Tuesday, August 22, 2023

RIGVED (सूक्त 6.1-75) ऋग्वेद

  RIGVED (6) ऋग्वेद
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
By :: Pt. Santosh Bhardwaj
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ॐ गं गणपतये नम:।
अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।
गुणातीतं नीराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि
[श्रीमद्भगवद्गीता 2.47]
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (1) :: 
ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :- अग्रि;  छन्द :- त्रिष्टुप्।
त्वं ह्यग्ने प्रथमो मनोतास्या धियो अभवो दस्म होता।
त्वं सीं वृषन्नकृणोर्दुष्टरीतु सहो विंश्वस्मै सहसे सहध्यै
हे अग्नि देव! आप देवताओं के बीच में प्रकृष्टतम है। देवताओं का मन आप में निहित है। हे दर्शनीय! इस यज्ञ में आप ही देवों के आह्वान करने वाले हैं। हे अभीष्ट वर्षी! समस्त बलशाली शत्रुओं को पराजित करने के लिए आप हमें अपरिमित बल प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.1.1]
प्रकृष्ट :: खींचा या निकाला हुआ, उत्तम, श्रेष्ठ, मुख्य, प्रधान, तीव्र, तेज; excellent.
निहित :: अंतर्निहित, जन्मजात, सहज, अंतर्निहित, निर्विवाद, स्थापित, सौंपा हुआ; inherent, vested, implied, implicit.
Hey Agni Dev! You are the best amongest the demigods-deities. You are vested in the innerself of demigods. Hey adorable! You are host to invite the demigods-deities in this Yagy. Hey desires accomplishing! Defeat the powerful enemies and grant us unlimited strength.
अधा होता न्यसीदो यजीयानिळस्पद इषयन्नीड्यः सन्।
त्वं त्वा नरः प्रथमं देवयन्तो महो राये चितयन्तो अनु ग्मन्
हे अग्नि देव! आप अतिशय यज्ञकर्ता और होम निष्पादक हैं। आप हव्य ग्रहण करके स्तुति योग्य होते हैं। आप वेदी रूप स्थान पर उपवेशन करें। धर्मानुष्ठानकारी ऋत्विक् लोग महान् धन प्राप्त करने की इच्छा से देवों के बीच में पहले आपका ही अनुसरण करते हैं।[ऋग्वेद 6.1.2]
Hey Agni Dev! You are extreme-great Yagy performer. You accept oblations-offerings and deserve worship. Establish your self at the Yagy Vedi-site. The Ritviz who make great endeavours for the sake of Dharm seek great wealth from the demigods and follow you.
वृतेव यन्तं बहुभिर्वसव्यै ३ स्त्वे रयिं जागृवांसो अनु ग्मन्।
रुशन्तमग्निं दर्शतं बृहन्तं वपावन्तं विश्वहा दीदिवांसम्
हे अग्नि देव! आप दीप्तिमान्, दर्शनीय, महान् हव्य भोजी और सम्पूर्ण काल में दीप्तिमान् हैं। आप वसुओं के मार्ग से अर्थात् अन्तरिक्ष से गमन करते हैं। धनाभिलाषी याजकगण आपका अनुसरण करते हैं।[ऋग्वेद 6.1.3]
दर्शनीय :: प्रसिद्ध, मशहूर; beautiful, visible, notable.
Hey Agni Dev! You are radiant, visible, great consumer of the offerings and shine all the time. You travel through the space, the path followed by Vasus. Wealth seeking Ritviz follow you.
पदं देवस्य नमसा व्यन्तः श्रवस्यवः श्रव आपन्नमृक्तम्।
नामानि चिद्दधिरे यज्ञियानि भद्रायां ते रणयन्त संदृष्टौ
अन्नाभिलाषी होकर याजकगण लोग स्तोत्र के साथ दीप्तिमान् अग्नि देव के आहवनीय स्थान में गमन करते हैं और अप्रतिहत भाव से अथवा अबाध्य रूप से प्रचुर अन्न प्राप्त करते हैं। हे अग्निदेव! दर्शन होने पर वे स्तुतियों से आनन्दित होते हैं और आपके यागयोग्य नामों को धारण करते हैं। जातवेदा, वैश्वानर इत्यादि नामों का संकीर्तन करते हैं।[ऋग्वेद 6.1.4]
अप्रतिहत :: जिसे कोई रोक न सके, बिना रुकावट, निर्विघ्न, जिसे कोई रोकने-टोकने वाला न हो, जिसमें बाधा उपस्थित न हुई हो, अक्षुण्ण, जो हारा न हो, अपराजित, निर्बाध, अप्रभावित, अंकुश; continuous, unrequited.
Ritviz desirous of food grains recite the Strotr and move to the place of invoking Agni Dev and get sufficient food grains continuously. Hey Agni Dev! Hey Agni Dev! On seeing you they become happy and get pleasure through the recitation of sacred hymns and adopt titles suitable for the Yagy. They recite the names like Jatveda and Vaeshwanar.
त्वां वर्धन्ति क्षितयः पृथिव्यां त्वां राय उभयासो जनानाम्।
त्वं त्राता तरणे चेत्यो भूः पिता माता सदमिन्मानुषाणाम्
हे अग्नि देव! मनुष्यगण आपको वेदी के ऊपर स्थापित करते हैं। आप याजकगणों के पशु और अपशु रूप दोनों प्रकार के धन को वर्द्धित करते हैं। अध्वर्यु आदि भी उभयविध धन प्राप्त करने के लिए आपको वर्द्धित करते हैं। हे दुःख विनाशक अग्नि देव! आप स्तुति भाजन होकर मनुष्यों के रक्षक और माता-पिता के तुल्य अनुदान एवं संरक्षण प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.1.5]
Hey Agni Dev! The humans establish you over the Vedi. You increase the wealth of the worshipers both as animals-cattle and materials. The priests etc. promote-boost you for having various kinds of wealth. Hey destroyer of sorrow Agni Dev! You accept the worship and protect them like parents and grant protection.
सपर्येण्यः स प्रियो विश्व१ ग्निर्होता मन्द्रो नि षसादा यजीयान्।
तं त्वा वयं दम आ दीदिवांसमुप जुबाधो नमसा सदेम
पूजनीय, अभीष्टवर्षी, प्रजाओं के बीच में होम निष्पादक, मोहप्रद और अतिशय यजनीय अग्नि देव वेदी के ऊपर उपस्थित होते हैं। हे अग्नि देव! आप घर में प्रज्वलित होते हैं। हम लोग जानु को अवनत करके स्तोत्र के साथ आपके निकट उपस्थित होते हैं।[ऋग्वेद 6.1.6]
Revered, desires fulfilling, performer of Yagy amongest the populace, enchanting and worshipable Agni Dev establish over the Yagy Vedi. Hey Agni Dev! You lit in the houses. We bend our thigh and recite Strotr close to you.
तं त्वा वयं सुध्यो ३ नव्यमग्ने सुम्नायव ईमहे देवयन्तः।
त्वं विशो अनयो दीद्यानो दिवो अग्ने बृहता रोचनेन
हे अग्नि देव! आप स्तुति योग्य है। हम शोभन बुद्धि वाले, सुखाभिलाषी और आपकी कामना करने वाले हैं। हम आपका स्त्वन करते हैं। हे अग्नि देव! आप दीप्यमान हैं। महान् रोचमान मार्ग से अर्थात् आदित्य मार्ग से आप हम स्तोताओं को स्वर्ग लोक पहुँचावें।[ऋग्वेद 6.1.7]
रोचमान :: चमकता हुआ, शोभित होता हुआ, घोड़े की गरदन पर की एक भंवरी, शोभा युक्त, भगवान् कार्तिकेय-स्कन्द के एक अनुचर का नाम, रोचमान अश्वमेध यज्ञकर्ता एक राजा था जो अश्वग्रीव असुर का अंशावतार था; shinning, radiant, glittering, aurous.
Hey Agni Dev! You are worshipable. We possessors of good-pure intelligence, desirous of comforts-pleasure, desire you. We worship-pray you. Hey Agni Dev! You are radiant. Take us to the heavens through the shinning route-Adity Marg.
विशां कविं विश्पतिं शश्वतीनां नितोशनं वृषभं चर्षणीनाम्।
प्रेतीषणिमिषयन्तं पावकं राजन्तमग्निं यजतं रयीणाम्
नित्य स्वरूप ऋत्विक् याजक गण आदि के स्वामी, ज्ञान सम्पन्न, शत्रु विनाशक, कामनाओं के पूरक, स्तोता मनुष्यों के प्राप्तव्य, अन्न विधायक, शुद्धता सम्पादक, धनार्थियों के द्वारा यष्टव्य और दीप्यमान अग्नि देव का हम लोग स्तवन करते हैं।[ऋग्वेद 6.1.8]
We worship radiant Agni Dev who is the lord of the Ritviz-hosts, enlightened, slayer of the enemy, accomplisher of desires, attainable by the Stotas, provider of food grains, maintainer of purity, grants wealth to the desirous. 
सो अग्न ईजे शशमे च मर्तो यस्त आनट् समिधा हव्यदातिम्।
य आहुतिं परि वेदा नमोभिर्विश्वेत्स वामा दधते त्वोतः
हे अग्नि देव! जो याजकगण आपका यजन करता है, जो स्तवन करता है, जो याजकगण प्रज्वलित ईंधन के साथ आपको हव्य प्रदान करता है, जो प्रार्थना के साथ आपको आहुति प्रदान करता है, वह यजमान आपके द्वारा रक्षित होता है और समस्त अभिलषित धन प्राप्त करता है।[ऋग्वेद 6.1.9]
Hey Agni Dev! The Ritviz-host who worship-pray you, make offerings in the fire, is protected by you and gets desired wealth.
अस्मा उ ते महि महे विधेम नमोभिरग्ने समिधोत हव्यैः।
वेदी सूनो सहसो गीर्भिरुक्थैरा ते भद्रायां सुमतौ यतेम
हे अग्नि देव! आप महान् हैं। हमारा आपको नमस्कार है। ईंधन और हव्य के द्वारा आपकी परिचर्या करते हैं। हे बलपुत्र! हम लोग स्तोत्र और शस्त्र के साथ वेदी के ऊपर आपकी अर्चना करते हैं। हम लोग आपका शोभन अनुग्रह प्राप्त करने के लिए यत्न करते हैं। हम लोग सफल होवें।[ऋग्वेद 6.1.10]
Hey Agni Dev! You are great. We salute you and serve you with the fuel and oblations-offerings. Hey, son of Bal! We worship you over the Vedi with Strotr & weapons. Let us succeed in attaining good wealth by virtue of your kindness.
आ यस्ततन्थ रोदसी वि भासा श्रवोभिश्च श्रवस्य १ स्तरुत्रः।
बृहद्भिर्वाजैः स्थविरेभिरस्मे रेवद्भिरने वितरं वि भाहि
हे अग्नि देव! दीप्ति द्वारा आपने द्यावा-पृथ्वी को विस्तृत किया। आप परित्राणकर्ता और स्तुति द्वारा पूजनीय हैं। आप प्रचुर अन्न और विशिष्ट धन के साथ हम लोगों के निकट भली-भाँति से दीप्त होवें।[ऋग्वेद 6.1.11]
Hey Agni Dev! You extended the heaven & earth with your aura. You are protector and worshipable. You should shine close to us with sufficient food grains and special wealth.
नृवद्वसो सदमिद्धेह्यस्मे भूरि तोकाय तनयाय पश्वः।
पूर्वीरिषो बृहतीरारेअघा अस्मे भद्रा सौश्रवसानि सन्तु
हे धनवान् अग्नि देव! मनुष्यों से युक्त अर्थात् पुत्र-पौत्रादि से युक्त धन आप हमें प्रदान करें। हमारे पुत्र-पौत्रों को प्रभूत पशु प्रदान करें। कामनाओं के पूरक और पाप रहित पर्याप्त अन्न तथा सौभाग्य भी हमें प्राप्त हो।[ऋग्वेद 6.1.12]
Hey rich Agni Dev! Grant us sons & grand sons. Grant a number of animals-cattle to our sons & grandsons. Let us have good luck, desires accomplishment and sinless food grains. 
पुरूण्यग्ने पुरुधा त्वाया वसूनि राजन्वसुता ते अश्याम्।
पुरूणि हि त्वे पुरुवार सन्त्यने वसु विधते राजनि त्वे॥
हे दीप्तिमान अग्नि देव! हम आपके निकट से गौ, अश्वादिरूप बहुविध धन प्राप्त करें। आप धनवान् है। हे सर्ववरणीय अग्निदेव! आप शोभन है। आप प्रचुर धन के स्वामी हैं।[ऋग्वेद 6.1.13]
Hey Radiant Agni Dev! Let us receive various kinds of riches, cows and horses from you. You are rich-wealthy. Hey accepted by all, Agni Dev! You are adorable-beautiful and possessor of a lot of wealth.(22.08.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (2) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :- अग्रि;  छन्द :- अनुष्टुप् शक्वरी।
त्वं हि क्षैतवद्यशोऽग्ने मित्रो न पत्यसे।
त्वं विचर्षणे श्रवो वसो पुष्टिं न पुष्यसि
हे अग्नि देव! आप मित्र देव के तुल्य शुष्क काष्ठ के द्वारा हवि के ऊपर अभिपतित होते हैं; इसलिए हे सर्वदर्शी, धन सम्पन्न अग्नि देव! आप अन्न और पुष्टि द्वारा हम लोगों को वर्द्धित करें।[ऋग्वेद 6.2.1]
Hey Agni Dev! You are present over the wooden offerings like Mitr Dev. Hence, hey viewer of every thing, rich Agni Dev! Nourish & grow us with food grains.
त्वां हि ष्मा चर्षणयो यज्ञेभिर्गीर्भिरीळते।
त्वां वाजी यात्यवृको रजस्तूर्विश्व चर्षणिः
हे अग्नि देव! मनुष्य लोग हव्य साधन, हव्य और प्रार्थना के द्वारा आपकी अर्चना करते हैं। हिंसा वर्जित जल प्रेरक अथवा लोगों में अभिगमन करने वाले, सर्व द्रष्टा सूर्य देव आपको ही प्राप्त करते हैं।[ऋग्वेद 6.2.2]
Hey Agni Dev! Humans worship you with offerings and other means. You inspire water-rains, avoid hurting anyone, moves between the humans and Sury Dev-Sun ultimately meets you.
सजोषस्त्वा दिवो नरो यज्ञस्य केतुमिन्धते।
यद्ध स्य मानुषो जनः सुम्नायुर्जुह्वे अध्वरे
हे अग्नि देव! समान प्रीति धारित करने वाले ऋत्विक् लोग आपको प्रज्वलित करते हैं। आप यज्ञ के प्रज्ञापक है। मनु के अपत्य याजकगण लोग सुखाभिलाषी होकर यज्ञ में आपका आह्वान करते हैं।[ऋग्वेद 6.2.3]
प्रज्ञापक :: मोटे या बड़े अक्षरों में लिखा हुआ विज्ञापन, प्रज्ञापन करने वाला,  सूचित करने वाला; informer.
अपत्य :: औलाद, संतान, वंशज; offspring, progeny, children.
Hey Agni Dev! The Ritviz with equal-same love, ignite you. You are the informer of Yagy. Hey offspring of Manu hosts-Ritviz desirous of comforts-pleasure invoke you in the Yagy.
ऋधद्यस्ते सुदानवे धिया मर्तः शशमते।
ऊती ष बृहतो दिवो द्विषो अंहो न तरति
हे अग्नि देव! आप दान शील हैं, जो मरण शील याजकगण यज्ञकर्म में रत होकर आपका स्तवन करता है, वह समृद्धिशाली होता है। हे अग्निदेव! आप दीप्तियुक्त हैं। वह याजकगण आपके द्वारा रक्षित होकर भीषण पाप के सदृश शत्रुओं को नष्ट करता है।[ऋग्वेद 6.2.4]
Hey Agni Dev! You are a donor. The mortal host-Ritviz who involve in Yagy worshiping you, turn wealthy. Hey Agni Dev! You are aurous-radiant. Such Ritviz who on being protected by you destroy the enemies who are the worst sinners.
समिधा यस्त आहुतिं निशितिं मर्त्यो नशत्।
वयावन्तं स पुष्यति क्षयमग्ने शतायुषम्
हे अग्नि देव! जो मनुष्य काष्ठ द्वारा आपकी मन्त्र संस्कृत आहुति को पुष्ट करता है, वह मनुष्य पुत्र-पौत्रादि से युक्त होकर अपने घर में सौ वर्षों की आयु प्राप्त करता है।[ऋग्वेद 6.2.5]
Hey Agni Dev! The human being who strengthen-nourish the offerings-fire with wood and recitation of Mantr, is blessed with sons & grandsons and live-survive for hundred years.
त्वेषस्ते धूम ऋण्वति दिवि षञ्छुक्र आततः।
सूरो न हि द्युता त्वं कृपा पावक रोचसे
हे अग्नि देव! आप दीप्तिशाली है। आपका शुभ्र वर्ण का धूम अन्तरिक्ष में विस्तारित होता है और मेघरूप में परिणत होता है। हे पावक! आप स्तोत्र द्वारा प्रसन्न होकर सूर्य के सदृश दीप्ति द्वारा रुचिमान होते हैं।[ऋग्वेद 6.2.6]
Hey Agni Dev! You are radiant-aurous. Your smoke of white colour spread over the space-sky and convert into rain clouds. Hey Pavak-Agni Dev! You become happy with the Strotr and shine like the Sun.
अधा हि विक्ष्वीड्योऽसि प्रियो नो अतिथिः।
रण्वः पुरी जूर्यः सूनुर्न त्रययाय्यः
हे अग्नि देव! आप प्रजाओं के स्तुति भाजन हैं; क्योंकि आप अतिथि के सदृश हम लोगों के प्रिय है। नगर में वर्त्तमान हितोपदेष्टा वृद्ध के सदृश आप आश्रय योग्य हैं एवं पुत्र के तुल्य पालन करने वाले हैं।[ऋग्वेद 6.2.7]
Hey Agni Dev! You are worshiped by the populace and is loved-dear like the guest. You provide shelter like an old person performing welfare and nurturer like the son.
क्रत्वा हि द्रोणे अज्यसेऽग्रे वाजी न कृत्व्यः।
परिज्मेव स्वधा गयोऽत्यो न ह्वार्यः शिशुः
हे अग्नि देव! अरणि मन्थन रूप कर्म से आपकी विद्यमानता प्रकाशित होती है। अश्व जिस प्रकार से अपने आरोही का वहन करता है, उसी प्रकार से आप हव्य वहन करें। आप वायु की तरह सभी जगह गमन करते हैं। आप हमें अन्न और घर प्रदान करें। (क्योंकि) आप शिशु और अश्व के सदृश कुटिलगामी हैं।[ऋग्वेद 6.2.8]
Hey Agni Dev! Your presence is confirmed-ensured with the rubbing of wood. Accept the offerings like the horse who accept his rider. You are capable of moving every where like the air. Grant us food grains and house. You are like a new born child and the dynamic horse.
त्वं त्या चिदच्युताग्ने पशुर्न यवसे।
धामा ह यत्ते अजर वना वृश्चन्ति शिक्वसः
हे अग्नि देव! तृण आदि चरने के लिए छोड़ा गया पशु जिस प्रकार सम्पूर्ण तृण का भक्षण कर लेता है, उसी प्रकार आप प्रौढ़ काष्ठों को क्षण मात्र में भक्षण कर लेते हैं। हे अविनश्वर अग्नि देव! आप दीप्तिशाली हैं। आपकी शिखाएँ वनों को भस्म कर देती हैं।[ऋग्वेद 6.2.9]
Hey Agni Dev! The manner in which an animal eats the straw on being released, you consume the mature wood within seconds. Hey immortal Agni Dev! You are radiant-aurous. Your flames engulf the forests and burn them.
वेषि ह्यध्वरीयतामग्ने होता दमे विशाम्।
समृधो विश्पते कृणु जुषस्व हव्यमङ्गिरः
हे अग्नि देव! आप यज्ञाभिलाषी याजकगणों के घर में होता रूप से प्रविष्ट होते हैं। हे मनुष्यों के पालक अग्निदेव! आप हम लोगों की समृद्धि का विधान करें। हे अंगार रूप अग्नि देव! आप को स्वीकार करें।[ऋग्वेद 6.2.10]
अंगार :: दहकता कोयला या पत्थर, लाल रंग; cinder, ember.
Hey Agni Dev! You enter the homes of the Ritviz like a host. Hey nurturer of humans, Agni Dev! Ensure our growth. Hey  Agni Dev in the form of cinder-ember! Accept us. 
अच्छा नो मित्रमहो देव देवानने वोचः सुमतिं रोदस्योः। वीहि स्वस्ति सुक्षितिं दिवो नृन्द्विषो अंहांसि दुरिता तरेम ता तरेम तवावसा तरेम
हे अनुकूल दीप्ति वाले देव-दानवादि गुण युक्त और द्यावा-पृथ्वी में वर्त्तमान अग्नि देव! आप देवों के समीप हम लोगों की प्रार्थना का उच्चारण करें। हम स्तोताओं को शोभन निवास युक्त सुख में ले जावें। हम लोग शत्रुओं, पापों और कष्टों का अतिक्रमण करें। हम लोग जन्मान्तर में कृतपापों मुक्त हों। हे अग्नि देव! आपकी रक्षा के द्वारा रक्षित होकर हम निर्विघ्न जीवनयापन करें।[ऋग्वेद 6.2.11]
Hey Agni Dev, with favourable aura-shine for the demigods-deities, demons etc. and present over the heavens & the earth! Recite  our prayers before the demigods-deities. Take us-the Stotas, to the beautiful, comfortable houses. We should be able to over come the sins and torture by the enemy. Hey Agni Dev! We should survive under your protection and live stress free-trouble free life.(23.08.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (3) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :- अग्नि;  छन्द :- त्रिष्टुप्।
अग्रे स क्षेषदृतपा ऋतेजा उरु ज्योतिर्नशते देवयुष्टे।
यं त्वं मित्रेण वरुणः सजोषा देव पासि त्यजसा मर्तमंहः
हे अग्नि देव! वह याजकगण चिरकाल पर्यन्त जीवन धारित करे, याजकगण यज्ञ का पालन करता है और यज्ञ के निमित्त उत्पन्न हुआ है। वरुण देव और मित्र देव के साथ समान धारित करके तेज द्वारा आप पाप से जिसकी रक्षा करते हैं, वह देवाभिलाषी याजकगण आपकी विस्तीर्ण ज्योति प्राप्त करता है।[ऋग्वेद 6.3.1]
विस्तीर्ण :: जो दूर तक फैला हुआ हो, विस्तृत, बहुत लंबा समय, विशाल; covering vast area.
चिरकाल :: बहुत समय, दीर्घकाल, सदा, सदैव; long period of time, forever.
Hey Agni Dev! Let the Ritviz survive for a long period of time. He perform Yagy and is born for this. The Ritviz desirous of demigods-deities, protected by you like Varun & Mitr Dev by your energy from sins, gets your light covering a vast area.
ईजे यज्ञेभिः शशमे शमीभिर्ऋधद्वारायाग्नये ददाश।
एवा चन तं यशसामजुष्टिर्नांहो मर्तं नशते न प्रदृप्तिः
वरणीय धन से समृद्धिमान् अग्नि देव के लिए जो याजकगण हव्य प्रदान करता है, वह सम्पूर्ण यज्ञ के द्वारा यज्ञवान् अर्थात् सफल यज्ञ होता है तथा कृच्छ्र चान्द्रायणादि कर्म द्वारा शान्त होता है अर्थात् अग्नि कर्म द्वारा वह सम्पूर्ण फल प्राप्त करता है। वह याजकगण यशस्वी पुत्रों के अभाव को भी नहीं प्राप्त करता। उसे पाप और अनर्थक गर्व स्पर्श नहीं करते।[ऋग्वेद 6.3.2]
यशस्वी :: सुख्यात, कीर्तिमान्; glorious, celebrated.
The Ritviz who make offerings of acceptable-pure money for Agni Dev, become successful in performing the Yagy. He has glorious, celebrated sons and is not touched-affected by sins and proud.
सूरो न यस्य दृशतिररेपा भीमा यदेति शुचतस्त आ धीः।
हेषस्वतः शुरुधो नायमक्तोः कुत्रा चिद्रण्वो वसतिर्वनेजाः
सूर्य देव के समान अग्नि देव का दर्शन पाप रहित है। हे अग्नि देव! आपकी प्रज्वलित ज्वाला भयंकर है और सभी जगह गमन करती है। अग्नि देव रात्रि में शब्दायमान गौओं के तुल्य विस्तृत होते हैं। सभी के आवासभूत अर्थात् निवासप्रद और अरण्यजात अग्निदेव पर्वत के अग्रभाग में शोभायमान होते हैं।[ऋग्वेद 6.3.3]
दर्शन :: राय, नज़र, आलोकन, दर्शनशास्र, तत्त्वज्ञान, तत्त्वविज्ञान, शास्र, विद्या का प्रेम, भेंट, मुलाक़ात, जांच, मुआयना, मुआइना; visit, philosophy, view.
View of Agni Dev like Sury Dev is free from sin. Hey Agni Dev! Your flames are furious and spread every where. Agni Dev spread around like the sound of cows during night. Agni Dev born in forests, occupies the mountain peak-cliff & provides shelter-houses to all.
तिग्मं चिदेम महि वर्पो अस्य भसदश्वो न यमसान आसा।
विजेहमानः परशुर्न जिह्वां द्रविर्न द्रावयति दारु धक्षत्
अग्नि देव का मार्ग तीक्ष्ण है। इनका रूप अत्यन्त दीप्तिमान् है। ये अश्व के सदृश मुख द्वारा तृणादि को प्राप्त करते हैं। कुठार जिस प्रकार से अपनी धार को काष्ठ पर प्रक्षिप्त करता है, उसी प्रकार अग्नि देव अपनी ज्वाला को तरु गुल्म आदि पर प्रक्षिप्त करते हैं। स्वर्णकार जिस प्रकार से सुवर्ण आदि को द्रवीभूत करता है, उसी प्रकार सम्पूर्ण धन को ये द्रवित करते हैं अर्थात् सम्पूर्ण वस्तु को अग्नि देव भस्मीभूत कर देते हैं।[ऋग्वेद 6.3.4]
Agni Dev follows a sharp route. His figure is radiant. He receives the straw etc. in his mouth like the horse. The way the axe strikes the wood Agni Dev strikes the vegetation trees-flowers etc. The way a gold smith melt the gold, Agni Dev melt every thing.
स इदस्तेव प्रति धादसिष्यञ्छिशीत तेजोऽयसो न धाराम्।
चित्रध्रजतिररतिर्यो अक्तोर्वेर्न द्रुपद्वा रघुपत्मजंहाः
बाण चलाने वाला जिस प्रकार से लक्ष्य के अभिमुख बाण चलाता है, उसी प्रकार अग्नि देव अपनी ज्वालाओं को प्रदिप्त करते हैं। कुठार आदि को चलाने वाला जिस प्रकार से कुठार आदि की धार को तीक्ष्ण करता है, उसी प्रकार अग्नि देव भी अपनी ज्वाला को फेंकते समय तीक्ष्ण करते हैं। वृक्ष के ऊपर निवास करने वाले और लघुपतन समर्थ पाद विशिष्ट पक्षी के सदृश विचित्र गति अग्नि देव रात्रि का अतिक्रमण करते हैं अर्थात् धीरे-धीरे अन्धकार का विनाश करते हैं।[ऋग्वेद 6.3.5]
विचित्र :: अजीब, अनोखा, चितला, बहुरंगा, रंग-बिरंगा, विलक्षण, पुराने ढंग का; weird, bizarre, quaint, pied.
The way an archer shoots arrow at his goal, Agni Dev ignite his flames. He sharpens his flames like an axe sharpened by its user. He moves-spread like the birds covering short distances with weird- bizarre speeds destroying darkness.
स ईं रेभो न प्रति वस्त उस्राः शोचिषा रारपीति मित्रमहाः।
नक्तं य ईमरुषो यो दिवा नॄनमर्त्यो अरुषो यो दिवा नॄन्
वे अग्नि देव स्तवनीय सूर्य देव के सदृश दीप्त ज्वाला को आच्छादित करते हैं। सभी के अनुकूल प्रकाश को विस्तारित करके वे तेज द्वारा अत्यन्त शब्द करते हैं। ये रात्रि में शोभित होकर मनुष्यों को दिवस के समान अपने-अपने कार्यों में लगाते हैं। अमरणशील और सुन्दर अग्निदेव द्युतिमान् तेज द्वारा अपनी किरणों को नेताओं के लिए प्रेरित करते हैं अथवा सुन्दर अग्नि देव दिन में देवों को हवि से संयुक्त करते हैं।[ऋग्वेद 6.3.6]
आच्छादित :: छाया हुआ, ढका हुआ; covers, clad.
Agni Dev clad-covers his flames like worshipable Sury Dev-Sun. He make favourable sound extending his rays-light. He put the humans in their jobs lighting during the night. Immortal glorious Agni Dev spreads his radiations to inspire the leaders; alternatively he shares the offerings with the demigods-deities during the day.
दिवो न यस्य विधतो नवीनोषा रुक्ष ओषधीषु नूनोत्।
घृणा न यो ध्रजसा पत्मना यन्ना रोदसी वसुना दं सुपत्नी
दीप्तिमान सूर्य देव के सदृश रश्मि विस्तीर्ण करने वाले जिस अग्नि देव का महान् शब्द हुआ, वे अभीष्टवर्षी और दीप्त अग्नि देव औषधियों के बीच में अत्यन्त शब्द करते हैं। जो दीप्त और गमनशील तथा इतस्तत: ऊद्धर्वगामी तेज द्वारा गमन करते हैं, वे अग्नि देव हमारे शत्रुओं का विनाश करते हुए शोभन पति सम्पन्न स्वर्ग और पृथ्वी को धन द्वारा परिपूर्ण करते हैं।[ऋग्वेद 6.3.7]
इतस्ततः :: वास्तव में, हकीकत में; in fact.
Desires accomplishing Agni Dev creates loud-extreme sounds amongest the medicinal herbs like the radiant Sun who extends his rays. Let Agni Dev who is radiant, dynamic and in fact accelerated in the upward direction, destroy our enemies and enrich the heavens & earth with wealth.
धायोभिर्वा यो युज्येभिरर्कैविद्युन्न दविद्योत्स्वेभिः शुष्मैः।
शर्धो वा यो मरुतां ततक्ष ऋभुर्न त्वेषो रभसानो अद्यौत्
जो अग्नि देव अश्व के समान स्वयमेव युज्यमान अर्चनीय दीप्ति के साथ गमन करते हैं, वे अग्नि देव अपने तेज के द्वारा विद्युत् के सदृश चमकते हैं। जो अग्नि देव मरुत्गणों के बल को क्षीण करते हैं, वे अग्नि देव निरतिशय दीप्तिशाली, सूर्यदेव के सदृश प्रदीप्त और वेगयुक्त प्रकाशमान होते हैं।[ऋग्वेद 6.3.8]
निरतिशय :: बेहद, अद्वितीय, परम, जिसके आगे या जिससे बढ़कर और अतिशय और कुछ न हो सके, चश्म, परमात्मा, ईश्वर, परब्रह्म; हद दरजे का; extreme, Almighty, unique, ultimate, God.
युज्यमान :: गतिशील; dynamic.
प्रकाशमान :: प्रकाशयुक्त, चमकदार, सुबोध गम्य, स्पष्ट, चमकीला, उज्ज्वल, दीप्तिमान, किरणें फैलानेवाला, शुभ्र; luminous, lucent, radiant.
Agni Dev dynamic like the horse; moves with extreme worshipable aura and shines like electricity-lightening. He reduces-checks the power of Marud Gan. Agni Dev dynamic and luminous, possess ultimate shine & is radiant like the Sun-Sury Dev. (24.08.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (4) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :- अग्नि;  छन्द :- त्रिष्टुप्।
यथा होतर्मनुषो देवताता यज्ञेभिः सूनो सहसो यजासि।
एवा नो अद्य समना समानानुशन्नग्न उशतो यक्षि देवान्
हे देवों के आह्वान करने वाले बल पुत्र अग्नि देव! जिस प्रकार ब्रह्मा के यज्ञ में आपने हव्य द्वारा देवों का यजन किया, उसी प्रकार हम लोगों के इस यज्ञ में आज यजनीय इन्द्रादि देवों को अपने समान समझकर आप उनका शीघ्र यजन करें।[ऋग्वेद 6.4.1]
Hey Agni Dev, invoker of demigods-deities! The manner in which you worshiped-honoured the demigods-deities making offerings-oblations to them, in the Yagy conducted by Brahma Ji, in the same way invite-invoke Dev Raj & other demigods-deities considering them equivalent to you in our Yagy.
स नो विभावा चक्षणिर्न वस्तोरग्निर्वन्दारु वेद्यश्चनो धात्।
विश्वायुर्यो अमृतो मर्त्येषूषर्भुद्भूदतिथिर्जातवेदाः
जो दिन के प्रकाशक हैं, जो सूर्य के तुल्य अत्यन्त दीप्तिमान् हैं, जो सभी के बोध गम्य हैं, जो सभी के जीवन भूत है, जो अविनश्वर हैं, जो अतिथि हैं, जो जातवेदा हैं और जो मनुष्यों के बीच में उषाकाल में प्रबुद्ध होते हैं, वे अग्नि देव हम लोगों को उत्कृष्ट धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.4.2]
बोध :: महसूस-अनुभव करना, गणनीय-अगणनीय संज्ञा, feel, feeling, perception, realization, sense, understanding, intelligence, realisation, cognition, perceptible, comprehensibility.
Let Agni Dev who is radiant like the Sury-Sun, invoke senses, basis of life, eternal, guest, God, grow at dawn-Usha,  grant us beast-excellent wealth.
द्यावो न यस्य पनयन्त्यभ्वं भासांसि वस्ते सूर्यो न शुक्रः।
वि य इनोत्यजरः पावकोऽश्नस्य चिच्छिश्नथत्पूर्व्याणि
स्तोता लोग अभी जिन अग्नि देव के महान् कर्म की प्रार्थना करते हैं, वे सूर्य देव के सदृश शुभ्रवर्ण अग्नि देव अपने तेज को आच्छादित करते हैं। वृद्धावस्था रहित और पवित्र बनाने वाले अग्नि देव दीप्ति द्वारा सब पदार्थों को प्रकाशित करते हैं और व्यापनशील राक्षसादि को तथा पुरातन नगरों को विनष्ट करते हैं।[ऋग्वेद 6.4.3] 
Agni Dev who is worshiped-prayed by the Stotas for his great endeavours, possessing white-bright light coloured like Sury Dev, pervade every one with his aura-light. Free from old age, purifying Agni Dev light all goods-materials and destroy the demons and their old-ancient cities.
वद्मा हि सूनो अस्यद्मसद्वा चक्रे अग्निर्जनुषाज्मान्नम्।
स त्वं न ऊर्जसन ऊर्जं धा राजेव जेरवृके क्षेष्यन्तः
हे सभी के प्रेरक अग्नि देव! आप वन्दनीय हैं। अग्नि देव हव्य के ऊपर आसीन होकर स्वभावतः ही उपासकों को गृह और अन्न प्रदान करते हैं। हे अन्न प्रदायक अग्नि देव! आप हम लोगों को अन्न प्रदान कर राजा के तुल्य हमारे शत्रुओं को जीतें एवं यज्ञ वेदी पर प्रतिष्ठित होवें।[ऋग्वेद 6.4.4]
Inspiring all, Agni Dev is worshipable! Agni Dev accepts the offerings and grant house and food grains to the worshipers. Hey food granting Agni Dev! Grant us food grains and win our enemies like a king occupying the Yagy Vedi.
नितिक्ति यो वारणमन्नमत्ति वायुर्न राष्ट्र्यत्येत्यक्तून्।
तुर्याम यस्त आदिशामरातीरत्यो न ह्रुत्त: परिह्रुत्
जो अग्नि देव अन्धकार के निवारक हैं, जो अपने तेज को तीक्ष्ण करते हैं, जो हवि का भक्षण करते हैं और जो वायुदेव के समान सब पर शासन करते हैं, वे अग्नि देव रात्रि के अन्धकार का विनाश करते हैं। हे अग्नि देव! हम आपके प्रसाद से उस व्यक्ति को जीतें, जो आपको हव्य प्रदान नहीं करता। आप अश्व के तुल्य वेगगामी होकर हमारे आक्रमण करने वाले शत्रुओं का वध करें।[ऋग्वेद 6.4.5]
Agni Dev who eliminate darkness, sharpens his aura-brightness, consume the offerings  and rule every one like Vayu Dev, destroy the darkness of night. Hey Agni Dev! Let us win the person who do not make offerings for you. You should be dynamic like the horse and win kill the enemies who attack us.
आ सूर्यो न भानुमद्भिरर्कैरग्ने ततन्थ रोदसी वि भासा।
चित्रो नयत्परि तमांस्यक्तः शोचिषा पत्मन्नौशिजो न दीयन्
हे अग्नि देव! आप द्यावा-पृथ्वी को विशेषरूप से आच्छादित करते हैं,  जिस प्रकार से सूर्य देव अपनी दीप्तिमान् और पूजनीय किरणों से द्यावा-पृथ्वी को आच्छादित करते हैं तथा अपने मार्ग से गमन करने वाले सूर्य देव के सदृश विचित्र अग्नि देव अन्धकारों को दूर करते हैं।[ऋग्वेद 6.4.6]
Hey Agni Dev! You specially cover the heavens & the earth with your light just as the Sun lit them with his bright and pious rays. You remove amazing darkness from your path-route like the Sun-Sury Dev. 
त्वां हि मन्द्रतममर्कशोकैर्ववृमहे महि नः श्रोष्यग्ने।
इन्द्रं न त्वा शवसा देवता वायुं पृणन्ति राधसा नृतमाः
हे अग्नि देव! आप अत्यन्त स्तवनीय, पूजार्ह और दीप्तियुक्त हैं। हम लोग आपकी स्तुति करते हैं; इसलिए आप हमारे महान् स्तोत्र को श्रवण करें। हे अग्नि देव! नेता रूप ऋत्विक् लोग आपको हविर्लक्षण धन से सन्तुष्ट करते हैं। आप बल में वायु देव के सदृश और इन्द्र देव के तुल्य देव स्वरूप हैं।[ऋग्वेद 6.4.7]
Hey Agni Dev! You are worshipable and radiant. Listen-respond to our great Strotr-hymns. Hey Agni Dev! The Ritviz who are the chief performers satisfy you with the offerings. You are like Vayu Dev in terms  of might and possess divinity like Indr Dev.
नू नो अग्नेऽवृकेभिः स्वस्ति वेषि रायः पथिभिः पर्ष्यंहः।
ता सूरिभ्यो गृणते रासि सुम्नं मदेम शतहिमाः सुवीराः
हे अग्नि देव! आप शीघ्र ही वृक से रहित मार्ग द्वारा हम लोगों को निर्विघ्न पूर्वक ऐश्वर्य के समीप ले जावें। पाप से हम लोगों का उद्धार करें। आप स्तोताओं को जो सुख प्रदान करते हैं, वही सुख हमें प्रदान करें। हम लोग सुसन्तति युक्त होकर सौ वर्ष पर्यन्त सुख भोग करें।[ऋग्वेद 6.4.8] 
Hey Agni Dev! Take us to the grandeur through the trouble free route. Elevate-cleanse, purify us from the sins. The pleasure-comforts granted to the Stotas by you should be available to us as well. We should enjoy pleasure-comforts for hundreds of years along with decent progeny.(25.08.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (6) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :- अग्नि;  छन्द :- त्रिष्टुप्।
प्र नव्यसा सहसः सूनुमच्छा यज्ञेन गातुमव इच्छमानः।
वृश्चद्वनं कृष्णयामं रुशन्तं वीती होतारं दिव्यं जिगाति
प्रार्थना के योग्य बल पुत्र अग्नि देव के निकट अन्न की अभिलाषा करने वाले याजकगण नवीन यज्ञ से युक्त होकर गमन करते हैं। अग्नि देव वन को दग्ध करने वाले, कृष्णवर्त्मा, श्वेत वर्ण, कमनीय, होता और स्वर्गीय हैं।[ऋग्वेद 6.6.1]
कमनीय  :: जिसकी कामना की जाए, काम्य, सुंदर, आकर्षक, मनोहर, चाहने योग्य, कामना योग्य; desirable, beautiful, attractive.
People desirous of food grains worship Agni Dev, son of Bal and prostrate before him performing a new Yagy-endeavour. Agni Dev is attractive, fair coloured, shinning brightly, heavenly host who burn-roast the forests following dark path.
स श्वितानस्तन्यतू रोचनस्था अजरेभिर्नानदद्भिर्यविष्ठः।
यः पावकः पुरुतमः पुरूणि पृथून्यग्निरनुयाति भर्वन्
अग्नि देव श्वेत वर्ण, शब्द कारी, अन्तरिक्ष में वर्तमान, अजर और अत्यन्त शब्दकारी मरुतों के साथ मिलित एवं युवतम हैं। ये पावक और सुमहान् हैं। वे असंख्य स्थूल काष्ठों का भक्षण करके अनुगमन करते हैं।[ऋग्वेद 6.6.2]
Agni Dev is fair skinned, sound producing, present in the sky-space with the Marud Gan, immortal and youth. He is great and proceed further engulfing unlimited woods.
वि ते विंष्वग्वातजूतासो अग्ने भामासः शुचे शुचयश्चरन्ति।
तुविप्रक्षासो दिव्या नवग्वा वना वनन्ति धृषता रुजन्तः
हे विशुद्ध अग्नि देव! आपकी प्रदीप्त शिखाएँ पवन द्वारा सञ्चालित होकर बहुत से काष्ठों को भक्षण करती हैं और सभी जगह व्याप्त होती हैं। प्रदीप्त अग्नि देव से सम्भूत नवोत्पन्न रश्मियाँ घर्षणकारी दीप्ति द्वारा वनों को मज्जित करती हुई जलाती हैं।[ऋग्वेद 6.6.3]
मज्ज :: pulp.
Hey pure-pious Agni Dev! Your bright flames aided by the air-Pawan Dev, consume several woods pervading all places. Newly raised flames of radiant Agni Dev burn the forests-trees rubbing together.
ये ते शुक्रासः शुचयः शुचिष्मः क्षां वपन्ति विषितासो अश्वाः।
अध भ्रमस्त उर्विया विभाति यातयमानो अधि सानु पृश्नेः
हे दीप्ति सम्पन्न अग्नि देव! आपकी जो सम्पूर्ण शुभ्र रश्मियाँ पृथ्वी के केश स्थानीय औषधियों को जलाती हैं, वे विमुक्त अश्वों के समान इतस्ततः गमन करती है। आपकी भ्रमणशील शिखाएँ विचित्र रूप पृथ्वी के ऊपर स्थित उन्नत प्रदेश पर आरोहण करके विराजित होती है।[ऋग्वेद 6.6.4]
Hey radiant Agni Dev! Your bright flames burn the herbs-vegetation which are like the hair of earth. They move further like a free horse, continuously. Your movable flames amazingly step up over the heights. 
अध जिह्वा पापतीति प्र वृष्णो गोषुयुधो नाशनिः सृजाना।
शूरस्येव प्रसितिः क्षातिरग्नेर्दुर्वर्तुर्भीमो दयते वनानि
वर्षणकारी अग्नि देव की शिखाएँ बारम्बार निर्गत होती हैं, जिस प्रकार से गौओं के लिए युद्ध करने वाले इन्द्र देव के द्वारा प्रयुक्त वज्र बारम्बार निर्गत होता है। वीरों के पौरुष के समान अग्नि देव की शिखा दुःसह, दुर्निवार है। भयंकर अग्निदेव वनों को जलाते हैं।[ऋग्वेद 6.6.5]
दुर्निवार :: जिसे जल्दी न रोका जा सके, जिसका निवारण कठिन हो; unrestrainable, inevitable, irrepressible.
Flames-arms of Agni Dev evolve again and again leading to rains, like the Vajr of Indr Dev which is launched to release the cows. The peaks-high rise flames of  furious Agni Dev are irrepressible, un tolerable and roast the forests.
आ भानुना पार्थिवानि ज्रयांसि महस्तोदस्य धृषता ततन्थ।
स बाधस्वाप भया सहोभिः स्पृधो वनुष्यन्वनुषो नि जूर्व
हे अग्नि देव! आप प्रबल और उत्तेजक रश्मियों द्वारा पृथ्वी के गन्तव्य स्थानों को दीप्ति द्वारा आच्छादित करें। आप सम्पूर्ण विपत्तियों को दूर करें एवं अपने तेजः प्रभाव से स्पर्द्धाकारियों को अभिभूत करके शत्रुओं को नष्ट करें।[ऋग्वेद 6.6.6]
Hey Agni Dev! You pervade the distant-destined places of earth with your strong-powerful and exciting rays. Remove all obstacles and destroy the competing enemies.
स चित्र चित्रं चितयन्तमस्मे चित्रक्षत्र चित्रतमं वयोधाम्।
चन्द्रं रयिं पुरुवीरं बृहन्तं चन्द्र चन्द्राभिर्गृणते युवस्व
हे विचित्र अद्भुत बल सम्पन्न, आनन्ददायक अग्नि देव! हम लोग, आह्लादक स्तोत्रों द्वारा आपका स्तवन करते हैं। आप हमें अद्भुत, अत्यद्भुत् यशस्कर, अन्न दायक और पुत्र-पौत्रादि समन्वित विपुल ऐश्वर्य प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.6.7]
Hey amazingly powerful, pleasure granting Agni Dev! We worship you with pleasing Strotr-sacred hymns. Ensure that we are blessed with grandeur, amazing wealth, food grains, sons & grandsons.(28.08.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (7) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :- वैश्वानर; छन्द :- त्रिष्टुप्, जगती।
मूर्धानं दिवो अरतिं पृथिव्या वैश्वानरमृत आ जातमग्निम्।
कविं सम्राजमतिथिं जनानामासन्ना पात्रं जनयन्त देवाः
वैश्वानर अग्नि देव स्वर्ग के शिरोभूत, भूमि में गमन करने वाले, यज्ञ के लिए उत्पन्न, ज्ञान सम्पन्न, भली-भाँति से राजमान, याजकगणों के अतिथि स्वरूप, मुख स्वरूप और रक्षा विधायक हैं। हे देवों! ऋत्विकों ने ही अग्नि देव को उत्पन्न किया।[ऋग्वेद 6.7.1]
Vaeshwanar Agni Dev is like the apex of heavens, moving over the earth, evolved for the Yagy, enlightened, shining, host of the Ritviz, mouth of demigods-deities and planer of protection. Hey demigods-deities! The Ritviz have evolved-created fire-Agni Dev.
नाभिं यज्ञानां सदनं रयीणां महामाहावमभि सं नवन्त।
वैश्वानरं रथ्यमध्वराणां यज्ञस्य केतुं जनयन्त देवाः
स्तोता लोग यज्ञ के बन्धक, धन के स्थान और हव्य के आश्रय स्वरूप अग्नि देव का भली-भाँति से स्तवन करते हैं। देवगण यज्ञीय द्रव्यों के वहनकारी और यज्ञ के केतु स्वरूप वैश्वानर अग्नि देव को उत्पन्न करते हैं।[ऋग्वेद 6.7.2]
The Stotas properly pray-worship the Yagy site, place of keeping wealth and Agni Dev who is the protector of offerings. The demigods-deities evolve the Vaeshwanar Agni Dev who carries forward the Yagy related materials.
त्वद्विप्रो जायते वाज्यग्ने त्वद्वीरासो अभिमातिषाहः।
वैश्वानर त्वमस्मासु धेहि वसूनि राजन्त्स्पृहयाय्याणि
हे अग्नि देव! हवीरूप अन्न से युक्त पुरुष आपके समीप से ही ज्ञानवान् होता है। वीर लोग आपके समीप से ही शत्रुओं को पराजित करते हैं। इसलिए हे दीप्तिशाली वैश्वानर! आप हम लोगों को मनोवाञ्छित धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.7.3]
Hey Agni Dev! A person possessing food grains become enlightened when he comes to you. The brave warriors defeat the enemy in your presence. Hence, hey Vaeshwanar! Grant us desired wealth. 
त्वां विश्वे अमृत जायमानं शिशुं न देवा अभि सं नवन्ते।
तव क्रतुभिरमृतत्वमायन्वैश्वानर यत्पित्रोरदीदेः
हे अमरण शील अग्नि देव! आप पुत्र के तुल्य अरणिद्वय से उत्पन्न हुए हैं। समस्त देवगण आपका स्तवन करते हैं। हे वैश्वानर! जब आप पालक द्यावा-पृथ्वी के बीच दीप्यमान होते हैं, तब याजकगण लोग आपके यज्ञकार्य द्वारा अमरत्व प्राप्त करते हैं।[ऋग्वेद 6.7.4]
Hey immortal Agni Dev! You evolve out of wood like a son. All demigods-deities worship you. Hey Vaeshwanar! When you establish yourself between the heavens & the earth, the Ritviz attain immortality by virtue of performing Yagy.
वैश्वानर तव तानि व्रतानि महान्यग्ने नकिरा दधर्ष।
यज्जायमानः पित्रोरुपस्थेऽविन्दः केतुं वयुनेष्वह्नाम्
हे वैश्वानर! आपके उन प्रसिद्ध महान् कर्मों में कोई भी बाधा उपस्थित नहीं कर सकता। पितृ-मातृ स्वरूप द्यावा-पृथ्वी के क्रोड़भूत अन्तरिक्ष मार्ग में उत्पन्न होकर आपने दिवसों के प्रज्ञापक सूर्य देव को अन्तरिक्ष पथ में स्थापित किया।[ऋग्वेद 6.7.5]
Hey Vaeshwanar! None can interfere in your great endeavours-deeds. You established Sun-Sury Dev in the revolving cycle arising between the heavens & the earth, like nucleus.
वैश्वानरस्य विमितानि चक्षसा सानूनि दिवो अमृतस्य केतुना।
तस्येदु विश्वा भुवनाधि मूर्धनि वया इव रुरुहुः सप्त विस्रुहः
वैश्वानर के वारिप्रज्ञापक तेज द्वारा द्युलोक के उन्नत स्थल निर्मित हुए। वैश्वानर के शिरः स्थान में जलराशि अवस्थान करती हैं एवं उससे सात नदियाँ शाखा के सदृश उद्भूत होती हैं अर्थात् आहुति द्वारा सम्पूर्ण जगत् अग्नि देव से उत्पन्न होता है।[ऋग्वेद 6.7.6]
The elevated sites of heavens evolved by virtue of Vaeshwanar's water creating energy. Water reservoirs are seated over the head of Vaeshwanar, from where the seven pious rivers have originated. The entire universe originated from the offerings made to Agni Dev.
वि यो रजांस्यमिमीत सुक्रतुर्वैश्वानरो वि दिवो रोचना कविः।
परि यो विश्वा भुवनानि पप्रथेऽदब्धो गोपा अमृतस्य रक्षिता
शोभन कर्म करने वाले जिन वैश्वानर अग्नि देव ने लोकों का निर्माण किया, ज्ञान सम्पन्न होकर जिन्होंने द्युलोक के दीप्तिमान् नक्षत्रों को सृष्ट किया और जिन्होंने समस्त भूतजात को चतुर्दिक प्राप्त किया, वे अजेय, पालक और वारि रक्षक अग्नि देव विराजित होते हैं।[ऋग्वेद 6.7.7]
Vaeshwanar Agni Dev who created the various abodes in the universe and on being enlightened who created the constellations, created four directions over the earth, that invincible, nurturer and protector of water is seated-established.(29.08.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (8) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :- वैश्वानर; छन्द :- त्रिष्टुप्, जगती।
पृक्षस्य वृष्णो अरुषस्य नू सहः प्र नु वोचं विदथा जातवेदसः।
वैश्वानराय मतिर्नव्यसी शुचिः सोमइव पवते चारुरग्नये
हम लोग सर्वव्यापी, वारि वर्षक और दीप्तिमान् जातवेदा के बल के लिए इस यज्ञ में भली-भाँति से स्तुति करते हैं। वैश्वानर अग्नि देव के सम्मुख नवीन, निर्मल और शोभन स्तोत्र सोमरस के तुल्य निर्गत होता है।[ऋग्वेद 6.8.1]
We worship for the strength of Jat Veda-Agni Dev in the Yagy properly. The new, pure and beautiful Strotr, is evolved like Somras. 
स जायमानः परमे व्योमनि व्रतान्यग्निव्रतपा अरक्षत।
व्य१न्तरिक्षममिमीत सुक्रतुर्वैश्वानरो महिना नाकमस्पृशत्
सत्कर्म पालक वैश्वानर उत्कृष्ट आकाश में प्रकाशित होकर लौकिक तथा वैदिक दोनों कर्मों की रक्षा करते हैं और अन्तरिक्ष का परिमाण करते हैं। शोभन कर्म करने वाले वैश्वानर अपनी महिमा से स्वर्ग का स्पर्श करते हैं।[ऋग्वेद 6.8.2]
The protector of virtuous, both divine and Vaedic deeds, Vaeshwanar asses the quantum of the space. Performer of glorious deeds Vaeshwanar touches the heavens by virtue of his deeds.
व्यस्तभ्नाद्रोदसी मित्रो अद्भुतोऽन्तर्वावदकृणोज्ज्योतिषा तमः।
वि चर्मणीव धिषणे अवर्तयद्वैश्वानरो विश्वमधत्त वृष्ण्यम्
सभी के मित्रभूत और महान् आश्चर्यभूत वैश्वानर ने द्यावा-पृथ्वी को अपने-अपने स्थान पर विशेष रूप से स्तम्भित किया। तेज द्वारा उन्होंने अन्धकार को अन्तर्हित किया। आधारभूत द्यावा-पृथ्वी को उन्होंने पशुचर्म के तुल्य विस्तृत किया। वैश्वानर अग्निदेव समस्त देवों को धारित करते हैं।[ऋग्वेद 6.8.3]
स्तंभित :: निश्चल, निस्तब्ध, सुन्न; benumbed, flabbergasted.
Vaeshwanar, friendly with all, benumbed the earth & heavens. He removed darkness with his aura. He extended-stretched the heavens & the earth like the skin of animals. Vaeshwanar Agni Dev support all demigods-deities.
अपामुपस्थे महिषा अगृभ्णत विशो राजानमुप तस्थुर्ऋग्मियम्।
आ दूतो अग्निमभरद्विवस्वतो वैश्वानरं मातरिश्वा परावतः
महान् मरुतों ने अन्तरिक्ष के बीच में अग्नि देव को धारित किया और मनुष्यों ने पूजनीय स्वामी कहकर इनकी प्रार्थना की। देवों के दूत दूर देश स्थित सूर्य मण्डल से वैश्वानर अग्नि देव को इस लोक में ले आये।[ऋग्वेद 6.8.4]
The great Marud Gan supported Agni Dev in the space and the humans worshiped him. The ambassador of demigods-deities brought Vaeshwanar Agni Dev to earth from the solar system.
युगेयुगे विदथ्यं गृणद्भ्योऽग्ने रयिं यशसं धेहि नव्यसीम्।
पव्येव राजन्नघशंसमजर नीचा नि वृश्च वनिनं न तेजसा
हे अग्नि देव! आप याग योग्य है। आपके उद्देश्य से जो नवीन स्तोत्र का उच्चारण करते हैं, उन्हें आप धन और यशस्वी पुत्र प्रदान करें। हे जरा रहित और राजमान अग्नि देव! आप अपने तेज द्वारा शत्रुओं को उसी प्रकार नष्ट करें, जिस प्रकार से वज्र वृक्ष को नष्ट करता है।[ऋग्वेद 6.8.5]
Hey Agni Dev! You deserve worship. Grant great-glorious sons & wealth to one who recite new Strotr for you. Free from old age, radiant Agni Dev! You destroy the enemies with your power-energy just like the Vajr destroys the trees.
अस्माकमग्ने मघवत्सु धारयानामि क्षत्रमजरं सुवीर्यम्।
वयं जयेम शतिनं सहस्रिणं वैश्वानर वाजमग्ने तवोतिभिः
हे अग्नि देव! हम लोग हविर्लक्षण धन से युक्त हैं। हमें आप अनपहार्य, अक्षय और सुवीर्ण धन प्रदान करें। हे वैश्वानर अग्नि देव! हम आपके द्वारा रक्षित होकर हजारों गुना अन्न लाभ प्राप्त करें।[ऋग्वेद 6.8.6]
अनपहार्य :: विकल्प हीन; indispensable, inalienable.
Hey Agni Dev! We possess the offerings and wealth. Grant us indispensable-inalienable wealth. Hey Vaeshwanar Agni Dev! We will gain thousands times food grains on being protetced by you.
अदब्धेभिस्तव गोपाभिरिष्टेऽस्माकं पाहि त्रिषधस्थ सूरीन्।
रक्षा च नो ददुषां वैशालय प च तारी: स्तवानः
हे तीनों लोकों में स्थित अग्नि देव! किसी के द्वारा भी अहिंसित और रक्षाकारी बल द्वारा आप स्तोताओं और याजकों की रक्षा करें। हे वैश्वानर अग्नि देव! आप हम हव्य दाताओं के बल की रक्षा करें। हम लोग आपका स्तवन करते हैं, आप हमें समृद्धि प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.8.7]
Hey Agni Dev, present in the three abodes! Protect the Stotas & the Ritviz unharmed by any one with protective means-devices. Hey Vaeshwanar Agni Dev! Protect us the people, making offerings. We worship you. Grant us prosperity. (29.08.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (9) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :-  अग्नि; छन्द :- त्रिष्टुप्।
अहश्च कृष्णमहरर्जुनं च वि वर्तेते रजसी वेद्याभिः।
वैश्वानरो जायमानो न राजावातिरज्ज्योतिषाग्निस्तमांसि
कृष्ण वर्ण रात्रि और शुक्ल वर्ण दिवस अपनी-अपनी ज्ञातव्य प्रवृत्ति द्वारा सम्पूर्ण जगत् को रञ्जित करके नियत परिवर्तित होते हैं। वैश्वानर अग्नि देव राजा के सदृश प्रकाशित होकर दीप्ति द्वारा अन्धकार का नाश करते हैं।[ऋग्वेद 6.9.1]
Dark coloured night and white coloured day pervade the whole universe according to their nature. Vaeshwanar Agni Dev shine like a king and remove darkness.
नाहं तन्तुं न वि जानाम्योतुं न यं वयन्ति समरेऽतमानाः।
कस्य स्वित्पुत्र इह वक्त्वानि परो वदात्यवरेण पित्रा
हम तन्तु (सूत्र) अथवा ओतु (तिरश्चीन सूत्र) नहीं जानते हैं एवं सतत् चेष्टा द्वारा जो वस्त्र बुने जाते हैं, वह भी हमें अवगत नहीं है। इस लोक में अवस्थित पिता द्वारा उपदिष्ट होकर किसका पुत्र अन्य जगत् के वक्तव्य वाक्यों को बोलने में समर्थ होता है?[ऋग्वेद 6.9.2]
ओतु :: ताना, बिल्ली, बिड़ाल, मार्जार; thread used in weaving.
ताना-बाना :: cross threads used to weave cloths, vertical & horizontal threads used to weave cloth.
Neither we know about the vertical & horizontal threads used to weave cloth nor the efforts used to weave it. Who's son of a father of this abode, speaks the words-sentences of other abodes?!
स इत्तन्तुं स वि जानात्योतुं स वक्त्वान्यृतुथा वदाति।
य ईं चिकेतदमृतस्य गोपा अवश्चरन्परो अन्येन पश्यन्
एकमात्र वैश्वानर ही तन्तु एवं ओतु को जानते हैं। वे समय-समय पर वक्तव्यों को कहते हैं। जलरक्षक और भूलोक में संचरण करने वाले अग्नि देव अन्तरिक्ष में सूर्यरूप से सम्पूर्ण संसार को प्रकाशित करते हुए इन परिदृश्यमान भूतों को अवगत करते हैं।[ऋग्वेद 6.9.3]
Its only Vaeshwanar who is aware of cross threads of a cloth. He recite such statements time and again. Agni Dev who is the protector of water, moves over the earth, shines in the space like Sun-Sury Dev, is aware of this all.
अयं होता प्रथमः पश्यतेममिदं ज्योतिरमृतं मर्त्येषु।
अयं स जज्ञे ध्रुव आ निषत्तो ऽ मर्त्यस्तन्वा ३ वर्धमानः
हे मनुष्यों! ये वैश्वानर अग्नि देव ही प्रथम होता हैं। आप लोग अग्निदेव का भजन करें। अमरणशील अग्नि देव मरणशील शरीर में जाठर रूप से स्थित रहते हैं। निश्चल, सर्वव्यापी, अक्षय अग्नि शरीर, धारणपूर्वक उत्पन्न और वर्द्धमान् होते हैं।[ऋग्वेद 6.9.4]
अक्षय :: अविनाशी; inexhaustible, unspent.
Hey humans! Vaeshwanar Agni Dev is the first host. Worship Agni Dev. Immortal Agni Dev is present in the stomach-body of person ready to die. Stationary, pervading all, inexhaustible Agni Dev become with form-shape, evolve and grow.
ध्रुवं ज्योतिर्निहितं दृशये कं मनो जविष्ठं पतयत्स्वन्तः।
विश्वे देवाः समनसः सकेता एकं क्रतुमभि वि यन्ति साधु
मन की अपेक्षा भी अतिशय वेगवान् निश्चल ज्योति सुख के मार्गों को प्रदर्शित करने के लिए जंगम जीवों में अन्तर्निहित रहती हैं। सम्पूर्ण देवगण एकमत और समान प्रज्ञ होकर सम्मान के साथ प्रधान कर्मकर्ता वैश्वानर के सम्मुख अर्थात् सामने आते हैं।[ऋग्वेद 6.9.5]
Much faster than the mind, stationary flame, aura-radiance to show the path  is present in the organism. All demigods-deities come to the head priest Vaeshwanar & honour him in one voice.
वि मे कर्णा पतयतो वि चक्षुर्वी ३ दं ज्योतिर्हृदय आहितं यत्।
वि मे मनश्चरति दूरआधीः किं स्विद्वक्ष्यामि किमु नू मनिष्ये
आपके गुण को श्रवण करने के लिए हमारे कर्णद्वय और आपके रूप को देखने के लिए हमारे चक्षु लालायित होते हैं। हृदय कमल में जो ज्योति (बुद्धि) निहित है, वह भी आपके स्वरूप को अवगत करने के लिए उत्सुक होती है। दूरस्थ विषयक चिन्ता से युक्त हमारा हृदय आपके अभिमुख धावित होता है। हम वैश्वानर के किस प्रकार के स्वरूप का वर्णन करें अथवा किस रूप में उन्हें हृदय में धारण करें।[ऋग्वेद 6.9.6]
धावित :: साफ, शुद्ध ; clean, pure.
Our ears are eager-ready to listen to your virtues and our eyes are willing to see you. Our intelligence to is eager to be aware of your embodiment. Our heart possessing all sorts of problems become clean-pure in front of you. How to describe the image of Vaeshwanar and keep him in the heart and keep it in our hearts?!
विश्वे देवा अनमस्यन्भियानास्त्वाम तमसि तस्थिवांसम्।
वैश्वानरोऽवतूतये नोऽमर्त्योऽवतूतये नः
हे वैश्वानर! समस्त देवगण आपको नमस्कार करते हैं। आप अन्धकार में स्थित हैं। वैश्वानर अपनी रक्षा द्वारा हम लोगों की रक्षा करें। अमर अग्नि देव अपनी रक्षा द्वारा हम लोगों की रक्षा करें।[ऋग्वेद 6.9.7]
Hey Vaeshwanar! All demigods-deities salute you. You are present in the darkness. Let Vaeshwanar protect us by protecting himself. Immortal Agni Dev should protect himself and us.(30.08.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (10) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :-  अग्नि; छन्द :- त्रिष्टुप्, द्विपदा, विराट्।
पुरो वो मन्द्रं दिव्यं सुवृक्तिं प्रयति यज्ञे अग्निमध्वरे दधिध्वम्।
पुर उक्थेभिः स हि नो विभावा स्वध्वरा करति जातवेदाः
हे यजमानों! आप लोग इस प्रवर्तमान, विघ्न रहित यज्ञ में स्तवनीय, स्वर्गोद्भव और सब प्रकार से दोष विवर्जित अग्नि देव को स्तोत्रों द्वारा सम्मुख में स्थापित करें; क्योंकि जातवेदा यज्ञ में हम लोगों का समृद्धि विधान करते हैं।[ऋग्वेद 6.10.1]
प्रवर्तमान :: चलने-होने वाले; in operation, unrepealed.
Hey hosts! Install-establish Agni Dev in the Yagy in operation, free from disturbances with Strotrs, since Jatveda make efforts for our progress in the Yagy.
तमु द्युमः पुर्वणीक होतरग्ने अग्निभिर्मनुष इधानः।
स्तोमं यमस्मै ममतेव शूषं घृतं न शुचि मतयः पवन्ते
हे दीप्तिमान् बहुज्वाला विशिष्ट देवों के आह्वान कर्ता अग्नि देव! अपने अवयवभूत अन्य अग्नियों के साथ समिद्धमान होकर आप मनुष्य स्तोता के इस स्तोत्र का श्रवण करें। स्तोता लोग ममता के सदृश अग्नि देव के उद्देश्य से मनोहर स्तोत्रों को घृत के तुल्य अर्पित करते हैं।[ऋग्वेद 6.10.2]
आव्हान  :: बुलाना, निमन्त्रण देना, पुकारना, आमंत्रित करना, मंत्र द्वारा देवता को बुलाना,  किसी नेक अभियान में कर्मरत होने के लिए सामूहिक आमंत्रण; evoke, invite, call. 
Hey radiant, possessing several flames, invoker of specific demigods-deities Agni Dev! Listen-respond to the Strotr of the Stota. The hosts-Stota make offerings of beautiful Strotr like Ghee due to their affection for you. 
पीपाय स श्रवसा मर्त्येषु यो अग्नये ददाश विप्र उक्थैः।
चित्राभिस्तमूतिभिश्चित्रशोचिर्वजस्य साता गोमतो दधाति
जो यजमान स्तोत्र के साथ अग्नि में हव्य प्रदान करता है, वह मनुष्यों के बीच में अग्निदेव द्वारा समृद्धि प्राप्त करता है। विचित्र दीप्ति वाले अग्नि देव! विचित्र या आश्चर्यभूत रक्षा के द्वारा उस याजकगण को गौयुक्त गोष्ठ के भोग का अधिकारी बनाते हैं।[ऋग्वेद 6.10.3]
The Ritviz who makes offerings with the recitation of Strotr in the fire is granted prosperity-progressed by Agni Dev. Hey Agni Dev, with amazing brilliance! You make the Ritviz owner of cow shed through wonderful protection.
आ यः प्रपौ जायमान उर्वी दूरेदृशा भासा कृष्णाध्वा।
अध बहु चित्तम ऊर्म्यायास्तिरः शोचिषा ददृशे पावकः
प्रादुर्भूत होकर कृष्णवर्त्मा अग्नि देव ने दूर से ही दृश्यमान दीप्ति द्वारा विस्तीर्ण द्यावा-पृथ्वी को पूर्ण किया। वह पावक अग्नि देव रात्रि के घनघोर अन्धकार को अपनी ज्वालाओं द्वारा नष्ट करते हैं और परिदृश्यमान होते हैं।[ऋग्वेद 6.10.4]
वर्त्म (वर्त्मा) :: पलक; eyelid, blepharon.
After evolution Agni Dev with black eyelids covered the earth & heavens with his light. Agni Dev removes dense-deep darkness with his flames and make every thing visible.
नू नश्चित्रं पुरुवाजाभिरूती अग्ने रयिं मघवद्भ्यश्च धेहि।
ये राधसा श्रवसा चात्यन्यान्त्सुवीर्येभिश्चाभि सन्ति जनान्
हे अग्नि देव! हम लोग हविर्लक्षण धन से युक्त हैं। हमें आप शीघ्र ही बहुत अन्न और रक्षा के साथ ही विचित्र धन प्रदान करें। धन, अन्न और उत्कृष्ट वीर्य द्वारा अन्य मनुष्यों को जो पराजित कर सके, ऐसा पुत्र हमें प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.10.5]
Hey Agni Dev! We possess various offerings and riches. Protect us and grant us a lots of food grains and amazing wealth. Grant us a son with wealth, food grains and excellent valour-power, who can not be defeated by other people.
इमं यज्ञं चनो धा अग्न उशन्यं त आसानो जुहुते हविष्मान्।
भरद्वाजेषु दधिषे सुवृक्तिमवीर्वाजस्य गध्यस्य सातौ
हे अग्नि देव! बैठकर जो हव्य युक्त याजकगण आपके लिए हवन करता है, आप हव्याभिलाषी होकर उस यज्ञ में आहुति को ग्रहण करें। भरद्वाज वंशीयों के निर्दोष स्तोत्र को ग्रहण करें। उनके प्रति अनुग्रह करें, जिससे वे नाना प्रकार का अन्न प्राप्त कर सकें।[ऋग्वेद 6.10.6]
Hey Agni Dev! Accept the offerings of the Ritviz in the Yagy, who possess offerings and conduct Hawan. Accept the flawless Strotr of the descendants of Bhardwaj Rishi. Be kind to them, so that they are able to have various kinds of food grains.
विद्वेषांसीनुहि वर्धयेळां मदेम शतहिमाः सुवीराः
हे अग्नि देव! हमारे शत्रुओं को नष्ट करें। हम लोगों के अन्न को वर्द्धित करें। हम लोग शोभन पुत्र-पौत्रादि से युक्त होकर सौ हेमन्तपर्यन्त सुख का भोग कर सकें।[ऋग्वेद 6.10.7]
Hey Agni Dev! Destroy our enemies. Grow our food grain stock. Let us survive for hundred years comfortably, with decent-lovely sons & grandsons.(31.08.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (11) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :-  अग्नि; छन्द :- त्रिष्टुप्।
यजस्व होतरिषितो यजीयानग्ने बाधो मरुतां न प्रयुक्ति।
आ नो मित्रावरुणा नासत्या द्यावा होत्राय पृथिवी ववृत्याः
हे देवों के आह्वानकारी तथा यजन करने वालों में श्रेष्ठ! हम लोग आपकी प्रार्थना करते हैं। आप अभी हम लोगों के इस आरब्ध यज्ञ में शत्रु बाधक मरुतों का यजन करें। आप मित्र, वरुण, अश्विनी कुमारों को और द्यावा-पृथ्वी को हमारे यज्ञ में आहूत करें।[ऋग्वेद 6.11.1]
आरब्ध :: आरंभ किया हुआ, शुरू किया हुआ; begun, started.
Hey invoker of demigods-deities and the best amongest Ritviz! We worship you. Invite Marud Gan who restrain the enemies, in our Yagy which has begun. Invoke Mitr-Varun, Ashwani Kumars and the earth-heavens in our Yagy.
त्वं होता मन्द्रतमो नो अध्रुगन्तर्देवो विदथा मर्त्येषु।
पावकया जुह्वा ३ वह्निरासाग्ने यजस्व तन्वं १ तव स्वाम्
हे अग्रि देव! आप अतिशय स्तवनीय, हम लोगों के प्रति द्रोह रहित और दानादि गुण युक्त है। आप हव्य वहन करने वाले हैं। आप शुद्धि विधायक और देवों के मुख स्वरूप ज्वाला के द्वारा अपने शरीर का पोषण करें।[ऋग्वेद 6.11.2]
द्रोह :: दुष्टता, हानिकरता, द्वेष, डाह, दुष्ट भाव, बदख़्वाहता, नुक़सान देहता, कपट, नमक हरामी, बेवफ़ाई, राज-द्रोहिता; treachery, malignancy, disloyalty, malevolence.
Hey Agni Dev! You are highly worshipable and possess the quality of donation without treachery, malignancy. You are the mouth of the demigods-deities,  nourish your body and maintain purity-virtues, piousness.
धन्या चिद्धि त्वे धिषणा वष्टि प्र देवाञ्जन्म गृणते यजध्यै।
वेपिष्ठो अङ्गिरसां यद्ध विप्रो मधुच्छन्दो भनति रेभ इष्टौ
हे अग्नि देव! धनाभिलाषिणी स्तुति आपकी कामना करती हैं; क्योंकि आपके प्रादुर्भाव से इन्द्रादि देवों के यजन में याजकगण सफल होते हैं। ऋषियों के बीच में अंगिरा प्रार्थना के अतिशय प्रेरक हैं और मेधावी भारद्वाज यज्ञ में हर्ष कारक स्तोत्रों का उच्चारण करते हैं।[ऋग्वेद 6.11.3]
Hey Agni Dev! We pray with the desire of wealth. The Ritviz become successful in the worship of Indr Dev etc. demigods-deities, by virtue of your evolution. Amongest the sages Angira's prayers are inspiring. Intelligent Bhardwaj recite Strotr which produce happiness-pleasure.
अदिद्युतत्स्वपाको विभावाने यजस्व रोदसी उरूची।
आयुं न यं नमसा रातहव्या अञ्जन्ति सुप्रयसं पञ्च जनाः
बुद्धिमान् और दीप्तिमान् अग्नि देव भली-भाँति से शोभा पाते हैं। हे अग्नि देव! आप विस्तृत द्यावा-पृथ्वी का हव्य द्वारा पूजन करें। आप शोभन हव्य युक्त है। मनुष्य याजकगण के समान अग्नि देव को हवि देने वाले ऋत्विक् याजकगणादि हव्य द्वारा तृप्त करते हैं।[ऋग्वेद 6.11.4]
शोभा :: सौंदर्य, सुंदरता, सौष्ठव, सौम्यता, छवि, महिमा, प्रताप, प्रतिष्ठा, गर्व, यश, चमक, द्युति, आभा, आलोक, तेज; glory, beauty, lustre.
शोभन :: ललित,  शोभनीय, पयुक्त, उपयुक्त, स्वच्छ, संगत; suitable, seemly, decent, nice.
Intelligent and radiant Agni Dev is properly glorified. Hey Agni Dev! Worship vast earth-heavens with offerings. You possess nice offerings. Humans satisfy Agni Dev by making offerings, like the Ritviz.
वृञ्जे ह यन्नमसा बर्हिरग्नावयामि स्रुग्घृतवती सुवृक्तिः।
अम्यक्षि सद्म सदने पृथिव्या अश्रायि यज्ञः सूर्ये न चक्षुः
जब अग्नि देव के समीप हव्य के साथ कुश आनीत होता है एवं दोष वर्जित घृत पूर्ण स्रुक कुश के ऊपर रखा जाता है, तब भूमि के ऊपर अग्नि देव के लिए आधारभूत वेदि निर्मित की जाती है। जिस प्रकार से सूर्य देव से नेत्र आश्रय पाते हैं, उसी प्रकार याजकगण का यज्ञकार्य पूर्ण होता है।[ऋग्वेद 6.11.5]
Kush Mat is laid near the offerings and defectless Struk full of Ghee is kept over the Kush, Vedi is made over the site-earth for the sake of Agni Dev. The manner in which the eyes obtain shelter from the Sun, similarly the Yagy is accomplished by the Ritviz.
दशस्या नः पुर्वणीक होतर्देवेभिर अग्निभिरिधानः।
रायः सूनो सहसो वावसाना अति स्त्रसेम वृजनं नांहः
हे बहुज्वाला विशिष्ट देवों के आह्वान कर्ता अग्नि देव! आप दीप्तिशाली अन्य अग्नियों के साथ प्रदीप्त होकर हम लोगों को धन प्रदान करें। हे बल पुत्र ! हम लोग हवि द्वारा आपको आच्छादित करते हैं। शत्रुवत् पाप से हम लोगों को मुक्त करें।[ऋग्वेद 6.11.6]
Hey invoker of  deities Agni Dev, possessing specific flames with multiple branches! Hey radiant Agni dev grant us wealth along with other Agnis. Hey son of Bal! We cover you with offerings. Save us from the sin as an enemy.(31.08.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (12) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :-  अग्नि; छन्द :- त्रिष्टुप्।
मध्ये होता दुरोणे बर्हिषो राळग्निस्तोदस्य रोदसी यजध्यै।
अयं स सूनुः सहस ऋतावा दूरात्सूर्यो न शोचिषा ततान
देवों के आह्वानकारी और यज्ञ के अधिपति अग्नि देव द्यावा-पृथ्वी का यजन करने के लिए याजकगण के घर में उपस्थित होते हैं। यज्ञ सम्पन्न, बल पुत्र अग्नि देव दूर से ही दीप्ति के द्वारा सम्पूर्ण जगत् को सूर्य देव के सदृश प्रकाशित करते हैं।[ऋग्वेद 6.12.1]
Invoker of the demigods-deities, deity of the Yagy Agni Dev present himself at the house of the Ritviz to worship the earth-heavens. Accomplisher of the Yagy, son of Bal, Agni Dev lit the whole universe like the Sun-Sury Dev from a distance.
आ यस्मिन्त्वे स्वपाके यजत्र यक्षद्राजन्त्सर्वतातेव नु द्यौः।
त्रिषधस्थस्ततरुषो न जंहो हव्या मघानि मानुषा यजध्यै
हे यागार्ह, दीप्ति सम्पन्न अग्नि देव! आप बुद्धि सम्पन्न है। सम्पूर्ण याजकगण आपको आग्रह पूर्वक प्रचुर हव्य समर्पण करते हैं। आप तीनों लोकों में अवस्थित होकर मनुष्य के द्वारा दिए गए उत्कष्ट हव्य को देवताओं के समीप वहन करने के लिए सूर्य देव के सदृश वेगशाली हों।[ऋग्वेद 6.12.2] 
Desirous of Yagy, radiant Agni Dev! You possess intelligence. Every Ritviz insist upon making offerings to you. You should pervade the three abodes and carry the excellent offerings-oblations to the demigods-deities with the speed of Sun.
तेजिष्ठा यस्यारतिर्वनेराट् तोदो अध्वन्न वृधसानो अद्यौत्।
अद्रोघो न द्रविता चेतति त्मन्नमर्त्योऽवर्त्र ओषधीषु
जिनकी सर्वव्यापिनी और अतिशय तेजस्विनी ज्वाला वन में दीप्त होती है, वे प्रवृद्धमान् अग्नि देव सूर्य देव के सदृश अन्तरिक्ष मार्ग में विराजमान होते हैं। सभी का कल्याण करने वाले वायु देव के तुल्य अक्षय और अनिवार्य औषधियों के बीच में वेग पूर्वक गमन करते हैं और अपनी दीप्ति द्वारा सम्पूर्ण जगत् को प्रकाशित करते हैं।[ऋग्वेद 6.12.3]
Progressive Agni Dev whose bright flames shine in the forests, establish himself in the space like the Sun. He move through the necessary imperishable medicines like Pawan Dev for the benefit of all and lit the entire universe.
सास्माकेभिरेतरी न शूषैरग्निः ष्टवे दम आ जातवेदाः।
द्र्वन्नो वन्वन् क्रत्वा नार्वोस्त्रः पितेव जारयायि यज्ञैः
जातवेदा अग्नि देव याजकों के सुख दायक स्तोत्र के तुल्य हम लोगों के स्तोत्र द्वारा हमारे यज्ञ गृह में प्रार्थित होते हैं। याजक गण द्रुमभोजी, अरण्याश्रयकारी और बछड़ों के पिता बैल के सदृश क्षिप्र कर्मकारी अग्नि देव का स्तवन करते हैं।[ऋग्वेद 6.12.4]
द्रुम :: वृक्ष, पेड़; trees.
क्षिप्र :: सुश्रुत के अनुसार शरीर के एक सौ सात मर्म स्थानों में से एक, जो अँगूठे और दूसरी उँगली के बीच में है, एक मुहूर्त का पंद्रहवाँ भाग; a fraction of time.
Jatveda Agni Dev is worshiped by us in our Yagy house with the Strotr like the pleasure yielding Strotr of the Ritviz. The Ritviz worship Agni Dev who is the eater of trees, protector of forests, like the calf for the bull, acts quickly.
अध स्मास्य पनयन्ति भासो वृथा यत्तक्षदनुयाति पृथ्वीम्।
सद्यो यः स्पन्द्रो विषितो धवीयानृणो न तायुरति धन्वा राट्
जब अग्नि देव अनायास वनों को भस्म करके पृथ्वी के ऊपर विस्तृत होते हैं, तब स्तोता लोग इस लोक में अग्नि देव की शिखाओं का स्तवन करते हैं। अप्रतिहत भाव से विचरण करने वाले और चोर के तुल्य द्रुतगमन करने वाले अग्निदेव मरुभूमि के ऊपर विराजित होते हैं।[ऋग्वेद 6.12.5]
When Agni Dev burn the forests instantaneously and spread over the earth, then the Stotas worship his flames. Agni Dev who move continuously like a thief quickly and establish himself over the deserts.
स त्वं नो अर्वन्निदाया विश्वेभिर अग्निभिरिधानः।
वेषि रायो वि यासि दुच्छुना मदेम शतहिमाः सुवीराः
हे शीघ्र गमन करने वाले अग्नि देव! आप समस्त अग्नियों के साथ प्रज्वलित होकर हम लोगों की निन्दा से रक्षा करें। आप हम लोगों को धन प्रदान करें। दुःखदायक शत्रुओं को नष्ट करें। हम लोग शोभन पुत्र-पौत्र से युक्त होकर सौ हेमन्त अर्थात् सौ वर्ष पर्यन्त सुख का भोग करें।[ऋग्वेद 6.12.6]
Hey quickly moving Agni Dev! Ignite with all of your forms and protect us from reproach. Grant us money. Destroy the painful enemies. Let us enjoy-survive for hundred years with our sons & grandsons.(01.09.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (13) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :-  अग्नि; छन्द :- त्रिष्टुप्।
त्वद्विश्वा सुभग सौभगान्यग्ने वि यन्ति वनिनो न वयाः।
श्रुष्टी रयिर्वाजो वृत्रतूर्ये दिवो वृष्टिरीड्यो रीतिरपाम्
हे शोभन धन वाले अग्नि देव! विविध प्रकार के धन आपसे ही उत्पन्न हुए हैं। जिस प्रकार से वृक्ष से विविध प्रकार की शाखाएँ उत्पन्न होती हैं। आपसे पशु समूह शीघ्र ही उत्पन्न होता है। संग्राम में शत्रुओं को जीतने के लिए बल भी आपसे ही उत्पन्न होता है। अन्तरिक्ष से वर्षा आपसे ही उत्पन्न होती है; इसलिए आप सभी के स्त्वनीय हैं।[ऋग्वेद 6.13.1]
Hey possessor of glorious wealth, Agni Dev! All sorts of wealth has emanated from you, just like the branches of the trees. The groups of animals evolve out of you. The strength of winning the enemy is produced by you. Rains are caused by you in the space. Hence, you deserve worship from all.
त्वं भगो न आ हि रत्नमिषे परिज्मेव क्षयसि दस्मवर्चाः।
अग्ने मित्रो न बृहत ऋतस्यासि क्षत्ता वामस्य देव भूरेः
हे अग्नि देव! आप संभजनीय है। आप हमें रमणीय धन प्रदान करें। हे दर्शनीय दीप्ति! आप सर्वव्यापी वायु देव के सदृश सभी जगह उपस्थित हों। हे दीप्तिमान् अग्नि देव! आप मित्र के सदृश प्रचुर यज्ञ और पर्याप्त वाञ्छित धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.13.2]
Hey Agni Dev! You are worshiped by all. Grant us comfortable wealth. Hey beautiful flame-fire! You should be present like all pervading Vayu Dev every where. Hey radiant Agni Dev! Grant us desired money and sufficient Yagy like a friend.
स सत्पतिः शवसा हन्ति वृत्रमग्ने विप्रो वि पणेर्भर्ति वाजम्।
यं त्वं प्रचेत ऋतजात राया सजोषा नप्त्रायां हिनोषि
हे प्रकृष्ट ज्ञान सम्पन्न और यज्ञ के लिए समुद्भूत अग्नि देव! आप जल पुत्र वैद्युतानि के साथ संगत होकर धन के लिए जिस व्यक्ति को प्रेरित करते हैं, वह साधुओं का रक्षाकारी और बुद्धिमान् व्यक्ति बल द्वारा शत्रुओं का संहार करता है एवं वही पणि को नष्ट करता है।[ऋग्वेद 6.13.3]
समुद्भूत :: जात, उत्पन्न; उभरा हुआ; embossed, gibbous, protuberant, pulvinate.
Hey possessor of enlightenment and embossed for the Yagy Agni Dev! When you associate with the lightening and rains and inspire an intelligent person, he become protector of the sages and destroy the enemies and Pani.
यस्ते सूनो सहसो गीर्भिरुक्थैर्यज्ञैर्मर्तो निशितिं वेद्यानट्।
विश्वं स देव प्रति वारमने धत्ते धान्यं १ पत्यते वसव्यैः
हे बल पुत्र और द्युतिमान् अग्नि देव! जो याजकगण स्तुति, उपासना और यज्ञ द्वारा यज्ञ भूमि आपकी तीक्ष्ण दीप्ति को आकृष्ट करता है; वह मनुष्य समस्त प्राचुर्य धान्य धारित करते हुए धन से युक्त होता है।[ऋग्वेद 6.13.4]
Hey radiant son of Bal, Agni Dev! A Ritviz who worship, recite prayers and attract your sharp flames in the Yagy over the Yagy site, become possessor of a lot of food grains and wealth.
ता नृभ्य आ सौश्रवसा सुवीराग्ने सूनो सहसः पुष्यसे धाः।
कृणोषि यच्छवसा भूरि पश्वो वयो वृकायारये जसुरये
हे बल पुत्र अग्नि देव! आप हम लोगों के पोषणार्थ शत्रुओं से लाकर उत्कृष्ट पुत्रों के साथ शोभन अन्न प्रदान करें। द्वेषकर्ता शत्रुओं से बल द्वारा जो पशु सम्बन्धी दध्यादि अन्न आप ग्रहण करते हैं, वह प्रचुर मात्रा में हमें प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.13.5]
दध्यादि :: गोरस अर्थात्‌ गौ से मिले द्रव्य; milk products obtained from the cows like milk, butter, curd, ghee.
Hey son of Bal, Agni Dev! Grant us excellent wealth for nourishment taken from the enemies; excellent sons and good quality food grains. Give us the food grains taken from the envious enemies by force and the animals related cow products like milk, food grains in sufficient quantity.
वद्मा सूनो सहसो नो विहाया अग्ने तोकं तनयं वाजि नो दाः।
विश्वाभिर्गीर्भिरभि पूर्तिमश्यां मदेम शतहिमाः सुवीराः
हे बल पुत्र अग्नि देव! आप बलशाली हैं। आप हम लोगों के उपदेष्टा होवें। हम लोगों को अन्न के साथ पुत्र और पौत्र प्रदान करें। हमारी स्तुतियों के द्वारा हमारा मनोरथ पूर्ण करें। हम लोग शोभन पुत्र-पौत्रों के साथ सौ हेमन्त अर्थात् सौ वर्ष पर्यन्त सुख का भोग करें।[ऋग्वेद 6.13.6]
उपदेष्टा :: उपदेशक, शिक्षक, गुरु, आचार्य; guide, teacher, preacher, preceptorial.
Hey Agni Dev, son of Bal! You are mighty. You should become our preacher. Grant us food grains with sons & grand sons. Accomplish our desire through our prayers. We should survive for hundred years with our sons & grandsons comfortably.(01.09.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (14) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :- अग्नि; छन्द :- अनुष्टुप् शक्वरी।
अग्ना यो मर्त्यो दुवो धियं जुजोष धीतिभिः।
भसन्नु ष प्र पूर्व्य इषं वुरीतावसे
जो मनुष्य स्तोत्र के साथ अग्नि देव की परिचर्या करता है और यज्ञादि कार्य करता है, वह मनुष्यों के बीच में शीघ्र ही प्रधान होकर प्रकाशमान होता है। अपने पुत्र आदि की रक्षा के लिए वह शत्रुओं के समीप प्रचुर अन्न प्राप्त करता है।[ऋग्वेद 6.14.1]
The person who serve Agni Dev with the recitation of Strotr and perform Yagy-Hawan etc. becomes a leader and aurous quickly. He gets sufficient food grains for the safety of his son, even though very near to the enemies.
अग्निरिद्धि प्रचेता अग्निर्वेधस्तम ऋषिः।
अग्निं होतारमीळते यज्ञेषु मनुषो विशः
एक मात्र अग्निदेव ही प्रकृष्ट ज्ञान से युक्त है और दूसरा कोई भी नहीं है। वे यज्ञ कार्य के अतिशय निर्वाहक और सर्व द्रष्टा है। याजक गणों के पुत्र आदि यज्ञ में अग्नि देव को देवों के आह्वानकर्ता कहकर स्तवन करते हैं।[ऋग्वेद 6.14.2]
None other than Agni Dev has excellent enlightenment-knowledge. He perform-conduct the Yagy related deeds and is aware of every thing. The sons of Ritviz worship Agni Dev as the invoker of demigods-deities in the Yagy.
नाना ह्य १ ग्नेऽवसे स्पर्धन्ते रायो अर्यः।
तूर्वन्तो दस्युमायवो व्रतैः सीक्षन्तो अव्रतम्
हे अग्नि देव! शत्रुओं का धन उनके निकट से पृथक होकर आपके स्तोताओं की रक्षा करने के लिए परस्पर स्पर्द्धा करते हैं। शत्रु विजयी आपके स्तोता लोग आपका यज्ञ करके व्रत विरोधियों को पराजित करने की इच्छा करते हैं।[ऋग्वेद 6.14.3]
Hey Agni Dev! The wealth of the enemies desert them and protect the Stotas competing with one another. The Stotas who win the enemy perform Yagy for your sake and wish to defeat the opponents of Vrat, Yagy, Hawan etc.
अग्निरप्सामृतीषहं वीरं ददाति सत्पतिम्।
यस्य त्रसन्ति शवसः संचक्षि शत्रवो भिया
अग्नि देवता स्तोताओं को सुन्दर कार्य करने वाला, शत्रु विजयी और साधु जनोचित कार्यों का पालन करने वाला पुत्र प्रदान करते हैं, जिसे देखकर ही शत्रु गण उसके बल से भयभीत होकर कम्पायमान होने लगते हैं।[ऋग्वेद 6.14.4]
Agni Dev grant son to those who are virtuous, pious, righteous, wins the enemy and perform welfare of the society. The enemy start trembling on sighting-seeing him.
अग्निर्हि विद्मना निदो देवो मर्तमुरुष्यति।
सहावा यस्यावृतो रयिर्वाजेष्ववृतः
जिस मनुष्य का हव्य रूप धन यज्ञ में राक्षसों के द्वारा निर्विघ्न होता है और अन्यान्य याजक गणों के द्वारा असंभक्त होता है, बलशाली और ज्ञान सम्पन्न अग्नि देव उस याजक गण की निन्दकों से रक्षा करते हैं।[ऋग्वेद 6.14.5]
Mighty & enlightened Agni Dev protect the Ritviz who's riches in the form of offerings-oblation are safe and unshared by other Stotas in the Yagy from demons and protect him from the cynic.
अच्छा नो मित्रमहो देव देवानग्ने वोचः सुमतिं रोदस्योः। वीहि स्वस्तिं सुक्षितिं दिवो नृद्विषो अंहांसि दुरिता तरेम ता तरेम तवावसा तरेम
हे अनुकूल दीप्ति वाले, दानादि गुण युक्त और द्यावा-पृथ्वी में वर्त्तमान अग्नि देव! आप देवों के निकट हम लोगों की प्रार्थना का उच्चारण करें। हम स्तोताओं को शोभन निवास युक्त सुख में ले जावें। हम लोग शत्रुओं, पापों और कष्टों का अतिक्रमण करें। हम लोग जन्मान्तर में किए हुए पापों से मुक्त हों। हे अग्नि देव! हम आपकी रक्षा के द्वारा शत्रुओं से उद्धार पावें।[ऋग्वेद 6.14.6]
Hey Agni Dev possessor of favourable radiance, charity and present over the earth & heavens! Recite over prayers-sacred hymns before the Deities-demigods. Take us to residence with comforts-pleasure. We should over power the sins, enemies and troubles-tortures. Hey Agni Dev! Let us get reprieve-protection from the enemy by virtue of your asylum.(02.09.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (15) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :-  अग्नि; छन्द :- त्रिष्टुप् शक्वरी, जगती, अतिशक्वरी, बृहती,
अनुष्टुप्।
इममू षु वो अतिथिमुषर्बुधं विश्वासां विशां पतिमृञ्जसे गिरा।
वेतीद्दिवो जनुषा कच्चिदा शुचिर्ज्योत्चिदत्ति गर्भो यदच्युतम्
हे भरद्वाज ऋषि! आप उषा काल में प्रबुद्ध, लोक रक्षक और जन्म से ही अथवा स्वभाव से ही शुद्ध या निर्मल अतिथि रूप अग्नि देव को प्रसन्न करें। अग्नि देव सब समय स्वर्ग से अवतीर्ण होकर अक्षय हव्य का भक्षण करते हैं।[ऋग्वेद 6.15.1]
Hey Bhardwaj Rishi! Make happy Agni Dev early in the morning with the on set of dawn-Usha Kal,  as a pious-virtuous guest, who is a enlightened & a protector. Agni Dev descent from the heaven and accept-eat the offerings.
मित्रं न यं सुधितं भृगवो दधुर्वनस्पतावीड्यमूर्ध्वशोचिषम्। स त्वं सुप्रीतो वीतहव्ये अद्भुत प्रशस्तिभिर्महयसे दिवेदिवे
हे अद्भुत अग्नि देव! आप अरणि के बीच में निहित, स्तुति वाही और ऊर्ध्व ज्वाला वाले हैं। आपको भृगु लोग घर में मित्र तुल्य स्थापित करते हैं। वीत हव्य अथवा भरद्वाज प्रतिदिन उत्कृष्ट स्तोत्र द्वारा आपकी पूजा करते हैं। आप उनके प्रति प्रसन्न होवें।[ऋग्वेद 6.15.2]
Hey Amazing Agni Dev! You are present-embedded in the wood, carrier of prayers having flames rising up wards. The descendants of Bhragu Rishi establish you as a friend. Bhardwaj Rishi worship you every day with excellent Strotr. Be happy with them.
स त्वं दक्षस्यावृको वृधो भूरर्यः परस्यान्तरस्य तरुषः। रायः सूनो सहसो मर्त्येष्वा छर्दिर्यच्छ वीतहव्याय सप्रथो भरद्वाजाय सप्रथः
हे अग्नि देव! जो यागादि के अनुष्ठान में निपुण है, उसे आप समृद्ध बनाते हैं और दूरस्थ तथा समीपस्थ शत्रुओं से उसकी रक्षा करते है। हे महान अग्नि देव! आप मनुष्यों के बीच में भरद्वाज वंशीय को धन, अन्न और गृह प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.15.3]
Hey Agni Dev! You make the person who is expert in the Yagy-Hawan etc., rich-prosperous and protect him the enemy either near or far. Hey great Agni Dev! grant wealth, food grains and houses to the descendants of Bhardwaj Rishi.
द्युतानं वो अतिथिं स्वर्णरमग्निं होतारं मनुषः स्वध्वरम्। विप्रं न द्युक्षवचसं सुवृक्तिभिर्हव्यवाहमरतिं देवमृञ्जसे
हे वीतहव्य! आप शोभन स्तुति द्वारा हव्य वाहक, दीप्तिमान्, अतिथिवत पूजनीय; स्वर्ग प्रदर्शक मनु के यज्ञ में देवों का आह्वान करने वाले यज्ञ सम्पादक, मेधावी और ओजस्वी वक्ता अग्नि देव को प्रसन्न करें।[ऋग्वेद 6.15.4]
वीतहव्य :: वह जो यज्ञ में आहुति या हव्य देता हो, a person who make offerings in a Yagy-Hawan, Agni Hotr.
ओजस्वी :: रोचक, तीव्र, तीक्ष्ण, रंगीन, जीवित, सजीव, जीवंत, सीधा प्रसारण, शक्तिपूर्ण; energetic, vigorous, live, lively.
Hey host making offerings in the Yagy! You use beautiful prayers, for Manu, who is radiant, worshipable as a guest, guides to heavens & make Agni Dev happy who is performer of Yagy, invoke the demigods-deities in the Yagy, intelligent and energetic orator.
पावकया यश्चितयन्त्या कृपा क्षामन्नुरुच उषसो न भानुना। तूर्वन्न यामन्नेतशस्य नू रण आ यो घृणे न ततृषाणो अजरः
हे वीतहव्य! जिस प्रकार से उषा प्रकाश से शोभित होती है, उसी प्रकार जो पृथ्वी के ऊपर पवित्रता कारक और चेतना विधायक दीप्ति के द्वारा विराजित होते हैं, जो युद्ध में शत्रु संहारकारक वीर के सदृश एतश ऋषि की सहायता करने के लिए शीघ्र प्रदीप्त हुए और जो सर्वभक्षण शील हैं, उन्हें आप प्रसन्न करें।[ऋग्वेद 6.15.5]
Hey host making offerings in the Yagy! Make Agni Dev happy who cause piousness, consciousness, helps Atash Rishi in the war destroying the enemy, ignites quickly and eats every thing.
अग्निमग्निं वः समिधा दुवस्यत प्रियंप्रियं वो अतिथिं गृणीषणि। उप वो गीर्भिरमृतं विवासत देवो देवेषु वनते हि वार्यं देवो देवेषु वनते हि नो दुवः
हे हमारे स्तोताओं! अत्यन्त प्रिय और अतिथि के सदृश पूजनीय अग्नि देव का ईंधन द्वारा आप लोग निरन्तर पूजन करें। देवों के बीच में दानादि गुण सम्पन्न अग्निदेव ईंधन ग्रहण करते हैं और हम लोगों का पूजन ग्रहण करते हैं, इसलिए अविनश्वर अग्नि देव के सम्मुख होकर स्तोत्र द्वारा उनकी पूजा करें।[ऋग्वेद 6.15.6]
Hey, our Stotas! Keep on praying worshipable Agni Dev continuously, providing fuel-wood, offerings ghee etc. like the dearest guest. Agni Dev a donor who accept our prayers & fuel. Let us worship immortal Agni Dev.(03.09.2023)
समिद्धमग्निं समिधा गिरा गृणे शुचिं पावकं पुरो अध्वरे ध्रुवम्।
विप्रं होतारं पुरुवारमद्रुहं कविं सुम्नैरीमहे जातवेदसम्
हम समिधाओं से प्रदीप्त अग्नि देव को स्तुतियों द्वारा प्रसन्न करते हैं। स्वतः शुद्ध, पवित्रता-विधायक और निश्चल अग्नि देव को हम यज्ञ में स्थापित करते हैं। ज्ञान सम्पन्न देवों को बुलाने वाले सभी के द्वारा वरणीय, सदाशय सम्पन्न, सर्व दर्शी और सर्व भूतज्ञ अग्नि देव का हम सुखकर स्तोत्रों से भजन करते हैं अथवा अग्नि देव के निकट धन के लिए प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 6.15.7]
We make Agni Dev lit with woods, happy with the recitation of sacred hymns. We establish Agni Dev who is pure, pious and stationary, in the Yagy. We worship Agni Dev for wealth, who is the invoker of the demigods-deities, acceptable to every one, watches every thing, aware of every event in the past with pleasant Strotr. 
त्वां दूतमग्ने अमृतं युगेयुगे हव्यवाहं दधिरे पायुमीड्यम्।
देवासश्च मर्तासश्च जागृविं विभुं विश्पतिं नमसा नि षेदिरे
हे अग्नि देव! देवता और मनुष्य आपको दूत बनाते हैं। आप अमरणशील, प्रत्येक समय में हव्य वहन करने वाले, पालक और स्तवनीय हैं। वे दोनों (वीतहव्य और भरद्वाज) जागरणशील, व्याप्त और प्रजाओं के पालक अग्नि देव को हव्य द्वारा स्थापित करते हैं।[ऋग्वेद 6.15.8]
Hey Agni Dev! Both humans & demigods-deities appoint you as their ambassador. You are immortal, carry offerings every time, nurturer and worshipable. Both Veeethavy & Bhardwaj establish Agni Dev for the awake-alert, pervading all and nurturer of the populace with offerings-oblations.
विभूषन्नग्न उभयाँ अनु व्रता दूतो देवानां रजसी समीयसे।
यत्ते धीतिं सुमतिमावृणीमहेऽध स्मा नस्त्रिवरूथः शिवो भव
हे अग्नि देव! आप देवों और मनुष्यों को विशेष प्रकार से अलंकृत करके और यज्ञ में देवों का दूत होकर द्यावा-पृथ्वी में सञ्चरण करते हैं। हम लोग शोभन स्तुति द्वारा और यज्ञ द्वारा आपका सम्भजन करते हैं; इसलिए आप त्रिभुवनवर्त्ती होकर हमें सुख प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.15.9]
Hey Agni Dev! You specifically decorate the demigods & humans, become ambassador of demigods-deities and move over the earth & heavens. We worship you with beautiful prayers in the Yagy, hence your grant us comfort-pleasure, establishing yourself in the three abodes.
तं सुप्रतीकं सुदृशं स्वञ्चमविद्वांसो विदुष्टरं सपेम।
स यक्षद्विश्वा वयुनानि विद्वान्प्र हव्यमग्निरमृतेषु वोचत्
हम अल्पबुद्धि वाले सर्वज्ञ, शोभनाङ्ग, मनोज्ञमूर्ति और गमनशील अग्नि देव का परिचरण करते हैं। ज्ञातव्य वस्तुओं को जानने वाले अग्नि देव देवों का यजन करें और देवों के बीच में हमारे हव्य को प्रचारित करें।[ऋग्वेद 6.15.10]
We the people with little intelligence, adore wise-enlightened, beautiful organed and movable-dynamic Agni Dev. Let Agni Dev aware of the noticeable goods-materials, worship the demigods-deities and distribute the our offerings amongest them.
तमग्ने पास्युत तं पिपर्षि यस्त आनट् कवये शूर धीतिम्।
यज्ञस्य वा निशितिं वोदितिं वा तमित्पृणक्षि शवसोत राया
हे शौर्य सम्पन्न अग्नि देव! आप दूरदर्शी हैं। जो पुरुष आपका स्तवन करता है, आप उसकी रक्षा करते हैं और उसका मनोरथ भी पूर्ण करते हैं। जो यज्ञसम्पादन करता है और जो हव्य प्रदान करता है, उसको आप बल और धन से पूर्ण करते हैं।[ऋग्वेद 6.15.11]
Hey mighty Agni Dev! You are far sighted. You protect the person who worship you and accomplish his desires. One who conduct Yagy and make offerings is granted strength and wealth by you.
त्वमग्ने वनुष्यतो नि पाहि त्वमु नः सहसावन्नवद्यात्।
सं त्वा ध्वस्मन्वदभ्येतु पाथः सं रयिः स्पृहयाय्यः सहस्त्री
हे अग्नि देव! आप शत्रुओं से हम लोगों की रक्षा करें। हे बल सम्पन्न अग्नि देव! आप हम लोगों को पापों से बचावें। आपके समीप हम लोगों द्वारा प्रदत्त पवित्र हव्य उपस्थित है। आपके द्वारा प्रदत्त सहस्र प्रकार का धन हमारे समीप उपस्थित है।[ऋग्वेद 6.15.12]
Hey Agni Dev! Protect us from the enemies. Hey mighty Agni Dev! Save us from the sins of others. You have the pour-pious offerings made by us, by your side. The riches of thousands kind are available with us.
अग्निर्होता गृहपतिः स राजा विश्वा वेद जनिमा जातवेदाः।
देवानामुत यो मर्त्यानां यजिष्ठः स प्र यजतामृतावा
देवों को बुलाने वाले, दीप्तिमान अग्नि देव घर के अधिपति और सर्वज्ञ हैं; अतएव वे सम्पूर्ण प्राणियों को जानते हैं। जो अग्नि, देवों और मनुष्यों के बीच में अतिशय यज्ञकारी हैं, वे सत्य सम्पन्न अग्नि देव उत्तम रूप से यज्ञ करें।[ऋग्वेद 6.15.13]
Invoker of demigods-deities, radiant, deity of the house and all knowing-enlightened Agni Dev, knows every one. Let truthful Agni Dev, who is the performer of the extreme Yagy amongest the humans & the demigods-deities, conduct the Yagy in best way.
अग्ने यदद्य विशो अध्वरस्य होतः पावकशोचे वेष्ट्वं हि यज्वं।
ऋता यजासि महिना वि यद्भूर्हव्या वह यविष्ठ या ते अद्य
हे यज्ञ निष्पादक और शोधन दीप्ति वाले अग्नि देव! इस समय जो याजकगण का कर्तव्य है, उसकी आप कामना करें। आप देवों का यजन करने वाले हैं, इसलिए आप यज्ञ में देवों का यजन करें। हे युवतम अग्नि देव! आप अपने माहात्म्य से सर्वव्यापी हैं। आज आपके लिए जो हव्य हम प्रदान कर रहे हैं, उसे आप स्वीकार करें।[ऋग्वेद 6.15.14]
Hey conductor-performer of the Yagy Agni Dev! Think of the duty of the Ritviz at this moment. You hold the Yagy for the demigods-deities, therefore pray to them. Hey youthful-youngest Agni Dev! You are pervading every place by virtue of your greatness. Accept the offerings presented by us today.
अभि प्रयांसि सुधितानि हि ख्यो नि त्वा दधीत रोदसी यजध्यै। अवा नो मघवन्वाजसातावग्ने विश्वानि दुरिता तरेम ता तरेम तवावसा तरेम
हे अग्नि देव! वेदी के ऊपर यथाविधि स्थापित हव्य को देखें। याजक गण ने आपको द्यावा-पृथ्वी में यज्ञ के लिए स्थापित किया। हे ऐश्वर्य सम्पन्न अग्नि देव! आप युद्ध में हम लोगों की रक्षा करें, जिससे हम समस्त दुखों से बच जावें।[ऋग्वेद 6.15.15] 
Hey Agni Dev! Look at the offerings placed over the Yagy Vedi-site. The Ritviz have established you over the earth-heavens. Hey grandeur possessing Agni Dev! Protect us in the war, so that we are saved from all sorts of misery.
अग्ने विश्वेभिः स्वनीक देवैरूर्णावन्तं प्रथमः सीद योनिम्।
कुलायिनं घृतवन्तं सवित्रे यज्ञं नय याजकगणाय साधु
हे शोभन शिखा सम्पन्न अग्नि देव! आप समस्त देवों के सहित सर्वाग्र गण्य होकर ऊर्णा (कम्बल) युक्त, कुलाय सदृश और घृत संयुक्त उत्तर वेदी पर अवस्थान करें। हव्य दाता याजक गण के यज्ञ को समुचित रूप से देवों के निकट ले जावें।[ऋग्वेद 6.15.16]
कुलाय :: शरीर, घोंसला; nest, body.
Hey Agni Dev with beautiful flames! Become ahead-forward amongest the demigods-deities and place-establish the offerings-oblations over the Yagy Vedi, which are like blanket, nest and the Ghee. Take the offerings of the Ritviz to the demigods-deities.
इममु त्यमथर्ववदग्निं मन्थग्निं वेधसः।
यमङ् कूयन्तमानयन्नमूरं श्याव्याभ्यः
यज्ञ करने वाले, ज्ञानी ऋत्विकगण अथर्वा ऋषि के सदृश मंथन करके अग्नि देव को उत्पन्न करते है। चारों ओर भ्रमण करने वाले ज्ञानी अग्नि देव को अन्धकार से लाकर यज्ञवेदि पर (ऋत्विक्) स्थापित करते हैं।[ऋग्वेद 6.15.17]
The performers of Yagy produce fire by rubbing wood like Arthva Rishi. The enlightened who roam every where bring Agni Dev out of darkness and establish him over the Yagy Vedi.
जनिष्वा देववीतये सर्वताता स्वस्तये।
आ देवान्वक्ष्यमृताँॠतावृधो यज्ञं देवेषु पिस्पृशः
हे अग्नि देव! देवाभिलाषी याजक गण के कल्याण को अविनश्वर करने के लिए आप यज्ञ में मध्यमान होकर प्रादुर्भूत होवें। यज्ञ वर्द्धक और अमरणशील देवों का आवाहन करें। अनन्तर देवों के निकट हमारे यज्ञ को पहुँचावें।[ऋग्वेद 6.15.18]
Hey Agni Dev! Appear in the middle of the Yagy, for the for ever welfare of the Ritviz who wish to invoke the deities. Invoke the immortal and promoter of Yagy demigods-deities. Thereafter, take our Yagy to them.
वयमु त्वा गृहपते जनानामग्ने अकर्म समिधा बृहन्तम्।
अस्थूरि नो गार्हपत्यानि सन्तु तिग्मेन नस्तेजसा सं शिशाधि
हे यज्ञपालक अग्नि देव! प्राणियों के बीच में हम लोग ही आपको प्रज्वलित करते हैं। इसलिए हम लोगों के गार्हपत्य अग्निदेव! हमें पुत्र, पशु और धनादि द्वारा सम्पूर्णता प्रदान करें। अपने तीक्ष्ण तेज द्वारा आप हमें तेजस्विता प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.15.19]
Hey nurturer of the Yagy, Agni Dev! We invoke you amongest the living beings. Therefore, hey our Garhpaty Agni Dev! Enrich us with son, animals-cattle, wealth, aura-radiance.(04.09.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (16) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :-  अग्नि; छन्द :- गायत्री, त्रिष्टुप्, वर्धमाना, अनुष्टुप्।
त्वमग्ने यज्ञानां होता विश्वेषां हितः। देवेभिर्मानुषे जने
हे अग्नि देव! आप सम्पूर्ण यज्ञ के होम निष्पादक हैं अथवा देवों के आह्वान कर्ता हैं। आप मनु सम्बन्धी मनुष्य के यज्ञ में देवों द्वारा होतृ कार्य में नियुक्त होवें।[ऋग्वेद 6.16.1]
Hey Agni Dev! You accomplish the whole Yagy & invoke the demigods-deities. You should become the priest of Manu's Yagy pertaining to Humans as per the desire of demigods-deities demigods.
स नो मन्द्राभिरध्वरे जिह्वाभिर्यजा महः। आ देवान्वक्षि यक्षि च
हे अग्नि देव! आप हम लोगों के यज्ञ में मद कारक ज्वाला द्वारा महान देवों की स्तुति करें। इन्द्रादि देवों का आवाहन करें और उन्हें हव्य प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.16.2]
Hey Agni Dev! Worship the demigods-deities in our Yagy with intoxicating flames. Invokes Indr Dev and other demigods-deities and make offerings for them.
वेत्था हि वेधो अध्वनः पथश्च देवाञ्जसा। अग्ने यज्ञेषु सुक्रतो
हे विधाता, हे शोभन कर्म करने वाले दानादि गुण विशिष्ट अग्नि देव! आप दर्श पूर्ण मासादि यज्ञ में महान और क्षुद्र मार्गों को वेग द्वारा जानते हैं; इसलिए यज्ञ मार्ग से भ्रष्ट याजक गण को पुनः सन्मार्ग की ओर ले जावें।[ऋग्वेद 6.16.3]
Hey God, hey Agni Dev possessing specific charters like donation-charity! You are aware of the Yagy spread over ten months called Darsh Purn Mas and the fine routes speed, hence bring back the misguided-mislead Ritviz back to the righteous, pious, virtuous path.
त्वामळे अध द्विता भरतो वाजिभिः शुनम्। ईजे यज्ञेषु यज्ञियम्
हे अग्नि देव! दुष्यन्त पुत्र भरत हव्यदाता ऋत्विकों के साथ सुख के उद्देश्य से आपका स्तवन करते हैं। क्योंकि आपसे इष्ट की प्राप्ति और अनिष्ट का निवारण होता है। स्तवन के उपरान्त आपकी प्रार्थना करते हैं। आप याग योग्य हैं।[ऋग्वेद 6.16.4]
Hey Agni Dev! Bharat, son of Dushyant worship you for the comforts-pleasure of the Ritviz. You accomplish the desires and remove the undesired-unpleasant. After worship-recitation of Strotr, they pray to you. You are fit for the Yagy.
त्वमिमा वार्या पुरु दिवोदासाय सुन्वते। भरद्वाजाय दाशुषे
हे अग्नि देव! सोमाभिषवकारी राजा दिवोदास को आपने जिस प्रकार से बहुविध रमणीय धन प्रदान किया, उसी प्रकार से हव्य प्रदान करने वाले भरद्वाज ऋषि को बहुविध रमणीय धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.16.5]
Hey Agni Dev! The manner in which you granted wealth to Divodas who conducted Somabhishav-extraction of Somras, in the same way grant various kinds of wealth-riches to Rishi Bhardwaj, who make offerings-oblation to you.
त्वं दूतो अमर्त्य आ वहा दैव्यं जनम्। शृण्वन्विप्रस्य सुष्टुतिम्
हे अग्नि देव! आप अमरणशील और दूत है। मेधावी भरद्वाज ऋषि की शोभन प्रार्थना श्रवण कर आप हमारे यज्ञ में देवों को ले आवें।[ऋग्वेद 6.16.6]
Hey Agni Dev! You are immortal and a messenger. Listen-attend to the prayer of Bhardwaj Rishi and invoke the demigods-deities to our Yagy.
त्वामग्ने स्वाध्यो ३ मर्तासो देववीतये। यज्ञेषु देवमीळते
हे द्युतिमान अग्नि देव! सुन्दर चिन्ता करने वाले मनुष्य देवों को तृप्त करने के लिए यज्ञ में आपका स्तवन करते हैं।[ऋग्वेद 6.16.7]
Hey radiant Agni Dev! Humans who are virtuous, worship you for the contentment of demigods-deities   in the Yagy.
तव प्र यक्षि संदृशमुत क्रतुं सुदानवः। विश्वे जुषन्त कामिनः
हे अग्नि देव! हम आपके दर्शनीय तेज का पूजन भली-भाँति से करते हैं और आपके शोभन दानशील कार्य का भी पूजन करते हैं। अकेले हम ही नहीं; किन्तु दूसरे याजकगण भी आपके अनुग्रह से सफल होकर आपके यज्ञ का सेवन करते हैं।[ऋग्वेद 6.16.8]
Hey Agni Dev! We pray your beautiful aura properly and the tendency of charity. Its we alone other Ritviz as well participate in your Yagy on being successful.
त्वं होता मनुर्हितो वह्निरासा विदुष्टरः। अग्ने यक्षि दिवो विशः
हे अग्नि देव! होतृकार्य में मनु ने आपको नियुक्त किया। आप ज्वालारूप मुख द्वारा हव्य वहन करने वाले और अतिशय विद्वान् हैं। आप द्युलोक सम्बन्धिनी देवों का यजन करें।[ऋग्वेद 6.16.9]
Hey Agni Dev! Manu appointed you for the Hawan-Yagy. You are enlightened and consume the offerings with your blaze shaped mouth. Worship the demigods-deities of heavens.  
अग्न आ याहि वीतये गृणानो हव्यदातये। नि होता सत्सि बर्हिषि
हे अग्नि देव! आप हव्य भक्षण करने के लिए आगमन करें और देवों से समीप हव्य वहन करने के लिए स्तुति भाजन होकर होता रूप से कुश के ऊपर उपवेशन करें।[ऋग्वेद 6.16.10]
Hey Agni Dev! Come to accept-eat the offerings and occupy the Kush Mat near the demigods-deities to accept offerings & prayers and as a priest.
तं त्वा समिद्भिरङ्गिरो घृतेन वर्धयामसि। बृहच्छोचा यविष्ठ्य
हे अङ्गार रूप अग्नि देव! हम लोग लकड़ी और घृत द्वारा आपको प्रवर्द्धित करते हैं; इसलिए हे युवतम अग्नि देव! आप अत्यन्त दीप्तिमान् होवें।[ऋग्वेद 6.16.11]
अंगार :: राख, भस्म, खंगर, मिट्टी, छार; embers, cinder.
Hey Agni Dev in the form of cinders-embers! We promote you with Ghee and wood. Hey Youthful Agni Dev! You should have high shine.
स नः पृथु श्रवाय्यमच्छा देव विवाससि। बृहदग्ने सुवीर्यम्
हे द्युतिमान् अग्नि देव! आप हम लोगों को विस्तीर्ण, प्रशंसनीय और महान् धन प्रदत्त करें।[ऋग्वेद 6.16.12]
विस्तीर्ण :: फैला हुआ, विशाल, विस्तृत, व्यापक, लंबा-चौड़ा, प्रचुर, प्रभूत, दूर, महासागर संबंधी, विशाल, प्रशस्त;  wider, wide, commodious, oceanic, extensive, roomy, ample, spacious, vast.
Hey radiant Agni Dev! Grant us a lot of appreciable and great oceanic-wealth.
त्वामने पुष्करादध्यथर्वा निरमन्यत। मूर्ध्वो विश्वस्य वाघतः
हे अग्नि देव! मस्तक की भाँति संसार के धारक पुष्कर पत्र के ऊपर अरणि द्वय के बीच से आपको अथर्वा ऋषि ने उत्पन्न किया।[ऋग्वेद 6.16.13]
पुष्कर :: जल, पानी, जलाशय, पोखरा, कमल; lotus, pool, pond.
Hey Agni Dev! Athrva Rishi produced-evolved you by rubbing two pieces of wood over the lotus leaves like the nurturer of the universe at the fore head.
तमु त्वा दध्यङ्ङ्गषिः पुत्र ईधे अथर्वणः। वृत्रहणं पुरंदरम्
हे अग्नि देव! अथर्वा के पुत्र दध्यङ् ऋषि ने आपको समुज्ज्वलित किया। आप शत्रुओं का संहार करके उनके नगरों को नष्ट करने वाले हैं।[ऋग्वेद 6.16.14]
Hey Agni Dev! Dadhyn Rishi son of Athrva too ignited you. You are the destroyer of the enemies and their cities.
तमु त्वा पाथ्यो वृषा समीधे दस्युहन्तमम्। धनञ्जयं रणेरणे
हे अग्नि देव! आपको पाथ्यवृषा नाम के किसी ऋषि ने प्रदीप्त किया। आप असुर हन्ता और प्रत्येक युद्ध में विजयी होने वाले हैं।[ऋग्वेद 6.16.15]
Hey Agni Dev! Pathyvrasha Rishi ignited-evolved you. You are destroyer of demons and winner in the war-battle.
एह्यू षु ब्रवाणि तेऽग्न इत्थेतरा गिरः। एभिर्वर्धास इन्दुभिः
हे अग्नि देव! आप यहाँ आगमन करें; क्योंकि हम आपके लिए जिस प्रकार का स्तोत्र उच्चारित करते हैं, उसे आप श्रवण करें। यहाँ आकर आप इस सोमरस से अपनी महानता का विस्तार करें।[ऋग्वेद 6.16.16]
Hey Agni Dev! Come here to listen to the Strotr we recite for you and expand your glory through this Somras.
यत्र क्व च ते मनो दक्षं दधस उत्तरम्। तत्रा सदः कृणवसे
हे अग्नि देव! आपका अनुग्रहात्मक अन्तःकरण जिस देश में और जिस याजकगण में स्थित होता है, वह श्रेष्ठ बल और अन्न धारित करता है। आप उसी याजक गण में अपना स्थान बनाते है।[ऋग्वेद 6.16.17] 
अनुग्रह :: कृपा; grace, favour.
Hey Agni Dev! Your grace-favour of innerself generate great might and food grains in the country and Ritviz making him your abode. 
नहि ते पूर्तमक्षिपद्भुवन्नेमानां वसो। अथा दुवो वनवसे
हे अग्नि देव! आपका दीप्ति पुञ्ज नेत्र विघातक नहीं हैं, वह हमें सदा दर्शन समर्थ बनावें। हे कतिपय याजक गणों के गृह प्रदाता! आप हम याजक गणों की प्रार्थना को ग्रहण करें।[ऋग्वेद 6.16.18]
कतिपय :: कुछ, थोड़े से, कई-एक, चंद; certain, divers.
Hey Agni Dev! Your blaze is not harmful to the eyes. Let it make capable of viewing-seeing. Hey granter of homes to the certain Ritviz! Accept our prayers.
आग्निरगामि भारतो वृत्रहा पुरुचेतनः। दिवोदासस्य सत्पतिः
स्तुतियों के द्वारा हम लोग अग्नि देव का अभिगमन करते हैं। अग्नि देव हवि के स्वामी, दिवोदास राजा के शत्रुओं को विनष्ट करने वाले, सर्वज्ञ और याजकगणों के पालक हैं।[ऋग्वेद 6.16.19]
We follow Agni Dev with the prayers. Agni Dev is the lord of oblations-offerings, enlightened, aware of every thing-event;  destroyer of enemies and nurturer of the Ritviz.
स हि विश्वाति पार्थिवा रयिं दाशन्महित्वना। वन्वन्नवातो अस्तृतः
अग्नि देव अपनी महिमा के द्वारा हम लोगों की सम्पूर्ण पार्थिव धन प्रचुर मात्रा में प्रदान करें। अग्नि देव अपने तेज से शत्रुओं या काष्ठों के विनाशक, शत्रुओं के द्वारा अजेय और किसी के भी द्वारा अहिंसित हैं।[ऋग्वेद 6.16.20]
Let Agni Dev grant us sufficient wealth through his glory. Agni Dev is the destroyer of enemies & wood, invincible and can not be harmed by any one.
स प्रत्नवन्नवीयसाने घुम्नेन संयता। बृहत्ततन्थ भानुना
हे अग्नि देव! आप प्राचीनवत नवीन दीप्ति द्वारा इस विस्तीर्ण अन्तरिक्ष को विस्तारित करते हैं।[ऋग्वेद 6.16.21]
Hey Agni Dev! You extend the universe with your nascent radiance as before. 
प्र वः सखायो अग्नये स्तोमं यज्ञं च धृष्णुया। अर्च गाय च वेधसे
हे मित्रभूत ऋत्विजों! आप लोग शत्रु हन्ता और विधाता स्वरूप अग्नि देव का स्तोत्र द्वारा गान करें एवं यज्ञ साधन हव्य प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.16.22]
Hey friendly Ritviz! Make offerings and recite Strotr in favour of Agni Dev for the Yagy.(06.09.2023)
स हि यो मानुषा युगा सीदद्धोता कविक्रतुः। दूतश्च हव्यवाहनः
वह अग्नि देव हमारे यज्ञ में कुशों के ऊपर प्रतिष्ठित हों, जो अग्नि देवों के आह्वाता, अतिशय बुद्धिमान्, मनुष्य सम्बन्धी यज्ञकाल में देवों के दूत और हव्य के वाहक हैं।[ऋग्वेद 6.16.23]
Let Agni Dev, who is the invoker of the demigods-deities, carrier of offerings & their messenger and very intelligent, sit over the Kush Mat during the period of Yagy.
ता राजाना शुचिव्रतादित्यान्मारुतं गणम्। वसो यक्षीह रोदसी
गृह प्रदाता अग्नि देव! आप इस यज्ञ में आवें और प्रसिद्ध, राजमान, सुन्दर कर्म करने वाले मित्रा-वरुण, अदिति पुत्र, मरुद्गण और द्यावा-पृथ्वी का यजन करें।[ऋग्वेद 6.16.24]
Hey house provider Agni Dev! Come to this Yagy and worship shining, performer of virtuous deeds Mitr-Varun, son of Aditi Marud Gan, Earth & the heaven. 
वस्वी ते अग्ने संदृष्टिरिषयते मर्त्याय। ऊर्जो नपादमृतस्य
बल पुत्र अग्नि देव! आप मरण रहित है। आपकी प्रशस्त दीप्ति मनुष्य याजक गणों को अन्न प्रदान करती है।[ऋग्वेद 6.16.25]
Hey son of Bal, Agni Dev! You are immortal. Your radiance grant food grains to the Ritviz.
क्रत्वा दा अस्तु श्रेष्ठोऽद्य त्वा वन्वन्त्सुरेक्णाः। मर्त आनाश सुवृक्तिम्
हे अग्नि देव! आज हवि देने वाले याजकगण परिचरण कर्म द्वारा आपका संभजन करके अतिशय प्रशंसनीय और शोभन धन वाले हों। वे सदैव ही उत्तम सम्भाषण करें।[ऋग्वेद 6.16.26]
Hey Agni Dev! Let the Ritviz who make offerings and perform Yagy related deeds worship you; be appreciated and granted beautiful wealth. They should always make excellent discussions. 
ते ते अग्ने त्वोता इषयन्तो विश्वमायुः।
तरन्तो अर्यो अरातीर्वन्वन्तो अर्यो अरातीः
हे अग्नि देव! आपके स्तोता लोग आपके द्वारा रक्षित होते हैं, वे सब अभिलाषी होकर सम्पूर्ण आयु और अन्न प्राप्त करते हैं। वे आक्रमणकारी शत्रुओं को पराजित और विनष्ट करते हैं।[ऋग्वेद 6.16.27]
Hey Agni Dev! Your Stotas are protected by you. They desire complete age-100 years and food grains and get it. They defeat the invaders and destroys them.
अग्निस्तिग्मेन शोचिषा यासद्विश्वं न्य१त्रिणम्। अग्निर्नो वनते रयिम्
अग्नि देव अपने तीक्ष्ण तेज के द्वारा सब वस्तुओं के भोजन कर्ता, राक्षसों के संहार कर्ता और हम लोगों के धन प्रदाता हैं।[ऋग्वेद 6.16.28]
Agni Dev is the eater of all goods by his sharp radiance, destroyer of demons and provider of wealth to us.
सुवीरं रयिमा भर जातवेदो विचर्षणे। जहि रक्षांसि सुक्रतो
हे जात वेदा अग्नि देव! आप शोभन पुत्र-पौत्रादि से युक्त धन का आहरण करें। हे शोभन कर्म करने वाले! आप राक्षसों का विनाश करें।[ऋग्वेद 6.16.29]
आहरण :: लेना, आकर्षित करना, बलाद्ग्रहण, बल से ग्रहण, ऐंठना, बल से ग्रहण, ऐंठना, बलपूर्वक ग्रहण, लेना, चित्र बनाना, आकर्षित करना, निकालना; withdrawal, draw, exaction.
Hey Jatveda Agni Dev! Grant us sons & grandsons along with wealth. Hey performer of beautiful deeds, destroy the demons.
त्वं नः पाह्यंहसो जातवेदो अघायतः। रक्षा णो ब्रह्मणस्कवे
हे जातवेदा! आप पाप से हम लोगों की रक्षा करें। हे प्रार्थना रूप मन्त्रों के कर्ता अग्निदेव! आप विद्वेषकारियों से हमारी रक्षा करें।[ऋग्वेद 6.16.30]
Hey Jatveda! Protect us from the sins. Hey the deity of the Mantr in the form of prayers Agni Dev! Protect us from the envious.
यो नो अग्ने दुरेव आ मर्तो वधाय दाशति। तस्मान्नः पाह्यंहसः
हे अग्नि देव! जो मनुष्य दुष्ट अभिप्राय से हम लोगों को मारने के लिए आयुध द्वारा हमारी हिंसा करता है, उस मनुष्य से और पाप से आप हमारी रक्षा करें।[ऋग्वेद 6.16.31]
Hey Agni Dev! Protect us from the wicked who wish to kill us with a weapon and the sins.
त्वं तं देव जिह्वया परि बाधस्व दुष्कृतम्। मर्तो यो नो जिघांसति
हे द्युतिमान् अग्नि देव! जो मनुष्य हम लोगों को मारने की इच्छा करता है, उस दुष्कर्मकारी मनुष्य को आप अपनी ज्वाला द्वारा भस्म करें।[ऋग्वेद 6.16.32]
Hey radiant Agni Dev! Roast the wicked who wish to kill us, with your flames.
भरद्वाजाय सप्रथः शर्म यच्छ सहन्त्य। अग्ने वरेण्यं वसु
हे शत्रुओं को अभिभूत करने वाले अग्नि देव! आप हमें अर्थात् भरद्वाज ऋषि को विस्तीर्ण सुख अथवा गृह प्रदान करें और वरणीय धन भी देवें।[ऋग्वेद 6.16.33]
Hey Agni Dev mesmerising the enemy! Grant us-the descendants of Bhardwaj Rishi, lots of comforts-pleasure, houses and wealth.
अग्निर्वृत्राणि जङ्घनद्द्रविणस्युर्विपन्यया। समिद्धः शुक्र आहुतः
भली-भाँति से दीप्त; इसलिए शुक्ल वर्ण और हवि द्वारा आहूत अग्नि देव प्रार्थना से प्रसन्न होकर हवि की इच्छा करते हैं। ऐसे अग्नि देव शत्रुओं का अथवा अन्धकार का विनाश करें।[ऋग्वेद 6.16.30]
Lit properly, fair coloured and worshiped with offerings-oblations, Agni Dev desire oblations. Let him destroy the enemy and darkness.
गर्भे मातुः पितुष्पिता विदिद्युतानो अक्षरे। सीदन्नृतस्य योनिमा
माता पृथ्वी की गर्भ स्थानीय और क्षरण रहित वेदी पर अग्नि देव विद्युतिमान् होते हैं और हवि द्वारा स्वर्ग के पालक अग्नि देव यज्ञ की उत्तर वेदी पर उपविष्ट होकर शत्रुओं का विनाश करते हैं।[ऋग्वेद 6.16.35]
Nurturer of heavens Agni Dev occupy the Uttar Vedi free from depreciation, over the earth and destroy the enemies.
ब्रह्म प्रजावदा भर जातवेदो विचर्षणे। अग्ने यद्दीदयद्दिवि
हे सर्वदर्शी जातवेदा! आप पुत्र-पौत्रों के साथ उस अन्न का आनयन करें, जो अन्न द्युलोक में देवों के बीच में प्रश्स्त अन्न होकर शोभित होता है।[ऋग्वेद 6.16.37]
Hey Jatveda, viewing every thing-event! Grant us the appreciated food grains of the heavens, along with sons & grandsons. 
उप त्वा रण्वसंदृशं प्रयस्वन्तः सहस्कृत। अग्रे ससृज्महे गिरः
हे बल द्वारा उत्पाद्यमान अग्नि देव! आपका दर्शन अत्यन्त रमणीय है। हवी रूप अन्न लेकर हम लोग आपके समीप स्तोत्रों का उच्चारण करते हैं।[ऋग्वेद 6.16.37]
Hey Agni Dev, son of Bal! Your view-exposure is very attractive. On possess offerings in the form of food grains & we recite Strotr near-close to you.
उपच्छायामिव घृणेरगन्म शर्म ते वयम्। अग्ने हिरण्यऽसंदृशः
हे अग्निदेव! आपका तेज सोने के सदृश रोचमान है और आप दीप्ति युक्त हैं। आपकी शरण से हमें वैसा ही सुख मिलता है, जिस प्रकार से थके हुए प्राणियों को छाया में मिलता है।[ऋग्वेद 6.16.38]
Hey Agni Dev! Your aura is like the gold. The comfort we get under your shelter is like the pleasure obtained by tired living beings under the shadow of the tree.
य उग्र इव शर्यहा तिग्मशृङ्गो न वंसगः। अग्ने पुरो रुरोजिथ
अग्नि देव प्रचण्ड बलशाली धानुष्क के समान बाणों द्वारा शत्रुओं के हन्ता हैं और तीक्ष्ण शृङ्ग बैल के सदृश हैं। हे अग्नि देव! आपने ही त्रिपुरा सुर के तीनों पुरों को विनष्ट किया।[ऋग्वेद 6.16.39]
Agni Dev is the slayer of the enemy, like the mighty archer and the sharpened horns of the bull. Hey Agni Dev! You burnt the three abodes of Tripurasur.
आ यं हस्ते न खादिनं शिशुं जातं न बिभ्रति। विशामग्निं स्वध्वरम्॥
अध्वर्यु लोग अरणि मन्थन से उत्पन्न जिस सद्योजात अग्नि देव को पुत्र के समान हाथ में अर्थात् अभिमुख धारित करते हैं, उस हव्य भक्षक और मनुष्यों के शोभन यज्ञ के निष्पादक अग्निदेव का, हे ऋत्विक गण! आप लोग परिचरण करें।[ऋग्वेद 6.16.40]
Hey Ritviz! You should circumambulate Agni Dev who eats the offerings and conduct the Yagy of the humans, who is produced by rubbing the wood by the priests, like a nascent son holding him in front.
प्र देवं देववीतये भरता वसुवित्तमम्। आ स्वे योनौ नि षीदतु
हे अध्वर्युगण! आप लोग देवों के भक्षणार्थ आहवनीय अग्नि में प्रक्षेप करें। अग्नि देव द्युतिमान् और धनों के ज्ञाता हैं। अग्नि देव अपने आहवनीय स्थान में उपवेशन करें।[ऋग्वेद 6.16.41]
Hey priests! Make offerings in fire for the demigods-deities to be eaten by them. Radiant Agni Dev possess the knowledge of wealth. Let Agni Dev appear at the place, where he is invoked.
आ जातं जातवेदसि प्रियं शिशीतातिथिम्। स्योन आ गृहपतिम्
हे अध्वयों! आप अतिथि तुल्य पूजनीय, गृह स्वामी अग्नि देव को यज्ञ वेदी पर स्थापित कर, ज्ञानी, सुखकर अग्नि देव को उत्तम हवि अर्पित करें।[ऋग्वेद 6.16.42]
Hey Priests! Let the house owner establish Agni Dev who is like a honoured guest, pleasure granting, enlightened; over the Yagy Vedi and make excellent offerings. 
अग्ने युक्ष्वा हि ये तवाश्वासो देव साधवः। अरं वहन्ति मन्यवे
हे द्युतिमान अग्नि देव! आप उन समस्त सुशील अश्वों को अपने रथ में नियोजित करें, जो आपको यज्ञ के प्रति पर्याप्त रूप से वहन करते हैं।[ऋग्वेद 6.16.43]
सुशील :: सज्जन तथा सदाचारी, सरल, सीधा; gentle.
Hey radiant Agni Dev! Deploy the obedient-gentle horses in your charoite who carry you to the Yagy site.
अच्छा नो याह्या वहाभि प्रयांसि वीतये। आ देवान्त्सोमपीतये
हे अग्नि देव! आप हमारे सम्मुख पधारें। हव्य भोजन और सोमरस का पान करने के लिए आप देवों को भी प्रकट करें।[ऋग्वेद 6.16.44]
Hey Agni Dev! Come to us. Accept the offerings, drink Somras and invoke the demigods-deities.
उदग्ने भारत द्युमदजस्त्रेण दविद्युतत्। शोचा वि भाह्यजर
हे हव्य वाहक अग्नि देव! आप अत्यन्त ऊद्धर्व तेज होकर दीप्यमान होवें। हे जरा रहित अग्नि देव! आप अजस्त्र द्युतिमान् तेज से प्रकाशित होवें। आप पहले उद्दीप्त होकर पुन: अपने तेज से सम्पूर्ण जगत् को प्रकाशित करें।[ऋग्वेद 6.16.45]
अजस्त्र :: अविच्छिन्न, लगातार, निरंतर, सतत; evergreen, ever young.
Hey Agni Dev, carrier of offerings! You should possess extreme Tej-energy in the upward direction & shine. Free from old age, Agni Dev! You being evergreen, ever young, shine with Tej-aura. On being lit, light the whole world.
वीती यो देवं मर्तो दुवस्येदग्निमीळीताध्वरे हविष्मान्।
होतारं सत्ययजं रोदस्योरुत्तानहस्तो नमसा विवासेत्
हवि से युक्त जो याजकगण हविलक्षण अन्न द्वारा जिस किसी देवता की परिचर्या करता है, उस यज्ञ में भी अग्रिदेव प्रार्थित होते हैं अर्थात् अग्निदेव की पूजा सभी यज्ञों में होती है। अग्नि देव द्यावा पृथ्वी में वर्तमान देवों के आह्वानकर्ता और सत्यरूप हवि द्वारा यष्टव्य है। याजकगण लोग बद्धाञ्जलि होकर नमस्कार पूर्वक ऐसे अग्नि देव की परिचर्या करें।[ऋग्वेद 6.16.46]
Agni Dev is worshiped in every Yagy with offerings meant for the demigods-deities. He is the invoker of demigods-deities over the earth & heavens and worshiped. Let the Ritviz serve-pray Agni Dev with folded hands.
आ ते अन ऋचा हविर्हृदा तष्टं भरामसि।
ते ते भवन्तूक्षण ऋषभासो वशा उत
हे अग्निदेव! हम आपको संस्कृत ऋक्रूप हव्य प्रदान करते हैं अर्थात् ऋचा को ही हव्य बनाकर प्रदान करते हैं। ऋक्स्वरूप वह हवि आपके भक्षण के लिए संचन समर्थ बैल और गौरूप में प्राप्त हों।[ऋग्वेद 6.16.47]
Hey Agni Dev! We make offerings to you in the form sacred hymns. Let this offering be available to you for your meals present in the capable bull in cows.
अग्निं देवासो अग्रियमिन्धते वृत्रहन्तमम्।
येना वसून्याभृता तृळ्हा रक्षांसि वाजिना
जिस बलवान् अग्नि देव ने यज्ञ विरोधी राक्षसों का वध किया, जिस अग्नि देव ने असुरों के समीप से धन का हरण किया, उस वृत्र हन्ता प्रधान अग्नि देव को देवगण प्रदीप्त करते हैं।[ऋग्वेद 6.16.48]
Demigods-deities lit that mighty Agni Dev, who killed the demons opposing Yagy, snatched their wealth and leader in the killing of Vratr.(07.09.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (17) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :-  इन्द्र;  छन्द :-त्रिष्टुप्, द्विपदा त्रिष्टुप्।
पिबा सोममभि यमुग्र तर्द ऊर्वं गव्यं महि गृणान इन्द्र।
वि यो धृष्णो वधिषो वज्रहस्त विश्वा वृत्रममित्रिया शवोभिः
हे बलशाली इन्द्र देव! अङ्गिराओं द्वारा स्तूयमान होकर आपने सोमरस का पान करने के लिए पणियों द्वारा अपहृत गौओं को खोज लिया। आप सोमरस का पान करें। हे शत्रुओं के विनाशक वज्रधर इन्द्र देव! बल से युक्त होकर आपने सम्पूर्ण शत्रुओं का विनाश किया।[ऋग्वेद 6.17.1]
Hey might Indr Dev! On being praised by the Angiras you traced the cows abducted by Pani; to drink Somras. Hey destroyer of enemies wielder of Vajr Indr Dev! You destroyed all enemies on being strengthened.
स ईंपहि य ऋजीषी तरुत्रो यः शिप्रवान्वृषभो यो मतीनाम्।
यो गोत्रभिद्वज्रभृद्यो हरिष्ठाः स इन्द्र चित्राँ अभि तृन्धि वाजान्
हे रस विहीन सोमरस के पानकर्ता इन्द्र देव! आप शत्रुओं से त्राण करने वाले, शोभन कपोल वाले और स्तोताओं की कामना के पूरक है। आप इस सोमरस का पान करें। हे इन्द्र देव! आप वज्रधर, पर्वतों या मेघों के विदारक और अश्वों के संयोजक हैं। आप हम लोगों के उत्कृष्ट अन्न को प्रकाशित करें।[ऋग्वेद 6.17.2]
Hey drunker of Somras without sap, Indr Dev! You are reliever from the enemy, has beautiful cheeks and accomplish the desires of the Stotas. Drink this Somras. Hey Indr Dev! You are holder of Vajr, destroyer of mountains & clouds and organiser of horses. Grant us excellent food grains.
एवा पाहि प्रत्नथा मन्दतु त्वा श्रुधि ब्रह्म वावृधस्वोत गीर्भिः।
आविः सूर्यकृणुहि पीपिहीषो जहि शत्रूँरभि गा इन्द्र तृन्थि
हे इन्द्र देव! आपने जिस प्रकार से पहले सोमरस का पान किया, वैसे ही हमारे इस सोमरस को पीवें। यह सोमरस आपको प्रसन्न करे। हमारे स्तोत्र को सुनें और स्तुतियों द्वारा वर्द्धमान होवें। सूर्य देव को आविष्कृत करें। हम लोगों को अन्न का भोजन करावें। हमारे शत्रुओं का विनाश करें। चोरों द्वारा अपहृत गौओं को खोजें।[ऋग्वेद 6.17.3]
Hey Indr Dev! Drink this Somras, as you did earlier. Let this Somras please you. Listen to our Strotr and progress by the impact of prayers. Discover Sun-Sur Dev. Feed us with food grains. Destroy our enemy. Trace the cows stolen by the thieves.
ते त्वा मदा बृहदिन्द्र स्वधाव इमे पीता उक्षयन्त द्युमन्तम्।
महामनूनं तवसं विभूतिं मत्सरासो जर्हृषन्त प्रसाहम्
हे अन्नवान इन्द्र देव! आप दीप्तिमान् है। यह पान किया गया मादक सोमरस आपको अतिशय सिंचित करे। हे इन्द्र देव! यह मदकारक सोमरस आपको अतिशय हर्षित करे। आप निखिल गुणवान्, प्रवृद्ध, विभववान और शत्रुओं को पराजित करने वाले है।[ऋग्वेद 6.17.4]
निखिल :: अखिल, सारा, समस्त, विश्वव्यापी, सम्पूर्ण; complete, entire, universal.
विभव :: ज्योति, धूमधाम, विशालता, संभाव्य, कार्यक्षम; potential, splendour.
Hey possessor of food grains Indr Dev! You are radiant. Let this Somras drunk by you greatly nourish you. Hey Indr Dev! Let this toxicating Somras please you. You are virtuous, universal, possessor of splendour and destroyer of enemies.
येभिः सूर्यमुषसं मन्दसानोऽवासयोऽप दृळ्हानि दर्द्रत्।
महामद्रिं परि गा इन्द्र सन्तं नुत्था अच्युतं सदसस्परि स्वात्
हे इन्द्र देव! सोमरस से तृप्त होकर आपने दृढ़ अन्धकार का भेदन किया और सूर्य देव तथा उषा देवी को अपने-अपने स्थानों पर निवेशित किया। आपने-अपने स्थान से अविचलित पर्वत को विदीर्ण किया, जिस पर्वत के चारों ओर पणियों द्वारा चुराई गई गौएँ पायीं।[ऋग्वेद 6.17.5]
Hey Indr Dev! On being satisfied by drinking Somras, you removed extreme darkness and establish Sury Dev & Usha Devi in their positions. You destroyed the rigid mountain around which cows were stolen by the Panis.
तव क्रत्वा तव तद्दंसनाभिरामासु पक्वं शच्या नि दीधः।
और्णोर्दुर उस्त्रियाभ्यो वि दृळ्होदूर्वाद्गा असृजो अङ्गिरस्वान्
हे इन्द्र देव! आपने अपनी बुद्धि, कार्य और सामर्थ्य के द्वारा अपरिपक्व गौओं को परिणत दुग्ध प्रदान किया अर्थात् अकाल में भी गौओं को क्षीरदायिनी बनाया। हे इन्द्र देव! आपने गौओं को बाहर आने के लिए पाषाणादि के दृढ़ द्वारों को उद्घाटित किया। अङ्गिराओं के साथ मिलकर आपने गौओं को गोष्ठों से उन्मुक्त किया।[ऋग्वेद 6.17.6]
Hey Indr Dev! You made the immature cows yield milk by making use of your intelligence, capability and endeavours. Hey Indr Dev! You opened the strong gates blocked with stones for the cows to move out. Along with Angiras, you released the cows from the sheds.
पप्राथ क्षां महि दंसो व्यु१र्वीमुप द्यामृष्वो बृहदिन्द्र स्तभायः।
अधारयो रोदसी देवपुत्रे प्रत्ने मातरा यह्वी ऋतस्य
हे इन्द्र देव! आपने महान् कर्म द्वारा विस्तीर्ण पृथ्वी को विशेष प्रकार से पूर्ण किया। अतः आप महान् है। आपने द्युलोक को धारित किया, जिससे वह निपतित न हो। आपने पोषण करने के लिए द्यावा-पृथ्वी को धारित किया। देवता लोग द्यावा-पृथ्वी के पुत्र हैं। द्यावा-पृथ्वी पुरातन, यज्ञ अथवा उदक का निर्माण करने वाले और महान हैं।[ऋग्वेद 6.17.7]
Hey Indr Dev! You made great endeavours to complete the broad earth. You are great. You hold the earth & heavens so that they do not fall. You held the earth & heavens for their nourishment. The demigods-deities are the sons of earth & heavens. Earth & heavens are eternal-ancient creators of Yagy and water.
अध त्वा विश्वे पुर इन्द्र देवा एकं तवसं दधिरे भराय।
अदेवो यदभ्यौहिष्ट देवान्स्वर्षाता वृणत इन्द्रमत्र
हे इन्द्र देव! जब वृत्रासुर संग्राम के लिए देवगण चले, तब सम्पूर्ण देवों ने एक आपको ही संग्राम के लिए अपना नेतृत्व कर्ता बनाया। आप अत्यन्त बलशाली हैं। आपने मरुद्गणों की संग्राम में सहायता की।[ऋग्वेद 6.17.8]
Hey Indr Dev! The demigods-deities elected-appointed you the leaders prior to move for the battle with Vrata Sur. You are capable & mighty. You helped the Marud Gan in the war.
अध द्यौश्चित्ते अप सा नु वज्राद्द्द्वितानमद्भियसा स्वस्य मन्योः
अहिं यदिन्द्रो अभ्योहसानं नि चिद्विश्वायुः शयथे जघान
विपुल अन्न वाले इन्द्र देव ने जब सोने के लिए आक्रमणकारी वृत्रासुर का वध किया, तब हे इन्द्रदेव! आपके क्रोध और वज्र के भय से द्युलोक स्तब्ध रह गया।[ऋग्वेद 6.17.9]
When the possessor of enormous stock food grains killed the invader Vratra Sur for gold, the heavens was stunned with fear of your furiosity and the Vajr.
अध त्वष्टा ते मह उग्र वज्रं सहस्रभृष्टिं ववृतच्छताश्रिम्।
निकाममरमणसं येन नवन्तमहिं सं पिणगृजीषिन्
हे अत्यन्त बलशाली इन्द्र देव! देव शिल्पी त्वष्टा ने आपके लिए सहस्र धारा वाले और सौ पर्ववाले वज्र का निर्माण किया। हे नीरस सोमरस का पान करने वाले इन्द्र देव! उसी वज्र द्वारा आपने नियताभिलाष, उद्धत-प्रकृति और शब्दायमान वृत्रासुर का संहार किया।[ऋग्वेद 6.17.10]
Hey extremely powerful-mighty Indr Dev! Artisan of the demigods-deities Twasta  built Vajr for you with hundred edges and thousand sharp points (the thousand-edged, the hundred-angled thunderbolt). Hey drinker of tasteless Somras with the passion & readiness-preparedness you slayed Vratra Sur who created loud noises.
वर्धान्यं विश्वे मरुतः सजोषाः पचच्छतं महिषाँ इन्द्र तुभ्यम्।
पूषा विष्णुस्त्रीणि सरांसि धावन्वृत्रहणं मदिरमंशुमस्मै
हे इन्द्र देव! सम्पूर्ण मरुद्गण समान प्रीतिभाजन होकर स्तोत्र द्वारा आपको पूजित करते हैं और आपके निमित्त पूषा तथा श्री विष्णु देव शत संख्यक महिषों का पाक करते हैं। तीन पात्रों को पूर्ण करने के लिए मद कारक और वृत्र विनाशक सोम धावित होता है अर्थात् पूषा और श्री विष्णु सोम पात्र को पूर्ण करें। सोम पान करने के बाद ही वृत्र विनाश में इन्द्र सामर्थ्यवान् होते हैं।[ऋग्वेद 6.17.11]
पाक :: भोजन आदि पकाने की क्रिया, पकाया हुआ भोजन, रसोई, छोटा, प्रशंसनीय, पवित्र; pure, cleanse.
Hey Indr Dev! All Marud Gan worship you with love with recitation of Strotr. Pusha and Shri Vishnu cleanse hundred buffalo for you. Somras become toxicating by extracting in three pots-vessels leading to slaying of Vratr. Indr became ready-capable of destroying Vratr.
आ क्षोदो महि वृतं नदीनां परिष्ठितमसृज ऊर्मिमपाम्।
तासामनु प्रवत इन्द्र पन्थां प्रार्दयो नीचीरपसः समुद्रम्
हे इन्द्र देव! आपने वृत्रासुर द्वारा समाच्छादित सर्वतः स्थित नदियों के जल को प्रवाहित किया, जिससे नदियाँ प्रवाहित हुईं। आपने उदक तरङ्ग को उन्मुक्त किया। हे इन्द्र देव! आपने उन नदियों को निम्न मार्ग से प्रवाहित किया। आपने वेग युक्त उदक को समुद्र में पहुँचाया।[ऋग्वेद 6.17.12]
सर्वतः :: सभी ओर, चारों तरफ़, पूरी तरह से, पूर्ण रूप से, सभी जगह; completely.
Hey Indr Dev! You made the river flow from all direction, restrained by Vratr. You release the waves-tides of water. Hey Indr Dev! You made the river water flowing at high speed to reach ocean.
एवा ता विश्वा चकृवांसमिन्द्रं महामुग्रमजुर्यं सहोदाम्।
सुवीरं त्वा स्वायुधं सुवज्रमा ब्रह्म नव्यमवसे ववृत्यात्
हे इन्द्र देव! इस प्रकार से आप सम्पूर्ण कार्यों के करने वाले, ऐश्वर्यशाली, महान् ओजस्वी, अजर, बलदाता, शोभन मरुतों से सहायता पाने वाले, अस्त्रधारी और वज्रधर है। हम लोगों का नवीन स्तोत्र आपको प्रसन्न करे, जिससे हम लोगों की रक्षा होवें।[ऋग्वेद 6.17.13]
Hey Indr Dev! You get help-support from Marud Gan are aurous, immortal, mighty, have grandeur and accomplish all of your endeavours, possessing arms-weapons and wield Vajr. Let our new Strotr please you, so that you protect us.
स नो वाजाय श्रवस इषे च राये धेहि द्युमत इन्द्र विप्रान्।
भरद्वाजे नृवत इन्द्र सूरीन्दिवि च स्मैधि पार्ये न इन्द्र
हे इन्द्र देव! आप हम लोगों को बल, पुष्टि, अन्न और धन के लिए धारित करें। हम लोग शक्ति सम्पन्न और मेधावी हों। हे इन्द्र देव! हम भरद्वाज को परिचारकों से युक्त करने वालों को आप पुत्र-पौत्रों से युक्त करें। हे इन्द्र देव! आप आने वाले समय में हमारी रक्षा करें।[ऋग्वेद 6.17.14]
Hey Indr Dev! You grant-support us for strength, nourishment, food grains and wealth. Hey Indr Dev! Grant us sons & grand sons to the providers servants to Bhardwaj Rishi. Hey Indr Dev! protect in an hour of need.
अया वाजं देवहितं सनेम मदेम शतहिमाः सुवीराः॥
इस प्रार्थना के द्वारा हम लोग द्युतिमान् इन्द्र देव द्वारा प्रदत्त अन्न लाभ करें। हम लोग शोभन पुत्र-पौत्रों से युक्त होकर सौ वर्ष पर्यन्त भी सुखमय जीवन यापन करें।[ऋग्वेद 6.17.15]
Let us be favoured by aurous-radiant Indr Dev seeking food grains. We should survive comfortably for hundred years with excellent sons & grandsons. (09.09.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (18) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :-  इन्द्र;  छन्द :- त्रिष्टुप् आदि।
तमु ष्टुहि यो अभिभूत्योजा वन्वन्नवातः पुरुहूत इन्द्रः।
अषाळ्हमुग्रं सहमानमाभिर्गीर्भिर्वर्ध वृषभं चर्षणीनाम्॥
हे भरद्वाज! आप अनभिभूत तेज वाले, शत्रुओं की हिंसा करने वाले, अधृष्य और बहुतों के द्वारा आहूत इन्द्र देव का स्तवन करें। आप इन स्तोत्रों द्वारा अनभिभूत, ओजस्वी, शत्रु विजयी और मनुष्यों के अभीष्ट पूरक इन्द्र देव को संवर्द्धित करें।[ऋग्वेद 6.18.1]
अधृष्य :: जिसका घर्षण न किया जा सके, जिसके पास जाना कठिन हो, अनभिगम्य, अजेय, घमण्डी;  invincible, ill approachable, insuperable, proudy.
अभिभूत :: मुग्ध, भावविभोर, विह्वल, वशीभूत, पराजित, पराभूत; defeated, infatuated, fascinated.
संवर्धित :: बढ़ा हुआ, बढ़ाया हुआ, पाला पोसा या देखभाल किया हुआ; enhanced.
Hey Bhardwaj! Worship Indr Dev who is invincible, possessor of aura, slayer of the enemies-demons worshiped by many people. Promote-enhance Indr Dev, who is shining, slayer of enemies and accomplish humans desires, with these Strotr.
स युध्मः सत्वा खजकृत्समद्वा तुविम्रक्षो नदनुमाँ ऋजीषी।
बृहद्रेणुश्यवनो मानुषीणामेकः कृष्टीनामभवत्सहावा
इन्द्र देव संग्राम में रेणुओं के उत्थापक, मुख्य, बलवान्, योद्धा, दाता, युद्ध में संलग्न, सहानुभूति सम्पन्न, वर्षा द्वारा बहुतों के उपकारक, शब्द विधायक, तीनों सवनों में सोमपान करने वाले और मनु की सन्तानों की रक्षा करने वाले हैं।[ऋग्वेद 6.18.2]
रेणु :: धूल, बालू, पृथ्वी, संभालू के बीज, बिडंग, अत्यंत लघु परिमाण, कणिका, फूल के पराग कण; pollen grains, dust particles, micro.
उत्थापक :: उत्थान, उत्तोलक, उन्नति, भार उठाने का यन्त्र; lifter, lift, lifting gear, raise.
सहानुभूति :: संवेदना, हमदर्द, अनुकंपा, दया; sympathy, empathy. 
Indr Dev raises dust in the war, head of the army, mighty, warrior, donor, engaged in the war, sympathetic, producer-causative of rains, synthesizer of words, drink Somras thrice during the day and protector of the progeny of Manu. 
त्वं ह नु त्यददमायो दस्यूँरैकः कृष्टीरवनोरार्याय।
अस्ति स्विन्नु वीर्यं१ तत्त इन्द्र न स्विदस्ति तदृतुथा वि वोचः
हे इन्द्र देव! आप कर्म विहीन मनुष्यों को शीघ्र ही अपने वशीभूत करें। अकेले आपने ही कर्मानुष्ठानकारी आर्यों को पुत्र-दासादि प्रदान किया। हे इन्द्र देव! आप में इस प्रकार की पूर्वोक्त सामर्थ्य है अथवा नहीं? आप समय-समय पर अपने बल का विशेष परिचय देने के लिए कभी-कभी अपना पराक्रम प्रकट करें।[ऋग्वेद 6.18.3]
Hey Indr Dev control the humans who are unwilling to work. You granted son, slaves, servants etc. to the Ary. Hey Indr Dev! Do you possess this type of capability or not!? You show your might time & again.
सदिद्धि ते तुविजातस्य मन्ये सहः सहिष्ठ तुरतस्तुरस्य।
उग्रमुग्रस्य तवसस्तवीयोऽरध्रस्य रध्रतुरो बभूव
हे बलवान इन्द्र देव! आप संसार के बहुत यज्ञों में प्रादुर्भूत हुए हैं और हमारे शत्रुओं का विनाश भी किया। आप में प्रचण्ड और प्रवृद्ध बल है हम ऐसा समझते हैं। आप ओजस्वी, समृद्धि सम्पन्न, शत्रुओं द्वारा अजेय तथा जयशील शत्रुओं के संहारक हैं।[ऋग्वेद 6.18.4]
प्रादुर्भूत :: जिसका प्रादुर्भाव हुआ हो, जो प्रकट हुआ हो, सामने आया हुआ, उत्पन्न, जन्मा हुआ, उत्पादित,  विकसित; evolved, born, appeared.
प्रचण्ड :: कठोर, उग्र, कड़ा; terrific, severe.
Hey might Indr Dev! You participated in many Yagy in the universe and slayed our enemies. We assume that you have terrific and highly developed strength. You are effective, powerful, invincible and destroyer of enemy.
तन्नः प्रत्नं सख्यमस्तु युष्मे इत्था वदद्भिर्वलमङ्गिरोभिः। हन्नच्युतच्युद्दस्मेषयन्तमृणोः पुरो वि दुरो अस्य विश्वाः
हे अविचलित पर्वतादि के संचालन कर्ता और मनोज्ञ दर्शन इन्द्र देव! हम लोगों का चिरकालानुवर्त्ती सखा भाव चिरस्थायी है। आपने स्तवकारी अङ्गिराओं के साथ अस्त्र निक्षेप करने वाले बल नामक असुर का वध करके उसके नगरों के द्वारों को खोल दिया।[ऋग्वेद 6.18.5]
मनोज्ञ :: प्रिय, सुंदर; lovely, pleasing.
Hey controller of static mountains etc., with pleasing personality, Indr Dev! Let our friendly relations since ever should remain-maintained. You opened the gates of the cities killing the demon Bal, who fought with Angiras.
स हि धीभिर्हव्यो अस्त्युग्र ईशानकृन्महति वृत्रतूर्ये।
स तोकसाता तनये स वज्री वितन्तसाय्यो अभवत्समत्सु
ओजस्वी और स्तोताओं की सामर्थ्य को बढ़ाने वाले इन्द्र महान् संग्राम में स्तुतियों द्वारा आहूत होते हैं। पुत्र लाभ के लिए इन्द्र देव आहूत होते हैं। वज्रधारी इन्द्र देव संग्राम में विशेष रूप से वन्दनीय हैं।[ऋग्वेद 6.18.6]
Indr Dev being effective and booster of the might of the Stotas, is worshiped in the war with prayers. Indr Dev is worshiped for having son. Vajr wielding Vajr Indr Dev, is especially worshiped in the war.
स मज्मना जनिम मानुषाणाममर्त्येन नाम्नाति प्र सर्खे।
स द्युनेन स शवसोत राया स वीर्येण नृतमः समोकाः
वे इन्द्र देव शत्रुओं को अपने बल से झुकाने वाले, यश, धन बल और वीरता में सर्वश्रेष्ठ है। वे मनुष्यों में उत्तम और सर्वोत्तम पद तथा स्थान को प्राप्त करें।[ऋग्वेद 6.18.7]
Indr Dev is best-excellent in lowering-bowing the enemies, fame, wealth, might, valour. Let him achieve the best and excellent position amongest the humans.
स यो न मुहे न मिथू जनो भूत्सुमन्तुनामा चुमुरिं धुनिं च।
वृणक्पितुं शम्बरं शुष्णमिन्द्रः पुरां च्यौनाय शयथाय नू चित्
जो इन्द्र देव संग्राम में कभी भी कर्त्तव्य विमूढ़ नहीं होते, जो कभी भी वृथा वस्तुओं को उत्पन्न नहीं करते; किन्तु जो प्रख्यात नाम वाले हैं, वही इन्द्र देव शत्रुओं के नगरों को विनष्ट करने के लिए और शत्रुओं को मारने के लिए शीघ्र ही कार्यरत होते हैं। हे इन्द्र देव! आपने चुमुरि, धुनि, पिप्रु, शम्बर और शुष्ण नामक असुरों का वध किया।[ऋग्वेद 6.18.8]
किंकर्तव्यविमूढ़ :: हतबुद्धि, हक्का-बक्का; bewildered, puzzle-headed, puzzle-pated.
Indr Dev is never puzzled in the war. Never generate useless materials. he is famous. He quickly act to kill the enemy and their forts-cities in the war. Hey Indr Dev! You killed the demons named Chumuri, Dhuni, Shambar and Shushn.
उदावता त्वक्षसा पन्यसा च वृत्रहत्याय रथमिन्द्र तिष्ठ।
धिष्व वज्रं हस्त आ दक्षिणत्राभि प्र मन्द पुरुदत्र मायाः
हे इन्द्र देव! आप ऊद्धर्वगामी और शत्रुओं के संहारकर्ता हैं। आप स्तवनीय बल से युक्त होकर शत्रुओं को मारने के लिए अपने रथ पर आरुढ़ होते हैं।दायें हाँथ में अपने अस्त्र वज्र को धारण करें। हे बहुत धन वाले इन्द्र देव! आप जाकर आसुरी माया को विशेष प्रकार से नष्ट करें।[ऋग्वेद 6.18.9]
Hey Indr Dev! You move in the upward direction and destroy the enemy. You ride the charoite possessing revered might; wielding Vajr in your right hand. Hey wealthy Indr Dev! Destroy the demonic enchantment using your special powers.
अग्निर्न शुष्कं वनमिन्द्र हेती रक्षो नि धक्ष्यशनिर्न भीमा।
गम्भीरय ऋष्वया यो रुरोजाध्वानयद्दुरिता दम्भयच
हे इन्द्र देव! अग्नि जिस प्रकार से वृक्षों को जलाती है, उसी प्रकार आपका वज्र शत्रुओं को नष्ट करता है। आप वज्र के समान भयंकर हैं। आप वज्र द्वारा राक्षसों को अतिशय नष्ट करें। इन्होंने अनभिभूत और महान् वज्र द्वारा शत्रुओं को नष्ट किया तथा ये संग्राम में भेदन करते हैं और समस्त दुरितों का भी भेदन करते हैं।[ऋग्वेद 6.18.10]
दुरित :: पाप, दुष्कृत; sinners. 
Hey Indr Dev! The way fire burn the trees, your Vajr destroy the enemies. Your Vajr is furious. Destroy the demons to the maximum. You penetrate the enemies, destroy them and the sinners with Vajr.
आ सहस्रं पथिभिरिन्द्र राया तुविद्युम्न तुविवाजेभिरर्वाक्।
याहि सूनो सहसो यस्य नू चिददेव ईशे पुरुहूत योतोः
हे बहुधन सम्पन्न, बहुतों के द्वारा आहूत, बल पुत्र इन्द्र देव! कोई भी असुर आपको बल से पृथक करने में समर्थ नहीं हो सकता। धन से युक्त होकर आप असंख्य बलशाली वाहनों के द्वारा हमारे समक्ष पधारें।[ऋग्वेद 6.18.11]
Possessor of various kinds of wealth, worshiped by many, son of Bal, hey Indr Dev! No demon can separate you from Bal. Come to us possessing infinite wealth.
प्र तुविद्युम्नस्य स्थविरस्य घृष्वेर्दिवो ररप्शे महिमा पृथिव्याः।
नास्य शत्रुर्न प्रतिमानमस्ति न प्रतिष्ठिः पुरुमायस्य सह्योः
अति यश वाले, शत्रुओं के निहन्ता और प्रवर्धमान इन्द्र देव की महिमा स्वर्गलोक और पृथ्वी लोक से भी महान् है। बहुत बुद्धि वाले और शत्रुओं को अभिभूत करने वाले इन्द्र देव का कोई शत्रु नहीं है, कोई प्रतिनिधि नहीं है और न कोई आश्रय है।[ऋग्वेद 6.18.12]
निहन्ता :: हत्या करने वाला; killer.
Possessor of great fame & glory, killer of enemies and progressing Indr Dev is greater than the heavens & the earth. Possessor of great intelligence and enchanter of the enemy, Indr Dev has no enemy, representative and shelter.
प्र तत्ते अद्या करणं कृतं भूत्कुत्सं यदायुमतिथिग्वमस्मै।
पुरू सहस्रा नि शिशा अभि क्षामुत्तूर्वयाणं घृषता निनेथ
हे इन्द्र देव! आपका वह कर्म प्रकाशित होता है। आपने शुष्ण नामक राक्षस से कुत्स की और शत्रुओं के समीप से आयु तथा दिवोदास की रक्षा की। आपने वज्र के द्वारा शम्बर का वध करके उसका बहुत-सा धन अतिथिग्व को प्रदान किया। भूमि पर तीव्रगामी दिवोदास को कष्टों से सुरक्षित किया।[ऋग्वेद 6.18.13]
Hey Indr Dev! Your deeds-endeavours are acknowledged. You killed the demon Shushn and protected Kuts in addition to Ayu & Divodas from the enemies. You killed Shambar with Vajr and gave his lots of wealth to Atithigavy. You protected fast moving-dynamic Divodas from troubles, torture over the earth.
अनु त्वाहिघ्ने अध देव देवा मदन्विश्वे कवितमं कवीनाम्।
करो यत्र वरिवो बाधिताय दिवे जनाय तन्वे गृणानः
हे द्युतिमान इन्द्र देव! सम्पूर्ण स्तोतागण वृष्टि प्रदान करने के लिए आपका स्तवन कर रहे हैं। आप सम्पूर्ण मेधावियों में श्रेष्ठ है। स्तोताओं के स्तवन से प्रसन्न होकर आप दारिद्र्यादि से पीड़ित याजकगणों और उनके पुत्रों को धन प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 6.18.14]
Hey radiant Indr Dev! All Stotas worship you for rains. You are best amongest the intelligent people. On being happy-pleased you grant the worshiping Stotas suffering from poverty, wealth to them and their sons.
अनु द्यावापृथिवी तत्त ओजोऽमर्त्या जिहत इन्द्र देवाः।
कृष्वा कृत्नो अकृतं यत्ते अस्त्युक्थं नवीयो जनयस्व यज्ञैः
हे इन्द्र देव! द्यावा-पृथ्वी और अमर देव आपके बल को स्वीकार करते हैं। हे कर्मवीर इन्द्र देव! आप असम्पादित कार्यों का अनुष्ठान करें और उसके अनन्तर यज्ञ में अभिनव स्तोत्रों को इन्द्र देव कर्म करने की अपनी शक्ति के कारण पूजनीय हैं।[ऋग्वेद 6.18.15]
Hey Indr Dev! The earth & heavens accept your strength. Hey Karm Veer (one who perform) Indr Dev! Accomplish the unfinished jobs. During the Yagy Indr Dev is worshiped by virtue of his might.(11.09.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (19) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :-  इन्द्र;  छन्द :- त्रिष्टुप्।
महाँ इन्द्रो नृवदा चर्षणिप्रा उत द्विबर्हा अमिनः सहोभिः।
अस्मद्र्यग्वावृधे वीर्यायोरुः पृथुः सुकृतः कर्तृभिर्भूत्
राजा की तरह स्तोता मनुष्यों की कामनाओं के पूरक प्रभूत इन्द्र देव यहाँ आगमन करें। दोनों लोकों के ऊपर पराक्रम को विस्तारित करने वाले और शत्रुओं द्वारा अहिंसनीय ये हम लोगों के निकट वीरत्व प्रकाशित करने के लिए वर्द्धित होते हैं। इन्द्र देव विस्तीर्ण शरीर वाले और प्रख्यात गुणयुक्त कर्म करने की अपनी शक्ति के कारण पूजनीय हैं।[ऋग्वेद 6.19.1]
Let Indr Dev who accomplish the desires of the Stotas come here like a king. He extend his valour over the two abodes-heaven & earth, unharmed by the enemy demonstrate-show his capacity-calibre of bravery. Indr Dev, possessor of wide body, qualities-traits and might is worshiped.
इन्द्रमेव धिषणा सातये धाद्बृहन्तमृष्वमजरं युवानम्।
अषाळ्हेन शवसा शूशुवांसं सद्यश्चिद्यो वावृधे असामि
इन्द्र देव उत्पन्न होते ही अत्यधिक वर्द्धमान होते हैं। हमारी स्तुति दान के लिए इन्द्र देव को धारित करती है। इन्द्र देव महान्, गमनशील, जरारहित, युवा और शत्रुओं द्वारा अनभिभूत होने वाले बल से युक्त हैं।[ऋग्वेद 6.19.2]
Indr Dev grew as soon as he was born. Our prayers support Indr Dev for charity. Indr Dev is great, dynamic, free from old age, young and possess the strength which can not be over powered by the enemy.
पृथू करस्ना बहुला गभस्ती अस्मद्र्य१ क्सं मिमीहि श्रवांसि।
यूथेव पश्वः पशुपा दमूना अस्माँ इन्द्राभ्या ववृत्स्वाजौ॥
हे इन्द्र देव! आप अन्न दान करने के लिए हम लोगों के अभिमुख अपने विस्तीर्ण, कार्यकर्ता और अतिशय दान शील हाथों को करें। हे इन्द्र देव! आप शान्त मन वाले हैं। पशु पालक जिस प्रकार से पशुओं के समूह को संचारित करता है, उसी प्रकार आप संग्राम में हम लोगों को संचारित करें।[ऋग्वेद 6.19.3]
Hey Indr Dev! Keep your broad, working & making extreme charity hands in front of us. Hey Indr Dev! You are calm, quite & compose. Handle us in the war just like the cattle growers tackle their herd.
तं व इन्द्रं चतिनमस्य शाकैरिह नूनं वाजयन्तो हुवेम।
यथा चित्पूर्वे जरितार आसुरनेद्या अनवद्या अरिष्टाः
हम स्तोता गण अन्नाभिलाषी होकर इस यज्ञ में समर्थ सहायक मरुतों के साथ शत्रु निहन्ता प्रसिद्ध इन्द्र देव की प्रार्थना करते हैं। हे इन्द्र देव! आपके पुरातन स्तोता के समान हम लोग भी निन्दा से रहित, पाप रहित और अहिंसित होवें।[ऋग्वेद 6.19.4]
We Stotas desirous of food grains worship, slayer of enemy Indr Dev, with the Marud Gan. Hey Indr Dev! Your eternal Stotas should be free from sins, unharmed and free from reproach-condemnation.
धृतव्रतो धनदाः सोमवृद्धः स हि वामस्य वसुनः पुरुक्षुः।
सं जग्मिरे पथ्या ३ रायो अस्मिन्त्समुद्रे न सिन्धवो यादमानाः
जिस प्रकार नदियाँ प्रवाहित होकर समुद्र में गिरती होती हैं, उसी प्रकार स्तोताओं का हितकर धन इन्द्र देव के प्रति गमन करता है। इन्द्र देव धन से कर्म करने वाले, वाञ्छित धन के स्वामी और सोमरस द्वारा प्रवर्द्धमान हैं।[ऋग्वेद 6.19.5]
The way the river flow to the ocean, the beneficial wealth of the Stotas should moves to Indr Dev. Indr Dev perform deeds with the wealth, possessor of desired wealth and grow-progress by drinking the Somras.
शविष्ठं न आ भर शूर शव ओजिष्ठमोजो अभिभूत उग्रम्।
विश्वा द्युम्ना वृष्ण्या मानुषाणामस्मभ्यं दा हरिवो मादयध्यै
हे पराक्रमशाली इन्द्र देव! आप हम लोगों को प्रकृष्ट तम बल प्रदान करें। हे शत्रुओं को अभिभूत करने वाले इन्द्र देव! आप हम लोगों को असह्य और अतिशय ओजस्वी दीप्ति प्रदान करें। हे अश्व वाले इन्द्र देव! आप हम लोगों को सेचन समर्थ, द्युतिमान् और मनुष्यों के भोग्य के लिए कल्पित सम्पूर्ण धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.19.6]
Hey Indr Dev possessing valour & might! Hey mesmeriser of the enemy Indr Dev! Grant us too sharp aura-radiance. Hey Indr Dev possessor of horses! Grant us the wealth which is nourishing, usable for comforts-pleasure for the humans.
यस्ते मदः पृतनाषाळमृध्र इन्द्र तं न आ भर शूशुवांसम्।
येन तोकस्य तनयस्य सातौ मंसीमहि जिगीवांसस्त्वोताः
हे इन्द्र देव! आप हम लोगों को शत्रु सेनाओं को अभिभूत करने वाला और अहिंसित हर्ष प्रदान करें। आपके द्वारा रक्षित होकर हम लोग विजयी हों। पुत्र-पौत्र प्राप्ति के निमित्त हम लोग उसी हर्ष से आपका स्तवन करें।[ऋग्वेद 6.19.7]
Hey Indr Dev! Grant us pleasure that enchant the enemy and do not harm us. Let us be winner being protected by you. Blessed with sons & grant sons, let us worship-pray you with the same pleasure.
आ नो भर वृषणं शुष्ममिन्द्र धनस्पृतं शूशुवांसं सुदक्षम्।
येन वंसाम पृतनासु शत्रून्तवोतिभिरुत जामीरँजामीन्
हे इन्द्र देव! आप हम लोगों को अभिलाषा पूरक सेना रूप बल प्रदान करें। वह (बल) धन का पालक, प्रवृद्ध और शोभन बल हो। हे इन्द्र देव! आपकी रक्षा द्वारा हम संग्राम में जिस बल में आत्मीय और अपरिचित शत्रुओं का वध कर सकें।[ऋग्वेद 6.19.8]
Hey Indr Dev! Grant us the strength, in the form of army which can accomplish our desires. The strength granted by you should be glorious, growing and protector of wealth. Hey Indr Dev! On being protected by you, we should be able to kill the known (friends & relatives against, harming us) and the unknown-unidentified enemies.
आ ते शुष्मो वृषभ एतु पश्चादोत्तरादधरादा पुरस्तात्।
आ विश्वतो अभि समेत्वर्वाङिन्द्र द्युम्नं स्वर्वद्धेह्यस्मे
हे इन्द्र देव! आपका अभीष्ट वर्षी बल पश्चिम, उत्तर, दक्षिण और पूर्व की ओर से हमारे सम्मुख आगमन करें। वह प्रत्येक दिशा से होकर हमारे पास आवे। आप हमें सुखयुक्त, धनयुक्त करें।[ऋग्वेद 6.19.9]
Hey Indr Dev! The strength which accomplish the desires should concentrate upon us from the east, west, north & south. Let it come to us from all (10) directions. We should have pleasure-comforts and wealth.
नृवत्त इन्द्र नृतमाभिरूती वंसीमहि वामं श्रोमतेभिः।
ईक्षे हि वस्व उभयस्य राजन्धा रत्नं महि स्थूरं बृहन्तम्
हे इन्द्र देव! परिचारकों से युक्त और श्रोतव्य यश के साथ हम लोग श्रेष्ठ धन का उपभोग आपकी रक्षा के द्वारा करते हैं। हे राजमान इन्द्र देव! आप पार्थिव और दिव्य धन के स्वामी हैं; इसलिए आप हम लोगों को महान् असीम एवं गुणयुक्त रत्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.19.10]
Hey Indr Dev! We utilise the excellent riches with servants-slave and glory being protected by you. Hey radiant Indr Dev! You are the lord of material and divine wealth. Grant us unlimited quality jewels.
मरुत्वन्तं वृषभं वावृधानमकवारिं दिव्यं शासमिन्द्रम्।
विश्वासाहमवसे नूतनायोग्रं सहोदामिह तं हुवेम
हम लोग अभिनव रक्षा के लिए इस यज्ञ में प्रसिद्ध इन्द्र देव का आह्वान करते हैं। वे मरुतों के साथ युक्त, अभीष्ट वर्षी, समृद्ध, शत्रुओं के द्वारा अकुत्सित, दीप्तिमान्, शासनकारी, लोक का अभिभव करने वाले, प्रचण्ड और बलवान् हैं।[ऋग्वेद 6.19.11]
अभिनव :: बिल्कुल नया, आधुनिक ढंग का; unique, maiden.
We invoke Indr Dev in this glorious-famous Yagy for excellent protection. Associated by the Marud Gan, he is desires accomplishing, prosperous, untainted by the enemy, radiant, ruler, resort to the welfare of humans, sharp and mighty.
जनं वज्रिन्महि चिन्मन्यमानमेभ्यो नृभ्यो रन्धया येष्वस्मि।
अधा हि त्वा पृथिव्यां शूरसातौ हवामहे तनये गोष्वप्सु
हे वज्रधर! हम जिन मनुष्यों के बीच में स्थित हैं, उन मनुष्यों से अपने को अधिक मानने वाले व्यक्ति को आप वशीभूत करें। हम लोग अभी इस लोक में युद्ध के समय में एवं पुत्र, पशु और उदक लाभ के निमित्त आपका आह्वान करते हैं।[ऋग्वेद 6.19.12]
Hey Vajr wielder! Control the person who considered himself to be above those with whom he interact-live. We invoke you in this abode-earth, during war for the safety of our sons, animals-cattle & water. 
वयं त एभिः पुरुहूत सख्यैः शत्रोः शत्रोरुत्तर इत्स्याम।
घ्नन्तो वृत्राण्युभयानि शूर राया मदेम बृहता त्वोताः
हे बहुजनाहूत इन्द्र देव! हम लोग इन स्तोत्ररूप मित्रतापूर्ण कर्म के द्वारा आपके साथ समुदित शत्रुओं का संहार करें और उनकी अपेक्षा प्रबल हों। हे पराक्रमवान् इन्द्र देव! हम लोग आपके द्वारा रक्षित होकर महान् धन से प्रसन्न होवें।[ऋग्वेद 6.19.13]
Hey Indr Dev worshiped by many! Let us become capable of destroying the enemy by the Strotr like friendship and become mightier than them. Hey mighty Indr Dev! We should be blissful having attained great wealth under your asylum.(12.09.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (20) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :-  इन्द्र;  छन्द :- त्रिष्टुप्, विराट्। 
द्यौर्न य इन्द्राभि भूमार्यस्तस्थौ रयिः शवसा पृत्सु जनान्।
तं नः सहस्रभरमुर्वरासां दद्धि सूनो सहसो वृत्रतुरम्
हे बलपुत्र इन्द्र देव! सूर्य देव जिस प्रकार से अपनी दीप्ति द्वारा पृथ्वी को आक्रान्त करते हैं; उसी प्रकार संग्राम में शत्रुओं को आक्रान्त करने वाला पुत्र रूप धन आप हमें प्रदान करें। जो सहस्रों प्रकार के धन का स्वामी, शस्यपूर्ण भूमि का अधिपति और शत्रुओं का निहन्ता हो।[ऋग्वेद 6.20.1]
आक्रांत :: जिस पर आक्रमण हुआ हो, जिसपर हमला किया गया हो, पराभूत, वशीभूत, अभिभूत, ग्रस्त, सताया हुआ, व्याप्त; infested, beleaguered, attacked, invaded.
Hey son of Bal Indr Dev! Grant us a son who can invade the enemy like the Sun-Sury Dev, who pervade the earth. He should be the owner of thousands kinds of wealth, agricultural land and slayer of the enemy.
दिवो न तुभ्यमन्विन्द्र सत्रासुर्यदेवेभिर्धायि विश्वम्।
अहिं यद्वृत्रमपो वव्रिवांसं हन्नृजीषिन्विष्णुना सचानः
हे इन्द्र देव! स्तोताओं ने स्तोत्रों द्वारा सूर्य देव के सदृश आप में वास्तव में समस्त बल अर्पित किया। हे नीरस सोमरस का पान करने वाले इन्द्र देव! आपने श्रीविष्णु के साथ युक्त होकर बल द्वारा जल निरोधक वृत्रासुर का वध किया।[ऋग्वेद 6.20.2]
Hey Indr Dev! The Stotas have filled you with might with the help of Strotrs, like the Sun. Hey drinker of tasteless Somras Indr Dev! You joined Shri Hari Vishnu and eliminated Vratr.
तूर्वन्नोजीयान्तवसस्तवीयान्कृतब्रह्येन्द्रो वृद्धमहाः।
राजाभवन्मधुनः सोम्यस्य विश्वासां यत्पुरां दर्लुमावत्
जब इन्द्र देव ने सम्पूर्ण शत्रु पुरियों के विदारक वज्र को प्राप्त किया, तब वे मधुर सोमरस के स्वामी हुए। इन्द्र देव हिंसकों की हिंसा करने वाले अतिशय ओजस्वी, बलवान्, अन्न देने वाले और प्रवृद्ध तेज वाले हैं।[ऋग्वेद 6.20.3]
Indr Dev became the master-owner of Somras when he destroyed all the cities-forts of the enemies with his Vajr. He destroy the violent, radiant, mighty and grants food grains.
शतैरपन्द्रन्पणय इन्द्रात्र दशोणये कवयेऽर्कसातौ।
वधैः शुष्णस्याशुषस्य मायाः पित्वो नारिरेचीत्किं चन प्र
हे इन्द्र देव! युद्ध में बहुत अन्न प्रदान करने वाले और आपकी सहायता करने वाले मेधावी कुत्स से भयभीत होकर शत संख्यक सेनाओं के साथ पणि नामक असुर ने पलायन किया। इन्होंने बलशाली शुष्ण नामक असुर की कपटता को आयुध द्वारा नष्ट करके उसके समस्त अन्न को अपहृत कर लिया।[ऋग्वेद 6.20.4]
Hey Indr Dev! Demon Pani became afraid of intelligent Kuts who used to supply food grains in the war and helped you and moved him away with his hundreds of his armies constituting of demons. He destroyed the cunningness of mighty demon Shushn with weapons and snatched his stock of food grains.
महो द्रुहो अप विश्वायु धायि वज्रस्य यत्पतने पादि शुष्णः।
उरु ष सरथं सारथये करिन्द्रः कुत्साय सूर्यस्य सातौ
वज्र के गिरने से जब शुष्ण ने प्राण त्यागा, तब महान् द्रोही शुष्ण का सम्पूर्ण बल नष्ट हो गया। इन्द्र देव ने सूर्य देव का संभजन करने के लिए सारथी भूत कुत्स को अपने रथ को विस्तृत करने के लिए कहा।[ऋग्वेद 6.20.5]
Shushn lost his might by the strike of Vajr and died. Indr Dev asked Kuts acting as charioteer to increase the dimensions of his charoite to worship Sury Dev-Sun.
प्र श्येनो न मदिरमंशुमस्मै शिरो दासस्य नमुचेर्मथायन्।
प्रावन्नमींसाप्यं ससन्तं पृणग्राया समिषा सं स्वस्ति
इन्द्र देव ने प्राणियों को उपद्रुत करने वाले नमुचि नामक असुर के मस्तक को चूर्ण किया एवं सप के पुत्र निद्रित नमी ऋषि की रक्षा करके उन्हें पशु आदि धन तथा अन्न से युक्त किया। उस समय श्येन पक्षी ने इन्द्र देव के लिए मदकर सोमरस का आनयन किया।[ऋग्वेद 6.20.6]
Indr Dev powdered the head of Namuchi, a demon who used to trouble-torture the humans, protected the Rishi Nidrit son of Sap, provided him with animals & food grains. At that moment Shyen-falcon brought Somras for him.
वि पिप्रोरहिमायस्य दृळ्हाः पुरो वज्रिञ्छवसा न दर्दः।
सुदामन्तद्रेक्णो अप्रमृष्यमृजिश्वने दात्रं दाशुषे दाः
हे वज्रधर इन्द्र देव! आपने तुरन्त माया वाले पिप्रु नामक असुर के दृढ़ दुर्गों को बल द्वारा विदीर्ण किया। हे शोभन दान सम्पन्न इन्द्र देव! आपने हव्य रूप धन प्रदान करने वाले राजर्षि ऋजिश्वा को अप्रतिबाध धन प्रदान किया।[ऋग्वेद 6.20.7]
Hey Vajr wielder Indr Dev! You demolished the forts of Piyu demon who was an enchanter, with your might. Hey Indr Dev rich in charity! You granted unlimited wealth to Rajrishi Rajishrawa who used to make offerings in the form of wealth.
स वेतसुं दशमायं दशोणिं तूतुजिमिन्द्रः स्वभिष्टिसुम्नः।
आ तुग्रं शश्वदिभं द्योतनाय मातुर्न सीमुप सृजा इयध्यै
मनोवांछित सुख प्रदाता इन्द्र देव ने वेतसु, दशोणि, तूतुजि, तुग्र और इभ नामक असुरों को राजा द्योतन के निकट सर्वदा गमन करने के लिए उसी प्रकार वशीभूत किया, जिस प्रकार से माता पुत्र को वश में करती है।[ऋग्वेद 6.20.8]
Desired comforts-pleasure granting Indr Dev moved the demons Vetsu, Dashoni, Tootuji, Tugr and Ibh to king Dhyotan mesmerising them like the mother who control her son.
स ईं स्पृधो वनते अप्रतीतो बिभ्रद्वज्रं वृत्रहणं गभस्तौ।
तिष्ठद्धरी अध्यस्तेव गर्ते वचोयुजा वहत इन्द्रमृष्वम्
शत्रुओं द्वारा नहीं निरस्त होने वाले इन्द्र देव हाथ में शत्रुओं को मारने वाले अपने आयुध को धारित करते हुए स्पर्द्धाकारी वृत्रादि शत्रुओं का विनाश करते हैं। शूर जिस प्रकार से रथ पर आरोहण करता है, उसी प्रकार वे अपने अश्वों पर आरोहण करते हैं। वचनमात्र से पूजित होकर वे दोनों घोड़े महान इन्द्रदेव का वहन करें।[ऋग्वेद 6.20.9]
Indr Dev who is undefeated by the enemies, wield the weapons in his hands for destroying the competing enemies like Vratr. The way a brave person ride his charoite, he rides his horses. The great horses worshiped through words, carry Indr Dev.
सनेम तेऽवसा नव्य इन्द्र प्र पूरवः स्तवन्त एना यज्ञैः।
सप्त यत्पुरः शर्म शारदीर्दर्द्धन्दासीः पुरुकुत्साय शिक्षन्
हे इन्द्र देव! आपकी रक्षा के द्वारा हम स्तोतागण नवीन धन के लिए उपासना करते हैं। मनुष्य स्तोतागण इस प्रकार से युक्त यज्ञों के द्वारा आपकी स्तुति करते हैं कि यज्ञ विद्वेषी प्रजाओं की हिंसा करते हुए पुरुकुत्स राजा को धन प्रदान करते हैं। हे इन्द्र देव! आपने शरत् नामक असुर की सात पुरियों को वज्र द्वारा विदीर्ण कर दिया।[ऋग्वेद 6.20.10]
Hey Indr Dev! Protected by you, we the Stotas; request for more wealth. The Stotas worship you by holding of Yagy so that king Purukuts who destroy the cities of envious demons, is granted money. Hey Indr Dev! You destroyed the seven cities-abodes of the demon called Sharat.
त्वं वृध इन्द्र पूर्व्यो भूर्वरिवस्यन्नुशने काव्याय।
परा नववास्त्वमनुदेयं महे पित्रे ददाथ स्वं नपातम्
हे इन्द्र देव! धनाभिलाषी होकर आप कवि पुत्र उशना के लिए प्राचीन उपकारक हुए। आपने नववास्त्व नामक असुर का वध किया और क्षमताशाली पिता उशना के निकट उसके देयपुत्र को उपस्थित किया।[ऋग्वेद 6.20.11]
Hey Indr Dev! Desirous of opulence, you helped the son of Kavi named Ushna. You killed the demons Navvastv and went to capable to father Ushna to produce-present his son Dey to him.
त्वं धुनिरिन्द्र धुनिमतीॠणोरपः सीरा न स्रवन्तीः।
प्र यत्समुद्रमति शूर पर्षि पारया तुर्वशं यदुं स्वस्ति
हे इन्द्र देव! आप शत्रुओं को कम्पायमान करने वाले हैं। आपने धुनि नामक असुर द्वारा निरुद्ध जल को नदी के सदृश प्रवहणशील बनाया। हे वीर इन्द्र देव! जब आप समुद्र का अतिक्रमण करके उत्तीर्ण होते हैं तब समुद्र के पार में वर्तमान उर्वशी और यदु को समुद्र पार कराते हैं।[ऋग्वेद 6.20.12]
Hey Indr Dev! You make the enemies tremble. You made the blocked water by the demon Dhuni, flow like a river. Hey brave Indr Dev! When you cross the ocean successfully, you help Urvashi and king Yadu to cross the sea.
तव ह त्यदिन्द्र विश्वमाजौ सस्तो धुनीचुमुरी या ह सिष्वप्।
दीदयदित्तुभ्यं सोमेभिः सुन्वन्दभीतिरिध्मभृतिः पक्थ्य१र्कैः
हे इन्द्र देव! संग्राम में उस तरह के सब कार्य आपके ही हैं। धुनी और चुमुरी नामक असुरों को आपने संग्राम में मार डाला। हे इन्द्र देव! इसके अनन्तर हव्यपाक करने वाले, ईंधन के भर्ता और आपके निमित्त सोमाभिषव करने वाले राजर्षि दभीति ने हवीरूप अन्न से आपको प्रदीप्त किया।[ऋग्वेद 6.20.13]
Hey Indr! All such deeds in the war are performed by you. You killed the demons Dhuni and Chumuri in the war. Hey Indr Dev! Thereafter, Rajrishi Dabhiti who cooked the offerings, supplied the fuel and extracted Somras for you; glorified you with the food grains & offerings.(14.09.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (21) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :-  इन्द्र;  छन्द :- त्रिष्टुप्। 
इमा उ त्वा पुरुतमस्य कारोर्हव्यं वीर हव्या हवन्ते।
धियो रथेष्ठामजरं नवीयो रयिर्विभूतिरीयते वचस्या
हे शूर इन्द्र देव! बहुत कार्य की अभिलाषा करने वाले स्तोता भरद्वाज की प्रशंसनीय स्तुतियाँ आपका आह्वान करती हैं। इन्द्र देव रथ पर स्थित जरा रहित और नवीनतर हैं। श्रेष्ठ विभूति इनका अनुगमन करती हैं।[ऋग्वेद 6.21.1]
ऋषि भरद्वाज व्याकरण शास्त्र, धर्म शास्त्र, शिक्षा शास्त्र, राजनीति शास्त्र, अर्थ शास्त्र, धनुर्वेद, आयुर्वेद और भौतिक विज्ञान वेत्ता थे।
ऋषि भरद्वाज ने यन्त्र सर्वस्व नामक बृहद् ग्रन्थ की रचना की थी। इस ग्रन्थ का कुछ भाग स्वामी ब्रह्म मुनि ने विमानन शास्त्र के नाम से प्रकाशित कराया है। इस ग्रन्थ में उच्च और निम्न स्तर पर विचरने वाले विमानों के लिये विविध धातुओं के निर्माण का वर्णन है।
Hey brave Indr Dev! Stuties-prayers of Stota Bhardwaj who perform several deeds, invoke you. Indr Dev is free from old age and young. Excellent grandeur follow him.
तमु स्तुष इन्द्रं यो विदानो गिर्वाहसं गीर्भिर्यज्ञवृद्धम्।
यस्य दिवमति मह्ना पृथिव्याः पुरुमायस्य रिरिचे महित्वम्
जो सब जानते हैं अथवा जो सभी के द्वारा जाने जाते हैं, जो स्तुतियों द्वारा आवाहनीय है और जो यज्ञ द्वारा प्रवर्द्धमान होते हैं, उन इन्द्र देव का हम स्तवन करते हैं। बहुत प्रज्ञा वाले इन्द्र देव का माहात्म्य द्यावा-पृथ्वी का अतिक्रमण करता है।[ऋग्वेद 6.21.2]
We worship & invoke Indr Dev who knows every thing and is known to everyone, invoked by the recitation of Stuties-sacred hymns and nourished by the Yagy. Blessed with many intelligence-sciences, the glory-significance of Indr Dev is higher than that of the earth & the heavens.
सइत्तमोऽवयुनं ततन्वत्सूर्येण वयुनवच्चकार।
कदा ते मर्ता अमृतस्य धामेयक्षन्तो न मिनन्ति स्वधावः
इन्द्र देव ने ही वृत्रासुर द्वारा विस्तीर्ण और अप्रकाशित अन्धकार को सूर्य देव द्वारा प्रकाशित किया। हे बलवान् इन्द्र देव! आप अमरणशील है। मनुष्यगण आपके स्वर्ग नामक स्थान का सर्वदा यजन करना चाहते हैं। वे किसी प्राणी की हिंसा नहीं करते।[ऋग्वेद 6.21.3]
Its Indr Dev who got the vast shroud of darkness removed by Sury Dev-Sun. Hey mighty Indr Dev! You are immortal. The humans always worship your abode, the heaven. You do not harm any one.
यस्ता चकार स कुह स्विदिन्द्रः कमा जनं चरति कासु विक्षु।
कस्ते यज्ञो मनसे शं वराय को अर्क इन्द्र कतमः स होता
जिन इन्द्र देव ने उन वृत्र वधादि प्रसिद्ध कार्यों को किया, वे अभी कहाँ वर्तमान हैं, किस देश और किन प्रजाओं के बीच में वर्त्तमान हैं। हे इन्द्र देव! किस तरह का यज्ञ आपके चित्त के लिए सुखकर होता है? आपका वरण करने में किस तरह का मन्त्र समर्थ होता है? आपका वरण करने में जो समर्थ होता है, वह कौन है?[ऋग्वेद 6.21.4]
Where is Indr Dev who killed Vrat etc., now; which abode-country, amongest which people? Hey Indr Dev! What type of Yagy is comfortable to you? What type of Mantr can help us contact-satisfy you? Who is capable of accepting you?
इदा हि ते वेविषतः पुराजाः प्रलास आसुः पुरुकृत्सखायः।
ये मध्यमास उत नूतनास उतावमस्य पुरुहूत बोधि
हे बहुत कार्यों को करने वाले इन्द्र देव! पूर्वकाल में उत्पन्न पुरातन अङ्गिरा आदि आज कल के समान कार्य करते हुए आपके स्तोता हुए। मध्यकालीन और नवीन भी आपके स्तोता हुए। इसलिए हे बहुजनाहूत इन्द्र देव! आप मुझ अर्वाचीन की प्रार्थना को श्रवण करें।[ऋग्वेद 6.21.5]
अर्वाचीन :: आधुनिक, नया; modern.
Hey Indr Dev, performer of various-several deeds! During ancient period Angira became your worshiper-Stota. During middle era and the current era too, people became your fans-worshipers. Hence hey Indr dev devoted to the welfare of all humans! Please listen-attend to me a person of the modern-current era my prayers.
तं पृच्छन्तोऽवरासः पराणि प्रत्ना त इन्द्र श्रुत्यानु येमुः।
अर्चामसि वीर ब्रह्मवाहो यादेव विद्म तात्त्वा महान्तम्
हे पराक्रमी इन्द्र देव! आज के मनुष्य आपसे पूछते हैं। आपकी अर्चना करते हैं। आपके प्राचीन और उत्कृष्ट महान् कार्यों को प्रार्थना रूप वचनों में बाँधते हैं। आपके जिन कार्यों को हम लोग जानते हैं, उन्हीं से हम लोग आपकी अर्चना करते हैं। आप महान् है।[ऋग्वेद 6.21.6]
Hey mighty Indr Dev! The humans of current era respect, honour, request & pray to you. They sing glory of your past and current deeds. We worship you through your great deeds known to us. You are great-adorable.
अभि त्वा पाजो रक्षसो वि तस्थे महि जज्ञानमभि तत्सु तिष्ठ।
तव प्रत्येन युज्येन सख्या वज्रेण धृष्णो अप ता नुदस्व
हे इन्द्र देव! राक्षसों का बल आपके अभिमुख प्रतिष्ठित है। आप भी उस प्रादुर्भूत महान् सम्मुख स्थिर होवें। हे शत्रुओं के धर्षक इन्द्र देव! स्थिर होकर आप अपने वज्र द्वारा उस बल का अपनोदन करें। आपका वज्र पुरातन, योजनीय और नित्य सहायक है।[ऋग्वेद 6.21.7]
Hey Indr Dev! The might of the demons is insignificant and concentrated-projected against you. Face them up, scatter them. Hey valiant destroyer of the enemies, Indr Dev! Stabilize your might with the Vajr, which is your ancient associate-accomplice.
स तु श्रुधीन्द्र नूतनस्य ब्रह्मण्यतो वीर कारुधायः।
त्वं ह्या३पिः प्रदिवि पितॄणां शश्वद्धभूथ सुहव एष्टौ
हे स्तोताओं के धारक वीर इन्द्र देव! आप हमारे स्तोत्रों को शीघ्र श्रवण करें। हम आधुनिक और स्तोत्र करने की इच्छा रखने वाले हैं। हे इन्द्र देव! यज्ञ में आप शोभन आह्वान वाले होकर पूर्वकाल में अङ्गिराओं के चिरकाल तक मित्र हुए। इसलिए आप हमारे स्तोत्रों को सुनें।[ऋग्वेद 6.21.8]
Hey supporter-nurturer of the Stotas, Indr Dev! Listen-attend to our Strotr quickly. We are modern and wish to have-recite Strotr (in your honour-dignity). Hey Indr Dev! You became friendly for long with the Angiras and was invoked honourably. Please listen to our Strotr.
प्रोतये वरुणं मित्रमिन्द्रं मरुतः कृष्वावसे नो अद्य।
प्र पूषणं विष्णुमग्निं पुरंधिं सवितारमोषधीः पर्वतांश्च
हे भरद्वाज! आप अभी हम लोगों की तृप्ति और रक्षा के लिए राज्याभिमानी वरुण, दिनाभिमानी मित्र, इन्द्र देव, मरुद्गण, पूषा, सर्वव्यापी श्री विष्णु, बहुकर्मकारी अग्नि देव, सभी के प्रेरक सविता, औषधियों के अभिमानी देव और पर्वतों की स्तुति करें।[ऋग्वेद 6.21.9]
Hey Bhardwaj! You should worship for our safety and contentment to Varun Dev, Mitr, Indr Dev, Pusha and all pervading Shri Hari Vishnu, Agni Dev-performer of various deeds the deities of medicines and the mountains.
इम उ त्वा पुरुशाक प्रयज्यो जरितारो अभ्यर्चन्त्यर्कैः।
श्रुधी हवमा हुवतो हुवानो न त्वावाँ अन्यो अमृत त्वदस्ति
हे बहुत शक्ति वाले अतिशय यजनीय इन्द्र देव! ये स्तोता लोग अर्चनीय स्तोत्रों के द्वारा आपका स्तवन करते हैं। हे अमरणशील इन्द्र देव! स्तूयमान होकर आप प्रार्थना करने वाले मेरे स्तोत्रों को श्रवण करें; क्योंकि आपके समान कोई दूसरा देव नहीं है।[ऋग्वेद 6.21.10]
Hey mighty and highly worshipable Indr Dev! The Stotas worship you with adorable Strotr. Hey immortal Indr Dev! Become aurous-radiant and listen to my prayers and Strotr, since no other demigod-deity is comparable to you.
नू म आ वाचमुप याहि विद्वान्विश्वेभिः सूनो सहसो यजत्रैः।
ये अग्निजिह्वा ऋतसाप आसुर्ये मनुं चक्रुरुपरं दसाय
हे बल पुत्र इन्द्र देव! आप सर्वज्ञ है। आप सम्पूर्ण यजनीय देवों के साथ शीघ्र ही मेरे स्तुति रूप वचन के अभिमुख आगमन करें। जो अग्नि देव देवों की जिह्वा हैं, जो यज्ञ में भोजन करते हैं और जिन्होंने राजर्षि मनु को, नष्ट करने के लिए, शत्रुओं के ऊपर किया, उन्हीं के साथ आगमन करें।[ऋग्वेद 6.21.11]
Hey son of Bal, Indr Dev! You are aware of all activities & events. Invoke quickly with all worshipable demigods-deities to listen to my prayers. Come-invoke with Agni Dev, who is the tongue of the demigods-deities, who dines in the Yagy, who attacked the enemies to protect Rajrishi Manu.
स नो बोधि पुरएता सुगेषूत दुर्गेषु पथिकृद्विदानः।
ये अश्रमास उरवो वहिष्ठास्तेभिर्न इन्द्राभि वक्षि वाजम्
हे इन्द्र देव! आप मार्ग निर्माता और विद्वान् है। आप सुख पूर्वक जाने योग्य मार्ग में तथा दुःख से जाने योग्य मार्ग में हम लोगों के अग्रसर होवें। श्रम रहित, महान् और वाहक श्रेष्ठ जो आपके अश्व हैं, उनके द्वारा हे इन्द्र देव! आप हम लोगों के लिए अन्न लावें।[ऋग्वेद 6.21.12]
Hey Indr Dev! You are path finder-innovator. Come forward to lead us through the comfortable and painful routes. Hey  Indr Dev! Bring food grains with your great-excellent carrier horses which move without trouble-tiredness.(15.09.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (22) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :-  इन्द्र;  छन्द :- त्रिष्टुप्। 
य एक इद्धव्यश्चर्षणीनामिन्द्रं तं गीर्भिरभ्यर्च आभिः।
यः पत्यते वृषभो वृष्ण्यावान्त्सत्यः सत्वा पुरुमायः सहस्वान्
जो इन्द्र देव प्रजाओं की आपत्तियों में एक मात्र आह्वान करने के योग्य हैं। जो स्तोताओं के प्रति आगमन करते हैं। जो अभीष्टवर्षक, बलवान्, सत्यवादी, शत्रु पीड़क, बहुप्रज्ञ और अभिभवकर्ता हैं, उन इन्द्र देव का स्तुतियों द्वारा हम स्तवन करते हैं।[ऋग्वेद 6.22.1]
Its only Indr Dev who respond to the invocation of the populace while in trouble, helping the Stotas. He accomplish desires, mighty, truthful, troubles the enemies and defeat them, worshiped by many; is worshiped by us with sacred hymns.
तमु नः पूर्वे पितरो नवग्वाः सप्त विप्रासो अभि वाजयन्तः।
नक्षद्दाभं ततुरिं पर्वतेष्ठामद्रोघवाचं मतिभिः शविष्ठम्
पुरातन, नौ महीनों में यज्ञ करने वाले सप्त संख्यक मेधावी, हमारे पिता अङ्गिरा आदि ने इन्द्र देव को बलवान् अथवा अन्नवान् करते हुए स्तुतियों द्वारा उनकी प्रार्थना की। इन्द्र देव गमनशील, शत्रुओं के हिंसक, पर्वतों पर अवस्थिति करने वाले और अनुल्लंघनीय संहारकर्ता हैं।[ऋग्वेद 6.22.2]
Ancient-eternal, performing Yagy for 9 months, blessed with 7 types of intelligence, our father Angira etc. worshiped him & recited Stuties to make him mighty and possessor of food grains. Indr Dev is dynamic, destroyer of the enemy, regulates the mountains and a destroyer who can not be ignored.
तमीमह इन्द्रमस्य रायः पुरुवीरस्य नृवतः पुरुक्षोः।
यो अस्कृधोयुरजरः स्वर्वान्तमा भर हरिवो मादयध्यै॥
बहुत पौत्रों से युक्त, परिचारकों के साथ और पशुओं के साथ हम लोग इन्द्र देव के निकट अविच्छिन्न, अक्षय और सुखदायक धन की याचना करते हैं। हे अश्वों के अधिपति! आप हम लोगों को सुखी करने के लिए यहाँ पधारें।[ऋग्वेद 6.22.3]
Blessed with many grandsons, servants and animals we pray to Indr Dev for continuous, imperishable comfortable wealth. Hey lord of horses! Invoke here for our happiness-pleasure.
तन्नौ वि वोचो यदि ते पुरा चिज्जरितार आनशुः सुम्नमिन्द्र।
कस्ते भागः किं वयो दुध्र खिद्वः पुरुहूत पुरूवसोऽसुरघ्नः
हे इन्द्र देव! जब पूर्वकाल में आपके स्तोताओं ने सुख प्राप्त किया, तब हम लोगों को भी वह सुख बतावें। हे दुर्द्धर्ष, शत्रु विजयी, ऐश्वर्यशाली, बहुजनाहूत इन्द्र देव! आप असुरों का वध करने वाले हैं। आपके लिए यज्ञ में कौन-सा भाग और कौन-सा हव्य कम्पित हुआ है?[ऋग्वेद 6.22.4]
Hey Indr Dev! Grant us the pleasure-comforts which you awarded to your worshipers, earlier. Hey invincible, winner of the enemy, possessor of grandeur, worshiped by many, hey Indr Dev! You are the slayer of the demons. Which segment and offerings in the Yagy are meant for you?
तं पृच्छन्ती वज्रहस्तं रथेष्ठामिन्द्रं वेपी वकरी यस्य नू गीः।
तुविग्राभं तुविकूर्मिं रभोदां गातुमिषे नक्षते तुम्रमच्छ
यागादि लक्षण कर्म से युक्त और गुणवाचक प्रार्थना करने वाले याजक गण वज्र धारण करने वाले और रथ पर अवस्थिति करने वाले इन्द्र देव की अर्चना करते हैं। इन्द्र देव बहुतों के ग्रहण करने वाले बहुकर्म करने वाले और बल के दाता हैं। वह यजमान सुख प्राप्त करता है और शत्रुओं के अभिमुख गमन करता है।[ऋग्वेद 6.22.5]
The Ritviz possess the traits of Yagy performer, describes the qualities of Indr Dev and pray to him while he rides the charoite. Indr dev perform various deeds-endeavours and grants him might. He gets comforts when he face the enemies under Indr Dev's protection.
अया ह त्यं मायया वावृधानं मनोजुवा स्वतवः पर्वतेन।
अच्युता चिद्वीळिता स्वोजो रुजो वि दृळ्हा धृषता विरप्शिन्
हे निज बल से बलवान् इन्द्र देव! आपने मन के सदृश गमन करने वाले और बहुत पर्व वाले वज्र से माया द्वारा प्रवृद्ध उस वृत्रासुर को चूर्ण किया। हे शोभन तेज वाले महान् इन्द्र देव! आपने धर्षक वज्र द्वारा नाश रहित, अशिथिल और दृढ़ पुरियों को नष्ट किया।[ऋग्वेद 6.22.6]
Hey mighty Indr Dev possessing strength of your own! You killed Vrata Sur having the power to enchant, moving with the speed of mind. Hey possessor of beautiful aura great Indr Dev! You destroyed the forts-cities of the demons which were considered imperishable with your sharp Vajr.
तं वो धिया नव्यस्या शविष्ठं प्रत्नं प्रत्नवत्परितंसयध्यै।
स नो वक्षदनिमानः सतहोन्दो विश्वान्यति दर्गहाणि
हे इन्द्र देव! हम चिरन्तन ऋषियों के समान नवीन स्तुतियों के द्वारा आपके गौरव को विस्तारित करते हैं। आप अतिशय बलवान् और प्राचीन है। अपरिमाण और शोभन वहनकारी इन्द्र देव! आप हम लोगों की समस्त विघ्नों से रक्षा करें।[ऋग्वेद 6.22.7]
Hey Indr Dev! We extend-spread your glory with the help of new compostions-Strotr. You are too mighty and eternal. Immeasurable performer of great deeds, hey Indr Dev! Protect us from all sorts of evils.
आ जनाय द्रुह्वणे पार्थिवानि दिव्यानि दीपयोऽन्तरिक्षा।
तपा वृषन्विश्वतः शोचिषा तान्ब्रह्मद्विषे शोचय क्षामपश्च
हे इन्द्र देव! आप साधु द्रोही राक्षसों के लिए द्यावा-पृथ्वी और अन्तरिक्ष स्थित स्थानों को सन्तप्त करते है। हे कामनाओं के वर्षक इन्द्र देव! आप अपनी दीप्ति द्वारा सभी जगह विद्यमान उन राक्षसों को भस्मीभूत करें। ब्राह्मण द्वेषी राक्षसों को दग्ध करने के लिए पृथ्वी और अन्तरिक्ष को दीप्त करें।[ऋग्वेद 6.22.8]
Hey Indr Dev! You destroy the abodes of the demons present over the earth and space. Hey accomplisher of desires Indr Dev! Destroy-roast, burn the demons with your radiant-aura, at all locations. Lit the earth & space to roast the demons envious of Brahmans. 
भुवो जनस्य दिव्यस्य राजा पार्थिवस्य जगतस्त्वेषसंदृक्।
धिष्व वज्रं दक्षिण इन्द्र हस्ते विश्वा अजुर्य दयसे वि मायाः
हे दीप्य दर्शन इन्द्र देव! आप देवलोक वासी एवं पृथ्वी लोकवासी सभी लोगों के राजा हैं। हे अतिशय स्तवनीय इन्द्र देव! आप दाहिने हाँथ में वज्र धारित करके असुरों की माया को उच्छिन्न करते हैं।[ऋग्वेद 6.22.9] 
Hey glorious-aurous Indr Dev! You are the lord of both earth & heavens. Hey highly adored Indr Dev! You wield the Vajr in your right hand and remove the enchantment-cast of the demons.
आ संयतमिन्द्र णः स्वस्तिं शत्रुतूर्याय बृहतीममृध्राम्।
यया दासान्यार्याणि वृत्रा करो वज्रिन्त्सुतुका नाहुषाणि
हे इन्द्र देव! आप हम लोगों को महान्, अहिंसित, संगच्छमान और कल्याणयुक्त सम्पत्ति प्रदान करें, जिससे शत्रुगण वर्षण करने में समर्थ न हों। हे वज्रधर इन्द्रदेव! जिस कल्याण के द्वारा आपने कर्महीन मनुष्यों को कर्मयुक्त बनाया और मनुष्य सम्बन्धी शत्रुओं को शोभन हिंसा से युक्त किया।[ऋग्वेद 6.22.10]
संगच्छमान :: सुव्यवस्थित; well organized-managed.
Hey Indr Dev! Grant us that asset which is great, well organised, can not be attacked-snatched by the enemy, blessed with welfare. Hey wielder of Vajr, Indr Dev! You made the lazy-useless fellow work and hurt the enemies of humans.
स नो नियुद्धिः पुरुहूत वेधो विश्ववाराभिरा गहि प्रयज्यो।
न या अदेवो वरते न देव आभिर्याहि तूयमा मद्र्यद्रिक्
हे बहुजनाहूत, विधाता, अतिशय यजनीय इन्द्र देव! आप सभी के द्वारा सम्भजनीय अश्वों के द्वारा हमारे निकट आगमन करें। जिन अश्वों का निवारण देव या असुर कोई भी नहीं करता; उन अश्वों के साथ आप शीघ्र ही हमारे पास पधारें।[ऋग्वेद 6.22.11]
Hey Indr Dev, worshiped by many, highly respected and the creator! Join us riding the respectable horses. Bring those horses to us quickly, which can not be hurt by both demigods-deities and the demons.(16.09.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (23) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :-  इन्द्र;  छन्द :- त्रिष्टुप्। 
सुत इत्त्वं निमिश्ल इन्द्र सोमे स्तोमे ब्रह्मणि शस्यमान उक्थे।
यद्वा युक्ताभ्यां मघवन्हरिभ्यां बिभ्रद्वजं बाह्वोरिन्द्र यासि
हे इन्द्र देव! सोम के अभिषुत होने पर और महान् स्तोत्र के उच्चार्यमाण होने पर एवं शास्त्र विहित होने पर आप रथ में अपने अश्व को संयुक्त करते हैं। हे धनवान् इन्द्र देव! आप दोनों हाथों में वज्र धारित करके रथ में योजित अश्व द्वय के साथ आगमन करते हैं।[ऋग्वेद 6.23.1]
उच्चार्य :: उच्चारण करने योग्य; pronounced.
Hey Indr Dev! You deploy the horses in your charoite when Somras is extracted & great Strotr are recited as per scriptures. Hey wealthy Indr Dev! You wield Vajr in both hands and deploy the horse duo in the charoite for arrival.
यद्वा दिवि पार्ये सुष्विमिन्द्र वृत्रहत्येऽवसि शूरसातौ।
यद्वा दक्षस्य बिभ्युषो अबिभ्यदरन्धयः शर्धत इन्द्र दस्यून्
हे इन्द्र देव! आप स्वर्ग में शूरों द्वारा सम्भजनीय संग्राम में उपस्थित होकर अभिषवकारी याजकगण की रक्षा करते हैं एवं निर्भीक होकर धार्मिक तथा सन्त्रस्त याजकगण के विघ्नकारी असुरों को वशीभूत करते हैं।[ऋग्वेद 6.23.2]
Hey Indr Dev! You being worshiped by the brave-mighty in the heaven; protect the Ritviz who are religious and tortured by the demons.
पाता सुतमिन्द्रो अस्तु सोमं प्रणेनीरुग्रो जरितारमूती।
कर्ता वीराय सुष्वय उ लोकं दाता वसु स्तुवते कीरये चित्
इन्द्र देव ही अभिषुत सोमरस के पान कर्ता हैं। भीषण इन्द्र देव स्तवकारी को मार्ग से ले जाते हैं। ये यज्ञ करने में दक्ष तथा सोमाभिषव करने वाले याजकगण को स्थान प्रदान करते हैं एवं स्तोत्र करने वाले को धन प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 6.23.3]
Indr Dev is entitled to drink extracted Somras. He takes the extractor of Somras through the road. He grants money to the Ritviz who are expert in Yagy & extracting Somras
गन्तेयान्ति सवना हरिभ्यां बभ्रिर्वज्रं पपिः सोमं ददिर्गाः।
कर्ता वीरं नर्यं सर्ववीरं श्रोता हवं गृणतः स्तोमवाहाः
इन्द्र देव अपने दोनों अश्वों के साथ हृदय स्थानीय तीनों सवनों में गमन करते हैं। इन्द्र देव वज्र धारण करने वाले, अभिषुत सोमरस का पान करने वाले, गोदाता, मनुष्यों के हित के लिए बहुत से पुत्र प्रदान करने वाले और स्तवकारी याजकगण के स्तोत्र को श्रवण करने वाले तथा स्वीकार करने वाले हैं।[ऋग्वेद 6.23.4]
Indr Dev moves during the three segments of the day, dear to his heart, with his two horses. Indr Dev wield Vajr, drink the extracted Somras, donate cows and grant many sons for the benefit of the humans. He accepts-listens the prayers of the Ritviz who recite Strotr. 
अस्मै वयं यद्वावान तद्विविष्म इन्द्राय यो नः प्रदिवो अपस्कः।
सुते सोमे स्तुमसि शंसदुक्थेन्द्राय ब्रह्म वर्धनं यथासत्
जो प्राचीन इन्द्र देव हम लोगों के लिए पोषणादि कर्म करते हैं, उन्हीं इन्द्र देव के अभिलषित स्तोत्र का हम लोग उच्चारण करते हैं। सोमाभिषुत होने पर हम लोग इनका स्तवन करते हैं। स्तुति का उच्चारण करते हुए हम लोग इनको हविलक्षण अन्न उस प्रकार से देते हैं, जिससे उनका वर्द्धन हो।[ऋग्वेद 6.23.5]
We worship Indr Dev with the suitable Strotr who  nourishes-nurture us. We invoke him-pray to him after extracting Somras. On the recitation of Strotr we make offerings to him in the form of food grains for his growth. 
ब्रह्माणि हि चकृषे वर्धनानि तावत्त इन्द्र मतिभिर्विविष्मः।
सुते सोमे सुतपाः शान्तमानि रान्द्रया क्रियास्म वक्षणानि यज्ञैः
हे इन्द्र देव! जिस तरह के स्तोत्रों को आपने स्वयं बढ़ाया, उस तरह के स्तोत्रों का आपके उद्देश्य से बुद्धि पूर्वक उच्चारण करते हैं। हे अभिषुत सोमरस पान कर्ता इन्द्र देव! आपके उद्देश्य से सोमाभिषव होने पर आपके उद्देश्य से निरतिशय, सुखदायक, कमनीय और हवि से युक्त स्तोत्रों का उच्चारण करते हैं।[ऋग्वेद 6.23.6]
Hey Indr Dev! We prudently-intelligently recite the Strotr promoted by you. Hey drinker of extracted Somras Indr Dev! We recite the indestructible comfortable, attractive Strotr aided with offerings after extracting Somras. 
स नो बोधि पुरोळाशं रराण: पिबातु सोमं गोऋजीकमिन्द्र। 
एवं बर्हियजमानस्य सीदोरुं कृधि त्वायत 3 लोकम्
हे इन्द्र देव! आनन्दित होकर आप हम लोगों के पुरोडाश को स्वीकार करें। दही आदि से संस्कृत सोमरस को शीघ्र पिवें। सोमरस का पान करने के लिए यजमान द्वारा बिछाए गए कुश के आसन पर आसीन होवें। तदनन्तर आपकी इच्छा करने वाले याजकगण के स्थान को विस्तीर्ण करें।[ऋग्वेद 6.23.7]
Hey Indr Dev! Filled with pleasure, accept our Purodas. Drink the Somras treated with curd, quickly. Occupy the Kush Mat laid for you. Thereafter, extend the space of the Ritviz who invoke you.
स मन्दस्वा ह्यनु जोषमुग्र प्र त्वा यज्ञास इमे अश्नुवन्तु।
प्रेमे हवासः पुरुहूतमस्मे आ त्वेयं धीरवस इन्द्र यम्याः
हे उद्यतायुध इन्द्र देव! आप अपनी इच्छा के अनुसार प्रसन्न होवें। यह सोमरस आपको प्राप्त हो। हे बहुजना हूत इन्द्र देव! हमारे स्तोत्र आपको प्राप्त हों। यह प्रार्थना हम लोगों की रक्षा के लिए आपको नियुक्त करें।[ऋग्वेद 6.23.8]
Hey Indr Dev ready for the war! You should be pleased-happy as per your wish. Hey Indr Dev worshiped by many! Let this Somras reach you. Let our prayer appoint-inspire you for our protection.
तं वः सखायः सं यथा सुतेषु सोमेभिरी पुणता भोजमिन्द्रम्।
कुवित्तस्मा असति भरान मिन्द्रो S वसे वृधाति
हे स्तोताओं! सोमाभिषव होने पर अन्न दाता इन्द्र देव को सोमरस से तृप्त करें। इन्द्र देव के लिए सोमरस बहुत परिमाण में हो, जिससे वह हम लोगों का पोषण करें। इन्द्र देव अभिवर्षण शील याजकगण को तृप्ति में बाधा नहीं देते।[ऋग्वेद 6.23.9]
Hey Stotas! On Somras being extracted satisfy Indr Dev who grants us food grains, with it. The quantum of Somras should be large so that he can nourish-nurture us. Indr Dev do not block the satisfaction of the Ritviz who are haunted.
एवेदिन्द्रः सुते अस्तावि सोमे भरद्वाजेषु क्षयदिन्मघोनः।
असद्यथा जरित्र उत सूरिरिन्द्रो रायो विश्ववारस्य दाता
हविरन्न युक्त यजमान के स्वामी इन्द्र देव सोमरस के निर्मित होने से प्रसन्न होकर धन प्रदान करते हैं। जो स्तोताओं को ज्ञान युक्त करते हैं, ऐसे इन्द्र देव की भरद्वाज ऋषि ने स्तुति की।[ऋग्वेद 6.23.10]
On being satisfied with Somras Indr Dev grants wealth-money to the Ritviz. Indr dev who enlighten the Stotas, was worshiped by Bhardwaj Rishi.(17.09.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (24) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :-  इन्द्र;  छन्द :- त्रिष्टुप्। 
वृषा मद इन्द्रे श्लोक उक्था सचा सोमेषु सुतपा ऋजीषी।
अर्चत्र्यो मघवा नृभ्य उक्थैर्द्यक्षो राजा गिरामक्षितोतिः
सोमवान् यज्ञ में इन्द्र देव का सोमपान जनित हर्ष याजक गण की कामनाओं का पूरक हों और वैदिकोपासना सहित स्तोत्र अभिलाषा वर्धक हो। अभिषुत सोमरस पान करने वाले, नीरस सोम का भी त्याग नहीं करने वाले धनवान् इन्द्र देव प्रार्थना करने वालों की स्तुतियों द्वारा अर्चनीय होते हैं। द्युलोक निवासी और स्तुतियों के अधिपति इन्द्र देव रक्षक होते हैं।[ऋग्वेद 6.24.1]
Let the Yagy having Som become accomplisher of Ritviz's desires by virtue of the pleasure granted to Indr Dev who drink the Somras. Wealthy Indr Dev, who drink tasteless Somras, is worshiped with Stuties. The resident of heavens and the lord of Stuties Indr Dev, be our protector.
ततुरिर्वीरो नर्यो विचेताः श्रोता हवं गृणत उर्व्यूतिः।
वसुः शंसो नरां कारुधाया वाजी स्तुतो विदथे दाति वाजम्
शत्रुओं के हिंसक, विक्रमवान् मनुष्यों के हितकर्ता, विवेकशील, हम लोगों के स्तोत्र को सुनने वाले, स्तोताओं के अतिशय रक्षक, गृह प्रदाता, स्तोताओं द्वारा प्रशंसनीय, स्तोताओं के धारक यज्ञ में स्तूयमान होने पर हम लोगों को अन्न प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 6.24.2]
Destroyer of the enemies, well wisher of mighty prudent humans, responding to our prayers, extremely protective of the Ritviz, residence awarding, praise worthy Indr Dev grant us food grains.
अक्षो न चक्रयोः शूर बृ॒हन्प्र ते मह्ना रिरिचे रोदस्योः।
वृक्षस्य नु ते पुरुहूत वया व्यू३ तयो रुरुहुरिन्द्र पूर्वीः
हे विक्रान्त इन्द्र देव! चक्र द्वय के अक्ष के समान आपकी बृहत् महिमा द्यावा-पृथ्वी को अतिक्रान्त करती है। हे बहुजनाहूत! वृक्ष की शाखाओं के सदृश आपका रक्षण कार्य वर्द्धमान होता है।[ऋग्वेद 6.24.3]
विक्रांत :: प्रतापी, तेजस्वी, बहादुर, वीर, शेर, साहस, हिम्मत; mighty, valiant.
Hey valiant Indr Dev worshiped by many! Your glory pervade the heaven & earth like the excel of the two wheels. Your protective measures grow-increase like the branches of the tree.
शचीवतस्ते पुरुशाक शाका गवामिव स्रुतयः सञ्चरणीः।
वत्सानां न तन्तयस्त इन्द्र दामन्वन्तो अदामानः सुदामन्
हे बहुकर्मा इन्द्र देव! आप प्रज्ञावान् है। आपकी शक्तियाँ उसी प्रकार से सभी जगह विचरण करती है, जिस प्रकार गौओं के मार्ग सर्वत्र सञ्चारी होते हैं। हे शोभनदान वाले इन्द्र देव! बछड़ों को बाँधने वाली डोरियों की तरह आपकी शक्तियाँ स्वयं अनिरुद्ध होकर बहुत से शत्रुओं को बन्धन युक्त करती है।[ऋग्वेद 6.24.4]
अनिरुद्ध :: असीम, अजेय, विजयी, निर्विरोध, जो निरुद्ध या रुका हुआ न हो, जिसमें कोई रुकावट न हो,  स्वेच्छाचारी, भगवान् श्री कृष्ण के पौत्र और प्रद्युम्न जी के पुत्र जिन्हें ऊषा ब्याही थी,  शिव, गुप्तचर-जासूस, विष्णु; unblocked, unopposed, unlimited, boundless, unstoppable, victorious, an incarnation of Bhagwan Shri Hari Vishnu, uncontrolled, unrestrained, without obstacles, name of grandson of Bhagwan Shri Krashn. 
Hey performer of various deeds! You are intelligent. Your powers pervade all places like the routes of the cows. Hey granter of excellent donations! You tie the enemies like the cord which tie the calf unblocked-unopposed.
अन्यदद्य कर्वरमन्यदु श्वोऽसच्च सन्मुहुराचक्रिरिन्द्रः।
मित्रो नो अत्र वरुणश्च पूषार्यो वशस्य पर्येतास्ति
इन्द्र देव आज एक काम करते हैं, तो दूसरे दिन इससे कुछ विलक्षण ही कार्य करते हैं। वे पुनः-पुनः सत् और असत् कार्यों का अनुष्ठान करते हैं। इन्द्र देव, मित्र, वरुण, पूषा, सविता इस यज्ञ में हम लोगों की कामनाओं के पूरक हों।[ऋग्वेद 6.24.5]
Indr Dev perform one deed today and tomorrow he will do something amazing. He repeatedly under take Sat & Asat endeavours. Let Indr Dev, Mitr, Varun, Pusha, Savita accomplish our desires in this Yagy.
वि त्वदापो न पर्वतस्य पृष्ठादुक्थेभिरिन्द्रानयन्त यज्ञैः।
तं त्वाभिः सुष्टुतिभिर्वाजयन्त आजिं न जग्मुर्गिर्वाहो अश्वाः
हे इन्द्र देव! आपके पास से शस्त्र और हवि के द्वारा स्तोता लोग अपनी कामनाओं को प्राप्त करते हैं, जिस प्रकार से पर्वत के उपरि भाग से जल प्राप्त होता है। हे स्तुतियों द्वारा वन्दनीय इन्द्र देव! अश्वगण जिस प्रकार से वेगपूर्वक संग्राम में उपस्थित होते हैं, उसी प्रकार प्रार्थना करने वाले अन्नाभिलाषी भरद्वाज आदि स्तुतियों के साथ आपके पास आगमन करते हैं।[ऋग्वेद 6.24.6]
Hey Indr Dev! The Stotas accomplish their desires by virtue of weapons and offerings, just like the water obtained from the peaks of mountains. Hey Indr Dev worshiped with Stuties! The manner in which the horses quickly reach the battle field, desirous of food grains Rishis like Bhardwaj reach you with Stuties.
न यं जरन्ति शरदो न मासा न द्याव इन्द्रमवकर्शयन्ति।
वृद्धस्य चिद्वर्धतामस्य तनूः स्तोमेभिरुक्थैश्च शस्यमाना
संवत्सर और मास आदि जिस इन्द्र देव को वृद्ध नहीं बना सकते; दिवस जिस इन्द्र को अल्प नहीं बना सकते, उस प्रवर्द्धमान इन्द्र देव का शरीर हम लोगों की स्तुतियों द्वारा स्तूयमान होकर विकसित हो।[ऋग्वेद 6.24.7]
Let the body of Indr Dev become praise worthy & grow by virtue of our prayers, just like the various era of time (Samvatsar & Months) can not grow-make him old.
न वीळवे नमते न स्थिराय न शर्धते दस्युजूताय स्तवान्।
अज्रा इन्द्रस्य गिरयश्चिदृष्वा गम्भीरे चिद्भवति गाधमस्मै
हम लोगों की प्रार्थना द्वारा स्तूयमान इन्द्र देव दृढ़गात्र, संग्राम में अविचलित और दस्युओं द्वारा उत्साहित तथा प्रेरित याजकगण के वशीभूत नहीं होते। अर्थात् यद्यपि स्तोता बहुत गुण वाले हैं; तथापि इन्द्रदेव दस्यु सहित स्तोता के वशीभूत नहीं होते। महान् पर्वत भी इनके लिए सुगम है और अगाध स्थान भी इनके लिए सहज हो जाते हैं।[ऋग्वेद 6.24.8]
दृढ़गात्र :: दृढ़, दृढ़ पकड़ वाला, चिपचिपा; firm, strong, steadfast, tenacious, resolute, determined, clingy, sticky, viscous, gummy, tacky, glutinous.
By virtue of prayers praise worthy tenacious Indr Dev remain unperturbed unharmed-controlled by the dacoits and inspired by the Ritviz. Great mountains & difficult terrines are normal for him.
गम्भीरेण न उरुणामत्रिन्प्रेषो यन्थि सुतपावन्वाजान्।
स्था ऊ षु ऊर्ध्व ऊती अरिषण्यन्नक्तोर्व्युष्टौ परितक्म्यायाम्
हे बलवान् और सोमपान कर्ता इन्द्र देव! आप किसी के द्वारा भी गम्भीर और उदार चित्त से हम लोगों को अन्न और बल प्रदान करें। हे इन्द्र देव! आप दिन-रात हम लोगों की रक्षा के लिए तत्पर होवें।[ऋग्वेद 6.24.9]
Hey mighty and drinker of Somras, Indr Dev! Grant us might & food grains liberally; ready to protect us during the day & night.
सचस्व नायमवसे अभीक इतो वा तमिन्द्र पाहि रिषः।
अमा चैनमरण्ये पाहि रिषो मदेम शतहिमाः सुवीराः
हे इन्द्र देव! आप संग्राम में स्तुति कर्ता की रक्षा के लिए उनका रक्षण करें। निकटस्थ या दूरस्थ शत्रुओं से उनकी रक्षा करें। घर में अथवा कानन में रिपुओं से उनकी रक्षा करें। शोभन पुत्र वाले होकर हम लोग सौ वर्षों तक प्रमुदित होवें।[ऋग्वेद 6.24.10]
Hey Indr Dev! Protect the worshiper during the war from far or near enemies, house or forests. Let us survive for hundred years blessed with sons & grandsons.(18.09.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (25) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :-  इन्द्र;  छन्द :- त्रिष्टुप्।
या त ऊतिरवमा या परमा या मध्यमेन्द्र शुष्मिन्नस्ति।
ताभिरू षु वृत्रहत्येऽवीर्न एभिश्च वाजैर्महान्न उग्र
हे बलवान इन्द्र देव! आप युद्ध में हम लोगों की अधम, उत्तम और मध्यम सब प्रकार की रक्षा द्वारा भली-भाँति से पालन करें। हे भीषण इन्द्र देव! आप महान् हैं। आप हम लोगों को भोज्य साधन द्वारा अन्नों से युक्त करें।[ऋग्वेद 6.25.1]
Hey mighty &furious Indr Dev! You protect us by all means in the war. You are great. Grant us eatables and food grains.
आभिः स्पृधो मिथतीररिषण्यन्नमित्रस्य व्यथया मन्युमिन्द्र।
आभिर्विश्वा अभियुजो विषूचीरार्याय विशोऽव तारीर्दासीः
हे इन्द्र देव! आप हमारी स्तुतियों से शत्रु सेनाओं को नष्ट करने वाली हमारी सेना की हुए संग्राम में विद्यमान शत्रु के क्रोध को विनष्ट करें। यज्ञादि कार्य करने वाले याजक गण के लिए आप कार्यों को विनष्ट करने वाली सम्पूर्ण प्रजाओं को स्तुतियों द्वारा विनष्ट करें।[ऋग्वेद 6.25.2]
Hey Indr Dev! Our prayers make our army capable of destroying-defeating the enemy army. Calm down the anger of the enemy army in the war. Destroy all such people, who obstruct the activities like Yagy by the Ritviz. 
इन्द्र जामय उत येऽजामयोऽर्वाचीनासो वनुषो युयुज्रे।
त्वमेषां विथुरा शवांसि जहि वृष्ण्यानि कृणुही पराचः
हे इन्द्र देव! ज्ञातिरूप निकटस्थ अथवा दूर देश स्थित जो शत्रु हमारे सम्मुख न होकर हिंसा के लिए उद्यत होते हैं, उन दोनों प्रकार के शत्रुओं बल को आप नष्ट करें। इनके वीर्यों को नष्ट करें और इन्हें पराजित करें।[ऋग्वेद 6.25.3]
ज्ञाति :: एक ही गोत्र या वंश में उत्पन्न मनुष्य, गोती; born in the same clan, dynasty.
Hey Indr Dev! Destroy all such enemies, close or distant, bent upon violence, related to us (born in the same clan, dynasty) with your might-power. Destroy their energy-fertility and defeat them.
शूरो वा शूरं वनते शरीरैस्तनूरुचा तरुषि यत्कृण्वैते।
तोके वा गोषु तनये यदप्सु वि क्रन्दसी उर्वरासु ब्रवैते
हे इन्द्र देव! आपके द्वारा अनुगृहीत वीर अपने शरीर से शत्रु वीरों को विनष्ट करता है, जबकि वे दोनों परस्पर विरोधी, शोभित शरीर से संग्राम में प्रवृत्त होते हैं। जबकि वे पुत्र, पौत्र, गौ, जल और उर्वरा के लिए शोर मचाते हुए विवाद करते हैं।[ऋग्वेद 6.25.4]
विवाद :: तर्क, तकरार, कलह, शास्रार्थ, झगड़ा, मतभेद, तकरार, विचार, झमेला; dispute, argue, quarrel, controversy, contention.
Hey Indr Dev! The brave person obliged by you destroy the enemy with his body, when they both are mutually opposite intend to take part in the war. They argue-quarrel over sons, grandsons, cows, water and fertilisers making noise.
नहि त्वा शूरो न तुरो न धृष्णुर्न त्वा योधो मन्यमानो युयोध।
इन्द्र नकिष्ट्वा प्रत्यस्त्येषां विश्वा जातान्यभ्यसि तानि
हे इन्द्र देव! विक्रान्त जन, शत्रु निहन्ता, विजयी और युद्ध में प्रकुपित योद्धा आपके साथ युद्ध करने में समर्थ नहीं होता। हे इन्द्र देव! इनके बीच में कोई भी आपका प्रतिद्वन्द्वी नहीं है। आप इन व्यक्तियों की अपेक्षा श्रेष्ठ योद्धा है।[ऋग्वेद 6.25.5]
Hey Indr Dev! The winner, destroyer of the enemy, winner and the furious warrior are unable to face you in the war. Hey Indr Dev! None of these is your rival. You are much superior fighter than these people.
स पत्यत उभयोर्नृम्णमयोर्यदी वेधसः समिथे हवन्ते।
वृत्रे वा महो नृवति क्षये यदि विंतन्तसैते
महान् शत्रुओं का विरोध करने के लिए अथवा परिचारकों से युक्त घर के लिए जो व्यक्ति परस्पर युद्ध करते हैं, उन दोनों के बीच में वही जन, धन-लाभ करता है, जिसके यज्ञ में ऋत्विक लोग इन्द्र देव का हवन करते हैं।[ऋग्वेद 6.25.6]
Only that rival wins in the war, who is supported by the Ritviz in the Yagy or performing Hawan for Indr Dev, opposing the great enemy or blessed with servants and house.
अध स्मा ते चर्षणयो यदेजानिन्द्र त्रातोत भवा वरूता।
अस्माकासो ये नृतमासो अर्य इन्द्र सूरयो दधिरे पुरो नः
हे इन्द्र देव! जब आपके पुरुष (स्तोता) कम्पित होते हैं। तब आप उनके पालक होवें। उनके रक्षक होवें। हे इन्द्र देव! हमारे जो नेतृतम पुरुष आपको प्राप्त करने वाले होते हैं, आप उनके त्राता होवें। हे इन्द्र देव! जिन स्तोताओं ने हमें पुरोभाग में स्थापित किया है, आप उन सबकी रक्षा करें।[ऋग्वेद 6.25.7]
Hey Indr Dev! Support-protect your Stota-worshiper when they tremble with fear. Hey Indr Dev! Protect our top leaders and those who appointed us in the front line.
अनु ते दायि मह इन्द्रियाय सत्रा ते विश्वमनु वृत्रहत्ये।
अनु क्षत्रमनु सहो यजत्रेन्द्र देवेभिरनु ते नृषह्ये
हे इन्द्र देव! आप महान् है। शत्रु वध के लिए आप में समस्त शक्ति एकत्रित हुई है। हे यजनीय इन्द्र देव! युद्ध में समस्त देवों ने आपको शत्रुओं को अभिभूत करने वाला बल और विश्व धारक प्रदान किया।[ऋग्वेद 6.25.8]
Hey Indr Dev! You are great. You have concentrated all powers in you to kill the enemy. All demigods-deities granted you the might which can control the enemy and support the universe.
एवा नः स्पृधः समजा समत्स्विन्द्र रारन्थि मिथतीरदेवीः।
विद्याम वस्तोरवसा गृणन्तो भरद्वाजा उत त इन्द्र नूनम्
हे इन्द्र देव! इस प्रकार से प्रार्थित होकर आप युद्ध में हम लोगों को शत्रुओं को मारने के लिए प्रोत्साहित करें और प्रेरित करें। आप हम लोगों के लिए हिंसा करने वाली असुर सेना को पराजित करें। हे इन्द्र देव! आपकी प्रार्थना करने वाले हम भरद्वाज अन्न के साथ अवश्य ही निवास प्राप्त करें।[ऋग्वेद 6.25.9]
Indr Dev! On being worship-prayed, inspire-encourage us to eliminate the enemy in the war. For our sake defeat the demon's army which torture us. Hey Indr Dev! Let Bhardwaj Rishi who worship-pray you, attain food grains and residence.(19.09.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (26) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :-  इन्द्र;  छन्द :- त्रिष्टुप्।
श्रुधी न इन्द्र ह्वयामसि त्वा महो वाजस्य सातौ वावृषाणाः।
सं यद्विशोऽयन्त शूरसाता उग्रं नोऽवः पार्ये अहन्दाः
हे इन्द्र देव! हम स्तोता लोग अन्न लाभ करने के लिए सोमरस के द्वारा आपका सिंचन करते हुए आपका ही आह्वान करते हैं। आप हम लोगों के आह्वान को श्रवण करें। जब मनुष्य लोग युद्ध के लिए गमन करेंगे, तब आप हम लोगों की भली-भाँति से रक्षा करना।[ऋग्वेद 6.26.1]
Hey Indr Dev! We the Stota offer you Somras and invoke you for the sake of food grains. Listen-respond to us. Protect us carefully when we move-march for war. 
त्वां वाजी हवते वाजिनेयो महो वाजस्य गध्यस्य सातौ।
त्वां वृत्रेष्विन्द्र सत्पतिं तरुत्रं त्वां चष्टे मुष्टिहा गोषु युध्यन्
हे इन्द्र देव! सभी के द्वारा प्रापणीय और महान अन्न लाभ करने के लिए वाजिनी पुत्र भरद्वाज अन्नवान होकर आपका स्तवन करते हैं। हे इन्द्र देव! आप सज्जनों के पालक और दुर्जनों के नाशक है। उपद्रुत होने पर भरद्वाज आपका आह्वान करते हैं। वे मुष्टि बल द्वारा शत्रुओं को विनष्ट करने वाले हैं। जब वे गौओं के लिए युद्ध करते हैं, तब आपके ऊपर निर्भर रहते हैं।[ऋग्वेद 6.26.2]
उपद्रुत :: उपद्रव ग्रस्त, जहाँ या जिस स्थान पर उपद्रव हुआ हो, ज्योतिष के अनुसार ग्रहण युक्त, जो किसी प्रकार के उपद्रव से पीड़ित हो, सताया हुआ; deuce, disturbance, disorder, brawl, outrage, tyranny, riot, row. 
Hey Indr Dev! Son of Vajini Bhardwaj, worship you for food grains, for all. We nurture the virtuous and kill the wicked. Rishi Bhardwaj invoke you in case of disorder. He kill the enemies with the strike of his fist. He depend upon you, when he fights for the protection of cows.
त्वं कविं चोदयोऽर्कसातौ त्वं कुत्साय शुष्णं दाशुषे वर्क्।
त्वं शिरो अमर्मणः पराहन्नतिथिग्वाय शंस्यं करिष्यन्
हे इन्द्र देव! अन्न लाभ करने के लिए आप भार्गव ऋषि को प्रेरित करें। हव्य दाता कुत्स के लिए आपने शुष्ण असुर का संहार किया। आपने अतिथिग्व को सुखी करने के लिए शम्बरासुर का शिरच्छेदन किया। वह अपने को अमर मानता था।[ऋग्वेद 6.26.3]
Hey Indr Dev! Inspire Rishi Bhargav for food grains. You killed Shushn demon for Kuts who used to make offerings for you. You chopped the head of Shambrasur for the sake-safety of Atithigavy. Shambrasur considered himself immortal.
त्वं रथं प्र भरो योधमृष्वमावो युध्यन्तं वृषभं दशद्युम्।
त्वं तुग्रं वेतसवे सचाहन्त्वं तुजं गृणन्तमिन्द्र तूतोः
हे इन्द्र देव! आपने वृषभ नामक राजा को युद्ध साधन महान रथ प्रदान किया। जब वे शत्रुओं के साथ दस दिनों तक युद्ध कर रहे थे, तब आपने उनकी रक्षा की। वेतसु राजा के सहायक होकर आपने तुग्रासुर को मारा। आपने स्तव कर्ता तुजि राजा की समृद्धि को बढ़ाया।[ऋग्वेद 6.26.4]
Hey Indr Dev! You gave-granted a great-marvellous charoite to the king Vrashabh. You protected him when he was busy in the ten days war. You helped king Vetsu and killed Tragasur. You enhanced the prosperity of king Tuji who worshiped you. 
त्वं तदुक्थमिन्द्र बर्हणा कः प्र यच्छता सहस्रा शूर दर्षि।
अव गिरेर्दासं शम्बरं हन्प्रावो दिवोदासं चित्राभिरूती
हे इन्द्र देव! आप शत्रु निहन्ता है। आपने प्रशंसनीय कार्यों का संपादन किया; क्योंकि हे वीर इन्द्र देव! आपने शत-शत और सहस्र-सहस्र शम्बर सेनाओं को विदीर्ण किया। आपने पर्वत से निर्गत, यज्ञादि कार्यों के विघातक शम्बरासुर का वध किया। विचित्र रक्षा द्वारा आपने दिवोदास की रक्षा की।[ऋग्वेद 6.26.5]
Hey Indr Dev! you are the slayer of the enemy. You accomplished praise worthy-appreciable deeds and destroyed thousands of army units of Shambar demon who used to create disturbances in Yagy. You protected Divodas through wonderful-amazing means.
त्वं श्रद्धाभिर्मन्दसानः सोमैर्दभीतये चुमुरिमिन्द्र सिष्वप्।
त्वं रजिं पिठीनसे दशस्यन्यष्टिं सहस्रा शच्या सचाहन्
हे इन्द्र देव! श्रद्धापूर्वक अनुष्ठित कार्यों द्वारा और सोमरस द्वारा प्रसन्न होकर आपने दभीति राजा के लिए चुमुरि नामक असुर का वध किया। हे इन्द्र देव! आपने पिठीनस को रजि नामक कन्या या राज्य प्रदान किया। आपने बुद्धि से साठ हजार योद्धाओं को युद्ध में मार डाला।[ऋग्वेद 6.26.6]
Hey Indr Dev! You killed demon Chamuri for the sake of king Dabhiti who pleased you with Somras and virtuous deeds faithfully-honourably. You granted Pithinas a girl called Raji and kingdom. You used brain-prudence to kill sixty thousand soldiers.
अहं चन तत्सूरिभिरानश्यां तव ज्याय इन्द्र सुम्नमोजः।
त्वया यत्स्तवन्ते सधवीर वीरास्त्रिवरूथेन नहुषा शविष्ठ
हे वीरों के साथी बलवत्तम इन्द्र देव! आप त्रिभुवनों के रक्षक और शत्रु विजयी हैं। स्तोता लोग आपके द्वारा प्रदत्त सुख और बल की प्रार्थना करते हैं। हे इन्द्र देव! हम भरद्वाज आपके द्वारा प्रदत्त उत्कृष्ट सुख और बल को अपने स्तोताओं के साथ प्राप्त करें।[ऋग्वेद 6.26.7]
Accomplice of the great brave, Indr Dev! You are the protector of the three abodes and winner of the enemy. The Stotas request you comforts and might. Let us have the excellent comforts-pleasures & might through Bhardwaj Rishi alongwith our Stotas.
वयं ते अस्यामिन्द्र द्युम्नहूतौ सखायः स्याम महिन प्रेष्ठाः।
प्रातर्दनिः क्षत्रश्रीरस्तु श्रेष्ठो घने वृत्राणां सनये धनानाम्
हे पूजनीय इन्द्र देव! हम लोग आपके मित्र भूत और स्तोता हैं। धन लाभार्थ किए गये इन स्तोत्रों द्वारा हम लोग आपके निरतिशय प्रीति भाजन हों। प्रातर्दन के पुत्र हमारे राजा क्षत्र श्री शत्रुओं का वध और धन-लाभ करके सबसे उत्कृष्ट हों।[ऋग्वेद 6.26.8]
Hey worshipable Indr Dev! We are your old-close friends and Stota. Let us have your affection & love & gain wealth through the recitation of these Strotr. Let our king Kshtr son of Pratardan, kill the enemies and gain wealth to become excellent.(20.09.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (27) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :-  इन्द्र;  छन्द :- त्रिष्टुप्।
किमस्य मदे किम्वस्य पीताविन्द्रः किमस्य सख्ये चकार।
रणा वा ये निषदि किं ते अस्य पुरा विविद्रे किमु नूतनासः
सोमरस से प्रसन्न होकर इन्द्र देव ने क्या किया? इस सोमरस को पान करके क्या किया? इस सोमरस के साथ मैत्री करके उन्होंने क्या किया? पुरातन और आधुनिक स्तोताओं ने सोमगृह में आपसे क्या प्राप्त किया?[ऋग्वेद 6.27.1]
What was done by Indr Dev on being pleased by drinking Somras? What he did after drinking Somras? What was the result of his friendship with Somras? What did the old & new Stotas get from Indr Dev in the house of Somras?
सदस्य मदे सद्वस्य पीताविन्द्रः सदस्य सख्ये चकार।
रणा वा ये निषदि सत्ते अस्य पुरा विविद्रे सदु नूतनासः
सोमरस के पान से प्रसन्न होकर इन्द्र देव ने सुन्दर (शोभन) कार्यों को किया। सोमरस का पान करके उन्होंने सुन्दर कर्म किए। इसके साथ उन्होंने शुभ कार्य किए। जो प्राचीन और नवीन स्तुति करने वाले हैं, उन्होंने आपके द्वारा सत्कार्य ही प्राप्त किया।[ऋग्वेद 6.27.2]
Indr Dev did many new tasks on being pleased by drinking Somras. He performed virtuous deeds on drinking Somras. He did auspicious deeds. The old and new Stotas got virtuous, righteous, auspicious deeds through Indr Dev.
नहि नु ते महिमनः समस्य न मघवन् मघवत्त्वस्य विद्म।
न राधसोराधसो नूतनस्येन्द्र नकिर्ददृश इन्द्रियं ते
हे धनवान इन्द्र देव! आपके समान दूसरे की महिमा हमें अवगत नहीं है। आपके सदृश धनवान और धन भी हमें अवगत नहीं। हे इन्द्र देव! आपके समान कोई भी सामर्थ्य नहीं दिखा सकता।[ऋग्वेद 6.27.3]
Hey Indr Dev! Your grandeur is unique. We never found one wealthy like you. None can show his capability-might like you.
एतत्त्यत्त इन्द्रियमचेति येनावधीर्वरशिखस्य शेषः।
वज्रस्य यत्ते निहतस्य शुष्मात्स्वनाच्चिदिन्द्र परमो ददार
हे इन्द्र देव! आपने जिस वीर्य द्वारा वरशिख नामक असुर के पुत्रों का संहार किया, आपका वह पराक्रम हम लोगों को ज्ञात नहीं है। हे इन्द्र देव! बलपूर्वक निक्षिप्त आपके वज्र के शब्द से ही बलिष्ठतम वरशिख के पुत्र विदीर्ण हो गए।[ऋग्वेद 6.27.4]
Hey Indr Dev! We are unaware of your might and valour with which you killed the sons of demon Varshikh. Hey Indr Dev! When you launched the Vajr powerfully, sons of the mightiest Varshikh were killed.
वधीदिन्द्रो वरशिखस्य शेषोऽभ्यावर्तिने चायमानाय शिक्षन्।
वृचीवतो यद्धरियूपीयायां हन्पूर्वे अर्धे भियसापरो दर्त्॥
इन्द्र देव ने चायमान राजा के अभ्यवर्ती नामक पुत्र को अभिलषित धन देते हुए वरशिख नामक असुर के पुत्रों का संहार किया। हरियूपिया नामक नदी या नगरी के पूर्व भाग में अवस्थित वरशिख के गोत्रोत्पन्न वृचीवान् के पुत्रों का इन्होंने वध किया। तब अपर भाग में अवस्थित वरशिख के श्रेष्ठपुत्र भयभीत हो गए।[ऋग्वेद 6.27.5]
Indr Dev granted desired wealth to Abhyvarti, son of king Chayman and killed the sons of Varshikh the demon. He killed the people born in the clan of Varshikh living in the city over the bank of river Hariyupiya. The sons of Varshikh living in the upper segment were gripped with fear.
त्रिंशच्छतं वर्मिण इन्द्र साकं यव्यावत्यां पुरुहूत श्रवस्या।
वृचीवन्तः शरवे पत्यमानाः पात्रा भिन्दानान्यर्थान्यायन्
हे बहुजनाहूत इन्द्र देव! युद्ध में आपको जीतकर अन्न अथवा यश प्राप्त करें ऐसी कामना करने वाले, यज्ञ पात्रों का भञ्जन करने वाले और कवच धारित करने वाले वरशिख के एक सौ तीस पुत्र यव्यावती के निकट आगमन करके एक काल में ही विनष्ट हो गए।[ऋग्वेद 6.27.6]
Hey Indr Dev, worshipped by many people! One hundred and thirty sons of Varshikh who used to destroy vessels used for Yagy & who wanted-wished to win you, have-attain food grains and glory-fame,  wearing shields were destroyed in a single moment by you.
यस्य गावावरुषा सूयवस्यू अन्तरू षु चरतो रेरिहाणा।
स सृञ्जयाय तुर्वशं परादाद् वृचीवतो दैववाताय शिक्षन्
जिनके रोचमान, शोभन तृणाभिलाषी पुनः-पुनः घास का आस्वादन करने वाले अश्वगण द्यावा-पृथ्वी के बीच भाग में भ्रमण करते हैं; उन्हीं इन्द्र देव ने वृचीवान के पुत्र दैववात को प्रसन्न करते हुए तुर्वश (राजा) को सृञ्जय के अधीन कर दिया।[ऋग्वेद 6.27.7]
Indr Dev who's beautiful & shining horses enjoy the grass roaming between the earth & heavens; placed king Turvash under Sranjay to please Daevvat, son of Vrachiwan.
द्वयाँ अग्ने रथिनो विंशतिं गा वधूमतो मघवा मह्यं सम्राट्।
अभ्यावर्ती चायमानो ददाति दूणाशेयं दक्षिणा पार्थवानाम्
हे अग्नि देव! अतिशय धन देने वाले और राजसूय यज्ञ करने वाले चयमान के पुत्र राजा अभ्यवर्त्ती ने हमें स्त्रियों से युक्त रथ और बीस गौएँ प्रदान की। पृथु के वंशधर राजा अभ्यवर्ती की यह दक्षिणा अनश्वर है।[ऋग्वेद 6.27.8]
Hey Agni Dev! Highly donating and performer of Rajsuy Yagy Abhyvarti, son of king of Chayman granted us charoite with women and twenty cows. The donation-Dakshina by Abhyvarti, a descendent of king Prathu is imperishable.(21.09.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (28) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :- गौ, इन्द्र;  छन्द :-त्रिष्टुप्, जगती, अनुष्टुप्।
आ गावो अग्मन्नुत भद्रमक्रन्त्सीदन्तु गोष्ठे रणयन्त्वस्मे।
प्रजावतीः पुरुरूपा इह स्युरिन्द्राय पूर्वीरुषसो दुहानाः
गौएँ हमारे घर आवें और हमारा कल्याण करें। वे हमारे गोष्ठ में उपवेशन करें और हमारे ऊपर प्रसन्न हों। इस गोष्ठ में नाना वर्ण वाली गौएँ सन्तति सम्पन्न होकर प्रात: काल में इन्द्र देव के लिए दुग्ध प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.28.1]
Let cows come to our house and resort to our welfare. They should reside in our cow shed and become happy with us. Cows of different colours should have progeny and yield milk for Indr Dev in the morning.
इन्द्रो यजने पृणते च शिक्षत्युपेद्ददाति न स्वं मुषायति।
भूयोभूयो रयिमिदस्य वर्धयन्नभिन्ने खिह्ये नि दधाति देवयुम्
इन्द्र देव यज्ञ करने वाले और प्रार्थना करने वाले को अपेक्षित धन प्रदान करते हैं। वे उन्हें सर्वदा धन प्रदान करते हैं और उनके स्वकीय धन को कभी नहीं लेते। वे निरन्तर उनके धन को बढ़ाते हैं और उन इन्द्राभिलाषी को शत्रुओं के द्वारा सुरक्षित स्थान में स्थापित करते हैं।[ऋग्वेद 6.28.2]
Indr Dev grants wealth to the doer of Yagy and his worshipers. He just keep on granting them money and do not take their wealth. He continuously increase their wealth and keep them at safe place.
न ता नशन्ति न दभाति तस्करो नासामामित्रो व्यथिरा दधर्षति।
देवाँश्च याभिर्यजते ददाति च ज्योगित्ताभिः सचते गोपतिः सह
गौएँ हमारे समीप से नष्ट न हों। चोर हमारी गौओं को न चुरायें। शत्रुओं का शस्त्र हमारी गौओं को क्षति न पहुँचावें । गोस्वामी याजकगण जिन गौओं से इन्द्रादि का यजन करते हैं और जिन गौओं को इन्द्रदेव के लिए प्रदान करते हैं, उन गौओं के साथ वे चिरकाल तक सुखी रहें।[ऋग्वेद 6.28.3]
Our cows should be safe. Thieves should not steal them. Enemy should not harm them. The owner of cows who worship Indr Dev with cows and grant them to him, should survive-live with the cows for long.
न ता अर्वा रेणुककाटो अश्नुते न संस्कृतत्रमुप यन्ति ता अभि।
उरुगायमभयं तस्य ता अनु गावो मर्तस्य वि चरन्ति यजनः
धूल उड़ाने वाले वेगगामी अश्व भी उन गौओं को न पा सकेगें। इन गौओं पर वध करने के लिए प्रहार न करें। यागशील मनुष्य की गौएँ निर्भय और स्वाधीन भाव से भ्रमण करती हैं।[ऋग्वेद 6.28.4]
The speeded horses who raise dust, will not be able to have-catch these cows. Do not strike the cows for killing them. Cows of the person who perform Yagy roam fearlessly and independently. 
गावो भगो गाव इन्द्रो मे अच्छान् गावः सोमस्य प्रथमस्य भक्षः।
इमा या गावः स जनास इन्द्र इच्छामीद्धृदा मनसा चिदिन्द्रम्
गौएँ हमें धन प्रदान करनी वाली हों। इन्द्र देव हमें गौएँ प्रदान करें। गाय का दूध सबसे पहले सोमरस में मिलाया जाता है। हे मनुष्यों! ये गौएँ इन्द्र रूप हैं, श्रद्धायुक्त मन से हम जिनकी कामना करते हैं।[ऋग्वेद 6.28.5]
Let the cows yield money to us. Let Indr Dev grant cows to us. Cows milk is mixed with Somras at first. Hey Humans! These cows are like Indr Dev which are worshiped by us with faith-honour.
यूयं गावो मेदयथा कृशं चिदश्रीरं चित्कृणुथा सुप्रतीकम्।
भद्रं गृहं कृणुथ भद्रवाचो बृहद्वो वय उच्यते सभासु
हे गौओं! आप हमें पुष्टि प्रदान करें। आप क्षीण और अमंगल अंग को सुन्दर बनावें। हे कल्याणयुक्त वचन वाली गौओं! हमारे गृह को कल्याणयुक्त करें। हे गौओं! यज्ञशाला में आपका महान् अन्न ही कीर्तित होता है।[ऋग्वेद 6.28.6]
Hey cows! Nourish us. Make our weak and unfit organs strong. Hey cows speaking welfare words! Make out house full of welfare. Hey cows! Your great food grains are appreciated-offered in the Yagy house.
प्रजावतीः सूयवसं रिशन्तीः शुद्धा अपः सुप्रपाणे पिबन्तीः।
मा वः स्तेन ईशत माघशंसः परि वो हेती रुद्रस्य वृज्याः
हे गौओ! आप सन्तान युक्त होवें। शोभन तृण का भक्षण करें और सुख से प्राप्त करने में योग्य तालाब आदि का निर्मल जल पीवें। आपका शासक चोर न हो और व्याघ्रादि आपके ईश्वर न हो अर्थात् हिंसक जन्तु आपके ऊपर आक्रमण न करें। कालात्मक परमेश्वर का आयुध आपसे दूर रहे।[ऋग्वेद 6.28.7]
Hey cows! You should have progeny. Eat good straw and drink the water from the pond comfortably. Your master-owner should not be a thief, the beasts should not be able to harm-overpower you. The weapons of death of the Almighty should keep away from you, at all times.
उपेदमुपपर्चनमासु गोषूप पृच्यताम्। उप ऋषभस्य रेतस्युपेन्द्र तव वीर्ये
हे इन्द्र देव! आपके बलाधान के निमित्त गौओं की पुष्टि प्रार्थित हों एवं गौओं के गर्भाधानकारी वृषभों का बल प्रार्थित हो अर्थात् गौओं के पुष्ट होने पर तत्सम्बन्धी क्षीरादि द्वारा इन्द्रदेव सन्तुष्ट होते हैं।[ऋग्वेद 6.28.8]
Hey Indr Dev! Its requested that the cows should be strong for your growth and the strength of the bulls who lead to their fertilisation. Indr Dev should be satisfied with the milk, curd, Ghee etc yielded by the cows.(22.09.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (29) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :- इन्द्र;  छन्द :- त्रिष्टुप।
इन्द्रं वो नरः सख्याय सेषुर्महो यन्तः सुमतये चकानाः।
महो हि दाता वज्रहस्तो अस्ति महामु रण्वमवसे यजध्वम्
हे याजकों! आपके नेतृ स्वरूप ऋत्विक लोग मित्र भाव से इन्द्र देव की परिचर्या करते हैं। वे महान स्तोत्रों का उच्चारण करते हैं और उनकी बुद्धि शोभन तथा अनुग्रहात्मिका है; क्योंकि वज्रपाणि इन्द्र देव महान धन प्रदान करते हैं; इसलिए रमणीय और महान इन्द्र देव की पूजा, रक्षा के लिए करें।[ऋग्वेद 6.29.1]
रमणीय :: सुखद, रमणीय, सुहावना, ख़ुशगवार, मनोरम, रमणीय, सुहावना, ललित, आनंदकर, आनंदमय, हर्षजनक, आनंदपूर्ण, आनंदित, आनंद देने वाला, रमण योग्य, सुंदर; delightful, delectable, enjoyable.
Hey Hosts! The Ritviz who are like your eyes serve-worship Indr Dev like a friend. They recite great Strotrs which shows their excellent thoughts-ideas and obelizing nature, since Vajr wielding Indr Dev grants great wealth. Hence, worship delightful Indr Dev for protection.
आ यस्मिन्हस्ते नर्या मिमिक्षुरा रथे हिरण्यये रथेष्ठाः।
आ रश्मयो गभस्त्योः स्थूरयोराध्वन्नश्वासो वृषणो युजानाः
जिन इन्द्र देव के हाथ में मनुष्यों के हितकर धन संचित हैं, जो रथ पर चढ़ने वाले इन्द्र देव सुवर्णमय रथ पर आरूढ़ होते हैं, जिनके विशाल बाहुओं में रश्मियाँ नियमित हैं, जिन इन्द्र देव को सेचन करने वाले (बलिष्ठ) और रथ में युक्त अश्वगण वहन करते हैं, हम उन इन्द्र की स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 6.29.2]
We worship Indr Dev, who possess wealth beneficial for the humans. He rides the golden charoite, with the hands emitting light rays. Strong horses are deployed in his charoite.
श्रिये ते पादा दुव आ मिमिक्षुर्धृष्णुर्वज्री शवसा दक्षिणावान्।
वसानो अत्कं सुरभिं दृशे कं स्व१ र्ण नृतविषिरो बभूथ
हे इन्द्र देव! ऐश्वर्य लाभ के लिए भरद्वाज आपके चरणों में परिचरण समर्पित करते हैं। आप बल द्वारा शत्रुओं को पराजित करते हैं, वज्र धारण करते हैं और श्रोताओं को धन देते हैं। हे नेता इन्द्रदेव! आप सभी के दर्शनार्थ प्रशस्त और सतत गमनशीलरूप धारित करके सूर्यदेव के सदृश परिभ्रमणशील होते हैं।[ऋग्वेद 6.29.3]
Hey Indr Dev! Rishi Bhardwaj offer adoration at your feet for grandeur. You defeat the enemies with might, wield Vajr and grants wealth to the Stotas. Hey leader-lord Indr Dev! You adopt figure to rotate-revolve like the Sun-Sur Dev to be seen by all.
स सोम आमिश्लतमः सुतो भूद्यस्मिन्पक्तिः पच्यते सन्ति धानाः।
इन्द्रं नरः स्तुवन्तो ब्रह्मकारा उक्था शंसन्तो देववाततमाः
सोमरस के अभिषुत होने पर वह भली-भाँति मिश्रित हुआ है, जिसके अभिषुत होने पर पाक योग्य पुरोडाशादि पकाया जाता है। भुने जौ हवि के लिए संस्कृत होते हैं। हविर्लक्षण अन्न के कर्ता ऋत्विक लोग स्तोत्रों के द्वारा इन्द्र देव का स्तवन करते हैं। शास्त्रों का उच्चारण करते हुए वे देवता के निकटस्थ होते हैं।[ऋग्वेद 6.29.4]
Somras is extracted properly, thoroughly mixed & Purodas is backed. Roasted barley are ready for offerings. The Ritviz worship Indr Dev with the Strotr and keep food grains ready meant for offerings. Reciting the scriptures they become close to the demigods-deities.
न ते अन्तः शवसो धाय्यस्य वि तु बाबधे रोदसी महित्वा।
आ ता सूरिः पृणति तूतुजानो यूथेवाप्सु समीजमान ऊती
हे इन्द्र देव! आपके बल को हम लोग नहीं जानते। द्यावा-पृथ्वी आपके जिस महान् बल से भयभीत हो जाती है, गोपाल लोग जिस प्रकार से जल द्वारा गौओं को तृप्त करते हैं, उसी प्रकार स्तोता शीघ्र तृप्तिकारक हव्य द्वारा भली-भाँति यज्ञ करके आपको तृप्त करते हैं।[ऋग्वेद 6.29.5]
Hey Indr Dev! We are unaware of your might. The earth & heavens become afraid of your great strength. The way the cow heard satisfy the cows with water, the Stotas use satisfying offerings for the Yagy.
एवेदिन्द्रः सुहव ऋष्वो अस्तूती अनूती हिरिशिप्रः सत्वा।
एवा हि जातो असमात्योजाः पुरू च वृत्रा हनति नि दस्यून्
हरित नासा वाले महेन्द्र, इस प्रकार से सुख पूर्वक आह्वान करने के योग्य होते हैं। ये स्वयं उपस्थित अथवा अनुपस्थित हों; किन्तु स्तोताओं को धन प्रदान करते हैं। इस प्रकार से प्रादुर्भूत होकर उत्कृष्टतर बल वाले इन्द्र देव बहुत से वृत्रासुर जैसे राक्षसों तथा शत्रुओं को मारते हैं।[ऋग्वेद 6.29.6]
Indr Dev-Mahendr, with green nose deserve to be invoked comfortable. Whether he is present or not, he grants wealth to the Stotas. Indr Dev invoke and kill the demons & enemies with excellent might, power, strength.(23.09.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (29) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :- इन्द्र;  छन्द :- त्रिष्टुप।
भूय इद्वावृधे वीर्यायँ एको अजुर्यो दयते वसूनि।
प्र रिरिचे दिव इन्द्रः पृथिव्या अर्धमिदस्य प्रति रोदसी उभे
वृत्र वधादि वीर कार्य करने के लिए इन्द्रदेव पुनः प्रवृद्ध हुए। मुख्य और जरारहित इन्द्र देव स्तोताओं को धन प्रदान करें। इन्द्रदेव द्यावा-पृथ्वी का अतिक्रमण करते हैं। इनका आधा भाग ही द्यावा-पृथ्वी के सदृश है अर्थात् प्रतिनिधि है।[ऋग्वेद 6.30.1]
Indr Dev who killed Vratr etc., got ready again. Indr Dev, free from old age, grants wealth to the Stotas. He cross the limits of both earth & heavens. His half body is like the earth-heavens.
अधा मन्ये बृहदसुर्यमस्य यानि दाधार नकिरा मिनाति।
दिवेदिवे सूर्यो दर्शतो भूद्वि सद्मान्युर्विया सुक्रतुर्धात्
अभी हम इन्द्र देव के बल का स्तवन करते हैं। वह बल असुरों के वध में कुशल है। ये जिन कर्मों को धारित करते हैं, उनकी हिंसा कोई भी नहीं करता। वे प्रतिदिन वृत्रावृत सूर्य देव को दर्शनीय बनाते हैं। शोभन कर्म करने वाले इन्द्र देव ने भुवनों को विस्तारित किया।[ऋग्वेद 6.30.2]
We worship the might of Indr Dev. He is expert in killing the demons. His endeavours can not be hindered by any one. He makes the rotating-revolving Sun beautiful, Indr Dev performing great deeds, extended-expanded the abodes.
अद्या चिन्नू चित्तदपो नदीनां यदाभ्यो अरदो गातुमिन्द्र।
नि पर्वता अद्मसदो न सेदुस्त्वया दृळ्हानि सुक्रतो रजांसि
हे इन्द्र देव! पूर्व के समान आज भी आपका नदी सम्बन्धी कार्य विद्यमान है। नदियों के बहने के लिए आपने मार्ग बनाया। भोजनार्थ उपविष्ट मनुष्यों के समान पर्वतगण आपकी आशा से निश्चल भाव से उपविष्ट हैं। हे शोभन कर्म करने वाले इन्द्र देव! सम्पूर्ण लोक आपके द्वारा स्थिर हुए।[ऋग्वेद 6.30.3]
निश्चल :: अचल, स्थिर, अपरिवर्तनशील; immobile, static, stagnant.
Hey Indr Dev! Your endeavours pertaining to the rivers are still present-functional. You created path for the rivers to flow. The mountains are static like the hungry people. Hey performer of beautiful-appreciable deeds Indr Dev! You made the entire abode stationary-static.
सत्यमित्तन्न त्वावाँ अन्यो अस्तीन्द्र देवो न मर्त्यो ज्यायान्।
अहन्नहिं परिशयानमर्णोऽवासृजो अपो अच्छा समुद्रम्
हे इन्द्र देव! आपके सदृश अन्य देव नहीं हैं, यह यथार्थ है। आपके सदृश कोई दूसरा मनुष्य भी नहीं है। आपसे अधिक न कोई देव है, न मनुष्य, यह जो कहा जाता है, वो पूर्णतः सत्य है। जलराशि को ढँककर वृत्रासुर का आपने ही वध किया और समुद्र की ओर जल को प्रवाहित किया।[ऋग्वेद 6.30.4]
Hey Indr Dev! Its said that neither demigod-deity nor humans match you, is a fact. You killed Vrata sur covering the water bodies and made them flow into the ocean.
त्वमपो वि दुरो विषूचीरिन्द्र दृळ्हमरुजः पर्वतस्य।
राजाभवो जगतश्चर्षणीनां साकं सूर्यं जनयन्द्यामुषासम्
हे इन्द्र देव! वृत्रासुर से आवृत जल को सभी जगह प्रवाहित होने के लिए आपने मुक्त किया। आपने बादलों के दृढ़-बन्धन को छिन्न-भिन्न किया। सूर्य, उषा और स्वर्ग को प्रकाशमान करने वाले आप सम्पूर्ण संसार के राजा बनें।[ऋग्वेद 6.30.5]
Hey Indr Dev! You released the water blocked by Vrat Sur. You teared the clouds. You should become the king of the universe by virtue of making the Sun and Usha-day break, lighted.(23.09.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (31) :: ऋषि :- सुहोत्र भरद्वाज; देवता :- इन्द्र;  छन्द :- त्रिष्टुप, शक्वरी।
अभूरेको रयिपते रयीणामा हस्तयोरधिथा इन्द्र कृष्टीः।
वि तोके अप्सु तनये च सूरेऽवोचन्त चर्षणयो विवाचः
हे धन के पालक इन्द्र देव! आप धन के प्रधान स्वामी हैं। हे इन्द्र देव! आप अपनी दोनों भुजाओं में प्रजाओं को धारित करते हैं अर्थात् सम्पूर्ण जगत् आपकी आज्ञा का अनुवर्ती है। मनुष्यगण विविध प्रकार से आपका स्तवन पुत्र, शत्रु विजयी पुत्र-पौत्र और वर्षा के लिए करते हैं।[ऋग्वेद 6.31.1]
Hey supporter-grower of wealth Indr Dev! You are the lord of wealth. Hey Indr Dev! You support the populace with your both hands. The whole world follow your dictates. The humans worship you through different means for sons, grandsons and rains.
त्वद्भियेन्द्र पार्थिवानि विश्वाच्युता चिच्च्यावयन्ते रजांसि।
द्यावाक्षामा पर्वतासो वनानि विश्वं दृळ्हं भयते अज्मन्ना ते
हे इन्द्र देव! आपके भय से व्यापक और अन्तरिक्षोद्भव उदक पतन योग्य नहीं होने पर भी मेघ द्वारा बरसाये जाते हैं। हे इन्द्र देव! आपके आगमन से द्यावा-पृथ्वी, पर्वत, वृक्ष और सम्पूर्ण स्थावर प्राणिजात भयभीत हो जाते हैं।[ऋग्वेद 6.31.2]
Hey Indr Dev! The clouds shower rain due to your fear as soon as they are saturated. Hey Indr Dev! The earth, heavens, mountains, trees and the stationary organism-living being are gripped with fear with your arrival.
त्वं कुत्सेनाभि शुष्णमिन्द्राशुषं युध्य कुयवं गविष्टौ।
दश प्रपित्वे अध सूर्यस्य मुषायश्चक्रमविवे रपांसि
हे इन्द्र देव! कुत्स के साथ प्रबल शुष्ण के विरुद्ध आपने युद्ध किया। युद्ध में आपने कुयव का वध किया। युद्ध में आपने सूर्य देव के रथ चक्र का हरण किया। तब से सूर्य देव का रथ एक ही चक्र का हो गया। पापकारी राक्षसों का आपने वध किया।[ऋग्वेद 6.31.3]
Hey Indr Dev! You fought Shushn along with Kuts and killed Kuyav. You stole one wheel of Sury Dev's charoite in war and since then it runs over one wheel, only. You killed the sinner demons.
त्वं शतान्यव शम्बरस्य पुरो जघन्थाप्रतीनि दस्योः। अशिक्षो यत्र शच्या शचीवो दिवोदासाय सुन्वते सुतक्रे भरद्वाजाय गृणते वसूनि
हे इन्द्र देव! आपने असुर शम्बरासुर के सौ नगरों को ध्वस्त किया। हे प्रज्ञावान् तथा अभिषुत सोमरस द्वारा आनन्दित इन्द्रदेव! उस समय आपने सोमाभिषव करने वाले दिवोदास को प्रज्ञापूर्वक धन प्रदान किया तथा प्रार्थना करने वाले भरद्वाज को धन प्रदान किया।[ऋग्वेद 6.31.4]
Hey Indr Dev! You destroyed the hundred forts-cities of Shambrasur. Hey intelligent-prudent, happy by drinking Somras Indr Dev! You granted wealth to the extractor of Somras Divodas, intelligently and Bhardwaj who worshiped you.
स सत्यसत्वन्महते रणाय रथमा तिष्ठ तुविनृम्ण भीमम्।
याहि प्रपथिन्नवसोप मद्रिक् च श्रुत श्रावय चर्षणिभ्यः
हे अबध्य भट वाले तथा विपुल धन वाले इन्द्र देव! आप महान् युद्ध के लिए अपने भयंकर रथ पर आरूढ़ होवें। हे प्रकृष्ट मार्ग वाले इन्द्र देव! आप रक्षा के साथ हमारे सम्मुख आगमन करें। हे विख्यात इन्द्र देव! प्रजाओं के बीच में हमें प्रख्यात करें।[ऋग्वेद 6.31.5]
भट :: लोमड़ी, गीदड़-सियार इत्यादि जानवरों के रहने का स्थान, एक घास, चूल्हे की जली हुई मिट्टी, पहलवान, मल्ल, युद्ध करने या लड़ने वाला योद्धा, विद्वान, ज्ञानी, दार्शनिक, मराठा ब्रह्मणों की उपाधि, अपमान सूचक शब्द, एक प्रकार की गाली, स्याह, काला, दूषित, लिथड़ा हुआ, भट्ट जाना, भटना, फ़ुट डेढ़ फ़ुट ऊंचा जंगली पौधा जिसके पत्ते बहुत बड़े होते हैं, एक जाति, गवय्या, दरबारी गायक, भाट, बड़ा सूराख़, बिल, ग़ार जिस में लोमड़ी गीदड़ भेड़िया वग़ैरा रहते हैं; singer, wolf,  intellectual, enlightened, warrior, animal.
Hey possessor of Bhat & enormous wealth Indr Dev! Ride your furious charoite for great war. Hey Indr Dev follower of excellent route! Join with protection. Hey famous Indr Dev! Make us famous amongest the populace.(24.09.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (32) :: ऋषि :- सुहोत्र भरद्वाज; देवता :- इन्द्र;  छन्द :- त्रिष्टुप।
अपूर्व्या पुरुतमान्यस्मै महे वीराय तवसे तुराय।
विरप्शिने वज्रिणे शंतमानि वचांस्यासा स्थविराय तक्षम्
हमने महान्, विविध शत्रुओं को मारने वाले, बलवान् वेग सम्पन्न विशेष प्रकार से स्तुति योग्य वज्रधारी और प्रवृद्ध इन्द्र देव के लिए मुख द्वारा अपूर्व, सुविस्तीर्ण और सुख दायक स्तोत्रों का उच्चारण किया।[ऋग्वेद 6.32.1]
We recited pleased-comforting, unprecedented, long Strotr in the honour of worship deserving Indr Dev who is great, slayer of several enemies, mighty, dynamic, Vajr wielding, prosperous.
स मातरा सूर्येणा कवीनामवासयगुजदद्रिं गृणानः।
स्वाधीभिर्ऋकभिर्वावशान उदुस्त्रियाणामसृजन्निदानम्
इन्द्र देव ने मेधावी अङ्गिराओं के लिए जननी स्वपूर स्वर्ग और पृथ्वी को सूर्य द्वारा प्रकाशित किया एवं अङ्गिराओं द्वारा स्तूयमान होकर पर्वतों को चूर्ण किया। इन्द्र देव ने शोभन ध्यानशील स्तोता अङ्गिराओं द्वारा बारम्बार प्रार्थित होने पर गौओं को बन्धन से मुक्त किया।[ऋग्वेद 6.32.2]
Indr Dev lightened the earth & heavens with the Sun and destroyed the mountains on being praised by Angiras. He released the cows on being worshiped-prayed by Angiras repeatedly
स वह्निभिर्ऋक्वभिर्गोषु शश्वन्मितज्ञुभिः पुरुकृत्वा जिगाय।
पुरः पुरोहा सखिभिः सखीयन्दृळ्हा रुरोज कविभिः कविः सन्
बहुत कर्म करने वाले इन्द्र देव ने हवन करने वाले, प्रार्थना करने वाले और संकुचित-जानु अङ्गिराओं के साथ मिलकर गौओं के लिए शत्रुओं को पराजित किया। मित्रभूत, मेधावी अङ्गिराओं के साथ मित्राभिलाषी और दूरदर्शी होकर इन्द्र देव ने असुर पुरियों को ध्वस्त किया।[ऋग्वेद 6.32.3]
संकुचित :: संकोच युक्त, लज्जित, सिकुड़ा हुआ; narrow, contracted.
Executer of several endeavours-deeds Indr Dev defeated the enemies of cows on being requested by the Hawan performing Angiras, having contracted thighs. Farsighted Indr Dev destroyed the cities-forts of the demons in association with friendly, intelligent Angiras.
स नीव्याभिर्जरितारमच्छा महो वाजेभिर्महद्भिश्च शुष्मैः।
पुरुवीराभिर्वृषभ क्षितीनामा गिर्वणः सुविताय प्र याहि
हे कामनाओं के पूरक, हे स्तुति द्वारा संभजनीय इन्द्र देव! आप महान् अन्न, महान् बल और बहुत वत्सवती युवती वड़वा के साथ अपने स्तुति कर्ता को मनुष्यों के बीच में सुखी करने के लिए उनके समक्ष आगमन करते हैं।[ऋग्वेद 6.32.4]
बड़वा :: घोड़ी, सूर्य की पत्नी संज्ञा जिसने घोड़ी का रूप धारण कर लिया था,
सितारों के एक समूह का अवतार जो घोड़े के आकार का है, अश्विनी नक्षत्र, वासुदेव की एक परिचारिका-दासी, एक नदी, वड़वाग्नि; mare, fire in the ocean.
Hey desires accomplishing Indr Dev, worshiped by many! You invoke before the worshiper with lots of food grains, might and young mare to make him comfortable.
स सर्गेण शवसा तक्तो अत्यैरप इन्द्रो दक्षिणतस्तुराषाट्।
इत्था सृजाना अनपावृदर्थंदिवेदिवे विविषुरप्रमृष्यम्
हिंसकों के अभिभव कर्ता इन्द्र देव सदा उद्यत बल द्वारा सतत गमन शील तेज से युक्त होकर सूर्य के दक्षिणायन होने पर जल को मुक्त करते हैं। इस प्रकार विसृष्ट जलराशि उस क्षोभ शून्य समुद्र में प्रतिदिन गिरती है, जिससे वह जलराशि लौटकर अपने स्थान पर नहीं आती।[ऋग्वेद 6.32.5]
Destroyer of the violent, dynamic Indr Dev is always ready-prepared with energy-might to release water when the Sun moves to Southern half of the earth. The water thus released falls in the oceans without tides-waves and do not return back.(25.09.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (33) :: ऋषि :- शुनहोत्र  भरद्वाज; देवता :- इन्द्र;  छन्द :- त्रिष्टुप।
य ओजिष्ठ इन्द्र तं सु नो दा मदो वृषन्त्स्वभिष्टिर्दास्वान्।
सौवश्यं यो वनवत्स्वश्वो वृत्रा समत्सु सासहदमित्रान्
हे अभीष्टवर्षक इन्द्र देव! आप हम लोगों को बलशाली, स्तुतियों द्वारा स्तवनकर्ता, शोभन यज्ञकर्ता और हव्य प्रदान करने वाला एक पुत्र प्रदान करें। वह पुत्र उत्कृष्ट अश्व पर आरूढ़ होकर संग्राम में शोभन अश्वों और प्रतिकूलताचारी शत्रुओं को पराजित करें।[ऋग्वेद 6.33.1]
Hey desires accomplishing Indr Dev! Grant us a son who is mighty, pray with Stutis-Strotr and perform decent Yagy. He should ride the excellent horse and defeat the enemy always opposing and acting in adverse directions riding beautiful horses.
त्वां ही ३ न्द्रावसे विवाचो हवन्ते चर्षणयः शूरसातौ।
त्वं विप्रेभिर्वि पणीरँशायस्त्वोत इत्सनिता वाजमव
हे इन्द्र देव! विविध स्तुति रूप वचन वाले मनुष्यगण युद्ध में रक्षा के लिए आपका आह्वान करते हैं। आपने मेधावी अङ्गिराओं के साथ पणियों का संहार किया। आपकी उपासना करने वाला पुरुष आपके द्वारा रक्षित होकर अन्न प्राप्त करता है।[ऋग्वेद 6.33.2]
Hey Indr Dev! The humans invoke-call you reciting various sacred hymns in the war, for protection. You killed the Pani demons with intelligent Angiras. One who pray-worship you, get food grains and protection from you.
त्वं ताँ इन्द्रोभयाँ अमित्रान्दासा वृत्राण्यार्या च शूर।
वधीर्वनेव सुधितेभिरत्कैरा पृत्सु दर्षि नृणां नृतम
हे शूर इन्द्रदेव! आप दस्युओं अथवा आर्यों दोनों प्रकार के शत्रुओं का संहार करते है। हे नेतृ श्रेष्ठ! जिस प्रकार काष्ठ छेदक कुठारादि से वृक्षों को काट देता है उसी प्रकार आप संग्राम में भली-भाँति प्रयुक्त अस्त्रों द्वारा शत्रुओं को काटें।[ऋग्वेद 6.33.3]
Hey brave Indr Dev! You destroy either the dacoits or the Ary, the two types of enemies. Hey great leader! The way the axe cuts-destroy the trees you should destroy the enemies loaded with various arm & ammunition; used properly in the war.
स त्वं न इन्द्राकवाभिरूती सखा विश्वायुरविता वृधे भूः।
स्वर्षाता यद्ध्वयामसि त्वा युध्यन्तो नेमधिता पृत्सु शूर
हे इन्द्र देव! आप सभी जगह गमन करने वाले हैं। आप श्रेष्ठ रक्षा के द्वारा हम लोगों की समृद्धि के वर्द्धक तथा मित्र होवें। कुछ पुरुषों से युक्त युद्ध करने वाले हम लोग धन प्राप्ति के लिए आपका आह्वान करते हैं।[ऋग्वेद 6.33.4]
Hey Indr Dev! You move every where. You should provide us best protection, increase our prosperity and be friendly with us. We are involved in fight with some people and invite-request you to seek money-riches.
नूनं न इन्द्रापराय च स्या भवा मृळीक उत नो अभिष्टौ।
इत्था गृणन्तो महिनस्य शर्मन्दिवि ष्याम पायें गोषतमाः
हे इन्द्र देव! इस समय तथा दूसरे समय में आप निश्चय ही हमारे रहें। हम लोगों की अवस्था के अनुसार सुख प्रदान करें। इस प्रकार से प्रार्थना करने वाले हम लोगों के गौओं के संभजन करने वाले होकर आपके द्युतिमान सुख में अवस्थान करें। आप महान है।[ऋग्वेद 6.33.5]
Hey great Indr Dev! You should always be with us presently & in future. Grant us pleasure-comforts according to our age. In this manner being prayed-worshiped being worshiper of cows,  grant us pleasure.(25.09.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (34) :: ऋषि :- शुनहोत्र  भरद्वाज; देवता :- इन्द्र;  छन्द :- त्रिष्टुप।
सं च त्वे जग्मुर्गिर इन्द्र पूर्वीर्वि च त्वद्यन्ति विभ्वो मनीषाः।
पुरा नूनं च स्तुतय ऋषीणां पस्पृध्र इन्द्रे अध्युक्थार्का
हे इन्द्र देव! आप में असंख्य स्तोत्र संगत होते हैं। आपसे स्तोताओं की पर्याप्त प्रशंसा निर्गत होती है। पूर्वकाल में और इस समय में भी ऋषियों को स्तोत्र उपासना और मन्त्र इन्द्र देव की पूजा के विषय में परस्पर स्पर्द्धा करते हैं।[ऋग्वेद 6.34.1]
Hey Indr Dev! Innumerable Strotr are emerge out to you. Praises shower for the Stotas out of you. Old & current the Strotr & Mantr used to compete mutually recited by the Rishis in the honour of Indr Dev.
पुरुहूतो यः पुरुगूर्त ऋभ्वाँ एकः पुरुप्रशस्तो अस्ति यज्ञैः।
रथो न महे शवसे युजानो ३ स्माभिरिन्द्रो अनुमाद्यो भूत्
हम लोग सदैव इन्द्र देव को प्रसन्न करते हैं। वे बहुजनाहूत, बहुतों के द्वारा प्रबोधित, महान, अद्वितीय एवं याजकगणों द्वारा भली-भाँति प्रार्थित हैं। हम लोग महान् लाभ करने के लिए रथ के सदृश इन्द्रदेव के प्रति अनुरक्त होकर सदैव उनकी प्रार्थना करें।[ऋग्वेद 6.34.2]
प्रबोधित :: जगाया हुआ, ज्ञान दिया हुआ; enlightened.
We always keep Indr Dev happy-pleased. He is worshiped & enlightened by numerous people being great, unparalled, unique and prayed. We always worship him for great gains attached-attracted like the charoite.
न यं हिंसन्ति धीतयो न वाणीरिन्द्रं नक्षन्तीदभि वर्धयन्तीः।
यदि स्तोतारः शतं यत्सहस्त्रं गृणन्ति गिर्वणसं शं तदस्मै
समृद्धि विधायक स्तोत्र इन्द्र देव के सम्मुख गमन करें। कर्म और स्तुतियाँ इनको बाधित नहीं करती। सैकड़ों और हजारों स्तवकारी स्तुति भाजन इन्द्र देव की प्रार्थना करके प्रसन्नता उत्पन्न करते हैं।[ऋग्वेद 6.34.3]
Let the Strotr leading to prosperity be recited before Indr Dev. Endeavours and Stutis-prayers do not interfere with it. Hundreds and thousands of worshipers keep-make Indr Dev happy.
अस्मा एतद्दिव्य१र्चेव मासा मिमिक्ष इन्द्रे न्ययामि सोमः।
जनं न धन्वन्नभि सं यदापः सत्रा वावृधुर्हवनानि यज्ञैः
इस यज्ञ दिन में स्तोत्र के योग्य पूजा के साथ प्रदत्त होने के लिए इन्द्र देव के निमित्त मिश्रित सोमरस प्रस्तुत किया जाता है। मरुस्थल के अभिमुख गमन करने वाला जल जिस प्रकार प्राणियों का पोषण करता है, उसी प्रकार हव्य के साथ स्तोत्र इन्द्र देव को आनन्दित करते हैं।[ऋग्वेद 6.34.4]
Mixed Somras is prepared in this Yagy for prayers and offered to Indr Dev. The way the water nourish the living beings directed towards the deserts, the offerings-oblations aided with Strotr amuse Indr Dev.
अस्मा एतन्मह्याङ्गूषमस्मा इन्द्राय स्तोत्रं मतिभिरवाचि।
असद्यथा महति वृत्रतूर्य इन्द्रो विश्वायुरविता वृधश्च
सभी स्थानों में जाने वाले इन्द्र देव महान संग्राम में हम लोगों के रक्षक और समृद्धि विधायक है, अतः स्तोताओं का स्तोत्र आग्रह के साथ इनके प्रति उच्चारित होता है।[ऋग्वेद 6.34.5]
आग्रह :: ज़ोर, अनुरोध, बल, हठ, इसरार, टेक, ज़िद, दृढ़ता, विनती; importunity, pertinacity, request, insistence.
Indr Dev moving all places protects us in the war and grant us prosperity, hence Strotr are recited in his honour insistently.(26.09.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (35) :: ऋषि :- नरो भरद्वाज; देवता :- इन्द्र;  छन्द :- त्रिष्टुप्।
कदा भुवन्रथक्षयाणि ब्रह्म कदा स्तोत्रे सहस्रपोष्यं दाः।
कदा स्तोमं वासयोऽस्य राया कदा धियः करसि वाजरत्नाः
हे इन्द्र देव! आप रथाधिरूढ़ के निकट हमारे स्तोत्र कब पहुँचेगें? कब आप मुझ स्तोत्र करने वाले को सहस्र पुरुषों के गो-समूह या पुत्र प्रदान करेगें? कब आप मुझ स्तोता के स्तोत्र को धन-द्वारा पुरस्कृत करेगें? कब आप अग्निहोत्रादि कार्य को अन्न द्वारा रमणीय बनावेंगे?[ऋग्वेद 6.35.1]
Hey Indr Dev! When will you ride your charoite and reach the Strotr-Stotas? When will you grant me cows or sons along with thousands of humans beings? When will you award me-the Stota, with money for the Strotr? When will you make the Agnihotr, Yagy, Hawan etc. attractive-enjoyable with food grains?
कर्हि स्वित्तदिन्द्र यन्नृभिर्नृवीरैर्वीरान्नीळयासे जयाजीन्।
त्रिधातु गा अधि जयासि गोष्विन्द्र द्युम्नं स्वर्वद्धेह्यस्मे
हे इन्द्र देव! कब आप हमारे पुरुषों के साथ शत्रुओं के पुरुषों को तथा हमारे पुत्रों के साथ शत्रुओं के पुत्रों को कब मिलायेंगे? (युद्ध में इस तरह का संश्लेषण कब होगा?) हमारे लिए आप कब संग्राम में जय प्राप्त करेगें ? कब आप गमनशील शत्रुओं से क्षीर, दधि और घृतादि धारित करनेवाली गौओं को जीतेगें? हे इन्द्र देव! कब आप हम लोगों को व्याप्त धन प्रदान करेगें?[ऋग्वेद 6.35.2]
Hey Indr Dev! When will arrange for the meeting of our enemy males with us and our children with their children-sons (cease fires, termination of war)? When will you attain victory for us in the war? When will you snatch-win the cows granting milk, curd, ghee etc. from the enemy? Hey Indr Dev! When will you grant us wealth?
कर्हि स्वित्तदिन्द्र यज्जरित्रे विश्वप्सु ब्रह्म कृणवः शविष्ठ।
कदा धियो न नियुतो युवासे कदा गोमघा हवनानि गच्छाः
हे बलवत्तम इन्द्र देव! कब आप स्तोता को विविध प्रकार का अन्न प्रदान करेगें? कब आप अपने यज्ञ और स्तोत्र को युक्त करेगें? कब आप स्तोत्रों को गोदायक करेगें?[ऋग्वेद 6.35.3]
Hey excellent might possessor Indr Dev! When will you grant food grains to the Stotas in different ways? When will you make the Strotr yielding cows?
स गोमघा जरित्रे अश्वश्चन्द्रा वाजश्रवसो अधि धेहि पृक्षः।
पीपिहीषः सुदुघामिन्द्र धेनुं भरद्वाजेषु सुरुचो रुरुच्याः
हे इन्द्र देव! आप गो दायक, अश्वों द्वारा आह्लादित करने वाला और बल द्वारा प्रसिद्ध अन्न हम प्रार्थना करने वाले भरद्वाज पुत्रों को प्रदान करें। आप अन्नों को तथा सुगमता से दुहने योग्य गौओं को परिपुष्ट करें। वे गौएँ जिससे शोभन दीप्ति वाली हों, वैसा ही आप करें।[ऋग्वेद 6.35.4]
Hey Indr Dev! Grant cows, horses, might and appreciable food grains to us-the sons-descendants of Bhardwaj Rishi. Nourish the food grains and cows which can be milked easily. Take such measures which can make the cows possess aura.
तमा नूनं वृजनमन्यथा चिच्छूरो यच्छक्र वि दुरो गृणीषे।
मा निररं शुक्रदुघस्य धेनोराङ्गिरसान्ब्रह्मणा विप्र जिन्व
हे इन्द्र देव! आप हमारे शत्रु को अन्य प्रकार से (जीवन के विपरीत अर्थात् मरण पथ से) युक्त करें। हे इन्द्र देव! आप शक्तिमान, वीर और शत्रु हन्ता हैं, इस प्रकार से हम लोग आपका स्तवन करते हैं। हे इन्द्र देव! आप विशुद्ध वस्तुओं के प्रदान कर्ता हैं। हम आपके स्तोत्रों के उच्चारण करने से विरत न हों। हे प्राज्ञ इन्द्र देव! आप अङ्गिराओं को अन्न द्वारा प्रसन्न करें।[ऋग्वेद 6.35.5]
Hey Indr Dev! Grant death to our enemy. We worship you as mighty, brave and slayer of the enemy. Grant us pure goods. We should not forget-avoid recitation of Strotr for you. Hey intelligent Indr Dev! Please the Angiras with food grains.(26.09.2023) 
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (36) :: ऋषि :- नर भरद्वाज;  देवता :- इन्द्र;  छन्द :- त्रिष्टुप।
सत्रा मदासस्तव विश्वजन्याः सत्रा रायोऽध ये पार्थिवासः।
सत्रा वाजानामभवो विभक्ता यद्देवेषु धारयथा असुर्यम्
हे इन्द्र देव! आपका सोमपान जनित हर्ष निश्चय ही सब लोगों के लिए हितकर है। आप अन्न दाता है। देवों के बीच में आप बल धारित करते है।[ऋग्वेद 6.36.1]
Hey Indr Dev! The pleasure-amusement generated in you by drinking Somras is beneficial to us. Grant us food grains. You possess might, strength, power amongest the demigods-deities.
अनु प्र येजे जन ओजो अस्य सत्रा दधिरे अनु वीर्याय।
स्यूमगृभे दुधयेऽर्वते च क्रतुं वृञ्जन्त्यपि वृत्रहत्ये
यजमान लोग विशेष प्रकार से इन्द्र देव के बल की पूजा करते हैं। वीरत्व प्राप्ति के लिए अथवा वीरकर्म करने के लिए याजकगण इन्द्र देव को पुरोभाग में धारित करते हैं। अविच्छिन्न शत्रु श्रेणी के निरोधकर्ता, हिंसाकारी और आक्रमणकारी इन्द्र देव वृत्रासुर का संहार करेंगे; इसलिए याजकगण उनकी सेवा करते हैं।[ऋग्वेद 6.35.2]
The Ritviz worship Indr Dev's might differently. They keep Indr Dev in the forward position for attaining victory. The Ritviz serve-worship him since he is destroyer of the enemies, violent and the attackers & he will kill Vrata Sur.
तं सध्रीचीरूतयो वृष्ण्यानि पौंस्यानि नियुतः सश्चुरिन्द्रम्।
समुद्रं न सिन्धव उक्थशुष्मा उरुव्यचसं गिर आ विशन्ति
संगत होकर मरुद्गण इन्द्र देव का सेवन करते हैं एवं वीर्य, बल और रथ में नियोजित अश्व भी इन्द्र देव का सेवन करते हैं। नदियाँ जिस प्रकार समुद्र में गिरती हैं, उसी प्रकार उपासना रूप बल वाली स्तुतियाँ विश्व व्यापी इन्द्रदेव तक पहुँचती हैं।[ऋग्वेद 6.36.3]
संगत :: प्रासंगिक, उचित, अनुरूप, योग्य, प्रस्तुत, अनुकूल, मुताबिक़, तर्कयुक्त, सिलसिलेवार, अविरोधी; compatible, consistent, relevant.
Marud Gan become compatible with Indr Dev and his horses deployed in the charoite, too enjoy his might. The way the river fall in the ocean, worships-prayers meet Indr Dev pervading the whole universe. 
स रायस्खामुप सृजा गृणानः पुरुश्चन्द्रस्य त्वमिन्द्र वस्वः।
पतिर्बभूथासमो जनानामेको विश्वस्य भुवनस्य राजा
हे इन्द्र देव! स्तूयमान होने पर आप बहुतों के अन्न दायक और गृह प्रदायक धन की धारा को प्रवाहित करें। आप सम्पूर्ण प्राणी के उत्कृष्ट स्वामी और सम्पूर्ण भूतजात के असाधारित अधीश्वर हैं।[ऋग्वेद 6.36.4]
Hey Indr Dev! On being praised you grant food grains, residence to the worshipers. You are excellent master of all living beings and their lord.
स तु श्रुधि श्रुत्या यो दुवोयुर्द्यौर्न भूमाभि रायो अर्यः।
असो यथा नः शवसा चकानो युगेयुगे वयसा चेकितानः
हे इन्द्र देव! आप श्रोतव्य स्तोत्रों को शीघ्र सुनें। हम लोगों की परिचर्या की कामना करके सूर्य देव के सदृश शत्रुओं के धन को जीतें। आप बल युक्त है। प्रत्येक काल में स्तूयमान और हव्य रूप अन्न द्वारा भली-भाँति से ज्ञायमान होकर हमारे पास पहले के समान रहें।[ऋग्वेद 6.36.5]
Hey Indr Dev! Listen to the worthy Strotr quickly. Win the wealth of the enemies like the Sun-Sury Dev, for our welfare-benefit. You are mighty-strong. Being praised and offered with oblations significantly you should be close to us.(27.09.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (37) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :- इन्द्र; छन्द :- त्रिष्टुप्।
अर्वाग्रथं विश्ववारं त उगेन्द्र युक्तासो हरयो वहन्तु।
कीरिश्चिद्धि त्वा हवते स्वर्वानृधीमहि सधमादस्ते अद्य
हे उद्यतायुध इन्द्र देव! आपके रथ में युक्त अश्व हमारे सम्मुख आपके विश्ववन्दनीय रथ को ले आवें। गुणवान् स्तोता भरद्वाज ऋषि आपका आह्वान करते हैं। वे आपकी कृपा से आनन्दित होते हुए सिद्धि प्राप्त करें।[ऋग्वेद 6.37.1]
उद्यतायुध व्यक्ति :: अस्त्र-शस्त्र धारण किये हुए; person in arms.
Hey Indr Dev ready for war, wielding arms & ammunition! Let your horses bring your worshipable charoite. Virtuous Stota Bhardwaj Rishi invoke you. Let him attain-have accomplishment by virtue of your grace.
प्रो द्रोणे हरयः कर्माग्मन्युनानास ऋज्यन्तो अभूवन्।
इन्द्रो नो अस्य पूर्व्यः पपीयाद्युक्षो मदस्य सोम्यस्य राजा
हरित वर्ण सोमरस हमारे यज्ञ में प्रवाहित होता है और पवित्र होकर कलशों में भरा जाता है। पुरातन, दीप्ति सम्पन्न और मदकारक सोमरस के अधिपति इन्द्र देव हमारे सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 6.37.2]
Green coloured Somras flow in our Yagy and purified-cleansed & filled in urn-pitchers. Let the Lord of Somras Indr Dev drink our intoxicating Somras.
आसस्राणासः शवसानमच्छेन्द्रं सुचक्रे रथ्यासो अश्वाः।
अभि श्रव ऋज्यन्तो वहेयुर्नू चिन्नु वायोरमृतं वि दस्येत्
चतुर्दिक् गमन करने वाले, रथ में युक्त और सरलता पूर्वक गमन करने वाले अश्वगण सुदृढ़ रथ चक्र पर अवस्थित बलशाली इन्द्र देव को हमारे समक्ष ले आवें। अमृतमय सोमलक्षण हवि वायु से नष्ट न हों अर्थात् सोमरस के बिगड़ने के पहले ही इन्द्र देव सोमरस को पीवें।[ऋग्वेद 6.37.3]
Let the horses deployed in the charoite roaming in all directions bring Indr Dev to us. Let Indr Dev drink the Somras which is like the elixir prior to be spoiled by air.
वरिष्ठो अस्य दक्षिणामियर्तीन्द्रो मघोनां तुविकूर्मितमः।
यया वज्रिवः परियास्यंहो मघा च धृष्णो दयसे वि सूरीन्
निरतिशय बलशाली और बहुविधि कार्य करने वाले इन्द्र देव हविस्व रूप धन वाले व्यक्तियों के बीच में याजकगण को दक्षिणा प्रदान करते हैं। हे वज्रधर! आप दक्षिणा द्वारा पाप का नाश करें। हे शत्रु विजयी! आप वैसी दक्षिणा प्रेरित करें, जिससे धनराशि और स्तुतिकर्ता पुत्र हमें प्राप्त हों।[ऋग्वेद 6.37.4]
Highly powerful Indr Dev, performing various deeds, grant wealth like oblations to the Ritviz as Dakshina. Hey wielder of Vajr! Destroy the sin through Dakshina. Hey winner of the enemy! Let the Dakshina granted by you inspire wealth and sons singing Stuti-sacred hymns.
Dakshina :: Money granted for performing Yagy.
इन्द्रो वाजस्य स्थविरस्य दातेन्द्रो गीर्भिर्वर्धतां वृद्धमहाः।
इन्द्रो वृत्रं हनिष्ठो अस्तु सत्वा ता सूरिः पृणति तूतुजानः
इन्द्र देव श्रेष्ठ अन्न अथवा बल के दाता हैं। अत्यधिक तेजोयुक्त इन्द्र देव हम लोगों की प्रार्थना द्वारा वर्द्धित हों। शत्रुओं का संहार करने वाले इन्द्र देव शत्रुओं का नाश करें। प्रेरक इन्द्र देव वेगवान होकर हम लोगों को समस्त धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.37.5]
Indr Dev grant best food grains and strength-nourishment. Possessed with might let Indr dev flourish with our prayers. Let him destroy the enemy. Let inspiring Indr Dev grant us money quickly.(27.09.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (38) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :- इन्द्र; छन्द :- त्रिष्टुप्।
अपादित उदु नश्चित्रतमो महीं भर्षद्युमतीमिन्द्रहूतिम्।
पन्यसीं धीतिं दैव्यस्य यामञ्जनस्य रातिं वनते सुदानुः
आश्चर्यतम इन्द्र देव हम लोगों के पान पात्र से सोमरस का पान करें। वे महान और दीप्तिमान स्तुति को स्वीकार करें। दानशील इन्द्र देव धार्मिक याजकगण के यज्ञ में अतिशय स्तुत्य परिचरण और हव्य ग्रहण करें।[ऋग्वेद 6.38.1]
Amazing Indr Dev should drink Somras from our vessels. He should accept the great and glorious prayers. Highly donating Indr Dev should accept the prayers and offerings in the Yagy of holy-virtuous Ritviz.
दूराचिदा वसतो अस्य कर्णा घोषादिन्द्रस्य तन्यति ब्रुवाणः।
एयमेनं देवहूतिर्ववृत्यान्मद्रय् १ गिन्द्रमियमृच्यमाना
इन्द्र देव के दोनों कान दूर देश से भी स्तोत्र सुनने के लिए आते हैं। स्तोता उच्च स्वर से स्तोत्र पाठ करते हैं। इनका आह्वान करने वाली यह प्रार्थना स्वयं प्रेरित होकर इन्द्र देव को हमारे समीप ले आवें।[ऋग्वेद 6.38.2]
Indr Dev's ears hear the Strotr from a distant place. The Stotas recite Strotr in loud voice. Their invoking pryers inspire Indr Dev to come to them.
तं वो धिया परमया पुराजामजरमिन्द्रमभ्यनूष्यर्कैः।
ब्रह्मा च गिरो दधिरे समस्मिन्महाँश्च स्तोमो अधि वर्धदिन्द्रे
हे इन्द्र देव! आप प्राचीन और क्षय रहित है। हम उत्कृष्ट तम प्रार्थना और हव्य द्वारा आपका स्तवन करते हैं; इसीलिए इन्द्र देव में हव्य रूप अन्न और स्तोत्र निहित है। महान स्तोत्र अधिक वर्द्धमान होता है।[ऋग्वेद 6.38.3]
Hey Indr dev! You are eternal and immortal. We worship you with excellent prayers, hence Indr dev possess offerings in the form of food grains and Strotr. Great Strotr lead to more-better progress.
वर्धाद्यं यज्ञ उत सोम इन्द्रं वर्धाद्ब्रह्म गिर उक्था च मन्म।
वर्धाहैनमुषसो यामन्नक्तोर्वर्धान्मासाः शरदो द्याव इन्द्रम्
जिन इन्द्र देव को यज्ञ और सोमरस वर्द्धित करते हैं, जिन इन्द्र देव को हव्य, स्तुति, उपासना और पूजा वर्द्धित करती हैं, दिन और रात्रि की गति जिन्हें वर्द्धित करती है एवं जिन्हें मास, संवत्सर और दिन वर्द्धित करते हैं।[ऋग्वेद 6.38.4]
Indr Dev progress-grow due to the Yagy, Somras; offerings, Stuti-prayers, worship, the speed of day & night, months, fortnight and the day.
एवा जज्ञानं सहसे असामि वावृधानं राधसे च श्रुताय।
महामुग्रमवसे विप्र नूनमा विवासेम वृत्रतूर्येषु॥
हे मेधावी इन्द्र देव! आप इस प्रकार से प्रादुर्भूत, समृद्ध बलशाली और प्रचण्ड हैं। हम लोग आज धन, कीर्ति, रक्षा और शत्रु विनाश के लिए आपकी सेवा करते हैं।[ऋग्वेद 6.38.5]
प्रचण्ड :: कठोर, प्रचण्ड, उग्र, कडा; terrific, severe.
प्रादुर्भूत :: प्रकट हुआ, उत्पन्न; rarefied, outbreak, visitation.
Hey Indr Dev! You are terrific, mighty and rarefied. We serve-worship you for wealth, fame, protection and destruction of the enemy.(28.09.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (39) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :- इन्द्र; छन्द :- त्रिष्टुप्।
मन्द्रस्य कवेर्दिव्यस्य वह्नेर्विप्रमन्मनो वचनस्य मध्वः।
अपा नस्तस्य सचनस्य देवेषो युवस्व गृणते गोअग्राः
हे इन्द्र देव! आप हमारे उस सोमरस को पिवें, जो मदकारक पराक्रमकर्ता, स्वर्गीय, विज्ञ सम्मत फलदाता प्रसिद्ध और सेवनीय है। हे देव! आप हमें गो दुग्धादि एवं अन्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.39.1]
Hey Indr Dev! Drink our Somras which is famous for intoxication, valour, heavenly, in accordance with the learned-experts and useful. Hey deity! grant us cows, milk and food grains.
अयमुशानः पर्यद्रिमुस्रा ऋतधीतिभिर्ऋतयुग्युजानः।
रुजदरुग्णं वि वलस्य सानुं पर्णींर्वचोभिरभि योधदिन्द्रः
इन्हीं इन्द्र देव ने पर्वतों के बीच गुप्त रूप से रखी गयी गौवों के उद्धार के लिए यज्ञकर्ता अङ्गिरा लोगों के साथ होकर और उनके सत्य-रूप स्तोत्र द्वारा उत्तेजित होकर दुर्भेद्य पर्वत को भिन्न और ताड़ना द्वारा पणियों को पराजित किया।[ऋग्वेद 6.39.2]
Indr Dev released the cows in captivity in the tough terrain mountains secretly in association with Angiras on being excited by the truthful Strotr and defeated the demons called Panis.
अयं द्योतयदद्युतो व्य१क्तून्दोषा वस्तोः शरद इन्दुरिन्द्र।
इमं केतुमदधुर्नू चिदह्नां शुचिजन्मन उषसश्चकार
हे इन्द्र देव! इस सोमरस ने दीप्ति शून्य रात्रि, दिन और वर्ष; सबको प्रदीप्त किया। प्राचीन समय में देवों ने इस सोमरस को दिन का केतु स्वरूप स्थापित किया। इसी सोमरस ने अपनी दीप्ति से उषाओं को प्रकाशित किया।[ऋग्वेद 6.39.3]
Hey Indr Dev! This Somras has lighted the dark nights, days and the years. During ancient periods the demigods established this Somras as the motive for the day. This Somras lighted the Usha with its aura-radiance.
अयं रोचयदरुचो रुचानो ३ यं वासयद्वय्ृ १ तेन पूर्वीः।
अयमीयत ऋतयुग्भिरश्वैः स्वर्विदा नाभिना चर्षणिप्राः
इन्हीं इन्द्र देव ने सूर्य रूप से प्रकाशित होकर प्रकाश शून्य भुवनों को प्रकाशित किया और सभी जगह गतिशील दीप्ति द्वारा उषाओं का अन्धकार नष्ट किया। मनुष्यों के अभीष्ट फलदाता ये इन्द्र देव स्तोत्र द्वारा नियोजित होने वाले अश्वों द्वारा आकृष्ट और धनपूर्ण रथ पर आरूढ़ होकर गए।[ऋग्वेद 6.39.4]
Indr Dev lighted the dark abodes by assuming the task of Sun-Sury Dev and provided dynamic radiance by Usha. Accomplisher of humans prayers, Indr Dev rode the charoite controlled by the Strotr carrying wealth.
Here Indr Dev is a form of the Almighty.
नू गृणानो गृणते प्रत्न राजन्निषः पिन्व वसुदेयाय पूर्वीः।
अप ओषधीरविषा वनानि गा अर्वतो नॄनृचसे रिरीहि
हे पुरातन और प्रकाशमान इन्द्र देव! आप प्रार्थना किए जाने पर धन देने योग्य स्तोता को प्रचुर धन प्रदान करें। आप स्तोता को जल, औषधि, विषशून्य वृक्षावली, गौ, अश्व और मनुष्य प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.39.5]
Hey ancient-eternal Indr Dev! Grant sufficient wealth to the deserving Stota. Grant water, medicines, trees free from poison, cows, horses and humans.(28.09.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (40) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :- इन्द्र; छन्द :- त्रिष्टुप्।
इन्द्र पिब तुभ्यं सुतो मदायाव स्य हरी वि मुचा सखाया।
उत प्र गाय गण आ निषद्याथा यज्ञाय गृणते वयो धाः
हे इन्द्र देव! आपके मदवर्द्धन के लिए जो सोमरस अभिषुत हुआ है, उसे पान करें। अपने मित्रभूत दोनों अश्वों को रथ में नियोजित करें और इसके पीछे रथ में उन्हें छोड़ दें। स्तोताओं के बीच विराजित होकर हमारे द्वारा किए गए स्तोत्रों के उच्चारण में प्रेरणा दें। स्तोता याजकगण को अन्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.40.1]
Hey Indr Dev! Drink the Somras extracted for increasing intoxication-boosting energy. Deploy your two horses in the charoite and later release them. Present amongest the Stotas and inspire us for the recitation of the Strotr. Let the Stotas give food grains to the Ritviz. 
अस्य पिब यस्य जज्ञान इन्द्र मदाय क्रत्वे अपिबो विरप्शिन्।
तमु ते गावो नर आपो अद्रिरिन्दुं समह्यन्पीतये समस्मै
हे महेन्द्र! आपने उल्लास और वीरता प्रकट करने के लिए जन्म लेते ही जिस प्रकार से सोमरस का पान किया, उसी प्रकार सोमरस का पान करें। आपके लिए सोमरस तैयार करने के लिए गौवें, ऋत्विक, जल और पत्थर इकट्ठे होते हैं।[ऋग्वेद 6.40.2]
उल्लास :: खुशी, हर्ष, उमंग; glee, frolic.
Hey Mahendr! Drink Somras just the way you had it soon after your birth to glee. Cows, Ritviz, water and stones gathered to prepare Somras for you.
समिद्धे अग्नौ सुत इन्द्र सोम आ त्वा वहन्तु हरयो वहिष्ठाः।
त्वायता मनसा जोहवीमीन्द्रा याहि सुविताय महे नः
हे इन्द्र देव! अग्नि प्रज्वलित हुई और सोमरस अभिषुत हुआ। ढ़ोने में शक्तिशाली आपके अश्व इस यज्ञ में आपको ले आवें। हम आपकी ओर चित्त लगाकर आपका आवाहन कर रहे हैं। आप हमारी विशाल समृद्धि के लिए यहाँ पधारें।[ऋग्वेद 6.40.3]
Hey Indr Dev! Fire was ignited and Somras was extracted. Let you strong horses capable of carrying, come in the Yagy. We are concentrating our mind in you to invoke you. Come here for our prosperity.
आ याहि शश्वदुशता ययाथेन्द्र महा मनसा सोमपेयम्।
उप ब्रह्माणि शृणव इमा नोऽथा ते यज्ञस्तन्वे ३ वयो धात्
हे इन्द्र देव! आप सोमरस के पान के लिए कई बार यज्ञ में उपस्थित हुए। इसलिए इस समय सोमरस के पान की इच्छा से महान् अन्तःकरण के साथ इस यज्ञ में आवें। हमारे स्तोत्रों को श्रवण करें। आपके देह की पुष्टि के लिए याजकगण आपको सोमरस प्रदान करता है।[ऋग्वेद 6.40.4]
Hey Indr Dev! You presented yourself many times in the Yagy for drinking Somras. Hence, you should be prepared with your innerself to drink Somras in the Yagy. The Ritviz have extract, offer Somras to you for strengthening your body. 
यदिन्द्र दिवि पार्ये यदृधग्यद्वा स्वे सदने यत्र वासि।
अतो नो यज्ञमवसे नित्युत्वान्त्सजोषाः पाहि गिर्वणो मरुद्भिः
हे इन्द्र देव! आप दूरस्थित स्वर्ग, किसी अन्य स्थान या अपने घर में अथवा कहीं भी हों; वहीं से हमारी स्तुति श्रवण कर मरुद्गणों के साथ पधारकर हमारे इस यज्ञ की रक्षा करें।[ऋग्वेद 6.40.5]
Hey Indr Dev! Wherever you are, heaven, distant place or home listen-respond to our prayers and come along with Marud Gan to protect our Yagy.(29.09.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (41) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :- इन्द्र; छन्द :- त्रिष्टुप्।
अहेळमान उप याहि यज्ञं तुभ्यं पवन्त इन्दवः सुतासः।
गावो न वज्रिन्त्स्वमोको अच्छेन्द्रा गहि प्रथमो यज्ञियानाम्
हे इन्द्र देव! आप क्रोध रहित होकर हमारे यज्ञ में आवें, क्योंकि आपके लिए पवित्र सोमरस अभिषुत हुआ है। हे वज्रधर! जिस प्रकार से गौवें गोशाला में जाती हैं, उसी प्रकार सोमरस कलश में जाता है। इसलिए हे इन्द्र देव! आप पधारें। आप यज्ञ योग्य देवों में प्रधान हैं।[ऋग्वेद 6.41.1]
Hey Indr Dev! Join our Yagy free from anger, since Somras has been extracted for you. Hey wilder of Vajr! The ways cows come to the cow shed, Somras pour in the urn-pitcher. Hence, hey Indr Dev you arrive here being the senior-leader of the demigods-deities.
या ते काकुत्सुकृता या वरिष्ठा यया शश्वत्पिबसि मध्व ऊर्मिम्।
तया पाहि प्र ते अध्वर्युरस्थात्सं ते वज्रो वर्ततामिन्द्र गव्युः॥
हे इन्द्रदेव! आप जिस सुनिमित और सुविस्तृत जिह्वा से सदैव सोमरस का पान करते हैं, उसी जिह्वा से हमारे सोमरस का पान करें। सोमरस लेकर ऋत्विक लोग आपके सामने खड़े हैं। हे इन्द्र देव! शत्रुओं की गौओं को आत्मसात करने के लिए अभिलाषी आपका वज्र शत्रुओं का वध करें।[ऋग्वेद 6.41.2]
Hey Indr Dev! Drink Somras with your broad & regulated tongue here, as you always do so. The Ritviz are standing to serve Somras in front of you. Hey Indr Dev! To adopt the cows of the enemies kill the enemies with your Vajr.
एष द्रप्सो वृषभो विश्वरूप इन्द्राय वृष्णे समकारि सोमः।
एतं पिब हरिवः स्थातरुग्र यस्येशिषे प्रदिवि यस्ते अन्नम्
द्रवीभूत, अभीष्टवर्षी और विविध मूर्ति यह सोमरस मनोरथ वर्षक इन्द्र देव के लिए निर्मित हुआ है। हे अश्वों के अधिपति, सबके शासक और प्रचण्ड बलशाली इन्द्र देव! बहुत दिनों से जिसके ऊपर आपने प्रभुत्व किया और जो आपके लिए अन्न रूप माना गया, उसी सोमरस का आप पान करें।[ऋग्वेद 6.41.3]
This liquified Somras, accomplishing desires in various forms has been prepared by Indr Dev. Hey master-lord of horses, ruler of all, terrific mighty Indr Dev! Drink Somras which was under your rule and like food grains for you.
सुतः सोमो असुतादिन्द्र वस्यानयं श्रेयाञ्चिकितुषे रणाय।
एतं तितिर्व उप याहि यज्ञं तेन विश्वास्तविषीरा पृणस्व
हे इन्द्र देव! अभिषुत सोम अनभिषुत सोम से श्रेष्ठतर है और विचारशाली आपके लिए अधिक प्रसन्नताकारक है। शत्रु विजयी इन्द्र देव! आप यज्ञ साधन इस सोमरस के पास आवें और इसका पान करके समस्त शक्तियों का विकास करें।[ऋग्वेद 6.41.4]
Hey Indr Dev! Extracted Somras is better than the raw and grant pleasure, exhilarate you. Hey winner of the enemy Indr Dev! Drink this Somras and boost your powers.
ह्वयामसि त्वेन्द्र याह्यर्वाङरं ते सोमस्तन्वे भवाति।
शतक्रतो मादयस्वा सुतेषु प्रास्माँ अव पृतनासु प्र विक्षु
हे इन्द्र देव! हम आपका आवाहन करते हैं। आप हमारे सम्मुख आवें। हमारा यह सोमरस आपके शरीर के लिए पर्याप्त है। हे इन्द्र देव! अभिषुत सोमरस के पान के द्वारा प्रसन्न होवें और युद्ध में सभी शत्रुओं से हमारी चारों ओर से रक्षा करें।[ऋग्वेद 6.41.5]
Hey Indr Dev! We invoke you. Come to us. Our Somras is sufficient for your body. Hey Indr Dev! Drink this extracted Somras and be happy, protect us from all sides from the enemy.(29.09.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (42) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :- इन्द्र; छन्द :- बृहती, अनुष्टुप्।
प्रत्यस्मै पिपीषते विश्वानि विदुषे भर।
अरङ्गमाय जग्मयेऽपश्चाद्दघ्वने नरे॥
हे ऋत्विको! इन्द्र देव को सोमरस प्रदान करें; क्योंकि वे पिपासु, सर्वज्ञाता, सर्वगामी, यज्ञ में अधिष्ठाता, यज्ञ के नायक और सभी के अग्रगामी हैं।[ऋग्वेद 6.42.1]
पिपासु :: जो प्यासा हो,  तृषित, पीने का इच्छुक; thirsty.
Hey Ritviz! Provide Somras to Indr Dev, since he wish to drink it, aware of every thing, capable of moving to every place, deity & leader of the Yagy and remain forward to all.
एमेनं प्रत्येतन सोमेभिः सोमपातमम्।
अमत्रेभिर्ऋजीषिणमिन्द्रं सुतेभिरिन्दुभिः॥
हे ऋत्विको! आप सोमरस के साथ अतिशय सोमरस पान कारी इन्द्र देव के पास उपस्थित होवें। अभिषुत सोमरस से भरे हुए पात्र के साथ बलशाली इन्द्र देव के सम्मुख प्रार्थना करें।[ऋग्वेद 6.42.2]
Hey Ritviz! Present yourself with the urn-pot full of Somras in front of Indr Dev. Make requests-prayers with the extracted Somras to mighty Indr Dev.
यदी सुतेभिरिन्दुभिः सोमेभिः प्रतिभूषथ।
वेदा विश्वस्य मेधिरो धृषत्तन्तमिदेषते॥
हे ऋत्विको! अभिषुत और दीप्त सोमरस के साथ इन्द्र देव के पास उपस्थित होवें। मेधावी इन्द्रदेव आपका अभिप्राय जानते हैं और शत्रु संहार के साथ वह तुम्हारे मनोरथ को पूर्ण कर देंगे।[ऋग्वेद 6.42.3]
Hey Ritviz! Present yourself in front of Indr Dev with the extracted & aurous Somras. Intellectual Indr Dev knows your purpose for the visit. Not only will he kill the enemies, he will accomplish your desires as well.
अस्माअस्मा इदन्यसोऽध्वर्यो प्र भरा सुतम्।
कुवित्समस्य जेन्यस्य शर्धतोऽभिशस्तेरवस्परत्॥
हे ऋत्विक्! एक मात्र इन्द्रदेव को ही सोमरूप अन्न का अभिषुत रस प्रदान करें। इन्द्र देव हमारे समस्त उत्साही और जीते जाने वाले शत्रुओं के द्वेष से हमारी सदैव रक्षा करेंगे।[ऋग्वेद 6.42.4]
उत्साही :: उत्साह युक्त, उत्साहशील, सरगर्म; enthusiastic, zealous.
Hey Ritviz offer the Somras extracted from the food grains only to Indr Dev. Indr Dev will always protect us from the envy of our enthusiastic, zealous enemies who have been won by us.(30.09.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (43) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :- इन्द्र; छन्द :- उष्णिक्।
यस्य त्यच्छम्बरं मदे दिवोदासाय रन्धयः।
अयं स सोम इन्द्र ते सुतः पिब
हे इन्द्र देव! जिस सोमरस पान के उल्लास में आपने दिवोदास के लिए शम्बर का वध किया, वही सोमरस आपके लिए अभिषुत हुआ। इसलिए इसका आप पान करें।[ऋग्वेद 6.43.1]
Hey Indr Dev! The Somras for drinking which you killed Shambar for Divodas in glee, has been extracted for you. Therefore, you should drink it.
यस्य तीव्रसुतं मदं मध्यमन्तं च रक्षसे।
अयं स सोम इन्द्र ते सुतः पिब
हे इन्द्र देव! जब सोम का मादक रस, प्रातः, मध्याह्न और सायं की पूजा में अभिषुत होता है, तब आप इसे धारित करते है। यही सोमरस आपके लिए अभिषुत हुआ है, आप इसका पान करें।[ऋग्वेद 6.43.2]
Hey Indr Dev! You support-hold the intoxicating Somras extracted in the morning, noon and the evening prayers. It has been extracted for you. Please drink it.
यस्य गा अन्तरश्मनो मदे दृळ्हा अवासृजः।
अयं स सोम इन्द्र ते सुतः पिब
हे इन्द्र देव! जिस सोम के मादक रस का पान करके आपने पर्वत के बीच, अच्छी तरह से बँधी हुई गौवों को छुड़ाया था, वही सोमरस आपके लिए अभिषुत है, इसका आप पान करें।[ऋग्वेद 6.43.3] 
Hey Indr Dev! The Somras for drinking which you released the cows kept-held in the mountains has been extracted for you, drink it.
यस्य मन्दानो अन्धसो माघोनं दधिषे शवः।
अयं स सोम इन्द्र ते सुतः पिब
हे इन्द्र देव! जिस सोमरूप अन्न के रसपान से उल्लसित होकर आप असाधारित बल को धारित करते हैं, वही सोमरस आपके लिए अभिषुत हुआ है। इसका आप पान करें।[ऋग्वेद 6.43.4]
Hey Indr Dev! The Somras for drinking which you glee-frolic & possess exemplary strength has been extracted for you, drink it.(30.09.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (44) :: ऋषि :- शंयु बार्हस्पत्य; देवता :- इन्द्र; छन्द :- अनुष्टुप्, विराट्, त्रिष्टुप्।
 यो रयिवो रयिंतमो यो घुम्नैर्द्युम्नवत्तमः।
सोमः सुतः स इन्द्र तेऽस्ति स्वधापते मदः
हे धनशाली और सोमरूप अन्न के रक्षक इन्द्र देव! जो सोम अतिशय धनशाली है और जो दीप्त यश के द्वारा समुज्ज्वल है, वही सोम अभिषुत होकर आपको आनन्दित करता है।[ऋग्वेद 6.44.1]
Hey wealthy and protector of the food grains in the form of Som, Indr Dev! The Som which is rich and famous gives you pleasure on being extracted.
यः शग्मस्तुविशग्म ते रायो दामा मतीनाम्।
सोमः सुतः स इन्द्र तेऽस्ति स्वधापते मदः
हे विपुल सुखकारी और सोमरूप अन्न के रक्षाकारी इन्द्र देव! जो सोमरस आपकी प्रसन्नताकारक और आपके स्तोताओं का ऐश्वर्य विधायक है, वही सोम अभिषुत होकर आपको प्रसन्न करता है।[ऋग्वेद 6.44.2]
Hey protector of pleasure giving food grains in the form of Som, Indr Dev! The Somras gives you pleasure and grants grandeur to your Stotas on being extracted.
येन वृद्धो न शवसा तुरो न स्वाभिरूतिभिः।
सोमः सुतः स इन्द्र तेऽस्ति स्वधापते मदः
हे सोमरूप अन्न के रक्षक इन्द्र देव! जिस सोमरस के पान से प्रवृद्धबल होकर अपने रक्षक मरुतों के साथ शत्रुओं का विनाश करते हैं, वही सोम अभिषुत होकर आपको आनन्दित करता है।[ऋग्वेद 6.44.3]
Hey protector of Som in the form of food grains, Indr Dev! Drinking of which Somras makes you strong you to kill the enemies along with your protectors Marud Gan, is extracted for your happiness.
त्यमु वो अप्रहणं गृणीषे शवसस्पतिम्।
इन्द्रं विश्वासाहं नरं मंहिष्ठं विश्वचर्षणिम्
हे यजमानों! हम आपके लिए उन इन्द्र देव की प्रार्थना करते हैं, जो भक्तों के कृपालु, बल के स्वामी, विश्वजेता, यागादि क्रियाओं के नायक और श्रेष्ठ दाता तथा सर्वदर्शक हैं।[ऋग्वेद 6.44.4]
कृपालु :: दयालु, आसक्त, रिआयती, सज्जनतापूर्ण, सदय, रहमदिल, मेहरबान, अनुग्राही, तरस करनेवाला, समवेदनापूर्ण, merciful, indulgent, kind.
Hey Ritviz! We worship Indr Dev who is the Lord of might, merciful, leader in the celebrations like Yagy, best donor and watches every thing.
यं वर्धयन्तीद्गिरः पतिं तुरस्य राधसः।
तमिन्न्वस्य रोदसी देवी शुष्मं सपर्यतः
हमारी स्तुतियों द्वारा इन्द्र देव का जो शत्रु धन हरण करने वाला बल वर्द्धित होता है, उसी बल की परिचर्या स्वर्ग देव और पृथ्वी देवी करती हैं।[ऋग्वेद 6.44.5]
Swarg Dev (Heavens) &  Prathvi Devi (Earth) serve that might-strength of Indr Dev with which he snatch the wealth of the enemy by virtue of our worship-prayers, Stuti.
तद्व उक्थस्य बर्हणेन्द्रायोपस्तृणीषणि।
विपो न यस्योतयो वि यद्रोहन्ति सक्षितः
हे स्तोताओं! इन्द्र देव के लिए अपना स्तोत्र विस्तृत करें; क्योंकि मेधावी व्यक्ति की भाँति इन्द्रदेव हमारे रक्षक हैं।[ऋग्वेद 6.44.6]
Hey Stotas! Expand your Strotr for the sake Indr Dev, since like an intellectual, he is  our protector. 
अविदद्दक्षं मित्रो नवीयान्पपानो देवेभ्यो वस्यो अचैत्।
ससवान्त्स्तौलाभिर्धौ तरीभिरुरुष्या पायुरभवत्सखिभ्यः
जो याजकगण यज्ञादि कार्य में दक्ष है, उसकी बातें इन्द्र देव जानते हैं। मित्र और नवीनतर सोमरस का पान करने वाले इन्द्रदेव स्तोताओं को श्रेष्ठ धन प्रदान करते हैं। हव्यरूपी अन्न भोजन करने वाले वह इन्द्र देव प्रवृद्ध और पृथ्वी को कम्पायमान करने वाले अश्वों के साथ स्तोताओं की रक्षा की कामना से आकर उनकी रक्षा करते हैं।[ऋग्वेद 6.44.7]
Indr Dev is aware of the deeds-endeavours of the Ritviz who are expert-skilled in Yagy etc. related jobs. Mitr and Indr Dev drink freshly extracted Somras and grant best riches to the Stotas. Indr Dev who eat offerings; ride the well nourished horses, which tremble the earth, come and protect the Stotas.
ऋतस्य पथि वेधा अपायि श्रिये मनांसि देवासो अक्रन्।
दधानो नाम महो वचोभिर्वपुर्दृशये वेन्यो व्यावः
यज्ञमार्ग में सर्वदर्शी सोमरस पीया गया। ऋत्विक लोग उसी सोमरस को इन्द्र देव का चित्त आकृष्ट करने के लिए प्रदर्शित करते हैं। शत्रुजेता और विशाल देह धारित करने वाले वही इन्द्र देव हमारी प्रार्थना से प्रसन्न होकर हमारे सम्मुख प्रकट हों।[ऋग्वेद 6.44.8]
Somras was drunk in the Yagy which grants equanimity. The Ritviz demonstrate that Somras to attract the innerself of Indr Dev. Let the winner of enemies and possessor of huge body Indr Dev invoke in front of us.
द्युमत्तमं दक्षं धेह्यस्मे सेधा जनानां पूर्वीररातीः।
वर्षीयो वयः कृणुहि शचीभिर्धनस्य सातावस्माँ अविड्ढि
हे इन्द्र देव! आप हमें अतीव दीप्ति से युक्त बल प्रदान करें। अपने उपासकों के असंख्य शत्रुओं को दूर करें। अपनी बुद्धि से हमें यथेष्ट अन्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.44.9]
Hey Indr Dev! Grant us might along with radiance. Repel the numerous enemies of your worshipers. Grant us sufficient food grains by virtue of your intellect.
इन्द्र तुभ्यमिन्मघवन्नभूम वयं दात्रे हरिवो मा वि वेनः।
नकिरापिर्ददृशे मर्त्यत्रा किमङ्ग रचोदनं त्वाहुः
हे धनशाली इन्द्र देव! आपके लिए ही हम हव्य दे रहे हैं। हे अश्वों के स्वामी इन्द्र देव! हमारे प्रतिकूल न होना, मनुष्यों के बीच हम आपके अतिरिक्त किसी को अपना मित्र नहीं मानते। हे इन्द्र देव! यदि आपके अन्दर यह गुण न होता तो प्राचीन लोग आपको 'धनद' क्यों कहते?[ऋग्वेद 6.44.10]
Hey wealthy Indr Dev! We are making offerings for you. Hey Lord of horses! Don't be against us, since we do not consider any one else our friend, except you. The ancient people called-titled you Dhanad by virtue of your quality.
मा जस्वने वृषभ नो ररीथा मा ते रेवतः सख्ये रिषाम।
पूर्वीष्ट इन्द्र निष्षिधो जनेषु जह्यसुष्वीन्प्र वृहापृणतः
हे अभीष्टवर्षी इन्द्र देव! आप हमें कार्य विनाशक राक्षसादिकों के पास मत छोड़ना। आप धन युक्त हैं। आपकी मित्रता के ऊपर अवलम्बित होकर हम कोई विघ्न न प्राप्त कर सकें। मनुष्यों के बीच आपके लिए अनेक प्रकार के विघ्न उत्पन्न किये जाते हैं। जो अभिषव कर्ता नहीं हैं, उनका संहार करें और जो आपको हव्य नहीं देते, उनका विनाश करें।[ऋग्वेद 6.44.11]
अभिषव :: यज्ञादि के समय किया जाने वाला स्नान, यज्ञ, शराब चुआना, आसवन; distillation, Yagy, bathing prior to Yagy.
Hey desires accomplishing Indr Dev! Don't spare demons etc. who destroy our work, efforts-endeavours. Having dependence upon your friendship, we should not be hindered. Several types of obstructions are created for you, amongest-by the humans. Destroy those who do not bath prior to Yagy or distil Somras.
उदभ्राणीव स्तनयन्नियतन्द्रो राधांस्यश्र्व्यानि गव्या।
त्वमसि प्रदिवः कारुधाया मा त्वादामान आ दभन्मघोनः
गर्जन करने वाले पर्जन्य जिस प्रकार से मेघ उत्पन्न करते हैं, उसी प्रकार इन्द्र देव स्तोताओं को देने के लिए अश्व और गौर उत्पन्न करते हैं। हे इन्द्र देव! आप स्तोताओं के प्राचीन रक्षक है। आपको हव्य न देकर धनवान आपके प्रति अन्यथा आचरण न करें।[ऋग्वेद 6.44.12]
The way thundering Parjany Dev create clouds, similarly Indr Dev create horses and Gour for the Stotas. Hey Indr Dev! You are ancient-eternal protector of the Stotas. The rich should not act against you by failing to make offerings for you.(01.10.2023)
अध्वर्यो वीर प्र महे सुतानामिन्द्राय भर स ह्यस्य राजा।
यः पूर्व्याभिरुत नूतनाभिर्गीर्भिर्वावृधे गृणतामृषीणाम्
हे ऋत्विको! आप इन्हीं महेन्द्र को अभिषुत सोमरस अर्पित करें; क्योंकि ये ही सोम के स्वामी हैं। यही इन्द्र देव स्तोता ऋषियों के प्राचीन और नवीन स्तोत्रों के द्वारा परिवर्द्धित हुए हैं।[ऋग्वेद 6.44.13]
Hey Ritviz! Offer Somras to Mahendr since he is the Lord of Somras. Indr Dev flourished by the old and new Strotr of the Stota Rishis.
अस्य मदे पुरु वर्षांस विद्वानिन्द्रो वृत्राण्यप्रती जघान।
तमु प्र होषि मधुमन्तमस्मै सोमं वीराय शिप्रिणे पिबध्यै
ज्ञानी और अबाध प्रभाव इन्द्र देव ने इसी सोमरस का पान कर और उल्लसित होकर असंख्य प्रतिकूल आचरण करने वाले शत्रुओं का संहार किया।[ऋग्वेद 6.44.14]
Intellectual and showing extreme impact Indr Dev drunk this Somras and happily destroyed the numerous enemies who acted againt him.
पाता सुतमिन्द्रो अस्तु सोमं हन्ता वृत्रं वज्रेण मन्दसानः।
गन्ता यज्ञं परावतश्चिदच्छा वसुर्धीनामविता कारुधायाः
इन्द्र देव इस अभिषुत सोमरस का पान करें और इससे आनन्दित होकर वज्र द्वारा वृत्रासुर का संहार करें। गृहदाता, स्तोत्र रक्षक और याजकगण पालक वह इन्द्र देव दूर स्थान से भी हमारे यज्ञ में पधारें।[ऋग्वेद 6.44.15]
Let Indr Dev drink this extracted Somras and kill Vratasur with his Vajr, happily. Indr Dev who grant houses, protect the Strotr and nourish the Ritviz should reach in our Yagy even if far from us.
इदं त्यत्पात्रमिन्द्रपानमिन्द्रस्य प्रियममृतमपायि।
मत्सद्यथा सौमनसाय देवं व्य१स्मद्द्द्वेषो युयवद्वयंहः
इन्द्र देव के पीने के योग्य और प्रिय वह सोमरूप अमृत इन्द्र देव के द्वारा इस प्रकार पीया जाए कि वे हर्षित होकर हमारे ऊपर अनुग्रह करें और हमारे शत्रुओं तथा पाप को हमसे दूर करें।[ऋग्वेद 6.44.16]
Somras suitable for Indr Dev be drunk in this way he become happy and oblige us, repel our enemies and the sins.
एना मन्दानो जहि शूर शत्रूञ्जामिमजामिं मघवन्नमित्रान्।
अभिषेणाँ अभ्या३ देदिशानान्पराच इन्द्र प्र मृणा जही च॥
हे शौर्यशाली इन्द्र देव! इस सोमरस के पान से प्रसन्न होकर हमारे आत्मीय और अनात्मीय प्रतिकूलाचरण कर्ता शत्रुओं का विनाश करें। हे इन्द्र देव! हमारे सामने आए हुए अस्त्र छोड़ने वाले शत्रुओं का आयुधों सहित विनाश करें और उन्हें पराजित करके हमसे दूर भगाएँ।[ऋग्वेद 6.44.17]
Hey brave-valour possessing Indr Dev! Be happy by drinking this Somras, eliminate our own people and enemies who act against us. Hey Indr Dev! Kill those enemies who run away leaving behind their weapons, defeat them and destroy them with their arms and ammunition.
आसु ष्मा णो मघवन्निन्द्र पृत्स्व १ स्मभ्यं महि वरिवः सुगं कः।
अपां तोकस्य तनयस्य जेष इन्द्र सूरीन्कृणुहि स्मा नो अर्धम्
हे इन्द्र देव! हमारे इस समस्त युद्ध में अतुल धन हमें प्रदान करें। जय प्राप्ति में हमें समर्थ्यवान् बनावें। वर्षा, पुत्र और पौत्र के द्वारा हमें समृद्ध करें।[ऋग्वेद 6.44.18]
Hey Indr Dev! Grant us unlimited wealth in this war. Make us capable of winning the war. Enrich us with rains, son & grandson.
आ त्वा हरयो वृषणो युजाना वृषरथासो वृषरश्मयोऽत्याः।
अस्मत्राञ्चो वृषणो वज्रवाहो वृष्णे मदाय सुयुजो वहन्तु
हे इन्द्र देव! आपके अभीष्ट वर्षक, स्वेच्छा के अनुसार रथ में नियुक्त, अभीष्ट दाता रथ के ढोने वाले, जल वर्षक, किरणों द्वारा संयुक्त, द्रुत गामी, हमारे सामने आने वाले, सदैव युवा, वज्र वाहक और शोभन रूप से योजित अश्व बहुत नशा करने वाले सोमरस को पीने के लिए आपको इस यज्ञ में ले आवें।[ऋग्वेद 6.44.19]
Hey Indr Dev! Let your accomplishment granting, self deploying in the charoite, carrier of the desires accomplishing charoite, rain producing, associated with the rays, fast moving, appearing before us, always young horses bring you-the drinker of a lot of Somras, here.
आ ते वृषन्वृषणो द्रोणमस्थुर्घृतप्रुषो नोर्मयो मदन्तः।
इन्द्र प्र तुभ्यं वृषभिः सुतानां वृष्णे भरन्ति वृषभाय सोमम्
हे अभीष्ट वर्षी इन्द्र देव! आपके जलवर्षक और युवा अश्व जल का सेवन करने वाली समुद्र तरङ्गों के समान उल्लसित होकर आपके रथ में नियोजित हैं। आप युवा और काम वर्षक हैं। ऋत्विक लोग आपको पत्थरों द्वारा अभिषुत सोमरस अर्पण करते हैं।[ऋग्वेद 6.44.20]
Hey accomplishment granting Indr Dev! Let your young, rains showering horses, like the waves of the ocean, happily deploy in the charoite. You are young and sex stimulating. The Ritviz offer you the Somras extracted by crushing with stones.
वृषासि दिवो वृषभः पृथिव्या वृषा सिन्धूनां वृषभः स्तियानाम्।
वृष्णे त इन्दुर्वृषभ प्रीपाय स्वादू रसो मधुपेयो वराय
हे इन्द्रदेव! आप स्वर्ग के सेवन कर्ता, पृथ्वी के वर्षण कर्ता, नदियों के पूरण कर्ता और एकन, समवेत स्थावर जङ्गम विश्वभूतों के अभीष्टकर्ता हैं। हे अभीष्ट प्रदायक इन्द्र देव! आप श्रेष्ठ सेचनकारी हैं। आपके लिए मधु के सदृश पीने योग्य मीठा सोमरस आपके लिए प्रस्तुत है।[ऋग्वेद 6.44.21]
Hey Indr Dev! You are the resident of heavens, rain showering over the earth, filling the rivers with water, accomplisher of the desires of the stationary living beings. Hey desires accomplishing Indr Dev! You are the best nourisher. Somras as sweet as honey is ready for you to drink.
अयं देवः सहसा जायमान इन्द्रेण युजा पणिमस्तभायत्।
अयं स्वस्य पितुरायुधानीन्दुरमुष्णादशिवस्य मायाः
इस दीप्तिमान सोम ने मित्र इन्द्र देव के साथ जल लेकर बलपूर्वक पणि की प्रार्थना की। इसी सोम ने गोरूप धन को चुराने वाले द्वेषियों की माया और अस्त्रों को विनष्ट किया।[ऋग्वेद 6.44.22]
This radiant Som, along with Mitr & Indr Dev repelled Pani forcefully, snatching water from him. This Som destroyed the stealers of cows and the cast of envious along with their weapons.
अयमकृणोदुषसः सुपत्नीरयं सूर्ये अदधाज्ज्योतिरन्तः।
अयं त्रिधातु दिवि रोचनेषु त्रितेषु विन्ददमृतं निगूळ्हम्
इसी सोम ने उषाओं के पति स्वरूप सूर्य देव को शोभायमान किया। इसी सोम ने सूर्य मण्डल में दीप्ति स्थापित की। इसी सोम ने दीप्ति संयुक्त तीनों भुवनों के बीच स्वर्ग में गूढ़ भाव से अवस्थित त्रिविध अमृतों को प्राप्त किया।[ऋग्वेद 6.44.23]
This Som glorified the Sun who is like the husband of Ushas. This Som established radiance-aura in the solar system. This Som obtained the nectar-elixir from the shining three abodes where it was placed secretly, in three different ways.
अयं द्यावापृथिवी विष्कभायदयं रथमयुनक्सप्तरश्मिम्।
अयं गोषु शच्या पक्वमन्तः सोमो दाधार दशयन्त्रमुत्सम्
इसी सोम ने स्वर्ग और पृथ्वी को अपने-अपने स्थानों पर संस्थापित किया। इसी सोम ने सप्तरश्मि रथ को नियोजित किया। इसी सोम ने स्वेच्छानुसार गौओं के बीच परिणत दुग्ध के दस यन्त्रों के कूप को या बहुधारा विशिष्ट प्रस्रवण को स्थापित किया।[ऋग्वेद 6.44.24]
This Som established the heavens and the earth in their respective positions. It deployed the charoite with seven rays. This Som willingly established the ten machines to collect milk in the well amongest the cows.(02.10.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (45) :: ऋषि :- शंयु बार्हस्पत्य; देवता :- इन्द्रदेव, बृबुस्तक्षा; छन्द :- गायत्री, अतिनिवृत्, पादनिचृत्, अनुष्टुप्।
य आनयत्परावतः सुनीती तुर्वशं यदुम्। इन्द्रः स नो युवा सखा
जो उत्कृष्ट नीति द्वारा तुर्वश और यदु दूर देश से लाया, वही युवा इन्द्र देव हमारे मित्र होवें।[ऋग्वेद 6.45.1]
वह युवा इंद्र, जो अच्छे मार्ग दर्शन से, तुर्वशा और यदु को दूर से लाया, हमारे मित्र बनें।
Young Indr Dev who brought Turvash and Yadu under excellent policy from a distant place, should become our friend.
अविप्रे चिद्वयो दधदनाशुना चिदर्वता। इन्द्रो जेता हितं धनम्
जो व्यक्ति इन्द्र देव की प्रार्थना नहीं करता, उसे भी इन्द्र देव अन्न प्रदान करते हैं। इन्द्र देव धीरे-धीरे चलने वाले अश्वों पर चढ़कर शत्रुओं के मध्य निहित सम्पत्ति को जीतते हैं।[ऋग्वेद 6.45.2]
One who do not worship Indr Dev too gets food grains from him. Indr Dev rides the slow moving horses amongest the enemies to win them.
महीरस्य प्रणीतयः पूर्वीरुत प्रशस्तयः। नास्य क्षीयन्त ऊतयः
इन्द्र देव की नीतियाँ उत्कृष्ट और महान् हैं। उनकी स्तुतियाँ भी नाना प्रकार की हैं। उनकी रक्षा का कथन कभी क्षीण नहीं होता।[ऋग्वेद 6.45.3]
Indr Dev's policy, diplomacy is great. His prayers too are of different nature. His assurance for protection is never lost.
सखायो ब्रह्मवाहसेऽर्चत प्र च गायत। स हि नः प्रमतिर्मही
हे मित्रों! मन्त्र द्वारा आह्वान के योग्य उन्हीं इन्द्र देव की पूजा करें और उन्हीं की प्रार्थना करें; क्योंकि वही हमें वस्तुतः प्रकृष्ट बुद्धि प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 6.45.4]
Hey friends! Worship-pray Indr Dev who is able to be invoked through the Mantr, since its he who will grant us excellent intelligences- ideas.
त्वमेकस्य वृत्रहन्नविता द्वयोरसि। उतेदृशे यथा वयम्
हे वृत्र विनाशक इन्द्र देव! आप स्तुति करने वाले के रक्षक हैं। आप हम सब की रक्षा करें।[ऋग्वेद 6.45.5]
Hey slayer of Vratasur Indr Dev! You are the protector of the person who pray you.
नयसीद्वति द्विषः कृणोष्युक्थशंसिनः। नृभिः सुवीर उच्यसे
हे इन्द्र देव! हमारे पास से विद्वेषियों को दूर करें और स्तोताओं को समृद्धि प्रदान करें। आप शोभन पुत्र-पौत्रादि देने वाले हैं; इसलिए मनुष्य आपकी प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 6.45.6]
Hey Indr Dev! Repel the enviers away from us and grant success-progress of Stotas. You award glorious son and grandsons, hence the humans worship you.
ब्रह्माणं ब्रह्मवाहसं गीर्भिः सखायमृग्मियम्। गां न दोहसे हुवे
मैं स्तोत्र के बल से मित्र, महान मन्त्र द्वारा आह्वान के योग्य और स्तुति पात्र इन्द्र देव को गौ के समान अभीष्ट दूहने के लिए आवाहित करता हूँ।[ऋग्वेद 6.45.7]
I invoke Indr Dev with the strength-power of the Strotr who deserve to be invoked by the Mantr, worshipable and accomplishing like the milking of cow.
यस्य विश्वानि हस्तयोरूचुर्वसूनि नि द्विता। वीरस्य पृतनाषहः
वीर्यवान और शत्रु सेना को पराजित करने वाले इन्द्र देव के दोनों हाथों में दिव्य और पार्थिव धन है; ऐसा ऋषियों ने कहा हैं।[ऋग्वेद 6.45.8]
The Rishis have said that the mighty and defeater of the enemy armies Indr Dev possess divine and material wealth in his both hands.
वि दृकहानि चिदद्रिवो जनानां शचीपते। वृह माया अनानत
हे वज्रधारक और यज्ञपति इन्द्र देव! आप शत्रुओं के दृढ़ किलों, नगरों को नष्ट करते है। हे सर्वोन्नत इन्द्र देव! आप शत्रुओं की मायाओं को विनष्ट करें।[ऋग्वेद 6.45.9]
Hey wielder of Vajr and deity of Yagy! You destroy the strong forts & cities of the enemies. Hey most advanced-progressive Indr Dev! Destroy the enchant-cast of the enemies.
तमु त्वा सत्य सोमपा इन्द्र वाजानां पते। अहूमहि श्रवस्यवः
हे सत्य स्वभाव, सोमपायी और अन्न रक्षक इन्द्र देव! हम अन्नाभिलाषी होकर ऐसे गुणों से संयुक्त आपका ही आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 6.45.10]
Hey truthful, Somras drinking and protector of food grains, Indr Dev! Desirous of food grains, we invoke you who possess these qualities.
तमु त्वा यः पुरासिथ यो वा नूनं हिते धने। हव्यः स श्रुधी हवम्
हे इन्द्र देव! आप पहले आह्वान के योग्य थे और इस समय शत्रुओं के बीच रखे हुए आपको बुलाते हैं। आप हमारा आह्वान श्रवण करें।[ऋग्वेद 6.45.11]
You deserve to be invoked. Presently we invoke you surrounded by the enemies. Listen to our prayers-request.(03.10.2023)
धीभिरर्वद्भिरर्वतो वाजाँ इन्द्र श्रवाय्यान्। त्वया जेष्म हितं धनम्
हे इन्द्र देव! हमारे स्तोत्र को सुनकर आपके प्रसन्न होने पर आपकी कृपा से हम शत्रुओं के अश्व, उत्कृष्ट अन्न और गूढ़ धन को जीतने में समर्थ होवें।[ऋग्वेद 6.45.12]
Hey Indr Dev! On listening to our Strotr your happiness will make us capable of winning the horses, excellent food grains and secret wealth of the enemies.
अभूरु वीर गिर्वणो महाँ इन्द्र धने हिते। भरे वितन्तसाय्यः
हे वीर और स्तुति पात्र इन्द्र देव! आप शत्रुओं के बीच निहित धन की प्राप्ति के लिए युद्ध में शत्रुओं को जीतने में समर्थ हुए।[ऋग्वेद 6.45.13]
Hey brave and worship deserving Indr Dev! You were successful in winning the enemy along with their wealth in the war.
या त ऊतिरमित्रहन्मक्षूजवस्तमासति। तया नो हिनुही रथम्
हे रिपुञ्जय इन्द्र देव! आपकी गति अतिशय वेग से संयुक्त है। शत्रुओं को जीतने के लिए आप उसी वेग से हमारे रथ को चलने की प्रेरणा प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.45.14]
Hey winner of the enemy Indr Dev! Your moments are associated with extremely high speed. Inspire-motivate our charoites to accelerate, run-move with that speed to win the enemy.
स रथेन रथीतमोऽस्माकेनाभियुग्वना। जेषि जिष्णो हितं धनम्
हे जयशील और रथि श्रेष्ठ इन्द्र देव! आप हमारे शत्रु विजयी रथ के द्वारा शत्रुओं के द्वारा निहित धन को जीतें।[ऋग्वेद 6.45.15]
Hey winner and excellent amongest the charoite drivers! Win the accumulated wealth of the enemy through our charoite, known for winning the enemy.
य एक इत्तमु ष्टुहि कृष्टीनां विचर्षणिः। पतिर्जज्ञे वृषक्रतुः
जो सर्वदर्शी और वर्षणशील हैं, जिन्होंने एक-एक मनुष्यों के अधिपति रूप से जन्म धारित किया, उन्हीं इन्द्र देव की प्रार्थना करें।[ऋग्वेद 6.45.16]
Worship that Indr Dev who watches every thing and cause rains, born as the leader of each & every human being.
यो गृणतामिदासिथापिरूती शिवः सखा। स त्वं न इन्द्र मृळय
हे इन्द्र देव! आप रक्षा के कारण सुखदाता और मित्र हैं। हमारी प्रार्थना पर आपने प्राचीन समय में मित्रता प्रकट की। इस समय हमें सुखी करें।[ऋग्वेद 6.45.17]
Hey Indr Dev! By virtue of your protective, grants comforts and is friendly. Make us comfortable.
धिष्व वज्रं गभस्त्यो रक्षोहत्याय वज्रिवः। सासहीष्ठा अभि स्पृधः
हे वज्रधर इन्द्र देव! आप राक्षसों के नाश के लिए अपने हाथों में वज्र धारित करते हैं और स्पर्द्धा करने वाले शत्रुओं को भली-भाँति पराजित करते हैं।[ऋग्वेद 6.45.18]
Hey Vajr wielding Indr Dev! You hold Vajr in the hands for the destruction of demons and competing enemies thoroughly.
प्रत्नं रयीणां युजं सखायं कीरिचोदनम्। ब्रह्मवाहस्तमं हुवे
जो धनद, मित्र, स्तोताओं के उत्साहदाता और मन्त्रों के द्वारा आह्वान के योग्य हैं, उन्हीं प्राचीन इन्द्र देव का मैं आह्वान करता हूँ।[ऋग्वेद 6.45.19]
I invoke eternal-ancient Indr Dev who is wealthy, encouraging deserve to be invoked through Mantrs.
स हि विश्वानि पार्थिवाँ एको वसूनि पत्यते। गिर्वणस्तमो अध्रिगुः
जो स्तुति द्वारा वन्दनीय और तीव्रगामी गति हैं, वही एक मात्र इन्द्र देव ही समस्त पार्थिव धनों के ऊपर एकाधिपत्य करते हैं।[ऋग्वेद 6.45.20]
Worshipable through Stutis, dynamic, Indr Dev is the only owner of all material wealth.
स नो नियुद्धिरा पृण कामं वाजेभिरश्विभिः। गोमद्भिर्गोपते घृषत्
हे गौओं के अधिपति! आप बड़वा लोगों के साथ पधार कर अन्न, असंख्य अश्वों और धेनुओं से भली-भाँति हमारे मनोरथ को पूर्ण करें।[ऋग्वेद 6.45.21]
Hey master-leader of the cows! Come with Badava-Agni, with food grains, innumerable horses and cows to accomplish our desire.
तद्वो गाय सुते सचा पुरुहूताय सत्वने। शं यद्गवे न शाकिने
हे स्तोताओं! जिस प्रकार से घास गौ के लिए सुख दायक होती है, उसी प्रकार सोमरस के तैयार होने पर इन्द्र देव का सुख दायक स्तोत्र भी बहुसंख्यक लोगों के द्वारा वन्दनीय होता है। रिपुञ्जय इन्द्र देव के पास एकत्रित होकर गान करें।[ऋग्वेद 6.45.22]
Hey Stotas! The way grass is comforting for the cow, Somras on being ready, the comforting Strotr of Indr Dev is worshipable by numerous people. Let us gather around defeater of the enemy Indr Dev and sing in his glory.
न घा वसुर्नि यमते दानं वाजस्य गोमतः। यत्सीमुप श्रवद्गिरः
गृह प्रदाता इन्द्र देव जिस समय हमारा स्तोत्र सुनते हैं, उस समय वे गौवों के साथ अन्न प्रदान करने में विरत नहीं होते।[ऋग्वेद 6.45.23]
When house granting-awarding Indr dev listen to our Strotr, he (do not alienate) donate cows and food grains.
कुवित्सस्य प्र हि व्रजं गोमन्तं दस्युहा गमत्। शचीभिरप नो वरत्
दस्युओं के वधकर्ता इन्द्र देव कुवित्स की असंख्य धेनुओं वाली गोशाला में और उन्होंने अपने बुद्धि बल से हमारे लिए उस निगूढ़ गोवृन्द को प्रकट किया।[ऋग्वेद 6.45.24]
Destroyer of the dacoits Indr Dev showed-brought numerous cows in the cow shed of Kuvits on the strength of his intelligence.
इमा उ त्वा शतक्रतोऽभि प्र णोनुवुर्गिरः। इन्द्र वत्सं न मातरः
बहुविध कर्मों के अनुष्ठाता इन्द्र देव! जिस प्रकार से गौवें बार-बार बछड़ों के सामने जाती है, उसी प्रकार हमारी ये सारी स्तुतियाँ बार-बार आपकी ओर जाती हैं।[ऋग्वेद 6.45.25]
Hey endeavourer of many procedural rites, Yagy, sacrifices Indr Dev! The way cows move to their calf many times, our Stutis-prayers too  move to you.
दूणाशं सख्यं तव गौरसि वीर गव्यते। अश्वो अश्वायते भव
हे इन्द्र देव! आपकी मित्रता का विनाश नहीं होता। हे वीर! आप गौ चाहने वाले को गौ और अश्व चाहने वाले को अश्व प्रदान करते है।[ऋग्वेद 6.45.26]
Hey Indr Dev! Your valour is never lost. Hey brave! You provide cows to the desirous of cows and the horses to the desirous of horses.
स मन्दस्वा ह्यन्धसो राधसे तन्वा महे। न स्तोतारं निदे करः
हे इन्द्र देव! महाधन के लिए प्रदत्त सोमरस का पान करके अपने को हृदय पुष्ट करें। आप अपने उपासक को निन्दक के हाथ नहीं सौंपते।[ऋग्वेद 6.45.27]
Hey Indr Dev! Nourish your heart by drinking Somras for granting great wealth. You do not hand over your worshiper to the cynic.
इमा उ त्वा सुतेसुते नक्षन्ते गिर्वणो गिरः। वत्सं गावो न धेनवः
हे प्रार्थना द्वारा वन्दनीय इन्द्र देव! जिस प्रकार से दूध देने वाली गौवें बछड़ों के पास जाती हैं, उसी प्रकार बार-बार सोमरस के अभिषुत होने पर हमारी ये स्तुतियाँ अतिवेग से आपकी ओर जाती हैं।[ऋग्वेद 6.45.28]
Hey Indr Dev worshiped with prayers-Stutis! The way the milch cows move to their calf, our Stutis too direct to you, when the Somras is extracted.
पुरूतमं पुरूणां स्तोतॄणां विवाचि। वाजेभिर्वाजयताम्
यज्ञ मण्डप में हव्य रूप अन्न के साथ दिये गये असंख्य स्तोताओं के स्तोत्र, असंख्य शत्रुओं के नाशक आपको बलशाली करें।[ऋग्वेद 6.45.29]
Let the offerings of food grains in the Yagy Mandap with the recitation of Strotr by numerous Stotas make you mighty-strong enough to destroy numerous enemies.
अस्माकमिन्द्र भूतु ते स्तोमो वाहिष्ठो अन्तमः। अस्मान्राये महे हिनु
हे इन्द्र देव! अतीव उन्नति कारक हमारे स्तोत्र आपके पास जावे। हमें महाधन की प्राप्ति के लिए प्रेरित करें।[ऋग्वेद 6.45.30]
Hey Indr Dev! Let our highly progressive Strotr reach you and inspire you to give us great wealth.
अधि बृबुः पणीनां वर्षिष्ठे मूर्धन्नस्थात्। उरुः कक्षो न गाङ्ज्ञः/गाङ्गयः 
गङ्गा के ऊँचे तटों के समान प्राणियों के बीच ऊँचे स्थान पर बृबु ने अधिष्ठान किया।[ऋग्वेद 6.45.31]
Brabu carried out rites, religious ceremonies among the living beings who were over tall like elevated banks of Ganga.
यस्य वायोरिव द्रवद्भद्रा रातिः सहस्रिणी। सद्यो दानाय मंहते
मैं धनार्थी हूँ, बृबु ने मुझे वायु वेग के समान वदान्यता के साथ एक हजार गौवें तत्काल प्रदान की।[ऋग्वेद 6.45.32]
I seek wealth. Brabu granted me thousand cows with the speed of wind immediately.
तत्सु नो विश्वे अर्य आ सदा गृणन्ति कारवः।
बृबुं सहस्त्रदातमं सूरिं सहस्रसातमम्
हम सब लोग प्रार्थना करके हजारों गायें देने वाले विद्वान और हजारों स्तोत्रों के पात्र उन्हीं बृबु की सदैव प्रसंशा करते हैं।[ऋग्वेद 6.45.33]
We all appreciate enlightened and deserving like the thousands of Strotr Brabu, who granted thousands cows to us.(04.10.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (46) :: ऋषि :- शंयु बार्हस्पत्य; देवता :- इन्द्र; छन्द :- प्रगाथ।
त्वामिद्धि हवामहे साता वाजस्य कारवः।
तवां वृत्रेष्विन्द्र सत्पतिं नरस्त्वां काष्ठास्वर्वतः
हम स्तोता हैं। अन्न प्राप्ति के लिए आपका आवाहन करते हैं। आप साधुओं के रक्षक है; इसलिए अश्वों से युक्त युद्ध में शत्रुओं को जीतने के लिए वे आपका ही आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 6.46.1]
We are Stotas. We invoke you for the sake of food grains. You are the protector of sages. You are invoked during the war to win the enemy in which horses are deployed.
स त्वं नश्चित्र वज्रहस्त धृष्णुया महः स्तवानो अद्रिवः।
गामश्वं रथ्यमिन्द्र सं किर सत्रा वाजं न जिग्युषे
हे विचित्र वज्रपाणि वज्री! जिस प्रकार से आप युद्ध में विजयी पुरुष को यथेष्ट अन्न देते है, उसी प्रकार आप हमारी प्रार्थना से प्रसन्न होकर हमें यथेष्ट गौ और रथ वहन करने में समर्थ अश्व प्रदान करें; क्योंकि आप शत्रु नाशक और प्रतापी हैं।[ऋग्वेद 6.46.2]
Hey amazing Vajr wielding Vajri! The way you provide food grains to the winner in the war, give us sufficient cows and horses capable of pulling charoite as well, since you are glorious, destroyers of the enemy.
यः सत्राहा विचर्षणिरिन्द्रं तं हूमहे वयम्।
सहस्रमुष्क तुविनृम्ण सत्पते भवा समत्सु नो वृधे
जो प्रबल शत्रुओं के निधन कर्ता और सर्वदर्शी हैं, उन्हीं इन्द्र देव को हम बुलाते हैं। सहस्रशेक, अतुल धन युक्त और सत्पालक इन्द्र देव युद्ध स्थल में आप हमें समृद्धि प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.46.3]
We invoke Indr Dev who is the slayer of the enemy and visualise every thing. Hey possessor of innumerable wealth, protector of the truthful grant us prosperity at the war field.
बाधसे जनान्वृषभेव मन्युना घृषौ मीळह ऋचीषम।
अस्माकं बोध्यविता महाधने तनूष्वप्सु सूर्ये
हे इन्द्र देव! जैसा ऋचा में वर्णन मिलता है, वैसा ही आपका रूप है। आप तुमुल युद्ध बैल की तरह अत्यन्त क्रोध के साथ हमारे शत्रुओं पर आक्रमण करें। जिससे हम सन्तति, जल और सूर्य का दर्शन कर सकें, उसके लिए आप युद्धभूमि में हमारे रक्षक बनें।[ऋग्वेद 6.46.4]
तुमुल :: सेना की धूम, लड़ाई की हलचल, सेना की भिड़न्त, गहरी मुठभेड़, बहेड़े का पेड़, हलचल उत्पन्न करने वाला, शोरगुल से युक्त, भयंकर, तीव्र, घोर या भीषण युद्ध, मुठभेड़, घमासान, सेना का कोलाहल, बहेड़े का वृक्ष; fierce war.
Hey Indr Dev! You appear as per your description in the scriptures-Richas-hymns. Attack the enemy furiously in the fierce war like bull. Be our protector in the war so that we can have progeny, water and see the Sun.
इन्द्र ज्येष्ठं न आ भरँ ओजिष्ठं पपुरि श्रवः।
येनेमे चित्र वज्रहस्त रोदसी ओ सुशिप्र प्राः
हे शोभन हनु वाले और अद्भुत वज्र पाणि इन्द्र देव! जिस अन्न से आप स्वर्ग और पृथ्वी का पोषण करते हैं, हमारे पास वही प्रकृष्टतम, अत्यन्त बलवर्द्धक और पुष्टिकारक अन्न ले आयें।[ऋग्वेद 6.46.5]
Hey possessor of beautiful chin and amazing Vajr Indr Dev! Grant us the food grains with which you nourish the heavens & the earth. Bring us the nourishing, strengthening and excellent food grains.
त्वामुग्रमवसे चर्षणीसहं राजन्देवेषु हूमहे।
विश्वा सु नो विथुरा पिब्दना वसोऽमित्रान्त्सुषहान्कृधि
हे दीप्तिशाली इन्द्र देव! आप हमारी रक्षा करेंगे; इसलिए आपका आवाहन करते हैं। आप देवों में सबसे बलवान् और शत्रुजयी हैं। हे गृहदाता इन्द्रदेव! आप समस्त राक्षसों से हमारी रक्षा करें, जिससे हम शत्रुओं के ऊपर विजय प्राप्त कर सकें।[ऋग्वेद 6.46.6]
Hey radiant Indr Dev! We invoke you since we know that you will help us. You are the mightiest amongest the demigods-deities and winner of the enemy. Hey granter of house Indr Dev! You protect us from the demons so that we can win over-over power the enemies.
यदिन्द्र नाहुषीवाँ ओजो नृम्णं च कृष्टिषु।
यद्वा पञ्च क्षितीनां द्युम्नमा भर सत्रा विश्वानि पौंस्या
हे इन्द्र देव! मनुष्यों में जो कुछ बल और धन है और पाँचों जनों में जो अन्न हैं, वो सब समस्त महान बल के साथ हमें प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.46.7]
मनुष्यों में जो भी ताकत और ऐश्वर्य मौजूद है, पाँचों वर्गों के लोगों का भरण-पोषण जो भी हो, इंद्र को हमारे पास लाएं, साथ ही सभी महान मर्दाना ऊर्जाओं को भी हमारे पास लायें।
Hey Indr Dev! Bring the strength-might, wealth and the food grains for the nourishment of the five Varn-castes, classes of the humans for us.
यद्वा तृक्षौ मघवन्द्रुह्यावा जने यत्पूरौ कच वृष्ण्यम्।
अस्मभ्यं तद्रिरीहि सं नृषाह्येऽमित्रान्पृत्सु तुर्वणे
हे ऐश्वर्य शाली इन्द्र देव! शत्रुओं के साथ युद्ध प्रारम्भ होने पर हम उन्हें युद्ध में जीत सकें, इसके लिए आप हमें तक्षु, द्राह्य और पुरु का समस्त बल प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.46.8]
Hey Indr Dev possessing grandeur! Grant us the strength of Takshu, Drahy and Puru prior to the beginning of war with the enemies so that we can win them.
इन्द्र त्रिधातु शरणं त्रिवरूथं स्वस्तिमत्।
छर्दिर्यच्छ मघवद्भ्यश्च मह्यं च यावया दिद्युमेभ्यः
हे इन्द्र देव! हव्य रूप धन से युक्त मनुष्यों को और मुझे एक ऐसा गृह दें, जो लकड़ी, ईंट और पत्थर का बना हुआ हो और जिसमें शीत, ताप और ग्रीष्म न सतावें तथा जो गृह समृद्ध और आच्छादक हो। शत्रुओं से समस्त दीप्ति युक्त आयुधों को (हमसे) दूर करें।[ऋग्वेद 6.46.9]
Hey Indr Dev! Grant the humans houses made of wood, bricks & stones, possessing wealth in the form of offerings; capable of protecting from the cold, heat and summer with prosperity and protection. Keep off the weapons of the enemies possessing radiance-fire, light.
ये गव्यता मनसा शत्रुमादभुरभिप्रघ्नन्ति धृष्णुया।
अध स्मा नो मघवन्निन्द्र गिर्वणस्तनूपा अन्तमो भव
हे ऐश्वर्य शाली इन्द्र देव! जिन्होंने हमारी गौवें अपहृत करने के लिए हमारे ऊपर शत्रुवत् आक्रमण किया, उनसे हमारी रक्षा करने के लिए हमारे पास आवें।[ऋग्वेद 6.46.10]
Hey Indr Dev, possessing grandeur! Come to us for protection from those who attacked us like enemies to abduct our cows.
अध स्मा नो वृधे भवेन्द्र नायमवा युधि।
यदन्तरिक्षे पतयन्ति पर्णिनो दिद्यवस्तिग्ममूर्धानः
हे इन्द्र देव! इस समय हमें धन प्रदान करें। जिस समय पक्ष युक्त तीक्ष्णाग्र और दीप्त शत्रुओं के बाण आकाश से गिरते हैं, उस समय जो हमारी रक्षा करते हैं, उनकी रक्षा आप युद्धभूमि में करें।[ऋग्वेद 6.46.11]
Hey Indr Dev! Grant us money at this moment. Protect those in the battle field who protect us from the sharp, fire arms-arrows falling from the sky.
यत्र शूरासस्तन्वो वितन्वते प्रिया शर्म पितॄणाम्।
अध स्मा यच्छ तन्वे३तने च छर्दिरचित्तं यावय द्वेषः
शत्रुओं के सामने जिस समय वीर लोग अपनी देह को दिखाते और पैतृक स्थानों का परित्याग करते हैं, उस समय आप हमें और हमारी सन्तानों को शरीर रक्षा के लिए गुप्त रूप से कवच दें और शत्रुओं को दूर करें।[ऋग्वेद 6.46.12]
Grant us and our children protective shields secretly, repel our enemies when the warriors leave their parental abodes showing their bodies-muscles.
यदिन्द्र सर्गे अर्वतश्चोदयासे महाधने।
असमने अध्वनि वृजिने पथि श्येनाँ इव श्रवस्यतः
महायुद्ध प्रारम्भ होने पर आप विकट मार्ग से हमारे अश्वों को कठिन रास्ते से जाने वाले, तेजगति और अभिषार्थी बाज पक्षी के समान भेजें।[ऋग्वेद 6.46.13]
With the onset of great war direct our horses to move through the difficult route with high speed like the nominee falcon.
सिन्धूँरिव प्रवण आशुया यतो यदि क्लोशमनु ष्वणि।
आ ये वयो न ववृतत्यामिषि गृभीता बाह्वोर्गवि
यद्यपि डर के मारे घोड़े जोर-जोर से हिनहिनाते हैं, तथापि निम्न गामिनी नदियों के सदृश वे ही वेग गामी और दृढ़ संयत घोड़े, बाज पक्षियों की तरह धेनु प्राप्ति के लिए प्रवृत्त संग्राम में बार-बार दौढ़ते हैं।[ऋग्वेद 6.46.14]
Though horses neigh with fear, yet they move fast like the river flowing in the down ward direction. The strong and balanced horses run like the falcon in the war for attaining cows in the war.(06.10.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (47) :: ऋषि :- गर्ग भारद्वाज; देवता :- सोम, इन्द्रदेव, रथ, दानस्तुति, दुन्दुभि; छन्द :- त्रिष्टुप्, अनुष्टुप्, बृहती, गायत्री, जगती।
स्वादुष्किलायं मधुमाँ उतायं तीव्रः किलायं रसवाँ उतायम्।
उतो न्व१स्य पपिवांसमिन्द्रं न कश्चन सहत आहवेषु
यह अभिषुत सोमरस सुस्वादु, मधुर, तीव्र और रसवान है। इसका इन्द्र देव पान कर लेते हैं, तब संग्राम में उनके सामने कोई ठहर नहीं सकता।[ऋग्वेद 6.47.1]
This extracted Somras is tasty, sweet, sharp and juicy. No one dare confront him in the war when he drinks it.
अयं स्वादुरिह मदिष्ठ आस यस्येन्द्रो वृत्रहत्ये ममाद।
पुरूणि यश्र्च्यौत्ना  शम्बरस्य वि नवतिं नव च देह्यो ३ हन्
इस यज्ञ में पीने पर ऐसे ही सोमरस ने अत्यन्त हर्ष प्रदान किया। वृत्रासुर के विनाश के समय इन्द्र देव ने इसे पीकर प्रसन्नता प्राप्त की। इसने शम्बर की निन्यानबे पुरियों का विनाश किया।[ऋग्वेद 6.47.2]
Somras produced extreme pleasure-excitement on drinking in the Yagy. At the occasion of killing Vratasur Indr Dev became happy on drinking it. It led to the destruction of 99 cities-forts of Shambar.
अयं मे पीत उदियर्ति वाचमयं मनीषामुशतीमजीगः।
अयं षळुर्वीरमिमीत धीरो न याभ्यो भुवनं कच्चनारे
पीने पर यह सोमरस मेरे वाक्य की स्फूर्ति को बढ़ाता है। यह अभिलषित बुद्धि को प्रदान करता है। इसी सुबुद्धि सोमरस ने स्वर्ग, पृथ्वी, दिन-रात्रि, जल और औषधि आदि छः अवस्थाओं की सृष्टि की। भूतगण में कोई भी इससे दूर ठहर नहीं सकता।[ऋग्वेद 6.47.3]
On drinking Somras intensify the impact of my words. It grants desired ideas-thoughts. It led to the evolution-creation of heavens, earth, day-night, water and medicines etc. six states. Amongest the ancient-deceased people none could distinct-keep off it.
अयं स यो वरिमाणं पृथिव्या वर्ष्माणं दिवो अकृणोदयं सः।
अयं पीयूषं तिसृषु प्रवत्सु सोमो दाधारोर्व १ न्तरिक्षम्
फलत: इसी सोमरस ने पृथ्वी का विस्तार और स्वर्ग की दृढ़ता की। इसी सोमरस ने औषधि, जल और धेनु नामक तीन उत्कृष्ट आधारों में रस दिया।[ऋग्वेद 6.47.4]
As a result-outcome, this Somras extended earth and stabilized the heaven. It led to the creation of sap-juice in the three excellent states viz medicines, water and the cows.
अयं विदच्चित्रदृशीकमर्णः शुक्रसद्मनामुषसामनीके।
अयं महान्महता स्कम्भनेनोद्द्यामस्तभ्नाद् वृषभो मरुत्वान्
निर्मल आकाश में स्थित उषा के पहले यही सोमरस विचित्र दर्शन सूर्य ज्योति को प्रकट करता है। जलवर्षी और बलशाली यह सोमरस ही मरुतों के साथ सुदृढ़ स्तम्भ द्वारा स्वर्ग को धारित किये हुए हैं।[ऋग्वेद 6.47.5]
In the clear sky prior to day break-Usha, this Somras visualised the Sun rays. This  rain showering and mighty-energetic Somras stabilizes-holds the heavens in association with the Marud Gan.
धृषत्पिब कलशे सोममिन्द्र वृत्रहा शूर समरे वसूनाम्।
माध्यंन्दिने सवन आ वृषस्व रयिस्थानो रयिमस्मासु धेहि
हे वीर इन्द्र देव! धन प्राप्ति के लिए आरम्भ किए गये युद्ध में आप शत्रुओं का संहार करें। साहस के साथ कलश में स्थित सोमरस का पान करें। मध्याह्न के यज्ञ में आप बहुत सोमरस का पान करें। हे धनपात्र! हमें धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.47.6]
Hey brave-mighty Indr Dev! Destroy the enemies in the war initiated for having wealth-riches. Drink the Somras kept in the urn with courage. Drink a lot of Somras during the day kept in the pitcher during the midday. Hey lord pf riches! grant us wealth.
इन्द्र प्रणः पुरएतेव पश्य प्र नो नय प्रतरं वस्यो अच्छ। 
भवा सुपारो अतिपारयो नो भवा सुनीतिरुत वामनीतिः
हे इन्द्र देव! मार्ग रक्षक के सदृश आप अग्रगामी होकर हमारे प्रति दृष्टि रखें और हमारे सामने श्रेष्ठ धन ले आवें। आप भली-भाँति हमें दुःखों और शत्रुओं से बचावें और उत्कृष्ट नेता होकर हमें अभिलषित धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.47.7]
Hey Indr Dev! Keep an eye over us like a guide, the person who protect the roads and bring excellent wealth for us. You protect us properly-carefully from the enemies, pains & sorrow being an excellent leader and grant us plenty-a lot of money.
उरुं नो लोकमनु नेषि विद्वान्त्स्वर्वज्ज्योतिरभयं स्वस्ति।
ऋष्वा त इन्द्र स्थविरस्य बाहू उप स्थेयाम शरणा बृहन्ता
हे इन्द्रदेव! आप ज्ञानी है। हमें विस्तीर्ण लोक में सुखमय और भयशून्य आलोक में भी निर्विघ्न ले जावें। आप प्राचीन हैं। आपका अभय, सुखद, कल्याणकारी तेज, हमें आपके वरदहस्त के आश्रय में प्राप्त हों।[ऋग्वेद 6.47.8]
Hey eternal, enlightened Indr Dev! Take us to the comfortable broad abodes free from fear without trouble. Grant us asylum under your fear free and beneficial aura-energy.
वरिष्ठे न इन्द्र वन्धुरे धा वहिष्ठयोः शतावन्नश्वयोरा।
इषमा वक्षीषां वर्षिष्ठां मा नस्तारीन्मघवन्त्रयो अर्यः
हे धनाढ्य इन्द्र देव! आप हमें अपने पराक्रमी अश्वों के पीछे विस्तृत रथ पर आरूढ करें। विविध अन्नों के बीच आप हमारे लिए प्रकृष्टतम अन्न ले आवें। हे मघवन्! कोई भी धनवान् धन में हमारा अतिक्रमण न कर सकें।[ऋग्वेद 6.47.9]
Hey wealthy Indr Dev! Deploy your mighty horses in your broad charoite and let us ride it. Select the beast food grains amongest various food grains for us. Hey Maghvan! None of the rich people should be as wealthy as us.
इन्द्र मृळ मह्यं जीवातुमिच्छ चोदय धियमयसो न धाराम्।
यत्किं चाहं त्वायुरिदं वदामि तज्जुषस्व कृधि मा देववन्तम्
हे इन्द्र देव! आप मुझे सुखी करें। मेरी जीवन वृद्धि करने में प्रसन्न होवें। लौहमय खड्ग की धार के सदृश मेरी बुद्धि को तेज करें। आपको प्रसन्न करने के लिए इस समय मैं जो कुछ कह रहा हूँ, वो सब आप ग्रहण करें। देवगण मेरी रक्षा करें।[ऋग्वेद 6.47.10]
Hey Indr Dev! Make me comfortable. Be happy with my progress. Sharpen my mind like a sharp sword. Realise what I am describing you to please you. Let the demigods-deities protect me.
त्रातारमिन्द्रमवितारमिन्द्रं हवेहवे सुहवं शूरमिन्द्रम्।
ह्वयामि शक्रं पुरुहूतमिन्द्रं स्वस्ति नो मघवा धात्विन्द्रः
जो शत्रुओं से रक्षा करते हुए सभी मनोरथ पूर्ण करते हैं, जो अनायास आह्वानयोग्य, शौर्यशाली और सभी कार्यों को करने में समर्थ हैं, मैं उन्हीं बहुलोक वन्दनीय इन्द्र देव को प्रत्येक यज्ञ में आवाहित करता हूँ। हे धनवान् इन्द्र देव! हमें समृद्धि प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.47.11]
I invoke Indr Dev who is revered in all abodes, brave, mighty, protect us from the enemies and accomplish our desires, capable o executing all endeavours. Hey wealthy Indr Dev! make us prosper.(07.10.2023)
इन्द्रः सुत्रामा स्ववाँ अवोभिः सुमृळीको भवतु विश्ववेदाः।
बाधतां द्वेषो अभयं कृणोतु सुवीर्यस्य पतयः स्याम
शोभन रक्षा करने वाले और धनशाली इन्द्र देव रक्षा द्वारा हमें सुख देते हैं। वही सर्वज्ञ इन्द्र देव हमारे शत्रुओं का वध करके हमें निर्भय करते हैं। उनकी प्रसन्नता से हम अतीव वीर्यशाली बनें।[ऋग्वेद 6.47.12]
Protecting & wealthy Indr Dev protect and comfort us. He makes us fearless by killing our enemies. Let us become mighty by virtue of his pleasure.
तस्य वयं सुमतौ यज्ञियस्यापि भद्रे सौमनसे स्थाम।
स सुत्रामा स्ववाँ इन्द्रो अस्मे आराचिद् द्वेषः सनुतर्युयोतु
हम उन्हीं योगार्ह इन्द्र देव के अनुग्रह, बुद्धि और कल्याणवाही प्रीति के पात्र बनें। रक्षक और धनी वही इन्द्र देव शत्रुओं को बहुत दूर ले जावें।[ऋग्वेद 6.47.13]
हम उस आराध्य देव के पक्ष में उसकी शुभ सद्भावना में भी बने रहें; वह रक्षा करने वाले और ऐश्वर्यशाली इंद्र उन सभी को, जो हमसे घृणा करते हैं, हमसे दूर, विनाश की ओर ले जाए।
Let us become capable of Indr Dev's favours, mercy, intelligence and benefit-welfare means. Let Indr Dev drive-repel our enemies away from us to destruction.
अव त्वे इन्द्र प्रवतो नोर्मिर्गिरो ब्रह्माणि नियुतो धवन्ते।
उरू न राधः सवना पुरूण्यपो गा वज्रिन्युवसे समिन्दून्
हे इन्द्र देव! स्तोताओं की स्तुति, उपासना, विशाल धन और प्रचुर अभिषुत सोमरस, निम्र देश प्रवण जलराशि के सदृश आपकी ओर जाते हैं। हे वज्रधर इन्द्र देव! आप जल, गौ का दूध, दही, सोमरस में भली-भाँति मिलाते हैं।[ऋग्वेद 6.47.14]
Hey Indr Dev! Prayers by the Stotas, worship, huge amounts of wealth and lots of extracted Somras move towards you; like the vast amount of water moving towards low lying regions. Hey Vajr wielding Indr Dev! You properly-thoroughly mix the water, cow milk, curd and the Somras.
क ईं स्तवत्कः पृणात्को यजाते यदुग्रमिन्मघवा विश्वहावेत्।
पादाविव प्रहरन्नन्यमन्यं कृणोति पूर्वमपरं शचीभिः
भली-भाँति कौन मनुष्य इन्द्र देव की स्तुति, प्रसन्नता और यज्ञ करने में समर्थ है? धनशाली इन्द्र देव प्रतिदिन अपनी उम्र शक्ति को जानते हैं। जिस प्रकार से पथिक अपने पैरों को कभी आगे और कभी पीछे करता है, उसी प्रकार इन्द्र देव अपने बुद्धि बल से स्तोता को कभी पीछे और कभी आगे करते हैं।[ऋग्वेद 6.47.15]
Which human being is capable of worshiping, pleasing and conducting Yagy for Indr Dev? Wealthy Indr Dev is aware of his age and might-strength. The way a walker moves his feet forward and backward; similarly Indr Dev move the Stota ahead and back by virtue of his intelligence.
शृण्वे वीर उग्रमुग्रं दमायन्नन्यमन्यमतिनेनीयमानः।
एधमानद्विळुभयस्य राजा चोष्कूयते विश इन्द्रो मनुष्यान्
प्रबल शत्रु का दमन करके और स्तोताओं का स्थान सदा परिवर्तन करके इन्द्र देव अपनी वीरता के लिए प्रसिद्धि प्राप्त करते हैं। उद्धत व्यक्तियों के द्वेषी और स्वर्गीय तथा पार्थिव धनों के अधिपति इन्द्र देव अपने सेवकों को रक्षा के लिए बार-बार बुलाते हैं।[ऋग्वेद 6.47.16]
दमन :: रोक, निरोध, नियंत्रण, पराजय, आधिपत्य, वशीकरण, शमन, दबाव, अवरोध, छिपाव, स्तंभन, आत्मनियंत्रण, बलपूर्वक शांत करने का काम; suppression, repression, subjugation.
उद्धत :: अक्खड़, अविनीत; tearing, insubordinate.
द्वेष :: राग का विरोधी भाव, वैमनस्यता, विरोध, शत्रुता, वैर; malice, hatred.
Indr Dev is famous for his valour by suppression, repression of the enemy & change the position of his Stotas (for their safety). Hateful towards the subordinate and master of all material wealth Indr Dev repeatedly call his servants for protection.
परा पूर्वेषां सख्या वृणक्ति वितर्तुराणो अपरेभिरेति।
अनानुभूतीरवधून्वानः पूर्वीरिन्द्रः शरदस्तर्तरीति
इन्द्र देव पूर्वतन प्रशस्त कर्मों के अनुष्ठाताओं की मित्रता त्याग देते हैं और उनसे द्वेष करके उनकी अपेक्षा निकृष्ट व्यक्तियों के साथ मित्रता करते हैं। अथवा अपनी उपासना से रहित व्यक्तियों को छोड़कर परिचारकों के साथ अनेक वर्षों तक रहते हैं।[ऋग्वेद 6.47.17]
Indr Dev rejects the friendship of the people who performed great deeds and become hatful of them and become friendly with the lowest people. Alternatively, he resides with his servants for many years by rejecting those who are faithless.
रूपरूपं प्रतिरूपो बभूव तदस्य रूपं प्रतिचक्षणाय।
इन्द्रो मायाभिः पुरुरूप ईयते युक्ता ह्यस्य हरयः शता दश
समस्त देवों के प्रतिनिधि इन्द्र देव तीन प्रकार की मूर्तियाँ धारित करते हैं और इन रूपों को धारित कर वे अलग-अलग प्रकट होते हैं। वे माया द्वारा अनेक रूप धारित करके याजक गणों के पास उपस्थित होते हैं; क्योंकि इन्द्र देव के रथ में हजारों अश्व जोते जाते हैं।[ऋग्वेद 6.47.18]
Indr Dev, leader-representative of the demigods-deities assumes three shapes and appear-invoke separately. He assumes many forms and appear before the Ritviz by virtue of cast. Charoites of Indr Dev are deployed with thousands of horses.
युजानो हरिता रथे भूरि त्वष्टेह राजति।
को विश्वाहा द्विषतः पक्ष आसत उतासीनेषु सूरिषु
रथ में इन्द्र देव ही घोड़े जोतकर त्रिभुवनों के अनेक स्थानों में प्रकट होते हैं। दूसरा कौन व्यक्ति प्रतिदिन उपस्थित स्तोताओं के बीच जाकर शत्रुओं से उनकी रक्षा करता है?[ऋग्वेद 6.47.19]
Indr Dev appear at various places of the three abodes deploying his horses in the charoite. Who else will appear between the Stotas everyday and protect them from the enemies?
अगव्यूति क्षेत्रमागन्म देवा उर्वी सती भूमिरंहूरणाभूत्।
बृहस्पते प्र चिकित्सा गविष्टावित्था सते जरित्र इन्द्र पन्थाम्
हे देवो! हम आकाश में घूमते-घूमते उस देश में आ पहुँचे हैं, जहाँ गौवें नहीं हैं। विस्तृत पृथ्वी दस्युओं को आश्रय देती है। हे बृहस्पति देव! आप धेनुओं के अनुसन्धान में हमें परिचालित करें। हे इन्द्र देव! इस प्रकार से पथभ्रष्ट अपने उपासकों को रास्ता दिखावें।[ऋग्वेद 6.47.20]
Hey demigods-deities we have reached roaming in the sky in that place where there is no cow. Broad earth shelter the dacoits as well. Hey Brahaspati Dev! Guide us in the discovery of cows. Hey Indr Dev! Guide the distracted worshipers.
दिवेदिवे सदृशीरन्यमर्धं कृष्णा असेधदप सद्मनो जाः।
अहन्दासा वृषभो वस्नयन्तोदव्रजे वर्चिनं शम्बरं च
इन्द्र देव अन्तरिक्ष स्थित गृह से सूर्य रूप से प्रकट होकर दिन का अपरार्द्ध प्रकाशित करने के लिए प्रतिदिन समान रीति से रात्रि को दूर करते हैं। "उदवज्र" नामक देश में शम्बर और वर्चो नाम के दो धनार्थी दासों का वर्षक इन्द्र देव ने संहार किया।[ऋग्वेद 6.47.21]
Indr Dev appear as Sun in the space and remove darkness. He destroyed the two slaves named Shambar & Varcho, who sought wealth in the country called Udvajr.
प्रस्तोक इन्नु राधसस्त इन्द्र दश कोशयीर्दश वाजिनोऽदात्। दिवोदासादतिथिग्वस्य राधः शाम्बरं वसु प्रत्यग्रभीष्म
हे इन्द्र देव! प्रस्तोक ने आपके स्तोताओं को सोने से भरे दस कोश और दस घोड़े प्रदान किये। अतिथिग्व ने शम्बर को जीतकर जो धन प्राप्त किया, उसी धन को हमने दिवोदास से पाया।[ऋग्वेद 6.47.22]
Hey Indr Dev! Prastok gave ten pots & ten horses to your Stotas. The wealth which was obtained by Atithigavy by winning Shambar, we obtained it from Divodas.
दशाश्वान्दश कोशान्दश वस्त्राधिभोजना।
दशो हिरण्यपिण्डान्दिवोदासादसानिषम्
दिवोदास ने दस घोड़े, दस सोने के खजानें, वस्त्र, यथेष्ट अन्न और दस हिरण्य पिण्ड हमें प्रदान किये।[ऋग्वेद 6.47.23]
Divodas gave us ten horses, ten treasures of gold, cloths, sufficient food grains and ten golden lobs.
दश रथान्प्रष्टिमतः शतं गा अथर्वभ्यः। अश्वथः पायवेऽदात्
मेरे भाई अश्वत्थ ने पायु को घोड़ों के साथ दस रथ और अथर्व गोत्रीय ऋषियों को एक सौ गायें प्रदान कीं।[ऋग्वेद 6.47.24]
My brother Ashvtth gave ten charoites with horses to Payu and one hundred cows to the descendants of Athrv Rishi.(08.10.2023)
महि राधो विश्वजन्यं दधानान् भरद्वाजान्त्सार्ञ्जयो अभ्ययष्ट
भरद्वाज पुत्र ने सबकी भलाई के लिए जो ये सब ऐश्वर्य ग्रहण किया, सृञ्जय पुत्र ने उनकी पूजा की।[ऋग्वेद 6.47.25]
Sranjay's son worshiped Bhardwaj for accepting the grandeur for the welfare-benefit of all.
वनस्पते वीडवङ्गो हि भूया अस्मत्सखा प्रतरणः सुवीरः।
गोभिः संनद्धो असि वीळयस्वास्थाता ते जयतु जेत्वानि
वनस्पतियों से निर्मित रथ आपके सब अवयव दृढ़ हों। आप हमारे रक्षक और मित्र बनें। आप प्रतापी वीरों से युक्त होवें। आप गोचर्म द्वारा बाँधे गए हैं। हमें सुदृढ़ करें। आपके ऊपर आरूढ़ रथी अनायास ही युद्ध में शत्रुओं को जीतने में समर्थ हो।[ऋग्वेद 6.47.26]
Let the charoite made of vegetation be tough-strong. You should become our protector & friend. You should have the brave-mighty people. You have been tied with cow's skin. Make us strong. The charoite driver riding you should be able to win the enemy at random-once.
दिवस्पृथिव्याः पर्योज उद्धृतं वनस्पतिभ्यः पर्याभृतं सहः।
अपामोज्मानं परि गोभिरावृतमिन्द्रस्य वज्रं हविषा रथं यज
हे ऋत्विको! आप हव्य से रथ का यज्ञ करें। यह रथ स्वर्ग और पृथ्वी के सारांश से बना है, वनस्पतियों के स्थिरांश से घटित है, जल के वेग के सदृश वेगवान् है, गोचर्म द्वारा ढका हुआ तथा वज्र के समान है।[ऋग्वेद 6.47.27]
Hey Ritviz! Perform Yagy-Pooja of the charoite with offerings. This charoite is made of the extract of the heavens & earth, formed with the extract of vegetation, possess the speed like water, covered with cow skin and as strong as Vajr.
इन्द्रस्य वज्रो मरुतामनीकं मित्रस्य गर्भो वरुणस्य नाभिः।
सेमां नो हव्यदातिं जुषाणो देव रथ प्रति हव्या गृभाय
हे दिव्य रथ! आप हमारे यज्ञ में प्रसन्न होकर हव्य ग्रहण करें; आप इन्द्र देव के वज्र स्वरूप मरुतों के अग्रवर्ती, मित्र के गर्भ और वरुण की नाभि हैं।[ऋग्वेद 6.47.28]
Hey divine charoite! Happily accept the offerings in our Yagy. You are like the Vajr of Indr Dev, forward moving, moving ahead of Marud Gan, stomach of Mitr and naval of Varun Dev.
उप श्वासय पृथिवीमु॒त द्यां पुरुत्रा ते मनुतां विष्ठितं जगत्।
स दुन्दुभे सजूरिन्द्रेण देवैर्दूराद्दवीयो अप सेध शत्रून्
हे युद्ध दुन्दुभि! अपने शब्द से स्वर्ग और पृथ्वी को परिपूर्ण करो। स्थावर और जंगम इस बात को जानें कि आप इन्द्र देव और अन्य देवों के साथ मिलकर हमारे शत्रुओं को हमसे दूर करें।[ऋग्वेद 6.47.29]
Hey Dev Dundubhi! Fill the heavens & the earth with your sound. Let stationary-fixed and movable beings know that you repel our enemies in association with Devraj Indr and other demigods-deities.
आ क्रन्दय बलमोजो न आ धा निः ष्टनिहि दुरिता बाधमानः।
अप प्रोथ दुन्दुभे दुच्छुना इत इन्द्रस्य मुष्टिरसि वीळयस्व
हे दुन्दुभि! हमारे शत्रुओं को रुलाएँ और हमें बल प्रदान करें। इतने जोर से बजो कि दुर्द्धर्ष शत्रुओं को दुःख मिले। हे दुन्दुभि! जो हमारा अनिष्ट करके आनन्दित होते हैं, उन्हें दूर हटावें। आप इन्द्रदेव की मुष्टिका के सदृश हैं; इसलिए हमें दृढ़ता प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.47.30]
Hey Dundubhi! Make our enemies weep-cry and grant us strength. Make such a loud-harsh sound that the enemy is pained. Hey Dundubhi! Repel-remove those who become happy by our bad luck. You are like the fist of Indr Dev, hence grant us strength.
आमूरज प्रत्यावर्तयेमाः केतुमद्दुन्दुभिर्वावदीति।
समश्वपर्णाश्चरन्ति नो नरोऽस्माकमिन्द्र रथिनो जयन्तु
हे इन्द्र देव! हमारी समस्त गौवों को रोककर हमारे पास ले आवें। सभी के पास घोषणा करने के लिए दुन्दुभि नियत उच्च स्वर करता है। हमारे सेनानी घोड़ों पर आरूढ़ हुए हैं। है इन्द्र देव! हमारे रथारूढ़ सैनिक और सेनाएँ युद्ध में विजयी होवें।[ऋग्वेद 6.47.31]
Hey Indr Dev! Stop all of our cows and bring them to us. Dundubhi make loud noise to make announcement. Our soldiers have rode the horses. Hey Indr Dev! Let our soldiers riding the charoite and the army become victorious.(09.10.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (48) :: ऋषि :- शंयु, बार्हस्पत्य; देवता :- अग्निदेव, मरुत, मरुतो लिङ्गोक्ता या पूषा, पृश्नि, द्यावा, भूमी; छन्द :- बृहती, त्रिष्टुप, अनुष्टुप्पादि।
यज्ञायज्ञा वो अग्नये गिरागिरा च दक्षसे।
प्रप्र वयममृतं जातवेदसं प्रियं मित्रं न शंसिषम्
हे स्तोताओं! आप प्रत्येक यज्ञ में स्तोत्र द्वारा शक्तिमान अग्नि देव की बार-बार प्रार्थना करें। हम उन अमर, सर्वद्रष्टा और मित्र के सदृश अनुकूल अग्नि देव की प्रशंसा करते हैं।[ऋग्वेद 6.48.1]
Hey Stotas! Pray-worship mighty Agni Dev in every Yagy repeatedly. We appreciate-applaud Agni Dev who is like a friend, favourable, visualize every thing, immortal.
APPLAUD :: ताली बजाना, सराहना, प्रशंसा करना, appreciate, panegyrize, eulogize, hymn, praise, extol, exalt, admire, extoll.
ऊर्जो नपातं स हिनायमस्मयुर्दाशेम हव्यदातये।
भुवद्वाजेष्वविता भुवद्वृध उत त्राता तनूनाम्
हम शक्ति पुत्र की प्रशंसा करते हैं; क्योंकि वे वस्तुतः हमसे प्रसन्न हैं। हव्य वहन करने वाले अग्नि देव को हम हव्य प्रदान करते हैं। वे संग्राम में हमारे रक्षक और समृद्धि विधायक हों। वे हमारे पुत्रों की रक्षा करें।[ऋग्वेद 6.48.2]
We appreciate Shakti Putr since he is happy-pleased with us. We make offerings to the carrier of offerings. Let him become our protector and the factor-cause, increasing-enhancing our prosperity. He should protect our sons.
वृषा ह्यग्ने अजरो महान्विभास्यर्चिषा।
अजस्त्रेण शोचिषा शोशुचच्छुचे सुदीतिभिः सुदीदिहि
हे अग्नि देव! आप मनोवांछित फलों के देने वाले वृद्धावस्था से रहित, महान् और दीप्ति से सुशोभित हैं। हे दीप्तानि, अविच्छिन्न तेज से दीप्यमान! आप अपनी दीप्ति द्वारा हमें भी प्रकाशित करें।[ऋग्वेद 6.48.3]
Hey Agni Dev! You accomplish desires, free form old age, great and possess brightness. Hey bright Agni possessing continuous aura! You should light us with your aura, radiance.
महो देवान्यजसि यक्ष्यानुषक्तव क्रत्वोत दंसना।
अर्वाचः सीं कृणुह्यग्नेऽवसे रास्व वाजोत वंस्व॥
हे अग्नि देव! आप महान देवों का यज्ञ किया करते हैं; इसलिए हमारे यज्ञ में सदैव देवों का यज्ञ करें। हमारी रक्षा के लिए अपनी बुद्धि और कार्य से देवों को हमारे समक्ष ले आयें। आप हमें हव्यरूप अन्न प्रदान करें और स्वयं इसे स्वीकार करें।[ऋग्वेद 6.48.4]
Hey Agni Dev! You conduct the great Yagy of great deities-demigods, thus perform the Yagy of deities in our Yagy. Invoke the demigods-deities in front of us by virtue of your intelligence. Grant us food grains as offerings and accept them as well.
यमापो अद्रयो वना गर्भमृतस्य पिप्रति।
सहसा यो मथितो जायते नृभिः पृथिव्या अधि सानवि
आप यज्ञ के गर्भ हैं, आपको सोम में मिलाने के लिए जल, अभिषव पत्थर और अरणि काष्ठ पुष्ट करते हैं। आप ऋत्विकों द्वारा बल पूर्वक मथे जाने पर पृथ्वी के अत्युन्नत स्थान में प्रादुर्भूत होवें।[ऋग्वेद 6.48.5]
You are the womb of the Yagy. You condense-nourish the water, stones for crushing and the wood. Invoke at the highly elevated place on being churned by the Ritviz.
आ यः पप्रौ भानुना रोदसी उभे धूमेन धावते दिवि।
तिरस्तमो ददृश ऊर्म्यास्वा श्यावास्वरुषो वृषा श्यावा अरुषो वृषा
जो अग्नि देव दीप्ति द्वारा स्वर्ग और पृथ्वी को पूर्ण करते हैं, जो धुएँ के साथ आकाश में उठते हैं, वही दीप्तिमान् और अभीष्ट वर्षी अग्नि देव अँधेरी रात का तम नष्ट करते देखे जाते हैं। दीप्तिमान् और अभीष्ट वर्षी वही अग्नि देव रात्रियों के ऊपर अधिष्ठान करते हैं।[ऋग्वेद 6.48.6]
Accomplishment granting Agni Dev who light the heavens & the earth with his radiance and rise with the smoke in the sky, destroy the darkness of night. Aurous Agni Dev rule-reign the nights.
बृहद्भिर अर्चिभिः शुक्रेण देव शोचिषा। भरद्वाजे समिधानो यविष्ठ्य रेवन्नः शुक्र दीदिहि द्युमत्पावक दीदिहि
हे देव! देवों में कनिष्ठ और प्रदीप्त अग्नि देव आप हमारे भ्राता भरद्वाज द्वारा समिध्यमान होकर हमें धन प्रदान करते हुए निर्मल और प्रबल दीप्ति के साथ प्रज्वलित हों।[ऋग्वेद 6.48.7]
Hey deity! Junior amongest the demigods-deities radiant Agni dev, have woods from our brother Bhardwaj, grant us wealth becoming pure-pious with strong beam-of light.
विश्वासां गृहपतिर्विशामसि त्वमग्ने मानुषीणाम्। शतं पूर्भिर्यविष्ठ पाह्यंहसः समेद्वारं शतं हिमाः स्तोतृभ्यो ये च ददति
हे अग्नि देव! आप सभी मनुष्यों के गृहपति हैं। मैं आपको सौ हेमन्तों तक प्रज्वलित करता हूँ। आप मुझे सैंकड़ों रक्षाओं द्वारा पाप कर्मों से बचावें, जो आपके स्तोताओं को अन्न देते हैं, उन्हें भी बचावें।[ऋग्वेद 6.48.8]
Hey Agni Dev! Your are the house master-lord of the household. I ignite-light you for hundred years. Protect me and your Stotas who make offerings of food grains to you, from the sins.
त्वं नश्चित्र ऊत्या वसो राधांसि चोदय।
अस्य रायस्त्वमग्ने रथीरसि विदा गाधं तुचे तु नः
हे गृह दाता विचित्र अग्नि देव! आप हमारे पास रक्षक के साथ धन भेजें; क्योंकि आप ही समस्त धनों के प्रेरक है। शीघ्र ही हमारी सन्तानों को प्रतिष्ठित करें।[ऋग्वेद 6.48.9]
प्रतिष्ठित :: सम्मान प्राप्त, आदर प्राप्त, विष्णु; prestigious, honourable.
Hey house granting Agni Dev! Send us wealth with our protector, since its you who inspire all wealth-riches. Make our progeny honourable quickly.
पर्षि तोकं तनयं पर्तृभिष्ट्वमदब्धैरप्रयुत्वभिः।
अग्ने हेळांसि दैव्या युयोधि नोऽदेवानि ह्वरांसि च
हे अग्नि देव! समवेत और हिंसा रहित रक्षा के द्वारा हमारे पुत्र-पौत्र का पालन करें। आप हमारे यहाँ से देवों का क्रोध और मनुष्यों का विद्वेष हटावें।[ऋग्वेद 6.48.10]
समवेत :: एकत्र, संचित; together, ensemble.
Hey Agni Dev! Nourish our sons & grandsons free from accumulation and violence. Remove the anger-anguish of the demigods-deities and the enemy of the humans.
आ सखायः सबर्दुघां धेनुमजध्वमुप नव्यसा वचः। सृजध्वमनपस्फुराम्
हे बन्धु गण! नये स्तोत्रों के साथ आप दूध देने वाली गौ को ले आवें। इसके पश्चात् लिए उसे कोई हानि न होने पावे।[ऋग्वेद 6.48.11]
Hey brother-relatives! Bring milch cows with newly composed hymns and ensure that it is not harmed thereafter.
या शर्धाय मारुताय स्वभानवे श्रवोऽमृत्यु धुक्षत।
या मृळीके मरुतां तुराणां या सुन्मैरेवयावरी
जो सहिष्णु, स्वाधीन तेजा, मरुतों को अमरण हेतु पयोरूप अन्न देती है, जो वेग मरुतों के सुख-साधन में तत्पर हैं और जो वर्षाजल के साथ सुख वर्षण करके अन्तरिक्ष मार्ग में घूमती हैं, उस धेनु के पास आवें।[ऋग्वेद 6.48.12]
सहिष्णु :: सहनशीलता; tolerant.
Bring that cow to us which roam independently-freely in the sky-space, tolerant, possess independent aura-radiance, grant food grains to Marud Gan & loos after their comforts, shower rains and comfort.(10.10.2023)
भरद्वाजायाव धुक्षत द्विता। धेनुं च विश्वदोहसमिषं च विश्वभोजसम्
हे मरुतो! भरद्वाज के लिए विशेष दूध देने वाली गौ और सभी के खाने के लिए यथेष्ट अन्न, इन दो सुखों का दोहन करें।[ऋग्वेद 6.48.13]
Hey Marud Gan! Let us obtain two comforts,  a special cow for Bhardwaj yielding milk and sufficient food grains for all. 
तं व इन्द्रं न सुक्रतुं वरुणमिव मायिनम्।
अर्यमणं न मन्द्रं सृप्रभोजसं विष्णुं न स्तुष आदिशे
हे मरुतों! आप इन्द्र देव के महान् कर्मों के अनुष्ठाता हैं, वरुण देव के सदृश बुद्धिमान् हैं, अर्यमा के समान स्तुति के पात्र हैं, श्री विष्णु के सदृश दानशील हैं। धन के लिए मैं आपकी प्रार्थना करता हूँ।[ऋग्वेद 6.48.14]
Hey Marud Gan! You are executor of the great deeds of Indr Dev, intelligent like Varun Dev, worshipable like Aryma and donor like Shri Hari Vishnu. We pray-request you for money.
त्वेषं शर्धो न मारुतं तुविष्वण्यनर्वाणं पूषणं सं यथा शता। सं सहस्रा कारिषच्चर्षणिभ्य आँ आविर्गूळ्हा वसू करत्सुवेदा नो वसू करत्
मरुद्गण सैकड़ों-हजारों प्रकार के धन हमें एक ही समय में प्रदान करें। इसके लिए मैं उच्च शब्दकारी हूँ, अप्रतिहत-प्रभाव और पुष्टिकारक मरुतों के दीप्तबल की प्रार्थना करता हूँ। वे ही मरुद्गण हमारे पास गुप्त धन को प्रकट करें और समस्त धन उपलब्ध करावें।[ऋग्वेद 6.48.15]
Let Marud Gan grant us hundreds-thousands kinds of wealth at a time. I make loud sounds for this and pray for the continuous & nourishing radiance of Marud Gan. Let Marud Gan reveal our hidden treasures and make all sorts of wealth available to us.
आ मा पूषन्नुप द्रव शंसिषं नु ते अपिकर्ण आघृणे। अघा अर्यो अरातयः
हे पूषा देव! आप शीघ्र मेरे पास आवें। दीप्तिमान देव भीषण आक्रमण करने वाले शत्रुओं को पीड़ा पहुँचावें। मैं भी आपके कर्ण (कान) के पास आकर गुणगान करता हूँ।[ऋग्वेद 6.48.16]
Hey Pusha Dev! Come to me quickly. Hey radiant deity torture the invading enemies. I sing songs of your glory near-close to your ears.
मा काकम्बीरमुद्वृहो वनस्पतिमशस्तीर्वि हि नीनशः।
मोत सूरो अह एवा चन ग्रीवा आदधते वेः
हे पूषा देव! आप कौओं के आश्रयभूत वनस्पति को नष्ट मत करना। मेरे निन्दकों को पूर्णतः नष्ट कर दें। जिस प्रकार से व्याध चिड़ियों को फँसाने के लिए जाल फैलाता है, उसी प्रकार शत्रु लोग मुझे किसी भी प्रकार से बाँध न सकें।[ऋग्वेद 6.48.17]
Hey Pusha Dev! Do not destroy the vegetation sheltering the crows. Destroys my cynics. The enemy should not be able to bind-tie me like the hunter who spread net to catch the birds. 
दृतेरिव तेऽवृकमस्तु सख्यम्। अच्छिद्रस्य दधन्वतः सुपूर्णस्य दधन्वतः
हे पूषा देव! आपसे हमारी मैत्री छिद्र रहित दधि पात्र के सदृश निर्बाध एवं अविच्छिन्न बनी रहे।[ऋग्वेद 6.48.18]
Hey Pusha Dev! Let our friendship with you, remain free from holes like the pot containing curd; continuously and unbroken.
परो हि मर्त्यैरसि समो देवैरुत श्रिया।
अभि ख्यः पूषन् पृतनासु नस्त्वमवा यथा पुरा
हे पूषा देव! आप मनुष्यों का अतिक्रम करके अवस्थित हैं। धन में देवों के तुल्य हैं। इसलिए संग्राम में हमारी ओर अनुकूल दृष्टि रखें। प्राचीन समय में आपने मनुष्यों की जिस प्रकार से रक्षा की, उसी प्रकार इस समय हमारी रक्षा करें।[ऋग्वेद 6.48.19]
अतिक्रम :: मर्यादा का उल्लंघन, दुरुपयोग; deviation.
Hey Pusha Dev! You are stabilized by deviating from the norms set for the humans. You are like the demigods-deities in granting-possessing wealth. You should be favourable to us in war. The way you safe guarded the humans protect us as well now.
वामी वामस्य धूतयः प्रणीतिरस्तु सूनृता।
देवस्य वा मरुतो मर्त्यस्य वेजानस्य प्रयज्यवः
हे कम्पनकारी और भली-भाँति स्तुति पात्र महतो! आपकी जो प्रशस्त वाणी देवों और याजक गणों को मनोवाञ्छित धन प्रदान करती है, वही सदय और सूनृत वाणी हमारी पथ प्रदर्शिका बनें।[ऋग्वेद 6.48.20]
प्रशस्त :: प्रशंसा किया हुआ, प्रशंसा योग्य; expansive, smashing, praise worthy.
सूनृत :: सत्य और प्रिय भाषण जो सदाचरण के पाँच गुणों में से एक है,  आनंद, मंगल, कल्याण, अनुकूल, दयालु, प्रिय, सदाशापूर्ण, truthful and dear words, beautiful.
सदय :: मेहरबान, रहमदिल, कृपालु, कृपाशोल, कृपालु, सज्जनतापूर्ण, समवेदनापूर्ण; clement, kindly, kind.
Hey trembling-vibrating and worship deserving Mahto! Your praiseworthy speech-words grant desired wealth to the Ritviz. Let your kind, truthful and dear words guide us.
सद्याचिद्यस्य चर्वृतिः परि द्यां देवो नैति सूर्यः।
त्वेषं शवो दधिरे नाम यज्ञियं मरुतो वृत्रहं शवो ज्येष्ठं वृत्रहं शवः
जिन मरुतों के समस्त कार्य दीप्तिमान सूर्य देव के सदृश सहसा आकाश में व्याप्त होते हैं, वे ही मरुद्गण दीप्त, शत्रु विजयी, पूजनीय और शत्रु नाशक बल धारित करते हैं। शत्रु नाशक बल सर्वापेक्षा प्रशस्त होता है।[ऋग्वेद 6.48.21]
The endeavours of Marud Gan which pervade the space-sky like the Sun-Sury Dev suddenly, are winner of the enemy, worshipable, possessor of the strength capable to crush the enemy and praiseworthy.
सकृद्ध द्यौरजायत सकृद्भूमिरजायत।
पृश्न्या दुग्धं सकृत्पयस्तदन्यो नानु जायते
एक ही बार स्वर्ग उत्पन्न हुआ और एक ही बार पृथ्वी। एक ही बार पृष्णि या मरुतों की माता गौ से दूध दुहा गया। इनके समय और कुछ उत्पन्न नहीं हुआ अर्थात् अन्य कोई पदार्थ उत्पन्न नहीं हुआ।[ऋग्वेद 6.48.22]
The heavens and the earth evolved only once. Prashni milked the mother cow-earth only once. Since then, nothing-new material has evolved.(11.10.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (49) :: ऋषि :- ऋजिश्वा भरद्वाज; देवता :- विश्वेदेवा;  छन्द :- त्रिष्टुप् शक्वरी।
स्तुषे जनं सुव्रतं नव्यसीभिर्गीर्भिर्मित्रावरुणा सुम्रयन्ता।
त आ गमन्तु त इह श्रुवन्तु सुक्षत्रासो वरुणो मित्रो अग्निः
मैं नये स्तोत्रों के द्वारा देवों और स्तोताओं के सुखाभिलाषी मित्र और वरुण देव की प्रार्थना करता हूँ। अतीव बली मित्र, वरुण देव और अग्नि देव इस यज्ञ में आकर हमारे स्तोत्रों को श्रवण करें।[ऋग्वेद 6.49.1] 
I worship the deities Mitr & Varun Dev, who are well wishers of the Stotas who seek comforts-pleasure, with new Strotrs. Let extremely strong Mitr, Varun & Agni Dev join the Yagy and listen to our Strotrs.
विशोविश ईड्यमध्वरेष्वदृप्तक्रतुमरतिं युवत्योः।
दिवः शिशुं सहसः सूनुमग्निं यज्ञस्य केतुमरुषं यजध्यै
जो अग्नि देव प्रत्येक व्यक्ति के यज्ञ में पूजा के पात्र हैं, जो कार्य करके अहंकार नहीं करते, जो स्वर्ग और पृथ्वी नामक दो कन्याओं के स्वामी हैं, जो स्तोता के पुत्र भूत शक्ति के पुत्र हैं और जो यज्ञ के प्रदीप्त केतु रूप हैं, ऐसे तेजस्वी अग्नि देव की हम यज्ञ में स्तुति अर्थात प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 6.49.2]
Agni Dev who is worshipable by every human being, is free from ego, is the father of two daughters viz. heaven & the earth, is like the son of the Stota Shakti, is ignited in the Yagy; is worshiped by us in the Yagy.
अरुषस्य दुहितरा विरूपे स्तृभिरन्या पिपिशे सूरो अन्या।
मिथस्तुरा विचरन्ती पावके मन्म श्रुतं नक्षत ऋच्यमाने
दीप्तिमान सूर्य देव की विभिन्न रूपिणी दो कन्यायें (दिन और रात्रि) हैं। इनमें एक नक्षत्र समूह और एक सूर्य देव के द्वारा समुज्ज्वल है। परस्पर विरोधी, पृथक रूप से संचरण शील, पवित्रता विधायक और हमारे स्तुति भाजन ये दोनों हमारा स्तोत्र सुनकर प्रसन्न हों।[ऋग्वेद 6.49.3]
Radiant Sun-Sury Dev has two daughters viz. day & night. One of them is lighted like the constellations and the other like the Sun. They are opposite to each other, move  separately, pure-pious and let both of them deserving worship by us; be happy by listening-responding to our Strotr.
प्र वायुमच्छा बृहती मनीषा बृहद्रयिं विश्ववारं रथप्राम्।
द्युतद्यामा नियुतः पत्यमानः कविः कविमियक्षसि प्रयज्यो॥
हमारी महती प्रार्थना महाधन सम्पन्न, अखिल लोकों के वन्दनीय और रथ के पूरक वायु देव के सम्मुख उपस्थित हों। हे सम्यक यज्ञ पात्र! समुज्ज्वल रथ पर आरूढ़, नियोजित अश्वों के अधिपति और दूरदर्शी मरुत देव! आप मेधावी स्तोता को धन के द्वारा संवर्द्धित करें।[ऋग्वेद 6.49.4]
सम्यक :: सुसंगत, सर्वांगसम, सही, उचित, धर्मी, ईमानदार, वैध, कानूनी, विवेकपूर्ण, सम्पूर्ण, कुल; proper, thorough.
Let the wealthy, worshiped-revered in all abodes, enriched by our prayers, complementary of the charoite, present in front of Vayu Dev. Hey most suited for the Yagy! Riding radiant charoite, lord of the deployed horses and far sighted Marud Dev! Enrich the intelligent Stota with wealth.(12.10.2023)
स मे वपुश्छदयदश्विनोर्यो रथो विरुक्मान्मनसा युजानः।
येन नरा नासत्येषयध्यै वर्तिर्याथस्तनयाय त्मने च
जो रथ सोचने के साथ अश्व से नियोजित हो जाता है, अश्विनी कुमारों का वही समुज्ज्वल रथ दीप्ति द्वारा मेरी देह को आच्छादित करें। हे नेता अश्विनी कुमारों! रथ पर आरूढ़ होकर अपने स्तोता का मनोरथ पूर्ण करने के लिए उसके घर पधारें।[ऋग्वेद 6.49.5]
Let the radiance of the Ashwani Kumar's charoite which get deployed with horses just by thinking, should fall over my body. Hey leaders Ashwani Kumars! Reach at the house of the Stota riding the charoite to accomplish his desires.
पर्जन्यवाता वृषभा पृथिव्याः पुरीषाणि जिन्वतमप्यानि।
सत्यश्रुतः कवयो यस्य गीर्भिर्जगतः स्थातर्जगदा कृणुध्वम्
वर्षा करने वाले पर्जन्य और वायु देव आप अन्तरिक्ष से प्राप्त जल भेजें। हे ज्ञान सम्पन्न, स्तोत्र सुनने वाले और संसार-स्थापक मरुतों! जिसके स्तोत्र से आप प्रसन्न होते हैं, उसके समस्त प्राणियों को समृद्ध करते हैं।[ऋग्वेद 6.49.6]
Hey rain causing Parjany & Vayu Dev divert the water from the space-sky to us. Hey enlightened, listeners of the Strotr and the establisher of the world, Marud Gan! You grow-nourish the living beings-animals of the person with who's Strotr you are pleased.
पावीरवी कन्या चित्रायुः सरस्वती वीरपत्नी धियं धात्।
ग्नाभिरच्छिद्रं शरणं सजोषा दुराधर्षं गृणते शर्म यंसत्
पवित्रता कारिणी, मनोहरा, विचित्र गमना और वीर पत्नी सरस्वती, हमारे यागादि कर्मों का निर्वाह करें। वे देव पत्नियों के साथ प्रसन्न होकर स्तोता को छेद रहित, शीत और वायु के लिए दुर्द्धर्ष घर और सुख प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.49.7]
विचित्र :: अजीब, अनोखा, विलक्षण, पुराने ढंग का, चितला, बहुरंगा, रंग-बिरंगा; weird, bizarre, quaint, pied. 
Let Veer Patni Saraswati who causes purity-piousness, is attractive, moves in weird ways, accomplish our Yagy related deeds. She along with the wives of the demigods-deities grant a house free from holes being happy, which is cool, difficult for the air and comfortable.
पथस्पथः परिपतिं वचस्या कामेन कृतो अभ्यानळर्कम्।
स नो रासच्छुरुधश्चन्दाग्रा धियंधियं सीषधाति प्र पूषा
हे स्तोता! वाञ्छित फल के वश में आकर समस्त मार्ग के अधिपति पूषा के पास स्तोत्र के साथ उपस्थित होवें। वे हमें सोने की सींग वाली गौवें प्रदान करें। पूषा हमारे सम्पूर्ण कार्यों को पूर्ण करें।[ऋग्वेद 6.49.8]
Hey Stota! Present in front of Pusha, the lord of all roads, under the control of desired reward with the Strotr. He should grant us cows with golden horns. Let Pusha accomplish our all endeavours.
प्रथमभाजं यशसं वयोधां सुपाणिं देवं सुगभस्तिमृध्वम्।
होता यक्षद्यजतं पस्त्यानामग्निस्त्वष्टारं सुहवं विभावा
देवों को बुलाने वाले और दीप्तिमान अग्नि देव त्वष्टा का यज्ञ करें। त्वष्टा सभी के आदि विभाजक, प्रसिद्ध अन्न दाता, शोभनपाणि, दान शील महान गृहस्थों के यजनीय और अनायास आह्वान के योग्य हैं।[ऋग्वेद 6.49.9]
विभाजक :: विभाग करनेवाला, बाँटनेवाला; separator, bulkhead.
Let the invoker of Demigods-deities, radiant Agni Dev accomplish the Yagy of Twasta. Twasta is the ancient divider of all, famous food grains granting, with beautiful hands, donor, worshipable by the great household and deserve to be invoked at random.
भुवनस्य पितरं गीर्भिराभी रुद्रं दिवा वर्धया रुद्रमक्तौ।
बृहन्तमृष्वमजरं सुषुम्रमृधग्घुवेम कविनेषितासः
हे स्तोता! दिन में इन समस्त स्तोत्रों के द्वारा भुवन पालक रुद्र देव का यशोगान करें और रात्रि में रुद्र देव की संवर्द्धना करें।[ऋग्वेद 6.49.10]
संवर्द्धन :: पालन पोषण, उन्नत होना, बढ़ाने वाला; enhancement.
Hey Stota! Sing songs-hymns in the glory of the nurturer of the world Rudr Dev during the day and at night his enhancement.
आ युवानः कवयो यज्ञियासो मरुतो गन्त गृणतो वरस्याम्।
अचित्रं चिद्धि जिन्वथा वृधन्त इत्था नक्षन्तो नरो अङ्गिरस्वत्
हे नित्य तरुण, ज्ञान-सम्पन्न और पूजनीय मरुद्गण! जहाँ याजक गण स्तोत्र करता है, वहाँ आवें। हे नेताओं! आप इसी प्रकार समृद्ध होकर और चलने वाली रश्मियों के सदृश व्याप्त होकर आप वर्षा द्वारा औषधियों से रहित वनों को तृप्त करते हैं।[ऋग्वेद 6.49.11]
Hey always young, enlightened and worshipable, Marud Gan! Come to the place where the Ritviz recite Strotr. Hey leaders! You saturate the forests with the medicines by rains and enriched rays. 
प्र वीराय प्र तवसे तुरायाजा यूथेव पशुरक्षिरस्तम्।
स पिस्पृशति तन्वि श्रुतस्य स्तृभिर्न नाकं वचनस्य विपः
जिस प्रकार पशु पालक गौओं के झुण्ड को शीघ्र परिचालित करता है, उसी प्रकार पराक्रान्त, भली और द्रुतगामी मरुतों के पास शीघ्र स्तोत्रों को प्रेरित करें। जिस प्रकार से अन्तरिक्ष नक्षत्र मण्डल द्वारा संश्लिष्ट है, उसी प्रकार वे ही मरुद्गण मेधावी स्तोता के सुश्राव्य स्तोत्र द्वारा अपनी देह को संश्लिष्ट करें।[ऋग्वेद 6.49.12]
The way the herd man quickly move the cow herd, similarly send-forward the Strotr to the fast moving Marud Gan. The way the space is composed of the constellations, the Marud Gan should synthesise-compose their body with the Strotr of the intelligent Stota.
यो रजांसि विममे पार्थिवानि त्रिश्चिद्विष्णुर्मनवे बाधिताय।
तस्य ते शर्मन्नुपदद्यमाने राया मदेम तन्वा ३ तना च
जिन श्री विष्णु देव ने उपद्रुत मनु के लिए त्रिपाद पराक्रम के द्वारा पार्थिव लोकों को नाप डाला, वही आपके द्वारा प्रदत्त गृह में निवास करें और हम धन, शरीर और पुत्रों से आनन्दित रहें।[ऋग्वेद 6.49.13]
Let Shri Hari Vishnu who covered the three abodes for Updrut Manu, reside in the house granted by you and we should remain happy with wealth, body and sons.
तन्नोऽहिर्बुध्यो अद्भिरर्कैस्तत्पर्वतस्तत्सविता चनो धात्।
तदोषधीभिरभि रातिषाचो भगः पुरंधिर्जिन्वतु प्र राये
हमारे मन्त्रों द्वारा स्तूयमान अहिर्बुध्न, पर्वत और सविता हमें जल के साथ अन्न प्रदान करें। दान शील विश्वदेव गण हमें औषधि के साथ वही अन्न प्रदान करें। सुबुद्धि देव भग हमें धन के लिए प्रेरित करें।[ऋग्वेद 6.49.14]
Let praiseworthy Ahirbudhn, Parwat and Savita provide us with water and food grains. Donor Vishw Dev grant us that food grains with medicine. Subuddhi Dev Bhag inspire us for wealth.
नू नो रयिं रथ्यं चर्षणिप्रां पुरुवीरं मह ऋतस्य गोपाम्। क्षयं दाताजरं येन जनान्त्स्पृधो अदेवीरभि च क्रमाम विश आदेवीरभ्य १ श्नवाम
हे विश्व देव गण! आप हमें रथ युक्त और असंख्य अनुचरों के साथ अनेक पुत्रों से युक्त यज्ञ का साधनभूत गृह और अक्षय्य अन्न प्रदान करें, जिसके द्वारा हम युद्ध करके शत्रुओं और देवशून्य सैनिकों को पराजित करें और देवभक्तों को आश्रय प्रदान करने में समर्थ हों।[ऋग्वेद 6.49.15]
Hey Vishw Dev Gan! Grant us charoite, many servants, many sons, food grains and a house for the Yagy, so that we can defeat the wicked enemies & impious soldiers and grant asylum to the devotees of the demigods-deities.(13.10.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (50) :: ऋषि :- ऋजिश्वा भरद्वाज; देवता :- विश्वेदेवा;  छन्द :- त्रिष्टुप।
हुवे वो देवीमदितिं नमोभिर्मृळीकाय वरुणं मित्रमग्निम्।
अभिक्षदामर्यमणं सुशेवं त्रातॄन्देवान्त्सवितारं भगं च
हे देवो! हम सुख के लिए स्तोत्र के साथ अदिति, वरुण, मित्र, अग्नि देव, शत्रु हन्ता और सेव्य, अर्यमा, सविता, भग और समस्त रक्षक देवों को बुलाते हैं।[ऋग्वेद 6.50.1]
Hey demigods-deities! We invoke Aditi, Varun, Mitr, Agni Dev and the slayer of enemies and serviceable Aryma, Savita, Bhag and all protective demigods-deities for comforts-pleasure with Strotr. 
सुज्योतिषः सूर्य दक्षपितॄननागास्त्वे सुमहो वीहि देवान्।
द्विजन्मानो य ऋतसापः सत्याः स्वर्वन्तो यजता अग्निजिह्वाः
हे दीप्ति सम्पन्न सूर्य देव! दक्ष से सम्भूत शोभन दीप्तिशाली देवों को हमारे अनुकूल करें। द्विजन्मा (स्वर्ग और पृथ्वी से उत्पन्न) देवगण यज्ञप्रिय, सत्यवादी, धन सम्पन्न, यागार्ह और अग्नि जिह्वा होते हैं।[ऋग्वेद 6.50.2]
संभूत :: जो किसी दूसरे के साथ उत्पन्न हुआ हो, उत्पन्न, जात, युक्त, सहित, बिल कुल बदला हुआ, उपयुक्त, योग्य, बराबर, समान; born together, born, equal.
Hey radiant Sury Dev! Make the demigods-deities favourable to us. The demigods born in the heaven and the earth, loves Yagy, are truthful, wealthy and Agni Dev accept the offerings in the Yagy for the demigods with his tongue.
The demigods originated from Brahma Ji which is divine birth-origin and the humans too become demigods who are virtuous, righteous, pious, humans. 
उत द्यावापृथिवी क्षत्रमुरु बृहद्रोदसी शरणं सुषुम्ने।
महस्करथो वरिवो यथा नोऽस्मे क्षयाय धिषणे अनेहः
स्वर्ग और पृथ्वी आपको अधिक बल दे। स्वर्ग और पृथ्वी हमारी स्वतन्त्रता के लिए विशाल गृह हमें प्रदान करें। ऐसा उपाय करें कि हमारे पास अतुल ऐश्वर्य हो जावें । हे सदय देवद्वय! हमारे गृह से पाप को हटावें।[ऋग्वेद 6.50.3]
अतुल :: अमित, असीम, अत्यधिक; nonpareil, unmatched, unlimited.
सदय :: मेहरबान, रहमदिल, कृपाशोल, दयालु, सज्जनतापूर्ण, समवेदनापूर्ण, कृपालु, सज्जनतापूर्ण, सदय, समवेदना पूर्ण; kindly, clement, kind.
Let the heaven and earth grant you more strength & power. Let the heaven & earth grant us homes for our freedom. They should act in such a way that we possess unlimited grandeur. Hey kind-clement duo! Remove the sins out of our house.
आ नो रुद्रस्य सूनवो नमन्तामद्या हूतासो वसवोऽघृष्टाः।
यदीमर्भे महति वा हितासो बाधे मरुतो अह्वाम देवान्
गृह दाता और अजेय रुद्र पुत्र गण इस समय बुलाने पर हमारे पास आवें। ये महान और युद्ध क्लेश के समय में हमें सहायता प्रदान करें; इसलिए हम मरुतों का आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 6.50.4]
House granting, invincible Rudr Putr Gan invoke on being requested at this moment here. Let great Marud Gan help us in bearing the torture of war.
मिम्यक्ष येषु रोदसी नु देवी सिषक्ति पूषा अभ्यर्धयज्वा।
श्रुत्वा हवं मरुतो यद्ध याथ भूमा रेजन्ते अध्वनि प्रविक्ते
जिन मरुतों के साथ दीप्तिमान स्वर्ग और पृथ्वी संश्लिष्ट हैं, जिन मरुतों की सेवा, धन के द्वारा, स्तोताओं को समृद्ध करने वाले पूषा देव करते हैं, ऐसे आप मरुद्गण! जिस समय हमारा आह्वान सुनकर आप आते हैं, उस समय आपके विभिन्न मार्गों में अवस्थित प्राणी भी कम्पायमान हो जाते हैं।[ऋग्वेद 6.50.5]
Marud Gan who are associated with the earth & the radiant heavens, served by Pusha Dev with riches & prosper the Stotas. When you come in response to our call, living beings around your route tremble.
अभि त्यं वीरं गिर्वणसमर्चेन्द्रं ब्रह्मणा जरितर्नवेन।
श्रवदिद्धवमुप च स्तवानो रासद्वाजाँ उप महो गृणानः
हे स्तोता! अभिनव स्तुति द्वारा प्रार्थना पात्र वीर इन्द्र देव की प्रार्थना करें। इस प्रकार प्रार्थना किए जाने पर इन्द्र देव हमारा आह्वान श्रवण करके हमें बल व अन्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.50.6]
Hey Stota! Worship deserving prayers Indr Dev with a decent Strotr. On being prayed in this manner Indr Dev will grant us strength and food grains.(14.10.2023)
ओमानमापो मानुषीरमृक्तं धात तोकाय तनयाय शं योः।
यूयं हि ष्ठा भिषजो मातृतमा विश्वस्य स्थातुर्जगतो जनित्रीः
हे जलराशि! आप मानव हितैषी हैं; इसलिए हमारे पुत्र-पौत्रों के लिए अनिष्ट घातक और रक्षक अन्न प्रदान करें। आप समस्त उपद्रवों को शान्त और दूर करें। आप माताओं की अपेक्षा श्रेष्ठ चिकित्सक हैं। आप स्थावर जंगम रूप संसार के उत्पादक है।[ऋग्वेद 6.50.7]
Hey water! Since, you are a well wisher of humanity, grant such food grains for our sons & grandsons which can destroy the evil and protect them. Calm down all troubles and repel them. You are a better doctor than the mother. You are the grower of dynamic and static beings.
आ नो देवः सविता त्रायमाणो हिरण्यपाणिर्यजतो जगम्यात्।
यो दत्रवाँ उषसो न प्रतीकं व्यूर्णुते दाशुषे वार्याणि
जो उषा मुख के सदृश याजक गण के पास अभिलषित धन प्रकट करते हैं, वे ही रक्षक, हिरण्य पाणि और पूजनीय सविता हमारे पास पधारें।[ऋग्वेद 6.50.8]
Worshipable, possessing golden limbs, protector, with the mouth like the Usha-day break Savita Dev grant the Ritviz desired wealth.
उत त्वं सूनो सहसो नो अद्या देवाँ अस्मिन्नध्वरे ववृत्याः।
स्यामहं ते सदमिद्राती तव स्यामग्नेऽवसा सुवीरः
हे शक्ति पुत्र अग्नि देव! हमारे यज्ञ में आज देवों को ले आवें। जिससे मैं सदा आपकी उदारता का अनुभव करूँ। हे देव! आपकी रक्षा के कारण मैं शोभन पुत्र-पौत्रादि से युक्त बनूँ।[ऋग्वेद 6.50.9]
Hey Shakti Putr Agni Dev! Bring the demigods-deities to our Yagy, so that I always keep your grace in mind. Hey Dev! I should be associated great-beautiful with son & grandsons by virtue of protection granted by you.
उत त्या मे हवमा जग्म्यातं नासत्या धीभिर्युवमङ्ग विप्रा।
अत्रिं न महस्तमसोऽमुमुक्तं तूर्वतं नरा दुरितादभीके
हे प्राज्ञ अश्विनी कुमारों! आप अपने श्रेष्ठ कर्मों के संग हमारे पास आयें। जिस प्रकार से अन्धकार से आपने अत्रि ऋषि को मुक्त किया, उसी प्रकार हमें भी मुक्त करें। हे नेतृ द्वय! आप हमें युद्ध के पापों से बचावें।[ऋग्वेद 6.50.10]
Hey prudent-intelligent Ashwani Kumars! Visit us with your excellent deeds. The way you liberated Atri Rishi from darkness, liberate us as well. Hey leader duo! Protect us from sins in the war.
ते नो रायो द्युमतो वाजवतो दातारों भूत नृवतः पुरुक्षोः।
दशस्यन्तो दिव्याः पार्थिवासो गोजाता अप्या मृळता च देवाः
हे देवो! आप हमें दीप्ति युक्त, बल कारी, पुत्रादि सम्पन्न और सुप्रसिद्ध धन प्रदान करें। स्वर्गीय (आदित्यगण), पार्थिव (वसुगण), गोजात (पृश्निपुत्र मरुद्गण) और जलजात (रुद्रगण), हमारे मनोरथों को पूर्ण करके हमें सुख प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.50.11]
Hey deities! Associate us with radiant, mighty, famous wealth and sons etc. Let divine Adity Gan, material Vasu Gan, Cows clan Prashni Putr Marud Gan and water clan Rudr Gan grant us pleasure-comforts.
ते नो रुद्रः सरस्वती सजोषा मीळ्हुष्मन्तो विष्णुर्मृळन्तु वायुः।
ऋभुक्षा वाजो दैव्यो विधाता पर्जन्यावाता पिप्यतामिषं नः
रुद्रदेव, सरस्वती, श्रीविष्णु, वायु, ऋभुक्षा, वाज और विधाता समान रूप से प्रसन्न होकर हमें सुख प्रदान करें। पर्जन्य और वायुदेव हमें अन्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.50.12]
Let Rudr Dev, Shri Hari Vishnu, Vayu, Ribhuksha, Vaj and Vidhata become happy equally with us and grant us happiness-pleasure. Parjany Dev and Vayu Dev should grant us food grains.
उत स्य देवः सविता भगो नोऽपां नपादवतु दानु पप्रिः।
त्वष्टा देवेभिर्जनिभिः सजोषा द्यौर्देवेभिः पृथिवी समुद्रैः
हे प्रसिद्ध सविता देव! भग और जलराशि के पौत्र दानशील अग्नि देव हमारी रक्षा करें। देवों और देव पत्नियों के साथ समान रूप से प्रसन्न हुए त्वष्टा देव देवों के साथ समान प्रसन्न स्वर्ग तथा समुद्रों के साथ समान प्रसन्न पृथ्वी हमारी रक्षा करें।[ऋग्वेद 6.50.13]
Hey Savita Dev! Let Bhag and the grandson of water, donor Agni Dev protect us. Let Twasta Dev become equally happy with us like the demigods & Goddesses & protect us on being happy like the heavens, earth and the oceans.
उत नोऽहिर्बुध्न्यः शृणोत्वज एकपात्पृथिवी समुद्रः।
विश्वे देवा ऋतावृधो हुवानाः स्तुता मन्त्राः कविशस्ता अवन्तु
हे अहिर्बुध्न! अज एकपाद, पृथ्वी और समुद्र हमारे स्तोत्रों को श्रवण करें। यज्ञ के समृद्धि कर्ता, हमारे द्वारा आहूत और स्तुत, मन्त्र प्रतिपाद्य और मेधावी ऋषियों द्वारा स्तूयमान विश्वदेव गण हमारी रक्षा करें।[ऋग्वेद 6.50.14]
प्रतिपाद्य :: प्रतिपादन के योग्य, निरूपण करने के योग्य, कहने के योग्य, समझाने के योग्य, देने के योग्य, जो दिया जाने योग्य हो; predicable, tenable.
Hey Ahirbudhn! Let Aj-Ekpad, earth and ocean listen to our Strotr. The booster of Yagy, worshiped and prayed by us, tenable with Mantr & intelligent, praise deserving by Vishv Dev; protect us.
एवा नपातो मम तस्य धीभिर्भरद्वाजा अभ्यचन्त्यर्कैः।
ग्ग्रा हुतासो वसवोऽधृष्टा विश्वे स्तुतासो भूता यजत्राः
भरद्वाज गोत्रीय मेरे पुत्र इसी प्रकार के पूजा साधक स्तोत्र द्वारा देवों की प्रार्थना करते हैं। हे यज्ञार्ह देवो! आप हव्य द्वारा हुत, गृहदाता और अजेय हैं। आप देवपत्नियों के साथ सर्वत्र पूजनीय हैं।[ऋग्वेद 6.50.15]
My sons of Bhardwaj clan, worship the demigods-deities in this manner with the means of worship Strotr. Hey Yagy desiring Deities! You are worshiped with offerings, grant us house and are invincible. You are worshiped along with the goddesses-wives of the demigods every where.(15.10.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (51) :: ऋषि :- ऋजिश्वा भरद्वाज; देवता :- विश्वेदेवा;  छन्द :- त्रिष्टुप, उष्णिक्, अनुष्टुप्!
उदु त्यच्चक्षुर्महि मित्रयोराँ एति प्रियं वरुणयोरदब्धम्।
ऋतस्य शुचि दर्शतमनीकं रुक्मो न दिव उदिता व्यद्यौत्
सूर्य देव की प्रसिद्ध, प्रकाशक, विस्तृत तथा मित्र और वरुण की प्रिय अप्रतिहत, निर्मल और मनोहर दीप्ति प्रकाशित होकर अन्तरिक्ष में अलंकार के सदृश शोभा पाती हैं।[ऋग्वेद 6.51.1]
Famous radiance of Sury Dev, broad-vast, dear to Mitr & Varun Dev, continuous, pure and attractive glorious light appears like jewel-ornaments in the sky-space.
वेद यस्त्रीणि विदथान्येषां देवानां जन्म सनुतरा च विप्रः।
ऋजु मर्तेषु वृजिना च पश्यन्नभि चष्टे सूरो अर्य एवान्
जो तीनों ज्ञातव्य भुवनों को जानते हैं, जो ज्ञान शाली हैं और देवों के दुर्ज्ञेय जन्म को जानते हैं, वही सूर्य देव मनुष्यों के सत् और असत् कर्मों को देखते हैं और स्वामी होकर मनुष्यों के अनुकूल मनोरथ को पूर्ण करते हैं।[ऋग्वेद 6.51.2]
दुर्ज्ञेय :: कठिनाई से जानने योग्य, जिसे जानना अत्यंत कठिन हो, जो जल्दी समझ में न आ सके, जिसे सरलता से जाना न जा सके, जो जल्दी से समझ में न आए, दुर्बोध; difficult to know.
He who knows the three abodes, is enlightened, aware of the incarnations-births of demigods-deities difficult to know, visualise-see the virtuous and wicked deeds of the humans and accomplish the desires of the humans becoming favourable to them.
स्तुष उवो मह ऋतस्य गोपानदितिं मित्रं वरुणं सुजातान्।
अर्यमणं भगमदब्धधीतीनच्छा वोचे सधन्यः पावकान्
मैं यज्ञ रक्षक और शोभन जन्मा अदिति, मित्र, वरुण, अर्यमा और भग की प्रार्थना करता हूँ। जिनके कार्य अप्रतिहता हैं, जो धनशाली और संसार को पवित्र करने वाली हैं, उनके यश का मैं भजन करता हूँ।[ऋग्वेद 6.51.3]
I worship-pray with glorious birth Aditi, Mitr, Varun, Aryma and Bhag who are the protectors of the Yagy. I sing the glory of those who's deeds are continuous, are wealthy, makes the universe pure-clean, uncontaminated.
रिशादसः सत्पर्तं रदब्धान्महो राज्ञः सुवसनस्य दातॄन्।
यूनः सुक्षत्रान्क्षयतो दिवो नॄनादित्यान्याम्यदितिं दुवोयु
हे हिंसकों को नष्ट करने वाले, साधुओं के पालक, अबाध प्रभाव, शक्तिमान अधीश्वर, शोभन गृहदाता, नित्य तरुण, अतीव ऐश्वर्यशाली स्वर्ग के नेता अदिति पुत्रों! मैं माता अदिति की शरण लेता हूँ; क्योंकि वह मेरी परिचर्या (सेवा) चाहती हैं।[ऋग्वेद 6.51.4]
Hey destroyer of the violent, nurturer of the sages-virtuous, with unrestricted impact, mighty lord, glorious granting house, possessor of extreme grandeur leaders of the heavens, sons of Aditi! I seek refuge under Mata Aditi, since she need-want my services.
द्यौ ३ ष्पितः पृथिवि मातरध्रुगग्ने भ्रातर्वसवो मृळता नः।
विश्व आदित्या अदिते सजोषा अस्मभ्यं शर्म बहुलं वि यन्त
हे पिता स्वर्ग, माता पृथ्वी, भ्राता अग्नि देव और वसुओं! आप हमें सुखी करें। हे अदिति के पुत्रों और माता अदिति! एकत्रित होकर आप हमें अधिक सुख प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.51.5]
Hey father heaven, mother earth, brother Agni Dev and Vasu Gan! Make us comfortable. Hey sons of Mata Aditi and her sons! You grant us pleasure, together.
मा नो वृकाय वृक्ये समस्मा अघायते रीरधता यजत्राः।
यूयं हि ष्ठा रथ्यो नस्तनूनां यूयं दक्षस्य वचसो बभूव
हे याग योग्य देवों! आप हमें वृक और वृकी (अरण्य कुक्कुर और कुक्करी अथवा दस्यु और उसकी पत्नी) के हाथ में न जाने दें। आप हमारे शरीर, बल और वाणी के संचालक हैं।[ऋग्वेद 6.51.6]
संचालक :: निदेशक, रहनुमा, नेता, चालक, गाड़ी हाँकने वाला, चलाने वाला, प्रबंधक, व्यवस्थापक, मालिक, परिचालक; operator, director, driver, manager.
Hey offerings-Yagy deserving demigods-deities! Do not let us be captured Vrak & Vraki i.e., either by the jungle dogs & bitches or the dacoits and their wives. You are the director of body, strength and speech-voice.
मा व एनो अन्यकृतं भुजेम मा तत्कर्म वसवो यच्चयध्वे।
विश्वस्य हि क्षयथ विश्वदेवाः स्वयं रिपुस्तन्वं रीरिषीष्ट
हे देवो! हम आपके ही हैं। हम दूसरे के पापी क्लेश का अनुभव न करें। हे वसु गणों! जिसका आप निषेध करते हैं, उसका अनुष्ठान हम न करें। हे विश्वदेव गण! आप विश्व के अधिपति हैं; इसलिए ऐसा उपाय करें कि शत्रु अपने शरीर को स्वयं नष्ट कर डाले।[ऋग्वेद 6.51.7]
Hey demigods-deities! We are yours. We should not undergo punishment for others sins. Hey Vasu Gan! We should not perform the deeds restricted by you. Hey Vishw Dev Gan!  Since, you are the Lord of the universe, devise some means so that the enemy destroy his own body. 
नम इदुग्रं नम आ विवासे नमो दाधार पृथिवीमु॒त द्याम्।
नमो देवेभ्यो नम ईश एषां कृतं चिदेनो नमसा विवासे
नमस्कार सबसे बड़ी वस्तु है; इसलिए मैं नमस्कार करता हूँ। नमस्कार ही स्वर्ग और पृथ्वी को धारित करता है; इसलिए मैं देवों को नमस्कार करता हूँ। देवता लोग नमस्कार के वशीभूत हैं; इसलिए मैं नमस्कार द्वारा किये हुए पापों का प्रायश्चित करता हूँ।[ऋग्वेद 6.51.8]
नमस्कार :: अभिवादन, शुभकामना, नमस्कार, अभिनंदन, मुबारकबाद, सत्कार, वन्दना, प्रणाम, नमस्ते, आराधना, श्रद्धा, भक्ति, पूजा, श्रद्धा, भक्ति, पूजा, अति प्रेम, वंदन, शुभकामना, अभिनंदन, मुबारकबाद, सत्कार, greeting, salutation, adoration, accost, hello, bonjour, bow, regard, respect, salute, compliment, court, greeting.
प्रायश्चित :: पाप कर्म के फल, भोग से बचने हेतु किया जाने वाला शास्त्र विहित कर्म (दान, व्रत आदि), ग्लानिवश किया गया कठोर आचरण, atonement, penance. 
Salutation is great, hence I salute. Salutation bear-support the heaven & earth, hence I bow before the deities. The deities-demigods are under the impact of salutation. Hence, I subject myself to penances-atonement.
ऋतस्य वो रथ्यः पूतदक्षानृतस्य पत्स्यसदो अदब्धान्।
ताँ आ नमोभिरुरुचक्षसो नृन्विश्वान्व आ नमे महो यजत्राः
हे यज्ञ पालक देवो! मैं नमस्कार के साथ आप लोगों के पास प्रणत हो रहा हूँ; क्योंकि आप यज्ञ के नेता, विशुद्ध बल से युक्त, देव यजन गृह के निवासी, अजेय, बहुदर्शी, अधिनायक और महान हैं।[ऋग्वेद 6.51.9]
प्रणत :: झुका हुआ, नम्र, विनीत, दास, नौकर, सेवक; procumbent.
Hey deities supporting the Yagy! I salute you and procumbent before you since you are the lord of the Yagy, possess pure-pious strength, have rights over the house meant for worshiping demigods, invincible, visualize every thing, lord-leader and great.
ते हि श्रेष्ठवर्चसस्त उ नस्तिरो विश्वानि दुरिता नयन्ति।
सुक्षत्रासो वरुणो मित्रो अग्निर्ऋतधीतयो वक्मराजसत्याः
वे अच्छी तरह से दीप्ति युक्त हैं। वे ही हमारे सम्पूर्ण पापों का नाश करें। वरुण देव, मित्र और अग्नि देव शोभन बल वाले, सत्य कर्मा और स्तोत्र निरत व्यक्तियों के एकान्त पक्षपाती हैं।[ऋग्वेद 6.51.10]
निरत :: किसी काम में लगा हुआ रत, लीन, नाच; addict.
They are properly-thoroughly radiant. Let them vanish our all sins. Varun Dev, Mitr and Agni Dev possess demonstrable strength. They are truthful and favour the people who are addicted-busy with Strotr.
ते न इन्द्रः पृथिवी क्षाम वर्धन्पूषा भगो अदितिः पञ्च जनाः।
सुशर्माणः स्ववसः सुनीथा भवन्तु नः सुत्रात्रासः सुगोपाः
इन्द्र देव, पृथ्वी, पूषा, भग, अदिति और पञ्चजन (देव, गन्धर्व आदि) हमारे गृहों की रक्षा करें। वे हमारे सुख दाता, अन्न दाता, सत्पथ-प्रदर्शक, शोभन रक्षा करने वाले और आश्रय दाता हों।[ऋग्वेद 6.51.11]
Let Indr Dev, Prathvi-earth, Pusha, Bhag, Aditi and Panchjan (Dev, Gandarbh etc.) protect our homes. Let them become our granter of pleasure, food grains, guide-show righteous path, great protector and asylum granting.
नू सद्मानं दिव्यं नंशि देवा भारद्वाजः सुमतिं याति होता।
आसानेभिर्यजमानो मियेधैर्देवानां जन्म वसूयुर्वन्द
हे देवों! भरद्वाज गोत्रीय यह स्तोता शीघ्र ही एक दीप्तिमान गृह प्राप्त करें; क्योंकि वह आपकी कृपा चाहता है। हव्य दाता ऋषि अन्य यजमान गण के साथ धनार्थी होकर देवों की प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 6.51.12]
Hey deities! This Stota of Bhardwaj clan request you to grant a radiant house along with your favours. The Rishis making offerings request for wealth, along with the other Ritviz who worship-pray the demigods-deities.
अप त्यं वृजिनं रिपुं स्तेनमग्ने दुराध्यम्। दविष्ठस्य सत्पते कृधी सुगम्
हे अग्नि देव! आप कुटिल, पापी और दुष्ट शत्रु को नष्ट करें। हे साधुओं के रक्षक! हमें सुख प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.51.13]
Hey Agni Dev! Destroy the cunning, sinner and wicked-vicious enemies. Hey protector of the sages! Grant us comforts-pleasure.
ग्रावाणः सोम नो हि कं सखित्वनाय वावशुः।
जही न्य१त्रिणं पणिं वृको हि षः
हे सोम देव! हमारे ये अभिषव पाषाण आपकी मित्रता चाहते हैं। आप भेड़िये की तरह स्वभाव वाले दण्डनीय पणि का संहार करें; क्योंकि वह वास्तव में दस्यु है।[ऋग्वेद 6.51.14]
Hey Som Dev! These grinding stones wish to be friendly with you. You should destroy Pani, who possess the nature of wolf & in fact is dacoit.
यूयं हि ष्ठा सुदानव इन्द्रज्येष्ठा अभिद्यवः।
कर्ता नो अध्वन्ना सुगं गोपा अमा
हे इन्द्रादि देवों! आप दान शील और दीप्ति शाली है। मार्ग में आप हमारे रक्षक और सुख दाता बनें।[ऋग्वेद 6.51.15]
Hey demigods-deities including Indr Dev! You are donor and radiant. You should become our protectors in the path and grant us comfort.
अपि पन्थामगन्महि स्वस्तिगामनेहसम्।
येन विश्वाः परि द्विषो वृणक्ति विन्दते वसु
हम उस पवित्र और सरल मार्ग में आ गये हैं, जिस मार्ग में जाने पर शत्रु दूर रहते हैं और धन का लाभ होता है।[ऋग्वेद 6.51.16]
We have come to that pious and simple road over which wealth is gained and the enemies are repelled.(16.10.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (52) :: ऋषि :- ऋजिश्वा भरद्वाज; देवता :- विश्वेदेवा;  छन्द :- त्रिष्टुप, जगती, गायत्री।
न तद्दिवा न पृथिव्यानु मन्ये न यज्ञेन नोत शमीभिराभिः।
उब्जन्तु तं सुभ्व१: पर्वतासो नि हीयतामतियाजस्य यष्टा
मैं इसे (ऋजिवा के यज्ञ को) द्युलोक अथवा देवों के अनुकूल नहीं समझता। यह मेरे द्वारा अनुष्ठित यज्ञ अथवा दूसरों द्वारा सम्पादित यज्ञ की तुलना करेगा, यह भी नहीं समझता। इसलिए समस्त महान पर्वत उसको प्रताड़ित करें।अतियाज के ऋत्विक् भी अत्यन्त दीनता प्राप्त करें।[ऋग्वेद 6.52.1]
दीनता :: नम्र, सादगी, विनम्रता, विनय; meekness, humility, lowliness.
I do not regard it as worthy of the demigods of heaven or those of earth, as fit to be compared with the sacrifices I offer or with these our sacred rites; let, then, the mighty mountains overwhelm him; let the employer of Atiyaj be ever degraded.
I do not consider this Yagy by Rijiva favourable either for the heavens or the earth. I am not sure whether it will be equivalent-comparable to the Yagy by others. Hence, all great mountains punish him. Let the Ritviz of Atiyaj attain humility.
अति वा यो मरुतो मन्यते नो ब्रह्म वा यः क्रियमाणं निनित्सात्।
तपूंषि तस्मै वृजिनानि सन्तु ब्रह्मद्विषमभि तं शोचतु द्यौः
हे मरुतो! जो व्यक्ति आपको हमारी अपेक्षा उत्तम समझता है और मेरे किये स्तोत्र की निन्दा करता है, सारी शक्तियाँ उसके लिए अनिष्टकारिणी बनें और स्वर्ग उस ब्राह्मणद्वेषी को दग्ध करे।[ऋग्वेद 6.52.2]
Hey Marud Gan! The person envious of Brahmans who considers you better than us, condemn my Strotr, let all his powers become his destroyer, the heavens should burn-turn him into ashes.
किमङ्ग त्वा ब्रह्मणः सोम गोपां किमङ्ग त्वाहुरभिशस्तियां नः।
किमङ्ग नः पश्यसि निद्यमानान्ब्रह्मद्विषे तपुषिं हेतिमस्य
हे सोमदेव! लोग आपको क्यों मन्त्र रक्षक कहते हैं? और क्यों आपको निन्दा से हमें उद्धार करने वाला बताया जाता है? शत्रुओं द्वारा हमारे निन्दित होने पर आप क्यों निरपेक्ष भाव से देखते रहते हैं? ब्राह्मण विद्वेषी के प्रति अपना सन्तापक आयुध फेकें।[ऋग्वेद 6.52.3]
Hey Som Dev! Why do people consider you protector of Mantr? Why are you considered as our savoir from reproach? Why do you maintain neutrality when we are condemned by the enemy? Launch your torturing weapon over the person who envy-torture Brahmans.
अवन्तु मामुषसो जायमाना अवन्तु मा सिन्धवः पिन्वमानाः।
अवन्तु मा पर्वतासो ध्रुवासोऽवन्तु मा पितरो देवहूतौ
आविर्भूत उषाएँ मेरी रक्षा करें। जल से भरी नदियाँ मेरा रक्षा करें। निश्चल पर्वत मेरी रक्षा करें। देव यजन काल में यज्ञ में उपस्थित हुए पितर और देवता मेरी रक्षा करें।[ऋग्वेद 6.52.4]
Let the rising Ushas protect me. Rivers full of water protect me. Stationary-rigid mountains protect me. Pitr & demigods-deities present during the prayers-Yagy protect me.
विश्वदानीं सुमनसः स्याम पश्येम नु सूर्यमुच्चरन्तम्।
तथा करद्वसुपतिर्वसूनां देवाँ ओहानोऽवसागमिष्ठः
हम सदैव स्वतन्त्र चित्त होवें। हम सदैव उदयोन्मुख सूर्यदेव के दर्शन करें। देवों के निमित्त आहुति को वहन करने वाले और धनों के अधिपति अग्नि देव हमें सुरक्षा प्रदत्त करें।[ऋग्वेद 6.52.5]
Let us always remain happy. We should always see the rising Sun. Let Agni Dev who is the lord of wealth for the demigods-deities &  carrier of offerings to them, always protect us.
इन्द्रो नेदिष्ठमवसागमिष्ठः सरस्वती सिन्धुभिः पिन्वमाना।
पर्जन्यो न ओषधीभिर्मयोभुरग्निः सुशंसः सुहवः पितेव
इन्द्र देव और जलराशि के द्वारा स्फीत सरस्वती नदी हमारी रक्षा के साथ हमारे सम्मुख आवें। औषधियों के साथ पर्जन्य हमारे लिए सुख-दाता हों। पिता के सदृश अग्निदेव अनायास स्तुत्य और आह्वान योग्य हों।[ऋग्वेद 6.52.6]
स्फीत :: बढ़ा हुआ, फूला या उभरा हुआ; inflated, enlarged.
Let Indr Dev and river Saraswati full of water come to us for our protection. Let Parjany Dev grant us pleasure with the medicines. Agni Dev who is like father and worshipable deserve invocation.
विश्वे देवास आ गत शृणुता म इमं हवम्। एदं बर्हिर्नि षीदत 
हे विश्वदेव गण! आवें, मेरे आह्वान को श्रवण करें और बिछे हुए कुशों पर विराजें।[ऋग्वेद 6.52.6]
hey Vishw Dev Gan! Listen-respond to my invocation and occupy the Kush Mat.
यो वो देवा घृतस्नुना हव्येन प्रतिभूषति। तं विश्व उप गच्छथ
हे देवों! जो व्यक्ति घृत में मिले हव्य के द्वारा आपके निमित्त आहुतियाँ प्रदान करते हैं, उसके पास आप सब आवें।[ऋग्वेद 6.52.8]
Hey deities! You all should come to the person who makes offerings to you mixed with Ghee.
उप नः सूनवो गिरः शृण्वन्त्वमृतस्य ये। सुमृळीका भवन्तु नः
जो अमर के पुत्र हैं, वही विश्वदेव गण हमारा स्तोत्रों को श्रवण करें और हमें सुख प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.52.9]
Let Vishw Dev Gan, sons of Immortal-Amar listen to our Strotr and grant us pleasure.
विश्वे देवा ऋतावृध ऋतुभिर्हवनश्रुतः। जुषन्तां युज्यं पयः
यज्ञ के समृद्धिकारी और यथा समय स्तोत्रों के श्रवणकारी विश्वदेव गण अच्छी तरह से अपने-अपने उपयुक्त दुग्ध को ग्रहण करें।[ऋग्वेद 6.52.10]
The boosters of Yagy and listeners of Strotr timely, Vishw Dev Gan accept properly the milk suitable to them.
स्तोत्रमिन्द्रो मरुद्गणस्त्वष्टृमान्मित्रो अर्यमा। इमा हव्या जुषन्त नः
मरुतों के साथ इन्द्र देव त्वष्टा के साथ मित्र अर्यमा हमारे स्तोत्र और समस्त हव्य को ग्रहण करें।[ऋग्वेद 6.52.11]
Let Marud Gan alongwith Indr Dev, Twasta, Mitr & Aryma listen to our Strotr and accept the offerings.
इमं नो अग्ने अध्वरं होतर्वयुनशो यज। चिकित्वान्दैव्यं जनम्
हे देवों को बुलाने वाले अग्नि देव! देवों में जो महायोग्य हैं, उन्हें जानकर उनकी मर्यादा के अनुसार हमारी इस यज्ञक्रिया को सम्पादित करें।[ऋग्वेद 6.52.12]
Hey Agni Dev invoker of deities-demigods! Recognisee the most appropriate amongest the demigods-deities and initiate-perform the Yagy as per their dignity.
विश्वे देवाः शृणुतेमं हवं मे ये अन्तरिक्षे य उप द्यवि ष्ठ।
ये अग्निजिह्वा उत वा यजत्रा आसद्यास्मिन्बर्हिषि मादयध्वम्
हे विश्वदेव गण! आप अन्तरिक्ष, भूलोक या द्युलोक में रहते है। हमारा आह्वान श्रवण करें। अग्निरूप जिह्वा द्वारा या किसी भी प्रकार से हमारे इस यज्ञ को ग्रहण करें। सब लोग इन बिछे कुशों पर बैठकर सोमरस का पान कर आनन्दित होवें।[ऋग्वेद 6.52.13]
Hey Vishw Dev Gan! You reside in the space, earth or heavens. Listen to our invocation. Accept our Yagy with the tongue in the form of Agni-fire. All of you should occupy this Kush Mat and enjoy Somras.
विश्वे देवा मम शृण्वन्तु यज्ञिया उभे रोदसी अपां नपाच मन्म।
मा वो वचांसि परिचक्ष्याणि वोचं सुम्नेष्विद्वो अन्तमा मदेम
हे याज्ञार्ह विश्वदेव गण! स्वर्ग, पृथ्वी और जलराशि के पौत्र अग्निदेव हमारे स्तोत्र को सुनें। हे देवो! जो स्तोत्र आपको अग्राह्य हैं, उसका हम उच्चारण न करें। हम आपके निकटस्थ होकर और सुख प्राप्त कर प्रसन्न होवें।[ऋग्वेद 6.52.14]
Hey Vishw Dev Gan, desirous of Yagy! Let Agni Dev, the son of heavens, earth and the water, listen to our Strotr. Hey demigods-deities! Let us not recite the Strotr which you do not wish to listen. We should have comforts-pleasure in your proximity.
ये के च ज्मा महिनो अहिमाया दिवो जज्ञिरे अपां सधस्थे।
ते अस्मभ्यमिषये विश्वमायुः क्षप उस्रा वरिवस्यन्तु देवाः
पृथ्वी, स्वर्ग अथवा अन्तरिक्ष में प्रादुर्भूत, महान और संहारक शक्ति से युक्त देवगण दिन रात हमें और हमारी सन्ततियों को अन्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.52.15]
Let earth, heavens or the deities-demigods evolved in the space, should possess striking power and grant food grains to our progeny day & night.
अग्नीपर्जन्याववतं धियं मेऽस्मिन्हवे सुहवा सुष्टुतिं नः।
इळामन्यो जनयद्गर्भमन्यः प्रजावतीरिष आ धत्तमस्मे
अग्नि देव और पर्जन्य हमारे यज्ञ कार्य की रक्षा करें। आप अनायास आह्वान के योग्य हैं; इसलिए इस यज्ञ में हमारा स्तोत्रों को श्रवण करें। आपमें से एक व्यक्ति अन्न प्रदान करते हैं और दूसरे गर्भ उत्पन्न करते हैं। इसलिए आप हमें सन्तति के साथ अन्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.52.16]
Let Agni Dev & Parjany Dev protect our Yagy. You deserve invocation at any time, therefore listen to our Strotr. One of you grant food grains and the other one develop-grow the foetus. Hence, grant food grains to our progeny.
स्तीर्णे बर्हिषि समिधाने अग्नौ सूक्तेन महा नमसा विवासे।
अस्मिन्नो अद्य विदथे यजत्रा विश्वे देवा हविषि मादयध्वम्
पूजनीय विश्वदेव गण! आज हमारे इस यज्ञ में कुश बिछने पर, अग्नि प्रज्वलित होने पर और मेरे स्तोत्र उच्चारण और नमस्कार के साथ आपकी सेवा करने पर हव्य द्वारा तृप्ति प्राप्त करें।[ऋग्वेद 6.52.17]
Hey revered-honoured Vishw Dev Gan! You should be content-satisfied when we lay the Kush Mat, ignite fire, recitation of Strotr by me, saluting and serving you.(17.10.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (53) :: ऋषि :- ऋजिश्वा भरद्वाज; देवता :- पूषा,  छन्द :- गायत्री, अनुष्टुप्।
वयमु त्वा पथस्पते रथं न वाजसातये। धिये पूषन्नयुज्महि
हे मार्ग पति पूषन! कर्मानुष्ठान और अन्न लाभ के लिए युद्ध स्थल में रथ के सदृश हम आपको अपने अभिमुख करते हैं।[ऋग्वेद 6.53.1]
कर्मानुष्ठान :: किसी व्यक्ति द्वारा की गई कोई भी क्रिया, शास्त्र विहित कर्म, संध्या, अग्निहोत्र; rituals.
Hey lord of roads! We present our selves before you for rituals and food grains like the charoite in the war.
अभि नो नर्यं वसु वीरं प्रयतदक्षिणम्। वामं गृहपतिं नय
हे पूषन! हमारे यहाँ मानव हितैषी, धन-दान में मुक्त हस्त और विशुद्ध दान वाला एक गृहस्थ भेजें।[ऋग्वेद 6.53.2]
Hey Pusha! Send the house hold here who is devoted to human welfare-benefits & donate freely with pious money. 
अदित्सन्तं चिदाघृणे पूषन्दानाय चोदय। पणेश्चिद्वि प्रदा मनः
हे दीप्ति सम्पन्न पूषन! कृपण को दान देने के लिए प्रेरित करें और उसके हृदय को कोमल बनावें।[ऋग्वेद 6.53.3]
Hey radiant Pusha! Inspire the miser to donate and soften his heart.
वि पथो वाजसातये चिनुहि वि मृधो जहि। साधन्तामुग्र नो धियः
हे प्रचण्ड बलशाली पूषन! अन्न लाभ के लिए समस्त पथ परिष्कृत करें। विघ्नकारी चोर आदि का संहार करें और हमारे अनुष्ठानों को सफल करें।[ऋग्वेद 6.53.4]
प्रचंड :: अत्यधिक उग्र, तीव्र या तेज़ी होना, बहुत तीखा, उग्र, प्रखर, प्रबल, बहुत अधिक वेगवान, भंयकर, भीषण, अति तेजस्वी, प्रतापी, दुस्सह, असह्य, पुष्ट, बलवान, कठिन, विश्वासंबंधी, विश्विक, अवाढव्य, विराट, कठोर, बड़ा, भारी, अत्यंत क्रोधी, कठोर, उग्र, कड़ा; terrific, severe, huge, colossal,  cosmic, convulsion.
परिष्कृत :: साफ़ किया हुआ, सुधारा हुआ; sophisticated, refined.
Hey terrific Pusha Dev! Refine the road fro gain of food grains. destroy the troubling thieves etc. and make our rituals-endeavours successful.
परि तृन्धि पणीनामारया हृदया कवे। अथेमस्मभ्यं रन्धय 
हे ज्ञानी पूषन! सूक्ष्म लोहा प्रदण्ड (आरा) से पणियों या लुब्धकों का हृदय परिवर्तित कर हमारे वश में करें।[ऋग्वेद 6.53.5]
Hey enlightened Pusha Dev! Change the hearts of either the Panis or Lubdhak with small severe iron rod-weapon and put them under our control.
वि पूषन्नारया तुद पणेरिच्छ हृदि प्रियम्। अथेमस्मभ्यं रन्धय
हे पूषन! सूक्ष्म लोहाग्र दण्ड (प्रतोद या आरा) से पणि या चोर का हृदय परिवर्तित करें। उसके हृदय में सद्भावना भरें और उसे मेरे वशीभूत करें।[ऋग्वेद 6.53.6]
सद्भावना :: अच्छी नीयत, सद्भाव, सद्‍भाव से, नेकनीयती, सदाशयता, goodwill, good faith, bonafied.
Hey Pusha Dev! Change the heart of Pani or thief with the sharp-small pointed rod, with sharp head. Fill his heart with good will.
आ रिख किकिरा कृणु पणीनां हृदया करें। अथेमस्मभ्यं रन्धय
हे ज्ञानी पूषन्देव! चोरों के हृदयों को रेखाङ्कित करें। उनके हृदयों की कठोरता को भली-भाँति कम करें और उन्हें हमारे वश में करें।[ऋग्वेद 6.53.7]
Hey enlightened Pusha Dev! Touch the hearts of thieves. Soften their hearts and put them under our control.
यां पूषन्ब्रह्मचोदनीमारां बिभर्ष्याघृणे।
तया समस्य हृदयमा रिख किकिरा कृणु
हे दीप्ति सम्पन्न पूषन! आप अन्न प्रेरक प्रतोद धारण कर उसके द्वारा समस्त लोभी व्यक्तियों का हृदय रेखाङ्कित करें एवं उसकी कठोरता शिथिल करें।[ऋग्वेद 6.53.8]
प्रतोद :: पशु हाँकने की छड़ी, औगी, पैना, कोड़ा, चाबुक, एक प्रकार का साम गान; whiplash.
Hey aurous Pusha Dev! Bear the whiplash for directing the greedy for releasing food grains, punish the greedy and soften their hearts.
या ते अष्ट्रा गोओपशाघृणे पशुसाधनी। तस्यास्ते सुम्नमीमहे
हे दीप्तिशाली पूषन देव! आप जिस अस्त्र से धेनुओं और पशुओं को परिचालित करते हैं, हम आपके उसी अस्त्र से उपकार की प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 6.53.9]
Hey radiant Pusha Dev! We worship-pray your weapon for favours with which you controlled the cows and animals. 
उत नो गोषणिं धियमश्वसां वाजसामुत। नृवत्कृणुहि वीतये
हे पूषन देव! हमारे यज्ञादि कार्य की सफलता हेतु आप गौ, अश्व, अन्न और सेवक प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.53.10]
Hey Pusha Dev! Grant us cows, horses and servants for the success of our Yagy.(18.10.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (54) :: ऋषि :- ऋजिश्वा भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :- पूषा,  छन्द :- गायत्री।
सं पूषन्विदुषा नय यो अञ्जसानुशासति। य एवेदमिति ब्रवत्
हे पूषा देव! आप हमें एक ऐसे विलक्षण व्यक्ति से मिलावें, जो हमें वस्तुतः रास्ता बतावें और जो हमारे अपहृत द्रव्य को प्राप्त करने का मार्ग बतावें।[ऋग्वेद 6.54.1]
Hey Pusha Dev! Arrange our meeting some amazing person who can show us the right path and guide us the way to recover our snatched-looted wealth.
समु पूष्णा गमेमहि यो गृहाँ अभिशासति। इम एवेति च ब्रवत् 
हम पूषा की कृपा से ऐसे व्यक्ति से मिलें, जो समस्त गृह में दिखावेगा और कहेगा कि ये ही आपके खोये हुए पशु हैं।[ऋग्वेद 6.54.2]
We should meet some one by the grace of Pusha Dev who will direct-guide us to place-house where our animals are hidden.
पूष्णश्चक्रं न रिष्यति न कोशोऽव पद्यते। नो अस्य व्यथते पविः
पूषा का आयुध चक्र विनष्ट नहीं होता। इस चक्र का कोश हीन नहीं होता और इसकी धार कुण्ठित नहीं होती।[ऋग्वेद 6.54.3]
The weapon disc of Pusha Dev which is never destroyed nor its tooth-edge become blunt. Its revolutions-cycles are maintained.
यो अस्मै हविषाविधन्न तं पूषापि मृष्यते। प्रथमो विन्दते वसु
जो व्यक्ति हव्य द्वारा पूषा की सेवा करता है, उसका पूषा लेशमात्र भी अपकार नहीं करते और प्रधानतः वही व्यक्ति धन भी प्राप्त करता है।[ऋग्वेद 6.54.4]
One who make offerings and serve Pusha Dev is not harmed by him and granted wealth.
पूषा गा अन्वेतु नः पूषा रक्षत्वर्वतः। पूषा वाजं सनोतु नः
रक्षा के लिए हमारी गायों का पूषा अनुसरण करें। वे हमारे अश्वों की रक्षा करें और हमें अन्न एवं धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.54.5]
Let Pusha Dev follow our cows for their protection; protect our horses and grant us food grains and wealth as well.
पूषन्ननु प्र गा इहि याजकगणस्य सुन्वतः। अस्माकं स्तुवतामुत
हे पूषा देव! रक्षा के लिए सोम का अभिषव करने वाले याजकगण की गौओं का अनुसरण जानी-मानी गौवें भी करें।[ऋग्वेद 6.54.6]
Hey Pusha Dev! Let the well knows cows follow the cows of the Ritviz for protection, who extract Somras.
माकिर्नेशन्माकी रोरिषन्माकीं सं शारि केवटे। अथारिष्टाभिरा गहि
हे पूषा देव! हमारा गोधन नष्ट न होने पावे। यह व्याघ्रादि द्वारा मोहित न होने पावे। यह कुएँ में न गिरे। इसलिए आप अहिंसित गौवों के साथ सायंकाल हमारे पास लौट आवें।[ऋग्वेद 6.54.7]
Hey Pusha Dev! Make sure that our wealth in the form of cows is not lost. It should not be enchanted-mesmerised by the tiger etc. It should not fall into the well. Hence, you should return in the evening with the unharmed cows.
शृण्वन्तं पूषणं वयमिर्यमनष्टवेदसम्। ईशानं राय ईमहे
हमारे स्तोत्रों को सुनने वाले, दारिद्र नाशक, अविनष्ट धन और समस्त संसार के अधिपति पूषादेव के पास हम धन के लिए प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 6.54.8]
We worship-pray in front of Pusha Dev who is the lord of the world, for wealth. He listen our Strotr, remove poverty and protect the wealth.
पूषन्तव व्रते वयं न रिष्येम कदा चन। स्तोतारस्त इह स्मसि
हे पूषा देव! जब तक हम आपकी उपासना में लगे रहते हैं, तब तक हम कभी मारे न जावें। प्रत्युत पहले की तरह ही सुरक्षित रहें।[ऋग्वेद 6.54.9]
Hey Pusha Dev! We should be alive till we are busy with your worship-prayers and remain protected as before.
परि पूषा परस्ताद्धस्तं दधातु दक्षिणम्। पुनर्नो नष्टमाजतु 
हे पूषा देव! अपने दाहिने हाथ से हमारे गोधन को कुमार्ग गामी होने से बचावें। वे हमारे नष्ट गोधन को पुनः प्राप्त करावें।[ऋग्वेद 6.54.10]
Hey Push Dev! Protect our cows from following wrong direction with your right hand. He should restore our lost wealth in the form of cows.(19.10.2023)
ऋषि :-
एहि वां विमुचो नपादाघृणे सं सचावहै। रथीर्ऋतस्य नो भव
हे दीप्ति सम्पन्न प्रजापति पुत्र पूषा देव! आपका स्तोता मेरे पास आवे। हम दोनों मिलें और आप हमारे यज्ञकर्म का नेतृत्व करें।[ऋग्वेद 6.55.1]
Hey radiant Pusha Dev, son of Praja Pati! Let your Strotr come to me. We should join together and lead the Yagy activities.
रथीतमं कपर्दिनमीशानं राधसो महः। रायः सखायमीमहे
हम अपने रथि श्रेष्ठ, चूड़ावान (कपर्दी), अतुल ऐश्वर्य के अधिपति और अपने मित्र पूषा के पास धन की याचना करते हैं।[ऋग्वेद 6.55.2]
हम अपने मित्र पूषा, सारथियों के मुखिया, चोटी-बालों की पहनने वाले, अनंत धन के स्वामी से धन की याचना करते हैं।
We solicit riches of our friend, Pusha, the head of charioteers, the wearer of a braid of hair, the lord of infinite wealth.
We request our friend Pusha, who is an excellent charioteer, has band of hair our the head, possessor of infinite wealth; for wealth.
रायो धारास्याघृणे वसो राशिरजाश्व। धीवतोधीवतः सखा
हे दीप्तिशाली पूषा! आप धन के प्रवाह हैं, धन की राशि हैं, आप ही स्तुति करने वाले स्तोत्राओं के मित्र हैं।[ऋग्वेद 6.55.3]
Hey radiant Pusha! You are the flow & lord of wealth and friend of Stotas who pray-worship you. 
पूषणं न्व १ जाश्वमुप स्तोषाम वाजिनम्। स्वसुर्यो जार उच्यते
आज हम उन्हीं छाग (बकरी) वाहन और अन्न युक्त सूर्य या पूषा की प्रार्थना करते हैं, जिन्हें लोग भगिनी या उषा का प्रणयी अथवा जार कहते हैं।[ऋग्वेद 6.55.4]
GALLANT :: श्रेष्ठ, बहादुर, वीर; heroic, brave, plucky, mettlesome, hardy, valiant, daring, valorous, excellent, best, surpassing, nailing, spanking.
We worship possessor of food grains Sury Dev-Sun or Pusha Dev who ride the goat and possess food grains, whom people call gallant sister or paramour of Usha.  
मातुर्दिधिषुमब्रवं स्वसुर्जारः शृणोतु नः। भ्रातेन्द्रस्य सखा मम
रात्रि रूपिणी माता के पति पूषा की हम प्रार्थना करते हैं। अपनी भगिनी (उषा) के जार पूषा (सूर्य) हमारा स्तोत्र श्रवण करें। इन्द्र देव के भ्राता पूषा हमारे मित्र होवें।[ऋग्वेद 6.55.5]
We pray-worship Pusha Dev who is the husband of the Night like a mother. Let sister Usha and Zar-Pusha, the Sun, listen-respond to our Strotr. Let Pusha Dev brother of Indr Dev become our friend. 
आजासः पूषणं रथे निशृम्भास्ते जनश्रियम्। देवं वहन्तु बिभ्रतः
रथ में नियुक्त छागगण स्तोताओं के आश्रय पूषा का रथ वहन करते हुए उन्हें यहाँ ले आवें।[ऋग्वेद 6.55.6]
Let the goats deployed in the charoite bring Pusha Dev, who is the asylum of Stotas, here.(20.10.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (56) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :- पूषा,  छन्द :- गायत्री, अनुष्टुप्।
य एनमादिदेशति करम्भादिति पूषणम्। न तेन देव आदिशे
जो पूषा को घी मिले जौ के सत्तू का भोगी कहकर उनकी प्रार्थना करता है, उसे अन्य देवों की प्रार्थना नहीं करनी पड़ती।[ऋग्वेद 6.56.1]
One who worship Pusha Dev by saying that he is the eater of roasted & grinded barley mixed with Ghee; need no other demigods-deities.
उत घा स रथीतमः सख्या सत्पतिर्युजा। इन्द्रो वृत्राणि जिघ्नते
रथि श्रेष्ठ, साधुओं के रक्षक और सुप्रसिद्ध इन्द्र देव अपने मित्र पूषा की सहायता से शत्रुओं का संहार करते हैं।[ऋग्वेद 6.56.2]
Best amongest the charioteers, protector of the sages famous-honoured Indr Dev destroy the enemies with the help of his friend Pusha Dev. 
उतादः परुषे गवि सूरश्चक्रं हिरण्ययम्। न्यैरयद्रथीतमः
चालक और रवि श्रेष्ठ पूषा सूर्य के हिरणमय रथ का चक्र नियत परिचालित करते हैं।[ऋग्वेद 6.56.3]
Driver and best Ravi, Pusha cycle-drive the golden charoite of Sun in a fixed manner-regularly.
यदद्य त्वा पुरुष्टुत ब्रवाम दस्त्र मन्तुमः। तत्सु नो मन्म साधय
हे बहुलोक वन्दनीय, मनोहर मूर्ति और ज्ञानी पूषा! प्रतिदिन हम जिस धन को लक्ष्य करके आपकी प्रार्थना करते हैं, उसी वांच्छित धन को हमें प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.56.4]
Hey beautiful and enlightened Pusha Dev, revered-honoured in many abodes! Grant us the wealth for which we pray-worship you.
इमं च नो गवेषणं सातये सीषधो गणम्। आरात्पूषन्नसि श्रुतः
हे पूषा! गौ की कामना करने वाले इन समस्त मनुष्यों को गौ प्राप्त करावें। आप समीप और दूर से भी प्रसिद्ध हैं अर्थात् आप सर्वव्यापक हैं।[ऋग्वेद 6.56.5]
Hey Pusha Dev! Grant cows to the humans who desire them. You are famous far & wide i.e., you pervade all places.
आ ते स्वस्तिमीमह आरे अघामुपावसुम्।
अद्या च सर्वतातये श्वश्च सर्वतातये
हे पूषा देव! हम आज और कल के यज्ञों के सम्पादन के लिए आपकी उसी रक्षा को चाहते हैं। आप हमें धन प्रदान करें और पाप कर्म से बचावें।[ऋग्वेद 6.56.6]
Hey Pusha Dev! We seek asylum under you for conducting Yagy today and tomorrow. Grant us wealth and protect-save us from committing-doing sins.(21.10.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (57) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :- पूषा,  छन्द :- त्रिष्टुप्, जगती।
इन्द्रा नु पूषणा वयं सख्याय स्वस्तये। हुवेम वाजसातये 
हे इन्द्र देव और पूषा देव! अपने मंगल के लिए आज हम आपकी मित्रता और अन्न की प्राप्ति के लिए आपका आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 6.57.1]
Hey Indr Dev & Pusha Dev! We invoke you for your friendship for our welfare and food grains.
सोममन्य उपासदत्पातवे चम्वोः सुतम्। करम्भमन्य इच्छति
आप में से एक (इन्द्र देव) पात्र स्थित अभिषुत सोमरस का पान करने के लिए जाते हैं और दूसरे (पूषा) जौ का सत्तू खाने की इच्छा करते हैं।[ऋग्वेद 6.57.2]
Indr Dev is desirous of drinking Somras and Pusha Dev wish to eat roasted & grounded barley.
अजा अन्यस्य वह्नयो हरी अन्यस्य संभृता। ताभ्यां वृत्राणि जिघ्नते
एक के वाहन-सवारी छाग हैं और दूसरे के वाहन स्थूल काय दो अश्व हैं। दूसरे (इन्द्र देव) इन्हीं दोनों अश्वों के साथ वृत्रासुर का संहार करते हैं।[ऋग्वेद 6.57.3]
The vehicle-conveyance of Indr Dev are two Stallion named Hari, while Pusha Dev rides the goats.
यदिन्द्रो अनयद्रितो महीरपो वृषन्तमः। तत्र पूषाभवत्सचा
जिस समय अतिशय वर्षक इन्द्र देव महावृष्टि करते हैं, उस समय इनके सहायक पूषा ही होते हैं।[ऋग्वेद 6.57.4]
When Indr Dev resort to downpour, Pusha Dev assist him.
तां पूष्णः सुमतिं वयं वृक्षस्य प्र वयामिव। इन्द्रस्य चा रभामहे
हम वृक्ष की सुदृढ़ शाखा के सदृश पूषा और इन्द्र देव की कृपा दृष्टि के ऊपर ही निर्भर रहते है।[ऋग्वेद 6.57.5]
कृपा दृष्टि :: regard, grace, favour, obligation, condescension, pleasure, favour, mercy, blessing, benevolence. 
We depend-survive over the blessings-favours of Pusha & Indr Dev like the strong branch of a tree.
उत्पूषणं युवामहे ऽ भीशँरिव सारथिः। मह्या इन्द्रं स्वस्तये
जिस प्रकार सारथि लगाम खींचता है, उसी प्रकार हम भी अपने प्रहर्षित कल्याण के लिए पूषा और इन्द्र देव को अपने पास खींचते हैं।[ऋग्वेद 6.57.6]
प्रहर्षित :: प्रसन्न, हर्षित, आनंदित, कठोर या कड़ा, अकड़ा हुआ, संभोग के लिये उत्तेजित किया हुआ; excited.
The way the charoite drive pulls the reins we too are pulled-dragged towards Indr Dev & Pusha Dev for our welfare.(22.10.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (58) :: ऋषि :-  भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :- पूषा,  छन्द :- त्रिष्टुप् जगती। 
शुक्रं ते अन्यद्यजतं ते अन्यद्विषुरूपे अहनी द्यौरिवासि।
विश्वा हि माया अवसि स्वधावो भद्रा ते पूषन्निह रातिरस्तु
हे पूषा! आपका यह रूप (दिन) शुक्लवर्ण है और अन्य रूप (रात्रि) केवल यजनीय हैं। इस प्रकार दिन और रात्रि के रूप विभिन्न प्रकार के हैं। आप सूर्य देव के सदृश प्रकाशमान हैं; क्योंकि आप सभी के दाता हैं और सब प्रकार के ज्ञान धारित करते है। इस समय आपका कल्याणकारी दान हमें प्राप्त होवे।[ऋग्वेद 6.58.1]
Hey Pusha! Your bright phase-day and the other one dark phase-night deserve worship. You are radiant like the Sun. You benefit all and is enlightened. Let us receive your donation meant for welfare.
अजाश्वः पशुपा वाजपस्त्यो धियं जिन्वो भुवने विश्वे अर्पितः।
अष्ट्रां पूषा शिथिरामुद्वरीवृजत् संचक्षाणो भुवना देव ईयते
जो छाग वाहन और पशु पालक हैं, जिनका घर अन्न से परिपूर्ण है, जो स्तोताओं के प्रीतिदाता हैं, जो अखिल भुवनों के ऊपर स्थापित हैं, वही देव (पूषा) सूर्य रूप से समस्त प्राणियों को प्रकाशित करके और अपने हाथ से आरा उठाकर नभो मण्डल में जाते हैं।[ऋग्वेद 6.58.2]
He who nurture the goats and animals, his house is full of food grains, loves-affectionate to the Stotas, placed at the highest point of all abodes, that Pusha Dev raise the saw in his hands and goes to the sky-space.
यास्ते पूषन्नावो अन्तः समुद्रे हिरण्ययीरन्तरिक्षे चरन्ति।
ताभिर्यासि दूत्यां सूर्यस्य कामेन कृत श्रव इच्छमानः
हे पूषा देव! आपकी जो सारी हिरण्यमयी नौकाएँ समुद्र मध्यस्थित अन्तरिक्ष में चलती हैं, उनके द्वारा आप सूर्य देव का दूत कार्य करते हैं। आप हव्यरूप अन्न चाहते हैं। स्तोता लोग आपको स्वेच्छा से दिए पशु आदि के द्वारा वशीभूत करते हैं।[ऋग्वेद 6.58.3]
Hey Pusha Dev! Your golden vessels, ships, boats stationed in the ocean navigate functioning as the messenger of Sury Dev. You are desirous of offerings in the form of food grains. The Stotas wilfully offer you animals to seek your blessings.
पूषा सुबन्धुर्दिव आ पृथिव्या इळस्पतिर्मघवा दस्मवर्चाः।
यं देवासो अददुः सूर्यायै कामेन कृतं तवसं स्वञ्चम्
पूषा स्वर्ग और पृथ्वी के शोभन मित्र हैं, अन्न के अधिपति हैं, ऐश्वर्यशाली हैं, मनोहरमूर्ति हैं। वे बलशाली, स्वेच्छा से दिये पशु आदि के द्वारा प्रसन्नता के योग्य और शोभन गमनकर्ता हैं। उन्हें देवों ने सूर्यदेव की पत्नी के पास भेजा था।[ऋग्वेद 6.58.4]
Pusha Dev is a great friend of the earth and heavens, lord of food grains and possess grandeur and is attractive. He is mighty, feels happy by offering animals willingly and moves gracefully. The demigods-deities sent him to the wife of Sury Dev.(23.10.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (59) :: ऋषि :-  भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :- इन्द्र देव, अग्रि; छन्द :- बृहती, अनुष्टुप्।
प्र नु वोचा सुतेषु वां बीर्या३यानि चक्रथुः।
हतासो वां पितरो देवशत्रव इन्द्राग्री जीवथो युवम्
हे इन्द्र देव और अग्नि देव! आपने जो वीरता प्रकट की है, उसी वीरता का वर्णन हम सोमरस के अभिषुत होने पर बड़े आग्रह के साथ करते हैं। देवद्वेष्टा असुर आपके द्वारा मारे गये हैं और आप लोग रक्षक हैं।[ऋग्वेद 6.59.1]
Hey Indr Dev & Agni Dev! We describe-stress over your valour on extracting Somras. Demons envious of demigods-deities are killed by you. You are the protectors of humans.
बळित्या महिमा वामिन्द्राग्नी पनिष्ठ आ।
समानो वां जनिता भ्रातरा युवं यमाविहेहमातरा
हे इन्द्र देव और अग्नि देव! आप लोगों का जो जन्म माहात्म्य प्रतिपादित होता है, वह सब यथार्थ और अतीव प्रशस्य है। आप दोनों के एक ही पिता हैं। आप यम के भाई हैं और आपकी माता सभी जगह विद्यमान हैं।[ऋग्वेद 6.59.2]
Hey Indr Dev and Agni Dev! The glory associated with your birth-evolution is real and deserve appreciation. Father of both of you is the same. You are the brothers of Yam-Dharm Raj. Your mother is omnipresent.
ओकिवांसा सुते सचाँ उ श्वा सप्ती इवादने।
इन्द्रान्व १ ग्री अवसेह वज्रिणा वयं देवा हवामहे
हे इन्द्र देव और अग्नि देव! जिस प्रकार से तेज चलने वाले दोनों अश्व भक्षणीय घास की ओर जाते हैं आप भी उसी प्रकार सोमरस के अभिषुत होने पर एक साथ जाते हैं। अपनी रक्षा के लिए आज हम वज्रधर और दानादि गुण से युक्त इन्द्रदेव और अग्निदेव को इस यज्ञ में बुलाते हैं।[ऋग्वेद 6.59.3]
Hey Indr Dev & Agni Dev! The way fast moving horses are attracted towards grass, you invoke as soon as Somras is extracted. We invite Vajr wielder donor Indr Dev and Agni Dev for our protection in the Yagy.
य इन्द्राग्नी सुतेषु वां स्तवत्तेष्वृतावृधा।
जोषवाकं वदतः पज्रहोषिणा न देवा भसथश्चन
हे यज्ञ के समृद्धिदाता इन्द्र देव और अग्नि देव! आपका स्तोत्र प्रसिद्ध है। जो व्यक्ति सोमरस के अभिषुत होने पर प्रेम रहित स्तोत्र द्वारा कुत्सित रूप से आपकी प्रार्थना करता है, उसका दिया हुआ सोमरस आप स्पर्श नहीं करते।[ऋग्वेद 6.59.4]
Hey enricher of the Yagy Indr Dev & Agni Dev! Your Strotr is famous. You do not touch the Somras extracted by a person with impious prayers associated with the Strotr without affection & love.
इन्द्राग्नी को अस्य वां देवो मर्तश्चिकेतति।
विषूचो अश्वान्युयुजान ईयत एकः समान आ रथे
हे दीप्ति सम्पन्न इन्द्र देव और अग्नि देव! जिस समय आपमें से एक सूर्यात्मक इन्द्र देव नाना प्रकार से गमन करने वाले अश्वों को जोतकर अग्नि देव के साथ एक रथ पर आरूढ़ होकर जाते हैं, उस समय कौन मनुष्य आपके इस कार्य का विचार करेगा या जानेगा (कोई भी नहीं)?[ऋग्वेद 6.59.5]
Hey radiant Indr Dev & Agni Dev! The manner in which one of you, Indr Dev deploy the horses in the charoite with vivid movements and ride it along with Agni Dev, who will not think of this action by you.
इन्द्राग्नी अपादियं पूर्वागात्पद्वतीभ्यः।
हित्वी शिरो जिह्वया वावदचरत्त्रिंशत्पदा न्यक्रमीत्
हे इन्द्र देव और अग्नि देव! पैरों से रहित यही उषा प्राणियों के शिरोवेश को उत्तेजित करके और उनकी जिह्वाओं से उच्च शब्द कराकर पैरों से युक्त और निद्रित जीवों की अभिमुखवर्त्तिनी हो रही हैं और इसी प्रकार तीस पद (मुहूर्त) अतिक्रम करती हैं।[ऋग्वेद 6.59.6] 
मुहूर्त :: कार्य हेतु निश्चित किया गया विशिष्ट समय, काल गणना के अनुसार कार्य हेतु निश्चित किया गया समय; auspicious moment, auspicious beginning.
Hey Indr Dev & Agni Dev! Usha without legs, activate the minds of the humans, make them speak, awake the slept living beings, moves forward and continue like this for thirty feet i.e., Muhurt (designated auspicious time period).
इन्द्राग्नी आ हि तन्वते नरो धन्वानि बाह्वोः।
मा नो अस्मिन्महाधने परा वर्कतन वर्क्तं गविष्टिषु
हे इन्द्र देव और अग्नि देव! योद्धा लोग दोनों से हाथों धनुष फैलाते हैं। इस महासंग्राम में गौवों के अनुसन्धान के समय हमें न छोड़ना।[ऋग्वेद 6.59.7]
Hey Indr Dev and Agni Dev! The warriors expend-stretch the bow with both hands. Do not discard us during the great war for the recovery of cows. 
इन्द्राग्नी तपन्ति माघा अर्यो अरातयः। अप द्वेषांस्या कृतं युयुतं सूर्यादधि
हे इन्द्र देव और अग्नि देव! हनन परायण और आक्रमण कर्ता शत्रु हमें पीड़ित कर रहे हैं। उन्हें आप दूर करें और उन्हें सूर्य दर्शन से भी वञ्चित करें।[ऋग्वेद 6.59.8]
Hey Indr Dev & Agni Dev! The attacker-invader enemies are torturing us. Repel them and prohibit them from seeing the Sun.
इन्द्रानी युवोरपि वसु दिव्यानि पार्थिवा।
आ न इह प्र यच्छतं रथिं विश्वायुपोषसम्
हे इन्द्र देव और अग्नि देव! आप लोग दिव्य और पार्थिव समस्त धनों के स्वामी हैं; इसलिए इस यज्ञ में हमें जीवन पोषक समस्त धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.59.9]
Hey Indr Dev & Agni Dev! You are the lord of divine and material wealth, hence grant us all sorts of riches for sustaining life & carrying out the Yagy.
इन्द्रानी उक्थवाहसा स्तोमेभिर्हवनश्रुता।
विश्वाभिर्गीर्भिरा गतमस्य सोमस्य पीतये
स्तोत्र द्वारा आकर्षणीय इन्द्र देव और अग्नि देव! हमारे इस सोमरस का पान करने के लिए यहाँ पधारें, क्योंकि आप लोग स्तोत्रों और उपासनाओं से युक्त आह्वान श्रवण करते हैं।[ऋग्वेद 6.59.10]
Hey Indr Dev & Agni Dev invoked by the Strotr! Come for drinking our Somras, since you respond to the prayers-worship and recitation of Strotr-sacred hymns.(24.10.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (60) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :- इन्द्राग्नि; छन्द :- त्रिष्टुप्, बृहती, अनुष्टुप् गायत्री।
शनाथद्वृत्रमुत सनोति वाजमिन्द्रा यो अग्नी सहुरी सपर्यात्।
इरज्यन्ता वसव्यस्य भूरे: सहस्तमा सहसा वाजयन्ता
जो विशाल धन के स्वामी हैं, जो बलात शत्रु हन्ता हैं और जो अन्नाभिलाषी इन्द्र देव और अग्नि देव की सेवा करते हैं, वे शत्रुओं का संहार करते हुए और अन्न प्राप्त करते हैं।[ऋग्वेद 6.60.1]
Those who possess a lot of wealth, kills the enemy at once, desirous of food grains and server Indr Dev & Agni Dev, they obtain food grains while killing the enemies.
ता योधिष्टमभि गा इन्द्र नूनमपः स्वरुषसो अग्न ऊळहाः।
दिशः स्वरुषस इन्द्र चित्रा अपो गा अग्ने युवसे नियुत्वान्
हे इन्द्र देव और अग्नि देव! आपने अपहरण की गई गौओं, जलराशि, सूर्य और उषा के लिए युद्ध किया। हे इन्द्रदेव! आपने दिशाओं, सूर्य, उषाओं, विचित्र जल और गौओं को सार के साथ योजित किया। हे अश्वों के अधिपति अग्निदेव! आपने भी ऐसे कार्य किये।[ऋग्वेद 6.60.2]
योजित :: मिलाया हुआ, युक्त, बनाया हुआ, जिसकी योजना की गई हो, योजना के रूप में लाया हुआ, जोड़ा या मिलाया हुआ, किसी काम या बात में लगाया हुआ, बनाया या रचा हुआ, रचित, नियमों आदि से बँधा हुआ, नियमबद्ध; ; connected,  planned, organised.
Hey Indr Dev & Agni Dev! You fought the war for cows, water, Sun and Usha. Hey Indr Dev! You connected the directions, Sun, Ushas, amazing water and the cows through their extract. Hey Lord of horses Agni Dev! You too performed such jobs-deeds.
आ वृत्रहणा वृत्रहभिः शुष्मैरिन्द्र यातं नमोभिरग्ने अर्वाक्।
युवं राधोभिरकवेभिरिन्द्राग्ने अस्मे भवतमुत्तमेभिः
हे वृत्रहन्ता इन्द्र देव और अग्नि देव! आप हमारे हव्यान्न द्वारा परिपुष्ट होने के लिए शत्रुनाशक बल के साथ हमारे सामने पधारें। आप लोग अनिन्द्य और अत्युत्कृष्ट धन के साथ हमारे पास आविर्भूत होवें।[ऋग्वेद 6.60.3]
अनिंद्य :: प्रशंसनीय, जिसकी निंदा न की जा सकती हो, श्रेष्ठ, सुंदर; appreciable, irreproachable, unexceptionable, beautiful.
Hey slayer of Vratr, Indr Dev & Agni Dev! Invoke before us with your might to destroy the enemy & to be nourished with our offerings. Come to us with appreciable and excellent wealth.
ता हुवे ययोरिदं पप्ने विश्वं पुरा कृतम्। इन्द्राग्नी न मर्धतः
प्राचीन समय में ऋषियों द्वारा जिनके समस्त वीरकार्य कीर्त्तित हुए, मैं उन्हीं इन्द्र देव और अग्नि देव का आवाहन करता हूँ। वे स्तोताओं की हिंसा नहीं करते।[ऋग्वेद 6.60.4]
I invoke Indr Dev & Agni Dev whose bravery and valour were appreciated by the Rishis during ancient times-periods. They do not harm their Stotas-worshipers.
उग्रा विघनिना मृध इन्द्राग्नी हवामहे। ता नो मृळात ईदृशे
हम प्रचण्ड बलशाली, शत्रु हन्ता इन्द्र देव और अग्नि देव का आवाहन करते हैं। वे हमें ऐसे में कृत कार्य करके सुखी बनावें।[ऋग्वेद 6.60.5]
प्रचण्ड ::  कठोर, उग्र, तीक्ष्ण, कड़ा; terrific, severe.
We invoke terrific, mighty and destroyer of the enemy Indr Dev & Agni Dev. Let should make us comfortable.
हतो वृत्राण्यार्या हतो दासानि सत्पती। हतो विश्वा अप द्विषः॥
हे साधुओं के रक्षक इन्द्र देव और अग्नि देव! धार्मिकों और अधार्मिकों द्वारा कृत समस्त उपद्रवों का निवारण करते हैं। उन्होंने समस्त विरोधियों का संहार किया।[ऋग्वेद 6.60.6]
निवारण :: रोकना, दूर करना, हटाना; prevention, eradication, prohibit.
Hey protector of the sages Indr Dev and Agni Dev! You eradicate the misdeeds and troubles created by the religious and irreligious. You killed all opponents.
इन्द्राग्नी युवामिमे३भि स्तोमा अनूषत। पिबतं शंभुवा सुतम्
हे वृत्र हन्ता इन्द्र देव और अग्नि देव! ये स्तोता आपकी प्रार्थना करते हैं। हे सुखदाता इंद्रदेव और अग्निदेव! आप इस अभिषुत सोमरस का पान करें। [ऋग्वेद 6.60.7]
Hey killer of Vratr Indr Dev & Agni Dev! These Stotas worship-pray you. Hey comforter Indr Dev & Agni Dev! Drink this extracted Somras.
या वां सन्ति पुरुस्पृहो नियुतो दाशुषे नरा। इन्द्राग्नी ताभिरा गतम्॥
हे नेता इन्द्रदेव और अग्निदेव! याजकों द्वारा प्रशंसा किए जाते हुए, आप दोनों उनसे प्रदत्त हविष्यान्न के लिए यज्ञशाला में अपने तेज चलने वाले अश्व की सहायता से आकर दान देने वालों की सहायता करें।[ऋग्वेद 6.60.8]
Hey leaders Indr Dev & Agni Dev! Come riding your fast moving horses to the Yagy house to accept the offerings on been appreciated and help the donors.
ताभिरा गच्छतं नरोपेदं सवनं सुतम्। इन्द्राग्नी सोमपीतये
हे नेता इन्द्र देव और अग्नि देव! इस सवन में अभिषुत सोमरस का पान करने के लिए यहाँ पधारें।[ऋग्वेद 6.60.9]
Hey leaders Indr Dev & Agni Dev! Come to drink the extracted Somras during this period-part of the day.
तमीळिष्व यो अर्चिषा वना विश्वा परिष्वजत्। कृष्णा कृणोति जिह्वया
हे स्तोता! जो अग्नि देव अपनी शिखा द्वारा समस्त वनों को ढक लेते हैं और ज्वालारूप जिव्हा द्वारा उन्हें काला कर देते हैं, आप उन्हीं अग्नि देव की प्रार्थना करें।[ऋग्वेद 6.60.10]
Hey Stota! Worship Agni Dev who cover the forests with their tip and make them black with their tongue in the form of flames.
य इद्ध आविवासति सुम्नमिन्द्रस्य मर्त्यः। द्युम्नाय सुतरा अपः
जो मनुष्य प्रज्वलित अग्नि में इन्द्र देव के लिए सुखकर हव्य प्रदान करते है, इन्द्र देव उन्हीं मनुष्यों के दीप्ति सम्पन्न अन्न के लिए कल्याणकारी जल की वर्षा करते हैं।[ऋग्वेद 6.60.11]
Indr Dev make rains for the welfare of those humans who make pleasure giving offerings in the ignited fire. 
ता नो वाजवतीरिष आशून्पिपृतमर्वतः। इन्द्रमग्निं च वोळ्हवे 
हे इन्द्र देव और अग्रि देव! हमें बल युक्त अन्न प्रदान करें और हमारे हव्य को बलवान करने के लिए हमें वेगवान अश्व प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.60.12]
Hey Indr Dev & Agni Dev! Grant us food grains which grant strength and give us fast moving horses to make our offerings powerful.
उभा वामिन्द्राग्नी आहुवध्या उभा राधसः सह मादयध्यै।
उभा दाताराविषां रयीणामुभा वाजस्य सातये हुवे वाम्
हे इन्द्र देव और अग्नि देव! होम द्वारा आपको अनुकूल करने के लिए मैं आप दोनों का आवाहन करता हूँ। हव्य द्वारा तत्काल तृप्ति करने के लिए मैं आप दोनों का आवाहन करता हूँ। आप दोनों अन्न और धन को देने वाले हैं; इस लिए मैं अन्न प्राप्ति के लिए आप दोनों का आवाहन करता हूँ।[ऋग्वेद 6.60.13]
Hey Indr Dev & Agni Dev! I invoke both of you to make favourable. I invoke you to have satisfaction with the offerings immediately-instantaneously. Both of you grant wealth & food grains, hence I invoke you to seek food grains. 
आ नो गव्येभिरश्यैर्वसव्यैरुप ३ गच्छतम्।
सखायौ देवौ सख्याय शंभुवेन्द्राग्नी ता हवामहे
हे इन्द्र देव और अग्नि देव! आप गौओं, अश्वों और विपुल धन के साथ हमारे सम्मुख पधारें। हम मित्रता के लिए मित्रभूत, दानादि गुणों से युक्त और सुख देने वाले इन्द्र देव और अग्नि देव का आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 6.60.14]
Hey Indr Dev & Agni Dev! Come to us with cows, horses and a lot of wealth. We invoke Indr Dev & Agni Dev who are like friends, possess virtues like donation and comforts-pleasure for friendship.
इन्द्रानी शृणुतं हवं याजकगणस्य सुन्वतः।
वीतं हव्यान्या गतं पिबतं सोम्यं मधु
हे इन्द्र देव और अग्नि देव! आप सोमरस रस तैयार करने वाले याजकगण का आह्वान श्रवण करें। हवि की इच्छा से आएँ और मधुर सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 6.60.15]
Hey Indr Dev & Agni Dev! Respond to the invocation of the Ritviz who extract Somras. Come with the desire of offerings and drink sweet Somras.(25.10.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (61) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :- सरस्वती; छन्द :- जगती, गायत्री, त्रिष्टुप्।
इयमददाद्रभसमृणच्युतं दिवोदासं वध्रयश्वाय दाशुषे।
या शश्वन्तमाचखादावसं पणिं ता ते दात्राणि तविषा सरस्वति
इन्हीं सरस्वती देवी ने हव्यदाता वध्र्यश्व को वेगवान तथा ऋण मोचक दिवोदास नाम का एक पुत्र दिया। उन्होंने बहुत आत्मतर्पक तथा दानविमुख पणि का नाश किया। हे सरस्वति देवी! आपके ये दान बहुत महान हैं।[ऋग्वेद 6.61.1]
तर्पक :: तृप्त कर देने वाला; satisfying.
Saraswati Devi granted a dynamic, son called Divodas to Vadrayshv who discharged debt. He killed Pani who was restricted to himself and discarded donations. Hey Saraswati Devi! Your grant is great-glorious.
इयं शुष्मेभिर्बिस खाइवारुजत्सानु गिरीणां तविषेभिरूर्मिभिः।
पारावतघ्नीमवसे सुवृक्तिभिः सरस्वतीमा विवासेम धीतिभिः॥
ये सरस्वती देवी मृणाल खननकारी के सदृश प्रबल और वेगवान तरंगों के साथ पर्वत के तटों को तोड़ देती हैं। रक्षा के लिए हम प्रार्थना और यज्ञ द्वारा दोनों तटों का विनाश करने वाली सरस्वती देवी की परिचर्या करते हैं।[ऋग्वेद 6.61.2]
Saraswati Devi destroys the mountain banks with its strong currents creating waves which produce sound like Mranal. For protection we worship Saraswati Devi who destroys both the river banks and organise Yagy to please her. 
सरस्वति देवनिदो निबर्हय प्रजां विश्वस्य बृसयस्य मायिनः।
उत क्षितिभ्योऽवनीरविन्दो विषमेभ्यो अस्रवो वाजिनीवति
हे सरस्वती देवी! आपने देव निन्दकों का वध किया और सर्वव्यापी वृसय या त्वष्टा के पुत्र का संहार किया अथवा आपकी सहायता से इन्द्र देव ने संहार किया। हे अन्न सम्पन्ना सरस्वती देवी! आपने मनुष्यों को संरक्षित भूभाग प्रदान किया और उनके लिए जल की वर्षा भी की।[ऋग्वेद 6.61.3]
Hey Saraswati Devi! You killed the cynic of demigods-deities and the son of Twasta along with Indr Dev. Hey Saraswati Devi, possessing stock of food grains! You granted protected land to the humans and showered rains for them.
प्र णो देवी सरस्वती वाजेभिर्वाजिनीवती। धीनामवित्र्यवतु
हे दान शालिनी, अन्न देने वाली और स्तोताओं की रक्षा कारिणी सरस्वती देवी! अन्न द्वारा उत्तम प्रकार से हमारी तृप्ति करें।[ऋग्वेद 6.61.4]
Hey Saraswati Devi making donations, granting us food grains & protector of the Stotas! Satisfy-content us with best quality food grains.
यस्त्वा देवि सरस्वत्युपब्रूते धने हिते। इन्द्रं न वृत्रतूर्ये
हे देवी सरस्वती देवी! जो व्यक्ति इन्द्र देव के सदृश आपकी प्रार्थना करता है, वही व्यक्ति जिस समय धन प्राप्ति के लिए युद्ध में आपका आवाहन करता है; उस समय उसकी रक्षा आप करती हैं।[ऋग्वेद 6.61.5]
Hey Saraswati Devi! The person who worship you like Indr Dev & invoke you for wealth in the war, is protected by you.
त्वं देवि सरस्वत्यवा वाजेषु वाजिनि। रदा पूषेव नः सनिम्
हे अन्न शालिनी सरस्वती देवी! आप युद्ध में हमारी रक्षा करें और पूषा देव की तरह हमारे भोग के लिए धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.61.6]
Hey possessor of food grains, Saraswati Devi! Protect us during war and grant us food grains like Pusha Dev and wealth for utilisation.
उत स्या नः सरस्वती घोरा हिरण्यवर्तनिः। वृत्रघ्नी वष्टि सुष्टुतिम्॥
भीषण, सुवर्ण रथ पर आरूढ़ होकर शत्रु घातिनी वही सरस्वती देवी स्तोताओं की रक्षा करती हैं।[ऋग्वेद 6.61.7]
Fierce, slayer of the enemy, riding the golden charoite Saraswati Devi protect the Stotas.
यस्या अनन्तो अह्रुतस्त्वेषश्चरिष्णुरर्णवः। अमश्चरति रोरुवत्
उन सरस्वती देवी का अपरिमित, अकुटिल, दीप्त और अप्रतिहत गति जलवर्षक वेग प्रचण्ड शब्द करता हुआ विचरण करता है।[ऋग्वेद 6.61.8]
The continuous flow of water of radiant Saraswati Devi showering rains make terrific sound.
सा नो विश्वा अति द्विषः स्वसॄरन्या ऋतावरी। अतन्नहेव सूर्यः
नियत भ्रमणकारी सूर्य देव जिस प्रकार से दिन को ले आते हैं, उसी प्रकार वे सरस्वती देवी हमारे समस्त शत्रुओं को पराजित करती हुई जलरूपी बहिनों को हमारे पास ले आवें।[ऋग्वेद 6.61.9]
The way regularly-daily revolving Sun-Sury Dev brings the day, similarly Saraswati Devi defeat our all enemies and brings the sisters in the form of water.
उत नः प्रिया प्रियासु सप्तस्वसा सुजुष्टा। सरस्वती स्तोम्या भूत्
सप्त नदी रूपिणी, सप्त भगिनी संयुता, प्राचीन ऋषियों द्वारा सेविता और हमारी प्रियतमा सरस्वती देवी सदैव हमारे लिए स्तुत्य हैं।[ऋग्वेद 6.61.10]
Our affectionate Saraswati Devi, possessing seven currents and associated with seven currents-sisters is always worshipable for us.
आपप्रुषी पार्थिवान्युरु रजो अन्तरिक्षम्। सरस्वती निदस्पातु
पृथ्वी और स्वर्ग के विस्तीर्ण प्रदेशों को जिन्होंने अपनी दीप्ति से पूर्ण किया, वही सरस्वती देवी निन्दकों से हमारी रक्षा करें।[ऋग्वेद 6.61.11]
Let Saraswati Devi who pervaded the heavens and earth with her aura, protect us from the cynic.
त्रिषधस्था सप्तधातुः पञ्च जाता वर्धयन्ती। वाजेवाजे हव्या भूत्
त्रिलोक व्यापिनी, गंगा आदि सप्त नदियों से युक्ता, चारों वर्णों और निषाद की समृद्धि विधायिनी सरस्वती देवी संग्राम में लोगों के आह्वान करने योग्य हैं।[ऋग्वेद 6.61.12]
Devi Saraswati who pervade the three abodes, associated with seven rivers like Ganga etc., benefiting the four Varn and the Nishad, granting prosperity, deserve to be invoked during war.
प्र या महिम्ना महिनासु चेकिते द्युम्नेभिरन्या अपसामपस्तमा। 
रथ इव बृहती विभ्वने कृतोपस्तुत्या चिकितुषा सरस्वती
जो माहात्म्य और कीर्ति द्वारा देवों में प्रसिद्ध हैं, जो नदियों में सबसे वेगवती हैं और श्रेष्ठता के कारण जो अतीव गुणवती हैं, वही सरस्वती देवी ज्ञानी स्तोता की स्तुति पात्रा होती हैं।[ऋग्वेद 6.61.13]
Devi Saraswati who's glory and renown is famous in the demigods-deities, is the fastest amongest the rivers, virtuous due to her excellence, is worshipped by the enlightened Stota.
सरस्वत्यभि नो नेषि वस्यो माप स्फरीः पयसा मा न आ धक्।
जुषस्व नः सख्या वेश्या च मा त्वत्क्षेत्राण्यरणानि गन्म
हे सरस्वती देवी! हमें प्रशस्त धन प्रदान करें। हमें हीन न करें। अधिक जल द्वारा हमें उत्पीड़ित न करें। आप हमारी मित्रता और गृह को स्वीकार करें। हम आपके पास से निकृष्ट स्थान में न जाएँ।[ऋग्वेद 6.61.14]
Hey Saraswati Devi! Grant us the best riches. Do not degrade us. Do not torture-tease us with excess water. Accept our friendship and house. We should not be deviated-diverted to the worst places far away from you.(26.10.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (62) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :- अश्विनीकुमार; छन्द :- त्रिष्टुप्।
स्तुषे नरा दिवो अस्य प्रसन्ताश्विना हुवे जरमाणो अर्कैः।
या सद्य उस्स्रा व्युषि ज्मो अन्तान्युयूषतः पर्युरू वरांसि
जो क्षण मात्र में शत्रुओं का नाश करते हैं और प्रभात में पृथ्वी पर्यन्त प्रभूत अन्धकार दूर करते हैं, उन्हीं द्युलोक के नेता और भुवनों के ईश्वर अश्विनी कुमारों की मैं स्तुति करता हूँ और मन्त्रों द्वारा प्रार्थना करता हुआ, उन्हें यहाँ बुलाता हूँ।[ऋग्वेद 6.62.1]
A worship the lord of abodes and leader of the heavens Ashwani Kumars, who remove darkness in moment till the earth. I invoke them with the help of Mantr, here.
ता यज्ञमा शुचिभिश्चक्रमाणा रथस्य भानुं रुरुचू रजोभिः।
पुरू वरांस्यमिता मिमानापो धन्वान्यति याथो अज्रान्
अश्विनी कुमार यज्ञ की ओर आते हुए अपने निर्मल तेजो बल से रथ की दीप्ति प्रकट करते हैं और असीम रूप से तेजों का निर्माण करते हुए जल के लिए अश्वों को मरुस्थल को लघाकर ले जाते हैं।[ऋग्वेद 6.62.2]
Ashwani Kumars appear with their pious-virtuous radiance generating several zones of aura, while coming to the Yagy site, crossing vast deserts and make the horses drink water there.
ता ह त्यद्वर्तिर्यदरध्रमुग्रेत्था धिय ऊहथुः शश्वदश्चैः।
मनोजवेभिरिषिरैः शयध्यै परि व्यथिर्दाशुषो मर्त्यस्य
हे अश्विनी कुमारों! आप असमृद्ध गृह में जाते है। इस प्रकार वाञ्छनीय और मन के समान वेगवान अश्वों द्वारा अपने स्तोताओं को स्वर्ग ले जाते हैं। हव्य दाता मनुष्य के हिंसक को चिर निद्रा में सुला देते हैं।[ऋग्वेद 6.62.3]
Hey Ashwani Kumars! You visit the unprosperous houses. You take the Stotas to heavens through the fast moving horses which move with the desired speed of mind.
ता नव्यसो जरमाणस्य मन्मोप भूषतो युयुजानसप्ती।
शुभं पृक्षमिषमूर्जं वहन्ता होता यक्षत्प्रत्नो अध्रुग्युवाना
हे अश्विनी कुमारो! अश्व जोतते हुए दिव्य अन्न, पुष्टि और रस का वहन करते हुए अभिनव स्तोता की मनोज्ञ प्रार्थना के समीप आवें। वे युवक हैं। होता, द्रोह रहित और प्राचीन याग करें।[ऋग्वेद 6.62.4]
Hey Ashwani Kumars! Come close to the Stota reciting prayers-sacred hymns, deploying the horses, carrying divine food grains & nourishing juices. They are young, free from  treachery-contamination and perform ancient Yagy.
ता वल्गू दस्रा पुरुशाकतमा प्रत्ना नव्यसा वचसा विवासे।
या शंसते स्तुवते शंभविष्ठा बभूवतुर्गृणते चित्रराती
जो स्तुतिकारी और स्तोत्रकर्ता व्यक्ति को सुखी करते हैं और जो स्तुतिकर्ता को धन एवं सुख देते है, उन्हीं रुचिर, बहुकर्मा, प्राचीन और दर्शनीय अश्विनी कुमारों की नवीन स्तोत्रों से मैं स्तुति करता हूँ।[ऋग्वेद 6.62.5]
रुचिर :: रुचि के अनुकूल, मनोहर, सुंदर; dainty, delicious.
I worship dainty Ashwani Kumars performing several deeds, ancient and is beautiful; with newly composed Strotr, who make the worshipers & reciter of Strotr comfortable, grant them wealth and pleasure. 
ता भुज्युं विभिरद्भ्यः समुद्रात्तुग्रस्य सूनुमूहथू रजोभिः।
अरेणुभिर्योजनेभिर्भुजन्ता पतत्रिभिरर्णसो निरुपस्थात्॥
आपने तुग्र के पुत्र भुज्यु को नौका रहित हो जाने पर धूल रहित मार्ग में रथ युक्त और गमन शील अश्वों द्वारा जल के उत्पत्ति स्थान सागर के जल से बाहर किया।[ऋग्वेद 6.62.6]
You brought out Bhujyu, the son of Tugr when he lost his boat through the route without sand riding the charoite pulled by dynamic horses and the origin of water in the ocean.
वि जयुषा रथ्या यातमद्रिं श्रुतं हवं वृषणा वभ्रिमत्याः।
दशस्यन्ता शयवे पिप्यथुर्गामिति च्यवाना सुमतिं भुरण्यू
हे रथारोही अश्विनी कुमारों! आप अपने विजयी रथ पर बैठकर पर्वतों अथवा मेघों को भी लाँघकर आते हैं। आप कामवर्षी हैं। पुत्रार्थिनी का आह्वान श्रवण करें। स्तोताओं का मनोरथ पूर्ण करें। आप स्तोता की निवृत्त प्रसवा गौ को दुग्ध शालिनी बनावें । इस प्रकार सुबुद्धिशाली होकर सर्वत्र गामी बनें।[ऋग्वेद 6.62.7]
Hey Ashwani Kumars riding the charoite! You cross the mountains and clouds riding your victorious charoite. You accomplish desires. Liston-respond the woman seeking son. Make the infertile cows of the Stota milk yielding. You move around every where with prudently.
यद्रोदसी प्रदिवो अस्ति भूमा हेळो देवानामुत मर्त्यत्रा।
तदादित्या वसवो रुद्रियासो रक्षोयुजे तपुरघं दधात
प्राचीन द्यावा-पृथ्वी आदित्यों, वसुओं और रुद्र पुत्रों, अश्विनी कुमारों के परिचारक मनुष्यों के प्रति देवताओं का जो भीषण रोष है, उस तापकारी क्रोध को असुरों का संहार करने में प्रयुक्त करें।[ऋग्वेद 6.62.8]
Use the furiosity-anger of the demigods-deities against the humans serving the ancient heavens-earth, Adity Gan, Vasus, Rudr Putr and Ashwani Kumars to destroy the demons.
य ईं राजानावृतुथा विदधद्रजसो मित्रो वरुणश्चिकेतत्।
गम्भीराय रक्षसे हेतिमस्य द्रोघाय चिद्वचस आनवाय
जो मनुष्य इन अश्विनी कुमारों की यथा समय स्तुति करता है, उसे मित्र और वरुण देव जानते हैं। ऐसे मनुष्य असुरों का संहार अपने अस्त्रों से करने में समर्थवान् होते हैं।[ऋग्वेद 6.62.9]
Mitr & Varun Dev recognises the humans who worship Ashwani Kumars as per schedule. Such people are capable of destroying the demons with their weapons.
अन्तरैश्चक्रैस्तनयाय वर्तिर्द्युमता यातं नृवता रथेन।
सनुत्येन त्यजसा मर्त्यस्य वनुष्यतामपि शीर्षा ववृक्तम्
हे अश्विनी कुमारों! आप उत्तम चक्र, दीप्ति और सारथि वाले रथ पर आरूढ़ होकर सन्तान देने के लिए हमारे गृह में आवें और क्रोध का परित्याग करते हुए मनुष्यों के विघ्नकर्ताओं मस्तक को काट डालें।[ऋग्वेद 6.62.10]
Hey Ashwani Kumars! Ride the charoite with excellent excel & wheels, charioteer and come to our house to grant progeny. Reject the anger and cut the heads of the disturbing elements.
आ परमाभिरुत मध्यमाभिर्नियुद्धिर्यातमवमाभिरर्वाक्।
दृळ्हस्य चिद्गोमतो वि व्रजस्य दुरो वर्तं गृणते चित्रराती
हे अश्विनी कुमारों! उत्कृष्ट, मध्यम और साधारित अश्वों के साथ हमारे सामने पधारें। दृढ़ और गौओं से युक्त गौशाला का द्वार खोलें। मैं प्रार्थना करता हूँ कि मुझे दिव्य धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.62.11]
Hey Ashwani Kumars! Come riding the excellent, mediocre and trained horses. Open the strong gate of the cow herd. I pray you to grant me divine wealth.(29.10.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (63) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :- अश्विनी कुमार; छन्द :- विराट्, एकपदा, त्रिष्टुप्।
क १ त्या वल्गू पुरुहूताद्य दूतो न स्तोमोऽविदन्नमस्वान्।
आ ओ अर्वाङ्नासत्या ववर्त प्रेष्ठा ह्यसथो अस्य मन्मन्
अनेकाहूत और मनोहर अश्विनी कुमार जहाँ जाते हैं, वहाँ हव्य युक्त पञ्च दशादि स्तोत्र दूतं के समान उन्हें प्राप्त करें। इसी स्तोत्र ने अश्विनी कुमारों को मेरी ओर प्रेरित किया। स्तोता की स्तुति से आप प्रसन्न होते हैं।[ऋग्वेद 6.63.1]
Beautiful, worshiped by many Ashwani Kumars are welcomed with offerings and Panch Dashadi Strotr. This Strotr directed Ashwani Kumars towards me. They become happy-pleased by the prayers of the Stotas.
अरं मे गन्तं हवनायास्मै गृणाना यथा पिबाथो अन्यः।
परि ह त्यद्वर्तिर्याथो रिषो न यत्परो नान्तरस्तुतुर्यात्
हमारे आवाहन के अनुसार भली-भाँति गमन करें। प्रार्थना किए जाने पर सोमरस का पान करें। शत्रुओं से हमारे गृह को बचावें, पास या दूर के शत्रु हमारे गृह को नष्ट न कर सकें।[ऋग्वेद 6.63.2]
Move as per our invocation. drink Somras on being requested-prayed. Protect our houses from the enemies; far or distant enemies should not be able to destroy our houses.
अकारि वामन्धसो वरीमन्नस्तारि बर्हिः सुप्रायणतमम्।
उत्तानहस्तो युवयुर्ववन्दा वां नक्षन्तो अद्रय आञ्जन्
हे अश्विनी कुमारों! सोमरस तैयार है। आपके लिए ही प्रस्तुत किया गया हैं। मृतुतम कुश के आसन बिछाये गये हैं। आपकी कामना से होता हाथ जोड़कर आपकी स्तुति कर आपको आमन्त्रित करता है।[ऋग्वेद 6.63.3]
Hey Ashwani Kumars! Somras is ready. It has been presented for you. Kush Mats-cushions have been prepared with Kush grass. The house hold invite you with folded hands as per your desire-wish.
ऊर्ध्वो वामग्निरध्वरेष्वस्थात्प्र रातिरेति जूर्णिनी घृताची।
प्र होता गूर्तमना उराणोऽयुक्त यो नासत्या हवीमन्
आपके यज्ञ के लिए अग्नि देव ऊपर उठते हैं, यज्ञ में जाते तथा हव्य और घृत वाले बनते हैं। जो स्तोता अश्विनी कुमारों का स्तोत्र से पाठ करता है, वही बहुकर्मा और अतीव उद्युक्तमना होता है।[ऋग्वेद 6.63.4]
Agni Dev rises up for your Yagy due to the offerings of Ghee. The Stota who recite the Strotr for Ashwani Kumars perform various endeavours with great enthusiasm. 
अधि श्रिये दुहिता सूर्यस्य रथं तस्थौ पुरुभुजा शतोतिम्।
प्र मायाभिर्मायिना  भूतमत्र नरा नृतू जनिमन्यज्ञियानाम्
हे अनेकों के रक्षक अश्विनी कुमारों! सूर्य देव की पुत्री आपके बहु रक्षक रथ को सुशोभित करने के लिए आरूढ़ होती हैं। आप देवताओं की प्रजाओं का नेतृत्व करें।[ऋग्वेद 6.63.5]
Hey protector of many people Ashwani Kumars! Daughter of Sury Dev (your sister) ride your charoite with grace. Lead the subjects of demigods-deities.
युवं श्रीभिर्दर्शताभिराभिः शुभे पुष्टिमूहथुः सूर्यायाः।
प्र वां वयो वपुषेऽनु पप्तन्नक्षद्वाणी सुष्टुता धिष्ण्या वाम्
इस दर्शनीय क्रांति द्वारा आप दोनों सूर्या की शोभा के लिए पुष्टि प्राप्त करें। शोभा के लिए आपके अश्व भली-भाँति अनुगमन करते हैं। हे स्तवनीय अश्विनी कुमारों! भली-भाँति की गई हमारी स्तुतियाँ आप तक पहुँचे।[ऋग्वेद 6.63.6]
Both of you get the nourishment for Surya's grace with beautiful aura. Hey worship deserving Ashwani Kumars! Let the prayers-worship conducted properly, reach you.
आ वां वयोऽश्वासो वहिष्ठा अभि प्रयो नासत्या वहन्तु।
प्र वां रथो मनोजवा असर्जीषः पृक्ष इषिधो अनु पूर्वीः
हे अश्विनी कुमारों! गतिशील और वहन करने में अत्यन्त चतुर अश्व आपको अन्न की ओर ले आवें। मन के तुल्य वेगशाली आपका रथ आप दोनों को अन्न के साथ हमारे समीप ले आवें।[ऋग्वेद 6.63.7]
Hey Ashwani Kumars! Let dynamic and cleaver-prudent horses take you towards the food grains. Let your charoite movable with the speed of mind, bring you to us with food grains.
पुरु हि वां पुरुभुजा देष्णं धेनुं न इषं पिन्वतमसक्राम्।
स्तुतश्च वां माध्वी सुष्टुतिश्च रसाश्च ये वामनु रातिमग्मन्
हे बहुपालक अश्विनी कुमारों! आपके पास बहुत धन है; इसलिए हमारे लिए प्रीतिकारी और दूसरे स्थान पर न जाने वाली गौएँ तथा अन्न प्रदान करें। स्तोता गण आपकी ही स्तुति करते है। क्योंकि आपके लिए मधुर सोमरस तैयार है।[ऋग्वेद 6.63.8]
Hey nurturer of many people Ashwani Kumars! You have a lot of wealth, hence grant us lovely cows, ready to move to other site and food grains. The Stotas worship you, since sweet Somras is ready for you.
उत म ऋज्रे पुरयस्य रघ्वी सुमीळ्हे शतं पेरुके च पक्वा।
शाण्डो दाद्धिरणिनः स्मद्दिष्टीन्दश वशासो अभिषाच ऋष्वान्॥
पुण्य की सरल गति और शीघ्र गामिनी दो बड़वाएँ (अश्वाएँ) मेरे पास हैं; समीढ़ की सौ गौएँ मेरे पास हैं। पेरुक के पक्व अन्न भी मेरे पास हैं। शान्त नाम के राजा ने अश्विनी कुमारों के स्तोताओं को स्वर्ण युक्त और सुदृश्य दस रथ या अश्व प्रदान किया और उनके अनुरूप ही शत्रु नाशक तथा दर्शनीय पुरुष भी दिया।[ऋग्वेद 6.63.9]
I possess the virtues-good will and fast moving mare are with me.  I have hundred cows of Sameedh. Ripe food grains of Peruk too are with me. The king named Shant granted ten beautiful charoites of gold to the worshipers-Stotas of Ashwani Kumars and handsome people capable of destroying the enemy.
संवां शता नासत्या सहस्त्राश्वानां पुरुपन्था गिरे दात्।
भरद्वाजाय वीर नू गिरे दाद्धता रक्षांसि पुरुदंससा स्युः
हे नासत्य द्वय! आपके स्तोता को पुरुपन्था राजा ने सैकड़ों और हजारों अश्व प्रदान किए। हे वीर अश्विनी कुमारों! यह सब भरद्वाज को भी शीघ्र प्रदान करते हुए राक्षसों को नष्ट करें।[ऋग्वेद 6.63.10]
Hey Nasaty duo-Ashwani Kumars! King Purupantha gave thousands of horses to your Stotas. Hey brave Ashwani Kumars! Grant all this to Bhardwaj as well quickly & destroy the demons.
आ वां सुम्ने वरिमन्त्सूरिभिः ष्याम्
मैं विद्वान व्यक्तियों के साथ आपके सुखद धन द्वारा राक्षसों का विनाश करूँ।[ऋग्वेद 6.63.11]
Let me kill the demons with your comfortable wealth in association with-alongwith the enlightened people.(30.10.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (64) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :-  उषा; छन्द :- त्रिष्टुप्।
उदु श्रिय उषसो रोचमाना अस्थुरपां नोर्मयो रुशन्तः।
कृणोति विश्वा सुपथा सुगान्यभूदु वस्वी दक्षिणा मघोनी
दीप्तिमती और शुक्लवर्ण उषाएँ शोभा के लिए आप जल लहरी की तरह ऊपर को आ रही हैं। उषा समस्त स्थानों को प्रशस्ता और समृद्धिवान बनाती हैं।[ऋग्वेद 6.64.1]
Radiant and white coloured Ushas rise up like the water waves. Ushas make all places prosperous and smashing-glorious.
भद्रा ददृक्ष उर्विया वि भास्युत्ते शोचिर्भानवो द्यामपप्तन्।
आविर्वक्षः कृणुषे शुम्भमानोषो देवि रोचमाना महोभिः
हे उषा देवी! आप कल्याणी के सदृश दिखाई दे रही हैं और विस्तृत होकर शोभा पा रही है। आपकी दीप्तिमती किरणें शोभा पा रही हैं। आपकी दीप्तिमती किरणें अन्तरिक्ष में उठ रही हैं। आप तेजों में शोभमाना और दीप्यमाना होकर प्रकाश कर सभी का कल्याण करती हैं।[ऋग्वेद 6.64.2]
कल्याण
पुल्लिंग :: मंगल, शुभ, सुख, मंगलकारी; सौभाग्यशाली; welfare, well being.
Hey Usha Devi! You are appearing like one who cause welfare and spreading, becoming glorious-auspicious. Your radiant rays too are glorious. Your radiant rays are rising up. You light every one causing welfare. 
वहन्ति सीमरुणासो रुशन्तो गावः सुभगामुर्विया प्रथानाम्।
अपेजते शूरो अस्तेव शत्रून् बाधते तमो अजिरो न वोळ्हा
लोहितवर्ण और दीप्तिमान रश्मियाँ सुभगा, विस्तीर्ण और प्रथमा उषा को वहन कर ऊपर लाती हैं। जिस प्रकार से शस्त्र फेंकने में निपुण वीर शत्रुओं को दूर करता है, उसी प्रकार उषा देवी अन्धकार को दूर कर शीघ्रगामी सेनापति के समान अन्धकार को रोकती हैं।[ऋग्वेद 6.64.3]
Auspicious red coloured broad and radiant rays brings first Usha up. The way a brave warrior  expert in throwing weapons repel the enemies, Usha Devi block the darkness like a fast-quick moving commander.
सुगोत ते सुपथा पर्वतेष्ववाते अपस्तरसि स्वभानो।
सा न आ वह पृथुयान्नृष्वे रयिं दिवो दुहितरिषयध्यै
पर्वत और वायु रहित प्रदेश आपके लिए सुपथ और सरल हो जाते हैं। हे स्वप्रकाश युक्त! आप अन्तरिक्ष को विशाल रथ वाली और सुदृश्य द्युलोक की कन्या, हमें अभिलषणीय धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.64.4]
Mountainous and air free regions become easy and navigable-simple for you. Hey possessor of your own light. Hey possessor of large charoite in the space like the daughter of heavens grant us desired wealth.
सा वह योक्षभिरवातोषो वरं वहसि जोषमनु।
त्वं दिवो दुहितर्या ह देवी पूर्वहूतौ मंहना दर्शता भूः
हे द्युलोक की पुत्री उषा देवी! मुझे धन प्रदान करें। आप अप्रतिगत होकर प्रीतिपूर्वक अश्व द्वारा धन वहन करती है। आप दीप्तमती हैं। प्रथम आह्वान में पूजनीया हैं। इसलिए आप दर्शनीया हैं।[ऋग्वेद 6.64.5]
Hey daughter of heavens Usha Devi! Grant me riches. Unopposed you affectionately carry wealth over the horses. You are aurous. You are worshipable at the first invocation, hence beautiful.
उत्ते वयश्चिद्वसतेरपप्तन्नरश्च ये पितुभाजो व्युष्टौ।
अमा सते वहसि भूरि वाममुषो देवि दाशुषे मर्त्याय
उषा देवी आपके प्रकट होने पर चिड़ियाँ घोसलों से निकलती हैं और अन्न के उपार्जक मनुष्य निद्रा से उठकर अपने कार्य में उद्यत होते हैं। समीप में वर्तमान हव्य देने वाले मनुष्य को यथेष्ट धन प्रदान करती है।[ऋग्वेद 6.64.6]
Hey Devi! The birds comes out of their nests when you appear. The humans who earn food grains, get up and become ready for their work. You grant desired riches to the one who make offerings for you.(31.10.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (65) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :-  उषा; छन्द :- त्रिष्टुप्।
एषा स्या नो दुहिता दिवोजाः क्षितीरुच्छन्ती मानुषीरजीगः।
या भानुना रुशता राम्यास्वज्ञायि तिरस्तमसश्चिदक्तून्
जो उषा देवी दीप्तिमान किरणों से युक्त होकर रात्रि में तेज पदार्थ (नक्षत्रादि) और अन्धकार को दूर करती दिखाई देती है, वही द्युलोकोत्पन्ना पुत्री उषा हमारे लिए अन्धकार दूर करके प्रजाओं को जागृत करती हैं।[ऋग्वेद 6.65.1]
Usha Devi who hide the stars and constellations at night with her radiant rays and remove darkness; born in the heaven, she remove the darkness and awake the populace.
वि तद्ययुररुणयुग्भिरश्वैश्चित्रं भान्त्युषसश्चन्द्ररथाः।
अग्रं यज्ञस्य बृहतो नयन्तीर्वि ता बाधन्ते तम ऊर्म्यायाः
कान्ति युक्त रथ वाली उषा देवी उसी समय बृहत यज्ञ का प्रथम चरण सम्पादित करके लाल रंग के अश्व से विस्तृत रूप से गमन करती हैं। वे विचित्र रूप से शोभा पाती हैं और रात्रि के अन्धकार को नष्ट करती है।[ऋग्वेद 6.65.2]
Usha Devi riding the radiant charoite accomplish the first phase of the Yagy performed at large scale and moves over the red coloured horse thoroughly. She possess amazing glory and remove the darkness of night.
श्रवो वाजमिषमूर्जं वहन्तीर्नि दाशुष उषसो मर्त्याय।
मघोनीर्वीरवत्पत्यमाना अवो धात विधते रत्नमद्य
हे उषा देवियो! आप हव्य दाता मनुष्य को कीर्त्ति, बल, अन्न और रस प्रदान करती हैं। आप धनशालिनी और गमनशीला है। आप सेवा करने वाले को पुत्र-पौत्र आदि से युक्त अन्न और धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.65.3]
Hey deity Ushas! You grant fame-glory, strength, food grains and saps to the one who make offerings for you. You are dynamic and wealthy. You grant sons & grandsons along with food grains and wealth to the one who serve you.
इदा हि वो विधते रत्नमस्तीदा वीराय दाशुष उषासः।
इदा विप्राय जरते यदुक्था नि ष्म मावते वहथा पुरा चित्
हे उषा देवियों! जिस प्रकार आपने स्तोताओं को पूर्व में धन प्रदत्त किया, उसी प्रकार इस समय भी आप हवि देने वाले एवं स्तोताओं को वे रत्न प्रदान करें जो आपके पास हैं।[ऋग्वेद 6.65.4]
Hey deity Ushas! The way you granted wealth to the Stotas in the past, similarly grant jewels to those who make offerings for you now.
इदा हि त उषो अद्रिसानो गोत्रा गवामङ्गिरसो गृणन्ति।
व्य१र्केण बिभिदुर्ब्रह्मणा च सत्या नृणामभवद्देवहूतिः
हे गिरितटप्रिय उषा देवी! अङ्गिराओं ने आपकी कृपा से तत्काल ही गायों को छोड़ दिया और पूजनीय स्तोत्र द्वारा अन्धकार का नाश किया। हे मनुष्यों की ईश! अब आपकी प्रार्थना फलवती हुई।[ऋग्वेद 6.65.5]
Hey Usha Dev loving the mountain terminals! Angiras released the cows immediately due to your grace and terminated the darkness with revered Strotr. Hey deity of the humans! Your worship is rewarding.
उच्छा दिवो दुहितः प्रत्नवन्नो भरद्वाजवद्विधते मघोनि।
सुवीरं रयिं गृणते रिरीह्युरुगायमधि धेहि श्रवो नः
हे द्युलोक की पुत्री उषा! प्राचीन लोगों के सदृश हमारे लिए भी अन्धकार को दूर करें। हे धनशालिनी उषा देवी! भरद्वाज के समान प्रार्थना करने वाले हम स्तोताओं को पुत्र-पौत्रादि से युक्त धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.65.6]
Hey daughter of the heavens Usha! Remove darkness as you did for the ancient people. Hey wealthy Usha! Grant sons and grandsons to us the Stotas; along with wealth.(01.11.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (66) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :- मरुत; छन्द :- त्रिष्टुप्।
वपुर्नु तच्चिकितुषे चिदस्तु समानं नाम धेनु पत्यमानम्।
मर्तेष्वन्यद्दोहसे पीपाय सकृच्छुक्रं दुदुहे पृश्निरूधः
मरुतों के समान स्थिर पदार्थों में भी स्थिर प्रीति कर और गति परायणरूप, विद्वान स्तोता के निकट शीघ्र प्रकट हों। वह अन्तरिक्ष में एक बार शुक्ल वर्ण जल धारित करता है और मृत्युलोक में अन्य पदार्थों का दोहन करने के लिए बढ़ता है।[ऋग्वेद 6.66.1]
Let the dynamic enlightened Stota appear quickly possessing affection even for the static materials like the Marud Gan. He possess white coloured water in the space and extract other materials in the perishable world.
ये अग्नयो न शोशुचन्निधाना द्विर्यत्त्रिर्मरुतो वावृधन्त।
अरेणवो हिरण्ययास एषां साकं नृम्णैः पौंस्येभिश्च भूवन्
जो धनवान अग्नि देव के समान दीप्त होते हैं, जो इच्छानुसार द्विगुण और त्रिगुण बढ़ते हैं, उन मरुतों के रथ धूलि शून्य और सुवर्णालङ्कार वाले हैं। वे ही मरुत धन और बल के साथ प्रादुर्भूत होते हैं।[ऋग्वेद 6.66.2]
Marud Gan who are radiant like Agni Dev, enhances the characterices to double or triple, their charoites are free from dust and decorated with golden ornaments. They appear with wealth and might.
रुद्रस्य ये मीळ्हुषः सन्ति पुत्रा यांश्चो नु दाधृविर्भरध्यै।
विदे हि माता महो मही षा सेत्पृश्निः सुभ्वे ३ गर्भमाधात्
सेचनकारी रुद्र देव के जो मरुद्गण पुत्र हैं और जिनको धारितकर्ता अन्तरिक्ष धारण करने में समर्थ हैं, उन्हीं महान मरुतों की माता महती हैं। वह माता मनुष्यों की उत्पत्ति के लिए गर्भ या जल धारित करती हैं।[ऋग्वेद 6.66.3]
Nourishing Marud Gan are the sons of Rudr Dev and capable of supporting the space. Prashni is the mother of great Marud Gan. She support water for the evolution of the humans.
न य ईषन्ते जनुषोऽया न्व १ न्तः सन्तोऽवद्यानि पुनानाः।
निर्युद्दुह्रे शुचयोऽनु जोषमनु श्रिया तन्वमुक्षमाणाः
जो स्तोताओं के पास यान पर नहीं जाते; परन्तु उनके अन्तःकरण में रहकर पापों को विनष्ट करते हैं, जो दीप्तिमान हैं, जो स्तोताओं की अभिलाषा के अनुसार जल का दोहन कर लेते हैं, जो दीप्ति युक्त होकर अपने को प्रकाशित कर भूमि का सिंचन करते हैं।[ऋग्वेद 6.66.4]
They do not visit the Stotas in aeroplanes but reside in their innerself and make them sinless. They are radiant and extract water as per the wish-need of the Stotas and irrigate the soil.
मक्षू न येषु दोहसे चिदया आ नाम धृष्णु मारुतं दधानाः।
न ये स्तौना अयासो मह्ना नू चित्सुदानुरव यासदुग्रान्
जिनको उद्देश्य करके इस समय समीपवर्ती स्तोता मरुत्संज्ञक शस्त्र का उच्चारण करते हुए शीघ्र मनोरथ प्राप्त करते हैं, जो अपहरण कर्ता, गमनशील और महत्त्व युक्त हैं, उन्हीं उग्र मरुतों को इस समय दान करने वाला याजकगण क्रोध रहित करता है।[ऋग्वेद 6.66.5]
The Stotas accomplish their desires by the recitation of their names. The Marud Gan who are angry, dynamic and significant-important, are satisfied-calmed down by the Ritviz who makes donations.
त इदुग्राः शवसा धृष्णुषेणा उभे युजन्त रोदसी सुमेके।
अध स्मैषु रोदसी स्वशोचिरामवत्सु तस्थौ न रोकः
वे उग्र और बलशाली हैं। वे घर्षण करने वाली सेना को सुरूपिणी द्यावा-पृथ्वी के सहित योजित करते हैं। इनकी रोदसी स्वदीप्ति से संयुक्त हैं। इन बलवान् मरुतों में दीप्ति नहीं है।[ऋग्वेद 6.66.6]
They are mighty and furious. They manage their army which cause friction and support the heavens & earth. Their abode possess its own light. However, these mighty Marud Gan lack aura-shine.
अनेनो वो मरुतो यामो अस्त्वनश्वश्चिद्यमजत्यरथीः।
अनवसो अनभीशू रजस्तूर्वि रोदसी पथ्या याति साधन्
हे मरुतों! आपका रथ पाप रहित है। सारथि न होकर भी स्तोता जिसे चलाता है, वही रथ अश्वरहित होकर भी भोजनशून्य और पाशरहित होकर भी, जलप्रेरक और अभीष्टप्रद होकर द्यावा-पृथ्वी और अन्तरिक्ष में विचरण अर्थात् भ्रमण करता है।[ऋग्वेद 6.66.7]
Hey Marud Gan! Your charoite is sinless. The Stota drives it himself. This charoite has no horses. It do not need fuel or cords. It inspire water, accomplish the desires and roam in the space, the earth & heavens.
नास्य वर्ता न तरुता न्वस्ति मरुतो यमवथ वाजसातौ।
तोके वा गोषु तनये यमप्सु स व्रजं दर्ता पार्ये अध द्योः
हे मरुतो! आप लोग संग्राम में जिसकी रक्षा करते हैं, उसका कोई भी प्रेरक नहीं होता और न उसकी कोई हिंसा ही होती है। आप पुत्र, पौत्र, गौ और जल के संचरण में जिसकी रक्षा करते हैं, वह संग्राम में शत्रुओं की गौओं को भी जीत सकता है।[ऋग्वेद 6.66.8]
Hey Marud Gan! One who is protected by you in the war is not inspired by anyone and he is not killed. One protected by you alongwith sons, grandsons, cows and water navigation; wins the cows of the enemy in the war.
प्र चित्रमर्कं गृणते तुराय मारुताय स्वतवसे भरध्वम्।
ये सहांसि सहसा सहन्ते रेजते अग्ने पृथिवी मखेभ्यः
हे अग्नि देव! जो बल द्वारा शत्रुओं को पराजित कर देते हैं, जिन महान् मरुतों से पृथ्वी काँपती है, उन्हीं शब्दकर्ता शीघ्र बलवान् मरुतों को दर्शनीय अन्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.66.9]
Hey Agni Dev! The earth tremble due to the power of great Marud Gan, who defeat the enemy with their might. Let these mighty Marud Gan grant quality food grains.
त्विषीमन्तो अध्वरस्येव दिद्युत्तृषुच्यवसो जुह्वो ३ नाग्नेः।
अर्चत्रयो धुनयो न वीरा भ्राजज्जन्मानो मरुतो अधृष्टाः
मरुद्गण यज्ञ की तरह प्रकाशमान हैं। जो शीघ्रगामी अग्नि देव के शिखा के सदृश दीप्तिमान् और पूजनीय हैं, वे शत्रुओं के प्रकम्पक व्यक्तियों के समान वीर, दीप्त शरीर से युक्त और कभी पराभूत नहीं होते।[ऋग्वेद 6.66.10]
Marud Gan are aurous like the Yagy. They are radiant and worshipable like the apex flames of Agni-fire. They are brave like the enemies who cause waves, possess radiant bodies and never defeated.
तं वृधन्तं मारुतं भ्राजदृष्टिं रुद्रस्य सूनुं हवसा विवासे।
दिवः शर्वाय शुचयो मनीषा गिरयो नाप उग्रा अस्पृध्रन्
मैं उन्हीं वर्द्धमान और दीप्तिमान् खड्ग से युक्त रुद्र पुत्र मरुतों की स्तोत्रों द्वारा स्तुति करता हूँ। स्तोता की निर्मल स्तुतियाँ उग्र होकर मेघ के सदृश मरुद्गणों को और अधिक बल प्रदान करती हैं।[ऋग्वेद 6.66.11]
I worship growing Marud Gan sons of Rudr, who possess radiant sword, with Strotr. Pious prayers-sacred hymns of the Stota become furious and make the Marud Gan even more powerful-strong.(03.11.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (67) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :- मित्र, वरुण; छन्द :- त्रिष्टुप्।
विश्वेषां वः सतां ज्येष्ठतमा गीर्भिर्मित्रावरुणा वावृधध्यै।
सं या रश्मेव यमतुर्यमिष्ठा द्वा जनाँ असमा बाहुभिः स्वैः
सम्पूर्ण संसार में श्रेष्ठ मित्र और वरुण देव! मैं स्तुति द्वारा आपको वर्द्धित करता हूँ। रज्जु के सदृश अपनी भुजाओं द्वारा आप मनुष्यों को अनुशासित करते हैं।[ऋग्वेद 6.67.1]
Excellent in the whole world, hey Mitr & Varun Dev! I grow-nourish you with Stuti-prayer. You disciple the humans with your arms like a cord.
इयं मद्वां प्रस्तृणीते मनीषोप प्रिया नमसा बर्हिरच्छ।
यन्तं नो मित्रावरुणावधृष्टं छर्दिर्यद्वां वरूथ्यं सुदानू
हे प्रिय मित्र और वरुण देव! हमारी यही प्रार्थना आपको प्रवृद्ध करती है। हव्य के साथ आपके पास यही प्रार्थना जाती है और आपके यज्ञ की ओर जाती है। हे सुन्दर दान वाले मित्र और वरुण देव! आप हमें शीत आदि का निवारक और अनभिभूत गृह प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.67.2]
Hey dear Mitr & Varun Dev! Our prayers grow you. The prayers made with offerings comes you and direct you towards the Yagy. Hey Mitr & Varun Dev, making beautiful donations! Grant us house which can protect us from cold.
आ यातं मित्रावरुणा सुशस्त्युप प्रिया नमसा हूयमाना।
सं यावप्नःस्थो अपसेव जनाञ्छ्रुधीयतश्चिद्यतथो महित्वा
हमारे आह्वान को सुनकर हे मित्रा-वरुण! आप आगमन करें। सत्कर्मों में प्रवृत्त हुए आप हमें अन्न एवं धनादि प्राप्त कराने वाले होवें। हम नमनपूर्वक आपकी स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 6.67.3]
Hey Mitra-Varun respond to our invocation! Come to us. Inclined to virtuous deeds, grant us food grains and wealth etc. We salute-prostrate before and worship-pray you.
अश्वा न या वाजिना पूतबन्धू ऋता यद्गर्भमदितिर्भरध्यै।
प्र या महि महान्ता जायमाना घोरा मर्ताय रिपवे नि दीधः
जो अश्व के समान बलवान, पवित्र स्तोत्र से युक्त और सत्य रूप हैं, उन्हीं गर्भभूत मित्र और वरुण को अदिति ने धारण किया। जन्म लेने के साथ ही जो महान से भी महान और हिंसक मनुष्य के लिए घातक हुए, उन्हें अदिति ने गर्भ में धारण किया।[ऋग्वेद 6.67.4]
Aditi had Mitr & Varun, who are strong like horse, possess pious Strotr and truthful, in her womb. Aditi kept the great amongest the great and slayer of violent human in her womb.
विश्वे यद्वां मंहना मन्दमानाः क्षत्रं देवासो अदधुः सजोषाः।
परि यद्भूथो रोदसी चिदुर्वी सन्ति स्पशो अदब्धासो अमूराः॥
परस्पर प्रीति युक्त होकर समस्त देवताओं ने आपकी महिमा का भजन करते हुए बल धारित किया। आप लोग विस्तीर्ण द्यावा-पृथ्वी को परिभूत करते हैं। आप किसी के द्वारा पराजित नहीं होते।[ऋग्वेद 6.67.5]
Having mutual love-affection, all demigods-deities sung your sacred hymns, glory & acquired might-power. You control the broad-vast heavens & earth without being defeated by anyone.
ता हि क्षत्रं धारयेथे अनु द्यून् दृंहेथे सानुमुपमादिव द्योः।
दृळ्हो नक्षत्र उत विश्वदेवो भूमिमातान्द्यां धासिनायोः
आप प्रतिदिन बल धारित करते हैं। अन्तरिक्ष के उन्नत प्रदेश को खूँटे के सदृश दृढ़रूप से धारित करें। आपके द्वारा दृढ़ीकृत मेघ अन्तरिक्ष में व्याप्त होता है और विश्व देव मनुष्य के हव्य से तृप्त होकर भूमि और द्युलोक में व्याप्त होते हैं।[ऋग्वेद 6.67.6]
खूंटा :: हाता, कील, कटघरा, दाँव, पण, खूंटा, शंकु, जलाकर हत्या, निहाई, सीमा, अहाता, कील, घेरा; stake, pale, pegs.
Your acquire strength every day. Bear the elevated regions of the space like a peg. Empowered by you the clouds pervade the sky. Vishw Dev on being satisfied by the humans by making offerings you pervade the earth and heavens.
ता विग्रं धैथे जठरं पृणध्या आ यत्सद्म सभृतयः पृणन्ति।
न मृष्यन्ते युवतयोऽवाता वि यत्पयो विश्वजिन्वा भरन्ते
सोमरस द्वारा उदर पूर्ण करने के लिए आप लोग प्राज्ञ व्यक्ति को धारित करते हैं। हे विश्व जिन्वा मित्र और वरुण देव! जिस समय ऋत्विक लोग यज्ञ कार्य पूर्ण करते हैं और आप जल भेजते हैं, उस समय नदियाँ अथवा दिशायें धूल से नहीं भरती; परञ्च अशुष्क और अवात होकर विभूति धारित करती हैं।[ऋग्वेद 6.67.7]
For filling the stomach with Somras you support the enlightened. Sustainer of the world Mitr & Varun Dev! When the Ritviz accomplish the Yagy, you provide water, the rivers and directions are not engulfed by the dust, do not become dry and acquire glory.
ता जिह्वया सदमेदं सुमेधा आ यद्वां सत्यो अरतिऋते भूत्।
तद्वां महित्वं घृतान्नावस्तु युवं दाशुषे वि चयिष्टमंहः
मेधावी व्यक्ति आपसे सदा वचन द्वारा इस जल की याचना करता है। हे घृतान्न युक्त मित्र और वरुणदेव! जिस प्रकार आपका अभिगन्ता यज्ञ में माया रहित होता है, उसी प्रकार आपकी महिमा है। हव्य दाता के पापों का नाश करें।[ऋग्वेद 6.67.8] 
The intelligent always request you for water. Hey Mitr & Varun Dev possessing food grains mixed with Ghee! The manner in which your Yagy is free from cast similarly your glory exist. Destroy the sins of the humans, who make offerings.
प्र यद्वां मित्रावरुणा स्पूर्धन्प्रिया धाम युवधिता मिनन्ति।
न ये देवास ओहसा न मर्ता अयज्ञसाचो अप्यो न पुत्राः
हे मित्र और वरुण देव! जो लोग स्पर्द्धा करके आपके द्वारा विहित और आपके प्रिय कर्म में विघ्न करते हैं, जो देवता और मनुष्य स्तोत्र रहित हैं, जो कर्मशील होकर भी यज्ञ नहीं करते और न ही वे मनुष्य हैं, न ही देवता हैं, अतः आप उनका संहार करें।[ऋग्वेद 6.67.9]
Hey Mitr & Varun Dev! Those who compete-interfere with your ordained duties, free from Strotr as demigods & humans, do not perform Yagy and are neither humans & demigods-deities destroy them.
वि यद्वाचं कीस्तासो भरन्ते शंसन्ति के चिन्निविदो मनानाः।
आद्वां ब्रवाम सत्यान्युक्था नकिर्देवेभिर्यतथो महित्वा
जिस समय मेधावी लोग प्रार्थना का उच्चारण करते हैं। कोई-कोई प्रार्थना करते हुए सूक्त का पाठ करते हैं और जब हम आपको लक्ष्यकर सत्य मन्त्रों का पाठ करते हैं, उस समय आप लोग महिमान्वित होकर देवों के साथ न जावें।[ऋग्वेद 6.67.10]
While the intellectual-intelligent recite prayers-Sukt, recite Mantr for you, do not move along with the demigods on being glorified.
अवोरित्था वां छर्दिषो अभिष्टौ युवोर्मित्रावरुणावस्कृधोयु।
अनु यद्गावः स्फुरानृजिप्यं धृष्णुं यद्रणे वृषणं युनजन्॥
रक्षक मित्र और वरुण देव! जिस समय स्तुतियाँ उच्चारित होती हैं और जब सरलगामी, घर्षक तथा अभीष्टवर्षी सोमरस को यज्ञ में प्रस्तुत किया जाता है, तब आप अपने आश्रित रहने वाले भक्तों को गौओं से युक्त गोष्ठ व सुरक्षित गृह प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 6.67.11]
Hey protector Mitr & Varun Dev! When Stutis are recited, Somras is served in the Yagy, you grant the devotees dependent upon you; cows alongwith cow shed-yard and safe houses.(05.11.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (68) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :- इन्द्र देव, वरुण; छन्द :- त्रिष्टुप जगती।
श्रुष्टी वां यज्ञ उद्यतः सजोषा मनुष्वद् वृक्तबर्हिषो यजध्यै।
आ य इन्द्रावरुणाविषे अद्य महे सुम्नाय मह आववर्तत्
हे महान इन्द्र देव और वरुण देव! मनु के सदृश कुश-विस्तारक याजकगण के अन्न और सुख के लिए जो यज्ञ आरम्भ होता है, आज आप लोगों के लिए वही क्षिप्र यज्ञ ऋत्विकों के द्वारा प्रवृत्त किया गया।[ऋग्वेद 6.68.1]
Hey great Indr Dev & Varun Dev! The Yagy which initiate by spreading Kush Mat-cushion like Manu for food grains & benefit-comforts of the Ritviz, has been directed towards you. 
ता हि श्रेष्ठा देवताता तुजा शूराणां शविष्ठा ता हि भूतम्।
मघोनां मंहिष्ठा तुविशुष्म ऋतेन वृत्रतुरा सर्वसेना
आप श्रेष्ठ हैं, यज्ञ में धन देने वाले हैं और वीरों में अतीव बलवान हैं। दाताओं में श्रेष्ठ दाता तथा बहुबलशाली सत्य के द्वारा शत्रुओं के हिंसक और सब प्रकार की सेना से युक्त हैं।[ऋग्वेद 6.68.2]
You are excellent, grant lots of wealth for the Yagy and mightiest amongest the brave. Best amongest the donors, your mighty-truthful powers destroy the violent enemies and are have all sorts of armies.
ता गृणीहि नमस्येभिः शूषैः सुम्नेभिरिन्द्रावरुणा चकाना।
वज्रेणान्यः शवसा हन्ति वृत्रं सिषकयन्यो वृजनेषु विप्रः
स्तुति, बल और सुख के द्वारा स्तुत इन्द्र देव और वरुण देव की प्रार्थना करें। उनमें से एक इन्द्र देव वृत्रासुर का वध करते हैं, दूसरे प्रजा में युक्त (वरुण) उपद्रवों से रक्षा करने के लिए बलशाली होते हैं।[ऋग्वेद 6.68.3]
Let us worship Indr Dev & Varun Dev with Stuti, strength and comforts. One of them Indr Dev kills Vrata Sur and the other one i.e., Varun Dev protect the populace from all sorts of trouble.
ग्नाश्च यन्नरश्च वावृधन्त विश्वे देवासो नरां स्वगूर्ताः।
प्रैभ्य इन्द्रावरुणा महित्वा द्यौश्च पृथिवि भूतमुर्वी
हे इन्द्र देव और वरुण देव! समस्त पुरुष और स्त्री एवं समस्त देवगण द्यावा- पृथ्वी स्वतः उद्यत होकर जब आपको स्तुति द्वारा वर्द्धित करते हैं, तब महमिान्वित होकर आप लोग उनके प्रभु बनें।[ऋग्वेद 6.68.4]
Hey Indr Dev & Varun Dev! You should become the lord of the all men & women with all demigods-deities who will automatically worship-pray to grow-promote you.
स इत्सुदानुः स्वँवा ऋतावेन्द्रा यो वां वरुण दाशति त्मन्।
इषा स द्विषस्तरेद्दास्वान्वंसद्रयिं रयिवतश्च जनान्
हे इन्द्र देव और वरुण देव! जो याजक आपको स्वयं हवि देता है, वह सुन्दर दान वाला और यज्ञशाली होता है। वही दाता जय प्राप्त अन्न के साथ शत्रुओं के हाथ से सुरक्षित रहकर धन और सम्पत्तिशाली पुत्र प्राप्त करता है।[ऋग्वेद 6.68.5]
GRACIOUS :: वैभवपूर्ण, सुख-सुविधापूर्ण, व्‍यक्ति या उसका अच्छा आचरण,  दयालु, नम्र और उदार; descent behaviour of a person, kind, polite and generous, showing the easy comfortable way of life that rich people can have.
Hey Indr Dev & Varun Dev! The Ritviz who make offerings to you become a gracious-glorious donor and performer of Yagy. That donor wins the enemies & remain protected, gets wealth and prosperous son.
यं युवं दाश्वध्वराय देवा रयिं धत्थो वसुमन्तं पुरुक्षुम्।
अस्मे स इन्द्रावरुणावपि ष्यात्प्र यो भनक्ति वनुषामशस्तीः
हे इन्द्र देव और वरुण देव! आप हविदाता को धनानुगामी और बहु अन्नशाली जो धन देते हैं और जिससे हम अपनी निन्दा करने वालों को दूर कर सकें, वैसा ही धन हमें प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.68.6]
Hey Indr Dev & Varun Dev! You grant wealth and various food grains to the one (who makes offerings in the Yagy for you). Grant us riches so that we can repel those who reproach us.
उत नः सुत्रात्रो देवगोपाः सूरिभ्य इन्द्रावरुणा रयिः ष्यात्।
येषां शुष्मः पृतनासु साह्रान्प्र सद्यो द्युम्ना तिरते ततुरिः
हे इन्द्र देव और वरुण देव! हम आपके स्तोता हैं। जो धन सुरक्षित है और जिसके रक्षक देवगण हैं, वही धन हम स्तोताओं को प्रदान करें। हमारा बल संग्राम में शत्रुओं को परास्त करने वाला और हिंसक होकर तत्काल उनके यज्ञ को नष्ट करे।[ऋग्वेद 6.68.7]
Hey Indr Dev & Varun Dev! We are your worshipers-Stotas. Grant us the wealth which is safe and protected by the demigods-deities. Our strength and power should be such that we are able to defeat the enemy in the war and destroy his Yagy-endeavours by becoming violent immediately.
नू न इन्द्रावरुणा गृणाना पृङ्क्तं रयिं सौश्रवसाय देवा।
इत्था गृणन्तो महिनस्य शर्धोऽपो न नावा दुरिता तरेम
हे इन्द्र देव और वरुण देव! आप लोग प्रार्थित होकर सुअन्न के लिए हमें शीघ्र धन प्रदान करें। हे देवों! आप लोग महान हैं। हम इस प्रकार आपके बल की प्रार्थना करते हैं। हम नौका द्वारा जल के समान पापों से मुक्त हो जावें।[ऋग्वेद 6.68.8]
Hey Indr Dev & Varun Dev! On being worshipped you grant us pious food grains quickly. Hey deities! You are great. In this manner we worship your might & power. Let us become free from the sins caused by water through boat.
I Delhi Yamuna river is extremely polluted. Maa ganga else where too face the same agony-trouble. Any one who take a dip in them invite numerous diseases-sins for him. Its advised not to enter these river for a bath or cross them. The governments are gross failure.
प्र सम्राजे बृहते मन्म नु प्रियमर्च देवाय वरुणाय सप्रथः।
अयं य उर्वी महिना महिव्रतः क्रत्वा विभात्यजरो न शोचिषा
जो वरुण देव महिमान्वित, महाकर्मा, प्रज्ञायुक्त तेज युक्त और अजर हैं, जो विस्तीर्ण हैं, वहीं धन हम स्तोताओं को प्रदान करें। हमारा बल संग्राम में शत्रुओं को परास्त करने वाला और हिंसक होकर तत्काल उनके यज्ञ को नष्ट करे।[ऋग्वेद 6.68.9]
Varun Dev, who is free form old age, glorious, performer of great deeds, aurous and vast; grant us-Stotas wealth-riches. Our war should be aimed-able to defeat the enemy by becoming violent and destroy their endeavours at the same moment.
इन्द्रावरुणा सुतपाविमं सुतं सोमं पिबतं मद्यं धृतव्रता।
युवो रथो अध्वरं देववीतये प्रति स्वसरमुप याति पीतये
हे इन्द्र देव और वरुण देव! आप सोमरस का पान करने वाले हैं; इसलिए इस मादक और अभिषुत सोमरस का पान करें। हे धृतव्रत मित्र और वरुणदेव! देवों के पान के लिए आपका रथ यज्ञ की ओर आता है।[ऋग्वेद 6.68.10]
धृतव्रत :: (1). जिसने कोई व्रत धारण किया हो, धार्मिक क्रिया करनेवाला, निष्ठाशील, जिसकी निष्ठा द्दढ़ हो, पुरुवेशीय जयद्रथ के पुत्र विजय का पौत्र।etermined-firm.
(2). वरुण देव के नियम सर्वदा ही निश्चित तथा दृढ हैं और इसीलिए उन्हें धृतव्रत कहा जाता है। स्वयं देवता भी इनके नियम का पालन करते हैं। शब्द का प्रयोग सविता-सूर्य  देव के लिये भी किया गया है।[ऋग्वेद 4.53.4]
Hey Indr Dev & Varun Dev! You drink Somras, hence drink this intoxicating and extracted Somras. Hey determined-firm Mitr & Varun Dev! Your charoite approaches the Yagy for the demigods  to drink Somras.
इन्द्रावरुणा मधुमत्तमस्य वृष्णः सोमस्य वृषणा वृषेथाम्।
इदं वामन्धः परिषिक्तमस्मे आसद्यास्मिन्बर्हिषि मादयेथाम्
हे कामवर्षी इन्द्र देव और वरुण देव! आप अतीव मधुर और मनोरथवर्षक सोमरस का पान करें। आपके लिए इस सोमरूप अन्न को बनाया गया है; इसलिए कुश के आसन पर बैठकर इस यज्ञ में सोमरस को ग्रहण करें।[ऋग्वेद 6.68.11]
Hey desires accomplishing Indr & Varun Dev! You should drink extremely-highly sweet and ambitions fulfilling Somras. Somras has been extracted for you from the food grains, hence sit over the Kush Mat and accept Somras in this Yagy.(06.11.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (69) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :- इन्द्र देव, विष्णु; छन्द :- विषुप्।
सं वां कर्मणा समिषा हिनोमीन्द्राविष्णू अपसस्पारे अस्य।
जुषेथां यज्ञं द्रविणं च धत्तमरिष्टैर्नः पथिभिः पारयन्ता
हे इन्द्र देव और श्री विष्णु! आपके निमित्त हम हवि और उत्तम स्तोत्र प्रेषित करते हैं। आप दोनों प्रसन्न होकर यज्ञ में पधारे और हमें धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.69.1]
Hey Indr Dev & Vishnu Dev! We make offering for you and recited excellent Strotr-sacred hymns. Both of you become happy with us and join the Yagy.
या विश्वासां जनितारा मतीनामिन्द्राविष्णू कलशा सोमधाना।
 प्र वो गिरः शस्यमाना अवन्तु प्र स्तोमासो गीयमानासो अर्कैः
हे इन्द्र देव और श्री विष्णु! आप स्तुतियों के पिता हैं। आप कलश स्वरूप और सोम के निधानभूत हैं। कहे जाने वाले स्तोत्र आपको प्राप्त होते हैं। स्तोताओं द्वारा गायन किए गए स्तोत्र आपको प्राप्त होते है।[ऋग्वेद 6.69.2]
Hey Indr Dev & Vishnu Dev! you are the father-source of the Strotr-Stutis. You are like the Kalash-pitcher & basis of som. The Strotr composed & recited by the worshipers are directed towards you. 
इन्द्राविष्णू मदपती मदानामा सोमं यातं द्रविणो दधाना।
सं वामञ्जन्त्वक्तुभिर्मतीनां सं स्तोमासः शस्यमानास उक्थैः
हे इन्द्र देव और श्री विष्णु! आप सोम के अधिपति हैं। धन देते हुए आप सोम के सम्मुख आवें। स्तोताओं के स्तोत्र, उक्थों के साथ आपको तेज द्वारा बढ़ायें।[ऋग्वेद 6.69.3]
उक्थ  :: श्लोक, स्तोत्र, कथन, कथन, उक्ति, स्तोत्र, सूक्ति, साम-विशेष, प्राण, ऋषभक नाम की औषधि; Strotr, Sukt, spelled, stated, hymns.
Hey Indr Dev & Shri Vishnu! You are the lord of Som. Come to Som while granting wealth. Enhance boost your aura with the compositions and recitations sacred hymns.
आ वामश्वासो अभिमातिषाह इन्द्राविष्णू सधमादो वहन्तु।
जुषेथां विश्वा हवना मतीनामुप ब्रह्माणि शृणुतं गिरो मे
हे इन्द्र देव और श्री विष्णु! हिंसकों को हराने वाले और एकत्रमत्त अश्वगण आपका वहन करें। स्तोताओं के समस्त स्तोत्रों का आप सेवन करें। मेरे स्तोत्रों और वचनों को भी श्रवण करें।[ऋग्वेद 6.69.4]
Hey Indr Dev & Shri Vishnu! Let the horses of the same nature, capable of defeating the violent enemy, carry you. Respond to all Strotr of the Stotas. Respond to my prayers-Strotr and requests as well.
इन्द्राविष्णू तत्पनयाय्यं वां सोमस्य मद उरु चक्रमाथे।
अकृणुतमन्तरिक्षं वरीयोऽप्रथतं जीवसे नो रजांसि
हे इन्द्र देव और श्री विष्णु! सोमरस का मद या हर्ष उत्पन्न होने पर आप लोग विस्तृतरूप से परिक्रमा करते है। आपने अन्तरिक्ष को विस्तृत किया। आपने लोकों को हमारे जीने के लिए प्रसिद्ध किया। आपके ये सब कर्म प्रशंसा योग्य हैं।[ऋग्वेद 6.69.5]
Hey Indr Dev & Shri Vishnu! You revolve comprehensively under the impact of Somras. You extended the space-universe. You made the abodes suitable for our living. All these endeavours of yours, deserve appreciation-applaud.
इन्द्राविष्णू हविषा वावृधानाग्राद्वाना नमसा रातहव्या।
घृतासुती द्रविणं धत्तमस्मे समुद्रः स्थः कलशः सोमधानः
घृत और अन्न से युक्त इन्द्र देव और श्री विष्णु! आप सोमरस के पान से बढ़ते हैं और सोम के अग्रभाग का भक्षण करते हैं। नमस्कार के साथ याजकगण आपको हव्य देते हैं। आप हमें धन प्रदान करें। आप लोग समुद्र की तरह हैं। आप सोम का भण्डार और कलश के रूप हैं।[ऋग्वेद 6.69.6]
Hey possessor of Ghee and food grains Indr Dev & Shri Vishnu! You boost by the consumption of Somras and eat the upper segment of Som. The Ritviz salute and make offerings to you. You are like the ocean. You are the store house of Som and appear like  Kalash.
इन्द्राविष्णू पिबतं मध्वो अस्य सोमस्य दस्त्रा जठरं पृणेथाम्।
आ वामन्यांसि मदिराण्यग्मन्नुप ब्रह्माणि शृणुतं हवं मे
हे दर्शनीय इन्द्र देव और श्री विष्णु! आप इस मदकारी सोमरस को पीकर उदर को भरें। आपके पास मदकर सोमरूप अन्न जावे। मेरा स्तोत्र और आवाहन ध्यानपूर्वक श्रवण करें।[ऋग्वेद 6.69.7]
Hey Indr Dev & Shri Vishnu! Fill your stomach with Somras. Let the intoxicating Som come to you as a food grain. Listen-respond to my invocation seriously.
उभा जिग्यथुर्न परा जयेथे न परा जिग्ये कतरश्चनैनोः।
इन्द्रश्च विष्णो यदपस्पृधेथां त्रेधा सहस्त्रं वि तदैरयेथाम्॥
हे इन्द्र देव और श्री विष्णु! आप विजयी होवें; कभी पराजित न होवें। आप दोनों में से कोई भी पराजित होने वाला नहीं है। आपने जिस वस्तु के लिए असुरों के साथ युद्ध किया, वह यद्यपि लोक, वेद और वचन के रूप में स्थित और असंख्य है, तथापि आपने अपनी वीरता से उसे प्राप्त किया।[ऋग्वेद 6.69.8]
Hey Indr Dev & Shri Vishnu! You should be a winner and never defeated. None of you can be defeated. Though the commodity for which you fought with the demons is available in unlimited quantum, like abode, Ved and words yet you obtained-attained it with your valour-bravery.(08.11.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (70) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :- द्यावा-पृथिवी; छन्द :- जगती।
घृतवती भुवनानामभिश्रियोर्वी पृथ्वी मधुदुघे सुपेशसा।
द्यावापृथिवी वरुणस्य धर्मणा विष्कभिते अजरे भूरिरेतसा
हे द्यावा-पृथ्वी! आप जलवती, भूतों के आश्रय स्थल, विस्तीर्णा, प्रसिद्धा, जल दोहन कर्त्री, सुरूपा, वरुण के धारित द्वारा पृथक्रूप से धारिता, नित्या और बहुकर्मा हैं।[ऋग्वेद 6.70.1]
Hey radiant earth & heavens! You are the asylum of living beings & possess various forms. You are forever & perform several endeavours, draws water from the wells supported by affectionate Varun Dev.
असश्चन्ती भूरिधारे पयस्वती घृतं दुहाते सुकृते शुचिव्रते।
राजन्ती अस्य भुवनस्य रोदसी अस्मे रेतः सिञ्चतं यन्मनुर्हितम्
असंगता, बहुधारावती, जलवती और शुचिकर्मा द्यावा-पृथ्वी, सुकृती व्यक्ति को आप जल प्रदान करती हैं। हे द्यावा-पृथ्वी! आप भुवनों की अधिष्ठता हैं। आप हर्षित होकर हमें हितकारी फल प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.70.2]
असंगता :: विसंगतता, असंबद्धता, बेमेल; inconsistency, inconsequence, irrelevance. 
Inconsistent, possessing several currents of water, performing pious deeds earth & the heavens; grant water to the person performing virtuous jobs. Hey earth & heavens! You are the lord of abodes. On being happy reward us beneficially.
यो वामृजवे क्रमणाय रोदसी मर्तो ददाश धिषणे स साधति।
प्र प्रजाभिर्जायते धर्मणस्परि युवोः सिक्ता विषुरूपाणि सव्रता
हे सर्व निवासभूता द्यावा-पृथ्वी! जो मनुष्य आपको सरल गमन के लिए यह देता है, उसका मनोरथ सिद्ध होता है और अपत्यों के साथ बढ़ता है। कर्मों के ऊपर आपके द्वारा सिक्तरेत नानारूप है और वह समानकर्मा उत्पन्न होता है।[ऋग्वेद 6.70.3]
Hey abode of all earth & heavens! One who make offerings to you for your following straight path-route, his desires are accomplished and progress alongwith his progeny and encouraged with your conduct-movement. Several beings performing identical deeds are born here.
घृतेन द्यावापृथिवी अभीवृते घृतश्रिया घृतपृचा घृतावृधा।
उर्वी पृथ्वी होतृवूर्ये पुरोहिते ते इद्विप्रा ईळते सुम्नमिष्टये
द्यावा-पृथ्वी जल द्वारा ढकी हुई और जल का आश्रय करती हैं। वे जल से ओत-प्रोत हैं, जलवर्षा विधायिनी और विस्तृता है, सिद्धा और यज्ञ में पुरस्कृता है। यज्ञ के लिए विद्वान उनसे सुख की याचना करता है।[ऋग्वेद 6.70.4]
सिद्ध :: पूरा, निपुण, प्रमाणित, पूर्ण, निर्मित, पूरा, दोषहीन, निर्दोष, निपुण, प्रमाणित; proven, perfect, proved, finished.
Earth & heavens are covered with water and asylum the water. They are saturated with water, causes rains, perfect, vast-comprehensive, accomplished and rewarded in the Yagy. The enlightened worship-pray them for comforts-pleasure.
मधु नो द्यावापृथिवी मिमिक्षतां मधुश्चता मधुदुधे मधुव्रते।
दधाने यज्ञं द्रविणं च देवता महि श्रवो वाजमस्मे सुवीर्यम्
जल का क्षरण करने वाली, जल दूहने वाली, उदक कर्मा देवी तथा यज्ञ, धन, महान यश, अन्न और वीर्य देने वाली द्यावा-पृथिवी हमें मधु से सिंचित करे [ऋग्वेद 6.70.5]
क्षरण :: क्षीण होना, रिसना; corrosion, abrosia.
Let the water loosing, extracting, utilizing, Yagy conducting, possessor of great wealth, name fame and strengthening earth & the heavens nourish us with honey. 
ऊर्जनो द्यौश्च पृथिवी च पिन्वतां पिता माता विश्वविदा सुदंससा।
संरराणे रोदसी विश्वशंभुवा सनिं वाजं रयिमस्मे समिन्वताम्
हे पिता द्युलोक और माता पृथ्वी देवी! हमें अन्न प्रदान करें। संसार को जानने वाली, सुकर्मा परस्पर रममाण और सबको सुख प्रदान करने वाली द्यावा- पृथ्वी आप हमें पुत्र-पौत्रयुक्त, अन्न, बल, यश और धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.70.6]
Hey fatherly heavens and motherly earth! Grant us food grains. Aware of the universe, virtuous, performing pious deeds-endeavours, granting pleasure-comforts to all, grant us sons & grandsons, food grains, strength, name & fame and wealth.(09.11.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (71) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :- सविता; छन्द :- जगती, त्रिष्टुप्।
उदु ष्य देवः सविता हिरण्यया बाहू अयंस्त सवनाय सुक्रतुः।
घृतेन पाणी अभि प्रुष्णुते मखो युवा सुदक्षो रजसो विधर्मणि
वही सुकृति (दिव्य और परोपकारी) सविता देवता दान के लिए हिरण्मय भुजाओं को ऊपर उठाते हैं। विशाल, तरुण और विद्वान सविता देव संसार की रक्षा के लिए दोनों जलमय भुजाओं को प्रेरित करते हैं।[ऋग्वेद 6.71.1]
परोपकारी :: भलाई करनेवाला; philanthropic, beneficent.
Divine and beneficent Savita Dev raise his golden arms for donating-charity. Large, young and enlightened Savita Dev extend both of his hands possessing water, for the protection of the universe.
देवस्य वयं सवितुः सवीमनि श्रेष्ठे स्याम वसुनश्च दावने।
यो विश्वस्य द्विपदो यश्चतुष्पदो निवेशने प्रसवे चासि भूमनः
हम उन्हीं सविता देव के प्रसव कर्म और प्रशस्त धनदान के विषय में समर्थ होवें। हे सविता देव! आप समस्त द्विपदों और चतुष्पदों की स्थिति और प्रसव (उत्पत्ति) में समर्थ हैं।[ऋग्वेद 6.71.2]
प्रसव :: वितरण, प्रतिपादन, भाषण, जनन, छुटकारा, प्रसूति, जनना, जन्म संख्या, जनना; delivery, childbirth, childbearing.
प्रशस्त :: प्रशंसा किया हुआ, प्रशंसा योग्य; appreciable, expansive, smashing.
We should be capable of Savita Dev's delivery, related functions and smashing donations. You are capable of performing delivery of two hoofed and four hoofed animals.
अदब्धेभिः सवितः पायुभिष्टं शिवेभिरद्य परि पाहि नो गयम्।
हिरण्यजिह्वः सुविताय नव्यसे रक्षा माकिर्नो अघशंस ईशत
हे सविता देव! आप आज अहिंसित और सुखावह तेज के द्वारा हमारे गृहों की रक्षा करें। सुवर्ण जिह्वा वाले देव आप हमें नवीन सुख प्रदान करें और हमारी रक्षा करें। हमारा अहित करने वाला व्यक्ति प्रभुत्व न करने पायें।[ऋग्वेद 6.71.3]
Hey Savita Dev! Protect our homes with your non violent and comforting energy. Grant us new comforts-pleasures with your golden tongue & protect us. A person who wish to harm should not be able to control us.
उष्टुष्य देवः सविता दमूना हिरण्यपाणिः प्रतिदोषमस्थात्।
अयोहनुर्यजतो मन्द्रजिह्व आ दाशुषे सुवति भूरि वामम्
शान्तमना, हिरण्यहस्त, हिरण्मयहनु वाले, यश के योग्य और मनोहर वचन वाले वही सविता देव रात्रि के अन्त में जागृत हों। वे हव्यदाता को यथेष्ट अन्न व धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.71.4]
Let Savita Dev who is calm-quite, possessing golden hands and golden chin, fame deserving with attractive voice, awake at the end of night. He grant sufficient food grains and wealth to the one who make offerings.
उर्दू अयाँ उपवक्तेव बाहू हिरण्यया सविता सुप्रतीका।
दिवो रोहांस्यरुहत्पृथिव्या अरीरमत्पतयत् कच्चिदभ्वम्
हे सविता देव! अधिवक्ता के तुल्य हिरण्मय और शोभनांश, दोनों भुजाओं को उठावें। वे पृथ्वी से द्युलोक के उन्नत प्रदेश में चढ़ते हैं। गतिशील, जो कुछ महान् वस्तुएँ हैं, वे सबको प्रसन्न करते हैं।[ऋग्वेद 6.71.5]
Hey Savita Dev! Let Savita Dev raise his golden & beautiful arms like an orator. He rise from the earth to elevated regions of heavens. Dynamic, he make make all glorious materials happy.
वाममद्य सवितर्वाममु श्वो दिवेदिवे वाममस्मभ्यं सावीः।
वामस्य हि क्षयस्य देव भूरेरया धिया वामभाजः स्याम
हे सविता देव! आज हमें धन देवें। कल हमें धन देना। प्रतिदिन हमें धन देना। हे देव! आप निवासभूत प्रचुर धन के दाता हैं, इस भावना के अनुसार हम श्रेष्ठ प्राप्त करें।[ऋग्वेद 6.71.6]
Hey Savita Dev! Grant us wealth, today, tomorrow and everyday. Hey deity! "You are a big donor of wealth", let us obtain excellent house-residence with this feeling-sentiment.(09.11.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (72) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :- इन्द्रदेव, सोमा;  छन्द :- त्रिष्टुप्।
इन्द्रासोमा महि तद्वां महित्वं युवं महानि प्रथमानि चक्रथुः।
युवं सूर्यं विविदथुर्युवं स्व ९ विश्वा तमांस्यहतं निदश्च
हे इन्द्र देव और सोम देव! आपकी महिमा महान है। आपने महान और मुख्य भूतों को बनाया आपने सूर्य और जल को प्राप्त किया। आपने समस्त अन्धकारों और निन्दकों को दूर किया।[ऋग्वेद 6.72.1]
निन्दक :: अपमानकारी, अपवादी, उपहासात्मक, मुँहफट, बुराई करने वाला, मानव द्वेषी; चुगलखोर, आक्षेपक, निन्दोपाख्यान लेखक, उपहासात्मक; detractor, slanderer, cynical, cynic, backbiter, denigrator, satirist, satirical.
Hey Indr Dev & Som Dev! Your glory is great-ever lasting. You created great material and obtained Sun and water. You repelled all sorts of darkness and detractor, slanderer, satirical.
इन्द्रासोमा वासयथ उषासमुत्सूर्य नयथो ज्योतिषा सह।
उप द्यां स्कम्भथुः स्कम्भनेनाप्रथतं पृथिवीं मातरं वि
हे इन्द्र देव और सोम देव! आप उषा को प्रकाशित करें और सूर्य देव को ज्योति के साथ ऊपर उठावें तथा अन्तरिक्ष के द्वारा द्युलोक को स्तम्भित करें। माता पृथ्वी को प्रसिद्ध करें।[ऋग्वेद 6.72.2]
Hey Indr Dev and Som Dev! Let Usha appear and the Sun rise up with his light and make the heavens stable in respect of the space.  Make mother earth famous.
इन्द्रासोमावहिमपः परिष्ठां हथो वृत्रमनु वा द्यौरमन्यत।
प्रार्णांस्यैरयतं नदीनामा समुद्राणि पप्रथुः पुरूणि
हे इन्द्र देव और सोम देव! जल को रोकने वाले अहि वृत्रासुर का वध करें। द्युलोक ने आपको संवर्द्धित किया। नदी के जल को प्रेरित करके, जल द्वारा समुद्र को पूर्ण करें।[ऋग्वेद 6.72.3]
Hey Indr Dev & Som Dev! Kill Vratra Sur who blocked the flow of water. The heavens have grown-nourished, nurtured you. Inspire the river waters to fill the oceans.
इन्द्रासोमा पकमामास्वन्तर्नि गवामिद्दद्यथुर्वक्षणासु।
जगृभथुरनपिनद्धमासु रुशच्चित्रासु जगतीष्वन्तः
हे इन्द्र देव और सोम देव! आपने कम उम्र वाली गौओं के थनों में परिपक्व दूध को स्थापित किया। नाना वर्ण की गौओं में आपने आबद्ध और शुक्लवर्ण दुग्ध को धारित कराया।[ऋग्वेद 6.72.4]
Hey Indr Dev & Som Dev! You generated ripe milk in the udders of immature cows. Cows of various colours produce white milk.
इन्द्रासोमा युवमङ्ग तरुत्रमपत्यसाचं श्रुत्यं रराथे।
युवं शुष्मं नर्यं चर्षणिभ्यः सं विव्यथुः पृतनाषाहमुग्रा
हे इन्द्र देव और सोम देव! आप लोग तारक, सन्तानयुक्त और श्रवणयोग्य धन हमें शीघ्र प्रदान करें। हे उग्र इन्द्र देव और सोम देव! मनुष्यों के लिए हितकर और शत्रु सेना को पराजित करने वाले बल को आप हमें प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.72.5]
Hey Indr Dev & Som Dev! Grant us the wealth which is purifying, help in release from reincarnations, associated with progeny, good to listen-heard, quickly. Hey furious Indr Dev & Som Dev! Grant us might which is beneficial to the humans and capable of defeating the enemy army.(10.11.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (73) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :- बृहस्पति; छन्द :- त्रिष्टुप्। 
यो अद्रिभित्प्रथमजा ऋतावा बृहस्पतिराङ्गिरसो हविष्मान्।
द्विबर्हज्मा प्राघर्मसत्पिता न आ रोदसी वृषभो रोरवीति
जिन बृहस्पति देव ने पर्वत को तोड़ा, जो सबसे पहले उत्पन्न हुए, जो सत्य रूप, अङ्गिरा और यज्ञ पात्र हैं, जो दोनों लोकों में भली-भाँति जाते हैं, जो प्रदीप्त स्थान में रहते हैं और जो हम लोगों के पालक हैं, वही बृहस्पतिदेव, वर्षक होकर द्यावा-पृथ्वी में गर्जना करते हैं।[ऋग्वेद 6.73.1]
Brahaspati Dev who broke the mountains, born first of all, truthful, Angira & Yagy deserving, aware of both abodes, resides in a radiant place, support us, that Brahaspati Dev become rain showering and thunder in over the earth & heavens.
जनाय चिद्य ईवत उ लोकं बृहस्पतिर्देवहूतौ चकार।
घ्नन्वृत्राणि वि पुरो दर्दरीति जयञ्छत्रूँरमित्रान्पृत्सु साहन्
जो बृहस्पति देव में स्तोता को स्थान देते हैं, वहीं वृत्तों या आवरक अन्धकारों को विनष्ट करते हैं, युद्ध में शत्रुओं को पराजित करते हैं। द्वेषियों को परास्त कर असुरपुरियों को अच्छी तरह नष्ट करते हैं।[ऋग्वेद 6.73.2]
Those who consider Brahaspati Dev as a Stota, remove the darkness, defeat the enemies in the war. Defeat the envious and destroy the forts-cities of the demons.
बृहस्पतिः समजयद्वसूनि महो व्रजान् गोमतो देव एषः।
अपः सिषासन्त्स्व १ रप्रतीतो बृहस्पतिर्हन्त्यमित्रमर्कैः
इन्हीं बृहस्पति देव ने असुरों का धन और गौओं के साथ गोचरों को भी जीता। अप्रतिगत होकर यज्ञकर्म द्वारा भोग करने की इच्छा करके बृहस्पति देव स्वर्ग के शत्रुओं का मन्त्र द्वारा विनाश करते हैं।[ऋग्वेद 6.73.3]
Brahaspati Dev won the wealth of the demons & cows including the grass lands for grazing. Brahaspati Dev can not be stopped-blocked by any one and he destroy the enemies of the heavens by Mantr Shakti.(10.11.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (74) :: ऋषि :- भरद्वाज बार्हस्पत्य; देवता :- सोम, रुद्र;  छन्द :- त्रिष्टुप्।
सोमारुद्रा धारयेथामसुर्यं १ प्र वामिष्टयोऽरमश्नुवन्तु।
दमेदमे सप्त रत्ना दधाना शं नो भूतं द्विपदे शं चतुष्पदे
हे सोमदेव और रुद्रदेव! आप हमें असुर सम्बन्धी बल प्रदान करें। समस्त यज्ञ आपको प्रतिगृह में अच्छी तरह व्याप्त करें। आप सप्त रत्न धारित करते हैं; इसलिए हमारे लिए आप सुखकर होवें और मनुष्यों और पशुओं के लिए भी कल्याणकारी बनें।[ऋग्वेद 6.74.1]
Hey Som Dev & Rudr Dev! You have granted us strength pertaining to the demons. Let all Yagy pervade your house-Ashram. You wear seven jewels and hence you should be beneficial to us & the animals.
सोमारुद्रा वि वृहतं विषूचीममीवा या नो गयमाविवेश।
आरे बाधेथां निर्ऋतिं पराचैरस्मे भद्रा सौश्रवसानि सन्तु
हे सोमदेव और रुद्रदेव! जो रोग हमारे गृह में प्रवेश किया हुआ है, उसी संक्रामक रोग को हमसे दूर करें। ऐसी बाधा दें, जिससे दरिद्रता का नाश हो और हम अन्न सहित सुख से रहें।[ऋग्वेद 6.74.2]
Hey Som Dev & Rudr Dev! Repel the infectious diseases from our homes. Break the hurdles so that the poverty is lost and we are comfortable and have food grains.
सोमारुद्रा युवमेतान्यस्मे विश्वा तनूषु भेषजानि धत्तम्।
अव स्यतं मुञ्चतं यन्नो अस्ति तनूषु बद्धं कृतमेनो अस्मत्
हे सोम देव और रुद्र देव! हमारे शरीर के लिए सर्व प्रसिद्ध औषध धारित करें। हमारे किए हुए पाप, जो शरीर में निबद्ध हैं, उसे शिथिल करें, हमसे दूर करें।[ऋग्वेद 6.74.3]
Hey Som Dev & Rudr Dev! Recommend suitable medicines for our bodies. Repel-calm down the sins present in our bodies as ailments.
तिग्मायुधौ तिग्महेती सुशेवौ सोमारुद्राविह सु मृळतं नः।
प्र नो मुञ्चतं वरुणस्य पाशाद्गोपायतं नः सुमनस्यमाना
हे सोमदेव और रुद्रदेव! आपके पास दीप्त धनुष और तीक्ष्ण बाण है। आप लोग सुन्दर सुख प्रदान करते है। शोभन स्तोत्र की अभिलाषा करते हुए हमें इस संसार में अत्यन्त सुखी करें। आप हमें वरुण देव के पाश से मुक्त करके हमारी रक्षा करें।[ऋग्वेद 6.74.4]
Hey Som Dev & Rudr Dev! You have radiant bows & sharp arrows. You grant us comforts. Make us happy with the desire of beautiful Strotr. Make us free from the cutches-cord of Varun Dev & protect us.(10.11.2023)
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (75) :: ऋषि :- पायु भरद्वाज; देवता :- वर्म, धनु, सारथि, रथादि; छन्द :- त्रिष्टुप् जगती, अनुष्टुप् पंक्ति।
जीमूतस्येव भवति प्रतीकं यद्वर्मी याति समदामुपस्थे।
अनाविद्धया तन्वा जय त्वं स त्वा वर्मणो महिमा पिपर्तु
युद्ध प्रारम्भ हो जाने पर जब राजा जिस समय लौहमय कवच पहन कर जाता है, समय मालूम पड़ता है कि यह साक्षात् मेघ हैं। राजन् अविद्ध शरीर रहकर विजय प्राप्त करें। उस कवच की महान शक्ति आपकी रक्षा करे।[ऋग्वेद 6.75.1]
When the king wear the iron shield over his chest and come to the battle field, he appears like clouds. Let the king attain victory without being pierced by the arrows. Let the power of great shield protect him.
धन्वना गा धन्वनाजिं जयेम धन्वना तीव्राः समदो जयेम।
धनुः शत्रोरपकामं कृणोति धन्वना सर्वाः प्रदिशो जयेम
हम धनुष के द्वारा शत्रुओं की गौवों को जीतेंगे, युद्ध जीतेंगे और मदोन्मत्त शत्रुओं के सेना का वध करेंगे। शत्रुओं की अभिलाषा धनुष से नष्ट करेंगे। हम इस धनुष से समस्त दिशाओं में स्थित शत्रुओं का विनाश करेंगे।[ऋग्वेद 6.75.2]
We will win the cows of the enemy with the power of the bow and kill their intoxicated armies. We will destroy the ambitions of the enemy with the bow. We will destroy the enemies with the bow in all directions. 
वक्ष्यन्तीवेदा गनीगन्ति कर्णं प्रियं सखायं परिषस्वजाना।
योषेव शिङ्क्ते वितताधि धन्वञ्ज्या इयं समने पारयन्ती
धनुष की यह ज्या युद्ध बेला में युद्ध से पार ले जाने की इच्छा करके मानो प्रिय वचन बोलने के लिए ही धनुर्धारी के कान के पास आती है। जिस प्रकार से स्त्री प्रिय पति का आलिङ्गन करके बात करती है, उसी प्रकार यह ज्या भी बाण का आलिङ्गन करके ही शब्द करती है।[ऋग्वेद 6.75.3]
The cord of the bow reach the ears of the archer during the war, as if it wants to speak lovely words to him. The way a wife embrace her husband; this cord too embrace the arrow and make sound.
ते आचरन्ती समनेव योषा मातेव पुत्रं बिभृतामुपस्थे।
अप शत्रून्विध्यतां संविदाने र्त्नी इमे विष्फुरन्ती अमित्रान्
वे दोनों कोटियाँ अन्य मनस्का स्त्री की तरह आचरण करके शत्रुओं के ऊपर आक्रमण करते समय माता की तरह पुत्र तुल्य राजा की रक्षा करती हैं और अपने कार्य को भली-भाँति जानकर जाते हुए इस राजा के द्वेषी शत्रुओं का वेधन करती हैं।[ऋग्वेद 6.75.4]
Both these items (bow & arrow) behave like a woman inclined to some one else, behaves like a mother and protect the king like a son, understanding fully well its job and pierce the envious enemies.
बह्वीनां पिता बहुरस्य पुत्रश्चिश्चा कृणोति समनावगत्य।
इषुधिः सङ्काः पृतनाश्च सर्वाः पृष्ठे निनद्धो जयति प्रसूतः
यह तूणीर अनेक बाणों का पिता है। कितने ही बाण इसके पुत्र हैं। बाण निकालने के समय यह तूणीर “त्रिश्वा" शब्द करता है। यह योद्धा के पृष्ठ देश में निबद्ध रहकर युद्धकाल में बाणों का प्रसव करता हुआ समस्त सेना को जीत लेता है।[ऋग्वेद 6.75.5]
This quiver is the father of several arrows. Many arrows are its son. Quiver makes the sound trishrava while taking the arrow out of it. It stays over the back of the warrior and during the war it evolves the arrows and wins the whole army.
रथे तिष्ठन्नयति वाजिनः पुरो यत्रयत्र कामयते सुषारथिः।
अभीशूनां महिमानं पनायत मनः पश्चादनु यच्छन्ति रश्मयः
सुन्दर सारथि रथ में अवस्थान करके आगे के घोड़ों को जहाँ इच्छा होती है, वहाँ ले जाता है। रस्सियाँ अश्वों के तक फैल कर और अश्वों के पीछे फैलकर सारथि के मन के अनुकूल नियुक्त होती हैं।[ऋग्वेद 6.75.6]
The charioteer deploy the horses and takes the charoite as per his wish. Reins extend till the gorge of the mouth of the horse and fixed as per need of the charioteer.
तीव्रान् घोषान् कृण्वते वृषपाणयोऽश्वा रथेभिः सह वाजयन्तः।
अवक्रामन्तः प्रपदैरमित्रान् क्षिणन्ति शत्रूंरनपव्ययन्तः
अश्व टापों से धूल उड़ाते हुए और रथ के साथ संवेग जाते हुए हिनहिनाते हैं तथा पलायन न करके हिंसक शत्रुओं को टापों-खुरों से पीटते हैं।[ऋग्वेद 6.75.7]
The horses raise dust and neigh running with speed and attack the enemies with their hoofs.
रथवाहनं हविरस्य नाम यत्रायुधं निहितमस्य वर्म।
तत्रा रथमुप शग्मं सदेम विश्वाहा वयं सुमनस्यमानाः
जिस प्रकार से हव्य अग्नि को बढ़ाता है, उसी प्रकार इस राजा के रथ द्वारा वहन किया जाने वाला धन इसे वर्द्धित करे। रथ पर इस राजा के अस्त्र, कवच आदि रहते हैं। हम सदा प्रसन्नचित्त से उस सुखावह रथ के पास जाते हैं।[ऋग्वेद 6.75.8]
The manner in which offerings raise the fire, the wealth carried in the charoite make the king prosper. The charoite carries the shield and weapons of the king. We approach the comfortable-blissful charoite happily.
स्वादुषंसदः पितरो वयोधाः कृच्छ्रश्रितः शक्तीवन्तो गभीराः।
चित्रसेना इषुबला अमृध्राः सतोवीरा उरवो व्रातसाहाः
रथ के रक्षक शत्रुओं के सुस्वादु अन्न को नष्ट करके अपने पक्ष के लोगों को अन्न प्रदान करते हैं। विपत्ति के समय इनका आश्रय लिया जाता है। ये शक्तिमान, गंभीर, विचित्र सेना से युक्त, बाण बल सम्पन्न अहिंसक, वीर, महान और अनेक शत्रुओं को जीतने में समर्थ हैं।[ऋग्वेद 6.75.9]
Protectors of the charoite destroy the tasty food of the enemy and grant food grains to the people on their side. Asylum is sought under them during calamity-disaster. They are mighty, serious, possess amazing armies, have the power of arrows, brave, great and capable of winning the enemy.
ब्राह्मणासः पितरः सोम्यासः शिवे नो द्यावापृथिवी अनेहसा।
पूषा नः पातु दुरिताद् ऋतावृधो रक्षा माकिर्नो अघशंस ईशत
हे ब्राह्मणो, पितरों और यज्ञ वर्द्धक सोम सम्पादक! आप हमारी रक्षा करें। पाप शून्या द्यावा-पृथ्वी हमारे लिए सुखकारी हों। पूषा हमें पाप से बचावें। हमारा पापी शत्रु अपना प्रभुत्व स्थापित न करने पावे।[ऋग्वेद 6.75.10]
Hey Brahmans, Manes and promotor of the Yagy, Som! Protect us. Let the sinless earth & heavens comfortable to us. Let Pusha save us from sins. The sinful enemy should not be able to impose his dominion.
सुपर्णं वस्ते मृगो अस्या दन्तो गोभिः संनद्धा पतति प्रसूता।
यत्रा नरः सं च वि च द्रवन्ति तत्रास्मभ्यमिषवः शर्म यंसन्
बाण शोभन पंख धारित करता है। इसका दाँत मृगश्रृंग है। यह ज्या अथवा गोचर्म से अच्छी तरह बद्ध है। यह प्रेरित होकर पतित होता है। जहाँ मनुष्य एकत्र या पृथकरूप से विचरण करते हैं, वहाँ यह बाण हमें शरण प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.75.11]
The arrows have feathers. Its teeth are made of deer's horns. Its covered with cow skin. It strikes on being aimed. Let the arrows grant us shelter, where the people gather or roam separately.
ऋजीते परि वृङ्धि नोऽश्मा भवतु नस्तनूः।
सोमो अधि ब्रवीतु नोऽदितिः शर्म यच्छतु
बाण हमें परिवर्द्धित करें। हमारा शरीर पाषाण के समान है। सोमदेव हमें उत्साहित करें और देवमाता अदिति हमें सुख प्रदान करें।[ऋग्वेद 6.75.12]
Let arrows enhance-boost us. Our bodies are like the rocks. Let Som Dev encourage us and Dev Mata Aditi grant us pleasure.
आ जङ्घन्ति सान्वेषां जघनाँ उप जिघ्नते।
अश्वाजनि प्रचेतसोऽश्वान्त्समत्सु चोदय
कशा (चाबुक), प्रकृष्ट ज्ञानी सारथि लोग आपके द्वारा अश्वों के उरु और जघन में मारते हैं। संग्राम में आप अश्वों को प्रेरित करें।[ऋग्वेद 6.75.13]
The trained charioteer strike the femur and thigh with whip. Encourage the horses in the battle-war.
अहिरिव भोगैः पर्येति बाहुं ज्याया हेतिं परिबाधमानः।
हस्तघ्नो विश्वा वयुनानि विद्वान्पुमान्पुमांसं परि पातु विश्वतः
हस्तघ्न ज्या के आघात का निवारण करता हुआ सर्प के सदृश शरीर के द्वारा प्रकोष्ठ को परिवेष्टित करता है, समस्त ज्ञातव्य विषयों को जानता है और पौरुषशाली होकर चारों ओर से रक्षण करता है।[ऋग्वेद 6.75.14]
The ward of the fore-arm protect it from the abrasion of the bow-string, surrounds the arm like a snake with its convolutions. Let the brave man, expert in warfare, defend a combatant all from four directions.
आलाक्ता या ररुशीष्र्ण्यथो यस्या अयो मुखम्।
इदं पर्जन्यरेतस इष्वै देव्यै बृहन्नमः
जो विषाक्त है, जिसका अग्रभाग हिंसक और और जिसका मुख लौहमय है, उसी पर्जन्य से उत्पन्न विशाल बाण देवता को हमारा नमस्कार है।[ऋग्वेद 6.75.15]
We salute Parjany out of whom the large deity Van-arrow appear, which is poisonous, with harmful tips & iron mouthed.
अवसृष्टा परा पत शरव्ये ब्रह्मसंशिते।
गच्छामित्रान्प्र पद्यस्व मामीषां कं चनोच्छिषः
मंत्र प्रयोग से तीक्ष्ण किए गए हे बाण रूप अस्त्र! हमारे द्वारा छोड़े जाने पर आप शत्रुओं की सेना पर एक साथ प्रहार करें। उनके शरीर में प्रविष्ट होकर आप सभी का सर्वनाश करें और शत्रुओं को जीवित न छोड़े।[ऋग्वेद 6.75.16]
Sharpened with Mantr Shakti, hey weapon in the form of arrow! Strike the enemy on being shot by us. Pierce their bodies and destroy them all.
यत्र बाणाः संपतन्ति कुमारा विशिखाइव।
तत्रा नो ब्रह्मणस्पतिरदितिः शर्म यच्छतु विश्वाहा शर्म यच्छतु
मुण्डित कुमारों की तरह जिस युद्ध में बाण गिरते हैं, उसमें हमें ब्रह्मण स्पति और माता अदिति सुख प्रदान कर हमारा कल्याण करें।[ऋग्वेद 6.75.17]
Let Brahman Spati and Mata Aditi grant us comforts-pleasure and benefit us the manner in which the arrows fall in the war like the shaved heads.
मर्माणि ते वर्मणा छादयामि सोमस्त्वा राजामृतेनानु वस्ताम्।
उरोर्वरीयो वरुणस्ते कृणोतु जयन्तं त्वानु देवा मदन्तु
हे राजन्! आपके शरीर के मर्मस्थानों को कवच से आच्छादित कर रहा हूँ। सोम राजा आपको अमृत द्वारा आच्छादित करें, वरुण देव आपको श्रेष्ठ से भी श्रेष्ठतम सुख प्रदान करें। आपके विजयी होने पर देवगण हर्षित होवें।[ऋग्वेद 6.75.18]
Hey king! I am covering your sensitive organs with the shield. Let Som Dev cover you with elixir-nectar & Varun Dev grant you excellent pleasures. Let the demigods-deities become happy with your victory.
यो नः स्वो अरणो यश्च निष्ट्यो जिघांसति।
देवास्तं सर्वे धूर्वन्तु ब्रह्म वर्म ममान्तरम्
जो कुटुम्बी हमारे प्रति प्रसन्न न होकर जो हमसे अलग रहकर हमारे वध की इच्छा रखते हैं, उन्हें सभी देवता गण नष्ट कर दें। हमारे लिए तो वेदमन्त्र ही बाण निवारक कवच है।[ऋग्वेद 6.75.19]
Let the demigods-deities destroy the people of our clan, who separate from us and wish to kill us.  Let the Ved Mantr be protective to us from arrows like a shield.(13.11.2023)
By the grace of Almighty, Ganpati, Maa Saraswati and Bhagwan Ved Vyas this chapter has been completed today i.e., 13.11.2023 and devoted to my parents & grand parents.


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संतोष महादेव-धर्म विद्या सिद्ध व्यास पीठ (बी ब्लाक, सैक्टर 19, नौयडा)