए पधारें।[ऋग्वेद 1.47.9]
हे असत्य रहित अश्विद्वय! जिस रथ से तुमने हविदाता को निरन्तर धन प्रदान किया है, उसी से सोमों का पान करने हेतु यहाँ पर विराजमान होओ।
Hey truthful Ashwani Kumars! The glorious chariot in which you bring riches to the donor hosts conducting Yagy, be used by you come and drink the sweet-relishing Somras.
उक्थेभिरर्वागवसे पुरूवसू अर्कैश्च नि ह्वयामहे।
शश्वत्कण्वानां सदसि प्रिये हि कं सोमं पपथुरश्विना॥
हे विपुल धन वाले अश्विनी कुमारो! अपनी रक्षा के निमित्त हम स्तोत्रों और पूजा-अर्चनाओं से बार-बार आपका आवाहन करते हैं। कण्व वंशजों की यज्ञ सभा में आप सर्वदा सोमपान करते रहे हैं।[ऋग्वेद 1.47.10]
हे समृद्धिशाली अश्विद्वय! सुरक्षा के लिये श्लोकों से हम बार-बार आह्वान करते हैं। कण्व वंशियों के समाज में तुम सोमपान करते रहे, यह प्रसिद्ध ही है।
Hey possessor of unlimited wealth, Ashwani Kumars! We pray-worship you with the help of hymns, recitation again and again. You have been enjoying Somras in the company of the descendants of Kavy, its well knows.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मंडल सूक्त 48 :: ऋषि :- प्रस्कण्व कण्व, देवता :- उषा, छन्द :- बाहर्त प्रगाथ (विषमा बृहती, समासतो बृहती)।
सह वामेन न उषो व्युच्छा दुहितर्दिवः।
सह द्युम्नेन बृहता विभावरि राया देवि दास्वती॥
हे आकाशपुत्री उषे! उत्तम तेजस्वी, दान देने वाली, धनों और महान ऐश्वर्यों से युक्त होकर आप हमारे सम्मुख प्रकट हों अर्थात हमें आपका अनुदान-अनुग्रह होता रहे।[ऋग्वेद 1.48.1]
हे क्षितिज पुत्री अत्यन्त यशस्वी उषे! हमको प्रशंसा से परिपूर्ण उपभोग्य और कीर्ति ग्रहण कराने वाली समृद्धि के साथ तुम प्रकट होओ।
Hey Usha, the daughter of sky! Please appear with excellent Tej-energy, donations, wealth-riches and great amenities for us so that we are able obliged-sheltered by you.
अश्वावतीर्गोमतीर्विश्वसुविदो भूरि च्यवन्त वस्तवे।
उदीरय प्रति मा सूनृता उषश्चोद राधो मघोनाम्॥
अश्व, गौ आदि (पशुओं अथवा संचारित होने वाली एवं पोषक किरणों) से सम्पन्न धन्य-धान्यों को प्रदान करने वाली उषाएँ प्राणिमात्र के कल्याण के लिए प्रकाशित हुई हैं। हे उषे! कल्याणकारी वचनों के साथ आप हमारे लिए उपयुक्त धन वैभव प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.48.2]
घोड़ों और गायों से परिपूर्ण, सभी को जानने वाली उषा हमको लगातार ग्रहण होओ। हे उषे! मेरे लिए प्रिय और सत्य बात कहो तथा धन प्रेरित कर धनी बना दो।
You are associated with horses, cows, wealth, food grains for the welfare of all creatures-organism. Hey Usha! Bless us with soothing words & sufficient riches for our welfare
उवासोषा उच्छाच्च नु देवी जीरा रथानाम्।
ये अस्या आचरणेषु दध्रिरे समुद्रे न श्रवस्यवः॥
जो देवी उषा पहले भी निवास कर चुकी हैं, वह रथों को चलाती हुई, अब भी प्रकट हों। जैसे रत्नों की कामना वाले मनुष्य समुद्र की ओर मन लगाये रहते हैं; वैसे ही हम देवी उषा के आगमन की प्रतिक्षा करते हैं।[ऋग्वेद 1.48.3]
उषा पहले भी हमारे पास निवास करती थी। वह आज भी प्रकट हो जायें। उसके आने की प्रतीक्षा में हम हैं। जैसे रत्नों की इच्छा करने वाले समुद्र में मन लगाए रहते हैं।
Usha Devi, who had been with us, should come to us driving her chariot. The way the people desirous of gems-jewels looks to the ocean, we wait for her.
उषो ये ते प्र यामेषु युञ्जते मनो दानाय सूरयः।
अत्राह तत्कण्व एषां कण्वतमो नाम गृणाति नृणाम्॥
हे उषे! आपके आने के समय जो स्तोता अपना मन, धनादि दान करने में लगाते हैं, उसी समय अत्यन्त मेधावी कण्व उन मनुष्यों के प्रशंसात्मक स्तोत्र गाते हैं।[ऋग्वेद 1.48.4]
हे उषे! तुम्हारे आगमन के साथ ही जो प्राणी दान की इच्छा करते हैं, उन व्यक्तियों के नाम को कण्व वंशियों में श्रेष्ठ कण्व प्रशंसा वचनों के सहित कहते हैं।
Hey Usha! Extremely intellengent-genious descendants of Kanv Rishi recite hymns in appreciation-praise of those humans who are engaged in donations at the time of your arrival-day break.
आ घा योषेव सूनर्युषा याति प्रभुञ्जती।
जरयन्ती वृजनं पद्वदीयत उत्पातयति पक्षिणः॥
उत्तम गृहिणी स्त्री के समान सभी का भली प्रकार पालन करने वाली देवी उषा जब आती हैं, तो निर्बलों को शक्तिशाली बना देती हैं, पाँव वाले जीवों को कर्म करने के लिए प्रेरित करती है और पक्षियों को सक्रिय होने की प्रेरणा देती है।[ऋग्वेद 1.48.5]
महान मार्ग पर चलती हुई उषा घर-स्वामिनी के तुल्य हमको पालती हैं। वह विचरण शीलों को वृद्धावस्था प्राप्त कराती है। पैर वाले जीवों को कार्य में लगाती और पक्षियों को उड़ाती है।
With her arrival Usha Devi makes-turns the weak strong, inspire two legged beings to perform, activate the birds; like an excellent house wife.
वि या सृजति समनं व्यर्थिनः पदं न वेत्योदती।
वयो नकिष्टे पप्तिवांस आसते व्युष्टौ वाजिनीवति॥
देवी उषा सबके मन को कर्म करने के लिए प्रेरित करती हैं तथा धन इच्छुकों को पुरुषार्थ के लिए भी प्रेरणा देती है। ये जीवन दात्री देवी उषा निरन्तर गतिशील रहती हैं। हे अन्नदात्री उषे! आपके प्रकाशित होने पर पक्षी अपने घोसलों में बैठे नहीं रहते।[ऋग्वेद 1.48.6]
वही उषा युद्धों की ओर प्रेरित तथा कर्मशीलों को कार्य में लगाती है। वह स्वयं विश्राम नहीं करती। हे अन्न प्रदान करने वाली उषा। तुम्हारे आगमन पर पक्षी भी अपने घोंसले छोड़ देते हैं।
Usha Devi engage-inspire the innerself of all beings to function and motivate-encourage the people desirous of riches-wealth to make efforts. The life generating-promoting Usha Devi is always active-movable. The birds leave their nests as soon you arrive.
एषायुक्त परावतः सूर्यस्योदयनादधि।
शतं रथेभिः सुभगोषा इयं वि यात्यभि मानुषान्॥
देवी उषा सूर्य के उदय स्थान से दूरस्थ देशों को भी जोड़ देती हैं। ये सौभाग्यशालिनी देवी उषा मनुष्य लोक की ओर सैंकड़ों रथों द्वारा गमन करती हैं।[ऋग्वेद 1.48.7]
इसने सूर्य उदय स्थल से दूर देशों को जोड़ दिया। यह सौभाग्यशालिनी उषा सौ रथों द्वारा मनुष्य लोक में आती है।
Devi Usha connects hundreds of distant countries. Lucky-auspicious Devi Usha moves towards the abodes of humans-Earth, in hundreds of chariots.
विश्वमस्या नानाम चक्षसे जगज्ज्योतिष्कृणोति सूनरी।
अप द्वेषो मघोनी दुहिता दिव उषा उच्छदप स्रिधः॥
सम्पूर्ण जगत इन देवी उषा के दर्शन करके झुककर उन्हें नमन करता है। प्रकाशिका, उत्तम मार्ग दर्शिका, ऐश्वर्य सम्पन्न आकाश पुत्री देवी उषा, पीड़ा पहुँचाने वाले हमारे बैरियों को दूर हटाती हैं।[ऋग्वेद 1.48.8]
यह संसार इनके दर्शनों का अभिलाषी रहता है और इनके आगे नतमस्तक होता है। यह दीप्ति वती सभी के लिए सुमार्ग बनाती है। क्षितिज की पुत्री, धनवती यह उषा हमारे शत्रुओं और कष्ट देने वालों को दूर भगाएँ।
Entire word bows-prostrate before her. She lit the world, provide best guidance & riches, daughter of the sky repels the enemies torturing us-humans.
उष आ भाहि भानुना चन्द्रेण दुहितर्दिवः।
आवहन्ती भूर्यस्मभ्यं सौभगं व्युच्छन्ती दिविष्टिषु॥
हे आकाश पुत्री उषे! आप आह्लादप्रद दीप्ती से सर्वत्र प्रकाशित हों। हमारे इच्छित स्वर्ग-सुख युक्त उत्तम सौभाग्य को ले आयें और दुर्भाग्य रूपी तमिस्त्रा को दूर करें।[ऋग्वेद 1.48.9]
हे आकाश पुत्री उषे! आप हमको सौभाग्यशाली बनाती हुई हमारे यज्ञों में प्रकट हो और आनंददायक प्रकाश से सदैव चमकती रहो।
Hey the daughter of sky Usha! You should have the aura granting happiness-pleasure all around-every where. Please bring the comforts of heavens to us, aided by good luck and remove-repel bad luck in the form of darkness.
विश्वस्य हि प्राणनं जीवनं त्वे वि यदुच्छसि सूनरि।
सा नो रथेन बृहता विभावरि श्रुधि चित्रामघे हवम्॥
हे सुमार्ग प्रेरक उषे! उदित होने पर आप ही विश्व के प्राणियों का जीवन आधार बनती हैं। विलक्षण धन वाली, कान्तिमती हे उषे! आप अपने बृहत रथ से आकर हमारा आवाह्न सुनें।[ऋग्वेद 1.48.10]
हे सुमार्ग पर ले चलने वाली उषे! तू प्रकट होती है, इसी में तेरी प्रसिद्धि और जीवन है, तुम कांतिमती, धनवाली हमारी तरफ रथ में आरूढ़ होकर आह्वान को सुनो।
Hey the follower of pious, virtuous, righteous routes, Usha! You forms the basis of life over the earth. The possessor of amazing wealth-riches, Hey Usha! Please come in glittering-shinning chariot and listen to our prayers.
उषो वाजं हि वंस्व यश्चित्रो मानुषे जने।
तेना वह सुकृतो अध्वराँ उप ये त्वा गृणन्ति वह्नयः॥
हे उषा देवी! मनुष्यों के लिये विविध अन्न-साधनों की वृद्धि करें। जो याजक आपकी स्तुतियाँ करते हैं, उनके इन उत्तम कर्मो से संतुष्ट होकर उन्हें यज्ञीय कर्मो की ओर प्रेरित करें।[ऋग्वेद 1.48.11]
हे उषे! मनुष्य के लिए अनेक प्रकार के अन्नों की इच्छा करो। हविदाताओं की वंदनाओं से उनको सुकर्म परिपूर्ण यज्ञों की ओर प्रेरित करो।
Hey Devi Usha! Arrange various means for growing food grains. Inspire those hosts-devotees who pray to you to conduct Yagy, on being satisfied with their pious deeds.
विश्वान्देवाँ आ वह सोमपीतयेऽन्तरिक्षादुषस्त्वम्।
सास्मासु धा गोमदश्वावदुक्थ्यमुषो वाजं सुवीर्यम्॥
हे उषे! सोमपान के लिए अंतरिक्ष से सब देवों को यहाँ ले आयें। आप हमें अश्वों, गौओं से युक्त धन और पुष्टिप्रद अन्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.48.12]
हे उषे! सोमपान हेतु अंतरिक्ष के सभी देवताओं को यहाँ ले आओ। तुम हमें अश्वों और धेनुओं से परिपूर्ण धन और पराक्रम युक्त अन्न को प्रदान करो।
Hey Usha! Please bring all demigod-deities from the space here, to enjoy Somras. Give us horses, cows, wealth-riches and nourishing food grains.
यस्या रुशन्तो अर्चयः प्रति भद्रा अदृक्षत।
सा नो रयिं विश्ववारं सुपेशसमुषा ददातु सुग्म्यम्॥
जिन देवी उषा की दीप्तिमान किरणें मंगलकारी प्रतिलक्षित होती हैं, वे देवी उषा हम सबके लिए वरणीय, श्रेष्ठ, सुखप्रद धनों को प्राप्त करायें।[ऋग्वेद 1.48.13]
जिनकी चमकती हुई कान्ति मंगल रूप है, वह उषा सबके वरण करने योग्य श्रेष्ठ धनों को हमारे लिए प्राप्त करायें।
Usha Devi, who's glittering rays are auspicious, may grant us excellent comforts, amenities, wealth-riches.
ये चिद्धि त्वामृषयः पूर्व ऊतये जुहूरेऽवसे महि।
सा न स्तोमाँ अभि गृणीहि राधसोषः शुक्रेण शोचिषा॥
हे श्रेष्ठ उषा देवी! प्राचीन ऋषि आपको अन्न और संरक्षण प्राप्ति के लिये बुलाते थे। आप यश और तेजस्विता से युक्त होकर हमारे स्तोत्रों को स्वीकार करें।[ऋग्वेद 1.48.14]
हे पूजनीय! प्राचीनकाल के ऋषि भी तुमको अन्न और रक्षा के लिए बुलाते थे। तुम हमारे स्तोत्रों का उत्तर ऐश्वर्य और धन से दे दो।
Hey best Usha Devi! Ancient Rishis-sages, ascetics invited to grant them asylum and food grains. Associated with glory-fame and brilliance-aura; please accept or prayers in the form of hymns.
उषो यदद्य भानुना वि द्वारावृणवो दिवः।
प्र नो यच्छतादवृकं पृथु च्छर्दिः प्र देवि गोमतीरिषः॥
हे देवी उषे! आपने अपने प्रकाश से आकाश के दोनों द्वारों को खोल दिया है। अब आप हमें हिंसकों से रक्षित, विशाल आवास और दुग्धादि युक्त अन्नों को प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.48.15]
हे उषे! तुमने अपनी दीप्ति से क्षितिज के दोनों द्वारों को खोला है। तुम हमको हिंसकों से पृथक विशाल गृह और गवादि से परिपूर्ण धन प्रदान करो।
Hey Devi Usha! You have opened both the gates of the sky. Protect us from the violent, give spacious houses to us to live and provide food associated with milk and grains.
सं नो राया बृहता विश्वपेशसा मिमिक्ष्वा समिळाभिरा।
सं द्युम्नेन विश्वतुरोषो महि सं वाजैर्वाजिनीवति॥
हे देवी उषे! आप हमें सम्पूर्ण पुष्टिप्रद महान धनों से युक्त करें, गौओं से युक्त करें। अन्न प्रदान करने वाली, श्रेष्ठ हे देवी उषे! आप हमें शत्रुओं का संहार करने वाला बल देकर अन्नों से संयुक्त करें।[ऋग्वेद 1.48.16]
हे उषे! हमको समृद्धिशाली बनाओ और धेनुओं से परिपूर्ण करो। हमारे शत्रुओं का पतन करने वाला और पराक्रम देकर अन्नों से सम्पन्न बनाओ।
Hey Usha Devi! Make us rich & strong with wealth, cows. Hey provider of food, excellent Usha Devi! You should provide us with the strength-power to eliminate the enemy and provide food grains.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त 49 :: ऋषि :- प्रस्कण्व कण्व, देवता :- उषा, छन्द :- अनुष्टुप्।
उषो भद्रेभिरा गहि दिवश्चिद्रोचनादधि।
वहन्त्वरुणप्सव उप त्वा सोमिनो गृहम्॥
हे देवी उषे! द्युलोक के दीप्तिमान स्थान से कल्याणकारी मार्गों द्वारा आप यहाँ आयें। अरुणिम वर्ण के अश्व आपको सोमयाग करनेवाले के घर पहुँचाएँ।[ऋग्वेद 1.49.1]
हे उषे! ज्योतिर्मान क्षितिज से भी उत्तम मार्गों से पधारो। सोमभाग वाले के गृह लाल रंग के अश्व तुम्हें पहुँचाये।
Hey Devi Usha! Let you come here through the glittering-bright, auspicious path like that of the space-heavens. The red coloured horses should take you to the house of the devotee-one performing Som Yagy.
सुपेशसं सुखं रथं यमध्यस्था उषस्त्वम्।
तेना सुश्रवसं जनं प्रावाद्य दुहितर्दिवः॥
हे आकाश पुत्री उषे! आप जिस सुन्दर सुखप्रद रथ पर आरूढ़ हैं, उसी रथ से उत्तम हवि देने वाले याजक की सब प्रकार से रक्षा करें।[ऋग्वेद 1.49.2]
क्षितिज पुत्री उषे! तुम जिस सुन्दर और सुखदायक रथ पर विराजमान हो, उसके युक्त पधारकर यजमान की सुरक्षा करो।
Hey Usha, the daughter of sky-horizon! You should protect the devotee making best offerings in the Yagy from the chariot you are riding.
One who resort to charity, make donations too is qualified for her blessings. These pious activities too are like Yagy. One perform Varnashram Dharm with dedication, too is qualified for her blessings.
वयश्चित्ते पतत्रिणो द्विपच्चतुष्पदर्जुनि।
उषः प्रारन्नृतूँरनु दिवो अन्तेभ्यस्परि॥
हे देदीप्यमान उषादेवि! आपके आकाश मण्डल पर उदित होने के बाद मानव पशु एवं पक्षी अन्तरिक्ष मे दूर-दूर तक स्वेच्छानुसार विचरण करते हुए दिखायी देते हैं।[ऋग्वेद 1.49.3]
हे उज्ज्वल वर्ण वाली उषे! तुम्हारे आते ही दो पैर वाले व्यक्ति, पंख वाले पक्षी तथा चौपाये पशु आदि सभी ओर विचरने लगते हैं।
Hey shinning-bright Usha Devi! With your arrivals, humans, birds, animals are seen busy in various kinds of activities.
व्युच्छन्ती हि रश्मिभिर्विश्वमाभासि रोचनम्।
तां त्वामुषर्वसूयवो गीर्भिः कण्वा अहूषत॥
हे उषा देवी! उदित होते हुए आप अपनी किरणों से सम्पूर्ण विश्व को प्रकाशित करती हैं। धन की कामना वाले कण्व वंशज आपका आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 1.49.4]
हे उषे! अपनी किरणों से उदय होती हुई सारे संसार को प्रकाशित करती हो। धन की अभिलाषा से कण्ववंशी वंदनाओं द्वारा तुम्हारा आह्वान करते हैं।
Hey Usha Devi! With your rise your rays lit the whole universe. Kany descendants invite you for want of money, through prayers-worship, singing hymns.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त 50 :: ऋषि :- प्रस्कण्व कण्व, देवता :- सूर्य (11-13) रोगघ्न उपनिषद), छन्द :- गायत्री, 10-13 अनुष्टुप्।
उदु त्यं जातवेदसं देवं वहन्ति केतवः। दृशे विश्वाय सूर्यम्॥
ये ज्योतिर्मयी रश्मियाँ सम्पूर्ण प्राणियों के ज्ञाता सूर्य देव को एवं समस्त विश्व को दृष्टि प्रदान करने के लिए विशेष रूप से प्रकाशित होती हैं।[ऋग्वेद 1.50.1]
सर्वभूतों के ज्ञाता प्रकाशवान सूरज की किरणें क्षितिज में ही विचरण करती हैं।
The rays of Sun, who knows all creatures, grants vision to the whole world.
अप त्ये तायवो यथा नक्षत्रा यन्त्यक्तुभिः। सूराय विश्वचक्षसे॥
सबको प्रकाश देने वाले सूर्य देव के उदित होते ही रात्रि के साथ तारा मण्डल वैसे ही छिप जाते है, जैसे चोर छिप जाते है।[ऋग्वेद 1.50.2]
सर्वदर्शी के प्रकट होते ही नक्षत्र आदि विख्यात चोर के तुल्य छिप जाते हैं।
With the Sun rise the stars hide along with the night just like the thieves.
अदृश्रमस्य केतवो वि रश्मयो जनाँ अनु। भ्राजन्तो अग्नयो यथा॥
प्रज्वलित हुई अग्नि की किरणों के समान सूर्य देव की प्रकाश रश्मियाँ सम्पूर्ण जीव-जगत को प्रकाशित करती हैं।[ऋग्वेद 1.50.3]
सूर्य की ध्वजा रूप किरणें प्रज्वलित अग्नि के समान मनुष्य की ओर जाती हुई स्पष्ट दिखाई देती हैं।
Rays of Sun lit the whole world like the fire.
तरणिर्विश्वदर्शतो ज्योतिष्कृदसि सूर्य। विश्वमा भासि रोचनम्॥
हे सूर्य देव! आप साधकों का उद्धार करने वाले हैं, समस्त संसार में एक मात्र दर्शनीय प्रकाशक हैं तथा आप ही विस्तृत अंतरिक्ष को सभी ओर से प्रकाशित करते हैं।[ऋग्वेद 1.50.4]
हे सूर्य! तुम वेगवान सभी के दर्शन करने योग्य हो। तुम प्रकाश वाले सभी को प्रकाशित करते हो।
उद्धार :: निस्तार, मुक्ति, छुटकारा, बचाव, छुड़ाना; deliverance, extrication, releasement, rescue.
Hey Sury-Sun Dev! You release the devotee from the cycle of birth & death. You are the only source of light for the whole universe.
प्रत्यङ्देवानां विशः प्रत्यङ्ङुदेषि मानुषान्। प्रत्यङ्विश्वं स्वर्दृशे॥
हे सूर्यदेव! मरुद्गणों, देवगणों, मनुष्यों और स्वर्गलोक वासियों के सामने आप नियमित रूप से उदित होते हैं, ताकि तीन लोकों के निवासी आपका दर्शन कर सकें।[ऋग्वेद 1.50.5]
हे सूर्य! तुम देवताओं, प्राणियों तथा सभी मनुष्यों के लिए साक्षात् हुए तेज को प्रकाशित करने को आकाश में भ्रमण करते हो।
Hey Sury Dev! You rise regularly for the Marud Gan, Dev Gan, the habitants of heaven and the humans; so that they can see the three abodes viz. earth, heaven and the Nether world.
येना पावक चक्षसा भुरण्यन्तं जनाँ अनु। त्वं वरुण पश्यसि॥
जिस दृष्टि अर्थात प्रकाश से आप प्राणियों को धारण-पोषण करने वाले इस लोक को प्रकाशित करते हैं, हम उस प्रकाश की स्तुति करतें हैं।[ऋग्वेद 1.50.6]
तुम जिस नेत्र से मनुष्यों की ओर देखते हो उस नेत्र को हम प्रणाम करते हैं।
We pray to the eye-light through which you see the universe and support the living beings.
वि द्यामेषि रजस्पृथ्वहा मिमानो अक्तुभिः। पश्यञ्जन्मानि सूर्य॥
हे सूर्य देव! आप दिन एवं रात में समय को विभाजित करते हुए अन्तरिक्ष एवं द्युलोक में भ्रमण करते हैं, जिसमें सभी प्राणियों को लाभ प्राप्त होता है।[ऋग्वेद 1.50.7]
हे सूर्य! रात्रियों को दिनों से अलग करते हुए, जीव मात्र को देखते हुए तुम विशाल क्षितिज में विचरण करते हो।
Hey Sury Dev! You move through the space and the heavens, dividing the time into day & night, which helps-supports the organism-living beings.
सप्त त्वा हरितो रथे वहन्ति देव सूर्य। शोचिष्केशं विचक्षण॥
हे सर्वद्रष्टा सूर्य देव! आप तेजस्वी ज्वालाओं से युक्त दिव्यता को धारण करते हुए सप्तवर्णी किरणों रूपी अश्वों के रथ में सुशोभित होते हैं।[ऋग्वेद 1.50.8]
हे दूर दृष्टा सूर्य! तेजवन्त रश्मियों सहित रथारोही हुए, तुमको सप्त अश्व खींचते हैं।
Hey all visualizing-seeing Sury Dev! Your chariot is decorated with seven bright rays of light.
अयुक्त सप्त शुन्ध्युवः सूरो रथस्य नप्त्यः। ताभिर्याति स्वयुक्तिभिः॥
पवित्रता प्रदान करने वाले ज्ञान सम्पन्न उर्ध्वगामी सूर्यदेव अपने सप्तवर्णी अश्वों से (किरणों से) सुशोभित रथ में शोभायमान होते हैं।[ऋग्वेद 1.50.9]
सूर्य स्वयं जुड़ने वाले सप्त अश्वों को रथ में जोड़कर आसमान में भ्रमण करते हैं।
Sury Dev possessing the pious knowledge-enlightenment, moves in the glorious chariot decorated with seven horses (colours-rays of light).
उद्वयं तमसस्परि ज्योतिष्पश्यन्त उत्तरम्।
देवं देवत्रा सूर्यमगन्म ज्योतिरुत्तमम्॥
तमिस्त्रा से दूर श्रेष्ठतम ज्योति को देखते हुए हम ज्योति स्वरूप और देवों में उत्कृष्ठतम ज्योति (सूर्य) को प्राप्त हों।[ऋग्वेद 1.50.10]
अंधकार के ऊपर व्याप्त क्षितिज को फैलाते हुए देवों में महान सूर्य को हम ग्रहण हों।
Let us assimilate in the brightest, best amongest the demigods-deities, removing darkness, while looking at it.
उद्यन्नद्य मित्रमह आरोहन्नुत्तरां दिवम्।
हृद्रोगं मम सूर्य हरिमाणं च नाशय॥
हे मित्रों के मित्र सूर्यदेव! आप उदित होकर आकाश में उठते हुए हृदय रोग, शरीर की कान्ति का हरण करने वाले रोगों को नष्ट करें।[ऋग्वेद 1.50.11]
हे सखाओं के सखा सूर्य! तुम उदित होकर क्षितिज में उठते हुए मेरी हृदय व्याधि और पीत रंग को मिटाओ।
Hey friend of the friends Sury Dev! Remove my heart disease and the yellowish colour of the skin (jaundice, पीलिया).
शुकेषु मे हरिमाणं रोपणाकासु दध्मसि।
अथो हारिद्रवेषु मे हरिमाणं नि दध्मसि॥
हम अपने हरिमाण (शरीर को क्षीण करने वाले रोग) को शुकों (तोतों), रोपणाका (वृक्षों) एवं हरिद्रवों (हरी वनस्पतियों) में स्थापित करते हैं।[ऋग्वेद 1.50.12]
हे सूर्य! मैं अपने पीलेपन को शुक-सारिकाओं में स्थापित करता हूँ।
Hey Sury Dev! I establish my disease weakening the body in the greenery.
Each and every plant, shrub, wine, tree has one or the other medicinal property. That's why one is advised to depend over the vegetarian diet only.
उदगादयमादित्यो विश्वेन सहसा सह।
द्विषन्तं मह्यं रन्धयन्मो अहं द्विषते रधम्॥
हे सूर्य देव! अपने सम्पूर्ण तेजों से उदित होकर हमारे सभी रोगों को वशवर्ती करें। हम उन रोगों के वश में कभी न आयें।[ऋग्वेद 1.50.13]
अपने पूर्ण तेज से समस्त रोगों के विनाश के लिए हुए हैं। मैं उन रोगी के वश में न पड़ सकूँ।
Hey Sury Dev! Rising with your energy, over power-control our diseases, weakness of the body.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त 51 :: ऋषि :- सव्य आंगिरस, देवता :- इन्द्र, छन्द :- जगती, त्रिष्टुप्।
अभि त्यं मेषं पुरुहूतमृग्मियमिन्द्रं गीर्भिर्मदता वस्वो अर्णवम् यस्य द्यावो।
विचरन्ति मानुषा भुजे मंहिष्ठमभि विप्रमर्चत॥
जिन्हें लोग बुलाते हैं, जो स्तुति-पात्र और धन के सागर हैं, उन्हीं मेष या बलवान इन्द्रदेव की प्रार्थना करो। सूर्य-किरणों की तरह जिनका कार्य मनुष्यों का हित करना है, उन्हीं क्षमता शाली और मेधावी इन्द्रदेव की सुख प्राप्ति के लिए अर्चना करें।[ऋग्वेद 1.51.1]
हे व्यक्तियों! अनेकों द्वारा पुकारे गये पूजनीय धन सागर, महान पराक्रमी इन्द्रदेव को हर्षित करो। मनुष्यों के हितार्थ में किये गये जिसके कर्म प्रसिद्ध हैं, तुम बुद्धि द्वारा उसी की अर्चना करो।
Pray to Indr Dev who deserve prayers, worship, is a source of wealth & is mighty. He helps the humans like the Sun rays. Let us pray to intelligent-prudent, powerful Indr Dev for attaining comforts.
अभीमवन्वन्त्स्वभिष्टिमूतयोऽन्तरिक्षप्रां तविषीभिरावृतम्।
इन्द्रं दक्षास ऋभवो मदच्युतं शतक्रतुं जवनी सूनृता वृहत्॥
इन्द्र का आगमन सुशोभन है। अपने तेज से इन्द्र अन्तरिक्ष को पूर्ण करते हैं। वे बली, दर्प हर और शतक्रतु हैं। रक्षण और वर्द्धन में तत्पर होकर ऋभुगण या मरुद्गण इन्द्र के समक्ष आये और उनकी सहायता की। उन्होंने उत्साह वर्धक वाक्यों द्वारा इन्द्र को उत्साहित किया।[ऋग्वेद 1.51.2]
सहायता देने वाले, कार्यों में कुशल, ऋभुओं में पूजनीय, अत्यन्त साहस वाले इन्द्र की वन्दना करने वालों की प्रिय वाणी बहुकर्मा इन्द्र को उत्साहवर्द्धक हुई!
Arrival of Indr leads to human welfare. He fills the space-sky with his energy. He is strong-powerful, removes ego and destroys the enemy. Ribhu Gan & Marud Gan came to Indr Dev to support him, well prepared for protection and growth of humans and encouraged him.
त्वं गोत्रमङ्गिरोभ्योऽवृणोरपोतात्रये शतदुरेषु गातुवित्।
ससेन चिद्विमदायावहो वस्वाजावद्रिं वावसानस्य नर्तयन्॥
हे इन्द्र देवता! आपने अङ्गिरा ऋषि के लिए मेघ से वर्षा कराई। जब असुरों ने रात्रि के ऊपर शतद्वार नाम का अस्त्र फेंका, तब भागने के लिए आपने अत्रि ऋषि को मार्ग बता दिया। आपने विमद ऋषि को अन्न व धन से युक्त किया। इसी प्रकार युद्ध में विद्यमान स्तोता की अपने वज्र के द्वारा रक्षा की। इसलिए आपकी महिमा का वर्णन कौन कर सकता है? [ऋग्वेद 1.51.3]
तुमने अंगिरा और रात्रि के लिए धेनुओं को संगठन ग्रहण कराया। वंदनाकारी विमद के वज्र द्वारा अन्न परिपूर्ण धनों को ग्रहण कराते हुए उनकी सुरक्षा की। वज्र के द्वारा उनकी रक्षा की। इस लिए आपकी महिमा का वर्णन कौन कर सकता है।
Hey Indr Dev! You managed rain fall for Angira Rishi. When Asur-demons, giants attacked Ratri-night, you projected the Astr-weapon called Shatdwar over them and showed the way to Atri to escape. You provided food grains and riches to Vimad Rishi. You protected the Stota-devotees with your Vajr. That why its difficult to describe your glory might.
त्वमपामपिधानावृणोरपाधारयः पर्वते दानुमद्वसु।
वृत्र यदिन्द्र शवसावधी, रहिमादित्सूर्य दिव्यारोहयो दृशे॥
हे इन्द्र देव! आपने जल-वाहक मेघ को मुक्त किया और पर्वत के दस्यु वृत्र के धन को धारण किया। आपने हत्यारे के पुत्र का वध किया और संसार को देखने के लिए सूर्य को आकाश में प्रकाशित कर दिया।[ऋग्वेद 1.51.4]
हे इन्द्र देव! आपने जलों वाले बादल को खोला। पर्वत पर धन ग्रहण करने के लिये वृत्र को समाप्त किया और सूर्य देव को दर्शन के लिये प्रेरित किया है।
Hey Indr Dev! You released the clouds-carriers of water and collected the wealth of dacoit of mountain called Vrat. You killed the murderer's son. You inspired Sun to make the world visible.
त्वं मायाभिरप मानिनोऽघमः स्वधाभिर्ये अधि शुप्तावजुह्वत।
त्वं पिप्रोप्रोर्नृमणः प्रारुजः पुरः प्र ऋजिश्वानं दस्युहत्येष्वाविथ॥
हे इन्द्रदेव! जिन असुरों ने यज्ञीय अस्त्र को अपने शोभन मुख में डाला, उन मायावियों को माया द्वारा आपने परास्त किया। मनुष्यों के लिए आप प्रसन्न चित्त है। आपने पिप्रु नामक असुर का निवास स्थान ध्वस्त किया और ऋजिश्वा ऋषि की रक्षा की।[ऋग्वेद 1.51.5]
तुमने पिप्रु नामक असुर का गढ़ तोड़कर युद्ध में असुरों को विनाश कर ऋजिश्वा की रक्षा की।
मायावी :: हाथ न आनेवाला, टाल-मटोल वाला, कपटी, धूर्त, धोखे से भरा हुआ, मायिक; elusive, deceptive, those who cast a magic spell.
Hey Indr Dev! Those enchanter Asur who put the Astr of Yagy in their mouth, were defeated by you with your Maya-enchantment. You defended Rijishrva, protected Kuts after a fight with Shushn and destroyed the fort of Pipru named demon.
त्वं कुत्सं शष्णहत्येष्वाविथारन्धयोऽतिथिग्वाय शम्बरम्।
महान्तं चिदर्बुदं नि क्रमीः पदा सनादेव दस्युहत्याय जज्ञिषे॥
हे इन्द्रदेव! शुष्ण असुर के साथ युद्ध में आपने कुत्स ऋषि की रक्षा की और आपने अतिथि-वत्सल दिवोदास की रक्षा के लिए, शम्बरासुर राक्षस का वध किया। आपने महान् अर्बुद नाम के असुर को अपने पैरों से कुचल डाला। इन सब कारणों से विदित होता है कि आपने असुरों के वध के लिए ही जन्म ग्रहण किया है।[ऋग्वेद 1.51.6]
हे इन्द्रदेव! तुमने शुष्ण के साथ संग्राम कर कुत्स की रक्षा की। शम्बर को अतिथिग्व से पराजित कराया। अर्बुदा नामक असुरों को पैरों से रौंदा। तुम असुरों का पतन करने को ही रचित हुए हो।
Hey Indr Dev! You protected Kuts Rishi fighting Shushn-a demon and killed Shambrasur named demon for the safety of Divodas, a sage well known for welcoming-serving the guests. You killed the demon known as Arbud by crushing him under your feet. this shows that you were born to kill the demons to protect the demigods-deities and the humans.
त्वे विश्वा तविषी सध्यग्घिता तव राध: सोमपीथाय हर्षते।
तव वज्रश्चिकिते बाह्वोर्हितो वृश्चा शत्रोरव विश्वानि वृष्ण्या॥
नि:सन्देह आपके अन्दर समस्त बल निहित है। सोमपान करने पर आपका मन प्रसन्न होता है। आपके दोनों हाथों में वज्र है, यह हम जानते हैं जिससे आप शत्रुओं के सारे बलों को नष्ट कर डालते हैं।[ऋग्वेद 1.51.7]
सोम पीने के लिए तुम इसे ग्रहण कर वज्र हाथ में लिए हो। उसी से शत्रुओं की समस्त शक्तियों को समाप्त करते हो। हे इन्द्र! तुम समस्त शक्तियों से पूर्ण हो। सोमरस पीने के लिए हर्ष प्राप्त कर वज्र हाथ में लिए हो। उसी से शत्रुओं के सम्पूर्ण बलों को नष्ट करते हो।
Power, strength, might are inborn in you. Drinking of Somras makes you happy. You have Vajr in both of your hands, with which you eliminate the powers of the enemies.
वि जानीह्यार्यान्ये च दस्यवो बर्हिष्पते रन्धया शासदव्रतान्।
शाकी भव यजमानस्य चोदिता विश्वेत्ता ते सधमादेषु चाकन॥
हे इन्द्रदेव! कौन आर्य और कौन दस्यु है, यह बात जानें। कुश वाले यज्ञ के विरोधियों का शासन करके उन्हें यजमानों के वश में करें। आप शक्तिमान् हैं, इसलिए यज्ञानुष्ठाताओं की सहायता करते हैं। मैं आपके हर्ष उत्पादक यज्ञ में आपके उन समस्त कर्मों की प्रशंसा करने की इच्छा करता हूँ।[ऋग्वेद 1.51.8]
हे इन्द्र! तुम आर्यों और अनार्यों को भली-भाँति जानते हो। कर्महीनों को ललकारते हुए कुश-आसन बिछाने वाले यजमान को वशीभूत करो। यज्ञों के अनुष्ठान के प्रेरक तुम्हारा मैं यज्ञों में आह्वान करता हूँ।
Hey Indr Dev! You know well, who is Ary and who is a dacoit-depraved. Please control those who oppose the Yagy carried out with Kush and put them under the control of the hosts carrying Yagy. You are mighty, so you help those who perform Yagy. I appreciate your endeavours which leads to happiness through the Yagy.
अनुव्रताय रन्धयन्नपव्रतानाभूभिरिन्द्रः श्नथयन्ननाभुवः।
वृद्धस्य चिद्वर्धतो द्यामिनक्षतः स्तवानो वम्रो वि जघान संदिह:॥
ये इन्द्रदेव! यज्ञ-विमुखों को यज्ञप्रिय यजमानों के वशीभूत करके और अभिमुख स्तोताओं द्वारा स्तुति पराङ्मुखों को विनष्ट करते हैं। वे द्युलोक को हानि पहुँचाने वाले राक्षसों का वध करते हैं। ऐसे प्राचीन पुरुष इन्द्रदेव के बढ़ते हुए यश और पराक्रम की वन ऋषि ने स्तुति की।[ऋग्वेद 1.51.9]
हे इन्द्रदेव! तुम कर्महीनों को कर्मवान के वश में करने एवं प्रशंसकों द्वारा निन्दा करने वालों को मृत करते हो। वभ्र ऋषि ने वृद्धि करते हुए इन्द्रदेव से अद्भुत समृद्धि को ग्रहण किया है।
Hey Indr Dev! You bring those who are not interested in Yagy Karm to the fore of the hosts performing Yagy. Indr Dev kills the demons who harm the heaven. Van Rishi prayed to the ancient-prolonged Indr Dev, describing his valour & glory.
तक्षद्यत्त उशना सहसा सहो वि रोदसी मज्मना बाधते शवः।
आ त्वा वातस्य नृमणो मनोयुज आ पूर्यमाणमवहन्नभि श्रवः॥
हे इन्द्र देव! जबकि उशना ऋषि के बल-द्वारा आपका बल तीक्ष्ण हुआ, तब विशुद्ध तीक्ष्णता-द्वारा आपके बल ने द्युलोक और पृथिवीलोक को भयभीत कर दिया। हे इन्द्र! आपका मन मनुष्य के प्रति अति प्रसन्न है। आपके बलशाली होने पर आपकी इच्छा से संयोजित और वायु की तरह वेगवान् विशिष्ट घोड़े आपको हमारे यज्ञ में ले आवें।[ऋग्वेद 1.51.10]
हे इन्द्र देव! उशना ने प्रार्थनाओं द्वारा तुम्हारा बल बढ़ाया। उस पराक्रम ने आकाश और धरती को भी कम्पित किया है। हे मनुष्यों पर कृपा करने वाले! सभी ओर से प्रसन्नचित्त होकर मन से जुतने वाले घोड़ों के साथ हवि रूप अन्न के सभी ओर से प्रसन्नचित्त होकर मन से जुतने वाले घोड़ों के साथ हवि रूप अन्न के सेवन के लिए यहाँ आओ।
Hey Indr Dev! Ushn Rishi's prayers added to your might, power, strength. It trembled the heaven and earth causing fear. Hey Indr! You are happy with the humans. Let your horses bring you here at the Yagy site, being deployed with the commands of Man-innerself and accept the offerings, Havy & Kavy.
मन्दिष्ट यदुशने काव्ये सचाँ इन्द्रो वङ्क वङ्कतराधि तिष्ठति।
उग्रो यिं निरपः स्त्रोतसासृजद्वि शुष्णस्य दंहिता ऐरयत्पुरः॥
जबकि शोभन उशना ऋषि ने इन्द्रदेव की स्तुति की, तब इन्द्र तेज गति वाले दोनों धोड़ों पर सवार हुए। उग्र इन्द्रदेव ने गमनशील मेघों से प्रवाह रूप में जल बरसाया। साथ ही शुष्ण असुर के दृढ़ नगरों को ध्वस्त किया।[ऋग्वेद 1.51.11]
उशना की प्रार्थना से हर्षित हुए इन्द्रदेव वेगवान घोड़ों पर सवार हुए फिर उन्होंने बादलों से प्रवाह रूप जल को परिपूर्ण किया और शुष्ण के किलों को नष्ट किया।
उग्र :: तीव्र, हिंसक, प्रचण्ड, हिंस्त्र, उत्तेजित, घबराया हुआ, अतिक्षुब्द, furious, violent, frantic.
Hey Indr Dev! You became happy with the prayers of Ushn Rishi and rode the high speed horses. He showered rains furiously and destroyed the fort of the demon Shushn.
आ स्मा रथं वृषपाणेषु तिष्ठसि शार्यातस्य प्रभृता येषु मन्दसे।
इन्द्र यथा सुतसोमेषु चाकनोऽनर्वाणं श्लोकमा रोहसे दिवि॥
हे इन्द्रदेव! सोमपान करने के लिए रथ पर चढ़कर आवें। जिस सोमरस से आप प्रसन्न होते हैं, वही सोम शय्याति राजर्षि ने तैयार किया है। जैसे अन्य यज्ञों में आप प्रस्तुत सोमपान करते है, उसी प्रकार शार्यात के सोमरस का पान करें। ऐसा करने पर दिव्यलोक में आपको अविचल यश प्राप्त होगा।[ऋग्वेद 1.51.12]
हे वीर्यवान! तुम सोमरस पीने के लिए रथ पर चढ़ते हो । जिन सोमों से तुम प्रसन्न होते हो वे शय्याति ने सिद्ध किये थे। सोम निष्पन्न करने वाले यज्ञ की जितनी अभिलाषा करते हैं। उतना ही विमल यश तुम्हें प्राप्त होता है।
Hey Indr Dev! Come riding chariot, to enjoy Somras, prepared by Shayyati-Raj Rishi, just like the way you drink in other Yagy. This will grant you unending glory in divine abodes.
अददा अ्भा महते वचस्यवे कक्षीवते वृचयामिन्द्र सुन्वते।
मेनाभवो वृषणश्वस्य सुक्रतो विश्वेत्ता ते सवनेषु प्रवाच्या॥
हे इन्द्रदेव! आपने अभिषवकारी और स्तुत्याकाङ्क्षी वृद्ध कक्षीवान् राजा को वृचया नाम युवती प्रदान की। हे शोभनकर्मा इन्द्रदेव! आपने वृषणश्च राजा के निमित्त प्रेरक वाणियाँ प्रकट कीं। आपके ये सभी कर्म सोम सवनों (सोमलता, सौम्यता के अर्थों में बहुधा प्रयुक्त सोम शब्द के वर्णन में इसका निचोड़ा-पीसा जाना, इसका जन्मना या निकलना, सवन है और इन्द्र द्वारा पीया जाना प्रमुख है। अलग-अलग स्थानों पर इंद्र का अर्थ आत्मा, राजा, ईश्वर, बिजली आदि है) में वर्णन के योग्य हैं।[ऋग्वेद 1.51.13]
हे इन्द्र देव! तुमने वन्दना करने वाले सम्राट कक्षीवान को वृचया नामक पत्नी प्रदान की। तुम महान कर्म वाले, वृषणश्व सम्राट के लिए वाणीरूप बने, इस बात को भली-भाँति कहना चाहिये।
अभिषव :: यज्ञादि के समय किया जाने वाला स्नान, आसवन, ख़मीर, काँजी, मद्य खींचना- शराब चुवाना, सोमलता को कुचलकर गारना या निचोड़ना, सोमरस पान, राज्यारोहण, अधिकार; coronation, bath prior to Yagy, process of extracting from fermented vegetation, herbs.
Hey Indr Dev! You gave a woman called Vrachya to the old-aged king Kakshivan. Hey pious, virtuous, righteous deeds performing Indr Dev! You served tool of speech for king Vrashnshrav and gave him inspiring advices. Your pious deeds deserve mention.
इन्द्रो अश्रायि सुध्यो निरेके पञ्नेषु स्तोमो दुर्यो न यूपः।
अश्वयुर्गव्यू रथयुर्वसूयुरिन्द्र इन्द्रायः क्षयति प्रयन्ता॥
निराश्रितों को एकमात्र इन्द्र ही आश्रय प्रदान करते हैं। दरवाजे में स्तम्भ के तुल्य इन्द्र देवता के आश्रय के लिए प्रजाओं में इनकी स्तुति अनवरत स्थिर रहती है। घोड़ों, गायों, रथों और धनों के शासक इन्द्र देवता ही प्रजाओं को अभीष्ट ऐश्वर्य प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 1.51.14]
अंगिरा वंश वालों के श्लोक रूप द्वार में स्तम्भ के समान स्थिर इन्द्र श्रेष्ठ कर्म वालों को अश्व, धेनु, रथ तथा इच्छित यश प्रदान करते हैं। हे महान! तुम ज्योर्तिमान, बलिष्ठ और उन्नतिशील को हमारा प्रणाम है। हे इन्द्रदेव! इस संग्राम में अपने समस्त पराक्रमियों से युक्त हम आपके आश्रय में स्थापित हैं।
You support those who have no one to look after-support. The populace has faith in Indr Dev just like the pillar supporting the door, that's why they keep on praying him. Indr Dev grants horses, cows, chariots desired wealth, comforts, amenities to the populace-humans.
त्रिष्टुप् :: त्रिष्टुप् वेदों में प्रयुक्त छंद है, जिसमें 44 कुल वर्ण होते हैं, जो 11-11-11-11 वर्णों के चार पदों में व्यवस्थित होते हैं, यथा :-
अबोधि होता यजथाय देवानुर्ध्वो अग्निः सुमनाः प्रातरस्थात्।
समिद्धस्य रुशददर्शि पाजो महान् देवस्तमंसो निरमोचि॥[ऋग्वेद 5.1.2]
एक पदा त्रिष्टुप (11 वर्ण), द्विपदा (11 + 11), पुरस्ताज्योतिः, विराट् पूर्वा, विराट रूपा इत्यादि, इसके अन्य भेद हैं।
इदं नमो वृषभाय स्वराजे सत्यशुष्माय तवसेऽवाचि।
अस्मिन्निन्द्र वृजने सर्ववीराः स्मत्सूरिभिस्तव शर्मन्त्स्याम॥
हे इन्द्रदेव! वृष्टि दान करें। आप अपने तेज से स्वराज करते हैं। आप प्रकृत, बल सम्पन्न और अतीव महान् हैं। हमने आपके लिए इस स्तुति वाक्य का प्रयोग किया है। हम इस युद्ध में समस्त वीरों द्वारा युक्त होकर आपके दिये हुए शोभनीय गृह में विद्वानों या ऋत्विकों के साथ निवास करें।
हे महान! तुम ज्योतिर्मान, बलिष्ठ और उन्नतिशील को हमारा प्रणाम है। हे इन्द्र देव! इस संग्राम में समस्त पराक्रमियों से युक्त हम आपके आश्रय में स्थापित हैं।
Hey Indr Dev! Make rains shower. You govern by virtue of your might-energy. You are mighty and great. We pray to you with this hymn. Let us reside in the decorated houses under your shelter along with the enlightened, Yagy performing people and the warriors in this war.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (52) :: ऋषि :- सव्य आंगिरस, देवता :- इन्द्र, छन्द :- जगती, त्रिष्टुप्।
त्यं सु मेषं महया स्वर्विदं शतं यस्य सुभ्वः साकमीरते।
अत्यं न वाजं हवनस्यदं रथमेन्द्रं ववृत्यामवसे सुवृत्तिभिः॥
जिनके स्तुति-कार्य में सौ स्तोता एक साथ ही प्रवृत्त होते हैं और जो स्वर्ग दिखा देते हैं, उन बली इन्द्रदेव की पूजा करें। गतिशील घोड़े की तरह वेग से इन्द्रदेव का रथ यज्ञ की ओर गमन करता है। मैं अपनी रक्षा के लिये उसी रथ पर चढ़ने के निमित्त स्तुतियों द्वारा इन्द्र से प्रार्थना करता हूँ।[ऋग्वेद 1.52.1]
स्वर्ग प्रदान कराने वाले इन्द्रदेव का भली-भाँति अर्चन करो। गतिमान घोड़ों के रथ में प्रार्थनाओं से इन्द्रदेव शीघ्र आते हैं। मैं आगत इन्द्रदेव का नमस्कार पूर्वक स्वागत करता हूँ।
We pray to Indr Dev, for our protection, who is worshipped by hundreds of hosts-devotees, who can take us to heaven. Indr Dev moves to the site of the Yagy with great speed in his chariot pulled by his fast running horses, to oblige the hosts-devotees, conducting the Yagy.
स पर्वतो न धरुणेष्वच्युतः सहस्त्रमूतिस्तविषीषु वावृधे।
इन्द्रो यत्रमवधीन्नदी वृतमुब्जन्नर्णांसि जर्हृषाणो अन्धसा॥
जिस समय यज्ञान्न प्रिय इन्द्रदेव ने वर्षा करके नदी का प्रतिरोध करने वाले वृत्र का वध किया, उस समय इन्द्र धारावाही जल के बीच पर्वत की तरह अचल होकर प्रजा की हजारों प्रकार से रक्षा करके, यथेष्ट बल प्राप्त किया।[ऋग्वेद 1.52.2]
जब जलों में पर्वत के समान अविचल रूप से प्रजाओं को सुरक्षा के लिए इन्द्रदेव ने जलों को रोकने वाले राक्षसों को समाप्त किया, तब वे बहुत ही शक्तिशाली बन गये। इन्द्रदेव ने जलों को रोकने वालों पर विजय प्राप्त की।
Indr Dev showered rains, stood like a mountain in the flowing river, killed Vrat who resisted the flow of river waters and protected the populace in thousands of ways, acquiring sufficient strength by consuming the offerings in the Yagy.
स हि द्वरो द्वरिषु वव्र ऊर्धनि चन्द्रबुध्नो मदवृद्धो मनीषिभि:।
इन्द्रं तमह्वे स्वपस्यया धिया मंहिष्ठरातिं स हि पप्रिरन्धसः॥
इन्द्रदेव ने आक्रमणकारी शत्रुओं को जीता। इन्द्रदेव जल की तरह अन्तरिक्ष में व्याप्त हैं। इन्द्रदेव सबको हर्ष प्रदान करते हैं। क्योंकि वह सोमपान से वर्द्धित हुए हैं। मैं, विद्वान् ऋत्विकों के साथ, उन प्रवृद्ध और धन सम्पन्न इन्द्रदेव को शोभन कर्मयोग्य अन्तःकरण के साथ आवाहित करता हूँ, क्योंकि इन्द्रदेव अन्न के पूरयिता हैं।[ऋग्वेद 1.52.3]
इन्द्रदेव आकाशव्यापी हैं। ये आनन्द के मूल और विद्वानों द्वारा सोमरस से वृद्धि को प्राप्त हैं। मैं उन महान स्वामी इन्द्रदेव का अन्न के लिए आह्वान करता हूँ।
Indr Dev won the invaders. He pervades the space like water. He grants happiness to every one being nourished with Somras. I invite great Indr Dev along with the enlightened-learned hosts conducting Yagy, to supply food grains.
आ यं पृणन्ति दिवि सद्मबर्हिषः समुद्रं न सुभ्वः स्वा अभिष्टयः।
तं वृत्रहत्ये अनु तस्थुरूतयः शुष्मा इन्द्रमवाता अह्रुतप्सवः॥
जिस प्रकार समुद्र की आत्मभूता और अभिमुखगामिनी नदियाँ समुद्र को परिपूर्ण करती हैं, उसी प्रकार कुशस्थित सोमरस दिव्यलोक में इन्द्र को पूर्ण करते हैं। शत्रुओं के शोषक, अप्रतिहतवेग और सुशोभन मरुद्गण, वृत्रहनन के समय उन्हीं इन्द्रदेव के सहायक होकर नजदीक-करीब उपस्थित हुए।[ऋग्वेद 1.52.4]
समुद्र में गिरती हुई सरिताएँ से समुद्र को भरती हैं वैसे ही कुश पर रखे हुए सोम इन्द्रदेव को परिपूर्ण करते हैं। शत्रुओं का शोषण करने वाले वह इन्द्रदेव अविचल मरुद्गण को सहायक बनाते हैं।
The manner in which rivers fill the ocean, Somras placed over Kush grass (extracted from grass) fills Indr Dev with valour-energy and supplement him in the divine abode. Marud Gan who moves very fast became helpful to Indr Dev who killed Vrat and remained very close to him.
अभि स्ववृष्टिं मदे अस्य युध्यतो रघ्वीरिव प्रवणे सस्रुरूतयः।
इन्द्रो यद्वज्री धृषमाणो अन्धसा भिनद्वलस्य परिधीरिव त्रितः॥
जिस प्रकार गमनशील जल नीचे जाता है, उसी प्रकार इन्द्रदेव के सहायक मरुद्गण सोमपान द्वारा हृष्ट होकर युद्धलिप्त इन्द्रदेव के सामने वृष्टि सम्पन्न वृत्र के समीप गये। जिस प्रकार त्रित ने परिधि समुदाय का भेदन किया, उसी प्रकार इन्द्रदेव ने यज्ञ के अन्न से प्रोत्साहित होकर बल नाम के असुर का भेदन किया।[ऋग्वेद 1.52.5]
हृष्ट :: हर्षित, आनंदित, प्रसन्न, रोमांचित, कुंठित, लोचहीन, कड़ा; happy, tough.
हृष्ट-पुष्ट :: हट्टा-कट्टा, दृढ़, बलवान, तगड़ा, स्वस्थ, तंदुरुस्त; strong, athletic, hefty.
त्रित :: ब्रह्मा जी के मानस पुत्र, गौतम मुनि के तीन पुत्रों में से एक।
अभिमुख भ्रमण करने वाली सरिताओं के समान वृत्र से युद्ध करने वाले इन्द्र और उनके सहायक मरुतों को सोमरस का आनन्द प्राप्त हुआ। तब सोमरस पान से साहस में बढ़े हुए इन्द्र ने उसके दुर्गो को तहस-नहस कर डाला।
Marud Gan went to Indr Dev, happy by drinking the Somras who was busy in warfare with Vrat who was enriched with rains. The way Trit entered the circular formation of the army, Dev Raj became strong by the offerings received by him and destroyed Bal a demon along with his forts.
परीं घृणा चरति तित्विषे शवोऽपो वृत्वी रजसो बुध्नमाशयत्।
वृत्रस्य यत्प्रवरणे दुर्गुभिश्वनो निजघन्थ हन्वोरिन्द्र तन्यआप्॥
जल रोककर वृत्रासुर अन्तरिक्ष में स्थित था। वहाँ शक्तियाँ अत्यधित थीं। इन्द्रदेव ने वृत्र पर वज्र द्वारा प्रहार किया। इससे उनकी शत्रु विजयिनी दीप्ति सर्वत्र फैली और बल प्रकाशित हुआ।[ऋग्वेद 1.52.6]
हे इन्द्रदेव! आप अत्यन्त तेजस्वी हो। अपनी शक्ति से आपने वृत्र के जबड़े के नीचे वज्र से प्रहार किया है।
Vratr-Vrata Sur stopped the flow of waters and stationed himself in the space, where his powers were too large. Indr Dev struck him with Vajr at the jaws. It led to spread of his glory every where i.e., in the heavens, earth and the nether world.
हृदं न हि त्वा न्यृषन्त्यूर्मयो ब्रह्माणीन्द्र तव यानि वर्धना।
त्वष्टा चित्ते युज्यँ वावृधे शवस्ततक्ष वज्रमभिभूत्योजसम्॥
जिस प्रकार जलाशय को जल-प्रवाह प्राप्त करता है, उसी प्रकार आपके लिए कहे हुए स्तोत्र आपको प्राप्त होते हैं। त्वष्टादेव ने अपने बल को नियोजित कर आपके बल को बढ़ाया और शत्रुओं को पराजित करने में समर्थवान आपके वज्र को भी तीक्ष्ण किया।[ऋग्वेद 1.52.7]
हे इन्द्रदेव! प्रवाहित जल के जलाशय को ग्रहण करने के तुल्य ये श्लोक तुम को ग्रहण होते हैं। त्वष्टा ने तुम्हारे बल की समद्धि की और जीतने वाले बल से तुम्हारे वज्र का निर्माण किया।
The way-manner the flowing waters move to the reservoirs-water bodies, the hymns sung for you are received by you i.e., they increase your strength. Twasta Dev enhanced your powers and sharpened Vajr to overcome-overpower the enemies.
जघन्वाँ उ हरिभिः संभृतक्रतविन्द्र वृत्रं मनुषे गातुयत्रप:।
अयच्छथा बाह्वोर्वज्रमायसमधारयो दिव्या सूर्यं दृशे॥
हे सिद्धकर्मा इन्द्रदेव! मनुष्यों के पास आने के लिए आपने अश्च पर आरुढ़ होकर वृत्र का विनाश किया। वृष्टि की, दोनों हाथों में लौह-वज्र धारण किया और हमारे देखने के लिए आकाश में सूर्य को स्थापित किया।[ऋग्वेद 1.52.8]
हे इन्द्र! अपने अश्व पर आरुढ़ होकर प्राणियों के हित के लिए वृत्र का नाश करो । इस समय लोहे का वज्र हाथ में लेकर हमारे दर्शन के लिए सूर्य को स्थापित किया।
Hey Indr Dev! You rode the horse and killed Vratr for the safety of humans. You had Vajr made of iron in your both hands and established Sun in the sky to make every thing visible to the creatures, organism, living beings.
बृहत्स्वश्चन्द्रममवद्यदुक्थ्य१ मकृण्वत भियसा रोहणें दिवः।
यन्मानुषप्रधना इन्द्रमूतयः स्वर्नृषाचो मरुतोऽमदन्ननु॥
वृत्र के भय से मनुष्यों ने स्तोत्रों की रचना की। वे स्तोत्र बृहत् आह्वादयुक्त, बल सम्पन्न और स्वर्ग की सीढ़ियाँ है। स्वर्ग रक्षक मरुद्रणों ने उस समय मनुष्यों के लिए युद्ध करके और उनका पालन करके, इन्द्रदेव को प्रोत्साहित किया।[ऋग्वेद 1.52.9]
आनन्द प्रदान करने वाली शक्ति परिपूर्ण तथा वन्दना के योग्य प्रार्थना को मनुष्यों ने वृत्र के डर से बचने के लिए उत्पत्ति की। तब मनुष्यों के लिए युद्ध करने वाले, उपकार करने वाले इन्द्रदेव की मरुतों ने सहायता की।
The humans wrote hymns (Shloks, Mantr) which reduced the fear of Vratr, were comprehensive, enhanced-boosted might and led to heavens. At this moment, Marud Gan, the protectors of heavens fought for the humans and encouraged Indr Dev.
द्यौश्चिदस्यामवां अहे: स्वनादयोयवीद्धियसा वज्र इन्द्र ते।
वृत्रस्य यद्बद्बधानस्य रोदसी मदे सुतस्य शवसाभिनच्छिरः॥
हे इन्द्रदेव! अभिषुत सोमपान करके आपके हृष्ट होने पर जिस समय आपके वज्र ने वृत्र का मस्तक वेग से काट दिया, उस समय बलवान आकाश भी उसके शब्द भय से कम्पित हुआ था।[ऋग्वेद 1.52.10]
हे इन्द्र! वृत्र के भय से विशाल आकाश कम्पायमान हो गया। तब तुमने उसे वज्र से मार डाला।
अभिषुत :: जो यज्ञ के लिए स्नान कर चुका हो, निचोड़ा हुआ; bathed for the Yagy, squeezed.
Hey Indr Dev! Having consumed squeezed Somras and gaining strength, you cut the throat-head of Vratr, with speed, leading a thunderous sound which trembled the heavens, earth and the Nether world.
यदिन्न्विन्द्र पृथिवी दशभुजिरहानि विश्वा ततनन्त कृष्टयः।
अत्राह ते मघवन्विश्रुतं सहो द्यामनु शवसा वर्हणा भुवत्॥
हे इन्द्र देव! यदि पृथिवी दसगुनी बड़ी होती और यदि मनुष्य सदा जीवित रहते, तब आपकी गति, आपकी शक्ति, प्रकृत रूप में, सर्वत्र प्रसिद्ध होती। आपकी बल-साधित क्रिया आकाश के तुल्य विशाल है।[ऋग्वेद 1.52.11]
हे इन्द्र! पृथ्वी दस गुने भोगवाली हो और मनुष्य उत्तरोत्तर वृद्धि को प्राप्त हो। ऐश्वर्य स्वामिन! तुम्हारा पराक्रम धरती और आकाश में सब जगह फैले!
Hey Indr Dev! Let the earth become ten time more comfortable and humans continue to progress further & further. Hey the master of all comforts-amenities! Let your valour & glory spread throughout the earth and the outer space-heavens.
त्वमस्य पारे रजसी व्योमनः व्योमनः स्वभूत्योजा अवसे धृषन्मन:।
चकृषे भूमिं प्रतिमानमोजसोऽपः स्वः परिभूरेष्या दिवम्॥
हे अरिमर्दन इन्द्रदेव! इस व्यापक अन्तरिक्ष के ऊपर रहकर अपनी निज भुजाओं के बल से आपने, हमारी रक्षा के लिए, पृथ्वी की रचना की। आपका बल अनन्त हैं। आप सुगन्तव्य अन्तरिक्ष और स्वर्ग व्याप्त किए हुए हैं।[ऋग्वेद 1.52.12]
हे निर्भयी इन्द्र! तुमने अंतरिक्ष के ऊपर रहते हुए हमारी सुरक्षा के लिए पृथ्वी को उत्पन्न किया।
Hey the killer of the enemy, fearless Indr Dev! Stationing over the vast space, you created the earth for our protection-survival with your hands. Your strength is infinite. You have pervaded the space and the heaven. (This describe the Almighty in the form of Indr Dev.)
त्वं भुवः प्रतिमानँ पृथिव्या ऋष्ववीरस्य बृहतः पतिर्भू:।
विश्वमाप्रा अन्तरिक्षं महित्वा सत्यमद्धा नकिरन्यस्त्वावान्॥
हे इन्द्रदेव! आप विशाल भूमि के प्रतिरूप हैं, आप दर्शनीय देवों के बृहत् स्वर्ग के पालनकारी है। सचमुच आप अपनी महिमा-द्वारा समस्त अन्तरिक्ष को व्याप्त किये हुए हैं। फलतः आपके तुल्य कोई नहीं।[ऋग्वेद 1.52.13]
तुम जल और दीप्ति के पुत्र हुए स्वर्ग में निवास करते हो। हे इन्द्रदेव! तुम अंतरिक्ष को पूर्ण करने वाले हो। वास्तव में तुम्हारे तुल्य कोई नहीं है।
Hey Indr Dev! Hey the son of Jal-water & Deepti, representative of large-vast earth, you support the vast heaven. You pervade the entire space. Thus none is parallel-equivalent to you.(This describe the Almighty in the form of Indr Dev.)
न यस्य द्यावापृथिवी अनु व्यचो न सिन्धवो न सिन्धवो रजसो अन्तमानशुः।
नोत स्ववृष्टिं मदे अस्य युध्यत एको अन्यच्चकृषे विश्वमानुषक्॥
जिन इन्द्रदेव की व्याप्ति को धुलोक और पृथिवीलोक नहीं पा सके, अन्तरिक्ष के ऊपर का प्रवाह, जिनके तेज का अन्त नहीं पा सका, वही आप अकेले अन्य सारे भूतों को अपने वश में किये हैं।[ऋग्वेद 1.52.14]
जिसकी समानता-तुलना क्षितिज और पृथ्वी नहीं कर सकते, अंतरिक्ष के जल जिसकी सीमा को नहीं पाते, वृत्र के प्रति संग्राम करते हुए जिसकी तुलना नहीं की जा सकती।
Indr Dev's spread can not be discovered in the space-heavens and the earth, whose flow in the heavens-space, whose energy's can not be discovered, has controlled the entire past. His strength can not compared with any one when he fought Vratr. (This describe the Almighty in the form of Indr Dev.)
आर्चन्नत्र मरुतः सस्मिन्नाजौ विश्वे देवासो अमदन्ननु त्वा।
वृत्रस्य यभ्दृष्टिमता वधेन नि त्वमिन्द्र प्रत्यानं जघन्थ॥
इस लड़ाई में मरुतों ने आपकी प्रार्थना की। जिस समय आपने तीक्ष्ण-घातक वज्र द्वारा वृत्र के मुँह पर प्रहार किया, उस समय सारे देवगण संग्राम में आपको आनन्दित देखकर प्रसन्न हुए।[ऋग्वेद 1.52.15]
उस युद्ध-लड़ाई में मरुतों ने आपकी वन्दना की और सभी देवता प्रसन्न हुए। तब हे इन्द्रदेव! आपने वृत्र के मुख पर वज्र से प्रहार किया।
The Marut prayed you in the battle against Vratr. The demigod-deities became happy when you shot Vajr at the mouth of Vratr.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (53) :: ऋषि :- सव्य आंगिरसः, देवता :- इन्द्र, छंद :- जगती, त्रिष्टुप्।
न्यू षु वाचं प्र महे भरामहे गिर इन्द्राय सदने विवस्वतः।
नू चिद्धि रत्नं ससतामिवाविदन्न दुष्टुतिर्द्रविणोदेषु शस्यते॥
हम महापुरुष इन्द्रदेव के उद्देश्य से शोभनीय वाद्य का प्रयोग करते हैं और सेवाव्रती यजमान के घर शोभनीय स्तुति वाक्य प्रयोग करते हैं। इन्द्रदेव ने असुरों के धन पर उसी प्रकार तत्काल अधिकार कर लिया, जिस प्रकार सोये हुए मनुष्यों के धन पर अधिकार जमाया जाता हैं। इसलिए धनदान करने वालों की निन्दा करना सराहनीय नहीं है।[ऋग्वेद 1.53.1]
हम इन्द्रदेव के लिए सुन्दर श्लोकों का उच्चारण करते हैं। इन्द्रदेव ने राक्षसों के धनों को सोते हुए मनुष्यों के धन पर अधिकार करने के तुल्य छीन लिया। धन देने वालों की महान वंदना की जाती है।
We appreciate and honour Indr Dev by using excellent prayers-hymns. He captured the belonging of the demons, just like taking over the riches of the sleeping humans. That's why those who donate money are appreciated.
दुरो अश्वस्य दुर इन्द्र गोरसि दुरो यवस्य वसुन इनस्पतिः।
शिक्षानरः प्रदिवो अकामकर्शनः सखा सखिभ्यस्तमिदं गृणीमसि॥
हे इन्द्रदेव! आप अश्व, गौ और धन-धान्य प्रदान करने वाले है। आप निवास हेतु प्रभूत धन के स्वामी और रक्षक हैं। आप दान के नेता और प्राचीनतम देव हैं। आप कामना व्यर्थ नहीं करते, आप याजकों के मित्र है। उन्हीं के उद्देश्य से हम यह स्तुति पढ़ते हैं।[ऋग्वेद 1.53.2]
हे इन्द्रदेव! तुम अश्व, धेनु, धन, धान्य आदि के दाता हो। तुम प्राचीन काल से दान करते आए हो, तुम किसी को आशा भंग नहीं कर सकते तथा मित्रता रखने वालों के सखा हो। हम तुम्हारे लिए यह प्रार्थना करते हैं।
Hey Indr Dev! You grant horses, cows, riches (wealth and food). You not only give us money to survive but protect it as well. Your prayers never go waste. You are friendly with those who seek money and help. We sing prayers Mantr, Shloks, hymns) to please him.
शचीव इन्द्र पुरुकृद्द्युमत्तम तवेदिदमभितश्चेकिते वसु।
अतः संगृभ्याभिभूत आ भर मा त्वायतो जरितुः कामूनयीः॥
हे प्रज्ञावान्, प्रभूतकर्मा और अतिशय दीप्तिमान् इन्द्रदेव! चारों ओर जो धन है, वह आपका ही है, यह हम भी जानते हैं। हे शत्रुविध्वंसी इन्द्रदेव! वही धन ग्रहण करके हमें दान करें। जो स्तोता आपको चाहते हैं, उनकी अभिलाषा पूर्ण करें।[ऋग्वेद 1.53.3]
हे मेधावी, बहुकर्मा, धनों को प्रकाशमान करने वाले इन्द्रदेव! समस्त धन तुम्हारा ही बतलाया गया है। उसे हमारे लिए लाओ। अपने वन्दनाकारी की इच्छा व्यर्थ न करो।
प्रभूत :: जो हुआ हो, निकला हुआ, उत्पन्न, उद्गत, बहुत अधिक, प्रचुर, पूर्ण, पूरा,पक्व, पका हुआ, उन्नत; progressive.
प्रज्ञा :: Pragya is used to refer to the highest and purest form of wisdom, intelligence and understanding. It is the state of wisdom which is higher than the knowledge obtained by reasoning and inference.
Hey brilliant, matured, wise-visionary Indr Dev! Wealth all around belongs to you. Hey destroyer of enemies Indr Dev! Please give us the money you have obtained by eliminating the enemies. Fulfil the needs (demands, desires) of your devotees.
एभिर्द्युभिः सुमना एभिरिन्दुभिर्निरुन्धानो अमतिं गोभिरश्चिना।
इन्द्रेण दस्युं दरयन्त इन्दुभिर्युतद्वेषसः समिषा रभेमहि॥
हे इन्द्रदेव! इस प्रकार हवियों और सोमरस से तुष्ट होकर गौ और घोड़े के साथ धन दान कर और हमारा दारिद्र दूर कर प्रसन्न हो जायें। इस सोमरस से तुष्ट इन्द्र की सहायता से हम दस्युओं का नाश कर और शत्रुओं से मुक्ति प्राप्त कर अच्छी तरह अन्न का उपभोग करें।[ऋग्वेद 1.53.4]
हे इन्द्रदेव! चमकती हुई हवियों और सोमों से प्रसन्नचित्त हुए तुम धेनुओं, अश्वों से परिपूर्ण धन देकर हमारी निर्धनता को समाप्त करो। हमारे शत्रुओं को समाप्त कर द्वेष रहित शक्ति हमको प्रदान करो।
Hey Indr Dev! On being satisfied-happy, with the offerings, prayers and Somras grant us horses, cows along with wealth-amenities and remove our poverty. Eliminate the demons, dacoits and the enemies and give us strength so that we can enjoy the grants received from you.
समिन्द्र राया समिषा रभेमहि सं वाजेभि: पुरुश्चन्द्वैरभिद्युभिः।
सं देव्या प्रभत्या वीरशुष्मया गोअग्रयाश्वावत्या रभेमहि॥
हे इन्द्रदेव! हम धन, अन्र और आह्लादक और दीप्तिमान् बल प्राप्त करें। आपकी प्रकाशमान बुद्धि हमारी सहायिका हो। वह बुद्धि वीर शत्रुओं का वध करें और वह स्तोताओं को गौ आदि पशु और अश्व प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.53.5]
हे इन्द्रदेव! हम अन्न, धन वाले बनें, अनेकों को हर्षित करने वाली शक्ति से सम्पन्न हों। पराक्रम परिपूर्ण अश्वों, धेनुओं को ग्रहण करने की उत्तम मति से सम्पन्न हों।
Hey Indr Dev! Make us strong-powerful by giving us wealth & food grains. Let your wisdom guide us. Guidance received from you should be able to remove our-devotees enemies and help us in acquiring cattle, cows, horses.
ते त्वा मदा अमदन्तानि वृष्ण्या ते सोमासो वृत्रहत्येषु सत्पते।
यत्कारवे दश वृत्राण्यप्रति बर्हिष्मते नि सहस्त्राणि बर्हयः॥
हे साधु-रक्षक इन्द्रदेव! वृत्रासुर के वध के समय आपको आनन्ददाता मरुद्गणों ने प्रसन्न किया। हे वर्षक इन्द्रदेव! जिस समय आपने शत्रुओं द्वारा अप्रतिहत होकर स्तोता और हव्यदाता यजमान के लिए दस हजार शत्रुओं का विनाश किया, उस समय विविध हव्य और सोमरस ने आपको उत्साहित किया।[ऋग्वेद 1.53.6]
हे सज्जनों के रक्षक इन्द्रदेव! वृत्र को मारने वाले युद्ध में सोमों से प्राप्त आनन्द ने तुम्हें बढ़ाया। तब यजमान की विनती से दस हजार दुश्मनों को तुमने मारा।
विभूति Vibhuti :: majesty, ash, magnificence, an outstanding personality, personage.
Hey protector of the gentle men (virtuous-pious) Indr Dev! The Marud Gan pleased when you killed Vrata Sur. You killed ten thousand enemies-demons when the devotees (Strota Gan) prayed you with the help of Strotr-hymns. They made offerings of various kinds and you sipped Somras.
Its a very offending features of various commentators over the various sites available over the net, when they criticise Indr Dev as a villain, which is offending. A king has to protect his populace along with his kingdom. The king is supposed to act Bhagwan Shri Hari Vishnu as a protector. Indr Dev has been projected in the Shastr as a Vibhuti (majesty, best trait) of the God and he is. However, when he is struck by ego, the Almighty comes into being and shun-control his false pride.
युधा युधमुप घेदेषि धृष्णुया पुरा पुरं समिदं हंस्योजसा।
नम्या यदिन्द्र सख्या परावति निबर्हयो नमुचिं नाम मायिनम्॥
हे इन्द्रदेव! आप शत्रुओं के धर्षणकारी हैं। आप युद्धान्तर में जाते हैं। आप बल द्वारा एक नगर के बाद दूसरे नगर को ध्वंस करते हैं। उन नमनशील, योग्य, मित्र, मरुद्रणों की सहायता से आपने प्रपंची असुर नमुचि नामक मायावी का वध कर दिया।[ऋग्वेद 1.53.7]
हे इन्द्र! तुम लड़ाई में निःशंक जाते हो। तुम एक के बाद दूसरे दुर्ग को तोड़ते हो। तुमने अपने वज्र से नमुचि नामक राक्षस को दूर ले जाकर मार डाला।
Hey Indr Dev! You are the destroyer of the enemy. You destroy their forts one after another. You killed Namuchi-a Rakshas-demon with your Vajr, with the help of respectable-honourable Marud Gan.
Marud Gan are always by the side of Indr Dev along with Pawan Dev, Varun Dev and the Agni.
त्वं करञ्जमुत पर्णयं वरधीस्तेजिष्ठयातिथिग्वस्य वर्तनी।
त्वं शता वङ्गृदस्या भिनत्पुरोऽनानुदः परिषूता ऋजिश्वना॥
हे इन्द्रदेव! आपने अतिथिग्व नाम के राजा के लिए करञ्ज और पर्णय नामक असुरों का तेजस्वी शत्रुनाशक वज्र से वध किया। अनन्तर आपने अकेले ऋजिश्वान् नामक राजा के द्वारा
चारों और वेष्टित वंगृद नामक असुर के सैकड़ों नगरों को गिरा दिया।[ऋग्वेद 1.53.8]
हे इन्द्रदेव! जिसके समान कोई दानी नहीं, ऐसे तुमने अतिथिग्व के लिए करञ्ज और पर्णय नामक असुरों को अत्यन्त दमकते हुए अस्त्र से समाप्त किया। तुमने ऋजिश्वा सम्राट के द्वारा वंगृद नामक दैत्य को हराया।
Hey Indr Dev! You killed demons named Karanj & Parnay, to protect the king called Atithigavy, with the help of your glittering Vajr. Thereafter, you defeated Vangrad with the help of emperor Rijishrawan destroying his hundreds of forts.
त्वमेताञ्जनराज्ञो द्विर्दशाबन्धुना सुश्रवसोपजग्मुषः।
षष्टिं सहस्रा नवतिं नव श्रुतो नि चक्रेण रथ्या दुष्पदावृणक्॥
हे प्रसिद्ध इन्द्रदेव! असहाय सुश्रवा नामक राजा के साथ युद्ध करने के लिए जो बीस नरपति और उनके साठ हजार निन्यान्बे सैनिकों को आपने दुष्प्राप्य चक्र द्वारा नष्ट कर दिया।[ऋग्वेद 1.53.9]
हे इन्द्रदेव! तुमने सुश्रवा से युद्ध के लिए आते हुए बीस नृपों को उनके साठ हजार निन्यानवें अनुचरों के साथ रथ के पहिये से भगा दिया।
Hey Indr Dev! You pushed back the twenty kings who had attacked the weak king Sushrawa, with their ninety nine thousand soldiers by springing your disc over them and killing them.
Indr Dev is always with the righteous, pious, virtuous, the person having Satvik Gun-characterises.
त्वमाविथ सुश्रवसं तवोतिभिस्तव त्रामभिरिन्द्र तूर्वयाणम्।
त्वमस्मै कुत्समतिथिग्वमायुं महे राज्ञे यूने अरन्धनायः॥
आपने अपनी रक्षा शक्ति के द्वारा सुश्रवस राजा की रक्षा की। तूर्वयाण राजा को अपनी परित्राण शक्ति द्वारा बचाया। आपने इस महान तरुण राजा के लिए कुत्स, अतिथिग्व और आयु नामक राजाओं को अपने वश में किया।[ऋग्वेद 1.53.10]
हे इन्द्रदेव! तुमने रक्षा के लिए साधनों से सुश्रवा को पोषण साधनों से तूर्वयाण को बचाया। तुमने ही कुत्स, अतिथिग्व और आयु नामक राजाओं को सुश्रवा के आधीन कराया।
Hey Indr Dev! You protected king Sushrwa and Turyan with your might. You controlled kings Kuts, Atithigav to stop interfering the kings called Ayu.
य उदृचीन्द्र देवगोपाः सखायस्ते शिवतमा असाम।
त्वां स्तोषाम त्वया सुवीरा द्राघीय आयुः प्रतरं दधानाः॥
हे इन्द्रदेव! यज्ञ में जिनकी स्तुति की जाती है और जो देवों द्वारा रक्षित, हम आपके मित्र हैं। हम सदैव सुखी हों। आपकी कृपा से हम श्रेष्ठ बलों से युक्त, दीर्घायु को अच्छी प्रकार से धारित करते हैं और आपकी प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 1.53.11]
हे इन्द्रदेव! देवों द्वारा रक्षित हम तुम्हारे सखा हैं। हम सभी भविष्य में सुखी रहें। हम अनेक से पराक्रमियों से परिपूर्ण लम्बी आयु को धारण करते हुए तुम्हारा पूजन करते रहें।
Hey Indr Dev! We are friendly with you, who is worshipped-prayed in the Yagy. Let us be happy. We should be associated with valour, might and long age and keep on worshipping you.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (54) :: ऋषि :- सव्य आंगिरस, देवता :- इन्द्र, छन्द :- जगती, त्रिष्टुप।
मा नो अस्मिन्मघवन्पृत्स्वंहसि नहि ते अन्तः शवसः परीणशे।
अक्रन्दयो नद्यो रोरुवद्वना कथा न क्षोणीर्भियसा समारत॥
हे मघवन्! इस पाप में, इस युद्ध-समुदाय में, हमें नही प्रक्षेप करना; क्योंकि आपका बल अनन्त है। आप अन्तरिक्ष में रहकर और अत्यन्त घोर शब्द कर नदी के जल को शब्दायमान करते हैं। तब फिर पृथ्वी भयभीत क्यों न हो?[ऋग्वेद 1.54.1]
हे सर्वश्रेष्ठ इन्द्र! इस दुख रूप संग्राम में हमें प्रवृत्त न करो। तुम्हारी शक्ति अनन्त है। तुमने जलों को ध्वनि देकर सरिताओं को ध्वनि से परिपूर्ण किया, तब पृथ्वी क्यों नहीं डरती?
Hey Maghwan-Indr Dev! Since, you possess infinite powers, we should not interfere-participate in it. The thunderous sound produced by you, shacked the riverets, rivulet, streams of water springs in the sky leading to fear over earth.
अर्चा शक्राय शाकिने शचीवते शृण्वन्तमिन्द्रं महयन्नभि ष्टुहि।
यो धृष्णुना शवसा रोदसी उभे वृषा वृषत्वा वृषभो न्यृञ्जते॥
शक्तिशाली और बुद्धिमान् इन्द्रदेव की पूजा करें। वे स्तुति सुनते हैं। उनकी पूजा करके स्तुति करें। जो इन्द्र शत्रुजयी बल के द्वारा द्युलोक और पृथिवीलोक को अलंकृत करते हैं, वे वर्षा विधाता है, वर्षण शक्ति द्वारा वृष्टि प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 1.54.2]
हे मनुष्यों! सर्वशक्तिशाली प्रतापी इन्द्र को प्रणाम करो। आदर सहित वंदनाओं को सुनने वाले इन्द्र की प्रशसां करो, जो प्रजाओं और धनों के वर्षक उत्तम धन द्वारा आसमान और पृथ्वी को सुशोभित करते हैं।
Let us pray to mighty Indr Dev! He listens to prayers and causes rains. He is the master-deity of rains. He decorate the heavens & the earth.
अर्चा दिवे बृहते शूष्यं वचः स्वक्षत्रं यस्य धृषतो धृषन्मनः।
बृहच्छ्रवा असुरो बर्हणा कृतः पुरो हरिभ्यां वृषभो रथो हि पः॥
इन्द्रदेव शत्रुओं के विनाश के लिए शारीरिक और मानसिक शक्ति से युक्त हैं। ऐसे तेजस्वी और महान आत्मबल युक्त इन्द्रदेव का आदरयुक्त वचनों द्वारा पूजन करें। वे इन्द्रदेव महान यशस्वी प्राणशक्ति की वृद्धि करने वाले व शत्रुनाशक अश्वयोजित रथ पर बैठे हुए हैं।[ऋग्वेद 1.54.3]
जिस बलिष्ठ इन्द्रदेव का मन भय पृथक है, उसके लिए सम्मानपूर्वक संकल्पों को कहो । वे शत्रुओं को दूरस्थ करने वाले, अश्व परिपूर्ण और अभीष्ट की वृष्टि करने वाले हैं।
Indr Dev possesses the physical and mental powers to eliminate the enemy. He should be worshiped with honourable-respectable words (hymns, recitations). He is riding the chariot which is capable of destroying the enemies (loaded with weapons & warfare techniques-devices, machinery). He accomplishes the desires of the devotees.
त्वं दिवो बृहतः सानु कोपयोऽव त्मना धृषता शम्बरं भिनत्।
यन्मायिनो वन्दिनो मन्दिना धृषच्छितां गरभस्तिमशनिं पृतन्यसि॥
हे इन्द्रदेव! आपने महान् आकाश के ऊपर का प्रदेश कम्पित किया और आपने अपनी शत्रु-विध्वंसिनी क्षमता के द्वारा शम्बर नामक असुर का वध किया। आपने हृष्ट और उल्लसित मन द्वारा तीक्ष्ण और रश्मियुक्त वज्र को दलबद्ध मायावियों के विरुद्ध प्रेरित किया।[ऋग्वेद 1.54.4]
हे इन्द्रदेव! तुमने आकाश में मूर्द्धा को कंपा दिया और अपनी उत्तम शक्ति से शम्बर को मार डाला। तुम नि:शंक मन से युद्ध में असुरों को मारने की इच्छा करते हो।
Hey Indr Dev! You agitated-trembled the regions just over the sky and killed the demon called Shambar. You projected-targeted Vajr emitting light over the demons having expertise in creating illusions happily.
The demons had built three abodes-satellites like moon in the sky which were capable of supporting millions of demons. Bhagwan Shiv targeted these revolving forts when they came in a straight line. Indr Dev was of immense help in this process.
नि यद्वृणक्षि श्वसनस्य मूर्धनि शुष्णस्य चिद्व्रन्दिनो रोरुवद्वना।
प्राचीनेन मनसा बर्हणावता यदद्या चित्कृणवः कस्त्वा परि॥
हे इन्द्रदेव! आपने मेघ गर्जन द्वारा शब्द करके वायु के ऊपर और जल शोषक तथा जल परिपाककारी सूर्य के मस्तक पर जल की वर्षा की। आपका मन अपरिवर्तन कारी और शत्रु विनाश परायण है। आपने आज जो काम किये हैं, उससे आपके ऊपर कौन है? अर्थात् आपके ऊपर कोई नहीं, आप ही सर्वश्रेष्ठ हैं।[ऋग्वेद 1.54.5]
हे इन्द्रदेव! तुमने पवन के ऊपर जलों की गर्जना करने के लिए प्रेरित करते हुए भी कृष्ण को मारा। तुम उसी कर्म को करने की अब कामना करो तो कोई नहीं रोक सकता।
Hey Indr Dev! You showered rains over the head of Sun-Sury Dev who absorbs waters, making the thunderous noise. Your wind in unwavering and busy in the destruction of enemies. None is superior to you amongest the demigods, since you accomplished such deeds which too tough.
Raining is a cyclical process. Heat of the Sun evaporate water, which is absorbed by the air moving towards the planes & hilly terrains-mountains, causing rain. This water then move to the ocean. Water vapours at much higher altitude are broken into hydrogen and oxygen, which are converted to ionic-plasmic state. Thus, plasma flows to the Sun and its requirement of fuel is met automatically.
त्वमाविथ नर्यं तुर्वशं यदुं त्वं तुर्वीतिं वय्यं शतक्रतो।
त्वं रथमेतशं कृत्व्ये धने त्वं पुरो नवतिं दम्भयो नव॥
हे शत यज्ञ कर्ता इन्द्रदेव! आपने नर्य, तुर्वश और यदु नाम के राजाओं की रक्षा की। आपने वय्य-कुलोद्भव तुर्वीति नाम के राजा की रक्षा की। आपने रथ और एतश नामक ऋषि शत्रु-विध्वंसिनी क्षमता के द्वारा शम्बर नामक असुर का मन द्वारा तीक्ष्ण और रश्मियुक्त वज्र को दलबद्ध मायावियों के विरुद्ध प्रेरित किया।[ऋग्वेद 1.54.6]
हे बहु कर्मा इन्द्र! तुम प्रजाजनों के हितचिन्तक तुर्वश, यदु और तुर्वीति की रक्षा करो। तुमने रथ और अश्व को बचाते हुए शंबर के निन्यान्वें गढ़ों को पराजित कर डाला।
Hey performer of hundred Yagy, Indr Dev! You protected the kings, devoted to the welfare their populace, called Nary, Turvash, Turviti and Yadu. You destroyed the ninety nine forts of Shambar with your sharp shinning Vajr protecting your chariot and horses side by side with the help of Etash-the weapon possessed with the power to destroy the enemy.
स घा राजा सत्पतिः शूशुवज्जनो रातहव्यः प्रति यः शासमिन्वति।
उक्था वा यो अभिगृणाति राधमा दानुरस्मा उपरा पिन्वते दिवः॥
जो इन्द्रदेव को हव्य दान करके उनकी स्तुति का प्रचार करते हैं अथवा हव्य के साथ मंत्र का पाठ करते हैं, वे ही स्वराज करते हैं, साधु-रक्षा करते हैं और अपने को वर्द्धित करते हैं। दानशील इन्द्रदेव द्युलोक से मेघों द्वारा जल का वर्षण करते हैं।[ऋग्वेद 1.54.7]
हविदाता और सिद्धान्तों पर चलने वाला मनुष्य उत्तम पुरुषों का स्वामी हुआ करता है। महान वंदनाओं के गायक के लिए क्षितिज से जल वृष्टि होती है।
Those who make offerings to Indr Dev and extends his glory become mighty kings nourishing their populace. Indr Dev showers rains from the outer space to help the devotees.
असमं क्षत्रमसमा मनीषा प्र सोमपा अपसा सन्तु नेमे।
ये त इन्द्र ददुषो वर्धयन्ति महि क्षत्रं स्थविरं वृष्ण्यं च॥
इन्द्रदेव का बल व उनकी बुद्धि अतुल है। जो आपको हव्य दान करके आपके महान बल और स्थूल पौरुष को बढ़ाते हैं, वही सोमपायी लोग यज्ञ कर्म द्वारा प्रवृद्ध होते हैं।[ऋग्वेद 1.54.8]
सोमपायी इन्द्रदेव की शक्ति मति की तुलना नहीं हो सकती। हे इन्द्रदेव! तुम दानशील के राज्य और शक्ति की वृद्धि करने वाले हो।
The might and intellect of Indr Dev who sips Somras is beyond compare. Those who make offerings to you, boosts your strength & power, through Yagy Karm
तुभ्येदेते बहुला अद्रिदुग्धाश्चमूषदश्चमसा इन्द्रपानाः।
व्यश्नुहि तर्पया कामेषामथा मनो वसुदेवाय कृष्व॥
यह सोमरस पत्थर के द्वारा तैयार किया गया है, बर्तन में रखा हुआ है और इन्द्रदेव के पीने योग्य है। यह आपके ही लिए हुआ है। आप इसे ग्रहण करें। अपनी इच्छा तृप्त करें। तदुपरान्त उत्साहपूर्वक हमें अपार धन-वैभव प्रदत्त करें।[ऋग्वेद 1.54.9]
हे इन्द्र! पाषणों से कूटकर और छानकर यह पेय सोम रस रखे हैं। इनका उपभोग करो। यह तुम्हारे लिए ही है। अपनी अभिलाषा को तृप्त करने के बाद हमको देने की सोचो।
Hey Indr Dev! The Somras has been extracted by crushing with stone and kept for you. Please enjoy it and grant us riches.
अपामतिष्ठब्धरुणह्वरं तमोऽन्तर्वृत्रस्य जठरेषु पर्वतः।
अभीमिन्दो नद्यो वव्रिणा हिता विश्वा अनुष्ठाः प्रवणेषु जिघ्नते॥
जल प्रवाहों को रोकने वाले पर्वत रूप वृत्र ने अपने पेट में जलों को स्थिर कर लिया। जिससे तमिस्रा फैल गई तभी इन्द्रदेव ने वृत्र द्वारा जल प्रवाहों को मुक्त करके नीचे की ओर प्रवाहित किया।[ऋग्वेद 1.54.10]
जब जलों की धाराओं को रोकने वाला पर्वत दृढ़ था और बादल (अन्धकार) वृत्र के उदित प्रदेश में थे। तब इन्द्रदेव ने उन जलों को नीचे जगहों की ओर बहाया।
Mountainous Vratr sucked entire water in his stomach leading to darkness. Indr Dev released the water and made it flow in the down ward direction.
स शेवृधमधि धा द्युप्नमस्मे महि क्षत्रं जनाषाळिन्द्र तव्यम्।
रक्षा च नो मघोनः पाहि सूरीन्राये च नः स्वपत्या इषे धाः॥
हे इन्द्रदेव! हमें वर्द्धमान यश दें। महान् शत्रुओं का पराजयकर्ता और प्रभूत बल प्रदान करें। हमें धनवान् करके हमारी रक्षा करें। विद्वानों का पालन करें और हमें धन, शोभनीय अपत्य (औलाद, offspring, progeny, children) और अन्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.54.11]
हे इन्द्रदेव! सुख, कीर्ति, मनुष्यों को वश में करने वाला राज्य और शक्ति की हम में स्थापना करो। तुम हमारे प्रमुख जलों की सुरक्षा करते हुए समृद्धि महान संतान और शक्ति को हमारी ओर प्रेरित करो।
Hey Indr Dev! Enhance our honour-glory. Grant us strength to over power the enemy. Make us rich and protect us. Protect the enlightened, give us wealth, able children and food grain.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (55) :: ऋषि :- सव्य आंगिरस, देवता :- इन्द्र, छन्द :- जगती।
दिवश्चिदस्य वरिमा वि पप्रथ इन्द्रं न महोबा न मह्ना पृथिवी चन प्रति।
भीमस्तुविष्माञ्चर्षणिभ्य आतपः शिशीते व्रजं तेजसे न वंसगः॥
आकाश की अपेक्षा भी इन्द्र देवता का प्रभाव बड़ा है। महत्त्व में पृथ्वी भी इन्द्रदेव की बराबरी नहीं कर सकती। भयावह और बली इन्द्रदेव मनुष्यों के लिए शत्रुओं को दग्ध करते हैं। जैसे साँड़ अपने सींग से रगड़ता है, उसी प्रकार तीखा करने के लिए इन्द्रदेव अपना वज्र रगड़ते हैं।[ऋग्वेद 1.55.1]
इन्द्रदेव का यश सब ओर व्याप्त है। पृथ्वी भी इनके समान नहीं है। विकराल, शक्तिशाली मनुष्यों को संतापित करने वालों का नाश करने वाले, इन्द्र ऋषभ के तुल्य तीक्षण वज्र को तेज करते हैं।
विकराल :: भयानक, वीभत्स, भयावह, भयाबना; horrible, ghastly.
Indr Dev influences the entire universe. Even the earth can not equate it. He become horrible-ghastly for those who trouble-torture the humans and sharpen his Vajr like the bull who sharpen his horns by rubbing.
सो अर्णवो न नद्यः समुद्रियः प्रति गृभ्णाति विश्रिता वरीमभिः।
इन्द्रः सोमस्य पीतये वृषायते स्नात्स युध्म ओजसा पनस्यते॥
हे अन्तरिक्ष व्यापी इन्द्रदेव! आप समुद्र की तरह अपनी व्यापकता के द्वारा बहुव्यापी जल ग्रहण करते हैं। इन्द्रदेव सोमपान के लिए साँड़ की तरह वेग से दौड़ते हैं। चिरकाल से वे युद्धों में अपनी सामर्थ्य के बल पर प्रशंसा को प्राप्त होते रहे हैं।[ऋग्वेद 1.55.2]
अंतरिक्ष व्यापी इन्द्रदेव प्रवाहित जलों को समुद्र द्वारा नदियों को ग्रहण करने के समान भाव से प्राप्त करते हैं। वे सोम पीने के लिए ऋषभ के तुल्य बेग करते हैं। वहाँ शक्तिशाली इन्द्रदेव प्रार्थनाओं को चाहते हैं।
Hey universe pervading Indr Dev! You accept waters just like the ocean who assimilate rivers in it. He rushes to get Somras like a bull. He has been appreciate in war ever since due to his might, power, strength.
त्वं तमिन्द्र पर्वतं न भोजसे महो नृम्णस्य घर्मणामिरज्यसि।
प्र वीर्येण देवताति चेकिते विश्वस्मा उग्रः कर्मणे पुरोहितः॥
हे इन्द्रदेव! आप अपने भोग के लिए मेघों को छिन्न-भिन्न नहीं करते। आप महान् धनाढ्यों के ऊपर आधिपत्य करते हैं। इन्द्रदेव अपने धैर्य के कारण से अच्छी तरह परिचित है। समस्त देवों ने उग्र इन्द्रदेव को उनके कर्मों के कारण ही श्रेष्ठ माना है।[ऋग्वेद 1.55.3]
हे इन्द्र! तुम तेज के दाता और सभी प्रकार के धनों के धारणकर्ता हो। तुम शक्ति में बढ़े हुए भयंकर कर्म वालों में अग्रगण्य हो।
Hey Indr Dev! You do not segregate clouds for your use. You rule the wealthy. You are well known for your patience. The demigods-deities consider him superior due to his horrifying deeds.
स इद्वने नमस्युभिर्वचस्यते चारु जनेषु प्रब्रुवाण इन्द्रियम्।
वृषा छन्दुर्भवति हर्यतो वृषा क्षेमेण धेनां मघवा यदिन्वति॥
इन्द्र जंगल में स्तोता ऋषियों द्वारा स्तुत होते हैं। मनुष्यों के बीच में अपना वीर्य प्रकट करके बड़ी सुन्दरता से अवस्थित होते हैं। जिस समय हव्यदाता धनी यजमान इन्द्र द्वारा रक्षित होकर स्तुति वाक्य का उच्चारण करता है, उस समय अभीष्टवर्षी इन्द्र यज्ञेच्छु को यज्ञ में तत्पर करते हैं।[ऋग्वेद 1.55.4]
वह इंद्र प्राणियों में वीर्य रूप, पूजकों में स्तुत्य, पूजनीय, अभीष्ट वर्षक हैं। जब हव्यदाता यजमान, श्लोक वाक्य उच्चारण करता है, उस समय अभीष्ट प्रदायक इन्द्र उसे यज्ञ में तत्पर करते हैं।
The sages pray to Indr Dev in the forests while engaged in ascetic practices for their protection. He discloses his might to the humans (by protecting them) and gets respected. Indr Dev become active when the hosts begin with the offerings in the Yagy to grant them the desired.
स इन्महानि समिथानि मज्मना कृणोति युध्म ओजसा जनेभ्यः।
अधा चन श्रद्दधति त्विषीमत इन्द्राय वज्रं निरघनिघ्नते वघम्॥
योद्धा इन्द्र मनुष्यों के लिए सर्व विशुद्धकारी बल द्वारा महान् युद्धों में उपस्थित होते हैं। जिस समय इन्द्र शत्रुओं के वध के लिए वज्र फेंकते हैं, उस समय दीप्तिमान् इन्द्रदेव को सब लोग बलशाली कहकर उनका आदर करते हैं।[ऋग्वेद 1.55.5]
वही पराक्रमी इन्द्रदेव अपनी पवित्र शक्ति से मनुष्यों के लिए संग्राम करते हैं। मनुष्यगण वज्रधारी इन्द्रदेव को आस्था पूर्वक नमस्कार करते हैं।
The warrior Indr Dev fights for the humans with his pious might. Every one praises him when he target his Vajr over the enemy to eliminate them. The humans honour him with devotion.
स हि श्रवस्युः सदनानि कृत्रिमा क्ष्मया वृधान ओजसा विनाशयन्।
ज्योतींषि कृण्वन्नवृकाणि यज्यवेऽव सुक्रतुः सर्तवा अप: सृजत्॥
शोभनकर्मा इन्द्र अपने तेजस्वी बलों द्वारा शत्रुओं अर्थात् असुर गृहों का विनाश करके वृद्धि को प्राप्त हुए। सूर्यादि नक्षत्रों के प्रकाश को रोकने वाले आवरणों को उन्होंने दूर किया और याजक के लिए जलों के प्रवाह को खोल दिया।[ऋग्वेद 1.55.6]
उस यश की कामना करने वाले महान कार्य वाले इन्द्रदेव ने असुरों के गृहों को ध्वस्त करते हुए क्षितिज के नक्षत्रों को निवारण कर जल दृष्टि की।
Indr Dev destroyed the forts of the demons-enemy and became invincible. He removed the obstruction in the way of Sun (Rahu-Ketu) and the constellations unplugging the flow of waters for the devotees-those who worship him.
दानाय मनः सोमपावन्नस्तु तेऽर्वाञ्चा हरी वन्दनश्रुदा कृधि।
यमिष्ठासः सारथयो य इन्द्र ते न त्वा केता आ दभ्नुवन्ति भूर्णयः॥
हे सोमपायी इन्द्रदेव! दान में आपका मन रत है। हे स्तुति प्रिय! अपने हरि नाम के घोड़ों को हमारे यज्ञ के अभिमुख करें। हे इन्द्रदेव! आपके सारथि घोड़ों को वश में करने में अति दक्ष हैं, इसलिए आपके विरोधी शत्रु हथियार लेकर आपको पराजित नहीं कर सकते।[ऋग्वेद 1.55.7]
हे सोमपायी इंद्रदेव! तुम देने में मन लगाओ। तुम प्रार्थनाओं को सुनते हो, तुम अपने अश्वों को हमारे सम्मुख लाओ। तुम अश्व विद्या में निपुण सारथी हो, जो राह नहीं भूलते हैं।
Hey Somras thirsty Indr Dev! You are inclined to donations-charity. You like appreciation. Direct your horses named Hari towards the site of the Yagy. Your chariot driver is highly skilled in manoeuvring the horses. Hence, your opponents-enemy can not defeat you.
अप्रक्षितं वसु बिभर्षि हस्तयोरषाळ्हं सहस्तन्वि श्रुतो दधे।
आवृतासोऽवतासो न कर्तृभिस्तनूषु ते क्रतव इन्द्र भूरयः॥
हे इन्द्रदेव! आप दोनों हाथों में अनन्त धन धारण करते हैं। आप यशस्वी हैं। अपनी देह में पराजित न होने वाला बल धारण करते हैं। जैसे जलार्थी मनुष्य कुँओं को घेरे रहते हैं, उसी प्रकार आपके सारे अंग वीरतापूर्ण कर्मों द्वारा घेरे रहते हैं। आपके शरीर में अनेक कर्म विद्यमान हैं।[ऋग्वेद 1.55.8]
हे इन्द्र! तुम्हारे दोनों हाथों में अक्षय धन है। तुम्हारे शरीर में श्रेष्ठ बल है। वन्दना करने वालों ने तुम्हारे पराक्रम को बढ़ाया है।
Hey Indr Dev! You are capable of holding infinite treasures in your hands. You are esteemed, glorious. You possess the power to win in your body. The valour occupies your body just like those who surround the well for water. You have the expertise in several field.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (56) :: ऋषि :- सव्य आंगिरस, देवता :- इन्द्र, छन्द :- जगती।
एष प्र पूर्वीरव तस्य चम्रिषोऽत्यो न योषामुदयंस्त भुर्वणिः।
दक्षं महे पाययते हिरण्ययं रथमावृत्या हरियोग मृभ्वसम्॥
जिस प्रकार घोड़ा घोड़ी की ओर दौड़ता है, उसी प्रकार प्रभुताहारी इन्द्रदेव उस यजमान के यथेष्ट पात्र-स्थित सोमरूप खाद्य की ओर दौड़ते हैं। इन्द्र स्वर्णमय, अश्वयुक्त और रश्मियुक्त रथ को रोककर सोमपान करते हैं। वे इस कार्य में अति निपुण है।[ऋग्वेद 1.56.1]यह इन्द्रदेव यजमान के पात्रों में रखे सोमों को पान करने की कामना से उठाते हैं। वह अपने रथ को रोककर सोमपान करते हैं।
Dev Raj Indr stops his chariot glittering like gold, driven by horses with golden hue, picks up the pots filled with Somras offered to him by the devotees performing Yagy and drink it. He is expert in carrying out this job.
तं गूर्तयो नेमन्निषः परीणसः समुद्रं न संचरणे सनिष्यवः।
पतिं दक्षस्य विदथस्य नू सहो गिरिं न वेना अधि रोह तेजसा॥
जिस प्रकार धनाभिलाषी वणिक् घूम-घूमकर समुद्र को चारों ओर व्याप्त किये रहते हैं, उसी प्रकार हव्य-वाहक स्तोता लोग चारों ओर से इन्द्र को घेरे हुए हैं। जिस प्रकार ललनाएँ फूल चुनने के लिए पर्वत पर चढ़ती हैं, उसी प्रकार आपकी स्तुतियाँ महान् बलों के स्वामी, यज्ञ के स्वामी, संघर्षक इन्द्रदेव को अपनी तेजस्विता से घेर लेती हैं।[ऋग्वेद 1.56.2]हविदाता यजमान धन के लिए समृद्ध होने वाले मनुष्यों के समान शक्ति और अनुष्ठान के स्वामी इन्द्रदेव को ग्रहण करते हैं।
The way the traders moves around the oceans to collect gems, the devotees surround Indr Dev with offerings. The prayers devoted to Indr Dev surrounds him and boosts his energy-power, just like the young girls rising the mountains for collecting flowers.
स तुर्वणिर्महाँ अरेणु पौंस्ये गिरेर्भृष्टिर्न भ्राजते तुजा शवः।
येन शुष्णं मायिनमायसो मदे दुध्र आभूषु रामयन्नि दामनि॥
इन्द्रदेव शत्रुहन्ता और महान् हैं। इनका दोष शून्य और शत्रु विनाशक बल पुरुषोचित संग्राम में पहाड़ के श्रृंग की तरह विराजमान है। शत्रु मर्दक और लौह करेंच देही इन्द्रदेव ने सोमपान द्वारा हृष्ट होकर बल द्वारा, मायावी शुष्ण को हथकड़ी डालकर कारागृह में बन्द कर रखा था।[ऋग्वेद 1.56.3]हे मनुष्य! तू भी उससे आत्मशक्ति ग्रहण कर। वे तीव्र वेग वाले श्रेष्ठ इन्द्र युद्ध क्षेत्र में पर्वत के शिखर के समान चमकते हैं। उन्होंने बली मायावी शुष्ण को बाँधकर रखा था।
Indr Dev is enemy slayer and great. His power without defects, meant for killing enemy is like the peak of a mountain. He consumed Somras, boost his might & handcuffed Shushn, expert in casting enchantments and put him in the prison.
देवी यदि तविषी त्वावृधोतय इन्द्रं सिषक्त्युषसं न सूर्यः।
यो धृष्णुना शवसा बाधते तम इयर्ति रेणुं बृहदर्हरिष्वणिः॥
जैसे सूर्यदेव उषादेवी का सेवन करते हैं, उसी प्रकार दीप्तिमान् बल, रक्षा के लिए, स्तोत्र द्वारा वर्द्धित इन्द्र की सेवा करता है। वही इन्द्र विजयी बल द्वारा अन्धकाररूपी वृत्र का वध करते और शत्रुओं को रुलाकर अच्छी तरह उनका विध्वंस करते हैं।[ऋग्वेद 1.56.4]हे स्तोता! सूर्य के द्वारा उषा को प्राप्त करने के समान तेरे द्वारा बढ़ाया गया पराक्रम इन्द्र को प्राप्त होता है। तब वह शत्रुओं में आर्तनाद उठाकर बुरे कर्मों को मिटाते हैं।
Hey devotee! The way Sury Dev-Sun, is associated with Usha Devi, day break, the prayers made by you helps Indr Dev. Having recharged his energy-power, he killed Vratr who was like darkness-shadow, making him cry bitterly due to his sinful acts.
वि यत्तिरो धरुणमच्युतं रजोऽतिष्ठिपो दिव आतासु बर्हणा।
स्वर्मीळ्हे यन्मद इन्द्र हष्याहन्वृत्रं निरपामौब्जो अर्णवम्॥
हे शत्रु हन्ता इन्द्रदेव! जिस समय आपने वृत्र द्वारा अवरुद्ध, जीवन रक्षक और विनाश रहित जल को आकाश से चारों ओर वितरित किया, उस समय सोमपान से हर्ष युक्त होकर लड़ाई में वृत्र का वध आपने किया और जल के समुद्र की तरह मेघ को नीचे की ओर कर दिया।[ऋग्वेद 1.56.5]
हे इन्द्रदेव! तुमने क्षितिज की दिशाओं में जल धारण करने वाले अंतरिक्ष को निर्मित किया। सोम का आनन्द ग्रहण कर तुमने अपने वृत्र को समाप्त कर जलों के नीचे की ओर प्रवाहमान किया।
Hey the slayer of enemy Indr Dev! You released the water meant for saving life-survival, obstructed by Vratr and distributed it all around, enjoying Somras. Then you killed Vratr and poured water over the earth, as raining clouds moving to ocean.
त्वं दिवो धरुणं धिष ओजसा पृथिव्या इन्द्र सदनेषु माहिनः।
त्वं सुतस्य मदे अरिणा अपो वि वृत्रस्य समया पाष्यारुजः॥
हे इन्द्रदेव! आप महान् हैं। अपने बल के द्वारा सारे जगत् के धारक वृष्टि जल को अन्तरिक्ष से पृथ्वी पर स्थापित किया। आपने सोमरस का पान करके उत्साहपूर्वक संघर्षक बल बारा वृत्र का वध किया और पृथ्वी के समस्त स्थानों को जलों से तृप्त किया।[ऋग्वेद 1.56.6]
हे इन्द्रदेव! तुमने अपनी शक्ति से क्षितिज-धरा के बीच जल दृढ़ किया। तुमने निष्पन्न सोम के आनन्द में जलों को मुक्त कराया और पाषाण किलों का खण्डन किया।
Hey Indr Dev, you are great! You released water for the earth, after sipping Somras & killing Vratr destroying his forts side by side.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (57) :: ऋषि :- सव्य आंगिरस, देवता :- इन्द्र, छन्द :- जगती।
प्र मंहिष्ठाय बृहते बृहद्रये सत्यशुष्माय तवसे मतिं भरे।
अपामिव प्रवणे यस्य दुर्घरं राधो विश्वायु शवसे अपावृतम्॥
अतीव दानी, महान, प्रभूत धनशाली, अमोघ बल सम्पन्न और प्रकाण्ड देह विशिष्ट इन्द्रदेव के उद्देश्य से हम बुद्धि पूर्वक स्तुति करते हैं। निम्न गामिनी जलधारा की तरह इन्द्रदेव का बल कोई नहीं धारण कर सकता। स्तोताओं के बल साधन के लिए इन्द्रदेव सर्वव्यापी सम्पद् का प्रकाश करते हैं।[ऋग्वेद 1.57.1]
अत्यन्त दानी, श्रेष्ठ, धनी, वीर बढ़ोत्तरी को ग्रहण इन्द्र देव को अपनी वृद्धि से नमस्कार करता हूँ। नीचे की ओर जाते हुए जल की गति के तुल्य जिसकी शक्ति कोई भी धारण कर सकता है तथा जिस शक्ति के लिए समृद्धि को ज्योर्तिमय किया।
We pray to Indr Dev who is extreme-highest donor, great-mighty, master of riches, possessing unlimited power and has a strong body, with our intellect-prudence, wisdom. The strength-power & might of Indr Dev, which is like the river in the down ward direction, can not be contained by any one. Indr Dev exhibit-demonstrate his vast power for protecting the devotees.
अध ते विश्वमनु हासदिष्टय आपो निम्नेव सवना हविष्मतः।
यत्पर्वते न समशीत हर्यत इन्द्रस्य वज्रः श्नथिता हिरण्ययः॥
हे इन्द्रदेव! यह सम्पूर्ण संसार आपके यज्ञ में हव्य दाताओं का अभिषुत सोमरस आपकी ओर प्रवाहित हुआ। इन्द्र का शोभनीय, सुवर्णमय और हननशील वज्र मेघों को विदीर्ण करने को तत्पर हुआ।[ऋग्वेद 1.57.2]
हे इन्द्रदेव! तुम्हारा मारक वज्र प्रहार करते समय सोता नहीं रहा। यह संसार तुम्हारे लिए यज्ञ कर्मियों में लगा और हविदाता यजमान गिरते हुए जल के समान तुम्हारी शरण में पहुँचा।
Hey Indr Dev! The entire universe channelized-directed its energy towards you with the help of Yagy, offerings and Somras. The glittering golden Vajr got ready to pounce over the clouds.
अस्मै भीमाय नमसा समध्वर उषो न शुभ आ भरा पनीयसे।
यस्य धाम श्रवसे नामेन्द्रियं ज्योतिरकारि हरितो नायसे॥
हे शुभ उषे! भयावह और अतीव स्तुति पात्र इन्द्रदेव को इस यज्ञ में इस समय यज्ञान्न प्रदान करें। उनकी विश्व धारक, प्रसिद्ध और इन्द्रत्व चिह्न युक्त ज्योति, घोड़े की तरह उनको यज्ञान्न प्राप्ति करने के अर्थ में इधर-उधर ले जाती हैं।[ऋग्वेद 1.57.3]
हे प्रकाशवती उषे! इस पूजनीय और विकराल इन्द्रदेव के लिए अनुष्ठान में नमस्कार के संग हवि सम्पादन करो। उस इन्द्रदेव का नाम शक्ति और यश सुनने के लिए ही उत्पन्न किये गये हैं।
Hey Usha Devi! Let the offerings be ready for the sake of Indr Dev, in this Yagy. His aura capable of holding the universe, carries the food grains meant for the Yagy, all around like the horse who roam hither-thither.
इमे त इन्द्र ते वयं पुरुष्टुत ये त्वारभ्य चरामसि प्रभूवसो।
नहि त्वदन्यो गिर्वणो गिरः सघत्क्षोणीरिव प्रति नो हय तद्वचः॥
हे प्रभूत धनशाली और बहु लोक स्तुत इन्द्रदेव! हम आपका अवलम्बन करके यज्ञ सम्पादित करते हैं। हम आपके ही है। हे स्तुति पात्र! आपके समान अन्य स्तुत्य देवता के न रहने के कारण हम आपकी स्तुति करते हैं। जैसे पृथ्वी अपने प्राणियों को धारण करती है, उसी प्रकार आप भी हमारे स्तुति वचनों को ग्रहण करें।[ऋग्वेद 1.57.4]
प्रभूत :: जो हुआ हो, निकला हुआ, उत्पन्न, उद्गत, बहुत अधिक, प्रचुर, पूर्ण, पूरा, पक्व, पका हुआ, उन्नत; a lot of, complete, ripe, born, ready to act, too large.
हे अनेकों द्वारा पूजनीय इन्द्र! तुम्हारा सहारा पाने वाले हम तुम्हारे ही हैं। तुम हमारी वंदनाओं को स्वीकार करने वाले हो, अन्य कोई नहीं। जैसे पृथ्वी अपने प्राणियों की शरणदात्री है, वैसे ही तुम भी हमें आश्रय प्रदान करते हो।
The possessor of extreme wealth, prayed in various abodes Indr Dev! We seek protection-shelter under you to carry out the Yagy. We belong to you. You deserve prayers. The way the earth nourishes-bears the various living beings, the same way-manner, you provide asylum to us.
भूरि त इन्द्र वीर्यंतव स्मस्यस्य स्तोआर्पघवन्काममा पृण।
अनु ते द्यौर्बृहती वीर्यं मम इयं च ते पृथिवी नेम ओजसे॥
हे इन्द्रदेव! आपका वीर्य महान् है। हम आपके ही हैं। हे मघवन्! इस स्तोता की कामना पूरी करें। विशाल आकाश ने भी आपकी वीरता का लोहा माना था। यह पृथ्वी भी आप बल के आगे झुकती है।[ऋग्वेद 1.57.5]
हे धन के स्वामी इन्द्रदेव! वंदनाकारी का अभीष्ट पूर्ण करो। तुम अत्यन्त शक्तिशाली हो। आकाश भी तुम्हारी शक्ति का लोहा मानता है और धरा तुम्हारे सम्मुख झुकी हुई है।
Hey Indr Dev! Your powers are unlimited. We belong to you. Please fulfil our desires. Broad sky too accept your might. This earth too bows before you.
त्वं तमिन्द्र पर्वतं महामुरुं वज्रेण वज्रिन्पर्वश्चकर्तिथ।
अवासृजो निवृता: सर्तवा आपः सत्रा विश्वं दधिषे केवलं सहः॥
हे वज्रधारी इन्द्रदेव! आपने उस विस्तीर्ण मेघ को, वज्र द्वारा, टुकड़े-टुकड़े कर दिया जिससे उस मेघ के द्वारा आवृत जल को बहने के लिए, आपने नीचे छोड़ दिया। केवल आप ही विश्वव्यापी बल धारण करते हैं। यही सत्य है।[ऋग्वेद 1.57.6]
हे वज्रिन! तुमने उस फैले हुए वृत्र को खण्ड-खण्ड किया और जलों को छोड़ा। तुम अवश्य ही बहुत शक्तिशाली हो।
Hey Indr Dev! You teared off the clouds-Vratr with your Vajr into pieces and allowed the waters to flow to the earth. Its only you who bears the might-power pervading the whole universe. This is a fact-truth.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (58) :: ऋषि :- नोधा गौतम, देवता :- अग्नि, छन्द :- जगती, त्रिष्टुप्।
नू चित्सहोजा अमृतो नि तुन्दते होता यद्दूतो अभवद्विवस्वतः।
वि साधिष्ठेभिः पथिभी रजो मम आ देवताता हविषा विवासति॥
बड़े बल से उत्पन्न और अमर अग्नि, व्यथा दान या ज्वलन में समर्थवान हैं। जिस समय देवाह्वानकारी अग्निदेव यजमान के हव्य वाहन दूत हुए, उस समय समीचीन पथ द्वारा जाकर उन्होंने अन्तरिक्ष का निर्माण किया अथवा वहाँ प्रकाश किया। अग्निदेव यज्ञ में हव्य द्वारा देवों की परिचर्या करते हैं।[ऋग्वेद 1.58.1]
शक्ति से रचित अविनाशी अग्नि कभी भी संताप देने वाली नहीं है। वह यजमान के दूत एवं होता नियुक्त हुए। उन्होंने ही अंतरिक्ष को प्रकटाया तथा वे ही अनुष्ठान में हृव्य द्वारा देवी की सेवा करते हैं।
Immortal Agni was created with great power-force (energy, present all around), capable of destroying every thing and burning. As an agent of demigods-deities Agni Dev became the acceptor of the offering made by the hosts performing Yagy, generated the space-sky and illuminated it. He serve the demigods, deities, the Almighty during the Yagy.
Energy can be converted to mass and plasma. Fire :- heat & light are two forms of energy.
आ स्वमद्म युवमानो अजरस्तृष्वविष्यन्नतसेषु तिष्ठति।
अत्यो न पृष्ठं प्रषितस्य रोचते दिवो न सानु स्तनयन्नचिक्रदत्॥
अजर अग्नि तृण गुल्म आदि अपने खाद्य को ज्वलन शक्ति द्वारा मिलाकर और भक्षण कर तत्काल काठ के ऊपर चढ़ गये। दहन करने के लिए इधर-उधर जाने वाली अग्नि की पृष्ठ देश स्थित ज्वाला गमनशील घोड़े की तरह शोभा पाती हैं। साथ ही देश स्थित ज्वाला गमनशील घोड़े की तरह शोभा पाती है। साथ ही साथ आकाश के उन्नत और शब्दायमान मेघ की तरह शब्द भी करती है।[ऋग्वेद 1.58.2]
जरा रहित अग्नि हवियों को एकत्र कर खाते हुए काष्ठ पर चढ़े। इनकी घृत से चिकनी पीठ घोड़े के समान दमकती है। इन्होंने आकाशस्थ बादलों की गर्जना के समान शब्दों वाली ज्वाला को प्रकट किया।
Immortal Agni ate the shrubs, plants etc. and digested the eatables riding the wood. Its back started shinning like a moving horse when it moved from one place to another for burning. It roared like the thunderous clouds in the sky rising too high.
Electricity-electric spark produces sound and light. Lightening is associated with dazzling light and thunderous noise.
क्राणा रुद्रेभिर्वसुभिः पुरोहितो होता निषत्तो रयिषाळमर्त्य:।
रथो न विक्ष्वृञ्जसान आयुषु व्यानुषग्वार्या देव ऋण्वति॥
अग्निदेव हव्य का वहन करते हैं और रुद्रों तथा वसुओं के सम्मुख स्थान पाए हुए हैं। अग्रिदेव देवाहानकारी और यज्ञ-स्थानों में उपस्थित रहते हैं। वह धन जयी और अमर हैं। दीप्तिमान् अग्निदेव याजकों की स्तुति लाभ करके और रथ की तरह चल करके प्रजाओं के घर में बार-बार वरणीय या श्रेष्ठ धन प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 1.58.3]
अमर अग्नि रुद्रों और वसुओं के सम्मुख स्थान पाते हुए और अनुष्ठान स्थल में उपस्थित रहते हैं। दीप्ति परिपूर्ण अग्नि यजमानों की वंदनाओं को सुनकर कर खाते हुए काष्ठ पर चढ़े हैं।
Immortal Agni Dev is found close to the Rudr & Vasu. Agni Dev is present in all places where the God is worshipped including the Yagy. He comes to the house of the devotees again & again granting them riches-wealth they need.
Fire is produced when two pieces of wood are rubbed together. Water has hydrogen & oxygen. Hydrogen burns & the oxygen helps it in burning.
वि वातजूतो अतसेषु तिष्ठते वृथा जुहूभिः सृण्या तुविष्वणिः।
तृषु यदग्ने वनिनो वृषायसे कृष्णं त एम रुशदूर्में अजर॥
हे अग्निदेव! वायु द्वारा प्रेरित होकर, महाशब्द, ज्वलन्त जिह्वा और तेज के साथ, अनायास पेड़ों को दग्ध कर देते हैं। हे अग्निदेव! जिस समय आप वन्य वृक्षों को शीघ्र जलाने के लिए साँड़ की तरह व्यग्र होते ही, हे दीप्त-ज्वाल अजर अग्निदेव! आपका जाने का मार्ग काला हो जाता है।[ऋग्वेद 1.58.4]
हे अग्ने! पवन के योग से अधिक शब्दवान हुए। तुम दुरांत के समान जिह्वाओं से काष्ठों को प्राप्त होते हो। तुम जरा रहित दीप्तिमान, ज्वालाओं से युक्त, जंगल और वृक्षों के समान आचरण करते हो। तुम्हारा मार्ग श्यामवर्ण का हो जाता है।
Hey Agni Dev! Associated with Vayu (Pawan, air, wind) you burn the trees (jungles, forests) producing dazzling light and loud sound. When you become furious like a bull, your path becomes dark with smoke.
Oxygen a basic ingredient for burning is present in air (21%). However, metals, rocks too burn at a very temperature in the absence of air-here plasmic state is reached, when all elements break down into ionic form-state.
The temperature rises to millions of degrees centigrade. This is how energy is produced in the stars-Sun.
Nuclear explosions-blasts, atom bomb, hydrogen bomb, neutron bomb are some of the forms of Agni-fire.
तपुर्जम्भो वन आ वातचोदितो यूथे न साह्वाँ अव वाति वंसगः।
अभिव्रजत्रक्षितं पाजसा रजः स्थातुश्चरथं भयते पतत्रिणः॥
अग्निदेव वायु द्वारा प्रेरित होकर, शिखारूप आयुध धारण करके, महातेज के साथ, अशुष्क वृक्ष रस आक्रमण करके और गो-वृन्द के बीच में साँड़ की तरह सबको पराजित करके चारों ओर व्याप्त होते हैं। सारे स्थावर और जंगम अग्निदेव से भयभीत हो उठते हैं।[ऋग्वेद 1.58.5]
ज्वाला रूप दाढ़ वाले, विजेता पवन द्वारा प्रेरित तुम जब बन में तैरते हुए धेनुओं के पहलू में जाने वाले ऋषभ के तुल्य, क्षितिज की तरफ उठते हो, तब भी जीव कम्पायमान हो जाते हैं।
Inspired-helped by air-Pawan Dev (Agni-fire, Vayu-air, Varun-water are the functional organs of Maa Bhagwati, better left half of the Almighty) your flames engulf the green trees-vegetation just like the bull amongest the cows and the calves. All fixed and movable living beings tremble with fear.
दधुष्टा भृगवो मानुषेष्वा रयिं न चारुं सुहवं जनेभ्यः।
होतारमग्ने अतिथिं वरेण्यं मित्रं न शेवं दिव्याय जन्मने॥
हे अग्नि देव! मनुष्यों के बीच में महर्षि भृगु ने दिव्य जन्म पाने के लिये आपको शोभन धन की तरह धारित किया। आप आसानी से लोगों का आह्वान सुनने वाले और स्वयं देवों का आह्वान करने वाले हैं। आप यज्ञ स्थान में अतिथि रूप और उत्तम मित्र की तरह सुख प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.58.6]
हे अग्निदेव! प्राणियों के सुख के लिए आह्वान किये होता एवं वरणीय अतिथि, देवगणों के मित्र, तुम्हें भृगुओं ने मनुष्य में स्थापित किया।
Hey Agni Dev! Bhragu established you amongest the humans. You easily listen to the prayers-worship done by the hosts-those performing Yagy. You join the Yagy as a guest and provide comfort to the devotee-host as the best friend.
होतारं सप्त जुह्वो यजिष्ठं यं वाघतो वृणते अध्वरेषु।
अग्निं विश्वेषामरतिं वसूनां सपर्यामि प्रयसा यामि रत्नम्॥
सात आह्वान करने वाले ऋत्विक् जो यज्ञों में परम यज्ञार्ह और देवाह्वानकारी अग्नि देवता का वरण करते हैं, उसी सर्व धनदाता अग्निदेव को मैं यज्ञ के अन्न से सेवित करता हूँ और उनसे रमणीय धन की याचना करता हूँ।[ऋग्वेद 1.58.7]
आह्वान कर्ता सात ऋत्विज श्रेष्ठ एवं पूजनीय होता अग्नि का यज्ञ में वरण करते हैं। उनकी अन्न रूपी हवि से सेवा करता हुआ मैं रमणीक धन की विनती करता हूँ।
Seven people-Ritvij committed to Yagy, ignite the pious fire at the site of the Yagy. I offer food grains to Agni Dev in the Yagy. Using the food grains as Havi-offerings, I request Agni Dev who grants all sorts of amenities-wealth; for riches
अच्छिद्रा सुनो सहसो नो अद्य स्तोतृभ्यो मित्रमहः शर्म यच्छ।
अग्ने गृणन्तमंहस उरुष्योर्जो नपात्पूर्भिरायसीभिः॥
हे बलपुत्र और अनुरूप दीप्तियुक्त अग्निदेव! आज हमें श्रेष्ठ सुख प्रदान करें। हे अन्न पुत्र! अपने स्तोताओं को लोहे की तरह दृढ़ रूप से रक्षा करते हुए उन्हें पापों से बचावें।[ऋग्वेद 1.58.8]
हे शक्ति के पुत्र! हे मित्रों को सुखी करने वाले अग्निदेव! हम वंदनाकारियों को श्रेष्ठतम शरण प्रदान करो और सुरक्षा करते हुए मुझे पाप से बचाओ।
Hey glowing Shakti (Maa Bhagwati) Putr Agni Dev! Grant us comforts & protection from sins like an armour made of tough steel.
भवा वरूथं गृणते विभावो भवा मघवन्मघवद्भ्यः शर्म।
उरुष्याग्ने अंहसो गृणन्तं प्रातर्मक्षू धियावसुर्जगम्यात्॥
हे प्रभावान् अग्निदेव! आप स्तोता के गृह रूप बनें। हे धनवान् अग्निदेव! धनवानों के प्रति कल्याण स्वरूप बनें। हे अग्निदेव! स्तोताओं को पाप से बचावें। हे प्रज्ञारूप धन से सम्पन अग्निदेव! आप प्रातःकाल शीघ्र पधारें।[ऋग्वेद 1.58.9]
हे प्रदीप्तिमान! वंदनाकारी के लिए शरण रूप में होओ। धन वालों को आश्रय दो। आप प्रातःकाल में शीघ्र ग्रहण होते हुए मुझे पाप से बचायें।
Hey glowing Agni Dev! Let you become the protector & beneficial to the devotees performing Yagy shielding them from all sins. Kindly come in the early morning.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (59) :: ऋषि :- नोधा गौतम, देवता :- अग्नि, छन्द :- त्रिष्टुप्।
वया इदग्ने अग्नयस्ते अन्ये त्वे विश्वे अमृता मादयन्ते।
वैश्वानर नाभिरसि क्षितीनां स्थूणेव जनाँ उपमिद्ययन्थ॥
हे अग्निदेव! अन्यान्य जो अग्नि हैं, वे आपकी शाखाएँ हैं अर्थात् सब अंग हैं और आप अङ्गी हैं। आपमें सब अमर देवगण देखे जाते हैं। हे वैश्वानर! आप मनुष्यों की नाभि हैं। आप निखात स्तम्भ के समान मनुष्यों को धारित करते हैं।[ऋग्वेद 1.59.1]
हे अग्निदेव! तुम लपटों से परिपूर्ण अमर हो और देवों को हर्षित करने वाले हो। तुम मनुष्यों में नाभि के समान हो। तुम उनको स्तम्भ के तुल्य सहारा प्रदान करते हो।
Hey Agni Dev! Other forms of fire are your branches-tributaries. All demigods-deities are visible-seen in you. You are like the naval of the humans.
Fire is one of the basic ingredient for life.
मूर्धा दिवो नाभिरग्निः पृथिव्या अथाभवदरती रोदस्योः।
तं त्वा देवासोऽजनयन्त देवं वैश्वानर ज्योतिरिदार्याय॥
अग्निर्देवता स्वर्ग के मस्तक, पृथिवी की नाभि और द्युलोक तथा पृथिवी के अधिपति हुए। हे वैश्वानर! आप देवता हैं। देवों ने आर्य या विद्वान् मनुष्यों के लिए ज्योति: स्वरूप आपको उत्पन्न किया।[ऋग्वेद 1.59.2]
अग्नि क्षितिज की मूर्द्धा और पृथ्वी के अधिपति हैं। तब मनुष्यों में लीन उस अग्नि की दीप्ति रूप से देवताओं ने प्रकट किया है।
Hey Agni Dev! You constitute the head of heaven, naval of the earth & became the master of the heavens & the earth. Hey Vaeshwanar! You are a demigod-deity. Demigods-deities produced you for the enlightened-the Ary (learned) in the form of visibility-aura.
आ सूर्ये न रश्मयो ध्रुवासो वैश्वानरे दधिरेऽग्रा वसूनि।
या पर्वतेष्वोषधीष्वप्सु या मानुषेष्वसि तस्य राजा॥
जिस प्रकार निश्चल किरणें सूर्यदेव में स्थापित हुई हैं, उसी प्रकार वैश्वानर अग्निदेव में (सभी) सम्पत्तियाँ स्थापित हुई थीं। पर्वतों, औषधियों, जलों और मनुष्यों में जो धन है, उसके आप ही राजा हैं।[ऋग्वेद 1.59.3]
सूर्य में सदैव रहने वाली रश्मियों के तुल्य देवगणों ने वैश्वानर अग्नि से धनों का निर्माण किया। जो धन पर्वतों में, औषधियों में, जलों में दृढ़ है उसके वही स्वामी हैं।
वैश्वानर :: अग्नि, परमात्मा, चेतन, चित्र, चित्रक-चीता; Fire, God, consciousness, image, spotted tiger.
The way the static rays of light were incorporated in the Sun, all riches-wealth was established in you. You are the king of the wealth available with the mountains, medicines, waters and the humans.
बृहतीइव सूनवे रोदसी गिरो होता मनुष्योन दक्षः।
स्वर्वते सत्यशुष्माय पूर्विर्वैश्वानराय नृतमाय यह्वी:॥
स्वर्ग और पृथिवी वैश्वानर के लिए विस्तृत हुए थे। जैसे बन्दी प्रभु की स्तुति करता है, वैसे ही इस निपुण होता ने सुगति सम्पत्र, प्रकृत बलशाली और नेतृश्रेष्ठ वैश्वानर अग्रिदेव के उद्देश्य से बहुविध महान् स्तुतियों का गायन करते हैं।[ऋग्वेद 1.59.4]
आकाश पृथ्वी के समान भी श्रेष्ठ है। वे होता अग्नि मनुष्य के समान चतुर, प्रकाशित व शक्तिशाली हैं। हे मनुष्यों! उनके लिए पुरातन वंदनाएँ करो।
Heavens and the earth expanded for incorporating the Vaeshwanar-Vibhuti (esteemed form of the Almighty) of the God. The devotees-Hota conducting Yagy has prayed to you just like a prisoner prays to the God. The skilled Host-Hota who is ensured with suitable next incarnations & is strong, sung excellent hymns in your honour.
दिवश्चित्ते बृहतो जातवेदो वैश्वानर प्र रिरिचे महित्वम्।
राजा कृष्टीनामसि मानुषीणां युधा देवेभ्यो वरिवश्चकर्थ॥
हे वैश्वानर! आप सब प्राणियों को जानते हैं। आकाश से भी आपका माहात्म्य अधिक है। आप मानव प्रजाओं के अधिपति हैं। आपने देवों के लिए युद्ध करके धन का उद्धार किया है।[ऋग्वेद 1.59.5]
प्राणियों के दाता, मनुष्यों में वास करने वाले अग्नि देव! तुम्हारी महिमा आकाश से भी अधिक है। तुम मनु द्वारा उत्पन्न प्रजाओं के दाता हो। तुमने युद्ध के द्वारा दिव्य धनों को प्राप्त कराया है।
Hey Vaeshwanar! You all living beings. You are more significant than the sky-outer space. You are the master-protector of the humans. You extracted-cleansed the wealth for he demigods-deities.
All metals are burnt off for purity. They are extracted from minerals-ores by burning them in a blast furnace. They are subjected to electrolysis, thereafter.
प्र नू महित्वं वृषभस्य वोचं यं पूरवो वृत्रहणं सचन्ते।
वैश्वानरो दस्युमग्रिर्जघन्वाँ अधूनोत्काष्ठा अव शम्बरं भेत्॥
मनुष्य जिन वृत्र हन्ता या मेघभेदनकारी वैश्वानर या विद्युदग्नि की बर्षा के लिए अर्चना करते हैं, उन्हीं जलवर्षी वैश्वानर का माहात्म्य मैं शीघ्र कहता हूँ। वैश्वानर अग्निदेव ने राक्षसों का वध किया और वर्षा का जल नीचे गिराया है तथा शम्बर असुर का भेदन किया।[ऋग्वेद 1.59.6]
अब मैं उन महान पुरुषों की महिमा बताता हूँ। उन वृत्रनाशक वैश्वानर अग्नि ने जलों के चोर को मृत किया। दिशाओं को कम्पायमान किया और शम्बर को काट डाला।
Now let me describe the significance of the killer-slayer of Vratr-who is worshipped by the humans for rains. Vaeshwanar Agni Dev killed the demons-Rakshas and showered rains to earth. They killed the demon called Shambar.
Dev Raj Indr, Agni Dev, Varun Dev, Pawan Dev together work in unison-harmony; being the esteemed components of the Almighty working with the strength of Maa Bhagwati-better half of the Almighty. Induvially, without the strength of Maa Bhagwati, they cannot even lift a straw.
वैश्वानरो महिम्रा विश्वकृष्टिर्भरद्वाजेषु यजतो विभावा।
शातावनेये शतिनीभिरग्निः पुरुणीथे जरते सूनृतावान्॥
अपने माहात्म्य द्वारा वैश्वानर सब मनुष्यों के अधिपति और पुष्टिकर तथा अन्नशाली यज्ञ में यजनीय हैं। वैश्वानर अग्निदेव प्रभासम्पन्न और सुकृत वाक्यशाली हैं। शतवन के पुत्र पुरुनीथ राजा के यज्ञ में सत्यवान अग्निदेव की सैकड़ों स्तोत्रों से स्तुति की जाती हैं।[ऋग्वेद 1.59.7]
वे मनुष्यों के स्वामी, अनन्त प्रकाशमान, पूज्य, सत्यवाणी परिपूर्ण वैश्वानर अग्नि शतवान पुत्र राजा पुरुणीथ के वंशधरों द्वारा प्रस्तुत किये गये हैं।
Due to his significance Vaeshwanar is the protector of the humans and honoured in the Yagy. Agni Dev is intelligent-prudent, truthful, pious and complete in all manners. Agni Dev was honoured-worshipped in the Yagy performed by king Shatwan, the son of Puruneeth and his descendants.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (60) :: ऋषि :- नोधा गौतम, देवता :- अग्नि, छन्द :- त्रिष्टुप्।
वह्निं यशसं विदथस्य केतुं सुप्राव्यं दूतं सद्योअर्थम्।
द्विजन्मानं रयिमिव प्रशस्तं रातिं भरद्भगवे मातरिश्वा॥
अग्निदेव हव्यवाहक, यशस्वी, यज्ञप्रकाशक और सम्यक् रक्षणशील और देवों के दूत हैं; सदा हव्य लेकर देवों के पास जाते हैं। वह दो काष्ठों द्वारा अरणि मन्थन से उत्पन्न और धन की तरह प्रशंसित है। मातरिश्वा उन्हीं अग्निदेव को मित्र के तुल्य भृगु वंशियों के पास ले आयें।[ऋग्वेद 1.60.1]
अग्रणी, यशस्वी, द्रुतगामी सन्देश वाहक, अरणि मंथन से रचित धन के तुल्य प्रशस्त अग्नि को भृगु के निकट ले आयें।
Agni Dev is the carrier of offerings to the demigods-deities, is honourable-esteemed, high light the Yagy, moves all around & possess equanimity. He is produced by rubbing two pieces of wood one another. Matriksha took Agni Dev to Bragu descendents like a friend.
सम्यक्त्व-equvilance के पच्चीस दोष तथा आठ गुण ::
वसु मद टारि निवारि त्रिशठता, षट अनायतन त्यागों ;
शंकादिक वसु दोष बिना, संवेगादिक चित पागो।
अष्ट अंग अरू दोष पचीसों, तिन संक्षेपै कहिये;
बिन जाने तैं दोष गुननकों, कैसे तजिये गहिये।
आठ मद, तीन मूढ़ता, छह अनायतन (अधर्म-स्थान) और आठ शंकादि दोष; इस प्रकार सम्यक्तत्व के पच्चीस दोष होते हैं। कोई भी जीव अपने अंदर रह रहे दोषों को जाने और समझे बिना उन दोषों को छोड़ नहीं सकता। वह अपनी आत्मा में विराजमान अनंत गुणों को कैसे गृहण करे? अतः सम्यक्त्व के अभिलाषी जीव को सम्यक्त्व के इन पच्चीस दोषों को त्याग करके चैतन्य परमात्मा में मन लगाना चाहिये।
जीव के मद के आठ दोष ::
पिता भूप वा मातुल नृप जो, होय न तौ मद ठानै:;
मद न रूपकौ मद न ज्ञानकौ, धन बलकौ मद भानै।
तपकौ मद न मद जु प्रभुताकौ, करै न सो निज जानै;
मद धारैं तौ यही दोष वसु समकितकौ मल ठानै।
(1). कुल-मद :- इस संसार में पिता के गोत्र को कुल और माता के गोत्र को जाति कहते हैं। जिस व्यक्ति के पितृपक्ष में पिता आदि राजादि पुरूष होने से उसको मैं राजकुमार हूँ, इस तरह का अभिमान हो जाता है, उसे कुल-मद कहते हैं।
(2). जाति-मद :- स्वयं को उच्च जाति यथा स्वर्ण, ब्राह्मण, क्षत्रिय अथवा वैश्य होने का मिथ्याभिमान।
(3). रूप-मद :- शारीरिक सौन्दर्य का मद करना, सो रूप-मद होता हैं।
(4) ज्ञान-मद :- अपनी विद्या या ज्ञान का अभिमान करना, सो ज्ञान-मद होता है।
(5) धन-मद :- अपनी धन-सम्पति का अभिमान करना, सो धन-मद होता है।
(6) बल-मद :- अपनी शारीरिक शक्ति का गर्व करना, सो बल-मद होता है।
(7) तप-मद :- अपने व्रत-उपवासादि तप का गर्व करना, सो तप-मद होता है।
(8) प्रभुता-मद :- अपने बड़प्पन और प्रभुता का गर्व करना सो प्रभुता-मद कहलाता है। इस तरह कुल, जाति, रूप, ज्ञान, धन, बल, तप और प्रभुता; यह आठ मद-दोष कहलाते हैं। जो जीव इन आठ मदों का गर्व नहीं करता है, वही आत्मा का ज्ञान कर सकता है। यदि वह इनका गर्व करता है, तो ये मद सम्यकदर्शन के आठ दोष बनकर उसे दूषित करते हैं।
छह अनायतन तथा तीन मूढ़ता दोष ::
कुदेव-कुगुरू-कुवृष सेवक की नहिं प्रशंस उचरै है;
जिनमुनि जिनश्रुत विन कुगुरादिक, तिन्हैं न नमन करै है।
कुगुरू, कुदेव, कुधर्म, कुगुरूसेवक, कुदेवसेवक तथा कुधर्मसेवक; यह छह अनायतन सच्चे धर्म के अस्थान, कुस्थान या दोष कहलाते हैं। उनकी भक्ति, विनय और पूजनादि तो दूर रही, किन्तु सम्यकद्रष्टि जीव उनकी प्रशंसा भी नहीं करता है; क्योंकि उनकी प्रशंसा करने से भी सम्यक्त्व में दोष लगता है। सम्यकद्रष्टि जीव जिनेन्द्रदेव, वीतरागी मुनि और जिनवाणी के अतिरिक्त कुदेव और कुशास्त्रादि को किसी भी भय, आशा, लोभ और स्नेह आदि के कारण नमस्कार नहीं करता है, क्योंकि उन्हें नमस्कार करने मात्र से भी सम्यक्त्व दूषित हो जाता है। कुगुरू-सेवा, कुदेव-सेवा तथा कुधर्म-सेवा यह तीन भी सम्यक्त्व के मूढ़ता नामक दोष होते हैं।
सम्यक्त्व आठ अंग (गुण) और शंकादि आठ दोषों का लक्षण ::
जिन वच में शंका न धार वृष, भव-सुख-वांछा भानै;
मुनि-तन मलिन न देखे घिनावै, तत्व-कुतत्व पिछानै।
निज गुण अरू पर औगुण ढांके, वा निजधर्म बढ़ावे;
कामादिक कर वृषतैं चिगते, निज-परको सु दिढावै।
धर्मी सों गौ-वच्छ-प्रीति सम, कर जिनधर्म दिपावै;
इन गुणतै विपरीत दोष, तिनकों सतत खिपावै।
(1). नि:शंकित अंग :: सच्चा धर्म या तत्व यही है, ऐसा ही है, अन्य नहीं है तथा अन्य प्रकार से नहीं हो सकता है; इस प्रकार यथार्थ तत्वों में अपार, अचल श्रद्धा होना, सो नि:शंकित अंग कहलाता है।
अहो, अव्रती सम्यकद्रष्टि जीव भोगों को कभी उचित नहीं मानते हैं; किन्तु जिस प्रकार कोई बन्दी इच्छा न होने पर भी कारागृह में घनघोर दु:खों को सहन करता है, उसी प्रकार अव्रती सम्यकद्रष्टि जीव अपने पुरूषार्थ की निर्बलता से गृहस्थदशा में रहते हैं, किन्तु रूचिपूर्वक भोगों की इच्छा नहीं करते हैं; इसलिए उन्हें नि:शंकित और नि:कांक्षित अंग होने में कोई भी बाधा या रुकावट नहीं आती है।
(2). नि:कांक्षित अंग :: धर्म का पालन करके उसके बदले में सांसरिक सुखों की इच्छा न करना उसे नि:कांक्षित अंग कहते है।
(3). निर्विचिकित्सा अंग :: मुनिराज अथवा अन्य किसी धर्मात्मा के शरीर को मैला देखकर घृणा न करना, उसे निर्विचिकित्सा अंग कहते है।
(4). अमूढ़द्रष्टि अंग :: सच्चे और झूठे तत्वों की परीक्षा करके मूढ़ताओं तथा अनायतनों में न फँसना, वह अमूढ़द्रष्टि अंग है।
(5). उपगूहन अंग :: अपनी प्रशंसा कराने वाले गुणों को तथा दूसरे की निंदा कराने वाले दोषों को ढंकना और आत्मधर्म को बढ़ाना (निर्मल रखना) सो उपगूहन अंग होता है। संवेग, अनुकम्पा, आस्तिक्य और प्रशम सम्यकद्रष्टि को होते हैं।
अस्य शासुरुभयासः सचन्ते हविष्मन्त उशिजो ये च मर्ताः।
दिवश्चित्पूर्वो न्यसादि होतापृच्छ्यो विश्पतिर्विक्षु वेधाः॥
हव्यग्राही देव और मानव, दोनों इन शासनकर्ता की सेवा करते हैं, क्योंकि ये पूज्य, प्रजापालक और फलदाता अग्निदेव सूर्योदय से पूर्व ही यजमानों के बीच स्थापित हुए हैं।[ऋग्वेद 1.60.2]
मेधावी और हविदाता मनुष्य अग्नि का सेवन करते हैं। ये प्रजापोषक फल-वर्षक अग्नि सूर्य से भी पूर्व प्रभाओं में दृढ़ होते हैं।
Both demigods-deities & the humans serve him alike, with the depth their hearts, since he nourishes the populace granting them fruits of their endeavours occupying his seat prior to Sun rise.
Fire can be produce by rubbing any hard objects like stone of iron.
तं नव्यसी हृद आ जायमानमस्मत्सुकीर्तिर्मधुजिह्वमश्याः।
यमृत्विजो वृजने मानुषासः प्रयस्वन्त आयवो जीजनन्त॥
हृदय या प्राण से उत्पन्न और मिष्ठ जिह्व अग्नि देव के समक्ष हमारी नई स्तुति व्याप्त हैं। मनु पुत्र मानव लोग यथा समय यज्ञ सम्पादन और यज्ञान्न प्रदान करके इन अग्निदेव को संग्राम समय में उत्पन्न करते हैं।[ऋग्वेद 1.60.3]
हृदय से रचित उस मधुर जिह्वा अग्नि को हमारी अभिनव वंदनाएँ ग्रहण हों, जिसे मनुवंशियों ने हवियों से रचित किया।
We are here with our new prayers for worshipping Agni Dev, who talks sweet, who evolved from the heart-life giving force. The descendents of Manu-humans produce him while carrying out Yagy donating food grains-offerings in it during war.
उशिक्पावको वसुर्मानुषेषु वरेण्यो होताधायि विक्षु।
दमूना गृहपतिर्दम आँ अग्निर्भुवद्रयिपती रयीणाम्॥
अग्निदेव कामनापात्र, विशुद्धिकारी, निवास हेतु, वरणीय और देवाह्वानकारी हैं। यज्ञ में प्रविष्ट मनुष्यों के बीच अग्निदेव को स्थापित किया गया। ये अग्निदेव शत्रुदमन में कृत संकल्प और हमारे घरों में पालनकर्ता हों। यज्ञ भवन में धनाधिपति हों।[ऋग्वेद 1.60.4]
वे प्राणियों द्वारा इच्छित पावक धन से युक्त प्रजाओं से वरणीय नियुक्त हुए हैं। घर में आसक्ति वालों की रक्षा करने वाले हमारे घरों में धन की वृद्धि करें।
Agni Dev fulfil desires of the devotees, create-generate, purity-piousness and invite the demigods-deities. He is evolves in Yagy by the hosts-devotees. He nourishes the devotees and vanish the enemy. Let him grant us riches.
तं त्वा वयं पतिमग्ने रयीणां प्र शंसामो मतिभिर्गोतमासः।
आशुं न वाजंभरं मर्जयन्तः प्रातर्मक्षू धियावसुर्जगम्यात्॥
हे अग्निदेव! हम गौतम वंशज हैं और आप धनपति, रक्षणशील और यज्ञात्न के कर्ता है। जिस प्रकार से घुड़सवार हाथ से घोड़े को साफ़ करता है, वैसे ही हम भी आपको मार्जित करके उत्तम स्तोत्र द्वारा आपकी प्रशंसा करेंगे। प्रज्ञा द्वारा अग्निदेव ने धन प्राप्त किया। अतः इस प्रातःकाल (यज्ञ में) तुरन्त आयें। [ऋग्वेद 1.60.5]
हे अग्नि देव! हम गौतम वंशी तुम धनाधिप हविवाहक की श्लोकों से अर्चना करते हैं। उषाकाल में हमें प्राप्त हो जाओ।
Hey Agni Dev! We are the descendants of Gautom Rishi and you you are store house of riches, movable-roaming and the source-spirit of all Yagy. The way the rider cleanse the horse with his hands, we too will make offerings and prayers in your honour. Let Agni Dev help us attain riches with our intelligence-prudence & sincere efforts.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (61) :: ऋषि :- नोधा गौतम, देवता :- इन्द्र, छन्द :- त्रिष्टुप्।
अस्मा इदु प्र तवसे तुराय प्रयो न हर्मि स्तोमं माहिनाय।
ऋचीषमायाध्रिगव ओहमिन्द्राय ब्रह्माणि राततमा॥
इन्द्रदेव बली, क्षिप्तकारी, गुण द्वारा महान्, स्तुति पात्र और अबाध गति हैं। जैसे बुभुक्षित को अन्न दिया जाता है, वैसे ही मैं इन्द्र देवता की ग्रहण योग्य स्तुति और पूर्व वर्ती यजमान द्वारा दिया हुआ यज्ञान प्रदान करता हूँ।[ऋग्वेद 1.61.1]
वृद्धि को ग्रहण, शीघ्र कर्म करने वाले, मंत्रों से वर्णित यश वाले इन्द्रदेव को अन्न के तुल्य ही श्लोक अर्पित करता हूँ। वे मेरी हवियों को प्राप्त करें।
The hosts-devotees performing Yagy make offerings for the sake Indr Dev who is powerful-strong, destroyer of the evil, possessor of great qualities, fit for worship, having fast speed. Let him accept my prayers.
अस्मा इदु प्रयइव प्र यंसि भराम्याङ्गूषं बाधे सुवृत्ति।
इन्द्राय हृदा मनसा मनीषा प्रत्नाय पत्ये धियो मर्जयन्त॥
हम उन इन्द्रदेव के लिए हविष्य के तुल्य स्तोत्र अर्पित करते हैं। शत्रु पराजय के साधन स्वरूप स्तुति-वाक्यों का मैंने सम्पादन किया है। अन्य स्तोता भी उस पुरातन स्वामी इन्द्रदेव के लिए हृदय, मन और ज्ञान से स्तुति सम्पादित करते हैं।[ऋग्वेद 1.61.2]
मैं उस इन्द्रदेव के लिए हवि से परिपूर्ण श्लोक अर्पित करता हूँ। उन शत्रु पीड़क के लिए वंदना करता हूँ। ऋषिगण उस प्राचीन इन्द्रदेव के लिए हृदय गति से वंदनाएँ करते हैं।
We pray to Indr Dev with the Strotr-Shloks as offerings. The stanzas which grants success in defeating the enemy have been incorporated by us in these prayers. Other host-devotees performing Yagy too are inclined to his prayers-worship with their mind, heart and the knowledge directed to him.
अस्मा इदु त्यमुपमं स्वर्षां भराम्याङ्गूषमास्येन।
मंहिष्ठमच्छोक्तिभिर्मतीनां सुवृत्तिभिः सूरिं वावृध्यै॥
उन्हीं उपमान भूत, वरणीय धन दाता और विज्ञ इन्द्र देव का वर्द्धन करने के लिये मैं मुख द्वारा उत्कृष्ट और निर्मल स्तुति वचनों से युक्त तथा अति महान शब्द करता हूँ।[ऋग्वेद 1.61.3]
वृद्धि को प्राप्त मेधावी इन्द्र को आकर्षित करने वाली उपमा योग्य वंदना का सुन्दर नादपूर्वक उधारण करता हूँ।
I recite excellent Strotr-Shloks, Mantr in loud voice, addressed to intelligent-enlightened Indr Dev who grants riches, to boost his might-powers.
अस्मा इदु स्तोमं सं हिनोमि रथं न तष्टेव तत्सिनाय।
गिरश्च गिर्वाहसे सुवृक्तीन्द्राय विश्वमिन्वं मेधिराय॥
जिस प्रकार रथ निर्माता रथ को स्वामी के पास लाता है, उसी प्रकार मैं भी इन्द्रदेव के उद्देश्य से स्तोत्र प्रेरण करता हूँ। स्तुति पात्र इन्द्र के लिए शोभन स्तुति वचन प्रेरण करता हूँ। मेधावी इन्द्र के लिए विश्वव्यापी हवि प्रेरण करता हूँ।[ऋग्वेद 1.61.4]
जिस प्रकार रथ को बनाने वाला उसे तैयार करके स्वामी के पास ले जाता है, उसी प्रकार मैं मेधावी इन्द्र को आकर्षित करने को इस वन्दना को उनके निकट पहुँचाता हूँ।
The manner the chariot maker brings it to the person who ordered it, I make prayers to please Indr Dev. I recite the prayers-hymns in the praise of Indr Dev, who deserve appreciation & make offerings to him.
अस्मा इदु सप्तिमिव श्रवस्येन्द्रायार्कं जुह्वासमञ्जे।
वीरं दानौकसं वन्दध्यै पुरां गूर्तश्रवसं दर्माणम्॥
जिस प्रकार से घोड़े को रथ में लगाया जाता है, वैसे ही मैं भी अन्न प्राप्ति की इच्छा से स्तुति रूप मंत्र उच्चारण करता हूँ। उन्हीं नीर, दानशील, अन्न विशिष्ट और असुरों के नगर विदारी इन्द्र देव की वन्दना में प्रवृत्त होता हूँ।[ऋग्वेद 1.61.5]
अश्वों को रथ में जोड़ने के तुल्य कीर्ति प्राप्ति के लिए इन्द्रदेव का श्लोक गान करता हूँ। यह असुरों के किलों को ध्वस्त करने वाले दानशील, गुण गान योग्य यशस्वी इन्द्रदेव को ग्रहण हो।
Let my prayers for having food grains reach, Indr Dev just like the horses who are deployed in the chariot. I worship Indr Dev who is donor & the destroyer of the forts-cities of demons.
अस्मा इदु त्वष्टा तक्षदव्रं स्वपस्तमं स्वर्यं रणाय।
वृत्रस्य चिद्विदद्येन मर्म तुजन्नीशानस्तुजता कियेधाः॥
इन्द्रदेव के लिए त्वष्टा ने युद्ध के निमित्त शोभन कर्मा और सुप्रेरणीय वज्र का निर्माण किया। शत्रुओं के नाश के लिए तैयार होकर ऐश्वर्य वान और अपरिमित बलशाली इन्द्रदेव ने हननकर्ता वज्र से वृत्र के मर्मस्थान पर प्रहार करके उसे मारा।[ऋग्वेद 1.61.6]
त्वष्टा ने इन्द्रदेव के लिए कार्य सिद्ध करने वाले, घोर ध्वनि युक्त वज्र का निर्माण किया। इन्द्रदेव ने उससे वृत्र के मर्म स्थल का पतन किया।
Mighty Indr Dev possessing great power-strength, struck Vratr at his softest point of the body-heart to kill him, with the Vajr-built by Twasta, which produced thunderous noise-sound.
अस्येदु मातुः सवनेषु सद्यो महः पितुं पपिवाञ्चार्वन्ना।
मुषायद्विष्णुः पचतं सहीयान्विध्यद्वराहं तिरो अद्रिमस्ता॥
सृष्टि के निर्माणकर्ता इन्द्रदेव को इस महायज्ञ में जो तीन अभिषेक किये गये हैं, इन्द्रदेव ने उनमें तुरन्त सोमरूप का पान किया। साथ ही शोभनीय हव्य रूप अन्न का भक्षण भी किया। सारे संसार में इन्द्रदेव व्यापक हैं। उन्होंने असुरों का घन हरण किया। क्योंकि वे शत्रु विजयी और वज्र चलाने वाले हैं। उन्होंने मेघ पर प्रहार कर जलवृष्टि की।[ऋग्वेद 1.61.7]
जगत के रचनाकार इन्द्र के यद्यपि यज्ञ में तीन अभिषेक किये गये, तथापि उन्होंने सोम रस को तुरन्त पी लिया। वे विजेता, वज्र धारी और बादल का भेदन करने वाले हैं।
अभिषेक :: प्रतिष्ठापन, समझाना, बतलाना, स्नान; consecration, anointment, ablution.
Indr Dev who pervades the whole universe was consecrated thrice, consumed-drunk the Somras out of them immediately, since he has the Vajr over the enemy-demons. He struck Megh to cause rains.
Indr Dev is prayed during famine to cause rains. Some of his prayers are extremely effective-powerful leading to rains in case of scarcity.
अस्मा इदु ग्राश्चिद्देवपत्नीरिन्द्रायार्कमहिहत्य ऊवुः।
परि द्यावापृथिवी जभ्र उर्वी नास्य ते महिमानं परि ष्टः॥
इन्द्र देवता द्वारा अहि या वृत्र का विनाश होने पर नमनशील देव पत्नियों ने इनकी स्तुति की। इन्द्र ने विस्तृत आकाश और पृथ्वी का अतिक्रम भी किया; किन्तु द्युलोक और पृथ्वी लोक इन्द्र की मर्यादा का अतिक्रम नहीं कर सकते।[ऋग्वेद 1.61.8]
वृत्र के मृत होने पर देव भार्याओं ने इन्द्रदेव की प्रार्थना की। इन्द्रदेव ने क्षितिज धरा को घेर लिया, परन्तु क्षितिज और धरा इन्द्रदेव की मर्यादा को नहीं पार कर सकते।
On killing Vratr (Ahi), the women folk in the heavens recited prayers in his honour. Indr Dev breached the limits of the earth & the heavens-outer space, but both of these can not cross the barriers (limits, boundaries of Indr Dev.
अस्येदेव प्र रिरिचे महित्वं दिवस्पृथिव्याः पर्यन्तस्क्षिा त्।
स्वराळिन्द्रो दम आ विश्वगूर्तः स्वरिरमत्रो ववक्षे रणाय॥
लोक, भूलोक और अन्तरिक्ष की अपेक्षा भी इन्द्र की महिमा अधिक है। अपने अधिवास में अपने तेज से इन्द्रदेव स्वराज करते हैं। ये सर्व कार्य सक्षम हैं। इन्द्र का शत्रु सुयोग्य है और इन्द्र युद्ध में निपुण हैं। इन्द्रदेव मेघरूप शत्रुओं को युद्ध में बुलाते हैं।[ऋग्वेद 1.61.9 ]
आकाश, पृथ्वी, अंतरिक्ष से भी इन्द्र की महिमा श्रेष्ठ है। स्वयं प्रकाशित सबको प्रिय, असीमित पराक्रम वाले इन्द्र वृद्धि को प्राप्त हुए हैं।
Indr Dev is more glorious as compared to the earth, sky & the space. he rules the heaven by virtue of might. He is capable of doing every thing. The enemy of Indr Dev is well equipped he is skilled in warfare. His enemies attack him acquiring the form of clouds.
The demons are called Mayavi-one who can assume any form, shape & size, creating illusion, mirage, confusion. They can hide themselves in the thin air as well. Though they are restricted to Sutal Lok by Bhagwan Shri Hari Vishnu, yet they move to desired place as per their wish, like Prahlad Ji who came to earth to fight Nar Narayan Rishis performing ascetics loaded with bow & arrow and then moved to Vaekunth Lok to complain about them to Bhagwan Shri Hari Vishnu.
अस्येदेव शवसा शुषन्तं वि वृश्चद्वज्रेण वृत्रमिन्द्रः।
गा न व्राणा अवनीरमुञ्चदर्भ श्रवो दावने सचेताः॥
अपने वज्र द्वारा इन्द्रदेव ने जल शोषक वृत्र को छिन्न-भिन्न कर दिया। साथ ही चोरों के द्वारा अपहृत गायों की तरह वृत्रासुर द्वारा अवरुद्ध तथा संसार के रक्षक जल को हव्य देने वाले को इन्द्रदेव उसकी इच्छा के अनुसार अन्न दान करते हैं।[ऋग्वेद 1.61.10]
इन्द्र के पराक्रम से क्षीण होता हुआ वृत्र इन्द्र के द्वारा वज्र से मारा गया। इससे अपहृत धेनुओं के समान जल भी मुक्त हुआ। हवि दाता को वे इन्द्र अभीष्ट अन्न देते हैं।
वर दान :: लाभ; boon, bridesmaid, fiance, advantage, benefit, profit, gain, mileage.
Vratr who sucked entire water was torn into pieces by Indr Dev, leading to release abducted cows along with waters. Indr Dev grants boons & food grains to those who make offering to him.
अस्येदु त्वेषसा रन्त सिन्धवः परि यद्वज्रेण सीमयच्छत्।
ईशानकृद्दाशुषे दशस्यन्तुर्वीतये गाधं तुर्वणिः कः॥
इन्द्रदेव की दीप्ति के द्वारा नदियाँ अपने-अपने स्थान पर शोभा पाती है; क्योंकि वज्र द्वारा इन्द्र ने उनकी सीमा निर्दिष्ट कर दी है। अपने को ऐश्वर्यवान् करके और हव्यदाता को फल प्रदान करके इन्होंने तुरन्त तुर्वणि ऋषि के निवास योग्य एक स्थान बनाया।[ऋग्वेद 1.61.11]
इन्द्र की दीप्ति से नदियाँ सुशोभित हैं क्योंकि इन्द्रदेव ने व्रज से उनको सीमित कर दिया। हविदाता को धन प्रदान करते हुए समृद्धि युक्त इन्द्रदेव ने तुर्वीति के लिए उचित स्थान दिया।
Indr Dev set up limits-boundaries for the rivers and they are worshipped at their positions. He empowered himself with riches-wealth and granted the fruits of their worship to the devotees. He immediately created a place of living-performing ascetics for the Rishi-sage called Turvani.
अस्मा इदु प्र भरा तूतुजानो वृत्राय वज्रमीशानः कियेधा:।
गोर्न पर्व वि रदा तिरश्चेष्यन्नर्णांस्यपां चरध्यै॥
इन्द्रदेव क्षिप्तकारी, सर्वेश्वर और अपरिमित बलशाली हैं। हे इन्द्रदेव! आप इस वृत्र के ऊपर वज्र-प्रहार करें। पशु की तरह वृत्र के शरीर की संधियाँ तिर्यग भाव से अवस्थित वज्र से काटें; ताकि वृष्टि बाहर हो सके और पृथ्वी पर जल प्रवाहित हो सके।[ऋग्वेद 1.61.12]
हे शीघ्र कार्यकारी, महाबली, इन्द्र रूप ईश्वर! तुम इस वृत्र पर वज्र को फेंको और उसके अश्वों को वधिक पशुओं को काटने के समान काट डालो।
Hey destroyer, master-beneficial to all, possessing unending power, Indr Dev! project-throw the Vajr over Vratr so that it cuts his body at various angles, horizontally, vertically just like the animals are butchered to let the flow of rains.
अस्येदु प्र ब्रूहि पूर्व्याणि तुरस्य कर्माणि नव्य उक्थैः।
युधे यदिष्णान आयुधान्यृघायमाणो निरिणाति शत्रून्॥
हे मनुष्य! इन्द्रदेव के प्राचीन कर्मों की आप प्रशंसा करें। वे युद्ध के लिए बार-बार सारे शस्त्र फेंककर और शत्रुओं का वध कर उनके सम्मुख जाते हैं।[ऋग्वेद 1.61.14 ]
हे मनुष्यों! इन्द्र के प्राचीन बलों को वर्णित करो। वे उत्तेजित हुए अस्त्रों को चलाकार शत्रुओं को पीड़ित करते हैं।
Hey humans! Describe the old-previous deeds of Indr Dev to encourage-provoke him to use his weapons to kill-destroy the enemy.
अस्येदु भिया गिरयश्च दृळ्हा द्यावा च भूमा जनुषस्तुजेते।
उपो वेनस्य जोगुवान ओणिं सद्यो भुवद्वीर्याय नोधाः॥
इन्हीं इन्द्रदेव के भय से पर्वत निश्चल हो जाते हैं और इनके प्रकट होने पर आकाश और पृथ्वी काँपने लगते हैं। नोधा ऋषि ने इन्हीं कमनीय इन्द्र की रक्षण शक्ति के स्तोत्रों द्वारा बार-बार प्रार्थना करते हुए, उनके अनुग्रह बलवान हुए।[ऋग्वेद 1.61.14]
इन प्रत्यक्ष हुए इन्द्र के भय से दृढ़ पर्वत, आकाश तथा पृथ्वी सभी काँपते हैं। नोधा ऋषि इन्द्र के रक्षण सामों का वर्णन करते हुए पराक्रम प्राप्त कर सकें।
Appearance of Indr Dev makes the mountains stationary & the earth along with the sky start trembling. Nodha Rishi-sage, sung-recited prayers in the honour of Indr Dev with the help of protective stanzas-verses in the form of Sam and became strong-powerful.
Intially the mountains used to fly and created terror-trouble for the humans. It led Indr Dev to cut their wings, which made them stable.
अस्मा इदु त्यदनु दाय्येषामेको यद्व्ने भूरेरीशानः।
प्रैतशं सूर्ये पस्पृधानं से सौवश्रव्ये सुष्विमावदिन्द्रः॥
इन्द्रदेव अकेले ही शत्रुओं पर विजय प्राप्त कर सकते है। वह बहुविध धनों के स्वामी हैं। स्तोताओं के पास से इन्द्रदेव ने जिस स्तोत्र की याचना की थी, उसे ही इन्द्र को दिया गया। स्व के पुत्र सूर्यदेव के साथ युद्ध के समय सोमाभिषवकारी एतश ऋषि को इन्द्र ने बचाया था।[ऋग्वेद 1.61.15]
अत्यन्त धन वाले इन्द्र देव ने जो कामना की वही अर्पित किया। सोम साधक एतश ऋषि ने प्रतियोगिता करने वाले स्वश्व पुत्र सूर्य को हराया।
Indr Dev is capable of winning wars single handily-alone. He is the guardians of wealth of various nature. He was gifted the Strotr which he desired-requested from the Stotas. He protected Etash Rishi who prepared Somras from Sury, the son of Swa.
एवा ते हारियोजना सुवृक्तीन्द्र ब्रह्माणि गोतमासो अक्रन्।
ऐषु विश्वपेशसं धियं धाः प्रातर्मक्षू धियावसुर्जगम्यात्॥
हे अश्व युक्त, रथेश्वर इन्द्रदेव! आपको यज्ञ में उपस्थित करने के लिए गौतम गोत्रीय ऋषियों ने स्तुति रूप मंत्रों का उच्चारण किया। इनका आप ध्यानपूर्वक श्रवण करें। विचारपूर्वक अपार धन और वैभव प्रदत्त करने वाले इन्द्रदेव हमें प्रात: (यज्ञ में) शीघ्र प्राप्त हों।[ऋग्वेद 1.61.16]
दो घोड़ों से परिपूर्ण रथ वाले इन्द्रदेव गौतमों ने तुम्हें आकृष्ट करने वाली मंत्र रूप प्रार्थनाओं को किया। तुम सवेरे प्रस्थान कर हमको सर्वसिद्ध करने वाली मति प्रदान करो।
Hey Indr Dev riding the chariot deployed with horses! The descendants of Goutam Rishi recited prayers in your honour to invite you at the Yagy site, early in the morning. Listen to these requests carefully and oblige them with wealth-riches (to carry out the Yagy).
A sage, Rishi, Brahman do not crave for accumulation of wealth. He is satisfied-content with the money sufficient to make a simple living, while carrying out Yagy, Hawan, Agnihotr, sacrifices in holy fire & feed the guests.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (62) :: ऋषि :- नोधा गौतम, देवता :- इन्द्र, छन्द :- त्रिष्टुप्।
प्र मन्महे शवसानाय शूषमाङ्गूपं गिर्वणसे अङ्गूिरस्वत्।
सुवृत्तिभिः स्तुवत ऋग्मियायार्चामार्क नरे विश्रुताय॥1॥
वीर्यशाली और स्तवन पात्र इन्द्रदेव को लक्ष्य कर हम, अङ्गिरा की तरह, मन में कल्याणवाहिनी स्तुति धारित करते हैं। इन्द्र शोभन स्तोत्रों द्वारा स्तुति कर्त्ता ऋषि के पूजा पात्र हैं। हम स्तोत्र द्वारा पूजा करते हैं।[ऋग्वेद 1.62.1]
हम इन्द्रदेव के प्रति अंगिराओं के तुल्य वंदनाओं को धारण करते हैं। हम अत्यन्त आकर्षक मंत्रों का उच्चारण करें।
We pray to Indr Dev with the help of very effective-powerful hymns-Mantr, who is very strong and deserve these prayers-worship; like the sage Angira.
प्र वो महे महि नमो भरध्वमाङ्गूष्यँ शवसानाय साम।
येना नः पूर्वे पितरः पदज्ञा अर्चन्तो अङ्गिरसो गा अविन्दन्॥2॥
हे ऋत्विजो! हम लोग उस विशाल और बलवान् इन्द्र देवता को लक्ष्य कर महान् और ऊँचे स्वर से गाये जाने वाले स्तोत्र अर्पित करते हैं। इन्द्र देव की सहायता से हमारे पूर्व पुरुष अंगिरा ने पद चिह्नों को देखते हुए, अर्चनापूर्वक पणि नामक असुर द्वारा अपहत गौ का उद्धार किया था।[ऋग्वेद 1.62.2]
हे मनुष्यों! उस श्रेष्ठ इन्द्रदेव को नमस्कार करो। जिसकी वंदना से अंगिराओं ने धेनुओं को ग्रहण किया था, उसकी उच्च स्वर से वंदनाओं का गान करो।
Hey Ritvij (hosts, people performing Yagy)! Let us sing Strotr Verses) in the honour of Indr Dev loudly. Our ancestor Angira traced the hoof marks of cows abducted by the demon Pani and killed him with the help of Indr Dev.
इन्द्रस्याङ्गिरिरसां चेष्टौ विदत्सरमा तनयाय धासिम्।
बृहस्पतिर्भिनदद्रिं विदद्गा: समुस्त्रियाभिर्वावशन्त नरः॥3॥
इन्द्र और अङ्गिरा के गौ खोजते समय सरमा नाम की कृतिया ने, अपने बच्चे के लिए इन्द्रदेव से अन्न अथवा दुग्ध प्राप्त किया। उस समय इन्द्रदेव ने असुरों का वध कर गौ का उद्धार किया था। देवों ने भी गायों के साथ आह्लादकर शब्द किया था।[ऋग्वेद 1.62.3]
इन्द्रदेव और अंगिराओं की कामना से सरमा ने अपनी संतान के लिए अन्न प्राप्त किया। इन्द्रदेव ने असुरों को समाप्त किया। धेनुओं को प्राप्त किया तथा उनके संग देवगण ने भी हर्ष परिपूर्ण नाद किया।
Indr Dev & the Angiras provided food to a bitch called Sarma. Indr Dev killed the demons and recovered the cows. demigods-deities and the cows together produced a cheerful loud sound.
स सुष्टुभा स स्तुभा सप्त विप्रैः स्वर्यो नवग्वै:।
सरन्युभिः फलिगमिन्द्र शक्र वलं रवेण दरयो दशग्वैः॥4॥
सर्वशक्तिमान् इन्द्रदेव! जिन्होंने नौ महीनों में यज्ञ पूर्ण किये हैं और जिन्होंने दस महीनों में यज्ञ का समापन किया, वे सप्तसंख्यक और सद्गति कामी मेधावियों के सुखकारी स्वर युक्त स्तोत्रों से आप स्तुत किये गये। आपके शब्द से पर्वत और मेघ भी भयभीत हो जाते हैं।[ऋग्वेद 1.62.4]
हे शक्ति शालिन! श्रेष्ठ वंदना से गाने योग्य तुमने शीघ्रता पूर्वक नौ अथवा दस महीने यज्ञ सम्पन्न करने वाले सप्त ऋषियों की विनती सुनी। तुम्हारे शब्द से शैल और बादल भी काँप उठे।
Hey mighty Indr Dev! Having accomplished the Yagy in a period of just 9-10 months, Indr Dev was honoured by the Sapt Rishis with the help of verses Strotr, hymns which grant pleasure to the intellectuals-enlightened, leading to renunciation. Your voice trembled the mountains and the clouds to reverberated.
गृणानो अङ्गिरोभिर्दस्म वि वरुषसा सूर्येण गोभिरन्धः।
वि भूम्या अप्रथय इन्द्र सानु दिवो रज उपरमस्तभायः॥5॥
हे सुदृश्य इन्द्रदेव! अङ्गिरा लोगों के द्वारा स्तुत होकर आपने उषा और सूर्य किरणों से अन्धकार का विनाश किया। हे इन्द्रदेव! आपने पृथ्वी का ऊबड़-खाबड़ प्रदेश समतल और अन्तरिक्ष का मूल प्रदेश सु दृढ़ किया।[ऋग्वेद 1.62.5]
हे विचित्र कर्मा इन्द्र! तुमने अंगिराओं की स्तुतियाँ प्राप्त की और उषा, सूर्य तथा रश्मियों द्वारा अंधकार हटाया। तुमने पृथ्वी पर पर्वतों को बढ़ाया तथा आकाश के नीचे अंतरिक्ष को दृढ़ किया।
Hey fantastic deeds performer Indr Dev! Having being prayed-worshiped by the Angiras you removed darkness with the help of Usha Devi & the rays of Sun. You levelled the uneven lands over the earth.
तदु प्रयक्षतममस्य कर्म दस्मस्य चारुतममस्ति दंसः।
उपह्वरे यदुपरा अपिन्वन्मध्वर्ण सो नद्यश्चतस्रः॥6॥
पृथ्वी की मधुर जल पूर्ण चार नदियों को इन्द्र देव ने जल से पूर्ण किया, यह उन दर्शनीय इन्द्र देव का अत्यन्त पूज्य और सुन्दर कर्म है।[ऋग्वेद 1.62.6]
अद्भुत कर्मा इन्द्रदेव का यह कर्म प्रशंसनीय है। इसने नदियों को जल से परिपूर्ण कर दिया।
Well known for performing amazing deeds, Indr Dev filled four rivers with sweet water, which is one of his appreciable acts.
द्विता वि वव्रे सनजा सनीळे अयास्यः स्तवमानेभिरर्कै:।
भगो न मेने परमे व्योमन्नधारयद्रोदसी सुदंसाः॥7॥
जिस इन्द्र देव का युद्ध रूप प्रयत्न से नही पाया जा सकता, स्तोताओं की स्तुति द्वारा ही पाया जा सकता है। उन्हीं इन्द्रदेव ने एकत्र संलग्न द्यौ और पृथ्वी को अलग-अलग करके स्थित किया। उन्हीं शोभन कर्मा इन्द्र देव ने सुन्दर और उत्तम आकाश में, सूर्य की तरह, द्यौ और पृथिवी को धारित किया।[ऋग्वेद 1.62.7]
ऋषियों द्वारा पूजनीय इन्द्रदेव ने एक-दूसरे से मिले हुए पुराने क्षितिज और धरा को अलग-अलग किया। फिर महान कार्य वाले ने क्षितिज में सूर्य के तुल्य उन दोनों को धारण किया।
Indr Dev who can not be won through war-fight can be easily pleased by prayers-worship. Revered by the Rishis-sages Indr Dev separated the earth and the heavens-outer space filling it with ether. He supports the entire universe.
सनाद्दिवं परि भूमा विरूपे पुनर्भुवा युवती स्वेभिरेवैः।
कृष्णेभिरक्तोषा रुशद्धिर्वपुर्भिरा चरतो अन्यान्या॥8॥
विषम रूपिणी, प्रतिदिन सञ्जायमाना और तरुणी रात्रि तथा उषा, द्यावा-पृथ्वी पर, सदा से आ-आकर विचरण करती हैं। रात्रि काली और उषा तेजोमयी है।[ऋग्वेद 1.62.8]
श्याम वर्ण से रात्रि और दीप्ति युक्त वर्ण से उषा अपनी कृतियों से निरन्तर उत्पन्न होती हैं तथा आकाश और धरती के चारों ओर पुरातन काल से ही चक्कर काटती है।
Night & day break are at odds-opposite of each other and always young. Night is dark and day break is full of energy-light, brightness. They have been encircling the earth and the heavens ever since-eternal.
सनेमि सख्यं स्वपस्यमानः सूनुर्दाधार शवसा सुदंसा:।
आमासु चिद्दधिषे पकमन्तः पयः कृष्णासु रुशद्रोहिणीषु॥9॥
शोभन कर्म कर्ता, अतीव बली और उत्तम कर्म से सम्पन्न इन्द्र देव याजकों से पहले से मित्रता करते आए हैं। आपने अपरिपक्व गायों को भी दूध दान किया और कृष्ण तथा लोहित वर्णों वाली गायों में भी शुल्क वर्ण का दूध प्रदान किया।[ऋग्वेद 1.62.9]
श्रेष्ठ कर्म वाले महाबली यजमानों से मित्रता रखते हैं। हे इन्द्र! तुम अपरिपक्व गौओं में भी दूध स्थापित करते हो। काले वर्ण वाली धेनुओं में भी सफेद रंग का दूध देते हो।
Hey Indr Dev! You are committed to Satvik Karm & have been friendly with those who perform pious, virtuous, righteous deeds. You developed the faculty to produce milk in immature cows along with white milk in black colour colour.
सनात्सनीळा अवनीरवाता व्रता रक्षन्ते अमृताः सहोभिः।
पुरू सहस्त्रा जनयो पत्नीर्दुवस्यन्ति स्वसारो अह्रयाणम्॥10॥
जिन गति विहीन अंगुलियों ने सदा सन्नद्ध होकर स्थिति करने पर भी निरालसी बनकर अपने बल पर, हजारों व्रतों का पालन किया अथवा इन्द्रदेव का व्रत अनुष्ठित किया, वे ही सेवा तत्परा अँगुलियाँ रूपिणी भगिनी अथवा पत्नी या पालयित्री की तरह प्रगल्भ इन्द्रदेव की सेवा करती हैं।[ऋग्वेद 1.62.10]
सदैव से एक संग रहने वाली उंगलियाँ अनेक कार्यों को करती हैं। वे समस्त बहनें गृहस्थ भार्याओं के तुल्य गति करती हुई इन्द्रदेव की सेवा करती हैं।
The fingers are themselves joint to the hands, unable to move and yet perform thousands of Vrat-ascetice practices, Yagy without laziness. They perform-serve Indr Dev like the devoted wife.
सनायुवो नमसा नव्यो अर्कैर्वसूयवो मतयो दस्म दद्रु:।
पतिं न पत्नीरुशतीरुशन्तं स्पृशन्ति त्वा शवसावन्मनीषाः॥11॥
हे दर्शनीय इन्द्र देव! आप मन्त्र और प्रणाम से स्तुत होते हैं। जो बुद्धिमान् अग्रिहोत्रादि सनातन कर्म और धन की इच्छा करते हैं, वे बड़े यत्न के बाद आपको प्राप्त होते हैं। हे बली इन्द्रदेव! जैसे कामिनी स्त्रियाँ आकांक्षी पति को प्राप्त करती है, वैसे ही बुद्धिमानों की स्तुतियाँ आपको प्राप्त होती हैं।[ऋग्वेद 1.62.11]
हे दिव्य कर्म वाले! पुराने धर्म की कामना से अभिनव श्लोकों के संग ऋषि गण आपको शांत-प्रसन्न करते हैं। इच्छा युक्त पतियों को ग्रहण होने वाली भार्याओं के तुल्य यह वंदनाएँ तुम्हें ग्रहण होती हैं।
Hey decorated-beautiful Indr Dev! You are worshiped with Mantr-Strotr and respect-salutations. Those intelligent-prudent people who pray to you, take a lot of time & effort to see you-get your blessings. The manner in which the desirous women get the husband the prayers to join you.
सनादेव तव रायो गभस्तौ न क्षीयन्ते नोप दस्यन्ति दस्म।
द्युमाँ असि क्रआपॉँ इन्द्र धीर: शिक्षा शचीवस्तव नः शचीभिः॥12॥
हे सुदृश्य इन्द्रदेव! जो सम्पत्ति, सदा से, आपके पास है, वह कभी विनष्ट नहीं होती। आप मेधावी, तेजशाली और यज्ञ सम्पन्न हैं। हे कर्मी इन्द्रदेव! अपने कर्मों के द्वारा हमें धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.62.12]
सुदृश्य :: Specious, presenting a pleasing appearance; pleasing in form or look, showy, apparently right; superficially fair, just or correct but not so in reality; appearing well at first view; plausible. As specious reasoning, a specious argument.हे विचित्र इन्द्रदेव! तुम्हारी सम्पत्ति का नाश नहीं होता, वह कम भी नहीं होती। तुम दीप्ति युक्त ज्ञान से युक्त, दृढ़ विचार वाले हो। हमको धन और बल प्रदान करो।
Hey good looking-pleasing Indr Dev! Your wealth is never lost. You possess the aura due to enlightenment, Yagy Karm & is determined.
सनायते गोतम इन्द्र नव्यमतक्षद्ब्रह्म हरियोजनाय।
सुनीथाय नः शवसान नोधाः प्रातर्मक्षू धियावसुर्जगम्यात्॥13॥
हे सुलोचन और बलवान् इन्द्रदेव! आप सबके आदि हैं। आप रथ में घोड़े नियोजित करते हैं। गौतम ऋषि के पुत्र नोधा ऋषि ने नवीन स्तोत्रों की रचना की है। फलतः कर्म द्वारा जिन इन्द्रदेव ने धन प्राप्त किया, आप प्रात: काल हमारे पास शीघ्र पधारें।[ऋग्वेद 1.62.13]
हे इन्द्र! पुरातन पुरुष! तुम अग्रणी रथ में अश्वों को जोतने वाले हो। गौतम ने अभिनव स्तोत्रों की रचना की है। प्रात: काल के समय शीघ्रता पूर्वक पधारो।
Hey good looking & mighty Indr Dev! You deploy the horses in the chariot which is ready to move fast to the devotees-performing Yagy Karm. Nodha, the son of Gautom Rishi created new stanzas-verses for your welcome-reception, honour. You should come fast to us in the morning.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (63) :: ऋषि :- नोधा गौतम, देवता :- इन्द्र, छन्द :- त्रिष्टुप्।
त्वं महाँ इन्द्र यो ह शुष्मैर्द्यावा जज्ञानः पृथिवी अमे धाः।
यद्ध ते विश्वा गिरयश्चिदभ्वा भिया दुळ्हासः किरणा नैजम्॥1॥
हे इन्द्र देव! आप सर्वोत्तम गुणी हैं। भय उपस्थित होने पर अपने रिपु शोषक बल द्वारा आपने द्यौ और पृथिवी को धारित किया। संसार के सारे प्राणी और पर्वत तथा दूसरे जो विशाल और सुदृढ़ पदार्थ हैं, वे सब भी आकाश में सूर्य किरणों की तरह आपके भय से काँपते हैं।[ऋग्वेद 1.63.1]
हे इंद्र! तुम श्रेष्ठ हो। तुमने प्रकट होते ही पराक्रम से आसमान और धरती को ग्रहण किया। तब तुम्हारे भय से सभी मनुष्य और महान् पर्वत भी किरणों के समान काँपने लगे।
Hey Indr Dev! You possess excellent qualities, traits, characterises. You supported the earth & the heavens when conditions of fear prevailed. All organism and the mountains which are too large and too strong, too tremble due to your fear, like the rays of light in the sky.
आ यद्धरी इन्द्र विव्रता वेरा ते वज्रं जरिता बाह्वोर्धात्।
येनाविहर्यतक्रतो अमित्रान्युर इष्णासि पुरुहूत पूर्वी:॥2॥
हे बहुलोकाहूत इन्द्रदेव! जिस समय आप विभिन्न गतिशाली अश्वों को रथ में संयुक्त करते हैं, उस समय आपके हाथ में स्तोता वज्र देता है और आप उसी वज्र से शत्रुओं का अनभीष्ट कर्म करके उनका वध करते हैं। आपने असुरों के अनेक नगरों को भी ध्वस्त किया है।[ऋग्वेद 1.63.2]
हे निष्काम, पूजनीय इन्द्रदेव जब तुम अपने अश्वों को लाते हो, तब वंदनाकरी तुम्हारे हाथों में वज़ देता है। उससे तुम शत्रुओं पर प्रहार करते हुए उनके किलों को ध्वस्त करते हो।
Hey Indr Dev, devoted to the welfare of all! When you deploy the fast moving horses in your chariot, those praying to you , handover Vajr to you & you eliminate the enemy & destroy their forts.
त्वं सत्य इन्द्र घृष्णुरेतान्त्वमृभुक्षा नर्यस्त्वं षाट्।
त्वं शुष्णं वृजने पृक्ष आणौ यूने कृत्साय धुमते सचाहन्॥3॥
हे इन्द्र देव आप सर्वोत्कृष्ट हैं। आप समस्त शत्रुओं के विनाशक हैं। आप ऋभु गण के स्वामी, मनुष्यगण के उपकर्ता और शत्रु के नाशक हैं। संहारक और आपुल युद्ध में आपने प्रकाशक और तरुण कुत्स के सहायक बनकर शुष्ण नामक असुर को मारा।[ऋग्वेद 1.63.3]
हे सत्य रूप इन्द्र देव! तुम शत्रुओं को वशीभूत करने वाले और श्रेष्ठ हो। तुम मनुष्यों की भलाई करने वाले विजेता हो। तुमने युवक कुत्स के सहायक होकर संग्राम में शुष्ण को मारा। Hey Indr Dev! You are excellent-best. You control-mesmerize the enemies and kill them. You are the master of Ribhu Gan, benefactor of humans and slayer of enemies. You became helpful to young Kuts and killed Shushn in fight-war.
त्तं ह त्यदिन्द्र चोदी: सखा वृत्रं यद्वज्रिन्वृषकर्मन्नुभ्नाः।
यद्ध शूर वृषमणः पराचैर्वि दस्दूँर्योनावकृती वृथापाट्॥4॥
हे वृष्टि वर्षक और वज्रधर इन्द्रदेव! जिस समय आपने शत्रुओं का वध किया था, हे वीर अभीष्टवर्षक कामी और शत्रुजयी इन्द्रदेव! उस समय आपने लड़ाई के मैदान में दानवों को परांङ्मुख करके उन्हें ध्वस्त किया और कुत्स के सहायक होकर उनको यशस्वी बनाया।[ऋग्वेद 1.63.4]
हे वीर कर्मा वजिन! तुम मित्रता को निभाने वाले हो। वृत्र को मारकर असुरों को भवन सहित तुमने नष्ट किया।
Hey rain producing and Vajr holding Indr Dev! Hey Indr Dev you grant-cause accomplishments and is a winner! You became helpful to Kuts leading to his honour in the war, killed the demons & defeated them in all possible manner.
त्वं ह त्यदिन्द्रारिषण्यन्दृळ्हस्य चिन्ममर्ता नामजुष्टौ।
व्य स्मदा काष्ठा अर्वते वर्धनेव वञ्रिञ्छ्नथिह्यामित्रान्॥5॥
हे वज्रधर इन्द्रदेव! आप अपने तेजस्वी वज्र से शत्रुओं का विनाश करते हैं, किन्तु किसी सुदृढ़ व्यक्ति की हानि करने की इच्छा आप कदापि नहीं करते, शत्रुओं के द्वारा मनुष्यों पर उपद्रव होने पर आप उनके अश्वों को भ्रमण के लिए चारों ओर खोल देते हैं अर्थात् केवल अपने भक्तों के लिए चारों द्वारों को खोल देते हैं।[ऋग्वेद 1.63.5]
हे इन्द्रदेव! तुम किसी दृढ़ प्राणी से भी पीड़ित नहीं हो सकते। तुम वज्रधारी हमारे अश्वों के लक्ष्य को बाधा रहित करो। कठोर वज्र से हमारे शत्रुओं का सर्वनाश करो।
Hey Indr Dev! You destroy the enemies with your sharp-energetic Vajr. Neither you tease-trouble a pious, virtuous, righteous person not harmed by the mighty-powerful. Make the path of our horses trouble free-smooth.
त्वां ह त्यदिन्द्रार्णसातौ स्वर्मीळ्हे नर आजा हवन्ते।
तव स्वधाव इयमा समर्य ऊतिर्वाजेष्वतसाय्या भूत्॥6॥
हे बली इन्द्रदेव! जिस युद्ध में योद्धा लोग लाभ और धन पाते हैं, उसमें सहायता के लिए मनुष्य आपका आवाहन करते हैं। रणक्षेत्र में आपके ये रक्षण कार्य हमारी ओर प्रसारित हों। योद्धा लोग आपकी रक्षा के पात्र हैं।[ऋग्वेद 1.63.6]
हे इन्द्रदेव! धन ग्रहणता और यश के लिए मनुष्य संग्राम में सहायतार्थ तुम्हारा आह्वान करते हैं। संग्राम क्षेत्र में तुम्हारी सुरक्षा लगातार ग्रहण होती है।
Hey mighty Indr Dev! The humans invite to for help to the wars in which the warriors obtain benefits and wealth. You should protect the warriors & us during war.
त्वं ह त्यदिन्द्र सप्त युध्यन्पुरो वज्रिन्पुरुकुत्साय दर्द:।
बर्हिर्न यत्सुदासे वृथा वर्गंहो राजन्वरिवः पूरवे कः॥7॥
हे वजिन् इन्द्रदेव! आपने, पुरुकुत्स नाम के ऋषि के सहायक होकर, शत्रुओं के सात नगरों का विध्वंस किया था और सुदास नामक राजा के लिए शत्रुओं को कुश के समान सहसा काट दिया। आपने ही पुरु के लिए धन प्रदत्त किया।[ऋग्वेद 1.63.7]
हे वजिन! पुरुकुत्स के लिए संग्राम करते हुए तुमने सातों किले तोड़ दिये। तुमने सुदास के लिए शत्रुओं को कुश के तुल्य काट डाला। राजा पुरु की निर्धनता दूर करने को धन प्रदान किया।
Hey Vajr holding Indr Dev! You became protective to the Rishi Purukuts and destroyed 7 cities-forts of the enemy. You killed the enemies of king Sudas like Kush grass suddenly-at once. Its you who provided wealth-riches to king Puru.
त्वं त्यां न इन्द्र देव चित्रामिषमापो न पीपयः परिज्मन्य।
यया शूर प्रत्यस्मभ्यंयंसि त्मनमूर्ज न विश्वध क्षरध्यै॥8॥
हे वीर इन्द्रदेव! आप हमारा विलक्षण या संग्रहणीय घन, व्याप्त पृथ्वी पर जल की तरह वर्द्धित करें। जैसे चारों ओर जल को आपने क्षरित किया है, उसी प्रकार उस अन्न द्वारा हमें जीवन देवे।[ऋग्वेद 1.63.8]
हे इन्द्र जल के समान अनेक अन्नों की वृद्धि करो। आप हमें जीवन और पराक्रम प्रदान करें।
Hey brave Indr Dev! Grow our amazing, collectible wealth over the earth just like water. The manner in which you have spreaded water all around, give us food grains to sustain life.
अकारि त इन्द्र गोतमेभिर्ब्रह्माण्योक्ता नमसा हरिभ्याम्।
सुपेशसं वाजमा भरा नः प्रातर्मक्षू धियावसुर्जगम्यात्॥9॥
हे इन्द्रदेव! आप अश्व-सम्पन्न हैं। आपके लिए गौतम वंशियों ने भक्ति पूर्वक स्तोत्र या मन्त्र कहे हैं। आप हमें नाना प्रकार के अन्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.63.9]
हे इन्द्रदेव! गौतम ने आपकी मंत्रों से युक्त वंदना की। आपके अश्वों को प्रणाम किया। आप हमको उत्तम धन दो। प्रातः काल में शीघ्र यहाँ पधारें।
Hey Indr Dev! You possess descent horses. The descendants of Gautom composed Strotr & Mantrs in your honour. Please arrive early in the morning & provide us with various kinds of food grains.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (64) :: ऋषि :- नोधा गौतम, देवता :- मरुत, छन्द :- जगती त्रिष्टुप्।
वृष्णे शर्धाय सुमखाय वेधसे नोधः सुवृत्तिं प्र भरा मरुद्ध्यः।
अपो न धीरो मनसा सुहस्त्यो गिरः समञ्जे विदथेष्याभुवः॥1॥
हे ऋषि नोधा! वर्षक, सुन्दर यज्ञ और पुष्प फल आदि के कर्ता मरुद्गणों को लक्ष्य कर सुन्दर स्तोत्र प्रेरण करें। जिन वाक्यों में वृष्टि धारा की तरह अर्थात् मेधों की विविध बूँदों की तरह यज्ञ स्थल में देवों को अभिमुख किये जाते हैं, उन्हीं बाक्यों को धीर और कृताञ्जलि होकर मनोयोगपूर्वक प्रयुक्त करता हूँ।[ऋग्वेद 1.64.1]
हे नोधा! पौरुषवान, पूज्य मेधावी मरुतों के लिए आकर्षक प्रार्थनाएँ करो। जैसे कर्मवान व्यक्ति जलों को सिद्ध करते हैं, उसी तरह मैं वंदनाएँ करता हूँ।
Hey Rishi Nodha! Compose poems in the honour of Marud Gan who are mighty, intelligent & perform Yagy with the help of flowers and fruits. They cause rains. Let me concentrate in them and pray-worship them with great attention.
ते जज्ञिरे दिव ऋष्वास उक्षणो रुद्रस्य मर्या असुरा अरेपसः।
पावकासः शुचयः सूर्याइव सत्वानो न द्रप्सिनो घोरवर्पसः॥2॥
अन्तरिक्ष में मरुद्गण उत्पन्न हुए हैं। बे दर्शनीय वीर्यशाली और रुद्र के पुत्र हैं। वे शत्रुजयी, निष्पाप, सबके शोधक सूर्यदेव की तरह दीप्त, रुद्र के गण की तरह अथवा वीरों की तरह बल-पराक्रम शाली, वृष्टि बिन्दुयुक्त और घोर रूप हैं।[ऋग्वेद 1.64.2]
वे श्रेष्ठ मरुत के पुत्र हैं। वे प्राणवान् निष्पाप, शुद्धकता, सूर्य के तुल्य तेजस्वी, विकराल रूप वाले हैं।
They are the sons of excellent Marut. They are victorious, free from sins, purity causative, possessing aura like the Sun and are furious in looks.
युवानो रुद्रा अजरा अभोग्धनो ववक्षुरप्रिगावः पर्वताइव।
दुळ्हा चिद्विश्चा भुवनानि पार्थिवा प्र च्यावयन्ति दिव्यानि मज्मना॥3॥
रूद्र के पुत्र मरुद्गण युवा और वृद्धावस्था से रहित हैं तथा जो देवों को हाथ नहीं देते, उनके नाशक है। वे अप्रतिहत गति और पर्वत की तरह दृढ़ अङ्ग वाले हैं। वे स्तोताओं को अभीष्ट देना चाहते हैं। पृथ्वी और द्युलोक की सारी वस्तुएँ दृढ़ हैं, तो भी उनको मरुत लोग अपने बल से संचालित कर देते हैं।[ऋग्वेद 1.64.3]
युवा, विकराल, अजर, न देने वालों के हिंसक अबाध गति से चलने वाले मरुद्गण शैल के समान महत्व वाले हुए अपने पराक्रम से पृथ्वी और आकाश में उत्पन्न जीवों को कंपाते हैं।
Young, furious, immortal and violent against those who do not perform Yagy (donate, helpful to the needy), moving with unblock able speed, are capable of moving fixed-inertial objects with their might-strength. They wish to grant-accomplish the desires of those who pray to them.
चित्रैरज्जिभिर्वपुषे व्यञ्जते वक्षः सु रुक्माँ अधि येतिरे शुभे।
अंसेष्वेषां नि मिमृक्षुर्ऋत्ष्टयः साकं जज्ञिरे स्वधया दिवो नरः॥4॥
शोभा के लिए अनेक अलंकारों से मरुद्रण अपने शरीर को अलंकृत करते हैं। शोभा के लिए हृदय पर सुन्दर हार धारण करते है और अंग में आयुध पहनते हैं। नेतृम्थानीय मरुद्गण अन्तरिक्ष से अपने बल के साथ प्रादुर्भूत हुए हैं।[ऋग्वेद 1.64.4]
शोभा के लिए विविध अलंकारों को सजाने वाले मरुद्गण ने स्वर्णाभूषण धारण किये। ये कंधे पर अस्त्र रखे अपनी इच्छा से आकाश द्वारा प्रकट हुए।
Marud Gan decorate their body with ornaments and weapons. they wear a necklace over their heart-chest. They have appeared from the ether-space of their own keeping weapons over the shoulder.
ईशानकृतो धुनयो रिशादसो वातान्विद्युतस्तविषीभिरक्रत।
दुहन्त्यूधर्दिव्यानि धूतयो भूमिं पिन्यन्ति पयसा परिज्रयः॥5॥
यजमानों को सम्पत्तिशाली, मेघादि को कम्पित और हिंसक को विनष्ट करके अपने बल द्वारा मरुतों ने वायु और विद्युत् का निर्माण किया। इसके अनन्तर चारों दिशाओं में जाकर एवं सबकी कम्पित करे द्युलोक के मेध का दोहन किया और जल से भूमि को सिंचित किया। [ऋग्वेद 1.64.5]
समृद्धि दाता शत्रु को भयग्रस्त करके भक्षण करने वाले मरुतों ने अपनी शक्ति से पवन और विद्युत को प्रकट किया। सब जगह विचरणशील वे क्षितिजस्थ बादल को दुहकर पृथ्वी को सींचते हैं।
Marud Gan grant riches to the worshipers. They agitate the clouds and produce air & electricity. They move in all directions, tremble-agitate and extract the clouds to shower rains over the earth to irrigate it.
Moving clouds rub over each other and produce charged particles called positive (positron) & negative (electron). The flow of these charges constitute electricity. More than 50 sub atomic particles have been discovered by the scientists so far.
पिन्वन्त्यपो मरुतः सुदानवः परयो घृतवद्विदथेष्वाभुवः।
अत्यं न मिहे वि नयन्ति वाजिनमुत्सं दुहन्ति स्तनयन्तमक्षितम्॥6॥
जिस प्रकार से यज्ञ भूमि में ऋत्विक् घृत का सिंचन करते हैं, उसी प्रकार दान परायण मरुद्गण साररूप जल का सिंचन करते है। वे घोड़े की तरह वेगवान् मेघ को बरसने के लिए विनम्र निवेदन और गर्जनकारी तथा अक्षय मेध का दोहन करते है।[ऋग्वेद 1.64.6]
कल्याणकारी मरुद्गण जलों को सींचते हुए यज्ञों में घृत युक्त दूध की वर्षा की वर्षा करते हैं।अश्वों के समान बादल को वर्षा की प्रेरणा देते और उसे दुहते हैं।
The way the host performing Yagy make offerings in the form of Ghee-clarified butter, the Marud Gan with the tendency of donation-charity too shower rains. They make requests to the speedy clouds moving like horses and make the thunderous clouds rain.
महिषासो मायिनश्चित्रभानवो गिरयो न स्वतवसो रघुष्यदः।
मृगाइव हस्तिनः खादथा वना यदारुणीषु तविषीरयुग्ध्वम्॥7॥
हे मरुद्गण! आप महान, बुद्धिशाली, सुन्दर, तेजो विशिष्ट, पर्वत की तरह बलवान और द्रुत गतिशील हैं। आप कर युक्त गज की तरह वन का भक्षण करते हैं, क्योंकि आपने अरुण वर्ण बड़वा को बल प्रदान किया है।[ऋग्वेद 1.64.7]
हे मरुद्गण! श्रेष्ठ बुद्धि वाले तुम विभिन्न दोषों से युक्त, पर्वतों के समान, उन्नत, द्रुतगामी हाथियों के समान वन का भक्षण करते हो। तुमने लाल रंग की अग्नि को पराक्रम प्रदान किया।
Hey Marud Gan! You are great, intelligent, beautiful, possessing energy-aura, mighty like the mountains and fast moving. You eat-destroy the forests like the elephant and speed up the fire called Badva (jungle fire).
सिंहाइव नानदति प्रचेतसः पिशाइव सुपिशो विश्ववेदसः।
क्षपो जिन्वन्तः पृषतीभिर्ऋष्टि भिः समित्सवाध: शवसाहिमन्यवः॥8॥
उच्च ज्ञान शाली मरुद्गण शेर को तरह गर्जना करते हैं। सर्वज्ञाता मरुद्रण हिरण की तरह सुन्दर हैं। मरुद्गण अपने शत्रु विनाशक, स्तोता के प्रीतिकारी और क्रुद्ध होने पर नाशकारी बल से सम्पन्न हैं। ऐसे मरुद्गण अपने वाहन मृग और हथियारों के साथ शत्रु द्वारा पीड़ित यजमान की रक्षा करने के लिए साथ ही आते हैं।[ऋग्वेद 1.64.8]
महाज्ञानी, हिरण के तुल्य सुन्दर समस्त समृद्धियों से परिपूर्ण, दिव्य शस्त्रों से सम्पन्न, प्रजा-पीड़ा के नाशक मरुद्गण शेरों के समान क्रोध से गर्जना करते हैं।
Intellectual Marud Gan roar like the lion. All knowing Marud Gan are beautiful like deer. Marud Gan destroy their enemy, favour the host performing Yagy and possess destroying power on being angry roaring like the lion.
रोदसी आ वदता गणश्रियो नृषाचः शूराः शवसाहिमन्यवः।
आ वन्धुरेष्वमतिर्न दर्शता विद्युन्न तस्थौ मरुतो रथेषु वः॥9॥
हे दलबद्ध, मनुष्य हितैषी और वीर्यशाली मरुद्गण, आप बल द्वारा विध्वंसक क्रोध से युक्त होकर आकाश और पृथ्वी को शब्दायमान करें। आपका तेज विमल स्वरूप या दर्शनीय विद्युत के समान रथ के सारथि वाले स्थान पर अवस्थित होते हैं।[ऋग्वेद 1.64.9]
हे गतिशील वीर अहंकारी शत्रु नाशक मरुतो! तुम क्रोध से भरे, पराक्रम से आकाश और पृथ्वी को गुंजा दो। तुम्हारे रथ में चन्द्रमा के समान कांतिवाले विद्युत रूपिणी देवी विराजमान हैं।
Hey strong, moving in groups, beneficial to the humans Marud Gan! You make tumultuous sound when angry, shaking the earth and the sky. Lightening, with the aura of Moon, is present in your chariot.
विश्ववेदसो रयिभिः समोकसः संमिश्लासस्तविषीभिर्विरप्शिनः।
अस्तार इषुं दधिरे गभस्त्योरनन्तशुष्मा वृषखादयो नरः॥10॥
सर्वज्ञ, धनपति, बलशाली, शत्रु नाशक, अमित पराक्रमी, सोम रक्षक और नेता, मरुद्गण अपनी दोनों भुजाओं में हथियार धारण करते हैं।[ऋग्वेद 1.64.10]
सभी ऐश्वर्य वाले, पराक्रम वाले शत्रुनाशक, रण में कुशल मरुतों ने दोनों हाथों में हथियार धारण किये हैं।
Marud Gan who are intellectuals, wealthy, strong-powerful, slayer of enemy, protector od Som, having leadership qualities, associated with valour, wear arms in both hands.
हिरण्ययेभिः पविभिः पयोवृध उज्जिघ्नन्त आपथ्यो न पर्वतान्।
मखाः अयासः स्वसृतो ध्रुवच्युतो दुध्रकृतो मरुता भ्राजदृष्टयः॥11॥
वृष्टि वर्द्धन कर्त्ता मरुद्गण सोने के रथ चक्र द्वारा मार्गस्थ तिनके और पेड़ की तरह मेघों को उनके स्थान से ऊपर उठा लेते हैं। ये यज्ञ प्रिय देवों के यज्ञ स्थल में आते हैं। स्वयं शत्रुओं पर आक्रमण करते हैं। अचल पदार्थों का संचालन करते हैं। दूसरे के लिए अशक्य सम्पत् और प्रकाशशाली आयुध धारण करते हैं।[ऋग्वेद 1.64.11]
जलों की वृद्धि करने वाले पूज्य, द्रुतगति वाले, अचल पदार्थों को चलाने वाले, अबाध गति से परिपूर्ण मरुद्गण स्वर्ण के रथ चक्रों से बादलों को उठाते हैं।
Rain boosting Marud Gan, lifts the straw and trees on their way, riding golden chariot. They attack the enemy and manage the immovable objects. They wear shinning arms and make the enemy incompetrent-motionless.
घृषं पावकं वनिनं विचर्षणिं रुद्रस्य सूनुं हवसा गृणीमसि।
रजस्तुरं तवसं मारुतं गणमृजीषिणं वृषणं सश्चत श्रिये॥12॥
राक्षसों के विध्वंसक, सर्व वस्तु शोधक, वृष्टिदाता, सर्वद्रष्टा और रुद्रपुत्र मरुद्रण की हम स्त्रोतों द्वारा स्तुति करते हैं। धूलिप्रेरक, शक्तिशाली, ऋजीष युक्त और अभीष्टवर्षी मरुद्रणों के आश्रय को प्राप्त करें।[ऋग्वेद 1.64.12]
शत्रु नाशक, पतितपावन, वक्षुकर्मा रुद्रपुत्र मरुतों की हम वंदना करते हैं। उन धूल प्रेरक, मतिप्रद वीर्यवान मरुतों की शरण में धन के लिए जाओ।
We pray-worship Marud Gan-the sons of Rudr, who are destroyers of Demons-Giants, cleanse everything, cause rains, looks everything.
प्र नू स मर्तः शवसा जनाँ अति तस्थौ व ऊती मरुतो यमावत।
अर्वद्भिर्वाजं भरते धना नृभिरापृच्छ्यं क्रआपा क्षेति पुष्यति॥13॥
हे मरुद्गण! आप जिसे आश्रय देते हुए रक्षित करते हैं, वह पुरुष सबसे बली हो जाता है और वह अश्व द्वारा अन्न और मनुष्य द्वारा धन प्राप्त करता है। वह दिव्य यज्ञ करके ऐश्वर्यशाली हो जाता है।[ऋग्वेद 1.64.13]
हे मरुतों! तुम्हारे द्वारा रक्षित मनुष्य सभी मनुष्यों में अधिक शक्तिशाली हो जाता है। वह अश्वों और प्राणियों द्वारा धनों को प्राप्त करके श्रेष्ठ यज्ञ द्वारा सुख प्राप्त किया।
Hey Marud Gan! One protected by you, becomes most powerful amongest the humans and gains food grains with the help of horses and wealth with the help of all living beings-organism. He perform-organise devine Yagy and become rich.
चर्कृत्यं मरुतः पृत्सु दुष्टरं द्युमन्तं शुष्मं मघवत्सु धत्तन।
धनस्पृतमुक्थ्यं विश्वचर्षणिं तोकं पुष्येम तनयं शरणं हिमाः॥14॥
हे मरुद्गण! आप लोग यजमानों को सब कार्यों में निपुण, युद्ध में अजेय, दीप्तिमान्, शत्रु विनाशक, धनवान, प्रशंसा भाजन और सर्वज्ञ पुत्र प्रदान करें। ऐसे पुत्र-पौत्रों को हम सौ वर्ष जीवित रखना चाहते हैं।[ऋग्वेद 1.64.14]
हे मरुतों! कार्यों में सक्षम युद्धों में अजेय, दीप्तिमान, तुम पराक्रम की स्थापना करो। हम अपने पुत्रों को सौ वर्ष तक पालने वाले हैं।
Hey Marud Gan! You are make the hosts skilled-expert, invincible in war, shinning-glowing, slayer of enemy, rich-wealthy, appreciable having sons with divine vision. Let us protect-nourish our such sons & grand sons for 100 years.
नू ष्ठिरं मरुतो वीरवन्तमृतीपाहं रयिमस्मासु धत्त।
सहस्त्रिणं शतिनं शूशुवांसं प्रातर्मक्षू धियावसुर्जगम्यात्॥15॥
हे मरुद्रण! हमें स्थिर, वीर्यशाली और शत्रुजयी धन दें। इस प्रकार शत सहस्र धन से युक्त होने पर हमारी रक्षा के लिए, जिन्होंने कर्म द्वारा धन पाया है, वे मरुद्गण यहाँ आगमन करें।[ऋग्वेद 1.64.15]
हे मरुद्गण! तुम हमको स्थायी और शत्रु को विजय करने की सामर्थ्य प्रदान करो । हममें शत सहस्र, एक लाख संख्यक धन स्थित करो। तुम प्रात:काल शीघ्र हमको ग्रहण होओ।
Hey Marud Gan! Grant us immovable, powerful riches-wealth with which we can win-over power the enemy. In this manner on becoming rich with hundreds-thousands of riches-wealth, possessions, the Marud Gan should protect us who earned wealth with hard work and come here to protect us.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (65) :: ऋषि :- पराशर शाकत्य-शालतया, देवता :-अग्नि, छंद :- द्विपदा विराट।
पश्वा न तायुं गुहा चतन्तं नमो युजानं नमो वहन्तम्।
सजोषा धीराः पदैरनु ग्मन्नुप त्वा सीदन्विश्वे यजत्रा:॥1॥
हे अग्निदेव! पशु चुराने वाले चोर की तरह आप भी गुफा में अवस्थान करें। मेधावी और सदृश प्रीति सम्पन्न देवों ने आपके पद चिह्नों को लक्ष्य कर अनुगमन किया था। आप स्वयं हव्य सेवन करें और देवों के लिए हव्य वहन करें।[ऋग्वेद 1.65.1]
अवस्थान :: ठहरना, रहना; sojourn.
हे अग्ने! पशु चराने वाले के पीछे-पीछे जाने वाले मनुष्य के समान तुम्हारे पद चिह्नों पर मेधावी देव चलें। तुम धारण करने वाले देवों को हवि पहुँचाते हो, इसलिए देवता तुमको प्राप्त होते हैं।
Hey Agni! Sojourn in cave like the cattle thief. The enlightened should follow you like the person who follows the foot marks of his cow heard. You yourself enjoy-consume the sacrifices and carry them to the demigods-deities.
ऋतस्य देवा अनु व्रता गुर्भुवत्परिष्टिर्द्यौर्न भूम।
वर्धन्तीमापः पन्वा सुशिश्विमृतस्य योना गर्भे सुजातम्॥2॥
देव गणों ने अग्नि देवता को भूमि में चारों ओर खोजा। अग्नि देव जल प्रवाहों के गर्भ से पैदा हुए, उत्तम स्तोत्रों से उनकी सम्यक् प्रकार से वृद्धि हुई। देवों ने अग्नि देव के कर्मों का, उनकी प्रेरणा का, अनुकरण किया और भूमि को स्वर्ग के सदृश सुखकारी बनाया।[ऋग्वेद 1.65.2]
देवता अग्नि की खोज में पृथ्वी पर आए। अग्नि जल के गर्भ में जन्में और स्तोत्रों द्वारा उनकी वृद्धि हुई।
The demigods searched Agni Dev all round, over the earth. He evolved in the flowing waters and excellent Strotr increased his intensity. Demigods followed the endeavours of Agni Dev, his inspiration and made the earth comfortable like the heaven.
Oxygen and hydrogen are the two elements which form water. Hydrogen is combustible and burns in the presence of water. Hydrogen as a Proton can lead to formation of several elements.
पुष्टिर्न रण्वा क्षितिर्न पृथिवी गिरिर्न भुज्म क्षोदो न शंभु।
अत्यो नाज्मन्त्सर्गप्रतक्तः सिन्धुर्न क्षोदः क ईं वराते॥3॥
अभीष्ट फल की पुष्टि की तरह अग्निदेव रमणीय, पृथ्वी की तरह विस्तीर्ण, पर्वत की तरह सबके भोजयिता और जल की तरह सुखकर हैं। अग्निदेव युद्ध में परिचालित अश्व और सिन्धु की तरह शीघ्रगामी हैं। ऐसे अग्निदेव का कौन निवारण कर सकता है अर्थात् इन्हें कौन रोक सकता है?[ऋग्वेद 1.65.3]
ये अग्नि अभीष्ट फल के आश्वासन के समान रमणीय, धरती के समान विशाल, पहाड़ के समान भोजनदाता, जल के समान शांतिप्रद, घोड़े के समान युद्ध में पहले और समुद्र के समान जिनका विस्तार है। इन्हें कौन रोक सकता है।
भोजयिता :: खिलानेवाला; banquet. Agni Dev is lovely like the accomplishment one's desires. He is broad-vast like earth, serves meals like mountain and comfortable like water.He is fast like a horse in the war field extensive like the ocean. Who can oppose-block Agni Dev!?
जामिः सिन्यूनां भ्रातेव स्वस्त्रामिभ्यान्न राजा वनान्यत्ति।
यद्वातजूतो वना व्यस्थादग्निर्ह दाति रोमा पृथिव्याः॥4॥
जिस प्रकार बहन का हितैषी भाई हैं, उसी प्रकार सिन्धु के हितैषी अग्निदेव हैं। जैसे राजा शत्रु का विनाश करता है, वैसे ही अग्निदेव वन का भक्षण करते है । जिस समय वायु प्रेरित अग्निदेव वन जलाने में लगते हैं, उस समय पृथ्वी के सब औषधि रूप रोम छिन्न कर डालते हैं।[ऋग्वेद 1.65.4]
बहनों के भाई की भाँति जलों के भाई अग्नि राजा के शत्रुओं के समान वनों का भक्षण करते हैं। पवन के योग से वनों में फलते-फूलते हैं। तब भूमि की वनस्पति रूप तालों को छिन्न-भिन्न कर डालते हैं।
The way-manner the brother is a well wisher of his sister, oceans is a well wisher of Agni Dev. The manner in which a king eliminate the enemy, Agni Dev burns the forests-jungles. Inspired by Pawan-Vayu Dev, when Agni Dev start burning the forests he destroys all vegetation.
श्वसित्यप्सु हंसो न सीदन् क्रत्वा चेतिष्ठो विशामुषर्भुत्।
सोमो न वेधा ऋतप्रजातः पशुर्न शिश्वा विभुर्दुरेभाः॥5॥
जल के भीतर बैठकर हंस के समान अग्निदेव जल के भीतर प्राण धारण करते हैं। उषा काल में जागकर प्रकाश द्वारा अग्निदेव सबको चेतना प्रदान करते हैं। सोम की तरह सारी औषधियों को वर्द्धित करते हैं। अग्निदेव गर्भस्थ पशु की तरह जल के बीच संकुचित हुए थे। अनन्तर प्रवर्द्धित होने पर इनका प्रकाश दूर तक फैल गया।[ऋग्वेद 1.65.5]
अग्नि जलों के भीतर हंस के समान बैठ कर अग्नि देव प्राण धारण करते हैं। उषा बेला में चैतन्य होकर प्राणियों को जगाते हैं। सोमरस के समान औषधियों (जड़ी-बूटी) को बढ़ाते हैं। बच्चे के समान प्रदीप्त हुए अग्नि बढ़ाने पर फैले हुए प्रकाश वाले होते हैं।Agni Dev acquires life sitting inside the water like a swan. He refreshes all in the morning making them conscious. He grows the medicinal plants like Som Dev-Moon. He shrinks like a child in the bomb. Thereafter, he grew up and its light spreads all around.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (66) :: ऋषि :- पराशर शाकत्य-शालतया, देवता :-अग्नि, छन्द :- द्विपदा, विराट्।
हे मनुष्यों! हम अनेक अन्न की इच्छा वाले श्लोकों को पढ़ें। श्रेष्ठ ज्योतिर्मान अग्नि देवता मनुष्यों के कर्मों और सृष्टि के रूप को जानते हुए सभी में व्यापक है।
We request Agni Dev, who is enlightened, knows the previous deeds of both the the demigods & humans to provide us food grains, in the form of Shloks-hymns.
रयिर्न चित्रा सूरो न संदृगायुर्न प्राणो नित्यो न सूनुः।
तका न भूर्णिर्वना सिषक्ति पयो न धेनुः शुचिर्विभावा॥1॥
अग्निदेव धन की तरह विलक्षण, सूर्य देव की तरह सब पदार्थों के दर्शक, प्राण वायु की तरह जीवन रक्षक और की तरह हितकारी हैं। अग्नि देव अश्व की तरह संसार को वहन करते और पुत्र दुग्ध दात्री गौ की तरह उपकारी हैं। दीप्त और आलोक युक्त अग्नि देव वन को दग्ध करते हैं।[ऋग्वेद 1.66.1]
अग्नि रमणीक धन के लिए दिव्य, सूर्य के समान अद्भुत, जीवन के समान प्राण वान, पुत्र के समान नित्य संबंधित, घोड़े के समान द्रुतगामी, धेनु के समान उपकारी हैं। वे अपनी ज्योति से वनों को जला देते हैं।
Agni Dev is unique like wealth-riches, makes the objects visible like Sury-Sun Bhagwan, protector of life like air and beneficial in all respects. He carries the world like horse & acts like cow while feeding milk to calf-son. He burns the forests with his energy-aura.
दाधार क्षेममोको न रण्वो यवो न पको जेता जनानाम्।
ऋषिर्न स्तुभ्वा विक्षु प्रशस्तो वाजी न प्रीतो वयो दधाति॥2॥
अग्नि देव रमणीय घर की तरह, धन रक्षा में समर्थ और पके जौ की तरह लोक विजयी हैं। अग्नि देव ऋषि की तरह देवों के स्तोता और संसार में प्रशंसनीय तथा अश्व की तरह हर्ष युक्त हैं। ऐसे अग्निदेव हमें अन्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.66.2]
वे अग्नि गृह के समान रमणीक, अन्न के समान परिपक्व, ऋषि के समान प्रशासित तथा स्तोत्र द्वारा पूजनीय हैं।
रमणीक :: मनोहर, रमणीक, आभासी, जाली; delightful, colourful.
Agni Dev is delightful, colourful like a home, capable of protecting wealth and nourishing-mature like food grain-barley. He is honourable between the demigods-deities, revered in the universe and worshiped-prayed with the help of hymns.
दुरोकशोचिः क्रतुर्न नित्यो जायेव योनावरं विश्वस्मै।
चित्रों यदभ्राट्छेतो न विक्षु रथो न रुक्मी त्वेषः समत्सु॥3॥
दुष्याप्य तेजा अग्नि देव यज्ञकारी की तरह ध्रुव और गृहस्थित गृहिणी की तरह घर के भूषण हैं। जिस समय अग्नि देव विचित्र दीप्ति युक्त होकर प्रज्वलित होते हैं, उस समय वह शुभ्र वर्ण सूर्य देव की तरह हो जाते हैं। अग्निदेव प्रजा के बीच में रथ की तरह दीप्ति युक्त और संग्राम में प्रभा युक्त हैं।[ऋग्वेद 1.66.3]
वे सक्ष्म गृहिणी के समान घर में बसने वाले जब प्रदीप्त होते हैं तब प्रजाओं के समान प्रकाशित होते हैं। चालाक सेना के समान भयग्रस्त करने वाले शस्त्र धारी के समान बलिष्ठ, ज्योति से परिपूर्ण मुख वाले हैं।
Agni Dev is energetic like Dhruv performing Yagy and ornamental like a wife-woman in the family-house. When ignited he shines like the Sun. He is brilliant like a chariot amongest the populace with vivid colours and energetic in a war.
सेनेव सृष्टामं दधात्यस्तुर्न दिद्युत्वेषप्रतीका।
यमो ह जातो यमो जनित्वं जारः कनीनां पतिर्जनीनाम्॥4॥
स्वामी के द्वारा संचालित सेना अथवा धनुर्धारी के दीप्ति मुख बाणों की तरह अग्निदेव शत्रुओं में भय का संचार करते हैं। जो उत्पन्न हुआ है और जो उत्पन्न होगा वह सब अग्नि देव है। अग्नि देव कुमारियों के जार और विवाहिता स्त्रियों के पति हैं।[ऋग्वेद 1.66.4]
रचित हुआ है या जो भविष्य में रचित होगा, वह अग्नि रूप है। अग्नि कन्याओं का कौमार्य नष्ट करने वाले तथा विवाहिता के पति हैं, गार्हपत्य अग्नि का पति के संग नित्य पूजन करती हैं, इस दृष्टि से उनको पति परमेश्वर कहा गया है।
Agni Dev cause fear amongest the enemies like the army governed by the king and glowing like the sharp point of the arrow. Every thing and every thing to be born is Agni Dev. He is the illegitimate relation of the unmarried-virgin and husband of the married woman.
Due to this reason he is titled Almighty. As a matter of fact all the demigods-deities are the superior forms-incarnation of the God.
तं वश्चराथा वयं वसत्यास्तं न गावो नक्षन्त इ्दम्।
सिन्धुर्न क्षोदः प्र नीचीरैनोन्नवन्त गावः स्वर्दृशीके॥5॥
जिस प्रकार गायें घर में जाती हैं, उसी प्रकार हम जंगम और स्थावर अर्थात पशु और धान्य आदि उपहार के साथ प्रदीप्त अग्निदेव के पास जाते हैं। जल प्रवाह की तरह अग्निदेव इधर-उधर ज्वाला प्रेरित करते हैं। आकाश में दर्शनीय अग्निदेव की किरणें ऊँची उठती हैं।[ऋग्वेद 1.66.5]
पशु के दूध ( घृत) को मथा अन्न की आहुति से प्रदीप्त अग्नि को हम प्राप्त करें। वह अग्नि बहने वाले जल के समान ज्वालाओं को प्रवाहित करते हैं। उनकी दर्शनीय किरणें आकाश से ऊपर की ओर उठा करती हैं।
The way cows moves to their cow shed, we the stationary and movable living beings move to him with gifts-offerings. Then flames of Agni-fire rises in the sky like the high tides in the ocean.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (67) :: ऋषि :- पराशर शाकत्य-शालतया, देवता :-अग्नि, छन्द :- द्विपदा, विराट्।
वनेषु जायुर्मर्तेयु मित्रो वृणीते श्रष्टिं रोजेवाजुर्यम्।
क्षेमो न साधु: क्रतुर्न भद्रो भुवत्स्वायीर्होता हव्यवाट्॥
जैसे राजा सर्वगुण सम्पन्न वीर पुरुष का आदर करते हैं, वैसे ही अग्ण्यजात और मनुष्यों के मित्र अग्निदेव यजमान पर अनुग्रह करते हैं। अग्रिदेव पालक की तरह कर्म साधक, कर्म शील की तरह भद्र, देवों का आवाहन करने वाले और हवि वाहक है। ये अग्रिदेव सम्यक रूप से कल्याणप्रद है।[ऋग्वेद 1.67.1]
जैसे राजा सर्वगुण सम्पन्न पराक्रमी मनुष्य का सम्मान करता है वैसे ही वनों में रचित जयशील अग्नि यजमान पर कृपा करते हैं। वह अग्नि चालक के समान अनुकूल और ज्ञान के तुल्य कल्याणकारी हो।
The manner in which the king honour a brave & virtuous person, Agni Dev, friendly with humans obliges the hosts-holding Yagy. Agni Dev is devoted like a gentle man, invites the demigods-deities and carries the offerings to them. Agni Dev is beneficial to all in all possible manners.
हस्ते दधानो नृम्णा विश्वान्यमे देवान्धाग्नु निषीदन्।
विदन्तीमत्र नरो धियंधा हृदा यत्तष्टान्मन्त्राँ अशंसन्॥
अग्नि देव सारा हव्य रूप धन अपने हाथ में धारण करके गुफा के बीच छिप गये। ऐसा होने पर देवता लोग भयभीत हो गये। नेता और कर्म धारयिता देवों ने जिस समय हृदय धूत मंत्र द्वारा अग्निदेव की स्तुति की, उस समय उन्होंने अग्निदेव को प्राप्त किया।[ऋग्वेद 1.67.2]
अग्नि अन्नों के साथ में ग्रहण कर गुफ़ा हृदय में बैठ गये, इसके परिणाम स्वरूप देवता भयभीत हो गए। इस गुफा स्थिति अग्नि को प्रतापी लोग हृदय से उत्पन्न प्रार्थनाओं के उच्चारण द्वारा पाते हैं।
Agni Dev hide himself in a cave with the offerings, resulting in fear amongest the demigods-deities. In this situation the demigods-deities prayed to him with the help of "Hraday Dhoot Mantr" and thus he appeared before them.
अजो न क्षां दाधार पृथिवीं तस्तम्भ द्यां मन्त्रेभिः सत्यैः।
प्रिया पदानि पश्चो पाहि विश्वायुरग्ने गुहा गुहं गाः॥
सूर्य देव की तरह अग्नि देव पृथ्वी और अन्तरिक्ष को धारण किये हुए हैं। साथ ही सत्य मंत्र द्वारा आकाश को धारित करते हैं। विश्वायु या सर्वान्न अग्निदेव! पशुओं की प्रिय भूमि की रक्षा करें और पशुओं के चरने की अयोग्य गुफा में जायें।[ऋग्वेद 1.67.3]
जैसे सूर्य धरा को धारण करता है वैसे ही अग्नि ने अंतरिक्ष को धारण किया है। हे अग्ने! तुम पशुओं की सुरक्षा करो। समस्त प्राण धारियों के धातु रूप गुफा में प्रवेश करते हैं।
Agni Dev holds the earth and the ether-space like the Sun. Truth too helps in holding the sky. Hey Agni Dev! Please protect the cattle & their grazing fields and settle in a cave where the cattle do not graze.
य ई चिकेत गुहा भवन्तमा यः ससाद धारामृतस्य।
वि ये चृतन्त्यृता सपन्त आदिद्वसूनि प्र ववाचास्मै॥
जो पुरुष गुहास्थित अग्निदेव को जानता है और जो यज्ञ को धारण करने वाले अग्निदेव के पास जाते हैं तथा जो लोग यज्ञ का अनुष्ठान करते हुए अग्निदेव की स्तुति करते हैं, ऐसे लोगों के आवाहन करने पर अग्निदेव तुरन्त प्रकट होते हैं।[ऋग्वेद 1.67.4]
जो गुफा में स्थित अग्नि को जानता है, जो यज्ञों के अनुष्ठान में अग्नि को प्रदीप्त करता है, उस यजमान को वे शीघ्र ही धन देते हैं।
Agni Dev appears before those who pray to him, ignite fire for the Yagy and knows him present in the cave.
वि यो वीरुत्सु रोधन्महित्वोत प्रजा उत प्रसूष्वन्तः।
चित्तिरपां दमे विश्वायुः सद्मेव धीराः संमाय चक्रुः॥
जिन अग्निदेव ने औषधियों में उनके गुणों को स्थापित किया और मातृ रूप औषधियों में उत्पद्यमान पुष्प, फल आदि निहित किए, मेधावी पुरुष जल मध्यस्थ और ज्ञान दाता उन्हीं विश्वायु अग्निदेव की गृह की तरह पूजा करके कर्म करते हैं।[ऋग्वेद 1.67.5]
जो अग्निदेव औषधियों में अपना गुण स्थापित करते हैं, जो लताओं से अनेक पुण्य फल आदि को प्रकट करने वाले हैं। ज्ञानी पुरुष जलों में स्थित उस आयु रूप अग्नि की अर्चना करके शरण प्राप्त करते हैं।
The intellectuals, intelligent prays to Agni Dev and seeks shelter under him, who is established in water, fills the medicinal plants with their properties, grows leaves, flowers & fruits in them.
Fire is a product of water-a compound of hydrogen & oxygen. Still water is used to douse fire.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (68) :: ऋषि :- पराशर शात्तय, देवता :- अग्नि, छन्द :- द्विपदा, विराट्।
श्रीणन्नुप स्थाद्दिवं भुरण्युः स्थातुश्चरथमन्व्र्यू(न्व् + र्यू)र्णौत्।
परि यदेवामेको विश्वेषां भुवद्देवो देवानां महित्वा॥1॥
हव्य धारक अग्नि देव हव्य द्रव्य को मिलाकर आकाश में उपस्थित करते हैं तथा स्थावर जंगम वस्तुओं और रात्रि को अपने तेज द्वारा प्रकाशित करते हैं। सारे देवों में अग्रिदेव प्रकाशमान और स्थावर जंगम आदि में व्याप्त हैं।[ऋग्वेद 1.68.1]
शीघ्र कार्यकारी अग्नि स्थावर, जंगम, वस्तुओं को परिपक्व कर क्षितिज को ग्रहण हुए। यहाँ किरणों को अंधकार से पृथक करने के कारण अन्य देवताओं से यह अधिक महिमावान हो गये।
The carrier of offerings Agni Dev mixes them and present them in the sky and light the fixed and movable objects with his aura-brightness. Agni Dev is most bright amongest the demigods-deities and present in all fixed and movable objects.
At a certain temperature each & every object start burning.
आदित्ते विश्वे क्रतुं जुषन्त शुष्काद्यद्देव जीवो जनिष्ठाः।
भजन्त विश्वे देवत्वं नाम ऋतं स्पन्तो अमृतमेवैः॥2॥
हे अनिदेव! आपके सूखे काष्ठ से जलकर प्रकट होने पर सारे यजमान आपके कर्म का अनुष्ठान करते हैं। आप अमर हैं। स्तोत्रों द्वारा आपकी सेवा करके वे सब प्रकृत देवत्व को प्राप्त करते हैं।[ऋग्वेद 1.68.2]
हे अग्ने! शुष्क लकड़ी के घर्षण से तुम उत्पन्न हुए। इसके बाद ही वे सब देवता यज्ञ में पहुँच सके। तुम अविनाशी के अनुगमन से ही वे सब देवत्व को प्राप्त कर सके।
Hey Agni Dev! You appear from the dry wood and all the hosts busy with Yagy, perform the endeavours pertaining to you. You are immortal. By worshiping-praying you, they all attain divinity.
ऋतस्य प्रेषा ऋतस्य धीतिर्विश्वायुर्विश्वे अपांसि चक्रुः।
यस्तुभ्यं दाशाद्यो वा ते शिक्षात्तस्मै चिकित्वान्रयिं दयस्व॥3॥
अग्नि देव के यज्ञ स्थल में आने पर उनकी स्तुति और यज्ञ किये जाते हैं। अग्नि देव विश्वायु हैं। सब यजमान अग्रिदेव का यज्ञ करते हैं। हे अग्निदेव! जो आपको जानकर आपके निमित्त हवि देता है, उसे आप जानकर हवि प्रदत्त करें।[ऋग्वेद 1.68.3]
समस्त प्राणी अग्नि की शिक्षा से अनुष्ठान करते हैं। अग्नि ही पवन हैं। उन्हीं का अनुष्ठान किया जाता है। हे अग्ने! तुम्हारा ज्ञान ग्रहण कर जो तुमको हव्य प्रदान करता है,
On being present in the Yagy site, Agni Dev is worshiped and Yagy are performed. Agni is the air flowing through the universe-life giving force, force vital. Hey Agni Dev! One who make offerings, knowing you well-aware of you, is recognised by you and then you accept the offerings made by him.
होता निषत्तो मनोरपत्ये स चिन्न्वासां पती रयीणाम्।
इच्छन्त रेतो मिथस्तनू षु सं जानत स्वैर्दक्षेरमूराः॥4॥
हे अग्निदेव! आप मनु के पुत्रों में देवों के आह्वानकारी रूप से अवस्थान करते हैं। आप ही उनके धन के अधिपति हैं। उन्होंने पुत्र उत्पन्न करने के लिए अपने शरीर में शक्ति की इच्छा की थी अर्थात् आपके अनुग्रह से उन्होंने पुत्र प्राप्ति की थी। वे मोह का त्याग करके पुत्रों के साथ त्रिकाल तक जीवित रहे।[ऋग्वेद 1.68.4]
उसी को जानकर तुम धन प्रदान करो। मनुष्यों में होता रूप से स्थित अग्नि ही प्रजाओं और धनों के दाता हैं। उन्होंने तुम्हारी शक्ति से संतान की उत्पत्ति की इच्छा की और शक्ति से संतान से युक्त हुए।
Hey Agni Dev! You are present in the sons of Manu and governs their wealth. Manu prayed-desired for having sons and you obliged him. Manu rejected all desired, relinquished himself and exists in all three forms of time, past, present & future.
Agni Dev appeared from the Agni Kund and gave pudding to king Dashrath leading to incarnation of Bhagwan Shri Hari Vishnu as Bhagwan Shri Ram, Bharat Ji, Lakshman Ji and Shatrughan. Dropadi and her brother Dhrashtdhyumn too appeared form Agni Kund. Bhagwan Shri Ram handed over Maa Sita to Agni Dev, prior to trace the golden deer leaving behind image of Maa Sita.
पितुर्न पुत्राः क्रतुं जुषन्त श्रोषन्ये अस्य शासं तुरासः।
वि राय और्णोहुरः पुरुक्षुः पिपेश नाकं स्तृभिर्दमूनाः॥5॥
जिस प्रकार पुत्र पिता की आज्ञा का पालन करता है, उसी प्रकार यजमान लोग तत्काल अग्निदेव की आज्ञा सुनते और अग्नि द्वारा आदिष्ट कार्य करते हैं। अनन्त धनशाली अग्निदेव यजमानों के यज्ञ के द्वार रूप धन को प्रदान करते हैं। यज्ञ रत गृह में अग्नि आसक्त हैं और उन्होंने ही आकाश को नक्षत्रों से युक्त किया।[ऋग्वेद 1.68.5]
पिता की आज्ञा मानने वाले पुत्र के समान जिन मनुष्यों ने अग्नि का आदेश पालन किया, उनके लिए अग्नि ने अन्न और धनों के भण्डार खोल दिये। अनुष्ठान कार्य वाले घरों में आसक्त अग्नि ने ही नक्षत्रों से क्षितिज को अलंकृत किया है।
The Yajman-Ritvij, hosts performing Yagy immediately follow the directives of Agni Dev like an obedient son and perform the jobs-responsibilities given to them. As a result-sequence, Agni Dev grants infinite wealth to those conducting Yagy. Agni Dev is devoted to those house holds who are engaged in Agni Hotr, Yagy, Hawan. It's he who placed-fixed the constellations in the sky.
Constellations are responsible for the events in the life a person as per his deeds-destiny.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (69) :: ऋषि :- पराशर शात्तय, देवता :- अग्नि, छन्द :- द्विपदा, विराट्।
शुक्रः शुशक्वाँ उषो न जारः पप्रा समीची दिवो न ज्योतिः।
परि प्रजात: क्रत्वा बभूथ भुवो देवानां पिता पुत्रः सन्॥1॥
हे शुक्लवर्ण अग्निदेव! आप उषा प्रेमी सूर्य की तरह सर्व पदार्थ प्रकाशक हैं। अग्रिदेव प्रकाशक सूर्य की ज्योति की तरह अपने तेज से द्यौ और पृथ्वी को एक साथ परिपूर्ण करते हैं। हे अग्निदेव! आप प्रकट होकर अपने कर्मों द्वारा सम्पूर्ण संसार को परिव्याप्त करें। आप देवों के पुत्र होकर भी उनके पिता हो, क्योंकि पुत्र की तरह देवों के दूत हो और पिता की तरह देवों को हव्य देते हो।[ऋग्वेद 1.69.1]
उषा प्रेमी सूर्य के तुल्य प्रकाशमान, कांतिमान तुम सूर्य के प्रकाश के तुल्य क्षितिज धरा को पूर्ण करते हो। हे अग्ने! तुम प्रकट होकर शक्ति से मति को ग्रहण हुए। तुम दूत रूप से देवों के पुत्र-तुल्य होते हुए भी हव्य देकर उनके पिता समान हो गये हो।
Hey fair colour Agni Dev! You make the objects visible like the Sun. You fill the universe and the earth with your energy-aura. Hey Agni Dev! Let the world be pervaded by you. Though the son of demigods-deities, you are like their messenger and make-carry offerings to them like a father.
वेध अदृप्तो अग्निर्विजान्नूधर्न गोनां स्वाद्मा पितूनाम्।
जने न शेव आहूर्य: सन्मध्ये निषत्तो रण्वो दुरोणे॥
हे मेघावी, निरहंकार और कर्मा-कर्म ज्ञाता अग्निदेव! गौ के वन की तरह सारा अन्न स्वादिष्ट करते हैं। संसार में हितैषी पुरुष की तरह अग्निदेव यज्ञ में आहूत होकर यज्ञ स्थल में आकर प्रीति प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 1.69.2]
बुद्धिमान, अहंकार रहित गौ के दुग्ध के समान स्वादिष्ट अन्न को बरसाने वाले अग्निदेव यज्ञ-कर्म वाले घर में बुलाने पर आकर यजमान को सुखी करते हैं।
Hey intelligent, free from ego, aware of all endeavours-deeds, Agni Dev! You make the entire food grains tasty like the grazing field of cows. You come to the Yagy like a benefactor and oblige with love & affection.
पुत्रो न जातो रण्वो दुरोणे वाजी न प्रीतो विशो वि तारीत् ।
विशो यदह्वे नृभिः सनीळा अग्रिर्देवत्वा विश्वान्यश्याः॥
घर में पुत्र की तरह उत्पन्न होकर अग्निदेव आनन्द प्रदान करते हैं तथा अश्व की तरह हर्षान्वित होकर युद्ध में शत्रुओं का अतिक्रम करते हैं। जब मैं मनुष्यों के साथ में समान निवासी देवों को बुलाता हूँ, तब आप अग्रिदेव! सब देवों का देवत्व प्राप्त करते हैं।[ऋग्वेद 1.69.3]
गृह में रचित हुए पुत्र के समान सुखदायक अग्नि भर पेट भक्षण कर लेने वाले अश्व के तुल्य मनुष्यों को कष्ट से पार लगाते हैं। मनुष्यों के साथ अनुष्ठान से गृह में रचित हुए पुत्र के समान सुखदायक अग्नि भर पेट भक्षण कर लेने वाले अश्व के तुल्य मनुष्यों को कष्ट से पार लगाते हैं।
Agni Dev appears in the house and grant happiness like the son and over power the enemy in battle field-war like a horse. Hey Agni Dev! You attain divinity with all demigods-deities and remove the worries, troubles, pains, tortures of the humans.
नकिष्ट एता व्रता मिनन्ति नृभ्यो यदेभ्यः श्रुष्टिं चकर्थ।
तत्तु ते दंसो यदहन्समानैर्नृभिर्यद्युक्तो विवे रपांसि॥
राक्षसादि आपके व्रत आदि को विध्वंस नहीं करते, क्योंकि आप उन व्रतादि में वर्तमान यजमानों को यज्ञ के फलरूप सुख प्रदान करते हैं। यदि राक्षसादि आपके व्रत का नाश करें, तो अपने साथी नेता मरुद्गणों के साथ आप उन बाधा उत्पन्न करने वाले लोगों को भगा देते हैं।[ऋग्वेद 1.69.4]
जब मैं मनुष्यों के साथ अनुष्ठान से विश्वदेवों का आह्वान करता हूँ, तब वे अग्नि ही सर्व भेद-भाव को ग्रहण हो जाते हैं। हे अग्ने! जिन कर्म नियमों से तुमने प्राणियों को सुखी किया, वे तुम्हारे नियमों को नहीं तोड़ते। तुमने ही पाप रूप असुरों को मनुष्यों के सहयोग से मारकर भगा दिया।
The demons do not disturb your fasts, since you grant comforts to the hosts-Ritvij. In case the demons create trouble, you repel them with the help of Marud Gan.
The demons too need help from Agni Dev for performing Agni Hotr, Yagy etc. They too follow the rules & regulations meant for the Yagy.
उषो न जारो विभावोस्रः संज्ञातरूपश्चिकेतदस्मै।
त्मना वहन्तो दुरो व्यृण्वन्नवन्त विश्वे स्वर्दृशीके॥
उषा प्रेमी सूर्य देव की तरह अग्नि देव ज्योतियुक्त और निवास हेतु हैं। अग्निदेव का रूप संसार जानता है। ये अग्निदेव उपासकों को जानते हैं। इनकी किरण स्वयं हव्य वहन करके यज्ञ गृह के द्वार पर फैलती है, तदनन्तर दर्शनीय आकाश में प्रविष्ट करती है।[ऋग्वेद 1.69.5]
उषा प्रेमी सूर्य के समान प्रकाशमान, प्रख्यात अग्नि मुझे जानें। अग्नि की सुन्दर लपटें, हवि वाहक हुई अनुष्ठान गृह के दरवाजे खोलकर क्षितिज मार्ग को जाती हैं।
Agni Dev too possess aura-energy like the Sun. The world is aware of this fact. Agni Dev recognises his devotees. His aura spreads in the Yagy site carrying the offerings and then enters the space-sky.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (70) :: ऋषि :- पराशर शात्तय, देवता :- अग्नि, छन्द :- द्विपदा, विराट्।
वनेम पूर्वीरर्यो मनीषा अग्निः सुशोको विश्वान्यश्याः।
आ दैव्यानि व्रता चिकित्वाना मानुषस्य जनस्य जन्म॥
जो शोभन दीप्ति से युक्त अग्निदेव ज्ञान के द्वारा प्रापणीय हैं, जो सारे देवों के कर्म और मनुष्यों के जन्म रूप कर्म के विषय को समझकर सारे कार्यों में लिप्त हैं, ऐसे अग्निदेव से हम प्रभूत अन्न माँगते हैं।[ऋग्वेद 1.70 .1]हे मनुष्यों! हम अनेक अन्न की इच्छा वाले श्लोकों को पढ़ें। श्रेष्ठ ज्योतिर्मान अग्नि देवता मनुष्यों के कर्मों और सृष्टि के रूप को जानते हुए सभी में व्यापक है।
We request Agni Dev, who is enlightened, knows the previous deeds of both the the demigods & humans to provide us food grains, in the form of Shloks-hymns.
गर्भो यो अपां गर्भो वनानां गर्भश्च स्थातां गर्भश्चरथाम्।
अद्रौ चिदस्मा अन्तर्दुरोणे विशां न विश्वो अमृतः स्वाधीः॥
जो अग्निदेव जल, वन, स्थावर और जंगम के बीच अवस्थान करते हैं, उन्हें यज्ञ गृह और पर्वत के ऊपर लोग हवि प्रदान करते हैं। जैसे प्रजा वत्सल राजा प्रजा के हित के लिए कार्य करते हैं, वैसे ही अमर अग्निदेव हमारे हितकर कार्यों को सम्पादित करते हैं।[ऋग्वेद 1.70 .2]
हे अग्ने! जल, वन, स्थावर, जंगम के बीच विद्यमान अमर ध्यान परिपूर्ण प्राणधारियों को आत्मा के समान तुमको यजमान के गृह या पर्वत पर हलि देते हैं।
The devotees make offerings to the immortal Agni Dev at the site of the Yagy & the mountains, who is present-resides in water, forests, fixed and movable living beings. He acts as the caring king who make efforts to protect his populace.
स हि क्षपावाँ अग्नी रयीणां दाशद्यो अस्मा अरं सुक्तै:।
एता चिकित्वो भूमा नि पाहि देवानां जन्म मर्तांश्च विद्वान्॥
मंत्रों द्वारा जो यजमान अग्निदेव की यथेष्ट स्तुति करता है, उसे रात्रि में प्रदीप्त अग्निदेव धन देते हैं। हे सर्वज्ञाता अग्निदेव! आप देवों और मनुष्यों के जन्म को जानते हो, इसलिए समस्त जीवों का पालन करें।[ऋग्वेद 1.70 .3]
रात्रि में अग्नि श्रेष्ठ वंदना करने वालों को धन देते हैं। हे चैतन्य देव अग्नि! तुम देवता और प्राणियों को जानते हुए उनकी रक्षा करने वाले हो।
Blessed with intuition, hey Agni Dev you grant wealth at night, to those devotees-hosts, who prays-worship you. You are aware of all the previous deeds of demigods-deities and the humans. Hence you support-nourish them.
वर्धान्यं पूर्वीः क्षपो विरूपाः स्थातुश्च रथमृतप्रवीतम्।
अराधि होता स्वर्निषत्तः कृण्वन्विश्वान्यपांसि सत्या॥
विभिन्न-स्वरूप होकर भी उषादेवी और रात्रि अग्निदेव का वर्द्धन करती हैं। स्थावर और जंगम पदार्थ यज्ञ वेष्टित अग्नि देव को वर्द्धिन करते हैं। देवों के आह्वानकारी वही अग्निदेव पूजन स्थान में बैठकर और सारे यज्ञ कर्मों को सत्य फल सम्पन्न करके पूजित होते हैं।[ऋग्वेद 1.70 .4]
अनेक रूप वाली उषा और रात जिस अग्नि को बढ़ाती है, वह अग्नि स्थावर और जंगम प्राणियों के लिए यज्ञ में प्रतिष्ठित कर, श्रेष्ठ कर्मों के अनुष्ठानों द्वारा प्रसन्न किये जाते हैं।
Usha Devi and the night helps Agni Dev grow. Praying-worshiping with the help of fixed (stationary, inertial) and movable objects-materials, the devotees make Agni Dev grow-happy with the help of Yagy (Agnihotr, Hawan, holy sacrifices in fire).
गोषु प्रशस्तिं वनेषु धिषे भरन्त विश्वे बलिं स्वर्ण:।
वि त्वा नरः पुरुत्रा सपर्यन्पितुर्न जिव्रेर्वि वेदो भरन्त॥
हे अग्रिदेव! हमारे काम में आने योग्य गौओं को उत्कृष्ट करें। सारा संसार हमारे लिए ग्रहण योग्य उपासना रूप धनों से पूर्ण करें। अनेक देव स्थानों में मनुष्य आपकी विविध प्रकार से पूजा करते हैं तथा वृद्ध पिता के पास से पुत्र की तरह आपके पास से धन प्राप्त करते हैं।[ऋग्वेद 1.70 .5]
हे अग्ने! तुम्हारे गुण रश्मियों और नक्षत्रों में भी दृढ़ हैं। वे सभी हमको ज्योति प्रदान करते हैं। अनेक कालों से मनुष्य तुम्हारी अर्चना करता आया है और बूढ़े पिता से पाने के तुल्य तुमसे धन पाता रहा है।
Hey Agni Dev! Please make the cows excellent, useful to us. Let the whole world be full of the materials used by us for prayers-worship. Humans make offerings, prayers in various temples-places of worship by different means-modes. Let us obtain riches-money just the way, a son get it from his old parents.
साधुर्न गृध्नुस्तेव शूरो यातेव भीमस्त्वेषः समत्सु।
साधक की तरह अग्निदेव धन अधिकृत करते हैं। अग्निदेव धनुर्द्धर की तरह शूर, शत्रु की तरह भयंकर और युद्ध क्षेत्र में तेजस्विता की प्रति मूर्ति होते हैं।[ऋग्वेद 1.70 .6]
वे अग्नि परोपकारी के तुल्य शुभ इच्छा वाले, शस्त्र चलाने वाले के तुल्य पराक्रमी, तुल्य विकराल और रण क्षेत्र में साक्षात तेज हैं।
Agni Dev authorises-grants wealth like a devotee-practitioner. He is brave like a bow-arrow shooter, fierce and full of energy in the war-battle fied.
(Normally a Shlok has two lines, but this one has just one, might be missing. Trying to get full-complete version.)
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (71) :: ऋषि :- पराशर, शात्तय, देवता :- अग्नि, छन्द :- त्रिष्टुप्।
उप प्र जिन्वन्नुशतीरुशन्तं पतिं न नित्यं जनयः सनीळा:।
स्वसारः श्यावी मरुषी मजुष्ञ्चित्रमुच्छन्तीमुषसं न गावः॥
जिस प्रकार से स्त्री पति को प्रसन्न करती है, वैसे ही एक स्थान वर्तिनी और आकांक्षिणी भगिनी रूपिणी अँगुलियाँ अभिलाषी अग्निदेव को हव्य प्रदान द्वारा प्रसन्न करती हैं। पहले उषा कृष्णवर्णा और पीछे शुभ्रवर्णा होती है। उन उषा की जैसे किरणें सेवा करती हैं, वैसे ही सारी अँगुलियाँ अग्निदेव की सेवा करती हैं।[ऋग्वेद 1.71.1]
स्नेह पूर्ण भार्याओं के काम्यपतियों को ग्रहण करने के तुल्य समान संगठित रहने वाली उंगलियाँ अग्नि को हर्षित करती हैं काले रंगवाली, फिर पीले और अरुण रंग वाली उषा की जैसे रश्मियाँ सेवा करती हैं वैसे ही उंगलियाँ अग्नि की सेवा करती हैं।
The manner in which a loving wife makes her husband happy, the fingers serve the Agni Dev, together-unitedly, by making offerings. Usha-the day break is dark in colour initially and later becomes bright-shinning bearing fair colour.
वीळु चिदृळ्हा पितरो न उक्थैरद्रिं रुजन्नङ्गिरसो रवेण।
चक्रुर्दिवो बृहतो गाआपस्मे अहः स्वर्विविदुः केआपुस्त्राः॥
हमारे अङ्गिरा नाम के पितरों ने मंत्र द्वारा अग्निदेव की स्तुति करके बली और दृढ़ाङ्ग पणि नामक असुर को स्तुति शब्द द्वारा ही नष्ट किया था और हमारे लिए महान् द्युलोक का मार्ग प्रशस्त किया। इसके बाद ही उन्होंने सुखकर दिवस, आदित्य और पणि द्वारा अपहृत गौओं को पाया था।[ऋग्वेद 1.71.2]
हमारे पूर्वज अंगिरा ने मंत्रों द्वारा अग्नि की वंदना की और पणि नामक दैत्य को नाद से ही नष्ट कर दिया। तब आसमान के रास्ते में दिन में ज्योति रूप सूर्य और ध्वज रूपी किरणों को हमने प्राप्त किया।
Our ancestor-Pitr Angira prayed to Agni Dev and killed the demons called Bali & Pani, just by reciting Mantr (words) & cleared our path to the outer universe, allowing the comfortable Sun light to reach us. Its only then that they recovered the cows, abducted by the demons.
दधन्नृतं धनयन्नस्य धीतिमादिदर्यो दिधिष्यो ३ विभुत्रा:।
अतृष्यन्तीरपसो यन्त्यच्छा देवाञ्जन्म प्रयसा वर्धयन्ती:॥
अहिरावंशियों ने यज्ञ रूप अग्नि देव को धन की तरह धारित किया। अनन्तर धन को तेज और पुष्टि को धारित करने की इच्छुक प्रजाओं ने हवियों द्वारा देवों की पुष्ट करते हुए अग्नि देव को प्राप्त किया।[ऋग्वेद 1.71.3]
अंगिरा ने यज्ञाग्नि को धारण किया और अग्नि को ही तपस्या का लक्ष्य बनाया। फिर मनुष्यों ने अग्नि की स्थापना की और उसे धारण कर सेवारत हुए। उनकी हवियाँ देवों और मनुष्यों की वृद्धि करती हुई अग्नि को ग्रहण होती हैं।
The descendants of Angira wore the holy fire as a wealth. Thereafter the populace, masses, common men served Agni Dev and boosted his shine by making offerings and attained him.
मथीद्यदीं विभृतो मातरिश्वा गृहेगृहे श्येतो जेन्यो भूत्।
आदी राज्ञे न सहीयसे सचा सन्ना दूत्यं १ भृगवाणो विवाय॥
मातरिश्वा या व्यान वायु के विलोड़ित करने पर शुभ्र वर्ण होकर अग्नि देव समस्त यज्ञ गृह में प्रकट होते है। उस समय जिस तरह मित्र राजा प्रबल राजा के पास अपने आदमी को दूत कर्म में नियुक्त करता है, उसी तरह भृगु ऋषि की तरह यज्ञ सम्पादक यजमान अग्नि को दूत कर्म में नियोजित करता है।[ऋग्वेद 1.71.4]
मातरिश्वा द्वारा अग्नि के मथे जाने पर यह उज्ज्वल ज्योतिवाले घर-घर में प्रकट हुए। फिर भृगु के समान मनुष्यों ने इस अग्नि को दूत बनाया, जैसे कमजोर राजा अधिक शक्तिशाली राजा के पास दूत भेजता है।
On churning by Matrishva, bright Agni Dev appeared in the house meant for Yagy. The way a weak king send his messenger to a friendly powerful king, the host performing Yagy like Bhragu Rishi seek Agni Dev as an ambassador.
महे यत्पित्र ई रसं दिवे करव त्सरत्पृशन्यश्चिकित्वान्।
सृजदस्ता धृषता दिद्युमस्मै स्वायां देवो दुहितरि त्विरषिं धात्॥
जिस समय यजमान महान् और पालक देवता को हव्य रूप रस देता है, उस समय अग्निदेव स्पर्शन कुशल राक्षस आदि आपको हविर्वाहक जानकर भाग जाते हैं। बाण प्रक्षेपक अग्निदेव भागते हुए राक्षसों के ऊपर अपने रिपु संहारी धनुष से दीप्तिशाली बाण फेंकते हैं और प्रकाशशाली अग्निदेव अपनी पुत्री उषा में अपना तेज स्थापित करते हैं।[ऋग्वेद 1.71.5]
तब उसके श्रेष्ठ कार्य को जानकर दैत्यादि पलायन करते हैं। उस समय अग्नि अपने प्रदीप्त बाणों को उन पर चलाते और सूर्य रूप से उषा में तेज दृढ़ करते हैं।
The moment the host carrying out Yagy make offerings in the form of liquids, the demons runs away. Agni Dev shot arrows over them with his shinning-stunning bow. Then Agni Dev fills Usha Devi-the daughter of Sun with energy, like his own daughter.
स्व आ यस्तुभ्यं दम आ विभाति नमो व दाशादुशतो अनु द्युन्।
वर्धो अग्नि वयो अस्य द्विबर्हा यासद्राया सरथं यं जुनासि॥
हे अग्निदेव। अपने यज्ञ गृह में मर्यादा के साथ जो यजमान आपको चारों ओर प्रज्वलित करता है और अनुदिन अभिलाषा करके आपको अन्न प्रदान करता है। हे दो मध्यम उत्तम स्थानों में वर्धित अग्नि देव! आप उनका अन्न वर्धित करते हैं। जो आपकी प्रेरणा से रथ सहित युद्ध में जाता है, वह धन से युक्त होता है।[ऋग्वेद 1.71.6]
हे अग्ने! अपने गृह में तुम्हें प्रदीप्त करने वाला याचक तुमको हविरूप अन्न प्रदान करता है। तुम उसे अपनी दोगुनी शक्ति से परिपूर्ण करो। तुम्हारी शिक्षा से जो मनुष्य द्वन्द्व में जाता है वह धन ग्रहण करता है।
Hey Agni Dev! You grant wealth-riches to the host-devotee who lit you all around by making offerings in the form of food grains. You increase his stock of food grains with double speed. One who goes to the battle ground with his chariot (arms and ammunition) inspired by you, gains wealth.
अग्नि विश्वा अभि पृक्षः सचन्ते समुद्रं न स्त्रवतः सप्त यह्वी:।
न जामिभिर्वि चिकिते वयो नो विदा देवेषु प्रमतिं चिकित्वान्॥
जिस प्रकार विशाल सातों नदियाँ समुद्र को प्राप्त होती हैं, उसी प्रकार हव्य का अन्न अग्नि देव को प्राप्त होता है। अन्य महान् देवों के लिए यह हाविष्यान्न पर्याप्त है अथवा नहीं, यह हम नहीं जानते। इसलिए आप अन्नादि वैभव हमें प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.71.7]
जैसे सातों सरिताएँ सागर में जा मिलती हैं वैसे ही सभी हवियाँ अग्नि में जा मिलती हैं। हमारा अन्न सम्बन्धी भी नहीं पा सकते। अतः देवगणों से हमको अधिक मात्रा में धन दिलाओ। (जिससे हम उसे संबंधियों तथा अन्य लोगों को दे सकें।)
The way the vast seven rivers join the ocean, the offerings in the form of food grains are obtained by Agni Dev. We are unaware of the fact, whether the offerings made by us are sufficient for the demigods-deities or not. Therefore, you provide us with food grains & amenities which are sufficient in quantity.
आ यदिषे नृपतिं तेज आनट्छुचि रेतो निषिक्तं द्यौरभीके।
अग्निः शर्धमनवद्यं युवानं स्वाध्यं जनयत्सूदयच्च॥
अग्नि देव का विशुद्ध और दीप्तिमान तेज अन्न प्राप्ति के लिए मनुष्य पालक अथवा यजमान आदि में व्याप्त है। उसी तेज द्वारा अग्रिदेव गर्भ निषित्त वीर्य बलवान् प्रशस्य युवक और शोभनकर्मा सन्तानों को जन्म दें और उस बलवान् अनिन्द्य युवा शोभन कर्म करने वाले को यज्ञादि श्रेष्ठ कर्मों में प्रेरण करें।[ऋग्वेद 1.71.8]
जब मनुष्यों के स्वामी अग्नि ने अन्न के लिए तेज धारण किया, तब उसने क्षितिज के गर्भ में बीज को डाला। इससे अनिद्य युवा, उत्तम कर्म वाले मरुत रचित हुए, जिन्हें वृष्टि के लिए प्रेरित किया।
The tremendous energy possessed by Agni Dev is present in the humans. He utilise this to seed strong and virtuous progeny and inspire the progeny to conduct Yagy Karm (endeavours).
मनो न योऽध्वनः सद्य एत्येकः सत्रा सूरो वस्व ईशे।
राजाना मित्रावरुणा सुपाणी गोषु प्रियममृतं रक्षमाणा॥
मन की तरह शीघ्रगामी जो सूर्यदेव स्वर्गीय पद में अकेले जाते हैं, वे तुरन्त ही विविध धन प्राप्त करते हैं। शोभन और सुबाहु मित्र और वरुणदेव हमारी गौओं के प्रीतिकर और अमृत तुल्य दूध की रक्षा करते हुए अवस्थान करें।[ऋग्वेद 1.71.9]
मन के समान द्रुतगति वाले, मेधावी लोगों को दाता सुन्दर भुजाओं वाले सखा और वरुण हमारी गौओं के श्रेष्ठ और अमृत तुल्य दूध की रक्षा करें।
Sury Dev who moves fast like the innerself-Man, becomes alone in his heavenly path and gets various kinds of wealth. Let Mitr & Varun Dev protect the excellent milk of our cows.
मा नो अग्रे सख्या पित्र्याणि प्र मर्षिष्ठा अभि विदुष्कविः सन्।
नभो न रूपं जरिमा मिनाति पुरा तस्या अभिशस्तेरधीहि॥
हे अग्निदेव! हमारी पैतृक मित्रता नष्ट न करें, क्योंकि आप भूत दर्शीं और वर्तमान विषय के ज्ञाता हैं। जिस प्रकार से सूर्य की किरणें अन्तरिक्ष को ढँक लेती हैं, उसी प्रकार वृद्धावस्था हमारा विनाश करती है। विनाश कारण वृद्धावस्था जिस प्रकार न आने पाये, वैसा करें।[ऋग्वेद 1.71.10]
हे अग्ने! सर्वज्ञाता और मेधावी तुम हमारी-पैतृक मित्रता को न भूलो। वृद्धावस्था कायर के तुल्य आकार हमको समाप्त करता है। अत: वह हमारे नाश को न आवें, उससे पूर्व ही वह उपाय करो।
Hey Agni Dev! Please maintain our family friendship. You are aware of the past and present events. Please do something so that we are not affected by the old age.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (72) :: ऋषि :- पराशर, शात्तय, देवता :- अग्नि, छन्द :- त्रिष्टुप्।
नि काव्या वेधसः शश्वतस्कर्हस्ते दधानो नर्या पुरूणि।
अग्निर्भुवद्रयिपती रयीणां सत्रा चक्राणो अमृतानि विश्वा॥
ज्ञानी नित्य अग्निदेव की स्तुति आरम्भ करें अथवा नित्य ब्रह्मा के मंत्र अग्निदेव ग्रहण करते हैं। ये मनुष्यों के हित साधक धन हाथ में धारण करते हैं। अग्निदेव स्तुति कर्त्ताओं को अमृत या सुवर्ण प्रदान करते हैं। ये ही सर्वोच्च धन के अधिपति हैं।[ऋग्वेद 1.72.1]
मनुष्य की भलाई करने वाले अग्निदेव अनेक सा धन हाथ में लिए हुए हैं। वे ईश्वर के ज्ञान से समस्त रमणीक धनों को रचित करते हुए समृद्धियों के स्वामी होते हैं।
The enlightened pray-worship Agni Dev utilising the Mantr meant for the worship of Brahma Ji. Agni Dev keeps money in his hands for the welfare of the humans. He grants elixir or gold to the worshippers. He is the ultimate keeper of riches-wealth.
अस्मे वत्सं परि षन्तं न विन्दन्निच्छन्तो विश्वे अमृता अमूराः।
श्रमयुवः पदव्यो धियंधास्तस्थुः पदे परमे चार्वग्रेः॥
समस्त अमरण धर्मा देवगण और मोह रहित मरुद्गण, अनेक कामना करने पर भी प्रिय और सर्वव्यापी अग्निदेव को नहीं पा सके। पैदल चलते-चलते थककर और अग्नि प्रकाश को लक्ष्य कर अन्त में वे लोग अग्निदेव के घर में उपस्थित हुए।[ऋग्वेद 1.72.2]
हमारी प्रिय अग्नि की कामना होते हुए भी अमर और सुमति वाले देवताओं ने उन्हें सही ढंग से नहीं जाना। तब वे थके हुए पैरों से चलते हुए, ध्यानपूर्वक अग्नि के स्थान में पहुँचे।
Immortal demigods-deities and relinquishes-detached Marud Gan could not reach Agni Dev. Then they walked to his abode guided by the light produced by him.
तिस्त्रो यदग्रे शरदस्त्वामिच्छुचिं घृतेन शुचयः संपर्यान्।
नामानि चि यज्ञियान्यसूदयन्त तन्वः सुजाताः॥
हे दीप्तिमान् अग्निदेव! दीप्तिमान् मरुतों ने तीन वर्ष तक आपकी घृत से पूजा की। अनन्तर उन्हें यज्ञ में प्रयोग योग्य नाम और उत्कृष्ट अमर शरीर प्राप्त हुआ।[ऋग्वेद 1.72.3]
हे अग्ने! जब मुरुतों ने तीन वर्ष तक तुम्हारा घृत से पूजन किया तब उन्होंने घृत योग्य नामों को धारण कर उच्च देवों में उत्पन्न हो, अमर तत्व को प्राप्त किया।
Hey shinning Agni Dev! Brilliant Marud Gan prayed-worshipped you with the help of Ghee. Thereafter, they attained suitable titles-names for carrying out Yagy and attainted immortal bodies.
आ रोदसी बृहती वेविदानाः प्र रुद्रिया जभ्रिरे यज्ञियासः।
विदन्ममर्तो नेमधिता चिकित्वानग्निं पदे परमे तस्थिवांसम्॥
यज्ञार्ह देवों ने विशाल द्युलोक और पृथ्वी में विद्यमान रहकर रुद्र या अग्निदेव के उपयुक्त स्तोत्र किए। मरुद्रणों ने इन्द्रदेव के साथ उत्तम स्थान में निहित अग्निदेव को जानकर उसे प्राप्त किया।[ऋग्वेद 1.72.4]
सर्वश्रेष्ठ धरा और आकाश का ज्ञान कराते हुए पूजनीय मरुतों ने अग्नि के योग्य श्लोकों को भेंट किया, तब उन्होंने श्रेष्ठ स्थान में दृढ़ अग्नि को पाया।
The demigods-deities recited suitable Strotr-hymns in the honour of Agni Dev stationed over the earth & the heavens. Marud Gan attained excellent position close to-proximity of Indr Dev by praying-worshipping Agni Dev.
संजानाना उप सीदन्नभिज्ञु पत्नीवन्तो नमस्यं नमस्यन्।
रिरिकांसस्तन्वः कृण्वत स्वाः सखा सख्युर्निमिषि रक्षमाणाः॥
हे अग्निदेव! देवता आपको अच्छी तरह जानकर बैठ गये और अपनी स्त्रियों के साथ सम्मुखस्थ जानुयुक्त अग्नि की पूजा की। अनन्तर मित्र अग्निदेव को देखकर, अग्नि देव के द्वारा
रक्षित, मित्र देवों ने अग्निदेव के शरीर का शोषण कर यज्ञ किया।[ऋग्वेद 1.72.5]
देवगण दत्तचित्त हुए जांघ के बल बैठे और भार्याओं युक्त उनकी अर्चना की। फिर अग्नि को मित्र जानकर शोषण कर अनुष्ठान किया और अपने शरीरों की सुरक्षा की।
Hey Agni Dev! Having recognised-understood you, the demigods-deities set in Yog postures over their thighs and prayed-worshiped you. Thereafter, the demigods-deities performed Yagy for protecting their bodies.
त्रिः सप्त यद्गुह्यानि त्वे इत्पदाविदन्निहिता यज्ञियास:।
तेभी रक्षन्ते अमृतँ सजोषाः पशूञ्च स्थातृञ्चरथं च पाहि॥
हे अग्निदेव! आपके अन्दर निहित एकविंशति (21) निगूढ़ पदों या यज्ञों को यजमानों ने जाना है और उन्हीं से आपकी पूजा करते हैं। आप भी यजमानों के प्रति उसी प्रकार स्नेह युक्त होकर उनके पशु और स्थावर जंगम की रक्षा करें।[ऋग्वेद 1.72.6]
हे अग्ने! तुममें स्थित जिन इक्कीस गूढ़ पदों को देवताओं ने प्राप्त किया, वे उनसे अपनी रक्षा करते हैं। हे अग्ने! तुम पशुओं तथा स्थावर-जंगम की रक्षा करो।
Hey Agni Dev! 21 intricate stanzas-hymns available with you, were obtained the demigods-deities and they prayed-worshiped you with them. You should protect the fixed and movable living beings with the help of these hymns.
विद्वाँ अग्ने वयुनानि क्षितीनां व्यानुषक्छुरुधो जीवसे धाः।
अन्तर्विद्वाँ अध्वनो देवयानानतन्द्रो दूतो अभवो हविर्वाट्॥
हे अग्निदेव! समस्त जानने योग्य विषयों को जानकर प्रजाओं के जीवन धारण के लिए क्षुधा निवृत्ति करें। आकाश और पृथ्वी पर जिस मार्ग से देवलोक जाते हैं, यह जानकर और आलस्य का त्याग कर दूत रूप से हव्य ग्रहण करें।[ऋग्वेद 1.72.7]
हे अग्ने! प्राणियों के व्यवहारों के ज्ञाता तुमने जीवन के लिए अन्नों की स्थापना की तथा देव मार्गों को जानते हुए तुम निरालस्य हुए, हविवाहक दूत बने।
Hey Agni Dev! You should know every thing, ought to be known and reject your hunger for carrying on life. Accept the offerings by rejecting laziness and identify the routes through which one can move to the heavens from the sky and the earth.
स्वाध्यो दिव आ सप्त यह्वी रायो दुरो व्यृतज्ञा अजानन्।
विदद्गव्यं सरमा दृळहमूर्वं येना नु कं मानुषी भोजते विट्॥
हे अग्निदेव! शोभन कर्मयुक्ता विशाल सात नदियाँ द्युलोक से निकली हैं। ये सारी नदियाँ अग्निदेव द्वारा स्थापित हैं। आपकी प्रेरणा से सरमा ने गायों को ढूँढ़ लिया, जिससे सभी मानवी
प्रजाएँ सुखपूर्वक पोषण पाती हैं।[ऋग्वेद 1.72.8]
हे अग्ने! ध्यान से दृष्टि ऋग्वेद के सिद्धान्तों को जानने वाले ऋषियों ने क्षितिज से निकली सप्त नदियों को धन का द्वार रूप समझा। तुम्हारी शिक्षा से सरमा ने गौओं को खोज लिया जिससे मनुष्यों का पालन होता है।
Hey Agni Dev! The 7 divine rivers established by you, emerged from the heavens are put to pious decent uses. Inspired by you, Sarma traced the cows from which the humans obtain nourishment, comfortably-easily.
आ ये विश्वा स्वपत्यानि तस्थुः कृण्वानासो अमृतत्वाय गाआप्।
मह्ना महाद्भि: पृथिवी वि तस्थे माता पुत्रैरदितिर्धायसे वेः॥
जो देवगण समस्त उत्तम कर्मों का सम्पादन कर अमरत्व को प्राप्त करने का रास्ता बनाने हैं, उन सभी उत्तम कर्म करने वाले देवपुत्रों के साथ माता अदिति, सम्पूर्ण पृथ्वी को धारणा पोषण के लिए अपनी महिमा से अधिष्ठित हैं। हे अग्निदेव! स्वयं आप उन देवगणों द्वारा सम्पन्न किए जाने वाले यज्ञ की हवियों को स्वीकार (ग्रहण) करें।[ऋग्वेद 1.72.9]
हे अग्ने! जिन्होंने श्रेष्ठ कर्मों द्वारा अमर तत्व प्राप्ति का प्रयास किया, उन्हीं के सत्कर्मों से यह पृथ्वी महिमा पूर्वक अपने स्थान पर स्थित है।
Hey Agni Dev! Dev Mata is establishing-maintaining the earth in its orbit with the help of her sons demigods-deities, providing nourishment to the immortal demigods-deities who are committed to all sorts of virtuous, pious, righteous, Satvik deeds. Hey Agni Dev! You yourself accept the offerings in the Yagy performed by them.
अधिश्रियं नि दधुश्चारुस्मिन्दिवो यदक्षी अमृता अकृण्वन्।
अध क्षरन्ति सिन्धवो न सृष्टाः प्र नीचीरग्ने अरुषीरजानन्॥
द्युलोक अर्थात् स्वर्गलोक के अमर देवों ने इस संसार में उत्तम सुन्दर, तेज स्थापित किया और दो नेत्र बनायें, तब प्रेरित नदियों के विस्तार की तरह अवतलित होती देवी उषा को मनुष्य जान पाए।[ऋग्वेद 1.72.10]
देवताओं ने इस लोक में सुन्दर शोभा स्थापित कर आकाश को दो नेत्र दिये। इसके बाद ही प्राणी नदियों के समान नीचे उतरती हुई उषा को जान सकें।
The immortal demigods-deities provided two eyes to the sky with their energy & power. Its only after that Usha Devi could be recognised appearing like the rivers descending from the heavens.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (73) :: ऋषि :- पराशर, शात्तय, देवता :- अग्नि, छन्द :- त्रिष्टुप्।
रयिर्न यः पितृवित्तो वयोधाः सुप्रणीतिश्चिकितुषो न शासुः।
स्योनशीरतिथिर्न प्रीणानो होतेव सद्म विधितो वि तारीत्॥
पिता के धन की तरह अग्निदेव अन्नदाता हैं; शास्त्रज्ञ व्यक्ति के उपदेश के तुल्य उत्तम प्रेरणा देनेवाले हैं, घर में आये हुए अतिथि की तरह प्रिय और होता की तरह यजमान को घर प्रदान करने वाले हैं।[ऋग्वेद 1.73.1]
यह अग्निदेव पैतृक धन के समान प्रदान करते हैं, मेधावी के समान सम्राट हैं। अतिथि के तुल्य प्रिय हैं तथा होता के तुल्य यजमान के गृह की वृद्धि करते हैं।
Agni Dev grants food grains like the wealth of the father. He provide inspiration like a scholar. He is dear like a guest in the house. He boosts the wealth of the Ritvij like a host.
देवो न यः सविता सत्यमन्मा क्रत्वा निपाति वृजनानि विश्वा।
पुरुप्रशस्तो अमतिर्न सत्य आत्मेव शेवो दिधिषाय्यो भूत्॥
प्रकाशमान सूर्य की तरह यथार्थदर्शी अग्निदेव अपने कार्य द्वारा समस्त दुःखों से (प्राणियों की) रक्षा करते हैं। यजमानों के प्रशंसित अग्निदेव प्रकृति के स्वरूप की तरह परिवर्तन रहित हैं। अग्निदेव आत्मा की तरह सुखकर हैं। ऐसे अग्निदेव सबके धारणीय है।[ऋग्वेद 1.73.2]
जाञ्चल्यमान सूर्य के तुल्य प्रकाशमान अग्निदेव अपने कार्यों द्वारा रक्षक हैं। मनुष्यों से प्रशंसा पाये हुए वे प्रकृति के तुल्य परिवर्तनशील नहीं हैं। वे आत्मा के समान सन्तोषी और यजमान द्वारा प्राप्त किये जाते हैं।
Agni Dev visualises the reality, pains, worries, sorrow of the living beings like shinning Sury Bhagwan-Sun. He does not change like the nature. He provides solace, peace, tranquillity, comforts like the soul. Every one respect him.
देवो न यः पृथिवीं विश्वधाया उपक्षेति हितमित्रो न राजा।
पुरःसदः शर्मसदो वीरा अनवद्या पतिजुष्टेव नारी॥
द्युतिमान् सूर्य की तरह अग्निदेव समस्त संसार को धारित करते हैं। अनुकूल सुहृद् से सम्पन्न राजा की तरह अग्निदेव पृथ्वी पर निवास करते हैं। संसार अग्रिदेव के सामने पितृ गृह में पुत्र की तरह विशुद्ध हैं।[ऋग्वेद 1.73.3]
दीप्तिमान सूर्य के समान संसार के धारक यह अग्नि अनुकूल अनुचरों से सम्पन्न राजा के समान निर्भय हैं। सभी जीव उसके पितृ तुल्य आश्रम में रहते हैं और पतिव्रता प्रशंसित नारी के समान अग्नि का अभिनन्दन करते हैं।
Agni Dev bear-nurtures the whole universe like the shinning Sun. He resides over the earth the king who favours the populace. The universe is like a son for Agni Dev, in his parents house.
तं त्वा नरो दम आ नित्यमिद्धमग्ने सचन्त क्षितिषु ध्रुवासु।
अधि दधुर्भूर्यस्मिन्भवा विश्वायुर्धरुणो रयीणाम्॥
हे अग्नि देव! संसार उपद्रव शून्य स्थान पर अपने घर में अनवरत काष्ठ को जलाकर आपकी सेवा करता है। साथ ही अनेक यज्ञों में अन्न भी प्रदान करता है। आप विश्वायु अथवा सर्वान्न होकर हमें धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.73.4]
हे अग्ने! उपद्रव रहित घरों में प्रदीप्त हुए तुम्हारी मनुष्यगण सेवा करते हैं। देवगणों ने तुम में अत्यधिक तेज भरा है तुम सबके प्राण रूप हो। हमारे लिए सभी धनों को प्रदान करो।
Hey Agni Dev! The universe continously serve you at disturbances free places-houses. It provides food grains in the yagy as well. You should grant us riches-wealth, amenities by becoming nurturer.
वि पृक्षो अग्ने मघवानो अश्युर्वि सूरयो ददतो विश्वमायुः।
सनेम वाजं समिथेष्वर्यो भागं देवेषु श्रवसे दधानाः॥
हे अग्निदेव! धनशाली यजमान अन्न प्राप्त करे। जो विद्वान् आपकी स्तुति करते और हव्य प्रदान करते हैं, वे दीर्घ आयु प्राप्त करें। हम युद्ध के मैदान में शत्रुओं का अन्न लाभ करें।अनन्तर यश के लिए देवों का अंश देवों को अर्पण करें।[ऋग्वेद 1.73.5]
हे अग्ने! सम्पन्न यजमान अन्न ग्रहण करें। हविदाता पूर्ण आयु ग्रहण करें। अनुष्ठान के लिए देवों को हवि प्रदान करते हुए हम संग्राम में शत्रु के अन्न को ग्रहण करें।
Hey Agni Dev! Wealthy hosts-Ritvij should attain food. Those scholars, Pandits, enlightened who worship should get enhanced longevity. We should gain food by winning the enemies and make offerings to the demigods-deities.
ऋतस्य हि धेनवो वावशानाः स्मदूध्नी: पीपयन्त द्युभक्ताः।
परावतः सुमतिं भिक्षमाणा वि सिन्धवः समया सस्रुरद्रिम्॥
नित्य दुग्धशालिनी और तेजस्विनी गायें अग्निदेव की अभिलाषा करके यज्ञस्थान में अग्निदेव को दुग्ध पान कराती हैं। प्रवहमाना नदियाँ अग्निदेव के पास अनुग्रह करके पर्वत के देश से प्रवाहित होती हैं।[ऋग्वेद 1.73.6]
प्रतिदिन दूध देने वाली गौएँ इच्छा पूर्वक अनुष्ठान स्थान में अग्नि को दूध से सींचती हैं। कल्याणकारिणी सरिताएँ, पर्वत के पास से बहती हुई अग्नि के सम्मुख झुकती हैं।
Every day, the milking cows provide milk to Agni Dev, at the Yagy site. Flowing rivers move to plains from the mountainous regions, due to the mercy-blessings of Agni Dev.
त्वे अग्ने सुमतिं भिक्षमाणा दिवि श्रवो दधिरे यज्ञियासुः।
नक्ता च चक्रुरुषसा विरूपे कृष्णं च वर्णमरुणं च सं धुः॥
हे द्युतिमान् अग्निदेव! यज्ञाधिकारी देवों ने आपके अनुग्रह की याचना करके आपके ऊपर हव्य स्थापित किया है। अनन्तर भिन्न-भिन्न अनुष्ठान के लिए उषा और रात्रि को भिन्न रूपिणी किया है। रात्रि को कृष्णवर्ण और उषा को अरुणवर्ण किया है।[ऋग्वेद 1.73.7]
हे अग्ने! बुद्धि की याचना करते हुए पूजनीय देवताओं ने तुमको यशस्वी बनाया है। अनेक रूप वाली रात और उषा को अनेक अनुष्ठानों के लिए नियुक्त किया है। इन दोनों के काले और अरुण रंग हैं।
Hey shinning Agni Dev! The demigods-deities entitled for the offerings have honoured-revered you. Thereafter, they appointed Usha and the night for various rites, Agnihotr, Hawan etc. making Usha bright & Ratri-night black-dark.
यान्राये मर्तान्त्सुषूदो अग्ने ते स्याम मघवानो वयं च।
छायेव विश्वं भुवनं सिसक्ष्याप्रिवान्रोदसी अन्तरिक्षम्॥
आप जो मनुष्यों को अर्थ लाभ के लिए यज्ञ कर्म में प्रेरित करते हैं, वे और हम धनवान होंगे। आपने आकाश, पृथ्वी और अन्तरिक्ष को परिपूर्ण किया है। साथ ही आपने इस समस्त संसार पर को छाया की तरह रक्षित किया है।[ऋग्वेद 1.73.8]
हे अग्ने! तुम जिन्हें धन के लिए आकृष्ट करते हो वे और हम धनवान हों। तुम सभी संसार के संग छाया के समान रहते हो। तुम्हीं ने क्षितिज, पृथ्वी और अंतरिक्ष को ग्रहण किया।
You inspired the humans for conducting Yagy for earnings-riches. We will become wealthy by conducting Yagy. You have completed the sky, earth and the space-ether, protecting them side by side.
अर्वद्धिरग्ने अर्वतो नृभि र्नद्दन्वीरैर्वीरान्वनुयामा त्वोताः।
ईशानासः पितृवित्तस्य यो वि सूरयः शतहिमा नो अश्युः॥
हे अग्निदेव! हम आपके द्वारा सुरक्षित होकर अपने अश्व से शत्रु के अश्व का वध करेंगे। अपने योद्धाओं के द्वारा शत्रु के योद्धाओं का और अपने वीरों द्वारा शत्रुओं के वीरों का वध करेंगे। हमारे विद्वान् पुत्र पैतृक धन के स्वामी होकर सौ वर्ष जीवन का भोग करें।[ऋग्वेद 1.73.9]
हे अग्ने! तुम्हारी रक्षा में रहते हुए हमने पूर्वजों के धन को प्राप्त किया। हमारे अश्वों से शत्रु के अश्वों को, प्राणी से प्राणियों को, योद्धा से योद्धा को हटाते हुए स्तोता को शतायु प्राप्त हो।
Hey Agni Dev! Having being protected by you we will strike the enemies riding our horses, killing their horses. Our soldiers will kill the enemies warriors. Let our progeny-sons enjoy the ancestral wealth under your patronage for 100 years.
एता ते अग्न उचथानि वेधो जुष्टानि सन्तु मनसे हृदे च।
शकेम रायः सुधुरो नं तेऽधि श्रवो देवभक्तं दधानाः॥
हे मेधावी अग्निदेव! हमारे सब स्तोत्र आपके मन और अन्तःकरण को प्रिय हों। हम देवों प्रदत्त धन, वैभव और यश को धारण करते हुए सुख को प्राप्त करें।[ऋग्वेद 1.73.10]
हे मेधावी अग्ने! ये श्लोक तुमको प्रिय हों। देवताओं के दिये हुए धन को धारण करते हुए हम तुम्हारे धन वाहक रथ का दृढ़ करने में समर्थ हों।
Hey enlightened Agni Dev! Let our prayers, worship, hymns, appeals please you and your innerself. Let us enjoy the comforts, amenites granted by the demigods-deities.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (74) :: ऋषि :- गौतमो राहुगणा, देवता :-अग्नि, छन्द :- गायत्री।
उपप्रयन्तो अध्वरं मन्त्रं वोचेमाग्रये।
आरे अस्मे च शृण्वते॥
जो अग्निदेव दूर रहकर भी हमारी स्तुति श्रवण करते हैं, यज्ञ में आगमनशील अग्निदेव की हम स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 1.74.1]
दूर से भी वन्दनाओं को सुनने वाले अग्नि के लिए अनुष्ठान के निकट जाते हुए वन्दना करें।
Though away from us, yet Agni Dev listens to our prayers. We worship Agni Dev who has to arrive to facilitate our Yagy.
No Yagy can be conducted without fire. Its Agni Dev who carries the offerings to the demigods, deities and the Almighty.
यः स्नीहितीषु पूर्व्यः संजग्मानासु कृष्टिषु ।
अरक्षद्दाशुषे गयम्॥
जो अग्रि देव वधकारिणी शत्रु भूता प्रजाओं के बीच संगत होकर हविदानकारी यजमान के धन की रक्षा करते हैं, उन अग्नि देवता की हम स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 1.74.2]
जो अग्नि हिंसक स्वभाव वाली प्रजाओं के संगठित होने पर यजमान के गृह की सुरक्षा करते हैं, उनका हम पूजन करते हैं।
We worship-pray Agni Dev who protect our belongings from the violent, cruel enemies.
The demons, giants, Muslims, Christians-Britishers have been restricting the Rishis, Brahmns from conducting prayers, meditation. They are cruel, ruthless, looters. Agni Dev and divine forces protect the people engaged in Yagy, Hawan, Agnihotr and Vedic practices.
उत ब्रुवन्तु जन्तव उदग्रिर्वृत्रहाजनि।
धनंजयो रणेरणे॥
शत्रुओं का नाश करने वाले, युद्ध में शत्रुओं को पराजित कर धन जीतने वाले अग्निदेव का प्राकट्य हुआ है। सभी लोग उनकी स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 1.74.3]
अग्नि शत्रु नाशक और युद्ध में धन को जीतने वाली हैं, उनका जयघोष करो।
Agni Dev who destroys the enemies, defeat them in the war and win over their wealth has appeared. All devotees pray-acclaim him.
यस्य दूतो असि क्षये वेषि हव्यानि वीतये।
दस्मत्कृणोष्यध्वरम्॥
हे अग्निदेव! जिस यजमान के यज्ञ-गृह में आप देव-दूत होकर उनके भोजन के लिए हव्य वहन करते हैं, उस घर को आप उत्तम प्रकार से दर्शनीय बनाते हैं।[ऋग्वेद 1.74.4]
हे अग्ने! जिस भवन में दूत बने तुम देव गणों के लिए हवि वहन करते हो उस भवन में यज्ञ को अभिष्टदायक बनाते हो।
Hey Agni Dev! The house-Yagy site, where you accept the offerings meant for the demigods-deities, becomes capable of fulfilling the desires of the devotees-hosts.
तमित्सुहव्यमङ्गिरः सुदेवं सहसो यहो।
जना आहुः सुबर्हिषम्॥
हे बल के पुत्र अग्निदेव! आप यजमान को सुन्दर हवि द्रव्य से युक्त, सुन्दर देवों से और श्रेष्ठ यज्ञ से परिपूर्ण करते हैं, ऐसा लोगों का कहना है।[ऋग्वेद 1.74.5]
हे शक्ति के पुत्र अग्ने! तुम यजमान को सुन्दर हवि से परिपूर्ण सुन्दर देवों से तथा सुन्दर अनुष्ठान से पूर्ण करते हो।
Hey Agni Dev-the son of Maa Shakti-might! Its believed that you decorate the hosts-devotees, those performing Yagy are granted excellent wealth, comforts making the demigods-deities record their presence there.
(***RIG VED (1) ऋग्वेद santoshkipathshala.blogspot.com)
आ च वहासि ताँ इह देवाँ उप प्रशस्तये।
हव्या सश्चन्द्र वीतये॥
हे ज्योतिर्मय अग्निदेव! इस यज्ञ में स्तुति ग्रहण करने के लिए देवों को हमारे समीप लावें और भोजन करने के लिए उन्हें हव्य प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.74.6]
हे सुखदाता अग्ने! उन देवताओं को वंदनाएँ सुनने और हवि प्राप्त करने के लिए यहाँ लाओ।
Hey brilliant, comforts granting Agni Dev! Please let the demigods-deities accompany you in this Yagy to accept our prayers and let them dine here.
न योरुपब्दिरश्व्यः शृण्वे रथस्य कच्चन।
यदग्ने यासि दूत्यम्॥
हे अग्रिदेव! जिस समय आप देवों के दूत बनकर जाते हैं, उस समय आपके गतिशाली रथ के अश्व का शब्द सुनाई नहीं देता।[ऋग्वेद 1.74.7]
हे अग्ने! जब तुम दूत बनकर चलते हो तब तुम्हारे गतिशील रथ या अश्व की ध्वनि सुनाई नहीं पड़ती।
Hey Agni Dev! When you move as the ambassador of the demigods-deities the sound of your accelerated chariot & the horses is not heard.
त्वोतो वाज्यह्रयोऽभि पूर्वस्मादपरः।
प्र दाश्वँ अग्रे अस्थात्॥
जो पुरुष पहले निकृष्ट है, वह आपको हव्य दान करके आपके द्वारा रक्षित और अन्न-युक्त होकर ऐश्वर्यशाली बनता है।[ऋग्वेद 1.74.8]
हे अग्ने! पहले अरक्षित रहा यजमान तुमसे रक्षित होने पर पराक्रम से युक्त साहसी हुआ वृद्धि को प्राप्त होता है।
The incompetent, inactive person too become useful, active, capable after making offerings in holy fire and attain your protection, amenities-wealth and sufficient food grains. He makes progress and become brave.
उत द्युमत्सुवीर्यं बृहदग्रे विवाससि।
देवेभ्यो देव दाशुषे॥
हे प्रकाशमान अग्निदेव! जो यजमान देवों को हव्य प्रदान करता है, उसे प्रभूत, दीप्त और वीर्यशाली धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.74.9]
हे अग्ने! तुम हवि दाता के लिए सुन्दर तेज और बल को देव गणों से प्राप्त कराते हो।
Hey shinning-brilliant Agni Dev! You manage to grant sufficient wealth to the devotees-hosts, who make offerings for the sake of demigods-deities.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (75) :: ऋषि :- गौतमो राहुगण, देवता :-अग्नि, छन्द :- गायत्री।
जुषस्व सप्रथस्तमं वचो देवप्सरस्तमम्।
हव्या जुह्वान आसनी॥
हे अग्निदेव! मुख में हवियों को ग्रहण करते हुए हमारे द्वारा देवों को अतीव प्रसन्न करने वाली स्तुति वचनों को आप ग्रहण करें।[ऋग्वेद 1.75.1]
हे अग्ने! मुख में हवियों को ग्रहण कर हमारे द्वारा देवताओं को अत्यन्त हर्षित करने वाले श्लोकों को स्वीकृत करो।
Hey Agni Dev! While accepting the offerings in your mouth, please accept our prayers which makes the demigods-deities very happy.
अथा ते अङ्गिरस्तमाग्ने वेधस्तम प्रियम्।
वोचेम ब्रह्म सानसि॥
हे अङ्गिरा ऋषि के पुत्रों और मेधावियों में श्रेष्ठ अग्निदेव! हम आपके ग्रहण योग्य और प्रसन्नता दायक स्तोत्र सम्पादित करते हैं।[ऋग्वेद 1.75.2]
अंगिराओं में महान अग्ने! हम स्नेह पूर्वक तुम प्रतापी की वंदना करते हैं।
Best-excellent amongest the sons of Angira Rishi and the intellectuals-enlightened , hey Agni Dev! We sing-recite hymns & verses in your honour to please you.
कस्ते जामिर्जनानामग्ने को दाश्वध्वरः।
को ह कस्मिन्नसि श्रितः॥
हे अग्निदेव! मनुष्यों में आपका योग्य मित्र कौन है? आपका यज्ञ कौन कर सकता है? आप कौन हैं? कहाँ रहते है?[ऋग्वेद 1.75.3]
हे अग्ने! प्राणियों में तुम्हारा सखा कौन है? तुम्हारा पूजक कौन है? तुम कौन हो तथा किसके सहारे हो?
Hey Agni Dev! Who amongest the humans is fit-able for your friendship? Who can conduct Yagy for you? Who are you? Where do you live?
त्वं जामिर्जनानामग्ने मित्रो असि प्रियः।
सखा सखिभ्य ईड्य:॥
हे अग्निदेव! आप सबके बन्धु हैं, आप प्रिय मित्र हैं। आप मित्रों के स्तुति पात्र मित्र हैं।[ऋग्वेद 1.75.4]हे अग्ने! तुम मनुष्यों में सबके बन्धु हो। पूजक के रक्षक और मित्र के लिए पूजनीय हो।
Hey Agni Dev! You are brotherly, friendly to all. You are the friend of friends, who deserve prayers-worship.
यजा नो मित्रावरुण यजा देवाँ बृहत्।
अग्रे यक्षि स्वं दमम्॥
हे अग्निदेव! हमारे लिए मित्र और वरुण देव की अर्चना करें और देवों की पूजा करें। विशाल यज्ञ को सम्पादित करें और अपने यज्ञ गृह में गमन करें।[ऋग्वेद 1.75.5]
हे अग्ने! तुम हमारे लिए सखा, वरुण तथा अन्य देवताओं की अर्चना करो। अपने अनुष्ठान वाले गृह में वास करो।
Hey Agni Dev! Please conduct prayers meant for the demigods, deities & Mitra Varun. Initiating the large Yagy, please enter-reside your site of Yagy.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (76) :: ऋषि :- गोतमो राहूगण, देवता :- अग्नि, छन्द :- त्रिष्टुप्।
का त उपेतिर्मनसो वराय भुवदग्रे शंतमा का मनीषा।
को वा यज्ञैः परि दक्षं त आप केन वा ते मनसा दाशेम॥
हे अग्निदेव! आपको प्रसन्न करने का क्या उपाय है? आपकी आनन्ददायिनी स्तुति कैसी है? आपकी क्षमता का पर्याप्त यज्ञ कौन कर सकता है? कैसी बुद्धि के द्वारा आपको हव्य प्रदान किया जाय?[ऋग्वेद 1.76.1]
हे अग्ने! तुम्हारा हृदय संतुष्ट करने के लिए तुम्हारे निकट कौन सी वन्दना करें जो तुमको सुख प्रदान करने वाली हो?तुम्हारे सामर्थ्य के योग्य कौन सा अनुष्ठान करें? किस मति से तुम्हें हवि प्रदान करें?
Hey Agni Dev! what are the ways & means to appease you?! What type of prayer you love? Who can conduct Yagy as per your capability? What type mentality should be adopted by us to make offerings to you?
एह्यग्न इह होता नि पीदादब्यः सु पुरएता भवा नः।
अवतां त्वा रोदसी विश्वमिन्वे यजा महे सौमनसाय देवान्॥
हे अग्निदेव! इस यज्ञ में पधारें। देवों को बुलाकर बैठे। आप हमारे नेता बनें; क्योंकि आपकी कोई हिंसा नहीं कर सकता। सारा आकाश और पृथ्वी आपकी रक्षा करता है एवं आप देवी को अत्यन्त प्रसन्न करने के लिए पूजा करते हैं।[ऋग्वेद 1.76.2]
हे अग्ने! यहाँ इस यज्ञ में "होता" रूप से पधारो। तुम पीड़ा रहित हुए हमारे लिए अग्रणी बनो। सभी व्यापक आकाश और धरती तुम्हारी रक्षा करें। तुम हमको श्रेष्ठ प्रसाद प्राप्त कराने के लिए देवों की अर्चना करो।
Hey Agni Dev! Join our Yagy along with the demigods-deities. Be our leader, since no one can harm you. You are devoted to Devi Bhagwati and worship-pray to her to appease her.
प्र सु विश्वान्रक्षसो धक्ष्यग्रे भवा यज्ञानामभिशस्तिपावा।
अथा वह सोमपतिं हरिभ्यामातिथ्यमस्मै चकृमा सुदाव्ने॥
हे अग्रिदेव! समस्त राक्षसों का दहन करें तथा हिंसाओं से यज्ञ की रक्षा करें। सोम रक्षक इन्द्रदेव का उनके हरि नाम के दोनों अश्वों के साथ इस यज्ञ में ले आयें। हम सुफल दाता इन्द्रदेव का अतिथि सत्कार कर सकें।[ऋग्वेद 1.76.3]
हे अग्ने! राक्षसों को दग्ध करो। अनुष्ठान को हिंसकों से बचाओ। फिर सोम स्वामी इन्द्रदेव को अश्वों से युक्त हमारे आतिथ्य के लिए लाओ।
Hey Agni Dev destroy-vanish all demons (people with demonic tendencies) and protect our Yagy from all types of violence. Let Indr Dev, the protector of Somras, accompany you along with his two horses named Hari. Let us welcome Indr Dev who grants all pious-virtuous desires.
प्रजावता वचसा वह्निरासा च हुवे नि च सत्सीह देवैः।
वेषि होत्रमुत पोत्रं यजत्र बोधि प्रयन्तर्जनितर्वसूनाम्॥
हविभक्षक अग्रिदेव का हम मनुष्यगण स्तोत्रों से आवाहन करते हैं। यजन के योग्य है आग्रदेव! आप यज्ञ में प्रतिष्ठित और पोता रूप में पोषित किये जाने वाले हैं। आप धनों को उत्पन्न करने वाले हैं। आप धन के नियामक और जन्मदाता होकर हमें जागृत करें।[ऋग्वेद 1.76.4]
तुम अग्रणी का मैं आह्वान करता हूँ। तुम देवताओं के साथ यज्ञ में उपस्थित रहते हो। हे पूज्य! तुम होता और पोता को शक्ति प्रदान करने वाले हो, तुम धनोत्पादक हो, धन के लिए मुझ पर कृपा दृष्टि रखो।
We invite Agni Dev who accept our offerings by the recitation of hymns. Hey Agni Dev! you deserve prayers-worship. You are both the host and the deity during the Yagy. You create wealth, regulate it the one to wake up-warn us, to use it properly.
यथा विप्रस्य मनुषो हविर्भिर्देवाँ अयजः कविभिः कविः सन्।
एवा होतः सत्यतर त्वमद्याग्रे मन्द्रया जुह्वा यजस्व॥
हे अग्नि देव! आप होता रूप व सत्यस्वरूप हैं। आप बुद्धिमानों में श्रेष्ठ मेघावी रूप से ज्ञानवान मनुष्यों की हवियों द्वारा देवों के संग पूजित होते हैं। आप प्रसन्नता प्रदान करने वाली आतुतियों को ग्रहण करते हैं।[ऋग्वेद 1.76.5]
हे अग्ने! तुम सत्य रूप तथा होता रूप हो। तुमने ऋषियों के सहित मेधावी मनु की हवियाँ देवगणों को ग्रहण कराईं थीं। अतः प्रसन्नता देने वाली जुहू (आहुति) ग्रहण करें।
You are the embodiment of truth. You are worshipped as a genius & enlightened with the offerings of the humans for the sake of demigods-deities. You accept the offerings granting happiness.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (78) :: ऋषि :- गौतम राहूगण, देवता :- अग्नि, छन्द :- गायत्री।
अभि त्वा गोतमा गिरा जातवेदो विचर्षणे।
द्युम्नैरभि प्र णोनुमः॥
हे उत्पन्न ज्ञाता और सर्वद्रष्टा अग्निदेव! गौतम वंशीयों ने आपकी स्तुति की है। द्युतिमान स्त्रोत्र द्वारा हम आपकी स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 1.78.1]
द्युतिमान् :: द्युमत्; bright, brilliant.
हे सर्वभूतों के ज्ञाता द्रष्टा अग्ने! गौतमवंशी तुम्हारे लिए अत्यन्त उज्ज्वल वंदनाओं को मृदु संकल्पों से प्रार्थना करते हैं।
Hey Agni Dev! You are aware o the past. The descendants of Gautom clan have recited prayers in your honour. We too make prayers for you with the help of excellent Strotr-hymns.
तमु त्वा गोतमो गिरा रायस्कामो दुवस्यति।
द्युप्रैरभि प्र णोनुमः॥
धनाकाङ्क्षी होकर गौतम जिन अग्निदेव की स्तुति द्वारा सेवा करते हैं, उन्हीं की, गुण प्रकाशक स्तोत्रों द्वारा हम बार-बार स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 1.78.2]
धन की इच्छा से गौतम वंश तुम्हारी वंदनाएँ करते हैं। हम भी उज्ज्वल मंत्रों से तुम्हारा पूजन करते हैं।
Gautom Rishi prayed to you with the desire for money. We too recite the hymns like him.
तमु त्वा वाजसातममङ्गिरस्वद्धवामहे।
द्युप्रैरभि प्र णोनुमः॥
अङ्गिराओं की तरह सर्वापेक्षा अधिकतर अन्नदाता अग्नि देव को हम बुलाते है और द्युतिमान् स्तोत्रों द्वारा उनकी स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 1.78.3]
अत्यंत अन्न प्रदान कर्त्ता तुम्हारा हम अंगिराओं के समान आह्वान करते हैं और उज्जवल मंत्रों से तुम्हारी अर्चना करते हैं।
We pray to Agni Dev for food like the Angira and pray with the help of excellent hymns.
तमु त्वा वृत्रहन्तमं यो दस्यूँरवधूनुषे।
द्युप्नैरभि प्र णोनुमः॥
हे अग्निदेव! आप दस्युओं, अनार्यों या शत्रुओं को स्थान भ्रष्ट करें। आप सर्वापेक्षा शत्रु हन्ता हैं। द्युतिमान् स्तोत्र द्वारा हम आपकी स्तुति करते है।[ऋग्वेद 1.78.4]
व्यक्तियों को शत्रुओं को कंपाने वाले वृत्र नाशक अग्नि को हम मंत्रों द्वारा प्रणाम करते हैं।
Hey Agni Dev! Please dislocate the dacoits wicked, enemies. You are a better-more competent enemy slayer as compared to others. The enemy is afraid of you.
अवोचाम रहूगणा अग्नये मधुमद्वचः।
द्युम्नैरभि प्र णोनुमः॥
हम राहूगण वंशीय हैं। हम अग्निदेव के लिए माधुर्य युक्त वाक्य का प्रयोग करते और द्युतिमान् स्तोत्रों द्वारा उनकी स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 1.78.5]
राहूगण वंशियों ने अग्नि के प्रति मधुर स्तुतियाँ कीं। उन्हीं के लिए हम प्रकाशित मंत्रों द्वारा वंदना करते हैं।
We the descendants of Ragu Gan pray to Agni Dev with brilliant hymns.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (79) :: ऋषि :- गोतमो राहूगण, देवता :- अग्नि, छन्द :- त्रिष्टुप्, उष्णिक् :- गायत्री।
हिरण्यकेशो रजसो विसारेऽहिर्धुनिर्वातइव ध्रजीमान्।
शुचिभ्राजा उषसो यशस्वतीरपस्युवो न सत्याः॥
सुवर्ण केशवाले अग्निदेव हननशील मेघ को कम्पित करते और वायु की तरह शीघ्र गामी हैं। वे सुन्दर दीप्ति से युक्त होकर मेघ से जलवर्षण करना जानते हैं। उषा देवी यह बात नहीं जानतीं। उषा अन्नशाली, सरल और निज कार्य परायण प्रजा के तुल्य हैं।[ऋग्वेद 1.79.1]
अग्नि क्षितिज के तुल्य, विशाल व लहराते हुए साँप के तुल्य स्वर्णिम बालों वाले, उम्र के तुल्य वेग वाले, उत्तम दीप्ति परिपूर्ण तथा उषा के ज्ञाता हैं। वे दायित्व में विद्यमान यशस्विनी स्त्री के तुल्य शोभित हैं।
Agni Dev who has golden coloured hair, shake the clouds and moves with the speed of air. He knows how to cause rains. Usha Devi is unaware of this fact. Usha Devi is like a simple woman, devoted to the welfare of populace, who grants food grains.
आ ते सुपर्णा अमिनन्तँ एवैः कृष्णो नोनाव वृषभो यदीदम्।
शिवाभिर्न स्मयमानाभिरागात्पतन्ति मिहः स्तनयन्त्यभ्रा॥
हे अग्निदेव! आपकी और पतनशील किरण मरुतों के साथ मेघ को ताड़ित करती हैं। कृष्णवर्ण और वर्षणशील मेघ गरजते हैं। मेघ सुखकर और हास्य युक्त वृष्टि बिन्दु के साथ आते हैं। जल गिर रहा है और मेघ गरज रहे हैं।[ऋग्वेद 1.79.2]
हे अग्ने! काले बादल रूप वाले वृषभ के गर्जन के समान पंखयुक्त तुम्हारी दामिनी दमककर लुप्त हो गई, तब कल्याणकारी वृष्टि हँसती हुई सी बरसाने लगी और बादलों में तुम गर्जना करने लगे।
Hey Agni Dev! The rays of light falling over you, strike the clouds along with the Marud Gan. Dark & Silver coloured clouds roar and come with rain drops bearing happiness-amusment. Rains fall & the clouds roar-thunderclap.
यदीमृतस्य पयसा पियानो नयन्नृतस्य पथिभी रजिष्ठैः।
अर्यमा मित्रो वरुणः परिज्म त्वचं पृञ्चन्त्युपरस्य योनौ॥
जिस समय अग्निदेव वृष्टि जल द्वारा संसार को पुष्ट करते हैं तथा जल के व्यवहार का सरल उपाय दिखा देते हैं, उस समय अर्यमा, मित्र, वरुण और समस्त दिग्गामी मरुद्गण मेघों जलोत्पत्ति स्थान का आच्छादन उद्घाटित कर देते हैं।[ऋग्वेद 1.79.3]
अनुष्ठान के हव्य से वृद्धि को ग्रहण अग्नि आसान रास्ते से देवगणों को अनुष्ठान में पहुँचाते हैं। तब अर्यमा, वरुण और मरुत दिशाओं में बादलों को संगठित करते हैं।
Agni Dev shows the simple method-way of having rains when he nourish the world with the rain water. At that moment Aryma, Mitr, Varun and all the Marud Gan who move through all the directions show the place of the formation of clouds.
अग्ने वाजस्य गोमत ईशानः सहसो यहो।
अस्मे धेहि जातवेदो महि श्रवः॥
हे बल पुत्र अग्निदेव! आप प्रभूत गो युक्त अन्न के स्वामी हैं। हे सर्वभूतज्ञाता! हमें आप बहुत धन-समृद्धि प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.79.4]
हे शक्ति के पुत्र अग्ने! सब उत्पन्न जीवों के ज्ञाता तुम गवादि धन के दाता हमको अत्यन्त प्रतापी बनाओ।
Hey Agni, the son of Shakti! You are the master of all wealth, cows & the food grains. Aware of all past; hey Agni, grant us enough wealth.
स इधानो वसुष्कविरग्रिरीळेन्यो गिरा।
रेवदस्मभ्यं पुर्वणीक दीदिहि॥
दीप्ति युक्त, निवास स्थान दाता और मेधावी अग्निदेव स्तोत्रों द्वारा प्रशंसनीय हैं। हे बहुमुख अग्नि देव! जिस प्रकार हमारे पास धनयुक्त अन्न है, उसी प्रकार दीप्ति प्रकाशित करें।[ऋग्वेद 1.79.5]
वह प्रकाशवान, धनों के परमात्मा, मेधावी अग्नि सर्वश्रेष्ठ वाणियों से वंदना ग्रहण करते हैं। हे बहुकर्मा! तुम धनों से परिपूर्ण हुए दीप्तिमान होओ।
Agni Dev is honoured-appreciated with the help of sagacious-brilliant hymns-Strotr. You have given us place to live, which is lit, full of light. The way you blessed us with wealth, similarly you enlighten us.
क्षपो राजन्नुत त्मनाग्ने वस्तोरुतोषसः।
स तिग्मजम्भ रक्षसो दह प्रति॥
हे उज्ज्वल अग्निदेव! दिन या रात्रि में स्वयं अथवा प्रजाओं द्वारा राक्षसादि का नाश करें। हे तीक्ष्ण मुख अग्निदेव! राक्षस को दहन करें।[ऋग्वेद 1.79.6]
हे तीक्ष्ण दाढ़ वाले! तुम स्वयं प्रकाशित होते हुए रात्रि, दिवस और उषा काल में भी असुरों को भस्म करो।
Hey bright Agni Dev! Let the populace abolish the demons & the like, whether its the day or the night. Hey sharp mouthed Agni Dev! Burn the demons.
अवा नो अग्न ऊतिभिर्गायत्रस्य प्रभर्मणि।
विश्वासु धीषु वन्द्य॥
हे अग्निदेव! आप सारे यज्ञों में स्तुति भाजन हैं। हमारी गायत्री द्वारा तुष्ट होकर रक्षण कार्य द्वारा हमारा पालन करें।[ऋग्वेद 1.79.7]
हे सम्पूर्ण कर्मों में पूज्य अग्ने! हमारे द्वारा श्लोक निवेदन करने पर तुम अपने रक्षा के साधनों से हमारी रक्षा करो।
Hey Agni Dev! You are the deity in our Yagy. Be satisfied with our prayers-Gayatri Mantr etc. and protect us.
आ नो अग्ने रयिं भर सत्रासाहं वरेण्यम्।
विश्वासु पृत्सु दुष्टरम्॥
हे अग्निदेव! हमें दारिद्रय विनाशी, सबके स्वीकार योग्य और सारे संग्रामों में धन प्रदान करें। [ऋग्वेद 1.79.8]
हे अग्ने! हमारे लिए सदैव जयशील, दूसरों के द्वारा न जीता जा सके, ऐसे गृहणीय धन को ग्रहण कराओ।
Hey Agni Dev! Remove our poverty and grant us wealth acceptable to all.
आ नो अग्ने सुचेतुना रयिं विश्वायुपोषसम्।
मार्डीकं धेहि जीवसे॥
हे अग्निदेव! हमारे जीवन के लिए सुन्दर ज्ञान युक्त, सुख हेतु भूत और समस्त आयु का पुष्टि कारक धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.79.9]
हे अग्ने! हमारे लिए सदैव जयशील, दूसरों के द्वारा न जीता जा सके, ऐसे गृहणीय धन को गृहण कराओ।
Hey Agni Dev! Grant us such wealth which is associated with enlightenment, leads to welfare of all, strengthen our health and give us longevity.
प्र पूतास्तिग्मशोचिषे वाचो गोतमाग्नेये।
भरस्व सुम्नयुर्गिरः॥
हे धनाभिलाषी गौतम! तीक्ष्ण ज्वाला युक्त अग्नि देवता की विशुद्ध स्तुति करें।[ऋग्वेद 1.79.10]
हे अग्ने! हमारे जीवन में सुख की इच्छा से तेज लपटों वाले अग्नि के लिए शुद्ध संकल्पों वाली वंदनायें उच्चारित करो।
Hey desirous of wealth, Gautom! Pray to sharp mouthed Agni Dev with pure, pious, virtuous hymns, Mantr, Shloks etc.
यो नो अग्नेऽभिदासत्यन्ति दूरे पदीष्ट सः।
अस्माकमिधे भव॥
हे अग्निदेव! हमारे पास या दूर रहकर जो शत्रु हमारी हानि करता है, उन्हें विनष्ट करते हुए आप हमारा वर्द्धन करें।[ऋग्वेद 1.79.11]
हे अग्ने! निकट या दूर वाला जो भी हमको वश में करना चाहे, उसका पतन हो जाये। तुम हमारी वृद्धि करने वाली बनो।
Hey Agni Dev! Grant us progress by abolishing the enemy close or far away from us.
सहस्राक्षो विचर्षणिरग्नि रक्षांसि सेधति।
होता गृणीत उक्थ्यः॥
सहस्राक्ष या असंख्य ज्वालायुक्त और सर्वदर्शी अग्निदेव राक्षसों को ताड़ित करते हैं। हमारी ओर से स्तुत होकर देवों के आह्वानकारी अग्निदेव उनकी स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 1.79.12]
सहस्राक्ष :: हजार आँखों वाला, ब्रह्मा, इंद्र, विष्णु, उत्पलाक्षी देवी का पीठ स्थान, देवी भगवती।
हे सहस्त्राक्ष अग्ने! तुम यशस्वी होता और विशेष दृष्टि वाले हो। तुम असुरों को नष्ट करने वाले हो। हम तुम्हारी वन्दना करते हैं।
Hey Agni Dev! You have thousand of eyes, have flames and see-view everything and destroy demons. Having being prayed by us, Agni Dev invite demigods-deities by praying to them.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (80) :: ऋषि :- गौतम राहूगण, देवता :- इन्द्र, छन्द :- पंक्ति।
इत्था हि सोम इन्मदे ब्रह्मा चकार वर्धनम्।
शविष्ठ वज्रिन्नोजसा पृथिव्या निः शशा अहिमर्चन्ननु स्वराज्यम्॥
हे बलशाली और वज्रधर इन्द्रदेव! आपके इस हर्षकारी सोमरस का पान करने पर स्तोता ने आपकी वृद्धिकारिणी स्तुति की। आपने बल द्वारा पृथ्वी पर से अहि को ताड़ित किया और अपना प्रभुत्व या स्वराज्य प्रकट किया।[ऋग्वेद 1.80.1]
हे महाबलिष्ठ इन्द्रदेव! हर्ष दायक सोम के प्रभाव से वंदनाकारी ने प्रशसां की। तुम वज्रधारी ने अपनी शक्ति से वृत्र को दंडित किया। तुम स्वराज्य में प्रकाशमान हुए विद्यमान हो।
Hey powerful-mighty Indr Dev! The devotee prayed to you, when you consumed the Somras which grant pleasure. You attacked Ahi-Vratr from the earth and showed-established your might.
स त्वामदषा मदः सोमः श्येनाभृतः सुतः।
येना वृत्रं निरद्भयो जघन्थ वज्रिन्नोजसार्चन्ननु स्वराज्यम्॥
हे इन्द्रदेव! सेचन स्वभाव, हर्षकर और श्येन पक्षी द्वारा आनीत तथा अभिषुत सोमरस ने आपको प्रसन्न किया। हे वज्रिन्! अपने बल द्वारा अन्तरिक्ष के पास से आपने वृत्र का विनाश कर अपना प्रभुत्व प्रकट किया।[ऋग्वेद 1.80.2]
हे वज्रिन! श्येन से लाये निष्पन्न बल से युक्त सोम ने तुमको प्रसन्नताप्रद और शक्तिशाली बनाया, उससे तुमने वृत्र को जलों से अलग कर पीड़ित किया, तुम स्वराज्य में प्रकाशित हो।
Hey Indr Dev! The Somras brought by Shyen-a bird, gave you vigour and pleasure. You killed Vratr and established your might-power, suprimacy.
प्रेह्यभीहि धृष्णुहि न ते वज्रो नि यँसते।
इन्द्र नृम्णं हि ते शवो हनो वृत्रं जया अपोऽर्चन्ननु स्वराज्यम्॥
हे इन्द्रदेव! जाकर शत्रुओं का सामना करें और उन्हें पराजित करें। आपके वज्र के वेग को कोई रोकने वाला नहीं है। आपका बल पुरुष विजयी है। इसलिए आप वृत्र का वध कर वृत्र द्वारा रोका हुआ जल प्रवाहित करें और अपना प्रभुत्व प्रकट करें।[ऋग्वेद 1.80.3]
हे इन्द्रदेव! वृद्धि करो, शत्रु का सामना करो। तुम निडर हो। तुम्हारे व्रज का कोई सामना नहीं कर सकता। तुम्हारा वीर्य ही शक्ति है। तुमने वृत्र को पृथ्वी से खींचकर समाप्त किया और क्षितिज से खींचकर वध किया।
Hey Indr Dev! Go and face the enemy and defeat him. There is none who can face-resist the speed of your Vajr. Thus, you killed Vratr and released the water blocked by him & established your power-might.
निरिन्द्र भूम्या अधि वृत्रं जघन्थ निर्दिवः।
सृजा मरुत्वतीरव जीवधन्या इमा अपोऽर्चन्ननु स्वराज्यम्॥
हे इन्द्रदेव! आपने भूलोक और धुलोक, दोनों लोकों में वृत्र का वध किया। मरुतों से संयुक्त और जीवों के तृप्तिकर वृष्टि जल को गिराकर, अपना प्रभुत्व प्रकट किया।[ऋग्वेद 1.80.4]
तुम जीव रक्षक मरुतों से परिपूर्ण जलों की वृष्टि करो। अपने में तुम अपने आप प्रकाशमान हो। क्रोधित इन्द्र ने भय से कांपते हुए वृत्र पर प्रहार किया और जलों को प्रवाह में प्रेरित किया।
Hey Indr Dev! You killed Vratr by positioning your self over the earth and the outer space. You joined the Marud Gan and rained to satisfy the living beings and proved your suprimacy.
इद्रो वृत्रस्य दोधतः सानुं वज्रेण हीळितः।
अभिक्रम्याव जिघ्नतेऽपः सर्माय चोदयन्नर्चनन्नु स्वराज्यम्॥
क्रोधित इन्द्रदेव ने सामना करके कम्पमान वृत्र की ठुड्डी पर वज्र से प्रहार किया, वृष्टि का जल बहने दिया और अपना प्रभुत्व प्रकट किया।[ऋग्वेद 1.80.5]
वे इन्द्र स्वयं प्रकाशमान हैं। सोम से आनन्दित इन्द्र ने गांठों वाले वज्र से जल पर प्रहार किया।
Angy Indr Dev struck the jaws of Vratr, allowed the water to flow and established his suprimacy.
अधि सानौ नि जिघ्नते वज्रेण शतपर्वणा।
मन्दान इन्द्रो अन्धसः सखिभ्यो गातुमिच्छत्यर्चन्ननु स्वराज्यम्॥
सोमरस से आनन्दित हुए इन्द्रदेव ने सौ तीक्ष्ण सूँड़ वाले वज्र से वृत्रासुर की ठुड्डी पर आघात किया। इन्द्रदेव ने प्रसन्न होकर स्तोताओं के लिए अन्न को जुटाने की इच्छा की और अपना प्रभुत्व प्रकट किया।[ऋग्वेद 1.80.6]
वे मित्रों के लिए धन की अभिलाषा करते हुए प्रकाशमान हैं।
After drinking Somras, Indr Dev became happy and struck the jaws of Vratr with Vajr, which had hundred sharp heads-points. He became happy with the prayers offered to him and showed the desire to collect food grains, showing his authority.
इन्द्र तुभ्यमिदद्रिवोऽनुत्तं वज्रिन्वीर्यम्।
यद्ध त्यं मायिनं मृगं तमु त्वं माययावधीरर्चन्ननु स्वराज्यम्॥
हे मेघ वाहन और वज्रधर इन्द्रदेव! शत्रु लोग आपकी क्षमता की अवहेलना नहीं कर सकते; क्योंकि आप मायावी हैं, माया द्वारा आपने मृग रूपधारी वृत्र का वध कर अपना प्रभुत्व प्रकट किया।[ऋग्वेद 1.80.7]
हे वज्रिन! शत्रुओं का बहिष्कार करने वाला पुरुषार्थ तुम्हारा ही है। तुम्हीं ने पशु रूप मायावी वृत्र को समाप्त किया। तुम स्वयं ज्योर्तिमान हो।
Hey carrier of clouds and bearer of Vajr Indr Dev! The enemy cannot disrespect-avoid your powers, since you have the powers, to cast illusion. You killed Vratr who had acquired the shape of deer and demostrated your authority.
वि ते वज्रासो अस्थिरन्नवतिं नाव्या अनु।
महत्त इन्द्र वीर्यं बाह्वोस्ते बलं हितमर्चन्ननु स्वराज्यम्॥
हे इन्द्रदेव! आपके वज्र नब्बे नदियों के ऊपर विस्तृत हुए। हे इन्द्रदेव! आपका पराक्रम यथेष्ट हैं। आपकी भुजाएँ बहुबलधारिणी हैं। आप अपना प्रभुत्व प्रकट करें।[ऋग्वेद 1.80.8]
हे इन्द्रदेव! नब्बे बड़ी सरिताओं के समान तुम्हारा वज्र विशाल है। तुम्हारा बल श्रेष्ठ है। तुम्हारी दोनों भुजाएं दृढ़ हैं। तुम स्वयं प्रकाशमय हो। इन्द्रदेव ने अपने बल से वृत्र के बल का विनाश किया पराभूत करनेवाले शस्त्र से उन्होंने वृत्र का शस्त्र विनष्ट किया। इनके पास असीम शक्ति है, क्योंकि उन्होंने वृत्र का वध करके वृत्र द्वारा रोका गया जल निर्गत किया। इस प्रकार इन्द्र ने अपना प्रभुत्व प्रकट किया।
Hey Indr Dev! Your Vajr is as broad as 90 water streams. Your valour is significant. Your arms have several powers. Demonstrate your authority-powers.
सहस्रं साकमर्चत परि ष्टोभत विंशतिः।
शतैनमन्वनोनवुरिन्द्राय ब्रह्मोद्यतमर्चन्ननु स्वराज्यम्॥
एक साथ हजार मनुष्यों ने इन्द्रदेव की पूजा की। बीस मनुष्यों ने इन्द्र की स्तुति की। सौ ऋषियों ने इनकी बार-बार स्तुति की। इनके लिए हव्य अन्न ऊपर रखा गया। तब इन्द्रदेव ने अपना प्रभुत्व प्रकट किया।[ऋग्वेद 1.80.9]
हे मनुष्यों! तुम हजारों संख्या में एकत्र होकर इन्द्रदेव की वंदना अर्चना करो। बीस प्रार्थनाएँ गाओ। ये इन्द्र बहुतों द्वारा स्तुत्य हैं। ऋषि ने इन्द्र के लिए मंत्र रूपी प्रार्थनाओं को उन्नत किया है।
Indr Dev demostratred his powers when 1,000 men worshipped him together, 20 men prayed him, the Rishis repeatedly prayerd to him with excellent hymns by making offerings of food grains.
इन्द्रो वृत्रस्य तविर्षी निरहन्त्सहसा सहः।
महत्तदस्य पौंस्यं वृत्रं जघन्वाँ असृजदर्चन्ननु स्वराज्यम्॥
इन्द्रदेव ने अपने बल से वृत्र के बल का विनाश किया पराभूत करनेवाले शस्त्र से उन्होंने वृत्र का शस्त्र विनष्ट किया। इनके पास असीम शक्ति है, क्योंकि उन्होंने वृत्र का वध करके वृत्र द्वारा रोका गया जल निर्गत किया। इस प्रकार इन्द्र ने अपना प्रभुत्व प्रकट किया।[ऋग्वेद 1.80.10]
ये स्वयं प्रकाशवान हैं। इन्द्र ने वृत्र का पराक्रम क्षीण किया। अपने पराक्रम से उसे साहस विहीन बनाया। वृत्र को मारना इनका पराक्रम है। अपने राज्य में ये स्वयं प्रकाशित हैं।
Indr Dev killed Vratr with his powers, nullified the arms of Vratr with his arms. He possess unlimited powers. He killed Vratr and released the waters blocked by him. This is how Indr Dev showed his galour-might.
इमे चत्तव मन्यवे वेपेते भियसा मही।
यदिन्द्र वज्रिन्नोजसा वृत्रं मरुत्वां अवधीरर्चन्ननु स्वराज्यम्॥
हे वज्रधारी इन्द्रदेव! आपके भय से यह आकाश और पृथ्वी कम्पायमान हुए; क्योंकि आपने मरुतों से मिलकर वृत्र का वध किया और अपना प्रभुत्व प्रकट किया।[ऋग्वेद 1.80.11]
हे वज्रिन! तुम्हारे डर से क्षितिज और पृथ्वी भी कम्पायमान होते हैं। तुमने मरुतों के सहयोग से वृत्र को समाप्त किया।
Hey Vajr holding Indr Dev! The earth and sky trembled due to your fear since, you vanished Vratr in association with the Marud Gan and proved your might.
न वेपसा न तन्यतेन्द्रं वृत्रो वि बीभयत्।
अभ्येनं वज्र आयसः सहस्त्रभृष्टिरायतार्चन्ननु स्वराज्यम्॥
अपने कम्पन या गर्जन से वृत्र इन्द्र देव को भयभीत न कर सका। इन्द्र देव के लौहमय और सहस्त्र धारायुक्त वज्र ने वृत्र को आक्रान्त किया और इन्द्र ने अपना प्रभुत्व प्रकट किया।[ऋग्वेद 1.80.12]
इन्द्रदेव को वह वृत्र कंपायमान न कर सका, न गर्जना से भयभीत कर सका। उस पर इन्द्र देव का लौह वज्र गिरा।
Vratr could not cause fear in the mind of Indr Dev, either with his roar or shaking. Indr Dev punished Vratr with his Vajr made of iron, having 1,000 sharp points and demonstrated his might.
यत्रं तव चाशनिं वज्रेण समयोधयः।
अहिमिन्द्र जिघांसतो दिवि ते बद्बधे शवोऽर्चन्ननु स्वराज्यम्॥
हे इन्द्रदेव! जिस समय आपने वृत्र पर प्रहार किया, उस समय आपको अहि के वध के लिए, कृत संकल्प होने पर आपका बल आकाश में व्याप्त हुआ। तब आपने अपना प्रभुत्व प्रकट किया।[ऋग्वेद 1.80.13]
हे इन्द्रदेव! जब वृत्र के फेंके हुए वज्र से तुमने अपना वज्र टकराया तब उसे मारने की इच्छा से अपने पराक्रम को आकाश में स्थापित किया।
Hey Indr Dev! The moment you decided to relinquish Vratr and targeted him, your valour spread across the sky & you showed your power.
अभिष्टने ते अद्रिवो यत्स्था जगच्च रेजते।
त्वष्टा चित्तव मन्यव भियार्चन्ननु स्वराज्यम्॥
हे वज्रधारी इन्द्रदेव! आपके गर्जन करने पर स्थावर और जंगम कँप जाते हैं। वज्र निर्माता त्वष्टा भी आपके कोप भय से कम्पित हो जाते हैं। अपनी सामर्थ्य के अनुकूल आप कर्तृत्व प्रस्तुत करते हैं।[ऋग्वेद 1.80.14]
वज्रिन! तुम्हारी गर्जना से स्थावर-जंगम सभी काँपते हैं। त्वष्टा भी भय से काँपता है। तुम अपने राज्य को स्वयं प्रकाशित करते हो।
Hey Vajr holding Indr Dev! Your roar shakes both the fixed and movable organisms. Even Twasta who made Vajr, too tremble with the fear of your anger. You perform as per your will-power and duty.
नहि नु यादधीमसीन्द्रं को वीर्या परः।
तस्मिन्नृम्णमुत क्रतुं देवा ओजांसि सं दधुरर्चन्ननु स्वराज्यम्॥
सर्व व्यापक इन्द्रदेव को हम नहीं जान सकते। अत्यन्त दूर में अवस्थित इनको अपने सामर्थ्य से कौन जान सकता है!? इन्द्रदेव में देवताओं ने धन, पराक्रम और बल स्थापित किया, इन्द्रदेव ने अपना प्रभुत्व प्रकट किया।[ऋग्वेद 1.80.15]
पुरुषार्थ में इन्द्रदेव से अधिक कोई नहीं है। देवगण ने उनमें ज्ञान, शक्ति, पुंसत्व की दृढ़ता की है। वे अपने राज्य को स्वयं प्रकाशमय करते हैं।
Its not possible for us to know Indr Dev! Who can recognise his capabolity located far away from him!? The demigods-deities transferred their wealth, power, capability to him & he proved it.
यामथर्वा मनुष्पिता दध्यङ् धियमत्नत।
तस्मिन्ब्रह्माणि पूर्वथेन्द्र उक्था समग्मतार्चन्ननु स्वराज्यम्॥
अथर्वा नामक ऋषि और समस्त प्रजा के पितृ भूत मनु और अथर्वा के पुत्र दध्यङ् ऋषि ने जितने यज्ञ किये, सबमें प्रयुक्त हव्य, अन्न और स्तोत्र प्राचीन यज्ञों की तरह इन्द्रदेव को ही प्राप्त हुए।[ऋग्वेद 1.80.16]
अथर्वा, पिता, मनु, दह्यड़ ने जो-जो कार्य किये उनकी हवियाँ और वंदनाएँ इन्द्रदेव में संगठित हुई।
The offerings used by Rishi Arthva, entire populace, Pitr Gan, Manu Maharaj and Arthva's son Dadhny Rishi etc., in the Yagy, were received by Indr Dev.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (81) :: ऋषि :- गौतम राहूगण, देवता :- इन्द्र, छन्द :- पंक्ति।
इन्द्रो मदाय वावृधे शवसे वृत्रहा नृभिः।
तमिन्महत्स्वाजिषूतेमर्भे हवामहे स वाजेषु प्र नोऽविषत्॥
वृत्र हन्ता इन्द्रदेव मनुष्यों की स्तुति द्वारा बल और हर्ष से प्रवर्द्धित हुए। उन्हीं इन्द्र देव को हम महान् और क्षुद्र संग्रामों में बुलाते हैं। इन्द्रदेव हमारी संग्राम में रक्षा करें।[ऋग्वेद 1.81.1]
वृत्र को मारने वाले इन्द्रदेव की हर्षिता और शक्ति में मनुष्यों द्वारा वृद्धि की जाती है। इन इन्द्रदेव की शक्ति छोटे युद्ध में सुरक्षा के लिए आह्वान करते हैं।
Indr Dev became powerful by the prayers, well wishes of the humans and filled with joy. We call Indr Dev for help in minor and major battle.
असि हि वीर सेन्योऽसि भूरि पराददिः।
असि दभ्रस्य चिधो यजमानाय शिक्षसि सुन्वते भूरि ते वसु॥
हे वीर इन्द्रदेव! एकाकी होने पर भी आप सेना सदृश है। आप प्रभूत शत्रुओं का धन दान कर देते हैं। आप क्षुद्र स्तोता को भी वर्द्धित करते हैं। सोमरस दाता यजमान को आप धन प्रदान करते हैं, क्योंकि आपके पास अक्षय धन है।[ऋग्वेद 1.81.2]
हे पराक्रमी इन्द्रदेव! तुम सेना में महान तथा अत्यन्त धन दाता हो। तुम छोटे की वृद्धि करते हो। तुम सोमवाले यजमान को अनेक धन प्रदान करते हो।
Hey brave Indr Dev! You are like an army even if you are alone. You donate the money received from the defeated enemies. You promote-help even the minor devotees. You grant riches to the person who offer you Somras, since you have plenty of wealth.
यदुदीरत आजयो धृष्णवे धीयते धना।
युक्ष्वा मदच्युता हरी कं हनः कं वसौ दधोऽस्माँ इन्द्र वसौ दधः॥
जिस समय युद्ध होता है, उस समय शत्रुओं का विजेता ही धन प्राप्त करता है। हे इन्द्रदेव! रथ में शत्रुओं के गर्वनाशकारी अश्व संयोजित करें। किसी का नाश करें, किसी को धन दें। हे इन्द्रदेव! हमें आप धनशाली बनावें।[ऋग्वेद 1.81.3]
द्वन्द्वों में अभय देने वाले इन्द्रदेव! तुम दोनों अश्वों को रथ में जोड़ो। तुम मारते भी हो, धन भी प्रदान करते हो। हमें धन प्रदान करो।
During the battle its the winner who control-occupies the waelth of the enemy. Hey Indr Dev! deploy the horses in the chariote who can hit-tarnish, destroy the ego of the enemy. You destroy one and grant riches to the other. Hey Indr Dev! Please make us rich.
क्रत्वा महाँ अनुष्वधं भीम आ वावृधे शवः।
श्रिय ऋष्व उपाकयोर्नि शिप्री हरिवान्दधे हस्तयोर्वज्रमायसम्॥
यज्ञ द्वारा इन्द्रदेव विशाल और भयंकर हैं और सोमपान द्वारा इन्द्रदेव ने अपना बल बढ़ाया। इन्द्र देव दर्शनीय नासिका से युक्त तथा हरि नाम के अश्वों से युक्त हैं। इन्द्रदेव ने हमारी रक्षा के लिए अपने दाहिने हाथ में लौहमय वज्र को अलंकार के रूप में धारण किया।[ऋग्वेद 1.81.4]
श्रेष्ठ बुद्धि वाले विकराल इन्द्र ने अपनी इच्छित बल की वृद्धि की और अश्वों से युक्त दृढ़ दाढ़ वाले इन्द्र ने यश के लिए लोह वज्र को धारण किया।
The Yagy makes Indr Dev large-huge and furious. He boosts his energy, powers & strength by drinking Somras. His nose is beautiful and the horses are called Hari. Indr Dev bears Vajr for our protection in the right hand as an ornament.
आ पप्रौ पार्थिवं रजो बद्बधे रोचना दिवि।
न त्वावाँ इन्द्र कश्चन न जातो न जनिष्यतेऽति विश्वं ववक्षिथ॥
अपने तेज से इन्द्रदेव ने पृथ्वी और अन्तरिक्ष को परिपूर्ण किया है। धुलोक में चमकते हुए नक्षत्र स्थापित किए। इन्द्रदेव आपके समान न कोई हुआ, न होगा। आप विशेष रूप से सारे जगत् को धारण करते हैं।[ऋग्वेद 1.81.5]
इन्द्र ने पृथ्वी से सम्बन्धित अंतरिक्ष को पूर्ण किया और आकाश में नक्षत्र स्थापित किये। हे इन्द्र! उत्पन्न हुए मनुष्यों में तुम्हारे समान कोई नहीं है। तुम अत्यन्त महान हो।
Entire earth and the space is pervaded by the energy of Indr Dev. He placed shinning constellations in the space. There has been none to meet your status either earlier or in future. You hold the entire universe.
यो अर्यो मर्तभोजनं पराददाति दाशुषे।
इन्द्रो अस्मभ्यं शिक्षतु वि भजा भूरि ते वसु भक्षीय तव राधसः॥
हे इन्द्रदेव! यजमान को मनुष्योपभोग्य अन्न प्रदान करते हैं, वे हमें वैसा ही अन्न दें। आपके पास असंख्य धन है, इसलिए हमारे लिए धन का विभाग करें, ताकि हम उसका एक अंश प्राप्त कर सकें।[ऋग्वेद 1.81.6]
जो इन्द्रदेव हविदाता को मनुष्यों के उपभोग्य पदार्थों को देते हैं, वह हमको भी दें! हे इन्द्रदेव! तुम्हारे निकट अनन्त धन है, उसे बांट दो। मैं भी तुम्हारे धन में भाग को ग्रहण करूँ।
Hey Indr Dev! You provide food grains fit for consumption for the humans, to those who resort to your prayers. Please provide us the same food. You have plenty of wealth. Please give a fraction of it to us.
मदेमदे हि नो ददिर्यूथा गवामृजुक्रतुः।
सं गृभाय पुरू शतोभयाहस्त्या वसु शिशीहि राय आ भर॥
सोमपान करके हृष्ट हुए होने पर सरल कर्मा इन्द्रदेव हमें गो समूह देते हैं। इन्द्रदेव! हमें देने के लिए बहुशत संख्यक या अपरिमेय अन्न अपने दोनों हाथों में ग्रहण करें। हमें तीक्ष्ण बुद्धि से युक्त करें और धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.81.7]
हृष्ट :: प्रसन्न, सन्तुष्ट; pleased, thrilled by happiness, glad.
श्रेष्ठ बुद्धि वाले इन्द्रदेव हमें धेनु इत्यादि धन प्रदान करते हैं। हे इन्द्रदेव! हमको दोनों हाथों से धन प्राप्त करने के लिए हमारी बुद्धि को तीव्र करो।
After consuming Somras Indr Dev become happy and give us cows. Indr Dev should possess food grains to give in plenty, in his both hands. He should grant us sharp intelligence and riches.
मादयस्व सुते सचा शवसे शूर राधसे।
विद्या हि त्वा पुरूवसुमुप कामान्त्ससृज्महे ऽथा नोऽविता भव॥
हे शूर इन्द्रदेव! हमारे बल और धन के लिए हमारे साथ सोमरस का पान करके तृप्त होवें। आपको हम बहु धनशाली जानते हैं। आप कामनाओं को पूर्ण करके हमारी रक्षा करने वाले हैं।[ऋग्वेद 1.81.8]
हे वीर इन्द्रदेव! सोम सिद्ध होने पर तुम धन के निमित्त उससे हर्ष प्राप्त करो। तुम अत्यन्त धन वाले माने गये हो तुम हमारी अभिलाषा पर ध्यान आकृष्ट करते हुए हमारी सुरक्षा करो।
Hey brave Indr Dev! Be satisfied with our strength and the wealth, drink Somras and become content.We recognise you as the one who possess a lot of wealth. You fulfil our desires and protect us.
एते त इन्द्र जन्तवो विश्वं पुष्यन्ति वार्यम्।
अन्तर्हि ख्यो जनानासर्यो वेदो अदाशुषां तेषां नो वेद आ भर॥
हे इन्द्रदेव! ये सभी मनुष्य आपके वरण करने योग्य पदार्थों की वृद्धि करने वाले हैं। हे स्वामी इन्द्रदेव! आप कृपणों के छुपे हुए धन को जानते हैं, उस धन को प्राप्त कर हमें प्रदत्त करें।[ऋग्वेद 1.81.9]
हे इन्द्रदेव! ये मनुष्य आपके प्राप्त करने योग्य पदार्थों की वृद्धि करते हैं। तुम दान करने वालों के धनों को जानकर हमारे लिए ले आओ।
Hey Indr Dev! The humans increases-provides you the goods which are used by you. Hey master Indr Dev! You are aware of the secret money of the misors. You get that money and give it to us.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (82) :: ऋषि :- गौतम राहूगण, देवता :- इन्द्र, छन्द :- पंक्ति, जगती।
उपो षु शृणुही गिरो मघवन्मातथाइव।
यदा नः सूनृतावतः कर आदर्थयास इद्योजा न्विन्द्र ते हरी॥
हे धनशाली इन्द्रदेव! पास आकर हमारी स्तुति श्रवण करें। आप हमें सत्य बोलने वाला बनायें। हमारी स्तुतियों को ग्रहण करने वाले, आप अश्वों को आगमन के निमित्त रथ में नियोजित करें।[ऋग्वेद 1.82.1]
हे धन के स्वामी इन्द्रदेव! तुम हमारी वंदनाओं को पास से सुनो। तुम पूर्वकाल के तुल्य ही सुनने वाले हो। तुमने हमको सत्य और प्रियवाणी से परिपूर्ण किया है। तुम वन्दनाओं के सुनने के अभिलाषी भी हो। अपने रथ में अश्वों को जोड़कर यहाँ पधारो।
Hey wealthy indr Dev! Please make us truthful. Listen to our prayers. Please deploy your horses in the chariot and come to us.
अक्षन्नमीमदन्त ह्यव प्रिया अधूषत।
अस्तोषत स्वभानवो विप्रा नविष्ठया मती योजा न्विन्द्र ते हरी॥
आपका दिया हुआ भोजन करके यजमान लोग तृप्त होते हैं और अतिशय रसास्वादन से अपने सिर को हिलाते हैं। दीप्तिमान् मेधावियों ने अभिनव स्तुति द्वारा आपकी प्रार्थना की। हे इन्द्रदेव! अब आप अपने अश्वों को यज्ञ में प्रस्थान के लिए नियोजित करें।[ऋग्वेद 1.82.2]
प्रिय मनुष्यों ने तुम्हारा प्रसाद रूप स्तोत्र पड़ा। इन्द्रदेव! रथ में अश्वों को जोड़ों हे मधुवन! तुम कृपा पूर्ण दृष्टि वाले को हम प्रणाम करते हैं। तुम वन्दना प्रसन्न हुए धनों से पूर्ण रथ सहित पधारो।
The food provided by you, satisfies the hosts and they move their head after eating the extremely tasty food to show their happiness. Intelligent-brilliant scholars have prayed to you with the nice hymns.
सुसंदृशं त्वा वयं मघवन्वन्दिषीमहि।
प्र नूनं पूर्णवन्धुरः स्तुतो याहि वशाँ अनु योजा न्विन्द्र ते हरी॥
हे मघवन्! आप सबको कृपापूर्ण दृष्टि से देखते हैं। हम आपकी स्तुति करते हैं। स्तुत होकर तथा स्तोताओं द्वारा देय धन से पूरित रथ युक्त होकर उन यजमानों के पास पधारें, जो आपकी कामना करते हैं। हे इन्द्रदेव! अपने दोनों अश्व रथ में नियोजित करें।[ऋग्वेद 1.82.3]
वह अभिष्ट वर्धक धेनुओं को दिलाने धान्य युक्त सोम की अभिलाषा वाले इन्द्र रथ पर चढ़कर अवश्य पधारें। हे इन्द्रदेव तुम अत्यन्त बलिष्ठ हो, तुम्हारे रथ के दोनों ओर अश्व जुते हैं।
Hey Madhuvan-Indr! You look to all kindly. We offer prayers to you. Having prayed-worshiped, please come to the devotees in a chariot ful of wealth-riches for them. Hey Indr Dev! Please deploy both of your horses in the chariot.
स घा तं वृषणं रथमधि तिष्ठाति गोविदम्।
यः पात्रं हारियोजनं पूर्णामिन्द्र चिकेतति योजा न्विन्द्र ते हरी॥
जो रथ अभीष्ट वस्तु का वर्षण करता है, गाय और धान्य से मिश्रित पूर्ण पात्र देता है, हे इन्द्रदेव! उसी रथ पर आरुढ़ होने के लिए अपने घोड़े शीघ्र नियोजित करें।[ऋग्वेद 1.82.4]
हे शत यज्ञ कर्ता इन्द्रदेव! आपके रथ में दाहिनी और बायीं ओर दो अश्व जुते हैं।
Hey Indr Dev! Deploy your horses in your chariot which grants cows, food grains and wealth and come to us soon.
युक्तस्ते अस्तु दक्षिण उत सव्यः शतक्रतो।
तेन जायामुप प्रियां मन्दानो याह्यन्धसो योजा न्विन्द्र ते हरी॥
सोमपान से हृष्ट होकर आप उस रथ द्वारा अपनी प्रिय पत्नी के पास जाएँ और अपने घोड़े संयोजित करें।[ऋग्वेद 1.82.5]
सोम से तेज परिपूर्ण हुए रथ में अश्वों को जोड़कर अपनी प्रिय भार्या के निकट जाओ।
Having been satisfied-happy by drinking Somras visit your wife in the chariot.
युनज्मि ते ब्रह्मणा केशिना हरी उप प्र याहि दधिषे गभस्त्योः।
उत्त्वा सुतासो रभसा अमन्दिषुः पूषण्वान्वज्रिन्त्समु पत्ल्यामदः॥
आपके केश सम्पन्न दोनों घोड़ों को मैं स्तोत्र द्वारा रथ में संयोजित करता हूँ। अपनी दोनों दाहिनी और बाँया और दो अश्व जुते हैं। सोमपान से हृष्ट होकर आप उस रथ द्वारा अपनी प्रिय पत्नी के पास जाएँ और अपने घोड़े संयोजित करें।[ऋग्वेद 1.82.6]
हे वाजिन! मैं तुम्हारे दोनों अश्वों को लोक में रक्ष में जोतता हूँ। तुम हाथ में रस लेकर जाओ। सोम से प्रसन्न हुए भार्या के नजदीक जाओ।
Your horses having hair over the neck are deployed in the chariot on the left & right. Being satisfied with the Somras, move to your wife.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (83) :: ऋषि :- गौतम राहूगण, देवता :- इन्द्र, छन्द :- पंक्ति, जगती।
अश्वावति प्रथमो गोषु गच्छति सुप्रावीरिन्द्र मर्त्यस्तवोतिभिः।
तमित्पृणक्षि वसुना भवीयसा सिन्धुमापो यथाभितो विचेतसः॥
हे इन्द्र देव! आपकी रक्षा द्वारा जो मनुष्य रक्षित हैं, वह अश्व वाले घर में रहकर सर्व प्रथम गौ प्राप्त करता है। जैसे विशिष्ट ज्ञानदात्री नदियाँ चारों ओर से समुद्र को परिपूर्ण करती हैं, वैसे ही आप भी अपने रक्षित मनुष्य को यथेष्ट धन से परिपूर्ण करते हैं।[ऋग्वेद 1.83.1]
हे इन्द्रदेव! तुम्हारे द्वारा रक्षित मनुष्य गौओं से परिपूर्ण धन वालों में प्रमुख होता है। समस्त ओर से जल समुद्र में जाते हैं, वैसे ही तुम उसी को धनों से परिपूर्ण करते हो, जो धन वालों में प्रमुख होता है।
Hey Indr Dev! A devotee protected by you, gets cows initially. You grant wealth-riches to one, who is protected by you, the way rivers fill the ocean with water.
आपो न देवीष्प यन्ति होत्रियमवः पश्यन्ति विततं यथा रजः।
प्राचैर्देवासः प्र णयन्ति देवयुं ब्रह्मप्रियं जोषयन्ते वराइव॥
जैसे द्युतिमान् जल यज्ञ पात्र में जाता है, वैसे ही ऊपर रहने वाले देवता लोग यज्ञ पात्र को देखते हैं। उनकी वृष्टि सूर्य किरण की तरह व्यापक है। जिस प्रकार से अनेक वर एक ही कन्या से विवाह करने की इच्छा करते हैं, उसी प्रकार देवता लोग सोमपूर्ण और देवाभिलाषी पात्र को उत्तर वेदी के सम्मुख लाना चाहते हैं।[ऋग्वेद 1.83.2]
होता के चमस पात्र को जैसे जल प्राप्त होता है, वैसे ही स्तोता को स्नेह करने वाले देवता आकाश से नीचे की ओर देखते हुए साधक को प्राप्त होते हैं और कन्या की प्रीति करने वाले घर के समान श्रेष्ठ मार्गों से ले जाते हैं।
The demigods-deities look at the Yagy site just as the water flows to the Yagy pots. The demigods-deities want to move the Yagy pots-utensils to Uttar Vedi, Yagy site in the east, full of Somras to the hosts conducting Yagy, who is desirous of seeing them, just like the several men desirous of marring a girl.
अधि द्वयोरदधा उक्थ्यं वचो यतस्रुचा मिथुना या सपर्यतः।
असंयत्तो व्रते ते क्षेति पुष्यति भद्रा शक्तिर्यजमानाय सुन्वते॥
हे इन्द्रदेव! जो हव्य और धान्य यज्ञ पात्र में आपको समर्पित किया गया है, उसमें आपने मंत्र वचन संयुक्त किया है। यजमान, युद्ध में न जाकर, आपके काम में लगा रहता है एवं पुष्टि प्राप्त करता है, क्योंकि सोमाभिषव दाता बल प्राप्त करता है।[ऋग्वेद 1.83.3]
हे इन्द्रदेव! तुमने अपने उपासकों में प्रशंसा योग्य संकल्पों की दृढ़ता की है। वह पूजक तुम्हारे सिद्धान्तों पर कायम रहता है और वर्षा को ग्रहण करता है। तुम उस सोम वाले को मंगलप्रद शक्ति प्रदान करते हो।
Hey Indr Dev! The offerings made to you in the form of food grains are enriched by you with Mantr Shakti. The hosts, who do not want to go to war and instead remain busy with his work of extracting Somras too gain strength.
आदङ्गिराः प्रथमं दधिरे वय इद्धाग्नयः शम्या ये सुकृत्यया।
सर्वं पणे: समविन्दन्त भोजनमश्वावन्तं गोमन्तमा पशुं नरः॥
पहले अर्थात् पूर्व में अङ्गिरा लोगों ने इन्द्रदेव के लिए अन्न सम्पादित किया। अनन्तर उन्होंने अग्नि जलाकर सुन्दर योग द्वारा इन्द्र की पूजा की। यज्ञ नेता अङ्गिरावंशियों ने अश्व, गौ और अन्य पशुओं से युक्त सारा धन प्राप्त किया।[ऋग्वेद 1.83.4]
जिन अंगिराओं ने उत्तम कर्मों से अग्नि को प्रदीप्त कर पहले हविरूप अन्न संपादित किया। फिर उन्होंने गवादि से युक्त धनों की प्राप्ति की।
The descendants of Angira had conducted food grain Yagy to please Indr Dev in the past. Thereafter, they ignited fire and worshiped Indr Dev at an auspicious time & got cows and other cattle with a lot of wealth.
यज्ञैरथर्वा प्रथमः पथस्तते ततः सूर्यो व्रतपा वेन आजानि।
आ गा काव्यः सचा यमस्य जातममृतं यजामहे॥
अथर्वा नाम के ऋषि ने पहले यज्ञ द्वारा चुराई हुई गायों का मार्ग प्रदर्शित किया। अनन्तर व्रत पालक और कान्ति विशिष्ट सूर्य रूप इन्द्र आविर्भूत हुए। गौओं को अथर्वा ऋषि ने प्राप्त किया। कवि के पुत्र उशना या भृगु ने इन्द्रदेव की सहायता की। असुरों के दमन के लिए उत्पन्न और अमर इन्द्रदेव की हम पूजा करते हैं।[ऋग्वेद 1.83.5]
पहले अथर्वा ने स्वर्ग मार्गों की वृद्धि की फिर घृत नियमा सूर्य रूपी इंद्र प्रकट हुए। तब उन शत्रुओं को मृत करने वाले इंद्र प्रकट हुए। तब "उशना" से धेनुओं को हांका। हम उन शत्रुओं को मृत करने वाले इन्द्रदेव की अर्चना करते हैं।
Rishi Atharva showed the way to the cows who were stolen, prior to the Yagy. As a result, thereafter Indr Dev appeared before him like the Sun. The cows were granted to Atharva. Ushna, the son of Kavi and Bhragu helped Indr Dev. We worship Indr Dev who was born to eliminate the demons-giants and is immortal.
बर्हिर्वा यत्स्वपत्याय वृज्यतेऽर्को वा श्लोकमाघोषते दिवि।
ग्रावा यत्र वदति कारुरुक्थ्यस्तस्येदिन्द्रो अभिपित्वेषु रण्यति॥
सुन्दर फल युक्त यज्ञ के लिए जिस समय कुश का छेदन किया जाता है, उस समय स्तोत्र सम्पादक होता द्युतिमान् यज्ञ में स्तोत्र उद्घोषित करता है। जिस समय सोम निस्यन्दी प्रस्तर, शास्त्रीय स्तवनकारी स्तोता की तरह, शब्द करता है, उस समय इन्द्रदेव प्रसन्न होते हैं।[ऋग्वेद 1.83.6]
जब उत्तम अनुष्ठान के लिए कुशा काटते हैं तब साधकगण श्लोक पाठ करते हैं, सोम कूटने वाला पाषाण श्लोक के तुल्य ध्वनिवान होता है, इन्द्रदेव हर्षित होते हैं।
Indr Dev becomes happy when Kush is cut to perform the Yagy granting excellent results & the sound produced by stones meant for crushing Som.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (84) :: ऋषि :- गौतम राहूगण, देवता :- इन्द्र, छन्द :- जगती।
असावि सोम इन्द्र ते शविष्ठ धृष्णवा गहि।
आ त्वा पृणक्त्विन्द्रियं रजः सूर्यो न रश्मिभिः॥
हे इन्द्रदेव! आपके लिए सोमरस तैयार है। हे बलवान् और शत्रुओं का विनाश करने वाले हे इन्द्रदेव! आप पधारें। जिस प्रकार से सूर्य देव अपनी किरणों द्वारा अन्तरिक्ष को पूर्ण करते हैं, उसी प्रकार प्रभूत शक्ति आपको भी पूरित करे।[ऋग्वेद 1.84.1]
हे सर्वाधिक शक्ति सम्पन्न इन्द्रदेव! तुम्हारे लिए सोमरस निचोड़ा है। तुम निंशक यहाँ पर पधारो। सूर्य अपनी रश्मियों से संसार को पूर्ण करता है, उसी प्रकार सोम से रचित शक्ति तुम्हें पूर्ण करें।
Hey mighty & the slayer of the enemies, Indr Dev! Somras is ready for you. Come & accept it. The manner in which the rays of Sun energize the cosmos, Somras should fill you with power-energy in the same way.
इन्द्रमिद्धरी वहतोऽप्रतिधृष्टशवसम्।
ऋषीणां च स्तुतीरुप यज्ञं च मानुषाणाम्॥
इन्द्र देवता के दोनों हरि नाम के घोड़े हिंसा विरहित बलवाले इन्द्रदेव को वसिष्ठ आदि ऋषियों और मनुष्यों की स्तुति और यज्ञशाला में पहुँचाएँ।[ऋग्वेद 1.84.2]
किसी के वश में न रहने वाले इन्द्र को उनके अश्व यज्ञों में प्रार्थना करते हुए ऋषियों के निकट पहुँचाते हैं।
The horses of Indr Dev, named Hari, takes him to the worshiping Rishis-sages, Maharishi Vashishth and the humans, in the Yagy Shala-site of Yagy.
आ तिष्ठ वृत्रहन्रथं युक्ता ते ब्रह्मणा हरी।
अर्वाचीनं सु ते मनो ग्रावा कृणोतु॥
हे वृत्रहन्ता इन्द्रदेव रथ पर आरुढ़ हो; क्योंकि आपके दोनों अश्व मंत्र के द्वारा रथ में हमारे द्वारा नियोजित किये गये। सोम कूटने वाले पाषाण की ध्वनि से वह इस ओर आकर्षित हुआ है।[ऋग्वेद 1.84.3]
हे वृत्र नाशक इन्द्र! वन्दना द्वारा तुम्हारे दोनों अश्व रथ में जुत गए हैं। तुम उन पर चढ़कर सोम कूटने के शब्द में आकर्षित हुए इधर आओ।
Hey the slayer of Vratr, Indr Dev ride your chariot, since both of your horses are controlled-guided by Mantr by us. They will be attracted by the sound of crushing Som with stone.
इममिन्द्र सुतं पिब ज्येष्ठममर्त्यं मदम्।
शुक्रस्य त्वाभ्यक्षरन्धारा ऋतस्य सादने॥
हे इन्द्रदेव! आप इस अतीव प्रशस्त, हर्षदायक या मादक एवं अमर सोमरस का पान करें। यज्ञगृह में यह दीप्तिमान् सोमरस आपकी ओर अग्रसारित होती है।[ऋग्वेद 1.84.4]
हे इन्द्रदेव इस उत्तम हर्षदायक निष्पन्न सोम का पान करो। इस अनुष्ठान में सोम की उज्ज्वल धार तुम्हारी ओर प्रवाहमान है।
Hey Indr Dev! You drink this Somras which is enthusing, pleasure giving and making one immortal. This Somras is offered to you in the Yagy Shala.
इन्द्राय नूनमर्चतोक्थानि च ब्रवीतन।
सुता अमत्सुरिन्दवो ज्येष्ठं नमस्यता सहः॥
इन्द्रदेव की तत्काल पूजा करें; उनकी स्तुति कर अभियुत सोमरस से उन्हें प्रसन्न करें; प्रशंसनीय और बलवान् इन्द्र को प्रणाम करें।[ऋग्वेद 1.84.5]
अब श्लक इन्द्रदेव की अर्चना करो। निष्पन्न सोम से ग्रहण शक्ति वाले इन्द्रदेव को प्रणाम करो।
Let us welcome mighty Indr Dev immediately, worship-pray to him and offer him the Somras, salute-prostrate before him.
नकिष्टद्रथीतरो हरी यदिन्द्र यच्छसे।
नकिष्टानु मज्मना नकिः स्वश्च आनशे॥
हे इन्द्र देव! जिस समय आप रथ में अपने घोड़े जोत देते हैं, उस समय आपसे बढ़कर रथी कोई नहीं होता। आपके बराबर न तो कोई बली है और न सुशोभन अधीवाला है।[ऋग्वेद 1.84.6]
हे इन्द्रदेव जब अश्वों को रथ में जोतते हो तब तुम्हीं सर्वोत्तम रथी दिखाई पड़ते हो। कोई शक्तिशाली या अश्वारोही तुम्हारी बराबरी नहीं कर सकता।
Hey Indr Dev! When you deploy the horses in the chariot, no chariot driver matches you. None is comparable to you, handsome than you or mightier than you.
Bhagwan Shri Krashn is best chariot driver. None is beautiful, handsome or comparable to him. Indr Dev is no match to him. Hence this worship pertains to the Almighty as Indr Dev.
य एक इद्विदयते वसु मर्ताय दाशुषे।
ईशानो अप्रतिष्कृत इन्द्रो अङ्ग॥
जो इन्द्रदेव केवल हव्यदाता यजमान को हव्य प्रदान करते हैं, वह समस्त संसार के शीघ्र स्वामी हो जाते हैं।[ऋग्वेद 1.84.7]
जो हविदाता को अकेला ही धन देने में सक्षम हैं, वह इन्द्र किसी के द्वारा पीछे नहीं हटाया जा सकता।
Indr Dev who is capable of making offerings in the Yagy became the master of the whole world. He can not be repelled or forced to move back.
He is the protector of the earth.
कदा मर्तमराधसं पदा क्षुम्पमिव स्फुरत्।
कदा नः शुश्रवद्गिर इन्द्रो अङ्ग॥
जो हव्य नहीं देता, उसे मण्डलाकर सर्प की तरह इन्द्रदेव कब पैरों से रौदेंगे तथा वह कब हमारी स्तुति श्रवण करेंगे!?[ऋग्वेद 1.84.8]
दान न देने वाले व्यक्ति को यह इन्द्रदेव सांप की छतरी, (कुकरमुत्ता) के तुल्य कब कुचल डाले? वे कब हमारी वंदनाओं को सुनेंगे?
A person who abstains from Yagy (efforts, devotion, virtues) may be crushed by Indr Dev just like a serpent who coils around the wicked-sinner. We are waiting for Indr Dev to listen to over prayers.
यश्चिद्धि त्वा बहुभ्य आ सुतावाँ आविवासति।
उग्रं तत्पत्यते शव इन्द्रो अङ्ग॥
हे इन्द्रदेव! जो अभिषुत सोमरस द्वारा आपकी सेवा करता है, उसे आप शीघ्र धन प्रदान करते हैं [ऋग्वेद 1.84.9]
असंख्यकों में जो कोई सोम निष्पन्न कर श्रद्धा भक्ति से तुम्हें पूजता है, वही अनन्त शक्ति ग्रहण करता है। वह इन्द्रदेव उसकी अवश्य सुनते हैं।
Hey Indr Dev! One who offer you Somras is enriched by you.
स्वादोरित्था विषूवतो मध्वः पिबन्ति गौर्यः।
या इन्द्रेण सयावरीर्वृष्णा शोभसे वस्वीरनु स्वराज्यम्॥
गौर वर्ण की गायें सुस्वादु एवं सब यज्ञों में व्याप्त मधुर सोमरस का पान शोभा के लिए वे गायें अभीष्टदाता इन्द्रदेव के साथ गमन करके प्रसन्न होती हैं। ये इन्द्रदेव के स्वराज्य को लक्ष्य कर अवस्थित हैं।[ऋग्वेद 1.84.10]
सुस्वादु देह में रम जाने वाले मृदु सोम को सफेद रंग वाली धेनुएँ ही सेवन करती हैं। ये आनन्द के लिए इन्द्रदेव की अनुगत होती हुई उन्हीं के शासन में रहती हैं।
White coloured cows tastes the sweat Somras and becomes happy in the company of Indr Dev and lives in his abode-heaven.
ता अस्य पृशनायुवः सोमं श्रीणन्ति पृश्नयः।
प्रिया इन्द्रस्य धेनवो हिन्वन्ति सायकं वस्वीरनु स्वराज्यम्॥
इन्द्र देवता के राज्य में रहने वाली गौएँ अपने दुग्ध को सोमरस में मिलाकर इन्द्रदेव के वज्र को प्रेरणा प्रदान करती है।[ऋग्वेद 1.84.11]
इन्द्र देव को वे प्रिय गौएँ सोम में अपना दूध मिलाती हुई, उनके वज्र को प्रेरणा देती हैं।
The white cows mix Somras in their milk, consumed by Indr Dev and inspires his Vajr.
ता अस्य नमसा सहः सपर्यन्ति प्रचेतसः।
व्रतान्यस्य सश्चिरे पुरूणि पूर्वचित्तये वस्वीरेनु स्वराज्यम्॥
ये प्रकृष्ट ज्ञान युक्त गायें अपने दुग्ध रूपी अन्न द्वारा इन्द्र देवता के बल की पूजा करती हैं। ये गायें युद्धकामी शत्रुओं को पहले से ही परिज्ञान के लिए इन्द्र के शत्रु विनाश आदि अनेक कामों को घोषित करती हैं। ये गायें इन्द्र का राजत्व लक्ष्य कर अवस्थित होती हैं।[ऋग्वेद 1.84.12]
ये आनन्द के लिए इन्द्रदेव को अनुगत होती हुई उन्हीं के शासन में रहती हैं। इन्द्रदेव को वे प्रिय गौएँ सोम में अपना दूध मिलाती हुई, उनके वज्र को प्रेरणा देती हुई उनके राज्य में निवास करती हैं। उत्तम ज्ञान से युक्त वे गौएँ इन्द्रदेव के पराक्रम को नमस्कार करती हुई उनके आश्रम में रहती हैं तथा उनके नियमों को घोषित करती हैं।
These enlightened cows prays to-worship Indr Dev and his might. They pronounce the victory in the war for Indr Dev and destruction of the enemy. These cows are determined for the welfare of Indr Dev's regime.
इन्द्रो दधीचो अस्थभिर्वृत्राण्यप्रतिष्कृतः।
जघान नवतीर्वन॥
अप्रतिद्वन्दी इन्द्रदेव ने दधीचि ऋषि की हड्डियों से बने वज्र द्वारा वृत्र आदि असुरों को आठ सौ दस बार मारा था।[ऋग्वेद 1.84.13]
शत्रुओं से कभी न हारने वाले इन्द्रदेव ने दधीचि ऋषि की हड्डियों से बने वज्र द्वारा वृ आदि आठ सौ दस असुरों को मार डाला था।
Indr Dev killed the demons-giants 810 time with the Vajr made from the bones of Dadhichi Rishi.
इच्छन्नश्वस्य यच्छिरः पर्वतेष्वपश्रितम्।
तद्विदच्छर्यणावति॥
पर्वत में छिपे हुए दधीचि के अश्व मस्तक को पाने की इच्छा से इन्द्रदेव ने उस मस्तक को शर्यणावत् नाम के सरोवर से प्राप्त किया।[ऋग्वेद 1.84.14]
घोड़े का सिर दूर स्थित शैल पर जाकर गिरा था, इन्द्र ने उसे शर्य्यणाबान सरोवर में पड़ा पाया।
Indr Dev found the head of Rishi Dadhichi in a reservoir named Sharynavat, which had acquired the shape of the horse head.
अत्राह गोरमन्वत नाम त्वष्टुरपीच्यम्।
इत्था चन्द्रमसो गृहे॥
इस गमनशील चन्द्र मण्डल में अन्तर्हित जो त्वष्ट तेज अथवा सूर्य तेज हैं, वह आदित्य रश्मि ही हैं, ऐसा जानना चाहिए।[ऋग्वेद 1.84.15]
देवगणों ने चन्द्र ग्रहों में छिपे हुए त्वष्टा के तेज को जाना।
The aura around the Moon is by virtue of Twasta or Sury Bhagwan. Its in the form of the rays of Sun light in the sky.
को अद्य युङ्क्ते घुरि गा ऋतस्य शिमीवतो भामिनो दुर्हणायून्।
आसन्निषून्हृत्स्वसो मयोभून्य एषां भृत्यामृणधत्स जीवात्॥
आज इन्द्र की गतिशील रथ की धुरी में वीर्ययुक्त, तेजोमय, दुःसह क्रोध सम्पन्न घोड़े को कौन संयोजित कर सकता है? उन घोड़ों के मुख में वाम आवद्ध है। कौन शत्रुओं के हृदयों में पादक्षेप और मित्रों को सुख प्रदान करते हैं अर्थात वे ही अश्व, जो इन अश्वों के कार्यों की प्रशंसा करते हैं। इसलिए वे दीर्घ जीवन प्राप्त करते हैं।[ऋग्वेद 1.84.16]
आज कौन कर्मवीर अत्यन्त तेज से परिपूर्ण, आक्रोश से सम्पन्न इन्द्रदेव के घोड़ों को जोड़ सकता है? कौन शत्रु की छातियों, सीनों को रोंदकर सखाओं को सुख प्रदान करता है? कौन इनकी शक्ति में वृद्धि करता हुआ लम्बी आयु ग्रहण करता है?
Who can deploy the horses, who have unbearable anger, in the accelerated chariot of Indr Dev, which is shinning. These horses are tamed. Those who appreciate these horses gets longevity.
क ईषते तुज्यते को बिभाय को मंसते सन्तमिन्द्रं को अन्ति।
कस्तोकाय क इभायोत रायेऽधि ब्रवत्तन्वे को जनाय॥
शत्रुओं के भय से कौन निकलेगा? शत्रुओं के द्वारा कौन नष्ट होता है? समीपस्थ इन्द्रदेव को कौन रक्षक रूप से जानता है? कौन पुत्र के लिए, अपने लिए, धन के लिए शरीर की रक्षा के लिए अथवा परिवार के लोगों की रक्षा के लिए इन्द्रदेव से प्रार्थना करता है?[ऋग्वेद 1.84.17]
कौन चलता है? कौन कष्ट उठाता है? कौन इन्द्र से भयभीत होने वाला उनका सत्कार करता है? कौन पास से इन्द्र को जानता है? कौन संताप, भृत्य एवं परिजनों की रक्षा के लिए इन्द्र देव से आश्वासन माँगता है?
People do not come out in the open due to the fear of the enemy. Enemy can destroy them. one who recognizes Indr Dev as the protector, prays to him for the safety of his family, sons, servants.
को अग्निमीट्टे हविषा घृतेन स्रुचा यजाता ऋतुभिर्ध्रुवेभिः।
कस्मै देवा आ वहानाशु होम को मंसते वीतिहोत्रः सुदेवः॥
इन्द्र देवता के लिए अग्निदेव की स्तुति कौन करता है? वसन्त आदि नित्य ऋतुओं को उपलक्ष्य कर पात्रस्थित हव्य धूत द्वारा कौन पूजा करता है? इन्द्र देवता के अतिरिक्त अन्य कौन देवता किस यजमान को तत्काल प्रशंसनीय धन प्रदान करते हैं। यज्ञ निरत और देव प्रसाद सम्पन्न कौन यजमान इन्द्रदेव को अच्छी तरह जानता है।[ऋग्वेद 1.84.18]
कौन अग्नि की स्तुति करता है? कौन घृत से युक्त हवि से यज्ञ करता है? किसके लिए देवता धन लाते हैं? कौन देवगणों सहित इन्द्र को जानता है?
Who prays to Agni Dev for the sake of Indr Dev?! Who worship regularly in all seasons with offerings for the sake of Indr Dev? Who other than Indr Dev grant wealth-riches to the devotees? Who recognises-prays to Indr Dev busy in Yagy?
त्वमङ्ग प्र शंसिषो देवः शविष्ठ मर्त्यम्।
न त्वदन्यो मघवन्नस्ति मर्डितेन्द्र ब्रवीमि ते वचः॥
हे बलिष्ठ इन्द्रदेव! स्तुति परायण मनुष्यों की आप प्रशंसा करें। आपको छोड़कर और कोई सुखदाता नहीं है। इसलिए मैं आपको स्तुति करता हूँ।[ऋग्वेद 1.84.19]
हे महाबलिष्ठ इन्द्रदेव! तुम मरणशील मनुष्यों को उत्साहवर्धन करते हो। तुम धैर्यदाता हो। मैं तुम्हारे लिए सत्य वाणी से प्रार्थना करता हूँ।
Hey Indr Dev! Praise those who are busy in your worship. None other than you grants comforts, pleasures. I worship you from the depth of my heart.
मा ते राधांसि मा त ऊतयो वसोऽस्मान्कदा चना दभन्।
विश्वा च न उपमिमीहि मानुष वसूनि चर्षणिभ्य आ॥
हे निवास स्थान दाता इन्द्रदेव आपके भूतगण और सहायक रूप शत्रुगण या मरुद्रण हमारा कभी विनाश न करें। हे मनुष्य हितैषी इन्द्रदेव! हम मंत्रद्रष्टा है, आप हमें धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.84.20]
हे धनरूप इन्द्रदेव! तुम्हारे दान और रक्षाओं से हम कभी वंचित न रहें। तुम्हीं मनुष्य की हमारे लिए समस्त प्रकार के धनों को लाओ।
Hey Indr Dev! You grants us place to live. Your helpers ghosts, Marud Gan should never destroy us. You are the well wisher of humans. We pray to you with the help of Mantr (Shloks, hymns). Grant us wealth-riches.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (85) :: ऋषि :- गौतम राहूगण, देवता :- मरुत, छन्द :- जगती।
प्र ये शुम्भन्ते जनयो न सप्तयो यामन्रूद्रस्य सूनवः सुदंससः।
रोदसी हि मरुतश्चक्रिरे वृधे मदन्ति वीरा विदथेषु धृष्ययः॥
रमन वेला में मरुद्गण स्त्रियों की तरह अपने शरीर को सजाते हैं, वे गतिशील रुद्र के पुत्र हैं। उन्होंने हितकर कार्य द्वारा आकाश और पृथ्वी को वर्द्धित किया है। वीर और घर्षणशील मरुद्रण यज्ञ में सोमरस पीकर आनन्दित होते हैं।[ऋग्वेद 1.85.1]
द्रुतगामी मरुत ने जो रुद्र के पुत्र हैं, यात्रा के समय महिलाओं और पृथ्वी की वृद्धि करते हैं। वे घर्षणशील हमारे यज्ञ में अनन्द प्राप्त करें।
The Marud Gan, son of Rudr, make up like the women, during the period of intimacy. They have worked for the benefit of the earth and the sky. Brave and ready to fight Marud Gan are having fun-pleasure after enjoying Somras.
त उक्षितासो महिमानमाशत दिवि रुद्रासो अधि चक्रिरे सदः।
अर्चन्तो अर्कं जनयन्त इन्द्रियमधि श्रियो दधिरे पृश्निमातरः॥
ये मरुद्गण देवों द्वारा अभिषिक्त होकर महत्व प्राप्त कर चुके हैं। रुद्रपुत्रों ने आकाश में स्थान प्राप्त किया और पूजनीय इन्द्रदेव की पूजा करके तथा इनको वीर्यशाली करके पुषिणी या पृथ्वी के पुत्र मरुतों ने ऐश्वर्य भी प्राप्त किया।[ऋग्वेद 1.85.2]
वे श्रेष्ठ मरुद्गण महत्तावान हैं। उन्होंने क्षितिज में अपनी जगह निर्माण की है। इन्द्रदेव के लिए श्लोक उच्चारण कर, शक्ति धारण करते हुए उन-उन धरा पुत्रों ने समृद्धि को पाया।
Marud Gan have become important having been honored by the demigods-deities. The Marud Gan established them selves in the sky, space, heavens by worshiping Indr Dev. They attained galore as well. They are the sons of the earth and the Rudr.
गोमातरो यच्छुभयन्ते अञ्जिभिस्तनूषु शुभ्रा दधिरे विरुक्मतः।
बाधन्ते विश्वमभिमातिनमप वर्त्मान्येषामनु रीयते घृतम्॥
गौ या पृथ्वी के पुत्र अलंकारों द्वारा अपने को शोभा सम्पन्न करते हैं, तब दीप्त मरुद्गण अपने शरीर में उज्ज्वल अलंकार धारित करते हैं। वे समस्त शत्रुओं का विनाश करते हैं और मरुतों के मार्ग का अनुगमन करके वृष्टि करते हैं।[ऋग्वेद 1.85.3]
वे धरती पुत्र मरुत अलंकारों से सजकर अधिक प्रीति को धारण करते हुए शत्रु का हनन करते हैं। उनके मार्गों पर चलकर बादल की वर्षा करते हैं।
Marud Gan the sons of earth or the divine cows decorate their bodies. Their bodies have aura. The glorious Marud Gan destroy the enemy and shower rains on their way.
वि ये भ्राजन्ते सुमखास ऋष्टिभिः प्रच्यावयन्तो अच्युता चिदोजसा।
मनोजुवो यन्मरुतो रथेष्वा वृषव्रातासः पृषतीरयुग्ध्वम्॥
सुन्दर यज्ञ से युक्त मरुद्गण आयुध के द्वारा विशेष रूप से दीप्तिमान् होते हैं। वे स्वयं स्थिर होकर पर्वत आदि को भी अपने बल द्वारा उत्पन्न करते हैं। जिस समय आप लोग अपने रथ में बिन्दु चिह्नित मृगों को योजित करते हैं, उस समय हे मरुद्रण! आप लोग मन की तरह वेगवान् और वृष्टि सेवन कार्य में नियुक्त होते हैं।[ऋग्वेद 1.85.4]
सुंदर यज्ञ वाले ये मरुद्गण अपने आयुधों को चमकाते हुए पर्वत जैसे अपतनशील भी पदार्थों को गिराने में सक्षम हैं। हे मरुद्गण! तुम मन के समान गति वाले हो। तुम वीरों के रथों से बिन्दु चिह्नित हिरणियों को जोड़ते हो।
The beautiful Yagy leads to wearing of arms and ammunition and shine. they stabilize and create mountains with their power-strength. You deploy the spotted deer in your chariot. You move fast with the speed of brain-innerself and cause rain showers.
प्र यद्रथेषु पृषतीरयुग्ध्वं वाजे अद्रिं मरुतो रंहयन्तः।
उतारुषस्य वि ष्यन्ति धाराश्चर्मेवोदभिर्व्युन्दन्ति भूम॥
अन्न के लिए मेघ को वर्षणार्थ प्रेरण करके बिन्दु चह्नित मृग का रथ में योजित करें। उस समय उज्ज्वल सूर्य के पास से जल की धारा छूटती है और जल से सारी भूमि भीग जाती है।[ऋग्वेद 1.85.5]
जब तुम संग्राम में वज्र प्रेरित करते हुए बुंदकियो वाले हिरन को रथ में जोड़कर सूर्य के पास जल प्रेरित हो, तब वह गिरती हुई वर्षा पृथ्वी को पूर्णतः आर्द्र कर देती है।
They deploy the spotted deer in their chariot and inspire the clouds to rain for the production of food grains. At this moment a big stream of water is released from the Sun and the earth becomes wet.
आ वो वहन्तु सप्तयो रघुष्यदो रघुपत्वानः प्र जिगात बाहुभिः।
सीदता बर्हिरुरु वः सदस्कृतं मादयध्वं मरुतो मध्वो अन्धसः॥
हे मरुतो! आपके वेगवान् और शीघ्र गामी घोड़े आपको इस यज्ञ में ले आवें। आप शीघ्र गन्ता हो; हाथ में धन लेकर पधारें। हे मरुतो! बिछाये हुए कुशों पर बैठकर आप सोमरस का पान कर तृप्त हों।[ऋग्वेद 1.85.6]
मरुतो! तुमको मन्द गति वाले अश्व यहाँ लायें। हाथ में धन लेकर आओ। तुम्हारे लिये विशाल कुशासन यहाँ पर हैं, उस पर विराजमान होकर मृदु सोम का पान करो।
Hey Marud Gan! Your accelerated & fast moving horses should bring you to this Yagy. Hey fast moving, bring money in your hands. Occupy the Kush Asan and enjoy Somras.
तेऽवर्धन्त स्वतवसो महित्वना नाकं तस्थुरुरु चक्रिरे सदः।
विष्णुर्यद्धावषणं मदच्युतं वयो न सीदन्नधि बर्हिषि प्रिये॥
मरुद्गण अपने बल पर बढ़े हैं। अपनी महिमा के कारण स्वर्ग में स्थान प्राप्त कर चुके हैं। इसी प्रकार वास स्थान विस्तीर्ण कर चुके हैं। जिनके लिए विष्णु मनोरथदाता और आह्लादकर यज्ञ की रक्षा करते हैं। वे ही मरुद्गगण पक्षियों की तरह शीघ्र आकर इस प्रसन्नतादायक पर विराजें।[ऋग्वेद 1.85.7]
अपने वंश से ही प्राप्त मरुद्गण स्वर्ग में विशाल जगह बना चुके हैं। उनके लिये भगवान् श्री हरी विष्णु मनोरथ दाता और यज्ञ के रक्षक हैं।
Marud Gan have progressed on the strength of their power-might. They attained a place-position in the heavens. Bhagwan Shri Hari Vishnu fulfills their aims-targets, desires & grants pleasure-happiness to them. Let them fly like birds and occupy this comfortable place.
शूराइवेद्युयुधयो न जग्मयः श्रवस्यवो न पृतनासु येतिरे।
भयन्ते विश्वा भुवना मरुद्भयो राजानइव त्वेषसंदृशो नरः॥
शूरों, युद्धार्थियों तथा कीर्ति या अन्न के प्रेमी पुरुषों के तुल्य शीघ्रगामी, मरुद्गण युद्ध में लिप्त हुए हैं। समस्त संसार उन मरुतों से भयभीत है। क्योंकि वे नेता एवं राजा व उग्ररूप हैं।[ऋग्वेद 1.85.8]
पराक्रमियों के समान आक्रमण करने वाले मरुद्गण गण ऐश्वर्य के लिए वीर कर्म करते हैं।इनसे सभी लोक भयभीत होते हैं। ये बहुत तेजस्वी हैं।
Marud Gan have entangled in war like brave warriors seeking fight, fame-honour and those who love to have food grain. The whole world is afraid of them since they are furious like a leader and king.
त्वष्टा यद्वज्रं सुकृतं हिरण्ययं सहस्त्रभृष्टिं स्वपा अवर्तयत्।
धत्त इन्द्रो नर्यपांसि कर्तवेऽहन्वृत्रं निरपामौब्जदर्णवम्॥
शोभन कर्ता त्वष्टा ने जो सुनिर्मित, सुवर्णमय और अनेक धारा युक्त वज्र इन्द्र को दिया, उससे ही इन्द्र देव ने युद्ध में वृत्रासुर का वध किया और जलों को नीचे की ओर प्रवाहित किया।[ऋग्वेद 1.85.9]
श्रेष्ठ कर्म वाले त्वष्टा ने हजारों धारों वाले वज्र को निर्मित किया, उसे इन्द्र देव ने पराक्रम कार्यों के लिए धारण किया। उसी से वृत्र को मारकर जलों को नीचे गिराया।
Twasta who decorates, built Vajr with many sharp points gave it to Indr Dev and Indr Dev killed Vrata Sur with it & moved-poured the water in the down ward direction-earth.
ऊर्ध्वं नुनद्रेऽवतं त ओजसा दाद्दहाणं चिद्बिभिदुर्विं पर्वतम्।
धमन्तो वाणं मरुतः सुदानवो मदे सोमस्य रण्यानि चक्रिरे॥
मरुद्गणों ने अपने बल द्वारा कूप को ऊपर उठाकर पथनिरोधक पर्वत का भेदन किया। शोभन दानशील मरुद्गणों ने वीणा बजाकर एवं सोमपान से प्रसन्न होकर रमणीय धन भी दिया।[ऋग्वेद 1.85.10]
अपने पराक्रम से मरुतों ने भूमि पर स्थित जल को ऊपर की ओर प्रेरित किया और दृढ़ बादलों को भेदन कर शब्दवान हुए तथा कल्याण कारी सोम के पराक्रम से उन्होंने अत्युत्तम कर्मों को किया।
Marud Gan lifted the well in an upward direction and pierced into the mountain which was obstructing the path. Decorated Marud Gan who resort to donations played Veena and granted riches, money wealth being happy after drinking Somras.
जिह्यं नुनद्रेऽवतं तथा दिशासिञ्चन्नुत्सं गोतमाय तृष्णजे।
आ गच्छन्तीमवसा चित्रभानवः कामं विप्रस्य तर्पयन्त धामभिः॥
मरुतों में उन गौतम की ओर कूप को टेढ़ा किया तथा पिपासित गौतम ऋषि के लिए जल का सिंचन किया। विलक्षण दीप्ति से युक्त मरुत लोग रक्षा के लिए आये और मेधावी गौतम की जल द्वारा तृप्ति की।[ऋग्वेद 1.85.11]
मरुतों ने बादल को तिरछा करके उठ और प्यासे गौतम के लिए झरनों को सिंचित किया। ये सुरक्षा के लिए गये और किया।
Marud Gan tilted the well (कुँआ) towards thirsty Gautom Rishi and quenched his thirst. They filled the streams with water & protected him as well.
या वः शर्म शशमानाय सन्ति त्रिधातूनि दाशुषे यच्छताधि।
अस्मभ्यं तानि मरुतो वि यन्त रयिं नो धत्त वृषणः सुवीरम्॥
हे मरुद्गणों! आप स्तोताओं और दाताओं को उनके अभीष्ट से तीन गुना सुख प्रदान करते हो। उसी प्रकार का सुख हमें भी प्रदान करो। आप हमें संतान से युक्त धन प्रदान करो।ऋग्वेद 1.85.12]
हे मरुतो! वंदनाकारी और दाता को तुम जो इच्छापूर्वक तिगुना को सन्तुष्ट सुख प्रदान करते हो, वह हमको प्रदान करो। वीरो! उत्तम संतान से परिपूर्ण धनों से हमें धारण कराओ।
Hey Marud Gan you grant three times the desired wealth to those who worship you and those who are donours. Please grant such comforts to us as well. Bless us with progeny and give money.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (86) :: ऋषि :- गौतम राहूगण, देवता :- मरुत, छन्द :- गायत्री।
मरुतो यस्य हि क्षये पाथा दिवो विमहसः।
स सुगोपातमो जनः॥
हे उज्जवल मरुद्गणों! अन्तरिक्ष में आकर आप जिस यजमान के यज्ञ गृह में सोमरस का पान करते हो, वह मनुष्य शोभन रक्षकों से होता है।[ऋग्वेद 1.86.1]
हे महापुरुषो! तुम जिसके घर में सोमपान करते हो, वह व्यक्ति नितान्त रक्षित होता है।
Hey great Marud Gan! The person from whom you accept Somras in his house is protected by you.
यज्ञैर्वा यज्ञवाहसो विप्रस्य वा मतीनाम्।
मरुतः शृणुता हवम्॥
हे यज्ञ वाहक मरुद्गणों! यज्ञ परायण यजमान की स्तुति श्रवण करो।[ऋग्वेद 1.86.2]
हे यज्ञों को पूर्ण करने वाले मरुद्गण! हमारे अनुष्ठान में वंदनाओं को प्राप्त करो।
Hey, the carrier of Yagy Marud Gang! Please listen to the prayers by the host-one performing Yagy.
उत वा यस्य वाजिनोऽनु विप्रमतक्षत।
स गन्ता गोमति व्रते॥
यजमान के ऋतिक लोगों ने मरुतों को हव्य प्रदान कर प्रसन्न किया। जिससे वह यजमान नाना प्रकार के गौवों वाले गोष्ठ में जाता है।[ऋग्वेद 1.86.3]
हे मरुतो! जिस यजमान के ऋत्विज को तुमने ऋषि बनाया, वह अधिक धेनुओं वाला होता है।
The Purohit-Ritvij conducting Yagy for the host made offerings for you and made you happy-pleased. It led the host to acquire-possess cows.
अस्य वीरस्य बर्हिषि सुत: सोमो दिविष्टिषु।
उक्थं मदश्च शस्यते॥
यज्ञ के दिनों में वीर मरुतों के लिए यज्ञ में सोमरस तैयार किया जाता है और मरुतों की प्रसन्नता के लिए स्त्रोत्र पढ़ा जाता है।[ऋग्वेद 1.86.4]
यज्ञों में जो मरुतों के लिए कुशा पर निचोड़ा सोमरस रखता है, उसके भवन में प्रसन्नतापूर्वक श्लोकों का गान होता है।
During Yagy Somras is extracted for the brave Marud Gan and hymns are recited for the pleasure of Marud Gan.
अस्य श्रोषन्त्वा भुवो विश्वायश्चर्षणीरभी।
सूरं चित्सस्त्रुषीरिष:॥
सर्व शत्रु विजेता मरुद्गण स्तोताओं की स्तुति श्रवण करे उन्हें अन्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.86.5]
हे मरुद्गण! उत्तम यजमान की विनती को सुनो। मैं स्तोता भी उनसे अन्न ग्रहण करूँ।
The winner all enemies Marud Gan should listen to the prayer, worship, recitations by the hosts-devotees and provide them food grains.
पूर्वीभिर्हि ददाशिम शरद्धिर्मरुतो वयम्।
अवोभिश्चर्षणीनाम्॥
हम सर्वज्ञाता मरुतों द्वारा रक्षित होकर आपको अनेक वर्षों से हव्य प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 1.86.6]
तुम्हारे रक्षण सामर्थ्यों से परिपूर्ण हुए हम बहुत समय से हवि प्रदान करते हैं।
Being protected by enlightened Marud Gan, we have been making offerings for them.
सुभगः स प्रयज्यवो मरुतो अस्तु मर्त्यः।
यस्य प्रयांसि पर्षथ॥
हे राजनीय मरुद्रण जिसका हव्य आप ग्रहण करते हैं, वे सौभाग्यशाली होते हैं।[ऋग्वेद 1.86.7]
हे श्रेष्ठतम रूप से पूजनीय मरुतो! जिसे तुम अन्न से भाग्यशाली बनाओ, वह तुम्हारा आराधक है।
Hey honourable Marud Gan! Those, whose offerings are accepted by you are lucky.
शशमानस्य वा नरः स्वेदस्य सत्यशवसः।
विदा कामस्य वेनतः॥
हे प्रकृत बल सम्पन्न नेता मरुद्गण! हे सत्य बल वाले मरुतो! अनुष्ठान परिश्रम से थके हुए वंदनाकारी की मनोकामना पूर्ण करके उसके अभिष्ट को ग्रहण कराओ।
Hey Marud Gan empowered by excellent might-power! Please realise the desires of the hosts praying to you, with the help of Mantr (Shlok, Strotr) who are sweating due to the labour done by them in conducting Yagy-prayers.
यूयं तत्सत्यशवस आविष्कर्त महित्वना।
विध्यता विद्युता रक्षः॥
हे सत्य सम्पन्न मरुद्रण! आप उज्जवल माहात्म्य को प्रकट करें और उसके द्वारा राक्षस आदि का नाश करें।[ऋग्वेद 1.86.9]
हे सत्य बल से युक्त तुम अपनी महत्ता से असुरों को मारने वाले विख्यात पराक्रम को प्राप्त करें।
Hey Truth possessing Marud Gan! Please cast your excellent powers and kill the demons with them.
गूहता गुह्यं तमो वि यात विश्वमत्रिणम्।
ज्योतिष्कर्ता यदुश्मसि॥
उसे प्रकाशित करें।अंधेरों को छिपाओ, असुरों को भगाकर प्रकाश फैलाओ। हम तुमसे ज्ञान की विनती करते हैं।Remove darkness and repel all demons and destroyers-man eaters. Grant us the vision-enlightenment, that we need.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (87) :: ऋषि :- गौतम राहूगण, देवता :- मरुत, छन्द :- जगती।
प्रत्वक्षसः प्रतवसो विरप्शिनोऽनानता अविथुरा ऋजीषिणः।
जुष्टतमासो नृतमासो अञ्चिभिर्व्यानज्रे के चिदुस्राइव स्तृभिः॥
मरुद्रण शत्रु घातक, प्रकृष्ट बल सम्पन्न, जय घोष युक्त, सर्वोत्कृष्ट, संघीभूत, अवशिष्ट सोमपायी, यजमानों द्वारा सेवित और मेघ आदि के नेता हैं। मरुद्रण आभरण द्वारा सूर्य किरणों की तरह प्रकाशमान हुए।[ऋग्वेद 1.87.1]
श्रेष्ठ, बलिष्ठ, वक्ता, अपतित, अभय, द्रुतगामी, प्रिय, मरुद्गण स्वल्प तारों से सजे हुए ऐसे दिखाई देते हैं, जैसे प्रातः कालीन उषा सुन्दर दिखाई देती है।
Marud Gan are slayers of the enemy, full of power-strength, fast moving, best of all, condensed-composite, served by the hosts, dear of devotees, drinks Somras, leader of the clouds. They are accompanied by the sounds-slogans of victory. They appears beautiful like the rays of Sun in the morning.
रेषु यदचिध्वं ययिं वयइव मरुतः केन चित्पथा।
श्चोतन्ति कोशा उप वो रथेष्वा घृतमुक्षता मधुवर्णमर्चते॥
हे मरुद्रण! जिस समय पक्षी की तरह किसी मार्ग से शीघ्र दौड़कर पास के आकाश मण्डल में आप लोग गतिशील मेघों को एकत्र करते हैं, उस समय सब मेघ आपके रथों में आसक्त होकर जल की वर्षा करते हैं, इसलिए आप अपने पूजक के ऊपर मधु के तुल्य स्वच्छ जल का सिंचन करें।[ऋग्वेद 1.87.2]
हे मरुतो! तुमने क्षितिज के निचले रास्तों में बादलों को अवस्थित किया है। तुमने क्षितिज़ के निचले रास्तों में बादलों को अवस्थित किया है। तुम्हारे रथ में बादल बूँदें बरसते हैं। तुम आराधक को मधुर जल से सींचो।
Hey Marud Gan! When you run and condense the clouds in the sky, all the clouds rain-shower over your chariot. Hence you should nourish the devotees with water.
प्रैषामज्मेषु विथुरेव रेजते भूमिर्यामेषु यद्ध युञ्जते शुभे।
ते क्रीळयो धुनयो भ्राजदृष्टयः स्वयं महित्वं पनयन्त धूतयः॥
मंगल विधायिनी वृष्टि की तरह जिस समय मरुत लोग मेघों को तैयार करते हैं, उस समय मरुद्गण द्वारा लिप्त मेधों को नियमित हुए देखकर पति रहिता स्त्री की तरह पृथ्वी कम्पायमान होने लगती है। ऐसे विहरणशील, गतिविशिष्ट और प्रदीप्तायुद्ध मरुद्रण पर्वत आदि को कम्पायमान करके अपनी महिमा प्रकट करते हैं।[ऋग्वेद 1.87.3]
मरुत्तों के युद्ध जाने पर धरती भय से काँपती है। वे खेलने वाले, गर्जनशील चमकते आयुधों से युक्त मरुत विजय के लिए पूजे जाते हैं।
When the Marud Gan prepare the clouds for auspicious rains, the earth start trembling like a woman who has no husband. Thus, they show their might by shaking-trembling the mountains.
स हि स्वसृत्पृषदश्वो युवा गणोया ईशानस्तविषीभिरावृतः।
असि सत्य ऋणयावानेद्योऽस्या धियः प्राविताथा वृषा गणः॥
मरुद्रण स्वयमेव संचालित हैं। श्वेत बिन्दु युक्त मृग मरुतों का अश्व है। मरुत लोग तरुण, वार्यशाली और क्षमतायुक्त हैं। हे मरुतो! आप सत्यरूप हैं व ऋण से मुक्त करने वाले आप निन्दा रहित और जल की वर्षा करने वाले हैं। आप हमारे यज्ञ के रक्षक हैं।[ऋग्वेद 1.87.4]
स्वचालित चित्र-विचित्र अश्वों वाले मरुत शक्ति से परिपूर्ण हैं। वे सत्यरूप पापियों को जानने वाले तथा अनुष्ठान की सुरक्षा करने वाले हैं। मरुतों की जन्म कथा हमने अपने पूर्वजों से सुनी।
Marud Gan moves of their own. The spotted deer with white spots are like their horses. Marud Gan are young and full of energy-power, valour. Hey Marud Gan! You are the symbol of truth, removes the loans, free from scorn and showers rains. You are the protector of our Yagy-endeavours.
पितुः प्रत्नस्य जन्मना वदामसि सोमस्य जिह्वा प्र जिगाति चक्षसा।
यदामिन्द्रं शम्यृकाण आशतादिन्नामानि यज्ञियानि दधिरे॥
अपने पूर्वजों द्वारा उपदिष्ट होकर हम कहते हैं कि सोम की आहुति के साथ मरुतों को स्तुति वाक्य प्राप्त होता है। मरुत लोग, वृत्र वध में इन्द्र की स्तुति करते हुए उपस्थित हुए थे और इस प्रकार यज्ञ योग्य नाम धारण किया था।[ऋग्वेद 1.87.5]
हमारी जीभ सोम को देखकर अधिक प्रार्थना करती है। स्तुति करते हुए मरुत जब युद्ध में इन्द्र के सहायक हुए तब उन्होंने यज्ञ के योग्य नामों को धारण किया।
Having been preached-guided our ancestors we offer Somras to them and worship-pray them. Marud Gan were present with Indr Dev, when he relinquished Vratr. Thus they got the titles suitable for Yagy.
श्रियसे कं भानुभिः सं मिमिक्षिरे ते रश्मिभिस्त ऋक्वभिः सुखादयः।
ते वाशीमन्त इष्मिणो अभीरवो विद्रे प्रियस्य मारुतस्य धाम्नः॥
जीवों के उपभोग के लिए वे मरुद्गण दीप्तिमान् सूर्य की किरणों के साथ जल की वर्षा करना चाहते हैं। वे स्तुति वाले ऋत्विकों के साथ आनन्द दायक हव्य का भक्षण करते हैं। स्तुति युक्त, वेगवान् और निर्भीक मरुद्गणों ने सर्वप्रिय मरुद्गण सम्बन्धित विशिष्ट स्थान को किया।[ऋग्वेद 1.87.6]
उन सुशोभित मरुतों ने स्तोताओं के लिए वर्षा करने की अभिलाषा की। वेग से चलते हुए अपने प्रिय स्थान को पाया।
Marud Gan are eager to shower rains for the benefit of the living beings. They eat-consume the offerings by the hosts conducting Yagy with happiness, joyfully. They achieved the high position by being accelerated-fast, fearless and attained prayers-worship.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (88) :: ऋषि :- गौतम राहूगण, देवता :- मरुत, छन्द :- पंक्ति, त्रिष्टुप्।
आ विद्युन्मद्भिर्मरुतः स्वर्कै रथेभिर्यात ऋष्टिमद्भिरश्वपर्णै:।
आ वर्षिष्ठया न इषा वयो न पप्तता सुमायाः॥
हे मरुद्रण! आप दीप्ति से युक्त शोभन गमनवाले, शस्त्रशाली और अश्व संयुक्त रथों पर आरूढ़ होकर पधारें। शोभन कर्मा इन्द्र देव प्रभूत अन्न के साथ पक्षी की तरह हमारे पास आयें।[ऋग्वेद 1.88.1]
हे मरुद्गण! तुम अत्यन्त ज्योति, महानगति और आयुधों से परिपूर्ण हुए उड़ने वाले घोड़ों को रथ में जोतकर आओ। तुम्हारी बुद्धि कल्याण करने वाली है। अधिक अन्नों के संग हमको ग्रहण होओ।
Hey Marud Gan! You are armed & possess aura. You should visit us in the chariot in which horses have been deployed. Let Indr Dev who is known for doing appreciable deeds, come to us flying like birds, with a lot of food grains.
तेऽरुणेभिर्वरमा पिशङ्गै शुभे कं यान्ति रथतूर्भिरश्वैः।
रुक्मो न चित्रः स्वधितीवान्पव्या रथस्य जङ्घनन्त भूम॥
मरुद्रण अरुण और पिङ्गल वाले रथ प्रेरक घोड़ों द्वारा किस स्तोता का कल्याण करने के लिए आते हैं? सोने की तरह दीप्तिमान और शत्रु नाशकारी तथा शस्त्र शाली मरुद्गण रथ चक्र द्वारा भूमि को उघाड़ते चलते हैं।[ऋग्वेद 1.88.2]
विजय की आशा से लाल-पीले रंग के अश्वों से दौड़े आते हैं, उनका रथ सोने के वर्ण का है। वे वज्र से युक्त हैं। उस रथ के पहिये की लीक से धरती को उखाड़ते हैं।
Marud Gan moves with the hope of success-victory, in the chariot in which horses of red and yellow colour have been deployed, with the desire to benefit the devotees. Their chariot has golden colour. Their chariot removes soil, when it moves over the ground.
श्रिये कं वो अधि तनूषु वाशीर्मेधा वना न कृणवन्त ऊर्ध्वा।
युष्मभ्यं कं मरुतः सुजातास्तुविद्युमासो घनयन्ते अद्रिम्॥
मरुद्रण, ऐश्वर्याप्ति के लिए आपके शरीर में शत्रुओं का संहारक शस्त्र है। मरुद्गण वन, वृक्ष आदि की तरह यज्ञ को ऊपर करते हैं। सुजन्मा मरुद्रण आपके लिए प्रभूत धनशाली यजमान लोग सोम पीसने वाले पत्थर को धन सम्पन्न करते हैं।[ऋग्वेद 1.88.3]
हे मरुद्गण! तुम शास्त्रों से सुसज्जित हो। यज्ञों को वृक्षों के समान ऊँचा उठाओ। यजमान तुम्हें आकर्षित करने को सोमरस कूटने के पाषाण से शब्द करते हैं।
Hey Marud Gan! You possess the arms & ammunition for the destruction of the enemy. You lift the Yagy like forests and trees. The hosts conducting Yagy extract Somras by crushing-beating the plant with stone.
अहानि गृध्राः पर्या व आगुरिमां धियं वार्कार्यं च देवीम्।
ब्रह्म कृण्वन्तो गोतमासो अर्कैरुर्ध्वं नुनुद्र उत्सधिं पिबध्यै॥
जलाभिलाषा गौतम गण आपके सुख के दिन आये है और आपने आकर जलनिष्पाद्य यज्ञ को द्युतिमान किया है। गौतम ने स्तुति के साथ हव्य दान करके जल पीने के लिए कूप को उठाया था।[ऋग्वेद 1.88.4]
हे प्रार्थना की कामना वालों! तुम्हारे अच्छे दिन लौट आये हैं। प्रार्थना करते हुए गौतमों ने पान करने के लिए बादल रूप कृप की कीर्ति कर्म द्वारा ऊपर की ओर आकृष्ट किया है।
Rishi Gautom wanted to have water. He is comfortable now. He has accelerated the process of Yagy for the sake of drinking water. He made offerings, prayed-worshipped and raised the well for drinking water.
एतत्यन्न योजनमचेति सस्वई यन्मरुतो गोतमो वः।
पश्यन्हिरण्यचक्रानयोदंष्ट्रान्वि धावतो वराहून्॥
मरुद्रण हिरण्यमय चक्र रथ पर आरूढ़, लौहमय चक्रधारा से युक्त इधर-उधर दौड़ने वाले और प्रबल शत्रुहन्ता है। उन्हें देखकर गौतम ऋषि ने जिस स्तोत्र का उच्चारण किया था, वह यही स्तुति है।[ऋग्वेद 1.88.5]
हे मरुतो! इस प्रसिद्ध श्लोक को ही हमने पहले नहीं जाना, जिसे गौतम ऋषि ने तुम्हारे लिए उच्चारित किया था।
Marud Gan are riding the golden chariot, having excels made of iron and he is slayer-killer of the enemy, who run hither & thither for safety. Gautom Rishi saw them and recited this Strotr in their honour.
एषा स्या वो मरुतोऽनुभर्त्री प्रति ष्टोभति वाघतो न वाणी।
अस्तोभयथासामनु स्वधां गभस्त्योः॥
हे मरुद्रण! हमारी जिह्वा ऋषियों की वाणी का अनुकरण कर आपकी प्रार्थना करती है। हमारे द्वारा पहले के समान ही यह स्तुति सरल स्वभाव से की जा रही हैं।[ऋग्वेद 1.88.6]
हे मरुतो! मेरी जिह्वा ऋषियों की वाणी का अनुकरण कर तुम्हारी वन्दना करती है। यह वन्दना सरल स्वभाव से ही की जा रही है।
Hey Marud Gan! Our tongue follow the voice-words of the Rishi Gan in your honour. We are praying-worshiping you with simple hearts.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (89) :: ऋषि :- गौतम राहूगण, देवता :- मविश्वेदेवा इत्यादयः , छन्द :- जगती, त्रिष्टुप्।
आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतोऽदब्धासो अपरीतास उद्भिदः।
देवा नो यथा सदमिधे असन्नप्रायुवो रक्षितारो दिवेदिवे॥
कल्याणकारी, अहिंसित, अप्रतिरुद्ध और शत्रु नाशक समस्त यज्ञ चारों ओर से हमें प्राप्त हों अथवा हमारे पास आयें। जो हमें न छोड़कर प्रतिदिन हमारी रक्षा करते हैं, वे ही देवता सदा हमें वर्द्धित करें।[ऋग्वेद 1.89.1]
अमर, अपराजित, वृद्धि से परिपूर्ण, कल्याणकारी वचन को हम ग्रहण करें जिससे विश्वेदेवा हमारी वृद्धि करते हुए रक्षक हों।
Let us make of sorts of efforts-Yagy, so that the beneficial, non violent, slayer-killer of the enemy demigods-deities, Vishwedeva protect us and ensure our progress.
देवानां भद्रा सुमतिर्ऋजूयतां देवानां रातिरभि नो नि वर्तताम्।
देवानां सख्यमुप सेदिमा वयं देवा न आयुः प्र तिरन्तु जीवसे॥
यजमान प्रिय देवता लोग कल्याण वाहक अनुग्रह हमारे सामने ले आयें और उनका दान भी हमारे सामने आये। हम उन देवों का अनुग्रह प्राप्त करें और वे हमारी आयु बढ़ावें।[ऋग्वेद 1.89.2]
देवताओं का ध्यान और दान हमारी ओर प्रेरित हो। हम उनके मित्र बनने को प्रयत्न करें। वे हमारी आयु की वृद्धि करें।
Let the demigod-deities who like the hosts-devotees, come with their blessings-obligations and donations to us. Let us be friendly with them and they should enhance-boost our longevity.
तान्पूर्वया निविदा हूमहे वयं भगं मित्रमदितिं दक्षमस्त्रिधम्।
अर्यमणं वरुणं सोममश्विना सरस्वती नः सुभगा मयस्करत्॥
उन देवों को पूर्व के वेदात्मक वाक्य द्वारा हम बुलाते हैं। भग, मित्र, अदिति, दक्ष, अस्त्रिध या मरुद्रण, अर्यमा, वरुण, सोम और अश्विनी कुमारों को हम बुलाते हैं। सौभाग्य शालिनी देवी सरस्वती हमारे सुख का सम्पादन करें।[ऋग्वेद 1.89.3]
अदिति (देवमाता), आकाश, अन्तरिक्ष, माता, पिता और समस्त देव हैं। अदिति पंचजन है और अदिति जन्म और जन्म का कारण है। उन भग, मित्र, अदिति, दक्ष, अर्यमा, तरुण, चन्द्र और अश्विनी कुमारों का हम प्राचीन प्रार्थनाओं से आह्वान करते हैं। वे सौभाग्य प्रदान करने वाली सरस्वती हमें सुख प्रदान करें।
We call the demigods-deities :- Bhag, Mitr, Aditi, Daksh, Astridh, Marud Gan,Aryma, Varun, Som-Moon, Ashwani Kumars with the help of Ved Sukt, Strotr verses-hymns. Let Mata Saraswati bless us and grant us comforts.
तन्नो वातो मयोभु वातु भेषजं तन्माता पृथिवी तत्पिता द्यौः।
तद्ग्रावाण: सोमसुतो मयोभुवस्तदश्विना शृणुतं धिष्ण्या युवम्॥
हमारे पास वायुदेव कल्याण वाहक भेषज ले आवें; माता मेदिनी और पिता द्युलोक भी ले आवें। सोम चुआने वाले और सुखकर स्तर भी उस औषध को ले आवें। ध्यान करने योग्य दोनों अश्विनी कुमारो, आप लोग हमारी याचना श्रवण करें।[ऋग्वेद 1.89.4]
भेषज :: रोगी को स्वस्थ करने अथवा रोग का इलाज या उसकी रोकथाम करने के लिए विधिपूर्वक बनाया हुआ पदार्थ; रोगी को निरोग तथा स्वस्थ करना या बनाना; Pharmaceutical। औषधि, जल, इत्यादि।
पवन हमको सुख देने वाली औषधियाँ प्राप्त करायें। जननी पृथ्वी, जनक आकाश और सोम निष्पन्न करने वाले पाषणा यह औषधि लाएँ। हे अश्वि देवो! तुम उच्च पदवी वाले हो, हमारी वंदना सुनो।
Let Pawan Dev, Mother earth and the heavens arrange Pharmaceuticals for us. Bring those medicines-herbs from which Somras can be extracted. Hey Ashwani Kumars! Please listen-answer to our prayers.
तमीशानं जगतस्तस्थुषस्पतिं धियंजिन्वमवसे हूमहे वयम्।
पूषा नो यथा वेदसामसद्वृधे रक्षिता पायुरदब्य: स्वस्तये॥
उस ऐश्वर्यशाली, स्थावर और जंगम के अधिपति और यज्ञ तोष इन्द्रदेव को अपनी रक्षा के लिए हम बुलाते हैं। जैसे पूषा हमारे धन की वृद्धि के लिए रक्षणशील है, वैसे ही अहिंसित पूषा हमारे मंगल के लिए रक्षक हो।[ऋग्वेद 1.89.5]
स्थावर जंगम के पोषणकर्त्ता मति प्रेरक विश्वेदेवों को हम रक्षार्थ पुकारते हैं, जिससे अहिंसित पूषा हमारे धन की वृद्धि करने वाले और रक्षक हों।
We call-request Vishw Dev-Indr Dev for our protection. The way Push Dev non violent protect our wealth, he may become beneficial to us.
स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः।
स्वस्ति नस्ताक्ष्र्यो अरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु॥
अपरिमेय स्तुति पात्र इन्द्र और सर्वज्ञ पूषा हमें मंगल प्रदान करें। तृक्ष के पुत्र कश्यप या अहिंसित रथनेमि युक्त गरुड़ तथा बृहस्पति हमें मंगल प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.89.6]
यशस्वी इन्द्रदेव कल्याण करने वाले हों। धन से युक्त मंगल भी पूषा करें। जिनके रथ के पहिये के वेग का कोई नहीं रोक सकता, ऐसे अश्व सूर्य और बृहस्पति हमारा उद्धार करें।
Let honourable Indr Dev and enlightened Push Dev look to our welfare. Kashyap, the son of Traksh or non violent Garud Dev & Brahaspati perform our welfare.
(***RIG VED santoshkipathshala.blogspot.com)
पृषदश्वा मरुतः पृश्निमातरः शुभंयावानो विदथेषु जग्मयः।
अग्निजिहा मनवः सूरचक्षसो विश्वे नो देवा अवसा गमन्नि ह॥
श्वेत बिन्दु चिह्नित अश्ववाले, पृश्नि के पुत्र शोभन गतिशाली, यज्ञगामी, अग्रि जिव्हा पर अवस्थित बुद्धिशाली और सूर्य के समान प्रकाशशाली मरुत देव हमारी रक्षा के लिए यहाँ पधारे।[ऋग्वेद 1.89.7]
चित्र-विचित्र घोड़ों से युक्त सुन्दर गति से यज्ञों को प्राप्त होने वाले मरुद्गण सूर्य के समान तेजस्वी मनु और सभी देवगण अपने रक्षण-साधनों सहित यहाँ पधारें।
Let enlightened Marud Gan-the son of earth, as bright as Sun, stationed our the edge of fire, moves fast with their white spotted horses, come here to protect us.
भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवा भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः।
स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवांसस्तनूः भिर्व्यशेम देवहितं यदायुः॥
हे देवगण! हम कानों से मंगलप्रद वाक्य सुनें, हे यजनीय देवगण! हम आँखों से मंगलवाहक वस्तु देखें, हम दृढ़ाङ्ग शरीर से सम्पन्न होकर आपकी स्तुति करके ब्रह्मा द्वारा निर्दिष्ट आयु प्राप्त करें।[ऋग्वेद 1.89.8]
हे पूज्य देवगण! हम वंदनाकारी कल्याणप्रद वाणी को सुने। मंगल कार्यों को नेत्र से देखें। पुष्ट शरीरों से देवताओं द्वारा नियत की गई आयु का प्रयोग करें।
Hey honourable demigods-deities! Let us listen the words spell our welfare, our eyes should see the objects meant for our welfare, our body-physique should be strong enough to enjoy the age granted by Brahma Ji-the creator.
शतमिन्नू शरदो अन्ति देवा यत्रा नश्चक्रा जरसं तनूनाम्।
पुत्रासो यत्र पितरो भवन्ति मा नो मध्या रीरिषतायुर्गन्तोः॥
हे देवगण! मनुष्यों के लिए (आप लोगों के द्वारा) सौ वर्ष की आयु ही कल्पित है। इसी बीच आप लोग शरीर में बाधा उत्पन्न करते हैं और इसी बीच पुत्र लोग पिता हो जाते हैं। उस निर्दिष्ट आयु के बीच हमें विनष्ट मत करो।[ऋग्वेद 1.89.9]
हे देवताओं! जब हमें बुढ़ापा देखे तो तब हम लगभग सौ वर्ष के होते हैं। उस समय हमारे पुत्र भी जनक बन जाते हैं। तुम हमको अल्प आयु में मृत्यु को प्राप्त न करवाना।
Hey deities-demigods! You have fixed the maximum age of humans to be 100 years. You develop many disturbances, ailments, troubles, difficulties, diseases in the body. Just then the sons become fathers. Please do not destroy-kill us before-during that age.
The age of humans during Sat Yug is 400 years, Tretra Yug 300 years, Dwapar Yug 200 years and during Kali Yug it is 100 years. But exceptions are always there. Those who continue Yog practice, maintain regular life style & diet, resort to high moral & character may live up to 500 years during Kali Yug as well.
अदितिर्द्यौरदितिरन्तरिक्षमदितिर्माता स पिता स पुत्रः।
विश्वे देवाः अदितिः पञ्च जनाः अदितिर्जातमदितिर्जनित्वम्॥
अदिति-देवमाता, आकाश, अंतरिक्ष, माता-पिता और समस्त देवगण हैं। अदिति पञ्चजन हैं और जन्म का कारण हैं।[ऋग्वेद 1.89.9]
पञ्चजन :: चार वर्ण और पाँचवां वर्ण निषाद है। इनको पाँच जाति (race, नस्ल) भी कहा गया है। चार ऋत्विक और एक यजमान को मिलाकर पाँच होते हैं।
आकाश, अंतरिक्ष, माता-पिता, पुत्र, सभी देवगण, सम्पूर्ण जातियाँ या जो उत्पन्न हुआ है या उत्पन्न होगा, यह सभी अदिति रूप हैं।
Sky, space-heavens, parents and all deities-demigods are the various forms of Dev Mata Aditi. She is he rot cause behind the birth of all organism.
Each and every organism is the component of the Almighty-God. Birth-rebirth, reincarnations are the outcome of the deeds-endeavours of living beings in various births.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (90) :: ऋषि :- गौतम राहूगण, देवता :- मविश्वेदेवा इत्यादयः , छन्द :- गायत्री, त्रिष्टुप्।
ऋजुनीती नो वरुणो मित्रो नयतु विद्वान्।
अर्यमा देवैः सजोषाः॥
वरुण (निशाभिमानी देव) और मित्र (दिवाभिमानी देव) उत्तम मार्ग पर अकुटिल गति से हमें ले जावें तथा देवों के साथ समान प्रेम से युक्त अर्यमा भी हमें ले जायें।[ऋग्वेद 1.90.1]
वरुण, सखा एवं देवताओं सहित रमे हुए अर्यमा हमको सही रास्ता प्राप्त करायें।
Let Varun, Mitr and Aryma show us the right (virtuous, righteous, pious) path.
We should not follow the path which is vicious, leads to sins, wretchedness-wickedness.
ते हि वस्वो वसवानास्ते अप्रमूरा महोभिः।
व्रता रक्षन्ते विश्वाहा॥
वे धन देते हैं। वे मूढ़ता से रहित होकर अपने तेज द्वारा सदा अपने कार्य की रक्षा करते हैं।[ऋग्वेद 1.90.2]
हे धन का विचार कर किसी महानता से न दबकर नियमों में दृढ़ रहते हैं।
They grant us riches-wealth. They are free from imprudence and protect us with their energy-power, actions, rules & regulations .
ते अस्मभ्यं शर्म यंसन्नमृता मर्त्येभ्यः।
बाधमाना अप द्विषः॥
वे अमर गण हमारे शत्रुओं का विनाश करके हम मर्त्यों को सुख प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.90.3]
वे अमरत्व प्राप्त देवतागण हमारे शत्रुओं का विनाश करें और हम मरणशील प्राणियों के आश्रय दाता हों।
These immortals should vanish our enemies and grant us protection-comfort.
वि नः पथः सुविताय चियन्त्विन्द्रो मरुतः।
पूषा भगो वन्द्यासः॥
वन्दनीय इन्द्र, मरुद्गण, पूषा और भग देवगण उत्तम बल लाभ के लिए हमें मार्ग दिखावें।[ऋग्वेद 1.90.4]
इन्द्र, मरुद्गण, पूषा भग से स्तुत्य देवता हमको कल्याण मार्ग पर चलाएँ।
Honourable demigods-deities Indr Dev, Marud Gan, Pusha and Bhag should show us the right tract granting excellent strength-power.
उत नो धियो गोअग्राः पूषन्विष्णवेवयावः।
कर्ता नः स्वस्तिमतः॥
पूषन, विष्णु और मरुद्गण हमारा यज्ञ गौ प्रधान करें और हमें विनाश रहित बनावें।[ऋग्वेद 1.90.5]
हे पूषा, हे श्रेष्ठ मार्ग वाले विष्णो! तुम हमको ऐसे कर्म की ओर प्रेरित करो जिससे हम धेनुओं को प्राप्त कर सकें।
Pusha, Vishnu and Marud Gan should make our Yagy predominant with the cows.
Let them guide us, so that we can acquire cows.
मधु वाता ऋतायते मधु क्षरन्ति सिन्धवः।
माध्वीवीर्नः सन्त्वोषधीः॥
यजमान के लिए समस्त वायु और नदियाँ मधु (या कर्मफल) वर्षण करें। समस्त औषधियाँ भी माधुर्य युक्त हों।[ऋग्वेद 1.90.6]
तुम हमारे लिए मंगलकारी बनो। यज्ञशील के लिए पवन, नदियाँ तथा औषधियाँ मृदु रस वृष्टि का कारक हों।
Let air (Pawan Dev) and rivers Varun Dev) shower honey (reward of the actions-endeavours), for the sake of the hosts-devotees performing Yagy.
मधु नक्तमुतोषसो मधुमत्पार्थिवं रजः।
मधु द्यौरस्तु नः पिता॥
हमारी रात्रि और उषा मधुर फलदाता हों। पृथ्वी की रज उत्तम फलदायक हो। सबका रक्षक आकाश भी सुखदायक हो।[ऋग्वेद 1.90.7]
रात और दिन माधुर्यमय हो पृथ्वी और अंतरिक्ष तथा हमारे पिता (क्षितिज) मधुर रस प्रदान करने वाले हों।
मधुमान्नो वनस्पतिर्मधुमाँ अस्तु सूर्यः।
माध्वीर्गावो भवन्तु नः॥
हमारे लिए समस्त वनस्पतियाँ सुखदायक हों। सूर्य सुखदायक हो। सारी गायें सुखदायक हों।[ऋग्वेद 1.90.8]
वनस्पतियाँ मधुर हों, सूर्य, मधुर रस की वर्षा करें। धेनुएँ हमें मधुर दूध प्रदान करें।
Let the vegetation, Sun and the cows be beneficial to us.
शं नो मित्रः शं वरुणः शं नो भवत्वर्यमा।
शं न इन्द्रो बृहस्पतिः शं नो विष्णुरुरुक्रमः॥
मित्र, वरुण, अर्यमा, इन्द्र, बृहस्पति और विस्तीर्ण पाद क्षेपी विष्णु हमारे लिए सुखकारी हों।[ऋग्वेद 1.90.9]
मित्र, वरुण, अर्यमा, इन्द्र, बृहस्पति और विशाल पैर रखने वाले विष्णु हमारे लिए साक्षात स्वर्ग के समान हों।
Let Mitr, Varun, Aryma, Brahaspati and Bhagwan Shri Hari Vishnu with his giant feet be beneficial (granting comfort) to us.
It has been noticed that the link is lost time & again, in the two translation from Sanskrat to Hindi, quoted above. The translation by two different people too become mismatch. At places it gives the impression that its not authentic. Still, effort is made to correlate it and make it meaningful.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (91) :: ऋषि :- गौतम राहूगण, देवता :-सोम, छन्द :- गायत्री, उष्णिक्।
त्वं सोम प्र चिकितो मनीषा त्वं रजिष्ठमनु नेषि पन्थाम्।
तव प्रणीतो न इन्दो देवेषु रत्नमभजन्त धीराः॥
हे सोम देव! अपनी बुद्धि द्वारा हम आपको अच्छी तरह से जानते हैं। आप हमें सरल मार्ग से ले जाना। हे सोम! आपके द्वारा लाये जाने पर हमारे पितरों ने देवों के बीच रत्न प्राप्त किया था।[ऋग्वेद 1.91.1]
हे सोम, मति से हम तुमको जान सकें। तुम हमें सुन्दर मार्ग बतलाते हो। तुम्हारे अनुसरण में हमारे पिता देवों से रमणीक सुख को ग्रहण करने में सामर्थ्यवान हुए।
Hey Som Dev-Moon! We have recognised you through of our intelligence (mind, brain). Please accompany us through a simple (trouble free) path-way. Our ancestors-Manes got jewels, when you took them to the demigods-deities.
त्वं सोम क्रतुभिः सुक्रतुर्भूस्त्वं दक्षैः सुदक्षो विश्ववेदाः।
त्वं वृषा वृषत्वेभिर्महित्वा द्युम्नेभिद्युम्न्यभवो नृचक्षाः॥
हे सोम! आप अपने यज्ञ के द्वारा शोभन यज्ञ से संयुक्त और अपने बल द्वारा शोभन बल स्व युक्त हैं। आप सर्वज्ञ है। आप अनिष्ट फल के वर्षण से वर्षणकारी हैं और आप महिमा में महान् यजमान के अभिमत फल का प्रदर्शन करके यजमान के द्वारा दिये गये अन्न से आप अत्यधिक अन्न से युक्त हैं।[ऋग्वेद 1.91.2]
हे सोम तुम उत्तम प्रज्ञा वाले समस्त धनों से परिपूर्ण, हृदय की शक्ति द्वारा चालाक हुए। तुम मनुष्यों को श्रेष्ठतम सीख देने वाली महिमा से पुरुषार्थ परिपूर्ण तथा तेजस्वी बनें।
Hey Som! You are decorated with the strength of Yagy and your own power-might. You enlightened the humans by granting them excellent knowledge of endeavours-self sufficiency, efforts.
राज्ञो नु ते वरुणस्य व्रतानि बृहद्गभीरं तव सोम धाम।
शुचिष्टमसि प्रियो न मित्रो दक्षाय्यो अर्यमेवासि सोम॥
हे सोम! राजा वरुण के सारे कार्य आपके ही हैं। आपका तेज विस्तीर्ण और गम्भीर है। प्रिय बन्धु के समान आप सबके संस्कारक हैं। अर्यमा की तरह आप सबके वर्द्धक हों।[ऋग्वेद 1.91.3]
गम्भीर :: गहरा, गम्भीर, अगाध, कर्कश, भारी, गम्भीर, अपने आप में शान्त; serious, profound, raucous, sober.
हे सोम! वरुण के सभी नियम तुममें सम्मिलित हैं। तुम अत्यन्त तेजस्वी हो। तुम निर्मल, सखा के समान प्रिय और अर्यमा के समान वृद्धि के कारक हो।
Hey Som! You perform like Varun Dev, possessing aura-power & strength, are broad and you are serious-contained in yourself. You should grant growth to all like Aryma.
या ते धामानि दिवि या पृथिव्यां या पर्वतेष्वोषधीष्वप्सु।
तेभिर्ने विश्वैः सुमना अहेळन्राजन्त्सोम प्रति हव्या गृभाय॥
हे सोम! धुलोक, पृथ्वी, पर्वत, ओषधि और जल में आपका जो तेज है, उसी तेजी से युक्त होकर सुमना और क्रोध-रहित राजन्, हमारा हव्य ग्रहण करें।[ऋग्वेद 1.91.4]
हे नृप सोम! तुम हमारे जो तेज आकाश, धरती, शैलों, औषधियों और जलों में हो, उनके साथ क्रोध रहित मुद्रा में, प्रसन्नतापूर्वक हमारी हवियों को स्वीकार करो।
Hey Som Dev! Please accept our offerings free from anger, associated-accompanied with your aura-energy present in the outer space, earth, mountains, medicines and water.
त्वं सोमासि सत्पतिस्त्वं राजोत वृत्रहा।
त्वं भद्रो असि क्रतुः॥
हे सोम! आप सत्कर्म में वर्तमान ब्राह्मणों के अधिपति हैं। आप राजा हैं। आप शोभन यज्ञ भी हैं।[ऋग्वेद 1.91.5]
हे सोम! तुम श्रेष्ठ मनुष्यों के पोषक वृत्र नाशक एवं उत्तम शक्ति के साक्षात रूप हो।
hey Som Dev! You are the king of Brahmns in performing virtuous, righteous, pious deeds. You are a decorated Yagy as well.
त्वं च सोम नो वशो जीवातुं न मरामहे।
प्रियस्तोत्रो वनपस्पतिः॥
स्तुतिप्रिय और सारी औषधियों के पालक, हे सोम! यदि आप हमारे जीवनौषध की अभिलाषा करें, तो हम मृत्युरहित हो जायें।[ऋग्वेद 1.91.6]
हे सोम! प्रिय श्लोकों से परिपूर्ण वन-राज! तुम हमारे जीवन की चाहना करो, जिससे हम मृत्यु को प्राप्त न हों।
Hey Som! You like the people to pray to you. You grow-protect all medicinal plants (जड़ी-बूटी, औषध). If you desire to provide us life saving medicines we will become immortal.
त्वं सोम महे भगं त्वं यून ऋतायते।
दक्षं दधासि जीवसे॥
हे सोम! आप वृद्ध और तरुण याजक को उसके जीवन के उपयोग योग्य धन प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 1.91.7]
हे सोम! यज्ञों के अभिलाषी युवक अथवा वृद्धों की कीर्ति और जीवन के लिए आप शक्ति धारक हो।
Hey Som (Moon, Luna)! You provide-grant wealth, riches, money to both young & the old devotees, who ask you for money.
त्वं नः सोम विश्वतो रक्षा राजन्नघायतः।
न रिष्येत्त्वावतः सखा॥
हे राजा सोम! हमें दुःख देने के अभिलाषी लोगों से बचावें। आप जैसे का मित्र कभी विनष्ट नहीं होता।[ऋग्वेद 1.91.8]
हे सोम! पापी लोगों से हमारी रक्षा करो। तुम्हारे मित्र हम कभी दुःख न उठायें।
Hey king Som! Protect us from those who want to trouble, tease, torture us. one who has a friend like you will never perish.
सोम यास्ते मयोभुव ऊतयः सन्ति दाशुषे।
ताभिर्नेऽविता भव॥
हे सोम! आपके पास यजमानों के लिए सुखकर रक्षण हैं, उनके द्वारा हमारी रक्षा करें।[ऋग्वेद 1.91.9]
हे सोम! हविदाता को सुखी करने वाले सुरक्षा साधनों से तुम हमारे रक्षक हो।
Hey Som! You have means to protect your devotees who make offerings to you in the Yagy, Hawan, Agni Hotr.
इमं यज्ञमिदं वचो जुजुषाण उपागहि।
सोम त्वं नो वृधे भव॥
हे सोम! आप हमारा यह यज्ञ और स्तुति ग्रहण करके पधारें और हमें वर्द्धित करें।[ऋग्वेद 1.91.10]
हे सोम! इस यज्ञ में हमारी इन वंदनाओं को प्राप्त कर हमारी वृद्धि के लिए विराजमान होओ।
Hey Som! Please come-join us and accept our prayers in the Yagy and ensure our progress.
चन्द्र देव ब्राह्मणों के राजा, औषधियों के स्वामी और मन के नियन्ता हैं। ये जातक को चञ्चल बनाते हैं। मनुष्य की हथेली पर इनका स्थान सीधे हाथ में बाईं तरफ़ होता है। इसे निम्न, मध्यम और उच्च चन्द्र के रूप में जाना जाता है। यह यात्रा का द्योतक भी है। इसके ऊपर चढ़ी हुई मस्तिष्क रेखा जातक के मन-मस्तिष्क की स्थिति का बयान करती है। बायें हाथ में यह दायेीं ओर होता है और स्त्रियों की मनोस्थिति को बयान करता है।
चन्द्र देव और काम देव दोनों ही ब्रह्मा जी के रूप हैं और दोनों ही मनुष्य के मन को भटकाने वाले हैं।
सहज बोध-ज्ञान रेखा (LINE OF INTUITION) चन्द्र पर्वत पर वलयाकार होकर स्थिर होती है। यह मनुष्य को अंर्तज्ञान, भविष्य ज्ञान कराती है।
यहीं से बुध रेखा (LINE OF MERCURY) का आविर्भाव होता है और वह जातक के स्वास्थ्य, व्यापार को नियंत्रित करती है।
मस्तिष्क रेखा (LINE OF HEAD) निम्न चन्द्र पर आ जाये तो उसे बेहद संवेदनशील और अस्थिर चित्त बना देती है और जातक आत्महत्या भी कर सकता है।
भाग्य रेखा यदि यहाँ से प्रारम्भ हो तो जातक अपनी मेहनत से काम-धंधे में सफलता पाता है। सूर्य रेखा (SUN LINE) का यहाँ से उदय उसे लोकप्रिय-जनप्रिय बना देता है और जातक समाज में सम्मान पाता है।
चन्द्र पर्वत के ऊपर से हथेली के किनारे की ओर वाली रेखाएँ यात्रा रेखाएँ (TRAVEL LINES) कहलाती हैं।
सोमवल्ली एक लता-बेल है जो कि चन्द्र के प्रकाश में बढ़ती है। इसका रस सोमरस कहलाता है। यह स्फूर्ति दायक, उम्र में वृद्धि करने वाला, वृद्धावस्था को रोकने वाला है। देवराज इसको पीकर प्रसन्न होते हैं। समस्त देवगण इसको प्राप्त करने के लिये लालायित रहते हैं।
Please refer to :: "SOMRAS-THE EXTRACT OF SOMVALLI सोमवल्ली-लता और सोमवृक्ष" santoshsuvichar.blogspot.com
अधिक समझने हेतु कृप्या "INNER SELF मन, चित्त, अन्तः करण" santoshsuvichar.blogspot.com का अध्ययन करें।
सोम गीर्भिष्टा वयं वर्धयामो वचोविदः।
सुमृळीको न आ विश॥
हे सोम! हम लोग स्तुति ज्ञाता हैं; स्तुति द्वारा आपकी प्रार्थना करते हैं। सुखद होकर आप पधारें।[ऋग्वेद 1.91.11]
हे सोम! वंदनीय वचनों के ज्ञाता हम तुम्हें प्रार्थनाओं से सम्पन्न करते हैं। तुम कृपा करके हमारे शरीरों में प्रवेश करो।
Hey Som Dev! We pray-worship you with the help decent words, verse (Strotr, Shlok, hymns) to please you and make you comfortable. Please come to us.
गयस्फानो अमीवहा वसुवित्पुष्टिवर्धनः।
सुमित्रः सोम नो भव॥
हे सोम! आप हमारे धनवर्द्धक, रोगहन्ता, धनदाता और सुमित्र युक्त होवें।[ऋग्वेद 1.91.12]
हे सोम! तुम हमारे धन की वृद्धि करने वाले, रोग नाशक, पुष्टिदायक और श्रेष्ठ हो जाओ।
Hey Som! You increase our wealth, grant us riches, remove our diseases-ailments, gives us growth-nutrition and is our friend.
सोम रारन्धि नो हृदि गावो न यवसेष्वा।
मर्य इव स्व ओक्ये॥
हे सोम! जैसे गौ सुन्दर तृण से तृप्त होती हैं, जैसे मनुष्य अपने घर में प्रसन्न होता है, उसी प्रकार आप भी हमारे हृदय में तृप्त होकर निवास करें।[ऋग्वेद 1.91.13]
हे सोम! गाय घासों के दल में और प्राणियों के भवन में रमण करने के समान, तुम हमारे हृदय में रमण करो।
Hey Som! You should reside in our hearts just like the cows enjoy in green grass and the humans feel satisfied in their home-house.
यः सोम सख्ये तव रारणद्देव मर्त्यः।
तं दक्षः सचते कविः॥
हे सोमदेव! जो मनुष्य बन्धुता के कारण आपकी स्तुति करता है, हे अतीतज्ञाता और निपुण सोम! आप उस पर अनुग्रह करते हो।[ऋग्वेद 1.91.14]
अनुग्रह :: दया, सुघड़ता, इनायत, सुन्दर ढ़ंग, श्री, पक्षपात, अनुमति, अति कृपा, पत्र, इनायत; grace, favour, graciousness.
हे सोम! जो मनुष्य तुम्हारी मित्रता का अभिलाषी है, तुम मेधावी और शक्तिमान सदैव उसके मित्र रहते हो।
Hey Som Dev! You shower bliss-favours over those who prays to you. You know the past and is an expert in this job.
उरुष्या णो अभिशस्तेः सोम नि पाह्यंहसः।
सखा सुशेव एधि नः॥
हे सोम! हमें अभिशाप या निन्दा से बचायें। पाप से बचायें हमें सुख देकर हमारे हितैषी बनें।[ऋग्वेद 1.91.15]
हे सोम! हमको अकीर्ति से बचाओ, पाप से हमारी सुरक्षा करो, तुम हमारे लिए सुखकारी सखा बनो।
Hey Som Dev! Please protect us from sin, defamation, scorn and curses. You should be helpful-beneficial to us.
आ प्यायस्व समेतु ते विश्वतः सोम वृष्ण्यम्।
भवा वाजस्य संगथे॥
हे सोम! आप वर्द्धित हों, आपको चारों ओर से शक्ति प्राप्त हो। आप हमारे अन्नदाता बनो।[ऋग्वेद 1.91.16]
हे सोम! तुम वृद्धि को प्राप्त होओ। तुम शक्तिशाली बनो। युद्धकाल में सम्मिलित होने पर हमारे सहायक बनो।
Hey Som! Let your powers grow from all directions. You should be our food provider.
आ प्यायस्व मदिन्तम सोम विश्वेभिरंशुभिः।
भवा नः सुश्रवस्तमः सखा वृधे॥
अताव मद से युक्त साम समस्त लतावयवों द्वारा वर्धित हों। शोभन अन्न से युक्त होकर आप हमारे मित्र बनें।[ऋग्वेद 1.91.17]
हे अत्यन्त प्रसन्न करने वाले सोम! तुम सुन्दर यश रूपी रश्मियों से तेजस्वी बनो। तुम हमारे मित्र बनकर अच्छी बुद्धि की ओर प्रेरित करते रहो।
Hey bliss-pleasure providing Som! You should acquire aura-brilliance. You should be friendly with us and inspire us to acquire-possess better intelligence-wisdom, prudence.
सं ते पयांसि समु यन्तु वाजाः सं वृष्ण्यान्यभिमातिषाहः।
आप्यायमानो अमृताय सोम दिवि श्रवांस्युत्तमानि धिष्व॥
हे सोम! आप शत्रुनाशक हैं। आपमें रस, यज्ञान्न और वीर्य संयुक्त हैं। आप वर्द्धित होकर हमारे अमरत्व के लिए स्वर्ग में उत्कृष्ट अन्न धारित करें।[ऋग्वेद 1.91.18]
हे सोम! तुम शत्रुओं को वशीभूत करने वाले हो। हमको अन्न, शक्ति और वीर्य की ग्रहणता हो। अमरत्व की इच्छा में वृद्धि करते हुए क्षितिज के समान श्रेष्ठ कीर्ति तुम्हें प्राप्त हो।
Hey Som! You are the slayer of enemy. You should boost our power, energy and excellent food grains to generate immortality in us.
या ते धामानि हविषा यजन्ति ता ते विश्वा परिभूरस्तु यज्ञम्।
गयस्फानः प्रतरणः सुवीरोऽवीरहा प्र चरा सोम दुर्यान्॥
यजमान लोग हव्य द्वारा जो आपके तेज की पूजा करते हैं, वह समस्त तेज हमारे यज्ञ को व्याप्त करे। धनवर्द्धक, पाप त्राता, वीर पुरुषों से युक्त और पुत्र रक्षक सोम! आप हमारे घर में पधारें।[ऋग्वेद 1.91.19]
हे सोम! तुम्हारे जिन तेजों से यजमान हविदाता अनुष्ठान करते हैं, वे समस्त तेज हमारे अनुष्ठान के सभी तरफ़ विद्यमान हों। तुम धन की वृद्धि करने वाले, पाप से बचाने वाले, पराक्रम जिन तेजों से यजमान हविदाता अनुष्ठान करते हैं, वे समस्त तेज हमारे अनुष्ठान के सभी तरफ विद्यमान हों।
Hey Som! The devotees-hosts make offerings to you while conducting prayers. The aura generated by you should spread in our Yagy as well. You increase our riches, destroy-eliminate our sins, protect our sons and boost our power-energy. We invite you to our house.
सोमो धेनुं सोमो अर्वन्तमाशुं सोमो वीरं कर्मण्यं ददाति।
सादन्यं विदथ्यं सभेयं पितृश्रवणं यो ददाशदस्मै॥
जो सोमदेव को हव्य देता है, उसे सोम गौ और शीघ्रगामी अश्व देते हैं और उसे लौकिक कार्य दक्ष, गृह कार्य परायण, यज्ञानुष्ठान्तत्पर माता द्वारा आदृत और पिता का नाम उज्ज्वल करने वाला पुत्र प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 1.91.20]
तुम धन की वृद्धि करने वाले, पाप से बचाने वाले, पराक्रम से परिपूर्ण संतानों के रक्षक हमारे ग्रहों में निवास करो। गाय अश्व देने वाले तथा कर्मवान घर के कार्यों में कुशल, यज्ञों के अधिकारी, पूर्वजों को यश दिलाने वाले पुत्र के दाता सोम को हवि देनी चाहिये।
Any one who make offerings for Som Dev in Yagy, gets cows & fast moving horses. Som Dev give him him the son who is obedient, expert in domestic rituals-work and bring name & fame to his parents.
अषाहळं युत्सु पृतनासु पप्रिं स्वर्षामप्सां वृजनस्य गोपाम्।
भरेषुजां सुक्षितिं सुश्रवसं जयन्तं त्वामनु मदेम सोम॥
हे सोम! आप युद्ध में अजेय हैं, सेना के बीच विजयी हैं, स्वर्ग के प्रापयिता हैं। आप जल दाता, बल रक्षक, यज्ञ में अवस्थाता, सुन्दर निवास और यश से युक्त और जयशील हैं। आपको लक्ष्य कर हम प्रसन्न होते हैं।[ऋग्वेद 1.91.21]
हे सोम! हम युद्धों में प्रबल, पावक, प्रकाश दाता, जलों के पोषक, शक्ति रक्षक, श्लोक रूप श्रेष्ठ वास करने वाले, प्रतापी और अजेय होते हुए तुम्हारे पराक्रम से प्रसन्न रहें।
Hey Som! You are invincible in war. You are brave, protector of the fighters, provide water, manage the Yagy and has a seat in the heavens. We feel pleasure when we address you i.e., make prayers-recitations devoted to you.
त्वमिमा ओषधीः सोम विश्वास्त्वमपो अजनयस्त्वं गाः।
त्वमा ततन्थोर्व अन्तरिक्षं त्वं ज्योतिषा वि तमो ववर्थ॥
हे सोम! आपने समस्त औषधियाँ, वृष्टि, जल और सारी गायें बनाई है। आपने इस व्यापक अन्तरिक्ष को विस्तृत कर ज्योति द्वारा उसका अन्धकार नष्ट कर दिया।[ऋग्वेद 1.91.22]
हे सोम! तुमने औषधि, जल और धेनुओं को रचित किया, अंतरिक्ष को चारों तरफ व्याप्त कर विशाल किया तथा अंधकार को दूर कर दिया।
Hey Som! You are the creator of all medicines, rain fall, water, cows. Your light illuminate the entire space and remove its darkness (at night).
देवेन नो मनसा देव सोम रायो भागं सहसावन्नभि युध्य।
मा त्वा तनदीशिषे वीर्यस्योभयेभ्यः प्र चिकित्सा गविष्टौ॥
हे बलशाली सोम! अपनी कान्तिमय बुद्धि द्वारा हमें धन का अंश प्रदान करें। कोई शत्रु आपकी हिंसा न करे। लड़ाई करने वाले दोनों पक्षों में आप ही बलवान हैं। युद्ध में हमें दुष्टों से बचावें।[ऋग्वेद 1.91.23]
हे बलशाली सोम! तुम अद्भुत मन वाले संग्राम में हमारे लिए धन भाग जीत कर लाओ। इस कार्य में तुम्हें कोई रोक न सके। तुम शक्ति के स्वामी हो, संग्राम में दोनों पक्षों को समझ लो कि कौन मित्र है और कौन शत्रु है?
Hey mighty Som! Provide us riches & prudence and the wealth earned during war. The enemy should not be able to harm you. You should be winner in war-dual. Protect us in the war from the demons, wicked, sinners.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (92) :: ऋषि :- गौतम राहूगण, देवता :-उषा, छन्द :- जगती, त्रिष्टुप्, उष्णिक्।
एता उ त्या उषसः केआपक्रत पूर्वे अर्धे रजसो भानुमञ्जते।
निष्कृण्वाना आयुधानीव घृष्णवः प्रति गावोऽरुषीर्यन्ति मातरः॥
उषा ने आलोक द्वारा प्रकाश किया और वे अन्तरिक्ष की पूर्व दिशा में प्रकाश करती हैं। जैसे अपने सारे शस्त्रों को योद्धा लोग परिमार्जित करते हैं, वैसे ही अपनी दीप्ति के द्वारा संसार का संस्कार करके गमनशीला दीप्तिमती और माताएँ (उषा) प्रतिदिन गमन करती हैं।[ऋग्वेद 1.92.1]
उषायें अन्तरिक्ष के पूर्वार्द्ध में दीप्ति को व्याप्त करती हुई संकेत करती हैं। ये अरुण रंग की धेनुएँ जननी शस्त्रों से सजे हुए पराक्रमियों के समान आगे वृद्धि कर रही है।
The day break illuminated the east. The cows move everyday like the soldiers with arms & ammunition, with dawn.
उदपप्तन्नरुणा भानवो वृथा स्वायुजो अरुषीर्गा अयुक्षत।
अक्रनुषासो वयुनानि पूर्वथा रुशन्तं भानुमरुषीरशिश्रयुः॥
अरुण भानुरश्मियाँ (उषाएँ) उदित हुईं, अनन्तर रथ में जोतने योग्य शुभ्रवर्ण रश्मियों को उषाओं ने रथ में लगाया और पूर्व की तरह समस्त प्राणियों को ज्ञानयुक्त बनाया। इसके पश्चात् दीप्तिमती उषाओं ने श्वेत वर्ण सूर्य को भी अपने आश्रित कर लिया।[ऋग्वेद 1.92.2]
अरुण उषा उदय हो गई। उसने शुभ धेनुओं (किरणों) को रथ में संलग्न किया है।
The dawn-day break deploy the rays of Sun making the living beings conscious.
अर्चन्ति नारीरपसो न विष्टिभिः समानेन योजनेना परावतः।
इषं वहन्तीः सुकृते सुदानवे विश्वेदह यजमानाय सुन्वते॥
नेतृस्थानीया उषा उज्ज्वल अस्त्रधारी योद्धाओं के सदृश हैं और प्रयत्न द्वारा ही दूर देशों को अपने तेज से व्याप्त करती हैं। वे शोभन कर्म कर्ता, सोमदाता और दक्षिणादाता यजमान को समस्त अन्न प्रदान करती हैं।[ऋग्वेद 1.92.3]
सोम निष्पन्न कर्त्ता श्रेष्ठ कर्मवान तथा दानशील यजमान को दूर से आकर भी उषाएँ सभी धनों को पहुँचाती हुई कार्य में व्यस्त नारियों के समान सुसज्जित होती हैं।
Usha fills all around with aura-brilliance, light. The host, Ritviz engage themselves in pious activities like Yagy, Hawan, prayers-worship.
The women engage themselves daily chore-routine home affairs.
अधि पेशांसि वपते नृतरिवापोर्णुते वक्ष उस्त्रेव बर्जहम्।
ज्योतिर्विश्वस्मै भुवनाय कृण्वती गावो न व्रजं व्युषा आवर्तमः॥
नर्त्तकी की तरह उषा अपने रूप को प्रकाशित करती हैं और जैसे दोहनकाल में गायें अपना स्तन भाग प्रकट करती है, उसी प्रकार उषा भी अपना वक्ष प्रकट करती हैं। जैसे गायें गोष्ठ में शीघ्र जाती है, उसी प्रकार उषा भी पूर्व दिशा में जाकर समस्त भुवनों को प्रकाशमय करके अन्धकार को हटा देती हैं।[ऋग्वेद 1.92.4]
उषा नर्तकी के समान विविध रूपों को धारण करती तथा गौ के समान स्तन प्रकट कर देती है। वह सभी लोकों के लिए प्रकाश को भरती और तम को मिटाती है। उषा की चमक चारों ओर फैल रही है, जिसने व्यापक अंधकार को दूर किया।
Usha acts like a dancer who illustrate-shows her beauty. It acts like the cows who's udders are filled with milk in the morning. It destroys the darkness and fills the atmosphere with light-illumination.
प्रत्यर्ची रुशदस्या अदर्शि वि तिष्ठते बाधते कृष्णमभ्वम्।
स्वरुं न पेशो विदथेष्वञ्जञ्चित्रं दिवो दुहिता भानुमश्रेत्॥
पहले उषा का उज्ज्वल तेज पूर्व दिशा में दिखाई देता है, अनन्तर सारी दिशाओं में व्याप्त होता और अन्धकार दूर हो जाता है। जैसे पुरोहित यज्ञ में आज्य द्वारा यूपकाष्ठ को प्रकट करता है, उसी प्रकार उषाएँ अपना रूप प्रकट करती है। स्वर्ग पुत्री उषा दीप्तिमान सूर्यदेव की सेवा करती है।[ऋग्वेद 1.92.5]
आज्य :: वह घी जिससे आहुति दी जाए, दूध या तेल जो घी के स्थान पर आहुति में दिया जाए, यज्ञ में दी जानेवाली हवि, प्रातः कालीन यज्ञ का एक स्त्रोत।
क्षतिज की पुत्री उषा दिव्य ज्योति से परिपूर्ण हुई। हम उस अंधकार से निकल गये।
The east is filled with glow-aura first. Thereafter, all direction become visible. It is just like the opening of goods like oil-ghee prior to Yagy by the Purohit-Ritviz.
अतारिष्म तमसस्पारमस्योषा उच्छन्ती वयुना कृणोति।
श्रिये छन्दो न स्मयते भाती सुप्रतीका सौमनसायाजीगः॥
हम रात्रि के अन्धकार को पार कर चुके हैं। उषा ने समस्त प्राणियों के ज्ञान को प्रकाशित कर दिया। प्रकाशमयी उषा प्रीति प्राप्त करने के लिए अपनी दीप्ति के द्वारा मानों हँस रही है। प्रकाश करने वाली उषा ने हमारे सुख के लिए अन्धकार को भी विनष्ट कर दिया।[ऋग्वेद 1.92.6]
उषा ने जगहों को साफ कर दिया। वह दमकती हुई स्वच्छन्द भाव से हँस रही है। वह प्रसन्न चित्त हुई सुन्दर मुख वाली नारी के समान सुशोभित है।
Usha has cleared the darkness of night. All organisms are awake. It appears as if she is laughing.
भास्वती नेत्री सूनृतानां दिवः स्तवे दुहिता गोतमेभिः।
प्रजावतो नृवतो अश्वबुध्यानुषो गोअग्राँ उप मासि वाजान्॥
दीप्तिमती और सत्य वचनों की उत्पादयित्री आकाश-पुत्री (उषा) की गौतम वंशीय लोग प्रार्थना करते हैं। हे उषे! आप हमें पुत्र-पौत्र, दास-परिजन, अश्व और गौ से युक्त अन्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.92.7]
प्रिय सत्यवाणी की और प्रेरित की पत्री उषा गौतमों द्वारा पजनीय है और प्रेरित करने वाली, दमकती हुई आकाश की पुत्री उषा गौतमों द्वारा पूजनीय है। हे उषे! तुम हमको पुत्र-पौत्र और अश्वों से युक्त ऐश्वर्य प्रदान करो।
Descendants of Gautom pray-worship Usha. She is brilliant-shinning and invoke truthful words. We pray to her for sons & grandsons, servants-slaves, along with cows, horses and riches.
उषस्तमश्यां यशसं सुवीरं दासप्रवर्गं रयिमश्वबुध्यम्।
सुदंससा श्रवसा या विभासि वाजप्रसूता सुभगे बृहन्तम्॥
हे उषे! हम यश, वीर, दास और अश्व से संयुक्त धन प्राप्त करें। हे सुभगे! आप सुन्दर यज्ञ में स्तोत्र द्वारा प्रसन्न होकर हमें अन्न प्रदान कर यथेष्ट धन भी देवें।[ऋग्वेद 1.92.8]
हे उषे। तू सौभाग्यशाली है। मुझे सुंदर पुत्रों, सेवकों, अश्वों से युक्त उस यश से परिपूर्ण धन को प्राप्त कराओ।
Hey Usha! Please grant us riches, honour-fame, slaves-servants, horses. Hey lucky! You should be pleased in this Yagy through the Strotr recited by us and give us sufficient food grins and riches.
विश्वानि देवी भुवनाभिचक्ष्या प्रतीची चक्षुरुर्विया वि भाति।
विश्वं जीवं चरसे बोधयन्ती विश्वस्य वाचमविदन्मनायोः॥
उज्ज्वल उषा समस्त भुवनों को प्रकाशित करके, प्रकाश द्वारा पश्चिम दिशा में विस्तृत होकर, दीप्तिमयी होती है। उषा समस्त जीवों को अपने-अपने कार्यों में लगाने के लिए जागृत, कर देती हैं। उषा बुद्धिमान् लोगों की बातें अर्थात् प्रार्थना सुनती है।[ऋग्वेद 1.92.9]
जिसे तू अपने पराक्रम से और कर्मों द्वारा प्रेरित करती हुई सभी जगत को देखती हुई देवी पश्चिम की ओर दमकती और समस्त जीवों को गति प्रदान करती हुई चैतन्य करती है। यह चिन्तनशील प्राणधारियों की वाणी को जानने वाली है।
Usha lit all the buildings, spreads and moves to west. It awakes all the living beings to get up and start with their daily chores-routine work. It listens to the demands of the prudent-intelligent beings.
पुनः पुनर्जायमाना पुराणी समानं वर्णमभि शुम्भमाना।
श्वघ्नीव कृत्नुर्विज आमिनाना मर्तस्य देवी जरयन्त्यायुः॥
जैसे व्याध स्त्री उड़ती चिड़िया का पंख काटकर हिंसा करती है, उसी प्रकार पुनः-पुनः आविर्भूत, नित्य और एक रूपधारिणी उषा देवी अनुदिन अर्थात् प्रत्येक दिन समस्त प्राणियों के जीवन का ह्रास करती है।[ऋग्वेद 1.92.10]
बार-बार प्रकट होती हुई और समान रूप से सभी ओर सुसज्जित हुई यह प्राचीन उषा मरणशील जीवों की आयु कमजोर करने वाली है, जैसे व्याघ्र नारियाँ पक्षियों के मारती हुई उनकी गिनती करती हैं।
The way a hunter woman resort to violence by cutting the feather of the flying birds, Usha reduces the life span of all living beings everyday.
व्यूर्वती दिवो अन्ताँ अबोध्यप स्वसारं सनुतर्युयोति।
प्रमिनती मनुष्या युगानि योषा जारस्य चक्षसा वि भाति॥
आकाश से अन्धकार को हटाकर सबके पास उषा जीवों द्वारा विदित होती है। उषा गमनकारिणी अथवा अपनी बहन रात्रि को समाप्त करती है। प्रणयी (सूर्य) की स्त्री उषा मनुष्यों की आयु का ह्रास करके विशेष रूप से प्रकाशित होती है।[ऋग्वेद 1.92.11]
वह नारी क्षितिज की सीमाओं को प्रकट करने वाली है। अपनी बहिन (रात्रि) को दूर कर छिपाती है। वह मनुष्यों से युगों का ह्रास करने वाली अपने प्रेमी दर्शन से चमकती है।
Usha eliminates the darkness & night. It awakes all organisms. She illuminate due to the Sun light. It reduces the age of humans.
With the day break, one day of the life of humans is over-lost.
पशून्न चित्रा सुभगा प्रथाना सिन्धुर्न क्षोद उर्विया व्यश्चैत्।
अमिनती दैव्यानि व्रतानि सूर्यस्य चेति रश्मिभिर्दृशाना॥
जैसे पशु पालक पशुओं को चराता है, वैसे ही सुभगा और पूजनीया उषा अपने तेज .को विस्तृत करती है। नदी की तरह विशाल उषा समस्त संसार को व्याप्त करती हैं। उषा देवों के यज्ञ का अनुष्ठान कर, सूर्य रश्मि के साथ दिखाई देती है।[ऋग्वेद 1.92.12]
उज्ज्वल वर्ण शाली सौभाग्यशालिना उषा जीवों के समान वृद्धि को प्राप्त हुई और सरिताओं के समान फैलती है। वह देवगणों के नियमों की आलोचना नहीं करती और सूर्य की किरणों सहित दिखती है।
Usha expand its brightness and pervades the universe. It becomes visible with the rays of Sun. With the day break-dawn, Yagy, rituals begin.
उषस्तच्चित्रमा भरास्मभ्यं वाजिनीवति।
येन तोकं च तनयं च घामहे॥
हे अन्न युक्त उषे! हमें विचित्र धन प्रदान करो, जिसके द्वारा हम पुत्रों और पौत्रों का पालन पोषण कर सकें।[ऋग्वेद 1.92.13]
हे उषे! तू अत्यन्त अन्न वाली है। उस दिव्य अन्न को हमारे लिए लाओ जिससे हम अपने पुत्र आदि का पालन कर सकें।
Hey Usha grant (give, provide) riches (food grains, wealth, cows, horses), so that we can nourish-grow our sons and grand children.
उषो अद्येह गोमत्यश्वावति विभावरि।
रेवदस्मे व्युच्छ सूनृतावति॥
गौ, अश्व और सत्य वचन से युक्त तथा दीप्तिमयी उषे आज यहाँ हमारा धन युक्त यज्ञ जैसे हो, वैसे ही आप प्रकाशित हों।[ऋग्वेद 1.92.14]
गौ, सूर्य, अश्व, सत्यवाणी से परिपूर्ण उषे! तुम हमारे लिए धनवाली होकर आओ।
Hey bright Usha illuminate our Yagy, support it with money, since you posses cows, horses, truthful words.
युक्ष्वा हि वाजिनीवत्यश्वाँ अद्यारुणाँ उषः।
अथा नो विश्वा सौभगान्या वह॥
हे अन्न युक्त उषे! आज अरुण अर्थात् लाल रंग के घोड़े अथवा गौ नियोजित करें और हमारे लिए समस्त सौभाग्य प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.92.15]
हे अत्यन्त अन्न वाली उषे! अरुण अश्वों को जोड़कर हमारे लिए सभी सौभाग्यों को लाने वाली बनो।
Hey Usha, you possess food grains! Let red horses or cows be deployed to bring us good luck by her.
अश्विना वर्तिरस्मदा गोमद्दस्त्रा हिरण्यवत्।
अर्वाग्रथं समनसा नि यच्छतम्॥
हे शत्रु मर्दक अश्विनी कुमारो! हमारे घर को गौ और रमणीय धन से युक्त करने के लिये समान मनोयोगी होकर अपने रथ को हमारे घर की ओर लाओ।[ऋग्वेद 1.92.16]
हे भयंकर कर्म वाले अश्विनी देवो! तुम एक मन वाले, गाय व अश्वों से युक्त अपने रथ को हमारे भवन के सामने रोको।
Hey enemy slayer Ashwani Kumars! Prepare your mind to bring cows and riches to our house.
यावित्या श्लोकमा दिवो ज्योतिर्जनाय चक्रथुः।
आ न ऊर्जं वहतमश्विना युवम्॥
हे अश्वनी कुमारो! आप लोगों ने आकाश से प्रशंसनीय ज्योति प्रेरित की है। आप हमको शक्तिशाली अन्न भी प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.92.17]
हे अश्विनी कुमारों! तुमने क्षितिज से साधनों को लाकर मनुष्यों को प्रकाश प्रदान किया है। तुम हमारे लिए भी शक्ति लाने वाले बनो।
Hey Ashwani Kumars! You have inspired the brilliance in the sky. Please five us food grains which can make us strong.
एह देवा मयोभुवा दस्त्रा हिरण्यवर्तनी।
उषर्बुधो वहन्तु सोमपीतये॥
प्रकाशमान, आरोग्यप्रद, सुवर्ण रथ युक्त सुयुक्त एवं विजयी अश्विनी कुमारों को सोमपान करने के लिए उषाकाल में उनके धोड़े जागकर यहाँ ले आयें।[ऋग्वेद 1.92.18]
स्वर्णिम मार्ग वाले सुख प्रदान करने वाले अश्विनी कुमारों को उषा काल में चैतन्य हुए उनके घोड़े सोम पीने के लिए यहाँ लायें।
Let Ashwani Kumars your horses bring illuminated chariot having goods to make us healthy, here, to drink Somras in the morning.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (93) :: ऋषि :- गौतम राहूगण, देवता :- अग्नि, सोम, छन्द :- अनुष्टप, जगती, त्रिष्टुप्, गायत्री, उष्णिक्, पंक्ति।
अग्नीषोमाविमं सु मे शृणुतं वृषणा हवम्।
प्रति सूक्तानि हर्यतं भवतं दाशुषे॥
हे अभीष्टवर्षी अग्नि और सोमदेव! मेरे इस आह्वान को सुनो, स्तुति ग्रहण करके हव्यदाता को सुख प्रदान करो।[ऋग्वेद 1.93.1]
मनुष्यार्थ परिपूर्ण अग्नि और सोम! तुम दोनों मेरे आह्वान को सुनो। मेरे सुन्दर सङ्कल्पों से प्रसन्न चित्त होओ। मुझ हविदाता के लिए सुख स्वरूप बनो।
Hey Agni & Som Dev! You should be happy with the offerings made by me and grant me pleasure-happiness.
अग्नीषोमा यो अद्य वामिदं वचः सपर्यति।
तस्मै धत्तं सुवीर्यं गवां पोषं स्वश्र्व्यम्॥
हे अग्नि और सोम! जो आपकी प्रार्थना करता है, उसे बलवान् अश्व और सुन्दर गौ प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.93.2]
हे अग्ने! हे सोम! तुम दोनों के प्रति विनती करता हूँ, तुम श्रेष्ठ मनुष्यार्थ धारण कर सुन्दर अश्वों गौओं की वृद्धि करो।
Hey Agni & Som Dev! Grant strong horses and beautiful cows to devotee.
अग्नीषोमा य आहुतिं यो वां दाशाद्धविष्कृतिम्।
स प्रजया सुवीर्यं विश्वमायु व्यश्नवत्॥
हे अग्नि और सोम! जो आप लोगों को आहुति और हव्य प्रदान करता है, उसे पुत्र-पौत्रादि के साथ वीर्यशाली आयु प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.93.3]
हे अग्ने! हे सोम! जो तुमको घृत परिपूर्ण हवि प्रदान करें, सन्तानवान हो और पूर्ण आयु को प्राप्त हों।
Hey Agni & Som Dev! Grant sons & grand sons to the devotee who make offerings for you in the holy fire and gifts to the Brahmns-needy. Let the devotee be full of energy and attain full life span of hundred years.
अग्नीषोमा चेति तद्वीर्यं वां यदमुष्णीतमवसं पणिं गाः।
अवातिरतं बृसयस्य षोऽविन्दतं ज्योतिरेकं बहुभ्यः॥
हे अग्नि और सोम! आपने जिस वीर्य के द्वारा पणि के पास से गोरूप अन्न अपहृत किया था, जिस वीर्य के द्वारा वृसय के पुत्र (वृत्र) का वध करके सबके उपकार के लिए एक मात्र ज्योतिपूर्ण सूर्य को प्राप्त किया था, वह सब हमें मालूम है।[ऋग्वेद 1.93.4]
हे अग्ने! तुम दोनों पराक्रम से प्रसिद्ध तुमने “पणि" की अन्न रूपी गायों को हरण किया। "वृषभ" की संतान को तुमने “पणि" की अन्न रूपी गायों को हरण किया। "वृषभ" की संतान को नष्ट किया और असंख्यों के लिए ही प्रकाश (सूर्य) को प्राप्त किया।
Hey Agni & Som! we are aware that you killed the son of Pani Vratr, got food grains and released Sun light for all
युवमेतानि दिवि रोचनान्यग्निश्च सोम सक्रतू अधत्तम्।
युवं सिन्धूँरभिशस्तेर वद्यादग्नीषोमावमुञ्चतं गृभीतान्॥
हे अग्नि और सोम! समान कर्म सम्पन्न होकर आकाश में आपने इन उज्ज्वल नक्षत्र आदि को धारित कर दोषा क्रान्त नदियों को प्रकाशित दोष से मुक्त किया।[ऋग्वेद 1.93.5]
हे अग्ने! हे ! तुम दोनों एक समान कर्म वाले हो। तुमने आसमान में ज्योतियाँ स्थापित की हैं। दोनों ने हिंसक वृत्र से सरिताओं को मुक्त कराया।
Hey Agni & Som Dev! You perform identical deeds. You cleared-released the sky and the rivers from the control of Vratr.
आन्यं दिवो मातरिश्वा जभारामथ्नादन्यं परि श्येनो अद्रेः।
अग्नीषोमा ब्रह्मणा वावृधानोरुं यज्ञाय चक्रथुरु लोकम्॥
हे अग्नि और सोम! आप में से अग्नि को मातरिश्वा आकाश से लाये और सोम को श्येन पक्षी (बाज) पर्वत की चोटी से उखाड़ कर लायें। इस प्रकार स्तोत्रों अर्थात् प्रार्थनाओं से बढ़ने वालों ने यज्ञ के लिए संसार की आपने वृद्धि की।[ऋग्वेद 1.93.6]
मातरिश्वा :: ऋग्वेद (3,5,9) में यह अग्नि तथा उसको उत्पन्न करने वाले देवता के लिये प्रयुक्त किया गया है। मनु के लिये मातरिश्वा ने अग्नि को दूर से लाकर प्रदीप्त किया था। ऋग्वेद के एक प्रसिद्ध यज्ञकर्ता और गरुड़ के पुत्र का भी यही नाम है।
हे अग्ने! हे सोम! तुम में एक मातरिश्वा क्षितिज से लाये, दूसरे को श्येन पक्षी पर्वत के उत्तर से लाया। तुम श्लोकों से वृद्धि करने वालों ने संसार को अनुष्ठान के लिए विशाल किया।
Hey Agni & Som Dev! Matrishva brought Agni (here it is just fire, not the demigod Agni) from the sky and the Som (the herb used for extracting Somras) was brought by Shyen-a bird from the cliff of northern mountains for conducting Yagy. You enlarged-expanded the universe with the help of rituals, Shloks, Strotr etc.
Its akin to increasing the community of ritualists, the person performing Yagy, Hawan, Agnihotr etc.
अग्नीषोमा हविषः प्रस्थितस्य वीतं हर्यतं वृषणा जुषेथाम्।
सुशर्माणा स्ववसा हि भूतमथा धत्तं यजमानाय शं योः॥
हे अग्नि और सोम! प्रदत्त अन्न भक्षण करके; हमारे ऊपर अनुग्रह करें। अभीष्टवर्षी, हमारी सेवा ग्रहण करें। हमारे लिए सुख प्रद और रक्षण युक्त बनें और यजमान के रोग और भय का विनाश करें।[ऋग्वेद 1.93.7]
हे वीर्यवान अग्नि, सोम! तुम हमारी हवियों को स्वीकार करके हर्षित हो जाओ। श्रेष्ठ सुख से युक्त रक्षा करो। मुझ यजमान के रोगों को दूर कर शक्ति दो।
Hey Agni & Som Dev! Obelise us by accepting our offerings in the form of food & eatables. Accept our services and become pleasant and protecting to us, eliminating ailments-diseases & fear.
यो अग्नीषोमा हविषा सपर्याद्देवद्रीचा मनसा यो घृतेन।
तस्य व्रतं रक्षतं पातमंहसो विशे जनाय महि शर्म यच्छतम्॥
हे अग्नि और सोम! जो यजमान देव परायण हृदय से हव्य अर्थात् घृत द्वारा अग्नि और सोम की पूजा करता है, उसके व्रत की रक्षा करें। उसे पाप से बचावें तथा उस यज्ञ में लगे हुए व्यक्ति को प्रभूत सुख प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.93.8]
हे अग्नि और सोम! जो देवताओं में मन लगाने वाला घृत, हवि से तुमको पूजता है, उसकी रक्षा करो। उसे पाप से बचाओ और उसके परिजनों को शरणागत करो।
Hey Agni & Som Dev! Protect the devotee & his endeavours, who make offerings in the Yagy for you. Protect him from sins-wickedness and grant him sufficient commodities to survive granting him shelter along with his relatives.
अग्नीषोमा सवेदसा सहूती वनतं गिरः।
सं देवत्रा बभूवथुः॥
हे अग्नि और सोम! आप सारे देवों में प्रशंसनीय, समान धन युक्त और एकत्र आह्वान योग्य हैं। आप हमारी प्रार्थना श्रवण करो।[ऋग्वेद 1.93.9]
हे अग्नि और सोम! आप दोनों देव तत्व से परिपूर्ण हो। हमारी वन्दनाओं को स्वीकार करो।
Hey Agni & Som Dev! You are appreciated-honoured by the demigods-deities. Accept our prayers-worship.
अग्नीषोमावनेन वां यो वां घृतेन दाशति।
तस्मै दीदयतं बृहत्॥
हे अग्नि और सोम! जो आपको घृत प्रदान करे, उसे प्रभूत धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.93.10]
हे अग्नि और सोम! लिए घृत से परिपूर्ण हवि दे, उसके लिए तुम जाज्वल्यवान बनो।
Hey Agni & Som Dev! Grant sufficient money-riches to the one who offer Ghee-clarified butter in the Yagy for your sake.
अग्नीषोमाविमानि नो युवं हव्या जुजोषतम्।
आ यातमुप नः सचा॥
हे अग्नि और सोम! हमारा यह हव्य ग्रहण करें और एक साथ यहाँ पधारें।[ऋग्वेद 1.93.11]
हे अग्ने! हे सोम! तुम दोनों हमारी हवियों को स्वीकार करो। हमको प्राप्त होओ।
Hey Agni & Som Dev! Accept our offerings and come here at the site of the Yagy to obelise us.
अग्नीषोसा पिपृतमर्वतो न आ प्यायन्तामुखिया हव्यसूदः।
अस्मे बलानि मघवत्सु धत्तं कृणुतं नो अध्वरं श्रुष्टिमन्तम्॥
हे अग्नि और सोम! हमारे अश्वों की रक्षा करें। हमारी क्षीर आदि हव्य की उत्पादिका गायें वर्द्धित हों। हम धनशाली हों; हमें बल प्रदान करें। हमारा यज्ञ धनयुक्त हो।[ऋग्वेद 1.93.12]
हे अग्ने! हे सोम! तुम दोनों हमारे अश्वों को पराक्रम दो। हवि उत्पन्न करने वाली हमारी धेनुएँ वृद्धि को प्राप्त हों। तुम दोनों हम धनवानों को ऐश्वर्य दो। हमारे यज्ञ को सुखकारी बनाओ।
Hey Agni & Som Dev! Make our horses strong and increase our lot-folk of cows who produce offerings for conducting the Yagy. Both of you grant us riches and make our Yagy blissful to us.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (94) :: ऋषि :- कुत्स आँगिरस, देवता :- अग्नि, अग्न्यादयः, आदि, छन्द :- जगती, त्रिष्टुप्।
इमं स्तोममर्हते जातवेदसे रथमिव सं महेमा मनीषया।
आद्रा हि नः प्रमतिरस्य संसद्यग्रे सख्ये मा रिषामा वयं तव॥
हम पूजनीय और सर्वभूतज्ञ अग्निदेव की रथ की तरह, बुद्धि द्वारा इस स्तुति का पाठ करते हैं। अग्नि की अर्चना से हमारी बुद्धि उत्कृष्ट होती है। हे अग्रिदेव! आपको व हमारी मित्रता होने पर हम हिंसित नहीं होंगे।[ऋग्वेद 1.94.1]
हम धनोत्पादक अर्चनीय अग्निदेव के लिए तुल्य मति से इस श्लोक को महत्व दें। हमारी वन्दनाएँ कल्याणकारी हों। हे अग्ने हम तुम्हारे सखा होकर कभी सन्तापित न हों।
We worship Agni Dev, who is aware of all the events in the universe (past, presents & the future), with wisdom & devotion. Praying Agni Dev enlightens us. Hey Agni Dev! Your blessings will protect us from all evil.
यस्मै त्वमायजसे स साधत्यनर्वा क्षेति दधते सुवीर्यम्।
स तूताव नैनमश्नोत्यंहतिरग्ने सख्ये मा रिषामा वयं तव॥
हे अग्निदेव! जिसके लिए आप यज्ञ करते हो, उसकी अभिलाषा पूर्ण होती है और वह उत्पीड़ित न होकर निवास करता, महाशक्ति धारण करता और वृद्धि करता है। उसे कभी दरिद्रता होती। हे अग्निदेव! आपके हमारे मित्र होने पर हम हिंसित नहीं होंगे।[ऋग्वेद 1.94.2]
हे अग्ने! जिसके लिए तुम देवअर्चन करते हो उसके अभिष्ट पूर्ण होते हैं। वह किसी का सहारा नहीं ढूँढता। श्रेष्ठ वीर्य से युक्त हुआ यह बढ़ता है तथा निर्धन नहीं रहता। हे अग्ने! तुम्हारी मित्रता होने पर दुःखी न रहे। हे अग्ने! हम तुम्हारे सखा होकर कभी सन्तापित न हों।
Your presence in the Yagy, fulfils all desires of the devotee-person conducting Yagy. He do not need further help from elsewhere. He never face poverty and progress gradually. One under protection will never be hurt.
शकेम त्वा समिधं साधया धियस्त्वे देवा हविरदन्त्याहुतम्।
त्वमादित्याँ आ वह तान्ह्युश्मस्यग्ने सख्ये मा रिषामा वयं तव॥
हे अग्निदेव! हम आपको अच्छी तरह प्रज्वलित कर सकें। आप हमारा यज्ञ साधन करें; क्योंकि आपको प्रदान किया हुआ हव्य देवता लोग भक्षण करते हैं। आप आदित्यों को ले आवें। उन्हें हम चाहते हैं। हे अग्निदेव! आपके मित्र होने पर हम हिंसित नहीं होंगे।[ऋग्वेद 1.94.3]
हे अग्ने! हम तुम्हें प्रदीप्त करने की शक्ति प्राप्त करें। तुम हमारे कार्य को सिद्ध करो। तुम्हें दी गई हवियों को देवता ग्रहण करते हैं। हम आदित्यों की इच्छा करते हैं, उन्हें यहाँ लाओ। तुम्हारी मित्रता ग्रहण कर हम दुःखी न हों।
Hey Agni Dev! We should be able to ignite fire properly. The offerings made to you are diverted to the demigods-deities by you. Please bring Aditys along with you. Shelter under you should protect us from all sins-(pains, worries, troubles, tortures).
भरामेध्मं कृणवामा हवींषि ते चितयन्तः पर्वणापर्वणा वयम्।
जीवातवे प्रतरं साधया धियोऽग्ने सख्ये मा रिषामा वयं तव॥
हे अग्निदेव! हम ईन्धन इकट्ठा करते हैं। आपको ज्ञात कराकर हव्य देते हैं। हमारी आयुर्वृद्धि के लिए आप यज्ञ को सम्पन्न करें। हे अग्निदेव! आपके मित्र रहने पर हम हिंसित नहीं होंगे।[ऋग्वेद 1.94.4]
हे अग्ने! तुम्हें चैतन्य करने के लिए हम ईंधन एकत्र करें, हवि सम्पादन करें। तुम हमको कर्मवान बनाकर उच्चतम जीवन की ओर प्रेरित करो। तुम्हारी मित्रता प्राप्त करके हम दुःखी न हों।
Hey Agni Dev! We collect fuel for the Yagy-woods. We make offerings in the fire with your permission-knowledge. Bless us with full life span of 100 years. Your friendship will protect us from all evils-wickedness.
विशां गोपा अस्य चरन्ति जन्तवो द्विपच्च यदुत चतुष्पदन्तुभिः।
चित्रः प्रकेत उपसो महाँ अस्यग्ने सख्ये मा रिषामा वयं तव॥
अग्नि की किरणें प्राणियों की रक्षा करती हुई भ्रमण करती हैं। दो पैर और चार पैर के जन्तु अग्नि की किरणों में भ्रमण करते हैं। आप विचित्र दीप्ति से युक्त और सारी वस्तुएँ प्रदर्शित करते हैं। आप उषा से भी महान है। हे अग्निदेव! आपके मित्र रहने पर हम हिंसित नहीं होंगे।[ऋग्वेद 1.94.5]
दोपाए और चौपाए रूपी प्रजा की रक्षा करने वाले इस अग्नि के दूत रात्रि में घूमते हैं। हे अग्ने! तुम उषा का आभास देने वाले श्रेष्ठ हो। हम तुम्हारे मित्र होने पर पीड़ित न हो।
Rays produced by the fire protect all the organisms. The animals with 2 & 4 legs roam in those directions which are pervaded by your radiations (heat & light). your presence makes every thing visible. You are greater than Usha. Your presence will boost our safety.
Usha does not possess light-radiations of its won.
त्वमध्वर्युक्त होतासि पूर्व्यः प्रशास्ता पोता जनुषा पुरोहितः।
विश्वा विद्वाँ आर्त्विज्या धीर पुष्यस्य सख्ये मा रियामा वयं तव॥
हे अग्निदेव! आप अध्वर्यु, मुख्य होता, प्रशास्ता, प्रशस्ता पोता और जन्म से ही पुरोहित हैं। ऋत्विज के समस्त कार्यों से आप अवगत हैं। इसलिए आप यज्ञ सम्पूर्ण करें। हे अग्निदेव! आपके रहने पर हम हिंसित नहीं होंगे।[ऋग्वेद 1.94.6]
अध्वर्यु :: यज्ञ करनेवाला, वैदिक कर्म काण्ड के चार मुख्य ऋत्विजों में अन्यतम त्रत्विज्, जो अपने मुख से तो यज्ञ मंत्रों का उच्चारण करता जाता है और अपने हाथ से यज्ञ की सब विधियों का संपादन भी करता है। अध्वर्यु का अपना वेद यजुर्वेद है, जिसमें गद्यात्मक मंत्रों का विशेष संग्रह किया गया है और यज्ञ के विधानक्रम को दृष्टि में रखकर उन मंत्रों का वही क्रम निर्दिष्ट किया गया है।
धार्मिक मामलों में राजा का सलाहकार, यज्ञ करने वाला पुरोहित, यज्ञ के अवसर पर ऋचा पाठ करने वाला पुरोहित, राजा का शिक्षक।
Head priest conducting the Yagy, reciting the Mantr, Shlok and make offerings with his hands simultaneously.
यज्ञ करानेवाले श्रेष्ठ यजुर्वेदी पुरोहित, आचार्य, पुरोधा, कर्मकांडी ब्राह्मण, यजुर्वेद के अनुरूप कर्म करनेवाला, यज्ञ का संपादन करनेवाला; one who holds-conducts Yagy in accordance with Yajur Ved, best among the priests, enchanters of Yajur Ved, best amongest the priests.
हे स्थिर विचार वाले अग्निदेव! तुम अध्वर्यु, प्राचीन होता, प्रशस्ता पोता एवं जन्मजात पंडित हो। ऋत्विजों के प्रत्येक कार्य को जानने वाले तुम कर्मों को पुष्ट करते हो। तुम्हारी मित्रता ग्रहण करके हम पीड़ित न हों।
Hey Agni Dev! You are a Brahmn-Purohit by birth, ever since for ever. You empower the Priests with all-intricate knowledge-methodology, procedures. Your help will shield us from all shocks-tensions.
यो विश्वतः सुप्रतीकः सदृड्ङसि दूरे चित्सन्तळिदिवाति रोचसे।
रात्र्याश्चिदन्धो अति देव पश्यस्यग्ने सख्ये मा रिषामा वयं तव॥
हे अग्रिदेव! आप सुन्दर हैं, तब भी सबके समान है। आप दूर स्थित हो, तो भी पास ही दीप्यमान हैं। हे अग्निदेव! आप रात के अन्धकार का मर्दन करके प्रकाशित होते हैं। हे अग्निदेव! आपके मित्र रहने पर हम हिंसित नहीं होंगे।[ऋग्वेद 1.94.7]
हे सुन्दर मुख वाले अग्ने! तुम सभी ओर से समान हो, तुम दूर रहते हुए नजदीक ही दिखाई पड़ते हो। तुम रात्रि के अंधकार को चीरकर देखने वाले हो। तुम्हारे मित्र होकर कभी दुःखी न हों।
Hey Agni Dev! You are beautiful and looks alike from all directions. You glow to remove darkness at night. Your friends never face grief.
पूर्वो देवा भवतु सुन्वतो रथोऽस्माकं शंसो अभ्यस्तु दूढ्यः।
तदा जानीतोत पुष्यता वचोऽग्ने सख्ये मा रिषामा वयं तव॥
हे अग्नि के अङ्गभूत देव! सोम का अभिषव करने वाले यजमान का रथ सबसे आगे करें। हमारा अभिशाप शत्रुओं को पराजित करे। हमारी यह प्रार्थना हमें प्रवृद्ध करे। हे अग्निदेव! आपके मित्र रहते हुए हम कभी हिंसित नहीं होंगें। [ऋग्वेद 1.94.8]
हे देवगण! सोम-निष्पन्नकर्त्ता का रथ पहले हो। उसके श्लोक से पापमति वाले पराजित हो जायें। तुम हमारे संकल्पों में वृद्धि करो। हे अग्निदेव! आपके मित्र रहने पर हम कदापि दुःख न पायें।
Hey Agni Dev, governing fire! Let the charoite of the devotee extracting Somras may remain ahead of all. Our curse may vanish the enemy-evil. Let us progress. We should be protected by you.
वधैर्दुः शंसाँ अप दूढ्यो जहि दूरे वा ये अन्ति वा के चिदत्रिणः।
अथा यज्ञाय गृणते सुगं कृध्यग्ने सख्ये मा रिषामा वयं तव॥
सांघातिक अस्त्र द्वारा आप दुष्टों और बुद्धिहीनों का विनाश करें। दूरवर्ती और निकटस्थ शत्रुओं का भी विनाश करें। इसके पश्चात् अपनी प्रार्थना करने वाले यजमान को सरल मार्ग प्रदान करें। हे अग्निदेव! आपके मित्र रहने पर हम हिंसा के शिकार नहीं होंगे।[ऋग्वेद 1.94.9]
हे अग्ने! जो भक्षक दैत्य पास या दूर हों, उन्हें तथा अपशब्द वक्ता दुष्टों को अस्त्रों से समाप्त करो और वंदनाकारी के अनुष्ठान में सुखमय रास्ता निर्मित करो। हम तुम्हारी मित्रता पाकर दुःखी न हों।
Kill-slay the idiots, wicked-sinners & enemy whether distant or in close proximity. Make the path of your devotee free from all troubles being under your asylum.
यदयुक्था अरुषा रोहिता रथे वातजूता वृषभस्येव ते रवः।
आदिन्वसि वनिनो धूमकेतुनाग्ने सख्ये मा रिषामा वयं तव॥
हे अग्निदेव! जिस समय आप दीप्यमान, लोहितवर्ण और वायुगति दोनों घोड़ों को अपने रथ में नियोजित करते हो, उस समय आप वृषभ अर्थात् बैल की तरह शब्द करते हुए वन के सारे वृक्षों को धर्मरूपी पताका द्वारा व्याप्त करते हो। हे अग्निदेव! आपके मित्र होने पर हम हिंसित नहीं होंगे।[ऋग्वेद 1.94.10]
हे अग्ने! तुम पवन जैसे वेग वाले रोहित नामक घोड़े को रथ में जोड़कर बैल के समान शब्द करते हो और धूम ध्वज वाले रथ को पेड़ों की ओर उठाते हो। हम तुम्हारे सखा होकर पीड़ा सहन न करें।
Hey Agni Dev! You generate the sound of the bull-oxen when you deploy both of your shinning-radiant, violet coloured horses who race with the speed of air. Asylum under you gurantees oyur safety.
अध स्वनादुत बिभ्युः पतत्रिणो द्रप्सा यत्ते यवसादो व्यस्थिरन्।
सुगं तत्ते तावकेभ्यो रथेभ्योऽग्ने सख्ये मा रिषामा वयं तव॥
आपके शब्द सुनकर चिड़िया भी उड़ती हैं। जिस समय आपकी शाखाएँ तिनके जलाकर चारों दिशाओं में फैलती हैं, उस समय सारा वन आपके और आपके रथ के लिए (स्वयं) सुगम हो जाता है। हे अग्निदेव! आपके मित्र होने पर हम हिंसित नहीं होंगे।[ऋग्वेद 1.94.11]
हे अग्ने! जब तुम्हारी लपटें जंगल में व्याप्त होती हैं, तब पक्षी भी डरते हैं। उस समय तुम्हारा रथ निर्भय होकर भ्रमण करता है। तुम्हारे सखा होकर हम कदापि पीड़ित न हों।
The birds start flying with the sound created by you. You engulf the jungle-forests and spread with ease. Those who are protected by you remain unharmed-safe.
अयं मित्रस्य वरुणस्य धायसेऽवयातां मरुतां हेळो अद्भुतः।
मृळा भूत्वेषां मनः पुनरने सख्ये मा रिषामा वयं तव॥
मित्र और वरुण को धारित करने में अग्निदेव सामर्थवान हैं। नीचे उतरते हुए मरुतों का आवेश भयंकर है। हे अग्निदेव! इन मरुतों की बुद्धि हमारे लिए आनन्ददायक हो। आप हमें सुख प्रदान करें। हे अग्रिदेव! आपके बन्धु रहने पर हम हिंसाग्रस्त नहीं होंगे।[ऋग्वेद 1.94.12]
वह अग्नि सखा और वरुण को धारण करने में सशक्त हैं। नीचे उतरते हुए मरुतों का क्रोध भयंकर है। हे अग्ने! कृपा करके इस हृदय को हमारे लिये सर्व सुखकारी बनाओ। तुम्हारे मित्र हम कभी दुखी न हों।
Agni Dev is capable of bearing Mitr & Varun Dev. The descending Maruts rush with extreme-high speed. Hey Agni Dev! Let the Maruts be favourable to us. Relations with you will ensure our protection.
देवो देवानामसि मित्रो अद्भुतो वसुर्वसूनामसि चारुरध्वरे।
शर्मन्त्स्याम तव सप्रथस्तमेऽग्ने सख्ये मा रिषामा वयं तव॥
हे द्युतिमान् अग्निदेव! आप सारे देवों के परम मित्र हैं। आप सुशोभन और यज्ञ के सारे धनों के निवास स्थान हैं। आपके विस्तृत यज्ञगृह में हम अवस्थान करें। हे अग्निदेव! आपके रहने पर हम हिंसित नहीं होंगे।[ऋग्वेद 1.94.13]
हे अग्ने! तुम देवताओं के मित्र हो। धन वाले तुम यज्ञ में शोभा पाते हो। हम तुम्हारी शरण में रहें और पीड़ित न हों।
Hey glittering Agni Dev! You are friend of demigods-deities. You take care of all treasures-goods pertaining to Yagy. Let us stay in your broad Yagy site. You will protect us in all conditions.
तत्ते भद्रं यत्समिद्धः स्वे दमे सोमाहुतो जरसे मृळयत्तमः।
दधासि रत्नं द्रविणं च दाशुषेऽसे सख्ये मा रियामा वयं तव॥
अपने स्थान पर प्रज्वलित सोमरस द्वारा आहूत होकर, जिस समय आप पूजित होते हैं, उस समय आप सुखकर उपभोग प्राप्त करते हैं। आप हमारे लिए सुखकर होकर हव्यदाता को रमणीय फल और धन प्रदान करें। हे अग्निदेव आपके मित्र रहने पर हम हिंसित नहीं होंगे।[ऋग्वेद 1.94.14]
हे अग्ने! आप अपनी कृपा दृष्टि से घर में दीप्तिमान होते हैं और सोम द्वारा हवि प्राप्त करते हुए सुखमय ध्वनि करते हैं। आप हवि प्रदान करने वाले को रत्नादि धन प्रदान करते हैं। हम आपकी मित्रता प्राप्त करके सुखी हों।
Hey Agni Dev! Offerings of Somras are made to you while praying-worshiping you. Grant us comforting-favourable results in addition to wealth & riches. Your presence will keep us unharmed-safe.
यस्मै त्वं सुद्रविणो ददाशोऽनागास्त्वमदिते सर्वताता।
यं भद्रेण शवसा चोदयासि प्रजावता राधसा ते स्याम॥
हे शोभन धन से युक्त और अखण्डनीय अग्निदेव! सब यज्ञों में वर्तमान जिस यजमान का आप पाप से उद्धार और कल्याणकारी बल प्रदान करते हैं, वह समृद्ध होता है। हम भी आपके स्तोता है। हम भी पुत्र-पौत्रादि के साथ आपके धन से सम्पन्न हों।[ऋग्वेद 1.94.15]
हे सुन्दर ऐश्वर्य रूप अनन्त बलयुक्त अग्ने! आप जिसकी पाप कर्मों से रक्षा करते हैं, जिसे प्रजा युक्त धन देकर कल्याण करते हैं, वे हम हों।
Hey Agni Dev you possess infinite strength-power! The host-devotee conducting-organising Yagy is cleared of all sins and gets power to save-protect others. He become rich due to your blessings. We pray to you with the help of Strotr. Let us have sons & grand sons, along with wealth due to your kindness.
स त्वमग्ने सौभगत्वस्य विद्वानस्माकमायुः प्र तिरेह देव।
तन्नो मित्रो वरुणो मामहन्तामदितिः सिन्धुः पृथिवी उत द्यौः॥
हे अग्निदेव! आप सौभाग्य जानते हैं। इस कार्य में आप हमारी आयु बढ़ायें। मित्र, वरुण, अदिति, सिन्धु, पृथ्वी और आकाश हमारी उस आयु की रक्षा करें।[ऋग्वेद 1.94.16]
हे अग्निदेव! आप सभी सौभाग्यों के ज्ञाता हैं। हमारी आयु में वृद्धि करें। मित्र, वरुण, अदिति, समुद्र, धरती और आकाश हमारी विनती को सम्मान दें।
Hey Agni Dev! You are aware of all means of good luck-prosperity. Lengthen-increase our life span. Let Mitr, Varun, Sindhu-oceans, Prathvi-earth and the sky save-protect us.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (95) :: ऋषि :- कुत्स आँगिरस, देवता :- अग्नि, छन्द :- जगती, त्रिष्टुप्।
द्वे विरूपे चरतः स्वर्थे अन्यान्या वत्समुप धापयेते।
हरिरन्यस्यां भवति स्वधावाञ्छुक्रो अन्यस्यां ददृशे सुवर्चाः॥
विभिन्न रूपों से संयुक्त दोनों समय (दिन और रात), शोभन प्रयोजन के कारण विचरण करते हैं। दोनों, दोनों के पुत्रों की रक्षा करते हैं। एक (रात्रि) के पास से सूर्य अन्न प्राप्त करते और दूसरे (दिन) के पास से शोभन दीप्ति से युक्त होकर प्रकाशित होते हैं।[ऋग्वेद 1.95.1]
श्रेष्ठ उद्देश्य वाली दो भिन्न रूपिणी नारियाँ विचरणशील हैं। दोनों एक-दूसरे के बालकों का पालन-पोषण करती हैं। एक से सूर्य अन्न ग्रहण कराता और दूसरी से अग्नि सुन्दर ज्योति से परिपूर्ण होती है।
Two women with excellent aim are roaming. Both of them nourish the offspring of other. The Sun leads to growth of food grains and the other produces beautiful light.
The night leads to nourishment & growth of food grains, pulses and other vegetative functions. The day makes it possible to see-identify objects around us. Both of them are complementary of each other.
दशेमं त्वष्टुर्जनयन्त गर्भमतन्द्रासो युवतयो विभभृत्रम्।
तिग्मानीकं स्वयशसं जनेषु विरोचमानं परि षीं नयन्ति॥
दसों अँगुलियाँ इकट्ठी होकर अनवरत काष्ठ घर्षण करके वायु के गर्भ स्वरूप और सब भूतों में वर्तमान अग्निदेव को उत्पन्न करती हैं। यह अग्नि तीक्ष्ण तेजा यशस्वी और समस्त लोकों में दीप्यमान हैं। इन अग्नि को समस्त स्थानों में ले जाया जाता है।[ऋग्वेद 1.95.2]
त्वष्टा के खेलने वाले इस बालक को निरालस्य दसों नारियाँ (दस उंगलियाँ) प्रकट करती हैं। तीक्ष्ण मुख वाले लोकों में यशवान् दीप्तिमान इसे सभी ओर ले जाया जाता है।
Rubbing of wood with the help of 10 fingers produces fire-Agni. This fire is taken to all abodes.
Fire-Agni is a form of energy. Its essential for life every where, weather earth or heavens. Sun too has fire in it. Sun produces various kinds of sub atomic particles as well, in the form of radiations. Fire produces heat & light.
त्रीणि जाना परि भूषन्त्यस्य समुद्र एकं दिव्येकमप्सु।
पूर्वामनु प्र दिशं पार्थिवानामृतून्प्रशासद्वि दधावनुष्ठु॥
इन अग्निदेव के तीन जन्मस्थान हैं :– (1). समुद्र, (2). आकाश और (3). अन्तरिक्ष। अग्निदेव ने (सूर्य रूप से) ऋतुओं का विभाग करके पृथ्वी के सारे प्राणियों के हित के लिए पूर्व दिशा का यथाक्रम निष्पादन किया है अर्थात् सूर्य काल (ऋतु) और दिक, दोनों को निर्मित किया।[ऋग्वेद 1.95.3]
यह अग्निदेव तीन जन्म वाला है, एक समुद्र में, एक क्षितिज और एक अंतरिक्ष में। सूर्य रूप अग्नि ने ऋतुओं का विभाग कर धरा के प्राणधारियों के लिए पूर्व दिशा के बाद कर्म पूर्वक दिशाओं को बनाया। पूर्व दिशा का यथाक्रम निष्पादन किया है अर्थात् सूर्यकाल (ऋतु) और दिक, दोनों को निर्मित किया।
Fire is produced in (1). Ocean, (2). Sky & (3). Space. Agni in the form of Sun divided the period of one year into six seasons and set the ten directions.
Sun rises in the East. Ten directions :- East, North-East, North, North-West, West, South-West, South, South-East, up & down.
क इमं वो निण्यमा चिकेत वत्सो मातद्दर्जनयत स्वधाभिः।
बह्वीनां गर्भो अपसामुपस्थान्महान्कविर्निश्चरति स्वधावान्॥
जल, वन आदि में अन्तर्हित अग्निदेव को आप में से कौन जानता है? पुत्र होकर भी विद्युद्रूप अग्निदेव अपनी माताओं (जल रूपिणी) को हव्य द्वारा जन्म दान करते हैं। महान् मेधावी और हव्ययुक्त अग्निदेव अनेक जलों के गर्भ सन्तान रूप हैं। सूर्य के रूप में अग्निदेव समुद्र से निकलते हैं।[ऋग्वेद 1.95.4]
छिपे हुए इस अग्नि का स्वामी कौन है? जो पुत्र होकर भी हवि रत्नों द्वारा अपनी जननी को जन्म देता है तथा जो अनेक जलों के गर्भ रूप समूह में प्रकट होता है।
Who is the master-controller of the hidden-masked Agni-fire! Though a son, it produces the mother by making offerings. Agni-fire appears under water at various sources.
It was complete dark all around when Bhagwan Shri Hari Vishnu (Nar-Narayan) appeared from a golden shell, followed by Sun, fire etc. Slowly and gradually, earth, sky, space, planets, constellations, stars, galaxies appeared. Evolution takes place after great inhalation, devastation. its cyclic process.
आविष्ट्यो वर्धते चारुरासु जिह्मानामूर्ध्वः स्वयशा उपस्थे।
उभे त्वष्टुर्बिभ्यतुर्जायमानात्प्रतीची सिंहं प्रति जोषयेते॥
कुटिल (मेघजल के) पार्श्ववर्ती यशस्वी अग्निदेव ऊपर जलकर शोभन दीप्ति के साथ प्रकाशित होकर बढ़ते हैं। अग्निदेव के दीप्त या त्वष्टा के साथ उत्पन्न होने पर उभयभीत होते हैं और सिंहरूप इस अग्नि की सेविका बनकर सेवा करती हैं।[ऋग्वेद 1.95.5]
जलोत्पन्न अग्नि अनुष्ठान के संग प्रकाशमान हुए वृद्धि करते हैं। इसके उत्पन्न होने पर त्वष्टा की दोनों पुत्रियाँ (अग्नि को रचित करने वाले दोनों काष्ठ या अरणियाँ) भयग्रस्त हुई इस सिंह की पीछे से सेवा करती हैं।
Agni-fire which had appeared out of water produces light. Two daughters of Twasta Wood & Arni serve him due to fear.
Raw wood is shaped to get Arni, the wood rubbed to produce fire.
उभे भद्रे जोषयेते न मेने गावो न वाश्रा उप तस्थुरेवैः।
स दक्षाणां दक्षपतिर्बभूवाञ्जन्ति यं दक्षिणतो हविर्भिः॥
उभय (काष्ठ या दिन और रात्रि) सुन्दरी स्त्री की तरह उन (अग्नि) की सेवा करते और बोलती हुई गौ की तरह पास में रहकर उनको पुत्र की तरह पालन करते हैं। दक्षिण भाग में अवस्थित ऋत्विक लोग हव्य द्वारा जिस अग्नि का सेवन करते हैं, वह सब बलों के बीच बलाधिपति हुए हैं।[ऋग्वेद 1.95.6]
सुन्दर नारियों के समान आकाश और पृथ्वी, इस अग्नि की सेवा करते हैं। वह अग्नि अत्यन्त पराक्रम से युक्त है और ऋत्विज दक्षिण की ओर खड़े होकर हवियों से इनकी सेवा करते हैं।
The day & night, sky & earth serve the fire-Agni Dev, like beautiful women. The priests-Ritviz keep standing and make offerings in mighty fire, standing towards the South.
उद्यंयमीति सवितेव बाहू उभे सिचौ यतते ऋञ्जन्।
उच्छुक्रमत्कमजते सिमस्मान्नवा मातृभ्यो वसना जहाति॥
अग्निदेव सूर्य की तरह अपनी किरण रूपिणी भुजाओं को बार-बार बढ़ाते हैं तथा वही अमर आदि उभय (दिवारात्रि) को अलंकृत करके निज कर्म साधित करते हैं। वे सारी वस्तुओं में दीप्त और साररूप रस ऊपर खींचते हैं। वे माताओं (जलों) के पास से आच्छादक अभिनव रस बनाते हैं।[ऋग्वेद 1.95.7]
वे सूर्य की रश्मियों के तुल्य अपनी भजाओं को फैलाते हैं। वे विकराल रूप वाले दिन-रात की सीमाओं को दक्षिण की ओर खड़े होकर हवियों से इनकी सेवा करते हैं। वे सूर्य की रश्मियों के तुल्य अपनी भुजाओं को फैलाते हैं।
Agni Dev extends his arms in the form of rays of the Sun, again & again. It sucks the extract of all goods in an upward direction forming a distinguished liquid.
It assumes various furious forms evaporating the saps present in various objects.
त्वेषं रूपं कृणुत उत्तरं यत्संपृञ्चानः सदने गोभिरद्धिः।
कविर्बुध्नं परि मर्मृज्यते धीः सा देवताता समितिर्बभूव॥
जिस समय अग्निदेव अन्तरिक्ष में गमनशील जल द्वारा संयुक्त होकर दीप्त और उत्कृष्ट रूप धारित करते हैं, उस समय वह मेधावी और सर्वलोक धारक अग्नि (सारे जलों के) मूलभूत (अन्तरिक्ष को) तेज द्वारा आच्छादित भी करते हैं। उज्ज्वल अग्रिदेव द्वारा विस्तारित वह दीप्ति तेजयुक्त हुई थी।[ऋग्वेद 1.95.8]
वे विकराल रूप वाले दिन-रात की सीमाओं को पहुँचते हुए समस्त वस्तुओं से गुण खींचते हैं और जल रूप जननियों के लिए रस (वृष्टि) छोड़ते हैं। तेजस्वी अग्निदेव जलों से मिल निर्मल रूप धारण करते हैं। वे अपने कर्म से अंतरिक्ष को तेजस्वी बनाते हैं।
The furious Agni Dev extracts the saps at the juncture of day & night. The space is filled with aura-energy when Agni Dev release energy obtained from the extracts of all objects. He adopts a soft-soothing form when it assimilate in water.
उरु ते ज्रयः पर्येति बुध्नं विरोचमानं महिषस्य धाम।
विश्वेभिरग्ने स्वयशोभिरिद्धोऽदब्येभिः पायुभिः पाह्यस्मान्॥
हे अग्निदेव! आप महान् हैं। सबको पराजित करनेवाला आपका दीप्यमान और विस्तीर्ण तेज अन्तरिक्ष को भी व्याप्त किये हुए है। हे अग्निदेव! हमारे द्वारा प्रज्वलित होकर अपने अहिंसित और पालन क्षमतेज द्वारा हमारा पालन करें।[ऋग्वेद 1.95.9]
हे अग्ने! तुम्हारा अत्यन्त उजाले से मुक्त तेज अंतरिक्ष में फैला है। तुम अपने उस अक्षय तेज से हमारी रक्षा करो।
Hey Agni Dev! You are great. Your brightness defeats all and filled the space. Hey Agni Dev! You should be non violent and protect us (protective).
धन्वन्त्स्त्रोतः कृणुते गाआपूर्मिं शुक्रैरूर्मिभिरभि नक्षति क्षाम्।
विश्वा सनानि जठरेषु धत्तेऽन्तर्नवासु चरति प्रसूषु॥
आकाशगामी जलसंध को प्रवाह रूप में अग्नि युक्त करते और उसी निर्मल जलसंघ द्वारा पृथ्वी को व्याप्त कर डालते हैं। अग्रि जठर में अन्न को धारण करते और इसीलिए अभिनव शस्य के बीच में निवास करते हैं।[ऋग्वेद 1.95.10]
अग्नि मरुभूमि से भी जल प्रवाह को प्रेरित करने में सामर्थवान है। वह पृथ्वी को लहरों से परिपूर्ण करते हैं। वह समस्त अन्नों के धारक और मृतभूत औषधियों में रमण करने वाले हैं।
You purify the water in the sky and spread it over the earth. You live in the vegetation and stomach as well (to digest the food).
एवा नो अग्ने समिधा वृधानो रेवत्पावक श्रवसे वि भाहि।
तन्नो मित्रो वरुणो मामहन्तामदितिः सिन्धुः पृथिवी उत द्यौः॥
हे विशुद्धकारी अग्निदेव! लकड़ियों द्वारा वृद्धि प्राप्त कर, हमें धनयुक्त अन्न देने के लिए आप दीप्तिमान बने। मित्र, वरुण, अदिति, सिन्धु, पृथ्वी और आकाश हमारे उस अन्न की पूजा करें।[ऋग्वेद 1.95.11]
हे पावक! तुम अग्नि द्वारा वृद्धि को प्राप्त हुए धन से परिपूर्ण यज्ञ के द्वारा प्रदीप्त हो जाओ। हमारी प्रार्थनाओं को मित्र, वरुण, अदिति, समुद्र, धरती और आसमान स्वीकार करें।
Hey Pure Agni Dev! Having grown due to the wood, make us rich with food grains. Let Mitr, Varun, Aditi, Ocean, Earth ant the Sky protect our stock of food grain.
A certain temperature is essential for the vegetation to survive, grow and mature. For this the joint efforts of the demigods-deities are necessary. Hence the humans seek asylum under them and the Almighty.
It has been noticed that the link is lost time & again, in the two translation from Sanskrat to Hindi, quoted above. The translation by two different people too become mismatch. Still, effort is made to correlate it and meaningful.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (96) :: ऋषि :- कुत्स आँगिरस, देवता :- अग्नि, छन्द :- त्रिष्टुप्।
स प्रत्नथा सहसा जायमानः सद्यः काव्यानि वळधत्त विश्वा।
आपश्च मित्र धिषणा च साधन्देवा अग्निं धारयन्द्रविणोदाम्॥
देवताओं ने धन देने वाले अग्निदेव को दूत रूप में धारित किया। शक्ति से उत्पन्न उस अग्नि ने जल समूह और पृथ्वी को अपना सखा अर्थात् मित्र बनाया और पूर्व के सदृश सभी प्रार्थनाओं को धारित किया।[ऋग्वेद 1.96.1]
काष्ठों (बल) के घर्षण से प्रकट अग्नि ने पुरातन के तुल्य समस्त ज्ञानों को शीघ्र प्राप्त किया। धन दाता अग्नि को जलों और धरा ने सखा बनाया तथा देवगणों ने दूत रूप से उनको नियुक्त किया।
The demigods-deities accepted Agni Dev as a messenger. Agni Dev who was born of Shakti (rubbing of woods) was made a friend by the water bodies and the earth. He regained all knowledge-enlightenment as before.
स पूर्वया निविदा कव्यतायोरिमाः प्रजा अजनयन्मनूनाम्।
विवस्वता चक्षसा द्यामपश्च देवा अग्निं धारयन्द्रविणोदाम्॥
अग्नि ने मनु के प्राचीन और स्तुति गर्भ मंत्र से प्रसन्न होकर मानवी प्रजा की रचना की। उन्होंने आच्छादक तेज द्वारा आकाश और अन्तरिक्ष को व्याप्त किया। देवताओं ने उन धनदाता अग्निदेव को दूत रूप से नियुक्त किया।[ऋग्वेद 1.96.2]
अग्नि से प्रसन्न प्राचीन पूजा मंत्रों से प्राणियों की प्रजा को प्रकट किया और अंतरिक्ष को तेज से फैला दिया। उस धन के स्वामी अग्नि को देवताओं ने दूत रूप से स्वीकार किया है।
Agni became happy over the recitation of Garbh Mantr and created humans. He spread his aura throughout the universe-space and sky. the demigods-deities appointed him as their messenger.
तमीळत प्रथमं यज्ञसाधं विश आरीराहुत मृञ्जसानम्।
ऊर्जः पुत्रं भरतं सुप्रदानुं देवा अग्निं धारयन्द्रविणोदाम्॥
हे मनुष्यो! अग्निदेव के पास जाकर उनकी स्तुति करो। वे देवों में मुख्य यज्ञ साधक है। वे हव्य द्वारा आहूत और स्तोत्र द्वारा प्रसन्न होते हैं। वे अन्न के पुत्र प्रजापोषक और दानशील हैं। देवताओं ने उन घनद अग्निदेव को दूत रूप में नियुक्त किया है।[ऋग्वेद 1.96.3]
आदमियों! तुम अनुष्ठान को पूर्ण करने वाले, हवियों द्वारा पूज्य अभिष्ट वाले शक्ति के पुत्र पोषक, धनदाता अग्नि का मुख्य रूप से पूजन करो। उसी धनदाता अग्नि को देवगण ने दूत रूप से धारण किया।
Hey Humans! go to Agni Dev and worship-pray to him. He is prime amongest the demigods-deities to carry out the Yagy. He become happy by making offerings and recitation of Strotr, rituals. He nourishes the living beings and grant them riches. The demigods-deities selected him as the messenger.
स मातरिश्वा पुरुवारपुष्टिर्विद्गातुं तनयाय स्वर्वित्।
विशां गोपा जनिता रोदस्योर्देवा अग्निं धारयन्द्रविणोदाम्॥
वे अन्तरिक्षस्थ अग्निदेव अनेक वरणीय पुष्टि प्रदान करते हैं। अग्नि स्वर्गदाता, सर्वलोक रक्षक और द्यावा पृथ्वी के उत्पादक हैं। अग्निदेव हमारे पुत्र को अनुष्ठान मार्ग दिखायें। देवताओं ने उन धन देने वाले अग्निदेव को ही दूत बनाया।[ऋग्वेद 1.96.4]
बहुतों के द्वारा वरणीय, पोषक, रक्षक, आकाश, पृथ्वी के उत्पत्ति कर्त्ता, मात्रिश्वा अग्नि ने स्वर्ग के मार्ग को प्राप्त किया। उसी धनदाता अग्नि को देवगणों ने ग्रहण किया।
Let the messenger of demigods-deities Agni Dev guide our son to carry out Yagy & its methodoly-procedure. Agni Dev is behind the creation of heavens & the earth and protect them as well. Demigods-deities like him due to his ability to grant wealth-riches.
नक्तोषासा वर्णमामेम्याने धापयेते शिशुमेकं समीची।
द्यावाक्षामा रुक्मो अन्तर्वि भाति देवा अग्निं धारयन्द्रविणोदाम्॥
दिन और रात्रि परस्पर रूपों का बार-बार परस्पर विनाश करके भी ऐक्य भाव से एक ही शिशु (अग्नि) को पुष्ट करते हैं। वे दीप्तिमान् अग्निदेव आकाश और पृथ्वी में प्रभा विकसित करते हैं। देवों ने उन धनद अग्निदेव को दूत नियुक्त किया।[ऋग्वेद 1.96.5]
एक दूसरे के वर्ण रूप अस्तित्व को नष्ट करती हुई उषा और रात्रि एक बालक (अग्नि) को पालती है। वह बच्चा आकाश और धरती के मध्य प्रदीप्त होता है। उसी को देवगणों ने ग्रहण किया।
The day & night nourish Agni Dev as a child, eliminating the existence of each other. The bright Agni Dev illuminate both the sky and the earth. This Agni Dev is appointed by the demigods-deities as their representative.
रायो बुध्नः संगमनो वसूनां यज्ञस्य केआर्पन्मसाधनो वेः।
अमृतत्वं रक्षमाणास एनं देवा अग्निं धारयन्द्रविणोदाम्॥
अग्निदेव धनमूल, निवास हेतु, अर्थदाता, यज्ञकेतु और उपासक की अभिलाषा के सिद्धिकर्ता हैं। अमर देवों ने उन धनदाता अग्निदेव को दूत बनाया।[ऋग्वेद 1.96.6]
वह समृद्धि के कारण रूप, धन स्थल के ध्वज रूप अग्नि व्यक्ति का अभिष्ट पूर्ण करने में समर्थवान हैं। अमरत्व के रक्षक देवगण ने इन्हीं को धारण किया है।
Agni Dev accomplish the desire of wealth, place to live, money-cash & holding of Yagy. The immortal demigods-deities have made him their communicator.
नू च पुरा च सदनं रयीणां जातस्य च जायमानस्य च क्षाम्।
सतश्च गोपां भवतश्च भूरेर्देवा अग्निं धारयन्द्रविणोदाम्॥
पहले और इस समय अग्निदेव सारे धनों का आवास स्थान हैं। जो कुछ उत्पन्न हुआ या होगा, उसके निवास स्थान है। जो कुछ है और भविष्य में जो अनेकानेक पदार्थ उत्पन्न होंगे, उनके रक्षक भी हैं। देवताओं ने उन धनद अग्रिदेव को दूतरूप से नियुक्त किया।[ऋग्वेद 1.96.7]
जब और पहले से ही अग्नि धनों के रचनाकार स्थल हैं। जन्में हुए और भविष्य में जन्म लेने वाले प्राणधारियों के रक्षक एवं धनदाता अग्नि को देवगणों ने धारण किया।
Agni Dev exists in all sorts of wealth, means of living whether new or old. He is the native for every thing evolved & yet to evolve. He is the protector of all goods-matter, present or to grow-develop in future. The granter of wealth Agni Dev is the ambassador of the Demigods-deities.
द्रविणोदा द्रविणसस्तुरस्य द्रविणोदाः सनरस्य प्र यंसत्।
द्रविणोदा वीरवतीमिषं नो द्रविणोदा रासते दीर्घमायुः॥
धन को देने वाले अग्निदेव जंगम धन का भाग हमें प्रदान करें। धनद अग्रिदेव स्थावर धन का अंश हमें प्रदान करें। धनद अग्नि हमें वीरों से युक्त अन्न प्रदान करें। धनद अनिदेव हमें दीर्घ आयु प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.96.8]
धन के स्वामी अग्नि हमारे लिए वृद्धि करने योग्य धन प्रदान करें। वे हमें पराक्रम से युक्त धन, संतान, अन्न आदि से पूर्ण दीर्घायु प्रदान करें।
The owner of wealth should grant wealth to us. Let us be provide with progeny & the food grains, which can give us strength, valour and longevity.
एवा नो अग्ने सामधा वृधानो रेवत्पावक श्रवसे वि भाहि।
तन्नो मित्रो वरुणो मामहन्तामदितिः सिन्धुः पृथिवी उत द्यौः॥
हे विशुद्ध कर्ता अग्निदेव! इस प्रकार काष्ठों से वृद्धि प्राप्त कर आप हमें धनयुक्त अन्न देने के लिए प्रभा प्रकाशित करें। मित्र, वरुण, अदिति, सिन्धु, पृथ्वी और आकाश हमारे उस अन्न की पूजा करें।[ऋग्वेद 1.96.9]
हे पावक! हमारे ईंधन से वृद्धि को प्राप्त यशपूर्ण धन वाले, प्रदीप्त हो रुण, अदिति, समुद्र, धरती और आकाश योग्य धन प्रदान करें। वे हमें पराक्रम से युक्त धन, संतान, अन्न आदि से पूर्ण दीर्घायु प्रदान करें। हे पावक! हमारे ईंधन से वृद्धि को प्राप्त यशपूर्ण धन वाले, प्रदीप्त हो जाओ हमारी इस विनती को मित्र, वरुण, अदिति, समुद्र, धरती और आकाश अनुमोदित करें।
Hey purifier Agni Dev! On being produced from the woods, grant us wealth, food grains and aura. Let Mitr, Varun, Aditi, Sindhu, Earth and the sky protect out food grains.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (97) :: ऋषि :- कुत्स आँगिरस, देवता :- अग्नि, छन्द :- गायत्री।
अप नः शोशुचदघमग्ने ने शुशुग्ध्या रयिम्।
अप नः शोशुचदघम्॥
हे अग्निदेव! आप हमारे चारों ओर धन, ऐश्वर्य रूप प्रकाशित कर हमारे पापों को नष्ट करें।[ऋग्वेद 1.97.1]
हे अग्ने! हमारे सभी ओर धन को प्रकाशित करो। हमारे पापों का नाश करो।
Hey Agni Dev! Please grant us wealth & luxury and vanish our sins.
सुक्षेत्रिया सुगातुया वसूया च यजामहे।
अप नः शोशुचदघम्॥
शोभनीय क्षेत्र, शोभन मार्ग और धन के लिए आपकी पूजा करते हैं। आप हमारे पापों का अन्त करें।[ऋग्वेद 1.97.2]
हम सुन्दर क्षेत्र, सुन्दर राह और धन की इच्छा से यज्ञ करते हैं। हमारे अपराधों को नष्ट करो।
We worship you for a pleasant place, roads to live & riches. Please remove our sins-crimes (wickedness, evils, faults).
प्र यद्धन्दिष्ठ एषां प्रास्माकासश्च सूरयः।
अप नः शोशुचदघम्॥
इन स्तोताओं में जैसे कुत्स उत्कृष्ट स्तोता हैं, उसी तरह हमारे स्तोता भी उत्कृष्ट हैं। आप हमारे पापों का अन्त करें।[ऋग्वेद 1.97.3]
सबसे अधिक प्रार्थना करने वालों में आप अग्रणी हों, हमारा अपराध नष्ट करो।
The way your worshippers include excellent person like Kuts Rishi, our worships (the priests performing Yagy) should also be best. Let our sins be removed.
प्र यत्ते अग्ने सूरयो जायेमहि प्र ते वयम्।
अप नः शोशुचदघम्॥
हे अग्निदेव! आपके स्तोता पुत्र-पौत्रादि प्राप्त करते हैं; इसलिए हम भी आपकी प्रार्थना करके पुत्र-पौत्रादि के प्राप्ति की प्रार्थना करते हैं। आप हमारे पापों का अन्त करें।[ऋग्वेद 1.97.4]
Hey Agni Dev! Those who worship you are blessed with sons, grandsons & hence we too pray you to have sons and grandsons. Kindly destroy our sins (mistakes, mis endeavours, miadventures).
प्र यदग्नेः सहस्वतो विश्वतो यन्ति भानवः।
अप नः शोशुचदघम्॥
शत्रु पर विजय प्राप्त करने वाले अग्नि देव की दीप्तियाँ सर्वत्र जाती है, इसलिए आप हमारे पापों का अन्त करें।[ऋग्वेद 1.97.5]
हे अग्ने! हम तुम्हारी ज्योति के समान तेजस्वी बनें। हमारा अपराध जलकर भस्म हो।
Hey Agni Dev! You grant us victory over the enemy and let your flames spread-illuminate all directions. We request you to pardon us.
त्वं हि विश्वतोमुख विश्वतः परिभूरसि।
अप नः शोशुचदघम्॥
हे अग्नि देव! आपका मुख चारों ओर है। हमारे रक्षक बनकर आप हमारे पापों का अन्त करें।[ऋग्वेद 1.97.6]
अग्नि की शत्रु विजयी प्रबल ज्वालाएँ सभी ओर बढ़ती हैं। हमारा अपराध समाप्त हो।
Hey Agni Dev! You have mouths in all directions. Please be our saviour and eliminate our sins (relinquish us from sins).
द्विषो नो विश्वतोमुखाति नानेव पारय।
अप नः शोशुचदघम्॥
हे सर्वतोमुख अग्निदेव! जिस प्रकार से नौका से नदी को पार किया जाता है, उसी प्रकार से हमारे शत्रुओं से हमें पार करें दें। आप हमारे पापों का अन्त करें।[ऋग्वेद 1.97.7]
हे सर्वतोमुख अग्ने! तुम सभी ओर आकश फैलाने वाले हो। हमारा पाप जलकर भस्म हो जाये।
Hey Agni Dev! The manner in which the river is crossed with the boat, our enemies be over powered by us, similarly, with your help. Let our sins be finished.
स नः सिन्धुमिव नावयाति पर्षा स्वस्तये।
अप नः शोशुचदघम्॥
नदी पार करने की तरह, हमारे कल्याण के लिए आप हमें हमारे शत्रुओं से पार कराकर पालन करें। आप हमारे पापों का अन्त करें।[ऋग्वेद 1.97.8]
हे अग्नि देव! तुम हमको नाव के समान शत्रुओं से पार लगाओ, हमारे पाप जल कर भस्म हो जाएं।
Grant us victory over the enemies, just as one is helped to cross the river. Please forgive our sins.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (98) :: ऋषि :- कुत्स आँगिरस, देवता :- अग्नि, छन्द :- त्रिष्टुप्।
वैश्वानरस्य सुमतौ स्याम राजा हि कं भुवनानामभिश्रीः।
इतो जातो विश्वमिदं वि चष्टे वैश्वानरो यतते सूर्येण॥
हम वैश्वानर अग्निदेव के अनुग्रह में रहे। वे सारे भुवनों द्वारा पूजनीय राजा हैं। इन दो काष्ठों से उत्पन्न होकर ही वैश्वानर ने संसार को देखा और सूर्य के साथ एकत्रित होकर भ्रमण किया।[ऋग्वेद 1.98.1]
हम वैश्वानर अग्नि की कृपा को प्राप्त करें। वे विश्वों के पोषक और संसार को देखने वाले हैं। वे सूर्य के समान हैं।
Vaeshwanar Agni is revered in all abodes as a king. Let us seek protection-asylum under him. Vaeshwanar took birth from the two woods rubbed together and saw the whole world, travelling with the Sun.
पृष्टो दिवि पृष्टो अग्निः पृथिव्यां पृष्टो विश्वा ओषधीरा विवेश।
वैश्वानरः सहसा पृष्ठो अग्निः स नो दिवा स रिषः पातु नक्तम्॥
सूर्यरूप से आकाश में और गार्हपत्यादि रूप से पृथ्वी में अग्निदेव व्याप्त हैं। बलों से युक्त वैश्वानर अग्निदेव दिन और रात्रि में हिंसा करने वाले प्राणियों से हमारी रक्षा करें।[ऋग्वेद 1.98.2]
वे अग्नि, क्षितिज, धरती में पूजनीय हैं। वे समस्त औषधियों में व्याप्त हैं। वह बलिष्ठ वैश्वानर अग्नि, हिंसकों से हमारी चौबीस घण्टे रक्षा करें।
Agni Dev is present as Vaeshwanar Agni in the Sun in the sky and Garhpaty Agni etc. in the earth. Let Vaeshwanar Agni decorated- associated with forces-power protect us from the violant organisms throughout the day & night.
वैश्वानर तव तत्सत्यमस्त्वस्मान्रायो मघवानः सचन्ताम्।
तन्नो मित्रो वरुणो मामहन्तामदितिः सिन्धुः पृथिवी उत द्यौः॥
हे वैश्वानर अग्निदेव! आपके सम्बन्ध में यह यज्ञ सफल हैं। हमें बहुमूल्य धन और ऐश्वर्य से युक्त करें। मित्र, वरुण, अदिति, सिन्धु, पृथ्वी और आकाश हमारे उस धन की पूजा करें।[ऋग्वेद 1.98.3]
हे वैश्वानर अग्ने! तुम्हारा कर्म सत्य हो, हमको धन से युक्त ऐश्वर्य प्राप्त हो। सखा, वरुण, अदिति, समुद्र, पृथ्वी और आकाश हम पर कृपा करें।
Hey Vaeshwanar Agni! This Yagy-endeavour is successful due to your blessings. Please enrich us with valuables & wealth-luxuries. Let Mitr, Varun, Ocean, Earth and the sky protect our wealth, granted by you.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (99) :: ऋषि :- कश्यप, मारीच, देवता :- अग्नि जातवेदा, छन्द:- त्रिष्टुप्।
जातवेदसे सुनवाम सोममरातीयतो नि दहाति वेदः।
स नः पर्षदति दुर्गाणि विश्वा नावेव सिन्धुं दुरितात्यग्निः॥
हम सर्वभूतज्ञ अग्निदेव को उद्देश्य कर सोम का अभिषव करते हैं। जो हमारे प्रति शत्रु की तरह आचरण करते हैं, उनका धन अग्नि जला दें। जिस प्रकार से नाव से नदी पार को जाती है, उसी प्रकार से वे हमें सम्पूर्ण दुःखों से पार लगाकर हमारे पापों को नष्ट कर दें।[ऋग्वेद 1.99.1]
हम धनोत्पादक अग्नि के लिए सोम निष्पन्न करें। शत्रुओं के धनों को नष्ट करें। जैसे नौका सरिता को पार करा देती है, वैसे ही वह अग्नि हमको दुःखों से पार करें और हमारी रक्षा करें।
Let us procure Somras for Agni Dev who produces-grant us wealth, riches, valuables. Let Agni Dev burn those who behave as an enemy with us. Let Agni Dev swim us across-through the pains, sorrow, tortures, just like the boat which crosses the river. He should eliminate our sins and protect us.
ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (100) :: ऋषि :- ऋज्राश्व, अम्बरीष, सहदेव, भयमान, सुराधस, देवता :- इन्द्र, छन्द :- पंक्ति, त्रिष्टुप्।
स यो वृषा वृष्ण्येभिः समोका महो दिवः पृथिव्याश्च सम्राट्।
सतीनसत्वा हव्यो भरेषु मरुत्वान्नो भवत्विन्द्र ऊती॥
जो इन्द्र अभीष्टवर्षी, वीर्यशाली, दिव्य लोक और पृथ्वी के राजा और वृष्टिदाता तथा रणक्षेत्र में बुलाने के योग्य हैं, वे मरुतों के साथ हमारी रक्षा में संलग्न हों।[ऋग्वेद 1.100.1]
हे पराक्रमी, पुरुषार्थी, क्षितिज-धरा के स्वामी एवं जलों को ग्रहण कराने वाले संग्रामों में आह्वान किये जाने वाले इन्द्रदेव! मरुतों से युक्त हमारी सुरक्षा करो।
Let Indr Dev, who fulfils all our desires-grants boons, has valour-might & power, is the rular of divine abodes and the earth, cause rains, deserve to be invited to the battle field, along with the Marud Gan for our protection.
यस्थानाप्तः सूर्यस्येव यामो भरेभरे वृत्रहा शुष्मो अस्ति।
वृषन्तमः सखिभिः स्वेभिरेवैर्मरुत्वान्नो भवत्विन्द्र ऊती॥
सूर्य की तरह जिनको गति दूसरे के लिए अप्राप्य है, जो युद्ध में शत्रुहन्नता और रिपुशोषक हैं और जो अपने गमनशील मित्र मरुतों के साथ यथेष्ठ परिमाण में अभीष्ट द्रव्य प्रदान करते हैं, वे इन्द्रदेव मरुतों के साथ हमारी रक्षा में तत्पर हों।[ऋग्वेद 1.100.2]
सूर्य के समान श्रेष्ठतम चाल वाले, बल से वृत्र को समाप्त करने वाले अत्यन्त वीर्यवान मरुतों से युक्त हमारे रक्षक हों।
He moves with the speed of the Sun, which is not possible-available for others, who kills the enemies in war and exploit the unfriendly, who grants money in sufficient quantity along with his friends Marud Gan; should be ready to protect us.
दिवो न यस्य रेतसो दुघानाः पन्थासो यन्ति शवसापरीताः।
तरद्वेषाः सासहिः पौंस्येभिर्मरुत्वान्नो भवत्विन्द्र ऊती॥
इन्द्रदेव का निर्विघ्न मार्ग सूर्य की किरणों के तुल्य अन्तरिक्ष के जलों का वर्षा करने वाला है। यह अपने पराक्रम से विरोधियों या द्वेषियों का नाश करने और शत्रुओं पर विजय पाने एवं बलपूर्वक आगे-आगे चलने वाले हैं। मरुतों के साथ यह इन्द्रदेव हमारी रक्षा में तत्पर हों।[ऋग्वेद 1.100.3]
जिसके राह का आकाश के जलों का दोहन करते (वर्षा के रूप में) चलते हैं।वह विजय शील इन्द्र अपने शूलों से शत्रुओं का पतन करते हुए चलते हैं। वीरों श्रेष्ठ, सखाओं में सखा, स्तोताओं में स्तोता, गायकों में गायक, इस सभी में उत्तम हैं। मरुतों से युक्त वे हमारे रक्षक हों।
The path of Indr Dev is free from troubles like the rays of Sun and leads to rains. He destroy his opponents and the enemies with his might while leading. Let Indr Dev & Marud Gan protect us.
सो अङ्गिरोभिरङ्गिरस्तमो भूषा वृषभिः सखिभिः सखा सन्।
ऋग्मिभिर्ऋग्मी गातुभिर्ज्येष्ठो मरुत्वान्नो भवत्विन्द्र ऊती॥
वे गमनशील लोगों में अत्यन्त शीघ्रगामी, अभीष्टदाताओं में प्रधान, अभीष्टदाता और मित्रों में श्रेष्ठ मित्र होकर, पूजनीयों में विशेष पूजा के पात्र तथा स्तुति पात्रों में श्रेष्ठ हैं। वे मरुतों के साथ हमारे रक्षण में तत्पर हों।[ऋग्वेद 1.100.4]
वीरों श्रेष्ठ, सखाओं में सखा, स्तोताओं में स्तोता, गायकों में गायक, इस सभी में उत्तम हैं। मरुतों से युक्त वे हमारे रक्षक हों।
Indr Dev is fastest moving amongest the movables, leader amongest those who grant boons-satiate desires, best friend amongest the friends, special among the revered-honourable and best among those who can be prayed-worshiped. Let Marud Gan be active with him in protecting us.
Indr Dev is a great form of the Almighty.
स सूनुभिर्न रुद्रेभिर्ऋभ्वा नृषाह्ये सासह्वाँ अमित्रान्।
सनिळेभिः श्रवस्यानि तूर्वन्मरुत्वान्नो भवत्विन्द्र ऊती॥
हे इन्द्र देव! रुद्रपुत्र मरुतों की सहायता से बलशाली होकर मनुष्यों के संग्राम में शत्रुओं को परास्त करके और अपने साथ में रहने वाले मरुतों की अन्नोत्पादक जल की वर्षा कर मरुतों के साथ हमारी रक्षा में तत्पर होवें।[ऋग्वेद 1.100.5]
उस दूरस्थ दमकते हुए सूर्य ने पुत्रों के तुल्य अपने सखा मरुतों से युक्त कीर्ति योग्य कार्यों को करते हुए शत्रुओं को परास्त किया। वह इन्द्रदेव मरुतों से युक्त हमारी रक्षा करें।
Hey Indr Dev! You should gain strength with the help of Marud Gan- the sons of Rudr (Bhagwan Shiv) defeat the enemy, initiate rains and get ready to save us.
स मन्युमीः समदनस्य कर्तास्माकेभिर्नृभिः सूर्य सनत्।
अस्मिन्नहन्त्सत्पतिः पुरुहूतो मरुत्वान्नो भवत्विन्द्र ऊती॥
शत्रुहन्ता, संग्रामकर्ता, सल्लोकाधिपति और बहुत लोकों द्वारा आहूत इन्द्रदेव हम ऋषियों को आज सूर्य के आलोक का भोग करने दें और शत्रुओं को अन्धकार प्रदान कर मरुतों के साथ हमारी रक्षा में तत्पर हों।[ऋग्वेद 1.100.6]
अहंकारियों का विनाश करने वाला, युद्धकर्म में प्रवृत्त रहने वाले सभी लोकों के अधिकारी इन्द्र सूर्य को ग्रहण करें। वे पालक और आह्वान किये हुए इन्द्र मरुतों के साथ हमारी रक्षा करें। सहायक मरुतों ने इन्द्रदेव को युद्ध में आक्रोषित किया।
Slayer of the enemy, a great-furious warrior, master of the heavens and the administrator of various abodes, Dev Raj Indr should accept Sun to his side and let the Rishis-sages enjoy his aura. Let darkness-absence of Sun light prevail for the enemies. Please protect us with the help of Marud Gan.
तमूतयो रणयञ्छूरसातौ तं क्षेमस्य क्षितयः कृण्वत त्राम्।
स विश्वस्य करुणस्येश एको मरुत्वान्नो भवत्विन्द्र ऊती॥
सहायता करने वाले मरुद्गण युद्ध में इन्द्रदेव को शब्द द्वारा उत्तेजित करते हैं। मनुष्य इन्द्रदेव को धन का रक्षक बनावें। इन्द्रदेव सर्वफलदायी कर्मों के ईश्वर हैं। मरुतों के साथ इन्द्रदेव हमारा रक्षण करें।[ऋग्वेद 1.100.7]
मनुष्यों ने अपनी कुशलता के लिए उन्हें रक्षक स्वीकार किया। वह अकेले ही हम समस्त कर्मों के स्वामी हैं। इन्द्रदेव मरुतों से युक्त हमारी सुरक्षा करें। युद्धों में प्राणी इन्द्रदेव को धन और रक्षा के लिए आमंत्रित करते हैं। वे अधंकार में भी प्रकाश करने वाले हैं।
The Marud Gan who help Indr Dev during war encourage him in the war and protect the belongings of the humans. Indr Dev is the God of the all the endeavours of the humans. Let Indr Dev help us along with the Marud Gan.
तमप्सन्त शवस उत्सवेषु नरो नरमवसे तं धनाय।
सो अन्धे चित्तमसि ज्योतिर्विदन्मरुत्वान्नो भवत्विन्द्र ऊती॥
युद्ध में मैदान में रक्षा और धन की प्राप्ति के लिए नेता लोग इन्द्रदेव की शरण ग्रहण करते हैं, क्योंकि इन्द्रदेव दृष्टि प्रतिबन्धक अन्धकार में आलोक प्रदान करके युद्ध में विजय प्रदान करते हैं। मरुतों के साथ इन्द्रदेव हमारी रक्षा में तत्पर हों।[ऋग्वेद 1.100.8]
वह इन्द्र मरुतों के साथ आमंत्रित करते हैं। वे अधंकार में भी प्रकाश करने वाले हैं। वह इन्द्र मरुतों के साथ हमारी रक्षा करें।
The humans seek shelter under Indr Dev for the protection of their wealth, since Indr Dev remove the darkness with his aura, leading to their victory. Let, Indr Dev save us with the Marud Gan.
स सव्येन यमति व्राधतश्चित्स दक्षिणे संगृभीता कृतानि।
स कीरिणा चित्सनिता धनानि मरुत्वान्नो भवत्विन्द्र ऊती॥
इन्द्र देव बायें हाँथ द्वारा हिंसा करने वाले का विनाश करते हैं और दाहिने हाँथ द्वारा यजमान का दिया हुआ हव्य ग्रहण करते हैं। प्रार्थनाओं द्वारा प्रसन्न होकर वे धन प्रदान करते हैं। मरुतों के साथ इन्द्रदेव हमारी रक्षा में तत्पर हों।[ऋग्वेद 1.100.9]
वे इन्द्र उल्टे हाथ से हिंसकों को रोकते हैं और दायें हाथ से यजमान की हवियाँ स्वीकार करते हैं। वे स्तोता को धन देते हैं। मरुतों सहित वे हमारे रक्षक हों।
Indr Dev slay-kill the enemies with his left hand and accept the offerings of the devotees with his right hand. He become happy with the prayers of the devotees and grant riches. Let, Indr Dev save us with the Marud Gan.
स ग्रामेभिः सनिता स रथेभिर्विदे विश्वाभिः कृष्टिभिन्र्वद्य।
स पौंस्येभिरभिभूरशस्तीर्मरुत्वान्नो भवत्विन्द्र ऊती॥
वे अपने सहायक मरुद्गणों के साथ धन प्रदान करते हैं। आज इन्द्रदेव अपने रथ द्वारा सारे मनुष्यों से परिचित हो रहे हैं। इन्द्रदेव ने अपने पराक्रम से दुष्ट शत्रुओं का वध किया। वे मरुद्रणों के साथ हमारी रक्षा में तत्पर होवें।[ऋग्वेद 1.100.10]
वे हमारी सहायता के लिए धन ग्रहण कराते हैं। शत्रुओं को शक्ति से वश में करने वाले वे इन्द्रदेव वज्र युक्त हमारी सुरक्षा करें।
Indr Dev provide riches & wealth along with his associates-accomplice Marud Gan to the devotees. He is acquainting himself with the humans-devotees, while sitting in his charoite. He killed the demons-giants with his might. Let, Indr Dev save us with the Marud Gan.
स जामिभिर्यत्समजाति मीळ्हेऽजामिभिर्वा पुरुहूत एवैः।
अपां तोकस्य तनयस्य जेषे मरुत्वान्नो भवत्विन्द्र ऊती॥
अनेक लोगों द्वारा बुलाये जाने पर मित्रों के संग मिलकर अथवा जो मित्र नहीं हैं, उनको भी साथ लेकर युद्धभूमि में इन्द्रदेव जाते हैं। उन शरण में आये हुए पुरुषों और पुत्र-पौत्रों को जय प्रदान करते हैं। वे मरुद्गणों के साथ हमारी रक्षा में तत्पर होवें।[ऋग्वेद 1.100.11]
अनेकों द्वारा आहुत इन्द्रदेव कुटुम्बियों या दूसरे पुरुषों के संग युद्ध यात्रा करते हैं। तब वे मरुतों से युक्त हमारी सुरक्षा के लिए तैयार रहें।
On being invites-requested by various people, whether they are his friends or not, goes to the battle field. He grants victory to those under his asylum along with their sons & grandsons. Let, Indr Dev be prepared to save us along with the Marud Gan.
स वज्रभृद्दस्युहा भीम उग्रः सहस्रचेताः शतनीथ ऋभ्वा।
चम्रीषो न शवसा पाञ्चजन्यो मरुत्वान्नो भवत्विन्द्र ऊती॥
इन्द्रदेव वज्र को धारण करने वाले दस्युहन्ता, भीम, उग्र, सहस्त्र ज्ञानयुक्त, बहुस्तुति भाजन और महान् हैं। इन्द्रदेव सोमरस की तरह बल द्वारा पञ्चश्रेणी के रक्षक हैं। वे मरुद्गणों के साथ हमारे रक्षा में तत्पर होवें।[ऋग्वेद 1.100.12]
वे वज्रधारी इन्द्रदेव, असुरों को समाप्त करने वाले, विकराल, शक्तिशाली, अनेकों पर दया करने वाले मार्ग दर्शक, प्रकाशवान, सोम के लिए समान पूज्य हैं। वे मरुतों के साथ हमारी रक्षा करें।
Indr Dev who wield Vajr, is the slayer of the enemy (demons & giants), bulky, furious, enlightened, makes several kinds of prayers devoted to the Almighty is great. He is the protector of the fifth-highest category. Let, Indr Dev be prepared to save us along with the Marud Gan.
तस्य वज्रः क्रन्दति स्मत्स्वर्षा दिवो न त्वेषो रवथः शिमीवान्।
तं सचन्ते यस्तं धनानि मरुत्वान्नो भवत्विन्द्र ऊती॥
इन्द्रदेव का चमकता हुआ तीव्र वज्र गर्जना करता है। वह स्वर्गलोक के सदृश तेजयुक्त इन्द्रदेव प्रार्थना करने वालों की स्तुतियों से प्रसन्न होकर उन्हें उत्तम सुख और उत्तम धनादि देकर प्रसन्न करते हैं। मरुद्गणों के साथ वे हमारी रक्षा में तत्पर होवें।[ऋग्वेद 1.100.13]
इन्द्र का चमकता हुआ वज्र घोर शब्द करता हुआ गरजता है। उनकी वंदनाएँ एवं ऐश्वर्य सेवा करते हैं। मरुतों के साथ वही इन्द्र हमारे रक्षक बनें।
The shinning Vajr of Indr Dev make thunderous-loud sound. He grant all sorts of amenities to those who make prayers to him. Let, Indr Dev be prepared to save us along with the Marud Gan.
यस्याजस्रं शवसा मानमुक्थं परिभुजद्रोदसी विश्वतः सीम्।
स पारिषत्क्रतुभिर्मन्दसानो मरुत्वान्नो भवत्विन्द्र ऊती॥
समस्त बलों का उपमानभूत जिनका बल पृथ्वी और अन्तरिक्ष लोकों का सदैव चारों ओर से पालन करता है। वे हमारे यज्ञ से प्रसन्न होकर हमारे पापों से हमें पार करें दें। वे मरुद्गणों साथ हमारी रक्षा में तत्पर होवें।[ऋग्वेद 1.100.14]
जिनकी शक्ति क्षितिज, धरा का पोषण करती है, वे हमारे यज्ञकर्म से गरजता है। उनकी वंदनाएँ एवं ऐश्वर्य सेवा करते हैं। मरुतों के साथ वही इन्द्र हमारे रक्षक बनें।
The sustentative forces of Indr Dev protect the space and the earth from all sides. Let him be happy with our prayers and reduce-forgive our sins. He should be ready-willing to protect us in association with Marud Gan.
न यस्य देवा देवता न मर्ता आपश्चन शवसो अन्तमापुः।
स प्ररिका त्वक्षसा देवश्च मरुत्वान्नो भवत्विन्द्र ऊती॥
जिन इन्द्र देवता के बल का ज्ञान या उसकी थाह देव, मनुष्य और जल भी नहीं जान सकते वह इन्द्रदेव इस पृथ्वी और आकाश से भी श्रेष्ठ हैं। वे मरुद्गणों के साथ हमारी रक्षा में तत्पर हों।[ऋग्वेद 1.100.15]
जिनकी शक्ति का पार देव या मनुष्य कोई भी नहीं पाते, वे अपनी शक्ति से पृथ्वी और क्षितिज से भी श्रेष्ठ हैं। वे मरुतों से युक्त हमारी सुरक्षा करें।
The might, power, strength of Indr Dev is not revealed to the demigods-deities, humans and the water (Varun Dev). He is superior to the earth and the sky as well. He should be ready-willing to protect us in association with Marud Gan.
रोहिच्छ्यावा सुमदंशुर्ललामीद्युक्षा राय ऋज्राश्वस्य।
वृषण्वन्तं बिभ्रती धूर्षु रथं मन्द्रा चिकेत नाहुषु विक्षु॥
लाल और काले रंग के अश्व इन्द्रदेव के रथ में नियोजित होकर प्रसन्नतापूर्वक शब्द करते चलते हैं। ऋजाश्व नामक राजर्षि को इन्द्रदेव ऐश्वर्य प्रदत्त करने वाले हैं। अतः मनुष्य धन की कामना के लिए उन्हीं की प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 1.100.16]
रोहित और श्याम अत्यन्त सुंदर रूप वाले अश्व धन के लिए पुरुषार्थी इन्द्र के रथ को ले जाते हुए प्रसन्नता पूर्वक शब्द करते हैं। इन्द्र "ऋजाश्व" को धन दान करते हैं।
The red and black horse deployed in the chariot of Indr Dev pull-move it happily. He is going to granting amenities to Rajashrv Rishi. Hence the humans pray to him for riches, comforts, amenities.
एतत्त्यत्त इन्द्र वृष्ण उक्थं वार्षागिरा अभि गृणन्ति राधः।
ऋज्राश्वः प्रष्टिभिरम्बरीषः सहदेवो भयमानः सुराधाः॥
हे अभीष्टदाता इन्द्रदेव! वृषागिर के पुत्र ऋजाश्व, अम्बरीष, सहदेव, भयमान और सुराध के लिए आपका यह स्त्रोत्र उच्चारित करते हैं।[ऋग्वेद 1.100.17]
हे इन्द्र! तुम्हारे लिए वृषागिर के पुत्र ऋजाश्व, अम्बरीय, सहदेव, भयमान और सुराध इस प्रसिद्ध श्लोक का उच्चारण करते हैं।
Hey boon-desire granting Indr Dev! The sons of Vrashagir named Rajashrv, Ambrish, Sahdev, Bhayman and Suradh recite-verse this Strotr in your honour.
दस्यूञ्छिम्यूँश्च पुरुहूत एवैर्हत्वा पृथिव्यां शर्वा नि बर्हीत्।
सनत्क्षेत्रं सखिभिः श्वित्न्येभिः सनत्सूर्यं सनदपः सुवज्रः॥
इन्द्रदेव ने अनेक लोगों द्वारा बुलाये जाने पर गतिशील मरुद्गणों से युक्त होकर पृथ्वी पर निवास करने वाले शत्रुओं और दुष्टों पर अपने तीक्ष्ण वज्र से प्रहार करके उनका जड़मूल विनाश कर दिया। तब उन वज्र को धारित करने वाले इन्द्रदेव ने श्वेत वस्त्रों और अलंकारों विभूषित मरुद्गणों के साथ भूमि, जल और सूर्य को प्राप्त किया।[ऋग्वेद 1.100.18]
अनेकों द्वारा आहूत इन्द्रदेव ने हिंसकों को समाप्त कर गिरा दिया। उस उत्तम वज्र वाले ने मनुष्यों के संग भूमि को, सूर्य को और जलों को प्राप्त किया।
answering to the prayers Indr Dev along with Marud Gan killed the violent, wicked-sinners by striking them with his sharp Vajr and vanished their clan-roots. At this moment Sun, Earth and the water honoured Indr Dev & Marud Gan decorated in white cloths and ornaments.
विश्वाहेन्द्रो अधिवक्ता नो अस्त्वपरिह्वता सनुयाम वाजम्।
तन्नो मित्रो वरुणो मामहन्तामदितिः सिन्धुः पृथिवी उत द्यौः॥
समस्त कालों में वर्त्तमान इन्द्रदेव हमारे पक्ष में ही रहें। हम भी अकुटिल गति होकर अन्न का भोग करें। मित्र, वरुण, अदिति, सिन्धु, पृथ्वी और आकाश उनका पूजन करें।[ऋग्वेद 1.100.19]
इन्द्रदेव हमारे पक्ष को सबल करें। हम सीधे मार्ग से अन्न का सेवन करें। हमारी इस वन्दना को सखा, वरुण, अदिति, समुद्र, धरा और क्षितिज सुने।
Let Indr Dev make our side strong by remaining with us for ages in all times. Let us enjoy freely all amenities under his patronage. Mitr, Varun, Aditi, Ocean, Earth and he sky pray-worship him.
खेतों में पैदा हुए अनाज का बँटवारा ::
(1). जमीन से चार उंगल भूमि का,
(2). गेहूँ के बाली के नीचे का पशुओं का,
(3). पहली फसल की पहली बाली अग्नि की,
(4). बाली से गेहूँ अलग करने पर मूठ्ठी भर दाना पंछियों का,
(5). गेहूँ का आटा बनाने पर मूठ्ठी भर आटा चीटियों का,
(6). चुटकी भर गुथा आटा मछलियों का,
(7). फिर उस आटे की पहली रोटी गौमाता की,
(8). पहली थाली धर के बुजुर्गो की,
(9). फिर हमारी थाली,
(10). आखिरी रोटी कुत्ते की।
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